शुक्रवार 19 फरवरी

विधायक चरण सिंह के लिए आज का दिन कयामत का दिन था। मुकुल ने टीवी पर उसके काले कारनामों का चट्टा बट्टा तो खोला ही, साथ में पुलिस कमिश्नर फरीदाबाद के पास कंप्लेन दर्ज कराते हुए इस बात का बड़े ही विस्तार से उल्लेख किया कि किस तरह चरण सिंह ने उसे बात करने के लिए अपने घर बुलाया, और उसके साथ मारपीट करने के बाद बेसमेंट में ले जाकर बंद कर दिया गया। उसने सीधा विधायक का नाम लिया जबकि मारपीट ओमकार सिंह ने की थी। इसलिए लिया क्योंकि वह नेता को बख्शने के मूड में हरगिज भी नहीं था, ऐसे में उससे जितना जहर उगलते बना, उसने उगला।

उसी तरह अविनाश निगम ने भी नेता को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने एक में आठ लगाकर अपनी बात कही, ये झूठ तक बोल दिया कि उसे अगवा करने के बाद पहले चरण सिंह के सामने पेश किया गया था, फिर उसी के आदेश पर पाली गांव पहुंचा दिया गया। नतीजा ये हुआ कि हाईकमान ने विधायक चरण सिंह को पार्टी से निष्काषित कर दिया। उसके बाद पार्टी प्रवक्ता ने मीडिया को बयान दिया कि ऐसे किसी एमएलए के लिए उनकी पार्टी में कोई जगह नहीं है, ना ही उनकी पार्टी चरण सिंह को बचाने के लिए आगे आयेगी।

मामले की कमान सीधा एसटीएफ को सौंपी गयी, जिसके बाद दोपहर होते होते जल्ली और निन्नी के साथ-साथ नेता के अधिकांश आदमियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि चार लोग पुलिस मुठभेड़ में मारे गये और दो घायल हो गये। कुछ जो भागने में सफल हो गये वह बच निकले। पुलिस ने मुकुल के बताये नेता के कई ठिकानों पर एक ही वक्त में दबिश दी, जहां से मादक पदार्थों के साथ साथ भारी संख्या में हथियार और गोला बारूद बरामद कर लिये गये।

ये अलग बात थी कि चरण सिंह या ओमकार ना तो फरीदाबाद पुलिस के हत्थे चढ़े ना ही एसटीएफ के। मुकल और निगम के आजाद हो जाने की खबर लगते ही दोनों को अपनी गिरफ्तारी साफ दिखाई देने लगी थी इसलिए अंडर ग्राउंड हो गये।

कब तक बचे रह पाते उसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल था।

देखा जाये तो डॉक्टर भाटिया ही इकलौता वह शख्स था जो विधायक चरण सिंह के पतन का निमित्त बना था। नेता के आदमियों ने उससे उगाही करने की कोशिश नहीं की होती, तो कोमल के कत्ल के बाद डॉक्टर का ध्यान उनकी तरफ हरगिज भी नहीं गया होता। इसी तरह बाद में अगर रणवीर उसका कत्ल करने नहीं पहुंच जाता तो अलीशा को मुकुल या निगम का ख्याल तक नहीं आना था, क्योंकि उन दोनों से उसका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था।

कबीरदास ने सच ही कहा है, ‘दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय, मरी खाल की सांस से, लोह भसम हो जाये’ काश नेता ने वक्त रहते हवा का रुख पहचान लिया होता।

अलीशा अटवाल सुबह से ही भागी भागी फिर रही थी। 14 तारीख की पार्टी में शामिल रहे लोगों से उसने एक एक कर के फिर से मुलाकात की, उसके बाद साहिल कुमार से भी जाकर मिल आई। तत्पश्चात उसने एक बार फिर डॉक्टर के घर का फेरा लगाया और जमकर वहां की जांच पड़ताल की।

तब तक शाम के चार बज चुके थे।

उसने डॉक्टर को कॉल लगाया।

“हैलो।”

“कैसे हैं डॉक्टर साहब?”

“बढ़िया हूं।”

“खबर लगी?”

“हां लगी, तुमने तो कमाल ही कर दिया।”

“आपको क्या पता किसने किया?”

“अंदाजा है कि वह कारनामा तुम्हारा ही होगा।”

“ज्यादा मेहनत शुक्ला जी ने की थी।”

“तुम्हारी वजह से।”

“चलिए वही सही, अभी कहां हैं आप?”

“कालकाजी में एक दोस्त के घर पर।”

“वापिस आ जाईये, नेता इस वक्त अपनी फिक्र में दुबला हो रहा होगा इसलिए आपके खिलाफ कोई कदम तो क्या उठा पायेगा। बल्कि जिस बिल में छिपा बैठा है उससे बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं कर सकता, करेगा तो जेल में होगा।”

“आज रात यहां पार्टी है, कल आऊंगा।”

“नहीं आना तो आपको आज ही पड़ेगा, वह भी अभी।”

“कोई खास बात?”

“है, तभी तो कह रही हूं।”

“ठीक है, एक डेढ़ घंटे में पहुंचता हूं।”

अलीशा ने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी, फिर उठकर डॉक्टर के घर से जाने ही लगी थी कि एसआई जयंत शुक्ला वहां पहुंच गया। जिसके बाद दोनों हॉल में आमने सामने बैठ गये।

“आजकल यहीं डेरा जमा लिया दिखता है?” वह हंसता हुआ बोला।

“काम से आई थी।”

“यहां अब क्या काम बाकी रह गया?”

“अब नहीं रह गया।”

“मतलब आने से पहले तक था?”

“हां।”

“कुछ खोज निकाला है क्या?”

“है तो ऐसा ही इंस्पेक्टर साहब।”

“क्या?”

“पहले ये बताईये कि आप यहां क्यों आये हैं?”

“डॉक्टर से मिलने आया था, ये बताने के लिए कि रणवीर अब एसटीएफ के कब्जे में है, वे लोग उससे पूछताछ कर रहे हैं, और उसी सिलसिले में डॉक्टर से भी सवाल जवाब करना चाहते हैं।”

“डॉक्टर अभी कालकाजी में हैं, लेकिन दो घंटे बाद यहां पहुंच जायेंगे।”

“फोन क्यों नहीं उठा रहे?”

“होगी कोई वजह।”

“ठीक है अब बताईये कि क्या खोज निकाला है आपने?”

“मुझे लगता है इंस्पेक्टर साहब कि मैं कोमल और मीनाक्षी के कातिल को पहचान गयी हूं।”

“अच्छा, कौन है?”

“रंगे हाथों पकड़ियेगा, फिर खुद जान जायेंगे।”

“कैसे?”

