धरा दौड़ती जा रही थी।

सांस फूल चुकी थी। टांगें कांप रही थीं। सिर से पसीना निकलकर चेहरे पर लकीरें बनकर बह रहा था। शरीर में पसीने के दौड़ते रहने का एहसास हो रहा था, परंतु वो भागे जा रही थी। वो जानती थी कि उसके पीछे मौत है। डोबू जाति का योद्धा उसकी जान लेने के लिए उसके पीछे

है। बबूसा का उसे बहुत सहारा था। परंतु बबूसा का साथ छूट चुका था। उस वक्त वो न भागती तो तभी पीछे आने वाले ने उसकी जान ले लेनी थी।

भागते-भागते धरा पुनः उसी सड़क पर आ गई थी, जहां वाहन तेजी से आ-जा रहे थे। वो बदहवास-सी कारों-गाड़ियों के साथ-साथ सड़क पर तेजी से भागने लगी। उसके पास इतना भी वक्त नहीं था कि एक बार गर्दन घुमाकर पीछे देख पाती कि उसका दुश्मन उससे कितनी दूरी पर है।

तभी धरा एक कार के नीचे आते-आते बची।

कार के ब्रेक चीखे। धरा लड़खड़ाई। कार रुक गई।

धरा को और तो कुछ समझ नहीं आया वो पागलों की तरह पलटी और कार तो दरवाजा खोलती, ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठती तेज स्वर में बोली।

“भगवान के लिए कार दौड़ा दो। वो मेरी जान लेना चाहता है।” इसके साथ ही दरवाजा बंद कर दिया।

ड्राइविंग सीट पर जगमोहन बैठा था।

“मैं तुम्हारे पीछे आते आदमी को पहले ही देख चुका हूं।” जगमोहन ने कहा और कार दौड़ा दी।

उसी पल तेज आवाज के साथ, कार का पिछला शीशा तोड़ती पत्ती भीतर आई और जगमोहन के सिर के ऊपर कार की छत में आ धंसी।

लगा जैसे कार में भूचाल आ गया हो।

“ये-ये क्या है?”

धरा समझ सकती थी कि वो क्या है।

“कार-कार मत रोकना।” धरा ने कांपते स्वर में कहा।

कार की स्पीड कम नहीं की थी जगमोहन ने।

तभी कार के पीछे बॉडी पर किसी चीज के लगने का एहसास हुआ।

“वो आदमी क्या फेंक रहा है?” जगमोहन ने पूछा।

“कार भगाते रहो।” धरा हांफ रही थी।

जगमोहन के होंठ भिंच चुके थे। वो मामले की गम्भीरता को समझ गया था। समझ चुका था कि अगर ये लड़की उसकी कार में न बैठी होती तो यकीनन जान गंवा बैठी होती।

“कौन हो तुम?” जगमोहन बोला –“वो तुम्हारी जान क्यों लेना पूछा। चाहता है?”

धरा गहरी-गहरी सांसें लेती रही। बोली कुछ नहीं।

जगमोहन समझ गया कि लड़की डरी हुई है।

ट्रैफिक के बीच जगमोहन की कार दौड़ती रही। अब पीछे उसकी कार पर कुछ नहीं हुआ था, लगता था जैसे पीछे आने वाला, काफी पीछे छूट चुका है।

धरा अब धीरे-धीरे संयत होने लगी थी। वो सीधी बैठी। जगमोहन को देखा, फिर पीछे की तरफ नजर मारी, तो पीछे का शीशा काफी सारा टूटा पाया। पीछे कारों, गाड़ियों की हेडलाइटें चमक रही थीं। इसके अलावा धरा को कुछ नहीं दिखा। वो पसीने से भीगी हुई थी अभी तक।

“थैंक्स।” धरा फीके स्वर में बोली –“आपने मुझे बचा लिया। वो मुझे मार देना चाहता था।”

“कौन था वो?”

चंद पलों की चुप्पी के बाद धरा ने कांपते स्वर में कहा।

“मैं नहीं जानती वो कौन था परंतु कुछ लोग मेरी जान के पीछे पड़े हैं।”

“तुम्हें किसी पुलिस स्टेशन के सामने उतार दूं।” जगमोहन बोला।

“पुलिस? नहीं पुलिस कुछ नहीं कर पाएगी। उन लोगों को पकड़ना नामुमकिन है। उनका कोई पता-ठिकाना नहीं। वो यहां के लोग नहीं हैं। वो किसी से डरते नहीं हैं और खतरनाक हैं। सुनिए-मैं मुसीबत में हूं। इस वक्त मेरे पास रहने की कोई जगह नहीं है। क्या आप रात भर के लिए मुझे रहने की जगह दे सकते हैं?”

“सॉरी मैडम।” जगमोहन बोला –“इससे ज्यादा मैं आपकी सहायता नहीं कर सकता।”

“ओह।” धरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

जगमोहन ने अपने सिर के ऊपर, कार की छत में धंसी चीज पर निगाह मारी। वो आठ इंच चौड़ी और आठ इंच लम्बी चौकोर पत्ती जैसी कोई चीज लगी, जो कि आधी छत में धंसी हुई थी। जगमोहन समझ नहीं पाया कि वो क्या है और अपना ध्यान कार ड्राइविंग पर लगाते हुए कहा।

“आपको कहां उतारूं?”

“दूर। जितनी दूर आप मुझे उतार दो, उतना ही ठीक रहेगा।” धरा ने कहा।

“मेरा घर पास में ही है। आपको यहीं उतारूंगा।”

धरा ने सिर हिला दिया।

कुछ देर बाद जगमोहन ने कार रोकी तो धरा दरवाजा खोलकर बाहर निकल गई। दरवाजा बंद किया। भयभीत निगाहों से आसपास देखा और जगमोहन से बोली।

“थैंक्स।”

तभी जगमोहन ने उसकी तरफ पांच सौ के कुछ नोट बढ़ाते हुए कहा।

“ये रख लो। इनसे तुम किसी होटल में रात भर के लिए कमरा ले सकती हो।”

धरा ने नोट थाम लिए तो जगमोहन कार आगे बढ़ाता, लेता चला गया।

धरा ने परेशान निगाहों से आसपास देखा।

अब पीछे कोई नहीं था। परंतु वो जानती थी कि डोबू जाति के योद्धाओं का कुछ पता नहीं चलता कि वो कब करीब आ जाएं। धरा तेजी से एक तरफ बढ़ती चली गई। उसे बबूसा का ध्यान आया कि वो कहां होगा? क्या उसे ढूंढ़ रहा होगा? उसे पास न पाकर वो क्या सोच रहा होगा? उसे जरूर ढूंढ़ा होगा। धरा तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी। कपड़े अभी भी पसीने से भीगे हुए थे। परंतु वो सोच रही थी कि रात उसने कहां पर बितानी है। क्या किसी परिचित के घर चला जाए या किसी होटल में? परिचित के घर जाने से वो उसकी जान भी खतरे में डाल सकती है। डोबू जाति के योद्धाओं का कोई भरोसा नहीं कि वो कब, उसे ढूंढ़ निकालें। ऐसे में उसके साथ जो लोग होंगे, वो उन्हें भी खत्म कर देंगे। तो क्या उसे किसी होटल में चले जाना चाहिए। इन्हीं सोचों में उलझी वो फुटपाथ पर आगे बढ़ी जा रही थी। रह-रहकर उसे बबूसा याद आ रहा था कि वो पास था तो बहुत निश्चिंत थी। भगवान करे उसे फिर से बबूसा मिल जाए। धरा की आंखों में आंसू चमक उठे कि वो कितनी बेबस हो गई है। मां नहीं रही। घर पर जाने में डर लग रहा था कि वहां उसके इंतजार में डोबू जाति के योद्धा मौजूद न हों । उसके लिए तो डोबू जाति श्राप बन गई है। उसका चैन-आराम सब कुछ छीन लिया है उन लोगों ने।

तभी सड़क किनारे वाहनों में फंसी एक टैक्सी उसके पास आ रुकी।

वो ठिठकी और यूं ही टैक्सी को देखने लगी।

परंतु टैक्सी से जो निकला, उसे देखकर उसके होश उड़ गए।

वो सोलाम था।

सोलाम टैक्सी से निकला। दरवाजा बंद किया तो टैक्सी आगे बढ़ गई। और धरा उस पल पूरी ताकत से भाग खड़ी हुई। उसकी सांस पुनः फूलने लगी। पीछे से आती कदमों की आहट मौत के डंके के समान उसके कानों में पड़ रही थी। बहुत तेजी से भाग रही थी धरा। मौत सिर पर थी। उसे जोगाराम की बात याद आ गई कि डोबू जाति के योद्धा भूतों की तरह अचानक ही सामने प्रकट हो जाते हैं और जान खत्म हो जाती है। जोगाराम ने उसे कितना रोका था कि वो डोबू जाति की तरफ न जाए। परंतु तब उसने उसकी एक बात भी नहीं मानी थी और नतीजा सामने था। अपनी जान बचाने को भागी फिर रही थी।

अब फिर मौत का परकाला बना सोलाम पीछे आ गया था।

आगे फुटपाथ खत्म हुआ और बाईं तरफ मोड़ आ गया। वो तीर की तरह भागती बाईं तरफ मुड़ती चली गई। भागे जा रही थी वो कि बस उसे भागते ही रहना है। इधर का रास्ता सुनसान था। बहुत कम लोग आ-जा रहे थे। बहुत दूर सामने फ्लैट बने दिख रहे थे। उनकी लाइटें जल रही थी और इन हालातों में धरा सोच रही थी कि उन फ्लैटों में बैठे लोग कितने सुखी हैं। कितने खुश हैं। वो भी कभी ऐसे ही अपने घर में मां के साथ चैन से रहा करती थी।

पीछे से कानों में पड़ने वाली कदमों की आवाज अब तेज हो गई थी।

सोलाम उसके करीब आ पहुंचा था।

धरा ने पागलों की तरह और भी तेज भागने की चेष्टा की।

परंतु हिम्मत जवाब दे गई। और तेज न भाग सकी।

सोलाम सिर पर आ पहुंचा।

अब धरा में मौत से बचकर भागने का दम नहीं बचा था। वो रुक गई। ठिठक गई। हांफते हुए नीचे बैठती चली गई। मुंह खोले सांसें ले रही थी। सोलाम उसके पास आकर रुक गया था। धरा ने खुद को हालातों के हवाले कर दिया था। मौत से बचकर भागने की ताकत खत्म हो चुकी थी। वो इन लोगों का मुकाबला नहीं कर सकती थी।

वहीं बैठी रही। हांफती रही। सांसें लेती रही। सोलाम की तरफ से कोई वार होने का इंतजार करती रही।

दो मिनट बीत जाने पर भी सोलाम की तरफ से कोई वार नहीं हुआ।

धरा ने गहरी-गहरी सांसें लेते सिर उठाकर सोलाम को देखा। यहां अंधेरा था। सोलाम का चेहरा स्पष्ट तो नहीं दिखा परंतु वो दिखा। वो उसे ही देख रहा था।

“खड़ी हो जा लड़की।” सोलाम का गम्भीर स्वर उसके कानों में पड़ा।

धरा का शरीर कांपा और वो खड़ी होने की चेष्टा करने लगी। आंखों में आंसू चमक उठे। मौत सामने खड़ी पाकर, उसने खुद को मौत के हवाले कर दिया था। सोलाम खड़ा उसे देखता रहा, परंतु उसने उसके खड़े होने में कोई सहायता नहीं की। धरा खड़ी हो गई। परंतु उसकी टांगें कांप रही थीं। बदन में रह-रहकर ठंडी सिहरन दौड़ रही थी।

धरा ने आंसुओं भरी निगाहों से सोलाम को देखा।

सोलाम एकटक उसे देख रहा था।

“बबूसा से तेरा क्या रिश्ता है लड़की?” सोलाम ने गम्भीर स्वर में पूछा।

धरा, सोलाम को देखती रही।

“जवाब दे। मैं किसी से फालतू बात नहीं करता लेकिन तेरे से करनी पड़ रही है, क्या रिश्ता है तेरा बबूसा से?”

“क-कुछ नहीं।” धरा के होंठों से खरखराता स्वर निकला।

“सच बोल?”

“सच कहा है मैंने।” धरा की आवाज में फीकापन और कम्पन भरा था।

“तू हमारे पहाड़ों वाली जगह में आई, क्या उससे पहले तू बबूसा को जानती थी?” सोलाम ने पूछा।

“नहीं।”

“उसके बाद तू बबूसा से मिली?”

“हां।”

“कहां मिली?”

“मुम्बई में, उसने ही मुझे ढूंढ़ निकाला था।” धरा की आवाज कांप रही थी।

“बबूसा से तेरा क्या रिश्ता है?”

