रात के आठ बजे मैं अनीता सोनी के घर पहुंचा ।
बेचारी अब भी बैठी टाइपराइटर कूट रही थी ।
टाइपराइटर के पहलू में पड़ी सिगरेट के टुकड़ों से भरी ऐश ट्रे और कॉफी का गिलास अपनी कहानी खुद कह रहे थे ।
किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर मैंने कॉफी का गिलास उठाया और उसे अपने होठों तक ले जाने लगा ।
“अरे, यह मत पियो ।” - वह फौरन बोली - “मैं तुम्हारे लिये गर्म कॉफी लाती हूं ।”
मुझे गिलास में से कॉफी में बसी ब्राण्डी की महक आयी ।
“ओह !” - मैं बोला - “तो यह है तुम्हारी एनर्जी और तुर्ती-फुर्ती का राज ।”
“सोलह घन्टे टाइप की हैं मैंने” - वह बोली - “सिर्फ चार घन्टे सोई थी बीच में ।”
“मैं कोई ऐतराज थोड़े ही कर रहा हूं । मैं तो सिर्फ एक सवाल करना चाहता हूं ।”
“क्या ?”
“यह ब्राण्डी कल रात को भी घर में थी ?”
“हां । क्यों ?”
“कल वशिष्ठ की मौजूदगी में जब तुमने मुझे यहां बैडरूम में भेज दिया था तो मैंने तुम्हारे बैडरूम और किचन की भरपूर तलाशी ली थी । मुझे तो बोतल कहीं दिखाई नहीं दी थी ।”
“बोतल यहीं थी ।”
“कहां ?”
“वार्डरोब में रखे सैंडिलों के डिब्बों में से एक में ।”
“ओह !”
“अच्छे जासूस हो तुम । एक बोतल बरामद न कर सके ।”
“अब मुझे क्या पता था कि तुम ब्राण्डी को जूतों के डिब्बे में छुपाकर रखती हो ।”
“करनाल से मेरी मां अक्सर यहां आती रहती है । मैं नहीं चाहती हूं कि उसे मालूम हो कि उसकी लाडली बेटी दिल्ली शहर में कैसी जिन्दगी जीती है ।”
“अब कहां हैं बोतल ? जूते के डिब्बे में ही ?”
“नहीं अब तो यह रही ।”
उसने मेज का एक दराज खोलकर उसमें से बोतल बरामद की ।
वह निहायत उम्दा फ्रेंच ब्राण्डी वातेल की बोतल थी ।
मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“गिफ्ट फ्रॉम माई एम्पलायर” - वह सहज भाव से बोली ।
“तुम्हारे एम्पलायर का गिफ्ट थोड़ा सा मैं भी चख लूं ?”
“तुम पूरी बोतल पी लो ।”
“यानी कि और आ जायेगी ।”
“अभी ही और है ।”
“काश !” - मैंने नकली आह भरी - “मैं भी औरत होता !”
“सिर्फ होने से काम नहीं चलता सुधीर कोहली । औरतें तो भेड़-बकरियों की तरह पाई जाती हैं दिल्ली शहर में ।”
“करेक्शन ! काश मैं भी तुम्हारे जैसी औरत होता ।”
वह हंसी ।
मैंने बोतल को मुंह लगाकर एक घूंट ब्राण्डी पी ।
तुरन्त पेट में दीवाली का अनार सा फूटा ।
तबीयत बाग-बाग हो गयी ।
मैंने उसकी तरफ बोतल बढाई तो उसने इनकार में सिर हिला दिया ।
“तो अब टाइपराइटर का पीछा छोड़ो और उठो ।”
“क्यों ?”
“ताकि वशिष्ठ के आगमन से जो प्रोग्राम कल घोटाले में पड़ गया था, वो आज हो सके ।”
“कौन-सा प्रोग्राम ?”
“डिनर का प्रोग्राम ।”
“कहां ?”
“जहां आपका हुक्म हो मलिका आलिया ।”
“मौर्य ।”
“कबूल ।”
***
जिन्दगी का मजा आ गया ।
मौर्य का माहौल हो, और सुरा सुन्दरी की सोहबत हो तो भला क्यों न आये जिन्दगी का मजा ।
डिनर के बाद हम कॉफी की चुस्कियां ले रहे थे तो जैसे कबाब में हड्डी आ गयी ।
एक वेटर हमारी टेबल पर पहुंचा ।
“सर” - वह बड़े अदब से सिर नवाकर बोला - “आपको वो मैडम बुला रही हैं ।”
उसने कोने की एक टेबल की तरफ इशारा किया ।
वहां एक अधेड़ व्यक्ति के साथ रोहिनी माथुर बैठी थी ।
मुझे अपनी दिशा में देखता पाकर उसने मुझे इशारा किया ।
मैंने उसके इशारे के नजरअंदाज करके वेटर को विदा कर दिया और उसकी तरफ से पीठ फेर ली ।
नतीजा वो न निकला जो मैं चाहता था कि निकलता ।
रोहिनी फर्श को लगभग रौंदती हुई हमारी टेबल पर पहुंच गयी ।
“हल्लो, सुधीर कोहली !” - वह एक कुर्सी पर बैठती हुई बोली - “बम्बई से कब आये ?”
