जुलाई १, आश्रम सुबह सात बजे।
आज आश्रम के सभी निवासी आचार्य ब्रह्मदेव के आग्रह पर साधना कक्ष में मौजूद थे। साधना कक्ष एक कांफ्रेंस हॉल में परिणत हो चुका था और बैठने के लिए करीने से कुर्सियां लगा दी गयी थी। सभी कुर्सियों का मुख मंच की ओर था और आचार्य ब्रह्मदेव मंच पर न होकर नीचे लगे सोफे पर बैठकर सभी से मुखातिब थे। उनके दायीं ओर महंत जी और बाईं और सरस्वती अलग अलग सोफे पर मौजूद थी। सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि आचार्य ब्रह्मदेव अकेले न होकर अर्जुन देव के साथ मौजूद थे जिसका दर्ज़ा उनके गुरुभाई का था। बड़े दिनों के बाद दोनों को एक साथ देखा गया था वरना इन्हें हमेश एकांत में ही रहने कि आदत थी। एक तरफ ऐसे मौकों पर अनुपस्थित रहने वाला आनंद कुमार एक लैपटॉप के साथ मौजूद था।
रजनी अभी तक लौटा नहीं था इसलिए उसकी जिम्मेदारी आश्रम के ही पुराने अस्थायी मुलाजिम खुदीराम ने ले ली थी और वह श्याम के साथ मौजूद था। इन सबके अलावा कुल छ: स्थाई रूप से रहने वाले केयरटेकर भी मौजूद थे जिनमें एक नया गेटकीपर अनिरुद्ध भी मौजूद था जिसकी नियुक्ति दयाल की हत्या के बाद की गयी थी। सरस्वती की रिसेप्शनिस्ट तान्या की गिनती भी इन केयरटेकर में ही होती थी। इन सत्रह लोगों के अतिरिक्त आश्रम के आठ सन्यासी भी मौजूद थे जिन्हें यहाँ आये साल भर से भी ऊपर हो चुके थे। इनमे तीन स्त्रियाँ भी थी। भुवन मोहिनी की हत्या की रात कुल २७ मेहमान मौजूद थे पर इनकी गिनती अब सात में सिमट गयी थी। इन सात में ताशी, अल्फांसे, राधा और कन्हैय्या के अलावा तीन और लोग मौजूद थे। उस रात नए लोगों को आने देना मुनासिब नहीं समझा गया था, बीस लोग लौट चुके थे। राधा ने नेपाल का कार्यक्रम कुछ घंटों के लिए मुल्तवी कर दिया था।
कुछ सिक्यूरिटी गार्ड्स और भी थे जिनकी ड्यूटी दिन के वक़्त होती थी उनमें से तीन आश्रम के विभिन्न हिस्सों में अपनी ड्यूटी बजा रहे थे। बाहर के लोगों के लिए आश्रम अभी भी बंद ही था।
सबसे पहले सरस्वती उठी।
अभिवादन के बाद उसने बोलना शुरू किया,
“बहुत दिनों बाद आश्रम के सभी सदस्यों को एक साथ देखकर अच्छा लग रहा है। जैसा कि आप लोगों को बताया गया था ये मीटिंग डिस्कशन के लिए है किसी डिस्कोर्स के लिए नहीं। आप लोगों को मालूम ही है कि हम लोगों को बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी गयी है। बौद्ध धर्म के दो बड़े विद्वान जिनका दर्जा तुल्कू का है...।”
“बीच में रोकने के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ मैडम पर तुल्कू से आपका क्या अभिप्राय है।” अल्फांसे ने पूछा।
सरस्वती के कुछ कहने से पहले ही ताशी बोल पड़ा, “मैं बताता हूँ। हमारे तिब्बत के बौद्ध धर्म में अपने अगले जन्म को अपनी इच्छानुसार चुनने की परंपरा है। इन्हें ही तुल्कू कहते हैं। जैसे की हमारे दलाई लामा की एक ही आत्मा परंपरा से हर बार नया शरीर धारण करती है। ठीक है न गुरुदेव?” ताशी ने आचार्य ब्रह्मदेव की ओर देखा।
आचार्य ब्रह्मदेव हंस पड़े, “लगता है आपने गूगल गुरु के सानिध्य में ज्ञान अर्जन किया है। यह कोई परंपरा नहीं है मोहदय। बौद्ध धर्म हमें इन जन्म मरण से बाहर निकलने की कला सिखाता है, तुल्कू बनकर भटकना नहीं। फिर भी शाब्दिक तौर पर हम अभी के लिए ताशी महोदय की परिभाषा स्वीकार कर लेते हैं।”
अल्फांसे ने ताशी को आँख मारी। ताशी खिसियाकर दूसरी तरफ देखने लगा।
सरस्वती ने पुनः आपनी बात जारी रखी, “तो हमारे तो सम्मानित मेहमान अपने दो सहयोगियों के साथ हमारे आश्रम में अगली पांच तारीख को पधार रहे हैं। दिन में यहाँ हम लोगों को संबोधित कर संध्या पांच बजे हवेली के लिए प्रस्थान करेंगे। वहां हमारे एक और खास मेहमान यानी चीन के विदेश मत्री पधारेंगे और आचार्य जी के साथ एक मीटिंग में शिरकत करेंगे। हम चाहते थे कि हम सभी लोग उस मीटिंग का हिस्सा बने पर सुरक्षा कारणों से इसकी इजाज़त नहीं मिली। आचार्य जी के साथ केवल दो लोगों को रहने कि अनुमति मिली है। आदेशानुसार मैं तो वहाँ रहूंगी ही साथ ही चूँकि एक दुर्भाषिये कि ज़रुरत है इसलिए आनंद जी भी हमारे साथ सम्मलित होंगे। कार्यक्रम के विषय में अगर कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वे सहर्ष ऐसा कर सकते हैं।”
मेरा एक छोटा सा सवाल है देवी, “क्यों?”
सबकी दृष्टि प्रश्नकर्ता कि तरफ घूमी। प्रश्न जोगीराम अग्रवाल ने किया था जो उन सात लोगों में सम्मलित थे जिन्होंने अभी तक आश्रम नहीं छोड़ा था। जोगीराम ऐसे इने गिने लोगों में थे जिनका सम्बन्ध आश्रम से बहुत पुराना था। इनकी उम्र पचास से ऊपर हो चली थी पर आश्रम की हर गतिविधि में हाथ बटाते थे।
सरस्वती ने विस्मय से जोगीराम की और देखा मानों उनका प्रश्न समझ में नहीं आया था।
“इस प्रश्न को उठाने के लिए क्षमा चाहता हूँ पर मुझे लगता है कि यह प्रश्न यहाँ उपस्थित कई लोगों के दिमाग में छुपा होगा। आश्रम से मेरा संपर्क उन दिनों से है जब हम सभी लोग गुरुवर जयंत देव के सानिध्य में थे। गुरुवर के अवसान के बाद मेरे साथ कई लोगों को इसमें संदेह था कि जिस लौ को गुरुवर जयंत देव ने जलाया था उसे आचार्य जी जारी रख सकेंगे या नहीं। पर हमारी शंका निराधार निकली। आचार्य जी ने उस परंपरा को न केवल जारी रखा बल्कि उसे बहुत आगे तक ले आये। व्यक्तिगत रूप से भी मैं इनका बहुत आभारी हूँ कि जब जब मेरी साधना और ध्यान में बाधाएं आयी आचार्य जी ने उसे दूर किया।”
आचार्य जी ने हाथ जोड़ कर जोगीराम का शुक्रिया अदा किया।
“आचार्य जी ने ही हमें सिखाया है कि अगर हम स्वयं के प्रति ईमानदार रहें तो हमे साधना पथ में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। इसलिए मैं कुछ कहने कि हिम्मत जूटा रहा हूँ।”
जोगीराम का कहना जारी था,
“क्या ऐसा नहीं लगता कि इन लामाओं के मामले में हाथ डालकर हम लोग व्यर्थ के पचड़े में पड रहे हैं? इन मामलों को सुलझाने के लिए हिमाचल राज्य के धरमशाला में पहले ही इन लोगों ने अपना छोटा सा देश बना रखा है। स्वयं आचार्य जी ने कई बार कहा है कि अपने आत्मिक उत्थान को प्राथमिकता देनी चाहिए। हमारे देश में अनगिनत लोग दबे कुचले पड़े हैं। तो फिर इनके मामले में हम लोग क्यों पड़ रहे हैं?” कहते हुए जोगीराम ने हाथ जोड़ लिए।
सरस्वती जवाब देने के लिए झटके से खड़ी हुई पर आचार्य जी ने उसे बैठने का इशारा किया।
मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा,
“यह मामला देशप्रेम और अध्यात्म दोनों से जुड़ा है। तिब्बत से हम भौगोलिक और अध्यात्मिक दोनों रूप से जुड़े हैं। हमारे देश की आध्यात्मिक परंपरा ही तिब्बत में एक अन्य शाखा के रूप में विकसित हुई है इसलिए आज भी तिब्बत हमें अध्यात्मिक गुरु के रूप में देखता है। ऐसे में अगर कोई हमारी तरफ सहायता की दृष्टि से देखता हैं तो हम इनकार कैसे कर सकते हैं?”
“पर गुरुदेव चीन के लिए यह एक राजनितिक मामला है।”
“उसकी वो जाने जोगीराम। पर अगर तुम्हें अपने गुरु पर विश्वास है तो इतना जान लो कि ब्रह्मदेव चीन को इसे राजनीतिक रंग में रंगने नहीं देगा। तुम्हारा गुरु इतनी कुवत तो रखता है!”
आचार्य का स्वर इतना आत्मविश्वास भरा था कि इस विषय पर किसी को कुछ और कहने कि हिम्मत नहीं हुई।
कुछ पल बाद अल्फांसे ने प्रश्न किया,
“अच्छा आचार्य जी। हमारे मेहमानों का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से है जबकि आप शिव को महागुरु मानते हैं। दो अलग परंपरा के लोगों में आप सामंजस्य कैसे बिठा पाएंगे।”
आचार्य ब्रह्मदेव ने सहज स्वर में कहा,
“वैचारिक तल पर भले ही हम लोग अलग हों पर अध्यात्मिक स्तर पर सारे धर्म एक ही हैं।”
“पर सुना है गुरुदेव की चीन के लोग अधार्मिक होते है। उनसे कैसे निपटेंगे?” सरस्वती ने मज़ाक में कहा।
आचार्य ने खुलकर ठहाका लगाया, “चीनी मंत्री का पाला पहली बार किसी तरीके के धार्मिक मनुष्य से पड़ेगा। हमसें बातचीत के बाद वो भी हमारे रंग में न रंग जाएँ तो कहना।”
सभी खुलकर हंस पड़े।
“अंत में मैं सभी आश्रम वासियों से अनुरोध करना चाहता हूँ कि कहीं भी अगर उस तांत्रिक की खबर मिले तो अविलम्ब पुलिस थाने में या यहाँ आश्रम में खबर करें। कल रात की खबर तो आपने सुनी ही होगी। उस कापालिक ने चार लोगों कि हत्या कर दी है। हमें भी एक जिम्मेदार शहरी कि भूमिका निभानी होगी।
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कन्हैय्या राधा के लिए चिंतित था। वो खुद नेपाल जाना चाहता था पर राधा के पास नेपाल का ज्यादा अनुभव था और वो काम के मामले में भी कन्हैय्या से ज्यादा सीनियर थी। पूरे दस साल का ज्यादा अनुभव था उसे जबकि कन्हैय्या को इस फील्ड में केवल पांच साल हुए थे। पिछले तीन साल से दोनों साथ काम कर रहे थे और ये पहला मौका था जब राधा किसी मिशन पर अकेले जा रही थी।
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अब वो सच में हत्यारा बन गया था।
पूरे चार लोगों की हत्या की थी उसने!
एक तरफ वो एक हत्या के झूठे इलज़ाम से बचने की कोशिश कर रहा था और दूसरी तरफ उसने सबके सामने चार चार हत्या कर डाली थी। वह तो यह भी नहीं जान पाया था कि लोगों ने उसके गुरु की तस्वीर को जलने के लिए उसे उकसाया था। अब एक ही आदमी बचा था जो इस राज को खोलने में समर्थ था। जिसका नाम और पता कल दिवाकर मरने से पहले बता चुका था।
कल जिस तरह जान पर खेलकर ताशी ने उसे बचाया था उसके लिए वो उसका ऋणी हो गया था। उसने शिष्य होने का धर्म निभाया था और अब उसे गुरु होने का फ़र्ज़ निभाना था।
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सुधीर हतप्रभ था।
पिछले आठ घंटे से वो अपने कंप्यूटर के सामने बैठा था। आश्रम से जुड़े हर शख्स की कुंडली खंघाल चुका था और हैरतंगेज परिणाम सामने आ रहे थे।
शुरुआत उसने पिछले दस वर्षों के समाचार पत्र से किया था। जहाँ बाकी समाचार पत्रों के ३-४ वर्षों के ही इ-पेपर एडिशन उपलब्ध थे, एक पेपर का पिछले १५ वर्षों के एडिशन ऑनलाइन उपलब्ध थे। सभी के उसके ज़रुरत से हिस्सों को उसने खंघाल डाला था। राक्षस उर्फ़ विनय चतुर्वेदी के केस फाइल को उसने पहले ही मंगा लिया था। उस फाइल में विनय के गुरु का नाम विक्रांत चतुर्वेदी दर्ज था साथ ही एक लोकल पत्रिका के हवाले से उसका चित्र भी उपलब्ध था। विक्रांत चतुर्वेदी को एक प्रसिद्द तांत्रिक बताया गया था और उसका चित्र इतना साफ़ था कि उसे इसमें कोई शुबहा नहीं था की यह शख्स आश्रम में अर्जुन देव के नाम से पाया जाता था। विक्रांत चतुर्वेदी का एक पारिवारिक फोटो भी उस रिपोर्ट में था जिसमें वो अपने माता पिता और भाई बहन के साथ था।
काफी देर तक फोटो को देखने के बाद वो कह सकता था कि ये लड़की भुवन मोहिनी का युवा संस्करण है। विनय के आग में जल जाने और भुवन मोहिनी के फरार हो जाने के बाद विक्रांत चतुर्वेदी को तलाश करने की कोशिश की गयी थी पर उसका कहीं भी पता नहीं चला था। वो भी दूध का धुला नहीं था और उस पर अपने भाई की हत्या का इलज़ाम था वो घर छोड़कर कहीं चला गया था। अर्थात वो इस आश्रम में शरण ले चुका था!
भुवन मोहिनी की हत्या वाले समय के रिकॉर्डिंग में उसने राक्षस के गुरु का ज़िक्र किया था। तो क्या, “वृष्टि खाने वाला गुरु” यही विक्रांत चतुर्वेदी था? और अगर यही फरार विक्रांत आश्रम का अर्जुन देव था तो क्या आचार्य जी ने जानबूझकर एक फरार मुजरिम को आश्रय दिया था?
विनय चतुर्वेदी पर भी कई हत्याओं का मुक़दमा चलने वाला था पर वो भी जेल से फरार हो गया था। उसके परिवार का कोई भी सुराग पाने में पुलिस असफल रही थी।
आचार्य जी ने एस पी को बताया था कि भुवन मोहिनी और उसका भाई उनके साथ हो लिया था। पर पुलिस के रिपोर्ट के अनुसार उसे उसका भाई छुड़ाकर ले गया था। उसमें किसी अन्य स्वामी का ज़िक्र नहीं था। तो क्या पुलिस की रिपोर्ट अधूरी थी?
आज से दस दिन पहले जिस आचार्य ब्रह्मदेव को वो गुरु मानता था आज वो भी उसके शक के दायरे में आ चुके थे।
और फिर विनय चतुर्वेदी!
