मुंबई

जिस वक्त दिल्ली में मीटिंग चल रही थी उसी समय उधर मुंबई में पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय और विस्टा टेक्नोलॉजी के चेयरमैन विश्वरूप रुंगटा अंधेरी ईस्ट के एक फाइव स्टार होटल के सुइट में आमने-सामने बैठे थे।

धनंजय रॉय के सामने विस्टा टेक्नोलॉजी को आज सुबह दस बजे मिली एक मेल झाँक रही थी। मेल को पढ़कर धनंजय रॉय के चेहरे पर परेशानी के साथ पसीने की बारीक बूँदें भी नमूदार हो गयी थीं। लश्कर-ए-जन्नत की तरफ से विस्टा टेक्नोलॉजी को मेल में एक वीडियो भी भेजा गया था। यह वही वीडियो था जिसे राजीव जयराम और अभिजीत देवल देख चुके थे। इस वीडियो के साथ पहली बार विस्टा के सभी कर्मचरियों के अगवा होने की बात को किसी संगठन द्वारा कबूल किया गया था।

“ये कब आया आपके पास?” वीडियो देखने के बाद रॉय ने रूंगटा से पूछा।

“सुबह हमारी विस्टा टेक की सीईओ नलिनी दास की ऑफिशियल अकाउंट पर ये मेल आया। वहाँ से सूचना मिलने के बाद मैंने पुलिस को सूचित करना जरूरी समझा। मुझे पता है कि ये धमकी मेरे एम्प्लॉईस के लिए मौत का फरमान हो सकती है। इस मेल में एक हजार करोड़ रुपए की फिरोती की डिमांड भी की गयी है।” रूंगटा ने ठहरे हुए शब्दों में बताया।

“लेकिन हमें ये समझ नहीं आता कि ये माजरा क्या है? जो लोग लापता हुए हैं उनका इन आतंकवादियों का क्या लेना-देना?” रॉय ने उलझे हुए शब्दों में कहा।

“क्या ये लोकल माफिया की कारगुजारी हो सकती है? हो सकता है वो लोग महज ज्यादा रकम ऐंठने के चक्कर में इस बात का बतंगड़ बना रहें हो और हम पर दबाव दाल कर ज्यादा मोल भाव करने का इरादा रखते हों।” रुंगटा ने अपना शक जाहिर किया।

इस बात को सुन कर धनंजय रॉय ने अपना सिर इंकार में हिलाते हुए उसे दिन में हुई अपनी मीटिंग के बारे में बताया।

“हम्म... फिर तो हमने आप को बता कर अच्छा ही किया। इस बात की तहक़ीक़ात के लिए मैं बड़े से बड़े जासूसों की फौज लगा सकता था अगर ये मेरा निजी मामला होता। इन लापता लोगों में नीलेश जो हमारी ऑर्गेनाइजेशन में मैनेजिंग डायरेक्टर है, वह भी फँसा हुआ है। आपको शायद पता होगा कि वह योगराज पासी का लड़का है। उस पर कोई आँच आना मेरी कंपनी के लिए बहुत बड़ा धक्का और बदनामी का बायस होगा। इसलिए पुलिस के पास आना हमारी मजबूरी है और अब ये मुंबई पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि हमारी कंपनी के लोग सुरक्षित वापस आएँ।”

“और ये फिरौती... इसका क्या?”

“ये फिरौती की रकम मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती। हमारे लिए हमारी साख जरूरी है। मैं ये नहीं कहता कि मेरे साथ काम करते हुए लोग अमर हैं या आज तक किसी को मौत नहीं आयी। जो ऊपर वाले की मर्जी है, वो मुझे मंजूर है लेकिन किन्हीं जहनी तौर पर बीमार लोगों के कारण मेरे लोग काल के गाल में समा जाएँ, ये मुझे मंजूर नहीं। आप लोग किसी भी कीमत पर मेरे लोगों को वापस लाएँ और सुरक्षित लाएँ। इस काम के लिए जो भी माली इमदाद पुलिस को चाहिए होगी, वो मैं करूँगा।” रूंगटा ने दृढ़ता से भरे शब्दों में कहा।

“मैं वादा करता हूँ कि सब कुछ ठीक होगा। मुझे अब ये मामला स्टेट होम मिनिस्टर की नॉलेज में भी लाना होगा।” धनंजय रॉय ने अपनी कैप को अपने सिर पर रखते हुए कहा।

“मेरा साइबर सिक्योरिटी डिपार्टमेंट इस मेल के बारे में जानकारी जुटा रहा है। जैसे ही इस बारे में कोई डेवलेपमेंट होती है तो वो लोग आप से शेयर कर लेंगे।”

कमिश्नर धनंजय रॉय ने सहमति में सिर हिलाते हुए वहाँ से विदा ली।

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सुधाकर और मिलिंद राणे तुर्भे में विस्टा टेक वर्ल्ड के ऑफिस में पहुँचे। वहाँ जाकर उन्होंने सिक्योर्टी ऑफिस से पार्किंग की वीडियो रिकॉर्डिंग निकलवाई। उनकी निगाहें रिकॉर्डिंग में राकेश के साथ उठने-बैठने वाले लोगों की तरफ थी। बस को पार्किंग में लगाने के बाद राकेश उस पार्किंग के बाहर विजिटरों के लिए बनी कैंटीन में दाखिल हो गया। शाम को तीन बजे के आसपास उसके पास कोई लाल रंग की टी-शर्ट और जीन्स पहने हुए एक आदमी आया। दोनों इस तरह से बातें कर रहे थे जैसे एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हों।

“जरा इसे ज़ूम करना।” सुधाकर ने ऑपरेटर से कहा, “राणे, ये आदमी तो राहुल तात्या दिखाई पड़ रहा है। ये दोनों अब बाहर की तरफ जा रहें है। जरा मुझे मेनगेट की इसी समय की रिकॉर्डिंग दिखाओ।” सुधाकर ऑपरेटर से बोला।

ऑपरेटर ने मेन गेट पर लगे कैमरा की रिकॉर्डिंग प्ले की। मेनगेट पर एक आदमी एक स्कॉर्पियो से पीठ लगाए खड़ा था।

“अरे, सर। ये तो वही स्केच वाला आदमी है। यहाँ से यह आदमी और राकेश एक स्कॉर्पियो में सवार हो रहे हैं। लेकिन यहाँ से इस स्कॉर्पियो का नंबर दिखाई नहीं दे रहा। अगर नंबर मिल भी जाएगा तो शर्तिया ये चोरी की होगी।” राणे ने कहा।

