आशा के फ्लैट पर हुई मीटिंग के तेरहवें दिन बाद वे सभी न केवल लंदन बल्कि एलिजाबेथ होटल पहुंचे थे। योजना के मुताबिक उनके नाम बशीर, चक्रम, डिसूजा, मार्गरेट और ब्यूटी ही थे तथा वे पूर्वनिर्धारित स्कीम के मुताबिक ही वहां पहुंचे थे।
न केवल अपने ही बल्कि वे एक-दूसरे के मेकअप से भी पूरी तरह सन्तुष्ट थे, क्योंकि जानते हुए भी एक-दूसरे को देखकर वे विश्वास नहीं कर सके कि वह उनका ही साथी है।
अलफांसे और इर्विन अभी तक उसी यानी सेवन्टी-वन नम्बर कमरे में ही रह रहे थे, उन्हें वॉच करने का काम विजय ने अपने जिम्मे लिया था और उसने उन्हें वॉच किया भी था परन्तु—कोई लाभ नहीं निकला।
वे हनीमून मना रहे, साधारण पति-पत्नी की तरह रह रहे थे।
विकास के जिम्मे उस व्यक्ति को खोज निकालने का काम था, जिसने गार्डनर के हुक्म पर फोकस वाले बल्ब का रुख ग्राडवे की लाश की तरफ किया था।
यह काम विकास को भूसे के ढेर में से सुई ढूंढ निकालने के बराबर कठिन लगा—सारे दिन वह लंदन की सड़कों पर मारा-मारा फिरता, किन्तु शाम के वक्त थक-हारकर वापस लौट आता।
आज दोपहर आशा ने म्यूजियम जाकर एक नजर कोहिनूर को देखने का निश्चय किया, इसमें शक नहीं कि ऐसा निश्चय करते ही उसका दिल असामान्य गति से धड़क उठा।
ब्यूटी एक जापानी लड़की थी, जापान में उसके पिता का बहुत बड़ा कारोबार था और वह अकेली थी, और वह अकेली ही दुनिया घूमने के लिए निकली थी। भारत के बाद उसकी लिस्ट में ब्रिटेन का नाम था—किसी आवश्यक कार्यवश वह भारत से आस्ट्रेलिया गई और वहां से सीधी लन्दन आई है।
फिलहाल संक्षेप में आशा का यही परिचय था।
वह गोरी-चिट्टी तीखे नाक-नक्श नीली आंखों और तांबे से रंग वाले बालों वाली लड़की नजर आती थी, जिस्म पर जापानी पोशाक पहने थी। उस वक्त दो बजने में सिर्फ दस मिनट बाकी रह गए थे, जब वह उस गैलरी में दाखिल हुई जो कोहिनूर वाले हॉल तक जाती थी—अभी वह कुछ ही दूर चली थी कि गैलरी में एक छोटी-सी बुकिंग देखकर ठिठक गई।
बुकिंग के माथे पर लिखा था—“कृपया कोहिनूर देखने के लिए फ्री कूपन यहां से लें।”
बुकिंग के अन्दर मोटी भंवो और चौड़े चेहरे वाला व्यक्ति बैठा सिगरेट पी रहा था, पहली नजर में देखने पर ही वह व्यक्ति बहुत क्रूर-सा नजर आता था—आशा के ठिठकने की वजह वह बुकिंग और उसके मस्तक पर लिखा वाक्य था।
आशा के दिमाग में बड़ी तेजी से विचार कौंधा—‘ये क्या चक्कर है?’
विजय ने तो ऐसी किसी बुकिंग या कूपन का जिक्र नहीं किया था। फिर भी वह स्वयं को नियन्त्रित करके बुकिंग की तरफ बढ़ गई।
“मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?” बुकिग के अन्दर बैठे क्रूर-से नजर आने वाले व्यक्ति ने पूछा।
“मैं कोहिनूर देखना चाहती हूं।” आशा ने नियन्त्रित स्वर में कहा। सिगार को दांतों के बीच फंसाकर उसने कलमदान से पैन उठाया और अपने सामने खुले रखे रजिस्टर पर झुकते हुए प्रश्न किया—
“आपका नाम?”
“ब्यूटी!”
लिखते हुए चौड़े चेहरे के व्यक्ति ने पूछा— “किस देश की नागरिक हैं?”
“जापान की।”
“फिलहाल लन्दन कहां से आई हैं?”
“आस्ट्रेलिया से!”
“यहां किस होटल में ठहरी हैं, कृपया कमरा नम्बर सहित बताएं।”
आशा ने उसके इस अन्तिम सवाल का जवाब भी ठीक-ठाक दे तो दिया, किन्तु सच्चाई ये है कि ढेर सारी आंशकाओं ने उसके मस्तिष्क को बुरी तरह हिलाकर रख दिया—जो सवाल उससे पूछे गए थे वह पहले से उनमें से किसी एक का भी जवाब देने के लिए तैयार नहीं थी। होती भी तो कैसे?
उसे ज्ञात ही नहीं था कि यहां ऐसे सवाल किए जाएंगे और वैसे भी उसने नोट किया था कि क्रूर व्यक्ति ने पृष्ठ के सबसे ऊपर क्रम संख्या एक डालकर उसके जवाब लिखे हैं, इसका सीधा-सा मतलब था, कोहिनूर को देखने वाली आज की वह पहली दर्शक है।
यह सोचकर वह कांप गई कि म्यूजिम के इस सन्नाटेदार भाग में बिल्कुल अकेली है।
“मिस ब्यूटी!” क्रूर व्यक्ति ने उसे चौंकाया।
हड़बड़ाकर वह कह उठी—“य...यस!”
“कहां खो गईं आप?”
“क...कहीं नहीं।”
“आपका कूपन!” उसने पीतल का बना एक गोल कूपन विन्डो के रास्ते से बाहर की तरफ सरका दिया, आशा ने जल्दी से कूपन उठाया और घूम गई—क्रूर व्यक्ति की तरफ अपनी पीठ कर दी थी उसने और कूपन को कसकर मुट्ठी में दबाए हड़बड़ाहट में बुकिंग से कई कदम आगे निकल आई।
आशा महसूस कर रही थी कि उसके मस्तक पर पसीने की ढेर सारी बूदें उभर आई हैं—दिल बेकाबू होकर जोर-जोर से धड़क रहा है और अनजाने में ही वह हांफने लगी है।
वह गोल हॉल की तरफ जाने वाले रास्ते पर बढ़ी थी और उस तरफ सन्नाटा व्याप्त था—जाने क्यों, इस वक्त आशा को यह सन्नाटा बहुत ही भयावह-सा महसूस हुआ।
वह ठिठक गई, जान-बूझकर उसने अपने आगे बढ़ते हुए कदमों को रोक लिया—जाने कहां से यह विचार उभरकर उसके मस्तिष्क से टकराया कि—कहीं वह किसी जाल में तो नहीं उलझती जा रही है?
अनजाने में ही कूपन को उसने मुट्ठी में कसकर भींच लिया। गैलरी का एक मोड़ घूमने के बाद ही उसे गोल हॉल का दरवाजा नजर आया, अभी वह बन्द था और उसके समीप ही एक सैनिक कन्धे पर गन लटकाए सावधान की-सी मुद्रा में खड़ा था।
आशा ने रिस्टवॉच में समय देखा—दो बजने में केवल दो मिनट शेष थे।
दरवाजा उसे चमक जरूर रहा था परन्तु इतना दूर था कि वहां तक पहुंचने में उसे डेढ़ मिनट लग ही जाना था, सो वह धीमे-धीमे कदमों से गैलरी पार करने लगी।
सैनिक किसी स्टैचू के समान मुस्तैद खड़ा था।
आशा उसके निकट पहुंच गई, कुछ कहना तो दूर—वह हिला तक नहीं।
पन्द्रह सेकण्ड बाद ‘घर्र-घर्र’ की एक छोटी-सी आवाज के साथ दरवाजा खुल गया, आशा का दिल बेकाबू होकर जाने क्यों धड़कने लगा।
हॉल में पहला कदम रखते ही नजर एक मेज के पीछे कुर्सी पर बैठे व्यक्ति पर पड़ी, मेज पर एक खुला हुआ रजिस्टर और पेन रखा था, एक तरफ लगे छोटे-से बोर्ड पर लिखा था— “कृपया अपने साइन करें!”
गहरी नीली आंखों वाला व्यक्ति आशा को अपनी तरफ देखता हुआ महसूस हुआ और यही वह क्षण था जब बड़ी तेजी से उसके दिमाग में यह विचार उठा कि—ये व्यक्ति परले दर्जे का मनोवैज्ञानिक है, साइन करते हुए आदमी का हाथ देखकर ताड़ जाता है कि साइन करने वाले का नाम वही है या नहीं?
यह विचार आशा को नर्वस करने लगा।
फिर भी उसने खुद को संभाला और मेज की तरफ बढ़ गई। दिल असामान्य गति से धड़कने लगा था, किन्तु उसने पूरी लापरवाही के साथ पैन उठाया, नीली आंखें उसके हाथ पर जम गईं—ऐसा देखकर आशा के सारे शरीर में सिहरन-सी दौड़ गई, लेकिन हाथ को नहीं कांपने दिया उसने।
पूरे फ्लो में फटाक से साइन किए और घूम गई।
अपनी आंखें वहां उसने कोहिनूर पर जमा दीं—जंजीर से रेलिंग की तरफ बढ़ी—आंखें वहां होने के बावजूद भी वह कोहिनूर को देख नहीं रही थी, मस्तिष्क में सैकड़ों अजीब-अजीब-से विचार घुमड़ रहे थे—अचानाक ही विचार उठा कि कहीं उसने रजिस्टर में आशा के नाम से तो साइन नहीं कर दिए हैं?
