दूर खड़ी लोगों की भीड़ में खलबली मच गई।


परंतु इधर ।


न मेढक इंसानों पर ही इस बात का कोई विशेष प्रभाव पड़ा और न ही सुनहरी छिपकलियों पर ।


-"खैबड़ा!" तीव्र डकार के साथ एक मेढक इंसान अपनी ओर की एक सुनहरी छिपकली पर झपटा। प्रत्युत्तर में छिपकली के कंठ से एक खौफनाक आवाज निकली। एक ऐसी खौफनाक और भयानक आवाज कि किसी भी दिल में उतरती चली जाए और प्रत्येक दिल कांप उठे।


इधर मेढक इंसान झपटा... उधर सुनहरी छिपकली ने भयानक आवाज के साथ अपना जबड़ा खोल दिया...उफ् छिपकली का जबड़ा बेहद खतरनाक था ! इतना डरावना कि देखते ही चीख निकल जाए! उसके नीचे और ऊपर के दोनों जबड़ों में दो-दो लंबे और नुकीले दांत थे। जिन्हें देखते ही प्रतीत होता था कि वे एक ही सेकंड में किसी भी सख्त-से-सख्त खाल को उधेड़कर रख सकते हैं। मेढक इंसान के झपटते ही छिपकली ने अपना भयानक जबड़ा खोल दिया। भयानक, डरावनी और खौफनाक आवाजों के साथ मेढक इंसान छिपकली के जबड़े पर जा गिरा। छिपकली के नुकीले दांत मेढक इंसान की खाल पर जमे, किंतु इससे पूर्व कि वे मेढक जैसी खाल में धंस सकें, मेढक इंसान उछला और खाल चिकनी होने के कारण छिपकली के तेज, लंबे नुकीले दांत अपने इरादों में सफल न हो सके, मेढक इंसान छिटककर दूर जा गिरा था।


तभी आश्चर्यजनक फुर्ती और खौफनाक जंप के साथ


सुनहरी छिपकली मेढक इंसान पर झपटी और फिर !


अगले ही पल वहां खौफनाक आवाजें उत्पन्न होने लगी!


छिपकली और मेढक इंसान एक-दूसरे से गुंथ गए !


अन्य सभी मेढक इंसान और छिपकलियां उन दोनों का खतरनाक युद्ध देखती रही, न वे आपस में ही टकराए और न ही उनके मध्य कोई आया।


टुम्बकटू महाशय इस समय कुछ भी करने की स्थिति में न था। वह तो बस उस जबड़े में कैद होकर रह गया था। मेढक इंसान और पंद्रह फीट लंबी छिपकली का यह भयानक युद्ध देखकर वह स्वयं भी हतप्रभ था !


उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि धरती पर एक-से-एक अधिक खौफनाक वस्तु है।


अभी मेढक इंसान और छिपकली के इस खौफनाक युद्ध का कोई परिणाम निकल भी नहीं पाया था कि !


---'रेट... रेट... रेट ।'


चारों ओर फैली मिलिटरी की रायफलें गरज उठी।


अगले ही पल भयानक डकारों से वातावरण कांप उठा। गोलियां मेढक इंसान और छिपकलियों----- दोनों ही के जिस्में से टकराई।


परंतु कुछ गोलियों ने अपना करिश्मा दिखाया ----- लेकिन कुछ व्यर्थ भी गई। यानी जो गोलियां मेढक इंसानों के जिस्मों से टकराई वे तो अपने लक्ष्य में सफल हो गई। गोलियां लगते ही उनके कंठों से भयानक चीखें निकली और अगले ही पल वे तड़पने लगे, परंतु जो गोलियां सुनहरी छिपकलियों के जिस्मों से टकराई, वे पूर्णतया व्यर्थ गई।


छिपकलियों के जिस्मों पर गोलियों का लेशमात्र भी प्रभाव न हुआ... ...गोलियां उनके जिस्मों पर लगी और छितराकर बिना कोई करिश्मा दिखाए शहीद हो गई। जबकि मेढक इंसानों के जिस्मों पर लगी गोलियों ने अपना पूर्ण प्रभाव दिखाया।


अत: गोलियों के शिकार मेढक इंसानों के कंठों से अंतिम व हृदयविदारक चीखें निकल रहीं थीं और वे तड़प रहे थे।


और यहीं मेढक इंसान मात खा गए ।


ये विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि मेढक इंसान सुनहरी छिपकलियों से परास्त हो जाते-----परंतु पुलिस की उपस्थिति में उन्हें परास्त होना पड़ा।


इस बीच एक अन्य खौफनाक खेल भी वहां हुआ था।


वह यह कि जैसे ही सनसनाते हुए कुछ अंगारे उस मेढक इंसान के जिस्म में धंसे, जिसके जबड़े में टुम्बकटू कैद था ----- वैसे ही वह मेढक इंसान बुरी तरह कंठ फाड़कर चीखा--और खौफनाक छलावे के लिए यह अवसर बहुत अधिक पर्याप्त था।


-- मेढक इंसान के चीखते ही टुम्बकटू खौफनाक छलावे की भांति जबड़े से मुक्त होते ही वायु में लहराया - - परंतु इसका क्या किया जाए कि उसके वायु में लहराते ही पंद्रह फीट लंबी सुनहरी व भयानक छिपकली बेहद फुर्ती के साथ वायु में लहराई और अगले ही पल टुम्बकटू उस भयानक छिपकली के जबड़ों के बीच फंसा था।


टुम्बकटू चाहता तो इस बार छिपकलियों की पकड़ से मुक्त हो सकता था, किंतु इसका क्या किया जाए कि इस खौफनाक छलावे के मस्तिष्क का शरारती कीड़ा कुलबुलाया और पल-भर में वह यह निर्णय कर बैठा कि क्यों न चलकर इन छिपकलियों के बॉस से मिला जाए? और यही निर्णय लेकर टुम्बकटू ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया और आराम से छिपकली के जबड़ों के बीच लेट गया।


लगभग सभी मेढक इंसान तड़प-तड़पकर ठंडे पड़ गए थे।


मिलिटरी वाले अब भी सुनहरी छिपकलियों पर गोलियां बरसा रहे थे, जबकि उनका जिस्म गोलियों से लेशमात्र भी प्रभावित न था। सुनहरी छिपकलियों ने इस बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया और आराम से टुम्बकटू को लेकर एक तरफ को चल दी!


