अगले दिन जगमोहन सुबह दस बजे सोया उठा। रात तीन बजे तक वो और वसीम राणा, भुल्ले खान पर लगे रहे थे। परंतु उस आई कार्ड के बारे में उसने वही कहा, जो वो पहले कहता रहा था। कोई फायदा नहीं हुआ। लेकिन भुल्ले की हालत मार खा-खाकर बुरी हो चुकी थी। कई जगह से खून बह रहा था। पूरे शरीर से दर्द की टीसे उठ रही थी। आखिरकार उसके हाथ-पांव बांधकर जगमोहन सो गया था और वसीम राणा, अपने बैडरूम में चला गया था।
रात भर जगमोहन को भुल्ले खान की पीड़ा भरी कराहें सुनाई देती रही थी।
जगमोहन ने भुल्ले को चैक किया। हाथ-पांव बंधे होने की वजह से वो उकड़ू सा पड़ा था। चेहरे पर घाव और खून दिख रहा था। छाती पर भी जबर्दस्त खरोंच थी। जगमोहन को याद आ रहा था कि राणा ने उसे यहां जूते की ठोकर मारी थी। भुल्ले की सांसें चल रही थी। छाती उठ-बैठ रही थी। जगमोहन कुर्सी पर आ बैठा, चेहरे पर गंभीरता थी।
तभी वसीम राणा दरवाजा खोलकर कमरे में आया। वो भी सोया उठकर आ रहा था।
"क्या हाल है इस कमीने का?" राणा ने पूछा।
"जिंदा है।" जगमोहन ने राणा के चेहरे पर निगाह मारी।
कई पल वे खामोश रहे। फिर राणा ने पूछा।
"क्या करना है इसका?"
"हमारे पास वक्त कम है। देवराज चौहान को छुड़ाना है। इस पर ध्यान देंगे तो वक्त खराब होगा।"
"मैं आज तुम्हें अपनी फैक्ट्री के मास्टर के पास ले जाना चाहता हूं कि तुम नाप लेना सीख लो।" वसीम राणा बोला।
"जरूर। मैं काम शुरु कर देना चाहता हूं।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा।
"तुम्हारा प्लान क्या है? मिलिट्री हैडक्वार्टर जाकर क्या करोगे?" राणा ने पूछा।
"अभी सोचा नहीं। वहां जाकर हालातों को समझूंगा। देवराज चौहान तक पहुंचने की कोशिश करूंगा।"
"ये काम आसान नहीं होगा।"
जगमोहन चुप रहा।
"मान लो, तुम देवराज चौहान तक पहुंच भी गए तो उसे वहां से निकालोगे कैसे?"
"सोचूंगा।"
"मेरे ख्याल में ये काम तुम्हारे अकेले का नहीं है। तुम्हारे साथ दो-तीन लोग होने चाहिए। शायद वो भी कम पड़ें।"
"मैंने कुछ भी नहीं सोचा अभी कि क्या करूंगा।"
"ऐसा ना हो कि तुम कोई बेवकूफी कर जाओ। कुछ करने से पहले मेरे से बात जरुर कर लेना।"
जगमोहन का चेहरा सख्त हो गया।
"मिलिट्री हैडक्वार्टर में, बाहर का कोई आदमी अपनी मनमानी नहीं कर सकता।" वसीम राणा ने गंभीर स्वर में कहा--- "वहां हर कोई निशानेबाज है। जबकि तुम अकेले होओगे। मुझे तुम्हारी चिंता होने लगी है।"
"मैं वहां बेवकूफों की तरह काम नहीं करूंगा। मुझे मालूम है कि वो जगह मिलिट्री हैडक्वार्टर है।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा--- "जो भी करूंगा, प्लान बनाकर करूंगा और तुम्हें बताकर करूंगा।"
"दो-तीन मिलिट्री वाले मेरे खास दोस्त हैं जो हैडक्वार्टर में ही काम करते हैं। उन्हें टटोलने की कोशिश करूंगा। अगर तुम्हें भीतर के किसी आदमी की सहायता मिल जाए तो देवराज चौहान को निकालने में खतरा कम हो जाएगा।"
"ऐसा हुआ तो बढ़िया हो जाएगा।" जगमोहन की निगाह भुल्ले खान पर गई--- "इसका क्या करना है।"
"मारना ठीक नहीं अभी। मैं इसके बारे में पता करने की कोशिश करूंगा।"
"तब तक इसे यहीं रखोगे?"
"नहीं। इसे फैक्ट्री में ले जाऊंगा। वहां बंद रखूंगा। काफी बड़ी फैक्ट्री है मेरी जहां मिलिट्री से मिला थानों का स्टॉक रखा जाता है और तीन सौ मशीनें लगी हैं। वहां कुछ कमरे खाली रहते हैं। इसे वहीं रखूंगा। और हर वक्त एक गार्ड इस पर नजर रखेगा। फैक्ट्री में बारह गार्ड हैं। मैं इसे संभाल लूंगा। तुम तैयार हो जाओ। नाश्ता करके निकल चलते हैं। इसे भी कार में, पीछे की सीट के पास डाल लेंगे और फैक्ट्री ले जाएंगे।" कहते हुए वसीम राणा बाहर निकल गया।
जगमोहन अटैच बाथरूम में चला गया।
तभी भुल्ले खान ने आंखें खोली और खाली कमरे को देखने लगा वो जाग रहा था। बातें सुन रहा था। आंखें इसलिए नहीं खोली थी कि कहीं ये लोग फिर उसके ठुकाई करना शुरू ना कर दें।
■■■
चार घंटे बाद देवराज चौहान को होश आया था।
उसके होंठों से कराह निकली। सिर के ऊपरी हिस्से में तीव्र दर्द का एहसास हुआ। अपनी बांहों के ऊपर उठे होने और कलाइयों का कहीं फंसे होने का एहसास हुआ। तभी उसने बैठ जाना चाहा, परंतु घुटने मुड़ नहीं सके और कलाइयों में तीव्र खिंचाव हुआ तो तड़पकर उसने आंखें खोल दी।
सिर में दर्द की तीव्र लहर बार-बार उठ रही थी।
तभी उसे महसूस हुआ कि पिंडलियों में कहीं फंसी है। उसने नीचे देखा तो पिंडलियों को लोहे के कड़ों में फंसे देखा। कड़े के साथ की छोटी-सी, मोटी जंजीर, दीवार में फंसे कुंडे से जुड़ी हुई थी। इसी प्रकार दोनों बांहें ऊपर, लोहे के कड़ों में फंसी थी। स्थिति ये थी कि पैरों को छः इंच से ज्यादा आगे ना बढ़ा सकता था, ना ही बांहों को नीचे कर सकता था। इसी स्थिति में दीवार के साथ सटा, खड़ा था। पहली बार उसे एहसास हुआ कि शरीर पर अंडरवियर के अलावा कोई कपड़ा नहीं है। जाने कब से उसे इस स्थिति में रखा हुआ है। लेकिन बांहों के ऊपर को उठे और कलाइयों का कड़े में फंसे होने की वजह से कंधों में बहुत दर्द सा हो रहा था।
देवराज चौहान की निगाह कमरे में घूमी।
ये वो कमरा नहीं था। जहां वो बेहोश हुआ था।
यहां भी लोहे की कुर्सी थी परंतु वो खाली थी। यातना देने वाला और भी साजो-सामान कमरे में मौजूद था। परंतु देवराज चौहान की नजरें तो सूबेदार जीत सिंह पर जा टिकी थी। जो कि कहर भरी मुस्कान के साथ उसे ही देख रहा था। वो कुर्सी पर टांगे फैलाए बैठा था।
देवराज चौहान के सिर में फिर दर्द भरी टीस उठी। उसने अपने पर काबू पाया। वो एकटक जीत सिंह को देखे जा रहा था। आंखें सिकुड़ चुकी थी।
"कैसे हो डकैती मास्टर देवराज चौहान?" सूबेदार जीत सिंह व्यंग्य से कह उठा।
"सूबेदार जीत सिंह?" देवराज चौहान के होंठों से निकला।
"बिल्कुल।" जीतसिंह हंसा--- "हिन्दुस्तानी मिलिट्री में सूबेदार हूं मैं और पुंछ सेक्टर में तैनात हूं। तुमसे वहां मिल भी चुका हूं। याद है कि भूल गए?"
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ चुकी थी।
"तुम्हें कैसे भूल सकता हूं। आह, मेरे सिर में दर्द बहुत हो रहा है।" देवराज चौहान बोला।
"चोटें जरा ज्यादा तेज पड़ गई होंगी।" जीत सिंह हंसा--- "मैंने ही मारी थी। मुझे पूरी खबर थी कि आज तुम आने वाले हो, उस गोरिल्ला को छुड़ाने के लिए। ये भी खबर थी कि बाहर हमला भी होगा। जब मैंने गोलियां चलने और ग्रेनेडों के धमाकों की आवाजें सुनी तो मैं समझ गया कि तुम आ गए हो। मैं उसी पल गोरिल्ला के कमरे की तरफ दौड़ा। मुझे पहुंचने में थोड़ी-सी देर हो गई। तुम दो जवानों और एक कैप्टन को शूट कर चुके थे। मैंने बे-आवाज सावधानी से दरवाजा खोला था कि तुम्हें आहट भी नहीं मिल सकी थी।"
"तुम्हें खबर थी कि मैं आने वाला हूं?" देवराज चौहान उलझन भरे स्वर में बोला।
"हां। ये भी पता था कि तुम दस लोगों से, मिलिट्री हैडक्वार्टर पर हमला कराओगे। उसी शोर-शराबे के बीच गोरिल्ला को यहां से निकाल ले जाने की कोशिश करोगे।" जीतसिंह हंसा।
"ये बातें तुम्हें कैसे पता चली?" देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
"पता चल गई।"
"किसने बताई?"
"इस बारे में कुछ भी बताने का मेरा इरादा नहीं है।" जीतसिंह बोला।
"कादिर शेख ने बताई।"
"नहीं-नहीं। मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है वो तो मुझे जानता भी नहीं है।" जीत सिंह ने इंकार में सिर हिलाया।
"तो फिर तुम्हें भीतर की बातें कैसे पता...।"
"बोला तो, अभी इस बात का जवाब नहीं दूंगा। फिर कभी मूड आया तो...।"
"मेरे लिए ये बात बहुत जरूरी है कि मेरे प्लान का तुम्हें कैसे पता चला?" देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला।
जीत सिंह जवाब में हंसकर रह गया।
"तुम यहां क्या कर रहे हो?" एकाएक देवराज चौहान ने पूछा।
"नौकरी।" जीत सिंह मुस्कुराया।
"किसकी?"
