भुतहा गेस्ट हाउस
आधुनिक समय में बुद्धिजीवी वर्ग, पुरानी भूत-प्रेत, आत्मा, पुनर्जन्म जैसी धारणाओं को मिथ्या करार देते हुए, इसपर विश्वास करने वालों को अक्सर असभ्य एवं अन्धविश्वासी ठहराते हैं। परंतु कैसा हो, यही बुद्धिजीवी वर्ग आत्मा जैसी चीज़ पर न सिर्फ विश्वास करें, अपितु इससे भयभीत होकर अपने घुटने टेक दे।
अगर आप शिमला में हैं, और बात भूत, प्रेत व आत्माओं की आ जाये, तो ओल्ड सर्किट हाउस यानी जिसका पुराना नाम ‘रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी’ था, उसका जिक्र जुबां पर जरूर आ जायेगा।
एक समय था, जब शिमला में रहने वाले लोग, रात को मनाली हाईवे की तरफ जाने से डरते थे, कारण था रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी। खास बात यह है कि ‘रॉयल गेस्ट रेजीडेंसी’, उस रास्ते पर स्थित है, जो शिमला को मनाली से जोड़ता है।
बात 1971 की है, जब शिमला में ‘ओक ग्रूव कॉलेज’ के लाल बहादुर शास्त्री होस्टल में पढ़ने वाले तीन दोस्तों(राहुल, मनोज और सुभाष) के बीच शर्त लगी।
“अरे सुनो! तुम्हें पता है ‘रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी’ के बारे में?”, मनोज ने राहुल और सुभाष की ओर देखते हुए पूछा।
“नहीं! बताओ क्या हुआ वहाँ?”, राहुल ने चेहरे पर विस्मयकारी भाव लिए पूछा।
“हाँ, कुछ उड़ती हुई खबर सुनी तो है मैंने भी, लेकिन तू बता।”, सुभाष ने जिज्ञासु की भाँति पूछा।
“उस रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी में पूरी रात अजीब-अजीब सी आवाजें आती है। कहते हैं कि वहाँ रातों में भूतों का बसेरा है।”, मनोज ने उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा।
“क्या बकवास बातें कर रहे हो, कोई भूत-वुत नहीं होता। इस तरह की बातें कमजोर मानसिकता वाले लोग करते हैं।”, राहुल चिढ़ते हुए बोला।
“भाई, ये सही बोल रहा है। मैंने खुद यहाँ स्थानीय लोगों के मुंह से अजीब- अजीब सी बातें सुनी है उस ‘रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी’ के बारे में।”, सुभाष ने राहुल की तरफ देखते हुए कहा।
“तुमलोग कैसी बचकानी बातें कर रहे हो? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, वहाँ ज़रूर कोई गलत काम होता होगा। इसलिए लोगों के बीच अफवाह फैला कर, अपने मंसूबों को अंजाम दे रहे होंगे।”, राहुल ने इस बात को जोश से कहा था।
“चलो फिर, लगी शर्त? तू वहाँ एक रात गुज़ार के दिखा, फिर तू जो बोलेगा वो हम करेंगे।”, सुभाष ने उसे उकसाते हुए कहा।
“ठीक है! अगर मैंने पूरी रात वहाँ बिता दी तो तुमलोग पूरे एक साल तक मेरे कैंटीन का खर्चा उठाओगे। बोलो, मंजूर है?”, राहुल ने एक अनोखी शर्त रख दी।
सुभाष, मनोज की तरफ गंभीर रूप से देखने लगा, जैसे उसकी इजाजत लेना चाहते हो।
“हाँ! हमें मंजूर है।”, दोनों ने एक स्वर में ही बोला, जैसे उन दोनों ने आँखों ही आँखों में ही बात कर ली हो।
