अगले रोज शोहाब ने परमेश करनानी की रिपोर्ट पेश की ।
‘‘कोई चालीस साल का पुराना बिगड़ा हुआ भीड़ू है ।’’ — वो बोला — ‘‘शादीशुदा है, दो बच्चे हैं । हर्नबी रोड पर ज्वेलरी की छोटी सी शाप है जहां खुद कम ही पाया जाता है ।’’
‘‘वजह ?’’ — विमल बोला ।
‘‘ट्रैवल बहुत करता है । फारेन भी और इण्डिया में भी । अमूमन दुबई या बैंकाक जाता है । कभी कभार लन्दन भी ।’’
‘‘ट्रैवल तफरीहन !’’
‘‘तफरीहन भला कोई एक ही जगह बार-बार क्यों जायेगा !’’
‘‘तो !’’
‘‘समगलर हो सकता है ।’’
‘‘किस आइटम का !’’
‘‘नॉरकॉटिक्स, प्रेशस स्टोंस या सोने जैसी आइटम का तो नहीं ! इतनी बड़ी हैसियत तो उसकी नहीं है ! इन आइटमों में कोई मुतवातर कामयाब होता भी नहीं रह सकता ।’’
‘‘तो !’’
‘‘सुना है कोई कैमीकल्स समगल करता है लेकिन वो कैमीकल्स क्या हैं, किस काम आते हैं, नहीं मालूम पड़ सका ।’’
‘‘शायद न हो समगलर !’’
‘‘उम्मीद कम है ।’’
‘‘वजह !’’
‘‘दो बार एयरपोर्ट पर गिरफ्तार हो चुका है ।’’
‘‘ओह ! छूटा कैसे ?’’
‘‘पक्के तौर पर कुछ मालूम नहीं पर कहने वाले कहते हैं, रिश्वत देकर छूटा ।’’
‘‘आई सी ।’’
‘‘जिन कैमीकल्स की वजह से गिरफ्तार हुआ था, कस्टम वालों को रोकड़ा चढ़ा कर उनके सैम्पल बदलवा दिये । केस न ठहर सका । दोनों बार लैक आफ ईवीडेंस की बिना पर रिहा हो गया ।’’
‘‘काफी जुगाड़ू आदमी हुआ !’’
‘‘वो तो है वो बरोबर । तभी तो लड़की के खिलाफ केस खड़ा कर पाया ! मैजिस्ट्रेट को सैट कर लिया, हैण्डराइटिंग एक्सपर्ट को सैट कर लिया, पुलिस को सैट कर लिया ।’’
‘‘ठीक !’’
‘‘ससुरा भी ज्वेलर है पर उसका बड़ा कारोबार है । सुना है दामाद को माली इमदाद भी देता है ।’’
‘‘ऐसा !’’
‘‘बेटी की वजह से । उसकी एक ही बेटी है जो कि करनानी से ब्याही है ।’’
‘‘वो कैसी है ?’’
‘‘नेकबख्त हाउसवाइफ है । मर्द पर एतबार करने वाली, उस का लिहाज करने वाली ।’’
‘‘हसबैंड की फारेन ट्रिप्स के पीछे क्या राज है, उस बाबत कुछ नहीं जानती ?’’
‘‘जाहिर है कि कुछ नहीं जानती । बोला न, आदतन मर्द पर ऐतबार करने वाली है । इसी वजह से उसकी बाकी करतूतों के बारे में भी कुछ नहीं जानती ।’’
‘‘बाकी करतूतें !’’
‘‘ऐशपरस्ती ! बेवड़ाबाजी ! माशूकबाजी !’’
‘‘काफी गुणी आदमी हुआ फिर तो !’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘माली हालत ?’’
‘‘जाहिरा तौर पर तो उसमें कोई नुक्स नहीं दिखाई देता । हेनस रोड पर शॉप है तो कमाई तो करता ही होगा ! फिर ढंका छुपा, लो स्केल पर आपरेट करने वाला समगलर ! फिर ससुर से माली इमदाद हासिल है ।’’
‘‘यानी अपने ऐबों पर पैसा फूंकने में कोई प्राब्लम नहीं ?’’
‘‘ऐसा ही जान पड़ता है ।’’
‘‘कहां कान्टैक्ट कर सकते हैं ?’’
‘‘आउट आफ स्टेशन न हो तो शॉप पर । शॉप ग्यारह बजे खोलता है लिहाजा सुबह साढ़े दस तक घर होता है । शाम सात बजे शॉप बन्द कर देता है फिर भी घर लौटने का कोई टाइम मुकर्रर नहीं ।’’
‘‘लिहाजा मिलना हो तो मार्निंग ही ठीक वक्त होगा !’’
‘‘वो तो बरोबर बोला पर... कुछ है मगज में ?’’
‘‘है तो सही !’’
‘‘क्या ?’’
विमल ने बताया ।
मारकस लोबो भायखला और आगे मुस्तफा चाल पहुंचा ।
कयूम नालवाला अपनी खोली में मौजूद था ।
वो बैड पर अधलेटा पड़ा टीवी देख रहा था, इस का मतलब था कि हालत में सुधार था ।
‘‘कैसा है, कयूम भाई ।’’ — लोबो आत्मीयतापूर्ण स्वर में बोला ।
‘‘देख ही रहे हो !’’ — कयूम अपने दिमाग पर जोर दे रहा था कि क्या वो उस शख्स से पहले से वाकिफ था लेकिन दिमाग भी तो अभी ठीक से ठिकाने नहीं था, कुछ याद न आया ।
‘‘बुरा हुआ । पण वान्दा नहीं । बाजी किसी की भी उलटी पड़ सकती है ।’’
‘‘कौन हो, भई !’’
‘‘नाम मारकस लोबो है ।’’
‘‘पहले मिले कभी ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘तो क्या मांगना है इधर ?’’
‘‘कल चैम्बूर में जो हाई फाई ड्रामा हुआ, उसकी मेरे को खबर ।’’
कयूम सकपकाया ।
‘‘अभी उसकी एक्टेंशन में इम्पार्टेंट कर बात करने का जो’’ — लोबो ने एक गुप्त निगाह परे बैठी सब्जी काटती उसकी बीबी पर डाली — ‘‘बेहतर होगा कि हम दोनों के बीच में ही हो ।’’
‘‘हूं ।’’ — उसने रिमोट से टीवी बन्द कर दिया — ‘‘फातिमा !’’
‘‘हऊ !’’ — बीबी बोली ।
‘‘पड़ोस में जा ।’’
बीबी ने कोई हुज्जत न की, उसने काम छोड़ा और वहां से निकल गयी ।
‘‘हैदराबाद से है ।’’ — नलवाला बोला — ‘‘चार साल हो गये शादी को और इधर बसे । अभी भी हां को हऊ बोलती है ।’’
‘‘होता है ।’’
‘‘अब बोलो, कौन हो और क्या चाहते हो ?’’
‘‘कयूम भाई, मैं तुम्हारे से एक खास उम्मीद बान्ध कर यहां आया हूं । मेरी उम्मीद पूरी न हो, वान्दा नहीं पण मैं जो इधर बोले, वो तुम्हारे से आगे नहीं सरकना चाहिये ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘हमारे बीच कोई बात न बने तो समझना मैं इधर आया ही नहीं ।’’
‘‘ठीक है ।’’
‘‘वादा ?’’
‘‘मेरे वादे पर ऐतबार करोगे ?’’
‘‘हां । पूरा ।’’
‘‘तो वादा ।’’
‘‘थैंक्यू ।’’
‘‘अभी बोलो ।’’
‘‘माइकल हुआन का नाम सुना है ?’’
‘‘नाम तो सुना है !’’
‘‘कैसे ?’’
‘‘भई, बोलते हैं वो किसी गैरमुल्की ड्रग लार्ड का इधर नुमायन्दा था ।’’
‘‘ठीक सुना है । लेकिन था नहीं, अभी भी है ।’’
‘‘क्या बोला ?’’
‘‘ड्रग लार्ड फिनिंश है पण वो सलामत है ।’’
‘‘मैं तो ऐसा नहीं सुना ! जब स्वैन नैक प्वापन्ट पर सब मारे गये तो...’’
‘‘कयूम भाई, जिस को अल्लाह रक्खे, उसे कौन चक्खे ! नहीं ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘माइकल हुआन सलामत है, कैसे सलामत है, ये लम्बी कहानी है । अभी इम्पार्टेंट करके बात ये है कि मैं हुआन का खास है ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘चैम्बूर के कल के ड्रामे में वो सुइसाइड बॉम्बर, वो मानव बम हमारा आदमी थ ।’’
‘‘ओह ! ओह !’’
‘‘तुम लोग पुलिस बने एकाएक ऊपर से न आ गये होते तो वो अपने काम में कामयाब हुआ होता ।’’
‘‘काम ! कौन सा काम ?’’
‘‘सोचो ।’’
‘‘अल्लाह ! कहीं वो भी तो सोहल की फिराक में नहीं था ?’’
‘‘ऐन यही बात थी । तुमने कल उसका काम बिगाड़ा, उसकी वजह से तुम्हारा काम बिगड़ा ।’’
‘‘कल हम न पहुंचे होते तो सोहल खत्म था ?’’
‘‘यकीनन ।’’
‘‘तौबा ! पण वो क्यों सोहल को...’’
‘‘वो नहीं । वो नहीं । वो तो महज जरिया था, उसे तो सोहल के खिलाफ हथियार बनाया गया था ।’’
‘‘किसने बनाया ?’’
‘‘हमने ।’’
‘‘यानी माइकल हुआन ने ?’’
‘‘करैक्ट ?’’
‘‘कैसे किया ? कैसे वो भीड़ू यूं जान देने को तैयार हो गया ?’’
‘‘वो भी लम्बी कहानी है ।’’
‘‘हुआन क्यों सोहल को फिनिश मांगता है ?’’
