रघुनाथ के दाह-संस्कार की तैयारियां चल रही थीं।

सारा शहर मानो उसकी कोठी पर उमड़ पड़ा—रैना को होश आ चुका था—छाती पीटती हुई वह दहाड़ें मार-मारकर रो रही थी—रोने के साथ ही विजय को विभिन्न किस्म की गालियां भी देती जा रही थी वह—उसके पास बैठी ढेर सारी औरतें उसे सांत्वना देने के स्थान पर स्वयं ही रो रही थीं।
उन्हीं में एक विजय की मां थी—ठाकुर साहब की धर्मपत्नी। विजय की सगी बहन कुसुम भी थी—उसे तार से तुरन्त ससुराल से बुलाया गया था—उन दोनों की अवस्था भी रैना जैसी ही थी—छाती पीटती हुई वे विजय को कोस रही थीं।
अर्थी तैयार करने वालों में से एक ठाकुर साहब थे।
बुरी तरह रो रहे थे—अर्थी तैयार करते वक्त न सिर्फ हाथ ही बल्कि उनका सारा शरीर कांप रहा था—कुछ लोग रघुनाथ के शव को अन्तिम स्नान करा रहे थे।
एक कोने में विकास पत्थर की शिला के समान खड़ा था।
दीवारों में सिर पटक-पटककर मोन्टो ने खुद को लहूलुहान कर लिया था—उसकी दीवानगी—उसका जुनून और विलाप देखकर देखने वालों के मुंह से चीत्कारें निकल गई थीं—दिल दहल उठे थे।
अंत में विकास ने ही सम्भाला था उसे।
उस वक्त कोठी के चारों ओर रूदन-ही-रूदन गूंज गया, जब रघुनाथ को अर्थी पर लिटाया गया—चिरनिद्रा में लीन था वह—चेहरे पर अजीब-सी पीड़ा के भाव।
रोते-बिलखते ठाकुर साहब ने उस पर तिरंगा ढका।
फिर—चार कंधों ने अर्थी उठाई—उनमें एक कन्धा विकास का भी था—'राम नाम सत्य है' का गमगीन स्वर मानव-समूह में गूंज उठा—लोग रोते-बिलखते रह गए।
एक विशाल जन-समूह श्मशान की ओर चल दिया।
उस तरफ, जो कि सड़कों पर घूम रहे प्रत्येक हाड़-मांस के पुतले की अंतिम मंजिल है—रघुनाथ की उस अन्तिम यात्रा में गृहमंत्री और प्रधानमंत्री तक आए थे।
श्मशान में चिता सज गई।
सुपर रघुनाथ के नश्वर शरीर को मोटी-मोटी लकड़ियों की सेज पर लिटा दिया गया—पंडित उसकी आत्मा की शांति हेतु मंत्रों का उच्चारण करने लगा।
फिर—विकास को पूछा गया।
सिरे पर से जल रही लकड़ी उसके हाथ में देकर चिता में अग्नि प्रज्जवलित करने के लिए कहा गया। आगे बढ़कर जब विकास ने ऐसा किया तो उसके जबड़े भिंच गए।
आंखों से जलते हुए दो आंसू टपके।
कुछ ही देर बाद चिता आग की लपटों में घिर गई—लकड़ियों के साथ वह भी जलने लगा, जो विजय की झकझियां सुनकर बोर हो जाया करता था—सुपरिंटेंडेण्ट जैसे उच्च पद पर आसीन होने के बावजूद भी जो विजय की बकवास सुना और सहन किया करता था।
कपाल-क्रिया का वक्त आ पहुंचा।
जब विकास के हाथ में लाठी थी और लक्ष्य के रूप में था उसके पिता का सिर—तब विकास को यूं लगा कि जैसे वह सिर उसके पिता का नहीं, बल्कि विजय का था।
उत्तेजना में झुंझलाकर उसने पूरी ताकत से लाठी मारी।
सिर खील-खील होकर बिखर गया।
सब कुछ आग में जलकर भस्म हो गया—लकड़ियों की राख में रघुनाथ की राख मिल गई—लकड़ियों के सुलगते हुए छोटे-छोटे टुकड़ों के बीच हड्डियां भी पड़ी थीं।
एक लाठी से उसी राख को कुरेदते हुए विकास ने एक बार फिर अपनी कसम दोहराई।
अब विकास ने मोन्टो से सब कुछ जानने के लिए प्रश्न किया तो...।
मोन्टो ने डायरी पर लिखा—"मुझे इससे ज्यादा कुछ मालूम नहीं है कि सुबह अचानक ही रैना मां मेरे पास आई और सारे कपड़े उतारने का आदेश दिया—उनका आदेश मानते हुए मैंने बहुत पूछा कि यह सब क्यों किया जा रहा हैं, परन्तु रैना मां बाद में बताएंगी—बस, यह कहने के बाद रैना मां ने मुझे स्टोर में बन्द कर दिया और कहा कि मैं तब तक वहां से बाहर निकलने की कोशिश न करूं जब तक कि स्वयं न निकालें—जब उन्होंने निकाला तो रघुनाथ अंकल की मृत्यु हो चुकी थी—ऐस वातावरण ही न मिल सका कि मैं रैना मां से कोई सवाल कर सकता।"
पढ़ने के बाद कई क्षण तक विकास जाने किस सोच में डूबा रहा।
एकाएक वह उठा और भीतरी कमरे की तरफ बढ़ा—मोन्टो उसके पीछे था।
रैना अब भी अपने कमरे में बैठी रो रही थी—उसके पास उस वक्त सिर्फ विजय की मां और कुसुम ही थीं—वहां पहुंचते ही विकास ने उन दोनों से थोड़ी देर के लिए बाहर निकल जाने और रैना से अकेले में कुछ बातें करने की इच्छा जाहिर की—वे बाहर चली गईं।
"दरवाजा अन्दर से बन्द कर दो, मोन्टो।"
मोन्टो ने तुरन्त आदेश का पालन किया, जबकि विकास ने रैना को पुकारा—"मां!"
वह कुछ न बोली—रोती रही, सिसकती रही।
"पिता की मौत का बदला लेने के लिए मुझे तुमसे चन्द सवालों के जवाब चाहिएं, मां।"
रैना ने अपना चेहरा ऊपर उठाया—उसे देखकर विकास के दिल में हाहाकार-सा मच गया—बिल्कुल बुझा हुआ निस्तेज और आंसुओं में डूबा सफेद चेहरा—जहां बिंदिया हुआ करती थी, वहां धब्बा—मांग में पिछले दिन लगाए गए सिन्दूर के सिसकते कण।
सूती सफेद धोती पहने थी वह।
जिन कलाइयां में उसने कल तक चूड़ियां खनखनाते देखी थीं, उन्हें सूनी देखकर विकास के मन में एक हूक-सी उठी—अपनी विधवा मां को वह देखता ही रह गया—कुछ बोल नहीं सका, जब कि रैना ने पूछा—"क्या पूछना चाहता है?"
"वह सब कुछ जो हुआ है, यानी डैडी क्या सोचकर क्या कर रहे थे?"
"तोताराम दम्पत्ति हत्याकांड हमारे लिए मनहूस साबित हुआ है।"
विकास चौंक पड़ा—"तोताराम दम्पत्ति हत्याकांड से इस सबका क्या मतलब?"
"उसी हत्याकांड की वजह से तो आज हमें यह दिन देखना पड़ा है—न वह होता—न तेरे डैडी मदद के लिए विजय के पास जाते—न वह कमीना हमारे सामने उन्हें इतनी ऊटपटांग बातें कहकर उनके जमीर को ललकारता हुआ उन्हें नीचा दिखाता और न ही जेहन में कुछ कर गुजरने की बात घुसती।"
"मैं समझा नहीं।"
"तुम्हें याद होगा कि उस हत्याकांड के सम्बन्ध में विजय ने उन्हें कितना लताड़ा था—कहा तथा कि उन्होंने आज तक स्वयं एक केस भी हल नहीं किया है—वे एस.पी. के पद के लायक ही नहीं हैं—विजय से वे हम सबके सामने अपना अपमान सहन न कर सके—तुम्हें यह भी याद होगा कि उस वक्त वे गुस्से में उठकर चले गए थे।"
"हां, याद है।"
"उसके अगले ही दिन अखबार के इकबाल वाला विज्ञापन पढ़कर वे चौंक पड़े—उन्होंने मुझे दिखाया—तुमसे होती हुई बात विजय तक पहुंच गई—हम सब दिलबहार होटल में तबस्सुम और अहमद से मिलने गए—वहां जो बातें हुईं—उनसे हमें भी इस सम्भावना पर गौर करने के लिए विवश हो जाना पड़ा कि कहीं वे सचमुच ही तो इकबाल नहीं हैं—परन्तु वे अच्छी तरह जानते थे कि वे इकबाल नहीं, रघुनाथ ही हैं—वे ऑफिस चले गए, किन्तु उनका दिमाग हम सबसे ज्यादा परेशान रहा—उनकी समझ में नहीं आकर दे रहा था कि आखिर तबस्सुम-अहमद और इकबाल का चक्कर क्या है? उनके दिमाग में यह विचार आया कि हो न हो, तबस्सुम और अहमद कोई षड्यंत्रकारी है, जो उन्हें किसी षड़्यंत्र में उलझाना चाहते हैं—मगर आखिर वह षड़्यंत्र क्या है? इसी प्रश्न का जवाब उनके दिमाग में स्वयं ही कुछ कर दिखाने की इच्छा प्रबल हो गई थी—उन्हें मालूम ही था कि विजय भी इस केस में उलझ चुका है अतः उन्होंने यह निश्चय कर लिया है कि इस बार वे इस केस को विजय से पहले हल करके दिखाएंगे—दिलबहार और अहमद के बीच फोन पर होने वाली वार्ता सुन ली—उन बातों का निचोड़ यह निकलता था कि तबस्सुम और अहमद उन्हें सचमुच इकबाल ही समझते हैं और वे किसी मास्टर नामक ऐसे अपराधी के चंगुल में फंसे पड़े हुए हैं, जो कि सारी दुनिया को तबाह करने वाली किसी स्कीम पर काम कर रहा है—उनकी बातों से ही उन्हें यह भी पता लगा कि मास्टर को उनकी (रघुनाथ) जरूरत है, किन्तु उस रघुनाथ की, जिसे अपनी बारह साल की उम्र से पहले का जीवन याद हो। उन्होंने मास्टर के लिए उन्हें सबसे आसान तरकीब अपनी याददाश्त वापस लौट आने का नाटक करना लगी—अतः जब वे बेहोश तबस्सुम को जीप में डालकर ला रहे थे, तभी उन्होंने अपनी स्कीम कार्यान्वित कर दी।"
"डैडी ने क्या किया?"
"वे यह ताड़ चुके थे कि कोई उनका पीछा कर रहा है—अपने दिमाग से वे यही सोच सके कि जरूर यह मास्टर या उसका ही कोई आदमी होगा, अतः उन्होंने अपने दिमाग में पनपी योजना को कार्यान्वित करने की शुरूआत यूं की कि—जीप की रफ्तार बढ़ाते ही चले गए—वे निश्चय कर चुके थे कि उन्हें एक जबरदस्त एक्सीडेण्ट करना है—जीप को पूरी रफ्तार पर करके उन्होंने तबस्सुम को जीप से बाहर फेंक दिया—कार से पीछा करने वाले, जो कि वास्तव में विजय और अशरफ थे, अंधेरे के कारण तबस्सुम को जीप से बाहर फेंका जाता न देख सके—फिर उन्होंने जीप का रुख एक पेड़ की तरफ कर दिया और एक्सीडेण्ट होने से एक पल पहले ही जीप से कूद पड़े।"
"ओह!"
