जब्बार मलिक का सिर घूम रहा था ।
उन तंग गलियों में वह किसी यांत्रिक मानव की तरह आगे बढ़ता जा रहा था । जितनी खुशी के साथ वह अनीस के पास गया था , उससे ज्यादा परेशानी के साथ लौटा था ।
वह शुरू से ही इस बात को नहीं समझ पा रहा था कि सूरजभान उसे जेल से क्यों निकाल रहा है । चूँकि उसका सारा ध्यान जेल से निकल जाने पर था, इसलिए गहराई से उसने कुछ भी नहीं सोचा । बल्कि तब तो सूरजभान को बेवकूफ समझ रहा था । परन्तु अनीस के सवालों ने उसे जमीन पर ला पटका था ।
जेल में उसके सामने ही सूरजभान बड़ा खान से कहता रहा था कि वह, उसके बारे में उसे सब कुछ बता रहा है और बदले में उसे जेल से बाहर निकाल देगा । तब जब्बार को ये बातें फालतू की बकवास लगी थीं । परन्तु उन बातों का असर अब देख रहा था । वह जेल से बाहर आ गया था । स्पष्ट था कि बड़ा खान ये ही सोचेगा कि उसने पुलिस वाले के सामने मुँह खोल दिया है । तभी उसने, उसे जेल से फरार करवाया है । या अभी भी वह पुलिस वाले के साथ, बड़ा खान के खिलाफ किसी योजना पर काम कर रहा है ।
जाहिर था कि उसकी सच बात पर कोई यकीन नहीं करेगा ।
वह जबरदस्त खेल में फँस गया था । जहाँ इशारे पर सब कुछ हो जाता था, आज वह वहीं पराया हो गया था । अनीस जैसे लोग उसके सामने संभलकर बात करते थे । आज वह सिर उठाकर बात कर रहे थे । दूसरी बात जिसने उसे और भी हैरान-परेशान कर दिया था, वह ये कि वह इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं था । वह पुलिस वाला नहीं था ।
“तो फिर वह कौन था ? वह कैसे सबकी आँखों में धूल झोंककर जेल में उसके पास आ पहुँचता था ?
इन सब बातों ने जब्बार मलिक को बुरी तरह परेशान कर दिया था । जब्बार का मन मानने को तैयार नहीं था कि वह नकली पुलिस वाला है ।
उन गलियों के जाल से निकलकर जब्बार सड़क पर पहुँचा । वह जानता था कि इस तरह खुले में घूमना उसके लिए खतरे से खाली नहीं था । पुलिस पूरे जम्मू और आसपास के इलाके में उसकी तलाश शुरू कर चुकी होगी । वह फँसकर फिर जेल नहीं पहुँचना चाहता था । टैक्सी पर नजर दौड़ाते जब्बार आगे बढ़ने लगा । इस वक्त उसे छिपने के लिए जगह चाहिए थी और जूबी के पास वह सुरक्षित रह सकता था । अनीस ने उसे जूबी के पास जाने की इजाजत दे दी थी । वह जानता था कि अनीस उसके साथ जैसा व्यवहार कर रहा है वह बड़ा खान के इशारे पर ही हो रहा है । जूबी का ठिकाना ऊधमपुर जाने वाले रास्ते पर, पहाड़ी इलाके में पड़ता था । जूबी बड़ा खान के लिए काम करती थी और अपने परिवार के साथ रहती थी । जिस किसी खास को छिपने की जरूरत पड़ती तो उसे जूबी के घर भेज दिया जाता था । जूबी का घर ऐसी जगह पर था जहाँ इधर-इधर बिखरे घर बने हुए थे । वहाँ कोई भी बाहरी बंदा आसानी से रह सकता था और किसी को शक भी नहीं होता था ।
जब्बार मलिक ने फोन निकाला और देवराज चौहान को याद किया । नम्बर मिलाने लगा । अगले ही पल दूसरी तरफ बेल जाने लगी ।
“हैलो !” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।
“तुम बहुत हरामजादे हो ।” जब्बार मलिक दाँत किटकिटाकर कह उठा ।
उधर से देवराज चौहान के हँसने की आवाज आई ।
“तुमने मुझे बुरी तरह फँसा दिया है । मेरे ही लोग मुझ पर विश्वास नहीं कर रहे हैं ।” जब्बार का चेहरा सुलग रहा था ।
“मैंने तो तुमसे कह दिया था कि मैं चाल खेल चुका हूँ ।”
“मैं बहुत खुश था कि मैं जेल से बाहर आ गया, लेकिन तुमने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा ।”
“तुमने सोचा कि मैंने तुम्हें मुफ्त में ही जेल से बाहर निकाल दिया ।” देवराज चौहान की मुस्कुराती आवाज कानों में पड़ी, “हर चीज की कीमत होती है । कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता । तुम भी इस वक्त जेल से फरार होने की कीमत चुका रहे हो ।”
“बड़ा खान सोचता है कि मैंने तुम्हें उसके बारे में सब कुछ बता दिया है, तभी तुमने मुझे जेल से निकाला ।”
“जब मैं तुम्हारे सामने बैठकर, उसे बताता था कि तुम मुझे सब कुछ बता रहे हो तो तुमने मुझे बेवकूफ समझा होगा ।”
“हाँ । तब मैंने ऐसा ही समझा था । मुझे नहीं पता था कि तुम इतने बड़े कुत्ते हो ।”
देवराज चौहान के हँसने की आवाज कानों में पड़ी ।
“मुझे ये भी सुनने को मिल रहा है कि तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं हो । नकली पुलिस वाले हो ।”
“हाँ । मैं पुलिस वाला नहीं हूँ ।”
“तो तुम जेल के भीतर मुझ तक कैसे पहुँच गए ?”
“नकली इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बनकर ।”
“मतलब कि इस नाम का कोई दूसरा पुलिस वाला है ।”
“हाँ । उसने जम्मू आना था और मैं पहुँच गया उसके रूप में ।”
“तुम बहुत ही कमीने हो । आखिर तुम चाहते क्या हो ?” जब्बार ने कठोर स्वर में कहा, “तुमने बड़ा खान को मेरे खिलाफ भड़काकर मुझे जेल से फरार करवा दिया । मेरी और बड़ा खान की बिगाड़ दी । वह मुझ पर शक कर रहा है । ऊपर से तुम असली पुलिस वाले नहीं हो । आखिर ये सब करके तुम करना क्या चाहते हो ?”
“मेरा खेल शुरू हो चुका है जब्बार !” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।
“कैसा खेल ?”
“अभी तुम मेरे खेल को समझ नहीं पाओगे ।”
जब्बार मलिक के दाँत भिंच गए ।
“तुम हो कौन ?”
“मेरा नाम जानकर तुम्हें कोई फायदा नहीं मिलेगा । तुम्हें अपनी चिंता करनी चाहिए ।”
“क्या चिंता ?” जब्बार सुलग रहा था ।
“अभी तुम किसी से मिले ? बड़ा खान या उसके आदमी से ?”
जब्बार ने दाँत भींच लिए फिर बोला ।
“हाँ !”
“अब कहाँ हो ?”
“कहीं पर हूँ । सड़क पर ।”
“तुम्हारे पीछे बड़ा खान के आदमी लग चुके हैं ।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।
जब्बार चौंका ।
“बड़ा खान मेरे पीछे आदमी क्यों लगाएगा ?”
“क्योंकि उसकी निगाह में तुम बेईमान हो । वह ये सोच रहा है कि तुमने मुझे बड़ा खान के बारे में बताया और मैंने तुम्हें जेल से फरार करवा दिया । ऐसे में वह देखना चाहता है कि अब तुम क्या करते हो ?”
जब्बार ने परेशानी भरी निगाहों से आगे-पीछे देखा ।
लोग आ-जा रहे थे । परन्तु ऐसा कोई न दिखा जो उस पर नजर रख रहा हो ।
बातें करते हुए जब्बार सड़क के किनारे-किनारे आगे बढ़ता जा रहा था । तभी खाली आती टैक्सी को उसने हाथ देकर रुकवाया और भीतर बैठ गया । टैक्सी आगे बढ़ गई ।
“दिखा कोई ?” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।
“नहीं । तुम अपने बारे में बात करो । क्या चाहते हो मुझसे ?”
“कुछ भी नहीं ।”
“तुम जरूर कुछ चाहते हो । तभी मुझे इस तरह बड़ा खान की नजरों में फँसा दिया ।”
“मैं कुछ भी नहीं चाहता । तुम जेल से निकलना चाहते थे । मैंने तुम्हें निकाल दिया और अब तुम अपने को मुसीबत में महसूस करो तो कभी भी फोन करके मेरी सहायता ले सकते हो । ऐसे मौके पर मुझे फोन करना भूलना नहीं ।”
“तुम आखिर चाहते क्या... ।”
तब तक देवराज चौहान ने उधर से फोन बन्द कर दिया था ।
“हरामजादा !” दाँत भींचकर जब्बार बड़बड़ा उठा ।
“कहाँ जाना है ?” टैक्सी ड्राइवर ने पूछा ।
“अभी सीधा ही चलो ।” कहकर जब्बार पीछे नजर रखने लगा । जल्दी ही उसे वह कार नजर आई, जो उसका पीछा कर रही थी । जब्बार के दाँत भींच गए । मन ही मन उसने नकली सूरजभान की तारीफ की कि कहीं दूर बैठे हुए भी वह उसके हालातों को समझ रहा है । पीछा करने वालों के बारे में वह समझ गया कि उन्हें अनीस ने उस पर नजर रखने को पीछे लगाया होगा ।
“साला, कुत्ता ।” जब्बार ने अनीस को गाली दी ।
टैक्सी मध्यम रफ्तार से दौड़ी जा रही थी । जब्बार सोच चुका था कि उसे क्या करना है ।
“बस, यहीं रोक दो ।” जब्बार बोला ।
टैक्सी सड़क के किनारे रुक गई ।
जब्बार ने पीछे वाली कार भी सत्तर-अस्सी कदम पहले रुकती देखी । जब्बार ने ड्राइवर को पाँच सौ का नोट दिया और बाहर निकलकर पैदल ही आगे बढ़ गया । अब उसने पीछे नहीं देखा । परन्तु ये समझ चुका था उसका पीछा करने वाला अब पैदल ही उसके पीछे आएगा । आगे सड़क के किनारे गली देखी तो जब्बार उसी गली में प्रवेश करके तेज-तेज कदमों से चल पड़ा । कुछ आगे जाकर गली दायें-बायें मुड़ रही थी । जब्बार तुरन्त दायें मुड़ा और वहीं दीवार से सटकर खड़ा हो गया ।
करीब आधे मिनट बाद एक आदमी गली के मोड़ पर आकर ठिठका । दूसरे ही पल दीवार से सटे खड़े जब्बार से उसकी आँखें टकराई । जब्बार शांत मुद्रा में अपनी जगह से बाहर निकलकर उसकी तरफ बढ़ा । चेहरे पर खतरनाक भाव थे ।
वह जब्बार को सामने पाकर घबरा गया था ।
“तुम मेरा पीछा कर रहे हो ।” उसके पास पहुँचकर जब्बार गुर्राया ।
“म...मैं... ।”
“क्यों कर रहे हो पीछा ?”
“अनीस ने कहा था कि तुम पर नजर रखूँ ।” वह कह उठा ।
“तो अनीस के आदमी हो । हूं, तो जब्बार का पीछा करने का दम है तुझ में ?” जब्बार के चेहरे पर खतरनाक भाव नाचे ।
“मैं... मैं अब तुम्हारा पीछा नहीं करूँगा ।”
जब्बार ने रिवॉल्वर निकाल ली ।
“तुम मुझे मार नहीं सकते । मैं अनीस का आदमी हूँ ।” वह घबराकर कह उठा ।
“लेकिन मैं तो नहीं जानता कि तुम अनीस के आदमी हो ।” जब्बार दरिंदगी से कह उठा ।
“मैंने तुम्हें बताया तो है कि मैं... ।”
“ये बात अनीस तो नहीं जान पायेगा कि तुमने मुझे ये बात बताई है ।” जब्बार ने दाँत भींचकर कहा और ट्रैगर दबा दिया ।
तेज धमाके के साथ गोली उसकी छाती पर, दिल वाले हिस्से पर जा लगी ।
वह उछलकर नीचे जा गिरा । वहाँ से गुजरते लोगों ने ये मंजर देखा तो वह सहम कर दूर हटने लगे । जब्बार ने उसके सिर से रिवॉल्वर की नाल सटाई और ट्रैगर दबा दिया ।
दूसरा धमाका गूँजा और उसके सिर में सुराख हो गया । वह शांत हो गया । जब्बार ने रिवॉल्वर जेब में डाली और गली में वापस सड़क की तरफ चल पड़ा । तेज-तेज कदमों से चलता वह सड़क पर पहुँचा और किनारे पर खड़ी पीछा करने वाली कार को देखा ।
वह अभी तक वहीं खड़ी थी । जब्बार उस कार की तरफ बढ़ गया ।
कुछ ही आगे बढ़ा कि उसने कार के स्टार्ट होने की आवाज सुनी । उसी पल जब्बार ने रिवॉल्वर निकाली और पास पहुँचते हुए कार को रुके रहने का इशारा किया । कार वहीं खड़ी रही । जब्बार ने पास पहुँच कर भीतर झाँका ।
स्टेयरिंग सीट पर एक आदमी डरा-सा बैठा उसे देख रहा था ।
“तुम !” जब्बार बोला, “मैं तुम्हें जानता हूँ । तुम अनीस के लिए काम करते हो ।”
उसने तुरन्त सिर हिला दिया ।
“तो तुम मेरा पीछा कर रहे हो । वह आदमी तुम्हारा साथी था जो मेरा पीछा करते गली में गया था ।”
उसने पुनः सहमति से सिर हिला दिया ।
“ओह, मैं नहीं जानता था कि वह अनीस के लिए काम करता है । मैंने उसे मार दिया ।” जब्बार का स्वर शांत था ।
उसका चेहरा फक्क पड़ गया ।
“अनीस ने कहा कि तुम मेरा पीछा करो ?”