"पाकिस्तान की मिलिट्री की नौकरी।" जीत सिंह ने आंखें नचाई--- "दो लाख रुपया महीना मिलता है, जबकि हिन्दुस्तान में सूबेदार की नौकरी करने पर सिर्फ चौदह हजार ही मिलते हैं।"
"ये नहीं हो सकता। तुम भला एक साथ दो-दो जगह नौकरी कैसे कर सकते हो। एक ही वक्त में दो जगह कैसे मौजूद रह सकते हो। ये रहस्य मेरी समझ में नहीं आया।" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ चुकी थी।
"है ना कमाल की बात।" जीतसिंह पुनः हंसा--- "कोई इस बात पर यकीन नहीं कर सकता, पर ये बात सच है कि मैं दो जगह मौजूद रहता हूं। तुमने मेजर कमलजीत सिंह से कितनी बार कहा कि तुमने, मुझे इस्लामाबाद में देखा है, पर कोई फायदा हुआ, नहीं हुआ। क्योंकि मैं तो मेजर के पास पुंछ सेक्टर में था। ऐसे में भला मेजर कैसे तुम्हारी बात को सच मान लेता। उसने तुम्हारी बात को हवा में उड़ा दिया। फुस्स हो गए तुम।"
"तुमने अपना डुप्लीकेट तैयार करा रखा...।"
"ये कमाल मेरी मां का है। मां ने एक साथ दो जीत सिंह पैदा किए। जुड़वा। एक पांच मिनट पहले आया दूसरा पांच मिनट बाद में। हम दोनों हू-ब-हू एक जैसे दिखते थे। दो दिन बाद मां को भी पता नहीं चला कि पहले आने वाला कौन-सा है और बाद वाला कौन-सा? एक का नाम जीत सिंह रखा दूसरे का मीत सिंह। पर घर वालों को भी पता नहीं चलता कि कौन जीत सिंह है और कौन मीत सिंह। हम दोनों बड़े हो गए। तब भी घरवाले धोखा खाते रहे। एक जैसी लंबाई, एक जैसी सेहत। चेहरे तो ऐसे की आमने-सामने खड़े होने पर लगता कि आईने के सामने खड़े हों। जीत सिंह पढ़ने में तेज था, मैं जरा ढीला था, पर मेरी जगह जीत सिंह पेपर दे आया करता था। बहुत मजा आने लगा जिंदगी में। पढ़ने के बाद जीत सिंह मिलिट्री में भर्ती हो गया। जब कभी नौकरी से वो थक जाता तो दो दिन की छुट्टी लेकर आता और उसकी जगह मैं नौकरी ज्वाइन कर लेता। जीत सिंह मेरे को नौकरी के बारे में सब समझा देता था। किसी से शक होने का मतलब ही नहीं था कि नौकरी पर जीत सिंह नहीं मीत सिंह है। ऐसी बात तो कोई सोच भी नहीं सकता था। बॉर्डर पर ड्यूटी देते-देते मेरा वास्ता आतंकवादियों से पड़ा, जो कि सीमा पार करने की चेष्टा में होते। शरारत के तौर पर मैं उन्हें सीमा पार करा देता। इस तरह मेरे रिश्ते पाकिस्तान मिलिट्री इंटेलिजेंस से बन गए। मिलिट्री का जासूस 540 नंबर मुझसे मिला और मुझे कहा कि मैं पाकिस्तान के लिए काम करूं। मैं तैयार हो गया। लाख रुपया महीने मुझे मिलने लगा। पुंछ सेक्टर के बेस से महत्वपूर्ण कामों की फोटोस्टेट कराकर उन्हें देने लगा। जब उस जासूस को पता चला कि हम लोग जुड़वा एक जैसे हैं तो उसने मुझे खुलकर काम करने को कहा। जीत सिंह भी पाकिस्तान से मिलने वाले पैसे से खुश था। पाकिस्तान की मिलिट्री इंटेलिजेंस ने मुझे बाकायदा अपना एजेंट बना लिया। मीत सिंह या मैं, कोई एक हर वक्त पुंछ सेक्टर में ड्यूटी पर होता तो दूसरा पाकिस्तान में ड्यूटी कर रहा होता। मेरा काम पाकिस्तान के आतंकवादियों को सीमा पार कराना और उन्हें बताना कि कहां हमला करना ठीक है, होता। इस काम में मेरे साथ पाकिस्तानी मिलिट्री इंटेलीजेंस के जासूस भी होते। पाकिस्तान का इरादा हमेशा ये रहा कि हिन्दुस्तान में ज्यादा से ज्यादा आतंकवादी जाएं और अशांति फैलाते रहें। अब तुम्हें समझ आ गया कि मेरी मां ने क्या कमाल किया और उस कमाल के दम पर हम कितने नोट इकट्ठे कर रहे हैं। कभी जीत सिंह पाकिस्तान में, तो कभी मैं पुंछ सेक्टर में ड्यूटी पर। आज तक कोई नहीं भांप पाया कि मैं और जीत सिंह क्या कर रहे हैं। हमारे हमशक्ल होने का हमें खूब फायदा मिल रहा है। हिन्दुस्तानी मिलिट्री की तमाम कार्यवाहियों की रिपोर्ट, पाकिस्तानी मिलिट्री को हम देते रहते हैं। अब मुझे यहां से दो लाख रुपया महीना मिल रहे हैं। यहां मिलिट्री हैडक्वार्टर में मेरा कभी कोई काम नहीं होता। यहां तो मैं तुम्हारे लिए आया था जब मुझे खबर मिली कि तुम हमला कराकर, गोरिल्ला को छुड़ाने आ रहे हो।"
देवराज चौहान हक्का-बक्का सा जीत सिंह की बातें सुन रहा था। इतना बड़ा धोखा ये देश से कर रहा था और किसी को कानों-कान खबर भी नहीं थी। वो यूं ही मेजर से फोन पर कहता रहा कि उसने जीत सिंह को इस्लामाबाद में देखा है। वो भला उसकी बात पर कैसे यकीन करता, क्योंकि जीतसिंह तो अब तब उसके पास होता था।
देवराज चौहान टकटकी बांधे जीत सिंह को देखता रहा।
जीत सिंह हंसकर बोला।
"मेरी बात सुनकर चक्कर खा गए।"
"तुम तो हिन्दुस्तान में जबरदस्त गद्दारी कर रहे हो।" देवराज चौहान के होंठों से निकला।
"गद्दारी कहां, पैसा कमा रहा हूं। सबका एक ही मतलब होता है पैसा कमाना। पैसा-पैसा होता है बेशक वो किसी भी देश की करेंसी में हो। वैसे मुझे तो हिन्दुस्तानी करेंसी नोट मिलते हैं। हर महीने दो लाख रुपया अमृतसर के मेरे गांव में मेरे घर पहुंच जाता है। मौज ही मौज है। तुम खुद को ही लो। तुम भी तो पैसे के लिए डकैती करते...।"
"पर मैं किसी को धोखा नहीं देता। तुम तो...।"
"डकैती करने से भला काम है पाकिस्तान के लिए जासूसी करना।"
"बकवास मत करो।" देवराज चौहान के होंठ भिंच गए--- "मैं देश की जड़ें खोखली नहीं कर रहा, परंतु तुम कर रहे हो। देश को इस तरह धोखा देकर। आतंकवादियों को सीमा पार कराकर और...।"
"आतंकवादी सीमा पार चले जाते हैं तो कौन-सी आफत आ जाती है। देर-सवेर में अपनी जान गंवा देते हैं।"
"परंतु तब तक वो कइयों की जान ले चुके होते हैं। बम धमाके कर चुके होते हैं। इस तरह देश कमजोर होता है।"
"कमजोर हो या ताकतवर, मेरी जिंदगी तो बढ़िया कट रही है।" जीतसिंह मुस्कुराया।
देवराज चौहान जीत जीत सिंह को घूरने लगा।
"मुझे खाने का इरादा है क्या?" जीत सिंह कह उठा।
"और गोरिल्ला का क्या मामला है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"बेकार मामला है। गोरिल्ला यानी कि कैप्टन रंजन गुलाटी के मामले में मुझे मजा नहीं आया। मेजर को किसी एजेंट से पता चल गया था कि पाकिस्तान एक खास हमले की योजना बना रहा है और योजना की फाइल इस्लामाबाद के एक मिलिट्री कैम्प में रखी है तो ऊपर से आर्डर आये कि कुछ लोगों को फाइल ले जाने भेजा जाए। मेजर ने छः लोगों का गोरिल्ला दल तैयार किया और इस्लामाबाद भेज दिया।"
"और तुमने इस बात की खबर पाकिस्तान वालों को दे दी।" देवराज चौहान बोला।
"ठीक समझे। मैं और मेरा भाई फोन पर संपर्क में रहते हैं। वहां की खबर मुझे मिलती रहती है और यहां की खबर मैं उसे देता रहता हूं। जब मुझे गोरिल्ला दल के आने का पता चला तो मैंने मिलिट्री इंटेलिजेंस को खबर दे दी।"
"इसका मतलब कादिर शेख, अनीस अहमद और इस्माइल में कोई गद्दार नहीं है। तुम असली गद्दार हो।"
"ये भी सही कहा।" जीत सिंह हंसा--- "सब खबरें मैं ही आगे करता रहा।
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
"गुस्सा आ रहा है तुम्हें--- हैरानी है।" जीत सिंह मुस्कुराया।
"दो गोरिल्ला वो फाइल ले उड़े थे। उनमें से एक मारा गया था।" देवराज चौहान बोला।
"मैंने, एजेंट नंबर 540 के साथ मिलकर उसे मारा था। हमने उन्हें ढूंढ निकाला था। परंतु कैप्टन रंजन गुलाटी फाइल के साथ हमारी नजरों से दूर हो गया। जब हाथ आया तो फाइल उसके पास नहीं थी।"
"जो तीन जवान मेजर ने उस पर नजर रखने को लगा रखे थे उनमें से दो मारे...।"
"दो नहीं तीनों मारे गए। उन्हें भी मैंने 540 के साथ मिलकर मारा था। उनमें से एक तो मुझे सूबेदार जीत सिंह के तौर पर पहचान गया था। ना भी पहचानता, तब भी उन्हें खत्म करना जरूरी था।"
देवराज चौहान का चेहरा कठोर हो रहा था।
"अब गोरिल्ला यहां कैद है।"
"हां। वो मजबूत आदमी है। यातनाओं के बाद भी मुंह नहीं खोल रहा कि वो फाइल उसने कहां रखी है, किसे दी है। परंतु टूटेगा वो। बताएगा। बहुत जल्द मुंह खोलेगा।" जीत सिंह गुर्रा उठा।
"कहीं भी रखी हो फाइल, है तो वो इस्लामाबाद में ही।"
"वो फाइल पाकिस्तान को वापस चाहिए।"
"वो मेजर के एजेंटों के पास भी हो---।"
"उनके पास नहीं है। होती तो मेजर तक खबर पहुंच गई होती। तब मैंने सब ठीक कर लेना था।"
"तुम्हारे और तुम्हारे भाई जैसा गद्दार, कमीना इंसान मैंने कभी नहीं देखा।"
जीत सिंह हंसकर बोला।
"ये मेरी मां का कमाल है। ऊपर वाले ने हम दोनों भाइयों को एक जैसा बना दिया तो...।"
"मेरी योजना के बारे में तुम्हें किसने खबर दी?"
"पाकिस्तानी मिलिट्री इंटेलिजेंस के एजेंट नंबर 540 ने।"
"उसे कैसे पता था कि मैं क्या करने वाला था।"
"वो सब जानता था।" जीत सिंह मुस्कुराया।
"कैसे?"
"वक्त आने पर तुम्हें पता चल जाएगा देवराज चौहान।"
"अब क्यों नहीं बता देते। मैं तो कैद में हूं। तुम्हारा या किसी का क्या बिगाड़ सकता हूं।"
"उसके बारे में बताना मेरा काम नहीं है।" जीत सिंह मुस्कुरा रहा था।
"मुझे कैद करके तुम्हें क्या मिलेगा?"
"यहां मेरा हुक्म नहीं चलता। क्यों भूलते हो कि मैं यहां नौकरी करता हूं। मैं तो सिर्फ तुमसे बातचीत के लिए यहां बैठा था। तुम पाकिस्तान के मुजरिम हो। मेरे ख्याल में तुम्हें अब सिर्फ मौत ही मिलेगी।"
"जगमोहन मेजर के पास कैद में है।" देवराज चौहान बोला।
"अभी तक तो मेरे पास ये ही खबर है कि जगमोहन उस पार मेजर की कैद में है।"
"मेजर को पता चल जाएगा कि मैं पकड़ा गया?"
"मेरे ख्याल में तो उसे पता चल जाना चाहिए। इस्लामाबाद में उसके कई एजेंट हैं। कोई भी उसे ये खबर दे सकता है।"
देवराज चौहान जीत सिंह को देखता रहा। कहा कुछ नहीं।
तभी दरवाजा खुला और कैप्टन अशफाक ने दो जवानों के साथ भीतर प्रवेश किया।
जीत सिंह ने गर्दन घुमाकर उसे देखा।
"क्या हो रहा है जीत सिंह?" अशफाक ने देवराज चौहान को तिरछी निगाहों से देखते हुए कहा।
"ये मेरा हाल-चाल पूछ रहा है कि मैं दो जगह कैसे दिख जाता हूं।" जीत सिंह ने हंसकर कहा--- "मैंने इसे बताया कि ये मेरी मां का कमाल है। सुनकर हैरान हो रहा है।"
"बहुत हिम्मत दिखाई तुमने देवराज चौहान।" अशफाक कठोर स्वर में बोला--- "तुम्हारे द्वारा कराए गए हमले में बाहर तैनात चार जवान मारे गए और तुमने एक कैप्टन और दो जवानों को शूट कर दिया। मुझे तो अभी भी तुम्हारे पागलपन पर हैरानी हो रही है। तुमने तो हिम्मत से भी बड़ा काम करने की सोची। ये कैसे सोच लिया कि मिलिट्री हैडक्वार्टर से किसी कैदी को बाहर ले जाने में सफल हो जाओगे। देख लिया अपना अंजाम।"
"मैं शायद सफल रहता।" देवराज चौहान ने कड़वे स्वर में कहा--- "परंतु हैरान हूं कि तुम लोगों के पास पहले ही खबर कैसे पहुंच गई कि मैं आज ये सब करने वाला हूं। अगर खबर ना पहुंची होती तो मैं सफल रहता।"
"अभी भी इसके कस-बल नहीं निकले।" अशफाक ने कहा।
"सेवा करें?" जीत सिंह मुस्कुराया।
"ऊपर से आर्डर नहीं है।" कैप्टन अशफाक ने कहा--- "तुम्हारे चीफ का कहना है कि इसे कोई तकलीफ ना दी जाए।"
"क्यों?" जीत सिंह के होंठों से निकला।
"मैं नहीं जानता।"
"मिलिट्री इंटेलीजेंस देवराज चौहान की इतनी परवाह क्यों कर रही है?" जीत सिंह बोला।
"पता नहीं। लेकिन ये बचने वाला नहीं। बुरी मौत मारा जाएगा इसे।" कैप्टन अशफाक गुर्रा उठा--- "अभी जवान आ रहे हैं। इसे यहां इस कुर्सी पर बिठाकर बांध दिया जाएगा। तुम्हारा चीफ आएगा इससे बात करने।"
■■■
दो दिन बीत गए।
जगमोहन किसी का नाप लेना पूरी तरह सीख चुका था। फैक्ट्री के एक मास्टर ने इन दो दिनों का समय उसे सिखाने पर लगाया था और बाद में टेस्ट लेकर, चैक भी कर लिया था।
तीसरे दिन वसीम राणा फैक्ट्री में आकर उससे मिला।
"मास्टर ने मुझे बताया कि तुम अब ठीक से नाप ले लेते हो।" राणा ने गम्भीर स्वर में कहा।
जगमोहन ने सिर हिला दिया।
"कब जाना चाहोगे मिलिट्री हैडक्वार्टर। मिलिट्री के कपड़ों की सादी वर्दियां सिल जाएंगी तुम्हारी। इस वक्त हैडक्वार्टर में मेरा जो आदमी नाप लेने के लिए मौजूद है उसे वहां से हटा देता हूं और तुम्हें वहां भेज दूंगा।"
"भुल्ले खान का क्या हाल है?"
