रविवार : 23 नवम्बर
डिकोस्टा टहलता सा चाल के विशाल कम्पाउन्ड से बाहर निकला।
सड़क पर पहुंच कर उसने लापरवाही से आजू बाजू झांका।
परसों रात से उसकी जानी पहचानी नीली सान्त्रो चाल से बाहर फुटपाथ से लगी खड़ी थी।
उसने उधर से पीठ फेरी और रेस्टोरेंट की ओर बढ़ा।
उसने देखा रेस्टोरेंट के इकलौते बैंच पर जगह नहीं थी। सुबह की चाय के उस जैसे तलबगार चाल के चार भीड़ू पहले ही वहां मौजूद थे। उन में और डिकोस्टा में अभिवादन का आदान प्रदान हुआ।
रेस्टोरेंट के छोकरे ने उसके बिना मांगे उसे भाप निकलती चाय का गिलास थमा दिया।
“पाव?”—छोकरा बोला।
“अभी नहीं।“—डिकोस्टा बोला”—“बोलेगा।”
छोकरा उसके करीब से हट गया।
डिकोस्टा ने चाय का एक घूंट भरा और तृप्तिपूर्ण भाव से होंठ चटकाये। उसने फिर एक उड़ती निगाह नीली सान्त्रो की तरफ डाली और गिलास थामे टहलता सा उसकी ओर बढ़ा।
कार के करीब पहुंच कर वो ठिठका।
कार में उसकी फ्रंट सीट पर परसों वाले दोनों भीड़ू मौजूद थे।
टी-कैटल इयर्स और उसका साथी।
“अरे!”—वो एक खुली खिड़की के करीब पहुंच कर बोला—“तुम तो वहीच भीड़ू।”
दोनों सकपकाये।
“मैं चाय बोले तुम्हेरे वास्ते?”
किसी ने जवाब न दिया।
“अभी भी गाइलो को मांगता है? मिला नहीं?”
पंड्या ने हिचकिचाते हुए इंकार में सिर हिलाया।
“कमाल है! वो तो अपनी खोली में है!”
“क्या?”—पंड्या हड़बड़ाया।
“मैं बोला ये टेम गाइलो अपना खोली में है।”
“खोली में है! कब आया? किधर से आया?”
“किधर से आया क्या? बोले तो तुम तो उसको पहचानता हैइच नहीं!”
“कौन बोला?”
“बोला तो कोई नहीं। पण मेरे को लगा...”
“गलत लगा।”
“बोले तो पासिबल। अभी और बोले तो गाइलो पीछू का रास्ता से आया।”
“पीछू का रास्ता?”
“है न! उधर टैक्सी पार्क करने का वास्ते ज्यास्ती स्पेस। इस वास्ते पीछू का रास्ता। उधर से भी ऊपर जाने का वास्ते स्टेयर्स।”
“अभी खोली में है?”
“यहीच बोला मैं। तुम साला कब का वेट करता है। अभी मिलने का तो... बोले तो नो प्राब्लम।”
दोनों कार से निकले और बिना डिकोस्टा कर निगाह डाले आगे बढ़े।
सीढ़ियां तय कर के वो पहली मंजिल पर और आगे गलियारे के इकलौते हरे दरवाजे पर पहुंचे।
पंड्या ने एक उंगली के दबाव से हौले से दरवाजा ट्राई किया।
दरवाजा चौखट पर से हिला।
दोनों की निगाहें मिलीं। पंड्या ने सहमति में सिर हिलाया। पठान ने पतलून की बैल्ट में खुंसी गन को निकाल कर अपनी जैकेट की बाहरी जेब में डाल लिया और हाथ जेब में ही टिका रहने दिया।
पंड्या ने जोर से दरवाजे को धक्का दिया और दरवाजे से भीतर छलांग लगाई।
पठान एेन उसके पीछे था।
पंड्या ने सामने निगाह दौड़ाई तो एकाएक यूं थमक कर खड़ा हुआ जैसे कोई अदृश्य दीवार रास्ते में आ गयी हो।
एक गन की स्थिर नाल उसकी तरफ झांक रही थी।
“क-क्या!”—उसके मुंह से निकला—“क्या!”
“बाजू हट।”—जीतसिंह सर्द लहजे से बोला।
जोर से थूक निगलते उसने आदेश का पालन किया।
“तेरा जो हाथ जेब में है”—जीतसिंह पठान से बोला—“वो जेब में ही रहे। बाहर निकला तो गोली। क्या?”
पठान ने बेचैनी से सहमति में सिर हिलाया।
जीतसिंह के पहलू में खड़ा गाइलो आगे बढ़ा। पठान के करीब पहुंच कर उसने उसकी रिवाल्वर अपने कब्जे में कर ली और उनके पीछे दरवाजा बन्द कर दिया।
जीतसिंह करीब आया, उसने घूरते हुए बारी बारी दोनों को देखा।
दोनों ने बेचैनी से पहलू बदला।
“साला पीछा छोड़ता हैइच नहीं।”—जीतसिंह भुनभुनाता सा बोला—“अभी क्या करे मैं तुम्हेरा!”
दोनों ने पहलू बदला, मुंह खोला, बन्द किया।
जीतसिंह ने गन वाला हाथ सीधा किया।
“इधर”—पंड्या हिम्मत करके बोला—“गोली चलाने की तेरी मजाल नहीं हो सकती। इधर भरी पूरी चाल में तू हमें नहीं टपका सकता।”
“अरे, टपकाना कौन मांगता है! घुटना फोड़ेगा न एक एक! ताकि गिरते पड़ते खुद इधर से निकल सको। क्या वान्दा है?”
पंड्या से जवाब देते न बना।
कितनी आसानी से वो जाल में फंसे थे! उसने सपने में नहीं सोचा था कि उन पर यूं पलटवार हो सकता था। अब जाहिर था जो साजिश उन के खिलाफ हुई थी, उस में डिकोस्टा कर के वो भीड़ू भी शामिल था जिसने बाहर सड़क पर उन्हें खबर दी थी कि गाइलो अपनी खोली में था।
“साला तेरा जोड़ीदार टैक्सी स्टैण्ड पर दिन दहाड़े, खुल्ले में चलती सड़क पर, इतने टैक्सी ड्राइवरों के बीच गन चमकाता था, उसकी मजाल हो सकती थी! इस खोली में मैं गन चमकाता है तो बोलता है मेरी मजाल नहीं हो सकती।”
पंड्या खामोश रहा।
“नाम बोले तो?”
पंड्या ने जवाब न दिया।
जीतसिंह ने हाथ बढ़ा कर गन की नाल से उसकी नाक पर दस्तक दी।
पंड्या पीड़ा से बिलबिलाया।
“अभी सामने के दो दान्त तेरे हलक में।”
“पंड्या। विराट पंड्या।”
“पता? बंडल नहीं मारने का। पॉकेट्स का सर्च मार के कनफर्म करेगा।”
“खेतवाडी। पांचवी लेन। हाउस नम्बर आठ। टॉप फ्लोर।”
जीतसिंह ने पठान की तरफ देखा।
“सुहैल पठान।”—पठान कठिन स्वर में बोला—“डोंगरी। हिल रोड नम्बर दो। डोंगरी मार्केट। हबीब रेस्टोरेंट के ऊपर।”
“बढ़िया। तुम्हेरे साथ दो भीड़ू और थे। वो नागपाड़ा में टैक्सी स्टैण्ड को वाच करते हैं। ये मैं पूछ नहीं रयेला है, बता रयेला है तुम्हेरे को। इधर आने से पहले कनफर्म किया। क्या?”
किसी ने जवाब न दिया।
“अभी मेरा बड़ा सवाल ये है कि क्यों पीछे पड़े हो? कैसे पीछा छोड़ोगे?”
“हमेरी तेरे से कोई अदावत नहीं, भाया।”—पंड्या बोला।
“है न बरोबर! चकरी वाले भीड़ू के साथ आया न इधर! अभी साला आगे चकरी न दिखाई दिया होता तो क्या करता? हालचाल पूछता, चाय पीता, सिग्रेट पीता, निकल लेता?”
“वो तो नहीं पण...”
“क्या पण? बोलता है अदावत नहीं है। साला परसों से पीछे पड़ा है—ऐसे कि जान से ही मार डालेगा। कल टैक्सी स्टैण्ड पर क्या करता था? साला मेरे साथ हाउ-डू-यू-डू-क्वाइट-वैल-थैंक्यू करता था एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, चार भीड़ू?”
“सब एक गलतफहमी की वजह से हुआ।”
“मेरे को मंजूर तेरी बात। अभी कर दूर गलतफहमी ताकि पीछा छूटे परमानेंट करके।”
“करता है पण पहले तू हां बोल तू ही बद्रीनाथ, तू ही जीतसिंह।”
“बोला।”
“तू गुरुवार रात नौ बजे गेटवे आफ इन्डिया से एक पैसेंजर अपना टैक्सी में बिठाया जो तेरे को कई रूट्स पर ले के गया और आखिर जब टैक्सी बैरीस्टर नाथ पाई मार्ग पर दौड़ता था तो यकायक टैक्सी से बाहर कूद गया, डिवाइडर जम्प कर के उधर का रोड पर गया जिस पर अपोजिट साइड से ट्रैफिक आता था और...गायब हो गया।”
“पण गायब रह न सका। तुम लोग फिर पकड़ लिया।”
“क्या?”
“नीली सान्त्रो। साली गेटवे आफ इन्डिया से ही मेरा टैक्सी के पीछे। तब मैं तुम दोनों का थोबड़ा न देख सका पण रियरव्यू मिरर में से गाड़ी को बरोबर पहचान के रखा। तुम साला मेरा टैक्सी के पीछे नहीं था, मेरा टैक्सी के पैसेंजर के पीछे था जो स्मार्ट निकला, चलती टैक्सी में से कूद के भाग गया पण बैड लक खराब कि किसी तरह से फिर पकड़ा गया। वो पैसेंजर जोकम फर्नान्डो जिसका डैड बॉडी सिवरी में रेलवे ट्रैक के बाजू में पड़ा मिला और उसको डैड बॉडी बनाने वाला साला तुम। अभी इस बात से मुकर कर दिखाओ।”
“जरूरत किधर है? जब हम एक ही टाइप का भीड़ू तो जरूरत किधर है! कल तू खुद ऐसा बोला। बोला अन्डरवर्ल्ड का भीड़ू। बड़े गैंग का प्यादा...”
“प्यादे जैसा।”
“... सी-रॉक एस्टेट में सब की नजरों में चढ़ा हुआ। बोले तो सब से पावरफुल गैंग की सरपरस्ती वाला भीड़ू। बिना सरपरस्ती के भी बड़े बड़े कारनामे कर चुका होने वाला। बोले तो हमेरे से भी ज्यादा हेंकड़ पण छुपा रुस्तम। अभी बोल, भाया, अभी जब हम एक राह के राही तो तेरा हमारे साथ आपसदारी जैसा पेश आना बनता है या नहीं बनता? चोर चोर मौसेरे भाई वाले रिश्ते से हमेरा हैल्प करना बनता है या नहीं बनता?”
“ये जुबान कल तो न बोला?”
“कल नौबत किधर आयी! वो चीख वाला डिरयामा न करता तो शायद आती। आज तू इतना कुछ बोला, हमें थर्सडे के अपने पैसेंजर का कातिल तक ठहरा दिया, कल ये सब बोलता तो हम ईक्वल लैवल पर बात करते न तेरे से!”
“हूं। अभी क्या मांगता है? इधर बाजी पलट न गयी होती तो क्या पिरेशर लगाता हमेरे पर?”
“नहीं लगाता पिरेशर...”
“बंडल!”
“लगाता भी तो खाली कुछ सवाल पूछने के वास्ते। अभी हमेरा हैल्प के तौर पर जवाब दे, आनेस्ट करके जवाब दे तो...तो हम तेरे शुक्रगुजार। और आइन्दा तेरे फिरेंड। आइन्दा कभी हमेरी हैल्प की जरूरत पड़े तो बोलना, विराट पंड्या वार फुटिंग पर करेगा।”
“हूं।”
“एक हाथ दूसरे हाथ को धोता है, भाया। एक तरह के लोगों में आपसदारी नहीं होगी तो क्या नार्थ पोल साउथ पोल में होगी?”
“बातें फैंसी करता है।”
उसने दांत चमकाये।
“तो अभी हम फ्रैंड?”
“हां।”
“कल जो थप्पड़ मारा मेरे मुंह पर, उसे मैं भूल जाये?”
“तू दो मार ले। मैं उफ् भी करे तो बोलना।”
“पूछ, क्या पूछना मांगता है?”
“आनेस्ट जवाब देगा?”
“हां।”
“गुरुवार वो जब तेरा पैसेंजर बैरीस्टर नाथ पाई मार्ग पर एकाएक टैक्सी से कूद गया तो ऐसा करने से पहले तेरे को क्या बोला?”
“क्या बोला? कुछ भी नहीं बोला।”
“ये तो बोला होगा कि क्या करने जा रहा था?”
“न! वो तो इत्तफाक से टैक्सी को ब्रेक लगाना पड़ा और वो टैक्सी से बाहर। डिवाइडर जम्प करके परली तरफ। फिर गायब। रनिंग ट्रैफिक में मैं साला टैक्सी को रोक भी नहीं सकता था। साला इतना टेम टैक्सी दौड़वाया, भाड़ा भी न दे के गया। आगे यू टर्न इतना दूर था कि जब तक पलट कर दूसरी साइड में आता तब तक वो उधर से मीलों दूर होता जिधर जम्प मारा। और क्या पता किधर होता! साला फर्स्ट टेम ऐसा पैसेंजर मिला जो भाड़ा न देना पड़े, इस वास्ते टैक्सी से कूद के भाग गया।”
“इस वजह से तो न भाग...”
“ओह! सॉरी बोलता है। मैं भूल गया था कि तुम लोग पीछे पड़ेले थे, इस वजह से भागा था। बोले तो क्यों पीछे पड़ेले थे? क्या मांगता था तुम को उस पैसेंजर से?”
“वो जुदा स्टोरी है। अभी ये बोल पीछे टैक्सी में क्या छोड़ के गया?”
“क्या छोड़ के गया! कुछ भी नहीं छोड़ के गया।”
“जब टैक्सी में सवार हुआ था तो कुछ नहीं था उसके पास?”
“लगेज तो नहीं था! होता तो मैं बाहर निकल कर डिकी खोलता न!”
“बाहर निकला ही नहीं था?”
“न! जरूरत किधर थी!”
“अरे, मीटर डाउन करने को तो निकला होगा?”
“नक्को! पैसेंजर साइड का विन्डो से हाथ निकाल के मीटर डाउन किया न! जब पीछे था तो देखता ही होगा सब!”
“कोई हैण्ड बैगेज था उसके पास?”
“हैण्ड बैगेज बोले तो?”
“कोई बैग! कोई ब्रीफकेस!”
“मैंने ध्यान नहीं दिया था।”
पंड्या ने अपलक उसे देखा।
“लुक नहीं देने का, भीड़ू। स्टियरिंग के पीछे बैठे टैक्सी ड्राइवर का ध्यान इन बातों की तरफ नहीं जाता। पैसेंजर आता है, बैठ जाता है, बोले तो वो तो पीछे भी नहीं झांकता। साला कई बार तो पैसेन्जर का शक्ल भी नोटिस में नहीं आता।”
“मंजिल पर पहुंच कर उतरता है तो तब तो कुछ पता चलता होगा? बोले तो जब उतर के भाड़ा देता है?”
“अगर उतर के भाड़ा देता है। पैसेन्जर लोग भीतर बैठे-बैठे भी भाड़ा पूछता है, चुकता करता है और उतर के चला जाता है। तब ड्राइवर किधर ध्यान देता है कि उसके हाथ में कुछ था या नहीं था!”
“तूने अपने गुरुवार रात के पैसेन्जर को डिवाइडर जम्प करते तो देखा था न!”
“हां, तब तो देखा था!”
“तब उसके हाथ में ब्रीफकेस था?”
“बोले तो ध्यान नहीं गया था।”
“अरे, ब्रीफकेस कोई मुट्ठी में दुबकने वाली आइटम तो नहीं होती”—पंड्या झल्लाया, फिर तत्काल उसने खुद पर जब्त किया—“अच्छी खासी बड़ी आइटम होती है, क्यों न दिखाई दी वो तेरे को?”
जीतसिंह ने उस बात पर विचार करने का अभिनय किया।
“बोले तो”—फिर बोला—“बड़ी आइटम जैकेट की ओट में की जा सकती है। इतना मेरे को याद आता है कि वो ढ़ीली ढ़ाली जैकेट पहने था। मगर उसके पास ब्रीफकेस था तो हो सकता है उसने कूदने के बाद उसे जैकेट की ओट में कर लिया हो!”
“या तेरे को थमा गया हो!”
“क्या बोला?”
“अमानत के तौर पर। फॉर सेफ कीपिंग! बोले तो बाद में कलैक्ट करने का!”
“किधर से? किधर से कलैक्ट करने का?”
“तू ने कुछ बोला होगा! उसने पूछा होगा तो बोला होगा!”
“नहीं, नहीं। ऐसा कुछ नहीं हुआ था। वो ड्राइवर से बातें करने वाली टाइप का पैसेंजर थाइच नहीं। कौन सा रोड पकड़ने का था, बोलता था और चुप हो जाता था। बाद में तो वैसीच बोलना भी बन्द कर दिया था। वो तो बोले तो टैक्सी से ऐसा यकायक कूदा था जैसे पीछे सांप निकल आया हो।”
“तो तेरा फाइनल जवाब है कि वो तेरे को कोई ब्रीफकेस सौंप कर नहीं गया था?”
“हां। लॉक करने का।”
“मसखरी नहीं, भाया, ये बहुत सीरियस मैटर है।”
“सॉरी बोलता है न!”
“और तेरे को नहीं मालूम जब वो कूदा था तो उसके हाथ में ब्रीफकेस था या नहीं था?”
“नहीं मालूम।”
“पक्की बात?”
“हां।”
“ठीक है फिर।”
“पण जब वो भीड़ू तुम्हारे काबू में था...”
“इमीजियेट कर के नहीं था।”—पंड्या विषादपूर्ण भाव से सिर हिलाता बोला—“टैक्सी से कूद कर भागते ही काबू में नहीं आ गया था। बीच का कुछ अरसा पता नहीं वो कहां था! जब उसे थामा था, तब ब्रीफकेस उसके पास नहीं था। यही मालूम करने के वास्ते, कि उसने ब्रीफकेस का क्या किया था, उस पर प्रेशर बनाया था तो...तो ढेर हो गया साला। कोई बात ही नहीं थी ढेर होने वाली फिर भी हो गया।”
“ओह!”
“जीतसिंह, वन लास्ट टाइम फिर पूछता है। ब्रीफकेस टैक्सी में तो नहीं छूटा था? या उसने तेरे को अमानत के तौर पर तो नहीं सौंपा था?”
“मैं भी लास्ट टाइम जवाब देता है। ऐसा कुछ नहीं हुआ था।”
“अच्छा, भई।”
“बोले तो”—गाइलो पहली बार बोला—“वो ब्रीफकेस इतना इम्पॉर्टेंट काहे वास्ते? क्या था उसमें?”
पंड्या हिचकिचाया, उसने एक गुप्त निगाह पठान पर डाली।
पठान का सिर हौले से इंकार में हिला।
“भीड़ू”—जीतसिंह ने आग्रह किया—“जब आपसदारी करके बोला, फ्रेंड्स करके बोला तो बोल न!”
“ऐग्जैक्ट करके तो मेरे को भी नहीं मालूम”—पंड्या पूर्ववत् हिचकिचाता बोला—“खाली इतना मालूम कि उसमें बिग बॉस का इम्पॉर्टेंट कर के सामान जो वो कुतरा ले उड़ा। हमें बिग बॉस का हुक्म कि हर हाल में वापिस लाने का।”
“बिग बॉस कौन?”
“‘भाई’।”
“कौन ‘भाई’? मुम्बई तो भाइयों की नगरी है, नाम ले न उसका!”
“अमर नायक।”
“वो तो बड़ा गैंगस्टर है! तुम अमर नायक के गैंग का भीड़ू?”
“हां।”
“मेरा उस रात का पैसेंजर—जोकम फर्नान्डो—भी?”
“हां।”
“उसने अमर नायक का इम्पॉर्टेंट सामान नक्की करने का हौसला किया?”
“यहीच किया बरोबर।”
“फिर तो सामान बहुत कीमती होगा!”
“हो सकता है।”
“करोड़ों की कीमत का!”
“अभी क्या बोलेगा?”
“जब उसने इम्पॉर्टेंट कर के सामान पर नीयत खोटी की, इतने बड़े ‘भाई’ से गद्दारी करने का खतरा मोल लिया तो करोड़ों की कीमत तो सामान की हो सकती है बरोबर!”
