पारसनाथ ने जब एक जगमगाते होटल की पार्किंग में कार रोकी तो रात के ग्यारह बज रहे थे। महाजन बगल में और मोना चौधरी पीछे वाली सीट पर बैठी थी। गिरी ने आधे घण्टे बाद फोन पर देवेन साठी का मोबाइल नम्बर बता दिया था महाजन को। महाजन ने देवेन साठी से फोन पर बात की, पर जब देवेन को पता चला कि दिन में देवराज चौहान उसे और उसकी पत्नी को बंधक बनाए हुए था तो उसने कहा हमें मिलकर बात करनी चाहिये।
देवेन साठी के आग्रह पर वो इस होटल में पहुंचे थे जो कि साठी का ही था।
कार से निकलकर वे तीनों होटल के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गये। होटल के भीतर प्रवेश करने पर उन्होंने वहां की हर चीज को जगमगाते पाया। चहल-पहल थी वहां। फर्श शीशे की भांति चमक रहा था। यहां की रंगीनियत देखते ही बन रही थी। ये काफी बड़ा लॉबी जैसा हॉल था। एक तरफ गद्देदार सोफे कतार में लगे हुए। दूसरी तरफ रिसेप्शन पर दो युवतियां और एक युवक मौजूद था। इसी लॉबी जैसे हॉल से अलग-अलग तीन तरफ से सीढ़ियां उस पर जा रही थीं और चार तरफ चार रास्ते जा रहे थे। लोगों का, होटल के स्टाफ का आना-जाना बराबर लगा हुआ था।
वे रिसैप्शन पर पहुंचे और पारसनाथ ने रिसेप्शनिस्ट से कहा---
"देवेन साठी हमारा इन्तज़ार कर रहा है।"
“आपका नाम सर?"
“महाजन...।" महाजन बोल पड़ा।
रिसेप्शनिस्ट ने फौरन इन्टरकॉम पर बात की। फिर रिसीवर रखते बोली---
“बस, एक मिनट वेट कीजिये सर...!"
आधे मिनट में ही सूट पहने एक व्यक्ति वहां आ पहुंचा।
रिसैप्शनिस्ट ने आंख से उन तीनों की तरफ इशारा किया।
वो व्यक्ति तुरन्त उनके पास पहुंच कह उठा---
“आइये सर, मैडम! साठी साहब आपका इन्तज़ार कर रहे हैं।"
वो, उसके साथ लिफ्ट तक गये। लिफ्ट से दूसरी मंजिल पर पहुंचे और गैलरी में कुछ पैदल चलने के बाद उसने एक दरवाज़ा खोला और मुस्कराकर बोला---
“भीतर आइये। साठी साहब यहीं हैं।"
वो तीनों भीतर प्रवेश कर गये।
उन्हें लाने वाला भी भीतर आ गया था।
ये काफी बड़ा हॉल था। छत पर फानूस लगे रोशन थे। ए०सी० की ठण्डक थी। दीवार के साथ कतार में सोफे लगे हुए थे। एक तरफ बॉर बना हुआ था। दूसरी तरफ कुर्सियां, टेबल थे और बीच की जगह मैदान की तरह खाली थी। वहां पर सात-आठ आदमी दिखे जिनमें पाटिल और कर्मा खत्री भी मौजूद थे ।
तीनों ठिठककर नज़रें दौड़ाते रहे।
"साठी साहब, उधर, टेबल पर बैठे हैं।" उन्हें लाने वाला कह उठा।
तीनों उस टेबल की तरफ बढ़ गये जो सामान्य साइज की गोल टेबल थी। उसके गिर्द चार कुर्सियां थीं, एक पर कोई बैठा नज़र आ रहा था। वे पास पहुंचे तो वो बोला---
“बैठो... ।”
महाजन ने आवाज पहचान ली कि इसी से उसकी फोन पर बात हुई थी।
वो तीनों बैठे।
देवेन साठी चालीस बरस का सांवले रंग का सेहतमंद व्यक्ति था। इस वक्त उसके चेहरे पर गम्भीरता उभरी हुई थी। कभी-कभार उसके होंठ भिंच जाते थे। उसने मोना चौधरी को देखकर कहा---
“तुम मोना चौधरी हो ?"
“हां...।" मोना चौधरी के होंठ हिले ।
“हम पहले कभी नहीं मिले। मैं देवेन साठी हूं। मेरे से फोन पर किसने बात की थी?"
"मैंने...।"
"तो तुम महाजन हो और ये... ?” उसने पारसनाथ की तरफ इशारा किया।
“पारसनाथ... ।” महाजन ने कहा।
“तुम्हारे भाई पूरबनाथ साठी की मौत का दुःख है हमें।" मोना चौधरी ने शान्त स्वर में कहा--- “बहुत गलत किया देवराज चौहान ने, मेरे ख्याल में उसने बिना वजह तुम्हारे भाई को मारा है ।"
“अभी तक तो कोई वजह सामने नहीं आई...।” देवेन साठी ने सख्त स्वर में कहा--- "सब कुछ ठीक चल रहा था कि उसने मेरे भाई को मार दिया। वो अपनी पत्नी और बच्चे से बहुत प्यार करता था, उन्हें बचाने की खातिर ही भाई को देवराज चौहान के सामने जाना पड़ा और देवराज चौहान ने उसे मार दिया।”
"तो तुम्हारे भाई की पत्नी, बच्चे पर काबू किया था देवराज ने?" मोना चौधरी बोली।
"हां। ऐसा ना होता तो वो मेरे भाई की हवा भी नहीं पा सकता था और मारा जाता।” देवेन साठी ने अपने पर काबू पाया हुआ था।
"ऐसा ही कुछ वो हमारे साथ कर रहा... ।”
"तुमने फोन पर बताया था कि देवराज चौहान ने कल से तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को तुम्हारे ही घर में बन्दी बनाया हुआ था और पूरे मुम्बई में उसे ढूंढता फिर रहा हूं। मेरे सारे आदमी इसी काम पर लगे हैं। तुम लोगों से उसका क्या पंगा है?"
"कुछ भी नहीं ।" मोना चौधरी ने कहा--- “वो ही पंगा है जो तुम्हारे भाई के साथ था। तुम्हारे भाई को देवराज चौहान ने मारा परन्तु कारण पूछने पर उसने कहा कि, वो भूल गया है कि क्यों तुम्हारे भाई को मार रहा है।"
"हां, ये सच है। उसने ऐसा ही कहा ।"
“अब वो मेरी हत्या करना चाहता है। कल रात मेरे घर पर उसने हमला किया परन्तु मुझे भागना पड़ा। अपने घर पर मैं शोर-शराबा नहीं करना चाहती थी। पारसनाथ के रेस्टोरेंट में पहुंचा तो, उसे वहां कैद कर लिया गया, लेकिन वो वहां से फरार हो गया। रात को महाजन के घर में जा घुसा और इसके साथ इसकी पत्नी को कैद करके मुझे फोन करवाया कि अगर शाम छः बजे तक मैं वहां ना पहुंची तो वो महाजन और उसकी पत्नी को मार देगा। ये जुदा बात रही कि ये वहां से फरार हो जाने में कामयाब रहे। उस दौरान पूछने पर देवराज चौहान ये ही कहता कि उसे याद नहीं मोना चौधरी को क्यों मारना है, पर मारना है।"
"देवराज चौहान के साथ दो लोग और भी...।" देवेन साठी ने कहना चाहा।
“जगमोहन, देवराज चौहान का साथी है। वो साथ था और साथ में हरीश खुदे नाम का आदमी... ।”
"खुदे ने आठ साल हम भाइयों के लिए काम किया है।" देवेन साठी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मुझे खुदे के बारे में पूरी जानकारी है कि वो भी देवराज चौहान के साथ था। मैं खुदे की पत्नी से मिला तो उसने बताया कि कल सुबह देवराज चौहान और जगमोहन आये थे और खुदे के साथ मार-पीट करके उसे साथ ले गये। उससे मेरे भाई का पता-ठिकाना पूछ रहे थे कि वो कहां मिलेगा। तब से खुदे उनके साथ है। खुदे ही देवराज चौहान और जगमोहन को मेरे भाई की पत्नी और बेटे के पास ले गया था, जबकि उस जगह के बारे में खास लोग ही जानते हैं। मैंने खुदे से फोन पर बात की, परन्तु उसने बातों में मुझे टालने की कोशिश की, देवराज चौहान के बारे में कुछ नहीं बताया...वो भी हरामी है।"
"जब तुम्हारा फोन आया, तब खुदे, देवराज चौहान, जगमोहन, मेरे को, राधा को, मेरे घर में बन्दी बनाये हुए थे। मेरे सामने ही उसने तुमसे बात की, जो कहा सब मुझे याद है फिर देवराज चौहान को तुम्हारे अफगानिस्तान से आ जाने के बारे में बताया। वो पूरी तरह देवराज चौहान और जगमोहन के साथ है ।"
“हरामजादा जानता भी है कि मेरे से बचेगा नहीं, फिर भी देवराज चौहान का साथ दे रहा...।"
"देवराज चौहान ने उसे कह रखा है कि डकैती में उसे साथ लेगा। इसी लालच के चक्कर में खुदे... ।”
“तो ये बात है।” देवेन साठी के होंठ भिंच गये--- “अब कहां मिलेगा देवराज चौहान ?”
"पता नहीं।” पारसनाथ ने कहा--- “हम उसे ढूंढकर खत्म कर देंगे। हम उसे ढूंढना शुरू कर रहे हैं।"
"वो मेरे या मेरे आदमियों के हाथों ही मारा जायेगा।” देवेन साठी ने खतरनाक स्वर में कहा--- “मेरे भाई को मारा है उसने। मैं उसे छोडूंगा नहीं। ये काम हमें ही करने दो।”
“ये नहीं हो सकता।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
"क्यों?” देवेन साठी के माथे पर बल पड़े।
“देवराज चौहान हमारे हाथों से भी मारा जा सकता है। ये बात तुम्हें समझ लेनी चाहिये।”
“उसने मेरे भाई को मारा है। वो मेरे ही हाथों मरेगा। तुम लोग उसे ।"
“देवेन !” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- “देवराज चौहान मुझे ढूंढता मुझ तक पहुंच गया तो तब मैं क्या करूं?"
देवेन साठी के होंठ भिंच गये।
“उसने मेरे साथी पर हाथ डालने की कोशिश की तो उस स्थिति में क्या होगा ?”
देवेन साठी की नजरें मोना चौधरी पर थीं।
"हम इतना ही कर सकते हैं कि देवराज चौहान को ना ढूंढे, उसे ना मारें। परन्तु वो हम तक पहुंच गया तो तब कुछ हो के ही रहेगा।" मोना चौधरी शान्त थी--- "फिर ये बात भी है कि हम उसे क्यों ना मारें। उसने मेरी जान लेने की चेष्टा की है। महाजन और उसकी पत्नी को बंधक बनाकर तुम्हारे भाई की तरह, मुझे मजबूर कर रहा था कि मैं सामने आऊं। देवराज चौहान को खत्म करने का मेरा भी हक बनता है। मैं तुमसे इसलिये नहीं मिली कि तुम्हारे मुंह से ये बात सुनूं। जिस तरह देवराज चौहान तुम्हारा दुश्मन है, उसी तरह वो मेरा भी दुश्मन है। तुम्हें ये बात जिद्द के तौर पर नहीं लेनी चाहिये। ये गलत होगा।"
“हमें।" देवेन साठी ने मोना चौधरी के चेहरे पर से नज़रें हटाकर कहा--- "हमें देवराज चौहान को वजह से आपस में नया झगड़ा शुरू नहीं करना चाहिये। ये समझदारी नहीं होगी।"
मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ की नज़रें देवेन साठी पर जा टिकीं।
"उसे तुम लोग मारो या हम लोग मारें, पर वो मरना ही चाहिये।"
“ये ठीक रहेगा।” पारसनाथ बोला--- “तुमने सही सोचा।”
“परन्तु तुम लोग देवराज चौहान को कहीं घेर लो और गोली मारने में वक्त हो तो फोन करके मुझे बुला लेना। इसी तरह अगर मैंने देवराज चौहान को कहीं घेर लिया और गोली मारने में वक्त होगा तो मैं तुम लोगों को खबर करूंगा।"
"मन्जूर है।" महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मोना चौधरी !” देवेन साठी गम्भीर स्वर में बोला--- “देवराज चौहान के मामले में हमें मिलकर चलना चाहिये। क्योंकि हमारा शिकार एक है। दुश्मन एक है और मकसद भी एक है। "
"ऐसा ही होगा देवेन साठी! देवराज चौहान के मामले में हम एक-दूसरे का साथ देंगे कि आसानी से उसका शिकार कर सकें।" मोना चौधरी शब्दों को चबाकर खतरनाक स्वर में कह उठी--- "अब देवराज चौहान की मौत ही मेरा लक्ष्य है।”
■■■
रात के एक से ऊपर का वक्त हो रहा था।
पारसनाथ ने सोहनलाल के फ्लैट के सामने कार रोकी और इंजन बन्द कर दिया। वो और महाजन कार से बाहर निकले और फ्लैट की तरफ बढ़ गये। मोना चौधरी कार की पीछे की सीट पर बैठी रही।
महाजन ने दरवाजे के पास लगी कॉलबैल का बटन दबाया। भीतर बेल बजने की आवाज उभरी। स्ट्रीट लाइट की मध्यम-सी रोशनी उन पर पड़ रही थी। दोनों के चेहरों पर सख्ती नाच रही थी।
भीतर लाइट जली फिर दरवाज़े के पास से सोहनलाल की आवाज आई---
"कौन ?"
"महाजन ।” महाजन ने कहा।
अगले ही पल दरवाज़ा खुला। सोहनलाल नाइट सूट पहने था।
महाजन के साथ पारसनाथ को देखकर समझ गया कि कोई खास बात है।
“तुम दोनों ?” सोहनलाल सम्भलकर बोला--- “इतनी रात को, क्या बात है?"
“एमरजेंसी है। तुम्हें अभी हमारे साथ चलना है।” महाजन कह उठा।
"हुआ क्या?"
“कार में मोना चौधरी भी बैठी है। यहां से चलो, रास्ते में सब बता देंगे।" पारसनाथ ने कहा।
“कुछ पता तो चले कि...।"
"देवराज चौहान की जान खतरे में है।"
"देवराज चौहान खतरे में?" सोहनलाल के होंठों से निकला।
"चिन्ता की कोई बात नहीं।” महाजन मुस्करा पड़ा--- “शायद हम उसे बचा लें, परन्तु तुम्हारा हमारे साथ होना जरूरी है।"
"जगमोहन से...।"
"वो भी इस वक्त देवराज चौहान के साथ है। फौरन चलो, क्यों वक्त बरबाद कर रहे हो। अगर देवराज चौहान की जान की जरूरत नहीं है तो रहने दो। हम क्यों खामखाह चिन्ता करें....।"
“मैं अभी आता हूं।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।
“हम कार में बैठे हैं।” पारसनाथ बोला--- “जल्दी आओ।"
महाजन और पारसनाथ वापस कार में जा बैठे।
"वो आ रहा है।" महाजन ने मोना चौधरी से कहा।
मोना चौधरी खामोश रही।
दो मिनट बाद ही सोहनलाल, कार में पीछे की सीट पर मोना चौधरी के साथ आ बैठा। फ्लैट के दरवाज़े पर नानिय खड़ी देख रही थी कार को, जब तक कि कार वहां से चली नहीं गई।
"क्या बात है।" कार आगे बढ़ते ही सोहनलाल बोला--- "देवराज चौहान को क्या हुआ?"