उस वीडियो में उन दोनों के जाने के बाद राहुल तात्या उन्हें बस में चढ़ता हुआ दिखाई दिया और बस को पार्किंग से बाहर ले गया। उस वक्त रिकॉर्डिंग में कोई साढ़े तीन बजे का टाइम हुआ था।

“ये लोग बस को कहाँ ले जा रहे हैं? ये राकेश भी उस स्केच वाले दूसरे आदमी के साथ जा चुका है और उसकी लाश हमें मुंबई-पुणे हाइवे पर कामोठे ब्रिज के पास मिली है। इसका मतलब कि जिस आदमी के साथ राकेश गया है, वही आदमी उसकी मौत का ज़िम्मेवार है या उसकी हत्या में शामिल है।” सुधाकर ने वीडियो देखते हुए कहा।

वीडियो में साढ़े पाँच बजे उन्हें एक दूसरी टूरिस्ट बस पार्किंग लॉट में आती दिखाई दी। उस बस को राहुल तात्या ही चला रहा था और पार्किंग में उसी जगह पर लगा रहा था जहाँ पर सिग्मा टूर एंड ट्रेवल्स की बस पार्क थी। साढ़े छह बजे तक विस्टा टेक के आदमी उस बस में बैठ चुके थे।

शाम को पौने सात बजे के आसपास सुधाकर को नीलेश उस बस में सवार होता दिखाई दिया। सवार होने से पहले उसने राहुल से कुछ देर बात की और फिर हाथ हिलाता हुआ बस में सवार हो गया जैसे उसे बस का बदला जाना नागवार गुजारा हो।

सुधाकर ने उस बस की फोटो लेकर चरणजीत वालिया को मैसेज किया। वालिया को उसने इस बस के बारे में जानकारी देने के लिए कहा। कंट्रोल रूम को भी उसने इस बस की फोटो सभी नाकों पर भेजने के लिए कह दिया।

“तुम्हारी इस रिकॉर्डिंग में इनके नंबर्स नहीं दिखाई दे रहें है। क्या यहाँ पर कोई कैमरा किसी ऐसी जगह नहीं लगा है जहाँ से ये बस मुड़ती हुई दिखाई दें और हमें इस बस की नंबर प्लेट साफ दिख जाये।” राणे ने ऑपरेटर से पूछा।

“यहाँ से आगे जाकर नुक्कड़ पर टी-पॉइंट है, सर। वहाँ से एक लिंक रोड़ सैक्टर बाईस की तरफ जाता है तो सारे व्हीकल उधर से ही मुड़ते हैं। वहाँ पर एक इलेक्ट्रॉनिक्स का शो रूम है शायद वहाँ पर सीसीटीवी जरूर लगा होगा।” ऑपरेटर बोला।

“ठीक है। उसे भी देखेंगे। यहाँ पार्किंग वाला भी तो गाड़ियों की पार्किंग स्लिप देता होगा। उसे यहाँ पर बुला। उसे बोल दौड़ कर आए। राणे, उस इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पर जाकर सारी रिकॉर्डिंग ले लो। मैं उस पार्किंग वाले को देखता हूँ।” सुधाकर बोला।

राणे हामी भरता हुआ बाहर चला गया। पार्किंग वाला ऑपरेटर हाँफता हुआ रूम में पहुँचा। उसके हाथ में स्लिप-पैड का बाकी आधा हिस्सा था। सुधाकर ने उसे टाइम बताया और बस की रिकॉर्डिंग दिखाई। उसने साढ़े पाँच बजे स्लिप-पैड पर काटी हुई सारी स्लिप निकाली। उस वक्त कटी हुई दो ही स्लिप निकली। उनमें से एक स्लिप पर बस और दूसरी पर एसयूवी का नाम था। सुधाकर ने स्लिप से उस बस का नंबर नोट किया।

अपने मोबाइल पर उसने रजिस्ट्रेशन ऑफिस की एप्प पर बस का नंबर डालकर चेक किया। कोई मैच नहीं मिला। कहाँ से मिलता। मतलब साफ था कि गाड़ी का नंबर बदल दिया गया था। उसने वो नंबर आलोक देसाई को बताया। सभी जगह उस बस का नंबर सर्क्युलेट हो गया। स्कॉर्पियो का नंबर राणे ने दुकान की रिकॉर्डिंग से निकाला। सुधाकर ने स्लिप-पैड को अपने कब्जे में किया और वीडियो-फुटेज की रिकॉर्डिंग की डिस्क लेकर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ा।

अब एक कदम मामला आगे बढ़ा था। विस्टा टेक्नोलॉजी के आदमियों को बस में लेकर राकेश नहीं बल्कि राहुल तात्या कंपनी से बाहर निकला था। राकेश दूसरे आदमी के साथ स्कॉर्पियो में बैठ कर गया था और फिर उसकी लाश पुलिस को मिली थी।

कमाल था !

दो आदमियों ने पंद्रह आदमियों को कब्जे में कर रखा था। किसी को इस बात की हवा तक नहीं लगी। न अब लग रही थी। सुधाकर के चेहरे पर परेशानी साफ नज़र आ रही थी। तभी उसका मोबाइल वाइब्रेट करने लगा। लाइन पर आलोक देसाई खुद था।

“सुधाकर कहाँ हो तुम?”

“सर, मैं विस्टा टेक वर्ल्ड के ऑफिस से बस निकल ही रहा हूँ। हमने यहाँ पर... ”

उसने विस्तार से राहुल तात्या और दूसरे आदमी की हरकतों के बारे में बताया।

“सुधाकर। जिस आदमी का स्केच हमने सर्क्युलेट कर रखा है, हमें सूचना मिली है कि वो आदमी अमीन गोटी है। उसे छुरेबाजी की एक घटना में एक साल पहले कोलाबा में पकड़ा गया था। कोर्ट में सबूतों के अभाव में छूट गया। वह आदमी कलंबोली में फिश मार्केट के आसपास मँडराता देखा गया है। मैंने वहाँ के पुलिस स्टेशन में कह दिया है। वो लोग उस इलाके को घेर रहें हैं। मैं वहाँ पहुँच रहा हूँ और तुम भी वहाँ पहुँचो।”

“उन लोगों को ब्लैक कलर की स्कॉर्पियो पर...” सुधाकर की बात बीच में अधूरी रह गयी।

“मैंने उन्हें ताकीद कर दी है। हो सकता है आज ही हमें कुछ कामयाबी मिल जाये।” आलोक ने जल्दी से अपनी बात पूरी की।