“हां।”
“पण कीमत नहीं मालूम?”
“नहीं मालूम।”
“ये भी नहीं मालूम कि सामान क्या?”
“अब नहीं मालूम न! बिग बॉस खाली इतना बोला था कि उसको वो ब्रीफकेस वापिस मांगता था क्योंकि उसमें उसका बहुत इम्पॉर्टेंट करके सामान जो उस को वापिस होना।”
“बिग बॉस अमर नायक?”
“हां। बोला न!”
“जोकम फर्नान्डो का भी?”
“वो भी बोला न!”
“अब आगे क्या करने का?”
“क्या करने का? जब तू बोलता है तेरे को ब्रीफकेस का कुछ पता हैइच नहीं तो नक्की करने का। जाता है।”
“बोले तो अभी हमेरा पीछा छोड़ने का? इधर का वाच बन्द करने का?”
“अरे, बात करने का था न! हो तो गया बात। ब्रीफकेस का मालूम करना था न! कर तो लिया मालूम! अभी काहे वास्ते वाच?”
“टैक्सी स्टैण्ड पर भी बोले तो नो वाच?”
“हां।”
“बढ़िया। कोई नाश्ता पानी का इन्तजाम करें हम तुम्हेरे वास्ते?”
“नहीं। जाता है।”
“ठीक। कहा सुना माफ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया, पर जाने का उपक्रम न किया।
“अभी कुछ मांगता है?”
“हां। वो...चकरी।”
“हां, चकरी।”
जीतसिंह ने गाइलो को इशारा किया।
गाइलो ने रिवाल्वर में से गोलियां निकाल लीं और रिवाल्वर और गोलियां अलग अलग पठान को सौंपी।
दोनों वहां से रुखसत हो गये।
तुरन्त बाद चौखट पर डिकोस्टा प्रकट हुआ।
“आल वैल?”—वो बोला।
दोनों के सिर सहमति में हिले।
“सब पर्फेक्ट करके हैंडल किया?”
“हां।”—जीतसिंह बोला।
“मैं कई भीड़ू लाइन अप करके रखा। सोचा शायद बैक अप का जरूरत पड़ता।”
“नहीं पड़ा।”
“अभी कोई पिराब्लम?”
“अभी कोई नहीं।”
“गुड। जाता है।”
डिकोस्टा चौखट पर से गायब हो गया।
“क्या!”—पीछे जीतसिंह बोला।
“ऐक्शन ठीक पिलान किया तूने, जीते।”—गाइलो बोला—“और रिजल्ट भी ठीक निकला। और किसी तरीका से साला हरामी लोग पीछा नहीं छोड़ने वाले थे।”
“तेरे खयाल से अब पीछा छूट गया?”
गाइलो हिचकिचाया।
“तू बोल।”—फिर बोला।
“मैं बोले तो नहीं छूट गया। अभी उनका बैक मारना उन का मजबूरी था क्योंकि उलटी पड़ गया था। उनका असल मकसद अभी भी अपनी जगह कायम होगा।”
“असल मकसद बोले तो?”
“समझ, गाइलो। जैसे जोकम फर्नान्डो को थामकर उसको ताकत बताया, वो भीड़ू लोग वैसीच मेरे को थाम कर मेरे को ताकत बताना मांगता है।”
“बोले तो बाई फोर्स, टार्चर के मैथड से, बिरीफकेस का जानकारी तेरे से निकलवाना मांगता है?”
“बरोबर। कल टैक्सी स्टैण्ड पर उनका दांव न चला, आज यहां न चला तो इसका मतलब ये नहीं कि वो आगे कोशिश नहीं करेंगे। मैं बोले तो अगली बार बड़ी तैयारी के साथ, बड़ी ताकत के साथ अपनी कोशिश को दोहरायेंगे।”
“ऐसा?”
“हां। पक्की मेरे को।”
“बोले तो उसने डिरियामा किया कि उसको मंजूर कि तेरे को बिरीफकेस के बारे में कुछ नहीं मालूम?”
“बरोबर।”
“उसको पक्की कि बिरीफकेस तेरे पास?”
“नहीं पक्की। उसको सस्पेंस कि पकड़ में आने से पहले जोकम ब्रीफकेस किधर नक्की किया। जिधर वो नक्की कर सकता था उन जगहों में से एक मेरा टैक्सी भी, मैं भी। अभी उसको कनफर्मेशन मांगता है कि ब्रीफकेस टैक्सी में न छूटा, वो राजी से भी पैसेंजर ने मेरे पास न छोड़ा और ये कनफर्मेशन तभी होगा जब मेरे को थाम के ठोकेगा, तब तक जब तक कि मैं बोल के नहीं देगा कि ब्रीफकेस किधर है।”
“बोले तो तेरा अंजाम जोकम जैसा?”
“काबू में आ गया तो हो सकता है।”
“जीसस!”
“बोल के गया कि अमर नायक का भीड़ू।”
“अक्खा झूठ बोल के गया साला हरामी। साला होइच नहीं सकता वो अमर नायक का भीड़ू। बोले तो इट डज़ नाट स्टैण्ड टु रीजन। साले को किसी बिग बॉस का नाम बोलना था, अमर नायक का बोल दिया। क्योंकि बोलता तो और किसका बोलता! प्रेजेंट सिनेरियो में साला नोन बिग बासिज का शार्टेज।”
“ठीक!”
“जीते, अन्डरवर्ल्ड से ये मालूम करने में टेम लग रहा है कि ये साले हरामी किसके अन्डर में चलते हैं पण ये जल्दी मालूम हो सकता है, बोले तो कनफर्म हो सकता है, कि ये अमर नायक के गैंग के हैं या नहीं!”
“करना मालूम।”
“तू उन का नाम तो पूछा, अड्रैस काहे वास्ते पूछता था?”
“पीछा नहीं छोड़ेंगे तो गिरफ्तार करायेंगे न उन्हें!”
“क्या बोला?”
“अरे, वो मुंह से मान के गये कि नहीं, वो क्या बोलते हैं पुलिस का जुबान में? हां, कनफैस करके गये कि नहीं कि उन्होंने जोकम को खल्लास किया! साले पीछा नहीं छोड़ेंगे तो पुलिस को गुमनाम टिप सरकायेंगे न उनकी करतूत की बाबत!”
“प्रूफ! प्रुफ किधर है?”
“प्रूफ पुलिस का डन्डा निकलवायेगा। पुलिस के वास्ते जोकम फर्नान्डो के मर्डर का केस...”
“मर्डर!”
“टार्चर कनफर्म है न! छापे में साफ छपा है कि मौत से पहले उसको टार्चर किया गया था। फिर लाश रेलवे ट्रैक के बाजू में मिली। पण ट्रेन से तो न गिरी न! टार्चर ट्रेन पर तो नहीं चलता न!”
“तो मर्डर!”
“बरोबर। अभी पुलिस के लिये मर्डर का वो केस अन्धी गली है। उनके पास आगे बढ़ने को कोई लीड नहीं है। वो लीड हमेरी गुमनाम काल से मिलेगी न! पुलिस वाले एक बार किसी के पीछे पड़ जायें तो बुरे के घर तक पहुंच के छोड़ते हैं, ये बात तेरे को नहीं मालूम या मेरे को नहीं मालूम?”
गाइलो के शरीर ने झुरझुरी ली। कैसे वो अपनी खुद की भीषण डण्डा परेड भूल सकता था जो उसकी इन्स्पेक्टर गोविलकर के हाथों हुई थी।
“फिर पकड़े जाने के बाद”—जीतसिंह आगे बढ़ा—“हो सकता है कि वो नोन हिस्ट्री शीटर निकलें। ऐसा हुआ तो वो खुद गा गा के बतायेंगे कि उन्होंने जोकम की क्या दुरगत की, कहां दुरगत की, क्यों दुरगत की!”
“उन का बॉस दखल नहीं देगा?”
“अरे, पता नहीं कोई बॉस है भी कि नहीं! है तो बड़ी ताकत वाला है कि नहीं!”
“ठीक। तो बोले तो अगर वो हमेरा अभी भी पीछा नहीं छोड़ते तो उन को अरैस्ट कराने का!”
“हां।”
“बोले तो बढ़िया। पण इसमें एक फच्चर।”
“क्या?”
“जो अड्रैस वो दोनों बोल के गये, पता नहीं वो जेनुइन हैं या बोगस!”
“पता किया जा सकता है।”
“हम करेंगे?”
“हमने अभी गायब ही रहना है।”
“डिकोस्टा से करायेंगे।”
“ठीक। उसी को ये भी पता निकालने को बोलेंगे कि टैक्सी स्टैण्ड की मेरे वास्ते निगरानी हो रही है या नहीं। अभी तो बोले तो फट्टा मारा न, कि हमेरे को मालूम कि हो रयेली है।”
“मैं बोलूंगा।”
“न भी हो रही होगी तो भी थोड़ा टेम हमेरे को चाल को, टैक्सी स्टैण्ड को नक्की ही बोल के रखने का।”
“और लाजिंग फार नाइट कन्टीन्यूड इन कमाठीपुरा! कर्टसी मिश्री!”
“हां।”
“जीते, कमाल की औरत मिश्री। साला खुद खाना बना कर खिलाया। स्काच विस्की सर्व किया। तू इतना इनसिस्ट किया होटल से खा के आता था पण नहीं माना। साला रात दिल खुश हो गया खा पी के। ऐसा सैंस आप बिलांगिंग फील किया मैं...मैं... अभी क्या बोले!”
उसकी आवाज भर्रा गयी।
“जज्बाती हो रहा है, गाइलो!”
“हो रहा है न! साला याद नहीं कब मेरे को कोई इतना रिस्पैक्ट दिया! खाना साला लैस दैन टवेन्टी मिनट्स में होटल से डिलीवर हो सकता था पण वन आवर से ज्यास्ती लगा कर खुद बनाया। और मैं कौन! साला नोबॉडी। ब्लडी टू बिट टैक्सी डिरेवर। ऐसा ट्रीट मिला जैसे मैं... मैं पता नहीं क्या साला! जीते, इन हर एबसेंस, माई सैल्यूटेशन टु दि लेडी।”
“ज्यादा हो रहा है।”
“एक बात और बोलने दे मेरे को।”
“वो भी बोल।”
“तेरे पर टोटल फिदा। सैवरल टाइम्स नोट किया मैं लास्ट नाइट, बाई तेरे को जब देखता था, हार्ट को आइज में रख के देखता था। क्या जादू किया है तू उस पर!”
“कोई जादू नहीं किया। बस हमदर्द मेरी।”
“हमदर्द भी तो कोई ऐसीच नहीं बन जाता।”
“अरे, मैं जीता है न! सब को जीत लेता है।”
“साला मसखरी मारता है!”
जीतसिंह हँसा।
“तेरे को देखते ही बोली ‘आ गया मेरा जला फुंका आशिक’। बोले तो उसको मालूम कि...”
“अब छोड़ न!”
गाइलो खामोश हो गया।
अमर नायक का एक ठीया साउथ मुम्बई में चर्च गेट पर था जिसे वो कार्पोरेट बॉसिज की तरह बड़े अभिमान से अपना सिटी आफिस बताता था और दिन में अक्सर वो वहां पाया जाता था। मेल मुलाकात को वो ही उसका ठिकाना था। मलाड स्थित अपने आवास में वो अपने खास लोगों को ही—जैसे कि नवीन सोलंके—आने देता था।
वो ठीया एक पन्द्रह मंजिला इमारत का टॉप फ्लोर था। वहां चार फ्लैट थे और चारों अमर नायक की मिल्कियत थे। इमारत में चार लिफ्टें थीं जिनमें से एक सीधी, बिना रास्ते के किसी फ्लोर पर रुके टॉप फ्लोर पर जाती थी, लिहाजा सिर्फ उसके इस्तेमाल के लिये थी।
दोपहरबाद वीरेश हजारे के साथ नवीन सोलंके वहां पहुंचा। दोनों एक आफिसनुमा कमरे में अमर नायक के रूबरू हुए।
हजारे ने बिग बॉस का अभिवादन किया और चहकता सा बोला—“पुलिस का बुलावा था, उन की हाजिरी भरनी थी इसलिये आफिस से हाफ डे की छुट्टी लेनी पड़ी। सीधा थाने से आ रहा हूं। वहीं सोलंके मिला जो बोला...”
नायक ने सर्द निगाह से अपलक उसे देखा।
हजारे हड़बड़ाया, उसने जोर से थूक निगली और खामोश हो गया।
“बैठ।”—नायक बोला।
हजारे झिझकता सा एक कुर्सी पर बैठा।
नायक ने अपने डिप्टी की तरफ देखा।
“पुलिस के साथ इसकी क्या बीती”—सोलंके बोला—“उसकी खबर तो तुम्हेरे को करने का था न! सोचा, तुम डायरेक्ट इसके मुंह से सुनेगा तो बेहतर होगा।”
“हूं।”—नायक बोला—“‘बैठ तू। खड़ा क्यों है?”
सोलंके हजारे की बगल में एक विजिटर्स चेयर पर बैठ गया।
“अभी तू बोल।”—नायक हजारे से सम्बोधित हुआ—“क्या हुआ?”
“वो”—नायक की सर्द निगाह से अभी भी विचलित हजारे तनिक नर्वस भाव से बोला—“बोले तो मेरे को सिवरी पुलिस स्टेशन से बुलावा था, इस वास्ते मैं उधर गया था। वहाँ कदम करके एक सब-इन्स्पेक्टर मेरे को मिला था जो गुरुवार को रेलवे ट्रैक के करीब मिली लाश के केस की तफ्तीश करता था। वो लाश...”
“जोकम फर्नान्डो करके एक भीड़ू की थी, उसकी जेबों में मौजूद सामान में से डिक्लेयर्ड हीरों की ड्यूटी पेड की रसीद निकली थी, कस्टम क्लियरेंस सर्टिफिकेट निकला था, अभी आगे बोल।”
हजारे हड़बड़ाया, उसने बेचैनी से पहलू बदला, फिर बोला—“रसीद के हवाले से वो, सब-इन्स्पेक्टर—कदम—हीरों के बारे में पूछता था।”
“तू क्या बोला?”
“मैं बोला मैंने बतौर कस्टम आफिसर उस लैगिटिमेट इम्पोर्ट को हैंडल किया था और उसकी इवैल्युएशन के बाद कस्टम ड्यूटी फिक्स की थी जो कि पैसेंजर ने अदा कर दी थी और उसे वो दोनों डाकूमेंट, ऐज पर प्रोसीजर, जारी कर दिये गये थे।”
“किसे?”
“हुसैन डाकी नाम के दुबई से आये पैसेंजर को।”
“रसीद पर, सर्टिफिकेट पर, उसका नाम दर्ज था?”
“नहीं, बॉस। डायमंड डीलर्स की उस फर्म का नाम दर्ज था जिस का कि हुसैन डाकी मुलाजिम था और जिसकी ड्यूटी फर्म के एक दूसरे मुलाजिम ने आकर भरी थी।”
“यानी तू ने पुलिस को कुछ बताया तो दूसरे मुलजिम के बारे में बताया, हुसैन डाकी के बारे में कुछ न बताया?”
हजारे हिचकिचाया।
“जवाब दे।”
“वो...वो क्या है कि...रसीद, सर्टिफिकेट कम्प्यूटर से जारी होते हैं, उस में पैसेंजर के पासपोर्ट की एन्ट्रीज भी फीड करना पड़ता है न—जैसे पैसेंजर का नाम, पता, उम्र, लिंग वगैरह। इस वास्ते डाकी के बारे में बोलना पड़ा।”
“बोले तो अब पुलिस को मालूम दुबई का जो पैसेंजर हीरे लाया, वो हुसैन डाकी! मालूम कि वो किधर रहता था!”
“हं-हां।”
“दूसरे भीड़ू के बारे में भी बोला जो कस्टम ड्यूटी की रकम—और दूसरी रकम—लेकर कस्टम पर पहुंचा था?”
“बोलना पड़ा न! ये कोई सीक्रेट तो नहीं था न, बॉस, कि हरीश निगम नाम का वो भीड़ू लोकल डायमंड डीलर और इम्पोर्टर का मुलाजिम था और ड्यूटी पे करने के वास्ते ही कस्टम पर पहुंचा था।”
“पुलिस ने पूछा या तूने ही बढ़ बढ़ कर उसके बारे में बोला?”
“अभी... बोले तो... ध्यान में नहीं आ रहा। इंक्वायरी में बात से बात निकलती है न, बॉस! हो सकता है मैं ने बोला हो, हो सकता है पुलिस ने पूछा हो तो मैंने बोला हो!”
“बात से बात निकलती है बोला?”
“हां।”
“ये बात भी निकली कि तूने गुलदस्ता थाम कर हीरों को अन्डर-इवैल्युएट करवाया था?”
“क्या बात करते हो, बॉस!”—हजारे हाहाकारी लहजे से बोला।
“बोले को ये बात सीक्रेट?”
“हां।”
“पुलिस को मालूम नहीं?”
“मालूम होने का सवाल ही नहीं पैदा होता।”
“पुलिस को मालूम नहीं या किसी को भी मालूम नहीं?”
वो फिर हिचकिचाया।
“जवाब दे।”
“जब पुलिस को मालूम नहीं तो और किसे मालूम होगी?”
“सवाल मैंने पूछा है।”
“वो...वो क्या है कि...”
“क्या है?”
“बॉस, लगता है आप को मेरे महकमे की फंक्शनिंग की कोई जानकारी नहीं है...”
“मैं ने कभी कस्टम की नौकरी नहीं की।”
“म-मेरा ये...ये मतलब नहीं था।”
“तो जो मतलब था, वो पहले बोल।”
“बॉस, हीरों का मामला था। मैं कस्टम आफिसर हूं, कोई जैम एक्सपर्ट तो नहीं!”
“तो!”
“तो जैम एक्सपर्ट को, जो वहीं मौजूद होता है, कंफीडेंस में लेना पड़ता है न!”
“ये बात पहले क्यों न बोला? तब क्यों न बोला जब हमेरे से डील किया? गुलदस्ता थामा?”
“क्योंकि मेरे को उम्मीद थी कि मैं बिना इवैल्युएशन की कार्यवाही के आप के केस को हैंडल कर सकता था। बॉस, मैं कर भी लेता लेकिन ऐसा इत्तफाक हुआ कि तभी एक सीनियर आफिसर सिर पर आन खड़ा हुआ और मजबूरन मेरे को इवैल्युएशन के लिये हीरे जैम एक्सपर्ट को सौंपेने पड़े।”
“अफसर न आता तो तू हैंडल कर लेता? बिना जैम एक्सपर्ट को शामिल किये हैंडल कर लेता?”
“बॉस, कर भी लेता तो जैम एक्सपर्ट को लूप में रखना जरूरी था।”
“कहां रखना जरूरी था?”
“कंफीडेंस में रखना जरूरी था। सैट कर के रखना जरूरी था। इमरजेंसी आ जाने पर, जैसी कि आई, मैं खड़े पैर तो उससे कोई सैटिंग नहीं कर सकता था न!”
“इसलिये उस को बोल के रखा कि उसकी मदद की, सैटिंग की जरूरत पड़ सकती थी?”
“हां।”
“जैसे कि पड़ी? क्योंकि बड़ा अफसर सिर पर आन खड़ा हुआ?”
“हां।”
“उसके साथ गुलदस्ते में हिस्सा बंटाया?”
“जरूरी था।”
“अफसर के साथ भी?”
“नहीं। उसकी कोई जरूरत नहीं थी।”
“जरूरत पड़ती तो बंटाता?”
“तो काम ही न होता। बड़ा अफसर खा जाता मेरे को कि मैं डील पहले किया और उसकी खबर उसको बाद में की। गुलदस्ते के...साइज पर भी शक करता।”
“बोलता ज्यास्ती थामा? उसको कमती करके, अन्डर-इवैल्युएट कर के बोलता था?”
“हां।”
“जो कि तू जरूर करता।”
“अरे, नहीं, बॉस।”
“किया ही होगा! जैम्स एक्सपर्ट को तो गुलदस्ते को अन्डर-इवैल्युएट करके ही बोला होगा! बोले तो कनसाइनमेंट का माफिक वैल्यु हाफ। बोला होगा दस पेटी मिला!”
“अरे, नहीं, बॉस।”
“क्या नहीं बॉस! महकमे में श्यानपन्ती नहीं चलती?”
“मेरे को खयाल तक न आया।”
“बराबर बंटवारा किया जैम एक्सपर्ट के साथ?”
“न-हीं।”
“तो?”
“अब जाने दीजिये न, बॉस! आप का काम हुआ न!”
