बख्तावर सिंह कैसिनो में प्रवेश करके ठिठका। उसने सिगरेट सुलगाई फिर उसकी नजरें कैसीनो में चांग ली की तलाश में फिरने लगी। मोना चौधरी और महाजन ने खुद को मशीन के गिर्द खड़ी भीड़ में छिपा लिया था कि बख्तावर सिंह उन्हें न देख सके। करीब दो मिनट की कोशिश में बख्तावर सिंह ने उस भीड़ में चांग ली को पहचाना और उसके पास पहुंच गया। चांग ली ने बिना पीछे देखे कहा।

“आ गए?”

“जुआ खेलना तुम्हारे बस का नहीं है।” बख्तावर सिंह ने शांत स्वर में कहा। “जिंदगी में चांग ली ने जुआ ही खेला है बख्तावर सिंह –।”

“लेकिन अभी हार जाते।” बख्तावर सिंह का स्वर सख्त हो गया।

“गलत कह रहे हो। इस वक्त मेरा दांव लगा हुआ नहीं है।”

चांग ली ने पलटकर उसे देखा।

“लेकिन किसी दूसरे का दांव तो लगा हुआ हो सकता है।” बख्तावर सिंह ने कड़वे स्वर में कहा –“मेरा हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर है और पिछली बार तुम्हारे कारण, मुझे मोना चौधरी से शिकस्त मिली थी –।”

“तुम मुझ पर गोली नहीं चला सकते। क्योंकि पाकिस्तानी-चीनी भाई-भाई होते हैं।”

“हां। यह नारा कभी पहले भी सुना था। पहले तुम लोग हिन्दू-चीनी भाई-भाई कहते थे। और फिर मौका देखते ही हिन्दुस्तान पर हमला कर दिया। अब पाकिस्तानियों को भाई कह रहे हो।” बख्तावर सिंह ने चुभते स्वर में कहा।

“चिंता मत करो। पाकिस्तान पर हमला करने का हमारा कोई इरादा नहीं है।” चांग ली मुस्कराया।

“नंगा क्या कपड़े उतारेगा, सामने खड़े नंगे के –।”

चांग ली वहां से हटा। बख्तावर सिंह साथ था।

“पाकिस्तान सरकार ने, कश्मीर के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था कभी। और कश्मीर के उस बड़े हिस्से में से कुछ हिस्सा, पाकिस्तान ने चीन को तोहफे में दिया था।”

“कुछ हिस्सा नहीं, वह बहुत बड़ा हिस्सा था।”

“जो भी हो –तो मैं कह रहा था कि हिन्दुस्तान सरकार ने उस हिस्से पर भी अपना दावा करना शुरू कर दिया है। यह जुदा बात है कि हमारे मंत्री ने कह दिया कि हिन्दुस्तान ने चीन की जमीन पर कब्जा कर रखा है।”

बख्तावर सिंह मुस्कराया।

“चिंता मत करो। हिन्दुस्तान बहुत जल्दी ही दो हिस्सों में बंट जाएगा। एक हिस्सा पाकिस्तान से जुड़ जाएगा और दूसरा चीन से। हिन्दुस्तान वालों की छोटी-छोटी बातों पर सोचना छोड़ दो।”

“मैं कहां सोचता हूं। मैं तो तुम्हें बता रहा था कि –।”

“नेपाल में कैसे?” बख्तावर सिंह ने टोका।

“हिन्दुस्तान आया था।”

“ओह! खास काम होगा?”

“हां। एक एजेंट ने खबर दी थी कि उसके हाथ, भारतीय सेना के गोपनीय कामों का ब्यौरा लगा है। मामला खास समझकर, मुझे ही खुद आना पड़ा।” चांग ली मुस्कराया।

“क्या हाथ लगा?”

“बैठकर आराम से बात करते हैं।” बख्तावर सिंह ने उसे घूरा –“और मोना चौधरी के बारे में क्या कह रहे थे कि वह नेपाल में है।”

“ऊपर चलते हैं। बैठकर बातें करेंगे।”

“ऊपर क्या है?”

“डिनर हॉल है।”

☐☐☐

“डिनर –।”

बख्तावर सिंह और चांग ली जब डिनर का दरवाजा धकेलकर निगाहों से ओझल हुए थे, महाजन बड़बड़ा उठा फिर गर्दन घुमाकर प्रश्न भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

“इस कैसिनो में डिनर का भी इंतजाम है। फर्स्ट फ्लोर पर –।”

मोना चौधरी बोली।

“दोनों वहीं गए हैं।” महाजन ने गहरी सांस लेकर कहा –“इनकी जोड़ी देखकर ऐसा लगता है जैसे एक कुत्ता हो और दूसरा भेड़िया। पिछली बार इन दोनों को हांग-कांग में तगड़ा नचाया था।”

“आओ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी उसी दरवाजे की तरफ बढ़ी –“सावधान रहना। डिनर हॉल में वह हमें देख भी सकते हैं। ऐसा हुआ तो फिर कुछ भी हो सकता है।”

दोनों दरवाजा धकेलकर भीतर पहुंचे। सामने सीढ़ियां थी। सीढ़ियां तय करके ऊपरी मंजिल पर पहुंचे तो खुद को डायनिंग हॉल में पाया। डायनिंग हॉल ज्यादा बड़ा नहीं तो छोटा भी नहीं था। पंद्रह टेबल लगी नजर आ रही थी। एक तरफ पांच केबिन थे। टेबलों पर कहीं भी बख्तावर सिंह और चांग ली नजर नहीं आए। आधी टेबल भरी हुई थी।

तभी पास से गुजरता वेटर ठिठका और मुस्कराकर बोला।

“वेलकम सर।”

“डिनर में कुछ खास भी है या सब कुछ वैसा ही है।” महाजन ने उसे देखा। “कैसा–वैसा-सर?”

“वैसा ही, जैसा होता है।”

वेटर कुछ समझ न समझा। लेकिन कह उठा।

“खास है सर। आप याद रखेंगे।”

“वैरी गुड।” महाजन ने खुश होने वाले अंदाज में कहा और सौ का नोट निकालकर उसे थमाया –“अभी दो साहब आए थे यहां।”

“जी हां। वह दो नंबर केबिन में बैठे हैं।”

मोना चौधरी और महाजन की आंखें मिली।

“कोई केबिन खाली है?”

“सब खाली हैं। आप बैठिए । मैं अभी हाजिर हुआ –।”

मोना चौधरी और महाजन केबिन की तरफ बढ़ गए। वेटर के मुताबिक बख्तावर सिंह और चांग ली दो नंबर केबिन में थे। वह तीन नंबर का पर्दा हटाकर भीतर प्रवेश कर गए । छोटा केबिन था। दो के लिए। केबिन के बीच प्लाई की दीवार बना रखी थी। वह बैठे। बख्तावर सिंह और चांग ली के मध्यम किंतु स्पष्ट शब्द-स्वर उनके कानों में पड़ने लगे।

“तुम्हारे एजेंट ने, तुम्हें क्या दिया?” बख्तावर सिंह ने पूछा।

“वैसे तो।” चांग ली मुस्कराया –“यह सीक्रेट बातें हैं बताई नहीं जाती। लेकिन वह जानकारी हमारे कुछ खास काम की नहीं है। लेकिन पाकिस्तान के लिए खास है।”

बख्तावर सिंह सतर्क-सा नजर आने लगा।

“क्या खास है?”

“हिन्दुस्तान सरकार इस बात से परेशान हो चुकी है कि तगड़े पहरे के बावजूद भी, कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए, आतंकवादी पाकिस्तान की सरहदों से भीतर आ जाते –।”

“इसमें हिन्दुस्तान की कोई गलती नहीं है।” बख्तावर सिंह कह उठा –“दरअसल हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सीमा इतनी लंबी-चौड़ी है कि हर जगह पहरा रख पाना संभव नहीं है।”

“मालूम है मुझे –।” चांग ली बोला –“इसी बात को लेकर हिन्दुस्तान की मिलिट्री ने कुछ ऐसे इंतजाम किए हैं कि पाकिस्तान वाले, ऐसे लोगों को आसानी से भारत में प्रवेश नहीं करा सकेगा।”

“ऐसा नहीं हो सकता।” बख्तावर सिंह के होंठों से निकला।

“क्यों?”

“ऐसा कुछ होता तो हमें खबर मिल चुकी होती।”

“अगर खबर मिल जाती तो मुझे या फिर चीन को अवश्य मालूम होता।”

“क्या मतलब?”

“हमारे देश आपस में दोस्त ही सही। लेकिन जिस तरह पाकिस्तान के एजेंट हमारे आदमियों में हैं। उसी तरह हमारे एजेंट भी तुम लोगों के बीच हैं, और हमें खबरें मिलती रहती है।”

बख्तावर सिंह के होंठ कस गए।

“ऐसी बात मत कहो। जो मैं न जानता होऊं।”

“और मैं तुम्हें ऐसी ही बात बता रहा हूं बख्तावर सिंह। जो तुम नहीं जानते।” चांग ली मुस्कराया।

दोनों कई पलों तक एक दूसरे की आंखों में देखते रहे।

“जानना चाहते हो पाकिस्तान की हरकत रोकने के लिए हिन्दुस्तान क्या कर रहा है?”

“तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं जानना चाहता हूं –।” बख्तावर सिंह ने शब्द चबाए।

चांग ली ने जेब से छोटी माइक्रो फिल्म निकाली और टेबल पर रख दी।

बख्तावर सिंह ने माइक्रो फिल्म उठाई। उसे हथेली में उछालकर कहा।

“तो इस माइक्रो फिल्म में वह सब कुछ दर्ज है कि, हिन्दुस्तान अपने बचाव में क्या चाहता है।”

“हां –।”

बख्तावर सिंह ने माइक्रो फिल्म अपनी जेब में रख ली।

“इसकी कीमत –।”

“किसकी?”

“माइक्रो फिल्म की –।”

“जो चीज मेरी जेब में पहुंच जाती है। मैं उसकी कीमत नहीं देता।” बख्तावर सिंह तीखे स्वर में बोला।

“मैं जानता था कि तुम ऐसी ही हरकत करोगे।” चांग ली ने मुस्कराकर कहा और जेब से एक और माइक्रो फिल्म निकालकर टेबल पर रख दी –“इसकी क्या कीमत लगाते हो?”

“यह –?”

“जब तक तुम कीमत नहीं दोगे, तब तक माइक्रो फिल्म नहीं मिलेगी।”

“मतलब कि जो मेरी जेब में है। नकली है?” बख्तावर सिंह के माथे पर बल पड़े।

“हां। अब बोलो, क्या कीमत लगाते हो?”

“तुम बोलो।”

“जो ठीक समझो-दे देना।”

“दस लाख –।”

“पचास लाख। एक पैसा भी कम नहीं। सस्ता सौदा है तेरे लिए। अभी बोलो हां–।”

“हां।” बख्तावर सिंह के होंठों पर मुस्कान उभरी।

“कब देते हो।”

“कल ले लेना। कहां मिलोगे?”

“कहीं भी –रंजना सिनेमा पर आ जाना दिन में –एक बजे –।”

“ठीक है।”

तभी पर्दा हटाकर वेटर ट्राली धकेलता हुआ भीतर आया और डिनर का सामान टेबल पर रखने के बाद ट्राली लेकर, वहां से चला गया। दोनों ने डिनर शुरू किया।

“तुम मोना चौधरी की बात कर रहे थे –।” बख्तावर सिंह ने पूछा।

“हां। आज उसे देखा। न्यू बस स्टैंड के पास। साथ में महाजन भी था।”

“महाजन?”

“हां।” चांग ली ने उसे देखा –“महाजन के नाम पर तुम चौंके क्यों?”

“यूं ही।” बख्तावर सिंह के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे –“आगे बताओ।”

“वह दोनों कार में थे। लेकिन कुछ लोगों ने उनकी कार रोकी और उन्हें जबरदस्ती अपने साथ ले गए। तब मैं कुछ दूरी पर था। लेकिन सब कुछ देखा मैंने–।”

“उन्हें ले जाने वाले लोगों को जानते हो?”