अनीता ने हैरानी से पहले मेरी तरफ और फिर रोहिनी की तरफ देखा ।
“आपको भी” - वह अनीता की तरफ घूमी - “ये टी वी स्टार बनाने वाले हैं ?”
“जी !” अनीता सकपकाई ।
“आप ठीक से जानती तो हैं न इन्हें ? ये सुधीर कोहली साहब हैं । मशहूर प्रोड्यूसर डायरेक्टर मनमोहन देसाई के सेक्रेट्री । यहां देसाई साहब के टी वी सीरियल के लिये लोकल टेलेन्ट को साइन करने के लिये खासतौर से बम्बई से आये हैं । इनकी मेहरबानी से आप अमिताभ बच्चन की हीरोइन हो सकती हैं, अनिल कपूर की हीरोइन हो सकती हैं ।”
“सुधीर !” अनीता हैरानी से बोली ।
“इसकी बातों पर मत जाओ ।” - मैं बोला - “यह नशे में हैं ।”
“स्साले !” - रोहिनी भड़की ।
“और यह यहां से जा रही है ।”
“साले, कमीने !”
“साली, कमीनी ।” - मैं दांत भींचकर बोला ।
“हरामजादे ।”
“हरामजादी ।”
“यू...यू बास्टर्ड...”
“यू बिच !”
“यू..यू...”
“अभी तक मैंने तुम्हारी गालियां लौटाई हैं । मर्द होने के नाते मुझे तुमसे कही ज्यादा गालियां आती हैं । अगर अपना थोबड़ा फौरन बन्द न किया तो...”
“झूठे ! फरेबी !”
“हां । ये वेजीटेरियन गालियां चल जायेंगी । मन की भड़ास निकालने के लिये ऐसी और भी देना चाहती हो तो बेशक दे लो ।”
“अब मैं तुम्हारी असलियत जान गयी हूं ।”
“बड़ा तीर मारा ।”
“तुम बम्बई से आये देसाई साहब के सेक्रेट्री नहीं लोकल प्राइवेट डिटेक्टिव हो, अखबार में तुम्हारा जिक्र है । तुम पर कत्ल का केस है । तुम जमानत पर छूटे हुए हो । जरा सी पूछताछ से ही मुझे तुम्हारी असलियत मालूम हो गयी थी ।”
“बधाई ।”
“तुमने मुझे बेवकूफ बनाया । तुमने...”
“सुधीर...” - अनीता तिक्त स्वर में बोली - “वाट इज दिस ?”
“नथिंग, डार्लिंग । शी इज लीविंग ।”
“मैं यहां से हिलूंगी भी नहीं” - रोहिनी बोली - “जब तक कि....”
“मैं अभी आया” - मैं आश्वासनपूर्ण ढंग से अनीता से बोला और उठ खड़ा हुआ । मैंने जबरन रोहिनी की एक बगल में हाथ डाला और उसे उठाकर उसके पैरों पर खड़ा कर दिया । फिर मैं उसके विरोध की परवाह किये बिना उसे लगभग घसीटता हुआ रेस्टोरेंट से बाहर ले आया ।
रोहिनी का अधेड़ साथी बड़े गौर से सारा ड्रामा देख रहा था ।
गनीमत थी कि वह हमारे पीछे न आया ।
“बांह छोडो ।” - वह तड़पकर बोली ।
“बांह छोड देता हूं” - मैं बोला - “लेकिन चिल्लाओ नहीं । धीरे बोलो । यह फाइव स्टार होटल है, कोई भटियार खाना नहीं । चिल्ला-चिल्लाकर अपना और मेरा दोनों का जुलूस मत निकलवाओ ।”
“तुमने मुझे धोखा दिया ।”
“कबूल ।”
“मुझे बेवकूफ बनाया ।”
“कबूल ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मैं तुमसे मिलना चाहता था । तुम्हारा जायजा लेना चाहता था ।”
“किसलिये ?”
“यह जानने के लिये कि किस किस्म की लड़की किसी मर्द को झूठे रोमांस में फंसाने के लिये किराये पर हासिल की जा सकती थी ।”
“क्या ?”