“लेकिन तुम दोनों को मेरे साथ ‘रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी’ के गेट तक आना होगा। फिर तुमलोग कल के दिन यह ना कह दो कि मैं तो वहाँ गया ही नहीं था।”, राहुल ने उन दोनों के समक्ष एक प्रस्ताव रख दिया।
“ठीक है, हम दोनों भी तेरे साथ ही चलेंगे। तुझे अंदर भेजने के कुछ देर तक बाहर ही रुकेंगे, फिर हम वापिस चले आएंगे।”, सुभाष ने एकमत होकर कहा।
“अगर ये अंदर गया ही नहीं और थोड़ी देर में वापिस आ गया, तो हमें कैसे पता लगेगा?”, इस बार मनोज ने पूछा।
“ऐसा कर कि तू अपने साथ एक टॉर्च और रात गुजारने के लिए एक कंबल लेकर जाएगा। ‘रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी’ के अंदर जाते ही, पहली मंजिल पर जा कर टॉर्च को बार-बार 3 दफा जला कर इशारा करेगा। तेरे ऐसा करते ही इस बात की पुष्टि हो जाएगी और हमलोग तेरे वापसी का सुबह तक इंतजार करेंगे।”, सुभाष ने पलक झपकते ही उपयोगी तर्क दे दिया।
“चलो, मंजूर है! अब तुमलोग मेरे साल भर दावत का खर्च उठाने को तैयार हो जाओ।”, राहुल ने सुभाष और मनोज के पीठ पर थपकी देते हुए कहा।
तीनों ने रात को डिनर किया और चुपके से ‘लाल बहादुर शास्त्री होस्टल’ से निकल पड़े। सफेद रंग के कुर्ते-पजामे में तीनों दोस्त विश्वविद्यालय से निकले और ओल्ड ओक ग्रूव कॉलेज और पक्का पुल के रास्ते से होते हुए रेजीडेंसी पहुँचे।
रात के करीब 11:40 बजे थे, सन्नाटा छाया हुआ था। अधपकी सड़क पर महज एक-दो इक्के(पुराने जमाने में चलने वाले तांगे) ही नजर आ रहे थे। थोड़ी देर में ही एक खाली तांगे वाला दिखा।
“रोको! रोको भाई! हमें भी ले चलो।”, मनोज सड़क के बीचोबीच आकर तांगे वाले को रोकने का सफल प्रयास किया।
“कहाँ जाना है, साहब! बहुत देर हो गयी है इसलिए मैं तो अपने घर जा रहा हूँ।”, तांगे वाले ने घोड़े पर लगाम खींचते हुए कहा।
“बस थोड़ी दूर ही जाना है। हम तीनों को ‘रॉयल रेजिडेंसी’ के पास ही उतार कर चले जाना।”
“साहब! ‘रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी’ तो यहाँ से डेढ़ मील दूर है। मुझे तो वहाँ से आधे मील पहले ही डलहौजी लेक के पास जाना है।”
“अरे! इसके बदले में तुमको हम कुछ अधिक किराया दे देंगे। अब तो चल लो।”, राहुल ने अपनी बात में वजन देते हुए कहा।
“ठीक है साहब, आप लोग ऊपर बैठ जाओ।”, तीनों तांगे पर पीछे बैठ गए।
अभी तांगे पर बैठे ही थे कि अचानक घोड़ा बेकाबू हो गया और अपनी दोनों टांगे हवा में बार उछालने लगा। तांगे वाला चाबुक से उस पर प्रहार करने में लगा हुआ था लेकिन घोड़ा टस से मस होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
“चल... चल! क्या हो गया तुझे? चल, देर हो रही है। अब नखरे मत कर!”, यह कहते हुए तांगे वाले ने फिर से चाबुक से जोरदार प्रहार किया।
इस बार घोड़ा थोड़ा आगे बढ़ा लेकिन फिर खड़ा हो गया। अचानक से वह जोर-जोर से हिनहिनाने लगा।
तांगे वाला नीचे उतरा और उसके गले को सहलाता हुआ बोलता है, “क्या हुआ? ऐसा क्या देख लिया, जो जाने से मना कर रहा है? चल... चल... कुछ नहीं होगा! मैं साथ हूँ न तेरे।”
