रुस्तम राव कर्मपाल सिंह को वापस बांकेलाल राठौर के ऑफिस लाया और रिसेप्शन पर कर्मपाल सिंह को बिठाकर बांकेलाल राठौर के पास जा पहुंचा। वापसी पर रास्ते भर कर्मपाल सिंह पूछता रहा कि बात क्या है। देवराज चौहान कहां है, लेकिन रुस्तम राव बातों में उसे टालता ही रहा।


रुस्तम राव को सामने पाकर बांकेलाल राठौर के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।


"ओ छोरे। तू गयो न अभी तक। "


"गया था बाप आ भी गया। देवराज चौहान बोत बड़ी प्रॉब्लम में फंसेला है।" रुस्तम राव बोला।


"म्हारे को बता का प्राब्लम हौवे प्राब्लम को 'वड' के रख दवागां। " बांकेलाल राठौर ने अपनी मूंछ को हाथ लगाया।


"फकीर बाबा को तो नेई भूएला बाप ।"


"वो फकीर बाबा।" बांकेलाल राठौर ने टोका- "जबो देवराज चौहान और मोना चौधरी झगड़े तो बीच में आ पड़ो। जो बोत खतरनाक और ताकत वालो हौवो। "


"हां। उसी की आपुन बात करेला है। आपुन के वां पोचने से पैले, फकीर बाबा देवराज चौहान के पास पौंचा और बोला, रुस्तम राव जिस आदमी को लेकर आ रहा है, उससे मिलना भी नहीं। क्योंकि वो जो काम करने को बोलेगा। उस काम पर पहले ही मोना चौधरी खड़ेला है बाप और ऐसे में एक बार फिर दोनों में झगड़ा होएला। फकीर बाबा की रिकवेस्ट पर, देवराज चौहान उनकी बात मानेला बाप । "


बांकेलाल राठौर के चेहरे पर गंभीरता के भाव उभरे।


"तो देवराज चौहान म्हारे भाई जैसे दोस्त को ना ही मिल्लो।" 


"वो अपने सारी बात बताके कहेला कि बांके को समझा देना। बोलना सॉरी—।"


"ये तो म्हारे को अच्छा नेई लग्गो रुस्तम कर्मे को अंम का मूं दिखायो। वो म्हारो खास हौवो अंम को मालूम देवराज चौहान मजबूर हो गयो, पर म्हारो दोस्त की भी तो इज्जत हौवो। " बांकेलाल राठौर के चेहरे पर गंभीरता थी—"ये तो कोई अच्छी बात न होवो। म्हारो देस हौवो या गुरुदासपुर हौवो। अंम अपणो के काम तो जरूर आयो। देवराज चौहान की मजबूरो अंम कर्मे को कैसो समझायो।" रुस्तम राव ने गंभीर निगाहों से बांकेलाल राठौर को देखा।


"बांके।"


"का, बोल—?"


"तुम्हारा दोस्त कर्मा क्या चाईला है बाप?"


"मन्ने तो पूछा ना ही सीधा रवाना कर दयो, देवराज चौहान के पास। " बांकेलाल राठौर बोला।


"बाप ये कर्मा, तेरा खास होएला, क्या?" 


"खास न हौवे तो का अंम ऐरे-गैरे को देवराज चौहान के पास भेजूं हो। " 


"तो कर्मे को बुलाकर पूछ क्या काम होएला। आपुन के बस में हुआ तो आपुन लोग उसका काम करेला। " रुस्तम राव ने कहा और आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठ गया।


बांकेलाल राठौर ने गहरी निगाहों से रुस्तम राव को देखा।


"तू म्हारा काम करो ?"