उनकी गति आश्चर्यजनक रूप से तीव्र थी ।


मिलिट्री के एक अधिकारी पर यह सब देखकर खून सवार हो गया।


वह अपनी रायफल संभालकर एक छिपकली के आगे अडिग चट्टान बनकर खड़ा हो गया। न सिर्फ खड़ा हो गया, बल्कि रेट... रेट की ध्वनि के साथ अनेकों शोले उसकी राइफल से मुक्त होकर सुनहरे जिस्म से टकराए, परंतु वही ढाक के तीन पात, यानी निरर्थक...महत्त्वहीन!


तभी!


भयानक तेजी के साथ छिपकली उस अधिकारी पर झपटी और अगले ही पल अधिकारी की अंतिम व हृदय विदारक - चीख से वातावरण दहल गया।


दृश्य बड़ा ही घिनौना था!


सुनहरी छिपकली के पैंने, तेज, लंबे व नुकीले दांत अधिकारी के जिस्म में धंसे और अगले ही पल अधिकारी के जिस्म से उसकी खाल ठीक इस प्रकार उतरती चली गई----जैसे प्याज से प्याज का एक छिलका।


लाल-सफेद मांस चमक उठा... बड़ा ही घिनौना दृश्य था! उसकी चीख प्रत्येक दिल में उतरती चली गई।


लोगों से वह दृश्य देखा नहीं गया।


अगले ही पल वह भयानक छिपकली उस अधिकारी के मांस के लोथड़े को अपने जबड़े में फंसाकर इस प्रकार झटके दे रही थी, मानो बिल्ली चूहे को झटकती हो। फिर वह छिपकली अधिकारी के मांस को बड़े चाव से खाने लगी।


अधिकारी मर चुका था।


खून से वह स्थान लथपथ हो गया।


लाल व गाढ़ा लहू सुनहरी छिपकली के मुंह से चिपका हुआ था, जिसे जीभ से चाटती हुई छिपकली अत्यंत ही भयानक लग रही थी।


इस दृश्य को देखकर लोगों में एक हूक-सी उठी... कुछों को तो उल्टी-सी होने लगी और साथ ही दृश्य को देखकर लोग भयभीत भी हो गए। मिलिटरी वालों ने गोलियां चलानी भी एकदम बंद कर दीं। भय व आतंक का साम्राज्य चारों ओर फैल गया।


छिपकलियां तीव्र गति से एक ओर बढ़ने लगीं। भीड़ उनके मार्ग से काई की भांति फटती चली गई, जबकि लोगों का हजूम बदहवास-सा उन्हें देखता हुआ उनके पीछे-पीछे था। अब कोई भी इंसान उसके समीप जाने का साहस न कर रहा था।


कुछ ही देर बाद सभी छिपकलियां टुम्बकटू को साथ लिए हजारों-लाखों लोगों के देखते सागर में उतरकर, सागर के गर्भ में विलीन हो गई।


उसके बाद !


यह समाचार विद्युत गति से पूरे राजनगर में फैल गया। सुनकर सभी बदहवास-से रह गए। पनडुब्बियों से सागर के गर्भ में सुनहरी छिपकलियों को खोजा गया---- --परंतु उन्हें ढाक के तीन पात ही मिले।


तुरंत ही इस समाचार ने राजनगर की सीमाओं को तोड़ दिया और फिर समूचे विश्व में फैलता चला गया। जो सुनता, हैरत में रह जाता।


मेढक इंसानों के मृत जिस्मों को विभिन्न महान वैज्ञानिकों के पास परीक्षण हेतु पहुंचा दिया गया।


समूचे विश्व में खलबली मची हुई थी। सुनहरी और भयानक छिपकलियां टुम्बकटू को लेकर नदारद थीं।


वास्तव में विकास की प्रत्येक हरकत उसे शैतान की श्रेणी में रखती थी। यह बात किसी के भी कंठ से नीचे नहीं उतरती थी कि इतनी अल्प आयु का किशोर इतना खतरनाक भी हो सकता है। यह लड़का अलफांसे का चेला तो नि:संदेह था, परंतु उसकी हरकतें उस शातिर से भी कहीं अधिक बढ़-चढ़कर थीं ।


रैना ने एक स्थान पर टैक्सी रुकवाई----क्योंकि उसे कुछ आवश्यक सामान खरीदना था। अत: सामने की दुकान पर जाती हुई वह विकास से कह गई कि वह यही रहे, परंतु जब वह वापस लौटकर आई तो विकास को नदारद पाया।


रैना का दिल धक्-से रह गया । बौखलाई-सी रैना ने टैक्सी ड्राइवर से पूछा तो वह भी चकराकर सिर्फ ये ही कह सका कि ----- "अरे, अभी-अभी तो वे यहीं थे। "


किंतु इसका क्या किया जाए कि अब वह शैतान लड़का गधे के सिर से सींग की भांति गायब था। रैना ने ध्यान से पिछली सीट पर देखा तो एक कागज का पुर्जा चमका।


उसने झपटकर उठाया और देखा तो उस पर लिखा था कि-----'मम्मी... कौन पहले घर पहुंचे।'


पढ़कर विकास की इस बचपनी शैतानी पर रैना मुस्करा उठी और टैक्सी वाले से कोठी पर चलने के लिए कहा।


परंतु जब वह कोठी पर पहुंची तो विकास को न पाकर घबरा गई और उसने फिर कोतवाली में फोन मिलाया। दूसरी ओर से विजय के ये कहने पर कि विकास सुरक्षित है--रैना ने चैन की सांस ली।


