फिल्म स्टार अमरकुमार ।
अपने अत्यंत विलासपूर्ण ढंग से सुसज्जित ड्राइंग रूम में सोफा चेयर में धंसा स्कॉच की चुस्कियां ले रहा था । उसके चेहरे पर गहरे सोचपूर्ण भाव थे ।
वह अति आधुनिक दस मंजिला इमारत के टॉप फ्लोर पर स्थित छह कमरों के बेहद शानदार अपार्टमेंट में रहता था ।
ड्रिंक खत्म करके उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और गहरे–गहरे कश लेने लगा ।
वह परेशान था । और परेशानी की वजह थी–मनमोहन सहगल । हालाँकि वह इस बात को स्वीकारने के लिए कतई तैयार नहीं था । लेकिन असलियत यह थी कि अपनी रोजमर्रा के कामों में मनमोहन के मार्ग दर्शन का अभाव उसे बुरी तरह अखर रहा था । यह ठीक था मनमोहन उस पर इस कदर हावी रहता था कि एक तरह से उसे अपनी मिल्कियत समझता | था । लेकिन साथ ही उतना ही सही था कि फिल्मी दुनियां की ऊंच–नीच की तमीज सिखाकर उसे मौजूदा मुकाम पर पहुंचने वाला भी मनमोहन ही था ।
जब मनमोहन जिंदा था तो उसके सभी फैसले वही करता था । उसकी तमाम समस्याएं चुटकी बजाते ही हल कर दिया करता था । और उसे पता तक नहीं चलता था कोई समस्या पैदा भी हुई थी ।
आमतौर पर, जब भी अमर का मूड़ उखड़ता, वह हर रात एक नई लड़की से अपना पहलू आबाद करने वाला तरीका अपनाता था । और उसका मूड़ सुधारने का यह तरीका हमेशा कारगर साबित होता था । लेकिन अपनी वर्तमान मन:स्थिति में इस तरीके से भी कोई फायदा उसे नहीं हो रहा था ।
एक के बाद एक उसकी तीन फिल्में लगातार सुपरहिट हुई थी । उसके गाए गानों के रिकार्डस और कैसेटों की बिक्री ने पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे । उसकी शोहरत दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ती जा रही थी । हजारों खूबसूरत लड़कियाँ इस हद तक उसकी दीवानी थी कि उसके एक इशारे पर उसके सामने खुशी से बिछ सकती थीं लेकिन, इस सबके बावजूद, मनमोहन की सलाह और मार्गदर्शन की बड़ी भारी कमी वह महसूस कर रहा था ।
अमरकुमार सिगरेट एशट्रे में कुचलकर खड़ा हो गया ।
गुजरे दिनों में रोशनलाल खुराना भी उसके पास हर वक्त न सिर्फ मौजूद रहता था बल्कि उसकी हर तरह की सेवा करने के लिए भी चौबीसों घंटे तैयार रहता था लेकिन अब रोशन भी कमलकांत शर्मा के पास विश्वासनगर जा चुका था । और वो भी इस तरह कि उससे इजाजत तक लेना उसने मुनासिब नहीं समझा । इसका सीधा सा मतलब था रोशन ने दोबारा उसके पास नहीं आना था ।
अमर थके से कदमों से चलता हुआ, कोने में बनी बार के पास पहुंचा । अपने लिए स्कॉच का तगड़ा ड्रिंक बना लिया ।
उसने पहले कभी खुद को इतना तन्हा महसूस नहीं किया था । गिलास से घूँट लेकर मुंह बनाया और निरुद्देश्य भाव से कमरे में चहल कदमी करने लगा ।
अचानक उसकी निगाह नलिनी प्रभाकर की फ्रेम युक्त फोटो पर पड़ी । जो उसकी आखिरी फिल्म के सेट पर खींची गई थी । नलिनी रोमांटिक पोज में बैठी मुस्करा रही थी । लेकिन अमर को यूं लगा मानों वह उसे चिढ़ा रही थी ।
उसे अपने मुंह में कड़वाहट सी घुल गई प्रतीत होने लगी । नलिनी से हुई आखिरी मुलाकात उसके जेहन में ताजा हो गई । नलिनी के फ्लैट में जब मनमोहन ने उसकी धुनाई की थी और वह चाहकर भी प्रतिरोध नहीं कर पाया तब उसकी विवशता पर नलिनी ने खूब कहकहे लगाये थे...।
सहसा, टेलीफोन की घंटी बजने लगी ।
अमर ने आगे बढ़कर रिसीवर उठा लिया ।
–'यस ?' वह माउथ पीस में बोला ।
–'मेरा नाम अजय कुमार है ।' दूसरी ओर से कहा गया–'मैं नीचे लॉबी से बोल रहा हूँ और आपसे मिलना चाहता हूँ ।'
–'किसलिए ?' अमरकुमार ने ड्रिंक सिप करने के बाद पूछा ।
–'मनमोहन सहगल के बारे में ।'
अमरकुमार को इतना तेज झटका सा लगा कि उसके हाथ में थमे गिलास से छलक कर व्हिस्की नीचे गिर गई ।
–'मनमोहन के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना । उसने कहा और संबंध विच्छेद करना चाहा । लेकिन फिर इरादा बदलकर पूछा–'क्या नाम बताया था तुमने अपना ?'