वह ठिठक-सी गई।
उसे याद नहीं रहा था कि रजिस्टर में ब्यूटी के नाम से साइन करके आई है या आशा के—दिल चाहा कि घूमे, मेज के पास जाए और अपने साइन को देखे—परन्तु नहीं, यही उसकी सबसे बड़ी और अन्तिम बेवकूफी साबित होगी, नीली आंखों वाले के एक इशारे पर उसे इसी वक्त गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
अतः अपना सम्पूर्ण ध्यान उसने कोहिनूर पर एकत्रित कर दिया—दुनिया का वह अकेला और नायाब हीरा दमक रहा था।
सारी स्थिति विजय के बताए मुताबिक ही थी।
रेलिंग के सहारे घूमती हुई आशा कोहिनूर का अवलोकन करने लगी और इसमें शक नहीं कि उसकी खूबसूरती में डूबकर वह सब कुछ भूल गई—उन क्षणों में ठीक से अपना नाम तक याद नहीं रहा था उसे।
थोड़ी आश्वस्त होकर उसने अपने चारों तरफ देखा। हॉल की दीवारों के सहारे खड़े सशस्त्र सैनिकों ने गनें उसी तरह तान रखी थीं—वह अकेली थी— और शायद इसीलिए चारों तरफ खड़े सशस्त्र सैनिक उसी की तरफ देख रहे थे।
उस वक्त उसकी जान में जान आई जब प्रवेश द्वार पर उसने बहुत-से पदचाप और कई व्यक्तियों के आपस में बात करने की आवाजें सुनीं—आशा ने उधऱ देखा, कोई अंग्रेज परिवार अपने मेहमानों को कोहिनूर दिखाने लाया था।
उन सभी ने आगे बढ़-बढ़कर रूटीन के-से अन्दाज में साइन कर दिए।
आशा पुनः कोहिनूर को देखकर सोचने लगी कि यदि वह यहां इस हीरे को देखने आशा के नाम से ही आई होती तो उन लोगों की तरह स्वच्छन्द मस्तिष्क से कोहिनूर की खूबसूरती का आनन्द उठा सकती थी, उस वक्त मेरे पास इस वक्त जैसा तनावग्रस्त मस्तिष्क न होता। अवसर मिलते ही वह निकासी द्वार की तरफ बढ़ गई।
द्वार पर एक सैनिक खड़ा था, जिसने उसके निकट पहुंचते ही हाथ फैला दिया।
“क...क्या बात है?” आशा हड़बड़ा गई।
उसने नम्र स्वर में कहा—“कूपन प्लीज!”
“ओह!” कहती हुई आशा ने अपनी वह मुट्ठी खोल दी जिसमें कूपन था, अनजाने ही में कूपन को सख्ती से भींचे रखने के कारण आशा की कोमल हथेली पर उसकी छाप स्पष्ट बन गई थी जिसे देखकर कूपन लेते हुए सैनिक ने अजीब-सी मुस्कान के साथ कहा—
“कमाल है, आपने कूपन को इतनी सख्ती से क्यों पकड़ रखा था?”
“श...शायद अनजाने में!” कहने के बाद आशा दरवाजा पार कर गई, तेज कदमों के साथ गैलरी से गुजरने लगी वह-आशा जल्दी-से-जल्दी इस म्यूजियम से बाहर निकल जाना चाहती थी—निकासी द्वार पर जो सैनिक खड़ा था, हालांकि उसके द्वारा कही गई बात कोई विशेष नहीं थी परन्तु उसके एक ही वाक्य ने आशा को हिलाकर रख दिया था।
भारतीय सीक्रेट सर्विस की एजेण्ट आशा।
अपने जीवन में वह पहले भी अनगिनत बार खतरों से गुजर चुकी थी, कई बार तो मौत की आंखों में आंखें डालकर उसने बड़े साहस से जंग की थी, ऐसी जंग कि हर बार मौत उसके कदमों में औंधे मुंह गिरी थी, उसी आशा को कोहिनूर देखने की परीक्षा ने हिलाकर रख दिया था।
आज पहली बार उसकी समझ में यह बात आई कि जुर्म करते वक्त चालाक से चालाक मुजरिम आखिर गलतियां कर क्यों जाता है—जुर्म करते वक्त मुजरिम के मन में एक चोर होता है, दिमाग पर एक अजीब-सी नर्वसनेस हावी रहती है—प्रत्येक क्षण उसे याद रहता है कि वह मुजरिम है—जुर्म कर रहा है—आवश्यकता से अधिक सतर्कता के कारण ही वह भूल करता है।
इन्हीं विचारों में खोई आशा गैलरी के कई मोड़ पार कर गई—एक मोड़ पर घूमते ही उसकी नजर एक काउण्टर पर पड़ी—काउण्टर के पीछे एक आकर्षक और युवा अंग्रेज बैठा इण्टरकॉम पर किसी से बातें कर रहा था, आशा ने देखा कि बातें करते हुए अंग्रेज ने उसकी तरफ देखा।
आशा यह तो न सुन सकी कि इण्टरकॉम पर वह क्या बातें कर रहा है, परन्तु उसे लगा कि बातें करते युवक ने उसे विशेष नजरों से देखा है, वह बिना ठिठके—नजरें झुकाकर तेजी के साथ काउण्टर के समीप से गुजर गई।
म्यूजियम से बाहर निकलते ही उसने टैक्सी पकड़ी और एलिजाबेथ चलने के लिए कहकर सीट पर बैठ गई—टैक्सी आगे बढ़ गई—आशा ने आंखें बन्द करके सिर पुश्त से टिका दिया।
उसके कोहिनूर को देखने के क्षण बहुत ही तनाव में गुजरे थे।
ज्यों-ज्यों वह म्यूजिम से दूर होती गई, त्यों-त्यों मन हल्का होता गया और अचानक उसे ख्याल आया कि उसके बाकी साथी भी योजनानुसार एक-एक बार कोहिनूर को देखने जाने वाले हैं, तभी उसे कूपन वाली बुकिंग और उसके द्वारा किए गए सवालों का स्मरण हो आया।
‘ओह, यदि वे सब जाएंगे तो उनसे भी वही प्रश्न पूछे जाएंगे-होटल का नाम और कमरे का नम्बर तक। ओह-सिक्योरिटी विभाग यह जानकर चौंक सकता है कि आजकल एलिजाबेथ में ठहरे विदेशी लोग कोहिनूर को देखने ज्यादा आ रहे हैं।’
‘ख...खतरा!” यह शब्द बिजली की तरह आशा के मस्तिष्क में कौंध गया।
सभी का कोहिनूर देखने जाना खतरनाक है—सिक्योरिटी को शक हो सकता है, वे शक कर सकते हैं कि हम पांचों अपरिचित नहीं हैं और फिर इस शक के आधार पर ही जासूस हम लोगों के पीछे लग सकते हैं।
बैठे-बिठाए यह एक व्यर्थ की मुसीबत गले पड़ जाएगी।
आशा ने निश्चय किया कि वह ऐसा नहीं होने देगी, अपने साथियों को वह कोहिनूर देखने जाने से रोकेगी—मगर कैसे, विजय का निर्देश है कि जब तक वह संकेत न करे तब तक आपस में मिलने या बात करने की तो बात ही दूर, नजरें तक नहीं मिलानी हैं।
उफ्फ—क्या करे वह, अपने साथियों को म्यूजियम में जाने से कैसे रोके?
अभी आशा कुछ निश्चय भी नहीं कर पाई थी कि टैक्सी एलिजाबेथ होटल की पार्किंग में रुकी, पांच मिनट बाद ही वह हॉल में बैठी कॉफी पी रही थी— वह अपने साथियों को सतर्क करने की तरकीब सोच रही थी, अभी तक उनमें से कोई नजर नहीं आय़ा था।
एकाएक हॉल का दरवाज खुला, आशा की दृष्टि बरबस ही उस तरफ उठ गई और यह सच्चाई है कि वह बुरी तरह चिहुंक उठी।
काफी का मग उसके हाथ से छूटते-छूटते बचा।
जिस्म में मौत की झुरझुरी-सी दौड़ गई, जिस्म के सभी मसामों ने एक साथ ढेर सारा पसीना उगल दिया और अपने सारे जिस्म का रोया, खड़ा हुआ-सा महसूस हुआ उसे।
बहुत संभालते-संभालते भी चेहरा ‘फक्क’ से सफेद पड़ गया था। हॉल में वही आकर्षक युवक दाखिल हुआ था, जिसे उसने इण्टरकॉम पर बातें करते वक्त अपनी तरफ देखते देखा था, आशा पर केवल एक नजर डालकर वह खाली सीट की तरफ बढ़ गया।
आशा के हाथ में मौजूद हौले-हौले से कांप रहा कॉफी का मग उसकी आन्तरिक अवस्था को उजागर किए दे रहा था, आशा ने दांत भींचकर उसे कांपने से रोका।
¶¶
विकास पेटीकोट मार्किट में स्थित एक इलेक्ट्रॉनिक कम्पनी के शो-रूम में प्रविष्ट हुआ।
सबसे पहले उसने बड़ी विनम्रता से साथ काउण्टर पर बैठे अधेड़ आयु के व्यक्ति से ‘हैलो’ की और हाथ बढ़ाता हुआ बोला— “मुझे मार्गरेट कहते हैं।”
“मैं फ्यूज हूं।” हाथ मिलाते हुए अधेड़ के होंठों पर व्यापारिक मुस्कान उभरी, बोला—“कहिए मिस्टर मार्गरेट, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?”
“मुझे केवल अगाथा इलेक्ट्रॉनिक्स का एड्रेस चाहिए!”
“ओह!” फ्यूज के स्वर में कुछ उदासीनता आ गई, फिर भी उसने विकास को अगाथा इलेक्ट्रॉनिक्स का पता बता दिया- हाथ मिलाकर थैक्यू कहते हुए विकास ने उससे विदा ली।
तीस मिनट बाद विकास अगाथा इलेक्ट्रॉनिक्स में दाखिल हुआ, एक विशाल मेज के पीछे बड़ी-सी गददेदार रिवॉल्विंग चेयर पर पतली-दुबली-सी लड़की बैठी थी, ‘हैलो’ के बाद विकास को उसने बैठने के लिए कहा और विकास मेज के इस तरफ पड़ी कुर्सियों में से एक पर बैठ गया।
“कहिए!” लड़की की आवाज मधुर थी।
“मिस्टर स्टेनले गार्डनर की कोठी का लाइट अरेंजमेंट आप ही ने किया था?”
“जी हां।”
“मुझे वह बहुत पसन्द आया था।”
लड़की ने व्यापारिक ‘थैंक्यू’ कहा।
“यदि मैं ‘सेम’ अरेंजमेंट कराना चाहूं तो क्या खर्चा आ जाएगा?”
“दस हजार पाउण्ड!”
“टैन थाउजेन्ड पाउण्ड?” चौंकने की बहुत ही खूबसूरत एक्टिंग की विकास ने—“नो-नो-नो-ये तो बहुत ज्यादा है—टेन थाउजेन्ड—नो-नो कुछ कम कीजिए।”
लड़की ने मुस्कराते हुए कहा—“आपको वही रेट बताए गए हैं जो मिस्टर चैम्बूर से लिए गए।”
“कौन मिस्टर चैम्बूर?”