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सुधाकर और मिलिंद राणे अपनी बोलेरो में कलंबोली फिश मार्केट में पहुँचे। श्रीकांत मेनन और आलोक देसाई पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे। फिश मार्केट में सादी वर्दी में तैनात पुलिस कर्मियों ने आलोक देसाई को बताया कि तथाकथित अमीन गोटी को मोहन डेयरी के अंदर जाते देखा गया था। मोहन डेयरी पिछले कई सालों से बंद थी। इस बात की पूरी संभावना थी कि अंदर अमीन गोटी के अलावा और भी लोग मौजूद थे। अंदर विस्टा टेक्नोलॉजी के कर्मचारी भी बंधक बने हो सकते थे।

वो एक भीड़-भाड़ वाला इलाका था इसलिए पुलिस को बहुत एहतियात से काम लेना था। नैना दलवी एक बंद गाड़ी में अपने दो साथियों के साथ बैठी थी। वो एक ड्रोन की सहायता से मोहन डेयरी के अंदर हो रही गतिविधियों को देखने और समझने की कोशिश कर रही थी। काले रंग की स्कॉर्पियो अंदर खड़ी साफ दिखाई दे रही थी।

कलंबोली पुलिस स्टेशन का इंचार्ज दिनेश गायकवाड़ वहाँ पर मौजूद था। वह आलोक देसाई, सुधाकर शिंदे और मिलिंद को आसपास की जानकारी नक्शे के हिसाब से दे चुका था। आलोक देसाई ने सुधाकर और मिलिंद राणे को फ्रंट में रहकर लीड करने को कहा। उसने दिनेश गायकवाड़ को उनके पीछे रहकर अगवा किए गए कर्मचारियों को सुरक्षित बाहर निकालने की जिम्मेवारी दी जिनके वहाँ होने की पूरी संभावना थी। श्रीकांत ने नक्शे को ध्यान से देखते हुए आलोक से कहा:

”इस डेयरी के पीछे एक खाली मैदान है जहाँ पहले कभी पशु बाँधे जाते रहे होंगे। दिनेश बता रहा है कि उसके साथ ही ‘जे. बी. स्कूल’ की बिल्डिंग लगती है। वैसे तो इस वक्त स्कूल की छुट्टी हो चुकी है लेकिन हो सकता है कुछ लोग ऑफिस में मौजूद हों। अगर इधर से कोई आदमी बच कर दूसरी तरफ चला गया तो हमारे लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी।”

“तो फिर? तुम लोग यहाँ पर संभालो। अगर वे लोग किसी होस्टेज को लेकर स्कूल की तरफ से भागने की कोशिश करते हैं तो मैं इससे निपटने के लिए उधर ही जा रहा हूँ। सुधाकर ध्यान रहे इस मिशन में मुंबई पुलिस की साख दाँव पर है। तीन आदमी मैं अपने साथ लेकर जा रहा हूँ। श्रीकांत...” आलोक देसाई ने सुधाकर की बात पर गौर करते हुए कहा।

“ठीक है। मैं यहाँ गेट पर हूँ। कोई भी इधर से बचकर नहीं जा पाएगा। ड्रोन से हम निगाह रखे हुए हैं, अगर तुम्हारी तरफ कोई आता है तो मैं तुम्हें इन्फॉर्म कर दूँगा।” श्रीकांत ने थंब्स अप करते हुए कहा।

सुधाकर, मिलिंद राणे और दिनेश गायकवाड़ मोहन डेयरी के गेट पर पहुँचे। उनके साथ पाँच हथियारबंद सिपाही थे। गेट पर एक बड़ा सा जंग लगा हुआ ताला अटका हुआ पड़ा था। तभी पिट की आवाज हुई और ताला टूट कर नीचे जा गिरा। सुधाकर ने मुड़कर पीछे देखा तो श्रीकांत की साइलेंसर लगी गन से धुआँ निकल रहा था।

धीरे से दरवाजा खोल कर मिलिंद राणे ने अंदर की तरफ झाँका। कोई हलचल नहीं थी। दरवाजा पूरा खोल कर सुधाकर ने सबसे पहले अंदर कदम रखे। वह गेट अंदर एक अहाते में खुला। कोई हलचल न होती देख कर सुधाकर ने दिनेश और मिलिंद को अंदर आने का इशारा किया।

अंदर से बिल्डिंग एक आयतकार आकृति में बनी हुई थी। जिसमे दोनों तरफ शेड (छप्पर) बने हुए थे। वे दोनों शेड सीमेंट के पिलरों पर टिके हुए थे। सुधाकर और मिलिंद दिनेश को पीछे बैकअप के लिए छोड़ कर दाएँ और बाएँ, दो विपरीत दिशाओं में अपनी सर्विस रिवॉल्वर को निकाल कर आगे बढ़े।

सुधाकर ने देखा कि मोहन डेयरी की बिल्डिंग काफी दिनों से बंद पड़ी थी लेकिन वहाँ बरामदे में कई लोगों के कदमों के निशान थे, जो इस बात की तरफ इशारा कर रहे थे कि वह खाली लग रही इमारत इस वक्त बिल्कुल खाली नहीं थी। मिलिंद भी दूसरी तरफ से शेडों के पिलरों की ओट लेते हुआ आगे बढ़ा। दोनों अपनी अपनी दिशा में जब शेड के अंत में जाकर मुड़े तो दोनों के सामने एक लंबा बरामदा और पिलरों की कतार थी।

बरामदे के अंत में सीढ़ियाँ दिखाई दे रही थी। लेकिन बरामदे के साथ कमरों की कतार थी और दो बड़े हॉल थे। बीच में दो हॉलनुमा बंद कमरों में क्या था, ये उन्हें नहीं पता था। बरामदे में दोनों तरफ पंद्रह-पंद्रह फुट के फासले पर पिलर बने हुए थे। सुधाकर ने मिलिंद की तरफ देखा और दोनों ने आँखों ही आँखों में एक दूसरे को आगे बढ़ने का इशारा किया। दिनेश ने अहाते के बीचों-बीच अपनी पोजीशन ले ली थी।

मिलिंद जैसे ही शेडों से निकलकर बरामदे में आगे बढ़ने के लिए पहले पिलर की ओट में जाने के लिए आगे बढ़ा, उसे बरामदे के तीसरे पिलर के सामने वाले कमरे में कुछ हलचल होने का एहसास हुआ। उसने अज्ञात आशंका के चलते अपने आप को तुरंत नीचे गिरा दिया। पूरी इमारत गोलियों की आवाज से गूँज उठी।