“वो पागल हो गया है।" मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी।
"क्या?" सोहनलाल के माथे पर बल उभरे।
“दो दिन से वो मुझे खत्म कर देने के लिए भागा फिर रहा है।" मोना चौधरी ने उसी स्वर में कहा--- “मेरे से टकरा चुका है। महाजन को और राधा को बंधक बना लिया...।”
मोना चौधरी सब कुछ बताती चली गई।
महाजन तेजी से कार दौड़ा रहा था।
सब कुछ सुनकर सोहनलाल तगड़ी उलझन में घिरता दिखा।
"हैरानी है कि देवराज चौहान और जगमोहन ऐसा कर रहे हैं।" वो बोला--- “परन्तु मुझे क्यों बुलाया। मैं इसमें क्या कर... ।”
"तुम हमें देवराज चौहान का वो ठिकाना बताओ, जहां वो मिलता है।" पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा।
“ये तुमने कैसे सोच लिया कि मैं ऐसा कुछ बताऊंगा।” सोहनलाल सतर्क हो उठा।
"तुम बताओगे। अब तुम हमारे कब्जे में हो। हमने तुम्हारा अपहरण किया है।” पारसनाथ बोला।
"ये तो गलत बात है।"
“गलत काम तो देवराज चौहन कर रहा है। मजबूरी है कि उसका ठिकना जानने के लिए, तुम्हें उठाना पड़ा। तुम....।"
"मेरा मुंह खुलवा लोगे?” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।
"तुम्हें खोलना ही पड़ेगा।” महाजन कह उठा।
"कभी नहीं ।" सोहनलाल ने होंठ भींचकर कहा--- “देवराज चौहान और जगमोहन जो कर रहे हैं, वो गलत है, परन्तु तुम लोग उनके बारे में मुंह नहीं खुलवा सकते। मैं कभी नहीं बता सकता कि वो कहां मिल सकते हैं।"
"हमने देवराज चौहान को खत्म करना है सोहनलाल !” मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी--- "वो हमारे हाथों से बचा तो देवेन साठी के हाथों नहीं बचेगा। मरना तो उसे है ही। तुम मुँह बद रखकर उसे बचा नहीं सकते।"
"जो भी हो, मैं देवराज चौहान के बारे में कुछ नहीं बताऊंगा।" सोहनलाल दृढ़ स्वर में कह उठा।
"तुम जरूर बताओगे।" मोना चौधरी गुर्रा उठी--- "हमारे सवालों का जवाब तुम्हें देना ही पड़ेगा।"
सोहनलाल ने बेचैनी से पहलू बदला ।
"अगर मैं और राधा शाम को वहां से भागने में सफल ना हुए होते तो अब तक जाने क्या हो गया होता।" कार ड्राइव करते महाजन कह उठा--- "तब मेरे पास मौका भी था। मैं देवराज चौहान के सिर में गोली मार सकता था। परन्तु वो मेरा घर था। वहां पर कुछ भी गड़बड़ होती, पुलिस ने मुझे पकड़ लेना था। इसी वजह से मैंने देवराज चौहान को शूट नहीं किया।"
सोहनलाल के होंठ भिंच गये।
“अब हम कोई भी रियायत करने के मूड में नहीं हैं। तुमसे जान ही लेंगे कि...।"
"देवराज चौहान और जगमोहन ऐसा कुछ कर रहे हैं तो कोई खास वजह जरूर होगी।” सोहनलाल बोला।
"कोई वजह नहीं...।"
"जरूर कोई वजह है। वो पागल नहीं हैं कि साठी की हत्या करें, फिर मोना चौधरी के पीछे पड़ जायें।"
“इस वक्त वो पागल ही हैं। कारण पूछने पर कहते हैं कि वो भूल गये कि क्यों साठी को मारा। परन्तु उसे मारना याद नहीं रहा। यही सब कुछ उन्होंने मोना चौधरी के बारे में कहा।" पारसनाथ ने कहा ।
“मैं देवराज चौहान से बात करता हूं। मुझे जाने दो, मैं उनसे... ।”
“तुम कहीं नहीं जाओगे। अब हमारे कब्जे में हो तुम। हमें देवराज चौहान का ठिकाना बताओगे।"
"ऐसा नहीं हो सकता।”
“तुम्हें मुंह खोलना ही पड़ेगा सोहनलाल !” मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी--- "हम तुम्हारा मुंह खुलवा लेंगे।"
“कोशिश बेकार जायेगी। मैं देवराज चौहान से फोन पर बात करना चाहता हूं।"
“तुम कुछ नहीं करोगे। अपना फोन मुझे दे दो।" मोना चौधरी ने हाथ आगे बढ़ाया।
"देवराज चौहान से बात करने में क्या हर्ज है?" सोहनलाल बोला।
"तुमसे बात करके देवराज चौहान सतर्क हो जायेगा। वो अपना ठिकाना छोड़ देगा। फोन दो मुझे...।"
सोहनलाल ने मोबाइल निकालकर मोना चौधरी को दे दिया। उसके चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी। जो बातें उसे बताई गई थीं, वो उनके बारे में ही सोच रहा था कि ये सब करने के पीछे देवराज चौहान और जगमोहन के पास खास ही वजह होगी।
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"सोहनलाल भाई।" राधा पास बैठी आलू का परांठा खाते हुए प्यार से कह रही थी--- "मुझसे तेरी ये हालत देखी नहीं जाती। तू भी कभी पूर्वजन्म की जमीन पर पैदा हुआ था और नीलू मुझे उसी जमीन से लाया। ब्याह किया। अब तेरे हाथ-पांव बंधे हुए हैं। तू फर्श पर पड़ा हुआ है। बंधे रहने से बहुत तकलीफ होती है। मैं जानती हूं, जब देवराज चौहान और जगमोहन ने मुझे बांधा था, तो ये बात पता चली। मैंने तो नीलू के हाथों के बंधन घण्टों लगाकर काट दिए, परन्तु तेरे बंधन काटने वाला कोई नहीं है। वो खुदे था वहां, उसने मुझे बहन बना लिया था पर हाथ-पांव खोलने को तैयार नहीं हुआ। कमीना था वो। अब तू ये सोच कि मैं तेरे बंधन खोलूंगी तो भूल जा। मैं ऐसा नहीं करने वाली, वैसे तू मेरा भाई ही लगा। पर देवराज चौहान का क्या करें, जिसने हमें मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मोना चौधरी, नीलू, पारसनाथ दूसरे कमरे में आलू के परांठे खा रहे हैं। बेचारों ने दिन भर से कुछ खाया नहीं था। अब वो आयेंगे और तेरे से देवराज चौहान का ठिकाना पूछेंगे। मेरी मान तो प्यार से बता दे, नहीं तो ठुकाई होगी तेरी। वो सब बहुत गुस्से में हैं, हों भी क्यों ना। देवराज चौहान ने तो हद ही कर दी। बहुत घटिया इन्सान है वो, मैंने पहली बार जाना। और तो और ब्रीफकेस में मैंने हजार-हजार के नोटों की अड़तीस गड्डियां गिनकर अपने हाथों से रखी थीं, वो ब्रीफकेस भी ले गये। पूरे अड़तीस लाख रुपया था। मैंने तो सुना था वो डकैती करता है, परन्तु अब वो चोरी करने लगा है, घटिया काम किया देवराज चौहान ने। तू चुपके से मेरे कान में बता दे कि देवराज चौहान कहां मिलेगा। मैं किसी को नहीं बताऊंगी और तेरे हाथ-पांव खोलकर, आलू का परांठा खिलाऊँगी तेरे को। बहन की बात मान जा इसी में तेरा भला है। वैसे भी तेरे में जान कहां है, जो तू ठुकाई सह सके।"
रात के साढ़े तीन बज रहे थे।
परन्तु किसी की आंखों में नींद नहीं थीं। बंधा पड़ा सोहनलाल राधा को देख रहा था।
"मेरी बात तेरे को अच्छी नहीं लगी?" राधा पुनः बोली।
“नहीं।" सोहनलाल गम्भीर था।
“ले।” राधा ने आलू के परांठे का टुकड़ा उसके मुंह की तरफ बढ़ाया--- "तू भी स्वाद देख ले, मैं कितने बढ़िया बनाती हूं।"
“शुक्रिया।" सोहनलाल व्यंग से बोला--- “मेरे हाथ-पांव बांधकर मुझे आलू के परांठे खिला रही हो।"
"खिला तो रही हूं ना, देवराज चौहान ने तो हमें भूखे पेट ही बांधे रखा। पानी तक नहीं पिलाया ।" राधा हाथ हिलाकर कह उठी--- “तब वो और जगमोहन बहुत खतरनाक लगा। दोनों की लाल आंखें। चेहरों पर गुस्सा और... ।”
“तो मोना चौधरी ने जरूर देवराज चौहान के साथ गड़बड़ की होगी।" सोहनलाल ने कहा।
"ऐसा होता तो मोना चौधरी जरूर बताती। वो कहती है उसने कुछ नहीं किया।"
“वो भूल गई होगी।”
“ऐसी बातें मोना चौधरी नहीं भूलती।” राधा ने कहा--- "सोहनलाल भाई, मैं तेरे भले के लिए ही कह रही हूं, देवराज चौहान का ठिकाना बता दे। नहीं तो अब तेरी खैर नहीं।"
सोहनलाल मुस्कराकर रह गया।
“तो तू नहीं बताने वाला ।”
"अगर तुम मुझे छोड़ दो तो मैं अड़तीस लाख रुपया दे दूंगा, जो देवराज चौहान ले गया है।"
“कहां से देगा?"
"अपने पास से।”
"हैं तेरे पास ?"
“बहुत हैं। नोटों की मुझे परवाह नहीं है। अड़तीस लाख के अलावा मेरे से और कुछ नहीं पता चलेगा।"
“मतलब कि तू देवराज चौहान के ठिकाने के बारे में नहीं बतायेगा ।"
"कभी नहीं ।"
“फिर तो तू ठुकाई के लिए तैयार....!"
तभी पारसनाथ और महाजन वहां पहुंचे।
"खा लिए आलू के परांठे। बढ़िया लगे ना।" राधा मुस्कराकर कह उठी।
"तू दूसरे कमरे में जा राधा!" महाजन बोला--- “इधर मत आना।"
"मैं समझ गई।” राधा उठते हुए बोली--- "मैंने सोहनलाल भाई को प्यार से समझा कर पूछा कि देवराज चौहान का ठिकाना कहां पर है, पर कहता है नहीं बताऊंगा। लेकिन हमारा अड़तीस लाख देने को तैयार है जो देवराज चौहान ले गया।"
मोना चौधरी भी वहां आ पहुंची थी।
"ये सीधी तरह नहीं बताने वाला।" पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा--- “इसके मुंह से निकलवाना पड़ेगा।”
"निकलवाओ।" कहकर राधा दूसरे कमरे में चली गई।
"तुम लोग मेरे साथ गलत व्यवहार कर....।”
"देवराज चौहान और जगमोहन ने भी मेरे और राधा के साथ गलत व्यवहार किया था।" महाजन दांत भींचे कह उठा--- “जगमोहन ने तो राधा पर हाथ उठाकर उसे बेहोश कर दिया था। इस बारे में क्या कहोगे सोहनलाल... !”
"पता नहीं क्या मामला है। एक बार मुझे देवराज चौहान से बात तो करने दो ताकि पता चले कि...।"
“इसका मुंह खुलवाओ।" मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी।
तभी महाजन की ठोकर सोहनलाल की कमर में पड़ी।
सोहनलाल के होंठों से चीख निकली।
“इसके मुंह में कपड़ा दे दो कि चीख ना सके।" मोना चौधरी बोली--- "वरना इसके चीखने की आवाज पड़ोस तक चली जायेगी।"
पारसनाथ ने कपड़ा तलाश कर, उसे सोहनलाल के मुंह पर बांध दिया।
सोहनलाल तड़पकर रह गया।
“बता।" महाजन दरिन्दगी भरे स्वर में बोला--- “देवराज चौहान का ठिकाना कहां है। वो कहां मिलेगा ?”
■■■
तीसरा दिन
सुबह आठ बजे ।
बिल्ला का वो ही एक कमरे वाला घर।
देवराज चौहान और जगमोहन की आंखें लाल सुर्ख हुई पड़ी थीं। चेहरे कठोरता से तप रहे थे। रात भर से ही दोनों कुर्सियों पर बैठे या फिर कमरे में टहलते रहे। कुछ खाया भी नहीं और सोये भी नहीं। परन्तु हर तरफ से वो चुस्त नज़र आ रहे थे। आपस में भी ना के बराबर बात कर रहे थे।
बिल्ला रात दो बजे लौट आया था और बैड पर जाकर सो गया। अभी तक सो रहा था।
हरीश खुदे अभी तक नहीं लौटा था।
आखिरकार देवराज चौहान, जगमोहन से सख्त स्वर में कह उठा---
“खुदे अभी तक वापस नहीं आया। कब का दिन निकल आया है।"
"कहीं वो देवेन साठी के लोगों के हाथ तो नहीं लग गया।" जगमोहन ने अपना विचार जाहिर किया।
“सम्भव है, ऐसा हो गया हो।"
“हम उसका और ज्यादा इन्तज़ार नहीं कर सकते।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा--- "हमें ही मोना चौधरी को तलाश करना होगा। पूरी रात यहां रहकर हमने खराब कर दी ये सोचकर खुदे सुबह तक मोना चौधरी का पता ले आयेगा।"
ये ही वो वक्त था जब खुदे ने भीतर प्रवेश किया। वो नींद से भरा और थका-सा नज़र आ रहा था। साफ लग रहा था कि पूरी रात वो सोया नहीं था ।
“मोना चौधरी कहां पर है?" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में पूछा ।
“नहीं पता लगा। मैं उसके फ्लैट पर भी गया। पारसनाथ के रेस्टोरेंट पर भी नज़र रखी और महाजन के घर भी गया। महाजन का घर उसी हाल में पड़ा है, जैसे हम छोड़कर आये थे। उसके बाद वे घर पर नहीं लौटे। पारसनाथ भी अपने रेस्टोरेंट में नहीं है। रेस्टोरेंट के चौकीदार से बातों-बातों में पता किया। मेरे ख्याल में वे तीनों एक साथ ही कहीं पर हैं। किसी नये ठिकाने पर मौजूद होंगे।” खुदे कुर्सी पर बैठ गया।
“तुमने हमारी सारी रात खराब कर दी। कुछ भी पता नहीं...।"
“खराब क्यों, तुम लोगों ने नींद ले ली...।"
“हमें नींद नहीं आती।” देवराज चौहान कह उठा।
“तो क्या सारी रात जागते रहे?" खुदे चौंका।
"हां...।"
“खाया भी कुछ नहीं ?"
"हमें भूख भी नहीं लगती। हमें सिर्फ मोना चौधरी की जरूरत... ।”
"हैरानी है।” खुदे के होठों से निकला--- "जब से तुम मुझे मिले हो, तब से कुछ खाया नहीं। सोये भी नहीं और चुस्त नजर आ रहे हो। ऐसा कैसे हो सकता है। तुम लोग इन्सान हो, रबड़ के पुतले नहीं जो...।”
“हमसे सिर्फ मोना चौधरी की बात करो।" जगमोहन दांत भींचे कह उठा ।
"मैं आज दिन में उसे कहीं से ढूंढ लूंगा।" खुदे ने कहा--- "एक घण्टा नींद ले लूं, उसके बाद... ।”
"ये हमारा दिन भी खराब कर देगा।" देवराज चौहान कह उठा।
"हमें खुद ही मोना चौधरी को ढूंढकर खत्म करना होगा।” जगमोहन गुर्रा उठा --- "ये तो पक्का है कि वो पारसनाथ के साथ, महाजन के साथ होगी। वो तीनों इकट्ठे हैं कहीं और हमसे मुकाबला करने की तैयारी कर रहे होंगे।"
“जल्दी मत करो।” खुदे बेचैनी से कह उठा--- “तुम दोनों के लिए बाहर खतरा है। यहीं रहना ठीक है। देवेन साठी के आदमी सारी मुम्बई में तुम लोगों को ढूंढते फिर रहे हैं। उनके हाथ पड़ गये तो उसी वक्त तुम दोनों को मार देंगे और हम डकैती नहीं कर सकेंगे। मोटे नोट हासिल करने का मेरा सपना अधूरा रह जायेगा। उधर मोना चौधरी भी तुम दोनों को ढूंढ रही होगी। उसके साथ पारसनाथ और महाजन होंगे। तुम दोनों का यहीं रहना सुरक्षित है। मुझे शाम तक का वक्त दो, मैं जरूर मोना चौधरी की खबर लाकर दूंगा। बस एक घण्टा नींद लेने दो। फिर मुझे उठा देना...।"
“हम मोना चौधरी को मारना चाहते हैं जगमोहन !” देवराज चौहान दांत भींचकर कह उठा--- "देवेन साठी से टक्कर लेने का हमारा कोई ख्याल नहीं है। मोना चौधरी ही हमारे लिए जरूरी है। वो ही हमारा शिकार है।"
"तो क्या करें?"
