हवेली में हंगामा
सुबह दस बजे डीसीपी अजय सहरावत हैडक्वार्टर पहुंचा, जहां ड्यूटी रूम में एक नजर मारकर वह पहली मंजिल पर पहुंचा और एसीपी के कमरे में जाकर बैठ गया। उसके पांच मिनट बाद ही विराट राणा और सुलभ जोशी को वहां बुला लिया गया।
“केस की प्रोग्रेस कैसी है विराट?”
“फुल रफ्तार से दौड़ रहा है सर।”
“फिर भी कहीं पहुंच नहीं रहा।”
“मंजिल बस आने वाली ही है सर।”
“बहुत दबाव पड़ रहा है भई, कैसे काम चलेगा?”
“प्रेशर बर्दाश्त करना होगा सर।”
“ये न कहते बना कि जल्द से जल्द केस सॉल्व करना होगा?”
“मेरा मतलब था सर कि केस साल्व होने तक प्रेशर बर्दाश्त करना होगा।”
“कुछ जान पाये या नहीं अभी तक?”
“ऐसा कुछ नहीं सर जिसके बूते पर मैं आपको संतुष्ट कर सकूं, सॉरी।”
“फिर भी कह रहे हो कि मंजिल पर पहुंचने वाले हो?”
“जी हां।”
“वजह?”
“आपने कभी चेयर डांस देखा या खेला है सर?”
“बचपन में, क्यों?”
“उसमें हर बार म्यूजिक बजने पर लोग खाली कुर्सियों के इर्द गिर्द घूमना शुरू कर देते हैं, और म्युजिक बंद होते ही उन्हें किसी ना किसी कुर्सी पर बैठ जाना होता है, जिनमें से एक कुर्सी को हर बार वहां से हटा दिया जाता है। जीतता बस वह शख्स है जो आखिर तक कुर्सी हासिल करने में कामयाब हो जाता है।”
“मतलब क्या हुआ इसका?”
“समझ लीजिए कि मैं तमाम संदिग्धों के साथ वही गेम खेल रहा हूं और हर बार एक कुर्सी कम कर देता हूं, यानि एक एक कर के सस्पेक्ट्स की संख्या कम करता जा रहा हूं। बस मेरे और चेयर गेम में अंतर इतना है कि यहां जीतने वाला हारेगा, यानि मेरे संदेह के घेरे में जो लॉस्ट तक बचा रह जायेगा वही कातिल होगा।”
“वेरी इंट्रेस्टिंग, तो अभी तक कितनी चेयर्स हटा चुके हो?”
“तीन।”
“और कुल प्लेयर्स कितने थे?”
“अफसोस कि दस।”
“स्पीड कुछ ज्यादा ही स्लो नहीं हो गयी?”
“बेशक हो गयी सर, लेकिन आज शनिवार है इसलिए एक साथ कई लोगों के आउट हो जाने की उम्मीद है।”
“इसलिए क्योंकि शनिवार है?”
“यस सर।”
“तुम मेरी समझ से बाहर हो।”
“और तो और सर - राजावत हंसता हुआ बोला - इसने कोठारी के सामने ये बड़ा बोल बोल दिया कि तीन दिनों में या तो उसकी बेटी का हत्यारा पुलिस की गिरफ्त में होगा, या फिर ये अपनी नौकरी से इस्तीफा दे देगा।”
“कब कहा था?”
“परसों, अगर हम तीन दिनों को बहत्तर घंटों के हिसाब से भी देखें तो इसके पास अब लगभग चौबीस घंटे ही बचे हैं, जबकि दिनों के हिसाब से तो आज आखिरी दिन है।”
“दैट्स गुड।”
“इसमें गुड क्या है सर?” राजावत ने पूछा।
“केस अगले चौबीस घंटों में सॉल्व हो जायेगा, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है।”
“थैंक यू सर।” विराट बोला।
“अब तुम दोनों जा सकते हो।”
विराट राणा और सुलभ जोशी कमरे में बैठे आगे की रणनीति तैयार कर रहे थे जब सूरज सिंह और रोहताश सरदाना उनके सामने आ खड़े हुए।
“कैसे हो पापियों?” विराट विनोद भरे स्वर में बोला।
“पापी हमेशा बढ़िया होते हैं सर।”
“ये तो बहुत अच्छी बात है, बैठो।”
दोनों बैठ गये।
“अपना जुर्म कबूल करने तो नहीं आये होगे?”
“वही करने आये हैं।” सैंडी बोला।
“दैट्स गुड, पापियों को किसी भी बात से डरना शोभा नहीं देता, भले ही वह डर कानून का ही क्यों न हो।”
“हमने भी यही सोचा इंस्पेक्टर साहब - रोहताश बोला - इसलिए यहां आ गये।”
“तो तुम दोनों कबूल करते हो कि राहुल और मधु का कत्ल तुम्हीं ने किया था?”
“नहीं।”
“नहीं?”
“क्योंकि उन्हें हमने नहीं मारा था।”
“फिर किसने मारा?”
“पता नहीं।”
“और क्या जुर्म किया है तुम दोनों ने?”
“लाशें जलाई हैं, वह भी एक नहीं दो दो बार।”
“राहुल और मधु की?”
“हां।”
“जयदीप से आखिरी बार कब मिले थे?”
“ये कैसा सवाल है?”
“जवाब दो भई?”
“यहीं मिले थे, उसके बाद कोई मुलाकात नहीं हुई।”
“फोन पर कोई बातचीत?”
“कोशिश बराबर की थी मगर उसका मोबाईल नॉट रीचेबल आ रहा है।”
“एनी वे, तो तुम दोनों ने मिलकर राहुल और मधु की चिता जलाई थी, लेकिन उनका कत्ल किसी और ने किया था, इससे आगे बढ़ो।”
“सिर्फ हम दोनों ने नहीं इंस्पेक्टर, पूरी पापी मंडली ने मिलकर उस काम को अंजाम दिया था, मगर नीयत बुरी नहीं थी हमारी। असल में दोनों ही बार अपने दोस्तों की लाशें देखकर हमारा कलेजा रो पड़ा था। लाशें बहुत बुरी हालत में थीं, जगह-जगह से मांस उधड़ा हुआ, इतना वीभत्स नजारा कि देखकर ही उबकाई आने लगे। इसी कारण हमने उनको जला डाला। नहीं चाहते थे कि कल को कोई उनकी लाश देखकर नाक भौंह सिकोड़े, जो कि ना सिर्फ लाश का अपमान होता बल्कि उन पापी सदस्यों का भी अपमान होता जो तब तक पूरी जिंदादिली के साथ अपनी लाईफ इंजॉय करते आये थे, इसलिए हमने उन दोनों को आग के हवाले कर दिया।”
“ठीक है कर दिया तो कर दिया, अब बता क्यों रहे हो?”
“क्योंकि कानून की मदद करना चाहते हैं, हमारे दोस्तों का कातिल, अगर कोई भूत प्रेत नहीं है तो, हर हाल में गिरफ्तार होना ही चाहिए। जबकि हमें बार बार लग रहा था कि आप लोग दोनों बातों को यानि कत्ल और लाश जलाये जाने को एक ही इंसान का कारनामा मानकर चल रहे हैं। आपकी राह आसान हो जाये इसीलिए अपने अरेस्ट होने की परवाह किये बगैर हम ये सच कबूल करने यहां चले आये। आप कहेंगे तो बाकी के लोग भी सहज ही अपनी गिरफ्तारी दे देंगे।”
“ये तो कमाल ही होता दिखाई दे रहा है।”
“हम पापी जो करते हैं वह कमाल ही होता है सर।”
“ठीक है आने के लिए थैंक्स, अब तुम दोनों जा सकते हो।”
“आप मजाक कर रहे हैं?” सैंडी हकबकाया सा बोला।
“नहीं भई, जाओ और जाकर अपनी लाईफ इंजॉय करो। जेल जाकर भला क्या हासिल होगा, खामख्वाह बाकी कैदियों को बिगाड़कर रख दोगे तुम लोग।”
“आप हमें गिरफ्तार नहीं करेंगे?”
“ना, उसकी कोई जरूरत नहीं है।”
सुनकर बुरी तरह हैरान परेशान सैंडी और रोहताश वहां से चले गये।
“ये भी अच्छा रहा सर, चोर कह रहा था मैंने चोरी की है इसलिए गिरफ्तार कर लो, और पुलिस कह रही थी कि जा भई क्यों अपना और हमारा टाईम बर्बाद कर रहा है। अब दोनों यही सोचकर परेशान होते रहेंगे कि आपने उनकी बात पर कान धरने की कोशिश क्यों नहीं की?”
“जबकि मैं ये सोच रहा हूं कि दोनों का अचानक यहां पहुंचना क्योंकर सूझ गया?”
“जयदीप ने अपनी आपबीती बता दी होगी और क्या बात हो सकती है?”
“लगता तो नहीं है, फिर भी जरा मिश्रा जी से पूछकर देखो कि क्या उसकी इन दोनों से बातचीत हुई थी?”
“जरूरी थोड़े ही है सर कि अपने फोन से किया हो?”
“तुम्हारी जेब में मोबाईल मौजूद हो तो क्या पीसीओ तलाश करने लग जाओगे?”
“अगर शक हो कि कोई मेरी बात सुन रहा है तो क्यों नहीं करूंगा?”
“दुनिया भर की दलीलें दे लेना जोशी साहब मगर मिश्रा जी को कॉल मत करना।”
“सॉरी सर।” कहकर उसने मिश्रा को कॉल किया तो पता लगा कि गिरफ्तारी के बाद से अब तक उसने किसी को भी संपर्क करने की कोशिश नहीं की थी, और उस वक्त अपने बाप के जैम्स शो रूम में बैठा हुआ था।
“चलो जरा बाकी के तीनों पापियों से मिल लिया जाये जिनसे अब तक हमने अलग से पूछताछ नहीं की है।”
“तीन?”
“हां भई, वाणी, ऐना और अरसद से, क्योंकि जयदीप की खबर हम ले ही चुके हैं, नैना से भी पूछताछ कर चुके हैं। बाकी रोहताश और सैंडी तो अभी अभी हमारे पास से उठकर गये हैं, ऐसे में बस तीन ही तो बचे रह जाते हैं।”
“ठीक है चलिए।” कहता हुआ जोशी उठ खड़ा हुआ।
ऐना का घर कालकाजी के इलाके में था, जो कि सबसे करीब भी था, इसलिए पहला पड़ाव उनका वही बना। घर क्या था जैसे दोनों किसी महल के सामने जा खड़े हुए हों। गेट पर दो हथियारबंद गार्ड्स का पहरा था, जिन्होंने पुलिस की वर्दी का रौब तो क्या खाया उल्टा कुछ पूछने से पहले ही सवाल कर बैठे।
“क्या बात है इंस्पेक्टर साहब?”
“ऐना से मिलना है।”
“अप्वाइंटमेंट है आपके पास?”
सुनकर जोशी और विराट एक दूसरे की शक्ल देखने लगे।
“अगर नहीं है तो पहले फोन कर के मुलाकात का वक्त हासिल कीजिए, उसके बाद आइयेगा।”
“भई यहां गार्ड ही हो न तुम दोनों?”
“आपको और कुछ दिखाई देता है?”
“नहीं मगर तुम लोग भी तो कुछ देखो - जोशी बड़े ही रूखे स्वर में बोला - या पुलिस की वर्दी पहचान में नहीं आ रही?”
“बराबर आ रही सर, लेकिन बगैर इजाजत तो हम आपको अंदर नहीं जाने दे सकते।”
“तो फोन कर के परमिशन ले लो।”
“सॉरी, नहीं कर सकते।”
जोशी ने घूरकर उन्हें देखा।
“कोई फायदा नहीं होगा सर, बेबी ने साफ कह रखा है कि उन्हें डिस्टर्ब न किया जाये, चाहे आगंतुक कोई मिनिस्टर ही क्यों न हो।”
उनका जवाब सुनकर जोशी तिलमिलाकर रह गया।
“मैं फोन करता हूं उसे।” कहकर विराट ने मोबाईल निकाला और ऐना का नंबर डॉयल कर दिया।
कई बार बेल जाने के बाद दूसरी तरफ से कॉल अटैंड की गयी।
“कौन?” उधर से पूछा गया।
“इंस्पेक्टर विराट सिंह राणा।”
“कहिए क्या बात है?”
“हम आपके घर के बाहर खड़े हैं।”
“खामख्वाह खड़े हैं, कहीं बैठ जाइये वरना पांव दुःख जायेंगे।”
“तुम ऐना ही बोल रही हो न?”
“जी हां।”
“तो फिर हमें भीतर आने दो, कुछ सवाल करने हैं।”
“किस बारे में?”
“तुम खूब जानती हो कि किस बारे में।”
“शाम को आइयेगा, अभी मैं बिजी हूं।”
“तीन बज तो चुके हैं, अब शाम होने में क्या बचा है?”
“शाम का मतलब है छह बजे के बाद।”
“एक बार फिर सोच लो कहीं ऐसा न हो कि इस वक्त महज पूछताछ की ख्वाहिश रखते हम, शाम को पूरी पलटन के साथ यहां पहुंच जायें। फिर होगा ये कि तुम्हें गिरफ्तार कर के अपने साथ ले जायेंगे, और जो पूछताछ करनी होगी वह हैडक्वार्टर में होगी।”
“अरे समझने की कोशिश क्यों नहीं करते आप, इस वक्त मैं आप लोगों को अटैंड कर पाने की स्थिति में नहीं हूं।”
“अगर वैसा इसलिए कह रही हो क्योंकि गहरे नशे में हो, तो डोंट वरी, हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
लाईन पर थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गयी।
“बोलो क्या जवाब है तुम्हारा?”
“मोबाईल गार्ड को दीजिए।”
विराट ने थमा दिया।
जिसके दो मिनट बाद वह जोशी के साथ ऐना के बेडरूम में था। हैरानी की बात थी, लड़की ने उन्हें ड्राईंगरूम की बजाये बेडरूम में बुला लिया था, जिसकी वजह वहां जाकर ही समझ में आई।
वह वाकई नशे में थी, जिसका अंदाजा विराट को उसके लहजे से ही हो गया था। दोनों को वहां पहुंचा देखकर वह उठी और पलंग के सिरहाने के साथ टेक लगाकर बैठ गयी।
जो गार्ड दोनों को वहां तक छोड़ने आया था ऐना ने उसी से कुर्सियां मंगवा लीं और दोनों को बैठने का इशारा कर दिया।
“बात सिर्फ नशे की नहीं है इंस्पेक्टर, मेरी तबियत भी कुछ ठीक नहीं है। इसीलिए मैंने शाम को आने के लिए कहा था। मगर आप लोग तो धौंस ही देने लग गये। कहिये ऐसा कौन सा इंर्पोटेंट सवाल करना चाहते हैं मुझसे, जो बाद में नहीं किया जा सकता था?”
“तुम्हारा पूरा नाम क्या है?”
“ऐना मार्टिन।”
“इंडियन ही हो न?”
“अब हूं।”
“मतलब?”
“देश जब गुलाम था तभी मेरे परदादा जी इंग्लैंड से यहां दिल्ली में आ बसे, और इंडिया उन्हें इतना पसंद आ गया कि आजादी के बाद भी वापिस नहीं लौटे। मैं चौथी पीढ़ी से हूं जिसका जन्म यहीं दिल्ली में ही हुआ था।”
“डैड का नाम बताओ?”
“जैकब मॉर्टिन।”
“करते क्या हैं?”
“चाइल्ड वेलफेयर फाउंडेशन के मालिक हैं, हैरानी है कि आप उनके बारे में नहीं जानते।”
“अब जान गया, थैंक यू।”
“बस यही जानने आये थे?”
“नहीं।”
“फिर?”
“तुम्हें ये बताने आये हैं कि रोहताश और सैंडी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। मगर ये भी कहते हैं कि जो किया वह बाकी पापियों के साथ मिलकर किया था, इसलिए दोषी तुम सब हो।”
“ऐसा कहा उन दोनों ने?”
“हां, साफ-साफ कहा।”
“ये साला सैंडी मरवायेगा सबको।”
“यानि सच कहा था?”
“पहले पता तो लगे कि कहा क्या है?”
“यही कि राहुल और मधु का कत्ल तुम सबने मिलकर किया था, जिसके बाद राहुल की डैडबॉडी को मेरठ के पास ले जाकर जला दिया गया था, जबकि मधु की लाश को हवेली से सौ मीटर की दूरी पर एक कब्र में डालकर आग लगा दी गयी थी। तुम अपनी तरफ से कुछ जोड़ घटाव करना चाहती हो?”
लड़की थोड़ी परेशान नजर आने लगी।
“अगर करना चाहती हो तो अभी कर लो, वरना बाद में जो भी कहोगी उसे तुम्हारी मनगढ़ंत कहानी ही समझेंगे हम।”
“पागल हो गया बहन चो...।”
“वॉट?”
“सॉरी आपको नहीं सैंडी को बोल रही हूं। जरूर उसका दिमाग हिल गया होगा, वरना ऐसी बात भला कैसे कबूल कर सकता है जो उसने किया ही न हो। मुझे तो लगता है उसने जो कुछ भी आपसे कहा वह खुद नहीं कहा बल्कि उसके मुंह से कहलवाया गया था।”
“किसने कहलवाया?”
