अगर बलराम सिंह सही वक्त पर न आ पहुँचता तो फ्रेंडस विला के बाहर ड्यूटी पर मौजूद पुलिसमैन ने जलीस को अंदर नहीं जाने देना था । बलराम सिंह को कोट पैंट में देखकर जलीस ने पूछा–"तुम वर्दी की जगह सादा लिबास में कैसे नजर आ रहे हो ?"
"इस वक्त ड्यूटी पर नहीं हूँ ।"
"घूमने निकले हो ?"
"ऐसा ही समझ लो । वैसे मैं तुमसे भी मिलना चाहता था । पिछली रात के बाद से तुममें मेरी खास दिलचस्पी हो गई है ।"
"तो ?"
बलराम सिंह ने प्रवेश द्वार की ओर इशारा किया ।
"मुझे अंदर चलने के लिए नहीं कहोगे ?"
"आओ ।"
दोनों भीतर दाखिल हुए ।
जिस कमरे में अमोलक की मौत हुई थी वहाँ अभी भी चाक से फर्श पर मानवशरीर की आकृति बनी हुई थी । दरवाजे के पास फैला खून सूखकर भूरा हो चुका था ।
बलराम किसी बुलडॉग की तरह जलीस के पीछे लगा था ।
दूसरी मंज़िल पर पहुंचकर कीमती फर्नीचर देखकर बलराम भौंचक्का सा रह गया ।
"मैं पहली दफा यहाँ आया हूँ । रनधीर वाकई नवाबी ठाठ से रहता था ।"
"हर एक की अपनी पसंद और अपना टेस्ट होता है ।"
"वो तो ठीक है । लेकिन दौलत कमा लेने के बाद बदमाश आम तौर पर इस तरह के स्लम एरिया में रहना पसंद नहीं करते ।"
"रनधीर इस मामले में अजीब था ।"
"वह ज्यादा ही अजीब था ।" बलराम ने पलटकर उसे घूरा–"अब तुम भी यही रहोगे, जलीस ?"
"तुम्हें एतराज है ?"
"तुम भूल गए लगते हो, मैंने तुमसे क्या कहा था ?"
"याद दिला दो ।"
"इस इलाके में पहले से ही इतनी ज्यादा मुसीबतें है कि बाहर से आयी 'मुसीबत' के लिए कोई जगह यहाँ नहीं है । और तुम तो जानते हो कि 'मुसीबत' से मुझे हमेशा सख्त नफरत रही है । तुम्हें याद होगा, इसीलिए बरसों पहले मैं अक्सर तुम्हारी और तुम्हारे साथियों की पिटाई किया करता था । तुम्हारे प्रिंसेज पैलेस क्लब का कोई बदमाश छोकरा ऐसा नहीं था जिसकी पिटाई मैने नहीं की थी । तुम्हें यह भी याद होगा कि उन दिनों उन सभी ने मुझसे बदला लेने की कसमें भी खाई थीं । मुझे चाकू घोपने, शूट करने और मेरी खोपड़ी चटकाने की ख़्वाहिश रखने वालों की तादाद इतनी ज्यादा रही है कि उन सबको याद रख पाना मेरे लिए नामुमकिन है । तुम भी उनमें शामिल थे, जलीस । मुझे अच्छी तरह याद है, जब मैं हथकड़ियों से तुम्हारी पिटाई कर रहा था तुम्हारे सर और कंधों से खून बहने लगा था, और तुम किसी बच्चे की तरह रोते हुए चिल्ला रहे थे कि किसी रोज अपने खाली हाथों से मुझे फाड़ डालोगे । तुम्हें भी याद है न ?"
जलीस हंसा ।
"पिछली रात जब वह आदमी तुम्हें शूट करने वाला था तब मैं यही सोच रहा था ।"
"जान बचाने के लिए एक बार फिर धन्यवाद ।" वह लापरवाही से बोला ।
"धन्यवाद की जरुरत नहीं है । मैंने खुद को बचाने के लिए तुम्हें बचाया था ।"
बलराम सिंह मुँह बनाकर परे हट गया और कमरे का मुआयना करने लगा ।
जलीस ने भी शेष स्थान का निरीक्षण किया । वहाँ कई चिंह थे जिनसे जाहिर था कि अमोलक ने बारीकी से पूरे स्थान की तलाशी ली थी और ग्रांउड फ्लोर पर मिले चिंहों से, जहाँ अमोलक को शूट किया गया था, साबित होता था कि उसे तलाशी में कुछ नहीं मिला था ।
बलराम सिंह को साथ लिए जलीस रिहाइशी अपार्टमेंट में पहुँचा । वहाँ इधर–उधर देखने के बाद उसे लगभग पूरा यकीन हो गया कि रनधीर अपनी व्यक्तिगत वस्तुओं को छिपाने के लिए उस इमारत को प्रयोग नहीं किया करता था । लेकिन जलीस को बराबर एक अजीब सा अहसास जरुर हो रहा था । जिसने उसे इस सिलसिले की शुरुआत से ही उलझन में डाल रखा था । वो वही अहसास था जिसने पिछली रात अचानक उसे जगा दिया था । मगर बाद में लाख सोचने के बावजूद उसकी पकड़ में नहीं आ सका था ।
किसी ने कुछ कहा था या किसी ने कुछ किया था या फिर अनजाने में उसका अपना हाथ ही किसी ऐसी चीज पर जा पड़ा था जो इस सारे मामले को सुलझा सकती थी । वह दिमाग पर जोर डालते हुए सोच रहा था और वो बात उसकी पकड़ में आने ही वाली थी कि बलराम ने टोक दिया ।
"यह स्थान परिचित सा लगता है । अगर यहाँ इतनी सफाई नहीं होती और यह फर्नीचर कीमती और आरामदेह नहीं होता तो इसने तुम्हारे पुराने क्लब का वही पुराना कमरा नजर आना था जहाँ तुम लोग जश्न मनाया करते थे ।"
"तुमने तो इतनी जल्दी कैसे नोट कर लिया ।"
"क्योंकि मैने दर्जनों मर्तबा उस इमारत के बेसमेंट में जाकर तुम लोगों को वहां से भगाया था ।" बलराम ने कूल्हों पर हाथ रखकर चारों ओर निगाहें दौड़ाई–"वापस लौटना अच्छा लग रहा है ?"
"मेरे अच्छा या बुरा लगने को छोड़कर तुम बताओ कि यहाँ कोई खास चीज देखना चाहते हो ?"
"मेरी दिलचस्पी सिर्फ तुममें है ।"
"मेरे पीछे लगे रहना चाहते हो ?"
"तुम्हें डर है कि इससे तुम्हारा रूतबा कम हो जाएगा ?"
"हो सकता है ।"
"लेकिन तुम्हें इससे कोई परेशानी नहीं होगी । मैं बस अपने ढंग से आस–पास की खबर लेता रहूँगा–पुराने दोस्त गश्ती पुलिसमैन की तरह जिसे अपने काम से बहुत प्यार है । तुम्हें तो याद होगा मुझे छोकरें और उनकी शरारतें बहुत अच्छे लगते हैं । इसीलिए ड्यूटी न होने पर भी मैं यहाँ घूमता रहता हूँ...आज मैंने कुछ दिलचस्प बातें सुनी है...।"
"बस करो, बलराम सिंह ।"
"देखो जलीस, मैं बरसों से इसी इलाके में ड्यूटी पर हैं ।" वह पुलिसिया लहजे में बोला–"यहाँ जो भी होता है उसे मैं पूरी संजीदगी से लेता हूँ । यही वजह है कि मैं इस इलाके का एक हिस्सा बनकर रह गया हूँ और मुझे इस पर फख़्र है । इसलिए मेरी सलाह है कि मुझे बेवकूफ़ बनाने या मुझसे उलझने की कोशिश मत करना ।"
"तुम्हारी सलाह मैंने सुन ली ।" जलीस दरवाजे की ओर इशारा करके बोला–"अब तुम जा सकते हो ।"
बलराम सिंह ने उसे घूरा और बाहर निकल गया ।
थोड़ी देर बाद जब जलीस नीचे पहुंचा तो उसे दरवाजे पर मौजूद वर्दीधारी पुलिसमैन से बातें करते पाया ।
जलीस उससे बगैर कुछ बोले आगे बढ़ गया ।
* * * * * *
प्रिंसेज पैलेस क्लब वाली इमारत के चौकीदार तरलोचन सिंह में जलीस ने कोई ज्यादा तब्दीलियाँ नोट नहीं की । आरंभ में उसे बाजार से शराब मंगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था क्योंकि जलीस और उसके अन्य साथियों की उम्र कम थीं इसलिए दुकानदार उन्हें शराब देने से इंकार कर दिया करते थे । उन दिनों तरलोचन सिंह की उम्र पैतालीसेक साल थी । इकहरे जिस्म और मंझोले कद का वह मेहनती और ईमानदार आदमी था । अकेली जान होने की वजह से कोई ज़िम्मेदारी उस पर नहीं थी । उसकी सेवाओं के बदले में उसे दो–तीन पैग और खाना दे दिया जाता था । रात में वह वहीं पुरानी चारपाई पर पड़ रहता था ।
अब उसकी उम्र करीब चौसठ साल थी । इसके बावजूद वह काफी चौकस और चुस्त नजर आता था । लिबास मैला मगर पगड़ी सफाई से बाँधी हुई और सफेद दाढ़ी सलीके से सँवारी हुई ।
दस्तक के जवाब में वह फौरन दरवाजे पर आ गया था । गौर से उसे देखा फिर उसके चेहरे पर मुस्कराहट फैल गई ।
"सलाम तरलोचन सिंह ।" जलीस बोला ।
"सलाम, जलीस साहब ।"
"नहीं, साहब नहीं । वही कहो जो पहले कहा करते थे । याद आया ?"
"हाँ, पुत्तर ।" तरलोचन सिंह हिचकिचाता सा बोला–"जलीस पुत्तर ।"
जलीस ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया ।
"कैसे हो ?"
"ठीक हूँ । वाहे गुरु की कृपा है । महाजन साहब ने फोन पर बताया था कि अब इस जगह के मालिक आप हैं ।"
"आप नहीं, तुम कहो ।" जलीस बोला–"उसने ठीक ही कहा था ।"
"मेरी नौकरी चलती रहेगी ?"
"तुम कहीं और जाना चाहते हो ?"
"मैने कहाँ जाना है ।"
"फिर क्यों पूछ रहे हो ?"
"इसलिए कि मुझे इस जगह से लगाव हो गया है । जिंदगी के बाकी दिन भी यहीं काटना चाहता हूँ ।"
"तुम यहीं रहोगे ।"
"शुक्रिया, पुत्तर । रनधीर मलिक साहब की तरह तुम्हें भी कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगा ।"
"रनधीर के सामने यहाँ क्या किया करते थे तुम ?"
"कुछ खास नहीं । देखभाल, सफाई वगैरा और जब मीटिंग होनी होती थी तो जरुरी इंतजाम कर दिया करता था ।"
"तुम अब भी यही करोगे ।"
"मुद्दत बाद आए हो । इस जगह को देखना चाहते हो ?"