"खुदे को मोना चौधरी का पता लगाने दो। शाम तक ये पता लगा लेगा।"
"हां।" खुदे बोला--- “शाम तक मोना चौधरी का पता लग जाये, मैं पूरी कोशिश करूंगा।"
■■■
दिन के बारह बज रहे थे।
मोना चौधरी की आंख खुली। वो उठ बैठी। सुबह के आठ बजे तक वे सोहनलाल के साथ व्यस्त रहे थे। सोहनलाल का बुरा हाल हो गया था। शरीर और चेहरे पर जख्म ही जख्म थे, परन्तु उसने उनके सवाल का जवाब नहीं दिया था कि देवराज चौहान और जगमोहन का ठिकाना कहां पर है।
सोहनलाल मरने को तैयार था परन्तु मुंह खोलने को नहीं।
मोना चौधरी ने बेड पर सोये पारसनाथ पर नजर मारी। दूसरे बैडरूम में महाजन और राधा सो रहे थे। मोना चौधरी उठकर उस कमरे में पहुंची, जहां सोहनलाल था। पास पहुंचकर वो सोहनलाल को देखने लगी।
सोहनलाल के हाथ-पांव बंधे हुए थे। वो टेड़ा-मेड़ा होकर गहरी नींद में था। होंठों से कभी-कभार कराह भी निकल रही थी। कमीज फटकर झूल रही थी। शरीर पर और चेहरे पर तगड़ी मार-पीट के निशान थे। सोहनलाल की जगह कोई और होता तो पारसनाथ और महाजन की मार के आगे जरूर मुंह खोल देता, परन्तु सोहनलाल नहीं टूटा था।
वो देवराज चौहान का ठिकाना बताने को तैयार नहीं था।
मोना चौधरी समझ गई थी कि सोहनलाल मुंह नहीं खोलेगा।
"उठ गई मोना चौधरी!" पारसनाथ का स्वर कानों में पड़ा।
पारसनाथ भी सोया उठ आया था।
मोना चौधरी किचन की तरफ बढ़ते कह उठी---
“कॉफी लोगे ना?"
“जरूर...।"
किचन में पहुंचकर मोना चौधरी कॉफी बनाने लगी। वो गम्भीर थी।
पारसनाथ भी वहां आ पहुंचा।
"लगता नहीं कि सोहनलाल, देवराज चौहान का ठिकाना बताये।"
"तुम्हारा ख्याल सही है।" मोना चौधरी ने सिर हिलाया।
"रूस्तम राव और बांकेलाल राठौर देवराज चौहान का ठिकाना जानते हैं। वो...।"
"भूल जाओ पारसनाथ, वो इस बारे में कुछ भी नहीं बताने वाले।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- “अगर उन्हें इन हालातों का पता चला तो वो देवराज चौहान का साथ देने के लिए आगे आ जायेंगे। उन्हें छेड़ो मत।"
पारसनाथ ने होंठ भींच लिए।
"तो क्या किया जाये। हमने देवराज चौहान का किस्सा हर हाल में खत्म करना है।”
"देवराज चौहान को हम ही ढूंढेंगे।" मोना चौधरी सख्त स्वर में कह उठी।
“इसमें तो काफी वक्त लग जायेगा मोना चौधरी और...।"
"हो सकता है हमसे पहले देवेन साठी ही देवराज चौहान को खत्म कर दे। वो साठी के आदमियों के हाथ जा लगे।"
“ओह देवेन साठी को तो मैं भूल ही गया था।” पारसनाथ ने गम्भीरता से सिर हिलाया--- “पर मैं एक बार फिर सोहनलाल का मुंह खुलवाने की चेष्टा करूंगा। शायद वो बता ही दे ।”
"वो नहीं बताने वाला ।”
“पर मैं एक कोशिश और जरूर करूंगा।”
"उसकी जान नहीं जानी चाहिये।” मोना चौधरी ने कहा--- "ऐसे लोगों के बारे में याद करने की कोशिश करो जो देवराज चौहान के करीब हों और उसके ठिकाने की जानकारी रखते हों।"
“इस बात का पता करना पड़ेगा।” पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा।
"बेला (नगीना) को पता है देवराज चौहान का ठिकाना... ।”
“तुम्हारी पूर्वजन्म की बहन ?” पारसनाथ चौंका--- “देवराज चौहान की पत्नी ?"
“वो भी नहीं बतायेगी और उसे हालातों का पता चला तो हमारे खिलाफ खड़ी हो जायेगी।”
"बेला (नगीना) खतरनाक है।"
“उसे भूल जाओ।" मोना चौधरी कॉफी प्यालों में डालते कह उठी--- “वो बीच में आई तो बात बढ़ जायेगी। दूसरे कई लोग होंगे जो देवराज चौहान के ठिकाने की जानकारी रखते होंगे।"
पारसनाथ ने कॉफी का प्याला उठाया और किचन से बाहर आ गया।
मोना चौधरी भी कॉफी लिए किचन से निकल आई।
पारसनाथ सोहनलाल के पास पड़ी कुर्सी पर जा बैठा। कॉफी का घूंट भरा। कुछ पल वो सोहनलाल को देखता रहा फिर कॉफी का प्याला थामे दूसरे हाथ से मोबाइल निकाला और डिसूजा से बात की।
"क्या हो रहा है डिसूजा ?" पारसनाथ ने पूछा--- "वहां कोई आया क्या?"
"जी नहीं। सब ठीक है यहां।"
"तुम देवराज चौहान को तलाश करो तब तक तलाश करो, जब तक वो मिल ना जाये।”
"जी।"
“ऐसे लोगों के बारे में भी जानकारी लो जो देवराज चौहान के करीब हों और उसके ठिकाने के बारे में जानते हों। इस बीच अगर देवराज चौहान के कहीं होने की खबर मिले तो फौरन मुझे खबर करना।” कहकर पारसनाथ ने फोन बन्द करके जेब में रखा और कॉफी का घूंट भरा। नजरें नीचे पड़े सोहनलाल पर थीं जो कि अब हिल रहा था।
पारसनाथ की आवाज से उसकी बेहोशी भरी नींद टूटी थी।
मोना चौधरी कुछ कदम दूर कुर्सी पर बैठ गई थी।
पीड़ा से सोहनलाल के होंठों से कई कराहें निकलीं। कठिनता से वो आंखें खोल पाया। पास ही कुर्सी पर पारसनाथ को बैठे पाया फिर आंखें बन्द करते हुए कराह उठा ।
“सोहनलाल...!" पारसनाथ का स्वर कठोर भी था और गम्भीर भी--- "अगर तुमने देवराज चौहान के ठिकाने के बारे में ना बताया तो इसी तरह तड़प-तड़पकर मर जाओगे। हम फिर तुमसे पूछना शुरू करने जा रहे हैं।”
सोहनलाल ने कराह के साथ आंखें खोलीं। होंठ पीड़ा से कांप रहे थे।
“बोलो, देवराज चौहान का ठिकाना कहां पर है?" पारसनाथ ने पूछा।
"तुम कितनी भी कोशिश कर लो, पर मुझसे ये बात नहीं जान सकोगे।” सोहनलाल कराह भरे स्वर में कह उठा।
“अब तुम्हारी जान भी जा सकती है।"
"तुम जो चाहते हो वो करो। लेकिन ये ठीक नहीं किया तुम लोगों ने।”
"शुरुआत देवराज चौहान ने की है। हम तुम्हें सब कुछ बता चुके हैं।" पारसनाथ ने सख्त स्वर में कहा।
सोहनलाल ने पुनः आंखें बन्द कर लीं।
पारसनाथ ने कॉफी का घूंट भरा। गम्भीर निगाह सोहनलाल पर थीं।
"जवाब दो, देवराज चौहान का ठिकाना कहां... ?"
"जो बात मैं बताने वाला नहीं।" सोहनलाल ने कराह भरे स्वर में कहा--- “उसे पूछने से क्या फायदा?"
पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा।
मोना चौधरी ने इन्कार में सिर हिला दिया। उसी पल उसका फोन बज उठा।
"हैलो।" मोना चौधरी ने बात की।
“मोना चौधरी !” देवेन साठी की आवाज कानों में पड़ी--- "देवराज चौहान का कुछ पता चला?"
“पता लगाने की कोशिश चल रही है।"
"हमें भी नहीं मिल रहा। लगता है कहीं छिप गया है।" उधर से साठी ने कहा--- "तभी वो...।"
"देवराज चौहान छिपने वाले लोगों में से नहीं है।" मोना चौधरी बोली--- “मैं उसे अच्छी तरह जानती हूं। वो मुझे ढूंढ रहा होगा।"
"तो तुम उसे पुराना जानती हो?"
“हां...।"
"कैसे?"
“बस जानती हूं।" मोना चौधरी ने कहा--- “वो हममें से किसी को जल्दी ही मिल जायेगा।”
“ऐसा हुआ तो मुझे जरूर खबर करना ।"
मोना चौधरी ने फोन जेब में रखा और पारसनाथ ने कहा---
“यहां बैठे रहने का कोई फायदा नहीं। हमें बाहर खुले में चलकर देवराज चौहान की तलाश करनी चाहिये। तभी हम देवराज चौहान को ढूंढ सकेंगे। सोहनलाल पर तो हमने अपना वक्त ही खराब किया ।"
आंखें बन्द किए सोहनलाल के सूखे होंठों पर मुस्कान उभरी, फिर कराह उठा।
"मैं...।" पारसनाथ कुर्सी से उठता बोला--- “महाजन को उठाता हूं। फिर चलते हैं बाहर।"
■■■
नानिया घर पर ही थी और बहुत परेशान थी। सोहनलाल रात को गया था और अभी तक नहीं लौटा था और उसका फोन भी नहीं मिल रहा था। रात जाने से पहले सोहनलाल ने बताया था कि पारसनाथ, महाजन और मोना चौधरी आये हैं और वो बता रहे हैं कि देवराज चौहान खतरे में है, इसलिये उसे जाना होगा। आधी-अधूरी ही जानकारी थी नानिया के पास, ज्यादा कुछ नहीं पता था। मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन के बारे में इतना ही जानती थी कि इनका जन्म कभी पूर्वजन्म में हुआ था और ये भी देवराज चौहान के साथ पूर्वजन्म का सफर कई बार कर चुके हैं।
परन्तु नानिया को इस बात की चिन्ता थी कि सोहनलाल का फोन क्यों नहीं मिल रहा?
नानिया इस वक्त सोहनलाल की उस डायरी के पन्ने पलट रही थी, जिन पर सोहनलाल ने पहचान वाले के फोन नम्बर लिख रखे थे। तभी वो एक पन्ने पर जाकर रुक गई। वहां नाम और फोन नम्बर लिखे हुए थे कि उसकी नज़र बांकेलाल राठौर के नाम पर जाकर टिकी, जो कि ऊपर ही नाम लिखा था आगे फोन नम्बर ।
नानिया ने फोन उठाया और नम्बर डायल कर दिया।
दूसरी तरफ बेल गई और फिर बांकेलाल राठौर का स्वर कानों में पड़ा---
"हैलो...।"
“भैया, मैं नानिया बोल रही हूं। सोहनलाल की पत्नी...।"
“थारा नामो म्हारे को पता हौवे बहणो। सोहनलालो की पत्नी कहनो की जरूरत ना हौवे । बोल्लो... ।” उधर से बांकेलाल राठौर का स्वर कानों में पड़ा--- “आज तन्ने कैसो फोन कर दयो ?"
“मेरा मन बहुत घबरा रहा है भैया...!"
"चिन्ता कोणो ना ही। अमं अभ्भी जलजीरो का पैकिटो भिजवायो । उसो में नींबू निचोड़कर पिओ, सबो ठीको हो जायो।"
"व... वो बात नहीं है भैया...!"
"तम म्हारे को बोल्लो का बातो हौवे ?”
"सोहनलाल आधी रात को गया था। मोना चौधरी, पारसनाथ और नीलू महाजन आये थे उसे लेने। उन्होंने कहा कि देवराज चौहान का जीवन खतरे में है तो सोहनलाल तभी उनके साथ चला गया। तब से अब तक उसकी कोई खबर नहीं है। दोपहर हो रही है। उसका फोन भी नहीं मिल रहा। पता नहीं क्या बात है जो...।"
बांकेलाल राठौर की दो पल आवाज नहीं आई।
"बांके भैया!"
"अमं सोचो हो नानियो बहणो।" बांकेलाल राठौर का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा--- "यो तो बोत सीरियस बातों हौवे कि मोन्नो चौधरी, महाजनो और पारसनाथो आयो और उनके साथो सोहनलालो गयो कि देवराज चौहानो की जिन्दगी खतरे में हौवो। यो बात तो म्हारे को जंचो ना ही। गड़बड़ो लगे हो म्हारे को।”
“अब क्या होगा भैया...!"
"तमने म्हारे को बता दयो, ईब चैनो से बैठो। अमं सब देख लयो । तन्ने देवराज चौहानो, जगमोहनो को फोन करो हो ?”
"नहीं भैया! बस तुम्हें ही फोन किया है।"
“ठीको। ईब अमं देख लयो कै मामलो होवो। तमं चिन्तो मत करो। पर म्हारे को दाल में कालो दिखो हो। मोन्नो चौधरो को का चिन्ता हौवे देवराज चौहानो की जो आधी रातो को सोहनलालो को ले जायो हो। अगरो मामलो गड़बड़ भी हौवो तो जगमोहनो देख लयो। अमं थारे को बाद में फोन करो हो। नमस्कार बहणो, चिन्ता मत करो तमं ।"
■■■
बांकेलाल राठौर ने मोबाइल टेबल पर रखा। चेहरे पर गम्भीरता और सोच के भाव उभरे हुए थे। नानिया की बातें सुनकर जाने क्यों उसे गड़बड़ का एहसास हुआ। कुछ पलों बाद मोबाइल उठाकर देवराज चौहान का नम्बर मिलाया।
बात हो गई। बेल बजी फिर देवराज चौहान की गुर्राहट भरी आवाज कानों में पड़ी---
"हैलो।"
"म्हारे पर काये को गुस्सो उतारो हो देवराज चौहानो । सबो ठीको तो हौवे ?"
"क्या बात है?" स्वर में कठोरता थी।
देवराज चौहान के लहजे पर बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ीं ।
"देवराज चौहानो, अमं बांके बोल्लो हो।" उसने कहा।
"पता है, काम की बात करो।” देवराज चौहान का वैसा ही स्वर कानों में पड़ा।
"म्हारे को तमं ठीको ना लागो हो, तम... ।”
उधर से देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया।
बांकेलाल राठौर के चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे। कई पलों तक वो मोबाइल पकड़े बैठा रह गया। आंखें सिकुड़ चुकी थीं। कुछ समझ न आया कि क्या हो गया है।
"कोणो बातो तो जरूरो हौवे । देवराज चौहानो म्हारे से इज्जत से बात करो हो। ईब का हो गयो उसो को ?" बांके ने मोबाइल सम्भाला और पुनः नम्बर मिलाने लगा--- "जगमोहनो बतायो म्हारे को कि का बातो हौवे।” फोन कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल जाने लगी।
"हैलो ।” जगमोहन का सख्त स्वर कानों में पड़ा।
“अमं बांके बोल्लो हो जगमोहनो...!” बांकेलाल राठौर ने कहा।
"कह बांके!"
“थैंक्यू, थारे को म्हारा नामो यादो हौवे ।” बांकेलाल राठौर ने गहरी सांस ली--- “यो देवराज चौहानो का क्या हो गया जो ठीको से म्हारे से बात ना करो हो। बोत गुस्सो में...।”
“हमारे पास फालतू बातों का वक्त नहीं है।" जगमोहन की गुर्राहट कानों में पड़ी।
बांकेलाल राठौर के माथे पर बल पड़े।
"अमं बांकेलाल राठौर हौवे म्हारे को पहचानो नेई क्या?"