“नहीं। लेकिन वह खतरनाक लग रहे थे।”

“जो मोना चौधरी और महाजन को अपने साथ ले गए। वह खतरनाक तो होंगे ही।”

“वह तुम्हारे पीछे हैं।” चांग ली ने उसकी आंखों में झांका।

“हां।”

“मतलब कि हिन्दुस्तान में झगड़ा करके आए हो मोना चौधरी से। तभी वह पीछे आई।”

“ऐसी तो कोई बात नहीं। लेकिन उनके यहां होने पर मुझे हैरानी हुई।”

“मोना चौधरी से कोई खास झगड़ा हो तो बता दो। मैं तुम्हारी सहायता करूंगा।”

“जरूरत नहीं। मामूली बातें हैं यह सब। तुम शायद बख्तावर को नहीं जानते।”

“अच्छी तरह जानता हूं तुम्हें।” चांग ली मुस्कराया। उसके बाद दोनों ने खामोशी से डिनर किया और वेटर को ‘बिल’ चुकता करके वहां से चले गए।

☐☐☐

“बेबी।” महाजन धीमे स्वर में फुसफुसाया –“वो जा रहे हैं।”

“हां।” मोना चौधरी जरा-सा पर्दा हटाकर, उन्हें जाते हुए देखती कह उठी –“लेकिन इस वक्त इन्हें कुछ नहीं कहना।”

“क्यों?”

“चांग ली के पास माइक्रो फिल्म है। जिसमें हिन्दुस्तान के गोपनीय राज हैं। उससे वह माइक्रो फिल्म लेनी है।”

“तो?”

“इस वक्त हमें इन दोनों का ठिकाना देखना है। तुम बख्तावर के पीछे जाओ। मैं चांग ली को देखती हूं। उसके बाद वापस होटल में पहुंचना।” मोना चौधरी ने कहा।

महाजन बिना कुछ कहे उठा और बाहर निकलता चला गया।

मोना चौधरी ने कुछ नोट निकाल टेबल पर रखे और बाहर निकली। सीढ़ियां उतरकर नीचे कैसिनो में पहुंची। बख्तावर सिंह और चांग ली कहीं नजर नहीं आए। मोना चौधरी बाहर निकलने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ी। दरबान ने शीशे के दरवाजे से उसे आते पाकर, दरवाजा खोल दिया।

बाहर आते ही सर्द हवा का झोंका, बदन से टकराया सर्दी बढ़ गई थी। मोना चौधरी ने अंधेरे में नजरें दौड़ाई। तभी अपने पीछे किसी के खड़े होने का एहसास हुआ।

मोना चौधरी फौरन पलटी।

पीछे सूर्या को खड़ा पाकर वह चौंकी।

फिर संभल गई।

“हैलो मैडम।” सूर्या मुस्कराकर कड़वे स्वर में बोला –“मैं आपके पास ही हूं।”

“देख रही हूं कि होश आ गया है तुम्हें?”

“ज्यादा तगड़ी चोट नहीं मारी थी आपने –।”

“उस वक्त उतनी ही बहुत थी।” मोना चौधरी हर तरफ देख चुकी थी। बख्तावर सिंह, चांग ली और महाजन में से कोई भी नजर नहीं आया। वह लोग निकल चुके थे।

“चलें मैडम –।” सूर्या का स्वर सख्त हो गया।

“कहां?”

“एक बार तो आप मेरी कैद से निकल आईं। इस बार नहीं निकलने दूंगा।”

“बेकार की बात मत करो।” मोना चौधरी ने कठोर आवाज में कहा –“उस वक्त तुमने घेरा ही इस तरह था कि तुम्हारी बात माननी पड़ी। बार-बार मजाक नहीं करते। हमारी कोई दुश्मनी नहीं। जो बात करनी है साफ कहो।” मोना चौधरी और सूर्या की चमकती नजरें मिली।

“मैडम। यह मत समझना कि मैं अकेला हूं। तुम जैसी चार के लिए बहुत हूं मैं।” सूर्या ने सख्त स्वर में कहा –“एक बार तो तुम धोखे में मुझे चोट पहुंचाकर भाग निकली। लेकिन –।”

मोना चौधरी मुस्कराई।

“सूर्या–तुम–।”

“मेरा नाम कैसे जानती हो?”

“तुम्हारे आदमियों के मुंह से सुना था।” मोना चौधरी ने कहा –“अब मेरी सुनो। तुम मुझ पर पहले की तरह हाथ भी नहीं डाल सकते। मेरा-तुम्हारा कोई मतलब नहीं। अगर कोई बात है तो, स्पष्ट कहो।”

सूर्या ने कैसिनो के दरवाजे पर खड़े दरबान पर निगाह मारी फिर बोला –“आगे चलो। यहां लोगों का आना-जाना जारी है।”

दोनों आगे बढ़ गए।

“तुम मेरी तलाश में कैसिनो पहुंचे थे?” मोना चौधरी ने पूछा।

“हां। विदेशियों को ढूंढने के लिए यहां खास मेहनत नहीं करनी पड़ती। शाम के वक्त किसी न किसी कैसिनो में ढूंढने पर पसंदीदा व्यक्ति मिल ही जाता है।” सूर्या ने जवाब दिया।

दोनों कुछ आगे चौराहे पर पहुंचकर रुके। वहां स्ट्रीट लाइट के रूप में एक बल्ब रोशन था। यह मुख्य सड़क के पीछे वाला हिस्सा था।

“तुम।” सूर्या बोला –“राजपाल के पीछे हो?”

“हां।” मोना चौधरी ने अंधेरे में गहरी निगाहों से उसे देखा –“तुम कौन हो?”

“क्या चाहती हो तुम राजपाल से। क्यों उसके पीछे पड़ी हो। अगर तुम उसकी जान लेने की फिराक में हो तो मेरे होते हुए, तुम अपने इरादे में कामयाब नहीं हो सकती।” सूर्या का स्वर खतरनाक हो गया था।

“राजपाल की जान लेने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।” मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगा ली –“मेरी उसके साथ कोई दुश्मनी नहीं है। किसी के कत्ल में मेरा साथी फंस गया। जिसने हत्या की है, उसे राजपाल जानता है। राजपाल से मैं उस शख्स के बारे में मालूम करना चाहती हूं कि, वह कहां मिलेगा?”

“वह काठमांडू में ही है?”

“हां –।”

“कौन?”

“इससे आगे की बात मैं तुमसे नहीं कर सकती। तुम कौन हो?”

“मैं।” सूर्या सोचपूर्ण स्वर में बोला –“मैं झा साहब का आदमी हूं। उनके लिए काम करता हूं। पटना में तुम उनसे मिल चुकी हो। रक्सौल में तुमने झा साहब के आदमियों की हत्या की है।”

“तो तुम्हें झा ने मेरे पीछे लगाया है?”

“कुछ भी कह लो।” सूर्या ने मोना चौधरी को देखा –“वैसे झा साहब का ख्याल है कि तुम राजपाल की जान नहीं लेना चाहती। उसकी दुश्मन नहीं हो। लेकिन राजपाल तुम्हें दुश्मन मानता है।”

“ओह! तो यह बात है।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया – “राजपाल की हरकतें अब मेरी समझ में आई। तुम राजपाल से मेरी मुलाकात करवा सकते हो। उसके बाद सब ठीक हो जाएगा।”

“झा साहब ने भी यही बोला था कि तुम दोनों की मुलाकात करवा दी जाए। लेकिन यह काम कल दोपहर से पहले नहीं हो सकता।” सूर्या ने कहा –“मुझे नहीं मालूम कि राजपाल इस वक्त कहां है? लेकिन कल दोपहर को तयशुदा जगह पर, राजपाल हमें मिलेगा। तुम बता दो कि कहां ठहरी हो। राजपाल के साथ मैं दोपहर में ही तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा।”

“उसी नाइट कैसिनो के सामने छोटा-सा होटल है। मैं वहीं पर हूँ –।”

“ठीक है। राजपाल के साथ, कल दोपहर मैं तुम्हारे होटल पहुंच जाऊंगा।” सूर्या ने कहा।

“यह बात तो तुम शाम को भी कर सकते थे। जब मुझे कैद किया था।” मोना चौधरी ने कहा।

“उस वक्त मैं जल्दी में था। किसी से माल की डिलीवरी लेनी थी। तुम अपने बारे में बताओगी? कौन हो तुम?”

“मोना चौधरी –।”

“मोना चौधरी?” सूर्या ने प्रश्न भरी निगाहों से उसे देखा।

“हिन्दुस्तान की पुलिस मुझे इसी नाम से, तलाश करती रहती है।

“ओह –।” सूर्या चौंका –“तुम-तुम वह खतरनाक शख्सियत मोना चौधरी हो जो–।”

“मैं वही हूं।” कहने के साथ मोना चौधरी आगे बढ़ गई।

सूर्या हक्का-बक्का-सा अजीब सी निगाहों से, मोना चौधरी को रात के कोहरे में गुम होते देखता रहा।”

☐☐☐

“सर।” सिद्दीकी बोला –“कुछ देर पहले ही चंद्र थापा की लाश पाई गई है।”

“ओह –।” बख्तावर सिंह होंठ सिकोड़कर कह उठा –“इसका मतलब राजपाल को थापा पर शक हो गया था कि वह उसके साथ गद्दारी करते हुए हमसे मिल गया है। तभी राजपाल वहां नहीं पहुंचा।”

“मेरा भी यही ख्याल है।” सिद्दीकी ने सहमति में सिर हिलाया।

बख्तावर सिंह ने सिगरेट सुलगाई। चेहरे पर सोच के भाव नजर आने लगे।

“अपने आदमियों को राजपाल की तलाश पर लगा दो। काठमांडू के हर होटल, छोटे-बड़े होटल में, राजपाल को ढूंढा जाए। मिल जाए तो उसे तुरंत शूट कर दिया जाए।”

“राइट सर –।”

“चांग ली के पास हमारे काम की कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं। जैसे कि हिन्दुस्तान हमारी हरकतों के खिलाफ क्या गोपनीय कदम उठा रहा है। सब कुछ एक माइक्रो फिल्म में है।” बख्तावर सिंह पुनः कह उठा –“और उसकी वह पचास लाख रुपए, कीमत मांग रहा है।”

“जी –।”

“पचास लाख का सोना तैयार कर लो। कल दिन में चांग ली से मिलना है।”

“जी।”

बख्तावर सिंह ने सिद्दीकी की आंखों में झांका।

“महाजन को जानते हो। नीलू महाजन –।”

“नाम तो सुन रखा है।”

“मोना चौधरी का साथी –।”

“यस सर। एक बार पाकिस्तान में ही उससे मुलाकात हुई थी –।”

“वह मेरे पीछे यहां तक आया है। बाहर ही होगा। अपने आदमी ले जाओ। पकड़ लो उसे।”

“इसका मतलब।” सिद्दीकी चौंका –“मोना चौधरी ने आपको देख लिया है?”

“हां। तुम महाजन को पकड़ो। बाकी बातें बाद में –।”

सिद्दीकी फौरन बाहर निकलता चला गया।

☐☐☐

आधे घंटे बाद सिद्दीकी लौटा।

“सर। महाजन को पकड़ लिया है।” उसने भीतर प्रवेश करते ही कहा –“बगल के कमरे में बंद कर दिया है।”

“गुड –।” बख्तावर सिंह मुस्कराया –“अब मोना चौधरी हमारे हाथों से दूर नहीं।”

“लेकिन सर, महाजन कहां से आपके पीछे लगा?”

“उसी कैसिनो से, जहां चांग ली से मुलाकात हुई थी। जब मैं कैसिनो से बाहर निकलने वाला था तो तभी मेरी निगाह महाजन पर पड़ी थी जो खुद को छिपाकर मेरे पीछे आने की कोशिश में था। और मैंने आने दिया।”

“समझ गया सर –। लेकिन मोना चौधरी –।”

“वह शायद चांग ली के पीछे गई होगी।” बख्तावर सिंह ने होंठ सिकोड़कर कहा।

“चांग ली, मोना चौधरी को संभाल लेगा सर –?”