“क-कुछ नहीं।”

“वो तेरे को क्यों बचा रहा है?” सोलाम ने पूछा।

“पता नहीं। बबूसा कहता है कि डोबू जाति उसे पसंद नहीं, इसलिए...।”

“तेरे कारण उसने डोबू जाति से दुश्मनी मोल ली है, ये बहुत बड़ी बात है हमारे लिए भी और बबूसा के लिए भी।” सोलाम ने गम्भीर स्वर में कहा –“तेरे में उसने ऐसा क्या देखा, जो उसने ऐसा कर डाला?”

“म-मैं नहीं जानती।”

“तेरे को प्यार है बबूसा से?”

“प्यार-बबूसा से-नहीं। सिर्फ पहचान है।” धरा ने सूखे स्वर में कहा।

“बबूसा तेरे से प्यार करता है?”

“न-नहीं। ऐसा उसने कभी नहीं कहा।” धरा बोली।

सोलाम कुछ पल धरा को देखता रहा फिर कह उठा।

“वो तेरे से प्यार करता है लड़की। तेरी खातिर उसने डोबू जाति से दुश्मनी ले ली। हमारे योद्धाओं को मारने लगा कि तू बची रहे। बबूसा एक योद्धा है और योद्धा इसी तरह प्यार जताते हैं। योद्धा कभी भी अपने से प्यार का इजहार नहीं करते। हर इंसान का प्यार दिखाने का अपना ढंग होता है, परंतु डोबू जाति के योद्धा प्यार का इजहार भी अपनी युद्ध कला के द्वारा करते हैं। ये बबूसा का प्यार ही है तेरे लिए कि वो तेरे को हर हाल में बचाए रखना चाहता है। मैं तो कहूंगा कि ये सिर्फ उसका पागलपन है। डोबू जाति से दुश्मनी नहीं लेनी चाहिए थी उसे। माना कि वो श्रेष्ठ योद्धा है। परंतु जाति की उसे इज्जत करनी चाहिए। परंतु तेरे लिए उसने जाति से भी झगड़ा मोल ले लिया।” सोलाम गम्भीर था।

धरा, सोलाम को देखने लगी। उसकी बातों का मतलब समझने लगी।

सोलाम एकटक उसे देखे जा रहा था।

धरा अब सोचने लगी कि आखिर सोलाम चाहता क्या है?

“बबूसा कहां है?” धरा ने कांपते स्वर में पूछा।

“वो जहां भी होगा, जाति के योद्धाओं की नजर में होगा।” सोलाम ने गम्भीर स्वर में कहा –“मैंने बबूसा के साथ बचपन से लेकर जवानी तक का वक्त बिताया है दोस्तों की तरह। युद्ध कला हमने एक साथ सीखी। मुझे वो हमेशा पसंद आया। परंतु अब अचानक ही जाति छोड़ने के बाद उसे जाने क्या हो गया है। पर मैं तेरे को बबूसा के नाम पर छोड़ता हूं।”

“क्या?” धरा को जैसे कुछ समझ न आया हो।

“बबूसा तुझे पसंद करता है तो मैं उसकी पसंद की जान नहीं लूंगा। ये सिर्फ मेरा ही फैसला है और मेरे तक ही रहेगा। बाकी के योद्धाओं से तुम्हें बचना होगा। वो तुम्हें मार सकते हैं। तूने बहुत बड़ी भूल कर दी, डोबू जाति के भीतर पांव रखकर। जो भी हो, तू ज्यादा देर नहीं बची रह सकती।” सोलाम का स्वर कठोर हो गया।

“तु-तुम मुझे नहीं मारोगे?”

“बबूसा की खातिर तुझे नहीं मारूंगा। वो तुम्हें प्यार करता है, तभी तो तुम्हें बचा रहा है।”

धरा ने सोचा। परंतु उसे कहीं से भी नहीं लगा कि बबूसा उसे प्यार करता है, या उसके मन में बबूसा के लिए ऐसी भावनाएं उठीं। परंतु सोलाम का कहना है कि एक योद्धा ऐसे ही अपना प्यार दिखाता है।

धरा ठीक से सोच नहीं पाई।

एकाएक सोलाम पलटा और तेजी से एक तरफ बढ़ता चला गया।

धरा उसे जाते देखती रही और वो अंधेरे में निगाहों से ओझल हो गया।

वो ठगी-सी खड़ी रह गई। उसे यकीन नहीं आया कि वो बच गई है। उसे छोड़ दिया सोलाम ने। परंतु सोलाम की ये बात भी उसे याद आई कि ये उसका अपना फैसला है। दूसरे योद्धा उसकी जान ले सकते हैं। खतरा अभी भी सिर पर था।

qqq

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल ने कार में फंसी लोहे की चौकोर पत्तियों का निरीक्षण किया। कार इस वक्त बंगले के पोर्च में खड़ी थी और जगमोहन लड़की (धरा) से वास्ता रखती सारी बात बता चुका था। एक पत्ती कार का पिछला शीशा तोड़कर ड्राइवर के सिर के ऊपर कार की छत में धंसी थी और दूसरी पत्ती कार की डिग्गी में आधी धंसी हुई थी। तभी देवराज चौहान पीछे हटता बोला।

“इन पत्तियों को हाथ मत लगाओ।”

“क्यों?” सोहनलाल ने कहा।

“ये ब्लेड की धार की तरह तेज है। हाथ लगते ही हाथ कट जाएगा। इसे कपड़े से पकड़कर, खींचकर निकालना होगा।”

“परंतु ये कैसा हथियार है।” जगमोहन बोला –“ये सब मैंने पहले तो नहीं देखा। लोग किसी की जान लेने के लिए चाकू या रिवॉल्वर का इस्तेमाल करते हैं परंतु ये पत्ती मुझे समझ नहीं आ रही।”

देवराज चौहान बंगले के भीतर गया और एक मोटी पैंट ले आया। उसी पैंट के कपड़े से पत्तियों को पकड़ा और खींचकर बाहर निकाला। दो पत्तियों को बाहर निकालने में काफी वक्त लगा। पैंट के कपड़े के ऊपर रखकर ही देवराज चौहान ने पत्ती का निरीक्षण किया जो आठ इंच चौड़ी, आठ इंच लम्बी थी।

“इसे खास लोग ही इस्तेमाल कर सकते हैं।” निरीक्षण करने के बाद देवराज चौहान ने कहा।

“खास लोग?”

“ऐसे लोग जिन्होंने लम्बे समय तक इन हथियार जैसी पत्तियों को फेंकने की प्रैक्टिस की हो। कोई अनाड़ी इन्हें हाथ में लेगा तो अपना ही हाथ कटवा बैठेगा।” देवराज चौहान ने पत्ती को देखते गम्भीर स्वर में कहा –“ये बेहद घातक हथियार है। चारों तरफ से इसकी धार ब्लेड की तरह पैनी है और धार के बाद ये पत्ती कुछ मोटी होती चली जाती है। बीच का हिस्सा सबसे ज्यादा मोटा है, इसलिए कि जब इसे फेंका जाए तो ये आसानी से, तेजी से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़े। इसका वजन ढाई-तीन सौ ग्राम के करीब है। इस जैसा खतरनाक हथियार मैंने पहले कभी नहीं देखा। कोई एक्सपर्ट गर्दन का निशाना लेकर फेंके तो गर्दन फौरन कट जाएगी। जाहिर है कि इसे इस्तेमाल करने वाले एक्सपर्ट ही होंगे।”

“जिस तरह ये पत्ती कार के भीतर, मेरे सिर के ऊपर, कार की छत में आ धंसी, उससे तो ये ही लगता है कि इसे फेंकने वाला बेहद एक्सपर्ट रहा होगा। तब मैं ध्यान नहीं दे पाया था कि ये कैसे हथियार हैं। परंतु अब सोचता हूं कि अगर ये पत्ती तीन-चार इंच नीचे होती तो मेरा सिर, मेरी गर्दन कट जानी थी।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।

“वो लड़की किसी बड़े खतरे में फंसी थी।” सोहनलाल ने कहा।

“मैं उसकी ज्यादा सहायता करने की स्थिति में नहीं था। वो मुझे कुछ नहीं बता रही थी कि मामला क्या है। पीछे लगे लोग कौन हैं। वो आंधी की तरह मुझसे मिली और तूफान की तरह चली गई।” जगमोहन ने कहा –“अगर वो मुझे कुछ बताती तो हो सकता था मैं उसकी ज्यादा सहायता कर पाता।”

“उसके पीछे खतरनाक लोग थे। क्या पता वो जिंदा भी नहीं बची हो।” देवराज चौहान बोला।

“इस चौकोर पत्ती जैसे हथियार को देखकर तो लगता है कि शातिर लोग उसके पीछे थे।”

“इस हथियार के इस्तेमाल की कला आनी चाहिए तो ये जबर्दस्त हथियार है। जब इसे शिकार पर फेंका जाता है कोई आवाज नहीं होती। ये हवा में होती होगी तो अपनी रफ्तार की वजह से किसी को दिखाई नहीं देगी। निशाना सही होगा तो दो पलों में शिकार का काम कर देगी। सिर पर लगे, गर्दन पर लगे या शरीर के किसी हिस्से पर लगे, सब कुछ काटकर रख देगी।”

“मान गए इस हथियार को।” सोहनलाल गहरी सांस लेकर बोला।

“तुम कल कार को ठीक करा लेना। पीछे का शीशा भी नया लगवा लेना।” देवराज चौहान ने कहा –“वो वक्त निकल चुका है परंतु मुसीबत में फंसी उस लड़की की तुम्हें सहायता करनी चाहिए थी।”

“वो कुछ नहीं बता रही थी कि मामला क्या है।” जगमोहन बोला।

“तब भी उसकी सहायता करनी चाहिए थी। उसकी जान खतरे में थी। वो भाग रही थी। डरी हुई थी तो ऐसे में वो तुम्हें क्या बताती कि क्या मामला है। पहले उसे सुरक्षित कहीं पर पहुंचाते, तब इस बारे में उससे बात करते।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –‘भविष्य के लिए याद रखो कि पहले इंसान को मुसीबत से निकालो फिर उससे सवाल करो।”

qqq

बबूसा रात 12.30 बजे थका-हारा एक होटल में पहुंचा और कमरा ले लिया। अब तक वो धरा को ढूंढ़ता रहा था। परंतु धरा की कोई खबर उसे नहीं मिल पाई थी! मन-ही-मन उसे यकीन हो चुका था कि डोबू जाति के योद्धाओं ने उसे जिंदा नहीं छोड़ा होगा। वो उनके हाथों से नहीं बच सकी होगी। रह-रहकर धरा का चेहरा उसकी आंखों के सामने रहा था। उसने धरा को सलामत रखने की जिम्मेवारी ली थी, परंतु वो ये भी जानता था कि धरा हर वक्त खतरे में रहेगी। डोबू जाति के योद्धा कहीं से भी उस पर सफल वार कर सकते हैं। धरा के साथ होने का उसे हौसला था कि राजा देव की तलाश में वो उसकी मदद करेगी।

परंतु धरा का साथ अब खत्म हो चुका था।

बबूसा गुस्से में था परंतु दुख में भी भरा था।

होटल में सबसे पहले वो नहाया फिर अंडरवियर पहने कमरे के एक कोने में बैठकर समाधि लगाने का प्रयत्न करने लगा। वो राजा देव से बात कर लेना चाहता था।

qqq

रात का एक बज रहा था।

जगमोहन और सोहनलाल ताश खेल रहे थे। पास ही टी.वी. चल रहा था। जब उसे धरा मिली थी तब वो होटल से खाना पैक कराकर ला रहा था। तीनों खाना खा चुके थे। देवराज चौहान अपने बेडरूम में था। सोहनलाल घर नहीं गया था कि बबूसा, देवराज चौहान को पूछने उसके पास फिर से आ सकता है। सोहनलाल को बबूसा खतरनाक लगा था, इसलिए उसके सामने नहीं पड़ना चाहता था। जो बात टल जाए वो ही अच्छी।

देवराज चौहान घंटा भर पहले बेड पर लेटा था और नींद में डूबने के प्रयत्न में था। इन दिनों कोई काम हाथ में नहीं लिया हुआ था। जगमोहन वो सब कामों को देखने में व्यस्त था जहां-जहां उनका पैसा लगा था। कुछ दिन पहले ही मॉरीशस से लौटे थे वहां शानू और सारंगल का मामला निबटाया था। साथ में रवि गावड़े, अतुल और खान भी थे। (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘मुखबिर’)

और जब देवराज चौहान आधा नींद में डूब चुका था तो उसे कमरे में किसी के चलने की सरसराहट आई। देवराज चौहान ने फौरन आंखें खोलीं। आसपास देखा। नाइट बल्ब की रोशनी में उसे कोई नहीं दिखा। अगले ही पल देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ गईं। होंठों से निकला।

“बबूसा?”

