“देवराज चौहान-।”
जगमोहन की ऊंची तेज आवाज उस धूप भरे, झुलसा देने वाले वातावरण में गूंजती हुई तपती चट्टानों से टकरा रही थी।
“महाजन-।”
परन्तु उसके पुकारने का कोई जवाब नहीं मिल रहा था।
बीते डेढ़ घंटे से जगमोहन इन पहाड़ी, पत्थरों और पेड़ों के बीच भटक रहा था। पसीने से वो नहाया हुआ था। ठोड़ी से पसीने की बूंदे रह-रहकर नीचे गिर जातीं। पसीने से गीले बाल माथे से चिपक रहे थे। गर्मी की वजह से गला सूखा पड़ा गला उसे गीला करने के लिये यहां पानी कहां?
वो समझ नहीं पा रहा था कि देवराज चौहान और महाजन कहां चले गये। मिल क्यों नहीं रहे। उनका कोई निशान भी अभी तक उसे नहीं मिला था कि आसपास उनकी मौजूदगी का एहसास हो पाता कि वो इधर आये हैं। वो पास में ही कहीं है, परन्तु ऐसा कोई आभास नहीं मिला था उसे।
न ही वो औरत, जिसकी चीख सुनी थी, या उसे ले जाने वाले बदमाश नजर आये थे।
जानलेवा गर्मी और देवराज चौहान और महाजन के न मिलने से हताश सा जगमोहन एक पेड़ की छाया में जा बैठा था, परन्तु उसकी नजरें हर तरफ घूम रही थीं कि शायद कोई नजर आ जाये। अभी पेड़ के नीचे बैठे उसे दो मिनट भी नहीं बीते थे कि पेड़ पर जोरों से खड़खड़ाहट हुई।
जगमोहन चौंक कर खड़ा हुआ। पलक झपकते ही आदत के
मुताबिक हाथ में रिवाल्वर आ गई।
दूसरे ही पल वो ठिठक गया।
चंद कदमों की दूरी पर मोटा-ताजा बन्दर खड़ा था। जगमोहन के देखते ही देखते पेड़ से छलांग लगाकर वो नीचे आया था। कई पलों तक वो बन्दर को देखता रहा फिर रिवाल्वर जेब में रख ली। बन्दर नीचे बैठा, अपनी बगल खुजलाता उसे देख रहा था।
जगमोहन के चेहरे पर उलझन और खीझ के भाव थे। देवराज चौहान और महाजन की तलाश में उसने पुनः इधर-उधर नजरें मारी।
तभी बन्दर की आवाज सुनकर जगमोहन ने पुनः बन्दर को देखा।
बन्दर ने हाथ से उसे आने का इशारा किया और एक दिशा की तरफ चल पड़ा।
ये देखकर जगमोहन के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
कुछ कदम आगे जाकर बन्दर ठिठका और पलट कर देखा। जगमोहन को वहीं खड़े पाकर, बन्दर जोर से चिल्लाया और हाथ के इशारे से समझदार इन्सानों की तरह साथ चलने का इशारा किया।
जगमोहन समझ चुका था कि बन्दर उसे साथ आने का इशारा कर रहा है। वो इस बात को लेकर उलझन में था कि बन्दर के साथ जाये या नहीं?
तभी बन्दर वापस आया और करीब आकर जगमोहन का हाथ पकड़कर खींचने लगा।
उलझल में फंसा जगमोहन, बन्दर के साथ चल पड़ा। बन्दर आगे और जगमोहन पीछे। करीब दस मिनट तक उनका ये छोटा-सा सफर जारी रहा। फिर जहां जाकर बन्दर रुका। वहां के सामने की चट्टान में रास्ता देखकर जगमोहन की आंखें सिकुड़ गई। उसने बन्दर को देखा।
बन्दर ने किलकारी मारी फिर हाथ से उसे खोखली चट्टान के
भीतर जाने का इशारा किया।
ये वो ही रास्ता था जहां से देवराज चौहान और महाजन भीतर
प्रवेश करके तिलस्म में जा फंसे थे।
कशमकश में फंसा जगमोहन कभी उस छोटे से रास्ते को देखता तो कभी बन्दर को। रह-रह कर बन्दर उसे हाथ के इशारे से खोखली चट्टान में प्रवेश करने को कह रहा था आखिरकार जगमोहन ने भीतर जाने का फैसला किया और आगे बढ़कर, नीचे झुकते हुए उस खोखली चट्टान में प्रवेश करता चला गया।
बन्दर वहीं बैठा खोखली चट्टान में नजर आ रहे रास्ते को देखता रहा। जब मिनट भर बीत गया तो एकाएक उस बन्दर का रूप बदला और देखते ही देखते वो लम्बे-चौड़े जिन्न बाधात के रूप में आ गया।
जिन्न बाधात के चेहरे पर मुस्कान दिखाई दे रही थी।
“ये भी अब तिलस्म में जा फंसेगा। दूसरे मनुष्यों को देखता हूं वो कहां पर हैं। उन्हें भी तिलस्म में फंसाना है।” जिन्न बाधात ने ये शब्द जैसे अपने आप से कहे और उसी पल गायब हो गया। जहां वो था, वहां धुएं की लकीर ही नजर आई। फिर वो भी गायब हो गई।
☐☐☐
देवराज चौहान और महाजन नींद में थे। ठण्डी हवा और सुहावने मौसम में गहरी नींद ने उन्हें घेर लिया था। नर्म, मखमली घास ही इस वक्त उनके लिये सुकून देने वाला बिछौना था। नींद में डूबे जमीन के साथ लगे कानों को जब मध्यम सी आहट मिली तो देवराज चौहान की नींद टूटी। तलवार की मूठ हाथ में ही दबी थी। उसी पल वो उछल कर खड़ा हो गया। तलवार तैयार थी वार करने के लिए।
परन्तु उसकी तलवार वाली बांह जहां थी, वहीं ठहर गई।
सामने से जगमोहन आ रहा था। देवराज चौहान को सामने पाकर खुश हो गया था। चेहरे पर राहत के भाव नजर आने लगे।
“तुम-?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
“हां। तुम लोगों को ढूंढता हुआ यहां आ गया।” पास आकर रुकते हुए जगमोहन ने कहा-“मुझे तो विश्वास ही नहीं आ रहा कि मैंने तुम लोगों को तलाश कर लिया है। मुझे लगा था कि, मैं तुम दोनों को नहीं ढूंढ पाऊंगा।”
“ये भी फंस गया।”
जगमोहन ने महाजन को देखा, जो नींद से उठ बैठा था।
“मजे से नींद ले रहे हो।” जगमोहन ने मुस्करा कर कहा।
“तू भी मजे ले जगमोहन भाई।” महाजन मुस्कराकर कह उठा-“यहां मजे की कमी नहीं है।”
“तुम्हें यहां आने का रास्ता कैसे पता चला?” देवराज चौहान ने पूछा।
“एक बन्दर ने रास्ता बताया।”
“बन्दर ने?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
“हां। तुम लोगों को तलाश करते-करते मैं थक-हारकर पेड़ के
नीचे बैठा कि-।” जगमोहन ने सब कुछ बताया।
देवराज चौहान और महाजन की नजरें मिलीं।
“वो जिन्न बाधात ही होगा।” महाजन ने कहा-“बन्दर बनकर,
इसे तिलस्म का रास्ता दिखा दिया।”
“ठीक कह रहे हो।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया फिर जगमोहन से पूछा-“बाकी लोग कहां हैं?”
“वहीं पर जहां बच्चा घायल मिला था। वो बच्चा-।”
“वो बच्चा नहीं जिन्न था। जिन्न बाधात नाम है उसका।”
देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“शैतान के अवतार ने
उस जिन्न को ये काम सौंपा है कि वो हम सबको तिलस्म में
फंसा दे।”
“तिलस्म में?” जगमोहन चौंका।
“हां।” महाजन ने घूंट भरा-“ये तिलस्म है शैतान के अवतार का। जिन्न बाधात की बात का विश्वास किया जाये तो शैतान के अवतार ने तिलस्म के भीतर आने के रास्ते तो बनाये हैं लेकिन बाहर निकलने के लिये कोई रास्ता नहीं बनाया। यानि कि हम अब यहां से कभी भी बाहर नहीं निकल सकते।”
“ओह-!”
