डी.सी.पी. मनोहरलाल प्रीत विहार सचदेवा मेडीकल सेंटर पहुंचा ।
उसके दोनों इन्स्पेक्टर उसके द्वारा मुकर्रर की गयी डैडलाइन से पहले ही वापिस लौट आये थे और जो जवाब लाये थे, वो सरासर उसकी पसन्द का था ।
वो साधूराम मालवानी के कमरे में पहुंचा ।
मालवानी तकियों के सहारे, अधलेटा सा बैठा एक उपन्यास पढ रहा था । उसकी बीवी और दोनों बच्चे कमरे के परले हिस्से में सोफे पर बैठे टी.वी. देख रहे थे ।
मालवानी की बीवी मीरा ने सशंक भाव से आगन्तुक की तरफ देखा।
“मिस्टर मालवानी ?” - मनोहर लाल बोला ।
“जी हां ।” - मालवानी उपन्यास पर से निगाह हटाता हुआ बोला - “आप कौन ?”
“मेरा नाम मनोहरलाल है । दिल्ली पुलिस में डी.सी.पी. होता हूं मैं ।”
मालवानी सकपकाया ।
पुलिस के नाम से मीरा तो उठ कर ही खड़ी हो गयी ।
“आराम से बैठ ।” - मालवानी बोला ।
मीरा वापिस सोफे पर ढेर हुई लेकिन अब उसकी तवज्जो टी.वी. की तरफ न जा सकी ।
“मैं आपका थोड़ा वक्त लेना चाहता हूं ।” - मनोहरलाल बोला - “दो मिनट बात करना चाहता हूं आप से ।”
“किस बाबत ?”
“सोमवार रात की बाबत । झामनानी की पार्टी की बाबत । उस एलीबाई की बाबत जो आपने झामनानी की दी ।”
“मतलब ?”
“अभी समझ जायेंगे । इजाजत हो तो बैठ जाऊं ?”
“जी ! जी हां । जरूर । प्लीज सिट डाउन ।”
“थैंक्यू ।” - मनोहरलाल उसके पलंग के करीब पड़ी विजिटर्स चेयर पर ढेर हुआ ।
“अब कैसी तबीयत है ?” - वो सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला ।
“काफी अच्छी है ।” - मालवानी बोला - “कल तक छुट्टी मिल जाने की उम्मीद है । अलबत्ता मोबीलाइज होने में अभी वक्त लगेगा ।”
“बुरी हुई आपके साथ । जिस मंकी मैन की वजह से आपकी ये गत बनी, अब सिद्ध हो चुका है कि, उसका कोई वजूद ही नहीं था ।”
“मेरे लिये ये क्या तसल्ली है ? मुझे तो मार डालने में कसर न छोड़ी लोगों ने ।”
“माहौल खराब है, लोग खराब हैं, जमाना खराब है, दिल्ली शहर में लेट नाइट घर से बाहर विचरने से परहेज ही रखना चाहिये ।”
“आइन्दा ख्याल रखूंगा ।”
“तो सोमवार रात को आप झामनानी के फार्म से लौट रहे थे जबकि ये हादसा हुआ ?”
“जी हां ।”
“पक्की बात ?”
“एक ही तो बात है, जनाब । कच्ची क्या पक्की क्या ?”
“आज का अखबार देखा ?”
“नहीं ।”
“देखा होता तो आपका जवाब वो न होता जो आपने दिया ।”
“मतलब ?”
“आपकी धर्मपत्नी की निगाह तो टी.वी. की तरफ है लेकिन कान ऐन हमारी तरफ हैं ।”
“जरा ऊंचा बोलिये, मैं सुन नहीं पा रहा हूं ।”
“कोशिश कीजिये वरना बीवी भी सुनेगी ।”
“बात क्या है ?”
“बात आपकी बीवी की मौजूदगी में बयान करना ठीक न होगा ।”
“कोई अता पता तो पता लगे ।”
“ये अखबार देखिये ।” - मनोहरलाल ने होटल एस्टोरिया के विज्ञापन की जगह से मुड़ा हुआ अखबार उसकी गोद में डाल‍ दिया ।
मालवानी ने विज्ञापन पढा, आशंकित निगाह अपनी बीवी पर डाली, विज्ञापन फिर पढा और फिर अखबार को गोल कर के वापिस मनोहरलाल को सौंप दिया ।
“बहुत खुशकिस्मत कपल हैं आप ।” - मनोहरलाल सहज भाव से बोला - “मैं आपकी बीवी को बधाई दे दूं स्टीरियो जीतने की ?”
“नहीं ।” - मालवानी सख्ती से बोला ।
“वजह ?”
“जिस मालवानी का विज्ञापन में जिक्र है, वो मैं नहीं हूं ।”
“आपका पता भी छपा है ।”
“गलत छपा है ।”
“सोमवार शाम को आप सपत्नीक होटल एस्टोरिया में नहीं थे ?”
“नहीं था । बीवी से पूछ लो ।”
“कौन सी बीवी से पूछ लूं ?”
“मेरी एक ही बीवी है ।”
“एक ही होनी चाहिये शरीफ आदमी की । रजिस्टर्ड । अनरजिस्टर्ड भी । अनरजिस्टर्ड के बारे में आप क्या कहते हैं ?”
“आप पहेलियां बुझा रहे हैं ?”
“माशूक के बारे में क्या कहते हैं ?”
“धीरे बोलिये ।”
“जब धीरे बोला था तो आपका हुक्म था कि ऊंचा बोलूं ।”
“क्या चाहते हैं ?”
“आपको मालूम है क्या चाहता हूं ? कुबूल कीजिये कि सोमवार रात को आप गुड़गांव के होटल एस्टोरिया में थे ।”
“मैं लेखूमल झामनानी के फार्म पर था ।”
“होटल एस्टोरिया के रूम नम्बर दो सौ बत्तीस में थे । एक नौजवान लड़की के साथ । जिसे कि आपने वहां अपनी बीवी बताया था ।”
“मीरा !”
“हां, जी ।” - बीवी बोली ।
“टी.वी. बन्द कर । थोड़ी देर नीचे जाकर रिसैप्शन पर बैठ ।”
“लेकिन....”
“बच्चों को भी ले जा ।”
“लेकिन बात....”
“कहना मान ।”
“लेकिन बात क्या है ?”
“कुछ बात नहीं है । है भी तो लौटेगी तो बताऊंगा । जा अब ।”
चेहरे पर तीव्र अनिच्छा के भाव लिये उसने पति के आदेश का पालन किया ।
“झूठी गवाही देने को कानूनी जुबान में परजुरी कहते हैं ।” - पीछे मनोहरलाल संजीदगी से बोला - “परजुरी इज एक क्राइम पनिशेबल बाई अरैस्ट एण्ड इमप्रिजनमेंट ।”
मालवानी के चेहरे पर क्षण भर के लिये भय और घबराहट के भाव आये और फिर लुप्त हो गये ।
“आप खामखाह मुझे जुबान देने की कोशिश कर रहे हैं !” - वो दिलेरी से बोला ।
“अच्छा ! ऐसा कर रहा हूं मैं ?”
“मैं झामनानी के फार्म पर था । झामनानी मेरा गवाह है । और भी कई लोग मेरे गवाह हैं ।”
“चोरों का साथ देंगे तो मुझे मजबूरन कहना पड़ेगा ।”
“क्या ?”
“चोर चोर मौसरे भाई ।”
“आप मेरी तौहीन कर रहे हैं ।”
“मैं आपको आगाह कर रहा हूं उस तौहीन से जो कि अभी आपकी होगी ।”
“क्या !”
“अभी आपको पुलिस की हमदर्दी हासिल है क्योंकि आपके साथ एक बुरा वाकया गुजरा है । आप पुलिस से पैंतरेबाजी से बाज नहीं आयेंगे तो वो हमदर्दी एक सैकेंड में उड़नछू हो जायेगी ।”
मालवानी ने जोर से थूक निगली ।
“और आप इस खामख्याली से मुब्तला हैं कि जो मैं कह रहा हूं, उसे साबित नहीं कर सकता ।”
“सा... साबित कर सकते हैं ?”
“इसलिये साबित कर सकता हूं क्योंकि आपने होटल एस्टोरिया में अपने असली नाम से चैक-इन करने की हिमाकत की । सोचा कि होटल दिल्ली से बाहर का था, आप से वहां हर कोई नावाकिफ था, इसलिये क्या फर्क पड़ता था ? ऊपर से कोढ में खाज ये कि यूं आप वहां पहली बार भी नहीं ठहरे । हर दस दिन बाद आप वहां होते हैं माशूक के साथ ।”
“ब... बात सबूत की हो रही थी ।”
“मैं पेश करता हूं । ये होटल के रजिस्ट्रेशन कार्ड की फोटो कापी है जिसमें साफ दर्ज है कि मिस्टर एण्ड मिसेज साधूराम मालवानी रेजीडेंट ऑफ डी-14, विवेक विहार दिल्ली-110095 ने सोमवार पन्द्रह मई को दोपहरबाद ओवरनाइट स्टे के लिये वहां के रूम नम्बर दो सौ बत्तीस में चैक-इन किया था । रजिस्ट्रेशन कार्ड पर आपके हस्ताक्षर हैं । आप सवाल करेंगे कि कैसे मालूम है कि हस्ताक्षर आपके हैं ? मैं बताता हूं कैसे मालूम है ? स्टेट बैंक की विवेक विहार ब्रांच में आपका सेविंग एकाउन्ट है जिसका नम्बर 4696 है । ठीक ?”
मालवानी ने जवाब न दिया ।
“ये आपके वहां के स्पेसीमेन सिग्नेचर कार्ड की फोटोकापी है । बच्चा भी एक निगाह डाल कर कह सकता है कि दोनों सिग्नेचर हूबहू मिलते हैं । आप क्या कहते हैं ?”
मालवानी निगाह चुराने लगा ।
“होटल एस्टोरिया के आप फ्रीक्वेंट विजिटर हैं इसलिये जाहिर है कि वहां के स्टाफ के कई लोग आपको पहचानते होंगे । लिहाजा आप बाखूबी जानते हैं कि आपका उनसे आमना-सामना कराया गया तो क्या नतीजा निकलेगा ! जबकि आपका तो ऐसा आमना-सामना कराया जाना जरूरी ही नहीं है ।”
“जी !”
“आप टी.वी. पर हॉट न्यूज थे । न्यूज के साथ आपका चेहरा फ्लैश किया गया था । एस्टोरिया के स्टाफ में ये कहने वाले कितने ही हैं कि ‘अरे, ये तो अपने स्टेडी पैट्रन मालवानी साहब हैं ! बेचारे उसी रात तो यहां थे । रात को ही चल दिये होने की जगह हमेशा की तरह सुबह जाते तो क्यों ये हादसा गुजरता’ । ऊपर से मैं अभी आपकी बीवी को यहां बुला कर ये सवाल करूं कि सोमवार रात को वो कहां थी तो सोचिये वो क्या जवाब देगी ? और फिर क्या आपकी इज्जत रह जायेगी ?”
मालवानी के गले की घन्टी जोर से उछली ।
“अब अभी भी आप समझते हैं कि आपका ये सफेद झूठ चल सकता है कि सोमवार रात को आप गुड़गांव के होटल एस्टोरिया में नहीं, छतरपुर झामनानी के फार्म पर थे तो आपका भगवान ही मालिक है ।”
मालवानी के चेहरे ने कई रंग बदले ।
“अब कहिये, क्या कहते हैं आप ? क्या जवाब है आपका ? अपनी जिद बरकरार रखेंगे या परजुरी के इलजाम में गिरफ्तारी और जेल यात्रा से बचने के लिये कुछ करेंगे ?”
“म... मुझे... मजबूर किया गया था ।” - मालवानी बड़ी मुश्किल से बोल पाया ।
“किसने किया था ऐसा ? झामनानी ने ?”
“हां ।”
“और ब्रजवासी ने ?”
“हां ।”
“परसों रात हमारे इन्स्पेक्टर के पहुंचने से पहले वो दोनों यहां थे । आपको गलतबयानी की पट्टी पढाने के लिये । ठीक ?”
“हां ।”
“आपने उनका सिखाया पढाया बयान दर्ज कराया ?”
“मुझे मजबूर किया गया था । मुझे जात बिरादरी का वास्ता दिया गया था ।”
“गुनाह गुनाह होता है और उसकी एक ही डेफिनिशन होती है । जुदा हालात में दिया गया बयान गुनाह को जुदा तरीकों से डिफाइन नहीं किया जा सकता । परजुरी परजुरी है, झूठी गवाही झूठी गवाही है, भले ही आपने वो किन्हीं हालात में दी हो ।”
“अब मैं क्या करूं ?”
“अक्ल कीजिये और क्या करें ?”
“अक्ल कैसे करूं ?”
“नया बयान दीजिये और शराफत से असलियत को तसलीम कीजिये ।”
“पुराने बयान का क्या होगा ?”
“ये एक मुश्किल सवाल है ।”
“क्या होगा ?”
“झामनानी आपका जातभाई है, करीबी है, इसी वजह से आपने उसकी मदद की, उसकी खातिर झूठ बोला । इसलिये जाहिर है कि उसकी बाबत आप आम लोगों से ज्यादा जानते होंगे । बोलिये हां या न ?”
“हां ।”
“झामनानी गायब है । आप उसका कोई अतापता सुझाइये, उसकी गिरफ्तारी में हमारी मदद कीजिये, मैं आपका पहला बयान फाड़ के फेंक दूंगा ।”
वो सोचने लगा ।
“जवाब की मुझे कोई जल्दी नहीं लेकिन शायद आपकी बीवी की हो जो बेचारी सस्पेंस की मारी नीचे रिसैप्शन पर बैठी है और आपकी नाफरमानी की सूरत में जिसने ये सदमा बर्दाश्त करना है कि वो एक बेवफा खाविन्द की बीवी है ।”
“चुप कर जाइये ।”
“मंजूर ।”
“मुझे आपकी पेशकश कुबूल है । आप जो कहेंगे मैं करूंगा, जैसे कहेंगे, मैं करूंगा ।”
“थैंक्यू । थैंक्यू विद दि अश्योरेंस दैट यू हैव टेकन दि राइटेस्ट डिसीजन ।”
***
बदहवास रघु गिरता पड़ता ब्रजवासी के पास पहुंचा ।
“क्या हुआ ?” - ब्रजवासी बोला ।
“मार डाला ?” - रघु हांफता हुआ बोला - “सबको मार डाला ।”
“अरे, किसने ? किस को ?”
“राजा साहब ने । सबको ।”
“सबको किस को ?”
“कोली को । नानवटे को । गनर को ।”
“क्या ?”
“पलक झपकते लुढका दिया सबको ।”
चोरी की मैटाडोर वैन चिरकुट ने खुद हैंडल की थी इसलिये माहिम काजवे पर हुए ड्रामे की खबर ब्रजवासी तक पहले ही पहुंच चुकी थी । मक्खन से बाल निकालने जैसी जिस नफासत से सोहल का अगवा हुआ था, उसकी रू में सोहल का परलोक सिधार चुका होना महज वक्त की बात थी लेकिन उसे तो एक नयी ही कहानी सुनने को मिल रही थी ।
“जरा ठीक से बक क्या बक रहा है ?” - ब्रजवासी चिड़े स्वर में बोला - “तू कहता है कि उस राजा साहब ने तीन हथियारबन्द लोगों को मार गिराया ?”
“हां ।”
“वो तो गिरफ्तार था । मार गिराने के लिये हथियार कहां से आया उसके पास ?”
“उसके पास था ।”
“अरे, कैसे था ? कहां था ?”
“पीठ पीछे । कन्धों के बीच में टेप किया हुआ था गन को । बिजली की फुर्ती से तीनों को शूट कर दिया ।”
“उसकी तलाशी नहीं ली थी ?”
“मैं क्या बोलेंगा, बाप ? मैं तो डिरेवर था ।”
“औरों की बोल, औरों की ।”
“नहीं ली, बाप । वो तो फुल कब्जे में था इसलिये....”
“फुल कब्जे में था । बोलता है फुल कब्जे में था । तभी मरने की जगह मार गया ।”
“बॉस, बिजली का माफिक रियेक्ट किया ।”
“तू कैसे बच गया ?”
“पता नहीं कैसे बच गया ! हैरानी है । मुरुगन सेव किया ।”
“अच्छा हुआ बच गया । अब उस वारदात का तू चश्मदीद गवाह है ।”
“क्या है, बाप ?”
“आई विटनेस । तूने अपनी आंखों से देखा राजा साहब को तीन आदमियों की लाश गिराते ।”
“वो तो है ।”
“तेरे को गवाही देनी होगी कि राजा साहब ने ऐसा किया ।”
“बाप !”
“तेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा । कतई कुछ नहीं बिगड़ेगा । उलटे शाबाशी मिलेगी ।”
“फिर क्या वान्दा है ?”