“हां राजा देव।” बबूसा का धीमा स्वर कानों में पड़ा।

देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाकर लाइट ऑन कर दी।

“मेरे पास बार-बार आने का कोई फायदा नहीं बबूसा।” देवराज चौहान ने कहा।

“क्यों राजा देव?”

“मुझे तुम्हारी कही बातों का भरोसा नहीं। तुम पर भी यकीन नहीं कि तुम मुझसे क्यों मिलना चाहते हो?”

“मैं आपका सेवक हूँ राजा देव। मेरे इस जन्म में तो आपके वो सारे गुण मुझमें डाले गए हैं जो तब आप में थे, जब आप राजा देव हुआ करते थे। सिर्फ मेरा चेहरा ही आपसे अलग है।”

“मैं तुम्हारी किसी बात पर यकीन नहीं करूंगा।”

“ये तो आप जिद कर रहे हैं राजा देव। एक बार मेरा भरोसा करके तो देखिए।”

“तुमने ही कहा था कि तुम्हारा जन्म महापंडित ने रानी ताशा के कहने पर इसलिए कराया है कि मेरा मुकाबला कर सको।”

“हां राजा देव। परंतु मैंने रानी ताशा से अब विद्रोह कर दिया है।”

“क्या भरोसा कि तुम कहीं मुझे मारने के लिए तो नहीं ढूंढ रहे मुझे।”

“इतना अविश्वास बबूसा पर राजा देव।” आवाज कानों में पड़ी।

देवराज चौहान चुप रहा।

“परंतु राजा देव। आप तो किसी से डरने वाले नहीं हैं। मेरे से भी डरकर नहीं छिप सकते।”

“तो?”

“मुझे मिलने का मौका दीजिए। सच-झूठ आपके सामने आ जाएगा।”

“मैं किसी नई मुसीबत को अपने गले नहीं डालना...।”

“मुसीबत में तो आप पड़ने वाले हैं। रानी ताशा कभी भी यहां पहुंच सकती है। सिर्फ मैं ही आपका सच्चा सेवक हूं जो इस मौके पर आपकी सहायता कर सकता हूं। आपके लिए तो मैंने रानी ताशा से विद्रोह किया है।”

“मैं तुम्हारी इन बातों पर विश्वास नहीं करता।”

“राजा देव।” बबूसा की आवाज में गम्भीरता आ गई –“मुझे डर है कि रानी ताशा के सामने पड़ते ही आप उसकी खूबसूरती को देखकर, अपने होश न गंवा बैठे। जबकि मैं आपको रानी ताशा का सच दिखाना चाहता हूं। वो वक्त याद कराना चाहता हूं जब रानी ताशा ने आपको धोखा देकर ग्रह से बाहर फेंक दिया था। वो...।”

“तुमने कहा था कि रानी ताशा का चेहरा देखते ही मुझे वो वक्त याद आने लगेगा।”

“जी राजा देव। मैंने ऐसा ही कहा था।”

“तो फिर चिंता क्यों करते हो। रानी ताशा को देखने के बाद...।”

“और आप पहले की तरह रानी ताशा की खूबसूरती में गुम हो गए तो याद आने का कोई फायदा नहीं होगा। आपके दिल और दिमाग पर रानी ताशा सवार हो चुकी होगी। उसे पाने के लिए उसकी हर बात को नजरअंदाज कर देंगे। जबकि मैं आपको पूरे होश में रखना चाहता हूं, इसलिए आपके पास आ जाना चाहता हूं। मैं पास रहूंगा तो आपको होश में रखने का प्रयत्न अवश्य करूंगा। पहले की तरह अब भी आपको ठीक-गलत बताता रहूंगा। मेरे पास रहने पर रानी ताशा को ज्यादा चालाकियों का मौका नहीं मिल सकेगा। मेरे सामने रानी ताशा सतर्क रहेगी। क्योंकि मैं उसकी असलियत से वाकिफ हूं। इस बात को रानी ताशा भी जानती है। परंतु आपने उस ग्रह से लेकर, इस ग्रह तक का लम्बा सफर तय किया है। बीच रास्ते में क्या हुआ, वो आप ही जानते हैं। इस सफर के दौरान आप उस जन्म की हर बात भूल चुके हैं जबकि मैं चाहता हूं कि रानी ताशा से वास्ता रखती आपको हर बात मालूम रहे। आप रानी ताशा को देखकर, उसकी खूबसूरती में सब कुछ भूल न जाएं।”

“इसके जवाब में मैं तुम्हें पहले भी कह चुका हूं मेरे दिल में सिर्फ मेरी पत्नी नगीना है। कोई और उसकी जगह नहीं ले सकती।”

“अवश्य राजा देव। मैं जानता हूं कि आपका निर्णय पक्का है। आप गलत नहीं कह रहे। परंतु उस वक्त को क्या कहेंगे जब रानी ताशा आपके सामने आएंगी तो आप सब भूल जाएं।” बबूसा की आवाज सुनाई दी।

“तुम ऐसा क्यों सोचते हो?”

“क्योंकि मैं जानता हूं ऐसा हो जाना, सम्भव है। मैं वो वक्त भूला नहीं हूं जब आपने सदूर ग्रह पर रानी ताशा को पहली बार देखा था। मेरी आंखों के सामने है वो सब कुछ लेकिन आप भूल चुके हैं। उस वक्त के बारे में सोचता हूं तो डर आ जाता मन में कि कहीं अब भी ऐसा हो गया तो क्या होगा। तब भी मैं आपको कितना कहता था राजा देव, परंतु आप मेरी बातों की परवाह ही नहीं करते थे और हंसकर टाल देते थे। मुझे अब भी किसी बात पर एतराज नहीं हैं। मैं आपका सेवक हूं। मैं तो बस इतना चाहता हूं कि रानी ताशा की किसी बात पर यकीन न करें। सबसे पहले आपको ये जान लेना चाहिए कि रानी ताशा ने सदूर ग्रह पर आपके साथ क्या किया। आपको ग्रह से बाहर कैसी साजिश रचकर फेंका। तब असल में क्या हुआ था। उसके बाद आप जो फैसला लेंगे, मुझे क्यों एतराज होगा। मैं नहीं चाहता कि हकीकत से वाकिफ हुए बिना आप रानी ताशा के साथ वापस सदूर ग्रह चले जाएं और बाद में आपको दुख हो।”

“तो तुम नहीं चाहते कि मैं वापस जाऊं?” देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।

“ये आप क्या कह रहे हैं राजा देव। मैं तो सबसे ज्यादा प्रसन्न होऊंगा अगर आप वापस सदूर ग्रह पर आ जाएं। आप वहां के मालिक हैं। राजा है। सब राजा देव को देखने की चाह मन में बसाए हुए हैं। आप तो...।”

“रानी ताशा ने क्या किया था मेरे साथ?” देवराज चौहान ने पूछा।

बबूसा की आवाज नहीं आई।

“रानी ताशा ने मुझे ग्रह से बाहर क्यों फेंका, जबकि मैं वहां का राजा था।” देवराज चौहान ने पुनः कहा।

“आपके खिलाफ जबर्दस्त साजिश रची गई थी।”

“उस साजिश के बारे में मुझे बताओ।”

“तो आपको मेरी बातों का भरोसा हो गया राजा देव?” बबूसा का गम्भीर स्वर आया।

“नहीं। तुम बातें कर रहे हो तो मैं भी बातें कर रहा हूं। जबकि मुझे तुम पर जरा भी भरोसा नहीं।”

“जब भरोसा ही नहीं राजा देव तो ये बात बताने का क्या फायदा कि रानी ताशा की साजिश क्या थी।”

“मतलब कि मैं कहूं मुझे तुम पर भरोसा है तो तुम इस बारे में बता दोगे?”

चंद पलों की चुप्पी के बाद बबूसा की आवाज आई।

“अब नहीं बताऊंगा राजा देव।”

“क्यों?”

“आप मेरे मुंह से रानी ताशा की साजिश के बारे में सुनने के लिए, झूठ भी तो कह सकते हैं कि आपको मुझ पर भरोसा है।”

देवराज चौहान मुस्कराया।

“इस बात का जवाब तो अब आपको आने वाला वक्त ही देगा।” बबूसा की आवाज आई।

“आने वाला वक्त?”

“जब रानी ताशा से आपका सामना होगा और आपको वो जन्म याद आने लगेगा। मुझे लगता है कि अपनी चिंता में मैं कुछ जल्दी कर रहा हूँ आपसे मिलने की। छ: महीने से मैं आपको ढूंढ़ रहा हूं इस शहर में। महापंडित की दी शक्तियों के सहारे सिर्फ आपकी गंध से, समाधि में ही आपको ढूंढ़ पाया और बात कर सका। आपको सामने देख पाने का वक्त नहीं आया अभी। परंतु मैं आपको ढूंढ़ लूंगा। ये ही तो काम है मेरा कि आपके पास पहुंचना और आपकी सेवा करना। हर बुरी शय से आपको बचा के रखना। मैं तो आपका पुराना सेवक हूं और आप मुझे बहुत पसंद किया करते थे। मेरे को हमेशा अपने संग ही रखते थे। कोई भी बात होती जो आप बबूसा को ही फौरन याद करते। मैं तो हमेशा...।”

एकाएक बबूसा की आवाज आनी बंद हो गई।

देवराज चौहान उसकी आवाज सुनने के इंतजार में रहा।

परंतु कमरे में गहरी खामोशी आ ठहरी।

“चले गए बबूसा।” देवराज चौहान ने कहा।

बबूसा के गहरी सांस लेने की आवाज आई।

“क्या हुआ?”

“ये क्या है राजा देव?” बबूसा के सुनाई देने वाले स्वर में कुछ तेजी आ गई थी।

“क्या?”

“ये-ये राजा देव। ये हथियार...?”

देवराज चौहान की निगाह तुरंत चौकोर पत्तियों पर जा टिकी। जो कि उसने एक तरफ छोटे से टेबल पर खड़ी हुई थी। चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।

“तुम इन चौकोर पत्तियों की बात कर...।”

“ये हथियार है राजा देव। खतरनाक और घातक हथियार डोबू जाति के, जहां मैं पला और बड़ा हुआ।”

“क्या?” देवराज चौहान चौंका।

“डोबू जाति के बारे में मैं आपको पहले बता ही चुका हूं। ये आपके पास कैसे आए? हैरानी है कि ये आपके पास देख रहा हूं।”

जवाब में देवराज चौहान ने उसे बताया कि ये हथियार उसके पास कैसे पहुंचे।

“वो-वो धरा थी राजा देव।”

“कौन धरा?”

“यहां पर वो मेरी सहायता कर रही थी आपकी तलाश में। वो मुझे समझती थी, क्योंकि वो डोबू जाति तक हो आई थी और अब डोबू जाति वाले उसे खत्म कर देना चाहते हैं कि उनके यहां देखी बातें धरा किसी और को न बता दे।”

“ऐसा क्या था वहां पर?”

“सदूर ग्रह से बात करने का सामान वहां पर मौजूद है। बाहरी दुनिया को ये सब पता चलेगा तो वो जरूर चाहेंगे कि डोबू जाति में क्या हो रहा है और ये बात डोबू जाति को कैसे पसंद आएगी।”

“तुम भी तो उसी जाति से सम्बंध रखते हो।”

“मेरा सम्बंध इतना ही है कि मैं वहां पला और बड़ा हुआ। आपको बता चुका हूं कि सदूर ग्रह का पोपा मुझे डोबू जाति में छोड़ गया था कि मैं यहां के लोगों की तरह पलकर बड़ा हो जाऊं और वक्त आने पर आपको वापस सदूर ग्रह ले जाने के लिए रानी ताशा की सहायता करूं। परंतु मैं अब इन बातों से विद्रोह कर डोबू जाति छोड़ चुका हूं। ये सब मैंने आपके लिए किया। मैं नहीं चाहता कि रानी ताशा आपको धोखे में रखकर वापस सदूर ग्रह ले जाए। मैं आपको सब कुछ बता देना चाहता था परंतु आप हैं कि मेरी बातों का विश्वास नहीं कर रहे। बबूसा पर भरोसा नहीं करेंगे तो किस पर भरोसा करेंगे राजा देव।”

“मैं तुम्हें नहीं जानता।”

“जब तक मुझसे मुलाकात नहीं करेंगे, तब तक मुझे कैसे जान पाएंगे। एक बार तो मुझसे...।”

“जरूर मिलता। परंतु तुम्हारी बातें मेरी समझ से बाहर हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

“राजा देव। डोबू जाति के इन हथियारों का आपके पास पहुंच जाना संयोग नहीं, संकेत है। इस बात का संकेत कि आपके तार रानी ताशा से जुड़ते जा रहे हैं। वक्त आपको और रानी ताशा को करीब ला रहा है। रानी ताशा इस धरती पर कभी भी पहुंचाने वाली है और जल्द ही उससे आपका सामना होने वाला है।”

“मुझे जरा भी यकीन नहीं कि ऐसा कुछ होने वाला है।”

“राजा देव आपको अब तक मेरी किसी भी बात पर यकीन नहीं आया? जरा भी नहीं?”

