✽✽अगले रोज सुबह आठ बजे श्मशानघाट पर तुकाराम ने अपने तीन भाइयों की चिता को आग दी ।
पुलिस के बहुत पूछने पर भी तुकाराम अपने भाइयों की मौत के लिए किसी को जिम्मेदार ठहराने के लिए तैयार नहीं हुआ था । पुलिस के यह समझाने पर भी कि उसकी शिकायत पर बखिया तक को गिरफ्तार किया जा सकता था, उसने किसी का नाम नहीं लिया था ।
तीन भाइयों की मौत की रू में बखिया के जो आदमी वहां मंडरा रहे थे, वे क्या चाहते थे, यह पुलिस से छुपा नहीं था । खुद तुकाराम भी वहां अकेला नहीं पहुंचा था । वहां गैंगवार छिड़ जाने के अंदेशे ने ही पुलिस को वहां ऐसा बंदोबस्त करने पर मजबू किया था कि दाह-संस्कार निर्विघ्न हो सके । वहां कम-से-कम पचास सशस्त्र पुलसिए तैनात थे जिनकी वजह से बखिया के आदमी तुकाराम पर हाथ न डाल सके और वहां खून की होली न खेली जा सकी ।
फिर दाह-संस्कार की सारी रस्में मुकम्मल होने से पहले ही बखिया के आदमी एक-एक करके वहां से खिसक गए ।
किसी ने भी पीछे ठहरना जरूरी न समझा ।
यह सबके लिए बहुत हैरानी की बात थी ।
सिवाय इकबालसिंह के, जिसने कि ऐसा इंतजाम किया था ।
उसके हाथ अपना मतलब हल करने का एक ज्यादा कारआमद जरिया जो लग गया था ।
वह जानता था पुलिस की मौजूदगी में तुकाराम पर हाथ डालना खामखाह की मुसीबत मोल लेना था । केवल तुकाराम को शूट करने की बात होती तो वहां पुलिस की मौजूदगी भी किसी काम नहीं आती, तो तुकाराम अपने तीन भाइयों की जलती चिताओं में से ही किसी एक पर जाकर गिरा होता लेकिन वक्त की जरूरत तुकाराम को अगवा करने की थी । बखिया उसे जिंदा और सही-सलामत अपने हुजूर में देखना चाहता था ।
जो कारआमद जरिया इकबालसिंह के हाथ में लगा था वह अकरम लाटरीवाला था । वह पिछली रात पुलिस हैडक्वार्टर पर और उस सुबह श्मशानघाट पर, दोनों जगह, हमेशा तुकाराम के इर्द-गिर्द दिखाई दिया था ।
इकबालसिंह की तजुर्बेकार निगाह से अकरम की वैसी मौजूदगी की अहमियत छुपी नहीं रही थी ।
घोरपड़े अकरम की सारी जन्मकुंडली से वाकिफ था । आखिर कमाठीपुरे में उसने अपनी सारी जिंदगी गुजारी थी और कमाठीपुरे और भिंडी बाजार में फासला ही कितना था ।
अब घोरपड़े वो आदमी था जिसे बखिया ने ‘कम्पनी’ के सिपहसालार की जगह लेने के लिए चुना था ।
उस इज्जतअफजाई से घोरपड़े फूलकर कुप्पा हो गया था ।
कहां वह ‘कम्पनी’ के एक मामूली ओहदेदार ज्ञानप्रकाश डोगरा का मामूली लेफ्टिेनेंट था और कहां अब वह खुद बखिया द्वारा चुना गया काले पहाड़ के सारे निजाम का सिपहसालार था ।
वह नहीं जानता था कि बखिया ने महज एक बलि का बकरा चुना था ।
तुकाराम और अकरम श्मशानघाट पर ही थे कि अपने कुछ आदमियों के साथ घोरपड़े भिंडी बाजार पहुंच गया ।
अकरम की खोली में विमल को उसने सोते से जगाया ।
आनन-फानन उसे ‘कम्पनी’ के हैडक्वार्टर पहुंचा दिया गया । इतना कठिन काम इतनी आसानी से हो गया ।
जिस काम को बम्बई की सारी पुलिस फोर्स और बखिया की मुकम्मल बादशाहत अंजाम नहीं दे पाई थी, उसे घोरपड़े ने चुटकियों में कर दिखाया था । आखिर जहां तीर नहीं चलता, वहां तुक्का जो चल जाता है ।
बखिया ने खुद उसकी पीठ ठोककर उसे शाबाशी दी ।
घोरपड़े फूलकर और कुप्पा हो गया ।
आखिर जो पहला ही काम उसे सौंपा गया था, उसमें उसकी फतह हुई थी ।
फिर ‘कोई उनका पीछा न करने पाए’ जैसी तमाम सावधानियां बरत चुकने के बाद जब तुकाराम और अकरम भिंडी बाजार पहुंचे तो वे भी चुपचाप पकड़ लिए गए ।
विमल की बखिया से मुलाकात तहखाने की जगह उसके चौथी मंजिल के सुइट में हुई ।
दो वजह से विमल अपनी उस गिरफ्तारी से त्रस्त नहीं था ।
एक तो ‘लिटल ब्लैक बुक’ अभी भी उसके अधिकार में थी ।
और दूसरे, नीलम को वह सुरक्षित उस हंगामे से बाहर निकाल चुका था ।
वह एक रेलवे प्लेटफार्म जैसा विशाल ड्राइंगरूम था, जिसमें विमल को बखिया के सामने पेश किया गया । ड्राइंगरूम की दो दीवारें पूरी तरह से भारी पर्दों से ढकी हुई थीं । एक ओर के पर्दों के पीछे तो विमल को लग रहा था कि खिड़कियां थीं और बाल्कनी थी लेकिन दूसरी तरफ के पर्दो के पीछे क्या था, इसका आभास उसे नहीं मिल रहा था ।
उस वक्त वहां बखिया और विमल के अलावा इकबालसिंह, घोरपड़े, कई प्यादे और तुकाराम और अकरम लॉटरी वाला मौजूद थे ।
बखिया अपलक उसे देख रहा था । विमल पूरी निडरता से उसकी आंखों से आंखें मिला रहा था ।
“सोहल !” - फिर बखिया यूं बोला जैसे मुंह से शब्द न निकाल रहा हो, नफरत का जहर उगल रहा हो - “हरामजादा सोहल ! धोखेबाज सोहल ! वादाशिकन सोहल !”
“शुक्रिया ! शुक्रिया !” - विमल तनिक सिर नवाकर बोला - “लेकिन बंदा इतना तारीफ के काबिल तो नहीं ।”
“तू किसी काबिल भी नहीं । है तो रहेगा नहीं ।”
“अच्छा !”
“हां ! और अगर तेरे मन में ऐसा कोई ख्याल है कि बखि ने तुझे तेरी दावत के लिए या तेरी मिजाजपुर्सी के लिए यहां तलब किया है तो यह ख्याल अपने मन से निकाल दे और हंसना-मुस्कराना बंद करके अपने बेहद खतरनाक अंजाम से फिक्रमंद दिखाई दे ।”
“जो हुक्म, मेरे आका !” - विमल विनोदपूर्ण स्वर में बोला ।
“डायरी कहां है ?”
“मेरे पास है ।”
“दोनों चीजों का तेरे पास होने का मतलब ?”
“कौन-सी दोनों चीजे ?”
“डायरी और तेरी छोकरी ? क्या फैसला हुआ था हमारे में ? क्या वादा था तेरा ? जब तेरी छोकरी तेरे पास है तो डायरी बखिया के पास नहीं होनी चाहिए थी ?”
“छोकरी आपने मुझे कब सौंपी ?”
“सौंपी या नहीं सौंपी, वह तेरे पास पहुंची या नहीं पहुंची ?”
“लेकिन...”
“तूने खुद बखिया को टेलीफोन पर नहीं बताया था कि छोकरी अभी परेरा के कब्जे में थी और वह तेरे से पहले बम्बई लौट आया था ?”
“बताया था ।”
“फिर परेरा पर हमला क्योंकर हुआ ? उसकी कार में से छोकरी गायब कैसे हो गई ?”
“मुझे क्या पता, परेरा के साथ क्या बीती ? मैं तो...”
“कैसे नहीं पता तुझे ?” - बखिया गर्जकर बोला - “कैसे नहीं पता ?”
“परेरा के आगरा रोड से भागने के बाद से मैंने उसकी शक्ल नहीं देखी ।”
“कबूल । जरूर नहीं देखी होगी लेकिन तब से क्या तूने अपनी छोकरी की भी शक्ल नहीं देखी ?”
विमल खामोश रहा ।
“जवाब दे । कोई झूठा ही जवाब दे । कह दे कि तूने नहीं देखी अपनी छोकरी की शक्ल ।”
“नीलम को” - वह बोला - “आपने मुझे नहीं सौंपा ।”
“तूने इसकी नौबत ही कहां आने दी ? नौबत ही कहां आने दी तूने इसकी ? तूने पहले ही उसे जबरन जो झपट लिया ।”
“मैंने नहीं ।”
“यह काम तूने किया या तेरे किसी भाईबंद ने किया, एक ही बात है ।”
“परेरा का खून करने वाले के कृत्य के लिए मैं जिम्मेदार नहीं ।”
“कबूल । यह भी कबूल । तू नहीं जिम्मेदार किसी दूसरे की करतूत के लिए । वैसे जिसकी करतूत की जिम्मेदारी को तू नकार रहा है, वह कोई दूसरा नहीं, देवाराम था जो कि आजकल तेरा सगेवाला बना हुआ है ।”
विमल खामोश रहा ।
“लेकिन इस वक्त सवाल इस बात का नहीं है कि देवाराम ने क्या किया । इस वक्त सवाल इस बात का है कि उसकी करतूत से फायदा तुझे पहुंचा । तेरी छोकरी तेरे पास पहुंच गई, डायरी लौटाए बिना पहुंच गई, वादा निभाए बिना पहुंच गई । और इस वक्त तू बखिया को ऐसी शक्ल बनाकर दिखा रहा है जैसे इस बारे में तू कुछ जानता ही नहीं ।”
“आपके पास इस बात का क्या यही सुबूत है कि नीलम मेरे पास पहुंच चुकी है ?” 
“बखिया को कोई सुबूत दरकार नहीं । वह इस बात की तसदीक तेरे से ही करना चाहता है । बोल, छोकरी तेरे पास पहुंची थी या नहीं पहुंची थी ? और सरदार, जवाब में झूठ बोलने का तुझे पूरा अख्तियार है । बखिया को तेरा झूठा जवाब भी कबूल होगा । कह दे कि छोकरी तेरे पास नहीं पहुंची । कह ! कह ! कहता क्यों नहीं ?”
विमल से झूठ न बोला गया ।
“नीलम का मेरे पास पहुंचना” - वह बोला - “महज इत्तफाक था । कल रात वह मेरी उम्मीद से बाहर काम हुआ था ।”
“कबूल ! कबूल ! सब कबूल ! कैसे भी हुआ, मतलब हल हो गया न तेरा ? जिस काम के लिए तू तड़प रहा था, वह हो गया न ?”
विमल बड़ी कठिनाई से सहमति से सिर हिला पाया ।
“बढिया ! अब डायरी निकाल ! अभी भी यह साबित करके दिखा कि तू इंसान का बच्चा है, वादा करके मुकर जाने वाली शैतान की औलाद नहीं ।”
विमल ने इन्कार में सिर हिलाया ।
“अब क्या है ?”
विमल ने अपने से थोड़ा परे खड़े अकरम और तुकाराम पर निगाह डाली ।
“पहले अकरम और तुकाराम को छोड़ो ।” - वह बोला ।
“तुकाराम को छोड़ें ?” - बखिया कहर-भरे स्वर में बोला - “इस हरामजादे को छोड़ें जिसने दो ही दिनों में बखिया की बादशाहत उजाड़ दी ? इसने इस होटल को वीराना बना दिया । इसने बखिया के कफ परेड वाले ऑफिस को जलाकर खाक कर दिया । इसने उमर खैयाम बंद करा दिया । इसने बखिया की सरपरस्ती में चलने वाले ईस्टर्न एक्सपोर्ट हाउस पर वार किया और वहां दहशत फैलाई । इसने जोगेश्वरी में बखि का ही काम तमाम करने की कोशिश की । बखिया को प्लेग कहता है यह । प्लेग । और इश्तिहार बांटता है इस बात के । ऐसे आदमी को छोड़ दे बखिया ?”
“लेकिन...”
“और इतना कुछ इस हरामजादे ने तब किया जबकि तेरे कहने पर बखिया ने इसकी जान बख्शी, जबकि बखिया ने तेरे वादे पर एतबार किया कि फिर कभी शान्ताराम का कोई भाई बखिया की आंख में डंडा करने की कोशिश नहीं करेगा ।”
“जंग से सब जायज होता है ।” - विमल का अपना जवाब खुद को ही खोखला लगा ।
“कौन-सी जंग ? कैसी जंग ?” - बखिया एक हाथ का घूंसा दूसरे की हथेली पर जमाता हुआ दहाड़ा - “जंग तो तेरे साथ समझौता करके खत्म कर दी थी बखिया ने । हद से बाहर नुकसान उठाकर भी तेरी जुबान का एतबार करके खत्म कर दी थी । तेरे कहने-भर से बखिया ने छोड़ नहीं दिया था शान्ताराम के भाइयों को ?”
“मेरे कहने-भर से नहीं, डायरी हासिल करने की नीयत से ।”
“ऐसे ही सही । लेकिन इनकी जानबख्शी तो हुई । कबूल कि डायरी की खातिर हमने तेरे से सौदा किया और नीलम को पुलिस के चंगुल से छुड़ाने जैसे खतरनाक काम को भी अंजाम दिया । लेकिन बखिया की डायरी इस वक्त बखिया के पास क्यों नहीं है, जबकि तेरी छोकरी तेरे पास है ? यह धोखा नहीं तो क्या है ? वह वादाखिलाफी नहीं तो क्या है ?”
“लेकिन...”
“और तो और, तूने परेरा को नकली डायरी भेड़ने की कोशिश की ।”
“वह सब एक गलतफहमी के जेरेसाया हुआ । अगर नीलम मेरे हाथ आ जाती तो परेरा वहां से असली डायरी के साथ ही लौटता ।”
“इस वक्त तू कुछ भी कह सकता है ।”
“और आप अपने-आपको खुशकिस्मत समझिए कि उस नाजुक घड़ी में मेरे हाथ में नकली डायरी थी वरना एल्बुकर्क के आदमी तभी असली डायरी ले उड़े होते ।”
“एल्बुकर्क !” - बखिया भी चौंका - “कौन एल्बुकर्क ?”
“एंथोनी एल्बुकर्क ! गोवा के अंडरवर्ल्ड का बादशाह ।”
“लिटल ब्लैक बुक की फिराक में एंथोनी है ?”
“हां ।”
“तूने जो कहा था कि कुछ आदमी तेरे पीछे लगे हुए थे, वे एन्थोनी के आदमी थे ?”
“हां ।”
“तुझे कैसे मालूम ? तू उसके आदमियों को कैसे पहचानता है ?”
“उसके सारे आदमियों को चाहे मैं नहीं पहचानता लेकिन एंथोनी एल्बुकर्क को मैं खूब पहचानता हूं और जब वह अपनी जुबान से कहता है कि वह बखिया की लिटल ब्लैक बुक की फिराक में है तो...”
“झूठ ! झूठ ! झूठ !”
“मेरा उससे डायरी का सौदा भी हो चुका है ।”
“क्या ?”
“पच्चीस लाख रुपये में वह लिटल ब्लैक बुक मुझसे खरीदने को तैयार है और यह ऑफर खुद उसने मुझे दी है ।”
“तू एंथोनी से मिला है ?”
“हां ।”
“कब ?”
“कल रात को ।”
“और उसने तुझे डायरी के बदले में पच्चीस लाख रुपये देने का वादा किया है ?”
“हां ।”
“क्यों ?” 
“क्योंकि वह समझता है कि मैं रुपये की ही फिराक में हूं । वह समझता है कि आगरा रोड के पुल पर भी मैं डायरी बेचने के लिए ही पहुंचा था । बीस लाख रुपये में । इसीलिए वह डायरी की आपसे ज्यादा कीमत लगाकर उसे मुझसे हासिल करने की उम्मीद कर रहा है ।”
“एंथेनी ! एंथोनी !”
“जी हां ।”
“इकबालसिंह, बखिया यह क्या सुन रहा है ?”
“विश्वास नहीं होता, बखिया साहब ।” - इकबालसिंह बोला ।
“सरदार, तू जानता है, पिछले दिनों बखिया गोवा में था ?”
“ऐसा सुना था मैंने ।” - विमल बोला ।
“बखिया गोवा में था और वहां एंथोनी एल्बुकर्क का मेहमान था । एंथोनी का मेहमान था बखिया वहां ।”
“आई सी !”
