अमन ओबराय या हम कह सकते हैं कि हरीश खुदे भी, दोनों ही ढाबे नुमा होटल से बाहर निकलकर खुली हवा में आये। अब अंधेरा छाना शुरू हो गया था।
“खाना बहुत बढ़िया था।" अमन ओबराय बोला।
"मानता है ना?" हरीश खुदे मुस्कराया।
“सही में, दाल तो बहुत ही मजेदार थी। परांठे भी शानदार थे।"
"तेरे फाईव स्टार में ऐसा खाना मिलता है?"
"नहीं, बिल्कुल भी नहीं। वहां उबली दाल में मक्खन डालकर सामने रख देते हैं, परन्तु ढाबे की दाल बहुत ही बढ़िया ढंग से फ्राई कर रखी थी। यहां पर मैं फिर आकर खाना खाऊंगा।" अमन ओबराय ने कहा ।
“तू करोड़पति बिजनेसमैन अमन ओबराय है।" खुदे व्यंग से बोला--- "किसी ने तेरे को यहां खाना खाते देख लिया तो?"
"परवाह नहीं। मैं यहां फिर खाना खाने आऊंगा।"
"चिन्ता मत कर। तुझे बहुत ऐश कराऊंगा।"
"वो कैसे?"
“मेरे को ऐसे बहुत से ठिकाने पता हैं जहां बढ़िया-बढ़िया खाने को मिलता है। मुझे तो लगता है कि जैसे तूने बढ़िया खाना आज पहली बार खाया हो। अमीरों के खाने में स्वाद नहीं होता। खाने के मामले में ये साले बीमार होते हैं।"
"ऐसा मत कह। हमारा खाना अभी तूने देखा नहीं है।"
“इतना तो समझ ही चुका हूं कि तू कैसा खाना खाता रहा है।"
"मैं तेरे बोलने की परवाह नहीं करता।"
"फाईव स्टार में दाल रोटी खाता तो तेरा कितना पैसा लगता?"
"दो हजार तो लग जाता।"
“और यहां सिर्फ सत्तर रुपये में काम हो गया। कितना सस्ते में। फाईव स्टार में तुम खाना थोड़े ना खाते हो। वहां ए.सी. की ठण्डी हवा खाते हो। बढ़िया फर्नीचर पर बैठते हो। तीन बंदे सेवा में रहते हैं और खाना देते हैं बेकार फिर बिल थमा देते हैं।"
“तूने कभी फाईव स्टार में खाना खाया है?"
"मेरा फाईव स्टार वो ही है, जहां हमने अभी खाना खाया है।"
"तेरे को फाईव स्टार में खाना खिलाऊंगा। एक बार चल के देखना कि कितना मजा आता है।"
"यहां मजा नहीं आया?"
"बहुत आया।"
"तो अब यहीं खाना शुरू कर दे। तेरे को, मैं अपनी दुनिया दिखाऊंगा।"
“अब तू मुझे पैदल कहां घुमा रहा है?"
"टैक्सी ढूंढ रहा हूं।"
"टुन्नी के पास जाने के लिए?"
"हाँ। टुन्नी बहुत बढ़िया खाना बनाती है। तेरे को उसके हाथ का खाना भी खिलाऊंगा।”
“अब तो पेट फुल है।"
“कल, परसों खा लेना। जल्दी क्या है।"
"तेरा, टुन्नी के पास जाना मुझे बहुत अजीब सा लग रहा है।" अमन ओबराय बोला ।
"क्यों? वो मेरी पत्नी है। उसके पास तो मैं कभी भी जा सकता---।"
"वो बात नहीं।"
"तो?"
"मुझे समझ में नहीं आता कि तू किस हैसियत से उसके पास जा रहा है।"
"हैसियत? पति की हैसियत से जा रहा हूं। दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा।"
"लेकिन तेरा शरीर तो जल चुका है। इस वक्त तू मेरे शरीर में है।"
"उससे क्या फर्क पड़ता है।"
"टुन्नी तुझे पहचानेगी कैसे हरीश खुदे साहब, वो तो---।"
“पहचान लेगी।" खुदे ने विश्वास भरे स्वर में कहा--- "दो मिनट में मैं अपनी पहचान करा दूंगा। वो मेरी पत्नी है। सात-आठ साल से हम इकट्ठे रह रहे हैं। वो फौरन मुझे पहचान लेगी।"
"तू गलतफहमी में जी रहा है। जब से तेरा शरीर हाथ से निकला है, तब से तेरा दिमाग भी हिल गया है।"
"क्या मतलब?"
"तू टुन्नी के पास चल। मैं भी देखता हूं कि वहां क्या होता है।"
"तूने शादी नहीं की। तू नहीं जानता कि पति-पत्नी का रिश्ता क्या होता है।"
"शादी नहीं की तो क्या हो गया, बारातें बहुत देखी हैं।"
“दूसरी थाली में मुंह मारने से, थाली अपनी नहीं हो जाती। अपनी थाली, अपनी ही होती है। रानी के साथ तू कितना भी आगे पहुंच गया हो, परन्तु तुम लोगों की बातों में पति-पत्नी वाला भाव नहीं आ सकता।"
"पति-पत्नी बन जाने से क्या होता है?" अमन ओबराय मुस्कराया।
"दोनों पहले एक दूसरे का सिर फाड़ते हैं फिर एक साथ बैड पर चले जाते हैं। तू रानी का या रानी तेरा सिर नहीं फाड़ सकती ये हक तुम दोनों में से किसी के पास भी नहीं है। तूने शादी नहीं की, इसलिए ये बात नहीं समझ सकेगा।"
"ये तो नया रिश्ता ही सुना है मैंने कि पति-पत्नी एक-दूसरे का सिर फाड़ते हैं।"
“बोला तो, जब शादी करेगा, तब तुझे ये बात समझ में आयेगी।"
अमन ओबराय ने कुछ नहीं कहा।
सड़क पर तेजी से ट्रेफिक निकल रहा था। उन्हें खाली टैक्सी की तलाश थी।
“देवराज चौहान से मुलाकात कराऊंगा तेरी ।" हरीश खुदे बोला।
"देवराज चौहान ? ये कौन है ?"
"हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा डकैती मास्टर है। नाम तो सुना ही होगा।"
"पता नहीं। ध्यान नहीं।"
“कल तेरे को देवराज चौहान से मिलाऊंगा। मैं उसका ठिकाना जानता हूं। पुलिस को पता चल जाये तो वो फौरन उसे पकड़ लेगी।"
"तेरे दिमाग से मैंने भी जान लिया है कि देवराज चौहान का ठिकाना कहां है?"
“हम दोनों एक ही तो हैं।"
"तूने देवराज चौहान के साथ मिलकर ही डकैती की थी ना?"
"हां--।"
"बुरे काम करने से तुम्हें डर नहीं लगता।"
"तू कौन-से अच्छे काम करता है।" खुदे भड़क उठा--- "अपनी भाभी के साथ-।"
"बार-बार इस बात के ताने मत दे मुझे। मैंने तुझे बताया कि मैं ऐसा ना करता तो वो दूसरे लोगों से---।"
"तुझे क्या, वो क्या करती। बेईमानी तेरे मन में है और कहता उसे है।"
“तू नहीं समझ सकेगा।" ओबराय ने गहरी सांस ली--- “मैंने नहीं, उसने मुझे फंसाया था। वो मेरे पास आई थी।"
“और तूने उसे लपक लिया। तब तो---।”
तभी खाली टैक्सी उन्हें मिल गई।
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टुन्नी घर पर थी। अकेली थी। शाम के साढ़े आठ बज रहे थे। कमरे में टी.वी. चल रहा था। जिस पर नाना पाटेकर की फिल्म ‘शार्गिद’ चल रही थी। परन्तु टुन्नी फिल्म नहीं देख रही थी। अकेलेपन को दूर करने के लिए टी.वी. लगा रखा था। सतीश बारू का लाया खाने का सामान अभी भी चल रहा था। उस दिन के बाद से सतीश बारू नहीं आया था। कई दिन हो गये थे उसे यहां आये। अब तो उसे लग रहा था कि बारू आयेगा ही नहीं। उस दिन सहानुभूति के नाते चार बातें यूं ही कर गया था। घंटे भर से टुन्नी मटर पनीर की सब्जी बनाने और रोटी तैयार करने में लगी थी। खाना बनने के बाद उसने मूली, खीरा और टमाटर का सलाद काटा। फ्रिज से ठण्डा पानी निकाल कर रखा। आज कई दिनों के बाद ढंग से खाना खाने जा रही थी। मोहल्ले वाले भी अब अफसोस की हाजिरी लगाने, आना बंद हो चुके थे। अब वो खुद को अकेला महसूस कर रही थी। हरीश खुदे की याद यदा-कदा सोचों में आ जाती, परन्तु वो तब सोचती कि जो बीत गया, बीत गया। खुदे मर चुका है। वो अकेली रह गई है। अब उसे अपनी आगे की जिन्दगी संवारनी है अभी सिर्फ छब्बीस साल की ही तो थी वो। जवान थी, खूबसूरत थी। कोई न कोई तो मिल ही जायेगा उसका हाथ थामने वाला। अपनी जिन्दगी को फिर से ठीक कर लेगी। और नहीं, तो उसे एक सौ पांच करोड़ का बहुत बड़ा सहारा था, जो उसने देवराज चौहान के पास ही रखवा दिया था। पैसा था तो सब कुछ था। भविष्य के प्रति काफी हद तक निश्चिंत थी टुन्नी ।
टुन्नी ने अपने खाने का थाल तैयार किया और ठण्डा पानी लेकर, टी.वी. के सामने फर्श पर ही बैठ गई और शान्ति से खाना शुरू कर दिया। चेहरे पर सोच उभरी हुई थी कि तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई।
टुन्नी ने सिर घुमाकर दरवाजे की तरफ देखा। खाना खाते मुंह चल रहा था उसका।
"टुन्नी।" बाहर से आवाज आई। दरवाजा खटखटाया गया--- "मैं आ गया टुन्नी, दरवाजा खोल ।”
टुन्नी ने आवाज को नहीं पहचाना।
परन्तु बाहर कोई उसे नाम से पुकार रहा था तो उसकी पहचान का होगा।
शायद सतीश बारू आया होगा?
टुन्नी उठी और उसने बढ़कर दरवाजा खोल दिया।
सामने अमन ओबराय खड़ा था।
"ओ टुन्नी, मेरी टुन्नी ।" अमन ओबराय के होठों से हरीश खुदे के लहजे वाली आवाज निकल रही थी--- "मैं आ गया टुन्नी। मैं आ गया हूं।" कहते हुए अमन ओबराय ने आगे बढ़कर उसे बांहों में लेना चाहा।
टुन्नी हड़बड़ा कर पीछे हटी।
"चल हट ।" टुन्नी ने गुस्से से कहा--- "ये क्या करता है।”
अमन ओबराय खुले दरवाजे के भीतर आ गया था ।
“टुन्नी मैं हूं मैं । हरीश खुदे तेरा पति---। पहचान मुझे मैं वापस आ गया हूं।"
टुन्नी के माथे पर बल उभरे। वो अमन ओबराय को घूरने लगी।
अमन ओबराय की निगाह खाने की थाल पर पड़ी तो मुस्कराकर कह उठा ।
“आह। मटर पनीर बनाया है आज। तेरी पसन्द की सब्जी है ये। जब भी तू खाना बनाने के मूड में होती है। तो मटर पनीर ही बनाती है। पर मैं नहीं खाऊंगा। आते वक्त खाना खा लिया था। जोरों की भूख लग रही थी।"
टुन्नी अमन ओबराय को घूरे जा रही थी।
"ऐसे क्या देख रही है टुन्नी ?” हरीश खुदे बोला।
"कौन है तू?" टुन्नी के होंठों से निकला।
“मैं-मैं तेरा पति। हरीश खुदे ।” उसने आगे बढ़ कर टुन्नी को बांहों से पकड़ा--- "मैं वापस---।"
"छोड़ मुझे---।”
"टुन्नी ये क्या...।"
"छोड़ मुझे। मैं तेरे को नहीं जानती।" टुन्नी ने झटके से अपनी बांहें छुड़ाई--- "तू जो भी है बहुत चालाक है। जबरदस्ती मेरे घर में घुस आया और खुद को मेरा पति बता रहा है। चालाकी तो तेरी ये है कि तू मेरे पति के लहजे में ही बात कर रहा है। वो इसी तरह बात किया करता था। कान खोल के सुन ले। मेरा पति कुछ दिन पहले मर गया और उसे जला दिया। तू यहां से दफा हो जा कोई चालाकी की तो मोहल्ले वालों को इकट्टा कर लूंगी। पुलिस को बुला लूंगी, निकल जा...।"
"टुन्नी मैं खुदे, हरीश खुदे, मुझे पहचान...।"
"यहां से जाता है या नहीं ?" टुन्नी का स्वर सख्त हो गया।
"ये तुझे क्या हो गया है टुन्नी। मैं तेरा पति हूं।” हरीश खुदे परेशान व्याकुल स्वर में कह उठा।
“तू मेरा पति कैसे हो सकता है। मैंने तो तुझे पहले कभी देखा नहीं, तू--।”
"तू समझती नहीं। मैं ही हूं हरीश खुदे। दो महीने पहले देवराज चौहान और जगमोहन मुझे ले गये थे। याद है। उसके बाद जो-जो हुआ मैं तुझे फोन पर बताया करता था।" ये जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रवाशित दो उपन्यास सबसे बड़ा गुण्डा, मैं हूं देवराज चौहान--- "सब कुछ बताया तुझे, फिर देवराज चौहान मेरे से खुश होकर मेरे लिए डकैती करने को तैयार हो गया। ये सब भी बताया मैंने तुझे। फिर जब डकैती की गई तो बजरंग कराड़े और सोनी की नियत बदल गई। उन्होंने मुझे और बारू को बेहोश करके निकल जाना चाहा। परन्तु मैंने उनकी चालाकी पहले ही भांप ली और उनसे भिड़ गया। तभी सोनी ने रिवॉल्वर निकाल कर मुझ पर गोलियां चला दी। पूरी तीन गोलियां लगी मुझे। एक पीठ में, दो छाती पर। पर अच्छा हुआ जो भागते समय, पुलिस द्वारा पकड़े गये वो... कमीने---।"
"जो बातें तू कह रहा है उसे बता देने से तू मेरा पति कैसे बन गया। ये तो कोई भी बता सकता है। फिर तू मेरा पति है ही नहीं। कोई और इन्सान है तू जो अपने को हरीश खुदे कह रहा है। निकल जा यहां से वरना---।"
"ये तुझे क्या हो गया है टुन्नी ?” हरीश खुदे तड़पकर बोला।
"तू कोई कमीना है।" टुन्नी के माथे पर बल नज़र आने लगे--- "अकेली जवान औरत को देखकर, हाथ मारने आ गया। पर कान खोलकर सुन ले कि मैं टुन्नी किसी को---।"
"मैं तेरा पति हूं टुन्नी---।"
टुन्नी के दांत भिंच गये ।
"अभी तू खुद ही कह रहा था कि तुझे तीन गोलियां लगी और साथ ही तू कहता है कि तू---।"
"मुझे सच में तीन गोलियां लगी थी। सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे से पूछ ले।"
"गोलियां लगने के बाद क्या हुआ?"