"उसे यहीं बंद रखा हुआ है। वो अपने को भुल्ले खान ही कह रहा है। कहता है कार्ड नकली है।"
"तुमने आई-कार्ड को चैक करवाया?"
"ये खतरे वाला काम है। मुझे सोच-समझकर आगे बढ़ना होगा। बीते दो दिनों में तो मैं भी व्यस्त रहा हूं। परंतु जल्दी ही कोई रास्ता निकालकर इस आई-कार्ड के बारे में पता करवाऊंगा कि ये नकली है या असली। असली होगा तो कार्ड का रिकॉर्ड भी जरूर होगा। वैसे एजेंट नंबर 540 से ही पहचान हो जाएगी कि कार्ड असली है या नकली।"
"भुल्ले खान से मिले?"
"कल मिला था दो मिनट के लिए।"
"मैं एक बार उससे मिलना चाहता---।"
"मेरा तो कहना है कि वक्त खराब मत करो और अपने काम पर लग जाओ।" वसीम राणा ने कहा।
"भुल्ले से मिलूंगा। वो कहां है?"
"इसी फैक्ट्री की एक कोठरी में रखा है। आओ, मिल लो।"
दोनों आगे बढ़ गए। जगमोहन दो दिन से पूरी फैक्ट्री घूमकर देख चुका था। फैक्ट्री काफी बड़ी थी और दो मंजिला थी। हर वक्त मशीनों के चलने की आवाज आती रहती थी। सैकड़ों कारीगर मशीनों पर काम करते रहते थे।"
"देवराज चौहान के बारे में पता किया?" जगमोहन ने चलते हुए पूछा।
"हां। उसे वहां हिन्दुस्तान का जासूस मान रहे हैं। गोरिल्ला के साथ वाले कमरे में बंद कर रखा है और वहां पर हर किसी को जाने की इजाजत नहीं है। सरसरी तौर पर ही मैंने हैडक्वार्टर में मिलिट्री ऑफिसर्स से बात छोड़ी थी उसकी। उसका कहना है कि वो जिंदा नहीं बचेगा देर-सवेर में उसे मार दिया जाएगा।"
जगमोहन के होंठ भिंच गए।
"इसलिए मैं चाहता हूं कि तुमने जो करना है, जल्दी कर डालो, परंतु सोच-समझकर करना। देवराज चौहान की तरह फंस मत जाना। वहां के हालात देखो और मजबूत योजना बनाओ। वैसे मैं कोशिश कर रहा हूं कि हैडक्वार्टर में तुम्हारी सहायता करने वाला कोई हो। एक मिलिट्री वाले से मेरा दोस्ताना है। उससे आज-कल में बात करूंगा।"
"ये भी पता करना कि देवराज चौहान को हैडक्वार्टर से बाहर ले जाने की योजना तो नहीं।"
दोनों फैक्ट्री के गोदाम के पास बने एक छोटे से कमरे के दरवाजे के पास जाकर रुके। वहां पर एक आदमी स्टूल पर बैठा था। जो तुरंत खड़ा होते हुए बोला।
"दरवाजा खोलूं जनाब?"
वसीम राणा ने सिर हिला दिया।
उसने दरवाजा खोला। दोनों भीतर प्रवेश कर गए। भीतर मध्यम रोशनी का बल्ब जल रहा था। भुल्ले एक तरफ की दीवार से टेक लगाए बैठा था। उन दोनों को देखने लगा।
"कैसे हो भुल्ले?" जगमोहन ने कहा।
भल्ले ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
"तो तुम सच बोलने को तैयार नहीं हो।"
"जो सच था, वो बता चुका हूं।"
इस रोशनी में देखने का अभ्यस्त होने पर जगमोहन को भुल्ले का जख्मी चेहरा दिखने लगा।
"अपने घर का पता बोलो।"
भुल्ले ने पता बता दिया।
"तुम्हारी असलियत के बारे में मैं छानबीन करूंगा।" जगमोहन ने कहा।
"कर लो। वो आई-कार्ड नकली है। मुझ पर शक मत करो। मैं जासूस नहीं हूं।"
"मैं इस वक्त ऐसे हालातों में फंसा हूं कि तुम्हारी बात पर भरोसा करने का रिस्क नहीं ले सकता।"
"मैंने सच कह दिया है। आगे जो तुम्हारे मन में आए, वो करो।" भुल्ले ने धीमे स्वर में कहा।
"इसके खाने-पीने का क्या इंतजाम है?" जगमोहन ने वसीम राणा से पूछा।
"दिन में दो बार इसे खाने को दिया जाता है। सुबह एक चक्कर बाथरूम का लगवा दिया जाता है।"
"इसके जख्मों पर कोई दवा वगैरहा भी लगवा दो।"
"वो भी इंतजाम कर देता हूं।"
दोनों बाहर निकल आये। दरवाजा बंद हो गया।
"मैं भुल्ले खान के घर जाकर, इसके बारे में पता करूंगा।" जगमोहन बोला।
"आज का दिन तुम्हारे पास फुर्सत का है। जो करना चाहते हो, कर लो।" वसीम राणा ने आगे बढ़ते हुए कहा--- "मैं चाहता हूं कि कल सुबह से तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर जाकर अपना काम शुरू कर दो। शायद देवराज चौहान के पास ज्यादा वक्त ना हो।"
"मैं कल मिलिट्री हैडक्वार्टर जाऊंगा। तुम सब इंतजाम कर दो।"
"कटिंग मास्टर को अपना नाप दे दो। वो तुम्हारे लिए मिलिट्री के सादे कपड़ों की दो वर्दियां तैयार कर देगा। उसे पहने बिना तुम वहां पर काम नहीं कर सकते और किसी फोटोग्राफर से अपनी पासपोर्ट साइज की दो तस्वीर भी तैयार करवा लो। कल मिलिट्री हैडक्वार्टर में तुम्हारा 'पास' बनाया जाएगा, ताकि तुम हैडक्वार्टर के भीतर बाहर जा सको। चूंकि तुम वहां पर नए चेहरे होओगे, ऐसे में तुम्हें पास की ज्यादा जरूरत पड़ेगी। हर जगह रोके जाओगे तुम। सप्ताह-दस दिन में तुम वहां के पहचाने चेहरे बन जाओगे तो फिर 'पास' की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ेगी। कल मैं तुम्हें वहां ले जाऊंगा।"
"बेहतर होगा कि तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर में मेरे लिए कोई सहायता तैयार करो।" जगमोहन बोला।
"वो कोशिश तो मैं कर ही रहा हूं।" वसीम राणा ने गंभीर स्वर में कहा।
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जगमोहन ने सबसे पहले फोटोग्राफर से पासपोर्ट साइज की तस्वीरें तैयार करवाईं। फैक्ट्री मास्टर को अपना नाप दे दिया था कि वो मिलिट्री के कपड़े की दो कमीज-पैंट तैयार कर दे शाम तक। फिर टैक्सी ली और भुल्ले खान के बताए, उसके घर के पते की तरफ चल दिया। मन बार-बार देवराज चौहान की तरफभटक रहा था कि वो किस हाल में होगा। जगमोहन जानता था कि ये काम आसान नहीं है। देवराज चौहान भी मिलिट्री हैडक्वार्टर से गोरिल्ला को निकालने के चक्कर में फंस गया था। कहीं उसके साथ भी ऐसा ना हो। फिर उसका ध्यान भुल्ले की तरफ चला जाता है कि क्या वो वास्तव में मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट है। क्या उसी ने देवराज चौहान को फंसाया है या देवराज चौहान इत्तेफाक से फंस गया। भुल्ले की वजह से जगमोहन उलझन में पड़ा हुआ था। जगमोहन को उस वक्त सबसे बड़ी कमी ये लग रही थी कि वो अकेला है। वसीम राणा से एक हद तक ही सहायता की उम्मीद रख सकता था। भुल्ले उसके लिए जरूरत के बंदों का इंतजाम कर सकता था परंतु अब वो खुद शक के घेरे में था।
जगमोहन ने इस्फानी रोड पर पहुंचकर टैक्सी छोड़ दी। टैक्सी ड्राइवर से पता कर लिया था कि अजमल खां इलाका, इस सड़क से पांच मिनट भीतर जाने पर था।
जगमोहन सात-आठ मिनट पैदल चलकर अजमल खां के इलाके में पहुंचा और भुल्ले के बताए मकान नंबर को ढूंढने लगा। ये मध्यम वर्गीय इलाका था। कहीं-कहीं तो बेहद शानदार मकान बने हुए थे। वो उस नंबर के मकान पर जा पहुंचा। जोकि न तो बढ़िया बना था ना ही घटिया। एक मंजिला मकान था। गेट उसका पहले से ही खुला हुआ था। पास में बेल लगी थी। जगमोहन ने बेल दबा दी और इंतजार करने लगा।
मिनट भर भी नहीं बीता कि भीतर से छब्बीस-सत्ताईस बरस की औरत बच्चा उठाये महिला निकली।
सिर पर पल्लू ले रखा था। वो पास आते कह उठी।
"किससे मिलना है भाई जान?"
"नसीम चौधरी से।" जगमोहन ने मुस्कुराकर कहा।
"इस नाम का तो यहां कोई नहीं रहता।" औरत ने जवाब दिया।
"ये कैसे हो सकता है। नसीम चौधरी ने मुझे यही पता दिया था कि ये उसका घर है।"
"ये घर भुल्ले खान का है।" औरत मुस्कुराकर बोली--- "वो मेरे शौहर हैं यहां और कोई नहीं रहता।"
"सही कह रही हैं आप?"
"मैं गलत क्यों कहूंगी?"
"समझ में नहीं आता पता गलत कैसे हो गया।" कहते हुए जगमोहन वहां से चल पड़ा।
परंतु अब जगमोहन को फिर से सोचना पड़ा कि क्या वास्तव में भुल्ले बेगुनाह है। वो मिलिट्री का एजेंट नहीं है। वो कार्ड महज उसने मिलिट्री वालों से बचने के लिए बनवाया था? घर पर जो मिली वो उसकी पत्नी थी और उसने भी कितने सामान्य लहजे में कहा था कि ये घर भुल्ले खान का है।
तो अब भुल्ले का क्या करें?