“वही जिन्होंने, ओह-सॉरी!” लड़की ने इस तरह कहा जैसे अपनी किसी भूल का अहसास हो गया हो, बोली—“दरअसल मिस्टर चैम्बूर मिस्टर गार्डनर के परिचितों में से हैं और बतौर तोहफे के मिस्टर चैम्बूर ने ही उनकी कोठी पर लाइट अरेंजमेंट कराया था, बिल उन्होंने ही पे किया है।”
“ओह!” विकास इस तरह बोला जैसे सारा मामला समझ गया हो, बोला, “मगर मुझे लग रहा है कि आप खर्चा बहुत ज्यादा बता रही है।”
“हम आपको सम्बन्धित बिल दिखा सकते हैं।”
“मैं सोचता हूं कि यदि इस मामले में मिस्टर चैम्बूर से बात कर लूं तो ज्यादा अच्छा रहेगा।”
“ऑफकोर्स!”
“क्या आप मुझे उनका एड्रेस और फोन नम्बर दे सकेंगी?”
“जरूर!” कहने के साथ ही लड़की ने इण्टरकॉम से रिसीवर उठा लिया—इच्छित बटन दबाकर सम्बन्ध स्थापित होने के बाद उसने किसी को मिस्टर चैम्बूर का एड्रेस और फोन नम्बर लिखकर लाने के लिए कहा—दस मिनट बाद जब विकास अगाथा इलेक्ट्रॉनिक्स के ऑफिस से बाहर निकला तो उसकी जेब में चैम्बूर का एड्रेस और फोन नम्बर था।
फिलहाल वह नहीं जानता था कि चैम्बूर वही व्यक्ति है या नहीं जिसकी तलाश में वह भटक रहा है, मगर अंधेरे में उसने यह एक तीर जरूर मारा था, निशाने पर लगने की उम्मीद में।
जब आदमी को अपनी मंजिल या मकसद तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं मिलता तो वह तिकड़म लड़ाता है और यदि देखा जाए तो हाथ पर हाथ रखकर खाली बैठने से तिकड़म लड़ा-लड़कर कुछ करते रहना हर हालत में बेहतर है, कभी-कभी अंधेरे में चलाया गया तीर निशाने पर जा लगता है।
कुछ ऐसा ही विकास के साथ भी हुआ।
पिछले दिन की तरह वह आज भी अपने शिकार की तलाश में मारा-मारा लन्दन की सड़कों पर फिर रहा था और सोच रहा था कि विजय गुरु ने उसे ये क्या बोरियत से भरा असम्भव-सा काम सौंप दिया है।
शिकार की सिर्फ शक्ल देखी है, नाम तक नहीं मालूम, उसके बारे में किसी से सीधी बात करने का हुक्म नहीं है, फिर भला पता कैसे लग सकेगा कि वह कौन है, कहां रहता है?
पेटीकोट मार्केट में घूमते हुए उसकी नजर एक कम्पनी के इलेक्ट्रॉनिक शो-रूम पर पड़ी, एकाएक ही उसके मस्तिष्क पटल पर अलफांसे की शादी में गार्डनर की कोठी के बाहर बना स्वागत द्वार चकरा उठा—लाइट का अरेंजमेण्ट करने वाली कम्पनी ने वहां विज्ञापन हेतु अपना नाम लिखा था।
विकास ने दिमाग पर जोर देकर उस नाम को याद किया, थोड़ी-सी मेहनत के बाद ही उसे नाम याद आ गया— “अगाथा इलेक्ट्रॉनिक्स।”
विकास ने सोचा-सम्भव है कि गार्डनर की कोठी पर लाइट का अरेंजमेण्ट करना उसके शिकार की ही जिम्मेदारी रही हो, आखिर वह गार्डनर का परिचित तो था ही और जब इतना बड़ा काम फैलता है तो प्रत्येक व्यक्ति काम को अपने परिचितों में बांटकर ही हल्का करता है।
ऐसी कल्पना करना सिर्फ अंधेरे में तीर चलाना ही था, जिसे विकास ने सिर्फ इसलिए चला दिया क्योंकि करने के लिए फिलहाल उसके पास कोई काम नहीं था, बस—घुस गया उस शो-रूम में।
और अब, उसकी जेब में चैम्बूर का पता और फोन नम्बर था। वह नहीं जानता था कि तीर निशाने पर लगा या नहीं और इसकी पुष्टि करने के लिए वह एक पब्लिक टेलीफोन बूथ में घुस गया। इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा दिया गया नम्बर मिलाया।
दूसरी तरफ से रिसीवर उठाए जाने के साथ ही आवाज उभरी—
“हैलो!”
“क्या मैं मिस्टर चैम्बूर से बात कर सकता हूं?”
“आप कौन शाब बोल रहे हैं?”
“उनसे कहिए कि स्टेनले गार्डनर बात करना चाहते हैं।”
“जी शाब, होल्ड कीजिए!” दूसरी तरफ से बोलने वाले ने ‘स’ के स्थान पर ‘श’ का प्रयोग किया था, विकास ने इसी से अनुमान लगा लिया कि नौकर रहा होगा।
सच तो ये है कि विकास धड़कते दिल से, रिसीवर कान से लगाए चैम्बूर की आवाज सुनने के लिए बेचैन था, दरअसल आवाज को सुनते ही वह इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता था कि चैम्बूर उसके शिकार का नाम है या नहीं—लाइन पर हल्की-सी यान्त्रिक खड़खड़ाहट होते ही वह सतर्क हो गया।
दूसरी तरफ से आवाज उभरी—“यस सर, चैम्बूर हीयर!”
और इन चन्द शब्दों ने ही विकास के सारे जिस्म में सनसनी–सी दौड़ा दी—आवाज को वह पहचान चुका था, तीर बिल्कुल सही निशाने पर लगा था—यह उसी व्यक्ति की आवाज थी, जो गार्डनर का आदेश होते ही अभी कराता हूं’ कहकर फोकस वाले बल्ब की तरफ भागता चला गया था।
“हैलो...हैलो सर!” शत-प्रतिशत वही आवाज।
विकास ने एक शब्द भी कहे बिना सम्बन्ध विच्छेद किया, रिसीवर हैंगर पर लटकाया और दरवाजा खोलकर बूथ से बाहर निकल आया—उसके दिलो-दिमाग पर खुद को मंजिल के इतने करीब जानकर मस्ती-सी सवार हो गई थी।
पतलून की जेबों में हाथ डालकर सीटी बजा उठा वह।
दूसरी तरफ से बोले गए चैम्बूर के एक ही वाक्य से एक साथ उसके दो मतलब हल हो गए, यह कि चैम्बूर ही उसका शिकार है और यह भी चैम्बूर का सम्बन्ध के.एस.एस. से है—उसके बोलने का ढंग ही बता रहा था कि नौकर के बताए मुताबिक लाइन पर उसने गार्डनर को समझा था और गार्डनर को उसने ‘सर’ कहा था—जाहिर है कि गार्डनर उसका अफसर है।
जेबों में हाथ डाले फुटपाथ पर मस्ती में चला जा रहा विकास सोच रहा था कि अब वह क्या कर—सीधा होटल जाए और विजय गुरु को सफलता की सूचना दे? लेकिन नहीं, फिलहाल यह विचार उसने स्थगित कर दिया, सोचा कि एक नजर चैम्बूर को देख लेना उचित रहेगा।
अपना विचार उसे जंचा, इसलिए तुरन्त टैक्सी पकड़ी और ड्राइवर को एड्रेस बता दिया—पैंतालीस मिनट बाद वह ‘जैकफ स्ट्रीट’ पर स्थित चैम्बूर की कोठी के सामने एक रेस्तरां में बैठा चाय पी रहा था। कोठी का मुख्य द्वार उसे स्पष्ट चमक रहा था। दस मिनट बाद द्वार से एक एक सफेद गाड़ी निकलकर सड़क पर आई, उसे एक साफ वर्दीधारी शोफर चला रहा था और विकास की तेज नजरों से गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे व्यक्ति का चेहरा न छुप सका, चैम्बूर को पहचानते ही लड़के की आंखें चमकने लगीं—उसकी इच्छा हुई कि अभी टैक्सी पकड़े, गाड़ी का पीछा करे—किसी सुनसान स्थान पर सफेद गाड़ी को रुकवा ले और झपटकर चैम्बूर की गरदन थाम् ले और एक ही सांस में वह सब पूछ ले जो जानना चाहता है।
मगर, ऐसा कुछ किया नहीं विकास ने क्योकि इस वक्त वह मूल रूप से ब्रिटिश नागरिक मार्गरेट था और लन्दन में उसे ऐसी कोई हरकत नहीं करनी थी जो विकास की सूचक हो।
दिल मसोसकर रह गया वह!
¶¶
“अगर हम और कुछ दिन होटल में ही रहें तो इसमें बुराई क्या है?”
“बुराई है आशू, तुम समझते क्यों नहीं?” इर्विन ने अपनी बात पर जोर देकर कहा—“लन्दन में डैडी की इज्जत है, रैपुटेशन है—लोग उनका सम्मान करते हैं—कल यदि लोग ये कहने लगें कि उनकी बेटी और दामाद के पास घर भी नहीं है, होटल में पड़े वक्त गुजार रहे हैं तो सोचो जरा—डैडी के दिल पर क्या गुजरेगी?”
“वह तो सब ठीक है।” अलफांसे का स्वर दबा हुआ–सा था—“लेकिन, मैं तो सिर्फ इसलिए कह रहा था कि यह अच्छा नहीं लगता, घर-जवांई बनकर आदमी की इज्जत...!”
“ओफ्फो, छोड़ो न आशू—तुम इण्डियन्स की तरह क्यों सोचते हो?”
“इण्डिया हो या अमेरिका, सूरज तो पूर्व से ही उगता है न?”
“अजीब बात कर रहे हो तुम, कितना कहकर गए हैं डैडी—वो ठीक कह रहे थे, हमारे अलावा दुनिया में उनका और है ही कौन, उनका सब कुछ हमारा ही तो है—उसे हम प्रयोग नहीं करेंगे तो वह सब किस काम का?”
“मैंने गलती की इर्वि!”
“कैसी गलती?”
“घर बनाने से पहले शादी करने की, शादी से पहले मुझे घर बनाना चाहिए था।”
“ओफ्फो, तुम फिर वही बोर बात करने लगे—अब छोड़ो भी न आशू, उस घर को तुम पराया क्यों समझ रहे हो, वह तुम्हारा घर है, तुम्हारा अपना।”
“अच्छा!” अलफांसे का स्वर किसी हारे हुए व्यक्ति जैसा था—“मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं, लेकिन मेरी एक शर्त होगी।”
“कैसी शर्त?”
“हम हमेशा वहां नहीं रहेंगे, किसी भी तरह मेहनत-मजदूरी करके मैं एक घर बना लूंगा, भले ही बहुत बड़ा न बना सकूं, लेकिन तब तुम्हें मेरे साथ रहने के लिए उसमें आना ही होगा इर्वि!”
