वे सभी इमारतें तीन मंजिला थीं । लिफ्ट नहीं थी उनमें, - लिहाजा राजदान को सीढ़ियों से चढ़ना पड़ा । तीसरी मंजिल के फ्लैट नम्बर छत्तीस के दरवाजे पर पहुंचकर उसने एक लम्बी सांस ली, खुद को व्यवस्थित किया और कालबेल के बटन पर अंगूठा रख दिया। अंदर कहीं से बेल बजने की आवाज बाहर तक आई । उसके बाद किसी के द्वार तक आने की पदचाप और दरवाजा खुल गया । ।
“अरे, आप आ गये भाईसाहब ।” कहने के साथ करीब पैंतीस वर्षीय महिला ने जल्दी से साड़ी का पल्लू अपने सिर पर डाला ।
-“क्या आपको मालूम था मैं “क्यों?” राजदान ने कहा ---- आने वाला हूं?”
“मुझे न सही, बबलू को जरूर मालूम था ।... आइए ! ” कहने के साथ वह दरवाजे के बीच से हटकर राजदान को रास्ता देती बोली ---- “सुबह से एयरपोर्ट जाने की जिद कर रहा था। मैंने ही नहीं जाने दिया ।”
अंदर कदम रखते राजदान ने पूछा----“क्यों?”
“तबियत ठीक नहीं है उसकी ।”
राजदान चिंतित और व्यग्र नजर आने लगा ---- “क्या हो गया है? किसे दिखाया ?"
"हमारे फैमिली डॉक्टर हैं। डॉक्टर भटनागर । उन्हीं की दवा चल रही है।”
“किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाना चाहिए था । मैं अपने डॉक्टर से कह दूंगा । डॉक्टर भट्टाचार्य यहीं आकर देख जायेंगे।”
- “अरे नहीं नहीं ।” महिला हंसी ---- “इतने बड़े डॉक्टर की क्या जरूरत है। सिर्फ बुखार हुआ है। दवाओं के साथ-साथ माथे पर पानी की पट्टियां रखने के लिए कहा था भटनागर साहब ने। अब थोड़ा कंट्रोल में है ।”
“बुखार में लापरवाही नहीं करनी चाहिए सुजाता बहन, बिगड़ जाए तो कई बार दिमाग में चढ़ जाता है। "
“लापरवाही तो वह खुद कर रहा है। सुबह से दवा नहीं खाई।”
“क्यों?”
" कहता है तुमने मुझे एयरपोर्ट नहीं जाने दिया, मैं दवा नहीं खाऊंगा।”
“ओह ! है कहां नालायक?”
“अंदर है ।” यह आवाज मर्दानी थी----“अपने कमरे में !”
राजदान की निगाह तेजी से आवाज की दिशा में घूमी । एक साधारण स्तर की डायनिंग टेबल के नजदीक पड़ी कुर्सी पर बैठा करीब चालीस वर्षीय शख्स अखबार पढ़ रहा था। उक्त वाक्य कहते वक्त उसने चश्मे के ऊपर से राजदान की तरफ देखा था। उस पर नजर पड़ते ही राजदान ने हाथ जोड़कर “नमस्ते मास्टर जी ।” कहा-
“नमस्ते राजदान साहब ।” उसने राजदान के सम्मान में खड़े होते हुए कहा-- “ये कैसा जादू कर दिया है आपने हमारे लड़के पर ? दिन रात आप ही को याद करता रहता है। जब से पता लगा आप आने वाले हैं, तब से एक ही धुन थी---- एयरपोर्ट जाऊंगा। परसों रात अचानक बुखार हो गया । कल और आज स्कूल नहीं भेजा। मगर एयरपोर्ट जाने की जिद पकड़े रहा ।”
“अभी डांट लगाता हूं इसे ।” कहने के साथ राजदान अंदर वाले कमरे की तरफ बढ़ गया ।
करीब सोलह साल का था वह । दसवीं का छात्र । गोल चेहरे और गुलाबी रंगत वाला । उसके बाल सचिन तेंदुलकर की तरह घुंघराले थे। अंदर वाले कमरे के दरवाजे पर पहुंच चुके राजदान ने देखा ---- वह डबलबैड पर एक तकिये पर सिर रखे लेटा था । चौड़े माथे पर पानी से भीगी पट्टी रखी थी । राजदान दबे पांव अंदर दाखिल हुआ ताकि उसकी नींद न टूटे | परन्तु उसकी खूबसूरत नाक के नथुने फड़फड़ाये । गुलाबी होंठ हिले । बुदबुदाहट सी निकली उनसे- “च-चाचू!”
राजदान जहां का तहां ठिठक गया
“चाचू आ गये।” कहने के साथ उसने आंखें खोल दीं । पलकें बड़ी-बड़ी और पुतलियों का रंग नीला था। राजदान पर नजर पड़ते ही वह एक बार फिर चीखा ---- “चाचू, तुम आ गये!”