“बाहर जा के बैठ ।”
ब्रजवासी ने झामनानी को फोन किया और तमाम वाकया बयान किया ।
“वडी जब उसे कर्मांमारे राजा साहब की करतूत का चश्मदीद गवाह है” - झामनानी बोला - “तो इस बात को कैश कर ।”
“यही पूछने को तो फोन किया है, कैसे कैश करूं ?”
“‘भाई’ को फोन लगा ।”
“उसका मोबाइल तो बोलता नहीं ।”
“अब बोलता है ।”
ब्रजवासी ने लाइन काट कर ‘भाई’ का फोन बजाया ।
तत्काल उत्तर मिला ।
ब्रजवासी ने अपना परिचय दिया ।
“किधर है ?” - ‘भाई’ बोला ।
“मुम्बई में ।”
“कब आया ?”
“आज ही ।”
“क्या मांगता है ?”
ब्रजवासी ने बताया ।
“अल्लाह ! इतना बड़ा करतब कर भी डाला ?”
“करतब काम तो न आया ।”
“मेरे को पहले बोलना था । मैं भी उसको लुढकाने का इतना इन्तजाम करके रखा । कोई लाइन क्रॉस कर जाता तो ?”
“शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ ।”
“अब क्या मांगता है ?”
“सोहल ने प्वायन्ट ब्लैंक तीन आदमी मार गिराये, इस बात का हमारे पास चश्मदीद गवाह है । झामनानी कहता है हमें इस बात को कैश करना चाहिये ।”
“ठीक कहता है ।”
“कैसे ? कैसे कैश करें ?”
“एक फोन नम्बर नोट कर ।”
ब्रजवासी ने किया ।
“ये मुम्बई पुलिस के डी.सी.पी. का नम्बर है । नाम डिडोलकर है । हैडक्वार्टर में बैठता है । अपना आदमी है । इसको फोन लगा और बोल ‘भाई’ फोन लगाने को बोला । फिर तमाम माजरा बोल । वो या तो खुद कुछ करेगा या तेरे को कोई हिदायत देगा । जैसा बोले करने का है । क्या ?”
“जैसा बोले करने का है ।”
लाइन कट गयी ।
***
इरफान विमल के पास पहुंचा ।
“हैदर के बारे में कुछ मालूम किया, बाप ।” - वो बोला ।
“क्या ?”
“वही है । ‘भाई’ के गैंग का पक्का आदमी है । पहले छोटा अंजुम के अंडर में था, अब शायद इनायत दफेदार का हुक्का भरता है । जेकब सर्कल के लाकअप में बन्द है । किसी फिल्म स्टार को कोकीन ट्रांसफर करता पकड़ा गया था ।”
“फिल्म स्टार ?”
“वो भी । लेकिन वो जमानत पर हाथ के हाथ छूट गया । रसूख वाले बाप का बेटा था । नारकाटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो वालों ने बैलार्ड एस्टेट में अपने हैडक्वार्टर में दो तीन घन्टे बिठाया, टी.वी. वालों को न्यूज के लिये स्टार की फिल्म निकालने का मौका दिया और फिर छोड़ दिया ।”
“खामखाह !”
“जमानत पर । रोजनामचे में दिखाया कि उसके पास से सिर्फ एक ग्राम कोकीन बरामद हुई । सीरियस केस कम से कम बीस ग्राम की बरामदी से बनता है ।”
“जो अन्दर है, उसके पास से कितनी बरामद हुई ?”
“बरामद तो हैदर के पास से भी नहीं हुई थी - पुलिस के एकाएक पहुंच जाने पर उसने सबसे पहले अपने पास मौजूद कोकीन की पुड़िया से ही किनारा किया था - पण दो गवाह हैं उसके खिलाफ जिनका बयान है कि वो पुड़िया हैदर की मिल्कियत थी ।”
“पुड़िया में कितना माल था ?”
“मालूम नहीं पण बीस ग्राम से तो ज्यास्ती ही होगा । तभी से कल से अन्दर है और छुड़वाये जाने की गुहार लगा रहा है ।”
“क्योंकि आसानी से छूटता नहीं जान पड़ता ?”
“जाहिर है ।”
“जबकि फिल्म स्टार छूट भी चुका ।”
“ऐसीच है, बाप ।”
“समरथ को नहीं दोष गुसाईं ।”
“क्या बोला, बाप ?”
“गवाह कहां से आ गये ?”
“क्या पता कहां से आ गये ? अभी जितना मालूम हुआ, बोला; और मालूम होयेंगा तो फिर बोलेंगा ।”
“हूं । ये गारन्टी कैसे हो कि वो बाहर निकलने की नीयत से झूठ नहीं बोल रहा, सच में ‘भाई’ का पता जानता है ?”
“तू बोल, बाप ।”
“मालूम करना होगा ।”
“कैसे ?”
“उसी से पूछेंगे कैसे जानता है ? उससे मुलाकात का इन्तजाम करना होगा ।”
“तू मिलेगा ?”
“वकील मिलेगा । ऐसा अर्जेंट इन्तजाम कोई वकील ही कर सकता है ।”
“कोई वकील ?”
“जो अपने आपको हैदर का वकील बतायेगा । वकील को अपना कलायन्ट से, मुलजिम को अपने वकील से मिलने से नहीं रोका जा सकता । अब हमें एक काबिल और रसूख वाले वकील की जरूरत है ।”
“होतचन्दानी है न ?”
“होतचन्दानी !”
“‘कम्पनी’ का वकील है । सालाना फीस पर । एक बार आया भी था होटल के नये निजाम को अपना तआरुफ देने । उदैनिया से मिल कर गया था ।”
“चोर का साथी गिरहकट ।”
“क्या ?”
“दादा लोगों का वकील कैसा होगा, ये क्या कोई पूछने की बात है ? हम कोई काबिल और इज्जतदार वकील तलाश करेंगे ।”
“कैसे ?”
“ओरियन्टल वालों से पूछेंगे । रणदीवे को फोन लगा ।”
“अभी ।”
इरफान ने फोन की तरफ हाथ बढाया ही था कि वो पहले ही बज पड़ा ।
उसने फोन उठा कर सुना । तत्काल उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव आये ।
“क्या हुआ ?” - विमल बोला ।
इरफान ने माउथपीस पर हाथ रखा और बोला - “बाप, ये तो वही मसल हुई कि शैतान को याद करो और शैतान हाजिर ।”
“रणदीवे का फोन है ?”
“हां ।”
विमल ने उसके हाथ से फोन लिया और माउथपीस में बोला - “गुड ईवनिंग, मिस्टर रणदीवे ।”
“गुड ईवनिंग ।” - रणदीवे की आवाज आयी ।
“कैसे याद किया ?”
“आपको इनायत दफेदार की बाबत बताने के लिये ।”
“दफेदार ! पहुंचा वो आपके पास ?”
“खुद नहीं आया, फोन लगाया ।”
“खुद नहीं आया ?” - इरफान को सुनाने के लिये विमल ने दोहराया - “फोन लगाया ?”
“हां । मैंने आप वाला जवाब उसे दे दिया था ।”
“हज्म हो गया ?”
“आसानी से तो न हुआ । काफी भड़का, तड़पा फिर ‘भाई’, को खबर करने के लिये फोन बन्द कर दिया, पांच मिनट बाद फिर फोन किया और बोला कि ‘भाई’ ने हफ्ते की मोहलत देना कुबूल कर लिया था लेकिन अगर हफ्ते में भी कुछ न हुआ तो ओरियन्टल के तमाम डायरेक्टर साहबान में से एक भी जिन्दा नहीं बचेगा ।”
“जनाब, अपनी फूं फां बरकरार रखने के लिये कुछ तो उसने कहना ही था ।”
“बहरहाल आपकी स्ट्रेटेजी काम कर गयी, ‘भाई’ को एक हफ्ता चुप बैठना पड़ गया है ।”
“वैरी गुड ।”
“लेकिन एक हफ्ते बाद....”
“एक हफ्ते बाद भी कुछ नहीं होगा । कल किसने देखा है, रणदीवे साहब ! एक हफ्ते में मैं खत्म हो सकता हूं, आप खत्म हो सकते हैं, ‘भाई’ खत्म हो सकता है, ये सृष्टि खत्म हो सकती है ।”
“फिलासोफिकल बात है ।”
“प्रैक्टीकल भी । कल की कल सोचेंगे, अगले हफ्ते की अगले हफ्ते सोचेंगे ।”
“अच्छा !”
“जन की पैज रखी करतारे । ईश्वर सब की लाज रखता है, रणदीवे साहब, हमारी भी रखेगा ।”
“यस ।”
“सो टेक इट ईजी ।”
“आई विल । जनाब, एक गुस्ताखी की है मैंने आपकी शान में ।”
“क्या ?”
“बेटी की शादी का इनवीटेशन कार्ड कूरियर से भेजा है । शर्मिन्दा हूं कि शादी की तैयारियों में बिजी होने की वजह से खुद न आ सका ।”
“नो प्राब्लम, रणदीवे साहब । आपने कार्ड भेजने की ही नाहक जहमत की । मैं जरूर हाजिर होऊंगा ।”
“ऑफिस भी मैं इनायत दफेदार की वजह से आया वरना....”
“आई सैड, नो प्राब्लम । अब एक बात मेरी सुनिये ।”
“फरमाइये ।”
“हमें एक काबिल वकील की जरूरत है । काबिल और वैलरिकमैंडिड । ही विल भी पेड हैण्डसमली ।”
“काम क्या है ?”
“आपके सुनने लायक नहीं है, उसी को समझायेंगे ।”
“मामला सिविल है या क्रिमिनल ?”
“क्रिमिनल ।”
“पुनीत कोटक । आधे घन्टे में आपके पास पहुंच जायेगा ।”
“थैंक्यू ।”
विमल ने रिसीवर क्रेडल पर रखा और फिर इरफान की तरफ आकर्षित हुआ ।
“नहीं आया तेरा जवान ।” - वो बोला - “फोन किया । लगता है आगे भी करेगा तो फोन ही करेगा इसलिये अपने कोई आदमी उसके ओरियन्टल में कदम रखने की ताक में तारदेव बिठाये हुए हैं तो वापिस बुला ले ।”
इरफान ने सहमति में सिर हिलाया ।
***
इन्स्पेक्टर दामोदर राव डी.सी.पी. डिडोलकर के ऑफिस में पहुंचा ।
“आओ ।” - डिडोलकर बोला - “बैठो ।”
“थैंक्यू, सर ।”
“क्या कार्यवाही की गुमनाम कम्पलेंट पर ? राजा साहब मिला ?”
“जी हां ।”
“वो सोहल है ?”
“जी नहीं ।”
“सोहल हो सकता है ?”
“जी नहीं ।”
“एक्सप्लेन ।”
दामोदर राव ने किया, उसने सविस्तार अपनी रिपोर्ट पेश की ।
“इन्स्पेक्टर” - दामोदर राव खामोश हुआ तो डिडोलकर अप्रसन्न स्वर में बोला - “तुमने तो बिलकुल ही क्लीन चिट दे दी इस राजा साहब को ।”
“अभी नहीं, सर । अभी दो काम होने बाकी हैं ।”
“कौन से ?”
“एक तो पासपोर्ट, क्रेडिट कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस की बाबत इंक्वायरी का जवाब आना बाकी है ।”
“इंक्वायरी का जवाब ! इंक्वायरी भेज भी दी तुमने ?”
“यस, सर । ये इंक्वायरी की कापियां हैं ।”
“बड़ी फुर्ती दिखाई !”
“अर्लियर दि बैटर, सर । क्योंकि इस मामले में मैं खुद सस्पेंस में हूं ।”
“जवाब भी जल्दी आये तब न !”
“जल्दी ही आयेगा, सर ।”
“दूसरा काम ?”
“ये पेपरवेट ।” - दामोदर राव ने सावधानी से रूमाल में लिपटा पेपरवेट डिडोलकर के सामने रखा - “इस पर राजा साहब की उंगलियों के निशान हैं ।”
“गुड । अभी फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट को....”
“मैंने बुला लिया है, सर । बाहर बैठा है ।”
डिडोलकर सकपकाया ।
“हमारे पास उपलब्ध सोहल के फिंगरप्रिंट्स का रिकार्ड भी मंगा लिया है । रिकार्ड सैक्शन का हवलदार केशवराव भौंसले रिकार्ड के साथ बाहर मौजूद है ।”
“इंस्पेक्टर, यू आर टेकिंग टू मच इनीशियेटिव ।”
“आपको एतराज है, सर ?”
“नहीं, भई, एतरान नहीं लेकिन... ठीक है । बुलाओ दोनों को ।”
फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और हवलदार केशवराव भौंसले हाजिर हुए । एक्सपर्ट ने पेपरवेट पर से फिंगरप्रिंट्स बरामद किये और फिर उन्हें हवलदार के लिये रिकार्ड के फिंगरप्रिंट्स से मिला कर देखा ।
कई क्षण खामोशी रही ।
“नहीं मिलते ।” - आखिरकार एक्सपर्ट बोला ।
“क्या ?” - डिडोलकर भुनभुनाया - “इधर मुझे दिखाओ ।”
डिडोलकर ने मैग्नीफाईंग ग्लास लेकर पूरी बारीकी से फिंगरप्रिंट्स का मुआयना किया ।
नतीजा एक्सपर्ट के नतीजे से जुदा न निकला ।
उसने दोनों को डिसमिस किया ।
“ये” - पीछे दामोदर राव ने एक कागज डिडोलकर के सामने रखा - “ज्यूरिच ट्रेड बैंक काठमाण्डू के प्रेसीडेंट मारुति देवाल का निजी टेलीफोन नम्बर है । अगर आप यहां काल लगा कर....”
तभी फोन की घन्टी बजी ।
डिडोलकर ने यूं झुंझलाते हुए फोन रिसीव किया जैसे उसके बजने से उसे एतराज हो ।
“यस ?” - वो माउथपीस में बोला - “डी.सी.पी. डिडोलकर स्पीकिंग ? ...क्या नाम बताया ? ...बाजवासी ? ...ओह ! ब्रजवासी... कहां से बोल रहे हैं ? ...होटल सी-रॉक से । ...‘भाई’ ने बोला फोन करने को ? ...नो प्राब्लम । यू आर वैलकम । अब बोलिये, क्या बात है ? क्यों फोन किया ?”
तदोपरान्त कितनी ही देर डिडोलकर हां हूं करता सुनता रहा ।
“कब का वाकया है ये ?” - फिर उसने पूछा - “साढे चार बजे का ? ...मनोरी बीच का । ...ठीक है, मैं देखता हूं क्या किया जा सकता है ! आप विटनेस को काबू में रखियेगा क्योंकि एफ.आई.आर. दर्ज होगी । कहां दर्ज होगी ? कैसे दर्ज होगी ? ये मैं आपको बताऊंगा । ....नहीं, नहीं । मुझे कोई एतराज नहीं, आप जब चाहें दोबारा फोन कर सकते हैं ।”
डिडोलकर ने रिसीवर वापिस क्रेडल पर रख दिया ।
“गुड ।” - फिर वो संतोषपूर्ण स्वर में बोला ।
“क्या हुआ, सर ?” - दामोदर राव उत्सुक भाव से बोला ।
डिडोलकर ने यूं अचकचा कर उसकी तरफ देखा जैसे वो उसकी तब भी वहां मौजूदगी से बेखबर था ।
“यू स्टिल हेयर, इन्स्पेक्टर ?” - वो बोला ।
“आई वाज नैवर एक्सक्यूज्ड, सर ।” - दामोदर राव बोला ।
“आई क्लियर फारगॉट । बहरहाल अच्छा ही हुआ कि तुम अभी यहीं हो ।”
“जी !”
“तुम्हें होटल सी-व्यू वापिस जाना होगा लेकिन इस बार इंक्वायरी के लिये नहीं, गिरफ्तारी के लिये ।”
“किस की, सर ?”
“राजा साहब की ।”
“सर ! आन वॉट चार्ज ?”
“आन ए रीयल ग्रेव चार्ज । डेलीब्रेट कोल्डब्लडिड ट्रिपल मर्डर । मेरे पास अभी खबर आयी है कि इस राजा साहब ने अभी शाम साढे चार बजे मनोरी बीच पर तीन आदमियों को शूट कर दिया है ।”
“बट दैट इज इमपासिबल ।”
“उसकी करतूत का रघु नाम का चश्मदीद गवाह उपलब्ध है ! राजा साहब उसका भी खून करना चाहता था लेकिन वो खुशकिस्मत था कि वच निकला ।”
“सर, मैं फिर कहता हूं ये नामुमकिन है ।”
“लेकिन जब आई विटनेस....”
“आई विटनेस ऑर नो आई विटनेस, दिस इज नॉट पासिबल । ये असम्भव है ।”
“बड़े यकीन से कह रहे हो ?”
“जी हां ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि साढे चार बजे राजा साहब होटल सी-व्यू के अपने ऑफिस में मेरे सामने बैठे हुए थे ।”
“क्या !”
