रीगल पर पुनर्मिलन
अगर आप भूत देखना चाहते हैं तो बस नयी दिल्ली के रीगल सिनेमा पर बीस मिनट के लगभग खड़े हो जाइये। भव्य पुराने सिनेमा हॉल का बाहरी हिस्सा उनके लिए एक महत्त्वपूर्ण जगह है। देर से या जल्दी, आप भीड़ में एक जाना-पहचाना चेहरा देखेंगे। इससे पहले कि आप याद कर पायें कि यह कौन था या कौन हो सकता है, वह गायब हो जायेगा और आप खड़े सोचते रह जायेंगे कि वह वास्तव में वही कोई था या नहीं… क्योंकि वह कोई तो कुछ साल पहले ही मर चुका था।
रीगल 1940 के पूर्वार्ध में बहुत ही पॉश इलाका हुआ करता था। तब मैंने अपने पिता के साथ वहाँ अपनी पहली फ़िल्म देखी थी। कनॉट प्लेस के सिनेमाघर तब अपने नयेपन की वजह से जाने जाते थे और हॉलीवुड और ब्रिटेन की नयी-नयी फिल्मों का प्रदर्शन किया करते थे। हिन्दी फ़िल्म देखने के लिए आपको कश्मीरी गेट या चाँदनी चौक तक जाना होता था।
बाद के सालों में मैं कई बार रीगल के अन्दर और बाहर गया और इसलिए मैं पुराने परिचितों से मिलने या जाने-पहचाने चेहरों की झलक अन्दर हॉल या बाहर सीढ़ियों के पास देखने का अभ्यस्त हो चला था।
एक बार गलती से मैं खुद भूत मान लिया गया।
मैं उन दिनों तीस साल का था। हॉल की सीढ़ियों के बाहर किसी का इन्तज़ार कर रहा था, जब एक भारतीय मेरे पास आया और जर्मन में कुछ कहा या मुझे वह भाषा जर्मन जैसी लगी।
“मुझे माफ़ कीजिये,” मैंने कहा, “मुझे समझ नहीं आया। आप मुझसे अंग्रेज़ी या हिन्दी में बात करें।”
“क्या आप हैन्स हो? हम पिछले साल फ्रैंकफर्ट में मिले थे।”
“मुझे माफ़ करें। मैं कभी फ्रैंकफर्ट नहीं गया।”
“आप बिलकुल हैन्स जैसे दिखते हैं।”
“शायद मैं उसका जुड़वाँ हूँ। या शायद मैं उसका भूत हूँ!”
मेरा मज़ाक सुनकर वह बिलकुल भी नहीं हँसा। वह थोड़ा परेशान दिखा और पीछे हट गया, उसके चेहरे पर भय की छाया दौड़ गयी। “नहीं, नहीं,” वह हकलाया। “हैन्स ज़िन्दा है, तुम उसके भूत नहीं हो सकते!”
“मैं बस मज़ाक कर रहा था।”
लेकिन वह घूमा, और जाकर तेज़ी से भीड़ में मिल गया। वह उत्तेजित दिख रहा था। मैंने दार्शनिक भाव से अपने कन्धे उचकाए। “तो मेरा एक जुड़वाँ है हैन्स नाम का,” मैंने विचार किया, “शायद मैं किसी दिन उससे टकराऊँगा।”
मैंने इस घटना का ज़िक्र सिर्फ़ यह दिखाने के लिए किया है कि हममें से अधिकतर के मिलते-जुलते चेहरे वाले लोग हैं, और कई बार हम वही देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं या खोज रहे होते हैं, जबकि करीब से देखने पर, समानता उतनी चौंकाने वाली नहीं होती है।
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लेकिन जब किशन मुझे मिला तो मुझे उसे पहचानने में कोई गलती नहीं हुई। मैंने उसे पाँच या छह सालों से नहीं देखा था, लेकिन वह लगभग पहले जैसा ही दिख रहा था। घनी भवें जिन्हें पूर्ण करतीं सौम्य आँखें, दृढ़ ठोड़ी जिसे पूर्ण करती मोहक मुस्कान। लड़कियाँ उसे हमेशा पसन्द करती थीं, और वह यह जानता था—और उन्हें अपने पीछे आता देखकर वह बहुत सन्तुष्ट होता था।