"विजय घायलावस्था में उन्हें यहां ले आया—मैं घबरा गई—वे सचमुच बेहोश हो गए थे—डॉक्टर के प्रयास के बाद जब वे सचमुच होश में आए तो स्वयं को अपने ही घर में देखकर वे मन-ही-मन चौंक पड़े—फिर भी जो निश्चय उन्होंने कर लिया था, उस पर कायम रहे यानि होश में आते ही उन्होंने अपनी याददाश्त लौट आने का बहुत ही खूबसूरत और सफल नाटक किया—मैं, विजय और डॉ. प्रभाकर चकित और विजय कुछ देर में वापस आने के लिए कहकर चला गया—जब ड़ॉक्टर प्रभाकर भी चले गए तो उन्होंने कमरे के अन्दर से मुझे आवाज दी—जब उन्होंने मुझे यह बताया कि वे रघुनाथ ही हैं और उनकी कोई याददाश्त नहीं लौटी है तो मैं चकित रह गई—पूरा विश्वास आने पर मैंने दरावाजा खोला—वे खुश थे—बेहद खुश—कई बार ठहाका लगा-लगाकर हंसे थे वे।"
"क्यों?"
"अपनी सफलता पर।"
"कैसी सफलता?"
"उन्हें इस बात की सर्वाधिक खुशी थी कि विजय उनके चक्कर में फंस गया है—अपने-आपको बहुत बड़ा धुरन्धर समझने वाला विजय भी यह नहीं समझ सका है कि उनकी याददाश्त नहीं लौटी है, बल्कि वह नाटक कर रहे हैं, वे हंस-हंसकर कह रहे थे कि आज उन्होंने विजय को पहली शिकस्त दे दी है।"
"ओह—फिर क्या हुआ?"
"मैं घबरा गई थी, घबराकर मैंने पूछा कि यह सब नाटक वे क्यों कर रहे हैं—जवाब एक ही था—मास्टर तक पहुंचने और विजय से पहले ही इस केस को हल कर देने के लिए।
मैंने उन्हें समझाया—कहा कि वे ऐसा न करें—यह खेल भविष्य में बहुत खतरनाक भी साबित हो सकता है—वे नहीं माने—उनके दिमाग में विजय से पहले ही इस केस को हल करने की जिद बुरी तरह जड़ें पकड़ चुकी थी—उन्होंने मुझे अपनी कसम दे दी—जो कुछ वे कर रहे थे, वह मैं किसी को बता नहीं सकती थी—सारी स्कीम को गुप्त रखकर उन्होंने मुझसे मदद मांगी—कसम ने मुझे मजबूर कर दिया—फिर अशरफ—आशा—विजय—तबस्सुम और अहमद के आने तक वे पुनः पहले की तरह ही कमरे में बन्द हो गए थे—उनके लौटने पर वही नाटक जारी हो गया—कुछ देर बाद वहां ठाकुर चाचा भी पहुंच गए—सभी को पूरा विश्वास हो गया था कि वे इकबाल हैं और उनकी याददाश्त लौट आई है—मुजरिमों पर अपना विश्वास जमाने के लिए वे यहां से तबस्सुम और अहमद को लेकर भाग निकले।"
रैना सांस लेने के लिए रुकी।
मोन्टो और विकास ध्यान से सुन रहे थे।
रैना ने आगे कहा—"उसके बाद उन्होंने जितनी भी हरकतें कीं, उनके पीछे 'मास्टर' के दिमाग में यह बात बैठा देना ही मुख्य मकसद था कि वे सचमुच इकबाल बन चुके हैं—ताकि मास्टर जल्दी-से-जल्दी उन्हें अपने ठिकाने पर बुलाए—जैसे वे अच्छी तरह जानते थे कि अहमद की हत्या कम-से-कम विजय ने नहीं है, भले चाहे जिसने की हो, मगर विजय के खिलाफ भड़क उठने का नाटक करते हुए वे सीधे गृहमंत्री के पास पहुंच गए—अनाप-शनाप रिपोर्ट की—ठाकुर साहब टकराकर पद से इस्तीफा देना और अदालत में मुझसे तलाक की अर्जी देना आदि सभी नाटक था—उनका ख्याल था कि जब वे ये सब कुछ कर लेंगे तो 'मास्टर' उनकी याददाश्त लौटने की घटना पर यकीन कर लेगा— मगर तब तक उनकी मंशा पूरी न हुई तो वे मायूस हो उठे—अभी वे सोच रहे थे कि उन्होंने अपना अगला कदम क्या उठाना है कि तुम सम्राट होटल के कमरा नम्बर पचास में पहुंच गए—वहां तुमने तबस्सुम टॉर्चर किया। उन्हें लगा इस प्रकार तो उनका प्लान चौपाट हो जाना था, अतः उन्होंने तबस्सुम को तुमसे बचाया—फिर पुलिस को बुलाकर तुम्हें फंसाने वाला बयान दिया—यह सूचना उन्होंने मुझे एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से फोन पर दी थी—कहा था कि विकास की इस हरकत के कारण उन्हें और खूबसूरत नाटक करने का खूबसूरत मौका मिल गया हैं—मैंने पूछा क्या, तो वे बोले कि मैं इसी समय चिड़ियाघर से जाकर मोन्टो के बराबर की कद-काठी का एक बन्दर ले आऊँ—मैंने पूछा कि उसका क्या होगा—तो उन्होंने यह बताया कि कुछ देर बाद वे तबस्सुम के साथ यहां आएंगे और मुझ पर बरस पड़ेंगे—तब तक मैं मोन्टो को कहीं छुपा दूं और चिड़ियाघर से लाए बन्दर की शक्ल में बहुत ज्यादा फर्क नहीं होता है—मोन्टो के कपड़ों में वह मोन्टो ही नजर आएगा—यहां आकर उन्हें ऐसा नाटक करना था कि बन्दर उन पर हमला कर दे—और यहां उन्हें मोन्टो का कत्ल करके तबस्सुम के साथ भागना था।''
"क्यों?"
"मेरे पूछने पर उन्होंने यही बताया कि मोन्टो के कत्ल के बाद सारे राजनगर की पुलिस उन्हें पकड़ने के लिए कटिबद्ध हो जाएगी—मास्टर यह कभी नहीं चाहेगा कि वे पुलिस के चंगुल में फंसे यानि उस स्थिति में मास्टर उन्हें अपने अड्डे पर पुहंचना ही उनका मकसद था।"
"तो क्या मरने से पहले वे अपने मकसद में कामयाब हो गए थे?"
"इस बारे में मैं कुछ नहीं जानती।"
"क्यों?"
"क्योंकि उसके बाद किसी माध्यम से उनसे बातें ही न हो सकीं।"
"ओह!"
"यहां विजय आया—मोन्टो की लाश देखते ही वह पागल हो उठा—मैंने उसे बताया कि मोन्टो को वे मार गए हैं—सुनकर वह आपे से बाहर हो गया—कुछ ऐसी मुद्रा में और कुछ ऐसे संवाद बोलकर वह यहां से जाने लगा कि मैं डर गई—मेरे दिमाग में यह विचार उठा कि कहीं सचमुच गलतफहमी का शिकार होकर विजय उन्हें मार ही न डाले—यही सोचकर मैंने उसे सब कुछ बता देने का निश्चय किया, उसे रुकने के लिए कहा, मगर उस कमीने पर तो खून सवार हो चुका था—वह रुका ही नहीं—अनिष्ट की आशंका ने मुझे बुरी तरह डरा दिया था, इसीलिए मैं कार लेकर उसके पीछे दौड़ी—जब मैंने उसे पकड़ा तो चौराहे पर उनका खूनी युद्ध हो रहा था—वहां मैंने चीख-चीखकर उनसे कहा कि आखिर वो विजय को सब कुछ बता क्यों नहीं देते—उन्होंने भी मेरी एक न सुनी और उस कमीने....।"
कहने के बाद रैना फूट-फूटकर रो पड़ी।
कठोर चेहरे वाले विकास ने पूछा—"सुना है कि मरने से पहले डैडी ने आप पर भी गोली चलाई थी।"
"वे नाटक कर रहे थे।"
"ऐसा भी क्या नाटक हुआ कि वे आप ही को मार रहे थे।"
"यदि वे नाटक न कर रहे होते तो वहां क्या सचमुच ही हर बार उनका निशाना चूकता?"
विकास की आंखें सिकुड़ती चली गईं।
अगले दिन।
"बोलो—तुम्हें बोलना होगा, तबस्सुम।" ठाकुर साहब गुर्राए—"ये सब क्या चक्कर था—काल्पनिक इकबाल की कहानी किसने गढ़ी—वह कौन है, जिसके इशारे पर तुम और अहमद चचा नाच रहे थे?"
"हजार बार कह चुकी हूं कि मैं कुछ नहीं जानती।"
"और हम अच्छी तरह जानते हैं कि तुम सब कुछ जानती हो—अब तुम्हारी ये बकरे की तीन टांग वाली रट बिल्कुल नहीं चलेगी—तुम्हें कुछ बकना ही होगा।"
"मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप एक ऐसे व्यक्ति से क्या और कैसे बकवा लेंगे, जिसे कुछ मालूम ही नहीं है।"
ठाकुर साहब का चेहरा कठोर हो गया, बोले—"इसका मतलब तुम इस तरह जवाब नहीं दोगी—जिस चेयर पर तुम बैठी हो, उसे टॉर्चर चेयर कहते हैं—इस पर यदि पत्थर को भी बैठा दिया जाए तो उसे बोलना पड़ता है—हमें सख्ती से पेश आने के लिए मजबूर मत करो—यदि तुम्हें इलेक्ट्रिक शॉक दिए गए तो तुम उन्हें सह नहीं सकोगी और तब तुम्हें सब कुछ उगलना होगा।"
"जब मैं कुछ जानती ही नहीं हूं तो उगलूंगी क्या?"
तबस्सुम की बार-बार की इस एक ही रट ने ठाकुर साहब का पारा सातवें आसमान पर पहुंचा दिया—उन्होंने झपटकर बाएं हाथ से तबस्सुम के बाल पकड़े—उन्हें बुरी तरह झंझोड़ते हुए बोले—"इसका मतलब तुम लातों के भूत हो और बिना टार्चर हुए हमारे सवालों का जवाब नहीं दोगी।"
इससे पहले कि तबस्सुम अपना रटा-रटाया वाक्य दोहराए, टार्चर रूम के बन्द दरवाजे पर दस्तक हुई—ठाकुर साहब ने ऊंची आवाज में पूछा—"कौन है?"
"सर, मैं हूं शर्मा।"
"क्या बात है?"
"मिस्टर विकास आपसे मिलने आए हैं—उनका कहना है कि उन्हें इसी वक्त आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं—हमने कहा कि ठाकुर साहब व्यस्त हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि मेरा सन्देश पहुंचा दो।"
ठाकुर साहब ने एक क्षण कुछ सोचा।
फिर एक झटका-सा देने के साथ ही उसके बाल छोड़कर दरवाजे की तरफ बढ़ गए—दरवाजा खोला—सामने डी.एस.पी. शर्मा खड़ा था। ठाकुर साहब ने पूछा—"कहां है विकास?"
"वेटिंग रूम में।"
"दरवाजा बन्द कर दो।" कहकर ठाकुर साहब आगे बढ़ गए—गैलरी में दोनों तरफ सशस्त्र जवान मुस्तैदी के साथ खड़े थे—शर्मा ने टॉर्चर रूम का दरवाजा बन्द कर दिया।
उधर, वेटिंग हॉल में कदम रखते ही ठाकुर साहब की नजर विकास पर पड़ी—सात फुट लम्बे लड़के के चेहरे पर उस वक्त हर तरफ गम्भीरता छाई हुई थी—खून का टीका अभी तक उसके मस्तक पर मौजूद था—उन्हें देखते ही वह कुर्सी से उठ खड़ा हुआ—अपनी विशिष्ट कुर्सी की तरफ बढ़ते हुए ठाकुर साहब ने पूछा—"यहां कैसे आना हुआ, विकास?"
"सुना है कि चौराहे से भागने की कोशिश करती हुई तबस्सुम को पुलिस ने पकड़ लिया।"
"तुमने ठीक सुना है।"
"इस वक्त वह कहां है?"
"टॉर्चर रूम में।"
विकास ने पूछा—"क्या उसने कुछ बताया?"
"अभी तक नहीं—हम कोशिश कर रहे हैं।"
"क्या आप मुझे चांस देंगे?"
हल्के-से चौंककर ठाकुर साहब ने पूछा—"क...क्या मतलब?"