“चार बीस से चार पचास तक आधा घन्टा मैंने उनके साथ गुजारा था । उस दौरान एक क्षण के लिये भी वो मेरी निगाहों से ओझल नहीं हुए थे । वो जुहू से मीलों दूर मनोरी बीच पर नहीं हो सकते थे । कोई एक शख्स एक ही वक्त में दो मुख्तलिफ जगहों पर मौजूद नहीं हो सकता ।”
डिडोलकर भौंचक्का सा उसका मुंह देखने लगा ।
“लेकिन” - फिर वो आवेशपूर्ण स्वर में बोला - “वो चश्मदीद गवाह कहता है कि राजा साहब मनोरी बीच पर था ।”
“सर, ये भी चश्मदीद गवाह ही कहता है कि राजा साहब होटल सी-व्यू में अपने ऑफिस में थे । आप रघु को नहीं जानते कि वो कौन है लेकिन मुझे जानते हैं । मैं आपका मातहत हूं और एक जिम्मेदार पुलिस अधिकारी हूं । मेरी अकिंचन राय में किसी गैर और नामालूम शख्स की बात के मुकाबले में मेरी बात को आपको ज्यादा विश्वसनीय मानना चाहिये ।”
डिडोलकर के मुंह से बोल न फूटा ।
“सर, उस गवाह में और उसकी गवाही में जरूर कोई भेद है । और उस शख्स में भी जरूर कोई भेद है जिसने अभी गवाह के स्पांसर के तौर पर आपको फोन किया ।”
“स्पांसर ! वाट डु यू मीन स्पांसर ?”
“स्पांसर ही तो, सर । अगर किसी ने कोई अपराध होता देखा हो तो उसका फर्ज बनता है कि वो नजदीकी थाने में जा कर उसकी रपट दर्ज कराये । लेकिन इस गवाह ने तो ऐसा किया नहीं जान पड़ता । इलाके के थाने में पहुंचने की जगह वो बान्द्रा पहुंचा....”
“तुम्हें क्या पता वो कहां पहुंचा ?”
“सर, होटल सी-रॉक तो बान्द्रा में ही है ।”
“कान काफी पतले हैं तुम्हारे ।”
“....और अपने स्पांसर को रिपोर्ट किया जिसने कि आगे आपको फोन लगाया । और फोन की बिना पर अब आप इतने बड़े आदमी को गिरफ्तार करने पर तुले हैं ।”
“बड़ा आदमी, राजा साहब !”
“जी हां ।”
“जो कि एक फर्जी शख्सियत है ।”
“मेरी तफ्तीश ये नहीं कहती ।”
“तुम्हारी तफ्तीश में नुक्स है ।”
“मुझे तो नहीं दिखाई देता ।”
“तो फिर तुम्हारी निगाह में भी नुक्स है ।”
“आप तो, सर, मुझे पुलिस की नौकरी के लिये ही अनफिट करार दिये दे रहे हैं ।”
“इन्स्पेक्टर, मुझे तुम पर कुछ और ही शक हो रहा है ।”
“क्या, सर ।”
जवाब देने की जगह डिडोलकर सन्दिग्ध भाव से उसे घूरता रहा ।
“ये कि मैं राजा साहब के हाथों बिक गया ? मैंने रिश...”
“तुम जा सकते हो ।”
“लेकिन, सर...”
“इन्स्पेक्टर दामोदर राव, यू आर एक्सक्यूज्ड ।”
दामोदर राव ने उठ कर अपने आला अफसर को सैल्यूट मारा और वहां से रुख्सत हो गया ।
पीछे कितनी ही देर डिडोलकर विचारपूर्ण मुद्रा बनाये खामोश बैठा रहा ।
फिर उसने ब्रजवासी को फोन लगाया ।
“मिस्टर ब्रजवासी” - वो गम्भीरता से बोला - “मनोरी बीच की वारदात की बाबत आपकी बात में मुझे काफी कमी दिखाई देती है ।”
“लेकिन....”
“आप यहां मेरे पास आइये और मुझे मुकम्मल कहानी सुनाइये ।”
“मुकम्मल कहानी ?”
“जी हां । मुकम्मल कहानी । और अपने चश्मदीद गवाह को साथ लेकर आइयेगा ।”
“मैं... मैं ‘भाई’ से बात करता हूं ।”
“बाद में कीजियेगा, पहले आप....”
“मैं पहले ‘भाई’ से बात करता हूं ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
***
राजा साहब के कार में सवार हो जाने से पहले बारबोसा उनकी आनन-फानन चार तसवीरें निकाल चुका था । एक वाकिफ फोटोग्राफर से उसने पांच गुणा सात के प्रिंट निकलवाये और फिर उनमें से जो प्रिंट बेहतरीन लगा, उसके साथ वो कम्प्यूटरोग्राफी के उस्ताद एक आर्टिस्ट के पास पहुंचा ।
उसने राजा साहब की तसवीर उसके सामने रखी ।
“क्या है ?” - आर्टिस्ट बोला ।
“इसको अपने कम्प्यूटर पर स्कैन कर” - बारबोसा बोला - “इसकी दाढी मूंछ और पगड़ी हटा । इतना करने के बाद जो शक्ल नुमायां हो, उसका प्रिंट निकाल ।”
“हटा क्या मतलब ? दाढी मूंछ नकली हैं ?”
“हां ।”
“फिर तो सिर पर जूड़ा भी नहीं होगा ?”
“जाहिर है ।”
“असल आदमी को कभी देखा ?”
“पता नहीं । बिना दाढी मूंछ की शक्ल सामने आयेगी तो पता लगेगा ।”
“दाढी मूंछ हट जायेगी ।”
“पगड़ी में क्या वान्दा है ?”
“वान्दा कोई नहीं लेकिन पिक्चर को कम्पलीट करने के लिये कोई हेयर स्टाइल जोड़ना होगा ।”
“ऐसा ?”
“हां । कम्प्यूटर वो ही काम कर सकता है जिसके लिये ये प्रोग्राम्ड है, जादू नहीं कर सकता । ये नहीं हो सकता कि पगड़ी इरेज करने से स्क्रीन पर बालों वाला सिर अपने आप ही प्रकट हो जाये ।”
“ओह ! अन्दाजन कोई आजकल का हेयर स्टाइल बना ।”
“भले ही असल में ये शख्स गंजा हो, अधगंजा हो, सफेद बालों वाला हो या अधपके बालों वाला हो ?”
“कन्फ्यूज न कर । अपना तजुर्बा इस्तेमाल कर । डू युअर बैस्ट ।”
“ओके ।”
“मेरे लिये कम्प्यूटर में से फोटो निकाल अपने लिये फोटो में से जानीवाकर ब्लैक लेबल की बोतल निकाल ।”
“ये बात ?”
“हां ।”
“फिर तो अभी लो ।”
आर्टिस्ट जो कर सकता था, बड़ी तन्मयता से उसने किया और फिर अपनी कारीगरी के आखिरी नतीजे के दो प्रिंटआउट निकाल कर बारबोसा को सौंपे ।
बारबोसा ने बहुत गौर से बहुत देर तक यू नुमायां हुई नयी सूरत का मुआयना किया ।
उसे सूरत नितान्त अजनबी लगी ।
“ओके, थैंक्यू ।” - वो उठता हुआ बोला - “बोतल पहुंच जायेगी ।”
“कोई वान्दा नहीं ।”
***
इन्स्पेक्टर दामोदर राव टहलता हुआ पुलिस हैडक्वार्टर की इमारत से निकला और सड़क पर यूं चलता हुआ विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन की दिशा में बढा जैसे वाक पर निकला हो ।
सारे रास्ते वो इस बारे में पूरी तरह से सावधान था कि कोई उसके पीछे न लगा हो हालांकि किसी के उसके पीछे लगने का कोई मतलब नहीं था ।
वी. टी. स्टेशन पर वो एक पी.सी.ओ. बूथ में दाखिल हो गया । उसने होटल सी-व्यू का नम्बर लगाया, आपरेटर ने कॉल रिसीव की तो उसने राजा साहब से बात करने की इच्छा व्यक्त की ।
“किस विषय में बात करना चाहतें हैं, सर ?” - पूछा गया ।
“विषय व्यक्तिगत और गोपनीय है इसलिये नहीं बताया जा सकता ।”
“अपना नाम और फोन नम्बर बता दीजिये, राजा साहब चाहेंगे तो कॉल बैक कर लेंगे ।”
“मेरा कोई फोन नम्बर नहीं है ।”
“तो नाम तो बताइये ।”
“राजा साहब जानते हैं ।”
“सर, ऐसे बात नहीं हो सकती ।”
“डोंट टॉक नानसेंस । मेरी बात निहायत जरूरी है ।”
“सर, आई हैव माई इन्स्ट्रक्शंस टु फालो ।”
“ओके । राजा साहब से बोलो वो शख्स बात करना चाहता है जो चार बजे उनसे मिलने आया था ।”
“सर, आई विल पुट यू टु हिज सैक्रेट्री मिस्टर कौल ।”
“नो मिस्टर कौल, जो कोई भी वो हैं, मेरी बात उतनी ही समझेंगे जितनी कि आप समझ रही हैं ।”
“इन दैट केस आई विल हैव टु डिस्कनैक्ट, सर ।”
“नो । डोंट डू दैट । ठीक है, मेरी इरफान अली से बात करा दो ।”
जो कि आपरेटर ने कराई ।
इरफान ने बिना फालतू सवाल किये उसकी बात समझी और तत्काल राजा साहब को कॉल ट्रांसफर की ।
“आपने मुझे पहचान लिया, सर ?” - उसने पूछा ।
“हां ।” - आवाज आयी - “तुम....”
“नाम न लीजिये । इतना काफी है कि आपने मुझे पहचान लिया है ।”
“कैसे फोन किया ?”
“मेरे पास कुछ ऐसी जानकारी है जो आपके काम की हो सकती है ।”
“कैसी जानकारी ?”
“आप किसी ब्रजवासी को जानते हैं ?”
“जानता हूं ।”
“वो आपको मनोरी बीच पर हुए ट्रिपल मर्डर के इलजाम में गिरफ्तार कराने का तमन्नाई है ।”
“अच्छा ! कैसे जाना ?”
“मेरी मौजूदगी में डी.सी.पी. डिडोलकर के पास उसका फोन आया था । मैं एक तरफा वार्तालाप ही सुन सकता था इसलिये जो टूटा फूटा समझ में आया, वो ये है कि ‘भाई’, के कहने पर उसने डिडोलकर को फोन किया था । उसका कहना है कि साढे चार बजे मनोरी बीच पर राजा साहब ने तीन आदमियों का कत्ल कर दिया था और उसके पास इस वाकये का चश्मदीद गवाह था । चश्मदीद गवाह की बात से जोश खा कर डिडोलकर आपको गिरफ्तार करने का हुक्म दे बैठा था लेकिन जब मैंने उसे ये पुरइसरार जानकारी दी थी कि राजा साहब साढे चार बजे अपने आफिस में मेरे सामने बैठे हुए थे तो वक्ती तौर पर उसका जोश ठण्डा हो गया था ।”
“अब वो क्या करेगा ?”
“नहीं मालूम । आपकी बाबत अपने आइन्दा प्लान के बारे में उसने मुझे अपने कंफीडेंस में नहीं लिया था । लेकिन पीछे तो वो आपके पड़ा ही हुआ है, इसलिये कुछ तो करेगा ही ।”
“तुम्हारी रिपोर्ट की बाबत क्या बोला ?”
“बहुत झुंझलाया । मुझे जुबान देने की कोशिश करने लगा, यूं कामयाब न हुआ तो इलजाम लगाने लगा कि मेरी तफ्तीश में नुक्स था । सर, फिंगरप्रिंट्स न मिलते होने ने उसका मुंह बन्द कर दिया था, आगे तीन इंक्वायरियों का जवाब आ जाने पर उसका मुंह बिल्कुल ही बन्द हो जाता लेकिन इस ब्रजवासी की नयी बात ने यूं समझिये कि उसे नई फुरैरी लगा दी है ।”
“मुझे हैरानी है ब्रजवासी की मेरे पीछे दिल्ली से मुम्बई आने की मजाल हुई । न सिर्फ मजाल हुई बल्कि पहले वार करने की मजाल हुई ।”
“‘भाई’ की शह जान पड़ती है ।”
“हां । अगर तुम मुझे उसका कोई पता ठिकाना बता सकते तो....”
“अन्दाजा बता सकता हूं ।”
“वो ही बताओ ।”
“होटल सी-रॉक में ।”
“जो कि बान्द्रा में है ?”
“जी हां ।”
“अन्दाजा क्यों ?”
“उसने डी.सी.पी. को कहा था कि वो होटल सी-रॉक से बोल रहा था, सिर्फ इतने से ये स्थापित नहीं होता कि वो ठहरा भी वहीं हुआ है ।”
“पता करेंगे ।”
“बाई दि वे कथित चश्मदीद गवाह का नाम रघु है ।”
“खबर लेंगे उसकी भी । और ?”
“और एक बात अकैडेमिक थी ?”
“वो भी बोलो ।”
“अभी फोन के जरिये आप तक पहुंच बनाने में मुझे बहुत दिक्कत हुई । मैं इरफान अली को बाई नेम न जानता होता तो शायद बात हो ही न पाती ।”
“आइन्दा ऐसा नहीं होगा । आइन्दा मेरे मोबाइल पर फोन करना । नम्बर नोट कर लो ।”
दामोदर राव ने किया ।
***
इनायत दफेदार बान्द्रा पहुंचा ।
होटल सी-रॉक में ब्रजवासी के कमरे में उसकी ब्रजवासी से मुलाकात हुई ।
“‘भाई’ खफा है ।” - उसने घोषणा की ।
“क... क्यों ?” - ब्रजवासी सकपकाया सा बोला ।
“आपको नहीं मालूम क्यों ? क्यों बार बार उसे फोन लगाते हो ? ‘भाई’ का मोबाइल नम्बर मालूम हो गया तो उसका बेजा इस्तेमाल करोगे ?”
“बेजा इस्तेमाल ?”
“नासमझीभरा भी । जब फोन करना चाहिये था तब तो किया नहीं...”
“जब फोन करना चाहिये था ? कब फोन करना चाहिये था ?”
“जब मुम्बई का रुख किया था ।”
“मुम्बई का रुख किया था ! मुम्बई आने के लिये ‘भाई’ की इजाजत लेनी पड़ती है ?”
“तफरीह के लिये आने के लिये नहीं । सैर करने आने के लिये नहीं । तफरीह के लिये आये हो ? सैर करने आये हो ?”
ब्रजवासी का सिर स्वयंमेव इनकार में हिला ।
“इस खुशफहमी से मुब्तला होकर आये हो कि जो काम ‘भाई’ नहीं कर सकता वो आप कर सकते हो । कर भी सकते हो तो क्या वान्दा है ? लेकिन इस बाबत ‘भाई’ को खबर तो करनी चाहिये थी ताकि जिस काम के लिये ‘भाई’ ने वसीह इन्तजामात किये हुए हैं उसी में एकाएक आ कर आपके हाथ डालने से कोई पंगा न पड़ जाता ।”
“पंगा पड़ा तो नहीं ।”
“इत्तफाक से नहीं पड़ा । अब बोलो, क्या किया था ? तफसील से बताओ । कोई बात छूटने न पाये ।”
ब्रजवासी ने बेमन से अपनी पिट चुकी स्कीम का सविस्तार वर्णन किया ।
“हूं ।” - दफेदार बोला - “तो आप समझते हो कि उस एक चश्मदीद गवाह की वजह से... क्या नाम बोला उसका ?”
“रघु ।”
“रघु । उस रघु की गवाही की वजह से राजा साहब ढेर हो जायेगा ?”
“अगर तुम्हारे शहर की पुलिस राजा साहब का रौब नहीं खा जायेगी तो क्यों नहीं हो जायेगा ?”
“क्योंकि उसके खिलाफ एक चश्मदीद गवाह है ?”
“हां ।”
“एक ?”
“हां भई, एक । जो करतूत राजा साहब ने की है उसके लिये एक चश्मदीद गवाह क्या कम है ?”
“एक कम नहीं है तो चार तो किसी भी सूरत में कम न हुए !”
“चार ?”
“जो जेन में सवार थे । जो आपकी करतूत के चश्मदीद गवाह हैं ?”
“मेरी करतूत ?”
“अगवा । कत्ल के इरादे से । जो कि आपके आदमियों ने चार ऐसे गवाहों के सामने किया जो कि राजा साहब के वफादार हैं । आपके आदमी उनको इसलिये खातिर में न लाये क्योंकि उन्हें अपनी कामयाबी की गारन्टी थी । राजा साहब मर जाता तो भले ही वो अगवा का राग अलापते रहते, क्या वान्दा था ? ऐसीच सोचा था न ?”
ब्रजवासी से जवाब देते न बना ।
“खूनखराबे के कारोबार में जो भीड़ू गवाह छोड़े उसका बाल्कनी खाली । क्या ?”
