देवराज चौहान को सूर्य थापा का फोन आया ।
"तुमने मुझे बताया नहीं कि उस जगह पर जगमोहन का आना-जाना है ।" उधर से सूर्य थापा ने कहा ।
"तो तुम अपने काम पर लग गए ।" देवराज चौहान बोला ।
"ये क्या हो रहा है देवराज चौहान ।" उधर से सूर्य थापा ने कहा--- "तुम उस जगह की निगरानी मुझसे करवा रहे हो जहां जगमोहन का आना-जाना है। जो मुझसे जानना चाहते हो, वो जगमोहन से भी पूछ सकते हो ।"
"जगमोहन वहां हर वक्त नहीं रहता ।"
"पर हो क्या रहा...।"
"मैं तुम्हारे मुंह से वहां का हाल सुनना चाहता हूं । ऐसे में कोई नई बात का पता चले। वो सब जगमोहन की पहचान के लोग हैं। ये कोई मामला नहीं है। बस तुम्हें उनकी नजरों में नहीं आना है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"पर कुछ तो बात है ।"
"हां, कुछ बात तो है। मैं यूं ही तुम्हें दस हजार रुपया रोज नहीं दे रहा ।"
"मुझे थोड़ा-बहुत मामला बताओ तो हालातों को समझने में मुझे आसानी...।"
"मैं नहीं बता सकता। तुम कहो कि तुम वहां कब पहुंचे ?".
"मैं यहां सुबह नौ बजे पहुंच गया था और कुछ दूर बड़े-से पत्थर की ओट में रहकर उस मकान पर नजर रख रहा हूं। पहाड़ी पर बना काफी बड़ा और शानदार मकान है। ऐसा मकान नसीब वालों को ही मिलता है। वहां पर दो कारें खड़ी है। एक तो काले रंग की कार है दूसरी हल्के नीले रंग की। परंतु वो सुबह की खड़ी ही है। मैंने वहां एक बहुत ही खूबसूरत लड़की देखी। ऐसी खूबसूरत लड़की भी नसीब वालों को ही मिलती है।"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी ।
सूर्य थापा की आवाज कानों में पड़ रही थी ।
"लेकिन वहां मैंने दो लोगों को और भी देखा ,जो लड़की के काबिल जरा भी नहीं लगते ।" कहने के साथ ही उधर से सूर्य थापा ने बंधु और विजय का हुलिया बताया--- "ये लोग लड़की के रिश्तेदार या भाई हो सकते हैं। साढ़े दस बजे लड़की को मैंने इतनी ठंड में दरवाजे के बाहर कुर्सी रख कर बैठते देखा। वो अकेली बैठी रही, जैसे किसी का इंतजार कर रही हो। उसे देखते-देखते मेरा वक्त बीता। साढ़े ग्यारह बजे मैंने जगमोहन को वहां पहुंचते देखा ।
वो लड़की उसके गले जा लगी। तब मुझे पता चला कि जगमोहन कितने नसीब वाला है। दोनों में कुछ चल रहा है। उसके बाद जगमोहन उस लड़की के साथ मकान के भीतर चला गया और अभी तक नहीं दिखा ।"
"इस बीच कोई बाहर आया ?"
"एक बार वो गंजे सिर वाला, मतलब के कम बालों वाला (बंधु) बाहर आया था । कारों के पास टहलता सिगरेट पीता रहा फिर भीतर चला गया । उसके अलावा कोई बाहर नहीं आया ।"
"कोई और नई बात हो तो बताना ।"
"कुछ तो मुझे बताओ कि यहां क्या हो रहा है ?" सूर्य थापा की आवाज कानों में पड़ी ।
"तुम्हें दस हजार रुपया रोज मिल रहा है कि वहां पर जो भी देखो-समझो मुझे बताओ ।"
"अगर मुझे मामले का पता होगा तो दिखने वाली बातों में तालमेल बिठा पाऊंगा ।"
"तुम्हें तालमेल बिठाने की जरूरत नहीं। बस मुझे बताते रहो ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"ठीक है ।" सूर्य थापा के गहरी सांस लेने की आवाज आई--- "मत बताओ ।"
"जगमोहन जब वहां से बाहर निकले तो मुझे फोन कर देना। अगर साढ़े चार बजे तक न निकले तो तब भी बताना ।"
"समझ गया ।"
देवराज चौहान ने फोन बंद किया और सिग्रेट सुलगा ली। चेहरे पर सोचें थी। उसने घड़ी में वक्त देखा दोपहर के तीन बजे रहे थे। लंच लेने का मन नहीं था। कश लेता बैठा वो सोचता रहा। सिग्रेट समाप्त हो गई तो उठकर कमरे में चहल-कदमी करने लगा कि एकाएक ठिठका और फोन निकाल कर नम्बर मिलाने लगा ।
तीसरी बार में नम्बर लगा।
"हैलो ।" उधर से औरत की आवाज कानों में पड़ी ।
"जंग बहादुर है ?" देवराज चौहान ने कहा ।
"तुम कौन हो ?"
"देवराज चौहान। वो मुझे जानता है। मेरा नाम सुनकर समझ जाएगा ।" देवराज चौहान बोला ।
करीब मिनट-भर की खामोशी के बाद नेपाली लहजे में मर्द की आवाज कानों में पड़ी ।
"कौन-से वाले देवराज चौहान हो भाई ?"
"मैं हूं जंग बहादुर ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "आवाज पहचान लो मेरी ।"
"आह देवराज चौहान ।" उधर से जंग बहादुर का खुशी से भरा स्वर कानों में पड़ा--- "मुझे तो भरोसा ही नहीं रहा हो रहा कि तुमने फोन किया है। मेरा फोन याद था तुम्हें ? मुझे हैरानी हो रही है कि तुमने मुझे याद रखा और...।"
"मैं काठमांडू में हूं ।"
"काठमांडू में? तो तुम मेरे पास क्यों नहीं आए । मुझे खबर क्यों नहीं दी अपने आने की ?"
"मैं किसी काम में व्यस्त हूं। तुम क्या कर रहे हो ?"
"मैं तो पूरी तरह फुर्सत में हूं। अभी तो वो नोट ही चल रहे हैं जो तुम्हारी मेहरबानी से डेढ़ साल पहले मिले थे। मुझे बताओ कि तुम कहां पर हो। मैं तुम्हें लेने आता हूं । नया साल आने वाला है, मिलकर...।"
"मैंने तुम्हें एक काम के लिए फोन किया है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"बोलो ।" जंग बहादुर अब शांत दिखा ।
"मैं तुम्हें काठमांडू की एक घर के बारे में बता रहा हूं। उस घर में रहने वालों की मुझे पूरी रिपोर्ट चाहिए ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने माला के घर के बारे में समझाया--- "इस घर में माला और बंधु नाम के भाई-बहन रहते हैं। साथ में तीन लोग पदम सिंह, गोरखा और विजय हैं ।"
"क्या जानना चाहते हो इनके बारे में ।"
"जो भी तुम पता लगा सको, वही जानना चाहता हूं ।"
"समझ गया। टेढ़ा मामला है क्या?" उधर से जंग बहादुर ने पूछा।
"अभी पता नहीं । मेरा फोन नम्बर तुम्हारे फोन में आ गया है। जानकारी इकठ्ठी करके मुझे फोन करना ।"
"घर नहीं आओगे क्या ?"
"बाद में। इस काम से फुर्सत पा लूं ।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया ।
■■■
जगमोहन शाम को पांच बजे ब्लू स्टार कसीनो पहुंच गया। चार बजे माला के घर से निकला था और सीधा अपने कमरे में पहुंचा। कपड़े बदले, कसीनो का काला सूट पहना और कसीनो आ पहुंचा। चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे कि आज बाज बहादुर किस हाल में होगा। ये तो स्पष्ट था कि पुलिस उसके बेटे का पता नहीं लगा पाएगी। अपने बेटे की तलाश में दौड़ फिर रहे बाज बहादुर को न तो ठीक से नींद आ रही होगी और न ही कसीनो में ड्यूटी पर मन लग रहा था। उसकी पत्नी रो-धो कर अलग से परेशान कर रही होगी। लेकिन जगमोहन चाहता था कि बाज बहादुर अच्छी तरह थक-टूट जाए, उसके बाद ही अपने प्लान का हिस्सा शुरू करेगा। आज उसने कसीनो की ऊपरी मंजिल देखनी थी कि वहां पर क्या है? अगर बाज बहादुर कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती करने के लिए, सहायता देने के लिए नहीं माना तो फिर दूसरे तरीके से स्ट्रांग रूम में नोटों को उड़ाना पड़ेगा, काम तो करना ही था ।
आज भीड़ थी, वरना इस वक्त तो बहुत ही कम लोग होते थे कसीनो में ।
जगमोहन कसीनो में ड्यूटी पर लग गया ।
पैंतालीस मिनट बाद ही उसने एक ऐसी औरत को रंगे हाथ पकड़ा जो कि गेम की भीड़ के दर्शक बने लोगों में से एक की जेब से पर्स खिसका रही थी। जगमोहन ने उस औरत को अन्य सिक्योरिटी वालों के हवाले कर दिया। जगमोहन को देवराज चौहान कहीं नहीं दिखा। आज चौबीस तारीख थी बाल्को खंडूरी ने जापान से आज यहां पहुंचना था। जगमोहन ने देवराज चौहान को फोन किया ।
"बाल्को खंडूरी पहुंच गया?" जगमोहन ने पूछा ।
"अभी नहीं। परंतु अगले दो घंटे में आ जाएगा। वो नौ बजे पहुंचने वाली फ्लाइट से आ रहा है। मैंने रिसैप्शन से, किसी अन्य आदमी द्वारा, फोन पर ये बात मालूम करवाई है। चौथे फ्लोर पर उसका कमरा पहले से ही बुक है ।"
"बस ये ही मालूम करना था ।" कहकर जगमोहन ने फोन बंद कर दिया ।
साढ़े आठ बज गए। कसीनो की भीड़ में ओम नाटियार से उसकी मुलाकात हुई ।
"तुमने आज एक पॉकेटमार को पकड़ा ।" नाटियार बोला ।
"हां ।" जगमोहन ने सिर हिलाया ।
"आजकल मैनेजर साहब को क्या हो गया है।" नाटियार ने कहा--- "हर रोज ही लेट आ रहे हैं ।"
"पता नहीं ।" जगमोहन मुस्कुराया--- "किसी काम में फंसे होंगे।"
"जब तक वो नहीं आते, तब तक गुरंग साहब, मैनेजर के ऑफिस में मौजूद रहते हैं ।"
"यहां की देखभाल के लिए कोई तो होना चाहिए ।" जगमोहन बोला ।
नाटियार आगे बढ़ गया ।
जगमोहन ने मोबाइल निकालकर बंधु को फोन किया ।
"कोई पंगा तो नहीं खड़ा किया ?" जगमोहन ने पूछा ।
"नहीं। वहम में मत पड़ो। अब मैं कोई गड़बड़ नहीं करने वाला।" दूसरी तरफ से बंधु की आवाज आई ।
"माला से बात कराओ ।"
मिनट-भर बाद जगमोहन ने माला से बात की। सब ठीक था। बंधु अब शराफत से चल रहा था। जगमोहन ने फोन बंद करके जेब में रखा और उस हॉल की तरफ बढ़ गया, जहां जुए की मशीनें लगी थी। आज मशीनों पर जुआ खेलने वाले भी, ज्यादा नजर आ रहे थे। काफी सारे नए चेहरे थे। स्पष्ट था कि क्रिसमस और न्यू ईयर मनाने लोग काठमांडू पहुंचते जा रहे थे ।