चंद पल चुप रहकर देवराज चौहान बोला।

“कभी-कभी बातों के दौरान यकीन आने लगता है, परंतु अविश्वास का भार ज्यादा है, इन बातों पर।”

“एक बार मुझसे मिल तो लें?”

“नहीं। मुझे लगता है कि तुम जो भी हो, थककर खुद ही इन बातों से पीछे हट जाओगे।”

“आपका सेवक बबूसा कभी नहीं थकता राजा देव। आप तो जानते ही हैं कि आपका हर हुक्म फौरन पूरा करता हूं।”

“तुम मेरे लिए अंजान हो।”

“समझ गया राजा देव। मेरी बातें आपको आसानी से समझ नहीं आने वालीं।” बबूसा के गहरी सांस लेने की आवाज आई –“परंतु मैं पीछे हटने वाला नहीं और आपकी तलाश बराबर जारी रखूंगा।”

“तुम मुझ तक नहीं पहुंच सकोगे।” देवराज चौहान मुस्कराया।

क्षणों की खामोशी के बाद बबूसा की आवाज आई।

“धरा जब तक जगमोहन के साथ रही, जिंदा रही तब तक?”

“हाँ।”

“उसे जगमोहन ने कहां पर कार से उतारा था।”

“क्यों?”

“मैं वहां से उसकी गंध पाकर, उस रास्ते पर चल सकूँगा, जहां-जहां से वो जहां-जहां गई है। इस तरह मुझे पता चल जाएगा कि डोबू जाति वालों ने कहां पर उसकी हत्या की, या वो जिंदा है तो कहां पर है।” बबूसा की आवाज आई।

“ये बात मुझे जगमोहन से पूछनी पड़ेगी कि उसने धरा को कहां पर उतारा?”

“पूछकर बता दीजिए। मेहरबानी होगी राजा देव।”

देवराज चौहान उठा और कमरे से बाहर निकल गया।

उस खाली कमरे में बबूसा की मध्यम-सी सांसें गूंजती रहीं।

पांच मिनट के बाद देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया।

“कुछ बताया राजा देव?” बबूसा की बेसब्र-सी आवाज सुनाई दी।

देवराज चौहान ने बताया कि जगमोहन ने धरा को कहां उतारा था।

“अब मैं जान लूंगा कि धरा के साथ क्या हुआ। तो मैं जाऊं राजा देव।”

तभी जगमोहन और सोहनलाल ने कमरे में प्रवेश किया।

देवराज चौहान ने दोनों को देखा।

“बबूसा है या चला गया?” जगमोहन ने पूछा।

“शायद है।”

सोहनलाल और जगमोहन की निगाह कमरे में घूम रही थी।

“बबूसा।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में पुकारा।

“कहो जगमोहन।” बबूसा की आवाज आई।

“आखिर तुम हमसे चाहते क्या हो?”

“राजा देव को मैं सब कुछ बता चुका हूं।” बबूसा की आवाज आई।

“वो मैं भी जानता हूं परंतु हमें तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं।”

“ज्यादा वक्त बाकी नहीं रहा। बहुत जल्दी सबको यकीन आ जाएगा। हालात बदलने लगे हैं। अब तो डोबू जाति की चीजें भी तुम लोगों के पास पहुंचने लगी हैं। वक्त कम होता जा रहा है...।”

“कैसी चीजें?”

“वो हथियार, जो तुम्हारी कार में आ धंसे थे। वो डोबू जाति के हैं। राजा देव तुम्हें सब बता देंगे। ये इस बात का संकेत है कि राजा देव और रानी ताशा के बीच की दूरी कम होने लगी है। सम्भव है रानी ताशा पोपा में बैठकर सदूर ग्रह से इस तरफ के लिए चल दी हो। बहुत कुछ होने वाला है अब। तुम लोग अंजान हो। मुसीबतों की ऐसी आंधी आने वाली है कि उसमें फंसकर रह जाओगे। परंतु आप सबको बचाने की चेष्टा कर सकता हूं। ये तभी हो सकता है कि मुझसे मिलो। बातें करो और जो मैं कहूं उस पर भरोसा करो। ज्यादा वक्त नहीं बचा है अब।”

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा। देवराज चौहान चुप रहा।

बबूसा की आवाज पुनः गूंजी वो सोहनलाल से कह रहा था।

“तुम यहां आ पहुंचे हो सोहनलाल। शायद मेरे सवाल से डर गए कि राजा देव कहां पर रहते हैं।”

“उस लड़की का नाम धरा है, जो तुम्हारे साथ सुबह मेरे पास आई थी?” सोहनलाल ने पूछा।

“हां। वो ही जान बचाती, भागती जगमोहन से मिली थी। मुझे जाना है अब। धरा को देखना है कि वो जिंदा रही या नहीं। जबकि मेरा विश्वास है कि डोबू जाति के योद्धाओं ने उसे जिंदा नहीं छोड़ा होगा। मुझे जाने की आज्ञा दीजिए राजा देव और मेरी बातों पर विचार कीजिए। वक्त बहुत कम है। मैं जल्दी आपसे बात करके आपका जवाब पूछूंगा।”

उसके बाद बबूसा की आवाज नहीं आई।

वहां खामोशी आ ठहरी थी।

“बबूसा गया?” सोहनलाल ने देवराज चौहान से पूछा।

“शायद। वो ऐसे ही जाता है। खामोशी हो जाती है।” देवराज चौहान ने कहा।

“बबूसा।” जगमोहन ने पुकारा।

परंतु जवाब में बबूसा की आवाज नहीं आई।

देवराज चौहान उठा और छोटे-से टेबल पर रखी उन चौकोर पत्तियों के पास जा पहुंचा और उन्हें ध्यानपूर्वक देखने लगा। चेहरे पर गम्भीरता दिखाई दे रही थी।

“बबूसा की बातें मेरी समझ में तो नहीं आ रही।” जगमोहन कह उठा।

“बबूसा कहता है कि डोबू जाति के योद्धा उस लड़की (धरा) के पीछे है। उसे मार देना चाहते हैं। क्योंकि वो डोबू जाति के ठिकाने के भीतर तक हो आई है और वहां कुछ चीजें ऐसी देखी हैं, जो कि उसे नहीं देखनी चाहिए थीं। ये ही वजह है कि वो उस लड़की को मार देना चाहते हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

“ओह, तो उस वक्त डोबू जाति वाले उसके पीछे थे।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“जरूर होंगे। क्योंकि ये अजीब से खतरनाक हथियार वो ही इस्तेमाल कर सकते है। शहरी लोग इन हथियारों के बारे में नहीं जानते। इन्हें इस्तेमाल करने के लिए भी सालों के अभ्यास की जरूरत है।” देवराज चौहान का स्वर सोचों से भरा था –“बहुत निशाने पर फेंके गए थे, चलती कार की वजह से तुम और वो लड़की बच गए। परंतु बबूसा का मानना है कि ये हथियार एक संकेत की तरह हम तक पहुंचे हैं कि रानी ताशा आ रही है।”

“बबूसा की बातें हमारी समझ से परे हैं।” जगमोहन बोला।

“परंतु उसकी बातें सच भी हो सकती हैं।” सोहनलाल ने कहा।

“ये ही बात अब मैं सोचने लगा हूं।” देवराज चौहान की नजर लोहे की चौकोर पत्तियों पर गई –“ये अजीब से हथियार डोबू जाति के हैं। बबूसा ऐसा कहता है तो जाहिर है डोबू जाति का अस्तित्व है कहीं। इन हथियारों को देखकर मुझे इस बात का यकीन आने लगा है। ऐसे में मुझे सोचना पड़ रहा है कि बबूसा की बातों में सच्चाई तो नहीं है। अगर वो सब कुछ सही कह रहा है तो सच में हम पर मुसीबत आने वाली है।”

जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं।

“परंतु सच-झूठ का पता कैसे चले?” सोहनलाल ने कहा।

“इसके लिए हमें बबूसा से मिलना पड़ेगा।” देवराज चौहान बोला।

“और अगर वो अपनी किसी चाल के तहत ये सब कर रहा हो। अगर वो तुम्हारी जान लेने का इरादा रखता हो, तो?” जगमोहन ने कहा-“बबूसा से मुलाकात करना खतरे से खाली नहीं होगा।”

“हम सतर्क रहकर उससे मिलेंगे।” देवराज चौहान बोला –“मुलाकात की जगह हमारा घेरा होगा कि अगर वो कोई चालाकी करने की सोच रहा है तो उसे सफलता न मिले।”

“जल्दी मत करो बबूसा से मिलने की।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा –“सोच-समझकर कदम उठाओ। मैं उससे मिल चुका हूं और मैंने उसे पहचाना है कि वो खतरनाक इंसान है। तभी तो चुपचाप खिसककर यहाँ आ गया।”

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।

“जो भी हो बबूसा से मिलना तो पड़ेगा ही।" देवराज चौहान कह उठा –“वो ये ही सब बातें करेगा मिलने पर, जो वो कह चुका है, परंतु आमने-सामने होने से हम ये तो भांप सकेंगे कि वो क्या सच कह रहा है और क्या झूठ। अगर वो मेरे से किसी तरह का खेल खेल रहा है तो उसे सफल नहीं होने देंगे। इस बारे में पूरी तैयारी करके ही उससे मिलने चलेंगे।”

“परंतु ये बात बबूसा को कैसे पता चलेगी कि तुम उससे मिलना चाहते हो।” सोहनलाल ने कहा।

“अब वो जब भी मेरे से इस तरह बात करने आएगा तो, इस बारे में उससे बात करूंगा।” देवराज चौहान का स्वर सोच से भरा था।

qqq

बबूसा की समाधि भंग हुई।

उसने आंखें खोल दी। वो तुरंत उठा। कपड़े पहने और होटल से बाहर निकलता चला गया। रात का डेढ़ बज रहा था, परंतु उसे धरा की चिंता थी। वो जान लेना चाहता था कि धरा पर क्या बीती। होटल के बाहर से ही उसे टैक्सी मिल गई तो वो उस जगह की तरफ चल पड़ा, जहाँ जगमोहन ने धरा को उतारा था।

चालीस मिनट में टैक्सी वहां पहुंची तो बबूसा ने टैक्सी वाले को पैसे देकर टैक्सी छोड़ दी और फुटपाथ पर खड़ा होकर कुछ सूंघने की चेष्टा करने लगा कि तुरंत ही बड़बड़ाया।

‘ओह, धरा यहीं थी। उसकी गंध मिल गई है मुझे, वो इस तरफ गई।’

बबूसा तेजी से आगे बढ़ गया। ये फुटपाथ था। सड़क पर से बहुत कम वाहन आ-जा रहे थे रात के इस वक्त। बबूसा तेज-तेज कदमों से आगे बढ़ता जा रहा था। आगे जाकर बाईं तरफ मोड़ आया तो बबूसा धरा की गंध का पीछा करते हुए उसी तरफ मुड़ गया। चलता रहा। इस तरफ सुनसान जैसा इलाका था। दूर फ्लैट बने नजर आ रहे थे। बबूसा हवा में गंध लेता आगे बढ़ता रहा।

कुछ आगे जाकर बबूसा एक जगह ठिठक गया।

ये वो ही जगह थी, जहां धरा से सोलाम मिला था।

‘ओह ये तो सोलाम की गंध है।’ बबूसा बड़बड़ाया –‘तो सोलाम ने धरा को पकड़ लिया।’

उसी पल बबूसा की निगाह नीचे जमीन पर फिरने लगी। आस-पास अंधेरे में देखा। परंतु धरा का मृत शरीर उसे कहीं न दिखा। न ही बिखरे खून की गंध आई।

‘सोलाम ने धरा के साथ क्या किया?’ बबूसा परेशानी से बड़बड़ा उठा।

फिर उसने महसूस किया कि सोलाम की गंध गायब हो गई है।

परंतु जीवित धरा की गंध अभी भी वहां मौजूद थी।

उसने गंध को दूसरी तरफ जाते पाया तो बबूसा आगे बढ़ गया।

‘हैरानी है।’ बबूसा बड़बड़ाया –‘सोलाम ने धरा को जिंदा कैसे छोड़ दिया। वो चला क्यों गया?’