उसका कोई भी चित्र ऑनलाइन रिकार्ड्स में खोजने में वह विफल रहा था।
बस पुलिस का बनाया हुआ एक स्केच का ही जुगाड़ हो पाया था। पर साथ में उसके पास राक्षस का एक विडियो भी था।
विनय चतुर्वेदी का स्केच और अभी के उसके विडियो से वह मिलान करने लगा।
एकाएक उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी। वह सर पकड़कर बैठ गया।
उसकी इच्छा हो रही थी की वह अपना बाल नोच ले। इतना बेवकूफ वह कैसे हो सकता था! सच उसके सामने था और वह यहाँ वहां सर मार रहा था।
पर इस विषय में वह अपना मुंह बंद ही रखन चाहता था। और भी न जाने क्या क्या रहस्य खुलने वाले थे उसके सामने।
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ऐसा पहली बार था जब तांत्रिक राक्षस वाले भेष में दिन में बाहर निकला था। लोगों की दृष्टि से बचने के लिए उसने एक बड़ा चादर अवश्य ओढ़ लिया था। उसने सोच लिया था कि शरवन को ख़त्म करने के बाद कुछ दिन के लिए राक्षस वाले भेष को तिलांजलि दे देगा और फिर अगली अमावस्या से पूरी तरह अपने तांत्रिक धर्म का पालन शुरू कर देगा।
शरवन का घर खोजने में उसे मुश्किल नहीं हुई। दिवाकर ने उसे इतना ही बताया था कि वो सेवाराम के घर में रहता है और वह तो अपने मोहल्ले की पहचान बन चुका था। शरवन के बहाने वो सेवाराम का घर भी देख लेना चाहता था।
शरवन के मामले में वो धीरज से काम लेना चाहता था। कल तो गुरुदेव की तस्वीर की हालत देखकर अपने पर निमंत्रण नहीं रख सका था पर आज वो शक करने पर मजबूर हो रहा था कि कोई उसे इस्तेमाल कर रहा है।
सेवाराम के घर में ताला बंद था, इसका मतलब दोनों घर में नहीं थे। ताले को तोड़ वो उसके घर में प्रविष्ट हुआ। पहले कमरे में हमेशा की तरह सामान बिखरे पड़े थे। यहाँ बैठकर वो शरवन का इंतज़ार कर सकता था। अन्दर का कमरा खुला था। जैसे ही वो कमरे में प्रविष्ट हुआ उसे किसी के कूदने कि आवाज आयी। टेबल के नीचे कोने में दुबकी पड़ी उस चीज को देखने में उसने कोई गलती नहीं की।
उस पारखी कापालिक को समझने में देर नहीं लगी कि वो मंदा ही है, अस्तित्व में आने के लिए छटपटाती मंदा!
उसे तो पहले हीं समझ जाना चाहिए था कि मंदा का तेजहीन शरीर सेवाराम के आसपास ही कहीं होगा!
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ताशी...
जो इन दिनों के घटनाक्रम का सबसे रहस्मय किरदार साबित हो रहा था। वो जहर जगह था। जिसने दिल्ली वालों के नको चने चबा दिए थे। सिकंदर के साथ रहस्मय सम्बन्ध थे। और सबसे बढ़कर राक्षस को भागने में मदद की थी।
उस ताशी ने स्वयं को तिब्बत का निवासी बताया था। पासपोर्ट में उसने स्वयं को चीन के किसी तिआनजिन क्षेत्र का निवासी बताया था यानी उसका तिब्बत से कुछ लेना देना नहीं था।
तो क्या वह कोई चीनी क्रिमिनल था? या कोई जासूस? अगर वह इन दोनों में से कोई था तो फिर उसका यहाँ क्या काम?
और फिर ताशी उसका क्षद्म नाम भी हो सकता था।
नरेन्द्र, वो निडर और निर्भीक युवक जिसनें एस पी साहब को भी दिन में तारे दिखा दिए थे। उसके लिए उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी थी। चंद फोटो आइडेंटिफिकेशन एप्लीकेशन में उसके फोटो को उसने स्कैन कर कंप्यूटर में डाला। नतीजा ज़ल्द ही सामने था। अल्फांसे का कोई असली चित्र इन्टरनेट पर उपलब्ध नहीं था पर उसके बहुत सारे स्केच ज़रूर उपलब्ध थे जो उन लोगों ने बनाये थे जिनकी मुठभेड़ अल्फांसे से हो चुकी थी। जैसे जैसे विवरण उसके बारे में इन्टरनेट पर थे उसे पढ़कर उसे कोई शक नहीं रह गया था कि वो अल्फांसे ही था।
कैसे कैसे लोग इकट्ठे रह रहे थे इस आश्रम में!
राधा और कन्हैय्या के बारे में तो जानकारी उसके पास थी ही।
अब वह सोच रहा था कि शुरुआत कहाँ से करे।
अगर वो सच में अल्फांसे था तो क्या वह चीनी मंत्री की यात्रा के लिए खतरा साबित हो सकता था?
पर अल्फांसे पर हाथ डालने से पहले वो ताशी के बारे में जानना चाहता था।
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तांत्रिक ने उसे गर्दन पकड़कर उठाया और वापस टेबल पर खड़ा कर दिया।
“यहाँ छुपी बैठी है तू ?
“महान तांत्रिक विनय चतुर्वेदी से कौन छुप सकता है भला! मंदा का प्रणाम स्वीकार करें।” मंदा ने हाथ जोड़कर डरे हुए स्वर में कहा। “ये देख मैं तो तेरे सामने खड़े होने से भी काँप रही हूँ।” मंदा ने कांपने की एक्टिंग की।
तांत्रिक मुस्कुराया।
“बड़ी मस्तीखोर है तू। ये डरने की एक्टिंग किसी और के सामने दिखाना।”
“तू बड़ा प्यारा है तांत्रिक। एक बार तू मुझे मेरा श्रृंगार वापस कर दे तेरी गुलाम बन रहूंगी।” मंदा उछलकर उसके गले में लटक गयी थी।
“तेरा जादू मुझ पर चलने वाला नहीं।” कापालिक ने मंदा को दूर झटक दिया। वो टेबल पर गिरी।
“पर तू सेवाराम से उसके अहसान के बदले में वादा कर चुका है अमावस की रात को मुझे आजाद करने की। तुझे तो वादा निभाना पड़ेगा। टेबल पर खड़ी मंदा ने दोनों हाथों की अँगुलियों को फंसाकर इठलाते हुए कहा।”
“अमावस अभी दूर है मंदा! और वादा मैंने सेवाराम से किया है। अगर अमावस के पहले उसके दिमाग पर से तेरा साया ख़त्म हो गया तो?”
“नहीं होगा नहीं होगा नहीं होगा। अगर तूने ऐसी कोशिश भी की तो समझ ले।” एकाएक मंदा का स्वर हिंसक हो गया, “दुनिया में तांत्रिकों की कमी नहीं। अगर उसमें से एक को भी मैंने भरमा दिया, सारे शहर में मन्दाओं का राज होगा।”
राक्षस को मंदा की धमकी रास नहीं आयी। पूरी तेजी से उसने मंदा पर हाथ घुमाया।
पर वो कमबख्त इतनी आसानी से कहाँ हाथ आने वाली थी। हवा में लगभग तैरते हुए वो कबकी उसके पीठ पर पहुँच चुकी थी। पीठ पर लटकते हुए उसने अपने नाखूनों का वार उसके चेहरे पर किया। वह चीख उठा। तीक्ष्ण नाखून दोनों गालों में गहरे तक धंस गए थे।
“ये मत समझ कि अगर तूने मेरी शक्ति को दफन कर दिया है तो तू मुझ पर आसानी से काबू कर लेगा। जब हम लोग एक बार जीवित हो जाती है तो इतनी आसानी से कोई काबू में नहीं कर सकता। बिना शक्ति-शरीर के भी मंदा अपनी रक्षा कर सकती है।” फिर अचानक रूककर यूँ बोली मानों कुछ याद आया हो, “अरे हाँ कुछ याद आया। एक बात बताउंगी तो तू ख़ुशी से पागल हो जायेगा। कल तेरे गुरु विक्रांत चतुर्वेदी से मिली थी। बेचारा कैसा पिलपिला गया है। गिड़गिड़ा रहा था कि उसके बारे में तुझे न बताये।”
राक्षस ने विस्मय से उसे देखा। ये उसके गुरु को कैसे जानती थी? क्या सच बोल रही थी ये?
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२ जुलाई
सुबह लगभग सात बजे मुंबई से आने वाली फ्लाइट से काठमांडू एअरपोर्ट पर राधा ने कदम रखा। इस वक़्त वो हलके मेकअप में थी और उसने चेहरे को छुपाने की कोई कोशिश नहीं कि थी। हाथ में एक केबिन बैग था इसलिए कन्वेयर बेल्ट की तरफ जाने की कोई ज़रुरत नहीं थी। सीधे अराइवल से बाहर की तरफ उसने बाहर कदम रखा। अगर वहां सिकंदर के टीम का कोई आदमी था भी तो वो उसके नज़र में नहीं आया था। होटल सिग्मा इंटरनेशनल में उसने खुद ऑनलाइन बुकिंग कर रखी थी। घंटे भर के अन्दर वो होटल में अपने कमरे में थी। रास्ते में ही फ़ूड कोर्ट जंक्शन था पर उसने वहां रुकने की कोई कोशिश नहीं की थी।
काठमांडू में उसका पहला कांटेक्ट इस होटल का मेनेजर सतीश शर्मा था जो पिछले तीन साल से एच आई जी के पेरोल पर था। एच आई जी के रेगुलर एजेंट की संख्या बहुत कम थी जबकि पेरोल एजेंट हर जगह फैले थे। इस तरह एच आई जी अपनी सीक्रेसी बनाये रखने में कामयाब रहा था। पेरोल एजेंट का काम केवल अपने श्रोतों से वांछित इनफार्मेशन इकठ्ठा कर उन्हें ‘एजेंसी’ तक पहुँचाना होता था। ये ‘एजेंसी’ अपने इनफार्मेशन कहाँ फॉरवर्ड करती थी उन्हें न तो इसकी जानकारी होती थी न ही इसे जानने कि ज़रुरत थी। पैसे उन्हें ये ‘एजेंसी’ ही पे करती थी।
ये ‘एजेंसी’ एक मोबाइल सॉफ्टवेयर का नाम था जो फेसबुक की तरह काम करता था जिसकी हर पेरोले एजेंट की अलग आईडी और पासवर्ड भी था। इसी एजेंसी के मार्फ़त सतीश शर्मा को राधा के आने की जानकारी मिली थी।
लगभग ११ बजे सतीश उसके कमरे में प्रविष्ट हुआ।
“हम दूसरी बार मिल रहे हैं।” सतीश शर्मा ने कहा।
“चार साल बाद। कमरा अच्छा है सतीश।” राधा ने कमरे में नज़र दौडाई।
“और सेफ भी। आपके आने से पहले इसकी पूरी तरह स्क्रीनिंग कर दी गयी है।”
“और बाकी कमरों की क्या पोजीशन है?”
“आपके आने के एक घंटे के अन्दर चार लोग दो कमरों में इस होटल में चेक इन कर चुके हैं। उन्होंने इसी फ्लोर पर कमरे की ख्वाहिश की थी। पर मैंने बता दिया है की ग्राउंड फ्लोर के कमरे प्री बुकिंग पर ही अवेलेबल होते हैं। उन लोगों को फर्स्ट फ्लोर के कमरे दिए गए हैं। कमरा नो २०१ और २०९।”
चारों के फोटो को सतीश ने राधा के मोबाइल पर फॉरवर्ड कर दिया।
“बातों बातों में दोनों ग्रुप ने रजिस्टर में आपका नाम चेक करने की कोशिश की थी।”
राधा को उम्मीद नहीं थी कि इतनी ज़ल्दी उसे ट्रेस किया जा सकता है। एहतियातन उसने मुंबई के रास्ते यहाँ कदम रखा था। मतलब सिकंदर और बिल्लू की डिटेल जो उसके पास थी वो एक ट्रैप था।
“उनका प्रोफाइल चेक किया?”
“दोनों हाई प्रोफाइल गुंडे हैं।”
“और कुछ?”
“बस अगर उनसे यहाँ नहीं उलझें तो बेहतर होगा। होटल का बेमतलब में नाम ख़राब होगा।”
“तो आस पास में कोई जगह बताओ?”
सतीश ने बताया।
“कुछ और चाहिए मैडम?”
“हाँ। दो लड़की का इंतेजाम कर दो।”
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सिकंदर को उम्मीद नहीं थी कि राधा नाम की जासूस काठमांडू में अकेले कदम रखेगी। हवेली में जिस तरह दोनों जासूसों ने उसकी धुनाई की थी उसे वो कभी भूलने वाला नहीं था! ताशी ने दोनों जासूसों के चित्र उसके पास भेजे थे वो उसने सभी जगह फैला दिए थे। नतीजा अच्छा निकला।
एक अकेली खुबसूरत लड़की जिससे वो मार खा चुका था! ज़ल्द ही वो उसके गिरफ्त में होने वाली थी। अगर इस लड़की के तार सच में फ़ूड कोर्ट वालों से जुड़े थे तो वह अपनी बेइज्जती का बदला ले सकता था। चांदीपुर की सारी खबर पाकिस्तान में उसके हेडक्वार्टर तक पहुँच चुकी थी। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई एस आई के अनुसार ये फ़ूडकोर्ट इंडिया के किसी नयी जासूसी एजेंसी का हेड क्वार्टर था। आई एस आई का एक सीनियर जासूस सलीम वहां पहुँच चुका था और उसे उसी के मातहत काम करना था। राधा के मार्फ़त उसे सबूत हाथ लगने की उम्मीद थी। चार लोगों को वो राधा के लिए भेज चुका था।
यहाँ उसके पास आदमियों की कमी नहीं थी। चार क्या चालीस भेज सकता था।
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सुधीर के सामने अगला प्रोफाइल सरस्वती का था।
आचार्य जी ने किस कमबख्त को अपना पीए बना रखा था!
सरस्वती के विषय में उसके पास पहले भी ब्लैकमैलिंग के ३-४ कम्प्लेन पहले भी आ चुके थे पर सबूत के अभाव में वह कोई कदम नहीं उठा सका था। ब्लैकमैलिंग का इलज़ाम लगाने वाले खुद गलत पेशे वाले थे।
आश्रम में छानबीन के दौरान उसने एक-दो लोगों से सरस्वती और नरेन्द्र के जुगलबंदी के बारे में सुना था पर इस पर उसने कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया था। पर अब जब उसे मालूम था कि नरेन्द्र इंटरनेशनल क्रिमिनल अल्फांसे है तो सरस्वती और अल्फांसे की जुगलबंदी के बहुत सारे मायने दिखाई दे रहे थे।
सरस्वती, उम्र ३४ वर्ष। सारी शिक्षा अमेरिका में ही। रेगुलर पढाई के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोता से सिन्टर फॉर डिस्ट्रिब्यूटेड रोबोटिक्स से आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस में स्पेशलाइजेशन। उसके बाद वहीँ एक फर्म में तीन साल की नौकरी। फिर पिछले पांच साल से चांदीपुर के जागरण आश्रम में दस लाख सालाना की नौकरी। ये सारे इनफार्मेशन फेसबुक में उपलब्ध थे।
क्या वह इतनी बेवकूफ थी कि इतना बड़ा करियर छोड़कर आश्रम की साधारण नौकरी के लिए इंडिया आ गयी थी?
फेसबुक पोस्ट्स से और भी बड़ी जानकारी हाथ लगी। उसके किसी कलिग ने अमेरिका के डिफेन्स की इतनी बड़ी नौकरी छोड़ने पर उसका मजाक उड़ाया था।
करोड़ों की नौकरी छोड़कर इंडिया में ब्लैकमेल के दो कौड़ी का धंधा कर रही थी? किसे बेवकूफ बना रही थी वो?
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राधा ने अपने ऑटो को सतीश के बताये स्थान पर रोका और ऑटो वाले को पैसे देकर विदा कर दिया। पीछे आती वैन ने भी अपनी गाड़ी थोडा पीछे पार्क कार दी थी। यह स्थान मेन रोड से थोडा अन्दर था इसलिए किसी के आने की सम्भावना कम ही थी।
“लड़की बेवकूफ लगती है जो इतने सुनसान में अकेले पहुँच गयी।” गाडी में मौजूद एक ने कहा।
बेवकूफ नहीं खतरनाक है। बॉस ने इससे सावधान रहने को कहा था।
“पर ये यहाँ करने क्या आयी है?” दूसरा बोला।
“सु सु करने आयी होगी।” तीसरे ने कहा जो ड्राइविंग सीट पर था।
“तो हम भी कर लेते हैं।”
“बकवास मत कर। पहले जो काम करने आये हैं उसे पूरा कर।” ये बाकी तीनों का बॉस लगते थे।
“अरे ये तो हमारे गाडी कि तरफ बढ़ रही है।”
काले रंग की सलवार कमीज में राधा गजब ढा रही थी। कन्हैय्या के साथ काम करने में उसे थोडा नियंत्रण रखना पड़ता था पर अकेले वो किसी शेरनी से कम नहीं होती थी। मस्त चाल चलते हुए वह गाड़ी की तरह बढ़ी।
“लगता है की कोई एड्रेस जानना चाहती है। आने दे करीब आते ही गाडी में धकेल लेना।”
जैसे ही वह गाडी के पास पहुंची वैन का गेट खुला और दो गुंडों ने उसे गाडी में खिंच लेना चाहा। राधा ने अपने बदन को हल्का झटका दिया। राधा अपनी जगह स्थिर रही पर बाकी दोनों गुंडे गिरते गिरते बचे।
“तुम चारों में से बॉस कौन है?” राधा की ठोस आवाज गूंजी।
आगे बैठे आदमी ने पिस्तौल निकालकर उस पर तानते हुए कहा।
पलक झपकते ही राधा के पिस्तौल से तीन गोली चली। ये देखने का मौका किसी को नसीब नहीं हुआ की उसके हाथ में पिस्तौल आयी कब थी। तीन गोली ने तीनों गुंडों के गर्दन के छेद दिया था!