ऐसा कहते हुए वह वापिस तांगे पर आकर अपनी जगह पर बैठ गया। उसके बैठते ही घोड़ा टप्प... टप्प... कर के आगे बढ़ने लगा।
“क... क्या हुआ था इसको और ये ऐसे क्यों कर रहा था?, मनोज ने तांगे वाले से पूछा, जिसने अपना नाम हरिया बताया था।
“कुछ नहीं साहब! इन जानवरों को पूर्वाभास होता है। कोई अनहोनी पहले ही इन्हें पता चल जाती है।”, हरिया बोला।
“कैसे पूर्वाभास की बातें कर रहे हो?”, राहुल ने जानना चाहा।
“अरे साहब! पहाड़ों में तो ऐसा होना आम बात है। कहीं किसी तरह की हवा से सामना होना तो आम बात होती है। क्या पता इसने वही देख लिया हो।”, हरिया अपनी बातों से और उलझाता ही चला गया।
“कहीं तुम्हारा हवा से मतलब किसी आत्मा से तो नहीं है ना?”, मनोज ने इस बार उस बात की गहराई में जाने का प्रयास किया।
“छोड़िए साहब! मेरे रहते कुछ नहीं होने वाला। यह बताइए इतनी रात गए, आप लोग उधर कहाँ जा रहे हो?”, हरिया ने जानने का प्रयास किया।
राहुल मुस्कुराते हुए बोला, “हरिया, हमलोग रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी जा रहे हैं?”
यह सुनकर हरिया बोला, “हाँ, वो तो आपने पहले ही बता दिया था, लेकिन उस जगह पर किसके यहाँ जा रहे हो?”
राहुल बोला, “मैं रात को वहीं रेजिडेंसी में रुकूँगा और ये लोग मुझे छोड़कर वापिस आ जाएंगे। फिर मैं रात बिताने के बाद सुबह ही आऊंगा।”
“पागल-वागल हो गए हो क्या, साहब! आप यह गलती कतई मत कीजिए।”, हरिया एकदम से सकपका गया।
“आखिर तुमलोग उस रेजीडेंसी के नाम से कांप क्यों जाते हो? मैं यही डर सबके मन से निकालने के लिए ही तो जा रहा हूँ।”, राहुल ने इस बार हँसते हुए कहा।
“साहब! वहाँ रात को जो भी गया, सुबह उसकी लाश ही बाहर आई है।”, हरिया यह कहते हुए तांगे को रोक देता है।
“आखिर क्या है वहाँ ऐसा, जो सब के सब डरते हो उस जगह से? कुछ लोगों की अफवाह को, लोगों ने सच्चाई मानने की भूल कर दी है। मैं यह मिथ तोड़ कर ही रहूँगा।”, राहुल ने गुस्से से कहा।
उसकी बात सुनने के बाद हरिया बोला, “हाँ! यह सच है कि किसी में इतनी हिम्मत नहीं है कि जो ‘रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी’ के अंदर रात बिता सके। यहाँ अकेली रात बिताना हर किसी के बस की बात नहीं।”
“आखिर ऐसी क्या बात है, जो सभी वहाँ जाने से खौफ खाते हैं। इसके पीछे ज़रूर कोई न कोई बात तो रही होगी?”, मनोज ने सवाल दागा।
“साहब! ‘रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी’ अंग्रेजों के ज़माने की बनी हुई विशाल और भव्य गेस्ट हाउस है। वहाँ देश विदेश के शाही मेहमान लोग ठहरते थे। वहाँ उनकी जम के सेवा की जाती थी। दासियाँ हमेशा दिन रात सेवा के लिए उपलब्ध होती थी। मनोरंजन और सुख सुविधा के सारे इंतजाम रहते थे।”
“एक दिन किसी अंग्रेज मेहमान की नजर एक दासी की बेटी पर पड़ी, जिसे दासी अपने साथ उसके लिए काम मांगने के लिए लेकर आई थी।
उसकी बेटी 16 साल की छरहरी बदन वाली, किसी के मन को पल भर में मोहित करने की क्षमता रखने जैसी यौवना थी। दासियों की कमी की वजह से उस दिन से उसे भी काम पर रख लिया गया।”