हमने एक फ़िल्म देखी—मुझे लगता है वह शायद—‘दी विंड कैन नॉट रीड’ थी—और फिर हम पुराने स्टैंडर्ड रेस्तराँ तक टहलते आये थे, डिनर का ऑर्डर दिया और पुराने दिनों को याद करते रहे थे जबकि रेस्तराँ का छोटा-सा बैंड 1950 के भावुक गाने बजा रहा था।
हाँ, हमने पुराने दिनों के बारे में बात की—जब हम शिमला में बड़े हो रहे थे, जहाँ हम एक-दूसरे के पड़ोस में रहा करते थे, पड़ोसी के लीची के बागान का संधान करते, शहर में साइकिल लेकर घूमते थे जब स्कूटर ईज़ाद नहीं हुआ था, मैदान में फुटबॉल खेलते या फिर कम्पाउंड की दीवार पर बिना किसी काम के बैठे रहते। मैंने तब स्कूल खत्म किया ही था और मेरे आगे पूरा एक साल पड़ा हुआ था, जब तक विदेश जाने का समय नहीं हो जाता। किशन के पिता, तब सिविल इंजीनियर, स्थानान्तरण आदेश के अधीन थे इसलिए किशन को भी तत्काल स्कूल नहीं जाना था।
वह एक आरामपसन्द लड़का था, मेरे पीछे लगे रहने से खासा सन्तुष्ट। मेरी साहित्यिक अभिरुचि थी, उसके पास कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं था। हालाँकि बड़े होने पर उसके वृहत अध्ययन और विद्वता से मैं काफ़ी चकित हुआ।
एक दिन जब हम रायपुर नहर के किनारे साइकिल चला रहे थे, वह रास्ते से फिसलकर अपनी साइकिल सहित नहर में गिर गया। पानी बस कमर तक था, लेकिन उसका प्रवाह बहुत तेज़ था और मुझे उसकी मदद के लिए पानी में कूदना पड़ा। कोई बहुत बड़ा खतरा नहीं था लेकिन हमें साइकिल को नहर से निकालने में थोड़ी मुश्किल हुई।
बाद में उसने तैरना सीख लिया।
लेकिन वह तब जब मैं वहाँ से जा चुका था…
मेरी माँ इस बात के लिए आश्वस्त थीं कि मेरे लिए इंग्लैंड में बेहतर सम्भावनाएँ हैं और उन्होंने मुझे न्यू जर्सी में रहने वाले अपने रिश्तेदार के पास भेज दिया, और उसके पूरे चार साल बाद ही मैं उस धरती पर वापस लौट पाया, जिसकी वास्तव में मुझे बहुत परवाह थी। उस समय तक शिमला के बहुत से मेरे दोस्त शहर छोड़ चुके थे; यह वह जगह नहीं थी जहाँ स्कूल खत्म होने के बाद आप बहुत कुछ कर सकते हैं। किशन मुझे कलकत्ता से चिट्ठियाँ लिखता, जहाँ वह इंजीनियरिंग कॉलेज में था। फिर वह विदेश पढ़ने चला गया। मुझे समय-समय पर उसका हाल मिलता रहता। वह खुश था। वह शान्त स्वभाव का था और अक्सर लोगों से उसकी अच्छी बनती थी। उसकी एक प्रेमिका भी थी, यह उसने मुझे बताया था।
‘लेकिन,’ उसने लिखा था, ‘तुम मेरे सबसे पुराने और सबसे अच्छे दोस्त हो। मैं जहाँ भी जाऊँगा, हमेशा तुमसे मिलने वापस आऊँगा।’
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और उसने बिलकुल वही किया भी। मैं जब दिल्ली में था तब हम कई बार मिले और एक बार साथ दोबारा शिमला भी गये और रायपुर रोड पर चहलकदमी की और क्लॉक टॉवर के पीछे टिक्कियाँ और गोलगप्पे भी खाये। लेकिन पुराने परिचित चेहरे गुम थे। रास्तों पर बहुत अधिक निर्माण हो गया था और अत्यधिक भीड़ थी। लीची बागान तेज़ी से गायब हो रहा था। जब हम दिल्ली लौटे, किशन ने मुम्बई के नौकरी प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। हम अनियमित तौर पर जुड़े तो रहे लेकिन हमारे रास्ते और जीवन ने बिलकुल अलग दिशा ले ली। वह एक इंजीनियरिंग फर्म से जुड़कर अपना भविष्य बनाने में लगा हुआ था, मैं पहाड़ों पर वापस लौट गया बिलकुल एक अलग तरह के लक्ष्य के साथ—लिखने के लिए और दस से पाँच के मेज़ से बँधे हुए कार्य से मुक्त रहने के लिए।