–'अजय कुमार । मैं प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ और विराटनगर से आया हूँ ।'
अमरकुमार ने पलभर सोचा । वह समझ नहीं सका कि मनमोहन की मृत्यु में किसी प्राइवेट डिटेक्टिव की क्या दिलचस्पी हो सकती है । उसे लगा इस आदमी से बातें करके वह न सिर्फ अपनी इस उत्सुकता को शांत कर सकता है बल्कि अकेलेपन की बोरीयत से भी कुछ देर के लिए निजात पा सकता है ।
–'ओके ।' वह बोला–'लैट मी टाक टु दी डेस्क ।'
लाइन पर, संक्षिप्त मौन के पश्चात, इमारत के सिक्योरिटी ऑफिसर का स्वर उभरा ।
–'यस, मिस्टर कुमार ?'
–'सैंड दिस मैन अप ।' अमरकुमार ने कहा और रिसीवर यथा स्थान रख दिया ।
अपना गिलास एकही दफा, में खाली करके वह बार के पास जाकर फ्रेश ड्रिंक बनाने लगा ।
मुश्किल से दो मिनट बाद प्रवेश द्वार पर दस्तक दी गई ।
रोशन के बिना कुछ बताए चले जाने के बाद बाकी नौकरों की अमरकुमार ने खुद ही छुट्टी कर दी थी । वह नया स्टाफ रखना चाहता था । और सही आदमी अभी मिल नहीं पाए थे । इसलिए अमरकुमार को खुद ही जाकर दरवाजा खोलना पड़ा ।
उसने अजय को सर से पाँव तक देखा । फिर उसका संकेत पाकर अजय जब अंदर आ गया तो पुनः दरवाजा बंद कर दिया ।
दोनों ड्राइंग रूम में आ गए ।
–'ड्रिंक लोगे ?' अमरकुमार ने पूछा ।
–'श्योर ।' अजय ने जवाब दिया ।
अमरकुमार ने बार की ओर इशारा किया ।
–'हेल्प यूअर सेल्फ ।'
अजय ने अपने लिए स्कॉच का तगड़ा पैग बना लिया ।
–'मनमोहन के बारे में क्या बातें करना चाहते हो ?' अमरकुमार ने पूछा ।
–'मैं साबित कर सकता हूँ मनमोहन ने आत्महत्या नहीं की थी ।' अजय अपने गिलास से घूँट लेने के बाद बोला–'उसकी हत्या की गई थी । उसने फिल्म स्टार की ओर देखा–'सुनना चाहते हो ?'
अमरकुमार ने तनिक सोचा, फिर सर हिला दिया ।
–'तुम साबित नहीं कर सकते ।' वह सोफे चेयर पर बैठता हुआ बोला–'पुलिस समेत किसी को भी तुम्हारी बात पर यकीन नहीं आएगा । सब जानते हैं कि मनमोहन ने सुसाइड की थी ।'
–'तुम्हें भी इस पर पूरा यकीन है ?'
–'हाँ ।' अमरकुमार लापरवाही से बोला–'मनमोहन ने एक होटल खरीदने की कोशिश की थी । उसी सौदे को लेकर इनकम टैक्स और सी. आई. डी. वाले उसके पीछे पड़े हुए थे । उन लोगों ने मुझसे भी इस बारे में कड़ी पूछताछ की थी । मनमोहन समझ गया इस चक्कर से वह बच नहीं सकेगा और उसकी बाकी जिन्दगी जेल में गुजरेगी । लेकिन उसने जेल में बुढ़ापा गुजारने की बजाय इमारत से कूदकर जिंदगी को ही खत्म कर देना बेहतर समझा और खुदखुशी कर ली ।'
–'मैं, यकीन दिला सकता हूँ । उसने सुसाइड नहीं की थी । तुम सुनना चाहते हो ?'
