रात का खुला समंदर, हर तरफ स्पष्ट दिख रहा था। आज आसमान में पूरा चंद्रमा निकला हुआ था, जिसके कारण, समंदर की लहरें उछल रही थी और नजारा काफी हद तक स्पष्ट था। समंदर से टकराकर आती, नमकीन बहकी-बहकी-सी हवा बहुत अच्छी लग रही थी। उठती लहरों का शोर किनारे पर रह-रहकर हो रहा था, लगता था जैसे लहरें, समंदर का दायरा बढ़ाकर, बाहर तक आ जाना चाहती थीं। ये समंदर का वीरान किनारा था। रात तो क्या दिन में भी इस तरफ कोई नहीं आता था। लेकिन इस वक्त वहां हलचल थी। करीब पच्चीस लोग वहां मौजूद थे। कुछ दूर पेड़ों के बीच एक मिनी ट्रक खड़ा था और समंदर किनारे दो छोटी बोट्स खड़ी हुईं, लहरों के संग बार-बार हिलती दिख रही थी।

रात के 2.15 बज चुके थे।

उन लोगों में केली भी मौजूद था, जिसने सैटेलाइट फोन थाम रखा था। इधर-उधर खड़े लोग आपस में बातें कर रहे थे। अंधेरे में उन्हें पहचान पाना आसान नहीं था। दो आदमी केली के पास पहुंचे।

“केली साहब, दो बजे का वक्त था डिसूजा के आने का।” एक ने कहा।

“वो पहुंचता ही होगा। इतनी देर तो हो ही जाती है।” केली बोला।

“एक बात पूछूं आप नाराज तो नहीं होंगे?” दूसरा कह उठा।

“पूछो।” केली ने अंधेरे में उसे देखा।

“अब बड़े सर, गाठम के बारे में क्या कदम उठा रहे हैं?”

“गाठम को सबक सिखाया जाएगा आज रात।”

“आज रात?”

“हां। बड़े सर, गाठम को खत्म कर देना चाहते हैं।” केली का स्वर कठोर हो गया।

“लेकिन छोटे सर, गाठम की कैद में हैं।”

“बेवू सर, जहां भी हैं सुरक्षित हैं। उनकी कोई फिक्र नहीं।”

“पर–पर छोटे सर तो गाठम के पास...।”

“बेवू सर गाठम के पास नहीं हैं। वो धोखे में, किसी दूसरे का अपहरण करके ले गया।”

“ओह। पर गाठम ने छोटे सर पर ही हाथ डालने की चेष्टा की थी।”

“तभी तो आज रात गाठम को सबक सिखाया जाएगा।”

“गाठम क्या इसी शहर में है?”

“नहीं। परंतु अपने लोगों का हाल देखकर वो जल्दी आ जाएगा और मरेगा।” केली के दांत भिंच गए।

“गाठम की गलती है। उसे बड़े सर से झगड़ा नहीं लेना चाहिए था। अब उसे भुगतना...।”

तभी केली के हाथ में पकड़े सैटेलाइट फोन की बेल बजने लगी।

“हैलो।” केली ने बात की।

“मैं पहुंच गया केली।” दूसरी तरफ से डिसूजा की आवाज आई –“मेरी बोट बड़ी है, किनारे पर लाना ठीक नहीं होगा। रेत में फंस सकती है। क्या तुमने बोट्स का इंतजाम कर रखा है?”

“हां। दो छोटी बोट्स हैं। मैं जानता था कि तुम ये ही कहोगे।” केली मुस्कराया।

“मुझे पेमेंट की जरूरत है इस बार –तुमसे कहा था कि...।”

“उसकी तुम फिक्र मत करो। जगवामा सर, तुमसे हमेशा खुश रहते हैं। उन्होंने कहा डिसूजा को पेमेंट दे देना। मैं दोनों बोट्स समंदर में तुम्हारे पास भेज रहा हूं और डॉलरों से भरा सूटकेस भी।”

“शुक्रिया। दो बोट्स हैं तो उनके छः या आठ चक्कर लगेंगे और सारे हथियार तुम तक पहुंच जाएंगे। उन्हें जल्दी भेजो। लम्बे सफर से मैं थक गया हूं और इस काम के बाद लम्बी नींद लेना चाहता हूं।”

केली ने फोन बंद किया और पास खड़े दोनों आदमियों से बोला।

“ट्रक के केबिन में रखा सूटकेस ले आओ।”

दोनों फौरन कुछ दूर पेड़ों के पास खड़े ट्रक की तरफ बढ़ गए।

केली किनारे, पर पानी में खड़ी बोट्स के पास पहुंचा तो तभी चार व्यक्ति पास आ गए।

“हुक्म केली साहब?”

“सामान आ पहुंचा है।” केली ने समंदर में निगाहें दौड़ाते कहा।

“ओह, तो हम सामान लेने जाएं?”

“एक सूटकेस ले जाना, डिसूजा को दे देना। उसके आदमी तुम्हारी बोट्स में हथियार रखते रहेंगे और तुम लोगों को सावधानी से बोट्स किनारे पर लानी है। पिछली बार की तरह हथियार समंदर में न गिर जाएं। इस बार के हथियार कीमती हैं और उन्हें जल्दी ही आगे भेज देना है।” केली बोला।

“इस बार ऐसा नहीं होगा।”

“क्या ये ठीक नहीं होगा कि एक बोट में दो लोग जाएं। एक बोट चलाए तो दूसरा पीछे पड़ी पेटियों का ध्यान रखे। उन्हें पकड़कर रखे ऐसा करना ज्यादा ठीक होगा। पेटियों के ऊपर पेटियां पड़ी हों तो गिरने का खतरा रहता है।”

“जैसा आप ठीक समझें केली साहब।”

“एक बोट में दो लोग ही जाएंगे।” केली बोला –“ये ही ठीक रहेगा। डिसूजा ने इस बार भी बोट को गहरे पानी में रोक रखा है। लाइट बंद होगी। तुम लोग आसानी से डिसूजा की बोट को ढूंढ़ लोगे।”

तभी सूटकेस आ गया। उसे बोट में रख दिया गया। फिर दोनों बोट्स के इंजनों की आवाजें सुनाई दी और वो गहरे समंदर की तरफ दौड़ पड़ी। उनकी लाइट बंद थी। इंजनों की आवाजें दूर होती चली गईं।

डिसूजा के आ जाने की खबर सबको मिल गई। वे सतर्क हो गए।

“ट्रक को यहां ले आओ।” केली ने कहा।

एक आदमी ट्रक की तरफ बढ़ गया।

केली ने सैटेलाइट फोन पर डिसूजा से सम्पर्क कायम करके कहा।

“दोनों बोट्स तुम्हारी तरफ आ रही है। उनकी तरफ टॉर्च की रोशनी चमका देना।”

“इस काम के लिए मेरे आदमी तैयार बैठे हैं।”

“हथियार उतने ही हैं, जितने तुमने कहा था?” केली ने पूछा।

“उतने ही हैं।” डिसूजा की आवाज कानों में पड़ रही थी –“गाठम से कोई झगड़ा हो गया क्या?”

“तुम्हें भी पता चल गया।”

“किसी से सुना था। क्या हुआ?”

“गाठम ने बेवू सर को उठा लिया।”

“मतलब कि अपहरण। हैरानी है कि गाठम को शिकारों की कमी हो गई जो उसने बेवू सर का अपहरण किया? दिमाग खराब हो गया है गाठम का। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। कितना मांगता है?”

“बीस मिलियन।”

“बहुत ज्यादा है। बड़े सर को तो बहुत गुस्सा आ रहा होगा। गाठम को फिरौती दी?”

“विचार चल रहा है। वो अठारह से कम नहीं आता।”

“गाठम की ये हरकत मुझे पसंद नहीं आई। अब वो लालची होता जा रहा है और बूढ़ा भी। मेरी तरफ से बड़े सर से कहना कि गाठम को छोड़ना नहीं। उसने अपनी जान गंवाने वाला काम किया है। मैं तो...केली तुम्हारी बोटें आ गई हैं। मेरे आदमी उन्हें टॉर्च की रोशनी दिखा रहे हैं। बाद में बात करता हूं।” उधर से डिसूजा ने फोन बंद कर दिया।

तब तक ट्रक को समंदर के किनारे के पास लगा दिया गया था कि हथियारों की पेटियां आसानी से बोट्स से उठाकर ट्रक में रखी जा सकें। दस आदमी गनें लिए पहरे पर मौजूद थे। बाकी सब समंदर के किनारे के पास और ट्रक के पास खड़े थे। रह-रहकर वे समंदर को देख रहे थे।

सैटेलाइट फोन हाथ में थामे केली ने आस-पास अंधेरे से भरी जगहों पर नजर मारी।

सबको बोट्स के वापस आने का इंतजार था।

☐☐☐

दोनों बोट्स ने ग्यारह चक्कर लगाए समंदर के। हर बार लकड़ी की लम्बी पेटियां भरकर आती और तट पर खड़े लोग उन्हें उठाकर फुर्ती से ट्रक के भीतर रख देते। चार आदमी ट्रक के भीतर खड़े थे जो कि पेटियों को संभालते और ठीक से भीतर लगा देते। कुल चौंतीस पेटियां लाई गईं। काम खत्म हो गया। अब सवा तीन का वक्त हो रहा था। डिसूजा का फोन आया केली को।

“बाय केली। हम वापस जा रहे हैं।”

“ठीक है, फिर मिलेंगे।” कहकर केली ने फोन बंद किया।

ट्रक को बंद कर दिया गया था। सारे काम फुर्ती से हो रहे थे।

बोट चलाने वाले आदमी, दोनों बोटों को दूर, उस किनारे की तरफ छोड़ने चले गए जहां से उन्होंने किराए पर ली थी। अब चलने का वक्त हो गया था।

“गोदाम में ठीक से हथियारों को रखो और...।”

केली अपनी बात पूरी नहीं कर सका। तभी मशीनगन से अंधेरे में ब्रस्ट मारा गया। ढेरों गोलियां केली की तरफ बढ़ीं। कुछ केली को लगीं, कुछ दूसरे लोगों को। इसी के साथ ही वहां चीखो-पुकार मच गई।

जवाबी फायरिंग होने लगी।

शांत इलाका गोलियों से दहल उठा।

तभी एक ऊंची आवाज ट्रक के पीछे से आई।

“चिकी। किसी को भी छोड़ना नहीं। मार डालो सबको।”

“सब मरेंगे। जगवामा ने गाठम से पंगा जो ले लिया है।” चिकी के रूप में होपिन का स्वर उभरा।

फिर गोलियों की आवाजें और चीखें तेज हो गईं।

केली के लोगों को पता नहीं चल रहा था कि दुश्मन किधर है और कितने हैं। हर तरफ से गोलियों की बाढ़ आ रही थी। चीखें ही चीखें, शोर गूंज रहा था।