“एक बार भी तो बखिया को यह अहसास नहीं हुआ था कि वह एंथोनी का बच्चा बखिया की गोद में बैठकर उसकी दाढ़ी मूंडने की कोशिश कर रहा था । खैर !” - वह एक गहरी सांस लेकर बोला - “देख लूंगा मैं एंथोनी को भी । पहले तू डायरी निकला ।”
“पहले आप अकरम और तुकाराम को आजाद कीजिए ।”
“यह तेरी शर्त है डायरी देने की ?”
“हां ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“बखिया इस शर्त पर पूरा नहीं उतरेगा तो तू डायरी नहीं देगा ?”
“नहीं दूंगा ।”
“हरामजादे !” - एकाएक बखिया ने बुरी तरह से दांत किटकिटाए - “अब तू कोई शर्तें लगाने की पोजीशन में नहीं है ।”
“जब तक डायरी मेरे पास है तब तक यह हरामजादा कैसी भी शर्त लगाने की पोजीशन में है ।”
“वहम है तेरा ।”
“कौन कहता है ?”
“बखिया कहता है ।”
“बखिया गलत कहता है ।”
“बखिया कभी कोई गलत बात नहीं कहता । इकबालसिंह !”
“सर !”
“जरा सरदार को इसका वहम साबित करके दिखा ।”
“अभी लीजिये ।”
इकबालसिंह एक तरफ के पर्दों की तरफ बढा ।
कमरे में एकाएक मुकम्मल सन्नाटा छा गया था ।
आशंकित विमल इकबालसिंह को देख रहा था । 
क्या करने जा रहा था वह ?
इकबालसिंह ने एक डोरी खींचकर पर्दे सरकाए ।
पर्दे हटते ही विमल को जो दृश्य दिखाई दिया, उसने उसके छक्के छुड़ा दिए ।
“नीलम !” - वह बद्हवास स्वर में चिल्लाया ।
वह आगे को लपका तो घोरपड़े और उसके दो प्यादों ने उसे दबोच लिया ।
“नीलम ! नीलम !” - उनकी पकड़ में छटपटाता हुआ वह गला फाड़कर चिल्लाया ।
“तेरे सामने जो शीशे की खिड़की तुझे दिखाई दे रही है ।”- उसके कानों में बखिया की आवाज पड़ी - “वो असल में वन-वे-मिरर है । तू उसके पार देख सकता है लेकिन उधर से भीतर यहां नहीं झांका जा सकता और न ही तेरी छोकरी के कानों तक पहुंच सकती है ।”
नीलम उसे एक बैडरूम में पलंग पर गुच्छा-गुच्छा हुई अकेली बैठी दिखाई दे रही थी ।
“यह नीलम नहीं हो सकती !” - उसके मुंह से निकला ।
“तो उसकी कोई जुड़वां बहन होगी ।” - बखिया व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“यह नीलम नहीं हो सकती !” - वह फिर बोला ।
“कैसे होगी ? तू तो सोच रहा होगा कि वो अभी तक इत्मीनान से चंडीगढ पहुंच चुकी होगी ।”
विमल खामोश रहा ।
बखिया अपने स्थान से उठा और लंबे डग भरता हुआ एक अलमारी के पास पहुंचा ।
जब वह वापस आया तो उसके हाथ में कई चीजें थीं ।
“यह ले” - वह एक-एक चीज विमल की तरफ उछालता हुआ बोला - “अपनी सहेली का सूटकेस । यह ले उसकी टांग से उतरा प्लास्टर का खोल । यह ले उसके अधपके बालों वाला विग । यह ले उसकी सैकेंड क्लास एयर कंडीशंड स्लीपर की दिल्ली की टिकट । संभाल यह सब कुछ और खुशी से भजता रह कि यह नीलम नहीं हो सकती । यह नीलम नहीं हो सकती । यह नीलम नहीं हो सकती ।”
अब तक चीखते-चिल्लाते विमल को जैसे सांप सूंघ गया ।
“साले !” - बखिया गर्जा - “अब आत्महत्या करके दिखा । अब चबा वो कैप्सूल, जो पिछली बार तूने बखिया की नाक के सामने लहराते हुए अपने मुंह में रखा था । अब जान देकर दिखा । अब क्यों नहीं मर कर निजात पा लेता बखिया के चंगुल से ? शुक्रवार को तो बखिया के सामने बहुत उछल रहा था तू !”
विमल के मुंह से बोल न फूटा । 
“बोल ! बोल, हरामजादे ! अब देता है डायरी या अभी तेरी आंखों के सामने शीशे के पार तेरी सहेली के साथ वो प्रोग्राम शुरू कराया जाए जो मंगलवार को यहां कमिश्नर के पहुंच जाने की वजह से अधूरा रह गया था ? बोल ! देता है डायरी ?”
विमल खामोश रहा ।
“इकबालसिंह !”
“सर !”
“सरदार खामखाह वक्त बरबाद कर रहा है । तू ऐसा कर । तू फिलहाल ट्रेलर के तौर पर जाकर छोकरी के कपड़े उतार ताकि हम सब लोग देख सकें कि छोकरी का जिस्म किसी काबिल है भी या नहीं ! दो-चार प्यादे झेलकर ही छिन्न-भिन्न तो नहीं हो जाएगा यह !”
“नहीं !” - विमल ने आर्तनाद किया ।
“सरदार, तेरी छोकरी के बहुत शानदार तमाशे की गारंटी तो हम नहीं कर सकते क्योंकि ऐसी गारंटी तो जोजो ही कर सकता था जिसे तूने कल रात मार डाला लेकिन फिर भी हम तुझसे वादा करते हैं कि तमाशे से तुझे मायूसी नहीं होगी । इकबालसिंह !”
“सर !”
“तू अभी तक यहां खड़ा है ?”
“सॉरी, सर ।”
इकबालसिंह बाहर को लपका । उसके इशारे पर चार प्यादे भी उसके साथ बाहर को लपके ।
“रुक जाओ !” - विमल चिल्लाया - “रुक जाओ ।”
“ऐसे कैसे रुक जाये वो ?” - बखिया बोला - “ऐसे रुक जाएगा वो तो मैं उसका गला नहीं काट दूंगा ।”
बेबस विमल हाथ-पांव पटकता रहा ।
दो मिनट बाद प्यादों के साथ इकबालसिंह नीलम के पलंग के करीब प्रकट हुआ । नीलम घबराकर पीछे हटी ।
बिना किसी औपचारिकता के चारों प्यादों ने नीलम को दबोच लिया ।
इकबालसिंह बड़े इत्मीनान से नोच-नोचकर उसके जिस्म से कपड़े उतारने लगा ।
कमरा साउंडप्रूफ था, इसलिए उधर की आवाजें वहीं नहीं पहुंच रही थीं लेकिन नीलम की सूरत बता रही थी कि वह बुरी तरह से चिल्ला रही थी और रहम की फरियाद कर रही थी ।
विमल ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं । उसके जबड़े भिंचे हुए थे और उसके चेहरे पर गहन वेदना के भाव थे ।
“बखिया !” - एकाएक तुकाराम बोला ।
“क्या है ?” - बखिया कर्कश स्वर में बोला ।
“अपने आदमियों को वापिस बुला ले । खुदा के वास्ते उन्हें वापिस बुला ले !” 
“क्यों बुला लूं ?”
“सोहल डायरी देता है ।”
“तेरे कहने पर ?”
“हां ।”
“मुझे तो सुनाई नहीं दे रहा यह ऐसा कहता ।”
“सोहल !” - तुकाराम विमल से संबोधित हुआ - “इसे कह कि तू डायरी देने के लिए तैयार है ।”
विमल ने इनकार में सिर हिलाया ।
“सोहल ! कमस है तुझे ।”
“कसम मत दे तुकाराम, कसम मत दे !” - विमल यूं बोला जैसे आवाज उसका कलेजा फाड़कर निकल रही हो - “जानता नहीं, वह डायरी ही तेरी और अकरम की जान की सलामती की गारंटी है ।”
“मुझे अपनी जान की परवाह नहीं ।” - तुकाराम बोला ।
“मुझे भी ।” - अकरम बोला ।
“बखिया मुझे नहीं मार सकता ।” - तुकाराम बोला - “मरे हुए को कोई नहीं मार सकता । तू डायरी दे दे ।”
“डायरी दे दे, सोहल !” - अकरम बोला - “अगर तुका कहता है तो डायरी जरूर दे इसका कहना मान ।”
“सोहल !” - तुकाराम बोला - “कसम है तुझे तेरे वाहेगुरु की, मेरा कहना न टाल ! डायरी दे दे ।”
“क्या फायदा ?” - विमल हताश स्वर में बोला - “बखिया नीलम को फिर भी नहीं छोड़ने वाला ।”
“शायद छोड़ दे ।”
“अच्छा ।”
विमल बखिया की तरफ घूमा ।
“उन्हें रोको ।”
“डायरी बखिया को सौंपने का फैसला हो गया, उसके शेयर होल्डरों में !” - बखिया व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“हां ।” - विमल बोला ।
“तो निकाल डायरी ।”
“पहले वादा करो कि नीलम के साथ कोई बद्फेली नहीं होगी कि...”
“फिर वही बात !” - बखिया भड़ककर बोला - “तूने बखिया की पहली बात ठीक से नहीं सुनी मालूम होती, हरामजादे ! बखिया ने कहा था कि अब तू कोई शर्तें लगाने की पोजीशन में नहीं है ।”
विमल फिर चुप हो गया ।
“बखिया !” - तुकाराम गुस्से से बोला - “तू उन्हें रोक । सोहल डायरी देगा । जरूर देगा ।”
“बेहतर ।”
बखिया ने एक प्यादे को संकेत किया ।
वह तुरंत बाहर को दौड़ा ।
जब तक वह बेडरूम में इकबालसिंह के पास पहुंचा, तब तक इकबालसिंह नीलम के के जिस्म से कपड़े की आखिरी धज्जी भी उधेड़ चुका था और अब एक कसाई की तरह उसके नंगे जिस्म को जगह-जगह से टटोल रहा था ।
प्यादे ने उसे बखिया का पैगाम दिया ।
इकबालसिंह के चेहरे पर मायूसी के ऐसे भाव आए जैसे उसके हाथ में से मलाई की कटोरी छीन ली गई हो ।
वह प्यादों के साथ वापिस लौटा ।
नीलम ने पलंग की एक चादर से अपना तन ढक लिया और पलंग पर घुटनों में सिर देकर बैठ गई ।
“सरदार डायरी दे रहा है ।” - बखिया बोला - “बिना कोई शर्त लगाए डायरी दे रहा है ।”
“वैरी गुड !” - इकबालसिंह बोला ।
“बखिया साहब !” - विमल धीरे से बोला ।
“बोल, बेटा !” - बखिया बड़े प्यार से बोला ।
“नीलम पर इतना जुल्म क्यों ढाते हो ? तुम्हारा जो नुकसान किया है, उसका बदला तुम मुझसे लो ।”
“मुझसे लो ।” - तुकाराम बोला ।
“मुझसे लो ।” - अकरम बोला ।
“औरत जात को” - विमल बोला - “अपने कहर का शिकार बनाने में क्या बहादुरी है तुम्हारी ?”
“ये सब बाद की बातें हैं ।” - बखिया बोला - “पहले डायरी । पहले डायरी निकाल और फिर उम्मीद कर कि बखिया तेरी छोकरी को अपने कहर का शिकार न बनाए । बहुत मुमकिन है कि बखिया को तेरी छोकरी पर तरस आ जाए । उस पर क्या, तुझ पर तरस आ जाए । आखिर उस पर तरस खाना भी तो तुझ पर ही तरस खाना होगा । उसकी दुर्गति देख जो नहीं पाएगा तू । क्या होगा तेरा ? पागल हो जाएगा या रो-रोकर जान दे देगा ?”
“बखिया साहब, प्लीज !”
“अच्छा, अच्छा ! देखेंगे तेरी प्लीज । पहले डायरी निकाल ।”
“डायरी मेरे पास नहीं है ।”
“तो कहां है ?”
“मेरी कार में ।”
“कार कहां है ?”
“भिंडी बाजार के बाहर पार्किंग में खड़ी है ।”
“जा ।”
“कहां ?”
“भिंडी बाजार । डायरी लेने ।” 
विमल हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
“तू हैरान हो रहा है कि बखिया तुझे अकेला भेज रहा है ? लेकिन इसमें हैरानी की क्या बात है ? क्या बात है इसमें हैरानी की ? डायरी मुझे सौंपकर इस वक्त तूने कोई मेरा काम नहीं करना है बल्कि अपना काम करना है । यह तेरा काम है इसलिए बखिया को फिक्र नहीं कि तू इसे कैसे करेगा ? करेगा भी या नहीं करेगा । मेरी तरफ से तू पूरी तरह से आजाद है । डायरी लेकर तू बेशक न लौटना । बेशक होटल से बाहर कदम रखते ही हमेशा के लिए गायब हो जाना ।”
“मैं कहीं गायब नहीं होऊंगा ।” - बड़े परेशानहाल ढंग से शीशे के पार नीलम की तरफ निगाह डालता हुआ विमल बोला - “मैं डायरी लेकर सीधा यहां आऊंगा । या आप खुद मंगवा लीजिए डायरी ।”
“नहीं । तू ही ला । यानी कि अगर लाने का इरादा है तो ।”
“इरादा है ।”
“बढिया । कितनी देर में लौटेगा ?”
“एक घंटा तो लग ही जाएगा ।”
“लगा ले । लेकिन अपनी भलाई के लिए, अपनी सहेली की भलाई के लिए, याद रखना ।”
“क्या ?”
“बखिया इकसठ मिनट इंतजार नहीं करने का ।”
“मैं एक घंटे से पहले लौटूंगा ।” - विमल दबे स्वर में बोला ।
नीलम की दोबारा गिरफ्तारी ने उसके मनोबल को पूरी तरह से तोड़ दिया था ।
तुकाराम की हामी के बावजूद वह उससे शर्मिंदा हो रहा था और उससे निगाहें चुरा रहा था । तुकाराम उससे यह भी कह सकता था कि सोहल, अगर इंसान का बच्चा है तो डायरी न देना । आखिर बखिया के हाथ डायरी वापिस न पड़ने देना भी उसके इंतकाम का हिस्सा था लेकिन तुकाराम उसे मजबूर कर रहा था कि वह डायरी उसे दे दे और सोहल का स्वार्थ उसे मजबूर कर रहा था कि वह तुकाराम की बात से इन्कार न करे ।
उस क्षण अपनी ही आंखों में वह अपने-आपको बौना महसूस करने लगा था ।
“बढिया ।” - बखिया बोला - “इकबालसिंह !”
“यस सर !”
“इसे एक कार दिला दे ।”
“बेहतर ।”
“साठ मिनट ।” - बखिया विमल से बोला - “साठ मिनट हैं तेरे पास यहां वापिस लौटने के लिए । इस वक्फे में अगर तूने गाड़ी का एक्सीडेंट कर दिया या तुझे पुलिस पकड़कर ले गई या तुझे दिल का दौरा पड़ गया तो बखिया इसे भी तेरी गलती मानेगा । समझ गया ?” 
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
“इकसठवें मिनट के दौरान अगर तू यहां न दिखाई दिया तो फिर तेरी सहेली जाने और बखिया जाने ।”
विमल खामोश रहा । उसने एक कातर निगाह शीशे के पर नीलम पर डाली ।
“जा !”
विमल इकबालसिंह के साथ वहां से विदा हो गया ।
***
साठ मिनट से पहले ही डायरी बखिया के हाथ में थी ।
पहले वाले ड्राइंगरूम में ही बैठे बखिया के सामने विमल को पेश किया गया था ।
उस वक्त वहां तुकाराम और अकरम नहीं थे, कोई प्यादे भी नहीं थे, उस वक्त वहां केवल इकबालसिंह था जो बखिया के पहलू में खड़ा था और घोरपड़े था जो एक फौजी जैसी मुस्तैदी के साथ दरवाजे के समीप खड़ा था ।
वन-वे-मिरर वाली खिड़की पर उस वक्त पर्दे खिंचे हुए थे ।
“तुकाराम और अकरम कहां हैं ?” - विमल ने पूछा ।
बखिया ने उसके सवाल की तरफ तवज्जो तक न दी । डायरी पर वह यूं हाथ फेर रहा था जैसे कोई मां अपने नवजात शिशु को सहला रही हो ।
उसके चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे ।
आखिर उस वक्त बाजी उसके हाथ में थी ।
डायरी उसके पास लौट चुकी थी और उसके दुश्मन उसके कब्जे में थे ।
“नीलम किस हालत में है ?” - विमल व्यग्र भाव से बोला ।
बखिया ने वह प्रश्न भी अनसुना कर दिया ।
उसने अपनी जेब से डायरी का यह पन्ना निकाला जो विमल ने डायरी से फाड़ा था और शुक्रवार को जो उसने बखिया की उपहार के तौर पर पेश किया था ।
उसने बड़े यत्न से उस पन्ने को डायरी में उसकी मुनासिब जगह पर लगा दिया ।
“अब तू मुझे ठीक से बता” - वह बोला - “कि कैसे तेरी एन्थोनी से मुलाकात हुई थी और क्या तेरी उससे बात हुई थी ?”