“आलोकनाथ वो शख्स है जिसने तुम्हें किराये पर हासिल किया और गोपाल वशिष्ठ उस आदमी का नाम है जिसको झूठे रोमांस में फंसाने के लिये, तुम पर जबरन आशिक करवाने के लिये, तुम्हारी ये इन्तहाई गैरमामूली खिदमात हासिल की गयी थी । ताकि उसकी बीवी को इस रिश्तेदारी की खबर लगती और वह यह मान बैठती कि उसका पति उसके साथ बेवफाई कर रहा था । अब बोलो, क्या कहती हो ?”
उस पर जैसे घड़ों पानी पड़ गया ।
“क..क..क्या..”
“यह क..क..क.क्या नहीं चलने का । कुछ कहना है तो यह कहो कि जो मैंने कहा है, वो झूठ है ।”
“झ-झूठ है ।”
“झूठ है तो हकला क्यूं रही हो ? दिलेरी से कहो ।”
“यह झूठ है” - उसने दिलेरी से कहा ।
“कल रात वो” - मैं आंखे निकालता हुआ बोला - “वशिष्ठ तुम्हारे होटल के कमरे में नहीं आया था ? वह आधी रात तक वहां नहीं ठहरा था ?”
“त....तुम्हे कैसे मालूम ?”
“कल मैंने तुम्हारे होटल के कमरे तक वशिष्ठ का पीछा किया था, ऐसे मालूम । अब कहो तो वो डायलाग भी दोहराऊं जो तुम्हारे और वशिष्ठ के बीच में हुए थे ।”
वह चुप रही ।
“तुम्हारी जानकारी के लिये एक और प्राइवेट डिटेक्टिव भी तुम्हारी और वशिष्ठ की टोह में था । उसकी लिखित रिपोर्ट इस वक्त मेरी जेब में हैं जिसमें साफ लिखा हैं कि वशिष्ठ आधी रात के बाद तक तुम्हारे साथ तुम्हारे कमरे में बन्द रहा था ।”
“तो क्या हुआ ?” - वह हिम्मत करके बोली - “उसकी बीवी अपाहिज है जिससे कि उसे कोई विवाहित सुख हासिल नहीं । ऐसे मर्द का किसी और औरत से प्यार हो जाना क्या गुनाह है ?”
“नहीं है । प्यार का दख्ल हो तो नहीं है । लेकिन प्यार कहां रखा है तुम्हारी और वशिष्ठ की रिश्तेदारी में । तुम्हें तो एक काम सौंपा गया था । उस आदमी को अपने पर आशिक कराने का जिसे कि तुमने अन्जाम दिया । तुम्हारे जैसी जवान लड़की के लिये क्या बड़ी बात थी बुढापे की दहलीज पर खड़े एक आदमी का मुर्गा बना लेना, खास तौर से तब जबकि तुम्हें इस काम की फीस मिलती थी, मेहनताना मिलता था ।”
“यह सब बकवास है । मैं किसी आलोकनाथ को नहीं जानती । मैं..”
“झूठ वो बोलना चाहिये, स्वीट हार्ट, जो चल सकता हो । ऐसा झूठ बोलने से क्या फायदा जो..”
“मैंने कहा न मैं किसी आलोकनाथ को नहीं जानती ।”
“तुम” - मैंने अपलक उसकी तरफ देखा - “उस शख्स को नहीं जानती, अभी परसों दोपहर जिसके साथ तुम आसिफ अली रोड पर होटल प्रेसिडेन्ट के रेस्टोरेंट में लंच करके हटी हो ।”
वह चौंकी ।
“मैंने खुद अपनी आंखों से तुम दोनों को वहां देखा था ।”
उसने अपने होठों पर जुबान फेरी ।
“मेरे पास एक और भी सबूत है ।” - मैं बोला ।
“क..क्या ?”
“मेरे पास एक चिट्ठी है जो कि आलोकनाथ की बीवी गीता ने तुम्हारे हैंडराइटिंग की नकल करने की कोशिश करके तुम्हारे नाम से वशिष्ठ को लिखी थी और जो इस तरीके से पोस्ट की गयी कि वह वशिष्ठ की बीवी के हाथ जरुर पड़े ।”
“यह नहीं हो सकता ।”
“ऐसा ही हुआ है । मैं तुम्हें चिट्ठी दिखाता हूं ।”
चिट्ठी निकालकर मैंने उसे सौंप दी ।
उसने तनिक कांपते हाथों से चिट्ठी का मुआयना किया ।
“यह..यह चिट्ठी मैंने नहीं लिखी ।”
“मुझे मालूम हैं ।” - मैंने बड़ी सफाई से उसकी उंगलियों से चिट्ठी वापिस निकाल ली - “मैंने अभी खुद ही कहा है कि यह चिट्ठी तुम्हारे नाम से आलोकनाथ की बीवी ने लिखी है ।”
“मुझे इस चिट्ठी की खबर तक नहीं ।”
“यह नहीं हो सकता । यह हो सकता है कि तुम्हें यह खबर न हो कि ऐसी चिट्ठी लिखी और भेजी गयी थी लेकिन यह नहीं हो सकता कि इस चिट्ठी का तुम्हारे सामने जिक्र न हुआ हो ।”
“क्यों नहीं हो सकता ?”