"अभी नहीं । वैसे सब ठीक तो है न ?"
"हाँ । बस, छोकरे कभी–कभी घुस आते हैं तो थोड़ी शैतानी कर जाते हैं । एक बार कुर्सी तोड़ दी थी और कुछ गिलास चुरा ले गए थे । हफ्ता भर पहले बेसमेंट का पिछला दरवाज़ा उन्होंने तोड़ दिया था । इस दफा कीलें ठोंककर मैंने पूरी तरह मजबूती से बंद कर दिया है । कल एक छोकरे ने बीयर की खाली बोतल फेंककर खिड़की का शीशा तोड़ डाला । मैंने उसे पकड़कर उसकी पिटाई की और दुम पर ठोकर मारकर भगा दिया ।"
"ठीक किया ।" जलीस ने उसका कंधा थपथपाया–"तुम्हें यहाँ रहते कितना अर्सा हो गया ?"
"यही कोई बीसेक साल । क्यों ?"
"तुम्हें इस इमारत की पूरी जानकारी है ?"
तरलोचन सिंह ने असमंजसता पूर्वक पलकें झपकाई ।
"हाँ, पुत्तर । क्यों ?"
"यूं ही पूछ रहा हूँ । रनधीर अपना ज्यादातर वक्त यहीं गुजारता था ?"
"मलिक साहब ?" वह सर हिलाकर बोला–"नहीं । मीटिंगों के लिए आते थे या कभी–कभी पार्टी दिया करते थे–बीयर, सस्ती विस्की वगैरा की । महँगी शराब और तड़क–भड़क वाली नहीं । यहाँ सब पुराने वक़्तों की तरह ही हुआ करता था ।"
"रनधीर कभी अकेला भी यहाँ आता था ?"
"अकेले ? किसलिए ?"
"किसी भी वजह से ?"
"जब कोई पार्टी देनी होती थी तो यहाँ रुककर मुझे बता दिया करते थे । लेकिन ऐसा कभी–कभी ही होता था । आम तौर पर या तो मुझे बुलाया जाता था या फिर किसी को यहाँ भेज दिया जाता था ।" तरलोचन सिंह ने कहा, फिर याद करता हुआ सा बोला–"मुददत पहले दो–तीन बार ऐसा भी हुआ था कि मलिक साहब ठर्रा का भरा जग लेकर यहाँ आए और मेरे साथ बैठकर पीते हुए पुराने दिनों के बारे में बातें की । ज्यादातर बातें तुम्हारे बारे में ही होती थी । कोई नहीं जानता कि तुम कहाँ थे, क्या कर रहे थे क्यों तुमने अपनी कोई खबर नहीं भेजी वगैरा । वैसे मलिक साहब को पूरा यकीन था कि तुम मजे में हो । कहीं तुमने अपने कारोबार चला रखे है और किसी रोज तुम जरूर वापस आओगे और दोनों दोस्त मिलकर फिर पहले की तरह यहीं रहेंगे ।" वह बेसमेंट की ओर हाथ हिलाकर हँसता हुआ बोला–"नीचे पुराने ठिकाने को तो देखना चाहोगे ? मलिक साहब और मैं वहीं बैठकर ठर्रा पीते हुए गप–शप किया करते थे । आओ ।"
जलीस उसके साथ चल दिया ।
संकरे से कमरे से गुजरकर वे सीढ़ियाँ उतरने लगे ।
उस स्थान के इंच इंच भाग से परिचित जलीस को कहीं भी जरा सी भी तब्दीली नजर नहीं आई ।
तरलोचन सिंह ने स्विच ऑन कर दिया ।
रोशनी में जलीस को वो स्थान वैसा ही नजर आया जैसा कि बरसों पहले हुआ करता था । सिगरेट और शराब के दौर चलने के अलावा मारामारी की योजनाएँ भी वहाँ बनायी जाती थीं । लड़कियों की सोहबत का फायदा भी वहाँ उठाया जाता था । कई यादगार वाकयात भी वहाँ हुए थे । मुमताज अली ने यहीं दूसरे गैंग के एक छोकरे को, जो हथियार चुराने की कोशिश करता पकड़ा गया था, चाकू से चीर डाला था । इकराम के साथ बर्फ तोड़ने वाले सुओं से जलीस की लड़ाई भी यहीं हुई थी । जिसमें इकराम तो बुरी तरह घायल हुआ ही था खुद जलीस को भी तीन जख्म आए थे ।
वो काफी बड़ा वर्गाकार हाल था । नमी के कारण दीवारों पर चूने की पपड़ियाँ नजर आ रही थी और फर्नीचर पर फफूँदी की परत सी जमी हुई थी ।
जलीस को एक सिरे पर खाली स्थान की ओर देखता पाकर तरलोचन सिंह नर्वस भाव से बोला–"पीटर, मेरा मतलब है तुम्हारा बिलाव...यहाँ से उस पुराने सोफे को ले गया । मलिक साहब ने ही उसे ले जाने दिया था । अगर तुम चाहो तो मैं...।"
"नहीं । उसे पीटर को ही इस्तेमाल करने दो ।"
"पुराना रेडियो अभी भी चालू हालत में है । लेकिन दो एक स्टेशन ही पकड़ता है । मलिक साहब जब ठर्रा का जग लेकर आया करते थे तब हम दोनों इससे गाने भी सुनते थे ।"
जलीस ने चारों ओर घूमकर बेसमेंट का मुआयना किया । धूल और नमी की मिली जुली गंध उसे परिचित प्रतीत हुई । ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि वह पूरे सत्रह साल बाद वहाँ आया था । वही पुराने भारी परदे अभी भी वहाँ झूल रहे थे । परदों के दूसरी ओर चारपाई पड़ी थी और एक सिरे पर दरवाज़ा था जो उस स्टोर रुम में खुलता था जहाँ कोयले और दूसरा कबाड़ भरा रहता था ।
"जलीस पुत्तर ।" तरलोचन सिंह स्नेह मिश्रित आग्रहपूर्वक बोला–"मेरे पास ठर्रे की बोतल है । पुराने वक़्तों की याद में मेरे साथ एक–एक जाम पीना पसंद करोगे ?"
"अभी नहीं ।" जलीस सीढ़ियों की ओर पलट गया–"आओ चलते हैं ।"
तरलोचन सिंह निराश मन से उसके पीछे चल दिया ।
"मलिक साहब को यहाँ बैठना बहुत पसंद था ।"
"मुझे नहीं है ।"
"जैसी तुम्हारी मर्जी । लेकिन, जलीस पुत्तर...उस सामान का अब क्या करना है जिसका मलिक साहब ने आर्डर दिया था ?"
"क्या सामान था ?"
"पचास पेटियाँ बीयर और तीस पेटियाँ विस्की की । वाइन शॉप का आदमी पूछने आया था कि वे कहाँ पहुँचानी हैं ।"
"मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता । यह आर्डर किस खुशी में दिया गया था ?"
"असली वजह तो मुझे नहीं मालूम । लेकिन मलिक साहब पार्टी देने वाले थे । मुझसे कहा था कि बड़े हाल को एक बहुत बड़ी और शानदार पार्टी के लिए तैयार कर दिया जाए । मैंने जगों और गिलासों के बारे में पूछा तो उन्होंने कह दिया कि इन चीजों का इंतजाम वे खुद करेंगे । तुम तो जानते हो, मलिक साहब कभी कोई जग यहाँ नहीं छोड़ने देते थे । जगों को वे हमेशा अपने साथ ही लाया करते थे ।"
"यह कब की बात है ?"
"जिस रोज उनका मर्डर हुआ था । मुझे नहीं लगता कि अब कोई पार्टी होगी । उस आर्डर को कैसिल करा दिया जाए ?"
जलीस के चेहरे पर विचारपूर्ण भाव थे ।
"पार्टी किस खुशी में दी जाने वाली थी ?"
"पता नहीं ।"
"रनधीर ने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया ?"
"सिर्फ इतना कहा था कि पार्टी बहुत बड़ी और शानदार होगी और उसके दौरान हर एक को बड़ा भारी सरप्राइज दिया जाएगा ।"
"खैर, अब तुम वो आर्डर कैसिल करा दो ।"
"ठीक है ।"
फिर जलीस ने तरलोचन सिंह के साथ पूरी इमारत का सरसरी तौर पर मुआयना किया ।
अंत में दोनों वापस नीचे आ गए ।
"रनधीर यहाँ कोई सेफ भी रखता था ?" जलीस ने पूछा ।
"सेफ ? नहीं, पुत्तर ।"
"वह अपने कागज़ात वगैरा यहाँ नहीं रखता था ?"
"नहीं । मीटिंग के बाद मलिक साहब तमाम कागज़ात साथ ले जाते थे । यहाँ कुछ नहीं छोड़ते थे ।"
वजह साफ और तर्कपूर्ण थी । जलीस ने सोचा । छोकरों समेत कोई भी आसानी से इमारत में दाखिल हो सकता था । अगर रनधीर ने उन 'मगरमच्छों' की 'दुखती रगों' का कच्चा चिट्ठा यहाँ रखा होता तो उन लोगों ने इमारत का एक–एक कोना छान मारना था । बूढ़ा तरलोचन सिंह उन्हें नहीं रोक सकता था । इतना ही नहीं अगर किसी को शक भी हो गया होता कि यहाँ कोई चीज छुपी हुई थी तो उन लोगों ने पूरी इमारत को जलाकर राख कर डालना था । जिसमें वो चीज भी जल जानी थी ।
इस असलियत को रनधीर भी जरुर बखूबी जानता था । और ऐसा कोई रिस्क उसने नहीं लेना था । इसका सीधा सा मतलब था, रनधीर ने 'कच्चे चिट्ठों' का वो पैकेट किसी ऐसी जगह रख छोड़ा था जहाँ वो पूरी तरह सुरक्षित था । आग और चोरी से ही नहीं बल्कि अन्य संभावित खतरों से भी ।
लेकिन इस सारे मामले का इकलौता और पेचीदा पहलू यह भी था कि रनधीर ने वो पैकेट निश्चित रुप से ऐसी जगह छुपाना था जहाँ के बारे में उसे पूरा यकीन था कि जलीस किसी तरह उस तक जरुर पहुँच जाएगा और उसे ढूंढ निकालेगा ।
इन्हीं विचारों में उलझे जलीस के जेहन में इसी जगह रनधीर से सत्रह बरस पहले हुई आखिरी बातचीत ताजा हो आई...।
"हम दोनों दो जिस्म मगर एक जान है, रनधीर ।" उस रात जलीस ने कहा था–"लेकिन हमेशा किशोर नहीं रहेंगे...जबान होंगे फिर हमारी ख्वाहिशें और जरूरतें भी बढ़ेगी । दारुवाला की दूम पर गोली मारकर अपना एक अलग वजूद हम कायम कर चुके हैं । जल्दी ही हमारा वजूद इतना भारी और अहम हो जाएगा कि कोई भी हमसे टकरा नहीं सकेगा । तब हमारे सामने एक नई समस्या पैदा होगी–अहं यानी ईगो की । और उस सूरत में हमारा मनमुटाव भले ही न हो लेकिन अपनी ख्वाहिशों और ज़रूरतों की वजह से इस शहर को अपने लिए दो हिस्सों में बाँटना हमें पड़ सकता है । जबकि यह शहर सिर्फ एक ही के लिए काफी है ।"
"तुम ठीक कहते हो, जलीस ।" रनधीर ने कहा था–"इन दिनों तुम काफी दूर की सोचते हो...और काफी बड़े पैमाने पर भी । हालांकि हम जैसे दूसरे लड़के और जवान भी बड़ी–बड़ी बातें तो करते हैं लेकिन उनकी सोच का दायरा वही है । वे सब आम तौर पर अपने से बड़ों के लिए काम करते हैं । लेकिन हम तुम और मैं सिर्फ अपने लिए काम करते हैं । हमें टॉप पर पहुँचना है । हमें सबसे बड़ा बदमाश नहीं...बिग शॉट की तरह सफर तय करना है...और जल्दी करना है ।"
"इसके लिए जरुरी है कि हम आपस में कंपीटीशन की स्थिति पैदा न होने दें ।" जलीस ने कहा था–"जबकि दोनों के यहाँ रहने से न चाहते हुए भी देर–सवेर यह स्थिति पैदा हो ही जाएगी । हमारा देश बहुत बड़ा है और भी शहर और स्थान यहाँ है । इसलिए हम अभी जुदा हो जाते हैं । वैसे भी अब हम दोनों ही यतीम है । हमारे पीछे कोई रोने वाला तो है नहीं ।"
"तुम यहाँ रहना चाहते हो तो मैं चला जाता हूँ ।"
"नहीं, रनधीर । यह तो मैं भी तुम्हारे लिए कर सकता हूँ ।"
"तो फिर फैसला कैसे होगा ?"