ब्रजवासी ने जोर से थूक निगली ।
“अब बोलो, जब राजा साहब के कातिल होने की दुहाई उठेगी तो आप उन चार गवाहों को - ड्राइवर को छोड़कर जिनमें से सब ऊंचे रुतबे और रसूख वाले हैं - कैसे खामोश रख पाओगे जो पुरजोर, पुरइसरार लहजे में कहेंगे कि राजा साहब का अगवा हुआ था, राजा साहब ने जिन लोगों को मार गिराया था, वो और कोई नहीं वो ही भीड़ू थे जिन्होंने कि अगवा किया था और उनमें आपका चश्मदीद गवाह रघु भी शामिल था । अब ये बताओ कि आपका रघु मौकायवारदात पर अपनी मौजूदगी की क्या वजह बयान करेगा ? ये कि वो टहलता हुआ उधर से गुजर रहा था जबकि वो वाकया हुआ था ? पुलिस का जरा दबाव पड़ने की देर होगी कि वो बक देगा कि वो भी अगवा में शरीक था । और दबाव पड़ेगा तो उस शख्स का नाम ले देगा जिसने कि राजा साहब के अगवा की साजिश की ।”
ब्रजवासी घबराया ।
“अब बताओ, आपके रघु की गवाही राजा साहब के खिलाफ कारआमद साबित होगी या खुद आपके ?”
ब्रजवासी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं ।
“ऊपर से कोढ में खाज ये कि जिस शख्स का अगवा हुआ, वो राजा साहब नहीं था ।”
“क्या ?”
“कत्ल के वक्त राजा साहब होटल में मौजूद था और इस बात को जो न हिल सकने वाला गवाह है, वो खुद डी.सी.पी. डिडोलकर का मातहत इन्स्पेक्टर है । इन्स्पेक्टर बोला मैं । तीन सितारों वाला । रघु जैसा टपोरी नहीं ।”
“ले... लेकिन ये कैसे हो सकता है ?”
“क्या कैसे हो सकता है ?”
“कैसे वो होटल में हो सकता है जब कि वो मनोरी बीच पर था ?”
“आपके आदमी अन्धे हों तो क्यों नहीं हो सकता ? राजा साहब को पहचानने की जगह उन्होंने राजा साहब की सजधज पहचानी हो तो नहीं हो सकता ? वो क्या राजा साहब के हमप्याला हमनिवाला हैं ? लंगोटिये हैं उसके ? उनके सामने एक राजा साहब पेश किया गया, होटल के चार भीड़ू उसके हमराह बने, हो गया किला फतह । ऐसीच है न ?”
ब्रजवासी के मुंह से बोल न फूटा ।
“इधर के मराठा लोगों में भैंसों में भैंस पहचानना और सिखों में सिख पहचानना एक ही बात । क्या ?”
ब्रजवासी ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“अब बोलो, आपने राजा साहब के खिलाफ जो किया, वो क्यों किया ?”
“क्यों किया ? क्योंकि वो सोहल है ।”
“पुलिस की तफ्तीश कहती है वो सोहल नहीं है ।”
“ये मैं नहीं मान सकता ।” - ब्रजवासी एकाएक आवेश में बोला - “ये तो हो ही नहीं सकता ।”
“क्यों नहीं हो सकता ?”
“क्योंकि दिल्ली जो राजा साहब पहुंचा था, वो सोहल था । और इस बाबत हमें किसी की तसदीक की जरूरत नहीं । हम दिल्ली वाले अपने आप में तसदीक और न हिलाया जा सकने वाला सबूत हैं कि राजा साहब सोहल है ।”
“कोई राजा साहब सोहल है जो दिल्ली में आप लोगों के रूबरू हुआ । लेकिन जो राजा साहब यहां मुम्बई में सामने हैं, जो होटल सी-व्यू में अपना मुकाम बनाये है, वो सोहल नहीं है ।”
“नामुमकिन ।”
“साबित हो चुका है । अभी और हो जायेगा ।”
“कोई भेद है ।”
“भेद यही है कि सोहल ने दिल्ली वालों के हुजूर में पेश होने के लिये राजा साहब का बहुरूप भरा ।”
“राजा साहब का ?”
“हां ।”
“वो कौन है ?”
“राजा साहब है । जो कि सोहल नहीं है ।”
“राजा साहब है लेकिन सोहल नहीं है । सोहल है जो कि राजा साहब है । हे भगवान ! ये क्या गोरखधन्धा है !”
“बहरहाल मुम्बई में कदम रखते ही जो तीर आपने चलाया, उसे भूल जाओ, कुछ नहीं होने वाला ।”
“जबकि ‘भाई’ कहता है कि डी.सी.पी. डिडोलकर अपना आदमी है ?”
“हां । पण कोई तरफदारी वाला कदम उठाने के लिये भी किसी बुनियाद की जरूरत होती है । इधर किधर है बुनियाद ?”
“उस कमीने ने प्वायंट ब्लैंक तीन आदमी मार गिराये, हम कुछ नहीं कर सकते ?”
“नहीं कर सकते । सिवाय इसके कि आप खुद होटल सी-व्यू पहुंचो, राजा साहब के रूबरू होवो और उसे शूट कर दो ।”
“मैं कर भी दूंगा ऐसा ।”
“अब नहीं कर सकोगे ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि ‘भाई’ का हुक्म है कि आप मुम्बई में न दिखाई दो !”
“इस हुक्म की वजह ?”
“मैं ‘भाई’ का हुक्म बोला, बाप । ‘भाई’ से उसके हुक्म की कोई वजह नहीं पूछता ।”
“ओह !”
“वैसे वजह यही है कि आपकी बचकाना और गैरजिम्मेदाराना हरकतों से ‘भाई’ के उस प्रोग्राम में पंगा पड़ सकता है जो ‘भाई’ ने सोहल के लिये फिट किया है ।”
“लेकिन....”
“‘भाई’ को दिल्ली वालों पर कोई एतबार नहीं । दिल्ली के वाकये के बाद से वो उम्मीद नहीं करता कि दिल्ली वाले सोहल के खिलाफ कुछ कर पायेंगे । शुक्र मनाओ कि ‘भाई’ का पैगाम मैं आपको दे रहा हूं । आप खुद उसके रूबरू होते तो आपको जो सुनने को मिलता उससे आपके कान पक जाते । कहने का मतलब ये है कि ‘भाई’ को कतई एतबार नहीं कि नालायक और नाकारे दिल्ली वाले अब लायक और किसी काम के निकल सकते हैं ।”
ब्रजवासी तिलमिलाया ।
“इतनी बड़ी वारदात के फेल हो जाने के बाद आपका अभी भी इधर मुकाम बनाये रखना बेवकूफी है । ये सोचना और भी बड़ी बेवकूफी है कि दुश्मन आपकी करतूत की सजा देने के लिये आपके खिलाफ कोई कदम नहीं उठायेंगे । आपको तो मनोरी बीच के वाकये की खबर मिलते ही इधर से अपना बोरिया बिस्तर गोल कर लेना चाहिये था ।”
ब्रजवासी और तिलमिलाया ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“‘भाई’ क्या करेगा ?” - फिर ब्रजवासी बोला ।
“जो करेगा, सामने आ जायेगा । नहीं आयेगा तो खबर कर दी जायेगी ।”
“फिर भी ?”
“फिर भी ये कि ‘भाई’ ने राजा साहब की सुपारी लगाई है ।”
“कमाल है ! जब हम कहते हैं कि राजा साहब सोहल है तो ‘भाई’ इस बात को किसी खातिर में नहीं लाता लेकिन खुद उसी राजा साहब की सुपारी लगाता है ।”
“वजह है ।”
“क्या ?”
“जो, एक तरीके से पकड़ाई में न आये तो, कान दूसरे तरीके से पकड़ने के पीछे होती है ।”
“मतलब ?”
“अगर राजा साहब सोहल है तो राजा साहब को लुढका दिये जाने के बाद सोहल का वजूद खत्म हो जायेगा ?”
“न हुआ तो ?”
“तो हम समझेंगे कि ‘भाई’ की सुपारी की रकम का नुकसान हो गया, कि राजा साहब नाम के भीड़ू की जान नाहक गयी ।”
“कमाल है !”
“‘भाई’ सोहल की फिराक में भी बराबर है । अगर सोहल टपक गया और उसके बाद राजा साहब दिखाई देना बन्द हो गया तो हम मान लेंगे कि राजा साहब ही सोहल था ।”
“ये तो हमारे वाली ही बात हुई । इसका मतलब तो ये हुआ कि ‘भाई’ को पुलिस की तफ्तीश के इस नतीजे पर यकीन नहीं है कि राजा साहब सोहल नहीं है ।”
“यकीन है या नहीं है, अब तमाम दारोमदार एक जान पर टिका है जो कि राजा साहब की है । वो सोहल हुआ तो बात ही क्या है न हुआ तो हम समझेंगे कि नाहक एक बेगुनाह की जान गयी ।”
“यानी कि वो सोहल हो या न हो, राजा साहब तो मरे ही मरे ?”
“हां ।”
“बढिया । ये बात पसन्द आयी, भैय्या । बहुत सकून पहुंचा मेरे मन को ‘भाई’ के इस फैसले । अब मैं खुशी खुशी दिल्ली वापिस लौटने को तैयार हूं । मैं कल सुबह ही...”
“आज ही । अभी ।”
“ऐसी क्या जल्दी है ?”
“‘भाई’ का हुक्म है ?”
“भई, इस वक्त तो पता नहीं कोई प्लेन भी जाता है या नहीं !”
“चैक आउट करो और एयरपोर्ट पहुंचो । कोई प्लेन जाता हो तो बढिया वरना सुबह तक वहीं टिकना या रेलवे स्टेशन का रुख करना ।”
“कमाल है ! ऐसा नादिरशाही हुक्म !”
“ताबूत में घर नहीं पहुंचना चाहते हो तो तामील करो ।”
“मुझे ‘भाई’ से और भी बात करनी थी ।”
“और किस बाबत ?”
“माल की बाबत ?”
“फोन पर करना । माल की बाबत बुलाये तो आना ।”
“जब आया ही हुआ हूं तो....”
“बहुत हुज्जत करते हो, बाप । खता खाओगे ।”
“अच्छी बात है । अब मुझे रवानगी के वक्त टा टा बाई बाई करके मानोगे या यकीन कर लोगे कि मैंने ‘भाई’ के हुक्म की तामील की ?”
“यकीन कर लूंगा । खुदा हाफिज, बाप ।”
दफेदार रुख्सत हो गया ।
***
विक्टर की टैक्सी पर सवार विमल, इरफान और शोहाब होटल सी-रॉक पहुंचे ।
“पता करो” - विमल बोला - “तब तक मैं टैक्सी में ही बैठता हूं ।”
“ठीक ।” - इरफान बोला ।
वो और शोहाब टैक्सी से बाहर निकले और होटल में दाखिल हो गये ।
विक्टर ने टैक्सी को बैक कर के होटल के सामने ही खड़ी कारों में उपलब्ध एक खाली जगह में लगा दिया ।
विमल ने पाइप सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
पांच मिनट बाद इरफान वापिस लौटा ।
“इधरीच ठहरा है ।” - वो बोला - “कमरा नम्बर तीन सौ आठ ।”
“कैसे जाना ?” - विमल उत्सुक भाव से बोला ।
“शोहाब ने जाना फ्लोर वेटर से । इंगलिश बोल के रौब गालिब करके ।”
“फ्लोर कैसे जाना ?”
“पहले फ्लोर से चालू किया ऊपर की तरफ । पहले पर नक्को, दूसरे पर नक्को । तीसरे पर निकला ।”
“कोई वेटर न बोलता तो ?”
“वेटर किधर बोला, बाप ? सौ वाला गान्धी बोला । वो न बोलता तो बड़े वाला गान्धी बोलता ।”
“पांच सौ वाला ।”
“हां ।”
“अब तो और बड़ा भी आ गया है ?”
“आगे कभी देखेंगा, बाप, फुल बड़ा गान्धी । अभी तो सौ से काम चला ।”
विमल हंसा, वो कार से बाहर निकला ।
“इधर ही ठहरना ।” - वो विक्टर से बोला ।
विक्टर ने सहमति में सिर हिलाया ।
“क्या इरादा है, बाप ?” - इरफान बोला - “क्या करना मांगता है ?”
“सीधे उसके कमरे में जाना मांगता है । मुमकिन होगा ?”
“बरोबर होगा । इत्तफाक से इस वक्त लॉबी में बहुत भीड़ है । किसी को खबर नहीं लगेगी कि कौन किधर गया ! सीधे लिफ्ट पर और फिर ऊपर ।”
“शोहाब कहां है ?”
“लॉबी में ही है । हमें देखेगा तो करीब आ जायेगा ।”
“चलो ।”
वो निर्विघ्न तीसरी मंजिल पर पहुंचे ।
“तीन सौ आठ इधर है ।” - शोहाब बोला ।
वो तीन सौ आठ नम्बर कमरे के सामने पहुंचे ।
शोहाब और इरफान विमल के आजू बाजू खड़े हो गये, उनके हाथ अपनी अपनी पतलून की जेब में पड़ी गन पर सरक गये ।
विमल ने दरवाजे पर दस्तक दी ।
तत्काल दरवाजा खुला और एक वर्दीधारी वेटर ने बाहर झांका ।
विमल ने उसके पीछे कमरे में निगाह डाली तो एक मेड को बैड ठीक करते पाया ।
“साहब कहां हैं ?” - विमल अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
“साहब ?” - वेटर सकपकाया सा बोला ।
“ब्रजवासी साहब । जो इधर ठहरे हुए हैं ?”
“वो तो चैक आउट कर गये ।”
“क्या ?”
“चैक आउट कर गये ।”
“कब ? कब चैक आउट कर गये ?”
“अभी पांच मिनट पहले ।”
विमल ने शोहाब की तरफ देखा ।
“एकाएक ?” - शोहाब बोला - “आनन फानन ?”
“हां, साहब । आज ही आये । ओवरनाइट भी न ठहरे । बोले फौरन दिल्ली वापिस लौटना जरूरी था ।”
“लगता है” - इरफान दबे स्वर में बोला - “हम ऊपर आ रहे थे, वो नीचे जा रहा था ।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया और वेटर की तरफ आकर्षित हुआ - “ब्रजवासी साहब तेरे को बोले कि वो फौरन दिल्ली वापिस लौट रहे थे ?”
“मेरे को नहीं बोले, साहब । मैं तो उनका बिल ले कर आया था । वो फोन पर होटल के ट्रैवल काउन्टर से दिल्ली की फौरन वाली फिलाइट के बारे में पूछ रहे थे तो मैं सुना ।”
“लिहाजा अब वो एयरपोर्ट गये होंगे ?”
“फिलाइट तो एयरपोर्ट से ही मिलती है, साहब ।”
“काफी श्याना है ।” - इरफान भुनभुनाया - “अब बन्द कर ढक्कन ।”
वेटर हकबकाया सा उसका मुंह देखने लगा ।
तीनों वापिस लौटे ।
“एयरपोर्ट गया है तो अभी रास्ते में ही होगा ।” - लिफ्ट में शोहाब बोला ।
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
“अपना विक्टर बहुत फास्ट ड्राइवर ।” - इरफान बोला - “पकड़ लेंगे ।”
“देखने हैं क्या होता है ?” - विमल बोला ।
तीनों ग्राउन्ड फ्लोर पर लौटे और लॉबी क्रास कर के होटल से बाहर निकले ।
विक्टर की टैक्सी पार्किंग में से गायब थी ।
“शायद” - विमल बोला - “टैक्सी यहां यहां खड़ी करने पर किसी ने एतराज किया हो ।”
“पहले तो न किया ।” - इरफान बोला ।
“तब मैं साथ था । पैसेंजर । शायद इसलिये ।”
“हो सकता है ।”
“स्टैण्ड पर देख ।”
“अभी ।”
इरफान आगे को लपका ।
पांच मिनट बाद वो वापिस लौटा ।
“क्यों, भाई ?” - विमल अप्रसन्न भाव से बोला - “इतनी देर ?”
“कहीं नहीं है । न स्टैण्ड पर, न पार्किंग वाले एरिया में, न बाहर सड़क पर, न आजू बाजू ।”
“किधर गया ?”
“क्या बोलेंगा, बाप ?”
“अब क्या करें ?”
“टैक्सी करें और क्या करें ?”
टैक्सी पर सवार हो कर वो एयरपोर्ट के लिये रवाना हुए । वो अभी आधे रास्ते में ही थे कि विमल के मोबाइल की घन्टी बजी ।
उसने कॉल रिसीव की ।
विक्टर बोल रहा था ।
“किधर गायब हो गया था ?” - विमल झुंझलाया सा बोला ।
“बोलेंगा न, बाप ।”
“अब कहां है ?”
“ग्रान्ट रोड ।”
“उधर कैसे पहुंच गया ?”
“अपने भीड़ू के पीछे लगा न, बाप ।”
“ब्रजवासी के ?”
