प्यारे ने हाँफते हुए पानी की बाल्टी उठाये चाची के घर में प्रवेश किया।
गिन्नी से सामना हो गया उसका।
प्यारे ने बाल्टी नीचे रखी और गिन्नी को देखकर मुस्कुराया। सोलह बरस की गिन्नी बला की खूबसूरत थी। उसके लम्बे बाल कूल्हों तक जा रहे थे। मासूम, जादू से भरा चेहरा। आँखों में ऐसी कशिश कि जो देखे गुलाम बन जाये। नन्हें-नन्हें उसके उभार उसे पूर्ण नारी बनाने पर तुले थे।
प्यारा जानता था कि गिन्नी के चक्कर में ढेरों लड़के गली के चक्कर काटते रहते हैं।
"कैसी है गिन्नी?"
"मैं तो ठीक हूँ। तू सुना, पानी लाकर थक गया लगता है।" गिन्नी मुस्कुराई।
"तू मुझे बहुत अच्छी लगती है।"
गिन्नी खिलखिलाकर हँस पड़ी।
"तेरे को पता है चाची ने मेरे को क्या कहा?" प्यारा धीमे स्वर में बोला।
"क्या?"
"तेरी शादी वो मुझसे करेगी।"
"माँ ने तेरे से कहा?"
"हाँ...।"
"ये माँ भी पागल है। समझा कर थक गई, लेकिन समझ में नहीं आई।" गिन्नी ने मुँह बनाया।
"क्यों, तू किसी और से शादी करना चाहती है?"
"ये बात नहीं प्यारे।" गिन्नी ने लम्बी साँस ली--- "माँ को जब भी अपना कोई काम किसी से निकालना होता है, वो यही कहती है कि मेरी शादी उससे करा देगी और अपना काम निकाल लेती है।"
"चाची ने तो मेरे से वादा किया है।"
"माँ तो पचासों से वादा कर चुकी है। माँ का क्या! पागल है। कभी मुसीबत खड़ी होगी तो पता चलेगा।"
प्यारे का मुँह लटक गया।
"मैं कितनी खुशी-खुशी पानी की बाल्टियाँ भर कर लाया था तेरे से मेरा ब्याह हो जायेगा।" प्यारे ने दुःख भरे स्वर में कहा--- "तूने तो ये बात बताकर मेरा दिल ही तोड़ दिया। एक बात तो बता।"
"क्या?"
"तू मुझसे शादी करने को तैयार है?"
तभी गिन्नी की माँ ने कमरे में प्रवेश किया।
"ले आया पानी...।"
"चाची!" प्यारे ने शिकायती स्वर में कहा--- "तूने मुझसे झूठ बोला कि गिन्नी की शादी मुझसे करेगी?"
"मैंने सच कहा है। तेरे को गिन्नी ने कुछ कह दिया क्या?"
"गिन्नी कहती है कि तू अपना काम निकलवाने के लिए सबको ये ही कहती फिरती है।"
"हाँ। तो क्या हो गया। लेकिन गिन्नी की शादी तो तेरे से ही करुँगी प्यारे...।"
"सच?"
"तो मैं क्या झूठ बोल रही हूँ। तू ही कह उसे गिन्नी...।"
गिन्नी बिना कुछ कहे उस कमरे में चली गई।
"चाची, वादा है न कि तू गिन्नी की शादी...।"
चाची पास आई और कह उठी---
"मैं तेरी सारी शिकायतें दूर कर दूँगी।"
"कैसे?"
"मुझे मालूम है तेरे को किस चीज की जरूरत है...। वो मैं तेरे को दे दूँगी। उसके बाद तू शादी की बात नहीं करेगा।"
"तेरे को पता है चाची कि मुझे किस चीज की जरूरत है?"