"मैं चाहता हूं कि आप मुझे सिर्फ तीस मिनट दें, दावा कर सकता हूं कि उससे सारे रहस्य उगलवा दूंगा—उसकी जुबान खुलवानी जितनी जरूरी आपके लिए है, उतनी ही मेरे लिए भी है।"
"क्या तुम उसे टॉर्चर करना चाहते हो?"
"यदि जरूरत पड़ी तो...।"
"म...मगर—।"
"आप फिक्र न करें।" विकास उनकी हिचक भी वजह समझता हुआ बोला—"उसे टॉर्चर करते समय मैं व्यक्तिगत स्तर पर भावुक नहीं होऊंगा—ऐसा कोई नहीं काम करूंगा जिससे पुलिस कस्टडी में उसकी मृत्यु हो जाए और उसकी लाश मरे हुए सांप की तरह पुलिस विभाग की गर्दन में पड़ जाए।"
एक पल ठहरकर ठाकुर साहब ने कहा—"ठीक है, तुम कोशिश कर सकते हो।"
"थैंक्यू ठाकुर नाना—और हां, ये मेरी रिक्वेस्ट है कि उस समय टॉर्चर रूम में मेरे और तबस्सुम के अलावा और कोई नहीं होगा—आप भी नहीं।"
"जैसी तुम्हारी मर्जी।"
दरवाजा अन्दर से बन्द करके जब विकास टॉर्चर चेयर की तरफ घूमा, तब उस पर कैद तबस्सुम उसी की तरफ देख रही थी—विकास ने अपनी सुर्ख आंखें उसके चेहरे पर टिका दीं—फिर धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा—जाने विकास के चेहरे पर वे कैसे भाव थे, जिन्हें देखकर टॉर्चर चेयर पर बैठी तबस्सुम का दिल बहुत जोर-जोर से धड़कने लगा—हलक सूख-सा गया—चेहरा पीला पड़ गया—उसकी आंखों के सामने वह दृश्य चकरा उठा, जबकि विकास ने उसकी गर्दन दबाई थी। उसके ठीक सामने बेहद नजदीक पहुंचकर वह बोला—"क्या तुम मुझे जानती हो?"
बड़ी मुश्किल से उसने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।
"कौन हूं मैं?"
तबस्सुम ने थूक निगला, बोली—"व...विकास।"
कड़ाक से तबस्सुम की नाक पर एक बहुत ही जबरदस्त घूंसा पड़ा—उसके कंठ से एक चीख उबल पड़ी—नाक से खून का फव्वारा उबल पड़ा—हालांकि वह बराबर चीख रही थी, किन्तु एक के बाद दूसरी चीख उसके कंठ से बाहर न निकल सकी—क्योंकि घूंसा मारने के तुरन्त बाद विकास ने झपटकर उसकी गर्दन दबोच ली थी।
वही फौलादी पकड़।
तबस्सुम छटपटा गई—विकास के पंजों का कसाव बढ़ता ही चला गया—तबस्सुम की सांसें रुकने लगीं—नसें उभरीं—आंखें उबलने-सी लगीं—विकास की तो पहले से ही उस पर दहशत सवार थी और जिस ढंग से आते ही उसने आक्रामक रुख अपनाया, उसने तो तबस्सुम के तिरपन ही कंपकंपा दिए।
दांत भींचे विकास गुर्रा रहा था—"होटल के उस कमरे में तो तुझे डैडी ने बचा लिया था, लेकिन यहां बचाने कोई नहीं आएगा—मैं ठाकुर साहब की तरह बहस नहीं किया करता—मेरे चंगुल में फंसा शिकार या तो बकता है या मर जाता है—इस वक्त खुद को मेरे सवालों का जवाब देकर तू खुद को बचा सकती है—या तो मेरे हाथ तेरी गर्दन से तब हटेंगे जब तू लाश में बदल चुकी होगी—या तब जबकि तू अपने माथे पर बल डाल लेगी, क्योंकि उन बलों को देखकर मैं ये समझ जाऊंगा कि तू मेरे सवालों का जवाब देने के लिए तैयार है—जब जिस क्षण इच्छा हो, बल डाल लेना वरना—।"
अपना वाक्य अधूरा ही छोड़कर वह गर्दन पर पकड़ सख्त करता चला गया।
तबस्सुम की जीभ बाहर को लटकने लगी।
विकास उसकी गर्दन पर अपने हाथों का कसाव बढ़ाता ही चला गया—उसे इन्तजार था उस क्षण का जबकि तबस्सुम के मस्तक पर बल पड़ जाएंगे, किन्तु वह क्षण नहीं आया, जबकि तबस्सुम का दम पूरी तरह घुटने लगा—हाथ पर ढीले पड़ने लगे—जीभ और आंखें लटक-सी गई थीं।
अचानक विकास ने उसकी गर्दन से हाथ हटा लिए।
वह 'धम्म' से टॉर्चर चेयर की पुश्तगाह से जा टिकी—आंखें बन्द—जिस्म ढील पड़ गया था—उसकी ऐसी अवस्था देखकर विकास घबरा-सा गया। उसने जल्दी-जल्दी तबस्सुम के गालों पर तमाचे मारे और बोला—''रैहाना...रेहाना—आंखें खोलो।''
तबस्सुम ने एक झटके से आंखें खोल दी।
अभी तक लम्बी-लम्बी सांसें ले रही थी वह—आंखों में भय का साम्राज्य था, किन्तु चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए—अपनी उखड़ी हुई सांस पर नियंत्रण पाकर वह बोली—''म...मेरा नाम तबस्सुम है।''
हल्की-सी मुस्कराहट के साथ विकास ने कहा—"तुम्हारा नाम रेहाना है।"
"न...नहीं।"
"मैं विकास नहीं रेहाना—ये मैं हूं।" इस बार विकास के मुंह से निकलने वाला स्वर बदल गया।
रेहाना उछल पड़ी—"ह...ह...।"
"नहीं।" वह जल्दी से बोला—"मेरा नाम मत लेना रेहाना।"
"त...तुम-डार्लिंग—तुम यहां?"
"हां—तुम्हें वचन दिया था न—पुलिस के चंगुल से निकाल ले जाने के लिए आया हूं मैं।"
"ओह!" गहन आश्चर्य में डूबी रेहाना ने पूछा—"म...मगर तुमने मेरी गर्दन—"
"माफ करना, डार्लिंग—विकास के रूप में इस टॉर्चर रूम में कदम रखते ही मैंने तुम्हारे चेहरे पर भय और आतंक के कुछ ऐसे भाव देखे, जैसे तुम विकास से बहुत डरी हुई हो—उसी क्षण मेरे दिमाग में यह बात आई कि इसका मतलब तो ये है कि यदि विकास सचमुच ही तुम्हें टॉर्चर करने आया होता तो तुम उस पर मेरा एक-एक रहस्य उगल देतीं—ऐसा होता या नहीं—इसी की जांच करने के लिए मुझे विकास बनकर यह कोशिश करनी पड़ी।"
उसे कातर दृष्टि से देखती हुई रेहाना कह उठी—"इसका मतलब मेरी परीक्षा ले रहे थे?"
"जिसमें तुम पास हो गईं।"
"यदि फेल हो जाती?"
"तब मुझे तुम्हें यहां से निकालने की कोई जरूरत शेष नहीं रह जाती—गला घोंटकर तुम्हें हमेशा के लिए इसी टॉर्चर चेयर पर खामोश करके निकल जाता।"
अब बातें ही बनाते रहोगे या मुझे इस मुसीबत से निकालोगे भी?"
"जरूर।" कहकर वह रेहाना को टॉर्चर चेयर से मुक्त करने लगा।
गुप्त भवन के सीक्रेट सर्विस कक्ष में इस वक्त ढेर सारा धुआं भरा हुआ था और वह धुआं किसी अन्य वस्तु के जलने का नहीं, बल्कि ब्लैक ब्वॉय द्वारा पिए गए अनगिनत सिगारों का था—मेज पर रखी ऐश-ट्रे का पेट ऊपर तक लबालब भरा हुआ था—ब्लैक ब्वॉय की उंगलियों के बीच इस वक्त भी एक सिगार सुलग रहा था—गहन चिन्ताओं में लीन वह अपनी कुर्सी पर अधलेटी-सी अवस्था में पड़ा था।
एकाएक मेज पर रखे फोन की घण्टी घनघना उठी।
ब्लैक ब्वॉय यह सोचकर एकदम चौंककर उठा कि शायद यह फोन विजय का हो, परन्तु रिसीवर कान से लगाते ही विकास का सपाट स्वर उभरा—"हैलो अंकल।"
"व...विकास?"
"गुरू या उनका कोई सन्देश आया?"
"नहीं।"
कठोर लहजा—"इस किस्म के झूठ बोलने से बहुत ज्यादा देर तक काम नहीं चलेगा, अंकल-जो हालात हैं, उनमें ऐसा हो ही नहीं सकता कि गुरू या उसका कोई सन्देश आप तक न पहुंचा हो।"
"उफ्फ!" ब्लैक ब्वॉय झुंझला उठा—"आखिर तुम यकीन क्यों नहीं करते, विकास?"
"यकीन करने का प्रश्न ही कहां है, अंकल।"
"मैं सच कह रहा हूं, विकास—मैं स्वयं परेशान हूं—पता नहीं, वे कहां गायब हो गए हैं—तभी से फोन पर सिर्फ इसलिए चिपका बैठा हूं कि शायद उनका फोन आ जाए—उससे भी ज्यादा हैरत की बात तो ये है कि अपने फोनों पर अशरफ, विक्रम, नाहर, परवेज और आशा भी नहीं मिल रहे हैं।"
"क्या मतलब?"
"मैंने इस इरादे से उन सभी को फोन किए कि उन्हीं को विजय की तलाश में लगाऊं, परन्तु मैं यह सोचकर हैरान हूं कि आखिर उनमे से कोई भी अपने फोन पर क्यों नहीं है?"
अचानक ही दूसरी तरफ से एक बड़ा ही विचित्र-सा कहकहा सुनाई दिया।
चौंके हुए ब्लैक ब्वॉय ने पूछा—"तुम क्यों हंस रहे हो?"
"अब उनमें से आपको कोई नहीं मिलेगा, चीफ।"
"क...क्या मतलब—क्यों?"
"क्योंकि वे सभी मेरी कैद में हैं।"
"त...तुम्हारी कैद में! म...मगर क्यों—तुमने उन्हें क्यों पकड़ रखा है?"
"मैं ये नहीं बताऊंगा चीफ कि मेरे पास वे कहां कैद हैं—हां, यह बताने के लिए फोन जरूर किया है कि यदि आज रात दस बजे तक विजय गुरू खुद मुझसे नहीं मिले तो ग्यारह बजे तक सीक्रेट सर्विस के सभी सदस्यों की लाशें राजनगर की विभिन्न सड़कों पर पड़ी होंगी।"
"य...यह तुम क्या कह रहे हो?" ब्लैक ब्वॉय के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए—"पागल हो गए हो क्या, विकास?"
"हां—सचमुच मैं पागल हो गया हूं चीफ, क्योंकि मैंने डैडी की लाश देखी है—चिता के साथ जलकर उन्हें राख होते हुए देखा है—यद्यपि आपके साथ भी यह सब कुछ होता तो शायद आप भी पागल हो जाते—आप जानते हैं कि मैं कभी खोखली धमकी नहीं दिया करता—मेरी चेतावनी विजय गुरू तक पहुंचा दो—आज रात ठीक दस बजे मैं उन्हें पुरानी शिकारगाह के खण्डहर में मिलूंगा—यदि आप मेरी चेतावनी उन तक पहुंचाने में नाकाम रहे अथवा वे खण्डहर में नहीं आए तो ग्यारह बजे आपको उन सबकी लाशें देखनी होंगी।
"म...मगर विकास—मुझे सचमुच पता नहीं है कि वे कहां हैं—मेरी बात तो—उफ्फ!" ब्लैक ब्वॉय थोड़ा झुंझला-सा उठा—कसमसाकर रह गया वह—दूसरी तरफ से उसकी पूरी बात सुने बिना ही सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया था—कुछ देर तक वह लाइन पर उभरने वाली किर्र-किर्र की आवाज सुनता रहा—पेशानी पर एक साथ ढेर सारे बल पड़ गए थे।
उसने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया।
अभी उसने सिगार में पहला ही कश लिया था कि घण्टी पुनः बज उठी—उसने झपटने के से अन्दाज में रिसीवर उठाया और भर्राए हुए स्वर में बोला—"पवन हीयर।"
"ये हम बोल रहे हैं, प्यारे।"
"स...सर, आप—मैं आप ही के लिए तो परेशान हूं—आप कहां से बोल रहे हैं?"