“हवेली के पिशाच ने, जरूर वह सैंडी और रोहताश के दिमाग पर कब्जा कर चुका है। बाकी लोगों को भी नुकसान पहुंचा रहा है, मगर इतना बुरा हाल तो किसी का नहीं होगा।”
“कैसा नुकसान?”
“रात को सपने में घुस आता है, हमें धमकाता है, मौत का खौफ दिखाता है। और हर बार एक डॉयलाग बोलकर जाता है कि उसकी सल्तनत में कदम रखने की सजा तो हमें भुगतनी ही पड़ेगी।”
“अरे सपने की बात भी कहीं सच होती है?”
“पता नहीं, लेकिन बार-बार एक ही सपना आने पर हम उसे नजअंदाज नहीं कर सकते। देख लेना आप लोग, वह एक एक कर के हम सारे दोस्तों को खत्म कर डालेगा, जैसे राहुल को किया, मधु को किया।”
“राहुल का कत्ल वह क्यों करता, जबकि तब तक तो तुम लोगों ने उसकी हवेली में कदम तक नहीं रखा था?”
“पता नहीं क्यों किया इंस्पेक्टर, लेकिन किया उसी ने था, इस बात का अब यकीन होता जा रहा है मुझे।”
“कुल मिलाकर तुम सैंडी और रोहताश की बातों को झूठा बता रही हो, है न?”
“सिर्फ कत्ल वाली बात को - वह हिचकिचाती हुई बोली - हां इतना मैं कबूल करती हूं कि दोनों लाशों को चिता के हवाले हमने ही किया था।”
कहकर उसने सैंडी और रोहताश की कही बात ज्यों की त्यों दोहरा दी, फिर बोली, “उस जुर्म के लिए आपका कानून जो भी सजा देगा हम पापी उसे भुगतने को तैयार हैं। लेकिन कत्ल हमने किसी का नहीं किया था।”
“मुझे इस बात पर जरा भी यकीन नहीं कि कोई चुड़ैल अपने हाथों की लंबाई बढ़ा सकती है, या साठ-सत्तर किलो के एक लड़के को पकड़कर उड़ती हुई आसमान में पहुंच सकती है, इसलिए सच बोलो मैडम, वरना तुम और तुम्हारे जिंदा बचे बाकी दोस्त भी यूं ही एक एक कर के मौत का निवाला बन जायेंगे।”
“सच वही है जो हम आपको बता चुके हैं। आपको अगर लगता है कि दुनिया में भूत प्रेत नहीं होते, तो जाकर पहले इस बात का पता लगाइये कि हमने जो देखा वह क्योंकर मुमकिन हो पाया था?”
“तुम क्या सोचती हो पुलिस इस बात से अंजान है कि राहुल की मौत कैसे हुई थी - विराट ने तुक्का मारा - हमें उस बारे में सब पता है। ये भी कि कैसे टंकी में डुबकी लगाने के बाद वह अपनी जान से हाथ धो बैठा था।”
जवाब में लड़की यूं हकबकाई कि विराट को यकीन आ गया कि उसका तुक्का पूरा का पूरा नहीं तो आंशिक रूप से सच था।
“अब क्या कहती हो? - प्रत्यक्षतः उसने पूछा - हमारे सवालों का सच-सच जवाब दोगी या राहुल की हत्या के इल्जाम में तुम सब जेल जाओगे?”
“मुझे उस बारे में आपसे कोई बात नहीं करनी, गिरफ्तार करना चाहें तो बेशक कर सकते हैं। मगर किये नहीं रह पायेंगे इसकी मैं गारंटी करती हूं।”
“तुम अपनी पोजिशन....”
“नहीं सुनना मुझे कुछ भी - विराट की बात काटती हुई वह बोली - जो होगा भुगत लूंगी, अब आप लोग जा सकते हैं यहां से। इसके विपरीत अगर गिरफ्तार करना चाहते हैं तो मुझे डैड को कॉल कर के बताना होगा, कहिये क्या जवाब है आपका?”
“नहीं इस वक्त हम तुम्हें हिरासत में नहीं लेंगे।” कहता हुआ विराट उठ खड़ा हुआ।
“सबके सब एक नंबर के झूठे और कमीने जान पड़ते हैं सर - गाड़ी स्टार्ट करता हुआ जोशी बोला - पता नहीं किस मुगालते में जी रहे हैं।”
“मुगालता बस बड़े बाप की औलाद होने का है जोशी साहब, उसी कारण से सबको लगता है कि पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। गिरफ्तार हो भी गये तो सबके बाप आसानी से छुड़ा ले जायेंगे उन्हें, जो कि काफी हद तक सच भी जान पड़ता है।”
तत्पश्चात गाड़ी में चुप्पी छा गयी।
आधे घंटे बाद दोनों वाणी कुलकर्णी के घर पहुंचे, जिससे मुलाकात में कोई अड़चन सामने नहीं आई।
भीतर इस बात की खबर पहुंचते ही कि पुलिस उससे पूछताछ करना चाहती है, वाणी ने दोनों को अंदर बुला लिया।
करीब दस मिनट सवाल जवाब चले, उस दौरान वाणी ने भी लाश जलाने की बात कबूल कर ली, मगर कत्ल किया होने की हामी भरने की ना तो विराट और जोशी को कोई उम्मीद थी, ना ही लड़की ने उस बात को कबूल किया।
वहां से निकल कर दोनों एक बार फिर अपनी गाड़ी में सवार हो गये।
“ये सब चल क्या रहा है सर?”
“कुछ नया नहीं है जोशी साहब, जब भी कोई बड़े बाप का बेटा अपराधिक मामलों में इन्वॉल्व पाया जाता है तो ये सब होकर रहता है। मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं होगा अगर कल को ये पता लगे कि सबके सब किसी बड़े क्रिमिनल लॉयर से मिल आये थे, जिसने उन्हें राय दी होगी कि लाश जलाने वाली बात कबूल कर लेनी चाहिए, क्योंकि वह छुपने वाली नहीं थी। साथ ही इस बात का भी भरोसा दिलाया हो सकता है कि उस मामले में उन्हें कोई सजा नहीं होने देगा।”
“क्या सच में बच सकते हैं?”
“बच भी सकते हैं।”
“अभी हम बसंतकुंज चल रहे हैं?”
“वहां क्या है?”
“अरसद अहमद का घर है सर।”
“सॉरी, ठीक है चलो।”
बसंत कुंज पहुंचकर अरसद अहमद का घर ढूंढने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई, मगर टाल मटोल का सामना फिर भी करना पड़ा। असल में वह सूट बूट पहने कहीं जाने की तैयारी में था, इसलिए रुकना नहीं चाहता था। बावजूद इसके रुकना पड़ा क्योंकि विराट की ये धमकी एक बार फिर काम कर गयी कि उसने अगर मिलने में आनाकानी की तो उसका अगला मुकाम हवालात में होगा, यानि जहां जाना चाहता था वहां तक किसी भी हाल में नहीं पहुंच सकता था।
तब जाकर उसने दोनों को घर में कदम रखने दिया।
“पूछिये क्या पूछना चाहते हैं?” वह उतावले लहजे में बोला।
“बहुत जल्दी में दिखाई दे रहे हो?”
“बताया तो एक पार्टी में जा रहा हूं जिसके लिए पहले ही लेट हो चुका हूं - वह भुनभुनाता हुआ बोला - अब आप लोग बिन बुलाये यहां आ धमके, इसलिए जो पूछना है जल्दी पूछिये।”
“राहुल का कत्ल किसने किया अरसद?”
“आपका दिमाग खराब हो गया है जो ऐसे सवाल कर रहे हैं।”
सुनकर विराट को पहली बार इस केस में इतना गुस्सा आया कि वह आपे से बाहर हो गया। उसने एक जोर का थप्पड़ असरद के गाल पर खींचा और गिरेबान थामता हुआ बोला, “शुरू से ही मैं तुम लोगों के साथ बहुत प्यार से पेश आता रहा हूं, तो इसका मतलब ये नहीं है कि पुलिसवाला बनकर नहीं दिखा सकता, या तुम्हारे दौलतमंद बापों का रौब खा गया।”
“तुमने मुझे थप्पड़ मारा?” वह गाल सहलाता हुआ गुर्राकर बोला।
“हां मारा।”
“अब तो तुम गये काम से।”
“अच्छा, क्या करोगे?”
“तेरी वर्दी उतरवा दूंगा।”
जवाब में विराट ने दूसरा थप्पड़ खींचा फिर कहर भरे लहजे में बोला, “वह काम तो होते होते होगा कमीने, अभी अगर एक मिनट के भीतर तूने सच नहीं बताया तो मैं तेरा वो हाल करूंगा कि याद करेगा किसी पुलिसवाले से पाला पड़ा था।”
“याद तो तू करेगा इंस्पेक्टर, नाक रगड़कर मेरे सामने माफी मांगेगा और जेल भी जायेगा।”
तीसरा थप्पड़।
“साले...”
चौथा थप्पड़।
अरसद की आंखों में आंसू आ गये।
“अब बता राहुल के साथ क्या हुआ था?”
खामोशी!
“बताता है या एक और दूं खींच के?”
“म...मुझे एक फोन करना है।”
“किसे करेगा?”
“अपने लॉयर को।”
“वकील कर भी लिया?”
“हां कर लिया, अब अगर तुममें हिम्मत है तो बस एक कॉल करने दो मुझे, फिर देखना क्या होता है।”
“ठीक है बेटा पहले तू अपनी मुराद ही पूरी कर ले।”
सुनकर उसने डरते डरते सेंटर टेबल पर रखा अपना मोबाईल उठाया और कोई नंबर डॉयल करने के बाद कॉल कनैक्ट होने का इंतजार करने लगा। फिर ज्योंहि दूसरी तरफ से हैलो कहा गया, अरसद ने जल्दी जल्दी उसे सबकुछ कह सुनाया। ये नहीं बताया कि इंस्पेक्टर ने उसे थप्पड़ मारा था बल्कि ये बताया कि पुलिस उसके घर में घुसकर उसके साथ मारपीट कर रही थी।
तत्पश्चात मोबाईल विराट को थमाता हुआ बोला, “बात करो।”
विराट ने किया।
“मैं एडवोकेट मयंक चड्ढा बोल रहा हूं, किस थाने से हैं आप?”
उसके नाम से विराट वाकिफ था, बल्कि दो बार मिल भी चुका था। मयंक चड्ढा असल में एक ऐसा वकील था जिसने कभी कोर्ट रूम में कदम नहीं रखा होगा, मगर उसका रिकॉर्ड था कि आज तक कोई केस नहीं हारा था।
“एसीबी से इंस्पेक्टर विराट राणा।” प्रत्यक्षतः वह बोला।
“क्या विराट साहब, आपको एक बच्चे की पिटाई करना शोभा देता है?”
“नहीं देता, मगर बच्चे जब अपनी हद पार करने लगते हैं तो उन्हें थप्पड़ मारना ही पड़ता है।”
“आप जानते भी हैं उसका बाप कौन है?”
“जानता हूं।”
“फिर भी?”
“हां फिर भी।”
“मुश्किल में फंस जायेंगे, वर्दी भी उतरकर रहेगी। इसलिए मेरी बात मानिये, अभी और इसी वक्त उसके घर से निकल जाइये। मैं कहीं बिजी हूं जहां से एक घंटे में फारिग हो जाऊंगा, फिर अरसद को मैं खुद अपने साथ आपके पास लेकर आऊंगा, जो मर्जी हो पूछ लीजिएगा।”
“ठीक है वकील साहब आप कहते हैं तो सवाल जवाब बंद किये देता हूं।”
“थैंक यू।” कहकर उधर से कॉल डिस्कनैक्ट कर दी गयी।
“आ गये होश ठिकाने?” अरसद ने व्यंग्य सा किया।
“हां आ गये, इसलिए अब मैं तुमसे कोई सवाल नहीं करूंगा - कहकर उसने जोशी की तरफ देखा - अरेस्ट कर लो इसे।”
अरसद एकदम से हक्का-बक्का रह गया। कुछ कुछ वैसा ही हाल जोशी का भी हुआ।
“सुना नहीं तुमने?” विराट गरजा।
“सुन लिया सर।” कहकर वह अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ फिर जैसे ही अरसद को थामने के लिए उसकी तरफ बढ़ा वह सोफे से उछलता हुआ भाग खड़ा हुआ।
“पकड़ो साले को।” कहता हुआ जोशी के साथ-साथ विराट भी उसके पीछे दौड़ पड़ा।
ड्राईंगरूम का दरवाजा पार कर के लड़का लॉन में पहुंच गया।
दोनों पुलिस ऑफिसर जब उसके पीछे बाहर निकले तो वहां खड़े दो मर्दों पर उनकी निगाह पड़ी, जो कि अपनी वेष भूसा से नौकर जान पड़ते थे।
आगे दोनों अरसद के पीछे दौड़ ही रहे थे कि दोनों ने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। उस आवाज को सुनकर पलक झपकते ही दो हट्टे कट्टे युवक वहां पहुंच गये। दोनों सफारी सूट पहने हुए थे, कमर पर होलस्टर बंधा था और एक नजर देखने पर बॉडीगार्ड्स टाईप दिखाई दे रहे थे, या फिर थे ही वही।
अब दृश्य ये बना कि अरसद लॉन में इधर-उधर दौड़ रहा था, विराट और जोशी उसके पीछे थे, और उनके पीछे दोनों सफारी सूट वाले दौड़े चले आ रहे थे।
तभी जोशी ने चीते जैसी छलांग लगाई और भागते हुए अरसद के कंधे पर इतनी जोर से पंजा मारा कि वह जहां का तहां गिर गया। फिर झुककर उसने लड़के को गिरेबान से थामा और उठाकर खड़ा कर दिया।
सफारी सूट वाले उनसे पांच कदमों की दूरी पर ठिठक गये। प्रत्यक्षतः पुलिस पर हमला करने में उन्हें हिचकिचाहट हो रही थी।
“क्या हुआ सर?” उनमें से एक ने अरसद से पूछा।
“सालों खड़े खड़े तमाशा क्या देख रहे हो, मुझे बचाते क्यों नहीं? देखते नहीं पुलिस के वेश में बहुरूपिये यहां पहुंचकर मुझे किडनैप करने की कोशिश कर रहे हैं।”
वह बात सुनकर दोनों सकपका से गये। फिर पलक झपकते ही उनकी गंस हाथों में पहुंच गयी। एक के निशाने पर जोशी था जबकि दूसरे ने विराट पर निशाना साध लिया।
“दूर हटो दोनों।” उनमें से एक बोला।
“तुम लोग कौन हो?” विराट ने पूछा।
“सिक्योरिटी गार्ड हैं, अरसद साहब को छोड़ दो वरना हम गोली चला देंगे।”
“ठीक है चला दो।” कहकर जोशी अरसद का गिरेबान पकड़े पकड़े ही एकदम से यूं घूम गया कि अब गार्ड्स की तरफ अरसद की पीठ हो गयी और वह खुद उसकी ओट में पहुंच गया। और इससे पहले कि गार्ड्स कोई एक्शन ले पाते उसने सर्विस रिवाल्वर निकालकर अरसद के माथे से सटा दी।
“अब चलाता क्यों नहीं बहन चो...?” जोशी ने ललकारा।
मगर गार्ड भी कोई कम होशियार नहीं थे, दोनों ने बाजी पलटते देखा तो आगे बढ़कर अपनी अपनी गन विराट से सटा दी, फिर उनमें से एक बोला, “अरसद साहब को कुछ हुआ तो तुम्हारा ये साथी मारा जायेगा।”
“खामख्वाह की धमकी मत दो बच्चों - विराट बड़ी शांति के साथ बोला - अरसद की जान की कीमत पर तुम दोनों मुझे शूट नहीं कर सकते, इसलिए बात मानों और पिस्तौल नीचे फेंक दो, और यकीन जानो हम असली के पुलिस ऑफिसर हैं ना कि कोई बहुरूपिये।”
“झूठ बोल रहा है ये - अरसद चिल्लाकर बोला - किडनैप करने आये हैं दोनों।”
दोनों के चेहरों पर एक बार फिर हिचकिचाहट के भाव पैदा हुए। तभी विराट ने बला की फुर्ती दिखाते हुए एक साथ दोनों की कलाई थामी और उनके हाथों में थमी गंस का रुख आसमान की तरफ कर दिया।
जवाब में दोनों ने ट्रिगर तो नहीं दबाया मगर उनमें से एक ने घुटने का प्रहार जरूर कर दिया विराट के पेट में। वह वार ज्यादा करारा इसलिए नहीं बन पाया क्योंकि दोनों के एक एक हाथ अभी भी ऊपर की तरफ उठे हुए थे।
विराट ने पूरी ताकत से दोनों की कलाइयों को एक दूसरे पर दे मारा। रिवाल्वर छिटक कर नीचे जा गिरी और इससे पहले कि वे लोग उसे उठाने की कोशिश कर पाते, एक के पेट में जोर की लात पड़ी, वह उछलता हुआ दूर जा गिरा, तभी विराट ने दूसरे की पसली में एक जोरदार घूंसा दे मारा।
उसी वक्त छह सात नौकर तेजी से उनकी तरफ दौड़े।
विराट ने घास पर पड़ी पिस्तौलों को उठाकर इतने जोर से दूर फेंका कि दोनों बाउंड्री के उस पार जा गिरीं। तब तक नौकरों का झुंड बेहद करीब आ चुका था और दोनों गार्ड्स भी उठ खड़े हुए थे।
“जोशी।”
“यस सर।”
“अरसद किसी भी हाल में तुम्हारी पकड़ से नहीं निकलना चाहिए।”
“नहीं निकलेगा सर।”
“गुड।” कहकर उसने सबसे आगे आगे दौड़े चले आ रहे नौकर के पेट में कस की लात जमा दी, वह उछलता हुआ अपने ही एक साथी से टकराया और उसे लिए दिये नीचे जा गिरा।
वह नजारा देखकर बाकियों ने रुकने की बजाये एक साथ विराट पर हमला करना चाहा, मगर बस चाह ही सके, अगले ही पल उनकी आहें कराहें वहां के वातावरण में गूंजने लगीं, जिनमें दोनों गार्ड्स के भी नाम शुमार थे।
मिनट भर से भी कम वक्त में विराट ने सबको पस्त कर दिया। तभी गेट पर खड़े दोनों गार्ड्स में से एक दौड़ता हुआ वहां पहुंच गया।
“ये सब क्या हो रहा है?” वह हकबका कर बोला।
विराट ने उसकी बात पर ध्यान देने की बजाये जोशी को वहां से चलने का इशारा कर दिया।
“गोली चलाओ गार्ड बाबू - एक नौकर जोर से चिल्लाया - ये पुलिसवाले नहीं हैं, किडनैपर्स हैं।”
सुनते के साथ ही गार्ड ने कंधे से अपनी बंदूक उतार ली। मगर उससे क्या होता था, जब तक वह शूटिंग की पोजिशन में पहुंचता विराट ने बंदूक छीनकर उसे अनलोड किया और लॉन में दूर उछाल दिया।
गार्ड हकबकाया सा उसकी शक्ल देखने लगा।
उसके बाद किसी ने भी पुलिस के रास्ते में आने की कोशिश नहीं की। बाहर एक गार्ड जरूर खड़ा था मगर वह निहत्था था, इसलिए दोनों को रोकने की कोशिश तक नहीं कर पाया।
अगले ही पल फॉर्च्यूनर द्रुत गति से भागी जा रही थी।
“मेरे पापा तुम दोनों को छोड़ेंगे नहीं।” अरसद गुर्राता हुआ बोला।
“कुछ औकात अपनी भी बना ले बच्चे, कब तक यूं बाप के नाम की धमकी उछालता रहेगा?”