“उसकी गिरफ्तारी के लिए एक जाल तैयार करने जा रही हूं, जिसमें वक्त लगेगा। 99 परसेंट उम्मीद है कि कामयाब हो जाऊंगी, मगर एक परसेंट को हो सकता है कि वह माजरा भांप जाये और मेरा सोचा पूरा न हो। उन हालात में उसका नाम मैं आपको बता दूंगी, फिर आप देखियेगा कि कैसे उसकी जुबान खुलवाई जा सकती है - कहकर उसने पूछा - ये नहीं पता लगा पाये कि डॉक्टर के बेडरूम से बरामद फिंगर प्रिंट्स किसके हैं?”

“अभी नहीं लेकिन कोशिश जारी है, हां इतना चेक करवा चुका हूं कि वह किसी नोन क्रिमिनल के नहीं हैं। आगे मेरा इरादा आधार डेटा खंगालने का है, जिससे बात बन जाने की पूरी पूरी उम्मीद है। मगर जब आप जानती हैं कि वह कौन है तो साफ साफ बता क्यों नहीं देतीं, फिर हम दोनों निशानों का मिलान कर के उसका जुर्म साबित कर देंगे। उसके लिए आपको कोई जाल बुनने की भी क्या जरूरत है?”

“जरूरत है, क्योंकि उसके फिंगर प्रिंट्स अनऑफिशियल ढंग से उठाये गये थे। और डॉक्टर की तरफ से उस बात की कोई कंप्लेन भी दर्ज नहीं कराई गयी थी, यानि कोर्ट में कोई अदना सा वकील भी आपके केस की धज्जियां उड़ाकर रख देगा। इसलिए जरूरी है कि वह मेरे जाल में फंस जाये। नहीं फंसा तो मजबूरी होगी, फिर जो करना होगा वह आप ही कर पायेंगे।”

“और अपने ट्रैप को एग्जीक्यूट कब करने वाली हैं आप?”

“आज रात।”

“कातिल का नाम बताने में क्या हर्ज है?”

“सिर्फ इतना कि मैं इंस्पेक्टर साहब को चौंकाना चाहती हूं।”

“वो तो मैं नाम सुनकर भी चौंक ही जाऊंगा।”

“बड़े बेसब्रे हैं आप।”

“हूं तो मगर आप पर पेश कहां चलने वाली है, इसलिए इंतजार कर लूंगा। और हां नेता के विनाश की आपको बहुत बहुत बधाई। कौन सोच सकता था कि एक प्राईवेट डिटेक्टिव इतना खतरनाक खेल खेल जायेगी। कमाल ही कर दिया मैडम।”

“हम दोनों ने, बल्कि तीनों ने मिलकर किया था इंस्पेक्टर साहब।”

“मैंने बस आपका साथ दिया, वह भी बार बार उकसाने पर दिया और हर वक्त यही सोचता रहा कि आपकी बातों में आकर बहुत बड़ी गलती कर दी थी। सच यही है मैडम कि मैं यूं खुल्लम खुल्ला खेलने वालों में से नहीं हूं। जो करता हूं बहुत सोच समझकर करता हूं, फूंक फूंककर कदम रखता हूं, क्योंकि मुझे अपनी नौकरी बहुत प्यारी है। मतलब कल रात आपके बहकावे में आकर जो कुछ भी कर बैठा उसे करने के बारे में तो मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था।”

“इट्स ओके, अंत भला तो सब भला।”

“हां अंत भला तो सब भला, अब चलता हूं - कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ - आपकी कॉल का इंतजार रहेगा मुझे।”

“कोई जरूरत नहीं है।”

“मतलब?”

“रात नौ बजे यहां पहुंच जाइयेगा।”

जवाब में उसने सहमति में सिर हिलाया फिर गेट की तरफ बढ़ गया। उस बातचीत के दौरान आधा घंटा गुजर गया था, इसलिए अलीशा ने वहीं रुककर डॉक्टर के लौटने तक इंतजार करने का फैसला कर लिया।

रात के नौ बजे थे, अमन सिंह अपने बेटे स्वराज के साथ अभी अभी खाना खाकर हटा था, जो वह शॉप से आते वक्त रास्ते में एक रेस्टोरेंट से पैक करा लाया था। दोनों ने मुंह से एक शब्द कहे बिना डिनर खत्म किया, फिर स्वराज बर्तनों को सिंक में रखने चला गया, जबकि अमन सिंह ड्राईंगरूम में बैठकर सिगरेट फूंकने लगा।

तभी कॉलबेल बजी।

“कौन?” उसने पूछा।

“मैं हूं, दरवाजा खोलो।”

डॉक्टर की आवाज पहचानकर उसने गेट खोल दिया।

“सब खैरियत?”

“नहीं खैरियत नहीं है।”

“अरे क्या हो गया?”

“दरवाजे पर खड़े खड़े ही पूछोगे या अंदर आने दोगे?”

“सॉरी आ जा।”

तत्पश्चात वह भीतर पहुंचकर सोफे पर बैठता हुआ स्वराज की तरफ देखकर बोला, “तुम जरा अपने कमरे में जाओ, मुझे पापा से जरूरी बात करनी है।”

सुनकर वह बिना एक शब्द कहे वहां से चला गया।

“अब बताओ क्या हो गया?”

“मैं बहुत मुसीबत में हूं यार, सोचा चलकर तुमसे सलाह ले ली जाये।”

“कैसी मुसीबत?”

“राशिद, वह मुझे जान से मार देना चाहता है।”

“मजाक कर रहे हो?”

“नहीं।”

“अरे राशिद क्यों मारना चाहेगा तुम्हें?”

“नूरी की वजह से।”

“नूरी, तुम्हारा मतलब नूरजहां, राशिद की बीवी?”

“उसी की बात कर रहा हूं।”

“उससे तुम्हारा क्या लेना देना, जो राशिद तुम्हारी जान का दुश्मन बन गया?”

“वह मुझे पसंद करती है, मैं भी करता हूं - डॉक्टर हिचकिचाता हुआ बोला - मतलब हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं। आज दिन में मैं उसके घर गया था, तभी ऊपर से राशिद आ गया। उसने हम दोनों को सोफे पर सटकर बैठे देख लिया, क्योंकि नूरी दरवाजा बंद करना भूल गयी थी। फिर उसने मुझे दो तीन चांटे जमाये और किचन में चाकू उठाने चला गया, उसी वक्त मैं नूरी के साथ दरवाजा बंद कर के वहां से भाग निकला।”

“ये कोई मजाक है डॉक्टर?”

