जिज्ञासा की ज्यादती के कारण मेरा और शगुन का बुरा हाल हुआ जा रहा था । विभा और जमील के बीच इतनी बातें हो जाने के बावजूद हमारी समझ में यह बात आकर नहीं दे रही थी कि जमील से आखिर वह क्या गलती हो गई थी जिसे विभा ने पकड़ लिया था और जिसकी वजह से उसके सामने जमील की यह हालत थी । मजे की बात यह थी कि अभी तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट के कागज पर विभा ने एक नजर तक डालने की जेहमत नहीं उठाई थी।
एकाएक विभा ने कहा---- “अब ये पूछो जमील अंजुम साहब कि मुझे पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने का ख्याल क्यों आया ?”
“क... क्यों?”
“क्योंकि पूरी वारदात सुनते ही, ढाई घंटे के अंदर इतना सबकुछ हो जाने की बात मुझे भी उसी तरह खटक गई थी जिस तरह तुम्हें खटकी मगर मैं तुम्हारी तरह उसे इसलिए नहीं गटक सकी क्योंकि मैं किसी नशे में नहीं थी। मुझे उसी समय, फौरन इल्म हो गया था कि रतन बिड़ला का मर्डर उस वक्त नहीं हुआ जिस वक्त बताया जा रहा है और ... यह मर्डर कब हुआ यह जानने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन करना जरूरी हो गया था।"
“काश मुझे भी आपकी तरह यह बात पोस्टमार्टम रिपोर्ट को देखने से पहले सूझ जाती । तब शायद ऐसा न होता।”
कुछ देर तक वह खामोशी के साथ जमील की तरफ देखती जाने क्या सोचती रही, फिर मेज पर पड़े कागज की तरफ इशारा करती हुई बोली----“क्या टाइम लिखा है इसमें ?”
“रात के ग्यारह और साढ़े ग्यारह के बीच ।”
“ यानी रतन बिड़ला चांदनी के ए.टी.एम. से पैसे निकलने से पहले ही मर चुका था । पैसे उसकी मौत के बाद निकाले गए ? ”
फिर छोटा-सा जवाब ---- “जी।"
“क्या समझे ?”
“जी ?” इस बार सवाल ।
“वह बताओ जो इस रिपोर्ट के मिलने के बाद समझे । ”
“म... मैं समझ गया था कि कत्ल पहले हुआ । उसमें चांदनी को फंसाने का षड़यंत्र बाद में रचा गया। लेकिन..
“लेकिन?”
“बस यही एक बात समझ में आई है। दिमाग में घुमड़े बाकी किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिल रहा है ।”
“कैसे सवाल ?”
“ अ... असल में चक्कर ही समझ में नहीं आ रहा है । न यह कि आखिर ये षड़यंत्र क्या था? कौन-कौन लोग शामिल थे इसमें? रतन बिड़ला की पत्नी भला कैसे शामिल हो सकती है?”
“उसके शामिल होने का सवाल कहां से उठ गया ?" यह सवाल पूछते वक्त विभा के होठों पर रहस्यमय मुस्कान थी।
“ अगर नहीं है तो दो बजे उसने थाने में आकर अपने पति के किडनेप की झूठी रिपोर्ट क्यों लिखवाई?”
“कैसे समझे कि उसने झूठी रिपोर्ट लिखवाई थी ?”
“जब वह ग्यारह और साढ़े ग्यारह के बीच ही कत्ल किया जा चुका था तो डेढ़ बजे उसके साथ कैसे हो सकता है ?”