उसने सहमति से सिर हिलाया ।
“ये गलत किया । अनीस को ऐसा नहीं करना चाहिए था । चलो तुम कार से बाहर निकलो और वापस अनीस के पास जाओ । उसे कह देना कि मेरा पीछा करने की जरूरत नहीं । मैं जूबी के पास जा रहा हूँ ।”
वह आदमी जल्दी से दरवाजा खोलकर बाहर आ गया ।
जब्बार कार में बैठ । कार पहले से स्टार्ट थी । उसने कार आगे बढ़ा दी । उसका चेहरा कठोर हो गया था ।
☐☐☐
अनीस ने होंठ भींचकर सामने खड़े कार वाले आदमी की बात सुनी फिर बोला ।
“तुम जाओ ।”
वह बाहर निकल गया तो अनीस ने जूबी को फोन किया ।
“कहो ।” जूबी की खनकती आवाज कानों में पड़ी ।
“वह गद्दार तुम्हारे पास छिपने के लिए आ रहा है ।” अनीस ने कड़वे स्वर में कहा ।
“जब्बार ?”
“हाँ, वही । मेरे दो आदमी उसका पीछा कर रहे थे । उनमें से एक को जब्बार ने मार दिया ।”
“जब्बार इतनी हिम्मत तो नहीं कर सकता ।”
“जब्बार ने मेरे आदमी से कहा कि वह उसे पहचानता नहीं था । इसलिए वह मारा गया ।”
“और एक को छोड़ दिया उसने ।”
“हाँ ! मैं चाहता हूँ कि वह तुम्हारे पास ज्यादा देर न टिके ।” अनीस बोला ।
“ऐसी बात थी तो उसे मेरे पास भेजते ही नहीं ।”
“भेज दिया तो भेज दिया । तुमसे जो कहा है, वह ध्यान रखना । वह ज्यादा देर तुम्हारे पास न टिके ।”
“ऐसा क्यों ? बताओगे ?”
“मैं चाहता हूँ उसे छिपने का ठिकाना न मिले और पुलिस उसे मार दे ।”
“ये बात है तो बड़ा खान ही उसे क्यों नहीं मार देता ?”
“इस बारे में बड़ा खान से मेरी बात नहीं हुई । बात करके देखता हूँ ।” कहकर अनीस ने फोन बन्द किया और बड़ा खान का नम्बर मिलाने लगा । दो बार की कोशिश के बाद नम्बर लगा ।
“कहो अनीस ?” बड़ा खान का स्वर कानों में पड़ा ।
“मैंने दो आदमी जब्बार के पीछे लगाये थे । एक को जब्बार ने मार दिया ।”
“हूं !”
“जब्बार हमारे लिए खतरा बन चुका है । उसे खत्म कर देना चाहिए जनाब ।”
“अभी नहीं ।”
“क्यों ?”
“जब्बार अकेला नहीं है । उसके साथ वह नकली पुलिस वाला भी है, जिसकी हकीकत हम नहीं जानते । पहले मैं उसकी हकीकत जान लेना चाहता हूँ और इन दोनों की प्लानिंग समझ लेना चाहता हूँ ।”
“जब्बार कभी भी हमारे लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है ।” अनीस ने कहा ।
“मेरी नजर उस पर है ।”
“ओह !”
“इस वक्त वह कार पर जूबी के घर, ऊधमपुर जाने वाले रास्ते पर है ।” बड़ा खान का स्वर शांत था, “जब्बार हमसे दूर नहीं जायेगा । वह नकली पुलिस वाले के साथ मिलकर जिस प्लानिंग पर भी काम कर रहा है, वह प्लानिंग उसे हमारे आसपास रहने पर ही मजबूर करेगी । मेरे ख्याल में जब्बार मुझे मरवा देना चाहता है या पुलिस के हाथों फँसायेगा । मेरे ही खिलाफ है उसकी प्लानिंग ।”
“आप ठीक कह रहे हैं जनाब ।”
“मैं उसे सफल नहीं होने दूँगा । वह हर वक्त मेरी नजरों में है ।”
“क्या वह उस नकली पुलिस वाले से मिला ?”
“अभी नहीं । उससे मिलते ही मेरे आदमी नकली पुलिस वाले को पकड़ लेंगे या उसे मार देंगे ।”
“आपने अच्छा प्लान कर रखा है ।”
“तुम अपने कामों की तरफ ध्यान दो । जब्बार को संभालना मेरी ड्यूटी है ।”
☐☐☐
देवराज चौहान की निगाह लैपटॉप की स्क्रीन पर नजर आते चमकते बिंदु पर थी जो कि तेज रफ्तार से आगे बढ़ा जा रहा था । स्पष्ट था कि जब्बार किसी वाहन पर था । नक्शे में नजर आता जा रहा था कि वह किन-किन रास्तों से गुजर रहा है । बाहर शाम हो रही थी । कुछ ही देर में अँधेरा हो जाना था ।
इसी वक्त उसका मोबाइल बज उठा ।
“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।
“कैसे हो नकली पुलिस वाले ?” बड़ा खान की आवाज कान में पड़ी ।
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान बिखर गई ।
“मैं अच्छा हूँ ।”
“तुम्हारा मोहरा कैसा है ?”
“जब्बार मेरा मोहरा नहीं है । मैं नहीं जानता कि इस वक्त वह कहाँ है । तुम तक पहुँच गया होगा ।”
“तुम्हारा क्या ख्याल है कि मैं अब जब्बार को गले लगाऊँगा ?”
“वह तुम्हारी मर्जी है कि तुम उसका क्या करते हो ।”
“वह तो कहता है कि उसने तुम्हें या पुलिस वालों को कुछ नहीं बताया ।” बड़ा खान ने उधर से कहा ।
“तुम्हें उसकी बात का भरोसा करना चाहिए । वह तुम्हारा आदमी है ।”
“तुम कहते हो कि उसने तुम्हारे सामने मुँह खोल दिया है ।”
“हाँ ।”
“तुम्हारी बात यकीन करने लायक नहीं है ।”
“क्यों ?”
“जब्बार ने मुँह खोला होता तो अब तक मुझे काफी नुकसान हो चुका होता ।”
“तुम्हें अपने आदमी का भरोसा करना चाहिए ।”
“तुमने मेरे मन में वहम का बीज डाल दिया है कि उसने तुम्हें सब बता दिया । बात यहीं तक होती तो मैं सच-झूठ को पहचान लेता, परन्तु सबसे बड़ी बात तो ये है कि तुमने मेरे से पैंतीस करोड़ न लेकर, उसे मुफ्त में जेल से फरार करवा दिया । मैं तो सिर्फ इस बात के पीछे का राज जानना चाहता हूँ ।”
“मैं जो कहूँगा तुम्हें उस पर विश्वास तो होगा नहीं ?”
“नहीं होगा । न तुम पर विश्वास है, न जब्बार पर । लेकिन कुछ बात तो है ही जो तुमने उसे जेल से... ।”
देवराज चौहान हँस पड़ा ।
“कहीं तुम जब्बार का पीछा कर रहे हो और उसके जरिये मुझ तक पहुँचना चाहते हो ।”
“कोई भी जब्बार का पीछा नहीं कर रहा । वह पूरी तरह आजाद है ।”
“मैं नहीं मानता कि उसे जेल से निकालकर तुम हाथ पर हाथ रखकर बैठ गए ।”
“ये सच भी हो सकता है ।”
“कोई बात तो है जो मेरी समझ में नहीं आती । तुम कौन हो ? अपने बारे में बताओ ।”
“मैं जरूरत नहीं समझता ।”
“पुलिस वाले हो ?”
“बिल्कुल नहीं ।”
“तुम मुझसे चाहते क्या हो ?”
“कुछ नहीं । मैंने तो तुमसे कुछ भी नहीं चाहा । तुम्हें कभी फोन नहीं किया । तुम ही मुझे फोन... ।”
जब्बार से तुमने जो जानकारी हासिल की है उसका क्या करोगे ?”
“कुछ भी नहीं ।”
“और तुम चाहते हो की मैं तुम्हारी बात पर यकीन कर लूँ ।”
“तुम्हारी इच्छा पर है कि तुम मेरी किस बात को किस रूप में लेते हो ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव कहाँ है ? क्या वह मेरे आदमियों के हमले से दिल्ली में मर गया था ?”
“वह जिन्दा है । घायल है । उसे चार गोलियाँ लगी थीं । परन्तु अब वह ठीक हो रहा है ।”
“लेकिन मेरे पास तो इस बात की खबर नहीं आई ।”
“वह मेरी पनाह में अपना इलाज करवा रहा है । उसका परिवार भी उसके साथ है ।”
“समझा । तुम उसके सगे वाले हो ?”
“नहीं । मेरा सूरजभान से कोई नाता नहीं । बस, यूँ ही हम मिल गए ।”
“तुम मेरे लिए जम्मू आये थे ?”
“मैं जब्बार से मिलने आया था । बस, ये ही काम था मुझे ।”
“चाहते क्या हो ?”
“कुछ भी नहीं ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“ये तो हो ही नहीं सकता कि इस खेल के पीछे तुम्हारी कोई चाहत न हो । कभी-कभी मुझे लगता है कि जब्बार ने तुम्हें कुछ भी नहीं बताया । वह सच कहता है । परन्तु ये बात आड़े आ जाती है कि तुमने उसे जेल से क्यों फरार करवाया ? पैंतीस करोड़ क्यों न लिए ?”
“तुम इन बातों को कभी नहीं समझ सकोगे बड़ा खान ।”
“तुम जो भी हो बहुत शातिर हो । तुमने तो मेरा दिमाग भी खराब कर दिया है । अपना नाम बता दो ।”
“मैं तुम्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताने वाला ।”
“मैं तुम्हारे मकसद के बारे में सोच रहा हूँ । लेकिन समझ नहीं पा रहा । तुम... ।”
“बड़ा खान ।” देवराज चौहान बोला ।
“हाँ ।”
“बहुत जल्दी हमारी मुलाकात होने वाली है ।”
“मैं तुम्हारी बात पर यकीन इसलिए नहीं कर सकता, क्योंकि मुझ तक कोई नहीं पहुँच सकता ।” बड़ा खान की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी, “तुम ये तो नहीं सोच रहे कि जब्बार का पीछा करके मुझ तक पहुँच जाओगे ।”
“जब्बार से मेरा अब कोई मतलब नहीं है ।” देवराज चौहान ने कहकर फोन बन्द कर दिया ।
बातों के दौरान देवराज चौहान की निगाह स्क्रीन पर चमकते बिंदु पर थी ।
वह बिंदु ऊधमपुर जाने वाले रास्ते पर आगे बढ़ रहा था ।
“तो क्या जब्बार जम्मू से बाहर जा रहा है ?” देवराज चौहान बड़बड़ा उठा ।
देवराज चौहान का फोन पुनः बजने लगा ।
“बोलो ।” देवराज चौहान ने बात की ।
“तुम अपने को और जब्बार को कानून के हवाले कर रहे हो या नहीं ?” ए.सी.पी. कौल को आवाज कानों में पड़ी, “तुम दोनों बच नहीं सकते । पुलिस जम्मू के चप्पे-चप्पे पर फैली है । खुद को पुलिस के हवाले कर दो ।”
“कमिश्नर ! मैंने तुम्हें पहले भी कहा था कि जब्बार अब मेरे पास नहीं है ।” देवराज चौहान बोला ।
“तो कहाँ है ?”
“जेल से निकलकर हम अलग हो गए थे ।”
“जब्बार जैसे लोग कानून से ज्यादा देर बचे नहीं रह सकते । तुम खुद को पुलिस के हवाले करो ।”
“बचकानी बातें मत करो ।”
“तुम्हें कानून से खेलने की सजा भुगतनी पड़ेगी । तुमने जो किया वह... ।”
“मैंने तुम्हें पहले भी कहा था कि मैंने कुछ गलत नहीं किया खाकी पहनकर । मैं... ।”
“बकवास बन्द करो । खाकी का नाम तुम अपनी जुबान पर भी मत लाओ । तुमने खाकी पहनकर, खाकी से गद्दारी की है । जब्बार जैसे खतरनाक मुजरिम को जेल से फरार करवा दिया ।”
“इस मामले का सच मैं नहीं बता सकता तुम्हें ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि बड़ा खान के लोग पुलिस वालों में शामिल हैं । उसने पुलिस वालों को खरीद रखा है । शर्मा तो याद है तुम्हें ।”
“उसे कैसे भूल सकता हूँ जो बड़ा खान के आदमियों का शिकार हो ।”
“उसे मैंने मारा था ।”
“क्या ?” कौल की अजीब सी आवाज कानों में पड़ी ।
“मैंने उसे उस वीराने में ले जाकर गोली मारी थी । क्योंकि वह बड़ा खान के हाथों बिक चुका था । खाकी पहनकर बड़ा खान के इशारों पर नाच रहा था । बड़ा खान के कहने पर उसने मुझे खाने में जहर देकर मारने की कोशिश की ।”
“ये नहीं हो सकता ।” ए.सी.पी. कौल की हैरानी भरी आवाज आई ।
“ये ही हुआ था । उसने सब कुछ अपने मुँह से कबूला । पुलिस वालों की सारी बातें वह बड़ा खान तक पहुँचा रहा था । पुलिस में बड़ा खान के आदमी भरे पड़े हैं । तुम भी बड़ा खान के आदमी हो सकते... ।”
“क्या बकवास कर रहे हो तुम । अपने को पुलिस के हवाले कर रहे हो या नहीं ?”
“नहीं !”
“तुम बड़ा खान के आदमी हो ?” उधर से कमिश्नर से पूछा ।
“नहीं !”