“नहीं, मैं जानता हूं कि बात सुनने में बहुत अजीब लगती है, मगर सच यही है कि मैं नूरी को बहुत चाहता हूं, इतना कि उसके बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता। अब मुसीबत ये है कि राशिद हर तरफ मुझे खोजता फिर रहा है, और उसका गुस्सा तो तुम जानते ही हो, हम दोनों उसके हत्थे चढ़ गये तो जिंदा नहीं छोड़ेगा।”

“काम तो तुमने गोली मार देने के काबिल ही किया है डॉक्टर।”

“जानता हूं, लेकिन दिल के हाथों मजबूर हूं। नूरी के बिना नहीं रह सकता मैं।”

“तुम पगला तो नहीं गये हो?”

“इसलिए हम दोनों ने कल सुबह आर्य समाज मंदिर में शादी करने का फैसला कर लिया है - उसने जैसे अमन सिंह की बात सुनी ही नहीं - वहां के पंडित से मेरी बात भी हो चुकी है, यानि उस फ्रंट पर कोई प्रॉब्लम नहीं है।”

“तुम वाकई में पागल हो गये हो।”

“चाहे जो कहो, मगर सच यही है।”

“इतने आनन फानन में शादी कैसे हो जायेगी?”

“हो जायेगी।”

“अरे वो पहले से शादीशुदा है।”

“मैं वह सब नहीं जानता, शादी करनी है तो करनी है, और उस काम को मैं कल सुबह हर हाल में पूरा कर के रहूंगा। कोमल के बाद बस नूरी ही वह औरत है अमन सिंह जिसे मैंने इतना चाहा है। संबंध मेरे कई औरतों के साथ रहे हैं, लेकिन वह सब टाईम पास थीं, जबकि नूरी से मैं सच्ची मोहब्बत करता हूं।”

“धिक्कार है डॉक्टर तुम्हें।” अमन सिंह गुर्राता हुआ बोला।

“दिल का मामला है भई, जहां दिमाग काम करना बंद कर देता है।”

“तो भी धिक्कार है, कम से कम दोस्त की बीवी को तो बख्श दिया होता नीच इंसान। मुझे इस बात की भी हैरानी है कि नूरजहां तुमसे शादी करने को तैयार हो गयी। फिर इसकी भी क्या गारंटी कि कल को उसके साथ तुम दगा नहीं कर बैठोगे?”

“गारंटी है मेरा प्यार जो मैंने सिर्फ नूरी से किया है। बाकी आई गयी कि कोई परवाह न उसे है ना मुझे, क्योंकि इतना तो नूरी भी अच्छे से समझती है कि उन सबकी अहमियत मेरी जिंदगी में सिर्फ वक्त गुजारी जैसी थी। आईं और चली गयीं, कईयों के तो नाम तक याद नहीं होंगे मुझे। समझ लो नूरी से पहले मेरे जीवन में जितनी भी औरतें आईं उन सबका दर्जा टीशू पेपर जैसा था, जिसे इस्तेमाल करने के बाद सहेज कर कोई नहीं रखता।”

“एक काम करो डॉक्टर।”

“क्या?”

“अभी के अभी दफा हो जाओ मेरे घर से।”

“मैं तुमसे मदद मांगने आया हूं।”

“अच्छा, क्या मदद करूं, जाकर राशिद से ये कह दूं कि अपनी बीवी को भूल जा भाई क्योंकि उसे तेरा बीवीकतरा दोस्त उड़ा ले गया?”

“हां यही चाहता हूं, जाकर उसे समझाओ कि जो हो गया उसे भूल जाये। नूरी की सच्चाई जानने के बाद अब उसे अपने साथ तो रखने से रहा राशिद, फिर क्या प्रॉब्लम है अगर हम दोनों शादी कर लेते हैं। प्लीज अमन सिंह किसी तरह समझाओ जाकर उसे।”

“मैं वैसा कुछ नहीं करने वाला, निकल जाओ यहां से।”

“ठीक है जा रहा हूं, नूरी पहले से मेरे घर पर है। आगे राशिद ने अगर वहां पहुंचकर हम दोनों का कत्ल कर दिया तो हमारा खून तुम्हारे सिर होगा।”

“निकल जा यहां से डॉक्टर - अमन सिंह फुंफकारता हुआ बोला - वरना मैं अपना आपा खो बैठूंगा।”

“ठीक है, मैं समझ गया कि तुम्हें हमारी दोस्ती का कोई लिहाज नहीं है।”

“नहीं है, क्योंकि जिस तरह तू मेरा दोस्त है उसी तरह राशिद भी है। और एक दोस्त के लिए दूसरे दोस्त के पीठ में खंजर नहीं घोंप सकता मैं। लेकिन तुझे तो भला ऐसे जज्बातों की क्या खबर होगी।”

सुनकर डॉक्टर बड़े ही भारी मन से उठा और उसके फ्लैट से बाहर निकल गया।

रात के साढ़े ग्यारह बजे थे।

सर्दी का मौसम होने के कारण हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। ऐसे में औसत गति से चल रही एक बाईक के इंजन की आवाज भी बहुत जोर से वातावरण में गूंजती प्रतीत हो रही थी।

देखते ही देखते वह अशोका इंक्लेव के इलाके में दाखिल हुई, और डॉक्टर के घर से थोड़ा पहले रुक गयी।

बाईकर ने गाड़ी को गली के किनारे लगाकर खड़ा किया और हैल्मेट को मोटरसाईकिल में खास उसी के लिए लगाये गये लॉक में फंसा दिया। तत्पश्चात अपना मंकी कैप और उसके भीतर मौजूद मास्क व्यवस्थित किया और जेब से एक प्लेन ग्लास किंतु मोटे फ्रेम वाला चश्मा निकालकर आंखों पर चढ़ा लिया।

डॉक्टर के घर के नजदीक पहुंचकर उसने पाया कि बाहर कोई गार्ड मौजूद नहीं था, तो आगे बढ़कर दरवाजे को खोलने की कोशिश की, जो नहीं खुला क्योंकि अंदर से कुंडा लगा हुआ था, तब वह उचककर बाउंड्री पर चढ़ा और दूसरी तरफ लटककर बेआवाज नीचे कूद गया।

फिर थोड़ी देर वहीं खड़े होकर चारों तरफ का जायजा लिया, और सावधानी से हॉल की तरफ बढ़ने लगा। दरवाजे के दोनों पल्ले एक दूसरे से सटे हुए थे मगर अंदर से कुंडी नहीं लगी थी। जो अगर लगी होती तो मजबूरन ही सही उसे किचन की खिड़की के रास्ते अंदर दाखिल होना पड़ता, जिसकी एक चिटखनी के पेंच - ऐसी ही किसी जरूरत के मद्देनजर - वह कोमल की हत्या के अगले रोज ही ढीले कर आया था। इतने ढीले की जरा सा धक्का देते ही उसने उखड़ जाना था। उसे पूरी उम्मीद थी कि घर में मातम फैला होने के कारण डॉक्टर का ध्यान उस तरफ फौरन तो नहीं ही जाने वाला था।