‘‘दो वजह हैं । एक तुम्हें मालूम है । स्वैन नेक प्वायन्ट पर मचे कोहराम के लिये सोहल जिम्मेदार । हुआन बाई चांस बच गया वर्ना वो भी फिनिश होता । अब ऐसे भीड़ू से रिवेंज तो मांगता है न !’’
‘‘क्या मांगता है ?’’
‘‘बदला ।’’
‘‘ओह ! दूसरी वजह ?’’
‘‘हुआन बॉस इधर मुम्बई में, और वैस्ट इन्डिया में नारककाटिक्स का ट्रेड फिर खड़ा करना चाहता है जो कि सारे बड़े ड्रग लार्ड्स, सप्लायर्स वगैरह के खत्म हो जाने की वजह से उजड़ गया है । सोहल ड्रग्स के धन्धे के खिलाफ है, अभी धन्धा फिर खड़ा होने का है तो सोहल का फिनिश होना जरूरी । इधर जो लोकल भीड़ू ड्रग्स के खत्म हो चुके धन्धे में फिर जान फूंक सकते हैं, वो सब सोहल के होते धन्धे में हाथ डालने को तैयार नहीं । उन की ये शर्त है वो तभी एक्ट करेंगे जब कि उन्हें ये गुड न्यूज मिलेगी कि सोहल खत्म है ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘कल सोहल को खत्म करने का एक मौका हाथ आया था जो दो लाइनें क्रॉस हो जाने की वजह से कैश न किया जा सका । अब वो लोग खबरदार हो गये हैं इसलिये कल जो काम आसानी से होने जा रहा था, वो अब मुश्किल से भी हो जाये तो गनीमत होगी ।’’
‘‘ठीक । सोहल...चैम्बूर का दाता सोहल है !’’
‘‘हां । तुम्हें नहीं मालूम ?’’
‘‘ऐसी अफवाह तो सुनी है !’’
‘‘जिसके लिये काम कर रहे थे, वो कुछ न बोला ?’’
‘‘खाली ये बोला कि चैम्बूर का दाता को टपकाने का था । ये न बोला वो सोहल था ।’’
‘‘ओह ! तुम लोग नाकाम रहे तो तुम्हारा बॉस भी तो अभी और कोशिश करेगा !’’
‘‘हमारे जरिये नहीं करेगा ।’’
‘‘क्योकि कुछ करने के काबिल न बचे !’’
‘‘यही बात है ।’’
‘‘पण करेगा !’’
‘‘हो सकता है ।’’
‘‘वो क्यों सोहल को फिनिश करना मांगता था ?’’
‘‘ठीक से कुछ न बोला । खाली हिंट दिया कि किसी को सोहल से कोई रंजिश थी ।’’
‘‘कोई इधर का भीड़ू !’’
‘‘नहीं । बाहर का ।’’
‘‘तुम्हारे से कौन कान्टैक्ट किया ?’’
वो खामोश रहा ।
‘‘कयूम भाई, चुप रहने का कोई फायदा नहीं । जब दो पार्टियों का एक ही मिशन हो तो उन्हें इकट्ठे फंक्शन करना चाहिये ।’’
‘‘हुआन ऐसा बोला ?’’
‘‘बरोबर बोला । इसी वास्ते तो मैं इधर है । मेरे को तुम्हारे वाली पार्टी की माइकल हुआन से मीटिंग फिक्स करने का ताकि दोनों मिल के सोहल के खिलाफ कोई मजबूत, पहले से ज्यादा मजबूत, कदम उठा सकें ।’’
‘‘ऐसा ?’’
‘‘बरोबर । अब बोलो, कैसे तुम पिक्चर में आये ?’’
‘‘वो...बोले तो...जिस भीड़ू ने मेरे को इस काम के लिये कांटैक्ट किया था, वो मेरे को पहले से जानता था । वो ही स्कीम बनाया, वो ही सब जानकारी निकाला जिस पर हमेरे को खाली एक्ट करना था ।’’
‘‘कौन है वो भीड़ू ?’’
कयूम हिचकिचाया ।
‘‘आपसदारी की बात है । बाहर नहीं जायेगी । यकीन करो ।’’
‘‘वो क्या है कि पकड़े जाने पर मैं उधर चैम्बूर में बोला था कि मेरे को उस भीड़ू की कोई खबर नहीं थी, मैं तो उसकी शक्ल भी ठीक से नहीं पहचान सका था । असल में मैं उसे जानता भी था और पहचानता भी था ।’’
‘‘कौन हुआ वो ?’’
‘‘उसका नाम अनूप झेण्डे है ।’’
‘‘किधर पाया जाता है ?’’
‘‘मेरे को नहीं मालूम पण ग्रांट रोड पर अमृता करके एक बार है जिसके बारमैन नरेश पठारे के जरिये उससे कान्टैक्ट किया जा सकता है ।’’
‘‘आई सी ।’’
‘‘पण वो मेन भीड़ू नहीं । वो तो समझो कि हमेरे और मेन पार्टी के बीच में बिचौलिया था ।’’
‘‘मेन पार्टी कौन ?’’
‘‘मेरे को उसकी कोई खबर नहीं ।’’
‘‘तो कैसे बात बनेगी ?’’
‘‘मैं झेण्डे को बोलूंगा तुम क्या मांगता है । वो मीटिंग मंजूर करेगा तो तुम्हारे को खबर करूंगा ।’’
‘‘मैं मार्फत बारमैन अमृता बार अनूप झेण्डे से कान्टैक्ट करने की कोशिश करे तो ?’’
‘‘कोई फायदा नहीं होगा । वो तुम्हेरे पास भी नहीं फटकेगा ।’’
‘‘लिहाजा वो इन्तजाम मुलाकातियों की स्क्रीनिंग का जारिया है ।’’
‘‘अभी आयी बात समझ में ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘तो वही जो मैं बोला । मैं झेण्डे से बात करूंगा ।’’
‘‘नतीजे की मुझे कैसे खबर होगी ?’’
‘‘अपना मोबाइल नम्बर छोड़ के जाओ । मेरा ले के जाओ ।’’
लोबो ने वो काम किया ।
‘‘ठीक है फिर ।’’ — फिर उठ खड़ा हुआ — ‘‘वेट करता है । पण एक बात माइंड में रखने का ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘एक और एक ग्यारह होते हैं ।’’
‘‘झेण्डे श्याना भीड़ू है । मेरे को पक्की वो ये बात जानता होयेंगा ।’’
‘‘गुड ! चलता है ।’’
कयूम नलवाला ने सहमति में सिर हिलाया ।
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परमेश करनानी प्रभादेवी में रहता था । वहां साईं छाया अपार्टमेंट्स नाम की हाउसिंग सोसायटी में उसके नौवें माले पर उसका फ्लैट था । उस घड़ी दस बजे थे और बकौल अनुजा पवार उसके हेनस रोड अपनी शाप के लिये रवाना होने में अभी आधा घन्टा बाकी था ।
वहां जो लोग दस बजे पहुंचे थे उन में एक सुन्दर युवती थी जो कि दुधमुंहा बच्चा उठाये थी, विमल और शोहाब थे और पराग कामत नाम का एक वकील था ।
शोहाब ने काल बैल बजाई ।
दरवाजा खुद परमेश करनानी ने खोला ।
इतने जनों को सामने मौजूद पा कर वो सकपकाया ।
‘‘क्या है ?’’ — फिर कड़े स्वर में बोला ।
‘‘दिखाई नहीं देता !’’ — युवती तीखे स्वर में बोली — ‘‘मेरे को नहीं सम्भाल सकते तो अपने बच्चे को तो सम्भालो ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘बाजू हटो ।’’
वो जबरन भीतर दाखिल हुई । उसके साथ बाकी जनों ने भी भीतर कदम रखा ।
शोहाब ने पीछे दरवाजा बन्द किया ।
‘‘ये क्या धान्धली है ?’’ — करनानी झल्लाया ।
‘‘तुम मेरे से यूं पीछा नहीं छुड़ा सकते । आज मैं आर या पार का फैसला करने आयी हूं ।’’
‘‘कैसा पीछा ? कैसा फैसला ?’’
‘‘अरे, कठोर ! आखिर बच्चे ने तेरा क्या बिगाड़ा है ?’’
‘‘ये...क्या बकवास है ?’’
तभी करनानी की बीबी कामना वहां पहुंची, बच्चे तब स्कूल गये हुए थे ।
‘‘क्या बात है, जी ?’’ — वो सशंक भाव से बोली — ‘‘ये शोर कैसा है ?’’
‘‘तू अन्दर वंज ।’’ — करनानी डपट कर बोला ।
‘‘लेकिन पता तो लगे बात क्या है...’’
‘‘सुन के जाइये, आंटी जी !’’ — युवती बोली ।
‘‘आंटी जी !’’
‘‘बहन जी । सुनिये, देखिये, सोचिये, समझिये, फिर जाइये ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘कामना, प्लीज गो इन ।’’
‘‘अब नहीं, जी । अब तो मैं जान के रहूंगी यहां क्या हो रहा है !’’
‘‘खास कुछ नहीं हो रहा, बहन जी ।’’ — युवती रुंआसे स्वर में बोली — ‘‘खाली बच्चा अपने बाप के पास आया है ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘ये क्या बकवास है ?’’ — करनानी भड़का — ‘‘क्या बक रही है तू !’’
‘‘जालिम, मेरी जिन्दगी बर्बाद करनी हो तो कर, बच्चे की तो न कर ।’’
‘‘अरे, ये क्या...’’
‘‘आप सुनिये, बहन जी । सुनिये बहन जी, कि ये मेरे पति हैं, इन्होंने बाकायदा मेरे से शादी की है...’’
‘‘क्या बकती है ?’’ — करनानी चिल्लाया ।
‘‘मुझे सुनने दो, जी ।’’ — पत्नी बोली ।
‘‘अरे, मैंने इस लड़की की जिन्दगी में कभी शक्ल नहीं देखी...’’