“मुझे तो लगता है कि तुमने तगड़ा पैसा लेकर जब्बार को जेल से फरार करवाया है । मैंने दिल्ली बात की है । उन्हें यकीन नहीं आ रहा कि तुम नकली सूरजभान हो । अगर तुम नकली हो तो असली क्यों नहीं मिल रहा ?”
“उसे बड़ा खान ने मारने की कोशिश की थी । वह घायल है और अपना इलाज करा रहा... ।”
“बकवास । तुम ही इंस्पेक्टर सूरजभान यादव हो । तुम्हीं असली... ।”
“दिल्ली से सूरजभान यादव की तस्वीर मँगाकर देख लो । मेरी बात का यकीन आ जायेगा ।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया ।
स्क्रीन पर नजर आ रहे चमकीले बिंदु की वही स्थिति थी । वह ऊधमपुर की तरफ बढ़ रहा था ।
आधा घण्टा बीता कि एकाएक देवराज चौहान चौंका ।
ऊधमपुर आने से पहले ही चमकीला बिंदु अन्य रास्तों की तरफ मुड़ गया था । नक्शे से देवराज चौहान उन रास्तों को स्पष्ट तौर पर पहचान रहा था, जहाँ से जब्बार निकल रहा था ।
देवराज चौहान का मोबाइल फिर से बजने लगा ।
“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।
“मैं चार घण्टों में जम्मू पहुँच ज” जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।
“कार पर आ रहे हो ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“हाँ ! तुमसे बात होने के आधे घण्टे बाद ही मैं पारस नाथ की कार लेकर चल पड़ा था ।”
“आ जाओ । मुझे तुम्हारी जरूरत भी महसूस होने लगी है ।” देवराज चौहान ने स्क्रीन पर नजरें टिकाये हुए कहा ।
☐☐☐
जब्बार ने एक सूनसान पहाड़ी के पास कार रोकी और इंजन बन्द करके पैदल ही आगे बढ़ गया था । वह जानता था कि जूबी के घर छिपना है तो कार को पहले ही छोड़ देना ठीक रहेगा । अँधेरा छा चुका था । यहाँ पर कुछ ठंडक भी थी । उसका मस्तिष्क देवराज चौहान में उलझा हुआ था कि आखिर वह उससे चाहता क्या है ?
बड़ा खान के बारे में उसके मन में ये ही था कि देर-सवेर में बड़ा खान को यकीन दिला देगा कि सब ठीक है । उसने नकली सूरजभान को कुछ नहीं बताया और उसने उसे मुफ्त में जेल से निकाल दिया । लेकिन वह ये भी जानता था कि बड़ा खान को यकीन दिलाना आसान नहीं होगा । क्योंकि बड़ा खान ने नकली सूरजभान को पैंतीस करोड़ के नोटों की ऑफर दी थी । पैंतीस करोड़ न लेकर, वह मुफ्त में उसे जेल से क्यों निकालेगा ?
जब्बार खुद को चक्रव्यूह में फँसा महसूस कर रहा था । नकली सूरजभान ने उसे फँसा दिया था ।
वहाँ आधा घण्टा पैदल चलने के बाद वह छोटी सी पहाड़ी पर पहुँचा । जहाँ इधर-उधर पंद्रह बीस मकान बने दिख रहे थे । रौशनी हो रही थी उन मकानों में । जब्बार एक मकान के दरवाजे पर पहुँचा और हाथ से दरवाजा खटखटाया ।
कुछ ही पलों में दरवाजा खुला ।
दरवाजा खोलने वाली 28-29 बरस की जूबी थी । खूबसूरत थी । वह अपने बूढ़े माँ-बाप और छोटे भाई-बहन के साथ रहती थी । कमाई का साधन बड़ा खान से मिलने वाले पैसे ही थे ।
“आ जब्बार ।” जूबी पीछे हटती बोली, “मैं तेरा ही इंतजार कर रही थी ।”
“किसने बताया तुझे कि मैं आ रहा हूँ ।” जब्बार भीतर आ गया ।
“अनीस ने ।” दरवाजा बन्द करते जूबी ने कहा, “आज तो सर्दी ज्यादा हो रही है । चल पीछे वाले कमरे में... ।”
दोनों घर के भीतर जाते रास्ते पर बढ़ गए ।
“तेरे माँ-बाप, भाई-बहन कैसे हैं ?” जब्बार ने पूछा ।
“ठीक है । भाई-बहन पढ़ रहे हैं । माँ-बाप एक कमरे में पड़े रहते हैं । काम बढ़िया चल रहा है ।”
दोनों पीछे वाले कमरे में पहुँचे । वहाँ बेड लगा था ।
जब्बार एक बार पहले भी पंद्रह दिन के लिए यहाँ आकर रहा था ।
जब्बार कुर्सी पर जा बैठा ।
“अलमारी में कपड़े रखे हैं । अपनी जरूरत के कपड़े ले ले । क्या पियेगा ?”
“एक-दो पैग लगा लूँगा । व्हिस्की है ?”
“मिल जायेगी ।”
दस मिनट के बाद जब्बार कपड़े बदले रजाई में बैठा व्हिस्की के घूँट भर रहा था । घर के कामों से फुर्सत पाकर जूबी आधे घण्टे बाद कमरे में कुर्सी पर आ बैठी ।
“सुना है, तू गद्दार हो गया है ।” जूबी गंभीर थी ।
“किसने कहा तेरे से ?” जब्बार ने तीखे स्वर में कहा ।
“अनीस ने ।”
“भौंकता है कमीना ।” जब्बार ने गुस्से से कहा ।
“तो फिर जेल से कैसे निकला ?”
“उस नकली पुलिस वाले ने निकाला ।”
“तूने कीमत क्या चुकाई ?”
“कुछ भी नहीं ।”
“मुझे पता चला है कि कीमत के बदले तूने बड़ा खान की जानकारियाँ उसे दीं ।” जूबी ने गंभीर स्वर में कहा ।
“ये भी तेरे को अनीस ने कहा ?”
“सब ही कह रहे हैं ।”
जब्बार जूबी को देखने लगा । कुछ देर उनके बीच चुप्पी रही ।
“मैं गद्दार नहीं हूँ । हालातों का शिकार हो गया हूँ । ये सारी गड़बड़ उस नकली इंस्पेक्टर सूरजभान ने की है । वह जेल में मुझसे मिलने आता था । तब बड़ा खान का फोन आता था । वह मेरे सामने बड़ा खान से कहता था कि मैं बड़ा खान के बारे में उसे सब बता रहा हूँ और इसके बदले में वह मुझे जेल से फरार करवा देगा । मैं सोचता था वह यूँ ही भौंक रहा है । परन्तु अंत में उसने मुझे जेल से फरार करवा दिया जबकि मैंने उसे बड़ा खान के बारे में कुछ भी नहीं बताया । बाहर आकर अनीस से मिला तो मुझे पता चला कि बड़ा खान मुझ पर शक कर रहा है । वह ये जानना चाहते हैं कि नकली पुलिस वाले ने मुझे जेल से फरार क्यों करवाया ? मैंने उसे बड़ा खान के बारे में नहीं बताया ? मैं पाक-साफ हूँ । मैंने बड़ा खान के बारे में किसी के सामने मुँह नहीं खोला । मैं बड़ा खान का वफादार था और हूँ । ये सारी चाल उस नकली सूरजभान ने चली है । उसने मेरी ऐसी स्थिति बना दी है कि बड़ा खान मुझ पर किसी भी हाल में भरोसा न करे ।”
“क्यों किया उसने ऐसा ?” जूबी ने पूछा ।
“मैं नहीं जानता ।”
“तुमने ये बातें अनीस को बताई ?”
“बताई, परन्तु वह मुझ पर भरोसा करने को तैयार नहीं । यही पूछता है कि मुझे किस शर्त पर उस नकली पुलिस वाले ने जेल से फरार करवाया ?” जब्बार तीखे स्वर में बोला, “पहले अनीस मुझसे संभलकर बात किया करता था और अब चौड़ा होकर बात कर रहा है । वक्त बदलते देर नहीं लगती ।”
“बड़ा खान से बात की ?”
“नहीं । बड़ा खान भी तो मुझसे ये ही पूछेगा कि उसने मुझे जेल से फरार क्यों करवाया ? जबकि हकीकत ये है कि उसने मुझे बड़ा खान से दूर करने की चाल खेली और कामयाब भी हो गया ।”
“चाहता क्या है वह ?”
“मैं नहीं जानता ।”
“बड़ा खान ने उसे पैंतीस करोड़ की ऑफर दी थी कि तुम्हें जेल से निकाल दे । परन्तु उसने पैंतीस करोड़ लिए बिना ही तुम्हें जेल से फरार करवा दिया । ऐसे में स्पष्ट है कि तुममें और उसमें समझौता हुआ है ।”
“ये ही तो खेल खेला उसने कि बड़ा खान मुझ पर किसी भी हाल में विश्वास न करे ।”
“मेरे ख्याल में ऐसा नहीं है ।”
“क्या मतलब ?” जब्बार जूबी को देखने लगा ।
“बड़ा खान को तुम पर भरोसा न होता तो तुम मेरे पास आ नहीं आ सकते थे । बड़ा खान को तुम्हारी गद्दारी पर यकीन होता तो वह अब तक तुम्हें खत्म कर चुका होता । परन्तु उसने ऐसा कुछ नहीं किया ।” जूबी गम्भीर थी ।
जब्बार जूबी को देखता रहा । सोचता रहा ।
“तुम्हें बड़ा खान से बात करनी चाहिए । जितनी देर करोगे बाकी लोग तुम्हारे खिलाफ हो जायेंगे । अनीस ने मुझसे कहा था कि मैं तुम्हें ज्यादा देर घर में न रखूँ । वह चाहता है कि तुम्हें छिपने का ठिकाना न मिले और तुम पुलिस के हाथों मारे जाओ ।”
“बड़ा खान मेरी बात पर यकीन नहीं करेगा ।”
“मुझे यकीन है कि तुम सच कह रहे हो ।” जूबी बोली ।
“तुम बड़ा खान को यकीन दिलाओ कि... ।”
“मुझे इस मामले में आने का हक नहीं है । मेरा जितना काम है, उतना काम ही मैं करती हूँ । मैंने अपने परिवार को पालना है । लेकिन तुम्हें सलाह दे सकती हूँ कि तुम सीधे बड़ा खान से बात करो ।” जूबी गंभीर थी ।
“मैंने बड़ा खान से उस नम्बर पर बात की, परन्तु वह नम्बर काम नहीं कर रहा । जानबूझकर वह नम्बर बन्द कर... ।”
“जानबूझकर कह लो या सावधानी के नाते । क्योंकि तुम ऐसे हालातों में घिरे हो कि लगता है जैसे पुलिस के साथ मिल गए हो । बड़ा खान का सतर्क हो जाना लाजिमी है ।” जूबी ने कहा, “तुम बात करो बड़ा खान से । मैं तुम्हें दूसरा नम्बर तो नहीं दे सकती परन्तु अपने फोन से तुम्हारी बात करा सकती हूँ ।”
“अनीस ने भी ऐसा ही कहा था ।” जब्बार गिलास खाली करके मुस्कुराया ।
जूबी की निगाह जब्बार पर थी ।
“मैं गद्दार नहीं हूँ । मैंने कोई गद्दारी नहीं की । बड़ा खान के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया । नकली इंस्पेक्टर सूरजभान की खतरनाक साजिश का शिकार हो गया हूँ मैं । समझ नहीं पाया कि उसने ऐसा क्यों किया ?”
“बड़ा खान से बात करना चाहो तो कह देना ।” जूबी उठ खड़ी हुई ।
जब्बार सोच भरी नजरों से जूबी को देखता रहा ।
“और जब खाना खाने का मन हो बता देना ।” कहकर जूबी जाने को हुई तो जब्बार कहने लगा ।
“बड़ा खान से मेरी बात करा दो ।”
जूबी ठिठकी और फोन निकालकर नम्बर मिलाने लगी ।
जब्बार ने बिस्तर छोड़ा और अपने लिए नया गिलास तैयार कर लिया ।
जूबी का नम्बर लगा और बात हो गई ।
“जब्बार आपसे बात करना चाहता है ।” जूबी ने कहा ।
“कराओ ।”
जूबी ने मोबाइल जब्बार की तरफ बढ़ाया । जब्बार ने फोन थामा । उसने दूसरे हाथ में गिलास पकड़ा था ।
“मैं जेल से बाहर आ गया हूँ बड़ा खान ।” जब्बार ने गंभीर स्वर में कहा ।
“मुझे खुशी हुई । तुम जैसे काबिल इंसान का जेल में बन्द रहना ठीक नहीं ।” बड़ा खान का मुस्कुराता स्वर कानों में पड़ा ।
“मैं फिर से काम पर लग जाना चाहता हूँ ।” जब्बार बोला ।
“क्यों नहीं जब्बार । हमने योजना बना रखी है उस काम की । उसे पूरा करना है ।”
जूबी की निगाह एकटक जब्बार पर थी ।
“उस योजना पर हम कब से काम शुरू करेंगे ?”
“जल्दी ही । बहुत जल्द ।”
चंद पल चुप रहकर जब्बार कह उठा ।
“बड़ा खान । हमें सीधे-सीधे बात कर लेनी चाहिए ।”
“क्यों नहीं ।”
“तुम मुझ पर शक कर रहे हो । ये बात है न बड़ा खान ?”
“है ।”
“शक करने की वजह भी ये है कि मैं कैसे जेल से बाहर आ गया । उस पुलिस वाले ने तुमसे पैंतीस करोड़ न लेकर मुफ्त में क्यों मुझे जेल से निकाला । कोई बात तो होगी ही ।”
“ये बात तो है ।”
“जेल से निकलने के बाद मुझे पता चला कि वह नकली पुलिस वाला था ।”
“ये गंभीर बात है ।” उधर से बड़ा खान ने कहा ।
“मैं अनजाने जाल में फँस गया हूँ बड़ा खान ।”
“कैसे ?”