धरा की गंध के सहारे बबूसा आगे बढ़ता रहा।

मुख्य सड़क पर जा पहुंचा। ठिठका।

अगले ही पल उसने धरा की गंध को तेजी से एक तरफ जाते महसूस किया तो वो समझ गया कि धरा यहां से किसी कार जैसे वाहन पर सवार होकर गई है। पंद्रह मिनट के इंतजार के बाद बबूसा को खाली टैक्सी मिली तो वो टैक्सी पर सवार होकर आगे की तरफ बढ़ गया। रह-रहकर खिड़की के बाहर सिर निकालकर धरा की गंध को महसूस करता और ड्राइवर को उसी दिशा में आगे जाने को कहता। ड्राइवर को ये सब अजीब सा लग रहा था परंतु उसने ये ही सोचा कि सवारी ने कोई नशा कर रखा है। चुपचाप वो बबूसा का कहना मानता रहा कि आधे घंटे बाद एकाएक बबूसा ने टैक्सी रोकने को कहा।

टैक्सी रुकी। उसने ड्राइवर को पैसे दिए और सड़क किनारे आगे बढ़ने लगा।

अब धरा की गंध धीमी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी।

स्पष्ट था कि यहां से धरा पैदल ही आगे बढ़ी थी।

बबूसा धरा की गंध को महसूस करता आगे बढ़ता रहा कि आगे चौराहा आ गया। कुछ पल के लिए वो ठिठका, गंध को महसूस किया फिर चौराहा पार करते सामने की इमारत की तरफ बढ़ गया। वो मध्यमवर्गीय होटल था। बबूसा होटल में प्रवेश कर गया। धरा की गंध को वो बराबर महसूस कर रहा था। एक तरफ छोटा-सा रिसेप्शन था। वहां कुर्सी पर बैठा व्यक्ति काउंटर पर सिर रखे गहरी नींद में था।

गंध लेता बबूसा होटल में प्रवेश करके पहली मंजिल की सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंचा और पतली-सी गैलरी में आगे बढ़ा और एक बंद दरवाजे पर जा ठिठका। धरा की गंध इस कमरे के भीतर से आ रही थी। बबूसा के चेहरे पर सख्ती और गम्भीरता नजर आ रही थी। उसने दरवाजा थपथपाया।

परंतु भीतर से कोई आहट न उभरी।

बबूसा ने पुनः दरवाजा थपथपाया तो इस बार भीतर से कुछ सरसराहट-सी उभरी।

“धरा।” बबूसा ने धीमे स्वर में कहा –“मैं बबूसा-दरवाजा खोलो।”

तुरंत ही भीतर से आहटें उभरीं और दरवाजा खोला गया।

सामने धरा थी। घबराई-सी। परेशान-सी। वो सोई उठकर आ रही थी। बबूसा को देखते ही उसकी आंखों से आंसू बह निकले और बबूसा से लिपट गई।

“तुम-तुम आ गए। कहां थे तुम?” धरा रो पड़ी।

बबूसा ने उसके कंधे को थपथपाया और उसे अपने से अलग किया।

“घबराओ मत, मैं आ गया हूं।” बबूसा ने राहत भरे स्वर में कहा।

धरा पीछे हटी। बबूसा भीतर आया और दरवाजा बंद कर दिया। ये साधारण सा कमरा था। एक तरफ बेड और दो कुर्सियां रखी थीं। छत पर लगा पंखा चल रहा था।

“तुमने मुझे कैसे ढूंढ़ निकाला?” धरा अपने आंसू पोंछते कह उठी –“तुम्हारे बिना तो मेरे हाथ-पांव फूले पड़े हैं। उस वक्त मुझे उठकर भागना पड़ा, क्योंकि एक ने मुझे दीवार के पास अंधेरे में लेटे देख लिया था।”

“राजा देव की वजह से ही मैं तुम तक पहुंच सका।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“राजा...देवराज चौहान तुम्हें मिल गया क्या?” धरा के होंठों से निकला।

“नहीं। समाधि लगाकर मैंने राजा देव से बात की थी। तुम्हें एक आदमी मिला था भागते वक्त। उसने तुम्हें कुछ दूर तक छोड़ा था जिसकी कार के भीतर चौकोर पत्ती जैसा हथियार आ धंसा था।”

“हां, उसने मुझे कुछ पैसे देकर कहा था कि मैं किसी होटल में ठहर सकती हूं।”

“वो जगमोहन था, जो आज राजा देव का खास साथी है।”

“जगमोहन? देवराज चौहान का साथी?”

“ये सब मुझे राजा देव से ही पता लगा। उन्होंने जगमोहन से पता करके बताया कि उसने तुम्हें कहां छोड़ा था। जहां उसने तुम्हें छोड़ा था, वहीं से तुम्हारी गंध के सहारे मैं यहां तक आ पहुंचा। मैं तो सोच रहा था कि योद्धाओं ने तुम्हें मार डाला होगा। तुम्हें जिंदा पाकर मुझे बहुत खुशी हो रही है।” बबूसा मुस्कराया –“परंतु एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि सोलाम तुम तक पहुंच गया था, उसके बाद भी तुम जिंदा कैसे?”

धरा ने हैरानी से बबूसा को देखा

“तुम्हें कैसे पता कि सोलाम ने मुझे पकड़ लिया था?” धरा बोली।

“कुछ देर पहले तुम्हें तलाश करते वक्त मैंने एक ही जगह पर तुम्हारी और सोलाम की गंध को पाया।”

“तुम किसी की गंध को कैसे महसूस कर लेते हो?”

“महापंडित ने गंध से वास्ता रखती शक्ति तब मेरे भीतर डाली थी, जब मेरा जन्म कराया गया था। महापंडित बहुत बातें पहले ही जान लेता है कि भविष्य में क्या होगा। परंतु शायद वो ये नहीं जान पाया कि एक दिन में रानी ताशा से विद्रोह करूंगा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“सोलाम ने तुम्हें क्यों छोड़ा। वो हाथ आया शिकार कभी छोड़ेगा नहीं।”

“उसने अजीब-सी बात की वजह से मुझे छोड़ा।”

“कैसी बात?”

“वो कहता है कि बबूसा तुम्हें प्यार करता है तभी तुम्हें बचा रहा है। उसने कहा कि बबूसा को उसने हमेशा ही पसंद किया है। उसने तुम्हारे साथ बचपन-जवानी का वक्त बिताया। इसलिए उसने तुम्हारे प्यार को जिंदा छोड़ दिया।”

“प्यार?” बबूसा ने अजीब से स्वर में कहा -“मेरा प्यार तो मेरे हथियार हैं। मेरा मकसद है। मैं तुम्हें प्यार नहीं करता।”

“ये ही बात मैंने कही, परंतु सोलाम को यकीन है कि तुम मुझे प्यार करते हो।”

“वो गलत सोच रहा है।”

“मैं जानती हूं कि ऐसा कुछ नहीं है। मुझे भी तुमसे कोई प्यार नहीं है। तुम मुझे बचा रहे हो और मैं देवराज चौहान को ढूंढ़ने में तुम्हारी सहायता कर रही हूं। हमारे बीच बस ये ही एक रिश्ता है।” धरा कह उठी –“पर सोलाम समझता है कि तुम मुझे प्यार करते हो। जाने क्यों उसे इस बात का यकीन है।”

बबूसा मुस्करा पड़ा।

“सोलाम कुछ भी सोचे। मुझे इसकी परवाह नहीं है। लेकिन ये अच्छा रहा कि उसने तुम्हें मारा नहीं।” बबूसा बोला।

“वो कहता है कि मुझे बाकी योद्धाओं से बचकर रहना होगा। नहीं तो मारी जाऊंगी।”

“तुम्हें कुछ नहीं होगा।” बबूसा ने विश्वास भरे स्वर में कहा –“मैं पहले भी तुम्हारे साथ था और अब भी तुम्हारे साथ हूं। सुबह ही मैं होटल के उस वेटर के पास जाकर अपने हथियार ले आऊंगा, परंतु मुझे कोई ठिकाना चाहिए। कोई जगह जहां मैं निश्चिंत होकर टिक सकूं। ऐसी किसी जगह का इंतजाम तुम ही कर सकती हो।”

“अभी मैं अपने होश में नहीं हूं।” धरा कांपकर बोली –“बहुत बुरे वक्त से बचकर निकली हूं।”

“घबराओ मत। मैं हर पल तुम्हारे साथ रहूंगा।”

“हमें सोहनलाल के घर जाना था। सब कुछ बीच में ही रह गया।”

“सोहनलाल के घर जाने का कोई फायदा नहीं। वो राजा देव के यहां रह रहा है।”

“ओह, तो अब?”

“मेरी तलाश चलती रहेगी। मैं राजा देव को ढूंढकर रहूंगा। तुम मेरे साथ, मेरे होटल में चलो। तुम मेरा साथ देना और मैं कल से राजा देव को ढूंढने की चेष्टा करूंगा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“देवराज चौहान तुम्हारी बात नहीं मान रहा तो मुलाकात करके कैसे मान जाएगा। तब भी वो...।”

“तब मैं राजा देव को यकीन दिलाने की पूरी चेष्टा करूंगा। अब में समाधि के सहारे उनसे बात करता हूं। परंतु जब शरीर के साथ उनके सामने होऊंगा तो उन्हें समझाने के और भी कई ढंग मेरे सामने होंगे।” बबूसा ने कहते हुए सिर हिलाया –“तुम मेरे साथ मेरे होटल में चलो।”

qqq

“बबूसा।”

एकाएक कमरे में मोटी-भारी-सी आवाज गूंजी।

धरा फौरन उठ बैठी। आस-पास देखने लगी। कमरे की खिड़की से बाहर धूप दिखाई दी। दिन कब का निकल आया था। उसने डबल बेड के दूसरे हिस्से पर सोए बबूसा को देखा। धरा को पूरा यकीन था कि किसी की आवाज सुनकर उसकी आंख खुली है। परंतु कमरे में उनके अलावा कोई नहीं था।

धरा लम्बे पलों तक बेड पर ही बैठी रही।

“बबूसा।” वो ही आवाज पुनः गूंजी।

धरा ने चौंककर आस-पास देखा।

परंतु कोई नहीं दिखा तो हड़बड़ाकर उसने बबूसा का कंधा पकड़कर हिलाया।

“क्या है?” बबूसा फौरन उठ बैठा। उसकी आंखों में नींद भरी थी।

“क-कोई है।” धरा ने घबराए स्वर में कहा।

“कौन?”

“प-पता नहीं, पर कोई तुम्हें पुकार रहा है।”

बबूसा की आंखें सिकुड़ीं। वो कह उठा।

“कौन है?”

“मैं हूं बबूसा।” वो आवाज पुनः कमरे में गूंजी।

“महापंडित।” बबूसा हैरान-सा बेड से उतरकर खड़ा हो गया।

“हां मैं, महापंडित। तुझे हैरानी क्यों हो रही है?” महापंडित की वो ही आवाज पुनः उभरी।

“तुझसे तो पिछले जन्म में बात की थी जब तूने मेरा नया जन्म कराकर मुझे डोबू जाति में भेजा था।”

“मैंने नहीं भेजा था। रानी ताशा के हुक्म से और तुम्हारी रजामंदी से ही ऐसा किया गया था।” वो आवाज आई।

“तब मैं हकीकत को समझ नहीं सका था।” बबूसा के होंठों से निकला।

“तो क्या अब हकीकत को समझ गया?” महापंडित के हंसने की आवाज आई।

“हालातों को करीब से देखा तो हकीकत समझ में आई। तू बुरा है महापंडित।” बबूसा की आवाज तीखी हो गई।

धरा बेड पर बैठी हैरान-परेशान-सी बातें सुन रही थी।

“मैं बुरा कैसे हो सकता हूं बबूसा।”

“पहले तू मुझे नजर आ। मैं जानता हूं कि तेरे में इतनी शक्तियां हैं कि तू सामने आ सकता है।”

“इतनी दूर से नहीं बबूसा। एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक मेरी शक्तियां ठीक से काम नहीं करतीं, पर ये ले। अब सामने की दीवार पर देख। मेरी परछाईं तुझे दिखेगी।”

बबूसा और धरा की निगाह सामने की दीवार पर गई।

वहां एक मोटे और गोल से आदमी की परछाईं दिखने लगी, जिसके बाल गर्दन तक लम्बे दिखाई दे रहे थे। परछाईं में वो आधा-अधूरा ही नजर आ रहा था।

“देख लिया मुझे।” महापंडित की आवाज आई। बात करते वो परछाईं हिल उठती थी।

“तुझे देखकर ज्यादा खुशी नहीं हुई।”

“क्योंकि मैं बुरा हूं। तू ये ही कहता है न बबूसा।” महापंडित का स्वर वहां गूंज रहा था।

“इसमें कोई शक नहीं। अब मैंने तुझे पहचाना है। तू राजा देव के साथ दगाबाजी कर रहा है।” बबूसा सख्त स्वर में बोला।

“वो कैसे?”

“रानी ताशा ने राजा देव को कैसा धोखा देकर, ग्रह से बाहर फेंका था, भूल गया क्या?”

“महापंडित कभी, कुछ नहीं भूलता।”

“तो तू अब रानी ताशा का साथ क्यों दे रहा है?”

“कैसा साथ बबूसा?”