‘‘मुझे सुनने दो । तू...तू इधर मेरी तरफ देख ।’’
‘‘हां, बहन जी ।’’
‘‘क्या नाम है तेरा ?’’
‘‘कौशल ।’’
‘‘तू बोल ।’’
‘‘क्या बोलूं, बहन जी !’’ — युवती दुपट्टे में मुंह छुपा कर सुबकने लगी — ‘‘लेकिन बोलती हूं । क्योंकि नारी का दुखड़ा तो नारी ही समझ सकती है । बहन जी, पहले तो इन्होंने मुझे बताया ही नहीं था कि ये शादीशुदा थे । मेरे साथ डेढ़ साल की कोर्टशिप के बाद जब शादी भी कर ली तो मैं कैसे सोच सकती थी कि ये पहले से शादी शुदा थे । फिर इत्तफाक से मेरे को खबर लग गयी तो भरमाने लगे बीबी को, आप को, तलाक दे देंगे...’’
कामना ने आंखें तरेर कर पति को देखा ।
‘‘ये झूठ बोल रही है ।’’
‘‘चुप करो, जी । तू आगे बोल ।’’
‘‘फिर बच्चा हो गया तो मेरे से दूर भागने लगे । आना जाना बन्द कर दिया । मैं कैसे बर्दाश्त करती ! कब तक बर्दाश्त करती ! औरत पर ऐसा जुल्म तो नहीं होना चाहिए न ! नारी का ऐसा शोषण तो नहीं होना चाहिये न ! आप नारी हैं, आप मेरी व्यथा समझ सकती हैं । आप बताइये, कैसे कोई मरद किसी औरत से विधिवत् ब्याह कर के, उससे बच्चा पैदा करके, यूं उसका त्याग कर सकता है...’’
‘‘तेरे कहने से हो गया ब्याह !’’ — करनानी कलपा — ‘‘उल्लू बनाती है, साली ।’’
‘‘लो । साली मान सकते हैं, बीबी नहीं मान सकते !’’
‘‘अब दफा हो जा यहां से । वर्ना मैं पुलिस को बुलाता हूं ।’’
‘‘मैं बुलाती हूं न ! हमेशा तुम्हारे इतने काम किये हैं, ये भी मैं करती हूं न !’’
‘‘तू’’ — कामना बोली — ‘‘साबित कर सकती है कि इन्होंने तेरे से...तेरे से...’’
‘‘शादी की ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘कर सकती हूं ।’’
‘‘क्या बोला ?’’ — करनानी हैरानी से बोला ।
‘‘ये काम मुझे करने दीजिये ।’’ — पराग कामत बोला — ‘‘मैं मैडम का वकील हूं । मैं यकीनी तौर पर जानता हूं कि डेढ़ साल पहले विखरोली के आर्य समाज मन्दिर में मैडम ने इन साहब के साथ शादी की थी ।’’ — ये वकील एक फूलस्केप कागज पेश किया — ‘‘शादी कराने वाले पंडित का हलफनामा है जो कि शादी की तसदीक करता है ।’’
‘‘नहीं हो सकता ।’’ — करनानी गर्जा ।
‘‘आप खुद एग्जामिन कीजिये । कोई खामी दिखाई दे जाये तो जो चोर की सजा वो मेरी सजा !’’
वकील ने जबरन कागज करनानी के हाथ में सौंपा ।
‘‘देखने की कोई जरूरत नहीं’’— करनानी बोला — ‘‘लेकिन तुम कहते हो तो...’’
उसने कागज पर दर्ज तहरीर का गम्भीर मुआयना किया ।
‘‘वाट द हैल !’’ — फिर चिल्लाया — ‘‘ये क्या तमाशा है ! ये डाकूमेंट जाली है ।’’
‘‘कैसे मालूम !’’ — वकील बोला ।
‘‘और कुछ ये हो ही नहीं सकता ।’’
गुस्से में करनानी ने कागज का पुर्जा पुर्जा कर दिया ।
जब तक वो उस काम को अंजाम न दे चुका, वकील खामोश रहा, फिर बोला — ‘‘मेरे पास और है ।’’ — उसने ब्रीफकेस से निकालकर वैसा ही कागज फिर पेश किया — ‘‘मैडम, आपके लिये भी है ।’’
‘‘वो...वो... ।’’ — करनानी ने कहना चाहा ।
‘‘जेरोक्स कापी थी । आप को ऐसे सबूत नष्ट करने तो नहीं दिया जा सकता न !’’
‘‘ये हलफनामा जाली है ।’’
‘‘इस पर नोटरी की मोहर है । इट इज ड्यूली नोटराइज्ड ।’’
कामना ने सन्दिग्ध भाव से अपने पति की तरफ देखा ।
‘‘सब धोखा है, कामना ।’’
‘‘धोखे की वजह ?’’
‘‘मेरी समझ से बाहर है । ये लोग...’’
‘‘बच्चा भी धोखा है !’’ — युवती रुंआसे स्वर में बोली — ‘‘देखो तो, बहन जी, कितनी शक्ल मिलती है इन से !’’
‘‘मुझे तो’’ — कामना बोली — ‘‘नहीं लगती मिलती !’’
‘‘नहीं लगती !’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘आप तो ऐसा कहेंगी ही !’’
‘‘जैसे शादी साबित करने की कोशिश की, साबित कर सकती है कि बच्चा इनका है ?’’
‘‘ज्यादा आसानी से । ज्यादा निर्विवाद रूप से ।’’
‘‘कर ।’’
‘‘कर !’’ — करनानी भी बोला, उसके स्वर में बीबी से ज्यादा तीखा चैलेंज का पुट था ।
‘‘मैं कहता हूं ।’’ — वकील बोला ।
‘‘तुम हो कौन ?’’
‘‘सर, आपने सुना नहीं, मैं ने पहले ही बोला मैं मैडम का वकील हूं । पराग कामत नाम है मेरा । अब क्या सनद और वकालतनामा भी दिखाना होगा ।’’
करनानी खामोश रहा ।
‘‘आप डीएनए की बाबत जानते हैं ?’’ — वकील बोला ।
‘‘जानता हूं । क्यों पूछ रहे हो ?’’
‘‘Deoxyribo Nucleic Acid, यानी डीएनए टैस्ट को प्रमाणिक मानते हैं ? निर्विवाद रूप से यथार्थपरक मानते हैं ?’’
‘‘क्या कहना चाहते हो ?’’
‘‘ये डीएनए रिपोर्ट हैं’’ — वकील ने एक और कागज आगे सौंपा — ‘‘जो प्रमाणित करती है कि आप इस बच्चे के बाप हैं ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘ये टैस्ट निर्विवाद रूप से स्थापित करता है कि इस बच्चे की जीन आप की जीन से हूबहू मिलती है । लिहाजा आप इस बच्चे के बाप हैं ।’’
‘‘ये डाकूमेंट जाली है ।’’
‘‘आप के कह देने भर से ये जाली नहीं हो जाने वाला ।’’
‘‘अरे, मैं ऐसा कोई टैस्ट भला क्यों कराऊंगा ?’’
‘‘ये मैडम बतायेंगी ।’’
पति पत्नी की निगाहें कोमल पर टिक गयीं ।
‘‘ये मेरे पर शक करते थे ।’’ — युवती पूर्ववत् रुआंसे स्वर में बोली — ‘‘बोलते थे मेरा बॉस से अफेयर था ।’’
‘‘बॉस कौन ?’’ — कामना बोली ।
‘‘बॉस...बोले तो गैंग लीडर ।’’
‘‘गैंग !’’
‘‘जिस में मैं भी शामिल थी, ये भी शामिल थे । आफताब मुगल गैंग ।’’
‘‘क्या करता था ये गैंग ?’’
‘‘अभी भी करता है ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘समगलिंग ।’’
‘‘किस चीज की ?’’
‘‘हर चीज की ।’’
‘‘अरे, ये क्या हिमाकत है ?’’ — करनानी झल्लाया — ‘‘क्यों इसकी बकवास...’’
‘‘मुझे बात करने दो न !’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘एक मिनट, खाली एक मिनट चुप करो ।’’
करनानी ने होंठ भींच लिये ।
‘‘तू आगे बोल’’ — कामना युवती से सम्बोधित हुई — ‘‘तू समगलिंग में शामिल थी ?’’
‘‘नहीं । मैं तो बॉस की सैक्रेटी थी ।’’
‘‘ये शामिल थे ?’’
‘‘हां, लेकिन लो लैवल पर । सिर्फ कैमिकल्स समगल करते थे ।’’
‘‘अब मैं चुप नहीं रह सकता ।’’ — करनानी भड़का ।
‘‘एक मिनट ! एक मिनट ! प्लीज !’’
करनानी फिर खामोश हो गया ।
‘‘कैमिकल्स कैसे ?’’ — कामना ने पूछा ।
‘‘जो गोल्ड एण्ड सिल्वर आर्नामेंट इंडस्ट्रीज में काम आते हैं । जो इधर बहुत महंगे हैं पर फॉरेन में बहुत सस्ते मिलते हैं । उधर से आयी दस डालर की छोटी सी शीशी की — जो कि कायन पाकेट में ही कई आ जाती हैं — दस डालर, बोले तो छ: सौ रुपये, कीमत होती है, इसकी इधर सौ डालर, बोले तो छ: हजार रुपये कीमत होती है ।’’
‘‘ये कैमिकल समगल करते हैं ?’’
‘‘रेगुलर । अपने लिये भी और गैंग के लिये भी । दो बार पकड़े जा चुके हैं ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘बहन जी, पिछले साल के वो दो हफ्ते याद करो जब ये एक हफ्ते के ट्रिप पर फॉरेन गये थे तो दो हफ्ते में लौटे थे । तब दोनों बार ये हफ्ता भर जेल में थे । बड़ी मुश्किल से छूट पाये थे । दोनों बार बॉस ने छुड़वाया ।’’
‘‘कैसे ?’’