जगमोहन ने उस हॉल में टहलते हुए कोने में मौजूद एक दरवाजे को देखा जो कि लकड़ी का दरवाजा था। उस पर पीतल का हैंडिल लगा हुआ था। जगमोहन जानता था कि उस दरवाजे के पीछे ऊपर जाने की सीढ़ियां थी। एक और रास्ता था ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए। वो रास्ता कसीनो के किचन से होकर जाता था, ऐसे में उस रास्ते का इस्तेमाल करना ठीक नहीं था, इससे कई लोग देख लेते कि वो ऊपर की मंजिल पर गया है । हालांकि इसमें एतराज वाली कोई बात नहीं थी, परंतु वो ये काम खामोशी से करना चाहता था। कुछ देर बाद जगमोहन उस दरवाजे के पास पहुंचा और पलट कर वहां मौजूद लोगों पर नजर मारी जो जुए के रंग में रंगे हुए थे। फिर उसने दरवाजे का हैंडिल पकड़कर खोजने के लिए दबाया । परंतु दरवाजा लॉक्ड था। जगमोहन दरवाजे से हट गया । कुछ देर वहीं हॉल में रुकने के बाद बाहर निकल गया। वो किसी तरह की तलाश में था कि जिससे उस दरवाजे को खोल सके । परंतु कसीनो जैसे माहौल में किसी तार का मिलना कठिन था । वो कसीनो से बाहर निकल गया। बाहर कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। तेज हवा शरीर को चीर रही थी। कसीनो की एक दीवार पर तारों का जाल लगा था और उसमें से तार का छोटा-सा टुकड़ा नीचे लटक रहा था। गेट पर दो वाचमैन मौजूद थे । एक लकड़ी के केबिन में बैठा हुआ था। जगमोहन ने उस वॉचमैन से कहा कि उस तार का टुकड़ा काटकर उसे दे । वॉचमैन ने उसे बताया कि उसके पास तार का टुकड़ा रखा है । वो कुछ मिनटों के लिए वहां से गया और जब लौटा तो उसके हाथ में एक फुट लम्बा एल्युमीनियम का तार का टुकड़ा था । जगमोहन ने तार को गोल-गोल घुमा कर छोटा किया और दरबान को धन्यवाद कहकर कसीनो में वापस गया ।
जगमोहन पुनः मशीनों वाले हॉल में पहुंचा और कुछ पल टहलने के पश्चात उस दरवाजे के पास जा पहुंचा । वो इस बात पर ध्यान रख रहा था कि उसकी तरह के, कसीनो पर नजर रखने वाले कर्मचारी उसकी हरकत ना देख लें। जबकि कसीनो में जुआ खेल रहे लोगों की उसे परवाह नहीं थी। जगमोहन ने जेब से तार निकाली और की-होल में डालकर, हैंडिल पकड़कर लॉक खोलने की चेष्टा करने लगा । मिनट-भर लगा और लॉक खुल गया। उसने तार फेंकी एक तरफ और दरवाजे से दूर हटकर टहलने लगा। अब वो कभी भी दरवाजा खोलकर, कसीनो की पहली मंजिल पर जा सकता था। मशीनों वाले हॉल से बाहर निकला कि तभी उसकी निगाह अजीत गुरंग और बाज बहादुर पर पड़ी जो कि एक तरफ खड़े बात कर रहे थे । बाज बहादुर परेशान लग रहा था ।
जगमोहन वहीं पर टहलने लगा ।
दो मिनट बाद गुरंग को उस तरफ जाते देखा, जिधर होटल ब्लू स्टार में जाने का रास्ता था ।
बाज बहादुर अपने ऑफिस की तरफ चला गया ।
कुछ देर बाद जगमोहन बाज बहादुर के ऑफिस जा पहुंचा ।
"नमस्कार साहब जी ।" जगमोहन में हाथ जोड़कर कहा--- "आपका बेटा मिल गया क्या ?"
बाज बहादुर ने परेशान निगाहों से उसे देखा ।
जगमोहन उसी तरह भोलेपन से खड़ा उसे देखता रहा ।
"नहीं ।" बाज बहादुर ने व्याकुल स्वर में कहा ।
"पुलिस क्या कहती है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"वो ढूंढ रही है मिल जाएगा। पहले तो मुझे भी लगता था कि पुलिस ढूंढ लेगी गोपाल को । परंतु अब ऐसा नहीं लगता। ढाई दिन हो गए उसका अपहरण हुए परंतु पुलिस को जरा भी सफलता नहीं मिली। पता नहीं मेरा बेटा मुझे मिलेगा भी या नहीं ?" बाज बहादुर जैसे थक गया लगता था ।
जगमोहन ने चेहरे पर परेशानी ओढ़ ली थी ।
"भगवान पर भरोसा रखिए । आपका बेटा जरूर मिलेगा साहब जी ।" जगमोहन बोला ।
बाज बहादुर ने कुछ नहीं कहा ।
जगमोहन वहां से बाहर निकला और मशीनों वाले हॉल में जा पहुंचा। जहां लोगों का शोर उठ रहा था। काठमांडू आए पयर्टक मशीनों पर जुआ खेलने और बातें करने में व्यस्त थे। शोर उठ रहा था । तभी नाटियार से उसका सामना हो गया ।
"मैनेजर साहब आ गए हैं।" जगमोहन ने कहा ।
"हां। मैंने उन्हें देखा। दो-तीन दिन से परेशान लग रहे हैं । आज तो मुझे ज्यादा ही परेशान दिखे ।"
"मैंने ध्यान नहीं दिया ।" जगमोहन बोला ।
नाटियार वहां से चला गया ।
जगमोहन कुछ देर बाद उस दरवाजे पर पहुंचा, हैंडिल दबाकर दरवाजे का दबाव दिया तो वो खुल गया। जगमोहन फौरन भीतर प्रवेश कर गया और दरवाजा बंद कर लिया था। वहां अंधेरा था। सामने एक रोशनदान था, उधर से आती मध्यम रोशनी में पास ही धुंधली-सी सीढ़ियां नजर आ रही थी, जो ऊपर को जा रही थी। जगमोहन कुछ देर वहीं रहा कि अगर किसी ने उसे दरवाजे के भीतर प्रवेश करते देखा है तो वो जरूर उसके पीछे देखने आएगा कि वो इधर क्या करने गया है ।
परंतु डेढ़ मिनट बीतने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो जगमोहन समझ गया कि सब ठीक है। वो आगे बढ़ा और हाथ बढ़ाकर सीढ़ियों की रेलिंग पकड़ी और अंधेरे में, सावधानी से सीढ़ियां चढ़ने लगा। उसके कदमों की आहट नहीं उभर रही थी। पूरी तरह सतर्क था जगमोहन और इस बात को भूला नहीं था कि ऊपर की मंजिल पर भी स्ट्रांग रूम को देखने के लिए कमरा बना है। वहां भी स्क्रीनें लगी है और दो लोग मौजूद रहते हैं। बाज बहादुर ने ही बताई थी ये बात ।
जगमोहन पहली मंजिल पर आ गया ।
यहां कहीं-कहीं मध्यम-सी रोशनी फैली थी। उस रोशनी में चलने-फिरने में दिक्कत नहीं थी। जो पहली बार जगमोहन ने महसूस की, वो ये कि ऊपर का नक्शा भी ठीक नीचे जैसा था और उस वक्त वो ऐसे हॉल में खड़ा था, जहां नीचे मशीनों वाला हॉल था। मध्यम-सी रोशनी थी वहां । दो-तीन कम रोशनी वाले बल्ब जल रहे थे। वहां कोई व्यक्ति नहीं था परंतु कबाड़ फर्नीचर रखा हुआ था, जिनमें कुछ मशीनें या गेम खेलने वाले बड़े-बड़े टेबल पड़े थे। टूटी-फूटी कुर्सियां पड़ी थी ।
जगमोहन आगे बढ़ा और रास्ता बनाते, बेआवाज-सा उस हॉल से बाहर आ गया । नीचे-ऊपर का एक ही नक्शा होने की वजह से रास्ते को जानने की कोई परेशानी नहीं हुई और वो उस हॉल में जा पहुंचा, जहां नीचे ताश के टेबल लगे थे। उसी हॉल में एक तरफ स्ट्रांग रूम को जाने का रास्ता था। जगमोहन उस तरफ बड़ा जिधर नीचे, स्ट्रांग रूम का रास्ता पड़ता था ।
चंद पलों में ही वो एक गैलरी के मुहाने पर खड़ा था ।
जगमोहन देखते ही समझ गया कि इसी रास्ते की तलाश थी उसे। नीचे इस रास्ते पर एल्युमीनियम वाले शीशे वाला दरवाजा था और वहां पर दो गनमैन खड़े थे। परंतु ये रास्ता सीधा साफ था। जगमोहन की निगाह बाईं तरफ के पहले कमरे के दरवाजे पर जा टिकी। वो दबे पांव आगे बढ़ा। दरवाजे के पास पहुंचा और दरवाजे से कान लगाकर, भीतर की आहट ली ।
भीतर से मध्यम-सी आवाजें उठती सुनी ।
वो लोग बातें कर रहे थे ।
तो स्ट्रांग रूम का दूसरा कंट्रोल रूम ये था ।
जगमोहन वहां से हटा और आगे बढ़ता चला गया। कुछ आगे जाकर, नीचे की तरफ ही गैलरी बाईं तरफ मुड़ रही थी। जगमोहन ने मोड़ पर सावधानी से आगे झांका और गैलरी खाली पाकर आगे बढ़ गया। उस गैलरी के अंत में जब बाईं तरफ मुड़ा तो ठिठक गया। सामने ही एक कमरा था और दरवाजा खुला हुआ था । ये ठीक स्ट्रांग रूम से ऊपर का कमरा था ।
जगमोहन भीतर प्रवेश कर गया ।
ये कमरा ठीक स्ट्रांग रूम के साइज का ही था। उसे ऐसा लगा जैसे कल देखा स्ट्रांग रूम अचानक ही खाली कर दिया गया हो। नीचे और ऊपर के कमरे के साइज में जरा भी फर्क नहीं था। जगमोहन वहां नजरें दौड़ाता रहा। फिर फर्श को देखा। इस फर्श के नीचे वाले कमरे में करोड़ों की दौलत मौजूद थी। कसीनो वाले स्ट्रांग रूम को तगड़ी सिक्योरिटी दिए हुए थे परंतु उन्होंने ये कभी नहीं सोचा था कि यहां से भी स्ट्रांग रूम में जाया जा सकता है । फर्श को छोटे विस्फोट से उड़ा कर रास्ता बनाया जा सकता है ।
जगमोहन ने जो देखना था वो देख लिया था ।
कसीनो के स्ट्रांग रूम में प्रवेश करने की बहुत आसान प्लानिंग उसकी। खतरा बहुत कम था। फर्श का थोड़ा-सा हिस्सा उड़ाकर, स्ट्रांग रूम में उतरा जा सकता था । और नोट लेकर वापस आया जा सकता था। परंतु जो दो आदमी ऊपर के कंट्रोल रूम में थे उन पर काबू पाना होगा काम के दौरान और पांच लोग जो नीचे स्ट्रांग रूम में थे उन्हें भी संभालना होगा कि वो किसी तरह का विरोध पैदा ना कर सकें और बाहर वालों को खबर ना दे सकें कि कसीनो लूटा जा रहा है । क्या पता इन सब बातों की जरूरत न पड़े और बाज बहादुर अपने बेटे की वजह से उसका साथ देने को तैयार हो जाए। परंतु अपनी प्लानिंग को तैयार रखना चाहता था कि मौके पर कैसे भी काम की जरूरत हो, काम पूरा किया जा सके । इसके लिए एक बारूद एक्सपर्ट की जरूरत थी, जो कि कम शोर करके फर्श के उस हिस्से को उड़ा सके। अपनी सोचों में उलझा जगमोहन वापस चल पड़ा । उस कमरे के सामने से वो सावधानी से पार हुआ कि भीतर के लोग बाहर न आ जाएं। कुछ ही देर बाद वो सीढ़ियां उतरा और दरवाजा खोलते हुए वापस मशीनों वाले हॉल में आ गया जहां लोग जुआ खेलते हुए अपनी किस्मत आजमाने में व्यस्त थे । जगमोहन ने दरवाजा बंद कर दिया था। चेहरे पर गम्भीरता थी। तभी मशीन के पास खड़ा एक आदमी उसकी तरफ बढ़ आया। पास आकर बोला ।
"ये बाथरूम है सर ?"