"सब पता है।"
"लेकिन मुझे पता तो चले मुझे किस चीज की जरूरत है...।"
"बताऊँगी। फुर्सत में बताऊँगी...।" चाची ने उसके गाल को थपथपाया--- "अब तू जा।"
"ठीक है। तुम कहती हो तो जाता हूँ। परन्तु गिन्नी की शादी तू मेरे...।"
"चिन्ता मत कर प्यारे। पेट भर दूँगी तेरा।"
"पेट भर देगी चाची? लेकिन मुझे भूख नहीं। मैं तो गिन्नी से शादी वाली बात...।"
"पगला है तू। अच्छा जा। तेरे से बाद में कभी बात करुँगी।" चाची ने पुनः उसके गाल पर हाथ फेरा।
प्यारा शराफत से कमरे से निकलकर गली में आया और चार कदम आगे बने अपने मकान के खुले कमरे में प्रवेश कर गया... तभी सामने बैठे सोनू को देखा जो बेड के पास पड़ी टूटी, पुरानी कुर्सी पर बैठा था।
"तू कब आया?" आगे बढ़कर प्यारा बेड पर बैठता कह उठा।
"अभी। किधर था तू?" सोनू ने उसे देखा।
"चाची का पानी भरने गया था।"
"पागल है। क्यों तू नौकरों की तरह चाची के काम करता रहता है?" सोनू ने मुँह बनाया।
"समझा कर, चाची पटाका है।" प्यारे ने गहरी साँस लेकर कहा।
"वो तो ठीक है, पर उसके पटाके तो चाचा बजाता है। तुझे क्या?"
"मेरी नजर तो गिन्नी पर है।" प्यारे ने आह भरी--- "क्या चीज है गिन्नी। पूरी की पूरी फुलझड़ी है!"
"वो तो तेरे को घास भी नहीं डालती...।"
"थोड़ी बहुत तो डालती है। जानता है सोनू, आज चाची ने क्या कहा?"
"क्या?"
"गिन्नी की शादी वो मुझसे कराएगी।"
"आ गया तू चक्कर में! वो सबको ऐसा ही कहती है। रामदयाल का छोकरा चौदह बरस का है। वो मुझे बता रहा था कि चाची ने उससे चायपत्ती मंगवाई। नहीं लाने गया तो चाची ने कहा जल्दी से पत्ती ला दे, गिन्नी की शादी उससे करा देगी।"
"लेकिन गिन्नी तो रामदयाल के लड़के से बड़ी है?"
"मैं तेरे को चाची की हवाई बातें बता रहा हूँ। तू चाची की बातों में मत फंसना।"
"चाची कहती है की किसी को कुछ भी कहे, परन्तु गिन्नी से तेरी सगाई कर दे। शादी होती रहेगी।"
"कह दूँगा।" प्यारा बोला--- "वैसे गिन्नी बढ़िया है ना?"
"बढ़िया क्या, चाँद का टुकड़ा है। एकदम परी जैसी।"
"तेरे को पसन्द है?"
"उससे क्या होता है!"सोनू मुस्कुराया--- "पसन्द होने से मिल थोड़े ना जायेगी गिन्नी! वैसे भी वो तेरी चीज है। हम दोनों की पक्की दोस्ती है और हम ऐसा काम नहीं करते जिससे कि दोस्ती में फर्क आये।"
"बढ़िया बात कही तूने...। चाची को तैयार कर कि वो गिन्नी की शादी मेरे से कर दे।"
"कोशिश करूँगा।" सोनू ने सिर हिलाया--- "कल राखी है। मैं राखी लेकर चाची के पास जाऊँगा कि गिन्नी से राखी बंधवाने आया हूँ। इस तरह चाची से नजदीकी बनाऊँगा और फिर कोई चक्कर चलाऊँगा...।"
"क्या बढ़िया रास्ता निकाला है तूने...।"
"दोस्त के लिए तो जान भी हाजिर है।"सोनू मुस्कुराया--- "हम पक्के दोस्त हैं।"
"तेरे को किराया मिल गया इस महीने का?" प्यारे ने पूछा।
"कहाँ मिला!" सोनू ने गहरी साँस ली--- "किरायेदार की माँ मर गई। रात ही गाँव गया है।"
"तो किराया माँग लेता।"
"माँग लेता क्या,माँगा। कहने लगा कि अभी तनख्वाह नहीं मिली। हफ्ते भर में आकर देगा।"
"किराये में उधारी नहीं होनी चाहिए।" प्यारे ने कहा।
"तेरे को मिला किराया?"
"कल माँगा था। दो सौ रूपये दे दिए। बाकी के तीन-चार दिन में दे देगा।"
"दो सौ हैं तेरे पास?"
"हाँ। बनिये को देने हैं। उसका हजार रूपये हो गया है, दो बार वो माँग चुका है।"
"बनिये को गोली मार। वो तो साला सबसे ही पैसा माँगता रहता है। वो अपना अमर सिंह है ना?"
"वो टेलर। जिससे मैंने कपड़े सिलवाए थे...।"
"वो ही। साला रात को स्मैक के नशे में टुन्न था। उसने बताया कि स्मैक में बहुत मजा आता है।"
"अच्छा!"