“मुझे मंजूर है आशू—बल्कि उस शुभ दिन का मैं इन्तजार करूंगी।”
‘वह दिन कभी नहीं आएगा छम्मकछल्लो, मैं जानता हूं कि कुछ ही दिन बाद लूमड़ कैसा खूबसूरत घर बनाने जा रहा है।’ उनके अन्तिम वाक्य सुनकर विजय मन-ही-मन बड़बड़ाया।
बशीर बना विजय इस वक्त एक होटल के केबिन में बैठा था, और अलफांसे-इर्विन के बीच होने वाली बातों की आवाज उसके पीछे वाले केबिन से आ रही थी, दोनों केबिन्स के बीच प्लाईवुड की दीवार थी, उपरोक्त बातों से स्पष्ट था कि अलफांसे ने एक मंजिल और पार कर ली है।
अलफांसे की नजरों से बचे रहकर उसका पीछा करना या उसे वॉच करते रहना सबसे ज्यादा कठिन काम था, अलफांसे की तेज नजरें किसी भी क्षण ताड़ सकती थीं, कि फलां हुलिए का व्यक्ति उसके इर्द-गिर्द नजर आ रहा है और उसकी नजरों में आने का अर्थ था—सारा गुड़-गोबर हो जाना।
बहुत ही सावधानी से—दूर-दूर और अलफांसे की नजरों से बचे रहकर उसने वॉच किया था—आज सुबह के वक्त गार्डनर अलफांसे के कमरे में ही उससे मिलने आया था।
कोशिश करने के बावजूद विजय उनके बीच होने वाली बातें नहीं सुन सका था।
किन्तु इस वक्त, दांव लगते ही उसने जो बातें सुनी थीं उनसे अनुमान लगा सकता था कि सुबह गार्डनर ने उन्हें घर पर रहने की सलाह दी थी जिसे अलफांसे थोड़े नखरे दिखाकर स्वीकार करना चाहता था।
अब दूसरी तरफ से प्रेम-वार्ता और चुम्बन आदि की आवाजें आने लगी थीं।
बुरा-सा मुंह बनाकर विजय बड़बड़ाया—“पता नहीं, इस साले लूमड़ को कोहिनूर की चोरी के लिए ऐसी खतरनाक स्कीम बनाने की सलाह किसने दी थी, जिसमें ईमान ही भ्रष्ट हो जाए।”
वह उठ खड़ा हुआ।
अब उसे उनके बीच ऐसी किसी बात के होने की उम्मीद नहीं थी जिससे कोई लाभ हो और व्यर्थ ही उनके पीछे लगा रहकर अलफांसे को वह सचेत नहीं करना चाहता था, इसलिए वो न केवल केबिन से बल्कि होटल ही से बाहर निकल आया।
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आशा बड़ी मुश्किल से कॉफी समाप्त कर सकी थी। आकर्षक युवक ने एक बीयर मंगा ली थी, आशा ने कनखियों से देखा था कि वह बीच-बीच में उसे देख लेता है और उसकी यहां मौजूदगी आशा को नर्वस ही नहीं, बल्कि एक प्रकार से आतंकित-सी करती जा रही थी।
उसने जल्दी से कॉफी खत्म की, उठी और लिफ्ट में सवार होकर फिफ्थ फ्लोर पर स्थित अपने कमरे में चली गई, दरवाजे की चटखनी अन्दर से चढ़ाई और आगे बढ़कर धम्म् से बिस्तर पर गिर गई।
वह इस तरह हांफ रही थी जैसे बहुत दूर से भागकर आई हो।
दिमाग में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे—क्या ये युवक संयोग से यहां आ गया है?
नहीं, इतना बड़ा संयोग भला कैसे हो सकता है?
वह उसी के पीछे आया है—निश्चय ही उससे कहीं कोई गलती हो गई है और उसी गलती का परिणाम है, उसके पीछे लगा हुआ यह युवक।
दरअसल कोहिनूर देखने जाकर ही उसने गलती की।
यदि अशरफ, विक्रम, विजय या विकास में से कोई कोहिनूर देखने म्यूजियम में पहुंच गया तो यह दूसरी और काफी बड़ी गलती होगी—उसे उन्हें रोकना चाहिए—भलाई इसी में है कि वे वहां न जाएं, यदि उनमें से भी कोई नर्वस हो गया तो ऐसा ही एक जासूस उसके पीछे भी लग जाएगा और उस स्थिति में सिक्योरिटी तुरन्त यह सोचेगी कि दोनों संदिग्ध व्यक्ति एक ही होटल में ठहरे हैं।
यदि कोई नर्वस न भी हुआ तब भी एक ही होटल से क्रमवार पांच व्यक्तियों का कोहिनूर देखने जाना सिक्योरिटी के कान खड़े कर देगा।
अपने साथियों को सचेत करके रहेगी वह।
मगर कैसे?
वह युवक जिन्न की तरह उसके पीछे लग गया है।
आशा के दिमाग में विचार उठा कि क्या वह अब भी हॉल ही में होगा?
कम-से-कम एक घण्टे तक वह बिस्तर पर यूं ही विचारों में गुम पड़ी रही—फिर यह सोचकर उठी कि घबराकर उसे इस तरह कमरे में बन्द नहीं हो जाना चाहिए—साहस से काम लिए बिना वह कुछ भी नहीं कर सकेगी।
हॉल में कदम रखते ही उसने शान्ति की सांस ली।
युवक कहीं भी नहीं था।
अब उसने विजय, विकास, अशरफ और विक्रम की तलाश में नजरें चारों तरफ घुमाईं—चारों में से एक भी कहीं नजर नहीं आ रहा था।
मुख्य द्वार पार करके वह होटल से बाहर निकल आई।
अभी पार्किंग के समीप से गुजर ही रही थी कि दिल धक्क से रह गया— क्षणमात्र के लिए ठिठकी, नजर युवक से टकराई, एक कार की टेक लिए खड़ा वह सिगरेट फूंक रहा था।
गर्दन को एक झटका देकर आशा आगे बढ़ गई।
अब उसे इसमें कोई शक नहीं रह गया कि युवक उसी को वॉच कर रहा है, दिल धक्-धक् करता रहा, एक टैक्सी को रोककर वह उसमें बैठ गई, कनखियों से युवक को भी एक टैक्सी रोकते देखा।
युवक वाली टैक्सी उसके पीछे लग गई।
इस युवक से वह पीछा छुड़ाना चाहती थी, किन्तु सोचने लगी कि क्या इस युवक को डांट देना उचित होगा, डांट वह आसानी से सकती थी, परन्तु सोचने वाली बात ये थी कि क्या उसके डांट देने से सिक्योरिटी यह नहीं समझ जाएगा कि वह भी खेली-खाई है?
इस हरकत से तो उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा कि वह साधारण लड़की नहीं है।
आशा ने सोचा कि फिलहाल उसे ऐसा कोई काम करना ही नहीं है जिससे युवक को कोई प्वॉइंट मिले अतः उसे पीछा करने दे, उसका वह बिगाड़ ही क्या सकता है?
अन्तिम रूप से यही निश्चय करके वह युवक से लन्दन की विभिन्न सड़कें नपवाती रही। रात के नौ बजे वह एलिजाबेथ वापस लौटी, युवक उसके पीछे ही था।
हॉल में विजय पर नजर पड़ते ही उसकी आंखें चमक उठीं, बशीर बने विजय ने नीले सूट पर लाल टाई बांध रखी थी और सच्चाई ये है कि विजय को नहीं, विजय के जिस्म पर ये कपड़े देखकर आशा की आंखों में चमक आई थी, ये कपड़े किसी विशेष बात का संकेत थे।
विजय डिनर ले रहा था।
अपरिचितों की तरह ही एक नजर उसने आशा को देखा और पुनः खाने में व्यस्त हो गया—विजय की ठोड़ी पर लगी मुल्लाओं वाली दाढ़ी गस्सा चबाने के साथ-साथ अजीब-से ढंग से हिल रही थी।
डैथ हाउस में कैद पड़े बशीर की तरह ही विजय का रंग बिल्कुल काला नजर आ रहा था।
युवक को हॉल में दाखिल होता देखते ही आशा ने विजय पर से नजर हटा ली, एक खाली सीट पर बैठ गई और डिनर का ऑर्डर देकर जब उसने हॉल में डिनर ले रहे अन्य लोगों पर नजर घुमाई तो वहीं उसे मार्गरेट, डिसूजा और चक्रम के रूप में विकास, विक्रम और अशरफ भी नजर आए।
एक सीट पर बैठकर युवक ने भी डिनर का ऑर्डर दे दिया था। खाना खाने के बाद अशरफ, विक्रम और विकास अलग-अलग अपने कमरों में चले गए, विजय तब तक भी जुटा पड़ा था, जब आशा निपट चुकी—निपटते ही वह उठी और फिर विजय या युवक में से किसी की भी तरफ ध्यान दिए बिना सीधी लिफ्ट की तरफ बढ़ गई।
लॉक खोलकर अपने कमरे में दाखिल हुई और लाइट ऑन करते ही उसके कण्ठ से चीख निकलते रह गई, सारा समाना विखरा पड़ा था—किसी ने कमरे की तलाशी ली थी।
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कमरे में अंधेरा था। सभी खिड़की-दरवाजे मजबूती के साथ अन्दर से बन्द, पर्दे खिंचे हुए—पूरी तरह नीरवता छाई हुई थी वहां, परन्तु पलंग पर पड़ा, आंखें खोले विजय अंधेरे को घूर रहा था। रह-रहकर वह अपनी कलाई पर बंधी रेडियम डायल रिस्टवॉच में समय देख लेता था।
डेढ़ बजते ही बन्द दरवाजे पर सांकेतिक अन्दाज में दस्तक हुई। विजय तुरन्त उठ खड़ा हुआ, नि:शब्द अंधेरे में ही दरवाजे के समीप पहुंचा—बिना किसी प्रकार की आहट उत्पन्न किए उसने दरवाजा खोल दिया—खामोशी के साथ एक परछाईं अन्दर आ गई।
निराहट विजय ने दरवाजा वापस बन्द कर दिया।
अचानक ही ‘क्लिक’ की बहुत धीमी आवाज के साथ कमरे में एक मध्यम दर्जे की टॉर्च रोशन हो उठी, प्रकाश का दायरा ‘फक्क’ से कमरे की छत से जा टकराया।
सारा लेंटर स्पष्ट चमकने लगा।
टॉर्च परछाईं के हाथ में थी और अब कमरे में बिखरे मध्यम प्रकाश में बेशक—दूसरे को स्पष्ट देख सकते थे, चक्रम के रूप में आगन्तुक अशरफ था, आगे बढ़कर उसने उसी पोजीशन में टॉर्च एक मेज पर रख दी।
“कहो प्यारे झानझरोखे?” विजय फुसफुसाया।
“क्या कहूं?”