‘‘सैम्पल बदलवा दिये । टैस्ट किये जाने पर शीशियों में वो कैमिकल न निकले जिन को लाने पर पाबन्दी है । छूटने में रोकड़ा इन का खर्च हुआ पर दम खम और जहूरा गैंग बॉस का काम आया ।’’
‘‘वाट नॉनसेंस !’’ — करनानी भड़का — ‘‘ये क्या बक...’’
‘‘जरा मेरी सुनो ।’’ — कामना गम्भीरता से बोली ।
‘‘क्या सुनूं ।’’
‘‘पिछले साल मार्च और सितम्बर में दो बार ऐसा हुआ था कि आप हफ्ते के लिये बोल कर बैंकाक गये थे, पर दो हफ्ते में लौटे थे ।’’
‘‘झूले लाल ! अरी, मत्त मारी है तेरी !’’
‘‘नहीं था ऐसा ?’’
‘‘था । था तो क्या हुआ ? परदेस गये शख्स को देर सबेर हो ही जाती है ।’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘ये इन्डिया में भी ट्रैवल करते हैं ।’’ — युवती बोली ।
‘‘तो क्या हुआ ?’’ — कामना बोली ।
‘‘हर महीने इनका एक फेरा कलकत्ता, बंगलौर, हैदराबाद, दिल्ली का लगता है । कई बार महीने में दो फेरे भी ।’’
‘‘अरे, तो क्या हुआ ?’’
‘‘ऐसी ट्रिप पर निकले आधे से ज्यादा बार ये विखरोली में मेरी गोद में गर्क होते थे ।’’
‘‘झूठ !’’ — करनानी चिल्लाया — ‘‘ये...ये...’’
‘‘इन्हें कहो साबित करके दिखायें कि ये हर ट्रिप पर गये थे । फ्लाइट्स का, रेल रिजर्वेशन का रिकार्ड होता है, साबित करके दिखायें कि पिछले तीन सालों में हर बार ये वहाँ गये जहां के लिये कि बोल के गये ।‘‘
कामना ने खा जाने वाली निगाह से पति को देखा ।
‘‘उसमें क्या है !’’ — करनानी लापरवाही से बोला — ‘‘कई बार टिकट ब्लैक में लेनी पड़नी है, किसी दूसरे की टिकट पर सफर करना पड़ता है ।’’
‘‘क्यों ?’’ — कामना बोली — ‘‘जब पहले से मालूम होता है कि जाना है तो...’’
‘‘कई बार नहीं मालूम होता ।’’
‘‘फिर भी...’’
‘‘बात’’ — वकील अर्थपूर्ण स्वर में बोला — ‘‘डीएनए की हो रही थी ।’’
‘‘हां ।’’ — युवती बोली — ‘‘मैंने बोला न, ये मेरे पर शक करते थे कि मेरा बॉस से अफेयर था, मैं बॉस की सैक्रेट्री नहीं, गैंगस्टर्स मौल थी । मैंने कितना समझाया कि कतई ऐसी बात नहीं थी, ये सुनते ही नहीं थे । फिर बच्चा हो गया तो और आपे से बाहर हो कर दिखाने लगे, मेरे ऊपर लांछन लगाने लगे कि बच्चा इन का नहीं, बॉस आफताब मुगल का था । मैं ने लाख दुहाई दी, इन्होंने मेरी एक न सुनी । फिर मुझे झूठा साबित करने के लिये डीएनए की जिद करने लगे । मैं बाखुशी टैस्ट के लिये तैयार हो गयी । नतीजा वो निकला जो इस सर्टिफिकेट पर दर्ज र्है ।‘‘
‘‘बच्चा इनका !’’ — कामना बोली ।
‘‘हां ।’’
‘‘ये बच्चे के बाप !’’
‘‘हां ।’’
‘‘झूले लाल !’’ — कामना ने अपना माथा पीट लिया — ‘‘भा लग्गे मेरे भाग खे ।’’
‘‘नाहक कलप रही है ।’’ — करनानी खुद कलपता बोला — ‘‘अरे, ये सब झूठ है । झूठ का जाल है ।’’
‘‘डीएनए सार्टिफिकेट झूठ है ! जिस पर बतौर हसबैंड तुम्हारा नाम दर्ज है !’’
‘‘हां, झूठ है । जाली है ये ।’’
‘‘अब इसका फैसला तो’’ — वकील बोला — ‘‘या पुलिस करेगी या कोर्ट करेगा ।’’
‘‘पुलिस हमारे साथ आयी है’’ — शोहाब बोला ।
‘‘साथ आयी है !’’ — करनानी हकबकाया — ‘‘कहां है ?’’
‘‘नीचे है ।’’
‘‘यहां क्यों नहीं है ?’’
‘‘आप की खातिर ही नहीं है । हम आप को मौका देना चाहते थे बात को न बढ़ने देने का ।’’
‘‘मैंने तो बात नहीं बढ़ाई !’’
‘‘आप ही ने बढ़ाई । आप अभी भी अपनी जिम्मेदारी कबूल करें तो...‘‘
‘‘नो ! नैवर !’’
‘‘तो फिर तो बुरा होगा आपके साथ ।’’
‘‘क्या होगा ?’’
‘‘आप गिरफ्तार होंगे । बिगेमी, एक बीबी के रहते दूसरी शादी करना, क्राइम है । ऊपर से आपने अपनी पहली शादी की बाबत झूठ बोला, उसको छुपा के रखा, बोला कि आप शादीशुदा नहीं थे । यानी कि अापने एक भोली भाली लड़की को बहला फुसलाकर खराब किया, उसे एक बच्चे की मां बना दिया ।’’
‘‘धोखाधड़ी’’ — वकील बोला — ‘‘चार सौ बीसी और जबरजिना की धारायें भी लगेंगी । पांच से सात साल तक नपेंगे ।’’
तब पहली बार करनानी की सूरत पर घबराहट के भाव दिखाई दिये ।
‘‘साजिश है ।’’ — वो व्याकुल भाव से बोला ।
कोई कुछ न बोला ।
‘‘ब्लैकमेल है ।’’
खामोशी भंग न हुई ।
‘‘ये लड़की कोई रकम चाहती है तो साफ बोले...’’
‘‘इंसाफ चाहती हूं ।’’ — युवती रुंधे कण्ठ से बोली — ‘‘अपनी मांग में एक चुटकी सिन्दूर चाहती हूं । एक चुटकी सिंदूर की अहमियत समझो, परमेश बाबू ।’’
‘‘ड्रामा मत करो ।’’
‘‘पनाह चाहती हूँ । आप के चरणों में जगह चाहती हूं । अपने बच्चे के सिर पर बाप का साया चाहती हूँ । मैं बहन जी की दासी बनकर रह लूंगी । मैं यहां किसी को कोई तकलीफ नहीं दूंगी । बस एक कोने में पड़ी रहूंगी । आप को घर में हमारी मौजूदगी महसूस भी नहीं होगी, मुन्ने के बापू ।’’
‘‘झूले लाल !’’ — कामना के मुंह से कराह की तरह निकला — ‘‘झूले लाल ! ये क्या हो रहा है ? ये मैं क्या सुन रही हूँ ?’’
‘‘कामना, प्लीज !’’ — करनानी बोला — ‘‘भीतर जा । पांच मिनट के लिये, खाली पांच मिनट के लिये बैडरूम में जा । अभी सब ठीक हो जाता है ।’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘कहना मान । तेरे को बच्चों की कसम ।’’
‘‘अच्छा । लेकिन पांच मिनट !’’
‘‘हां । पांच मिनट । जा ।’’
वो चली गयी ।
पीछे कई क्षण खामोशी रही ।
‘‘हूं ।’’ — फिर करनानी बोला — ‘‘किसी बड़े तजुर्बेकार का लिखा सिनेरियो है ।’’
कोई कुछ न बोला ।
‘‘पुलिस सच में है ?’’
‘‘नीचे चक्कर लगा आओ ।’’ — विमल बोला ।
‘‘बाल्कनी से झांकोगे’’ — शोहाब बोला — ‘‘तो भी चलेगा ।’’
‘‘नीचे जाना ही ठीक होगा । ऊपर से झांकने पर पता नहीं लगेगा कि पुलिस नकली है या असली ।’’
‘‘हूं ।’’ — करनानी बोला ।
‘‘इलाके के थाने फोन करो ।’’ — वकील बोला — ‘‘नम्बर मैं बताता हूं । मालूम करो कि क्या पुलिस की किसी टीम की इधर साई छाया अपार्टमेंट्स की तरफ रवानगी रोजनामचे में दर्ज है !’’
‘‘जरूरत नहीं । मुझे आप लोगों की बातों पर यकीन है ।’’
‘‘थैंक्यू ।’’
‘‘मैं कबूल करता हूं आप लोगों ने मुझे बहुत बढिया सैट किया है । मेरी बीबी बहुत रुतबे और रसूख वाली फैमिली से है । एक बार बच्चों को लेकर घर से चली गयी तो वापिसी सपना बन जायेगी । मेरा ज्वेलरी का धन्धा ससुरे की फाइनांशल एड से चलता है, लिहाजा बीबी गयी तो धन्धा भी जायेगा । मैं ये डिजास्टर अफोर्ड नहीं कर सकता । ऊपर से मैं समगलर्स के गैंग में शामिल ! मैं खुद समगलर ! गॉड ! कोई कसर न छोड़ी परफेक्शन में ।’’
‘‘हम यहां तारीफ कराने नहीं आये ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘कुछ मतलब का कहना चाहते हो तो कहो ।’’
‘‘चाहता हूं ।’’
‘‘तो बोलो ।’’
‘‘मैं अपनी डिफीट कबूल करता हूं । अब बोलो, क्या हुक्म है मेरे लिए ? बल्कि पहले बोलो कि इस शो का डायरेक्टर कौन है ?’’