जगमोहन के चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी। उसने वसीम राणा को फोन किया।
"हैलो।" वसीम राणा की आवाज कानों में पड़ी।
"मैं अभी भुल्ले खान के घर गया था।" जगमोहन ने फोन पर कहा--- "वहां उसकी पत्नी मिली। उसने नसीम चौधरी के नाम को बिल्कुल नकार दिया। मेरे ये कहने पर कि ये घर तो नसीम चौधरी का है, उसने कहा भुल्ले खान का है।"
"इसका मतलब भुल्ले खान ठीक रहता है।" राणा ने उधर से कहा।
"लगता तो ऐसा ही है।"
"तो भुल्ले खान का क्या करना है।"
"मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा। तुम क्या कहते हो?" जगमोहन बोला।
"मैं भुल्ले खान को एक बार फिर चैक करता हूं।" दूसरी तरफ से राणा ने कहा।
"मैं तुम्हारे बंगले पर जा रहा हूं। तस्वीरें तैयार करवा ली हैं।" जगमोहन ने कहा।
"मैं तुम्हारे कपड़े लेकर आऊंगा। वो तैयार हो रहे हैं।"
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वसीम राणा ने भुल्ले खान की कोठरी में प्रवेश किया।
भुल्ले खान लेटा हुआ था। वो उठ बैठा।
"जगमोहन तुम्हारे घर गया था।" वसीम राणा ने सीधे-सीधे कठोर स्वर में कहा--- "वो तुम्हारी पत्नी से मिला। पूछने पर तुम्हारी पत्नी ने कहा कि नसीम चौधरी उसके शौहर हैं और अभी घर पर नहीं हैं। अब ये बात साफ हो गई कि तुम नसीम चौधरी ही हो। पाकिस्तान मिलिट्री इंटेलिजेंस के जासूस। वो कार्ड सही था। ये बताओ कि तुम हममें इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हो और देवराज चौहान को भी तुमने ही फंसाया।"
भुल्ले खान के होंठों पर मुस्कान आ गई।
वसीम राणा की नजरें भुल्ले खान के चेहरे पर ही थी।
"तो मेरी पत्नी ने कहा कि नसीम चौधरी उसके शौहर हैं।" भुल्ले कह उठा।
"साफ-साफ बताओ तुमने क्या चक्कर चला रखा है। अब तुम बच नहीं सकते।" वसीम राणा गुर्रा उठा।
"राणा साहब, ऐसा झूठ बोलिये, जो मेरी समझ में आ जाए। मेरी पत्नी क्यों कहेगी कि वो नसीम चौधरी की पत्नी है, जबकि वो भुल्ले खान की, मेरी पत्नी है। जैसे मैं नसीम चौधरी को नहीं जानता, वैसे ही मेरी पत्नी नहीं जानती। वो कभी कह ही नहीं सकती कि वो नसीम चौधरी की पत्नी है।"
"क्यों नहीं कह सकती?"
"क्योंकि वो मेरी पत्नी है। भुल्ले खां की पत्नी। बेवकूफी भरी बात कहना छोड़ दीजिए कि मेरी पत्नी ने ऐसा कहा। वो मेरी पत्नी है तो ऐसा क्यों कहेगी।" भुल्ले खान ने तीखे स्वर में कहा।
वसीम राणा, भुल्ले खान को घूरने लगा।
"राणा साहब, अब आप मेरे कितने इम्तिहान लेंगे। सौ बार आपसे कह चुका हूं कि मैं भुल्ले हूं। वो नकली आई कार्ड तो मैंने अपने बचाव के लिए तैयार कर रखा था कि कभी सीमा पर मिलिट्री के किसी जवान की मुझ पर नजर पड़ जाए या किसी और स्थिति में सीमा पर पकड़ा जाऊं तो वो आई-कार्ड दिखाकर, अपने को मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट कहकर बच सकूं। इससे ज्यादा आई कार्ड की सच्चाई कुछ नहीं है। मैंने देवराज चौहान की कदम-कदम पर सहायता की। जगमोहन की भी सहायता करता, और तुम लोगों ने मेरा ये हाल ना किया होता। अब मैं आपका कोई काम नहीं करूंगा। जगमोहन का भी कोई काम नहीं करूंगा। अहमद ने देवराज चौहान को मेरे हाथों में फंसाया था तो मैंने देवराज चौहान की सहायता कर दी। इनाम में तुम लोगों ने मेरा ये हाल कर दिया। हिसाब बराबर हो गया। अब तो मुझे जाने दो।" भुल्ले ने सख्त नाराजगी से कहा।
वसीम राणा होंठ भींचे गंभीर निगाहों से भुल्ले खान को देखता रहा।
"और मारना है तो मार लो। पर मुझे जाने दो। क्यों मुझे परेशान कर रहे हो।" भुल्ले खान ने गहरी सांस ली।
"ठंडे दिमाग से सोच भुल्ले। तू मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट है। अगर कल तक नहीं माना तो तुझे शूट कर देंगे।"
"कल तक का क्यों इंतजार करते हो, शूट ही करना है तो अभी कर दो।" भुल्ले ने गुस्से से कहा।
वसीम राणा बिना कुछ कहे, पलटकर बाहर निकल गया।
दरवाजा बंद हो गया।
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दो दिन से देवराज चौहान को कुर्सी पर बांधकर रखा हुआ था। वहां पर हर वक्त दो हथियारबंद जवान मौजूद रहते थे। ड्यूटी बदलती रहती थी जवानों की, पर दो कमरे में ही रहते थे। वो देवराज चौहान से कोई बात नहीं करते और देवराज चौहान भी खामोश रहता। कुर्सी पर बंधे-बंधे देवराज चौहान परेशान हो गया था परंतु वो जानता था कि चुप रहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। ये लोग कोई रियायत नहीं बरतेंगे उसके साथ। पूरे दिन में एक बार, दोपहर को उसे खाना दिया जाता था। तभी उसके हाथ-पांव खोले जाते। दो जवान और आ जाते। कमरे में ही बने बाथरूम में उसे आधे घंटे के लिए छोड़ दिया जाता। बाथरूम का दरवाजा नहीं था गनें थामे जवान चौखट पर खड़े रहते और उस पर नजर रखते। उसे नहाने-धोने का पूरा मौका दिया जाता फिर वो खाना खाता और उसके बाद उसे बांध दिया जाता। इस सारे काम के दौरान चारों जवान बेहद सतर्क रहते कि वो कोई हरकत ना कर सके। कड़ी नजर में था देवराज चौहान।
उस दिन के बाद जीतसिंह या मीतसिंह, वो जो भी था, नजर नहीं आया था।
कैप्टन अशफाक दिन में एक चक्कर उसके पास जरूर लगा जाता था। परंतु देवराज चौहान से कोई बात नहीं करता था। सब ठीक पाकर जवानों को हिदायत देता और चला जाता।
देवराज चौहान से कोई पूछताछ नहीं की गई थी। परंतु देवराज चौहान जानता था कि पूछताछ का कोई भी वक्त आ जाएगा। वो ज्यादा देर तक खामोश नहीं रहने वाले। वैसे पूछताछ को ज्यादा कुछ नहीं था। जीतसिंह जानता ही था कि वो कौन है और किन हालातों में फंसकर इस काम पर लगा था। कायदे से तो अब तक उसे शूट कर देना चाहिए था, परंतु देवराज चौहान नहीं समझ रहा था ये लोग किस बात का इंतजार कर रहे हैं। वो इस बात पर भी सोचता कि उसकी प्लानिंग की खबर इन लोगों को कैसे मिल गई? क्या इकबाल खान ने गद्दारी की? नहीं, इकबाल खान गद्दारी क्यों करेगा? उसे पूरे पैसे मिले थे और उसने अपना काम ठीक से पूरा किया था। जीत सिंह ने बताया था कि हमला करने वाले दसों आदमियों को मिलिट्री ने मार दिया था हाथों-हाथ। सोचें भुल्ले खान की तरफ गई कि उसे फंसा पाकर भुल्ले क्या कर रहा होगा? उसके फंसने का उसे अफसोस तो हुआ होगा। देवराज चौहान को भुल्ले से कोई उम्मीद नहीं थी कि वो उसे छुड़ाने के लिए कुछ करेगा। वैसे भी मिलिट्री हैडक्वार्टर में घुसकर किसी को आजाद कराने का इरादा खतरनाक था। इस तरह किसी को निकाल ले जाना बेहद कठिन था। वो तो फंस गया।
देवराज चौहान की सोचें रुक गई।
तभी दरवाजा खुला और कुछ लोगों ने भीतर प्रवेश किया। एक मेजर बख्तावर अली था। उनमें वर्दी पहने कैप्टन अशफाक था। साथ में दो अन्य ऑफिसर थे। एक पचपन बरस का आदमी सादे कपड़ों में था। वो बोला।
"जीतसिंह अभी तक नहीं पहुंचा।"
"वो रास्ते में है।" कैप्टन अशफाक ने सतर्क स्वर में कहा--- "अभी पहुंच जाएगा जनाब।"
कमरे में पहले से मौजूद दोनों जवान सतर्क हो चुके थे।
देवराज चौहान ने बख्तावर अली को देखा। बख्तावर अली उसे पहचान ना सका। क्योंकि भुल्ले के साथ जब मेजर बख्तावर अली से मिला था तो मेकअप में था।
वो पचपन वर्षीय व्यक्ति देवराज चौहान को देखता मुस्कुराकर बोला।
"अशफाक। इसके बंधन खोल दो।"
"जी जनाब।" कहने के साथ ही कैप्टन आगे बढ़ा और देवराज चौहान के बंधन खोलने में लग गया और बोला--- "जनाब ये खतरनाक है। हाथ-पांव खुलने पर कोई शरारत कर सकता है।"
"तो हम क्या कम खतरनाक हैं।" उसने मुस्कुराकर कहा और एक कुर्सी पास में खींची और बैठ गया--- "ये मिलिट्री हैडक्वार्टर है यहां परिंदा भी 'पर' नहीं मार सकता। इसने 'पर' मारे तो फंस गया ना।"
मेजर बख्तावर अली भी कुर्सी पर बैठ गया।
बाकी दोनों ऑफिसर खड़े रहे।
देवराज चौहान के बंधन खोलकर कैप्टन अशफाक पीछे हट गया।
देवराज चौहान कुर्सी पर बैठा, अपने हाथ-पांव रगड़ने लगा।
"मुझे सिगरेट मिलेगी?" देवराज चौहान ने कहा।
"इसे सिगरेट दो, किसी से ले आओ।" उसी पचपन बरस के व्यक्ति ने कहा।
"मेरे पैंट में पैकिट-लाइटर रखा है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
अशफाक फौरन एक तरफ रखे कपड़ों से पैकेट-लाइटर ले आया।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कश लिया। वो व्यक्ति मुस्कुराकर बोला।
"चाय-कॉफी लोगे?"