“तुम्हें हमारे पीछे नहीं आना चाहिये था।” देवराज चौहान ने कहा-“उन सबके साथ ही रहना चाहिये था। उनके साथ होते तो कम से कम इस वक्त तिलस्म में न फंस चुके होते।”
“कोई फर्क नहीं पड़ता।” महाजन सिर हिलाकर कह उठा-“देर-सवेर में उन सबने भी तिलस्म में फंसना ही है। जिन्न बाधात को शैतान के अवतार का हुक्म है कि सबको तिलस्म में फंसाया जाये तो वो कैसा भी रूप धारण करके, भ्रम में डालकर, सबको तिलस्म में फंसाकर ही रहेगा।”
देवराज चौहान होंठ सिकोड़कर कह गया।
“अब क्या करें?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“मजे करो। जैसे मैं कर रहा हूं और आने वाली किसी नई मुसीबत का सामना करने को तैयार रहो।” कहकर महाजन ने घूंट भरा-“सामना न कर सको तो मरने के लिए तैयार रहना।”
☐☐☐
सूर्य, दोपहर पार करके पश्चिम की तरफ जाने लगा तो मोना चौधरी कह उठी।
“इससे ज्यादा इन्तजार करना वक्त की बरबादी होगी। देवराज चौहान, महाजन और जगमोहन को अब तक वापस आना होता तो, कब के आ चुके होते।”
इन शब्दों को सुनते ही राधा की आंखें आंसुओं से भर गईं।
“मोना चौधरी! मैं नीलू के बिना जिन्दा नहीं रह सकती। मैं अभी अपनी जान-।”
“राधा!” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“महाजन मरा
नहीं है, कहीं फंस गया है। उसके साथ देवराज चौहान और जगमोहन भी हैं। वो अकेला नहीं है। इस तरह की बातें कहकर हमें परेशान न करो। अगर इस वक्त तुम्हारी बातें बोझ से भरी महसूस हुई तो तुम्हारी मौजूदगी किसी को भी अच्छी नहीं लगेगी।”
राधा की आंसुओं से भरी निगाह मोना चौधरी पर थी।
“मैं जानती हूं कि तुम खतरनाक कबीले से वास्ता रखती हो। डरती नहीं हो। लड़ाई के पैंतरे जानती हो। महाजन आज जिन्दा है तो सिर्फ तुम्हारी हिम्मत की वजह से जिन्दा है। तुम्हारे मुंह से
ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं। ये ऐसा वक्त है कि किसी के जख्म पर मलहम लगाने का भी समय हमारे पास नहीं।”
“तुम ठीक कहती हो मोना चौधरी।” राधा आंखों को हाथ से
साफ करती हुई बोली-“नीलू अकेला नहीं है। उसके साथ देवराज चौहान और जगमोहन भी होंगे। जो भी होगा, सबके साथ होगा। लेकिन मैं जानती हूं कि नीलू को कुछ नहीं होगा। वो बहुत बहादुर है। वो जहां भी होगा, ठीक होगा।”
“ईब की तन्ने ठीको बात।” बांकेलाल राठौर कह उठा-“घाबरो
मतो। सबो ठीको हो जायो।”
राधा ने बांकेलाल राठौर को देखा कहा कुछ नहीं।
“तो ये पक्का है कि हम उस दिशा की तरफ नहीं जायेंगे, जिधर
वो तीनों गये हैं।” पारसनाथ बोला।
“हां। हम उधर नहीं जायेंगे।” मोना चौधरी गम्भीर थी-“जिन्न बाधात हम लोगों को किसी खास जगह फंसाना चाहता है। ये उस की चाल है कि हम उनकी तलाश में चलें और उनकी तरह फंस जायें।”
“जरूरी तो नहीं कि हमारी सोच ठीक हो।” सोहनलाल ने कहा-“हमारा ख्याल गलत भी हो सकता है।”
“इन हालातों में मैं गलत-सही के फेर में नहीं पड़ना चाहती।” मोना चौधरी ने स्पष्ट कहा।
“तो फिर अब क्या करेला बाप?”
“हम यहां से आगे बढ़ेंगे। लेकिन उस तरफ नहीं जायेंगे, जिधर देवराज चौहान, महाजन और जगमोहन गये हैं।”
सब अंधेरे में हाथ-पांव मार रहे थे। मंजिल लापता थी। रास्ते कहीं थे ही नहीं। ऐसे में किसी के पास इन्कार करने का कोई कारण ही नहीं था।
“अगर कोई देवराज चौहान वाली दिशा की तरफ जाना चाहता है तो मुझे कोई एतराज नहीं।” मोना चौधरी बोली।
“म्हारी का खोपड़ी घूमो हो जो अंम उधर को जायो-।”
“इस वक्त एक साथ रहने में ही हम लोगों की बेहतरी है।” पारसनाथ ने कहा।
मोना चौधरी सबको देखते हुए गम्भीर स्वर में कह उठी।
“अब हमें और भी होशियार रहना होगा। जो भी देखने को मिले उस पर विश्वास नहीं करना है। हर चीज को सिर्फ धोखा समझना है। भ्रम समझना है। कहीं भी दया या दुश्मनी नहीं दिखानी है।”
“ऐसा कर पाना सम्भव नहीं।” सोहनलाल ने सोच भरी आवाज में कहा।
“क्यों?”
सबकी नजरें सोहनलाल पर गईं।
“हमें किसी पर तो विश्वास करना होगा। हर चीज को हम धोखा या भ्रम नहीं समझ सकते। वक्त आने पर हमें दया भी दिखानी पड़ेगी और दुश्मनी भी दिखानी पड़ेगी।” सोहनलाल बोला-“ये ठीक है कि शैतान का अवतार अपनी चालों से हम पर वार कर रहा है। लेकिन हमारे साथ जो भी होगा, हर बात को हम शैतान के अवतार की चाल समझकर टाल नहीं सकते। कुछ बातों में सच्चाई भी हमारे सामने आ सकती है। उस सच्चाई को भी हम भ्रम समझेंगे तो, हमारा ही नुकसान होगा।”
“बात तो थारी चौखी फिट लगो हो, म्हारे को-।”
मोना चौधरी का सोचों से भरा चेहरा हिला।
“तुम ठीक कह रहे हो सोहनलाल।” मोना चौधरी ने कहा-“ऐसे में हमें पहले फैसला नहीं करना है कि आगे क्या होगा और क्या करना है। जैसे हालात सामने आयेंगे, उन्हें देखते हुए ही तुरन्त फैसला करेंगे।”
“मोना चौधरी परफैक्ट कहेला।”
“ईब इधरो से खिसको भायो। दिनो भी धीरो-धीरो खिसको हो-।”
मोना चौधरी, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, पारसनाथ और राधा वहां से आगे बढ़ गये। जिधर देवराज चौहान गया था, उससे उल्टी दिशा में वो रवाना हुए।
गर्मी, धूप, तपिश और पसीने से उनके बुरे हाल हो रहे थे।
☐☐☐
सूर्य पश्चिम में छिप चुका था।
परन्तु जमीनी तपिश अभी भी शरीर को महसूस हो रही थी। हर तरफ पथरीला इलाका ही नजर आ रहा था। कहीं-कहीं सूखा सा पेड़ नजर आ जाता। एक-दो बार ही उन्हें हरा-भरा पेड़ देखने को मिला था। परन्तु वो रुके नहीं। आगे ही बढ़ते रहे थे।
“हम बहुत आगे आ चुके हैं।” सोहनलाल ने कहा।
“ठीक कहेला बाप लेकिन इधर कोई भी नेई दिखेला।”
“इतने लम्बे रास्ते में कोई तो नजर आता।” पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा-“किसी के नहीं दिखने का मतलब है कि अभी हम पूरी तरह शैतान के अवतार की दुनिया में नहीं पहुंचे।”
“ये भीतरो की बातो हौवे कि शैतान के अवतारो की खिचड़ी कहां पको हो-।”
“मेरा नीलू तो यहां से अब बहुत दूर होगा।” राधा कह उठी।
“तंम फिक्र मत करो। यां पे पैले आपणे बारो में सोचो। दूसरों
का भलो भगवान करो हो-।”
राधा का चेहरा उतरा-उतरा सा महसूस हो रहा था।
“इस तरह हम कब तक आगे बढ़ते रहेंगे, मोना चौधरी-।” पारसनाथ कह उठा।
“मालूम नहीं।” चलते-चलते मोना चौधरी ने गहरी सांस ली।
“आखिर कहीं तो हमें रुकना पड़ेगा।” पारसनाथ पुनः बोला।
“जहां अंधेरा होगा, वहीं ठहर जायेंगे।” मोना चौधरी ने कहा।
“लेकिन हम जा कहां रहे हैं? राधा ने कहा-“हमारी मंजिल कहां है?”
“इन सवालों का जवाब हमारे पास नहीं है। शैतान के अवतार की अन्जानी धरती पर हम भटके हुए लोग हैं। राह नहीं मालूम। कोई बताने वाला भी नहीं-।” मोना चौधरी की आवाज में गम्भीरता थी।
“ये ई तो बात बड़ी मुसीबतो हौवे कि-।”
बांकेलाल राठौर के शब्द अधूरे ही रह गये।
एकाएक वातावरण में मध्यम सी आवाज उभरने लगी। सब ठिठक गये। नजरें एक-दूसरे पर जाने लगीं। आंखों में सवाल था। सतर्कता थी।
“ये आवाज कैसी होएला?”