“रानी ताशा, राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले जाना चाहती है।”

“इसमें बुरा क्या है। क्या तू नहीं चाहता कि राजा देव फिर से पहले की तरह अपने ग्रह के लोगों को संभालें। ये ग्रह राजा देव का ही तो है। राजा देव ने ही पोपा का निर्माण किया था। अपने ग्रह के लिए, जनता के लिए राजा देव ने क्या नहीं किया। वो वापस आ गए तो ग्रह की किस्मत बदल जाएगी।”

“परंतु रानी ताशा को सजा कौन देगा, राजा देव को दिए धोखे की?”

“वो सजा राजा देव ही तय करेंगे।”

“तो ऐसे में राजा देव को पता तो होना चाहिए कि रानी ताशा ने उन्हें कैसा धोखा दिया था।”

“सही कहा, जरूर पता होना चाहिए।”

“तो फिर रानी ताशा तुम्हारे साथ मिलकर राजा देव को जैसे भी हो वापस सदूर ग्रह पर क्यों ले जाना चाहती है। तुम भी रानी ताशा का पूरा साथ दे रहे हो, जबकि तुम्हें चाहिए कि राजा देव को अपना वो जन्म याद आ जाए कि...”

“वो जन्म राजा देव को जरूर याद आएगा। पृथ्वी ग्रह पर याद आए या सदूर ग्रह पर, इसमें क्या फर्क पड़ता है।”

“बहुत फर्क पड़ता है महापंडित। ये चालाकी होगी राजा देव से कि उन्हें धोखे में डालकर सदूर ग्रह पर...।”

“मैंने एक बार तुमसे कहा था कि रानी ताशा को देखते ही, राजा देव को अपना वो जन्म याद आने लगेगा।”

“परंतु याद आने से पहले ही राजा देव पहले की तरह रानी ताशा की खूबसूरती में गुम हो गए तो क्या होगा?”

“तो राजा देव जब सदूर ग्रह पर पहुंचेंगे, तभी उन्हें पहले के जन्म के बारे में बता दिया जाएगा।”

“ये ही तो धोखा है। ये ज्ञान तुम राजा देव को पहले क्यों नहीं दे रहे? क्या इसलिए कि कहीं राजा देव सदूर ग्रह पर वापस जाने का इंकार न कर दें या रानी ताशा को इसी ग्रह पर सजा न दे दें। तुम तुम रानी ताशा को बचाने की चेष्टा में हो महापंडित। परंतु राजा देव को मेरे से ज्यादा कोई नहीं जानता। मैं हमेशा ही राजा देव के करीब रहा हूं। राजा देव को धोखेबाजी से हमेशा ही घृणा रही है। वो रानी ताशा को फौरन कड़ी से कड़ी सजा देंगे, बीते जन्म की सच्चाई जानते ही। तुम तो महाज्ञानी हो महापंडित। तुम्हारे पास तो भविष्य की पूरी जानकारी रहती है कि आगे क्या होने वाला है। तुम अब भी सब कुछ जानते हो।”

“सदूर ग्रह और पृथ्वी ग्रह की दूरी इतनी है कि मेरी शक्तियां ठीक से पृथ्वी ग्रह पर काम नहीं कर रहीं। ऐसे में मैं ठीक से नहीं जान सकता कि पृथ्वी ग्रह पर आने वाले वक्त में क्या होगा। भविष्य की आधी-अधूरी जानकारी ही मैं पकड़ पा रहा हूं। मैं कुछ भी ज्यादा बताने और समझने में असमर्थ हूँ।” महापंडित का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा –“लेकिन मैं जो भी कर रहा हूँ सदूर के भले के लिए कर रहा हूं। मैं चाहता हूं कि राजा देव वापस कर अपना ग्रह संभालें और राजा बनकर रहें।”

“जबकि मैं चाहता हूं कि रानी ताशा को जब राजा देव देखें तो वे रानी ताशा की इस हकीकत से वाकिफ हों कि रानी ताशा उनकी पत्नी थी। पत्नी बनकर उन्हें कैसा धोखा दिया और ग्रह से बाहर फिंकवा दिया। मैं नहीं चाहता कि राजा देव भ्रम की स्थिति में रहें। वो फिर से रानी ताशा की खूबसूरती के साम्राज्य में खो जाएं। तुम और रानी ताशा चाहती है कि मैं उनका साथ दूं कि राजा देव को जैसे भी जाल बुनकर या ताकत से वापस पोपा में बैठाकर सदूर ग्रह ले जाया जा सके। परंतु मैं तुम्हारा या रानी ताशा का जरा भी साथ नहीं दूंगा।”

“तुम वचन से बंधे हो।”

“जरूर। मैंने जन्म लेने से पहले तुम्हें वचन दिया था कि मैं रानी ताशा का साथ दूंगा और हम राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले आएंगे। लेकिन अभी तुम्हें बताया है कि हकीकत के करीब पहुंचकर मुझे सही हालातों का ज्ञान हुआ कि मैं राजा देव को धोखा नहीं दे सकता। मैं उनका सच्चा सेवक रहा हूं। बेशक ये ग्रह हो या सदूर ग्रह, मैं राजा देव के लिए जिया हूं और मरूंगा भी राजा देव के लिए। ये ही वजह रही कि मैंने डोबू जाति से विद्रोह किया और वहां से निकलकर राजा देव को ढूंढ़ने लगा। ताकि राजा देव को बता सकूं कि एक बार फिर रानी ताशा उन्हें धोखा देने की फिराक में है और महापंडित, रानी ताशा का साथ दे रहा है। तुम भी सजा के हकदार हो चुके हो महापंडित।”

खामोशी-सी आ ठहरी वहां।

महापंडित की तरफ से कोई आवाज नहीं आई। दीवार पर परछाईं स्थापित रही।

धरा स्तब्ध-सी बैठी, सब कुछ सुनते, परछाईं को देखे जा रही थी।

बबूसा के चेहरे पर क्रोध और कठोरता नाच रही थी।

“चुप क्यों हो गए महापंडित। तुम्हारी तर्कशक्ति तो अथाह गहरी है।” बबूसा कह उठा।

“इस वक्त तर्कशक्ति नहीं, समझदारी की जरूरत है बबूसा।” महापंडित की आवाज आई।

“समझदारी का भी भंडार है तुममें महापंडित। तुम युद्ध को छोड़कर हर तरफ से मेरे आगे हो।”

“इसमें दो राय नहीं कि रानी ताशा ने राजा देव के साथ बुरा व्यवहार किया। बुरा धोखा दिया। मैं तुमसे सहमत हूं।”

“तो असहमति कहां पर है?” बबूसा बोला।

“परंतु उसके बाद रानी ताशा तब से आज तक पश्चाताप में जलती रही कि उन्होंने राजा देव के साथ बुरा व्यवहार किया। वो जीवन पूरा करके मरती रही और मैं उन्हें पुनः नया जीवन देता रहा। तब से आज तक उनका पांचवां जन्म अब चल रहा है। परंतु इन पांच जन्मों में रानी ताशा अपनी गलती की कमी नहीं भूल पाई और पश्चाताप करती रही। पश्चाताप भी ऐसा कि रानी ताशा ने किसी मर्द को अपने करीब नहीं जाने दिया, साथ ही वो इस बात की योजना तैयार करने लगी कि राजा देव को कैसे सदूर ग्रह पर वापस लाया जा सके। पहले दो जन्म तो रानी ताशा ये ही सोचती थी कि राजा देव जिंदा नहीं रहे होंगे परंतु जब मैंने रानी ताशा को इस बात का संकेत दिया कि राजा देव जिंदा हैं और उनका पता लगाकर उन्हें वापस लाने का प्रयत्न किया जा सकता है तो वो बहुत खुश हुई। राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर लाने को रानी ताशा हमेशा पागल रही। पश्चाताप में भी रही और खुश भी। रानी ताशा अपने किए की सजा भुगत चुकी है पश्चात्ताप करके। किसी मर्द को पास न आने देकर और राजा देव की वापसी की कोशिशें करके। तुम्हें इस बात को समझना चाहिए बबूसा कि रानी ताशा, राजा देव से धोखा करके खुश नहीं रही। वो ग्रह की रानी रही, चाहती तो एक से एक अच्छे मर्द को ग्रहण कर सकती थी परंतु ऐसा सोचा भी नहीं रानी ताशा ने। रानी ताशा के सब जन्मों के कर्मों की कुंडली मेरे पास है। ये कहकर मैं रानी ताशा की तरफदारी नहीं कर रहा।”

“तुमने जो कहा, वो सब बातें मैं पहले से ही जानता हूं।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तो फिर तुम्हें रानी ताशा की कोशिशों पर एतराज क्यों?”

“मैं तो सिर्फ इतना चाहता हूं कि राजा देव को हर बात की जानकारी हो, जब रानी ताशा से सामना हो।”

“तो तुम राजा देव को याद दिलाए रखना चाहते हो कि रानी ताशा ने उनके साथ धोखा किया।”

“हां।”

“तो फिर तुम्हें ये भी बताना होगा कि रानी ताशा ने किस तरह पश्चाताप किया।”

“ये भी बताऊंगा।”

“परंतु मुझे कुछ-कुछ संकेत मिल रहे हैं कि राजा देव से तुम्हारी मुलाकात नहीं हुई।”

“सही कहा महापंडित। तुम्हारी दी शक्तियों से मैंने अवश्य राजा देव से बात की है।” बबूसा बोला।

“क्या ये अच्छा नहीं होगा कि राजा देव को सदूर ग्रह पर पहुंच लेने दो। उसके बाद तुम उन्हें जो याद दिलाना चाहते हो, याद दिला देना। रानी ताशा की कोशिशों को सफल होने दो।”

“कभी नहीं। मैं पहले ही राजा देव को सब कुछ याद दिला...।”

“तुम इतनी जिद क्यों कर रहे हो बबूसा?”

“मुझे उस धोखे का बहुत दुख है। मैं वो जन्म कभी भूल नहीं पाया। रानी ताशा मुझे भी धमकियां दिया करती थी। एक-एक बात याद है मुझे तो आज मैं रानी ताशा की किसी चालबाजी को सफल नहीं होने दूंगा। मैं इस बात का पूरा ध्यान रखूंगा कि वो राजा देव को धोखे में रखकर, सदूर ग्रह न ले जा सके।”

“रानी ताशा तुमसे भी कई बार माफी मांग चुकी है बबूसा।”

“मैं राजा देव का सेवक रहा हूं, रानी ताशा का नहीं। जब तक राजा देव, रानी ताशा के प्रति अपना फैसला नहीं सुना देते तब तक रानी ताशा अपराधी ही बनी रहेगी। ये देखना राजा देव का काम है कि रानी ताशा के अपराध का भार ज्यादा है या पश्चाताप का। मैं रानी ताशा का साथ हरगिज नहीं दूंगा महापंडित।”

“साथ बेशक मत दो। परंतु रानी ताशा की राह में बाधा तो पैदा न करो।”

“अब तुम बुरे बनने लगे हो महापंडित।”

“कैसे?”