"बाद में बात करना बांके!" इसके साथ ही उधर से जगमोहन ने फोन बन्द कर दिया था।
“यो का हो गयो। म्हारी रैपूटेशन इतनी खराब हो गयो कि देवराज चौहानो, जगमोहनो म्हारे से बात ना करो हो ।” बांकेलाल राठौर गम्भीर स्वर में बड़बड़ा उठा--- “पक्को गड़बड़ हौवे। यो तो कोईयो बातों ही ना सुनो हो । मोन्नो चौधरी, महाजनो, पारसनाथो सोहनलालो को साथ ले गयो। फिर फोनो ना मिलो नानिया बहणो का। मोन्नो चौधरी बोल्लो हो कि देवराज चौहानो खतरो में हौवे । यो हौवे तो का देवराज चौहानो ईब म्हारे को बतायो ना। यां पे बैठो-बैठो बातो ना बनो हो, ऑफिस से बाहरो निकलनो पड़ो म्हारे को।"
बांकेलाल राठौर ने रुस्तम राव को फोन किया।
"हैलो।" रुस्तम राव की आवाज कानों में पड़ी।
"छोरे बोत जरूरी कामो आ गयो हो। अभ्भी...।"
"बाप।" रुस्तम राव की आवाज आई--- “अपुन बिजी होइया । भयखला में थापर साहब के साथ, पार्टी से मीटिंग करेला। छः बजे के बाद ही फुर्सत आयेला।" इतना कहकर रुस्तम राव ने उधर से फोन बन्द कर दिया।
"छोरो भी बिजी हौवो हो। ईब म्हारे को ही सबो कुछ सम्भालनों पड़ो हो।"
■■■
बांकेलाल राठौर ने देवराज चौहान के बंगले के बाहर ही कार रोकी और गेट को खोलता भीतर प्रवेश करता चला गया। भीतर बंगले का मुख्य दरवाजा बन्द था। उसने बेल बजाई।
दो-तीन मिनट तक बेल बजाता रहा। परन्तु भीतर से कोई नहीं आया।
"म्हारे को तो लागे भीतरो कोइयो ना हौवे।" बांकेलाल राठौर बड़बड़ाकर पोर्च में खड़ी कार के पास पहुंचा। भीतर झांका। कार खाली थी। बांकेलाल राठौर ने दरवाजे के पास पहुंचकर पुनः कॉलबेल बजाई।
कोई फायदा नहीं हुआ।
बांके ने जेब से मोबाइल निकाला और देवराज चौहान का नम्बर मिलाया।
"हैलो ।” देवराज चौहान का बेहद कठोर स्वर कानों में पड़ा।
"तमं का बंगलो पर ना हौवो। अमं बाहर खड़ो बेल मारो हो। किधरो हौवो तमं?” बांकेलाल राठौर ने पूछा।
उधर से देवराज चौहान ने फोन काट दिया।
"बन्द कर दियो। ईब म्हारी यो इज्जत रह गयो हो... ।” बांकेलाल राठौर ने सोच भरे स्वर में कहा--- "मामलो गड़बड़ो लागे हो।"
■■■
बांकेलाल राठौर महाजन के घर पहुंचा।
टूटा दरवाज़ा देखकर ठिठक गया वो। आंखें सिकुड़ गई। टूटे दरवाजे से वो भीतर प्रवेश कर गया। भीतर का हाल भी उसे ज्यादा बेहतर ना लगा। नाड़े के गांठ लगे टुकड़े पड़े देखे तो समझ गया कि इससे किसी को बांधा गया है। पूरा घर देख लिया, परन्तु ना तो महाजन मिला, ना राधा।
"यो मामलो तो टेड़ा होता लगो हो।' बांकेलाल राठौर बड़बड़ा उठा।
बांकेलाल राठौर जब पारसनाथ के रेस्टोरेंट पहुंचा तो शाम के साढ़े पांच बज रहे थे। डिसूजा दस मिनट पहले ही आया था और तब बाहर निकल रहा था जब उसने बांकेलाल राठौर को कार से बाहर निकलते देखा। उसकी आंखें सिकुड़ी और वो ठिठक गया। बांकेलाल राठौर ने उसे देखा तो फौरन उसके पास आ पहुंचा।
“डिसोजो! का हाल हौवे थारा?"
डिसूजा ने आंखें सिकोड़कर उसे देखा। देखता रहा।
"म्हारे से थारे को कोइयो नाराज़गी हौवो का?" बांकेलाल राठौर उसके चेहरे के भाव देखकर कह उठा।
"तुम यहां कैसे ?” डिसूजा कह उठा ।
"पारसनाथो से मिलने आयो हो। कल रातो को मोना चौधरी, पारसनाथो, महाजन, सोहनलाल को ले गयो, उसो की पत्नी नानियो का म्हारे को फोन आयो कि सोहनलालो का कुछ पता ना चल्लो हो।
"सर, यहां नहीं हैं।"
“सोहनलालो तो हौवे ?”
“मुझे इन बातों का कुछ नहीं पता।” डिसूजा ने कहा और आगे बढ़ गया।
बांकेलाल राठौर ने उसकी बांह पकड़कर रोका।
"म्हारे से नाराज़ लगो हो तम। मन्ने थारी भैसो तो ना खोल्लो हो।" बांकेलाल राठौर ने कहा।
“तुम यहां क्यों आये हो?"
"सोहनलालो को ढूंढो हो हम... ।”
“तुम मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ का पता लगाने आये हो कि वो कहां है।" डिसूजा उखड़ा।
"ये ही चाहो हो अमं... ।” बांके ने सिर हिलाया ।
“सोहनलाल का नाम लेना तो बहाना है। देवराज चौहान से कह देना कि वो बचने वाला नहीं।"
बांकेलाल राठौर चौंका।
"का मतलबो हो थारा?"
"मतलब तुम खूब जानते हो बांके!" डिसूजा ने कड़वे स्वर में कहा--- "देवराज चौहान ने भेजा है तुम्हें मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ का पता लगाने के लिए। चालाक बनने की कोशिश मत...।"
"थारी कसमो। अमं चालाको ना बननो हो। पर तमं का बोल्लो हो, म्हारे को ना पतो हौवे। देवराज चौहानो बीचो में किधर से आ गयो। अमं तो सोहनलालो की बातो करो हो।"
डिसूजा आगे बढ़ गया।
बांकेलाल राठौर ने उसे पुनः रोकते हुए कहा---
"थारी कसमो, म्हारे को कुछ भी पता ना हौवे। पर थारी बात सुनो के मामलो गड़बड़ लागो हो। तुम बतायो म्हारे को कि क्या मामलो हौवे। म्हारी तो बुद्धि खराब हो गयो हो थारी बात सुनकर।"
"बोला तो। तुम सब जानते हो देवराज चौहान मोना चौधरी की जान लेना चाहता है। वो पारसनाथ, महाजन और राधा के पीछे पड़ा है। पर अब वो बचेगा नहीं। मोना चौधरी उसे कभी भी खत्म कर सकती है।"
बांकेलाल राठौर बात को समझने की चेष्टा करने लगा।
"देवराज चौहानो, मोन्नो चौधरी की जान लेना चाहो हो...?" बांकेलाल राठौर ने पूछा।
"तुम्हें सब पता है फिर क्यों पूछते हो?" डिसूजा ने सख्त स्वर में कहा।
"म्हारे को कुछो ना पतो हौवे। भरोसा करो म्हारी बातों का। देवराज चौहानो मोन्नो चौधरी को क्यों मारनो चाहो हो ?"
“मेरे से बात मत करो...।" डिसूजा ने आगे बढ़ना चाहा ।
"अमं पारसनाथो से मिलनो चाहो...।"
"वो यहां नहीं है।"
"सोहनलालों को तलाश करो हो अमं। वो उन्हों के साथो....।"
"मुझे नहीं पता इस बारे में।" कहने के साथ ही डिसूजा आगे बढ़ गया।
बांके उसे तब तक देखता रहा, जब तक डिसूजा कार में बैठकर चला नहीं गया।
बांकेलाल राठौर के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
"देवराज चौहानो मोन्नो चौधरी को मारनो चाहो। यो तो पंगो लगो हो भारी-भरकम, म्हारे को...।"
बांके का फोन बज उठा ।
“हैल्लो...।” बांकेलाल राठौर ने फोन पर बात की।
"बाप, अपुन फ्री होइला।" रूस्तम राव की आवाज कानों में पड़ी।
"पर छोटे ईब अमं फ्री ना होवे हो। इधर तो गड़बड़ो दिखो हो भारी... ।"
“कौन-सा गड़बड़-झमेला बाप...?”
“देवराज चौहानों को मोन्नो चौधरी से कुछो पंगो हो गयो, लागो हो।"
"क्या बाप ?” रुस्तम राव की चौंकी आवाज आई--- “देवराज चौहान और मोना चौधरी का पंगा होइला ?"
“तमं अभ्भी, म्हारे को मिल्लो छोरे। इधरो तो बोत गड़बड़ो लागे हो।"
बांकेलाल राठौर और रूस्तम राव एक रेस्टोरेंट में मिले।
“बोल बाप, क्या लफड़ा होइला ?"
बांके ने सब कुछ रूस्तम राव को बताया।
सुनकर रूस्तम राव गम्भीर हो गया।
“ये तो रगड़ा खड़ा होइला बाप... ।"
“देवराज चौहानो म्हारे से ठीको बातो ना करो। जगमोहनो भी ऐसा ही करो हो। सोहनलालो को, मोन्नो चौधरी, पारसनाथो और महाजनो जानो किधरो ले गयो। डिसूजा म्हारे को बोल्लो मोना चौधरी, देवराज चौहानो को मार दयो। देवराज चौहानो और जगमोहनो बंगलो पर ना मिल्लो हो। म्हारी खोपड़ो में तो कुछो भी ना आयो छोरे !"
“आपुन मामला पता करेला बाप...!" रुस्तम राव गम्भीर स्वर में बोला।
"कैसो पतो करो। देवराज चौहान, जगमोहनो का तो पतो ही ना हौवे। महाजनो और पारसनाथो भी नेई मिल्लो हो। महाजनो के घरों का दरवाजा टूटो पड़े हो। घरों में कोइयो ना हौवे... ।”
“आपुन दोनों इन लोगों को ढूंढेला बाप !”
“किधरो ढूंढो तमं छोरे ?”
"इधर से निकल बाप, वो कहीं तो मिलेला...।"
रुस्तम राव का फोन बजा ।
"हैलो!" रूस्तम राव ने बात की।
“रुस्तम, अपुन बेड़े बोलता है।" उधर से आवाज आई।
"बोल बेड़े?"
"देवराज चौहान तुम्हारी पहचान का है ना?"
“हां।" रुस्तम राव की आंखें सिकुड़ीं।
"ये बोलने को जो फोन किया कि वो खतरे में है। अण्डरवर्ल्ड किंग देवेन साठी और उसके आदमी कल से अक्खी मुम्बई में उसे ढूंढते फिर रहे हैं। वो देवराज चौहान को छोड़ने वाले नहीं ।"
"मामला क्या फंसेला है बाप?” रुस्तम राव ने पूछा।
"देवराज चौहान ने देवेन साठी के भाई पूरबनाथ साठी को मार दिया है। देवेन, देवराज चौहान से बदला लेना चाहता है।"
"ये कब की बात होइला ?"
"परसों देवराज चौहान ने साठी को मारा।"
रुस्तम राव फोन बन्द करके बांकेलाल राठौर से बोला ।
“बाप, मामला बोत टेडा होईला। देवराज चौहान साठी को मारेला। उसका भाई देवराज चौहान से बदला लेने के वास्ते उसे ढूंढे ला। इधर मोना चौधरी से देवराज चौहान का पंगा होइला। देवराज चौहान तो फंसेला बाप!"
बांकेलाल राठौर ने कुछ नहीं कहा।
"चल बाप देवराज चौहान को ढूंढेला ।”
“पर छोरे अमं का कर सको हो। सबो से तो देवराज चौहानो पंगों लियो हो, ईब अमं...।"
"देवराज चौहान से बात करेला बाप, वो खतरे में होइला ।” रुस्तम राव खड़ा हो गया।
"देवराज चौहान को अमं ढूंढो, पर वो म्हारे को तो ना मिल्लो हो।"
“उठ जा बाप। आपुन दोनों देवराज चौहान को ढूंढेला ।”
बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंचा फिर वो खड़ा गया।
■■■
शाम साढ़े छः के बाद हरीश खुदे वापस लौटा।
देवराज चौहान और जगमोहन तब तक बहुत ज्यादा गुस्से में आ चुके थे कि दिन बीत गया परन्तु वो अभी तक कुछ ना कर सके। खुदे के भीतर आते ही देवराज चौहान गुर्राया।
"कहां है मोना चौधरी ?"
"नहीं पता लगा पाया, बहुत कोशिश की, परन्तु...।"
तभी देवराज चौहान का हाथ घूमा और खुदे के गाल पर जा पड़ा।
वहां मौजूद बिल्ला ये देखकर हड़बड़ा उठा।
चांटा इतना जबर्दस्त था कि खुदे का सिर घूम गया।
“मुझे क्यों मारते हो।” खुदे गुस्से से कह उठा--- “सारी रात और सारा दिन तुम दोनों के लिए भागदौड़ करता रहा कि मोना चौधरी की कोई ख़बर पा लूं और तुम ये इनाम दे रहे हो मुझे। वो भी बिल्ले के सामने।”
"चुप कर ।" देवराज चौहान ने दांत किटकिटाये।
"इसने हमारा सारा दिन खराब कर दिया। अब तक तो हमने हरामजादी को ढूंढ ही लेना था।” जगमोहन खतरनाक स्वर में कह उठा--- “अब हम ही ढूढेंगे उसे और बुरी मौत मारेंगे।"
"आओ।” देवराज चौहान दरवाज़े की तरफ बढ़ गया।
देखते-ही-देखते देवराज चौहान और जगमोहन बाहर निकल गये।
खुदे अभी तक गाल पर हाथ रखे खड़ा था।
“तुझे उन्होंने मारा खुदे !” बिल्ला कह उठा--- “मुझे तो बहुत बुरा लगा। वो तेरे मेहमान न होते तो मैं उन्हें छोड़ता नहीं।"
खुदे आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा। ना सोने के कारण आंखें भारी थीं।
“टुन्नी को पता चल गया कि तू लोगों से इस तरह मार खाता फिर रहा है तो...।”
"तूने फिर टुन्नी का नाम लिया।” खुदे ने उसे गुस्से से देखा ।
“घबरा मत। मैं टुन्नी को नहीं बताऊंगा कि तूने मेरे सामने मार खाई। सुनकर उसके दिल पर क्या बीतेगी। बेचारी।"
“मार मैंने खाई और बेचारी तू उसे कह रहा है।" खुदे झल्लाकर बोला।
इसी वक्त खुदे का फोन बज उठा ।
"हैलो ।” खुदे ने बात की।
“शाम हो गई है। आज तो आ रहे हो ना?" उधर से टुन्नी की आवाज आई।
"तेरे को बोला तो था कि मैं घर पर नहीं आ सकता। देवेन साठी के आदमी वहां पर नजर रखे हैं। तूने ही बताया...।"
"मुझे रात को नींद नहीं आती। आ जाओ ना... ।”
"मैंने तेरे को सामान बांधने को कहा था।”
"सामान है ही क्या जो बांधू। क्या सच में हमें ये घर छोड़कर जाना पड़ेगा।"
"हां। वहां मुझे खतरा है।"
तभी बिल्ला कह उठा---
"टुन्नी अकेले घर में बोर हो रही है। तुम्हें एतराज ना हो तो मैं उसके पास चला जाता हूं।"
"साले तू वहां जाकर क्या करेगा।" खुदे बिल्ले पर गुस्से से बोला।
"बातें करके उसका दिल बहला दूंगा।"
"चुपकर सड़े हुए।" खुदे बोला । फिर फोन पर टुन्नी से कहा-- "तो मैं क्या कह रहा...।"
"तुम बिल्ले के साथ हो?"
"उसी के घर पर हूं।"
"और देवराज चौहान?"
“वो अभी बाहर गया है।" खुदे ने आराम से कहा--- "रात तक आ जायेगा।"
"बिल्ला क्या कह रहा था?"
“कमीना, यूं ही बकवास करता रहता है।” खुदे ने कड़वे स्वर में कहा।
“मटर-पनीर जो तुम्हारे लिए बना रखे थे, वो मैंने खा लिए। एक कटोरी ही तो बची... ।"
"कोई बात नहीं।”
“तुम आ जाओ। अन्धेरा होने वाला है। तुम्हें आते कोई नहीं देख सकेगा।" उधर से टुन्नी ने कहा।
“मैं नहीं आ सकता। बन्द करता हूं फिर फोन करूंगा।"
"वो लठ का क्या हुआ जो... ।”
खुदे ने फोन बन्द कर दिया।
बिल्ला फौरन कह उठा---
"तुम टुन्नी को यहां क्यों नहीं ले आते ?"
“क्यों?" खुदे ने उसे घूरा।
"तुम घर नहीं जा सकते कि देवेन के आदमी वहां नजर रखे हैं। टुन्नी बेचारी अकेली वहां क्या करेगी। उसे यहीं बुला लो, तीनों मिलकर प्यार से रहेंगे। मैं टुन्नी का बहुत ध्यान रखूंगा। तुमसे भी ज्यादा।"
“उल्लू का पट्ठा....।"
"ऐसा मत कह।" बिल्ला दांत निकालकर बोला--- "मैं सच कह रहा हूं और तो और दाल-रोटी का खर्चा भी मेरा रहेगा। तेरे को टेंशन लेने की कोई जरूरत नहीं। एक रात तू बाहर सो जाया करना, एक रात मैं बाहर सो जाया करूंगा।"
"क्या बोला तू?" खुदे गुर्रा उठा ।
“जो टुन्नी की खुशी होगी।” बिल्ले ने जल्दी से कहा--- "इसमें टेंशन क्या...।"
“साले, चूतिये।” खुदे ने दांत भींचकर कहा--- “होटल से मेरे लिए खाना लेकर आ। खाना खाने के बाद मैंने सोना है। कल से मैं सोया नहीं। टुन्नी मेरी पत्नी है। ये बात मत भूल जाया कर।"
"ये ही तो याद रहता है कि वो तेरी पत्नी है, नहीं तो... नहीं तो...।"
"क्या नहीं तो...?"