“घोड़े के टापों की आवाज लग रही है।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
अब आवाज बहुत हद तक स्पष्ट हो गई थी।
वो वास्तव में घोड़े के टापों की आवाज थी।
“आवाज करीब आती जा रही है।” पारसनाथ के होंठ भिंचते चले गये।
“कोई भी किसी काम की जल्दबाजी न करे।” मोना चौधरी तेज स्वर में कह उठी-“जो भी फैसला लेना है सोच-समझ कर लेना है। सामने वाले पर विश्वास न ही किया जाये तो बेहतर होगा।”
आवाज अब बेहद करीब आ पहुंची थी।
सबकी निगाह उस तरफ थी, जिधर से आवाज आती महसूस
हो रही थी।
फिर वो घोड़ा नजर आया। उसके पीछे रेहड़ा बंधा हुआ था। घोड़े की लगाम पच्चीस-सत्ताईस बरस के युवक ने पकड़ रखी थी। उसके साथ करीब बीस बरस की उम्र की युवती बैठी थी। दोनों तेजी से रेहड़ा भगाये जा रहे थे और साथ ही साथ किसी बात पर हंस रहे थे।
उनकी खिलखिलाहट की आवाज यहां तक आ रही थी।
वो कुछ दूर थे और शायद इधर नजर नहीं पड़ी थी। तभी तो वो अपनी दिशा की तरफ बिना रुके जाये जा रहे थे। अब वो दिखता घोड़ा-रेहड़ा दूर होने लगा।
“वो जा रहे हैं।” सोहनलाल के होंठों से निकला।
“आपुन लोगों पे उनकी नजर नेई पड़ेला-।”
“जवानी की मस्तो में होवे। जबो अंम गुरदासपुर में उसो के
साथ-।”
उसी पल राधा जोरों से गला फाड़कर चिल्लाई।
“ऐ, घोड़े वाले...ऽ ऽ ऽ।”
सबने देखा। राधा की आवाज के साथ ही युवती की गर्दन इस तरफ घूमी। फिर उस युवती ने अपने साथी युवक से कुछ कहा। भागता घोड़ा धीरे-धीरे रुकता चला गया। युवक और युवती इधर ही देख रहे थे। मिनट भर ऐसे ही बीत गया। वो दोनों आपस में बातें करते लग रहे थे।
“उनके पास चले-।” राधा कह उठी।
“जरूरत नहीं।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“वो दोनों यहां अवश्य आयेंगे।”
“न आये तो?” पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा।
“तो मेरे लिये हैरानी की बात होगी।” मोना चौधरी ने उसी लहजे में कहा।
“क्यों?”
“अपनी धरती पर, सुनसान जगह पर, अजनबी लोगों को देखकर, ये जानने को हर कोई उत्सुक होगा कि ये लोग यहां कैसे आ गये। यहां क्या कर रहे है। ऐसे में देखने वाला पास आकर पूछेगा अवश्य कि-।”
“ठीक कह रही हो मोना चौधरी-।” राधा ने गम्भीरता में कहा। महाजन के जाने के बाद राधा की चंचलता गायब हो गई थी। अब, वो ही कबीले वाली राधा दिखने लगी थी।
तभी उन्होने देखा कि घोड़े को मोड़ने के पश्चात सामान्य गति से रेहड़ा उनकी तरफ आने लगा।
“वो इधर ही आ रहे हैं।” सोहनलाल बोला।
“सतर्क रहना।” मोना चौधरी ने भिंचे स्वर में कहा-“ये दोनों शैतान के अवतार की चाल भी हो सकते हैं।”
सबकी निगाह युवक-युवती पर टिकी रही।
वो अब पास पहुंच गये थे।
☐☐☐
युवक ने घोड़े की लगाम खींची तो वो रुक गया। युवक और युवती अजीब-सी नजरों से सबको देख रहे थे। इस दौरान उनकी नजरें आपस में भी मिलीं।
“ऐ-सरजू, ये तो शैतान के अवतार की दुनिया के लोग नहीं
दिखते।” युवती ने कहा।
“ठीक कहती हो दया।” युवक बोला-“ये तो अपनी ही दुनिया के लोग लगते हैं। शैतान के अवतार की दुनिया में इस तरह के लोग नहीं होते।”
“क्या बातें कर रहे हो तुम लोग?” राधा कह उठी।
सरजू और दया ने आपस में एक-दूसरे को देखा-फिर सबको।
“कौन हो तुम लोग?” सरजू ने पूछा।
“हम धरती पर रहने वाले मनुष्य हैं।” पारसनाथ ने कहा-“तुम
दोनों-।”
“झूठ मत बोलो। शैतान के अवतार की मर्जी के बिना कोई
मनुष्य इस धरती पर कदम नहीं रख सकता। तुम लोग मनुष्य नहीं हो सकते। शैतान के अवतार के लोग हो तुम-।”
“हम मनुष्य हैं।” मोना चौधरी बोली-“तुम्हारा संदेह व्यर्थ है।
हम शैतान के अवतार को खत्म करना चाहते हैं। ये बात शैतान के अवतार को पता चली तो वो हमें अपनी दुनिया में ले आया। हमें खुला छोड़ दिया कि हम उसे तलाश करें और मारें। नहीं तो उसके बिछाये जाल में फंस कर अपनी जान गंवा दें।”
सरजू और दया की नजरें पुनः मिलीं।
“हमारे चार साथी और भी हैं, परन्तु शैतान के अवतार ने अपनी चाल चलकर, उन्हें हमसे जुदा कर दिया। जिन्न बाधात हमारे पीछे पड़ा हुआ है कि हमारे कामों में बाधा डालकर, हमें भटका सके।”
वो दोनों खामोश से सबको देख रहे थे।
“थारे को म्हारी बातों पर विश्वासो न आयो हो तो शैतान के अवतारो से पूछो लयो। जिन्नो बाधातो से मालूम कर लयो। वो कारी राक्षसो तो मरो ही गयो। नेई तो वो थारे को म्हारो बारो में बता दयो।”
“दया-।” सरजू सोच भरे स्वर में कह उठा।
“हां-।”
“सुबह ही दादू बता रहे थे कि शैतान के अवतार की धरती पर कुछ मनुष्य आये हैं।” सरजू ने सोच भरे स्वर में कहा-“कहीं इनके बारे में तो नहीं बता रहे थे-।”
“आपुन के बारे में ही ये बात होएला बाप-”
“मनुष्यों के रूप में शैतान के अवतार की ये कोई चाल भी हो सकती है हमारे लिये-।” दया बोली।
“और क्या बिगाड़ लेगा शैतान का अवतार चाल चलकर।” सरजू की आवाज में नफरत के भाव उभरे-“ज्यादा से ज्यादा जान ही ले लेगा। वैसे भी हम कौन सा जिन्दों की तरह जी रहे हैं।”
दया ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
सरजू के चेहरे पर नाराजगी और उखड़ेपन के भाव आ टिके थे।
“क्या चाहते हो तुम लोग?” सरजू बोला-“यहां क्या कर रहे हो?”
“हम शैतान के अवतार के पास पहुंच जाना चाहते हैं।” मोना चौधरी बोली-“लेकिन हमें यहां के रास्तों का ज्ञान नहीं। कुछ भी समझ में नहीं आ रहा कि किधर जायें और किधर नहीं।”
“शैतान के अवतार को तुम लोग नहीं मार सकते। उसके पास बे-पनाह ताकत हैं।” सरजू के होंठों से निकला।
“हम तुमसे राय नहीं, रास्ता पूछ रहे हैं।” सोहनलाल ने कहा।
“हम नहीं जानते शैतान का अवतार कहां रहता है। मालूम होता तो अवश्य बता देंते।” सरजू ने कहा-“तुम लोग थके लग रहे हो। पास ही हमारी बस्ती है। गांव है। चाहो तो वहां नहा-धो कर आराम कर सकते हो। हम तुम्हारी इतनी ही सहायता कर सकते हैं।”
ये सुनकर सबके चेहरों पर सोच के भाव उभरे। वो गम्भीर थे।
उसी पल मोना चौधरी ने उंगली में पहन रखी, भामा परी की दी अंगूठी को देखा। अंगूठी के नग ने रंग नहीं बदला था। मतलब कि सामने खड़े लोग दुश्मन नहीं हैं। दोस्त अवश्य हो सकते हैं।
“हम तुम पर कैसे विश्वास करें?” मोना चौधरी ने जानबूझ कर कहा-“क्या मालूम तुम लोग शैतान के अवतार के-?”