“क्योंकि आलोकनाथ से फीस लेकर वशिष्ठ को अपने पर आशिक कराने का काम कर रही हो । आलोकनाथ चाहता था कि ऐसी कोई चिट्ठी वशिष्ठ की बीवी के हाथ लगे । उसने जरुर यह चिट्ठी तुम्हें लिखने के लिये कहा होगा । किसी वजह से तुमने चिट्ठी लिखने से इंकार कर दिया होगा, तभी आलोकनाथ ने वह चिट्ठी अपनी बीवी से लिखवाई होगी । अब यह मुझे तुम बताओगी कि जब तुम बाकी हर मामले में आलोकनाथ के कहने पर चल रही थी तो चिट्ठी लिखने से इनकार क्यों किया ?”
वह खामोश रही ।
“जवाब दो ।”
“अगर मैं जवाब नहीं दूंगी तो तुम मेरा क्या कर लोगे ?”
“कुछ भी नहीं लेकिन कोई और तुम्हारा कुछ कर लेगा ।”
“कोई और कौन ?”
“पुलिस ।”
“पुलिस !”
“जिन्हें कि मैं बताऊंगा कि असल में तुम क्या चीज हो । केस की तफ्तीश से कई बातें सामने आ सकती हैं जो कि तुम समझती हो कि किसी को नहीं मालूम होंगी । मसलन कत्ल से ही तुम्हारा कोई रिश्ता निकल सकता है ।”
“कत्ल से ?”
“हां ।”
“मेरा रिश्ता ?”
“हां ।”
“मेरा किसी कत्ल से कोई रिश्ता नहीं ।”
“जरुर नहीं होगा लेकिन उस शख्स का हो सकता हैं जिसके लिये तुम वशिष्ठ को फंसाने का काम कर रही हो । फीस लेकर । इस बात का भी शायद पुलिस तुम्हारे पर कोई चार्ज बना दे ।”
“कैसा चार्ज ?”
“मसलन प्रास्टीच्यूशन का । यहां इतना ही तो फर्क है कि फीस किसी ने भरी और मजा किसी और ने लिया ।”
“ऐसी कोई बात नहीं । बाई गॉड, ऐसी कोई बात नहीं ।”
“जरुर नहीं होगी ।”
“मैं पुलिस के पचड़े में नहीं फंसना चाहती ।”
“उसका इन्तजाम किया जा सकता हैं ।”
“कौन कर सकता हैं ?”
“यूअर्स ट्रूली । सुधीर कोहली । दि ओनली वन ।”
वह सोचने लगी ।
“देखो । अगर तुम मुझे हकीकत बता दो तो मैं तुमसे वादा करता हूं कि कम-से-कम मेरी वजह से तुम्हें पुलिस के पचड़े में नहीं फंसना पड़ेगा ।”
“ठीक है” - कुछ क्षण और खामोश रहने के बाद वह बोली ।
“क्या ठीक है ?”
“वही जो तुम कह रहे हो । मैं तुम्हें असल बात बताती हूं ।”
“यह हुई न अक्ल की बात अब..”
“बार में चलो ।”
“क्या ?”
“बार में चलो ।”
और वह मेरे आगे-आगे बार की तरफ चल दी ।
बार में बड़ी कठिनाई से हम एक खाली टेबल तलाश कर पाये ।
वहां जब तक उसने एक पैग विस्की पी न ली और दूसरा पैग अपने सामने न सजा लिया, तब तक जुबान न खोली ।
“आसिफ अली रोड पर ही” - अन्त में वह बोली - “एक एडवरटाइजिंग एजेंसी है जिसका मालिक आलोकनाथ का दोस्त है । बकौल आलोकनाथ उसने वहां मेरी वो तस्वीर देखी थी जो मैं एडवरटाइजिंग एजेंसियों को माडलिंग का काम हासिल करने की खातिर भेजती रहती हूं । उसी पर मेरा पता भी दर्ज था । एक शाम को जब मैं करोल बाग अपने होटल में पहुंची तो आलोकनाथ को वहां पहले से इन्तजार करता पाया ।”
“फिर ?”