“रहने दे, सुनकर तेरे को आग लग जायेगी।" बिल्ले ने कहा और बाहर निकल गया।
“कमीना, साला ।” खुदे बड़बड़ा उठा।
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन वहां से सीधा मोना चौधरी के घर पर पहुंचे।
दरवाजा खोला तो खुल गया। दोनों भीतर प्रवेश कर गये। मगर पूरा फ्लैट खाली था। मोना चौधरी उन्हें यहां नहीं मिली। भीतर का हाल वैसा ही था जैसा वे परसों छोड़कर गये थे।
"लगता है परसों रात के बाद वो लौटी ही नहीं।” जगमोहन गुर्रा उठा ।
वे फ्लैट से बाहर निकले तो सामने के फ्लैट से नन्दराम को झांकते पाया।
दोनों नन्दराम के पास पहुंचे।
“साईं तुम फिर...?” नन्दराम थोड़े से खुले दरवाजे से बाहर गर्दन फंसाये कह उठा--- “तुम तो... ।”
देवराज चौहान ने दरवाजे को धक्का दिया तो वो खुल गया।
नन्दराम हड़बड़ाकर पीछे हट गया।
दोनों भीतर प्रवेश कर गये। देवराज चौहान गुर्राकर बोला---
"मोना चौधरी कहां है?"
"मेरे को क्या पता वड़ी...। तुम दोनों ने उस दिन मार-पीट की। उसके बाद तो वो नहीं दिखी वड़ी।"
"उसके बाद वो फ्लैट पर नहीं आई?"
"नहीं नी। वो आती तो मेरे को जरूर पता होता। मैं तो चौबीस घण्टे इधर ही रहता है। पर बात क्या है वड़ी। तुम दोनों मोन्ना डार्लिंग के पीछे क्यों पड़े हो नी लफड़ा क्या हो गया।"
तभी देवराज चौहान का हाथ घूमा और नन्दराम के गाल पर पड़ा।
नन्दराम फौरन पीछे को जा गिरा।
“क्यों मारते हो नी । मैंने ऐसा क्या बोल दिया जो...।"
देवराज चौहान और जगमोहन बाहर निकलते चले गये।
"मोन्ना डार्लिंग भी बोत लफड़े पालती है नी। अब आयेगी तो शिकायत करूंगा।" नन्दराम बड़बड़ा उठा था--- “खामखाह चांटा मार दिया।"
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन पारसनाथ के रेस्टोरेंट पहुंचे।
शाम के नौ बज रहे थे। रेस्टोरेंट पूरी रौनक पर था। सब कुछ सामान्य चल रहा था। वे सीधा रिसैप्शन पर पहुंचे और वहां मौजूद युवक से देवराज चौहान ने दांत भींचकर पूछा---
"पारसनाथ कहां है?"
"वो तो कल से ही यहां नहीं है।” युवक उसे पहचान गया था कि परसों शाम इन्हीं दोनों के साथ रेस्टोरेंट की छत पर झगड़ा हुआ था।
"मैंने पूछा है कहां है?"
"पता नहीं सर, मैं तो यहां नौकर...।"
उसी पल देवराज चौहान का हाथ घूमा और युवक के चेहरे पर पड़ा।
युवक तीव्र कराह के साथ पीछे लड़खड़ाता चला गया।
"ये आप क्या कर रहे हैं सर!"
वहां दो-तीन लोग खड़े थे। उनकी निगाहें भी इधर ही ठहर गईं।
"पारसनाथ, महाजन, मोना चौधरी कहां हैं?" देवराज चौहान पुनः गुर्रा उठा ।
“मैं नहीं जानता। कह तो दिया, कल से सर रेस्टोरेंट में नहीं....।"
“ऊपर...?"
"वहां भी नहीं हैं।"
देवराज चौहान और जगमोहन ऊपर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ गये।
पहली मंजिल फिर छत पर बने कमरों में देखा।
वहां कोई नहीं था। जब वे नीचे पहुंचे तो डिसूजा को आराम से वहां खड़े पाया।
“पारसनाथ कहां है डिसूजा ?" जगमोहन ने दांत भींचकर पूछा।
“मुझे नहीं मालूम। वो आपको ही ढूंढ रहे हैं।” डिसूजा सतर्क स्वर में बोला।
"कहां ढूंढ रहे हैं।” देवराज चौहान गुर्राया--- "हम वहीं पहुंच जाते हैं।"
"मैं नहीं जानता कि वो कहां पर होंगे इस वक्त।"
“फोन करके पूछो कि... !"
"फोन नहीं लग रहा। मैंने अभी लगाया था।" डिसूजा ने कहा।
“साले तेरे को सब पता है।" कहने के साथ ही देवराज चौहान का घूंसा डिसूजा के पेट में लगा।
डिसूजा पेट पकड़कर दोहरा होता चला गया।
देवराज चौहान और जगमोहन पलटे और बाहर निकलते चले गये।
देवराज चौहान और जगमोहन, महाजन के घर पर पहुंचा।
घर पर पूरी तरह अन्धेरा था। दरवाजा वैसे ही टूट पड़ा था। भीतर पहुंचकर उन्होंने लाइट जलाई। परन्तु वहां सब कुछ वैसा ही दिखा जैसा कि वे कल छोड़कर गये थे।
“महाजन और उसकी पत्नी उसके बाद से घर नहीं लौटे।" देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
"वो लोग एक साथ ही कहीं पर हैं। छिपे हुए हैं।"
"वो छिपने वाले नहीं।" देवराज चौहान ने दांत पीसे--- "वो जरूर हमें ढूंढ रहे होंगे कि हमें मार सकें।"
"लेकिन हम पहले ही उन्हें मार देंगे।" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा।
"वो जहां भी हैं, उन्हें ढूंढना होगा। हम अभी तक मोना चौधरी को मार नहीं सके।"
"एक बार वो मिल जाये, मार देंगे।" जगमोहन के चेहरे पर क्रोध की सुर्खी थी। आंखें लाल हो रही थीं।
वे दोनों महाजन के घर से बाहर निकले और कार में बैठकर आगे बढ़ गये।
अभी वे सड़क पर पहुंचे ही थे कि एकाएक कार जगमोहन के कंट्रोल से बाहर होकर लहरा उठी और बगल की कार से टकराते-टकराते बची। जगमोहन ने फौरन कार को सम्भाल लिया था।
"क्या हुआ ?" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में पूछा।
"सिर में अचानक ही दर्द की टीस उठी थी।" जगमोहन कह उठा--- “अब ठीक है।"
"हमें मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ के पहचान वालों के बारे में जानना है। वो कहीं छिपे...।"
उसी पल पुनः कार पहले की तरह लहरा उठी।
जगमोहन ने फुर्ती से कार को सम्भालते हुए कहा---
"मेरे सिर में कुछ हो रहा है।" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा--- "सिर में दर्द भरी टीसें...।"
"सम्भालो अपने आपको। हमें बहुत काम करने हैं अभी। मेरे ख्याल में डिसूजा को उठा लाना चाहिये। उसके पास जरूर ख़बर होगी कि तीनों कहां पर...। आह...।" देवराज चौहान के होंठों से कराह निकली और दोनों हाथों से सिर को थाम लिया--- "दर्द उठ रहा है सिर में...।"
“मुझे भी ऐसा ही दर्द...।"
"कार रोक दो ।" देवराज चौहान सिर से हाथ हटाता बोला--- “बहुत ज्यादा दर्द हुआ था।"
जगमोहन ने सड़क के किनारे कार रोकी ही थी कि उसी पल उसके सिर में भी दर्द की टीस उठी। उसने भी दोनों हाथों से सिर को थाम लिया। होंठों से तीव्र कराह-सी उठी।
"बहुत पीड़ा हो रही...।"
देवराज चौहान के सिर में भी पुनः पीड़ा उठी।
"ओह, हमें कुछ हो रहा है।" देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली--- “कार से बाहर निकलो। इस हाल में हम कार नहीं चला सकते। हम दोनों के सिरों में दर्द क्यों हो रहा है।"
दोनों कार से बाहर निकल आये।
सड़क पर से वाहनों की कतारें जा रही थीं। हैडलाइटों में उनके चेहरे चमक रहे थे।
“अब ठीक है।" जगमोहन बोला--- “अब मैं कार चला सकता हूं।"
देवराज चौहान कुछ कहने लगा कि तभी उसके सिर में पीड़ा भरी टीस उठी। पुनः उसने दोनों हाथों से सिर थाम लिया। होंठ भिंच गये। आंखें बन्द कर लीं।
"क्या हुआ ?"
"फिर वो ही दर्द उठने लगा है।” देवराज चौहान के होंठों से निकला। अगले ही पल वो नीचे बैठता चला गया।
"हमें किसी डॉक्टर के पास जाना चाहिये।”
थम गया देवराज चौहान के सिर का दर्द। गहरी सांस लेकर वो उठता हुआ कह उठा---
“हम दोनों को दर्द क्यों हो रहा है। क्या बात... ।”
इसी वक्त जगमोहन के सिर में दर्द की लहर उठी। वो छोटी-सी चीख के साथ दोनों हाथों से सिर थामे नीचे बैठता चला गया। भयंकर पीड़ा उठी थी सिर में।
"हमें सड़क पर से हट जाना चाहिये। हमारी हालत देखकर यहां लोग आ सकते हैं। पुलिस भी आ गई तो मुसीबत...।"
जगमोहन की पीड़ा थम गई थी। वो उठ खड़ा हुआ।
"उधर पार्क है।” देवराज चौहान बोला--- “वो सामने, आओ उधर चलें।"
कार वहीं छोड़कर, दोनों तेजी से पार्क की तरफ बढ़ गये। जो कि कालोनी के बीच का छोटा-सा पार्क था। चार-पांच बैंचें पड़ी दिख रही थीं। परन्तु रोशनी नहीं थी वहां। पार्क में पहुंचते ही जगमोहन के सिर में पुनः दर्द की लहर उठी वो दोनों हाथों से सिर थामे घास पर लुढ़कता चला गया।
“बहुत दर्द हो रहा है सिर में।" जगमोहन तड़पकर बोला। देवराज चौहान उसे देखने के लिए झुका कि उसी पल उसके सिर में भी दर्द की लहर उठी और जगमोहन के पास ही लुढ़कता चला गया। जगमोहन ने अभी तक दोनों हाथों से सिर थाम रखा था।
“क्या हो रहा है हमारे सिर में?" देवराज चौहान दांत पीसते हुए कह उठा।
"डॉक्टर-डॉक्टर के पास...।" जगमोहन ने कहना चाहा।
"ह... हम अपने काबू में नहीं हैं ओह... मेरा सिर...।" देवराज चौहान घास पर पड़ा तड़प उठा।
दोनों इसी तरह मिनट भर तड़पते रहे।
धीरे-धीरे उनका तड़पना कम होने लगा। दोनों के शरीर ढीले पढ़ने लगे। चन्द पलों में ही दोनों बेसुध होकर वहां ढेर हुए पड़े थे। कोई होश बाकी ना बचा था उनमें।
पाठकों, आपने जान लिया कि बीते तीन दिन देवराज चौहान और जगमोहन के कैसे बीते थे और क्या-क्या किया इन्होंने इन तीन दिनों में। खुदे ने भी देवराज चौहान और जगमोहन को सब कुछ बताया है, परन्तु इतना नहीं बता पाया, जितना कि मैंने बताया है। मैंने इसलिये बता दिया कि हमें कहानी के साथ-साथ आगे बढ़ना है, इसलिए पता होना चाहिये कि क्या हो रहा है। अभी भी कई सवाल बाकी होंगे आपके दिमाग में, उनका जवाब भी आगे मिलने वाला है।
हरीश खुदे सब कुछ कहकर चुप हो गया।
देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे देखने लायक थे। वो समझ नहीं पा रहे थे कि अगर उन्होंने इतना कुछ किया है तो उन्हें कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा?
दोनों हक्के-बक्के से एक-दूसरे को देखते रह गये।
कई लम्बे क्षणों तक वहां सन्नाटा छाया रहा।
"इ... इसने जो बताया है, व... वो सब हमने किया?" जगमोहन कह उठा ।
देवराज चौहान होंठ भींचे था।
खुदे हैरान परेशान था कि इन्हें अपनी ही बातें याद नहीं। ये कैसे हो सकता है?
“ह... हमने तीन दिन तक कुछ भी नहीं खाया। तीन दिनों में एक मिनट के लिए भी नहीं सोये।" जगमोहन ने पुनः अजीब से स्वर में कहा--- “मुझे तो यकीन नहीं आता कि ऐसा हुआ है।"
खुदे मूर्खों की तरह जगमोहन को देखने लगा।
देवराज चौहान चुप रहा।
"तुम भी तो कुछ कहो कि...।"
"मैं सिर्फ ये सोच रहा हूं कि खुदे ने जो कहा है, वो सच है। क्योंकि देवेन साठी अफगानिस्तान से मुम्बई आ पहुंचा अपने भाई की मौत की खबर सुनकर और हमारी तलाश में आदमी लगा दिए। उधर मोना चौधरी हमें मारना चाहती है तो ये ही वजह होगी, जो खुदे ने बातें बताई हैं, जो हमें याद नहीं आ रही। लेकिन सवाल अपनी जगह खड़ा है कि हमने ऐसा क्यों किया। हमें याद क्यों नहीं कि हमने ऐसा किया। ये हमारे लिए बहुत बड़ा रहस्य...।"
"तुम कहीं मुझे बेवकूफ तो नहीं बना रहे।” खुदे उलझन भरे स्वर में कह उठा--- “तुम लोगों की बातें हैं और मुझे ही तुम दोनों को बतानी पड़ रही हैं। तुम लोग भूल कैसे सकते हो ?"
“तुम्हारे दिमाग की हालत मैं समझ सकता हूं।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "तुम... ।"
"तुम्हें ये भी याद नहीं कि तुमने मुझे डकैती में लेने को कहा था।” खुदे ने जगमोहन को देखा।
"मैंने ?”
“हां, तुमने।"
“मुझे याद नहीं।” जगमोहन सोच भरे स्वर में कह उठा।
"तो फिर मैं ही बेवकूफ था जो तुम लोगों के साथ चिपका रहा और देवेन साठी को पीछे डलवा लिया।” खुदे ने तीखे स्वर में कहा--- “मैं तो सोच रहा था कि तुम दोनों के साथ मिलकर करोड़ों रुपया बना लूंगा और टुन्नी के साथ आराम से जीवन बिताऊंगा। दुश्मन खड़े कर लिए तुम दोनों के चक्कर में...।"
"दिल छोटा मत करो, तुम्हारे लिए हम कुछ करेंगे।" देवराज चौहान ने कहा--- "लेकिन पहले हमें इस जंजाल से निकल जाने दो अभी भी हमें कुछ समझ नहीं आ रहा कि...।"
तभी जगमोहन उछलकर खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर चौंकने के भाव आ गये थे ।
देवराज चौहान और खुदे की निगाह उस पर गई।
"क्या हुआ?" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं।
“मुझे याद आ गया।" जगमोहन तेज सांसें लेता कह उठा--- "हम, हम विलास डोगरा से मिलने गये थे।”
"विलास डोगरा ?” देवराज चौहान उसी अन्दाज में बोला।
"हां, विलास डोगरा। साठी के बाद अण्डरवर्ल्ड में उसका ही नाम आता है। उसने हमें बुलाया था। कहा था कि वो मुसीबत में है। हम ही उसे मुसीबत से निकाल सकते हैं। ये रात की बात थी। अगले दिन ग्यारह बजे का प्लेन पकड़ना था हमने दिल्ली जाने के लिए तो हम सुबह साढ़े आठ बजे ही विलास डोगरा के पास...।"
“मुझे भी याद आ गया।” देवराज चौहान एकाएक बोला--- “हां, हम विलास डोगरा के पास गये थे। तब उसके पास रीटा नाम की लड़की भी थी। उसने हमें स्क्वैश लाकर दी थी ओह-ओह उसने हमसे कहा था कि पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी को खत्म करना है, परन्तु हमने मना कर दिया। हम उठ खड़े हुए, हमने मना करा, लेकिन, लेकिन उसके बाद क्या हुआ। क्या हुआ था उसके बाद?"