उस कमरे के दरवाजे के पीछे छिपे एक आदमी की गन से निकली गोलियों की एक बौछार मिलिंद के ऊपर से गुजर गयी। अगर मिलिंद ने अपने आप को नीचे न गिराया होता तो वो गोलियाँ उसके शरीर से टकरा चुकी होती। वह तुरंत करवट बदल पहले खंभे की ओट में हो गया। उसका सारा शरीर पसीने से नहा गया। अगर पलक झपकने की भी देरी हो जाती तो उसका छलनी शरीर बरामदे में पड़ा होता।

उनको लग रहा था कि वे लोग दुश्मन की तलाश में निकले थे और यहाँ दुश्मन उनकी ताक में बैठा था।

दिनेश ने अहाते से ही उस कमरे का दरवाजा खुलते हुए देखा। इससे पहले वह कुछ समझ पाता तब तक मिलिंद के ऊपर गोलियाँ बरस चुकी थी। सुधाकर ने दूसरी तरफ के बरामदे से उस आदमी की तरफ, जो दरवाजे के पीछे था, फायर किया। लेकिन गोली उस दरवाजे से टकरा कर रह गयी। फिर वह दरवाजा अचानक खुला और दिनेश ने उस आदमी को बिज़ली की फुर्ती से तीसरे पिलर के पीछे पोजीशन लेते देखा। दिनेश ने उसकी तरफ लगातार दो फायर झोंक दिये।

अंदर से गोलियों की आवाज आते ही श्रीकांत डेयरी के दरवाजे की तरफ लपका। वह पलक झपकते ही दिनेश की बगल में पहुँच चुका था। मिलिंद ने अपने साथ वाले सिपाहियों को पिलर की तरफ न आने का इशारा किया। उन दोनों ने भी अपनी पोजीशन बना ली थी।

सुधाकर की निगाहें मिलिंद की तरफ लगी थी तभी उसके पीछे आता सिपाही ज़ोर से चिल्लाया। सुधाकर को अपने सामने वाले बरामदे में दो आदमियों की झलक दिखाई दी। उसने अपने आप को तुरंत पहले पिलर की ओट में किया। गोलियों की खेप उस पिलर के प्लास्टर पर आ कर टकरायी। एक गोली उस सिपाही का कंधा चीरती हुई निकल गयी जिसने सुधाकर को चेतावनी देने के लिए आवाज लगाई थी। उसके साथ के दूसरे सिपाही ने उसे तत्काल पीछे खींच लिया।

श्रीकांत ने उन दोनों आदमियों की तरफ अपनी गन से फायर झोंके। वो दोनों आदमी श्रीकांत की तरफ फायर करते हुए पीछे हटने लगे। सुधाकर ने इसी मौके का फायदा उठाया और वो अपनी पोजीशन बदल कर दूसरे पिलर की ओट में पहुँच गया। पहले वाला आदमी जिसने मिलिंद पर फायर किया था, वह अब उसे सामने वाले बरामदे में पिलर की पीछे छुपा साफ दिखाई दे रहा था। सुधाकर और उस आदमी की नजरें मिली तो सुधाकर ने उसकी तरफ फायर झोंका। मिलिंद भी अब तक संभल चुका था। वह अपनी जगह बदल कर दूसरे पिलर की तरफ पहुँच गया।

अहाते में मौजूद दिनेश और श्रीकांत ने उँगलियों से वन टू थ्री का इशारा किया और इस मौके का फायदा उठा कर मिलिंद और सुधाकर की ओर बरामदे की तरफ दौड़े। इससे पहले वे तीनो बदमाश फायर करते, वे दोनों बरामदे के पहले नंबर के पिलर की ओट में वहाँ पहुँच चुके थे जहाँ कुछ देर पहले सुधाकर और मिलिंद मौजूद थे। अब श्रीकांत, सुधाकर के पीछे वाले और दिनेश, मिलिंद के पीछे वाले पिलर के आड़ में पहुँच चुके थे।

सुधाकर और मिलिंद अब दोनों दूसरे नंबर के पिलरों के पीछे अपनी पोजीशन बनाए हुए थे और एक दूसरे के आमने-सामने थे। उन दोनों ने आपस में इशारा कर के तीसरे नंबर के खंबे की तरफ क्रॉस फायर करनी शुरू की। दोनों तरफ से क्रॉस फ़ायरिंग शुरू होने से बरामदे के दोनों तरफ तीसरे नंबर के पिलर के पीछे छुपे हुए बदमाश एक बार के लिए हड़बड़ाए।वापस कमरे में जाना उन लोगों के लिए चूहे की तरह फँसने के समान था।

तभी सुधाकर को ठक की आवाज आयी। उसे बरामदे में ग्रेनेड गिरने का आभास हुआ। उसने तत्काल बीच के आँगन में छलाँग लगा दी। जहाँ वो कुछ देर पहले खड़ा था, वहाँ से कुछ ही दूरी पर एक भीषण विस्फोट हुआ। बड़ी तेजी से लुड़क कर सुधाकर ने अपने आप को संभाला। फिर तेजी से झुक कर अपनी रिवॉल्वर से तीसरे पिलर की दिशा में पीछे की तरफ फायर करते हुए वापस अहाते की तरफ दौड़ा। वह एक लंबी छलाँग लगाकर अपने आप को अहाते में सुरक्षित पहुँचाने में कामयाब रहा था।

श्रीकांत ने तब तक अंधाधुंध उस दिशा में गोलियाँ चलाना शुरू किया जहाँ से सुधाकर पर ग्रेनेड फेंका गया था। दिनेश ने भी सुधाकर को वापस बरामदे की तरफ दौड़ता देख कर उसको कवर फायर देना शुरू किया। दिनेश और श्रीकांत की चलाई गोलियाँ उन दोनों बदमाशों के जिस्म में पैवस्त हो गयी, जिन्होंने सुधाकर की तरफ ग्रेनेड फेंका था।

मिलिंद की तरफ मौजूद तीसरे पिलर के पीछे छिपा हुआ बदमाश अपने दोनों साथियों को ढेर होता देख कर पिलर की आड़ से निकलकर बदहवासी में सामने की सीढ़ियों की तरफ भागा। मिलिंद का ध्यान सुधाकर की तरफ होने के चलते उसे यह मौका मिला।