विमल ने बताया ।
उसने यह भी बताया कि मारियो नाम का उसका लेफ्टिनेंट पहले उससे डायरी जबरन छीनने की भी कोशिश कर चुका था ।
“हैरानी है ।” - बखिया बोला ।
“इस बात की कि” - बखिया को हैरानी की कोई वजह न बयान करता पाकर इकबालसिंह बोला - “उन लोगों ने सोहल से डायरी छीनने की कोशिश की ?”
“नहीं !” - बखिया एक हाथ का घूंसा दूसरे हाथ की हथेली पर जमाता हुआ बोला - “इस बात की कि उन्हें मालूम था कि लिटल ब्लैक बुक वाल्ट में से चोरी जा चुकी थी और वह सोहल के पास थी । जिस बात की सारी बम्बई में किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई थी, वह बात मारियो को मालूम थी, बखिया के मेहरबान दोस्त एन्थोनी एल्बुकर्क को मालूम थी ।”
इकबालसिंह चुप रहा ।
“मैं” - विमल बोला - “नीलम के बारे में...”
“फोन कर ।” - बखिया उसकी बात काटकर बोला ।
“मैं ?” - विमल सकपकाया ।
“हां ।”
“किसे ?”
“एन्थोनी एल्बुकर्क को ।”
“किसलिए ?”
“उसी लिए जिसलिए वह चाहता था कि तू उसे फोन करे ।”
“वह तो डायरी चाहता है ।”
“उसे डायरी ही मिलेगी । बखिया देगा उसे डायरी । बखिया खुद देगा उसे लिटल ब्लैक बुक ।”
“कैसे ?”
बखिया ने उसे अपनी योजना समझाई ।
“यह काम मैं करूं ?” - विमल सकपकाकर बोला ।
“और कौन करेगा ?”
“मैं अकेला वहां जाऊं ?”
“जाहिर है । आखिर एल्बुकर्क को भी तो तू अकेला बुलाना चाहता है ।”
“वह मुझसे डायरी छीन लेगा और बदले में मुझे पच्चीस लाख रुपये देने की जगह मुझे शूट कर देगा ।”
“सरदार !” - बखिया के स्वर में तिरस्कार का पुट था - “एक बार आजाद पंछी की तरह बाहर की खुली हवा क्या खा आया कि तुझे अपनी जान की फिक्र होने लगी ! यह मैं उसी शख्स की जुबान से सुन रहा हूं जो अभी थोड़ी ही देर पहले इतनी दिलेरी से अपनी छोकरी के बदले में मुझे अपनी जान की ऑफर दे रहा था !”
“किसी मिशन की खातिर जान देने में और आत्महत्या करने में फर्क होता है ।”
“यह भी एक मिशन है । तेरा नहीं तो बखिया का सही ।”
विमल खामोश रहा ।
“हैरानी है । हैरानी है कि सात राज्यों में घोषित इश्तिहारी मुजरिम, कई हत्याओं, कई डकैतियों के लिए जिम्मेदार शख्स, विशम्बरदास नारंग जैसे सुपर गैंगस्टर का अकेले सफाया करने वाला सूरमा, काले पहाड़ की समूची ऑर्गेनाइजेशन की बुनियादें अकेले हिला देने वाला तीसमारखां अब एल्बुकर्क के रूबरू होने के ख्याल से खौफ खा रहा है !”
“निहत्था आदमी हथियारबंद आदमी का मुकाबला नहीं कर सकता ।”
“आम आदमी नहीं कर सकता लेकिन तू कर लेगा । तू आम आदमी नहीं ।”
विमल खामोश हो गया ।
“फोन कर ।” - बखिया बोला ।
“पहले मुझे नीलम के बारे में...”
“उसके बारे में हम बाद में बात करेंगे ।”
“बाद में कब ?”
“जब तू इस मुहिम से जिंदा लौट आएगा, तब ।”
“नीलम है किस हालत में ?”
“एकदम सही-सलामात है । फिलहाल ।”
“अब तो वह कपड़े भी पहन चुकी है ।” - इकबालसिंह बोला ।
“देखो ! कितनी ज्यादा सही सलामत है वो ?” - बखिया बोला ।
“और तुकाराम ? अकरम ?” - विमल बोला ।
“वे भी सही-सलामात हैं ।”
“फिलहाल ।” - इकबालसिंह बोला ।
“बखिया ।” - विमल ने फरियाद की - “उन तीनों को छोड़ दे, बदले में मैं उम्र-भर तेरा हुक्का भरूंगा ।”
“बखिया हुक्का नहीं पीता ।”
“मैं तू जो कहेगा, करूंगा ।”
“करेगा ?”
“हां ।”
“पक्की बात ?”
“हां !”
“तो फिलहाल टेलीफोन कर ।”
विमल ने एक आह भरी और फिर टेलीफोन अपने करीब घसीट लिया ।
***
बखिया के निर्देश पर टेलीफोन पर एल्बुकर्क से मुलाकात की जो जगह विमल ने निर्धारित की थी, वह बम्बई शहर की म्यूनिसिपल लिमिट से बाहर पोरबंदर के करीब एक उजड़ी हुई एयर-स्ट्रिप थी । बकौल बखिया किसी जमाने में यह बम्बई की फ्लाइंग क्लब हुआ करती थी लेकिन कई साल पहले फ्लाइंग क्लब के अन्यत्र स्थानान्तरित हो जाने के बाद से वह एक उजाड़ बियाबान जगह बन गई थी ।
विमल का दिल कह रहा था कि वहां से वह जीवित वापिस नहीं लौटने वाला था । एल्बुकर्क उसे यूं ही चौथाई करोड़ रुपया नहीं सौंप देने वाला था । वह ऐसा इन्तजाम जरूर करके वहां आने वाला था कि एक बार डायरी हाथ में आ जाने के बाद वह उससे, बेशक उसका खून करके, रुपया भी झपट ले या कोई ऐसी तिकड़म भिड़ाए कि रुपया उसे अदा करना ही न पड़े ।
उसी वजह से विमल पहले कोलीवाड़ा पहुंचा ।
‘मराठा’ में कदम रखने से पहले उसने तसल्ली कर ली थी कि बखिया का कोई आदमी उसका पीछा नहीं कर रहा था ।
उसके पीछे कोई नहीं था ।
उसके घूम फिरकर वहीं लौट आने की, जहां कि नीलम थी बखिया को गारंटी जो थी ।
वागले उसे वहां मिल गया ।
अभी भी वागले इसीलिए आजाद था क्योंकि बखिया के कैम्प में उसे कोई पहचानता नहीं था ।
“मुझे बहुत उम्मीद थी कि तुम मुझे यहां मिल जाओगे ।” - विमल बोला ।
“मैं भी तुम्हारे यहां आने की उम्मीद कर रहा था ।” - वागले व्यग्र भाव से बोला - “इसीलिए यहां से हिल नहीं रहा था ।”
“हूं ।”
“क्या हुआ ? तुम आजाद कैसे हो गए ?”
“मैं गिरफ्तार ही हूं ।” - विमल धीरे से बोला ।
“मतलब ?”
विमल ने उसे मतलब समझाया ।
“ओह !” - सारी बात सुनकर बागले बोला - “तो नीलम भी फिर उनके कब्जे में पहुंच गई ?”
“उसे तो लगता है उन्होंने अगले ही स्टेशन पर उतार लिया था ।”
“बहुत बुरा हुआ ।”
“हां !”
“तुम यहां कैसे आए हो ?”
“मुझे एक रिवॉल्वर चाहिए ।”
“मिल जाएगी । लेकिन करोगे क्या उसका ?”
विमल ने उसे शाम पांच बजे होने वाली अपनी और एल्बुकर्क की मुलाकात के बारे में बताया और उसे लिटल ब्लैक बुक दिखाई ।
“कमाल है !” - वागले हैरानी से बोला - “हाथ आ जाने के बाद भी बखिया ने तुम्हें यूं डायरी दे दी - दूसरे को सौंपने के लिए !”
“वह दूसरा वहां से जिंदा नहीं जाने वाला । डायरी के चक्कर में अगरे एल्बुकर्क वहां पहुंचा तो उसकी लाश ही वापिस जाएगी । बखिया को एल्बुकर्क पर इतना भरोसा है कि इतना ड्रामा किए बिना उसे विश्वास नहीं होने वाला कि वह भी उसे धोखा देने की फिराक में है ।”
“लेकिन‍ फिर भी यह डायरी...”
“यह डायरी असली नहीं है लेकिन तुम्हारी बनाई नकल की तरह इसे नकली करार देना कोई आसान काम नहीं ।”
“वजह ?”
“वजह यह है कि यह नकल बखिया ने खुद तैयार की है ।”
“ओह !”
“इसी वजह से इसकी हाथ के हाथ की गई जांच-पड़ताल इसे नकली साबित नहीं कर पाएगी । यह नकली तभी साबित होगी जबकि बाद में इसमें लिखी बातें गलत और बेबुनियाद साबित होने लगेंगी । और एल्बुकर्क को जिंदगी में आज शाम के बाद कोई ‘बाद में’ नहीं आने वाला ।”
“हूं । यानी कि बखिया तुम्हें जान-बूझकर मौत के मुंह में धकेल रहा है ?”
“हां । लेकिन मैं इनकार भी तो नहीं कर सकता । इनकार की सूरत में बखिया ही मुझे मार देगा । और फिर” - विमल ने गहरी सांस ली - “जब तक सांस तब तक आस ।”
“मैं तुम्हारे साथ चलूंगा ।”
“कोई फायदा नहीं होगा । तुम मेरे किसी काम नहीं आ सकोगे । उलटे वहां बखिया के आदमियों के हाथों गेहूं के साथ घुन की तरह पिस जाओगे ।”
“मैं हाथ पर हाथ रखे भी तो नहीं बैठा रह सकता ।”
“फिलहाल तो बैठो । बाद में हो सकता है कि इसी हकीकत में से तुम्हारा कोई इस्तेमाल निकले कि बखिया के खेमे में तुम्हें कोई नहीं पहचानता ।”
“लेकिन...”
“अब लेकिन-वेकिन छोड़ो और मेरा काम करो !”
“अच्छा !” - वह असहाय भाव से कंधे झटकता हुआ बोला ।
***
फ्लाइंग क्लब का एयर फील्ड उजाड़ जगह पर था कि दूर-दूर तक कहीं आबादी नहीं दिखाई देती थी । उसके प्रवेश पर शायद पहले कभी कोई बैरेकनुमा इमारत रहा हो लेकिन अब वह भी ढह चुकी थी । एक तरफ कथित कंट्रोल टावर था जिसकी चारदीवारी और छत तो अभी सलामत थीं लेकिन वह तमाम साजोसामान वहां से गायब हो चुका था जिनकी वजह से कभी वह कंट्रोल टावर कहलाता था ।
विमल मुलाकात के निर्धारित समय से एक घंटा पहले वहां पहुंच गया ।
सबसे पहले उसने कार पर सारे इलाके का चक्कर लगाया । फिर उसने बैरकों के खंडहर में और कंट्रोल टावर में झांका ।
कहीं कोई नहीं था ।
उस वक्त सुनसान इलाके में वह अकेला था । अब देखना यह था कि एल्बुकर्क भी अकेला आता था या नहीं ।
अंत में वह कंट्रोल टावर में दाखिल हुआ ।
उसकी भीतरी भाग कंकड़-पत्थरों और धूल-मिट्टी से भरा हुआ था । नीचे से पक्की सीढियां शुरू होकर ऊपर छत तक पहुंची थीं और वहां खत्म हुई थीं जहां छत में एक बड़ा-सा सुराख था । उस सुराख में से वास्तव में कभी पहली मंजिल पर स्थित कंट्रोल टावर के लकड़ी और शीशे के केबिन में कदम रखा जाता होगा, लेकिन क्योंकि वह केबिन कब का पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था इसलिए वहां केवल एक छेद ही बाकी रह गया था । वहां सलामत चीज सिर्फ सीढियां थीं जिन पर चढ़ता हुआ वह ऊपर छेद तक पहुंचा । छेद में से निकलकर वह छत पर आ गया ।
उसकी निगाह फिर पैन होती हुई चारों दिशाओं में घूम गई ।
कहीं कोई नहीं था ।
वह छत पर छाती के बल उधर मुंह करके लेट गया जिधर से एल्बुकर्क का आगमन अपेक्षित था ।
यूं लेटे होने पर उसे नीचे से देखा नहीं जा सकता था ।
वह प्रतीक्षा करने लगा ।
कोई आधे घंटे बाद ढलते सूरज की रोशनी से नहाई एक कार वहां प्रकट हुई । कार में केवल एक ही सवारी थी और वह ड्राइविंग सीट पर बैठी थी ।
कार तनिक और करीब आई तो उसने एंथोनी एल्बुकर्क को साफ पहचाना । वह छत पर रेंगता हुआ छेद तक पहुंचा और फिर टावर के भीतर दाखिल हो गया ।
जल्दी से वह सीढियां उतर गया ।
डायरी उसने ईट-पत्थरों के एक ढेर के नीचे छुपा दी और रिवॉल्वर की छठी सीढी पर रखकर उसे समीप ही पड़े एक बोरी के टुकड़े से ढक दिया । वह खुद भी एक सीढी पर बैठ गया और प्रतीक्षा करने लगा ।
बाहर से कार के रुकने की आवाज न आई ।
जरूर एल्बुकर्क ने कार काफी परे रोक दी थी ।
जरूर वह भी इस बात की तसल्ली करने की कोशिश कर रहा था कि उसकी तरह सोहल भी वहां अकेला आया था या नहीं ।
फिर एकाएक एल्बुकर्क टावर के प्रवेशद्वार पर प्रकट हुआ ।
विमल उसी की प्रतीक्षा में वहां बैठा था लेकिन फिर भी वह चौंक गया ।
“हल्लो !” - वह बोला ।
“हल्लो !” - अपने स्थान से उठता हुआ विमल भी बोला ।
“आ गए ?”
“हां ।”
वह मुस्कराया । वह तनिक आगे बढा तो विमल को उसके हाथ में थमा ब्रीफकेस दिखाई दिया ।
“मेरी चीज लाए हो ?” - उसने पूछा ।
“हां !” - विमल बोला ।
“मैं भी” - उसने ब्रीफकेस को थपथपाया - “तुम्हारा माल लेकर आया हूं ।”
“पूरा ?”
“हां ।”
“पच्चीस लाख ?”
“हां !”
“दिखाओ !”
उसने ब्रीफकेस खोला और उसे विमल के सामने कर दिया ।
वह नोटों से ठुंसा हुआ था ।
विमल ने उसकी तरफ हाथ बढाया तो एल्बुकर्क ने ब्रीफकेस उलट दिया और फिर उसे हाथ से छोड़ दिया ।
नोट चारों तरफ बिखर गए । तीन-चार सीढियां और उनके सामने का फर्श नोटों से भर गया ।
“यह क्या हरकत हुई ?” - विमल सकपकाकर बोला ।
“इन्हें मेरे जाने के बाद समेटते रहना ।” - एल्बुकर्क बोला - “पहले डायरी निकालो ।”
“बेहतर !”
विमल ने ईट-पत्थरों के ढेर के नीचे से डायरी बरामद की । उसने डायरी एल्बुकर्क की तरफ उछाल दी ।
एल्बुकर्क ने डायरी हवा में ही लपक ली ।
फिर वह बड़ी बारीकी से उसका मुआयना करने लगा ।
ज्यों-ज्यों वह डायरी के पन्ने पलटता गया, त्यों-त्यों उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव गहरे होते गए ।
“यह एक वरका फटा हुआ क्यों है ?” - एकाएक वह बोला ।
विमल सकपकाया ।
“फटा हुआ वरका ?” - वह बोला ।
एल्बुकर्क ने एक वरका डायरी से अलग करके उसे दिखाया ।
विमल को उस पर वे लकीरें साफ दिखाई दीं जो उसके कभी चार तहों में मोड़े गए होने की चुगली कर रही थीं ।
यकीनन वह वही वरका था जो विमल ने डायरी में से फाड़ा था और चार तहों में मोड़कर लिफाफे में रखकर बखिया को दिया था ।
अब उसे एलबुकर्क की मौत निश्चित दिखाई देने लगी ।
एल्बुकर्क के हाथ में असली लिटल ब्लैक बुक थी ।
बखिया ने उसकी कोई नकल तैयार नहीं की थी, उसने असली डायरी हो एल्बुकर्क को सौंपने के लिए विमल को दे दी थी ।
“यह वरका फटा हुआ क्यों है ?” - एल्बुकर्क ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“मुझे नहीं पता ।” - विमल तनिक फंसे स्वर में बोला - “डायरी से क्या तुम्हारी तसल्ली नहीं हो रही ?”