"नहीं। ये प्राइवेट रास्ता है। बाथरूम उस तरफ है ।" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा ।
■■■
बाल्को खंडूरी सैंतीस वर्ष का चुस्त व्यक्ति था। कद पांच फुट सात इंच था। चेहरा आकर्षण था। रंग गोरा और अक्सर उसके होठों पर मुस्कान छाई रहती। देखने में साधारण व्यक्ति-सा लगता था। परंतु ड्रग्स के धंधे में उसकी जड़ें मजबूती से जमी हुई थी। दौलत का ढेर था उसके पास। अगर कहीं से उसे दौलत कमाने का मौका मिलता तो वो उस मौके को नहीं जाने देता। 24 दिसम्बर को हर साल वो ब्लू स्टार कसीनो पहुंचता और करोड़ों का जुआ खेलता। इन सात दिनों में वो बिजनेस की कोई बात नहीं करता था और पहली तारीख की शाम को वो वापस जापान चला जाता था । होटल के स्पेशल मेहमानों में से था बाल्को खंडूरी। उसका पूरा ध्यान रखता था स्टॉफ ।
ब्लू स्टार होटल की लम्बी गाड़ी में होटल के तीन कर्मचारी उसे एयरपोर्ट से लेकर आए थे। उसने होटल को अपनी फ्लाईट के बारे में पहले ही बता दिया था। ऐसे में उसके लिए होटल की गाड़ी वहां मौजूद थी। जब वो होटल के भीतर पहुंचा तो तब तक उसके आने की खबर पाकर अजीत गुरंग वहां आ पहुंचा ।
देवराज चौहान पहले से ही होटल के रिसैप्शन के पास लॉबी में सोफों पर बैठा था और एक ही निगाह में उसने बाल्को खंडूरी को पहचान लिया था । माथुर ने उसे, उसकी तस्वीर दिखाई थी।
अजीत गुरंग को देखते ही बाल्को खंडूरी दोनों बांहें फैलाए आगे बढ़ा ।
"ओ मेरे दोस्त, मिस्टर गुरंग ।"
"वेलकम मिस्टर बाल्को खंडूरी ।" अजीत गुरंग मुस्कान से नहा उठा ।
दोनों गले मिले। अलग हुए ।
"आप तो बिल्कुल वैसे ही हैं मिस्टर बाल्को। जरा भी नहीं बदले।" गुरंग हंसकर बोला ।
"आप भी कहां बदले मिस्टर गुरंग।" बाल्को खंडूरी ने हंसकर कहा ।
"मैं बेताबी से आपके पहुंचने का इंतजार कर रहा था ।"
"लो हम आ गए।" तभी बाल्को खंडूरी ने पास से निकलते होटल के पोर्टर को टोका--- "सुनो, ये काला वाला सूटकेस यहीं पर रख दो और दूसरे सूटकेस को मेरे कमरे में रख दो ।"
पोर्टर काला वाला सूटकेस वहीं रख कर आगे बढ़ गया ।
"आपके कमरे में होटल की तरफ से, स्वागत में शैम्पेन की बोतल सजा रखी है मिस्टर बाल्को ।" गुरंग मुस्कुरा कर बोला ।
"वैरी गुड । शैम्पेन की जरूरत तो मुझे कब से महसूस हो रही थी । थैंक्स, लेकिन इस सूटकेस में मेरा कीमती सामान है और हमेशा की तरह सूटकेस को मैं आपके कसीनो के स्ट्रांग रूम में रखवाना चाहूंगा ।" बाल्को खंडूरी ने कहा ।
"मैं समझ गया । ये सूटकेस अभी स्ट्रांग रूम में पहुंच...।"
"मैं भी साथ चलूं तो आपको ऐतराज नहीं होगा ।" मैं भी देख लूंगा कि स्ट्रांग रूम की सुरक्षा के इंतजाम वैसे ही हैं या बदल गए ।"
"श्योर मिस्टर बाल्को । आप भी साथ आइए ।" कहने के साथ ही गुरंग के होटल के कर्मचारी को सूटकेस ले चलने का इशारा किया ।
अजीत गुरंग और खंडूरी चल पड़े । सूटकेस थामे वो कर्मचारी उनके आगे चल रहा था। देखने में ही पता चल रहा था कि सूटकेस कुछ भारी है। देवराज चौहान उठा और उनके पीछे चल पड़ा । वो कसीनो जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ रहे थे ।
"मिस्टर बाज साहब कैसे हैं ?" बाल्को बोला ।
"एकदम बढ़िया। वो कई बार आपको पूछ चुके हैं ।" गुरंग चलते-चलते मुस्कुराया ।
"आपका नेपाल बहुत अच्छा है । मुझे तो नेपाल में ही रहना चाहिए, पर वक्त ही नहीं मिलता काम-धंधे में। फिर यहां मिलने वाला भी नहीं है कोई । मेरे पिता नेपाली थे परंतु जीवित नहीं रहे। बहुत खुशनुमा जगह है नेपाल ।"
"आप हमारे पास आइए नेपाल में । हम हैं आपके मिलने वाले। हम आपकी सेवा करेंगे ।"
बाल्को खंडूरी हंसा । बोला ।
"अब आपके भरोसे ही तो नेपाल आता हूं ।"
दोनों कसीनो में पहुंचे ।
बाज बहादुर से मिले ।
बाज बहादुर ने बाल्को के गले लग कर उसका स्वागत किया । मिनट भर दोनों बातें करते रहे । फिर बाज बहादुर बाल्को को लेकर स्ट्रांग रूम की तरफ चल पड़ा । सूटकेस उठाए कर्मचारी उनके पीछे था । गुरंग कसीनो में टहलने लगा ।
देवराज चौहान, बाल्को की हर हरकत पर नजर रखे था ।
जब वे स्ट्रांग रूम के दरवाजे पर पहुंचे तो बाज बहादुर के इशारे पर एक गनमैन ने होटल के कर्मचारी से सूटकेस थाम लिया और एल्युमीनियम का दरवाजा खोलते भीतर प्रवेश कर गया । बाज बहादुर और बाल्को खंडूरी उसके साथ रहे । वो नजरों से ओझल हो गए और देवराज चौहान उसी ताश वाले हॉल में रहा। छिपी नजर स्ट्रांग रूम में प्रवेश द्वार पर रही । दस मिनट बाद बाज बहादुर और बाल्को बाहर निकले। वो सूटकेस ले जाने वाला गनमैन तो पहले ही वापस आ चुका था। अब उनके पास सूटकेस नहीं थे । स्पष्ट था कि उसे स्ट्रांग रूम में रख दिया गया था ।
देवराज चौहान बाल्को पर नजर रखे उनके पीछे था। कसीनो की इतनी भीड़ में ये जान पाना संभव ही नहीं था कि कौन किसके पीछे हो सकता है । बाज बहादुर, खंडूरी के साथ, गुरंग से मिला फिर गुरंग और बाल्को खंडूरी होटल में पहुंचने वाले रास्ते की तरफ बढ़ गए ।
देवराज चौहान तब तक बाल्को खंडूरी पर नजर रखता रहा, जब तक कि चौथी मंजिल के 414 नम्बर कमरे में प्रवेश कर गया। वो ही उसका कमरा था। देवराज चौहान सीढ़ियों से तीसरी मंजिल पर पहुंचा और अपने कमरे में आ गया। चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी । देवराज चौहान को पूरा भरोसा था कि वो माइक्रोचिप उसी सूटकेस में थी, जो उसने कसीनो के स्ट्रांग रूम में रखवाया था ।
तभी जगमोहन का फोन आया ।
"मैंने अभी बाल्को खंडूरी को कसीनो में देखा है। वो बाज बहादुर के साथ...।"
"तब मैं उस पर नजर रख रहा था। उसने अपना एक सूटकेस कसीनो के स्ट्रांग रूम में रखवाया है ।" देवराज चौहान बोला ।
"कसीनो के स्ट्रांग रूम में सूटकेस रखवाया है?" उधर से जगमोहन ने सोच-भरे स्वर में कहा ।
"शायद ऐसा वो हर साल करता है। परंतु मुझे पूरा विश्वास है कि वो माइक्रोचिप उसी में मौजूद होगी। उसे वो अपने पास नहीं रखेगा ।"
"ये संभव है ।" जगमोहन का सोच-भरा स्वर आया--- "माइक्रोचिप स्ट्रांग रूम में पहुंच गई है तो उसे हासिल कैसे करोगे ?"