"कॉफी---।" देवराज चौहान ने कहा।
"अशफाक...देवराज चौहान साहब को कॉफी दो।"
अशफाक ने एक जवान को कॉफी लाने भेज दिया।
"मैं।" वो व्यक्ति पुनः बोला--- "ब्रिगेडियर रहमान अहमद हूं।"
देवराज चौहान रहमान अहमद को देखता रहा।
"मैं पाकिस्तान की मिलिट्री इंटेलिजेंस का चीफ हूं।"
देवराज चौहान की निगाह उस पर टिकी रही।
"तुम शुरू से ही हमारी निगाहों में थे। जब तुमने पाकिस्तान की जमीन पर कदम रखा तो उसी वक्त हमारी निगाहों के राडार पर आ गए थे कि डकैती मास्टर देवराज चौहान ने पाकिस्तान में कदम रख दिया है। परंतु हमारा तुमसे कोई वास्ता नहीं था। तुम वसीम राणा की बहन की शादी में शामिल होने आए थे। उसे जानते थे तुम। हमने तुम्हारी जरा भी परवाह नहीं की। हमारे और तुम्हारे रास्ते अलग-अलग थे। हम जानते थे कि साल भर, पहले या दो साल पहले तुमने पाकिस्तान आकर अली को मारा था। तुममें और अली में कोई दुश्मनी हो गई थी। या तुम अली के पीछे पड़ गए थे कि उसने दिल्ली पर आतंकवादी हमला कराया था जिसमें तुम्हारे साथी भी फंस गए थे। जो भी हो इसमें हमारा कोई मतलब नहीं कि तुमने अली को मारा। उसका भाई हामिद अली बाद में तुम्हें मारने हिन्दुस्तान गया था। परंतु कामयाब नहीं हो सका। वो तुमसे अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता है। इससे भी हमें कोई मतलब नहीं।" रहमान अहमद बेहद शांत स्वर में कह रहा था--- "हम ऐसे छोटे-छोटे मामलों में दखल नहीं देते देवराज चौहान।"
देवराज चौहान कश ले रहा था। उसकी बात सुन रहा था।
"पर अब तुमने बहुत गलत काम किया जो मिलिट्री हैडक्वार्टर में घुसकर हमारे जवानों को शूट कर दिया। मिलिट्री हैडक्वार्टर पर हमला करवा दिया। क्योंकि तुम गोरिल्ला को आजाद कराकर, यहां से ले जाना चाहते थे।"
"मैं मजबूर था ये काम करने के लिए।"
"मालूम है। मेजर कमलजीत सिंह ने तुम्हारे दोस्त को बंदी बनाकर तुम पर दबाव डालकर तुमसे ये काम लिया। परंतु हम तो यही जानते हैं कि तुमने हमारे खिलाफ काम किया। हमारे जवानों को शूट किया। परसों तुम्हारी वजह से हमारे सात जवान मारे गए।"
देवराज चौहान ने कश लेकर सिगरेट फर्श पर फेंक दी।
तभी जवान कॉफी ले आया।
देवराज चौहान कॉफी पीने लगा।
"तुम हमारे गुनहगार हो।" ब्रिगेडियर रहमान अहमद ने कहा।
देवराज चौहान चुप रहा। वो जान लेना चाहता था कि ब्रिगेडियर रहमान अहमद के मन में क्या है। ये क्यों उससे आराम से बात कर रहा है और सिगरेट-कॉफी पिला रहा है।
"तुम्हें तो सब पता ही है। हमने कुछ नहीं किया, जो किया है हिन्दुस्तान की मिलिट्री ने ही किया है। उन्होंने गोरिल्ला दल भेजकर हमारी मिलिट्री के कैम्प पर हमला कराया कि हमारी फाइल ले सके। ये तो अच्छा हुआ कि जीत सिंह ने पहले ही खबर भेज दी कि हिन्दुस्तानी मिलिट्री क्या करवाने जा रही है। हम चौकस थे और हमने सब संभाल लिया। उसके बाद भी हिन्दुस्तानी मिलिट्री ने बस नहीं की और तुम्हें भेज दिया। तुमने तो और भी कहर बरपा डाला। परंतु मैं जानता हूं कि ये सब करने पर तुम मजबूर थे। तुम्हारे साथी को मेजर ने पकड़ रखा था हिन्दुस्तान की पुलिस को तुम्हारी और जगमोहन की तलाश रहती है। ऐसे में तुम नहीं चाहते थे कि जगमोहन, पुलिस के हाथों में जाए।"
देवराज चौहान कॉफी के घूंट लेता रहमान अहमद को देख रहा था।
रहमान अहमद ने पुनः कहा।
"हम जानते हैं कि इस्लामाबाद में मेजर के कौन-कौन से एजेंट काम कर रहे हैं, वो कहां रहते हैं। परंतु हम उन्हें कुछ नहीं कहते। सिर्फ उनकी कार्यवाहियों पर नजर रखते हैं। हमें खबरें मिल जाती है कि मेजर के लिए वो क्या कर रहे हैं। वैसे हम उन्हें पलक झपकते ही गिरफ्तार कर सकते हैं। शूट कर सकते हैं। परंतु उसका क्या फायदा। ये सिलसिला तो चलता ही रहेगा। मेजर अपने नए एजेंट तैयार कर लेगा, इसलिए हम इन्हें कुछ नहीं कहते।"
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा।
"तुम पाकिस्तान में जब दोबारा आए गोरिल्ला को छुड़ाने के लिए तो हर पल तुम हमारी नजर में थे। हमें मालूम था कि तुम क्या कर रहे हो। कब इकबाल खान के पास गए। क्या तैयारी कर रहे हो। हमें सब पता था।"
"कैसे पता लग रही थी तुम्हें ये बातें?" देवराज चौहान ने पूछा।
"तुम डकैती मास्टर हो जबकि हमारी स्पाई गेम होती है। इन बातों को तुम नहीं समझोगे।"
"मैं सब समझता हूं। कौन था तुम्हारा जासूस?" देवराज चौहान बोला--- "कादिर शेख?"
"नहीं।"
"इस्माईल या अनीस अहमद?"
"वो भी नहीं।" मुस्कुराया रहमान अहमद--- "कहा ना, ये स्पाई गेम है। तुम उसे पहचान नहीं सके। वो हमारा बहुत ही काबिल एजेंट है। तुम उस पर शक भी कैसे कर...।"
तभी दरवाजा खुला और जीतसिंह ने भीतर प्रवेश किया।
ब्रिगेडियर रहमान अहमद ने उसे देखते ही कहा।
"बहुत देर लगा दी आने में जीतसिंह---।"
"ट्रैफिक में फंस गया था सर।" जीतसिंह की निगाह देवराज चौहान पर पड़ी--- "तो सेवा सत्कार हो रहा है।"
"हम देवराज चौहान के दुश्मन तो नहीं।" रहमान अहमद मुस्कुराया।
"नहीं सर। दोस्त हैं।" जीतसिंह भी मुस्कुराया।
रहमान अहमद, देवराज चौहान से बोला।
"हमने अभी तक किसी को नहीं बताया कि हमने डकैती मास्टर देवराज चौहान को पकड़ा है। यही कहा कि तुम हिन्दुस्तानी एजेंट हो जो गोरिल्ला को आजाद कराने आए थे। ये हमारी दोस्ती की पहली निशानी है।"
"बता देते तो इससे मुझे क्या फर्क पड़ता।" देवराज चौहान ने कहा।
"उस स्थिति में तुम्हें जिंदा ना रखा जाता। शूट कर दिया जाता। तब मिलिट्री ये सोचती कि तुम उनके किसी काम के नहीं। हमारे पास इतना वक्त नहीं कि हम बेकार के लोगों को अपनी कैद में रखें।"
"तो मुझे क्यों कैद में रखा...।"
"तुम हमारे दोस्त हो देवराज चौहान। मैंने तुम्हें अपना दोस्त मान लिया है। तभी तो तुम्हारे बंधन खोले गए। तुम्हें सिगरेट पीने को दी। कॉफी दी और अभी तुम्हें बेहतरीन खाना भी दिया जाएगा।" ब्रिगेडियर रहमान अहमद मुस्कुराया।
देवराज चौहान, उसे देखता रहा।
"हामिद अली से हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं।" रहमान अहमद ने कहा--- "अगर उसे पता चल जाए कि तुम हमारे पास कैद में हो तो वो तुम्हें मांग लेगा और हम उसे इंकार नहीं कर पाएंगे। हमने तुम्हारे बारे में हामिद अली को भी खबर नहीं दी। इसी से तुम समझ सकते हो कि हम तुम्हारा कितना ध्यान रख रहे हैं।"
"मेरे प्लान की खबर तुम्हें कौन दे रहा था?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में पूछा।
ब्रिगेडियर रहमान अहमद, जीतसिंह को देखकर बोला।
"तुम क्या खबर लाए?"
जीत सिंह ने इंकार में सिर हिला दिया।
"नहीं पता चला कुछ?" रहमान अहमद गंभीर हो गया।
"नहीं।"
ब्रिगेडियर रहमान अहमद की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।
"हमारा एक एजेंट 540 दो दिन से लापता है देवराज चौहान।"
"तो मैं क्या कर सकता हूं।" देवराज चौहान ने कॉफी का आखिरी घूंट भरा और कुर्सी से उठकर, प्याला एक तरफ रखा और रहमान अहमद से कहा--- "कॉफी के लिए शुक्रिया।" इसके साथ ही उसने नई सिगरेट सुलगा ली।
"540 नंबर ही हमें तुम्हारे बारे में खबरें दे रहा था।" रहमान अहमद ने कहा--- "उसी ने हमें तुम्हारे प्लान के बारे में बताया था। वो हमारा बेहतरीन एजेंट है और इस तरह उसका लापता हो जाना, मुझे परेशान कर रहा है।"
देवराज चौहान की निगाह, रहमान अहमद पर जा टिकी।
"उसे तुम भुल्ले खान के नाम से जानते हो।"
"क्या?" देवराज चौहान चिंहुक उठा--- "भुल्ले खान? तुम्हारा एजेंट...।"
"मिलिट्री इंटेलिजेंस का बेहतरीन एजेंट है वो। उसका असली नाम नसीम चौधरी है। इन दिनों वो जीतसिंह के साथ मिलकर आतंकवादियों को सीमा के उस पार भेजने का काम कर रहा था परंतु फिर तुम्हारे साथ लग गया। इसके पीछे भी उसका एक मतलब था। उसका प्लान था---वो---।"
"तुम कह रहे हो कि भुल्ले खान मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट है।" देवराज चौहान हक्का-बक्का था।
"हां।" रहमान अहमद ने गंभीर स्वर में कहा--- "वो कहां है?"
"मुझे क्या पता?" देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब से भाव थे--- "वो तुम्हारा एजेंट था और मैं उसके साथ रहकर अपनी योजना पर काम करता रहा। उसने हर कदम पर मेरी सहायता की। मैं सोच भी नहीं सकता था कि वो मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट हो सकता है। ओह, इतना बड़ा धोखा खा गया मैं।"
"ये स्पाई गेम है। जासूसों की दुनिया में कब क्या हो जाए, पता नहीं चलता।" रहमान अहमद ने गंभीर स्वर में कहा--- "दो दिन पहले उसका आखिरी फोन मेरे पास आया था। जानते हो उसने क्या कहा था।"
"क्या?" देवराज चौहान अभी तक अपनी व्याकुलता पर काबू नहीं पा सका था।
"उसने फोन पर कहा कि जगमोहन इस्लामाबाद आ गया है, उसने बुलाया है। उसके पास जा रहा हूं फिर फोन करूंगा। इतना कहकर भुल्ले खान ने फोन बंद कर दिया था। उसके बाद मैंने एक दिन उसके फोन का इंतजार किया। जब नहीं आया तो मैंने फोन किया, परंतु उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था। वो अपना फोन बंद नहीं कर सकता था। बंद करना होता तो मुझे बताता जरूर। मैंने अपने कुछ लोग उसकी तलाश में भेजे परंतु वो कहीं नहीं मिला।" रहमान अहमद ने गंभीर स्वर में कहा।
"ये जानकर मुझे खुशी हुई कि मेजर ने जगमोहन को छोड़ दिया।" देवराज चौहान बोला।
"जगमोहन का इस्लामाबाद आना, स्पष्ट करता है कि वो तुम्हें छुड़ाने आया है। मेजर कमलजीत सिंह ने उसे बता दिया होगा कि तुम हमारी पकड़ में आ गए हो। यहां आकर उसने भुल्ले खान को बुलाया फिर भुल्ले खान गायब हो गया।"
देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान उभरी।
"तुम मुझे बहुत काम की बातें बता रहे हो। भुल्ले का मिलिट्री का एजेंट होना। जगमोहन का इस्लामाबाद आना...।"
"भुल्ले खान है कहां?"
"मैं क्या बता सकता हूं।"
"जगमोहन का इस्लामाबाद में कौन-कौन सा ठिकाना है?" रहमान अहमद ने पूछा।
"मेरी नजर में तो सिर्फ वसीम राणा ही है। क्या पता वो उसके पास गया भी है या नहीं?"
"वसीम राणा पर हम कल से नजर रख रहे हैं। परंतु उसमें हमें कोई संदिग्ध बात नजर नहीं आई। वो अपनी फैक्ट्री और घर तक ही आ-जा रहा है। एक बार काम के सिलसिले में यहां मिलिट्री हैडक्वार्टर भी आया था।"
"यहां वो क्या करने आएगा?"
"तुम्हें पता नहीं?"
"क्या?"
"वो मिलिट्री की वर्दियां सिलने का ठेका लेता है।"
"ओह।" देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे--- "मुझे नहीं पता था। सच में नहीं पता था कि वो क्या काम करता है।"
"हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली कि जगमोहन ने वसीम राणा से संपर्क बनाया हो। शायद वो कहीं और है। किसी नए ठिकाने पर। संभव है मेजर ने उसे इस नए ठिकाने के बारे में बताया हो कि यहां वो सुरक्षित रह...।"
"मैं नहीं जानता, जगमोहन कहां है।"
"जगमोहन जहां भी है, देर-सवेर में सामने आ जाएगा। क्योंकि उसका टारगेट तुम्हें आजाद कराना होगा। तुम्हारी ही तरह वो भी मिलिट्री हैडक्वार्टर में घुसने की चेष्टा करेगा, जिसके लिए हम तैयार बैठे हैं। परंतु सवाल तो ये पैदा होता है कि भुल्ले खान कहां गायब हो गया। उसके फोन के मुताबिक दो दिन पहले वो जगमोहन के पास गया था। उसके बाद उसकी कोई खबर नहीं मिल रही।" रहमान अहमद की निगाह देवराज चौहान पर थी--- "तुम भी दोस्ती निभाओ हमारे साथ। हमें बताओ कि जगमोहन कहां छिपा हो सकता है। हमें सिर्फ भुल्ले खान की चिंता है। वो हमें मिलना चाहिए।"
"मैं सच में नहीं जानता कि जगमोहन कहां हो सकता है।" देवराज चौहान बोला।
"हमने मेजर के हर एजेंट को चैक कर लिया है। जगमोहन ने उनसे संपर्क नहीं बनाया।" रहमान अहमद कह उठा।
"मुझे तो अभी तक भुल्ले खान पर हैरानी हो रही है कि उसने किस खूबसूरती से मुझे धोखा दिया।"
कई पलों तक वहां खामोशी रही।
देवराज चौहान वापस कुर्सी पर जा बैठा।
"तो मैं तुम पर यकीन कर लूं कि जगमोहन के ठिकाने के बारे में तुम्हें नहीं पता।" रहमान अहमद बोला।
"मैं सच कह रहा हूं।"
तभी जीत सिंह कह उठा।
"तो सर भुल्ले खान अचानक कहां गायब हो गया?"