"मैं मर गया।"
"मर गया।"
"हां टुन्नी, मैं मर गया---मुझे---।"
“मर गया तो तू अब मेरा पति कैसे हो गया?" टुन्नी ने कड़वे स्वर में कहा।
"वो ही बता रहा हूं कि मैं हरीश खुदे, तेरा पति...।"
"मैं अभी मोहल्ले वालों को बुलाती हूँ, तू इस तरह नहीं मानेगा...।"
“पागल मत बन टुन्नी। ये देख, मेरी आंखें देख--। देख, मेरी आंखें ये-ये क्या मेरी आंखें नहीं हैं।"
टुन्नी ने अमन ओबराय की आंखों में देखा ।
देखती रह गई।
हरीश खुदे जैसी आंखें ही तो थी।
परन्तु ये हरीश खुदे नहीं, कोई और है। वो तो मर गया है।
"ये आंखें मेरी है ना?"
"बकवास मत कर। तू मुझे बेवकूफ बनाकर मेरे कपड़े उतारने की सोच रहा है। मर्दों को मैं जानती...।"
"ये तू मुझे क्या कह रही है टुन्नी।" खुदे तड़पकर कह उठा--- "मुझे तू ऐसा कहती है।"
"तू अपनी बकवास बंद कर और चला जा नहीं तो मैं लोगों को बुलाने जा रही हूं।”
हरीश खुदे बेबस सा टुन्नी को देखता रहा।
"इस तरह आंखें फाड़-फाड़ कर क्या देख रहा है...।"
"टुन्नी ।" हरीश खुदे ने पुनः कहा--- "ये मेरी वो ही आंखें हैं जो तूने किसी को दान देने के लिए फार्म साइन कर दिया था।"
टुन्नी ठिठकी। अमन ओबराय को देखने लगी।
"हां टुन्नी। इन आंखों को पहचान, ये आंखें...।"
“अब समझी।" टुन्नी कह उठी--- "तो तुम वो आदमी हो, जिसे मेरे पति की आंखें लगाई गई। तभी तो मुझे लग रहा था कि इन आंखों को मैंने देख रखा है। ये मेरे पति की आंखें हैं। पर आंखें लग जाने से तुम मेरे पति कैसे बन गये? तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है जो यहां आकर इस तरह की उल्टी बातें करते जा रहे हो। अगर तुम मेरा शुक्रिया अदा करने आये हो तो...।"
“टुन्नी मैं जिन्दा हूं।" खुदे कह उठा।
"तो तू अपनी बकवास बंद नहीं...।"
“ये सच है मैं मर गया था टुन्नी, पर मेरी आंखें नहीं मरी। वो वक्त रहते निकाल ली गई। जब मेरा शरीर मरा तो मेरी आंखें खुली रह गई थी। तब से मेरी आंखें जिन्दा ही रही। मेरा सारा जीवन, मेरी आंखों में सिमट आया और जब मेरी आंखों को अमन ओबराय की आंखों में लगाया गया और इसने जब आंखें खोली तो मैं यानी कि हरीश खुदे भी जिन्दा हो गया। ये फिर से देखने लगा और मैंने अपनी मौजूदगी इसके शरीर में पाई। अब मैं इसके शरीर में रहता हूं। एक शरीर में हम दोनों रहते हैं। अमन ओबराय भी, हरीश खुदे भी। आज ही शाम को हॉस्पिटल से इसे छुट्टी मिली तो मैं सीधा दौड़ा-दौड़ा तेरे पास आ गया। अपनी टुन्नी से मिलने ।”
टुन्नी के चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे थे।
वो अमन ओबराय को देखती रही।
"क्या मेरे बात करने का ढंग, हरीश खुदे जैसा नहीं है?" खुदे पुनः बोला।
"है तो?" टुन्नी के होंठों से सोच भरा स्वर निकला।
“मेरी किसी बात से तुझे परायेपन का एहसास हुआ ?"
“खास नहीं।" टुन्नी सोच भरे स्वर में बोली--- “पर मेरे सामने खड़ा इन्सान अजनबी है मेरे लिए।"
"क्योंकि ये अमन ओबराय है, मैं नहीं। मैं तो इसके शरीर के भीतर रहता हूँ।” हरीश खुदे ने कहा।
"तेरी बातों में मैं नहीं फंसने वाली।" टुन्नी ने अमन ओबराय को घूरा ।
"मैं तेरे को फंसा रहा हूं।” हरीश खुदे आहत भाव से बोला ।
"हां।"
"ये क्या कहती है टुन्नी---मैं---।"
"टुन्नी-टुन्नी कहने से तू हरीश खुदे नहीं बन जायेगा।" टुन्नी बोली--- "बस बहुत हो गया, चलता बन यहां से।"
"मेरी बात का भरोसा कर....।”
"तू जो भी है अच्छी तरह सुन ले कि टुन्नी बोत दिमाग रखती है। तू मेरे को ऐसी बातें करके फंसा नहीं सकता। माना कि तू काफी हैंडसम है। पर टुन्नी पर इसका कोई असर नहीं होगा। बहुत घटिया कहानी सुनाई तूने। दुनिया का एक आदमी भी तेरी बात का विश्वास करे तो मैं भी तेरी बात का विश्वास कर लूंगी। क्या कहना है तेरा, आंखें जिन्दा रही। हरीश खुदे का सारा जीवन जिन्दा आंखों में सिमट आया और जिसे आंखें लगाई गई, हरीश खुदे उसमें आ गया।"
"ये सच है टुन्नी ।"
“अब तू जो भी है यहां से जाता है या नहीं?" टुन्नी का स्वर सख्त हो गया।
"तू मुझे यहां से निकाल रही है।" अमन ओबराय के होंठों से खुदे का बेचैनी भरा स्वर निकला।
"मैं अजनबी लोगों से बात नहीं करती। मैं पसन्द नहीं करती कि कोई अजनबी मेरे घर में आये। दोबारा मेरे पास मत आना। मेरे पति की आंखें तुझे मिल गई। तू दुनिया देखने लगा। इसी में खुश रह। मुझे फंसाने की चेष्टा बेकार होगी।"
"टुन्नी, भगवान के लिए मेरी बात को समझने की कोशिश कर।" खुदे तड़प कर बोला।
“बार-बार मेरा नाम मत ले। अजनबी के होठों से मुझे अपना नाम सुनना अच्छा नहीं लगता।" टुन्नी ने अपने खाने के थाल को देखा--- "तूने मेरा खाना ठण्डा कर दिया। कितने मन से बनाया था।"
"तुझे खाने की पड़ी है। मेरी बात को तू गम्भीरता से क्यों नहीं सुन रही।" खुदे तेज स्वर में बोला--- "कोई माने ना माने पर तुझे मानना होगा कि मैं हरीश खुदे हूँ। तेरा पति हूं।" कहने के साथ ही खुदे, अमन ओबराय के शरीर के सहारे आगे बढ़ा और किचन से गिलास लेकर फ्रिज़ में से ठण्डा पानी निकाला और गिलास में डालकर पीने के बाद सब कुछ वैसे ही ठीक जगह पर रख दिया और टुन्नी से बोला--- “गर्मी बहुत हो रही---।"
"तेरे को मेरे घर का सब पता है कि कौन-सी चीज कहां रखी है ।" टुन्नी बोली ।
"क्यों नहीं पता होगा। ये मेरा घर है।" खुदे वोला ।
"निकल जा यहां से।" टुन्नी का स्वर सख्त हो गया--- "तेरी बातों का प्रभाव मुझ पर नहीं पड़ने वाला। मेरा पति मर चुका है। इंस्पेक्टर मोरे ने खुदे के संस्कार में मेरी सहायता की और रही बात उसकी आंखें जिन्दा होने और खुदे का जीवन उसमें सिमट जाने की तो ये मूर्खता भरी बातें हैं। ऐसा कभी नहीं होता। तुम---।"
"ऐसा हो गया है टुन्नी। तेरे को इंस्पेक्टर मोरे पर भरोसा है ना, उससे पूछ ले, वो मानता है इस बात को।"
"तू अब जा। दोबारा मत आना ।" टुन्नी बोली।
परन्तु अमन ओबरॉय वहीं रहा। उलझन में फंसी टुन्नी को देखता रहा।
"तूने मुझे बैठने को भी नहीं कहा।" खुदे बोला।
"तेरी तो ऐसी तैसी ?" टुन्नी एकाएक भड़क कर बोली और खुले दरवाजे से बाहर निकल कर ऊंची आवाज में मोहल्ले के लोगों को बुलाने लगी। उसकी आवाज भीतर तक आ रही थी।
“समझा लिया तूने अपनी टुन्नी को ।" अमन ओबराय बोला--- “वो तो कुछ भी नहीं मान रही। मैंने तो पहले ही कहा था कि तेरी कोशिश बेकार है। कोई भी नहीं मानेगा कि तू हरीश खुदे है। टुन्नी का पति है। वो मर चुका है। उसका शरीर जला दिया गया है। इस बात को कौन मानेगा कि आंखों के द्वारा खुदे का जीवन अमन ओबराय के शरीर में आ गया है।"
"तू तो मानता है ना?"
“मेरे मानने से क्या होगा। दुनिया तो इस बात का भरोसा नहीं करेगी। तेरी पत्नी तो तेरी बात सुनने को तैयार नहीं।"
"मैं टुन्नी को रास्ते पर ले आऊंगा।" हरीश खुदे ने दृढ़ स्वर में कहा।
"वो लोगों को इकट्ठा कर रही है। हमारी ठुकाई भी हो सकती है। मेरी मान तो निकल ले यहां से।"
"मैं कितने अरमानों के साथ टुन्नी के पास आया था।" हरीश खुदे ने दुखी स्वर में कहा ।
"तेरे अरमान मोहल्ले वाले ना निकाल दें। चल पड़ इधर से।"
अमन ओबराय टुन्नी के घर से बाहर निकला।
गली में टुन्नी की आवाज सुनकर कुछ लोग इकट्ठे होने शुरू हो गये थे।
अमन ओबराय तेजी से गली के बाहर की तरफ बढ़ गया। पीछे से टुन्नी की आवाज आई।
"अब कहां जा रहा । रुक तो, अभी तो तू मेरा पति होने का दावा कर रहा था।"
परन्तु अमन ओबराय नहीं रुका। गली से बाहर आ गया।
“तूने तो मेरी इज्जत मिट्टी में मिला दी।" अमन ओबराय बोला--- "इस तरह मुझे कभी भी नहीं भागना पड़ा। मैं करोड़पति बिजनेस मैन, लोग मेरे आगे झुकते हैं और एक गंदे मोहल्ले से मुझे चोरों की तरह भागना पड़ा, तेरी वजह से।"
“चल कर आया है, भाग कर नहीं।"
“एक ही बात है। पीछे से वो औरत मुझे आवाजें मार रही---।"
"वो तुझे नहीं, मुझे बुला रही थी और वो मेरी पत्नी...।" खुदे ने परेशान स्वर में कहना चाहा।
"वो मुझे ही बुला रही थी। तू मेरे ही शरीर में तो रहता है। सत्यानाश कर दिया तूने मेरा।" अमन ओबराय ने नाराजगी से कहा--- "मैंने कभी नहीं सोचा था कि कभी मेरी ऐसी हालत भी होगी।"
"ये तो अभी शुरुआत है।" हरीश खुदे ने कहा।
"क्या मतलब?"
“तूने ढाबे में खाना खाया, कितनी तारीफ की खाने की। वो खाना भी तो तेरे को मेरी वजह से मिला। अब थोड़ी सी गड़बड़ हो गई तो चीं-चीं क्यों करता है। अपनी आदत बना ले अब ये बातें सहने की।"
"तुम्हारा मतलब कि आगे भी ऐसे हालात आयेंगे।"
"हरीश खुदे के साथ रहेगा तो जिन्दगी के सब रंग देखेगा।"
“कभी नहीं। तुम मेरी इज्जत खराब कर दोगे। मैं अब तुम्हारी बात नहीं मानने वाला ।”
"ये फालतू की बातें छोड़, मुझे टुन्नी के बारे में सोचने दे ।"
"अब क्या बचा है सोचने को ?”
"ऐसा क्या तूफान खड़ा हो गया जो तू कलप रहा है। मियां-बीवी में नाराजगी चलती ही रहती है। नाराज होगी, मुझे पहचानने से इन्कार कर दिया। दोबारा पहचान लेगी। तू ज्यादा परेशान ना हो। मुझे खुशी है कि वो मटर पनीर बनाकर खा रही थी। वो मटर पनीर की सब्जी तब बनाती है जब उसके सिर पर कोई बोझ नहीं होता ।"
"तो तू दोबारा टुन्नी के पास जायेगा ?"
"बार-बार जाऊंगा। वो मेरी पत्नी है। तुझे क्या?”