"टॉस कर लेते हैं । जीतने वाला यहीं रहेगा और हारने वाला दूर किसी शहर में जाकर अपने लिए नए सिरे से सब कुछ पैदा करेगा ।"
"वंडर फुल आईडिया ।" रनधीर खुशी से चहकता हुआ बोला–"मैं तैयार हूँ, दोस्त ।"
वार्तालाप का यह विषय नया नहीं था । दूर की और सही ढंग से सोचने वाले जलीस ने काफी पहले ही यह सोच लिया था । दोनों इस पर विस्तारपूर्वक विचार विमर्श भी कर चुके थे और भविष्य के लिए ठोंक बजाकर सही और ठोस योजनाएँ भी बना चुके थे । उन योजनाओं को अमल में लाने का काम वहाँ रहने वाले ने ही अंजाम देना था । लेकिन हर एक डिटेल की जानकारी दोनों को थी ।
"मैं यहाँ रहूँ या यहाँ से जाना पड़े । इसकी कोई फ़िक्र या परवाह मुझे नहीं है, जलीस ।" रनधीर ने कहा था–"लेकिन तुम्हारी कमी जरूर खलेगी । तुम हर वक्त मुझे याद आओगे ।"
"मैं भी तुम्हें भुला नहीं सकूँगा, दोस्त ।"
"और वो वादा भी याद रखना जो हमने एक–दूसरे से किया था...अगर हममें से किसी को कुछ हो जाता हूँ तो उसकी हर एक चीज दूसरे को मिल जाएगी । अगर मैं मर जाता हूँ तो मेरी हर एक चीज के मालिक तुम बन जाओगे–जो कुछ भी मैं छोड़कर जाऊँगा तुम्हें पता लग जाएगा कि कौन सी चीज कहाँ है । यह वादा एक पाक कसम है । 'प्रिंसेज पैलेस' की बुनियाद रखने वाले शहजादों का कौल है । जो कभी नहीं बदलेगा ।"
इसे दो कागज़ों पर लिखकर दोनों ने अपने अपने खून से उन पर दस्तख़त कर दिए थे ।
"मैं भगवान से प्रार्थना करूँगा कि खून की इस कसम को पूरा करने में हमेशा मेरी सहायता करे ।"
"मैं भी पाक परवरदिगार से यही दुआ करुंगा ।"
"लेकिन टॉस कौन करेगा ?"
"किसी तीसरे से ही कराना पड़ेगा ।"
"लेकिन किससे ?"
"पीछे सोए तरलोचन सिंह को जगाते है । उसी से सिक्का उछलवाएंगे ।"
"वैरी गुड आईडिया ।" रनधीर ने अपनी जेबें थपथपाकर पूछा–"एक रुपए का सिक्का है तुम्हारे पास ?"
जलीस ने अपनी जेबें टटोली ।
"मेरे पास भी नहीं है ।"
दोनों ठहाका लगाकर हँस पड़े ।
रनधीर ने तरलोचन सिंह को जगाया । रुपए का सिक्का भी उसके पास था ।
उसने सिक्का उछाला ।
जलीस ने हैड मांगा ।
रनधीर का टेल था ।
सिक्का गिरा तो टैल ऊपर था ।
जलीस टॉस हार गया ।
दोनों ने हाथ मिलाकर एक–दूसरे को 'गुड लक' कहा और जलीस उसी रात शहर छोड़कर अपनी नई मंज़िल की तलाश में निकल गया था ।
फिर सत्रह साल बाद ही लौटा ।
"क्या सोच रहे हो, पुत्तर ?" तरलोचन सिंह ने टोका ।
"कुछ नहीं ।" जलीस ने बेख्याली से पूछा–"तुम्हें वो सिक्का उछालने वाली बात याद है ?"
तरलोचन सिंह ने किसी गावदी की भांति पलकें झपकाई । वह समझ नहीं सका कि जलीस किस सिक्के को उछालने की बात कर रहा था ।
जलीस उसे सौ रुपए का एक नोट देकर बाहर निकला और खाली जाती टैक्सी रोककर विनोद महाजन का पता बताता हुआ उसमें सवार हो गया ।
* * * * * *
विनोद महाजन के ऑफिस में घुसते ही जलीस ने नोट किया उसकी कुर्सी के पीछे एक नई और काफी कीमती पेंटिंग टंगी हुई थी ।
"अभी तो पैसा तुम्हारे हाथ भी नहीं आया है ।" वह बोला–"तुमने खर्च करना पहले ही शुरु कर दिया, बीनू ।"
महाजन अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर में पहलू बदलकर तनिक आगे झुक गया ।
"मैं इंतजार नहीं कर सकता ।"
जलीस उसके सामने बैठ गया ।
"लेकिन इतना उतावलापन भी ठीक नहीं है ।"
"तुम यही बताने आए हो ?"
"नहीं । मैं रनधीर के बारे में बातें करने आया हूँ ।"
"क्या ?"
"उसका कहीं कोई बैंक लॉकर था सेफ डिपाजिट बॉक्स था ?"
महाजन उपहासपूर्वक मुस्कराया ।
"तुम्हारी तलाश जारी है ।"
"हाँ । तुम्हें एतराज है ?"
"नहीं । लेकिन तुम बेकार मेहनत कर रहे हो ।"
"सही ढंग से की गई मेहनत कभी बेकार नहीं जाती । इसका फल हमेशा मीठा होता है ।"
"हमेशा नहीं । कभी–कभी इतना कड़वा होता है कि कड़वाहट जानलेवा बन जाती है ।"
"सिर्फ उनके लिए जो कड़वाहट बर्दाश्त नहीं कर पाते । जैसे कि तुम हो ।"
"मैं भी कड़वाहट पचाना जानता हूँ ।"
जलीस उससे मालूमात हासिल करना चाहता था इसलिए बात को बढ़ाना मुनासिब नहीं समझा ।
"बेहतर होगा कि हम मतलब की बातें करें ।"
"क्या रनधीर ने कभी तुम्हें ऐसा कोई संकेत दिया था कि उसके पास ऐसी क्या चीज थी जिसके दम पर वह हर एक को अपनी उंगलियों पर नचा रहा था ?"
"नहीं ।"
"तुम्हारे अलावा उसका कोई और भी लीगल एडवाइजर था ?"
"नहीं ।"
"तब तो जाहिर है, तुम जानते थे कि रनधीर किस ढंग से काम करता था ?"
"नहीं । लेकिन लंबी जाँच के आधार पर मैंने अपने तौर पर नतीजा जरुर निकाल लिया था । तुम भी उसी नतीजे पर पहुँच गए लगते हो ।"
"यह कोई मुश्किल काम नहीं था । इसके साफ संकेत मौजूद थे ।"
"फिर भी यह एक ऐसा विषय है जिस पर कोई भी खुलेआम बातें करना नहीं चाहता । कुछेक खास लोग ऐसे है जिनके बारे में चुपचाप और अकेले में बातें करने के बावजूद यकीनी तौर पर नहीं कहा जा सकता था कि कोई और चोरी से नहीं सुन रहा होगा । इसलिए इस बारे में खामोश रहना ही सबसे अच्छा रहता है ।"
"लेकिन मैं खामोश नहीं रह सकता ।"
"तो फिर हमेशा के लिए खामोश कर दिए जाओगे ।"
"तुम्हारा रिश्ता पुख्ता तौर पर जोड़े बगैर मैं मरूंगा भी नहीं ।"
"बात को समझने की कोशिश करो, जलीस । अगर तुम किसी के लिए खतरा नहीं हो तो तुम्हें इसलिए मरना पड़ेगा क्योंकि तुम बहुत ज्यादा बोलते हो । और अगर तुम वाकई खतरा हो तो खतरे की उस वजह को तुमसे छीनकर इसलिए तुम्हें मार डाला जाएगा क्योंकि तुम उस वजह के दम पर हर चीज पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हो ।"
"वकील होने के कारण घुमा फिराकर बातें करना तुम्हारी आदत बन चुकी है, बीनू । खैर, रनधीर के बारे में बताओ ।"
"ओ. के.।" महाजन गंभीरतापूर्वक बोला–"रनधीर को बहुत अच्छी तरह जाने और बारीकी से उसकी हरकतों को नोट किए बगैर समझ पाना नामुमकिन था कि वह दिमागी तौर पर नार्मल नहीं था ।"
"क्या ?" जलीस लगभग चिल्लाता सा बोला ।
"इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि वह पागल था ।" महाजन बोला–"उसकी उम्र करीब सैंतीस साल थी । फिर भी ज्यादातर मामलात में उसका नज़रिया किसी किशोर जैसा ही था । तुम उसका अपार्टमेंट देख चुके हो । तुमने यह नोट किया होगा कि वह किस बुरी तरह अपने विगत जीवन से चिपका हुआ था । अब उन हालात पर भी गौर करो जो तुम्हारे वापस आने की सूरत में, अपनी वसीयत में शर्तें लगाकर उसने तुम्हारे लिए पैदा कर दिए थे इसीलिए मैं कहता हूँ, तुम्हारा मरहूम दोस्त दिमागी तौर पर नार्मल नहीं था ।"
"अबनार्मल होते हुए भी वह सबसे ऊँचे मुकाम पर जा पहुँचा ।"
"इसमें कोई शक नहीं है । लेकिन इसकी भी एक बड़ी वजह थी ।"
"क्या ?"