तभी उस बरामदे के आखिरी कमरे में से एके फॉर्टी सेवन से गोलियों की बौछार शुरू हो गयी। मिलिंद और दिनेश ने अपने पिलरों के पीछे हो कर अपनी जान बचाई। श्रीकांत अहाते में सुधाकर के पास पहुँचा। एक गोली उसकी बाजू को चीरती निकल गयी थी।

“सुधाकर! तुम ठीक हो?” आलोक ने पूछा।

“हाँ। आप मेरी चिंता ना करें। वो चौथा हरामजादा बिल में से निकल आया है। मेरी वाली साइड अब क्लियर लगती है। मैं उधर से...” सुधाकर ने जवाब दिया।

“ठीक है। हम इसी तरफ से आगे बढ़ते हैं और उनको दोनों तरफ से घेरते हैं।” श्रीकांत ने मिलिंद और दिनेश की तरफ देखा।

श्रीकांत ने मिलिंद को उँगली से चक्कर बना कर इशारा किया। मिलिंद ने सहमति से सिर हिलाया। उसने तत्काल आखिरी कमरे की तरफ दो फायर किए। दिनेश इस मौके का फायदा उठा कर पहले पिलर से अपनी जगह बदलकर मिलिंद के पीछे दूसरे नंबर के पिलर के पीछे पहुँच गया। सुधाकर और श्रीकांत दूसरी तरफ से पिलरों की ओट लेते हुए सावधानी से आगे बढ़ने लगे। आखिरी कमरे में छिपे बदमाश को एहसास हो गया था कि वे लोग अब घिरने जा रहें हैं। वह आदमी अपने कमरे से बाहर निकला।

उसको कमरे से बाहर निकलते देख मिलिंद और दिनेश की रिवॉल्वर उस तरफ तन गयी। जब वह आदमी कमरे से बाहर निकला तो उसने दूसरे आदमी को अपने कब्जे में किया हुआ था। मिलिंद ने उस बदमाश के चेहरे की तरफ देखा तो वो उसे तुरंत पहचान गया।

वह अमीन गोटी था।

“इस बिल्डिंग से बाहर चले जाओ, इंस्पेक्टर। तीन आदमी इस वक्त मेरे कब्जे में हैं जो इस कमरे में बँधे हुए हैं और मैंने वहाँ आरडीएक्स फिट कर रखा है। उसका रिमोट मेरे हाथ में हैं और ये चौथा आदमी मेरे निशाने पर है। इसका भेजा उड़ाने में मुझे एक सेकंड लगेगा। तुम्हारे आदमियों से कहो कि इस इमारत से बाहर चले जाएँ।” मिलिंद राणे की तरफ देखता हुआ अमीन गोटी बोला।

“उड़ा। इसका भेजा उड़ा दे, भडुवे। लेकिन उसके बाद तेरा भेजा कौन बचाएगा, तेरी अम्मा!” मिलिंद ने उसे गाली बकते हुए उल्टा जवाब दिया।

मिलिंद का ये जवाब सुनकर सुधाकर और श्रीकांत सकपकाए।

सुधाकर बात को संभालते हुए तुरंत बोला, “तुम पागल ना बनो अमीन गोटी। तुम सरेंडर कर दो और जितने भी आदमी तुम्हारे कब्जे में है, उन्हें बिना किसी नुकसान पहुँचाए हमारे हवाले कर दो। तुम लोग अपनी जान से हाथ धोने से बच जाओगे।”

“अगर हमें अपनी जान की परवाह होती तो ये मौत का खेल शुरू ही नहीं होता, इंस्पेक्टर। तुम लोग मेरी बात मान जाओ। तुम्हारे नेता का बेटा भी अंदर बँधा हुआ पड़ा है। अब सोच लो, उसे कुछ हो गया और तुम लोग अगर इधर जिंदा बच भी गए तो नौकरी से तो फिर भी जाओगे।” इतना कहकर अमीन गोटी वहशियाना तरीके से हँसा।

अमीन गोटी ने यह बात कहते हुए धीरे-धीरे सीढ़ियों की तरफ बढ़ना शुरू किया। उसका दूसरा साथी पहले ही सीढ़ियों के पास पहुँच चुका था। अगर वो लोग सीढ़ियों के ऊपर चढ़ने में कामयाब हो जाते तो वो लोग ऊँचाई पर होने का फायदा उठा सकते थे। सुधाकर और श्रीकांत को जो भी कुछ करना था, वह उनके सीढ़ियाँ चढ़ने से पहले करना था। सीढ़ियों से पहले बायीं तरफ लोहे की अलमारियाँ रखी हुई थी। सुधाकर ने श्रीकांत को इशारा किया

“इस आदमी को जिंदा पकड़ना जरूरी है, सुधाकर। इससे हमें इस मामले के और सुराग मिल सकते हैं।” श्रीकांत बोला।

“हम कौन सा इसे मारने पर तुले हुए हैं, सर। वे लोग खुद ही हाराकिरी पर उतरे हुए हैं। उसे पकड़ने से पहले तो हमें उस बेगुनाह की जान बचानी है जो उसके चंगुल में है।” सुधाकर ने कहा।

“ठीक है, तुम आगे बढ़ो। वो किसी भी कीमत पर सीढ़ियाँ नहीं चढ़ने चाहिए।” श्रीकांत ने कहा।

“देखते हैं। ये खोपड़ी का कैसे मानता है।” इतना कहकर सुधाकर अपनी तरफ के खंभे की आड़ छोड़कर सिर झुका कर सीढ़ियों के पास रखी हुई लोहे की अलमारियों की तरफ भागा।

अमीन गोटी के साथी का ध्यान उस तरफ गया तो उसने उस तरफ अपनी एके फॉर्टी सेवन का मुँह खोल दिया। श्रीकांत ने उस तरफ जवाबी फायर किया। सुधाकर पर वार करने के चक्कर में वह वो मिलिंद राणे की रेंज में आ गया जहाँ से वो उस पर सीधा निशाना ले सकता था। मिलिंद राणे ने बिना देर लगाए उसे निसंकोच शूट कर दिया। श्रीकांत ने हैरानी से मिलिंद को देखा। सुधाकर ने आँखों ही आँखों में उसे शाबाशी दी।