“हुआ। पण मक्खी पड़ गयी।”
“कस्टम पर तो न पड़ी न!”
“हूं। अभी कहने का मतलब ये हुआ, हजारे, कि कस्टम पर जो डाकी के साथ गुजरी, उसके अब दो राजदां हैं?”
“अब... है तो ऐसा ही!”
“या तीन? बड़ा अफसर भी?”
“नहीं, वो नहीं।”
“पक्की बात?”
“हां।”
“तेरी तरह जैम एक्सपर्ट का भी बयान होगा?”
“पुलिस जैसे मेरे को तलब किया, वैसे उसे भी कर तो सकती है तलब!”
“वो बक देगा कि उसने तेरे कहने पर हीरों को अन्डर-इवैल्युएट किया था?”
“कैसे बक देगा? मरना है उसने? गुलदस्ता में से हिस्सा थामने के बाद कैसे बक देगा? वो कुछ बके नहीं, इसी वास्ते तो गुलदस्ते में उसे हिस्सेदार बनाया था। बकेगा तो खुद को कैसे सेव करेगा?”
“यानी नहीं बकेगा?”
“हरगिज नहीं बकेगा। फिर ये भी हो सकता है कि उसे पुलिस का बुलावा आये ही नहीं।”
“हूं।”
नायक ने अपने डिप्टी की ओर देखा।
“हमें अन्देशा है”—सोलंके हजारे से मुखातिब हुआ—“कि जोकम फर्नान्डो के मर्डर को तुम्हारे बयान के बाद पुलिस हीरों की उस आमद से लिंक करने की कोशिश कर सकती है। उन्हें कोई खास क्लू मिल गया—आखिर पुलिस वाले हैं—और लिंक कामयाबी से उन की पकड़ में आ गया तो, हजारे, तेरे पर प्रेशर बढ़ सकता है।”
“मैं प्रेशर झेल लूंगा।”—हजारे दृढ़ता से बोला।
“तेरे जेम एक्सपर्ट पर, तेरे जोड़ीदार इवैल्युएटर पर प्रेशर बढ़ सकता है।”
“वो भी नहीं हिलने वाला।”
“पक्की बात?”
“हां। जो कुछ होगा, वो हमारे साथ पहली बार नहीं होगा।”
“बोले तो”—नायक बोला—“गुलदस्ता थाम कर ऐसे काम करने का पुराना तजुर्बा!”
हजारे ने आहत भाव से नायक की तरफ देखा।
“ऐसे क्या देखता है? कुछ गलत बोला मैं?”
“गलत तो नहीं बोला लेकिन...”
“क्या लेकिन?”
“अब ... क्या बोलूं!”
“सोच ले क्या बोलूं! टाइम है तेरे पास। मेरे को भी कोई जल्दी नहीं है।”
हजारे खामोश रहा।
“इधर मेरी तरफ देख।”—सोलंके बोला—“मैं कुछ कह रहा था।”
हजारे ने कुर्सी पर सोलंके की ओर पहलू बदला और सवालिया निगाह उस पर डाली।
“आम हालात में ठीक है तू प्रैशर झेल लेगा, कुछ नहीं बकेगा पण हालात आम न रहे तो?”
“बोले तो?”
“हीरे गायब हैं पण जरूरी तो नहीं हमेशा गायब रहें! अगर वो बरामद हो गये तो? बरामदी में पुलिस ने खुद उन्हें इवैल्युएट कराया और वो रसीद पर दर्ज वैल्यू से डबल वैल्यू के पाये गये—जो कि पाये ही जायेंगे—तो?”
नायक ने सहमति में सिर हिलाया।
हजारे सकपकाया।
“जवाब दे, भई।”—नायक बोला—“सोलंके जो बोला, उसका जवाब दे।”
“जवाब कोई मुश्किल तो नहीं!”—हजारे बोला।
“अच्छा।”
“मैं बोलूंगा, मेरा जोड़ीदार बोलेगा, वो वो हीरे थे ही नहीं जो गुरुवार को हुसैन डाकी करके पैसेंजर ने कस्टम पर ड्यूटी अदा करने के लिए पेश किये थे। ईजी।”
“लेकिन गिनती!”—सोलंके बोला—“दोनों चार सौ!”
“होते हैं न ऐसे इत्तफाक! आम होते हैं!”
“काफी चिल्लाक भीड़ू है!”—नायक बोला।
“तारीफ की तो शुक्रिया, बॉस, लेकिन एक फच्चर है।”
“क्या?”
“आप का भीड़ू न पकड़ा जाये, पुलिस हुसैन डाकी से न कबुलवा ले कि वो वही हीरे थे जो वो दुबई से लाया था।”
“ऐसा नहीं होगा।”
“उन के बारे में क्या कहते हैं जिन को हीरे डाकी ने आगे सौंपे?”
नायक ने घूर कर उसे देखा।
“क्या हुआ?—हजारे सकपकाया—“कुछ गलत बोल गया मैं?”
“तेरे को कैसे मालूम डाकी ने हीरे किसी को आगे सौंपे?”
“वो तो साफ है, बॉस। जब आप कहते हैं पुलिस रेलवे ट्रैक पर मिली लाश का हीरों से लिंक निकाल लेगी तो हीरे मरने वाले के पास हुए न! तो वही उसकी मौत की वजह बने न!”
“हूं।”
“अब आप का भीड़ू डाकी काले चोर को हीरे तो नहीं सौंप देगा! इस लिहाज से जोकम का—मरने वाले का—आप का भीड़ू होना, आप का इस्पॉर्टेंट करके भीड़ू होना जरूरी हुआ न?”
“ये दूर की कौड़ी है। कोई ज्यादा दमदार बात नहीं।”
“तो ज्यादा दमदार बात ये है, बॉस, कि जोकम की जेब से कस्टम की रसीद और क्लियरेंस सर्टिफिकेट बरामद हुए। अगर हीरे, उसे नहीं सौंपे गये थे तो क्योंकर वो डाकूमेंट्स उसके पोजेशन में थे? वो डाकूमेंट्स और हीरे एक नग, तो जिस के पास डाकूमेंट्स उसके पास हीरे।”
“हूं।”
“पण”—सोलंके बोला—“तू खाली जोकम का तो न बोला! तू ये तो न बोला कि जिस को हीरे डाकी ने आगे सौंपे, तू बोला जिन को हीरे डाकी ने आगे सौंपे। तेरे को क्या मालूम कि आगे जो भीड़ू, वो एक या एक से ज्यादा?”
“वो तो”—हजारे लापरवाही से बोला—“मैंने ऐसीच बोल दिया था।”
“ठीक से जवाब दे।”—नायक डपट कर बोला।
“ठीक से ही जवाब दिया, बॉस।”—हजारे का लहजा तत्काल बदला, विनीत हुआ—“बीस करोड़ का माल आगे सौंपा जाना था। उनका एक से ज्यादा होना क्या बड़ी बात थी!”
“हूं।”
“डाकी को”—सोलंके बोला—“एस्कॉर्ट के तौर पर हथियारबन्द सिपाही मिला था। मालूम तेरे को?”
“मालूम। मेरे सामने मिला था। लेकिन तुम्हें कैसे मालूम?”
“मालूम कैसे न कैसे! अभी तू ये सुन कि डाकी को सिपाही मनोरी में वहां छोड़ के आया जहां उसको जाने का था। बोले तो डाकी के साथ हीरों को सेफ मनोरी पहुंचा के आया। फिर ये क्यों कहता है कि डाकी ने हीरे किसी को आगे सौंपे?”
“क्योंकि हालात कहते हैं। क्यों कि हालात की जो तर्जुमानी, आप ही लोग कहते हैं कि, पुलिस ने की जान पड़ती है, वो तर्जुमानी कहती है। अगर जोकम का कत्ल हीरों की वजह से हुआ तो जोकम को हीरे सौंपे गये होना जरूरी हुआ या न हुआ! हीरों की वजह से न हुआ तो क्यों हुआ? तो हीरों के गायब होने का क्या मतलब? क्या हीरे उन के पास पहुंच गये जिन्होंने जोकम का कत्ल किया? जिन्होंने पहले उसको टार्चर किया? क्या जोकम हीरों का अता पता बताने के बाद टार्चर से मरा? अगर ऐसा हुआ तो हीरे कभी बरामद नहीं होने वाले। तो पुलिस की लिंक वाली जिस थ्योरी की आप बात करते हैं, उसका हाल खुद ही गैस निकले गुब्बारे जैसा हो जायेगा।”
“किन्होंने मारा जोकम को?”—सोलंके बोला—“कौन उसके पीछे पड़े थे?”
“ये सवाल मेरे से किया जाना नाजायज है। ये भाई लोगों का महकमा है। और भाई लोगों की बातें भाई लोग ही समझ सकते हैं। इसके अलावा इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।”
कोई कुछ न बोला।
“अभी मेरे को इजाजत है, बॉस?”—फिर हजारे ने खामोशी भंग की।
नायक ने अपने डिप्टी की तरफ देखा।
सोलंके ने सहमति में सिर हिलाया।
“ठीक है, जा।”—नायक बोला—“पण जाने से पहले जैम एक्सपर्ट का नाम पता बोल के जा।”
“क्या बोला?”—हजारे हड़बड़ाया।
“क्या रे! साला दो बार सुने बिना किसी बात का जवाब नहीं दे सकता!”
“मुकुल देशपाण्डे। फ्लैट नम्बर चौबीस, गंगा अपार्टमेंट्स, पोचखानावाला रोड, वरली।”
“मोबाइल नम्बर भी बोल।”
हजारे ने बोला जो कि सोलंके ने तत्काल नोट किया।
“अब जा।”—नायक बोला—“पण चौकस रहने का। पुलिस के किसी जाल में, किसी चाल में नहीं फंसने का।”
“ऐसा कुछ नहीं होगा, बॉस।”
“जा।”
हजारे ने नायक का अभिवादन किया और वहां से रुखसत हो गया।
“क्या खयाल है?”—पीछे नायक बोला।
“किस बाबत?”—सोलंके बोला।
“अपने महकमे की फंकशनिंग का जो नक्शा खींच कर गया, उस बाबत! गुलदस्ता शेयर किया होगा उसने?”
सोलंके ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया।
“वो जैम एक्सपर्ट का जो बोला?”
“अपना सेफ्टी का वास्ते बोला। ये पक्की करने का वास्ते बोला कि डील में दखल उस अकेले का ही नहीं था, एक भीड़ू और भी था जो हमेरे माल की असलियत से वाकिफ था।”
“हूं। तो साला हलकट भांप गया कि उसको टपकाया जा सकता था! इस वास्ते हिंट छोड़ के गया साला हरामी कि हमेरे को ऐसा कोई कदम उस अकेले के खिलाफ न उठाना पड़ता, दो भीड़ूओं के खिलाफ उठाना पड़ता!”
“जो कि मेरे को मालूम तुम्हेरे को ठीक न लगता, बॉस।”
“साला फटेला इतना श्याना, इतना चिल्लाक भीड़ू!”
“अभी कर तो गया साइलेंट, इशारे वाली श्यानपत्ती!”
“जो एक्सपर्ट करके वो बोल के गया, उसका कोई रोल नहीं?”
“आम केसिज में, आम हालात में होता होगा, हमेरे केस में नहीं दिखाई देता मेरे को कोई रोल एक्सपर्ट का।”
“हूं।”
“एक्सपर्ट ने क्या करना था? जो चीज पहले ही इवैल्युएटिड थी, उसको फिर इवैल्युएट कराने का क्या मतलब? उसे मालूम था हीरे बीस करोड़ रुपये के थे। इसी बेस पर तो उसने हमारे से डील किया था और उन्हें हाफ वैल्यू का दिखाने के लिये बीस लाख रुपये की मांग की थी। वो बोल के गया कि कागजी कार्यवाही वो ही करता था। वो बराबर बिना किसी को साथ लपेटे वो कार्यवाही कर सकता था।”
“बोला न, सिर पर बड़ा अफसर आन खड़ा हुआ!”
“बोम मारता था।”
“ऐसा?”
“हां, बॉस। उस लाइन पर अभी और हड़काते उसे तो बोल देता कि बड़ा अफसर भी डील में शामिल। अभी एक भीड़ू का हिन्ट छोड़ के गया, फिर दो का छोड़ के जाता!”
“साला डेढ़ दीमाक! बोले तो गुलदस्ता खुद हजम किया!”
“खुद ही करने का था। खुद के लिये था तो खुद ही करने का था।”
“जेम एक्सपर्ट का हवाला खामखाह! बड़े अफसर का जिक्र खामखाह!”
“हां। मेरे को पक्की।”
“ये बात तू उसके सामने क्यों न बोला?”
“क्या फायदा होता! अभी बोल तो गया कि बड़ा अफसर सिर पर आन खड़ा हुआ, इस वास्ते हीरों का इवैल्यूएशन जरूरी हो गया! मैं उसके सामने बोलता तो कोई और स्टोरी कर देता।”
“हूं। तू अब क्या करेगा?”
“हजारे पर निगरानी कड़ी करवाऊंगा। किसी और तरीके से उसकी खबर लूंगा।”
“और तरीका क्या?”
“सोचूंगा न!”
“अभी सोचेगा! सोच नहीं चुका?”
सोलंके खामोश रहा।
“ठीक है। सोचना।”
सोलंके ने सहमति में सिर हिलाया।
टैक्सी के बदले में टैक्सी जीतसिंह को सारा दिन गुजर जाने के बाद शाम को जाकर मिली।
बकौल गाइलो, चार बजे उसको जयन्त ढ़ोलकिया का फोन आया कि बदली की टैक्सी का इन्तजाम हो गया था। गाइलो को अन्देशा था कि धारावी में नवगुजरात टूअर्स एण्ड ट्रैवल्स के आफिस की भी निगरानी होती हो सकती थी इसलिये उसने ढ़ोलकिया से दरख्वास्त की थी कि वो टैक्सी एयरपोर्ट के टैक्सी स्टैण्ड पर पहुंचायी जाने का इन्तजाम कर दे जो कि उसने कर दिया था और साथ ही वादा किया था कि बदली की टैक्सी के बारे में वो किसी को कुछ नहीं बतायेगा—किसी जातभाई के मुलाहजे में भी नहीं।
अब बदली वाली टैक्सी जीतसिंह के हवाले थी और वो और गाइलो दोनों उसकी फ्रंट सीट पर सवार थे।
“अब तेरे को एक प्रीकॉशन लेने का, जीते”—गाइलो बोला—“टैक्सी एयरपोर्ट से दूसरी तरफ नार्थ में ही चलाने का। साउथ मुम्बई को—बोले तो एयरपोर्ट से लेकर कोलाबा तक की मुम्बई को—अवायड करने का।”
जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया।
“और लेट नाइट में कमाठीपुरा लौटने का।”
“ठीक।”
“थोड़ा टेम ये रूटीन मेनटेन करने का। बोले तो मेरे को भी।”
“बरोबर।”
“आई विल मिस माई फेवरेट बेवड़ा अड्डा एट जम्बूवाडी पण क्या करेंगा! पंगा नहीं लेने का न!”
“उन्हें जम्बूवाडी के बेवड़ा अड्डा पर तेरे रेगुलर करके जाने की खबर होगी?”
“नहीं होगी तो निकाल तो सकते हैं साले हरामी! सैवरल पीपुल नो कि मैं रात को—बोले तो आठ और दस के बीच—उधर डेफीनिट करके होता है। रिस्क नहीं लेने का न!”
“जरूरत किधर है! मिश्री का ठीया है न! जब रात को उधर होने का तो...”
“बोले तो ओके। पण बॉटल अपना ले के जाने का।”
“अरे, जब वो...”
“नो फ्री लोडिंग, डियर फिरेंड। नैवर पुश ए गुड थिंग टू फार। फालोड?”
“नहीं।”
“अरे, एक बार उस का हास्पिटलिटी असैप्ट किया न! एनजाय किया न पर्फेक्ट कर के! बोले तो दैट्स एनफ।”
“तू कहता है तो...”
“मैं कहता है।”
“कोई और जिक्र के काबिल बात? मसलन चाल की, हमारे अलैजेन्ड्रा सिनेमा वाले टैक्सी स्टैण्ड की निगरानी की क्या पोजीशन है?”
“पोजीशन ठीक से मालूम नहीं। खाली ये मालूम कि वो पंड्या और पठान करके भीड़ू, जिनको हम मार्निंग में मेरा खोली में हूल दिया, वो उधर नहीं हैं और टैक्सी स्टैण्ड पर उन के वो दो जोड़ीदार भी नहीं हैं जो वहां तेरे को ताकत बताते वक्त उन के साथ थे।”
“ओह!”
“पण इसका मतलब ये नहीं, जीते, कि वो टल गये। अगर वो किसी गैंग से हैं—बोले तो इंडीपेंडेंट प्लेयर्स नहीं हैं—तो मैनपावर का क्या शार्टेज होगा उन्हें! उनको रिप्लेस करने का वास्ते और भीड़ू आ जायेंगे।”
“बोले तो दोनों जगह निगरानी हो रही होगी! खाली ये काम अब ऐसे भीड़ू कर रहे होंगे जिनको हम पहचानते नहीं!”
“यू सैड इट, डियर फिरेंड।”—गाइलो एक क्षण ठिठका, फिर बोला—“डिकोस्टा बोलता था ईवनिंग में लौट कर देखेगा, मालूम करेगा कि चाल को कोई आल्टरनेट भीड़ू वाच करता था या नहीं! करता भी मिला तो वान्दा नहीं। वो टैक्सी स्टैण्ड को निगाह से बीनते हैं तो बीनते रहें साला हरामी लोग। जब हमेरे को उधर जाने का हैइच नहीं तो...”
“ठीक! ठीक! और?”
“और वो जो अड्रैस बोला वो दोनों साला हरामी! बोले तो दोनों बोगस।” डिकोस्टा खुद खेतवाडी गया, डोंगरी गया और मालूम किया।”
“अच्छा! उम्मीद नहीं थी जिस हालत में सुबह वो थे, उसमें झूठ बोलते। मैंने ये भी बोला था कि मैं उन की पॉकेट्स से सामान निकाल कर कनफर्म करेगा...”
“पण किया तो नहीं न!”
“हूं। करता तो कनफर्म होता?”
“नहीं होता। उस भीड़ू को—पंड्या को—मालूम कि उसका पॉकेट में ऐसा कुछ नहीं था जिससे पता लगता कि अड्रैस के बारे में वो झूठ बोला। दि सेम विद अदर भीड़ू।”
“गाड़ी चलाते थे। कोई ड्राइविंग लाइसेंस...”
“होता तो उस पर वो अड्रैस होता बरोबर जो वो बोला। जो दूसरा भीड़ू बोला। डिकोस्टा खुद मालूम किया न, पंड्या पहले—बोले तो बहुत पहले—खेतवाडी के उस अड्रैस पर रहता था जो वो बोला उसका प्रेजेंट अड्रैस। पठान डोंगरी के उस अड्रैस पर रहता था जो वो अपना बोला। पण ये टेम उन दोनों में से ही कोई इधर, उस अड्रैस पर नहीं रहता। डिकोस्टा पूछा किधर शिफ्ट किया, किसी को मालूम नहीं था।”
“ओह!”
“अभी बोल, तू जो बोलता था पुलिस को उन का बाबत टिप सरकाने का, वो तो अब साला यूजलैस। अड्रैसिज करैक्ट होता तो पुलिस थामता उन को, अब किधर से ढूंढ़ेंगा?”
“पुलिस को टिप फिर भी सरकाने का, गाइलो। अभी तक नहीं सरकाया तो अब सरकाने का।”
“पण पुलिस साला क्या करेंगा?”
“करेगा। बहुत कुछ करेगा। खेतवाडी और डोंगरी से उन के बारे में डिकोस्टा के पूछने में और पुलिस के पूछने में बहुत फर्क निकलेगा। डिकोस्टा को लापरवाही के जवाब मिल सकते हैं—‘नहीं मालूम किधर शिफ्ट किया’, पुलिस को ऐसे टालू जवाब देने का हौसला कोई नहीं कर सकता। मेरे को पक्की कि वो कोई न कोई जानकारी निकाल लेंगे उन दोनों के बारे में। एक के बारे में भी निकाल लेंगे तो दूसरे की जानकारी उसी से निकलवा लेंगे। कहने का मतलब ये है, गाइलो, कि नतीजा कोई निकले या न निकले, पुलिस को वो गुमनाम काल जरूर लगाने का।”
“तू बोलता है तो बोले तो ऐसीच होगा।”
“अभी मेरे को एक बात बोलने का। सुन।”
“सुनता है न! और क्या काम ये टेम मेरे को?”