“उस नकली पुलिस वाले के ताने-बाने में मैं अनजाने में जा फँसा हूँ । तुम्हें मेरा भरोसा करना चाहिए ।”
“किस बात का ?”
“मैंने उसे तुम्हारे या संगठन के बारे में कुछ नहीं बताया ।”
“मुझे भरोसा है कि तुम सही कह रहे हो । परन्तु उसने तुम्हें जेल से फरार क्यों करवाया ?”
“मैं नहीं जानता ।”
“तुम्हारा जवाब तसल्ली बख्श नहीं है ।”
“जानता हूँ । परन्तु इसके अलावा मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं है ।”
“फिर तो मुश्किल हो जायेगी ।”
“मैं सच कह रहा हूँ कि मैंने उसे कुछ नहीं बताया ।”
“मेरे से पैंतीस करोड़ न लेकर उसने तुम्हें मुफ्त में जेल से फरार करवा दिया और तुमने उसे कुछ नहीं बताया । इस बात को कोई भी मानने को तैयार नहीं होगा ।” बड़ा खान की शांत आवाज कानों में पड़ी ।
“तो अब मैं क्या करूँ ?”
“तुम्हें सच कह देना चाहिए ।”
“यकीन करो, मैंने सच कहा है ।”
“इस तरह बात नहीं बनेगी । वह तुम्हें यूँ ही जेल से फरार नहीं करवाएगा । तुम्हारे सामने बैठा जो मुझसे कहा करता था कि तुम उसे, मेरे बारे में सब बता रहे हो ।”
“हाँ । वह ऐसा कहता था ।”
“तो मैं कैसे तुम पर भरोसा करूँ कि तुमने उसे कुछ नहीं बताया ?”
“मेरा विश्वास नहीं रहा तुम्हें ?”
“इस धंधे में विश्वास जमाये रखना पड़ता है । भरोसे का खेल ही है ये धंधा । वह पुलिस वाला नहीं है । तुम्हें तो उसने बताया होगा कि वह कौन है ?” बड़ा खान ने उधर से कहा ।
“मैं उसे इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ही समझ रहा था ।”
“मेरे लिए ये जानना जरूरी है कि वह कौन है ?”
“उसने मुझे अपने बारे में नहीं बताया ।”
“मुझे जिन बातों का जवाब चाहिए, वह तुम नहीं बता रहे ।”
“क्योंकि जवाब मेरे पास भी नहीं है ।”
“इस तरह तो हम मिलकर काम नहीं कर सकेंगे जब्बार ।”
जब्बार मलिक ने गहरी साँस ली फिर बोला ।
“तो मैं यूँ समझूँ कि हममें विश्वास नहीं रहा ।”
“तुम्हारे सामने ही हैं सारे हालात । तुम मुझे गलत नहीं कह सकते ।”
“फिर तो मुझे किसी और संगठन का साथ लेना पड़ेगा ।”
“कोशिश बेकार होगी । क्योंकि गद्दार को कोई अपने पास नहीं बैठाता । आतंकवाद का धंधा विश्वास का खेल है । तुम पर से सबका विश्वास उठ गया है । कई संगठनों से मेरी बात हुई है ।”
“तो तुमने ये बात सबसे कह दी ?” जब्बार के माथे पर बल पड़े ।
“जरूरी था । मैं जानता था कि मेरे विश्वास न करने पर तुम दूसरे संगठन में जाना चाहोगे । ऐसे में तुम्हारे लिए दरवाजे को बन्द करना जरूरी था ।” बड़ा खान की आवाज में शांत भाव थे ।
“क्या कहा तुमने दूसरे संगठनों से ?”
“इतना ही कहा कि तुम्हें एक पुलिस वाले ने जेल से फरार करवाया है । हो सकता है तुम पुलिस के खबरी बन गए हो । इतना सुनने के बाद कोई भी तुमसे काम नहीं लेगा ।”
“तुमने मेरे सारे रास्ते बन्द कर दिए ।”
“ठीक बात तो ये ही होगी कि मुझे सच-सच बता दो कि किस शर्त पर तुम्हें उसने जेल से फरार करवाया ?”
“कोई शर्त नहीं थी ।”
“तुम सच नहीं बताना चाहते तो तुम्हारी इच्छा ।”
“ये ही सच है बड़ा खान । मुझ पर विश्वास न करके तुम गलती कर रहे हो ।”
कुछ चुप्पी के बाद बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।
“सच बात तो ये है जब्बार कि मुझे तुम्हारी गद्दारी पर पूरी तरह यक़ीन नहीं है । अगर यकीन होता तो तुम अब तक जिन्दा न होते । जूबी के यहाँ न होते । अनीस के यहाँ ही तुम्हें खत्म कर दिया जाता ।”
जब्बार ने गहरी साँस ली ।
“अब मैं क्या करूँगा ?” जब्बार बोला ।
“मैं तुम्हारे लिए कोई रकम देखूँगा । इस बीच अगर तुम मुझे जेल से फरारी का सच बताना चाहो तो बता देना ।”
“मैंने तुमसे कुछ भी झूठ नहीं बोला ।
“जो भी बोला है, उस पर यकीन नहीं किया जा सकता ।” इसके साथ ही बड़ा खान ने उधर से फोन बन्द कर दिया था ।
जब्बार ने कान से फोन हटाया और जूबी की तरफ बढ़ा दिया ।
जूबी ने फोन थामा । नजरें जब्बार पर थीं । जब्बार मुस्कुराकर कह उठा-
“बड़ा खान को मेरी सच बात पर भरोसा नहीं ।”
“मुझे यकीन है कि तुम सच्चे हो । मैं सामने वाले के चेहरे को पढ़ना जानती हूँ ।” जूबी ने कहा ।
“बड़ा खान ने दूसरे संगठनों को भी ये बात बता दी कि कहीं मैं बड़ा खान को छोड़कर उनके पास न चला जाऊँ । मेरे सारे रास्ते बड़ा खान ने बन्द कर दिए हैं ।” जब्बार ने व्याकुल स्वर में कहा ।
“तुम तो फँस गए जब्बार ।”
“पता नहीं बड़ा खान मेरा क्या करना चाहता है ।” जब्बार ने गहरी साँस ली ।
जूबी बाहर निकल गई ।
जब्बार ने गिलास खाली करके एक तरफ रखा और आँखें बन्द कर लीं । चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे । पाँच मिनट बाद आँखें खोलीं । मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा ।
तुरन्त ही बात हो गई । मर्दाना स्वर कानों में पड़ा ।
“हैलो !”
“रजाक !” जब्बार शांत स्वर में बोला, “कैसा है तू ?”
“कौन ? जब्बार ?” रजाक की आवाज कानों में पड़ी ।
“हाँ, मैं जब्बार ही हूँ ! याद है हमने कई काम एक साथ किये थे ।”
“तेरे को कैसे भूल सकते हैं ।” रजाक का मुस्कान से भरा स्वर सुनाई दिया, “सुना है तू जेल से फरार हो आया ।”
“हाँ ! मुझे तेरे से काम था ।”
“बोल ।”
“अपने संगठन में मेरे को भी जगह दिलवा दे ।”
कुछ खामोशी के साथ आवाज आई रजाक की ।
“बड़ा खान से पट नहीं रही क्या ?”
“नहीं !”
“तेरे बारे में कुछ सुना है जब्बार । तूने पुलिस वालों से सौदेबाजी करके, उन्हें बड़ा खान के बारे में बताकर ही तू जेल से फरार हो सका है । ये तूने ठीक नहीं किया । पुलिस से दोस्ताना हमारे धंधे में नहीं चलता ।”
जब्बार के दाँत भींच गए ।
“झूठ कहा है, जिसने भी ये कहा है ।”
“हमारे संगठन के बड़ों के पास बड़ा खान का फोन आया था । उसने ही बताया ये सब ।”
“बकवास करता है बड़ा खान । मैंने उसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताया ।” जब्बार गुर्रा उठा ।
जब्बार के चेहरे पर गुस्से से भरे भाव नाच उठे थे ।
बड़ा खान ने उसे हर जगह बदनाम कर दिया था कि उसे कहीं भी जगह न मिले ।
जब्बार ने दूसरी जगह फोन मिलाया ।
“मैं जब्बार बोल रहा हूँ ।” बात होते ही उसने कहा ।
“जो जेल से आज भाग निकला है, वह जब्बार ?” उधर से पूछा गया ।
“हाँ, मैं ।”
“सुना है तूने पुलिस को बड़ा खान के बारे में बताया और उन्होंने तेरे को जेल से फरार करवा दिया ।”
“ये बकवास है ।”
“हर कोई ये ही कह रहा है । बता इधर क्यों फोन किया ?”
“काम चाहिए था ।”
“तेरे लिए हमारे पास कोई काम नहीं है ।” कहकर फोन बन्द कर दिया गया ।
“हरामजादे ।” जब्बार गुर्रा उठा ।
बड़ा खान ने उसके लिए सारे दरवाजे बन्द करा दिए थे । कोई भी उसे अपने पास बैठाने को राजी नहीं था ।
उस नकली सूरजभान ने उसके साथ खेल खेला है और बाकी कसर बड़ा खान ने पूरी कर दी ।
“सब कमीने-कुत्ते हैं ।” जब्बार पुनः गुर्राया ।
उसके हर तरफ परेशानी ही परेशानी थी । वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे ?
जब्बार ने देवराज चौहान को फोन किया ।
“तूने बहुत गलत किया मेरे साथ ।” जब्बार ने दाँत भींचकर कहा, “कोई मुझे अपने पास बिठाने को तैयार नहीं ।”
“ये तो होना ही था ।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।
“क्यों किया तूने मेरे साथ ऐसा ?” जब्बार पागल हो रहा था ।
“तेरे को जेल से फरार करवाने की मैंने अपनी कीमत वसूल ली ।” उधर से देवराज चौहान ने हँसकर कहा, “अगर अब के हालात तुझे पसन्द नहीं आ रहे तो वापस जेल में चला जा । वहाँ आराम से रहेगा ।”
“बकवास मत कर । बड़ा खान ने सब संगठन वालों से कह दिया है कि मैं गद्दार हूँ । अब कोई भी मुझे अपने पास नहीं लगने दे रहा । जबकि पहले सब चाहते थे कि मैं उनके लिए काम करूँ ।”
“तेरा वक्त बदल गया है ।”
“ये सारी गड़बड़ तूने की मेरे साथ । आखिर तू है कौन ?” जब्बार गुर्राया ।
“तेरे को जेल से फरार करवाने वाला ।”
“मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा । मैं तुझे... ।”
“ये बात इतनी जल्दी भूल गया कि मैंने तुझे जेल से निकाला है ।”
“तूने मुझे बर्बाद कर दिया ।”
“बर्बाद तो तू उस दिन ही हो गया था जब तूने आतंकवाद के रास्ते पर पैर रखा था ।”
“तू चाहता क्या है ?”
“कुछ नहीं । मैं तुझे खुश देखना चाहता हूँ ।” देवराज चौहान के स्वर में मुस्कान के भाव थे ।
“मैं तुझे छोड़ूँगा नहीं । ये बात याद रखना हरामजादे ।” जब्बार ने चीखकर कहा और फोन बन्द करके उठा और गुस्से से कांपते हाथों से एक गिलास और तैयार करने लगा ।
तभी जूबी ने भीतर प्रवेश किया ।
“लगता है तुम फोन पर किसी से चीखकर बात कर रहे थे ?”
गिलास तैयार करके जब्बार ने सुलगती निगाहों से जूबी को देखा ।
“बड़ा खान ने मुझे सब जगह बदनाम कर दिया है ।” जब्बार ने दाँत भींचकर कहा, “उसने सब संगठनों से कह दिया है कि मैं गद्दार हूँ । मैं पुलिस के साथ समझौता करके जेल से फरार हुआ हूँ । कोई मेरे पास बैठने को तैयार नहीं ।”
जूबी ने गंभीरता से सिर हिलाकर कहा ।
“अब तू क्या करेगा ?”
“मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा ।”
“ये बात है तो बड़ा खान तुझे यहाँ क्यों रहने दे रहा है ।” जूबी बोली ।
“पता नहीं वह क्या करना चाहता है ।” जब्बार ने उखड़े भाव से घूँट भरा ।
“तेरे को अपना रास्ता खुद ही तलाश करना होगा ।”
“रास्ता बचा ही कहाँ है मेरे पास ।” जब्बार गुर्रा उठा ।
“खाना लाऊँ ?”
“अभी नहीं ।”
☐☐☐
रात के बारह बज रहे थे ।
जगमोहन अभी-अभी देवराज चौहान के पास पहुँचा था । सबसे पहला काम उसने नहाने का किया और दूसरा काम खाना खाने का ।
लम्बी ड्राइविंग की वजह से वह थका हुआ था ।
“मैंने सूरजभान को बताया कि तुमने जब्बार मलिक को जेल से फरार करवा दिया है । परन्तु सुनकर वह शांत रहा ।” जगमोहन ने बताया ।
“कुछ कहा नहीं ?”
“इतना ही कहा कि देवराज चौहान ने जो किया है, सोच-समझकर ही किया होगा ।”
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई ।
“अब क्या चल रहा है यहाँ ?” जगमोहन ने पूछा ।
“जब्बार को जेल से फरार करवाने से पहले मुझे बड़ा खान के फोन आते रहे । वह पैंतीस करोड़ मुझे दे रहा था । जब्बार को जेल से निकालने के । परन्तु मैंने कहा कि मेरा जब्बार के साथ समझौता हो गया है कि वह तुम्हारे बारे में सब कुछ बताएगा और मैं उसे जेल से फरार करवा दूँगा । तब शायद बड़ा खान मेरी बात को गंभीरता से नहीं ले रहा था । मैंने जब्बार को जेल से फरार करवा दिया और बड़ा खान जब्बार पर शक करने लगा कि उसने मुझे उसके बारे में सब बता दिया है ।”
“ये बातें तुम मुझे पहले भी बता चुके हो ।” जगमोहन ने कहा ।
“जब्बार को जेल से फरार करवाकर, उसे एक रिवॉल्वर दी । रिवॉल्वर के हत्थे पर माइक्रोचिप लगी हुई थी ।” कहते हुए देवराज चौहान ने लैपटॉप की तरफ इशारा किया, “उस माइक्रोचिप के दम पर मैं जब्बार की लोकेशन लैपटॉप की स्क्रीन पर देख रहा हूँ । इस वक्त वह ऊधमपुर से कुछ पहले कहीं पर रुका हुआ है ।”
“वह घर है कोई ?”