“क्या मालूम –।” बख्तावर सिंह अजीब से स्वर में कह उठा –“चांग ली, मोना चौधरी को संभालता है या मोना चौधरी चांग ली को संभालती है। दोनों एक-दूसरे से बढ़कर हैं।”

सिद्दीकी कुछ न कह सका।

“महाजन का ध्यान रखना। अपने आदमियों से कह दो कि उसके प्रति लापरवाह न हो –।” बख्तावर शब्दों को चबाकर बोला –“आज की रात, उसकी आखिरी रात है।”

“यस सर –।”

☐☐☐

नीलू महाजन को ऐसे कमरे में बंद किया गया था जहां एक छोटे से बेड के अलावा दो कुर्सियां और छोटा-सा टेबल था। व्हिस्की की खाली हो रही बोतल के साथ, महाजन बेड पर बैठा था।

वह, बख्तावर सिंह के पीछे यहां तक आया था। जब बख्तावर सिंह यहां पहुंच गया था तो वह तीव्र सर्दी से इस जगह को देखने-पहचानने की कोशिश कर रहा था कि एकाएक ही कुछ आदमियों ने छापामारों की तरह उसे घेरकर पकड़ा और भीतर लाकर यहां बंद कर दिया।

उनमें से एक को महाजन ने पहचाना था। वह कैप्टन सिद्दीकी था। पाकिस्तान में एक बार उससे मुलाकात हुई थी। आखिरकार वह बख्तावर सिंह के कब्जे में आ गया था। और अच्छी तरह जानता था कि, बख्तावर सिंह उसका बुरा हाल करेगा। क्योंकि मोना चौधरी के साथ मिलकर दो-तीन बार बख्तावर सिंह को तगड़ा झटका दे चुका था।

तभी दरवाजा खुला।

बाहर खड़े दो खतरनाक चेहरे नजर आए।

फिर जो चेहरा नजर आया, उसे देखते ही वह जोरों से चौंका। वह खूबसूरत, हसीन चेहरा वही था, जो उसे अनिता राजपाल बनकर मिली थी।

“तुम –।” महाजन के होंठों से निकला।

वह कातिल मुस्कान के साथ भीतर आई। हाथ में पकड़ा खाने का थाल टेबल पर रखा और कातिल निगाहों से महाजन को देखा।

“कैसे हो मिस्टर महाजन –।” उसने खनकते स्वर में कहा।

“तो बख्तावर की परमानेंट नौकरी पर हो।” महाजन होंठ सिकोड़कर बोला –“बहुत बुरा फंसा दिया था तुमने मुझे अनिता राजपाल की हत्या में। वैसे जब मैं वहां पहुंचा तो, अनिता राजपाल की लाश वहां पहले से ही मौजूद थी –।”

“ठीक समझे –।”

“मुझे क्यों फंसा दिया था।”

“सर बख्तावर सिंह के इशारे पर –।”

“बहुत घटिया इंसान है, बख्तावर सिंह। तुम पाकिस्तान की हो या हिन्दुस्तान की?”

“हिन्दुस्तान की।”

“शाहरुख खान को जानती हो?”

“हाँ।”

“वह मेरा बच्चा है। जब भी मिलता है मेरे पांवों को पकड़ लेता है। और तब तक नहीं छोड़ता जब तक मैं उसे सुपरस्टार बनने का आशीर्वाद न दे दूं –।”

“अच्छा–।”

“हां। बहुत इज्जत करता है। एक बार तो उसने डिनर पर मुझे बुलाया। लेकिन मैं काम में ऐसा फंस गया कि नहीं पहुंच पाया। फिर जानती हो क्या हुआ?”

“क्या?” वह मुस्कराए जा रही थी।

“वह इतना दुखी हुआ कि उसने डिनर ही नहीं किया। अगले दिन सुबह उसकी पत्नी का फोन आया तो मालूम हुआ कि उसका मूड ऑफ है। तीन-तीन शिफ्टों में उसकी शूटिंग चल रही थी लेकिन उसने साफ-साफ कह दिया कि महाजन साहब से मिले बिना मैं तो शूटिंग करने वाला नहीं। बेशक फिल्म बनाने वालों का लाखों का नुकसान हो जाए।” मैं सीधा शाहरुख के पास पहुंचा। उसके साथ नाश्ता किया तो, तब कहीं शाहरुख की जान में जान आई –।” महाजन ने गहरी सांस ली।

“अच्छा–।”

“हां। कसम से –। तो मैं कह रहा था कि मेरा एक इशारा तुम्हें बॉलीवुड की टॉप की हीरोइन बनवा देगा। तुम नहीं जानती, कितनी खूबसूरत हो तुम। मैं तुम्हें शाहरुख के अपोजिट पांच-सात फिल्में दिलवा दूंगा। बस उसके बाद तुम बॉलीवुड की रानी बन जाओगी। वैसे वो अपनी रानी-रानी मुखर्जी बोलती है –चल खंडाला। तुम बोलोगी चले लूना पे पूना। बाई गॉड एकदम हिट गाना होगा। आमिर खान की तो, लूना पे पूना वाले गाने के बाद, फिश हो जाएगी। बॉलीवुड वालों को खंडाला नजर आना बंद हो जाएगा। तब नजर आएगा सिर्फ पूना। सिर्फ पूना और तुम। टॉप स्टार तुम। चल, भाग चलें बॉम्बे –।”

वह हंसी।

“क्या हुआ?”

“अभी मैं सर बख्तावर की ही हीरोइन ठीक हूं।”

“उस बूढ़े से तेरे को क्या मिलेगा? मैं –।”

“खाना खा लेना।” कहते हुए उसने खाने की तरफ इशारा किया और बाहर निकल गई। दरवाजा पहले की तरह बंद हो गया।

महाजन होंठ सिकोड़े टेबल पर पड़े खाने देखने लगा।

☐☐☐

रात के करीब बारह बजे दरवाजा खुला और बख्तावर सिंह ने भीतर प्रवेश किया। उस वक्त महाजन कुर्सी पर बैठा व्हिस्की की खाली बोतल थपथपा रहा था। बख्तावर को देखते ही फौरन उठा।

“बहुत घटिया है तुम्हारी मेहमाननवाजी। मेरी बोतल खत्म हो गई तो, अपने पल्ले से दूसरी दे दो।”

बख्तावर सिंह कड़वे अंदाज में मुस्कराया और बाहर खड़े आदमी को बोतल लाने को कहा।

“यह हुई दरियादिली।” महाजन मुस्कराया –“और सुनाओ कैसा चल रहा है।”

बख्तावर सिंह कुर्सी पर बैठता हुआ शांत स्वर में कह उठा।

“पुलिस से कैसे बचे?”

“तुम तो बुरा फंसा आए थे गुरु।” महाजन ने कहा –“लेकिन कोई खास दिक्कत नहीं आई। जिसके पास यह केस था वह अपना यार निकला। ले-देकर मामला रफा-दफा कर दिया।”

बख्तावर सिंह ने सिगरेट सुलगाई फिर कश लेकर बोला।

“फिर तो चैन से वहीं रहना चाहिए था। मेरे पीछे क्यों आए?”

तभी बख्तावर का आदमी बोतल ले आया।

महाजन ने फौरन बोतल की सील खोली और तगड़ा घूंट लेकर बोला।

वह आदमी वापस दरवाजे के बाहर अपने साथी के पास जा खड़ा हुआ था।

“तुमने पहले बेबी की जान लेने के लिए आदमी भेजे। जब उसमें सफल नहीं हुए तो मेरे को फंसा दिया पुलिस के घेरे में। ऊपर से फोन पर बेबी को धमकी देने लगे अपनी दादागिरी की।” महाजन कड़वे स्वर में कह उठा –“तो हमने सोचा कि नेपाल का चक्कर लगा ही लें। काठमंडू देखे भी बहुत देर हो गई थी। सो आ गए।”

बख्तावर सिंह के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे।

“आ गए–।”

“हां।” महाजन ने सिर हिलाया।

“जाओगे कैसे?” बख्तावर सिंह की आंखों में विषैले भाव उभरे।

“कार से आए थे।” महाजन ने बख्तावर सिंह को देखा –“कार से ही चले जाएंगे।”

“यहां से जिंदा बचे तो?'” बख्तावर सिंह का स्वर खतरनाक हो उठा।

“तो क्या तुम मेरी जान लोगे?”

“लूंगा नहीं, लेने जा रहा हूं।” बख्तावर सिंह की आवाज में मौत के भाव आ गए।

“यार–।” महाजन हाथ में पकड़ी बोतल थपथपाकर बोला –“मुझे मारकर तेरे को क्या मिलेगा?”

“तुम लोग मेरे पीछे-पीछे, मेरी जान लेने आए हो।”

“तो क्या हो गया। ली तो नहीं –।”

“मौका नहीं मिल सका तुम्हें –।”

“ऐसा ही समझ लो –।”

“लेकिन मेरे पास मौका है तुम्हें खत्म करने का।” बख्तावर सिंह का चेहरा सुलग उठा।

“इसे मौका कहते हो।” महाजन ने घूंट भरा –“छोटे से चूहे के हाथ-पांव बांध लिए। फिर बकरा काटने वाला हथियार लेकर सिर पर खड़े हो गए और कहने लगे, मैं शिकार करने लगा हूं।”

“तो तुम चूहे हो।”

“हां। इस वक्त तो हूं ही।”

बख्तावर सिंह ने कश लिया और शब्दों को चबाकर खतरनाक स्वर में बोला।

“तुम अभी इसी वक्त मरने जा रहे हो। अपने बचने का रास्ता सोचो।”

महाजन ने बख्तावर सिंह की आंखों में झांका।

“मतलब कि मारोगे भी तुम और बचने का रास्ता भी तुम ही बताओगे।”

“मरने वाले को, बचने का एक मौका अवश्य देना चाहिए।”

“और वह मौका पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?”

“मोना चौधरी का पता बता दो। इस वक्त वह कहां है। मैं तुम्हें छोड़ दूंगा।”

“बेबी का पता? पागल हो गए हो क्या? मेरी जान ले लेगी वह।” महाजन ने हंसकर घूंट भरा –“तुम अच्छी तरह जानते हो कि वह कितनी खतरनाक है। अच्छी तरह नचा चुकी है वह तुम्हें।”

बख्तावर सिंह के होंठों से गुर्राहट निकली।

“तभी तो उसका पता पूछ रहा हूं।”

“किसी और से पूछ ले।” महाजन ने घूंट भरा –“पारसनाथ के पास जाकर ट्राई कर।”

“तो तू नहीं बताएगा?”