"पता नहीं। याद नहीं। उसके बाद का कुछ भी याद नहीं।" जगमोहन हक्का-बक्का-सा कह रहा था--- "तीन दिन तक हम क्या करते रहे, हमें नहीं पता और आज सुबह हमें होश आया तो हम उस पार्क में पड़े थे।"
देवराज चौहान के होठ भिंच चुके थे।
खुदे हैरानी से बारी-बारी दोनों को देख रहा था।
"वो तीन दिन हमें याद क्यों नहीं हैं?" जगमोहन के होंठों से निकला।
"इसका जवाब विलास डोगरा के पास जरूर होगा।” देवराज चौहान खतरनाक स्वर में कह उठा।
"वो कैसे?"
“वो चाहता था हम पूरबनाथ साठी को मारें। मोना चौधरी को मारें। परन्तु हमने मना कर दिया। लेकिन तीन दिन तक हमने वो ही किया, जो विलास डोगरा चाहता था और हमें याद तक नहीं कि हमने क्या-क्या किया। स्पष्ट है कि विलास डोगरा ने ही ऐसा कुछ किया कि हम उसकी बात मानते चले जायें।"
"ऐसा कैसे वो कुछ कर सकता है कि हम उसकी गलत बात भी मान लें?" जगमोहन कह उठा।
"मैं मानता हूं विलास डोगरा, ऐसा कुछ नहीं कर सकता, परन्तु उसने किया। अब तक जो बातें हमने जानी हैं, वो सब इसी तरफ इशारा करती हैं कि हम विलास डोगरा के कहे पर काम कर रहे थे। पूरबनाथ साठी की जान हमने ले ली। मोना चौधरी की जान लेने की चेष्टा में लगे हुए थे।"
"तो फिर हमने काम पूरा क्यों नहीं किया?"
"मैं नहीं जानता। मुझे तो ये भी समझ नहीं आता कि हम ऐसे काम पर लगे ही क्यों, जो हमें नहीं करना था। हम ये भी याद नहीं विलास डोगरा के उस ठिकाने से हम बाहर कब निकले। तुम्हें याद है?"
"नहीं...।" जगमोहन ने इन्कार में सिर हिलाया।
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता नाच उठी। वो बोला।
“हमारे सवालों का जवाब विलास डोगरा के पास है।"
"ये कैसे कह सकते... ।"
“उसी ने हमारे साथ कोई खेल खेला है।” देवराज चौहान गुर्रा उठा--- "एकमात्र वो ही है, जो हमारे सवालों का जवाब दे सकता है।"
जगमोहन के चेहरे पर भी कठोरता नाच उठी।
देवराज चौहान ने उसी पल फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा।
"विलास डोगरा को ?" जगमोहन के होंठ भिंच गये।
“हां, हमें कम-से-कम पता तो चले कि हमारे साथ क्या हुआ था।"
"वो स्वीकार करेगा कि उसने हमारे साथ कुछ किया है।" जगमोहन बोला।
"हम तो जानते ही हैं कि उसी ने हमारे साथ ऐसा कुछ किया है कि हम पागल हो गये।" देवराज चौहान ने मोबाइल कान से लगा लिया--- “विलास डोगरा तक पहुंचने की बात हमें याद है, उसके बाद कुछ भी याद नहीं और तीन दिन बाद हम खुद को एक पार्क में होश आया पाते हैं।"
उधर बेल जाने लगी थी ।
खामोश खड़ा, उनकी बातें सुनता खुदे कह उठा---
“बहुत अजीब लग रहा है तुम लोगों की बातें सुनकर। विश्वास नहीं आता।”
“अब तुम्हें ये तो यकीन आ गया कि हम दोनों सच में अजीब-सी मुसीबत में फंसे हैं।" जगमोहन ने कहा।
“ये तो वास्तव में बड़ी मुसीबत है।" खुदे ने गहरी सांस ली--- “परन्तु मैं अपने बारे में सोचता हूं तो और भी ज्यादा मुसीबत महसूस करता हूं कि तुम लोगों ने मुझे किस मामले में खींच लिया। कितने खतरनाक लोग मेरे आस-पास हैं। डकैती मास्टर देवराज चौहान, अण्डरवर्ल्ड किंग देवेन साठी, इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी। मैं कितने आराम से अपनी जिन्दगी जी रहा था कि तुम दोनों ने मुझे इस मामले में खींचकर तूफान में ला खड़ा कर दिया।"
"हम तो इस वक्त खुद अपने होश में नहीं हैं, ऐसे में तुम्हें जवाब दें तो क्या दें।" जगमोहन ने कहा और देवराज चौहान को देखा, जो अभी तक फोन कान से लगाये हुए था।
"बेल जा रही है। वो कॉल रिसीव नहीं कर रहा।"
"वो कमीना अब हमसे बात करेगा ही नहीं, वो...।"
बेल बजनी बन्द हो गई। देवराज चौहान ने पुनः नम्बर मिला दिया।
दूसरी तरफ बेल गई और विलास डोगरा की आवाज कानों में पड़ी।
"हैलो...।"
"विलास डोगरा...।” देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।
सामने मौजूद जगमोहन का चेहरा और भी कठोर हो गया।
खुदे की गम्भीर निगाह दोनों पर थी।
"कौन?" डोगरा की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी।
"विलास डोगरा !" गुर्रा उठा देवराज चौहान!
"ओह, देवराज चौहान। मुझे भी लगा ही था ये तुम्हारी आवाज ही है। कैसे हो? तुमने तो बहुत हंगामा मचा रखा है। पूरबनाथ साठी को मार दिया। मोना चौधरी को मारने के लिए दौड़े फिर रहे...।"
"तुमने मेरे साथ क्या किया डोगरा?" देवराज चौहान के दांत भिंच गये।
"मैंने?"
"हां डोगरा तूने। मैं और जगमोहन तेरे पास आये थे। उस दिन सुबह की बात तेरे को अच्छी तरह याद होगी। पर उसके बाद हमें पता नहीं चला कि हम कहां हैं, अब तीन दिन बाद होश आया तो...।”
उधर से विलास डोगरा के हंसने की आवाज आई।
देवराज चौहान का चेहरा सुलग उठा।
"हंस मत डोगरा । ये बता तूने क्या खेल खेला।"
"विलास डोगरा के खेलों को समझना आसान नहीं देवराज चौहान!” डोगरा की मुस्कराहट भरी आवाज आई।
"तूने हमें बुलाया कि तू मुसीबत में है। हम तेरी सहायता करने को पहुंचे और...।"
"इतना नाराज क्यों होता है देवराज चौहान, आराम से बातें कर, प्यार से।"
"मुझे मेरे सवालों का जवाब दे डोगरा...!"
"क्या करेगा जानकर...?"
"देवेन साठी और मोना चौधरी मेरे पीछे हैं। वो मेरी जान लेना चाहते हैं।"
"ऐसा तो होगा ही... ।"
"तेरे को पता है मैंने क्या किया, जगमोहन ने क्या किया, तीन दिनों में?"
“सब पता है।" उधर से डोगरा हंसा--- "मेरे दो आदमी तुम दोनों पर नजर रखे थे और मैं खुश हो रहा था, सब कुछ सुनकर। रीटा डार्लिंग भी मजे ले रही थी उन बातों को सुनकर। हम दोनों बहुत खुश हो रहे थे। तुम दोनों ने तो कमाल कर दिया। मेरा दिल खुश कर दिया, मैं तो...।"
"क्या किया था तूने?" देवराज चौहान गुर्राया ।
"एक मिनट...।" फिर देवराज चौहान ने विलास डोगरा को कहते सुना--- "रीटा डार्लिंग, एक बढ़िया पैग बनाकर दे। बहुत मजा आ रहा है बातों में। देवराज चौहान से बात कर रहा हूँ।" फिर वो देवराज चौहान से बोला--- “पूरबनाथ साठी को तूने कितनी समझदारी से घेरकर मारा। जो कभी किसी के हाथ नहीं आता, किसी को दिखता नहीं, उसे तूने कितना मजबूर करके शूट किया। तुमने सच में काबिले तारीफ काम किया है। मैं तुम्हें इनाम देना चाहता...।"
“असल बात पर आ डोगरा !" देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा।
"वो भी कहूंगा। पर पहले मुझे अपने मन की बात तो कहने दे। तेरी तारीफ ही कर रहा हूं, बुरी बातें तो नहीं कर रहा तुझसे।" डोगरा का हंसने का स्वर आया--- "पांच करोड़ का इनाम कैसा होगा?"
“डोगरा तुम...।"
“नोट एकदम असली दूंगा। नकली नोट तुम्हें नहीं दूंगा। वो तो बाजार में भेजता हूं। पाकिस्तान से करारे नोट छपकर आते हैं। वो मुझे मुफ्त में भेजते हैं और मैं उनसे अपना साम्राज्य चलाता हूं। किसी को पता भी नहीं चलता कि वो नकली हैं। असली से भी बढ़िया होते हैं। बढ़िया कागज, बढ़िया छपाई। पाकिस्तान वाले तो अब मास्टर हो चुके हैं नकली नोट बनाने में। तेरे को असली दूंगा, लेकिन तू करेगा क्या नोटों का? कोई फायदा नहीं। तेरे को खर्चने का वक्त ही नहीं मिलेगा। देवेन साठी तेरे को खत्म कर देगा। वो पागलों की तरह तेरी तलाश करवा रहा है। मेरे को सब खबरें मिल रही हैं। वो तेरे लिए सब कुछ भूला बैठा है। धन्धे की तरफ भी ध्यान नहीं दे रहा, आखिर तूने उसके प्यारे भाई को मारा है। तेरे को मारकर भी देवेन साठी को चैन नहीं मिलने वाला। वो अपने भाई से बहुत प्यार करता था। उधर मोना चौधरी भी तेरे को खत्म करने की फिराक में है। तू और जगमोहन तो गया।"
“बात हो गई पूरी तेरी ?" देवराज चौहान के दांत भिंचे पड़े थे।
“पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी ने मेरे अहम को चोट पहुंचाई थी। साठी को तूने निपटा दिया, मोना चौधरी बच गई, पर उसका इन्तजाम मैं देर-सवेर में कर ही दूंगा। मुझे तेरी और जगमोहन की अब परवाह नहीं है। तुम लोग तो देवेन साठी और मोना चौधरी से निपटते-निपटते ही मारे जाओगे। सब-कुछ बहुत बढ़िया... रीटा डार्लिंग, क्या पैग बनाया है तूने। एकदम वैसा ही जैसा मैं चाहता था। तू मेरा कितना ख्याल रखती है, तू ना होती तो मैं मर ही जाता।” रीटा के हँसने की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी। विलास डोगरा की आवाज पुनः देवराज चौहान के कानों में पड़ी--- "तो तू जानना चाहता है कि तेरे साथ क्या हुआ ?"
"हां।"
“मुझसे सब कुछ जानकर किसी को बतायेगा तो कोई भी तेरी बात का भरोसा नहीं करेगा। देवेन साठी और मोना चौधरी तो जरा भी ये बात नहीं सुनने वाले। पर मैं तेरे को सब कुछ बताता हूं। सुन तेरा इन्तजाम करने की मैंने कैसे तैयारी की...।”
रात के बारह बज रहे थे। दिन की अपेक्षा सड़कों पर अब ट्रेफिक कम हो गया था। वो काले रंग की विदेशी वैन थी जिसे पचास बरस का, काले-सफेद बालों वाला व्यक्ति चला रहा था। वैन के पिछले हिस्से में पैंतालिस बरस का विलास डोगरा मौजूद था और साथ में थी रीटा। रीटा ने अभी-अभी विलास डोगरा को पैग बनाकर दिया था। वैन के पीछे वाले हिस्से में छोटा-सा फ्रिज मौजूद था, जिसमें सारा साजो-सामान रखा था।
सीट पर पसरे डोगरा ने घूंट भरा और मस्ती भरे स्वर में कह उठा--- "ओह रीटा डार्लिंग, अगर तुम ना होती तो मेरा जाने क्या होता।"
"तो कोई और होती।” रीटा खिलखिला उठी।
डोगरा ने उसका हाथ थामा और झटके से उसे अपनी गोद में खींच लिया। गिलास थोड़ा-सा छलका फिर ठीक हो गया। डोगरा ने उसे चूमा और प्यार से कहा---
“दूसरी होती तो मेरा दिल नहीं लगता। तुमने तो मुझे पागल कर रखा है।"
"झूठ...।"
“सच रीटा डार्लिंग! तुम क्या जानो तुम क्या हो। मेरी नज़र से देखो, फिर पता चलेगा।”
रीटा खिलखिलाकर बोली---
“आशिकबाजी तो कोई आपसे सीखे। आपकी ये बातें सुनकर तो कोई सोच भी नहीं सकता कि आप अण्डरवर्ल्ड के बढ़े दादा हैं।”
"तुम्हारी आशिकी ने सब कुछ भुला दिया है।” कहकर विलास डोगरा ने गिलास खाली कर दिया।
डोगरा की जेब में पड़ा फोन बज उठा।
“रीटा डार्लिंग! देखना तो कौन है।” डोगरा गिलास को छोटे से टेबल पर रखता, वहां से सिगरेट का पैकिट उठाता बोला।
रीटा ने डोगरा की जेब में हाथ डाला और मोबाइल निकालकर बात की।
"हैलो ।”
“डोगरा साहब से बात कराओ। मैं अब्दुल्ला बोलता हूं।" उधर से आवाज आई।
“डोगरा साहब बिजी हैं, तुम बात कहो।” रीटा ने कहा ।
“मैं इन्तज़ार कर रहा हूं डोगरा साहब अभी तक आये नहीं... ।”
“रास्ते में हैं।” रीटा ने कहा और फोन बन्द करते बोली--- “अब्दुल्ला था। इन्तज़ार कर रहा है आपका।”
“बस थोड़ी देर, फिर हम अब्दुल्ला के पास होंगे।" डोगरा ने रीटा के होंठों पर चूमा--- “तुम हर रोज खूबसूरत होती चली जा रही हो। हर रोज नई लगती हो। ऐसा क्यों रीटा डार्लिंग!"
"बनाना तो कोई आपसे सीखे।" रीटा ने डोगरा को 'किस' किया।
"मेरी सच बातों को तुम झूठ क्यों समझती हो।"
"क्योंकि आप दिल्लगी बहुत करते हैं। शरारती बहुत हैं ।" रीटा हंस पड़ी।
"लेकिन ये तो सच है रीटा डार्लिंग, तेरी टक्कर की कोई दूसरी नहीं ।"
"ओह डोगरा साहब!” रीटा ने डोगरा के गले में बांहें डाली--- "मेरी तारीफ कर-करके आप मुझे पागल कर देते हैं।"
"तू खूबसूरत नहीं ?"
"हूं तो...।"
“तो झूठी तारीफ कहां करता हूं। खूबसूरती के साथ तेरे में दिमाग भी है। तू बोत काम की है।"
तब वैन की रफ्तार कम हुई। फिर वैन रुकती चली गई।
"लगता है हम पहुंच गये।" रीटा कह उठी।
“दया से पूछो...।"
रीटा वैन में आगे बढ़ी और छोटी-सी खिड़की सरकाते कह उठी---
“दया हम पहुंचे क्या ?"
“पहुंच गये मैडम!" उधर से वैन चला रहे दया की आवाज आई।
रीटा ने खिड़की बन्द की और वापस आते कह उठी---
“पहुंच गये डोगरा साहब!”
“गुड। दया को बोल कि आस-पास देखे, सब ठीक... ।”
"वो अपने आप देखेगा। हर बार कहना ठीक नहीं। वो अपना काम करना जानता है।"
डोगरा मुस्करा पड़ा।
"मेरे आधे काम तो तू ही सम्भाल लेती है रीटा डार्लिंग...!"
“आधे नहीं पूरे ।” रीटा ने शरारती स्वर में कहा--- “आप जैसे बच्चे को भी तो सम्भालना पड़ता है।"
तभी डोगरा का मोबाइल बजा ।
"हां।" डोगरा ने बात की।
"बाहर सब ठीक है।" दया की आवाज आई।
डोगरा ने फोन बन्द करके जेब में रखा और उठते हुए बोला---
“चलो, अब जरा अब्दुल्ला से मिल लें।"
रीटा ने आगे बढ़कर वैन का दरवाज़ा खोला और बाहर निकली।
डोगरा भी बाहर निकला। ठण्डी हवा का झोंका चेहरे से टकराया। रीटा ने दरवाजा बन्द कर दिया। फिर दोनों सामने की गली की तरफ बढ़ गये। आस-पास से इक्का-दुक्का लोग ही आ-जा रहे थे।
"किसी को भेजकर सामान क्यों ना मंगवा लिया।" रीटा कह उठी।
"मेरा ही आना जरूरी था।” विलास डोगरा ने शान्त स्वर में कहा।
दोनों गली में प्रवेश कर गये।
"अब्दुल्ला को बुला लिया होता।” रीटा ने कहा।
“उसका आना ठीक नहीं था।"
“आखिर सामान क्या है?"