“नहीं।” सरजू ने तेज आवाज में टोका-“हम भी तुम लोगों
की तरह मनुष्य हैं। जिस धरती से तुम आये हो, हम वहीं के रहने वाले हैं। वहीं पैदा हुए थे। लेकिन-लेकिन यहां-यहां-।”
“ये कैसे होएला बाप-।”
“म्हारे को झूठी स्टोरी सुनायो हो।”
“सुन तो लेने दो ये कहना क्या चाहता है।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं झूठ नहीं कह रहा।” सरजू बोला-“मैं सच-।”
“तुम अपनी बात कहो।” मोना चौधरी ने पुनः कहा-“सच-झूठ का फैसला हम खुद कर लेंगे।”
“दया-।” सरजू ने दया पर निगाह मारी-“ये हमारी बात का विश्वास नहीं-।”
“शैतान के अवतार ने अपनी हरकतों में इनके मन में, हर बात के प्रति शक भर दिया होगा। इस धरती पर ये लोग किसी का भी विश्वास नहीं कर रहे।” दया बोली-“बहुत धोखे खा चुके हैं शायद ये लोग। तुम इन्हें अपने बारे में बता दो! विश्वास करें, तो ठीक। नहीं तो हमें क्या।”
ये सुनकर मोना चौधरी के होंठों पर मध्यम सी मुस्कान रेंग गई।
सरजू ने एक निगाह सब पर मारी फिर कह उठा।
“हम धरती पर हिन्दुस्तान, मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। शहरों और गांवों से कटा, दूर छोटा सा गांव पड़ता था हमारा। हमारे गांव में तब लोगों की संख्या पांच सौ थी। खेती-बाड़ी ही हमारा रोजगार रहा है। सारा वर्ष फसलें बीजना और घोड़ा-रेहड़े पर लाद कर, दूर शहरों में जाकर बेचना और पैसा कमाना। अपने खाने के लिए अनाज हम रख लेते थे। बहुत ही खुशहाली में सबका जीवन बीत रहा था कि तभी एक रात बड़ा सा बादल जाने कहां से आया और हमारे गांव को ढांप लिया। उस बादल के पार हमें कुछ भी नजर नहीं आया। जल्द ही हम बेहोश हो गये। पूरे गांव में किसी को भी होश नहीं रहा। जब होश आया तो खुद को यहां पाया।”
“यहां-शैतान के अवतार की धरती पर-?”
“हां-।”
“तुम लोगों को शैतान का अवतार इधर लाईला-।”
“यहां। शैतान का अवतार अपनी ताकत का इस्तेमाल करके पूरे गांव के लोगों को इस धरती पर ले आया। यहां तक कि हमारे पशु, गाय-भैंसें-घोड़े भी यहां हमारे साथ आ गये थे।”
“थारे गांवों के बिनो का शैतान के अवतार का दिल न लगो का-।”
“बहुत बुरा है शैतान का अवतार।” सरजू ने गुस्से से कहा-“अगर उसके पास अदृश्य ताकतें न होती तो हमने कब की उसकी जान ले लेनी थी, परन्तु उसे तो कोई छू भी नहीं सकता। देख भी नहीं सकता। जाने वो कहां रहता है। जब उसकी मर्जी होती है तभी वो सामने आता है। सिर्फ एक बार ही शैतान का अवतार हमारे सामने आया था।”
“कब तुम लोगों को यहां लाया गया?”
“तीन बरस हो गये-।”
“मुझे याद आ रहा है कि मैंने ये खबर अखबार में पढ़ी थी कि एक गांव के पूरे-के-पूरे लोग गायब हो गये।” पारसनाथ कह उठा-“कोई नहीं जान सका कि गांव के लोग कहां गये। महीनों
तक अखबारों में यही जिक्र चलता रहा कि शायद गांव के लोगों को दूसरे ग्रह के लोग अपहरण करके ले गये हैं।”
“मन्ने भी यो खबरो पढ़ियो हो-।”
“शैतान का अवतार तुम लोगों को यहां क्यों लाया?” सोहनलाल ने पूछा।
“उसे सेवकों की जरूरत थी। नौकरों की जरूरत थी। कुछ काम ऐसे भी हैं, जिन्हें जादू द्वारा नहीं, हाथों द्वारा ही किया जा सकता है। उन्हीं कामों के लिये उसे मनुष्यों की जरूरत थी।” सरजू ने कहा-“शैतान का अवतार अपनी शक्ति के दम पर अनाज नहीं उगा सकता। शैतानी ताकत से वास्ता रखता कोई भी व्यक्ति अनाज को पैदा करने की चेष्टा करेगा तो अनाज पैदा नहीं होगा। ऐसा श्राप मिला हुआ है इन शैतानों को। ये शैतान सिर्फ मांस-मदिरा का ही सेवन कर सकते हैं। हर बुरी आदत को अपना सकते हैं। अच्छी बातों से ये दूर हैं परन्तु मौके-बे-मौके पर इन्हें अनाज की भी आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में इन्हें मनुष्यों की जरूरत थी जो अनाज को पैदा कर सकें। इसलिये शैतान का अवतार गांव के सब लोगों को अपनी शक्ति द्वारा यहां ले आया।”
“यो तो बोत गलत बातो हौवे-।”
“हम शैतान के अवतार के सामने मिट्टी समान हैं। वो ताकतवर है। यहां से जाने का शायद कोई रास्ता नहीं और शैतान का अवतार हमें जाने भी नहीं देगा। पहले तो हमने उनकी बात नहीं मानी। जिसकी एवज में वो हमारे सामने ही, देखते ही देखते चार बच्चों, दो औरतों और तीन आदमियों को खा गया। डर कर कह लो या खुद को बचाने के लिये हमें उसकी बात माननी पड़ी। अब हम शैतान के अवतार के लिये, अन्न, फल, सब्जियां, पैदा करते हैं। उन्हीं में से हम गुजारा करते है, बाकी शैतान के अवतार के आदमी ले जाते हैं। धरती की तरह ही यहां भी हमने अपना गांव बना रखा है। दूर-दूर तक फैले खेत हैं। अपनी मेहनत से हम अनाज और सब्जियों की कमी नहीं होने देते। वरना शैतान का अवतार हम पर कहर ढाना शुरू कर देगा। परन्तु कोई भी यहां रहकर खुश नहीं है। हर कोई वापस जाना चाहता है। लेकिन हम जानते हैं कि वापस धरती पर नहीं जा सकते।”
सबकी निगाह सरजू पर थी।
मोना चौधरी ने अंगूठी के नग पर निगाह मारी। नग का रंग नहीं बदला था। यानि कि सरजू जो कह रहा है वो सच है और ये दुश्मन नहीं।
“यहां पर तुम दोनों क्या कर रहे थे?” पारसनाथ ने पूछा।
“दिन-भर काम करने के बाद मैं दया के साथ घूमने निकला
था।” सरजू ने दया पर निगाह मारते हुये कहा-“कुछ दिन बाद मेरी और दया की शादी होने वाली है। धरती पर गांव में ऐसा नहीं होता था कि हम शादी से पहले ही घूमने लगे। लेकिन यहां पर हमारे बड़े-बूढ़े रीति-रिवाजों को कायम नहीं रख पाये। वो तो खुद परेशान हैं कि शैतान के अवतार के चंगुल से कैसे निकलें।”
“तंम सबो की जरुरतों को कौनो पूरो करो हो, जैसो कि कपड़ो
या-?”
