21-अजय का सुझाव

रविवार को अजय कुछ दिनों के लिए छुट्टी लेकर आ गया, तैयार होने के बाद सबने नाश्ता किया और फिर अभिनव अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने चला गया।

"क्या बात है भइया? आपको अभिनव के बारे में क्या बात करनी है? सब ठीक है न?” अजय नाश्ता करके सोफ़े पर बैठते हुए बोला।

विजय जो अखबार पढ़ रहे थे, उसे बंद कर दिया और चश्मा उतारकर मेज़ पर रख दिया, “सब ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है,” और सारी बात अजय को बता दी।

अजिता भी वहीं आकर बैठ गई।

"यह आपकी बात सही है कि अभिनव का करियर चुनने का अब यह सही समय है। अगर अभी गलत लक्ष्य चुना तो समय और मेहनत दोनों का नुकसान होता है। आप अभिनव से ही पूछ लीजिए कि वह क्या चाहता है। क्या वह अपना करियर क्रिकेट क्षेत्र में बनाएगा या फिर पढ़ाई में?" अजय सारी बात समझकर बोला।

"नहीं, डॉक्टर गुप्ता ने यह कहा था कि अभिनव को अलग अलग प्रोफेशन के लोगों से मिलवाएँ ताकि वह समझ सके कि उसका झुकाव किस ओर है। अभी उससे पूछने पर वह यह तय नहीं कर पाएगा कि उसके लिए क्या सही रहेगा," अजिता ने कहा।

"हाँ डॉक्टर गुप्ता का सुझाव बिलकुल सही है। मेरे कुछ दोस्त यहीं पर काम कर रहे हैं। मैं उनसे बात करके अभिनव से मिलवा देता हूँ।

अजय ने डॉक्टर मानस को शाम के खाने में खाने के लिए बुलाया और उन्हें अभिनव के बारे में पूरी बात बताई। अभिनव को डॉक्टर मानस के आने के बारे में पता चला तो वह बहुत खुश हुआ। अजय ने उसको, डॉक्टर मानस के बारे में बहुत बातें बताई थी। लेकिन उनसे मिलने का मौका पहली बार मिल रहा था।

22-डॉ मानस से मुलाक़ात

"आपने बहुत स्वादिष्ट खाना बनाया है, मेरी माँ भी ऐसा ही खाना बनाती थी। उनकी याद ताज़ा हो गई।" डॉक्टर मानस ने अजिता से कहा

डॉक्टर मानस गोरे, लंबे, सरल व्यक्तित्व के थे और उनकी बातचीत में अपनापन किसी को भी प्रभावित किए बिना नहीं रह सकता था। कुछ ही देर में घर के सभी लोग उनसे घुलमिल गए। अभिनव, यह जानकर ‘कि डॉक्टर मानस क्रिकेट के शौकीन हैं’, बहुत खुश हुआ । उसे लगा कि जैसे उसके अपने मन में चल रहे अनसुलझे सवालों का जवाब डॉ.मानस के पास होगा।

“किस टीम के लिए आप क्रिकेट खेलते हैं?”

"नहीं, मैं किसी टीम के लिए नहीं खेलता, मैं बस अपने मज़े के लिए क्रिकेट खेलता हूँ, मेरे कुछ दोस्त हैं जो छुट्टी के दिन ही क्रिकेट खेलते हैं तो मैं उनके साथ खेल लेता हूँ।”

अभिनव को यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि कोई सिर्फ मज़े के लिए कैसे खेल सकता है?

उसका हैरान चेहरा देखकर डॉ.मानस ने अभिनव से पूछा, "तुम मेरे उत्तर से संतुष्ट नहीं लग रहे हो, किस बात से परेशान हो?"

“मुझे लगा कि आप किसी टीम के लिए मैच खेलते होंगे।"

"मैं प्रोफेशन से डॉक्टर हूँ और अपने काम को सबसे ज्यादा जरूरी समझता हूँ। क्रिकेट खेलने में मज़ा आता है इसलिए खाली समय में खेल लेता हूँ।”

“अगर क्रिकेट आपको पसंद है तो आपने इसे अपने कैरियर के रूप में क्यों नहीं चुना?” अभिनव ने पूछा

“हाँ, इसमें कोई शक नहीं है कि मुझे क्रिकेट खेलना पसंद है, लेकिन साथ ही मुझे बचपन से ही लोगों की सेवा करना भी अच्छा लगता है, इस काम में मैं संतोष महसूस करता हूँ। एक कारण और भी है कि मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ। मेरे पिताजी को कम वेतन में ही पूरे परिवार की देखभाल करनी होती थी, वह बहुत मेहनत करके ही परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर पाते थे। मैं पढ़ाई में अच्छा छात्र था, इसलिए मुझे पढ़ाई के लिए छात्रवृति मिल गई थी जिस वजह से मैं अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने में सफल रहा। क्रिकेट या किसी भी खेल में करियर बनाने में आसान नहीं है, बहुत प्रतियोगिता होती है।”

"क्रिकेट को अपना करियर न बनाने का क्या आपको अफ़सोस है?” अभिनव ने अपने कैरियर के बारे में निर्णय लेने के उद्देश्य से पूछा।