“पूरी तसल्ली हो रही है । हो चुकी है ।” - उसने डायरी को संभालकर अपने कोट के भीतर की जेब में रख लिया - “थैंक्यू ! थैंक्यू फॉर डायरी ।”
“थैंक्यू फॉर मनी ।” - विमल बोला ।
वह मुस्कराया ।
“तुम अपने नोट समेटो । मैं चलता हूं ।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
फिर जैसे एकाएक एल्बुकर्क वहां पहुंचा था, वैसे ही एकाएक वह वहां से कूच कर गया ।
विमल की जान में जान आई ।
उसके लिए यह करिश्मा था कि डायरी हाथ में आते ही एल्बुकर्क ने उसे शूट कर देने की कोशिश नहीं की थी, वह इतनी शराफत से उसे डायरी की प्रस्तावित कीमत अदा कर गया था ।
वह नोट समेटने लगा ।
हर तरफ फैली नोटों की गड्डियों को उठा-उठाकर वह ब्रीफकेस में भरने लगा ।
तीन मिनट में उसने सारे नोट ब्रीफकेस में वापिस भरकर उसे बंद कर दिया । फिर उसने बोरी के टुकड़े के नीचे से अपनी रिवॉल्वर बरामद की । तभी एक पत्थर उसके पांव के नीचे आ गया । उसका पांव थोड़ा फिसला और अपना संतुलन संभालने की कोशिश में वह लड़खड़ा गया ।
एक फायर हुआ । गोली उसके सिर के ऊपर से इतनी करीब से गुजरी थी कि अगर वह संयोग से ही एकाएक लड़खड़ा न गया होता तो जरूर उसका भेजा उड़ गया होता ।
दाता !
सीधा खड़ा होने की कोशिश करने के स्थान पर विमल ने अपने-आपको नीचे गिरा दिया ।
एक फायर और हुआ ।
लेकिन इस बार गोली उसके शरीर से चार फुट ऊंची गुजरी थी ।
विमल एक सांप की-सी तेजी से सीढियों पर ऊपर रेंगने लगा ।
उस वक्त टावर में लगभग अंधेरा था जिसकी वजह से उसे अभी तक अपने पर फायर करने वाले का साया तक दिखाई नहीं दिया था लेकिन वह जरूर दरवाजे के पास ही था ।
और दरवाजा हो वहां से निकासी का इकलौता रास्ता था ।
उधर बढना निश्चित मौत को दावत देना था ।
इसीलिए वह ऊपर को सरक रहा था ।
सीढियों के मोड़ की ओट हासिल होते ही एकाएक वह एक हाथ में ब्रीफकेस और दूसरे में रिवॉल्वर संभाले उठ खड़ा हुआ ।
वह दबे पांव सीढियां चढ गया और छेद के रास्ते छत पर पहुंच गया ।
छेद में से सिर उसने इंच-इंच करके निकाला था और हर क्षण उसने गोली आ लगने की उम्मीद की थी ।
लेकिन ऐसा कुछ न हुआ । वह पेट के बल छत पर लेट गया और अपनी उखड़ी सांसों पर काबू पाने की कोशिश करने लगा ।
कुछ क्षण मुकम्मल सन्नाटा छाया रहा ।
फिर उसे नीचे से खटपट की हल्की-सी आहट मिली ।
वह कान लगाकर सुनने लगा ।
निश्चय ही वे दो थे ।
एक सामने की तरफ था और दूसरा पिछवाड़े की तरफ ।
“कहां गया ?” - एकाएक कोई बोला ।
“जाएगा कहां ?” - उसे मारियो की तनिक झल्लाई हुई आवाज सुनाई दी - “भीतर नहीं तो छत पर होगा ।”
“मैं छत पर देखूं ?”
“हां । देख ।”
विमल छेद के तनिक करीब सरक आया ।
उसने नीचे झांका ।
कुछ क्षण बाद नीचे ऐसी रोशनी हुई जैसे टॉर्च जली हो ।
टॉर्च वाला ऊपर ही आ रहा था ।
वह वहां से हटा । उसने ब्रीफकेस वहीं छोड़ दिया और रिवॉल्वर पतलून की बैल्ट में खोंस ली । वह छत के सिरे पर पहुंचा । एक बार उसने अंधेरे में नीचे झांका और फिर छत के सिरे से एक फुट बाहर को निकले प्रोजेक्शन को पकड़कर नीचे अधर में लटक गया ।
एक क्षण बाद उसने प्रोजेक्शन छोड़ दिया ।
एक धप्प की आवाज के साथ वह जमीन से टकराया । उसके शरीर को ऐसा भीषण झटका लगा जैसे उसकी रीढ की हड्डी के जोड़ खुल जाने वाले हों ।
फिर वह संभला और कान लगाकर सुनने लगा ।
उसे लगा कि दोनों आदमी टावर के भीतर थे ।
एक तो सीढियां चढकर छत पर पहुंचने की कोशिश कर ही रहा था और दूसरा भीतर ही कहीं था ।
टावर का घेरा काटकर दबे पांव वह दरवाजे के करीब पहुंचा ।
“वह ऊपर था ।” - कोई बोला - “ब्रीफकेस यहां पड़ा है ।”
“वो नहीं है ऊपर ?” - उसे मारियो की आवाज सुनाई दी । वह जरूर नीचे सीढियों के दहाने पर खड़ा था ।
“नहीं ।”
“ब्रीफकेस नीचे ले आ ।”
“अच्छा !”
सीढियों पर टॉर्च फिर चमकी ।
कोई जलती टॉर्च हाथ में लिये सीढियां उतर रहा था और जैसे विमल की ही सहूलियत के लिए, टॉर्च की रोशनी सीधी नीचे खड़े मारियो पर पड़ रही थी ।
विमल ने नि:संकोच मारियो को शूट कर दिया । साथ ही उसने दूसरा फायर टॉर्च को निशाना बनाकर किया ।
टॉर्च वाला टॉर्च अपने पेट के सामने हाथ करके थामे हुए था । गोली उसे पेट में लगी । सूटकेस और टॉर्च दोनों उसके हाथ से निकल गए और वह उसके पीछे-पीछे सीढियों पर लुढकने लगा ।
विमल कितनी ही देर रिवॉल्वर उनकी तरफ ताने खड़ा रहा ।
जब उसे तसल्ली हो गई कि दोनों ही के शरीर में कोई हरकत नहीं थी तो उसका रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे झुका ।
उसने आगे बढकर ब्रीफकेस उठा लिया ।
तभी एक घायल व्यक्ति के मुंह से एक कराह निकली ।
विमल ने अंधेरे में आंखें फाड़-फाड़कर देखा ।
मारियो का साथी कराह रहा था । उसके पेट में गोली लगी थी । उसका मरना निश्चित था लेकिन अभी उसमें जान बाकी थी ।
विमल घुटनों के बल उसके पास बैठ गया ।
“क्या नाम है तुम्हारा ?” - वह बोला ।
“फर्नान्डो !” - वह बड़ी कठिनाई से कह पाया । उसकी आंखों में ऐसा कातर भाव था जैसे वह विमल से उम्मीद कर रहा हो कि अगर वह विमल के हर सवाल का सही जवाब दे देगा तो विमल उसे उसकी निश्चित मौत से बचा लेगा ।
“तुम और मारियो यहां पहुंचे कैसे ?”
“हम... साहब की... कार की... डिकी में थे ।”
“ओह ! लेकिन साहब तो चला गया कार लेकर । इस उजाड़ बियाबन में से तुम लोग वापिस कैसे लौटते ?”
“तु... तुम्हारी... कार पर ।”
“मेरी कार पर ?”
“हां ! तु... तुम्हारी मौत के... ब... बा... बाद...”
एकाएक उसकी आंखें उलट गई ।
विमल उठ खड़ा हुआ ।
कितनी आसान और सीधी तरकीब सोची थी एल्बुकर्क ने !
कहीं कोई घपला नहीं । कहीं कोई झमेला नहीं ।
धन्न करतार !
वह टावर से बाहर निकला और अंधेरे में उस तरफ बढा जिधर वह अपनी कार खड़ी करके आया था ।
***
कच्ची सड़क छोड़कर ज्यों ही एन्थोनी एल्बुकर्क की कार मेन रोड पर दाखिल हुई कि उसे आगे सड़क पर लाल और सफेद रंग से पेंट किए ड्रमों का एक बैरियर बना दिखाई दिया ।
एल्बुकर्क को मजबूरन अपनी कार की रफ्तार घटा देनी पड़ी ।
बैरियर के सामने उसे दो वर्दीधारी पुलसिए दिखाई दिए । वे इशारे में उसे कार रोकने के लिए कह रहे थे ।
एलबुकर्क ने उनके करीब ले जाकर कार रोकी ।
एक पुलसिया कार की ड्राइविंग साइड की खिड़की पर पहुंचा ।
“क्या बात है ?” - एल्बुकर्क बोला ।
“आप जरा बाहर निकलिए ।” - पुलसिया बोला ।
“क्यों ?”
“आप निकलिए तो सही ।”
“लेकिन बात क्या है ?”
“वह भी बताते हैं, आप पहले बाहर आइये ।”
“लेकिन...”
“साहब, मुझे जबरदस्ती करने पर मजबूर न कीजिए ।”
“अच्छा, अच्छा ।”
एलबुकर्क कार से बाहर निकला ।
बैरियर से परे उसे कुछ और लोग भी खड़े दिखाई दिए लेकिन नीम-अंधेरे में वह यह न देख सका कि वे भी पुलसिए थे या नहीं ।
“इधर तशरीफ लाइए !” - एक पुलसिया बोला ।
“किधर ?” - एल्बूकर्क बोला ।
“इधर । हमारे साथ ।”
“लेकिन किसलिये ?”
“कोई आपसे मिलना चाहता है ।”
“कौन ?”
“अभी देख लीजिएगा कौन ।”
“तुम मुझे जानते हो ?”
“हां ।”
“कौन हूं मैं ?”
“आप एन्थोनी एल्बुकर्क साहब हैं ।”
एल्बुकर्क बहुत हैरान हुआ ।
एकाएक वह फिक्रमंद दिखाई देने लगा ।
“चलिए ।”
दो पुलसियों के बीच में चलता हुआ वह आगे बढा ।
एल्बुकर्क ने एक बार धीरे से अपनी रिवाल्वर वाली जेब में हाथ सरकाने की कोशिश की तो एक पुलसिए ने बड़ी मुस्तैदी से उसका हाथ थाम लिया । फिर उसने बड़ी सफाई से रिवॉल्वर उसकी जेब से निकाल ली ।
“सान्ता मारिया !” - एल्बुकर्क मन-ही-मन बुदबुदाया - “क्या माजरा था ?”
उसे पेड़ों के झुरमुट में खड़ी एक मेटाडोर के करीब ले जाया गया ।
एक पुलसिए ने बड़े अदब से मेटाडोर का स्लाइडिंग डोर सरकाया ।
भीतर रोशनी थी ।
पुलसिए ने एल्बुकर्क की इशारा किया ।
एलबुकर्क ने झिझकते हुए मेटाडोर में कदम रखा ।
भीतर बखिया बैठा था ।
“बखिया साहब !” - उसके मुंह से अपने-आप निकल गया - “आप ! आप यहां ?”
“आओ, आओ ।” - बखिया मीठे स्वर में बोला - ‘आओ, एन्थोनी ! बैठो ।”
वह झिझकता हुआ बखिया के सामने बैठ गया ।
“लो ।” - बखिया कीमती हवाना सिगार का एक डिब्बा खोलकर उसकी तरफ बढाता हुआ बोला - “सिगार पियो ।”
एल्बुकर्क ने एक सिगार ले लिया ।
एक सिगार बखिया ने भी लिया ।
उसने पहले एल्बुकर्क का और फिर अपना सिगार सुलगाया ।
“गोवा से” - बखिया ढेर सारा धुआं उगलता हुआ बोला - “बखिया को एकाएक कूच कर जाना पड़ा था इसलिए वह तुम्हारी मेहमाननवाजी का शुक्रिया तरीके से अदा नहीं कर पाया था ।”
“आप तो, बखिया साहब” - एलबुकर्क खुशामद-भरे स्वर में बोला - “शर्मिंदा कर रहे हैं ।”
“तब तुमने बखिया को यह नहीं बताया था कि तुम भी बम्बई आने वाले थे । बताया होता तो हम इकट्ठे यहां आ जाते । सफर में साथ बन जाता ।”
“दरअसल, मेरा प्रोग्राम बाद में बना था ।”
“एकाएक बना होगा ?”
“जी हां । जी हां । बखिया साहब, इस वक्त यहां पुलिस वालों की नाकेबंदी के पास...”
“वे सब बखिया के आदमी हैं और नाकेबंदी टैम्परेरी है । बखिया की यहां मौजूदगी किसी खास आदमी के इस्तकबाल के लिए है ।”
“किसके ? किसके ?”
“तुम इस वक्त कहां से आ रहे हो ?”
“मैं इधर किसी से मिलने गया था ।”
“जरूर कोई निहायत खुफिया मीटिंग होगी ?”
“जी हां । ऐसी ही मीटिंग थी ।”
“हुई ?”
“क्या ?”
“मीटिंग ?”
“जी नहीं । आया ही नहीं वह आदमी । मैं इंतजार करके चला आया ।”
“लेकिन, अकेले तो तुम कभी कहीं नहीं जाते, एन्थोनी ?”
“वह मीटिंग ऐसी ही थी कि उसमें अकेले जाना जरूरी था ।”
“हूं । हूं ।” - बखिया ने सिगार का एक लंबा कश लगाया ।
एल्बुकर्क खामोश बैठा रहा ।
“अब वापिस कहां जाओगे ?” - बखिया बोला ।
“एयरपोर्ट ।”
“आज ही गोवा लौट रहे हो ?”
“जी हां ।”
“बम्बई में बखिया को मेहमाननवाजी का मौका नहीं दोगे ?”
“यह इज्जत मैं अगली बार हासिल करूंगा बखिया साहब ! इस बार तो मैं माफी चाहूंगा । दरअसल आज ही रात मेरा गोवा वापिस पहुंचना निहायत जरूरी है ।”
“हूं । ठीक है ! जब तुम्हें इतनी जल्दी है तो बखिया तुम्हें रोकेगा नहीं ।”
“शुक्रिया, बखिया साहब ।” - एल्बुकर्क मन-ही-मन शांति की लंबी सांस लेता हुआ बोला ।
उसने उठने का उपक्रम किया ।
“एक बात और एन्थोनी ।” - बखिया यूं बोला जैसे इत्तफाक से ही उस क्षण कोई भूली बात उसे याद आ गई हो ।
एल्बुकर्क ठिठका । उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से बखिया की तरफ देखा ।
बखिया ने उसकी तरफ अपना हाथ फैलाया ।
एल्बुकर्क ने उलझनपूर्ण ढंग से हाथ की तरफ देखा ।
“डायरी ।” - बखिया भावहीन स्वर में बोला ।
“जी ?”
“डायरी तो देते जाओ ।”
“डायरी ?”
“लिटल ब्लैक बुक, जो तुम्हारे कोट की भीतरी जेब में है ।”
एल्बुकर्क के चेहरे का रंग उड़ गया । एकाएक उसका मुंह सूख गया और उसे सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगी ।
फिर बखिया के मूड ने एकदम करवट बदली ।
“डायरी निकाल, हरामजादे !” - वह सांप की तरह फुंफकारा ।
एल्बुकर्क को जैसे सांप सूंघ गया था । उसका कोर्ट की तरफ हाथ न बढा ।
बखिया आगे को झुका । उसने खुद हाथ बढाकर उसके कोट की भीतरी जेब से डायरी निकाल ली ।
“डायरी को जेब में रखकर” - बखिया नफरत-भरे स्वर में बोला - “तू समझता था, तूने बखिया को जेब में रख लिया था ?”
“ब... बखिया साहब...” - एलबुकर्क हकलाया - “यह बात नहीं ।”
“क्या बात नहीं ?”
“यह डायरी मैंने आप ही को लौटाने के लिए हासिल की थी ।”
“पच्चीस लाख रुपये कीमत अदा करके ?”
“हां ।”
“अपने पल्ले से इतनी बड़ी रकम खर्च करके ?”
“हां । हां । बखिया, साहब, दोस्ती में पच्चीस लाख रुपये की क्या कीमत है ?”
“बढिया । ऐसी भावनाओं की बखिया कद्र करता है । लेकिन तुझे यह मालूम कैसे हुआ कि लिटल ब्लैक बुक चोरी जा चुकी थी ?”
“वह... वह...”
“जो बात” - बखिया ने जोर से अपने एक हाथ का घूंसा दूसरे हाथ की हथेली पर जमाया - “किसी को मालूम नहीं थी, वह तुझे कैसे मालूम थी ? तुझे यह कैसे मालूम था कि डायरी सोहल के पास थी ? तेरा सोहल से सम्पर्क कैसे बना ?”