केली नीचे रेत पर पड़ा था। उसे तीन गोलियां लगी थीं। दो गोलियां एक ही बांह में लगी थीं और एक गोली पेट में । दर्द से उसका बुरा हाल था। वो लेटा ही रहा। जानता था कि इस वक्त उठना खतरनाक था, गोलियां उसे लग सकती थीं। उन आवाजों को सुनकर समझ गया कि ये गाठम की तरफ से हमला हुआ है।

तभी कोई सरकता हुआ, अंधेरे में उसके पास आ पहुंचा।

“कौ-न है?” केली ने गहरी सांसें लेते हुए कहा।

उसी पल केली की कनपटी पर रिवॉल्वर की नाल लग गई।

“कौन?” केली ने कहना चाहा।

“अब तू मर रहा है केली।” होपिन की गुर्राहट उसके कानों में पड़ी और अगले ही पल फायर की आवाज गूंजी। गोली केली की कनपटी के आर-पार हो गई। केली उस पल शांत हो गया।

गोलियां चलती रहीं। चीखें गूंजती रही।

बीस-पच्चीस मिनट के बाद गोलियां चलने में कमी आ गई। गोलियां चलनी बंद होने लगी।

करीब बीस लोग अब खुले में दिखने लगे।

“हम गाठम के लोग हैं।” मोक्षी की आवाज आई –“अगर जिंदा रहना चाहते हो तो सामने आ जाओ। बाद में जो छिपा पाया गया उसे हम शूट कर देंगे। जो हाथ उठाकर सामने आ गया, वो छोड़ दिया जाएगा।”

तीन लोग हाथ उठाए सामने आ गए।

उसके बाद छिपे हुए जिंदा लोगों को ढूंढा गया। परंतु ऐसा कोई नजर नहीं आया। आठ लोग घायल पड़े मिले जिन्हें गोली मार दी गई। फिर रत्ना ढली गुर्राकर कह उठा।

“इन तीनों को भी शूट करो। मारो हरामियों को।”

“नहीं।” होपिन ने तेज आवाज में कहा –“इन्हें जाने दो।”

“चिकी तुम।”

“इन्हें जाने दो। ये मेरा हुक्म है। चिकी को पसंद नहीं कि उसका हुक्म टाला जाए।”

“पर गाठम ने कहा था कि एक भी बचना नहीं चाहिए।”

“गाठम से मैं बात कर लूंगा। इन तीनों को जाने दो। हमें जगवामा के हथियार लूटने थे, वो हमने लूट लिए।” होपिन की आवाज अंधेरे में गूंज रही थी –“भाग जाओ तुम तीनों यहां से।”

केली के वो तीनों आदमी वहां से अंधेरे में भागते गुम हो गए।

आदिन ने पास आकर होपिन से धीमे-से कहा।

“जगवामा को बताने के लिए कोई जिंदा भी होना चाहिए। उन तीनों को जाने देना ही ठीक था।”

“हमारा यहां रुकना ठीक नहीं। अपने लोगों से कहो कि ट्रक को ले जाकर वहां छिपा दें, जहां की बात हो चुकी है।”

उसके बाद सारे काम तेजी से होने लगे।

ट्रक को छः लोग वहां से ले गए।

बाकी सब भी दूर खड़ी अपनी कारों की तरफ चले गए।

आदिन, मोक्षी, होपिन, रत्ना ढली चारों इकट्ठे एक कार में बैठे और कार आगे बढ़ा दी। कार की हेडलाइट बंद थी। आधा किलोमीटर जाने के बाद वे जब सड़क पर आ गए तो तब हेडलाइट ऑन कर ली गई। ये सड़क सुनसान थी। चारों चुप थे। अभी तक कोई भी बोला नहीं था।

“हमने अच्छा काम किया।” मोक्षी कह उठा।

“बहुत बढ़िया किया।”

“केली को मैंने मार दिया।” होपिन कार चलाते बोला –“उसे मारने में खास दिक्कत नहीं आई।

“वो लोग लापरवाह थे कि सब ठीक है। अपने पर हमला होने के बारे में सोच भी नहीं सकते। हमारे लोगों ने अंधेरे में उन्हें घेरा और गोलियां चला दीं। वो समझ भी नहीं पाए कि क्या हुआ और मर गए।”

“गाठम के ठिकाने पर जगवामा के लोगों ने हमला करना था, पता नहीं वो हुआ है या...।”

तभी आदिन का फोन बजने लगा।

आदिन ने बात की। दूसरी तरफ पुलिस चीफ जामास था।

“काम हो गया?” जामास ने पूछा।

“हम सफल रहे। जैसे सोचा था, वैसे ही काम पूरा किया।” आदिन ने जोश भरे स्वर में कहा।

“केली मारा गया?”

“हां साहब जी, होपिन ने केली का काम कर दिया।”

“ये ठीक रहा। अब सुनो, गाठम का जो ठिकाना हमारी निगाहों में था, जिस पर हमला करने की हम सोच रहे थे उस पर आधा घंटा पहले हमला होने की खबर आई है। हमारा एक आदमी वहां पर नजर रख रहा था। इसके बाद के हालात का पता नहीं, क्योंकि हमला होते ही हमारा आदमी वहां से हट गया।”

“अच्छी खबर है साहब जी।” आदिन कह उठा।

“एक अन्य जगह पर जबर्दस्त गोलीबारी की खबरें आई हैं। स्पष्ट है कि वो जगह भी गाठम की है और जगवामा की तरफ से वहां हमला किया गया है। वहां दोनों तरफ से गोलियां चल रही हैं।”

“तो गैंगवार की शुरुआत हो गई।”

“हमारी कोशिश सफल होती दिख रही है अब तुम लोगों ने एक काम और करना है।”

“हुक्म साहब जी।”

“गाठम के ठिकानों पर जगवामा ने हमला कराया है तो गाठम भी तो कुछ करेगा। एकदम से वो ज्यादा नहीं कर सकता परंतु थोड़ा-सा तो फौरन करके दिखाएगा। मतलब कि जगवामा इस्टेट के मुख्य गेट पर फायरिंग करनी है मशीनगन से। कोशिश करना कि गेट पर खड़े गनमैन फायरिंग की चपेट में आ जाएं। वहां रुकना नहीं है। मशीनगन से चार-पांच ब्रस्ट मारने हैं और निकल जाना है। तुरंत निकल जाना है, वरना जगवामा के गनमैन गेट पर पहुंचकर जवाबी फायरिंग करने लगेंगे। हमें ऐसा नहीं चाहिए। हमने लड़ना नहीं है।”

“समझ गया।”

“ये काम करके मेरे पास वापस आ जाओ।”

“देवराज चौहान आपके पास ही है?”

“हां। ओका और समूशा भी यहां हैं। एक मिनट रुको, ओका कुछ कह रहा है।”

इसके साथ ही जामास की आवाज आनी बंद हो गई।

आदिन फोन कान से लगाए रहा।

होपिन कार को दौड़ा रहा था।

“कार की डिग्गी में क्या-क्या हथियार पड़ा है?” आदिन ने पूछा।

“गन है। कुछ रिवॉल्वरें हैं। दो मशीनगन हैं।” रत्ना ढली ने कहा –“क्यों?”

“जगवामा इस्टेट पर फायरिंग करके वहां से निकल जाना है। साहब जी ने कहा है। कार उधर ही ले लो।”

तभी जामास की आवाज फोन द्वारा, आदिन के कानों में पड़ी।

“आदिन। तीसरी जगह भी एक हमला होने की खबर आई है। वहां भी गोलियां दोनों तरफ से चल रही हैं। जगवामा की तरफ से तीन जगह, गाठम के ठिकानों पर हमला किया गया है। हमारा काम बन गया। अब गैंगवार छिड़ जाएगी। गाठम को मैदान में आना ही पड़ेगा।” जामास के स्वर में उत्साह था –“हम सफल हो गए अपनी कोशिश में। सुनो, तुम  लोग अभी जगवामा इस्टेट पर फायरिंग मत करो। कहीं रुककर इंतजार करो। गाठम के ठिकानों पर होने वाली गोलीबारी जब बंद होगी, उसके एक घंटे बाद जगवामा इस्टेट पर फायरिंग की जाएगी। मेरे ख्याल में कहीं भी गोलीबारी ज्यादा देर तक नहीं चलेगी। मेरे फोन का इंतजार करो।”

☐☐☐

जगवामा तकियों से टेक लगाए बेड पर अधलेटा-सा बैठा था। उसके चेहरे पर ढेर सारी बेचैनी दौड़ रही थी। उसकी आंखों की पुतलियां व्याकुलता से इधर-उधर घूम रही थीं। दोनों हाथ बार-बार हिल रहे थे। रह-रहकर वो सिटवी को देखने लगता जो कि बेचैनी से टहल रहा था।

सुबह के 4.10 बजे थे।

बाहर अभी अंधेरा ही था।

सिटवी बार-बार फोन कर रहा था उसे फोन बार-बार आ भी रहे थे। बाहर की खबरें मिल रही थीं।

दो खबरें आधा घंटे पहले सिटवी ने वोमाल जगवामा को सुनाई थी।

एक तो ये कि गाठम के तीन ठिकानों पर, अपने लोगों ने सफलता से हमला किया और गाठम के सब लोगों को मार दिया गया। पांच-सात लोग भागने में अवश्य सफल रहे। परंतु हर जगह पर हमला सफल रहा। दूसरी खबर ये कि समंदर तट पर डिसूजा के लाए हथियार गाठम के लोगों ने लूट लिए हैं। सबको मार दिया गया। तगड़ी फायरिंग की गई। केली भी मारा गया। तीन आदमी वहां से जिंदा बचकर आ सके। इस हमले में गाठम का राइटहैंड चिकी स्वयं शामिल था। उन्होंने क्रूरता से इस काम को अंजाम दिया। केली का मारा जाना वोमाल जगवामा के लिए किसी झटके से कम नहीं था। उसके बाद से जगवामा चुप-सा हो गया और सोचों में डूब गया था। अजीब-सी बेचैनी में घिर गया था। जबकि सिटवी परेशानी की हालत में टहलने लगा था। केली की मौत उसके लिए भी सदमे से कम नहीं थी। पहली बार इस तरह जगवामा के किसी ओहदेदर की जान गई थी।

वोमाल जगवामा ने अपनी आंखें मली। पूरी रात वो सोया नहीं था।

“सिटवी।” जगवामा ने पुकारा।

सिटवी ठिठका और जगवामा के बेड के पास आ गया।

“केली की मौत मुझे अच्छी नहीं लगी। पर हमें इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि इस लड़ाई में कुछ भी हो सकता है।”

“मैं केली के साथ-साथ कुछ और भी सोच रहा हूं सर।” सिटवी गम्भीर स्वर में बोला –“गाठम को इस तरह के हमले की जरूरत क्या थी। अभी तो बेवू सर की सौदेबाजी की बात चल रही है।”

“मैंने कहा तो था चिकी को कि वो चाहे तो बेवू को मार दें। ऐसा मैंने इसलिए कहा कि वो बेवू नहीं है। मेरे ये कहने के बाद तो बातचीत खत्म हो जाती है। अब सौदेबाजी की गुंजाइश ही कहां बची?”