"क्या होएला बाप । कभी-कभी अच्छा काम भी करेला बाप। पैले कर्मे की बात सुनेएला। वो बाहर बैठा है। बुला ला उसको। "रुस्तम राव ने लापरवाही से कहा। 


बांकेलाल राठौर सोच भरे ढंग से उठा और बाहर बैठे

कर्मपाल सिंह को बुला लाया। भीतर आते ही वो दोनों को देखकर बोला। "आखिर बात क्या है। बांके, तू तो मेरे को देवराज चौहान से मिलवाने ।"


"कर्मे। ठण्डे-ठण्डे बैठ। फिर बात करूं थारे से। "


कर्मपाल सिंह बैठ गया।


"नहीं। " कर्मपाल सिंह कुछ उखड़ा हुआ था।


"बोल, ठण्डी-ठण्डी, मक्खन का गोला डालकर, लस्सी चल्लो।"


"ठीको। बाद में पी लयो ईब म्हारी बात सुन देवराज चौहान पंद्रहों दिनों के लिए, विदेशी टूर पर गयो हो। शायद जल्दी में उसका प्रोग्राम बनो हो। तम म्हारे को बता, यारे का, कां रगड़ा फंसा हो। "


कर्मपाल सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला।


"बोल, म्हारे होते हुए चिन्ता का करो हो। सारी प्राब्लम को 'वड' के रख दयो। बोल। "


"ये काम तुम्हारे बस का नहीं है। " कंर्मपाल सिंह ने व्याकुलता से कहा।


"तू का जाने अभ्भी कि म्हारा बसो कां तको तक हौवे अपणी कैले पैले। फिर अंम अपणी बतायो।"


कर्मपाल सिंह ने रुस्तम राव पर निगाह मारी।


"छोरे की तू परवाह मत करो हो। बापो हौवे म्हारा पण, म्हारे को बाप बोले। तू बात कै । "


कर्मपाल सिंह ने पहलू बदला फिर बोला।


“शंकर भाई, वो अंडरवर्ल्ड का बड़ा--।"


"बड़ो-वड़ो तो छोड़ो तू, अंम बोत पैले से जानो उसे। पैले वो बोत छोटा हौवे। बातो बता सीधे-सीधे। उसो ने थारी भैंस खोल भी हौवे तो, वो खुद धारो खूंटो पर भैंस बांध जायो। "


"ये बात नहीं है। "


"फिर बोल, का हौवे?" 


"उसके पास एक फाइल है। मैं उस फाइल को पाना चाहता हूं। " कर्मपाल सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला। 


“वो फाइल थारी हो का ?" 


"नहीं।"


"फिर?"


कर्मपाल सिंह खामोश रहा।


“समझो। लफड़ा दूसरों ही हौदे। शंकर भाई के खानों में तू अपना हाथ फंसायो। धंधों में थारा एक पार्टनर भी तो रयो। वो किधर है। तुम दोनों वो फाइल पावो का?"


"बंगाली कुछ दिन पहले ही अलग हो गया है या समझ लो कि हम दोनों ने धंधों का आपस में बंटवारा किया और अलग हो गए। अलग न होते तो हम दोनों ही उस फाइल को पाने की कोशिश करते। "


"थारा मतलब कि वो फाइल को पाना चाहो । "


"हां। वो पूरी कोशिश करेगा, उस फाइल को पाने की क्योंकि जो मेरे को पता है, उसको भी पता है। "


"पण म्हारे को कुछ नेई पता। म्हारे को बता, वो फाइल में का हौवे?"


कर्मपाल सिंह के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे।


"बाप। " रुस्तम राव ने शांत स्वर में बांकेलाल राठौर से कहा- "शर्त लगाएला है क्या?"


"म्हारे को शर्त लगाने को बोल्ले काये के वास्ते?" बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ी।


"इसका पार्टनर।" रुरतम राव ने कर्मपाल सिंह पर निगाह मारी "वो बंगाली, मोना चौधरी के पास पोंचेला है और मोना चौधरी उस बंगाली का ये काम करने को तैयार होएला।"


"छोरे यां बैठो-बैठो तू भविष्यवाणी भी करने लगो हो का?"


"फकीर बाबा की बात तुम, भूल रहे हो बांके।" रुस्तम राव गंभीर स्वर में कह उठा-"देवराज चौरान को इससे न मिलने को बोला। बोला कि अगर इसका काम करेला तो मोना चौधरी से टक्कर होएला सीधी सी बात को तू भविष्यवाणी बोएला बाप । "


बांकेलाल राठौर गंभीर हो उठा।


"मैं समझा नहीं। तुम लोग क्या बात कर रहे हो।" कर्मपाल सिंह उलझन भरे स्वर में कह उठा।