“ये मैं नहीं जानता । स्क्रीन पर नजर आने वाला चमकीला निशाना उसी माइक्रोचिप का है ।”
जगमोहन ने लैपटॉप की स्क्रीन पर नजर मारी ।
“कुछ देर पहले मुझे जब्बार का फोन आया । वह परेशान था इस बात को लेकर कि अब बड़ा खान उसका भरोसा नहीं कर रहा । वह गुस्से में पागल था और मुझे मार देने को कह रहा था । जब्बार समझ चुका है कि मेरी चाल की वजह से ही वह अपना विश्वास खो बैठा है । उसका कहना है कि बड़ा खान ने बाकी सब संगठनों से कह दिया है कि वह पुलिस का आदमी बनकर जेल से फरार हुआ है । इसलिए कोई संगठन उसे पास बिठाने को तैयार नहीं है ।”
“तो जब्बार का पूरा ही काम हो गया ।” जगमोहन ने कहा ।
“मैं ऐसा ही चाहता था । मैं उसे अकेला कर देना चाहता था । बड़ा खान ने मेरा काम और भी आसान कर दिया ।”
जगमोहन गंभीर दिखने लगा ।
“अब तुम क्या करना चाहते हो ?”
“जब्बार टूट रहा है । ऐसे में उस पर हाथ डालना आसान है । लोहा गर्म हो रहा है । मैं उसके भीतर छिपी बड़ा खान की सारी जानकारी जान लेना चाहता हूँ । जितना वह थकेगा, उतनी आसानी से बताएगा ।”
“समझा । तो मैं क्या करूँ ? मेरे लायक कुछ काम है ?”
“बहुत काम है । मैं तुम्हें एक संगठन का नेता बना देना चाहता हूँ ताकि तुम जब्बार को अपने संगठन में शामिल कर सको ।”
“क्या ?” जगमोहन चौंका ।
“हमें जब्बार के भीतर से बड़ा खान की जानकारी निकालनी है जगमोहन ।”
“समझा ।”
“मैं तुम्हें भी एक माइक्रोचिप दूँगा । इस तरह तुम भी चमकीले बिंदु की तरह, लैपटॉप पर मेरी निगाहों में रहोगे । साथ ही तुम फोन पर मेरे संपर्क में रहोगे । मैं तुम्हें आगे का रास्ता दिखाता रहूँगा ।”
“लेकिन संगठन मैं तैयार कैसे करूँगा ?”
“इस काम में राठी हमारी मदद करेगा । वह अपने आदमी देगा । हमें जब्बार के सामने ऐसा दिखावा करना है कि उसे लगे वह सही हाथों में आ पहुँचा है । वह हमारे कश्मीर को आजाद कराने की बात पर खुश होता है । बेवकूफ ये नहीं जानता कि हिन्दुस्तान का कश्मीर आजाद है । आजाद कराना ही है तो कश्मीर के उस हिस्से को आजाद कराये जो पाकिस्तान के हाथों में है । परन्तु ये बात उसकी समझ में नहीं आएगी । वह पाकिस्तान में तीन साल की ट्रेनिंग ले चुका है और उन लोगों ने जब्बार के दिमाग में भर दिया है कि हिन्दुस्तान ने कश्मीर पर कब्जा कर रखा है । इसलिए कश्मीर को आजाद कराना है । मैं तुम्हें सब समझाता हूँ कि कल सुबह से तुम कैसे काम करोगे ।”
“राठी कहाँ है ?” जगमोहन ने पूछा ।
“अभी वह आया नहीं । कभी भी आ सकता है ।”
“ठीक है । तुम मुझे बताओ कि कल मुझे कैसे काम करना होगा और क्या-क्या करना होगा ?”
“तुम्हारे संगठन का नाम होगा आजादी-ए-कश्मीर... ।”
देवराज चौहान ने समझाना शुरू किया ।
☐☐☐
अगले दिन सुबह जब्बार मलिक गहरी नींद में था । आठ बज रहे थे । तभी जूबी ने मोबाइल थामे भीतर प्रवेश किया और जब्बार को नींद से उठाया ।
“बात करो । तुम्हारे लिए बड़ा खान का फोन है ।” जूबी बोली ।
जब्बार की आँख उसी पल खुल गई । वह उठ बैठा । उसने फोन थामा ।
“हैलो !” जब्बार बोला, “बड़ा खान ?”
“हाँ !” बड़ा खान की आवाज जब्बार के कानों में पड़ी, “मैंने तुम्हारे लिए कुछ सोचा है ।”
“हुक्म कीजिये ।”
“मैं तुम्हारा नाम रोशन कर देना चाहता हूँ जब्बार ।”
“मैं हाजिर हूँ ।”
“तुम्हारे माथे पर जो कलंक लग गया है, मैं उसे भी धो देना चाहता हूँ ।”
“इससे अच्छी बात और क्या होगी ।” जब्बार मलिक मुस्कुराया, “आप हुक्म देकर देखिये ।”
“मैं तुम्हें ऐसा काम सौंपना चाहता हूँ कि जिससे तुम शहीद होकर तारे की तरह आसमान में चमकने लगोगे ।”
जब्बार मलिक के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा । चंद पलों के लिए तो वह ठगा सा खड़ा रह गया ।
“जब्बार ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी तो वह संभला ।”
“ये आप क्या कह रहे हैं । मुझे शहीद बनाना चाहते हैं ?” जब्बार के होंठों से निकला ।
“शहीद बनना तो सबसे अच्छी बात है जब्बार । शहीद बनोगे तो तुम्हें हर कोई याद.... ।”
“पर मैं तो जिन्दा रहकर कश्मीर को आजाद कराना चाहता हूँ ।”
“शहीद होने के बाद तुम तारे बनकर ऊपर से देखना । कश्मीर आजाद हो जायेगा । मैं तुमसे इस बात का वादा करता हूँ । जब तक कश्मीर आजाद नहीं होगा, तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे । आज शाम को मैं तुम्हें शहीद होने की योजना बताऊँगा । बहुत जबरदस्त योजना है । शहीद होने के साथ-साथ तुम कम से कम सौ लोगों को बम विस्फोट में सजा भी दे दोगे । वह सब मारे जायेंगे और तुम शहीद हो जाओगे ।”
“जी ।” जब्बार के होंठों से निकला ।
“मैं शाम को तुम्हें फोन करके योजना बताऊँगा ।” इसके साथ ही फोन बन्द हो गया ।
जब्बार का मस्तिष्क सुन्न सा हो उठा था ।
बड़ा खान उससे पीछा छुड़ाना चाहता है । उसे मार देना चाहता है । तभी तो उसे शहीद बनने को कह रहा है । कहता है शाम को अपनी योजना बताएगा । पहले सब दरवाजे उसके लिए बन्द कर दिए, अब उसे घेरकर खत्म कर देना चाहता है ।
नहीं, वह शहीद नहीं बनेगा । जिन्दा रहेगा और कश्मीर को आजाद करायेगा । जब कश्मीर आजाद हो जायेगा तो कश्मीर का राष्ट्रपति बनेगा । उसे शहीद नहीं होना है । बहुत काम करने है उसने ।
तभी कहवे का गिलास थामे जूबी ने भीतर प्रवेश किया ।
“कहवा लो जब्बार ।” जूबी बोली ।
जब्बार सोचो से बाहर निकला । जूबी ने उसे कहवा दिया और अपना मोबाइल वापस लेकर बोली ।
“क्या कहा बड़ा खान ने ?”
“क्या कहा ? कुछ नहीं । तुम्हारे काम की बात नहीं है ।” जब्बार के चेहरे पर चिंता बरसने लगी थी ।
“मत बता ।” जूबी कहकर बाहर निकल गई ।
कहवे के घूँट भरता जब्बार परेशान सा बैठा रहा ।
कहवा खत्म हो गया तो मोबाइल उठाकर देवराज चौहान का नम्बर मिलाने लगा ।
“तुमने तो मुझे बहुत बुरी तरह फँसा दिया है । इतना तो मैंने सोचा ही नहीं था ।” जब्बार ने फोन पर कहा ।
“बहुत ठंडे-ठंडे लग रहे हो ? क्या बात है ?” उधर से देवराज चौहान ने पूछा ।
“बड़ा खान ने मेरे लिए सब रास्ते बन्द कर दिए और अब मुझे शहीद बनने को कह रहा है ।”
“शहीद ? वह कैसे ?”
“अपने शरीर पर बम बाँधकर लोगों में घुस जाऊँ और खुद को उड़ा लूँ ।”
“ओह । बात यहाँ तक पहुँच जायेगी, मैंने नहीं सोचा था ।”
“अब तो बता दो कि तुमने ये सब मेरे साथ क्यों किया ?”
“मैंने तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया । तुम जेल से फरार होना चाहते थे, मैंने तुम्हें फरार करवा दिया ।”
“मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है ।” जब्बार थके स्वर में कह उठा ।
“मदद ?”
“हाँ ! बड़ा खान मुझे मार देना चाहता है और मैं मरना नहीं चाहता ।”
“तो इसमें मैं क्या कर... ।”
“तुमने ही तो कहा था कि जब मैं मुसीबत से निकलना चाहूँ तो तुम्हें फोन करूँ ।” जब्बार बोला ।
“मैंने तो सोचा कि तुम मेरी बात भूल गए होगे ।”
“तुम मुझे मुसीबत से बचा सकते हो ।”
“मुफ्त में नहीं ।”
“क्या चाहते हो । मेरे पास काफी पैसा है । मैं तुम्हें पैसा... ।”
“पैसा नहीं चाहिए ।”
“तो ?”
“मुझे बड़ा खान के बारे में पूरी जानकारी चाहिए । क्या तुम सब कुछ मुझे बताने को तैयार हो ?”
जब्बार के होंठ भिंच गए ।
“अगर तुम्हारी हाँ है तो पहले तुम मुझे बड़ा खान की जानकारी दोगे तब मैं तुम्हें... ।”
“नहीं ! मैं गद्दार नहीं बनना चाहता ।” जब्बार कह उठा ।
“वह तुम्हें मार देना चाहता है ।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी, “मैं तुम्हें उससे बचा लूँगा ।”
“मैं तुम्हें बड़ा खान के बारे में नहीं बता सकता ।” सूखे होंठों पर जीभ फेरकर जब्बार ने कहा ।
“वह तो तुम्हारी जान ले लेगा ।”
“तुम मेरी सहायता नहीं करना चाहते तो न सही, मैं खुद को बचाने की चेष्टा करूँगा । पर मैं समझ गया कि तुमने मुझे जेल से निकाला क्यों । बड़ा खान को मेरा दुश्मन बनाया । तुम पुलिस के ही आदमी हो और बड़ा खान के बारे में जानकारी पाना चाहते हो । यही खेल खेला तुमने । परन्तु जब्बार गद्दार नहीं है । तुम मेरे मुँह से कुछ नहीं जान सकते । अब मैं तुम्हें फोन भी नहीं करूँगा । ये लड़ाई मेरी अपनी है । मैं ही लड़ूँगा ।”
“बेवकूफी मत करो जब्बार । तुम बड़ा खान से नहीं टकरा सकते । मेरी सहायता से तुम... ।”
“पुलिस वाले की सहायता नहीं चाहिए मुझे ।”
“मैं पुलिस वाला नहीं हूँ ।”
“तुम हो । मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते । तुम पुलिस वाले ही हो । तभी तो जेल में आ सके और जेल वालों के साथ मिलकर तुमने मुझे जेल से फरार करवा दिया । बाहरी आदमी ये काम नहीं कर सकता था । बाद में तुमने ये बात फैला दी कि तुम पुलिस वाले नहीं हो । जबकि तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ही हो ।” जब्बार गुर्रा उठा ।
“नहीं । मैं सूरजभान नहीं हूँ ।”
“तो कौन हो ?”
“ये बात तुम्हें बताने की जरूरत नहीं समझता । मुसीबत में तुम हो, मैं नहीं । तुम्हें मेरी सहायता चाहिए तो मुझे बड़ा खान के बारे में सब कुछ बताना... ।”
जब्बार मलिक ने फोन बन्द कर दिया । जबड़े भिंच चुके थे । अब वह सब कुछ भूलकर एक ही बात सोच रहा था कि बड़ा खान के खतरनाक इरादों से कैसे बचे ?
☐☐☐
देवराज चौहान के सामने दो लैपटॉप पड़े थे । दोनों पर जम्मू कश्मीर के नक्शे दिखाई दे रहे थे । दोनों पर चमकते बिंदु नजर आ रहे थे । एक बिंदु एक जगह ठहरा हुआ था । परन्तु दूसरा बिंदु तेजी से ऊधमपुर जाने वाली सड़क पर बढ़ता दिखाई दे रहा था । सुबह के दस बज रहे थे । सामने कुर्सी पर बैठा राठी उसे देख रहा था ।
देवराज चौहान मोबाइल कान से लगाये जगमोहन से बात कर रहा था ।
“ताजा खबर मैंने तुम्हें बता दी है कि बड़ा खान, जब्बार को शहीद होने को कह रहा है । वह उसे मार देना चाहता है । उसे इस बात का शक है कि जब्बार ने मुझे उसके बारे में बताया है । स्पष्ट बात तो ये है कि जब्बार पर बड़ा खान यकीन नहीं कर पा रहा । अब इसी हिसाब से अपनी योजना को थोड़ा बदल लो । अपने आदमियों को नए ढंग से सब कुछ समझा दो और तुम भी जान लो कि जब्बार इस वक्त थक और टूट चुका है । उस पर समझदारी से काबू पाना ।
“मैं उसे संभाल लूँगा ।”
“सब कुछ याद है तुम्हें जो मैंने समझाया है ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“कुछ भी भूला नहीं हूँ । तुम मेरे रास्ते का ध्यान रखो । कहाँ से मुझे मुड़ना है ?” जगमोहन की आवाज कान में पड़ी ।
“ऐसे ही चलते रहो । अभी वह जगह कुछ दूर है, जहाँ से जब्बार मुड़ा था ।” देवराज चौहान ने फोन कान पर लगाये सामने बैठे राठी से पूछा, “तुम्हारे सब आदमी बढ़िया हैं न ?”