“नहीं।”

“बताएगा तो बच जाएगा। नहीं तो मारा जाएगा।” बख्तावर सिंह दरिंदा-सा नजर आने लगा।

“मार दे। लेकिन बार-बार कहकर व्हिस्की का मजा मत खराब कर –। एक बोतल देकर पहले की तीन बोतलों का मजा खराब कर रहा है।”

बख्तावर सिंह फौरन उठा। रिवॉल्वर उसके हाथ में नजर आने लगी।

“तू तो सच्च में, मारने जा रहा है।” बख्तावर सिंह के होंठों से गुर्राहट निकली।

“इस बात की क्या गारंटी है कि बेबी का पता बताने पर तुम मुझे छोड़ दोगे।” महाजन जल्दी से बोला।

“तुम्हें मेरी जुबान पर भरोसा करना चाहिए –।” बख्तावर सिंह ने दांत भींचकर कहा।

“ठीक है।” महाजन चेहरे पर सोच के भाव लिए उठा और घूंट भरा –“मैं तुम्हें बेबी के पास ले चलता हूं। लेकिन उसे यह नहीं मालूम होना चाहिए कि उसका पता मैंने बताया है।”

“नहीं बताऊंगा।” बख्तावर सिंह की आंखों में शक के भाव उभरे पड़े थे।

“अपने साथ बारात लेकर नहीं जाओगे। किसी एक को और साथ ले लो –।”

बख्तावर सिंह आगे बढ़ा और रिवॉल्वर की नाल उसकी छाती पर ठकठका कर बोला।

“मैं जानता हूं तुम मुझे मोना चौधरी का पता नहीं बताओगे। खामख्वाह वक्त बिता रहे हो। लेकिन कोई बात नहीं। अपनी जिंदगी का आखिरी खेल भी खेल लो। मरना तो अब तुम्हें है ही –।”

महाजन मुस्कराया।

“जिंदगी में पहली बार सच बोल रहा हूं और तुम मान नहीं रहे –।”

“चलें?” बख्तावर सिंह ने शब्दों को चबाकर कड़वे स्वर में कहा।

“चलो। मैं कब इंकार कर रहा हूं –।”

बख्तावर सिंह ने दरवाजे के बाहर खड़े दो आदमियों में से एक को बुलाया।

“कैप्टन सिद्दीकी को बुलाओ।”

“यस सर –।” कहने के साथ ही वह फौरन पलटकर बाहर निकल गया।

बख्तावर सिंह की क्रूरता भरी निगाह, महाजन पर जा टिकी।

महाजन मुस्कराया।

“यहां पर मैं तुम्हें नहीं मारना चाहता था। बाहर तो जाना ही था।” बख्तावर सिंह रिवॉल्वर जेब में डालता हुआ पीछे हटा –”अच्छा हुआ कि तुमने ही बाहर चलने को कह दिया।”

“तुम बार-बार क्यों मरने की बात कर रहे हो।” महाजन मुंह लटकाकर बोला –“मैं सच में तुम्हें बेबी के पास ले जा रहा हूँ –।”

जवाब में बख्तावर सिंह सिर्फ मुस्कराकर रह गया।

“ऐसे मत मुस्कराओ। मेरी जान निकल जाएगी।” कहने के साथ ही महाजन ने घूंट भरा और बोतल मुंह से हटाकर, फुर्ती के साथ पूरी ताकत से बख्तावर सिंह के सीने पर दे मारी।

बोतल बख्तावर सिंह से टकराते ही नीचे गिरी और तेज आवाज के साथ चूर-चूर हो गई। बख्तावर को तीव्र झटका लगा। इससे पहले वह संभलता, महाजन ने उसे जोरों से धक्का दिया। बख्तावर लड़खड़ाया। गिरने को हुआ कि संभल गया।

इसी पल बाहर खड़ा व्यक्ति भीतर आया।

“क्या हुआ?” उसके होंठों से निकला।

महाजन ने उसकी बांह पकड़ी और भीतर की तरफ झटका दिया। वह वेग के साथ बख्तावर सिंह से जा टकराया। बख्तावर लड़खड़ाया। परंतु उसने पुनः खुद को संभाला। लेकिन वह व्यक्ति खुद को नहीं संभाल सका और नीचे बिखरे, बोतल के कांच के टुकड़ों पर जा गिरा और चीखने लगा।

यह सब दो क्षणों में ही हो गया।

बख्तावर सिंह सारे हालातों को समझ रहा था। परंतु उसे रिवॉल्वर निकालने का भी मौका नहीं मिला और कमरे से बाहर निकलकर महाजन ने चिटकनी लगा दी।

तभी भीतर से दरवाजे पर थपथपाहट के साथ बख्तावर के चीखने की आवाज आई –

“दरवाजा खोलो।”

वक्त कम था। महाजन बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ा। अभी कुछ ही कदम उठाए थे कि सामने से कैप्टन सिद्दीकी, उसके साथ आता दिखाई दिया, जो उसे बुलाने गया था।

महाजन को लगा, वह फिर फंस गया है।

पीछे से दरवाजा भिडभिड़ाने और बख्तावर के पुकारने की स्पष्ट आवाजें आ रही थी।

सिद्दीकी ने उसे देखते ही रिवॉल्वर निकाल ली। वह पास पहुंच चुका था।

“हिलना मत।” सिद्दीकी ने खतरनाक स्वर में कहा।

महाजन शांत भाव से उसे देखता रहा।

“तुम –।” सिद्दीकी अपने साथ वाले व्यक्ति से बोला –“जाकर दरवाजा खोलो।”

वह व्यक्ति, महाजन की बगल से निकल आगे बढ़ गया।

“तो भाग रहे थे।” सिद्दीकी कड़वे स्वर में बोला –“लेकिन –।”

“जाने दे यार। बख्तावर आ जाएगा।” महाजन जल्दी से बोला।

“तेरी तो –।” सिद्दीकी ने कहना चाहा।

तभी महाजन ने पागलों की तरह सिद्दीकी पर छलांग लगाई और दोनों हाथ उसके हाथ में दबी रिवॉल्वर पर जा टिके। अगले ही पल झटका दिया और रिवॉल्वर लिए महाजन नीचे गिरता चला गया।

सिद्दीकी भी लड़खड़ाकर नीचे गिरा।

महाजन जल्दी से उठा। बिना निशाना लिए उसने रिवॉल्वर का रुख सिद्दीकी की तरफ करके गोली चलाई और पलटकर भाग निकला। मुकाबला करने या, यहां रुकने का उसका कोई इरादा नहीं था। गोली की आवाज गूंज चुकी थी। कुछ ही देर में बख्तावर सिंह के सब आदमियों ने यहां इकट्ठा हो जाना था।

☐☐☐

नीलू महाजन के खामोश होते ही मोना चौधरी ने कहा।

“इस बात का पूरा विश्वास है कि बख्तावर का कोई आदमी तुम्हारे पीछे नहीं आया?”

“उस हड़बड़ी में, उनके पास इतना वक्त ही नहीं था कि वह पीछे जा आते।” कहने के साथ ही महाजन ने हाथ में पकड़ी बोतल से घूंट मारा। होटल में प्रवेश करने पर, रिसेप्शन पर कहकर उसने नई बोतल ले ली थी।

“तुम्हें सतर्क रहना चाहिए था महाजन।” मोना चौधरी गंभीर स्वर में बोली –“लापरवाही में तुम यह भूल गए कि बख्तावर जैसा तेज-तर्रार, खतरनाक इंसान, आसानी से किसी को अपने पीछे नहीं आने देगा।”

“हां।” महाजन ने गहरी सांस ली –“लापरवाही मेरी थी। अगर मैंने सावधानी से काम लिया होता तो बख्तावर की निगाहों में इतनी आसानी से नहीं आता।”

मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगाई।

“बेबी।” महाजन बोला –“बख्तावर की जगह देख आया हूं। अगर अभी उस जगह को घेरा जाए तो हो सकता है बख्तावर निशाने पर आ ही जाए –।”

“नहीं। यह ठीक नहीं होगा।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा।

“क्या मतलब?”

“पहली बात तो यह कि तुम्हारे वहां से निकलते ही बख्तावर ने वह ठिकाना छोड़ दिया होगा। हो सकता है अपने आदमियों से भी, उस जगह को खाली करने को कह दिया हो।”

“हां। हो सकता है।”

“दूसरी बात यह है कि अब बख्तावर से भी ज्यादा जरूरी चीज वह माइक्रो फिल्म बन गई है। जो चांग ली के पास है। बख्तावर और चांग ली कल दिन में रंजना सिनेमा पर मिल रहे हैं। वहां बख्तावर को माइक्रो फिल्म मिलेगी और बख्तावर उसकी कीमत उसे देगा। इस सौदे के दौरान, हमने हर हाल में उस माइक्रो फिल्म को हासिल करना है। जिसमें यह बात दर्ज है कि हिन्दुस्तान कश्मीर नीति पर, किस तरह पाकिस्तान से आने वाले घुसपैठियों को रोकने की प्लानिंग कर रहा है।”

महाजन के होंठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी।

“बेबी! हमारे देश में गद्दार बहुत हैं। वरना विदेशी मुल्क किसी भी हालत में हमारे देश के रहस्यों को नहीं ले पाते।”

“ऐसे गद्दार हर देश में होते हैं और देश के एजेंट दूसरे देशों का राज पाने की चेष्टा में लगे रहते हैं।”

महाजन कुछ नहीं बोला।

“कल का दिन हमारे लिए दिक्कतों से भरा होगा। सूर्या, राजपाल की मुलाकात हमसे कराएगा।”

“मैं बख्तावर सिंह के बारे में सोच रहा हूं –।”

“क्या?”

“वह हमारी जान के पीछे रहता है।

जब भी उसे मौका मिलता है, हमारी जान लेने की कोशिश में लग जाता है। ऐसे इंसान का जिंदा रहना किसी भी सूरत में हमारे लिए ठीक नहीं –।” महाजन ने कहा।

“तो?”

“तुम माइक्रो फिल्म पाने की कोशिश करो मैं कल बख्तावर को शूट करने की कोशिश करूंगा।” कहते हुए महाजन के दांत भिंच गए थे –“इसका किस्सा ही खत्म कर दूंगा।”

“बख्तावर को खत्म करना आसान नहीं है। वह –।”

“कोशिश करने में क्या हर्ज है?”

“ठीक है। तुम कोशिश करके देख लो।” मोना चौधरी सोच भरे स्वर में बोली –“तो कल हम दोनों अलग-अलग काम करेंगे। मैं माइक्रो फिल्म पाने की कोशिश करूंगी और तुम बख्तावर को –।”

“राइट बेबी –।” महाजन के चेहरे पर सख्त सी मुस्कान उभरी। वह उठ खड़ा हुआ –“और इन कामों से फुर्सत पाकर, हम यहीं, इसी होटल में मिलेंगे। यह सुरक्षित जगह है।” इसके साथ ही महाजन बाहर निकल गया।

मोना चौधरी देर तक वैसे ही बैठी, सोचों में डूबी रही।

☐☐☐

अगले दिन धुंध और कोहरा इतना गहरा था कि दस फीट दूर देखना भी संभव नहीं हो पा रहा था। सर्दी का एहसास इस कदर तेज था कि बदन की गर्मी महसूस ही नहीं हो रही। रोजमर्रा की तरह कोई मजदूर भी काम पर जाता नजर नहीं आ रहा था।

सावधानी के नाते, राजपाल किसी होटल में नहीं ठहरा। खतरा था कि, अगर बख्तावर सिंह के आदमियों ने उसे घेर लिया तो बच नहीं पाएगा। आखिरकार वह रात उसने कार में बिताने की सोची और एक इमारत की कार पार्किंग में, उसने कार खड़ी की और शीशे बढ़ाकर उसमें ही सो गया। भूख लगने के बावजूद भी, उसने किसी रेस्टोरेट में जाकर खाना नहीं खाया। वह जानता था कि चन्द्र थापा की लाश अब तक मिल गई होगी।

थापा के मरने की खबर बख्तावर सिंह तक भी पहुंच गई होगी। तो बख्तावर फौरन समझ जाएगा कि यह काम उसका किया हुआ है। ऐसे में उसकी तलाश और भी जोर-शोर के साथ करेगा।

बहरहाल सर्द रात में कार के भीतर की यह हालत हो गई कि आधी रात के बाद ही ऐसा लगने लगा, जैसे बर्फ की सिल्ली के ऊपर सोया हो वह।

दिन होते-होते पूरी तरह कड़क गया था वह और खुद को भी कोसे जा रहा था कि रात किसी होटल में बिता लेता तो अच्छा रहता। परंतु बख्तावर सिंह का ध्यान आते ही, खुद को कोसना छोड़ देता। आंख खुलने पर उसने घड़ी देखी तो सुबह के साढ़े सात बजते पाए।

कार के बाहर कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, क्योंकि शीशों पर ओस की मोटी-मोटी परतें चढ़ी हुई थीं। जोकि बाहर से ही साफ हो सकती थी। और इस हाल में बाहर निकलना हिम्मत का काम था। क्योंकि उसे महसूस हो चुका था कि मौसम बहुत बिगड़ा हुआ है। वह सिगरेट पर सिगरेट फूंकता रहा। कार में धुआं भर जाने से ठंडक से कुछ राहत मिली।

करीब नौ बजे वह बाहर निकला। सर्द हवा के झोंकों ने उसे बुरी तरह हिला दिया। हाथ से और जेब में पड़े रुमाल से उसने किसी तरह सामने वाले शीशे को काम चलाऊं सा साफ किया। रात भर कार में पड़े-पड़े उसका पूरा जिस्म अकड़ गया था।