दोनों तरफ से हुए इस आक्रमण से अमीन गोटी के पसीने छूट गए। वो अपने काबू में किए गए आदमी को ढाल बनाकर सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। मिलिंद उसे सामने से शूट कर सकता था लेकिन उसकी चलाई गोली गोटी के कब्जे वाले आदमी को लग सकती थी। उसे मन-मसोस कर अपने आप पर काबू रखना पड़ा। सुधाकर और श्रीकांत तब तक सीढ़ियों तक पहुँच गए थे।

“गोली मत चलाना, मिलिंद। अब तुम और दिनेश उस कमरे में जाकर देखो। जितने भी होस्टज मिले उन्हें तुरंत यहाँ से निकालो। हम उसके पीछे जाते हैं।” श्रीकांत ने मिलिंद और दिनेश की तरफ देखते हुए अगला आदेश दिया।

तब तक अमीन गोटी अपने कब्जे में लिए आदमी को अपनी ढाल बनाए हुए सीढ़ियाँ चढ़ने के अपने मकसद में कामयाब हो गया। सुधाकर और श्रीकांत उसे चाहकर भी अपना निशाना नहीं बना पाये। जैसे ही उन दोनों ने सीढ़ियों पर कदम रखा तो उन्हें किसी चीज के सीढ़ियों से टकराने की आवाज आयी।

सुधाकर वैसी आवाज पहले सुन चुका था। उसने श्रीकांत को ग्रेनेड की चेतावनी देते हुए वापस बरामदे में छलाँग लगा दी। वे दोनों उससे हुए विस्फोट की चपेट में आने से बाल-बाल बचे। एक भयंकर विस्फोट हुआ जिससे सीढ़ियों की कमजोर छत भरभरा कर नीचे गिरी।

धूल और गर्द का गुबार चारों तरफ छा गया। मिलिंद और दिनेश दोनों इस धमाके की आवाज सुन कर ठिठके और उस तरफ बढ़े। सुधाकर को सुरक्षित पाकर श्रीकांत ने उन्हें बंधकों को छुड़ाने का इशारा किया। वो दोनों जैसे ही कमरे में घुसे उन्हें चार आदमी बँधे हुए दिखाई दिये। दोनों ने उन्हें खोला तब तक बाकी सिपाही भी वहाँ तक पहुँच गए थे। वो उन घायल आदमियों को लेकर डेयरी के बाहर की तरफ ले चले।

उधर आलोक देसाई अपने आदमियों के साथ जे. बी. स्कूल के टॉप फ्लोर से मोहन डेयरी से आती हुई फ़ायरिंग की आवाज सुन कर बड़ी बेचैनी अनुभव कर रहा था। उसे लग रहा था कि उसने जे. बी. स्कूल की बिल्डिंग में आकर गलती कर दी थी। उसने तभी डेयरी की पहली मंजिल पर एक शख़्स को आते हुए और छत पर भागते हुए देखा जो कि अमीन गोटी था। उसके पीछे धूल और मिट्टी का गुबार उस बिल्डिंग से बाहर आता दिखाई दिया। उस गुबार में से तभी एक और आदमी भागता हुआ निकला जिसके हाथ में एके फॉर्टी सेवन और पीठ के पीछे बैग टँगा हुआ था। वे दोनों मोहन डेयरी की बिल्डिंग की पहली मंजिल से आसानी से कूद गए।

मोहन डेयरी के पीछे एक छोटा सा खाली मैदान था और उसके साथ ही जे. बी. स्कूल का खेल का मैदान लगता था। महज एक छोटी सी चार-दीवारी दोनों को अलग करती थी। उन्हें जिस बात का अंदेशा था, वही हुआ।

अमीन गोटी और उसका दूसरा साथी उस चार दीवारी को फाँद कर स्कूल के मैदान में घुस गए। आलोक देसाई ने तत्काल नीचे की तरफ दौड़ लगाई। उन लोगों का स्कूल की चारदीवारी में घुसना खतरनाक था। वह कई-कई सीढ़ियाँ कूदता हुआ नीचे की तरफ भागा।

जो तीन हथियारबंद सिपाही आलोक देसाई के साथ आये थे उसमें से उसने दो पीछे की चारदीवारी की तरफ तैनात कर रखे थे। एक सिपाही स्कूल के मेनगेट पर तैनात था। आलोक ने नीचे पहुँचते ही जो भी स्कूल का स्टाफ वहाँ पर मौजूद था, सबको एक कमरे बंद हो जाने का आदेश दिया और उन्हें किसी भी कीमत पर दरवाजा न खोलने के लिए कहा।

तभी उसे बिल्डिंग के पीछे से गोलियों की आवाज आयी। लगता था कि उन कमबख्तों का सामना वहाँ तैनात सिपाहियों से हो चुका था। आलोक को कवर करने के लिए मेनगेट पर तैनात सिपाही ने उसके पीछे आना चाहा तो आलोक ने उसे स्कूल स्टाफ के कमरे के बाहर ही तैनात रहने के लिए कहा।

उधर सुधाकर और श्रीकांत विस्फोट से दायीं तरफ का दरवाजा बंद होने की वजह से बायीं तरफ की सीढ़ियों की तरफ से ऊपर की तरफ भागे। जब तक दोनों उस दरवाजे को तोड़ कर बाहर आये तब तक अमीन गोटी स्कूल की तरफ दीवार फाँद चुका था।

उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि दूसरा आदमी उसका ही अपना साथी था जिसे वो होस्टेज की तरह ढाल बनाने का ड्रामा कर उन्हें गच्चा देने में कामयाब हो गया था।

सुधाकर और श्रीकांत जब तक उस चारदीवारी के पास पहुँचे तो उन्हें वहाँ पर तैनात सिपाहियों और अमीन गोटी व उसके साथी के बीच में फ़ायरिंग की आवाज सुनाई दी। सुधाकर ने उचक कर देखा तो वे दोनों उत्पाती ग्राउंड में खड़ी बसों की ओट ले चुके थे।

वहाँ मौजूद दोनों सिपाही स्कूल में बिल्डिंग में पीछे की तरफ से एंट्री करने वाले गेट की दीवार की आड़ से उनकी फ़ायरिंग का जवाब दे रहे थे। इस मौके का फायदा उठा कर सुधाकर और श्रीकांत उस चारदीवारी को कूद कर पार कर गए।

अमीन गोटी और उसका साथी स्कूल में घुसने की पुरजोर कोशिश कर रहे थे। तभी अमीन गोटी ने फिर हेंड ग्रेनेड का उपयोग किया और उसे गेट की तरफ उछाल दिया। उन दोनों सिपाहियों को इसका अंदाजा न था। सुधाकर ने आवाज लगाकर उन्हें सचेत करनी की कोशिश की लेकिन वक्त ने उसे मौका नहीं दिया। दोनों सिपाहियों के बीच में ही भीषण विस्फोट हुआ और दोनों सिपाही गंभीर रूप से घायल हो गए।