“उसने मुझे बताया कि वह क्या चाहता था । वह चाहता था कि किसी तरह से गोपाल वशिष्ठ का उसकी बीवी से तलाक हो जाये । वशिष्ठ की बीवी, बकौल आलोकनाथ, एक साल में मर जाने वाली थी । अपनी मौत से पहले अगर वह वशिष्ठ को तलाक दे जाती तो बीवी की सारी जायदाद की मालकिन आलोकनाथ की बीवी बन जाती । बीवी को तलाक के लिये भड़काने के लिये आलोकनाथ वशिष्ठ को बदचलन साबित करना चाहता था । इसी काम के लिये वह मेरी सेवाओं का तलबगार था । वह चाहता था कि मैं वशिष्ठ को अपने रूप जाल में फांस लूं, जब वह फंस जाये तो आलोकनाथ इस बात कि टिप बीवी को पहुंचा दे और बीवी पति की बदचलनी को, बेवफाई को बुनियाद बनाकर उसे तलाक दे दे । इस काम के लिये उसने मुझे बीस हजार रूपये देने का वायदा किया ।”
“सिर्फ वादा किया ?”
“मेरे हामी भरते ही पांच हजार फौरन दिये, पांच हजार तब दिये जब वशिष्ठ से मेरा मेल-जोल बन गया और बाकी के दस हजार तलाक के बाद देने का वादा किया ।”
“तुमने सम्पर्क बनाया कैसे वशिष्ठ से ?”
“वो क्या मुश्किल काम था । वह लेखक था । मैंने उसके दो-चार नॉवल पढ़े और फिर बतौर उसकी फैन एक फड़कती सी चिट्ठी लिख दी । उसने जवाब दिया, मैंने और चिट्ठी लिख दी । पांच-छ: बार चिट्ठियों का आदान-प्रदान हो जाने के बाद मैंने उससे मुलाकात करने की इच्छा व्यक्त की । वह सहर्ष तैयार हो गया । उसने मुझे एम्बेसी में लंच पर इन्वाइट किया । अपने पूरे साज-श्रिंगार के साथ मैं वहां पहुंची । उसने मेरी सूरत देखी तो उसके छक्के छूट गए । मैंने उसके नॉवलों की तारीफों के पुल बांधे तो वह फूलकर और भी कुप्पा हो गया । बाकी काम आसान था । अलग होने के वक्त वह खुद ही पूछ रहा था कि फिर कब मुलाकात हो सकती थी । आगे फिर ताल्लुकात बढ़ते ही चले गए ।”
“बढ़ते तो न चले गए । बढ़ते चले गए होते तो कल रात वह तुमसे पीछा छुड़ाने के अंदाज में बात न कर रहा होता। कल तो तुम उसके गले पड़ रही थीं, वह तो तुम्हें गले से उतारने की कोशिश में लगता था ।”
उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा ।
“कल रात तुम्हारे कमरे के दरवाजे के की-होल में कान लगाकर मैंने तुम दोनों का वार्तालाप भी सुना था ।”
“सन ऑफ बिच !”
“ओरिजिनल” - मैं सिर नवाकर उसकी गाली काम्प्लीमेंट की तरह कबूल करता हुआ बोला - “दि वैरी फर्स्ट ।”
“मेरे ख्याल में” - फिर वह बोली - “उसे हमारे मेलजोल का खतरा महसूस होने लगा था । वह मेरे से पीछा नहीं छुड़ा रहा था - छुड़ा रहा होता तो आधी रात तक मेरे साथ न ठहरा होता - बल्कि वह यह चाहता था कि जब तक उसकी बीवी जिन्दा थी तब तक के लिये मेल-जोल का सिलसिला बन्द कर दिया जाये ।”
“उसने ऐसा कहा था ?”
“सरासर कहा था । अपने मुंह से कहा था ।”
“तुमने आलोकनाथ के कहने पर उसे वैसी चिट्ठी लिखने से इन्कार क्यों किया था जैसी मैंने तुम्हें अभी दिखाई थी ।”
“इसका जो सही जवाब है, उस पर तुम्हें विश्वास नहीं होगा ।”
“मैं कर लूंगा ।”
“कर लोगे तो सुनो । हकीकत यह है कि छः महीने की मुतवातर मुलाकातों की वजह से मुझे सचमुच ही वशिष्ठ से मुहब्बत हो गयी थी ।”
“क्या कहने !”