उधर विजय ने बंद कमरे में रखे फोन पर मिलिटरी को कोतवाली पर होने वाले बलवे की सूचना दी थी। जिस कमरे में ये सब बंद थे---- उसे उस समय खोला गया ----- जब सब कुछ समाप्त हो चुका था, अर्थात सुनहरी छिपकलियां टुम्बकटू को लेकर सागर के गर्भ में गायब हो चुकी थीं।


***

जब विकास को होश आ गया तो कान पकड़कर घर पहुंचा दिया गया।

इधर विजय की मानसिक परेशानी बढ़ गई थी। इतना तो वह जान चुका था कि टुम्बकटू का विश्व को दिया गया चैलेंज रंग लाया है। जैक्सन और सिंगही हरकत में आ चुके हैं। यह तो वह जान चुका था कि सुनहरी छिपकलियां निःसंदेह सिंगही का ही कोई नया आविष्कार हैं। इस खतरे को भी वह भली-भांति समझता था कि सिंगही का टुम्बकटू को ले जाना कितना खतरनाक हो सकता था।

विजय तो सिंगही और जैक्सन ही से परेशान था ---- किंतु इस टुम्बकटू नामक खौफनाक छलावे के सामने वे महान शक्तियां भी धूमिल-सी पड़ गई थीं। उसे लग रहा था कि टुम्बकटू नामक यह अजीब अपराधी शीघ्र ही विश्व को हिलाकर रख देगा। विजय की समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसा विचित्र केस है।

भयानक खतरे का उसे आभास हो रहा था, परंतु उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इन परिस्थितियों में क्या करे ? टुम्बकटू को कहां तलाश करे?

सिंगही की ये छिपकलियां आखिर टुम्बकटू को ले कहां गई होंगी?

उसके मस्तिष्क में अनेक प्रश्न थे, जिनमें से किसी का भी उसे उत्तर न मिल रहा था ।

इस विषय पर उसने ब्लैक ब्वॉय से भी विचार-विमर्श किया, किंतु परिणाम वहीं-का-वहीं था ।

सिर पकड़कर बैठने के अतिरिक्त उसके पास कोई चारा नहीं रह गया था। वह इस समय अपनी कोठी में अपने कमरे के एक सोफे में धंसा हुआ था। उसका सारा चुलबुलापन गायब हो गया था ।

अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि !

"जरा दो चाय अंदर लाना पूर्णसिंह!" अचानक उसके कानों से बाहर से आती विकास की आवाज टकराई।

वह शायद पूर्णसिंह को चाय का आदेश दे रहा था। विजय जान गया कि आफत आ गई है। अत: अब विकास अपनी बकवास से उसके मस्तिष्क का दिवाला निकाल देगा।

वह इस शैतान से निबटने के लिए सतर्क होकर बैठ गया।

तभी विकास अंदर प्रविष्ट होता हुआ चीखा !

-----"प्रणाम झकझकिए अंकल ! "

विजय ने पहले तो घूरकर विकास को देखा... और देखा तो फिर देखता ही रह गया।

इस समय विकास के सुदृढ़ जिस्म पर सफेद कपड़े थे, ऊपर से नीचे तक दूध-से सफेद। यहां तक कि सफेद ही कपड़े के जूते, उसके गोरे-चिट्टे रंग पर सफेद कपड़े खूब फब रहे थे। सोलह वर्ष के लगने वाले इस तेरह वर्षीय किशोर की अवस्था देखते ही बनती थी। उसके चांद-से प्यारे-प्यारे मुखड़े पर दृष्टि जाए तो ऐसा दिल करे कि बस देखते ही रहो।

विकास की ओर देखते ही देखते विजय की आंखों से धीरे-धीरे स्वयं ही झल्लाहट के भाव गायब हो गए। विकास को देखकर उसे एक विचित्र - सी प्रसन्नता का अनुभव होता था। न जाने उसे ऐसा क्यों लगता था कि विकास ही उसके बाद वह कार्य संभाल सकेगा, जो इस समय स्वयं उसने संभाला हुआ है। उसे विश्वास था कि विकास एक दिन भारत का गौरव होगा। कभी भावनाओं में न खोने वाला विजय न जाने विकास को अपने सम्मुख देखकर क्यों भावनाओं में खो जाता था। न जाने क्यों उसे ऐसा लगता कि विकास से उसे वो प्यार है, जो कभी किसी से नहीं हुआ।

इस समय वह विकास को सामने देखकर वह न जाने कब तक खोया रहता, अगर विकास उसे फिर न चौंकाता!

-"क्यों अंकल?'' विकास कह रहा था--- "क्या बच्चे यतीम हो गए?"

चौंककर विजय ने विकास की ओर देखा तो उसने पाया कि उस सुंदर किशोर रूपी शैतान के मुखड़े पर शरारत के भाव थे और गुलाबी होंठों पर चंचल मुस्कान !

विजय यह भी जानता था कि विकास के हृदय में उसके प्रति कितनी श्रद्धा है, किंतु साथ ही वह यह भी जानता था कि यह लड़का बोल-चाल में ठीक उसी का दूसरा रूप है, अत: वह भी उसी प्रकार बोला-----"क्यों मियां दिलजले... चाय क्या तुम्हारे बाप की है ?"

'आप तो नाराज हो गए अंकल!" विकास उछलकर विजय की गोद में बैठता हुआ बोला-----"मैं आपकी चाय कोई मुफ्त में नहीं पीऊंगा।"

-"हां!" विजय आंख मटकाकर बोला ---- "तुम तो बड़े धन्ना सेठ हो ना साले... अबे, हमारी चाय की कीमत तो तुम्हारे फरिश्तों से भी नहीं दी जा सकेगी।"

."वाह अंकल!" विकास शरारत के साथ बोला----"आप अपनी चाय के बदले एक नहीं तो चलिए दो दिलजली सुन लीजिए, बस! क्या आपकी चाय की कीमत इससे भी अधिक है?"

विजय अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि !

'सटाक।'

एक तीव्र ध्वनि !

एक तीव्र झटके के साथ एक चमचमाता हुआ चाकू सामने रखी मेज में आ धंसा ।

चचा-भतीजे चौंके!