अमीन गोटी अपनी एके सैंतालीस तानता हुआ उनकी तरफ लपका। उसका इरादा उन दोनों सिपाहियों पर फायर कर के जान से मारने का था। उसके इरादे भाप कर सुधाकर और श्रीकांत ने उसकी तरफ पीछे तुरंत गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। लेकिन बम विस्फोट से फैले हुए गुबार के कारण वे लोग निशाना लगाने में कामयाब नहीं हो पाये। अपने ऊपर बरसती गोलियों से बचते हुए विस्फोट से हुए धुएँ और धूल के गुबार का फायदा उठा कर अमीन गोटी स्कूल की पीछे वाली एंट्रेंस से स्कूल की बिल्डिंग में घुसने में कामयाब हो गया।

अमीन गोटी का दूसरा साथी स्कूल की इमारत में घुसने की बजाय स्कूल की बसों की आड़ लेता हुआ स्कूल की बाहरी चारदीवारी की तरफ भागा। श्रीकांत ने उसका पीछा किया। उस व्यक्ति ने भागते हुए एक दीवार के साथ सटकर श्रीकांत की तरफ गोली चला दी। श्रीकांत ने तुरंत अपने को जमीन पर गिरा दिया और लुढ़कते हुए उसने भी दीवार के आड़ ली। इस मौके का फायदा उठा कर वह आदमी स्कूल के मेनगेट के पास पहुँचने में कामयाब हो गया।

वह आतंकवादी मेनगेट से बाहर निकलने ही वाला था कि उसे सामने सड़क के बिल्कुल बीचो-बीच एक आदमी खड़ा हुआ दिखाई दिया। उस आदमी के हाथ में ग्लोक पिस्टल झाँक रही थी और उसका मुँह उस आतंकवादी की तरफ था।

वह आदमी पुलिस कमिश्नर द्वारा हाल ही में एसीपी आलोक देसाई के कहने पर बहाल किया गया एंटी टेररिस्ट स्क्वाड का इंस्पेक्टर नागेश कदम था।

नागेश कदम ने उस आदमी से समझाने के अंदाज़ में कहा, “तेरे पीछे आते हुए हमारे बड़े साहब ने तेरे को सरेंडर करने के वास्ते बोला। तेरी भलाई इसी में ही है, भिडु। तू उनका बात समझा नहीं क्या? जेल में तेरी पूरी खातिरदारी की गारंटी मैं लेता हूँ। बिल्कुल तेरे से पहले पकड़े गए तेरे जैसे भाई लोगों के माफिक।”

बदले में उस आतंकवादी ने अपना दूसरा हाथ ऊपर उठा दिया, जिसमें छिपे रिमोट के दर्शन उसकी पीछे आते श्रीकांत को भी हुए। इसका मतलब वह आदमी एक ‘जिंदा बम’ था। नागेश कदम और श्रीकांत की नजरें मिली।

“वाह। पूरा धाँसू इंतजाम किया है, भिडु। मेरे को मालूम तू जाँबाज आदमी है, पर यहाँ से जिंदा बचने का एक ही चांस है। सरेंडर। मैंने बताया अभी तेरे कू।” नागेश ने उस आतंकवादी को अपने अंदाज़ में समझाने की कोशिश की।

उस आदमी ने इंकार में सिर हिलाया।

“मैं यहाँ सरेंडर नहीं करने आया। तेरे जैसे कुत्तों को मिट्टी में... ” उस आदमी के अगले शब्द उसके मुँह में रह गए।

अगले ही पल श्रीकांत ने नागेश की पिस्टल से धुआँ निकलते देखा और उस आदमी को कटे पेड़ की तरह जमीन पर गिरते हुए देखा। पहली गोली से उसका हाथ के, जिसमें उसने रिमोट पकड़ा हुआ था, परखच्चे उड़ चुके थे और दूसरी गोली से उसका भेजा उड़ चुका था।

“अपुन के पास इतना टेम खोटी करने के लिए नहीं है, रे बाबा। अंदर बहुत एमेर्जेंसी है। मेरा बहादुर दोस्त, मेरा भाऊ, अंदर बुलाता है मेरे को।” इसके साथ ही नागेश ने अपने पीछे इशारा किया। बॉम्ब डिफ्यूजिंग स्क्वाड के मेंबर तुरंत उस आतंकवादी को देखने और बॉम्ब निष्क्रिय करने के लिए आगे आए।

श्रीकांत ने तब तक वहाँ पहुँच कर बाकी लोगों को स्कूल के पीछे की बिल्डिंग में घायल सिपाहियों के बारे में बताया। उनकी राहत के लिए तुरंत हथियार बंद आदमी स्कूल के पीछे की तरफ भागे। जब तक श्रीकांत संभलता तब तक नागेश के तेज कदम जे बी स्कूल के ऑफिस की तरफ बढ़ चुके थे।

आलोक देसाई की इन्फॉर्मेशन पर ही पुलिस की हथियारबंद टुकड़ी वहाँ पर पहुँची थी। उन लोगों ने स्कूल में पिछली एंट्रेस के पास घायल हुए सिपाहियों को तुरंत हॉस्पिटल की तरफ रवाना कर दिया गया।

जैसे ही नागेश कदम ने स्कूल के मेन एंट्रेस के अंदर कदम रखा तो उसे आलोक देसाई स्कूल ऑफिस के सामने और एक हथियारबंद सिपाही रिसेप्शन के काउंटर के पीछे पोजीशन लिए हुए दिखाई दिये।

आलोक देसाई स्कूल स्टाफ की सुरक्षा के लिए चिंतित था। नागेश और उसके पीछे हथियारबंद दस्ते को स्कूल में आते देखकर आलोक ने राहत की साँस ली। तभी उन्हें ऊपर दूसरी मंजिल से गोलियाँ चलने की आवाज सुनाई दी। नागेश तुरंत ऊपर की तरफ दौड़ा। आलोक देसाई ने दरवाजा खोलकर स्कूल के स्टाफ को वहाँ से तुरंत बाहर निकालना उचित समझा।

जब नागेश तेजी से सीढ़ियाँ फाँदता हुआ ऊपर दूसरी मंजिल पर पहुँचा तो उसने देखा कि सुधाकर छत पर खुलने वाले दरवाजे की ओट में लगा हुआ था और बाहर निशाना साध रहा था।