एल्बुकर्क के मुंह से बोल न फूटा ।
“ये तमाम बातें तुझे इसलिए मालूम थीं क्योंकि शुरू से ही तू डायरी की ताक में था । इसीलिए आगरा रोड के पुल पर तेरे आदमियों ने बखिया के सिपहसालार और उसके ड्राइवर पर हमला करके फोकट में डायरी हथियाने की कोशिश की थी ।”
“बखिया साहब, डायरी मैं आपके लिए...”
“बकवास बंद !” - बखिया दहाड़ा - “ऐसी बेहूदी बातों से तेरी जानबख्शी नहीं होने वाली, एन्थोनी एल्बुकर्क !”
एकाएक बखिया के हाथ में एक रिवॉल्वर प्रकट हुई ।
उसने रिवॉल्वर का रुख मेटाडोर से बाहर हवा में करके एक फायर किया और फिर रिवॉल्वर जबरदस्ती बुरी तरह से सहमे हुए एलबुकर्क के हाथ में जबरन थमा दी ।
“तू बखिया का हमप्याला, हमनिवाला दोस्त रहा है ।” - बखिया के स्वर में अवसाद का पुट आ गया - “इसलिए बखिया तेरी जान नहीं ले सकता । इसलिए बखिया का यह काम तुझे खुद करना होगा ।”
“क... क्या ?”
“एन्थोनी एल्बुकर्क !” - बखिया अपलक उसे देखता हुआ धीरे से बोला - “रिवॉल्वर की नाल अपने मुंह में घुसेड़ और उसका घोड़ा खींच ।”
एल्बुकर्क ने आतंकित भाव से पहले बखिया की तरफ और फिर बाहर खड़े प्यादों की तरफ देखा ।
“जल्दी कर ।” - बखिया बोला - “बखिया को अपने दोस्त की जान लेने से बचा । उस पर यह तेरी आखिरी मेहरबानी होगी ।”
एल्बुकर्क का रिवॉल्वर वाला हाथ उठा । उसने एकाएक रिवॉल्वर की नाल बखिया की छाती से सटा दी ।
बाहर खड़े प्यादों में फौरन हरकत हुई । कई हाथों में एकाएक रिवॉल्वर प्रकट हुई ।
“खबरदार !” - एल्बुकर्क विक्षिप्तों की तरह चिल्लाया - “किसी ने एक कदम भी आगे बढाया तो मैं बखिया को शूट कर दूंगा ।”
प्यादे ठिठक गए ।
उनमें पुलिस की ही वर्दी में सबसे आगे घोरपड़े था । उसने उलझन और आतंक मिश्रित नेत्रों से बखिया की तरफ देखा ।
एक क्रूर मुस्कराहट के सिवाय उसे बखिया के चेहरे पर कोई भाव न दिखाई दिया ।
“एन्थोनी !” - बखिया सहज स्वर में बोला - “तू बखिया की जान लेगा ?”
“अपनी जान बचाने के लिए मैं...”
“तू अपने दोस्त की जान लेगा ?”
“…किसी की भी जान ले सकता हूं । बखिया साहब, अपने प्यादों से कहिए कि यहां से कोई न हिले और ड्राइवर को कहिए कि मेटाडोर यहां से निकाल ले चले ।”
“कहां निकाल ले चले ? एन्थोनी, तेरे लिए तो अब इस धरती पर कहीं जगह रही नहीं ।”
“बखिया साहब, अपने आदमियों को हुक्म दीजिए वर्ना...”
“वर्ना तू क्या करेगा ?”
“वर्ना मैं गोली चला दूंगा ।”
“ठीक है । तू गोली ही चला ले ।”
एल्बुकर्क का चेहरा पसीने से नहा गया ।
“बखिया साहब !” - वह बड़ी मुश्किल से बोल पाया - “मैं सचमुच गोली...”
“चला न, हरामजादे !” - बखिया कहर-भरे स्वर में चिल्लाया - “क्यों नहीं चलाता ? किसने रोका है तुझे ? चला गोली ! चला ! और साबित करके दिखा कि तूने अपनी मां का दूध पिया है ।”
एल्बुकर्क के हाथ कांपने लगे । उसके सारे जिस्म पर पसीने के धारे बह निकले । उसकी आंखें किसी पिंजरे में बंद पंछी की तरह अपनी कटोरियों में तेजी से फिरने लगीं ।
उस वक्त सबसे खस्ता हालत घोरपड़े की थी । उत्कंठा से वह मरा जा रहा था । उसकी समझ में कतई नहीं आ रहा था कि उस नाजुक घड़ी में उसे - ‘कम्पनी’ के भावी सिपहसालार को - क्या करना चाहिए था । रिवॉल्वर हाथ में जकड़े उल्लुओं की तरह पलकें झपकाता वह कभी बखिया को देखता था तो कभी एल्बुकर्क को ।
“एन्थोनी !” - बखिया तिरस्कारपूर्ण स्वर में बोला - “चलाता क्यों नहीं गोली ? सीना खुला है बखिया का तेरे सामने । तेरे हाथ में थमी रिवॉल्वर में अभी पांच गोलियां बाकी हैं । उन्हें दागता क्यों नहीं बखिया के सीने पर ? गोली चला और बखिया की जान लेकर एक मिसाल कायम करके दिखा । जो काम आज तक कोई नहीं कर सका, उसे तू करके दिखा । चला । चलो गोली !”
एल्बुकर्क गोली न चला सका । एकाएक उसका रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे झुक गया । पराजय और अपमान की ग्लानि से उसकी आंखों में आंसू भर आए ।
“साले, हिजड़े ! तू क्या चलाएगा गोली !” - बखिया ने उसके हाथ से रिवॉल्वर छीन ली - “एन्थोनी ! बखिया को मारना अगर इतना ही आसान होता तो बखिया आज बखिया न होता, वह आज भी फ्लोरा फांउटेन पर बैठा जूते पालिश कर रहा होता ।”
एल्बुकर्क खामोश रहा ।
“लगता है” - बखिया बोला - “यार के सीने पर गोली चलाने की बदमजा जिम्मेदारी भी बखिया को ही निभानी पड़ेगी । अपनी मौत के लिए तैयार हो जा, एन्थोनी एल्बुकर्क ।”
‘सान्ता मारिया ! - एल्बुकर्क ने आंखें बंद कर लीं और होंठों में बुदबुदाया - ‘सान्ता मारिया !’
“मरने से पहले एक बात बता ।” - बखिया बोला ।
एल्बुकर्क ने आंखें खोलीं । उसने बखिया की तरफ देखा ।
“सोहल का क्या किया तूने ? उसे मार डाला तूने ?”
“मैंने नहीं ।”
“मतलब ?”
“मैं पीछे अपने दो आदमी छोड़कर आया हूं । वे उसे मार डालेगे ।”
“एन्थोनी, तू समझता है कि वो सरदार दो आदमियों के सिर्फ दो आदमियों के, मारे मर जाने वाली हस्ती है ?”
“वह बच नहीं सकता । मेरे आदमी...”
“तेरे आदमी भी तो तेरे ही जैसे होंगे । अगर तू बखिया को न मार सका तो वे ही क्या सोहल को मार सकेंगे ?”
“लेकिन वो...”
“तू जिंदा रहेगा ।”
“जी !”
“तू यह देखने के लिए जिंदा रहेगा कि तेरे आदमी सोहल को मार सके या नहीं । तू...”
“एक कार आ रही है ।” - एकाएक घोरपड़े बोला ।
“देखो, कौन है ।”
घोरपड़े ड्रमों के बैरियर की तरफ लपका ।
दो मिनट बाद विमल बखिया के सामने मौजूद था ।
घोरपड़े और कई प्यादे उसे कवर किए उसके पीछे खड़े थे ।
“देखो !” - बखिया बोला ।
एलबुकर्क का सिर झुक गया ।
“सरदार !” - बखिया बोला - “इसके दोनों आदमियों का क्या हुआ ?”
“मैंने उन्हें मार डाला ।” - विमल भावहीन स्वर में बोला ।
“लेकिन तू तो निहत्था था और वे हथियारबंद थे ?”
“मैंने उनके हथियार छीन लिये थे ।”
“सुना !” - बखिया एल्बुकर्क से बोला ।
एल्बुकर्क का झुका हुआ सिर और झुक गया ।
“एन्थोनी, सिर उठा ।”
एल्बुकर्क ने बड़ी कठिनाई से सिर उठाया ।
“और” - बखिया के हाथ में थमी रिवॉल्वर में आग उगली - “गोली खा ।”
पहली गोली एल्बुकक की नाक की हड्डी पर लगी ।
दूसरे ने उसका भेजा उड़ा दिया ।
“घोरपड़े !” - एकाएक बखिया बड़े व्यस्त स्वर में बोला ।
“जी, बखिया साहब !” - घोरपड़े तत्पर स्वर में बोला ।
“लाश ठिकाने लगा दी और सोहल की गाड़ी ‘कम्पनी’ में पहुंचा दो । यह मेरे साथ जा रहा है ।”
***
विमल ने फिर स्वयं को होटल सी व्यू की चौथी मंजिल पर पाया ।
इस बार वह‍ पिछली बार वाले कमरे में नहीं था लेकिन इस बार भी उसके सामने एक विशाल वन-वे-मिरर था जो कि उसकी तरफ से खिड़की का काम कर रहा था ।
उस वक्त शीशे के पार वाला कमरा खाली दिखाई दे रहा था ।
विमल जिस कुर्सी पर बैठा था, वह लोहे की थी और उसकी चारों टांगें फर्श पर लगी लोहे की प्लेटों के साथ वैल्ड हुई हुई थीं । उसकी दोनों टांगें टखनों के पास कुर्सी की दो अगली टांगों से और दोनों हाथ कलाइयों टांगें टखनों के पास कुर्सी की दो अगली टांगों से और दोनों हाथ कलाइयों के पास कुर्सी के दोनों हत्थों के साथ बंधे हुए थे । उसी प्रकार एक लोहे की जंजीर उसकी कमर में से गुजरती हुई कुर्सी की पीठ के साथ बंधी हुई थी । अपनी मौजूदा हालत में वह या तो अपने कंधे हिला सकता था और या गरदन को हरकत दे सकता था ।
नाके पर घोरपड़े ने उसे पकड़ते ही सबसे पहले उसकी रिवॉल्वर छीनी थी और फिर मुकम्मल जामातलाशी के बाद ही उसे बखिया के सामने पेश किया था ।
सड़क पर हुई नाकेबंदी उसे तभी दिखाई दी थी जब वह ऐन उसके सिर पर पहुंच गया था । उसने गाड़ी घुमाकर वहां से भागने की कोशिश की थी लेकिन घोरपड़े और उसके साथियों ने उसकी वह कोशिश कामयाब नहीं होने दी थी ।
पुलिस की वर्दी पहने घोरपड़े की सूरत पहचानने के बाद ही उसे पता लगा था कि वह पुलिस के कब्जे में नहीं आया था ।
उस समय उसके इर्द-गिर्द बखिया, इकबालसिंह, घोरपड़े, और चार-पांच प्यादे मौजूद थे ।
“नीलम कहां है ?” - एकाएक उसके मुंह से निकला ।
“यहीं है ।” - बखिया मुस्कराता हुआ बोला - “और कहां जाना है उसने ?”
“वह...”
“अभी तेरे सामने पेश की जाएगी । जो ड्रामा अभी तेरे सामने स्टेज किया जाएगा, उसमें सबसे अहम किरदार तो तेरी छोकरी का ही है ।”
“क... क्या इरादा है तुम्हारा ?”
“आज तू बखिया का मेहमान है और एक अच्छे मेजबान की तरह बखिया का इरादा तुझे एंटरटेन करने का है । इसीलिए जो ड्रामा अभी तेरे सामने स्टेज होगा, उसका तू इकलौता दर्शक होगा । तेरी सहेली उसकी हीरोइन है और हम सब सहायक कलाकार हैं ।”
विमल खामोश रहा । उसे नीलम के किसी बहुत ही भयंकर अंजाम का आभास मिल रहा था ।
“वैसे, सरदार !” - बखिया बोला - “तुझे अंदाजा है कि तू बखिया के कितने आदमी मार चुका हैं ?”
विमल ने उत्तर न दिया ।
“तू शायद गिनती भूल गया हो इसलिए बखिया गिनाता है तुझे ।” - बखिया ने जोर से एक हाथ का घूंसा दूसरे हाथ की हथेली पर जमाया - “बखिया गिनाता है तुझे, हरामजादे ! बखिया इस वक्त उन छोटे-मोटे दर्जनों लोगों की गिनती नहीं करना चाहता जो तेरी वजह से मौत के मुंह में पहुंचे । बखिया तूझे सिर्फ अपने उन ओहदेदारों की मौत की याद दिलाना चाहता है जो बखिया के जिस्म के हिस्से थे । तूने जॉन रोडरीगुएज का खून करके बखिया का दायां हाथ काट डाला । तूने बखिया के ज्ञान प्रकाश डोगरा, शिवाजीराव, पालकीवाला, कान्ति देसाई, मोटलानी, दंडवते, मुहम्मद सुलेमान, शान्तिलाल और जोजो जैसे ओहदेदारों को मौत के घाट उतारा । रतनलाल जोशी को तेरी वजह से आत्महत्या करनी पड़ी और खुद बखिया को अमीरजादा आफताब खान की जान लेनी पड़ी तो तेरी वजह से । बखिया नहीं जानता कि मैक्सवैल परेरा कैसे मरा लेकिन जरूर उसकी मौत में भी तेरा ही हाथ था । परेरा के जीते जी तो कोई नीलम को उससे छुड़ाकर ले जा नहीं सकता था । क्यों, इकबालसिंह ?”
इकबाल सिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।
“बखिया के तेरह ऊंचे ओहदेदार तेरी वजह से जन्नतनशीन हुए जबकि तू जीता-जागता, सही-सलामत बखिया के सामने मौजूद है । बखिया समझ नहीं पा रहा है कि उन तेरह जनों का बदला वह तेरी एक जान से कैसे चुकाए ? लेकिन फिर भी बखिया कोशिश करेगा । कोशिश करेगा बखिया । बखिया तुझे तेरह बार मौत के मुंह में धकेलेगा और वापिस खींचेगा । तू पुकार-पुकारकर मौत की कामना करेगा लेकिन मौत एक छलावे की तरह तेरे करीब से होकर गुजर जाएगी । सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल, तू बखिया को जीने नहीं देना चाहता था लेकिन बखिया तुझे मरने नहीं देगा । अंत-पंत तो तू मरेगा ही लेकिन फिलहाल तू जिंदा रहेगा । तू मौत की कामना करता हुआ जिंदा रहेगा । तू जिंदा रहेगा और अपनी आंखों से अपनी सहेली की ऐसी दुर्गति का नजारा करेगा जैसी आज तक कभी किसी औरत जात की नहीं हुई होगी ।”
विमल सिर से पांव तक कांप गया ।
“नीलम ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?” - वह बोला ।
“कुछ नहीं । लेकिन जो हम उसका बिगाड़ेंगे, वह तेरे से देखा नहीं जाएगा । उस पर जुल्म तेरी सजा है, सोहल के बच्चे ! तुझे सजा देने के लिए उस पर जुल्म जरूरी है । उस पर जुल्म जरूरी है तुझे सजा देने के लिए ।”
“तुम मुझे मारो, पीटो, मेरी बोटी-बोटी काट डालो लेकिन...”
“उससे क्या होगा ? उससे तू तड़पेगा, रहम की फरियाद करेगा और मौत की कामना करेगा । लेकिन जो अभी तेरी सहेली के साथ गुजरेगी, उससे तू ज्यादा तड़पेगा, ज्यादा फरियाद करेगा और ज्यादा मौत की कामना करेगा ।”
विमल खामोश रहा ।
“वैसे हम तेरी वो ख्वाहिश भी पूरी करेंगे । विश्वास रख, तेरी जिंदगी में ही तेरा जिस्म छत्तीस टुकड़ों में बंटा हुआ होगा । इकबालसिंह !”
“सर !”