“पछताओगे तुम दोनों, अब तक तो उन्हें खबर लग भी चुकी होगी, ऐसे में मुझसे पूछताछ करना तो दूर रहा, थाने पहुंचते के साथ ही उल्टा खुद गिरफ्तार कर लिये जाओगे।”
“कह तो ये ठीक रहा है सर।” गाड़ी चलाता जोशी बोला।
“क्या ठीक कह रहा है?”
“यही कि उल्टी पड़ने वाली है हमें।”
“नहीं पड़ेगी, तुम बस अपना मोबाईल ऑफ कर दो।”
जोशी ने फौरन कर दिखाया।
फिर अपना मोबाईल ऑफ करता हुआ विराट बोला, “जरा रुमाल देना मुझे।”
जोशी ने जेब से रूमाल निकालकर अंदाजे से पीछे की तरफ बढ़ा दिया, और इससे पहले कि अरसद कुछ समझ पाता विराट ने उसे पेट के बल जबरन सीट पर गिराया और दोनों हाथ पीछे ले जाकर कस के बांध दिये।
“एक बात कहूं सर।” जोशी बोला।
“कहो।”
“मजा आ गया।”
“जो कि नहीं आता अगर इसने बद्तमीजी नहीं की होती, आखिर इसके दोस्तों ने भी तो कोऑपरेट किया ही था, क्या हो जाता अगर पांच मिनट ढंग से बात कर लेता हमारे साथ?”
“मुझे तो लगता है सर कि कातिल यही है, तभी तो बिदक गया।”
“ठीक कहते हो।”
“वैसे जा हम हैडक्वार्टर ही रहे हैं न सर?”
“और कहां जाओगे?”
इसी तरह दोनों बातें करते रहे। गाड़ी तेजी से आगे बढ़ती रही।
फिर सफदरजंग के पास बैरिकेडिंग कर के खड़े कुछ सिपाहियों ने फॉर्च्यूनर को रुकने का इशारा कर दिया।
विराट नीचे उतरा।
सबने एक साथ उसे सेल्यूट किया फिर उनमें से एक ने बताया कि कंट्रोल रूम से ऑर्डर हुए थे गाड़ी को रोकने के लिए, साथ ही बताया गया था कि दो खतरनाक क्रिमिनल्स उस गाड़ी में एक युवक को अगवा कर के ले जा रहे थे, और दोनों ने पुलिस की वर्दी भी पहन रखी थी।
“मैं तुम लोगों को क्रिमिनल लगता हूं?” विराट ने पूछा।
“सॉरी सर, अब हमें क्या पता था कि...
“आईडी दिखाऊं?”
“क्यों जूते मार रहे हैं साहब जी - उनमें से एक बोला - आपको तो मैं वैसे ही पहचानता हूं।”
“तो अब मैं जाऊं?”
“बिल्कुल जाइये सर।”
“जवाब क्या दोगे?”
“सच बता देंगे और क्या बोलेंगे।”
“गुड।” कहकर वह वापिस गाड़ी में सवार हो गया।
आगे दो जगह गाड़ी को और रोका गया मगर दोनों ही बार उसे नीचे उतरने की जरूरत नहीं पड़ी। ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने उसकी सूरत पर निगाह पड़ते ही गाड़ी को आगे बढ़ जाने दिया।
ग्रेटर कैलाश क्रॉस होने के बाद विराट ने जेब से रूमाल निकाला और अरसद के आंखों पर कस के पट्टी बांध दी।
“जो चाहे कर लो इंस्पेक्टर, बच तो तुम दोनों अब नहीं पाओगे।”
“जुबान बंद रख बेटा।”
जवाब में उसने जोर का कहकहा लगाया। उसी दौरान विराट अपना मुंह जोशी के कानों तक ले गया, उससे कुछ कहा फिर आराम से सीधा होकर बैठ गया।
गाड़ी कालकाजी के इलाके में दाखिल हुई तो जोशी ने उसका रुख विराट के बंगले की तरफ कर दिया। गाड़ी वहां पहुंची तो गेट पर खड़े गार्ड ने फौरन दरवाजा खोल दिया।
आगे तीस सेकेंड के भीतर वे लोग फॉर्च्यूनर समेत इमारत के बेसमेंट में थे, जिसका इस्तेमाल पॉर्किंग के तौर पर होता था। जोशी गाड़ी से नीचे उतरकर बेसमेंट का फाटक बंद कर आया।
तत्पश्चात अरसद के आंखों से पट्टी खोलकर विराट ने उसे नीचे उतारा, फिर उसके हाथ भी खोल दिये।
“ये कौन सी जगह है?” लड़का दायें बायें देखता हैरानी से बोला।
“वह जगह मुन्ना जहां तेरे होने की किसी को सालों साल खबर नहीं लगने वाली। हमारी भी नहीं लगेगी क्योंकि हम दोनों पहले से ही अपना मोबाईल ऑफ किये बैठे हैं, जबकि तेरा मोबाईल तो घर पर ही छूट गया था।”
“तुम लोग करने क्या वाले हो?” वह हड़बड़ा सा उठा।
“वही जो तू चाहता था कि करें - जोशी के होंठों पर एक जहरीली मुस्कान रेंग गयी - किडनैपर्स साबित करने की कोशिश की थी न, समझ ले तेरी खातिर हम वही बन गये। अब तू उस वक्त तक यहीं रहेगा जब तक कि असलियत बयान नहीं कर देता।”
“फिर तो हमें कई दिनों तक, ये भी हो सकता है कि महीनों तक इंतजार करना पड़ जाये। पापी है, आसानी से तो जुबान नहीं खोलेगा।” विराट बोला।
“बस दस मिनट सर, उससे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।”
“छोड़ो भी यार बच्चा ही तो है, इसे टॉर्चर करेंगे तो पाप चढ़ेगा।”
“फिर क्या करें?”
“इसके यहां होने की खबर तो किसी को लगने नहीं वाली, इसलिए आराम से इंतजार करेंगे, जब इसका मन होगा असलियत बयान कर देगा। हां इसके खाने पीने का ध्यान बराबर रखना। बड़े बाप की औलाद है, भूखे रहना पड़ा तो जान चली जायेगी इसकी।”
“आप कहें तो एक बार पूछकर देखूं सर, क्या पता ये ज्यादा देर यहां न रुकना चाहता हो।”
“रात बहुत हो चुकी है यार, इसलिए खामख्वाह वक्त जाया करने की जरूरत नहीं है। अभी अपने अपने घर चलते हैं, जो पूछना है सुबह आकर पूछ लेंगे।”
“इसे खुल्ला छोड़कर?”
“हालांकि भाग तो नहीं पायेगा, फिर भी सावधानी के लिए किसी पिलर के साथ बांध दो, रस्सी सामने वाले कमरे में पड़ी है।”
जोशी फौरन वहां जाकर एक मोटी रस्सी उठा लाया।
“ये तुम लोग गलत कर रहे हो।” अरसद बोला तो इस बार उसके लहजे में धमकी का पुट नहीं था उल्टा वह डरा डरा सा महसूस हो रहा था।
“तू ही मजबूर कर रहा है भई - विराट अफसोस भरी सांस खींचता हुआ बोला - अभी भी वक्त है सच्चाई बता दे।”
“अरे मुझे कुछ पता होगा तब तो बताऊंगा।”
उसी वक्त जोशी ने बेसमेंट के गेट की तरफ देखते हुए उच्च स्वर में पूछा, “किसको बुला रहे हो, साहब को?”
जवाब में ना तो विराट को कुछ सुनाई दिया ना ही अरसद को, जबकि जोशी दोबारा बोल पड़ा, “ठीक है वेट करो अभी आते हैं।”
“कौन था?” विराट ने पूछा।
“उमाशंकर, आपको बाहर बुला रहा है।”
“ठीक है अभी लौटता हूं, साथ ही इसके खाने पीने का इंतजाम करने को भी बोल दूंगा।” कहकर गाड़ियों के लिए बनी ढलान पर चढ़ता वह ऊपर पहुंचा और गेट खोलकर बाहर निकल गया।
उसके निगाहों से ओझल होते ही जोशी ने एक कस का थप्पड़ अरसद के गाल पर जड़ा और गुर्राता हुआ बोला, “बता साले राहुल और मधु को किसने मारा था?”
“म...मैं नहीं जानता।”
जोशी ने तुरंत दूसरा थप्पड़ जड़ दिया, “बहन चो... जितना नचाना था नचा चुके हमको, अब सच्चाई उगल दे वरना तेरी लाश का भी पता नहीं लगने देंगे, तेरा बाप ढूंढता ही रह जायेगा कि उसके जिगर का टुकड़ा गया तो आखिर गया कहां?”
अरसद अपना गाल सहलाता खामोश खड़ा रहा।
“मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं बता दे राहुल और मधु के साथ क्या हुआ था?”
“मुझे नहीं मालूम।”
फिर थप्पड़।
“मार क्यों रहे हो - वह रोता हुआ बोला - मुझे कुछ पता होगा तभी तो बताऊंगा? और किसी चुड़ैल के बारे में मुझे भला क्या जानकारी हो सकती है।”
“चुड़ैल की मां की चू...” कहकर जोशी ने उसे नीचे फर्श पर पटका फिर दे लात और दे घूंसे।
अरसद की चीखें बेसमेंट में गूंजने लगीं, जिन्हें सुनने वाला वहां कोई नहीं था।
दो मिनट के भीतर उसने लड़के का बुरा हाल कर के रख दिया।
तभी विराट राणा वापिस लौटा और अरसद पर निगाह पड़ते ही तेजी से उसकी तरफ बढ़ा, करीब पहुंचकर उसे उठाकर बैठाया, फिर जोशी की तरफ देखता हुआ गुस्से से बोला, “तुम पागल तो नहीं हो गये हो?”
“सॉरी सर।”
“वॉट सॉरी, मैंने कहा था न इसे टॉर्चर नहीं करना है।”
“सॉरी सर।”
“अब तो पक्का हम दोनों की नौकरी जाकर रहेगी।”
“सॉरी बोल तो रहा हूं सर।”
“तुम्हारी सॉरी का अचार डालूंगा मैं? हद ही कर दी तुमने।”
“मुझे गुस्सा आ गया था सर।”
“तो गुस्से में क्या किसी की जान ले लोगे, तुम पुलिसवाले हो या कोई क्रिमिनल? तुम्हें एहसास भी है कि क्या कर डाला? अब इसके आजाद होने भर की देर है तुम्हारे साथ-साथ मैं भी जेल में चक्की पीसता नजर आऊंगा।”
“ऐसा मत कहिये सर, नौकरी चली गयी तो मेरे बीवी बच्चे भूखे मर जायेंगे।”
“ये भी तो किसी का बच्चा है, वह क्या तुम्हारी ज्यादती को खामोशी से बर्दाश्त कर जायेगा? क्या उसका खून नहीं खौलेगा इसकी हालत देखकर?”
“गलती हो गयी सर, दोबारा नहीं होगी प्रॉमिस - जोशी एकदम से गिड़गिड़ा उठा - बस इस बार किसी तरह नौकरी बचा लीजिए।”
“नहीं बचने वाली, जेल भी जाकर रहोगे, बल्कि तुम्हारे साथ-साथ मेरा मुकाम भी वही होगा। कोई मजाक है रईस बाप की औलाद के साथ मारपीट करना?”
“गलती मान तो रहा हूं सर, अब आप ही कोई रास्ता निकालिये।”
“अब फटी न साले तेरी।” कहकर अरसद जोर से हंसा। उसके होंठों के कोरों से खून टपक रहा था जिसने उसकी हंसी को वीभत्स बनाकर रख दिया।
विराट और जोशी में से किसी ने भी उसकी बात पर कान धरने की कोशिश नहीं की। वो दोनों तो अलग ही प्रलाप में मग्न थे।
“मामला विकट है जोशी साहब, चाहे जिस वजह से भी मारा गलत मारा। पहली मुसीबत तो इसे घर से उठाकर ही अपने सिर ले ली थी हमने, जिससे बचने का कोई न कोई रास्ता मैं निकाल लेता, मगर अभी जो कुछ भी तुम इसके साथ कर के हटे हो, उसके बाद तो बचने की कोई सूरत नजर नहीं आती।”
“इससे माफी मांग लूं तो?”
“ट्राई कर के देखो।”
“कोई जरूरत नहीं है - अरसद शेर हो गया - जेल की चक्की तो मैं तुम दोनों को पिसवाकर ही रहूंगा।”
“भई मैं कबूल करता हूं कि गलती हुई है, अब माफ कर दे।”
“नो वे।”
“चाहे तो उतनी ही मार मुझे लगा ले जितना मैंने तुझे मारा है, लेकिन गुस्सा थूक दे, नौकरी चली गयी तो मैं बर्बाद हो जाऊंगा।”
“तू बर्बाद होने के ही काबिल है साले। रही बात तुझे पीटने की तो धुलाई मैं यकीनन करूंगा तेरी, मगर यहां नहीं, दस लोगों के सामने, जिनमें तेरे साहब लोग भी होंगे। सबकी आंखों के सामने अगर मैंने तुझे नहीं पीटा तो असल पापी नहीं।”
“देखा - विराट बोला - फिर माफ कर भी कैसे सकता है, जानवरों की तरह इसकी पिटाई की है तुमने। इसकी जगह मैं भी होता तो माफ हरगिज नहीं करता।”
“नौकरी बचा लीजिए सर।” जोशी फिर से गिड़गिड़ाया।
“कैसे?”
“आप ही कुछ सोचिये, मेरी तो बुद्धि ही काम नहीं कर रही।”
“मुझे ही कहां कुछ सूझ रहा है भई?”
“आप कर सकते हैं सर, कोशिश करेंगे तो कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे। फिर गलती भले ही मेरी है लेकिन नौकरी पर आंच तो आपके भी आने वाली है, इसलिए कुछ सोचिये, कुछ ऐसा जिससे सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे।”
“अब तो बस एक ही रास्ता बचता है।” विराट का लहजा थोड़ा धीमा पड़ गया, मगर इतना नहीं कि अरसद उसे सुन ही नहीं पाता।
“कौन सा रास्ता सर?”
“आखिरी रास्ता जो हमेशा खतरनाक ही होता है।”
“मैं समझा नहीं।”
“खत्म कर दो।”
“वॉट?” जोशी बुरी तरह चौंका।
अरसद हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ।
“और कोई रास्ता नहीं है - विराट बोला - किस्सा खत्म कर के लाश ठिकाने लगा दो, बाकी मैं संभाल लूंगा।”
“ठीक है सर।”
“तुम दोनों मुझे जान से मारने की प्लानिंग कर रहे हो?” अरसद बौखलाया सा बोला।
“अरे नहीं भई, हम ऐसा क्यों करेंगे?”