"कोई रास्ता तो निकालना पड़ेगा ।" देवराज चौहान ने सोच-भरे स्वर में कहा ।
■■■
वो दिन, मतलब कि रात इसी तरह बीती ।
जगमोहन सुबह चार बजे अपने कमरे में पहुंचा और सो गया । अगले दिन दस बजे उठा। कल रात उसके बाद बाज बहादुर से उसके बेटे के बारे में कोई बात नहीं हुई थी, परंतु बाज बहादुर को देखता रहा जो कि कम ही कसीनो में आया और ज्यादातर वो अपने ऑफिस में ही बैठा रहा था। हर समय वो बहुत परेशान और तनाव में दिखा था ।
जगमोहन तैयार होकर कल के ही वक्त साढ़े ग्यारह बजे माला के घर पर जा पहुंचा। आज भी माला दरवाजे के बाहर कुर्सी रखे, उसका इंतजार करती मिली। जगमोहन को अच्छा लगा कि माला उसका इंतजार करती है। वो भीतर पहुंचे। हॉल कमरे में कोई नहीं था। जगमोहन के पूछने पर माला ने बताया कि बंधु अभी सो रहा है और विजय, गोपाल की निगरानी कर रहा है ।
पदम सिंह और गोरखा एक कमरे में थे। माला उसके लिए नाश्ता तैयार करने लगी। जगमोहन उसके पास ही, किचन में खड़ा बातें करता रहा। माला के खूबसूरत चेहरे को निहारता रहा। मन में ये ही सोच रहा था कि कुछ दिन की बात है फिर माला हमेशा उसके करीब रहा करेगी ।
कुछ देर बाद बंधु की आवाज सुनाई दी ।
"आ जाओ दोस्त । मुझे तुम्हारे आने की खुशबू आ गई है ।"
जगमोहन बाहर निकला तो बंधु को सोफा चेयर पर बैठे पाया। पदम सिंह भी वहीं बैठा था। बंधु के चेहरे से साफ लग रहा था कि वो सोया उठ कर आया है। उसने वहीं बैठे-बैठे माला को आवाज दी कि चाय बना दे ।
जगमोहन उसके सामने जा बैठा ।
"कुछ बात आगे बढ़ी ?" बंधु ने जगमोहन से पूछा ।
"कल।मैंने कसीनो की ऊपरी मंजिल का हिस्सा देखा।" जगमोहन बोला ।
"कुछ फायदा हुआ ?"
"हां। अगर बाज बहादुर नहीं माना तो तब भी हम वहां से अपना काम आसानी से जारी रख सकते हैं। इसके लिए कसीनो को देखने वाले ऊपरी कमरे में जो दो व्यक्ति हैं उन पर काबू पाना होगा। जो कसीनो के स्ट्रांग रूम में पांच आदमी होंगे, उन्हें कंट्रोल करने का मैंने सोच लिया है। हमें एक बारूद एक्सपर्ट की जरूरत होगी ।" जगमोहन ने कहा ।
"बारूद एक्सपर्ट ?" बंधु ने पदम सिंह को देखा--- "कोई है ऐसा ?"
"मंजीत सिंह है तो।" पदम सिंह कह उठा---"हिन्दुस्तान की सरकार से छिपा, यहां नेपाल में बैठा है। वो पाकिस्तान से बारूदी काम सीखकर आया था कभी । वो हमारा काम करने को तैयार हो जाएगा ।"
"लो। ये समस्या तो हल हो गई ।" बंधु मुस्कुराया ।"
जगमोहन चुप रहा ।
"तुम्हारा प्लान क्या है ?"
"कसीनो के ऊपर मंजिल पर पहुंचना बड़ा ही आसान है । जैसा कसीनो का नक्शा है, ऊपर भी वैसा ही बना हुआ है। वहां एक कमरे में दो आदमी बैठे इस स्ट्रांग रूम में नजर रखते हैं। नीचे के कमरों का कनैक्शन उनके पास भी है ।"
"तुमने बताया था पहले ।"
"अगर हम स्ट्रांग रूम की छत का छोटा-सा टुकड़ा विस्फोट से उड़ाते हैं तो उसी पल हमें जहरीली गैस के बम पैदा हुए उस रास्ते से नीचे फेंक देने होंगे कि धमाके की वजह समझने से पहले ही वहां मौजूद हर कोई बेहोश हो जाए। बमों से निकली वो जहरीली गैस इतनी तेज होगी कि दस-पन्द्रह सेकंड में ही स्ट्रांग रूम में मौजूद आदमी बेहोश हो जाएंगे। मिनट भर में उस जहरीली गैस का असर कमरे में खत्म हो जाएगा। याद रहे कि इस काम के दौरान मैं कसीनो में रहूंगा । ये काम तुम लोगों को ही करना है। मैं प्लान बनाऊंगा । रास्ता तैयार करूंगा । बढ़ोगे तुम लोग आगे ।"
"तुम साथ क्यों नहीं होंगे ?"
"क्योंकि स्ट्रांग रूम में मिलने वाली दौलत तुम्हारी है मेरी नहीं । जितना मैं कर रहा हूं वो ही बहुत है सफलता या असफलता, ये तुम लोगों के काम पर निर्भर होगी। मेरे काम में किसी तरह की कमी नहीं होगी। सब कुछ परोस कर दे रहा हूं ।" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा--- "पैसा तुम लोगों के हाथ लगे या ना लगे। मैं माला को ले जाऊंगा ।
"ये कैसे हो सकता है। तुम हमें वहां मुसीबत में भी फंसा सकते हो ।" बंधु बोला ।
"इस बात का मैं जिम्मेवार हूं कि तुम लोग मुसीबत में नहीं फंसोगो। फंसे तो वो मेरी गलती नहीं होगी ।"
"बारूद का धमाका सुनकर ही लोगों को पता चल गया तो ।"
"वो जिम्मेवारी मेरी रही। ऐसा बारूद इस काम में इस्तेमाल किया जाएगा जो फटते हुए कम आवाज करता है और ये काम तब किया जाएगा जब कसीनो की तरफ से बाहर तगड़े बम-पटाखे छोड़े जा रहे होंगे। अगर तुम लोगों में थोड़ी-बहुत काबिलियत हुई तो ये काम कर लोगे ।"
"काबिलयत तो बहुत है ।" बंधु हंस पड़ा--- "नोट वहां से बाहर कैसे निकालेंगे ?"
"एक तुममें से ऊपर ही रह जाएगा और बाकी दो नीचे उतरेंगे...।"
"बाकी दो ?" बंधु ने टोका--- " हम तो चार हैं ।"
"एक उस वक्त उन दोनों बेहोश आदमियों पर नजर रख रहा होगा, जो कंट्रोल रूम में बेहोश होगें ।"
"हूं, ठीक है। एक ऊपर रहेगा, दो स्ट्रांग रूम में उतरेंगे । फिर...।"
"वहां तुम लोगों के पास बड़े-बड़े बैग होंगे । रस्सी से बांधकर बैग नीचे लटकाया जाएगा, जब तुम लोग बैग करेंसी से भर दोगे तो ऊपर वाला ऊपर खींच लेगा बैग को और दूसरा खाली बैग नीचे लटका देगा ।"
"समझ गया। परंतु इतने बैगों के साथ हम बाहर कैसे निकलेंगे ?"
"ऊपर की मंजिल पर, दाईं तरफ एक छोटी-सी बालकनी पतली गली में खुलती है। वो गली कूड़ा घर जैसा बनी हुई है । लोग उस गली को इस्तेमाल नहीं करते । तुम लोगों को नीचे फेंक दोगे फिर रस्सी के सहारे खुद भी नीचे उतरकर खिसक जाओगे। अब एक ही समस्या सामने आती है कि जब तुम लोग स्ट्रांग रूम में घुसोगे, ऊपर छत की तरफ ब्लास्ट करके रास्ता बनाओगे तो ये सब नीचे के कंट्रोल रूम में देखा जा सकता है कि स्ट्रांग रूम में क्या हो रहा है ।"
बंधु के माथे पर बल पड़े ।
"फिर ? इस बात का क्या होगा ?"
"इसका भी कोई इंतजाम हो जाएगा । मैं कोई रास्ता निकाल लूंगा। नहीं तो आखिरी रास्ता तो है ही कि मैं तब वहां की रोशनी गुल कर दूं ।"
जगमोहन ने बंधु को देखा--- "कम-से-कम तुम लोगों को कोई परेशानी नहीं आएगी कि मैं ये काम कैसे करता हूं ।"
"मतलब कि तुमने सोच लिया है कि काम इसी तरह करना है ।" बंधु ने कहा ।
"अभी कुछ भी तय नहीं है। परंतु मैंने दूसरा रास्ता तैयार कर लिया है ये डकैती किसी भी कीमत पर रुके नहीं । हो जाए ।"
"बाज बहादुर कैसा है । "बंधु ने गम्भीर स्वर में पूछा ।
"अपने बेटे के बारे में कुछ भी पता न लगने से परेशान है ।" जगमोहन ने कहा ।
"वो परेशान ही रहेगा ।" बंधु मुस्कुराया ।
"इस बात से ज्यादा परेशान है कि उसे अपहरणकर्ताओं का कोई फोन भी नहीं आया। वो थक रहा है ।"
"तो क्या उसे फोन किया जाए ?"