अमरकुमार ने सर हिलाकर इंकार कर दिया ।
–'तुम शायद नहीं जानते मेरे और मनमोहन के बीच अपनेपन या लगाव जैसी कोई बात बाकी नहीं रह गई थी ।'
–'तुम्हारी यह बात अपने आप में किसी क्लू से कम नहीं है ।' अजय बोला ।
–'तुम इसे जो चाहो समझ सकते हो । लेकिन तुम्हारी इन बातों पर कोई यकीन नहीं करेगा ।'
–'तुम चाहते हो, मैं इस मामले को यहीं छोड़ दूँ ?'
–'अगर तुम्हें दीवारों से, सर टकराने का शौक है तो मैं रोकने वाला कौन होता हूँ ।' अमरकुमार बोला–'तुम क्या करते हो ? इससे कुछ भी लेना–देना मुझे नहीं है ।' फिर अपना ड्रिंक खत्म करके पूछा–'बाई दी वे, इस मामले में छानबीन करने का तुम्हें मेहनताना कौन दे रहा है ? यानी तुम्हारा क्लाएंट कौन है ? नलिनी प्रभाकर ?'
–'नलिनी प्रभाकर ? तुमने कैसे सोच लिया वह मेरी क्लाएंट है ?'
अमरकुमार मुस्कराया ।
–'मेरे सवाल के जवाब में सवाल करने से कोई फायदा तुम्हें नहीं होगा । नलिनी प्रभाकर तुम्हारी क्लाएंट है ? सिर्फ हाँ या नहीं में इसका जवाब दो ।'
–'मैं जानना चाहता हूँ तुम उसी के बारे में क्यों पूछ रहे हो ?'
–'इसलिए कि इस घटना के फौरन बाद उसने हाय तौबा मचाना शुरू कर दिया था ।' अमरकुमार अपने बालों को सहलाता हुआ बोला–'पुलिस और प्रेस के पास जाने के अलावा और भी न जाने कहां–कहां वह भागती फिरी थी । लेकिन किसी ने भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया । मैं समझता हूं वह अभी भी इस बात को भूली नहीं है । बड़ी जिद्दी औरत है । उसकी निगाहों में हर चीज की कीमत होती है और वह कीमत चुकाकर उसे खरीद लेना चाहती है । समझे ?'
–अगर मैं कहूं नलिनी मेरी क्लाएंट नहीं है ?'
अमरकुमार ने उसे पूछा ।
–'तो फिर इसके पीछे विशालगढ़ टाइम की वह बदशक्ल औरत होगी । जो इधर–उधर सूँघती और पूछताछ करती रही है । अजीब सा नाम है उस औरत का ।' वह मुंह बनाता हुआ बोला–'नलिनी ने उसे मेरे पीछे भी लगाया था और मैं उससे पीछा नहीं छुड़ा पाया । लेकिन निर्माता, निर्देशकों, फाइनेंसरों और इस शहर के दूसरे बड़े लोगों के लिए मैं किसी मूल्यवान संपत्ति की तरह हूं । उन्हें यह कतई पसंद नहीं कि कोई मुझे परेशान करे । इसलिए...।'
–'इसलिए मंजुला सक्सेना पर दबाव डलवाकर उसे इस मामले की छानबीन करने से रोक दिया गया ।'
–'मंजुला सक्सेना ! हाँ, यही नाम है उसका । अमरकुमार जबरन मुस्कराता हुआ बोला–'उसे नलिनी ने ही मेरे पीछे लगाया था । लेकिन लाख सर पटकने के बावजूद वह बेचारी कुछ नहीं कर सकी ।'
अजय हँसा ।
–'यह तुम्हारा वहम है ।'
–'मतलब ?'