“क्या हुआ, भाऊ? वो सांडू अब तक खेल खिला रहा है तुमको।” नागेश सुधाकर के साथ दरवाजे की दूसरी तरफ आड़ लेते हुए बोला।

“आ गया तू। यहाँ पर किसने बुलाया तुझे?” सुधाकर बाहर निगाह जमाये हुए बोला।

“देसाई साहब भेजा मुझे। बोले, अपना भाऊ फँसा हुआ है ऊपर। उसे जाकर सलाम बोलने का। इसका दूसरा साथी तो अभी ऊपर यमराज के दरवाजे पर वेट करता होगा।” नागेश ने जवाब दिया।

“आते ही कर दिया उसका काम। लेकिन अमीन गोटी को श्रीकांत ने जिंदा पकड़ने के लिए बोला है। अगर इसे टपकाना होता तो अंदर डेयरी में मैं और मिलिंद इसे कब का गिरा चुके होते।” सुधाकर ने नागेश को चेताया।

तभी सुधाकर बाहर की तरफ फायर झोंकते हुए बोला, “अमीन गोटी पानी की टंकी की आड़ में छुपा हुआ है और वहाँ से नीचे कूदने की तैयारी में है।”

“तुम इधर ही रह कर मुझे कवर दो। मैं जाता है उस भिडु के पीछे।” इससे पहले सुधाकर कुछ समझता नागेश दरवाजे से उकड़ू हो कर टंकी की दिशा में भागा।

पानी की टंकी और दरवाजे के बीच में स्कूल का पुराना फर्निचर पड़ा था। नागेश उसकी आड़ में पहुँच गया। अमीन गोटी ने जब नागेश को आता देखा तो उसने टंकी की ओट से स्कूल की साथ वाली बिल्डिंग पर छलाँग लगा दी जिसका नागेश और सुधाकर को पता न लगा।

जब चार-पाँच मिनट तक कोई हरकत नहीं हुई तो वे दोनों सावधानी पूर्वक उस टंकी की तरफ बढ़े। जब वे वहाँ पर पहुँचे तो वहाँ कोई नहीं था। टंकी के साथ एक गुजरती पाइप को देख कर उन्हें एहसास हुआ कि अमीन गोटी उसकी मदद से नीचे उतरने में कामयाब हो गया था।

“ये साला तो गच्चा दे गया। अब किधर ढूँढे इसे। मैं नीचे इन्फॉर्म करता हूँ।” सुधाकर ने अपने वायरलेस सेट को हाथ में लेते हुए कहा।

श्रीकांत अभी घायल सिपाहियों को हॉस्पिटल रवाना करने के बाद स्कूल के अंदर जाने की सोच ही रहा था कि उसके इयरफोन में नैना दलवी की आवाज आयी।

“श्रीकांत! सुन रहे हो मुझे?”

“यस नैना।” श्रीकांत ने जवाब दिया।

“एक आदमी अभी स्कूल की बिल्डिंग से नीचे कूद कर भागा है। आई थिंक, ऊपर मौजूद सुधाकर को इसका पता नहीं लगा है। आइ एम सेंडिंग मिलिंद राणे टुवर्ड्स हिम विद फोर्स।” नैना की आवाज आयी।

“ओके। गिव मी गोटी’ज डायरेक्शन। मैं वहाँ पर जा रहा हूँ।” इतना कह कर श्रीकांत उस दिशा की और दौड़ा।

नैना से अमीन गोटी के नीचे उतरने की खबर मिलते ही मिलिंद अपने साथ हथियारबंद सिपाहियों को लेकर कलंबोली फिश मार्केट की गली में भागा। दिनेश के मुताबिक उस गली के टी पॉइंट पर मार्केट शुरू हो जाती थी। अगर अमीन गोटी वहाँ पर पहुँचने में कामयाब हो गया तो वह कहर ढा सकता था। सिर्फ़ एक आदमी उनके लिए सिरदर्द बन गया था। जैसे ही वो उस गली के मुहाने पर पहुँचा तो स्कूल की पिछली बिल्डिंग से उसे नागेश कदम पाइप के सहारे कूदता हुआ मिला। दोनों आँखों ही आँखों में मुस्कुराए।

वे दोनों लोग टी-पॉइंट पर पहुँचे तो उन्हें दायीं तरफ चीख पुकार होती सुनाई दी। उन्हें अमीन गोटी अपनी एके फॉर्टी सेवन हवा में लहराता हुआ भागता दिखाई दिया। नागेश और मिलिंद अपने साथ सिपाहियों को लेकर उस दिशा में दौड़े। ड्रोन की मदद से नैना श्रीकांत को उसकी लोकशन बता रही थी। श्रीकांत उस गली के समानान्तर दौड़ रहा था जिसमें अमीन गोटी आगे बढ़ रहा था। अमीन गोटी को जब अपनी पीछे आते हुए नागेश और मिलिंद का आभास हुआ तो उसने पीछे की तरफ मुँह कर अंधाधुंध गोलियाँ चलानी शुरू कर दी जिससे उस गली में मौजूद कई लोग घायल हो गए। भागते हुए अब वह टी-पॉइंट पर पहुँचने वाला था। टी-पॉइंट पर पहुँचने के बाद उसने जैसे ही बायीं तरफ मुड़ना चाहा तो उसका सामना श्रीकांत से हुआ जो उससे बस बीस फीट की दूरी पर निशाना साधे खड़ा था। अमीन गोटी अब किसी भी दिशा में भाग नहीं सकता था। पीछे से नागेश और मिलिंद ने उस पर निशाना साध लिया था।

“तुम सरेंडर कर दो, अमीन गोटी। तुम्हारी जान बख्शी की अब भी उम्मीद है। अगर तुम हमसे सहयोग करोगे तो यकीनन बच जाओगे।” श्रीकांत उसे अपने निशाने पर लेता हुआ बोला।

अपने सिर को इंकार में हिलाते हुए अमीन गोटी ने अपनी एके फॉर्टी सेवन का मुँह श्रीकांत की तरफ करके ट्रिगर दबाना ही चाहता था कि नागेश के रिवॉल्वर से निकली गोली उसके भेजे में समा गयी। मिलिंद के रिवॉल्वर से निकली गोली ने उसके हाथ के परखच्चे उड़ा दिये। वो कटे पेड़ की तरह सड़क के बीचों बीच गिरा।