“एकदम बढ़िया ।” राठी बोला, “मैंने अपनी पसन्द के आदमी दिए हैं । दिमाग और काम के तेज ।”
मोबाइल कान से लगाये देवराज चौहान की निगाह उस लैपटॉप पर थी जहाँ जगमोहन से वास्ता रखता चमकीला बिंदु सरकता नजर आ रहा था । तभी राठी कह उठा ।
“तुम खतरनाक खेल खेल रहे हो ।”
“हाँ !” देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“बड़ा खान बेहद खतरनाक माना जाता है । आतंकवाद की दुनिया में उसका नाम है । उसका नेटवर्क पूरे हिन्दुस्तान में फैला हुआ है और आतंकवादी संगठनों से पैसे लेकर वह आतंकवादी कार्यवाहियाँ करता है । ऐसे में जिस संगठन ने पैसे देकर बड़ा खान से काम लिया होता है, वह ही संगठन उस आतंकवादी कार्यवाही पर ये घोषणा कर देता है कि वह उसके संगठन ने की है । मेरे ख्याल में तो कम से कम तुम्हें बड़ा खान से नहीं टकराना चाहिए ।”
देवराज चौहान मुस्कुराया और उसकी उँगलियाँ उस लैपटॉप पर चलने लगीं, जिस पर जब्बार की चिप वाला बिंदु चमक रहा था । मिनट भर बाद ही अब उस स्क्रीन पर दो बिंदु दिखने लगे थे । जब्बार वाला चमकीला बिंदु स्थिर था और जगमोहन वाला चमकीला बिंदु तेजी से आगे बढ़ा जा रहा था ।
“तुमने अभी तक अपने बारे में बताया नहीं ?” राठी बोला ।
“अभी मैं बताना नहीं चाहता । मुझे आशा है कि तुम बुरा नहीं मानोगे ।”
राठी खामोश रहा ।
“अपनी रफ्तार धीमी करो ।” देवराज चौहान ने कान पर लगे मोबाइल में कहा, “अब वह रास्ता पास ही है, जहाँ से तुम्हें मुड़ना है । अपने बाईं तरफ देखते रहो । वहाँ कई मोड़ दिखेगा ।” देवराज चौहान की निगाह स्क्रीन पर थी ।
तेजी से आगे बढ़ता चमकीला बिंदु अब धीमे से आगे बढ़ने लगा था ।
“रास्ता दिखा ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“अभी नहीं ।”
“देखते रहो । वहाँ कोई रास्ता है, जहाँ से जब्बार मुड़ा... ।”
“शायद वह रास्ता है... । हाँ रास्ता मिल गया । एक कच्चा चौड़ा रास्ता पहाड़ी पर जा रहा है ।” जगमोहन की आवाज आई ।
☐☐☐
लैपटॉप की स्क्रीन पर दोनों बिंदु अब काफी पास-पास दिखने लगे थे ।
“तुम इस वक्त कहाँ हो ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“हम एक पहाड़ी पर पहुँच गए हैं, जहाँ पंद्रह-बीस मकान इधर-उधर बिखरे बने दिखाई दे रहे हैं ।”
“जब्बार भी वहीं है । तुम्हारे बाईं तरफ फासले पर कुछ है क्या ?”
“हाँ, उधर मकान है ।” जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।
“उधर ही उसी में जब्बार मौजूद है ।”
“पक्का ?”
“पूरी तरह पक्का । तुम आजादी-ए-कश्मीर के बड़े हो । ये संगठन तुम्हारा है । खुद को मालिक बनाकर रखो और वैन में जाकर बैठो या फिर कार में । जो आदमी तुम्हारे साथ में हैं, उन्हें समझाकर काम पर भेजो ।”
“ऐसा ही करता हूँ मैं ।” कहकर जगमोहन ने फोन बन्द कर दिया था ।
☐☐☐
दिन के ग्यारह बज चुके थे । नहा-धोकर जब्बार नाश्ता कर चुका था । वह गहरी सोच में डूबा हुआ था और उसने फैसला कर लिया था कि जूबी के घर से चला जायेगा । बड़ा खान उसे शहीद करना चाहता है, परन्तु वह जिन्दा रहेगा और हालातों से लड़ेगा । अपनी जिंदगी को इस तरह खत्म नहीं होने देगा । वह कश्मीर की आजादी का सिपाही है और उसकी लड़ाई तभी जारी रहेगी जब वह स्वयं को जिन्दा रखेगा । वह जानता था कि बड़ा खान उसका दुश्मन बन जायेगा । परन्तु अब वह अपना इरादा पक्का कर चुका था कि अपनी जिंदगी वह खुद जियेगा । आतंकवाद की दुनिया में उसका कम नाम नहीं था । हर कोई जानता था कि जब्बार बड़े से बड़े काम करने का हौसला रखता है । वह अपना संगठन बनाएगा । लोगों को अपने संगठन में शामिल करेगा । बड़ा खान उसके रास्ते में आया तो उससे भी लड़ेगा । जब्बार ने जेबों में रखा अपना सामान चैक किया और कमरे से बाहर निकल आया । वह अब यहाँ से निकल जाना चाहता था । जानता था कि बड़ा खान के आदमी उस पर नजर रखते हो सकते हैं । परन्तु उसे किसी की परवाह नहीं थी । घर में उसने जूबी को पुकारा । उसे आवाज लगाई । उसी पल जूबी का छोटा भाई आकर बोला ।
“आपा बाहर, पौधों को पानी दे रही हैं ।”
जब्बार बाहर निकला । सामने जूबी पौधों की क्यारियों में पानी दे रही थी । धूप खिली हुई थी । ठंडी हवा चल रही थी ।
“तुम्हें बाहर नहीं आना चाहिए ।” जूबी उसे देखते ही कह उठी ।
“मैं जा रहा हूँ यहाँ से ।” जब्बार पास पहुँच कर ठिठका ।
जूबी ने पानी देना छोड़ा और जब्बार को देखकर बोली ।
“बाहर तुम्हारे लिए खतरा है ।”
“तुमने पूछा था कि बड़ा खान मेरे पे भरोसा नहीं कर रहा तो उसने मुझे तुम्हारे यहाँ क्यों रखा है । दरअसल वह मेरी मौत चुन रहा था । उसे सोचने का वक्त चाहिए था और मेरी मौत से भी वह फायदा उठा लेना चाहता है । वह मुझे शहीद होने को कह रहा है । बम बाँधकर भीड़ में जाऊँ और खुद को उड़ा दूँ ।”
“ओह !” जूबी चौंकी ।
“बड़ा खान पागल हो गया है । उसे मेरी बात पर भरोसा करना चाहिए । मैंने सच में किसी को कुछ नहीं बताया । मानव बम बनना मेरा काम नहीं है । मेरा काम तो बड़े-बड़े कामों को अंजाम देना है ।” जब्बार कठोर स्वर में कह उठा ।
“तुम यहाँ से गए तो बड़ा खान तब भी तुम्हें नहीं छोड़ेगा ।” जूबी गंभीर स्वर में कह उठी ।
“इतना आसान नहीं है मुझे मारना ।” जब्बार दरिंदगी से कह उठा ।
“तुम बड़ा खान का मुकाबला करोगे ?”
“मैं सिर्फ अपने को बचाऊँगा ।” जब्बार के चेहरे पर वहशी भाव थे, “मैं हर हाल में... ।”
जब्बार कहते-कहते ठिठका । उसकी आँखें सिकुड़ी ।
वे छः लोग थे जो एकाएक दिखने लगे थे पहाड़ी पर । सब इधर ही तेजी से आ रहे थे । हाथों में गनें थाम रखी थीं । दो ने सिर पर साफा बांध रखा था । सबके चेहरे पर ही दाढ़ी थी । शरीर पर पठानी कमीज-सलवार था और वे खतरनाक नजर आ रहे थे । तेज हवा में आगे बढ़ते उनके कपड़े उड़ से रहे थे ।
जूबी ने उधर ही देखा ।
“ये… कौन लोग हैं ?” जूबी के होंठों से निकला ।
“कम से कम बड़ा खान के लोग नहीं हैं ।” जब्बार कठोर स्वर में बोला ।
“ये तुम कैसे कह सकते हो ?” जूबी परेशान नजर आने लगी थी ।
“मेरी और बड़ा खान की ऐसी कोई बात नहीं हुई कि उसे आदमी भेजने पड़े ।”
“मेरे घर पर पहली बार इस तरह हथियारबंद आदमी आ रहे हैं । भीतर मेरा परिवार... ।”
“चिंता मत करो ।” जब्बार दाँत भींचकर कह उठा, “ये मेरे लिए आ रहे हैं ।”
“किसी को कैसे पता कि तुम यहाँ हो ।”
जब्बार दाँत भींचे उन्हें आते देख रहा था । वह काफी पास आ चुके थे ।
जब्बार ने कपड़ों में छिपा रखी रिवॉल्वर पर हाथ फेरा ।
“जब्बार !” जूबी व्याकुल सी कह उठी, “यहाँ मेरा परिवार है ।”
“मैं कोशिश करूँगा कि कुछ न हो लेकिन मैं नहीं जानता कि वह क्या करने आ रहे हैं ।”
फिर देखते ही देखते वह पास आ गए । दोनों के गिर्द घेरा बनाकर खड़े हो गए ।
जब्बार आँखें सिकोड़े सबको देख रहा था । इन लोगों को उसने पहले नहीं देखा था ।
“तू जब्बार मलिक है ?” एक ने गन थामे शांत स्वर में पूछा ।
“हाँ !” जब्बार के होंठ भिंच गए, “मुझे मारने आये हो ?”
“नहीं ! तेरे को इज्जत के साथ लेने आये हैं । हमें ये भी कहा गया है कि तू साथ न आये तो जबरदस्ती कर सकते हैं हम ।”
“किसने भेजा है तुम लोगों को ?”
“हम आजादी-ए-कश्मीर नाम के संगठन से वास्ता रखते हैं ।”
“आजादी-ए-कश्मीर ?” जब्बार के माथे पर बल पड़े, “ये नाम मैंने पहले नहीं सुना ।”
“तू क्या कश्मीर घाटी के सारे संगठनों को जानता है । सबका नाम सुन रखा है तूने ?” वह सख्त स्वर में बोला ।
“शायद सबका नाम नहीं सुन रखा ।” जब्बार के माथे पर बल नजर आ रहे थे, “आजादी- ए- कश्मीर मुझसे क्या चाहता है ?”
“हम नहीं जानते । हमें पता बताकर कहा गया कि तुम यहाँ मिलोगे तो हम तुम्हें लेने आ गए ।”
“ये कैसे पता चला कि मैं यहाँ... ।”
“हमें कुछ नहीं पता । जो पूछना हो, संगठन के बड़ों से पूछना । हमारे साथ चलने को तैयार हो ?”
जब्बार ने दाँत भींच लिए । जूबी घबराई सी खड़ी थी ।
“अगर तुमने इंकार किया तो हम जबरदस्ती करेंगे । हमारा मुकाबला करने की मत सोचना ।”
“मैं तुम्हारे साथ चलूँगा ।” जब्बार कह उठा ।
“अभी इसी वक्त चलना होगा तुम्हें ।”
“चलो ।” जब्बार तो खुद भी यहाँ से निकलने वाला था ।
उस आदमी ने जूबी को देखकर कहा ।
“बड़ा खान से कह देना कि वह कश्मीर की आजादी का सिपाही नहीं है । वह तो सिर्फ आतंकवाद का धंधा करने वाला है, जो दूसरों से पैसे लेकर आतंक फैलाता है । परन्तु हम कश्मीर को आजाद कराने वाले सच्चे सिपाही हैं । हम ही कश्मीर को आजाद करवायेंगे और ये बहुत जल्दी होने वाला है ।”
जूबी खामोश रही ।
“चलो जब्बार ।” वह जब्बार से बोला ।
“तुम्हारा नाम क्या है ?” जब्बार उनके साथ चल पड़ा ।
“कलाम कहते हैं मुझे ।”
“बड़ा खान के आदमी मुझ पर नजर रखते हो सकते हैं ।” जब्बार ने कहा ।
“दो थे, चाकू से खत्म कर दिया उन्हें । उधर लाशें पड़ी हैं । देखना चाहोगे ?” कलाम खतरनाक स्वर में बोला ।
“क्या फायदा देखने का । तुम्हारा संगठन मुझसे क्या चाहता है ?”
“पता नहीं ।”
“तुम्हारे संगठन के बड़े कौन हैं ?”
“कुछ देर बाद मिल लेना ।”
“संगठन पाकिस्तान से वास्ता रखता है ?”