"मैंने उससे माँगी तो साला कहता है स्मैक बहुत महंगी आती है। नखरे दिखाने लगा। फिर तीन सौ माँगने लगा।"
"स्मैक के?"
"हाँ।" सोनू मुँह आगे करके कह उठा--- "मगर एक बार स्मैक हमें जरूर पीनी चाहिए।"
"पी लें?" प्यारे की आँखें चमकीं।
"अमर सिंह बता रहा था कि स्मैक का नशा, सब नशों का बाप है। बहुत मजा आता है।"
"लेकिन तीन सौ कहाँ से आयेंगे?"
"दो सौ तेरे पास हैं ही...।"
"वो तो बनिये को...।"
"छोड़ बनिये को। उसे फिर दे देंगे। तू दो सौ निकाल। पचास मेरे पास हैं। बाकी पचास का अमर सिंह से उधार कर लूँगा।"
"चलें?" प्यारे की आँखों में चमक थी।
"सोचता क्या है। आज स्मैक का मजा लेकर ही रहेंगे। बहुत नाम सुना है। दो सौ कहाँ हैं, निकाल?"
प्यारा उठा और भीतर कमरे में चला गया।
वापस आया तो हाथ में सौ-सौ के दो नोट थामें था।
सोनू ने जेब से पचास का नोट निकाला और उसे थमा दिया।
"तो ढाई सौ हो गए।"
"सोच ले। यही पैसे हैं, खाली हो जायेंगे।"प्यारे ने कहा।
"चिन्ता किस बात की? किराया तो अभी आना ही है। उसके बाद तो...।"
तभी चाची ने भीतर प्रवेश किया।
"प्यारे...।" चाची ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा, फिर सोनू को देखकर ठिठकी--- "तू भी यहीं है...।"
"नमस्ते चाची...।"
चाची की निगाह, प्यारे के हाथ में थमे नोटों पर जा टिकी।
"चाची।" सोनू बोला--- "कल राखी है। मैं गिन्नी से राखी बंधवाने आऊँगा।"
"शुक्र है, किसी ने तो कहा कि गिन्नी से राखी बंधवायेगा। वैसे सब ही उससे शादी को कहते हैं।"
"मैं तो गिन्नी से शादी करूँगा चाची।" प्यारा जल्दी से कह उठा।
"तू क्या करेगा!गिन्नी की शादी तो मैं तेरे से ही करुँगी।" चाची ने मुस्कुराकर कहा। फिर सोनू से बोली--- "कम-से-कम पाँच सौ रुपया देना गिन्नी को, राखी बंधवाने का...।"
"पाँच सौ?" सोनू हड़बड़ाया।
"सूट सिलवा कर दूँगी गिन्नी को। गिन्नी खुश होगी कि उसके भाई ने उसे सूट दिया है।"
"लेकिन चाची, इतने पैसे तो हैं नहीं...मैं...।"
"फिक्र क्यों करता है! किश्तों में दे देना। तेरे को पैसे की क्या कमी--- किराया मिल गया होगा?"
"अभी कहाँ मिला चाची...।"
"दो-चार दिन में मिल जायेगा। तब दे देना। लेकिन राखी कल जरूर बंधवा लेना। मैं गिन्नी को बता दूँगी। वो बाजार से अपने भाई के लिए बढ़िया राखी ले आएगी।" चाची की नजर बार-बार नोटों पर जा रही थी।
"एक बात कहूँ चाची।" सोनू बोला--- "अब तो मैं गिन्नी का भाई बन गया। घर की बात में दखल तो दे ही सकता हूँ...।"
"तू तो पहले भी गिन्नी का भाई था। मैं तो हमेशा गिन्नी से कहा करती थी कि सोनू तेरे भाई जैसा है। पूछ ले गिन्नी से। बोल क्या बात है?"
"प्यारा, गिन्नी के लिए योग्य वर है। तू गिन्नी की शादी कल ही प्यारे से कर दे।"
"रक्षा-बंधन वाले दिन शादी की बात नहीं करते।"
"परसों ही कर दे।"
"शादी-ब्याह इतनी जल्दी नहीं होते। फिर गिन्नी के पापा के कानों में भी तो बात डालनी पड़ेगी...।"
"तू प्यारे और गिन्नी की सगाई कर दे।"
"मैं तो कर दूँ। लेकिन प्यारे के पास सोने की अंगूठी कहाँ है, जो गिन्नी को डालेगा...?"