“चार भीड़ू हमारी निगरानी पर। तू बोला उनकी शिनाख्त हो गई, बोले तो वो एक्सपोज हो गये तो चार और आ जायेंगे। ये बात तो कनफर्म करेगी कि वो किसी गैंग के भीड़ू। अभी वाच पर लगे नये भीड़ूओं को हम वाच करें, खामोशी से उनकी मूवमेंट्स को, जैसे तू बोलता है, निगाह से बीन कर रखें तो क्या पता हमें गैंग लीडर की या गैंग के किसी इम्पॉर्टेंट भीड़ू की शिनाख्त हो जाये!”
“बोले तो गुड! अभी तू बोल ये काम करेगा कौन? चार भीड़ुओं पर वाच रखने का वास्ते फर्स्ट इंस्टेंस में ही आठ भीड़ू मांगता होयेंगा। इतने ही भीड़ू उन को रिलीफ देने का वास्ते मांगता होयेंगा। किधर से आयेंगा सिक्सटीन भीड़ू जो हमेरे वास्ते ये थैंकलैस जॉब हैंडल करेंगा?”
जीतसिंह खामोश रहा।
जवाब उसके पास था लेकिन उस जवाब पर अमल करने के लिये अंटी में ढ़ेर रोकड़ा होना जरूरी था। बाजरिया पीडी शेखर नवलानी, दो बार वो ऐसे ही कामों के लिये कोबरा इनवैस्टिगेशन एण्ड सिक्योरिटी सर्विसेज की सेवायें प्राप्त कर चुका था और फर्म के पार्टनर आदिनाथ घनेकर के ताल्लुक में आ चुका था लेकिन उस बड़ी फर्म का बड़ा बिल भरना मौजूदा हालात में उसके बूते से बाहर की बात था।
“हम साला मैंगो पीपुल।”—गाइलो कह रहा था—“बोले तो आम आदमी। मामूली भीड़ू। इस वास्ते हमेरे रिसोर्सिज मामूली। इस वास्ते बड़े बड़े सपने नहीं देखने का, जीते।”
“पहले भी बोला तू।”
“फिर बोलता है न! ऐनी पिराब्लम?”
“यानी हम कुछ नहीं कर सकते?”
“प्रेजेंट सरकमस्टांसिज में वो नहीं कर सकते जो तू बोला।”
“यानी कुछ... कुछ कर सकते हैं?”
“बरोबर। कर ही रहे हैं।”
“क्या?”
“अन्डरवर्ल्ड के अपने कान्टैक्ट्स को मैं कैश करता है न! पहले भी किया न तेरा वास्ते सैवरल टाइम्स और ऐवरी टाइम करैक्ट करके रिजल्ट निकला। अभी काहे वास्ते सोचता है कोई रिजल्ट नहीं निकलेगा! ऐसे कामों में टेम लगता है पण मेरे को पक्की कोई रिजल्ट—फेवरेबल रिजल्ट—जरूर निकलेगा। जीते, मैं मालूम करके रहेगा कि वो साला हरामी लोग किसी गैंग से हैं या नहीं! हैं तो कौन से गैंग से हैं; उन का ‘भाई’ कौन है! या नैक्स्ट इन कमांड कौन है!”
“ठीक!”
“अभी एक बात मालूम पड़ी न मेरे को अन्डरवर्ल्ड से! मेरा एक फिरेंडलियेस्ट फिरेंड खुद पहुंचाया न वो बात मेरे को!”
“क्या?”
“सुन। बिग अन्डरवर्ल्ड डॉन अमर नायक के गैंग का एक बहुत इम्पॉर्टेंट कर के भीड़ू—नाम शिशिर सावंत—लास्ट थ्री डेज से गायब है। बोले तो तब से गायब है जब से तू इस नवें पंगे में फंसा है, जब से तूने गेटवे आफ इन्डिया से वो खास पैसेंजर उठाया जो तेरे को हीरों वाला बिरीफकेस सौंप कर गया, जिसका कि सेम नाइट मर्डर हो गया। तेरा पैसेंजर जोकम फर्नान्डो अब पक्की कि अमर नायक के गैंग का भीड़ू जो खल्लास। शिशिर सावंत अमर नायक के गैंग का भीड़ू जो गायब। अभी बोले तो क्या नहीं हो सकता कि जो गलाटा एक के गले में पड़ा वो किसी तरह से दूसरे के भी गले पड़ा?”
“यानी वो भी खल्लास!”
“क्या वान्दा है? क्यों वान्दा है? खाली पीली में तो कोई गायब हो नहीं जाता! गायब होने के पीछू कोई रीजन जरूरी। एण्ड खल्लास इज वन आफ दि रीजंस।”
“उसकी तलाश के लिये भी तो कुछ किया जा रहा होगा?”
“मालूम पड़ा है कि कोई मिसिंग पर्संज़ ब्यूरो में रिपोर्ट लिखवाया। पण वो रूटीन। पुलिस साला तलाश में कुछ नहीं करता। करता है तो खाली ये करता है कि न्यूजपेपर में छोटा सा एड देता है या टीवी पर मिसिंग पर्सन के हैडिंग के साथ थोबड़ा दिखाये जाने का अरेंजमेंट करता है।”
“अगर खल्लास हो चुका होगा तो वो सब किस काम आयेगा?”
“बरोबर बोला।”
“पण लाश तो बरामद होनी चाहिये न!”
“काहे? साला अक्खी मुम्बई का बाजू में इतना बड़ा समन्दर काहे वास्ते बनाया गॉड आलमाइटी?”
“समन्दर में भी तैरती लाशें पायी ही जाती हैं!”
“तो ये भी मिल जायेंगा साला सूनर ऑर लेटर।”
“फैंस का बोल। मिला कोई?”
“अभी नहीं। जैसा हमेरे को मांगता है, वैसीच नहीं मिला अभी। पण मिलेगा डेफीनिट कर के। मैं सैवरल प्लेसिज पर हिंट ड्रॉप किया न!”
“ठीक है फिर।”
“अभी जाता है मैं। साला रोकड़ा कमाने का। और नहीं तो बॉटल का वास्ते।”
“अरे, मैं बोला न...”
“मालूम। मालूम। मिलते हैं लेटर इन दि ईवनिंग।”
जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया।
शाम के पांच बजने को थे जब कि विराट पंड्या और सुहैल पठान ठाकुरद्वार रोड, गिरगांव पहुंचे और अपने रहनुमा जरनैल के रूबरू हुए।
वो जरनैल के आमंत्रण पर उसके सामने बैठ गये तो उसने गौर से दोनों की सूरतों का मुआयना किया।
“क्या बात है?”—फिर बोला—“शक्लों पर मरघट की राख क्यों पुत रही है? मुर्दा फूंक के आये कोई?”
“अरे, नहीं, भाया।”—तनिक हड़बड़ाया सा पंड्या बोला।
“तो?”
“कुछ ठीक नहीं हो रहा। कहीं पेश नहीं चल रही। बेइज्जती अलग से हो गयी।”
“क्या हुआ? वो टैक्सी ड्राइवर पकड़ में न आया?”
“आया, बरोबर आया, पण...”
“भारी पड़ा!”
“खुद तो भारी न पड़ा, भाया, पण जिन हालात में वो काबू में आया, वो हालात भारी पड़े।”
“फिर कोशिश करनी थी!”
“की न! साला थाम भी लिया दोबारा। थाम लिया तो मालूम पड़ा कि गलत भीड़ू के पीछे पड़े थे। उस की टैक्सी के पीछे लगे तो सोचा ही नहीं, खयाल ही न आया कि टैक्सी उस की जगह कोई और भीड़ू चलाता हो सकता था।”
“क्या किस्सा है? क्या हुआ, ठीक से बयान कर।”
पंड्या ने किया, सविस्तार किया।
“हूं।”—वो खामोश हुआ तो जरनैल ने लम्बी हूंकार भरी—“तो तेरे खयाल से वो टैक्सी ड्राइवर—नाम जीतसिंह—ब्रीफकेस की बाबत झूठ बोल रहा है?”
“गारन्टी कोई नहीं, भाया”—पंड्या बोला—“पण हो सकता है झूठ बोल रहा हो।”
“मैं बोले तो”—पठान बोला—“झूठ बोल रहा था। ऐसा कहीं हो सकता है कि टैक्सी डिरेवर का अपने पैसेंजर की तरफ इतना भी ध्यान न जाये कि उसके हाथ में कुछ था या नहीं था!”
“बोलता था”—पंड्या बोला—“कई बार तो सूरत की तरफ भी ध्यान नहीं जाता था।”
“हो तो सकता है!”—जरनैल बोला—“ड्राइवर के किसी खास वक्त के मिजाज पर, मूड पर मुनहसर है, हो तो सकता है!”
“भाया, वो गायब है।”
“उसका गाइलो नाम का जोड़ीदार भी।”—पठान बोला।
“जब हर बात क्लियर हो गयी”—पंड्या बोला—“सब सुलह सफाई हो गयी, हम फ्रेंडली माहौल में सुबह उन की चाल में उन से अलग हुए...”
“ये तक गारन्टी की”—पठान बोला—“कि अब उन की चाल पर, टैक्सी स्टैण्ड पर कोई वाच नहीं होगी।”
“... तो गायब होने का क्या मतलब?”
“कैसे मालूम है गायब हैं?”—जरनैल ने पूछा।
“अक्खा दिन उन के टैक्सी स्टैण्ड पर वाच का इन्तजाम किया न! दोनों में से एक भी उधर न आया।”
“इतने से फैसला कर लिया कि दोनों गायब हैं?”
“नहीं, भाया।”
“तो क्या किया?”
“धारावी का चक्कर लगाया न! उधर नवगुजरात टूअर्स एण्ड ट्रैवल्स कर के उस फर्म पर पहुंचा न जिधर से जीतसिंह टैक्सी मंथली भाड़े पर उठाया। उस का टैक्सी एम एच जीरो वन जे सेवन नाइन ऐट थ्री साला फर्म के आफिस के सामने कम्पाउन्ड में खड़ेला था। मैं मालिक—जयन्त ढ़ोलकिया करके गुजराती भीड़ू मालिक—से मिला तो वो बोला बद्रीनाथ—जो मैं बोला जीतसिंह का ही दूसरा नाम—आकर टैक्सी को उस के हवाले करके गया। बोला हिमाचल में होम टाउन जाता था, वन मंथ नहीं मांगता था।”
“हूं।”
“भाया, मैं बहुत जोर लगाया, पण मालिक साला और कुछ बक के ही न दिया। परसों जब मैं उससे मिला था और अपने गुज्जू भाई होने का हवाला दिया था तो वो बहुत लिहाज से, बहुत मुलाहजे से पेश आया था, पण आज शाम तो ऐसे पेश आया जैसे फांसी लग रही हो मेरे से बात करने में। ऐसे चलता किया जैसे मैं यतीम खाने से चन्दा मांगने आया था।”
“किसी और के मुलाहजे में आ गया होगा!”
“अभी क्या बोलेगा, भाया!”
“तेरे से मुलाहजा बरकरार रखता तो क्या उम्मीद थी तेरे को उस से?”
“भाया, वो ढ़ोलकिया कर के गुज्जू भीड़ू बड़ी फर्म चलाता है, दर्जनों टैक्सियां हैं उसके पास भाड़े को उठाने के वास्ते। मेरे मगज में ये आया था कि जीतसिंह उर्फ बद्रीनाथ अपना टैक्सी नक्की करके कोई दूसरा टैक्सी ले गया हो सकता था। मेरे को इस बात का पक्की होना मांगता था पण वो ढ़ोलकिया तो साला भाव ही न दिया मेरे को।”
“तो तेरा खयाल है जीतसिंह मुम्बई में ही है, खाली टैक्सी बदली किया जिसके बारे में तेरे को कुछ मालूम नहीं?”
“अभी है तो ऐसीच।”
“दूसरा भीड़ू? गाइलो?”
“उसकी टैक्सी की हमें कोई खबर नहीं।”
“चाल से निकालनी थी खबर! उसके टैक्सी स्टैण्ड से निकालनी थी!”
“कोई चांस नहीं था, भाया। उसके सारे फिरेंड भीड़ू टैक्सी डिरेवर। हम जो उधर गाइलो की खोली में फंसे, उसमें ऐसे ही डिकोस्टा कर के एक फिरेंड का रोल था। टैक्सी स्टैण्ड पर जब हम ने जीतसिंह को थामा था तो उसकी हिमायत में सारे टैक्सी डिरेवर इकट्ठे हो गये थे। अब तो मेरे को गारन्टी कि बान्द्रा में शारदा होटल की पार्किंग में जब जीतसिंह हमेरे कब्जे में था तो उधर जो डिरियामा हुआ था, उसके सारे एक्टर उसके फिरेंड भीड़ू टैक्सी डिरेवर ही थे। वो उधर बोले कि डिरेवर ने टैक्सी का भाड़ा नहीं भरा था इस वास्ते मालिक के हुक्म पर टैक्सी सीज करने का था। बोले तो टैक्सी सीज की, इस वास्ते धारावी खड़ेली थी पण मालिक बोला डिरेवर खुद टैक्सी उधर पहुंचा के गया क्यों कि वो वन मंथ का वास्ते होम टाउन जाता था। अभी मालिक साला मेरे को भाव देता, कुछ बोलता तो असल बात निकलती न! पक्की होती न कि टैक्सी सीज करने वाले भीड़ू उसके मुलाजिम थेइच नहीं!”
“उसने अपने ड्राइवर से मुलाहजा निभाया, उसे सपोर्ट किया!”
“ऐसीच जान पड़ता है।”
“तो वो दोनों टैक्सी ड्राइवर गायब नहीं हैं, मुम्बई में ही कहीं हैं?”
“मेरे को पक्की, भाया।”
“फिर तू अक्खा ईडियट जो तू उन की चाल को वाच करवाता है, उन के टैक्सी स्टैण्ड की वाच करवाता है।”
पंड्या बौखलाया।
“अरे, जो भीड़ू बाकायदा प्लान करके गायब हुए, वो लौटेंगे चाल में? अपने रेगुलर करके टैक्सी स्टैण्ड पर?”
“भाया, मैं सोचा शायद...”
“क्या शायद? क्यों शायद? वो नहीं लौटने वाले उन दोनों जगहों पर। फारिग कर उन्हें, जिन्हें वाच पर लगाया है। सब को एक जगह स्टैण्डबाई पर रख। फिर मैं बोलता है उन को क्या करने का।”
सहमति में सिर हिलाते पंड्या ने पठान की ओर देखा।
तत्काल पठान मोबाइल निकाल कर उसके हवाले हो गया।
“तू बोलता है—जरनैल बदले स्वर में बोला—“तूने उन को अपना पता भी बोला!”
“बोलना पड़ा न!”—पंड्या संकोच से बोला—“भाया, हालात ही ऐसे बन गये थे। हम दोनों उनके काबू में थे। कैसे उन की सुनने से इंकार कर सकते थे?”
“पठान ने भी बोला तेरी माफिक?”
“हां। पण, भाया, वो दोनों पते उन के किसी काम नहीं आने वाले। मेरे को सवा साल हो गया खेतवाडी से नक्की किये। इसको भी साल होने को आ रहा है डोंगरी में रहना छोड़े हुए।”
“क्यों पूछे उन्होंने तुम्हारे पते?”
“क्या बोला, भाया?”
“अरे, क्यों पूछे पते? किस काम आने वाले थे उनके? साली दोस्ती हो गयी थी, इस वास्ते मिलते-जुलते रहने का था! कभी उन में से कोई खेतवाडी से गुजरता तो तेरे साथ चाय पीने आता! डोंगरी से गुजरता तो पठान को ‘हल्लो-हाउ-डू-यू-डू’ बोलने आता?”
पंड्या के चेहरे पर उलझन के भाव आये।
“मैं बोले तो पते उन्होंने तुम दोनों की मुखबिरी के लिये लिये।”
“कैसी मुखबिरी?”
“क्या मालूम कैसी मुखबिरी! क्या मालूम क्या उन के मगज में!”
“मुखबिरी किस से? किसी बिग बॉस से? भाई से?”
“क्या मालूम! पुलिस के बारे में क्या बोलता है?”
“पुलिस खामखाह!”
“खामखाह ही सही। क्या बोलता है?”
“भाया, जब बात खामखाह की है तो फिर क्या बोलना!”
“सोच ले।”
“क्या है तुम्हेरे मगज में?”
“मेरे से ही कहलवायेगा?”
पंड्या तत्काल संजीदा हुआ।
“तू जेली है। जब बल्लू कनौजिया के गैंग में था तो फौजदारी में एक टेम पकड़ा गया था। दो साल की लगी थी। बाहर आये कितना टेम हो गया?”
“दो साल से ऊपर हो गये हैं।”
“तेरा पुलिस रिकार्ड है, मुखबिरी के नतीजे के तौर पर थाम लिया गया तो... अभी मैं क्या बोलेगा? तू क्या समझता नहीं, क्या तो?”
“समझता है, भाया, समझता है। पण फिर भी बोलता है। पुलिस खामखाह!”
“कल दो टेम फौजदारी किया। एक टेम थप्पड़ भी चलाया। क्या!”
“पुलिस तो किसी ने न बुलाई! थाने तो कोई न गया! कोई रपट तो दर्ज न हुई।”
“अभी कल की तो बात है वो। क्या पता आज हुई हो! या कल हो!”
पंड्या ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया।
“बोले तो?”—जरनैल उसे घूरता बोला।
“जो भीड़ू गायब होना मांगता हो, वो ऐसा कदम नहीं उठा सकता, भाया। पुलिस में किसी के खिलाफ रपट लिखा के कोई गायब नहीं रह सकता। वो रपट लिखायेगा तो हमेरा काम आसान करेगा।”
“अभी की न मगज वाली बात! अभी जोकम फर्नान्डो की क्या कहता है? तू भी जवाब दे, पठान!”
“उसके कत्ल से”—पठान बोला—“हमारा रिश्ता किसी तरीके से नहीं जोड़ा जा सकता।”
“उस... उस वाकये का कोई गवाह नहीं।”—पंड्या बोला—“उसको हैंडल करते टेम हमेरे साथ जो भीड़ू थे, हमेरे पूरे भरोसे के थे! जमा, जो हुआ उसमें वो बरोबर कर के शामिल थे। भाया, उस वाकये की बाबत कोई भी मुंह फाड़ना अफोर्ड नहीं कर सकता।”
“बोले तो फिक्र की कोई बात नहीं!”
“हां।”—पंड्या के स्वर में दृढ़ता का पुट आया।
“हूं। तो जोकम का ब्रीफकेस इस जीतसिंह के पास हो सकता है?”
“हो तो सकता है मैं बोले तो! नहीं भी है तो पक्की तो होना मांगता है न!”
“पूनिया ने उसे बरोबर पहचाना था कि वो वो जीतसिंह जो अंडरवर्ल्ड में बतौर टॉप लॉकबस्टर बहुत फेमस है?”
“हां।”
“फिर वो कोई आम भीड़ू तो न हुआ!”
“जब टैक्सी चलाता है तो...”
“ये नवां धन्धा उस का कवर भी हो सकता है किसी तरीके से।”
“ऐसा?”
“हां। तेरे को क्या पता उसके मन में क्या है! क्या उसकी स्ट्रेटेजी है!”
“भाया, अभी तो हमेरे वास्ते हमेरी स्ट्रेटेजी इम्पॉर्टेंट। उसका कुछ बोलो न!”
“बोलता है। मैं ही बोलता है। गौर से सुनो दोनों।”
दोनों तत्काल चौकन्ने हुए।
“हमारे जितने भी भीड़ू अवेलेबल हैं, सब को इकट्ठे करो और सब को एकीच काम करने को बोलो। सब को बारीकी से, डिटेल से दोनों का, बोले तो जीतसिंह का और उसके खास जोड़ीदार गाइलो का हुलिया समझाओ। कर सकेगा?”
“कर तो सकेगा”—पंड्या बोला—“पण यूं समझाने से किसी के मगज में कुछ पड़ेगा?”
“आसानी से तो नहीं पड़ेगा पण जरूरी करके मगज में ठोकने का। तेरे तिजोरी तोड़ कहने से ये जीतसिंह कर के भीड़ू मेरे को काफी कुछ याद आ रहा है। ये वो ही जीतसिंह जो पूनिया बोलता है कि है...”
“है। पूनिया गारन्टी करके बोलता है।”
“... तो तारदेव पुलिस स्टेशन के रिकार्ड में इसका फोटू हो सकता है जो कि वहां से निकलवाया जा सकता है।”
“पण सजा तो पूनिया बोलता है उसे हुई नहीं थी! वो तो कोरट से बरी हो गया था। मुजरिम का फोटू तो रिकार्ड के वास्ते तब खिंचता है जब उसे जेल होती है।”
“तेरे को जेल का तजुर्बा है, पंड्या, तेरे से ज्यादा जेल की बातें कौन जानता होगा!”