"नहीं मुझे अफसोस नहीं है क्योंकि मैं हमेशा से इस खेल के सम्पर्क में रहा हूँ, और यहाँ तक ​​कि मेडिकल कॉलेज में भी मैं कॉलेज की टीम के लिए खेलता था। मैंने कभी खेल को छोड़ा नहीं लेकिन केवल मज़े के लिए खेला।” कुछ देर शांत रहने के बाद उन्होंने अभिनव से कहा देखो अभिनव जिंदगी में एक ही काम अच्छी तरह से किया जा सकता है। मुझे डॉक्टर बनना भी उतना ही अच्छा लगता था जितना क्रिकेट तो मैंने डॉक्टर बनना चुना क्योंकि क्रिकेट का रिस्क मैं नहीं लेना चाहता था। हो सकता है कि अगर मैंने रिस्क लिया होता तो आज मैं मशहूर क्रिकेटर होता। आज मैं अच्छे डॉक्टर के रूप में जाना जाता हूँ तो मुझे उतनी ही खुशी होती है।

अभिनव ने सोचा। “डॉ मानस बिल्कुल सही हैं। आज वह एक सफल डॉक्टर हैं। वो वही करते हैं जो वो करना चाहते हैं। वो क्रिकेट का मज़ा भी लेते हैं,

"मैं आपसे सहमत हूँ।” अभिनव ने डॉ.मानस से कहा

"क्या तुम मेरी टीम के साथ एक मैच खेलना चाहोगे?” डॉ.मानस ने अभिनव से पूछा।

हैरान अभिनव ने डॉ. मानस को देखा और पूछा, “क्या मैं आप के साथ खेल सकता हूँ?”

“हाँ क्यों नहीँ? अजय ने मुझे बताया था कि तुम एक अच्छे गेंदबाज हो।” डॉ. मानस ने कहा।

अभिनव को इस बात पर विश्वास नहीं हो पा रहा था। उसने खुशी से डॉ.मानस को कहा,

“थैंक्यू अंकल।” फिर वह अजय के पास बैठ गया और धीरे से बोला,

“आपके दोस्त बहुत अच्छे हैं, उनको यहाँ बुलाने के लिए, थैंक्यू।” “मेरे कई दोस्त हैं, क्या तुम उनसे भी मिलना चाहोगे?” अजय ने पूछा।

“अगर वे मानस अंकल की तरह हैं तो मुझे उनसे मिल के बहुत ख़ुशी होगी,” अभिनव ने ख़ुशी से सर हिलाते हुए कहा।

“ठीक है, कल मैं एक दोस्त से मिलने जा रहा हूँ, वो अपनी फ़ैक्ट्री का दौरा करने जाएगा जो यहाँ से बहुत दूर नहीं है, क्या तुम मेरे साथ आना चाहोगे?

“हाँ मैं चलूँगा, मैं समय पर तैयार रहूँगा।” अभिनव ने महसूस किया कि जैसे वह एकदम से बड़ा हो गया है। शायद यह गर्व और आत्म सम्मान की भावना थी। कुछ समय बाद डॉ.मानस वहाँ से चले गए। जाते समय उन्होंने रविवार के मैच के बारे में अभिनव को याद दिलाया। डॉ.मानस में ऐसी सकारात्मक ऊर्जा थी कि उनके जाने के बाद सब लोग उत्साह महसूस कर रहे थे। अजिता खाने के बाद की सफाई करने के लिए रसोईघर चली गई, विजय और अभिनव सोने चले गए।

अगले दिन दोपहर में,

अजय, अभिनव को अपने दोस्त सुनील से मिलवाने ले गया जो कि पेशे से एक मैकेनिकल इंजीनियर था। अभिनव फैक्ट्री देखने के लिए बहुत उत्साहित था, क्योंकि वह पहले कभी फैक्ट्री नहीं गया था, बस उसने फिल्मों में देखा था। जब वो लोग वहाँ पहुँचे तो, अजय ने सुनील कोफैक्ट्री के गेट से अपने आने की सूचना दी तो फिर गार्ड ने उन्हें एक विजिटिंग पास दिया और उन्हें, जहाँ सुनील काम कर रहा था, उस तरफ ले गया। वह एक बड़ी इमारत थी। वे जितना उसके करीब पहुँच रहे थे, मशीनों की आवाज़ें तेज़ हो रही थी। अभिनव ने इस तरह की विशाल मशीनों को कभी नहीं देखा था। आवाज़ इतनी तेज़ थी कि वे मुश्किल से ही बातें कर पा रहे थे। सुनील उनका स्वागत करने के लिए बाहर आया और उन्हें अपने ऑफिस के लिए साथ ले गया। वह अपनी ड्रेस में बहुत स्मार्ट लग रहा था, और उसका ऑफिस भी बहुत प्रभावशाली था। मशीनों की आवाज़ उसके कार्यालय तक भी आ रही थी, परंतु इतनी तो कम थी कि वह बात कर सके।

“तुमसे मिल के अच्छा लगा अभिनव, किस क्लास में हो?” सुनील ने अभिनव से पूछा।

"मैं क्लास नाईन में हूँ।”

“अजय मुझे बता रहा था कि तुम एक अच्छे गेंदबाज हो।”