"सिर्फ एक ही बात मन में आ रही है कि कहीं जगमोहन, भुल्ले खान की असलियत ना जान गया हो।" रहमान अहमद ने जीत सिंह को देखकर गंभीर स्वर में कहा--- "ऐसा हुआ होगा तो जगमोहन ने उसे मार दिया होगा या कैद कर लिया होगा।"
"ओह!" जीत सिंह के चेहरे पर कठोरता नाच उठी--- "मैं जगमोहन को तलाश करके रहूंगा।"
"मेरे कई एजेंट भुल्ले की तलाश पर लगे हैं। संभव है, वो वसीम राणा के पास पनाह लिए हुए हो। मैं पूछताछ के लिए दो एजेंटों को आज ही वसीम राणा के पास भेजूंगा।"
"वसीम राणा, इसे और जगमोहन को बहुत मानता है सर। वो मुंह नहीं खोलेगा।" जीत सिंह ने कहा।
"अगर ऐसा हुआ और बाद में हमें पता लगा कि जगमोहन उसी के पास था तो मिलिट्री उसे ठेके देने बंद कर देगी और उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इस तरह वो पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा।" रहमान अहमद ने शब्दों को चबाकर कहा फिर देवराज चौहान को देखकर बोला--- "जानते हो भुल्ले खान की प्लानिंग क्या थी। वो क्यों तुम्हारे साथ लगा रहा। उसका व्यवहार क्यों नम्र रहा और उसने तुम्हें बहुत प्यार के साथ, मिलिट्री हैडक्वार्टर में फंसाया।"
"बोलो।" देवराज चौहान ने कहा।
"जब भुल्ले ने मेजर कमलजीत सिंह को, गोरिल्ला को छुड़ाने का काम तुम्हारे हवाले किया तो तब उसे एहसास हुआ कि तुम खास दम-खम रखते हो। मेजर इतना बड़ा काम यूं ही तुम्हारे हवाले नहीं कर रहा। इसके बाद से भुल्ले खान तुम्हारी सहायता करने के बहाने तुम्हारे साथ चिपक गया। तुम्हें याद होगा कि उसने अपने चचेरे भाई अहमद खान को जंगल में शूट कर दिया था।"
देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया।
"अहमद खान को उसने इसलिए मारा था कि वो मेजर के लिए काम करता था और उसने भुल्ले को भी मेजर के हाथों फंसा दिया था। उसका ख्याल था कि अहमद भविष्य में उसके लिए खतरा बन सकता था। क्योंकि वो हिन्दुस्तानी मिलिट्री के लिए काम करता था। ये बात तब जीत सिंह को भी पता नहीं थी। मेजर के अपने संबंध थे अहमद से। सबसे पहला काम उसने अहमद को खत्म करने का किया और ये करके उसने तुम्हारा भरोसा भी जीत लिया था। तुमने उसे अपना साथी मान लिया। जबकि भुल्ले खान मिलिट्री का जासूस था और उसे ये काम मिला हुआ था कि वो ज्यादा से ज्यादा आतंकवादियों को सीमा पार कराकर हिन्दुस्तान भेजे। ताकि आतंकवादी हिन्दुस्तान में अस्थिरता फैलाते रहें। इस काम के लिए उसने भुल्ले खान का नाम रखा और सामान्य लोगों की भीड़ में शामिल हो गया और मुझसे संबंध बनाए रखता था। अपनी हर रिपोर्ट मुझे देता रहता था तो मैं तुम्हारे बारे में बता रहा था कि भुल्ले ने तुम्हें लेकर सोचा कि तुम हिन्दुस्तान के जाने-माने डकैती मास्टर हो। हम लोग तुमसे बहुत अच्छा काम ले सकते हैं। भुल्ले का प्लान था कि तुमसे बात तय करके तुम्हें हिन्दुस्तान भेज दिया जाए। तुम वहां पर, हमारे भेजे आतंकवादियों को, ऐसी नाजुक जगहों के बारे में बताओगे कि जहां हमला करना ठीक होगा और हिन्दुस्तान की सरकार छटपटा उठेगी। चूंकि तुम हिन्दुस्तान में रहते हो, डकैती मास्टर हो तो ये काम बढ़िया कर सकते हो। हम तुम्हें अपना आदमी बना लेना चाहते हैं। तभी तो तुम्हें कोई तकलीफ नहीं दी गई। सख्ती नहीं की गई। तुम्हें बांधकर अवश्य रखा गया और ऐसा करना जरूरी था। वरना तुम कोई गलत हरकत कर देते। हिन्दुस्तान में कोई बड़ा हमला करने का वक्त आया तो उसकी कमांड भी तुम संभाल सकते हो। इसकी एवज में तुम्हें बहुत तगड़ा पैसा दिया जाएगा। पाकिस्तान, हिन्दुस्तान पर आक्रमण करके तो जीत नहीं सकता, इसलिए आतंकवादियों से हम इस तरह के हमले कराते रहते हैं कि हिन्दुस्तान धीरे-धीरे कमजोर होता रहे। भुल्ले खान की योजना मुझे पसंद आई थी कि तुम हमारे काम करो हिन्दुस्तान में। तुम हमारे साथ मिल गए तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं।
देवराज चौहान का चेहरा बिल्कुल शांत रहा। कोई भाव नहीं आने दिए चेहरे पर। वो जानता था कि इस वक्त बहुत बुरी तरह फंसा हुआ है और यहां से निकल जाने का चांस उसे नहीं मिलने वाला। अलबत्ता ये लोग उसे यातना दे-देकर, उसकी जान ले लेंगे। यहां सिर्फ इनकी चलेगी। उसकी नहीं। यहां से वो जिंदा बाहर नहीं निकल सकता। ऐसे में जो भी बात करनी होगी, सोच-समझकर करनी होगी। उसे छुड़ाने के लिए जगमोहन भी इस्लामाबाद पहुंच चुका है। वो जल्दी ही कुछ करने की चेष्टा करेगा, परंतु वो कामयाब नहीं हो सकेगा, क्योंकि इन लोगों को पता है कि जगमोहन क्या करने वाला है ये लोग उसके आने का इंतजार कर रहे हैं। जगमोहन भी फंस सकता है। यहां आकर फंस जाना बहुत आसान है, परंतु यहां से बचकर नहीं निकला जा सकता। बहुत सोच-समझकर उसे अगला कदम उठाना होगा।
"मेरी बात समझे?" ब्रिगेडियर रहमान अहमद ने मुस्कुराकर पूछा।
"हां।"
"पसंद आई मेरी बात?"
"कह नहीं सकता। मुझे सोचने का वक्त चाहिए।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
"हामिद अली बहुत खुश होगा उसके साथ हमारे संबंध और भी मजबूत हो जाएंगे अगर तुम्हें उसके हवाले कर दे तो। परंतु ऐसा नहीं करना चाहते हम। तुम्हें अपने आदमी बना लेना चाहते हैं। तुमने हमारी बात मानकर हमारे लिए काम शुरू कर दिया तो हामिद अली को भी तुम्हारा दोस्त बना देंगे। दुश्मनी खत्म हो जाएगी।"
देवराज चौहान मुस्कुराया।
"हम तुम्हें इतना पैसा दिया करेंगे कि तुम्हें कभी डकैती करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस्लामाबाद में तुम्हें शानदार बंगला दे दिया जाएगा। यहां तुम्हारी शादी भी हसीन लड़की से करा देंगे। ऐसे ही आराम जगमोहन को भी देंगे। हम खुशनसीब होंगे अगर तुमने हमसे हाथ मिला लिया। हम तुम्हें कभी कोई शिकायत नहीं होने देंगे।" रहमान अहमद के चेहरे पर मुस्कान थी--- "पाकिस्तान में तुम जब भी आओगे, बादशाह बनकर रहोगे। तुम्हारी जिंदगी बहुत ही शानदार हो जाएगी।"
देवराज चौहान ने नई सिगरेट सुलगा ली।
"कैप्टन अशफाक।" ब्रिगेडियर रहमान अहमद बोला।
"यस सर।"
"देवराज चौहान के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो।"
"खाना आ गया होगा सर।"
कैप्टन अशफाक ने एक जवान को खाना लाने भेज दिया।
अब तक खामोश खड़ा मेजर बख्तावर अली कह उठा।
"तुम्हारे लिए ये शानदार सौदा है। सोचने की गुंजाइश नहीं है। तुम्हें फौरन हां कह देना चाहिए। तुम सोच भी नहीं सकते कि हम तुम्हें कितने आराम देंगे। दोस्तों का हम खूब ख्याल रखते हैं। जीतसिंह से ही पूछ लो, कितने मजे से इसकी जिंदगी कट रही है। ये बहुत खुश है हमारे साथ। तुम भी बहुत मजे में रहोगे।"
देवराज चौहान की निगाह सब पर जाने लगी। ब्रिगेडियर रहमान अहमद पर, बख्तावर अली पर, चारों जवानों पर, कैप्टन अशफाक पर फिर कुर्सी से उठा और टहलने लगा।
"मान लो मेरी बात।" जीत सिंह मुस्कुराकर बोला--- "फायदे में रहोगे।"
"अब सोचना कैसा?" रहमान अहमद ने कहा।
"फैसला करने के लिए मुझे वक्त चाहिए।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम ऐसी स्थिति में नहीं हो कि हां करने में इतनी देर लगाओ।" रहमान अहमद ने कहा।
"ब्रिगेडियर साहब।" मेजर बख्तावर अली बोला--- "इसे वक्त दे दीजिए। शाम तक बता देगा।"
"ठीक है। शाम तक का वक्त दे देते हैं। तो तुम हमें शाम तक जवाब दे दोगे?" रहमान अहमद ने देवराज चौहान से पूछा।
"आशा तो है।" देवराज चौहान का स्वर सोच भरा था। टहलते-टहलते वो कैप्टन अशफाक के पास पहुंचा और पलक झपकते ही उसकी कमर पर बंधे होलस्टर से रिवाल्वर निकाल ली।
देवराज चौहान की इस हरकत पर सब चौंके।
जवानों के हथियार कंधों से हाथों में आ गए।
कैप्टन अशफाक ने देवराज चौहान पर झपटना चाहा तो देवराज चौहान ने रिवाल्वर उसकी तरफ कर दी।
अशफाक ठिठक गया।
"ये तुम क्या कर रहे हो?" रहमान अहमद के माथे पर बल दिखने लगे थे। चेहरा कुछ कठोर हो गया। कुर्सी से उठ खड़ा हुआ था।
"रिवाल्वर फेंक दो।" जीत सिंह बोला--- "यहां कोई चालाकी कामयाब नहीं हो सकती।"
"हैरानी है।" मेजर बख्तावर अली कह उठा--- "हम तुम्हें इतना बढ़िया मौका दे रहे हैं और तुम...।"
तभी देवराज चौहान आगे बढ़ा और रहमान अहमद की कमर से रिवाल्वर लगा दी और इस तरह खड़ा हो गया कि जवान अगर फायरिंग करें तो गोली रहमान अहमद को लगे।
"हिलना मत।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
सब सन्न रह गए थे।
"तुम पागल हो क्या?" रहमान अहमद संभले स्वर में बोला--- "हम तुम्हारे भले के लिए बात कर रहे हैं और तुम---।"
"चुप रहो।" देवराज चौहान गुर्राया।
रहमान अहमद के होंठ भिंच गए।
"ऐसा मत करो।" जीतसिंह बोला--- "तुम बच नहीं सकते।"
"सब कान खोल कर सुन लो।" देवराज चौहान रहमान की कमर से रिवाल्वर लगाए, बांह का घेरा उसके गले पर डाले, गुर्राकर कह उठा--- "अगर किसी ने फायर करने की हिम्मत दिखाई तो ब्रिगेडियर मारा जाएगा।"
सन्नाटा छा गया वहां।
"ये सब करके तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो।" मेजर बख्तावर अली बेचैनी से कह उठा।
"रास्ते से हट जाओ। मैं ब्रिगेडियर के साथ कमरे से बाहर जा रहा...।"
तभी दरवाजा खुला और जवान खाने की ट्रे थामे भीतर आया।
परन्तु भीतर का हाल देखते ही वो ठगा सा रह गया।
"दरवाजा खुला रहने दो और एक तरफ हट जाओ।" देवराज चौहान ने खाना लाने वाले जवान से कहा।
जवान ट्रे थामे एक तरफ हट गया। कमरे में खाने की सुगंध भर आई थी।
"हम तुम्हें यहां से जाने नहीं देंगे देवराज चौहान।" कैप्टन अशफाक ने कठोर स्वर में कहा।