“देख लेना रीटा डार्लिंग! तुम्हारे सामने ही बातचीत होगी।" डोगरा ने लापरवाही से कहा।
फिर वे गली के एक मकान के दरवाजे के पास पहुंचकर रुके। विलास डोगरा ने गली के दोनों तरफ निगाह मारी। इस वक्त गली पूरी तरह खाली थी और मात्र एक स्ट्रीट लाइट जल रही थी।
डोगरा ने दरवाज़ा थपथपाया।
लगभग फौरन ही दरवाजा खुला और अब्दुल्ला की आवाज आई।
“आइये डोगरा साहब!” भीतर भी अन्धेरा था।
विलास डोगरा और रीटा भीतर आ गये।
अब्दुल्ला ने दरवाजा बन्द किया फिर एक स्विच दबाकर लाइट ऑन कर दी।
"मैं दूसरी बार तेरे पास आया अब्दुल्ला!” डोगरा आगे बढ़ता कह उठा--- “एक बार चार साल पहले आया था।”
“आपको आने की जरूरत ही नहीं पड़ती डोगरा साहब! आपके लोगों का फोन आता है और मैं माल पहुंचा देता हूँ। लेकिन इस बार तो खास बात ही थी जो आपने आने की सोची।। कहते तो मैं आ जाता।"
“तू आता तो मेरे आदमी सोचते कि अब्दुल्ला क्यों आया। मैं किसी को सोचने का मौका नहीं देना चाहता।"
वे तीनों भीतर कमरे में पहुंचे।
ये साधारण-सा ड्राइंगरूम जैसा कमरा था। पीछे वाले दो कमरों में से आवाजें आ रही थीं। वहां पर अभी भी कुछ काम हो रहा था। डोगरा बैठते हुए बोला।
"मेरा सामान दे अब्दुल्ला! रात में अभी और कई काम करने हैं।"
रीटा, डोगरा के सोफे के पीछे सावधानी से खड़ी हो गई थी।
अब्दुल्ला ने जेब से तीन इंच लम्बी प्लास्टिक की छोटी-सी शीशी निकाली, जो कि आधी से ज्यादा पाऊडर जैसी चीज से भरी हुई थी। वो उसने डोगरा की तरफ बढ़ा दी। डोगरा ने अब्दुल्ला को देखा फिर शीशी पकड़ ली। बीच में पाऊडर जैसा पदार्थ था। डोगरा ने शीशी को हिलाया फिर अब्दुल्ला से बोला---
"बैठ...।"
अब्दुल्ला फौरन सामने बैठ गया।
"क्या है ये?"
“ये कठपुतली है। नशों का बाप है। आपने कुछ खास बनाने को कहा था। आपने कहा था कि ऐसा कुछ चाहिये, जो सामने वाले को आपके इशारे पर नाचने पर मजबूर कर दे। मैं इस नशे को कठपुतली कहता हूं। ये बाजार में नहीं मिलता। इसे सिर्फ मैं ही बना सकता हूं। कई परीक्षण करने के बाद, दो साल की मेहनत करके, मैं इस कठपुतली को बनाने में सफल हो सका हूं।"
"कैसे बनाया...क्या-क्या डाला है?"
“कठपुतली बनाने के लिए कई नशों का इस्तेमाल करना पड़ता है। हेरोइन, आइस, स्मिथ, स्मैक और ब्राऊन शुगर के साथ दो तरह के कैमिकलों की सहायता लेनी पड़ती है और इन्हें कई बार जार में डालकर तेज आग पर पकाना और बर्फ में रखकर ठण्डा करना पड़ता है। अंत में सूखी-सी पपड़ी रह जाती है, पपड़ी का रंग भूरा हो जाता है तो उसे पीस लिया जाता है। इसी तरह कठपुतली पाऊडर के रूप में तैयार हो जाती है जैसे कि अब आपके हाथों में पकड़ी शीशी के भीतर है।"
विलास डोगरा ने पुनः शीशी को देखा।
“कठपुतली?” डोगरा गम्भीर स्वर में बोला--- “अजीब नाम दिया है तुमने इस दवा को ।”
"ये बहुत खतरनाक नशा है। मात्रा ज्यादा दे दी जाये तो कठपुतली इन्सान को हमेशा के लिए पागल कर देती है। आपने कहा था कि ऐसा कुछ चाहिये कि जो सामने वाले को उसके इशारे पर नाचने पर मजबूर कर दे। पूरा सप्ताह लगाकर आज ही कठपुतली को तैयार किया है। आपने दो लोगों के लिए दवा बनाने को कहा था। ये दो लोगों के लिए ही है। शीशी में पड़े पाऊडर को बराबर मात्रा में आधा-आधा बांट लेना है। अगर इतनी मात्रा एक ही आदमी को दे दी तो वो पागल हो जायेगा। इसे इस्तेमाल करने में सावधानी बरतनी पड़ेगी।"
"इसे इस्तेमाल कैसे करना है और ये असर क्या करेगा अब्दुल्ला !" डोगरा बोला--- “मुझे सब कुछ बताओ ताकि मैं समझ सकूँ कि तुमने मेरे काम की चीज बनाई है या ऐसे ही कहे जा रहे हो।"
पल भर के लिए अब्दुल्ला मुस्कराया फिर गम्भीर होकर कहने लगा।
"सब बताता हूं। डोगरा साहब!" अब्दुल्ला गम्भीर स्वर में बोला--- “पहले इस कठपुतली को इस्तेमाल करने का तरीका...।"
"रीटा डार्लिंग....!" विलास डोगरा शान्त स्वर में कह उठा।
"जी, डोगरा साहब...!"
“ये जो बताने जा रहा है वो सुनना और जो बात मैं न समझ पाऊंगा, वो बाद में तुमसे पूछूंगा ।"
“समझ गई...।"
अब्दुल्ला ने पहलू बदलकर पुनः कहा।
"ये दो लोगों के लिये कठपुतली है। दो जगह बराबर की आधी-आधी बांटकर किसी को देनी होगी। ये स्वादहीन है। परन्तु इसे नशे वाली किसी भी चीज में मिलाकर ना दिया जाये जैसे कि शराब या बियर। ऐसा किया तो इसके असर में मजा ना आयेगा। पर्याप्त असर के लिए इसे जूस या स्कवैश में मिलाकर देना बेहतर होगा। कठपुतली शरीर में जाते ही अपना असर शुरू कर देती है। मात्र तीन-चार मिनट में ये पूरा असर दिखा देगी। दिमाग पर काबू पा लेगी। इसके असर के जो तीन-चार मिनट होते हैं, उसी वक्त के दौरान कठपुतली का सेवन करने वाले से जो बात की जा रही हो इन तीन-चार मिनट के दौरान कठपुतली का असर होने पर, सेवन करने वाला, उन्हीं बातों पर चलेगा। उसे ही सच मानने लगेगा। कठपुतली दिमाग पर ऐसा ही असर करती है जैसे कि... ।"
"एक मिनट।” विलास डोगरा ने टोका--- "तुम ये समझो कि मैं दो लोगों से, दो लोगों का मर्डर कराना चाहता हूं। तब इस कठपुतली के साथ मुझे क्या-क्या करना चाहिये कि मेरी बात पूरी हो जाये।"
"दो लोगों से दो लोगों का मर्डर....?” अब्दुल्ला बोला ।
"हां।"
"दोनों लोगों को एक साथ कठपुतली का सेवन करायेंगे या अलग-अलग...?"
"एक साथ ।” डोगरा की निगाह अब्दुल्ला पर थी।
“ठीक है।" अब्दुल्ला ने सिर हिलाया--- "जूस या स्कवैश में कठपुतली मिलाकर उन्हें दे दें और जब वो पीना शुरू करें तो उनके सामने अपनी बात रख दें कि आप उन दोनों को खत्म कराना चाहते...।"
"वो इन्कार करें तो ?”
"उन्हें इन्कार करने दीजिये। बस आप अपनी बात कहते रहें। कठपुतली उनके शरीर में जाकर असर कर रही है, उनका दिमाग कठपुतली की पकड़ में आता जा रहा है। तीन-चार मिनट तक आपने बार-बार ये बात कहनी है कि उन दो लोगों को खत्म करना है। उनके नाम लेते रहिये। तीन-चार मिनट में कठपुतली का असर हो जायेगा और तब तक उनके सोचने-समझने या इन्कार करने की शक्ति छिन चुकी होगी। कठपुतली का नशा उन्हें अपने कंट्रोल में कर चुका होगा और उनके सामने वो ही दो लोगों के नाम रह जायेंगे, जिनकी आप हत्या कराना चाहते हैं। उसके बाद कठपुतली का सेवन करने वाले, उन दोनों को मारने के लिए चल देंगे। कठपुतली नाम के नशे के वे गुलाम हो जायेंगे और आपका काम हो जायेगा।"
“सच में अब्दुल्ला, ऐसा ही होगा ?”
"ऐसा ही होगा डोगरा साहब! दो बार मैं इस कठपुतली का इस्तेमाल पहले भी कर चुका हूं। बढ़िया काम हुआ।”
“ये तो कमाल की कठपुतली है।” डोगरा मुस्कराया।
“इस नशे की दवा को कठपुतली नाम ही मैंने इसलिए दिया है कि सेवन करने वाले को ये अपने इशारों पर नचाती है।"
"शानदार। इसका असर कब तक रहता है?"
"तीन दिन। यानि कि बहत्तर घण्टे। इन तीन दिनों में कठपुतली का सेवन करने वाला सोयेगा नहीं, क्योंकि उसे नींद नहीं आयेगी। कठपुतली अपने असर से उन्हें चुस्त रखेगी। भूख भी नहीं लगेगी। यानि कि खाने और सोने की जरूरत नहीं। इन्सान अपने टारगेट की तरफ ही दौड़ता रहेगा। देखने वाले को महसूस नहीं होगा कि वो किसी तरह के नशे की पकड़ में हैं। सिर्फ आंखें लाल रहेंगी। साठ घण्टे तक कठपुतली का सेवन करने वाला नशे में लाल आंखों के साथ रहेगा। जब कठपुतली का नशा उतरना कम होना शुरू होगा तो सिर में दर्द उठना शुरू हो जायेगा। उसके बाद उसे नींद आ जायेगी। जब वो सोया उठेगा तो उसे कुछ भी याद नहीं रहेगा कि इन तीन दिनों में उसने क्या किया है। क्योंकि उस समय भी 'कठपुतली' का असर उसके दिमाग पर बाकी रहेगा।"
“फिर कब पता लगेगा कि तीन दिनों में उसने क्या किया है?"
“ये बात उसे कभी भी पता नहीं चल पायेगी, क्योंकि 'कठपुतली' ने उसे जो नाच दिखाया है, वो अपने असर से दिखाया है। एक बार दोबारा सोने पर 'कठपुतली' लेने वाला कुछ सामान्य होगा और धीरे-धीरे उसे वो वक्त याद आ जायेगा जब उसने 'कठपुतली' का सेवन किया था। बस, वहीं तक यादें बाकी रहेंगी मतलब कि 'कठपुतली' के नशे में उसने जो किया है, वो उसे कभी भी याद नहीं आयेगा। नशा उतरने पर भी एक दिन लगेगा सामान्य होने में।"
"मुझे विश्वास नहीं आता कि तुम्हारी बनाई नशे की दवा इतना बढ़िया काम करेगी।"
“एक बार इस्तेमाल तो करके देखिये डोगरा साहब।" अब्दुल्ला मुस्कराया।
"रीटा डार्लिंग।" डोगरा कह उठा।
"जी डोगरा साहब...!" डोगरा के पीछे खड़ी रीटा कह उठी।
"तुमने सुना...।"
"जी।"
"सब समझ लिया?"
"पूरी तरह।"
"तुम्हारा जवाब नहीं। तुम बहुत समझदार हो।" डोगरा कठपुतली की शीशी को जेब में डालता कह उठा--- “अब्दुल्ल इस दवा की कीमत इसे इस्तेमाल करने के बाद दूंगा।"
"कीमत मांगी ही किसने है?"
"मैं मुफ्त में कभी कुछ नहीं लेता।"
"ये आपका बड़प्पन है।"
"अगर तुम्हारी इस कठपुतली ने, तुम्हारे बताये ढंग से काम ना किया तो...?" डोगरा ने अब्दुल्ला को देखा।
"ये पूरी तरह काम करेगी।"
“जरूर करेगी।” डोगरा ने सिर हिलाया--- "पर, अगर काम ना किया तो?"
अब्दुल्ला ने बेचैनी से पहलू बदला ।
"तो मैं तुम्हारा काम कर दूंगा।” विलास डोगरा ने कहा और उठ खड़ा हुआ--- "रीटा डार्लिंग !”
"जी डोगरा साहब...!"
"हमें अब चलना चाहिये।”
"सुन रहे हो देवराज चौहान!” विलास डोगरा की मुस्कान भरी आवाज कानों में पड़ी।
देवराज चौहान के मस्तिष्क को झटका लगा और उसने गहरी सांस ली। चेहरे पर अजीब से भाव थे और गुस्सा भी था वहां। पास मौजूद जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर ही थी।
"तुमने।” देवराज चौहान के होंठों से निकला--- “बहुत गलत किया डोगरा !"
"मैंने सही किया। डोगरा कभी गलत नहीं करता...।"
“तुमने गलत किया। मेरे साथ, जगमोहन के साथ तुम्हें ऐसा नहीं करना...।"
"देवराज चौहान!" उधर से डोगरा हंसकर बोला--- "डोगरा ने हमेशा ही बड़े-बड़े खेल खेले हैं। डोगरा जो करता है सही करता है। सच में कठपुतली का जवाब नहीं। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि वो इस हद तक काम करेगी। तुमने और जगमोहन ने कितनी आसानी से पूरबनाथ साठी को खत्म कर दिया। लेकिन मोना चौधरी रह गई और कठपुतली का असर खत्म हो गया। कोई बात नहीं। मोना चौधरी को मैं किसी और ढंग से देख लूंगा, वो तो...।"
"डोगरा, तुम्हारी वजह से मोना चौधरी मेरी दुश्मन बन गई है। देवेन साठी मुझे मार देना चाहता...।"
"ये तो होना ही था देवराज चौहान! लेकिन तुमने मुझे खुश कर दिया। मैं तो कठपुतली का दीवाना हो गया। ऐसी जादूगरी वाली चीज मैंने कभी नहीं देखी। अब्दुल्ला सच में बहुत काबिल इन्सान है। मैंने खुश होकर उसे बहुत बड़ी रकम दी है।" विलास डोगरा की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ रही थी--- "मैंने तुम्हें अपने पास बुलाया उस दिन तो ये भी कहा कि जगमोहन को लेकर आना। मैं चाहता हूं तुम दोनों एक साथ मेरी बात सुनो। तुम दो बार पहले भी मेरा काम कर चुके हो। इसलिये मेरे झांसे में आ गये। जगमोहन के साथ सुबह नौ बजे ही तुम मेरे पास आ गये। क्योंकि ग्यारह बजे की फ्लाइट से तुमने दिल्ली जाना था। मैंने तुम्हें बता दिया था कि मैं किस ठिकाने पर मिलूंगा। तुम नहीं जानते थे कि तुम दोनों के साथ क्या होने वाला है वो सुबह कितनी बढ़िया लग रही थी। मैं कोई भी बात भूला नहीं हूँ। मुझे सोये उठे ज्यादा देर नहीं हुई थी। लेकिन मैं जल्दी से थोड़ा-बहुत तैयार हुआ। तब मेरी रीटा डार्लिंग मेरे पास थी, वो खूबसूरत शह हमेशा ही मेरे पास रहती है...।"
"रीटा डार्लिंग!" विलास डोगरा ने मुस्कराकर कहा--- "तुम भूली तो नहीं काम कैसे करना है।"
“मैं कभी भी कुछ नहीं भूलती डोगरा साहब! खासतौर से आपका काम।" रीटा ने जानलेवा मुस्कान के साथ कहा।
"तुम्हारी इसी अदा पर तो मेरी जान निकली रहती है। तुम मेरा कितना ध्यान रखती हो।” विलास डोगरा ने रीटा का हाथ पकड़कर चूमा--- "जानती हो अगर मैं शादी करता तो मेरी पत्नी तुम ही होती।"
“खूब।” रीटा ने उसी लहजे में कहा--- “पर मैं शादी नहीं करना चाहूंगी।"
"वो क्यों ?"