“अगर बॉस तुम हो तो सबसे ज्यादा इनफार्मेशन तुम्हारे पास होगा। ज़ाहिर सी बात है न तो फिर बाकी लोगों के जिंदा रहने की क्या ज़रूरत थी?”
चौथे शख्स की आँखें फटी की फटी रह गयी। पलक झपकते ही उसके तीनों गुर्गे मरे पड़े थे। उसका रिवाल्वर हाथ से छूटकर नीचे गिर गया। कितनों को उसने अपने रिवाल्वर के गोली का शिकार बनाया था पर ऐसी मौत उसने कभी नहीं देखी थी।
“सिकंदर कहाँ है?” राधा ने प्रश्न किया।
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कन्हैय्या हवेली में मौजूद था। अगले तीन चार दिनों के लिए यही उसका अड्डा था। बारासाहब की हवेली।
हवेली मानों छावनी में तब्दील हो चुकी थी। जिस कमरे में उसकी सिकंदर से मुठभेड़ हुई थी उसी को मीटिंग के लिए चुना गया था। भारत सरकार की ओर से सुरक्षा की जिम्मेदारी बी एस फ यानी बॉर्डर सिक्यूरिटी फ़ोर्स ने संभाली थी। हवेली का एक कमरा उसके हवाले था जबकि हवेली के बाहर खुली ज़मीन में बी एस फ वालो ने अपना टेम्पररी टेंट लगा लिया था। कुल अठारह लोग थे टीम में।
जबकि वांग की टीम के हवाले एक ही कमरा था जिसका इस्तेमाल वे लोग स्टोर रूम की तरह कर रहे थे। पिछली रात को वे लोग खुले में ही हवेली के चारों कोने में सोये थे। बी एस फ का पूरा सपोर्ट दिया जा रहा था उन्हें।
कन्हैय्या को मानों इन सबसे कोई सरोकार नहीं था और सब जगह मस्ती करता फिर रहा था। अपने काम के उलट वांग एक खुशमिजाज़ आदमी लगा था उसे।
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लगभग चार बजे राधा के कमरे की घंटी बजी। दरवाजा खोलने पर सामने चार पुलिस वाले खड़े थे। साथ में मेनेजर सतीश शर्मा भी था।
“आपको हमारे साथ पुलिस थाने चलना होगा।”
“मैं फिर कह रहा हूँ कि आपको कोई ग़लतफ़हमी हुई है।” मेनेजर ने टोकना चाहा।
“बात क्या है इंस्पेक्टर साहब?”
“हाईवे पर हमें चार लाशें मिली है। हमें खबर मिली है कि उन चारों की हत्या आपने की है। चारों इसी होटल में ठहरे थे।”
“कमाल है इंस्पेक्टर साहब। मुझे यहाँ आये हुए १२ घंटे भी नहीं हुए है।”
“जो कहना है थाने चलकर कहियेगा।”
“एक विदेशी टूरिस्ट के साथ आप लोग ऐसा नहीं कर सकते। अपने ऑफिसर को बुलाओ उसके बाद मैं यहाँ से हटूंगी।”
“मैडम प्लीज कोआपरेट कीजिये। वरना आपके साथ ज़बरदस्ती करनी होगी।”
“पर उसके पहले मैं अपने कांटेक्ट को फ़ोन करना चाहती हूँ।”
“उसका भी मौका आपको देंगे।” एक पुलिस ने जो ऑफिसर प्रतीत हो रहा था ने अपने एक सहयोगी को रूम की तरफ इशारा किया।
कुछ ही देर में कमरे से पिस्तौल बरामद हो चुकी थी जिससे राधा ने चार लोगों का क़त्ल किया था।
कुछ ही देर में पुलिस की गाड़ी में राधा को ले जाया जा रहा था।
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अगर तुम समझ रहे हो कि उस छोकरी को पकड़कर तुमने कोई बड़ा काम कर दिया है तो तुम्हारी ग़लतफ़हमी है। वो कोई नौसिखिया जासूस नहीं है। पांच साल पहले पाकिस्तान पहुंचकर हम लोगों को नाको चने चबा चुकी है। बहुत एहतियात से काम लेना होगा हमें।” सलीम ने कहा।
“खतरनाक तो सच में है। ये चारों हमारे लिए बहुत दिन से काम कर रहे थे।”
“चार क्या चालीस भी कम है उसके लिए। गोली पहले चलाती है सोचती बाद में है।”
“पर इस बार कुछ नहीं कर पायेगी। गहरा सीडेटिव दिया गया है उसे। जब होश में आएगी तभी तो कुछ कर पायेगी। बारह घंटे से पहले होश में आने की सम्भावना नहीं है उसकी।”
“सावधान रहना। ये करामाती लड़की बेहोशी में भी कुछ कर सकती है। हर आठ आठ घंटे पर सीडेटिव देते रहो उसे।”
“आप ज्यादा ही घबरा रहे है सलीम साहब। कहिये तो ख़त्म कर दूं उसे?”
“नहीं। बड़ी जासूस है वो। लम्बे समय तक उसके गायब रहने से उसके लोग सतर्क हो जायेंगे। जब तक हम उसे पकड़कर रख सके तब तक अच्छा है। हम लोग बाद में उसे एक्सपोज कर सकते हैं कि यहाँ आकर नेपाल सरकार की जासूसी कर रही है। खासकर जब तक चीनी मंत्री का दौरा ख़त्म नहीं हो जाता तब तक उसे पकड़कर रखना ही अच्छा है।”
सिकंदर ने आश्चर्य से सलीम को देखा। इस वक़्त दोनों सिकंदर के फार्महाउस पर मौजूद थे।
इस वक़्त दोनों फ़ूड कोर्ट के ऑफिस के पड़ोस वाले एक घर में मौजूद थे। अभी सिकंदर और सलीम इसी बंगले में मौजूद थे।
“इसमें ज्यादा सोचने की कोई ज़रुरत नहीं। चीन ने कई मौके पर हमारी सहायता की है। चीन को शक है की उसके विदेश मंत्री की यात्रा में भारतीय जासूस अडंगा लगाने की कोशिश कर सकते हैं। चीन के लिए चांदीपुर में होने वाली बैठक बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए चीन ने आइ एस आई का सहयोग मांगा है। बस हमारा यही काम है कि किसी तरह फूड कोर्ट की आड़ में चल रहे भारतीय गिरोह का भंडाफोड़ कर सकें।”
“पर चांदीपुर में ऐसी कौन सी बात है की चीन ने अपने इतने जासूस वहां फिट कर रखे है। कौन सा खेल चल रहा है वहां?”
“डिटेल तो मुझे भी पता नहीं। शायद वो लोग आश्रम में कुछ तलाश कर रहे हैं। जो भी हो हमें पहले अपने काम पर फोकस करना चाहिए। खगेश्वर कॉलोनी वाले फ़ूड कोर्ट के ऑफिस का क्या हाल है?”
जिसका जिक्र सलीम कर रहा था वो काठमांडू का एक रिहाईशी इलाका था जिसे खगेश्वर कॉलोनी कहा जाता था। ये एक पॉश एरिया था फ़ूड कोर्ट का ऑफिस तीन कमरे वाले एक मकान के निचे वाले तल्ले में स्थित था जबकि पहले तल्ले पर फ़ूड कोर्ट के कुछ स्टाफ रहते थे जो वास्तव में एच आई जी के स्टाफ थे। ये उनका दुर्भाग्य ही था कि वे लोग शक के घेरे में आ चुके थे और उनके पड़ोस वाले बंगले में एक महीने पहले आई एस आई के कुछ जासूस कब्ज़ा जमा चुके थे।
चौबीस घंटे निगरानी की जा रही है उसकी। आपके आदेश के तुरंत बाद वहां पर हमनें मकान किराये पर ले लिया था। पर अभी तक अन्दर ऐसी कोई घटना नहीं घटी जिससे उन पर शक किया जा सके। एक बार तो रात में हमारे आदमी अन्दर जाकर तलाशी ले चुके हैं। सारे पेपर्स फ़ूड कोर्ट से सम्बंधित ही है। कुछ भी शक के लायक नहीं।”
“वो लोग सावधान हो चुके हैं। पर शक की कोई गुंजाईश नहीं। पिछले कुछ दिनों में हमारे कई आदमी एक्सपोज़ हो चुके हैं। सभी उसी फ़ूड कोर्ट में जाने के कुछ घंटे बाद ही एक्सपोज़ हुए थे। जब हमने वहां के स्टाफ को चेक करना शुरू किया तो पाया कि वहां का मेनेजर और एक स्टाफ बहुत पहले इंडियन सीक्रेट सर्विस के लिए काम कर चुका है। पर बिना सबूत के हम उन्हें एक्सपोज़ नहीं कर सकते।”
“फ़िक्र नहीं कीजिये सर। वहां के हर आदमी की निगरानी की जा रही है।”
सिकंदर के मोबाइल की घंटी ने उनके बातचीत के क्रम को भंग किया। बातचीत करने के बाद सिकंदर के चेहरे का रंग पूरी तरह उड़ चुका था।
“क्या हुआ?”
“आपने सही कहा था सर। वो लड़की बेहोशी में भी करामात कर सकती है।”
सलीम की आँखें सिकुड़ी।
“क्यों?”
“हमारे कॉलोनी वाले मकान पर पुलिस की रेड हुई है।”
सब कुछ तफसील से सुनने के बाद सलीम ने निराशा में सर हिलाया।
“अब क्या किया जाए?”
“कुछ नहीं। वो लड़की हमें मात दे चुकी है। कुछ दिन के लिए ज़मींदोज़ हो जाओ। उनमें से कोई न कोई मुंह खोल ही देगा। ज़ल्द एम्बेसी में खबर करो।
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“हैरत है। डोज़ तो किसी को १२ घंटे बेहोश करने के लिए काफी थी। पर मैडम जी को तो ४-५ घंटे में ही होश आ गया।”
“सच में बड़ी तगड़ी है मेमसाहब।”
“अगर बड़े साहब का डर नहीं होता तो इसके होश में आने से पहले ही सारे मजे ले लेता।”
मौजूद चार लोगों ने ज़ोरदार ठहाका लगाया।
राधा धीरे धीरे होश में आ रही थी।
एंटी सीडेटिव की गोली लेने के बावजूद राधा खुद को बेहोश होने से बचा नहीं सकी थी। धीरे धीरे उसे सब कुछ याद आ रहा था। पलक झपकते ही पुलिस जिप्सी में उसके बगल में बैठे पुलिस वर्दीधारी ने उसके बांह में सिरिंज घोंप दिया था।
”मैं यहाँ कैसे आयी?” राधा बुदबुदाई।
“उड़न खटोले में बिठाकर।”
“मुझे तो पुलिस स्टेशन ले जाया जा रहा था।”
“हम लोग भी किसी पुलिसवाले से कम हैं क्या!”
ठहाकों का एक और दौर चला। तीन बाई छ: के एक बेड पर लोहे की ज़ंजीर से बंधी पड़ी थी। हाथ और पैर को बेड के चारों कोनों से बाँधा गया था। पास में कुर्सियों पर छ: लोग बैठे थे।
“ज़ल्दी सीडेटिव का इंजेक्शन तैयार कर। बिगबॉस का हुक्म है कि इसे एक पल के लिए भी होश में नहीं छोड़ा जाये।” एक ने कहा।
एकाएक राधा बचाओ बचाओ चिल्लाने लगी।
“ये साउंडप्रूफ कमरा है बेबे। आवाज बाहर नहीं जाएगी।”
राधा मुस्कुराई।
“एक बात बताओ ज़मीर, तुम्हारा बिग बॉस सिकंदर है या सलीम?”
ज़मीर नाम का शख्स चौंका।
“चौंकते क्यों हो भाई। मुझे तो तुम लोगों का अतीत ही नहीं फ्यूचर भी मालूम है। तुम लोगों की पाकिस्तान वाली फ्लाइट कल सुबह आठ बजे है। आज रात भी जा सकते थे पर आज की रात तो पुलिस खानापूर्ति में चली जाएगी। पर तुम्हारे एम्बेसी वाले रात में ही तुम लोगों के लिए टिकट का इंतेजाम का देंगे।”
“लगता है की होश में आने के बाद भी लड़की के सपने का कार्यक्रम चालू है।” एक शख्स ने हँसते हुए कहा। बाकी लोगों ने हंसी में उसका साथ दिया।
“अब तक तो दोनों लड़की थाने पहुँच गयी होगी जिसे तुम लोगों ने यहाँ बंद कर रखा था। वैसे तुम आठ लोगों में से सात ही अपने देश लौट पाओगे।”
“क्यों एक को तुम यहाँ अपना यार बनाकर रखोगी।”
“अरे नहीं रे। एक को तो मैं यहाँ मार डालूंगी न। अब ये तो अच्छा नहीं लगता न कि आठ आठ पाकिस्तानी सामने हो और सबको जिंदा जाने दूं।”
उनमें से एक कुछ कहने ही वाला था कि जोर की घंटी बजी। कमरे में मौजूद छोटे से स्क्रीन पर बाहर खड़े लोगों की तस्वीर उभरी। पुलिसवालों के साथ दो लड़की बदहवास अवस्था में साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी।
राधा ने फुर्ती दिखाई और भारी भरकम बेड के साथ खडी हुई और लहराते हुए बगल वाली कुर्सी पर बैठे आदमी पर गिरी। निशाना ठीक बैठा था। पलंग का पाया ठीक उसके सीने पर गिरा।
“ये लो एक तो गया।” राधा इत्मिनान से बोली।
किसी को कुछ सोचने का वक़्त भी नहीं मिला था। कुछ ही देर में पुलिस फ़ोर्स दो लड़कियों और एक अन्य आदमी के साथ दरवाजा तोड़कर अन्दर दाखिल हो चुके थे। पीछे पीछे कुछ पत्रकार भी थे।
राधा को छुड़ा लिया गया था। दोनों लड़कियां रो रोकर बता रही थी की किस तरह उन्हें राधा के साथ किडनैप कर लिया गया था और इज्ज़त लूटने की कोशिश की थी। अन्य शख्स ने अपना परिचय हाई इनकम ग्रुप कंपनी यानी एच आई जी के जोनल मेनेजर के रूप में दिया था, राधा जिसकी इंडियन मुलाजिम होती थी। खुद को बचाने की कोशिश में राधा ने एक पाकिस्तानी पर हमला किया था जो मारा गया था।
राधा का काम समाप्त हो चुका था। बाकी का काम टीवी चैनल वाले पूरा करने वाले थे।
रात ११ बजे
राक्षस की आँखें भर आयी थी अपने गुरु की हालत देखकर। जिस गुरु के एक हुंकार से आस पास खड़े लोगों में थरथरी सी समा जाती थी वो आज चुपचाप सामने कमरे के एक कोने में बैठा था।
कहाँ वो मजबूत शरीर का स्वामी विक्रांत चतुर्वेदी और कहाँ ये जीर्ण शीर्ण शरीर वाला अर्जुन देव। दस वर्षों में क्या से क्या हो गए थे वो।
“ये आपने स्वयं को क्या कर लिया गुरुदेव?”
“प्रायश्चित कर रहा हूँ।अर्जुनदेव ने बुदबुदाकर कहा। “आ बैठ, तेरा ही इंतज़ार कर रहा था।”
“प्रायश्चित!”
“हाँ वीनू। अपात्र को दीक्षा देने के लिए प्रायश्चित। मेरे शिष्य ने पांच लोगों की बलि दे दी थी। इस तरह मैं भी इन लोगों की हत्या का भागिदार बन गया।”
“पर मेरी गलती की सज़ा आपने खुद को क्यों दी? आप तो मुझे ऐसे समय पर छोड़ कर चले आये जब मुझे आपकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी।”
“मैं रहकर भी क्या करता रे। तू मेरी सुनता ही कब था। जाने किस अघोरी के चक्कर में पड़कर हत्यारा बन गया। तीन तीन लोगों कि बलि दे डाली! एक बार मुझसे पूछता तो सही की बलि का अर्थ क्या है हमारी परंपरा में?”