“ठीक है सर। आपकी बात मान ली। लेकिन फिरौती न मिलने पर गाठम को चाहिए कि वो उस नकली बेवू को मार दे। परंतु वो तो हमारे हथियार लूटने लगा। हमारे आदमियों को मारने लगा। ये बात तो मेरी समझ से बाहर है। गाठम ऐसा कैसे कर सकता है, फिरौती नहीं दी तो क्या वो हम पर हमला करने लगेगा।”

जगवामा, सिटवी को देखने लगा।

“सर, मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है।”

“क्या गड़बड़?”

“ये ही तो समझ नहीं आ रहा। गाठम के हमले का मतलब समझ नहीं आ रहा। उसकी हमारी कोई दुश्मनी भी नहीं, जो वो हमारे आदमी मारता। हमारे हथियार लूटता। गाठम ऐसी हरकत क्यों करेगा?”

“तुम्हारा मतलब क्या है। क्या ये काम गाठम ने नहीं किया?” जगवामा बोला।

“मेरा ये मतलब नहीं था।”

“तो?”

“कुछ समझ में नहीं आ रहा। मुझे ठीक नहीं लगा रहा।” सिटवी परेशान स्वर में कह उठा।

“तुम केली की मौत को शायद सहन नहीं कर पा रहे हो।” जगवामा के चेहरे पर कठोरता आ गई।

“हो सकता है सर कि ये ही बात हो। मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा।”

“ये तो शुरुआत है सिटवी।” जगवामा ने सुलगते स्वर में कहा –“सिर्फ शुरुआत, परंतु गाठम के इस हमले ने हमें सतर्क कर दिया है, गाठम हमें तगड़ी टक्कर दे सकता है। हम गाठम की जान लेकर रहेंगे।”

“बेवू कम-से-कम गाठम के पास नहीं है।” वोमाल जगवामा शब्दों को चबाकर कह उठा –“मुझे लगता है कि अपना हमशक्ल इस्टेट में बैठाकर वो कहीं दूर सैर पर निकल गया है। कुछ वक्त बाद जैसे वो खामोशी से गया है, वैसे ही खामोशी से लौट आएगा। इतना समझ नहीं आया कि इस बार वो पूर्व के जंगल की बस्ती की उस लड़की के पास क्यों नहीं गया। वो लड़की बेवू के बच्चे की मां बन चुकी है। दो साल का बेटा है। मुमरी माहू बेवू को पिछली बार कब लाया था वहां से?”

“ढाई साल पहले।”

“तब तो बेवू को पता होगा कि अब तक वो मां बन गई है। उसका बच्चा बड़ा हो रहा है। उसे तो वहां जाना चाहिए था।”

“बेवू सर इसलिए उस लड़की के पास नहीं गए होंगे कि मुमरी माहू उसे वहां से ढूंढ़ लाता है।”

“शायद बेवू ने सोच रखा हो कि वो बाद में उस लड़की के पास जाएगा। पहले हम ढूंढ़कर, थककर बैठ जाएं। बेवू जहां भी है, ठीक है। हमें उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें गाठम के बारे में सोचना है। तुम सब ओहदेदारों को फोन पर कह दो कि दिन में वो मेरे पास आएं, ताकि हम गाठम के बारे में कोई जबर्दस्त योजना बना सकें।”

“हम गाठम के बारे में...।”

सिटवी के शब्द अधूरे रह गए।

तड़-तड़-तड़ की आवाजों से इस्टेट गूंज उठी।

दोनों की नजरें मिली।

अभी तक फायरिंग जारी थी।

“सर इस्टेट पर हमला किया जा रहा है।” सिटवी चीखा।

वोमाल जगवामा का चेहरा धधक उठा।

एक बार फिर तड़-तड़ की आवाज आई और शांति छा गई।

“ये गाठम की तरफ से हमला है।” वोमाल जगवामा बोला –“हमें चेतावनी दी गई है कि वो हमें नहीं छोड़ेगा।” इसके साथ ही जगवामा के चेहरे पर मौत से भरी मुस्कान नाच उठी –“आ-जा गाठम। मुझे बेसब्री से तेरा इंतजार है।”

सिटवी के चेहरे पर अजीब-से भाव नाच रहे थे।

“सर, आपको नहीं लगता कि गाठम बहुत तेजी से हरकत में आ गया है।” सिटवी तेज स्वर में बोला।

“क्यों?”

“वो पूर्व के जंगल में रहता है। यहां उसके तीन ठिकानों पर हमला करके हमने उसके सब आदमी मार दिए। ऐसे में वो इतनी जल्दी तैयारी कैसे कर सकता है। तट पर हमारे हथियार लूटे । हमारे आदमियों को मारा और अब इस्टेट पर...।”

“उसके तीन ठिकाने तबाह किए हैं, क्या पता उसके तीन ठिकाने और हो, जो आदमियों से भरे हों।” वोमाल जगवामा का स्वर कठोर हो गया –“गाठम की मौत आ चुकी है, तभी तो वो जंगल से शहर का रुख करेगा अब।”

“मुझे तो कुछ समझ में...।”

तभी सिक्योरिटी चीफ हूसल ने भीतर प्रवेश किया। वो घबराया हुआ था।

“सर। कुछ लोगों ने इस्टेट के गेट पर गोलियां चलाईं मशीनगन से। हमारे तीन गनमैन मारे गए। फायरिंग करने वाले लोग भाग निकले। उन्हें मार गिराने का हमें मौका ही नहीं मिल सका।” हूसल ने जल्दी से कहा।

“सतर्क रहो।” वोमाल जगवामा शब्दों को चबाता कह उठा –“ऐसा दोबारा भी हो सकता है।”

“ज-जी सर।” कहकर हूसल बाहर निकल गया।

“तीन गनमैन मारे गए। समंदर किनारे भी पंद्रह-बीस लोग मरे हैं। मुझे अभी तक ये ही उलझन है सर कि गाठम इतनी तेजी से कैसे हरकत में आ सकता है जबकि उसके तीन ठिकाने हमारे लोगों ने तबाह कर दिए। उसके कई आदमियों को मार दिया और स्वयं गाठम यहां से सैकड़ों मील दूर पूर्व के जंगलों में रहता है।” सिटवी बल खाता कह उठा।

“लड़ाई शुरू हो चुकी है। गाठम की मौत के साथ ही ये सब खत्म होगा। मुझे केली की मौत का बहुत दुख हो रहा है जैसे मेरे शरीर का कोई अंग कटकर गिर गया हो। केली हमेशा ही बहुत अच्छा रहा मेरे साथ।” जगवामा के स्वर में अफसोस के भाव थे।

☐☐☐

मुमरी माहू लौट आया था।

वो भी वोमाल जगवामा के अन्य ओहदेदारों के साथ मीटिंग में शामिल होने लगा। नए-नए प्लान बनाए जाते रहे कि गाठम का मुकाबला कैसे करना है।

मैगवी, पैथिन, हकाकाब, मुमरी माहू, लूचर, सिटवी, जगवामा के साथ मिलकर मजबूत योजनाओं को अंजाम देते रहे। उनके इरादे खतरनाक थे। वे गुस्से में थे और गाठम को खत्म कर देना चाहते थे। जगवामा के आदमी लगातार शहर में, और शहर से बाहर गाठम के ठिकानों की तलाश करते फिर रहे थे।

जगवामा ने बाकी सारे काम रुकवा दिए थे कि अब सबसे जरूरी काम गाठम को मौत देना है। शहर के बाहर, दूसरे शहर में गाठम के एक ठिकाने का पता चला तो जगवामा के तीस आदमी वहां गए और उस ठिकाने को तबाह किया। गाठम के लोगों को मार दिया गया।

अगले दो दिन तक शहर में शांति रही।

वोमाल जगवामा गाठम की तरफ से होने वाली किसी हरकत के इंतजार में था।

☐☐☐

सोहन गुप्ता और उसके एजेंट इस वक्त राहत में थे कि उनका मिशन पूरा हो गया है। सोहन गुप्ता ने मार्शल को फोन पर पाकिस्तानी संगठन का नाम और उन चार लोगों के नाम बता दिए थे जो जगवामा की मौत के बाद जगवामा का संगठन खरीदने की बात बेवू से कर चुके थे। अब सोहन गुप्ता, जगवामा के यहां मौजूद अपने तीन एजेंट मिर्जा और दो अन्य को वहां से निकल आने को कह चुका था। उसे जगवामा और गाठम की लड़ाई से कोई मतलब नहीं था। परंतु उसे जगमोहन की और देवराज चौहान की खासतौर से चिंता थी कि वो गाठम के यहां से निकल आएं। सोहन गुप्ता ने मार्शल के आदेश पर एजेंटों को वापस हिन्दुस्तान भेजना शुरू कर दिया था।

मार्शल ने कहा था कि देवराज चौहान और जगमोहन के लिए सिर्फ चार-पांच लोग वहां रहें कि हो सकता है उन्हें सहायता की जरूरत पड़ जाए। जो भी हो सोहन गुप्ता इस वक्त हर तरफ नजर रखने की कोशिश कर रहा था। खबरों के पाने के लिए उसके कुछ लोग अभी भी फील्ड में थे।

☐☐☐

जगमोहन की टांगें अभी भी बांधकर रखी जा रही थी। देवराज चौहान के कहने पर जगमोहन को नहाने, धोने का मौका दिया गया था। उसके जख्म पर दवा लगाई गई थी। मोक्षी, आदिन, रत्ना ढली और होपिन वहां मौजूद थे और जगमोहन पर कड़ी नजर रखे हुए थे। देवराज चौहान पर भी नजर थी, पर खास नहीं, क्योंकि जब तक जगमोहन पास में था देवराज चौहान खुद ही काबू में था। पुलिस चीफ जामास चौबीस घंटे से गया अब वापस लौटा था।

“क्या हो रहा है बाहर?” देवराज चौहान ने जामास ने पूछा।

“कुछ नहीं।”

“दो दिन हो गए कुछ भी नहीं हो रहा।”

“होगा।”

“लगता नहीं।” देवराज चौहान ने कहा।

जामास ने देवराज चौहान को देखा फिर गम्भीर स्वर में बोला।

“गाठम को दूर से आना है यहां। उसके तीन ठिकाने तबाह हो चुके हैं। यहां के अधिकतर आदमी मारे जा चुके हैं। उसे हरकत में आने में कुछ वक्त लग सकता है। उसे यहां आ जाने दो।”

“गाठम के आने की खबर तुम्हें मिल जाएगी?”