“गुड ।” विभा की मुस्कान गहरी हो गई ।
"छंगा और भूरा ने झूठ-मूट इस बात को कबूल क्यों किया कि रतन की हत्या उन्होंने की है? उनकी खोली से वे रुपए कैसे पाए गए? कैसे वे लाश के साथ मेरे हाथ लगे ? उस वक्त वे लाश को कहां ले जा रहे थे? सच्चाई ये है कि मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है । "
“क्या तुम्हारी समझ में इतनी बात भी नहीं आ रही है कि केस जान-बूझकर हल कराया गया है ? असल में तुम्हारे सामने लाई गई सारी की सारी कहानी झूठी है । "
“पर ऐसा कैसे हो सकता है?” जमील का मानों दिमाग हिला पड़ा था----“छंगा और भूरा के बारे में तो एक बार को मान सकता हूं कि वे टुच्चे किस्म के बदमाश थे, किसी ने पैसा देकर खरीद लिया होगा। पैसे की खातिर वे किसी के कहने पर लाश के साथ मेरे हाथों पकड़े जाने के लिए तैयार हो गए होंगे। लेकिन अवंतिका...यानी रतन बिड़ला की वाईफ ने झूठ क्यों बोला ?”
“क्यों? वह क्यों नहीं हो सकती अपने पति की हत्यारी ? क्या तुम्हारी नजर में आज के जमाने में किसी के द्वारा अपना सुहाग उजाड़ देने की घटना अविश्वनीय है ?”
“नहीं।” उसने कहा---- “ होता तो है ऐसा । लेकिन..
“लेकिन?”
“वह ऐसा क्यों करेगी ?”
“इस ताले रूपी सवाल की चाबी अवंतिका के पास होनी चाहिए।
वही बताएगी कि उसने झूठी रिपोर्ट क्यों लिखवाई? आओ, उसी के पास चलते हैं।” कहने के साथ वह खड़ी हो गई ।
मैं खुश था ।
शगुन मुझसे ज्यादा खुश
उसकी खुशी तो चेहरे ही से छलकी पड़ रही थी।
मगर हम दोनों की खुशी के कारण थोड़े अलग थे।
शगुन जहां इसलिए खुश था क्योंकि उसकी फ्रेंड लगभग बेकसूर साबित हो चुकी थी, वहीं मैं इसलिए क्योंकि विभा ने पहले स्टेप पर ही सारे मामले की धज्जियां उड़ाकर रख दी थीं ।
मेरी आशाओं पर पूरी तरह खरी उतरी थी वह
उसने बिना कोई खास इन्वेस्टीगेशन किए, बल्कि मैं तो कहूंगा कि जरा भी इन्वेस्टीगेशन किए बगैर यह साबित कर दिया था कि कम से कम चांदनी हत्यारी नहीं थी ।
मगर ।
तभी मेरे दिमाग में ख्याल कौंधा ---- विभा ने यह भी तो कहा था कि चांदनी ने झूठ बोला । ऐसा झूठ जिसकी वजह से इस मामले ने में विभा की दिलचस्पी हुई।
कहां है वह झूठ ?
विभा ने हमारे कई बार पूछने पर भी बताया क्यों नहीं?
अगर चांदनी ने वाकई कोई झूठ बोला है तो पूरी तरह तो बेकसूर नहीं हुई वह किसी न किसी स्तर पर तो कसूरवार है ही।
किस स्तर पर ?
कितनी?
मुझे लगा - - - - मामला उतना सीधा नहीं है जितना नजर आ रहा है। इसमें कोई न कोई पेंच है और... पेंच भी गहरा है, इस बात का इल्म हमें 'बिड़ला -हाऊस' पहुंचते ही हो गया ।
विभा की ‘लिमोजीन’ में, हम वहीं के लिए रवाना हुए थे।
जमील अंजुम भी साथ था।
शोफर को गाड़ी पहले ही रोक देनी पड़ी क्योंकि बिड़ला हाऊस के बाहर काफी भीड़ जमा थी ।
हममें से किसी ने गाड़ी से बाहर निकलने की कोशिश नहीं की। “यहां इतनी भीड़ क्यों है?” शगुन के लहजे में शंका थी । विभा ने कहा----“मेरे ख्याल से अवंतिका दुनिया में नहीं रही।" हमें इतना तेज झटका लगा जैसे तीनों के जिस्म से एक साथ
बिजली के नंगे तार छुआ दिए गए हों । बौखलाकर विभा के चेहरे की तरफ देखा । वह बिल्कुल सपाट था । “त... तुम ऐसा कैसे कह सकती हो ?” मैंने हड़बड़ाकर पूछा ।
“एक्सपीरिएंस के बूते पर ।” “पर मुझे तो लगा था कि अवंतिका ही हत्यारी है।” “वह कैसे ?” “तुम्हारी और जमील की बात ही ऐसे 'नोट' पर खत्म हुई थी ।
बल्कि तुमने कहा था कि अवंतिका अपने सुहाग की हत्यारी क्यों नहीं हो सकती? उसी ने चांदनी को क्यों नहीं फंसाया हो सकता?"