“भाया”—पंड्या के लहजे में शिकायत का पुट आया—“अभी मेरे साथ ऐसे पेश आओगे?”
जरनैल सकपकाया, फिर हँसा, फिर बोला—“अच्छा, ठीक है। ठीक है। जाने दे। अभी आगे सुन। पूनिया ये भी बोला कि थोड़ा टेम पहले इस जीतसिंह के खिलाफ वारन्ट गिरफ्तारी जारी हुआ था और गिरफ्तारी पर बीस हजार रुपये के ईनाम का ऐलान हुआ था। ऐसे ऐलान छापे के जरिये ही होते हैं। हो सकता है तब ऐलान के साथ इस जीतसिंह की फोटू भी छपी हो! तू पूनिया को ही इस काम में लगा कि वो अखबार के दफ्तर से, तारदेव थाने से पता करे कि क्या कहीं इस जीतसिंह की फोटू अवेलेबल है! हो तो गुलदस्ता थमाये और फोटू की कापी हासिल करे। फिर कापी की कई कापियां बनवाने का और उन सारे भीड़ू लोगों में बांटने का जिन को टैक्सी स्टैण्डों पर वाच रखने का काम करना है। फोटू से तो शिनाख्त में सहूलियत हो सकती है न!”
“वो तो बरोबर। अगर मिल जाये जीतसिंह तो क्या करने का?”
“वही करने का जो दो बार नहीं कर सके हो। ये टेम हर हाल में उसको थामने का और इधर ले के आने का।”
“न मिला तो?”
“तो छोड़ देना ये चक्कर। समझ लेना कि माल तेरी किस्मत में नहीं।”
पंड्या के चेहरे ने कई रंग बदले।
“इतनी आसानी से तो नहीं छोड़ देने वाला, भाया।”—फिर दृढ़ता से बोला—“साला इतना एफर्ट किया, इतना धक्के खाया, खून से हाथ रंगा, कैसे छोड़ देंगा! मेरे को साले कुतरे को पाताल से भी खोद के निकालने का।”
“बढ़िया। मैं भी तेरा फुल हैल्प करेगा इस काम में।”
“कैसे?”
“देखना कैसे! आखिर ऐसीच तो मैं जरनैल नहीं है! करके दिखायेगा न जरनैल वाला काम! क्या!”
पंड्या का सिर मशीनी अंदाज से सहमति में हिला।
“अभी निकल लो तुम दोनों। बहुत काम है तुम्हेरे पास।”
दोनों ने जरनैल का अभिवादन किया और रुखसत हुए।
जीतसिंह नयी हासिल हुई अपनी टैक्सी पर कोलाबा और आगे सी-रॉक एस्टेट पहुंचा!
सी-रॉक एस्टेट मराठा मंच पार्टी के सुप्रीमो और भूतपूर्व अन्डरवर्ल्ड डॉन बहरामजी कान्ट्रैक्टर का आवास था जो बाकायदा उसका देखा भाला था।
उस घड़ी रात के साढ़े आठ बजने को थे।
एस्टेट का विशाल आयरन गेट मजबूती से बन्द था। बाजू में बने गेट हाउस का दरवाजा भी उस घड़ी बन्द था। वहां केवल एक ट्यूब लाइट की रौशनी थी जो कि सिर्फ फाटक के फ्रन्ट का अन्धेरा दूर कर पा रही थी।
जीतसिंह ने हौले से हार्न बजाया।
गेट हाउस का दरवाजा खुला। भीतर तीन रायफलधारी गार्ड मौजूद थे। दो उठकर खुले दरवाजे पर पहुंचे, एक सावधान की मुद्रा में पीछे दरवाजे पर खड़ा रहा, दूसरा आगे बढ़ा। वो टैक्सी के करीब पहुंचा तो ये देखकर उसके चेहरे पर वितृष्णा के भाव आये कि टैक्सी में कोई पैसेंजर मौजूद नहीं था। यानी रात की उस घड़ी टैक्सी पर एस्टेट का कोई मेहमान वहां नहीं पहुंचा था।
“क्या है?”—वो कर्कश स्वर में बोला।
“मैं जीतसिंह।”—जीतसिंह बोला—“मेरे को...”
“बाहर निकल। बाहर निकल के बात कर।”
“अभी।”
जीतसिंह ने टैक्सी से बाहर कदम रखा।
“अब बोल!”
“मैं जीतसिंह...”
“वो तो तू है। मांगता क्या है?”
“मेरे को बिग बॉस से मिलना मांगता है।”
“क्या! साला टपोरी टैक्सी डिरेवर! बिग बॉस से...”
“सब से बिग बॉस से नहीं। बोले तो सोलोमन बॉस से! या जहांगीर बॉस से।”
“साला औकात नहीं पहचानता अपनी! बॉस लोगों के यूं नाम लेता है जैसे उनके साथ रोज का उठना बैठना हो।”
“अरे नहीं, भीड़ू, मैं तो बस...”
“काहे वास्ते मिलना मांगता है?”
“उन को बोलेगा न!”
“मेरे को बोल।”
“यहां सब मेरे को अच्छी तरह से जानते हैं। अभी सोलोमन बॉस लास्ट मंथ खुद मेरे को बीस पेटी का ईनाम दिया।”
“क्या!”
“सच्ची बोलता है। सब मेरे को जानते हैं। भीतर बोलो जीतसिंह आयेला है। इमीजियेट कर के मेरे को भीतर भेजा जाने को बोला जायेगा।”
“ऐसा?”
“हां। सच्ची बोलता है।”—जीतसिंह ने अंगूठे और पहली उंगली को जोड़ कर अपने गले की घंटी को छुआ।
“हर मिलने आने वाले की गेट पर खबर होती है।”—गार्ड बोला—“अन्दर से कोई नहीं बोला कोई जीतसिंह आने वाला था।”
“वान्दा नहीं। तुम अन्दर मेरे बारे में खबर तो करो!”
“नहीं हो सकता। सात बजे के बाद इधर ऐसा भीड़ू मंजूर नहीं जिस के आने की पहले से खबर नहीं।”
“पण...”
“कल दिन में आना। बोले तो दस बजे।”
“पण...”
“अभी बोला न! कल आना। तब मैं अन्दर खबर करेगा कि...क्या नाम बोला?”
“जीतसिंह।”
“...कि जीतसिंह आया। फिर जैसा हुक्म होगा, बोलेगा। अभी फूट ले।”
“पण मेरा मिलना जरूरी...”
“अक्खा ईडियट साला! कोई बात समझता हैइच नहीं।”
“अच्छा”—जीतसिंह के स्वर में याचना का पुट आया—“खालिद से ही मिलवा दो।”
गार्ड के नेत्र फैले, उसने घूर कर जीतसिंह को देखा।
“क्या हुआ?”—जीतसिंह बौखलाया सा बोला।
“तू खालिद भाई को भी जानता है?”
“अभी जानता है न! वो भी मेरे को जानता है। उसी को खबर कर दो कि जीतसिंह मिलना मांगता है।”
“नहीं कर सकता।”
“अरे, भीड़ू, फिरयाद करता है न!”
“साला कुछ समझता हैइच नहीं। अरे, खालिद भाई एस्टेट में नहीं है।”
“ओह!”
“अभी फूट ले।”
“मैं बहुत दूर से आया था।”
“फिर आना। कल। दस बजे।”
“मैं खालिद का इन्तजार करे तो...”
“कर। पण बाहर जा कर, एस्टेट की पिराइवेट रोड से दूर मेन रोड पर जा कर कर।”
“इन्तजार का कोई फायदा होगा?”
“नहीं। खालिद भाई पता नहीं कब लौटे! साला इन्तजार करता सूख जायेगा।”
“अच्छा!”—जीतसिंह ने असहाय भाव से गर्दन हिलाई और टैक्सी की तरफ वापिस घूमा।
गार्ड अपलक उसे देख रहा था।
जीतसिंह टैक्सी में सवार हुआ, उसने इग्नीशन ऑन किया।
“सुन!”—एकाएक गार्ड बोला।
जीतसिंह ने इग्नीशन ऑफ किया, उसने आशापूर्ण भाव से खुली खिड़की में से बाहर गार्ड की तरफ देखा।
“तेरी सूरत पर छपी नाउम्मीदी को देख कर मेरे को तरस आ रहा है तेरे पर।”—गार्ड बोला—“इस वास्ते बोलता है।”
“क्या?”
“खालिद भाई ये टेम बेवड़े अड्डे पर। रेगुलर रूटीन उसकी!”
“कौन से बेवड़े अड्डे पर?”
“बोलता है न! जब बोला बोलता है तो बोलता है।”
“सॉरी!”
“बन्दरगाह के इलाके में सासून डॉक मालूम?”
“मालूम।”
“उधर ग्रैग्रीज कर के बार। नौ बजे तक खालिद पक्की करके उधर। उसके बाद वो और तफरीह के लिये...समझा?... किधर भी जा सकता है। बोले तो जरूरी नहीं इधर आये। कई टेम तो आता ही नहीं अक्खी रात। इस वास्ते इधर वेट करना बेकार। ग्रैग्रीज बार जा। मिलेगा खालिद भाई तेरे को उधर।”
“मैं बाई हार्ट थैंक्यू बोलता है।”
“मैं कबूल करता है तेरा थैंक्यू। अभी जा। टेम खोटी न कर।”
जीतसिंह ग्रैग्रीज बार पहुंचा।
वो एक मामूली, दरम्याने दर्जे का वैसा बार था जैसे बन्दरगाह के इलाके में बड़ी तादाद में पाये जाते थे।
खालिद वहां मौजूद था। वो एक कोने की टेबल पर अकेला बैठा हुआ था, हालांकि बार में काफी रश था। वो बड़े इत्मीनान से विस्की चुसक रहा था और फिश फिंगर्स खा रहा था।
जीतसिंह उसकी टेबल पर पहुंचा।
खालिद ने सिर उठाया।
“सलाम बोलता है, खालिद भाई।”—होंठों पर जबरन मुस्कराहट लाता जीतसिंह मीठे स्वर में बोला।
खालिद के माथे पर बल पड़े, उसके चेहरे पर उलझन के भाव आये।
“मैं जीतसिंह।”
खालिद के माथे पर से बल निकले, सूरत से उलझन छंटी।
“रौशन बेग!”—वो बोला।
“शुक्र है पहचाना। वैसे एक ही महीना गुजरा है, न पहचानते तो मेरे को मायूसी होती।”
“बैठ।”
जीतसिंह उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया।
“दाढ़ी मूंछ नक्की किया”—खालिद बोला—“इस वास्ते टेम लगा पहचानने में।”
“आखिर पहचाना! बोले तो शुक्रिया।”
“क्यों किया?”
“जरूरत किधर रही थी! सब को तो मालूम पड़ गया था कि रौशन बेग असल में जीतसिंह। सारी खतायें माफ हो गयी थीं, इस वास्ते जरूरत किधर थी?”
“ठीक। पियेगा?”
“वान्दा तो नहीं कोई! वैसे भी खालिद भाई के साथ चियर्स बोलने का मौका मेरे को कब कब मिलेगा!”
“आर्डर करता है।”
“मैं थैंक्यू बोलता है।”
खालिद ने वेटर को इशारा किया और उसे दो ड्रिंक्स का आर्डर दिया।
ड्रिंक्स सर्व हुए तो दोनों ने गिलास टकराये, चियर्स बोला।
“बिल तू भरेगा।”—खालिद बोला।
“क्या बोला?”
“साले घोंचू! बीस पेटी का शीराजा एक महीने में तो खत्म नहीं कर लिया होगा!”
“नहीं, एक महीने में तो न किया...”
“तो?”
“चुटकियों में किया।”
“क्या बकता है?”
“इधर आया, उधर गया।”
“सच कह रहा है?”
“कसम बनाने वाले की।”
“क्या हुआ? लूट लिया किसी ने?”
“हां।”
“किसने?”
“एक दगाबाज दोस्त ने। साला गोद में बैठ के दाढ़ी मूंड गया।”
“इधर आया, उधर गया बोला! कहीं एस्टेट में ही तो नहीं हुआ सब?”
“अरे, नहीं बाप। उधर से तो मैं खुशी खुशी, बोले तो बल्लियों उछलता, रुखसत हुआ था।”
“जो हुआ स्टेट से निकल जाने के बाद में हुआ?”
“हां।”
“सच कह रहा है?”
“झूठ बोलने की कोई वजह तो है नहीं!”
“है न! बिल न भरना पड़े।”
जीतसिंह हँसा।
“मैं बीस पेटी का अभी भी मालिक होता”—फिर बोला—“तो बिल घड़े में से बून्द भी न होता।”
“ठीक। एक बात बता।”
“पूछो।”
“सच बोलना! गोली नहीं देना।”
“अरे, नहीं। मेरी मजाल नहीं हो सकती।”
“जिस रोज तेरे को एस्टेट से बीस पेटी का ईनाम मिला था, उसी रोज एस्टेट के गेट पर के सिक्योरिटी गार्ड को किसी ने शूट कर दिया था।”
“देवा! मर गया?”
“हां। पण चार घन्टे पता न लगा। इत्तफाक से तुम लोगों के जाने के बाद चार घन्टे एस्टेट पर कोई आवाजाही न हुई। फिर कोई मेहमान पहुंचा तो वाकये की खबर लगी। पुलिस आयी। उन के डाक्टर ने बताया कि उसे तो ढेर हुए चार घन्टे हो गये थे।”
“कमाल है!”
“साला आज तक पता नहीं लगा कि कौन आया, किसने गार्ड को शूट किया, क्या वो मांगता था!”
“कमाल है!”
“तब से बॉस लोगों ने गेट हाउस की सिक्योरिटी टाइट की है। अब वहां एक की जगह तीन गार्ड ड्यूटी करते है एक टेम में।”
“ठीक!”
“तो इतनी मेहनत से कमाया रोकड़ा निकल गया तेरे हाथ से!”
“दोस्त दगाबाज निकला न! गोद में बैठ के दाढ़ी मूंड गया। गनीमत हुई कि मेरे को लूटने की कोशिश में मेरे को भी खल्लास न कर गया।”
“वहीं रहता था? तेरे वाली चाल में?”
‘हां।”
“वो भी टैक्सी डिरेवर?”
“नहीं। डॉक वर्कर।”
“कोई खोज खबर न लगी?”
“न। बहुत जोर लगाया।”
“पुलिस में रपट दर्ज कराई?”
“क्या बात करता है, बाप! मैं साला मामूली टैक्सी डिरेवर! क्या बोलता, बीस लाख रुपया मेरे पास किधर से आया!”
“ठीक!”
“बोलता सी-रॉक एस्टेट से ईनाम मिला!”
“अरे, नहीं।”
“तो बोले तो पुलिस में रपट का मतलब ही कोई नहीं।”
“मेरे को अफसोस हुआ, जीते उर्फ रौशन बेग। तू ने उस ईनाम का बिग बासिज को हकदार बन के दिखाया था। बड़ा काम किया था उस भीड़ू का पता निकाल कर, उसे एस्टेट के हवाले करके, जिसने कि एस्टेट में बम ब्लास्ट किया था।”
“अभी क्या बोलेगा!”
“नसीब का खेल इसी को बोलते हैं। जो नसीब में नहीं लिखा, वो नहीं मिल सकता, मिले तो टिक नहीं सकता, जैसे तेरे पास न टिका।”
“बरोबर बोला, बाप।”
“बिल की बात मैं ने मजाक में बोली थी, तेरे को जताने को बोली थी कि तेरा ईनाम मेरे को याद। तू मेरा मेहमान। बिल मैं भरेगा।”
“मैं फख्र के साथ थैंक्यू बोलता है कि खालिद भाई ने अपने साथ ड्रिंक शेयर करने का मौका मेरे को दिया।”
“आया कैसे इधर? पहले भी आता रहता है या ये टेम इत्तफाक से आ गया?”
“मैं पहली बार आया इधर। और इत्तफाक से भी नहीं आया।”
“ऐसा?”
“हां। तुम्हेरे से मिलना था, इस वास्ते आया।”
“मालूम था, ये टेम मैं इधर होता था?”
“नहीं। मैं एस्टेट पर गया था, उधर गार्ड ने मेरे पर मेहरबानी किया और बोला मेरे को खालिद भाई ये टेम इधर हो सकता था।”
“इस वास्ते आया?”
“हां।”
“क्यों कि मेरे से मिलने का था?”
“हां।”
“खास मेरे से?”
“एस्टेट में किसी से भी। बॉस लोगों में से किसी से मिलना मांगता था पण गार्ड बोला कि मैं पास भी नहीं फटक सकता था। फिर मेरे को तुम्हेरा खयाल आया। अभी गार्ड की मेहरबानी से इधर बैठेला है तुम्हेरे सामने ड्रिंक। शेयर करता है।”
“मांगता क्या है?”
“खालिद भाई, बेखौफ बोले मैं?”
“और कैसे बोलेगा? साथ बिठाया न तेरे को! मेरे साथ फिरेंड का माफिक ड्रिंक करता है तो खौफ से बोलेगा?”
“नहीं।”
“तो?”
“बोलता है। खालिद भाई, मेरे को तुम्हेरी शार्गिदी में आना मांगता है।”
“क्या बोला?”
“नहीं समझा?”
“नहीं।”
“बोले तो मेरे को बिग बॉस के गैंग में शामिल होना मांगता है।”
“कौन बिग बॉस?”
“तुम्हेरे को मालूम।”
“जवाब दे। कौन बिग बॉस?”
“सी-रॉक एस्टेट का बिग बॉस।”
“माथा फिरेला है!”—खालिद भड़कने को हुआ—“साला इधर कौन सा गैंग चलता है?”
“हिम्मत करके बोलता है, खालिद भाई, दाई से पेट छुपाने वाला बात करता है तुम। साला इतना कुछ हुआ पिछले दिनों। बिग बॉस को खल्लास करने का कोशिश हुआ, इतने भाई लोग लुढ़क गये या लुढ़का दिये गये, बिग बॉस के मुजरिम को मैं खुद पकड़ कर सी-रॉक एस्टेट लाया, बदले में बीस पेटी का ईनाम पाया, तुम बोलता है कौन सा गैंग! उधर गोवा में इतना कुछ हुआ। बिग बॉस के हुक्म पर एक भीड़ू को—रौशन बेग को, ये समझ कर कि वो मैं था और जो उसे पकड़ के लाया, वो रौशन बेग था—तुम खुद शूट किया, उधर भी मेरे को, बोले तो रौशन बेग को, दस पेटी का ईनाम मिला, तुम बोलता है कौन सा गैंग! अभी क्या बोले मैं कौन सा गैंग!”
“अरे, खजूर, सी-रॉक एस्टेट का नाम नहीं लेने का। बहरामजी बॉस का नाम नहीं लेने का।”
“वान्दा नहीं। मैं मोरावाला का नाम लेता है न!
“मोरावाला!”
“बेजान मोरावाला। अभी ये भी बोले कि बिग बॉस का नहीं तो मोरावाला का नाम क्यों लेता है?”
“तू तो...बहुत कुछ जानता है!”
“अभी क्या बोलेगा!”
“तो तू गैंग में शामिल होना मांगता है।”
“हां।”
“क्यों?”
“इतना काम किया मैं गैंग के वास्ते। आगे भी करना, करते रहना, मांगता है न!”
“गैंग के वास्ते न किया, साले, अपने वास्ते किया। अपनी फटती को अपने वास्ते किया। दोनों टेम तेरी जान पर बनी थी, न करता तो किधर होता! साला जहन्नुम में शैतान की हाजिरी भर रहा होता।”
“किसी भी वजह से किया, किया तो बरोबर! तभी तो शाबाशी पायी!”
“और खतायें माफ कराईं।”
“वो भी।”
“तू गैंग में शामिल नहीं हो सकता।”
“दिल तोड़ने का बात करता है, खालिद भाई।”
“नहीं हो सकता।”
“क्यों?”
“क्यों कि, साले श्याने, तेरी खतायें माफी के काबिल नहीं थीं। पण तू चिल्लाकी किया। ऐसा गेम खेला कि बिग बॉस को फ्लैट कर दिया। नर्सिंग होम में साला इतना सिक्योरिटी के बावजूद बोले तो कमाल किया कि जिन्दगी और मौत के बीच झूलते बिग बॉस के सिर पर जा खड़ा हुआ और पता नहीं कौन से इस्टाइल से गुनाहबख्शी का फिरयाद लगाया कि बिग बॉस पिघल गया। बिग बॉस के हुक्म पर सोलोमन बॉस को तेरे साथ डील करना पड़ा कि अगर तू चार दिन में बम ब्लास्ट के भीड़ू को सोलोमन बॉस के सामने ला खड़ा करता तो तेरी तमाम खतायें माफ और तेरे को बीस पेटी का ईनाम, वर्ना कौन सी खता थी तेरी जो माफी के काबिल थी? साला बिग बॉस के खण्डाला के बंगले का वाल्ट जैसा सेफ तूने खोला...”