“तुम रानी ताशा के बारे में तो सोच रहे हो परंतु राजा देव के बारे में नहीं।”

“राजा देव इस वक्त पृथ्वी ग्रह पर किसी और का दिया जन्म जी रहे हैं। उन्हें उस वक्त का पूरी तरह कुछ भी याद नहीं । राजा देव अभी पूरी तरह हमारे नहीं हैं। जब उन्हें इस ग्रह पर लाया जाएगा तो मैं उन्हें नया जन्म दूंगा। तब वो पूरी तरह सदूर ग्रह के फिर से राजा बन जाएंगे और हम सब उनके अधीन रहकर कार्य करेंगे। अभी तो...।”

“तुम ऐसा सोचते हो, पर मैं ऐसा नहीं सोचता। क्योंकि मैं उनका सच्चा सेवक हूं। मेरे लिए वो हर हाल में राजा देव हैं। बेशक इस ग्रह पर जन्म लें या उस ग्रह पर। मेरा काम उनकी सेवा करना है। तुम बुरे हो जो राजा देव को पूरी तरह राजा देव नहीं मान रहे। मैं ये बात राजा देव से जरूर कहूंगा।”

“मेरी बात को गलत मत लो बबूसा, मेरा ये मतलब नहीं था।”

“मैं ये बातें यहीं खत्म कर देना चाहता हूं।”

“मैं तो तुमसे ये कहना चाहता था कि तुम रानी ताशा का साथ दो। राजा देव जब सदूर ग्रह पर पहुंच जाएंगे तो तुम कुछ भी करने को आजाद होगे। तुम जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूंगा।” महापंडित की आवाज आई।

“मैं सिर्फ राजा देव का साथ दूंगा।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा।

“फिर तो मुझे इस बात का दुख है कि मैं तुम्हें दोबारा कभी देख नहीं पाऊंगा।”

“क्या मतलब?” बबूसा की आंखें सिकुड़ीं।

“छ: महीने पहले तुम विद्रोह करके डोबू जाति से बाहर आ गए। तुमने रानी ताशा के आने का इंतजार नहीं किया। तब मैंने जान लिया था कि तुमने विद्रोह क्यों किया? तुम रानी ताशा की बातों से सहमत नहीं हो कि जैसे भी हो राजा देव को सदूर ग्रह पर वापस लाया जाए, तुम राजा देव को आगाह करना चाहते हो कि रानी ताशा धोखेबाज है। मैंने ये सारी बातें रानी ताशा को बता दी तो रानी ताशा ने मुझसे कहा कि मैं एक ऐसा व्यक्ति तैयार करूं जो बबूसा से कहीं ज्यादा ताकतवर हो। मेरे पास वक्त कम था, रानी ताशा तब पोपा में बैठकर, पृथ्वी ग्रह पर जाने की तैयारियों में लगी थी, इतना समय नहीं था कि मैं किसी का ताकतवर आदमी के रूप में जन्म कराता और फिर उसके बड़े होने का इंतजार किया जाता। ऐसे में मैंने एक आदमी (रोबोट) बनाया। सर्वगुण से भरा आदमी, जिसे मैंने सोमाथ नाम दिया। सोमाथ की मृत्यु नहीं हो सकती। ये मेरा नया आविष्कार है। उसकी बांह टूटेगी तो अपने शरीर के भीतर से ही वो बांह की पूर्ति कर लेगा और नई बांह आ जाएगी। गर्दन टूटेगी तो वो चंद पलों में जुड़ जाएगी। वो अपनी क्षति को खुद ही कवर कर लेगा। वो जिस हाल में भी रहे, वो मरेगा नहीं। सोमाथ के भीतर मैंने बहुत चीजें डाली हैं। बेहतरीन दिमाग डाला है। उसे सामान्य इंसानों की तरह बनाया है मैंने और वो रानी ताशा के अधीन काम करेगा। सिर्फ उनका ही हुक्म मानेगा। सोमाथ की ताकत का मुकाबला नहीं किया जा सकता। अगर तुम रानी ताशा के हक में काम नहीं करोगे तो सोमाथ तुम्हें मार देगा। सोमाथ में ढेरों हैरतअंगेज चीजें डाली हैं। वो कभी भी हारेगा नहीं। अब फैसला तुमने खुद ही करना है बबूसा।”

बबूसा के चेहरे पर बेहद कठोर मुस्कान नाच उठी।

“तो तुम सोमाथ नाम के आदमी (रोबोट) को मेरी हत्या के लिए भेज रहे हो महापंडित।” बबूसा हंसा।

“वो चल चुका है। रानी ताशा, सोमाथ के साथ चार दिन पहले ही पोपा में बैठकर पृथ्वी ग्रह की तरफ चल चुकी है। साथ में रानी ताशा के खास लोग और भी हैं। अगले पांच दिनों तक वे पृथ्वी ग्रह पर डोबू जाति में पहुंच जाएंगे। तुम सोच ही सकते हो कि रानी ताशा के साथ विद्रोह करने पर, तुम्हें सोमाथ से मुकाबला करना होगा और सोमाथ तुम्हारी जान ले लेगा। उसके सामने तुम कुछ देर भी टिक नहीं पाओगे।”

“तुमने तो बहुत कमजोर मान लिया मुझे महापंडित।”

“मैं बेहतर जानता हूं कि तुम सोमाथ के सामने कमजोर हो। क्योंकि तुम्हारा जन्म मैंने कराया है। मैंने ही तुममें ताकत और शक्तियां भरी हैं और सोमाथ को मैंने तुमसे कहीं ज्यादा ताकतवर बनाया है। उसे बनाने में मैंने ऐसी-ऐसी चीजों का इस्तेमाल किया है कि देखकर हैरान रह जाओगे तुम बहुत कमजोर हो सोमाथ के सामने।”

“तुमने मुझे राजा देव के बराबर ताकतवर बनाकर मेरा जन्म कराया था।”

“हां।”

“मेरी समझ भी राजा देव जैसी रखी थी।”

“हां।”

“और मैं राजा देव की ताकत और समझदारी से हमेशा ही प्रभावित रहा हूं। मुझे खुशी है कि इस जन्म में मेरे भीतर वो सब कुछ है जो कभी राजा देव के भीतर हुआ करता था। मुझे यकीन है कि मैं सोमाथ को टक्कर दूंगा।”

“ये तुम्हारी भूल है बबूसा। तुम बहुत कमजोर हो।”

“मेरी चिंता न कर महापंडित। मेरे साथ राजा देव हैं।”

“राजा देव अब वो नहीं रहे जो कभी वो हुआ करते थे। उनकी ताकत पहले से बहुत कम हो चुकी है। वो पृथ्वी ग्रह पर कई जन्म ले चुके हैं और कमजोर होते जा रहे हैं। राजा देव के भरोसे कोई फैसला मत ले।”

“मेरा काम सच्चे मन से राजा देव की सेवा करना है।” बबूसा ने कहा –“परंतु अब ये बात स्पष्ट हो गई है कि तू किस तरह अंधा होकर राजा देव के खिलाफ रानी ताशा का साथ दे रहा है। तू और रानी ताशा चाहते हैं कि ऐसे का ऐसे ही राजा देव को सदूर ग्रह पर पहुंचा दिया जाए। वहां पहुंचकर तो राजा देव वापस जाने को नहीं कह सकते और वहीं रह जाएंगे। परंतु मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। मैं राजा देव को पहले ही बता दूंगा कि रानी ताशा ने उन्हें किस प्रकार का धोखा दिया था और फिर ग्रह से बाहर फेंका, साथ ही मैं राजा देव को, वो जन्म याद आने का इंतजार करूंगा। सब कुछ याद आने पर तब राजा देव स्वयं ही फैसला करेंगे कि उन्हें रानी ताशा की बात माननी है या नहीं, या फिर उनके साथ कैसा व्यवहार करना है। मैं राजा देव को सब कुछ याद करा के रहूंगा और महापंडित तू भी नहीं बचेगा राजा देव के कहर से। तेरी सारी करतूतें राजा देव को बताऊंगा कि...”

“मैं तो कुछ भी बुरा नहीं कर रहा।”

“तू सब कुछ बुरा कर रहा है। तू रानी ताशा के बारे में सोच रहा है, राजा देव के बारे में नहीं। मेरा मुकाबला करने के लिए तूने सोमाथ को बनाया, ये तेरी सबसे बड़ी काली करतूत है। राजा देव तुझे सजा जरूर देंगे।”

“मैं कुछ भी गलत नहीं कर रहा।”

“बबूसा कहता है कि तू गलत कर रहा है तो गलत कर रहा है, मत भूल इस जन्म में मेरा दिमाग राजा देव जैसा है। मेरा कोई भी फैसला गलत नहीं हो सकता। मैं राजा देव को सब कुछ बता के रहूंगा कि...”

महापंडित के हंसने की आवाज आई।

“तेरे को, तेरे इरादों में सफलता नहीं मिलेगी।” महापंडित का स्वर आया।

“वो क्यों?” बबूसा के दांत भिंच गए।

“इस बार जब मैंने रानी ताशा का जन्म कराया था तो उनके चेहरे पर मैंने ऐसा प्रभाव छोड़ा था कि राजा देव रानी ताशा को देखते ही दीवाने हो जाएं। बबूसा-तू तो राजा देव की, रानी ताशा के प्रति दीवानगी को जानता ही है कि राजा देव को रानी ताशा के अलावा और कुछ दिखता ही नहीं।”

“तो ये चाल भी चल दी तूने।”

“राजा देव, रानी ताशा को देखेंगे तो उसके साथ खिंचे चले आएंगे सदूर ग्रह पर।”

“मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।”

“ये होकर रहेगा। राजा देव, रानी ताशा को देखते ही दीवाने हो जाएंगे और...”

“मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।”

“तुम सोमाथ के हाथों ही नहीं बचोगे। तुम कुछ भी नहीं कर सकोगे। तुम्हारी मौत के बाद ये काम जारी रहेगा बबूसा।”

“तो तुमने मेरी मौत के बारे में भी सोच लिया?” बबूसा के दांत भिंच गए।

“रानी ताशा से विद्रोह करोगे तो तुम्हारी मौत होने की सम्भावना खड़ी हो जाती है।” महापंडित की आवाज आई।

“ठीक है महापंडित, ऐसा ही सही।” बबूसा गुर्रा उठा –“तुम अपनी करो और मैं अपनी करूंगा।”

“अगर बाद में तुम्हारा विचार बदले तो रानी ताशा के सामने सिर झुका देना।”

“इस स्थिति में बबूसा का सिर रानी ताशा के सामने नहीं झुकेगा। मैं सिर्फ राजा देव का सेवक हूं।”

“तुम्हें सब कुछ समझाकर, तुम्हारा नया जन्म कराकर, पोपा तुम्हें पृथ्वी ग्रह पर डोबू जाति के पास छोड़ आया था और अब वक्त आया तो तुम विद्रोह पर उतर गए। तुम तो बहुत कमीने हो बबूसा।”

“हकीकत को करीब पाकर राजा देव के प्रति मुझे अपना फर्ज याद आ गया।”

“सोमाथ तुम्हारा ये जन्म खत्म कर देगा। चूंकि तुम पृथ्वी ग्रह पर जान गंवाओगे तो ऐसे में सदूर ग्रह पर कभी भी नहीं आ पाओगे। उसके बाद तुम्हारा जन्म होगा तो पृथ्वी ग्रह पर ही। राजा देव की तरह तुम भी सदूर की यादों को भुला बैठोगे।”

“राजा देव की सेवा में मुझे कैसी भी मृत्यु स्वीकार है।”

“तुम्हारी इच्छा।”

“एक बात तो तुम्हें पता ही होगी महापंडित।”

“क्या?”

“रानी ताशा ने राजा देव को सदूर ग्रह से बाहर फेंक दिया। ऐसे में तो राजा देव की मृत्यु हो जानी चाहिए थी परंतु वो पृथ्वी ग्रह पर जिंदा हैं, जन्म पर जन्म ले रहे हैं। राजा देव पृथ्वी ग्रह पर कैसे पहुंचे?”

“इसकी जानकारी मुझे भी नहीं है कि पाइप में फेंके जाने के बाद राजा देव पर क्या बीती, वो इतनी दूर पृथ्वी ग्रह पर कैसे पहुंचे।” महापंडित की आवाज आई –“तुम्हें ये बात जानने की क्या जरूरत पड़ गई।”

“ऐसे ही।”

“राजा देव से ये सवाल पूछना कि वो जीवित कैसे रहे।”

“उन्हें याद होगा क्या?”

“शायद नहीं। तुम्हें सोमाथ के बारे में सोचना चाहिए। तुमने रानी ताशा का साथ नहीं दिया तो वो रानी ताशा के इशारे पर तुम्हारी जान...”

“चले जाओ महापंडित।” बबूसा एकाएक गुर्रा उठा –“तुम्हारी कमीनगी मैंने देख ली है। सोमाथ को बनाकर तुमने गलत किया।”

उसी पल दीवार से महापंडित की परछाई गायब हो गई।

बबूसा दांत भींचे दीवार को देखता रहा। पलटा तो धरा को अपनी तरफ देखते पाया।

“तुम्हारे लिए तो मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं।” धरा बोल उठी।

बबूसा गुर्राया।

“ये सोमाथ क्या है?”

“जो भी है, बेहद खतरनाक होगा। महापंडित ऐसे जानलेवा इंसानों का निर्माण करता रहता है जो किसी के काबू में नहीं आते। सोमाथ भी महापंडित के किसी नए निर्माण का हिस्सा होगा। ये ठीक नहीं किया महापंडित ने।” बबूसा दांत भींचकर बोला।

“अब क्या करोगे बबूसा?”

“रानी ताशा पोपा में बैठकर सदूर ग्रह से चल चुकी है। सोमाथ भी साथ में है और रानी ताशा के खास लोग भी साथ हैं। चार दिन हो चुके हैं उन्हें चले और अगले चार-पांच दिन में वो पृथ्वी ग्रह पर पहुंच जाएंगे।”

बबूसा के चेहरे पर कठोरता नाच रही थी –“समय बहुत कम है। बहुत खतरनाक वक्त आने वाला है और मैं कुछ कर नहीं पा रहा।”

“मेरे ख्याल में तुम्हें इतनी चिंता नहीं करनी चाहिए।” धरा कह उठी।

“क्यों?”

“रानी ताशा अपने राजा को वापस अपने ग्रह ले जाना चाहती है तो उन्हें ले जाने दो। बुरा क्या है?”

“सब कुछ तो बुरा है इसमें।”

“कैसे?”

“तुम्हें पता है रानी ताशा ने तब राजा देव के साथ क्या किया था?”