“हां। मेरा एक मुखबिर गाठम के लिए काम करता है, वो मुझे बताएगा।”

“मान लो, गाठम नहीं आया। गैंगवार नहीं शुरू हुई तो...।”

“गैंगवार शुरू हो चुकी है।” जामास बोला –“तुम...।”

“ये कहकर अपने को धोखा मत दो। गाठम ने अभी तक जगवामा पर कोई वार नहीं किया। जो भी होता रहा, वो गाठम के नाम पर तुम करते रहे। हो सकता है गाठम इस मामले में पड़ना ही न चाहे।”

“जानते हो गाठम के तीन ठिकानों से कितनी लाशें मिली हैं। चवालीस। चवालीस लोग मारे गए हैं गाठम के और तुम कहते हो कि गाठम इस मामले में नहीं पड़ेगा। वो जगवामा को हिलाकर रख देगा।” जामास के दांत भिंच गए –“अपने आदमियों के सामने गाठम को ये साबित करना पड़ेगा कि वो उनका काबिल सरदार है और उनकी रक्षा कर सकता है।”

“तो गाठम जरूर आएगा?”

“हां और जगवामा के सामने मैदान में उतरेगा। बहुत जबर्दस्त गैंगवार शुरू होने वाली...।”

“अगर कुछ भी नहीं होता तो जगमोहन की क्या स्थिति होगी? क्या हमें जाने दिया जाएगा?”

जामास ने देवराज चौहान को घूरा और कड़वे स्वर में कह उठा।

“वहम में मत रहो कि कुछ नहीं होगा। मैं जगवामा को भी जानता हूं और गाठम को भी। दोनों में से कोई भी चुप नहीं बैठेगा। जगवामा तो हरकत में आ ही चुका है, गाठम को यहां पहुंचने दो, उसके बाद वो ही होगा, जो पुलिस चाहती...।”

जामास का फोन बज उठा।

“हैलो।” जामास ने फौरन बात की।

“देवराज चौहान से बात कराओ।” सोहन गुप्ता की आवाज कानों में पड़ी।

“तुम्हारा फोन।” जामास ने देवराज चौहान को फोन दिया।

देवराज चौहान ने बात की।

“कहो गुप्ता।”

“तुम और जगमोहन किस हाल में हो, मुझे भी तो पता चले।” सोहन गुप्ता ने कहा।

“मेरे सामने हालात स्पष्ट नहीं हैं।” देवराज चौहान ने जामास पर नजर मारी –“यहां कुछ समस्या है।”

“गाठम तुम्हें छोड़ नहीं रहा?”

“अभी नहीं।”

“क्यों?”

“मैं नहीं जानता। समझो कि अभी तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।” देवराज चौहान ने कहा।

“गाठम तुम दोनों को मारने का इरादा रखता है?”

“नहीं बता सकता।”

“कोई पास है तुम्हारे?”

“हां।”

“हमारा काम पूरा हो गया है, मेरे एजेंट वापस हिन्दुस्तान जाने शुरू हो गए हैं।”

“ये तो अच्छी बात है।”

“मार्शल ने कहा है कि तुम्हारे और जगमोहन के लिए चार-पांच लोग यहीं रुके रहें।”

“जैसा तुम ठीक समझो।”

“मुझे कैसे पता चलेगा कि तुम दोनों के साथ क्या हो रहा है।”

“मुझे मौका लगा तो फोन करके बताऊंगा।” इसके साथ ही देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।

☐☐☐

ये तीसरा दिन था कि शांति छाई हुई थी।

जगवामा बेचैन था कि गाठम अभी तक हरकत में क्यों नहीं आया?

इस वक्त उसके पास मुमरी माहू और सिटवी थे। दोपहर के तीन बज रहे थे।

“मुझे गाठम की तरफ से छाई चुप्पी अच्छी नहीं लग रही।” वोमाल जगवामा ने कहा।

“वो यहां पहुंचने वाला होगा।” मुमरी माहू बोला –“आज नहीं तो कल, आ ही जाएगा। तब वो कुछ करेगा।”

“हमारी तैयारियां पूरी हो गई हैं?” जगवामा ने पूछा।

“सब कुछ तैयार है।” सिटवी ने कहा।

“गाठम हमारे सामने टिक नहीं सकेगा।” जगवामा होंठ भींचकर कह उठा।

“मैं बेवू सर को लेकर चिंतित हूं।” मुमरी माहू ने कहा –“वो पूर्व के जंगलों में उस लड़की के पास नहीं गए और हमें ये पता नहीं चल रहा कि वो कहां हैं और इधर गाठम से झगड़ा शुरू हो गया है।”

“बेवू जहां भी है सुरक्षित है। वो किसी अच्छी जगह पर बैठा ऐश कर रहा होगा। ढाई साल उसे भागने नहीं दिया तो इस बात की पूरी कसर निकाल रहा होगा। कम-से-कम वो गाठम के पास नहीं है।” जगवामा कह उठा।

“लेकिन सर...।” मुमरी माहू की बात अधूरी रह गई।

सिटवी का फोन बज उठा।

“हैलो।” सिटवी ने बात की।

“कहां हैं आप?” सिटवी की पत्नी मुशी की आवाज कानों में पड़ी। स्वर शांत था।

“सर के पास।”

“घर आ सकते हैं?” मुशी ने सामान्य स्वर में कहा।

“क्या काम है?”

“आपको देखा नहीं कई दिन से –मैं...।”

“चार दिन पहले तो आया था जब रोही की तबीयत खराब...।”

“आज रोही कॉलेज गई है। वो पूरी तरह ठीक हो गई है।" मुशी की आवाज सिटवी के कानों में पड़ रही थी –“आपसे मिलने को बहुत दिल कर रहा है। थोड़ी देर के लिए ही आ जाइए।”

सिटवी मन-ही-मन सतर्क हो गया। चेहरा शांत रहा।

मुशी आज पहली बार इस तरह उसे बुलाने की कोशिश कर रही थी। जबकि मुशी जानती थी कि वो वोमाल जगवामा के पास हर समय बातचीत में व्यस्त रहता है। ऐसा मुशी ने पहले कभी नहीं किया था।

“मैं नहीं आ सकता मुशी। अभी मैं व्यस्त...।”

“सिटवी।” जगवामा बोला –“मुझे बता क्या बात है?”

“मुशी कुछ देर के लिए मुझे घर बुला रही है सर, पर काम कुछ नहीं है।” सिटवी ने कहा।

“कोई बात नहीं। तू घर चला जा। शाम तक लौट आना। मुमरी मेरे पास है। गाठम को लेकर हम सब अब व्यस्त होने वाले हैं, कई दिनों तक हम व्यस्त रहेंगे। जा एक चक्कर लगा ले घर का।” जगवामा हाथ हिलाकर कह उठा।

“जी सर।” सिटवी ने कहा।

☐☐☐

पुलिस चीफ जामास की आंखों में चमक लहरा उठी फोन पर बात करते ही।

“पक्की खबर?” जामास के होंठों से निकला।

“साहब जी, पूरी तरह पक्की खबर है। ग्यारह बजे गाठम इस शहर में आ पहुंचा है। अब तो शाम के चार बज रहे हैं। मुझे ही कुछ देर से खबर मिली गाठम के आने की।” उधर से कहा गया।

“अब मेरी बात सुन राजी। तूने गाठम की हर खबर मुझे देनी है।”

“जरूर दूंगा साहब जी।”

“अब गाठम कहां है?”

“खबर नहीं है। एक-दो घंटे में पता चल जाएगा, गाठम के बारे में हर बात का। आपको फोन करूंगा साहब जी। जल्दी में हूं, बंद करता हूं।” कहकर उधर से राजी ने फोन बंद कर दिया था।

सामने खड़ा होपिन कह उठा।

“गाठम आ गया?”

“हां। वो आ पहुंचा है।” जामास जहरीले स्वर में कह उठा –“अब गैंगवार का खतरनाक रूप सामने आएगा।” जामास ने देवराज चौहान को देखा –“जो जिंदा बचेगा, उसे ये देवराज चौहान खत्म करेगा।”

“मैं किसी की जान बिना वजह, खासतौर से किसी के कहने पर नहीं लेता।” देवराज चौहान कह उठा।

“वजह मैं पैदा कर दूंगा। तब तुम मेरे लिए नहीं अपने लिए बचने वाले को खत्म करोगे।” जामास मुस्कराया।

“मुझे तो शहर का सबसे बड़ा गुंडा ये ही लगता है।” जगमोहन बोला।

“गुंडा? हां, बनना पड़ता है। जो लोग खुद को कानून से बड़ा समझते हैं, उनके लिए पुलिस को गुंडा बनना पड़ता है। ऐसा न करें तो शहर में अमन-चैन कैसे होगा। जनता की रक्षा कैसे होगी।” जामास के चेहरे पर क्रोध नाच उठा –“हम खुश नहीं होते ऐसा करके। हमें अपनी जान का डर लगा रहता है कि जहां चूके, वहीं पर जान गई। ये वर्दी हम इसलिए पहनते हैं कि जनता को सुरक्षा दे सकें। हमने शपथ ली होती है, कानून की शान सलामत रखने की। जगवामा, गाठम जैसे लोग जब कानून के मालिक बनने लगते हैं तो पुलिस वालों को सब ठीक करने के लिए आगे आना पड़ता है। हमारे भी घर हैं, बच्चे हैं, परिवार है, ऐसा करने में हमें भी डर लगता है, लेकिन करना पड़ता है। पुलिस से बड़ा गुंडा कोई भी नहीं बन सकता। क्योंकि हमारे पास वर्दी की आड़ होती है। जगवामा और गाठम वक्त आने पर हमारे सामने इसलिए कमजोर पड़ जाते हैं कि उनके पास वर्दी नहीं है। इस वर्दी में बहुत ताकत है और इसकी इज्जत भी हमें बचानी होती है।”

“मुझे कब तक बांधे रखोगे?” जगमोहन बोला।

“जब तक मुझे जरूरत महसूस होगी तुम्हें बांधे रखने की।” जामास ने सिर झटककर कहा।

“मैं इस तरह बंधे-बंधे थक गया हूं।”

“मैं जानता हूं कि तुम्हें इस तरह तकलीफ हो रही होगी। पर थोड़ा वक्त और निकाल लो। मौत का खेल शुरू होने में ज्यादा वक्त नहीं रहा। जगवामा भी शेर है और गाठम भी। मेरे खयाल में खेल का फैसला कभी भी हो सकता है।”

☐☐☐

सिटवी ने उस छोटे-से बंगले के गेट के बाहर कार रोकी और हॉर्न बजाया। भीतर से नौकर दौड़ा-दौड़ा आया और गेट खोल दिया। सिटवी ने कार को भीतर पोर्च में ले जाकर रोका और उतरकर बंगले में प्रवेश कर गया। वो सोच रहा था कि अच्छा हुआ जो जगवामा के पास से आ गया। वरना वो वहां थकान महसूस करने लगा था। हर वक्त वोमाल के पास रहना और उससे बातें करते रहना। इन बातों से सिटवी का दिमाग थक-सा जाता था।

सिटवी बंगले के ड्राईंग रूम में पहुंचा और एकाएक ठिठक गया।

कोई अजनबी सोफे पर बैठा कॉफी के घूंट मार रहा था। उसने भी सिटवी को देखा। सामने ही सोफे पर उसकी पत्नी मुशी बैठी थी। जाने क्यों सिटवी को खतरे का एहसास हुआ।

मुशी तुरंत उठी और सिटवी के पास आ पहुंची। वो परेशान लग रही थी।

“मैंने फोन पर आपको महसूस नहीं होने दिया कि कोई बात है। ये आदमी नहीं चाहता था कि जगवामा को पता चले कि आपके साथ कोई गड़बड़ हुई है...।”

“कैसी गड़बड़?”