“मुझे मजबूर किया गया था।”
“...उसमें से सत्तर पेटी रोकड़ा नक्की किया...”
“मैंने न किया। राजाराम लोखण्डे कर के भीड़ू ने किया। ये बातें पहले हो चुकी हैं, खुल चुकी हैं। फिर तुम्हेरे को मालूम वो रोकड़ा मैं गोवा में वापिस लौटाया।”
“...वो सेफ तू ही खोल सकता था। तूने ही खोली। ये जुदा मसला है कि मर्जी से खोली या मजबूरी से खोली। बिग बॉस ने तेरे पर रहम किया, मैं होता तो ठौर मार देता।”
“मार ही दिया था गोवा में।”
“पण जो चिल्लाकी तू किया था साला श्याना हरामी, उसकी मेरे को किधर खबर थी! तब मेरे को किधर मालूम था कि जीतसिंह समझ कर मैं जिस को शूट करता था, वो असल में इकबाल रजा भाई का जोड़ीदार रौशन बेग था और जीतसिंह साला रौशन बेग बना बिग बॉस से शाबाशी लेता था, ईनाम बटोरता था। साला एक नम्बर का चिल्लाक भीड़ू।”
जीतसिंह ने जवाब न दिया, उसने बेचैनी से पहलू बदला।
“अभी बोले तो इकबाल रजा को भी पोंडा में तू ही खल्लास किया। हां बोल, साले!”
“मरने से बचने के लिये मारना पड़ा।”—जीतसिंह होंठों में बुदबुदाया—“वो मेरे को मार डालने को आमादा था। क्या करता मैं? जो किया, जान बचाने के लिये किया।”
“एस्टेट के मैंशन में बिग बॉस के बैडरूम की सेफ खोलने का नामुमकिन करतब भी तूने किया। सेफ खोली, उसमें टाइम बम प्लांट किया...”
“मैंने न किया। मुझे मजबूर किया गया सेफ खोलने के लिये, बाकायदा ब्लैकमेल करके मजबूर किया गया।”
“... बोले तो बिग बॉस को टपकाने की साजिश में शरीक हुआ...”
“खालिद भाई, ये तमाम बातें हो चुकी हैं। इनको दोहराने का क्या फायदा! जब मेरे को अपनी खताओं की माफी मिल चुकी है तो दोहराने का क्या फायदा!”
“तेरी खताओं की माफी ऐसी है जैसे कोई मुजरिम गुनाह किया होने के बावजूद कोरट से...वो क्या बोलते हैं कोरट की जुबान में...हां, बैनीफिट आफ डाउट पा कर छूट जाता है। जज को मालूम होता है कि मुजरिम उसके सामने खड़ेला है, पण वो मजबूर, उसको सजा नहीं दे सकता। यहीच तेरे साथ हुआ, साले। मजबूर हो गये बॉस लोग तेरी खतायें माफ करने के वास्ते। क्योंकि तूने पता नहीं क्या फिरयाद लगाई, कैसे फिरयाद लगाई कि मौत को अपने करीब पाता नर्सिंग होम में पड़ा बिग बॉस पिघल गया और उसके हुक्म पर तेरी सारी खतायें माफ हो गयीं।”
“खामखाह नहीं। एक बड़े पुछल्ले के साथ। चार दिन में, खाली चार दिन में मेरे को कुछ करके दिखाना था, वर्ना मैं खल्लास! और तुम्हेरे से छुपा है कि जो कर के दिखाना था, शार्ट टेम में करके दिखाना था, वो कितना मुश्किल था! बल्कि नामुमकिन था! पण मैं किया न! वो काम किया न, जो तुम लोग खुद न कर सके!”
“क्या बकता है साला!”
“कर सकते होते तो कर न चुके होते! क्या कर चुके थे? अभी रौशन बेग के ईनामी इश्तिहार के किसी नतीजे का इन्तजार करते थे जो पता नहीं सामने आता कि न आता! आता तो उस पर अमल कर के बम ब्लास्ट के लिये असल जिम्मेदार भीड़ू को पकड़ पाते या न पकड़ पाते! पकड़ पाते तो पता नहीं कब पकड़ पाते! मैं ने चार दिन की मियाद से भी पहले सब ऐन सैट करके दिखाया न! जवाब दो।”
खालिद से जवाब देते न बना।
“मैं बहुत काम का भीड़ू है, खालिद भाई, गैंग में जगह दोगे तो मैं गैंग के बहुत काम आयेगा।”
“जगह पाना क्यों चाहता है गैंग में?”
“क्योंकि मैं कमजोर भीड़ू। कोई भी मेरे को हूल देने लगता है और मेरा जीना हराम कर देता है। मेरे को ताकतवर की छत्रछाया मांगता है ताकि मेरे को मजबूर करके अपना काम निकलवाने की किसी की मजाल न हो।”
“अभी ये टेम क्या पिराब्लम है तेरी?”
जीतसिंह हिचकिचाया।
“अरे, बोल न!”
“बोल दे?”
“हां। तू जानता है तेरी बात मेरे से आगे नहीं जायेगी।”
“पक्की?”
“हां।”
“तो सुनो। मेरे पास किसी ‘भाई’ का करोड़ों का माल है जो खामखाह मेरे गले पड़ा है, जिसने मेरी ऐसी हालत बनाई हुई है कि मैं तो कम्बल को छोड़ता हूं, कम्बल मेरे को नहीं छोड़ता। माल का पता निकालने के लिये मवाली मेरे पीछे पड़े हैं जो अपनी कोशिशों से मुझे खल्लास भी कर दें तो कोई बड़ी बात नहीं।”
“करोड़ों का माल बोला?”
“हां।”
“कितने! कितने करोड़ का?”
“मालूम नहीं। चार और चालीस के बीच कहीं भी हो सकता है।”
“हूं।”
“अभी बोलो। मैं गैंग में?”
“नहीं।”
“क्या बोला?”
“तू गलत भीड़ू है। बोले तो फसादी भीड़ू है। अपने फसाद हमेरे गले मंढ़ना मांगता है। तेरे को दूर दूर ही रखना ठीक।”
“बोले तो?”
“नहीं मांगता। तेरे लिये, तेरे जैसे भीड़ू के लिये गैंग में कोई जगह नहीं।”
“ये फैसला तुम्हेरे हाथ है?”
“तेरा... तेरा फैसला मेरे हाथ है। और मेरा फैसला अभी सुना तूने। नहीं मांगता। जो भीड़ू साला सब तरफ हो, वो नहीं मांगता।”
“ऐसा नहीं है, खालिद भाई।”
“ऐसीच है।”
“है तो रहेगा नहीं।”
“वो आगे की बात। आगे पता नहीं क्या होगा? अभी नहीं मांगता।”
“बिग बॉस कैसा है?”
“कैसा है क्या मतलब?”
“ऐन फिट हो गया?”
“जख्मों से उबर गया पण अभी ऐन फिट नहीं हुआ। कमजोर है। डाक्टर लोग बोलते हैं अभी एक महीना और लगेगा ऐन फिट होने में।”
“मैं नहीं मिल सकता?”
“भांग खायेला है साला!”
“सोलोमन बॉस से?”
“किस वास्ते? अगर तू समझता है मैं न बोला तो वो हां बोल देगा तो ये खयाल अपने मन से निकाल दे। तेरे मामले में मेरी न को हां में कोई नहीं बदल सकता। मैं नहीं मांगता तेरे को गैंग में!”
“ये तुम्हेरा आखिरी फैसला है?”
“हां।”
“बदली की कोई गुंजायश नहीं?”
“नहीं।”
“फिर तो चलता है, खालिद भाई, गुडनाइट बोल के। मैं कुछ गलत बोल गया तो माफ करना मेरे को।”
“अरे, अपना ड्रिंक तो तूने छुआ भी नहीं!”
“डायलॉग करता था न इम्पॉटेंट करके! ध्यान ही न गया।”
“अब दे ध्यान।”
“अब मूड नहीं रहा। सॉरी बोलता है।”
“कमाल है!”
“मैं बिल भरता है...”
“अरे नहीं। वो मजाक की बात थी।”
“मजाक की बात थी! बोले तो पहले भी बोला। वैसे भी...”
“क्या वैसे भी?”
“बाप, ड्रिंक शेयर करना एक इस्पेशल करके काम है जो आपसदारी में ही ठीक होता है। पण आपसदारी तो बनी नहीं! तुमने तो मेरे को गैर बना दिया। गैर भी ऐसा जो साला यकायक बास मारने लगा हो।”
“अरे, नहीं...”
“जिधर कद्र नहीं, उधर आपसदारी किधर से होगी! अभी जाता है, ढ़ूंढ़ता है कोई कद्रदान! मेहरबान! और चियर्स बोलता है। सलाम कबूल करो, खालिद भाई, टेम देने का शुक्रिया।”
भौंचक्का सा खालिद जीतसिंह को जाता देखता रहा।
रात के दस बजे थे लेकिन उस रोज इत्तफाक से अमर नायक तब भी अपने चर्चगेट वाले फ्लैट में ही था जब कि नवीन सोलंके का उस दिन का दूसरा फेरा वहां लगा।
नायक तब भी फ्लैट के आफिसनुमा कमरे में ही था। उसके सामने चालू लैपटॉप था, लैपटॉप के बाजू में एक ट्रे थी जिस पर सोडा सायफन और जॉनीवाकर ब्लू लेबल की बोतल पड़ी थी। उसके दायें हाथ के पास तभी तैयार किया एक पैग मौजूद था।
सोलंके को देखकर उसकी भवें उठीं।
“मलाड फोन किया था”—सोलंके बोला—“मालूम पड़ा तुम अभी भी इधरीच था, इस वास्ते आया।”
“हूं। बैठ।”
“शुक्रिया...”
“नहीं, पहले किचन से एक गिलास ले के आ।”
सोलंके ने सावधान निगाह बोतल पर डाली।
“बोले तो”—फिर बोला—“मैं भी ब्लू लेबल!”
“क्यों नहीं? तू कोई गैर है! जोड़ीदार से मेरा!”
बॉस तरंग में था—सोलंके ने मन ही मन सोचा—बोतल में विस्की का लैवल इस बात की तसदीक करता था।
“अगर तुम बिजी है”—प्रत्यक्षत: वो बोला—“तो मैं कल आये!”
“अरे, नहीं।”—नायक जल्दी से बोला—“नहीं है बिजी। आज इधर लेट हो गया न, इस वास्ते इतना दूर मलाड लौटने का मन नहीं रहा। इधर ही स्टे करने का ये नाइट। अभी लैपटॉप पर पिक्चर देखता था।”
“कौन सी?”
नायक ने जवाब न दिया, वो एक आंख दबा के हँसा।
“जा गिलास ले के आ।”—फिर बोला—“और फिर आके बैठ मेरे सामने।”
“अभी।”
सोलंके किचन से गिलास ले कर लौटा तो उसने पाया कि नायक ने लैपटॉप बन्द करके टेबल के एक कोने में सरका दिया था और अब उसका विस्की का गिलास खाली था। उसने गिलास को टेबल पर रखा और एक विजिटर्स चेयर पर बैठ गया।
नायक ने खामोशी से दो ड्रिंक तैयार किये और अपने डिप्टी के साथ चियर्स बोला।
“तारानाथ को खाना लाने भेजा है।”—नायक बोला—“अभी गया है, दूर गया है, इस वास्ते टेम लगा के आयेगा।”
तारानाथ उस फ्लैट का—बल्कि उस फ्लोर के चारों फ्लैट्स का—केयरटेकर था जो जब नायक वहां मौजूद हो तो और भी कई काम करता था।
नायक ने कहीं से काजुओं से भरा प्लास्टिक का एक बाउल बरामद किया और उसे दोनों के बीच मेज पर रखा।
“अब बोल”—वो बोला—“कैसे आया रात में इतना लेट?”
“कुछ नवीं बातें पता लगी न!”—सोलंके बोला—“बोलने का तो था न! तुम मलाड में होता तो कल सुबह आता, इधरीच था इस वास्ते अभी आ गया।”
“वान्दा नहीं। क्या बातें पता लगीं?”
“अन्डरवर्ल्ड में भेदिये छोड़े थे, इस वास्ते कई खबरें मिल रही हैं। इम्पॉर्टेंट कर के जो बात पता चली है, वो ये है कि कुछ भीड़ू लोग नया गैंग खड़ा करने की कोशिश में हैं।”
“देवा! जैसे पहले कोई कमी है! लीडर कौन है उन का?”
“लीडर ही तो नहीं है! इसीलिये तो पेश नहीं चल रही उन की। मालूम ये पड़ा है, बॉस, कि वो तमाम के तमाम भीड़ू पहले बल्लू कनौजिया के गैंग में होते थे। बल्लू कनौजिया फिनिश हो गया, उसका पार्टनर सरताज बख्शी फिनिश हो गया, उसके बड़े लेफ्टीनेंट भी लुढ़का दिये गये तो गैंग टूट कर बिखर गया क्योंकि गैंग को एक जुट करके रखने वाला सरपरस्त कोई न बचा। फिर दो तीन भीड़ू लोग ने पहल की और बिखरे प्यादों को एकजुट करके नया गैंग खड़ा करने की कोशिश की...”
“दो तीन भीड़ू लोग कौन?”
“तीन चार नाम पकड़ में आये हैं पण पक्की करके अभी ये नहीं मालूम पड़ सका कि उन में खास कौन है, अहम कौन है!”
“नाम क्या?”
“मगन कुमरा। विराट पंड्या। सुहैल पठान। श्रीनन्द कन्धारी। वगैरह।”
“हूं।”
“जिसने उखड़े प्यादों को एक जुट करने की कोशिश की थी, उसका नाम विराट पंड्या बताया जा रहा है लेकिन सुनने में आया है कि वो अन्डरवर्ल्ड में अपनी कोई ऐसी बड़ी हैसियत नहीं बना सका था कि हर कोई उसकी बात सुनता। नेचुरल लीडरशिप के गुण रखने वाला भीड़ू वो न निकला, इस वास्ते वो उखड़े प्यादों को इतना अपने असर में न ला सका कि हर कोई उसकी मंशा की तरफदारी में झट हामी भर देता। सिर्फ गिनती भर प्यादों को छोड़कर बाकी सबने टालू जवाब दिये कि ‘सोचेगा, देखेगा, बोलेगा’।”
“क्योंकि अभी भी उन्हें उम्मीद है कि कोई बड़ा गैंग उन्हें अपना लेगा?”
“बरोबर। बल्लू कनौजिया के टपक जाने के बाद उसके गैंग के प्यादों ने, तुम्हेरे को मालूम ही है कि, हमेरे तक भी पहुंच बनाई थी पण तुम्हेरे हुक्म पर सब को नक्की बोलना पड़ा था।”
“ठीक बोलना पड़ा था। ठीक बोला था। हमेरे को खूंटे से उखड़े प्यादे नहीं मांगता।”
“बरोबर।”
“तू आगे बढ़।”
“आगे पता चला है कि उन थोड़े से एकजुट हुए प्यादों का कोई रहनुमा है जिसे उन का लीडर तो कोई नहीं बताता पण एक्सपर्ट सलाहकार करके सब बताते हैं लेकिन उसके नाम के अलावा अभी मेरे को कुछ मालूम नहीं हो सका है।”
“नाम बोले तो?”
“जरनैल।”
“जरनैल सिंह! सिख है?”
“नहीं, सिख कोई नहीं बोला। और सिंह नहीं, खाली जरनैल। जो कि एक तरह से उसका अदब का टाइटल है, नाम नहीं है।”
“नाम क्या है?”
“कीरत मेधवाल।”
“पक्की उम्र का भीड़ू! साठ के आस पास का! चरसी!”
“बॉस, मैं बोला न, मेरे को उसके नाम के अलावा अभी कुछ मालूम नहीं हो सका है।”
“मैं नाम से वाकिफ है उस भीड़ू के। कभी इब्राहिम कालिया के गैंग में होता था। वो खल्लास हो गया तो बल्लू कनौजिया का माफिक उसका भी गैंग बिखर गया था। तब ये भीड़ू खड़ा पारसा में रहता था, अब पता नहीं कहां रहता है!”
“अगर पहले इब्राहीम कालिया के गैंग से था, ये पक्की तो मालूम पड़ जायेगा।”
“वो तो पड़ जायेगा तेरे को, पण तू ये बता कि इन बातों में हमेरे काम का क्या है?”
“बोलता है न, बॉस! वो क्या है कि इन भीड़ू लोगों का हालिया फोकस जम्बूवाडी की एक चाल पर है और नागपाडा के अलैग्जेन्ड्रा सिनेमा के करीब के एक टैक्सी स्टैण्ड पर है। अभी जो बात मेरे मगज में आयी वो ये है कि वो किसी टैक्सी डिरेवर की फिराक में हो सकते हैं।”
“खामखाह!”
“जम्बूवाडी की चाल में, मेरे को मालूम पड़ा है कि, काफी टैक्सी डिरेवर रहते हैं।”
“सारे ही तो टैक्सी डिरेवर नहीं रहते न उधर! क्या पता वो भीड़ू लोग उस टैक्सी स्टैण्ड के किसी रेगुलर पैसेंजर की ताक में हों जो रहता जम्बूवाडी की चाल में हो!”
“बरोबर बोला, बॉस, पण मैं ये तो न बोला कि वो किसी टैक्सी डिरेवर की फिराक में हैं, मैं बोला कि हो सकते हैं।”
“तेरा टैक्सी डिरेवर पर खास जोर मालूम पड़ता है!”
“है न!”
“क्यों?”
“बॉस, परसों की मीटिंग में मैं बोला था कि जोकम ने जो कुछ किया, उसके साथ जो गलाटा हुआ, उसमें किसी टैक्सी डिरेवर का रोल हो सकता था। अभी उन भीड़ू लोगों की वजह से किसी टैक्सी डिरेवर भीड़ू पर फोकस बनता दिखाई दे रहा है...”
“तेरे को दिखाई दे रहा है।”
“मेरे को ही सही, पण सुनो तो!”
“सुनता है।”
“मेरे को ये बोलना मांगता है कि जो टैक्सी डिरेवर कर के भीड़ू मेरे मगज में आया और जिस टैक्सी डिरेवर भीड़ू पर उन का फोकस है, वो अगर एकीच भीड़ू तो ये बात हमेरे काम की हुई न!”
“ऐसे तो हुई!”
“तो चैक कर के देखने में कोई प्राब्लम हमेरे को?”
“कैसे करेगा? जो चाल और स्टैण्ड पर निगरानी कर रहे हैं, उन पर निगरानी बिठायेगा?”
“सोचा तो मैं यहीच।”
“गलत सोचा। ऐसे बहुत टेम खराब होगा। आसान काम कर।”
“क्या?”
“चाल और स्टैण्ड की निगरानी करते भीड़ओं में से किसी एक को थाम और फिर उसी से निकलवा किस वास्ते वो भीड़ू लोग उस चाल को वाच करते थे, उस टैक्सी स्टैण्ड को वाच करते थे और किसके हुक्म पर वो सब हो रहा था। क्या?”
“बोले तो बरोबर। यहीं करेंगा मैं।”
“बल्कि जो पकड़ाई में आये, उसे मेरे पास ले के आना। साला मेरे सामने होगा, मालूम पड़ेगा मैं कौन तो पतलून गीली करेगा। पांच मिनट में गा गा के बोलेगा किसका भीड़ू था, क्या करता था, वाच से उसको क्या नतीजा मांगता था!”
“बोले तो पर्फेक्ट। अब कल सुबह यहीच पहला काम मेरे को कराने का।”
“बढ़िया।”
“और इस भीड़ू जरनैल का भी पता निकालने का।”
“उस को अभी छोड़। पहले पहले काम का नतीजा सामने आने दे। क्या पता दूसरे काम की जरूरत ही न पड़े!”
“ठीक!”
“अभी धन्धे की कोई बात करने का तेरे को?”
“नहीं।”
“करने का तो कर। साला मेरे को ड्रिंक में मजा नहीं आ रहा।”
“नहीं, बॉस, फिलहाल और कोई बात नहीं।”
“तो गिलास खाली कर।”
तत्काल सोलंके ने आदेश का पालन किया।
ग्यारह बजे के करीब विराट पंड्या का मोबाइल बजा।
उसने स्क्रीम पर निगाह डाली तो जान कर हैरानी हुई कि जरनैल का फोन था। उसने काल रिसीव की।
“हुक्म, भाया!”—फोन में वो अदब से बोला।
“जरनैल बोलता है।”—आवाज आयी।
“अरे, मालूम, भाया। हुक्म करो न!”