“जो कहा न जाए।”
बुरा-सा मुंह बनाया अशरफ ने, धीमें स्वर में बोला— “मौका मिलते ही तुम ये बकवास करनी नहीं छोड़ोगे।”
चुप रह जाने वाला विजय था तो नहीं, लेकिन पता नहीं क्या सोचकर रह गया।
उसके बाद पन्द्रह-बीस मिनट के अन्तराल से, उसी सांकेतिक दस्तक के बाद क्रमशः विकास और विक्रम भी आ गए, सवा दो बजे यानी सबसे अन्त में विक्रम आया परन्तु कमरे में आशा को न पाकर बोला— “क्या बात है, आशा कहां है?”
“वह नहीं आई!” अशरफ ने कहा।
विक्रम ने चौंकते हुए पूछा—“क्यों?”
“पता नहीं!” विकास बोला— “हम खुद हैरत में हैं, प्रोग्राम के मुताबिक मेरे और आपके बीच में यानी ठीक दो बजे उन्हें आना चाहिए था, मगर वो नहीं आई।”
अशरफ बोला, “वाकई आशा के न आने पर मैं भी हैरान हूं!”
“जो अपने टिपारे खुले नहीं रखते वे अक्सर इसी तरह हैरान रह जाते हैं प्यारो और चूं-चूं करती हुई चिड़िया न केवल खुद चुग जाती है बल्कि अपने बच्चों और रिश्तेदारों के लिए दाना ट्रक में भरकर ले भी जाती है।”
“क्या मतलब गुरू?”
“मैंने एक जासूस को अपनी गोगियापाशा पर नजर रखते हुए देखा है।”
“क...क्या?” एक साथ तीनों के मुंह से निकल पड़ा और वे भाड़-सा मुंह फाड़े धुंधले प्रकाश में चमक रहे विजय के चेहरे को देखते रह गए, जबकि विजय बोला—“तुम फिर हैरान रह गए हो प्यारो और मुझे फिर ये कहना पड़ेगा कि यदि तुमने दिमाग के सभी खिड़की-दरवाजे खुले नहीं रखे तो इसी तरह हैरान होते रहोगे और ज्यादा हैरान होने का मतलब होगा—लंदन ही में हम सबकी कब्र बन जाना।”
विकास ने कहा—“आखिर बात क्या है गुरु, हमने तो किसी को आशा आण्टी पर नजर रखते महसूस नहीं किया।”
“इसीलिए तो आंखें खुली रखने की सलाह दे रहा हूं मैं।”
“क्यों बात को लम्बी कर रहे हो, आखिर बताते क्यों नहीं कि बात क्या है?” विक्रम ने पूछा—“कौन जासूस आशा पर नजर रख रहा है और क्यों?”
“क्यों का जवाब तो फिलहाल हमारी जेब में नहीं है प्यारे और न ही उस जासूस का नाम जानते हैं, मगर है—वह एक आकर्षक–सा युवक है और शायद आशा भी जानती है कि वह उसकी निगरानी कर रहा है, कदाचित इसीलिए वह यहां मिलने नहीं आई है, यह जासूस कहां से उसके पीछे लगा—यह तो आशा ही बता सकेगी।”
“इसका मतलब है, खतरा—आशा आण्टी खतरे में हैं।”
विजय ने बड़े आराम से कहा—“ हो सकती है।”
“हमें उनकी मदद करनी चाहिए।”
विजय ने थोड़े कठोर लहजे में कहा—“ये बेवकूफी से भरी सलाह अपने भेजे में ही रखो।”
“क...क्या मतलब गुरु?” विकास बुरी तरह चौंका था—“क्या आप यह कहना चाहते हैं कि आशा आण्टी यदि खतरे में हैं तो रहें, हमें उनकी कोई मदद नहीं करनी है?”
“तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो!”
“ऐसा कैसे हो सकता है?” विक्रम कह उठा—“आशा हमारी साथी है, मुसीबत के समय में यदि हम उसकी मदद नहीं करेंगे तो कौन करेगा—आखिर हम सब एक ही अभियान पर,साथ ही तो हैं।”
“तुम भूल रहे हो प्यारे कि बशीर, मार्गरेट, चक्रम, डिसूजा और ब्यूटी एक-दूसरे के लिए अपरिचित हैं।”
“मैं समझ रहा हूं गुरु कि आप क्या कहना चाहते हैं।” विकास का लहजा अत्यन्त गम्भीर हो गया था—“यही न कि उनकी मदद करने में हमारी असलियत खुलने का डर है, यदि असलियत खुल गई तो हमारी सारी योजना धूल में मिल जाएगी?”
“करेक्ट!”
“और असलियत खुलते ही न केवल कोहिनूर को हासिल करने का ख्वाब, ख्वाब ही रह जाएगा बल्कि हम सबका लंदन से बचकर निकल जाना भी मुश्किल हो जाएगा?”
“पहले से भी कई गुना ज्यादा करेक्ट!”
“म...मगर गुरु...!”
“मगर पानी में पाया जाता है प्यारे!”
अनजाने ही में विकास का स्वर भभकने लगा था, वह कहता ही चला गया— “म...मगर गुरु, इन सब उपलब्धियों को हासिल करने के लिए हम आशा आण्टी को दांव पर तो नहीं लगा सकते-इससे बड़ी बुजदिली और क्या होगी कि अपने खतरे में फंस जाने या मर जाने के डर से हम आण्टी की मदद न करें, उन्हें मर जाने दें—नहीं गुरु नहीं—ऐसा आप कर सकते होंगे, मैं नहीं कर सकता।”
“तुम भूल गए प्यारे, मैंने तुम्हें पहले ही चेतावनी दी थी कि इस अभियान पर बुजदिली जैसे शब्दों को ताख पर रखकर चलना होगा—भावुक न होने का तुमने मुझसे वादा किया था और यह भी कहा था कि अपने माशाअल्लाह दिमाग का उपयोग नहीं करोगे, सिर्फ हमारे ही आदेशों का पालन करना तुम्हारा काम होगा।”
“ल...लेकिन गुरु—इसका मतलब!” विकास कसमसा उठा—“इसका मतलब ये तो नहीं कि हमारी आंखों के सामने हमारा साथी मर जाए और हम उसकी मदद के लिए हाथ भी न बढ़ाएं?”
“इसका मतलब यही है प्यारे!” विजय का लहजा कठोर हो गया।
“ग...गुरु!”
“खुद को संभालो बेटे, होश में रहो, यहां एक पल के लिए भी अपने ओरिजनल कैरेक्टर्स को उजागर करने का मतलब है—मौत, और मौत से भी बढ़कर अपने अभियान में नाकामी—भूल जाओ कि तुम विकास, मैं विजय, ये विक्रम, ये अशरफ या कोई आशा है—माना कि सीक्रेट सर्विस के सदस्य एक-दूसरे पर जान देते हैं, अपनी जान गंवाने की कीमत पर भी दसरे की जान बचाने की तालीम दी गई है हमें—मगर इस अभियान पर हम सीक्रेट एजेण्ट नहीं मुजिरम हैं-ऐसे मुजरिम जिन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी डकैती करने का फैसला किया है—उस डकैती में से हम सबके बराबर हिस्से होंगे, बस आपस में हमारा इतना ही सम्बन्ध है—एक दूसरे से हमारा कोई भावनात्मक रिश्ता नहीं है—यदि आशा मरती है तो मर जाए, उसे बचाने के चक्कर में हम अपनी सारी योजना के तिनके-तिनके करके नहीं बिखेर सकते।”
“क्या कोहिनूर तक पहुंचने की हमारी योजना में आशा का कोई काम नहीं है?”
“यदि न होता तो उसे साथ लाते ही क्यों?”
अशरफ ने मुस्कराकर कहा— “मुजरिम अपने ऐसे किसी साथी को नहीं मरने दे सकते जिससे आने वाले समय में उनका कोई काम निकलता हो।”
“बिल्कुल ठीक कहा तुमने मगर...!”
“मगर क्या ?”
“मुजरिम अपनी जान जाने या स्कीम बिखर जाने की कीमत पर किसी को नहीं बचाते।”
अशरफ के होंठों पर मुस्कान उभर आई, शायद यह सोचकर कि वह विजय को लाइन पर ले आया है, बोला— “तो हमने कब कहा कि आशा कि मदद इस कीमत पर की जाए?”
“तो प्यारे हमने कब कहा कि खतरे से बाहर रहकर हम उसकी मदद नहीं करेंगे?”
“तुमने तो एकदम से कह दिया था कि...!”
“फर्क था प्यारे—फर्क था, तुम लोग आशा की मदद करने के लिए इस भावना से कह रहे थे कि वह आशा है, हम सबकी साथी है, अपने दिलजले के डायलॉग तो तुमन सुने ही होंगे और हम मदद करने के लिए केवल इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कोहिनूर तक पहुंचने के लिए स्कीम में उसकी जरूरत पड़ेगी, उसके अभाव में हमारे रास्ते में अनावश्यक कठिनाइयां आ सकती हैं और उन अनावश्यक कठिनाइयों से बचने के लिए यदि हम बिना किसी प्रकार का नुकसान उठाए उसकी मदद कर सकते हैं तो करेंगे।”
“चलो यूं ही सही।”
“लेकिन...!”
विक्रम ने कहा—“फिर ये लेकिन की पूंछ?”
“ये पूंछ तो तब तक लगती ही रहेगी प्यारे विक्रमादित्य जब तक कि बात पूरी नहीं हो जाती।”
“मतलब?”
“अभी हमें यह नहीं पता है कि वह जासूस कौन है, अपनी गोगियापाशा की किस गलती की वजह से उसके पीछे लगा है और उससे क्या चाहता हैं, इन सब सवालों के अनुत्तरित होने के कारण हमें यह भी मालूम नहीं है कि अपनी गोगियापाशा किस स्तर के खतरे में फंसी हुई है और यह जाने बिना मदद के लिए हाथ या पैर बढ़ाना अपने हाथ-पैर से महरूम हो जाने के बराबर है।”
“यानी सबसे पहले इन सवालों के जवाब खोजे जाएं?”