"तेरे को बीच में बोलने का क्या पड़ेला है। ठण्डे-ठण्डे बैठे रह। " रुस्तम राव बोला।  


कर्मपाल सिंह ने अजीब निगाहों से नन्हे 'जालिम' को देखा। कहा कुछ नहीं। 


“थारी बात तो म्हारे को जंचो।" बांकेलाल राठौर ने सिर हिलाया। 


"बाप । आपुन जो बोला है, परफैक्ट बोला है।"


"थारा का ख्याल होवे म्हारे को इस काम में आना चाहो कि न चाहो। " बांकेलाल राठौर ने उसे देखा।


"बाप। आपुण को थापर साहब ने बोत मजबूत बनाएला है। बहुत तपायेला है। आग में भी गिरेगा तो ठीक-ठाक बाहर निकलेगा बाप। आपुन तो गोले की माफिक आगे बढ़ता है। पीछे को नहीं पलटी खा डाला। "


“अंम का किसी से डरो हो। " बांकेलाल राठौर की आवाज कठोरता आ गई। एक हाथ से मूंछ को बल दिया—"म्हारे रास्ते में जो भी आयो, वड के रख दूंगा। मोना चौधरी भी होवे तो का फर्क पड़े हो म्हारे को। "


जालिम मुस्कराया।


बांकेलाल राठौर ने कर्मपाल सिंह को देखा। "


"कर्मे। शंकर भाई की उस फाइल में हौवे का?"


"मुझे उसकी जरूरत--।"


“वो थारे को मिल्लो हो। पण बता, उसके भीतर का हौवे?" 


"उस...।" कर्मपाल सिंह ने पहलू बदला—"उस फाइल में अरबों की दौलत का पता मौजूद है। शंकर भाई ने अपनी जिंदगी में बड़े बड़े दांव खेले हैं और अथाह दौलत उसने इकट्ठी कर रखी है। जिसे कि किसी खास जगह छिपा रखा है। जिसके बारे में शंकर भाई का खास आदमी पाटिल ही जानता था, जिसे पंद्रह दिन पहले किसी ने गोलियों से भून दिया और मरने से पहले वो मेरे से और बंगाली से टकरा गया। मरते वक्त पाटिल के मन में ये बात थी कि उसे किसी दुश्मन ने नहीं शंकर भाई ने मरवाया है। इसी खुन्दक की वजह की खातिर मरने से पहले शंकर भाई की दौलत का राज बताया। ये बताया कि उस फाइल के दम पर उस दौलत तक पहुंचा जा सकता है। फाइल कहां है, ये भी बताया और मर गया। मैंने और बंगाली ने मिलकर ही उस फाइल को पाना था परन्तु अचानक उठे विवाद की वजह से हम अलग हो गए। उसके बाद अब बंगाली अपने तरीके से फाइल पाने की कोशिश में होगा और मैं इधर कोशिश कर रहा हूं। 


बांकेलाल राठौर ने सिर हिलाकर रुस्तमराव को देखा। 


'सुना छोरे। यो असल बात हौवे कर्मा तो चोर पे मोर बनना चाहो। " बांकेलाल राठौर बोला।


कर्मपाल सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला


"बाप, आपुन को बोल करना क्या है। चोर-मोर से कोई वास्ता नहीं। " रुस्तम राव ने शांत स्वर में कहा - "आपुन तो मोना चौधरी के बारे में सोचेला है कि वो सामने पड़ेला तो, खुन्दस खाएला।" 


'अंम उसको इसो बार तो 'वड' के रख दयो।"


"बाप तुम्हारे हाथ में चाकू न तलवार और सबको वडेला तू।" रुस्तम राव मुस्कराया। 


बांकेलाल राठौर ने फौरन ड्राअर से रिवॉल्वर निकाली। दिखाई। "देख छोरे म्हारे को हवा न दे। अंम इसो रिवॉल्वर से सबको वडेगा।" बांकेलाल राठौर के चेहरे पर कठोरता के भाव आ गए थे—“अंम किसो से डरो ना।"


जालिम, सिर्फ मुस्करा कर रह गया।


बांकेलाल राठौर ने रिवॉल्वर जेब में डाली और कर्मपाल सिंह से बोला।


"म्हारे को बता, शंकर भाई ने वो फाइल कां पे रखो है। अंम-।"