सोनू ने प्यारे को देखा।
"अंगूठी है तेरे पास?" सोनू ने पूछा।
"नहीं...।" माँ का सोना तो कब का बेचकर खा-पी लिया।" प्यारे ने मुँह लटका कर कहा।
"तुम गिन्नी को पहनाने के लिए सोने की रिंग का इन्तजाम कर लो तो मेरे को बता देना।" कहने के साथ ही चाची आगे बढ़ी और प्यारे के हाथ में पकड़े दो सौ पचास झटक लिए।
"ये...ये क्या चाची...।" प्यारे हड़बड़ाया।
"घबराता क्यों है...।" चाची ने प्यारे का गाल थपथपाया--- "सोनू ने गिन्नी को राखी बंधवाई का पाँच सौ देना है। ये ढाई सौ है। तू सोनू से ढाई सौ ले लेना। सोनू, अब तू गिन्नी को ढाई सौ बाकी देना। ठीक है ना?"
"ठ...ठीक है।" सोनू ने बे-मन से कहा।
प्यारा अभी तक हक्का-बक्का खड़ा था।
चाची ने उसी ढाई सौ में से पचास का नोट प्यारे की तरफ बढ़ाते हुए कहा---
"पकड़ इसे। दर्जन केले, शेम्पू के चार पाउच और एक किलो मूली ला दे। जल्दी ला दे। गिन्नी नहा रही है, उसे शैम्पू चाहिए। नहाने के बाद गिन्नी ने खाना खाना है। मूली के बिना उसे खाने में मजा नहीं आता। खाना खाने के बाद वो केला जरूर खाती है। बाकी पैसे जो बचें, वो लाकर मेरे हाथ पर रखना। मुझे पूरा हिसाब चाहिए।"
प्यारे से कुछ कहते ना बना।
सोनू कभी चाची को देखता तो कभी प्यारे को।
"जल्दी ला, खड़ा क्यों है...? मैं इन्तजार कर रही हूँ सामान का...।" चाची ने कहा और बाहर निकल गई।
सोनू और प्यारे की नजरें मिलीं।
"गिन्नी के साथ शादी तो तेरे को बहुत महँगी पड़ेगी प्यारे।" सोनू ने मुँह बनाकर कहा।
"राखी बंधवाने का ख्याल तो तेरा ही था...।" प्यारे बोला।
"तेरे लिए ही ये सब सोचा था...। चाची तो ढाई सौ झटक कर ले गई।"
"ढाई सौ का तेरे पर उधार भी चढ़ा गई।"
"स्मैक भी हाथ से गई।" सोनू ने मुँह बनाकर कहा।
"अब क्या करें?"
"केले ला, मूली ला। गिन्नी को खिला मजे कर।"
"चाची बहुत तेज है।"
"तेरी होने वाली सास है।"
"मुझे तो सिर्फ गिन्नी चाहिए। तू कोई और रास्ता सोच। सोने की अंगूठी का इन्तजाम किधर से करूँगा? नहीं होगा इन्तजाम। दस हजार की अंगूठी आएगी। आजकल तो सोना भी महँगा हो गया है।" प्यारे ने गम्भीर स्वर में कहा--- "तू कोई और जुगत भिड़ा,मैं मूली, केले और शैम्पू लेकर आता हूँ।"
"मेरी मान तो शादी का ख्याल छोड़ दे।"
"क्यों?"
"परिवार को पालने में आदमी का बुरा हाल हो जाता है। एक कमाता है और छः खाते हैं, फिर भी सब यही कहते हैं कि खाने में स्वाद नहीं आया। शादी करके तू क्यों मुसीबत मोल लेता है।"
"गिन्नी मेरे को अच्छी लगती...।"
"उसे पालने में बिक जायेगा। चाची तो वैसे ही फन्ने खाँ बनकर घूमती है।"
"तू कैसा यार है जो गिन्नी को छोड़ने के लिए कहता है? वो मुझे बहुत अच्छी लगती है।" प्यारे ने मुँह फुलाकर कहा।
"मैं तो तेरे को राय दे रहा था।"
"गिन्नी को छोड़ने की राय मत दे।"
"ठीक है। कुछ और सोचता हूँ। तू चाची को सामान ला दे। पचास रूपये जेब में थे। वो भी गए।" सोनू ने मुँह बनाया।
"मेरे तो दो सौ थे।"
"तू वापस क्यों नहीं माँग लेता चाची से?"
"नाराज हो जायेगी। गिन्नी की शादी तुमसे ना की तो?"
सोनू ने गहरी साँस ली।
प्यारे बाहर निकल गया।
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