“हां । वो इधर तो मैं भी इधर ।”
“वहां कहां ?”
“इधर स्वागत करके एक होटल है । काफी बड़ा । छ: मंजिल तक उठा हुआ । अपना भीड़ू इधर है ।”
“किसी से मिलने आया ?”
“नक्को । खुद चैक-इन किया ।”
“कमाल है ! आननफानन एक होटल से निकला और जा कर दूसरे में बैठा गया ! ...तुम रुको, भई ।” - वो ड्राइवर की पीठ टहोकता हुआ बोला ।
टैक्सी फुटपाथ से लग कर रुकी ।
“अब मेरे को क्या करना मांगता है, बाप ?”
“उधर ही ठहर, आते हैं ।”
“मैं होटल के सामने मिलेंगा । पण....”
“क्या पण ?”
“वो इधर से भी चल पड़ा तो ?”
“तो क्या ?”
“तो मैं उसके पीछू । वो जिधर पहुंचेंगा, उधर से फिर फोन लगायेंगा । बरोबर ?”
“बरोबर । और शाबाश !”
विमल ने फोन बन्द कर दिया ।
“ग्रान्ट रोड चल, भाई ।” - विमल टैक्सी ड्राइवर से बोला ।
“एयरपोर्ट नहीं जाने का है ?” - ड्राइवर बोला ।
“बेवड़ा है ?” - इरफान ने उसकी गुद्दी पर एक चपत जमाई - “साला सुना नहीं बड़ा बाप क्या बोला ?”
ड्राइवर का सिर सहमति में हिला, उसने टैक्सी को फिर स्टार्ट किया और जिधर से आया था, उसे उधर ही वापिस दौड़ा दिया ।
***
एक टैक्सी होटल सी-व्यू की मारकी में आ कर रुकी ।
डोरमैन ने आगे बढ कर टैक्सी का पिछला दरवाजा खोला तो उसमें से शानदार सूट पहने और बो टाई लगाये बारबोसा बाहर निकला ।
बारबोसा ने टैक्सी के भीतर हाथ डाला तो उसका हाथ थामे एक जगमग जगमग युवती बाहर निकली । अपने लो कट क गाउन और फैंसी हेयर स्टाइल में वो कोई फिल्म स्टार जान पड़ती थी लेकिन हकीकतन एक हाईप्राइस्ड कालगर्ल थी जिसे बारबोसा एक फाइव स्टार डीलक्स होटल के मुअज्जित मेहमान के अपने रोल को और निखारने और विश्वसनीय बनाने के लिये साथ लाया था ।
दोनों होटल में दाखिल हुए और लॉबी में ही स्थित बार में पहुंचे ।
एक स्टीवार्ड ने आगे बढ कर उनका स्वागत किया ।
“वुई आर एक्सपैक्टिंग ए फ्रेंड ।” - बारबोसा रौब से बोला - “इसलिये हमारे लिये ऐसी टेबल अरेंज करो जिस पर से लॉबी में निगाह दौड़ाई जा सकती हो ।”
“यस, सर ।”
“लेकिन वो ऐन ऐन्ट्रेंस पर भी न हो ।”
“यस, सर । दिस वे, सर ।”
वो उन्हें एक टेबल पर छोड़ गया ।
एक अन्य स्टीवार्ड एक वेटर के साथ उनकी टेबल पर पहुंचा ।
स्टीवार्ड ने मेन्यू पेश किया ।
“अभी नहीं ।” - बारबोसा बोला - “बाद में देखेंगे । अभी मेरे लिये एक लार्ज जानीवाकर ब्लू लेबल विद सोडा और मैडम के लिये शैम्पेन काकटैल ।”
“यस, सर ।”
ड्रिंक्स सर्व हुए ।
ड्रिंक्स और स्नैक्स का आनन्द लेते और सुन्दर संगिनी से बतियाते बारबोसा ने एक घन्टा वहां गुजारा । उस दौरान लॉबी में न राजा साहब दिखाई दिया और न कम्प्यूटर पुलआउट वाली दूसरी सूरत दिखाई दी ।
“मैं आता हूं ।” - एकाएक वो उठता हुआ बोला ।
युवती ने सहमति में सिर हिलाया ।
उसने बड़े सहजभाव से लॉबी में मौजूद कॉफी शाप का और फर्स्ट फ्लोर पर मौजूद तीन रेस्टोरेंट्स का चक्कर लगाया ।
कहीं कोई नहीं !
जीसस - क्या इस राजा साहब का मनोरंजक शाम पर कोई एतबार नहीं था !
अब तफरीह से ताल्लुक रखती जो आखिरी जगह बाकी बच गयी थी, वो होटल का झंकार नाम का जिस्को था जो कि दूसरी मंजिल पर था ।
डिस्को के बन्द दरवाजे के आगे होटल स्टाफ के दो व्यक्ति खड़े थे जिनमें से एक वर्दीधारी गार्ड था और दूसरा काला सूट पहने था और काली टाई लगाये था जो कि उसके गार्ड से बेहतर रुतबे की चुगली थी ।
“सॉरी, सर ।” - काले कोट वाले ने उसे रोका ।
“वॉट सॉरी ?” - बारबोसा भुनभुनाया ।
“नो सिंगल्स, सर ।”
“मैं अभी भी नहीं समझा ।”
“डिस्को में एंट्री के लिये कम्पैनियन का होना जरूरी है ।”
“कम्पैनियन ?”
“यस, सर । मेल के लिये फीमेल, फीमेल के लिये मेल । आपके डिस्को में दाखिले के लिये आपके साथ फीमेल कम्पैनियन का होना जरूरी है ।”
“कमाल है ?”
“ऐसा ही नियम है, सर ।”
“किसने बनाया ?”
“मैंने नहीं बनाया, सर । मैनेजमेंट ने बनाया ।”
“इस वक्त तो यहां तुम्हीं मैनेजमेंट हो इसलिये....”
“सॉरी, सर ।”
“...कोई लिहाज करो ।”
“आई सैड, सॉरी सर ।”
“जीसस ! अपनों के मिजाज का ये हाल है, गैर तो जो न करे थोड़ा है ।”
“सर !”
“अलैक्स पिंटो तो कभी मेरे को सर नहीं बोला ।”
काले कोट वाला सकपकाया ।
“मैंने ठीक पहचाना न !” - बारबोसा मुस्कराता हुआ बोला ।
काले कोट वाले के नेत्र फैले ।
“बारबोसा !” - उसके मुंह से निकला ।
“इन परसन ।” - बारबोसा तनिक सिर नवाता बोला ।
“तेरे पर तो निगाह नहीं ठहर रही ।”
“तेरे पर भी । तभी तो पहचाना नहीं । जो कभी कावस बिलीमोरिया का खास होता था, वो अब इस फैंसी ड्यूटी पर !”
“धीरे बोल, यार ।”
“धीरे तो बोलता हूं पण अब भीतर जाने देने के बारे में क्या बोलता है ?”
“इतना हाई क्लास बन के इधर क्या कर रहा है ?”
“समझ ले तेरे से मिलने आया ।”
“भीतर क्यों जाना मांगता है ? डिस्को की तफरीह वाला तो मेरा मूड नहीं लग रहा ?”
“मूड तो तफरीह वाला ही है और बाई ग्रेस ऑफ गॉड आलमाइटी कम्पैनियन भी है ।”
“कहां ?”
“नीचे बार में बैठी है ।”
“तो फिर बुला ला उसे इधर ।”
“नहीं । मैं डिस्को में एक क्विक इन एण्ड आउट मांगता है, उसके लिये उसकी जरूरत नहीं ।”
“क्विक इन एण्ड आउट ?”
“हां । एक फ्रेंड को देखना है, हुआ तो उसको बाहर लिवा लाऊंगा, नहीं हुआ तो कहानी खत्म । अब बोल, क्या बोलता है ?”
वो हिचकिचाया ।
“ओह, कम आन । मेरे साथ ऐश्वर्या राय जैसी हसीन छोकरी है, मैं किसी की कम्पैनियन पर निगाह भी नहीं डालूंगा और पांच मिनट में वापिस लौटूंगा ।”
“प्रामिस ?”
“क्रॉस माई हार्ट ।”
“ओके ।”
पिंटो ने गार्ड को इशारा किया ।
गार्ड ने दरवाजा खोल दिया ।
बारबोसा भीतर दाखिल हुआ ।
भीतर कानफाड़ू बैंड बज रहा था जिसकी धुन पर डिस्को दीवाने नाच नहे थे ।
वो सारे डिस्को में फिर गया ।
राजा साहब के कहीं दर्शन न हुए ।
जबकि - बारबोसा ने भुनभुनाते हुए सोचा - हसीन था, जवान था, लाजवाब रुतबे और रसूख वाला था ।
वो बाहर निकला ।
“राजी ?” - घड़ी देखता वो पिंटो से बोला ।
“यस ।” - पिंटो बोला - “थैंक्यू ।”
“अब जरा एक मिनट इधर आओ ।”
“क्यों ?”
“कुछ खास बात करनी है ।”
“मैं इधर ड्यूटी पर...”
“कुछ नहीं हो रहा ड्यूटी को । अभी फारिग हो जाओगे । कोई प्राब्लम होगी तो गार्ड आवाज दे लेगा । सुन रहा है, भीड़ू ?”
गार्ड ने सहमति में सिर हिलाया ।
पिंटो उसके साथ दरवाजे पर से हटा और थोड़ा परे जा खड़ा हुआ ।
“मवालियों का हैडक्वार्टर ।” - बारबोसा बोला - “सारी मुम्बई में बदनाम । इज्जतदार ठिकाना कैसे बन गया ?”
“नये मालिक ने बनाया । होटल पर काबिज हुआ और ‘कम्पनी’ के सारे प्यादों, चाटुकारों को, गुंडे बदमाशों को निकाल बाहर किया ।”
“तू कैसे बच गया ?”
“कुछ लोगों को... सब को नहीं... आप्शन थी सुधर कर स्ट्रेट नौकरी करने की या बाहर निकल जाने की, मैंने पहली आप्शन कुबूल की ।”
“सुधर गया ! स्ट्रेट नौकरी करने लगा !”
“हां ।”
“कुत्ते की दुम कभी सीधी होती सुनी तो नहीं !”
“मजबूरी थी, बारबोसा । जब ‘कम्पनी’ खत्म हो गयी, ‘कम्पनी’ वाले खत्म हो गये तो...”
“कैसे हो गया ये सब ?”
“सोहल ने किया ।”
“सोहल ?”
“जो अक्खी मुम्बई जानती है कि ‘कम्पनी’ का दुश्मन नम्बर वन था और आर्गेनाइज्ड क्राइम की मुखालफत का इकलौता झण्डाबरदार था ।”
“उसने फिनिश किया ‘कम्पनी’ को ?”
“हां ।”
“उस राजा साहब की सहूलियत के लिये जो अब इस होटल का नया मालिक है ?”
“यही समझ ले ।”
“सोहल ने ‘कम्पनी’ को खत्म कर दिया, पीछे कोई न छोड़ा उसने ‘कम्पनी’ का नामलेवा । ऐसे में ये राजा साहब जैसे आसमान से टपका और इस आलीशान होटल पर काबिज हो गया !”
“आसमान से तो न टपका, जिक्र तो उसका होटल का मालिक बनने से पहले भी सुना गया था ।”
“अच्छा ? वो कैसे ?”
“बिलीमोरिया साहब के पास ब्लैक ब्यूटी नाम का एक बेशकीमती घोड़ा था जो कि चन्दन जाधव नाम के हॉर्स ट्रेनर के स्टड फार्म में रखा जाता था । एक राजा गजेन्द्र सिंह तब उस घोड़े को खरीदने का तमन्नाई बन के स्टड फार्म में पहुंचा था...”
“जो घोड़े का खरीदार बनता बनता होटल का खरीदार बन गया ?”
“एक रात” - पिंटो का स्वर बेहद धीमा हो गया - “स्टड फार्म पर पहुंचा बिलीमोरिया अपने ही भड़के हुए घोड़े की टापों के नीचे रौंदा जा कर जान से हाथ धो बैठा था । तब इधर आम सुगबुगाहट थी कि वो हादसा नहीं था, हादसा था तो स्टेज किया गया था ।”
“किसने किया था ऐसा ?”
“भई, ‘कम्पनी’ का तो एक ही स्वॉर्न एनेमी थी !”
“सोहल !”
“हां ।”
“जिसने कि गजरे समेत उसके तमाम ओहदेदारों को जान से मार डालने की कसम खायी थी ?”
“हां ।”
“लेकिन बिलीमोरिया का उसके घोड़े के साथ एक्सीडेंट किसी राजा गजेन्द्र सिंह ने स्टेज किया था ?”
“हो सकता है । क्योंकि वो उस रात स्टड फार्म पर था । हादसे के बाद ‘कम्पनी’ का तब का सिपहसालार श्याम डोंगरे जिन प्यादों को साथ ले कर स्टड फार्म पर पहुंचा था, लौटने पर वो साफ तो कुछ नहीं कहते थे लेकिन फिर कहते भी थे ।”
“क्या ? ये कि सोहल ही राजा साहब था ?”
“धीरे बोल, यार । मेरी नौकरी छुड़वायेगा ? दीवारों के भी कान होते हैं ।”
“ड्यूटी से कितने बजे फारिग होता है ?”
“बारह बजे ।”
“रहता अभी धारावी में ही है ?”
“हां ।”
“इतना फैंसी सूट पहनने के बाद भी अभी धारावी में ही रहता है ?”
“सूट वर्दी है । होटल से मिलती है ।”
“एक बजे मुझे पास्कल के बार में मिलना ।”
“कोई और टाइम बोल, कल मैंने दोपहर को बीवी को साथ ले कर कहीं जाना है इसलिये एक बजे मैं...”
“मैं कल के एक बजे की बात नहीं कर रहा हूं, पिंटो !”
“तो ?”
“आज के एक बजे की, जो तेरी ड्यूटी आफ होने के एक घन्टे बाद बजेगा ?”
“ओह, नो ।”
“फ्रेंड के लिए इतना नहीं कर सकता ?”
“लेकिन...”
“ऐसी रिक्वेस्ट मैंने कोई रोज रोज करनी है ?”
“आल राइट ।”
“थैंक्यू ।”
वो वापिस लॉबी में लौटा ।
तब उसकी तवज्जो बार के पहलू से गुजरते उस गलियारे पर पड़ी जिसके सिरे पर एक जंगला लगा हुआ था और जंगले से आगे दो लिफ्टें दिखाई दे रही थीं ।
वापिस बार में दाखिल होने की जगह उसने गलियारे में कदम रखा । वहां ठिठक कर उसने एक सिगरेट सुलगाया और फिर उसके कश लगाता आगे बढा । वो जंगले के करीब पहुंचा तो तत्काल एक वर्दीधारी गार्ड ने उसका रास्ता रोका ।
उसने नोट किया कि उस गार्ड की वर्दी का रंग जुदा था और वो वर्दी के साथ वर्दी की ही रंगत की टाई लगाये थे ।
“सॉरी, सर ।” - वो अदब से बोला ।
“क्या हुआ ?” - चेहरे पर सकपकाहट के भाव लाता बारबोसा बोला ।
“इधर कुछ नहीं है ।”
“कुछ नहीं है ? तो फिर लिफ्टें क्यों हैं ?”
“प्राइवेट यूज के लिये हैं ।”
“किसके प्राइवेट यूज के लिये हैं ।”
गार्ड ने उत्तर न दिया ।
“मुझे बताया गया है कि रूफ टॉप रेस्टोरंट का रास्ता इधर से है ।”
“गलत बताया गया है ।” - गार्ड बोला - “रूफ टॉप रेस्टोरेंट का रास्ता मेन लॉबी से ही है लेकिन वो आजकल बन्द है ।”
“अच्छा ?”
“इधर आजकल सिर्फ टॉप एग्जीक्यूटिव का प्राइवेट रेजीडेंस और ऑफिस है ।”
“टॉप एग्जीक्यूटिव ? जो कोई राजा साहब है ?”
“जी हां । राजा गजेन्द्र सिंह ।”
“राजा साहब पब्लिक में आना पसन्द नहीं करते ? इतनी रंगीन शाम....”
“राजा साहब इस वक्त होटल में नहीं हैं ।”
“ओह ! होटल में नहीं है ।”
“नाओ, प्लीज, सर....”