"सभी किशोर अपराधियों की तरह उसमें भी खास किस्म की चालाकी थी और सामान्य से काफी ज्यादा थी जिसकी नकल जबान या ज्यादा उम्र के अपराधी आसानी से नहीं कर सकते । उसमें किसी ढीठ बच्चे जैसी बेशर्मी भरी कठोरता, और ठोस अपराधिक सूझबूझ थी । जो बराबर उसकी मदद करती रही । इन्हीं तमाम बातों ने मिलकर रनधीर को टॉप पर पहुंचा दिया था । वह अनपेक्षित नज़रिए से सोचता था और अंजाम की परवाह किए बगैर कर गुजरता था । किस्मत का इतना धनी था कि उसका हर दाँव सीधा ही पड़ता था । इसीलिए वह कुछ खास लोगों की कमजोरियाँ पकड़ने में कामयाब हो गया और संभलने का मौका दिए बगैर उन्हें अपनी मुट्ठी में उसने कस लिया ।"
"इससे तो यह साबित नहीं होता कि वह नार्मल नहीं था ।
"इससे उसकी ठोस अपराधिक सूझबूझ साबित होती है । दरअसल रनधीर दिमागी तौर पर अबनार्मल किशोर नहीं बल्कि दिमागी तौर पर अबनार्मल जवान था । जवान अपराधी । मेरे तजुर्बे और नज़रिए से रनधीर की यही सही तस्वीर थी । तुम्हें भी उसे इसी ढंग से समझना चाहिए ।"
"मेरे लिए यह समझ पाना मुश्किल है । क्योंकि मैं उसे किशोर अपराधी के तौर पर ही जानता था ।"
"यह तुम्हारी खुशकिस्मती थी ।"
"खैर, कुल मिलाकर मुद्दा यह है कि रनधीर ने कुछ खास लोगों की खास किस्म की कमजोरियाँ पकड़ ली थीं । और उनके दम पर उन्हें अपने इशारों पर नचा रहा था । अब सवाल यह है कि वे कमजोरियाँ कागज़ात की शक्ल में हैं या फोटुओं की या फिर ऑडियो–वीडियो कैसेट की शक्ल में और वे कहाँ है ?" रनधीर उन्हें कहाँ रखता था ?"
महाजन अपनी कुर्सी की पुश्त से पीठ सटाकर छत को ताकने लगा ।
"यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।"
"तुम उनका क्या करोगे ?"
महाजन की निगाहें उसकी ओर घूम गईं ।
"सीधी सी बात है, उन सभी लोगों की दोस्ती मुझे मिल जाएगी । मैं वे तमाम चीजें संबंधित लोगों को लौटा दूँगा और बदले में बतौर इनाम मोटी रकमें पाने के साथ–साथ उनके असर और रसूखात से भी फायदे उठाता रहूँगा । इसमें न कुछ गैर कानूनी होगा और न ही कोई फसाद होगा । वे सब हमेशा के लिए मेरे शुक्रगुज़ार होकर रह जाएंगे ।"
इससे पहले कि जलीस कुछ कहता टेलीफोन की घंटी बज उठी । महाजन ने रिसीवर उठाया, कुछ सुना और मुँह बनाते हुए जलीस को थमा दिया ।
फोनकर्ता पीटर था । उसने बताया कि अभी अरमान अली का पता नहीं लग पाया था । कोशिश जारी थी और सभी संभावित स्थानों को चैक वह नहीं कर सका था । पुलिस के चले जाने के थोड़ी देर बाद वह होटल शालीमार गया था । और एक ऐसी बात पता लगायी थी जिसकी जानकारी पुलिस को नहीं थी । होटल का रिसेप्शनिस्ट–कम–टेलीफोन आपरेटर पुलिसवालों से नफरत करता था इसलिए उन लोगों को उसने नहीं बताया कि अरमान अली और फरमान अली ने एक फोन काल की थी । किस नंबर पर की थी यह फिलहाल उसे याद नहीं आ रहा था लेकिन उसे यकीन था कि याद आ जरुर जाएगा । क्योंकि वो नंबर एक दिलचस्प क्रम में था । दो सौ रुपए की एवज में उसने नंबर बताने का वादा भी कर दिया था । सोहनलाल के बारे में पीटर ने बताया कि वह डॉक्टरों से पूछताछ करके उस डॉक्टर को तलाश कर रहा था जिसने पुलिस को सूचित किए बगैर अरमान अली के गोली के जख्म का इलाज किया था ।
महाजन इस पूरे दौर में यूँ जलीस को देखता रहा था कि उसे भी कुछ बताएगा । मगर जलीस ने कुछ भी बताने की बजाय संबंध विच्छेद करके पूछा–"मान लो मुझसे पहले तुम्हें पता चल जाता है कि रनधीर ने वे चीजें कहाँ छुपाई थी तब तुम क्या करोगे ?"
"फौरन तुम्हें बता दूँगा ।"
"सच कह रहे हो ?"
"बिल्कुल सच ।"
"इस मेहरबानी की वजह ?"
"मेरी निगाहों में तुम भी एक हद तक पागल हो, जलीस । और ज्यादातर नीम पागलों की तरह कुछ खास मामलों में होशियार भी हो । अगर मुझे वो जगह सूझ जाती है तो तुम्हें भी जरुर सूझ जाएगी । और उस हालत में अपनी उस खोज से पैसा बनाने के मुकाबले में मैं यह ज्यादा पसंद करूँगा कि तुम गन लेकर मेरी छाती पर न आ चढ़ो । जान है तो जहान है । जिंदगी पैसे से कहीं ज्यादा कीमती होती है ।"
"इस बात को इसी तरह याद रखना, दोस्त । तुम्हारी ये तमाम बातें बिल्कुल सही है सिवाय पहली बात के ।"
"नीम पागल वाली ?"
"हाँ ।"
"इस बात ने तुम्हें डरा दिया है ?"
"बिल्कुल नहीं ।"
"यह तो वक्त ही बताएगा ।"
जलीस ने उसकी बात पर ध्यान न देकर पूछा–"तुमने अभी कहीं जाना है ?"
"नहीं ।"
"कोई जरुरी काम है ?"
"नहीं ।"
"गुड । तुम यहीं अपनी कुर्सी पर ही मौजूद रहना । मुझे तुम्हारी जरुरत पड़ सकती है ।"
"मैं इंतजार करुंगा ।"
* * * * * *
विनोद महाजन के ऑफिस वाली इमारत से निकलकर जलीस एक स्टोर में पहुँचा जहाँ पब्लिक टेलीफोन की सुविधा उपलब्ध थी ।
सोनिया द्वारा दिया गया कागज निकालकर उसने उस पर लिखा नंबर डायल किया ।
संबंध स्थापित होने पर सोनिया का स्वर सुनाई दिया ।
"हलो ?"
"जलीस दिस साइड ।"
"ओह...जलीस...कहाँ से बोल रहे हो ?"
"महाजन के ऑफिस के पास से । तुम फ्री हो ?"
"हाँ । आ रहे हो ?"
"आना तो चाहता हूँ ।"
"तो फिर आ जाओ ।"
"कहाँ ?"
"मेरे पास ।"
"लेकिन कहाँ ? तुमने सिर्फ अपना फोन नंबर मुझे दिया था, एड्रेस नहीं ।"
"ओह, सॉरी ।" सोनिया ने कहा और एड्रेस बताकर पूछा–"कितनी देर में पहुँचोगे ?"
"जितनी देर में टैक्सी पहुँचा देगी ।"
"ठीक है । मैं इंतजार करुंगी ।"
"सिर्फ इंतजार मत करना खाने के लिए भी कुछ तैयार कर रखना ।" कहकर जलीस ने संबंध विच्छेद कर दिया ।
* * * * * *
सोनिया द्वारा बताया गया पता एक अपार्टमेंट हाउस का था ।
लगभग बीस मिनट बाद जलीस वहाँ पहुँचा तो सचमुच उसे इंतजार करती पाया ।
वैलवेट का काला फैन्सी हाउस कोट पहने प्रवेश द्वार में खड़ी वह इतनी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी कि जलीस ठगा सा खड़ा देखता रह गया । मेकअप विहीन चेहरे का अपना कुदरती आकर्षण था–बड़ी–बड़ी स्याह आँखें, गुलाबी रंगत लिए गाल और पतले सुर्ख होंठ । ढीला और गले तक बंद होने के बावजूद हाउसकोट उसके उभारों को छुपा नहीं पा रहा था । उन्नत वक्ष गर्व से सीधे तने थे । एक टाँग को तनिक आगे किए खड़ी होने की वजह से वैलवेट जाँघ पर कुछ इस ढंग से कस गया था कि उसकी पुष्टता का स्पष्ट आभास मिल रहा था ।
सोनिया मुस्करायी ।
"कितने नंबर दे रहे हो मुझे ?"
जलीस भी मुस्कराया ।
"सौ बटा सौ ।"
सोनिया ने बाँह पकड़कर उसे अंदर खींच लिया ।
"तुम इंतिहाई खूबसूरत हो, यह तो मैं पहली मुलाकात में ही जान गया था ।" जलीस तारीफी लहजे में बोला–"लेकिन काले मखमली गाउन में किस कदर कयामतखेज लगती हो यह आज ही पता लगा है ।"
"अपनी इस ताजा जानकारी में थोड़ा इज़ाफा और कर लो ।" सोनिया बोली–"इस काले गाउन के नीचे कुछ भी और मैंने नहीं पहना हुआ है ।"
जलीस एक कुर्सी पर बैठ गया ।
"तुम झूठ बोल रही हो ।"
"मैं झूठ नहीं बोलती ।"
"इस मामले में तो बोल ही रही हो ।"
"नहीं, मैंने सच कहा है ।"
"सबूत ?"
"बिना सबूत पेश किए तुम्हें यकीन नहीं आएगा ?"
सोनिया ने पीठ के इर्द–गिर्द बंधी बैल्ट का एक सिरा पकड़कर खींच दिया । गाउन के सामने वाले दोनों सिरे फिसलकर साइडों में पहुंच गए ।
वह सचमुच कुछ और नहीं पहने थी । सोनिया ने दोनों सिरे खींचकर पुनः बैल्ट कस ली ।
जलीस मुँह बाए उसे देखता रह गया । साँचे में ढालकर बनाए गए से दूधिया रंगत वाले जिस्म की एक ही झलक से उसे अपने होश उड़ गए प्रतीत हुए । मज़ाक में थोड़ी लंबी खींची गई बात को सोनिया इस कदर गंभीरतापूर्वक लेगी यह तो उसने सोचा तक नहीं था ।
जलीस खड़ा हो गया । उसे अपना गला खुश्क हो गया महसूस हो रहा था ।
"सोनिया ।" वह फँसी सी आवाज़ में बोला–"फिर कभी ऐसा मत करना ।"
सोनिया ने आगे आकर उसका चेहरा अपने हाथों में थाम लिया ।
"क्यों, जलीस ?"
