ललितराज की रिपोर्ट पर कार्यवाही के दौरान विक्रम को, जो उन दिनों पुलिस की नौकरी में था, संयोगवश इस सम्बन्ध में ठोस लीड मिल गई । नतीजतन उसकी भागदौड और प्रयासों से तीन अन्य लड़कियों समेत ललितराज की बेटी को भी पुलिस उस वक्त बरामद करने में कामयाब हो गई । जब उन्हें बम्बई ले जाया जाने वाला था । ताकि वहां से जहाज में सवार कराकर उन्हें हिन्दुस्तान से बाहर भेजा जा सके ।



इस तमाम सिलसिले में सबसे बड़ी बात यह रही कि विक्रम ने ललितराज की बेटी को बाइज्जत वापस उसके परिवार को सौंप दिया था । किसी को उस घटना के बारे में कानों-कान पता तक नहीं चल सका ।



ललितराज ने जल्दी ही अपनी बेटी की शादी कर दी और अब वह सुखी गृहस्थ जीवन बिता रही थी ।



ललितराज को इसके लिए विक्रम का कृतज्ञ होना चाहिए था । जोकि वह था भी । मगर अपने कांईयापने की वजह से इस कृतज्ञतापन के चक्कर में वह कोई बड़ा खतरा मोल लेना नहीं चाहता था ।



जब विक्रम होटल के प्रवेश-द्वार से भीतर दाखिल हुआ, ललितराज लॉबी में मौजूद था । और रिसेप्शनिस्ट से बातचीत कर रहा था ।



विक्रम को देखते ही उसका चेहरा कागज की भांति सफेद पड़ गया और आंखों में भय झांकने लगा था । जाहिर था कि वह अखबार पढ़ चुका था और विक्रम के आगमन का, उसके विचारानुसार, सीधा-सा अर्थ था-मुसीबत ।



उसने धीरे से सिर हिलाकर विक्रम को अपने ऑफिस में जाने का संकेत कर दिया ।



विक्रम चुपचाप सीधा उसके ऑफिस में पहुंचा और दरवाजा बन्द करके इंतजार करने लगा ।



मुश्किल से डेढ़ मिनट बाद ही दरवाजा खोलकर ललितराज भीतर दाखिल हुआ । और पुनः दरवाजा बन्द करके अपने डेस्क के पीछे धम्म् से कुर्सी पर बैठ गया ।



"विक्रम बाबू, भगवान के लिए.. ।" वह हांफता-सा बोला ।



लेकिन इससे पहले कि वह अपना वाक्य पूरा कर पाता, विक्रम बोल पड़ा-"मुझे मदद की जरूरत है, दोस्त !"



"लेकिन इसके लिए मेरे पास ही क्यों आए हो ?"



विक्रम को ललितराज के ऐसे ही रवैए की अपेक्षा थी । वह जानता था कि उसे सहयोग के लिए तैयार करना पड़ेगा ।



"इसलिए कि फिलहाल तुम ही मदद कर सकते हो ।" वह बोला ।



"लेकिन विक्रम बाबू, आप तो जानते हैं, आजकल इस इलाके में 'गश्ती' औरतों की तादाद बढ़ती जा रही है ।" ललितराज विवशता जाहिर करता हुआ बोला-"इसलिए रोज रात में पुलिस पूछताछ करने यहां भी आती है । बाहर सादा लिबास में भी वे लोग घूमते रहते हैं । कल तो...।"



"मुझे सिर्फ एक कमरा चाहिए ।" विक्रम पुनः उसकी बात काटता हुआ बोला-"जहां आराम करने के साथसाथ इत्मीनान से सोच-विचार भी किया जा सके । और कोई परेशान करने न आ धमके ।"



"परेशान ? आप तो पहले ही भारी मुसीबत में फंसे हुए है ।"



"उसी से निकलने की कोशिश करने के सिलसिले में ही तो यहां आया हूं ।"



"ललितराज चन्द पल खामोश बैठा रहा फिर थके-से अन्दाज में उठकर थोड़ी-सी खिड़की खोली, सावधानीपूर्वक बाहर झांका और फिर पुन: खिड़की बन्द कर ली ।



"देखिए, विक्रम बाबू !" वह पलटकर बोला-"पुलिस को तो एक बार के लिए मैं टरका सकता हूं । लेकिन अगर आफताब आलम के आदमियों को पता चल गया कि आप यहां हैं तब क्या होगा ?"