“तुम्हारे बच्चे जिएं प्यारे झानझरोखे, सचमुच तुम बड़े समझदार हो गए हो।”
कुछ कहने के लिए अशरफ ने अभी मुंह खोला ही था कि कमरे के बन्द दरवाजे पर दस्तक हुई, एक साथ ही जैसे सबको सांप सूंघ गया, एक-दूसरे का चेहरा ताकने लगे वे—दस्तक उसी सांकेतिक अंदाज में हुई थी जिसमें आशा को देनी थी, कदाचित इसीलिए विकास फुसफुसाया—
“शायद आशा आण्टी हैं।”
उसी सांकेतिक अन्दाज में दस्तक पुन उभरी।
विजय ने होंठों पर उंगली रखकर सबको चुप रहने का संकेत दिया और निःशब्द अपने स्थान से खड़ा हो गया, विकास, अशरफ और विक्रम के दिलों की धड़कनें तेज हो गईं, वे किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार थे, जबकि बिल्ली की भांति दबे पांव सारा रास्ता तय करने के बाद विजय ने दरवाजा खोल दिया।
सबके दिमाग को झटका-सा लगा, अन्दर प्रविष्ट होने वाली आशा ही थी।
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विजय के चिटकनी चढ़ाते ही विकास ने धीमें स्वर में आशा से पूछा—“आप इतनी लेट कैसे हो गईं आंटी?”
हाथ उठाकर आशा ने उसे थोड़ी देर ठहरने के लिए कहा, उसकी सांस फूल रही थी—उखड़ी हुई सांस पर काबू पाने की चेष्टा कर रही थी वह, आगे बढ़कर बेड ही पर बैठ गई, अपने स्थान पर बैठते हुए विजय ने कहा— “अपनी गोगियापाशा का दिल मालगाड़ी का इंजन बना हुआ है।”
“क्या बात है आशा?” अशरफ ने पूछा—“तुम इस तरह हांफ क्यों रही हो?”
“मैं यहां तक पहुंचने की स्थिति में नहीं थी, मगर आना जरूरी था—बड़ी मुश्किल से आ सकी हूं।”
पूरी तरह अनजान बनते हुए विजय ने पूछा—“ऐसा क्या हो गया?”
“म्यूजियम के सिक्योरिटी विभाग का एक जासूस मेरे पीछे लगा हुआ है, उसने ठीक मेरे सामने वाला कमरा ले लिया है और मुझे शक है कि वह इस वक्त भी अपने दरवाजे के ‘की-होल’ से गैलरी में देख रहा होगा।”
“ओह!” विजय के मस्तक पर चिंता की लकीरें उभर आईं—“जब ऐसी स्थिति है तो तुमने यहां आने की बेवकूफी ही क्यों की?”
“आना जरूरी था विजय!”
विजय का थोड़ा क्रोधित स्वर—“क्यों?”
“इसलिए कि कहीं तुममें से भी कोई वह गलती न कर दे जो मैंन की और जिसकी वजह से वह जासूस मेरे पीछे लग गया है, तुम लोगों को सचेत करने के लिए ही मैं तुमसे मिलना चाहती थी, अड़चन उस जासूस के अवाला तुम्हारा निर्देश भी था, किन्तु निर्देश वाली प्रॉब्लम तो तब हल हो गई जब मैंने तुम्हें नीले सूट और लाल टाई में डिनर लेते देखा, यह पूर्वनिर्धारित था कि जिस शाम तुम उन कपड़ों में डिनर लोगे, उसी रात हमें यहां मिलना है, सोचा कि दो बजे मिलकर सबको सचेत कर दूंगी, लेकिन वह कम्बख्त...!”
“क्या गलती हो गई थी तुमसे?”
“म्यूजियम में कोहिनूर देखने जाने की गलती।”
“मतलब?”
आशा ने एक ही सांस में कोहिनूर देखने की अपनी सारी प्रक्रिया बयान कर दी।
सुनकर विजय बोला—“ओह, तुम्हारी नर्वसनेस की वजह से वह तुम्हारे पीछे लग गया है—मगर अब, तुम यहां तक कैसे आई हो—क्या उसने तुम्हें देखा नहीं होगा?”
“मेरे ख्याल से नहीं, वह केवल गैलरी में और मेरे कमरे के दरवाजे पर नजर रख सकता है, जबकि मेरे कमरे का दरवाजा इस वक्त भी अन्दर से बन्द है, कमरे की पिछली खिड़की खोलकर मैं पाइप के सहारे होटल की छत पर पहुंची, वहां से सीढ़ियों द्वारा उतरकर इस यानी तीसरे फ्लोर पर!”
“जियो, प्य़ारी गोगियापाशा, क्या कमाल दिखाया है तुमने!” विजय की आंखें चमकने लगी थीं, वह विकास से बोला— “देखा प्यारे दिलजले, दिमाग का इस्तेमाल करके काम करना अपनी गोगियापाशा से सीखो।”
आशा ने कहा—“मैं फिर कहती हूं कि तुममें से कोई भी कोहिनूर देखने मत जाना।”
“वह तो हम समझ गए, किन्तु फिलहाल तुम ये बताओ कि छत से यहां तक के रास्ते में तुम्हें कोई मिला तो नहीं था?”
“नहीं।”
“अब फटाफट तब से अब तक की राम कहानी सुना दो जब से वह तुम्हारे पीछे लगा है।”
आशा जैसे तैयार ही बैठी थी, वह एकदम शुरू हो गई और डिनर के बाद अपने कमरे में जाने तक का सारा वृत्तांत सुना दिया, बिना टोके सभी ने उसका एक-एक शब्द ध्यान से सुना था और अंतिम वाक्य सुनकर विजय बुरी तरह चौंक पड़ा, चौंके वे सभी थे, विकास ने पूछा—“किसी ने आपके कमरे की तलाशी भी ली?”
“यकीनन!”
“किसने?”
“उसी जासूस का कोई साथी रहा होगा।”
“इसका मतलब ये कि म्यूजियम की सिक्योरिटी केवल एक जासूस को आपके पीछे लगाकर संतुष्ट नहीं हुई है, बल्कि आपको पूरी तरह वॉच किया जा रहा है, आपका इतिहास जानने की कोशिश की जा रही है खैर, आपके सामान में कोई ऐसी चीज तो नहीं थी जो उन्हें आपका वास्तविक परिचय दे सके?”
“नहीं!”
“गुड!” विकास ने संतोष की सांस ली, संतुष्टि के जैसे भाव उसके चेहरे पर उभरे वैसे ही विजय ने अशरफ और विक्रम के चेहरे पर भी देखे, बोला—“कहो प्यारे दिलजले, संतुष्टि हो गई तुम्हारी?”
“हां गुरु, फिलहाल तो कोई विशेष खतरा नजर नहीं आता है— बशर्ते कि रजिस्टर में आशा आण्टी ने ब्यूटी के नाम से ही साइन किए हों।”
विजय ने अशरफ और विक्रम से पूछा—“तुम्हारा क्या ख्याल है प्यारो?”
“विकास ठीक कह रहा है, वैसे तुम्हारे द्वारा निर्धारित की गई कोई असाधारण वस्तु अपने पास न रखने की सतर्कता यहां काम आ गई है, यदि उन्हें आशा के कमरे से कोई रिवॉल्वर आदि भी मिल जाता तो उन्हें सबूत मिल जाता कि ब्यूटी असाधारण लड़की है।”
“अपने दिलजले ने रजिस्टर में हस्ताक्षर वाले खतरे का जिक्र किया है, गोगियापासा को भी याद नहीं कि उसने रजिस्टर में किस नाम से साइन किए हैं, सारी राम कहानी तुमने सुन ली है—क्या तुम तीनों में से कोई बता सकता है कि आशा ने रजिस्टर में किस नाम से साइन किए होंगे?”
“यह भला कैसे बताया जा सकता है?” विक्रम ने कहा।
“गोगियापाशा की राम कहानी क्या तुमने खाक ध्यान से सुनी है?”
बुरा-सा मुंह बनाते हुए विजय ने कहा— “इस राम कहानी से ही जाहिर है कि रजिस्टर में साइन निश्चित रूप से ब्यूटी के नाम से ही हुए हैं।”
आशा ने पूछा—“ऐसा दावा किस आधार पर पेश किया जा सकता है?”
“यदि रजिस्टर में तुमने ‘आशा’ लिखा होता तो तुम्हारा पीछा न किया जाता, वे तुम्हें वॉच न करते रहते, बल्कि म्यूजियम से निकलने से पहले ही गिरफ्तार कर लेते।”
“वैरी गुड!” आंखों में विजय के लिए प्रशंसा के भाव ले वे चारों एकदम कह उठे।
“पीछा करने और तुम्हारा इतिहास पता लगाने की कोशिश साफ बता रही है कि कोहिनूर देखते वक्त तुम्हारी नर्वसनेस और असामान्य मानसिक अवस्था के कारण तुम्हारे प्रति वे संदिग्ध हो उठे हैं, सिर्फ संदिग्ध और पीछा करने, तलाशी लेने आदि के पीछे उस शंका को भ्रम या विश्वास में बदलना ही उनका एकमात्र उद्देश्य है, वो सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि ब्यूटी एक साधारण लड़की है या असाधारण। कोहिनूर देखते वक्त वह अपनी किसी व्यक्तिगत परेशानी के कारण तनावग्रस्त थी या उस टेंशन का कोई सम्बन्ध हीरे से है?”
“मेरे ख्याल से अभी तक तो आशा से ऐसी कोई गलती नहीं हुई है, जिससे वे ब्यूटी को असाधारण लड़की समझें या इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वह कोहिनूर के चक्कर में है।” अशरफ ने पूछा।
“हो चुकी है।” विजय ने बड़े आराम से कहा।
“क...क्या?” सभी उछल पड़े और आशा का तो चेहरा ही फक्क पड़ गया।
“यदि होटल में ठहरे किसी साधारण व्यक्ति के कमरे की इस तरह तलाशी ली जाए तो वह क्या करेगा?”
“करेगा क्या, मैनेजर से शिकायत करेगा, चीखेगा-चिल्लाएगा—होटल के मैनेजमेण्ट को गालियां देगा!”
“क्या यह सब आशा ने किया?”
“ओह!” चारों के चेहरों पर एक साथ चिन्ता के चिह्न उभर आए।
“यानी इसे फौरन रिपोर्ट करनी चाहिए थी?” अशरफ ने कहा।
“हां।”
“मैं ये सोच नहीं सकी, घबरा ही इतना गई थी कि...।”
उसका हलक सूख गया, वाक्य पूरा नहीं कर सकी वह—विजय ने विकास को आशा के लिए एक गिलास पानी लाने के लिए कहा, जब आशा पानी पी चुकी तो अशरफ बोला— “खैर, जो वक्त गुजर चुका है—अब उसे तो वापस नहीं लाया जा सकता, आगे क्या करें—यही सोचा जा सकता है।”
“सबसे पहली बात तो ये है मिस गोगियापाशा कि सुबह होते ही तुम अपने कमरे से दो फोन करोगी, पहला मैनेजर को और दूसरा डायरेक्ट्री में देखकर इस इलाके के पुलिस स्टेशन को।”
“प...पुलिस स्टेशन?” आशा के चेहरे पर पसीना भरभरा उठा।
“हां!”