"इस बात को छोड़ो, प्यारे—काम की बात सुनो।"
"जी—कहिए।"
"हम तुमसे पहले सीक्रेट सर्विस के सभी सदस्यों से फोन पर सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश कर चुके हैं—मगर सब नदारद—लगता है कि सबके सब साले कुम्भकरणी नींद में अंटा गाफिल हैं।"
"क्या आपका उनसे कुछ काम है, सर?"
"हां प्यारे—उन सबको आदेश दो कि वे रात आठ बजे तक...।"
"लेकिन सर—वे सब तो इस वक्त विकास की कैद में हैं।"
"दिलजले की कैद में—क्यों?"
जवाब में ब्लैक ब्वॉय बिना किसी प्रकार का कौमा या विराम प्रयोग किए सब कुछ एक ही सांस में बताता चला गया—बात खत्म होने के बाद कुछ देर के लिए लाइन पर खामोशी छा गई—इस खामोशी को तोड़ते हुए ब्लैक ब्वॉय ने पूछा—"आप क्या सोचने लगे, सर?"
"कुछ नहीं, प्यारे—अपने दिलजले के बारे में ही सोच रहे थे।"
"क्या?"
"जो कुछ वह कर रहा है, उसे गलत भी तो नहीं ठहराया जा सकता—उसका पिता मरा है—दूध का वास्ता देकर मां ने हमारी लाश मांगी है—हम खुद ही स्वयं को उसका मुजरिम समझते हैं, प्यारे।"
"ल...लेकिन, सर—यह सब कुछ—इतना अजीब आखिर हो कैसे गया?"
"हम दिलजले को हमेशा समझाया करते थे कि उत्तेजना और क्रोध में पगलाया हुआ व्यक्ति हमेशा कोई अंट-शंट मामला ही करता है—यह नहीं जानते थे कि स्वयं हम ही कभी ऐसा कर डालेंगे—गुनहगार हम हैं, प्यारे—दिलजले के मुजरिम हैं।" कहने के साथ ही दूसरी तरफ से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया।
ब्लैक ब्वॉय के दिमाग में अब भी ढेर सारे प्रश्नवाचक चिन्ह जगमग करते रह गए।
लगातार बज रही फोन की घण्टी ने अंत में विकास को रिसीवर उठाने पर विवश कर दिया—सोफे पर अधलेटी-सी अवस्था में विकास ने रिसीवर उठाया और बोला—"विकास हियर।"
"तुम्हारी याद में यहां बैठे हम पी रहे हैं बीयर।"
"क...कौन? विजय गुरू?" विकास एकदम इस तरह उछलकर खड़ा हो गया, जैसे उसे बिजली का झटका लगा हो—रिसीवर पर पकड़ सख्त हो गई—यह सुने बिना कि दूसरी तरफ से क्या कहा गया है, भभकते स्वर में विकास कहता ही चला गया—"आप कहां से बोल रहे हैं—यूं औरतों की तरह मुंह क्यों छुपा लिया है आपने—सामने आओ गुरू—मर्द के बच्चे हो तो सामने आओ—मां कसम, चीर-फाड़कर आपको भी उसी चौराहे पर न डाल दिया, तो मेरा नाम विकास नहीं—मैं कहता हूं—सामने आओ।"
"हमारी बात सुनो, प्यारे।"
"मैं कुछ सुनना नहीं चाहता—आप बुजदिल हैं—कायर और डरपोक हैं—मुझसे डर गए हैं आप।"
"तुम चीज ही ऐसी हो, प्यारे।"
"आपका खून सफेद पड़ गया है गुरू—थू।" लड़के ने सचमुच माउथपीस में थूक दिया—"थू है आप पर—आपके बारे में मैं क्या सोचा करता था और आप क्या निकले—बुजदिल-अरे, मां का दूध पिया है तो सामने आओ, गुरू—देखूं तो सही कि उन हाथों में कितनी ताकत है, जिन्होंने डैडी के सीने में गोली उतार दी—ऐसे कायरपन की उम्मीद तो गीदड़ों से भी नहीं की जा सकती—आप तो कुत्ते से भी बदतर हैं।"
शांत स्वर—"अक्सर तुम ठीक ही कहा करते हो, प्यारे।"
"अरे, अपनी मां के लाल हो तो बताओ गुरू—इसी वक्त बताओ कि कहां से बोल रहे हो—अगर इसी वक्त वहां पहुंचकर आपके परखच्चे न उड़ा दिए तो मेरा नाम विकास नहीं—अगर असली बाप की औलाद हो तो बोलो, गुरू—बताओ कि इस वक्त आप कहां से बोल रहे हैं?"
"अभी नहीं, प्यारे—यह फोन हमने तुमसे थोड़ी मोहलत मांगने के लिए किया है।"
"कैसी मोहल्लत?"
दर्द भरा, मायूस-सा स्वर—"जो हमने किया है, प्यारे या तो वक्त ने हमसे करा दिया है, उसका प्रायश्चित इसके अलावा कुछ और नहीं है कि खुद को तुम्हारे हवाले कर दें और हम जानते हैं कि उस वक्त तुम क्या करोगे—तुम जो भी करोगे, ठीक ही करोगे दिलजले—अपनी सफाई में हमें कुछ नहीं कहना है।"
"कहने के लिए आपके पास है भी क्या?"
"सच, विकास—जो हो गया है, उसके बाद हमारे पास कहने के लिए कुछ भी नहीं।"
"मुझे आप चाहिएं, गुरू।"
"जानता हूं प्यारे और वादा करता हूं कि बहुत जल्दी मैं खुद को तुम्हारे हवाले कर दूंगा—मैं तुम्हारा मुजरिम हूं—तुम्हारे से निर्धारित की गई हर सजा बिना किसी हिचक के मुझे मंजूर होगी—अपने पिता के हत्यारे से बदला लेने का तुम्हें पूरा हक है, लेकिन...।"
"लेकिन—?" भभकता स्वर।
"अशरफ आदि ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है—उन्हें छोड़ दो।"
"ओह—तो इतनी जल्दी यह इन्फॉमेशन आप तक पहुंच गई।" विकास का व्यंग्यात्मक स्वर जहर में बुझ गया—"इसका मतलब ये कि चीफ झूठ बोलते रहे थे, खैर—जब आपको यह पता है तो मेरी चेतावनी भी पता होगी—याद रखिए, आज रात दस बजे।"
"हम उसी के बारे में बात करना चाहते थे।"
"कहिए।"
"उन्होंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है—गुनहगार हम हैं—उन्हें छोड़ दो—हमें सिर्फ कल रात तक की मोहलत चाहिए, विकास—परसों का
सूरज निकलते ही हम खुद को तुम्हारे हवाले कर देंगे।"
"मोहलत किसलिए?"
"हमें उस अपराधी तक पहुंचना है, जिसके जाल में फंसकर हम तुलाराशि की हत्या कर बैठे हैं।"
"नहीं मिलेगी।"
"विकास!"
"मुझे कुछ नहीं सुनना है, गुरू—मेरे लिए आपसे बड़ा अपराधी कोई नहीं है—कान खोलकर सुन लीजिए—आज रात दस बजे तक यदि आप मेरे सामने नहीं आए तो मैं उनमें से एक को भी गोली मारने में नहीं हिचकूंगा और यदि तब भी तुम सामने न आए—तो तुम्हारी कोठी—गुप्त भवन और सारे राजनगर को जलाकर राख कर दूंगा मैं।"
"उफ्फ!" विजय का कसमसाया हुआ स्वर—"तुम समझते क्यों नहीं, दिलजले?"
"आज रात दस बजे—पुरानी शिकारगाह के खण्डहर में।" एक झटके से कहने के बाद उसने रिसीवर क्रेडिल पर इतनी जोर से पटका कि वह 'तड़क' गया।
ठाकुर साहब बेचैनी के साथ टॉर्चर रूम के बाहर वाली गैलरी में चहलकदमी कर रहे थे—दीवारों के सहारे दोनों तरफ खड़े सशस्त्र जवान उस वक्त पहले से कहीं ज्यादा मुस्तैद नजर आ रहे थे—एकाएक ही टार्चर रूम का दरवाजा खुला।
विकास चमका।
ठाकुर साहब तेजी से उसके नजदीक पहुंचकर बोले—"क्या रहा?"
"उसने सब कुछ बक दिया है।"
"गुड—क्या बताया उसने?"
मगर इस बात जवाब मुंह से नहीं—बल्कि हाथ से दिया गया—यानि बिल्कुल अप्रत्याशित ढंग से लम्बे लड़के का घूंसा ठाकुर साहब के जबड़े पर पड़ा—प्रहार इतना जोरदार और अचानक हुआ था कि ठाकुर साहब का भारी-भरकम जिस्म भी हवा में लहराकर दूर जा गिरा।
सशस्त्र जवान चौंके—परन्तु उनके सम्भलने से पहले ही लड़के ने एक छोटा-सा 'बम' गैलरी के फर्श पर दे मारा—कमाल की फुर्ती से यानि अगले ही क्षण सारी गैलरी गाढ़े, सफेद और अपारदर्शी धुएं से भर गई—ठाकुर साहब चीख पड़े—''पकड़ो इन्हें—भागने न पाए।"
परन्तु अगले ही क्षण स्वयं ठाकुर साहब जोर से खिलखिलाकर हंस पड़े।
यही हाल गैलरी में मौजूद सशस्त्र जवानों का हुआ, यानी वे सभी जोर-जोर से खिलखिलाकर हंस रहे थे—धुआं इतना तीखा, तीव्र एवं कड़वा था कि आंखों में घुसकर—उसने बड़ी ही जबरदस्त जलन पैदा की—आंखें मिंच गईं—धुलने लगीं—ढेर सारा पानी निकलने लगा।
साथ ही सब हंसने के लिए बाध्य थे।
स्वयं ठाकुर साहब भी ठहाके लगा-लगाकर हंस रहे थे।
लड़का और रेहाना आंखों पर ऐसे चश्मे लगाए, जिनकी मौजूदगी में धुएं का एक भी कण उनकी आंखों तक नहीं पहुंच पा रहा था, गैलरी से गुजरते चले गए—हां, खिलखिला वे भी रहे थे।
धुएं के अन्तिम सिरे तक पहुंचते ही लड़के ने एक और 'बम' फोड़ दिया—आगे का रास्ता भी धुएं से भर गया—तबस्सुम का हाथ पकड़े वह धुएं के बीच से गुजरता ही चला गया।
दस मिनट के अन्दर उस पारदर्शी धुएं ने समूचे पुलिस हैडक्वार्टर पर कब्जा कर लिया—हर व्यक्ति की आंखों से बेशुमार पानी बह रहा था—हर व्यक्ति बुरी तरह हंस रहा था।
ठहाके लगा-लगाकर—खिलखिलाकर।
टॉर्चर रूम के बाहर वाली गैलरी से धुआं साफ होने लगा—अब वहां का दृश्य कुछ-कुछ स्पष्ट होने लगा था—सभी बुरी तरह पेट पकड़कर हंसते हुए नजर आ रहे थे—सबके हथियार फर्श पर इधर-उधर बिखरे पड़े थे—किसी को हंसने से फुर्सत हो तो हथियारों की तरफ ध्यान भी जाए।
सभी की हालत बैरंग थी।
आंखों से पानी बह रहा था—पेट पकड़कर हंसते हुए सभी गैलरी में इधर-उधर घूम रहे थे। कई तो हंसते-हंसते इतने पागल हो गए थे कि वे फर्श पर लेटे-लेटे फिर रहे थे—धुंआ छंटा—ठाकुर साहब ने अपने ठहाके पर काबू पाया—दौड़कर टार्चर रूम में गए—टार्चर चेयर खाली देखते ही तुरन्त लौटे—दरवाजे पर खड़े होकर उन्होंने बेतहाशा हंसते जवानों को देखा और चीख पड़े—"ख...खामोश।"
जवानों ने घबराकर उनकी तरफ देखा—कुछ तो जड़वत् से खड़े रहे गए और कुछ ठहाका लगा उठे।
"मैं कहता हूं, चुप रहो—हंसो मत।" ठाकुर साहब हलक फाड़कर चिल्ला उठे—"विकास तबस्सुम को हमारी कैद से निकालकर ले गया है—उसे तलाश करो।"
हंसने वाले अब सम्भलकर अपने-अपने शस्त्रों पर झपट पड़े।
अंगूठी रूपी ट्रांसमीटर ऑफ करते समय विजय के चेहरे पर हल्की-सी झुंझलाहट, उलझन और खीझ के से भाव थे—उसके सामने बैठे गुलफाम ने पूछा—"क्या बात है, मास्टर—दूसरी तरफ से किसने क्या कहा है, जिसे सुनकर आप बुरी तरह चौंके थे?"