“शैतान का अवतार हमारी जरूरत की चीज हम तक पहुंचा
देता है। हम अपनी जरूरत उनके आदमियों को कहते हैं, जो हमसे अनाज और सब्जी लेने आते हैं।” सरजू ने गम्भीर स्वर में कहा।
सबने एक-दूसरे को देखा।
“मैंने जो कहा है सच कहा है।” सरजू पुनः बोला-“तुम लोगों
को देखकर मैं बहुत खुश हुआ हूं कि तुम सब मनुष्य हो और धरती से आये हो। हमारी बस्ती-गांव में चलो। वहां तुम लोगों से मिलकर सब खुश होंगे। उत्सव जैसा माहौल बन जायेगा वहां।”
कोई कुछ न बोला।
“सरजू-।” दया बोली-“ये हम पर विश्वास नहीं कर रहे।”
“मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। ये हम पर शक कर रहे हैं कि हम शैतान के अवतार की चाल हैं।”
पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा।
“तुम्हारा क्या विचार है मोना चौधरी कि-।”
“ये सच कह रहे हैं। धोखे वाली बात नहीं कर रहे।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।
“तुम इतने विश्वास के साथ ये बात कैसे कह सकती हो?” सोहनलाल बोला।
“भामा परी की दी अंगूठी इस बात की तरफ इशारा कर रही है कि ये हमारे दुश्मन नहीं हैं।”
“छोरे। अंम तो परो की अंगूठी को भूलो ही गयो।”
“आपुन के भेजे में भी ये बात नेई आईला-।”
मोना चौधरी ने सरजू और दया को देखा।
“हम तुम्हारे साथ, गांव में चलेंगे।”
सरजू और दया के चेहरे खुशी से खिल उठे।
“तुम लोगों को देखकर गांव में सब खुश हो जायेंगे।” दया कह उठी।
“कुछ दिन गांव में रहोगे। हमारे ब्याह के पश्चात ही जाओगे।” सरजू हंस कर कह उठा।
“इस बारे में हम कोई वायदा नहीं करते।” मोना चौधरी ने हाथ हिलाकर कहा-“तुम लोगों के गांव जाने का हमारा मकसद सिर्फ ये है कि हम कुछ आराम कर लेंगे और ठण्डे दिमाग से सोचेंगे कि अब कैसा कदम उठाना है। हमें अपने साथियों की तलाश है। शैतान के अवतार तक पहुंचना है।”
“ठीक है। आओ सब लोग घोड़ा-गाड़ी पर बैठ जाओ। कुछ ही देर में हम गांव पहुंच जायेंगे।”
सब आगे बढ़े और घोड़ा-गाड़ी पर बैठने लगे।
“जरो धीरे चल्लो हो भायो। म्हारे को तो सैन्ट्रो में बैठने की आदतो हौवे-। ड्राकुलो की तरहो थारी घोड़ा-गाड़ी बग्गी वालो भी न हौवो। जिसो के दरवाजो हौवे।”
सब घोड़ा-गाड़ी के फट्टों पर बैठे।
सरजू ने घोड़ा-गाड़ी आगे बढ़ा दी।
“तम का सोचो हो?” बांकेलाल राठौर ने खामोश-गम्भीर बैठी राधा को देखा।
“नीलू के बारे में सोच रही हूं। वो साथ होता तो कितना अच्छा होता।”
“हौसलो रखो हो। भगवानो ने चाहो तो वो सबो ही अंमको मिल्लो हो।”
“पक्का भिएला बाप।”
“छोरे ईक बारो शैतान के अवतारो की मुंडी म्हारे हाथां में आ-।”
“बाप येईतो परेशानी हौवे कि उसका कुछ पकड़ में नेई आईला। रुस्तम राव कह उठा-“तुम तो मुंडी की बात करेला हैं। आपुन के हाथ तो उसकी टांग का कोना ही आईला तो उसे आपुन खल्लास करेला।”
“मैं तो उससे भूतनी के तरह चिपट जाऊंगी और तब तक नहीं छोडूंगी जब तक कि उसका सारा खून न चूस लूं।” राधा दांत भींच कर गुस्से से कह उठी।
“छोरे बचो के रईयो। खून चूसनो की इसो को प्रैक्टिसो भी हौवे-।”
“बच्ची होएला बाप। तुम्हारे को ये बुजर्ग मानेला।”
“सरजू-।” दया बोली-“इनकी बातें अजीब सी हैं।”
“हां-।” सरजू घोड़ा-गाड़ी दौड़ाता कह लगा-“मजाक कर रहे हैं आपस में।”
☐☐☐
जिन्न बाधात के चेहरे पर मुस्कान थी। वो दो फीट की बनी एक चट्टान की ओट में बैठा था। जब वो सब घोड़ा-गाड़ी के फट्टे पर बैठकर रवाना हुए ने जिन्न बाधात खड़ा हुआ और देखते ही देखते उसका शरीर लम्बा-चौड़ा होता चला गया। उसकी नजरें घोड़ा-गाड़ी पर थी, जो दूर होती जा रही थी।
होंठों पर मुस्कान लिये जिन्न बाधात देखता रहा फिर बड़बड़ा
उठा।
“मनुष्यों के गांव में ये अवश्य कुछ दिन रहेंगे। मुझे इन पर नजर रखनी पड़ेगी। मेरा वक्त बरबाद होगा। अब मैं और इन्तजार नहीं कर सकता। इन्हें सीधे-सीधे ही तिलस्म में ले जाना होगा।” इसके साथ ही जिन्न बाधात ने आंखें बन्द कीं और होंठों ही होंठों से कुछ बुदबुदाया। फिर उसने आंखें खोल लीं।
उसी पल दौड़ती घोड़ा-गाड़ी के पास बादल का बड़ा सा टुकड़ा नजर आया, जिसने पूरी की पूरी घोड़ा-गाड़ी को अपने में समेट लिया। अब वहां घोड़ा-गाड़ी या वो सब लोग नजर नहीं आ रहे थे। तभी वो बादल का ढेर उठा और धीरे-धीरे आसमान की तरफ जाने लगा।
अब जमीन पर घोड़ा-गाड़ी थी। वो लोग नजर नहीं आ रहे थे।
वो बादल इतना ऊपर उठ गया कि छोटा सा नजर आने लगा।
जिन्न बाधात के होंठों पर पुनः मुस्कान उभरी और उसी पल वो गायब हो गया। वो जहां था, वहां धुएं की लकीर कुछ पल नजर आती रही फिर लकीर भी लुप्त हो गई।
☐☐☐
वो घने बादल का टुकड़ा बहुत ही खूबसूरत जगह पर उतरा।
सुहावना मौसम था। ठण्डी हवा चल रही थी। पास ही साफ
पानी की छोटी सी नदी धीमी गति से बह रही थी। दूर पहाड़ नजर आ रहे थे।
चंद पलों तक वो बादल का टुकड़ा मखमली घास पर स्थिर
रहा फिर किसी धुंध की तरह एकाएक गायब होकर, जैसे हवा में घुल गया। तभी वहां घोड़ा-गाड़ी नजर आने लगी। सब उस पर वैसे ही मौजूद थे, जैसे तब थे, जब बादल के टुकड़े ने घोड़ा-गाड़ी को घेरा था। अब हर किसी की हैरान-परेशान निगाह हर तरफ जा रही थी। वो एक-एक करके नीचे कूदने लगे।
“सरजू-!” दया के होंठों से निकला-“ये हम कहां आ गये?”
“मालूम नहीं। मैंने ये जगह पहले कभी नहीं देखी-।” सरजू
के होंठों से निकला।
“कहीं हम शैतान के अवतार की धरती से बाहर तो नहीं आ
गये-?” दया कह उठी।
जवाब दिया मोना चौधरी ने।
“हम शैतान के अवतार के तिलस्म में पहुंच गये हैं।”
सबकी निगाह मोना चौधरी पर गई।
“तुम सही कहेला है।” रुस्तम राव के चेहरे पर सख्ती ही आ ठहरी थी-“ये जगह तिलस्म होएला। पहले भी आपुन दालूबाबा के तिलस्म में फंसेला। वो भी ऐसी ही जगह होएला।” पहले के तिलस्म के बारे में जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास-“ताज के दावेदार” और “कौन लेगा ताज।”
“छोरे तबो तो तू घोड़ो पे बैठो और घोड़ो आसमान में उड़
गयो-।”
“हां। वो पत्थर को घोड़ा होएला। आपुन उसे बुत समझेला। आपुन को नेई मालूम होएला तब कि तिलस्म में दिखने वाला हर चीज धोखा होएला।” रुस्तम राव ने आसपास देखते हुए कहा।
“बहुत अच्छी जगह है।” राधा ने गहरी सांस लेकर कहा-“यहां नीलू भी होता तो कितना मजा आता।”
“ये तिलस्म सिर्फ मौत का मजा देता है।” सोहनलाल का स्वर गम्भीर था।
राधा ने सोहनलाल को देखा।
“तिलस्म क्या होता है?”
तभी वहां जिन्न बाधात का ठहाका गूंज उठा।
सबने देखा। कुछ कदमों की दूरी पर एकाएक जिन्न बाधात
खड़ा नजर आने लगा था।
“ये तिलस्म मौत का दूसरा नाम है। इसमें आने के रास्ते तो
बनाये गये हैं, लेकिन बाहर जाने के रास्ते का निर्माण नहीं किया गया। अब तुम लोग यहीं भटक-भटक कर मर जाओगे।”
“तुम-।” राधा के होंठों में निकला।
“हां, मैं। जिन्न बाधात । ये हमारी दूसरी मुलाकात है। शायद आखिरी भी। यहीं मरोगे तुम सब। तुम्हारा आदमी भी इसी तिलस्म में फंस चुका है। ढूंढ सको तो ढूंढ लेना।”
“क्या नीलू भी तिलस्म में हैं?” राधा के चेहरे पर खुशी झलक उठी।
“ज्यादो खुश मत हौवो। अंम सबो मन के दरवाजो पर खड़ो हौवे। महाजन यहां हौवे तो रोने की बात हौवे। खुशो होनो की नाही। तम भी मरो। वो भी मरो।”
“तुम क्या जानो इन बातों को-।”
“का मतलबो थारा?”
“साथ-साथ जीने और साथ-साथ मरने में कितना मजा आता है।”
“तुमने शैतान के अवतार के कहने पर हमें तिलस्म में फंसाया।” मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठी।
“हां। मैं सिर्फ मालिक का हुक्म मानता हूं-।”
“तिलस्म किसके नाम से बंधा है?”