उसके बाद स्टेयरिंग सीट पर बैठा और कार स्टार्ट करने की कोशिश करने लगा। ठंडा हो चुका इंजन कठिनता से स्टार्ट हुआ। राजपाल ने कार आगे बढ़ा दी। अभी बारह-एक बजने में बहुत देर थी। तब तक वह कोई ऐसी जगह तलाश करना चाहता था, जहां वह कुछ घंटे गुजार सके। इस बुरे मौसम से बच सके और नहा-धोकर फ्रेश हो सके।

आखिरकार राजपाल ने ऐसा होटल ढूंढा, जिसके बाहर होटल का बोर्ड भी टूटकर झुलता हुआ, उलटा लटक रहा था। बख्तावर सिंह से ऐसी जगह सुरक्षित थी।

राजपाल होटल की उस पुरानी इमारत में प्रवेश कर गया।

वह सोच भी नहीं सकता था कि झा के यहां जो उसे तलाशती युवती मिली थी, यानी कि मोना चौधरी। वह भी इसी होटल में, पहले से ही ठहरी हुई थी।

☐☐☐

बख्तावर सिंह आधी रात के बाद सोया था। वह सिर से पांव तक उखड़ा हुआ था कि महाजन, उसे चोट पहुंचाकर भाग निकला। उसने अपने आदमियों को दौड़ाया भी, परंतु रात के घने कोहरे के बीच, महाजन नहीं मिल पाया था।

यह बख्तावर सिंह का गुस्सा ही था कि उसने ठिकाना नहीं बदला। जैसे वह दिल से चाहता हो कि महाजन, मोना चौधरी के साथ, पूरी तैयारी के साथ आए, तब उनसे निपटेगा। रात भी उस ठिकाने पर, आदमियों का सख्त पहरा रहा। परंतु उसके बाद सब ठीक-ठाक रहा।

सुबह हो गई। बख्तावर सिंह के लिए बेड ‘टी’ आई। फिर सिद्दीकी आया।

“गुड मॉर्निंग सर –।”

बख्तावर सिंह ने बेमन से उसे देखा।

“सर, महाजन का इस तरह निकल जाना बहुत बुरा हुआ। वह –।”

“शटअप –।” बख्तावर सिंह ने दांत भींचकर कहा।

सिद्दीकी खामोश हो गया।

बख्तावर सिंह ने चाय समाप्त की और सिगरेट सुलगा ली।

“चांग ली को देने के लिए –।”

“मैंने पचास लाख का सोना, ब्रीफकेस में तैयार रख लिया है सर।”

“सिद्दीकी। अब मैंने रुकने का प्रोग्राम बदल दिया है।” बख्तावर सिंह ने कश लिया –“मैं वापस पाकिस्तान जा रहा हूं। तुम काम निपटाकर पहुंच जाना।”

“जी –।”

“आर.डी.एक्स. हिन्दुस्तान के जिन-जिन ठिकानों पर जाना है वहां जब पहुंच जाए तो उन्हें निर्देश दे दो। तबाही ऐसी हो कि भारत सरकार का ध्यान कश्मीर पर से हट जाए। ऐसा होने पर हम कश्मीर में अपनी घेराबंदी और भी पक्की कर लेंगे। अपने आदमियों के लिए कई ठिकाने और तैयार कर लेंगे कि वह कश्मीर पहुंचकर खुद को सुरक्षित छिपा सकें और आगे के काम को अच्छी तरह अंजाम दे सकें।”

“जी। वैसे भी कश्मीर में मौजूद भारतीय सेना का ध्यान, हमारे जवानों ने भटका रखा है। आजकल वे रह-रहकर बॉर्डर पर तगड़ी फायरिंग कर रहे हैं।” सिद्दीकी ने कहा।

“हां। यह एक अच्छा रास्ता है। भारतीय सेना गोलाबारी का जवाब गोलाबारी से देने लग जाती है और हमारे आदमी सीमा पार करके हिन्दुस्तान में आ जाते हैं।” बख्तावर सिंह ने गंभीर स्वर में कहा।

सिद्दीकी ने सिर हिलाया।

“लेकिन अब सर्दियां आ रही हैं। जिस रास्ते से हमारे लोग हिन्दुस्तान की सीमा में प्रवेश करते हैं वह पहाड़ियां और दर्रे बर्फ गिरने से भर जाएंगे। इसलिए हिन्दुस्तान के कई हिस्सों में विस्फोट करके, उनका ध्यान हटाना जरूरी है कि, हमारे ज्यादा-से-ज्यादा आदमी हिन्दुस्तान की सरहद में आ सकें।”

“सर। एक बात समझ में नहीं आई –।”

“क्या?”

“यह कश्मीर का मामला क्या है, जो –।”

“कैप्टन –।” बख्तावर सिंह का स्वर कठोर हो गया।

“सर।”

“हमें सिर्फ अपने काम से मतलब रखना चाहिए। दो देशों के बीच यह सब क्यों हो रहा है। सोचना भी नहीं चाहिए।”

“जी।”

दो पलों की खामोशी के बाद बख्तावर सिंह ने कहा।

“चांग ली से माइक्रो फिल्म लेने के बाद मैं पाकिस्तान रवाना हो जाऊंगा। पीछे से सारा काम तुम ही संभालना और काम पूरा होते ही पाकिस्तान आ जाना।”

“यस सर। चांग ली से कब मिलना है?”

“दोपहर एक बजे। लेकिन तुम पांच-चार आदमी लेकर बारह बजे ही वहां पोजिशन ले लेना। इस तरह कि चांग ली को शक न हो।” बख्तावर सिंह ने गंभीर स्वर में कहा –“चांग ली उन लोगों में से नहीं है, जिन पर जरा भी विश्वास किया जा सके। वह वही काम करता है, जिसमें उसका मतलब हो।”

“सर। चांग ली को पचास लाख देने की क्या जरूरत है। हम –।”

“बेवकूफी वाली बात मत करो।” बख्तावर सिंह का स्वर कठोर हो गया –“तुम क्या समझते हो चांग ली अकेला है? कई चीनी एजेंट यहां पर होंगे। क्योंकि यहां से हिन्दुस्तान जाना और आना, ऐसा है जैसे एक शहर से दूसरे शहर जाना। और हिन्दुस्तान के सीक्रेट पाने में चांग ली सबसे आगे रहता है।”

“ऐसा क्यों?”

“क्योंकि एशिया में महाशक्ति के रूप में अब, हिन्दुस्तान आगे आता जा रहा है। ऐसे में चीन हर संभव कोशिश करेगा कि भारत की कोई कमजोरी हाथ लगे और उसे पीछे धकेला जा सके।”

“यह काम तो चीन कब से कर रहा है। लेकिन कभी कामयाब नहीं हो सका –।”

“कामयाबी मिलने में वक्त लगता है।” बख्तावर सिंह ने धीमे स्वर में कहा –“हमारी सरकार कब से इस बात की कोशिश कर रही है कि हिन्दुस्तान को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर, उसे कमजोर किया जा सके। लेकिन अभी तक कोई खास सफलता नहीं लग सकी। हर बड़े काम में बड़ा वक्त लगता है। समझे कैप्टन–।”

“यस सर?”

☐☐☐

सुबह के साढ़े दस बज रहे थे। मोना चौधरी नहा-धोकर तैयार हो चुकी थी। ब्रेकफास्ट के लिए उसने बेल बजानी चाही तो लाइट को गुल पाया। बेल नहीं बजी।

मजबूरी में मोना चौधरी को नीचे जाकर ब्रेकफास्ट के लिए कहना पड़ा। कमरे से बाहर निकलने पर उसे सर्दी का एहसास हुआ। महाजन दस बजे ही, होटल से निकल गया था। उसका इरादा बख्तावर सिंह के रात वाले टिकाने को बाहर से ही नजर मारने का था और फिर रंजना सिनेमा पहुंचकर, किसी ऐसी जगह को तलाश करना था जहां से वह तसल्ली से बख्तावर सिंह का निशाना लेगा।

मोना चौधरी को अपना प्रोग्राम बताकर गया था नीलू महाजन।

ब्रेकफास्ट के लिए कहकर, मोना चौधरी जब सीढ़ियां चढ़ते ऊपर आ रही थी कि तभी ऊपर से राजपाल बड़बड़ाता हुआ, नीचे उतर रहा था।

“कैसा होटल है। एक घूंट चाय भी पीनी हो तो नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे...।”

सीढ़ियां चढ़ते-बढ़ते मोना चौधरी ने उसे देखा तो चेहरे पर अजीब से भाव आए। जिस राजपाल से वह मिलने को बेताब थी, वह सामने था। इसी होटल में था।

लेकिन राजपाल ने उसे एक ही निगाह में न पहचाना। तब पहचाना, जब सामने मोना चौधरी के खड़े होने के कारण कम चौड़ी सीढ़ियों में से निकलने का रास्ता न मिला, तो उसने सीधी निगाहों से मोना चौधरी को देखा और दूसरे ही पल चेहरे पर अजीब से भाव फैलते चले गए।

“त-तुम–।” राजपाल के होंठों से हक्का-बक्का स्वर निकला।

“बहुत जल्दी पहचान लिया?” मोना चौधरी के चेहरे पर तीखे भाव उभरे।

राजपाल ने जेब में हाथ डालकर रिवॉल्वर निकालना चाहा।

लेकिन उससे पहले ही मोना चौधरी के हाथ में रिवॉल्वर नजर आने लगी।

“बहुत हो गया राजपाल। रिवॉल्वर बाहर मत निकालना। पलटो और ऊपर चलो–।”

राजपाल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“मेरी बात मानते रहोगे तो ठीक रहेगा।”

“कौन हो तुम?” राजपाल के होंठों से सूखा सा स्वर निकला।

“मालूम हो जाएगा। ऊपर चलो।”

राजपाल पलटा और धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ने लगा।

उसके पीछे मोना चौधरी इस बात के प्रति सावधान थी कि राजपाल किसी तरह की अपनी हरकत में सफल न हो सके। वह जानती थी कि राजपाल कोई भी हरकत कर सकता था। किसी के आने-जाने का तो कोई खतरा नहीं था। छः-सात कमरों में से आधे कमरे खाली थे।

मोना चौधरी, राजपाल को लेकर अपने कमरे में पहुंची और दरवाजा बंद किया।

“मुंह घुमाकर खड़े हो जाओ।” मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा।

राजपाल ने पुनः  सूखे होंठों पर जीभ फेरी और पलटकर खड़ा हो गया।

मोना चौधरी ने आगे बढ़कर उसकी जेबें टटोली और उसका रिवॉल्वर अपने कब्जे में किया और दोनों रिवॉल्वर अपनी जेबों में डालती हुई बोली।

“आगे बढ़ो और कुर्सी पर बैठ जाओ।”

बात मानने के अलावा, उसके पास कोई और रास्ता नहीं था। राजपाल के कुर्सी पर बैठने पर, उसे घूरती मोना चौधरी दूसरी कुसी पर बैठी और कड़वे स्वर में बोली।

“तुम्हारा क्या ख्याल था कि हमारी कभी मुलाकात नहीं होगी।”

“क्या –क्या चाहती हो मुझसे?”

“झा के बंगले से क्यों भाग निकले?”

राजपाल ने बेचैनी से पहलू बदला।

“जवाब दो। चुप रहने से काम नहीं चलेगा।”

“तुम मेरी जान लेना चाहती थी।”

“किसने कहा?” मोना चौधरी की आँखों में जहरीले भाव उभरे।

राजपाल चुप।

“और रक्सौल में झा के आदमियों द्वारा, तुमने मेरी जान लेने की कोशिश की।”

“क्योंकि तुम मेरे पीछे आ रही थी।”

“तुम्हारी जान लेने –।”

राजपाल कुछ नहीं कह सका।

“वैसे तो तुमने अब तक मेरे साथ जो किया है, उसे देखते हुए मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ती। लेकिन तुमने जो भी किया। गलतफहमी में किया।” मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी –“यही वजह है कि इस वक्त तुम मेरे सामने सही-सलामत बैठे हो।”

राजपाल ने बेचैनी से पहलू बदला।

“कौन हो तुम?”