“मैं बहक गया था गुरुदेव। मुझे बहका दिया गया था। उसी की सजा आजतक भोग रहा हूँ। पुरे दस वर्ष तक एक साधारण इंसान की जिंदगी जीता रहा। एक महीने पहले जब मोहिनी की दृष्टि मुझपर पड़ी तो होश आया और खुद को पहचान पाया। आज ही दिन भर आम इंसानों की तरह रहता हूँ तो मेरी सारी शक्ति जाने किन पर्दों में सोयी रहती है। रात में जब उस वेशभूषा में आता हूँ जो आपने मुझे प्रदान की थी तो वो सोयी शक्ति फिर से जागृत हो जाती है। फिर से कापालिक विनय चतुर्वेदी बन जाता हूँ।”
“अच्छा होता की तेरी याददाश्त वापस नहीं आती। मोहिनी इतने वर्षों में अध्यात्म की पराकाष्ठ पर पहुँच गयी और तू वहीँ का वहीँ रहा गया। याददाश्त आते हीं हत्यारा बन गया तू।”
“मैंने आपकी बहन को नहीं मारा गुरुदेव। मैंने भुवन मोहिनी को नहीं मारा। बस मुझ से ये हो गया।”
“जानता हूँ वीनू। तू उसे कैसे मार सकता है। तू तो उसे प्यार करता था।”
“फिर उसकी हत्या किसने की?”
“जानकार क्या करेगा तू? उसे भी मार डालेगा? तूने तो मेरा सुनना कब का छोड़ दिया। मोहिनी को नहीं मारा पर कल तो तूने चार लोगों की हत्या कर दी।”
“उन लोगों ने आपकी तस्वीर जला दी थी गुरुदेव।”
“बड़ी तरक्की कर ली तूने। चंद लोगों ने तुझे भड़का दिया और तू लोगों की हत्या करने लग गया। तू तो लोगों की कठपुतली बन गया। अगर मंदा न होती तो मैं जाने तुझे कहाँ कहाँ खोजता फिरता।”
“ओह।” राक्षस ने आश्चर्य से मंदा की ओर देखा।
“मैं समझा की मंदा गलती से फिर पैदा हो गयी है।”
“और फिर तूने मुझे दफना दिया!” मंदा धीरे से खिलखिलाई।
“ये कमिनी बड़ी चालबाज है रे।”
मंदा ने शर्माने की एक्टिंग की।
“तो ये दस वर्षों से आपके पास है?”
“हाँ। और जब तक ये मेरे साथ है तब तक ये कोई गलत काम नहीं कर सकती। ये अलग बात है कि कभी कभी ये नियंत्रण से बाहर हो जाती है।”
राक्षस चुप हो गया। उसकी आँखों के सामने पुराने दिन बादलों की भांति घुमड़ रहे थे।
“पर गुरुदेव आपने मेरा साथ क्यों छोड़ दिया? देखिये आपके बिना क्या हालत हो गयी मेरी! मैंने तो ये भी सुना था की आपने अपने छोटे भाई की भी हत्या कर दी थी। राक्षस कि आवाज भर्रा गयी थी।
“तेरे खिलाफ सारे गाँव को भड़काने का काम उसी ने किया था। यहाँ तक की उसी ने पुलिस के रिपोर्ट में जुड़वाया था कि तूने तीन इंसानों की बलि भी दी है। जब मोहिनी को पता चला कि तुझ पर हमला करवाने और तुझे मारने कि कोशिश में मेरे छोटे भाई का हाथ है तो उसने उसका सर फोड़ डाला। सच्चा प्यार करती थी तुझसे। मेरे जाने के बाद वो इलज़ाम जाने कैसे मुझ पर लगा दिया गया।”
राक्षस रोने लगा।
“जब आप जानते थे गुरुदेव की मुझ निर्दोष को फंसाया गया था तो फिर पुलिस को क्यों नहीं बताया। क्यों उसे मेरे बारे में झूठा प्रचार करने देते रहे।”
“अब वो सब बातें पुरानी हो गयी है वीनू। अब तो तू सच का हत्यारा बन गया है। पुरे चार लोगों की हत्या की है तूने।”
राक्षस हंसा। “कौन चार लोग। वो लोग जो खुद परले दर्जे के कमीने थे।”
“तू कब से इन्साफ करने वाला हो गया रे। तू कौन होता है ये निश्चय करने वाला कि किसने पुण्य किया है और किसने पाप। अब तेरे लिए यही बेहतर है कि कानून के सामने आत्मसमर्पण कर दे वरना एक दिन कानून तुझे पकड़कर फांसी के तख्ते पर पहुंचा देगा।”
“मैंने कोई गुनाह नहीं किया है गुरुदेव,” राक्षस का स्वर पत्थर की भाँती दृढ और शांत था। जब मुझे लगेगा कि मैंने कोई गुनाह किया है तो उस दिन ये तांत्रिक स्वयं को समाप्त कर लेगा।
“तू आज भी नहीं सुधरा रे। पहले अपने आप को इस लायक बना ले कि खुद को सुधार सके। पर तुझे तो केवल बाहर वालों की आवाज सुनायी देती है अपने अन्दर की नहीं। सुधार की शुरुआत अपने से होती है दूसरों से नहीं। मुझे भी लगा था कि मैं पराकाष्ठ पर हूँ। पर जब आचार्य ब्रह्मदेव के संपर्क में आया तो मुझे अपने धरातल का पता चला।”
‘तो आपने ब्रह्मदेव को अपना गुरु बना लिया! एक महान तांत्रिक इन कपटी आश्रमवालों के अधीन आ गया!”
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सुधीर अवाक् था। इस वक़्त भी वो अपने पिता के वेश में ही था। अर्जुन देव के कमरे से आती आवाजें उसके मस्तिष्क की परत दर परत खोले जा रही थी।
अगर कल रात उसने शरवन को नहीं धर दबोचा होता तो कई रहस्यों से वो अनजान रह जाता। मंदा नाम की जीव तो अभी भी उसके गले से नीचे नहीं उतर रही थी। उसके बारे में जब शरवन ने पहली बार बताया था तो उसका तार्किक मस्तिष्क इसे कभी भी स्वीकार करने को तैयार नहीं था। पर आज सुबह तो उसने सेवाराम के घर का सारा दृश्य अपनी आँखों से देख लिया था। अगर उसके दिए स्पाई कैमरा को सेवाराम के खिड़की में फिट नहीं किया होता तो वह इन रहस्यों से अनजान रह जाता।
एक और बात सोचने का उसने पाप किया था। कुछ पल के लिए उसे ऐसा लगा था कि राक्षस के वेश में कहीं आचार्य ब्रह्मदेव तो नहीं हैं। पर इन लोगों की बातचीत ने उसके ऐसी सोचों पर विराम लगा दिया था। इस वक़्त चार लोगों का हत्यारा उसके सामने था। उसके हत्यारा होने की बात पुलिस क्या सारी पब्लिक जान चुकी थी। अगर २-४ गोली उसके सीने में उधेल देता तो यह इन्साफ ही कहलाता। पर अभी ताशी के बारे में उसे पता करना था जिसने चंद लोगों को मरवाने के लिए उसे मोहरा बनाया था।
पर अभी भी वह संयम से काम लेना चाहता था।
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कुछ देर तक अर्जुनदेव के कमरे में शांति छाई रही।
अर्जुन ने ख़ामोशी तोड़ी,
“चला जा।”
“तो क्या आप अपने शिष्य को उसके किये की सजा नहीं देंगे?”
“मैं कौन होता हूँ सज़ा देने वाला। जब तेरा अंतः करण तुझे सज़ा देने को तैयार हो जाये तभी मेरे पास आना, उसके पहले नहीं।”
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रात अभी बाकी थी।
सुधीर अर्जुन के कमरे की खिड़की के पास से पलटकर बाहर जाने के लिए आगे बाधा। पीछे कमर पर हाथ रखे महंत जी खड़े थे। त्रिलोचन के भेष में वह एक बार महंत से मिल चुका था।
“इस उम्र में ये सब शोभा नहीं देता त्रिलोचन बाबू।”
“राक्षस अन्दर है।” सुधीर धीरे से बोला।
“वो तो सबके अन्दर होता है।”
“मैं उस कापालिक की बात कर रहा हूँ।”
“तो आपको क्या परेशानी है गुप्ता जी?”
“परेशानी तो सारे शहर को है।”
“अन्दर कैसे आये?”
“जैसे राक्षस अन्दर आया। उड़कर।”
“बहुत कुछ जान चुके हैं आप। इसलिए आपको जिंदा रहने का कोई हक नहीं।”
“क्यों? मुझे भी मारने की कोशिश करोगे जैसे मेरे बेटे पर हमला किया था? और फिर राक्षस से तुम्हारा बहुत गहरा रिश्ता लगता है।”
“तुम्हारे बेटे पर मैंने हमला नहीं करवाया। मैं अगर हमला करवाता तो वो बच नहीं पता।”
पलक झपकते हीं महंत के हाथ में रिवाल्वर चमकने लगा था।
“कुछ रहस्य का न खुलना ही अच्छा होता है।”
महंत ने गोली चला दी।
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चेंग लेई ने टीवी ऑफ कर दिया। चीनी चौकड़ी के साथ वह शेरिंग के घर में मौजूद था। उसके चेहरे पर मायूसी साफ़ झलक रही थी।
“कमबख्त ने महीने भर की मेहनत को बारह घंटे से भी कम समय में ख़त्म कर दिया।” चेंग बडबडाया।
“और वो भी अकेले। कमाल की लड़की है।” मीमी ने कहा।
“मैंने इसे बहुत कम आँका था।”
“पर इसमें इतना दुखी होने की क्या बात है। नुकसान तो उन पाकिस्तानियों का हुआ है।” ठक्कर बोला।
“उन लोगों से ज्यादा नुकसान इस वक़्त हम लोगों का है। अगर सलीम की टीम राधा के बहाने फ़ूड कोर्ट को एक्सपोज़ करने में सफल हो जाती तो हम लोग एक बहुत बड़े रैकेट को तोड़ने में सफल हो जाते।”
“तुम्हारा कहना यह है कि ये राधा और कन्हैय्या उसी आर्गेनाइजेशन के मेम्बर हैं जो एच आई जी के छद्म नाम से काम कर रही है?” मीमी ने आश्चर्य से कहा।
“आज की घटना के बाद तो मुझे यकीन हो गया है कि एच आई जी और फ़ूड कोर्ट एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं।”
बाकी तीनों चेंग और मीमी की बातचीत को आश्चर्य से सुन रहे थे।
शेंग ने टोका,
“तुम लोगों का कहना है कि ये लोग किसी नयी जासूसी संस्था के आड़ में काम कर रहे हैं? पर ये काम तो इंडिया में पचास सालों से रॉ यानि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग कर रही है।”
चेंग मुस्कुराया।
“वो तो अभी भी कर रही है। पर मुझे लगता है कि चूँकि इसके ऑफिसर्स और एजेंट्स लोगों के नज़र में आ चुके हैं इसलिए इंडिया एक नए ग्रुप के आड़ में यह सब कर रहा है।”
“पर ये लोग काम किस तरह करते हैं?” इस बार शेरिंग ने टोका।
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रिवाल्वर में साइलेंसर लगा था फिर भी कोलाहल से राक्षस सावधान हो चुका था। मुख्य द्वार खुला था जिससे राक्षस ने फरार होने में देर नहीं की।
उधर अगर वक़्त पर लकड़ी का एक टुकड़ा तेज़ी से महंत के हाथ से नहीं टकराया होता तो गोली शेखर के सीने को भेद गयी होती। महंत ने घबराकर लकड़ी का कुंदा फेंकने वाले की और देखा। उधर आचार्य जी को खड़ा देखकर महंत की रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी थी।
शेखर भी अवाक् था। आचार्य जी १०-१२ फीट दूर खड़े थे पर निशान अचूक था। महंत वहीँ पर गिर चुका था और हाथ पकड़कर कराह रहा था।
आचार्य जी के ठीक पीछे आनंद खड़ा था।
उसने ताली बजाई, “वाह वाह! क्या निशाना है!”
अर्जुन देव भी कमरे से बाहर निकल चुके थे।
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“एजेंसी के मार्फ़त।”
“मैं समझा नहीं।”
“बस इतना समझ लो कि ये लोग दुनिया के सबसे एडवांस इंटेलिजेंस ग्रुप में से एक हैं। सारा कुछ एक छोटे से सॉफ्टवेयर ‘एजेंसी’ के मार्फ़त काम करता है। सबसे पहले ये लोग ऐसे लोगों की तलाश करते हैं जो उनके लिए इनफार्मेशन इकठ्ठा कर सके। चूँकि इन लोगों को ऐसी कोई जानकारी एच आई जी के बारे में होती नहीं जिससे पकडे जाने पर भी ये लोग कुछ नुक्सान कर सकें। इन लोगों के मोबाइल में ये लोग एक सॉफ्टवेयर ट्रान्सफर करते हैं जिसका नाम इन्होने एजेंसी रखा है। ये लोग पे-रोल एजेंट कहलाते हैं। एजेंसी पर ही इन्हें काम के बारे में हिदायत मिलती है और फिर काम के लिए कुछ फिक्स मनी उनके अकाउंट में ट्रान्सफर हो जाते हैं।”
“पर कोई तो होगा जो पेरोल एजेंट के मोबाइल में सॉफ्टवेयर ट्रान्सफर करता होगा?”
“वो भी किसी ऑनलाइन सॉफ्टवेयर के थ्रू होता है जिसे हम लोग ट्रेस नहीं कर पाए। पहले इनके मोबाइल पर कॉल आता है की वो इस तरह के काम के लिए रेडी हैं या नहीं। फिर नेक्स्ट स्टेप में वो सॉफ्टवेयर लोड कर दिया जाता है।”
“कमाल है। इस बचकाने तरीके से लोग रेडी हो जाते है?”
“लोग हो रहे हैं क्योंकि इसमें बड़ी रकम भी इन्वोल्व होती है। हमारे पकड़ में कई ऐसे एजेंट आ चुके हैं पर जिससे ये सारी डिटेल्स हम लोग निकाल पाए। पर उनके पकड़ते ही पता नहीं कैसे उन लोगों का मोबाइल सॉफ्टवेयर कोर्रुप्त हो जाता है। शायद वो लोग अपने एजेंट्स को अच्छी तरह से ट्रेस किये रहते हैं।”
“पर ये कैसे कहा जा सकता है कि इसमें कोई इंडियन एजेंसी इन्वोल्व है?”
“सीधी सी बात है। इनसे जो भी काम करवाए जा रहे हैं वो इंडियन सेफ्टी से ताल्लुक रखता है। आज काठमांडू में जो कुछ हुआ उसमें एक होटेल मेनेजर का इन्वोल्वमेंट था। सलीम ने जब उसे धरपकड़ा तो उसके मोबाइल में भी वोप सॉफ्टवेयर पाया गया।”
“और फिर जब उसके मोबाइल को चेक करने की कोशिश की गयी होगी तो उसका सॉफ्टवेयर कोर्रुप्त हो चुका होगा!” मीमी ने विस्मय से कहा।
“ऐसा ही हुआ।”
“तब तो एक बात हमें मान लेनी चाहिए कि अगर राधा और कन्हैय्या या इनके किसी सहयोगी से हमारे आदरणीय मंत्री को भारत में कोई खतरा नहीं है। ये लोग एक अतिथि के साथ बुरा नहीं होने देंगे।”
“यानी उलटे ये लोग किसी भी खतरे को दूर करने की कोशिश करेंगे।” शेंग ने जोड़ा।
“सही फरमाया आप लोगों ने। वहीँ अगर किसी अमेरिकी इंटेलिजेंस का इन्वोलेमेंट होता तो हमें उनसे खतरा हो सकता है। खासकर ऐसे समय जब एक करमापा अमेरिका में काफी दिन से है। और अमेरिका अभी हमारे लिए सबसे बड़ा दुश्मन देश है।” शेरिंग ने अपनी राय जाहिर की। उसकी एक आंख अपने मोबाइल स्क्रीन पर जमी थी।
“इस ओर भी मैंने सोचा था पर अभी तक तो ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे उनका इन्वोल्वेमेंट साबित हो।”
“सबूत है बड़े भाई।” शेरिंग ने आत्मविश्वास से कहा।
सभी चौंके।
“ये तुम्हारी सरस्वती अमेरिका की जासूस हो सकती है।”
“ऐसा कैसे कह सकते हो?” मीमी ने टोका।
“अगर गूगल की गरदन पकड़कर हिलाओ तो वो तुम्हरे टट्टी पेशाब का समय भी उगल सकता है।”
ये लड़की या औरत जो भी कह लो, ये मुझे काम की लगी थी इसलिए ऑनलाइन उपलब्ध सारे रिकॉर्ड चेक कर रहा था। पिछले एक साल में ये तीन बार अमेरिका गयी है। वहाँ के सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी यानी सी आइ एमें हमारे एजेंट भी हैं। दो दिन से उसने छानबीन कर जो रिपोर्ट्स हमें सौंपी उसके अनुसार उसके अधिकारी इस लड़की से हर बार मिले थे। अब सी आइ ए को इस लड़की से क्या प्यार उमड़ आया?”