अभिनव यह सुनकर धीरे से मुस्कुराया।

"तुम जानते हो कि अभिनव, डॉ. मानस की टीम की तरफ से रविवार को मैच खेलेगा। तुम भी आओ तो अच्छा लगेगा। उस दिन और दोस्त भी आ रहे हैं।” अजय ने सुनील को कहा।

"अरे वाह! तो मैं भी जरूर आऊँगा, मैंने बहुत समय से क्रिकेट खेला भी नहीं है। यह आफिस के काम सब कुछ भुला देते हैं।“

"हाँ लेकिन डॉ मानस भी अपने काम में बहुत व्यस्त रहते हैं, फिर भी वह खेलने के लिए समय निकाल ही लेते हैं।” अजय ने कहा।

“क्या तुम फ़ैक्ट्री के अंदर देखना चाहोगे?” सुनील ने अभिनव से पूछा अभिनव को मशीनों को देखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए उसने कहा,

“आज मैं थका हुआ हूँ, किसी और दिन मैं उन्हें देखने आऊँगा।” अजय समझ गया था कि अभिनव को फैक्ट्री देखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसका मतलब यह जाहिर था कि भविष्य में उसे इस तरह की नौकरियों में कोई दिलचस्पी नहीं होगी। सुनील और अजय थोड़ी देर बात करते रहे, उसके बाद अजय और अभिनव घर जाने के लिए रवाना हुए।


23-अभिनव का गुस्सा

कुछ दिनों के बाद एक दिन जब अभिनव खेलकर घर वापस आया, तो काफी निराश और गुस्से में दिख रहा था। सीधे अपने कमरे में गया और सोफ़े पर बल्ला फेंका, जूते दूर फेंके, और बिस्तर पर लेट गया।

अजिता अभिनव का यह रूप देखकर बहुत घबरा गई। ऐसा उसने पहले कभी नहीं किया था। जरूर कुछ खास बात हो गई होगी। क्या हुआ होगा? सब कुछ ठीक चल रहा था। अजय ने अपने कई दोस्तों से अभिनव को मिलवाया जिनमें एक आर्मी में थे कुछ टीचर और बीजनेसमैन थे। सभी से मिलकर अभिनव को डॉक्टर, इंजीनियर, बीजनेसमैन, टीचर और यहाँ तक की वकील की भी प्रोफेशनल और पर्सनल लाईफ़ के बारे में कुछ अनुभव हो गया था।

उन सबसे मिलने के बाद उसे डॉक्टर मानस का प्रोफेशन सबसे ज्यादा प्रभावित किया। उसने भी डॉक्टर बनने का निर्णय किया और डॉक्टर मानस की तरह क्रिकेट को अपने शौक के लिए खेलना स्वीकार कर लिया था।

अभिनव अपने इस निर्णय से संतुष्ट था और अजिता और विजय भी इस बात से खुश थे। फिर आज अचानक क्या हो गया?

अजिता कुछ देर में खाना टेबल पर लगा कर, अभिनव के कमरे में गई। अभिनव अपने बिस्तर पर आँख बंद करके लेटा था। उसको देखकर लग रहा था कि वह सो नहीं रहा है। अजिता उसके पास गई और बोली, "अभिनव बेटा उठो, खाना लगा दिया है। आ जाओ।"

"मुझे भूख नहीं है। मैं सोने जा रहा हूँ।"

"भूख नहीं है? बिना खाना खाए सोना नहीं चाहिए। तुम तो खेलकर आए हो, भूख तो लगी होगी, आ जाओ। मैंने तुम्हारी मनपसंद मटर-पनीर और चावल बनाए हैं। चलो उठो, खालो चलकर।"

"नहीं खाना है मुझे। मैंने कह दिया ना आपसे, बार-बार क्यों कह रही हैं आप। मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ जो मटर-पनीर के नाम से खाने आ जाऊँगा, जाइए, चले जाइए, मुझे नहीं खाना।" अभिनव ज़ोर से चिल्लाकर बोला और करवट लेकर मुँह दूसरी तरफ कर लिया।

अजिता को लगा कि उसके शरीर में खून का दौरा रूक गया हो, वह सन्न सी रह गई, उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे। आवाज़ सुनकर विजय घबराए हुए कमरे में आ गए और चुपचाप अजिता को हाथ पकड़कर बाहर ले आए।

अजिता को अपने कमरे में ले जाकर विजय ने उसे पानी दिया और बैठने को कहा। अजिता अपने बिस्तर पर बैठी लेकिन अपनी आँखों में आए आँसुओ को नहीं रोक पाई।

"अपने आप को संभालो। यह समय परेशान होने का नहीं है बल्कि समझने की जरूरत है कि अभिनव किस बात से आहत हुआ है कि उसने ऐसा व्यवहार किया, जरूर कोई खास बात हुई होगी। इस उम्र के बच्चों को तरह-तरह की उलझने होती है। यह समय अभिभावकों के लिए भी चुनौतीपूर्ण होता है। हमें अभिनव को प्यार से ही समझाना होगा और उसे भी समझना होगा।" विजय ने अजिता को परेशान देखकर कहा।