"बांके– ।" रुस्तम राव ने टोका–"इस काम में हाथ डालेगा तो थापर साहब के इन कामों का क्या करेला। सारा काम, खास खास काम थापर साहब ने तुम्हारे हवाले करेला है। जिसे तुम किसी दूसरे के सिर पर भी नहीं थोप सकेला बाप खुद थापर साहब, मिल लगाने में व्यस्त हैं। "


बांकेलाल राठौर के चेहरे पर गंभीरता उभरी ।


“इसो बात को तो मन्ने सोचो भी ना ही। पैले थापर साहब के काम, बादो में दूसरो। छोरे। " 


"बाप"


"इसो बात का हल भी हौवे पर थारे को म्हारो साथ देना हौवे। " बांकेलाल राठौर ने उसे देखा।


"बोल बाप—।"


"कर्मे की बात सुनकर काम पर तू लगो जा। जब काम करने का समय आयो तो म्हारे को बोल। अंम भी थारे साथ लग जायो। तबो तो एक-आध दिन की बात हौवे इतना वक्त तो निकल ही आयो। " 


"बाप तू तो सारा बोझा मेरे सिर पर डाएला है। " रुस्तम राव मुस्कराया। 


"ये कर्मा भाई तो थारे साथ हौवे बोत जरूरत पड़ो तो म्हारे को फोनो मार दयो। "बांकेलाल राठौर ने मूंछ को कोने से उमेठा-- "सबको 'वड' के रख दूंगा।"


"रिवॉल्वर से बाप" रुस्तम राव बराबर मुस्करा रहा था। 


बांकेलाल राठौर ने तीखी निगाहों से रुस्तम राव को देखा।


“छोरे म्हारे से मजाक करो हो। देखना, अंम रिवॉल्वर से वक्त पड़णो पर कैसो सबको वडो हो। " कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर की निगाह कर्मपाल की तरफ गई—"म्हारे को बता कर्मे वो फाइल का हौवे? पाटिल ने थारे को मरने से पेले का बतायो। "


कर्मपाल सिंह ने बताना शुरू किया।


***

“तन्ने सुना छोरे कि कर्मे ने क्या बोलया के फाइल किधरो हौवे। " बांकेलाल राठौर ने रुस्तम राव को देखा।

रुस्तम राव ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया।

"बाप सुना। अक्खा बात सुना। "

"शंकर भाई की तिजोरी से म्हारे को वो फाइल लानी हौवे। ईब के करयो तू?"

"बाप, सुनेला है वो शंकर भाई बोत खतरनाक होएला। " रुस्तम राव ने उसे देखा।

"खतरनाक हौवे, तभ्भी तो कर्मा, देवराज चौहान से मिलना चावे तू इस कामो को निपट सको के ना ही। "

"काम तो पक्का होएला। पण टेम लगेएला बाप।"

बांकेलाल राठौर के कुछ कहने से पहले ही कर्मपाल सिंह बोल पड़ा। 

"देर लगी तो बंगाली किसी के दम पर कहीं फाइल न ले उड़े।"

"सुन बाप। " रुस्तम राव ने कर्मपाल सिंह को देखा— "कितनी भी भूख लगेयला पण गेहूं को नेई खाएला बाप उसका आटा बनेला फिर रोटी। तब पेट में कुछ पहुंचेला बाप। हर काम को वक्त लगेएला है। जो काम जितना वक्त मांगेला, उतना वक्त तो लगेएला ही बाप। गेहूं ही खाने का तेरे को आदत होएला बाप तो सीधे शंकर भाई के पास पहुंचकर फाइल की डिमांड करेला बाप । " 

कर्मपाल सिंह कुछ नहीं कह सका।

"कर्मे। छोरा ठीक बोले हो। कामों में जो वकत लगो, वो तो लगो ही। ज्यादा जल्दो ठीको न हौवे। तू छोरे को कामो पे लगने दे। यो छोरा दूजो को बापो को बाप बोलो, पण सबसे बड़ा बाप ये ही हौवो। तू न जानो अभ्भी इसो। यो सोलह बरस का दिखो पर हौवो एक सौ सोलह का। "