“ये बातें तुम ठिकाने पर चलकर पूछ लेना ।”
“तुम लोगों के पास कार या कोई वाहन... ।” जब्बार ने कहना चाहा ।
“पहाड़ी के उस तरफ सड़क पर वैन और कार खड़ी है हमारी ।” कलाम कह उठा ।
अगले तीन मिनट में वे सब कच्चे रास्ते पर खड़ी वैन के पास पहुँचे ।
दो हथियारबंद आदमी वैन के पास मौजूद थे । एक ने वैन का पीछे का दरवाजा खोल दिया ।
वह छः के छः जब्बार के साथ वैन के भीतर जा बैठे । दरवाजा बन्द कर लिया । दोनों हथियारबंद वैन के आगे जा बैठे । वैन के ड्राइवर ने वैन आगे बढ़ा दी । वैन की नम्बर प्लेटें गायब थीं ।
वैन के आगे बढ़ते ही पीछे खड़ी कार भी चल पड़ी । कार की पीछे वाली सीट पर जगमोहन बैठा था ।
वहाँ से रवाना होते ही जगमोहन ने देवराज चौहान को फोन करके कहा ।
“जब्बार हमारे साथ है ।”
“ये बढ़िया खबर है । क्या तुम जब्बार के साथ हो ?” उधर से देवराज चौहान ने पूछा ।
“नहीं ! मैं कार में हूँ ।”
“जब्बार ने साथ चलने पर कोई एतराज किया ?”
“लगता तो नहीं । अपने आदमियों के बीच वह शांत लग रहा था ।”
“आगे तुमने उससे कैसे बात करनी है, उसे कैसे संभालना है और क्या करना है, तुम जानते हो ।”
“मैं उसे संभाल लूँगा ।” जगमोहन ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
“इतना आसान नहीं है जब्बार मलिक । वह खतरनाक और दृढ़ इरादों वाला व्यक्ति है ।”
“मैं उसे शीशे में उतार लूँगा ।”
☐☐☐
उनके जाते ही जूबी घर के भीतर गई और मोबाइल से बड़ा खान को फोन किया ।
“कहो जूबी ।”
“आजादी-ए-कश्मीर संगठन के छः लोग जब्बार को अपने साथ ले गए । वह हथियारबंद थे ।” जूबी ने कहा ।
“ये क्या कह रही हो । आजादी-ए-कश्मीर नाम का कोई संगठन नहीं है ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।
“वह आजादी-ए-कश्मीर का ही नाम ले रहे थे ।” जूबी कह उठी ।
“हूं ! जब्बार ने साथ जाने पर एतराज नहीं किया ?”
“वह एतराज करने की स्थिति में नहीं था ।”
“तुम उन लोगों में से किसी को पहचानती हो ?”
“नहीं ! मैंने उन्हें पहली बार देखा था ।” जूबी ने कहा ।
“वहाँ दो आदमी जब्बार के लिए, तुम्हारे घर पर नजर रखे हुए थे ।”
“मैं उनके बारे में कुछ नहीं जानती ।”
उधर से बड़ा खान ने फोन बन्द कर दिया था ।
☐☐☐
वैन अब मुख्य सड़क पर आ चुकी थी और ऊधमपुर की तरफ बढ़ने लगी थी ।
वैन के बन्द शीशों से बाहर देखता जब्बार कह उठा- “ठिकाना किधर है तुम लोगों का ?”
“हमारे ठिकाने हर जगह पर फैले हैं, परन्तु इस वक्त हम ऊधमपुर जा रहे हैं । आधे घण्टे में हम ठिकाने पर होंगे । तुम्हारी रिवॉल्वर जेब से बाहर दिख रही है, उसे भीतर कर लो ।” कलाम ने कहा ।
जब्बार ने रिवॉल्वर भीतर की और कलाम को गहरी नजरों से देखा ।
“तुम दोस्तों में हो जब्बार !” कलाम मुस्कुरा पड़ा ।
“दोस्त ?” जब्बार गंभीर स्वर में बोला, “मेरे हालात मुझे किसी पर यकीन नहीं करने दे रहे ।”
“सब ठीक हो जायेगा । तुम इस वक्त मुसीबत में फंसे पड़े हो । हमारा संगठन सब ठीक कर देगा ।”
“तो तुम मेरे हालातों के बारे में जानते हो ?”
“सब कुछ ।”
“मुझसे चाहते क्या हो ?”
“ठिकाने पर चल रहे हैं । वहाँ तुमसे आजादी-ए-कश्मीर का बड़ा बात करेगा ।”
“तुम कुछ नहीं बताओगे ?”
“मैं ज्यादा जानता भी नहीं हूँ । परन्तु तुम दोस्तों में हो । ये याद रखो ।”
“वहाँ बड़ा खान के दो लोग थे ?” जब्बार बोला ।
“हाँ । वह उस मकान पर नजर रख रहे थे, जहाँ तुम थे । हमने उन्हें मार दिया ।”
“तुमने बड़ा खान को दुश्मन बना लिया अपना ।”
“हमारा संगठन बड़ा खान की परवाह नहीं करता । हमें सिर्फ अपने मकसद की चिंता है ।”
“कैसा मकसद ?”
“कश्मीर को आजाद कराना चाहता है हमारा संगठन । कश्मीर आजाद देश बन जाये । उस पर न तो हिन्दुस्तान की हुकूमत रहे, न पाकिस्तान की । तब हमारे मुसलमान भाई चैन से रह पायेंगे ।”
“हिन्दुस्तान कश्मीर को अपना कहता है ।”
“कश्मीर हिन्दुस्तान का ही है ।” कलाम ने कहा, “लेकिन हम कश्मीर को अलग करके, उसे आजाद देश बनाना चाहते हैं । फिर कश्मीर पर हुकूमत करना चाहते हैं । सिर्फ हमारे संगठन को ही असल में कश्मीर की चिंता है । बाकी संगठन तो दौलत बनाने में लगे हैं । नाम लेते हैं कश्मीर का और अपनी जेबें भरते रहते हैं ।”
“आजादी-ए-कश्मीर नाम का संगठन, कितना पुराना है ?”
कलाम चंद पल चुप रहकर बोला ।
“बहुत पुराना है । परन्तु तुमने पहले ये नाम नहीं सुना ?”
“नहीं सुना ।”
“वह ही तो कह रहा हूँ ।” कलाम बोला, “ये बातें मुझसे तुम मत करो । मुझे नहीं पता कि संगठन तुम्हें क्या बताना चाहता है और क्या नहीं । मेरा चुप रहना ही ठीक है । जो बात करनी हो, ठिकाने पर पहुँचकर करना ।”
जब्बार खामोश रहा । वह अपने हालातों के बारे में सोच रहा था ।
उसे किसी संगठन की सुरक्षित पनाह चाहिए थी । बड़ा खान ने उसके सारे रास्ते बन्द कर दिए थे । आजादी-ए-कश्मीर नाम के इस संगठन से उसने मन ही मन आशा लगा ली कि ये लोग उसे पनाह दे सकते हैं । परन्तु अभी वह जानता नहीं था कि ये लोग उससे चाहते क्या हैं ? क्यों उसे अपने साथ ले जा रहे हैं और उसे दोस्त कह रहे हैं ।
☐☐☐
देवराज चौहान की निगाह स्क्रीन पर थी । उसने सिगरेट सुलगा रखी थी । राठी इस वक्त वहाँ नहीं था कि उसका मोबाइल बजने लगा ।
“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।
“मुझे समझ में नहीं आता कि तुम्हें किस नाम से पुकारूँ ?” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।
“कोई भी नाम रख लो मेरा ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
“तुम अपनी हकीकत क्यों नहीं बता देते ?”
“जरूरत नहीं समझता ।”
“इतना ही बता दो कि पुलिस वाले हो या किसी संगठन से वास्ता रखते हो ?”
“तुमने कैसे सोच लिया कि मैं किसी संगठन से वास्ता रखता हो सकता हूँ ?”
“जब्बार मलिक मेरे किसी ठिकाने पर था, वहाँ से उसे आजादी-ए-कश्मीर नाम के संगठन वाले ले गए हैं ।”
“तो मैं क्या कर सकता हूँ ।”
“आजादी-ए-कश्मीर से तुम्हारा वास्ता तो नहीं ?”
“मेरा किसी से कोई वास्ता नहीं ।”
“तुम जम्मू में ही हो ?”
“हाँ !”
“जब्बार को जेल से निकालने के बाद तुम्हें जम्मू से चले जाना चाहिए था ।”
“तुम्हें इसमें क्या परेशानी है ?”
“मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूँ ।”
“जल्दी बताऊँगा । तुम्हारे पास पहुँच के बताऊँगा ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“मेरे पास तुम नहीं पहुँच सकते । पहुँचना होता तो तुम मुझ तक पहुँच चुके होते । परन्तु ऐसा लगता है कि जब्बार ने तुम्हें मेरे बारे में कुछ नहीं बताया । तुमने मुझसे झूठ ही कहा कि उसने बता दिया है ।”
“सच बात कहूँ ?” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए ।
“कहो !”
“जब्बार पूरी तरह तुम्हारा वफादार है । उसने मुझे कुछ नहीं बताया ।”
बड़ा खान की आवाज फौरन नहीं आई ।
“तो तुमने उसे जेल से बाहर क्यों निकाला ?” बड़ा खान की आवाज आई ।
“कोई वजह नहीं थी । मैं उसे जेल से बाहर निकाल सकता था, तो निकाल दिया ।”
“तुम्हारी ये बात मैं इसलिए नहीं मान सकता कि उसे जेल से निकालने के लिए 35 करोड़ तुम्हें दे रहा था परन्तु तुमने पैसा नहीं लिया और जब्बार को जेल से निकाल दिया । इसी बात का रहस्य मैं जानना चाहता हूँ ।”
“जो बताना था, तुम्हें बता दिया । यकीन करो जब्बार ने मुझे कुछ नहीं बताया ।”
बड़ा खान की आवाज कुछ ठहरकर आई ।
“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव और उसके परिवार वाले कहाँ हैं ?”
“दिल्ली में ।”
“मेरे आदमियों को वह नहीं मिल रहे ।”
“मैंने उन्हें छिपा रखा है । सूरजभान यादव का इलाज चल रहा है ।”
“तुम कोई शातिर इंसान हो । पुलिस वाले भी हो सकते हो । परन्तु मैं तुम्हें ढूँढ लूँगा । मेरे आदमी जम्मू में तुम्हें ढूँढ रहे हैं । तुम मेरे हाथों से बच नहीं सकते ।” बड़ा खान की कठोर आवाज कानों में पड़ी ।
“तुम्हें अपनी चिंता करनी चाहिए । तुम कहते हो कि जब्बार को कोई और संगठन ले गया है । अब जब्बार तुम्हारे बारे में जानता है तो वह जानकारी दूसरे संगठन वालों को दे सकता है ।”
“अब तक उसने मुँह नहीं खोला तो मेरे बारे में अब भी वह कुछ नहीं बताएगा ।”
“भूल में हो । पुलिस के सामने वह चुप रहा । किसी संगठन को तो तुम्हारे बारे में बता ही सकता है ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, “खासतौर से तब जबकि तुम उसे शहीद बनाने जा रहे थे ।”
“तुम्हें कैसे पता कि मैं उसे शहीद बनाने जा रहा था ?” बड़ा खान के स्वर में बुरी तरह हैरानी के भाव थे ।
“अपने काम की बातें मैं जान लेता हूँ ।”
“तुम्हारी और जब्बार की बात होती है । ये बात जब्बार ने ही तुम्हें बताई । तो मेरा ख्याल ठीक था कि जब्बार अब पुलिस के लिये काम कर रहा है । तुम... ।”
“मैं पुलिस वाला नहीं हूँ । जब्बार से मेरी बात नहीं होती । खबरें पाने के लिए मेरे अपने रास्ते हैं ।”
“तुम जो भी हो सच में खतरनाक हो और तुम्हारी किसी बात का मैं भरोसा नहीं कर सकता ।”
“तुमने जब्बार को गलत समझा है । तुम उसकी हत्या की सोचे बैठे हो । तभी उसे शहीद बना रहे... ।”
“मेरे आदमी तुम्हें ढूँढ लेंगे ।” इसके साथ ही उधर से बड़ा खान ने फोन बन्द कर दिया था ।
देवराज चौहान ने फोन कान से हटाया । चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे ।
☐☐☐
ऊधमपुर इंडस्ट्रियल एरिया में वैन एक बन्द पड़ी फैक्ट्री में पहुँची, जिसकी दीवारें 12 फुट ऊँची थी और फैक्ट्री की हालत बता रही थी कि वहाँ लम्बे समय से काम नहीं हुआ है । हर तरफ धूल और मिट्टी थी । फैक्ट्री के गेट पर चौकीदार मौजूद था । उसी ने फाटक खोला था और वैन भीतर प्रवेश कर गई । उसके पीछे जगमोहन वाली कार भी भीतर आ गई । फाटक बन्द हो गया । आगे जाकर दोनों वाहन रुके तो जगमोहन कार में बैठे दोनों आदमियों से बोला ।
“जब जब्बार भीतर चला जायेगा, तब मैं निकलूँगा । मैं चाहता हूँ जब्बार मुझे भीतर ही देखे ।”
“ठीक है ! हम बाहर निकलते हैं ।”
वह दोनों आदमी बाहर निकल गए ।
जब वैन वाले जब्बार को भीतर ले गए तो जगमोहन बाहर निकला और उस तरफ बढ़ गया, जहाँ जब्बार को ले जाया गया था । वहाँ सीढ़ियाँ थी, जिन्हें तय करके वह पहली मंजिल के बड़े हॉल में पहुँचा । सीमेंट के फर्श का बना वह हॉल साफ-सुथरा था । वहाँ कई जगह टेबल-कुर्सियाँ लगी थीं । टेबल इस तरह सजे हुए थे जैसे वहाँ दिन-रात कोई काम होता हो । कुछ लोग टेबलों पर बैठे काम भी कर रहे थे । ऊधमपुर पहाड़ी इलाका होने के कारण ठण्ड रहती थी ।
हॉल में एक तरफ पच्चीस के करीब कुर्सियाँ लगी थीं कि मीटिंग वहाँ से हो सकती थी । ये जगह राठी की ही थी । आदमी उसके थे । इंतजाम उसका था । हथियार उसके थे । जब्बार को कुर्सियों के पास ले जाया गया ।
“बैठ जाओ ।” कलाम ने कहा और एक आदमी से बोला, “जब्बार के लिए चाय लाओ ।”
“कहवा मंगा लो ।” जब्बार हॉल में नजरें दौड़ाते हुए कह उठा ।
“सुना । कहवा लाओ ।”
“ये तुम लोगों का ठिकाना है ?” जब्बार ने कलाम को देखा ।
“चालू ठिकाना है ये । मैंने पहले ही कहा है कि हमारे ठिकाने हर जगह हैं ।”
“तुम भी बैठो ।”
“मैं खड़ा रहूँगा । मियांजी यहाँ कभी भी पहुँच सकते हैं ।”
“मियांजी कौन ?”