"आप ठीक कह रहे हैं। डॉक्टर गुप्ता ने भी यही बात कही थी, लेकिन खुद पर सयंम रखना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है। अभिनव अक्सर गुस्से में बोलता है लेकिन इतनी ज़ोर से पहले कभी नहीं बोला। पता नहीं क्या परेशानी है उसकी।" अजिता बोली, वह बहुत दुखी दिख रही थी।

"इस बारे में अभिनव से कल बात करेंगे। अभी मैं उसको मनाकर लाता हूँ।" यह कहकर विजय अभिनव के कमरे में गए और उसे समझाकर खाना खाने के लिए ले आए। टेबल पर किसी ने बात नहीं की और खाना खाकर अभिनव चुपचाप अपने कमरे में चला गया।

अगले दिन सुबह;

"मैं उनके साथ क्यों नहीं खेल सकता? वे सब क्यूँ मेरा मज़ाक बनाते हैं कि हम लोग क्रिकेट कोचिंग फीस नहीं दे सकते हैं।” अभिनव ने अगले दिन नाश्ता करने के बाद अपने माता पिता से कहा।

अजिता और विजय दोनों ने अभिनव की ओर देखा। अभिनव की आँखों में आँसू थे और उसका चेहरा दुख और आक्रोश से लाल हो गया था।

"क्या तुमने उनसे कहा है कि तुम सिर्फ शौक के लिए खेल रहे हो और तुम्हें कोचिंग की ज़रूरत नहीं है क्योंकि तुम वैसे ही एक अच्छे गेंदबाज हो?” अजिता ने अभिनव से पूछा।

“मैंने उन्हें कई बार कहा है, लेकिन वह लोग लगातार मुझे चिढ़ा रहे हैं।” अभिनव बोला

"मैं अब कभी क्रिकेट नहीं खेलूँगा।” अभिनव काफी निराश और असहाय महसूस कर रहा था। विजय और अजिता दोनों ही अभिनव की परेशानी जानकर आहत थे। अजिता को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इस उम्र के बच्चे इस तरह के मुद्दों पर दूसरे बच्चे का मज़ाक बना सकते हैं।

“कैसे संस्कार होते हैं बच्चों के और कैसी परवरिश करते हैं माँ बाप, कि बच्चे एक दूसरे की भावनाएँ नहीं समझते। इतनी छोटी उम्र में किसी की आर्थिक स्थिति का मज़ाक बना सकते हैं।” अजिता को उन बच्चों पर बहुत गुस्सा आ रहा था। मन कर रहा था कि जाकर उन बच्चों और उनके माता-पिता से पूछे कि वह लोग कौन होते हैं कि अभिनव की परिस्थिति का मज़ाक बनाए। क्या उन्हें मालूम है कि उनके इस व्यहार से अभिनव पर कितना बुरा असर पड़ेगा लेकिन उसे मालूम था कि वह ऐसा कुछ नहीं कर सकती।

"ऐसे नहीं कहो अभिनव। तुम क्रिकेट क्यों नहीं खेलोगे। तुम उन लड़कों को छोड़ दो। डॉक्टर मानस की टीम के साथ खेला करो। वहाँ कोई तुम्हें परेशान नहीं करेगा।" विजय ने सुझाव दिया।

"डॉ. मानस की टीम के साथ खेलना मेरे लिए एक कोचिंग की तरह होता है, क्योंकि वहाँ सभी बड़े हैं। मुझे वहाँ खेलना अच्छा लगता है पर मज़ा तो दोस्तों के साथ ही आता है।” अभिनव ने जवाब दिया, और कुछ देर चुप रहने के बाद बोला,

"मेरे दोस्त अब पहले जैसे नहीं हैं। मेरे इंटरसिटी मैच खेलने और ट्रॉफी जीतने के बाद से उनका व्यव्हार मेरे लिए बदल गया है।” अभिनव को ट्रॉफी की जीत की वजह से दोस्तों के साथ संबंध बिगड़ जाने का बहुत अफ़सोस था बल्कि उसे अब ट्राफी जीतने पर गुस्सा आ रहा था।

"क्या तुमने उन्हें बताया कि तुम डॉक्टर बनना चाहते हो? और तुम्हें अगले साल से खेलने के लिए ज्यादा समय नहीं मिलेगा इसलिए तुम कोचिंग नहीं ले रहे हो।”

“मैंने उन्हें बताया था लेकिन वे मुझ पर और हँसने लगे और कहने लगे कि मेरा मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं हो पाएगा। उन लोगों ने कहा कि केवल पढ़ने में तेज़ बच्चे ही इस क्षेत्र में प्रवेश पाने में सफल हो पाते हैं।” अभिनव ने निराश होकर कहा

विजय और अजिता अपने उत्साही और प्रतिभाशाली बेटे का आत्मविश्वास खोते देखकर बहुत असहाय महसूस कर रहे थे। अपने घर के सुरक्षित वातावरण से बाहर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उस उम्र में बच्चों को पता ही नहीं होता है कि ऐसी चुनौतियों का सामना कैसे किया जाये।

उनकी परेशानी अक्सर निराशा, क्रोध, आक्रोश और कभी-कभी अवसाद में बदल जाती है। इसलिए इस उम्र में माता-पिता को अपने बच्चों के साथ दोस्तों की तरह व्यहार करना चाहिए और लगातार बच्चों पर नज़र बनाए रखनी चाहिए। कभी-कभी माता-पिता इस बात से अनजान रहते हैं कि उनके बच्चे घर के बाहर कैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।