सभी सन्न रह गए।
चेंग बुदबुदाया, “और फिर आश्रम में उसका अल्फांसे से प्यार जग जाहिर है।”
शेरिंग ने अगला बम छोड़ा, “सरस्वती अंतिम बार अमेरिका जनवरी के तीसरे हफ्ते में गयी थी। हमारे इंटेलिजेंस के मुताबिक अल्फांसे अंतिम बार जनवरी के तीसरे हफ्ते में ही अमेरिका में देखा गया था जहाँ उसकी चीन के सबसे महान जासूस से मुठभेड़ हुई थी।”
कुछ देर तक चुप्पी छाई रही।
“मतलब साफ़ है। अल्फांसे को यहाँ लाने का काम सरस्वती ने किया है।”
“या फिर अल्फांसे सरस्वती को सीढ़ी बनाकर यहाँ पहुंचा है। और जाहिर है कि दोनों की मंजिल एक ही होगी।”
“कहीं दोनों मिलकर हमारे मंत्री महोदय को टपकाने के फिराक में तो नहीं हैं?” मीमी ने अपनी मंशा जाहिर की।
चेंग लेई ने सर हिलाते हुए कहा, “नहीं। जहाँ तक मैं अल्फांसे को जानता हूँ वो कोई सुपारी किलर नहीं है। हाँ, पैसे के लिए वो भले ही अपहरण जैसा काम कर सकता है।”
“और अपहरण के लिए हमारे विदेश मंत्री जैसा महंगा आइटम कहाँ मिलेगा?” मीमी बोली।
मीमी की बात सबको जंच रही थी।
“अगर वो ऐसा सोच रहा है तो ये उसकी लाइफ की सबसे बड़ी बेवकूफी होगी। क्योंकि हमारे मंत्री जी के साथ वांग की टीम आ चुकी है। और टीम के साथ खुद वांग भी है।” ठक्कर ने कहा।
वांग को सभी जानते थे।
“तब तो हम लोगों को उनकी सुरक्षा के लिए चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं।” शेंग ने कहा।
चेंग मुस्कुराया। “तुम्हारा क्या कहना है मीमी?”
“रिकॉर्ड तो आज तक अल्फांसे का भी टूटा नहीं है आजतक असफल होने का।”
“अगर हम लोग २-३ दिन के लिए अल्फांसे को कहीं बंद कर पाते तो बढिया होता।”
“इसमें क्या मुश्किल है। पुलिस को खबर कर दो की अंतर्राष्ट्रीय मुज़रिम अल्फांसे यहाँ छुपकर रह रहा है।”
“और अगर उसने भी पुलिस को हम लोगों के बारे में खबर कर दी तो? तुम लोग क्या समझते हो कि वह हम लोगों की उपस्थिति से अनजान होगा?” मीमी बोली।
“मीमी सही कह रही है।”
एक अजनबी आवाज सुनकर सभी लोग चौंके। उन्होंने सपने में भी नहीं सोंचा था कि अल्फांसे यूँ उन लोगों के बीच आ धमकेगा।
“यूँ घर को बिना किसी सिक्यूरिटी के छोड़ कर नहीं जाया करते ठक्कर बेटे। वरना अल्फांसे आ जाता है।”
...............................................
वो आचार्य ब्रह्मदेव के घर का कमरा था जिसमें उनके अलावा चार और लोग मौजूद थे। वो खुद एक सोफे पर मौजूद थे और उनके दोनों तरफ दो लम्बे सोफे लगे थे। एक पर आनंद और अर्जुन देव मौजूद थे जबकि दूसरे पर रामदास महंत और सुधीर गुप्ता बैठा था। इस वक़्त सुधीर गुप्ता के चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था यानी वो अपने चेहरे से त्रिलोचन गुप्ता का मेकअप हटा चुका था। आचार्य जी द्वारा पहचाने जाने के बाद उसने मेकअप की कोई ज़रुरत नहीं समझी थी। महंत के हाथ पर पट्टी बंधी थी।
रात के एक बज चुके थे पर किसी के आँखों में नींद नहीं थी। चुप्पी सुधीर ने ही तोड़ी, “आपने अस्पताल में एस पी साहब से कहा था कि अगर यहाँ के किसी कर्मचारी के खिलाफ सबूत हो तभी हम आपके पास पहुंचें। महंत रामदास की शक्ल में सबूत आपके सामने है। यही वो शख्स थे जिन्होंने कपालिक विनय चतुर्वेदी को शरण दी। जिन्होंने उसे कई बार सेफ पैसेज दिया। उसके छुपने के लिए जगह का इंतेजाम किया। अगर ये आपके कहे अनुसार जिम्मेदार शहरी का फ़र्ज़ निभाते तो फिर अपराधी को चार और खून करने का मौका नहीं मिलता। यहाँ तक कि महंत रामदास ने इस राक्षस के लिए नकली पासपोर्ट का अरेंजमेंट भी किया। नेपाल जाकर अपने कांटेक्ट का फायदा भी उठाया और इस राक्षस को चीन एक्पोर्ट करने की तैयारी भी की। कोई आश्चर्य नहीं कि भुवन मोहिनी की हत्या भी इसी ने की हो। अब महंत जी ही बता सकते हैं कि राक्षस के प्रति इनके प्यार का कारण क्या है?” सुधीर ने अपने बगल में बैठे महंत की ओर देखा।
उसकी आशा के उलट महंत की आँखों में विक्षोभ या पश्चाताप का कोई निशान नहीं था। धीर गंभीर लेकिन स्पष्ट सब्दों में उसने कहना शुरू किया, “आज से कुछ साल पहले जब मैंने इस आश्रम में काम करना शुरू किया तो इसके पीछे न तो मेरे मन में किसी किस्म का लालच था और न ही कुछ पाने की आकांक्षा। पहले दिन ही अर्जुन देव ने मुझसे कहा था कि मेरे लिए आश्रम सर्वोपरि होना चाहिए। आज तक मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे आश्रम के प्रतिष्ठा को ठेस लगे। आज भी मुझे नहीं लगता कि इस तांत्रिक की सहायता कर मैंने कोई गलती की है।” रूककर उसने आचार्य जी की और देखा।
“आप अपनी बात पूरी करें। भले ही वो बात मेरे विरोध में जाती हो।” आचार्य ब्रह्मदेव की आवाज बिलकुल स्थिर थी।
“मुझसे आशा की जाती रही कि बिना मेरी अनुमति के कोई भी शख्स आश्रम में रहने की जुर्रत न करे। फिर भी भुवन मोहिनी कम से कम पिछले एक महीने से आश्रम में गुरुवर अर्जुन के साथ रह रही थी जिसके बारे में पुलिस को बताया गया कि वह दयाल के साथ रह रही थी। क्या यह आश्रम की सुरक्षा से समझौता नहीं था? आप कह सकते यह तो अश्रम का आतंरिक मामला था। मैं उस बात पर आता हूँ जिसके लिए मैं गुनहगार ठहराया जा रहा हूँ। विनय चतुर्वेदी से मेरी मुलाकत एक महीने पहले हुई थी। मैं नहीं जानता था कि वो कहाँ से आया पर सबसे पहले उसे मैंने आश्रम के पीछे वाली पहाड़ियों में भटकता देखा था। बातचीत से मुझे मालूम हो गया था कि ये वही विनय चतुर्वेदी है जिसका ज़िक्र मैं अर्जुन देव से एक महान तांत्रिक के रूप में सुन चुका था। उसे अपने अतीत पर पछतावा था। वह फिर से तंत्र साधना में लीन होना चाहता था। मुझे पिछली पहाड़ियों में मौजूद एक गुफा के विषय में जानकारी थी। उसके बारे में मैंने उसे बताया तो वह खुश हो गया। उसने अपनी साधना वहां शुरू कर दी। सब कुछ ठीक चल रहा था। उसी ने मुझे बताया कि उसकी यादाश्त पुरानी सहयोगिनी को देखकर ही लौटी थी वरना वो अपने अतीत से बिलकुल अनजान होकर अलग ही जिंदगी बिता रहा था।
पहली बार जब उसकी मोहिनी से मुलाक़ात हुई तो वह नदी के किनारे साधना में लगी थी। पर जब उसका विनय जी से सामना हुआ तो वह आश्रम में अपने भाई अर्जुन के साथ रहने आ गयी। शायद आचार्य जी की इसमें सहमती थी। पर उसे किसी तरह मालूम हो गया कि मोहिनी यहाँ छुपकर रह रही है। पर उसे यह मालूम नहीं हुआ था कि उसके गुरुदेव भी यहीं आश्रम में रह रहे हैं। अब विनय जी ने मुझसे अनुरोध किया कि उसे मोहिनी से मिलने का मौका दे ताकि वो अंतिम बार उसे मनाने की कोशिश कर सके। मुझे मालूम था कि मोहिनी पार्क स्थित भोलेबाबा की मूर्ति के सामने कोई साधना करने जा रही है। मुझे इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं दिखाई दी। दयाल को तो मोहिनी के विषय में पता था ही, शायद आचार्य जी ने या फिर अर्जुन देव के बताये मालूम था। मैंने दयाल से भी कह दिया की वो पिछला दरवाजा खुला छोड़ दे और फिर चाभी मेरे दयालहवाले कर दे। चाभी मैंने रात में आनंद के हवाले कर दी। पर जाने चाभी में क्या हेर फेर हुई कि सुबह आनंद ने मुझे जो चाभी सौंपी वो नकली चाभी थी।”
“टोकने के लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ महंत जी पर अब मुझे ये यकीन है कि इधर मुझे कुछ दिन से दयाल नकली चाभी ही सौंप रहा था पर चूँकि मुझे चाभी को चेक करने को नहीं कहा गया था इसलिए मैंने ऐसा नहीं किया। आप जारी रखें महंत जी।” कहते हुए आनंद चुप हो गया।
“फिर रात में विनय जी का मोहिनी से सामना हुआ। दोनों में तकरार हुई और वो सब कुछ हुआ जो हम लोगों ने सेवाराम के विडियो में देखा। फिर पता नहीं किसके किये पर वो विडियो हम लोगों के मोबाइल से गायब हो गया। चूँकि मुझे भी जानने की उत्सुकता थी इसलिए मैं भी सारा दृश्य छुपकर देख रहा था। उस समय तक दयाल जाग रहा था और अपने कमरे में था। जब मैं पार्क में लगभग ११ बजे प्रविष्ट हो रहा था तो मैंने उसे हिदायत भी दी की वो अपने कमरे में ही रहे।”
“तो क्या दयाल उस समय अपने कमरे में अकेला था?” सुधीर ने पहली बार टोका।
“उस समय मैंने ध्यान नहीं दिया था। फिर उस पर शक करने का कोई कारण भी नहीं था। पर उस समय की उसकी एक्टिविटी जैसी थी उसके आधार पर मैं यकीन से कह सकता हूँ कि उसके कमरे में कोई था। मैंने उसके कमरे में जाने की कोशिश भी की थी पर वो दरवाजे पर अड़ा रहा था।”
“कौन हो सकता है आपके ख्याल से?”
“उसकी वाकिफियत ज्यादा लोगों से नहीं थी। अल्फांसे रोज सुबह उसके पास होता था। जुनी और ताशी भी अक्सर उसके पास होते थे।”
“इन तीनों आप्शन को डिलीट कर दीजिये महंत जी। ये तीनों और खुद मैं यानीं चारों एक साथ रात बारह बजे तक आचार्य जी के साथ नए किताब के प्रूफिंग में व्यस्त थे।” आनंद ने टोका।
“खैर जो भी हो, जब विनय जी निराश होकर बाहर के रास्ते से वहां से निकल गए तो कुछ देर बाद मैं भी वहां से वापस आ गया। आते समय मैंने देखा था कि मोहिनी पुनः अपने साधना में लीन हो चुकी थी।”
“हो सकता है कि आपके विनय बाबू पुनः अपने गुस्से को जाहिर करने के लिए वापस आ गए हों।”
“नहीं हो सकता। जब से उसे अपने तांत्रिक होने की बात याद आयी है तबसे वो हर रात बारह बजे से पहले अपनी साधना के लिए अपने पूजा स्थल ज़रूर पहुँचता है। आज भी वो यहाँ से सीधा वहीँ गया होगा। उसका कहना है कि पुराने दिनों में भी वह हर दिन बारह बजे तक अपने साधना स्थल पर ज़रूर होता था।”
“तो फिर आपके अनुसार मोहिनी की हत्या किसने की?” सुधीर ने कहा।
“अगर आप लोगों का कहना सुनना ख़त्म हो गया हो तो क्या मुझे भी कुछ कहने की अनुमति देंगे?” आचार्य जी ने अपनी चुप्पी तोड़ी।
सबकी दृष्टि आचार्य जी के तरफ घूम गयी थी।
सोफे पर से उठकर वो सुधीर के ठीक सामने खड़े हो चुके थे।
सुधीर भी खड़ा हो गया। आज पहली बार उसने आचार्य ब्रह्मदेव के आँखों में झाँकने कि हिम्मत की थी। उसे ऐसा लगा कि मानों गहरी झील में उतरता जा रहा था। क्या ये सम्मोहन था?
वक़्त गुज़रता गया। दो मिनट, तीन मिनट, पांच मिनट।
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“पूरे एक घंटे से तुम लोगों की बकबक सुनता आ रहा हूँ। रहा नहीं गया मुझसे इसलिए सामने चला आया।”
“आओ बैठो अल्फांसे।” मीमी ने खुद को रिलैक्स दिखाने की कोशिश की असलियत में वो भी झटके से उबार नहीं पायी थी।
अल्फांसे एक खाली कुर्सी पर बैठ गया था।
“ये हुई न बात। तुम्हारी एक कुर्सी यूँ हीं खाली पड़ी थी। अब सेट पूरा हो गया।”
शेंग का एक हाथ पॉकेट में मौजूद रिवाल्वर पर जम गया। वो किसी भी परिस्थिति के तैयार था।
“चिंता मत करो शेंग बेटे। मैं अभी मारपीट के मूड में नहीं हूँ। वैसे भी तुम लोग पांच हो और मैं अकेला हूँ। कोई हिमाकत कैसे कर सकता हूँ।”
मीमी ने इशारा किया। शेंग ने पॉकेट से अपने हाथ खींच लिए।
“तुम जो कुछ न कर गुजरो कम है अल्फांसे। फिर भी कॉन्फिडेंस और ओवर-कॉन्फिडेंस में बहुत ज्यादा फासला नहीं होता।” मीमी ने मुस्कुराते हुए कहा।
अल्फांसे ने मीमी के आँख में आँख गड़ाते हुए बोला, “अल्फांसे का कॉन्फिडेंस कभी ओवर नहीं होता मीमी। अगर तुम या तुममें से कोई यह सोच रहा है कि तुम सब मिलकर मेरा कोई नुकसान पहुंचा सकते हो तो कोशिश कर के देख लो।”
मीमी को रीढ़ में एक सिहरन सी दौड़ गयी जबकि बाकी लोगों को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि ये वही अल्फांसे है जिसके नाम से ही लोगों के छक्के छुट जाते हैं। मीमी का केवल एक बार अल्फांसे से सामना हुआ था जब चीन में ही वो २०-२५ सैनिकों के होते हुए भी एक ज़रूरी फार्मूला ले भागा था। सभी सिक्यूरिटी गार्ड्स मुंह देखते रह गए थे। पर यहाँ पांच ऐसे जासूस बैठे थे जो हर तरह के फाइटिंग में निपुण थे। क्या सब लोग मिलकर उसका सामना नहीं कर सकते थे?
“ये सही है अल्फांसे कि तुमने यहाँ प्रकट होकर हमें चौंका दिया है। पर ये सोचने की गलती मत करना कि तुम हम पर किसी किस्म का दबाव डाल सकते हो।” चेंग ने मुंह खोला।
“मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है ताशी महोदय। उलटे मैं तो तुम लोगों के भलाई के लिए एक प्रपोजल लेकर आया हूँ।”
“अल्फांसे कब से हम लोगों की भलाई सोचने लगा? फिर भी जो कहना है कहो। हम लोग सुनने को तैयार हैं।”
“दरअसल मैं पांच तारीख को तुम्हारे विदेश मंत्री का अपहरण करने जा रहा हूँ।”
चेंग मुस्कुराया।
“सरस्वती देवी ने कितने रूपये दिए इस काम के?”
