गोलियों की बौछार

 फ़रीदी ने अपनी कार को क़स्बे की तरफ़ मोड़ दिया। अब वह नवाब के फ़ैमिली डॉक्टर से मिलना चाहता था। डॉक्टर तौसीफ़ एक बूढ़ा आदमी था। इससे पहले वह सिविल सर्जन था। पेन्शन लेने के बाद उसने अपने पुराने मकान में रहना शुरू कर दिया था जो राजरूप नगर में स्थित था। उसकी गिनती क़स्बे के इज़्ज़तदार और दौलतमन्द लोगों में होती थी। फ़रीदी को उसका घर मालूम करने में कोई परेशानी न हुई।

डॉक्टर तौसीफ़ इन्स्पेक्टर फ़रीदी को शायद पहचानता था, इसलिए वह उसके अचानक आ जाने से कुछ घबरा-सा गया।

‘‘मुझे फ़रीदी कहते हैं।’’ फ़रीदी ने अपना विज़िटिंग कार्ड देते हुए कहा।

‘‘मैं आपको जानता हूँ...!’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने हाथ मिलाते हुए कहा। ‘‘कहिए, कैसे आना हुआ।’’

‘‘डॉक्टर साहब, मैं एक ज़रूरी काम के सिलसिले में आपसे राय लेना चाहता हूँ?’’

‘‘ठीक है!...अन्दर चलिए।’’

‘‘आप ही नवाब साहब के फ़ैमिली डॉक्टर हैं?’’ फ़रीदी ने सिगार लाइटर से सिगार सुलगाते हुए कहा।

‘‘जी हाँ...जी...बोलिए।’’ डॉक्टर ने चौंकते हुए कहा।

‘‘क्या कर्नल तिवारी आपके कहने पर नवाब साहब का इलाज कर रहे हैं?’’ वह अचानक पूछ बैठा।

डॉक्टर तौसीफ़ चौंक कर उसे घूरने लगा।

‘‘लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘डॉक्टर साहब! मुझे दिमाग़ी बीमारियों के इलाज की थोड़ी-सी मालूमात है और मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि इस तरह की बीमारी का सिर्फ़ एक ही इलाज है और वह है ऑपरेशन...आखिर ये कर्नल तिवारी देर क्यों कर रहे हैं? यह चीज़ मुझे सोचने पर मजबूर कर रही है। कर्नल तिवारी एक नौजवान डॉक्टर से इलाज करवाने की बजाय, जो इस बीमारी को चुटकियों में ठीक कर सकता है, एक बूढ़े डॉक्टर से इलाज करवा रहे हैं।’’

‘‘मेरा ख़याल है कि आप एक निजी मामले में दख़लन्दाज़ी कर रहे हैं।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने नाराज़ होते हुए कहा।

‘‘आप समझे नहीं।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘मैं नवाब साहब की जान लेने की एक गहरी साज़िश का पता लगा रहा हूँ। इस सिलसिले में आपसे मदद लेना चाहता हूँ।’’

‘‘जी...!’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने चौंक कर कहा और फिर उदास हो गया।

‘‘जी हाँ...क्या आप मेरी मदद करेंगे?’’ फ़रीदी ने सिगार का कश ले कर कहा।

‘‘बात दरअसल यह है इन्स्पेक्टर साहब कि मैं ख़ुद भी इस मामले में बहुत परेशान हूँ। लेकिन क्या करूँ.... ख़ुद नवाब साहब की भी यही ख़्वाहिश थी। उन्हें दो-एक बार कर्नल तिवारी के इलाज से फ़ायदा हो चुका है।’’

‘‘लेकिन मुझे तो मालूम हुआ है कि कर्नल तिवारी को इलाज के लिए उनके ख़ानदान वालों ने चुना है।’’

‘‘नहीं! यह बात नहीं है। अलबत्ता उन्होंने मेरी ऑपरेशन वाली बात नहीं मानी थी। मैं आपको वह ख़त दिखाता हूँ जो नवाब साहब ने दौरा पड़ने से एक दिन पहले मुझे लिखा था।’’

‘‘डॉक्टर तौसीफ़ उठ कर दूसरे कमरे में चला गया और फ़रीदी सिगार के कश लेता हुआ अधखुली आँखों से छत को ताक़ता रहा।’’

‘‘यह देखिए नवाब साहब का ख़त...!’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने फ़रीदी की तरफ़ ख़त बढ़ाते हुए कहा। फ़रीदी ख़त को देखने लगा। ख़त नवाब साहब के लेटर पैड पर लिखा गया था। फ़रीदी ख़त पढ़ने लगा।

‘‘डियर डॉक्टर...