“मोना चौधरी।”

“मैं समझा नहीं।”

“मैं इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी हूं। तुमने –।”

“ओह –वह –मोना चौधरी तुम हो।” राजपाल के होंठों से निकला।

“हां।”

“तुम बख्तावर सिंह के लिए काम –।”

“इसी गलतफहमी के तहत तुम, मुझसे भागते रहे। मेरी जान लेने में लगे रहे।”

मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा-“जबकि मैं बख्तावर सिंह की दुश्मन हूं –।”

“दुश्मन?” राजपाल के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।

“हाँ। मेरा और बख्तावर सिंह का पुराना मामला है। मैं जानती हूं उसने तुम्हारी बेटी की हत्या करवाई है। उसका बदला लेने के लिए, तुम बख्तावर के पीछे हो।”

“तुम्हें कैसे मालूम?”

“राजपाल, तुम देशद्रोही हो।” मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा –“बरसों से तुम देश के कीमती राज बख्तावर सिंह को देते रहे। जानते हो इसकी सजा क्या है?”

“जानता हूं।” राजपाल का स्वर थका हुआ था –“मुझसे बहुत बड़ी गलती हो चुकी है। मुझे शुरू से ही बख्तावर सिंह की धमकी में नहीं आना चाहिए था। मेरे हाथों कत्ल हुआ। जाने कैसे उसके सबूत बख्तावर सिंह के हाथ लग गए। मैं डर गया और उसके इशारों पर काम करने लगा। अगर मुझे मालूम होता कि इन सब बातों का अंत मेरी बेटी की मौत पर होगा तो-तो मैं उस कत्ल का जुर्म स्वीकार करते हुए, खुद को कानून के हवाले कर देता।”

“अब समझ आ गई कि देश से गद्दारी का क्या अंजाम होता है।”

राजपाल ने जवाब देने की अपेक्षा, आंखें बंद कर ली।

तभी दरवाजा थपथपाया गया। मोना चौधरी ने दरवाजा खोला तो बाहर पुरानी सी ट्रे लिए होटल के छोकरे को खड़े पाया। जिसमें नाश्ता और चाय थी। छोकरा कमरे में ट्रे रखकर चला गया। मोना चौधरी ने उसके लिए चाय तैयार की।

“चाय ले लो। तुम शायद चाय के लिए नीचे जा रहे थे।”

राजपाल ने बिना कुछ कहे चाय का प्याला उठा लिया।

मोना चौधरी नाश्ते में व्यस्त हो गई।

“तुम मुझसे क्या चाहती हो?” राजपाल ने पूछा।

“नेपाल में बख्तावर सिंह के ठिकाने कहां-कहां हैं। वह कहां मिलेगा। यह पूछना था। लेकिन अब इत्तेफाक से बख्तावर सिंह और उसका एक ठिकाना नजर में आ चुका है।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा –“उसका कोई खास ठिकाना हो तो बताओ।”

“नेपाल में उसके पांच ठिकाने हैं।” राजपाल ने गंभीर स्वर में कहा –“लेकिन एक ठिकाना खास है। या फिर यूं कहा जाए कि उस ठिकाने से नेपाल के बाकी ठिकानों का भी संचालन होता है। शायद उस ठिकाने से पाकिस्तान से भी सीधा संबंध बनाया जाता हो।”

“कहां है यह जगह?”

राजपाल ने बताया। फिर बोला।

“लेकिन तुम चाहती क्या हो?”

“बख्तावर सिंह को खत्म करना और हिन्दुस्तान के खिलाफ होने वाले षड्यंत्र को तबाह करना।” मोना चौधरी ने क्रूरता भरे स्वर में कहा –“जो ठिकाना तुमने बताया है उसको नुकसान पहुंचाने में बख्तावर सिंह ने यहां जो चेन बना रखी है, उसमें कुछ फर्क पड़ेगा।”

“फर्क क्या –पाकिस्तान का नेपाल स्थित अड्डों से सम्पर्क टूट जाएगा। यहां पर मौजूद पाकिस्तानी एजेंट बिना इंजन के हो जाएंगे और बेकार बैठे रहेंगे।” राजपाल के होंठों से निकला।

मोना चौधरी नाश्ते में व्यस्त रही। सोचती रही।

राजपाल ने चाय समाप्त कर ली।

“अब तुमने क्या करना है?” मोना चौधरी ने पूछा।

“बख्तावर सिंह को खत्म करूंगा।” राजपाल गुर्रा उठा –“उसे बुरी से बुरी मौत दूंगा। वह –।”

“राजपाल।” मोना चौधरी ने उसकी आंखों में झांका –“तुम बख्तावर का मुकाबला नहीं कर सकते।”

“जानता हूं। लेकिन कोशिश तो कर सकता हूं। शायद कामयाब हो जाऊं।” राजपाल पुनः गुर्राया।

“अगर तुम वापस दिल्ली जाने को तैयार हो तो, बख्तावर का मुकाबला मैं  कर–।”

“नहीं मोना चौधरी।” राजपाल के होंठ भिंच गए –“मैं वापस नहीं जा सकता। बख्तावर सिंह ने पूरी तरह मुझे तबाह कर दिया है। अब मैं कहीं का नहीं रहा। पुलिस को मेरे बारे में खबर मिल गई है कि मैं देश के रहस्य बाहरी लोगों को बेचता हूं। जो कमीबेशी बाकी रही है। उसे बख्तावर के आदमी जल्दी ही पूरा कर देंगे। मैं जानता हूं। जब तक मैं पूरी तरह तबाह नहीं होऊंगा। बख्तावर चैन की सांस नहीं लेगा।”

मोना चौधरी, देखती रही राजपाल को।

“तुम्हें मेरे बारे में किसने बताया कि मैं पटना में और फिर नेपाल –।”

“इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी ने। उसके पास तुम्हारे खिलाफ कुछ सबूत हैं। वह जानता है कि बख्तावर सिंह के साथ तुम्हारे संबंध है। वह इंस्पेक्टर तुम्हें जिंदा गिरफ्तार करना चाहता है।”

“मैं जानता था, अब ऐसा ही होगा।” राजपाल की आवाज में अब दम नहीं था –“मेरे लिए सिर्फ एक ही जगह रह गई है। कानून। कानून की सलाखें। जेल और सजा –।”

“गैरकानूनी कामों के बाद एक दिन ऐसा भी आता है।”

“हाँ। अब मुझे लग रहा है। लेकिन मैं खुद को कानून के हवाले नहीं करूंगा।”

“तो कहाँ भागोगे। कब तक भागोगे? कानून के हाथ हर जगह पर पहुंच जाएँगे।”

राजपाल की निगाह, मोना चौधरी पर जा टिकी।

“तुम यहां बख्तावर सिंह को खत्म करने आई हो?”

“हां । ख्याल तो ऐसा ही है।

“अगर तुम मेरा साथ दो तो, मैं कानून के लंबे हाथों से बच सकता हूं –।”

“कैसा साथ?”

“तुम बख्तावर सिंह को खत्म करो और मैं उसका वह ठिकाना तबाह करूंगा, जिसके दम पर पाकिस्तानी एजेंट नेपाल में अपना ठिकाना बनाए हुए हैं।” राजपाल के चेहरे पर क्रोध की सुर्खी आ गई थी।

मोना चौधरी ने राजपाल की आंखों में झांका।

“बहुत बड़ी बात कर रहे हो –।”

“तुम क्या समझती हो। मैं यह काम नहीं कर सकता।” राजपाल घायल नाग की भांति फुंफकारा।

“नहीं कर सकते।”

“मोना चौधरी। तबाह-बरबाद हुआ इंसान तो पूरी दुनिया को तबाह कर सकता है। फिर यह तो छोटा-सा ठिकाना है। बख्तावर सिंह के साथ रहकर, ऐसे काम करने तो आ ही गए हैं।”

“हूं। तुम बता रहे थे कि नेपाल में, बख्तावर सिंह का पाकिस्तान का वह सबसे खास ठिकाना है।”

“हां।”“तो वहां पर पहरा भी तगड़ा होगा। वहां –।”

“वहां कुछ भी हो। लेकिन मुझसे बढ़कर, आज की तारीख में कोई नहीं।”

“क्या मतलब?”

“यह बात मुझ पर छोड़ दो। उस ठिकाने को तो मैं तबाह कर दूंगा।” राजपाल दांत भींचकर कह उठा –“और उसी रास्ते से मैं कानून की पहुंच से भी दूर हो जाऊंगा।”

“बताओगे नहीं।”

राजपाल मुस्कराया।

“मैं शाम तक पाकिस्तान के नेपाल स्थित हेडक्वार्टर को तबाह कर दूंगा।” राजपाल की आवाज में विश्वास के भाव थे –“अगर तुम बख्तावर सिंह को खत्म करने का वायदा करो तो।”

“वायदा नहीं।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया –“कोशिश –।”

“कोशिश–?”

“हां।” मोना चौधरी गंभीर स्वर में बोली –“हो सकता है बख्तावर सिंह मेरे हाथों से बच जाए।”

“यह तो किस्मत की बात है। लेकिन बख्तावर सिंह से मिलोगी कहां? वह –।”

“बख्तावर सिंह ने कहीं पहुंचना है। वह जगह और वक्त मुझे मालूम है।”

“ठीक है। तुम बख्तावर सिंह को निपटो। मैं उसके नेपाल के सबसे बड़े ठिकाने को तबाह करता हूं।” कहते हुए राजपाल के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि मोना चौधरी कुछ कह पूछ न सकी।

☐☐☐

अब जाने क्यों राजपाल को सर्दी का एहसास नहीं हो रहा था। जबकि सुबह की अपेक्षा मौसम खुल चुका था। सूर्य की हल्की-मीठी धूप फैल चुकी थी। परंतु कोहरा अभी भी मौजूद था जो बढ़ती सूर्य की गर्मी के साथ गुम होता जा रहा था।

राजपाल अपनी कार में बैठा और तेजी से कार आगे बढ़ा दी। उसके चेहरे की चमक सर्दी में और भी तेज हो रही थी। आंखों में जैसे मौत की चमक भर चुकी थी। पंद्रह मिनट बाद उसने कार रोकी और सामने ही नजर आ रहे फोन बूथ में प्रवेश करके, उसके नंबर मिलाए। बात की।

“हैलो।” दूसरी तरफ से आवाज आई।

“विक्रम बहादुर से बात कराओ।” राजपाल का स्वर सपाट था।

“तुम कौन हो?”

“मैं अपना नाम नहीं बता सकता। विक्रम बहादुर मुझे अच्छी तरह जानता है।”

दो पल के लिए लाइन पर खामोशी रही। फिर नई आवाज कानों में पड़ी।

“कौन हो तुम?”

“कैसे हो विक्रम?” राजपाल के होठों पर मुस्कान उभरी –“तुम्हारी पत्नी सुनीता कैसी है?”

“राजपाल साहब।” उसके कानों में खुशी से भरी विक्रम बहादुर की आवाज पड़ो –“आप। बस आपको दुजा से ठीक हूं। आप न होते तो सुनीता से मेरी शादी क्या, मैं तो दिल्ली से भी बाहर नहीं निकल सकता था। सब ठीक है। 5 महीने पहले ही एक बच्चे का बाप बना हूं।”

“गुड–।”

“आप कहां हैं। मेरे पास आइए। मैं आ जाता हूं आपको लेने –।”

“नहीं विक्रम।” राजपाल ने गंभीर स्वर में कहा –“मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकता। मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण तेरे को कोई नुकसान पहुंचे। बख्तावर सिंह से मेरी दुश्मनी हो गई है।”

“ओह –।”

“मुझे बारूद चाहिए।”

“बारूद –।”

“हां। तुम–।”

“लेकिन बात क्या है। जो आप –।”

“बात मत पूछो। जो मैं कह रहा हूं। सिर्फ वही करो। मैं जानता हूं बारूद का इंतजाम करना तुम्हारे लिए मामूली बात है। अब सुनो तुम्हें किस तरह के बारूद का इंतजाम करना है।”

“जी –।”

राजपाल ने बताया।

“ठीक है। इंतजाम हो जाएगा। लेकिन आप करना क्या चाहते हैं –।”

“कब तक इंतजाम होगा?”