"लगता है गुलफाम प्यारे कि ये साला अपना दिलजला सारा खेल ही चौपट कर देगा।"
"क्यों—क्या किया है विकास ने?"
"हैडक्वार्टर से तबस्सुम को ले उड़ा।"
"क...क्या—?" गुलफाम इस कदर उछल पड़ा—जैसे अचानक ही बिच्छू ने उसे डंक मार दिया हो—शब्द स्वयं ही उसके मुंह से निकलते चले गए—"म...मगर आपने तो...।"
"यही तो घपला है, प्यारे—हैडक्वार्टर पर तैनात टोडे ने अभी-अभी ट्रांसमीटर पर सूचना दी है कि विकास किसी किस्म की गैस का प्रयोग करके वहां से तबस्सुम को निकाल ले गया है।"
"क्या टोडे विकास का पीछा कर रहा है?"
"नहीं—उसने इजाजत मांगी थी, लेकिन हमने इंकार कर दिया।"
"म...मगर क्यों मास्टर?"
"अभी विश्वासपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि जिसने किडनैप किया है, वह दिलजला ही हैं।"
"म...मगर टोडे की रिपोर्ट—मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रहे हैं?"
"हमारी बात—बड़े-बड़े बुजुर्गों की समझ में नहीं आती है, प्यारे—तुम तो अभी बच्चे हो।"
"क्या मतलब है मास्टर?"
"मुमकिन है कि वह विकास के मेकअप में तबस्सुम को निकालकर ले गया हो?"
गुलफाम का चौंका हुआ स्वर—"ऐसा कैसे हो सकता है, मास्टर?"
"तुम टिंकू को भूल रहे हो, प्यारे—वह अपने दिलजले की कोठी पर तैनात है—हमने उससे कहा था कि विकास जैसे ही कोठी से बाहर निकले, हमें ट्रान्समीटर पर सूचना दे—अभी तक उसकी ऐसी कोई सूचना नहीं आई है, इसका मतलब विकास अभी तक अपने बिल से बाहर नहीं निकला है। जबकि हैडक्वार्टर पर तैनात टोडे की रिपोर्ट है कि तबस्सुम को विकास किडनैप कर ले गया है—क्या इससे नहीं लगता है कि तबस्सुम को किडनैप करने वाला विकास नकली है?"
"मगर—ऐसा भी हो सकता है मास्टर कि टिंकू धोखा का गया हो—विकास किसी तरह उसकी नजर से बचकर कोठी से निकलने में कामयाब हो गया हो?"
किसी बुजुर्ग की तरह गर्दन हिलाते हुए विजय ने कहा—"बिल्कुल हो सकता है—क्यों नहीं हो सकता?"
"तब फिर?"
"मामला दोनों तरफ बराबर-बराबर है, गुलफाम प्यारे—यदि वह विकास है, तो सारा मामला सिर के बल लटका रह जाएगा और यदि वह विकास नहीं है—तो कुछ ही देर बाद हमारे बापूजान दल-बल सहित विकास को पकड़ने कोठी पर जाएंगे—सारी बात सुनकर विकास चौंकेगा—भले ही वह कुछ समझे या न समझे, मगर खुद को पुलिस के चंगुल में कभी नहीं फंसने देगा—वह भागेगा।"
"भागकर वह जाएगा कहां?"
विजय एकदम उछलकर चीख पड़ा—"वो मारा साले पापड़ वाले को!"
"क्या हुआ, मास्टर?"
"पुलिस के चंगुल से निकलकर भागने के बाद फिलहाल अपने दिलजले के पास कोई सुरक्षित जगह नहीं है—हां, उस जगह को वह सुरक्षित जरूर समझेगा, जहां उसने अशरफ आदि को कैद किया होगा।"
"म...मगर मास्टर—।"
"फिलहाल कुछ देर के लिए तुम अपनी बोलती पर ढक्कन लगा लो, प्यारे।" कहने के साथ वह अंगूठी रूपी ट्रांसमीटर पर किसी से सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश कर रहा था—"हैलो—टिंकू हीयर—ओवर।"
"हम हैं टिंकू, प्यारे—तुम्हारे उस्ताद के मास्टर।" विजय ने अपने बारे में बताने के बाद पूछा—"तुम इस वक्त कहां से बोल रहे हो, ओवर।"
 वहीं से—जहां आपने नियुक्त किया था—ओवर।"
विजय ने पूछा—"क्या अभी तक अपना दिलजला कोठी से बाहर नहीं निकला है—ओवर।"
"नो सर—ओवर।"
"क्या तुम यह रिपोर्ट पूरे विश्वास के साथ दे रहे हो, टिंकू प्यारे—ओवर।"
"आप कैसी बात कर रहे हैं मास्टर—मैं कोठी के ठीक सामने सड़क के पार बैठा जूते चमका रहा हूं—न तो विकास ही बाहर निकला है और न ही उससे मिलने अभी तक कोई यहां आया है।"
"तो अब कुछ ही देर बाद पुलिस उसे गिरफ्तार करने आने वाली है, प्यारे—तुम सतर्क हो जाओ—वह किसी भी कीमत पर खुद को पुलिस के चंगुल में नहीं फंसने देगा—उसे वहां से भागना पड़ेगा—हालांकि हम स्वयं वहां आ रहे हैं, परन्तु यदि पुलिस हमसे पहले ही वहां पहुंच जाए और विकास भागे तो तुम उसका पीछा करना—मगर सावधानी से—अगर उसे अपना पीछा किए जाने का शक हो गया तो सारा गुड-गोबर समझो।"
"लेकिन मास्टर—आखिर—।"
उसकी बात सुने बिना ही विजय ने सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया। तभी गुलफाम बोला—"क्या आप खुद वहां जा रहे हैं, मास्टर?"
"मजबूरी है प्यारे—हमें नहीं पता कि उसने अशरफ आदि को कहां कैद कर रखा है—हमें उम्मीद है कि वह पुलिस से भाग कर सीधा वहीं जाएगा, अतः संयोग से वहां तक पहुंचने का जो एक मौका हमारे हाथ लगा है—इसे खो नहीं सकते—क्या एक मिनट के अन्दर किसी मोटरसाइकिल का प्रबन्ध हो सकता है?"
"क्यों नहीं, मास्टर।" कहकर गुलफाम एक ही छलांग में कमरे से बाहर निकल गया।
विजय ने मोटरसाइकिल ठीक फुटपाथ पर बैठकर पॉलिश कर रहे टिंकू के सामने रोकी—खुद को पॉलिश करने में व्यस्त दर्शाते हुए टिंकू ने विजय की तरफ देखा—विजय ने एक नजर सड़क पार रघुनाथ की कोठी पर डाली—मोटरसाइकिल स्टैण्ड पर खड़ी की।
जूता स्टैण्ड पर रखा।
टिंकू ने हाथ का जूता एक तरफ रखकर स्टैण्ड पर रखे विजय के जूते पर ब्रुश मारना शुरू कर दिया—विजय ने थोड़ा नीचे झुककर बहुत धीमे स्वर में पूछा—"क्या अभी तक पुलिस यहां नहीं पहुंची है?"
"नहीं, मास्टर।"
"ओह—लो प्यारे—वह आ गई बारात।" विजय ने दाईं तरफ से आ रहे पुलिस जीपों के काफिले को देखकर जल्दी से कहा—"चक्कर शुरू होने वाला है, प्यारे—लो, इसे अपनी जेब में डाल लो।"
कहने के साथ ही विजय ने एक शुगर क्यूब जैसी चीज उसकी गोद में डाल दी। उसे देखकर टिंकू बोला—"ये क्या है मास्टर?"
"जेब में डाल लो, प्यारे—यह तुम्हें हर मुसीबत से बचाएगी—इसकी मौजूदगी में तुम्हें किसी किस्म की फिक्र करने की जरूरत नहीं है—भले ही अनाड़ीपन से दिलजले का पीछा करो।"
"मैं समझा नहीं, मास्टर।"
"बारात बहुत करीब आ गई है, प्यारे—समझाने का समय नहीं है—यदि उन्होंने मुझे यहां देख लिया तो अपने दिलजले से पहले मुझे दबोच लेंगे—विकास का पीछा तुम ही करोगे—।" कहने के तुरन्त बाद उसने मोटरसाइकिल स्टैण्ड से उतारी—किक मारी और पुलिस के वहां पहुंचने के पहले ही विपरीत दिशा में दौड़ लिया—जाते-जाते उसने टिंकू को शुगर क्यूब उठाकर जेब में डालते देख लिया था।
विकास ब्रेकों की चरमराहट से ही समझ गया कि उसकी कोठी के लॉन में एक साथ कई पुलिस जीपें रुकी थीं—अगले ही पल भारी बूटों की आवाज उसके कमरे की तरफ आई—अभी वह उछलकर खड़ा हुआ ही था कि कमरे में दनदनाते हुए ठाकुर साहब प्रविष्ट हुए—उनके साथ डी.एस.पी. जैसी रैंक के कई अफसर थे—अन्दर आते ही जब उन सबने एक साथ रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिए तो विकास बौखला गया—वह पुलिस की इस फुर्ती और हरकत का मतलब न समझ सका।
खुद को जल्दी से सम्भालकर उसने पूछा—"क्या बात है, नानाजी?"
"बनने की कोशिश मत करो विकास।" ठाकुर साहब गुर्राए।
विकास की आंखें सुकड़ीं, बोला—"क्या मतलब?"
"कानून अपने हाथ में लेने का हक किसी को नहीं है।"
"म...मगर—मैंने किया क्या है?"
"सीधी तरह बता दो कि तबस्सुम कहां है?"
"त...तबस्सुम?"
"हां—जिसे तुम पुलिस लॉकअप से किडनैप कर लाए हो।"
विकास चकरा गया—"आप क्या कह रहे हैं—मैं तो पुलिस हैडक्वार्टर गया भी नहीं।"
"बको मत—तुम हथेली पर सरसों जमाने की कोशिश कर रहे हो।"
"ओह—समझा।" विकास के जेहन में एक धमाका-सा हुआ—"मेरी धमकी से घबराकर गुरू ने यह चाल चली हैं—वे चाहते है कि मैं पुलिस के चंगुल में फंस जाऊं ताकि अशरफ आदि महफूज रहें—उनकी कोठी, गुप्त भवन और राजनगर जलकर राख न हो जाए।"
"क्या बकवास कर रहे हो?"
ठाकुर साहब का वाक्य मानो उसने सुना ही नहीं, लाल आंखें शून्य में टिकाए—सपाट चेहरे वाला विकास जहरीले स्वर में बड़बड़ाता ही रहा—"मैं समझता हूं, गुरू—आखिर मैं भी तुम्हारा शिष्य हूं—जानता हूं कि अपना काम निकालने के लिए आप किस-किस तरह के हथकंडे इस्तेमाल कर सकते हैं।"
ठाकुर साहब बोले—"आगे बढ़ो, शर्मा—विकास को हथकड़ी पहना दो।"
"नहीं।" चीखकर विकास पीछे हटा।
शर्मा ठिठका, ठाकुर साहब बोले—"तो बताओ—तबस्मुम कहां है?"