विकास के अन्य शब्द उसके मुंह में ही रह गए।

दोनों की आंखें उस चाकू पर जम गई, जो मेज में धंसा हुआ अभी तक कांप-सा रहा था ।

भयानक शैतान की भांति विकास विजय की गोद से उछलकर खड़ा हो गया और इधर विजय अपनी पूरी शैतानियत पर उतर आया था।

अचानक उसने एक खिड़की के करीब हिलती हुई एक काली छाया देखी, अगले ही पल हवा में लहराता हुआ विजय खिड़की के पार हो गया। विकास अपने अंकल की भयानक फुर्ती देखकर हतप्रभ रह गया। उसके छोटे-से दिमाग को न जाने क्यों कभी-कभी ऐसा लगता था कि उसके झकझकिए अंकल कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं।

विकास ने उधर से ध्यान हटाकर चाकू को घूरा, जो अभी तक मेज में ज्यों-का-त्यों गड़ा हुआ था। विकास ने देखा कि चाकू की मूठ पर एक कागज लिपटा हुआ है। कागज को देखकर उसके शैतानी मस्तिष्क में हथोड़े-से पड़ने लगे। उसने शीघ्रता से वह कागज चाकू की मूठ से निकाला और पढ़ा!

'प्यारे विजय

अगर विश्व को खतरे से बचाना चाहते हो तो तुरंत इस पत्र में लिखेनुसार कार्य करो। टुम्बकटू को सिंगही की छिपकलियां सिंगलैंड ले गई हैं। अगर चाहो तो विमान से पूर्वी हिंद महासागर के ऊपर से होते हुए उस जंगल में पहुंचो, जहां चौबीस घंटे में कठिनता से सिर्फ दो अथवा तीन घंटे के लिए सूर्य की किरणें धरती के किसी भाग को चूम पाती है। यह बात ध्यान रखना, तुम्हें इस यात्रा के लिए विमान का ही प्रयोग करना है, वरना निश्चित रूप से मारे जाओगे।

-- ब्लैक डायमंड ।'

विकास ने पूरा कागज पढ़ा और उसकी दृष्टि सबसे नीचे

लिखे, पत्र लिखने वाले के नाम 'ब्लैक डायमंड' पर स्थिर हो गई। इस नाम के किसी व्यक्ति को कम-से-कम विकास तो किसी भी रूप में जानता नहीं था। तभी पीछे से विजय हताश-सा कमरे में प्रविष्ट होता हुआ बोला।

."निकल गया साला! "

***
-"कौन था अंकल?''

"ब्लैक डायमंड | "

-"यह कौन है अंकल?"

." पता नहीं कौन था, अपने-आप ही लड़ाई-भिड़ाई के बीच कहता था कि यार लोग उसे ब्लैक डायमंड कहते हैं। " फिर कहते-कहते विजय को जैसे एकदम ध्यान आया कि वह किससे बातें कर रहा है। वह एकदम अकड़कर बोला-----"अबे ओ दिलजले, लेकिन तुम्हें इन सब बातों से क्या मतलब ?"

'कुछ नहीं अंकल!" विकास इस प्रकार बोला, मानो संसार में उससे अधिक भोला कोई अन्य न होगा----''इस चाकू पर यह कागज लिपटा हुआ था।"

विजय ने झपटकर कागज विकास के हाथों से ले लिया और फिर एक ही सांस में सारा पढ़ गया। पढ़ते-पढ़ते कई प्रकार के भाव उसके चेहरे पर आए और गए। उसे पढ़कर विजय विकास से वहीं रुकने के लिए कहकर अंदर वाले कमरे में चला गया, किंतु ये शैतान भला इतना शरीफ कहां था ! विकास भी चुपके-से दबे पांव उसके पीछे लपका, किंतु विजय ने कमरा अंदर से बोल्ट कर लिया था। विकास ने की-होल में झांककर देखा तो अपने अंकल को फोन पर किसी से बातें करता पाया। विकास यह तो न सुन सका कि उसके अंकल फोन पर किससे और क्या बातें कर रहे हैं, किंतु उसे इस समय अपने अंकल बड़े रहस्यमय लग रहे थे।

क्षितिज पर डूबते सूर्य की अंतिम लालिमा भी सिसक-सिसककर दम तोड़ने जा रही थी। और विजय का विमान इस समय हिंद महासागर के पूर्वी किनारे के ऊपर लहरा रहा था। वह इस समय चालक सीट पर विराजमान था। अपनी ओर से वह अकेला ही इस अभियान पर निकला था। इस यात्रा पर चले उसे दो घंटे हो चुके थे।

ब्लैक डायमंड नाम के किसी व्यक्ति को वह नहीं जानता था ----परंतु फिर भी उस पत्र पर अमल करने के अतिरिक्त कोई चारा न था। अत: उसने तुरंत फोन पर ब्लैक ब्वॉय से एक विशेष विमान का प्रबंध करने के लिए कहा था। और परिणामस्वरूप इस समय वह अपने लक्ष्य के काफी निकट था।

विकास को उसने बड़ी सफाई से अपनी कोठी से टाल दिया था। इस अभियान पर वह पूर्णतया लैस होकर चला था।

वह विमान-चालन करता हुआ ही अपने नीचे फैले हिंद महासागर को देख रहा था कि वह एकाएक बुरी तरह चौक पड़ा।

एकाएक एक जोरदार धमाका हुआ और साथ ही विमान को एक अत्यधिक तीव्र झटका लगा।

विमान घायल पक्षी की भांति बुरी तरह लहरा गया।

विजय के मस्तिष्क में खतरे की घंटियां बजने लगीं। उसने महसूस किया कि विमान के छिछले भाग में आग लग चुकी है। विजय की समझ में नहीं आया कि यह सब क्यों और कैसे हो गया। उसने महसूस किया कि आग की लपटें लपलपाकर समूचे विमान को अपने आगोश में लेना चाहती हैं।

विजय जान गया कि यह अचानक ही भयानक खतरा आ

गया है। अभी विजय कुछ सोच ही रहा था कि वह पहले से अधिक बुरी तरह चौंक पड़ा। इस बुरी तरह, मानो उसने हिमालय पर्वत को वायु में तैरते देखा हो! उसकी आंखों से हैरत झांकने लगी। उसे ऐसा लगा कि वह अंतरिक्ष में उड़ता जा रहा था।

उसने फिर कान लगाकर उस आवाज को सुनना चाहा।

''अंकल... अंकल, मुझे बचाइए।" और विजय की खोपड़ी इस आवाज को सुनकर मानो वायु में चकरा रही थी ।

यह आवाज शत-प्रतिशत विकास की थी---- जो इस समय उसे पुकार रहा था।

विजय पहले तो यही सोचकर चकरा गया कि यह खतरनाक शैतान विमान में कैसे आ गया?