"बाप! क्यों आपुन को सौ बरस ऊपर चढ़ा डाला। "रुस्तम राव ने सोच भरे स्वर में कहा—"इतना आसान नेई होएला ये काम । 'टफ' मामला होएला ये। उधर बंगले पर गनमैन बोत होएला ।"

"म्हारे पास बोत आदमी हौवे। कर्मों के पास भी--।"

"आपुन को वा पे जंग नेई जीतने का बाप। फाइल पाने का है। वां पे पोंचकर ढोल-शहनाई नेई बजाने का मुंह बंद कर अंदर घुसेला है।"

"ये बात तो तू ठीक बोले हो। पण वो तिजोरी कैसे खोलो। उसो का नंबर तो म्हारे पासो न हौवे कर्मा भी न जानो नम्बर को " बांकेलाल राठौर गंभीर स्वर में बोला- "यो तो प्राब्लम खड़ी हो गयो । "

रुस्तम राव ने अपने कान को मसला।

"तिजोरी का कोई तोड़ भी सोचेला बाप। " रुस्तम राव होंठ सिकोड़े सोच रहा था "कम्बीनेशन नंबर नहीं होएला तो वहीं पहुंचकर बोत बड़ी प्राब्लम खड़ी होएली। "

"ईब का करनो हौवे छोरे।"

रुस्तम राव के होंठों पर मुस्कान उभरी।

"बाप कोई रास्ता तो समझ में आएला ही। अभ्भी तो भेजा गर्म होएला। ठण्डा होएला तो सोचेला। "

"म्हारे को तो यो कामो में दिक्कत लगो हो। वो शंकर भाई खतरनाक हौवे यो भी इसो कामों में आड़े आयो। बहुत जरूरी होवे थारे को ये फाइल कर्मे।" बांकेलाल राठौर ने गंभीर स्वर में कहा।

"हाँ" कर्मा बोला—"तेरे को बताया ही है कि उस फाइल में, शंकर भाई की अरबों की दौलत तक पहुंचने का रास्ता दर्ज है। जो उसने कहीं छिपा रखी है। " कर्मपाल सिंह जल्दी से बोला।

"यो दौलत और औरत फसाद की जड़ो हौवे। म्हारे को देख म्हारी वो गुरदासपुर वाली म्हारी नेई बनो तो मन्ने उसकी डोली को कंधो देकर, सारो झगड़ा ही खत्म कर दयो। तबो म्हारे दिलों में कुछ भी रा हौवा हो पण मनने मूंछ का एको बाल भी टेडा न होने दयो और गुरदासपुर से चलो आयो ।"

कर्मपाल सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला।

रुस्तम राव उठ खड़ा हुआ।

"तू किधर को चल्लो छोरे।"

"यापर साहब का एक काम होएला बाप उसे आज निपटाकर, तुम्हारे यार का काम देखेला।"

"काम तो पकको हौवो ना ?"

रुस्तम राव मुस्कराया।

"बाप काम तो पकका होएला ही, आपुन चला।" कहने के साथ ही रुस्तम राव पलटा और बाहर निकल गया।

कर्मपाल सिंह बेचैनी से बोला।

"बांके। इतना बड़ा और खतरनाक काम ये सोलह बरस का छोकरा कैसे कर सकता है। कुछ तो अक्ल से काम ले। अभी इसके दूध के दांत तो टूटे नहीं और तू।"

"कर्मे।" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर गया- "तू इसो को जानो ना। तभ्भी ये बोले हो। यो छोरा शैतान का बापो लगो हो। यो तो म्हारी खटिया भी सरका दयो। तू इसो का रंग न जानो। पर मन्ने पता होवे, ये यारी गर्दन साफ़ कर दयो, तेरे को पतो ही न लगो। " 

"लेकिन...।"

"अब म्हारे को न बुला, जा म्हारे पास बोत काम होवो फाइल थारे को मिल्लो ही मिल्लो घरो पोंच कर चैन की नींद ले। म्हारे पे भरोसा होवे चारे को या न होवे?"

चेहरे पर अविश्वास के भाव लिए कर्मपाल सिंह उठ खड़ा हुआ। उसके चेहरे के भाव ये बात तो स्पष्ट कह रहे थे कि फाइल उसके हाथ नहीं लगने वाली गलत जगह आ गया है।

*****