शोहाब ने विमल की तरफ संकेत किया ।
‘‘मेरा भी यही खयाल था ।’’ — वो विमल से मुखातिब हुआ — ‘‘क्या हुक्म है, जनाब, मेरे लिये ?’’
‘‘उदूली का नतीजा गम्भीर होगा ।’’ — विमल सहज स्वर में बोला ।
‘‘मुझे दिखाई दे रहा है ।’’
‘‘कैमिकल्स समगलर तू सच में है । दो बार फंसा छूट गया, तीसरी बार नहीं छूट पायेगा । क्या समझा ?’’
‘‘वही जो आपने समझाया । आप हुक्म कीजिये, जनाब, तामील होगी । बिना किसी हुज्जत के, बिना किसी शिकायत के तामील होगी ।’’
‘‘यही चाहते है हम ।’’
‘‘हुक्म कीजिये ।’’
‘‘अनुजा पवार को जानता है न ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘उसका पीछा छोड़ । उस पर किया फर्जी केस फौरन वापिस ले । दोबारा उसकी तरफ आंख भी उठाई तो कटोरी से आंख बाहर होगी । दोनों । बल्कि जिस्म से जान बाहर होगी ।’’
‘‘तुम कोई मवाली हो ?’’
‘‘नहीं । लेकिन मवाली मेरे नाम से कांपते हैं ।’’
‘‘कौन हो ?’’
विमल ने उत्तर न दिया ।
‘‘कौन हो ?’’ — करनानी ने फिर पूछा ।
विमल ने शोहाब की तरफ देखा ।
‘‘सुनेगा तो’’ — शोहाब बोला — ‘‘पतलून गीली करेगा ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘भीड़ू’’ — शोहाब बोला — ‘‘ये सोहल है ।’’
सोहल !
वो सिर से पांव तक कांपा ।
‘‘सोहल !’’ — सिसकारी की तरह उसके मुंह से निकला ।
‘‘जिसने तेरा लिहाज किया । वर्ना जिस काम के लिये यहां आया है, वो यहां आये बिना भी हो सकता था ।’’
‘‘क-कैसे ?’’
‘‘इसका एक इशारा होता, तेरी लाश का पता न चलता । अनुजा तब भी आजाद होती । क्या समझा ?’’
‘‘म-मैं मशकूर हूं ।’’
‘‘तो अब क्या करेगा ?’’
‘‘मैं केस वापिस लूंगा ।’’
‘‘आज ही ।’’
‘‘आज ही कैसे होगा ? वो तो तारीख पर...’’
‘‘जरूरी नहीं ।’’ — वकील बोला — ‘‘केस वापिस लेना हो तो तारीख के बिना भी पेश हुआ जा सकता है ।’’
‘‘अच्छा !’’
‘‘मैं तुम्हें साथ ले के जाऊंगा । लंच से पहले फारिग हो जाओगे ।’’
‘‘ठीक है । देर भी लगे तो ठीक है ।’’
‘‘गुड ।’’
‘‘एक सवाल की इजाजत है ?’’
‘‘क्या पूछना चाहते हो ?’’
‘‘पंडित का हलफनामा, डीएनए सर्टिफिकेट, सब नकली !’’
‘‘क्यों ?’’ — आंखे निकालते विमल ने जवाब दिया — ‘‘नकली दस्तावेज तैयार कराना खाली तेरे को आता !’’
‘‘न-नहीं ।’’
‘‘अब तेरा गवाह भी हमारे बाबू में है जो अदालत में परजुरी का गुनाह कबूल करेगा, अपनी जुबानी बोलेगा कि तेरे कहने पर हार के मामले में झूठी गवाही दी । तब तेरा केस वैसे ही ढेर हो जाता । पर उसमें टाइम लगता । अब लड़की कल ही कोपनहेगन के लिये उड़ जायेगी, तब पता नहीं कब ऐसा होता !’’
‘‘मैं ...मैं माफी चाहता हूं ।’’
‘‘कोई बुरा नहीं करता । अच्छा करता है । अब बीवी को गुड न्यूज हमारे सामने देगा या बाद में कि वो बेवा होने से बच गयी !’’
सबने उसके शरीर में सिहरन दौड़ती साफ देखी ।
‘‘ये लड़की’’ — फिर हिम्मत कर के बोला — ‘‘ये बच्चा...’’
‘‘ठीक पहचाना । लड़की लड़की है । बच्चा बच्चा है । पांच मिनट हो गये, बीवी आती होगी ।’’
वो चुप हो गया ।
शोहाब और वकील पराग कामत को पीछे छोड़ कर युवती और बच्चे के साथ विमल वहां से विदा हो गया ।
वस्तुत: युवती कोमल थी, बच्चा नन्हा सूरज था ।
कोमल वो युवती थी जो सोहल के सौजन्य से कालगर्ल का अपना धन्धा छोड़ कर समाज में पुनर्स्थापित हुई थी । जो अब विखरोली में बुटीक शॉप चलाती थी और इज्जत से रहती थी । जिस का विखरोली का आवास नन्हें सूरज की एक अरसे से — अब नीलम की भी — पनाहगार था ।
कोमल की अभिलाषा थी — जो कभी उसने बाकायदा विमल पर जाहिर की थी — कि वो कभी उसके काम आना चाहती थी । सूरज को अपनी हिफाजत में रखना कबूल करके वो पहले ही अपनी बात पर खरी उतर कर दिखा चुकी थी । और अब वहां फिर उसके काम आयी थी ।
वो काम नीलम क्यों नहीं कर सकती थी — जब नन्हा सूरज भी ड्रामे का एक किरदार था — इस बारे में पीछे विखरोली में काफी बहस हुई थी जिसमें विमल ने अपनी चायस कोमल को जताया था क्योंकि पहले नीलम का जितना एक्सपोजर हो के हटा था उसकी रू में उसे आगे किसी ‘ड्रामे’ में हिस्सा नहीं लेना चाहिये था जो कि उन की उम्मीद के खिलाफ लम्बा भी खिंच सकता था ।
‘‘कोमल’’ — लिफ्ट में विमल प्रशंसात्मक स्वर में बोला — ‘‘तूने तो कमाल कर दिया !’’
कोमल शान से मुस्कराई ।
‘‘जो स्क्रिप्ट तुझे सिखाई पढ़ाई गयी थी, उसमें तो तूने पता नहीं कैसे कैसे सजीले फुंदने लगा दिये ! क्या क्या जोड़ दिया ! औरत पर जुल्म ! नारी का शोषण ! नारी की व्यथा ! क्या क्या जुमले कस दिये ! ‘मांग में एक चुटकी सिंदूर चाहती हूं’ । ‘दासी बन कर रहूंगी’ । ‘कोई तकलीफ नहीं दूंगी’ । ‘कोने में पड़ी रहूंगी’ । और कमाल तब किया जब उसे ‘मुन्ने के बापू’ कहा, ‘परमेश बाबू’ कहा ! वाह, भई ।’’
वो हंसी ।
‘‘और डायलाग्स ही नहीं, एक्टिंग में भी कमाल किया । दुपट्टे में मुंह छुपाकर सुबकना तो वाह वाह था । मेरे को तो लगा था जैसे आंसू भी निकाल लिये हों ।’’
‘‘निकाले न !’’
‘‘अरे ! कैसे !’’
‘‘दुपट्टे की ओट में से दो उंगली आंखों में खुबो दीं ।’’
‘‘दाता ! तुझे तो फिल्मों में होना चाहिये था !’’
वो फिर हँसी ।
‘‘कमाल किया बिला शक । थैंक्यू ।’’
‘‘लो ! छोटी बहन को कोई थैंक्यू बोलता है !’’
लिफ्ट नीचे पहुंची ।
वहां विक्टर की टैक्सी में विक्टर और इरफान बैठे थे ।
उन्हें लौटा देखकर दोनों बाहर निकल आये ।
पुलिस जीप में चार पुलिसियों के साथ बैठा बावर्दी सब इन्स्पेक्टर जीप में से उतरा और उनके करीब पहुंचा । उसने अदब से विमल का अभिवादन किया ।
‘‘इन लोगों की खिदमत हो गयी ?’’ — विमल ने इरफान से पूछा ।
इरफान ने सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘राजी !’’ — विमल सब-इन्स्पेक्टर से बोला ।
सब-इन्स्पेक्टर ने भी सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘पण काम ?’’ — वो बोला ।
‘‘कोई काम नहीं ।’’ — विमल बोला — ‘‘आप लोगों के दखल की नौबत ही न आयी । पहले ही कम्प्रोमाइज हो गया । मामला निपट गया ।’’
‘‘बढ़िया । तो हम जायें ?’’
‘‘हां ।’’
पुलिस वाले वहां से रुखसत हो गये ।
जो उन का ऊपर काम था — करनानी को बिगेमी के इलजाम में गिरफ्तार करने का — उसके लिये उन्हें बीस हजार रुपये पूजे गये थे जो कि उन्होंने फोकट में कमा लिये थे ।
सब वापिस टैक्सी में सवार हुए ।
विक्टर ने तत्काल टैक्सी आगे बढ़ा दी ।
‘‘वलसे तो बोरिया बिस्तर बान्ध के खिसकता जान पड़ता है ।’’
विमल ने ये खबर शोहाब की जुबानी सुनी ।
‘‘अच्छा !’’ — वो बोला ।
‘‘हां । इरफान बोलता है शाम तक निकल लेगा ।’’
‘‘कोई पास न फटका ?’’