“शैतान के। शैतान जब चाहे इस तिलस्म को तोड़ सकता है। दूसरा कोई भी नहीं।” जिन्न बाधात ने जवाब दिया।
“तिलस्म को तोड़ने के और रास्ते भी होते हैं जिन्न बाधात।” मोना चौधरी कह उठी।
“लगता है तुम तिलस्म की जानकारी रखती हो।” जिन्न बाधात मुस्कराया।
“बहुत ज्यादा जानकारी रखती हूं। कभी मैंने स्वयं तिलस्म बनाया था, जिसे कोई नहीं तोड़ पाया। आखिरकार, दो जन्मों के बाद उस तिलस्म को मैंने ही तोड़ा। उसमें फंस चुके लोगों को बचाया।
“ये शैतान के अवतार का बनाया तिलस्म है। तुम इसे नहीं तोड़ सकतीं।”
“मैं अभी नहीं जानती कि ये किस प्रकार का तिलस्म है।” मोना चौधरी के चेहरे पर सख्ती थी-“लेकिन शैतान का अवतार ये कह कर मुझे धोखे में नहीं रख सकता कि तिलस्म से बाहर जाने का रास्ता नहीं बनाया गया। तिलस्म बनाने का नियम है कि, उससे बाहर जाने का रास्ता भी बनाया जाता है। लेकिन वो रास्ता इस तरह बंद कर दिया जाता है कि कोई रास्ते को पहचान न पाये। उस रास्ते को खोलने का ढंग बहुत ही गुप्त होता है।”
जिन्न बाधात हंस पड़ा।
“अब मैं तुम्हारी बात पर यकीन कर सकता हूं कि तुमने वास्तव में तिलस्म का निर्माण किया होगा। वरना ऐसी जानकारी हर किसी को नहीं होती। वो भी सामान्य मनुष्य को।” जिन्न बाधात ने शांत स्वर में कहा-“मेरा काम तुम मनुष्यों को तिलस्म में फंसाना था। मैंने अपना काम पूरा किया। तुम तिलस्म की बेशक कितनी ही जानकार सही? लेकिन इस तिलस्म को तोड़कर बाहर निकल पाना आसान काम नहीं। असम्भव ही समझो।”
“इन दोनों को क्यों हमारे साथ तिलस्म में फंसा दिया?”
“ये मालिक के बारे में अच्छे विचार नहीं रखते। मैंने इनकी बातें सुनी तो लगा, ये भी तुम मनुष्यों के साथ मर जायें तो बेहतर होगा। शैतान के अवतार की धरती पर, शैतान के अवतार के खिलाफ नहीं बोला जाता।”
“मैं बोलूं-।” राधा दांत पीसकर कह उठी-“शैतान का अवतार कुत्ता है। कमीना है। वो-।”
जिन्न बाधात जोरों से हंस पड़ा।
“सरजू-!” दया का चेहरा घबराहट से फक्क पड़ा हुआ था-“मुझे डर लग रहा है।”
“डरो मत। हौसला रखो।” इन हालातों में सरजू खुद घबराहट में था।”
“तू कुछ भी कह ले। सब माफ है तेरे को।” हंसी रोकते हुआ जिन्न बाधात ने कहा-“मेरी निगाहों में तुम लोग मर चुके हो। क्योंकि इस तिलस्म से कोई भी जिन्दा बाहर नहीं जा सकता।” इसके साथ ही फौरन नजरों के सामने से जिन्न बाधात गायब हो गया। फिर धीरे-धीरे धुएं की लकीर भी जैसे हवा में घुल गई।
अजीब सा सन्नाटा छोड़ गया था जिन्न बाधात वहां।
“यो तो बोत बुरो हो गयो म्हारो साथो।” बांकेलाल राठौर ने खामोशी तोड़ी-“अंम सबो तिलस्मो में फंसो हो।”
“फिक्र की कोई बात नहीं।” राधा कह उठी-“मोना चौधरी तिलस्म जानती है। ये सब ठीक कर-।”
“तिलस्म कोई खेल नहीं है जो तुम ऐसी बात कह रही हो।” मोना चौधरी ने राधा को देखा-“पहले जन्म में मैंने तिलस्म की विद्या हासिल की थी। ये जुदा बात है। तिलस्म की विद्या एक होते हुए भी नया तिलस्म बनाने का ढंग जुदा होता है। तिलस्म को कैसे तोड़ा जाता है, उसकी वजहें जुदा होती हैं। वैसे भी अब तिलस्म की विद्या मैं बहुत हद तक भूल चुकी हूं। दूसरे के तिलस्म में मैं कोई कमाल नहीं दिखा सकती।”
कोई कुछ न बोला।
व्याकुल हर कोई था।
मोना चौधरी ने सरजू और दया को देखा।
“तुम दोनों हमारी वजह से ही तिलस्म में फंसे हो। मेरे बस में होता तो, तुम दोनों को तिलस्म से बाहर निकाल देती। लेकिन चाहकर भी तुम लोगों के लिये कुछ नहीं कर सकती।”
“हमारे साथ जो भी हुआ, इसमें तुम लोगों का कोई कसूर नहीं है।” सरजू ने गम्भीर स्वर में कहा।
“ठीक ही तो कहता है सरजू।” दया कह उठी-“ये सब तो शैतान के अवतार ने किया है।”
“अब तुम दोनों को हमारे साथ रहना है तो साथ रह लो। अलग
रास्ता चुनना है तो-।”
“अलग क्यों?” दया बोली-“हम तो तुम लोगों के साथ ही रहेंगे। क्यों सरजू-?”
“हां दया। इनके साथ ही हमारा अच्छा-बुरा है। कम से कम ये
मनुष्य तो हैं। शैतान तो नहीं-।”
सोहनलाल ने मोना चौधरी से कहा।
“अगर हम तिलस्म में बच गये तो, शैतान का अवतार हमें फिर किसी मुसीबत में फंसा देगा।”
“कभी तो वो म्हारे हाथो लगो हो। हरामी को ‘वडो’ के रख देंगे। क्यों छोरे?”
“मठीक कहेला, बाप-।”
पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेर रहा था।
“अंम पैले इसो नदी के ठण्डो जलो में स्नान कर लयो। ओ छोरी।” बांकेलाल राठौर ने राधा से कहा-“जबो तक म्हारो स्नान पूर्ण न हो। तबो तक तंम मूं फेर के खड़ी हो जायो।”
“मैं अकेली क्यों? मोना चौधरी भी तो है।”
“उसो की बातो छोड़ो। वो बच्ची न हौवें। तमों बच्ची हौवे। क्यों छोरे।”
“ठीक कहेला बाप-।”
☐☐☐
बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, सरजू, सोहनलाल, पारसनाथ नदी में नहा रहे थे। मोना चौधरी, दया और राधा कुछ दूरी पर घास में बैठे थे। तेज हवा चल रही थी। पानी इतना साफ था कि चार फीट नीचे की नदी की जमीन बेहद साफ नजर आ रही थी।
“छोरे! मज्जो ही आ गयो। ठण्डो पानी में थारा क्या ख्याल हौवे कि यो पानी भी तिलस्मी हौवो?”
