रात बहुत अँधेरी थी....शाम ही से बादल मँडरा रहे थे और अब तो पूरा आसमान बादलों से ढँक गया था। इमरान लेडी तनवीर के बारे में सोचता हुआ अपनी टू-सीटर चला रहा था। कुछ ही देर पहले उससे जो बातें हुई थीं वे काफ़ी पेचीदा थीं। वह एक लाख ख़र्च करने का इरादा रखती है और काम सिर्फ़ इतना था कि उस गुमनाम आदमी को शहर से कहीं और भेज दिया जाये और वह आदमी लेडी तनवीर की बिरादरी से ताल्लुक़ नहीं रखता था।

इस सिलसिले में सिर्फ़ एक ही बात सोची जा सकती थी। कि हो सकता है कि कभी लेडी तनवीर से उसके नाजायज़ ताल्लुक़ात रहे हों....और अब उसे उस आदमी से ब्लैकमेलिंग का ख़तरा हो।

मगर....यह ख़याल भी ज़्यादा देर तक क़ायम न रह सका, क्योंकि लेडी तनवीर ज़्यादा परेशान मालूम नहीं होती थी। हालाँकि सर तनवीर के हवाले से भी उसने जो थोड़ी-बहुत बेचैनी ज़ाहिर की थी, वह इमरान को बनावटी ही मालूम हुई थी। यानी वह बेकार ही यह ज़ाहिर करना चाहती थी कि सर तनवीर की मुलाक़ात उस आदमी से नहीं होनी चाहिए।

केस दिलचस्प था....इमरान ने फिर टू-सीटर का रुख़ शाही बाग़ ही की तरफ़ मोड़ दिया। वह एक बार फिर उस संदिग्ध आदमी के कमरे का दरवाज़ा खुलवाने की कोशिश करना चाहता था....

कार एक महफ़ूज़ जगह छोड़ कर वह मज़दूरों की बस्ती की तरफ़ पैदल चल पड़ा।

इस वक़्त उस बस्ती में बिलकुल अँधेरा था....गलियों में कहीं-कहीं लैम्प की रोशनी के धब्बे दिख जाते....यह रोशनी भी उन मज़दूरों के कमरों की थी जिन्हें शायद मिलों में रात की शिफ़्ट पर काम करने जाना था....

इमरान गलियों से गुज़रता रहा, लेकिन किसी ने भी उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दिया। कभी-कभार एक आध कुत्ता ग़ुर्राता और फिर ख़ामोश हो कर बैठ जाता।

वह उसी गली में पहुँच गया जहाँ उसे जाना था.... फिर वह उस कमरे की तरफ़ बढ़ ही रहा था कि अचानक उसे ठिठक जाना पड़ा, क्योंकि किसी ने कमरे का दरवाज़ा अन्दर से खोला था।

वह एक तरफ़ हट गया....किसी ने कमरे से निकल कर दरवाज़ा बन्द किया। उसने अपने दायें हाथ में कोई भारी-सी चीज़ लटका रखी थी। फिर इमरान ने उसे गली के दूसरे सिरे की तरफ़ जाते देखा। इमरान भी धीरे-धीरे चलने लगा। लेकिन वह एक दीवार से लिपटा हुआ आगे बढ़ रहा था। उसने महसूस कर लिया था कि कोई उसका पीछा कर रहा है।

सड़क पर पहुँच कर उस आदमी ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी, लेकिन यहाँ वह चोरों की तरह इधर-उधर नहीं देख रहा था....उसका रुख़ ताँगा स्टैंड की तरफ़ था।

इमरान भी चलता रहा....और फिर जब वह एक ताँगे पर बैठ गया तो इमरान ने अपनी कार की तरफ़ दौड़ना शुरू कर दिया जो वहाँ से काफ़ी दूरी पर थी....और ताँगा उल्टी दिशा में जा रहा था।

कार तक पहुँचते-पहुँचते ताँगा नज़रों से ग़ायब हो गया। इमरान को बड़ी मायूसी हुई, मगर उसने हिम्मत नहीं हारी।

कार स्टार्ट करके वह भी उधर ही रवाना हो गया जिधर ताँगा गया था। उसे यक़ीन था कि अगर ताँगा किसी घनी बस्ती में न मुड़ा तो उसे ज़रूर मिल जायेगा।

सड़क सुनसान थी। आगे चल कर कार की हेड लाइट में ताँगा दिखाई दिया....लेकिन यह ज़रूरी नहीं था कि यह वही ताँगा रहा हो जिसकी उसे तलाश थी....उसने कार की रफ़्तार बहुत कम कर दी।

साथ ही उसने महसूस किया कि ताँगा की रफ़्तार पहले से ज़्यादा हो गयी है....और फिर एक जगह अचानक ताँगा रुक गया....सड़क पर आगे चढ़ाई थी....और ताँगा कार से ज़्यादा ऊँची जगह पर था। अचानक वह कार की रोशनी में आ गया और इमरान ने पीछे बैठे हुए आदमी की शक्ल अच्छी तरह देख ली....लेकिन पहनावे से वह कोई मज़दूर या कम हैसियत का आदमी नहीं मालूम होता था। जिस्म पर एक लम्बा कोट था और सिर पर हैट....दाढ़ी से बूढ़ा मालूम होता था, क्योंकि वह बिलकुल सफ़ेद थी।

उसने जल्दी से हैट का कोना चेहरे पर झुका लिया और कोट के कॉलर खड़े कर लिये....शायद घोड़े के साज़ में कोई ख़राबी आ गयी थी जिसे ताँगे वाला नीचे खड़ा ठीक कर रहा था।