“उस रात कुछ विशेष अतिथि देश के बाहर से आए हुए थे, सभी खातिरदारी में लगे हुए थे। उनमें से सबसे खास मेहमान थे, उनका नाम 'रॉबर्ट वडेन पॉवेल' था। डिनर करने के बाद सभी अपने कक्ष में जाने लगे। उन्हें लड़खड़ाता हुआ चलता देख, दासी की बेटी जिसका नाम गुड्डी था, उसने सहारा दिया। वह उन्हें सहारा देते हुए, उनके शयनकक्ष तक छोड़ने चली जाती है।
“कहते हैं कि नशे की हालत में डूबे होने की वजह से 'रॉबर्ट वडेन पॉवेल' ने गुड्डी की आबरू लूट ली। लाख कोशिशों के बावजूद भी गुड्डी अपनी आबरू को बचा नहीं पाई।”
“सुबह उसी 'रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी' से गुड्डी ने छलांग लगा कर जान दे दी। उसकी माँ यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई। अगले ही दिन उसकी माँ ने रात्रि के भोजन में ज़हर मिला दिया, जिसकी वजह से उस रॉयल रेजिडेंसी के सारे विशेष अतिथि मारे गए।”
“वह रात इतिहास में सबसे काले अक्षरों में अंकित हो गया। लगभग 159 लोगों की मौत से पूरा शिमला शोक में डूब गया था। गुड्डी की आबरू के बदले 159 मौतों ने सब को हिला कर दख दिया था इसलिए तत्काल ही गुड्डी की माँ को फांसी पर लटका दिया गया।”
“अब उस रॉयल रेस्ट रेजिडेंसी का अधिकतर भाग कब्रिस्तान में तबदील हो चुका है, जिसमें उस रात मारे गए 159 अंग्रेजों को दफनाया गया था। सभी कब्रों पर एक-एक पत्थर लगा है और पत्थरों पर मरने वाले का नाम अंकित है।”
“कुछ वक्त के बाद, ऐसा कहा जाता है कि खासकर अमावस्या की रात को वहाँ हमेशा अजीब-अजीब सी आवाजें आती हैं और जो भी व्यक्ति उस जगह पर रात्रि को गया, वह ज़िंदा लौट कर वापिस नहीं आया।”
“मजे की बात तो यह है सरकार कि आज भी अमावस्या की रात है। मेरी मानो तो वापिस लौट चलो। मैं खुद आपको ठिकाने तक छोडूंगा और एक भी रुपया बदले में नहीं लूंगा।”
“हाँ! सही कहते हो हरिया। राहुल, छोड़ यार! वापिस चलते हैं। कहीं लेने के देने पड़ गए तो?”, मनोज हरिया की बात सुनने के बाद बोला।
इससे पहले की राहुल कुछ बोलता, सुभाष बोल पड़ा, “हाँ राहुल, यह सब तेरे बस की नहीं है। चल, हमारे साथ वापिस चल ले। हम कुछ नहीं कहेंगे।”, सुभाष ने यह कहकर जले में नमक छिड़कने का काम किया।
यह सुनते ही राहुल तुनककर बोला, “कैसी बातें करते हो!? मैं तुम सबका भ्रम तोड़ कर रहूंगा। बस कल की सुबह तक रुक जाओ, मैं सुबूत सहित आपलोगों के मन से अंधविश्वास की पट्टी खोलूंगा।”, राहुल ने जोश से कहा।
“भाई! तू प्रतिष्ठा में प्राण गवाएगा। मेरी बात मान, तू वापिस आजा। इसकी बात मत सुन।”, मनोज ने राहुल के हाथ को थामते हुए कहा।
इससे पहले की राहुल कुछ कह पाता, तांगे वाले ने कहा, “लो जी, आपकी मंजिल आ गयी। बाकी समझाना मेरा काम था, आगे आपकी मर्जी।”
मनोज ने तांगे वाले को उसका किराया थमाने के बाद, उसको कुछ देर वहीं रुकने के लिए कहा, ताकि मनोज और सुभाष को उनके होस्टल तक छोड़ दे।
तीनों दोस्त 'रॉयल गेस्ट रेजीडेंसी' के अंदर पहुँचे। उन दिनों रेजिडेंसी के चारों ओर बाउंडरी वॉल टूटी हुई थी, कोई भी आसानी से अंदर जा सकता था।