“यहां की हर चीज तिलस्म से बनी है।” सोहनलाल बोला-“हर चीज झूठी है। नकली है।”
“यो पानी तो म्हारे को असली लागो हो।”
“नहाएला बाप।”
“शैतान के अवतार ने हमें नचा रखा है।” पारसनाथ ने नहाते हुए सपाट स्वर में कहा-“अगर वो सामने आ जाता। किसी तरह से मुकाबला करता। हम पर वार करता तो शायद स्थिति दूसरी होती। इस वक्त वो तो जिन्न, राक्षसों को हमारे सामने भेज रहा है।”
“डरपोक हौवो वो। तम्भो तो-।”
“वो सिर्फ हमारी मौत चाहता है।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर
में कहा-“और अच्छी तरह जानता है कि देर-सवेर में हम कहीं फंस कर, अपनी जान गवां बैठेंगे।”
“छोरे!” बांकेलाल राठौर मूंछों पर हाथ फेरकर कह उठा-“ईब
तंम जवान हो गयो हो।”
“कैसे मालूम होएला?” रुस्तम राव के होंठों पर मुस्कान उभरी।
“नीचे से म्हारी टांग पकड़ो हो।”
नहाते हुए रुस्तम राव ने अपने दोनों हाथ पानी से बाहर निकाले।
“आपुन के हाथ देख ले बाप। आपुन अभी जवान नेई होएला। बच्चा ही होएला।”
बांकेलाल राठौर चौंका दूसरे ही पल उनकी आंखें सिकुड़ीं।
फौरन नीचे देखा। उस साफ पानी में जो उसने देखा, वो उसे हक्का-बक्का कर देने के लिये पर्याप्त था। युवती का बेहद खूबसूरत चेहरा नजर आया। पूरा साजो-शृंगार कर रखा था। किसी जलपरी से कम नहीं लग रही थी वो। उसने ही बांकेलाल राठौर की पिंडली थाम रखी थी और मुस्कुराती हुई पानी में से ही बांकेलाल राठौर को देख रही थी। नीचे बहुत बड़ा गड्ढा था। जहां से वह निकलती नजर आ रही थी। आंखें फाड़े कई पलों तक वो युवती के खूबसूरत चेहरे को देखता रह गया।
“छोरे! म्हारे को बचायो।” बांकेलाल राठौर हड़बड़ाकर कह उठा-“ये अंमको वड दवेगी।”
रुस्तम राव ने फौरन बांकेलाल राठौर को देखा।
तभी देखते ही देखते बांकेलाल राठौर इस तरह नदी के पानी में धंसता चला गया, जैसे किसी भारी शक्ति ने उसे भीतर खींच लिया हो।
“बाप! ये क्या होएला-?” रुस्तम राव के होंठों से निकला।
तब तक बांकेलाल राठौर पानी में डूब चुका था और उनके देखते ही देखते वो उस खाली जगह में चला गया। जहां बड़ा सा गड्ढा बना था और साथ ही साथ वो गड्ढा बंद हो गया। सब कुछ सामान्य नजर आने लगा। रुस्तम राव हक्का-बक्का सा हैरान परेशान खड़ा था।
तभी पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी।
“पकड़ना मुझे। कोई मुझे नीचे से खींच रहा है।”
सोहनलाल, रुस्तम राव और सरजू की नजरें पारसनाथ की तरफ उठीं।
उन्होंने पारसनाथ को पानी में नीचे जाते पाया। इतना वक्त ही नहीं मिला कि उसे पकड़ने या बचाने की चेष्टा कर पाते। पानी
में धंस कर वो नजर आना बंद हो गया।
सोहनलाल जल्दी से पानी में कदमों को उठाकर वहां तक पहुंचा, परन्तु उसे ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया कि वो महसूस कर पाता कि पारसनाथ कहां गया।
“पारसनाथ कहां गया?” सोहनलाल ने अजीब सी निगाहों से रुस्तम राव को देखा।
“जिधर बांके खिसकेला।” रुस्तम राव के होंठों से निकला।
“बांके-बांके कहां है?” सोहनलाल को ध्यान आया कि बांकेलाल राठौर नजर नहीं आ रहा।
“बाप!” रुस्तम राव चीखा-“बाहर खिसकेला। पानी में मुसीबत होएला।”
तीनों जल्दी से बाहर निकले और नदी से कई कदम दूर होते चले गये। उसी क्षण नदी के किनारे सिकुड़ने लगे। पानी खुद में सिमटने लगा। देखते ही देखते वो नदी इस तरह लुप्त हो गई जैसे वहां कभी नदी हो ही नहीं। वहां अब हरी मखमली घास ही नजर आ रही थी।
दोनों ठगे से, बुत की तरह खड़े थे।
तभी उनके कानों में दौड़ते कदमों की आवाज पड़ी।
“क्या हुआ?” ये मोना चौधरी का स्वर था।
“वो मूंछों वाला कहां गया?” राधा की आवाज सुनने को मिली।
☐☐☐
“ये तो बहुत बुरा हुआ।” सब कुछ सुनते ही मोना चौधरी के होंठों से निकला-“पारसनाथ और बांकेलाल राठौर तिलस्म के भीतरी हिस्से में जा पहुंचे हैं। जहां उनके लिये और परेशानियां मौजूद होंगी।”
“तो क्या अब वो बचेंगे नहीं?” राधा ने पूछा।
“मालूम नहीं।”
“हमने नदी में नहा कर गलत किया।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।
“हमें क्या मालूम होएला कि इधर ये झमेला खड़ा होएला।”
“ये तिलस्म है। शैतानी तिलस्म।” मोना चौधरी सोहनलाल को देखकर बोली-“यहां कभी भी कुछ भी होने की आशा रख सकते हो तुम। नदी में नहाने या न नहाने की बात नहीं।”
“ये सब क्या होएला। आपुन की खोपड़ी में नेई आईला।”
“शैतान का अवतार हम लोगों को अलग-अलग करता जा रहा है कि हमारी शक्ति कम हो जाये। हम गलतियां करें और तिलस्म के किसी जाल में फंसकर कर मर जायें।” मोना चौधरी ने कहा-“ये मायावी नदी थी। तभी तो बांकेलाल राठौर और पारसनाथ को अपने साथ ले जाकर गायब हो गई। ऐसा बहुत सा मायावी सामान शैतान के अवतार ने तिलस्म में फैला रखा होगा। यानि कि हम कहीं भी धोखा खा सकते हैं।”
“मतलब कि बच पाना हमारी किस्मत में नहीं।” सोहनलाल
के होंठों से निकला।
“तिलस्म का निर्माण ही दूसरों को फंसाने के लिये होता है।” मोना चौधरी कह उठी-“इससे बच निकलने की गुंजाईश कम ही होती है। शैतान के अवतार के तिलस्म में तो सामान्य तिलस्म से कहीं ज्यादा खतरे होंगे।”
“इसका मतलब देवराज चौहान, जगमोहन और महाजन भी फंस चुके होंगे।” सोहनलाल बेचैन हुआ।
“मैं इतना कह सकती हूं कि वो बच नहीं सकते।”
“देवराज चौहान के पास मुद्रानाथ की शक्ति वाली तलवार होएला मोना चौधरी।”
“तिलस्म में वो तलवार ज्यादा देर देवराज चौहान का साथ नहीं देगी।” मोना चौधरी की आवाज में गम्भीरता आ गई-“कहीं भी धोखा खाकर, देवराज चौहान तलवार गवां सकता है।”
“मैंने तो ऐसा सब पहली बार देखा-सुना है।” हैरान सा सरजू कह उठा।
“शैतान के अवतार की जमीन पर जो भी असामान्य बात हो जाये, वो ही कम है।” घबराहट से दया का चेहरा पीला सा नजर आ रहा था।
किसी से कुछ कहते न बना।
“आगे चलते हैं। यहां रुकना बेकार है।”
“आगे किधर जाएला?”
“हमें ऐसी किसी जगह पर पहुंचना है, जहां शैतान के अवतार
ने हमें गहरे तिलस्म में धकेलने के लिये कुछ कर रखा है या हमारी मौत का इन्तजाम कर रखा है।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा-“तिलस्म बनाने का ये भी नियम है कि जहां फंसने या मौत देने का रास्ता बनाया जाता है, वहां बचने का भी रास्ता होता है। ऐसी जगह से बच निकला जाये तो, उसे तिलस्म का एक दरवाजा तोड़ देना कहा जाता है। आओ, यहां से हमें फौरन आगे बढ़ जाना चाहिये।”
बांकेलाल राठौर और पारसनाथ का इस तरह आंखों के सामने बिछड़ना, मन ही मन उन्हें तकलीफ दे रहा था। लेकिन वो चाह कर भी किसी के लिये तो क्या, अपने लिए भी कुछ नहीं कर सकते थे। शैतान के अवतार ने उन्हें ऐसे अंधे रास्ते पर डाल रखा था कि कहीं से भी आशा की किरण नजर नहीं आ रही थी।
☐☐☐
इस खंडहर को देखकर लगता था जैसे कभी वो आलीशान बड़ा मकान रहा होगा, परन्तु देख-रेख होने की वजह से, अब बुरे हाल में लग रहा था। जगह-जगह से प्लास्टर टूटा हुआ था। ईटें चटक रही थीं।
बड़े-बड़े मकड़ियों के जाले लगे थे। फर्नीचर पुराना और धूल से भरा नजर आ रहा था।
“ये कैसी जगह है?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“खण्डहर तो खण्डहर ही होता है।” कहते हुए महाजन ने घूंट भरा।
देवराज चौहान वहां की एक-एक चीज को ध्यान से देख रहा था।
वहां से तीनों ने एक दिशा पकड़कर चलना शुरू किया था और चलते ही रहे। बाग पार हो गया। पहाड़ रास्ते में आये तो वो भी पीछे रह गये। फिर जंगल जैसा इलाका शुरू हुआ और जब जंगल में ये खण्डहर दिखा तो तीनों भीतर आकर तांक-झांक करने लगे थे।
“लेकिन ऐसी जंगली जगह पर ये खण्डहर भी तो अजीब सा लगता है। कभी यहां कौन रहा होगा?”