“यस । आफकोर्स । आई एम सॉरी आई बादर्ड यू ।”
“नॉट एट आल, सर ।”
वो वापिस लौटा ।
आधी रात तक वो उधर इस उम्मीद में रुका कि राजा साहब लौटेंगे तो उसे उनको करीब से देखने परखने का मौका मिलेगा लेकिन उसकी वो ख्वाहिश पूरी न हुई । वो नहीं जानता था कि राजा साहब का बहुरूप त्यागने के बाद सोहल अपनी आवाजाही बेसमेंट के उस खुफिया रास्ते के जरिये रखता था जो कि आगे एक खाली गोदाम में पहुंचता था ।
और क्योंकि सोहल होटल में नहीं था इसलिये राजा साहब लॉबी में प्रकट नहीं हो सकते थे ।
***
विक्टर अपनी टैक्सी से परे एक लैम्प पोस्ट के साथ लगा खड़ा सिगरेट पी रहा था जबकि विमल की टैक्सी ग्रांट रोड पर होटल स्वागत के सामने पहुंची । उन लोगों के टैक्सी से निकल कर उसको रुख्सत कर दिये जाने तक वो अपने स्थान से न हिला, उसके बाद भी वो उनकी तरफ बढने की जगह अपनी टैक्सी की तरफ बढा । वो टैक्सी की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा, उसने उसका पैसेंजर सीट की ओर का अगला और उससे पिछला दरवाजा खोल दिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
विमल और शोहाब करीब आ कर टैक्सी में पीछे सवार हो गये, इरफान आगे पैसेंजर सीट पर बैठ गया तो विक्टर ने हौले से टैक्सी आगे बढाई और उसे ऐन होटल के सामने सड़क से पार ला खड़ा किया ।
“कैसा होटल है ?” - विमल बोला ।
“ठीक है, बाप” - विक्टर बोला - “पण अपना भीड़ू जो होटल छोड़ के आया, उससे इसका क्या मुकाबला है ?”
“अपना भीड़ू !” - विमल सावधानी से बोला - “यानी कि ब्रजवासी ?”
“हां ।”
“तुझे क्या पता ब्रजवासी कौन है ? तू कहां पहचानता है उसे ?”
“नहीं पहचानता न, बाप ।”
“तो फिर ? काले चोर के पीछे लग लिया ?”
“अरे, नहीं बाप ।”
“तो ? कैसे मालूम कि जिसके पीछे तू इधर आया वो ब्रजवासी है ?”
“जब वो होटल सी-रॉक से निकल रहा था तो उधर का स्टाफ का एक भीड़ू उसे बाई नेम पुकारा । बोला, ‘मिस्टर ब्रजवासी, जरा रुकिये’ । मैं साफ सुना । फिर ब्रजवासी के नाम पर जो भीड़ू रुका वो ब्रजवासी हुआ कि नहीं हुआ ?”
“हुआ । पुकारा क्यों ?”
“उसका रिसेप्शन पर फोन था ।”
“ओह !”
“बाप, ब्रजवासी कर के भीड़ू की खातिर तो अपुन लोग उधर पहुंचा और वोहीच खिसका जा रहा था । तुम लोगों का तब किधर कोई पता नहीं था । मैं क्या करता ? मैं उसके पीछू लगा । बाप, गलत किया मैं ?”
“बिल्कुल ठीक किया । फोन पर शाबाशी दिया तो था ।”
“वो तो मैं ग्लैडली, विद आनर, रिसीव किया । थैंक्यू, बॉस ।”
“फाइव स्टार का पैट्रन इधर क्यों आया ?”
“मैं खुद हैरान, बाप ।”
“होटल की कोई खबर नहीं निकाली ? कोई पूछताछ नहीं की ?”
“जरूरत ही नहीं थी । मैं इस होटल का सारा इन एण्ड आउट पहले से जानता है ।”
“अच्छा !”
“सालों से टैक्सी डिरेवर है मुम्बई शहर में । बहुत पैसेंजर ढोया इधर ।”
“कोई खासियत है इस होटल में ?”
“है न, बाप ।”
“क्या ?”
“ठीया है ।”
“क्या मतलब ?”
“बाप, इधर हाई क्लास छोकरी लोग का फुल अरेंजमेंट ।”
“कौन करता है अरेंजमेंट । होटल वाले ?”
“वो परमिशन देते हैं और कमीशन लेते हैं...”
“मेहमान से ?”
“बाई से । मेहमान को - वैसे मेहमान को - नार्मल रेट से डेढ गुणा किराये पर कमरा दे कर पहले ही चूना लगा चुके होते हैं । स्टैण्डर्ड एसी रूम का वन थाउजेंड रुपीज रेट है इधर, उससे फिफ्टीन हन्ड्रड चार्ज करते हैं, सिक्सटीन हन्ड्रड चार्ज करते हैं ।”
“बल्ले !”
“कमीशन बाई से लेते हैं होटल वाले ।”
“हूं । विक्टर, बरायमेहरबानी तू सरका सरका के बात न कर, एक ही बार में सब बोल ।”
“बाप, ये खास होटल है जहां छोकरी लोग एवेलेबल कराने का तरीका भी खास है । गैस्ट जब ऐसी ख्वाहिश जाहिर करता है तो होटल वाले आगे खबर करते हैं जहां से एक टैक्सी डिरेवर चार छोकरी लोग को लेकर इधर पहुंचता है जो कि गैस्ट को पेश की जाती हैं । गैस्ट उनमें से किसी को पसन्द कर लेता है तो डिरेवर तीन को वापिस ले जाता है । गैस्ट को कोई माल पसन्द नहीं आता तो डिरेवर चारों को वापिस ले जाता है और चार नवां छोकरी लोग लेकर वापिस लौटता है । ऐसा तब तक चलता है जब तक गेस्ट को कोई छोकरी पसन्द नहीं आ जाती । डिरेवर का पहला फेरा फ्री है, उसके बाद हर फेरे का गैस्ट को दो सौ रुपया देना पड़ता है । करीब ही फारस रोड है, कमाठीपुरा है, फाकलैंड रोड है, नागपाड़ा है जहां से कि डिरेवर छोकरी लोग को लाता है । उधर से इधर तक का उसका आना जाना फिफ्टी सिक्सटी रुपीज में हो जाता है जबकि गिराहक से उसको टू हंड्रड रुपीया मिलता है । इसलिए गिराहक की खातिर वो खुशी खुशी फटाफट फेरे लगाता है क्योंकि ज्यास्ती फेरा, ज्यास्ती रोकड़ा ।”
“लिहाजा इधर किस्तों में हाट लगाई जाती है लड़कियों की ग्राहक के लिये ।”
“ऐसीच है बाप ।”
“सब शरेआम होता है ? मेन एन्ट्रेंस से ?”
“नहीं, बाप । पीछे की गली से एक रास्ता है भीतर दाखिल होने का । काफी चौड़ी लगी है, टैक्सी आराम से चली जाती है ।”
“सौदा कितने टाइम का होता है ।”
“अक्खी रात का । वैसे गिराहक जल्दी भेज दे तो उसकी मर्जी है ।”
“कहीं ब्रजवासी की भी यहां यही खिदमत तो नहीं हो रही ?”
“हो रही है न, बाप । अपना एक डिरेवर भाई चार छोकरी लोग के साथ एक फेरा इधर लगा भी चुका है ।”
“तुझे क्या पता कि वो फेरा किस के लिये लगा था ?”
“बाप, डिरेवर जार्ज अपना फिरेंड । अपना जातभाई । मैं पूछा । बोला, माल रूम नम्बर फाइव हन्ड्रेड टू में दिखा के लाया । मैं पहले से मालूम करके रखा कि अपना भीड़ू रूम नम्बर फाइव हन्ड्रेड टू में ।”
“फिर भी तसदीक होनी चाहिये । लेकिन कैसे हो ? मेरे सिवाय तो ब्रजवासी को कोई पहचानता नहीं ।”
“पिचड़ पहचानता है ।” - एकाएक इरफान बोला - “बुझेकर भी पहचानता होगा । वो दोनों नटराज होटल से उसके पीछे लगे थे और पीछे लगे लगे पूना पहुंचा गये थे जहां से ये ब्रजवासी तेरी बीवी के साथ एक पिराइवेट प्लेन में सवार हुआ था और दिल्ली को उड़ चला था । वो दोनों अभी जेकब परदेसी की फिराक में दगड़ी चाल के इलाके की निगरानी कर रहे हैं । भायखला, जिसमें कि दगड़ी चाल का इलाका है, इधर से करीब है । मैं अभी एक को या दोनों को पकड़ के लाता हूं । मैं बस गया और आया । चल, शोहाब ।”
दोनों एक टैक्सी पर सवार हुए और वहां से रुख्सत हो गये ।
पीछे विमल पाइप के कश लगाता प्रतीक्षा करता रहा ।
“वो है अपने जातभाई जार्ज की टैक्सी ।” - एकाएक विक्टर बोला ।
विमल ने सड़क पर निगाह दौड़ाई ।
एक टैक्सी होटल को सामने से गुजरी और उसकी नुक्कड़ से टर्न लेकर भीतर को जाती सड़क पर दाखिल हो गयी ।
“टैक्सी उस बाजू की सड़क के सामने कर ।” - विमल बोला ।
विक्टर ने आदेश का पालन किया ।
टैक्सी में से विमल ने बाजू की सड़क पर भीतर निगाह दौड़ाई तो पाया कि वो पिछवाड़े की गली में दाखिल होने की जगह उसके दहाने पर ही रुक गयी थी । फिर उसके देखते देखते चार लड़कियां टैक्सी में से बाहर निकलीं और गली में दाखिल हो गयीं ।
“ड्राइवर साथ नहीं गया ?” - विमल बोला ।
“पहले फेरे में गया न !” - विक्टर बोला - “गिराहक दिखा दिया, कमरा दिखा दिया, अब क्या करेंगा जा के ?”
“वैसे चाहता तो जा सकता था ?”
“बरोबर ।”
“ये कब तक रुकेगा ?”
“बोला न, बाप । छोकरी लोगों के लौटने तक । तीन लौटेंगी तो इसका काम खलास, चार लौटेंगी तो ये जा के चार नवीं छोकरी लोग और ले के आयेंगा और टू हन्ड्रड रुपीज और खरे करेंगा ।”
“जा के इससे बात कर ।”
“बात करूं ?” - विक्टर हड़बड़ाया - “क्या बात करूं ?”
“अगर वापिस तीन लड़कियां लौटें तो बात खत्म है लेकिन अगर चारों लौटें और इसका और फेरा लगे तो इस बार लड़कियों के साथ डिरेवर पिचड़ हो ।”
“पिचड़ ?”
“या बुझेकर । जिसे भी तेरी ड्राइवर की वर्दी फिट आ जाये ।”
“वो तो पिचड़ को ही आयेगी ।”
“तो फिर पिचड़ ।”
“गिराहक ने एतराज किया तो ?”
“क्यों एतराज करेगा ?”
“सवाल तो करेगा कि पहले वाला डिरेवर किधर गया ?”
“टैक्सी बिगड़ गयी । अब जा, जा के बात कर ।”
“जार्ज मानेगा ?” - विक्टर संदिग्ध भाव में बोला ।
“नहीं मानेगा तो काहे का तेरा फ्रेंड है, काहे का तेरा फैलो टैक्सी ड्राइवर है और काहे का तेरा जातभाई है ?”
“मैं... मैं करता है, बाप ।”
वो लपक कर जार्ज की टैक्सी के करीब पहुंचा और उसके साथ पैसेंजर सीट पर बैठ गया ।
विमल फासले से उन्हें बतियाता देखता रहा ।
पांच मिनट बाद चारों लड़कियां वापिस लौट आयीं ।
विक्टर टैक्सी से बाहर निकला, लड़कियां टैक्सी पर सवार हुईं, टैक्सी वहां से रुख्सत हो गयी ।
विक्टर वापिस लौटा और आ कर टैक्सी में सवार हो गया ।
“क्या हुआ ?” - विमल उत्सुक भाव से बोला ।
“माना, बाप ।” - विक्टर बोला - “पण बड़ी मुश्किल सो माना ।”
“मुश्किल की क्या बात थी ?”
“बोलता था कि जो भीड़ू छोकरी लोगों को भेजता था, अगर उसे खबर लग गई तो वो उसकी टैक्सी को इतने प्राफिट वाले धन्धे से हमेशा के लिये नक्की कर देगा ।”
“खबर क्यों लगेगी ।”
“अगर बोला न, बाप !”
“कुछ नहीं होता । टैक्सी बिगड़ ही जाती है । एक बिगड़े तो दूसरी की ही जाती है ।”
“वो तो है ।”
“बाकी पिचड़ होशियार है, सम्भाल लेगा ।”
“बरोबर बोला, बाप ।” - विक्टर अनिश्चित भाव से बोला ।
तभी इरफान और शोहाब लौटे ।
पिचड़ और बुझेकर दोनों के साथ ।
दोनों ने विमल का अभिवादन किया ।
“जिस शख्स के” - विमल पिचड़ से बोला - “होटल नटराज से पीछे लगा पूना पहुंच गया था अभी इसी सोमवार, उसे पहचान लेगा न ?”
“जो मैक्सवैल इन्डस्ट्रीज के प्लेन पर सवार होकर पूना से उड़ गया था ?” - पिचड़ सावधान स्वर में बोला ।
“वही । चार दिन पहले की तो बात है ।”
“बड़े आराम से । एक निगाह में ।”
“पक्की बात ?”
“पक्की बात ।”
“विक्टर के साथ कपड़े बदल फटाफट और साथ साथ सुन कि तूने करना क्या है !”
पिचड़ ने दोनों काम किये ।
तभी जार्ज की टैक्सी लौटती दिखाई दी । उनके देखते देखते पिछली बार की ही तरह होटल का घेरा काट कर टैक्सी उसके बाजू की सड़क पर दाखिल हो गयी ।
“पहुंच ।” - विमल बोला ।
विक्टर और पिचड़ बाजू की सड़क की तरफ बढे ।
टैक्सी उस बार भी गली में दाखिल होने की जगह उसके दहाने पर ही रुकी थी । उसमें से पहले जार्ज और फिर चार लड़कियां निकलीं ।
दोनों लपककर जार्ज के पास पहुचे ।
जार्ज का सिर सहमति में हिला, वो लड़कियों से कुछ बोला, फिर पिचड़ लड़कियों के साथ हो लिया ।
पीछे जार्ज अपनी टैक्सी में जा बैठा ।
तनिक हिचकिचाता विक्टर उसके साथ टैक्सी में सवार हो गया ।
पांच मिनट बाद तीन लड़कियों के साथ पिचड़ वापिस लौटा ।
विक्टर टैक्सी से बाहर निकला, तीन लड़कियां टैक्सी में सवार हो गयीं, टैक्सी तत्काल आगे बढ चली ।
“एक लड़की भा गयी इस बार ।” - सब नजारा करता विमल बोला ।
इरफान ने सहमति में सिर हिलाया ।
विक्टर और पिचड़ उनके करीब पहुंचे ।
विमल की प्रश्नसूचक निगाह पिचड़ पर पड़ी ।
“वही है ।” - पिचड़ बोला ।
“ब्रजवासी ?”
“हां, बाप ।”
“जो कि कमरा नम्बर पांच सौ दो में है ।”
“हां, बाप ।”
“ठीक से पहचाना ?”
“बिल्कुल ठीक से पहचाना ।”
“तेरे को कुछ न बोला ?”
“उसने तो ध्यान तक न दिया मेरी तरफ । मुझे तो लगता है कि उसे पता भी नहीं लगा था कि डिरेवर बदल गया था ।”
“एक लड़की रोक ली उसने ?”
“हां, बाप ।”
विमल खामोश हो गया ।
“अब ?” - इरफान बोला ।
“अब ये” - विमल बोल - “कि आधी रात को इस होटल पर पुलिस की रेड पड़नी चाहिए ।”
“रेड !”
“अपना विक्टर बोला न कि ये ठीया है । ठीये पर रेड पड़ना क्या बड़ी बात है ? कॉलगर्लिंग अपराध है । प्रास्टिच्यूशन अपराध है । सप्रैशन ऑफ इममारल ट्रैफिक एक्ट के तहत कार्यवाही होगी इस होटल पर ।”
“बाप ऐसे कारोबार पुलिस की जानकारी में उनके साथ मिलीभगत से चलते हैं ।”
“रेड का फिर भी क्या पता चलता है ? ऊपर से हुक्म हो तो हफ्ता खाने वाले पुलिसियों को भी कार्यवाही करनी पड़ती है ।”
“लेकिन” - शोहाब बोला - “रेड से हमें क्या फायदा ?”
“अरे, छोटे मियां, जो रेड डालेगा, उसी को तो फायदा होगा ।”
“ओह !”
“अब समझा ?”
“जी हां, अब समझा ।”
“फर्जी पुलिस पैदा करना क्या हमारा दुश्मन ही जानता है ?”
“हम भी जानते हैं ।” - शोहाब जोश से बोला - “जैसे को तैसा ही होना चाहिये । दुश्मन को वो ही मजा चखने को मिलनी चाहिये जो उसने राजा साहब को चखाने की कोशिश की थी ।”
“मैं अब समझा ।” - इरफान बोला ।
“देर से समझा ।”
“पण समझा ।”
“समझा तो सही” - विमल बोला - “लेकिन आधी रात तक सब इन्तजाम कर पायेगा ?”
“कितने आदमियों की जरूरत होगी ?”