“ हालांकि दिमाग काफी तेज चलने लगा है लेकिन तुममें कमी ये है वेद कि फौरन ही कूदकर नतीजे पर पहुंच जाया करते हो । शब्दों पर ध्यान दिया करो। मैंने अवंतिका को हत्यारी नहीं कहा, उसके हत्यारा होने की संभावना व्यक्त की थी। वह भी जमील को यह समझाने के लिए कि अवंतिका को केवल इसलिए शक के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता क्योंकि वह रतन बिड़ला की पत्नी थी । हिंदुस्तानी पत्नियां भी अब जमकर मांग से सिंदूर खुरचने लगी हैं।”
“लेकिन अवंतिका की हत्या ?”
“अगर उसकी हत्या हुई है तो यह तय है कि वह कोई ऐसी बात जानती थी जो हमें हत्यारे तक पहुंचा सकती थी।" कहने के बीच ही वह अपने मोबाइल पर कोई नंबर रिंग कर चुकी थी ।
हममें से किसी के मुंह से बोल न फूट सका। जबकि अगले ही पल उसने मोबाइल पर बातें करनी शुरू कर दी थीं----“कमीश्नर साहब, विभा जिंदल बोल रही हूं।” “हां बहूरानी, कहिए।” स्पीकर ऑन होने की वजह से दूसरी तरफ की आवाज भी पूरी गाड़ी में गूंजी | " इस वक्त बिड़ला - हाऊस के बाहर हूं।"
“ओह! आप वहां पहुंच गईं !” बहुत ही सम्मानपूर्वक बात की जा रही थी ----“तब तो आपको वहां घटी दुर्घटना के बारे में पता लग ही गया होगा। हम आपको फोन करने के बारे में सोच ही रहे थे ।”
“वजह?”
“क्या आपको नहीं मालूम ?'
“यहां बहुत भीड़ है। हमारी गाड़ी बिड़ला - हाऊस तक नहीं पहुंच सकती। लेकिन यहां हुआ क्या है ? "
हैरतभरे लहजे में कहा गया ---- “बहुत ही आश्चर्य की बात है बहूरानी कि आप जिसके मर्डर की जांच-पड़ताल करने दिल्ली आई हैं उसकी पत्नी भी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाई गई है।"
हम अवाक् ।
विभा का गैस सेंट- परसेंट खरा उतरा था।
थोड़ी देर खामोश रहने के बाद विभा ने कहा ---- “रहस्यमय परिस्थिति में मृत पाई जाने से क्या मतलब है? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि उसका मर्डर कर दिया गया है ?”
“सबसे अजीब बात तो यही है बहूरानी कि अभी तक यह भी फैसला नहीं हो सका है कि वह मर्डर है या स्वाभाविक मौत ?”
“मतलब?”