“मुझे पता था कि तुम विश्वास नहीं करने वाले ।”
“ऐसी मुहब्बत किसी भी तुम्हारे जैसी एडवेंचरिस्ट लड़की को किसी भी ऐसे शख्स से हो सकती है, जो कि एक साल बाद विधुर और करोड़ों की जायदाद का वारिस बनने वाला हो ।”
“तुम मुझे गलत समझ रहे हो ।” - वह रूआंसे स्वर में बोली - “मैं सचमुच उससे प्यार करने लगी थी । उसके उपन्यास पढ़-पढ़कर मैं इतनी भावुक हो गयी थी कि मैं उसे अपना दिल दे बैठी थी । इसी वजह से मैंने वो चिट्ठी लिखने से इन्कार किया था । मैं उसे अब और नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती थी ।”
“नहीं । यह बात नहीं होगी । चिट्ठी लिखने से इन्कार तुमने इसलिये किया होगा क्योंकि तुम्हें मालूम था कि वह चिट्ठी वशिष्ठ का क्या नुकसान कर सकती थी । अगर वशिष्ठ का अपनी बीवी से तलाक हो जाता तो वह उसकी करोड़ों की संपत्ति का वारिस न बन पाता । तब वह तुम्हारे किसी काम का न रहता ।”
“यह झूठ है ।”
“यह सच है । अगर यही सच न होता, अगर वाकई तुम्हें वशिष्ठ से मुहब्बत हो गयी होती तो तुमने उसे बताया होता कि तुम्हें मोहरा बनाकर आलोकनाथ उसके खिलाफ क्या षड्यन्त्र रच रहा था । और कुछ नहीं तो तुमने उसे उस चिट्ठी के बारे में ही एडवांस वार्निंग दी होती ।”
“मैं ऐसा करना चाहती थी ।”
“तो किया क्यों नहीं ?”
“आलोकनाथ की धमकी से डरकर नहीं किया ।”
“उसने तुम्हें कोई धमकी दी थी ?”
“हां । वह कहता था कि अगर मैंने ऐसा कोई कदम उठाया तो वह मेरा चेहरा तेजाब से जलवा देगा ।”
“ऐसा उसने कहा था ?”
“हां । तभी तो मैं अपनी जुबान नहीं खोल पाती थी ।”
“अगर तुम वशिष्ठ को सारी बात बतातीं तो वह तुम्हारी सुरक्षा का कोई इन्तजाम करवा सकता था ।”
“न करवाता तो ?”
मैंने तुरन्त उत्तर न दिया । मेरे मानसपटल पर आलोकनाथ की तस्वीर उभरी ।
“सूरत से” - मैं बोला - “आलोकनाथ इतना कुछ कर गुजरने के काबिल आदमी लगता तो नहीं ।”
“सूरत से नहीं लगता । जो आदमी अपने निजी स्वार्थ के लिए दूसरे का घर उजाड़ने का षड्यन्त्र रच सकता है, वह कुछ भी कर सकता है ।”
“अगर तुमने बीस हजार रूपये के लालच में आकर आलोकनाथ की बात न मानी होती तो ?”
“तो वह मेरी जैसी कोई और लड़की तलाश कर लेता । उसे बीस हजार रूपये में नहीं तो तीस, चालीस, पचास हजार या इससे भी ज्यादा बड़ी रकम में मना लेता ।”
“उसने तुम्हें मना लिया । लेकिन आगे तुम्हारी कामयाबी की क्या गारंटी थी ? वशिष्ठ अगर न फंसता तो ?”
“आलोकनाथ कहता था कि वह जरूर फंसेगा । वह कहता था कि वह आजकल अपनी अपाहिज, बीमार बीवी के साथ इस कदर जकड़ा हुआ था कि, मेरे जैसी खूबसूरत, नौजवान और सहज ही हासिल होती लड़की का लोभ वह संवरण कर ही नहीं सकता था ।”
“फिर भी अगर वह न फंसता तो ?”
“तो....तो उसके पास एक दूसरी स्कीम भी थी ।”
“वो क्या ?”
“वह वशिष्ठ के अपनी पहली बीवी मीरा से हुए तलाक को अवैध करार दिलवाने की कोशिश कर सकता था ।”
“वो कैसे ?”
“उसे किसी तरह पता लग गया था कि दो साल पहले वशिष्ठ के कहने पर बलबीर साहनी नाम का जो प्राइवेट डिटेक्टिव मीरा के पीछे लगा हुआ था, उसने मीरा और उसके कथित ब्वॉय फ्रेंड की होटल रेड में एक तस्वीर भी खींची थी । उस तस्वीर की एक कॉपी आलोकनाथ ने बलबीर साहनी से पांच हजार रूपये में खरीदी थी ।”
“ऐसा आलोकनाथ ने खुद कहा था ?”
“हां ।”
“वह तुम्हें सब कुछ बताता था ?”
“सब कुछ तो नहीं लेकिन कभी कभी नशे की तरंग में फूंक में आकर, काफी कुछ बताता था ।”
“ओह !”
“वह तस्वीर आलोकनाथ ने मीरा की बहन अहिल्या शर्मा को एक चिट्ठी के साथ भेज दी थी कि उसकी बहन के साथ नाइंसाफी हुई थी और उसे तलाक के चक्कर में धोखे से फंसाया गया था । उसी ने अहिल्या शर्मा को यह राज भी बताया था कि तस्वीर में मीरा का कथित ब्वॉय फ्रेंड दिखाई दे रहा था । वह वास्तव में वशिष्ठ का ड्राईवर था और उसने वशिष्ठ के कहने पर ही मीरा को शीशे में उतारा था ।”
“जैसे आलोकनाथ के कहने पर तुमने वशिष्ठ को शीशे में उतारा था ?”