"मैं नहीं जाऊंगा। मुझे अपनी बेइज्जती कराने का शौक नहीं है।" अमन ओबराय ने गुस्से से कहा ।
"तू जब नाराज होता है तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है।"
"बातों से ना बहला---मैं---।"
"तेरे शरीर में आ गया हूं तो अब मुझे नई पहचान बनानी है। सब लोग मुझे धीरे-धीरे ही तो पहचानेंगे। थोड़ी बहुत समस्या देख कर घबरा गया। सब ठीक हो जायेगा। मेरे साथ रहकर इज्जत-इज्जत मत किया कर। तू करोड़पति है और मैं चोरी डकैती करने वाला। मजबूरी है कि हम दोनों को एक ही शरीर में रहना है। तेरी आंखें चली गई थी अब तू मेरी आंखों से ही---।"
"तो क्या हो गया।” ओबराय झल्ला कर बोला--- “तू भी तो मेरा शरीर इस्तेमाल कर रहा है।"
"फिर तो हिसाब बराबर हो गया। इज्जत-इज्जत की बात करके रोया मत कर। मैं इज्जत को नहीं मानता।"
"तू ठहरा चोर-डकैत। इज्जत की कीमत नहीं समझ सकता।"
"मेरी अपनी दुनिया है। जब तू उसे समझेगा तो समझ जायेगा कि इज्जत कुछ नहीं होती।”
"मैं अब टुन्नी के पास बेइज्जती कराने नहीं जाऊंगा। मेरे एक इशारे पर बढ़िया से बढ़िया लड़की आ जाती---।”
“जरूर आ जाती होंगी। तू हैंडसम है। ऊपर से करोड़पति है।"
"तेरे को जो लड़की चाहिये मेरे को बता दे। लेकिन टुन्नी के पास नहीं ।"
"वो मेरी पत्नी है।"
"जिसने तुझे पहचाना नहीं। लोगों को इकट्ठा कर लिया और हमें भागना पड़ा।"
"इसी से पता चलता है कि वो अपनी जिन्दगी में कितनी ईमानदार है। तेरे व्यक्तित्व का भी उसने रोब नहीं खाया। वो सिर्फ मेरे से प्यार करती है। अब उसे समझने में वक्त लगेगा कि मैं ही उसका पति हूं।” हरीश खुदे ने कहा--- "दो-तीन मुलाकातों में वो जल्दी ही पहले की तरह मेरे से पेश आने लगेगी। वो मेरी औरत है और औरत ही रहेगी।"
"जबकि वो तुझे अपनी जूती पर नहीं रखती।”
“देखता रहा। सब कुछ सामने आ जायेगा। मुझे टुन्नी पर पूरा भरोसा है। चल देवराज चौहान के पास चलते हैं।"
"किसके ?"
"देवराज चौहान, वो ही ।"
"मैं सीधा बंगले पर जाऊंगा। रानी मेरी इन्तजार कर रही होगी। विनोद भी नई आंखों के साथ मुझे देखना चाहता होगा। मैं तेरा नौकर नहीं हूं कि तेरे साथ इधर-उधर भटकता रहूं, मेरी अपनी भी जिन्दगी है।"
"ठीक है। मानी तेरी बातें।” हरीश खुदे ने गहरी सांस ली--- "देवराज चौहान से कल मिल लेंगे।"
"वो भी तेरे को नहीं पहचानेगा ।" अमन ओबराय ने कहा।
"मेरे बारे में तू चिन्ता मत कर। अपने मामले मैं संभाल लूंगा।” खुदे का स्वर उखड़ गया--- "रानी से तू बहुत जल्दी बोर हो जायेगा। ऐसे रिश्ते पत्नी के अलावा किसी से लम्बे नहीं चलते। देख लूंगा तेरा हाल भी।"
"रानी बहुत खूबसूरत है खुदे ।" अमन ओबराय ने गहरी सांस ली।
“होगी। आजकल सब ही खूबसूरत होती हैं।"
“उसकी बिल्लौरी आंखें जैसे मेरा दिल लूट लेती है। मुझे लगता है जैसे मैं उसके बिना नहीं रह पाऊंगा। वो मेरे जीवन में अपनी जगह बनाती जा रही है। मैं उससे शादी कर सकता हूं।"
"जब तक तेरा भाई जिन्दा है, नहीं कर सकता। या फिर अपने भाई को तैयार कर कि वो तेरी और रानी की शादी को तैयार हो जाये।"
“ये सम्भव नहीं है। मैं विनोद से ऐसी बात नहीं कर सकता ।" अमन ओबराय ने कहा।
"तो ऐसे ही गाड़ी खींचता रह, जब तक खिंचती है। बाद की बाद में देखेंगे।” हरीश खुदे बोला--- "मैं टुन्नी के अलावा किसी औरत को नहीं देखता। मुझे तो सिर्फ टुन्नी ही अच्छी लगती है।"
■■■
अमन ओबराय टैक्सी द्वारा अपने बंगले पर पहुंचा। टैक्सी बाहर ही छोड़ दी। बड़े से लोहे के फाटक पर दरबान खड़ा था। उसे देखते ही गेट खोल दिया। चार बार झुक कर सलाम किया। तबीयत का हाल-चाल पूछा। वो बंगले के भीतर जा पहुंचा। फौरन ही सात नौकर इधर-उधर से निकल कर सामने आ गये। हाल-चाल पूछने लगे। उसके चेहरे पर नई लगी आंखों को देखने लगे। जबकि हरीश खुदे तो शानदार बंगले को ही देखे जा रहा था। रात के ग्यारह बज रहे थे।
"तुम्हारे तो बड़े ठाठ हैं।" हरीश खुदे ने कहा ।
"करोड़पतियों के ऐसे ही ठाठ होते हैं।" अमन ओबराय ने व्यंग से कहा ।
तभी एक तरफ से रानी वहां आ पहुंची। नौकरों के वहां मौजूद होने की वजह से बोली।
"वैलकम मिस्टर ओबराय। आंखों के साथ फिर से अपने घर में आने की बधाई हो।"
अमन ओबराय ने मुस्करा कर रानी को देखा।
"साहब अपने कमरे में जायेंगे। इन्हें ज्यादा डिस्टर्ब मत करना। आराम की जरूरत है।" रानी ने नौकरों से कहा। फिर ओबराय से बोली--- “आप अपने कमरे में आराम कीजिये। मैं अभी आपके लिए डिनर...।"
"पहले मैं विनोद से मिलूंगा।" अमन ओबराय ने कहा और एक तरफ बढ़ गया ।
रानी उसके पीछे चल पड़ी।
नौकर वहीं रह गये।
"जान।" साथ चलते रानी सरसराते स्वर में कह उठी--- "मैं कब से तुम्हारा इन्तजार कर रही थी।"
"इस वक्त तुम बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही हो।"
"छोड़ो। जब भी रात होती है तुम ये ही कहते हो।" रानी ने मुस्करा कर कहा ।
"सच कह रहा हूँ। एक महीना जाने कैसे तुमसे दूर रह पाया।"
"रात को आऊं ना?" सरसरा रहा था रानी का स्वर ।
"हां। मैं आज रात तुम्हारे बिना नींद नहीं ले पाऊंगा।"
"मैंने तुम्हारे कमरे में तुम्हारे पसंद की बोतल रख दी है। मैं तुम्हारी गोद में बैठूंगी। तुम मुझे पिलाना और मैं तुम्हें, फिर प्यार करेंगे। पूरे एक महीने का प्यार आज की रात में लूंगी।" रानी ने सरसराते स्वर में, नखरे के भाव में कहा।
"इस वक्त का मुझे बेसब्री से इन्तजार है रानी। तुम्हारी आंखों को मैं देखते रहना चाहता हूं। जितनी तुम खूबसूरत हो, उतनी ही खूबसूरत तुम्हारी बिल्लौरी आंखें हैं। इस पर मैं मरता हूं।" चलते-चलते ओबराय ने प्यार से कहा।
"मैं तुम पर मरती हूं जान---।"
सामने कमरा था। दरवाजा खुला था। वे भीतर प्रवेश कर गए।
हमेशा की तरह विनोद ओबराय बैड पर लेटा हुआ था।
"हैलो विनोद कैसे हो?" अमन ओबराय ने पास पहुंच कर विनोद का हाथ थाम लिया।
"तुम्हें ठीक देखकर मुझे खुशी हो रही है अमन।" विनोद, अमन ओबराय की आंखों को देखता कह उठा--- “तुमने नई आँखें पा ली। बस थोड़ा सा रंग ही बदला है तुम्हारी आँखों का। कोई नहीं कह सकता कि ये तुम्हारी आंखें नहीं हैं।"
“ये आंखें मुझे फिट आई।" ओबराय बोला--- “और डॉक्टर भूटानी ने सब कुछ सैट करने में काफी मेहनत की है।"
"मैं बहुत खुश हूं तुम्हें ठीक देखकर, वरना तुम्हारी आंखों के बारे में सुनकर तो मैं परेशान हो गया था कि हमारे बिजनेस को अब कौन संभालेगा। तुम अपना ध्यान रखा करो भाई।" विनोद ओबराय ने कहा।
“अब मैं अपना और भी ध्यान रखूंगा।” ओबराय बोला।
"लेकिन ये सब हुआ कैसे अमन ?"
अमन ओबराय गम्भीर हो उठा।
तभी रानी ने एक कुर्सी अमन के पास रख दी और बोली ।
"बैठ जाइये मिस्टर ओबराय।”
ओबराय को कुर्सी का ध्यान आया तो बैठ गया।
"एक्सीडेंट कैसे हुआ अमन ?” विनोद ने पूछा।
"कहने को वो एक्सीडेंट था, परन्तु वो एक्सीडेंट नहीं था?" अमन ओबराय ने गम्भीर स्वर में कहा--- "तुम ठीक कहते थे कि तुम्हारा एक्सीडेंट नहीं हुआ था, तुम्हें मारने की कोशिश की थी। पर तुम्हारी बात को मैंने गम्भीरता से कभी नहीं लिया। लेकिन अपना एक्सीडेंट देखकर अब मुझे समझ आया कि क्या कर रहा है कोई।"
"क्या हुआ था?” विनोद ओबराय ने गहरी सांस ली।
"एक ट्रक और टैम्पो ने एक साथ पास आकर मेरी कार को पीस कर मुझे मार देना चाहा ।" अमन ओबराय ने कहा--- "शायद भगवान ने ही बचाया मुझे। कार का अगला शीशा टूटा, तो मेरी आंखों में उसके टुकड़े आ फंसे पर उस पल मैंने अपनी कार छोड़ दी। बाहर निकल कर मैं अंधों की तरह भागा। मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। तभी मैं एक नाले में जा गिरा। तब तक वहां लोग इकट्ठे हो गये। मुझे हॉस्पिटल पहुंचा दिया गया। पुलिस आई। वहीं पर डॉक्टर विनायक मिला। तब तक रानी भी वहां पहुंच गई। इसे मेरे कहने पर खबर दी थी। उसके बाद मैं डॉक्टर भूटानी की देख-रेख में पहुंच गया और बिना आंखों के मैंने घर जाने से इन्कार कर दिया। मेरी दोनों आंखें शीशा घुस जाने की वजह से बेकार हो चुकी थी। पुलिस मेरे पास आई और मुझे बताया कि ये एक्सीडेंट था। वो ट्रक और वाहन वहां से निकल गये। उन्हें ढूंढा जा रहा है। मैंने पुलिस को कहा कि ये एक्सीडेंट नहीं था। किसी ने मुझे मारने की कोशिश की थी, परन्तु पुलिस ने मेरी बात नहीं मानी। हॉस्पिटल कई बार पुलिस मेरे पास आई। पुलिस ने बताया कि टैम्पो और ट्रक के नोट किए नम्बर फर्जी निकले हैं। परन्तु हम लोग उन्हें ढूंढ रहे हैं। इसके बाद पुलिस मेरे पास नहीं आई।” कहकर अमन ओबराय रुका।
विनोद ओबराय की निगाह, अमन पर थी।
रानी शांत सी पास में खड़ी थी।
“ठीक इसी तरह मुझे मारने की कोशिश की गई थी अमन।" विनोद ने कहा--- “वो कौन है जो हम दोनों को खत्म कर देना चाहता है।"
"हमारी मौत से किसे फायदा हो सकता है।” ओबराय गम्भीर था।
विनोद की निगाहें रानी की तरफ उठी और तुरन्त ही अमन पर जा टिकी।
"अमन ।” विनोद बोला--- “मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं जिन्दा रहूं या ना रहूं। क्योंकि मैं जैसी जिन्दगी जी रहा हूं उस से मर जाना ही बेहतर है। मुझे अब कोई मार दे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, परन्तु तुमने खुद को बचा कर रखना है।"
"तुम भी जिन्दा रहोगे और मैं भी।" अमन ने उसका हाथ दबाया--- "मैं सब ठीक करूंगा पुलिस को अब टाईट करता हूं।"
"पुलिस ने कितनी आसानी से तुम्हारे और मेरे साथ हुए हादसे को एक्सीडेंट का नाम दे दिया। मैंने भी पुलिस में कहा था कि किसी ने मुझे मारने की कोशिश की है। परन्तु पुलिस ने ये ही कहा कि ये एक्सीडेंट था।"
"तुम्हारा मतलब कि हमारे मामले में पुलिस किसी के इशारे पर चल रही है।" अमन ओबराय बोला।
“मुझे तो ऐसा ही लगता है। पुलिस ने मेरे मामले के बारे में कुछ नहीं किया और देखना अब तुम्हारे बारे में भी कुछ नहीं करेगी। मेरे ख्याल में जो हमें मारना चाहता है, पुलिस उससे मिली हुई है।"
“पुलिस को मैं सम्भाल लूंगा। मेरे जानने वाले कई हैं। मैं पुलिस पर दबाव डलवाऊंगा।" अमन ओबराय दृढ़ स्वर में बोला।
"वो बाद की बात है। पहले तुम्हें सावधान रहना होगा। तुम पर फिर हमला हो सकता है।” विनोद ने कहा।
"मैं उसे ढूंढ निकालूंगा, जिसने हम दोनों की जान लेने की कोशिश की। अब मैं आ गया हूं। सब ठीक करूंगा।" अमन ओबराय चेयर से उठता, रानी से बोला--- “मैं अपने कमरे में जा रहा हूं। विनोद का ध्यान रखो।"
रानी ने सिर हिला दिया।
अमन ओबराय वहां से चला गया।
विनोद ओबराय ने रानी को देखकर कहा।
"तुम्हें नहीं लगता कि किसी ने पहले मुझे और अब अमन को मारने की कोशिश की।"
"वहम का कोई इलाज नहीं है पतिदेव ।" रानी शांत स्वर में बोली--- “बिस्तर पर खाली पड़े-पड़े तुम उल्ट-पुलट बातें सोचते रहते हो। साल भर पहले तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ था और इत्तेफाक से अब तुम्हारे बड़े भाई का हो गया। इन हादसों को तुम साजिश करार देने को लगे हुए हो। तुम जो भी सोचो, मैं तुम्हारी सोचों की परवाह नहीं करती।"
"तुमने कभी ये सोचा है कि कोई तुम्हारी जान लेने की भी सोच सकता है।"
रानी मुस्कराई।
“पतिदेव। मेरी जान लेकर किसी को क्या मिलेगा। कुछ भी नहीं। मेरे पास तो कुछ है ही नहीं। वैसे भी वो बेवकूफ होगा जो मेरी जान लेकर, पृथ्वी गृह से मुझ जैसी खूबसूरती हटाना चाहेगा। मैं मरी तो पृथ्वी गृह फीका लगने लगेगा।"
"बहुत गुमान है अपने पर।” विनोद ने व्यंग से कहा।
"क्या मैं खूबसूरत नहीं पतिदेव । तुम तो मुझे देखते ही मुझ पर मर मिटे थे। भूल गये वो दिन---।"
"वो बातें अब मेरे लिए मायने नहीं रखती।” विनोद ने उखड़े स्वर में कहा।
"क्योंकि अब तुम इस काबिल नहीं कि मुझे भोग सको। सिर्फ मुझे देख सकते हो। आंखें सेंक सकते हो। तुम्हारी हालत का अफसोस है मुझे, पर मैं कुछ नहीं कर सकती। मैंने भी कभी तुमसे प्यार किया था। परन्तु कोई भी पत्नी, इस हाल में पड़ा पति नहीं चाह सकती।" रानी का स्वर बेहद शांत था--- "अगर मेरे बस में होता तो मैं तुम्हें कब का ठीक कर देती ।"
विनोद कई पलों तक रानी के खूबसूरत चेहरे को देखता रहा फिर बोला।
"तुमने मेरी एक बात का जवाब कभी नहीं दिया।"
"कौन-सी बात?"