परंतु यह सोचने में उसने अधिक समय व्यर्थ नहीं किया, क्योंकि समय ऐसा नहीं था। विकास की आवाज उसके कानों में अभी तक पड़ रही थी।

विजय की आंखें दहककर लाल हो गई। विकास की घबराई हुई आवाज बता रही थी कि वह किसी खतरे में है और दूसरी बात यह कि आवाज उधर ही से आ रही थी, जिधर विमान में आग लगी हुई थी। विकास को इस परेशानी में देखकर वह भूल गया कि वह यहां कैसे आया, बल्कि विजय खतरनाक हो उठा। विकास द्वारा अंकल अंकल की आवाजें अभी तक उसके कानों में पड़ रही थीं। कॉकपिट में धुआं भरने लगा था। विमान किसी घायल पक्षी की भांति लहरा रहा था ।

- लपलपाती हुई आग क्षण प्रतिक्षण समूचे विमान को घेरती जा रही थी ।

अचानक विजय ने चालक सीट छोड़ दी और विमान के पीछे लपलपाती हुई आग की लपटों की ओर लपका, विमान अब चालकरहित था। अत: बुरी तरह वायु में लड़खड़ाता हुआ सागर से टकराने जा रहा था।

चाचा-भतीजे भयानक खतरे के शिकार थे।

आग से बचता हुआ वह उस कक्ष में पहुंचा, जिसमें से विकास की आवाज आ रही थी। आग की लपटें चारों ओर फैली हुई थीं। विकास जोर से उस कक्ष का दरवाजा पीट रहा था और निरंतर अंकल... अंकल चीख रहा था। विजय ने स्वयं को आग से बचाते हुए झपटकर दरवाजा खोल दिया, जो बाहर से बंद था।

दरवाजा खुलते ही विजय एकदम पीछे हट गया, लपलपाती हुई आग ने एक झटके के साथ उसे अपने आगोश में लेना चाहा था, धुएं का गुब्बार एकदम बाहर आया। वास्तव में अगर विजय एक झटके के साथ पीछे न हट गया होता तो वह आग की लपटों में घिर जाता।

और अगले ही पल उसने जो दृश्य देखा, उसे देखकर उसकी आंखें हैरत से फैल गई। एक बार फिर वह इस खतरनाक शैतान को देखकर आश्चर्यचकित रह गया।

विकास आग की लपटों और गाढ़े काले धुएं के बीच किसी भयानक शैतान की भांति लहराकर बाहर आया। विजय ने देखा कि वह कमरा, जिसमें कि विकास था, गहरे धुएं और आग की लपटों से भरा हुआ है। विकास वायु में लहराता हुआ कमरे के बाहर फर्श पर आकर गिरा। विजय ने देखा कि उस सुंदर शैतान के जिस्म पर वही सफेद कपड़े थे जो अब बुरी तरह गंदे हो चुके थे, कहीं-कहीं से फट भी गए थे।

वह शैतान पलक झपकते ही उछलकर खड़ा हो गया।

विजय उस शैतान को देखता ही रह गया । विकास के मासूम और प्यारे चेहरे पर विचित्र - सी शैतानियत के भाव थे।

तभी विकास ने विजय की ओर देखकर आंख मार दी।

उफ! ये चाचा-भतीजे! कितने खौफनाक!

इस खतरनाक शैतान के इस भयानक खतरे में घिरे होने के बावजूद आंख मारने पर विजय के होंठों पर मुस्कान गहन हो गई।

शायद इसलिए कि वह विकास के कार्यों की दिल-ही- दिल में सराहना कर रहा था । विकास की यह हरकत इस समय विजय को यह सोचने पर विवश कर रही थी कि यह लड़का भयानक खतरे में भी अपने होश नहीं गंवाता। विजय, विकास को देखकर गर्व से मुस्करा उठा। विजय का प्यार जैसे एकदम उमड़ गया, विजय स्वयं को रोक न सका और भावनाओं के अधीन होकर लपककर उस मासूम शैतान को अपने सीने से लगा लिया।

परंतु अगले ही पल वह उछल पड़ा... क्योंकि विकास चूंटने जैसी शैतानी करने से नहीं चूका था ।

इधर ये चाचा-भतीजे मस्त थे... उधर विमान बुरी तरह लड़खड़ाता हुआ मौत के कगार पर जा रहा था।

विजय को जैसे एकदम याद आया कि वे किस भयानक खतरे में घिरे हुए हैं।

उसे आभास हुआ कि आने वाले कुछ ही पल कितने भयानक. हैं! अगले ही पल उसके जिस्म में मानो विद्युत तरंगें दौड़ गई। उसने तुरंत फुर्ती के साथ विकास का हाथ थामा और चालक कक्ष की ओर जंप लगा दी।

विमान पूरी तरह आग की लपटों से घिर चुका था। लड़खड़ाता हुआ वह घायल पक्षी की भांति मौत के मुंह की ओर बढ़ रहा था। अब उस पर किसी प्रकार भी संयम नहीं पाया जा सकता था।

अचानक विकास चीखा----"अंकल... पैराशूट!" विजय ने चौंककर विकास की ओर देखा, तो पाया कि विकास के हाथ में वास्तव में एक पैराशूट है। विजय के चेहरे पर पल-भर में प्रसन्नता के भाव उजागर हो गए तथा वह चीखा ---- "कूद जाओ विकास, तुम कूद जाओ।"

***
विमान निरंतर लड़खड़ा रहा था।

."लेकिन अंकल, आप...?"