“देखो अभिनव, तुम बिना कोचिंग ट्राफी जीत गए इसलिए तुम्हारे दोस्तों में हीन भावना आ गई होगी। जब कोई अपने आप को किसी से नीचा पाता है तो वह ईर्ष्या के कारण उस व्यक्ति का मज़ाक उड़ाता है और उसे नीचा दखाने की कोशिश करता है, ऐसा करने से उसे अच्छा महसूस होता है। इसलिए तुम अपने दोस्तों की बात पर ध्यान मत दो।”

कुछ देर शांत बैठकर सोचने के बाद अजिता एक निष्कर्ष पर आई  (और बोली),

“किसी को कुछ कहने से कोई फायदा नहीं है, किस किस से जाकर लड़ाई करेंगे। इससे बेहतर है कि खुद को इतना मजबूत बना लें कि लोगों का नज़रिया अपने लिए बदल जाए। क्या तुम्हें पता है कि महात्मा गांधी एक दुबले-पतले कमजोर से दिखने वाले व्यक्ति थे, फिर भी वह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़े थे, उन्होंने किसी प्रकार के हथियार का और न किसी तरह की अभद्र भाषा का प्रयोग किया था लेकिन फिर भी वह एक मजबूत व्यक्ति माने जाते हैं। जानते हो क्यों?”

“क्यों मम्मी? “अभिनव निराश था पर फिर भी उसने जिज्ञासा से अजिता को देखा।

“क्योंकि गांधी जी में अपनी आंतरिक शक्तियाँ, जैसे इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास प्रबल था। उनकों विश्वास था कि वो सच के रास्ते में चल रहे हैं, इसलिए वो कभी किसी से डरते नहीं थे। हमें भी अपनी खुद की शक्तियों और क्षमताओं पर भरोसा होना चाहिए और अपने आप में विश्वास महसूस होना चाहिए क्योंकि हम सभी में भी वह शक्तियाँ मौजूद है।”

“लेकिन वह लोग ऐसा क्यों कहते हैं?”

"ऐसा इसलिए कि कुछ लोगों को दूसरों का मज़ाक बनाने में अच्छा लगता है। उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता है कि उनके व्यवहार से दूसरे के मन को कितनी ठेस पहुँचती है, हमे इस तरह के लोगों से समझदारी से निपटना चाहिए। सबसे अच्छा है कि उन्हें अनदेखा कर दिया जाए, उनके ऊपर ध्यान देने के बजाय अपनी खुद की क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।”

“बच्चे कहते कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा बहुत ही कठिन होती है। मैं इसे पास करने के काबिल नहीं हूँ। क्या मैं इसमें पास नहीं हो पाऊँगा?" अभिनव ने कहा

“जब तुम अपने आप पर विश्वास करोगे। तो तुम्हें कोई पास होने से रोक नहीं सकेगा। किसी और के कहने पर ध्यान न दो तुम अगर मेहनत करोगे तो जरूर पास होंगे क्योंकि किसी काम में समर्पण और कड़ी मेहनत ही सफलता की कुंजी है।” अजिता ने समझाया।

“तुम्हारी माँ सही कह रही है अभिनव, तुम खुद की क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करो और उन्हें सुधारने के लिए प्रयास करो। तुम निश्चित रूप से इस परीक्षा में पास होंगे।” विजय ने भरोसे के साथ कहा और फिर बोले,

"चलो अब मुस्कुराओ। तुम्हें कभी भी किसी समस्या का सामना करना पड़े तो हमें जरूर बता दिया करो, सभी परिस्थियों में हम साथ रहेंगे।” विजय ने अभिनव को प्यार से गले लगाया और मूड को बदलने के लिए, विजय ने बाजार जाकर अभिनव का पसंदीदा चॉकलेट केक लाने का प्रोग्राम् बनाया। तभी पोस्टमैन अजय की चिट्ठी लाया जिसमें अजय के आने की खबर थी। खबर से सबकी खुशी दोगुनी हो गई और वे लोग जल्दी ही तैयार हो कर बाजार चले गए।

24-अजय की शादी

चार महीने पहले अजय को एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिल गई थी और वो मुम्बई चला गया था। वह वरिष्ठ पद पर था, इसलिए कंपनी ने उसे एक कार और सभी आधुनिक सुविधाओं के साथ फ्लैट दिया था।

जिस दिन अजय आने वाला था, विजय अजय को लेने के लिए सुबह स्टेशन जल्दी चले गये थे। ट्रेन एक घंटे लेट थी इसलिए जब वे लोग घर पहुँचे तो नौ बज गए थे इसलिए सबने पहले नाश्ता करने का निर्णय लिया।

“आपने सब मेरी पसन्द का नाश्ता बनाया है। मैं वहाँ आपके हाथ का बना खाना बहुत याद करता हूँ।” अजय ने नाश्ते की मेज़ पर अजिता से कहा। सबसे चार महीने बाद मिल कर वो वास्तव में बहुत खुश था। अभिनव भी अपने प्रिय चाचा से मिल कर बहुत उत्साह में था।