"ये ही कि तुम अपनी जरूरतें किससे पूरी करवाती हो। कोई मर्द तो तुमने चुन ही रखा होगा। बेशक तुम किसी को ना चुनो, परन्तु तुम जैसी अकेली और खूबसूरत शह को पाने के लिए, मर्द लाईन लगाकर खड़े हो सकते हैं।"
"तुमने सही कहा।"
"कौन-सा आदमी तुम्हारे करीब है रानी?" विनोद की निगाह रानी पर थी।
"ये बात जानकर क्या तुम्हें कोई फायदा होने वाला है?" रानी ने विनोद को देखा।
"बस, मैं जानना चाहता हूं।"
"पतिदेव। मेरे से तुम्हारी जितनी सेवा हो सकती है, वो जरूर करती हूं। सुबह शाम तुम्हारा हाल पूछने आती हूं। पांच-सात मिनट तुमसे बात भी कर लेती हूं। इसके अलावा मैं तुम्हारे लिए कुछ कर भी नहीं सकती। तुम भी मेरे लिए कुछ नहीं कर सकते। जितनी जरूरत है उतना रिश्ता हम दोनों में कायम है।" रानी का स्वर भावहीन था--- "मैं किसके पास जाती हूँ या कौन मेरे पास आता है, इन बातों को सोचोगे तो तकलीफ उठाओगे। तुम्हें ये सोच कर अपने से समझौता कर लेना चाहिये कि आखिर कोई तो होगा ही जो ऐसे वक्त में मुझे खुश रख रहा होगा।"
विनोद रानी को देखता रहा।
रानी एकाएक मुस्कराई और बोली ।
"अब मेरे सोने का वक्त हो गया है पतिदेव। गुडनाइट---।”
"वो अमन है ना?" विनोद शांत स्वर में कह उठा।
रानी ने इन्कार में सिर हिलाते हुए कहा।
"इस तरह चालाकी इस्तेमाल करके तुम मुझसे कुछ नहीं जान सकते। गुड नाइट पतिदेव ।" रानी ने हाथ हिलाया और बाहर निकल गई।
विनोद ओबराय बेबस-सा होंठ भींच कर रह गया।
■■■
अमन ओबराय अपने बेडरूम में पहुंचा तो हरीश खुदे कह उठा।
"यार तुमने तो मुझे चिन्ता में डाल दिया है।"
"क्या हुआ ?"
"कोई तुम्हें मारने की फिराक में है तो मुझे चिन्ता नहीं होगी क्या। तुम्हारी जिन्दगी के साथ तो मेरा जीवन जुड़ा है। तू मरा तो मैं भी गया। अब मेरी आंखें तेरे शरीर में लगकर जिन्दा हैं। जिन्दा आंखों के साथ ही मेरी जिन्दगी है।"
"मुझे मारना इतना आसान नहीं।" अमन ओबराय कुर्सी पर बैठता कह उठा।
"क्यों तू तोप है क्या ?"
"मैं सब ठीक कर लूंगा।"
"तू कुछ नहीं कर सकेगा जब तेरे सामने कोई रिवाल्वर लेकर आ गया और ठां-ठां तुझ पर गोलियां चला दी। या किसी ने तेरे पर गाड़ी चढ़ा दी। कोई किसी को मारना चाहता है तो देर सवेर में वो सफल हो ही जाता है। बचा नहीं जा सकता। इन बातों की मुझे समझ है। सारी जिन्दगी मैंने इन्हीं कामों में तो बिताई है।"
"तो तू क्या चाहता है अब?"
"हमें उस इन्सान को ढूंढ निकालना होगा जिसने विनोद को और फिर तेरे को मारने की कोशिश की। तुम दोनों पर एक ही तरीका इस्तेमाल किया गया। एक्सीडेंट का मतलब साफ है कि कोई नहीं चाहता कि तुम दोनों भाइयों की मौत हत्या लगे। वो स्वाभाविक तौर पर तुम्हें मरा दिखाना चाहता है। जैसे कि एक्सीडेंट में मर गये। छत से नीचे गिरकर मर गये। ऐसा ही कुछ---।"
अमन ओबराय कुछ नहीं बोला।
“तुम दोनों की मौत से किसे फायदा पहुंचेगा ?” हरीश खुदे बोला।
"हम दोनों के अलावा हमारे खानदान में सिर्फ रानी ही है।"
"मतलब तुम लोग मर गये तो करोड़ों की दौलत रानी की ?"
“खामखाह की मत हांको।" अमन ओबराय ने मुंह बनाकर कहा--- "अगर तुम ये कहने जा रहे हो कि ये काम रानी का है तो मत कहना। वो हमारे घर का हिस्सा है। इस घर की बहू है।"
"तो इस बारे में तुम रानी के बारे में नहीं सोचना चाहते?"
"नहीं। कभी नहीं।"
"क्योंकि वो खूबसूरत है। क्योंकि वो तुम्हें हासिल है। क्योंकि वो---।"
"खुदे मैं तेरी जान ले लूंगा।"
"तू बेवकूफ आदमी है, जो रानी के बारे में नहीं सोचना चाहता।” हरीश खुदे उसे समझाने वाले स्वर में बोला--- "तू सोच कि रानी तुम दोनों को मारकर सारी दौलत की मालकिन वो खुद बनना चाहती हो।"
“पर वो ऐसा क्यों करेगी?"
"पैसे के लिए।"
"उसे क्या पैसे की कमी है। वो मजे से शानदार जिन्दगी बिता रही है। जितना पैसा चाहती है, उतना ही उसे मिल जाता है। किसी चीज की उसे कमी नहीं है। सच बात तो ये है कि उसके खर्चे उतने भी नहीं है, जितने होने चाहिये। वो ऐसा गलत काम कभी नहीं कर सकती। वो मुझे प्यार करती...।"
"तेरे को प्यार करती है---अच्छा- क्या लगती है तेरी वो, जो तेरे को प्यार करे?"
"खुदे तुम---।”
“साले टट्टू ।” हरीश खुदे ने कड़वे स्वर में कहा--- “अपने पति की तो वो हो ना सकी, जो अपंग होकर बैड पर पड़ा है और घर में ही तेरे साथ आ लिपटी। ऐसी औरत तेरे को क्या प्यार करेगी। हां, अगर तू उसका शरीर हासिल करने को प्यार कहता है तो मैं जरूर कहूंगा कि वो तेरे से प्यार करती---।"
"शरीर हासिल की बात नहीं है। वो वैसे भी मेरे से प्यार करती है।" अमन ओबराय ने कहा।
"साबित करके दिखा।"
''महीना भर पहले मेरा एक्सीडेंट हुआ। मेरी आंखें चली गई। सुनते ही वो दौड़ी चली आई। डॉक्टर भूटानी के यहां मेरा इन्तजाम कराया। डॉक्टरों से बात की ओर मुझे आंखें मिल जायें, इसके लिए उसने जरूरत से ज्यादा भागदौड़ की। वो मेरे पास हर रोज आती रही। अपने प्यार का दम भरती रही। घंटों मुझे तसल्लियां देती कि मैं ठीक हो जाऊंगा। फिर से देखने लगूंगा। इतना हौसला तो मेरी पत्नी होती तो वो भी ना बढ़ाती, जितना कि रानी ने बढ़ाया और तुम कहते हो कि पैसे की खातिर रानी ऐसा कर रही होगी।" अमन ओबराय ने तेज स्वर में कहा--- “तुम्हारा ऐसा सोचना, तुम्हारी, गलती नहीं है, क्योंकि तुमने सारी जिन्दगी ही चोर-चकारी, हेराफेरी वाले काम किए हैं। इसलिए तुम्हारी सोच भी ऐसी हो गई है। रानी के बारे में गलत सोच रहे...।"
"ठीक है, ठीक है। चादर मत फाड़, नाराज मत हो। मैंने तो अपना विचार जाहिर किया था।” हरीश खुदे बोला।
"आगे से रानी के बारे में तू ऐसी बात ना करे तो ठीक होगा।"
"नहीं करता। शांत हो जा।"
ओबराय उठा और अपने कपड़े उतारने लगा।
"क्या करने जा रहा है अब?” खुदे ने पूछा।
"नहाने जा रहा हूं।"
"रानी आने वाली है। दिल में लड्डू तो फूट रहे होंगे।" हरीश खुदे मुस्कराकर विशाल बैडरूम को देखता कह उठा--- “ये बात तो माननी पड़ेगी कि करोड़पतियों की शान अलग ही होती है। साला, कितने मजे से रहता है तू---।"
अमन ओबराय, अटैच बाथरूम में पहुंचा और नहाने में व्यस्त हो गया।
"पुलिस वाले कहते हैं कि ये एक्सीडेंट था। तुम्हारा भी और विनोद का भी।"
"हां।"
“ये कहने पर कि किसी ने मारने की कोशिश की है तो, उनके रंग-ढंग क्या होते हैं।"
"वो मुझे समझाने की चेष्टा करने लगते हैं कि मेरा वहम था जो हुआ, वो महज एक्सीडेंट था।"
"कमाल है पुलिस वालों की भी। कोई फर्जी नम्बर प्लेटें लगाकर एक्सीडेंट क्यों करेगा। ट्रक ने टक्कर मारी। वैन ने कार को दबा देना चाहा और दोनों की नम्बर प्लेटें फर्जी लगी थी। ये मामला तेरे बस का नहीं। पुलिस से मैं बात करूंगा।"
"तुम रहने दो। कल मैं कमिश्नर से फोन करवाऊंगा कि---।"
"बेवकूफी मत करना। सब एक ही थैली में रहते हैं। तू मेरी बात नहीं समझेगा। लाख-दो लाख पड़ा है ना घर में?"
"लाखों पड़ा है, लाख-दो लाख की क्या बात है?"
"मैं भूल गया था कि अब मैं करोड़पति का हिस्सा बना हुआ हूं। थाने में कोई फोन करवाने की जरूरत नहीं है। जो काम नोट कर देते हैं, वो कमिश्नर का फोन नहीं कर सकता। कल मैं पुलिस वालों से बात करूंगा।"
"तुम क्या बात... ।"
"चुप रह। चुप रह। जितना मैं पुलिस वालों को जानता हूँ, उतना तो तू सोच भी नहीं सकता। तू बस शांत रह।"
अमन ओबराय बाथरूम से निकला। वार्डरोब से अण्डरवियर निकाल कर पहना और जेंट्स गाऊन पहन कर डोरी बांध ली। फिर एक तरफ टेबल पर पड़ी व्हिस्की की बोतल खोलने लगा।
"बढ़िया बोतल लगती है, कितने की है?" हरीश खुदे ने पूछा।
"साढ़े पांच हजार की।"
"सत्यानाश। इतना पैसा तू गिलास में डालकर उड़ा देता है। कितने दिन चलती है बोतल ?"
"मैं जब भी पीता हूं नई बोतल खोलकर पीता हूं। जो बची रह जाती है वो नौकरों के पास चली जाती है।"
"क्या कहने तेरे। तू तो सब कुछ लुटा देगा।”
"ये करोड़पतियों की शान होती है। धीरे-धीरे तेरे को पता चलेगा कि करोड़पति कैसे होते हैं।" अमन ओबराय मुस्करा कर बोला ।
“पर बेटे, वो ढाबे की दाल भूल गया तू। वैसी दाल करोड़पतियों के नसीब में नहीं होती ।"
ओबराय ने गिलास तैयार किया और एक ही सांस में खाली कर दिया।
"पन्द्रह सौ का माल तो तूने पेट में उतार लिया होगा ।" हरीश खुदे बोला।
"चवन्नी वाली बातें मत किया कर ।" ओबराय ने टेबिल का ड्राज खोला--- "मेरे साथ रहना है तूने । अपनी सोचे बदल ले।" ड्राज से सिगरेट का पैकिट निकाला और सिगरेट सुलगा ली।
"सिगरेट भी पीता है तू?"