एकाएक जलीस की साँसें तनिक अव्यवस्थित हो गई थी और हाथों में कंपन महसूस हो रहा था किसी युवती की निकटता में इस तरह का अनुभव उसके लिए नई बात थी । उसकी जिंदगी में दर्जनों जवान और खूबसूरत औरतें आ चुकी थी । लेकिन इस तरह का अनुभव पहले कभी उसे नहीं हुआ था ।
उसे छूने तक का साहस वह नहीं कर पाया । वह उसे परे धकेल देना चाहता था लेकिन वह जानता था कि अगर उसे हाथ लगा दिया तो वो स्पर्श इतना विस्फोटक होगा कि संयम का बाँध टूटकर बिखर जाएगा । जबकि मौजूदा हालात में किसी भी तरह के जज्बात को स्वयं पर हावी होने देना ख़ुदकुशी करने जैसा था ।
"जलीस...?"
"हाँ ।"
"बुत बने क्यों खड़े हो ?"
"तुम्हें याद है, तुमने एक बार कहा था कि मैं जहर हूँ और इस बात को तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता ?"
"वो पुरानी बात थी ।"
सोनिया की निकटता, गालों पर नर्म हाथों का रोमांचक स्पर्श और चेहरे से टकराती उसकी साँसें मिलकर जलीस को बेकाबू किए दे रही थीं । वासना का तूफान उसे तिनके की तरह साथ उड़ा ले जाने वाला ही था कि उसने गहरी सांस ली और सर को झटककर पीछे हट गया ।
"मुझे एक और बात याद आ रही है, सोनिया ।"
उसका आशय समझ गई सोनिया अपने अंदर ही सिकुड़ गई सी प्रतीत हुई और सर झुका लिया ।
"तुम याद दिलाना चाहते हो, मैने कहा था कि तुम्हें मारा जाता देखने के लिए मैं कुछ भी दे सकती हूँ ।"
सोनिया ने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो उसकी आँखें गीली थीं ।"
"और तुम सोच रहे हो, यह सब मेरी उसी चाहत का एक हिस्सा है ?"
"पता नहीं । तुम एक अच्छी एक्ट्रेस हो लेकिन मैं अच्छा क्रिटिक नहीं हूँ । और इस तरह की सिचुएशन में सही ढंग से सोच पाना मेरे वश की बात नहीं है ।"
सोनिया ने आँखें पोंछकर पूर्णतया निश्छल भाव से उसे देखा ।
"मैं न तो बेवकूफ़ हूँ ।" वह मुस्कराकर बोली–"और न ही तुम मुझे बना सकते हो ।"
"क्या मतलब ?"
"तुम जानते हो, मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचती हैं, क्या समझती हूँ और क्या महसूस करती हूँ । इसी तरह अपने लिए तुम्हारी भावनाओं को मैं भी जानती हूँ ।"
"पहेलियाँ मत बुझाओ ।"
"साफ लफ्जों में सुनना चाहते हो ?"
"हाँ ।"
"आई लव यू, जलीस ।"
उसने शांत स्वर में जिस शान से ये शब्द कहे थे उससे जाहिर था कि बरसों से यह बात उसके मन में थी और इसके पीछे उसकी बरसों की सोच रही थी ।
"सुन लिया ?" गौर से उसे देखती सोनिया ने पूछा ।
"हाँ ।"
"अब तुम भी तो कुछ कहो ।"
जलीस मुस्कराया ।
"मैं कुछ नहीं कहूँगा ।"
"क्यों ? " सोनिया ने आहत स्वर में पूछा ।
"इसलिए कि तुम दावा कर चुकी हो कि अपने लिए मेरी भावनाओं को जानती हो ।"
"मेरा दावा सही है ?"
"सौ फीसदी सही है ।" जलीस बोला–"क्या प्यार का इज़हार हमेशा इसी तरह किया जाता है सोनिया ?"
"पता नहीं । इससे पहले मैंने तो कभी किया नहीं है ।"
"इस बारे में हम और खुलासा तौर पर बातें करेंगे ।" जलीस बोला–"बाद में ।"
सोनिया के चेहरे पर उदासी सी घिर आई । उसने अपनी बाँहें छाती पर बाँध ली ।
"बाद में कोई वक्त नहीं आएगा, जलीस ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि तुम पर मारामारी का भूत सवार है । अंजाम कुछ भी हो सकता है ।"
जलीस ने अपने कोट के बटन खोल दिए । जगतवीर सिंह की तरह सोनिया की निगाहें भी सीधी उसकी बैल्ट पर गई । वहाँ रिवॉल्वर न पाकर उसने राहत की गहरी साँस ली । फिर जब उसने जलीस की ओर देखा तो उसकी आँखें खुशी से चमक रही थी ।
वह धीरे–धीरे आगे आई और जलीस को अपनी बाँहों में जकड़कर उसके होंठों पर चुंबन जड़ दिया ।
"हमारे लिए अभी मौका है, जलीस ।" सोनिया उसे आलिंगन मुक्त करके बोली–"क्या हम इसका फायदा उठा सकते हैं ?"
"जरुर उठाएँगे ।"
"फिर बाद में वक्त मिलेगा ?"
"बहुत मिलेगा ।"
"तुम्हें भूख लगी है ?"
"हाँ, तुम्हारी ।"
"लेकिन तुम यहाँ खाने के लिए आए थे । याद है ?"
"हाँ, शुरुआत तुमसे ही करूँगा ।"
सोनिया ने जोरदार कहकहा लगाया ।
"बाद में ।" वह पुनः किस करके बोली–"लेकिन बहुत ज्यादा बाद में नहीं, डार्लिंग ।"
* * * * * *
सोनिया के साथ भोजन करने में जलीस ने नए किस्म का अजीब सा घरेलू आनंद और तृप्ती अनुभव की ।
एक–दूसरे की मौजूदगी को महसूस करते उन दोनों के मन में एक ही अहसास था–मुद्दत से मिलन की जो अधूरी ख़्वाहिश उनके अंदर पल रही थी उसके पूरा होने का वक्त आने वाला था ।
उन्होंने ढेरों बातें की । कहकहे लगाए । और पुराने वक़्तों को याद किया तब हालात तो बुरे थे लेकिन दिलों में मस्ती और बेपरवाही थी ।
"तुमने शादी क्यों नहीं की ?" कॉफी की चुस्कियों के बीच अचानक सोनिया ने पूछा ।
"पहले तो इसके लिए वक्त नहीं मिला । फिर कोई सही लड़की नहीं मिली ।" जलीस ने जवाब देकर पूछा–"तुमने शादी क्यों नहीं की ?"
"मुझे भी न तो वक्त मिला और न ही मनपसंद साथी ।"
"अच्छा, यह बताओ, सोनिया । तुम बरसों पहले गोविंदपुरी का इलाका छोड़कर इस पॉश एरिये में आ गई थीं और यहीं रहती रहीं फिर वापस क्यों चली गई ?"
"मतलब ?"
दारुवाला जैसे सूअर से क्यों और कैसे तुम्हारी दोस्ती हुई ।"
सोनिया ने सर झुका लिया ।
"समझ में नहीं आता कि कैसे इसका जवाब दूँ ।"
"अगर नहीं बताना चाहती तो मत बताओ ।"
"ऐसी कोई बात नहीं है जो तुम सोच रहे हो ।"
"देखो, सोनिया तुम्हारे धंधे या जाती मामलात में दखल देने की न तो पहले कभी मैने कोशिश की और न ही अब करुंगा । हम दोनों एक–दूसरे को जानते थे । लेकिन अब न तो तुम मुझे जानती हो और न ही मैं तुम्हें जानता हूँ । हमारी जिंदगियों के बीच सत्रह साल का गैप है और यह अर्सा कम नहीं होता । इस अर्से में गुज़री तुम्हारी ज़िदगी अपनी थी । मेरी दिलचस्पी सिर्फ आने वाले समय में है । इसलिए गुज़री ज़िदगी के बारे में अगर तुम कुछ बताना चाहती हो तो ठीक है और अगर नहीं बताना चाहती तब भी ठीक है ।"
सोनिया मस्कराई ।
"तुम्हारी साफ बात सुनकर खुशी हुई, जलीस । लेकिन मेरा फिर भी यही कहना है कि ऐसा कुछ नहीं था जो तुम सोच रहे हो ।"
जलीस खामोशी से कॉफी चुसकने लगा ।
सोनिया कुछ देर गहरी सोच में खोई रही फिर बोली–"मेरी बात सुनने में तुम्हें बेवकूफाना लगेगी ।"
जलीस कुछ नहीं बोला ।
अच्छाई और बुराई की हर एक की अपनी परिभाषा और इन्हें नापने का हर एक का अपना अलग पैमाना हो सकता है ।" सोनिया ने पुनः कहना आरंभ किया–"इस मामले में हर एक का अपना–अपना नज़रिया है । इसीलिए बुराई को मिटाने की कोशिश करना सुनने में जितना अच्छा लगता है असल में उतना ही मुश्किल और जोखिम भरा अजीब सा काम है । तुम भी ऐसे ही एक काम से यहाँ आए थे–अपने दोस्त के खूनी को खत्म करने के लिए तैयार होकर । जयपाल भी अपने ढंग से यही कर रहा है । वह खुद को पूरे शहर की अंतरात्मा समझता है । किसी से डरे बगैर वह उन चीजों को मिटाना चाहता है जिनसे उसे बेहद नफरत है । गंदे इलाके, गरीबी, जुर्म...और तमाम ऐसी चीजें जिनके बीच रहकर वह पला बढ़ा है और जो उससे जुड़ी रहती है । और मैं...मैं भी एक बुराई को मिटाना चाहती थी ।"
"थी ?"
"हाँ । अब मुझे लगता है, वो मेरा नासमझी भरा जोश था । जज्बात की रौ में बहकर किया गया फैसला और जल्दबाजी में उठाया गया कदम था ।" सोनिया ने कहा–"विमला सक्सेना मेरी सहेली थी ठीक वैसे ही जैसे कि तुम और रनधीर दोस्त थे । हालांकि दो जवान होती लड़कियों की इतनी ज्यादा नज़दीकी वाली बात सुनने में अजीब लगती है लेकिन हम दोनों के बीच अजीब कुछ नहीं था । आपसी प्रेम, विश्वास, सहानुभूति और सहयोग ही हमारे संबंधों का आधार थे । जिस तरह तुम्हारा मुसलमान होना और रनधीर का हिन्दू होना तुम्हारी दोस्ती के कभी आड़े नहीं आया था उसी तरह विमला का हिन्दू और मेरा ईसाई होना भी कभी हमारे बीच नहीं आया । हम दोनों मज़हब में नहीं बल्कि इंसानियत और इंसान होने में विश्वास करती थी ।"
"और अब इस बारे में तुम्हारी क्या राय है ?" जलीस ने टोका ।
"वही जो पहले थी । मेरी मज़हबी आस्था और विश्वास चर्च और बाइबिल से जुड़े हैं । क्योंकि बचपन से उसी माहौल में रही थी लेकिन मंदिर और गुरुद्वारा भी मैं जाती हूँ । मस्जिद और दरगाहों के पास से गुजरती हूँ तो सजदा करती हूँ । मेरे लिए सभी धर्म बराबर है । सभी का पूरा आदर करती हूँ ।"
"मुझे खुशी है कि तुम्हारे विचार बदले नहीं ।" जलीस बोला–"जमाने की हवा को देखते हुए मेरे लिए यह जानना जरूरी था ।"
"तुम्हारा इशारा मज़हबी जुनून की ओर है ।"
"हाँ ।"
"यह जमाने की हवा नहीं है, जलीस । मज़हब और सियासत के धंधेबाजों द्वारा अपना उल्लू सीधा करने के लिए चलाया गया कुचक्र है । एक घिनौना षड़यंत्र है । लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर उन्हें अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करने का । लेकिन यह कामयाब नहीं होगा । वक्ती तौर पर बहकावे में आ गए लोग भी, मज़हब के नाम पर सियासत करने और सियासत के लिए मज़हब को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने वालों की असलियत को समझने लगे हैं । धीरे–धीरे उनके असली चेहरे सामने आ रहे हैं । उनकी नीयत और मंसूबे जाहिर हो चुके हैं ।"
"फिर भी खतरा तो बना हुआ है ।"
"यह अस्थायी दौर है ज्यादा देर नहीं रहेगा ।"
"तुम्हें पूरा विश्वास है ?"