“तुम ये क्यों भूल जाते हो कि हम तिलस्म में मौजूद हैं।” आगे बढ़ते हुए देवराज चौहान ने कहा-“यहां की हर चीज धोखा देने
के लिये बनाई गयी है।”
उनके कदमों की आवाजें ही वहां के सन्नाटे को तोड़ रही थीं।
“यहां हमारे काम का कुछ नहीं है।” जगमोहन बोला-“यहां
से चलना चाहिये।
“यहां रहें या आगे चलें, क्या फर्क पड़ता है।” महाजन मुस्कुराया-“फुर्सत ही फुर्सत है।”
देवराज चौहान कमरे के कोने में जा पहुंचा था। जहां युवती का
मिट्टी का बुत खड़ा कर रखा था। उस पर रंग किये हुऐ थे, परन्तु धूल और जालों की वजह से बुत की चमक फीकी पड़ गई थी। उस बुत में जाने क्या आकर्षण था कि देवराज उसे देखने लगा था।
बुत की आंखें स्पष्ट तौर पर मिट्टी की थी लेकिन महसूस हो रहा था जैसे उनमें जीवन हो।
कशिश थी युवती के मिट्टी के उस बुत में।
“वास्तव में।” देवराज चौहान को महाजन की आवाज पास से सुनाई दी-“बनाने वाले ने कमाल का मिट्टी का बुत बनाया है।”
“इस बुत को देखकर कुछ अजीब-सा महसूस हो रहा है।” देवराज चौहान की नजरें बुत पर ही थी।
“मैं समझा नहीं।”
“मेरे पास समझाने के लिये शब्द भी नहीं हैं।” होंठ सिकोड़े कहते हुए देवराज चौहान ने तलवार वाला हाथ सीधा किया और तलवार की नोक से मिट्टी के बुत पर लगे जाले यूं ही उतारने लगा।
“छोड़ो इसे।” जगमोहन बोला-“यहां से चलते-।”
तभी मिट्टी के बुत से ऐसा धमाका हुआ जैसे कई तारें आपस में टकरा गई हों। साथ ही धुआं उठने लगा। तब देवराज चौहान हाथ में थमी तलवार से बुत के सिर पर लगे जालों से छेड़छाड़ कर रहा था और तलवार की नोक बुत के माथे पर जा लगी थी
“ये क्या हुआ?” महाजन हड़बड़ाकर दो कदम पीछे हुआ।
धीर-धीरे मिट्टी के बुत पर फैला धुआं हटने लगा था।
देवराज चौहान के होंठ भिंच चुके थे। आंखें सिकुड़ चुकी थीं।
धुएं के हटने के साथ ही उसने महसूस किया कि जैसे तलवार को किसी ने थाम लिया हो।
धुआं पूरी तरह छंट गया।
मिट्टी के बुत वाली युवती अब जीवित रूप में सामने मौजूद थी।
गहरे रंग के कपड़े उसके जिस्म पर थे। शृंगार कर रखा था। बेहद खूबसूरत थी वो। इस वक्त उसके होंठों पर मुस्कान थी और दायें हाथ से तलवार को थामे, देवराज चौहान को देख रही थी।
“ये तो सच की युवती बन गई-।” जगमोहन की आवाज उनके कानों में पड़ी।
“बहुत शुक्रिया तुम्हारा कि तुमने मुझे जिन्दगी दी।” वो खनकते स्वर में कह उठी।
“मैंने जिन्दगी दी-?” देवराज चौहान ने उसकी आंखों में देखा।
“हां। मुझे तो मिट्टी से बनाया था। मिट्टी का रहना था मुझे। लेकिन तुम्हारी इस अजूबी तलवार की ताकत से मेरे भीतर जीवन भर गया। इस तलवार की शक्ति ने मेरे भीतर जीवन डाल दिया।”
“कौन हो तुम?”
“मिट्टी का बुत थी और-।”
“शैतान के अवतार से तुम्हारा क्या रिश्ता है?” देवराज चौहान के होंठ अभी तक भिंचे हुए थे।
“रिश्ता?” वो हौले से हंसी-“मेरा शैतान के अवतार से कोई रिश्ता नहीं। उसका तो खिलौना हूं मैं। वो मुझे जैसे चाहे तोड़-मरोड़ सकता है और बदले में वो नहीं चाहेगा कि मैं उफ भी करूं-। सेवक को भी उफ करने का अधिकार होता है। लेकिन मिट्टी के बुत को तो ये भी अधिकार नहीं-।”
“अब तुम मिट्टी का बुत कहां, तुम तो सही-सलामत जिन्दा हो-।”
“शैतान के अवतार की निगाहों में मैं मिट्टी का बुत ही रहूंगी।
सजावट के तौर पर उसने मुझे यहां रखा था। वो मुझे कभी भी जीवित मानकर, सामान्य व्यवहार मेरे से नहीं करेगा।”
“तलवार छोड़ो-।”
वो चंद क्षण चुप रहकर कह उठी।
“जब मेरे भीतर जीवन आया तो उसी पल किसी ने मुझे कहा
कि तुम्हारे हाथों से तलवार छीन लूं। यही वजह है कि मैंने फौरन हाथ बढ़ाकर तलवार को पकड़ लिया। लेकिन छीनने की कोशिश नहीं की।” कहते हुए वो कुछ गम्भीर हो गई-“क्योंकि मेरे भीतर जो जिन्दगी आई, उसने मुझे ऐसा करने से मना कर दिया कि ये गलत बात है।”
“तलवार छीनने को तुमसे किसने कहा?”
“शैतान के अवतार की शक्ति ने ही कहा होगा।” वो बोली-“ये
तलवार अवश्य कोई खास तलवार है। तभी तो इसने मिट्टी के बुत के में भी जान डाल दी।” कहने के साथ ही उसने तलवार छोड़ दी।
देवराज चौहान पीछे हटा। सिगरेट सुलगाई।
तीनों की निगाहें युवती पर थीं। वो आगे बढ़ी तो उसकी पायल
खनक उठी।
“तुम लोग कौन हो और शैतान के अवतार के तिलस्म में कैसे आ फंसे? मुझे बताओ।” वो बोली।
“क्या तुम हमारी कोई सहायता कर सकती हो?” जगमोहन कह उठा।
“यकीन से तो नहीं कह सकती। लेकिन उतनी सहायता कर सकती हूं जितना मेरे हद में होगा। तुम्हारे सवाल से लगता है कि तुम लोग मुसीबत में हो। मुझे बताओ क्या बात है?”
“ठीक है आराम से बैठकर बताते हैं।” महाजन बोला-“जगमोहन, आओ, इन कुर्सियों को फाड़कर आराम से बैठते...।”
“यहां की किसी भी चीज को इस्तेमाल करने की गलती मत कर देना।” उस युवती ने तुरन्त कहा।
“शैतान के अवतार का ये मायावी इन्तजाम है। तिलस्म में भटकने वाला यहां पहुंचे और थकान दूर करने के लिये यहां की चीजें इस्तेमाल करे और फंसकर तिलस्म की गहराई में फंस जाये।”
“मतलब?” महाजन की आंखों में शक उभरा।
“जो भी कुर्सी पर बैठेगा वो मोम का पुतला बन जायेगा।” युवती कह उठी।
“इस बात का क्या यकीन है कि तुम सच कह रही हो? हो सकता है तुम हमें धोखे में...।”
“मेरे शरीर का जीवन इस इन्सान का दिया है।” उसने देवराज चौहान को देखा-“मैं इसके साथ कुछ भी गलत-झूठ नहीं कर
सकती। बहुत जल्द इस बात का विश्वास भी दिला दूंगी। यहां से बाहर, खुले में बैठकर, मैं तुम लोगों की सारी बात सुनूंगी। उसके बाद फिर आगे की बात होगी।”
जगमोहन और महाजन ने देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान ने सोचों से भरा चेहरा सहमति से हिला दिया।
वो चारों उस खण्डहर से बाहर निकले और सामने नज़र आ
रही घास की तरफ बढ़ गये। अभी चंद कदम ही चले होंगे कि जमीन में फिर से कम्पन हुआ फिर थम गया।
“ये क्या हुआ?” महाजन के होंठों से निकला।
तभी उनकी निगाह खण्डहर की तरफ उठी तो खण्डहर वहां नजर नहीं आया। वो गायब हो चुका था। वहां भी अब अन्य जगहों की तरह घास और पेड़ ही नज़र आ रहे थे।
“खण्डहर कहां गया?” जगमोहन हैरान सा बोला।
“शैतान के अवतार की माया से बना खण्डहर खत्म हो गया
है।” वो कह उठी-“क्योंकि तुम लोगों ने माया की मर्जी के बिना, उसके बनाये मिट्टी के बुत में जीवन भर दिया है। छेड़छाड़ सफल हो जाये तो मायावी चीज का सुरक्षित ढंग से अंत हो जाता है।”
“यानि कि तुममें जीवन आ जाने की वजह से ये मायावी खण्डहर गायब हो गया?”
“हां। खण्डहर के तिलस्म की कड़ी टूटते ही तिलस्मी खण्डहर गायब हो गया।”
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