“रोही का गाठम ने अपहरण कर लिया है।” मुशी की आंखों में आंसू आ गए –“वो तब कॉलेज से घर आने को निकली थी। उस वक्त रोही से फोन पर मेरी बात भी हुई थी। कुछ देर बाद ये आदमी आया और इसने बताया कि रोही का गाठम ने अपहरण कर लिया है और आपको इस तरह बुलाऊं कि जगवामा को गड़बड़ का एहसास न हो सके।”

सिटवी सब समझ गया। चेहरे पर कठोरता आ गई। कड़ी निगाहों से उस आदमी को देखा। वो पचास की उम्र का, सांवले रंग का, लम्बे कद और छरहरे बदन वाला व्यक्ति था।

“रोही को बचा लीजिए। आपके कामों की छाया अब बच्चों पर भी पड़ने लगी है।” मुशी सुबकते हुए कह उठी।

सिटवी आगे बढ़ा। उस व्यक्ति के पास पहुंचा।

“तुम लोगों ने मेरी बेटी का अपहरण कर लिया।” सिटवी गुर्रा उठा।

उस व्यक्ति ने आराम से कॉफी का प्याला टेबल पर रखा और सिर उठाकर सिटवी को देखा।

“रोही सुरक्षित है।” वो शांत स्वर में बोला –“हम अपने शिकार का पूरा ध्यान रखते हैं।”

“मेरी बेटी कहां है?” सिटवी के दांत भिंचे थे।

“मिलना चाहते हो रोही से?”

“हां।”

“आओ मेरे साथ।” वो उठ खड़ा हुआ –“तुम्हें रोही के पास ले चलता हूं।”

सिटवी उसे घूरता रहा।

“बेटी से नहीं मिलना चाहते?” वो मुस्कराकर कह उठा।

“चलो।”

दोनों दरवाजे की तरफ बढ़े।

मुशी के सिसकने की आवाज सुनकर सिटवी पलटा।

मुशी की आंखों से आंसू बहकर गालों में आ चुके थे।

“रोही सही-सलामत घर आ जाएगी।” सिटवी बोला और आगे बढ़ गया।

बाहर पोर्च में खड़ी कार की तरफ सिटवी बढ़ने लगा तो उसने टोका।

“मेरे पास सवारी है सिटवी।”

सिटवी उसके साथ आगे बढ़ गया। चेहरे पर कठोरता दिखाई दे रही थी। दोनों बंगले से बाहर निकले तो उसी पल कुछ दूर खड़ी सफेद रंग की वैन, जो कि मिनी बस के साइज की थी, स्टार्ट हुई और उनके पास आकर रुकी। उस व्यक्ति ने दरवाजा खोला और सिटवी को देखा।

सिटवी भीतर प्रवेश कर गया।

वो व्यक्ति भी भीतर पहुंचा और दरवाजा बंद कर लिया।

वैन आगे बढ़ गई। वैन में सिर्फ ड्राइवर था। वैन बेहद आरामदेह थी। भीतर फ्रिज था। एक तरफ बेड लगा हुआ था। बैठने के लिए गद्देदार छोटा-सा सोफा था। एक दीवार पर टी.वी. लगा था। खिड़कियां बंद थीं और उन पर सफेद पर्दे लगे थे। ए.सी. की ठंडक वैन में फैलती जा रही थी।

उस आदमी ने फ्रिज में से दो बियर निकाली और एक सिटवी की तरफ बढ़ाई।

“पकड़ो।”

“जरूरत नहीं।” सिटवी ने तीखे स्वर में कहा।

उसने एक बियर वापस रखी और दूसरी थामे सोफे पर जा बैठा और घूंट भरा।

वैन मध्यम रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही थी।

“कौन हो तुम?”

“गाठम।”

सिटवी के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा वो गाठम को देखता रह गया।

“ग-गाठम?” उसके होंठों से निकला।

“वोमाल जगवामा के लोग भी कैसे हैं जो दुश्मनी तो ले लेते हैं, पर दुश्मन को पहचानते नहीं हैं।” गाठम कह उठा।

“तुम-तुम सच में गाठम हो?” सिटवी ने अपने को संभालने का प्रयत्न किया।

"सच में, मैं ही गाटम हूं।” गाठम ने सिर हिलाया –“तुम तो क्या मुझे जगवामा का कोई भी आदमी नहीं जानता। यहां तक कि मेरे आदमी भी, कम ही मुझे पहचानते हैं। मुझे किसी के सामने जाने की जरूरत नहीं पड़ती। मेरे नाम पर ही सारे काम हो जाते हैं। दुश्मनी लो तो कम-से-कम दुश्मन को पहचानो तो। तुम लोग तो जीरो हो।”

सिटवी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। सामने गाठम स्वयं है, इस बात से वो परेशान हो गया।

“मैं आज ही इस शहर में पहुंचा। जगवामा ने तो खूब गोलियां चलाईं। जम कर मेरे आदमियों की हत्या की।”

“तुम रोही के साथ क्या करना चाहते हो?”

“कुछ नहीं।” गाठम मुस्कराया –“अपहरण करना और फिरौती लेना मेरा धंधा है। बिजनेस है। रोही का भी मैंने अपहरण किया और अब तुझसे फिरौती लेकर उसे छोड़ दूंगा। ये ही सब कुछ करता हूं मैं।”

“तुमने मेरी बेटी का अपहरण सिर्फ फिरौती के लिए नहीं किया होगा।” सिटवी ने हिम्मत करके कहा।

“मुझ पर शक कर रहे हो।” गाठम हौले-से हंसा –“पर मैं सच कह रहा हूं।”

“क्या चाहते हो?”

“बता दूंगा, पहले अपनी बेटी को तो देख लो।”

“व-वो ठीक तो है न?”

“पूरी तरह।”

“य-ये झगड़ा तुमने शुरू किया।” सिटवी गम्भीर, व्याकुल स्वर में कह उठा।

“मैंने?”

“हां। अगर तुम बेवू का अपहरण नहीं करते तो...।”

“मैंने बेवू का अपहरण नहीं किया। ऐसा करके मैं जगवामा से दुश्मनी क्यों लूंगा। मेरा धंधा तो बढ़िया चल रहा है।” गाठम ने सरल स्वर में कहा –“मैंने वोमाल जगवामा के भेजे आदमियों को कह दिया था कि मैंने ये अपहरण नहीं किया।”

“जगवामा ने तुम्हारे पास आदमी भेजे थे?” सिटवी की आंखें सिकुड़ी।

“हां। चॉपर में दो आदमी पूर्व के जंगलों में, मेरे पास भेजे गए।”

“झूठ। ऐसा कभी हुआ ही नहीं। जगवामा ने दो आदमी क्या, किसी को भी तुम्हारे पास नहीं भेजा।”

“शायद तुम्हें पता न हो। जगवामा के आदमी मेरे पास आए थे।”

“तुम झूठ पर झूठ कह रहे हो। कहते हो कि बेवू का अपहरण तुमने नहीं किया। अब कहते हो कि जगवामा के दो आदमी तुमसे जंगल में आकर मिले...।”

“मुझसे नहीं। मेरे आदमियों से मिले। खबर मुझ तक पहुंची। मैंने अपने लोगों से कहा कि उन्हें कह दें कि बेवू का अपहरण हमने नहीं किया और उन्हें वापस जाने दें।” गाठम बेहद शांत था।

“तुम झूठ कह रहे हो।”

“मैं यहां समझौता करने नहीं आया जो झूठ बोलूंगा। गाठम को झूठ बोलने की जरूरत भी नहीं है।”

“बेवू का अपहरण चिकी ने किया था। तब...।” सिटवी ने कहना चाहा।

“जब बेवू का अपहरण हुआ, तब चिकी मेरे साथ, जंगल के ठिकाने पर बैठा, खाना खा रहा था।”

“म-मैं नहीं मान सकता।”

“मैंने कब कहा तुम मानो।”

“उस रात जगवामा साहब के हथियार लूटने वालों में भी चिकी था।” सिटवी ने तेज स्वर में कहा।

“चिकी, मेरे साथ ही आज यहां पहुंचा है तो वो तीन दिन पहले यहां कैसे हो सकता है।”

“तुम हर बात नकार रहे हो। जबकि सच बात ये है कि तुम्हारे हाथ बेवू नहीं लगा। जगवामा ने तुम्हें फिरौती देने से इंकार कर दिया तो तुम चिढ़ गए और हथियार लूटने पर आ गए तुम...।”

“जो बातें मैंने की ही नहीं, वो मुझे मत कहो।” गाठम ने बियर का घूंट भरा।

“तुमने बेवू का अपहरण नहीं किया?”

“कभी नहीं।”

“तो किसने किया?” सिटवी के स्वर में अविश्वास के भाव थे।

“मुझे इस बात की परवाह नहीं कि किसने बेवू का अपहरण किया।”

“कोई तुम्हारे नाम पर बेवू का अपहरण कर रहा है फिरौती मांग रहा है और तुम्हें परवाह नहीं?”

“मेरी सेहत पर इसका बुरा असर नहीं पड़ता। अब तो बिल्कुल नहीं पड़ेगा क्योंकि जगवामा ने मेरे खिलाफ लड़ाई छेड़ दी। मेरे ठिकाने बर्बाद कर दिए। मेरे आदमी मारे। अब तो मुझे अपना ध्यान जगवामा पर लगाना है। जगवामा अपनी ताकत के नशे में चूर हो चुका है। उसे अच्छा-बुरा नहीं दिखा। किसी ने मेरे नाम पर बेवू का अपहरण किया तो उसने मान लिया। ये बचकानी बात है। उसे मेरे से बात करनी चाहिए थी।”

“चिकी से बात तो हो रही थी। चिकी के फोन आ रहे थे फिरौती के लिए। वो बीस मिलियन डॉलर मांग रहा था।”

“वो चिकी नहीं था। सड़क छाप बदमाशों ने मेरे नाम पर बेवू का अपहरण किया और उनमें से एक चिकी बनकर फोन करने लगा। ये मामूली बात है। जगवामा सोचता तो समझ जाता कि ये गाठम का काम नहीं है। तुम तो जगवामा के खास सलाहकार हो। तुमने भी जगवामा को समझाने की कोशिश नहीं की?”

सिटवी, गाठम को घूरता रहा।

“तुम बहुत खतरनाक बातें कर रहे हो।”

“क्या?”