“क्यों?”
“अपने सामने वाले कमरे में ठहरे युवक की रिपोर्ट करने के लिए।”
“वह तो सिक्योरिटी का आदमी है, पुलिस उसका क्या बिगाड़ेगी—उसका परिचय पत्र देखते ही इंस्पेक्टर उसे सैल्यूट मारेगा और तब वह पुलिस को मुझे गिरफ्तार करने का हुक्म देगा, वे मुझे गिरफ्तार कर लेंगे।”
“मेरे ख्याल से ऐसा कुछ नहीं होगा—और यदि हो भी तो फिलहाल तुम्हें गिरफ्तार हो जाना चाहिए।”
“ये तुम क्या कह रहे हो?” आशा का चेहरा सफेद पड़ गया था।
“सुनो!” विजय उसे समझाने वाले भाव से बोला— “तुम कोहिनूर देखने से लेकर युवक के ठीक सामने वाले कमरे में ठहरने की घटना बिल्कुल सच-सच पुलिस को बता दोगी—कमरे की तलाशी ली जाने के ‘ईशू’ पर सारे होटल को चीख-चीखकर सिर पर उठा लोगी-पुलिस से कहोगी कि वह युवक पता नहीं किस नीयत से म्यूजियम से ही तुम्हारे पीछे लगा हुआ है, तुम उससे बुरी तरह डरी-डरी रहीं और तुम यह शंका भी व्यक्त करोगी कि कमरे की तलाशी भी इसी युवक या इसके साथियों ने ली है।”
“पुलिस पूछेगी कि तलाशी आदि की रिपोर्ट मैंने रात ही क्यों नहीं की?”
“तुम इस युवक से बुरी तरह डरी हुई और आतंकित थीं—घबरा रही थी, डर रही थीं-उसी घबराहट की वजह से तुम तुरन्त तलाशी लिए जाने की रिपोर्ट न कर सकीं, जब घबराहट कुछ कम हुई तो रिपोर्ट करने के लिए कमरे से बाहर निकलना चाहा, तभी तुमने इस युवक को सामने वाले कमरे का ताला खोलते देखा, तुम बुरी तरह डरकर अपने कमरे में बन्द हो गईं—कहीं रिपोर्ट करने का युवक पर कोई उल्टा ही असर न हो, इस डर से तुम रिपोर्ट न कर सकीं और डर के मारे सारी रात जागती रहीं और सुबह को अन्त में तुमने रिपोर्ट करने का ही निश्चय किया, अपने कमरे का दरवाजा तुम पुलिस के आने पर ही खोलोगी।”
“इस सबसे क्या होगा?” अशरफ ने पूछा।
“सिक्योरिटी की नजरों में ब्यूटी साधारण लड़की साबित हो जाएगी।”
“वे लोग इसे गिरफ्तार भी तो कर सकते हैं।”
“किसलिए?”
“पूछताछ करने के लिए?”
“तुम्हारे ख्याल से वे किस किस्म की पूछताछ करेंगे!”
“ब्यूटी का इतिहास जानने की कोशिश करेंगे।”
“वह सब पक्का है ही, बेहिचक बता देना चाहिए।”
“वे यह भी पूछेंगे कि कोहिनूर देखते समय ये तनावग्रस्त या नर्वस क्यों थीं?”
“ये सवाल जरूर किया जाएगा क्योंकि सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है और इसी का जवाब जानने के लिए वे इतने पापड़ बेल रहे हैं, उनके पापड़ बेलने की उनकी प्रक्रिया रुक जाएगी और वे जवाब पाने के लिए आशा से यह सीधा सवाल करने के लिए विवश हो जाएंगे, यदि उन्हें माकूल जवाब मिल गया तो वे पापड़ बेलना बन्द कर देंगे, उससे न केवल आशा ही तनाव से बाहर निकल आएगी, बल्कि हम भी असुविधा से बच जाएंगे।”
“सोच तो तुम ठीक रहे हो, लेकिन...!”
“लेकिन क्या?”
“उसके सवाल के जवाब में आशा क्या कहेगी?”
“कोहिनूर को देखने जाने से पहले इसके एक हजार पाउण्ड कहीं खो गए थे, उन्हीं की वजह से यह मानसिक रूप से असंतुलित थी।”
“क्या वे इस बहाने पर यकीन कर लेंगे?”
“यकीन करें या न करें, मगर एक बहाना तो है।” विजय बोला— “इस बहाने के बाद वे आशा पर कोई जुर्म साबित नहीं कर सकेंगे और बिना किसी अपराध के पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं रख सकती, लिहाजा इसे छोड़ दिया जाएगा।”
“क्या जरूरी है कि इस घटना के बाद सिक्योरिटी का कोई जासूस आशा पर नजर नहीं रखेगा?”
“कोई जरूरी नहीं है।”
“बात तो फिर वहीं आ गई।”
“इसीलिए तुम्हारे लिए यह आदेश है आशा डार्लिंग की जब तक हमारा संकेत न हो, तब तक तुम किसी भी हालत में हममें से किसी से सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश नहीं करोगी, भले ही चाहे जैसी विशेष परिस्थिति हो—तुम्हें लंदन घूमने आई साधारण लड़की की तरह रहते रहना है—इस बात पर भी ध्यान नहीं दोगी कि हम क्या कर रहे हैं। या हमारे साथ क्या हो रहा है—यहां तक कि अगर तुम कहीं हममें से किसी की लाश भी पड़ी देख लो तो उतनी ही दिलचस्पी लेना जितनी किसी अपरिचित किसी लाश में लेता है।”
आशा ने स्वीकृति में गरदन हिलाई।
“अब तुम जा सकती हो।”
चौंकती हुई आशा ने पूछा—“क्या तुम सब लोग मुझे अपनी रिपोर्ट्स से अवगत नहीं कराओगे?”
“तुमसे कहा न आशा डार्लिंग।” किसी के बोलने से पहले ही विजय ने कहा— “फिलहाल हमारे अगले संकेत तक के लिए बिल्कुल भूल जाओ कि तुम हमारे साथ यहां किसी अभियान पर आई हुई हो।”
आशा चुप रह गई, विजय ने कहा— “जिस दिन मैं तुम्हें सफेद सूट में गुलाब लगाए लंच लेता नजर आऊं, उस दिन तुम मुझे फॉलो फोलो करने लगोगी, सिर्फ करोगी—मुझसे बोलोगी कुछ नहीं—यदि रास्ते में कहीं फूल निकालकर फैंक दूं तो मुझे फॉलो करना बन्द कर देना।”
“मैं समझ गई।”
“गुड!” विजय ने विकास को आदेश दिया—“अब तुम अपनी आशा आण्टी को होटल की छत तक छोड़ आओ प्यारे दिलजले, मगर सावाधान—किसी की नजर तुम पर पड़ी और बन्टाधार!”
विकास और आशा खड़े हो गए।
¶¶
करीब पन्द्रह मिनट बाद विकास लौट आया, उसने रिपोर्ट दी कि उन्हें किसी ने नहीं देखा है, सारा होटल सन्नाटे में डूबा पड़ा है, आश्वस्त होने के बाद विजय ने कहा— “अब तुम सुनाओ प्यारे दिलजले, अपना शिकार तुम्हें मिला या नहीं?”
“मिल गया है।” विकास ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया।
“वैरी गुड!” विजय उछल पड़ा— “इसे कहते हैं उपलब्धि—हां तो प्यारे—एक ही सांस में बता दो कि उसका क्या नाम है, कहां रहता है और तुमने किस तरह उसका पता लगाया?”
विकास ने सचमुच एक ही सांस में सब कुछ बता दिया। सुनने के बाद विजय ने कहा—“जी चाहता है प्यारे कि तुम्हारे दिमाग को चूम लूं, लेकिन ये साली खोपड़ी बीच में है, खैर—फिर कभी सही-हां तो प्यारे झानझरोखे और विक्रमादित्य, हमने तुम्हें लन्दन में कोई ऐसी जगह तलाश करने का काम सौंपा था, जहां बिना किसी विघ्न—बाधा के हमारी आपराधिक गतिविधियां चल सके, क्या रहा—यानी तुम ऐसी किसी जगह को खोज निकालने में कामयाब हुए या नहीं?”
“स्थान तो हमने कई देखे हैं, मगर उनमें से अधिकांश शहर से काफी दूर सन्नाटे में हैं—तुमने कहा था कि स्थान यदि शहर के बीच में मिल जाए तो ज्यादा अच्छा है।”
“मिला कोई?”
“मिला है और मकान नहीं, पूरी कोठी है वह!”
“किस सिच्युएशन में?”
“स्मिथ स्ट्रीट का सारा इलाका ही कोठियों से भरा पड़ा है और उन्हीं में से एक कोठी का नाम है—‘पीटर हाउस' यह कोठी करीब पांच सौ वर्ग गज के क्षेत्रफल में बनी हुई है, इसे पीटर नाम के व्यक्ति ने बनवाया था जो पांच साल पहले मर चुका है, पीटर के दो लड़के हैं-इन दोनों में इस कोठी को लेकर पीटर की मृत्यु के एक महीने बाद से ही झगड़ा है, दोनों कोठी पर अपना दावा पेश करते हैं और दिलचस्प बात ये हैं कि दोनों के पास पीटर की मृत्यु से पहले ही अपने-अपने हक में वसीयतें हैं—दोनों वसीयतों पर पीटर के साइन हैं और वे एक-दूसरे की वसीयत को नकली कहते हैं।”
“मामला वाकई दिलचस्प है।”
“पीटर हाउस को लेकर कुछ दिन तक तो दोनों भाइयों का झगड़ा होता रहा, फिर एक ने कुछ किराए के गुण्डों की मदद से पीटर हाउस पर कब्जा कर लिया—दूसरे भाई ने भी गुण्डे खरीदे और इन गुण्डों ने पहले भाई के गुण्डों को मार पीटकर भगा दिया तथा अपना कब्जा जमाकर बैठ गए करीब एक साल तक यही सिलसिला चलता रहा—इस लड़ाई में पहला भाई हार गया तो उसने अपने पास मौजूद पीटर की वसीयत के आधार पर मुकदमा दायर कर लिया, दूसरा भाई कोर्ट में हाजिर हुआ—उसने भी पीटर के ही साइन वाली अपनी वसीयत पेश कर दी, जिसके मुताबिक पीटर हाउस उसका था—इस तरह कानूनी लड़ाई शुरू हो गई—अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है, अदालत ने कोठी पर ताला लटकाकर अपनी सील लगा दी है—चाबी भी अदालत के पास है और जज ये घोषित कर चुका है कि फैसला होने पर चाबी जीतने वाले भाई को दे दी जाएगी।”
“यानी इस वक्त कोठी वीरान और बन्द पड़ी है, ताले पर अदालत की सील है।”
“मुकदमें का फैसला होने तक यही स्थिति रहेगी।”
“फैसला होने के बारे में क्या सम्भावना है?”