मतलब हॉल का दरवाजा बंद भी होता तो घर में एंट्री उसके लिए कोई समस्या नहीं थी।

उसने धीरे से दरवाजे के एक पल्ले को अंदर की तरफ धकेला और भीतर सरक गया। फिर अंडों पर कदम रखने वाले अंदाज में आगे बढ़ा और इधर उधर निगाहें दौड़ाने लगा। हॉल में बहुत मद्धिम रोशनी थी, और वह पूरा का पूरा खाली पड़ा था।

दबे पांव चलता हुआ साया सीढ़ियों की तरफ बढ़ा और वहां पहुंचकर गर्दन उठाये ऊपर की तरफ देखने लगा। मगर दिखाई कुछ नहीं दिया क्योंकि वहां अंधेरा फैला हुआ था।

अगले ही पल वह सावधानी से सीढ़ियां चढ़ता चला गया।

पहली मंजिल पर पहुंचकर उसने मोबाईल की स्क्रीन लाईट जलाई और उसके अपर्याप्त प्रकाश में इधर उधर देखा, फिर बेडरूम के दरवाजे पर जाकर खड़ा हो गया।

हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, और कमरे के भीतर भी किसी प्रकार की हलचल का एहसास नहीं हो रहा था। जिससे उसने यही अंदाजा लगाया कि डॉक्टर और नूरजहां गहरी नींद सो रहे थे।

बरबस ही उसका चेहरा सख्त हो उठा।

‘नूरी के अलावा जितनी औरतें मेरी जिंदगी में आईं, उन सबकी अहमित टीशू पेपर जैसी थी। जिसे इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है। सहेजकर कोई नहीं रखता’ डॉक्टर की कही बातें उसके कानों में गूंजने लगीं।

उसने हौले से दरवाजे का हैंडल ट्राई किया तो वह खुलता चला गया। बल्कि उसे गारंटी थी कि खुल ही जायेगा।

वजह?

किचन की खिड़की की तरह वह बेडरूम में भी अपनी करामात दिखा चुका था, चिटखनी का चौखट में फिट किया गया हिस्सा गायब कर के। साथ ही वहां की-होल में फंसी चाबी भी उठा ले गया था। यह सुनिश्चित करने के बाद कि उस लॉक में ऐसा कोई खटका नहीं लगा था, जिसके जरिये भीतर से दरवाजे को बंद किया जा सके।

वह बिना कोई आहट किये अंदर दाखिल हो गया।

कमरे में घुप्प अंधेरा फैला था, जिसे मोबाईल स्क्रीन की लाईट ने बहुत हद तक गायब कर दिया। आगे वह दबे पांव बेड के करीब पहुंचा, फिर पलक झपकते ही उसके दायें हाथ में एक लंबे फल वाला छुरा दिखाई देने लगा।

स्क्रीन लाईट में उसने बेड पर दो लोगों को सोता पाया। कंबल से बाहर झांक रहा एक चेहरा डॉक्टर का था, जबकि दूसरी कोई औरत थी जो सूट सलवार पहने डॉक्टर से थोड़ी दूरी पर, तकिये में मुंह गड़ाये लेटी हुई थी। साये के चेहरे पर पल भर के लिए बड़े ही भयानक भाव उभरे, उसका छुरे वाला हाथ वार करने को ऊपर उठा और....

पूरा कमरा रोशनी से नहा उठा। बेड पर लेटी औरत ने, जो कि अलीशा थी, बिजली जैसी फुर्ती दिखाते हुए डॉक्टर के ऊपर से जोर की लात साये की छाती पर चलाई, इतनी जोर से कि वह पीठ के बल धड़ाम से फर्श पर गिरा और छुरा उसके हाथों से निकलकर बेड के थोड़ा नीचे सरक गया।

वह जितनी तेजी से गिरा था उतनी ही तेजी से उठा और दरवाजे की तरफ भागा, मगर थमककर खड़ा हो गया, क्योंकि वहां सब इंस्पेक्टर शुक्ला खड़ा था, जिसने उसपर गन तान रखी थी।

“तुम्हारा खेल अब खत्म हो गया अमन सिंह - वह कड़ककर बोला - चुपचाप अपने हाथ ऊपर उठा दो।”

अलीशा ने जोर का ठहाका लगाया।

“क्या हुआ?”

“ये अमन सिंह नहीं है इंस्पेक्टर साहब।”

“फिर कौन है?”

“स्वराज - अलीशा ने धमाका सा किया - अमन सिंह का बेटा।”

सुनकर लड़का रिवाल्वर की परवाह किये बिना तेजी से शुक्ला की तरफ झपटा, तभी उसने एक कस की लात स्वराज के पेट में जमा दी, नतीजा ये हुआ कि जोर से चिल्लाता हुआ वह कई फीट पीछे फर्श पर जा गिरा।

शुक्ला ने गन को होलस्टर के हवाले किया और आगे बढ़कर जबरन उसका मंकी कैप, फिर मास्क नोंच फेंका। वह स्वराज सिंह ही था, ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने वाला स्टूडेंट, जिसके कातिल होने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था।

“इसने मारा था कोमल और मीनाक्षी को?” डॉक्टर ने हकबकाये लहजे में पूछा।

“जी हां, लेकिन असल में आपने मारा था। मीनाक्षी के साथ आपका अफेयर न चल निकला होता तो स्कूल जाने वाले एक लड़के को दो लोगों के खून से अपने हाथ नहीं रंगने पड़े होते।”

“जैसे मैंने कहा था कि ये मेरी बीवी और अपनी मां का कत्ल कर दे?”

“बस कहा ही नहीं था, वरना वजह तो बराबर पैदा की थी। भला कौन ऐसी औलाद होगी जो ऐसी बातों को सहज ही पचा ले जाये? फिर आप दोनों ने तो हद ही कर दी थी, भरी पार्टी में एक कमरे में जा घुसे। अमन सिंह भले ही नशे में टुन्न था, लेकिन कम से कम आपको स्वराज का तो लिहाज करना चाहिये था।”

“कोमल से क्या दुश्मनी थी इसकी?”

“कोई दुश्मनी नहीं थी, इसने तो आपसे बदला लेने की खातिर, बल्कि आपको तड़पाने के लिए उस बेचारी की जान ले ली थी, और मां को मारकर उसे उसके अनैतिक रिश्तों की सजा दी। इसलिए मेरी निगाहों में आप इससे कहीं ज्यादा कसूरवार हैं डॉक्टर साहब, भले ही कानून आपको कोई सजा नहीं दे सकता।”

सुनकर वह दोनों हाथों से अपना सिर थामकर बैठ गया।

“अब पछताने से क्या होगा डॉक्टर साहब?”