विकास को शायद विजय की चिंता थी । अत: वह अभी कुछ कहना ही चाहता था कि विजय ने बिना कुछ सुने फुर्ती से उसे उठाकर जलते और लड़खड़ाते विमान की एक खिड़की के माध्यम से बाहर फेंक दिया।

विकास को कदापि इस बात की आशा न थी, परंतु विजय जानता था कि हवा में पहुंचते ही विकास की कमर में बंधा पैराशूट खुल जाएगा-----इसीलिए उसने समय की गंभीरता को समझते हुए, विकास को उठाकर विमान से बाहर खुले वायुमंडल में फेंक दिया और स्वयं फुर्ती के साथ झपटकर चालक सीट पर बैठकर बटन दबा दिया।

एक तीव्र झटके के साथ चालक सीट दरवाजे से निकलकर वायु में आ गई और उसमें लगा ऑटोमेटिक पैराशूट खुल गया और परिणामस्वरूप वह इस समय आराम से वायुमंडल में तैरता हुआ नीचे की ओर बढ़ रहा था।

लड़खड़ाता हुआ विमान मौत की ओर बढ़ता रहा।

परंतु अब विजय और विकास दोनों ही विमान से अलग थे।

''अंकल!" विकास की जोरदार चीख ने विजय के साथ ही समूचे वायुमंडल को कंपकंपाकर रख दिया।

यह अवाज विकास ही की थी ---- विजय ने एक झटके के साथ आवाज की ओर देखा।

और अगले ही पल विजय की आंखों से भयानक खौफ झांकने लगा। उसके दिल पर जैसे एक साथ हजारों बर्छियां चल गई। ऐसा खौफनाक दृश्य कि विजय भी चीख पड़ा। विजय के नेत्रों में आसू उमड़ आए।

--- 'नहीं... नहीं।' विजय का दिल एकदम पुकार उठा-----'वह विकास की मौत नहीं देख सकता...नहीं... कभी नहीं, विकास नहीं मर सकता।'

परंतु दूसरी ओर का दृश्य कठोर पदार्थ की भांति सख्त था।

उसने तो कभी कल्पना भी न की थी कि कभी विकास को मरता हुआ वह इस प्रकार अपनी आंखों से देखेगा और कुछ कर न सकेगा। वास्तव में उसके देखते ही देखते विकास मौत के मुंह में जा रहा था ।

'अंकल!"

विकास की दर्द भरी चीख फिर उसके सीने को बेंधती चली गई। कठोर हृदय विजय की आंखों में भी आंसू निकल आए। कैसी बेबस निगाहों से वह मरते हुए विकास को देख रहा था !

हुआ यूं कि न जाने किस कारण विकास का पैराशूट नहीं खुला था। अत: परिणामस्वरूप वायुमंडल में लुढ़कता-पुढ़कता विकास नीचे गिरता जा रहा था...वह बार-बार 'अंकल-अंकल' पुकार रहा था।

और विजय! वह खतरनाक जासूस, जिससे मौत भी कांपती थी।

आज वह भी कुछ कर पाने में असमर्थ था । विकास की
करुण चीखें सुनने के बाद भी विजय कुछ न कर सका। करता भी तो क्या? वह तो पैराशूट के अधीन था, जबकि विकास का पैराशूट खुला ही न था। अत: वह लुढ़कता-पुढ़कता उससे नीचे पहुंच चुका था।

'अंकल-अंकल' कहते हुए विकास की अंतिम चीखें अब भी उसके कानों में पिघले सीसे की भांति पड़ रही थी ।

विजय जैसा जासूस लगभग रो पड़ा!

सिर्फ विकास ही नहीं, बल्कि भारत का एक रत्न उसके देखते-हीं-देखते बिना कुछ किए ही मौत के आंचल में सोने जा रहा था।

कभी भावनाओं में न बहने वाला विजय भी तड़प उठा। आज विकास को मरता देखकर विजय को पता लगा कि व्यक्ति के लिए भावनाएं कितना महत्त्व रखती हैं।

वायु में तैरता हुआ विजय मरते हुए विकास को देखता रहा और अंत में !

-----''विकास!''

उधर लुढ़कता-पुढ़कता विकास सागर के जल से टकराया और इधर विजय भावनाओं में बहकर इस बुरी तरह चीखा कि वायुमंडल का जर्रा-जर्रा कांप गया। ये एक ऐसे व्यक्ति की पहली भावनाओं में खोई हुई चीख थी, जिसने जीवन में कभी भावनाओं को महत्त्व नहीं दिया था। उसकी आंखों से झरझर करता झरना बहने लगा, चेहरा भयानक तरीके से लाल हो गया। आंखों से खौफनाक ज्वाला लपलपाने लगी। यह शायद विजय के जीवन का पहला अवसर था, जब वह इतना नर्वस था और यह स्थिति भी विजय की शायद जीवन में प्रथम बार ही हुई थी। उसने अपनी आंखों से देखा !

भारत का एक विकासशील गौरव उसके देखते-ही-देखते मौत के आगोश में समा गया।

वह सितारा मौत को प्राप्त हो गया, जिसके पग अभी भारत मां की रक्षा हेतु बढ़े ही थे । और विजय !

इतना नर्वस... इतना दुखी शायद वह जीवन में कभी नहीं रहा।

आज उसके नेत्रों में सचमुच पीड़ा का नीर था। विकास की मौत पर पत्थर भी पिघलकर मोम हो गया था। वह कैसे मान लेता कि विकास जीवित बच सकता है, उसने स्वयं अपनी आंखों से देखा था ।

हवा में लहराता, 'अंकल... अंकल' चीखता हुआ भारत का एक हीरा, विजय के जिस्म का एक भाग, रैना और रघुनाथ के जिगर का टुकड़ा विकास सागर के जल से टकराया।

इतना ही होता तो शायद विजय, विकास के जीवित रहने की कल्पना तो कर ही सकता था।

परंतु उफ्! उससे आगे का दृश्य! कितना भयानक! कितना

खौफनाक! निश्चित रूप से विकास के जीवन का अंतिम पल-----इस दृश्य के बाद उसके जीवन की कल्पना तक करना नितांत मूर्खता की बात थी। विजय जैसा व्यक्ति भी उस भयानक दृश्य को देख न सका, परंतु फिर भी उसने अपने विकास का अंत अपनी आंखों से देखा।

अभी विकास को पानी के ऊपर तैरते एक पल भी नहीं बीता था कि!