“मैंने सब सुन लिया है।”
“गलतफहमी हो रही है तुम्हें।”
“नहीं हो रही।”
“छुपाने का क्या फायदा सर?” जोशी बोला।
जवाब में विराट बड़े ही अफसोस के साथ बोला, “क्या करें बेटा और कोई रास्ता ही नहीं बचा है हमारे पास - फिर जोशी की तरफ देखता हुआ बोला - वक्त बर्बाद मत करो, आखिर लाश भी तो ठिकाने लगानी है।”
“अरे तुम दोनों पागल तो नहीं हो गये हो? - अरसद बौखलाया - सिर्फ इस वजह से मेरी जान ले लोगे कि बाद में मैं तुम्हारी मारपीट के बारे में किसी को कुछ बता न पाऊं? अगर ऐसा है तो मुझे जाने दो, मैं वादा करता हूं कि अपनी जुबान बंद रखूंगा।”
“अब वह वक्त गुजर गया है बच्चे, जोशी के माफी मांगने पर अगर मान गया होता तो हम यकीन कर लेते, अभी तो यहां से निकलते ही तू शेर हो जायेगा, फिर हमारी शामत आकर रहेगी।”
“मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाला, तुम दोनों यकीन क्यों नहीं करते?”
“नहीं कर सकते।” कहकर जोशी ने होलस्टर से रिवाल्वर बाहर खींच ली।
“तुम्हें पुलिस में आने किसने दिया जोशी साहब? - विराट झुंझलाकर बोला - सर्विस रिवाल्वर से गोली मारोगे इसे, दिमाग घास चरने गया है तुम्हारा?”
“फिर?”
“गाड़ी की डिक्की में मैट के नीचे एक साइलेंसर लगी रिवाल्वर रखी है, लेकर आओ उसे, वरना गोली की आवाज इतनी जोर से गूंजेगी कि पूरा इलाका सुन लेगा। फिर गोलियों का हिसाब भी तो देना पड़ता है महकमे को।”
“जरा ठंडे दिमाग से सोचो इंस्पेक्टर - असरद कांपता हुआ बोला - मुझे घर से उठाकर पहली गलती की तुमने, दूसरी गलती तुम्हारे साथी ने मेरे साथ मारपीट कर के की, मगर अब क्या उससे भी बड़ी गलती नहीं करने जा रहे हो तुम?”
“नहीं अब गलती को ठीक करने जा रहा हूं।”
“अरे मेरी जान लेकर तुम्हें क्या हासिल जायेगा? - कहते हुए अरसद ने एकदम से उसके पांव पकड़ लिए - कोई और रास्ता क्यों नहीं निकाल लेते? फिर ये क्यों भूल जाते हो कि बंगले से तुम दोनों उठाकर लाये थे मुझे, जिसके कई गवाह हैं।”
“जानता हूं भई, लेकिन कोई न कोई रास्ता निकल ही आयेगा। फिर साहब लोग बहुत विश्वास करते हैं मुझपर, इसलिए तुझे उठाने वाली बात को कवर करने के लिए जो कुछ भी कहूंगा, यकीन कर लेंगे।”
“कोई नहीं करेगा।” वह बिलखता हुआ बोला।
“कर लेंगे, स्टोरी ऐसी सेट करेंगे हम जिससे सबको लगने लगेगा कि तेरी जान भी उसी शख्स ने ली है, जिसने पहले राहुल को फिर मधु को मार डाला था। भूत प्रेतों की जिस कहानी पर हमें कभी यकीन नहीं आया, अब उसी की पनाह लेंगे। और लाश भी तेरी हवेली के आस-पास से ही बरामद करवायेंगे, इसलिए शक की कोई गुंजाईश ही नहीं रह जायेगी, बल्कि मधु की डैडबॉडी की तरह तेरी लाश भी फूंक देंगे, फिर सबकुछ हमारे काबू में होगा।”
“ऐसा मत करो प्लीज।” वह जोर से चीख उठा।
तभी रिवाल्वर लेने गया जोशी वापिस लौट आया।
“दूर हट साहब से।” उसने अरसद को जोर से घुड़का।
“नहीं हटूंगा, तुम लोग मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते। फिर जरूरत ही क्या है, कहो तो एक बयान लिखकर दे देता हूं जिसमें इस बात का साफ-साफ उल्लेख होगा कि तुम लोगों ने मुझे घर से थोड़ा दूर लेजाकर पूछताछ करने के बाद छोड़ दिया था, जिसके बाद मुझपर किन्हीं और लोगों ने हमला कर दिया, और मेरा कीमती सामान छीनकर भाग गये।”
“ऐसी लचर कहानी नहीं चलने वाली, क्योंकि रास्ते में कुछ सिपाहियों ने तुम्हें हमारे साथ देख लिया था।”
“तो कुछ और सोचो न इंस्पेक्टर साहब। कोई तो ऐसा रास्ता होगा, जिससे तुम्हें ये विश्वास हासिल हो जाये कि मैं तुम दोनों के बारे में जुबान नहीं खोलूंगा। जबकि मुझे मारकर बच भले ही जाओ लेकिन जीवन भर चैन से नहीं रह पाओगे। तुम्हारी अंतर्रात्मा तुम्हें धिक्कारती रहेगी।”
“काश कोई दूसरा रास्ता होता बेटा, मगर नहीं है, इसलिए अपना खून माफ कर देना हमें - कहकर विराट जबरन उसे दूर करता हुआ बोला - हां तुझे कुछ सूझता हो तो बता दे, क्योंकि तेरे पर गोली चलाने का मन तो हमारा भी नहीं हो रहा।”
“ठीक है।”
“क्या ठीक है?”
“मैं राहुल की मौत का सच बताने को तैयार हूं।”
“कत्ल तूने किया था?”
“नहीं।”
“फिर क्या फायदा, उस सच को सुनकर भी हम भला तुझपर होल्ड कैसे बना पायेंगे?”
“पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो, फिर खुद समझ जाओगे कि होल्ड बना भी सकते हो।”
“ये खामख्वाह वक्त बर्बाद कर रहा है सर।” जोशी बोला।
“मुझे भी यही लगता है, गोली चलाओ।”
“एक मिनट - उसने रोते हुए अपने दोनों हाथ जोड़ दिये - बस एक मिनट और रुक जाओ, प्लीज।”
“क्या कहना चाहता है?”
“तुम लोग मुझे मारना चाहते हो न, ठीक है मार देना, लेकिन उससे पहले मेरी पूरी बात सुन लो, मरने वाले की आखिरी ख्वाहिश समझ कर ही सुन लो। फिर भी तुम्हें लगे कि बात उतनी वजनदार नहीं है, जिसके कारण मैं तुम्हारी मारपीट के बारे में अपनी जुबान बंद रख सकता हूं तो बेशक मुझे शूट कर देना।”
जोशी की उंगलियां ट्रिगर पर कस गयीं।
“क्या कहते हैं सर?”
“वेट करो - कहकर उसने अरसद की तरफ देखा - ठीक है बता क्या कहना चाहता है?”
सुनकर जोशी ने मोबाईल निकाला और उसकी रिकॉर्डिंग ऑन कर के खड़ा हो गया।
“राहुल को सैंडी ने मारा था, तब हनी और रोहताश भी उसके करीब ही खड़े थे।”
“क्यों मारा?”
“वह कत्ल नहीं था इंस्पेक्टर साहब, ना ही सैंडी का इरादा उसकी जान लेने का था।”
“उसका फैसला हम करेंगे, तुम पूरी बात बताओ।”
“हुआ ये कि ‘रॉयल ब्यूटी’ वाली पार्टी के दौरान जब राहुल ने पानी की टंकी में डुबकी लगाई तो उसका मन एकदम से घबरा उठा और वह कहने लगा कि उसे हार मानना कबूल है लेकिन पानी के भीतर और नहीं रह सकता। उस वक्त हनी, रोहताश और सैंडी टंकी के इर्द गिर्द खड़े थे। जिसमें से बस सैंडी उस स्टूल पर चढ़ा हुआ था जिसपर चढ़कर राहुल या बाकी लोग टंकी के भीतर उतरे थे। जबकि मेरे साथ-साथ बाकी के लोग वहां से थोड़ी दूरी पर डांसिंग फ्लोर के पास बैठे ड्रिंक कर रहे थे। सैंडी उस रात कुछ ज्यादा ही नशे में था, इसलिए राहुल ने जब बाहर निकलना चाहा तो उसने निकलने नहीं दिया, और जबरन उसका सिर पानी के भीतर दबा दिया। कुछ देर तक तो रोहताश और हनी उस दृश्य को इंजॉय करते रहे, मगर जब वक्त कुछ ज्यादा लगता दिखाई दिया तो दोनों ने सैंडी को उसे छोड़ देने को कहा। मगर उसपर तो जैसे कोई जुनून सवार था, हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। आखिरकार रोहताश ने उसे जबरन नीचे खींचा और स्टूल पर चढ़कर टंकी में झांकते हुए राहुल को आवाज लगाई। कोई रिस्पांस नहीं मिला, उसने टटोलकर उसे थामा और ऊपर खींचने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो सका। तब उसने बाकी पापियों को आवाज लगायी और हम सबने मिलकर जैसे तैसे राहुल को उस टंकी से बाहर खींच लिया, तब तक वह मर चुका था।”
दोनों पुलिस ऑफिसर सन्न रह गये।
“यानि चुड़ैल वाली कहानी झूठी थी?” विराट ने पूछा।
“हां, वह तो हमें बाद में तब सूझी जब हवेली में वैसा ही एक कारनामा हमने अपनी आंखों से देख लिया, तभी सैंडी ने प्लॉन बनाया कि राहुल की गुमशुदगी को भी किसी पैरानार्मल एक्टीविटीज के साथ जोड़ दिया जाये, ताकि दोनों घटनायें एक जान पड़ने लगें।”
“तुम टंकी के पास नहीं थे तो ये कैसे पता कि वहां क्या हुआ था?”
“बाद में हनी और रोहताश ने बताया था।”
“खैर आगे बढ़ो।”
“राहुल को मर चुका जानकर हम सब के होश फाख्ता हो गये। मैंने सैंडी से कहा भी कि हमें पुलिस को कॉल कर देना चाहिए, मगर सबसे ज्यादा गिरफ्तारी का खतरा उसी को था इसलिए वह तैयार नहीं हुआ। आखिरकार सब ने मिलकर लाश से पीछा छुड़ाने की योजना बनाई फिर एक रस्सी के जरिये राहुल की लाश को बांधकर होटल के पीछे वाले पार्क में उतार दिया।”
“रस्सी कहां से आ गयी?”
“वह तो हम अपनी पार्टी में हमेशा साथ रखते हैं, ये सोचकर कि क्या पता कब कौन सा गेम खेलने का मन हो आये।”
“तुम लोगों को पहले से पता था कि होटल के पिछले हिस्से में कैमरे नहीं लगे हुए थे?”
“हां, कई महीने पहले राहुल ने वहां घटित हुई एक घटना का जिक्र करते हुए हमें बताया था कि पार्क की तरफ से कैमरे क्यों हटाने पड़े थे।” कहकर उसने मनीष हांडा की सुनाई कहानी दोहरा दी।
“लाश को नीचे पहुंचाने के बाद क्या किया तुम लोगों ने?”
“मैंनेजर को उस बात की खबर की और आधा-पौना घंटा राहुल को ढूंढने की नौटंकी करते रहे, उस दौरान होटल की सीसीटीवी भी देख डाली। फिर पार्क में पहुंचकर लाश को गाड़ी में डाला और हरिद्वार के लिए रवाना हो गये, फिर रास्ते में मेरठ के पास उसे आग के हवाले कर दिया।”
“हरिद्वार ही क्यों?”
“आचार्य परमानंद के पास हम अक्सर जाते रहते हैं। बल्कि जब भी मन अशांत होता है वहां के लिए चल पड़ते हैं। उनकी बातों से मन को बहुत शांति मिलती है।”
“तुम्हारा मतलब है राहुल के कत्ल से पहले भी पापी मंडली किसी की जान ले चुकी थी?”
“नहीं, मंडली में वह पहली मौत थी।”
“ठीक है अब मधु पर आओ, उसका कत्ल किसने किया?”
“मैं नहीं जानता।”
विराट ने घूरकर उसे देखा।
“बाई गॉड मैं नहीं जानता, ना ही हम पापियों में से किसी ने उसका कत्ल किया था। वह तो जैसे सच में किसी पिशाच का ही काम था, चाहे आप यकीन करें या न करें। फिर जरा सोचकर देखिये इंस्पेक्टर साहब कि जब राहुल की मौत का सच मैंने बयान कर ही दिया है, तो मधु के बारे में जानबूझकर जुबान क्यों बंद रखूंगा।”
“इसलिए रखोगे क्योंकि मधु की हत्या तुमने की थी।”
“ऐसा नहीं है, यकीन कीजिए।”
विराट को लड़का सच बोलता ही जान पड़ा।
“इस बात की गारंटी करते हो कि तुम पापियों में से किसी ने मधु को नहीं मारा था?”
“सौ फीसदी की गारंटी है सर। उस रात हम लोग हर वक्त एक दूसरे की आंखों के सामने थे, थोड़ी देर के लिए जयदीप को हमने छत पर अकेला जरूर छोड़ दिया था मगर वैसा होने से पहले ही मधु गायब हो चुकी थी।”
सुनकर दोनों पुलिस ऑफिसर्स के मुंह से आह निकल गयी।
रात साढ़े दस बजे सूरज सिंह उर्फ सैंडी की इनोवा क्रिस्टा में सवार वाणी, नैना, जयदीप, रोहताश और ऐना हवेली पहुंचे। फाटक के सामने गाड़ी रोककर उसने रोहताश को चाबी दी और जाकर दरवाजा खोलने को कहा।
“एक बार फिर सोच ले सैंडी - रोहताश बोला - कहीं पिछली बार की तरह इस बार भी हममें से कोई एक या सब लोग किसी हादसे के शिकार न हो जायें।”
“खूब सोच चुका हूं पापी, तभी तो मैंने आज फिर से यहां रात गुजारने का प्लॉन बनाया है। ये बात मैं हर हाल में जानकर रहूंगा कि उस दिन हनी के साथ जो कुछ भी हुआ वह किसने किया था?”
“भूतों ने किया था, या तुझे शक है उनके होने पर?”
“भूत की मां..” आये तो साला, इस बार मेरे हाथों से बच नहीं पायेगा।”
“कहीं उल्टा न हो जाये।”
“मतलब?”
“वही हमपर भारी न पड़ जाये।”
“भूल गया गुरूजी ने क्या कहा था? भूत प्रेत जैसी कोई चीज इस संसार में नहीं होती, और जब साला कोई प्रेत होता ही नहीं है तो वह हमारे दोस्त की जान कैसे ले सकता था?”
“ये भी कहा था गुरूजी ने कि - ऐना बोली - शांति वहीं मिलेगी जहां से हमारे हृदय में अशांति ने अपना घर बनाया था। इसलिए मैं सैंडी के साथ हूं। आई डोंट केयर कि यहां हमारे साथ क्या हो सकता है?”
“तुम क्या कहती हो?” रोहताश ने वाणी से पूछा।
“मैं बस इतना जानती हूं कि एक दिन हम सबने मर जाना है पापियों, फिर जिंदगी की इतनी परवाह क्यों?”
“ठीक है फिर मर ही जाते हैं।” कहकर भुनभुनाते हुए गाड़ी से उतरकर रोहताश फाटक खोलने चला गया।
“मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है पापियों।” वाणी बोली।
“किस बात पर?”
“अरसद पर, पता नहीं कहां मर गया साला, जब भी फोन करती हूं उसका बाप उठा लेता है, और मुझे ये बताने की बजाये कि अरसद कहां है, सवाल करने लगता है कि अरसद कहां है?”
“कहीं पुलिस के चंगुल में तो नहीं फंस गया?” जयदीप ने संभावना जाहिर की।
“नहीं, उन लोगों ने वैसा कुछ करना होता तो हम सब के साथ एक ही तरह से पेश आते, अरसद क्या हमसे अलग है?”
तभी रोहताश दरवाजा खोलकर खड़ा हो गया।
सैंडी ने इनोवा को भीतर पहुंचाया फिर सब लोग नीचे उतर आये।
आगे एक बार फिर से पिछली बार वाले इंतजामात किये जाने लगे।
“मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा।” जयदीप धीरे से बोला।
“अब तू भाषण मत शुरू कर दे यार - सैंडी झुंझलाकर बोला - रोहताश पहले ही पका चुका है हमें।”
“मेरी बात मानो पापियों इस जगह पर रुकने का ख्याल अपने दिल से निकाल दो।”
“क्यों?”
“क्योंकि ये जगह पुलिस की निगाहों में आ चुकी है।”
“ऐसी की तैसी तेरी एडवाईज की - कहकर उसने नैना की तरफ देखा - कैसा डरपोक ब्वॉयफ्रैंड ढूंढकर लाई है यार?”
“बात डरने की नहीं है सैंडी। सच तो ये है कि जयदीप जो कह रहा है मैं भी वही कहना चाहती हूं। बाकी भी कहना तो चाहते हैं मगर तेरा लिहाज कर रहे हैं। जिस जगह पर मौत बसती हो वहां जानबूझकर अपनी जान को खतरे में डालना क्या समझदारी है?”
“हम पापी अपनी जान का मोह कब से करने लगे नैना?”