“आजादी-ए-कश्मीर के संस्थापक हैं । वह किसी से नहीं मिलते । कामों में व्यस्त रहते हैं । परन्तु तुमसे मिलने यहाँ पहुँच रहे हैं । आने ही वाले होंगे ।” कलाम ने कहा ।
जब्बार की नजरें हर तरफ जा रही थीं ।
“यहाँ पर संगठन का क्या काम होता है ?”
“ये बात तुम्हें नहीं बताऊँगा । ज्यादा सवाल मत पूछो और चुप रहो ।”
जब्बार खामोश बैठा रहा ।
कुछ ही देर में जब्बार के लिए कहवा आ गया । वह कहवे के घूँट भरने लगा ।
आधा ही कहवा पिया होगा कि कलाम कह उठा ।
“मियांजी आ गए । खड़े हो जाओ जब्बार ।”
जब्बार फौरन कहवे का गिलास रखकर खड़ा हो गया था ।
वहाँ मौजूद हर कोई मियांजी की शान में उठकर खड़ा हो गया था । वह जगमोहन था जो कि अस्सी बरस के बुजुर्ग के रूप में दिखाई दे रहा था ।
हाथों में लाठी । आँखों पर नजर का चश्मा । सफेद कुर्ता-पायजामा, शेरवानी । चेहरे पर सफेद दाढ़ी-मूंछें । दाढ़ी छाती तक जा रही थी । लाठी टेकते हुए इस तरफ आते वह दूसरे हाथ से सबको बैठने का इशारा भी कर रहा था । कलाम फौरन जगमोहन के पास पहुँचा और सलाम करके बोला- “जब्बार वहाँ है मियांजी ?”
“चलो, चलो । वहीं चलो ।” जगमोहन धीरे-धीरे बढ़ता कह उठा ।
जगमोहन कुर्सियों के पास जा पहुँचा । एक कुर्सी पर बैठा । चश्मे में से जब्बार को देखा ।
जब्बार ने थोड़ा सा झुककर सलाम किया ।
“बैठ जाओ ।” जगमोहन ने बूढ़े की मध्यम आवाज में कहा ।
जब्बार बैठ गया ।
तभी छः गनमैन आये और जगमोहन के पास जा पहुँचे । उसके पीछे खड़े हो गए ।
“तुम्हारा बहुत नाम सुना है जब्बार ।” जगमोहन ने बूढ़े के मध्यम से स्वर में कहा ।
“मुझे खुशी है कि आपने मेरे बारे में सुन रखा है । परन्तु मैंने आपके संगठन का नाम नहीं सुना ।”
“मैंने संगठन का नाम फैलने नहीं दिया । हमें मशहूरी नहीं चाहिए थी, अपना काम चाहिए था । हम कश्मीर को आजाद देश बना देना चाहते हैं । उसी के लिए लड़ते-लड़ते बूढ़ा हो गया । मेरा पूरा परिवार इसी काम में लगा रहा । परन्तु पाकिस्तान ने तो कश्मीर का सत्यानाश कर दिया है । घुसपैठ करा-कराकर आतंकवादियों को कश्मीर भेज देता है । वह यहाँ के स्थानीय लोगों को भर्ती करके अपना संगठन खड़ा कर लेते हैं, फिर कश्मीर के नाम पर आतंक पैदा करके, पैसा इकट्ठा करते हैं । लोगों की जान ले लेते हैं ।”
“हम लोगों को नहीं मारेंगे तो, हिन्दुस्तान की सरकार हमारी बात नहीं सुनेगी ।”
“किसी की जान लेना गुनाह है । हमारा संगठन ये काम नहीं करता । कश्मीर की आजादी के लिए हम गंभीर हैं और इसे एक नया देश बनाकर ही रहेंगे । खैर, तुम अपनी कहो ।”
“क्या ?” जब्बार के होंठों से निकला ।
“तुम्हारे बारे में बहुत गलत-गलत अफवाहें फैल रही हैं कि तुम्हें पुलिस वाले ने जेल से फरार करवा दिया ।”
“ये सच है ।” जब्बार ने कहा ।
“ये भी सुनने को मिल रहा है कि तुम पुलिस के आदमी बन गए हो ।”
“ये झूठ है ।” जब्बार के चेहरे पर गुस्सा दिखने लगा ।
“मैं जानता हूँ कि जब्बार ऐसी गद्दारी नहीं कर सकता । ये अफवाह किसने फैलाई कि... ।”
“बड़ा खान ने ।”
“बड़ा खान ! ये तो निहायत ही गिरा हुआ इंसान है । आतंकी गुटों के लिए किराये पर काम करता है । खूब पैसा लेता है । बड़ा खान ने हमें कई बार बहुत नुकसान पहुँचाया । वह हमसे चिढ़ता है कि हम खून-खराबा क्यों नहीं करते । पैसा देकर उससे काम क्यों नहीं कराते । यही कारण है कि बड़ा खान ने कई बार हमारे काम खराब किये ।”
जब्बार ने बेचैनी से पहलू बदला । जगमोहन सिर हिलाकर कह उठा-
“छोड़ो । हम तुम्हारी बात कर रहे थे । सुना है कि बड़ा खान ने आतंकी गुटों से कह दिया है कि तुम गद्दार हो ।”
“हाँ ! ऐसा किया उसने ।”
“हमसे भी कहा, परन्तु हमने बड़ा खान की बात पर भरोसा नहीं किया । हमें मालूम है कि बड़ा खान ठीक आदमी नहीं है । वह जो भी बात करता है, अपने फायदे की करता है । लेकिन अभी भी तुम बड़ा खान के ठिकाने पर ही थे । मेरे आदमियों ने तुम्हें ढूँढ निकाला । एक खबर हमें और मिली सुनने को कि बड़ा खान के लिए तुम शहीद होने जा रहे हो ।”
“मैं नहीं हो रहा शहीद ।” जब्बार के दाँत भिंच गए ।
“फिर ये बात किसने उड़ाई ?”
“बड़ा खान ने । वह मुझे मार देना चाहता है । गद्दार समझता है मुझे । मुझे मारने का तरीका भी उसने ही सोचा कि खुद को बम से उड़ाकर मैं शहीद बन जाऊँ । आज सुबह ही उसने ये बात मुझसे कही ।”
“बड़ा खान सच में कमीना है । तुमने कितनी सेवा की उसकी और अब वह तुम्हें मार देना चाहता है ।”
जब्बार के दाँत भिंचे रहे ।
“क्या करोगे अब तुम ? तुम्हें तो कोई संगठन लेने को भी तैयार नहीं । लेकिन हम तुम्हें लेने को तैयार हैं । हमें तुम पर पूरा यकीन है कि तुम कश्मीर की आजादी के लिए सच्चे दिल से लड़ रहे हो ।”
“हाँ ! मैं कश्मीर को आजाद करा के रहूँगा ।”
“हम कश्मीरी हैं । कश्मीर हमारा है । परन्तु ये लोग कौन हैं, जो यहाँ अपने-अपने संगठन चला रहे हैं ।”
“ज्यादातर बाहरी लोग हैं । पाकिस्तान से आये हैं । वहाँ की सरकार भेजती है कि ये लोग कश्मीर में हिंसा फैलाते रहें और हिन्दुस्तान की सरकार परेशान होती रहे ।”
“यानी कि इन्हें कश्मीर से कोई लेना-देना नहीं ।”
“आप ठीक कह रहे हैं ।”
जगमोहन ने सिर हिलाया और कुछ पल रुककर बोला ।
“मैं इन संगठनों से तंग आ चुका हूँ और मैंने इरादा किया है कि कश्मीर की आजादी का काम रोककर पहले इन संगठनों को खत्म किया जाये । ये संगठन खत्म हो जायेंगे तो हम आराम से काम कर सकेंगे ।”
“ये तो खतरनाक कदम होगा ।”’ जब्बार के होंठों से निकला ।
“मेरे पास जांबाज हैं जो ये काम कर सकें ।”
“दूसरे संगठन भी ताकत रखते हैं । वह कमजोर नहीं हैं कि हम उन्हें मिटा सकें ।”
“बेशक वे कमजोर नहीं हैं । परन्तु हम उनसे ज्यादा ताकतवर हैं और उन्हें खत्म कर सकते हैं ।”
जब्बार बेचैन सा जगमोहन को देखता रहा ।
“खैर, पहले हम तुम्हारी बात कर लें । हमारे संगठन को जब्बार जैसा जांबाज चाहिए । तुम इस वक्त ऐसी बुरी स्थिति में फंसे पड़े हो कि कोई भी संगठन तुम्हें लेने को तैयार नहीं । बड़ा खान से तुम्हें बचाया जायेगा । बल्कि बड़ा खान को खत्म भी कर दिया जायेगा । तुम हमारे लिए काम करोगे तो दूसरे संगठनों की नजरों में तुम्हारी छवि भी बेहतर होगी । पैसा भी तुम्हें दिया जायेगा ।”
“मुझे एतराज नहीं, परन्तु... । आप लोग दूसरे संगठनों से टकराने का इरादा रखते हैं ।” जब्बार कह उठा ।
“इसमें एतराज क्यों तुम्हें ?”
“उनमें कई बड़े खतरनाक हैं और हम शायद उनका मुकाबला न कर सकें ।”
“ये तुमने कैसे सोच लिया ?” बूढ़े के रूप में जगमोहन मुस्कुराया, “शायद तुम्हें हमारी ताकत का अंदाजा नहीं है ।”
जब्बार के चेहरे पर सोच के भाव दिखते रहे ।
“क्या तुम हमारे संगठन में आने को तैयार हो ?”
“जरूर । मुझे तो किसी का सहारा चाहिए । बड़ा खान ने मुझे अकेला कर दिया है । हर जगह मुझे बदनाम कर... ।”
“फिक्र मत करो । हम जानते हैं कि तुम आतंकवाद के प्रति वफादार हो ।” बूढ़े के रूप में जगमोहन मुस्कुराकर उठ खड़ा हुआ, “तुम्हारी वफादारी पर हमें पहले भी शक नहीं था और अब भी शक नहीं है । बड़ा खान बेवकूफ है जो ये सोचता है कि तुम पुलिस से मिल गए हो । तुम्हारे कारनामे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं जब्बार ।”
“शुक्रिया !” जब्बार भी खड़ा हो गया ।
“मैं तो अब बूढ़ा हो गया हूँ । भागदौड़ नहीं कर सकता । मेरा बेटा अब्दुल्ला ही अब संगठन के कामों को संभाल रहा है । तुम्हें उसके साथ ही मिलकर काम करना होगा । हमारी ताकत को कम नहीं आँकना । धीरे-धीरे तुम्हें मेरी बात का सच पता भी चल जायेगा । रुपये-पैसे की चिंता मत करना । जो कहोगे वही मिलेगा । अब्दुल्ला आता ही होगा । कलाम !”
“जी मियांजी ?” पास खड़ा कलाम फौरन बोला ।
“अब्दुल्ला कहाँ है ?”
“वह पहुँचने ही वाला है । रास्ते में है ।”
“अब्दुल्ला जब आये तो जब्बार से मिलवा देना । मैं चलूँगा अब । मेरी कार तैयार करो ।”
“तैयार है मियांजी । जाकिर... !” कलाम ने पुकारा ।
फौरन एक आदमी आगे आया ।
“मियांजी को कार तक ले जाओ ।”
जाकिर मियांजी उर्फ जगमोहन को लेकर चला गया ।
कलाम ने मुस्कुराकर जब्बार से कहा ।
“तुम बहुत किस्मत वाले हो ।”
“क्यों ?” जब्बार वहाँ मौजूद हथियारबंद लोगों को देखता कह उठा ।
“मियांजी किसी नए को संगठन में आसानी से शामिल नहीं करते । तुम्हें आसानी से ले लिया उन्होंने ।”
“मैं नया नहीं हूँ ।”
“आजादी-ए-कश्मीर के लिए तो नए ही हो । हमारे साथ जो एक बार जुड़ जाता है, फिर वह हमसे अलग नहीं होता । क्योंकि हमारा संगठन बहुत अच्छा है । यहाँ का हर आदमी पुराना और संगठन का वफादार है ।”
“ये तो अच्छी बात है ।”
“परन्तु ये अब तुम्हारे इम्तिहान का वक्त है ।”
“कैसा इम्तिहान ?”
“तुम्हें खुद को साबित करके दिखाना होगा कि तुम संगठन के प्रति वफादार हो । इसके लिए तुम्हें बड़े-बड़े काम करके दिखाने होंगे । मियांजी ने जो भरोसा तुम पर किया है, उस भरोसे को सलामत रखना होगा ।”
“मुझे अपनी काबिलीयत पर शक नहीं है ।”
“हमें भी शक नहीं है । परन्तु बातों से काम नहीं चलेगा । करके दिखाना होगा तुम्हें ।” कलाम बोला ।
“मियांजी का बेटा अब्दुल्ला कैसा इंसान है ?”
“जांबाज । खतरनाक । अपने संगठन के लिए कुछ भी कर देने वाला । उसे कश्मीर से प्यार है ।”
तभी एक आदमी दूर से ही कह उठा ।
“जनाब अब्दुल्ला आ गए हैं ।”
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