राहुल ने टॉर्च जला कर, चारों तरफ प्रकाश किया। उसकी जहां भी नजर पड़ रही थी, ऊंचे-ऊंचे कब्रिस्तान दिखाई पड़ रहे थे, जिसे देखने से एहसास हो रहा था कि कम से कम 200 से 250 वर्ष पुरानी होगी। कुछ-कुछ जगह कब्र टूटी हुई सी प्रतीत हो रही थी, शायद पुरानी होने की वजह से ऐसा हो।
तभी मनोज की नजर घड़ी पर पड़ती है, “अरे! रात के बारह बज रहे हैं। मुझे लगता है, हमें अब चलना चाहिए।”
“ठीक है, दोस्त! हम चलते हैं। बाहर तांगे वाला भी इंतज़ार कर रहा होगा। सुबह मिलेंगे।”
सुभाष यह कहकर अपने दोस्त राहुल को सुनसान कब्रिस्तान में अकेला छोड़कर, मनोज के साथ 'रॉयल गेस्ट रेजिडेंसी' से बाहर चले आए। बाहर आते ही वे दोनों अंदर की तरफ नजरें गड़ाए राहुल के इशारे का इंतज़ार करने लगे।
थोड़ी देर में ही ऊपर के तल पर हलचल हुई और राहुल ने टॉर्च से प्रकाश जलाया, लेकिन दो बार प्रकाश जलाने बुझाने के बाद टॉर्च से रोशनी आनी बंद हो गयी।
“अरे मनोज! ये दो बार ही रोशनी करने के बाद कैसे बन्द कर दिया उसने टॉर्च। कहीं मेरे देखने में तो गलती नहीं हो गयी।”
“नहीं यार! उसने दो ही बार प्रकाश किया टॉर्च से। शायद वो जल्दबाजी में भूल गया होगा।”, सुभाष ने जवाब दिया।
“चल, अब हमें चलना चाहिए। यहाँ बहुत ठंड लग रही है अब।”, यह कहकर मनोज, सुभाष के साथ तांगे पर वापसी के लिए बैठ गया।
अगली सुबह मनोज और सुभाष 'रॉयल गेस्ट रेजीडेंसी', तय वक़्त पर सुबह 6 बजे पहुँचते है तो वहाँ भीड़ देखकर, सकते में आ जाते हैं। करीब जाने पर उन दोनों को वही रात वाला तांगे वाला मिलता है, जो उन्हें देखते ही मुँह घुमा लेता है। उन दोनों के कुछ समझ नहीं आता है।
आस पास लोगों से पता करने पर ज्ञात हुआ कि एक लड़का है, उसकी सुबह लाश मिली है। उसकी जेब से एक आईडी मिली है, जिसमें उसका नाम राहुल होने की पुष्टि हुई है। सुबह पुलिस ने अंदर जाकर, उस युवक की लाश को अपने कब्जे में लिया और पोस्टमॉर्टम के लिए हॉस्पिटल रवाना कर दिया है।
इतना सुनते ही उन दोनों के होश फाख्ता हो गए। अनजाने में ही सही, उनसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया था। उन दोनों के लिए इस बात का विश्वास करना नामुमकिन सा हो रहा था।
पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट में पता चला कि युवक की मौत हार्ट अटैक से हुई। हार्ट अटैक की वजह, वह डर बताया गया, जिसका सामना, भूत के साये में वह उस रात कब्रिस्तान में नहीं कर पाया।
इस घटना के बाद, दोनों ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और अपने घर हमेशा के लिए चले गए।
बताया जाता है कि रात को अक्सर, जब तांगे वाले को देर हो जाती है तो राहुल उस रॉयल रेजीडेंसी के पास बीड़ी जलाने के लिए माचिस मांगता है और टॉर्च को जलाते हुए, अंदर यह कहते हुए चला जाता है कि
“हरिया, कल सुबह दोनों दोस्तों के साथ मुझे लेने आ जाना...!”
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