‘‘चिडिया का बोट भी नहीं ।’’
‘‘लगता है उसको रोकड़ा देने वाला खबरदार हो गया । उस को मालूम पड़ गया कि वलसे किन्हीं निगाहों में था ।’’
‘‘मालूम न भी पड़े तो भी उसका ऐसा सोचना बनता तो था बराबर ।’’
‘‘ठीक । अब बस इतना पता निकालो कि बोरीवली छोड़कर वो किधर जाता है, फिर उसका पीछा छोड़ दो, उसमें अब कुछ नहीं रखा ।’’
‘‘बरोबर ।’’
‘‘नलवाला की क्या खबर है ?’’
‘‘अभी भी बैड पर है ।’’
‘‘उसकी कोई आवाजाही !’’
‘‘कल एक भीड़ू उस से मिलने आया । कोई आधा घन्टा उसके पास ठहरा, फिर निकल लिया । नाम मारकस लोबो है ।’’
‘‘कैसे जाना ?’’
‘‘साटम उसके पीछे लगा न ऐन होशियारी से । धारावी तक पीछा किया । उधर चूना भट्टी में लोकल स्टेशन के सामने शिव कृपा अपार्टमेंट्स में रहता है । साथ में एक फ्लैटमेट भी । नाम पैड्रो वाज़ ।’’
‘‘है कौन ?’’
‘‘मालूम नहीं । पण मालूम करने का । साटम ने खुफिया कैमरे से उसका एक फोटू भी निकाला । उस फोटू को आजू बाजू दिखा के मालूम करेंगे कि कौन था ।’’
‘‘बढ़िया । ट्रस्ट के कारोबार का बोलो !’’
‘‘ट्रस्ट रजिस्टर हो गया है । कानूनी तौर से उसके तीन ट्रस्टी अप्वायन्ट हो गये हैं । उन में से एक मैं है, दूसरा ओरियन्ट होटल्स एण्ड रिजार्ट्स का सीएमडी रणदीवे है और तीसरा तुम हो ।’’
‘‘मैं !’’
‘‘अरविन्द कौल । काम कुछ करो न करो पण बोर्ड आफ ट्रस्टीज पर हो ।’’
‘‘इस की कोई जरूरत नहीं थी ।’’
‘‘तुम्हारा दखल जरूरी । तुम्हारी टोकन प्रेजेंस भी हमारे हौसले बढ़ाती है । तुम्हारे बिना हम लोग कुछ नहीं ।’’
‘‘ये कहना सोचना गलत है । बल्कि तुम लोगों के बिना मैं कुछ नहीं ।’’
‘‘कैसे भी । पण अब ये काम फाइनल है ।’’
‘‘कैश !’’
‘‘चार करोड़ से ऊपर है ।’’
‘‘उस का क्या करेंगे ?’’
‘‘तुम ठीक बोला कि इधर रखना तो ठीक नहीं ।’’
‘‘मलाड वाले विधवा आश्रम में !’’
‘‘लम्बे अरसे तक उधर भी ठीक नहीं ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘हम एक स्पैशल लॉकर का इन्तजाम कर रहे हैं ।’’
‘‘स्पैशल लॉकर ! बैंक में स्पैशल लॉकर...’’
‘‘बैंक में नहीं । बैंक में नहीं ।’’
‘‘तो !’’
‘‘जौहरी बाजार में प्रीमियर वाल्ट कम्पनी कर के एक जगह हैं जहां कि ट्वेन्टी फोर आर्व्स सर्विस वाले प्राइवेट लॉकर मिलते हैं । ट्वेन्टी फोर आवर्स आपरेशन । अलाटमेंट में कोई पूछताछ नहीं, कोई फच्चर नहीं । वो लोग बैंक लॉकरों के मुकाबले में किराया ज्यास्ती चार्ज करते है — तकरीबन चार गुणा — पण सर्विस जैसी चाहो देते हैं । उधर खास तौर से हमारे लिये एक बड़ा लॉकर तैयार हो रहा है जिसमें कि तमाम कैश रोकड़ा समा जायेगा ।’’
‘‘कितना टाइम लगेगा ?’’
‘‘तकरीबन वन वीक ।’’
‘‘इतना !’’
‘‘काम भी तो बड़ा है ।’’
‘‘लिहाजा अभी एक हफ्ता मेरे को इधर और रुकना पड़ेगा !’’
‘‘बड़ी हद ।’’
‘‘बीबी नाराज होगी ।’’
शोहाब खामोश रहा ।
‘‘ठीक है ।’’ — विमल गहरी सांस लेता बोला — ‘‘एक हफ्ता ।’’
दो दिन पहले अनूप झेंडे ने बड़े धीरज से कयूम नलवाला नाम के पिटे हुए मोहरे की हर बात सुनी थी, इसकी मारकस लोबो से मीटिंग के बारे में जाना था और उस के बॉस माइकल हुआन के बारे में जाना था कि वो क्या चाहता था । उसने अन्डरवर्ल्ड में लोबो की बाबत दरयाफ्त किया था तो उसको जानने वाले कई निकल आये थे लेकिन किसी को भी उसके माइकल हुआन के सम्बन्धों की बाबत कोई खबर नहीं थी । अलबत्ता माइकल हुआन की बाबत खबर थी क्योंकि नॉरकॉटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो और मुम्बई पुलिस के स्पैशल आपरेशन में गोरई स्थित उसकी एस्टेट को खोद डाला गया था और वहां से बेतहाशा ड्रग्स और असलाह बरामद किया गया था ।
खुद माइकल हुआन स्वैन नैक प्वायन्ट पर मचे कोहराम में खत्म हो चुका बताया जाता था ।
बहरहाल झेण्डे को उस की सोहल को खत्म करने की जरूरत की बात जँची थी और लगा था कि उसके साथ गरेवाल का गंठजोड़ काम आ सकता था क्योंकि दोनों एक ही राह के राही थे, दोनों का सांझा निशाना विमल था ।
गरेवाल की हामी पर झेण्डे ने जायन्ट मीटिंग आर्गेनाइज की थी जो कि उस घड़ी अमृता बार के एक प्राइवेट केबिन में जारी थी ।
तब रात नौ बजे का वक्त था ।
मीटिंग में खुद वो, कौल, गरेवाल और हुआन शामिल थे ।
आपसी तआरुफ हो चुका था और चियर्स बोल कर आपसदारी का माहौल स्थापित किया जा चुका था ।
फिर मीटिंग में आगामी कई सामूहिक कार्यक्रम डिसकस हुए लेकिन कोई भी निर्विवाद रूप से पास न हो सका ।
‘‘मेरे को’’ — फिर हुआन एकाएक बोला — ‘‘सोहल की बाबत एक खास बात की खबर लगी है जो कि हमारे काम आ सकती है ।’’
‘‘क्या खास बात ?’’ — कौल उत्सुक भाव से बोला ।
‘‘बात का ताल्लुक उन डोनेशंस से है जो कि तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्ट को हासिल होती हैं । मेरे सुनने में आया है अगर डोनेशन कैश में हो, बड़ी रकम की हो और डोनर की इच्छा रकम दाता के हवाले ही करने की हो तो ऐसी रकम कलैक्ट करने के लिए सोहल खुद जाता है ।’’
‘‘कल्ला !’’ — गरेवाल बोला ।
‘‘क्या ?’’
‘‘अकेला ?’’ — कौल ने जल्दी से अनुवाद किया ।
‘‘हां । पता तो यही लगा है ! कोई पहले से डोनर हो और फिर दान में कोई बड़ी रकम दे रहा हो तो क्योंकि वो परखा हुआ होता है इसलिये सोहल यकीनी तौर पर अकेला ।’’
‘‘इस बात की भनक हमें भी लगी है ।’’
‘‘फिर तो साबित हुआ कि बात में दम है । कोई डोनर तलाश कर पाये !’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘फिर तो ये काम मेरे जिम्मे छोड़ दो ।’’
झेण्डे ने बुरा सा मुंह बनाया ।
‘‘ये काम मेरे से न हुआ तो यकीन जानना, तुम्हारे से भी नहीं होगा ।’’
‘‘ऐसा ?’’ — झेण्डे बोला ।
‘‘हां ।’’
‘‘लेकिन’’ — कौल बोला — ‘‘सोहल की अकेले आने की शर्त किसलिए ? जिद किसलिये ?’’
‘‘सुनो ।’’ — हुआन बोला — ‘‘अगर कोई बड़ी रकम कैश में होगी तो जाहिर है कि दो नम्बर की होगी । एक नम्बर की रकम कोई नकद क्यों देगा ? उसका तो वो चैक देगा !’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘दो नम्बर की ऐसी किसी रकम की भनक इंकम टैक्स डिपार्टमेंट को लग जाये तो डोनर के साथ बुरी होगी ।’’
‘‘लेने वाले के साथ कोई बुरी नहीं होगी ?’’
‘‘इसके दो जवाब हैं । एक तो ये कि रंगे हाथों न पकड़े जायें तो लेने वाले क्यों कहेंगे कि उन्हें ऐसी कोई रकम मिली थी ! दूसरा ये कि अगर ट्रस्ट रजिस्टर्ड है तो उन के पास ब्लैक मनी को वाइट करने का, एकाउन्टेबल बनाने का कोई जरिया होगा ।’’
‘‘ठीक !’’
‘‘डोनर दो नम्बर की ट्रांजेक्शन में अपनी सेफ्टी के लिये मांग कर सकता है कि लेन देन का कोई गवाह न हो ।’’
‘‘ऐसी सीक्रेसी बरतने वाले शख्स की किसी को खबर कैसे लगेगी ?’’
‘‘बाज लोग बड़बोड़े होते हैं, आपसदारी में दोहराने से नहीं हिचकते कि उन्होंने फलां पुन्य का काम किया था । ऐसी कोई अफवाह अथारिटीज तक पहुंच जाये, वो इंक्वायरी करें तो मुकरने की पूरी गुंजाइश होती है क्योंकि कोई गवाह नहीं होता ।’’
‘‘ठीक ।’’ — गरेवाल उतावले स्वर में बोला — ‘‘अब बात को आगे भी तो बढ़ाओ !’’