–'उसके पास सबूत है; जिस रात मनमोहन मारा गया, तुम्हारा बॉडीगार्ड रोशनलाल एक और बदमाश के साथ उसके अपार्टमेंट में मौजूद था ।'
अमर कुमार के चेहरे से थोड़ी सी मुस्कराहट गायब हो गई ।
–'तो इससे क्या साबित होता है ? मनमोहन मेरा मैनेजर था । रोशनलाल को भी उसका आदेश–पालन करना होता था । वह अक्सर रोशनलाल को काम से इधर–उधर भेजता रहता था ।' कहकर वह तनिक रुका फिर बोला–'जहां तक मेरा सवाल है, इन तमाम बातों की कोई फिक्र मुझे नहीं है, मैं उस रात इस शहर से दूर विराटनगर में इनकम टैक्स और सी. आई. डी. वालों के चक्कर लगा रहा था ।'
–'जानता हूं ।'
–'फिर तुम मुझे यह सब क्यों सुना रहे हो ?'
–'शमशेर सिंह के बारे में क्या कहते हो ?' अजय ने उनके सवाल का जवाब न देकर पूछा–'मनमोहन की मौत उस पर कैसी गुजरी है ?'
–'उसी से क्यों नहीं पूछ लेते ?'
–'तुम्हें नहीं बताया उसने ?'
–'नहीं ।' अमरकुमार बोला–'सुनो, अजय । मैंने तुम्हें सिर्फ इसलिए आने दिया था क्योंकि मैं अकेला और खाली बैठा बोर हो रहा था । मेरा ख्याल था, तुम कुछ ऐसी बातें करोगे कि मैं ठहाके लगाकर हंस सकूंगा क्या तुम मजेदार बातें नहीं सुना सकते ?'
–'ऐसी बातें सुना सकता हूँ कि तुम पागल हो जाओगे ?'
–'अच्छा ? कैसे ?'
अजय ने अपना गिलास नीचे रख दिया ।
–'यह पता लगाकर कि तुम उसी रात विराटनगर क्यों गए जब तुम्हारे मसलमैन मनमोहन के अपार्टमेंट में मौजूद थे । अगर मैंने यह साबित कर दिया कि उसकी हत्या का आदेश तुम्ही ने दिया था तो क्या तुम पागल नहीं हो जाओगे ?'
–'तुम खुद पागल हो ।' अमरकुमार चिल्लाता सा बोला ।
–'चीखो मत, मिस्टर फिल्म स्टार । तुम्हें बुरा लग रहा है तो मैं शमशेर सिंह से ही बातें करूंगा । उस जैसा आदमी अपने दोस्त और एक भरोसेमंद साथी की हत्या का बदला लेने की बजाय इस मामले को दबा रहा है । इसका सीधा या मतलब है कोई बहुत ही बड़ी बात है जिसने उसे ऐसा करने पर मजबूर कर दिया है । अगर मैं पता लगाकर कि वो कौन सी बात है जिसने उसके हाथ बांध दिए हैं, उसके बंधे हाथों को खुलवा दूं तो जाहिर है वह जरूर कुछ करेगा ।'
–'तुम बेवकूफ हो । इसीलिए ऐसा कह रहे हो । तुम शायद नहीं जानते तुम्हारी किसी भी गलत हरकत का अंजाम कितना खतरनाक होगा ।
–'तुम्ही बता दो, कितना खतरनाक होगा ।'
–'जान बचाने के लिए भागते फिरोगे लेकिन पूरी दुनिया में कहीं भी छिपने के लिए जगह नहीं मिलेगी । जानना चाहते हो, क्यों ?'
–'हाँ ।'
–'दर्जनों लोगों ने मुझ पर बेहिसाब पैसा इन्वेस्ट किया हुआ है और तुम्हारी वजह से उनकी उस इन्वेस्टमेंट के लिए खतरा पैदा हो जाएगा । जो कि वे किसी भी कीमत पर नहीं होने देना चाहेंगे । नतीजे के तौर पर तुम्हें जान बचाने के लिए भागना पड़ेगा । मगर भाग नहीं सकोगे ।'
अजय का वहां आने का मकसद था–अमरकुमार को टटोलने के साथ–साथ डरा भी देना । उसका वो मकसद पूरा हो चुका था । इसलिए वहाँ और रुकने में कोई फायदा उसे नजर नहीं आया ।
–'जान बचाने के लिए किसे भागना पड़ेगा । तुम्हें यह वक्त आने पर ही पता चलेगा । अभी सिर्फ इतना समझलो यह नौबत मेरे सामने नहीं आएगी ।' उसने कहा और दरवाजे की ओर बढ़ा, फिर तनिक रुककर बोला–'एक बात और जान लो मेरा नाम तो अजय ही है । लेकिन मैं प्राइवेट डिटेक्टिव नहीं 'थंडर' का रिपोर्टर हूँ ।'
इससे पहले कि अमरकुमार कुछ कहता वह पलटकर तेजी से बाहर निकल गया ।
अजय के चले जाने के बाद अमरकुमार देर तक परेशान सा बैठा रहा ।
अन्त में वह उठकर टेलीफोन उपकरण के पास पहुंचा । और एस. टी. डी. सुविधा का लाभ उठाते हुए विराटनगर का एक नंबर ट्राई करने लगा ।
पांच–सात मिनट की कोशिश से वांछित नंबर मिलने पर उसने अपना परिचय देकर शमशेर सिंह से बातें करने की इच्छा प्रगट की । जबाव में रिसेप्शनिस्ट द्वारा उसे होल्ड करने के लिए कह दिया गया ।
चंद क्षणों परान्त लाइन पर शमशेर सिंह का अधिकार पूर्ण स्वर उभरा ।
–'क्या बात है, अमर ?'