राजदान ‘अरे अरे' ही करता रह गया जबकि लड़का उक्त चीख के साथ न केवल बैड से खड़ा हो गया, बल्कि सीधी जम्प के साथ राजदान के ऊपर आ गिरा। राजदान सम्भाल न लेता तो निश्चय ही कमरे के फर्श पर गिरता | करीब पांच फुट छः इंच लम्बा था वह । स्वस्थ ! अपनी बांहों में सम्भाले राजदान ने कहा----“ये क्या पागलपन है बबलू ?”
“पागलपन... पागलपन... पागलपन तो आप करते हो चाचू ।” राजदान की बाहों में मचलता वह उसकी पीठ पर
मुक्के बरसाता हुआ बोला“ मैं मारूंगा आपको । क्यों गये थे मुझे छोड़कर ? वो भी इतने दिन के लिए | बोलो! बोलो! क्यों गये थे?
“अच्छा बाबा, बोलता हूं । गोदी से तो उतर ।” राजदान पहली बार वास्तव में हंसता हुआ नजर आया ---- “अब यार तू बड़ा हो गया है। लम्बा हो गया है। संभलता नहीं मुझसे ।. देख, मैं गिरने वाला हूं।"
“गिर जाओ।" वह ठिनका- “नहीं उतरूंगा ।”
“बबलू!” राजदान के पीछे कमरे में आ गयी सुजाता ने उसे डांटा ---- -“क्यों परेशान कर रहे हो चाचू को ? अभी-अभी इतने लम्बे सफर से आये हैं ।”
“मेरे चाचू हैं! मैं कुछ भी करूं । आपको क्या?”
“अच्छा !” सुजाता ने आंखें निकालीं ।
'अच्छा ! अच्छा! मत उतर! मैं तुझे लिटा देता हूं।” कहने के साथ राजदान उसे लिए बैड पर झुका और लिटाता हुआ बोला ---- “तुझे बुखार है | लेट जा । "
बबलू लेट तो गया लेकिन अपनी बांहें राज़दान की गर्दन से नहीं हटाईं । स्थिति यह थी कि राजदान झुका हुआ था। जब तक बांहें न हटें सीधा नहीं हो सकता था । सो, बोला----“अबे छोड़ ना ! गर्दन तोड़ेगा क्या?”
“क्यों, बीमार हूं न मैं तो ।” उसने अपनी नीली आंखें तरेरीं “ताकत है तो छुड़ाकर दिखाओ।”
इस बार ठहाका लगा हंस पड़ा राजदान ।
यह था वह ठहाका जो उसके अंदर से निकला था | बड़ी मुश्किल से बहला- बहलू कर उसने खुद को आजाद किया । बोला----“अब तू कोई शरारत नहीं करेगा। दवा खायेगा चुपचाप और पानी की पट्टी मैं तेरे माथे पर रखूंगा।"
“क्या मैं आपको बीमार नजर आ रहा हूं।"
और सचमुच... इस वक्त उसके चेहरे की चमक देखकर कोई नहीं कह सकता था वह बीमार है। मगर जिस्म तप रहा था। राजदान का अनुमान था उसे एक सौ तीन बुखार जरूर है। इससे पहले कि राजदान कुछ कहे, बबलू ने रहस्यमय स्वर में कहा ---- “और फिर, इतने दिन बाद आये हो चाचू । चुप कैसे रह सकता हूं? बहुत सारी बातें इकट्ठी हो गयी हैं।”
“उसकी भी?” पट्टी पानी में भिगोते राजदान ने इतने धीमे स्वर में पूछा कि आवाज सुजाता तक न पहुंच सके।
बबलू रहस्यमय स्वर में बड़बड़ाया ---- “उसी की तो ।”
"क्या हाल है उसका ?”
“मम्मी खड़ी हैं । ”
“तो?”
“मम्मी।" बबलू ने सुजाता से पिलाओगी नहीं?” कहा-सुजाता से कहा----“चाचू को कुछ
“अभी-अभी क्या खुसर- पुसर कर रहे थे तुम दोनों?”
“खुसर-पुसर- - और हम ?” बबलू ने कहा“क्या बात कर रही हो मम्मी!... चाचू, समझाओ न मम्मी को । सबको अपने ही जैसा समझने लगी हैं। खुसर- पुसर तो तब करती हैं जब पड़ोस वाली आंटी आ जाती हैं। अपनी बहू से बहुत डरती हैं वो । हर समय उनकी बुराई करती रहती हैं, मगर इस तरह कि आवाज बहू के कानों तक न पहुंच जाये । ”
एक बार फिर ठहाका लगा उठा राजदान!