“मुंबई कैसा लगा, वहाँ के बारे में कुछ बताओ?” अजिता ने उत्सुक्ता से पूछा

"सब कुछ अच्छा है वहाँ। शहर बहुत बड़ा है और यहाँ से बहुत अधिक विकसित है। मेरा फ्लैट भी बहुत अच्छा है। लोग अच्छे है वहाँ के, लेकिन किसी के पास दूसरों के लिए समय नहीं है। हर आदमी अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में इतना व्यस्त रहता है कि किसी के पास समय ही नहीं है। अपने पड़ोसियों तक को भी नहीं जानते हैं। अजय ने एक नीरस सी आवाज़ में कहा जो उसके सामान्य स्वाभाव से अलग थी।

"तुम अपने ऑफिस से आने के बाद क्या करते हो?” विजय ने पूछा। वह महसूस कर रहा था कि उसका भाई किसी बात को लेकर उलझन में है।

"मैं टीवी देखता हूँ या फिर बाज़ार जाकर सामान और सब्जियाँ खरीद लाता हूँ।”

"और छुट्टियों में क्या करते हो?”

"वो काफी बोरिंग बीतते हैं।”

"तुम्हारे कोई दोस्त हैं वहाँ?"

"हाँ, कुछ परिवारों को जानता हूँ, लेकिन वे अपने ज़िंदगी में व्यस्त रहते हैं।” कभी-कभी वे मुझे अपने घर बुला लेते हैं लेकिन मुझे वहाँ ज्यादा जाना अजीब लगता है। इसलिए मैं अपना समय फिल्में देखने या रेस्तरां में डिनर करने में बिता देता हूँ।” अजय ने सुस्त स्वर में कहा।

"तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए। जब तुम मुम्बई जाने वाले थे उस समय भी मैंने ऐसा ही कहा था। जीवन में एक समय आता है जब हम सबको अपने परिवार की जरूरत होती है। हर एक व्यक्ति को अपनी भावनाएँ बताने के लिए किसी की जरूरत होती है। जब तुम यहाँ थे, तब हम सबके साथ तुम्हें अपना परिवार होने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। लेकिन अब तुम वहाँ अकेले हो, इसलिए अब तुम्हारा परिवार ही तुम्हारे जीवन में ख़ुशी और आकर्षण ला सकता है। मेरा यही सुझाव है कि तुम्हें जल्द से जल्द शादी कर लेनी चाहिए।” अजिता ने कहा, वह हमेशा अजय को शादी के लिए कहा करती थी लेकिन अजय मना कर देता था।

लेकिन इस बार अजय शांत रहा था असहमती नहीं जाहिर की। ऐसा लग रहा था कि वह आत्मनिरीक्षण करके जानना चाहता था कि क्या वह वास्तव में शादी के पक्ष में था।

अजिता जानती थी कि अजय के मन में क्या चल रहा है। वह अपना निर्णय लेने में स्पष्ट नहीं दिख रहा था। अजिता यह समझ गई थी कि अजय को इस प्रस्ताव को मानने में हिचकिचाहट हो रही थी इसलिए बड़े होने के नाते, विजय और अजिता ने उसे जोर देकर मनाने की जरूरत समझी। इसलिए अजिता बोली,

"मिसेज गुप्ता ने कई बार अपनी भतीजी के बारे में मुझसे बात की है। मैं उस लड़की से मिली हूँ। वह वास्तव में सुंदर और सुशील लड़की है। उसने एम॰ बी॰ ए॰ किया है और अभी एक प्रतिष्ठित कंपनी के साथ काम कर रही है। उसके मम्मा-पापा को भी अजय बहुत पसंद है और वह अपनी बेटी की शादी अजय से करने को तैयार हैं। मैं शाम को उन लोगों के साथ मुलाकात की व्यवस्था करती हूँ। क्या यह ठीक रहेगा?”

"हाँ, बिलकुल ठीक है। मुझे उनका परिवार बहुत पसंद है।” विजय बोला

अभिनव बात-चीत सुनकर बहुत उत्साह से भर गया। उसको इस तरह के समारोह का बहुत शौक था।

वे सब के सब अजय को देख रहे थे। अजय कोई भी अभीव्यक्ति नहीं दे रहा था इसलिए उसकी चुप्पी को ही स्वीकृति समझी जा रही थी। विजय और अजिता ने इशारे से इस मामले में आगे बढ़ने का फैसला किया। अजिता तुरंत मिशेज गुप्ता को बताने के लिए चली गई। विजय भी शाम की मुलाकात की तैयारी करने के लिए खाने का सामान लाने बाज़ार चला गया।

अजय शादी के बारे में निश्चित नहीं था। वह खुद से हैरान था कि वह अपने भाई-भाभी के साथ असहमत क्यों नहीं हो पा रहा है। उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि वो एक लड़की से मुलाकात करने जा रहा है। लेकिन उसे अपने भाई और भाभी पर भरोसा था कि वे उसके लिए जो भी करेंगे सही करेंगे।

शाम को गुप्ता जी और उनकी पत्नी अपनी बेटी सौम्या के साथ आए। जैसा की उसका नाम सौम्या था वह एक सुशील और मृदुभाषी लड़की थी। अजय उसकी सुंदरता और प्रतिभा को देखते ही प्रभावित हो गया। सौम्या और अजय ने एक लम्बी बातचीत की और दोनों ने एक दूसरे को मंजूरी दे दी। अजय को अपनी पत्नी के रूप में इतनी अच्छी लड़की से मिलकर बहुत खुशी हुई। उसने मन ही मन अपने भाई और भाभी के प्रति कृतज्ञता महसूस की।