उफ्... विजय लाखों में पहचान सकता था.... वह व्हेल मछली थी! सागर में उपस्थित सबसे खूंखार, विशाल और भयानक मछली थी व्हेल ! विजय ने साफ देखा कि व्हेल का भयानक गुफा समान जबड़ा खुला और फिर !

विकास व्हेल के मुंह में समाता चला गया।

"विकास!"

विकास की यह खौफनाक मौत देखकर विजय तड़प उठा। उसके जिस्म का पोर-पोर कांप उठा, मुट्ठियां शक्ति के साथ भिंच गई। चेहरा पसीने-पसीने हो गया। आंखें लहू उगलने लगीं। इतना बड़ा आघात, इतना कष्ट, इतना बड़ा सदमा ! नहीं, विजय जैसा व्यक्ति भी सहन न कर सका। उसके भी जबड़े सख्ती के साथ एक-दूसरे पर जम गए। उसने नीचे देखा, विकास मर चुका था। तेरह वर्षीय शैतान की मृत्यु हो चुकी थी।

व्हेल विकास को निगलकर बड़ी शांति के साथ सागर के जल में विलीन हो चुकी थी। सागर का जल ऐसे शांत था, मानो कुछ हुआ ही न हो। विजय कभी सोच भी नहीं सकता था कि विकास व्हेल का भोजन बन जाएगा।

विजय ने विकास को अपनी आंखों से मरते हुए देखा, परंतु कुछ न कर सका। उसका पत्थर जैसा हृदय इन्हीं भावनाओं में बहता रहा, जबकि उसका जिस्म पैराशूट के साथ धीरे-धीरे उस ओर को उड़ रहा था, जिधर वह जल था, जिसमें आने के लिए ब्लैक डायमंड नामक उस रहस्यमय साए ने लिखा था... ज्यों-ज्यों वह नीचे आता जा रहा था, त्यों-त्यों सागर पीछे हटता जा रहा था और वह स्वयं उस जंगल की ओर बढ़ता जा रहा था।

***
विकास की मौत का उसे जो दुख था, उसे मेरी लेखनी प्रस्तुत करने में असमर्थ है।

धरती पर पहुंचते-पहुंचते विजय खुद पर काफी हद तक काबू पा चुका था। जिस समय वह जंगल में उतरा, उस समय वहां धुंधला-सा प्रकाश फैला हुआ था। इस जंगल में चारों ओर विशाल-विशाल वृक्ष थे जहां विजय उतरा था। उसके पास ही उसने एक कुआं देखा।

उसके चारों ओर के जंगल में वायु की सायं-सायं के अतिरिक्त कोई आवाज न थी। कुएं को देखकर न जाने विजय के कदम स्वयमेव ही उसकी ओर क्यों बढ़ गए? परंतु इतना अवश्य है कि वह पैराशूट वहीं फेंककर बोझिल से कदमों से कुएं की ओर बढ़ गया।

कुएं के करीब पहुंचकर उसने एक पैर उसके चारों ओर बने चबूतरे पर रखकर उसके अंदर झांका... परंतु तभी!

वह एक बार फिर बुरी तरह चौंका!

एक तीव्र और जहरीली फुंकार के साथ एक अजगर का फन उसके सामने आया। उसी पल अजगर ने तेज फुंकार के साथ सांस बाहर निकाला। सांस की फुंकार के साथ विजय का जिस्म ठीक किसी तिनके की भांति विपरीत दिशा में उड़ता चला गया।

उड़ते-उड़ते विजय के मस्तिष्क में आ गया था कि वह भयानक खतरे में घिर गया है। उसने एक ही झलक में देख लिया था कि अजगर इलेपिड़ी परिवार (इस जाति के अजगर सबसे खतरनाक होते हैं) का खौफनाक भारतीय कोबरा जाति का है। उसकी सांस के साथ वह दूर जाकर गिरा। अभी वह संभल भी नहीं पाया था कि तभी भयानक अजगर ने सांस भीतर को खींची और जिस तरह विजय तिनके की भांति उड़कर यहां तक आया था-----ठीक उसी प्रकार सांस के साथ वह अजगर के भयानक जबड़े में समाता चला गया। महान जासूस कुछ भी न कर सका! खौफनाक अजगर ने विजय को निगल लिया था!

खौफनाक शैतान विकास विजय के विमान में किस प्रकार पहुंचा? क्या उसे विजय का रहस्य मालूम हो गया था? वही रहस्य, जिसे छुपाने के लिए विजय सैकड़ों खून कर सकता था?

जलते हुए हुए विमान से समुद्र के भीतर व्हेल के मुंह में समा गया विकास! यह देखकर विजय जैसे भावनाशून्य व्यक्ति की आंखों में भी आसू आ गए। क्या संसार के सर्वाधिक शैतान लड़के विकास का यहीं अंत होना था ? या फिर ?

विकास के गायब होने पर ममता की प्रतिमूर्ति रैना मां नें अपने मासूम लाल को ढूंढ़ने के लिए क्या किया?

विकास के लापता हो जाने पर रघुनाथ, ठाकुर साहब व ब्लैक ब्वॉय क्या चुप बैठे रहे?

अपनी आंखों से अपने प्यारे विकास का अंत देखकर विजय जैसे व्यक्ति का प्रतिशोध कैसा खौफनाक रहा होगा?

क्या विजय जैक्सन, सिंगही और चांद के अपराधी टुम्बकटू पर विजय प्राप्त कर सका?