“कम से कम दस की । एक ए. सी. पी., एक इन्स्पेक्टर, दो सब-इन्स्पेक्टर और छ: सिपाही ।”
“ए. सी. पी. किसलिये ?” - शोहाब बोला ।
“ताकि रेड थाने से हुई कार्यवाही न लगे, ऊपर से सीधे हैडक्वार्टर से हुई कार्यवाही लगे । तभी तो नये चेहरों पर सवाल नहीं उठेगा । पुलिस प्रोटेक्शन में ठीया चलाने वाले लोकल थाने के तो तकरीबन स्टाफ को जानते होंगे ।”
“अगर होटल वालों ने थाने फोन लगाया तो ?”
“हमें ये इन्तजाम भी करना होगा कि ऐसा न हो सके । इसलिये होटल में दाखिल होने से पहले तमाम लाइनें काटनी होंगी ।”
“किसी ने मोबाइल पर पुलिस के किसी बड़े अफसर को कॉल लगा दी तो ?”
“ये रिस्क बराबर है, हमें लेना पड़ेगा । लेकिन बड़ा अफसर उड़ कर इधर नहीं पहुंच जायेगा । वो पहले पता करेगा कि रेड का हुक्म किधर से हुआ ! जब कुछ पता नहीं चलेगा तो इधर का रुख करेगा । हम अपने काम से जल्दी फारिग होंगे तो उसका रुख हमारे लिये खतरा नहीं बनेगा ।”
“जल्दी फारिग क्योंकर होंगे ?”
“क्यों नहीं होंगे ? हमने सच में ही कालगर्ल्स थोड़े ही पकड़नी है ! हमने तो ब्रजवासी तक पहुंच बनानी है । वो पहुंच बनी और हमारा काम खत्म ।”
“ओह !”
“ये छोटा सा होटल है, आधी रात को ऐसे होटल में ज्यादा स्टाफ नहीं होता । जो कोई स्टाफ ड्यूटी पर होगा, वो रिसैप्शन पर और एकाउन्ट्स ऑफिस में ही होगा । हम उन लोगों पर निगाह रख पायेंगे तो मोबाइल पर उनके किसी को फोन करने की नौबत नहीं आयेगी ।”
“ठीक ।”
“तूने जवाब नहीं दिया, मियां ।” - विमल इरफान की तरफ घूमा - “दस आदमियों का इन्तजाम कर लेगा ?”
“क्या वान्दा है ? पांच तो हम इधर हैं ही, पांच ही तो और चाहियें । क्या वान्दा है ?”
“गुड ।”
“शोहाब पढा लिखा है इसलिये ये ए. सी. पी., इन्स्पेक्टर और सब-इन्स्पेक्टर भी कोई ऐसे भीड़ू ढूंढेगा मैं जो टपोरी न लगें । बाकी सिपाहियों का क्या है ? वो तो वैसे ही टपोरी लगते हैं ।”
“दो जीप ?”
“कोई वान्दा नहीं ।”
“पुलिस के स्टाइल के हथियार ?”
“बाप, तू फिक्र नक्को कर । सब हो जायेगा । ये फिल्मों की नगरी है और चौबीस घंटे की हलचल वाला शहर है जिधर दिन और रात की लाइफ में कोई फर्क नहीं । इधर हर चीज हर वक्त मिलती है । मैं करेंगा सब इन्तजाम ।”
“आधी रात के पहले ?”
“बरोबर ।”
ब्रजवासी ने आखिरकार जो लड़की चुनी थी, वो भी उसे कोई खास पसन्द नहीं आयी थी लेकिन बाकी की ग्यारह लड़कियों के मुकाबले में वो फिर भी काफी अच्छी थी । वो बंगलादेशी जान पड़ती थी जिसने कि उसे अपना नाम रोशनी बताया था लेकिन वो जानता था कि वो उसका असली नाम नहीं हो सकता था । तमाम कालगर्ल्स धन्धे के लिये, ग्राहक को बताने के लिये नकली नाम गढ के रखती थीं । उसका कद लम्बा था, जिस्म मजबूत था लेकिन रंगत सांवली थी और चेहरे पर ऐसे स्थायी भाव थे जैसे तालीम या तहजीब से उसका कभी कोई वास्ता न रहा हो । अलबत्ता इतना को बराबर समझती थी कि ग्राहक को उसकी फीस का - जो कि पांच हजार थी - सिला देना जरूरी था इसलिये, भले ही नकली, जोशोखरोश वो खूब दिखाती थी ।
वो पहली बार उसके साथ हमबिस्तर हुआ तो शिवांगी को याद किये बिना न रह सका ।
क्या औरत थी !
क्या शानदार - और जानदार - औरत थी !
उसे यकीन नहीं आ रहा था कि अभी चार दिन पहले तक कबूतरी की तरह फड़फड़ाती, मछली की तरह तड़पती और पारे की तरह थिरकती शिवांगी शाह उसके आगोश में थी ।
मुम्बई आकर ही उसे मालूम हुआ कि शिवांगी शाह परेल के अपने फ्लैट में मरी पड़ी पायी गयी थी । जाहिर था कि जिस किसी ने उसके कब्जे से सोहल का बच्चा छुड़ाया था, उसी ने उसे शूट कर दिया था ।
अभी चार दिन पहले तक वो शिवांगी शाह नाम की छप्पन व्यंजन का थाला का भोग न लगाता रहा होता तो उस घड़ी उसके पहलू में लेटी रोशनी नाम की लड़की से शायद उसे कोई शिकायत न होती ।
कोई बात नहीं - उसने अपने आपको तसल्ली दी - मेल ट्रेन छूट जाये तो पैसेंजर से काम चलाना ही पड़ता है ।
‘भाई’ के हुक्म से उसको कोई इत्तफाक नहीं था । वो एक मिशन के तहत मुम्बई आया था इसलिये वहां पहुंचते ही लौट जाना उसे गवारा नहीं था । चिराग तले अंधेरा वाली बात उसने खामखाह नहीं कही थी, बिरादरीभाइयों की एक राय पर अगर उसने गायब ही होना था तो इस काम के लिये बेहतरीन जगह मुम्बई थी जहां उसके होने की सोहल कल्पना भी नहीं कर सकता था और जहां एक वार पिट जाने के बावजूद वो उस पर फिर वार करने की कोई जुगत कर सकता था । ग्रांट रोड के उस मामूली होटल में आकर टिकने के पीछे उसकी असल मंशा यही थी कि ‘भाई’ या उसका खास लेफ्टिनेंट दफेदार, उसके वहां होने की कल्पना नहीं कर सकता था । रात को दिल्ली लौटना वैसे भी सम्भव नहीं था । अब कम से कम वो इत्मीनान से ‘भाई’ की हुक्मउदूली के नफे नुकसान की बाबत सोच सकता था और अगर बहुत ही प्रैशर महसूस करता तो कल मुम्बई से रुख्सत हो सकता था ।
होटल छोड़ने से पहले जो कॉल उसने रिसीव की थी वो डी.सी.पी. डिडोलकर की थी जो तब भी इसरार कर रहा था कि वो अपनी आई विटनेस के साथ उसके पास पहुंचे । उसने यही कह कर उससे पीछा छुड़ाया था कि ‘भाई’ का हुक्म था कि उस बारे में फिलहाल खामोशी बरती जाये ।
“विस्की पीती है ?” - उसने एकाएक पहलू में लेटी लड़की से पूछा ।
“कभी कभार ।” - वो बोली ।
“उठ के खड़ी हो और दो ड्रिंक्स बना ।”
लड़की उठी, उसने अपने नंगे जिस्म को एक चादर में लपेटने की कोशिश की तो उसने बड़े गुस्से से चादर वापस खींच ली ।
“सॉरी ।” - वो बोली ।
“सॉरी की बच्ची !”
लड़की साइड टेबल पर पहुंची जहां कि विस्की सोडा वगैरह पड़ा था । उसने ब्रजवासी के लिये बड़ा और अपने लिये छोटा पैग बनाया । दोनों जाम सम्भाले उसने वापस पलंग की ओर कदम बढाया ही था कि दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
ब्रजवासी ने वाल क्लॉक पर निगाह डाली तो पाया सवा बारह होने को थे ।
“कौन है ?” - वो गुस्से से बोला ।
“साहब, मैं वेटर ।” - बाहर से घबराई हुई आवाज आयी - “होटल पर पुलिस की रेड पड़ेली है ।”
“क्या ! क्या बोला ?”
“रेड ! रेड पड़ेली है । पुलिस की ।”
“कैसे पड़ गयी ?”
“क्या बोलें कैसे पड़ गयी ! पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ । आप प्लीज, लड़की को फौरन चलता कर दें वरना आपको भी मुश्किल होगी ।”
“और जो पैसा दिया ?”
“लड़की फिर आ जायेगी । सर, प्लीज टाइम जाया न करें । लड़की आपके कमरे में पायी गयी तो पुलिस आपको भी गिरफ्तार कर लेगी ।”
“अच्छा, अच्छा !”
“सर, जल्दी ।”
लड़की, जो तमाम वार्तालाप सुन रही थी, पहले ही कपड़े पहनने लग गयी थी ।
“अपना गिलास खाली कर ।” - वो बोला ।
लड़की ने सहमति में सिर हिलाया, उसने गिलास उठाया और उसमें मौजूद विस्की को पी कर उसे खाली करने की जगह उसे बाथरूम में ले जा कर विस्की सिंक में बहा दी और गिलास भी वहीं पड़ा रहने दिया ।
“फूट जा ।” - वो बोला ।
सहमति में सिर हिलाती लड़की दरवाजे की तरफ बढी ।
“होटल से सेफ न निकल सके, पहले ही पकड़ी जाये तो ये न बोलना कि तू पांच सौ दो नम्बर में थी । समझ गयी ?”
“हां ।”
“फूट ।”
लड़की ने धीरे से दरवाजा खोला और बाहर कदम निकाला । तभी दरवाजे को बाहर से एक जोर का धक्का पड़ा तो दरवाजा उसके हाथ से छूट गया और वो पीछे फर्श पर गिरते गिरते बची ।
विमल ने भीतर कदम रखा ।
उस पर निगाह पड़ते ही ब्रजवासी के नेत्र फट पड़े । बिजली की फुर्ती से उसने तकिये के नीचे हाथ डाला ।
“अब हाथ बाहर नहीं निकालना ।” - विमल उसकी तरफ रिवॉल्वर तानता हुआ बोला - “वरना गोली ।”
ब्रजवासी का हाथ जैसे तकिये के नीचे फ्रीज हो गया ।
ए.सी.पी. की वर्दी पहने शोहाब उसके पहलू से निकल कर आगे बढा । उसने अपने हाथ में थमी रिवॉल्वर ब्रजवासी की कनपटी से लगाई और तकिया एक ओर फेंका ।
जैसा कि अपेक्षित था, नीचे रिवॉल्वर मौजूद थी ।
“पैसा मिल गया ?” - विमल ने लड़की से पूछा ।
लड़की ने भयभीत भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
“तू सेफ है । बाथरूम में जा । बस पांच मिनट की जहमत है ।”
लड़की बाथरूम में चली गयी, उसने अपने पीछे दरवाजा बन्द कर लिया ।
विमल ब्रजवासी की तरफ आकर्षित हुआ जो कि यूं पलकें झपका-झपका कर विमल को देख रहा था जैसे जो दिखाई दे रहा हो, उस पर यकीन न आ रहा हो ।
कम्बख्त वाकई चलता फिरता प्रेत था ।
“उठ के खड़ा हो ।” - शोहाब कर्कश स्वर में बोला ।
“क... क... कपड़े” - ब्रजवासी हकलाया - “उधर हैं ।”
“खड़ा हो ।”
लड़खड़ाता सा ब्रजवासी पलंग पर से उतरा, उसने वो ही चादर उठा कर अपनी कमर से लपेट ली जो अभी थोड़ी देर पहले उसने लड़की के जिस्म पर खींची थी । उसकी निगाह दरवाजे की तरफ उठी तो उसने वहां एक इन्स्पेक्टर और दो सिपाहियों को खड़ा पाया । सोहल उन लोगों के साथ न होता तो वो उसे सच में ही पुलिस की रेड मान लेता लेकिन अब वो जानता था कि उसे बाकायदा योजना बना कर जाल में फंसाया गया था ।
सोहल की अपने सामने मौजूदगी से भी ज्यादा जो बात उसे हलकान कर रही थी वो ये थी कि उसे उस होटल के उस कमरे में उसकी मौजूदगी की खबर थी ।
“कैसे हो, भैय्यन ?” - विमल मधुर स्वर में बोला ।
ब्रजवासी के मुंह से बोल न फूटा ।
“मुझे दिखाई दे रहा है कि मुझे देख कर हैरान हो रहे हो लेकिन मैं तुम्हें देख कर ज्यादा हैरान हो रहा हूं । मुम्बई पहुंच गये ! आते ही वार कर दिया ! लोग बाग मुसीबत से दूर भागते हैं, तुम उसका रुख करते हो । अकेले ही पहुंचे या बिरादरीभाई भी साथ हैं ?”
ब्रजवासी से जवाब देते न बना ।
“बहरहाल बहुत जल्द मुलाकात हुई । कहते हैं गीदड़ की मौत आती है तो वो शहर की तरफ भागता है । भैय्यन की मौत आती है तो वो मुम्बई की तरफ भागता है । नहीं ?”
“छोड़ दे ।” - ब्रजवासी फुसफुसाता सा बड़ी मुश्किल से बोल पाया ।
“मंगलवार छोड़ा तो था । अभी तक पछता रहा हूं । झामनानी के फार्म पर मेरी खिल्ली उड़ाने में तू सबसे आगे था, फिर भी छोड़ा था । क्या फायदा उठाया मेरी नर्मदिली का ? क्या सबक लिया मेरी रहमदिली से ?”
“एक बार और छोड़ दे ।”
“कितने लोग मारे तूने ! और कितने तेरी वजह से मरे, तेरे हुक्म से मरे ! कुशवाहा ! द्विवेदी ! फिरोजा ! सुमन वर्मा ! - सुमन की लाश की तो वो दुर्गत की जो कोई चाण्डाल ही कर सकता था - वागले ! लेकिन तेरी सब से बड़ी खता ये है कि तुकाराम का खून तेरे सिर है । तूने मुझे यतीम बना दिया, भैय्यन । जब से तुकाराम मरा, मैं अपने आपको हजार हजार लानत भेज रहा हूं कि मैं अपने बाप की हिफाजत न कर सका । मैंने अहद लिया था कि मैं अत्याचार के इस डेरे में तब तक प्रेत की तरह विचरता रहूंगा जब तक कि मैं मर नहीं जाता या तुकाराम के कातिलों को मार नहीं डालता । बावजूद इसके मैंने तमाम वैरभाव त्याग कर दिल्ली में बिरादरीभाइयों को जिन्दा रहने का मौका दिया । ये जानते बूझते दिया कि सिवाय हेरोइन स्मगलिंग के तुम लोगों की कोई करतूत साबित नहीं की जा सकती थी । मैंने तुझे जिन्दा रहने का मौका दिया जिसे तू कैश न कर सका तो इसमें मेरी क्या गलती है ?”
“रहम ! रहम !”
“मेरे पर तो किसी ने रहम न किया । वो मंजर इतनी जल्दी भूल गया जब मैं मजबूर, बेआसरा, बेयारोमददगार तुम लोगों के सामने खड़ा था और तुम लोग फबतियां कस रहे थे, खिल्ली उड़ा रहे थे, मेरी तुलना बन्दर और लंगूर से कर रहे थे, अपने आदमियों के सामने मेरा तमाशा बना रहे थे, कि देखो राजा साहब ऐसा होता था ! अब देख लिया कि राजा साहब कैसा होता है ? राजा साहब वैसा होता है जो पता भी नहीं चलता कि कब प्रेत की तरह सिर पर आन खड़ा होता है ।”
“रहम !”
“तुम लोग वो जहरीले नाग हो जिसका फन देखते ही कुचला जाना चाहिये । नए साल की रात को फरीदाबाद में गुरुबख्शलाल की कोठी में तुम लोगों को गुरुबख्शलाल के साथ ही जहन्नुमरसीद न करके मैंने पहली गलती की, झामनानी के फार्म पर तुम लोगों को पुलिस के हवाले करने की जगह अपने हाथों से न मार कर मैंने दूसरी गलती की । अब तीसरी गलती नहीं करूंगा । मरने के लिये तैयार हो जा, भैय्यन ।”
“रहम !”