देवराज चौहान, रहमान अहमद को कवर किये दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा।
रहमान अहमद के चेहरे पर सख्ती नाच रही थी।
"तुम बहुत बड़ी भूल कर रहे हो।" रहमान अहमद कह उठा--- "हम तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं।"
"मुझे गोरिल्ला चाहिए।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।
"अब उसे लेकर क्या करोगे। मेजर ने जगमोहन को आजाद कर दिया है।" रहमान अहमद ने कहा।
"पर मेरा काम अभी अधूरा है।"
"उस मेजर के बारे में सोचो। पाकिस्तान के साथी बनो। तुम्हारा सब कुछ बढ़िया रहेगा।"
"मुझे गोरिल्ला चाहिए। मैं कोई काम अधूरा नहीं छोड़ता।" शब्दों को चबाते देवराज चौहान ने कहा--- "मुझे पाकिस्तान में कोई दिलचस्पी नहीं है। रुको मत---सीधे चलो--- कोई चालाकी नहीं---।"
सब थमें से खड़े रहे।
देवराज चौहान रहमान अहमद के साथ दरवाजे पर जाकर रुका और कमरे में मौजूद सब पर नजर मारने के बाद एक जवान से कहा।
"अपने कपड़े उतार कर मुझे दो।" देवराज चौहान अभी तक अंडरवियर में था।
वो जवान गन थामें खड़ा रहा कि बात माने या ना माने।
"जल्दी करो। उसे कह ब्रिगेडियर।" देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला।
ब्रिगेडियर का इशारा पाकर उस जवान ने अपनी गन नीचे रखी और वर्दी की कमीज-पैंट उतारकर, पास आकर देवराज चौहान की तरफ बढ़ाई तो देवराज चौहान ने कहा।
"कपड़े थाम लो ब्रिगेडियर।"
रहमान अहमद ने कपड़े थाम लिए।
देवराज चौहान रहमान अहमद के साथ खुले दरवाजे से बाहर निकला और फुर्ती से दरवाजा बंद करके कुंडी चढ़ा दी। ये गैलरी थी और दो मिलिट्री वाले सामने से आते दिखे। देवराज चौहान संभला। ब्रिगेडियर से बोला।
"इनसे बोलना सब ठीक है।" रिवाल्वर उसकी कमर हटा ली थी।
"पर तुम बच नहीं सकते। यहां से जा नहीं सकोगे।" रहमान अहमद ने कहा।
तब तक सामने से आते दोनों मिलिट्री वाले पास आ चुके थे।
"ये क्या हो रहा है?" एक ने संदिग्ध निगाहों से उन्हें देखते हुए कहा।
"सब ठीक है।" रहमान अहमद मुस्कुराकर बोला--- "हम कुछ काम कर रहे हैं।"
वो दोनों सिर हिलाकर आगे बढ़ गए।
"गोरिल्ला कहां है?" देवराज चौहान ने दांत भींचकर पूछा।
"साथ वाले कमरे में।" रहमान अहमद ने उसे शांत निगाहों से देखा--- "आओ, मैं तुम्हें उसके पास ले चलता हूं। क्या तुम मुझे लेकर यहां से निकल जाना चाहते हो। पर ऐसा नहीं कर सकोगे। मेरे सिर पर रिवाल्वर रखकर भी तुम निकलने में सफल नहीं हो सकते। कैदियों के कमरों में C.C.T.V. कैमरे लगे हैं। नीचे कंट्रोल रूम से हर कैदी पर नजर रखी जाती है। अब तक तो कंट्रोल रूम वाले जान चुके होंगे कि तुमने क्या किया और वो तैयारी में लग चुके होंगे तुम्हारे लिए। बहुत पुख्ता इंतजाम है यहां।"
देवराज चौहान ने मेजर के साथ, दूसरे कमरे में प्रवेश किया।
गोरिल्ला कुर्सी पर बंधा था और वहां दो जवान पहरे के लिए कुर्सियों पर बैठे थे। रहमान अहमद को देखते ही तुरंत खड़े हो गए। अब तक देवराज चौहान ने रिवाल्वर पुनः रहमान अहमद की कमर से लगा दी थी और कहा।
"जवानों से कहो कि हथियार एक तरफ फेंक दें और खुद दूसरी तरफ खड़े हो जाएं।"
"जो ये कहता है करो।"
जवानों ने हथियार कुछ दूर फेंक दिए।
देवराज चौहान रहमान अहमद से कुछ पीछे हटकर सावधानी से उन कपड़ों को पहनने लगा जो जवान से उतरवाए थे। रहमान अहमद खामोश सा खड़ा उसे देखता रहा।
"तुम्हारी कोशिश बेकार जाएगी देवराज चौहान।" ब्रिगेडियर रहमान अहमद ने कहा--- "कंट्रोल रूम ने जवानों को खबर कर दी होगी। वो आते ही होंगे। तुम बच नहीं सकोगे। यहां से निकलने का ख्याल तो बिल्कुल छोड़ दो।"
"तुम तब बोलो, जब मैं तुम्हारी राय मांगूं।" कमीज के बटन बंद करते देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
"गोरिल्ला, जो कि इनके आने से पहले कुर्सी पर बंधा, आंखें बंद करके नींद लेने के प्रयत्न में था, वो आंखें खोल चुका था और इन्हें ही देख सुन रहा था। उसका चेहरा जख्मी और हालत बुरी दिख रही थी।
रिवाल्वर थामें, सबसे सावधान, देवराज चौहान उसके पास पहुंचा।
"तुम कैसे हो?" देवराज चौहान ने पूछा। साथ ही उसके बंधन खोलने लगा।
गोरिल्ला ने सिर उठाकर देवराज चौहान को देखा।
रहमान अहमद और दोनों जवान शांत खड़े थे।
"मैं तुम्हें यहां से निकालने आया हूं। मेजर ने भेजा है मुझे।" बंधन खोलते देवराज चौहान ने पुनः कहा।
गोरिल्ला ने रहमान अहमद को देखा।
देवराज चौहान के हाथ तेजी से चल रहे थे।
दो मिनट में ही गोरिल्ला के हाथ-पैरों के बंधन खुल चुके थे।
"कैप्टन रंजन गुलाटी।" देवराज चौहान बोला--- "उठो, हमारे पास वक्त कम है।"
"तुम-तुम लोग मुझे पागल नहीं बना सकते।" गोरिल्ला फीके स्वर में बोला।
"क्या मतलब?" देवराज चौहान ने उसके घायल चेहरे को देखा।
"तुम लोग किसी भी हालत में मेरे से वो फाइल नहीं ले सकते।" गोरिल्ला कांपता स्वर दृढ़ था।
रहमान अहमद के चेहरे पर मुस्कान नाच उठी।
"मैं तुम्हें छुड़ाने आया हूं। मेरा नाम देवराज चौहान है मेजर कमलजीत सिंह ने भेजा है मुझे।"
"मैं सब समझता हूं।" गोरिल्ला थके स्वर में बोला--- "ये सब तुम लोगों की चाल है। तुम मुझसे दोस्ती करके आजाद कराने के बहाने मुझसे जान लेना चाहते हो कि मैंने कागज कहां रखे हैं, परंतु मैं तुम्हारी चाल में नहीं फंसूंगा। मैं---।"
"ये कोई चाल नहीं है।" देवराज चौहान तेज स्वर में बोला--- "उठो---।"
"मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला।" गोरिल्ला का कमजोर स्वर कांप रहा था।
रहमान अहमद हौले से हंस पड़ा।
"तुम मुझे फाइल के बारे में मत बताना। मैं तुमसे पूछूंगा भी नहीं। यहां से निकल चलो।"
"मैं कहीं नहीं जाऊंगा।" गोरिल्ला ने इंकार में सिर हिलाया--- "मैं...।"
"बेवकूफ, तुम कीमती वक्त बर्बाद कर रहे हो।" देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला--- "यहां से चलो। मुझे फाइल के बारे में कुछ नहीं जानना है। मैं तुम्हें यहां से निकाल देना चाहता हूं।"
"मैं यहीं रहूंगा। तुम मुझे अपनी बातों में नहीं फंसा सकते।"
तभी रहमान अहमद मुस्कुराकर बोला।
"रहने दो। ये हमारी चाल समझ चुका है।"
देवराज चौहान ने मौत की सी नजरों से रहमान अहमद को देखा।
रहमान अहमद के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच रही थी। वो शांत खड़ा था।
"मैं तो पहले ही कह रहा था कि हमारा प्लान ज्यादा बढ़िया नहीं है।" रहमान अहमद ने पुनः कहा।
"मैं तुम्हें शूट कर दूंगा।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर रहमान अहमद की तरफ रिवाल्वर वाला हाथ उठाया।
तभी दरवाजे से बाहर ढेरों कदमों की आहटों की आवाजें सुनाई दी।
"जवान आ गए देवराज चौहान।" रहमान अहमद ने कहा--- "अब...।"
उसी पल खुले दरवाजे से हथियार थामें जवान एक के बाद एक भीतर आते चले गए। वो कुल नौ थे और सबकी गनें देवराज चौहान की तरफ उठी थी। देवराज चौहान ने दरवाजे की तरफ देखा तो पाया बाहर भी जवान मौजूद हैं।
"तुम्हारा खेल खत्म हो गया। तुम कुछ भी नहीं कर सके। मुझे पहले ही पता था कि तुम कुछ नहीं कर सकोगे। यहां से कोई भी बाहर नहीं निकल सकता। अब समझदारी इसी में है कि रिवॉल्वर गिरा दो।" रहमान अहमद ने गंभीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान दांत भींचे खड़ा रहा।
तभी कदमों की आहटों के साथ बख्तावर अली, जीत सिंह और कैप्टन अशफाक ने भीतर प्रवेश किया।
कमरे का नजारा देखते ही वो थम से गए। जीतसिंह कह उठा।
"तुमने बेवकूफी कर दी। अब मरना नहीं चाहते तो रिवाल्वर फेंक दो।"
देवराज चौहान ने गोरिल्ला को देखा।
गोरिल्ला बदले हालातों को समझने की कोशिश कर रहा था।
"देखा तुमने।" देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला--- "ये कोई ड्रामा नहीं था। मैं सच में तुम्हें छुड़ाने आया हूं।"
"ये सब चाल है। अभी भी तुम लोग चाल खेल रहे हो।" गोरिल्ला टूटे, धीमे स्वर में कह उठा।
क्रोध में डूबे देवराज चौहान ने रिवाल्वर नीचे गिरा दी।
कैप्टन अशफाक ने तुरंत रिवाल्वर उठा ली।
जवानों ने आगे बढ़कर देवराज चौहान को अपने घेरे में ले लिया।
देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती नाच रही थी।
"इसे उसी कमरे में ले जाओ।"
वो सब देवराज चौहान को कमरे से बाहर ले गए।
अब वहां रहमान अहमद के अलावा पहरेवाले दोनों जवान थे। जवानों ने अपनी गनें उठा ली थी। रहमान अहमद के कहने पर उन्होंने गोरिल्ला के हाथ पैरों को फिर से बंधनों में जकड़ दिया था।
"कैप्टन।" रहमान अहमद ने कहा--- "देवराज चौहान को सच में तुम्हारे मेजर ने भेजा है और तुम्हें आजाद कराने के चक्कर में खुद फंस गया। वो साथ वाले कमरे में कैद है। उसके साथ ना जाकर, तुमने तो उसका मजाक बना दिया।"
गोरिल्ला, रहमान अहमद को देखता रहा।
"जुबान बंद रखने का कोई फायदा नहीं। हमारे दोस्त बन जाओ और फाइल के बारे में बता दो।"
"कभी नहीं।"
"तो इसी तरह कुर्सी पर बैठे-बैठे मर जाओगे।"
"मुझे गोली मार दो।" गोरिल्ला चीख उठा--- "कितनी बार कहा है मुझे शूट करो।"
"आसान मौत नहीं मिलेगी। इसी कुर्सी पर तड़प-तड़प कर मरोगे।" रहमान अहमद ने पलटकर जवानों से कहा--- "इस पर सख्त नजर रखो।" कहने के साथ ही बाहर निकलता चला गया।
देवराज चौहान को कुर्सी पर बिठाकर बांधा जा चुका था। सब जवान जा चुके थे।