“ पता नहीं भाई साहब आप इतना भाव क्यों देते हैं बबलू को । आपके लाड़ प्यार ने इसे बिगाड़ दिया है। आप सामने हैं तो किसी से डरता ही नहीं।” कहने के बाद सुजाता कमरे से चली गई ।
“गईं।” बबलू ने इस तरह कहा जैसे आफत टल गई हो।
“अच्छा सबसे पहले यह बता, आंखें बंद किये किये तुझे यह कैसे पता लग गया कि मैं आ गया हूं।”
“आपकी खुश्बू से ।”
“खुश्बू?”
“हां। आपके अंदर से हमेशा एक खुश्बू आती रहती है । वैसी खुश्बू मुझे किसी और के अंदर से कभी नहीं आई और वो मुझे बहुत अच्छी लगती है । "
“समझा नहीं मैं | कौन-सी खुश्बू की बात कर रहा है ?"
“वो शायद उसमें से आती है जो आप 'शेव' के बाद लगाते हैं।"
“अच्छा! अच्छा!” एक बार फिर ठहाका लगा उठा।
राजदान ----“आफ्टर शेव लोशन की बात कर रहा है तू । अबे ओ घोंचू -- -मेरी खुश्बू कहां हुई वो? उस लोशन की खुश्बू हुई जो शेव के बाद लगाता हूं ।”
“शेव तो सभी बड़े लोग करते हैं, फिर सबके अंदर से खुश्बू क्यों नहीं आती?”
“मैं जो लगाता हूं, वह विदेशी है । थोड़ा महंगा भी है। सब नहीं लगा सकते ।” हंसता हुआ राजदान कहता चला गया----“अब तो तेरी भी दाढ़ी-मूंछें निकलने लगी हैं। कुछ दिन बाद जरूरत पड़ा करेगी । तेरे लिए भी मंगा दूंगा।"
“पर चाचू ।” चारों तरफ चोर नजरों से देखने के बाद बबलू की आवाज फुसफुसाहट में बदल गई -- -- “वो तो कहती है मूंछ-दाढ़ी कभी मत काटना बबलू, मुझे अच्छी लगती है । "
“तो अब वह तेरी मूंछ- दाढ़ी पर भी कॉमेन्ट्स करने लगी ?"
“हां ! हमेशा करती है ।”
“हमेशा ?”
“मतलब जब भी हम अकेले में मिलते हैं । "
“ अकेले में मिलना भी शुरू कर दिया तुमने ?”
कुछ और धीमे से फुसफुसाया बबलू- -- “बस दो बार मिले हैं।"
“कहां? कैसे?”
“एक बार दरिया पर । दूसरी बार थियेटर में ।”
“दरिया पर मिलकर क्या किया ?”
“करते क्या, पानी में घूमे । रेत पर खेले । चने खाये ! भेलपूरी और आईस्क्रीम भी खाई। शुरू-शुरू में डर लगा था कोई देख न ले। फिर वह भी उड़नछू हो गया ।”
“ उसके बाद थियेटर में मिले ?”
“एक हफ्ते बाद ।”
“कौन-से थियेटर में?”
“मिलन!”
“कौन-सी पिक्चर चल रही थी ?”
“मिलन ।”
“ और वहीं तुम्हारा मिलन हुआ।"
"हां।"
“पिक्चर ही देखी या कुछ और भी किया ?”
“ और क्या करते ?”
“कोई छेड़खानी । कोई हरकत ?”
इस बार 'तपाक' से जवाब नहीं दिया बबलू ने । थोड़ा ठहरा । ध्यान से चारों तरफ देखा और मुंह राजदान के कान के नजदीक लाकर पहले से भी ज्यादा धीमे स्वर में बुदबुदाकर बोला----“बस थोड़ी सी छेड़खानी की थी । ”
“क्या?”
बबलू की आवाज और धीमी हो गयी ---- “कंधा छुआ था उसका ।”
“केवल कंधा ?”
“ आपकी कसम | "
“आगे नहीं बढ़े?”
“नहीं।"
"क्यों?”
“ उसने मना कर दिया ।”
“क्या कहा ?”
“कहने लगी - - - - 'ये बात गंदी है बबलू' ।”
“उसने ठीक कहा ।”
“वो कैसे ?”