"हाँ ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि आम आदमी समझने लगा है कि उसे गंदी राजनीति के मदारियों द्वारा बेवकूफ़ बनाया जा रहा है । मज़हबी सियासत का मोहरा बना कर गरीबी और बेकारी की चक्की में पिसता रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है । रोटी, कपड़ा और मकान जैसी उसकी बुनियादी जरुरत को कोई पूरा नहीं करना चाहता । बस मदारी वाले अपने करतब दिखाकर सभी उसका वोट अपनी झोली में डलवाना चाहते है ।" सोनिया अपनी कॉफी खत्म करने के बाद बोली–"गोविंदपुरी एशिया का सबसे बड़ा स्लम एरिया है । जुर्म भी वहाँ सबसे ज्यादा है । छोटे–मोटे गुंडे बदमाशों से लेकर हर तरह के जरायम पेशा और गिरोहबंद बदमाशों की तादाद भी यहाँ सबसे ज्यादा है । बड़े–बड़े खतरनाक और कुख्यात बदमाश अपने–अपने दौर के बेताज बादशाह रह चुके हैं । आए दिन खून–ख़राबा होने से लेकर बड़ी–बड़ी गैगवार भी यहाँ होती रही हैं । लेकिन मज़हब या जाति के नाम पर कभी कोई फसाद नहीं हुआ । जबकि सभी धर्मों और प्रदेशों के ही लोग बहुत बड़ी तादाद में यहाँ रहते हैं । लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि मज़हबी जनून फैलाकर यहाँ भी फसादात कराने की तैयारी की जा रही है ।"
"जानता हूँ ।" तैयारियाँ पूरी हो चुकी है और दिन भी तय किया जा चुका है ।" जलीस बोला–"लेकिन सारी तैयारियों धरी रह जाएंगी । गोविंदपुरी में कोई फसाद नहीं होगा ।"
"यह तुम कैसे कह सकते हो ?"
"इसलिए कि उस दिन के आने से पहले ही यह सब कराने वाले...।" जलीस ने तनिक रुककर कहा–"पुलिस को भी इस बात की जानकारी है और वो इससे अपने आप निपट लेंगे ।"
सोनिया ने गौर से उसे देखा ।
"तुमने बात को घुमा दिया है, जलीस । तुम कुछ और ही कहना चाहते थे ।"
"नहीं, ऐसा नहीं है ।" जलीस ने कहा, फिर मुस्कराकर बोला–"हम अपने असली विषय से काफी भटक गए हैं । तुम विमला सक्सेना के बारे में बता रही थीं । वापस उसी ट्रैक पर आ जाओ ।"
"मैं जानती हूँ, तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो और पूछने पर भी बताओगे नहीं ।" सोनिया ने कहा–"खैर, विमला सक्सेना जितनी अच्छी लड़की थी उससे कहीं ज्यादा बदकिस्मत थी । उसके हालात और घर की माली हालत इतने खराब थे कि मजबूरन उसे अपने जिस्म का सौदा करना पड़ा । उस उम्र में इसके अलावा और कोई चारा उसके सामने नहीं था । और एक बार इस दलदल में गिरी तो गिरती ही चली गई । मामूली गुंडे लफंगों तक को उसे अपना शरीर बेचते मैंने देखा था । मैं खुद इस हालत में नहीं थी कि उसकी कोई मदद करती इसलिए उस पर तरस खाकर रह जाती थी । वह काफी खूबसूरत थी इसलिए शुरुआत में सिर्फ 'बड़ों' के लिए रिजर्व रहती थी । उनमें भी सबसे पहला हक़दार उसका दारुवाला था । फिर निचले दर्जे वालो तक पहुँचती हुई रनधीर तक जा पहुँची ।"
"लेकिन रनधीर भी तो 'बड़ा' था ।" जलीस ने टोका ।
"लड़कियों के मामले में नहीं था । उसकी शख्सियत, मिज़ाज और आदतों में ऐसा कुछ नहीं था कि कोई लड़की उसमें दिलचस्पी लेती । उसे भी लड़कियों में वो दिलचस्पी नहीं थी जो कि होनी चाहिए थी । पता नहीं वह मर्दाना कमज़ोरी का शिकार था या 'परवर्ट' था या फिर कोई और वजह थी । बहरहाल लड़की की सोहबत वह पैसे की एवज में ही हासिल करता था । बड़ा बदमाश वह जरुर था लेकिन औरतों से सोहबत के मामले में कुछ नहीं था ।"
प्रत्यक्षतः सोनिया की यह बात महाजन द्वारा रनधीर के बारे में बतायी गई बात से मेल खाती थी । हालांकि यह पचा पाना मुश्किल था लेकिन खुद अपने तौर पर इस मामले में कोई सही नतीजा वह नहीं निकाल सकता था । क्योंकि जिस दौर की बातें ये थीं उस दौर के रनधीर को वह नहीं जानता था ।
"रनधीर शुरु से ही विमला को चाहता था ।" सोनिया का कथन जारी था–"और विमला वो सब पेशे के तौर पर कर रही थी । जब तक उसकी जिंदगी में और लोग आते रहे उसने रनधीर की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा । लेकिन जब सब उसे भोग चुके तो रनधीर को अपनी चाहत पूरी करने का मौका नजर आ गया । विमला उसके पास पहुँच गई । तब तक वह दिमागी तौर पर टूट चुकी थी । उसकी उस हालत में उसे हेरोइन लेने के लिए मना लेना कोई मुश्किल काम नहीं था । चरस के सिगरेट तो वह कई साल से पी ही रही थी । हेरोइन भी लेने लगी । रनधीर ने उसे एडिक्ट बना दिया और इस तरह तब तक उसे अपने साथ बाँधे रखा जब तक कि एक रोज एक इमारत की छत पर जाकर उसने नीचे छलांग नहीं लगा दी ।"
"बुरा हुआ ।"
"बिल्कुल नहीं । विमला के लिए यह ठीक ही हुआ । इस तरह उसे अपनी उस नर्क जैसी जिंदगी से निजात मिल गई जिसे मजबूरन उसे ढोना पड़ रहा था । उसके तमाम दुखों का अंत हो गया । लेकिन उसकी हौलनाक मौत ने मुझे झकझोर कर रख दिया...नफरत और गुस्से ने मेरे अंदर इंतकाम की आग सुलगा दी । मैं कुछ ऐसा करना चाहती थी कि दारुवाला, रनधीर आर उन जैसे बाकी दरिंदे विमला और माला जैसी लाचार लड़कियों और दूसरे बेबस लोगों की मजबूरियों का फायदा न उठा सकें । मेरे लिए यह मुश्किल नहीं था । मैंने एक बार दारुवाला को शालीनता के दायरे में थोड़ी सी लिफ्ट दी...उसने धीरे–धीरे दोस्ती कायम ली । और मैं उसकी दोस्ती को अक्सर हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने लगी खास तरह के कामों के लिए ।"
"मसलन ?"
"पुराने किराएदारों से जबरन मकान खाली कराने के मामलों में । गोविंदपुरी में जब भी कोई मकान मालिक किराया बढ़ाने की कोशिश करता या किराएदारों को मकान खाली कराने के लिए बेवजह परेशान करता तो दारुवालला का एक इशारा ही काफी होता और मकान मालिक अपनी बेजा हरकतों को छोड़कर फौरन सीधे हो जाते थे । कई ऐसी लड़कियों के मामले में भी दारुवाला का रुतबा मददगार साबित हुआ । जिन्हें पेशेवर दल्ले डरा धमकाकर या उनकी मजबूरी से फायदा उठाकर उनसे जबरन वेश्यावृत्ति कराना चाहते थे । दारुवाला की ओर से मिली एक ही धमकी उन दल्लों को शहर से भागने पर मजबूर कर देती थी । दर्जनों शिक्षित बेरोजगार युवक युवतियों को नौकरी दिलाने में भी उसने अपने रसूखों के जरिए मदद की थी । कुछेक को छोटे मोटे निजी धंधे करने के लिए बैंकों से कर्जा भी उसके जरिए मैंने दिलवाया था ।"
"तुमने नेक इरादे और मकसद के साथ बुराई को मिटाने की कोशिश की थी ।"
"वो सिर्फ शुरुआत थी । असल में मेरा निशाना था–रनधीर । क्योंकि विमला की मौत के लिए वही जिम्मेदार था । और मैं एक काँटे से दूसरा काँटा निकालना चाहती थी । उस वक्त मैं समझती थी कि दारुवाला ज्यादा बड़ा और ज्यादा ताक़तवर है और उसी से रनधीर को खत्म कराना चाहती थी । फिर एक रोज मुझे पता चला कि जल्दबाजी में कितना बड़ी गलती कर बैठी थी । दारुवाला में रनधीर को छूने तक की हिम्मत नहीं थी और न ही उस जैसे किसी दूसरे में इतना हौसला था । दारुवाला ने बड़े ही साफ लफ्जों में एक तरह से मुझे चेतावनी दी कि रनधीर के पास फटकने की बात तो दूर रही उसका नाम भी कभी मेरी ज़ुबान पर नहीं आना चाहिए । तब मैं समझ गई कि असली और ज्यादा ताकत किसके पास थी ?"
"और इस पूरे दौर में दारुवाला तुम पर 'मेहरबान' बना रहा ?"
सोनिया मुस्करायी ।
"वह मुझसे प्यार करता था ।"
"वो तो उसने करना ही था ।"
"लेकिन शालीनता के दायरे और सीमा से बाहर आने की कोशिश उसने कभी नहीं की । वह सिर्फ मेरी कंपनी से ही संतुष्ट था क्योंकि वह जानता था, इससे ज्यादा कुछ उसे मुझसे नहीं मिलने वाला था ।" कहकर सोनिया तनिक रुकी फिर बोली–"फिर मैंने खुद ही रनधीर से हिसाब चुकाने का फैसला किया । पुराने ताल्लकात को नए सिरे से कायम करना मुश्किल नहीं था । शुरू में मैं कभी–कभी उससे मिली फिर अक्सर मिलने लगी । वह मेरे लिए कीमती तोहफे भिजवाता था, मेरे कई शानदार स्टेज शो भी उसने अरेंज कराए और जब भी मैं उससे मिलना चाहती थी तो सारे काम छोड़कर वह मेरा इंतजार करने लगता था ।"
"जब तुम उसके साथ होती तो उसका व्यवहार कैसा होता था ?"