“पास कौन है?”
“पठान है।
“क्या करता है?”
“भाया, रात के ये टेम क्या करता होयेंगा!”
‘बाटली चालू है?”
“बोले तो हां।”
“बन्द कर फौरन। अभी बाटली से ज्यादा अर्जेंट काम है तुम दोनों को।”
“वो तो समझो कर भी दी, भाया, पण बात क्या है?”
“अरे, शाम को क्या बोला था मैं तेरे को?”
“क्या बोला था?”
“ऐसीच जरनैल नहीं मैं। जरनैल वाला काम कर के दिखायेगा। क्या?”
“अरे! कुछ कर दिखाया!”
“हां।”
“इतनी जल्दी!”
“इत्तफाक हुआ। वक्त ने साथ दिया।”
“क्या किया?”
“बोलूंगा। अभी मेरी बात खत्म होने दे।”
“जरूर।”
“ये टेम दो तीन और भीड़ू काबू में कर सकता है?”
“ग्यारह बज गये हैं, भाया।”
“टेम मालूम मेरे को। जवाब दे।”
“कोशिश करता है न!”
“कर। पण भटकने का टेम नहीं है। फोन पर कान्टैक्ट हो तो ठीक वर्ना तुम्हीं दोनों को बुलेट का माफिक कमाठीपुरा पहुंचने का।”
“उधर किधर?”
“शुक्लाजी स्ट्रीट। मेरे को उसके फारस रोड के क्रासिंग पर मिलने का। किसी से फोन पर कान्टैक्ट हो जाये तो उस को भी उधर पहुंचने को बोलने का।”
“आता है, भाया।”
उसने फोन बन्द किया और पठान की तरफ घूमा।
“जरनैल का फोन था।”—वो बोला—“फौरन बुलाता है।”
“ये टेम?”—पठान हड़बड़ाया।
“हां। गिलास खाली कर और नीचे जा। पार्किंग से गाड़ी निकाल कर इधर ला। मैं एक दो अर्जेंट काल लगा कर आता है।”
तत्काल पठान बाहर को लपका।
नीली सान्त्रो पर वो शुक्लाजी स्ट्रीट पहुंचे।
निर्धारित स्थान पर उन्हें जरनैल की स्विफ्ट खड़ी दिखाई दी।
अपनी कार को पार्क कर के लम्बे डग भरते वो स्विफ्ट के पास पहुंचे। उन्होंने देखा कि ड्राईविंग सीट पर वीजू मौजूद था, उसकी बगल में पैसेंजर सीट पर एक और व्यक्ति बैठा था और पीछे चरस वाले सिग्रेट के कश लगाता जरनैल मौजूद था।
दोनों ने जरनैल का अभिवादन किया।
जरनैल कार से बाहर निकला। दूसरे व्यक्ति ने भी बाहर कदम रखा। वीजू स्टियरिंग के पीछे कार में ही बैठा रहा।
“कुमरा और पूनिया से कान्टैक्ट हो गया था, भाया।”—पंड्या बोला—“बस, आते ही होंगे।”
“आ चुके हैं।”—जरनैल बोला।
“बढ़िया। कहां हैं?”
“आगे भेजा है।”
“ओह! आगे भेजा है। भाया, माजरा क्या है? बुलाया काहे वास्ते?”
“बोला न फोन पर! ऐसीच जरनैल नहीं मैं, जरनैल वाला काम करके दिखाऊंगा बोला न मैं!”
“वो तो बोला बरोबर, पण क्या किया? और ये कौन है?”
“ये अबरार है। बहरामजी के गैंग का भीड़ू है। इकबाल रजा की लाइफ में उसके अन्डर में चलता था। मेरा पुराना वाकिफ है। कद्र करता है मेरी। लिहाज करता है।”
“ओह!”
“अबरार, ये अपना पंड्या है। ये पठान है।”
अबरार ने संजीदगी से सहमति में सिर हिला कर परिचय कबूल किया।
“जब तू बोला था वो जीतसिंह टैक्सी ड्राइवर असल में तिजोरीतोड़”—जरनैल फिर पंड्या से मुखातिब हुआ—“तो मैं बोला था मेरे को बहुत कुछ याद आ रहा था इस जीतसिंह के बारे में। तब मेरे को ये भी याद आया था कि अभी ढ़ाई तीन महीने पहले अन्डरवर्ल्ड में ये अफवाह बहुत गर्म थी कि बहरामजी के खण्डाला के बंगले की वाल्ट जैसी सेफ खुल गयी थी और हर कोई बोलता था कि उसे जीतसिंह वाल्टबस्टर के अलावा कोई नहीं खोल सकता था। इस वजह से तब जीतसिंह का बहरामजी के फोकस में आना लाजमी था और उसकी तलाश भी हो के रहनी थी। तुम्हारे ठाकुरद्वार रोड से जाने के बाद मेरे मगज में आया था कि तलाश हुई थी या नहीं, हुई थी तो कामयाब हुई थी या नहीं, इस बारे में अबरार मेरे को कुछ न कुछ जरूर बता सकता था। मैंने इसको फोन किया और इससे अर्जेंट करके मीटिंग फिक्स की। ये मिला तो इसने तो मेरे को हैरान कर देने वाली कहानी सुनाई।”
“क्या?”—पंड्या उत्सुक भाव से बोला।
“अबरार, तू बोलेगा या मैं बोलूं?”
“तुम्हीं बोलो, बाप।”—अबरार बोला।
“ठीक है। मैं बोलता है। सुनो तुम दोनों। अबरार के कहने के मुताबिक बहरामजी ने अपने खास आदमी इकबाल रजा को जीतसिंह की तलाश में लगाया था। मैं अबरार की स्टोरी को मुख्तसर करके बोलता है कि जीतसिंह थाम लिया गया था। तब उसने दावा किया था कि खण्डाला वाला कारनामा न उसका था, न उसका हो सकता था क्योंकि उस रोज उस काम के टेम वो यहां कमाठीपुरे में मिश्री करके एक बाई के साथ था। उसके इस दावे को चैक करने के लिये इकबाल रजा के तीन भीड़ू—रियाज बाबर, यासिर और ये अपना अबरार—जीतसिंह को इधर उस बाई के पास ले के आये जिसने पहले तो पूरी कामयाबी से जीतसिंह का ये बोल के पक्की कर के बचाव किया कि उस रात उस टेम वो उसके साथ था और अक्खी रात उसीच के घर रहा था। पण इक्तफाक ऐसा हुआ कि हाथ के हाथ ही पोल खुल गयी कि बाई झूठ बोलती थी। फिर आगे इत्तफाक ये हुआ कि जीतसिंह सब को टोपी पहना कर फरार होने में कामयाब हो गया।”
“फरार रहा तो नहीं!”
“वो कहानी लम्बी है और हमारे काम की नहीं है। अभी हमारे काम की एकीच बात है जिसकी वजह से हम इधर हैं।”
“क्या?”
“वो बाई। मिश्री। अबरार कहता है जीतसिंह पर जान छिड़कती थी। उसकी खातिर बेहिचक उसने झूठ बोला था कि जीतसिंह अक्खी रात उसके साथ था। फिर जीतसिंह को इन लोगों के कहर से बचाने के लिये और भी बड़ी कुर्बानी की।”
“वो क्या?”
“रियाज बाबर से डील किया कि अगर वो लोग जीतसिंह को छोड़ देंगे तो वो बदले में कुछ भी करने को तैयार थी।”
“कुछ भी?”
“बरोबर। रियाज बाबर ने डील को यस बोला तो उस औरत ने अपनी चाहत पर खुद को कुर्बान कर दिया। तीनों के साथ सोई बारी बारी। और जीतसिंह को इतनी बड़ी कुर्बानी की भनक न लगने दी।”
“कमाल है!”
“फरार कैसे हो गया?”—पठान उत्सुक भाव से बोला।
“रियाज बाबर को थोड़ा टेम के वास्ते बाकी दो साथियों को पीछू छोड़ कर इकबाल रजा को ढ़ूढ़ने कोलाबा चला जाना पड़ा। पीछे मिश्री ने सब को शराब पिलाई, खुद भी पी। तब जीतसिंह किसी तरीके से मिश्री के और अबरार और इसके जोड़ीदार यासिर के ड्रिंक्स में नींद की गोलियां मिलाने में कामयाब हो गया। रियाज बाबर जब वापिस लौटा तो उसने तीनों को बेहोश पड़े पाया और जीतसिंह को गायब पाया।”
“ओह!”
“अब ये स्टोरी हमारे काम की कैसे है, हम यहां क्यों जमा हैं, वो सुनो। जीतसिंह इस वक्त गायब है। वो जम्बूवाडी चाल में नहीं लौट सकता, चिंचपोकली नहीं लौट सकता, क्रॉफोर्ड मार्केट नहीं लौट सकता पण रातगुजारी के वास्ते किधर तो उसको होने का न! और जैसे हालात हैं, उन में हो सकता है उसको कई दिन गायब रहना पड़े। जब अबरार मेरे को ये स्टोरी बोला तो बुलेट का माफिक मेरे मगज में आया कि वो इधर हो सकता था।”
“इधर!”—पंड्या बोला—“बोले तो उस बाई के घर में?”
“हां।”
“वो इधर रहती है?”
“हां। अबरार ने पता बोला न! आगे बाजार में एक ईरानी रेस्टोरेंट है जुबेर करके। बोले तो जुबेर ईरानी रेस्टोरेंट। उसके बाजू में एक चार माले की इमारत है। उसके सब से ऊपर के माले पर के फ्लैट में वो बाई रहती है जिसका नाम मिश्री है।”
“करती क्या है?”
“अरे, मैं बाई बोला न! कमाठीपुरा में खड़ेले है न!”
“धन्धा करती है?”
“हां। यही बोला अबरार।”
“उस ढक्कन पर एक धन्धे वाली बाई फिदा है! इतनी कि उसके लिये झूठ बोल सकती है! लुट सकती है!”
“ऐसीच है। और चालू भी नहीं, चोखा माल बताता है अबरार। इसने मालूम किया है, एक बार का दो बड़े वाला गान्धी लेती है, अक्खा नाइट का पांच।”
“भाया, सारी इस्टोरी का कुल जमा मतलब हुआ कि जीतसिंह इधर, उस बाई के घर में हो सकता है!”
“हां। और उसके मुलाहजे में दूसरा टैक्सी ड्राइवर भी, जिस का नाम तुम लोग गाइलो बोला।”
“इसी वास्ते ज्यास्ती भीड़ू मांगता था?”
“हां। वो इधर हुआ तो हमने हर हाल में उसको थामना है। कोई चकरी लाया?”
“मैं लाया न!”—पठान बोला।
“बढ़िया! तू जा, अपनी कार यहां ले के आ।”
सहमति में सिर हिलाता पठान तत्काल उधर बढ़ चला जिधर नीली सान्त्रो खड़ी थी।
“मेरे लिये क्या हुक्म है?”—अबरार दबे स्वर में बोला।
“तेरा इधर अब कोई काम नहीं। तू अब जा सकता है। कल सुबह दस बजे से पहले तेरी शाबाशी तेरे पास पहुंच जायेगी।”
“शाबाशी अभी मिल जाती तो...”
“अभी टेम लगेगा। मेरे साथ ठाकुरद्वार रोड चलना पड़ेगा।”
“ओह?”
तभी पठान ने सान्त्रो लाकर उन के पहलू में खड़ी की। दोनों उसमें सवार हो गये। जरनैल आगे, पंड्या पीछे। पठान ने कार आगे बढ़ा दी।
“शाबाशी!”—एकाएक पंड्या बोला।
“रोकड़े बिना साला कोई काम नहीं होता इस शहर में।”—जरनैल बोला।
“जब कि तुम पुराना वाकिफ बोला! कद्र करता है बोला! लिहाज करता है बोला!”
“तभी तो बीस हजार में जीतसिंह का स्टोरी करने को राजी हुआ। मैं कोई गैर होता तो पचास मांगता। एक पेटी मांगता। या कोई बड़ी बात नहीं कि जुबान ही न खोलता। आखिर इतने बड़े गैंग का प्यादा है।”
“ये बात!”
“वो खड़ेले हैं वो दोनों आइसक्रीम पार्लर के सामने। उन के बाजू में रोक।”
पठान ने सहमति में सिर हिलाया। उसने कार को फुटपाथ से लगा कर वहां रोका जहां कुमरा और पूनिया खड़े थे।
जरनैल के इशारे पर दोनों पंड्या के साथ पीछे कार में सवार हो गये।
“ये है वो चार माले की इमारत”—जरनैल ने सड़क के पार की, जुबेर ईरानी रेस्टोरेंट के बाजू की चारमंजिला इमारत की ओर इशारा किया—“जिसके टॉप के माले पर उस बाई का फ्लैट है। पण हम बाई पर सीधे हल्ला नहीं बोल सकते।”
“क्यों?”—पंड्या बोला।
“हमारा भीड़ू फ्लैट पर न हुआ तो? तो वो बाई खबरदार हो जायेगी। फिर उधर फोन लगायेगी जिधर हमारा भीड़ू और उसको खबरदार करेगी कि उसको इधर नहीं आने का था।”
“भाया, होगा तो बढ़िया, नहीं तो हम बाई को थाम के उधरीच वेट करेंगे न!”
“अरे, अभी कोई गारन्टी किधर है कि वो इधर होगा या इधर आयेगा? खाली पीली में वेट करोगे तो इधरीच सूखने पड़ जाओगे। और कहीं उसको तलाश करने से भी जाओगे।”
“बाप ठीक बोलता है।”—पठान बोला।
“अच्छा!”—पंड्या अनिश्चित सा बोला।
“नवीं जगह है। पहले माहौल देखना ठीक होगा।”—जरनैल बोला।
“वो कैसे होयेंगा?”
“बाई है न! धन्धे वाली। मैं, बोले तो, गिराहक।”
“तुम, भाया, तुम?”
“अरे, मैं ही होना जरूरी कर के। हमेरा भीड़ू तुम चारों को पहचानता है। तुम में से कोई गया, वो उधर हुआ तो गिराहक वाली गोली कैसे चलेगी?”
“ओह! मेरे को तो ये बात का खयाल ही न आया!”
“इसी वास्ते तो तू जरनैल नहीं है।”
“मसखरी किया, भाया, पण बोले तो बरोबर।”
“जा के आता है।”
जरनैल कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकला उसने सड़क पार की और अपना लक्ष्य सामने की इमारत में दाखिल हुआ। खामोशी से वो उस घड़ी सुनसान पड़ी सीढ़ियां चढ़ने लगा। वो दूसरे माले के मोड़ पर पहुंचा तो उसे ऊपर से नीचे आता एक युवक दिखाई दिया जो बिना उस पर निगाह डाले फुर्ती से सीढ़ियां उतरता उसके बाजू से गुजर गया।
उसने बाकी सीढ़ियां तय कीं और सबसे ऊपर के माले पर पहुंचा। उसने देखा कि उस माले पर एक ही फ्लैट था जब कि बाकी हर माले पर आगे पीछे दो दो थे। उस टॉप के फ्लैट के सामने जहां दूसरा फ्लैट होना चाहिये था, वहां विशाल, कवर्ड टैरेस थी।
वो फ्लैट के बन्द दरवाजे के सामने ठिठका।
दरवाजे के ऊपर रोशनदान था, बाजू में खिड़की थी, दोनों से साफ जान पड़ता था कि भीतर रौशनी थी। उसने चौखट पर उसके बाजू में खोजपूर्ण निगाह डाली तो पाया कि कालबैल का बटन कहीं नहीं था। उसने दरवाजे पर दस्तक दी।
“कौन?”—भीतर से खनकती सी जनाना आवाज आयी।
“मैं।”—जरनैल अपने स्वर में भरसक मिठास घोलता बोला।
“मैं कौन?”
“कीरत।”
“कौन कीरत?”
“अरे, दरवाजा खोल के देख न कौन कीरत! तेरे मतलब का कीरत और कौन कीरत।”
“क्या मांगता है?”
“तेरे को मालूम। नहीं मालूम तो वो भी दरवाजा खोल के देख। मेरी शक्ल पर लिखा है क्या मांगता है!”
खामोशी छा गयी।
“अरे, मिश्री, कैश कस्टमर से ऐसे पेश आते हैं!”
दरवाजा खुला। चौखट पर मिश्री प्रकट हुई।
“हल्लो!”—जरनैल बोला।
“नाम भी जानते हो?”—मिश्री उस पर ऊपर नीचे निगाह दौड़ाती सन्दिग्ध भाव से बोली।
“जानता है न!”
“कैसे? कैसे जानते हो?”
“बोलता है न! भीतर तो आने दे!”
“ऐसीच बोलो।”
“अरे, मैं साठ साल का है। सीढ़ियां चढ़ने में साला आधा दम निकल गया। मेरे को एक गिलास पानी मांगता है अर्जेंट करके।”
मिश्री हिचकिचाते हुई चौखट पर से हटी।
“थैंक्यू।”
उसने बैठक में कदम रखा, आगे बढ़ कर एक सोफे पर ढेर हुआ और हांफने का अभिनय करने लगा।
“वो...पानी...”
“लाती हूं।”
मिश्री पिछला दरवाजा खोल के उसके पीछे गायब हो गयी।
पीछे जरनैल की निगाह पैन होती सारे कमरे में घूमी और आखिर सेंटर टेबल पर ठिठकी। वहां कार्ड बोर्ड के कई कार्टन पड़े थे। सब पर ‘आजाद रेस्टोरेंट’ लिखा था। उसने हाथ बढ़ाकर एक कार्टन को छुआ।
गर्म!
फ्लैट में सन्नाटा था, नहीं लगता था वहां बाई के अलावा कोई और था।
मिश्री छोटी सी ट्रे में रखे पानी के गिलास के साथ लौटी।
कृतज्ञ सूरत बना कर जरनैल ने ट्रे पर से गिलास उठाया और पानी पी कर गिलास वापिस ट्रे पर रखा।
मिश्री ने ट्रे सेंटर टेबल पर रख दी।
जरनैल ने बड़े दर्शनी अन्दाज से जेब से अपना बटुवा निकाला।
“क्या!”—मिश्री सकपकाई—“क्या करते हो?”
“पेमेंट करता है न! जो मेरे को तेरे बारे में बताया, वो टू थाउजेंड बोला। ज्यास्ती मांगता है तो...”
“अरे, बटुवा जेब में रखो।”
“पण...”
“रखो। आज कुछ नहीं हो सकता।”
“क्यों?”
“मेरे वो दिन चल रहे हैं।”
“ओह!”—उसने एक उड़ती निगाह कार्ड बोर्ड के डिब्बों पर डाली।
“मेरी जब तबीयत ठीक नहीं होती तो मूड भी ठीक नहीं होता। खाना पकाने का भी मन नहीं किया। होटल से मंगवाया।”
“एक जने के हिसाब से ज्यादा नहीं मंगा लिया!”
“कल भी यही खाऊंगी माइक्रोवेव में गर्म कर के।”
“ओह! तो कोई चांस नहीं?”
“नहीं। वैसे भी मेरे को कुछ दिन रैस्ट करने का। तुम...अगले हफ्ते कभी आना।”
“अच्छा!”
“कौन बोला तुम्हें मेरे बारे में?”
“बोला कोई। जब तुम अवेलेबल ही नहीं है तो कोई बोला, क्या फर्क पड़ता है!”
“अगले हफ्ते आना। अभी जाओ, प्लीज।”
“ओके।”—जरनैल उठ खड़ा हुआ, दरवाजे की तरफ घूमा, ठिठका, वापिस घूमा।
“अब क्या है?”—मिश्री अप्रसन्न भाव से बोली।
जरनैल ने बायें हाथ की कनकी उंगली उठाई।
“देवा! अरे, किधर और जाना।”
“मैं डायबटिक हूं, इस मामले में वेट नहीं कर सकता। सॉरी! पण... जरूरी।”
“टायलेट पीछे है। उस दरवाजे से जाओ। जल्दी लौटना।”
“थैंक्यू।”
जरनैल बैठक पार करके पिछले दरवाजे पर पहुंचा और उसे धकेल कर भीतर दाखिल हुआ। आगे एक सुसज्जित बैडरूम था जिसके पार एक और दरवाजा था जिसके आगे एक छोटा सा बरामदा था जिसके दायें बाजू किचन थी और बायें बाजू टायलेट और बाथरूम था।
उसने तीनों जगह निगाह फिराई।
कहीं कोई नहीं था। कहीं से ऐसा भी उसे न लगा कि कोई आके जा चुका था या आने वाला था।
वो वापिस लौटा।
मिश्री बाहर का खुला दरवाजा थामे खड़ी थी, उसके चेहरे पर बेसब्रेपन की स्पष्ट छाप थी।
जरनैल दरवाजे पर पहुंचा। वो चौखट पर ठिठका।
“अब क्या है?”—मिश्री जबरन जब्त करती बोली।
“नाम बोला था मैं अपना।”—जरनैल बोला—“कीरत। कीरत मेधवाल। याद रहेगा?”