"जब पैग लगाता हूं तो पी लेता हूं।" अमन ओबराय ने दूसरा गिलास तैयार कर लिया और कुर्सी पर बैठकर उसे धीरे-धीरे पीने लगा। चेहरे पर सोचें ठहरी हुई थी।
"तेरी माशूका आई नहीं।" हरीश खुदे ने पूछा।
अमन ओबराय ने वक्त देखा। रात के सवा बारह हो रहे थे।
"आने वाली है।" ओबराय ने गिलास उठा कर छोटा सा घूंट भरा।
"अगर वो तेरी बीवी होती तो तुझे इन्तजार नहीं करना पड़ता। माशूका तो ये ही हाल करती हैं।"
“तूने कभी इन्तजार किया है?"
"औरत का? कभी नहीं।"
"फिर तेरे को क्या पता कि इन्तजार में क्या मजा होता है ।" ओबराय ने कश लिया--- "बीवी आसानी से हासिल हो जाती है। इसलिए उसके हासिल होने को कोई परवाह नहीं करता। माशूका इन्तजार के बाद हासिल होती है और बेशकीमती लगती है।"
"मुझे ये बात पसन्द नहीं।" हरीश खुदे ने मुंह बनाकर कहा--- "मैं तो सिर्फ पत्नी रखने पर विश्वास रखता हूँ। जैसे कि मेरी टुन्नी। लड़ना भी उसके साथ। प्यार भी उसके साथ। जीना मरना भी उसके साथ। वो सब कुछ है मेरे लिए।"
"तू मुझ में है। तेरे लिए टुन्नी का किस्सा खत्म हो चुका है। मरने के बाद, आंख के माध्यम से तू मेरे शरीर में आ गया है। तेरा शरीर जल चुका है। तू अब वो वाला इंसान नहीं रहा। टुन्नी अब तेरे लिए बेकार हो चुकी है।"
"वो मेरी पत्नी है।"
"पर वो तुझे मर चुका मानती है। मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर लिया उसने हमें ठुकवाने के लिए।"
"कोई बात नहीं मेरा नया रूप देखकर वो कुछ परेशान तो होगी ही। कल जाकर फिर उसे समझाऊंगा।"
"मैं नहीं जाने वाला। आज मेरी काफी बेइज्जती हो गई।"
"कुछ नहीं हुआ।" खुदे ने झल्लाकर कहा--- "थोड़ा बहुत तो चलता ही रहता है। कल मैं टुन्नी के पास...।"
तभी दरवाजे पर आहट हुई।
अमन ओबराय की नज़रें घूमी ।
खुले दरवाजे पर रानी खड़ी थी। शरीर पर गाऊन पहन रखा था। वो इस वक्त बहुत खूबसूरत लग रही थी। गाऊन से उसके उभार जानलेवा अन्दाज में झलक रहे थे। उसकी गोरी बांहें चमक रही थी। ईवनिंग मेकअप कर रखा था।
“आ गई तेरी लैला। दम तो है साली में।” हरीश खुदे कह उठा।
अमन ओबराय मुस्करा पड़ा।
रानी भीतर आई और दरवाजा बंद कर लिया। फिर ओबराय की तरफ बढ़ी। ओबराय उठा और पास आ चुकी रानी को बांहों में लेकर भींच लिया। रानी के होंठों से सिसकारी निकली।
"जान।" रानी का स्वर सरसरा उठा।
"तुम मेरी बांहों में हो। मुझे कितना आराम मिल रहा है रानी।" अमन ओबराय मस्त सा कह उठा।
"कितने दिनों के बाद ये रात फिर से आई है।" रानी ने अपना चेहरा उठाकर उसे देखा।
ओबराय ने रानी के होंठों पर होंठ रख दिए।
लम्बे पलों तक दोनों प्यार करते रहे। फिर ओबराय उसे अलग करता बोला।
“तुम अपना गिलास तैयार करो। आज हम होश खोकर प्यार करेंगे।"
"आज मुझे पागल बना देना। मुझे प्यार की बहुत जरूरत है।" रानी आगे बढ़ कर अपना गिलास तैयार करने लगी। साथ ही उसने गाऊन उतार कर एक तरफ फेंक दिया। नीचे सिर्फ नाईटी थी जो कि कूल्हों तक आ रही थी। छातियां आंखों से ज्यादा दिखाई दे रही थी। सुडौल टांगों की बनावट देखते ही बनती थी। इस वक्त उसका खूबसूरत चेहरा प्यार के एहसास से मदहोश हो रहा था।
ओबराय रानी को तारीफी निगाहों से देख रहा था।
रानी ने अपने गिलास को एक ही बार में आधा खाली कर दिया।
"नौकरों के लिए तो खाली बोतल ही बचती होगी।" हरीश खुदे ने कहा।
"इस वक्त तुम्हें चुप कर जाना चाहिए। जब तुम टुन्नी के पास थे तो मैं कुछ नहीं बोला था।"
"तगड़ा माल है।"
"टुन्नी से बहुत अच्छा है।" ओबराय बोला।
"चुप कर। तुझे क्या पता कि टुन्नी क्या है।"
"तो तुझे क्या पता है कि रानी बिस्तर पर क्या कमाल दिखाती है।"
"वो तो अभी पता चल जायेगा। पर मेरी टुन्नी का मुकाबला कोई नहीं कर सकता।"
रानी की निगाह तब तक ओबराय पर टिक चुकी थी।
“ये तुम फिर धीरे-धीरे हॉस्पिटल की तरह अपने से क्या बातें कर रहे हो?" रानी कह उठी।
अमन ओबराय मुस्करा पड़ा ।
रानी उसे देखे जा रही थी।
"ये सब क्या है जान। तुम तो कह रहे थे कि हॉस्पिटल में तुम मजाक कर रहे थे सबके साथ।"
"सच बताऊं रानी ।"
"हां।" रानी की आंखें सिकुड़ी।
"वो मेरे भीतर है।"
"कौन?" रानी चौंकी।
“हरीश खुदे। जिसकी आंखों से इस वक्त मैं दुनिया देख रहा हूं।”
“ये क्या कह रहे हो जान?" रानी हैरान सी कह उठी--- "कोई किसी के भीतर कैसे आ सकता---।”
"अपनी आंखों के माध्यम से जाने कैसे हरीश खुदे भी मेरे शरीर में आ गया है। वो अब मेरे भीतर रहता है। मेरे से बातें करता है। लोगों से बातें करता है। वो हर पल मेरे साथ रहता है।"
रानी के चेहरे पर घबराहट के भाव उभरे। उसने गिलास खाली कर दिया।
“तुम-तुम मेरे से मजाक कर रहे हो।" रानी कह उठी।
"मैंने तुम्हें सच कहा है।"
"तुम्हें उससे डर नहीं लगता?"
"नहीं। वो मेरा दोस्त बनता जा रहा है। बुरा इन्सान नहीं है हरीश खुदे। समझदार है। उसकी कुछ परेशानियां है जो ठीक हो जायेंगी।"
"मुझे तुमसे डर लगने लगा है जान ।" रानी अजीब से स्वर में बोली।
"डरो मत।" अमन ओबराय हंसा--- "अब मेरे लिए ये साधारण बात है। मुझे आदत पड़ती जा रही है हरीश खुदे की "
"तुम मुझे डरा रहे हो।"
"मुझ पर भरोसा नहीं रानी ?"
"तुम पर तो भरोसा है, परन्तु वो हरीश खुदे जो---।"
"उसके बारे में तुम सोचो भी मत।" ओबराय रानी के पास पहुंचा और उसे बांहों में भर लिया---- "मैं और तुम---।"
"पर वो इस वक्त भी हमारे बीच रहेगा...।"
"नहीं। ऐसे वक्त में वो सो जाता है। अब वो सो चुका है।"
रानी के चेहरे पर अजीब से भाव थे।
"तुमने तो मुझे परेशान कर दिया है जान, कोई किसी के शरीर में कैसे रह सकता है।" रानी हक्की-बक्की बोली--- "दिन में तो मैं ये ही समझ रही थी कि तुम मजाक कर रहे हो। परन्तु ये सच भी कैसे हो सकता है।"
"कुछ मत सोचो। सिर्फ मैं और तुम हैं अब.... अपना गिलास तैयार करो, मेरा भी तैयार करो। मैं तुम में खो जाना चाहता--।"
"व-वो हरीश खुदे...।"
“उसे भूल जाओ। वो अब हमारे बीच में नहीं है। सो गया।" ओबराय ने उसे 'किस' किया--- "तुम्हारी बिल्लौरी आंखों ने मुझे दीवाना बना दिया है तुम्हारा। मैं हर वक्त, तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता---।"
"मुझे छोड़ो। गिलास तैयार करने हैं।"
अमन ओबराय ने उसे बांहों के घेरे से आजाद किया तो वो गिलास तैयार करने लगी।
“तो हॉस्पिटल में पुलिस वालों की बातों का जवाब हरीश खुदे ही दे रहा था?" रानी ने पूछा।
"हां।"
"मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा कि---।"
"तुम कुछ मत समझो रानी। वक्त खराब मत करो। आज रात हमने महीने भर का काम करना है।"
रानी ने एक गिलास खुद थामा, दूसरा उसे थमा दिया।
"कभी-कभी तो लगता है रानी कि मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगा।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता है जान ।" रानी उसके करीब आई और सरसराते स्वर में बोली--- "तुमसे दूर नहीं रह सकती मैं ।"
"जल्दी गिलास खाली करो।" ओबराय ने उसे अपने साथ सटा लिया--- “अब मैं और नहीं रुक सकता।"
"तुमने अभी डिनर नहीं किया---वो---।"
"मैंने शाम को ही खाना खाया है। अभी मुझे तुम्हारे अलावा किसी की जरूरत नहीं है।"
रानी उसके पास से हटी और वार्डरोब खोलकर बोली।
“जान, यहां तुम्हारी रिवॉल्वर रखी है। एक दिन मैं कुछ ढूंढ रही थी तो वो मुझे दिखी।”
"हां।"
"जरा दिखाओ तो वो कैसी होती है उसमें गोली कैसे डालते है। सब कुछ करके दिखाओ।"
"ओह रानी, छोड़ो इन बातों....।"
"प्लीज जान। इससे मुझे व्हिस्की पीने का वक्त मिल जायेगा। थोड़ा नशा चढ़ेगा तो फिर मैं तुम्हें बहुत मजे दूंगी।" रानी मुस्करा कर बोली और आंख दबा दी--- "मुझे थोड़ा वक्त दो कि नशा चढ़ जाये।"
"ठीक है।" अमन ओबराय आगे बढ़ा और वार्डरोब से, कपड़ों के पीछे से रिवॉल्वर निकाली, जो कि 45 की थी। वो लोडेड थी। ओबराय ने उसकी गोलियां निकाली। उन्हें पुनः भरा। रानी को समझाता रहा। इस दौरान रानी हाथ में थामे गिलास के घूंट भरती रही। ओबराय अपना गिलास खाली कर चुका था।
"इसके साथ मैंने लम्बी सी नाल पड़ी देखी थी ।"
"वो साइलैंसर है।" ओबराय ने वार्डरोब से साइलेंसर निकाला और उसे रिवॉल्वर की नाल पर चढ़ा कर दिखाया--- "इसे लगा लेने के बाद गोली चलाई जाये तो आवाज कमरे से बाहर नहीं जाती। किसी को पता ही नहीं चलता कि गोली चलाई गई है। अब बोरियत वाला काम बहुत हो गया।” ओबराय ने साइलेंसर लगी रिवॉल्वर वार्डरोब में रखी--- "मैंने तुम्हारा दिल रखने के लिए ये कीमती वक्त खराब किया। अब आओ। हमें अपनी रात रंगीन करनी चाहिये। मैं बैड पर तुम्हारे जलवे देखने को बेचैन हो रहा हूँ जो तुम दिखाती हो।"
रानी ने मुस्कराकर गिलास रखा और नाईटी उतार फेंकी।
अब वो पेन्टी में ओबराय के सामने खड़ी थी।
अमन ओबराय पागल हो गया। और बाज़ की तरह झपट कर रानी को अपनी बांहों में जकड़ लिया और उठाकर बेड पर लिटा दिया और उसके शरीर के साथ खेलने लगा। रानी भी कम नहीं थी। उसके हाथ भी तेजी से चलने लगे थे।
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दिन के बारह बज रहे थे। अमन ओबराय कार चला रहा था।
“रात मजा आया?" अमन ओबराय मुस्करा कर बोला।
“बहुत। साली कमाल की चीज है। खूबसूरत ही नहीं, बैड पर काबिल भी है।" हरीश खुदे ने कहा।
"टुन्नी से बढ़िया है ना?"
"मैं तुमसे टुन्नी की बात, इस बारे में नहीं करना चाहता।"
"क्यों?"
"वो मेरी पत्नी है।"
"रानी भी तो मेरी है, मैं तो तुमसे रानी की बात---।"
"रानी तुम्हारी पत्नी नहीं है। वो मुफ्त का माल है। अगर वो तुम्हारी पत्नी होती तो तुम मेरे से ये बात करते ही नहीं।"
“तब भी करता। क्योंकि तुम मेरे शरीर में रहते हो। हमारी हर चीज आपस में बंटती है।"
"जो भी कहो, मैं टुन्नी की बात तेरे से नहीं करूंगा।"
“तेरी मर्जी । लेकिन रानी से बढ़िया मुझे कोई और नहीं।"
“एक बात मुझे खटक रही है। मेरी समझ से बाहर है।" हरीश खुदे बोला।
"क्या ?"