“नहीं करते, लेकिन जानबूझकर ऐसा करना तो गलत है न सैंडी।”
“ठीक है तुममे से जो कोई भी जाना चाहता है जा सकता है। मगर मैं कहीं नहीं जाऊंगा, भले ही रात को यहां अकेले ही क्यों न रुकना पड़े। मुझे गुरूजी के कहे पर यकीन है। और अगर यकीन है तो जाहिर है उस रोज हमारा पाला किसी भूत से नहीं पड़ा था।”
“तो क्या इंसान से पड़ा था बेबी? - ऐना ने पूछा - अगर वह इंसान होता तो हनी को हवा में कैसे उड़ा ले जाता?”
“वैसा कुछ भी नहीं हुआ था। मुझे लगता है हम सब नशे में थे, इसलिए भ्रम के शिकार हो गये। मगर आज ना तो नशा करेंगे ना ही खुद को किसी भ्रम में पड़ने देंगे। आधी रात तक यहां न तो कोई ड्रिंक करेगा, ना ही सिगरेट पियेगा।”
“बकवास मतकर बहन चो...” - वाणी तुनकर कर बोली - इससे तो अच्छा है कोई पिशाच हमारी जान ही ले ले, दम लगाये बिना भी कहीं हम पापियों की पार्टी चल सकती है। नो वे, मुझे ये मंजूर नहीं है।”
“मुझे भी नहीं।” नैना बोली।
“ठीक है नहीं मंजूर तो इतना फिर भी ध्यान रखना कि आउट किसी ने नहीं होना है। इस हद तक तो हरगिज भी नहीं कि हमारी आंखों के सामने फिर से कोई गायब हो जाये और हम समझ ही न सकें कि हुआ तो हुआ क्या।”
“गॉट इट।”
“गुड, अब साफ साफ बोलो - उसने बारी बारी से सबकी तरफ देखा - कोई वापिस जाना चाहता है?”
“जाना होता तो आते ही क्यों?” रोहताश बोला।
“तू क्या सोचता है सैंडी कि दम बस तेरे ही भीतर है - वाणी बोली - जयदीप क्या बच्चे नहीं पैदा कर सकता?”
“ये तो पहले से ही नशे में है पापियों।” रोहताश बोला।
“नशे में कौन नहीं है मुझे बताओ जरा...” वाणी ने बड़े ही सुर में गाया।
“किसी पे हुस्न का गुरूर, जवानी का नशा...” रोहताश ने जोड़ा।
“किसी के दिल पे मोहब्बत की रवानी का नशा...” ऐना भी पीछे नहीं रही।
“म्युजिक पापियों।” अरसद जोर से बोला तो जयदीप ने आगे बढ़कर म्युजिक सिस्टम ऑन किया और वही गाना चलाकर रिमोट का एक बटन पुश कर दिया। अगले ही पल बोल धीमे पड़ गये जबकि म्युजिक ज्यों का त्यों बजता रहा।
फिर तो सब के सब उस धुन पर एक्टिंग करते हुए, हाथों में जाम उठाये नाचने और गाने में जुट गये।
“कहीं सुरूर है खुशियों का कहीं गम का नशा...
“कहीं गम का नशा...
“कहीं गम का नशा...
यूं लगा जैसा सबकी आवाज उस लाईन पर ठहर सी गयी हो। बहुत देर तक छहों बस उस एक लाईन को ही गुनगुनाते रहे, सबके स्वर भारी होते चले गये। यहां तक लड़कियों के साथ-साथ लड़कों की भी आंखें भर आईं।
तभी सैंडी ने आगे बढ़कर म्युजिक बंद कर दिया।
“बस करो पापियों, वरना हम गमगीन हो जायेंगे, जो कि हमारी हनी को जरा भी अच्छा नहीं लगेगा। वह जरूर हमें कहीं से देख रही होगी, हम रोयेंगे तो वह भी रो पड़ेगी, इसलिए हमें हंसना होगा, जी खोलकर हंसना होगा, जैसा कि आज तक करते आये हैं।”
“ओके मन हल्का करने के लिए मैं एक जोक सुनाती हूं।” ऐना बोली।
“सुनकर हंसना भी है?” नैना ने पूछा।
“ऑफकोर्स हंसना है वरना फायदा ही क्या होगा?”
“वो क्या है न कि तेरे जोक्स पर हंसी कभी नहीं आती, इसलिए एडवांस में पूछ लिया।”
“अच्छा किया, जी खोलकर ठहाके लगाने हैं।”
“अब सुनायेगी भी?” सैंडी बोला।
“एक राजा बारात लेकर दुल्हन लाने गया। जहां से वापिस लौटा ही था कि पता लगा दुश्मन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया था। सुनकर वह तुरंत भारी संख्या में अपनी फौज के साथ लड़ाई के मैदान में पहुंच गया। लड़ाई पूरे दो सालों तक चलती रही जिसके बाद राजा आखिरकार तो दुश्मन को हराने में सफल हो ही गया। फिर वापिस लौटा तो ये सुनकर खुशी से उछल पड़ा कि उसकी रानी पेट से है। तब उसने पूरे राज्य में मिठाइयां बंटवाई, गरीबों के लिए भंडारे खोल दिये।” कहकर वाणी चुप हो गयी।
उसके जोक का मतलब समझने में सबको कुछ वक्त लग गया, फिर एकदम से ठठाकर हंस पड़े। आगे काफी देर तक यूं ही सब चुटकले सुनाते रहे। बीच में दो बार शराब के जाम भी टकराये गये। मगर इस बात में कोई शक नहीं था कि सबने तराजू पर तौलकर ड्रिंक किया था।
तत्पश्चात ऐना और वाणी ने मिलकर एक साथ डांस किया। बाकी सब उनका साथ देते रहे, बीच बीच में तालियां भी बजती रहीं। और एक वक्त वह भी आया जब हनी को भूलकर सब पार्टी में रम गये।
आखिर यही तो थी उनकी जिंदगी। इंजॉय और बस इंजॉय। ऐसे लोग भला कितनी देर तक उदास और गमगीन बने रह सकते थे, लिहाजा माहौल एकदम से बदल गया।
अरसद का बयान रिकॉर्ड करने के बाद जोशी ने उसे फर्स्ट एड दिया, साथ ही एक पैन किलर भी खिला दिया। फिर पौने ग्यारह बजे के करीब एक बार फिर उसकी आंखों पर पट्टी बांधकर गाड़ी में बैठा दिया गया। जो तब तक बंधा रहा जब तक कि वे लोग विराट के बंगले से निकलकर मुख्य सड़क पर नहीं पहुंच गये।
तत्पश्चात उसकी पट्टी खोल दी गयी।
आगे एसीबी हैडक्वार्टर पहुंचने में उन्हें पंद्रह मिनटों से ज्यादा का वक्त नहीं लगा, जहां हंगामा मचा पड़ा था।
विराट की गाड़ी का नंबर अरसद के गार्ड ने नोट कर लिया था, जिसकी सूचना फौरन उसके बाप को दे दी गयी। उसके बाद नदीम अहमद ने पहले पुलिस को फोन किया फिर अपने लॉयर को। जिसकी बात पहले ही विराट के साथ हो चुकी थी।
उसी के जरिये नदीम अहमद को पता लगा कि उसके बेटे को उठाने वाली पुलिस नकली नहीं थी, ना ही वह किन्हीं किडनैपर्स का किया धरा था। सुनकर वह यूं आगबबूला हुआ कि लॉयर के साथ फौरन एसीबी हैडक्वार्टर पहुंच गया।
आगे उसका सारा गुस्सा एसीपी राजावत पर फूटा, जिसे उसने जमकर खरी खोटी सुनाई। जबकि राजावत उससे बार बार शांत हो जाने की मिन्नतें करता रहा था।
आखिरकार मामले की खबर डीसीपी सहरावत को दी गयी जो करीब दस मिनट बाद ही वहां पहुंच गया था। तब से लेकर अभी तक बस विराट और जोशी को ट्रेस करने की ही कोशिश की जा रही थी, अलबत्ता इस बात पर वहां किसी को भी यकीन नहीं आया कि दोनों पुलिस ऑफिसर्स ने नदीम अहमद के घर में घुसकर सचमुच वैसा कुछ किया था जिसका जिक्र उनके सामने बैठा वह कर रहा था।
विराट और जोशी कैदी को लेकर भीतर दाखिल हुए ही थे कि महेश गुर्जर उनके सामने आ खड़ा हुआ। उसने जल्दी जल्दी तमाम माजरा उन्हें समझाया फिर बोला, “प्रॉब्लम बड़ी है सर, इसका बाप तो यूं उबल रहा है जैसे पूरे हैडक्वार्टर को जलाकर खाक में मिला देगा।”
“देखते हैं, तुम जरा इसे हवालात में पहुंचाओ और चाबी भले ही ले जाकर यमुना में फेंक देना, मगर मेरी इजाजत के बिना ताला नहीं खुलना चाहिए।”
“अभी लीजिए सर।” कहकर उसने अरसद के बायें हाथ की उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसाई और उसे लेकर उधर की तरफ बढ़ चला जिधर एक लाईन में चार लॉकअप रूम बने हुए थे।
फिर विराट ने जोशी को मिश्रा के पास ये जानने के लिए भेज दिया कि बाकी पापियों की लोकशन उस वक्त कहां की थी? क्योंकि आज शनिवार था और वह पूरी उम्मीद कर रहा था कि वे लोग फिर से कहीं न कहीं पार्टी के लिए इकट्ठे जरूर होंगे।
“कुछ खास पता लगे तो मैसेज करना मुझे, फोन नहीं करना है जोशी साहब, ना ही साहब के कमरे में कदम रखना है तुम्हें, समझ गये?”
“यस सर, थैंक यू सर।”
“अब जाओ।” कहकर वह सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।
आगे जैसे ही उसने एसीपी के कमरे में कदम रखा नदीम अहमद भड़कता हुआ उठ खड़ा हुआ। विराट ने उसे पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए दोनों अफसरों को सेल्यूट किया फिर उनकी इजाजत पाकर सामने मौजूद इकलौती खाली कुर्सी पर बैठ गया।
“अरसद कहां है विराट?” डीसीपी ने पूछा।
“हवालात में।”
“क्यों?”
“क्योंकि वह एक बड़े षड़यंत्र का हिस्सा है सर।”
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।” नदीम जैसे फट पड़ा।
“सॉरी, आप कौन हैं?”
“तुम मुझे नहीं पहचानते?”
“वांटेड क्रिमिनल होते तो जरूर पहचानता होता - कहकर उसने पूछा - किस जुर्म में लाया गया है आपको यहां?”
“मैं अरसद का बाप हूं - वह तड़पकर बोला - और ज्यादा नादान बनने की कोशिश मत करो क्योंकि एक बार पहले भी इसी जगह पर हम मिल चुके हैं, उस बार भी तुमने ऐसी ही एक घटिया हरकत की थी।”
“आपका मतलब है गुनहगार को गिरफ्तार करना घटिया हरकत होती है?”
“तुम खूब जानते हो विराट कि नदीम साहब क्या कहना चाहते हैं? - एडवोकेट चड्ढा बोला - मैंने तुम्हें चेतावनी भी दी थी कि फौरन अरसद के घर से निकल जाओ, मगर तुम्हें तो फौजदारी करनी थी। अरसद को पीट दिया, नौकरों को पीट दिया, यहां तक कि गार्ड्स को भी नहीं बख्शा।”
“यानि जिस वक्त वह सब मिलकर दो ऑन ड्यूटी पुलिस ऑफिसर पर हमला कर रहे थे, उस वक्त हमें उनसे चुपचाप मार खा लेना चाहिए था, है न?”
“तुमने मेरी बात मान ली होती तो वैसी नौबत ही क्यों आती?”
“क्यों मानूं मैं आपकी बात, कौन हैं आप?”
“अभी तुम्हारा ऐसा जवाब चल जायेगा इंस्पेक्टर, मगर कोर्ट में यही बातें तुम्हें भारी पड़ने वाली हैं। तब तुम देखोगे कि कैसे मैं तुम्हारे खिलाफ नदीम साहब के घर में जबरन दाखिल होने, इनके बेटे और स्टॉफ के साथ मारपीट करने और बाद में अरसद को किडनैप करने का अपराध साबित कर दिखाता हूं।”
“ठीक है तब आपसे जो बनता हो कर लीजिएगा, अभी बराय मेहरबानी या तो चुप बैठिये, या फिर कहीं और जाकर टिक जाइये, क्योंकि मुझे अपने आला अफसरान से एक जरूरी मैटर डिस्कस करना है।”
“देखा डीसीपी साहब - नदीम अहमद औरतों की तरफ हाथ नचाकर बोला - जब ये आपके सामने इतना बढ़ बढ़कर बोल रहा है तो जरा कल्पना कीजिए कि आपके पीठ पीछे क्या कुछ करता होगा।”
“अपनी ड्यूटी करता हूं सर।”
“एनफ - डीसीपी थोड़ा कड़े लहजे में बोला - और मिस्टर नदीम आप भी दो मिनट के लिए खामोश रहिये प्लीज - फिर उसने विराट की तरफ देखा - क्या किया है अरसद ने?”
उसी वक्त विराट को अपने मोबाईल से आती नोटिफिकेशन की बीप सुनाई दी।
“एक्सक्यूज मी - कहते हुए उसने मैसेज खोलकर पढ़ा जो कि जोशी का था, फिर मोबाईल को जेब के हवाले करता हुआ उठ खड़ा हुआ - मैं माफी चाहता हूं सर, एक बेहद जरूरी काम से मुझे इसी वक्त यहां से जाना पड़ रहा है इसलिए आपके सवाल का जवाब वापिस लौटकर दूंगा। और आपसे गुजारिश है कि तब तक अरसद अहमद को यहीं हवालात में रहने दीजिए।”
जवाब में डीसीपी कुछ कह पाता, उससे पहले ही विराट कमरे से बाहर निकल गया। आगे वह सीढ़ियों की तरफ लपका और तेजी से नीचे उतरते हुए जोशी को कॉल लगाया, जो कि फौरन अटैंड कर ली गयी।
“जल्दी करो वक्त नहीं है हमारे पास।” कहने के बाद वह नीचे पहुंचा तभी जोशी भी उसके साथ हो लिया।
आगे दोनों करीब करीब दौड़ते हुए फॉर्च्यूनर में सवार हुए और अगले ही पल विराट ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
“और क्या पता लगा मिश्रा से?”
“बस यही सर कि छहों पापियों की लोकेशन तिमारपुर के इलाके की थी और वह बात रात सवा दस बजे की है। उसने हमें इंफॉर्म करने की पूरी कोशिश की मगर मोबाईल क्योंकि हमने बंद कर रखा था, इसलिए कांटेक्ट नहीं कर पाया।”
“बहुत बुरा हुआ जोशी साहब, काश अरसद ने पहले ही अपनी जुबान खोल दी होती।”
“मैं समझा नहीं सर।”
“ईश्वर से प्रार्थना करो कि कोई नई लाश गिरने से पहले हम वहां पहुंच जायें।”
“आपको लगता है हवेली में आज फिर कोई मारा जायेगा?”
“अंदेशा तो पूरा पूरा है भई, क्योंकि मोटे तौर पर कहानी अब मेरी समझ में आने लगी है। इसलिए कातिल भी बस गिरफ्तार हुआ ही समझो।”
कहकर वह निरंतर गाड़ी की स्पीड बढ़ाता चला गया।
पौने बारह बजे सैंडी ने अपने हाथ में थमा गिलास खाली किया और बाकी दोस्तों के बीच से उठकर डांसिंग फ्लोर पर जा खड़ा हुआ।
“वक्त बस आने ही वाला है पापियों - वह चिल्लाकर बोला - अब से ठीक पंद्रह मिनट बाद शुरू होगा ‘गेम ऑफ डैथ’। लेकिन आज का गेम कोई आम गेम नहीं है। यह जुदा किस्म का है। खरनाक और रहस्यमयी। जो बाजी मार ले जायेगा, वह हमेशा के लिए हम पापियों के इतिहास में अमर हो जायेगा।”
सबने जोर से तालियां पीटीं।
“इस गेम में आज हम घोस्ट हंटिंग करेंगे। यानि जो भी भूत प्रेत हमारे सामने आयेगा उसे मार गिरायेंगे। फिर चाहे वह सच का भूत हो या कोई बहुरूपिया, आज हमारे हाथों से नहीं बचना चाहिए। बोलो कि नहीं बचेगा।”
“नहीं बचेगा।” सब जोर से एक सुर में चिल्लाये।
“फिर से बोलो।”
“नहीं बचेगा।”
“एक बार फिर बोलो।”
“नहीं बचेगा।”
तत्पश्चात वह प्लेटफॉर्म से नीचे उतरा और वहां रखे अपने बैग से एक प्लास्टिक का गोल और लंबा डिब्बा बाहर निकालकर उसका ढक्कन खोलने लगा। भीतर करीब छह इंच के फल और उतने ही लंबे दस्ते वाले सात छुरे रखे हुए थे।
सैंडी ने एक एक छुरा सबको थमाया और सातवें को डिब्बे में ही छोड़कर उसका ढक्कन वापिस बंद कर दिया, क्योंकि उसे लेने के लिए अरसद वहां मौजूद नहीं था।
“आज हमारा रोल शिकारी का होगा पापियों, इसलिए किसी को भी मत बख्शना, जो भी सामने आये खत्म कर देना उस हरामजादे को। उसे भी तो पता लगना चाहिए कि किसके साथ पंगा लिया है।”
फिर सबको एक एक टॉर्च थमाता हुआ बोला, “आज अगर फिर से लाईट गयी तो ये हमारे काम आयेंगे। बस इतना ध्यान रखना कि हमें हर हाल में खुद को बचाकर रखना है, और सुबह यहां से जिंदा वापिस जाना है। भले ही यहां लाशों का ढेर ही क्यों न लगाना पड़ जाये, परवाह नहीं।”
सबने सिर हिलाकर उसकी बात का अनुमोदन किया।
तभी यूं लगा जैसे वहां खड़ा कोई सातवां शख्स सैंडी के लाईट वाली बात पर कमेंट करने का ही इंतजार कर रहा था। पूरा का पूरा हॉल अंधेरे में डूब गया, जो इतना घना था कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहे थे।
“तैयार हो जाओ पापियों - सैंडी जोर से बोला - शैतान हमारे हाथों मुक्ति पाने के लिए यहां पहुंच चुका है। आज हम हमेशा हमेशा के लिए उसे इस नश्वर संसार से आजाद कर देंगे।”
सबने अपने अपने टॉर्च जला लिये। और छुरा यूं सामने की तरफ तान कर खड़े हो गये, जैसे किसी भी पल हमले की नौबत आ सकती हो। जबकि सैंडी ने वही काम रिवाल्वर के जरिये किया।
तभी समूचा हॉल किसी के भयानक कहकहे से गूंज उठा।
ऐसा ठहाका जिसमें खुशी नहीं थी। जो उनके दिलो दिमाग को भय का एहसास करा रहा था। दिलेर वो छहों चाहे जितने भी क्यों न रहे हों, सच यही था कि उस हंसी को सुनकर बुरी तरह बौखला उठे थे।
“मैं पुलिस को फोन करती हूं।” नैना बोली।
“डर गयी?”