“मुझे जरा भी अंदेशा होता कि कातिल स्वराज निकलेगा तो मैंने हरगिज भी तुम्हें कोमल के हत्यारे का पता लगाने को नहीं कहा होता। हे भगवान! ये कैसे कैसे दिन दिखा रहा है तू।”

“भगवान नहीं दिखा रहे डॉक्टर साहब, आपके कर्म आड़े आ रहे हैं।”

“इस बच्चे ने दो लोगों की जान ले ली?” वह यूं बोला जैसे यकीन ही नहीं कर पा रहा हो।

“बेशक ले ली, और अभी आपके साथ-साथ नूरजहां को खत्म करने पहुंचा था यहां, इसलिए पहुंचा क्योंकि इसके फ्लैट में बैठकर आपने बार बार ये बात रिपीट की थी, कि पहले जिन महिलाओं के साथ आपके संबंध रहे थे, वो सब महज टाईम पास थीं, और सच्ची मोहब्बत आपको बस नूरजहां से थी, ऐसे में ये तड़प न उठता तो और क्या करता?”

“यानि तुम्हें पहले से पता था कि कातिल यही है, तभी तुमने मुझसे कहा था कि मैं वहां जो कुछ भी बोलूं इतनी ऊंची आवाज में बोलूं कि अमन सिंह के साथ-साथ स्वराज भी उसे सुन सके?”

“जाहिर है, क्योंकि अमन सिंह के हत्यारा होने पर यकीन कभी नहीं आया मुझे, फिर बाकी की कसर इंस्पेक्टर साहब ने ये कहकर पूरी कर दी, कि यहां से बरामद हुए फिंगर प्रिंट्स उसकी उंगलियों के निशानों के साथ मैच नहीं करते।”

“तुमने बहुत गलत किया अलीशा।”

“मैंने गलत किया, क्या कर दिया मैंने?”

“तुम्हें बताना चाहिए था कि कातिल स्वराज है।”

“वह तो आपको तभी समझ जाना चाहिए था डॉक्टर साहब, जब मैंने ये कहा कि अमन सिंह से होती तमाम बातचीत का स्वराज के कानों तक पहुंचना बहुत जरूरी था।”

“अफसोस कि मैं तुम्हारे कहे की गहराई नहीं भांप पाया।”

“भांप भी जाते तो उससे क्या हो जाता?”

“मैं तुम्हें चुप रहने को कह देता, केस वापिस ले लेता?”

“यानि कोमल के हत्यारे को सजा नहीं होने देते?”

“अरे बच्चा ही तो है ये, पूरी जिंदगी बर्बाद हो जायेगी इसकी। काश तुमने मुझे बता दिया होता। हे भगवान! हे भगवान! ये कैसा अनर्थ हो गया।”

“आप सच में भूल जाते कि स्वराज कोमल का कातिल है?” अलीशा ने हैरानी से पूछा।

“बिल्कुल भूल जाता। इसकी गिरफ्तारी से वह जिंदा थोड़े ही हो जायेगी, हां इसी बहाने एक नेक काम जरूर हो जाता मेरे हाथों। तब इसकी जिंदगी भी बर्बाद होने से बच जाती।”

“यकीन नहीं आता डॉक्टर कि आप इसे माफ करने की बात कर रहे हैं।”

“काश ये पॉसिबल होता।” वह गहरी आह भरकर बोला।

“कोई लंबी सजा तो इसे वैसे भी नहीं होने वाली डॉक्टर क्योंकि नाबालिग है। बाल सुधार गृह जायेगा और कुछ सालों में बाहर होगा, फिर क्यों इतनी चिंता कर रहे हैं?” तब शुक्ला पहली बार उनके बीच बोला।

“इसलिए कर रहा हूं क्योंकि अभी तक सुनने में यही आया है कि बाल सुधार गृह में सुधरता कोई नहीं है, हां पहले से ज्यादा बिगड़ जरूर जाता है। मीनाक्षी की आत्मा ये देखकर कितनी दुःखी होगी कि हमारे संबंधों की सजा उसके बेटे को भुगतनी पड़ी। अलीशा ने सच ही कहा कि कोमल को इसने नहीं, बल्कि मैंने और मीनाक्षी ने मिलकर खत्म किया था। उसी तरह मीनाक्षी की हत्या के लिए जमीन भी हमने ही तैयार की - कहकर वह गिड़गिड़ाने वाले अंदाज में शुक्ला से बोला - कुछ सोचो इंस्पेक्टर, भगवान के लिए कुछ सोचो, इंसानियत के वास्ते कुछ सोचो, बदले में जो चाहे मुझसे मांग लो।”

“आप चाहते हैं कि मैं इसे आजाद कर दूं?” वह बौखलाया सा बोला।

“हां मैं यही चाहता हूं।”

“ये दोहरे मर्डर का आरोपी है डॉक्टर साहब।”

“तो क्या हो गया? जरा विधायक चरण सिंह के जुर्मों को ध्यान में रखकर सोचो, उसके आगे इस लड़के का किया धरा भला किस गिनती में आता है। इसलिए अगर तुम कोशिश करो, सहयोग करो, तो स्वराज अभी भी जेल जाने से बच सकता है। क्योंकि सच यही है कि अभी तक इस बात की खबर हम तीनों के अलावा किसी को नहीं है।”

“मैं पुलिस ऑफिसर हूं डॉक्टर साहब, कैसे इतनी बड़ी बात को नजरअंदाज कर सकता हूं?” इस बार शुक्ला बोला तो उसके स्वर में विरोध का पुट नहीं था।

“कर सकते हो, फिर पुलिस क्या पहली बार ऐसा करेगी? मैं ये नहीं कहता कि तुम भी उन्हीं पुलिसवालों की तरह हो, लेकिन मेरी निगाहों से देखोगे तो इसमें गलत कुछ भी नहीं दिखाई देगा। उल्टा एक ऐसा काम होगा, जिससे तुम्हारे मन को शांति मिलेगी। सुकून मिलेगा ये सोचकर कि तुम्हें एक नेक कार्य करने का मौका मिला और तुमने कर दिखाया।”

“ये इतना आसान नहीं है डॉक्टर साहब।”

“लेकिन तुम कर सकते हो।”

सुनकर शुक्ला ने अलीशा की तरफ देखा।

“मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, डॉक्टर साहब मेरे क्लाईंट हैं इसलिए मैं इनसे बाहर नहीं जा सकती। मतलब फैसला आपको लेना है, क्या इतना वाकई में इतना बड़ी उलट फेर करने को तैयार हैं आप?”