समय बीतता गया और मुझे किशन की कोई भी खबर मिलनी बन्द हो गयी।
कुछ साल बाद, मैं दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनैशनल सेंटर की लॉबी में खड़ा था तो तीस पार की एक आकर्षक जवान स्त्री मेरे पास आयी और बोली, “हॅलो रस्टी, मुझे पहचाना नहीं? मैं मंजू हूँ। मैं तुम्हारे, किशन और रणवीर के घर के पास रहती थी जब हम बच्चे थे।”
मैंने तब उसे पहचान लिया क्योंकि वह हमेशा से एक सुन्दर लड़की रही थी, शिमला मॉल रोड की ‘सुन्दरी‘।
हम बैठे और हमने पुराने और नये दिनों के बारे में बातें कीं और मैंने उसे बताया कि मुझे बहुत सालों से किशन की कोई खबर ही नहीं।
“क्या तुम नहीं जानते?” उसने कहा, “वह लगभग दो साल पहले नहीं रहा।”
“क्या हुआ?” मैं हताश हो गया, क्रोधित भी कि मुझे इस बारे में कुछ नहीं मालूम। “वह अभी अड़तीस साल से ज़्यादा का नहीं रहा होगा?”
“यह गोवा के समुद्र तट पर हुई एक दुर्घटना थी। एक बच्चा मुश्किल में पड़ गया और किशन उसे बचाने के लिए पानी में गया। उसने उस नन्ही लड़की को तो बचा लिया लेकिन जब वह तैर कर किनारे पर वापस आ रहा था, उसे दिल का दौरा पड़ा। उसकी मौत वहीं तट पर ही हो गयी। ऐसा लगता है कि उसका दिल हमेशा से ही कमज़ोर था। यह परिश्रम उसके लिए बहुत भारी पड़ा।”
मैं शान्त रहा। मैं जानता था वह बहुत अच्छा तैराक बन चुका था, लेकिन मैं उसके दिल के बारे में कुछ नहीं जानता था।
“क्या वह शादीशुदा था?” मैंने पूछा।
“नहीं, वह हमेशा से एक योग्य कुँवारा लड़का था।”
मंजू से दोबारा मिलना अच्छा लगा, हालाँकि उसने मुझे एक बुरी खबर दी। उसने मुझे बताया कि वह अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी से काफ़ी खुश है और उसका एक छोटा बेटा है। हमने एक-दूसरे से वादा किया कि हम सम्पर्क में रहेंगे।
मैंने कनॉट प्लेस के लिए टैक्सी ली और रीगल पर उतरने का निश्चय किया। मैं वहाँ थोड़ी देर अनिश्चय में खड़ा रहा कि क्या करूँ, कहाँ जाऊँ। शो शुरू होने का समय लगभग हो चुका था और आस-पास बहुत सारे लोगों की भीड़ जमा हो गयी थी।
मुझे लगा किसी ने मेरा नाम पुकारा। मैंने अपने आस-पास देखा और भीड़ में किशन था।
लेकिन तभी एक लम्बी-चौड़ी महिला ऑटो रिक्शा पर चढ़ती मेरे सामने आ गयी और जब तक मैं दोबारा ठीक से देख पाता, मेरा पुराना दोस्त गायब हो चुका था।
क्या मैंने उससे मिलते-जुलते चेहरे के किसी व्यक्ति को देखा या उसके जुड़वाँ को! या उसने अपना वादा निभाया मुझसे दोबारा आकर एक बार फिर मिलने का?
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