“जो लड़की तुम्हें अच्छी लगती है, उसके साथ बातें करने, घूमने-फिरने और खेलने-कूदने में बुराई नहीं है, लेकिन छेड़खानी नहीं करनी चाहिए। इससे ऐसा लगता है जैसे तुम उससे कुछ चाहते हो और जो तुम्हें अच्छी अगती है, उससे कुछ चाहना गंदी बात होती है । "
“मगर मैं करता क्या चाचू । उस दिन वह अच्छी ही इतनी लग रही थी। स्कूल ड्रैस के अलावा किन्हीं और कपड़ों में मैंने उसे पहली बार देखा था । हल्के गुलाबी रंग की शर्ट । बालों में उसी रंग का रिबन । सफेद स्कर्ट। आंखों की कोरों पर आई ब्रो और माथे पर छोटी-सी, बहुत छोटी-सी बिंदी ।”
“अच्छी चीज सिर्फ देखने के लिए होती है । छेड़ने के लिए नहीं । मुझसे वादा कर- अब कभी, चाहे वह तुझे जितनी अच्छी लगे छेड़ेगा नहीं।”
“वादा ।” उसने हाथ आगे बढ़ाया ।
राजदान ने गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाया। कहा---- -"जब मैं कनाडा जा रहा था तो तूने दो वादे किये थे ।”
“कैसे वादे ?”
"पहला- - तू उसका नाम बतायेगा।"
“स्वीटी।” बताते वक्त बबलू के फेस पर सुर्खी दौड़ गई। “वाह ! बड़ा मीठा नाम है। कहां रहती है ?”
“स्कूल के पास ही ।”
“यहां आई कभी ?”
“मरवाओगे चाचू ? मम्मी पापा मार-मारकर भूत बना देंगे दोनों को ।”
“इसमें क्या बात हो गयी, तेरी साथ पढ़ती है तो क्या मिलने नहीं आ सकती?”
“आ तो सकती है मगर, डर लगता है चाचू ।”
“क्या उसे तेरे बुखार का पता है?”
"नहीं।”
“दो दिन से स्कूल नहीं गया, उसे चिंता नहीं होगी?”
“वही तो मैं भी सोच रहा था पर समझ नहीं आ रहा क्या करूं?”
“ एक ही तरीका है। ठीक हो जा जल्दी से और कल सुबह नहा-धोकर स्कूल जा । ”
“ठीक तो हो चुका हूं मैं ।"
“ अभी नहीं, थोड़ा आराम कर । टाइम पर दवा खा । तब ठीक होगा।”
“ओ.के.।”
“अब फोटो दिखा । वादा नम्बर...
“मम्मी...।” वह उसकी बात काटकर तेजी से फुसफुसाया ----“मम्मी आ गई।” कहने के बाद उसने झट से अपना सिर तकिये पर गिरा लिया ।
राजदान ने कहा- “तो वादा रहा, अब तू टाइम पर दवा खायेगा?”
“बबलू ने आंखों ही आंखों में कहा ---- ‘मान गये चाचू, बात बदलने के उस्ताद हो । प्रत्यक्ष में बोला, "ठीक है, आप कहते हैं तो खा लूंगा।"
सुजाता राजदान के लिए एक गिलास में मैंगो जूस लाई थी । राजदान ने जूस का गिलास सुजाता से लेकर बैड की साईड ड्राज पर रखते हुए कहा ---- “जूस बाद में पियूंगा सुजाता बहन, पहले यह दवा खायेगा । पानी दो।”
इस तरह, राजदान ने उसे दवा दी । सुजाता की मौजूदगी के कारण उनके बीच स्वीटी के बारे में बातें न हो सकीं । दवा में शायद नींद के लिए भी कुछ था क्योंकि दवा लेने के कुछ ही देर बाद बबलू सो गया । राजदान उसके नजदीक से नहीं उठा । बराबर पट्टियां पानी में भिगो - भिगोकर उसके माथे पर रखता रहा। करीब एक घण्टे बाद जब बुखार उतर गया तो सुजाता ने कहा ---- “बहुत देर हो गयी राजदान भैया! अब तो बुखार भी नहीं है इसे।”
राजदान ने उठते हुए कहा ---- “रात को, अगर जरा भी बुखार चढ़े तो मुझे जगवा देना । गेटकीपर से कहना, वह इन्टरकॉम पर मुझे...
“आप फिक्र न करें, मेरे ख्याल से अब कुछ नहीं होगा ।”
राजदान बगैर कुछ कहे बाहर वाले कमरे में आ गया। ‘मास्टर जी’ अभी भी यथास्थान बैठे थे | उनसे इजाजत लेकर जाने के लिए मुख्यद्वार की तरफ बढ़ भी गया मगर फिर जाने क्या सोचकर ठिठका । घूमा और अत्यन्त गंभीर स्वर में बोला----“मास्टर जी, मैं आपसे कुछ जरूरी बात करना चाहता था।"
“हमसे?”
“पहले सोचा था ---- फिर कभी कर लूंगा मगर, अब लगता - है जो करना है, कर लेना चाहिए।”
“तो करो न ।”
राजदान ने जेब से एक सिगार निकालकर सुलगाया | गहरा कश लिया और ढेर सारा धुआं मुंह से बाहर फेंका। साफ महसूस हो रहा था वह कोई गंभीर बात कहने के लिए खुद को तैयार कर रहा है ।
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