“दो घंटे लग जाएंगे।”

“ठीक है। दो घंटे बाद बारूद के साथ रत्ना पार्क पहुंच जाना।” कहने के साथ ही राजपाल ने रिसीवर रखा और बूथ से बाहर आकर कार की तरफ बढ़ गया। उसके चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी।

☐☐☐

मोना चौधरी जब होटल से बाहर निकली तो दिन के बारह बजने वाले थे। एक बजे के करीब बख्तावर सिंह और चांग ली ने रंजना सिनेमा पर मिलना था। अभी काफी वक्त था। मोना चौधरी ने होटल से निकलकर इधर-उधर निगाह मारी। फिर सामने ही मौजूद कार में बैठी और इंजन स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। मौसम पूरी तरह खुल चुका था। धूप मध्यम सी फैली थी।

अभी कुछ आगे कार गई कि उसके कानों में शांत स्वर पड़ा।

“नेपाल का मौसम कैसा लगा मोना चौधरी। काठमंडू में इन दिनों सर्द मौसम रहता है। लेकिन मजा आता है।”

मोना चौधरी चौंकी। उसी पल उसने कार सड़क के किनारे करके ब्रेक लगाए और फौरन गर्दन घुमाकर पीछे देखा तो ठगी-सी बैठी रह गई।

पीछे वाली सीट पर मुस्कराता हुआ, इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा बैठा था। हाथ में रिवॉल्वर दबा था। इस वक्त वह वर्दी में नहीं था। इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा से मेरे पाठक देवराज चौहान सीरीज के पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘जादूगर’ और ‘दौलत का ताज’ में मिल चुके हैं।

“तुम?” मोना चौधरी के होंठों से निकला –“यहां?”

“हां, यहां। वैसे मैं होटल के अंदर भी आ सकता था। लेकिन सोचा बाहर मिलना ही ठीक है। कहीं भीतर मुझे देखते ही सोचो कि यह जगह पुलिस ने घेर ली और गोलाबारी करने लगो।” इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा ने हाथ में दबी रिवॉल्वर को तर्जनी उंगली में घुमाकर कहा –“मैंने ठीक किया ना, मोना चौधरी?”

होंठ सिकोड़े मोना चौधरी इंस्पेक्टर को घूरती रही।

“मेरे बारे में कैसे पता चला?”

“सुबह ही मालूम हो गया था।” इंस्पेक्टर थापा ने लापरवाही से कहा –“छोटा सा तो है काठमंडू। लेकिन यहां होटल बहुत हैं। कदम-कदम पर होटल हैं। न मालूम कौन आता है और कौन जाता है। सब पर नजर रखनी भी आसान नहीं। इस होटल वालों को, हर होटल वाले को, कुछ तस्वीरें दी हुई हैं। उनमें से एक तस्वीर तुम्हारी भी है। कि अगर इनमें से कोई आकर ठहरे तो, फौरन खबर दी जाए। तुम्हारे होटल वाले रात को तुम्हें इसलिए नहीं पहचान पाए कि, होटल का मालिक सोने के लिए अपने घर चला गया था। सुबह वह आया। तुम्हें पहचाना और फोन घुमा दिया। खबर मिलते ही मैं आ गया।

“अकेले आए हो?”

“हां। किसी को साथ लाने की जरूरत अभी इसलिए मालूम नहीं हुई कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में तुमने नेपाल में कानून नहीं तोड़ा। और मैं चाहता भी नहीं कि तुम ऐसा कुछ करो।”

मोना चौधरी मुस्कराई।

“तुम पहरा दोगे मुझ पर –।”

“हाँ। जब तक तुम नेपाल में रहोगी । मैं तुम्हारी सेवा में रहूंगा। ताकि जहां भी तुम्हारे कदम और सोचें भटकने लगें तो, मैं संभाल लूं –।” थापा ने मुस्कराकर कहा।

मोना चौधरी ने होंठ सिकोड़े कान को खुजाया।

“वैसे काठमंडू-नेपाल में कब तक रहने का इरादा है?”

“अभी चली जाऊं?”

“काठमंडू में तुम, हमारी मेहमान हो। यह मैं कैसे कह सकता हूं।” इंस्पेक्टर थापा ने कंधे उचकाकर कहा –“वैसे हिन्दुस्तान की दो शख्सियत का मैं नेपाल के किसी भी कोने में देखा जाना पसंद नहीं करता।”

“दूसरा कौन है?”

“तुम्हारे अलावा देवराज चौहान –।”

“देवराज चौहान।” मोना चौधरी चौंकी। फिर उसके होंठ भिंच गए।

“हां।” इंस्पेक्टर ने हाथ में दबी रिवॉल्वर को थपथपाया –“करीब दो-ढाई साल पहले वह नेपाल यानी कि यहां काठमंडू आया था न्यू ईयर की रात, यहां के सबसे शानदार कैसिनो में डकैती करने बहुत खतरनाक योजना बनाई थी उसने। मुझे तो उसकी हरकतों की भनक ही बहुत बाद में मिली। वह सफल रहा। कैसिनो में पड़ी करोड़ों की दौलत ले उड़ा। उसका मेरा सामना भी लेकिन हाथ से निकल ही गया देवराज चौहान।”

“मेरे हाथों से भी एक बार बच गया था।” एकाएक मोना चौधरी के दांत भिंच गए। चेहरा सुर्ख होने लगा।

“तुम्हारे हाथों?”

“हां। कुछ महीने पहले की बात है। मेरे रास्ते में आ गया था। लेकिन फैसला होने से पहले ही बच गया। बात वहीं ठहर गई।”

मोना चौधरी नागिन की तरह फुंफकार उठी –“लेकिन अब अगर कहीं फिर मेरे रास्ते में आया तो, वह वक्त उसकी जिंदगी का आखिरी दिन होगा।”

इंस्पेक्टर थापा ने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

“देवराज चौहान से कोई जाती दुश्मनी?”

“दुश्मनी का रंग और नाम नहीं जानती। लेकिन इतना मालूम है कि वह या मैं, देवराज चौहान या मोना चौधरी, इस धरती पर सिर्फ एक ही जिंदा रहेगा।” मोना चौधरी का चेहरा दहकने लगा था –“मुझे इंतजार है तो सिर्फ इतना कि एक बार सिर्फ एक बार उसका और मेरा रास्ता एक हो जाए। कोई मामला, उसका और मेरा हो जाए। कोई वजह बन जाए, उससे लोहा लेने की।”

इंस्पेक्टर थापा, मोना चौधरी के सुर्ख-धधकते चेहरे को देखता रहा। फिर मुस्कराकर कह उठा।

“ठीक है। कभी देवराज चौहान मिला तो, तुम्हारे विचार उस तक पहुंचा दूंगा।”

“वह जानता है मेरे विचारों को।” मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा।

“यह तुम्हारा और देवराज चौहान का मामला है। मेरा इससे कोई वास्ता नहीं।” इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा ने कहा –“मैं तो सिर्फ यह कह रहा था कि जब तक तुम नेपाल में रहोगी। मैं तुम्हारे साथ रहूंगा। ताकि नेपाल में तुम किसी तरह का गलत कदम न उठा सको। नेपाल के लोगों को तुमसे परेशानी न हो।”

“थापा।” मोना चौधरी अपने पर काबू पा चुकी थी –“आज तक हिन्दुस्तान की जनता मुझसे परेशान नहीं हुई तो फिर नेपाल की जनता को मेरे से क्यों शिकायत होगी?”

“नेपाल की पुलिस को तो परेशानी हो सकती है। दोनों ने एक-दूसरे की आंखों में झांका।

मोना चौधरी जानती थी कि इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा, किस हद तक खतरनाक ऑफिसर है। इसे किसी भी तरह से बेवकूफ बनाना या चालाकी करने की कोशिश करना बेकार था।

“हां।” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर कहा –“नेपाल की पुलिस परेशान हो सकती है।”

एकाएक इंस्पेक्टर थापा सतर्क नजर आने लगा।

“मतलब कि तुम्हारे इरादे हैं कुछ करने के।”

मोना चौधरी के दांत भिंच गए।

“ओ.के.।” इंस्पेक्टर थापा होंठ सिकोड़कर बोला –“जब तक तुम नेपाल में हो। मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा।”

“यह नहीं हो सकता इंस्पेक्टर थापा –” मोना चौधरी का स्वर कुछ उखड़ा।

“नहीं हो सकता।” थापा ने गहरी सांस लेकर सिर हिलाया –“फिर तो तुम्हारे पास एक ही रास्ता है कि मुझे गोली मार दो। मेरे से पीछा छुड़ा लो। मेरे सिर में डंडा मार दो। इसके बिना तो मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाला।”

मोना चौधरी कई पल खामोश रही। चेहरे पर सोच के भाव नजर आने लगे। वह जानती थी कि इंस्पेक्टर थापा से पीछा छुड़ाना आसान नहीं। और उसके पास इतना वक्त भी नहीं था कि थापा को ज्यादा देर साथ रख सके। क्योंकि एक बजे रंजना सिनेमा पर बख्तावर और चांग ली की मुलाकात होनी थी और उनसे हर हाल में उसने माइक्रो फिल्म लेनी थी, जिसमें हिन्दुस्तान की सुरक्षा की बातें दर्ज थीं।

थापा शांत भाव से मोना चौधरी को देखता रहा।

“थापा।”

“मैं तुम्हारे ही बोलने का इंतजार कर रहा हूं।”

“सोच रही हूं कि अगर ज्यादा देर गर्दन घुमाकर पीछे देखती रही तो, इस तूफानी सर्दी में गर्दन अकड़ जाएगी। तुम आगे आ जाओ या मैं पीछे वाली सीट पर बैठकर बात कर –।”

“नहीं। मैं तुम्हें बगल में बिठाकर, किसी तरह का खतरा नहीं ले सकता।” थापा ने सिर हिलाकर कहा –“चाहो तो कहीं बैठकर, चाय-कॉफी हो जाए।”

“मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है।”

“गुड। तो अभी ही कुछ करने का इरादा रखती हो। कोई बात नहीं, हम राह चलते चाय पी लेंगे।” कहने के साथ थापा थोड़ा-सा आगे झुका और अपनी रिवॉल्वर, मोना चौधरी की गर्दन से सटा दी। ठंडे लोहे का तीव्र एहसास बदन को हुआ –“तुम्हारे पास जो भी हथियार है मेरे हवाले कर दो।”

मोना चौधरी ने रिवॉल्वर निकाली और थापा की तरफ कर दी।

“मुझसे हथियार लेना इतना आसान नहीं। लेकिन मैं तुमसे झगड़े के मूड में नहीं हूं।”

“शुक्रिया।” थापा ने रिवॉल्वर लेकर जैकेट की जेब में डाली –“कार आगे बढ़ाओ। मोड़ से बाईं तरफ लेना।”

मोना चौधरी ने कार आगे बढ़ा दी। फिर आगे जाकर बाईं तरफ मोड़ी।

“गुड।” थापा ने स्थिर स्वर में कहा –“वो सामने, बंद दुकान के बाहर झोंपड़ी है। वहां बहुत बढ़िया चाय बनती है। फुर्सत में होता हूं तो अक्सर यहां से चाय पीकर ही जाता हूं। तुम्हें भी चाय पसंद आएगी।”

मोना चौधरी ने झोंपड़ी के सामने कार रोकी।

झोंपड़ी एक तरह से चाय की दुकान थी। इस वक्त सिर्फ दो व्यक्ति ही बैठे चाय पी रहे थे।

“पहले तुम कार से निकलो। कहीं ऐसा न हो कि मैं निकलूं और तुम कार भगा ले जाओ।” थापा बोला।

मोना चौधरी कार से बाहर आ गई।

इंस्पेक्टर थापा भी निकला। हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर जेब में डाल ली। तभी झोंपड़ी से निकलकर पचास बरस का व्यक्ति हाथ जोड़े थापा के पास पहुंचा।

“नमस्कार साहब जी।”

“कैसे हो बहादुर।”

“आपकी दया है। चाय बनाऊं क्या?”