"अभी नहीं । आज क्रिसमस है । परसों देर रात उसे फोन करेंगे। मैं तुम्हें सारी प्लानिंग समझा दूंगा की उससे कैसे बात करनी है और क्या बात करनी है ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "याद रखना तुमने वो ही करना है, जो मैं कहूं, वरना मेरी जिम्मेवारी नहीं होगी कि डकैती असफल हो जाए । मैं तो पूरी तरह तुम्हारा साथ दे रहा हूं ।"
"ये कहकर तुम पल्ला नहीं झाड़ सकते, असफल होने की स्थिति में ।" बंधु ने कहा ।
"मैं हर तरह से पल्ला झाड़ सकता हूं और तुम मेरा या माला का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते ।" जगमोहन बोला ।
"इतने सख्त शब्द मत बोलो । हम लोग मिलकर काम कर रहे हैं। वैसे मुझे तुम्हारी वो बात पसंद नहीं आई कि अगर स्ट्रांग रूम में रास्ता बनाकर उसमें जाया जाए तो तुम हमारे साथ भी नहीं होगे।"
"गलत मत समझो।" मैं साथ में होऊंगा। मेरी प्लानिंग पर काम किया जा रहा है और मैं बाहर रहकर इस बात का ध्यान रखूंगा कि अगर उस वक्त तुम लोगों पर कोई संकट आता है तो, मैं तुम सबकी सहायता कर सकूं ।" जगमोहन ने कहा ।
तभी माला नाश्ते की प्लेट ले आई जगमोहन के लिए और बंधु के लिए चाय ।"
जगमोहन नाश्ता करने लगा ।
बंधु ने चाय का घूंट भरा ।
"हमें बारूद और जहरीले स्मोक बमों का इंतजाम करके रखना है कि अगर स्ट्रांग रूम में जाना पड़े तो कोई दिक्कत न हो ।"
बंधु ने पदम सिंह को देखा ।
"इसका तो इंतजाम करना पड़ेगा। मनजीत सिंह से बात करूंगा कि ये सामान कहां मिलेगा।" पदम सिंह ने कहा--- "इसमें खर्चा होगा ।"
"कितना ?" बंधु ने पूछा ।
"कोई आईडिया नहीं ।"
"खर्चे की चिंता मत करो ।" जगमोहन नाश्ता करते कह उठा--- "माला के लिए मैं खर्चा भी उठाने को तैयार हूं ।"
बंधु हंसा और बोला ।
"कितनी किस्मत वाली है माला। तुम तो उसे सारी जिंदगी ऐश कराओगे। बहुत पैसा होगा तुम्हारे पास ।"
जगमोहन कुछ नहीं बोला ।
"पदम।" बंधु चाय का घूंट भरता कह उठा--- "आज मनजीत सिंह से मिलना । खर्चा भी पूछ लेना सामान का ।"
पदम सिंह ने सिर हिला दिया ।
जगमोहन ने बताया कि इस काम के लिए कौन-सा बारूद चाहिए ।
"जरूरत पड़ी तो मैं फोन पर तुमसे मनजीत सिंह की बात करा दूंगा ।" पदम सिंह, जगमोहन से बोला ।
"ये तो और भी बढ़िया रहेगा ।" बंधु कह उठा ।
सोचों में डूबा जगमोहन नाश्ता कर रहा था ।
तभी माला दूसरा परांठा ले आई ।
"बस । इसके बाद और नहीं ।" जगमोहन ने कहा ।
"तुम लोगे ?" माला ने बंधु से पूछा ।
"दो घंटे बाद ही कुछ खाऊंगा बहन ।" बंधु मुस्कुराया--- "अभी नहीं ।"
माला चली गई ।
"तुम मुझे बताओ कि बाज बहादुर से क्या बात करनी है।" बंधु ने जगमोहन को देखा ।
"कल बताऊंगा। बाज बहादुर को फोन परसों देर रात किया जाएगा । पहले बताने का कोई फायदा नहीं ।"
"तुम्हें क्या लगता है कि बाज बहादुर हमारा साथ देने को तैयार हो जाएगा ।" बंधु ने गम्भीर स्वर में पूछा ।
"आधे-आधे के चांसिस हैं ।" जगमोहन ने कहा--- "परंतु अब जिस तरह वो हताश हो चला है, उससे चांसिस बढ़ जाते हैं । आज और कल में मुझे उसके मन की हालत और पता चल जाएगी कि उसके मन में क्या चल रहा है ।"
"अगर बाज बहादुर तैयार हो जाता है तो उसी स्थिति में तुमने क्या प्लानिंग सोच रखी है ?"
"हर बात को जानने की जल्दी मत करो " जगमोहन ने कहा--- "पहले बाज बहादुर से बात करो और उसका जवाब लो। एक-एक कदम करके आगे बढ़ो। डकैती के रास्ते पर छलांग लगाकर, काम पूरा नहीं होता। बहुत सब्र रखना पड़ता है।"
बंधु ने गहरी सांस ली। बोला।
"तुम दूसरे प्लान का भी ध्यान रखना कि अगर हम उस तरह काम करते हैं तो नीचे के कंट्रोल रूम वाले हमें देख रहे होंगे । उनसे कैसे निबटा जाएगा, ये सोचना मत भूलना। ये बहुत अच्छा प्वाइंट सोचा तुमने ।"
"अगर और कोई रास्ता ना मिला तो कुछ देर के लिए स्ट्रांग रूम की तरफ जाने वाली लाइट को काट दिया जाएगा ।
"सब कुछ चलता रहा है तुम्हारे दिमाग में। ये सब देवराज चौहान से सीखा ?"
जगमोहन ने बंधु को देखा ।
"वो ही बात करो जो तुमसे या काम से वास्ता रखती हो ।" जगमोहन ने कहा।
"देवराज चौहान की बात न करुं।" बंधु हंस पड़ा ।
"सिर्फ अपनी और काम की बात। अब इस बात का ध्यान रखना। हमें कारोबारी संबंधी हैं । ये ठीक है कि मैं तुम्हारी बहन के साथ शादी करूंगा, परंतु उससे हममें कोई रिश्ता कायम नहीं होगा । क्योंकि तुमने रिश्ते से ज्यादा पैसे को अहमियत दी है। तुम्हें डकैती चाहिए। नोट चाहिए। तुम्हें अपनी बहन की जरा भी परवाह नहीं है। फिर भी माला की खातिर मैं तुम्हें नोट दिलवाने का इंतजाम कर रहा हूं कसीनो में डकैती करके। इस जीवन में ये ही हमारी आखिरी मुलाकात रहेगी।"
"मैं तो बाद में भी रिश्ता बनाने को तैयार हूं । बाकी तुम्हारी इच्छा पर कि अगर तुम नहीं चाहते तो ना सही।" बंधु ने कहा।
"मैं नहीं चाहता ।"
"मर्जी तुम्हारी ।" बंधु ने चाय समाप्त की और सिगरेट सुलगा ली ।
तभी माला वहां पहुंची । उसके हाथ में अपने नाश्ते की प्लेट थी। जगमोहन के पास आकर बैठी और परांठा खाते मुस्कुराकर जगमोहन को देखा। परंतु जगमोहन उसे देखकर रह गया।
"क्या हुआ ?" माला ने पूछा ।
"काम के बारे में बातें हो रही हैं ।" जगमोहन ने बंधु को देखा--- "तुम्हारा भाई 31 दिसम्बर की रात अमीर बन जाएगा ।"
माला के चेहरे पर नफरत के भाव उभरे और वहां से उठ कर चली गई ।
"नाराज है ।" बंधु हंसा--- "ये इतनी नाराज मुझसे कभी नहीं हुई। कभी तो इसका गुस्सा उतरेगा ।"
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देवराज चौहान का पूरा ध्यान बाल्को खंडूरी पर था ।
दोपहर 12:30 बजे देवराज चौहान को सूर्य थापा का फोन आया ।
"जगमोहन आज फिर उस मकान पर कल वाले वक्त पर ही पहुंचा है। उसी लड़की से मिला। अभी तक वो मकान में है और उसके अलावा मैंने अभी तक मकान में चार लोगों को देखा है। शक्लो-सूरत में उनमें से कोई भी शरीफ नहीं लगता ।" सूर्य थापा ने फोन पर बताया ।
"वहां तुम और जो भी महसूस करो, बताते रहना ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"वो लोग घर में ही रहते हैं। बाहर कम निकलते हैं ।"
"कोई उनसे मिलने आया ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"नहीं ।" इसी तरह खबर देते रहो ।"
"दस हजार के हिसाब से आज बीस हजार हो गए ।" उधर से सूर्य थापा की आवाज आई ।
"जब इस काम से हटोगे, तभी तुम्हें, तुम्हारे सारे पैसे एक साथ मिल जाएंगे थापा ।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया ।
आधा घंटा पहले ही देवराज चौहान कमरे में लौटा था ।
सुबह दस बजे से ही बाल्को खंडूरी पर नजर रखने का इंतजाम कर रहा था। इसके लिए उसे कठिनता से उस वेटर को फंसाया जिसकी ड्यूटी सुबह से शाम तक सिर्फ बाल्को खंडूरी पर ही थी। वेटर उसका साथ देने को तैयार नहीं था कि वो बाल्को खंडूरी की खबरें, देवराज चौहान को पूरी तरह देता रहे। परंतु जब उसके सामने पच्चीस हजार रुपये रखा गया तो वो कुछ नरम पड़ा। तैयार हो गया। देवराज चौहान ने उसे अपना फोन नम्बर देकर कहा कि उसे फोन पर खबरें देता रहे। बाल्को खंडूरी से कोई मिलने आता है तो उसकी खबर उसे तुरंत दे और जब वो फोन पर बात करें तो उसकी बातों को सुनकर, उसे बताता रहे।
इस सारे काम में ही देवराज चौहान को बारह बज गए थे।
होटल की तरफ से बाल्को की सेवा में एक वेटर रात को भी ड्यूटी पर था। परंतु रात की चिंता नहीं थी देवराज चौहान को, क्योंकि उस वेटर ने बताया था कि पूरी रात हर साल ही कसीनो में बिताता है । वो तीन बजे रात अपने कमरे में लौटता है और तब पी होती है और नींद में डूब जाता है। वेटर ने ये भी बताया कि बाल्को शाम को कसीनो में जाएगा।