"एकदम अजीब । अकेले में कोई बेजा हरकत करना तो दूर रहा उसने कभी मेरे नज़दीक आने की कोशिश भी नहीं की । वह यूँ मुझे देखता और मेरी तारीफ करता था जैसे कि मैं जीवित इंसान न होकर पत्थर की कोई बेहद खूबसूरत मूर्ति थी । जबकि मैं उस दौरान यह पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि वो क्या चीज थी जिसने उसे इतना बड़ा, ताक़तवर और साधन सम्पन्न आदमी बना दिया था ।"
"तुम्हें पता लगा ?"
"नहीं । वह बड़ी सफाई से इस बात को टाल जाता था । मैं समझ गई कि मुझे लंबा इंतजार करना होगा । और मैं यही करने लगी ।"
"फिर ?"
"फिर वह मारा गया ।"
"उसकी हत्या किसने की थी, सोनिया ?"
"किसी के द्वारा भी की गयी हो सकती थी । यह पूरा शहर रनधीर की मुट्ठी में था । वह जब, जैसे और जिसे चाहता अपने एक इशारे पर 'नचा' सकता था । वह आदमी नहीं अपने बिल में ही रहने वाला एक ऐसा जहरीला नाग था जिससे सब डरते थे ।"
"फिर भी उसकी हत्या कर दी गई । तुमने कभी उसके हत्यारे के बारे में सोचा है ?"
"उससे डरने और नफरत करने वालों की कमी नहीं थी । उनमें से किसी ने भी उसकी हत्या की होगी ।"
"सवाल तो यह है, किसने ?"
"'सिंडिकेट का भी काम हो सकता है ।"
"नहीं, सिंडिकेट का काम वो नहीं था ।" जलीस विचारपुर्वक बोला–"जिस रात मैं यहाँ आया था तब से बराबर एक ही बात सोच रहा हूँ । सभी बड़े गिरोहबंद बदमाश...सुलेमान पाशा, पॉश कॉलोनीज में रहने वाले और संगठित अपराधों से जुड़े सफ़ेदपोश दादा, सिंडिकेट के नुमाइंदे वगैरा को मैने एक साथ देखा था ।"
"क्लब की मीटिंग में ?"
"हाँ । सब वहाँ मौजूद थे । जैकी स्वयं को 'बॉस' घोषित कर रहा था । और वे गौर से उस उल्लू के पट्टे की बातें सुन रहे थे । एतराज करना तो दूर रहा उनमें से कोई कुछ बोला तक भी नहीं ।"
"लेकिन, जैकी...।"
"मैं जानता हूँ, वह कुछ भी नहीं है । लेकिन अगली रात वह सुलेमान पाशा के साथ एक कांफ्रेंस कर रहा था । और हालांकि इंस्पैक्टर जगतवीर सिंह एक आम आदमी होने का दावा करता है । लेकिन जैकी जैसे बदमाशों के साथ डिनर कांफ्रेंस में हिस्सा वह नहीं लेता ।"
"तुम कहना क्या चाह रहे हो ?"
"मेरा खयाल है, जैकी ने बड़ा तगड़ा कोई ऐसा संकेत दे दिया था कि रनधीर का 'पॉवर पैकेज', जिसने सबको सीधा किया हुआ था, उसे मिल गया था ।"
"तुम समझते हो, रनधीर की हत्या उसी ने की थी ?"
"जैकी एक मामूली बदमाश हुआ करता था ब्लैकमलिंग के जोर पर दूसरों को अपने काबू में रखने का न तो हुनर उसके पास है और न ही इतना हौसला उसमें है । रनधीर भी उसकी औकात को जानता था इसलिए हमेशा उसे डपटकर रखता था । लेकिन जैकी मक्कार किस्म का आदमी है । खुद को बड़ी चीज समझने की खुशफहमी का इस हद तक शिकार रहा है कि डींगे हाँकने का कोई मौका नहीं छोड़ता था । जाहिर है कि रनधीर के सलूक की वजह से जैकी भी उससे जरूर नफरत करता था । जैकी पुराने गिरोह प्रिंसेज पैलेस क्लब का भी एक हिस्सा था । रनधीर की हत्या करने से किसी भी तरह का कोई नुकसान उसे नहीं होना था । खासतौर पर उस सूरत में जबकि वह जानता था, रनधीर का 'पॉवर पैकेज' कहाँ छुपा था । अगर इस बात की जानकारी उसे नहीं भी थी तो भी इस पोजीशन में तो वह था ही कि दावा कर सके कि 'पॉवर पैकेज' उसी के पास है । उसकी इस ब्लफ को किसी ने चुनौती भी नहीं दी क्योंकि इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था कि रनधीर का नज़दीकी और 'प्रिंसेज पैलेस' का पुराना 'शहजादा' होने की वजह से वह रनधीर का राजदार रहता था और उसकी मौत के बाद उसकी किसी खास चीज का मालिक बन गया था । रनधीर ने जो वसीयत की थी उसके मुताबिक उसकी चल–अचल सम्पत्ति का मालिक मैं हूँ । लेकिन उस वसीयत में कहीं भी पैकेट, बॉक्स, फाइल वगैरा जैसी किसी भी चीज का कहीं कोई जिक्र नहीं है । इससे आम तौर पर अनुमान लगा लिया गया कि वो 'खास चीज' रनधीर किसी और के लिए छोड़ गया था । और इस अनुमान ने जैकी की ब्लफ को और पुख्ता बना दिया । इस तरह जैकी ने 'बिग बॉस' बनने की कोशिश कर डाली रनधीर की हत्या करके 'आर्गेनाइजेशन' पर कब्ज़ा करने की कोशिश भी की । लेकिन उसकी बदकिस्मती से ऐन वक्त पर मैं आ पहुँचा और मैं ही इकलौता शख्स था जो उसकी ब्लफ को पकड़ सकता था । मैंने ब्लफ पकड़ ली और इनाम के तौर पर उसके चेहरे का हुलिया बिगाड़ दिया । अब यह बात भी मेरी समझ में आनी शुरु हो गई है कि इसीलिए मुझे खत्म कराने के लिए उसने बाहर से दो आदमियों को बुलाया था । वाह, क्या चाल थी ।"
सोनिया बुरी तरह चौंकी । इस ढंग से उसने कभी नहीं सोचा था ।
"इसका मतलब...हत्या जैकी ने ही की थी ?"
"पता नहीं । आओ, चलकर उसी से पूछते हैं ।"
जलीस जानता था, बगैर रिवॉल्वर के भी जैकी को हैंडल करना मुश्किल नहीं था बशर्ते कि जैकी को पता नहीं चले कि उसके पास रिवॉल्वर नहीं थी ।
जयकिशन उर्फ जैकी बैचलर था और ग्राउंड फ्लोर पर रहता था । उस इलाके की इमारतें बहुत ज्यादा पुरानी और इतना खस्ता हालत में थी कि कुछ ही महीनों में गिरा दी जाने वाली थीं । बाँयी ओर की छह इमारतें पहले ही खाली करायी जा चुकी थी और उनमें से दो गिराई भी जा चुकी थीं । एक बुल्डोज़र वहाँ मलबा हटाने में लगा था और कुछ मजदूर कंकरीट के स्लैब तोड़ रहे थे ।
ग्राउंड फ्लोर पर दो और फ्लैट भी थे । लेकिन उन पर किसी की नेम प्लेट नहीं लगी थी ।
तीनों फ्लैट्स के दरवाजे बंद थे ।
जलीस ने जैकी के फ्लैट की घंटी बजाई ।
कई सैकेंड इंतजार करने के बाद भी अंदर से किसी प्रकार की हलचल का आभास नहीं मिला तो उसने पुनः डोरबेल बटन दबा दिया ।
जवाब में अंदर खामोशी ही छायी रही ।
जलीस ने शेष दोनों फ्लैटों की डोरबैल ट्राई की लेकिन नतीजा वही रहा ।
जलीस ने बाहर निकलकर ऊपर की मंजिलों पर निगाहें दौड़ाईं । सभी खिड़कियाँ बंद थीं, और किसी पर भी परदे लटकते नजर नहीं आ रहे थे । प्रत्यक्षतः या तो जैकी पूरी इमारत में अकेला रहता था या फिर वहाँ रहने वाले अन्य लोग डिमोलिशन से पहले ही अपने फ्लैट खाली करके जा चुके थे ।
"अब क्या करोगे ?" सोनिया ने पूछा ।
"आओ, बताता हूँ ।"
दोनों पुनः इमारत में दाखिल हुए ।
जलीस ने जैकी के प्रवेशद्वार की डोर नॉब घुमाने की कोशिश की तो पता चला कि दरवाज़ा भीतर से लॉक्ड था ।
इसका सीधा सा अर्थ था–जैकी अंदर था । उसने जोर से दस्तक दी ।
जवाब में फ्लैट सहित पूरी इमारत में सन्नाटा छाया रहा । बस बुल्डोज़र के चलने और मज़दूरों द्वारा काम किए जाने की धीमी आवाज़े बाहर से सुनाई दे रही थीं ।
जलीस को लगा जरुर कोई गड़बड़ थी ।
उसने ताला खोलने के लिए कोई सही चीज ढूंढ़ने के चक्कर में वक्त जाया करना मुनासिब नहीं समझा । दरवाज़ा पुराना और कमजोर था । जलीस को यकीन था कि उसे तोड़ने के लिए उसकी पूरी ताकत से पड़ी एक ही ठोकर काफी होगी ।
वह तनिक पीछे हट गया ।
उसका इरादा भाँप गई सोनिया नर्वस नजर आ रही थी । उसके विचारानुसार यूँ किसी का दरवाज़ा तोड़ना क़ानूनन जुर्म था । लेकिन इससे पहले कि वह रोकने की कोशिश करती जलीस जबरदस्त ठोकर जमा चुका था ।
लॉक उखड़ गया और दरवाजे का पल्ला अंदर की ओर झूल गया ।
कमरे में अंधेरा था । भीतर कदम रखते ही जलीस का हाथ रिवॉल्वर निकालने के लिए आदतन अपनी बैल्ट की ओर लपका लेकिन उसकी रिवॉल्वर उस वक्त पीटर की खोली में विश्राम कर रही थी ।
तभी उसकी निगाह जैकी पर पड़ी और उसने अपनी बगल में खड़ी सोनिया को परे धकेल दिया । ठीक उसी क्षण अंधेरे कमरे के कोने से फायर किया गया ।
सोनिया दीवार से टकराई और उसे कार्नर की आड़ मिल गई । लेकिन जलीस के लिए कोई आड़ नहीं थी । वह फौरन स्वयं को नीचे गिराकर फर्श पर लुढ़क गया ।
उसका हाथ एक छोटी मेज के पाए से टकराया तो उसने तुरंत उसे उठाकर फायरकर्ता की दिशा में फेंक दिया ।
तत्क्षण मामूली आवाज़ के साथ दो शोले और चमके और दोनों गोलियाँ फर्श में उस स्थान पर आ घुसी जहाँ जलीस ने खुद को नीचे गिराया था ।
फिर दूसरे कमरे में पहले कदमों की आहट और फिर भड़ाक से दरवाज़ा बंद किए जाने की आवाज़ सुनाई दी ।
जलीस उठकर खड़ा हो गया ।
अंधेरा बहुत ज्यादा था और उसकी आँखें इसकी अभ्यस्त नहीं हो पायी थीं । वह टटोलता हुआ सा चलकर दूसरे दरवाजे पर पहुँचा और उसे खोलकर दूसरे कमरे में आ गया ।
पिछवाड़े की तरफ खुलने वाली ग्रिल विहीन खिड़की खुली पड़ी थी । बाहर शाम का धुंधलका रात के अंधेरे में तब्दील होना शुरू हो चुका था ।
खिड़की से बाहर झाँकना खतरनाक साबित हो सकता था फिर भी जलीस ने गरदन बाहर निकालकर हर तरफ निगाहें दौड़ाई ।
आशा के अनुरूप कोई दिखाई नहीं दिया । सहन खाली पड़ा था । वहाँ से, आस–पास खाली पड़ी दर्जनों इमारतों में से किसी में भी दाखिल होकर आसानी से गुम हुआ जा सकता था ।
उसे खोजने की कोशिश करना मूर्खता थी ।
जलीस वापस बाहरी कमरे में आ गया ।
उसने लाइट स्विच टटोलकर रुमाल की सहायता से ऑन कर दिया ।
कमरे में रोशनी फैल गई ।
सोनिया अभी तक कोने में दुबकी सी बैठी हाँफ रही थी । उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था ।
जलीस ने उसका हाथ पकड़कर उसे ऊपर उठाया ।
तभी सोनिया ने कुर्सी में पड़े जैकी को देखा । उसकी आँखें फैल गईं और उंगलियाँ जलीस की कलाई पर कस गईं । उसे यकीन नहीं आ रहा था कि जैकी वास्तव में मर चुका था ।
"यह...यह...।"
"यह मर चुका है ।"
"ओह !"