“बात अभी यहीं तक सीमित है अलीशा, मतलब हमारे अलावा कोई नहीं जानता कि कोमल और मीनाक्षी का हत्यारा हमारे काबू में है। ऐसे में वह सबकुछ किया जा सकता है जो डॉक्टर साहब चाहते हैं। मगर उन हालात में कातिल रणवीर को ठहराना मेरी मजबूरी बन जायेगी। वैसा नहीं करूंगा तो अदालत में अनट्रेस्ड रिपोर्ट दाखिल करनी पड़ेगी, जो मेरे करियर के लिहाज से तो ठीक नहीं ही होगा।”

“जानती हूं नहीं होगा, लेकिन मुझे डॉक्टर साहब की इस बात से पूरा पूरा इत्तेफाक है कि चरण सिंह के जुर्मों के आगे इस लड़के का किया धरा किस गिनती में नहीं आता। इसलिए आप चाहें तो इसे माफ करने के बारे में सोच सकते हैं, लेकिन उसके लिए मैं न तो आप पर कोई दबाव बना रही हूं, ना ही रिक्वेस्ट कर रही हूं। मतलब फैसला अपनी सूझबूझ के आधार पर लीजिए, ना कि किसी के कहने पर।”

“तू क्या चाहता है भाई?” उसने स्वराज से सवाल किया।

“डॉक्टर का गला घांटना चाहता हूं, इसका खून पीना चाहता हूं, ना कि मैं आप लोगों के आगे गिड़गिड़ाने वाला हूं, इसलिए जो चाहे कीजिए क्योंकि जिंदा तो ये नहीं बचेगा। उस काम को भले ही मैं जेल से छूटने के बाद पूरा करूं मगर कर के रहूंगा, ये मेरा वादा है।”

“सुन लिया डॉक्टर साहब?”

“हां सुन लिया, मगर मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कल को ये मेरे साथ जो करना चाहे कर सकता है, उस स्थिति में कम से कम मुझे इस बात का मलाल नहीं रहेगा कि मेरे कारण एक मासूम जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया।”

“ये अचानक साधु सन्यासियों वाली भाषा क्यों बोलने लगे आप?”

“क्योंकि मुझे अपनी गलती का पूरा पूरा एहसास है।”

“चलिए यही सही, अब पांच मिनट आराम से यहीं बैठे रहिये। मैं इससे बात कर के बताता हूं कि मेरा अगला कदम क्या होगा।” कहकर उसने अलीशा को अपने साथ चलने का इशारा किया और स्वराज का हाथ पकड़कर कमरे से बाहर निकाल ले गया।

तत्पश्चात तीनों नीचे हॉल में जाकर बैठ गये।

“अब मेरी बात ध्यान से सुन बेटा - वह स्वराज को समझाता हुआ बोला - डॉक्टर ने जो किया गलत था, मगर उसने तेरी मां के साथ कोई जबरदस्ती तो की नहीं थी। म्यूचल अंडरस्टैंडिंग के तहत दोनों के बीच रिश्ता कायम हुआ, जो नाजायज बेशक था, लेकिन उसके लिए किसी को जान से मार देना कहीं से भी जायज नहीं करार दिया जा सकता। फिर कोमल ने तो तेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ा था।”

“नहीं बिगाड़ा था, मगर उसे मारकर, उसके साथ संबंध बनाकर मैंने अपनी मां के साथ डॉक्टर के संबंधों का बदला लिया था। इसलिए मुझे अपने किये का कोई पछतावा नहीं है।”

“संबंध बनाकर? - शुक्ला हकबकाया सा बोला - तूने सच में रेप किया था कोमल के साथ?”

“नहीं कोमल के साथ नहीं, उसकी लाश के साथ।”

दोनों हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगे।

“क्या जरूरत थी? - अलीशा ने पूछा - तू कोई साईको है?”

“नहीं हूं, लेकिन जरूरत बराबर थी, क्योंकि उस बात ने डॉक्टर को बुरी तरह तड़पाकर रख देना था, वह तड़पा भी था। तभी तो 15 तारीख की शाम जब मैं अपने पेरेंट्स के साथ यहां पहुंचा तो उसके रिकार्ड की सुई बस रेप वाली बात पर ही अटकी दिखाई दी थी, कत्ल के बारे में तो उसने एक शब्द भी नहीं कहा था। तब मेरे मन को जो सुकून हासिल हुआ आंटी, उसे बयान नहीं कर सकता, एकदम मजा ही आ गया था।”

“बेडरूम और किचन की चिटखनी के साथ शरारत भी तुमने ही की थी?”

“हां मैंने ही की थी, आखिर कल को मुझे डॉक्टर का कत्ल भी तो करना था, इसलिए एडवांस में आवागमन का रास्ता तैयार कर लिया। वह काम भी मैंने 15 की शाम को ही अंजाम दिया था। तब जब डॉक्टर यहां सोफे पर बैठा मेरे मां बाप के सामने अपनी बीवी के साथ किये गये बलात्कार का मातम मना रहा था।”

“जो किया गलत किया स्वराज।”

“नहीं मैंने एकदम सही किया, और उस बात का मुझे कोई पछतावा भी नहीं है।”

“ठीक है, नहीं है तो ना सही - शुक्ला बोला - लेकिन अपने बाप के बारे में तो सोच। क्या गुजरेगी उसपर जब ये पता लगेगा कि मीनाक्षी का उसके दोस्त के साथ अफेयर था, या ये कि उसका बेटा ही अपनी मां का कातिल है। बल्कि जब तू जेल चला जायेगा तो तेरी ही तरह अमन सिंह भी डॉक्टर से बदला लेने को तड़पने लगेगा, हो सकता है कामयाब भी हो जाये, मगर उसके बाद क्या? तुम दोनों जेल में होगे, यानि पूरी फेमिली खत्म। क्या तू यही चाहता है?”

इस बार स्वराज ने जवाब नहीं दिया।

“तुम्हारे सामने एक ऐसा मौका है स्वराज - अलीशा बोली - जो शायद ही कभी किसी अपराधी को नसीब हुआ होगा। रही बात डॉक्टर से बदला लेने की तो उसे तुम ये सोचकर भी भुला सकते हो कि कोमल को खत्म कर के तुमने वह बदला पहले ही ले लिया है। ऊपर से डॉक्टर को पछतावा भी तो है, नहीं होता तो अपनी बीवी के हत्यारे को माफ करने की बात क्यों कर रहा होता? इसलिए हालात को समझो, यहां से घर जाओ और अपनी स्टडी पर ध्यान दो, ताकि भविष्य उज्जवल कर सको। कुछ नहीं रखा इस बदले की भावना में। क्योंकि आगे तुम्हें जो हासिल होगा वह सिवाय बर्बादी के दूसरा कुछ नहीं होगा।”