"वह विजय गुरू रहे होंगे, नानाजी—मैंने उनके चन्द साथियों को मार डालने की धमकी दी है—मेरी धमकी से डर गए हैं—वे मुझे इस डर से पुलिस के चंगुल में फंसा देना चाहते हैं कि कहीं मैं धमकी पूर्ण न कर दूं।"
"क्या मतलब?"
"लॉकअप से तबस्सुम को ले जाने वाले मेरे मेकअप में विजय गुरू होंगे।"
"हम तुम्हारी इस बकवास में फंसने वाले नहीं हैं—रुक क्यों गए, शर्मा—आगे बढ़ो।"
शर्मा ने अभी एक ही कदम बढ़ाया था कि बिजली-सी कौंधी—विकास का जिस्म हवा में ठीक किसी धनुष से छोड़े गए तीर की तरह सनसनाया—पिछले लॉन में खुलने वाली बन्द खिड़की के शीशे से टकराया—खनखनाकर शीशा बिखरा।
विकास पार।
'धांय-धांय।' कई रिवॉल्वर गरजे—मगर देर हो चुकी थी—ठाकुर साहब चीख पड़े—"रोको उसे—जाने न पाए पाजी—शर्मा, तुम पीछे पहुंचो—लॉन में।"
कदाचित् पुलिस को यह उम्मीद नहीं थी कि वहां इतनी जल्दी ऐसे हालात बन जाएंगे, जैसे जेल से निकलकर कोई कैदी भाग रहा हो। इसीलिए जब तक वे सम्भले, तब तक विकास अपनी कार में सवार होकर कोठी की न सिर्फ चारदीवारी पार कर गया था, बल्कि सड़क पर एक तरफ दौड़ चुका था।
दूसरे अफसरों के साथ ही ठाकुर साहब भी जीपों की तरफ लपके—अभी वे जीपों तक पहुंचे भी नहीं थे कि—'धांय...धांय...धांय।'
किसी अज्ञात दिशा से अन्धाधुन्ध फायरिंग होने लगी।
सभी हड़बड़ा गए।
इस फायरिंग ने सभी को चौंका दिया था, क्योंकि ऐसी हरकत करने वाले एकमात्र यानि विकास को उन सभी ने कार लेकर बाहर निकलते देखा था।
बड़ी तेजी से हरेक ने पोजीशन ले ली।
परन्तु वे फायर किसी व्यक्ति पर नहीं, बल्कि लॉन में खड़ी पुलिस जीपों पर हुए थे—सभी जीपों के लगभग सभी पहिए बैठ गए थे—ठाकुर साहब ने यह ताड़ लिया था कि फायरिंग कोठी की दूसरी मंजिल के एक कमरे से हुई है—उन्होंने उस कमरे की खुली हुई खिड़की की तरफ देखा।
जेहन में दो नाम गूंजे—रैना और मोन्टो।
विकास के अतिरिक्त कोठी में सिर्फ वही दो हो सकते थे—निःसन्देह यह सोचकर मोन्टो यह काम कर सकता है कि पुलिस विकास का पीछा न कर सके—फिर दिमाग में बड़ी तेजी से यह सवाल कौंधा कि क्या रैना भी ऐसा कर सकती है—पहले क्षण दिमाग में जवाब उभरा—'नहीं।'
अगले क्षण ठाकुर साहब ने सोचा—'क्यों नहीं—रैना अपने बेटे को पुलिस के चंगुल से भाग निकलने का मौका देने के लिए ऐसा क्यों नहीं कर सकती—जरूर कर सकती है—जिस बहन ने अपने बेटे से पति के हत्यारे भाई की लाश मांगी हो, वह ऐसा जरूर कर सकती है।'
यह विचार दिमाग में आते ही उनका चेहरा कठोर हो गया, हाथ में दबा रिवॉल्वर उस खिड़की की तरफ तानकर चीखे—"कौन है उस ऊपर वाले कमरे में—सामने आए।"
सभी की दृष्टि उस कमरे की खुली खिड़की पर चिपक गई।
ठाकुर साहब एक ही जम्प में बॉलकनी के नीचे पहुंच गए—तेजी से दौड़े—दूसरी मंजिल पर पहुंचे—उस कमरे में कदम रखा, किन्तु कमरा एकदम खाली था।
अचानक वातावरण में एक मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने की आवाज गूंजी।
ठाकुर साहब तेजी से खुली हुई खिड़की पर झपटे—कोठी की बाउन्ड्री से बाहर सड़क पर उन्होंने एक मोटरसाइकिल को तेजी से दौड़कर विपरीत दिशा में जाते देखा—एक ही पल में उन्होंने रिवॉल्वर सीधा करके फायर कर दिए।
परन्तु मोटरसाइकिल सवार रिवॉल्वर की रेंज से बाहर हो चुका था।
"अरे—वह तो शायद विजय है।" ठाकुर साहब जोश में चीख पड़े—"उसका पीछा करो।"
ऐसा आदेश देते वक्त जोश में वे यह भूल गए थे कि पुलिस के पास पीछा करने का कोई साधन शेष नहीं बचा था—यह विचार दिमाग में आते ही वे झुंझला उठे—खिड़की पर लगभग लटककर चीख पड़े—"शर्मा—वायरलैंस पर शहर में गश्त कर रही पैट्रोल कारों को उनकी जानकारी दो—आदेश दो कि उनमें से एक भी बचकर न निकल पाए।"
आदेश होते ही शर्मा वायरलैस जीप पर झपटा।
ठाकुर साहब भागते हुए कमर से बाहर निकले—रह-रहकर वे रैना और मोन्टो को पुकार रहे थे—मगर उत्तर में कहीं से कोई आवाज सुनाई न दी—उस वक्त तो उनके दिमाग में सैंकड़ों प्रश्न चकराने लगे थे, जब पूरी कोठी छान मारने पर भी उन्हें कहीं मोन्टो या रैना न मिल सके।
सारी कोठी खाली पड़ी थी।
विकास की कार सुनसान पड़ी सड़क पर उड़ी चली जा रही थी—गति विकास की जिन्दगी के समान ही तेज थी, फिर भी लड़के की दृष्टि रह-रहकर 'बैक-व्यू मिरर' पर पड़ती।
एक मोटरसाइकिल अब भी उसे नजर आ रही थी।
कोठी से भागते ही विकास ने कुछ ऐसे ऊटपटांग रास्ते अपनाए थे कि यदि पुलिस पीछा करने या वायरलैस की मदद से उसे घेरने की कोशिश करे तो धोखा खा जाए—उस वक्त उसका पूरा ध्यान खुद को पुलिस की निगाहों से ओझल कर लेने की तरफ था।
मोटरसाइकिल सवार की तरफ वह ध्यान नहीं दे पाया था।
मगर अब वह महसूस कर रहा था कि वह मोटरसाइकिल उसकी कोठी के बाहर से ही निरन्तर उसके पीछे थी—भीड़-भरी सड़कों पर तो वह कई बार मिरर से ओझल भी हुई थी, किन्तु सूनी सड़क पर तो वह बराबर मौजूद रही थी।
विकास को यकीन हो गया कि मोटरसाइकिल सवार उसका पीछा कर रहा था।
बड़ी तेजी से उसके जेहन में यह सवाल उठा कि वह कौन हो सकता था?
उस वक्त तीन किस्म के लोग उसका पीछा कर सकते थे—पुलिस—उस कथित मुजरिम का कोई आदमी, जिसका दिमाग इस सारे बखेड़े के पीछे काम कर रहा है या विजय का आदमी।
उसे शीघ्र ही कहीं शरण लेनी थी—ज्यादा सोचने-समझने का समय नहीं था—वह जानता था कि अगर वह ज्यादा देर तक राजनगर की सड़कों पर चकराता रहा तो शीघ्र ही उसे पुलिस की पैट्रोल कारें इस तरह घेर लेंगी कि वह ऐड़ी-चोटी का जोर लगाने के बावजूद भी निकल नहीं सकेगा।
काफी देर से वह यह सोच रहा था कि पीछा करने वाले का क्या करे?
एक बार यह विचार दिमाग में आया कि फिलहाल वह इसे डॉज देकर निकल जाए—मगर तभी उसने सोचा कि ऐसा करने पर यह रहस्य रहस्य ही रह जाएगा कि वह किसका आदमी था—पहली बार इस मोटरसाइकिल सवार के रूप में उसके सामने ऐसा कोई व्यक्ति आया था, जिसका सम्बन्ध उसके तीन दुश्मनों में से किसी एक से निश्चय ही था—अतः उसे हाथ से नहीं निकलने देना चाहिए।
विकास ने आश्चर्यजनक ढंग से एकदम ब्रेक लगा दिए।
घबराकर मोटरसाइकिल सवार ने भी ब्रेक लगाए, परन्तु कार और मोटरसाइकिल के ब्रेकों में जमीन-आसमान का अन्तर होता है—यानि गाड़ी तो थोड़ी आगे जाकर जाम हो गई, जबकि मोटरसाइकिल लड़खड़ाती हुई कार के काफी निकट तक चली आई।
विकास ने रिवॉल्वर निकालकर उसके अगले टायर पर फायर किया।
टायरे के परखच्चे उड़ गए—मोटरसाइकिल उछलकर जा गिरी—टंकी फटी—पैट्रोल गर्म इंजन पर गिरा और 'फक्क' से आग लग गई, किन्तु टिंकू यह सब कुछ होने से पहले ही मोटरसाइकिल से कूद चुका था—वह सड़क से उठकर तेजी से एक तरफ भाग गया।
कार से बाहर निकलकर विकास गरजा—"रुक जाओ—वरना गोली मार दूंगा।"
वह नहीं रुका।
विकास ने उसके भागते कदमों पर गोली चला दी।
अचूक लक्ष्य।
टिंकू के कंठ से एक चीख निकली—लड़खड़ाकर वह मुंह के बल सड़क पर गिरा।
हाथ में रिवॉल्वर लिए लम्बा लड़का लम्बे-लम्बे कदमों के साथ उसकी तरफ दौड़ा—जिस वक्त टिंकू पुनः खड़ा होकर भागने की कोशिश कर रहा था, उस वक्त विकास उसके सिर पर पहुंच गया—झपटकर उसने टिंकू का गिरेबान पकड़ा और जबड़े पर रिवॉल्वर का दस्ता दे मारा।
एक जबरदस्त चीख—चेहरे का भूगोल बिगड़ गया।
उस बार जब वह सड़क पर गिरा तो बेहोश हो चुका था—पहले विकास ने जांच की कि वह सचमुच बेहोश हुआ था या नाटक कर रहा था—आश्वस्त होने के बाद उसने टिंकू के जिस्म को रुई के बबुए की तरह उठाकर कन्धे पर डाला और रिवॉल्वर जेब में रखकर लम्बे कदमों के साथ कार की तरफ बढ़ गया—सड़क पर पड़ी धूं-धूं करके जल रही मोटरसाइकिल के समीप से गुजरते वक्त उसने बुरा-सा मुंह बनाया—बेहोश टिंकू को कार की पिछली सीट पर डाला।
कार एक झटके से आगे बढ़ गई।
एक होटल के केबिन में बैठे विजय की आंखें मेज पर रखी छोटी-सी विराम घड़ी पर टिकी हुई थीं—वह विराम घड़ी किसी वस्तु की दिशा और दूरी बता रही थी।
हरी सुई दिशा बता रही थी और लाल रंग की सूई दूरी।
हरी सूई दक्षिण दिशा में लगभग स्थिर-सी हो गई थी, जबकि लाल सूई निरन्तर गतिशील थी—विजय ध्यान से उसे देख रहा था—सूई निरन्तर गतिशील थी—विजय ध्यान से उसे देख रहा था—जाने क्या मिलाने के लिए उसने रिस्टवॉच पर नजर डाली।
एकाएक केबिन के बाहर से पदचापों की ध्वनि उभरी।
विजय ने जल्दी से विराम घड़ी पर हथेली रख ली—घड़ी इतनी छोटी थी कि वह छुपकर रह गई—वेटर ने मेज पर कॉफी रखी और पर्दा व्यवस्थित करता हुआ चला गया।
अब घड़ी पर दृष्टि टिकाए विजय कॉफी सिप करने लगा—अभी वह आधी कॉफी भी सिप नहीं कर पाया था कि लाल सूई रुक गई—वह सत्रह किलोमीटर के निशान पर स्थिर हो गई थी—विजय ने रिस्टवॉच में समय देखा।
विराम घड़ी उठाकर जेब में डाली और फिर कॉफी खत्म करने के अन्दाज में लम्बे—लम्बे घूंट भरने लगा—शीघ्र ही उसने मग खाली करके मेज पर रखा—एक बार फिर जेब से विराम घड़ी निकालकर देखी और उठ खड़ा हुआ।
विकास की कार सीधी पुराने मॉड़ल की उस इमारत के पोर्च में रुकी—वह बाहर निकला—पिछली सीट से टिंकू का बेहोश जिस्म उठाकर कन्धे पर डाला और इमारत के द्वार तरफ बढ़ गया—दरवाजे पर उस वक्त भी ताला लटका हुआ था, जिसे विकास ने जेब से चाबी निकालकर खोला।
गैलरी पार करके वह अभी एक कमरे में पहुंचा ही था कि हाथ में रिवॉल्वर लिए मोन्टो सामने आ गया—उस वक्त वह किसी भी किस्म के खतरे का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार नजर आ रहा था, किन्तु विकास को देखते ही उसने रिवॉल्वर जेब में डाल लिया।
"कहो मोन्टो—सब ठीक है, न?"