“नहीं।”
“फिर पुलिस को फोन किसलिए?”
“ताकि हम यहां किसी को मार गिरायें तो बाद में हमपर कत्ल का इल्जाम न आने पाये।”
“ठीक है कर।” सैंडी ने इजाजत दे दी।
“ओह गॉड।”
“क्या हुआ?”
“पिछली बार की तरह इस बार भी नैटवर्क नहीं है पापियों।”
लगे हाथों बाकियों ने भी अपना-अपना मोबाईल चेक कर डाला, मगर सिग्नल किसी में भी नहीं आ रहे थे। बुरी तरह कसमसाते हुए सबने अपने मोबाईल वापिस जेब में रख लिये।
“तुम फिर आ गये मेरे बच्चों?” अजीब सी आवाज जैसे कहीं बहुत दूर से आ रही हो, या जैसे कोई बीमार आदमी मुश्किल से बोल पा रहा हो।
“हां साले आ गये हैं, और इस बार शिकार हममें से कोई एक नहीं बल्कि तू होगा, हिम्मत है तो सामने आ, आता क्यों नहीं बहन चो...?”
“तू मुझे नहीं मार सकता।”
“क्यों?”
“क्योंकि मैं हवा हूं, जिसका कोई रूप नहीं होता, शरीर भी नहीं होता। फिर गोली किसपर चलायेगा सैंडी, बल्कि तेरे दोस्त भी चाकुओं का वार भला कैसे कर पायेंगे?”
“ओह तो मेरा नाम भी जानता है।”
“मैं सब जानता हूं - गुर्राहट से भरा स्वर - क्योंकि ये मेरा साम्राज्य है, यहां मेरी इजाजत के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता। आज तुम लोगों ने तीसरी बार मेरी सल्तनत में प्रवेश करने का दुस्साहस किया है, इसलिए सजा मिलकर रहेगी। भयानक और खौफनाक सजा, वैसी ही सजा जैसे पिछली बार हनी को मिली थी, अब वह बेचारी रोज मेरे सामने नंगी नाचती है, अफसोस कि तुम लोग नहीं देख पाते। वैसे है बड़ी सुंदर, अंदर से तो और भी खूबसूरत दिखाई देती है। तुझे तो पता ही होगा रोहताश?”
“तू सामने तो आ भोस...के, फिर मैं तुझे बताऊंगा कि मेरी गर्लफ्रैंड के बारे में बुरा बोलने का अंजाम कितना भयानक हो सकता है।”
“अब वह तेरी गर्लफ्रैंड कहां है बच्चे, वह तो कब की मेरी बन चुकी है। मैं हर रात किसी ना किसी के शरीर पर कब्जा कर के उसके साथ मजे करता हूं। बड़ी अजीब अजीब सी आवाजें निकालती है वह, सच कहता हूं मजा आ जाता है।”
कहकर शैतान ने एक बार फिर जोर का ठहाका लगाया।
तब सैंडी उससे कहीं ज्यादा बुलंद आवाज में हंसा और चिल्लाता हुआ बोला, “देखा मैं तुझसे ज्यादा भयानक ढंग से हंस सकता हूं। सच बताना सुनकर कहीं तेरी पैंट तो गीली नहीं हो गयी?”
“कितने मासूम हो तुम लोग, एक बार भी ये नहीं सोचा कि पिछली बार मैंने सिर्फ हनी की जान क्यों ली, तुम सबको एक साथ ही क्यों नहीं खत्म कर दिया?”
“तू ही बता दे बहन चो...?” वाणी ने पूछा।
“इसलिए नहीं मारा बिटिया रानी, क्योंकि मैं तुम्हारे गेम ऑफ डैथ को लंबा चलने देना चाहता हूं। हर शनिवार एक शिकार, यही तय किया है मैंने, मतलब कि दो महीनों की खुराक मुझे साफ-साफ दिखाई दे रही है।”
“साले अभी हम यहां नहीं पहुंचे होते या आगे नहीं आयेंगे तो तू हमारा क्या बिगाड़ लेगा?”
“तुम सचमुच भोली हो मेरी बच्ची, जो ये समझ रही हो कि तुम सब अपनी मर्जी से यहां आये हो।”
“अच्छा फिर कैसे आये?”
“मैंने बुलाया है - आवाज की नर्मी गायब हो गयी - सैंडी के दिमाग पर कब्जा करके मैंने इसे मजबूर कर दिया कि आज की पार्टी के लिए एक बार फिर ये मेरी हवेली को ही चुने। नहीं तो इतना सयाना सैंडी क्या ऐसी खतरनाक जगह पर दोबारा कदम रखने की भूल कर सकता था?”
जोर का अट्टहास।
आवाज पूरी हवेली में यूं गूंज रही थी कि कभी ऊपर से, कभी बायें से तो कभी दायें से आती महसूस हो रही थी। उन लोगों की समझ में ही नहीं आ रहा था कि बोलने वाला शख्स खड़ा कहां था? अगर वह प्रेत भी था तो किधर था? अलबत्ता आवाज को फॉलो करते हुए उनकी गर्दन, साथ में वह हाथ जिसमें कि टार्च थमे थे, बराबर इधर उधर घूम जाते थे।
“चलो अब जरा तुम लोगों को पवित्र कर दूं, क्योंकि जिंदा लोगों से बहुत ही बुरी बद्बू महसूस होती है। मुझे तो खून की मुश्क पसंद है, मन प्रसन्न हो जाता है।”
अगले ही पल वहां खून की बारिश शुरू हो गयी।
वैसा पिछली बार भी होकर हटा था इसलिए उनपर कोई खास असर तो नहीं हुआ, लेकिन उस बारिश से बचने की कोशिश में सब इधर-उधर छिटके तो अंजाने में ही एक दूसरे से थोड़ा दूर हो गये।
“गेम खेलो मेरे बच्चों - फिर वही आवाज - तभी तो कोई हारेगा?”
“ये गेम ही है कमीने, जिसमें हम सबको तेरा शिकार करना है।”
“फिर तो सब हारोगे, और मारे जाओगे।”
“कैसे मारेगा? - रोहताश चिल्लाया - ठहाके लगाकर हमारी जान ले लेगा? अगर तू ये सोचता है कि हम तुझसे डरते हैं, तो सुन ले हमें तेरा कोई भय नहीं है। हम पापी हैं, सुना तूने हम पापी हैं, हमें दुनिया की किसी बात की कोई परवाह नहीं है। न भूत की न वर्तमान की, ना जिंदगी की ना मौत की, और भविष्य कोई देख नहीं सकता, इसलिए तेरे जैसे पिशाचों को तो हम अपने ठेंगे पर रखते हैं।”
“देखना चाहते हो मैं तुम्हारे साथ क्या कर सकता हूं?”
“हां दिखा।”
“या गेम को लंबा खींचना चाहते हो?”
“नहीं जो दिखाना चाहता है अभी दिखा दे, ताकि उसके बाद हम तेरा खून पी सकें - कहकर ऐना ने सैंडी की तरफ देखा - डॉयलाग अच्छा था ना बेबी?”
“सुपर मेरी जान।”
“हुंह ये भी कोई डॉयलाग है - नैना मुंह बिचका कर बोली - इससे बढ़िया धमकी तो मैं दे सकती हूं।”
“अच्छा तो देती क्यों नहीं, जुबान बंद कर के क्यों खड़ी है?”
“ठीक है देती हूं - कहकर वह गुर्राती हुई बोली - सुन बे महाराज के भूत, जो करना है फौरन कर के दिखा, वरना तेरे पिछवाड़े में हाथ डालकर मुंह में मौजूद सारे दांत तोड़ दूंगी।”
“वॉव, क्या बात कही स्वीट हॉर्ट?” जयदीप बोला।
“थैंक यू बेबी।”
“ठीक है तुम लोगों को ज्यादा जल्दी मची है तो देखो मेरा कमाल।”
सब इधर उधर टार्च की रोशनी फेंकने लगे, ताकि कोई हमला करे तो उन्हें दिखाई दे जाये। मगर सब व्यर्थ कहीं कुछ नहीं था, उनके अलावा पूरा हॉल खाली पड़ा था।
“क्या हुआ फट गयी?” सैंडी ने पूछा।
“अब फटेगी बच्चों।”
“तेरी?”
“नहीं, जरा नीचे की तरफ तो देखो, जहां तुम लोग खड़े हो वहां की धरती बस फटने वाली है, तुम सब उसमें समा जाओगे। समाकर पाताल लोक में पहुंचोगे, फिर मैं देखूंगा कि वापिस अपनी दुनिया में कैसे लौट पाते हो।”
सुनकर सब बौखला से गये, अपनी जगह से कई कदम इधर उधर भी खिसक गये, और टॉर्च की रोशनी फर्श पर डालते हुए यूं नीचे की तरफ देखने लगे जैसे अचानक धरती फटने लगती तो खुद को बचा ले जाते।
तभी ऊपर लगा घंटा बज उठा। उस आवाज ने उन्हें इतनी बुरी तरह चौंकाया कि एक पल को सबकी निगाहें ऊपर को चली गयीं। उसी वक्त हॉल में जगह जगह से धुआं उठने लगा, जो इतनी तेजी से फैल रहा था कि कुछ ही वक्त में उनके हाथों में थमे टार्च किसी काम के नहीं रह जाने वाले थे।
“सावधान रहना पापियों - सैंडी ने चेतावनी दी - गलफत में कहीं एक दूसरे पर ही हमला मत कर बैठना।”
“होश में आ जा सैंडी, क्यों अपने साथ-साथ हम सबकी जान का भी दुश्मन बन रहा है? - जयदीप बोला - अभी भी वक्त है निकल चलते हैं, वरना धुआं कहीं पूरे हॉल में फैल गया तो कुछ भी दिखाई देना बंद हो जायेगा। उन हालात में उस कमीने के लिए हमें मार गिराना क्या बड़ी बात होगी।”
“तुझे जाना है चला जा, बल्कि और कोई भी जाना चाहता है तो जा सकता है, लेकिन मैं तब तक नहीं जाऊंगा, जब तक कि इस हरामजादे को मार नहीं गिराता।”
सुनकर जयदीप तुरंत दरवाजे की तरफ दौड़ गया। यहां तक कि नैना को साथ चलने के लिए भी कहना जरूरी नहीं समझा। मगर फायदा कोई नहीं हुआ क्योंकि पिछली बार की तरह इस बार भी गेट बाहर से बंद किया जा चुका था।
तब तक हॉल में काफी धुआं भर चुका था, मगर एक दूसरे को देख पाने में वे लोग फिर भी कामयाब हो जा रहे थे। जयदीप के पास भी दूसरा कोई चारा नहीं था इसलिए बुरी तरह हताश निराश उनके पास वापिस लौट आया।
“ज्वालामुखी फट रहा है बच्चों अब उसमें भस्म होने को तैयार हो जाओ।” फिर वही आवाज।
“एड़ा समझा है साले? - वाणी जोर से बोली - हम क्या जानते नहीं हैं कि ये धुएं के बम हैं, ऐसी बचकाना हरकतों से तो तू हमें क्या डरा पायेगा?”
“बेवकूफ लड़की, अगर वह बम होते तो क्या गिरने की आवाज नहीं सुनाई दी होती तुम लोगों को?”
“कैसे सुनाई देती, उसी वक्त तो तूने घंटा बजा दिया था। इसलिए हमें उल्लू बनाने के बारे में सोचना बंद कर दे। हमें मालूम है कि तू भी हमारी तरह इंसान ही है। अब तेरी भलाई इसी में है कि चुपचाप सामने आ जा।”
“आऊंगा, जरूर आऊंगा, मगर उससे पहले तुम लोग धरती फटने का नजारा तो देख लो, फिर खुद समझ जाओगे कि मैं इंसान नहीं हो सकता।”
सबकी निगाहें एक बार फिर ना चाहते हुए भी फर्श पर टिक गयीं, जहां फैले धुंए के कारण टार्च की रोशनी कोई ज्यादा असर नहीं दिखा पा रही थी।
तभी सैंडी एकदम से छटपटा उठा, फिर गोली चलने की जोरदार आवाज गूंजी। रोहताश एकदम से धुएं के बीच जा गिरा। बाकी दोस्त अभी माजरा समझने की कोशिश कर ही रहे थे, कि उनकी नजर उस भयानक आकृति पर पड़ी जिसका पूरा शरीर लंबे लंबे बालों से भरा हुआ था। जैसे कोई भयानक भालू हो। हालांकि वो भी धुएं का हिस्सा बना हुआ था मगर टार्च की रोशनी में उसकी आकृति का थोड़ा बहुत एहसास तो उन्हें हो ही गया।
सबके़ मुंह से एक साथ चीख निकल गयी। मगर अगले ही पल उन लोगों ने खुद पर काबू भी पा लिया, और चाकू थामे तेजी से उसे मारने दौड़े, तभी वह जानवर या जो कोई भी था, सैंडी को लिए दिये ऊपर की तरफ उठता चला गया, पांचों पापी नदीदों की तरह आंखें फाड़े वह नजारा देखते रह गये, कर कुछ नहीं पाये। फिर सैंडी और हमलावर दोनों दिखाई देने बंद हो गये।
रोहताश गोली खाये पड़ा था मगर किसी ने उसकी तरफ ध्यान देने की कोशिश नहीं की। उसको भूलकर सब सैंडी को बचाने के लिए सीढ़ियों की तरफ दौड़े, उसी वक्त जयदीप के पैरों से फर्श पर पड़ी सैंडी की रिवाल्वर टकराई, उसने नीचे धुएं में बैठकर टटोलने की कोशिश की तो जल्दी ही रिवाल्वर उसके हाथ आ गयी, जिसे उठाकर वह अपने दोस्तों के पीछे सीढ़ियों की तरफ दौड़ पड़ा।
सब ऊपर पहुंचे तो पाया कि वह दरवाजा छत वाली तरफ से बंद किया जा चुका था। और उतने मजबूत दरवाजे को तोड़ देने का उनके पास कोई जरिया नहीं था।
“अब क्या करें?” ऐना ने सवाल किया।
जवाब किसी के पास नहीं था।
“सैंडी, सैंडी - वह दरवाजा पीटती हुई जोर से चिल्ला पड़ी - तुम ठीक तो हो बेबी?”
प्रत्युत्तर में कोई आवाज उन्हें नहीं सुनाई दी।
यथा संभव तेज रफ्तार से गाड़ी चलाते विराट ने सीधा हवेली के सामने पहुंचकर ही दम लिया। तभी गोली चलने की आवाज उनके कानों में पड़ी। अगले ही पल दोनों ने गाड़ी से नीचे छलांग लगाई और तेजी से फाटक की तरफ दौड़े।
दरवाजे को अंदर की तरफ से ताला लगा था।
विराट ने सींकचों के बीच से अपना हाथ भीतर पहुंचाया और गोली चलाकर ताला तोड़ने के बाद कुंडा खोल दिया।
“तुम यहीं रुको - आगे को दौड़ता वह जोर से बोला - कोई भागता नजर आये तो उसके पैरों को निशाना बनाना, याद रहे जोशी साहब किसी भी हाल में वह कमीना मरना नहीं चाहिए।”
“निश्चिंत रहिए सर।”
तब तक विराट अगले दरवाजे तक पहुंच चुका था। कुंडा बाहर से बंद था जिसे खोलकर वह तुरंत अंदर दाखिल हो गया। मगर वहां भरे धुएं के बीच कुछ भी देख पाना संभव नहीं हो पाया।
अभी वह माहौल भांपने की कोशिश कर ही रहा था, कि तभी अंधेरे में सीढ़ियों पर ऊपर नीचे, दायें बायें होती लाइटें उसे दिखाई दीं। फिर कई जोड़ी कदमों की आवाज! विराट ने फौरन अपनी रिवाल्वर का रुख उधर को कर दिया।
आगे ज्योंहि सीढ़ियों पर किसी के होने का एहसास हुआ वह गरज कर बोला, “जहां हो वहीं रुक जाओ, वरना शूट कर दूंगा।”
“गोली मत चलाना इंस्पेक्टर - जयदीप की आवाज उसने साफ पहचानी - ये हम लोग हैं।”
“मैंने गोली चलने की आवाज सुनी थी।”
“सैंडी के हाथों चली थी।”
“किसपर चलाई थी?”