“नहीं पता, क्या किया था?”

“मैं तुम्हें नहीं बता सकता। परंतु जो किया था, वो सब कुछ राजा देव की जानकारी में होना चाहिए जो कि वो भूल चुके हैं, अगर राजा देव को वो वक्त याद आ जाए तो वो रानी ताशा के दीवाने नहीं होंगे। सतर्क हो जाएंगे।”

“तो तुम चाहते हो कि राजा देव, वापस सदूर ग्रह पर न लौटे।”

“मैं ऐसा क्यों चाहूंगा। उनके वापस लौटने पर सबसे ज्यादा खुशी तो मुझे ही होगी। परंतु मैं राजा देव को रानी ताशा की असली तस्वीर दिखा देना चाहता हूं कि रानी ताशा ने उनके साथ क्या किया था।” बबूसा शब्दों को चबाकर कह उठा –“राजा देव के इशारे के बिना ग्रह का पत्ता तक नहीं हिलता था और रानी ताशा की साजिश, राजा देव पर सफल हो गई। मुझे या राजा देव को हवा तक नहीं लगी कि रानी ताशा कुछ करने जा रही है, परंतु मुझे एक-दो बार रानी ताशा पर शक जरूर हुआ कि जैसे कुछ गलत हो रहा है, परंतु फिर मैंने इस विचार को वहम समझकर टाल दिया। राजा देव से कुछ नहीं कहा और ये ही मेरी भूल थी। अगर मुझे रानी ताशा की चाल का आभास हो गया होता तो मैं राजा देव को अवश्य सतर्क कर देता और वो सब कुछ न हुआ होता जो हो गया था। उसका आभास तो मुझे हुआ, परंतु देर हो चुकी थी तब।”

धरा बबूसा को देखती रही।

बबूसा के चेहरे पर गुस्सा और गम्भीरता दिख रही थी।

“एक बात तो बताओ बबूसा।”

“कहो।” बबूसा ने धरा को देखा।

“उस जन्म के बाद रानी ताशा कई जन्म ले चुकी है जैसा कि महापंडित ने कहा और मैंने सुना। रानी ताशा को अपने किए का बहुत पश्चाताप हो रहा है। तुम भी इस बात को स्वीकारते हो-है न?”

“तो?”

“रानी ताशा ने किसी भी जन्म में किसी मर्द का साथ हासिल नहीं किया। वो सिर्फ राजा देव को ही वापस लाने के बारे में सोचती रही, जबसे महापंडित ने उसे बताया कि राजा देव जिंदा है। ये ही हुआ न बाद में?”

बबूसा ने सहमति से सिर हिलाया।

“फिर तो रानी ताशा ने अपनी करनी का काफी ज्यादा पश्चाताप कर लिया है। वरना वो चाहती तो ग्रह की रानी होने का पूरा फायदा उठा सकती थी। क्या नहीं कर सकती थी। ग्रह का एक से एक बढ़िया आदमी उसके कदमों में होता और...।”

“वो सब मुझे पता है।”

“पता है तो फिर तुम्हें रानी ताशा का साथ देना चाहिए कि...।”

“मैं रानी ताशा के खिलाफ नहीं हूं।”

“तो?”

“मैं बस राजा देव को ये बताना चाहता हूं कि तब रानी ताशा ने उनके साथ क्या किया था। राजा देव वो वक्त भूल चुके हैं और रानी ताशा उनके सामने आने वाली है। मैं तो सिर्फ अपना फर्ज पूरा कर रहा हूं। राजा देव के साथ मेरे सम्बंध बहुत अच्छे थे। वो मुझे दोस्त मानते थे और वो बातें भी मेरे साथ कर लेते थे, जो कि रानी ताशा को भी पता न होती थीं।”

“तुम्हारा सोचना अपनी जगह सही है और रानी ताशा भी अपनी जगह सही है परंतु समस्या तो यहां आ रही है कि राजा देव यानी कि देवराज चौहान तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं कर रहा कि तुम सही कह...।”

“राजा देव मेरी बातों का यकीन जरूर कर लेंगे। अगर वो मेरे सामने पड़ जाएं तो मैं उन्हें विश्वास दिला दूंगा कि मैं जो कह रहा हूं वो सच है। राजा देव को अब जल्दी से ढूंढ़ना पड़ेगा। तुम मेरा साथ दो धरा राजा देव को ढूंढ़ने में।”

“मैं तुम्हारे साथ हूं। जा भी कहां सकती हूं, डोबू जाति के लोग तो मेरी जान के पीछे हैं। तुम्हारे साथ रहकर ही बची रह सकती हूं। तुमसे अलग हुई तो तभी मार दी जाऊंगी।” धरा गम्भीर और परेशान स्वर में कह उठी।

“तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा।”

“देवराज चौहान को ढूंढ़ोगे कैसे?”

“उनकी गंध से। इसके लिए मुझे पूरे शहर में घूमते रहना होगा। ।

राजा देव जहां रहते हैं, वहां से बाहर भी निकलते होंगे। वो मेरे से एक खास दूरी पर हुए तो मैं उनकी गंध पा लूंगा। बस ये ही एक रास्ता मेरे पास।”

“इस तरह तो बहुत देर लग जाएगी देवराज चौहान को ढूंढ़ने में।”

“मैं और कर भी क्या सकता हूं।” बबूसा ने कठोर स्वर में कहा।

“सोहनलाल के यहां भी हो लेते हैं, शायद वो...।”

“वो, राजा देव के पास है।”

“क्या पता वो वापस अपने घर आ जाए अब तक। नहा-धोकर हम निकलेंगे। उसके घर पहुंचते-पहुंचते दोपहर का एक बज जाएगा। शायद सोहनलाल हमें वहीं मिल जाए। एक बार देख लेने में क्या हर्ज है।”

qqq

नाश्ते में जगमोहन और सोहनलाल ने मिलकर पनीर वाले परांठे बनाए थे और देवराज चौहान के साथ मिलकर नाश्ता किया था। नाश्ता करते-करते दिन के बारह बज गए थे। ऐसे में दोपहर के लंच का तो मतलब ही नहीं था। उसके बाद जगमोहन ने कॉफी बनाई। देवराज चौहान अपना प्याला लेकर बेडरूम में चला गया था और डोबू जाति के चौकोर पत्तियों वाले हथियार को फिर से ध्यानपूर्वक देखने लगा था।

सोहनलाल ने कॉफी का घूंट भरने के बाद कहा।

“तुम्हारा क्या ख्याल है कल वो लड़की बच गई होगी या नहीं?”

“कह नहीं सकता।” जगमोहन को धरा का चेहरा याद आ गया।

“जैसे हथियारों से तुम पर वार किया गया, उसे देखकर तो महसूस होता है कि उन्होंने पीछा नहीं छोड़ा होगा।”

“क्या पता। मुझे तो पीछे आता कोई दिखा नहीं। डोबू जाति के लोग रहस्यमय बनकर हमारे सामने आ रहे हैं। वो...।”

“और बबूसा?”

“वो भी।” जगमोहन ने सिर हिलाया –“अपने बारे में वो कहता है कि वो किसी सदूर ग्रह का है। उसका जन्म वहीं हुआ, परंतु जब वो कुछ ही दिन का था कि पोपा उसे डोबू जाति में छोड़ गया था।”

“पोपा क्या?”

“वो लोग अंतरिक्ष यान को पोपा कहते हैं।”

“समझा।” सोहनलाल सोच भरे स्वर में बोला –“मैंने बबूसा को अपने सामने बैठे देखा है। उससे बातें कीं। वो हम जैसा ही है। परंतु फिर भी उसमें मुझे कुछ खास लगा। जैसे कि वो खतरनाक लगा। लड़ने-झगड़ने और न डरने वाला लगा। उसके चेहरे पर मैंने ऐसे भावों को मौजूद देखा जैसे तपती आग से बाहर निकला हो। यकीनन उसमें कुछ खास है।”

“कैसा खास?”

“कह नहीं सकता। बयान नहीं कर सकता। समझा नहीं सकता। परंतु बबूसा में मैंने कुछ खास एहसास पाया था। एक ही निगाह में उसे देखते ही मुझे महसूस हुआ कि इस पर काबू नहीं पाया जा सकता। तभी तो मैं वहां से खिसक आया था।”

“उसकी बातों पर भरोसा नहीं होता।” जगमोहन ने कहा।

“पर मुझे वो काफी हद तक सच्चा लगता है।”

“कैसे कह सकते हो?”

“जब उसने मुझसे बात की तो मैंने उसकी बातों में बनावट नहीं पाई। वो गम्भीर था और यकीन से अपनी बात कह रहा था। परंतु पहली बार में जो भी उसकी बातें सुनेगा, कभी भी यकीन नहीं करेगा। मैंने उसके चेहरे के हाव-भाव देखे हैं, कभी-कभी वो मुझे सच्चा लगता है।”

“वो लड़की धरा क्यों उसके साथ है?” जगमोहन सोच-भरे स्वर में बोला।

“रात देवराज चौहान ने बबूसा से बात करके जो बताया और धरा के साथ होते जो तुम्हारे साथ बीता, इन सब बातों को सुनकर तो ये ही लगता है कि वो खुद खतरे में है। डोबू जाति वाले उसे मार देना चाहते हैं, जबकि बबूसा उसे बचा रहा है उनसे।”

“मैंने पूछा है कि वो धरा नाम की लड़की, बबूसा के साथ क्यों है।”

“क्या पता बबूसा और धरा के बीच क्या चल रहा है। तुम कल धरा से अनजान थे कि वो बबूसा के साथ की लड़की है।”

“वो अपने बारे में कुछ बताती तो उसके बारे में जान पाता।”

“अब बबूसा देवराज चौहान से बात करेगा तो मुलाकात तय हो जाएगी। हम मिलकर उससे बात करेंगे। तब...” सोहनलाल अपनी बात पूरी न कर सका और मोबाइल बज उठा।

सोहनलाल ने फोन निकालकर नम्बर देखा, दूसरी तरफ नानिया थी।

“कहो नानिया।” सोहनलाल ने बात की।

“मूसा आया था अभी, साथ में लड़की भी थी।” नानिया ने उधर से कहा।

“मूसा?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

“वो ही जिसकी वजह से कल तुम घर से खिसक गए...।”

“बबूसा।”

“हां-हां, वो ही। अभी वो गया है। तुम्हें पूछ रहा है उसके साथ जो लड़की थी वो कह रही थी कि तुमसे फोन पर ही बात करा दूं।”

“करा देती।” सोहनलाल कह उठा।

“करा देती?” नानिया का तेज स्वर सोहनलाल के कानों में पड़ा –“कराती तो तुम कहते क्यों कराई।”

“अब वो बात नहीं है।” सोहनलाल ने गहरी सांस ली।

“क्या बात नहीं है?”

“देवराज चौहान बबूसा से मिलने को तैयार हो गया है।”

“तो मुझे क्या पता। या तो तुम पहले ही बता देते।”

“छोड़ो अब...।”

“नाश्ता कर लिया?” उधर से नानिया ने पूछा।

“हां।”

“क्या खाया?”

“पनीर के परांठे।”

“कुछ तो ख्याल करो अपना। इस उम्र में पनीर के परांठे हजम कैसे होंगे।”

“इस उम्र में क्या हुआ है मेरी उम्र को?” सोहनलाल सकपका उठा –“जगमोहन की उम्र का ही तो हूं।”

जगमोहन ने मुस्कराकर सोहनलाल को देखा।

“मैंने टिंडे बना रखे हैं और तुम परांठे खा रहे हो। घर आओ टिंडे खिलाती हूं।”

“तुम बार-बार टिंडों का नाम क्यों ले रही हो?”

“वो तुमने कहकर बनवाए थे कि टिंडे तुम्हें बहुत अच्छे लगते हैं वो तो तुम्हारे गले में डालकर रहूंगी।”

सोहनलाल ने गहरी सांस ली।

“घर आ जाओ अब, बैठे क्या कर रहे हो?”

“घर पर भी क्या करूंगा। शाम तक आ जाता हूं। कुछ लाना हो तो बता दो।”

उधर से नानिया ने फोन बंद कर दिया।

सोहनलाल ने फोन बंद करके जेब में रखते हुए कहा।

“बबूसा कुछ देर पहले धरा के साथ मेरे को पूछने नानिया के पास गया था।”

“इसका मतलब धरा रात को बच गई।” जगमोहन बोला –“बबूसा ने उसे ढूंढ निकाला।”

“बबूसा देवराज चौहान को तलाश करने की पूरी कोशिश कर रहा है। वो थकने वाला नहीं लगता।”

“अब तो मेरा मन भी बबूसा से मिलने का हो रहा है। देखूं तो सही कि वो अपनी बात को कैसे सामने रखता है।” जगमोहन कह उठा।

“उसके सामने सतर्क रहना। वो खतरनाक है।”

qqq