"रात उसने रिवॉल्वर की बात क्यों छेड़ी। तेरे से वार्डरोब से वो बाहर क्यों निकलवाया। उसमें गोलियां डालने का तरीका पूछा। साइलेंसर लगवा कर देखा। ऐसा उसने क्यों किया?"
"मूड आ गया होगा।”
"मूड? ये मूड तो बहुत अजीब है कि हाथ में शराब का गिलास है। बैड पर जाने की तैयारी हो चुकी है और वो अचानक रिवॉल्वर की बात छेड़ बैठती है। क्या पहले भी उसने कभी ऐसा किया है?"
"नहीं?"
"फिर रात क्यों किया?"
"ये कोई सोचने वाली बात नहीं है। मामूली बात...।"
"तेरे लिए सोचने वाली बात नहीं होगी। मामूली बात होगी, पर मेरे लिए तो सोचने वाली बात है।" हरीश खुदे ने सोच भरे स्वर में कहा--- "मेरे ख्याल में वो कुछ करना चाहती है रिवॉल्वर से।"
"तुमने सारी जिन्दगी ये सब ही किया है, इसलिए बुरी बात ही सोचोगे।" ओबराय ने कहा।
हरीश खुदे नहीं बोला।
"चुप क्यों हो गया?"
"मैं फिर रात वाली बात पर आता हूं। तुम्हारा एक्सीडेंट होना। मारने की कोशिश किया जाना। साल भर पहले तुम्हारे भाई के साथ भी ऐसा हुआ। अगर तुम दोनों मर जाते हो तो सारी दौलत रानी की होगी।"
"तुम फिर पागलों की तरह सोचने लगे। रात देखा नहीं, रानी और मेरे बीच क्या रिश्ता है।"
"मैं उसे पकड़ लेना चाहता हूं जो तुम्हें मारना चाहता है। क्योंकि तुम मरे तो मेरा भी काम हो जायेगा।"
"वो रानी नहीं है।"
खुदे ने कुछ नहीं कहा।
"आज तुमने पुलिस स्टेशन जाने को कहा।"
"वापसी पर। अभी मुझे बहुत काम करने हैं। देवराज चौहान से मिलना है।"
“तो हम देवराज चौहान के पास जा रहे हैं?"
“हां। मेरे को सामने पाकर वो हैरान हो जायेगा कि मैं मर कर कैसे जिन्दा हो गया।"
"जैसे कल टुन्नी तुझे देखकर हैरान हो गई थी।" अमन ओबराय ने कड़वे स्वर में कहा।
"टुन्नी और देवराज चौहान में फर्क है। वो मुझे फौरन पहचान लेगा। सौ करोड़ से ऊपर का हीरा मेरा है, जो उसके पास पड़ा है।"
"सौ करोड़ ?"
"हां मैं सौ करोड़ से ज्यादा का मालिक हूं।"
“सपने मत ले। टुन्नी की तरह देवराज चौहान ने भी तुझे नहीं पहचानना फिर तू मेरी बेइज्जती करायेगा ।"
“मेरी नज़रों में तेरी कोई इज्जत नहीं है। अपनी भाभी के साथ---।"
"वो बात तू बीच में मत लाया कर।" ओबराय झल्ला कर बोला ।
"क्यों---उससे तेरी असली सूरत सामने आ जाती है।"
"तू ऐसी बातें करेगा तो हम दोनों की गाड़ी नहीं चलने वाली।"
“गाड़ी चलेगी बेटा। तू भी फंसा हुआ है। मैं भी फंसा हुआ हूँ। एक-दूसरे की पीठ थपथपानी ही पड़ेगी।"
कार तेजी से भागी जा रही थी।
"मेरे शरीर में घुस कर तू लोगों को ये बताने की कोशिश कर रहा है कि तू हरीश खुदे है। कोई नहीं मानेगा तेरी बात। लोग तो सामने अमन ओबराय को ही देखते हैं। उन्हें क्या मालूम कि असल मामला क्या है ।"
"अपना थोबड़ा बंद रख। हम पहुंचने जा रहे हैं। यहां से बाईं तरफ कार मोड़ ले।"
पांच मिनट बाद खुदे ने एक बंगले के सामने कार रुकवाई और बोला ।
"ये ही है देवराज चौहान का बंगला। कार यहीं रहने दे, चल भीतर चलते हैं।"
"लेकिन बंगले में हम इस तरह कैसे घुस सकते---।"
"किसी का नहीं, अपना ही बंगला है, चल तो---।"
अमन ओबराय ने इंजन बंद किया और उलझन में पड़ा बाहर निकला।
"तू फिर जूतियां पड़वायेगा।" ओबराय बोला।
"मैं कई दिन देवराज चौहान और जगमोहन के साथ इसी बंगले में रहा था। डकैती करने से पहले। यहीं पर हमने डकैती करने का प्लान तैयार किया था।" खुदे आगे बढ़कर, गेट खोलकर भीतर प्रवेश करता कह उठा--- "मेरे होते तू घबराया मत कर। तेरे को खुश होना चाहिये कि तू हिन्दुस्तान के सबसे बड़े डकैती मास्टर से मिलने जा रहा।"
"उसने भी टुन्नी की तरह लोगों को इकट्ठा कर लिया...।"
"चल तो। सब तेरे सामने आ जायेगा।” हरीश खुदे मुस्कराया--- "तू बीच में मत बोलना। मुझे बात करने देना।"
"तू ही बात कर। मैंने बीच में क्यों बोलना है। मेरे पास है ही क्या बोलने को। मैं तो उसे जानता भी नहीं ।"
बंगले का मुख्यद्वार भिड़ा हुआ था। हरीश खुदे ने धकेल कर दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश करता चला गया। सामने ड्राइंग हाल था। खाली था। वहां कोई नहीं था।
"यहां तो कोई नहीं दिखा।" अमन ओबराय बोला।
"उधर बैडरूम में होंगे।" कहने के साथ ही खुदे एक तरफ बढ़ गया कि तभी ठिठक गया।
सामने से जगमोहन कॉफी के दो प्याले थामे आ रहा था। देवराज चौहान और जगमोहन कुछ पहले ही लंच लेकर हटे थे। आज लंच जल्दी ले लिया था, क्योंकि सुबह ब्रेकफास्ट भी नहीं किया था और अब कॉफी पीने जा रहे थे।
जगमोहन एक अजनबी को बंगले में पाकर हैरान हो उठा।
"कौन हो तुम?" जगमोहन के होठों से निकला।
हरीश खुदे रहस्य भरे अन्दाज में मुस्कराया।
जगमोहन अमन ओबराय को देखे जा रहा था।
हरीश खुदे की मुस्कान देखकर जगमोहन सतर्क हुआ।
"तुम भीतर कैसे आ गये। कौन हो तुम?" कहते हुए जगमोहन तेजी से आगे बढ़ा और प्याले सैन्टर टेबल पर रख दिए। फिर अमन ओबराय की तरफ पलट कर बोला--- "कौन हो तुम, अपने बारे में बोलो---जल्दी।"
"पहचाना नहीं ?" खुदे मुस्कराया।
"नहीं।"
"मेरा बोलने का लहजा नोट करो। मेरी आंखों में देखो कि ये आँखें तुमने कहां देखी--।"
"ये खेल मत खेल ।" जगमोहन का स्वर कठोर हो गया--- "सीधी तरह अपने बारे में बता...।"
"अबे मैं हरीश खुदे हूं।" खुदे हंसकर बोला।
"क्या?" जगमोहन हक्का-बक्का रह गया।
"हैरान हो गया ना। तूने सोचा मैं मर गया पर मैं जिन्दा हूं। अपनी जिन्दा आंखों की वजह से बच---।"
तभी सामने से आते देवराज चौहान को देखा खुदे ने ।
जगमोहन उलझन में पड़ा, अमन ओबराय को देख रहा था।
देवराज चौहान ने भी अमन ओबराय को देख लिया था।
"मैं आ गया देवराज चौहान ।" हरीश खुदे देवराज चौहान को देखते ही कह उठा--- "बहुत बुरा हुआ। तुमने कितनी मेहनत से डकैती को अंजाम दिया। योजना बनाई। लोगों को इकट्ठे किया। फिर सारी तैयारी की। लेकिन बजरंग कराड़े और सोनी ने लालच में आकर सारा मामला बिगाड़ दिया। बारू को बेहोश कर दिया मुझे भी वो सुई वाली गन से बेहोश करने जा रहा था, पर मैंने उसकी हरकत पहले ही भांप ली और उस पर झपट पड़ा। मैं बजरंग पर काबू पा लेता परन्तु तभी सोनी ने रिवॉल्वर निकाल कर मुझ पर फायर कर दिया। गोली मेरी पीठ पर लगी फिर दो गोलियां मेरी छाती पर मारी और मैं मर गया देवराज चौहान। उन कमीनों ने मुझे मार दिया।" हरीश खुदे की आवाज भर्रा उठी--- "पर मेरी आंखें जिन्दा रही। खुली पड़ी थी मेरी आंखें और मैं सब देख रहा था। मेरे कान भी ठीक से काम कर रहे थे मैं सुन रहा था। दिमाग तो एकदम मरता नहीं। कई घंटे वो जिन्दा रहता है। लेकिन मेरे साथ बहुत बुरा---।"
"ये पुलिस वाला हो सकता है।" जगमोहन ने दांत भींच कर कहा और रिवॉल्वर निकाल ली।
देवराज चौहान की नज़रों में भी कठोरता आ गई थी।
“पुलिस वाला? कौन---मैं?" हरीश खुदे बोला--- “जगमोहन मैं हरीश खुदे हूं, खुदे...।"
"चुप हो जा, वरना गोली से उड़ा दूंगा।" जगमोहन गुर्राया ।
हरीश खुदे हक्का-बक्का सा जगमोहन को देखता रहा।
देवराज चौहान, अमन ओबराय के पास और रिवॉल्वर निकाल कर जगमोहन से बोला।
"बाहर चैक करो।"
जगमोहन उसी पल रिवॉल्वर जेब में रखते, बाहर की तरफ बढ़ गया।
तभी देवराज चौहान ने अमन ओबराय की छाती पर रिवॉल्वर रखी और कठोर स्वर में बोला।
"कौन है तू?"
"मैं--मैं हरीश खुदे--वो ही तेरा खुदे, जिसने साठी के साथ लड़ाई में तेरा साथ दिया। जिसने विलास डोगरा और मोना चौधरी के खिलाफ तेरा साथ दिया। मैंने अपनी जान की परवाह नहीं की और तेरा साथ देता रहा, क्योंकि तूने कहा था कि तू मेरे लिए डकैती करेगा और मुझे इतना पैसा देगा कि मेरी सारी जिन्दगी मजे से कटेगी। मैं तेरे सामने खड़ा...।"
“बकवास मत कर।” देवराज चौहान गुर्रा उठा--- "तूने जो कहा है, वो सही है पर तू हरीश खुदे नहीं...।"
तभी जगमोहन भीतर आता कह उठा।
"बाहर कोई नहीं है। ये अकेला ही है।"
"तुम दोनों क्या मुझे पुलिस वाला समझ रहे हो।" खुदे हंस पड़ा---"हद हो गई। मैं हरीश खुदे हूं। तुम्हारा साथी। हम सबने मिल कर तो नैशनल बैंक में डकैती की थी। मैंने तो सोचा था कि बजरंग और सोनी को ढूंढकर बुरी मौत मारूंगा। फिर मुझे पता चला कि शहाडा नाम की जगह पर पुलिस ने दोनों को डकैती की दौलत के साथ पकड़ लिया है। जैसा उन्होंने किया था वैसा ही फल पाया। अब वो सारी उम्र जेल में ही बिता देंगे, हरामी कहीं के।"
देवराज चौहान अमन ओबराय की छाती पर रिवॉल्वर रखे, उसे घूरे जा रहा था।
“इसका बात करने का अन्दाज ठीक हरीश खुदे जैसा ही है।" जगमोहन बोला।
“क्यों ना होगा।" खुदे मुस्करा कर बोला--- “मैं हरीश खुदे जो हूं।"
"ये जो बातें कह रहा है, वो भी सही है।" देवराज चौहान बोला--- “इन बातों का इसे कैसे पता चला?"
“मुझे ये सब बातें पता नहीं होंगी तो किसे पता होगी। मैं---।"
"कौन हो तुम?" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में पूछा।
"क्या मजाक कर रहा है देवराज चौहान तू भी। मैं ही मिला हूं तेरे को मजाक करने---।"
“अपने बारे में सच-सच बता।" देवराज चौहान गुर्रा उठा।
"ये तू क्या कह रहा है। क्या सच बताऊं। सच तो कह रहा हूं कि मैं हरीश खुदे हूं। पहचाना नहीं क्या ?"
“मैंने तुझे पहले कभी नहीं देखा और जिस हरीश खुदे होने का तू दम भर रहा है वो मर चुका है।"
"ओह ।" हरीश खुदे सिर हिलाकर बोला--- “जल्दबाजी और तेरे से मिलने की खुशी में मैं तेरे को बताना भूल गया कि मेरे साथ क्या-क्या हुआ। ये बात तो मैं भी कह चुका हूं कि बजरंग और सोनी ने मुझे गोलियां मारी और मैं मर गया। उसके बाद मेरी जिन्दा आंखों को निकालकर अमन ओबराय की आंखों वाली जगह लगा दिया गया। इसकी आंखें एक्सीडेंट में खराब हो गई। और जब इसने आंखें खोली तो मैं इसके भीतर मौजूद था। अपनी जिन्दा आंखों के माध्यम से। मैं अमन ओबराय के शरीर में पहुँच चुका था। मेरी सोचें, मेरा सब कुछ अमन ओबराय के भीतर अ गया। अब एक ही शरीर में हम दो रहते हैं। अमन ओबराय और मैं भी---।"
देवराज चौहान के चेहरे पर विषैली मुस्कान उभरी।
"तो इस तरह हरीश खुदे फिर जिन्दा हो गया।" देवराज चौहान मुस्कराया।
"सौ प्रतिशत मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूं।" तभी देवराज चौहान का इशारा पाकर जनमोहन बंगले के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ गया।
"तुमने जगमोहन को क्या इशारा किया?"