“मैंने इसे ‘कम्पनी’ की जान का नुकसान गिनाया है, तू इसे कम्पनी के माल का नुकसान गिना ।”
इकबालसिंह एक क्षण ठिठककर कुछ सोचता रहा और फिर उंगलियों पर गिनती करता हुआ बोला - “क्लब-29 पर हमला और सतत्तर हजार पांच सौ रुपये की हकीर रकम की चोरी । मिसेज पिन्टो के बंगले में आग । हमारा जेकब सर्कल वाला ऑफिस वहां के सारे कर्मचारियों समेत स्वाहा और वहां मौजूद ‘मटके’ की बाइस लाख की रकम पर डाका । दिल्ली एयरपोर्ट पर पटवर्धन और चन्द्रगुप्त का कत्ल और पंद्रह लाख के सोने के बिस्कुट और पंद्रह लाख की हेरोइन गायब । वाल्ट में बम-विस्फोट । करोड़ों रूपये की हेरोइन, गोल्ड बिस्कुट्स और नोट स्वाहा । यहां होटल की लॉबी में बम-बिस्फोट जिसकी वजह से वहां के सारे मेहमान होटल छोड़ गए । नगर का सबसे ज्यादा बिजी, सबसे ज्यादा रौनक वाला होटल वीरान हो गया । सुवेगा के कफ परेड के ऑफिस की दोनों मंजिलों में बम । ‘उमर खैयाम’ तहस-नहस । ग्रांट रोड पर ईस्टर्न एक्सपोर्ट हाउस के ऑफिस पर हमला और जोगेश्वरी में सोहराबाजी की कोठी पर हमला । दोनों जगह दर्जनों आदमी हलाक ।”
“इन तमाम करतूतों में से कुछ में” - बखिया बोला - “हो सकता है, तेरा सीधा हाथ न हो लेकिन वजह सबकी तू ही है । कुछ कारनामे अगर शान्ताराम के भाइयों के हैं तो उनकी भी वजह तू हैं । तेरी ही शह पाकर उनका कुछ कर गुजरने का हौसला हुआ ।”
“तुकाराम कहां है ?” - विमल ने निरर्थक प्रश्न किया ।
“यहीं है । उसका नया जोड़ीदार अकरम भी यहीं है । जाएंगे कहां वो ! लेकिन खातिर जमा रख, तेरे बाद उनकी भी खिदमत की जाएगी, मुकम्मल खिदमत की जाएगी, यादगार खिदमत की जाएगी ।”
विमल खामोश रहा ।
“इस कमरे को अव्छी तरह से देख ले, सरदार !” - बखिया चारों तरफ निगाह घुमाता हुआ बोला - “क्योंकि यह आखिरी जगह है जो तेरी जिंदगी में तेरी खुली आंखों ने देखी होगी ।”
विमल उसकी बात नहीं सुन रहा था ।
वह अपनी लाजमी मौत के लिए दिल कड़ा कर रहा था और भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि किसी भी तरह, चाहे मरकर, नीलम उस नर्क से निजात पा जाए ।
‘दाता !’ - वह मन-ही-मन बोला - “तिथै तू समरथ, जिथै कोई नाहि, बिर्था कोई न जाई जि आवै तुधु आहि । तू वहां भी करन कारन है जहां कोई भी कुछ नहीं कर सकता । तेरी शरण में आने वाला कोई भी कभी भी खाली नहीं जाता ।”
बखिया ने इकबालसिंह को संकेत किया ।
इकबालसिंह ने सहमति में सिर हिलाया और एक प्यादे को आगे कुछ कहा ।
प्यादा वहां से बाहर निकल गया ।
थोड़ी देर बाद शीशे के पार के खाली कमरे में कई लोगों के बीच में घिरी हुई नीलम प्रकट हुई ।
“फिर याद कर ले, सरदार” - बखिया बोला - “कि यह वन-वे-मिरर तेरी तरफ से खिड़की है लेकिन तेरी सहेली की तरफ से शीशा है । तू इधर से उधर सब कुछ साफ देख रहा है लेकिन उधर से इधर देखने वाले को शीशे में अपना ही अक्स दिखाई देगा । यानी कि तू अपनी सहेली को देख सकता है लेकिन तेरी सहेली तुझे नहीं देख सकती । उसे नहीं मालूम हो सकता है कि उसका यार उसकी दुर्गति का चश्मदीद गवाह है ।”
बखिया ने जोर का अट्ठहास किया ।
“वह कमरा” - कुछ क्षण बाद वह फिर बोला - “साउंड प्रूफ है लेकिन बखिया ने खासतौर से ऐसा इंतजाम करवाया है कि आवाजें यहां सुनी जा सकें । यानी कि अपनी सहेली की चीख-पुकार, दाद-फरियाद और हाय-तौबा का तुझे मुकम्मल आनंद हासिल होगा ।”
विमल ने आंखें बंद कर लीं ।
तभी एक कोड़ा उसके जिस्म से आकर टकराया । उसे यूं लगा जैसे किसी ने दहकती सलाख से उसकी छाती दाग दी हो । उसने तड़पकर आंखें खोलीं ।
“आंखें बंद नहीं करनी, हरामजादे !” - बखिया कहर-भरे स्वर में बोला । कोड़ा उसी के हाथ में प्रकट हुआ था ।
विमल बड़ी कठिनाई से सामने निगाह उठा पाया ।
अब कई जने नीलम के कपड़े नोच-नोचकर उतार रहे थे । तभी, जैसे उसी क्षण किसी ने उधर का माइक्रोफोन ऑन किया ।
नीलम की दिल हिला देने वाली चीखें उसके कानों में पड़ने लगीं ।
उसने फिर आंखें बंद कीं ।
फिर कोड़ा ।
“आंखें खुली रख । आंखें खुली रख और नजारा कर अपनी सहेली के शानदार जिस्म का !”
नीलम को जबरन कमरे में मौजूद इकलौते पलंग पर लिटा दिया गया । उसकी कलाइयां उसके सिर के पीछे पलंग की पीठ के साथ बांध दी गई । उसकी दोनों टांगें फैलाकर उसके टखने पलंग के पायताने के साथ कहीं बांध दिए गए । पलंग पर बंधी पड़ी नीलम मछली की तरह तड़प रही थी और आर्तनाद कर रही थी ।
फिर उसके ईद-गिर्द मौजूद कई आदमियों में से एक अपने कपड़े उतारने लगा ।
“बॉस !” - एकाएक घोरपड़े बोला ।
“क्या है ?” - बखिया उसकी तरफ घूमा ।
“बॉस, डोगरा साहब का पता जानने की नीयत से सोहल जब कालीचरण बनकर मेरे पास आया था, तो तब इसने अपनी सहेली को ‘कम्पनी’ की होस्टेस रोजी बताया था और रोजी को मेरा इनाम बताया था ।”
“तो ?”
“बॉस, वह इनाम मुझे आज तक नहीं मिला ।”
“अच्छा !”
“जी हां !”
“घोरपड़े, आज की तारीख में वैसे तो तू इससे कहां जयादा आलीशान इनामों का हकदार है लेकिन अपने बेशुमार इनामों में से अपना पहला इनाम तो इसे ही समझ सोहल की सहेली के साथ पहला नंबर तेरा ।”
“शुक्रिया, बॉस ।”
घोरपड़े ने बड़ी कुटिल निगाहों से विमल की तरफ देखा । उस वक्त विमल की आंखों में खून उतर आया था । उस वक्त अगर सिर्फ निगाहों से किसी का खून करना मुमकिन होता तो घोरपड़े कब का मरा पड़ा होता । लेकिन विमल बेबस था, लाचार था ।
घोरपड़े वहां से बाहर निकल गया ।
कुछ क्षण बाद वह परले कमरे में नीलम के पास प्रकट हुआ ।
फिर वह किसी जंगली सूअर की तरह नीलम के जिस्म को भंभोड़ने लगा ।
“यह घोरपड़े है ।” - बखिया अट्ठहार करता हुआ बोला - “लेकिन तू इसे ज्ञानप्रकाश डोगरा समझ ।”
कमरा नीलम की चीखों से गूंजता रहा ।
विमल के शरीर पर कोड़े पड़ते रहे ।
नीलम की दुर्गति का नजारा करने की ताब वह ला नहीं पाता था । उसकी आंख बंद होते ही बखिया का कोड़ा आग की लपलपाती हुई जीभ की तरह आता था और उसके जिस्म के किसी भाग से उसकी चमड़ी चाट जाता था ।
“देख ! देख अपनी सहेली की दुर्गति और बहा खून के आंसू । यही तेरी सजा है । यही बखिया का इंतकाम है ।”
पूरी तरह से अपनी मनमानी कर चुकने के बाद घोरपड़े वापिस आ गया ।
उसके चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे ।
उसने ऐसी निगाह से विमल की तरफ देखा कि कोड़े की मार से कहीं ज्यादा भीषण उसे उस निगाह की मार लगी ।
फिर नीलम के साथ मुंह काला करने के लिए घोरपड़े जैसा कोई दूसरा...
फिर तीसरा...
चौथा...
पांचवां...
नीलम की दर्दनाक चीखों में हिली-मिली कोड़े की फटकार जैसी ही बखिया की तीखी आवाज रह-रहकर विमल की चेतना से टकरा जाती थी ।
वह खून के आंसू रो रहा था और ‘वाहेगुरु सच्चे पातशाह’ से अपनी और नीलम की मौत की कामना कर रहा था ।
“यह होटल का खानसामा है, जो इस वक्त तेरी सहेली की छाती पर चढ़ा हुआ है ।” - बखिया की आवाज सारे कमरे में गूंज रही थी - “लेकिन तू इसे शिवाजीराव समझ ।”
“यह होटल का डोरमैन है लेकिन तू इसे पालकीवाला समझ ।”
“यह बेलब्वयॉय है लेकिन तू इसे कांति देसाई समझ ।”
“यह पेजब्यॉय है लेकिन तू इसे मोटलानी समझ ।”
“यह बॉडीगार्ड है लेकिन तू इसे दंडवते समझ ।”
“यह स्टेनो है लेकिन तू इसे रतनलाल जोशी समझ ।”
“यह शोफर है लेकिन तू इसे जॉन रोडरीगुएज समझ ।”
“यह वेटर है लेकिन तू इसे मुहम्मद सुलेमान समझ ।”
“यह स्टीवर्ट है लेकिन तू इसे शांतिलाल समझ ।”
“यह बारमैन है लेकिन तू इसे अमीरजादा आफताब खान समझ ।”
“यह रिसैप्शनिस्ट है लेकिन तू इसे मैक्सवैल परेरा समझ ।”
“यह लिफ्टमैन है लेकिन तू इसे जोजो समझ ।”
यूं ही पता नहीं कितने लोग नीलम के साथ बलात्कार कर चुके थे और पता नहीं कितने कोड़े विमल के जिस्म से टकरा चुके थे जबकि एकाएक उसकी चेतना लुप्त हो गई ।
बखिया पर तब एक ऐसी वहशत सवार हो चुकी थी कि उसे वह देखने की भी सुध नहीं थी कि विमल बेहोश हो चुका था । वह उसके अचेत शरीर पर बदस्तूर कोड़े बरसाता रहा । विमल का सारा शरीर लहूलुहान हो चुका था । उसके जिस्म की किसी नई जगह से चमड़ी उधड़ती बखिया को दिखाई दे जाती थी तो वह जोर से अट्टहास कर उठता था ।
अंत में डरते-डरते इकबालसिंह ने उसे टोका ।
“यह मर जाएगा ।” - वह बोला ।
“क्यों मर जाएगा ?” - बखिया आंखें निकालकर बोला ।
“क्योंकि यह बेहोश हो चुका है । बेहोशी में ही इसके प्राण निकल गए तो हमें खबर भी नहीं लगेगी ।”
“क्या ?”
“जी हां । होश में तो यह कोड़ा खाकर तड़पता है और हमें दिखाई देता रहता है कि यह इस दुनिया से रुख्सत नहीं हो गया ।”
“ओह !”
“अगर आपने हाथ न रोका तो यह कहना मुहाल होगा कि कोड़े इसके बेहोश जिस्म पर पड़ रहे हैं या मुर्दा जिस्म पर ।”
“नहीं, नहीं । इसे मरना नहीं चाहिए । यह मर गया तो यह बखिया की बहुत बड़ी हार होगी ।”
“बॉस, यह अभी ही मरा पड़ा हो तो कोई बड़ी बात नहीं ।”
“देखो ।” - बखिया ने हाथ से कोड़ा फेंक दिया - “देखो ।”
इकबालसिंह ने आगे बढ़कर विमल की नब्ज टटोली ।
नब्ज चल रही थी ।
“जिंदा है ।” - वह बोला - “लेकिन कई घंटे होश में आता नहीं लगता ।”
“यह तो बहुत बुरा हुआ ।” - बखिया बड़बड़ाया - “इतना अच्छा प्रोग्राम चल रहा था । खैर !” - उसने शीशे से पार निगाह दौड़ाई - “उन लोगों को भी रोको । यह प्रोग्राम दोबारा तब शुरू किया जाएगा जब सोहल यह देखने के काबिल होगा कि उसकी सहेली पर क्या बीत रही है । उसके बिना सारा सिलसिला बेकार है, बेमानी है ।”
इकबालसिंह ने घोरपड़े को परले कमरे की तरफ दौड़ाया ।
“इसे खोल दें ?” - फिर वह बखिया से बोला ।
“कोई जरूरत नहीं ।” - बखिया नफरत-भरे स्वर में बोला - “अगर वह अब तक नहीं मरा तो सिर्फ बंधा होने की वजह से नहीं मरने वाला बहुत सख्त जान है, हरामजादा !”
इकबालसिंह खामोश रहा ।
***
“विमल ! विमल ! विमल !”
विमल के क्षत-विक्षत शरीर में हरकत हुई ।
उसने कराहते हुए आंखें खोलीं ।
उसे अपने सामने संध्या दिखाई दी । उसने तुरंत आंखें दोबारा बंद कर लीं । जरूर वह कोई सपना देख रहा था । सपने में संध्या हौले-हौले उसे पुकार रही थी ।
“विमल ! होश में आओ ।”
उसने बड़ी कठिनाई से फिर अपनी आंखें खोलीं ।
उसने अपने हाथ हिलाने की कोशिश की तो उन्हें बंधन से मुक्त पाया । उसने अपनी टांगों को हरकत दी ।
टांगें न हिल सकीं ।
उसने नीचे देखा ।
उसे अपनी सामने वागले दिखाई दिया ।
वागले कुर्सी के साथ बंधे उसके टखने खोलने का उपक्रम कर रहा था ।
उसने महसूस किया कि उसकी कमर से लिपटी जंजीर निकल चुकी थी ।
अपने चेहरे पर झुकी संध्या उसे फिर दिखाई दी ।
सपना ! सपना !
उसके पांव खुल गए ।
“विमल !” - संध्या उसका गाल थपथपाती हुई बोली - “होश में आओ । मुझे पहचानो । मैं संध्या हूं । संध्या हूं मैं । यह वागले है । वागले ।”
“वागले !” - विमल होठों में बुदबुदाया - “संध्या !”
“हां । हम दोनों तुम्हारे सामने हैं और तुम आजाद हो ।”
“मैं सपना...”
“तुम सपना नहीं देख रहे हो । मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं । संध्या, जिसे तुम अपनी बहन मानते हो ।”
“लेकिन संध्या को तो मैंने गाड़ी में...”
“चढाया था । मंगलवार रात को तुमने मुझे गाड़ी पर चढाया था ताकि मैं ‘कम्पनी’ के शिकंजे से दूर निकल जाती लेकिन मैं अगले ही स्टेशन पर उतर गई थी ।”
“क्यों ?”
“विमल, तुम्हें अकेला छोड़कर जाने को मेरा दिल नहीं माना था ।”
“स्टूपिड ।”
“कुछ भी कहो, मैं...”
“तुम यहां केसे पहुंच गई ? तुम्हें कैसे मालूम था कि मैं यहां गिरफ्तार हूं ?”
“वागले से मालूम हुआ था कि तुम भीतर हो । वह होटल के इर्द-गिर्द मंडरा रहा था जबकि मैंने इसे देखा था ।”
“और तुम...”
“मैं तो शुरू से ही तुम्हारे पीछे लगी हुई थी लेकिन कभी तुम मुझे दिखाई देते रहते थे तो कभी मेरी निगाहों से ओझल हो जाते थे लेकिन यह तसल्ली बनी रहती थी कि तुम सलामत थे । इस बार वागले मिला तो लगा कि इस बार तुम्हारी सलामती भी खतरे में थी ।”
“तुम भीतर कैसे आई ?”
“मुझे भीतर आने से कौन रोकता !” - वह हौले से हंसी - “मैं ‘कम्पनी’ की मशहूर होस्टेस हूं । यहां का बच्चा-बच्चा मुझे पहचानता है और जानता है कि यहां मेरी क्या जरूरत होती है । मुझे तो नीचे किसी ने यह भी नहीं पूछा था कि यहां मैं किसके बुलावे पर आई थी । विमल, सिर्फ दंडवते को खबर थी कि मैंने तुम्हारा साथ देकर ‘कम्पनी’ से दगाबाजी की थी और दंडवते यह बात आगे किसी को बताने से पहले ही तुम्हारे हाथों मारा गया था ।”
“ओह ! और वागले ?”
“इसे सुरंग वाले खुफिया रास्ते से मैं भीतर लाई हूं । एक बार भीतर पहुंच जाने के बाद मेरा उस रास्ते तक पहुंच जाना मामूली बात थी । वह रास्ता होटल वाली साइड से ही खोला जा सकता है, उस इमारत वाली साइड से नहीं जिसमें कि सुरंग का दूसरा मुंह है । मैंने इधर से रास्ता खोलकर वागले को भीतर बुला लिया था ।”
“तुमने मुझे कैसे ढूंढा ?”
“बड़ी मुश्किल से । एक-एक कमरे में झांकते फिर रहे थे हम । इसी चक्कर में वागले यहां के चार प्यादों का चुपचाप खून कर चुका है ।”
“तुकाराम और अकरम ?”