विक्रम ने जवाब नहीं दिया ।



"मैं न तो हौसलामन्द हूं और न ही बनना चाहता हूं ।" ललितराज कह रहा था-"आप अच्छी तरह जानते हैं, आफताब आलम को पता लगने की देर है कि मैंने आप को छुपाया हुआ है । वह फौरन मेरी छाती पर आ चढ़ेगा और आपसे पहले मुझे शूट कर देगा ।"



विक्रम मुस्कराया ।



"जानता हूं ।"



"तो फिर अपने साथ मुझे क्यों मुसीबत में फंसा रहे हो ?"



"तुम्हें मुसीबत में फंसाने का कोई इरादा मेरा नहीं है ।"



"तो और क्या है ?"



"सीधी-सी बात है, एक बार मैंने तुम्हारी मदद की थी । आज तुम्हारी मदद की मुझे जरूरत है ।" कहकर विक्रम ने अर्थपूर्ण स्वर में पूछा-"बाई दी वे, तुम्हारी उस बेटी का क्या हाल है ? उसकी गृहस्थी मजे से तो चल रही है ?"



ललितराज ने झटका-सा खाकर बड़े ही नर्वस भाव से उसकी ओर देखा ।



"ओह...व...वह ठीक है ।" उसने व्याकुलतापूर्वक कहा । फिर तनिक रुककर बोला-'माफ करना, मेरी तबीयत आज कुछ ठीक नहीं है । पता नहीं, क्या हो गया है । कहना कुछ चाहता हूं और कह कुछ जाता हूं ।" उसने सिगरेट होंठों में दबाकर सुलगाने की कोशिश की मगर उसके हाथ इस बुरी तरह कांप रहे थे कि दो तीलियां बेकार करने के बाद ही कामयाब हो सका-"हां, तो आप कमरे की बात कर रहे थे ।" वह एकदम रंग बदलकर चिकने-चुपड़े स्वर में बोला-"तीसरी मंजिल पर हमारे पास एक स्पेयर कमरा है । वो एकदम दूसरे सिरे पर है । वहाँ एक फायर एस्केप एग्जिट भी है । जो पिछले कोर्टयाड तक जाता है ।"



"मुझे ऐसा ही कमरा चाहिए ।" विक्रम ने कहा ।



ललित राज ने अपने डेस्क के एक ड्राअर से निकालकर चाबी उसके सामने रख दी ।



"यह रही उसकी चाबी ।"



विक्रम ने चाबी उठा ली ।



"थैंक्यू ।" वह बोला-"तुम अभी भी यहीं स्टाफ क्वार्टर्स में ही रहते हो ?"



"हां । क्यों ?"



"रात में तुम्हारी जगह कौन ड्यूटी पर होता है ?"



"वैसे तो मैं ऑन काल रहता हूं और सारी जिम्मेदारी भी मेरे ऊपर ही रहती है । मगर नाममात्र के लिए एक असिस्टेंट भी रहता है । रात में वही रिसेप्शनिस्ट कम टेलीफोन आपरेटर का भी काम करता है ?"



"यानी उसकी फिक्र मुझे करने की जरूरत नहीं है ?"



"नहीं ।"



विक्रम खड़ा हो गया ।



ललितराज ने कमरे की लोकेशन समझा दी ।



विक्रम उसके ऑफिस से निकलकर सीढ़ियों द्वारा तीसरे खंड पर पहुंचा ।



कारीडोर से गुजरकर उसने आखिरी सिरे पर बने कमरे का लॉक खोला और भीतर दाखिल होकर पुनः दरवाजा लॉक कर लिया ।



कमरा ज्यादा बढ़िया नहीं था । लेकिन टेलीफोन समेत सभी आवश्यक सुविधायें वहां मौजूद थीं ।



विक्रम ने कमरे का मुआयना करने के बाद बालकनी की बगल में मौजूद लोहे की चक्करदार सीढ़ियों वाली फायर एस्केप एग्जिट पर निगाह डाली । फिर बिस्तर पर पड़ गया ।



ललितराज की ओर से वह बेफिक्र था । आनाकानी करना उसकी आदत जरूर थी । वैसे उस पर पूरी तरह भरोसा किया जा सकता था ।



विक्रम ने सारे सिलसिले पर इत्मीनान से सोचना आरम्भ कर दिया ।



प्रत्यक्षतः वह बड़े भारी बखेड़े में फंस चुका था । आफताब आलम उसे अपने भाई का हत्यारा समझ रहा था । क्योंकि उसके पास हत्या करने का मोटिव था । मुनासिब मौका हासिल था । वैसा कर सकने की क्षमता थी और हत्या के वक्त की कोई ठोस एबीली उसके पास नहीं थी ।