"अभी पता चल जायेगा।" देवराज चौहान होंठ सिकोड़ कर बोला ।
"वो हीरा कहां है?"
"हीरा?"
"स्टार डायमंड। जो हमने नेशनल बैंक से हासिल किया था। वो तुमने मेरे को देने का वादा किया था। सौ करोड़ से ज्यादा की कीमत है उसकी। तुमने ही बताया था। वो तो तुम्हारे ही पास है। पुलिस के हाथ नहीं पड़ा।" खुदे ने देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान ने अजीब सी नज़रों से अमन ओबराय को देखा।
"हैरानी है।" देवराज चौहान ने कहा।
"किस बात की ?"
"ये ही कि तुम्हें हर बात सटीक ढंग से पता है। अभी तक एक भी बात तुमने गलत नहीं कही ।"
"मैं गलत क्यों कहूंगा? शुरू से ही तुम्हारे साथ था। सब पता है मुझे। हीरा संभाल रखा है ना?" खुदे बोला।
तभी जगमोहन नायलोन की डोरी थामें वहां आ पहुंचा।
खुदे ने आंखें सिकोड़ कर डोरी को देखा।
"चुपचाप अपने हाथ-पांव बंधवा लो।" देवराज चौहान ने अमन ओबराय की छाती से रिवॉल्वर की नाल लगाये सख्त स्वर में कहा--- "तुम्हारे पास मेरे बारे में बहुत सटीक जानकारी है। अभी मुझे तुमसे बहुत बातें करती है। ऐसे में हाथ-पांव बंधवा लेना जरूरी है कि हम आराम से बात कर सकें। तुमने तो मेरी ही बातें मुझे बता कर हैरान कर...।"
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है देवराज चौहान, मैं हरीश खुदे---।"
उसी पल देवराज चौहान ने रिवॉल्वर जेब में रखी और अमन ओबराय पर झपट पड़ा।
देवराज चौहान ने अमन ओबराय पर काबू पाया और जगमोहन ने उसके हाथ पांव बांध दिये। इस दौरान हरीश खुदे चीखता, चिल्लाता, उन्हें समझाता रहा परन्तु उन दोनों पर उसकी बातों का कोई असर नहीं हुआ। अब हालत ये थी कि अमन ओबराय बंधा फर्श पर पड़ा था और देवराज चौहान और जगमोहन पास में खड़े थे।
"ये कोई बहुत बड़ा शातिर लगता है।" जगमोहन बोला।
"मुझे यकीन नहीं आता कि ये अकेला होगा।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "बाहर और लोग भी।"
"पर बाहर कोई नहीं है।"
"एक बार फिर देखो, ये जैसी बातें कर रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि कोई जाल हमारे गिर्द फैलाया जा रहा---।"
"देवराज चौहान।" तभी नीचे पड़ा हरीश खुदे तड़प कर कह उठा--- "मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि तुम इतने घटिया इन्सान निकलोगे। कहते तो ये रहे कि मेरे खातिर डकैती कर रहे हो। मुझे डकैती में हासिल सौ करोड़ से ज्यादा की कीमत का हीरा दोगे। इस तरह तुम मेरे एहसानों का बदला चुकाने का इरादा रखते थे । तुमने डकैती की। मैंने खुशी-खुशी तुम्हारा साथ दिया डकैती में और अब जब अपनी बात पर खरा उतरने का वक्त आया तो तुम बेईमान हो गये। हीरा देना तो दूर, मुझे पहचानने से इन्कार कर रहे हो।"
"क्योंकि तुम हरीश खुदे नहीं हो।" देवराज चौहान ने अमन ओबराय को घूरा--- "तुम अनजान आदमी हो मेरे लिए।"
"हीरा नहीं देनी तो मत दो, कम से कम...।"
"हीरे की कीमत, एक सौ पांच करोड़ मैं खुदे की पत्नी को दे चुका हूं।"
“क्या?” बंधनों में जकड़ा हरीश खुदे चौंका--- "तुमने-तुमने एक सौ पांच करोड़ टुन्नी को दे दिया?"
"तुमसे तो अभी बात करूंगा मैं।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा--- "तुमने जो भी कहा है उसके बाद बचने वाले नहीं। क्योंकि तुम्हारी सब बातें मेरी और खुदे की व्यक्तिगत बातें थी । ये बातें खुदे किसी को नहीं बतायेगा तो तुम्हें कैसे पता चल---।"
"अरे भाई, मैं ही हूँ। तू मुझे पहचान क्यों नहीं रहा देवराज चौहान।"
"खुदे गोलियां लगने से मर चुका है। मैंने खुद उसकी लाश चैक की थी। वो मरा पड़ा था।"
"तो मैंने कब कहा है कि मैं नहीं मरा। मैंने तो कहा है कि गोलियां लगने से मैं मर गया था।" खुदे ने झल्ला कर कहा--- "परन्तु मेरी आंखें जिन्दा रही और जिन्दा आंखों को अमन ओबरॉय को लगा दी गई तो...।"
“अपनी बकवास बंद करो।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा--- “बाहर एक बार फिर चेक करो। कोई हमारे खिलाफ गहरी चाल चलने की कोशिश में है और माध्यम बनाया है इस आदमी को।"
जगमोहन पुनः बाहर की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा कर कश लिया।
“तुम्हारी अकल मारी गई है देवराज चौहान जो मुझे पहचान नहीं रहे या जानबूझ कर पहचानना नहीं...।"
उसकी बात सुने बिना देवराज चौहान कुछ दूर पड़े सोफों की तरफ बढ़ गया।
"तुम्हें मेरी बात माननी चाहिये कि मैं हरीश खुदे हूँ। हाथ-पांव खोल दो देवराज चौहान। ये तुम गलत कर रहे हो।"
पन्द्रह कदम दूर देवराज चौहान सोफे पर जा बैठा। उसकी तरफ देखा भी नहीं ।
"ये क्या हो रहा है।" खुदे परेशान स्वर में बोला--- "देवराज चौहान मेरे साथ कैसा व्यवहार कर रहा---।"
"खुदे---।" अमन ओबराय गहरी सांस लेकर बोला।
"क्या है?" खुदे कसमसा कर बोला।
“दो दिन में ही तूने मेरी ऐसी-तैसी कर दी।"
"अब क्या कर दिया है मैंने?"
“कल तू मुझे टुन्नी के पास ले गया। कैसा स्वागत किया टुन्नी ने हमारा तुझे पता ही है। अब तू मुझे देवराज चौहान के पास ले आया। ये तो टुन्नी से भी बीस कदम आगे निकला। मेरे हाथ-पांव ही बांध दिए। करोड़पति अमन ओबराय की इस हालत पर कोई भरोसा भी नहीं करेगा। दो दिन में तूने मुझे जमीन पर ला पटका। अब मुझे समझ आ गया है कि तेरे जैसे बुरे इन्सान के साथ रहूंगा तो रोज ही मुसीबत में फंसूंगा। कोई बड़ी बात नहीं कि तेरी वजह से कोई मेरे हाथ-पांव ही तोड़ दे। अभी इस देवराज चौहान का क्या भरोसा। कहीं, ये ही मुझे शूट कर दे तो।"
"मरा क्यों जा रहा है। देवराज चौहान तुझे नहीं मारेगा।"
"तू तो ये भी कहता था कि देवराज चौहान तुझे गले से लगा लेगा। उसने तो मेरे हाथ-पांव ही बांध दिए।"
“उसे मेरी बातों का विश्वास नहीं हो रहा।"
"तेरी बातों का कोई भी भरोसा नहीं करेगा। तेरी बात ही ऐसी है। कल टुन्नी ने भरोसा किया क्या? उसने भी मोहल्ले के आदमी इकट्ठे कर लिए थे। अगर वहां से निकलते नहीं तो शायद पिटाई हो जाती।”
"यार मुझे तो चिन्ता होने लगी है।” हरीश खुदे परेशान सा कह उठा।
"किस बात की?"
"देवराज चौहान कहता है कि उस हीरे की कीमत, एक सौ पांच करोड़ टुन्नी को दे दिए हैं।"
"टुन्नी को क्यों दिए ?"
"मैंने ही उसे एक बार कहा था कि मुझे कुछ हो जाये तो पैसा टुन्नी को दे देना।"
"फिर तो तेरे को खुश होना चाहिये कि---।"
"खुश तो बाद में होऊंगा। मुझे चिन्ता है कि टुन्नी ने इतनी बड़ी रकम कैसे संभाली होगी। कोई चोरी कर गया। या उसे मार कर कोई पैसा ले गया तो बुरी बात होगी। इतना ज्यादा पैसा टुन्नी नहीं संभाल सकती। मुझे टुन्नी के पास जाना होगा।"
"टुन्नी के पास? आज फिर तू---।"
"उसे समझाना पड़ेगा कि एक सौ पांच करोड़ को कैसे संभाले।” हरीश खुदे ने व्याकुल स्वर में कहा--- “कितनी चिन्ताएं मेरे सिर पर सवार हो गई। टुन्नी को समझाना है कि मैं ही हरीश खुदे हूं। उसे समझाना है कि पैसा कहां रखे, कहीं फंस ना जाये। इधर देवराज चौहान नहीं मानता कि मैं हरीश खुदे हूं। उसे कैसे समझाऊं और---।"
"मरने के बाद तू फालतू के चक्करों में पड़ा है।" अमन ओबराय बोला।
"फालतू के चक्कर ?"
"हां। तेरा शरीर नहीं तो तू भी नहीं। ये ठीक है कि तू अब मेरे शरीर में रहता है। तुझे मैं जानता हूं। परन्तु तुझे दूसरा कोई नहीं जान-पहचान सकता। क्योंकि सामने वाला तो मेरा ही शरीर देखता है, मुझे अमन ओबराय समझता है। और तू दूसरों को कहता-फिरता है कि तू हरीश खुदे है तो कोई क्यों तेरी बात पर यकीन करेगा।" अमन ओबराय ने गम्भीर स्वर में कहा।
"बात तो तेरी ठीक है।” हरीश खुदे भी गम्भीर था।
“तेरी समझदारी इसी में है कि मेरे साथ एक नई जिन्दगी की शुरुआत कर। जो जिन्दगी में जी रहा हूं उसी में घुल-मिल जा और मेरी जिन्दगी में से ही अपने लिए शान्ति तलाश कर। खामखाह के पचड़े छोड़ दे।"
"तू समझदारी की भी बातें करता है।"
"मैं बहुत बड़ा बिजनेस चलाता हूं। समझदारी की मेरे में कमी नहीं है, पर तू मेरी बात सुने तब ना।"
"लेकिन यार टुन्नी के पास एक सौ पांच करोड़---।"
"फिर टुन्नी ?"
"वो मेरी पत्नी है। उसकी चिन्ता नहीं करूंगा तो किसकी करूंगा। तू रानी की चिन्ता करता है ना?"
"रानी मुझे समझती है। पर टुन्नी तेरे को अपना पति नहीं मानती। वो तो तेरे को पिटवाने के लिए...।"
"एक सौ पांच करोड़ की रकम मालूम है कितनी होती है।"
"मेरे को क्या कहता है, मैं नहीं जानता क्या?"
"इतना नकद पैसा टुन्नी ने कहां रखा होगा। बेचारी कहीं मुसीबत में ना फंस जाये।"
"क्या पता देवराज चौहान यूं ही कह रहा हो। उसने टुन्नी को पैसा दिया ही नहीं...।"
"देवराज चौहान को तू नहीं जानता। वो कहता है दिया है तो दिया है। टुन्नी तो हमेशा मेरे भरोसे ही रहती थी। उसे तो नोट गिनने की भी समझ नहीं है। इतनी बड़ी रकम को कैसे सम्भालेगी। कहीं पुलिस ना पकड़ ले या---।"
"तूने टुन्नी के पास जाना है ना?" अमन ओबराय मुंह बनाकर बोला।
"हां। उसके पास तो जरूर जाना...।"
"तो पहले यहां से निकल। देवराज चौहान से कैसे बचेगा। वो तो मुझे ही देख रहा है जिसे उसने पहले कभी नहीं देखा और मेरे मुंह से उसने अपने बारे में ऐसी बातें सुन ली, जिसे कि वो और हरीश खुदे जानते थे। ऐसे में वो मुझे छोड़ने वाला नहीं। वो तो इस बात का शक कर रहा है कि मैं उसके साथ कोई गड़बड़ करने यहां आया हूं। इन हालातों में वो ये ही सोचेगा।"
हरीश खुदे ने कुछ नहीं कहा।
"समझ रहा है मेरी बात?" ओबराय ने कहा।
"सब समझ रहा हूं।” खुदे ने गम्भीर स्वर में कहा--- "एक बार फिर देवराज चौहान को समझाने की कोशिश---।"
"वो मुझे गोली मार देगा।"
“फिक्र मत कर। तुझे गोली नहीं लगने...।"
उसी पल जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया और दरवाजा बंद करता बोला।
"बाहर सब ठीक है। ये अकेला ही है। एक कार बाहर खड़ी है, वो इसी की होगी।"
"मैं उसी कार पर आया हूँ। सफेद कार जो गेट के पास खड़ी है।” हरीश खुदे ऊंचे स्वर में कह उठा--- “तूने मुझे बांध कर बहुत गलत काम किया है देवराज चौहान। कल टुन्नी के पास गया तो उसने भी मुझे नहीं पहचाना। तेरे पास इस आशा से आया था कि तू जरूर मुझे पहचान लेगा। पर तूने तो बहुत बुरा व्यवहार किया मेरे साथ---।"
“इसे मेरे पास ले आ।" देवराज चौहान ने कहा।
जगमोहन ने बंधे-बंधे ही अमन ओबराय को उठाया और सोफों के बीच ला छोड़ा।
“अब बोल ।” देवराज चौहान ने अमन ओबराय को देखा--- "क्या बोलता है तू?"
"मैं हरीश खुदे हूं देवराज चौहान। पहचान मुझे...मै...।"
"साला बकवास कर रहा है।" जगमोहन तीखे स्वर में बोला--- “मैं सीधा करूं इसे?"