“हमने एक बहुत काबिल अफसर को वहां भेजा है। शायद वह लाश का निरीक्षण करने के बाद किसी नतीजे पर पहुंच सके। उसकी रिपोर्ट का इंतजार है । "
“मैं बिड़ला- हाऊस के अंदर जाना चाहती हूं ।”
“वह वहां पहुंच चुका है। नाम ---- गोपाल मराठा । इसी साल के बेच से निकला युवा ए. सी. पी. है। हम उससे कहते हैं । वह आपके बिड़ला-हाऊस के अंदर पहुंचने का इंतजाम कर देगा ।"
“संक्षेप में मेरे बारे में बता भी दीजिएगा ।"
“ यह भी कोई कहने की बात है बहूरानी, बस पांच मिनट इंतजार करें।" कहकर फोन काट दिया गया ।
अब मेरी और शगुन की समझ में आया कि दिल्ली पहुंचने के बाद हमें होटल के कमरे में छोड़कर विभा तीन घंटे के लिए कहां गायब हो गई थी। उस वक्त हमने काफी पूछा था कि कहां गई थी लेकिन उसने नहीं बताया । परंतु अब... इन बातों से जाहिर था कि उस दरम्यान वह पुलिस कमीश्नर से मिली थी ।
तभी तो जमील अंजुम को कमीश्नर की धमकी दे सकी। हमेशा की तरह वह बहुत व्यवस्थित तरीके से काम कर रही थी । जिस तरह उसने कमीश्नर से बातें की थीं और जितना सम्मान कमीश्नर ने उसे दिया था उसे महसूस करके जमील अंजुम के चेहरे पर बड़े ही अजीब भाव थे । वह शायद यह सोच रहा था कि अगर थाने में उसने विभा द्वारा कमीश्नर को फोन मिलाने वाली बात को 'भैरवी' समझा होता तो कितनी तगड़ी चोट खाई होती!
कमीश्नर ने पांच मिनट इंतजार करने के लिए कहा था लेकिन मुश्किल से दो मिनट बाद ही उन बातों का असर नजर आया । साइरन बजाती एक पुलिस - जीप हमारी गाड़ी के सामने आकर खड़ी हो गई। भीड़ ने उसे 'काई' की तरह फटकर रास्ता दिया था । एक लंबा राऊंड काटकर जीप ने यू-टर्न लिया । उसके बाद जीप के ड्राइवर की बगल में बैठे इंस्पेक्टर रेंक के पुलिसिए ने विभा के शोफर को अपने पीछे आने का इशारा किया। इस तरह, भीड़ के बीच से गुजरती लिमोजीन बिड़ला - हाऊस का आयरन गेट पार करके ड्राइव-वे पर जाकर रुकी। वहां पहले ही से पुलिस की अनेक गाड़ियां खड़ी थीं। हम गाड़ी से बाहर निकले ।
विभा का स्वागत वहां मौजूद एक ऐसे नौजवान ने किया जिसकी लंबाई किसी भी तरह छः फुट से कम नहीं थी ।
रंग गुलाब की पत्ती की मानिंद गुलाबी था उसका ।
जिस्म इस कदर गठा हुआ जिसे देखने मात्र से पता लगता था कि वह अभी तक भी नियमित जिम ज्वाइन किए हुए है।
गोल चेहरा, चौड़े और बलिष्ट कंधे ।
पेट अंदर, सीना बाहर, जिस्म तना हुआ ।
जिस्म पर मौजूद वर्दी बता रही थी कि वह ए. सी. पी. है।
उसने विभा की तरफ हाथ बढ़ते हुए कहा था ---- “मेरा नाम गोपाल मराठा है विभा जी, आपके बारे में अभी-अभी कमीश्नर साहब ने बताया । वैसे अखबारों में मैं भी पढ़ता रहा हूं । "
विभा ने खामोशी के साथ उससे हाथ मिलाया।
गोपाल मराठा ने हमारी तरफ इस तरह देखा था जैसे परिचय जानना चाहता हो । उस वक्त तो उसके चेहरे पर आश्चर्य ही उभर आया जब जमील अंजुम ने जोरदार सल्यूट मारा ।
यह आश्चर्य उसे शायद इंस्पेक्टर रेंक के पुलिसिए को विभा की गाड़ी से उतरता देखकर हुआ था ।
उसके मनोभाव भांप चुकी विभा ने हल्की-सी मुस्कान के साथ मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा ---- “ये मेरे दोस्त हैं, हो सकता है तुमने नाम सुना हो ---- प्रसिद्ध उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा और ये इनका बेटा है, शगुन शर्मा । ये भी उपन्यास लिखने लगा
“जी, मैंने उपन्यास तो नहीं पढ़े लेकिन इनके नाम सुने हैं।”
'इंस्पेक्टर जमील अंजुम मेरे साथ इसलिए हैं क्योंकि रतन बिड़ला मर्डरकेस इन्हीं के पास है और मैं उसकी इन्वेस्टीगेशन कर रही हूं।"
“उसमें इन्वेस्टीगेशन के लिए क्या रह गया है ?” गोपाल मराठा के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आए ।
“बहुत कुछ रह गया है, तभी तो यहां हूं मगर उस बारे में बाद में बात करेंगे। पहले यह बताओ, यहां क्या हुआ है ?"