“वे हमें नहीं मिले । उन्हें अभी हमने ढूंढना है ।”
“नीलम ?”
“उसे भी । अभी तो सिर्फ तुम ही मिले हो हमें ।”
“टाइम क्या हुआ है ?”
“छ: बजे हैं ।”
विमल ने मन-ही-मन हिसाब लगाया । वह कम-से-कम पांच घण्टे बेहोश रहा था ।
उसने शीशे के पार निगाह डाली ।
परला कमरा एकदम खाली था ।
“तुम उठकर अपने पैरों पर खड़े हो सकते हो ?” - वागले ने पूछा ।
विमल ने सहमति में सिर हिलाया लेकिन जब उसने उठने की कोशिश की तो वह हल्की-सी चीख के साथ वापिस कुर्सी पर ढेर हो गया ।
आंखों में आंसू लिये सध्या उसकी उधड़ी हुई छाती, बांहों और टांगों को देख रही थी ।
एक तरफ व्हिस्की की कई बोतलें पड़ी थीं । वागले ने देखा, उनमें से सिर्फ एक लगभग तीन-चौथाई भरी हुई थी । वागले वह बोतल उठा लाया । उसने बोतल खोलकर विमल के मुंह से लगा दी ।
विमल के हलक में जैसे पिघली हुई आग जाकर पड़ी ।
उसके कागज जैसे सफेद चेहरे पर तनिक रौनक आई ।
उसने एक घूंट और पिया ।
इस बार वह उठकर अपने पैरों पर खड़ा होने में सफल हो गया । वह कुछ क्षण पैण्डुलम की तरह झूलता रहा और फिर स्थिर हो गया ।
वागले ओवरकोट पहने था । उसने ओवरकोट उतारकर विमल को पहना दिया । विमल ने उसके हाथ में व्हिस्की की बोतल ले ली और उसे ओवरकोट की बाहरली जेब में रख लिया ।
“हम तीन ही हैं ?” - उसने पूछा ।
“एक आदमी और है ।” - वागले बेला ।
“वो कौन ?”
“यहां पर हमारा भेदिया । वह यहां प्यादा है और इस वक्त लिफ्ट के सामने पहरा दे रहा है ताकि कोई एकाएक यहां न पहुंच सके ।”
“मुझे रिवॉल्वर चाहिए ।”
वागले ने तुरन्त उसे एक रिवॉल्वर थमा दी । विमल ने देखा, उसकी नाल पर साइलेंसर चढ़ा था ।
एक रिवॉल्वर अभी भी उसके पास थी ।
“हमारे भेदिए के पास सब-मशीनगन है ।” - वागले बड़े रहस्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“वैरी गुड । अब तुम जाकर तुकाराम और अकरम को तलाश करो और मैं...”
“तुम क्या ?”
उत्तर देने से पहले विमल ने जोर से दांत किटकिटाए ।
“मैं बखिया को तलाश करता हूं ।”
“लेकिन तुम अकेले...?”
“कहना मानो । तुकाराम और अकरम की जान मुझसे कहीं ज्यादा कीमती है । अगर उन्हें कुछ हो गया तो मेरा वाहेगुरु मुझे कभी माफ नहीं करेगा ।”
“और अगर तुम्हें कुछ हो गया ?”
“मुझे तो” - विमल दर्जनों वहशी दरिन्दों के बीच में तड़पती नीलम को याद करता हुआ बोला - “जो होना था, हो चुका ।”
“और नीलम ?” - संध्या बोली ।
“तुम पहले तुकाराम और अकरम को तलाश करो ।” - विमल बोला - “फिर वह भी मिल जाएगी । जाओ ।”
विमल के स्वर में कुछ ऐसा अधिकार का पुट था कि वे एक क्षण भी और वहां टिके न रह सके ।
विमल कुछ क्षण पीछे बुत बना अकेला खड़ा रहा । फिर उसने जेब से बोतल निकाली और व्हिस्की का एक और घूंट पिया ।
वह लड़खड़ाता हुआ आगे बढा । उसने बाहर गलियारे में कदम रखा ।
गलियारा उसे पहचाना हुआ लगा ।
वहीं कहीं वह कमरा था, जहां कल उसकी बखिया से मुलाकात हुई थी ।
तभी गलियारे में ट्रे उठाए एक वेटर प्रकट हुआ ।
“अभी तक बखिया साहब को चाय क्यों नहीं पहुंचाई ?” - विमल अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
“साहब !” - वेटर हड़बड़ाया - “यह उन्हीं की चाय तो लाया हूं ।”
“इतनी देर क्यों लगी ?”
“साहब, देर तो नहीं...”
“ठीक है । ठीक है । अब हिलो ।”
विमल ने देखा, ट्रे में दो कप रखे हुए थे ।
यानी कि उस वक्त बखिया के साथ कोई था ।
वेटर आगे बढा ।
विमल यूं उसके साथ हो लिया जैसे चाय वह अपनी देख-रेख में बखिया के हुजूर में पहुंचाना चाहता हो ।
वेटर एक बन्द दरवाजे के सामने ठिठका । उसने दरवाजे पर दस्तक दी ।
“क्या है ?” - भीतर से किसी की भौंकती हुई-सी आवाज आई ।
“चाय, साहब !” - वेटर अदब से बोला ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
फिर दरवाजा खुला ।
विमल को दरवाजे से बाहर निकलते केवल दो हाथ दिखाई दिए । उन हाथों ने वेटर के हाथ से ट्रे ले ली ।
वेटर परे हटा ।
दरवाजा बन्द होने लगा ।
पल्ले के चौखट से मिलने से पहले ही विमल ने फायर कर दिया ।
गोली ट्रे थामे व्यक्ति की छाती में लगी ।
उसके धराशायी हो जाने से पहले ही विमल सामने आया और उसने उसके शरीर की ओट में से भीतर खड़े दूसरे बॉडीगार्ड पर फायर किया ।
दोनों कालीन बिछे फर्श पर गिरे ।
ट्रे भी नीचे गिरी लेकिन मोटे कालीन की वजह से उसके गिरने की कोई खास आवाज न हुई ।
वेटर फटी-फटी आंखों से विमल को देख रहा था ।
विमल ने उस पर भी एक फायर झोंक दिया ।
वह दरवाजे के पास वहीं गलियारे में ढेर हो गया ।
विमल छलांग मारकर भीतर दाखिल हुआ ।
“क्या हो रहा है बाहर ?” - पिछले कमरे से बखिया की क्रोधित आवाज आई ।
विमल लपककर उस कमरे के दरवाजे पर पहुंचा । खाली हाथ से उसने दरवाजा खोला और भीतर कदम रखा ।
बखिया एक विशाल पलंग पर मौजूद था । वह तकियों के सिरहाने उकडूं बैठा हुआ था । उसका मुंह दरवाजे की तरफ था ।
उसके पहलू में एक खूबसूरत लड़की सोई हुई थी ।
विमल ने शान्ति की सांस ली । वह वहां बखिया के साथ उसके किसी ओहदेदार की मौजूदगी की अपेक्षा कर रहा था जो कि पेचीदगी पैदा कर सकता था लेकिन प्रत्यक्षत: चाय का दूसरा कप उस लड़की के लिए था ।
विमल पर निगाह पड़ते ही बखिया की आंखें फट पड़ीं । बिजली की फुर्ती से उसका एक हाथ पलंग के पहलू में दीवार पर लगे एक बैल पुश की तरफ बढ़ा ।
विमल ने फायर किया ।
उसने बखिया के चेहरे के दाएं भाग के परखच्चे उड़ते देखे । एकाएक जैसे उसके चेहरे का वह हिस्सा अपने स्थान से गायब हो गया और उसकी जगह गहरे लाल रंग की लुगदी-सी दिखाई देने लगी ।
बखिया चीखकर दोहरा हो गया ।
उसका हाथ बैल पुश तक नहीं पहुंच पाया था ।
लड़की हड़बड़ाकर उठी । उठने की क्रिया में उसके शरीर से कम्बल हट गया । विमल ने देखा, वह सम्पूर्ण नग्नावस्था में थी । उसने बड़े आतंकित भाव से पहले बखिया की तरफ और फिर विमल की तरफ देखा । उसने चीखने के लिए मुंह खोला लेकिन के चेहरे पर उसने कुछ ऐसे हिंसक भाव पाए कि उसकी चीख उसके गले में ही घुटकर रह गई । वह अपलक विमल को देखने लगी ।
विमल ने रिवॉल्वर की नाल से ही उसे इशारा किया जिसे समझकर वह बिस्तर से बाहर निकली और पलंग से परे एक कुर्सी पर जाकर बैठ गई । उसके बैठने का ढंग ऐसा था जैसे वह तस्वीर खिचवाने के लिए फोटोग्राफर के सामने बैठी हो और उसे हिलने की मनाही हो ।
विमल पलंग के करीब पहुंचा ।
उसने बैल पुश को पकड़ा और उसके तार को बहुत दूर तक उखाड़ दिया । फिर रिवॉल्वर की नाल की एक चोट से उसने बैल पुश को तोड़ दिया ।
बखिया दोहरा हुआ हुआ था । पता नहीं वह अभी जिन्दा था या मर गया था ।
लड़की अभी भी स्तब्ध बैठी थी । अपनी नग्नता की तरफ उसकी रत्ती-भर भी तवज्जो नहीं थी ।
विमल ने एक बार उसे यूं देखा जैसे कसाई बकरी को देखता है और फिर वहां से बाहर निकल गया ।
गलियारे में पहुंचकर उसने वेटर को उसकी वर्दी के कॉलर से थामा और उसे भीतर घसीट लिया ।
वह पीछे दरवाजा बन्द करने ही लगा था कि उसे गलियारे में दूर कहीं से कदमों की आहट सुनाई दी ।
दरवाजे की ओट में से उसने बाहर झांका ।
उसे गलियारे में तुकाराम, अकरम, वागले और संध्या दिखाई दिए ।
वह वापिस गलियारे में आ गया और उनकी तरफ बढा ।
बीच रास्ते में उनकी मुलाकात हुई ।
“नीलम नहीं मिली ।” - वागले बोला ।
“मिल जाएगी ।” - विमल बोला - “तुम लोग यहां से निकल जाओ ।”
“और तुम ।”
“मैं भी बाद में आ जाऊंगा ।”
“लेकिन...” - तुकाराम ने कहना चाहा ।
“यह लेकिन-वेकिन का वक्त नहीं । मेरा कहना मानो और बिना और वक्त बरबाद किए यहां से निकल जाओ ।”
“तुम अकेले हो ।” - अकरम बोला ।
“और घायल हो ।” - संध्या व्याकुल भाव से बोली ।
“मैं एकदम ठीक हूं । आप सब लोग मेरी फिक्र छोड़िए और यहां से जाइए ।”
“लेकिन नीलम ?”
“मैं ढूंढ लूंगा उसे ।”
“वह यहां कहीं नहीं है ।” - वागले बोला ।
“वह जहां भी होगी, मैं उसे ढूंढ लूंगा ।”
“कैसे ?”
“मुझे बखिया बताएगा वो कहां है ?”
“लेकिन...”
“फिर लेकिन ? संध्या !”
“हां ।” - संध्या बोली ।
“सुरंग वाले रास्ते से सिर्फ तुम वाकिफ हो । तुम इन लोगों को बाहर निकाल ले चलो । जाओ प्लीज । कहना मानो ।”
“तुम हमें इसलिए यहां से भेज रहे हो” - तुकाराम बोला - “क्योंकि तुम अपने सिर पर हमारी जान की जिम्मेदारी मानते हो ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।” - विमल बोला ।
वास्तव में वही बात थी ।
बहुत ही कठिनाई से वह उन्हें वहां से विदा कर पाया ।
बखिया पलंग पर तकियों के सहारे लेटा हुआ था । उसके आसपास खून ही खून दिखाई दे रहा था । उसके हाथ में एक खून से रंगा तौलिया था जिससे उसका आधा चेहरा ढंका हुआ था । उसकी रंगत कागज की तरह सफेद थी ।
लड़की अभी भी वैसे ही बुत बनी एक तरफ बैठी थी जैसे कि वह उसे छोड़कर गया था ।
बखिया ने अपनी खुली आंख से विमल की तरफ देखा ।
“अभी जिन्दा हो ?” - विमल धीरे से बोला ।
उसे बखिया की इकलौती खुली आंख में नफरत की ज्वाला भड़कती दिखाई दी । जब वह बोला तो बड़ी कठिनाई से उसके भिचे दांतों में से शब्द निकल पाए ।
“अपना काम खत्म कर, सरदार ।” - वह बोला ।
“मेरा काम खत्म हो चुका है ।” - विमल बोला ।
“नहीं । अभी नहीं । अभी बखिया जिन्दा है । अपना काम मुकम्मल कर । बखिया पर एक गोली और चला ।”
“मरने का इतना ही शौक है तो खुद अपना काम तमाम कर लो ।”
“नहीं कर सकता । करीब कोई रिवॉल्वर नहीं । उठने की हिम्मत नहीं । होती तो खिड़की में से नीचे छलांग ही लगा देता । यह लड़की सदमे की हालत में है । इसे तो जैसे सांप सूंघ गया है । कुछ सुनती ही नहीं, इसलिए मेरी मदद नहीं कर सकती । सरदार, तू ही मेहरबानी कर एक गोली और चला बखिया पर और उसे इस नर्क से निजात दिला ।”
“किस नर्क से ?”
“इस नर्क से ।”
बड़ी मेहनत से बखिया ने अपने चेहरे के सामने से तौलिया हटाया उतने से काम से उसे ऐसी तीव्र वेदना का अनुभव हुआ कि उसका सारा चेहरा ऐंठ गया ।
विमल ने देखा कि गोली ने उसका एक गाल मुकम्मल तौर से गायब कर दिया था और अब उधर से उसकी दाढें बाहर झांक रही थीं । गाल की हड्डी के परखच्चे उड़ गए होने की वजह से आंख अपनी कटोरी निकलकर बाहर को लटक आई थी । उस ओर के चेहरे का सारा हिस्सा कुचला हुआ गोश्त लग रहा था और उसमें से खून लगातार रिस रहा था ।
बड़ी वीभत्स नजारा था ।
विमल ने अचकचाकर निगाह परे फेर ली ।
बखिया बड़ी कठिनाई से अपना तौलिये वाला हाथ वापस अपने चेहरे तक पहुंचा पाया । उसने फिर विमल की तरफ सिर उठाया । उसकी इकलौती आख में विमल को बड़ा दयनीय भाव दिखाई दिया ।
बम्बई का बादशाह उस वक्त छिन्न-भिन्न हुई गुड़िया के समान उसके सामने पड़ा था ।
“सरदार !” - बखिया ने फरियाद की - “खुदा के वास्ते बखिया को मार डाल । उस पर एक गोली और चला दे ।”
“नीलम का क्या किया तुमने ?”
“कौन ?”
“नीलम ! नीलम ! जो पिछली रात तुम्हारी अध्यक्षता में तुम्हारे आदमियों के सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई थी ।”
“तुम्हारी सहेली ?”
“हां । कहां है वो ?”
“वो.. वो... ओह ! तो अभी सौदेबाजी की गुंजाइश है । अभी बखिया तेरे से सौदा कर सकता है ? बढिया ।”
“लड़की कहां है ?”
उत्तर में वह मुस्कराया । उसकी विकृत मुस्कराहट विमल को बड़ी डरावनी लगी ।
“तुझे किसने छुड़ाया ?” - बखिया ने पूछा ।
“अब इससे क्या फर्क पड़ता है ?” - विमल बोला ।
“फिर मेरे किसी आदमी ने मुझे धोखा दिया ।”
“नहीं ।”
“तो ?”
विमल ने उत्तर न दिया ।
“बहुत आसानी से पहुंच गया तू बखिया तक । इसलिए पहुंच गया क्योंकि तू पहले ही बखिया के हैडक्वार्टर के भीतर था और...”
“बखिया ।” - विमल व्यग्रभाव से बोला - “मुझे लड़की के बारे में बता ।”
“पहले वादा कर कि इस जानकारी के बदले में तू बखिया को जान से मार डालेगा ?”
“मैं वादा करता हूं ।”
“वैसा ही वादा करता है जैसा तू पहले तोड़ चुका है ?”
“मैंने कोई वादा नहीं तोड़ा । जो तुम्हें वादाखिलाफी लगी थी, वह हकीकत में एक गलतफहमी थी ।”
“सच कह रहा है ?”
“सौ वाहेगुरु दी ।”
“तेरा वादा है कि बखिया तुझे लड़की के बारे में बताएगा और बदले में तू उसे मार डालेगा ?”
“हां । अब जल्दी बोलो, नीलम कहां है ?”
“लड़की मर चुकी है ।”
विमल को अपना खून बर्फ होता महसूस हुआ । उसने अपनी आंखें बन्द कर लीं और भिचे होंठों में से यूं सांस ली जैसे कोई सांप सिसकारी ले रहा हो । उसका शरीर पत्ते की तरह कांपा । उसे अपने पैरों पर रहना मुहाल लगने लगा ।
फिर उसके मन में उम्मीद जागी ।
शायद बखिया झूठ बोल रहा हो !