सांकेतिक भाषा में जवाब देने के बाद मोन्टो ने उसी भाषा में यह पूछा कि ये किसे उठा लाए—विकास ने कहा—"फिलहाल इसे एक कुर्सी से बांधकर होश में लाना है।"
मोन्टो फुर्ती से सारे प्रबन्ध करने लगा।
जिस वक्त रेशम की डोरी की मदद से कुर्सी पर टिंकू को होश आ रहा था, तब तक विकास उसे बता चुका था कि वह उसे किन हालातों में यहां लाया था।
टिंकू ने आंखें खोली ही थीं कि विकास ने झपटकर दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ लिया—गुर्राया—"बोलो—कौन हो तुम और मेरा पीछा क्यों कर रहे थे?"
"आपका पीछा?" टिंकू ने अनभिज्ञता जाहिर की— आपको गलतफहमी हुई है—मैं आपका पीछा नहीं...।"
वाक्य पूरा होने के पहले ही 'भड़ाक्' से उसके चेहरे पर विकास का घूंसा पड़ा—टिंकू के कंठ से एक चीख निकली—कुर्सी उलटने ही वाली थी कि विकास ने झपटकर उसके साथ बंधे टिंकू के लम्बे बाल पकड़ लिए—टिंकू झूलता-सा रह गया, जबकि विकास कह रहा था—
"इसमे शक नहीं कि तुम मेरा पीछा कर रहे थे और जब पीछा कर ही रहे थे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरा नाम भी जानते होंगे और मेरा नाम जानने वाला हर शख्स जानता है कि विकास जब अपने चंगुल में फंसे किसी व्यक्ति की जुबान खुलवाता है तो चमड़ी तक उधेड़ लेता है—आज तक मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला है, जिसकी जुबान मेरे चंगुल में फंसने के बाद बन्द रही हो—बोलो—सीधी तरह सब कुछ बताते हो या पहले चमड़ी उधड़वाना पसन्द करोगे?"
"मैं नहीं जानता कि आप कौन हैं और क्या कह रहे हैं?"
बस—अपने मुंह से टिंकू के लिए यह वाक्य निकालना मानो गजब हो गया—एक नहीं, विकास के लगातार ढेर सारे प्रहार उसे सहने पड़े—चीख के बाद चीखें ही गूंजती चली गईं—सारा चेहरा खून से लथपथ हो गया—किसी जुनूनी के समान विकास उसे मारता चला गया।
यहां तक कि घुटने की अन्तिम चोट से कुर्सी पीछे उलट गई—तब उसकी जेब से एक शुगर क्यूब जैसी चीज निकलकर फर्श पर लुढ़कती चल गई।
विकास के साथ ही मोन्टो की दृष्टि भी उस पर जम गई।
विजय मोटरसाइकिल को सुनसान इलाके में स्थित पुराने मॉडल की इमारत के सामने से गुजारता चला गया—हां, उसी समय में उसने इमारत के पोर्च में खड़ी विकास की कार जरूर देख ली थी—आधा फर्लांग के करीब निकल आने के बाद उसने मोटरसाइकिल रोकी।
उसे खींचकर समीप वाली झाड़ियों में डाला और स्वयं पैदल ही सड़क छोड़कर खेतों में से होता हुआ इमारत के पिछले भाग की तरफ बढ़ गया—उस वक्त वह बिल्कुल मस्त नजर आ रहा था, तभी तो दोनों हाथ पतलून की जेब में डाले सीटी बजाता चला जा रहा था।
अपनी यह मुद्रा उसने पदयात्रा की समाप्ति यानी कोठी के पीछे जाकर ही तोड़ी—इमारत तीन-मंजिला थी, किन्तु उस तरफ कहीं भी कोई गन्दे पानी का पाइप नजर नहीं आ रहा था।
उसने अजीब से ढंग से मुंह बिचकाया।
फिर कोई ऐसा स्थान ढूंढने लगा, जहां से वह किसी कमरे की खिड़की तक पहुंच जाए—कोशिश करने पर उसे दाईं तरफ शीघ्र ही ऐसा स्थान मिल गया—एक जंगला था—जंगले के ऊपर उसका लैंटर शेड—शेड के ऊपर दूसरी मंजिल की बालकनी—बालकनी के निचले भाग में वहां लोहे का एक मोटा छल्ला लटक रहा था—हालांकि किसी साधारण व्यक्ति के लिए इस रास्ते से चढ़ना असम्भव की सीमा तक कठिन था, किन्तु इस किस्म के कामों का अभ्यस्त विजय थोड़े से परिश्रम के बाद ही दूसरी मंजिल की बालकनी में पहुंच गया।
उसने सभी खिड़की और दरवाजों पर दबाव डाला। वे अन्दर से बन्द थे—किस्मत से उसे एक ऐसी खिड़की मिल गई, जिसके किवाड़ अन्दर की तरफ खुलते चले गए।
चौखट पार करके वह नि:शब्द गैलरी में कूद गया।
गैलरी सुनसान पड़ी थी।
विजय का रिवॉल्वर जेब से निकलकर हाथ में आ गया—एक-एक नजर उसने गैलरी में दोनों तरफ डाली—फिर रिवॉल्वर सम्भालकर एक तरफ बढ़ गया—उसके कान हल्की-सी आवाज को सुनने के लिए पूरी तरह तैयार थे—चारों तरफ गहरी खामोशी छाई थी और जाने क्यों अब यह खामोशी उसे रहस्यमय-सी महसूस होने लगी थी।
वह सीढ़ियों के सिरे पर पहुंचा—चौड़ी सीढ़ियां सीधी ग्राउण्ड फ्लोर के हॉल में जाकर खत्म होती थीं—सीढ़ियां उतरने के लिए अभी उसने पहला कदम बढ़ाया ही था कि अपने पीछे से हल्की-सी आहट का अहसास पाकर विद्युतीय वेग से घूमा, परन्तु घूमते हुए विजय के कूल्हे पर एक चमकदार बूट की जबरदस्त ठोकर पड़ी—विजय का बैलेंस बिगड़ा—गिरा और फिर सीढियों पर लुढ़कता ही चला गया, किन्तु अपने हाथ से उसने रिवॉल्वर नहीं निकलने दिया।
हॉल के फर्श पर पहुंचते ही उसने रिवॉल्वर वाला हाथ घुमाया—रुख अभी सीढ़ियों के शीर्ष की तरफ घूमा ही था कि—'धांय।'
विजय के हाथ से रिवॉल्वर दूर जा गिरा।
हाथ झनझना उठा—हाथ को अजीब से अन्दाज में झटकते हुए विजय ने ऊपर देखा—सीढ़ियों के शीर्ष यानी सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर विकास खड़ा था।
हाथ में रिवॉल्वर लिए।
नाल से अभी तक धुआं निकल रहा था—विजय ने देखा कि विकास के चेहरे पर उस वक्त दूर-दूर तक सिर्फ नफरत ही नफरत थी—आंखें यूं भभक रही थीं, जैसे अंगारे हों—उसके एक हाथ में रिवॉल्वर था और दूसरे हाथ की मुट्ठी कसी हुई थी—एक बारगी को तो विजय जैसे व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी में भी सिहरन-सी दौड़ गई—सारा जिस्म झुरझुरा गया, किन्तु अगले ही पल सम्भलकर बोला—"ये क्या बात हुई, प्यारे—वादे के मुताबिक हमारी कुश्ती तो आज रात दस बजे होनी थी न?"
एक सीढ़ी उतरते हुए विकास ने कहा—"मगर आपको मरने की जल्दी थी।"
"वह कैसे, प्यारे?"
"खुद को बहुत ज्यादा चालाक समझते हैं न आप—मेरे मेकअप में तबस्सुम को उड़ाकर ले गए—सिर्फ इसलिए कि पुलिस मेरे पीछे पड़ जाए—आपने सोच लिया था कि पुलिस से बचने के लिए मैं वहीं शरण लूंगा, जहां अशरफ आदि को कैद किया गया है—सचमुच आप बहुत चालाक हैं, गुरू—अपने एक आदमी को ऐसे अनाड़ीपन से मेरे पीछे लगाया ताकि मुझे पता चले कि मेरा पीछा हो रहा है—आप जानते थे कि मैं पीछा करने वाले को कब्जे में करके यहां ले आऊंगा—उसकी जेब में शुगर क्यूब की शक्ल में एक छोटा, मगर शक्तिशाली ट्रान्समीटर डाल दिया गया—जिसका सम्बन्ध एक विराम घड़ी से था और अपनी योजना के मुताबिक आप विराम घड़ी की मदद से यहां तक पहुंच गए।"
"तो तुम सब कुछ समझ गए, प्यारे?"
"तभी पहले से ही यहां आपके स्वागत का प्रबन्ध था।"
"कम चालाक तुम भी नहीं हो।"
व्यंग्यभरी मुस्कान—"आखिर शिष्य किसका हूं?"
"लेकिन प्यारे—।"
"माफ करना, गुरू—सामने पहुंचते ही चरण स्पर्श न करने की गुस्ताखी कर बैठा हूं—ये लीजिए।" कहने के साथ ही उसने ट्रिगर दबा दिया—गोली सीधी विजय के चरणों के समीप फर्श में धंस गई।
विजय उछला।
"डरो नहीं, गुरू—विकास के पिता का हत्यारा इतनी आसान मौत नहीं मर सकता।"
तभी वहां एक अन्य फायर की आवाज गूंजी—वह दूसरी गोली थी, जो उसके चरणों के समीप फर्श में आ धंसी—वह गोली विकास के रिवॉल्वर से नहीं चली थी, इसलिए फुर्ती से घूमकर उस तरफ देखा—रिवॉल्वर एक रोशनदान पर बैठे मोन्टो के हाथ में था—उसे देखते ही विजय कह उठा—"ओह—तुम भी यहीं हो प्यारे राहु-केतु—मगर तुम वहां क्यों लटके हुए हो, गान्डीव प्यारे?"
"आपकी हत्या करने में मोन्टो मेरी कोई मदद नहीं करेगा, गुरू।"
"क्यों प्यारे?"