"मैं बकवास नहीं कर रहा।" हरीश खुदे तेज स्वर में बोला--- “मैं खुदे...!”
"तूने अभी कहा था कि तू टुन्नी के पास भी गया था।" देवराज चौहान ने कहा।
“हां।” खुदे ने सिर हिलाया--- "कल मैं टुन्नी के पास गया था। उससे मिला और--।"
"टुन्नी के पास क्यों गया था?"
"क्यों गया था? कमाल है। वो मेरी पत्नी है, तो उसके पास क्यों नहीं जाऊंगा। मैं उसे बताने गया था कि मैं जिन्दा हूं अभी, वो किसी बात की फिक्र मत करे।" खुदे का स्वर भर्रा उठा।
“लेकिन देवराज चौहान उसने मुझे पहचानने से इन्कार कर दिया। मेरी टुन्नी ने मुझे पहचाना ही नहीं। मोहल्ले के लोगों को इकट्ठा करने लगी कि---।"
"इसे मेरे हवाले कर दो।" जगमोहन कठोर स्वर में बोला--- "पांच मिनट में सीधा कर दूंगा।"
“वाह---।" खुदे ने जगमोहन से तीखे स्वर में कहा--- “बहुत बढ़िया शब्द बोल रहा है मेरे लिए। पहले तो मुझे सिर आंखों पर बिठाते थे और अब सीधा करने की बात कर रहा है तू । शर्म नहीं आती जो मुझे इस तरह बांध... ।"
"मेरे से बात कर।"
“बोल देवराज चौहान ।"
"तू है कौन?"
"मैं हरीश खुदे...।"
"मैंने पूछा है तू कौन है।” देवराज चौहान ने उसकी तरफ उंगली की।
दो पलों की खामोशी के बाद खुदे ने ओबराय से कहा ।
“अब तू इसकी बातों का जवाब दे।" फिर वो देवराज चौहान से बोला--- “अब तेरे से अमन ओबराय बात करेगा।"
"अमन ओबराय कौन ?" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
"जिसके शरीर में मैं रहता हूं।"
जगमोहन के चेहरे पर दिलचस्पी के भाव उभरे। वो भी सोफे पर बैठ गया।
“मैं अमन ओबराय हूं। मुम्बई का बड़ा बिजनेस मैन ।” अमन ओबराय बोला।
"अपने बारे में बता।"
अमन ओबराय ने पांच मिनट लगाकर अपने बारे में बताया।
“ये हरीश खुदे और अमन ओबराय का क्या चक्कर है ?" देवराज चौहान ने पूछा।
अमन ओबराय ने आंखें खराब होने और हरीश खुदे की आंखें लगाई जाने की सारी बातें बता दी।
सुनकर देवराज चौहान और जगमोहन सन्नाटे में रह गये।
“तुम्हारा मतलब कि हरीश खुदे की आंखें तुम्हें लगी और तुम में खुदे जाग गया।" जगमोहन अचकचा कर बोला।
"हां--।"
"ऐसा नहीं होता कभी।" देवराज चौहान ने कहा--- "ये गलत है। ऐसा सुना भी नहीं गया...।"
"तुम ठीक कहते हो। पर अब ऐसा हो गया है। अमन ओबराय ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मैं तुम्हारे सामने जीता-जागता उदाहरण मौजूद हूं कि खुदे की आंखें मुझे लगने के बाद, वो मुझमें प्रवेश कर चुका है वो मेरे मुंह से बोलता है। खाता है। मेरे शरीर की हर चीज का इस्तेमाल करता है। मेरे आधे दिमाग पर खुदे ने कब्जा कर लिया है। अब एक शरीर में हम दो रहते हैं। मैं भी और हरीश खुदे भी। कुदरत का ये अजीब करिश्मा कैसे हुआ, मैं नहीं जानता। परन्तु ये बात मैं जानता हूं कि हरीश खुदे मेरे में रहता है।"
जगमोहन के चेहरे पर आश्चर्य नाच रहा था।
देवराज चौहान आंखें सिकोड़े अमन ओबराय को देखे जा रहा था।
सन्नाटा सा आ ठहरा था वहां ।
"ये... ये पागल है। अजीब सी बात कह रहा है।" जगमोहन के होठों से निकला--- "कौन विश्वास करेगा कि---।"
"ये ही तो दिक्कत है।” हरीश खुदे बोल पड़ा--- "कि कोई भरोसा नहीं कर रहा। टुन्नी ने भी मुझे नहीं समझा और तुम लोगों ने भी मेरा क्या हाल कर रखा है बांधकर। तुम्हारे साथ डकैती क्या की, मेरा अस्तित्व ही खत्म हो।"
"वो बजरंग और सोनी की वजह से हुआ।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला।
"जानता हूं।"
"तो तुम्हें सोनी ने गोलियां मारी?"
"हां। तुम यकीन कर रहे हो ना कि मैं हरीश खुदे ही हूं।"
“मैं यकीन नहीं कर रहा। तुमसे बात कर रहा हूं। तुम्हारी बात पर कोई भी यकीन नहीं कर सकता।"
"ये मैं कैसी मुसीबत में फंस गया हूं।"
"जगमोहन, इसकी टांगों के बंधन खोल दो कि कम से कम ये ठीक से बैठ सके।" देवराज चौहान के चेहरे पर सोचें थी।
जगमोहन ने बिना कुछ कहे ऐसा ही किया।
अमन ओबराय अब ठीक से बैठ गया। हाथ पीछे की तरफ बंधे थे।
“हाथ नहीं खोलोगे।” हरीश खुदे ने पूछा।
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
"तुम क्या कहते हो?"
"इसकी बात पर भरोसा कभी भी नहीं किया जा सकता। कौन मानेगा ये बात कि---।"
"कोई नहीं मानेगा। मैं भी नहीं मान सकता। असम्भव है इसकी बातें।" देवराज चौहान ने कहा।
"ये कोई फ्राड हो सकता है। ये हमारे साथ कोई चाल---।"
"ऐसा मत कह यार।" हरीश खुदे नाराजगी से कह उठा--- "पहले ही किस्मत की ऐसी मार पड़ी है कि संभल नहीं पा रहा हूं और ऊपर से तू सन्देह, शक-शुबह कर रहा है। मेरे पर कुछ तो दया करो।"
"तुम सच में मुम्बई के बिजनेस मैन अमन ओबराय हो?" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।
“हां।" अमन ओबराय बोला ।
"जगमोहन मोबाइल से इसकी फोटो लो और इसके बंगले पर जाकर, फोटो दिखाकर पता करो कि ये वास्तव में अमन ओबराय नाम का बिजनेसमैन है। टुन्नी के पास भी जाना और उसे भी तस्वीर दिखाकर पूछना कि क्या ये आदमी उसके पास कल आया था और आया था तो क्या-क्या बातें की थी इसने ?"
"ये काम तो मैं कर लेता हूं पर इससे होगा क्या?" जगमोहन ने पूछा ।
"ये तय होगा कि इसे जिन्दा छोड़ना है या मारना है।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- “अगर इसने सच में अपने बारे में सही बताया है। ये करोड़पति बिजनेसमैन है तो कम से कम हमें इस बात का भरोसा हो जायेगा कि इन बातों की आड़ में हमारे खिलाफ कोई साजिश नहीं रची जा रही। तब इसे छोड़ दिया जायेगा।"
"सुन लिया।" अमन ओबराय ने तीखे स्वर में कहा--- “तूने मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया।"
"सही कहता है तू ।” हरीश खुदे थके स्वर में बोला--- "ये सब मेरी वजह से हो रहा है।"
जगमोहन ने अमन ओबराय की तस्वीर खींची फोन से और बाहर निकलता चला गया।
"करोड़पति अमन ओबराय की ये हालत।" अमन ओबराय ने गहरी सांस ली--- “रानी को पता चल जाये तो---।"
"चुप कर। मुझे बात करने दे देवराज चौहान से।”
देवराज चौहान की निगाह अमन ओबराय पर थी।
“देवराज चौहान तुमने कहा कि एक सौ पांच करोड़ तुमने दुन्नी को दे दिए हैं।” हरीश खुदे बोला।
"इस बारे में मैं तुमसे कोई बात नहीं करूंगा।"
"तुमने ऐसा इसलिए किया कि मैंने तुम्हें कहा था अगर मुझे कुछ हो जाये तो मेरा हिस्सा मेरी पत्नी को दे देना।"
देवराज चौहान ने अमन ओबराय की आंखों में देखा।
कई पलों की चुप्पी के बाद देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिला दिया।
"लेकिन तुमने ये भी सोचा है कि वो अकेली उस पैसे को संभालेगी कैसे। कोई उसे मारकर पैसा ले गया तो...।"
"तुम क्यों चिन्ता करते हो?"
"मैं? मैं चिन्ता नहीं करूंगा तो कौन करेगा। मैं उसका पति हूँ। उसका अच्छा बुरा सोचना मेरा काम...।"
“उसका पति हरीश खुदे मर चुका---।"
"मैं जिन्दा हूं।"
"तुम्हारी बात का मैं कभी भी भरोसा नहीं कर सकता। ये झूठी बात है कि खुदे की आंखें लगने से, खुदे तुम्हारे भीतर आ गया।"
हरीश खुदे, देवराज को देखता रह गया।
"ये तो बोत बड़ी गड़बड़ हो गई देवराज चौहान ।" खुदे परेशान सा कह उठा--- “इसका मतलब मुझे कोई पहचानेगा ही नहीं।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"ये क्या हो रहा है ओबराय ?" हरीश खुदे ने थकी सी सांस ली ।
"तेरे को समझ जाना चाहिये कि तेरा शरीर जला दिया गया है। तुझे गोलियां लगी और तू मर गया। परन्तु किसी करिश्में की वजह से, अपनी जिन्दा आंखों की वजह से तू जिन्दा रहा और मुझे आंखें लगने से तू मेरे शरीर में प्रवेश कर गया तो इस करिश्में के आगे तू सिर झुका और अपनी नई जिन्दगी शुरू कर ।" अमन ओबराय बोला।
"नई जिन्दगी ?"
"मेरे साथ। मैं करोड़पति हूं। बिजनेस चलते हैं मेरे। खा-पी ऐश कर। तेरे को कोई कमी नहीं रहेगी और...।"
"और टुन्नी ?"
"वो अब तेरी जिन्दगी का हिस्सा नहीं...।"
"लेकिन मैं हरीश खुदे हूं। इस बात को तू कैसे नकार सकता है।" खुदे तेज स्वर में बोला।
"मैं नहीं नाकार रहा। दुनिया तेरे को नाकार रही है। दुनिया कहती है कि हरीश खुदे मर गया।” ओबराय ने कहा।
"कैसी मुसीबत है, ना इधर का रहा ना उधर का---।"
“हिम्मत मत हार। मैं तेरे साथ हूं। मेरा शरीर तेरे पास है। मेरे में रहकर तू मजेदार जिन्दगी जी सकता है। ये बात अलग है कि तुझे कोई नहीं जानेगा। सब अमन ओबराय को ही जानेंगे।"
"तू तो मुझे जीते-जी मार रहा है।" हरीश खुदे ने गुस्से से कहा।
“मुझे माफ कर। तेरे को समझाना मेरे बस का नहीं। वक्त ही तेरे को समझायेगा।" ओबराय ने गहरी सांस लेकर कहा।
देवराज चौहान के कानों में, अमन ओबराय के होठों से निकलती बड़बड़ाहट तो पड़ रही थी। परन्तु वो नहीं समझ रहा था कि क्या हो रहा है। उसके ख्याल से तो अमन ओबराय परेशान होकर बड़बड़ा रहा था। या उसे इस तरह बोलते रहने की आदत थी ।
"देवराज चौहान।” एकाएक हरीश खुदे बोला--- “उस्मान अली, पूरन दागड़े और सतीश बारू कैसे हैं?"
"उनसे अब मेरा कोई वास्ता नहीं। हम सब सिर्फ डकैती करने के लिए इकट्ठे हुए थे।" देवराज चौहान बोला ।
"नोट वगैहरा तो नहीं मिले होंगे उन्हें। वो सारा सत्यानाश तो बजरंग ने, सोनी ने कर दिया था।"
देवराज चौहान उसे कुछ पल देखता रहा कि फिर मुस्करा कर बोला ।
"तेरी बातें सुनकर ऐसा ही लगता है जैसे हरीश खुदे मुझसे बात कर रहा हो। परन्तु मैं इस बात को कभी नहीं मान सकता क्योंकि वो मर चुका है। रही बात जिन्दा आंखों की तो वो एक बकवास के अलावा कुछ नहीं है।"
“मुझे तुम्हारे पास आकर ऐसी बातें करने से क्या मिलेगा ?"
“वो तुम जानो। मैंने तो तुम्हारे बारे में सिर्फ इतना देखना है कि तुम मेरे लिए नुकसान देह तो नहीं हो। सच में बड़े बिजनेसमैन अमन ओबराय हो, अगर हो तो तुम्हें इस शर्त पर जाने दूंगा कि दोबारा कभी मेरे रास्ते में ना आना। कभी---।"
"तुम मुझे अमन ओबराय मानते हो तो मैं अमन ओबराय तुम्हारी और खुदे की बातें कैसे जानता हूं?” खुदे बोला।
"शायद तुम खुदे के दोस्त हो और खुदे तुम्हें सब बातें बताता रहा। अब जब खुदे मर गया तो तुम नये ड्रामे के साथ मेरे पास आ गये और शायद उस हीरे की दौलत का कुछ हिस्सा तुम्हें मिल जाये। या कोई और बात हो सकती है।"
"करवा दिया मेरा मुंह काला।" अमन ओबराय, खुदे से बोला--- "देवराज चौहान कहता है कि अमन ओबराय ये सब ड्रामा कर रहा है और डकैती की दौलत के लालच की खातिर यहां आया है।"
“मैं खुद फंसा पड़ा हूं। तुझे क्या हौसला दूं। कोई मानता ही नहीं कि मैं हरीश खुदे हूं।"
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