शायद पहले ही की तरह फिर कोई करिश्मा हो गया हो आर नीलम उसके चंगुल से निकल गई हो ।
शायद ! शायद !
“अब गोली चला, सरदार !” - बखिया के स्वर में एक बार फिर बम्बई के बादशाह वाली ललकार पैदा हुई - “और अपना वादा पूरा कर । पूरा कर अपना वादा । कैसा वाहेगुरु का खालसा है तू जो...”
“वो कैसे मरी ?” - विमल उसकी बात काटकर बोला ।
“बखिया के हाथों कोई कैसे मरता है ?”
“तुमने खुद उसे मारा ?”
“हां !”
“किसी को उसे मार डालने का हुक्म नहीं दिया, बल्कि खुद, अपने हाथों से उसे मारा ?”
“हां । हां ।”
“बखिया ! तू झूठ बोल रहा है । तू जल्दी-से-जल्दी इस दुनिया से किनारा करने की खातिर झूठ बोल रहा है । तू जानता है कि मैं नीलम के हत्यारे को जान से मारे बिना नहीं रह सकता, इसलिए तू झूठ कह रहा है कि उसकी जान तूने ली है । लेकिन मैं तेरी बातों में नहीं आने वाला । मैं जानता हूं कि महान बखिया ऐसे कामों के लिए हुक्म देता है न कि ऐसे काम खुद करता है ।”
“लेकिन...”
“शटअप ! बखिया, तेरी जान लेने की जगह मैं तुझे अस्पताल पहुंचाने का इन्तजाम करता हूं, जहां कि तेरी मर्जी के खिलाफ तुझे जबरन जिन्दा रखा जा सके, जहां कि तू तन्दुरुस्ती हासिल कर सके और फिर अपना यह भयानक थोबड़ा अपने उन कद्रदानों-मेहरबानों के सामने नुमाय कर सके जो कि तुझे बम्बई का बादशाह कहते हैं । फिर उन्हें यह भी बतलाना कि तेरे थोबड़े की ऐसी हाल कैसे हुई थी । किसने तेरा आधा चेहरा कंकाल बना दिया था । तेरा यह गाल सिलने का नहीं । तेरे दांत ऐसे ही भयानक ढंग से हमेशा बाहर झांकते रहेंगे । लटकी हुई आंख शायद वापिस कटोरी में लग जाए लेकिन कान वापिस नहीं आने वाला । चूर-चूर हो चुकी गाल की हड्डी नहीं जुड़ने वाली । जरा इस लड़की की तन्द्रा टूटने दे । फिर यही तुझे बताएगी कि इस वक्त तू कितना खूबसूरत लग रहा है । तब तक मैं एम्बुलेंस को फोन करके आता हूं ।”
वह दरवाजे की तरफ बढा ।
“हरामजादे !” - क्रोध और बेबसी में बखिया ने आर्त्तनाद किया - “हरामजादे !”
विमल न रुका ।
“सरदार ! रुक जा । खुदा के वास्ते रुक जा !”
विमल दरवाजे के पास ठिठका ।
“बखिया !” - विमल बोला - “तन्दरुस्त हो चुकने के बाद जलाजत की जो जिन्दगी तुझे हासिल होगी, उसके साथ भी तू चिपका नहीं रह सकेगा । मैं फिर आऊंगा । मैं फिर तेरी ऐसी ही गत बनाकर जाऊंगा लेकिन इस बात का खास ख्याल रखूंगा कि तू मरने न पाए । तेरा हिसाब मैं सूद समेत तुझे वापिस लौटाऊंगा । तू भी तो मुझे कई मौत मारना चाहता था । तू भी तो...”
“सरदार !” - बखिया गिड़गिड़ाया - “बखिया फरियाद करता है । उसे जिल्लत की जिन्दगी से बचा ले ! उसे मौत दे दे !”
“वह भी मिलेगी । मेरे ही हाथों मिलेगी । लेकिन आखिर में । अभी नहीं । अभी तो मैं एम्बुलेंस को फोन करने जा रहा हूं ।”
उसने फिर दरवाजे की तरफ फदम बढाया ।
“सरदार !” - बखिया ने आर्त्तनाद किया - “सरदार ! रुक जा !”
विमल फिर ठिठका ।
“सरदार !” - बखिया बोला - “बखिया को मरना तो आखिर तेरा मकसद था । उसे क्यों जिन्दा छोड़ जा रहा है ?”
“वजह मैंने बताई है ।” - विमल बोला - “अभी मरना चाहता है तो सच बोल ।”
“अच्छा ! अच्छा !”
“बोल ।”
“उसे घोरपड़े ने मारा था ।”
“क्यों ?”
“बखिया के मनोरंजन के लिए ।”
“कैसा मनोरंजन ?”
“उसने लड़की के साथ बलात्कार किया था ।”
“यह कौन-सी नई बात है ? बलात्कार तो उसके साथ दर्जनों आदमियों ने किया था ।”
“लेकिन वह वैसा बलात्कार नहीं था जिसमें कि इन्सानी जिस्म इस्तेमाल होता है । बलात्कार के लिए घोरपड़े ने अपना अंग इस्तेमाल नहीं किया था ।”
“तो क्या इस्तेमाल किया था ।”
“चम्मच, कांटे, छुरियां, बियर की बोतल, टेनिस के रैकेट का हत्था, कुर्सी का पाया, टॉर्च और पता नहीं और क्या-क्या ? जान बहुत थी तेरी छोकरी में । बहुत लम्बा चला था प्रोग्राम । कई बार बेहोश हुई साली । कई बार होश में आयी कई बार...”
विमल और सुनने की ताब न ला सका ।
उसकी रिवॉल्वर ने एक बार आग उगली ।
इकबालसिंह ने कमरे में कदम रखा ।
विमल ने फौरन रिवॉल्वर उसकी तरफ तान दी ।
इकबालसिंह अकेला था और निहत्था था ।
उसने पंजों पर उचककर विमल के कन्धों पर से बैडरूम के भीतर झांका ।
“मर गया ?” - उसने विमल से पूछा ।
“हां ।” - विमल बोला - “इस रिवॉल्वर में अभी एक गोली और बाकी है ।”
“होगी ।” - इकबालसिंह ने लापरवाही से कन्धे झटकाए - “मुझे क्या ?”
“तुम्हें कुछ नहीं ? तुम्हारा बॉस मर गया, तुम्हें कुछ नहीं ?”
“जब यह जिन्दा था तो मेरा बॉस था । अब यह मेरा बॉस नहीं है ।”
“अब क्या है यह ?”
“अब यह मिट्टी का ढेर है । पहाड़ काला हो या पीला, होता तो मिट्टी का ढेर ही है ।”
विमल ने अपलक उसकी तरफ देखा ।
“मेरी तुम्हारे से कोई अदावत नहीं ।” - इकबालसिंह बड़े सहज भाव से बोला ।
“पहले तो तुम मेरी खिलाफत में सबसे आगे हुआ करते थे ?”
“वो बिजनेस था । कारोबार था मेरा । बखिया का हुक्म मानना मेरा फर्ज था । शायद मजबूरी भी अब न फर्ज बाकी है, न मजबूरी ।”
“नीलम वाकई मर चुकी है ?”
“हां । और वह कैसे मरी, यह न ही पूछो तो अच्छा है । सुन नहीं सकोगे ।”
“सुन चुका हूं ।”
“अच्छा !”
“बखिया की जुबानी ।”
“ओह !”
“मैं तुम्हारे बॉस को बहुत तड़पा-तड़पाकर मारना चाहता था लेकिन उसकी बातें सुनने की मैं ताब न ला सका । मेरे सब्र का प्याला छलक गया । मैं उस पर गोली चला बैठा ।”
“वह जानता था ।”
“क्या ?”
“तुम्हारी नीयत । तुम्हारे इरादे । इसीलिए उसने जानबूझकर बहुत बढा-चढाकर बहुत विस्तार में नीलम की दुर्गति का खाका खींचना आरम्भ किया था । मैंने बखिया की जुबान से निकले आखिरी फिकरे सुने थे । आखिरी क्षण तक उसने अपनी वो पैंतरेबाजी नहीं छोड़ी थी, जिसके दम पर वह बम्बई का बादशाह बना था । देख लो, कैसे अपनी आसान मौत उसने तुमसे छीनकर हासिल की है ।”
“घोरपड़े कहां है ?”
“तुम्हारी सहेली की लाश समुद्र में डुबोने गया था लेकिन अब तक लौट आया होगा ।”
“मालूम करो ।”
इकबालसिंह एक फोन की तरफ बढा ।
उसने कहीं फोन किया ।
“वह अभी लौटा है ।” - उसने बताया ।
“उसे यहां बुलाओ ।”
इकबालसिंह ने फोन में कुछ कहा और रिसीवर रख दिया ।
“आ रहा है ।” - वह बोला ।
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
दो मिनट बाद घोरपड़े ने भीतर कदम रखा ।
विमल पर निगाह पड़ते ही उसके छक्के छूट गए । बिजली की फुर्ती से उसका हाथ अपनी पतलून की बैल्ट में खुंसी रिवॉल्वर की तरफ लपका ।
विमल की आंखों के सामने नीलम की तड़पती हुई सूरत उभरी ।
उसने बड़ी सावधानी से रिवॉल्वर का घोड़ा खींचा ।
गोली घोरपड़े के माथे पर ऐन दोनों आंखों के बीच में लगी ।
विमल ने साफ उसकी आंखों से जीवन-ज्योति बुझती देखी ।
घोरपड़े का मृत शरीर कालीन बिछे फर्श पर लोट गया ।
विमल इकबालसिंह की तरफ घूमा ।
“अब यह रिवॉल्वर खाली है ।” - वह बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला ।
“मैंने” - इकबालसिंह भी वैसे ही अर्थपूर्ण स्वर में बोला - “पहले ही कहा है कि मेरी तुम्हारे से कोई अदावत नहीं ।”
“गुड ! अब तुम क्या करोगे ?”
“पता नहीं क्या करूंगा ?” - उत्तर देते समय अनायास ही इकबालसिंह का ध्यान अपनी बेवफा बीवी की तरफ चला गया - “सोचना पड़ेगा इस बारे में ।”
“कुछ भी करना लेकिन एक बात का ख्याल रखना ।”
“किस बात का ?”
“बखिया बनने की कोशिश न करना ।”
“मतलब ?”
“मतलब तुम समझते हो । तुम्हारे सिवाय बखिया के सारे ओहदेदार मर चुके हैं । खुद बखिया मर चुका है । उसकी जगह लेने का ख्वाहिशमन्द एन्थोनी एल्बुकर्क मर चुका है । लिटल ब्लैक बुक वापिस वहां लौट चुकी है । उसको कब्जाने की और बखिया की जगह लेने की कोशिश करने वाला तुम्हारे अलावा दूसरा कोई नहीं । तुम बखिया बनने की कोशिश कर सकते हो । मुमकिन है, तुमने अभी से अपने-आपको बखिया समझ भी लिया हो ।”
“अव्वल तो ऐसा है नहीं, लेकिन अगर ऐसा है तो तुम्हें इससे क्या एतराज है ? मेरी तो तुम्हारे से कोई अदावत नहीं ! ऐसा मैंने कई बार कहा है ।”
“तुमने जो कहा है, वह मैं भूला नहीं हूं ।”
“तो ?”
“मुझे एतराज तुमसे नहीं, आर्गेनाइज्ड क्राइम से है । आर्गेनाइज्ड क्राइम की जो वीभत्सता और हाहाकार मैंने यहां पिदले बारह दिनों में देखा है, वह मैं जिन्दगी की आखिरी सांस तक नहीं भूल सकता । मुझे बखिया के चौदह ओहदेदारों और बेशुमार प्यादों की मौत का भी उतना ही अफसोस है जितना कि नीलम और तुकाराम के चार भाइयों की मौत का । मैं नहीं जानता कि तुम मुझसे कोई फरेब कर रहे हो या वाकई मेरी तरफ अमन का हाथ बढा रहे हो... सुनते रहो । बीच में न टोको... मैं नहीं जानता कि मैं यहां से जिन्दा रुख्सत होने वाला हूं या नहीं । मैं वहां से बच भी निकलूं तो मैं यह नहीं जानता कि नीलम की मौत के गम में मैं अभी मर जाने वाला हूं या मेरी गुनहगार जिन्दगी के चन्द रोज अभी और बाकी हैं । मेरे मन में जिन्दा रहने की ख्वाहिश अब कतई बाकी नहीं । मेरे भीतर जो तूफान इस वक्त उठा है, उसकी रू में अगर मुझे अभी मौत आ जाए तो मैं अपने-आपको खुशकिस्मत समझूंगा । अपनी जान मैं खुद तो नहीं ले सकता क्योंकि खुदकुशी को मैं बुजदिली और जिन्दगी नाम के खुदा के वरदान के खिलाफ ज्यादती मानता हूं लेकिन अगर कोई इस वक्त मेरी जान ले ले और मुझे उस तारीक, तनहा, और अन्धेरी जिन्दगी से निजात दिला दे जो मुझे पता नहीं कब तक नीलम के बगैर जीनी होगी तो मैं उसका जन्म-जन्मांतर तक अहसानमन्द रहूंगा ।”
उसकी आंखें डबडबा आईं । अपने हाथों में अभी तक थमी रिवॉल्वर उसने अपनी उंगलियों से निकल जाने दी ।
“मेरा वाहेगुरु मेरा गवाह है” - विमल रुंधे कण्ठ से बोला - “मैं नीलम के बगैर जिन्दा नहीं रह सकता । जिस्म से रूह अलग कर दी जाए तो जिस्म भला कैसे जिन्दा रह सकता है ! आज तुम्हारे शहर के आर्गेनाइज्ड क्राइम के सबसे बड़े महन्त ने मेरी कायनात उजाड़ दी । लेकिन यह बरबादी और तबाही की मुतवातर दोहराई जाने वाली कहानी है जो पता नहीं कब तक यू चलती रहेगी । यह कैसा शहर है तुम्हारा ? यह शहर नहीं, आर्गेनाइज्ड क्राइम के जेरेसाया पलती हुई एक कत्लगाह है, अत्याचार का एक डेरा है, जहां कोई जिन्दगी महफूज नहीं । यह इन्सान की बर्बरता और उसके वहशी नंगे रूप की नुमायश है । मैं नहीं जानता, मैं कब, कैसे इस हद तक इस रंग में रंग गया कि खुद मैंने वही काम बार-बार किए जिनकी कि मैं इस वक्त खिलाफत कर रहा हूं । शायद इसी बात की मुझे नीलम की मौत के रूप में सजा मिली है । काश, मैं उन पचास हजार रुपयों को वापिस हासिल करने का ख्याल अपने मन से निकाल चुका होता जिनकी वजह से इलाहाबाद में जेल की सजा मैंने काटी थी लेकिन जिन्हें डकार गया था ‘कम्पनी’ का ओहदेदार ज्ञानप्रकाश डोगरा और जो मूलरूप से इस खूंरेज दास्तान की बुनियाद बने थे । मैंने उस रकम को अपनी नाक का बाल न बना लिया होता तो आज नीलम जिन्दा होती । इसी से साबित होता है कि अन्त बुरे का बुरा ।”
“पछता रहे हो ?”
“नहीं । पछताना क्या ? पछताने से काल का पहिया तो नहीं फिर सकता, गुजरा वक्त तो वापिस नहीं लौट सकता ।”
“तुम आर्गेनाइज्ड क्राइम की खिलाफत का इरादा रखते हो ?”
“हद से ज्यादा । इसीलिए मैंने तुम्हें कहा है कि बखिया बनने की कोशिश मत करना । जब-जब बखिया की ‘कम्पनी’ जैसी कोई आर्गेनाइज्ड क्राइम की संस्था इस मुल्क में सिर उठाएगी, तब-तब मैं उस पर कहर बनकर टूटूंगा । यह मेरा आर्गेनाइज्ड क्राइम के बखिया जैसे उन तमाम महन्तों से वादा है जो अपने-आपको कायदे-कानून और सरकार से ऊंचा समझते हैं, जो मुल्क के कानून को अपना गुलाम और मुल्क की सरकार को अपनी लौंडी समझते हैं । मैं कानून की खिलाफत करके कानून का रखवाला बनकर दिखाऊंगा ।”
“मेरा बखिया बनने का कोई इरादा नहीं ।” - इकबालसिंह सकपकाए स्वर में बोला ।
“गुड !”
विमल ने ओवरकोट की जेब व्हिस्की की बोतल निकाली और उससे बची सारी व्हिस्की एक ही बार में गटागट पी गया ।
“जो तुध भावे नानका !” - वह कांपती आवाज में बोला - “सोई भली कार ।”
सिर झुकाए, लड़खड़ाते कदमों से अपने मुर्दा जिस्म का बोझ ढोता हुआ, वह वहां से बाहर निकल गया ।
समाप्त