"पूरा घर उस निर्णय से खुशी से भर गया।"

विवाह समारोह से संबंधित सभी मामले दोनों परिवारों के बीच तय हो गए। जल्द ही विवाह के लिए शुभ दिन भी तय हो गया। विवाह पंद्रह दिनों के बाद सम्पन्न किया जाना तय हुआ। विजय और अजिता को तैयारी के लिए बहुत कुछ करना था इसलिए विजय ने छुट्टी के लिए अपने बॉस से अनुरोध किया। अजय को भी उसकी कंपनी से छुट्टी के लिए मंजूरी मिल गई थी। इतने कम दिनों में बहुत सारी व्यवस्थाएँ करनी थी।

शादी के दिन, घर मेहमानों से भरा था। अजिता रस्में और शादी के समारोह के आयोजन में पुजारी के साथ समन्वय कर रही थी और साथ साथ मेहमानों की भी आवभगत कर रही थी। पड़ोस की कुछ महिलायें लड़की को ले कर गपशप कर रहीं थी कि वो अलग जाति से है और एक नौकरी पेशा है। उनकी बातें विजय को बर्दाश्त नहीं हो रही थी और वह उन महिलाओं की बातों से चिढ़ महसूस कर रहे थे।

अजिता ने विजय को शांत किया और कहा की, उनकी टिप्पणियों पर ध्यान मत दीजिये, वे रूढ़िवादी लोग हैं। हमें उनकी इन बातों से अपना समारोह ख़राब नहीं करना है।” तुम सही कह रही हो। हमें इन बेकार की बातों से परेशान नहीं होना चाहिए। चिंता मत करो। अब मैं ठीक हूँ।”

अभिनव पूरे समारोह का आनंद ले रहा है। एक प्यारी सी सौम्या आंटी को पा के वो बहुत खुश था।

दो दिनों में विवाह समारोह खत्म हो गया और सभी मेहमान अपने घरों को रवाना हो गए। अजय और सौम्या कुछ दिन भाई - भाभी के पास रुके और फिर मुम्बई चले गए। अजिता और विजय अजय के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करके निश्चिंत थे। जब वो मुम्बई में अकेला था तो उन्हें हमेशा उसकी चिंता लगी रहती थी।

25-लोंगो के ताने

अजय और सौम्या के जाने के बाद उन्हें शादी के बाद नई जोड़ी के सुखी जीवन के लिए एक पूजा अनुष्ठान घर पर कराना था जिसमें उन्होंने अपने कुछ पड़ोसियों को ही बुलाने का निर्णय लिया।

"लेकिन अजिता, मेरी माँ हमेशा कहती है कि बहुओं को इतनी स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए कि वे परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों को भूल जाएँ। अगर वह काम करने के लिए बाहर जाएगी तो अपनी घर ग्रहस्थी कैसे करेगी?” अजिता की पड़ोसी, श्रीमती दीक्षित ने अजिता से कहा। पंडित जी जिन्हें पूजा करनी थी उन्हें आने में देर थी। सभी पड़ोसी महिलायें जो आमंत्रित थी वह आपस में बात कर रही थी।

"तुम्हें ज्यादा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि वो दूसरी जाति की है और वह हमारी परंपराओं से परिचित नहीं है। तुम उसे अपने परिवार की परंपराओं से चलना सिखाओ।” महिलाओं में से एक ने सुझाव दिया। अजिता मुस्कुराई और बोली, “सौम्या एक बहुत बुद्धिमान और शिक्षित महिला है। धीरे-धीरे वह हमारे परिवार की संस्कृति को समझ जाएगी। मैंने उसे रीति-रिवाज़ों में उसकी इच्छानुसार चलने की छूट देने का फैसला किया है। मैं सौम्या को उनको मानने के लिए मजबूर नहीं करुँगी।”

महिलाएँ यह सुनकर हैरान हो गईं और कुछ हद तक अजिता से नाराज़ भी हो गईं। उनमें से एक ने कहा,

मैंने सुना है सौम्या माँसाहारी है, क्या तुम उसे अपनी रसोई में माँसाहारी भोजन पकाने की अनुमति दोगी?”

"नहीं, मैं उसे मेरी रसोई में नहीं पकाने दूँगी पर वो अपने घर पर हर तरह का खाना खाने और पकाने के लिए आज़ाद है।”

उनके बीच एक बूढ़ी औरत गुस्से में बोली: “मैं लंबे समय से तुम्हारे परिवार को जानती हूँ। तुम्हारे परिवार में माँसाहारी भोजन हमेशा के लिए मना है। मैं जानती हूँ शादी से पहले तुम भी माँसाहारी भोजन खाती थी, लेकिन शादी के बाद तुमने खाना छोड़ दिया और कभी शिकायत भी नहीं की। तुम छोड़ सकती हो, तो सौम्या क्यों नहीं कर सकती ऐसा? तुम कैसे उसे अपने ही घर में मांसाहाँरी खाना पकाने दे सकती हो?”