“यही कि तुम इस सारे मामले से अंजान हो।”

“वो तो हूं।”

सिटवी परेशान-सा सोचों में डूब गया।

वैन बिना रुके सड़क पर दौड़े जा रही थी।

“मुझे वक्त दो। मैं इस बारे में जगवामा से बात करूंगा।” सिटवी गम्भीर स्वर में बोला।

“मैंने पहले ही कहा है कि मैं यहां समझौता करने नहीं आया। समझौता तो तब होता जब मैंने कुछ किया होता। मैंने तो कुछ किया ही नहीं। मैं तो अपने ठिकाने पर आराम से बैठा था कि खबर मिली कि जगवामा ने मेरे इस शहर के तीन ठिकाने तबाह कर दिए। चालीस के करीब आदमी मार दिए। इतनी बड़ी बात सुनकर मैं चुप तो रह नहीं सकता था। मैंने भी तो अपने आदमियों का जवाब देना है कि जगवामा ने ऐसा किया तो मैंने क्या किया। आखिर वो मेरे आदमी हैं। मेरे भरोसे पर अपनी जिंदगी खतरे में डालते हैं। वो भी सोचते हैं कि मैं उन्हें सुरक्षा दूं।”

“तुम्हे सब्र के साथ काम लेना चाहिए गाठम।” सिटवी ने चिंता भरे स्वर में कहा।

“वो वक्त पीछे छूट चुका है।” गाठम मुस्कराया। ठंडी और मौत से भरी सर्द मुस्कान।

“अगर जगवामा कोई गलती कर बैठा है तो कम-से-कम तुम गलती मत करो।”

“मैं कोई गलती नहीं कर रहा। मैं जो कर रहा हूं सोच-समझकर कर रहा हूं।”

“अभी बात इतनी नहीं बिगड़ी।” सिटवी ने समझाने वाले स्वर में कहा –“परंतु आने वाले वक्त में बिगड़ सकती है। जगवामा ने तुमसे निबटने के लिए जबर्दस्त तैयारी कर ली है। तुम जगवामा से जीत नहीं सकते। यहां पर उसकी ताकत बहुत ज्यादा है और तुम्हारी कुछ भी नहीं। एक बार मुझे जगवामा से बात करने दो कि...।”

“गाठम की ताकत उसका दिमाग है। यूं ही नहीं, बर्मा (म्यांमार) में अपहरण का धंधा फैला रखा है। लोग गाठम का नाम जानते हैं, पर गाठम को चेहरे से कोई पहचानता नहीं।” गाठम ने सरल स्वर में कहा –“मेरा उसूल है कि खामोशी से अपना धंधा करो और मस्त रहो। मैं झगड़े में भरोसा नहीं रखता।”

“तुम यहां जगवामा से झगड़ा करने ही तो आए हो।”

“झगड़ा कई तरह का होता है।” गाठम मुस्करा पड़ा –“जगवामा पेड़ की टहनियों पर वार करता है, पत्ते झाड़ता है। इससे पेड़ को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मैं जड़ काटने में विश्वास रखता हूं।”

“क्या कहना चाहते हो तुम?”

“रोही तुम्हें बहुत चाहती है। जब से वो मेरे कब्जे में आई है पापा-पापा कहे जा रही है।”

सिटवी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर गाठम को देखा।

“बड़ी प्यारी बच्ची है। यकीन नहीं होता कि वो तुम्हारी बेटी है। उसकी मासूमियत मां पर गई होगी।”

“तुमने सिर्फ फिरौती के लिए रोही का अपहरण नहीं किया होगा। इन हालातों में तुम फिरौती नहीं सिर्फ जगवामा के बारे में ही सोचोगे। बताओ मुझे गाठम, तुम रोही के साथ क्या करने वाले हो?” सिटवी का स्वर सख्त था।

“तुम्हें मेरी बात पर यकीन क्यों नहीं होता कि रोही का अपहरण सिर्फ फिरौती का मामला है।” गाठम मुस्करा पड़ा।

“बस यकीन नहीं होता।”

“तुम तो...।”

“गाठम साहब।” तभी ड्राइवर की आवाज आई –“हम आ पहुंचे हैं।”

गाठम ने सिटवी को देखकर कहा।

“रोही के पास आ गए हैं। अब तुम अपनी बेटी को देख सकोगे।”

सिटवी एकाएक बेचैनी से भर उठा।

“घबराओ मत। गाठम कभी झूठ नहीं बोलता। तुम्हारी बेटी एकदम सही-सलामत है।”

सिटवी के होंठ भिंचे रहे।

एकाएक वैन रुक गई।

सिटवी उसी पल सीट से उठा और आगे बढ़कर। वैन का दरवाजा खोला।

“जल्दी मत करो।” गाठम कह उठा।

वैन का दरवाजा खोलते ही सिटवी थम-सा गया। ये जंगल जैसा इलाका था। सामने पेड़ और ऊंची-नीची जमीन के पास एक पुरानी-सी कार खड़ी थी जिसके रिम झलक रहे थे। स्पष्ट था कि वो कार बेकार हो चुकी, कबाड़ भर रह गई है। उस कार के पास उसकी बेटी रोही खड़ी थी। अकेली। चेहरे पर परेशानी के भाव दिख रहे थे। उसने जींस की पैंट और लाल रंग का टॉप पहन रखा था। वो इस वक्त वैन को ही देख रही थी।

“पापा।” एकाएक रोही उसे देखकर चिल्ला पड़ी –“मुझे बचा लो पापा।”

सिटवी ने जल्दी से वैन के नीचे छलांग लगा दी।

पीछे से गाठम का स्वर सुनाई दिया।

“रुक जाओ सिटवी। आगे बढ़े तो चिकी तुम्हें शूट कर देगा।”

परंतु सिटवी नहीं रुका। तेजी से अपनी बेटी की तरफ बढ़ा। सिटवी ने देख लिया था कि रोही के पैर में रस्सी बंधी है, जिसका दूसरा सिरा कार के रिम के साथ बंधा है। वो आगे नहीं आ सकती थी।

“रुक जाओ सिटवी।” पीछे से गाठम का स्वर कानों में पड़ा।

सिटवी नहीं रुका।

धांय-धांय..। उसी पल दो फायर हुए।

गोलियां सिटवी के जूतों के करीब जमीन में आ धंसी।

सिटवी थम गया। तुरंत उसकी निगाह हर तरफ घूमी।

कुछ दूरी पर एक पेड़ के तने से टेक लगाए एक व्यक्ति दिखा। उसने रिवॉल्वर थाम रखी थी। वो सूखा-पतला-सा था। तीस से चालीस की उम्र तक, कहीं का भी हो सकता था। खुली-सी कमीज पहने थी जो कि उसके शरीर पर झूलती-सी लग रही थी। नीचे नीली जींस पहनी थी। उसके बाल लम्बे थे और गर्दन के पास चुटिया बना रखी थी। उसके गालों पर गड्ढे पड़े थे और वो सिटवी को ही देख रहा था।

सिटवी के दांत भिंच गए। उसने रोही को देखा।

रोही डरी-सी, अपनी जगह पर आतंक भरे भावों से खड़ी, उसे ही देख रही थी।

तभी गाठम उसके पास आ पहुंचा।

“तुमने मेरी बात की परवाह नहीं की। मैंने तुम्हें रुकने के लिए कहा था।” गाठम बोला –“वो चिकी है। मैंने उसे कह रखा था कि इस लड़की के पास कोई भी जाने की कोशिश करे तो उसे शूट कर देना। पर उसने तुम्हें शूट नहीं किया। चिकी ने सोचा होगा कि इस लड़की की फिरौती तुमसे ही लेनी है तो तुम्हें क्यों मारा जाए। चिकी कभी-कभी तो बहुत समझदारी से काम लेता है।”

सिटवी ने सख्त निगाहों से गाठम को देखते हुए कहा।

“मैं रोही के पास जाना चाहता...।”

“तुमने देखा कि वो बिल्कुल ठीक है।” गाठम मुस्कराया –“तुम्हारी बेटी इसी तरह बंधी रहेगी। बेशक रात हो जाए, तब भी ऐसी ही रहेगी। वो बैठ सकती है। लेट सकती है। चिकी उसकी पहरेदारी पर है। उसके पास खाने को भी बहुत कुछ है। तुम्हारी बेटी को किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी। उस बेकार पड़ी कार में बारूद लगा दिया गया है। चिकी के बटन दबाते ही बारूद फट जाएगा। परंतु चिकी ऐसा तब करेगा, जब तुम चालाकी दिखाओगे। एक बात तुम्हें और बता दूं कि तुम्हारी बेटी के पहरे पर सिर्फ चिकी है। मैंने तो चिकी से कहा था कि अन्य आदमियों की सहायता ले ले, परंतु वो कहने लगा सिटवी की बेटी की देखभाल करने के लिए मैं अकेला काफी हूं। चिकी की मर्जी। मुझे तो अपना काम ठीक-ठाक चाहिए। तुमने देख ही लिया है कि चिकी तुम्हारी बेटी के पास किसी को फटकने नहीं देगा।”

सिटवी के दांत भिंच गए। उसने गाठम की आंखों में झांका।

“क्या चाहते हो?”

“फिरौती।”

“कितनी रकम?”

“वैन में बैठकर बात करते हैं। हम सिर्फ एक मिनट में सब कुछ तय कर लेंगे।” गाठम पलटकर वैन की तरफ बढ़ गया।

सिटवी पलटने लगा तो रोही ने तड़पकर पुकारा।

“पापा।”

सिटवी ने ठिठककर रोही को देखा। वो सिर से पांव तक क्रोध में भरा पड़ा था। अगले ही पल वो पलटा और तेज-तेज कदम उठाता, वो वैन के भीतर प्रवेश करके सोफे पर बैठता कह उठा।

“बोलो –कितनी रकम मांगते हो?”

गाठम ने ड्राइवर से कहा।

“मितकीना। वो देना।”

ड्राइवर ने फौरन डैशबोर्ड से आठ इंच लम्बी और सवा इंच चौड़ी गत्ते की डिब्बी निकालकर गाठम को दी, जिसकी मोटाई एक इंच थी। गाठम ने डिब्बी थामकर उसका ढक्कन उठाया तो भीतर सिरिंज पड़ी दिखाई दी। वो काले रंग के तरल पदार्थ से भरी हुई थी।

सिटवी ने सीरीज देखने के बाद, गाठम को देखा।

“तुम वोमाल जगवामा के खास हो। सलाहकार हो। हर वक्त उसके पास रहते हो। वो बीमार है। बेड पर लेटा रहता है ऐसे में

तुम आसानी से ये इंजेक्शन जगवामा को लगा सकते...।”

“क्या?” सिटवी चिहुंक उठा –“ये क्या कह रहे हो?”