विश्व के भयानकतम अपराधी सिंगही, जैक्सन और टुम्बकटू का मुकाबला कैसा रहा होगा और जीत किसकी हुई? क्या जैक्सन और सिंगही अपनी-अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सके?

चांद के अपराधी टुम्बकटू के विश्व को दिए चैलेंज की भारत के अलावा अन्य देशों पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

सिंगही, जैक्सन और टुम्बकटू के बीच फंसे महाशातिर अंतर्राष्ट्रीय अपराधी अलफांसे ने क्या चाल चली ?

ऐसे अनेकों प्रश्न यहां अधूरे रह गए हैं। उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर विस्तारपूर्व जानने के लिए 'राजा पॉकेट बुक्स' द्वारा प्रकाशित वेप्रकाश शर्मा का महान उपन्यास 'छलावा और शैतान' पढ़ना न भूलें ।

यूं तो चौड़ाई भी इस हॉल की किसी प्रकार कम न थी, परंतु लंबाई इतनी अधिक थी कि बेचारी चौड़ाई का सवा-सत्यानाश होकर रह गया था। हॉल ट्यूब लाइटों से जगमगा रहा था। हॉल के लगभग बीच में एक लंबी मेज पड़ी थी और उस लंबी मेज पर अड़ा था खौफनाक छलावा?. . यानी सात फीट लंबे गन्ने जैसा पतला जिस्म, चांद से आया अजीबो-गरीब अपराधी टुम्बकटू ।

ऐसा लगता था, जैसे यह खौफनाक छलावा इस समय अचेत हो, वैसे टुम्बकटू की स्थिति तो यही बता रही थी कि वह अचेत है, परंतु कौन जाने कि वास्तव में यह छलावा अचेत है अथवा बड़े खूबसूरत ढंग से धरती की महान शक्ति सिंगही को छल रहा है।

जी हां, सिंगही । इस हॉल में अपराधी जगत का वह सरताज भी उपस्थित था। सिंगही एक चमचमाते सिंहासन पर किसी सम्राट की भांति बैठा था और उस लंबी मेज की ओर देख रहा था, जिस पर वह अजीब इंसान टुम्बकटू लेटा हुआ था। मेज के चारों ओर कुछ डॉक्टर खड़े अपना कार्य कर रहे थे। वे शायद सिंगही के आदेशानुसार टुम्बकटू की जांघ में से वह फिल्म निकालना चाहते थे। टुम्बकटू शायद अचेत ही था, तभी वह शांत, मेज पर आराम फरमा रहा था।

हॉल में सिंगही, टुम्बकटू और चार डॉक्टरों के अतिरिक्त अन्य कोई न था। अभी डॉक्टरों ने अपना कार्य प्रारंभ करने के इरादे से पहला औजार उठाया ही था कि!

'खटाक!'

सनसनाता हुआ एक चमकदार चाकू मेज पर आ गड़ा।

"टुम्बकटू ब्लैक डायमंड का शिकार है।" एक भर्राया हुआ खौफनाक स्वर हॉल में गूंजा।

एक झटके के साथ, सिंगही सहित सबकी निगाहें आवाज की ओर उठ गई। आवाज हॉल के एक दरवाजे से आई थी। सबने देखा !

हॉल के दरवाजे पर एक काला नकाबपोश खड़ा था, जिसके स्याह कपडों पर स्थान-स्थान पर सुनहरे डायमंड बने हुए थे, जिनमें से किरणें निकल रही थीं। स्याह लिबास पर बने सुनहरे डायमंड बड़े ही सुंदर लग रहे थे। ब्लैक डायमंड नामक वह रहस्यमय व्यक्ति टांगें चौडाए, लापरवाही के साथ दोनों कूल्हों पर हाथ रखे अपनी चमकीली आखों से हॉल में उपस्थित प्रत्येक इंसान को घूर रहा था, विशेष रूप से सिंगही को।

कुछ देर तक तो हॉल में मौत जैसा सन्नाटा रहा, फिर सिंगही उसे भंग करता हुआ बोला-----"मैं तुम्हें पहचान...।

और सिंगही के बाकी शब्द मुंह में ही रह गए। ऐसा लगने लगा, जैसे सबके कानों में मीठा-मीठा शहद उड़ेला जा रहा हो। हॉल में अत्यधिक मधुर संगीत गूंज रहा था। सभी ने कुछ पल के लिए तो ऐसा महसूस किया कि वे लोग संगीत की इन मधुर तरंगों में खोते जा रहे हैं।

"कुछ ही पलों में यहां जैक्सन आने वाली है, बेटे सिंगही!" अचानक ब्लैक डायमंड का लहजा बदल गया। उसने झटके के साथ अपनी नकाब उतारकर फेंक दी । नकाब के पीछे, ब्लैक डायमंड का चेहरा अंतर्राष्ट्रीय अपराधी अलफसे, का था। वह शीघ्रता से आगे बढ़ता हुआ बोला-"जैक्सन से तुम तभी जीत सख्ते हो, जब अलफांसे तुम्हारे साथ हो और अगर मेरा साथ चाहते हो तो उसकी कीमत टुम्बकटू होगी।"

तभी अलफांसे के सिर पर एक जोरदार तमाचा पड़ा और उस समय अलफांसे की आंखें हैरत से फैल गई ----- जब उसने टुम्बकटू को अपने सामने न सिर्फ खड़ा पाया, बल्कि वह बड़े आराम से कह रहा था----- "शर्म नहीं आती तुम्हे... अबे, मैं कोई लुगाई हूं, जो मेरी कीमत लगाते हो?"

अलफांसे चकराकर रह गया। टुम्बकटू अपने रंग पर था। संगीत की मधुर तरंगें गूंज रही थीं और सिंहासन पर बैठे सम्राट सिंगही के छोटे-छोटे किंतु चमकदार नेत्रों में खूनी चमक थी। यह चमक उबलते हुए लहू में बदलती जा रही थी ।

इससे आगे की कहानी विस्तारपूर्वक जानने के लिए पढ़े, इसी उपन्यास का दूसरा व अंतिम भाग 'छलावा और शैतान'।

समाप्त...