अजिता मुस्कुराई और बोली, “चाची, महिलाओं को आज़ादी क्यों नहीं मिलनी चाहिये? उनको इतने सारे त्याग करने की क्या ज़रूरत है? अपने घर में तो हर इन्सान को आज़ादी महसूस होनी चाहिए।“

“शादी के बाद महिलाओं को वैसे भी बिल्कुल नई स्थितियों में रहना पड़ता है और अपनी जीवन शैली में कई बदलाव करने पड़ते हैं। इसलिए मैं ऐसा मानती हूँ कि जिन परम्पराओं का मानना, करना जरूरी नहीं है उसके लिए उन्हें मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मैंने सब बातें मानी थी क्योंकि मुझे मजबूर किया गया था। उस समय, किसी ने भी मेरी भावनाओं को महसूस नहीं किया। बाद में हालाँकि, उन्होंने मुझे माँसाहारी खाना खाने के लिए अनुमति दे दी थी, लेकिन तब तक तो मेरा मन खुद ही बदल गया और मैं खाना ही नहीं चाहती थी।”

अजिता की बात का उस बूढ़ी औरत के पास स्पष्टीकरण के लिए कोई तार्किक जवाब नहीं था, लेकिन वह अभी भी  खुश नहीं लग रही थी। उसका अहंकार उसे अजिता के साथ सहमत होने नहीं दे रहा था, बल्कि वह अजिता को गलत साबित करना चाहती थी। इसलिए उसने बहस करना जारी रखा,

“तुम उसे अगर इतनी स्वतंत्रता दोगी तो वह परिवार के दायित्वों को कभी नहीं समझ पायेगी।”

“चाची मैं ऐसा मानती हूँ कि परिवार के सदस्यों पर किसी तरह की बंदिशें नहीं होनी चाहिए इससे आपस में एक दूसरे के प्रति प्यार और सम्मान ज़्यादा बढ़ता है। और जब आप किसी से प्यार करते हैं तब उनका दायित्व स्वभाविक रूप से समझ आ जाता है।“

बूढ़ी औरत को उसका जवाब पसंद नहीं आया, लेकिन सभी महिलाओं ने अजिता के आज़ाद विचारों की खूब प्रसंशा की इसलिए उसने चुप रहना ही बेहतर समझा।

"बहुत कम महिलाएँ आपकी तरह खुले विचारों की होती हैं। आपने एक बहू के रूप में बहुत त्याग किया है, लेकिन सौम्या से कुछ भी उम्मीद नहीं की है।” महिलाओं में से एक ने अजिता से कहा।

” मेरा अतीत तो बीत चुका है और अतीत की अनुचित बातें दोहराई नहीं जानी चाहिए, बल्कि उनकी जगह सही बातें सामने लानी चाहिए। मैं किसी के लिए कोई गलत भावना नहीं लाना चाहती।” अजिता ने हमेशा की तरह अपने शांत और धैर्य स्वभाव से कहा।

जब पंडित जी पहुँचे तब जाकर महिलाओं की चर्चा को विराम मिला। पूजा हो जाने के बाद प्रसाद और खाना परोसा गया। उसके बाद सब लोग चले गये।

उस दिन सारा काम खत्म होने पर काफी रात हो चुकी थी। अजिता बहुत थक गई थी लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी, क्योंकि वो उन दिनों को याद कर रही थी जब उसकी शादी हुई थी और वो इस परिवार में आई थी। उसे तब कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था और उनमें से एक माँसाहारी भोजन को छोड़ना भी था। अजिता को यह बात समझ नहीं आई थी कि क्यों उसके खाने पर पाबंदी लगा दी गई है। उसे इस बात पर बहुत गुस्सा था। वो जो काम नहीं करना चाहती थी उसे वही काम करने पड़ते थे।

उन दिनों में महिलाओं की स्थिति ऐसी थी कि वो परिवार की परम्पराओं के खिलाफ नहीं जा सकती थी और हर चीज़ को स्वीकार करना ही पड़ता था, जैसे उनके भाग्य में वही हो। हालाँकि, उन सभी अनुभवों ने उसकी सहन-शक्ति बढ़ा दी थी। और वह अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाने में कामयाब रही। लेकिन तभी अजिता ने यह निश्चय किया कि भविष्य में वह किसी और के साथ वैसा नहीं होने देगी।

इसलिए जब सौम्या परिवार में आई तो अजिता ने उस पर कोई नियम नहीं थोपे। सौम्या खुद को बहुत भाग्यशाली महसूस करती थी कि उसे एक ऐसा परिवार मिला था जहाँ वो आज़ादी से साँस ले सकती है।

परिवार के सभी सदस्यों ने भी सौम्या के लिए अजिता के फैसले में सहमति व्यक्त की। सौम्या को घर में माँसाहारी खाना पकाने के लिए आज़ादी थी लेकिन उसने स्वयं ही माँसाहार छोड़ने का विचार बनाया। सौम्या ने अजिता से कहा कि उसे शाकाहारी भोजन ही पसंद है। अजिता को यह सब सोचते हुए कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला। अगले दिन उसे अभिनव की कोचिंग तय करने जाना था इसलिए वह सुबह जल्दी उठ गई।