आज दो दिन से मुझे महसूस हो रहा है जैसे मुझ पर दौरा पड़ने वाला है। अगर आप शाम तक कर्नल तिवारी को ले कर आ जायें तो ठीक है। पिछली बार भी उनके इलाज से फ़ायदा हुआ था। मुझे ख़बर मिली है कि कर्नल तिवारी आजकल बहुत मशग़ूल हैं, लेकिन मुझे उम्मीद है कि आप उन्हें ले कर ही आयेंगे।

आपका

वजाहत मिर्ज़ा

‘‘डॉक्टर साहब, क्या आपको यक़ीन है कि यह ख़त नवाब साहब ही के हाथ का लिखा हुआ है।’’ फ़रीदी ने ख़त पढ़ कर कहा।

‘‘उतना ही यक़ीन है जितना कि इस बात पर कि इस वक़्त मैं आपसे बात कर रहा हूँ। मैं नवाब साहब की लिखावट लाखों में पहचान सकता हूँ।’’

‘‘अच्छा...!’’ फ़रीदी ने कुछ सोचते हुए कहा। ‘‘लेकिन डॉक्टर साहब, ज़रा इस पर ग़ौर कीजिए, क्या आपने कभी इतनी चौड़ाई रखने वाले काग़ज़ का इतना छोटा पैड भी देखा है? कितना बेढंगा मालूम हो रहा है। ओह...यह देखिए...साफ़ मालूम होता है कि दस्तख़त के नीचे से किसी ने काग़ज़ का बाक़ी टुकड़ा कैंची से काटा है। डॉक्टर, क्या आपको यह इसी हालत में मिला था।’’

‘‘जी हाँ...!’’ डॉक्टर ने हैरान हो कर कहा। ‘‘लेकिन मैं आपका मतलब नहीं समझा।’’

‘‘वही बताने जा रहा हूँ। क्या यह मुमकिन नहीं कि नवाब साहब ने ख़त लिख कर दस्तख़त कर देने के बाद भी नीचे कुछ और लिखा हो जिसे किसी ने बाद में कैंची से काट कर उसे बराबर करने की कोशिश की है? मेरा ख़याल है कि नवाब साहब इतने कंजूस नहीं हैं कि बाक़ी बचा हुआ काग़ज़ काट कर रख लें।’’

‘‘उफ़, मेरे ख़ुदा।’’ डॉक्टर ने सिर पकड़ लिया। ‘‘यहाँ तक तो मेरी नज़र नहीं पहुँची थी।’’

‘‘बहरहाल, हालात कुछ ही क्यों न हों, क्या आप बहैसियत फ़ैमिली डॉक्टर इतना नहीं कर सकते कि कर्नल तिवारी के बजाय किसी और डॉक्टर से इलाज करायें?’’

‘‘मैं इस मामले में बिलकुल बेबस हूँ, फ़रीदी साहब। हालाँकि नवाब साहब ने कई बार मुझसे ऑपरेशन के बारे में बात की थी...और हाँ, क्या नाम है उसका, इस सिलसिले में सिविल हस्पताल के स्पेशलिस्ट डॉक्टर शौकत का भी नाम आया था।’’

‘‘अब तो मामला बिलकुल साफ़ हो गया।’’ फ़रीदी ने हाथ मलते हुए कहा। ‘‘हो सकता है, ख़त लिख चुकने के बाद नवाब साहब ने यह लिखा हो कि अगर कर्नल तिवारी न मिल सकें तो डॉक्टर शौकत को लेते आइएगा। इस हिस्से को किसी ने ग़ायब कर दिया।’’

‘‘हूँ...!’’ तौसीफ़ ने कुछ सोचते हुए कहा।

‘‘मेरा ख़याल है कि आप डॉक्टर शौकत से ज़रूर मिल लीजिए। कम-से-कम इस सूबे में वह अपना जवाब नहीं रखता।’’

‘‘मैं उसकी तारीफ़ें अख़बार में पढ़ता रहता हूँ और एक बार मिल भी चुका हूँ। मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि वह नवाब साहब का सौ फ़ीसदी कामयाब ऑपरेशन करेगा, लेकिन फ़रीदी साहब, मैं कर्नल तिवारी की मौजूदगी में बिलकुल बेबस हूँ। ऐसा झक्की आदमी तो आज तक मेरी नज़रों से नहीं गुज़रा।’’

‘‘कर्नल तिवारी की आप फ़िक्र न करें, इसका इन्तज़ाम मैं कर लूँगा। आप जितनी जल्द हो सके, डॉक्टर शौकत से मिल कर बात कर लीजिए।’’

‘‘आप कर्नल तिवारी का क्या इन्तज़ाम करेंगे।’’

‘‘इन्तज़ाम करना कैसा! वह तो क़रीब-क़रीब हो चुका है।’’ फ़रीदी ने सिगार जलाते हुए कहा।

‘‘मैं आपका मतलब नहीं समझा।’’

‘‘तीन दिन बाद कर्नल तिवारी का यहाँ से ट्रांसफ़र हो जायेगा। ऊपर से हुक्म आ गया है। मुझे सूत्रों से ख़बर मिली है। लेकिन ख़ुद कर्नल तिवारी को अभी तक इसका पता नहीं। उन्हें इतनी जल्द जाना होगा कि शायद वह धोबी के यहाँ से अपने कपड़े भी न मँगा सकें। लेकिन यह राज़ की बात है, इसे अपने तक ही रखिएगा।’’