“फिरौती है। अगर रोही को जिंदगी चाहते हो तो तुम्हें ये करना होगा।” गाठम ने शांत स्वर में कहा –“तुम्हारे पास सिर्फ आज रात का वक्त है। अगर तुमने काम नहीं किया तो सुबह तक रोही की हत्या कर देगा चिकी। कर दिया तो जगवामा की मौत की खबर मिलते ही रोही को घर पहुंचा दिया जाएगा।”

“म-मैं ये नहीं कर...।”

“तो जाओ और अपनी बेटी को भूल जाओ।” गाठम मुस्कराया।

सिटवी, गाठम को देखता रहा।

“मैं जानता हूं कि तुम ये काम करोगे। रोही को जिंदा पाना है तो ये काम तुम्हें करना ही है। तुम चाहो तो यहां से रोही को छुड़वाकर भी ले जा सकते हो। चिकी अकेला रोही की पहरेदारी पर है। इस कोशिश में रोही मर जाए तो ये तुम्हारी गलती होगी। अब समझे, गाठम अपने ही ढंग से खेल, खेलता है।”

“ये...ये क्या है, क्या है इंजेक्शन में?” सिटवी का स्वर कांप उठा।

“कोबरा का जहर। मेरे आदमी अक्सर जंगल में शौकिया तौर पर कोबरा को पकड़कर उसका जहर निकालकर इकट्ठा करते रहते हैं।” गाठम खुशी भरे स्वर में बोला –“कोबरा का जहर बहुत कमाल का है। एक बूंद ही बहुत होता है किसी की जान लेने के लिए। इस इंजेक्शन में इतना जहर है कि अस्सी लोगों की जान ले सके। लेकिन मैं वोमाल जगवामा को शानदार मौत देना चाहता हूं। जब तुम उसे इंजेक्शन लगाओगे। इस जहर की एक बूंद भी उसके खून के साथ शामिल होगी तो चंद सेकेंडों में, उसकी धड़कन रुक जाएगी। तुमसे कुछ भी कह नहीं सकेगा। पूछ नहीं सकेगा। जहां का तहां वहीं स्थिर हो जाएगा। समझ गए सिटवी।”

“य-ये काम मुझसे नहीं हो सकेगा।” सिटवी के शब्द कांप रहे थे।

“मितकीना।” गाठम अपनी जगह से उठा और वैन के खुले दरवाजे से तीन सीढ़ियां नीचे उतरता कह उठा –“इसे ऐसी जगह छोड़ दो जहां से ये टैक्सी ले सके।” बाहर निकलकर गाठम ने दरवाजा बंद कर दिया।

मितकीना ने वैन आगे बढ़ा दी।

सूखे होंठों पर जीभ फेरता सिटवी डिब्बी में पड़ी कोबरा के जहर से भरी, सिरिंज को देखे जा रहा था। उसके हाथ हौले-हौले कांप रहे थे। चेहरा सफेद पड़ चुका था।

☐☐☐

सिटवी आठ बजे जगवामा इस्टेट पहुंचा। वो अपने को संभालने की कोशिश में लगा हुआ था। काफी हद तक खुद को संभाल भी चुका था। परंतु वो व्याकुल था। दिल जोरों से धड़क रहा था। कभी-कभी टांगें भी कांप उठती कि क्या वो वोमाल जगवामा की जान ले पाएगा? रोही को बचाना है तो जगवामा को कोबरा के जहर का इंजेक्शन लगाना ही पड़ेगा। मुशी का हाल बुरा हो रहा था रोही के बिना। उसे फोन किया तो वो रो रही थी। उसे रोही सही-सलामत वापस चाहिए थी। सिटवी ने सोचा रोही के बिना जीवन...। ज्यादा नहीं सोच सका। वो जानता था कि रोही की मौत के बाद मुशी पागल हो जाएगी और उसे भी कुछ अच्छा नहीं लगेगा। बेटी की ऐसी मौत के बाद घर तबाह हो जाएगा। ये भी जानता था कि गाठम अपने इरादे का पक्का है।

उसने रात भर का वक्त दिया था वोमाल जगवामा की हत्या करने के लिए सुबह तक उसने जगवामा की जान नहीं ली थी तो वो यकीनन रोही की जान ले लेगा। उसने तो सोचा भी नहीं था कि गाठम इस तरह उस पर कब्जा कर लेगा। गाठम ने सीधे-सीधे उस पर हाथ डाला क्योंकि वो जगवामा के करीब रहता था और आसानी से उसकी जान ले सकता था। गाठम ने बहुत दूर की सोची थी। कोई झगड़ा नहीं, गालियां नहीं, लाशें नहीं और वोमाल जगवामा खत्म हो गया।

सिटवी बार-बार अपने में हिम्मत इकट्ठी कर रहा था कि कोबरा के जहर वाला इंजेक्शन जगवामा को लगा देगा, परंतु जगवामा का चेहरा आंखों के सामने नाचते ही, हिम्मत जवाब दे जाती। वोमाल जगवामा बर्मा की हस्ती थी। उसका दहशत था, खौफ था,सरकार भी उससे बचकर चलती थी। ऐसे इंसान की जान लेना आसान काम नहीं था, जबकि वो जगवामा का सलाहकार था, हर पल उसके पास रहता था। उसकी इज्जत करता था। उसने फिर अपने को समझाया कि ये काम करना जरूरी है, वरना उसका परिवार बिखर जाएगा। तब वो क्या करेगा? जगवामा के काम भी परेशानी की हालत में ठीक से नहीं कर पाएगा। किसी काम में उसका दिल नहीं लगेगा।

ये भी सोचा कि वोमाल जगवामा को सब कुछ बता दे।

लेकिन जगवामा उसकी बेटी को नहीं बचा सकता था। गाठम ने रात का वक्त दिया था। रोही उस कार के पास बंधी हालत में मौजूद थी। कार में विस्फोटक भरे थे। रिमोट चिकी के पास था। एक बटन दबाने की देर थी कि रोही के शरीर के परखच्चे उड़ जाने थे। ऐसे में जगवामा के भेजे आदमी क्या कर सकते थे। पर एक काम हो सकता था कि जगवामा के आदमी, खामोशी से वहां पहुंचकर चिकी को पकड़ लें कि वो रिमोट का बटन न दबा सके। पर क्या भरोसा कि वो चिकी पर कब्जा जमा सकते हैं या नहीं। चिकी के बारे में उसने सुन रखा था कि वो गाठम से भी ज्यादा खतरनाक है। सिटवी रोही को लेकर किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था। ले-देकर एक ही रास्ता बचा था कि वो जगवामा की जान ले ले। गाठम की बात मान ले। नहीं तो रोही नहीं बच सकती थी।

जगवामा की जान लेने के बारे में सोचकर सिटवी कांप-सा उठता था।

खुद को सामान्य रखने की कोशिश करता, सिटवी कमरे में प्रवेश कर गया।

मुमरी माहू अभी तक वहीं मौजूद था।

सिटवी बेड के पास पहुंचा।

“आओ सिटवी।” वोमाल जगवामा ने सिटवी को देखा। कुछ पल देखते रहने के बाद बोला –“थके-से लग रहे हो?”

“हां सर। मुशी के साथ शॉपिंग पर चला गया था। एक मिनट भी बैठने का वक्त नहीं मिला।” सिटवी ने मुस्कराने की कोशिश की।

“कुछ खाया भी नहीं?”

“नहीं सर। कॉफी तक नहीं पी।”

“अब आराम से खाना खाना और कॉफी भी पीना। एक बढ़िया खबर है। सुनी तूने?”

“क्या सर?”

“गाठम इस शहर में आ पहुंचा है।”

“क-कैसे पता चला सर?” सिटवी का दिल जोरों से धड़का।

“हमारे एक आदमी ने खबर दी। उसने भी ये बात कहीं से सुनी। गाठम को आना ही था। वो आ गया। लेकिन गाठम अब यहां से जिंदा वापस नहीं जा सकेगा हमारे आदमी उसकी खोज-खबर पाने के लिए दौड़े फिर रहे हैं।”

“गाठम जल्दी ही कुछ करेगा।” मुमरी माहू ने कहा।

“हमें गाठम की परवाह नहीं करनी चाहिए।" सिटवी संभले स्वर में बोला –“हमने इस तरह से तैयारियां कर रखी हैं कि एक ही झटके में गाठम खत्म हो जाएगा। मैगवी और पैथिन पर हमें भरोसा है। वो अपना काम पूरा करके रहते हैं।”

“ये मोर्चा मैगवी और पैथिन ने ही संभाला हुआ है। वो बेसब्र हो रहे हैं गाठम को मारने के लिए।” मुमरी माहू ने सिर हिलाकर कहा –“गाठम के चालीस के करीब आदमी मारे जा चुके हैं। वो इस तरह शहर में कमजोर है और जल्दी ही थक जाएगा। लेकिन मैगवी और पैथिन उसे पहले ही घेर लेंगे।”

“हमें अपनी ताकत पर पूरा भरोसा है।” सिटवी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“गाठम को खत्म करना बहुत जरूरी है।” जगवामा ने कहा –“ये हमारी इज्जत का सवाल है। उसने मेरे बेटे बेवू पर हाथ डाला है। इसका अंजाम तो उसे भुगतना होगा। उसने केली की जान ली है। हथियार लूटे हैं। जगवामा इस्टेट पर गोलियां चलाई है। उसने बहुत कुछ कर लिया। मेरे शहर में, मेरे मुंह पर तमाचा मारा है। मुझे उसकी मौत चाहिए।”

सिटवी का मन किया कि बता दे कि ये काम गाठम ने नहीं किए हैं। गाठम के नाम पर ये काम कोई और कर रहा है। परंतु अब हालात ऐसे नहीं थे कि मुंह खोला जाए। सिटवी को अपनी बेटी की चिंता थी। मुशी की चिंता थी। बार-बार उसे अपने परिवार की बर्बादी का ख्याल आ रहा था कि परिवार को बचाना है। परिवार नहीं रहा तो वो भी बेकार हो जाएगा। गाठम ने बेवू का अपहरण किया तो जगवामा कितना तड़प रहा है। ये भी पता है कि वो बेवू नहीं था तब भी उसने इस बात को अहम का मामला बना लिया और गाठम से झगड़ा लेने को तैयार हो गया। वो पिता होने का फर्ज पूरी तरह निभा रहा था तो उसे भी साबित करना चाहिए कि वो रोही को बचाने के लिए अपना फर्ज पूरा कर रहा है। बेशक वो जगवामा की जान लेने की तैयारी में है। उसकी मजबूरी है कि वो ऐसा करेगा।

इस विचार के साथ ही, सिटवी को अपनी गर्दन के पीछे पसीने की लकीर बहती महसूस हुई।

सिटवी जानता था कि उसके लिए ऐसा सोचना बहुत आसान है और करना कठिन है।

रोही को बचाना है तो उसे ऐसा करना ही होगा। जगवामा की जान लेनी ही होगी।

मुमरी माहू चला गया।

वक्त बीतने लगा। सिटवी और जगवामा के बीच कुछ बातें भी चलती रही। जगवामा का खाना आ गया। खाने के नाम पर जूस और खिचड़ी थी। जगवामा के बाद सिटवी ने खाना खाया। वो मन ही मन अपने को पक्का कर रहा था कि जगवामा को कोबरा के जहर वाला इंजेक्शन लगा देना है।