“हां । आलोकनाथ ने ही मीरा की बहन को यह राय दी थी कि उसे पुलिस के पास जाना चाहिए था और उस रेड को फ्रॉड करार देकर तलाक खारिज करना चाहिए था । अगर ऐसा हो जाता तो भी वशिष्ठ चारुबाला का पति न रहता और आलोकनाथ और उसकी बीवी की बन आती ।”
“पुलिस अहिल्या शर्मा के कहने पर अगर गड़े-मुर्दे उखाड़ने को तैयार न होती ?”
“तो आलोकनाथ और तिगड़म भिड़ाता । तिगड़मों का उस आदमी के पास भण्डार था ।”
“तुम तो बड़ी अनोखी बातें बता रही हो । इनकी तो फौरन पुलिस को खबर लगनी चाहिए ।”
“मुझ पर तो कोई आंच नहीं आयेगी ?”
“हरगिज नहीं । पुलिस की वजह से...”
“पुलिस की वजह से नहीं, मैं आलोकनाथ की वजह से पूछ रही हूं ।”
“उसकी वजह से भी तुम पर कोई आंच नहीं आने वाली । पुलिस उसे इस काबिल नहीं छोड़ने वाली कि उसकी वजह से किसी पर कोई आंच आ सके ।”
“श्योर ।”
“वैरी ।”
“कैन आई टेक यूअर वर्ड फार इट ?”
“डेफिनेटली ।”
उसने चैन की सांस ली ।
“मैं चलता हूं ।” - मैं उठता हुआ बोला - “मुझे पुलिस से सम्पर्क करना है ।”
उसने उठने का उपक्रम नहीं किया ।
“तुम..”
“मैं अभी थोड़ी देर यहीं बैठूंगी ।”
“तुम्हारा वो ब्वॉय फ्रेंड जो रेस्टोरेन्ट में बैठा है...”
“वो इन्तजार कर लेगा ।”
“अगर उसने इन्तजार न किया ?”
“तो अपना ही नुकसान करेगा ।”
मैंने विचित्र भाव से उसकी तरफ देखा ।
“मैं तुम्हारी लिये ड्रिंक और मंगाऊं ?”
“नहीं । शुक्रिया ।”
मैंने बिल चुकाया और उसे बैठी छोड़कर वहां से विदा हो गया ।
मैं रेस्टोरेन्ट में पहुंचा ।
अनीता टेबल पर नहीं थी । मैंने उसके बारे में स्टीवर्ड से पूछा तो उसने मुझे एक चिट्ठी थमा दी । मैंने उसे खोला । चिट्ठी अनीता की थी जिसमें मुझको सम्बोधित करके उसने लिखा था: मैं घर जा रही हूं । तुमसे ज्यादा फेथफुल और रोमांटिक तो मेरा टाइपराइटर है ।
मैंने कागज कि गोली बनाकर उसे ऐश ट्रे में डाल दिया । लड़की का खफा होना जायज था लेकिन अगर वह थोड़ी देर और रुकी होती तो मैंने उसे असल बात बताकर अपना वह गुनाह बख्शवा लिया होता जोकि मैंने उसे छोड़कर रोहिनी के साथ जाकर किया था । 
रेस्टोरेन्ट के टेलीफोन से मैंने इंस्पेक्टर यादव के नंबर पर टेलीफोन किया ।
फोन किसी और ने उठाया ।
मैंने अपना नाम बताया और यादव के बारे में पूछा ।
“यादव साहब एक कत्ल के केस की तफतीश के लिये दरियागंज गये हैं । आपके लिये मैसेज है कि आप उनसे तुरन्त सम्पर्क स्थापित करें ।”
“कहां ?”
“दरियागंज ।”
“दरियागंज तो बहुत बड़ा है । दरियागंज में कहां ?”
“आकाश होटल के पास ।”
“आकाश होटल के पास । क्या कत्ल आकाश होटल में हुआ है ?”
“नहीं । कत्ल आकाश होटल के पहलू की एक गली में हुआ है । लाश वहां खड़ी एक कार में पाई गयी है । किसी ने गोली मारकर उसका भेजा उड़ा दिया था ।”
“लाश की शिनाख्त हो गयी ?” - मैंने यूं ही पूछ लिया ।
“हां ।”
“कौन था मरने वाला ?”