“ अभी बस इतना पता है कि रतन की वाईफ मृत पाई गई है ।”
“क्या तुम्हें अब भी नहीं लग रहा कि रतन बिड़ला मर्डरकेस में इन्वेस्टीगेशन के लिए बहुत कुछ बचा है ?”
मराठा के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे, वह हैरत से विभा की तरफ देखता बोला---- “क्या आप लाश का निरीक्षण किए बगैर यह कहना चाहती हैं कि रतन की वाइफ का मर्डर किया गया है ?"
विभा ने सवाल के जवाब में सवाल किया ---- “क्या दस दिन के अंदर दोनों का खत्म हो जाना इस बात का सबूत नहीं है ?”
“ वाकई । दस दिन के अंदर पति-पत्नि, दोनों की मौत! है तो सोचने वाली बात । रतन की मौत तो यकीनन मर्डर था, लेकिन..
“लेकिन ?”
मराठा ने जमील अंजुम की तरफ देखते हुए कहा था ---- “मुझे मिली रिपोर्ट के मुताबिक वह सारा मामला तो खुल चुका है। हत्यारे अपनी खोली में जलकर मर चुके हैं। उन्हें फिरौती देने वाली... ।” इतना कहकर वह रुका, फिर एक लंबी सांस लेने के बाद बात को आगे बढ़ाता बोला ---- "अशोक की पत्नी पर केस चल रहा है।"
“क्या तुम अवंतिका की लाश को देख चुके हो?” जाने क्यों विभा ने एकाएक ही विषय चेंज कर दिया ।
“नहीं।”
“तो पहले उसी काम से निपट लें। कम से कम यह तो पता लगे कि वह हत्या है या संयोग से हुई स्वाभाविक मौत?”
“ मैं भी यही कहना चाहता था ---- आइए ।” कहने के साथ वह इमारत के मुख्यद्वार की तरफ बढ़ गया ।
विभा सहित हम सब उसके पीछे हो लिए |
रास्ते में वह बोला ---- “बुरा न मानें तो एक बात पूछूं?”
“पूछो।”
“मेरे सीमित ज्ञान के मुताबिक आमतौर पर आप किसी मर्डर केस की इन्वेस्टीगेशन करने के लिए जिंदलपुरम से बाहर नहीं निकलतीं। फिर इस केस में..
“मुझसे अन्याय बर्दाश्त नहीं होता ।”
“अन्याय?”
“रतन मर्डर केस के बारे में अखबार में पढ़ा ।” हकीकत छुपाए रखकर विभा कहती चली गई - - - - "मुझे लगा, केस गलत ढंग से खुला है। छंगा और भूरा ने रतन की हत्या नहीं की।”
“ये आप क्या कह रही हैं ?" हैरतअंगेज अंदाज में कहने के साथ उसने जमील अंजुम की तरफ देखा था ।
“सच्चाई यही है ।”
“पर अखबार पढ़कर आपको ऐसा क्यों लगा ?”
“क्योंकि उसमें लिखे मुताबिक इतना सबकुछ एक ही रात में, बल्कि ढाई घंटे के अंदर अंदर हो गया था। मुझे वह अस्वाभाविक लगा । लगा कि यह दास्तान मर्डर की नहीं बल्कि मर्डर के बाद लाश को ठिकाने लगाने और उसके इल्जाम में बेकूसरों को फंसाने की है । "
“कुछ प्वांइट्स तो रहे होंगे आपके दिमाग में?”
“कई प्वांइट्स थे ।”
“क्या मैं जान सकता हूं?"