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई और कुर्सी पर सोच भरे स्वर में बैठा रहा। वक्त बीता, दो बजे उसने रूम सर्विस को लंच के लिए आर्डर दिया था। तभी उसी वेटर का फोन आ गया ।
"साहब जी ।" उधर से वेटर धीमे स्वर में बोल रहा था--- "आपने कहा था कि उसके सूटकेस को देखने का मौका मिले तो बताऊं। बाल्को कुछ देर पहले नहा कर हटा और उसने कॉफी का आर्डर दिया। मैं कॉफी लेकर पहुंचा तो वो पैंट और कोट पहन रहा था। उसका सूटकेस तब खुला पड़ा था और उसमें कपड़े थे। मेरे को उसने कहा कि सूटकेस के कपड़े वार्डरौब में लगा दूं। मैंने ऐसा ही किया और खाली सूटकेस भी वार्डरौब में रख दिया । सूटकेस में सिर्फ कपड़े थे ।"
"इसी तरह मुझे सब कुछ बताते रहो ।"
"साहब जी । बाल्को साहब का लंच करने का प्रोग्राम नहीं है। उसका कहना है कि वो पैदल ही बाहर घूमने जा रहा है । अब तो निकलने वाले होंगे ।" उधर से वेटर ने पुनः कहा।
"ठीक है ।" देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रखा उठकर होटल से बाहर निकला और ऐसी जगह खड़ा हो गया जहां से वो होटल का गेट देखता रहे। दस मिनट बाद उसने बाल्को खंडूरी को अकेले और पैदल ही होटल से बाहर निकलकर सड़क किनारे जाते देखा ।
देवराज चौहान फासला रखकर बाल्को का पीछा करने लगा । भीड़ भरा इलाका था। ऐसे में बाल्को को आसानी से अपना पीछा किए जाने का पता नहीं चल सकता था। मन में ये ही चल रहा था कि क्या बाल्को किसी से मिलने जा रहा है। उसका प्रोग्राम बदल गया है और अब क्या माइक्रोचिप की डिलीवरी देने जा रहा है ? उसके पास किसी सवाल का जवाब नहीं था। परंतु देवराज चौहान तैयार था इसके लिए अगर बाल्को उत्तरी कोरिया वालों को माइक्रोचिप की डिलीवरी देता है तो। साथ ही वो सोच रहा था कि बाल्को के सूटकेस में कपड़े थे। अगर उसमें माइक्रोचिप होती तो वो सूटकेस इस तरह वेटर के हवाले न करता। अब दो ही बातें हो सकती थी। या तो माइक्रोचिप सूटकेस में थी जो उसने कसीनो के स्ट्रांग रूम में रखवाया है, या फिर माइक्रोचिप इस वक्त उसकी जेब में थी और उसकी डिलीवरी देने होटल से बाहर निकला है।
देवराज चौहान बाल्को पर पैनी निगाह रखें, उसका पीछा कर रहा था कि कहीं आते-जाते व्यक्ति को चालाकी से माइक्रोचिप की डिलीवरी न दे दे। क्या पता बाल्को खंडूरी इस मामले में बहुत सावधानी बरत रहा हो । परंतु वो इस तरह डिलीवरी देगा तो दो सौ करोड़ के ब्रांड भी तो लेगा । रकम लिए बिना तो माइक्रोचिप देगा नहीं ।
देवराज चौहान उस पर नजर रखता रहा ।
बाल्को खंडूरी ने दो मंदिर देखें । फिर वहां के बाजारों में टहलने लगा। शायद वो काठमांडू की अपनी पुरानी यादों को ताजा कर रहा था। एक मामूली-से रैस्टोरेंट में उसने गरम पकोड़े और चाय पी। इसी प्रकार उसने वक्त बिताया। वो किसी से नहीं मिला, कोई उससे नहीं मिला। शाम पांच बजे के करीब वापस ब्लू स्टार होटल में, अपने कमरे में पहुंच गया ।
देवराज चौहान अपने कमरे में पहुंचा और कॉफी का ऑर्डर दिया रूम सर्विस को ।
पन्द्रह मिनट बाद जब कॉफी के घूंट भर रहा था तो वेटर का फोन आया ।
"साहब जी । बाल्को आपने होटल के कमरे में आ गया है ।" उधर से वेटर ने बताया---" "उसने अपने सारे कपड़े उतार कर मुझे दिए कि अलमारी में रख दूं और खुद गर्म गाउन पहनकर रजाई में बैठ गए और मेरे से कॉफी मंगवाई है। कुछ देर बाद कसीनो में खेलने जाएंगे ।"
"वो जब कसीनो जाए तो मुझे फोन पर बता देना ।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
वेटर पच्चीस हजार लेकर बढ़िया काम दे रहा था ।
बाल्को की पल-पल की खबर दे रहा था।
अपने पहने कपड़े उतार कर वेटर के हवाले करने का स्पष्ट मतलब था कि वो माइक्रोचिप अभी उसके पास नहीं है। उसके कमरे में भी नहीं है। वरना वेटर को कपड़े रखने को न कहता। होटल के कमरों में इतनी मजबूत सुरक्षा नहीं होती कि कोई चोरी-छिपे भीतर प्रवेश करना चाहे तो प्रवेश न कर सके ।
ऐसे में माइक्रोचिप को अपने कमरे में नहीं रखेगा ।
अब इस बात में कोई शक नहीं था कि माइक्रोचिप उसी सुटकेस में है। जो स्ट्रांग रूम में रखा गया था। माथुर के मुताबिक बाल्को ने उत्तरी कोरिया वालों से ब्लूस्टार कसीनो में न्यू ईयर की रात मिलना था।
देवराज चौहान ने माथुर को फोन किया। फोन लग गया ।
"हैलो ।" माथुर की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी ।
"माथुर, मैं देवराज चौहान ।"
"पहचाना। मुझे पता है कि तुम काठमांडू में हो। "उधर से माथुर ने कहा ।
"कैसे पता ?"
"मैं भी काठमांडू में हूं। कदम सिंह भी मेरे साथ है। तुम बाल्को पर नजर रखे और हम तुम पर ।"
देवराज चौहान के होंठसिकुड़े ।
"ऐसा क्यों...तुम मुझ पर क्यों नजर रखे हो ?"
"हमें तुम्हारी चिंता है । बाल्को खतरनाक है । उसे अगर तुम्हारे बारे में पता चल गया तो कुछ भी हो सकता है। अगर गड़बड़ का वक्त आया तो हम सुरक्षा देने के लिए हर समय तैयार हैं "
"बेहतर होगा तुम लोग मेरे पीछे से हट जाओ ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"क्यों ?"
"तुम लोगों की वजह से मामला बिगड़ सकता...।"
"हम बच्चे नहीं हैं देवराज चौहान। आई.बी. के सीनियर एजेंट हैं। हम कच्चा खेल नहीं खेलते ।"
"तुम लोग काठमांडू कब आए ?"
"कल शाम को। हमारे बाद ही बाल्को होटल पहुंचा। हम भी इस होटल में ठहरे हैं। पहली मंजिल 102 नंबर रूम की बुकिंग पहले से ही की हुई पड़ी थी, परंतु तुम्हें नहीं बताया था ।" दूसरी तरफ से माथुर की आवाज आ रही थी ।
"तुम्हारी वजह से मामला बिगड़ा तो बात तुम्हारे सिर पर होगी।"
"इस बात के प्रति निश्चिंत रहो ।"
"क्या तुम लोग जब भी पीछे थे जब आज मैं दिन में बाल्को के पीछे था ।" देवराज चौहान सोच भरे स्वर में बोला ।"
"हां-क्यों ?"
"मेरे ख्याल में बाल्को किसी से नहीं मिला । किसी को कुछ नहीं दिया । इस बारे में तुम लोग क्या कहते हो ?"
"तुम्हारा ख्याल ठीक है कि बाल्को सिर्फ टहलने निकला था। हमारी नजर उस पर भी थी ।"
इस बात से देवराज चौहान को बल मिला कि उसने बाल्को पर ठीक से नजर रखी।
"मैंने तुमसे ये पूछने के लिए फोन किया है कि क्या ये बात पक्की है कि बाल्को 31 दिसम्बर की रात ही उत्तरी कोरिया के लोगों से मिलेगा। ऐसा तो नहीं कि प्रोग्राम कुछ बदल गया हो और पहले ही वो...।"
"ये खबर पक्की है कि वो 31 दिसम्बर की रात ही, ब्लू स्टार कसीनो में उत्तरी कोरिया वालों से मिलेगा ।"
देवराज चौहान ने फौरन कुछ नहीं कहा।
"जगमोहन तुम्हारे साथ नहीं दिखा। परंतु कल रात उस कसीनो में देखा था। वो वहां नौकरी कर रहा है। तुम्हारा प्लान क्या है ?"
देवराज चौहान के दिमाग में प्लान चल रहा था । बन रहा था । बिगड़ रहा था। सब कुछ इस बात पर ही निर्भर था कि माइक्रोचिप स्ट्रांग रूम में रखे उस सूटकेस में ही हो। तभी बात कुछ बन सकती थी ।
"देवराज चौहान तुम...।"
"मैं तुमसे और कदम सिंह से कल मिलूंगा । फोन करूंगा । तुम लोगों के कमरे में ही बातें होंगी ।" देवराज चौहान गम्भीर था ।
"ठीक है । मिलना हमसे ।" कह कर उधर से माथुर ने फोन बंद कर दिया ।
देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रखा । चेहरे पर सोचें दौड़ रही थी । दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था । परंतु हर बात इसी पर निर्भर करती थी कि क्या वो माइक्रोचिप स्ट्रांग रूम में रखे, उसी काले सूटकेस में है ?"