‘‘अगर हमें ऐसे किसी रेगुलर, पहले से एक्टिव, डोनर की खबर लग जाये और हम उस पर दबाव बना सकें कि वो नयी डोनेशन एनाउन्स करे और कलेक्शन के लिये सोहल को बुलाये तो हमारा काम बन सकता है ।’’
‘‘क्योंकि हमें मालूम होगा’’ — गरेवाल उत्तेजित भाव से बोला — ‘‘कि वो अकेला कहां पहुंचने वाला होगा !’’
‘‘अभी आयी बात समझ में ।’’
‘‘वदिया । वदिया ।’’
‘‘ऐसे डोनर की’’ — कौल सन्दिग्ध भाव से बोला — ‘‘हमें खबर कैसे लगेगी ?’’
‘‘ये काम मैं करूंगा ।’’ — हुआन बोला — ‘‘ऐसे किसी डोनर की खबर मैं निकालूंगा ।’’
‘‘होगा ?’’
‘‘कई होंगे पर हमारी जरूरत एक से ही पूरी हो जायेगी ।’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘डोनर की खबर मैं निकालूंगा, आगे की कार्यवाही तुम लोगों को करनी होगी ।’’
‘‘वो तो हम कर लेंगे, हुआन भाई’’ — गरेवाल बोला — ‘‘पर हम इस डोनर को मजबूर कैसे करेंगे कि वो हमारे कहे मुताबिक काम करे ?’’
‘‘ये बाद की बात है । पहले हमें हमारे काम के डोनर की खबर लगानी चाहिए, फिर हम उसकी कोई दुखती रग पकड़ेंगे और उसे मजबूर करेंगे कि वो हमारे साथ सहयोग करे ।’’
‘‘दुखती रग पकड़ पायेंगे ?’’
‘‘क्यों नहीं !’’
‘‘हुई ही न तो ?’’
‘‘ऐसा कहीं होता है ! हर किसी की कोई न कोई दुखती रग होती है, बस पता लगाने की बात है ।’’
‘‘जो तू लगा लेगा, हुआन भाई ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘डोनर भी ढूंढ ही लेगा ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘वदिया । मेरे को स्कीम पसन्द आई ।’’
‘‘तो ये फाइनल हुआ कि मैं ऐसा कोई डोनर तलाश करूंगा, उसको सैट करने का काम हम मिल के करेंगे और आखिर में चील जैसा झपट्टा आप लोग अरेंज करेंगे !’’
‘‘हां ।’’ — गरेवाल जोश से बोला ।
कौल ने भी सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘इसी बात पर’’ — झेण्डे बोला — ‘‘नये ड्रिंक्स हो जायें ।’’
‘‘हो जायें ।’’ — हुआन बोला ।
और दो मिनट बाद चारों नये सिरे से चियर्स बोल रहे थे ।
���
शोहाब विमल के रूबरू हुआ ।
‘‘पिछली मुलाकात में’’ — वो बोला — ‘‘मैं बोला था कि साटम ने इस मारकस लोबो कर के भीड़ू का फोटो निकाला था जो कि कयूम नलवाला से उसकी खोली में मिलने आया था । याद आया ?’’
‘‘हां ।’’ — विमल बोला ।
‘‘वो फोटो खामोशी से अन्डरवर्ल्ड में सर्कुलेट की गयी थी ।’’
‘‘कोई नतीजा निकला ?’’
‘‘निकला । तभी तो जिक्र है ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘जिस भीड़ू ने मारकस लोबो को फोटो से पहचाना था वो लेमिंगटन रोड वाले ड्रग डीलर मुकुल देसाई के अन्डर में चलने वाला एक प्यादा था जो कि कोहराम की रात को बतौर एस्कार्ट आइलैंड पर देसाई के साथ था । उस भीड़ू ने फोटो को पहचाना था और दावा किया था कि ये मारकस लोबो भी उस रात आइलैंड पर था ।’’
‘‘कहां ?’’
‘‘उस होटलनुमा इमारत में जिस में दादा लोगों के साथ आये ऐसे एस्कार्ट्स के मनोरंजन का इन्तजाम किया गया था ।’’
‘‘लोबो भी किसी ड्रग लार्ड या ड्रग डीलर के साथ आया था ?’’
‘‘जाहिर है ।’’
‘‘किस के साथ ?’’
‘‘ये वो भीड़ू नहीं बता सका था क्यों कि उसने लोबो को आता नहीं देखा था, इसलिये नहीं जानता था कि किस के साथ आया था ।’’
‘‘हुआन के साथ ?’’
‘‘हो सकता है ।’’
‘‘आइन्दा इधर कभी वो हुआन की सोहबत में दिखाई दे तो स्थापित होगा कि हुआन के साथ ।’’
‘‘जाहिर है ।’’
‘‘फिर तो लोबो पर मुतबातर नजर रखी जानी चाहिये !’’
‘‘ये भी जाहिर है । इन्तजाम कर दिया गया है ।’’
‘‘बढ़िया ।’’
‘‘कल रात मैं मलाड गया था । तुम उधर विधवा आश्रम में नहीं थे !’’
‘‘हां । मैं तारदेव में ओरियन्ट के गैस्ट हाउस में था ।’’
‘‘ऐसा क्यों ?’’
‘‘जब से वो मानव बम और नकली पुलिस रेड वाली वारदात हुई है, तब से मेरे को लग रहा था कि मेरे को एक ही जगह नहीं टिके रहना चाहिये था ।’’
‘‘रैन बसेरा रोटेट करते रहना चाहिये था !’’
‘‘हां । आगे मैं कोलीवाडा में सलाउद्दीन के होटल मराठा में जा सकता हूं । कोमल के पास विखरोली जा सकता हूं, अनाथाश्रम वापिस लौट सकता हूं या कोई नया ठिकाना तलाश कर सकता हूं ।’’
‘‘कुछ ज्यादा ही खबरदारी नहीं !’’
‘‘है तो सही । पर हर्ज क्या है बरतने में ?’’
‘‘हर्ज तो कोई नहीं...’’
‘‘यू कैन नैवर बी टू केयरफुल ।’’
‘‘बरोबर बोला ।’’
‘‘मुझे कानून के रखवालों का डर उतना नहीं सताता जितनी भाई लोगों की दहशत सताती है जो कि मेरा मरा मुंह देखना चाहते हैं ।’’
‘‘उनका मंसूबा कभी पूरा नहीं होगा ।’’
‘‘जरूर नहीं होगा । जिस दशमेश पिता ने अब तक रक्षा की है, वो आगे भी करेगा । जन की पैज रखी करतारे ।’’
‘‘बोले तो बरोबर ।’’
‘‘मलाड गया किसलिये था ?’’
‘‘वही कुछ बोलने के लिये जो अभी बोला ।’’
‘‘ओह ! कोई और बात ?’’
‘‘नहीं । खाली यही थी ।’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘डोनर का पता लग गया है ।’’ — हुआन ने गुड न्यूज दी ।
श्रोता फिर झेण्डे, कौल और गरेवाल थे ।
‘‘अच्छी खबर है ।’’ — झेण्डे बोला ।
‘‘वदिया ।’’ — गरेवाल बोला ।
‘‘इतनी जल्दी !’’ — कौल बोला ।
‘‘इत्तफाक हुआ ।’’ — हुआन बोला — ‘‘इसलिये हुआ कि डोनर बिरादरीभाई निकल आया ।’’
‘‘अच्छा !’’ — झेण्डे बोला ।
‘‘हां । मैं उससे पहले से वाकिफ था लेकिन मेरे को ये नहीं मालूम था कि वो तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्ट को बड़ी बड़ी रकमों का चन्दा देता था ।’’
‘‘है कौन ?’’ — कौल ने उत्सुक भाव से पूछा ।
‘‘नाम कल्याण अजमेरा है ।’’
‘‘बिरादरीभाई बोला, हुआन भाई !’’ — गरेबाल बोला ।
‘‘हां । ड्रग डीलर था ।’’
‘‘था !’’ — झेण्डे की भवें उठीं ।
‘‘जो स्वैन नैक प्वायंट पर बीती, माई डियर, उसकी रू में तो अब सारे ‘हैं’ ‘था’ हैं । आज के माहौल में मरना है किसी ने अपनी जुबानी कबूल करके कि वो ड्रग डीलर है !’’
‘‘ओह !’’
‘‘ये कल्याण अजमेरा तो वारदात से पहले भी सेफ खिलाड़ी था । इसी वजह से न्योता होने के बावजूद स्वैन नैक प्वायन्ट की कांफ्रेस में नहीं गया था । ऐन मौके पर बीमारी का बहाना कर के घर बैठ गया था ।’’
‘‘तभी तो बच गया !’’
‘‘खुशकिस्मत निकला ।’’ — कौल बोला ।
‘‘ट्रस्ट को चन्दा देना भी, मालूम पड़ा है कि, उसकी खबरदारी बाकी स्ट्रेटेजी का हिस्सा है ।’’
‘‘ओ किवें ?’’ — गरेवाल बोला ।
‘‘क्या बोला ?’’
‘‘वो वैसे ?’’ — कौल बोला ।
‘‘भई, यूं धार्मिक बन के दिखायेगा तो कौन सोचेगा कि ड्रग डीलर था !’’
‘‘ठीक !’’
‘‘मालूम पड़ा है कि तीन बार दस दस लाख रुपये की रकमें ट्रस्ट को चन्दे में दे चुका है ।’’
‘‘सोहल खुद लेने आया !’’
‘‘ऐसा ही मालूम पड़ा है ।’’
‘‘बोले तो’’ — झेण्डे बोला — ‘‘अभी ये भीड़ू और बड़ी रकम चन्दे में देना चाहे तो सोहल आयेगा !’’
‘‘उम्मीद तो है !’’
‘‘ओये, वीर मेरे’’ — गरेवाल तनिक झल्लाया — ‘‘हमारे कहने से तो नहीं देगा !’’