“नंबर वन तो बता ही चुकी हूं ।” विभा जिंदल ने कहना शुरु किया ----“नंबर टू ---- जैसा कि छंगा-भूरा ने बताया कि रतन के सारे कपड़े उतारने और उसकी लाश पर 'क्यों' लिखने तथा उसे ऐसी जगह पर ठिकाने लगाने के लिए चांदनी ने कहा था जहां से लाश कभी बरामद न हो, मुझे जमा नहीं क्योंकि दोनों बातों में घोर विरोधाभास था। नंबर थ्री---- छंगा - भूरा के पास इतना टाइम ही नहीं था कि वे पूरी तसल्ली से रतन के मरने से पहले या मरने के बाद उसके कपड़े उतार सकें और लाश पर 'क्यों' लिख सकें। नंबर फोर----मुझे इस बात पर हंसी आई कि पुलिस ने लाश पर लिखे 'क्यों' का मतलब जाने बगैर केस को हल हुआ मान लिया ! एक पल के लिए भी यह सोचने की कोशिश नहीं की कि हत्यारे ने रतन के कपड़े क्यों उतारे? उसकी नंगी लाश पर 'क्यों' क्यों लिखा? जब तक सारे सवालों के जवाब न मिल जाएं तब तक केस हल हुआ कैसे माना जा सकता है ?”
गोपाल मराठा विभा की तरफ ऐसी नजरों से देख रहा था जैसे किसी अजूबे को देख रहा हो और अब हमारी समझ में भी आ रहा था कि विभा जिंदल यूं ही जिंदलपुरम से नहीं निकल आई है।
“इन वजहों से मुझे लगा कि कत्ल छंगा- भूरा ने नहीं किया है बल्कि उनका काम केवल लाश को ठिकाने लगाना था ।” विभा कहती चली गई- -“ और मजे की बात ये कि जिसने भी उन्हें यह काम सौंपा वह यह नहीं चाहता था कि वे कामयाब हों । उसका असली मकसद उन्हें लाश के साथ पुलिस के चंगुल में फंसा देना था ।”
“य... ये आप क्या कह रही हैं ?” मराठा के चेहरे पर हैरत थी।
“ये सारी बातें मुझे अखबार में इस केस की स्टोरी पढ़ते ही सूझ गई थीं।" कहने के साथ महामाया ने अर्थपूर्ण अंदाज में मेरी तरफ देखा था ---- “सो, अपनी शंका का निवारण करने जिंदलपुरम से बाहर आ गई । तुम्हारे कमीश्नर साहब से ये सब बातें करने के बाद इंस्पेक्टर जमील अंजुम के थाने जा पहुंची । ”
“क्या नतीजा निकला?” पूछते वक्त वह जरूरत से ज्यादा उत्सुक नजर आ रहा था ---- “क्या आपकी शंका सही थी ? ”
"हंडरेट परसेंट ।”
“क... क्या ?” गोपाल मराठा हकला गया । ठिठककर उसने इस तरह विभा की तरफ देखा जैसे मिश्र के पिरामिडों की तरफ देख रहा हो, फिर सवालिया नजरों से जमील अंजुम की तरफ ।
जमील को काटो तो खून नहीं । ।
उसके बाद विभा ने गोपाल मराठा को संक्षेप में सबकुछ बता दिया। बताने के बाद कहा-- -“अति उत्साह में लोगों से अक्सर ऐसी गलतियां हो जाती हैं। जमील का गुनाह माफी के लायक है है क्योंकि जानबूझकर कुछ नहीं किया इसने । केस खोलने के जोश में हो गया | जब हुआ, तब खुद ही हत्यारे के षड़यंत्र का शिकार । था।" -
“नहीं विभा जी । इतना लापरवाह इंस्पेक्टर मेरी टीम में नहीं रह सकता ।" मराठा ने जमील अंजुम की तरफ ऐसी नजरों से देखते हुए कहा था जैसे उसे कच्चा चबा जाने का इरादा रखता हो-- -“तुम्हें इसी वक्त लाइन हाजिर किया जाता है।”
“स... सर ।" जमील अंजुम घिघियाया।