जलीस कुर्सी के पास पहुँचा । जैकी की मुर्दा आँखें खुली थीं और शून्य में ताकती सी प्रतीत हो रही थी । उसके सीने पर दिल के ऊपर दो सुराख नजर आ रहे थे । उसकी सफेद शर्ट पर खून के छोटे से दाग से स्पष्ट था कि उसने पहली गोली लगते ही दम तोड़ दिया था । इसीलिए खून नहीं बह पाया था ।
जलीस ने उसकी कनपटी को छुआ ।
लाश गर्म थी ।
"त...तुमने देखा, वह कौन था ?" सोनिया ने पूछा ।
जलीस उसकी ओर पलट गया ।
सोनिया मुंह पर हाथ रखे काँप रही थी ।
"नहीं ।" जलीस ने जवाब दिया ।
"अ...अब हमें क्या करना होगा ?"
"सोचने दो ।"
"पुलिस को...।"
"नहीं, अभी नहीं ।"
"क्यों ?"
"मुझे थोड़ा वक्त चाहिए ।"
"लेकिन...।"
"बहस मत करो । हम दोनों का साथ–साथ हत्या के एक और मामले में फंसने का सीधा सा मतलब होगा–हवालात में बंद हो जाना । इस दफा महाजन भी हमारी मदद नहीं कर पाएगा । और मैं पुलिस के लफड़े में पड़कर वक्त जाया करना नहीं चाहता ।"
सोनिया खामोश हो गई ।
जलीस सोच रहा था । जैकी को मरे ज्यादा देर नहीं हुई थी । संभवतया उनके पहुँचने से दो–एक मिनट पहले ही उसे शूट किया गया था । हत्यारे के पास साइलेंसर फिटेड गन थी अगर ऐसा नहीं भी होता भी बुल्डोज़र के शोर में उसकी आवाज़ नहीं सुनी जानी थी । इसका मतलब था, हत्यारे को यहाँ जैकी के सीने में दो गोलियाँ उतारने से ज्यादा कुछ करने का वक्त नहीं मिल पाया था ।
जलीस ने फ्लैट की तलाशी लेनी आरंभ कर दी ।
जल्दी ही वे तमाम संभावित स्थान छान मारे जहाँ जैकी द्वारा किसी चीज को छुपाए जाने की उम्मीद की जा सकती थी । यूँ वह मक्कार और मौक़ापरस्त आदमी रहा था मगर इस मामले में चालाकी करने लायक कल्पनाशील दिमाग उसका नहीं था ।
अगर उस फ्लैट में कोई खास चीज उसने छुपायी होती तो इस तलाशी में जलीस को वो जरुर मिल जानी थी । क्योंकि ड्रेसिंग टेबल के दोहरे तले वाले निचले ड्राअर में रखे दो रिवॉल्वर उसने ढूंढ निकाले थे । इसी तरह दोहरे तले वाले सूटकेस में छुपाकर रखे गए पाँच सौ रुपए के नोटों की शक्ल में करीब चार लाख रुपए भी उसे मिल गए थे ।
लेकिन वो चीज नहीं मिली जिसकी जलीस को तलाश थी ।
"यह फ्लैट एकदम साफ है ।" वह बोला ।
लाश की ओर से पीठ किए खड़ी सोनिया स्वयं पर काबू बनाए रखने का भरसक प्रयत्न कर रही थी ।
"क्या मतलब है ?" वह असमंजसता पूर्वक बोली ।
"यहाँ किसी ने तलाशी नहीं ली थी ।" जलीस बोला–"यहाँ आया व्यक्ति जो भी था, उसका इकलौता मकसद था–जैकी की हत्या करना ।"
"जलीस...।" अचानक वह चौंकती सी बोली–"इसकी हत्या का शक भी तुम पर किया जाएगा ।"
"बेकार परेशान मत होओ । अभी कोई कुछ नहीं जानता है । यह प्रोफेशनल जॉब था । इसकी असलियत को जाहिर नहीं होने दिया जाएगा ।"
"हो सकता है, बाहर मौजूद किसी व्यक्ति ने उसे देख लिया था या फिर हमें देख लिया हो ।"
"मामूली चीजों की ओर आम तौर पर लोग ध्यान नहीं दिया करते । वैसे भी यह इलाका तकरीबन सुनसान है । अगर हम सामान्य ढंग से बाहर जाएँगे तो ज्यादा उम्मीद इसी बात की है कि कोई भी हमारी ओर ध्यान नहीं देगा ।"
"तो फिर यहाँ से चलते क्यों नहीं ? मैं अब एक मिनट भी और यहाँ नहीं ठहरना चाहती ।"
"मुझे एक फोन करना है । तब तक तुम बाहर इंतजार करो ।"
सोनिया ने पहले तो इंकार करना चाहा फिर बेमन से बाहर निकल गई ।
टेलीफोन उपकरण कोने में एक कुर्सी, के पास मेज पर रखा था ।
जलीस ने रुमाल की सहायता से रिसीवर उठाकर विनोद महाजन का नंबर डायल किया ।
संबंध स्थापित होने पर बोला–"जलीस बोल रहा हूँ, वीनू । पीटर ने फोन किया था ?"
"हाँ ।" महाजन द्वारा बताया गया ।
"कोई मैसेज ?"
"तुम्हें फोन करने के लिये कहा है ।"
"किस नंबर पर ?"
महाजन ने बता दिया ।
जलीस ने धन्यवाद देकर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया ।
फिर फ्रांसिस के कैफे का नंबर घुमाया ।
लाइन पर फ्रांसिस का स्वर उभरा ।
"हलो ?"
"जयपाल यादव है ?" जलीस ने पूछा ।
"हाँ ।"
"बात कराओ ।"
लाइन पर कुछेक सैकेंड मौन रहा फिर जयपाल की आवाज़ सुनाई दी ।
"यस, यादव हेयर ।"
"जलीस बोल रहा हूँ, दोस्त । तुम्हारे लिए एक खबर है ।"
"तुम्हारी मेहरबानी मुझे नहीं चाहिए ।"
"यह एक्सक्लूसिव न्यूज़ है । जयकिशन उर्फ जैकी की हत्या कर दी गई है ? मैं उसी के फ्लैट से बोल रहा हूँ ।"
"तुम...।" यादव के स्वर में घोर अविश्वास था–"तुमने उसे मार डाला ?"
"पागल मत बनो । मैने उसे मरा पड़ा पाया है ।"
"अच्छा हुआ, एक और कम हो गया ।" अब यादव के स्वर में उत्तेजना का पुट था–"जब तक तुम यहाँ रहोगे । देर–सवेर वे सभी मारे जाएंगे । जगतवीर सिंह इस नई खबर से बहुत खुश होगा । तुमने तो उसे इत्तिला नहीं दी होगी ?"
"नहीं ।"
"ठीक है । मैं दे देता हूँ ।"
"ऐसी बेवकूफी मत कर बैठना ।"
"क्या मतलब ?"
"इस वक्त सोनिया भी मेरे साथ यहाँ है । अगर उसे मुसीबत में डालना चाहते हो तो इत्तिला कर दो वरना चुप बैठ जाओ ।"
"हरामजादे ।"
"गालियाँ बाद में बक लेना ।"
"ओह, तुम किसी और फेर में हो । क्या चाहते हो ?"
"मैं अपने लिए कुछ नहीं चाहता ।"
"फिर ?"
"इस वक्त जरुरत इस बात की है कि उसकी लाश किसी को मिले और यह खबर फैल जाए । रिपोर्टर होने के नाते तुम आसानी से यह काम कर सकते हो । तुम्हारा बहाना होगा कि जैकी से पूछताछ करने आए तो उसे मरा पड़ा पाया ।"
"और तुम लोग ?"
"हमारी फिक्र मत करो । हमें यहाँ से निकलते कोई नहीं देख पाएगा ।"
"और कुछ ?"
"हमारे बारे में अपनी ज़ुबान बंद रखना ।"
यादव ने बगैर कुछ और कहे संबंध विच्छेद कर दिया ।
जलीस ने रिसीवर यथास्थान रखकर फर्श पर निगाह डाली जहाँ उसने स्वयं को गिराया था और सोनिया को धक्का दिया था । वहाँ ऐसी कोई चीज नहीं थी जिसका उससे या सोनिया से रिश्ता जोड़ा जा सकता था ।
वह लाइट ऑफ करके कमरे से निकला और सोनिया को साथ लेकर इमारत से बाहर आ गया ।
आस–पास कोई नहीं था । बुल्डोज़र शांत खड़ा था । उस रोज का अपना काम खत्म करके मजदूर भी जा चुके थे ।
अब तक अंधेरा अच्छी तरह फैल चुका था ।
वे दोनों किसी का ध्यान आकर्षित किए बगैर मेन रोड पर जा पहुँचे ।
भाग्यवश जल्दी ही एक खाली टैक्सी भी मिल गई । सोनिया का पता बताकर दोनों टैक्सी में सवार हो गए ।
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