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आज क्रिसमस थी। ब्लूस्टार कसीनो में रौनक अपनी चरम सीमा पर थी। बहुत-से ऐसे चेहरे थे जो पहले नहीं दिखे थे। सभी विदेशी थे। हिन्दुस्तानी भी काफी संख्या में थे। आज कसीनो को पूरी चमक-दमक के साथ सजाया गया था। कसीनो का स्टाफ भी आज बहुत व्यस्त नजर आ रहा था। किसी के पास पल भर की भी फुर्सत नहीं थी। कसीनो के तीनों हॉल ठसाठस भरे हुए थे। कसीनो की सिक्योरिटी भी आज पूरी तरह चाक-चौबंद थी। कसीनो में आज शोर भी था और ठहाके भी।
बाज बहादुर आज वक्त पर कसीनो आ पहुंचा था। उसने क्रीम कलर का सूट और लाल टाई पहनी हुई थी। चेहरे पर मुस्कान नजर आ रही थी परंतु आंखों में चिंता और बेचैनी थी अपने बेटे को पाने के लिए। उसका मन जरा भी नहीं लग रहा था कसीनो में, परंतु नौकरी तो करनी ही थी। सीजन के इन दिनों मैं कसीनो से गायब भी नहीं रह सकता था। गुरंग ने शाम को ही उसे कहा था कि उसके बेटे की उसे भी चिंता है । आज भी पुलिस कमिश्नर को फोन किया था। पुलिस अपना काम कर रही है और वो कसीनो की तरफ ध्यान दे। बाकी वक्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा ।
परंतु बाज बहादुर को इन शब्दों पर चैन कहां आना था। वो गुरंग से कहना चाहता था कि अगर उसका बेटा इस तरह से चार दिन से अपहरण हुआ होता और उसकी कोई खबर न मिल रही होती तो उसका क्या हाल होता। परंतु अपने इस विचार को वो मन में दबाकर रह गया था। गुरंग आखिर इसका मालिक था। लाख रुपया महीना उसे तनख्वाह देता था। उसे कुछ भी कहना, जायज नहीं था। तनख्वाह देने वाला तो चाहेगा कि उसका काम पूरा हो। लेकिन अब बाज बहादुर के मन में कुछ और ही चलने लगा था। आज दिन में एक पुलिस वाले ने उसे दबे स्वर में इस बात का इशारा कर दिया था कि अब तक तो अपहरणकर्ताओं का फोन आ जाना चाहिए था कि वो क्या चाहते हैं। उसका फोन नहीं आया तो हो सकता है आपके बेटे के साथ कुछ बुरा हो गया हो।
इस बात से बाज बहादुर को पूरी तरह हिला कर रख दिया था ।
गोपाल का मासूम चेहरा उसकी आंखों के सामने नाच उठा।
अपनी रोती, बिलखती पत्नी का चेहरा भी बार-बार दिख रहा था कि अगर सच में गोपाल को कुछ हो गया तो उसकी पत्नी का तो हाल बुरा हो जाएगा। घर पूरी तरह बिखर जाएगा ।
ये ही बात इस वक्त बाज बहादुर के दिलों दिमाग पर नाच रही थी ।
आज वो अपने ऑफिस में नहीं बैठा था। कसीनो में टहल रहा था। लोगों के बीच जा रहा था। उनसे हाथ मिला रहा था। मुस्कुरा रहा था। बहुत से ऐसे कस्टमर थे जो सालों से, हर साल आ रहे थे। देखने में बाज बहादुर बिल्कुल ठीक दिख रहा था। कसीनो के स्टाफ को नहीं पता था कि उसके बेटे का अपहरण हुए चार दिन बीत गए हैं और गोपाल की कोई खबर नहीं मिली अब तक। ऐसे में वो बाज बहादुर के दिल का क्या हाल क्या समझे।
अजीत गुरंग भी आज कसीनो में ही था और खुश था कि उसका कसीनो काठमांडू का बेहतरीन कसीनो था। लोगों को यहां आना अच्छा लगता था। इन दिनों उसे भी मोटी कमाई हो जाती थी। इस वक्त गुरंग मशीनों वाले हॉल में एक तरफ खड़ा नजरें दौड़ा रहा था कि बाज बहादुर उसके पास आ पहुंचा।
"सब बढ़िया चल रहा है बाज ।" गुरंग बोला ।
"यस सर ।" बाज बहादुर बोला--- "हर बार की तरह, इस बार भी सीजन बढ़िया जाएगा। अभी तो न्यू ईयर आना बाकी है ।"
अजीत गुरंग मुस्कुराया
"सब ठीक चलना चाहिए। इससे मेरे पैर भी टिके रहेंगे और तुम्हारी नौकरी भी चलती रहेगी ।"
"जी । "बाज बहादुर ने बे-मन से कहा ।
"गोपाल की फिक्र मत करो । पुलिस पूरी कोशिश कर रही है कि उसका पता चले । मैंने कमिश्नर पर दबाव बनाया है ।" गुरंग बोला ।
बाज बहादुर सिर हिला कर वहां से हट गया।
रात के दस बज रहे थे । जगमोहन अभी तक, आज बाज बहादुर से नहीं मिला था। जबकि उसने कई बार बाज बहादुरी को देखा था परंतु अपनी व्यस्तता दिखाते हुए, उससे दूर ही रहा था। वो बाल्को और देवराज चौहान को ताश वाले हॉल में देख चुका था। जब बाल्को वहां पहुंचा तो एक टेबल संभालते हुए उसने कुर्सी ली और कसीनो की तरफ से मौजूद कर्मचारी को पचास लाख के टोकन लाने को कहा। पांच मिनट में ही ट्रे में उसके पास टोकन पहुंच गए और साथ ही में 'बिल' भी । जिस पर बाल्को ने साइन कर दिए। पुराने कस्टमर के लिए कसीनो की तरफ से छूट थी कि वो बिल साइन करके टोकन ले सकता था, परंतु चौबीस घंटे में रकम कसीनो में वापस जमा करानी होगी।
देवराज चौहान बाल्को पर नजर रख रहा था कि वो गुप्त तौर पर किसी आदमी के सम्पर्क में न आए। इस बात का वो खास ध्यान रख रहा था कि वहां कोरियन व्यक्तित्व तो मौजूद नहीं है। भीड़ ज्यादा होने की वजह से बाल्को पर नजर रखने में आसानी हो रही थी इस तरह बाल्को उसे पहचान नहीं सकता था।
एक जगह जगमोहन का नाटियार से सामना हो गया ।
"आज तो बहुत भीड़ है। कई लोगों की जेबों से पर्स गायब होंगे। नोट गायब होंगे। ऐसे चोरों को हम देख भी नहीं पाएंगे इस भीड़ में ।"
"सही कहते हो।" जगमोहन मुस्कुराया ।
"मेरी पत्नी तुम्हारे बारे में पूछ रही थी कि जिसे प्यार का नशा चढ़ा था वो अभी उतरा कि नहीं ?" नाटियार ने कहा ।
"कह देना कि वो नशा कभी नहीं उतरेगा ।" जगमोहन हौले-से हंसा--- "बल्कि और निखर रहा है ।"
"जरूर बताऊंगा । शादी करने का प्रोग्राम कब का है ?"
"बहुत जल्दी । जनवरी के पहले हफ्ते ।"
"मुझे जरुर बुलाना । मैं उसे देखना चाहता हूं ।"
इसके बाद दोनों अपनी ड्यूटी पर व्यस्त हो गए ।
दस मिनट बाद ही जगमोहन थमकर ठिठक गया । वो कदम सिंह को देख रहा था जो कि एक टेबल के पास टेबल पर हो रहे जुए को देखने में व्यस्त था। जगमोहन अजीब-सी निगाहों से कुछ पल कदम सिंह को देखता रहा। पहले तो उसकी तरफ जाने का सोचा कि फिर फोन निकालकर देवराज चौहान को फोन किया ।
"कहो ।" देवराज चौहान की आवाज आई ।
"मैंने यहां आई.बी. के अधिकारी कदम सिंह को देखा है । वे कसीनो में...।"
"माथुर भी इस वक्त कसीनो में है ।"
"ओह, तुम्हें पता है ।" जगमोहन के होंठों से निकला ।
"हां। वो दोनों ब्लू स्टार होटल में ठहरे हैं । उनकी फिक्र मत करो। तुम्हारा काम कैसा चल रहा है ?"
"कल शाम के बाद रफ्तार पकड़ेगा। कल फोन पर बाज बहादुर से बात होगी ।"
"ठीक है ।"
जगमोहन ने फोन बंद करके जेब में रखा और बाज बहादुर की तलाश में नजर दौड़ाने लगा। इस वक्त रात के ग्यारह बज रहे थे। कसीनो का माहौल पूरी तरह गर्म था। बड़ी-बड़ी रकमें जुए पर लगाई जा रही थी। कोई हार रहा था और कोई जीत रहा था। क्रिसमस का वक्त बीतता जा रहा था। कसीनो का माहौल पूरी तरह गर्म था। ठंड से भी गर्म, नोटों से भी गर्म। कसीनो के कर्मचारियों के चक्कर नोटों के ढेर के साथ स्ट्रांग रूम की तरफ लग रहे थे। आज दो कर्मचारी उस एलम्युनियम के काले दरवाजे के पीछे मौजूद थे। जो भी कर्मचारी स्ट्रांग रूम में नोट देने जाते, वो उनसे ले लेते। नोट देने वाले उन्हें पर्ची भी देते कि कितना पैसा उन्हें दिया जा रहा है और वहीं से वो पलट आते। भीतर वाले नोटों के थैले को स्ट्रांग रूम में पहुंचा देते। बहुत कम बार ही कर्मचारी, पैसा लेने के लिए स्ट्रांग रूम की तरफ पहुंचे थे कर्मचारी। अभी खेल जारी था। रात बाकी थी और 31 दिसम्बर की रात तक हर शाम ही, कसीनो में ऐसा ही होना था। इससे भी ज्यादा पैसा कसीनो के स्ट्रांग रूम में पहुंचना था ।
जगमोहन को बाज बहादुर दिखा जो कि थका-सा अपने ऑफिस की तरफ जा रहा था। जगमोहन वहीं पर रुक गया और बाज बहादुर को अपने ऑफिस में जाने दिया। उसके बाद जगमोहन भी उसके ऑफिस में पहुंचा।
बाज बहादुर ने फीकी निगाहों से उसे देखा ।
"साहब जी नमस्कार।" जगमोहन हाथ जोड़कर बोला--- "आज आप खुश नजर आ रहे हैं । बेटा मिल गया न ?"
बाज बहादुर की आंखें गीली हो गई ।
उसे देखते जगमोहन ने मन-ही-मन में कहा--- "चिंता क्यों करता है, तेरा बेटा तुझे सही सलामत मिलेगा, बेशक तू मेरी शर्त माने या न माने । तेरे बेटे का बाल भी बांका नहीं होगा ।"
"ये क्या साहब जी। आप रो रहे हैं। बेटा नहीं मिला?" जगमोहन ने परेशान स्वर में कहा ।
"नहीं ।" बाज बहादुर ने अपनी गीली आंखें साफ की ।
"पुलिस आपके बेटे को ढूंढने के बारे में कुछ कर भी रही है या नहीं ?" जगमोहन जैसे नाराज हो उठा ।
"पता नहीं । पर मेरे ख्याल में पुलिस की आशा भी खत्म होने लगी है ।"
"ऐसा मत कहिए साहिब जी ।"
"आज पुलिस वाले ने ही कहा कि अपहरणकर्ताओं ने कहीं मेरे बेटे को मार न दिया हो। तभी तो उन्होंने फोन नहीं किया । पुलिस ये अब सोचने लगी है कि कहीं गोपाल का अपरहण, किसी दुश्मनी के लिए तो नहीं किया गया ?"