"तुम्हारे हौसले की मैं कद्र करता हूं।" रहमान अहमद कुर्सी पर बैठता मुस्कुराकर बोला--- "तुमने मिलिट्री हैडक्वार्टर में आकर उस गोरिल्ला को आजाद कराने का सोचा, इस तरह हर कोई नहीं सोच सकता। अब भी तुमने हिम्मत का काम लिया। अशफाक की रिवॉल्वर पर कब्जा जमाया और मुझे कवर कर लिया। मैं तुम जैसे लोगों की बहुत कद्र करता हूं।"
देवराज चौहान के होंठ भिंचे हुए थे। नजरें रहमान अहमद पर थी।
"अशफाक। इसे खोल दो---।"
"लेकिन जनाब।" मेजर बख्तावर अली ने कहना चाहा--- "ये फिर कोई हरकत...।"
"इतना भी पागल नहीं है ये कि दोबारा ऐसी हरकत दोहराए।" रहमान अहमद ने कहा--- "मैं अभी साबित करता हूं कि ये समझदार है।"
रहमान अहमद के इशारे पर अशफाक ने देवराज चौहान को खोल दिया।
रहमान अहमद ने अपनी रिवॉल्वर निकाली और कुर्सी पर बैठे देवराज चौहान की तरफ उछाल दी।
देवराज चौहान ने तुरंत रिवॉल्वर लपक ली।
रहमान अहमद की हरकत पर सब हड़बड़ा गए थे।
"ये आपने क्या किया जनाब---?" बख्तावर अली के होंठों से निकला।
"मैं तुम्हें दिखाना चाहता हूं कि ये वास्तव में समझदार है।" रहमान अहमद ने मुस्कुराकर कहा।
"लेकिन रिवाल्वर---।"
"चुप रहो और देखो।" फिर रहमान अहमद ने देवराज चौहान से कहा--- "एक बार फिर रिवाल्वर तुम्हारे पास है। अगर अभी भी कुछ करना चाहते हो तो कर सकते हो।"
देवराज चौहान ने रिवाल्वर फर्श पर फेंक दी।
"देखा मेजर। ये कितना समझदार है।" रहमान अहमद ने सिर हिलाकर कहा।
अशफाक ने रिवाल्वर उठाकर रहमान अहमद को दे दी।
जीत सिंह आगे बढ़ता कह उठा।
"देवराज चौहान। तुम सच में काबिल इंसान हो। जांबाज हो।"
देवराज चौहान उठा और एक तरफ रखे पैकेट में से सिगरेट निकालकर सुलगा ली।
"अशफाक। देवराज चौहान का खाना ठंडा हो गया होगा।"
"जी जनाब---।"
"नया खाना मंगवाओ। एकदम गर्म, मेहमान नवाजी में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते। इसे कमीज-पैंट भी लाकर दो। इसने जो वर्दी पहन रखी है, वो वापस जवान को दे देना।"
"जी---।" अशफाक तुरंत खाना लाने वाले जवान की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान ठिठका खड़ा सिगरेट के कश ले रहा था। चेहरे पर गंभीरता थी।
"मेरी पहले की बातें अब भी अपनी जगह पर हैं।" रहमान अहमद ने कहा--- "हम तुम्हें अपना खास आदमी बनाना चाहते हैं। हमारी बात मानकर तुम्हारी जान भी बचेगी और तुम बेहतर जिंदगी भी जी पाओगे। तुम जैसे हिम्मती लोगों की मुझे हमेशा जरूरत रहती है। हम तुम्हारे सामने पैसों का ढेर लगा देंगे। परंतु उससे पहले तुम्हें खुद को साबित करना होगा। हमारे लोग मुंबई में मौजूद हैं और तुम भी मुंबई में रहते हो। बेहतर जानते हो कि कहां पर हमला करना बेहतर होगा। मेरे आदमियों के लिए तुम जगह चुनोगे। तुम योजना बनाओगे। अगर जरूरत समझो तो तुम भी उनके साथ शामिल हो जाओ। मुझे मुंबई में तबाही चाहिए। पुलिस तो पहले से ही तुम्हारे पीछे है वो डकैती मास्टर को पकड़ लेना चाहती है। लेकिन तुम अपनी अक्लमंदी से पुलिस से बचे रहते हो। मैं चाहता हूं कि जब तुम मेरे काम में शामिल होवो तो चेहरे पर नकाब पहन लो। ताकि कोई जान नहीं सके कि ये काम तुमने किया है। बात खुल भी जाए तो परवाह नहीं। पाकिस्तान के दरवाजे तुम्हारे लिए खुले पड़े हैं। पाकिस्तान तुम्हारा घर है यहां रह सकते हो। तुम यहां रहकर भी हमारे मुंबई के कामों को बेहतर संभाल लोगे क्योंकि मुंबई से तुम परिचित हो।"
देवराज चौहान रहमान अहमद को देख रहा था।
"इससे बढ़िया ऑफर तुम्हें कोई नहीं देगा। पाकिस्तान का हाथ हमेशा तुम्हारी पीठ पर रहेगा।"
"ये काम आसान नहीं है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
"तुम्हारे लिए बहुत आसान है।" रहमान अहमद के चेहरे पर मुस्कान थी।
"तुम जानते ही हो कि आतंकवादियों का अंत कैसा होता है एक या दो बार वो अपनी कोशिशों में कामयाब जरूर रहते हैं परंतु फिर कानून के हाथों मारे जाते हैं। ऐसा कोई नाम बताओ जो दस सालों से आतंकी काम कर रहा हो और बचा हुआ है।" देवराज चौहान का सामान्य स्वर गंभीर था--- "आतंकवादी कभी भी ज्यादा देर जिंदा नहीं रहता।"
"मैं तुम्हारी बात से इत्तेफाक रखता हूं।" रहमान अहमद ने कहा--- "परंतु तुम्हें इन बातों की परवाह करने की जरूरत नहीं है। करते तो हम ऐसा ही है कि आतंकवादी बने इंसान को हम हथियार और कुछ पैसे देकर सीमा पार करा देते हैं। उसके बाद वो आतंकी हरकतें करता है और सुरक्षाबलों या पुलिस के द्वारा मार दिया जाता है। लेकिन तुम हमारे खास रहोगे। हम तुम्हें आतंकवादी के तौर पर इस्तेमाल नहीं करेंगे। मार्गदर्शक के तौर पर इस्तेमाल करेंगे। जो कि आतंकवादियों को ये बताएगा कि हिन्दुस्तान में कहां-कहां अटैक करना है और कैसे करना है। इस तरह तुम हमारी भरपूर सहायता कर सकते हो। डकैती मास्टर हो। तुम्हारे दिमाग का जवाब नहीं। हौसले की तुम में कमी नहीं। बस एक बार दिल से हमारा साथ देने को तैयार हो जाओ। फिर देखो हम दोनों मिलकर हिन्दुस्तान में क्या रंग दिखाते हैं।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"मैं जानता हूं कि फौरन तुम्हारे लिए ये फैसला लेना कठिन है। सोचने के लिए जितना वक्त चाहते हो, ले लो। मुझे कोई जल्दी नहीं है। अभी वक्त है हमारे पास। जगमोहन भी जल्दी हमारे कब्जे में होगा।"
"जगमोहन?" देवराज चौहान ने रहमान अहमद को देखा।
"वो आएगा ना तुम्हें छुड़ाने।" रहमान अहमद का स्वर शांत था--- "हम उसके आने का इंतजार कर रहे हैं। जब तक वो हमारे हाथ नहीं आता, तब तक तुम्हारे पास सोचने का वक्त है। इन हालातों में मैं तुम्हारी ज्यादा सेवा नहीं कर पाऊंगा। ये कमरा तुम्हारे लिए है। फर्श पर सोना है तुम्हें। चादरें मिल जाएंगी। खाना दिन में दो बार मिलेगा। दो जवान दरवाजे के बाहर हर वक्त तैनात रहेंगे और C.C.T.V. कैमरे द्वारा तुम पर नजर रखी जाएगी।"
"पक्के इंतजाम कर रहे हो और बात दोस्ती की करते हो।" देवराज चौहान बोला।
"अभी तुम हमारे दोस्त बने नहीं हो। बन जाओगे तो हम तब हमारी खातिरदारी देखना। व्हिस्की की बोतल वगैरह चाहिए तो दरवाजे पर खड़े जवान से कह देना। तुम पर नजर इसलिए रखी जा रही है कि अगर तुम कुछ करो तो पकड़े जाओ। लेकिन कुछ मत करना। हर बार तुम्हारी गलत हरकत को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। गोरिल्ला के विचार तुमने जान ही लिए हैं कि वो तुम्हें पाकिस्तानी मिलिट्री का ही आदमी समझता है।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"भुल्ले खान के बारे में कोई खबर रखते हो तो बता दो।"
"इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता।"
"कोई बात नहीं। उसके बारे में हम पता लगा लेंगे।" ब्रिगेडियर रहमान अहमद कुर्सी से उठ खड़ा हुआ--- "अब मुझे जाना होगा। तुम्हारे साथ बातचीत में काफी वक्त लग गया। मेजर---।"
"जी जनाब।" मेजर बख्तावर अली फौरन दो कदम आगे आया।
"तुम बीच-बीच में इससे मिलकर, पूछते रहना कि ये हमारे लिए काम करने को तैयार है। अगर हां हो तो मुझे बता देना। ये समझदार है और मुझे पूरा भरोसा है कि फैसला लेने में समझदारी से ही काम लेगा।"
"ठीक है जनाब---।"
"जगमोहन तुम्हारे साथ कब से है। कब से उसे जानते हो?" रहमान अहमद ने देवराज चौहान से पूछा।
"जब 18 साल का था। तब से जगमोहन को जानता हूं।"
"फिर तो काफी प्यार होगा तुम दोनों में।" रहमान अहमद मुस्कुराया।
"क्या कहना चाहते हो?"
"कुछ नहीं, यूं ही बात कर रहा था। तुम में और जगमोहन में काफी प्यार है। उधर मेजर ने जगमोहन को पकड़ लिया तो तुम यहां गोरिल्ला को छुड़ाने आ गए। और जब तुम यहां फंसे तो जगमोहन तुम्हें छुड़ाने के लिए इस्लामाबाद आ पहुंचा। एक-दूसरे पर जान देते हो।" रहमान अहमद ने कहा।
"तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?" देवराज चौहान बोला।
"तुम्हारे और जगमोहन के रिश्ते को समझने की चेष्टा कर रहा हूं। इससे ज्यादा कुछ नहीं। आखिर उसने भी हमारी कैद में बहुत जल्द आना है। वो जल्दी ही तुम्हें छुड़ाने के लिए कुछ करेगा और हम भी यहां तैयार हैं उसके लिए।"
देवराज चौहान, रहमान अहमद को देखता रहा।
"चलो मेजर। अभी हमें बहुत काम निपटाने हैं।" रहमान अहमद बोला।
"देवराज चौहान।" मेजर बख्तावर अली ने कहा--- "उस दिन तुम भुल्ले के साथ मेरे पास आए थे। भुल्ले ने मुझे पहले ही फोन पर समझा दिया था कि देवराज चौहान पर विश्वास जमाने के लिए ये सब कर रहा है और तुम्हारे सामने मुझे किस तरह से बात करनी है। तब तुम अपना खेल, खेल रहे थे और भुल्ले अपना। तुम सोच भी नहीं सकते थे कि भुल्ले मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट है। लेकिन उस दिन तुम्हारा मेकअप कमाल का था। पक्के स्थानीय व्यक्ति लग रहे थे। अगर भुल्ले ने मुझे पहले ही ना बता रखा होता तो मैं तुम्हारे बहरूप से अवश्य धोखा खा गया होता। भुल्ले ने बताया कि मेकअप तुमने खुद ही किया था।"
देवराज चौहान मुस्कुराकर बख्तावर अली को देखता रहा। कहा कुछ नहीं।
रहमान अहमद और बख्तावर अली वहां से बाहर निकल गए।
अशफाक और जीत सिंह के अलावा एक जवान वहां खड़ा था कमरे में।
"तुम्हारे लिए खाना आ रहा है।" अशफाक बोला--- "तुम जब खाना खा लोगे तब मैं जाऊंगा।"
देवराज चौहान कुर्सी पर जा बैठा।
खामोश खड़ा जीत सिंह देवराज चौहान को देखता कह उठा।
"मैंने तो सोचा था कि हमारे साथ काम करने के लिए तुम तुरंत ही हां कर दोगे।"
देवराज चौहान ने जीत सिंह को देखा, कहा कुछ नहीं।
"हां कर दो, फायदे में रहोगे।" कहकर जीत सिंह बाहर निकलता चला गया।
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