“कितने काले धन्धे हैं तेरे जिनसे तू बेतहाशा हराम का पैसा कमाता है । लैंड ग्रैब ! इललीगल कन्स्ट्रक्शन ! मकान, दुकान फीस लेकर जबरिया खाली कराना, कारखानोंदारों, व्यापारियों से हफ्तावसूली ! फिर भी एक ड्रग्स का धन्धा न छोड़ा गया ।”
“झामनानी ने गुमराह किया ।”
“मैंने तुम लोगों को फेयर वार्निंग दी थी कि ड्रग्स का धंधा नहीं, उसमें शिरकत नहीं, उसको मदद नहीं, उससे इत्तफाक नहीं । लेकिन तुम लोगों को मेरी वार्निंग कुबूल न हुई, मेरी शर्त कुबूल न हुई । जानबख्शी के लिये झूठी हामी भी दी । यूं साढे चार महीने और जी लिये ये भी फतह है तुम्हारी । बल्कि चार महीने उन्नीस दिन । बधाई हो ।”
“छोड़ दे ! बख्श दे ! मैं आइन्दा कभी...”
“अब तेरे लिए कोई आइन्दा नहीं है, माताप्रसाद ब्रजवासी, जहन्नुम में गुरुबख्शलाल मिले तो बोलना सोहल याद करता था ।”
विमल की रिवॉल्वर ने तीन बार आग उगली ।
ब्रज का वासी नर्क का वासी बन गया ।
***
पास्कल का बार धारावी के एक्रेजी के इलाके में था और वैसा ही बार था जैसा कि इलाका था इसलिये बारबोसा अपना फैंसी सूट-बूट उतार कर वहां पहुंचा ।
उस घड़ी वो काली टी शर्ट के साथ डेनिम की घिसी हुई जींस और वैसी ही बिना बांह की जैकेट पहने था । गले में उसने लाल रूमाल बांधा हुआ था और सिर पर गोल्फ कैप लगायी हुई थी ।
होटल सी-व्यू में आधी रात खोटी होने का और लड़की की फीस समेत कोई पन्द्रह हजार रुपये के खर्चे का गम वो खा चुका था ।
अलैक्स पिंटो उससे पहले बार में मौजूद था । तब वो भी वर्दी उतार चुका था और उसके स्थान पर एक लाल चैक की कमीज और काली पतलून पहने था ।
बार में उस वक्त ज्यादा लोग नहीं थे ।
बार का लीगल टाइम खत्म हो चुका था लेकिन गैरकानूनी तौर पर ड्रिंक्स तब भी सर्व की जा रही थीं ।
वो पिंटो की टेबल पर पहुंचा और उसके सामने बैठ गया ।
“क्या पियेगा ?” - बारबोसा बोला ।
“कुछ नहीं ।” - पिंटो भुनभुनाया - “ये कोई टाइम है ?”
“दिखावे के लिये ही कुछ मंगा लें ? मसलन एक एक गिलास बियर ।”
“नहीं, नहीं । मैं बियर नहीं पीता ।”
“तो मैं विस्की मंगाता हूं । खाना खाया ?”
“कहां खाया ! टाइम किधर था ? घर पहुंचने, कपड़े बदलने और यहां आने में ही तो एक बज गया ।”
“फिर क्या वान्दा है ? एक एक पैग विस्की पी लें फिर मैं तुझे यहीं खाना खिलाता हूं ।”
उसने दो ड्रिंक्स मंगाये और पिंटो के साथ चियर्स बोला ।
फिर ‘ये कोई टाइम है’ की दुहाई देने वाले पिंटो ने उससे पहले गिलास को मुंह लगाया ।
“देख, पिंटो !” - फिर बारबोसा दबे स्वर में बोला - “तू मेरा जातभाई है इसलिये मैं तेरे से कदरन ज्यादा फ्रैंकली बात कर सकता हूं ।”
“कौन सी बात ?”
“पहले वादा कर कि अभी हमारे बीच जो भी डायलाग होगा, उसे तू अभी भूल जायेगा, उसका किसी से कतई कोई जिक्र नहीं करेगा ।”
“अरे, ये वादा तो उल्टे मैं तेरे से लेना चाहता हूं । माई डियर ब्रदर, मेरी नौकरी का सवाल है । जी.एम. उदैनिया को पता चल गया कि मैं होटल से ड्यूटी ऑफ करके घर जाने की जगह रात के एक बजे इस बदनाम जगह पर किसी के साथ बैठा हुआ था तो वो कुछ का कुछ मतलब लगायेगा ।”
“फिर तो बात ही क्या है ? यानी कि यहीं की बात यहीं खत्म । जैसा कि मैं चाहता हूं । जैसा कि तू चाहता है । डन ?”
“डन ।”
“अब साफ, दो टूक बोल । ये राजा साहब सोहल हो सकता है ?”
उसने तुरन्त उत्तर न दिया ।
बारबोसा बड़े सब्र के साथ उसके बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
“यार, क्या कहूं ?” - आखिरकार वो बोला - “लगता तो किधर से भी नहीं; न सूरत से, न कद काठ से, न डायलैक्ट से । ऊपर से नैरोबी से आये एन.आर.आई. की पुख्ता बैकग्राउन्ड । रुतबे और रसूख वाले लोगों से मेल मुलाकात ! कैसे हो सकता है ?”
बारबोसा ने कोई राय पेश करने की कोशिश न की ।
“लेकिन तेरी ये बात भी मेरे जहन में लगातार बज रही है कि क्या सोहल ने ‘कम्पनी’ को इसलिये खत्म किया था कि कोई राजा साहब आकर उस पर काबिज हो जाता ! ‘कम्पनी’ का दुश्मन नम्बर वन तो ‘कम्पनी’ को खत्म करके गायब हो गया और राजा साहब जैसे आसमान से टपका । आननफानन आगे पीछे, दायें बायें राजा साहब राजा साहब होने लगी ।”
“लिहाजा राजा साहब में कोई भेद है ?”
“होना चाहिए ।”
“ये कि वो सोहल है ?”
“जो दिखाई देता है, उसकी बिना पर तो ऐसा कहना मुहाल है ।”
“लेकिन जो अक्ल कहती है, कॉमनसैंस कहती है, उसकी बिना पर ऐसा कहा जा सकता है, ऐसा हो सकता है । नहीं ?”
पिंटो ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“अब ये तसवीर देख !” - बारबोसा ने उसके सामने वो तस्वीर रखी जो दोपहर को उसने टेलीलेंस से खींची थी - “ये राजा साहब है ?”
“लगता तो है ।”
“लगता तो है क्या मतलब ? यह है या नहीं है ।”
“तसवीर साफ नहीं है न ! शार्प भी नहीं है ।”
“ये राजा साहब का तसवीर है । टेलीलेंस वाले कैमरे की मदद से आज दोपहर तब मैंने खुद खींची जबकि वो होटल से निकल कर जा रहा था ।”
“फिर तो राजा साहब है ।”
“और ये ?” - बारबोसा ने उसके सामने कम्प्यूटर से बनी तसवीर रखी - “ये कौन है ?”
“पता नहीं ।”
“पिंटो, ये राजा साहब की बिना दाढी मूंछ पगड़ी वाली सूरत है जो कम्प्यूटरोग्राफी से बनाई गयी है । क्या ये सोहल की सूरत है ?”
“सोहल की ?”
“अगर ये दाढी मूंछ वाला राजा साहब है तो ये क्लीनशेव्ड सोहल होना चाहिये ।”
“ये सोहल नहीं है ।”
“गारन्टी ?”
“हां, गारन्टी । ‘कम्पनी’ की सोहल के असली और नकली दोनों चेहरों की जानकारी थी । इकबाल सिंह ने दोनों चेहरों की पांच पांच सौ तस्वीरें बनवाकर अन्डरवर्ल्ड में बंटवायी थीं और सोहल के सिर पर पचास लाख रुपये का इनाम और ‘कम्पनी’ में ओहदेदारी का बोनस अनाउन्स किया था । ये सूरत न सोहल का असली चेहरा है और न वो चेहरा है जो कि उसे प्लास्टिक सर्जरी से हासिल हुआ था ।”
“ओह !” - बारबोसा के स्वर में निराश का पुट आ गया - “तो फिर ये कौन है ?”
“जाहिर है कि राजा साहब है ।”
“राजा साहब सोहल होना चाहिये ।”
“ये तो सोहल की सूरत नहीं ।”
“हो सकता है उसने दो बार नया चेहरा हासिल किया हो ! अपना नया चेहरा अन्डरवर्ल्ड में मशहूर हो गया होने की वजह से उसने फिर प्लास्टिक सर्जरी करा ली हो !”
“अब मैं इस बारे में क्या कह सकता हूं ! मेरे तो एतबार में ये बात नहीं आती कि प्लास्टिक सर्जरी से किसी की सूरत तब्दील हो सकती है ।”
“आनी चाहिये । जब तू अपनी आंखों से सोहल के असली नकली दोनों चेहरों की तसवीरें देख चुका है तो ये बात तो एतबार में आनी चाहिये ।”
“करिश्मा है, भई ।”
“बहरहाल ये क्लीनशेव्ड सूरत मुझे सोहल की नहीं लगती । न पहली न अब की ?”
“नहीं लगती लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
“कम्प्यूटरोग्राफी में भी तो कोई नुक्स हो सकता है ।”
“मैं भी यही सोच रहा था । मैं तेरे लिये एक ड्रिंक और मंगाता हूं ।”
“अपने लिये क्यों नहीं ?”
“मेरे पास अभी है । वैसे भी मैं तेरे होटल के बार से काफी पी आया हूं ।”
“ठीक है फिर ।”
बारबोसा ने उसके लिये नया पैग मंगाया ।
“ब्रदर” - फिर वो बोला - “अब जरा ये मान के चलो कि मेरे कम्प्यूटर प्रिंट में ही कोई नुक्स है और असल में सोहल ही राजा साहब है । है या नहीं है, फिलहाल फर्ज करो कि है । ओके ?”
पिंटो ने सहमति में सिर हिलाया ।
“अब मैं बात को जरा दूसरे सिरे से पकड़ता हूं । हर किसी का कोई न कोई खासुलखास होता है जो उसके इन और आउट से मुकम्मल तौर से वाकिफ होता है । जिससे उसका कोई सीक्रेट नहीं होता, कोई भेद नहीं होता । पिंटो, तू कावस बिलीमोरिया का खास रह चुका है, तुझे ये सीक्रेट बात तक मालूम है कि गजरे से पहले के ‘कम्पनी’ के बादशाह ने सोहल के असली नकली दोनों चेहरों की तसवीरें अन्डरवर्ल्ड में बंटवाई थीं । इस लिहाज से तुझे सोहल के किसी खासुलखास की भी खबर होनी चाहिये ।”
“है न ?”
“वैरी गुड ! कौन है वो ?”
“तुकाराम ! लेकिन वो तो मर गया ।”
“सान्ता मारिया ! अरे माई डियर ब्रदर, ऐसे शख्स का नाम लेने का क्या फायदा जो इस दुनिया में नहीं है ।”
“और किसी की तो मुझे खबर नहीं । एक वागले करके भीड़ू था जो कि तुका का करीबी था लेकिन...”
“वो भी मर गया !”
“हां । तुका के साथ ही । कत्ल हुआ था दोनों का ।”
“किसने किया था ?”
“पता नहीं ।”
“नैवर माईंड । कन्सैन्ट्रेट आन तुकाराम । तो ये तुकाराम...”
एक घन्टा खोद खोद कर सवाल करने के बाद जो बातें बारबोसा पिंटो से निकलवा पाया उनमें से अहमतरीन दिवंगत तुकाराम का वो चैरिटी अभियान था जो उसने अपनी किसी बीमारी के इलाज के लिये विदेश जाने से पहले अपनाया था । मुम्बई अन्डरवर्ल्ड में ये बात बच्चा बच्चा जानता था - नहीं जानता था तो बस बारबोसा ही नहीं जानता था - कि कैसे तुकाराम नाम के भूतपूर्व स्मगलर और रिटायर्ड सुपर गैंगस्टर को जब अपनी मौत अपने सिर पर खड़ी जान पड़ी थी तो वो अपना परलोक संवारने के लिये दानी धर्मात्मा बन गया था और धर्मार्थ कार्यों के लिये दोनों हाथों से चन्दे, ग्रान्ट और वजीफे बांटने लग गया था । तब उसकी उस चैरिटी ड्राइव का इतना प्रचार हो गया था कि नित नये लोग अपनी जरूरतों की असली नकली कहानियां लेकर उसके चैम्बूर स्थित आवास पर उससे मिलने आते थे । नतीजतन ग्रान्ट पर चलने वाले स्थलों, यतीमखानों, विधवाश्रमों, हस्पतालों वाले, मन्दिर मस्जिद गिरजे गुरुद्वारों वाले भर भर झोलियां तुकाराम से नोट ले के गये । जनहित में पैसा खर्च करने की, जरूरतमन्दों की इमदाद की जो शुरुआत सोहल ने की, तुकाराम के जुनून ने जैसे उसको पंख लगा दिये । उसने हर किसी का एतबार किया और तकरीबन हर किसी ने धोखा दिया । गरीबों के नाम से बटोरे चन्दे से किसी ने घर बना लिया तो किसी ने औलाद ब्याह ली, किसी ने व्यक्तिगत बैंक बैलेंस में इजाफा कर लिया तो किसी ने ऐय्याशी में कसर न छोड़ी । यूं सोहल का ये मिशन ही पिट गया कि हराम की कमाई, गुण्डे बदमाशें से छीना पैसा, ‘कम्पनी’ के झण्डाबरदारों से झपटी स्मगलिंग, ब्लैकमेलिंग, ड्रग ट्रैफिकिंग वगैरह की कमाई सद्कार्यों में लगती । बाद में जब विमल को ये बात मालूम हुई तो उसने चन्दे के ऐसे प्राप्तकर्ताओं की लिस्ट हासिल की और फिर अपने कहर का डण्डा घुमाया । नतीजा तत्काल वसूली की सूरत में निकला ।
“लिस्ट के बारे में कैसे मालूम ?” - बारबोसा का सवाल था - “कहर के डण्डे के बारे में कैसे मालूम ? वसूली के बारे में कैसे मालूम ?”
“वो लिस्ट खूब प्रचारित थी” - जवाब दिया - “जिसे वो खुद अपने डण्डे के शिकारों के पास छोड़ के जाता था ताकि वो अपने जैसे और बेइमानों को पैसा लौटाने के लिए मोटीवेट कर पाते ।”
“असर हुआ यूं लिस्ट छोड़ने का ?”
“बहुत हुआ । कहते हैं एक के अंजाम से डर कर दूसरे ने सोहल के उसकी खबर लेने पहुंचने से पहले पैसा लौटाया । आम हुआ ऐसा ।”
“वो लिस्ट कहीं से हासिल हो सकती है ?”
“एक शख्स है तो सही मेरी निगाह में जिसकी कि सोहल अच्छी मरम्मत करके गया था और जिसके पास वो वो लिस्ट इसी हुक्म के साथ छोड़ के गया था कि जब वो अपने पैरों पर खड़ा हो सके तो खुद लिस्ट में दर्ज एक एक शख्स के पास जाकर अपनी आपबीती सुनाये और साथ में ये बताना न भूले कि वो जिन्दा बच गया तो इसलिये कि उसने उन तक सोहल का पैगाम पहुंचाने का काम करना था ।”
“ये बात तुम्हें कैसे मालूम ?”
“खुद उस शख्स ने बतायी ।”
“तुम्हारा वाकिफ है ?”
“पुराना । क्योंकि पड़ोसी है ।”
“कौन ? नाम लो ।”
“रामोजीराव काशीकर । धारावी के प्राइमरी स्कूल का हैडमास्टर है, स्कूल के कम्पाउन्ड में ही बने छोटे से मकान में रहता है ।”
“तुम्हें क्यों बतायी ?”
“मदद चाहता था । क्योंकि उसे मालूम था कि... कि...”
“ओह ! कम आन !”
“मेरे तार ‘कम्पनी’ से जुड़े हुए थे ।”
“तुमने क्या जवाब दिया ?”
“सोहल का नाम सुनते ही जो नेक राय मैंने उसे दी थी, वो ये ही थी कि जो उसके साथ बीती, वो उसे भूल जाये और चुपचाप पैसा लौटा दे ।”
“मानी उसने तुम्हारी राय ?”
“गोली की तरह । सोहल उसे एक महीने का टाइम देकर गया था, उसने उठ कर पैरों पर खड़े होने के दो दिन बाद ही पैसा लौटा दिया । बेचारे को नासिक का अपना पुश्तैनी मकान बेचना पड़ा ।”
“इतना कड़क है ये सोहल ?”
“ये भी कोई कहने की बात है ? ऐसे ही तो ‘कम्पनी’ के तमाम ओहदेदारों को नहीं लुढका दिया ।”
“हम इस रामोजीराव काशीकर से मिल सकते हैं ?”
“पागल हुआ है । ढाई बज रहे हैं । ढाई ! ओह, माई गॉड !”
“खाना मंगाते हैं ।”
“अब नहीं । मैं चला ।”
“एक आखिरी बात सुन जा ।”
“जल्दी बोल ।”
“तूने हैडमास्टर साहब को अपना पड़ोसी बोला । मैं कल सुबह उससे मिलने आऊंगा, उसे मेरी बाबत बोल के रखना ।”
“ठीक है ।”
‘आग का दरिया’ में जारी
***