“पांच करोड़ दे चुकी है और इतने ही और काम के बाद मिलने वाले हैं।” अल्फांसे आराम से बोला।
“तब तो जितने पैसे मिल चुके हैं उतने लेकर फरार हो जाओ। क्योंकि जब तक वांग की टीम यहाँ उनके आसपास है तुम मंत्री जी का क्या उनके एक गार्ड का भी कुछ बिगड़ नहीं पाओगे। साथ में वांग खुद भी है।” शेरिंग बोला।
अल्फांसे हंसा।
“लगता है तुमने अल्फांसे का प्रोफाइल ठीक से चेक नहीं किया है। तुम्हारी जानकारी के लिए वांग के टीम का एक मेम्बर आज ही ज़हंनुम रशीद हो चुका है। बेचारे वांग को तो इसकी खबर भी नहीं मिली होगी।”
सभी हतप्रभ हो गए। चेंग जानता था कि अल्फांसे इस तरह का झूठा दावा नहीं करता।
“और शेरिंग बेटे, अगर तुमने वांग को अपने मोबाइल से ये खबर एस एम एस कर दिया हो तो मेरी तरफ तवज्जो दे सकते हो।”
शेरिंग ने हडबडाकर सर उठाया। कितनी पैनी नज़र रखता था ये शख्स!
“क्या चाहते हो तुम?” चेंग ने सवाल किया।
“पचास करोड़। और साथ में वो हीरा जो तुम मेरे पास से छह महीने पहले चुराकर भागे थे।”
“वो हीरा चीन में है।”
“तो ठीक है। उसके बदले में पचास करोड़ रूपये और दे देना। आज मैं आश्रम वैसे ही छोड़ चुका हूँ। अल्फांसे काम पैसे के लिए करता है। पैसे लेकर मैं वापस चला जाऊँगा। तुम भी खुश और मैं भी खुश।”
“और अगर हम लोगों ने इस सौदे को मानने से इनकार कर दिया तो?” मीमी बोली।
“तो फिर तुम्हारे मंत्री का अपहरण कर तुम्हारी सरकार से पुरे पांच सौ करोड़ रूपए वसुलूँगा। उम्मीद है उस वक़्त तुम्हारी सरकार इनकार की स्थिति में नहीं होगी।”
एक अकेला निहत्था शख्स पांच खतरनाक लड़ाकों को खुलेआम धमकी दे रहा था। ठक्कर ने शेंग को आँखों ही आँखों में इशारा किया।
दोनों के रिवाल्वर से लगभग एक साथ गोली चली थी। अल्फांसे कुछ पल के लिए इनसे गाफिल हो गया था वरना उन दोनों को रिवाल्वर निकलने का मौका भी नहीं मिलता। वो कुर्सी को लिए पलट गया। दोनों गोली पीछे दीवार में लगी।
अल्फांसे बाल बाल बचा था। एक बार फिर उसने मौत को धोखा दिया था। पर इतना मौका शेंग और ठक्कर को नहीं मिला। गिरने के साथ ही अल्फांसे ने दो फायर किये। एक ने शेंग के कनपट्टी से अपना रास्ता बनाया तो दुसरे ने ठक्कर के दिल में अपनी जगह बनाई। पलक झपकते ही सब कुछ हो गया था। अल्फांसे के दोनों हाथों का रिवाल्वर अपनी अपनी कहानी कह रहा था।
मीमी और चेंग एक साथ अल्फांसे पर झपटने वाले थे पर अल्फांसे ने अपने रिवाल्वर उन पर तान दिए। दोनों ठिठक गए।
“कोइ बात नहीं ताशी बेटे। हम लोगों के लाइफ में ये सब चलता रहता है। इस शेरिंग को देखो। अभी तक सदमे में है। चलता हूँ। अब तुम्हारे मंत्री की इज्ज़त तुम्हारे हाथ में है।”
दरवाजे की तरफ पीठ किये वो दरवाजे की तरफ बढ़ा। हाथ पीछे कर उसने दरवाजे की कुण्डी खोली। तीनों ने अल्फांसे के कहे अनुसार अपने हाथ ऊपर कर रखे थे। वैसे भी अभी वो अल्फांसे से उलझना नहीं चाहते थे। दरवाजा खोलकर उसने अपना पहला कदम बाहर रखा ही था कि एक नपी तुली ठोकर उसके पीठ पर पड़ी। ठोकर इतनी जबर्दश्त थी कि वो रूम में जा गिड़ा था।
दरवाजे पर वांग खड़ा था।
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लगभग सात मिनट बाद आचार्य ब्रह्मदेव ने अपनी नज़र हटाई।
“इतनी हिम्मत तो किसी निर्मल ह्रदय वाले की ही हो सकती है जो इन आँखों में इतनी देर ठहर सके। मैं आपसे माफ़ी मांगता हूँ सुधीर बाबू जो मैंने आपकी बातों पर अविश्वास किया।”
सामने हाथ जोड़े खड़े आचार्य ब्रह्मदेव को देख सुधीर को ऐसा लगा मानों हिमालय किसी छोटे टीले के सामने झुक गया हो!
आचार्य जी पुनः अपनी जगह बैठ चुके थे।
“मैंने सुना है कि दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो प्यास से मरते लोगों को पानी नहीं पिलाते। वो भी इसलिए कि अगर वो पानी पीकर बच गए और अगर बाद में उस आदमी ने किसी कि हत्या कर दी तो वो भी इस हत्या में सहयोगी बन जायेंगे। मुझे ख़ुशी है कि महंत जी ने खुद को ऐसे लोगों में शुमार नहीं किया और विनय चतुर्वेदी को जी जान से बचने की कोशिश की। इस कोशिश में वो इतने जी जान से लग गए कि इस बात की भी परवाह नहीं की कि दो दिन पहले इसी आदमी ने सरेआम चार लोगों की बेदर्दी से हत्या कर डाली। इसलिए कि उन लोगों ने उसके गुरु के चित्र को फाड़ डाला था। हमें यकीन है कि इसके लिए भी आपने अपने बचाव में कुछ सोच रखा होगा। और फिर जब सुधीर बाबू को असलियत मालूम हुई तो उसे भी मारने की कोशिश की। जाने ये विनय को बचाने की कोशिश थी या फिर स्वयं को।”
“मैं डर गया था। मैं सच में डर गया था।” महंत बुदबुदाया।
“चलिए चलते हैं।” आचार्य ब्रह्मदेव ने अचानक झटके से खड़े होते हुए कहा, “रात बहुत हो गयी है। सुधीर जी आप चाहे तो यहीं आश्रम में रुक सकते हैं। आनंद जी आप यह सुनिश्चित कर लें कि विनय चतुर्वेदी फिर इस आश्रम में प्रवेश नहीं कर पाए। आश्रम के गार्ड्स तक यह सन्देश पहुंचा देना कि अगर वो आश्रम के आसपास भी दिखे तो उसे गोली मार दे। जो भुगतना है मैं भुगत लूँगा।” कहते हुए वो तेजी से निकल गए थे। महंत जी को कुछ कहने की उन्होंने ज़रुरत नहीं समझी थी।
पर सुधीर अभी भी आश्वस्त नहीं था।
पर अभी भी वह मुंह बंद ही रखना चाहता था।
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“मुझे समझ नहीं आ रही वांग कि इंतज़ार किस लिए कर रहे हो। एक पल का भी इंतज़ार करना बेवकूफी है।” चेंग झुंझला रहा था।
पिछले पांच मिनट से अल्फांसे कुर्सी पर अच्छी तरह बंधा पड़ा था। थोड़ी मुश्किल तो हुई थी पर चारों ने मिलकर अल्फांसे पर काबू कर ही लिया था।
वांग शान्ति से अल्फांसे के सामने बैठा था।
“चिंता मत करो चेंग। मेरे दो आदमी बाहर हैं। अन्दर कोई नहीं आ पायेगा।”
“पर इसको जिंदा रखने से क्या फायदा है। इतना अच्छा मौका हमें फिर नहीं मिलेगा। अगर ये यहाँ से बच कर निकल गया तो हम सबको ले डूबेगा।”
“पहले मुझे इससे बात करने दो। इसकी जिंदगी और मौत से मुझे कुछ लेना देना नहीं है। मुझे बस अपने ऑफिसर के सुरक्षा से मतलब है।”
चेंग कसमसाकर रह गया। अभी अभी उसने दो चीनी जासूस की हत्या कर दी थी और वो कुछ नहीं कर पाया था। अगर उसके चीन में बैठे आकाओं ने वांग को मातहत काम करने की हिदायत नहीं दी होती तो वो कब का उस पर गोली चला देता। मीमी निर्विकार भाव से बैठी थी। निर्णय चेंग या वांग को लेना था। दो दो लाशें सामने पड़ी थी। शेरिंग भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं था।
“तुमनें हमारे तीन भाइयों की हत्या कर दी।” वांग अल्फांसे से बोला।
“ये आज का स्कोर है। इसके पहले भी कई बार मुझसे ऐसा हो चुका है।” अल्फांसे ने मुस्कुराकर कहा।
वांग का हाथ तेज़ी से उसके गाल से जा टकराया। अल्फांसे कुर्सी सहित पीछे जा गिरा। वांग ने उसे उठाकर पुनः बैठा दिया। अल्फांसे पर कोई असर नहीं हुआ था और अभी भी उसके चेहरे पर मुस्कराहट कायम थी।
“अगर तुमने मेरे बारे में सुना होगा तो जानते ही होंगे कि मैं किस किस्म का आदमी हूँ। तुम्हारे जैसे १० लोगों को डेली ट्रेनिंग देता हूँ। तुमने आज मेरा बहुत नुकसान कर दिया है। एक एक कमांडो को ट्रेन करने में मुझे महीनों लगते हैं। बस मैं इतना जानना चाहता हूँ कि तुम लोगों का क्या प्लान है?”
“तो क्या मेरा प्लान जानने के बाद मुझे छोड़ दोगे?”
“नहीं। बस उसके बदले में तुम्हारी आसान मौत मिलेगी।” वांग ने आराम से कहा।
“जानते हो वांग इतनी देर से मैं तुम्हारी बकवास क्यों सुन रहा हूँ? बस इसलिए कि मैं तुम्हारी इज्ज़त करता हूँ। तुम्हारा दर्ज़ा एक गुरु का है। हर देश में तुम्हारी डिमांड है। हर देश के लोग तुम्हरे पास सिखाने आते हैं और तुम उन्हें बिना किसी भेदभाव के ट्रेनिंग देते हो। तुम्हारे कमांडो ने मुझे भी बहुत अच्छी टक्कर दी। बहुत इज्ज़तदार तरीके से वो मरा। चाहता तो भाग सकता था इस चेंग नाम के कमीने की तरह। पर अंत तक उसने संघर्ष किया। रही प्लान की बात तो यकीन मानों मेरा कोई प्लान नहीं। बस तुम्हारे मंत्री का मुझे अपहरण करना है और वो तो करूँगा ही। अब मेरे जाने का वक़्त हो गया।”
चारो सतर्क हो गए थे। चेंग समझने में असमर्थ था कि इस अवस्था में भी अल्फांसे इतना कांफिडेंट कैसे है। उसने चारों तरफ देखा। फरार होने का कोई भी रास्ता उसके नज़रों के सामने नहीं आया। वांग पर अल्फांसे के दावे का कोई खास असर नहीं हुआ था।
“अगर इन बातों से तुम सोच रहे हो कि मुझ पर कोई मनोवैज्ञानिक असर डाल लोगे तो तुम्हारी गलत फहमी है। चलो तुम्हें दस मिनट और देता हूँ। उसके बाद मैं तुम्हें गोली मार दूंगा।”
अल्फांसे मुस्कुराया।
“चलो जाते जाते तुम्हें एक सीख देता हूँ वांग। मानता हूँ कि तुम दुनिया के सबसे खतरनाक लडाके में से एक हो। हो सकता है की सीधी फाइट में तुम मुझे हरा भी दो। पर इतना ध्यान रखना की जिस तराजू से बाकी लोगों को तौलते हो उसी से अल्फांसे को तौलने की कोशिश मत करना। जिस स्थिति में मैं अभी हूँ उसी स्थिति में तुम्हारे आये बिना भी हो सकता था। अल्फांसे दस कदम आगे सोचता है। अच्छा चलता हूँ। कहा सुना माफ़ करना।”
क्या करने वाला था ये छलावा!
चेंग को अचानक समझ में आ गया कि क्या होने वाला है पर तब तक देर हो चुकी थी। ठक्कर जिसे वो लोग मरा समझ बैठे थे ने अचानक हरकत ली और पॉकेट से आठ दस छोटी छोटी गोलियां निकालकर फर्श पर पटक दिया। पलभर में सारा कमरा आँखों में जलन पैदा करने वाले धुएं से भर चुका था।
छलावा ठक्कर के साथ फरार हो चुका था।
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सरस्वती चिंतित थी।
“क्या हुआ?”
“अल्फांसे के पीछे लगे मेरे आदमी ने बताया है कि वो आज शेर की मांद में गया है।”
“क्या मतलब?”