–'कुछ देर पहले मेरे पास एक आदमी आया था । अमरकुमार बोला–'उसका नाम अजय कुमार है । वह 'थंडर' का रिपोर्टर...।'
–'अजय ? वह क्या करने आया था ?'
अमरकुमार के चेहरे पर हैरानगी भरे भाव पैदा हो गए ।
–'आप उसे जानते है ?'
–'हाँ । उसके साथ कोई चालाकी मत कर बैठना । वह आदमी नहीं काला नाग है । उसका काटा हुआ कभी पानी नहीं माँगता ।'
–'अगर ऐसा है तो आपको बताकर मैंने ठीक ही किया ।'
–'लेकिन बात क्या है ?'
–'यहां एक स्थानीय अखबार की रिपोर्टर के पास दस्तखत शुदा बयान के रूप में एक ऐसा सबूत मौजूद है । जिससे साबित होता है कि जिस रात मनमोहन की मौत हुई । रोशनलाल उसके अपार्टमेंट में मौजूद था । अजय को पूरी यकीन है मनमोहन की हत्या की गई थी और वह छानबीन कर रहा है ।'
–'हूं । तुमने उसे कुछ बताया ?'
–'मेरे पास बताने के लिए था ही क्या ? मैं तो उस रात विराटनगर में था ।'
–'मुझे याद है ।' दूसरी ओर से शुष्क स्वर में कहा गया –'अच्छी तरह याद है । उस रात तुमने बड़ी होशियारी दिखाई थी । ऐसी होशियारी दिखाते रहो ।
–'मैंने सिर्फ हालात बताने के लिए आपको फोन किया है ।'
–'ओके ।' संक्षिप्त मौन के बाद कहा गया–'मैं रोशन को वापस भेज रहा हूँ । वह पहले की तरह ही तुम्हारे लिए काम करेगा ।'
अमरकुमार मुस्कराया ।
–'लेकिन एक बात है, अगर उसने अपनी औकात के बाहर जाने की कोशिश की तो मैं उसे उठवाकर बाहर फिकवा दूंगा मेरे लिए काम करने का मतलब है, उसे नौकर की तरह ही रहना होगा ।'
–'ठीक है ।' कहकर दूसरी ओर से संबंध विच्छेद कर दिया गया ।
रिसीवर यथास्थान रखते समय अमरकुमार विजयी भाव से मुस्करा रहा था । हालात वैसी ही शक्ल अख्तियार करते जा रहे थे जैसी कि वह चाहता था । रोशन पर हुक्म दनदनाते रहने में उसे बड़ा मजा आता था । अब वह फिर से वही लुत्फ उठा सकेगा । मनमोहन की मौत के बाद से असुरक्षा की जो भावना उसके मन में घर कर गई थी । उससे भी अब छुटकारा पा जाएगा । रोशन को कभी पता नहीं चल सकेगा उसकी कितनी सख्त जरूरत उसे है । और वापस बुलाने के लिए उसके साथ बड़ी से बड़ी रियायत भी वह कर सकता है ।
लेकिन अब ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं थी । अब रोशन उसकी शर्तों पर वापस आएगा । और वह उसे मनचाहे ढंग से इस्तेमाल कर सकेगा ।
वह आराम से कुर्सी में पसरकर सोचने लगा कि इस दफा रोशन के साथ किस ढ़ंग से पेश आना ज्यादा ठीक रहेगा ।
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