इमरान ने रफ़्तार और कम करके बेकार में हॉर्न देना शुरू कर दिया। हालाँकि वह क़तरा कर भी निकल सकता था....मक़सद दरअसल ये था कि वह कोचवान और सवार को धोखे में रख कर ताँगे के क़रीब पहुँच जाये।

‘‘अबे ओ ताँगे वाले.... ख़रगोश की औलाद!’’ इमरान ताँगे के क़रीब पहुँच कर गरजा।

‘‘साहब, बहुत जगह है!’’ ताँगे वाले ने कहा।

‘‘किधर जगह है....?’’ इमरान कार से उतर कर चीख़ा। ‘‘बढ़ाओ....सड़क के नीचे उतारो।’’

वह ताँगे की पिछली सीट के क़रीब पहुँच चुका था।

‘‘यह तो ज़बर्दस्ती की बात है जनाब!’’ ताँगे वाला भी झल्ला गया।

इमरान पिछली सीट पर हाथ रखता हुआ धीरे से बोला। ‘‘सरकार, मुझे लेडी तनवीर ने भेजा है।’’

बूढ़ा खाँस कर रह गया।

‘‘मैं आप ही से कह रहा हूँ।’’ इमरान ने कहा।

लेकिन दूसरे ही पल में कोई ठण्डी-सी चीज़ उसके माथे पर आ गिरी।

‘‘पीछे हट जाओ!’’ बूढ़ा धीमी आवाज़ में बोला। ‘‘मोरीना सलानियो को कुतियों की मौत मरना पड़ेगा। यह बूढ़े ग़ज़ाली का फ़ैसला है।’’

‘‘लेकिन मैंने क्या क़सूर किया है, चचा ग़ज़ाली!’’ इमरान ने शरीफ़ाना अन्दाज़ में कहा।

‘‘तुम्हारा कोई क़सूर नहीं है....इसीलिए तो ट्रिगर अपनी जगह पर है....वरना तुम्हारी खोपड़ी में एक रंगीन-सा सूराख़ हो जाता।’’

‘‘और मैं उसे देख कर ख़ुश भी न हो पाता।’’ इमरान ने एक लम्बी साँस ली....इतने में ताँगे वाले ने आगे बढ़ना चाहा, लेकिन बूढ़े ने उसे रोक दिया।

‘‘मोरीना से कह दो....कि ग़ज़ाली बच्चा नहीं है।’’

‘‘मैं किसी मोरीना को नहीं जानता चचा ग़ज़ाली! मुझे तो लेडी तनवीर ने भेजा है। अगर उन्हीं का नाम मोरीना....तो मुझे मोनोबाओ रेलवे स्टेशन तक पैदल जाना पड़ेगा....’’

‘‘लेडी तनवीर....!’’ बूढ़ा धीरे से बड़बड़ाया....‘‘लेडी तनवीर....!’’

ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कुछ याद करने के लिए अपने ज़ेहन परज़ोर दे रहा हो।

‘‘सर तनवीर की बीवी तो नहीं?’’ उसने पूछा।

‘‘आप समझ गये न। देखिए मैं न कहता था....हाँ!’’

‘‘लेकिन उसने क्यों भेजा है?’’

‘‘बस, समझ जाइए!’’ इमरान हँसने लगा।

‘‘क्या समझ जाऊँ?’’

‘‘वही न! जो लेडी तनवीर आपसे चाहती हैं।’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूँ कि वह क्या चाहती है?’’ बूढ़ा बोला।

‘‘वह चाहती हैं कि आप इस शहर से चले जाइए।’’

‘‘ओ हो....मैं समझा!’’ बूढ़े ने भर्रायी हुई आवाज़ में कहा। ‘‘लेकिन उसे फ़िक्रमन्द न होना चाहिए! उससे कह देना कि ग़ज़ाली अपने एक निजी काम से यहाँ आया था, जिस दिन हो गया, यहाँ से चला जायेगा! वह यहाँ रहने के लिए नहीं आया।’’

‘‘मगर....आप सर तनवीर से मिलते क्यों नहीं?’’ इमरान ने पूछा।

‘‘मैं नहीं जानता था कि वह यहीं रहता है! लेडी तनवीर से कह देना। ग़ज़ाली दिल का बुरा नहीं है....अच्छा, अब तुम जा सकते हो....!’’

बूढ़े ने रिवॉल्वर उसके माथे से हटा ली।

‘‘मगर चचा! सर तनवीर तो बराबर आपके कमरे का दरवाज़ा पीटते रहे हैं।’’

‘‘सर तनवीर!’’ बूढ़े की आवाज़ में हैरत थी।

‘‘हाँ चचा ग़ज़ाली....’’ ‘‘मैं नहीं समझ सकता!’’ बूढ़ा बड़बड़ा कर रह गया....

‘‘सर तनवीर आपसे क्या चाहते हैं?’’

‘‘बस जाओ....! जो कुछ मैंने कहा है लेडी तनवीर से कह देना....ताँगा बढ़ाओ।’’

घोड़े की टापें सन्नाटे में गूँजने लगीं....और इमरान ने चिल्ला कर पूछा। ‘‘चचा ग़ज़ाली, आपके पास रिवॉल्वर का लाइसेंस तो होगा ही!’’

‘‘हाँ भतीजे....तुम इत्मीनान रखो!’’ बूढ़े की आवाज़ आयी....ताँगा काफ़ी दूर निकल गया था।