“हां। रहेगा। अब...”
“नैक्स्ट वीक आता है।”
“आना। अब...”
जरनैल ने बाहर कदम रखा और सीढ़ियों की तरफ बढ़ा।
पीछे दरवाजा भड़ाक की आवाज के साथ बन्द हुआ।
जरनैल नीचे सड़क पर पहुंचा और सड़क पार करके नीली सान्त्रो के करीब पहुंचा। उसने कार का अगला दरवाजा खोला और भीतर बैठा।
सब की आशापूर्ण निगाहें उस पर टिकीं।
“वो बाई के घर में नहीं है।”—जरनैल बोला—“घर में बाई के सिवाय कोई नहीं है। मैं पक्की किया। पण कोई आने वाला है बरोबर।”
“कैसे जाना?”—पंड्या ने सस्पेंसभरे लहजे से पूछा।
जरनैल ने उसे आजाद होटल से डिलीवर हुए खाने के बारे में बताया।
“साले कई कार्टन थे बिग साइज के।”—फिर बोला—“बाई बोलती थी अपने वास्ते मंगाया। कल भी वहीच खाने का था। फिर भी, एक औरत के दो टेम के खाने के लिहाज से भी, खाना ज्यादा था, बहुत ज्यादा था।”
“इस वास्ते बोला कि कोई आने वाला?”
“और हो सकता है जो आने वाला है, वो जल्दी आने वाला हो। खाना गर्म था एकदम। ठण्डा होने से पहले कोई आने वाला तो बड़ी हद पन्द्रह मिनट में इधर।”
“ठीक। पण जरूरी तो नहीं कि आने वाला जीतसिंह हो! या गाइलो हो! या दोनों हों!”
“नहीं, जरूरी तो नहीं! पण देखना तो मांगता है न कि कौन आया!”
“हां, वो तो है!”
“अगर हमारा भीड़ू आता है तो उसको थामने का। बाई के फ्लैट में पहुंचने से पहले थामने का। उसका जोड़ीदार साथ हो तो उसको भी थामने का। चार भीड़ू हो। चकरी भी साथ है। क्या मुश्किल है?”
“कोई मुश्किल नहीं।”—पठान दृढ़ता से बोला—“साला इस बार चिल्लाया तो हलक में नाल देगा।”
“बोले तो थाम लिया।”—पंड्या बोला—“दोनों को थाम लिया। थाम के क्या करने का?”
“ठाकुरद्वार रोड मेरे पास ले के आने का।”
“क्या! तुम इधर नहीं रुक रयेला है?”
“मैं बहुत थक गया है। साला छ: बजे से लगातार दौड़ा फिर रहा है। मेरे को रैस्ट मांगता है। जब तक तुम ठाकुरद्वार रोड पहुंचोगे, मेरे को पूरा नहीं तो काफी रैस्ट मिल चुका होगा।”
“सीधे उधरीच जाने का?”
“हां। तुम लोगों को पीछू पूरी चौकसी से सामने वाली बिल्डिंग में दाखिल होने वाले हर भीड़ू पर निगाह रखने का। लोचा नहीं मांगता मेरे को।”
“हमेरे को भी नहीं मांगता ये टेम?”
“बढ़िया। जाता है!”
“कार पर छोड़ के आता है न!”
“नहीं। वाक करता है मैं!”
“अरे, बोला न, भाया, कि थक रयेला है!”
“वान्दा नहीं। इधर से हिलने का नहीं तुम में से किसी को भी। क्या!”
“ठीक।”
“जाता है।”
जरनैल कार में से निकला और फुटपाथ पर चलता वापिसी के रास्ते पर आगे बढ़ा।
वो अपनी स्विफ्ट के करीब पहुंचा तो उसने अबरार को उस में वीजू के साथ उस के बाजू में पैसेंजर सीट पर बैठे पाया।
“अरे!”—जरनैल बोला—“तू इधरीच है अभी?”
अबरार का सिर सहमति में हिला।
“गया क्यों नहीं?”—पीछे कार में सवार होता जरनैल बोला।
“तुम चायस दिया न मेरे को, बाप!”—अबरार बोला—“मैं दूसरा चायस पिक किया न! ठाकुरद्वार रोड चलता है न तुम्हेरे साथ!”
“बोले तो शाबाशी अभी मांगता हे तेरे को! सुबह दस बजे तक वेट नहीं कर सकता!”
“अभी क्या बोलेगा, बाप! तुम्हेरे को ये टेम क्या, कल सुबह क्या! मेरे को अभी शाबाशी मिलेगा तो मेरे को खुशी होयेंगा। जोरू को खुशी होयेंगा कि मैं आधी रात को आवारागर्दी करके न लौटा, रोकड़ा कमा के लौटा।”
“हूं।”
“काम हो गया तुम्हेरा, बाप?”
“नहीं। वो नहीं था वहां। वहां कोई नहीं था।”
“दोनों जगह देखा?”
“दोनों जगह!”
“दूसरे फिलेट में भी?”
“दूसरा फ्लैट!”
“नहीं मालूम?”
“नहीं मालूम। तू कब बोला किसी दूसरे फ्लैट का?”
“नहीं, बोला?”
“अरे, किधर बोला?”
“बोला होगा, बाप! जब सब इस्टोरी किया तो... बोला होगा!”
“नहीं बोला। अब बोल।”
“बाई के फिलेट वाले माले से एक माल नीचे, तीसरे माले पर बाई के फिलेट के ऐन नीचे जो फिलेट है, वो हमेरे—बोले तो मेरे, यासिर और रियाज के जीतसिंह के साथ इधर के—फेरे के टेम खाली था और उसका चाबी बाई के पास था।”
“कैसे मालूम?”
“बाई खुद ऐसा बोला। उधरीच तो, उस खाली फिलेट में ही तो जीतसिंह को पता लगने दिये बिना वो हम तीन भीड़ुओं के साथ बारी बारी खुशी किया!”
जरनैल ने अवाक् उसकी तरफ देखा।
“बोलती थी वो फिलेट उस जैसी किसी दूसरी बाई का जो काफी टेम के वास्ते मुम्बई से किधर बाहर गयेली थी। बाप, क्या पता वो अभी भी बाहर ही हो और...”
“अरे, अबरार”—जरनैल कलपा—“तेरे पर खुदा की मार! तू पहले क्यों नहीं बोला?”
“मैं जरूर बोला होयेंगा, बाप! जब सब इस्टोरी किया तो...”
“ये स्टोरी न किया। अब करता है साला घौंचू!”
“बाप मैं जरूर किया होयेंगा। तब जरूर तुम्हारा ध्यान किधर और होयेंगा...”
जरनैल ने बाकी बात न सुनी, एक झटके से दरवाजा खोल कर वो कार से बाहर निकला और वापिस दौड़ चला।
वो इतना उत्तेजित था कि उस घड़ी उसे ये तक न सूझा कि सड़क पर दौड़ा चला जाने की जगह वो वीजू को बोल सकता था कि वो उसे नीली सान्त्रो के पास ले कर चले।
अब उसके मगज में बराबर आ रहा था कि खाना गर्म क्यों था और इतना ज्यादा क्यों था?
वो जरूर तीन जनों के लिये फौरन खाया जाने के लिये मंगाया गया था। आर्डर करने वाली ने होम डिलीवरी के लिये खाली पड़े फ्लैट का पता देना ठीक नहीं समझा था इसलिये उसने स्वाभाविक तौर पर खाना अपने पते पर मंगाया था। आजाद होटल से उधर खाना अक्सर आता था तो होटल वालों को भी मालूम हो सकता था कि तीसरे माले का वो फ्लैट उन दिनों खाली पड़ा था।
हांफता हुआ वो सान्त्रो के पास पहुंचा।
“क्या हुआ?”—उसे देख कर पंड्या हैरानी से बोला—“लौट क्यों आये?”
“निकलो।”—पूर्ववत् हांफता, अपनी उखड़ी सांसों पर काबू पाता जरनैल तीखे स्वर में बोला—“बाहर निकलो सब। जल्दी करो।”
चारों हड़बड़ाये हुए सान्त्रो से बाहर निकले।
“साथ आओ मेरे। बिल्डिंग में चलो।”
“वो तो हम चल रयेले हैं पण हुआ क्या?”
“बाद में। बाद में। अभी जो बोलता है, करो।”
सड़क पार करके चारों जरनैल के पीछे बिल्डिंग में दाखिल हुए।
रात की उस घड़ी बिल्डिंग में मुकम्मल सन्नाटा था।
सब तेजी से सीढ़ियां चढ़ने लगे।
“चकरी निकाल के हाथ में ले।”—जरनैल ने नया आदेश दिया।
पठान ने हड़बड़ाते हुए पतलून की बैल्ट में पीठ की तरफ खुंसी रिवाल्वर वहां से खींची और हाथ में थाम ली।
“आगे कैसा भी खतरा जान पड़े, लोचा दिखाई दे, पंगा पड़ता दिखाई दे तो गोली चलाने का...”
“पण...”—पंड्या ने कहना चाहा।
“...जो होगा देखा जायेगा। जो दो टेम पहले तुम्हेरे साथ हो चुका है, मेरे को इधर थर्ड टेम होना नहीं मांगता।”
पंड्या ने होंठ भींच लिये।
वे तीसरे माले पर पहुंचे।
जरनैल उधर रुका तो नर्वस भाव से बाकी सब भी रुक गये।
जरनैल ने देखा मिश्री से ऐन नीचे के फ्लैट पर गोदरेज का बड़े वाला गोल ताला लटक रहा था।
जरनैल का मन आशंका से लरजा।
एक मंजिल ऊपर उसे क्या मिलने वाला था, उसका इमकान उसे पहले ही होने लगा था।
फिर भी सब चौथे माले पर पहुंचे।
मिश्री के फ्लैट के प्रवेश द्वार पर नीचे वाले फ्लैट से भी बड़ा ताला झूल रहा था।
बेबसी में जरनैल दान्त किटकिटाने लगा।
“क्या हुआ?”—पंड्या सशंक भाव से बोला।
“वापिस चलो तीसरे माले पर।”—जरनैल बोला।
“पण हुआ क्या जो...”
“सुना नहीं!”—जरनैल भड़का।
फिर सबसे पहले वो सीढ़ियों की तरफ बढ़ा।
सब वापिस तीसरे माले पर पहुंचे।
“मेरे को”—जरनैल बोला—“इस फ्लैट को भीतर से देखने का।”
“काहे वास्ते?”—पंड्या बोला।
“बहुत सवाल करता है।”—जरनैल चिड़ कर बोला—“बहुत सवाल करता है। चुप नहीं रह सकता थोड़ा टेम।”
अपनी अप्रसन्नता छुपाते पंड्या ने फिर होंठ भींचे।
“ताला खोल!”—जरनैल पठान से बोला।
“क-कैसे?”—पठान बौखलाया सा बोला।
“चकरी है न तेरे हाथ में! शूट!”
“बाप, बहुत आवाज होगी रात के ये टेम!”
“शूट!”
पठान ने ताले के सामने रिवाल्वर की नाल तान कर ट्रीगर खींचा।
फायर की आवाज स्तब्ध, सीमित वातावरण में जोर से गूंजी।
ताला टूट कर नीचे लटक गया।
तभी भड़ाक से परले फ्लैट का दरवाजा खुला और एक अधेड़ व्यक्ति ने बाहर कदम रखा। सामने इतने लोगों को खड़े देख कर वो हड़बड़ाया।
“क्या हुआ?”—वो बोला—“ये आवाज कैसी थी?”
“वापिस जा।”—जरनैल बोला।
“मेरे को लगा जैसे गोली चली हो...”
“वापिस जा।”—जरनैल का लहजा खूंखार हुआ।
वो व्यक्ति और हकबकाया, फिर उसकी निगाह पठान के हाथ में थमी धुंआ उगलती गन पर पड़ी। तत्काल उसके नेत्र फैले, वो वापिस घूमा।
“पुलिस को फोन करेगा।”—जरनैल पठान से बोला—“सम्भाल?”
तत्काल पठान सामने को झपटा। वो व्यक्ति अपने फ्लैट में दाखिल हो कर दरवाजा बन्द कर रहा था जब कि पठान दरवाजे पर पहुंचा और उसने पांव की भरपूर ठोकर दरवाजे पर जमाई। दरवाजा उस व्यक्ति के हाथ से छूट गया और वापिस खुल गया। पठान ने छलांग मार कर चौखट पार की, खाली हाथ से उस व्यक्ति को एक तरफ धकेला और फ्लैट के भीतर दाखिल हुआ। पांव की ठोकर से उसने दरवाजा वापिस बन्द कर दिया।
बाहर सब ने वापिस टूटे ताले वाले फ्लैट की तरफ तवज्जो दी।
पंड्या ने टूटे ताले को कुंडे से अलग किया, कुंडा सरकाया और दरवाजे को धकेल कर खोला।
सब भीतर दाखिल हुए।
पंड्या ने स्विच बोर्ड तलाश करके दो तीन स्विच आन किये। तत्काल कमरा—जो कि ऊपरले फ्लैट की तरह बैठक था—ट्यूब लाइट की रौशनी से जगमगाया।
जरनैल की निगाह पैन होती कमरे में फिरी, सेंटर टेबल पर आकर ठिठकी।
सेंटर टेबल पर ड्रिंक्स का साजोसामान पड़ा था। वहां एक ब्लैंडर्स प्राइड की आधी भरी बोतल थी, एक पानी का जग था, एक पीनट्स का कटोरा था और तीन गिलास थे।
टेबल के कोने में एक ऐश ट्रे पड़ी थी जिसके रिम में बने सिग्रेट टिकाने के काम आने वाले तीन खांचों में से एक पर एक सिग्रेट पड़ा था जो तब भी सुलग रहा था। वो इस बात की चुगली था कि थोड़ी देर पहले धूम्रपान करने वाला कम से कम एक व्यक्ति वहां—प्रत्यक्षत: उस बन्द पड़े, गैरआबाद फ्लैट में—था?
उसने गिलासों की तरफ तवज्जो दी।
तीन!
दो में एक तिहाई लैवल तक विस्की मौजूद थी, तीसरा खाली था।
खाली गिलास के रिम पर लिपस्टिक के निशान थे।
“साला अक्खा ईडियट!”—जरनैल दांत पीसता सा बोला—“गोली मार देने के काबिल!”
“कौन?”—पंड्या बोला।
“अबरार, और कौन! साला ढक्कन इस फ्लैट के बारे में पहले न बका। अभी जब दोबारा मिला, तब बका। जब मैं पहले यहां आया था, वो दोनों यहीं थे, ड्रिंक कर रहे थे और वो बाई इधरीच उन के साथ ड्रिंक कर रही थी। होटल से खाना आने का टेम हुआ था तो उठ कर ऊपर गयी थी। उसने खाना रिसीव किया ही था कि मैं पहुंच गया था। सीढ़ियों पर नीचे आता एक भीड़ू मेरे को मिला भी था, वो जरूर होटल का भीड़ू था जो कस्टमर का आर्डर डिलीवर करने आया था। मेरे दो फेरों के बीच बाई ने उन दोनों को इधर से खिसका दिया और खुद भी खिसक गयी।”
“तुम्हेरे पर शक हुआ उसे?”
“बरोबर हुआ। तभी तो मेरे जाते ही वो सब किया जो कि अब हुआ दिखाई दे रयेला है।”
“कैसे! कैसे शक हुआ?”
“क्या पता कैसे शक हुआ! पण हुआ बरोबर। फौरन उन दोनों भीड़ूओं को इधर से खिसकाया जो इधरीच छुप कर रह रयेले थे। ऐसा बुलेट का माफिक ये काम किया कि उन्हें ड्रिंक्स फिनिश करने का मौका न दिया। फिर साथ या आगे पीछे खुद भी खिसक गयी और तुम श्यानों को कुछ पता ही न लगा।”
“भाया”—पंड्या तनिक आहत भाव से बोला—“हमेरे को इस बिल्डिंग में दाखिल होने वाले हर भीड़ू पर निगाह रखने का था जो हमने रखी बरोबर पूरी चौकसी से। बिल्डिंग से निकल कर जाने वालों की तरफ तो हमारा ध्यान नहीं था न!”
“अब कुछ भी बोलो, कुछ भी सफाई दो, खेल तो बिगड़ गया न! अभी पिंजरा खाली है, पंछी उड़ गया है, क्या करेंगा खाली पिंजरे को वाच कर के! वो बाई अब लौट के नहीं आने वाली। और उन दो भीड़ूओं के लौट के आने का तो सवाल ही नहीं है।”
कोई कुछ न बोला।
“साला इतना टेम खोटी किया मैं, ऐन पर्फेक्ट करके चांस हाथ लगा तो टेम खोटी होने का गिला जाता रहा। साले अबरार की एक जरा सी कोताही ने, जरा सी चूक ने सब खेल बिगाड़ दिया।”
“माफी के साथ बोलता है, भाया”—पंड्या दबे स्वर में बोला—“उसने न बिगाड़ा, इस बात ने बिगाड़ा कि बाई को तुम्हेरे पर शक हुआ...”
“तो अक्खा मिस्टेक मेरा! मैं खुद अपना गेम बिगाड़ा!”
“हम ताला तोड़ कर किसी के फ्लैट में घुसे हैं”—एकाएक पूनिया बोला—“इधर ज्यास्ती ठहरना ठीक नहीं।”
“वो दूसरे फ्लैट वाला तो”—कुमरा बोला—“सब समझ भी गया होगा!”
“हूं।”—जरनैल बोला—“चलो। निकलो।”
“पहले एक आखिरी बात और बोल दो, भाया।”—पंड्या बोला।
“कौन सी बात?”
“आगे क्या करने का?”
“साला मेरे से पूछता है! मेरे को तो जो करना था, जो मैं कर सकता था, मैं कर चुका।”
“हम तो नहीं कर चुके!”
“तो सुन। तुम्हेरा इधर से कोई उम्मीद करना अब बेकार है। अब उसी प्लान को पकड़ो सारे के सारे भीड़ू मिल के जो मैं दिन में बोला। थाने से या छापे के दफ्तर से जीतसिंह के थोबड़े की फोटू निकलवाओ, और सब को बोलो शहर के बड़े टैक्सी स्टैण्डों पर वाच रखने को और उस फोटू वाली शक्ल वाले टैक्सी ड्राइवर को पहचानने को। वैसे वो दोनों इस मामले में भी अब खबरदार हो चुके होंगे लेकिन फिर भी कामयाबी की कोई गुंजाइश है तो उस प्लान में ही हैं, उस एक्शन में ही है।”
“ठीक!”
“वैसे मैं मुखबिरी में भी कोई आसरा तलाशूंगा।”
“बोले तो?”
“अरे, फैलाऊंगा न अस्सी हजार टैक्सी वालों की बिरादरी में कि जो भीड़ू जीतसिंह की कोई खोज खबर ठाकुरद्वार रोड पहुंचाये, उस को एक पेटी का ईनाम।”
“भाया, इतना पैसा अपना पॉकेट से खर्च करेगा?”
“वान्दा नहीं। माल हाथ आ गया तो सब से पहले अपना खर्चा ही निकालूंगा।”
“बोले तो पर्फेक्ट।”
“चलो।”
सब बाहर निकले।
पंड्या ने बत्तियां बुझाईं, दरवाजे को बाहर से बन्द किया और कुंडे में टूटा ताला पिरो दिया।
फिर वो सामने के फ्लैट में गया और पठान को बुला कर लाया।
पठान ने उस फ्लैट को बाहर से कुंडी लगा दी।
“फोन!”—जरनैल ने सवाल किया।
पठान हौले से मुस्कराया, उसने मुट्ठी खोल कर आगे कर दी।
हथेली पर दो सिम कार्ड पड़े थे।
“भीतर मियां बीबी और दो छोटे छोटे बच्चे। मियां बीबी दोनों के पास मोबाइल जिनके सिम कार्ड”—उसने हथेली सीढ़ियों पर उलट दी—“ये पड़े हैं। लैंड-लाइन उन के पास हैइच नहीं। बोल के आया कि बाल्कनी से गला फाड़ के चिल्लाने लगे तो मैं लौट के आयेगा और सारे कुनबे को खल्लास करेगा। इतना दहशत में डाल के आया कि अभी थोड़ा टेम तो आपस में बात करने की हिम्मत नहीं होगी।”
“बढ़िया।”—जरनैल बोला।
सब सीढ़ियां उतरने लगे।
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