“शादी के बाद प्यार कम हो जाता है। प्यार की गर्माहट खत्म हो जाती है। जब तक शादी नहीं होती, एक-दूसरे को साथी के खो जाने का डर लगा रहता है, ऐसी स्थिति में दोनों सम्भलकर रहते हैं। आप मुझे रीटा डार्लिंग कहते हैं। शादी के बाद रीटा कहेंगे और कुछ महीनों बाद हरामजादी, कुतिया कहने लगेंगे।" रीटा ने अदा के साथ कहा।
"ओह रीटा डार्लिंग, तुमने कितनी सच बात कही है। एकदम सही। मैं तो तुम्हारा कद्रदान हूं। तुममें बहुत ज्यादा समझ है तभी तो मेरी हर बात समझ जाती हो। लाजवाब हो तुम।"
सुबह के 8.45 बज रहे थे। विलास डोगरा और रीटा इस वक्त बहुत ही खूबसूरत हॉल के सोफों पर धंसे पड़े थे। ये डोगरा का स्काई मैनशन नाम की इमारत का एक ठिकाना था और देवराज चौहान, जगमोहन कभी भी आ सकते थे। डोगरा के शरीर पर सिल्क का गाऊन था और रीटा ने नाइटी के ऊपर गाऊन डाल रखा था। दोनों के चेहरों पर अभी भी रात की नींद का खुमार बाकी था।
“डोगरा साहब...!”
"हूं...।” डोगरा ने प्यार से रीटा का हाथ पकड़ा हुआ था।
"मौला हुसैन पर आप बहुत ज्यादा भरोसा करते हैं।” रीटा ने कहा।
"भरोसा नहीं करना चाहिये क्या?" डोगरा ने रीटा को देखा।
“पहले तो वो भरोसे वाला था। पर अब बदल गया है। कल ही मुझे पता चला।”
“बोलो...।" डोगरा गम्भीर दिखने लगा।
“मौला हुसैन कई सालों से आपके ड्रग्स के सारे कामों व देखभाल कर रहा है शायद दस साल तो हो गये। वो मेरे से भी पहले का आपसे जुड़ा हुआ है। मुझे तो आपके साथ पांच साल ही हुए हैं।” रीटा ने अपना सिर डोगरा की छाती पर रख दिया। डोगरा उसके सिल्की बालों को सहलाने लगा--- “पता चला है मौला हुसैन आपका काम छोड़कर अपना ड्रग्स का काम शुरू करने जा रहा है।"
डोगरा ने फौरन रीटा को पीछे कर दिया।
“ये नहीं हो सकता।” डोगरा के होंठों से निकला--- “उसकी इतनी हिम्मत नहीं कि...।"
“मुझे रमेश टूडे ने बताया है।"
"रमेश टूडे।" डोगरा की आंखें सिकुड़ी--- "रमेश टूडे की बात पर मुझे भरोसा नहीं। मैं पता लगाऊंगा कि सच क्या है।"
तभी इण्टरकॉम का बजर बजा।
"देख-देख।" डोगरा जल्दी से बोला--- "देवराज चौहान के आने की खबर होगी।"
रीटा उठी और इण्टरकॉम के पास पहुंचकर रिसीवर उठाया। बात की फिर रिसीवर रखा।
"देवराज चौहान और जगमोहन आ गये हैं। मैंने शेरा को कहा कि उन्हें यहां पहुंचा दे।” रीटा ने कहा।
“सब बढ़िया हो रहा है। सब काम ठीक से हो रहे हैं।" डोगरा सिर हिलाकर कह उठा--- "तुमने कठपुतली को बराबर-बराबर आधा बांट लिया है ना?"
“मेरे काम की फिक्र मत कीजिये। मैं तैयार हूं।"
“देखता हूं अब्दुल्ला की कठपुतली में कितना दम है। वो, मेरे से झूठ तो बोलेगा नहीं....।"
दो-तीन मिनट बीते कि एक तरफ का दरवाज़ा खुला और शेरा ने देवराज चौहान और जगमोहन के साथ भीतर प्रवेश किया। विलास डोगरा फौरन उठकर खुशी से उनकी तरफ बढ़ता कह उठा।
“आओ देवराज चौहान, आओ। सुबह-सुबह तुमसे मिलकर कितना अच्छा लग रहा है। तुम कैसे हो जगमोहन?"
विलास डोगरा ने देवराज चौहान और जगमोहन से हाथ मिलाया।
शेरा बाहर चला गया।
“ये मेरी रीटा डार्लिंग। पहले भी दो बार मिल चुके हो इससे। ये मेरा बहुत ध्यान रखती है। ना होती तो मैं शायद कोई भी काम ना कर पाता। आओ, उधर सोफे पर बैठते हैं। बहुत जरूरी बात करनी है।"
वे सोफों पर जा बैठे।
रीटा कई कदम दूर चेहरे पर स्वागत भरी मुस्कान लिए खड़ी थी।
“ये बताओ कि क्या लोगे। सुबह-सुबह तो जूस या स्कवैश लेना ही ठीक...।"
"डोगरा !" देवराज चौहान बोला-- “हमें दिल्ली की फ्लाइट पकड़नी है, तुम्हें बता चुका हूं कि.....।"
“जानता हूं-जानता हूं तुम दिल्ली जा रहे हो। पर मुझे भी तो स्वागत का थोड़ा-सा मौका दो। तुम तो वैसे भी कभी-कभी हाथ के नीचे आते हो। रीटा डार्लिंग! जल्दी से दो गिलासों में जूस ले आओ।"
"अभी लाई डोगरा साहब...!" कहकर रीटा तेजी से एक तरफ बढ़ गई।
“अब बात शुरू करो।" जगमोहन बोला।
"इतनी भी जल्दी मत करो। मेरी बात सिर्फ पांच मिनट की है। तुम दोनों दस मिनट में फारिग हो जाओगे।" विलास डोगरा ने सिर हिलाकर कहा--- “आजकल धन्धा करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। पुलिस का चक्कर, गैंगवार का लफड़ा, मेरे जैसे लोगों को तो अब कोई और काम देख लेना चाहिये।"
“बहुत परेशान हो।" जगमोहन ने कहा।
"तभी तो तुम दोनों को बुलाया। मुझे मुसीबत से निकालो। वरना डोगरा तो गया ।"
"क्या समस्या है।"
“वो देखो। रीटा डार्लिंग जूस ले आई। ये बहुत अच्छी है। हर काम फुर्ती से करती है।"
"आप तो यूं ही मेरी तारीफ करते हैं डोगरा साहब!" ट्रे में जूस के दो गिलास रखे रीटा ने करीब पहुंचते हुए कहा।
“लो देवराज चौहान, जगमोहन तुम भी। जूस लो और मेरी बात सुनो। जब तक जूस का गिलास खत्म होगा, मेरी बात खत्म हो जायेगी।" विलास डोगरा ने कहा।
"ऐसा था तो बात तुम फोन पर भी कह सकते थे।" जगमोहन ने जूस के दो घूंट एक साथ लिए ।
"फोन वाली बात नहीं है।" डोगरा ने सिर हिलाया--- "मेरी बात तो पांच मिनट की है, परन्तु तुम दोनों ने जवाब भी तो देना है। तुम लोग भी तो वक्त लोगे। जूस तो खत्म करो।"
देवराज चौहान ने घूंट भरा।
रीटा चन्द कदमों के फासले पर सेविका की तरह खड़ी थी।
"मैं तभी धन्धे में टिका रह सकता हूं जब पूरबनाथ साठी की जान निकल जाये।"
“पूरबनाथ साठी!” देवराज चौहान के होंठों से निकला--- "वो अण्डरवर्ल्ड किंग।”
"वो ही, वो ही।” विलास डोगरा बहुत सावधानी से, अब्दुल्ला के कहे मुताबिक बात कर रहा था--- “पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी ने मेरा जीना हराम कर दिया है। कुछ करना पड़ेगा इस बारे में।"
"मोना चौधरी ?" जगमोहन के होंठों से निकला। उसने देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान ने बेहद शान्त भाव से जूस का पूरा गिलास खाली कर दिया। रीटा फौरन पास पहुंची और देवराज चौहान से खाली गिलास लेकर पीछे हट गई।
"हमें अब चलना चाहिये डोगरा !” कहने के साथ ही देवराज़ चौहान उठ खड़ा हुआ।
"ये क्या कह रहे हो, मेरी बात तो सुन...।"
“मेरे ख्याल में तुम चाहते हो कि हम तुम्हारे लिए पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी को मारें तो हम ऐसा नहीं करने वाले। ये हमारा धन्धा नहीं है। ये काम तुम किसी और से।"
जगमोहन भी जूस का गिलास खत्म करके उठ खड़ा हुआ।
रीटा ने उससे गिलास ले लिया।
“सुनो तो। तुम बहुत जल्दी करते हो देवराज चौहान! बात तो पूरी तरह सुन...।”
"तुम साठी और मोना चौधरी को खत्म करवाना चाहते हो ना?" जगमोहन बोला।
“हां। मैं साठी और मोना चौधरी को तुम्हारे हाथों खत्म करवाना चाहता हूं।” डोगरा बहुत सावधानी से कह रहा था--- "वो जानता था कि कठपुतली का असर तीन-चार मिनट तक पूरा हो जायेगा। तब तक दोनों को इसी बात में उलझाए रखना चाहता था। अब्दुल्ला ने ऐसा ही कहा था--- “मोना चौधरी और साठी ने मुझे बरबाद कर दिया है। मेरे धन्धे खत्म करवा देना चाहते हैं दोनों। मोना चौधरी मेरी जगह ले लेना चाहती है। वो...।"
“मोना चौधरी कभी भी तुम्हारी जगह नहीं लेगी... ।” देवराज चौहान ने कहा।
"साठी मोना चौधरी का साथ दे रहा है।” डोगरा कहे जा रहा था--- "साठी कभी भी मुझे पसन्द नहीं करता। वो जानता है कि मैं उसकी मौत चाहता। तुम दोनों मोना चौधरी और साठी को मार दो। तुम ही मार सकते हो उन्हें। साठी को खत्म कर दो देवराज चौहान। जगमोहन तुम भी साठी को मारो। मोना चौधरी को मारो। मेरी बात तुम्हें माननी ही होगी। तुम दोनों मुझे मुसीबत से निकाल सकते हो साठी और मोना चौधरी को मारकर। उनकी मौत के बाद मुझे किसी का डर नहीं रहेगा। मेरे लिए...।"
"नहीं डोगरा ! ये काम हम नहीं करेंगे।"
डोगरा ने देखा देवराज चौहान और जगमोहन की आंखों में सुर्खी आने लगी थी।
"तुम दोनों मेरा काम करोगे। पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी को जान से मार दोगे।" उनकी आंखें लाल देखकर डोगरा उत्साहित होकर कह उठा--- “उन्हें मारना मामूली काम है तुम दोनों के लिए। पहले साठी को मारना फिर मोना चौधरी को। दो घण्टों में तुम ये काम पूरा कर दोगे। साठी और मोना चौधरी इस बात का इन्तजार कर रहे हैं कि तुम दोनों आओ और उन्हें मार दो। वो दोनों मरने को तैयार हैं। वो जहां भी हैं उन्हें ढूंढो और खत्म कर दो। मेरे दुश्मन हैं दोनों, सोचते क्या हो, मार दो उन्हें... ।”
देवराज चौहान और जगमोहन की आंखों की लाली बढ़ती जा रही थी। चेहरे कठोर होते जा रहे थे। दोनों की नज़रें विलास डोगरा पर टिकी थीं। डोगरा कहता जा रहा था---
"मेरे लिए तुम दोनों साठी और मोना चौधरी को नहीं मार सकते। क्यों नहीं मार सकते। आसानी से मार सकते हो। गोली ही तो मारनी है साठी और मोना चौधरी को। तुम लोगों के लिए उन्हें मारना मामूली काम है। मार दो साठी और मोना चौधरी... ।”
"हम साठी और मोना चौधरी को मार देंगे।" एकाएक देवराज चौहान गुर्रा उठा।
"सही कहा, साठी और मोना चौधरी को मर जाना चाहिये। तुम दोनों मारोगे उन्हें, वो मर जायेंगे। गोली मार देना दोनों को। छोड़ना मत। साठी को मारो फिर मोना चौधरी...।"
“हम दोनों को मार देंगे।" जगमोहन के होंठों से भी गुर्राहट निकली।
दोनों की आंखें लाल सुर्ख हो चुकी थीं। चेहरों पर कठोरता नाच रही थी। दांत भिंच चुके थे। अब वो दरिन्दों जैसे दिख रहे थे। हाथों की मुट्ठियां भिंच रही थीं।
"खड़े सोच क्या रहे हो, साठी और मोना चौधरी को मार दो। जल्दी करो, वो...।"
तब तक देवराज चौहान उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया था, जिधर से वो आये थे।
विलास डोगरा उन्हें चमक भरी निगाहों से देख रहा था।
रीटा खाली गिलास थामे खड़ी थी ।
"पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी को जिन्दा मत छोड़ना।" पीछे से डोगरा ने चिल्लाकर कहा।
देवराज चौहान और जगमोहन बाहर निकल गये।
डोगरा तुरन्त इण्टरकॉम की तरफ लपका और रिसीवर उठाकर एक नम्बर दबाते बोला---
“शेरा...!"
"जी सर...!"
"देवराज चौहान, जगमोहन बाहर आ रहे हैं। उन्हें कोई रोके मत। समझे...।" डोगरा जल्दी से बोला।
"समझ गया सर!"
"सुगाथन और टोनी तैयार हैं जगमोहन और देवराज चौहान पर नजर रखने को ?"
"वो तैयार हैं सर! देवराज चौहान और जगमोहन के बाहर निकलते ही वो पीछे लग जायेंगे।"
“उन दोनों को कह देना कि मुझे एक-एक मिनट की रिपोर्ट देते रहें कि देवराज चौहान, जगमोहन क्या-क्या कर रहे हैं। उन्हें नज़रों से ओझल ना होने दें। जरूरत पड़े तो उन पर नज़र रखने के लिए और लोगों को भी बुला...।"
"मैंने सब कुछ टोनी और सुगाथन को पहले ही समझा रखा है।"
"बहुत खूब...।" डोगरा ने कहा और रिसीवर रख दिया।
रीटा अभी तक गिलास थामे खड़ी थी।
डोगरा आगे बढ़ा और सोफे पर बैठकर गहरी सांस ली।
रीटा ने गिलास एक तरफ रखे और डोगरा के पास पहुंचती कह उठी।
"क्या हुआ डोगरा साहब?"
“मैंने ठीक किया ना? अब्दुल्ला ने ऐसा ही करने को कहा था?" डोगरा ने गहरी सांस ली।
"मैं तो अभी तक हैरान हूं कि आपने कितना अच्छा ड्रामा किया।” रीटा पास बैठती कह उठी--- "आपको एक-दो फिल्मों में काम करके देखना चाहिये। वो फिल्में जरूर हिट... ।”
“रीटा डार्लिंग! मेरे ख्याल में कठपुतली ने देवराज चौहान और जगमोहन पर असर किया है। पहले वो मेरी बात पर इन्कार कर रहे थे फिर उनकी आंखें लाल होने लगीं। चेहरों के भाव बदलने लगे। इन्कार करते-करते, वो क्रोध में भर आये और साठी, मोना चौधरी को मारने को कहकर बाहर निकल गये। सब ठीक हुआ ना?"
"सब ठीक ही लगता...।"
“अब्दुल्ला को फोन कर। उसे सब बता और पूछ कि क्या ऐसा ही होना चाहिये था?” डोगरा गम्भीर था।
रीटा ने तुरन्त नम्बर मिलाकर अब्दुल्ला से बात की।
दो मिनट बात करती रही, फिर फोन बन्द करती कह उठी।
“डोगरा साहब! अब्दुल्ला कहता है कठपुतली ने बढ़िया काम किया है। मैंने उसे सब कुछ बताया तो वो खुश हो गया। वो कहता है कि अब कठपुतली का सेवन करने वाले वो ही काम करेंगे, जिस पर कि बात चल रही थी। बाकी सब कुछ भूल जायेंगे। वो सिर्फ ये ही काम करेंगे। कठपुतली ने उनके दिमाग पर कब्जा कर लिया है।” रीटा खुश थी ।
विलास डोगरा ने मुस्कराकर रीटा को देखा।
“अगर सच में ऐसा होता है तो कठपुतली की तारीफ करनी पड़ेगी।" डोगरा मुस्कराया--- “रीटा डार्लिंग, तेरा जवाब नहीं। तू मेरे पास ना होती तो, मैं किसी भी काम का ना होता। किस खूबसूरती के साथ तुमने उन्हें जूस में कठपुतली मिलाकर पेश किया...।"
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