“किसी पर नहीं लेकिन गलती से रोहताश को जा लगी।”
“और सैंडी कहां है?”
“चंद्रशेखर महाराज की प्रेतात्मा उसे लेकर छत पर चली गयी है। सीढ़ियों का दरवाजा भी कमीने ने दूसरी तरफ से बंद कर दिया है, इसलिए हम ऊपर नहीं जा पाये।”
तब तक सब उसके करीब पहुंच चुके थे।
“बाहर जाकर मेरी गाड़ी में बैठ जाओ, और तब तक वहां से मत हिलना जब तक कि मैं न आ जाऊं। वहां जोशी साहब पहले से तैनात हैं, इसलिए डरने की जरूरत नहीं है।” कहकर विराट ने जोशी को आवाज लगाकर उन सबके बाहर आने की इत्तिला दी और खुद उनमें से एक की टार्च लेकर सबको बाहर निकल जाने दिया।
तत्पश्चात टार्च के प्रकाश में वह बड़ी मुश्किल से फर्श पर पड़े रोहताश तक पहुंच पाया। झुककर उसका मुआयना किया तो पाया कि वह मर चुका था। फिर इधर उधर रोशनी फेंकी और वापिस दरवाजे पर पहुंचकर जोशी को जनरेटर चलाने को बोल दिया।
कुछ देर बाद वहां लगे बल्ब जल उठे। मगर धुंआ क्योंकि अभी भी मौजूद था, इसलिए दूर की चीजें दिखाई नहीं दे रही थीं।
नीचे कुछ हासिल होता न देखकर वह सावधानी से सीढ़ियां चढ़ने लगा।
ऊपर पहुंचा तो दरवाजा खुला पाकर हैरान रह गया, जिसे सब बंद बता रहे थे, इसलिए उसने फौरन ऊपर पहुंचने की कोशिश नहीं की थी। आगे उसने पूरी छत का मुआयना कर डाला मगर कहीं कोई संदिग्ध बात नहीं दिखाई दी।
फिर उसे किसी वाहन का इंजन स्टार्ट किये जाने की आवाज सुनाई दी, और जब निगाह उस तरफ को गयी तो एक की बजाये दो गाड़ियों के होने का एहसास हुआ। वह दोनों मोटरसाईकिलें थीं जो हवेली से थोड़ी दूरी बनाकर सड़क की तरफ बढ़ रही थीं।
“हवेली के दाईं तरफ से दो बाईक्स सड़क पर जा रही हैं जोशी - विराट गला फाड़कर चिल्लाया - पीछा करो उनका।”
“कॉपी दैट सर।” जोशी की आवाज उसके कानों में पड़ी।
तत्पश्चात वह खुद भी पूरी रफ्तार से दौड़ता हुआ सीढ़ियों के दरवाजे तक पहुंचा और एक एक छलांग में कई कई स्टेप फांदता हुआ नीचे की तरफ बढ़ता चला गया।
हॉल में पहुंचकर उसने हवा की रफ्तार से दरवाजा पार किया और लोहे वाले फाटक पर पहुंचकर एकदम से ठिठक गया। ये देखकर उसका दिमाग खराब हो गया कि जोशी अभी भी जहां का तहां खड़ा था।
“तुम्हें सुनाई नहीं दिया, मैंने क्या कहा था?”
“पीछा करता तो कैसे करता सर?”
“मतलब?”
“आपकी गाड़ी तो चारों पापी भगा ले गये। आपकी आवाज सुनते के साथ ही उनमें से एक जना ड्राईविंग सीट पर जा बैठा था। मैंने बहुत तेजी दिखाई, उन्हें रोकने की कोशिश भी की लेकिन कामयाब नहीं हो पाया।”
“अरे तो यहां खड़ी इनोवा से उनके पीछे जाना था।”
“चाबी कहां है सर?”
सुनकर विराट तेजी से दौड़ता हुआ वापिस हॉल में पहुंचा, सबसे पहले उसने रोहताश की जेबें टटोलीं, कोई चाबी नहीं मिली। फिर उसका ध्यान वहीं फर्श पर रखे बैग्स की तरफ चला गया, चाबी की तलाश में उसने एक एक बैग को खोलकर उसका सामान फर्श पर पलटना शुरू कर दिया। चौथा बैग जो कि सैंडी का था, उसका सामान नीचे गिराते ही चाबी उसे दिखाई दे गयी। उठाकर वह तेजी से गेट की तरफ दौड़ा और बाहर निकल कर इनोवा की ड्राईविंग सीट पर जा बैठा। जोशी भी समय नष्ट किये बिना उसके बगल में पैसेंजर सीट पर सवार हो गया।
अगले ही पल गाड़ी कंपाउंड से निकलकर सड़क की तरफ दौड़ी, फिर राईट टर्न लेते के साथ ही वह एक्सीलेटर पर दबाव बढ़ाता चला गया। ये अलग बात थी कि फॉर्च्यूनर का दूर दूर तक कोई अता-पता नहीं था।
वे लोग अभी बामुश्किल एक किलोमीटर ही आगे गये होंगे कि सड़क पर गिरी पड़ीं दो मोटरसाइकिलों दिखाई दे गयीं। उनके इर्द गिर्द ताजा खून फैला हुआ था जिसे देखकर ये अंदाजा लगाते उन्हें देर नहीं लगी कि दोनों को टक्कर मार कर गिराया गया था। मगर आस-पास घायल पड़ा कोई शख्स नजर नहीं आ रहा था, जिसका मतलब बनता था कि बाईक्स पर सवार लोग चारों पापियों के हत्थे चढ़ गये थे।
यानि हत्यारे जो कोई भी थे, अब पूरी तरह से पापी मंडली के रहमों करम पर थे। इसलिए उनका अंजाम विराट को साफ दिखाई दे रहा था। मन ही मन उसने मान भी लिया कि अपराधी जिंदा उनके हाथ नहीं लगने वाले थे।
मगर कोशिश तो वह कर ही सकता था, इसलिए सड़क पर पड़ी मोटरसाइकलों के पास रुकने की बजाये गाड़ी आगे बढ़ा ले गया।
फॉर्च्यूनर अभी भी उनकी निगाहों से दूर थी, जो कि होना ही था क्योंकि दोनों गाड़ियों के हवेली से निकलने के बीच कम से कम पांच मिनट का अंतराल तो हर हाल में रहा होगा। अलबत्ता रास्ता एकदम खाली पड़ा था, इसलिए उस संकरी सड़क पर भी वह सत्तर अस्सी की स्पीड निकालने में कामयाब हुए जा रहा था।
सबसे ज्यादा गुस्सा उसे जोशी पर आ रहा था, जबकि सही मायने में देखा जाता तो उसकी कोई गलती नहीं थी। वह तो विराट का हुक्म होते ही फॉर्च्यूनर की तरफ दौड़ पड़ा था, मगर पापियों को रोकने में कामयाब इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि उसी वक्त गाड़ी के तमाम दरवाजे लॉक कर दिये गये थे।
फिर जोशी को वैसी किसी बात की उम्मीद भी तो नहीं थी।
इनोवा उस वक्त फरीदाबाद बाईपास रोड से करीब दो किलोमीटर दूर थी जब गोली चलने की आवाज रात के सन्नाटे को बेधती हुई उनके कानों तक पहुंची।
धांय, धांय, धांय, धांय!
कुछ सेकेंड्स के अंतराल पर चार गोलियां चलीं, फिर एकदम से सन्नाटा छा गया। साथ ही अपराधियों के जिंदा गिरफ्तार होने की रही सही उम्मीद भी खत्म हो गयी।
एक किलोमीटर और आगे जाने के बाद विराट को अपनी गाड़ी सड़क पर खड़ी दिखाई दे गयी। चारों पापी उससे टेक लगाये सिगरेट के सुट्टे लगा रहे थे।
और उतनी ही लाशें उनके सामने सड़क पर पड़ी थीं।
इतना बेफिक्रा तो शायद ही दुनिया में कोई होता होगा।
इनोवा से उतरकर दोनों उनके पास पहुंचे। विराट ने एक नजर लाशों पर डाली फिर एक जोर का थप्पड़ जयदीप के गाल पर जड़ दिया, तमाचा इतना जोर का था कि वह जहां का तहां नीचे गिर गया।
“मार क्यों रहे हो इंस्पेक्टर साहब?” उठने की कोशिश करते हुए उसने पूछा।
जवाब में विराट ने फिर से एक थप्पड़ जड़ दिया।
नैना लपक कर जयदीप के करीब पहुंची और एकदम से उसे अपनी बाहों में भरती हुई बोली, “रोना नहीं बेबी, मैं तुम्हारी आंखों में आंसू बर्दाश्त नहीं कर सकती।”
“डोंट वरी, ये मर्द है और मर्द को कभी दर्द नहीं होता।” वाणी ने जोड़ा।
“तुझे कैसे पता वाणी?” ऐना ने सवाल किया।
“क्या कैसे पता?”
“यही कि जयदीप मर्द है?”
“शटअप।” विराट गुर्राया।
चारों ने सकपका कर अपने होंठ भींच लिए।
“याद रहे कि यहां सवाल सिर्फ मैं पूछूंगा, तुम लोग बस जवाब दोगे, वरना मैं भूल जाऊंगा कि तुम चारों में से तीन लड़कियां हैं, समझ गये?”
सबकी मुंडी एक साथ हां में हिली।
“गुड, अब बताओ किसने मारा इन चारों को?”
“सबने मिलकर मारा है।” वाणी बोली।
“पिस्तौल कहां है?”
ऐना ने तुरंत सैंडी की रिवाल्वर उसकी तरफ बढ़ा दी, जिसे रुमाल में लपेटकर विराट ने अपनी पैंट की जेब में ठूंस लिया। ठूंस इसलिए लिया क्योंकि पिस्तौल रखने के लिहाज से पैंट की पॉकेट सर्वथा अपर्याप्त जगह थी।
“किसकी रिवाल्वर है ये?”
“सैंडी की।”
“तुम लोगों तक कैसे पहुंची?”
जयदीप ने बता दिया।
“जानते हो तुम लोगों ने किसको मार गिराया है?”
“ऑफ कोर्स जानते हैं इंस्पेक्टर साहब, तभी गोली चलाते वक्त मन में जरा भी हिचक नहीं हुई - ऐना यूं बोली जैसे ईनाम हासिल करने लायक कुछ कर दिखाया हो - आपको तो हमें शाबाशी देनी चाहिए, गुस्सा क्यों हो रहे हैं?”
“ईडियट - नैना ने उसे झिड़क दिया - इतना भी नहीं समझती?”
“ना, तुझे पता है?”
“हां पता है।”
“क्या?”
“इंस्पेक्टर साहब ने अगर इन चारों को खुद मारा होता तो पक्का इनकी तरक्की हो जाती, अफसर पीठ थपथपा रहे होते, मीडिया में इनकी बहादुरी के चर्चे हो रहे होते। प्रमोशन पाकर एसीपी भी बन जाते तो कोई हैरानी की बात नहीं होती। मगर हम लोगों ने इनके सपनों पर पानी फेर दिया, ऐसे में इन्हें गुस्सा नहीं आयेगा तो और क्या होगा?”
“नो प्रॉब्लम सर, हम चारों पापी आपसे वादा करते हैं कि इन चारों को शूट करने की बात कभी भी अपनी जुबान पर नहीं आने देंगे - विराट की तरफ देखती हुई वाणी बोली - चाहे जितना मन हो वाहवाही लूट लीजिए। वैसे भी हम पापियों का ऐसी बातों पर कोई ऐतबार नहीं है।”
“शटअप।” इस बार विराट इतनी जोर से चीखा कि उसकी आवाज कई किलोमीटर दूर तक पहुंच गयी हो तो कोई हैरानी की बात नहीं थी।
“यू शटअप - ऐना उसे घुड़कती हुई बोली - आप होते कौन हैं हमसे इस तरह से बात करने वाले? और ऐसा क्या गुनाह कर दिया हमने जो आप अपना आपा खोकर दिखा रहे हैं? आपको एहसास भी है कि इन सालों ने हम पापियों की तादाद कम करने के लिए कितना भयानक षणयंत्र रचा था, मार न गिराते तो और क्या करते? इसके बावजूद अगर आपको लगता है कि हमने कुछ गलत किया है तो गिरफ्तार कर लीजिए, चिल्लाकर अपना और हमारा दिमाग क्यों खराब कर रहे हैं?”
विराट लाजवाब हो गया। चारों को जब अपनी गिरफ्तारी पर कोई ऐतराज ही नहीं था तो और कहने सुनने के लिए बचता ही क्या था? ऊपर से जयदीप को छोड़कर बाकी तीनों लड़कियां थीं, कैसे वह उनपर हाथ उठा सकता था?
ऐसे में उनके मुंह न लगना ही उसने उचित समझा।
फिर चारों की तरफ से ध्यान हटाकर वहां पड़ी लाशों के करीब पहुंचा और झुककर उनकी नब्ज टटोलने लगा। चारों में से एक भी जिंदा नहीं था, ना ही विराट को उनमें से किसी के जिंदा होने की कोई उम्मीद थी, क्योंकि गोलियां एकदम करीब से माथे पर गन रखकर चलाई गयी थीं।
चारों के चारों ही बेहद पतले दुबले और आम युवक दिखाई दे रहे थे, उनके बदन पर स्किन टाईट कपड़े थे, जो एक नजर देखने पर ट्रैक सूट जान पड़ते थे, जबकि थे नहीं।
उम्र भी कमोबेश सबकी एक ही थी, जिसके बारे में विराट का अपना अंदाजा था कि तीस से पैंतीस के बीच कुछ भी हो सकती थी।
वह सीधा होकर खड़ा हो गया।
“इनके पास कोई सामान नहीं था?”
“एक एक बैग था चारों की पीठ पर।” जयदीप ने बताया।
“अब कहां है?”
“आपकी गाड़ी में।”
“बहुत भारी हैं, उठाये नहीं उठ रहे थे।” नैना बोली।
“लेकिन हम पापी कभी हार नहीं मानते।” ऐना ने जोड़ा।
“तुम भी कुछ कह लो।” विराट ने वाणी की तरफ देखते हुए व्यंग्य सा किया।
“आप पुलिसवाले ही हैं न?”
“तुम्हें शक है?”
“तो फिर बेवजह की बातों में वक्त बर्बाद क्यों कर रहे हैं?”
“मुझे मेरी ड्यूटी याद दिलाने के लिए थैंक्स, अब कोई एक जना विस्तार से बताओ कि हवेली से जब तुम लोग मेरी गाड़ी लेकर भागे तो उसके बाद क्या क्या हुआ?”
“ये पूछिये कि हमने क्या क्या किया?”
“ठीक है वही बता दो।”
“सड़क पर आगे आगे भागी जा रही दोनों मोटरसाइकलों को टक्कर मारी, जिसपर ये चारों लोग सवार थे। हालांकि उससे पहले जयदीप ने इन्हें रुकने के लिए चेतावनी दी थी, मगर सुनने को कोई तैयार नहीं हुआ।” ऐना ने बताया।
“तब जयदीप ने दोनों बाईक्स को एक साथ पीछे से ठोंक दिया। बहुत हौले से, मगर ये बहन चो... क्योंकि साठ सत्तर की स्पीड में थे इसलिए संभल न सके और भरभराकर सड़क पर गिर गये। किसी का हाथ टूटा, किसी का घुटना, एक का मुंह भी फूट गया, आप खुद देख सकते हैं।” वाणी बोली।
“उसके बाद हम लोग गाड़ी से नीचे उतरे और घसीट घसीट कर चारों को भीतर ठूंस दिया। हाथ पांव तुड़वाये बैठे थे, इसलिए विरोध नहीं कर पाये।”
“वहीं गोली क्यों न मार दी?”
“हमारा इरादा पहले इनसे ये जानने का था कि हम पापियों के संहार के लिए इन्हें किसी और ने भेजा था, या ये लोग खुद अपनी मर्जी से वैसा कर रहे थे। और उतनी बातें वहां नहीं पूछी जा सकती थीं, क्योंकि किसी भी पल आप लोगों के आ टपकने का खतरा था।”
“वो तो हम यहां भी पहुंच सकते थे, पहुंचे भी। और दोनों गाड़ियों के बीच का वक्फा भी करीब करीब उतना ही रहा होगा, जितना टक्कर मारने वाली जगह पर रहा होता।”
“आगे गाड़ी रोकना हमारी मजबूरी बन गयी थी।”
“कैसी मजबूरी?”