“कम-से-कम एक साल तो कोई फैसला होता नहीं है।” विक्रम ने बताया।
विजय ने पूछा—“तुम्हें यह पीटर हाउस आपराधिक गतिविधियों के लिए जंचा?”
“केवल इसलिए कि अदालत के फैसले से पहले वहां कोई घुस भी नहीं सकता।”
“तुम कैसे घुसोगे, मेरा मतलब वह अदालती सील?”
“अदालती सील केवल मुख्य द्वार ही पर तो लगी हुई है, हम जैसे अपराधियों के लिए कोठी के अन्दर जाने के अन्य बहुत-से रास्ते हैं, सील लगी रहे-हमारा अखाड़ा आराम से कोठी के अन्दर जम सकता है।”
“किस किस्म के रास्ते हैं?”
“उपरोक्त सिच्युएशन पता लगने पर हमें पीटर हाउस अपनी गतिविधियों के लिए उचित जगह लगी, सोचा कि अगर हमें अन्दर दाखिल होने के लिए कोई अन्य रास्ता मिल जाए तो हम उसी को अपने आने-जाने का ‘मुख्य द्वार’ बनाकर कोठी का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं—मुख्य द्वार पर लगी अदालती सील हमें सुरक्षित रखेगी, यही सोचकर रात के वक्त हमने कोठी के चारों तरफ घूम-घूमकर सारी भौगोलिक स्थिति देखी—पिछली तरफ, ‘रेनवाटर’ पाइप से लगी हुई दूसरी मंजिल की एक खिड़की है—उस खिड़की पर लगे शीशेदार किवाड़ शायद अन्दर से बन्द हैं, शीशे का थोड़ा-सा भाग काटकर हम आसानी से अन्दर दाखिल हो सकते हैं, वहां मकान मालिक की तरह रह सकते हैं—वह खिड़की हमारा ‘मुख्य द्वार’ बन जाएगी—कोठी का मनचाहा इस्तेमाल करने से हमें रोकने कौन आएगा?”
“इन्तजाम तो तुमने पते का किया है प्यारो, लेकिन...!”
“लेकिन ...?”
“पड़ोसियों का क्या होगा, यानी अगर हममें से किसी को किसी ने पीटर हाउस में आते-जाते या उस खिड़कीनुमा ‘मुख्य द्वार’ का उपयोग करते देख लिया तो?”
“रिस्क तो है ही मगर यह खतरा तो हमें उठाना ही होगा—आखिर अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए फ्री में इतनी बड़ी कोठी का इस्तेमाल जो करेंगे?”
अशरफ बोला—“कोई विशेष खतरा नहीं है, आने-जाने में सिर्फ हमें थोड़ी-सी सावधानी बरतनी होगी।”
“ठीक है, तुम मुझे पूरा पता लिखकर दे दो—कल मैं खुद पीटर हाउस का निरीक्षण करूंगा।”
अशरफ और विक्रम ने सहमति में गरदन हिला दी।
कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छा गई और फिर इस खामोशी को विकास ने तोड़ा—“आपने हमारी रिपोर्टें तो ले ली हैं गुरु और फिलहाल मेरी समझ के मुताबिक दोनों ही रिपोर्टें आशाजनक हैं, अब आप अपनी कहिए कि कहां तक पहुंचे—यानी क्राइमर अंकल अपनी योजना के कौन-से चरण में हैं?”
“वही हो रहा है, जो हमारा अनुमान था।”
“यानी?”
“कल या परसों में वे दोनों होटल छोड़कर गार्डनर की कोठी में रहने जा रहे हैं।”
“वैरी गुड!” विकास के मुंह से निकला—“यह आपको कैसे पता लगा?”
विजय ने बिना किसी हील-हुज्जत के सारी घटना बता दी, सुनने के बाद लड़के के होंठ एक दायरे की शक्ल में सिकुड़कर गोल हो गए, ऐसा महसूस हुआ कि जैसे अभी सीटी बजाना शुरू कर देगा मगर ऐसा किया नहीं उसने बल्कि बोला—“इसका मतलब ये कि क्राइमर अंकल भी काफी तेज रफ्तार से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे हैं।”
“उसके साथ ही हमें भी अपनी रफ्तार बढ़ानी पड़ेगी।”
“किस तरह?”
“कल रात तक फैसला हो जाएगा कि पीटर हाउस को हमें इस्तेमाल करना है या नहीं—यदि हां, तो परसों रात को स्कीम बनाकर चैम्बूर को किडनैप करेंगे, पीटर हाउस में लाकर किसी भी तरह उससे वे जानकारियां, हासिल करेंगे जो कोहिनूर की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में उसे ज्ञात होंगी।”
“यदि उसे कोई विशेष जानकारी नहीं हुई तो?”
“साबित हो चुका है कि वह के.एस.एस. का सदस्य है—इसका मतलब ये कि भले ही ज्यादा न हो किन्तु कुछ-न-कुछ जानकारी उसे जरूर होगी—हां, ये सम्भव है कि वह ग्राडवे की तरह टूटे नहीं, पता होते हुए भी हमें कुछ न बताए या उसे जो जानकारी हो वह हमारे ज्यादा काम की न हो—ऐसा कुछ भी हो सकता है—मगर फिलहाल आगे बढ़ने के लिए हमारे पास उसके अलावा कोई रास्ता नहीं है—इसलिए कम-से-कम परसों तक उसी पर डिपेंड रहना मजबूरी है, उसके बयान के बाद जैसी सिच्युएशन होगी, वैसी स्कीम बनाएंगे।”
अशरफ ने पूछा— “कल रात तक के लिए क्या रणनीति रहेगी?”
“सबसे पहली बात तो ये कि यहां से अपना लूमड़ ही जा रहा है तो हममें से किसी का भी इस होटल में रहने का कोई औचित्य नहीं रह गया है, अतः एक-एक करके हम चारों को चार दिन में ये होटल छोड़ देना है—किसी सस्ते होटल में कमरा लेना उचित होगा, वहां ठहरे यात्रियों पर लोगों का ध्यान कम जाता है—सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा उचित ये होगा कि हम अलग-अलग होटलों में रहें।”
“ठीक है, एलिजाबेथ किस क्रम में छोड़ें?”
“यह क्रम हम परसों से जारी करेंगे, पहले विक्रम—फिर अशरफ, विकास और फिर हम!”
“और आशा?”
“फिलहाल उस वक्त तक वह हमारे हर प्रोग्राम से बाहर रहेगी जब तक सिक्योरिटी का ध्यान उस पर केन्द्रित है।”
विजय ने कहा— “और तुम्हें कल सारे दिन चैम्बूर को वॉच करते रहना है दिलजले, हो सके तो उसकी दिनचर्या को कंठस्थ करने की कोशिश करना।”
“हमारे लिए क्या काम है?” विक्रम ने पूछा।
“कल भी सारे दिन तुम्हें लंदन में जगह तलाश करने की कोशिश करते रहना है, ताकि यदि किसी वजह से पीटर हाउस न जंचे तो कोई अन्य इन्तजाम हो सके।”
“ठीक है।”
“आज ही की तरह और आज ही के समय कल रात भी हमें यहां मिलना है।”
तीनों ने सहमति में गरदन हिलाई, विजय ने आगे कहा— “आज की मीटिंग समाप्त करने से पहले मैं ये जरूर कहूंगा कि अभी तक बाण्ड या लूमड़ में से किसी का भी ध्यान हमारी तरफ नहीं है और यह स्थिति हमारे पक्ष में है, इसे पक्ष में ही बनाए रखना होगा यानी हमें चाहिए कि अपने सारे काम बाण्ड या लूमड़ की दृष्टि से बहुत दूर रहकर ही करें, उनका सामना न करने तक ही हम यहां सकून से हैं।”
“मीटिंग समाप्त होने से पहले मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहूंगा गुरु!”
“पूछो!”
“क्या आप बता सकेंगे कि जो बातें हमने आशा आण्टी के जाने के बाद की हैं, वे उनके सामने क्यों नहीं की गईं?”
विजय ने बहुत ध्यान से डबल एक्स फाइव के चेहरे को देखा, अजीब-से ढंग से मुस्कराया बोला— “उसके जाने के बाद हमने लंदन में की गई अपनी प्रोग्रेस का जिक्र किया है, भावी कार्यक्रम बनाया है—और मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में यह कहूंगा कि अपनी प्रोग्रेस और प्रोग्राम की जानकारी मैं आशा से छुपाना चाहता था।”
“क्यों?”
“अपनी बेवकूफी से वह सिक्योरिटी की नजरों में आ गई है—अगर उसने हमारी बताई हुई योजना को कार्यान्वित किया तो उम्मीद है कि सिक्योरिटी का ध्यान उस पर से हट जाए, मगर जितनी नर्वस वह हो जाती है, उसकी वजह से पुनः कोई बड़ी गलती कर सकती है, ऐसी अवस्था में सिक्योरिटी उसे गिरफ्तार कर लेगी और मैं नहीं चाहता था कि सिक्योरिटी उसके मुंह से हमारी प्रोग्रेस और प्रोग्राम के बारे में जान ले।”
“क्या आप समझते हैं कि कोई सिक्योरिटी हमारे खिलाफ आशा आण्टी की जुबान खुलवा सकती है?”
विजय ने आराम से कहा— “हम रिस्क क्यों लें प्यारे, मार के आगे भूत भी नाचते हैं।”
“उस स्थिति में अगर आण्टी की जुबान खुले तो कम-से-कम हमें गिरफ्तार तो अब भी करा ही सकती हैं वे।” यह वाक्य विकास ने बहुत ही तीखे, व्यंग्य-भरे लहजे में कहा था।
विजय ने ऐसा भाव प्रकट किया जैसे उसके आशय को समझा ही न हो, बोला—“इस तरफ से भी हमें सतर्क रहना होगा कि कहीं, आशा के माध्यम से सिक्योरिटी हम तक न पहुंच जाए।”
इस बार विक्रम कुछ बोला नहीं, मगर विजय के लिए उसके चेहरे पर घृणा के भाव उभर आए थे, आशा की इतनी उपेक्षा और उसे बारे में कही गई विजय की बातें अशरफ और विक्रम को भी पसन्द नहीं आई थीं, ऐसी बातें कल वह उनके बारे में भी कर सकता था, परन्तु विजय ने ऐसा कोई भाव प्रकट नहीं किया, जिससे उन्हें यह महसूस होने देता कि विजय उनकी मानसिक स्थिति से परिचित है।
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