‘‘रकम का कोई रोल नहीं है’’ — हुआन बोला — ‘‘उसने खाली एनाउन्स करना है कि तीस, चालीस, पचास लाख चन्दे में देना चाहता था ।’’
‘‘वो भी हमारे कहने से कैसे करेगा ?’’
‘‘उसे कहने के लिये तैयार करना होगा ।’’
‘‘कैसे ?’’
‘‘जुगत से ।’’
‘‘जुगत से कैसे ? खुलासा कर, हुआन भाई ।’’
‘‘उसकी एक दुखती रग है जो हमने थामनी है ।’’
‘‘दाता ! अरे मैंने कहा खुलासा कर, हुआन भाई, पहेली न कर ।’’
‘‘उसकी एक नौजवान बेटी है । नाम सरयू है । ये लड़की लैस्बियन है ।’’
‘‘क्या है ?’’
‘‘लैस्बियन । जो औरत दूसरी औरत से यौन सम्बन्ध रखे, उसको लैस्बियन बोलते हैं ।’’
‘‘दाता ! जनानियां वी !’’
‘‘इस लड़की के जिस दूसरी लड़की से ऐसे सम्बन्ध है उसका नाम ऐग्नेस सेठना है और वो नई बनी पब्लिक पार्टी नाम की पार्टी की नेता है ।’’
‘‘लड़की !’’
‘‘क्या प्राब्लम है ? लेडीज के पालिटिक्स जायन करने पर कोई पाबन्दी है ?’’
‘‘तुम आगे बढ़ो ।’’ — कौल उतावले स्वर से बोला ।
‘‘बाप कल्याण अजमेरा बेटी के इन नाजायज, नापाक ताल्लुकात से नाराज है, परेशान है, हलकान है लेकिन लड़की किसी सूरत में भी ताल्लुकात से किनारा करने को तैयार नहीं ।’’
‘‘बाप’’ — झेण्डे बोला — ‘‘जब बाप मवाली है, ताकतवर भाई है तो पिराब्लम किधर है ?’’
‘‘लड़की ही प्राब्लम है । वो जानती है उसका ड्रग लार्ड बाप चुटकियों में एग्नेस को इलीमिनेट करा सकता है इसलिये उसका बाप को नोटिस है, बल्कि अल्टीमेटम है कि एग्नेस को कुछ हुआ तो वो खुदकुशी कर लेगी ।’’
‘‘अरे !’’
‘‘वो लड़की’’ — गरेवाल बोला — ‘‘ए गणेष...’’
‘‘ऐग्नेस ।’’
‘‘वही । वो वैसे ही मर जाये — कोठे से गिर पड़े, एक्सीडेंट की शिकार हो जाये, या कोई टाइफाइड मलेरिया ही हो जाये — तो ?’’
‘‘तो भी वो मौत के लिये बाप को जिम्मेदार ठहरायेगी और खुद भी जान दे देगी ।’’
‘‘इत्तफाक से ऐसा हो जाये तो भी ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘कमाल है ! अच्छी नस पकड़ी बाप की !’’
‘‘अब बाप का कहना ये है कि कोई — कोई भी — उसकी बेटी का उस ऐग्नेस सेठना से पीछा छुड़वा देगा तो वो जो कहेगा, बाप करेगा ।’’
‘‘पीछा छुड़ाने के जो जरिये हैं’’ — कौल बोला — ‘‘जब उन पर पाबन्दी है तो...कैसे होगा ?’’
‘‘एक तरकीब मेरे माइन्ड में आयी है ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘वो ऐसे मरे कि ये न लगे कि उसको मारा गया ।’’
‘‘ऐसा कैसे होगा ?’’
‘‘वही तो तरकीब है !’’
‘‘क्या ?’’
‘‘मैंने कहा वो लड़की नेता है । पब्लिक पार्टी अभी नयी है इसलिये पार्टी की आये दिन जगह जगह मीटिंग होती हैं, सभायें होती हैं, भाषणबाजियां होती हैं और ये लड़की — ऐग्नेस सेठना — हर सभा में मौजूद होती है और पार्टी के नेता उल्हास दादा ताम्बे को हार पहना कर उसका स्वागत करती है । विरोधी पार्टियां इस नयी पार्टी को पनपते, पैर पसारते नहीं देखना चाहतीं इसलिये उन की सभाओं में अक्सर डिस्टर्बेंस पैदा की जाती हैं । दो बार तो भीड़ में बम भी फूटा लेकिन गनीमत हुई कि कुछ लोग मामूली तौर पर जख्मी हुए, कोई जान से न गया । जन्टलमैन, ऐसा बम स्टेज पर भी तो फूट सकता है !’’
‘‘तो ?’’
‘‘और पार्टी के नेता ताम्बे को और हार पहनाती ऐग्नेट सेठना को अपनी चपेट में ले सकता है !’’
‘‘ओह !’’
कुछ क्षण खामोशी रही ।
‘‘पण’’ — फिर झेण्डे बोला — ‘‘ऐसे बम का पावरफुल होना जरूरी । ताकि मौत की गारन्टी हो ।’’
‘‘वो तो है !’’
‘‘आजू बाजू खड़े और लोग भी तो ब्लास्ट की चपेट में आ सकते हैं !’’
‘‘आ सकते हैं । आयेंगे । आके रहेंगे ।’’
‘‘ऐसे तो कई लोग मारे जा सकते हैं !’’
‘‘राइट । इससे तुम्हें कोई प्राब्लम ? हमारा काम बनता है तो हमें कोई प्राब्लम ?’’
झेण्डे खामोश रहा, उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
‘‘कोई प्राब्लम नहीं ।’’ — गरेवाल निर्णायक भाव से बोला — ‘‘हमारा काम बनना चाहिये झण्डे भाई, बाकी कोई प्राब्लम नहीं ।’’
‘‘हूं ।’’ — झेण्डे ने लम्बी, बेचैन हूंकार भरी ।
‘‘वारदात को पोलिटिकल असासीनेशन करार दिया जायेगा । बोला जायेगा कि निशाना उल्हास दादा ताम्बे था, करीब खड़े लोग नाहक मारे गये थे !’’
‘‘उन में वो लेस्बियन लड़की भी !’’ — कौल मन्त्रमुग्ध स्वर में बोला ।
‘‘हां । वो ऐसे मरेगी तो अजमेरा की बेटी बाप पर हरगिज ये इलजाम नहीं लगा पायेगी कि ऐग्नेस बाप की वजह से मरी । वो बस अपनी किस्मत को रोयेगी और रो कर खामोश हो जायेगी ।’’
‘‘फिर ! फिर क्या होगा ?’’
‘‘फिर वो होगा जो हम चाहते हैं । बाप हमारे अहसान के तले दबा होगा और अहसान का बदला चुकाने के लिये जो हम कहेंगे, वो करेगा ।’’
‘‘वादा निभायेगा ?’’
‘‘क्यों नहीं निभायेगा ? आखिर मवाली की जुबान है । ऐसे सोशल मामले में तो ऐतबार लाने लायक होगी !’’
‘‘लेकिन’’ — गरेवाल बोला — ‘‘बाप को पहले खबर होनी चाहिये कि आगे जो करना था, हमने करना था ।’’
‘‘बहुत अक्ल की बात कही !’’ — हुआन यूं बोला जैसे उसे अक्ल की बात की उम्मीद न हो — ‘‘पहले खबर होगी तभी तो वारदात का क्रेडिट हमें मिलेगा ! वर्ना समझा जायेगा हम पोलीटिकल किलिंग को कैश करने की कोशिश कर रहे थे ।’’
‘‘ठीक । हम बाप का ऐग्नेस से पीछा छुड़ा देंगे तो हम जो कहेंगे, वो करेगा ?’’
‘‘बट आफ कोर्स ।’’
‘‘हम कहेंगे वो डोनेशन देने के बहाने सोहल को बुलाये, वो बुलायेगा ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘और हमें उसको खत्म करने का मौका मिलेगा ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘वदिया ।’’
‘‘स्कीम ये है जन्टलमैन, अब एग्जीक्यूशन के लिये जो करना होगा, आप लोगों ने करना होगा ।’’
कौल हड़बड़ाया ।
‘‘हम कर लेंगे ?’’ — फिर सन्दिग्ध भाव से बोला ।
‘‘ओये’’ — गरेवाल बोला — ‘‘जब झण्डे भाई मदद करेगा तो क्यों नहीं कर लेंगे !’’
‘‘फिर भी कोई कसर रह जायेगी’’ — हुआन बोला — ‘‘तो वो मेरे आदमी पूरी कर देंगे ।’’
‘‘वदिया ।’’
‘‘पब्लिक पार्टी की ऐसी एक मीटिंग परसों ही है । शिवाजी पार्क में । शाम चार बजे । हैंडल कर लोगे ?’’
‘‘करना ही होगा ।’’ — कौल बोला ।
‘‘बम एक्सपर्ट का बनाया होना चाहिये । फुस्स हो गया या एक्सपेक्टिड डैमेज न कर सका तो तमाम मेहनत बेकार जायेगी ।’’
‘‘मैं एक भीड़ू को जानता हूं’’ — झेण्डे बोला — ‘‘जो बम का पर्फेक्ट काम करेगा ।’’
‘‘टाइम पर ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘दैन हाफ दि जॉब इज डन । हाफ दि बैटल इज वन । कल्याण अजमेरा से मिलने कौन जायेगा ?’’
जवाब में कुछ क्षण खामोशी रही ।
‘‘मैं ।’’ — फिर कौल बोला ।
‘‘यस । दैट विल बी पर्फेक्ट । यू हैव दि पर्सनैलिटी, यू हैव दि गिफ्ट ऑफ गैब । यू विल डू दि जॉब वैल, आई एम श्योर ।’’
मीटिंग बर्खास्त हो गयी ।
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