“जबकि बदले की भावना को दिल से निकालकर तुम खुद को, और साथ में अपने पिता को भी संभाल सकते हो - शुक्ला ने उसे समझाने की कोशिश की - जो तुम्हारे जेल जाने और असलियत का पता लगने के बाद खामोश तो हरगिज भी नहीं बैठेगा। फिर ये भी तो सोचो कि तुमने कितने खतरनाक जुर्म किये हैं। जन्म देने वाली मां को खत्म कर दिया, एक ऐसी औरत को भी मार डाला, जिसकी उन दोनों के किये धरे में कोई भागीदारी नहीं थी। इस तरह से देखो तो तुम्हारे गुनाहों के आगे मीनाक्षी और डॉक्टर का अफेयर तो किसी गिनती में नहीं आता।”

“उन्हें भी तो सोचना चाहिए था सर?” कहता हुआ वह एकदम से रो पड़ा।

“बिल्कुल सोचना चाहिए था, मैं उनके रिश्ते को जायज नहीं ठहरा रहा, मगर अब जो हो चुका है वह वापिस नहीं लौटाया जा सकता। लेकिन इत्तेफाक से तुम्हारे सामने एक ऐसा मौका जरूर है, जिससे तुम अपनी जिंदगी जहन्नुम बनने से रोक सकते हो, जो सिर्फ इसलिए हासिल हो रहा है क्योंकि डॉक्टर को अपनी गलती का एहसास है, इसलिए भी क्योंकि तुम्हारी उम्र अभी बहुत कम है। तुम्हारी जगह कातिल अगर अमन सिंह होता तो उसने जरा भी लिहाज नहीं करना था, ना ही उस तरह पछता रहा होता, जैसे कि अभी पछताकर दिखा रहा है।”

“इसलिए मौके का फायदा उठाओ - अलीशा बोली - और कह दो कि आज के बाद कोई अपराध करने का ख्याल तक नहीं लाओगे अपने दिमाग में। अभी हामी भरकर बाद में मुकर भी नहीं जाओगे, क्योंकि तब सबसे ज्यादा इंस्पेक्टर साहब को दुःख पहुंचेगा, जो अपनी नौकरी का रिस्क लेकर तुम्हें आजाद करने के बारे में सोच रहे हैं।”

“तब मैं ये सोचकर भी पछता रहा होऊंगा अलीशा कि काश आज इसे गिरफ्तार कर लिया होता, तो डॉक्टर के कत्ल की नौबत नहीं आई होती, और मैं ही क्यों, क्या तुम्हारा खुद का हाल उससे जुदा होगा?”

“सही कहा, बेशक हम दोनों को ही पछताना पड़ेगा।”

स्वराज और जोर से रोने लगा।

“अब बोल कि तुझे हमारी बातें समझ में आ रही हैं?”

जवाब में उसने गर्दन हिलाकर हामी भर दी।

“गुड, तो अब चुपचाप अपने घर लौट जा और भूल जाना कि तूने क्या किया था। किसी से कभी जिक्र तक मत करना, वरना तेरे साथ जो होगा वह बाद में होगा, उससे पहले मेरी नौकरी जायेगी, फिर जेल जाने की नौबत भी आकर रहेगी।”

“मैं चुप रहूंगा।”

“बढ़िया अब निकल ले यहां से।”

“एक बार अंकल को सॉरी बोल दूं?”

“ठीक है बोल दे, चल ऊपर चलते हैं।”

तत्पश्चात दोनों उसे साथ लेकर वापिस डॉक्टर के बेडरूम में पहुंचे। वह दोनों हाथों से अपना सिर थामें बेड से पैर लटकाकर बैठा था, और गहन सोच में डूबा दिखाई दे रहा था।

“अंकल!..”

स्वराज की भर्राई हुई आवाज सुनकर डॉक्टर की तंद्रा भंग हो गयी।

“मुझे माफ कर दो अंकल।” वह रोता हुआ बोला, और आगे बढ़कर डॉक्टर के पैरों से लिपट गया।

“इट्स ओके, मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है।”

“मैंने बहुत गलत किया अंकल।”

“जो होना था हो गया बेटा, समझ लो मैंने उस बात को भुला दिया।”

“लेकिन मैं नहीं भूला हूं कमीने।” कहते हुए उसने बेड के नीचे पड़ा छुरा उठाकर पूरी ताकत से डॉक्टर के पेट में घुसेड़ दिया।

डॉक्टर हलाल होते बकरे की तरह डकारा।

शुक्ला बौखलाया सा तेजी से उसकी तरफ झपटा और स्वराज को पकड़कर इतनी जोर से पीछे खींचा कि वह कई फीट पीछे फर्श पर जा गिरा। छुरे के दस्ते पर अभी भी उसकी पकड़ बनी हुई थी, जो उसके साथ-साथ ही बाहर आ गया।

डॉक्टर के पेट से भल्ल भल्ल कर के खून निकल रहा था, वह मरा जा रहा था, जबकि अलीशा ने मारे गुस्से के स्वराज की पिटाई करनी शुरू कर दी। कुछ ही पलों में लड़के की मर्मांतक चींखें कमरे में गूंजने लगीं मगर अब उसपर रहम खाने को भला कौन तैयार होता।

शुक्ला को और कुछ नहीं सूझा तो एक तकिये से स्नैब वुन्ड को कस के दबा लिया और दायें हाथ से मोबाईल निकालकर एंबुलेंस को फोन करने ही जा रहा था कि अलीशा बोल पड़ी, “डॉक्टर के नर्सिंग होम में फोन कीजिए, वे लोग जल्दी पहुंचेंगे।”

सुनकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर के भाटिया नर्सिंग होम में फोन लगाया और जल्दी जल्दी पूरी बात बता दी। उतनी देर में अलीशा स्वराज का वह हाल कर चुकी थी कि अब उसके लिए अपने पैरों पर उठकर खड़े हो पाना भी मुमकिन नहीं रह गया था।

पांच मिनट से भी कम समय में एंबुलेंस वहां पहुंच गयी, फिर ईएमटी स्टॉफ के साथ लगभग दौड़ता हुआ सा एक डॉक्टर वहां पहुंचा, जिसने बड़े ही आनन फानन में पेट से बहते खून को रोकने के लिए एक टैम्परेरी बेंडेज किया, फिर डॉक्टर को स्ट्रेचर पर लिटाकर सब लोग वहां से निकल गये।

तत्पश्चात शुक्ला ने थाने फोन कर के वहां से कुछ सिपाहियों को बुलाया और स्वराज को उनके हवाले करने के बाद अलीशा के साथ नीचे ड्राईंगरूम में जाकर बैठ गया।

“सिगरेट है आपके पास?” वह अभी भी बौखलाया हुआ था।

“हां है।” कहते हुए उसने दो सिगरेट सुलगाये और एक शुक्ला को थमा दिया।

“ये तो हद ही कर दी कमीने ने।”