“हां। बढ़िया बनाना। मेमसाहब साथ में हैं। समझ गए?” थापा मुस्कराया।

“समझ गया साहब जी। अभी लो।” कहने के साथ ही वह वापस पलट गया। थापा आगे बढ़ा, मोना चौधरी के पास ही कार के बोनट पर जा बैठा। जो सर्दी की वजह ठंडा हुआ पड़ा था। मध्यम सी धूप उस ठंडक को दूर नहीं कर पा रही थी।

“अब बोलो।” मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगाई और कश लिया।

“थापा। तुम्हें मालूम है पाकिस्तान ने यहां चोरी-छिपे कई ठिकाने बना रखे हैं। और उन्हीं ठिकानों के दम पर, हिन्दुस्तान के कई हिस्सों में आतंक फैलाया जा रहा है। आतंकवादी बम विस्फोट करते हैं और चुपचाप नेपाल खिसक आते हैं।” मोना चौधरी का स्वर शांत था।

“मालूम है। नेपाल सरकार इस बात से वाकिफ है। हमने पाकिस्तान के यहां बनाए कई ठिकानों को नष्ट किया है। उन्हें यहां से खदेड़कर वापस भेजा है। जिन्होंने टकराने की चेष्टा की उन्हें खत्म कर दिया गया। दो बार खतरनाक आतंकवादियों को पकड़कर हिन्दुस्तान सरकार के हवाले किया है।” थापा ने कहा –“कुछ ही दिन पहले ऐसा एक ठिकाना नजरों में आया तो, वहां नेपाल सरकार ने ताला लगा दिया। उन लोगों को नेपाल से बाहर कर दिया। पाकिस्तान के दो सरकारी कर्मचारियों ने पुलिस पर हथियार तानने चाहे तो उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। हमारी आंखें हमेशा खुली रहती हैं।”

“मतलब कि अब नेपाल में पाकिस्तान का ऐसा कोई ठिकाना नहीं।”

“है। पाकिस्तान वालों ने नेपाल में अपनी जड़ें कुछ हद मजबूत कर रखी हैं।” थापा ने गंभीर स्वर में कहा –“पुलिस इन मामलों पर नजर रख रही है। जिस ऐसी जगह पर शक होता है, उस पर हम एक्शन लेते हैं।”

मोना चौधरी ने कश लिया।

“और चीन –इस मामले में चीन के बारे में तुम्हारी क्या राय है?”

“चीन ने भी नेपाल में ठिकाने बना रखे हैं। लेकिन ज्यादा नहीं। और चीन की हरकत सतर्कता भरी होती है कि उन्हें पकड़ पाना आसान नहीं। चीनी एजेंट भी हिन्दुस्तान की टोह में लगे रहते हैं।” थापा ने खोज भरी निगाह मोना चौधरी पर डाली –“लेकिन तुम कहना क्या चाहती हो।”

तभी बहादुर चाय के दो गिलास दे गया।

दोनों ने चाय थामकर घूंट भरा।

“पाकिस्तान मिलिट्री में एक खतरनाक नाम है। बख्तावर सिंह, तुम अवश्य इस नाम से वाकिफ होगे?”

इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा मन ही मन सतर्क हुआ। लेकिन शांत स्वर में कहा। “हां। जानता हूं। उससे एक बार मिला भी था।”

“और चीनी सीक्रेट सर्विस का भी एक एजेंट है। चांग ली।”

“उससे कई बार मिला हूं। लेकिन तुम कहना क्या चाहती हो। मैं समझ नहीं पा रहा हूं –।”

मोना चौधरी ने चाय का घूंट भरा –“मैं तुमसे पूछना चाहती हूं कि नेपाल के लिए बख्तावर सिंह खतरनाक है। चांग ली खतरनाक है। या फिर मैं।”

थापा ने मोना चौधरी की आंखों में झांका।

“स्पष्ट कहो।”

“मैंने स्पष्ट ही कहा है।”

“जो–नेपाल में गलत काम करे, वही नेपाल के लिए नुकसान देह है।”

“मतलब कि तुम मानते हो कि बख्तावर सिंह, नेपाल में, भारत के खिलाफ पाकिस्तानी हरकतों को बढ़ावा देता है। उसने यहां स्थाई ठिकाने बना रखे हैं।” मोना चौधरी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।

“हां। शायद ऐसा ही है।”

“और चांग ली के बारे में तुम्हारा क्या विचार है। वह नेपाल घूमने तो नहीं आता–।”

“जो कहना है। कह दो। मैं सुन रहा हूं –।”

मोना चौधरी ने चाय का गिलास खाली करके कार के बोनट पर रखा।

“थापा।” मोना चौधरी का स्वर सख्त हो गया –“बख्तावर सिंह और चांग ली इस वक्त काठमंडू में हैं। चांग ली के पास हिन्दुस्तान की गोपनीयता से वास्ता रखती, माइक्रो फिल्म है, जिसका सौदा, वह सिर्फ पचास लाख में बख्तावर से कर रहा है, क्योंकि उस माइक्रो फिल्म में, जो जानकारी है, वह चीन के लिए फायदेमंद नहीं है। और मैं इस माइक्रो फिल्म को हासिल करने की कोशिश में हूं। अब तुम ही बताओ कि हम तीनों में से कौन गलत हुआ और कौन सही –।”

“तुम गलत हो।” थापा ने तीखे स्वर में कहा।

“कैसे?”

“तुम इश्तिहारी मुजरिम हो। दौलत लेकर हर काम करने को तैयार हो। अब तुम उस माइक्रो फिल्म को उन लोगों से छीनकर, उसका सौदा मोटी रकम में करना चाहती हो।”

मोना चौधरी के होंठों पर मीठी मुस्कान उभरी।

“ऐसा कुछ नहीं है, जो तुमने कहा । फिर भी मैं तुम्हारी तसल्ली करा देती हूं।”

“कैसे?”

मोना चौधरी ने घड़ी देखी, साढ़े बारह बज रहे थे।

“तुम इस काम में मेरे साथ रहो।” मोना चौधरी ने कहा –“उन लोगों से माइक्रो फिल्म लेने के बाद, उसे तुम्हारे हवाले कर दूंगी। उस फिल्म को हिन्दुस्तान के हवाले कर देना अपनी सरकार के माध्यम से।”

“हो सकता है, तुम जो कह रही हो, वह झूठ हो। असल मामला कुछ और ही हो। मुझे बेवकूफ –।”

“ऐसा कुछ नहीं है। फिर तुम मेरे साथ –।”

“मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता।”

“क्यों?”

“क्योंकि मैं पुलिस वाला हूं। अपने ही देश में हूं। कुछ करूंगा तो नजर में आ जाऊंगा।” थापा ने गंभीर स्वर में कहा –“और करने से पहले, मुझे अपनी कार्यवाही की रिपोर्ट अपने ऑफिसरों को देनी होगी। और जिस मामले में बख्तावर सिंह और चांग ली हो। उसमें इतनी आसानी से दखल दिया नहीं जा सकेगा। दखल देते-देते काफी वक्त बीत जाएगा और वह दोनों अपना काम कर चुके होंगे।”

मोना चौधरी उसे देखती रही।

“तुम इस मामले में क्या करने जा रही थी?” एकाएक थापा ने पूछा।

“बख्तावर और चांग ली रंजना सिनेमा पर एक बजे मिलने वाले हैं।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा –“चांग ली, बख्तावर को माइक्रो फिल्म देकर पचास लाख लेगा। मेरा इरादा इस दौरान उनसे माइक्रो फिल्म हथियाने की है।”

“तुम क्या समझती हो वहां बख्तावर या चांग ली अकेले आएंगे। उनके आदमी भी वहीं पास ही होंगे।”

“मालूम है मुझे। लेकिन यह खतरा तो उठाना ही पड़ेगा। वैसे मेरा साथी महाजन वहां पहुंच चुका है।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा –“महाजन, बख्तावर को निशाने पर लेने की कोशिश करेगा।”

“तो बात वहीं आ गई। खून-खराबे पर। हंगामे पर। जो कि मैं नहीं चाहता था।” थापा का स्वर तीखा हो गया।

मोना चौधरी के चेहरे पर सख्ती उभर आई।

“इसके बिना बात नहीं बनेगी थापा। उनके आदमी भी तो मौका पाकर, मेरी जान लेने की कोशिश करेंगे।”

थापा के होंठ भिंच गए।

“सब कुछ मैंने तुम्हें बता दिया है। अब तुम्हें इस मामले में मेरी सहायता करनी होगी।”

“जोकि नहीं कर सकता।” इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा ने भिंचे होठों से कहा –“बख्तावर और चांग ली के मामले में मेरे आने का मतलब है कि नेपाल सरकार को पाकिस्तान और चीन को जवाब देना पड़ेगा और उस जवाब में यह साबित नहीं किया जा सकेगा कि वह दोनों भारत के सीक्रेट का सौदा कर रहे थे।”

“तो फिर मुझे इजाजत दो।” मोना चौधरी की आवाज में दृढ़ता के भाव थे।

थापा, मोना चौधरी को देखने लगा।

“मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है थापा। और मैं अब और नहीं रुक सकती।”

“मैं रोकूं तो तब भी नहीं रुकोगी।”

“कोशिश करके देख लो।”

“कोशिश तो मैं कर सकता हूं और दावा भी करता हूं कि मेरे हाथों से निकलने के पश्चात तुम अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकती। आखिर यहां से निकलकर, जाओगी तो रंजना सिनेमा पर ही –।” थापा के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान उभरी –“वहां पहले से ही पुलिस को खड़ा पाओगी।”

“तुम्हारे कदम रोकने के लिए मेरे पास कई रास्ते हैं। लेकिन मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती।”

“एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि हिन्दुस्तान की पुलिस तुम्हारे पीछे है फिर तुम्हें क्या पड़ गई कि हिन्दुस्तान के सीक्रेट कौन ले रहा है। क्यों ले जा रहा है।”

“इतना ज्यादा मत सोचो थापा।” मोना चौधरी कह उठी –“अगर गलत काम कर रही हूं तो कहो।”

“ठीक है।” थापा ने सोच भरे स्वर में कहा –“तुम जो करना चाहती हो करो। लेकिन याद रखो कि उस वक्त मैं पास ही रहूंगा और –।”

“कहीं भी रहो। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।”

“अगर वह माइक्रो फिल्म तुम्हारे हाथ लग जाती है तो, वह मुझे देनी होगी।” इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा ने याद दिलाने वाले अंदाज में कहा –“मैं उसे हिन्दुस्तान के ठीक हाथों में पहुंचा दूंगा।”

मोना चौधरी ने सहमति में सिर हिलाया।

“जब तुम यह फिल्म मुझे दोगी। तब मैं तुम्हें एक और बात बताऊंगा।”

“और मैं तुम्हें पाकिस्तान के एक ठिकाने के बारे में बताऊंगी। जो अभी तुम्हारी नजरों में नहीं आया।”

“आओ वक्त कम है। मुझे कार तक छोड़ दो। जो तुम्हारे होटल के पास ही खड़ी है।”

दोनों कार में बैठे । मोना चौधरी ने कार आगे बढ़ा दी।

“एक छोटा सा वायदा और कर लो।”

“क्या?”

“इस काम को पूरा करते ही नेपाल से चली जाओगी।”

“हां। उसके बाद यहां मेरा कोई काम बाकी नहीं रहेगा।”

मोना चौधरी ने इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा को, उसकी कार के पास छोड़ दिया।

इंस्पेक्टर सूर्य बहादुर थापा ने एक दुकान के बाहर कार रोकी और भीतर प्रवेश कर गया। दस मिनट बाद जब वह बाहर निकला तो चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ लगी हुई थी। अब एक ही निगाह में उसे पहचाने पाना आसान नहीं था। वह अपनी कार में बैठा और रंजना सिनेमा की तरफ रवाना हो गया।

☐☐☐