“शुक्र मनाओ कि सिर्फ लाइन भेजे जा रहे हो ।” कहते वक्त गोपाल मराठा का चेहरा इस कदर तमतमा रहा था जैसे जिस्म का सारा खून उसी पर इकट्ठा हो गया हो ---- “मुअत्तिल नहीं किए जा रहे । तुम्हारी वजह से एक बेगुनाह को सजा हो जाती । हमेशा के लिए कलंक लग जाता उस पर । "
“म... मैंने वह सब जानकर नहीं किया सर ।"
“जानकर करते तो यह वर्दी रह जाती तुम्हारे जिस्म पर!” दांत भींचकर कहने के साथ उसने जमील अंजुम का गिरेवान पकड़ा और इतनी जोर से विपरीत दिशा में धक्का दिया कि वह कई कदमों तक लड़खड़ाता चला गया, बल्कि अगर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि यदि पीछे खड़े पुलिसवाले संभाल न लेते तो गिर ही पड़ता।
गोपाल मराठा जनूनी अवस्था में चीखे चला जा रहा था ---- "दूर हो जाओ मेरी नजरों के सामने से वरना गोली मार दूंगा । "
उस वक्त मुझ सहित सबने यही समझा था कि उसका रोष अपने इंस्पेक्टर की लापरवाही के कारण है ।
असली वजह तो बाद में पता लगी ।
वह खूबसूरत नक्काशी वाले, किंग साइज के शानदार बैड पर आराम से लेटी प्रतीत हो रही थी ।
चित्त अवस्था में, आंखें बंद ।
ऐसी मुद्रा में कि एक नजर में देखने पर तो कोई यह भी नहीं कह सकता था कि वह मर चुकी है ।
गहरी निद्रा में लग रही थी वह ।
चेहरे पर हल्की-सी पीड़ा का भाव था ।
सिर के नीचे तकिया ।
चेहरे और सिर के अलावा सारा जिस्म एक गुलाबी रंग के ऐसे कंबल से ढका हुआ था जिस पर काले रंग की लोमड़ी बनी थी ।
कंबल बहुत सलीके से ढका हुआ था ।
पुलिस फोटोग्राफर कमरे के एक कोने में इतने आराम से खड़ा था जैसे अपने हिस्से का काम निपटा चुका हो ।
पोस्टमार्टम विभाग वाले शायद अभी पहुंचे नहीं थे।
“ सबसे ज्यादा दिक्कत की बात तो ये है सर कि मेरी समझ में यह आकर नहीं दे रहा है कि ये मरी कैसे ?” बैडरूम में पहले ही से मौजूद एक इंस्पेक्टर ने गोपाल मराठा से कहा था ।
“वाकई, एक नजर में तो यह सोई हुई ही लग रही है।” मराठा ने विभा की तरफ देखते हुए कहा ---- “आंखें, होंठ... सब बंद हैं सिर्फ निस्तेज चेहरा बता रहा है कि अब इसमें कुछ नहीं है ।”
“ये कंबल किसने उढ़ाया है इसे ?” मैंने सवाल उठाया ।
“ये क्या सवाल हुआ?” बैडरूम में मौजूद एक ऐसे अधेड़ शख्स ने मेरी तरफ अजीब नजरों से देखते हुए कहा, जिसके चेहरे से रईसी टपक रही थी---- “कंबल इसी का है। खुद ओढ़ा होगा ।”
“आप ?” मैंने उसकी तरफ सवालिया नजरों से देखा ।
इससे पहले कि वह कुछ कहता, विभा बोली- --- “वेद, कुछ बातें बगैर किसी के बताए भी समझ जाया करो । ये इस घर के मुखिया हैं । अवंतिका के ससुर | मिस्टर गिरजा प्रसाद बिड़ला ।”
“हमारे बगैर बताए आपको कैसे मालूम ?” उसने यह सीधा सवाल विभा से किया था ।
“परिचय आपकी उम्र और इस कमरे में खड़े होने के आपके अधिकारपूर्ण अंदाज ने दिया । नाम बिड़ला -हाऊस के आयरन गेट पर लगी ब्रास की नेमप्लेट पहले ही बता चुकी थी ।”
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