नीचे उतरते हुए विकास ने कहा—"उसे समझा दिया गया है।"
"हो सकता है कि उसकी समझ में न आया हो प्यारे।" विजय ने अजीब-सा मुंह बनाया।
उसकी बात पर कोई ध्यान न देकर विकास धीरे-धीरे बराबर सीढ़ियां उतरता हुआ बोला—"मैं जानता हूं कि आप यहां मेरी कैद से अशरफ आदि को निकालने का मकसद लेकर आए थे—कुदरत यह निश्चय कर चुकी है गुरू कि आने वाले चन्द क्षणों के बाद या तो मैं जिन्दा रहूंगा या आप—ये मैं नहीं कह सकता है कि आप ही मरेंगे या मैं, इसलिए बता रहा हूं—यदि मैं मर जाऊं तो जहां आप खड़े हैं, वहां से दाईं तरफ एक गैलरी है—गैलरी में तीसरा कमरा आपके काम का है—उसमें एक स्विच बोर्ड लगा है—बोर्ड का एक स्विच ऑन करने पर आपकी भेंट अपने साथियों से हो जाएगी।"
"बताने के लिए शुक्रिया, प्यारे।"
"मुमकिन है कि आप मर जाएं, इसलिए उससे पहले आप से भी अपने चन्द सवालों का जवाब चाहूंगा।"
"जरूर पूछो, प्यारे।"
"आपने डैडी को क्यों मारा?"
"हमारी जानकारी में वह मोन्टो के बाद रैना बहन को भी गोली मारने वाला था।"
"उन्हें रोकने के लिए आप सिर्फ उनकी टांग में भी गोली मार सकते थे—ठीक इस तरह।"
कहने के साथ ही लड़के ने ट्रिगर दबा दिया—'धांय' की एक जोरदार आवाज के साथ रिवॉल्वर से एक शोला लपककर विजय की बाईं टांग में घुटने के नीचे धंस गया।
विजय के कंठ से एक चीख निकली—चकरघिन्नी की तरह वह घूमा और फिर 'धड़ाम' से फर्श पर गिर गया—आंखें फैल गईं उसकी—सचमुच उसने विकास से एकदम इतनी बेरहमी की उम्मीद नहीं की थी, इसी वजह से वह संग आर्ट का प्रदर्शन करके गोली से न बच सका।
उसी रफ्तार से नीचे उतरता हुआ विकास गुर्रा रहा था—"जो बात मैं कहना चाहता हूं, वह शायद अब आपकी समझ में अच्छी तरह आ गई होगी—बोलो गुरू—मेरे सवाल का जवाब दो—उन्हें रोकने के लिए आखिर आपने उनकी टांग में गोली क्यों नहीं मार दी?"
"उस वक्त जल्दी में हम यह नहीं सोच सके...।"
'धांय।'
इस बार शोला विजय की दाईं टांग पर झपटा था, किन्तु विजय ने सिर्फ रबर के किसी बबुए की तरह उछलकर खुद को बचा गया, बल्कि उसी मुद्रा में सीढ़ियां उतरते हुए विकास ने कहा—"ये मैं नहीं मान सकता, गुरू।"
"क्यों नहीं मान सकता, प्यारे "
"क्योंकि जानता हूं कि आप कठिन-से-कठिन हालातों में भी अपने दिमाग से नियन्त्रण नहीं खोते हैं—मैं ऐसा नहीं मान सकता कि आप नियंत्रण खो सकते हैं।"
"अब इस बात का तो मेरे पास कोई जवाब नहीं है, प्यारे।"
"मेरे पास है।"
"क्या?"
'धांय-धांय।'
इस बार विकास का रिवॉल्वर एक साथ दो बार गरजा—एक ही पैर पर किसी बन्दर के समान उछलकर विजय न सिर्फ स्वयं को बचा गया, बल्कि पलक झपकते ही उसने फर्श पर पड़ा अपना रिवॉल्वर उठाकर फायर भी झोंक दिया—विजय के रिवॉल्वर से निकलकर दहकती हुई बुलेट सीधी विकास के रिवॉल्वर की नाल में फंसी—विकास ने ट्रेगर दबाया, लेकिन कोई गोली बाहर नहीं निकली—अगले ही पल उसने रिवॉल्वर ही खींचकर विजय के हाथ में दबे रिवॉल्वर पर मारा।
आपस में गुंथे-से दोनों रिवॉल्वर फर्श पर जा गिरे।
सभी सीढ़ियां तय करने के बाद विकास नीचे पहुंच चुका था—एक भी शिकन नहीं थी उसके चेहरे पर—पत्थर के कोयले की तरह काला, सख्त एवं खुरदरा चेहरा—आंखों में सिर्फ हिंसा, जबकि विजय उस वक्त भी अपने एक पैर पर फुदक रहा था—उसके जख्म से खून की बूंदे टपक रही थीं, परन्तु उनकी परवाह किए बिना विजय विकास के हर आक्रमण का मुकाबला करने के लिए तैयार था—विकास निरन्तर उसकी तरफ बढ़ता हुआ बोला—"मेरी मां ने आपकी लाश मांगी है गुरू—उन्हें इस बात से मतलब नहीं कि उसमें थोड़ा बहुत खून भी हो या नहीं—खून का हिसाब मुझे चुकाना है—डैडी के खून की एक-एक बूंद का बदला लूंगा मैं।"
"उसके लिए हम तैयार हैं, प्यारे, लेकिन...।"
लड़का ठिठका, बोला—"लेकिन क्या?"
"उससे पहले हम उस मुजरिम...।"
मगर—विजय का वाक्य पूरा होने से पहले ही विकास ने ठीक किसी चीते की तरह उछलकर विजय पर जम्प लगा दी—विजय सही समय पर किसी फिरकनी के समान घूम गया—झोंक में विकास मुंह के बल फर्श पर गिरा—विजय ने झपटकर उस पर जम्प लगा दी और अगले ही पल उसके मजबूत हाथों में विकास की गर्दन थी—विजय जानता था कि यदि विकास को मौका दे दिया गया तो फिर वह चूकेगा नहीं—विकास के ऊपर पड़ा वह उसकी गर्दन दबाता ही चला गया।
विकास छटपटा उठा।
चेहरा सुर्ख पड़ता चला गया—आंखें और जीभ उबल पड़ीं—चेहरे और आंखों की एक-एक नस स्पष्ट चमकने लगी थी—हाथ-पैर सुन्न-से पड़ते चले गए—विकास अपने हाथों से उसे अपने ऊपर से धकेलने की भरपूर चेष्टा कर रहा था, किन्तु कामयाब न हुआ—विकास को लगा कि अब वह कभी इस फौलादी पकड़ से मुक्त न हो सकेगा—फिर भी, अन्तिम कोशिश के रूप में उसका दायां पैर विजय की बाई टांग पर सरसरा रहा था।
फिर विकास के बूट की नोक विजय के जख्म पर स्थिर हो गई।
एक ही झटके में उसने नोक जख्म में घुसेड़ दी।
विजय के मुंह से मर्मान्तक चीख निकली—क्षण-मात्र के लिए उसकी पकड़ विकास की गर्दन पर ढीली पड़ी और विकास ने पूरी बेरहमी के साथ सिर की टक्कर विजय की नाक पर मारी।
एक बिलबिलाती-सी चीख के साथ विजय दूर जा गिरा।
विकास किसी 'रबर' के बबुए की तरह उछलकर खड़ा हुआ—फिर उसी लम्बी टांग चली—बूट की ठोकर विजय के जिस्म पर यूं पड़ी जैसे वह विजय का जिस्म नहीं, बल्कि फुटबाल हो।
एक बार जब विकास हावी हुआ तो उसने सांस न लिया—विजय को मारता ही चला गया वह—यहां तक कि विजय जब अन्त में फर्श पर गिरा तो वह हिला तक नहीं, निश्चल पड़ा रह गया—मुंह से कोई आवाज भी नहीं निकल रही थी—स्थिर-सा खड़ा विकास उसकी तरफ देख रहा था—एकाएक ही लड़के की आंखें भरती चली गईं। अजीब से स्वर में बोला—"नहीं गुरू—सिर्फ बेहोश होने से काम नहीं चलेगा—मां ने आपकी लाश मांगी है—उनके कदमों में आपकी लाश ही ले जाकर डालूंगा मैं।"
आंखों से उबलते हुए आंसू फर्श पर गिरे।
हाथ में रिवॉल्वर लिए खड़ा चकित-सा मोन्टो विकास को रोता हुआ देख रहा था—विकास उसी मुद्रा में आगे बढ़ा—विजय के समीप जाकर झुका—दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ा लड़के ने—जबरदस्ती उठाकर उसके ढीले-ढाले शरीर को अपने सामने खड़ा करके बोला—"पानी लाओ, मोन्टो—इन्हें होश में लाना है—विकास के पिता के हत्यारे की मौत इतनी आसान हो सकती है और न ही विकास के गुरू इतनी आसानी से मर सकते हैं—इन्हें संघर्ष करना होगा—यदि विजय गुरू यूं मर गए तो लोग कहेंगे कि...।"
"आ...आह...ई...ई...।" विकास के मुंह से निकलने वाले आगे के शब्द एक दर्दनाक और लम्बी चीख में बदल गए—हुआ यूं कि जिसे विकास ने बेहोश समझा था, एकाएक ही उसके दाएं पैर का घुटना बिजली की-सी गति से उसकी जांघों के जोड़ पर पड़ा—प्रहार इतना सख्त और अप्रत्याशित था कि बिलबिलाता हुआ विकास झुका—तभी—।
विजय की दुहत्थड़ उसकी गुद्दी पर पड़ा।
विकास का चेहरा फर्श से जा टकराया।
'भड़ाक्' से विजय ने उसके सिर में बूट की ठोकर मारी—चीख के साथ विकास ने उसकी टांगें पकड़ने के लिए दोनों हाथ फैलाए—विजय उछलकर उसके पीछे पहुंचा—दोनों टांगें पकड़ीं और फिर फर्श पर किसी फिरकनी की-सी तेजी के साथ घूम गया—उसके हाथों में लटका विकास का उल्टा जिस्म भी घूम रहा था।
ढेर सारे चक्करों के बाद विजय ने उसे छोड़ दिया।
विकास हॉल की एक दीवार से जा टकराया—फर्श पर गिरा—सम्भलकर खड़ा हुआ ही था कि हवा में लहरा रहे विजय की फ्लाइंग किक उसके चेहरे पर पड़ी।
गर्ज यह कि इस बार हावी होने के बाद विजय ने उसे सम्भलने का हल्का-सा भी मौका नहीं दिया—पानी लेने के लिए जाता हुआ मोन्टो ठिठककर इन दृश्यों को देखने लगा था—अन्त में विजय की एक कर्राट के बाद विकास बेहोश होकर फर्श पर गिर पड़ा। सावधानीपूर्वक उसने विकास की बेहोशी को चैक किया।
आश्वस्त होने के बाद उसने मोन्टो की तरफ देखा—सांस बुरी तरह फूली हुई थी—फिर भी उसने अजीब से ढंग से पटापट—पटापट मोन्टो को आंखें मारनी शुरू कर दीं—जाने मोन्टो को क्या हुआ कि रिवॉल्वर सीधा करके उसने एक साथ दो फायर विजय पर झोंक दिए।
विजय ने दोनों ही गोलियों को संग आर्ट से धोखा दिया और बोला—"ये क्या बात हुई, गान्डीव प्यारे—कम-से-कम तुम्हें तो हमारा साथ देना चाहिए—भले ही जिसे तुलाराशि ने मारा था, वह तुम नहीं थे—मगर हमने तो यही समझा था न कि तुम मर गए हो—हमने तुम्हारी ही मौत का बदला लेने के लिए तुलाराशि की राम नाम सत्य करा दी—और उल्टे तुम ही हमें—।"
घृणा से फर्श पर थूक दिया मोन्टो ने—जैसे उसे यह बात पसन्द न आई हो—गुस्से में भुनभुनाते हुए उसने अपने रिवॉल्वर में बची शेष तीन गोलियां भी विजय पर चला दीं, किन्तु मजाल थी कि एक भी गोली विजय को छू सके—सभी गोलियां हॉल की दीवारों में जा धंसीं—अंत में मोन्टो ने खुद विजय पर जम्प लगा दी। विजय ने उसे किसी छोटे से बच्चे की तरह हवा में ही लपका और घुमाकर एक दीवार पर दे मारा।
चीं-चीं आवाज के साथ वह फर्श पर गिरा।
मोन्टो बेहोश हो चुका था—लड़खड़ाता हुआ विजय गैलरी की तरफ बढ़ गया।