“बेशक कर दी इंस्पेक्टर साहब। उसे रोता देखने के बाद मैं तो कल्पना तक नहीं कर सकती थी कि मन में अभी भी बैर पाले बैठा था, फिर आपके यहां होते हुए डॉक्टर पर हमला किये जाने का तो कोई अंदेशा ही नहीं था मुझे।”

“नौटंकी कर रहा था साला।”

“नहीं रो तो वह बराबर रहा था, बस अपने भीतर सुलग रही बदले की आग पर काबू पाना उसके बूते से बाहर का काम था, इसलिए हमें उल्लू बना गया।”

“जबकि चाहता तो अभी चुपचाप यहां से निकल जाता और डॉक्टर के कत्ल का कोई दूसरा मौका तलाशता। जिसमें उसके बच जाने की कम ही सही उम्मीद तो बराबर होती।”

“क्या पता उसे ये लगने लगा हो कि बाद में मौका नहीं मिलने वाला, या ये सोचकर अभी के अभी अपना काम पूरा कर गया कि बाद में उसके दिमाग से बदले का ख्याल निकल न जाये - कहकर उसने सवाल किया - क्या लगता है डॉक्टर साहब बच जायेंगे?”

“उम्मीद तो है।”

“भगवान करें बच जायें, अब उन्हें इस बात का पछतावा भी नहीं होगा कि उनके कारण स्वराज को जेल जाना पड़ा, क्योंकि हत्यारे को माफ करना हर किसी के बस की बात नहीं होती, फिर भी डॉक्टर ने वह कर दिखाया। अब स्वराज जेल जाने पर ही तुला था तो उसमें वह भला क्या कर सकते हैं।”

“आपको स्वराज पर शक कैसे हुआ?”

“कैसे हुआ का जवाब ये है कि पार्टी में वह और अनिकेत त्रिपाठी की बेटी ही ऐसे दो लोग थे, जिनकी तरफ किसी का कोई ध्यान नहीं जा रहा था। लड़की के पास हत्या का कोई उद्देश्य नहीं था, लेकिन स्वराज के पास था। ये अलग बात थी कि उसके कातिल होने का यकीन नहीं आ रहा था मुझे। लेकिन अमन सिंह जब हर तरफ से निर्दोष साबित हो गया तो मेरा ध्यान उसपर जाकर रहा। फिर मुझे मंकी कैप में छिपी उसकी सूरत भी कुछ जानी पहचानी लगने लगी, वह सूरत जो नर्सिंग होम की सीसीटीवी फुटेज में देखी थी, क्योंकि तब स्वराज मास्क नहीं लगाये था। आगे मैंने कई बार दोनों जगहों की फुटेज में गौर से उसकी शक्ल देखी - कहकर उसने बाईक के रजिस्ट्रेशन नंबर की हेर फेर के बारे में शुक्ला को बता दिया - उसके बाद जैसे मुझे यकीन ही आ गया कि कातिल स्वराज ही है। रही सही कसर आपने ये कहकर पूरी कर दी कि मीनाक्षी को खत्म करने से पहले क्लोरोफॉर्म सुंघाकर बेहोश कर दिया था। ऐसे में नतीजा निकालने में कितना वक्त लगना था।”

“आपका मतलब है उसने बाप की शॉप से क्लोरोफॉर्म चुरा लिया था?”

“बिल्कुल चुरा लिया था, अमन सिंह ने बताया था कि स्वराज अक्सर उसकी दुकान पर भी बैठ जाया करता था, ऐसे में एक शीशी वहां से गायब कर देना क्या बड़ी बात थी।”

“और कुछ?”

“फॉरेंसिक टीम का अंदाजा था कि कातिल साढ़े पांच से पौने छह फीट के बीच की हाईट का था, नर्सिंग होम की फुटेज भी वही बयान करती थी। सूरज चौधरी की हाईट उससे मैच जरूर करती थी मगर उसके हाथ उतने मुलायम नहीं थे, जितने यहां स्वराज से हुई उठा पटक के दौरान मुझे दिखाई दिये थे, यानि वह सूरज चौधरी नहीं हो सकता था। बाकी तो एक स्वराज ही था जिसका कद कातिल के कद से मैच करता था, इसलिए ना चाहते हुए भी मेरा ध्यान उसकी तरफ जाकर रहा। हालांकि उस बात पर यकीन करने में मुझे बहुत वक्त लग गया।”

“कमाल है, इतना आसान था कातिल को पहचान लेना, फिर भी हम भटकते रहे, जिस तिस पर हत्यारा होने का शक करते रहे, बल्कि मैं तो अभी भी भटक ही रहा था।”

“सारा कमाल उसके कमउम्र होने का था इंस्पेक्टर साहब।”

“ठीक कहती हैं - कहकर उसने सिगरेट का एक गहरा कश खींचा, फिर नाक से धुआं उगलता हुआ बोला - वैसे आपको क्या लगता है, दोनों कत्ल प्री प्लांड थे?”

“मीनाक्षी का, ना कि कोमल का।”

“कैसे मालूम?”

“वह घर से हथियार लेकर यहां नहीं पहुंचा था इंस्पेक्टर साहब। इसलिए मुझे लगता है कि कत्ल का फैसला उसने अचानक लिया, तब लिया जब अपनी मां को डॉक्टर के साथ कमरे में बंद होते देखा। देखकर उसका खून खौल उठा और बॉथरूम जाने के बहाने किचन से छुरा उठाकर ऊपर चला गया।”

“यानि उस रोज पहली बार उसे डॉक्टर और अपनी मां के संबंधों पर शक हुआ था?”

“नहीं, पहली बार हुआ होता तो उतना बड़ा कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पाता, क्योंकि वह इस बात की गारंटी नहीं कर सकता था कि उसकी मां डॉक्टर के साथ बंद कमरे में प्रेमालाप ही कर रही थी। मतलब जानता वह पहले से रहा होगा, बस उस रात उसके सब्र का बांध टूट गया। पार्टी में कई लोग मौजूद थे, इसलिए उसके मन में ये ख्याल भी आया हो सकता है कि मीनाक्षी को डॉक्टर के पीछे कमरे में जाते औरों ने भी देखा होगा, तब उसे कितनी जिल्लत महसूस हुई होगी, इसका अंदाजा लगा पाना आसान नहीं है। उसी जिल्लत ने उसे क्रोध से भर दिया और उसने ऊपर जाकर कोमल की हत्या कर दी।”

“जो हुआ बहुत बुरा हुआ।” शुक्ला एक गहरी सांस खींचकर बोला।

“ठीक कहते हैं बहुत बुरा हुआ। अब चलिए यहां से, ताकि घर जाकर चैन की नींद ली जा सके, जो कई दिनों से नसीब नहीं हुई है।”

तत्पश्चात दोनों उठकर बाहर की तरफ बढ़ गये।

*****