“वो ठक्कर के घर में है। और वहां वो बाकी चारों चीनी भी मौजूद हैं।”
“वो अल्फांसे है। वो हम लोगों के तरीके से काम नहीं करने वाला। उसे उसके स्टाइल में काम करने दो। बस उस पर ध्यान रखना। अगर ज़रूरत पड़े तो उसकी सहायता के लिए अपने आदमी तैयार रखना।”
“मुझे बस अपने काम के सफलता की चिंता है।”
“हम लोग सफल होंगे। मुझे अपने इश्वर पर भरोसा है। तुम्हारा ऑपरेशन बकरा सफल होकर रहेगा।”
“ऑपरेशन गोट।” कहकर वो भी हंसी।
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करीब बीस मिनट बाद चारों सँभालने के काबिल हुए। चारों की आँखें बुरी तरह लाल हो चुकी थीं। पर पंछी तो दो मिनट में ही फरार हो चुका था।
“मुझे उसी समय समझ जाना चाहिए था जब वो ठक्कर के घर में एकाएक प्रकट हुआ था।” चेंग बडबडाया, “ठक्कर के जानकारी के बिना उसका इस घर में आना मुश्किल था। आज शाम हम लोगों के सामने उसने घर का दरवाजा खोला था।”
“और फिर उसने दो रिवाल्वर से गोली चलायी थी।” शेरिंग ने कहा।
“पर तुम्हारा ठक्कर उसकी तरफ मिल क्यों गया।” वांग सबसे अधिक गुस्से में था।
“ठक्कर हमारा नहीं चीन सरकार का जासूस था। मीमी ने बिफर कर कहा,” और सबसे बड़ी भूल तुम्हारी है वांग। जब चेंग ने तुमसे कहा कि उसे गोली मार दो तो तुम उसकी क्लास लेने बैठ गए थे। तुम्हारे सामने कोई दो टके का जासूस नहीं दुनिया का माना हुआ मुजरिम बैठा था।”
“सही कह रहे हो। मैं अपने आप को ज्यादा स्मार्ट समझ बैठा था। अब कोई रिस्क नहीं लूँगा।”
“पर उस धुएं का असर उन दोनों पर क्यों नहीं हुआ?” शेरिंग ने आश्चर्य से कहा।
“जब वो आगे की सोच कर बैठा था तो कुछ न कुछ ज़रूर सोच कर बैठा होगा। ठक्कर को तो मैंने चेहरे पर नकाब चढाते हुए देखा था।”
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जुलाई ३
सुधीर आज सुबह ही ड्यूटी पर लौटा था। डॉक्टर्स के तरफ से उसे फिटनेस सर्टिफिकेट मिल चुका था।
इस वक़्त सुधीर हवेली में तैनात था। डी जी पी के स्पेशल आर्डर पर उसे अगले तीन दिन के लिए हवेली में ही रहने को कहा गया था। आज सुबह वांग ने डी जी पी और एस पी के साथ बैठक की थी और काफी छानबीन के बाद ये निष्कर्ष निकला कि सुधीर से बेहतर ये काम और कोई नहीं संभाल सकता है। वांग भी सुधीर के रिकॉर्ड से प्रभावित हुआ था। राधा भी काठमांडू से लौट चुकी थी और वो भी कन्हैय्या के साथ हवेली में मौजूद थी। वांग के लिए उन दोनों का दर्ज़ा भारतीय जासूस का था जिसे भारत सरकार द्वारा चीनी मंत्री की सुरक्षा के लिए भेजा गया था। वांग को चीनी श्रोतों से मालूम हो चुका था कि राधा ने किस तरह काठमांडू में अपने काम को अंजाम दिया है इसलिए उसके हिसाब से वो उसके लिए सहायक सिद्ध हो सकती थी। उसके दल का एक सदस्य कम हो चुका था। प्रेस को यह बताया गया था कि हार्ट अटैक के कारण उसकी मृत्यु हुई है और उसके शव को स्पेशल फ्लाइट से चीन वापस भेज दिया गया था। असलियत बताकर वो अपनी भद्द नहीं पिटवाना चाहता था।
इस प्रकार हवेली में वांग, उसके तीन कमांडो, राधा, कन्हैय्या और सुधीर को छोड़कर और कोई तैनात नहीं था। भोजन वगैरह का इंतेजाम भी बी एस एफ वालों के जिम्मे था। हवेली से थोड़ी दूरी पर बी एस एफ ने अभी भी डेरा डाला हुआ था। वांग की टीम ने पूरी हवेली की रेकी कर डाली थी और हवेली में मौजूद इकलौते तहखाने को भी खंघाल डाला गया था। ज़रुरत के अनुसार सी सी टी वी कैमरे फिट कर दिए गए थे और एक कमांडो उसी पर तैनात था। साथ ही मौजूद सभी सात लोगों के मोबाइल को उन सी सी टी वी कैमरे से कनेक्ट कर दिया गया था।
राक्षस के बारे में तो एस पी सचदेवा ने शूट एट साईट का स्पेशल आर्डर दे डाला था। सुधीर ने कल रात वाली बात एस पी को नहीं बताई थी वरना सारे आश्रम में खलबली मच सकती थी और आने वाले कार्यक्रम पर अनावश्यक असर पड़ता।
इन कुछ दिनों में जिस चीज़ ने सबसे अधिक आंदोलित किया था वो थी मंदा। अभी तक वो विश्वास नहीं कर पा रहा था कि ऐसे किसी जीव का अस्तित्व हो सकता है। उस जीव का विडियो भी उसके पास था। राक्षस जैसे कापालिक को उसने उस जीव पर विश्वास करते और बात करते देखा था। लौटते समय उसने अर्जुन देव से बातचीत की थी तो उसने बस इतना ही कहा था, “अगर कोई चीज़ तुम्हारी आँखों के सामने से नहीं गुजरी तो इसका अर्थ ये नहीं की उसका अस्तित्व नहीं।”
सुधीर अर्जुन से और भी बातचीत करना चाहता था पर वो फिर हमेशा की तरह मौन में चले गए थे।
शेंग की मौत सुबह दो बजे के आस-पास हुई थी और इसके लिए उसके दोस्त ठक्कर को दोषी पाया गया था। चाइनीज़ कनेक्शन के कारण देर सवेर इसका भेद खुलना ही था और ये महज वक़्त की बात थी।
आश्रम की भी सिक्यूरिटी कड़ी कर दी गयी थी।
महंत के लिए आज का दिन आत्मनिरीक्षण का दिन था।
आज सुबह से शाम हो गयी थी पर रामदास महंत की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया था। सुबह अपने असिस्टेंट जितेन शुक्ल को बुलाकर अगले तीन दिनों के लिए अपना सारा प्रभार उसे सौंप दिया था। जितेन ही वो इकलौता शख्स था जो उसके हर काम के बारे में जानता था। जितेन को सारा काम समझाने के बाद उसने सीधे जयंत देव की समाधि का रुख किया था और तबसे वो वहीँ पर बैठा था।
अगर गुरुदेव ने उसे प्रताड़ना दी होती तो वह अपने आपको सौभाग्यशाली समझता। जाने किन भावनाओं के वशीभूत होकर उसने सुधीर को जान से मारने की कोशिश तक कर डाली थी। अगर गुरुदेव ने पलभर की देर की होती तो वह हत्यारा बन चुका होता। अगर वो चाहते तो उसके हर तर्क का काट प्रस्तुत कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया था। खुद के बनाये गए तर्क के जाल से उसे निकलना मुश्किल हो रहा था।
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चेंग और शेरिंग ने मिलकर हर वो संभव जगह तलाश कर डाली थी जहाँ जहाँ अल्फांसे के होने की सम्भावना थी पर उसका कोई अता पता नहीं मिला था। दूसरी तरफ मीमी पूरी तरह सरस्वती के पीछे थी क्योंकि अगर अल्फांसे किसी से संपर्क करने की कोशिश कर सकता था तो वो सरस्वती ही थी।
मीमी के पास यही आप्शन बचा था कि सीधे सरस्वती के मुंह से कुबुलवाया जाये। पर अब सरस्वती पर हाथ डालना इतना आसन नहीं रह गया था। आश्रम में भी सख्त पहरा था बी एस एफ़ की एक टुकड़ी यहाँ भी तैनात कर दी गयी थी। एक बार उसने सोचा भी था कि सरस्वती के अमेरिकी एजेंट होने की बात फैला दी जाये पर इससे भी कुछ हासिल होने वाला नहीं था। अपहरण अल्फांसे को करना था और उसका सरस्वती से कोई सम्बन्ध साबित करना मुश्किल था। और तो और जैसी खबर चेंग ने दी थी उसके अनुसार आचार्य ब्रह्देव के साथ साथ सरस्वती को भी कमांडो की सुरक्षा दी गयी थी।
अब मीमी बस अल्फांसे के अगले कदम का इंतज़ार भर कर सकती थी।
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जुलाई ४
सब कुछ अच्छा चल रहा था। ली किआंग अपने टीम के काम से संतुस्ट थे। अपने कार्यक्रम को उन्होंने छोटा कर दिया था। पहले वो सपरिवार तीन चार दिन दिल्ली के आसपास घूमकर चांदीपुर जाने वाले थे। पर इतने लम्बे नाटक की कोई ज़रूरत नहीं थी। अब वो अकेले सीधे चीन से दिल्ली में डिनर कर चांदीपुर प्रस्थान करने वाले थे जबसे उसने चीन के विदेश मंत्री का काम संभाला था तभी से तिब्बत सम्बन्धी नीतियों के सुधार में लगे थे। पुरानी सरकारों ने तिब्बत के सम्बन्ध में सुधारवादी नीति अपनाने की कोशिश कि थी पर इसका फायदा उठाकर तिब्बत में विद्रोहियों ने सर उठाना शुरू कर दिया था। १९८९ के बाद ऐसे विद्रोहियों की कमर तोड़ दी गयी थी। फिर भी आज तक दलाई लामा का दर्ज़ा तिब्बतवासियों के लिए भगवान का था। जब तक दलाई लामा का अस्तित्व था तब तक तिब्बत के लोग उससे आगे सोच नहीं सकते थे। इन दिनों दलाई लामा ने स्वतंत्र राष्ट्र के बारे में बोलना बंद कर दिया था फिर भी दुनिया भर में फैले तिब्बत वासी इस उम्मीद में जी रहे थे कि ज़ल्द ही कुछ चमत्कार होगा और उन्हें स्वतंत्र तिब्बत देखने को मिलेगा।
दलाई लामा चीनी नीतियों के समर्थक नहीं थे पर ये ली किआंग को भी अच्छी तरह समझ में आ गया था कि जब तक दलाई लामा या उनके पद का अस्तित्व है तब तक दुनिया भर में फैले तिब्बत वासी कोई बड़ा कदम उठाने के लिए नहीं सोच सकते। खतरा उस समय दिखने लगा था जब दलाई लामा ने ये कहना शुरू कर दिया था कि हो सकता है उनके बाद दलाई लामा का पुनर्जन्म न हो। अगर सच में ऐसा हो गया तो फिर आन्दोलन उग्र हो सकता था जो चीन के हित में नहीं होता।
वर्तमान में तेनजिन ग्यात्सो परंपरा में चौदहवें दलाई लामा थे जो तेरासी वर्ष के हो चुके थे। परंपरा से उन्हें अपने उत्तराधिकारी को चुनना था पर इधर वे बार बार ऐसा कह रहे थे कि वो इस परंपरा को जीवित रखने के बारे में निश्चिंत नहीं हैं। ऐसी स्थिति में चीन किसी अपने पसंद को उनकी जगह पर बिठाने के फिराक में था। इसके लिए उसकी नज़र में सबसे उपयुक्त कैंडिडेट करमापा उग्येन त्रिनले दोरजी था जिसका दर्ज़ा तिब्बत परंपरा में नंबर दो का था। तीसरा नंबर पंचेन लामा का था जो लम्बे समय से लापता थे। अगर वो किसी तरह उग्येन को राजी कर पाता तो वो सी टी ए यानी धरमशाला के तिब्बत के सरकार पर भी नियंत्रण रख सकता था।
इसी कोशिश को सफल बनाने के लिए ली किआंग ने दो दो समरपाओं को एक जगह मीटिंग करने के लिए राजी करवा सका था जिसके लिए वो एक साल से कोशिश कर रहा था। पहले अमेरिका में करमापा उग्येन से चीन का एक प्रतिनिधिमंडल मिला था पर उसने सब कुछ संभावित समरपाओं पर छोड़ डाला था। अब अगर दोनों समरपा जो कमोवेश दूसरे करमापा के समर्थक थे बैठक के बाद उग्येन के पक्ष में अपना मत दे देते तो यह कूटनीतिक सफलता होती। इसके लिए ची उन्हें कमोवबेश राजी कर चुका था।
पर पहली गड़बड़ तब हुई जब सी टी ए ने इस मीटिंग का होस्ट बनने से इनकार कर दिया। उसके बाद गया के बुद्धिस्ट सोसाइटी के तरफ से इनकार मिला। तब यह तय हुआ कि मीटिंग किसी न्यूट्रल जगह पर करवाया जाये जहाँ विरोध या विद्रोह की सम्भावना कम हो। सी टी ए ने ही चांदीपुर का नाम सुझाया। शुरू में चीन को इसमें आपत्ति की कोई बता नहीं दिखाई दी थी।
पर तीन महीने पहले चेंग लेई की रिपोर्ट ने थोडा चौंकाया था। अब उसकी रिपोर्ट में सच्चाई थी तो क्या सी टी ए यानी सेंट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन ने उसकी सरकार को बेवकूफ बनाया था? क्या चांदीपुर सच में तिबत्तियों के लिए बैंक का काम कर रहा था? क्या चांदीपुर के जागरण आश्रम का आचार्य ब्रह्मदेव या उसकी पीए सरस्वती उस मीटिंग को प्रभावित कर सकता था? कौन थी ये रहस्मय लड़की सरस्वती जो अमेरिका की इतनी बड़ी नौकरी छोड़ आश्रम की साधारण सी नौकरी बजा रही थी। कौन था आश्रम का असल मास्टरमाइंड जो सारी दुनिया से तिब्बत समर्थकों का पैसा इकठ्ठा कर तिब्बत भेज रहा था? अमेरिका कि कोई एजेंट? या भारत सरकार की कोई जासूस? जिस पर इतना बड़ा योगी समझा जाने वाला योगी भी सभी कुछ सौंपकर शांति से बैठा था? क्या कुछ कण्ट्रोल था इस मायाविनी का उस ब्रह्मदेव नाम के योगी पर?
अब उस मीटिंग का हिस्सा होना और भी ज़रूरी था। आखिर वो दो दिन पहले इंडिया पहुँच भी चुके थे और आगरा की यात्रा के बाद दिल्ली में थे के एक होटल में मौजूद थे।
चेंग लेई पर उसे पूरा भरोसा था। उसने भरोसा दिलाया था कि छह तारिख के भीतर वो सारे पत्ते खोलकर रख देगा और इस खेल के मास्टरमाइंड के साथ साथ उसका खेल भी ख़त्म कर देगा।
पर अभी वो इस बात से अनजान थे कि इन दो-तीन दिनों में अभी और भी बहुत सारे खेल खेले जाने वाले थे।
शुरआत उनके पीए के फोन कॉल से हुई जो घबराये हुए स्वर में अपनी भाषा में उन्हें अवगत करा रहे थे, “पिछले आधे घंटे से यही समाचार चल रहा है सर। सभी चैनल यही समाचार चला रहे हैं। उसने अंग्रेजी में धमकी दी है। वैसे तो वो विडियो मैंने आपको फॉरवर्ड कर दिया है पर आप सीधे टीवी पर भी सबकुछ देख सकते हैं।”
टीवी पर सच में बार बार टेलीकास्ट किया जा रहा था जिसमें अल्फांसे बिना किसी नकाब के मुखातिब था, “सभी दर्शकों को मेरा नमस्कार। उम्मीद है कि साधारण जनता के साथ साथ चीन सरकार तक भी मेरा पैगाम पहुँच रहा होगा। मेरा नाम अल्फांसे है। जो लोग मुझे नहीं जानते उन्हें बता दूं कि मुझे अंतररास्ट्रीय मुजरिम कहा जाता है। क्यों कहा जाता है वो मुझे पता नहीं। आज तक कोई भी गुनाह मुझ पर साबित नहीं हुआ। बेहतर है कि मुझे कांट्रेक्टर कहा जाये। लोग मुझे अपने हिसाब से काम करने को कहते हैं और मैं उन्हें अपनी फीस पर करता हूँ। मुझे जानने वाले जानते हैं कि मैं आज तक असफल नहीं हुआ। अगर काम मुझसे नहीं हुआ तो एडवांस वाला पैसा भी वापस कर देता हूँ। कोई मुझसे चालबाजी करे तो जवाब भी चालबाजी से देता हूँ। ऐसा ही एक कॉन्ट्रैक्ट ६-७ महीने पहले मुझसे किया गया। आपकी सरकार के किसी मुलाजिम ने मुझे बताया कि उनके देश की एक एंटीक मूर्ति चोरी कर अमेरिका पहुंचा दी गयी है जिसकी कीमत अरबों में है। साथ ही वो मूर्ति चीन के लिए इज्ज़त का सवाल भी है। मैंने उसके पांच मिलियन डालर मांगे। चीनी सरकार उसके लिए राज़ी हो गयी। मैंने उसे तीन दिन में हासिल कर लिया।”
अल्फांसे के विडियो के साथ साथ साइड में उस मूर्ति के साथ अल्फांसे का विडियो भी फ़्लैश हो रहा था।
“पर जब मूर्ति लेकर मैं आपके एजेंट को सौंपने गया तो धोखे से वो मूर्ति मुझसे छीन ली गयी और पैसे भी नहीं दिए गए। वैसे तो दुनिया जानती है कि अल्फांसे झूठ नहीं बोलता पर सबूत के तौर पर मैं फ़ोन कॉल्स और कुछ विडियो साथ में लोड कर रहा हूँ।”
इसके बाद कुछ विडियो और कॉल के ऑडियो वर्शन डिस्प्ले हो रहे थे।