“चारों की हालत बहुत खस्ता थी, और आगे लगातार बिगड़ती जा रही थी। तब हम ये सोचकर यहां रुक गये कि कहीं हमारे सवालों को जवाब दिये बगैर ही ये चारों दुनिया से कूच न कर जायें।”
“यानि सवाल पूछ चुकने के बाद खत्म किया था चारों को?”
“पूछा बराबर था, मगर जवाब नहीं मिला। तीन बेहोश थे और चौथा जुबान खोलने को तैयार ही नहीं हो रहा था। तभी किसी वाहन के इंजिन की आवाज हमारे कानों में पड़ने लगी, हमें यकीन आ गया कि आप लोग बस यहां पहुंचने ही वाले थे, इसीलिए खत्म कर दिया।”
“ये न सोचा कि जिन सवालों के जवाब तुम लोगों को नहीं मिले थे, वह पुलिस सहज ही इनसे उगलवा सकती थी?”
“सोचा था, मगर उन हालात में हमें अपने दुश्मनों को खत्म करने का मौका कहां हासिल होता इंस्पेक्टर साहब? सवाल जवाब करने के बाद आप इन कमीनों को हमारे हवाले तो कर नहीं देते, इसलिए मार दिया।”
“मेरी समझ में नहीं आता कि तुम लोगों को बेवकूफों की श्रेणी में रखूं या अपराधियों के - विराट कसमसाता हुआ बोला - एहसास भी है कि जो किया है वह कानून की निगाहों में सरासर हत्या मानी जायेगी?”
“विराट - नैना ने इतने प्यार से उसका नाम लिया कि वह चौंककर रह गया - तुम्हारे डैड और मेरे डैड दोस्त हुआ करते थे, तुम्हीं ने बताया था।”
“तो?”
“तुम्हें उनकी दोस्ती की कसम है।”
“मतलब कि तुम लोगों को छोड़ दूं?”
“नहीं।”
“फिर?”
“बस एक बार जेल की सैर करा दो।”
“उसके लिए कसम देने की कोई जरूरत नहीं है, तुम लोगों ने आज जो कुछ भी किया है, उसके बाद तुम्हारा मुकाम जेल की काल कोठरी ही होगी।”
“थैंक यू सो मच हैंडसम ब्वॉय - ऐना बड़े ही मुदित भाव से बोली - यू नो सैंडी गायब हो चुका है?”
“या मर चुका है।”
“ये भी हो सकता है।”
“ओके, क्या कहना चाहती हो?”
“मेरे ब्वॉयफ्रैंड बनोगे?”
सुनकर बरबस ही विराट की हंसी छूट गयी।
“और कहीं अरसद भी मर चुका है - वाणी जल्दी से बोल पड़ी - तो समझ लो कि एक वैकेंसी इधर भी निकल आई है। फैसला करने में जल्दीबाजी मत दिखाना क्योंकि ऑप्शन मौजूद है।”
“तुम दोनों ने सिर्फ शराब पी रखी है या और कुछ भी लिया था?”
“बस एक सिगरेट।”
“नीट?”
“नो वे।”
“बढ़िया अब थोड़ी देर अच्छे बच्चों की तरफ खामोश होकर खड़े रहे - कहकर उसने जोशी की तरफ देखा - इनमें से अब अगर कोई भी अपना मुंह खोले तो एक जोर का कान के नीचे रख देना, समझ गये?”
“यस सर।” उतनी देर में जोशी तब पहली बार बोला।
तत्पश्चात विराट ने एसीपी अभिषेक सिंह राजावत को कॉल कर के वहां घटित हुई घटना की सविस्तार जानकारी दे दी।
“ये तो डूब मरने वाली बात है विराट - वह झुंझलाया सा बोला - दो पुलिस ऑफिसर्स के वहां होने के बावजूद इतना कुछ घटित हो गया? और तुम दोनों बस तमाशा देखते रहे। ऊपर से बिना कुछ बताये यहां से निकल गये थे, जानते हो सहरावत साहब कितना गुस्सा हो रहे थे।”
“सॉरी सर क्योंकि बताने का वक्त नहीं था। और आगे हालात कुछ ऐसे बने जिनपर हमारा जोर नहीं चल पाया। फिर सैंडी के लापता होने और रोहताश की मौत की घटना तो हमारे वहां पहुंचने से पहले ही घटित हो चुकी थी।”
“सफाई मत दो, ये बताओ कि अभी क्या चाहते हो?”
“कम से कम छह लोगों की एक टीम, साथ में एक फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट भी।”
“फॉरेंसिक वालों को क्यों नहीं बुला लेते?”
“उसकी कोई जरूरत नहीं दिखाई दे रही सर, क्योंकि सबकुछ एकदम क्लियर है।”
“ठीक है, और कुछ?”
“जी नहीं।”
राजावत ने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
तत्पश्चात सबसे पहले विराट ने गाड़ी में रखे चारों बैग्स की तलाशी लेनी शुरू की, जो अजीबो गरीब सामानों से भरे पड़े थे। जैसे कि फैंसी ड्रेस कंपीटीशन में पहना जाने वाला भालू का कॉस्ट्यूम, एक लोहे की चरखी जिसपर मजबूत किंतु पतली रस्सी लिपटी हुई थी। साथ ही दो ऐसे एंगल लगे हुए थे जिन्हें किसी भी मोटी चीज के साथ फिक्स कर के चरखी को इस्तेमाल में लाया जा सकता था, जैसे कि कोई पिलर, या लोहे का मोटा खंबा। एक अन्य बैग में कुछ तार, स्पीकर्स, एक छोटा सा म्युजिक सिस्टम, पौधों पर दवाई छिड़कने के काम आने वाला एक टीन का डिब्बा, जिसके तले में उस वक्त भी ढेर सारा खून मौजूद था।
सबसे ज्यादा जिस चीज ने विराट को हैरान किया वह था नैटवर्क जैमर। अब उसकी समझ में सहज ही ये बात आ गयी कि क्यों हर कोई उस इलाके में नैटवर्क गायब होने की बात करता था। जाहिर था वह सब जैमर का कमाल था।
उसी दौरान जोशी ने गोली खाकर पड़े चारों लोगों की तलाशी ली तो सबकी जेबों से एक एक पर्स बरामद हो गये। उसने बटुओं में मौजूद चीजों का मुआयना किया फिर विराट के पास पहुंच कर बोला, “ये सब तो मुंबई के रहने वाले दिखते हैं सर।”
“वॉट?”
“अगर आधार कार्ड और ड्राईविंग लाइसेंस फर्जी नहीं हैं तो पक्का उधर के ही रहने वाले हैं सर, और चारों के ही पते ईस्ट मुंबई के धारावी इलाके के हैं।”
“मतलब क्या हुआ इसका?”
“यही कि असल मास्टरमाइंड कोई और ही है, ये लोग तो बस भाड़े के टट्टू भर थे जो किसी तयशुदा फीस के बदले अपना काम कर रहे थे।”
“जो अब चारों पापियों के हाथों मारे गये, वरना असल अपराधी तक पहुंचना हमारे लिए बेहद आसान हो गया होता।”
“अभी अभी एक बड़ा भयानक ख्याल मन में आया है सर।”
“क्या?”
“कहीं ऐसा तो नहीं है कि राहुल, मधु, सैंडी और रोहताश का कत्ल इन चारों के ही मिलीभगत का नतीजा रहा हो। ऐसे में जब आपने मुझे भागते लोगों का पीछा करने को कहा, तो चारों ये सोचकर डर गये कि कहीं हम उन्हें पकड़ने में कामयाब न हो जायें। इसीलिए आपकी कार लेकर भाग निकले ताकि मुंह खोलने की नौबत आने से पहले ही चारों को खत्म कर सकें। वरना खुद सोचकर देखिये क्या इन्हें जिंदा हमारे हवाले नही कर सकते थे? बल्कि भेद खुलने का डर नहीं होता तो पक्का यही करते।”
“दम तो है यार तुम्हारी बात में, लेकिन साबित कर पाना आसान नहीं है।”
“कोई तो रास्ता होगा सर?”
विराट ने कुछ क्षण उसकी बात पर विचार किया फिर बोला, “एक काम करो।”
“हुक्म कीजिए।”
“अर्ली मॉर्निंग की फ्लाईट से मुंबई निकल जाओ और पता करो कि मरने वाले चारों लोगों की जात औकात क्या थी, और दिल्ली में क्यों थे, कब से थे? हो सकता है तब ये बात भी सामने आ जाये कि यहां इनका मुकाम कहां था और किसके लिए काम कर रहे थे?”
“ठीक है सर, अभी ये बताइये कि इन पापियों का क्या करना है?”
“फिलहाल तो इन्हें हैडक्वार्टर ले जाकर हवालात में डाल दो, कल की कल देखेंगे, बल्कि मुंबई से तुम्हारी रिपोर्ट आ जाने के बाद सोचेंगे कि इनका क्या करना है।”
“मैं अकेले लेकर जाऊं चारों को?”
“क्यों डर रहे हो?”
“इसलिए क्योंकि कातिल अगर पापी ही हैं, तो रास्ते में भाग निकलने की कोशिश बराबर करेंगे, वैसी स्थिति में मैं चार लोगों को एक साथ कैसे काबू में कर पाऊंगा?”
“ऐसी नौबत नहीं आयेगी जोशी साहब।”
“बड़े यकीन के साथ कह रहे हैं?”
“हां कह रहा हूं, भागने वाले जीव नहीं हैं ये चारां। जरा सोचकर देखो कि जो लोग चार लाशें गिराने के बाद उनके सिरहाने खड़े होकर सिगरेट फूंक सकते हैं, उन्हें पकड़े जाने का डर भला क्योंकर सताने लगा? फिर भागना ही होता तो क्या पहले ही वैसा नहीं कर चुके होते?”
“मैं समझ गया सर, तो अब निकलूं?”
“हां फौरन।”
तत्पश्चात सब इंस्पेक्टर सुलभ जोशी उन चारों को लेकर वहां से चला गया। अलबत्ता इतना सावधानी फिर भी बरती कि इनोवा की ड्राईविंग सीट पर खुद बैठने की बजाये जयदीप को बैठा दिया।
उनके पीठ पीछे विराट ने एक सिगरेट सुलगाया और हैडक्वार्टर से भेजी जाने वाली पुलिस टीम का इंतजार करने लगा। उस दौरान बरबस ही उसका मन ये सोचकर वितृष्णा से भर उठा कि गाड़ी में ढेर सारा खून फैला हुआ था।
आगे बरबस ही उसका ध्यान इस बात की तरफ चला गया कि सस्पेक्ट्स की लिस्ट अब बहुत छोटी हो चुकी थी। पापियों में से बस पांच ही जिंदा थे, जिनमें से एक अरसद पहले से ही हवालात में था। और उनके अलावा तो बस एक ही ऐसा शख्स बचता था जिसपर शक किया जा सकता था, वह था मनीराज गोपालन, जिसका बाप उसके गले में जबरन मधु को लटकाये दे रहा था।
मगर सवाल ये था कि बाकियों का कत्ल क्यों किया गया? क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि जान अगर सिर्फ मधु की गयी होती तो पुलिस का ध्यान हर हाल में मनीराज पर जाकर रहना था? या कोई और बात थी?
कौन था ‘गेम ऑफ डैथ’ का मास्टर माइंड?
अगले ही पल वह बुरी तरह से चौंक उठा। तमाम धुंध एक ही झटके में भक्क से उड़ गयी। अगले ही पल वह ठठाकर हंस पड़ा। उस वीराने में कोई उसे यूं ठहाके लगाते देख लेता तो पागल ही समझता।
मगर वह हंस रहा था, अपनी कामयाबी पर नहीं, बल्कि अब तक की नाकामयाबी पर, जैसे अपने ही मुंह से अपना मजाक उड़ा रहा हो। हंसता रहा, बहुत देर तक हंसता रहा, फिर खुद से बोला, ‘गधे हो तुम इंस्पेक्टर विराट सिंह राणा, एक नंबर के गधे हो। इतनी आसानी से तुम्हें उल्लू बनाया जाता रहा और तुम बनते चले गये। ये तो हद ही हो गयी।’
एक घंटे बाद दो गाड़ियों में भरकर दस पुलिसकर्मी वहां पहुंच गये। उनमें से सबसे बड़े रैंक वाला ऑफिसर एएसआई महेश गुर्जर था, उससे नीचे दो हवलदार थे, जबकि बाकी के सात सिपाही थे।
“आप कमाल के हैं सर।” महेश बोला।
“पता लग भी गया?”
“जहां जाते हैं लाशें बिछा देते हैं, ऐसे में बात छिपी कैसे रह सकती है?”
“ये तुम तारीफ कर रहे हो या तौहीन?”
“तारीफ कर रहा हूं सर, बल्कि देखा जाये तो पूरे महकमे में एक आप ही ऐसी तारीफ के काबिल हैं।”
“बकवास बंद करो और लाशों को गाड़ी में डालकर हवेली ले चलो।”
“फॉरेंसिक टीम नहीं आने वाली?”
“किसलिए भई? जो हुआ है वह सामने है, किसने किया ये भी मालूम है। ऐसे में फॉरेंसिक वालों का वक्त क्यों बर्बाद करें हम?”
“ठीक है ले चलते हैं।”
तत्पश्चात लाशों को उठाकर एक जीप में डाल दिया गया। कुछ पुलिसकर्मी विराट की फॉर्च्यूनर में सवार हो गये, बाकी के दूसरी जीप में।
तीनों गाड़ियां आगे पीछे चलती पंद्रह मिनट में हवेली के सामने जा खड़ी हुईं।
सिपाहियों को उसने सैंडी की लाश ढूंढने के काम में लगाया और खुद फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट तथा महेश के साथ भीतर चला गया।
तब तक हॉल से धुआं पूरी तरह छंट चुका था।
“कौशल।” विराट ने एक्सपर्ट की तरफ देखा।
“यस सर।”
“आधा पौन घंटा पहले यहां कुल जमा छह लोग मौजूद थे, जिनके प्रिंट एकदम ताजे होंगे। वह तुम्हें इधर-उधर पड़े कांच के गिलासों या शराब की बोतल पर मिल जायेंगे। उनके अलावा अगर किसी की उंगलियों के निशान यहां मौजूद हैं तो वह तुम्हें खोजकर देना है, समझ गये?”
“यस सर।” कहकर वह फौरन काम पर लग गया।
उधर डैडबॉडी की तलाश में हवेली के बाहर-बाहर भटकते सिपाही थक हारकर वापिस लौटे फिर कंपाउंड में तलाश शुरू कर दी। जो कि शुरू होने के साथ ही खत्म हो गयी, क्योंकि उसकी बुरी तरह नुची चुथी लाश जनरेटर से महज सौ कदमों की दूरी पर झाड़ियों के बीच पड़ी हुई थी।
उस बात की खबर विराट को दी गयी तो हॉल से निकलकर वह डैड बॉडी के मुआयने में जुट गया। जिसे देखकर पहली नजर में यही लगता था कि किसी जानवर ने उसे नोंच खाया था, मगर अब क्योंकि माजरा उसकी समझ में आ चुका था, इसलिए भ्रमित होने की बजाये उसने गौर से सैंडी के जिस्म पर बने घावों का मुआयना करना शुरू किया।
पेट से मांस का एक बड़ा टुकड़ा गायब था। दाईं आंख पूरी की पूरी निकाल ली गयी थी। राईट साईड के गाल पर भी एक जगह से मांस गायब था, मगर खास बात ये थी कि वह तमाम लोथड़े वहीं पांच से दस फीट के दायरे में पड़े हुए थे।
साफ जाहिर हो रहा था कि छत पर ले जाने के बाद ही उसके जिस्म का वो हाल किया गया था, जिसके बाद लाश और नोचा गया मांस वहीं से नीचे फेंक दिया गया। ये भी साफ पता लग रहा था कि मधु की हत्या के मुकाबले हत्यारों ने इस बार बेहद जल्दीबाजी दिखाई थी, वरना नोचा हुआ मांस वहीं न फेंक गये होते।
जिसकी एक वजह ये भी रही हो सकती है कि उन लोगों को पुलिस के वहां पहुंचने की खबर लग गयी थी। जिसके कारण वह दबाव में आ गये और सबकुछ वहीं फेंककर फरार हो गये।
पुलिस की कार्रवाई सुबह चार बजे तक चलती रही मगर फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट के हाथ ऐसा कुछ भी नहीं लगा जिससे वहां किसी सातवें शख्स की मौजूदगी का दावा किया जा सके। थक हारकर आखिरकार उसने हाथ खड़े कर दिये।
तत्पश्चात विराट ने गेट को ताला लगाया और सबको वहां से चलने को बोल दिया।
देखा जाये तो मौजूदा केस में कदम कदम पर कानून की धज्जियां उड़ाई गयी थीं, जिनमें से कुछ काम वक्त की मांग के अनुसार हुए तो कुछ ऐसे रहे जिनमें आड़े आते कानून को जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया गया।
जैसे कि अरसद को उसके घर से उठाना।
जैसे कि मुखिया प्रवीन सिंह और चितरंजन को स्थानीय पुलिस को खबर किये बिना हिरासत में ले लेना।
जैसे कि तीनों लड़कियों को ले जाने के लिए महिला पुलिस नहीं बुलाई गयी, या आगे उन्हें महिला थाने रवाना नहीं किया गया।
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