"आप अपने दुश्मनों के बारे में सोचिए साहब जी ।"
"सारा दिन तो पुलिस को इसी बात का जवाब देता रहा हूं कि मेरा ऐसा कोई दुश्मन नहीं है जो इस तरह मेरे बेटे का अपरहण कर ले। मेरा दुश्मन है ही नहीं। पर पुलिस ये मानने को तैयार नहीं। वो अब दुश्मन वाले एंगल में सोचने लगी है ।"
"ये तो बुरा हुआ । मैंने तो सोचा था कि पुलिस आपके बेटे को तलाश कर लेगी ।"
बाज बहादुर चुप रहा।
"साहब जी मेरे लिए कोई हुक्म हो तो बताइए। मैं आपके लिए जान भी दे सकता हूं ।" जगमोहन बोला ।
"मुझे सिर्फ अपने बेटे की चिंता है कि उसे कुछ हो न गया हो ।" भर्रा उठा बाज बहादुर का स्वर ।
"ऊपर भगवान है साहब जी । वो जरूर आपके बेटे को वापस ला देगा ।"
"अब तो कसीनो में आने का दिल भी नहीं करता। लोग यहां कितने खुश हैं। मजे कर रहे हैं। परंतु मेरा गोपाल जाने किस हाल में होगा।" बाज बहादुर ने थके स्वर में कहा--- "हर रोज सुबह गोपाल की तलाश में घर से निकल जाता हूं और यहां-वहां गोपाल को ढूंढता-पूंछता फिरता हूं। परंतु उसकी कोई खबर नहीं मिलती। मेरा नसीब ही खराब है ।"
जगमोहन समझ गया कि बाज बहादुर पूरी तरह टूट गया है । कल तक और भी टूट जाएगा लेकिन कसीनो में डकैती की सहायता के लिए ये तैयार होता है या नहीं, ये सवाल अभी भी अपनी जगह खड़ा था ।
और इसी तरह कसीनो में क्रिसमस बीत गया ।
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अगले दिन भी वेटर फोन पर देवराज चौहान को बाल्को खंडूरी की रिपोर्ट देता रहा ।
सुबह नौ बजे देवराज चौहान तैयार होकर पहली मंजिल के 102 कमरे पर पहुंचा। दरवाजा बंद था। उसने वहीं पर खड़े होकर माथुर को फोन किया। बात हुई। देवराज चौहान ने दरवाजा खोलने को कहा ।
फौरन माथुर ने दरवाजा खोला तो देवराज चौहान भीतर आ गया ।
माथुर और कदम सिंह इस वक्त लगभग तैयार दिख रहे थे ।
"कहीं जा रहे हो ?" देवराज चौहान ने बैठते हुए दोनों को देखा।
"हम लोगों का काम ऐसा है कि हमें हर समय तैयार ही रहना पड़ता है देवराज चौहान ।" कदम सिंह ने गम्भीर स्वर में कहा--- "हम तुम्हारे एहसानमंद है कि बिना कुछ लिए तुम हमारा काम कर रहे हो ।"
"मार्शल की खातिर ।" देवराज चौहान बोला।
"जो भी कहो। तुम हमारा एक बड़ा काम कर रहे हो।"
देवराज चौहान ने दोनों पर नजर मारी।
"माइक्रोचिप के बारे में क्या पता लगाया ?" माथुर ने पूछा।
"जहां तक मुझे लगता है, वो माइक्रोचिप बाल्को ने अपने पास नहीं रखी है ।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्या मतलब ?"
"तुम लोगों के पास इस बात की पूरी खबर है कि 31 दिसम्बर की रात ही बाल्को उत्तरी कोरिया वालों को माइक्रोचिप देगा और उनसे दो करोड डॉलर के ब्रांड लेगा। मैं इसी खबर को आधार बनाकर चल रहा हूं, क्यों ये पक्की खबर है ?"
"कितनी बार पूछोगे। ये पक्की ही खबर है।" माथुर ने सिर हिलाया।
"बाल्को दो सूटकेसों के साथ ब्लू स्टार होटल पहुंचा था और पहुंचते ही सबसे पहले उसने अपना एक काले रंग का सूटकेस कसीनो के स्ट्रांग रूम में रखवा दिया था। उसमें दौलत होगी जुआ खेलने के लिए और उसी में ही माइक्रोचिप भी होगी। जब 31 दिसम्बर की रात आएगी तो वो माइक्रोचिप को सूटकेस से निकालेगा ।"
"क्या हम स्ट्रांग रूम से उस सूटकेस को गायब नहीं कर सकते ?" माथुर बोला ।
"वो कसीनो का स्ट्रांग रूम है और सुरक्षा के तगड़े इंतजाम हैं। इसी कारण बाल्को ने सूटकेस को स्ट्रांग रूम में रखवाया। वहां से सूटकेस निकाल लाने की सोचना भी बेवकूफी है ।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम तो जाने-माने डकैती मास्टर हो, ये काम आसानी से कर सकते हो ।" कदम सिंह ने कहा।
"डकैती करना, जादू करने जैसा नहीं होता। हर काम में वक्त और तरकीबें लगती हैं ।" देवराज चौहान बोला--- "मैं इसी मुद्दे पर बात करने के लिए तुम लोगों से इस वक्त मिल रहा हूं। एक परेशानी मेरे सामने आ रही है। 31 दिसम्बर की रात को कसीनो ठसाठस भरा होगा। ऐसे में बाल्को मेरे से नजरें बचाकर उत्तरी कोरिया वाले से माइक्रोचिप और बांडो का आदान-प्रदान कर ले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। क्या पता इस बारे में उसने क्या सोच रखा है। वो कोई बच्चा नहीं है। सालों से ड्रग्स का काम कर रहा है। उत्तरी कोरिया वालों से लेन-देन का प्रोग्राम, का प्लान तय कर रखा होगा हम चूक सकते हैं।"
माथुर और कदम सिंह के चेहरे गम्भीर दिखे। नजरें देवराज चौहान पर थी।
"तुम क्या कहना चाहते हो देवराज चौहान ?" माथुर बोला--- "क्या इस काम से पीछे हट रहे हो ?"
"ऐसा कुछ नहीं है। पहले मेरी पूरी बात सुनो। इतनी भीड़ में 31 दिसम्बर की रात हम ठीक से बाल्को पर नजर नहीं रख सकते। हमसे कहीं भी गलती हो सकती है। अगर उसे अपने पर नजर रखने का आभास हो गया तो वो भीड़ में हमारी नजरों से बचकर खिसक जाएगा। उत्तरी कोरिया वालों को माइक्रोचिप दे देगा। हम कुछ नहीं कर सकेंगे।"
"ये सुनकर माथुर ने व्याकुलता से पहलू बदला।
"देवराज चौहान की बात सही है ।" कदम सिंह ने गम्भीरता से कहा--- "बाल्को तेज-तर्रार इंसान है। वो कुछ भी कर सकता है।"
"ठीक है ।" माथुर बोला--- "इसके आगे भी तुम कुछ कहना चाहते हो ?"
"हां। मैंने सोचा है बाल्को को उठा लिया जाए। तुम दोनों मेरा साथ दो। ऐसी किसी जगह का इंतजाम करो, जहां हम बाल्को को रख सकें। आई.बी. वाले हो। दूसरे देशों से तुम लोगों के कॉन्टैक्टस होते ही हैं। बाल्को को रखने के लिए जगह का इंतजाम करने में तुम लोगों को कोई परेशानी नहीं आएगी। हम बाल्को को माइक्रोचिप के बारे में जानेंगे कि वो कहां पर है। जबकि मुझे पूरा भरोसा है कि वो माइक्रोचिप स्ट्रांग रूम में रखे काले सूटकेस में ही...।"
"तुम्हारा क्या मतलब है कि बाल्को हमें माइक्रोचिप के बारे में बता देगा। नहीं वो कभी नहीं बताएगा।"
"नहीं बताएगा तो तब हमारा कोई नुकसान नहीं है। उस स्थिति में वो, उत्तरी कोरिया वालों को तो माइक्रोचिप नहीं दे सकेगा। उसका ये वाला सारा प्लान फेल हो जाएगा। माइक्रोचिप बाल्को के पास ही होगी और बाल्को तुम लोगों के पास। उसका मुंह कैसे खुलवाना है, ये तुम लोग देखो। परंतु वो मुंह खोले न खोले, 31 दिसम्बर की रात को स्ट्रांग रूम से वो काला सूटकेस बाहर आ जाएगा, जो कि बाल्को का है और मुझे विश्वास है कि माइक्रोचिप उसी में है ।"
"31 दिसम्बर की रात बाल्को का सूटकेस कैसे स्ट्रांग रूम से बाहर आ जाएगा ।" कदम सिंह हैरानी से बोला ।
"आ जाएगा । वो हमारे पास होगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"लेकिन कैसे ?"
"ये मत सोचो। तुम लोगों को माइक्रोचिप चाहिए। सिर्फ उसी के बारे में बात करो ।"
"अगर माइक्रोचिप वाले सूटकेस में न हुई तो ?" माथुर ने पूछा।
"तो बाल्को तो तुम लोगों के पास है ही । उसका मुंह खुलवाते रहना। तुम लोगों को इसी बात की तसल्ली होगी कि माइक्रोचिप उत्तरी कोरिया वालों के हाथ नहीं लगी। वो बाल्को के पास है, बाल्को तुम लोगों के कब्जे में। देर-सबेर में तुम लोग उसका मुंह खुलवा ही लोगे। ये तुम लोगों की काबिलियत पर निर्भर है ।"
कदम सिंह और माथुर की नजरें मिलीं।
"आईडिया अच्छा है । "कदम सिंह ने कहा--- "अगर उस सूटकेस में से माइक्रोचिप मिल गई तो काम हो गया, नहीं तो हम बाल्को के मुंह से निकलवा ही लेंगे कि माइक्रोचिप कहां पर है। क्या कहते हो माथुर ।"
"ठीक है। बात जंचती है। 13 दिसम्बर की रात बाल्को कोई चालाकी कर गया तो हमारे हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। परंतु बाल्को का अपहरण कैसे होगा। हम सीधे-सीधे इस मामले में न ही आए तो बेहतर है ।" माथुर गम्भीर था
"बाल्को का अपहरण मैं करूंगा ।" देवराज चौहान बोला--- "तुम लोग जगह तैयार करो, जहां बाल्को को रखना है ।"
"दोपहर तक जगह तैयार हो जाएगी। क्यों माथुर, हमारे पास काठमांडू में इस काम के लिए जगह है न?" कदम सिंह बोला।।
माथुर ने सहमति से सिर हिला दिया ।
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