आफताब आलम के बाद दूसरी समस्या थी-किरण वर्मा ।



अगर किरण वर्मा ने सच बोला था, जोकि उसने बोला ही होगा क्योंकि उसे न तो झूठ बोलने की जरूरत थी और न ही जाहिरा तौर पर ऐसी कोई वजह उसके सामने थी, तो किसी और बखेडे में भी वह फंस गया था । बकौल किरण वर्मा, वह इंटेलीजेंस ब्यूरो की एजेंट थी । मगर इस बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा था । विदेश मंत्रालय के एक विभाग में स्टेनो की उसकी नौकरी सिवाय उसके कवर करने के और कुछ नहीं हो सकती थी । और उसने जो कैपसूल दिया था वो राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से निश्चित रूप से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था । लेकिन वह उस कैपसूल को गुम कर चुका था ।



सत्यानाश !



विक्रम ने बेचैनी से करवट बदली । उसे अपनी हालत उस खरगोश जैसी नजर आई । जो अचानक भूखे शिकारी कुत्तों के बाड़ में छलांग लगा बैठा था ।



उसके सिर पर मौत मंडरा रही थी और हर तरफ उसकी जान के दुश्मन थे ।



आफताब आलम और किरण वर्मा के अलावा पुलिस की समस्या भी अपने में कम नहीं थी । क्योंकि उससे पुरानी खुन्नस रखने वाले कई अफसर हिसाब चुकाने के फेर में रहा करते थे । उन लोगों की ओर से भी विक्रम फिक्रमन्द तो था मगर उनकी ज्यादा फिक्र उसे नहीं थी ।



इन तमाम हालात को मद्दे-नजर रखते हुए उसने अपना सबसे पहला कदम निर्धारित करने के बारे में विचार किया ।



तीन समस्याओं में से दो का तो एक ही इलाज था । अगर परवेज आलम के हत्यारे का मय ठोस सबूत पता लग जाए तो आफताब आलम और पुलिस दोनों की ओर से बेफिक्र हुआ जा सकता था ।



इस तरह सिर्फ एक समस्या बाकी बचनी थी-किरण वर्मा की । लेकिन उसमें वह अकेली नहीं वे लोग भी इनवाल्व थे जिन्हें उसने अपना पीछा करते देखा था । और इसका मतलब था, इंटेलीजेंस ब्यूरो वालों ने उस कैपसूल की खातिर उसका जीना हराम कर देना था ।



कैपसूल !



माइक्रोफिल्म !



राष्ट्रीय सुरक्षा !



देर तक, बार-बार ये ही शब्द उसके दिमाग में हथौड़ों की तरह बजते रहे । और रह-रहकर एक ही सवाल उसे कचोटता रहा ।



क्या किया जाए ?



इसका सबसे माकूल जवाब था-जीवन ।



कैपसूल जीवन के पास था । इसलिए पहले उसे ही ढूंढ़ना चाहिए । लेकिन यह काम आसान नहीं था । जीवन कहां मिलेगा ? इसका सही पता आफताब आलम से ही लग सकता था । क्योंकि किसी भी एक जगह ज्यादा देर टिकने वाला आदमी वह नहीं था । उसे जल्दी-जल्दी रिहाइश बदलते रहने का शौक था और एक बार जिस स्थान को छोड़कर चला जाता था वहां पलटकर दोबारा नहीं आता था । सच बात तो यह थी वह खुद नहीं जानता था कि उसकी रात कहां गुजरेगी । इस सबके बावजूद उसके हेरोइन एडिक्ट होने की वजह से एक लिहाज से उसका पता लगाना ज्यादा मुश्किल भी नहीं था ।



विक्रम को याद आया, जीवन ने लीना से कहा था कि उसे हेरोइन की सप्लाई पूरी नहीं मिल रही थी । और उसके विचारानुसार उस कैपसूल में हेरोइन थी । जिसे उस ने एमरजेंसी के लिए अपने पास रख छोड़ा था ।



अचानक विक्रम बुरी तरह चौंका । अगर जीवन का अनुमान सही था और कैपसूल में वाकई हेरोइन थी तो मामला और भी ज्यादा खराब था । 'फिक्स' की तलब लगने और पास में 'माल' न होने की हालत में उसने कैपसूल खोल डालना था । जिसका सीधा-सा मतलब था-सर्वनाश !



विक्रम ने सबसे पहले यही पता लगाने का निश्चय किया कि कैपसूल में हेरोइन थी या नहीं ।



इसका पता लगाने का सिर्फ एक तरीका था और उस तरीके पर रात के अन्धेरे में ही अमल करने की कोशिश की जा सकती थी ।



विक्रम शाम होने का इंतजार करने लगा ।