“आप लोगों की मूर्ति वापस आप लोगों तक पहुँच गयी है जिसके बारे में आपके चैनल वालों ने बताया कि ये आपके महान जासूसी संस्था के मेहनत से वापस आई हैं। अगर किसी को मुझ पर विश्वास न हो तो उनकी मर्ज़ी। मुझे बस मेरे पैसे चाहिए वो भी डबल। अगर आपकी सरकार राज़ी है तो आज रात तक टीवी चैनेल पर अनाउंस करवा दे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं कल भारत में आपके विदेश मंत्री का अपहरण कर लूँगा और फिर फिर आपकी सरकार रो रोकर पैसे देगी। अल्फांसे आज तक किसी काम में असफल नहीं हुआ और आप लोगों का आशीर्वाद रहा तो कल भी अल्फांसे असफल नहीं होगा। अगर खुलेआम पैसे के बारे में आपकी सरकार को शर्म आती है तो फिर चुपचाप कल मुझ तक पैसे पहुंचा दे। संपर्क का रास्ता मैं बता दूंगा। हाँ अगर आप अपने विदेश मंत्री को बचाना चाहते हैं तो उन्हें भारत आने से रोक सकते हैं। मुझे आप लोगों का ये डर भी क़ुबूल होगा। धन्यबाद।”
विदेश मंत्री साफ़ चिंतित दिखाई दे रहे थे। उनके पास उनके पीए के साथ साथ स्पेशल सिक्यूरिटी टीम भी पहुँच चुकी थी।
“आप आश्वस्त रहे। आपके सुरक्षा के लिए आपके साथ दुनिया का सबसे मजबूत सुरक्षा संस्था का प्रमुख वांग मौजूद रहेगा।” पीए ने कहा।
“जिसके ग्रुप का एक सदस्य इसी अल्फांसे के हाथों मारा जा चुका है।”
“वांग के साथ पहली बार ऐसा हुआ है। अब ऐसा नहीं होगा। साथ में आपका फाइटर जेट प्लेन भी रहेगा। आपके पर्सनल बॉडीगार्ड भी रहेंगे। इंडिया के कमांडो लोग तो रहेंगे ही। वो अपने देश में कोई अप्रिय घटना नहीं होने देंगे। मैंने भारत सरकार से बात कर ली है। उनकी तरफ से भी आधिकारिक सन्देश आ चुका है। हमारी सरकार की तरफ से भी अल्फांसे के विडियो का खंडन किया जा चुका है।”
मंत्री महोदय सोच में डूब गए। सामान्य परिस्थितियों में वो अपनी यात्रा रद्द कर सकते थे पर अभी ऐसा करने से उनकी ही नहीं पुरी सरकार की किरकिरी होती। उस पर से ये मीटिंग अटेंड करना बहुत ही ज़रूरी था। राष्ट्रपति महोदय ने भी इस मामले में उन्हें खुली छूट दे रखी थी और उन्हें भी पोस्ट मीटिंग स्टेटमेंट का बेसब्री से इंतज़ार था जो चीन के विदेश मंत्री सारी दुनिया के दोनों शमरपा के उपस्थिति में देने वाले थे।
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तो अल्फांसे अब खुलकर सामने आ चुका था। वांग के लिए ये अब अच्छा ही था। अब उसे छुपकर अपने दुश्मन का सामना करने की ज़रूरत नहीं थी। वैसे तो अपनी भारत यात्रा को चांदीपुर तक सिमित कर उसके विदेश मंत्री ने पहले ही जता दिया था कि उसके भारत आने का मकसद चांदीपुर यात्रा तक ही सिमित है। चीन की तरफ से यह दर्शाया जा रहा था कि उसने अल्फांसे की धमकी को सीरियसली नहीं लिया है और हमेशा की तरह रेगुलर बोईंग विमान से ही इंडिया आने वाले थे। आज रात दिल्ली और उसके बाद कल सुबह स्पेशल फ्लाइट से बोधगया। और फिर छ: सीटर हेलीकाप्टर से शाम पांच बजे चांदीपुर में हवेली के ही अन्दर बनाये गए हेलिपैड पर और फिर उसी रूट से वापस दिल्ली। चांदीपुर में हवेली से बाहर का कोई कार्यक्रम नहीं रखा गया था। पर सिक्यूरिटी का जाल कदम कदम पर बिछाया गया था। प्लेन के अलावा जिस हेलीकाप्टर का इंतजाम किया गया था उसे बिहार के मुख्यमंत्री इस्तेमाल करते रहे थे। हेलीकाप्टर में चीनी मंत्री के अतिरिक्त वांग के चार कमांडो और एक पर्सनल बॉडीगार्ड भी होने वाला था।
इस वक़्त हेलिपैड के पास ही एक टेबल के इर्द गिर्द सभी सात लोग मौजूद थे जिनकी ड्यूटी हवेली में थी।
“हवेली के चारों तरफ आपके बी एस एफ़ वाले तैनात है ही इसलिए उसके बारे में कुछ ख़ास सोचने की ज़रुरत नहीं है।” वांग अंग्रेजी में बोल रहा था ताकि किसी को समझने में दिक्कत न हो, “फिर भी हमने नौ सी सी टी वी कैमरे चारों तरफ लगा रखे हैं और उसका एक बड़ा डिस्प्ले यहाँ खुले में मौजूद होगा। इस हवेली के चारों तरफ तकरीबन एक एक किलोमीटर तक नो डिस्टर्ब जोन रखा गया है। वैसे ये तो थोडा मुश्किल काम था पर चारों ओर कोई कंस्ट्रक्शन एरिया होने से ये काम हम लोगों के लिए आसान हो गया है। मीटिंग जैसा कि तय है अन्दर के ड्राइंग रूम में होगा। मीटिंग में कुल पांच लोग उपस्थित होंगे.....।”
सुधीर ने टोका, “माफ़ करना वांग पर मीटिंग में नौ लोगों का होना तय हुआ था, आचार्य जी और उनके साथ दो लोग यानि सरस्वती जी और आनंद, दो तिब्बती गुरु और उनके साथ दो सहयोगी और आपके विदेश मंत्री और उनके एक सहयोगी।”
“सुधीर जी सही कह रहे हैं वांग। शायद वांग से गिनती में गलती हो गयी है।” राधा ने कहा।
“नहीं मैडम बाकी लोग भले ही यहाँ उपस्थित रहेंगे पर मीटिंग के वक़्त केवल पांच लोग यानि आपके आचार्य, दोनों तिब्बती धर्मगुरु, और हमारे विदेशमंत्री और उनके दुभाषिये। बाकी लोग बाहर हीं उपस्थित रहेंगे। ऐसा ही तय हुआ है। एतराज हो तो आप अपने आचार्य से बात कर सकते हैं।”
मोबाइल पर सुधीर ने आचार्य ब्रह्मदेव से बातचीत की। उनकी हामी के बाद किसी को कोई एतराज न था।
“आप लोग चिंता न करें।” वांग ने मुस्कुराते हुए टूटी फूटी हिंदी में कहा, “हम आपको अच्छी कम्पनी देंगे।”
“साथ देने के लिए तो सुना है की अल्फांसे नाम का भी कोई शख्स आनेवाला है।” राधा ने कहा।
हंसी मजाक के माहौल में वांग को अल्फांसे का ज़िक्र अच्छा नहीं लगा, झट कहा उसने, “हमें तो पता चला है कि अल्फांसे को आप लोगों के गुरुदेव एक महीने से जाने अनजाने अपने आश्रम में छुपाये हुए थे।”
सुधीर को आचार्य ब्रह्मदेव का मजाक अच्छा नहीं लगा। अँधेरे में उसने तीर मारा, “हमारे गुरुदेव तो सबके साथ बराबरी का रिश्ता रखते हैं। एक तरफ अल्फांसे उनके आश्रम में था तो दूसरी तरफ चीन का एक महान जासूस छुप कर आश्रम में रह रहा था। जाने क्या नाम था उसका!”
“कहीं उसका नाम चेंग लेई तो नहीं था!” राधा ने छुटते हीं कहा।
पलभर में वांग चेहरे का रंग उड़ गया। बात सँभालते हुए कन्हैय्या बोला, “अरे क्या इतने खतरनाक खतरनाक नाम लेकर मुझे डरा रहे हो। कोई अच्छा सा नाम लो। जैसे राधा!
“जैसे कन्हैय्या।” राधा ने तुक मिलाया।
चेंग लेई का नाम सुनकर सुधीर के चेहरे का रंग बदला। ताशी यकीनन चेंग लेई ही था। कल सरस्वती भी यहाँ होने वाली थी। क्या वो अल्फांसे को अन्दर आने में सहायता कर सकती थी? सरस्वती के विषय में वो राधा और कन्हैय्या से बात करना चाहता था। पर वांग के सामने नहीं।
वांग भी सरस्वती के बारे में सोच रहा था। वही एकलौती शख्स थी जो अल्फांसे की सहायता कर सकती थी। वो चाहता तो अपनी सरकार से बात कर सरस्वती को यहाँ आने से रोक सकता था। पर उसने जान बूझकर ऐसा नहीं किया था। सामने रहकर उस पर बेहतर तरीके से नज़र रख सकता था। सच्चाई यह थी की वो चाहता था कि अल्फांसे सामने आये और वह सबके सामने गोली मारे। नहीं नहीं गोली नहीं वो उसके हाथ पांव तोडना चाहता था। वो अब उसके लिए सबसे बड़ा बदनुमा दाग बन चुका था।
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सरस्वती की इच्छा हो रही थी की अपना माथा पीट ले।
इस वक़्त वो अपने क्वार्टर में मौजूद थी। शाम के सात बज चुके थे।
“क्या ज़रुरत थी इस स्टेटमेंट की। क्या हम अल्फांसे पर पूरा भरोसा करके गलती कर बैठे हैं? अगर चीन ने उसे पैसे सौंप दिए तो क्या वो हमारे काम से हाथ खींच लेगा? लगता है वो भी ओवर कांफिडेंस का शिकार हो बैठा है।”
“बिलकुल नहीं।” सामने वाले ने मुस्कुराते हुए कहा। “इस स्टेटमेंट से उसने साबित कर दिया कि वो इस खेल का सबसे माहिर खिलाडी है। अब अगर उस चीनी को कुछ होता भी है तो इसका कोई असर तुम पर नहीं होगा। लोग यही कहेंगे कि अल्फांसे ने अपना हिसाब बराबर करने के लिए ऐसा किया है। उसका ये स्टेटमेंट तुम्हारे लिए सेफ्टी वोल्व का काम करेगा।”
“और अगर कहीं चीन ने उसे पैसे सौंप दिए तो?”
“तुम्हें क्या लगता है कि चीन उसे पैसे देकर उस मूर्ति के बारे में अल्फांसे से अपने डील को स्वीकार कर लेगा? कभी नहीं। अल्फांसे ने ऐसा काम किया है कि सांप भी पर जाए और लाठी भी न टूटे। अब उस चीनी मंत्री के विषय में मामला अल्फांसे vs चीनी मंत्री का बन गया है।”
सरस्वती को लगा कि सामने बैठा शख्स ठीक ही कह रहा है।
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ताशी उर्फ़ चेंग लेई मीमी और शेरिंग के साथ अपने नए ठिकाने पर मौजूद था। एक खाली मकान को उसने अपना अड्डा बनाया था। साथ में तीन नए लोग भी थे जिन्हें देश के विभिन्न जगहों से बुलाया गया था। उन तीनों की जांच अच्छी तरह से कर ली गयी थी ताकि ठक्कर जैसा मामला फिर नहीं हो सके। उन्हें सारे मामले से ब्रीफ कर दिया गया था।
“आज फिर उसी ई-मेल आईडी पर एक और मेल रिसीव हुआ जिसमें कल रात एक बड़ी रकम तिब्बत ट्रान्सफर किये जाने का ज़िक्र है। मेल भेजने वाले का लोकेशन फिर से चांदीपुर आश्रम ही है। शाम पांच बजे हम लोग आश्रम में प्रवेश करेंगे और अपना काम शुरू कर देंगे।”
एक नए शख्स ने टोका, “पर क्या शाम पांच बजे पूरा आश्रम खाली रहेगा जो हम निर्विघ्न खोजबीन का काम पूरा कर लेंगे? आश्रम के दोनों फाटक पर ज़ोरदार पहरा है। वहाँ तो बिना किसी की नज़र में आये अन्दर जाना मुश्किल होगा।”
जवाब मीमी ने दिया, “वहां पर सिक्यूरिटी है किलाबंदी नहीं। पूरे आश्रम के चारों तरफ लगभग दस दस फूट की दीवार है और वो कम से कम साढ़े तीन फूट मोटी है। आश्रम के पिछले हिस्से की दीवार के बाद छोटे बड़े पहाड़ों की श्रृंखला शुरू होती है। वहीँ पर आज रात सेंध लगाने का काम शुरू हो जायेगा। उस दीवार के बाद लगभग दस फीट की खुली जगह है। आचार्य और सरस्वती वगैरह के क्वार्टर उसी हिस्से में है। हमारा टारगेट सबसे पहले इन्हीं दोनों के निवास की छानबीन करना है।”
“पर हम लोग वहां किस चीज़ के मिलने की उम्मीद कर रहे हैं? बस एक कंप्यूटर सिस्टम?”
“वो कंप्यूटर कोई साधारण कंप्यूटर नहीं होगा मेरे भाई। पिछले कुछ दिनों में अपने चेंग भाई के सारे रिपोर्ट पर गौर किया है तो पाया कि वो दुनिया एक सबसे असाधारण कंप्यूटर में से एक होगा। मल्टीटास्किंग में वो सभी कंप्यूटर का गुरु होगा। चेंग भाई ने बताया था कि राक्षस से सम्बंधित एक विडियो ८-१० मोबाइल में लोड थे और अचानक देखते देखते वो विडियो सबके मोबाइल से गायब हो गए। ये काम एक सुपर कंप्यूटर ही कर सकता है जो आसपास के एरिया के सभी मोबाइल पर उसके रेडियो फ्रीक्वेंसी के जरिये न सिर्फ नज़र रखे हुए है बल्कि उसे कण्ट्रोल भी कर सकता है। आश्रम के भीतर ऐसे जैमर लगे हैं जो किसी भी मोबाइल को काम करने नहीं देते। फिर भी अपनी शक्तिशाली दूरबीन से चेंग भाई ने सरस्वती और एक दो वाशिंदे को अपने कमरे में मोबाइल पर बात करते देखा है। महंत को तो कई मौके पर रात में मोबाइल का इस्तेमाल करते देखा है। मतलब कोई ऐसी डिवाइस है जो ये निश्चित कर सकती है कि किस मोबाइल को एक्टिव रहना है और किसे नहीं।” शेरिंग ने अपनी बात पूरी की।
चेंग ने आश्चर्य से उसे देखा। इस बात की ओर उसका ध्यान नहीं गया था।
“कमाल कि बात बताई तूने! दिल खुश कर दिया। पर लाख रूपये की बात ये है कि उसे हैंडल करने वाला भी तो कोई होगा?” मीमी बोली।
“इसका जवाब बहुत ही सिंपल है।” शेरिंग बोला, “पर खेद है कि अभी तक आप लोग उसका अंदाजा भी नहीं लगा पाए।”
मीमी और चेंग एकाएक जोर से चीखे, “सरस्वती!”
शेरिंग मुस्कुराया, “और कौन हो सकता है! अमेरिका में एडवांस कंप्यूटर की ट्रेनिंग ली है उसने। मैंने उसके बारे में अपने इस मिनी कंप्यूटर पर बहुत कुछ खोजा है।” अपने बड़े स्क्रीन वाले मोबाइल की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा, “विंडोज के साथ साथ एंड्राइड यानी डुअल बूट मोबाइल है यह। साथ ही उस छोकरी ने आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस पर बहुत सारी रिसर्च की है उसने।”
“ये आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस क्या बला है भाई?” एक नए शख्स ने पूछा।
“थोड़े में समझो तो ऐसा कंप्यूटर जो अपने प्रोग्रामिंग के आधार पर मौके के डिसिजन तक ले सके। इसी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का ताजा उदाहरण है ह्यूमन रोबोट सोफिया जिसे एक देश की नागरिकता मिल चुकी है।”
“तब तो वो कंप्यूटर इतना तो सक्षम ज़रूर होगा कि अपने आई-पी एड्रेस को छुपा सके?”
“उससे भी कहीं ज्यादा।”
“तो ये भी तो हो सकता है कि वो जानबूझकर अपना आई-पी एड्रेस फ़्लैश कर रहा हो और ये हम लोगों के लिए कोई ट्रैप हो?” मीमी ने चिंतित स्वर में कहा।
“उम्मीद कम है इसकी।” चेंग ने आत्मविश्वास से कहा।” सबसे बड़ा सबूत वो इंडियन जासूस है जो इस आश्रम का वाशिंदा था और फिर महीनों तक हमारे देश में एक चीनी बनकर रहा। लगभग पांच दिन पहले २ मिलियन डालर तिब्बत के जर्मनी स्थित एक चीनी ऑफिसर के अकाउंट में ट्रान्सफर किये गए। उसकी जानकारी भी उसी जासूस के ई-मेल में दी गयी थी जिसमें इस इनफार्मेशन को ट्रान्सफर करने को कहा गया था।”
“फिर भी हमें सावधान रहना चाहिए।” शेरिंग बोला। “और फिर उस सुपर डुपर कंप्यूटर को भी हम लोग अपने साथ चीन ले चले तो वो रिसर्च के काफी काम आ सकता है।”
“कंप्यूटर क्या उस छोकरी को ही ले चलो, फिर जितना रिसर्च करना हो उसी पर कर लेना। बहुत काम आ जायेगी।” मीमी बोली।
सभी ने ठहाका लगाया।
“अन्दर तो हम लोग प्रवेश कर जायेंगे पर उसके बाद का काम इतना आसन नहीं होगा। ब्रह्मदेव या सरस्वती या कुछ और लोग भले ही अन्दर नहीं पर कुछ बाकी लोग तो अन्दर ज़रूर होंगे। अगर हम लोग किसी की नज़र में आ गए तो वो लोग बखेड़ा खड़ा कर सकते हैं।”
“ऐसे वक़्त में राक्षस हमारा मददगार साबित होगा।”
“पर उसके लिए उसे फिर से खोज निकलना होगा।’
“चिंता मत करो। वो मेरे आरामखाने में है।” चेंग लेई ने कहा। “और फिर सब ठीक रहा तो कल का दिन सरस्वती के लिए आखरी दिन होगा। सरस्वती का मरना सबसे ज़रूरी है। सारा खेल उसी का रचाया हुआ है। वह राक्षस का ग्रास बनेगी।”
“कहीं तुम राक्षस पर ज्यादा विश्वास तो नहीं कर रहे? इसके पहले तो उस राधा ने उसे आसानी से हरा दिया था।”
“उस समय राक्षस असावधान था। और फिर राक्षस तब तक राक्षस नहीं है जब तक उसके दिमाग में क्रोध सवार नहीं हो।”
“पर वह सरस्वती को मारेगा क्यों?” मिमी का प्रश्न था।
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