‘‘अरे, यह भी कोई कहने की बात है।’’ डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा।

‘‘अच्छा, तो अब मैं चलूँ...आप कर्नल तिवारी के ट्रांसफ़र की ख़बर सुनते ही डॉक्टर शौकत को यहाँ ले आइएगा। मेरा ख़याल है कि उस वक़्त फिर किसी को ऐतराज़ भी नहीं होगा। हाँ देखिए, इसका ख़याल रहे कि मेरी मुलाक़ात का हाल किसी को पता न चले। ख़ासकर नवाब साहब के ख़ानदान के किसी आदमी को और उस सनकी बूढ़े प्रोफ़ेसर को इसकी ख़बर न होने पाये। साहब, मुझे तो वह बूढ़ा पागल मालूम होता है।’’

‘‘मैं भी उसके बारे में कोई अच्छी राय नहीं रखता...!’’

‘‘वह आखिर है कौन?’’ फ़रीदी ने दिलचस्पी ज़ाहिर करते हुए कहा।

‘‘मेरे ख़याल से वह नवाब साहब का कोई रिश्तेदार है, लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि नवाब साहब ने मेरे ही सामने उससे पुरानी कोठी का किरायानामा लिखवाया था, बल्कि मैंने ही उस पर गवाह की हैसियत से दस्तख़त किये थे।’’

‘‘ख़ैर...अच्छा, अब मैं जाना चाहूँगा।’’ फ़रीदी ने उठते हुए कहा। ‘‘मुझे उम्मीद है कि आप जल्द ही डॉक्टर शौकत से मुलाक़ात करेंगे।’’

फ़रीदी की कार तेज़ी से शहर की तरफ़ जा रही थी। आज उसका दिमाग़ बहुत उलझा हुआ था। बहरहाल, वह जो मक़सद ले कर राजरूप नगर आया था, उसमें अगर बिलकुल नहीं, तो थोड़ी-बहुत कामयाबी उसे ज़रूर मिली थी। अब वह आगे के लिए प्रोग्राम बना रहा था। जैसे-जैसे वह सोच रहा था, उसे अपनी कामयाबी का पूरा यक़ीन होता जा रहा था।

सड़क के दोनों तरफ़ दूर-दूर तक घनी झाड़ियाँ थीं। सड़क बिलकुल सुनसान थी। एक जगह उसे बीच सड़क पर एक ख़ाली ताँगा खड़ा नज़र आया। वह भी इस तरह जैसे वह ख़ास तौर पर रास्ता रोकने के लिए खड़ा किया गया हो। फ़रीदी ने कार की रफ़्तार धीमी करके हॉर्न देना शुरू किया, लेकिन दूर-नज़दीक कोई दिखायी न देता था। सड़क ज़्यादा चौड़ी न थी, इसलिए फ़रीदी को कार रोक कर उतरना पड़ा। ताँगा किनारे लगा कर वह गाड़ी की तरफ़ लौट ही रहा था कि उसे दूर झाड़ियों में एक भयानक चीख़ सुनाई दी। कोई भर्रायी हुई आवाज़ में चीख़ रहा था। ऐसा मालूम होता था जैसे बार-बार चीख़ने वाले का मुँह दबा लिया जाता हो और वह गिरफ़्त से निकलने के बाद फिर चीख़ने लगता हो। फ़रीदी ने जेब से रिवॉल्वर निकाल कर आवाज़ की तरफ़ दौड़ना शुरू किया। वह ऊँची-ऊँची झाड़ियों से उलझता, गिरता, पड़ता जंगल में घुसा जा रहा था। अचानक एक फ़ायर हुआ और एक गोली सनसनाती हुई उसके कानों के क़रीब से निकल गयी। उसके बाद कई फ़ायर हुए। वह फुर्ती के साथ ज़मीन पर लेट गया। लेटे-लेटे रेंगता हुआ वह एक खाई की आड़ में हो गया। उसने भी अपना रिवॉल्वर ख़ाली करना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ़ से फ़ायर होने बन्द हो गये। शायद गोलियाँ चलाने वाला अपने ख़ाली रिवॉल्वर में कारतूस चढ़ा रहा था। फ़रीदी ने खाई की आड़ से सिर उभारा ही था कि फ़ायर हुआ; अगर वह तेज़ी से पीछे की तरफ़ न गिर गया होता तो खोपड़ी उड़ ही गयी थी। दूसरी तरफ़ से फिर अन्धाधुन्ध फ़ायर होने लगे। फ़रीदी ने भी दो-तीन फ़ायर किये और फिर चीख़ता हुआ सड़क की तरफ़ भागा। दूसरी तरफ़ से अब भी फ़ायर हो रहे थे, लेकिन वह गिरता-पड़ता भागा जा रहा था। कार में पहुँचते ही वह तेज़ रफ़्तार से शहर की तरफ़ रवाना हो गया।