रोही का चेहरा आंखों के सामने आता रहा।

गाठम की याद भी बराबर आती रही।

खाना खाने के बाद सिटवी ने कॉफी के लिए लोएस को बोला। रात के दस बज रहे थे। सिटवी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वो बार-बार जगवामा को देखने लगता था। सिटवी ने कॉफी पी और सोफे पर लेट गया। जगवामा भी लेटा हुआ था। उसकी आंखें बंद थी। वक्त आगे सरकता जा रहा था। सिटवी की धड़कनें तेजी से बढ़ रही थीं। सिर्फ आज की रात ही रोही की जिंदगी थी अगर उसने जगवामा की जान नहीं ली तो। उसे ये काम करना ही होगा। सिटवी ने अपने हाथ कांपते से महसूस किए। मस्तिष्क में अंजाना-सा भय तैर रहा था। कभी-कभी उसे लगता कि वो जगवामा को इंजेक्शन नहीं लगा पाएगा। उसमें इतनी हिम्मत नहीं है। वक्त सरका और रात के 12.30 बज गए।

सिटवी बार-बार कलाई में बंधी घड़ी में वक्त देख रहा था।

रोही की जिंदगी का सवाल था।

उसके परिवार की सलामती आज उसके हाथ में थी।

एकाएक मुशी का आंसुओं भरा चेहरा उसकी आंखों के सामने आ गया।

सिर्फ साढ़े चार घंटे बाकी थे दिन निकलने में। गाठम ने रोही की जान ले लेनी थी। गाठम सख्त किस्म का इंसान था। वो अपने इरादे से पीछे हटने वाला नहीं।

वो रोही को बहुत चाहता था। बचपन में उसे बहुत खिलाया करता था। उसके साथ ही सोया करती थी। उसके सामने ही अपनी जिद करती थी। उसकी लाडली थी रोही।

जगवामा को मारना होगा।

ये काम उसे अभी कर देना चाहिए।

“सिटवी।” तभी उसके कानों में जगवामा की आवाज पड़ी।

सिटवी का शरीर जोरों से कांपा, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।

उसने फौरन करवट ली और सोफे से उठकर, जगवामा के बेड के पास जा पहुंचा।

“गला सूख रहा है। पानी देना।” जगवामा बोला।

सिटवी ने पानी का गिलास तैयार किया और लेटे पड़े जगवामा के खुले मुंह में थोड़ा-थोड़ा पानी डालने लगा। जगवामा सिटवी के चेहरे को देख रहा था। उसने इशारे से पानी को ‘बस’ कहा।

सिटवी ने गिलास वापस रखा।

जगवामा छोटे टॉवल से अपना चेहरा साफ करता कह उठा।

“कोई समस्या है सिटवी?”

“नहीं सर।” सिटवी ने शांत भाव से जगवामा को देखा –“मन उदास है आज।”

“नहीं होना चाहिए ऐसा।”

“ठीक हो जाएगा।” कहकर सिटवी सोफे की तरफ बढ़ गया।

वक्त आगे सरक रहा था ये बात सिटवी के दिमाग में बज रही थी।

हर पल रोही मौत की तरफ बढ़ती जा रही थी।

सिटवी ने सोफे पर करवट ली और लेटे ही लेटे जगवामा को देखने लगा। मन-ही-मन उसने पक्का इरादा कर लिया था कि वोमाल जगवामा को मार देगा। जगवामा बीमार है। बूढ़ा है। उसे अब जीने की जरूरत भी क्या है। रोही तो अभी बच्ची है। उसके सामने सारी जिंदगी पड़ी है। रोही को बचाना ही उसका फर्ज है। बेटी ने उस पर आशा लगा रखी होगी कि उसके पापा उसे बचा लेंगे। उसे हर हाल में बचाना ही है।

सिटवी ने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा।

रात के 2.40 बज गए थे।

जगवामा की आंखें बंद थीं और वो शांत-सा लेटा हुआ था। उस पर निगाह टिकाए सिटवी का हाथ पैंट की उस जेब की तरफ बढ़ा, जिसमें गाठम का दिया वो इंजेक्शन पड़ा था।

सिटवी अपनी बांह में कम्पन महसूस कर रहा था। उसके दिल की धड़कनें एकाएक तेज हो गई थीं। उसका इरादा उसकी आंखों में आ ठहरा था।

हाथ जेब में पड़ी डिब्बी पर जा टिका।

सिटवी को अपने माथे पर पसीना महसूस हुआ। जगवामा पर निगाह टिकाए उसने जेब से वो डिब्बी निकाली और तुरंत करवट ले ली कि जगवामा इधर देखे तो डिब्बी को न देख सके। अब जगवामा के बेड की तरफ उसकी पीठ थी। जगवामा देखता तो उसे सिटवी सोया हुआ ही लगता। परंतु सिटवी कांपती उंगलियों से अपना काम कर रहा था। उसने डिब्बी सोफे पर रखी और उसका ढक्कन उठा दिया था। भीतर पड़ा इंजेक्शन चमक उठा। उसके भीतर पड़े काले रंग के तरल पदार्थ को देखकर क्षण भर के लिए सिटवी का दिल कांपा, लेकिन उसी पल खुद को मजबूत बना लिया।

सिटवी का दूसरा हाथ तकिए पर सिर के नीचे पड़ा था। सिटवी ने डिब्बी में से सिरिंज उठा ली।

एकाएक सिटवी उठ बैठा। जगवामा को देखा।

सिरिंज हथेली के पीछे छिपा ली।

जगवामा आंखें बंद किए, शांत-सा सोया दिख रहा था।

सिटवी खड़ा हुआ और जगवामा के बेड की तरफ बढ़ा। अब उसे अपने पर हैरानी हो रही थी कि वो घबरा नहीं रहा। उसकी टांगें नहीं कांप रही। हाथों में कम्पन नहीं था। चेहरे पर सामान्य भाव थे और मस्तिष्क में किसी भी तरह का डर नहीं था। ऐसा इसलिए था कि दो फैसला ले चुका था कि अब उसे क्या करना है। उसे पता था कि किस काम मे उसे मंजिल मिलनी है। उसका पड़ाव कहां पर है। और वो जो कर रहा है सही कर रहा है।

सिटवी बेड के करीब पहुंचकर ठिठक गया।

जगवामा के चेहरे को एकटक देखने लगा। उसकी आंखें बंद थी।

“सर।” सिटवी का स्वर बेहद सामान्य था।

उसी पल जगवामा ने आंखें खोल दी। सिटवी के चेहरे को देखा।

“आपसे बात करने का मन कर रहा था। बहुत उदास महसूस कर रहा हूं।” सिटवी कह उठा।

“तुम जब से मुशी से मिलकर आए हो, तब से परेशान हो सिटवी। मुझे बताओ क्या बात है?” जगवामा बोला।

“कुछ नहीं सर।”

“मुशी से झगड़ा हुआ?”

“मुशी मेरे से कभी नहीं झगड़ती। वो बहुत अच्छी है।” सिटवी के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था –“मैं आपसे ये पूछना चाहता हूं कि मेरी सेवा में कभी कोई कमी तो नहीं रही सर?”

“ये तुम कैसी बातें कर...।”

“बताइए सर?”

“मैं तुमसे हमेशा खुश रहा हूं सिटवी।” जगवामा ने कहा।

“ये कहकर आपने मुझे हल्का कर दिया सर। मैंने हमेशा आपकी सेवा दिल से की है। आपका हर हुक्म तुरंत पूरा किया है और आपने भी मेरा और मेरे परिवार का बहुत खयाल रखा है।” सिटवी ने सिर हिलाकर कहा –“फिर भी मेरी सेवा इतनी नहीं रही, जितने कि आपके एहसान हैं मुझ पर।”

वोमाल जगवामा, सिटवी को देखता रहा।

सिटवी खामोश खड़ा, जगवामा को देख रहा था।

एकाएक जगवामा के माथे पर बल दिखने लगे।

“क्या बात है सिटवी। तुम कुछ छिपा रहे हो।” जगवामा का स्वर कुछ तेज हुआ।

“गाठम ने रोही का अपहरण कर लिया है।” सिटवी कह उठा। वो बेहद शांत था।

“क्या?” जगवामा चिहुंक पड़ा –“गाठम ने रोही का अपहरण कर लिया और ये बात तुम मुझे अब बता रहे हो।”

“जब मैं घर पहुंचा तो गाठम मेरे घर पर था। वो मुझसे मिला।”

“त-तुम गाठम से मिले?” जगवामा के चेहरे पर हैरानी आ गई –“मुझे बताया तक नहीं...।”

“बता तो रहा हूं सर।” सिटवी का शांत स्वर गम्भीर था –“वो रोही की फिरौती मांगता है नहीं तो रात में, आज उसे मार देगा।”

“रोही की फिरौती मांगता है। हरामजादा, बहुत बुरी मौत मरेगा।” जगवामा गुर्रा उठा –“मैं दूंगा, बता मुझे कितनी रकम मांगता है। वो तो बहुत बड़ा कुत्ता निकला। इतना तो मैंने भी नहीं सोचा था।”

सिटवी, जगवामा को टकटकी बांधे देखने लगा।

“क्या मांगता है –बता –कितना पैसा...।”

“गाठम को फिरौती देने को दिल तो नहीं करता।” सिटवी ने कहा –“पर रोही को बचाना है, मेरी मजबूरी है कि उसे फिरौती दूं। वो जो चाहता है उसकी बात मानूं सर। आपसे ज्यादा मुझे रोही की जिंदगी प्यारी है।”

“क्या?” जगवामा की आंखें एकदम फैल गईं। उसने तुरंत तकिए से रिवॉल्वर निकालना चाहा।

तभी सिटवी का हाथ ऊपर उठा और इंजेक्शन चमका हाथ नीचे आया तेजी से। अगले ही पल इंजेक्शन की सिरिंज जगवामा के पेट में जा धंसी तो दांत भींचे सिटवी ने इंजेक्शन दबा दिया। कोबरा का काला जहर सिटवी के देखते-ही-देखते सिरिंज से निकलकर, जगवामा के पेट में चला गया।

जगवामा के हाथ में रिवॉल्वर आ चुकी थी। उसी पल सिटवी ने झपट्टा मारा और कलाई को दबा दिया। रिवॉल्वर जगवामा के हाथ से नीचे जा गिरी।

“ये तूने क्या किया सिटवी?” जगवामा गुर्रा उठा –“पेट में आग लग रही है।”

“सॉरी सर। करना पड़ा। मैं माफी चाहता हूं। गाठम ऐसा ही चाहता...।”

सिटवी कहते-कहते चुप हो गया।