“बलबीर साहनी नाम का एक प्राइवेट डिटेक्टिव ।”
न जाने क्यों बलबीर साहनी के कत्ल से मुझे कोई खास हैरानी न हुई ।
फसाद भी तो उसके कम नहीं थे ।
उसने पांच हजार रूपये में आलोकनाथ को तस्वीर बेची थी ।
उसने दो साल पहले अनिल पाहवा के कहने पर एक फर्जी रेड स्टेज की थी ।
वह वशिष्ठ की एक गैर औरत से रिश्तेदारी का चश्मदीद गवाह था ।
वह कई लोगों के रास्ते का कांटा था । उसके मर जाने से कई लोगों को फायदा हो सकता था ।
अपने हमपेशा बलबीर साहनी की मौत की खबर सुनकर मुझे एकाएक महसूस होने लगा था कि मुझे भी अपने किसी गलत अंजाम से खबरदार रहना चाहिए था ।
और उसके लिये मुझे हथियारबंद होना चाहिये था ।
अपनी लाइसेन्स शुदा रिवाल्वर लेने मुझे ग्रेटर कैलाश स्थित अपने फ्लैट पर जाना पड़ता था ।
सीधे दरियागंज पहुंचने की जगह मैंने पहले ग्रेटर कैलाश जाने का फैसला किया ।
वहां मैंने मंजु मैनी को अपना इन्तजार करते पाया ।
***
मंजु मैनी ने अपने पर्स में से एक पोटली-सी निकाली । पोटली उसने मेरे ड्राइंग-रूम की सेंटर टेबल पर उलट दी ।
टेबल पर जगमग-जगमग हो गयी ।
अधिकतर जेवर रत्न जड़ित थे ।
दो भारी कड़े । सोलह चूड़ियां । गले का हार । कानों के बुन्दे । तीन अंगूठियां । एक बाजूबन्द ।
“ये जेवर” - मेरे मुंह से निकला - “ये तो वो हैं जो सात महीने पहले मीरा वशिष्ठ तब अपने जिस्म पर पहने थी जब वह एक कार के नीचे आकर कुचली गयी थी ।”
“कैसे जाना ?” - मंजु ने पूछा ।
“मुझे दुर्घटना से पहले की उसकी एक रंगीन तस्वीर दिखाई गयी थी । उसमें वह यही जेवर पहने दिखाई दे रही थी । इन कानों के बुंदों को तो मैंने खासतौर से पहचाना है । बाजूबन्द भी बहुत टिपिकल था । बाकी जेवर भी वही हैं ।”
“ये मीरा वशिष्ठ के जेवर हैं ?” - वह गमगीन स्वर में बोली । 
“हां । तुम्हें कहां से मिले ?”
“उसके होटल के कमरे में से ।”
“तुम वहां गई थीं ?”
“हां । तुम ही ने तो कहा था कि मैं उसके होटल के कमरे में जाऊं और उसकी हर चीज की तलाशी लूं । मैंने तलाशी ली । मुझे यह पोटली मिली ।”
“कहां से ?”
“वार्डरोब में रखे उसके एक जूते में से ।”
“कब ?”
“आज ही । शाम को ।” - वह एक क्षण ठिठकी और फिर बोली - “यानी कि वह मेरे भाई की करतूत थी । उसने मीरा वशिष्ठ को अपनी कार के नीचे कुचला था और फिर उसके मुर्दा जिस्म से जेवर उतारने का जालिम काम किया था । मेरा भाई हत्यारा था ।”
“तुम ऐसा सोचती हो ?”
“और क्या सोचूं ? ये जेवर उसके पास से बरामद हुए । मरने वाली की शिफौन की साड़ी का एक टुकड़ा उसके ब्रीफकेस में से निकला । जिस दिन यह हादसा हुआ, उस दिन उसकी साप्ताहिक छुट्टी भी होती थी ।”
“क्या दिन था वो ?”
“सोमवार । इसलिये उसके पास कत्ल करने का अवसर भी था ।”
मैंने इन्कार में सिर हिलाया ।
उसने उलझनपूर्ण भाव से मेरी तरफ देखा ।
“मंजु, तुम्हारा भाई कोई आदर्श इनसान तो नहीं था । अपराध भी उसने किये थे लेकिन कम-से-कम यह अपराध उसने नहीं किया था ।”
“क्या मतलब ?”
“न उसने मीरा वशिष्ठ को अपनी कार के नीचे कुचला था और न उसके जेवर उतारे थे ।”
“लेकिन-लेकिन ये जेवर जो उसके कमरे से बरामद हुए हैं..”
तभी एकाएक फोन की घण्टी बज उठी ।
मैंने आगे बढ़कर रिसीवर उठाया ।
गोपाल वशिष्ठ का फोन था ।
“शुक्र है तुम मिल गये” - वह बोला - “मेरी तो ऐसी तैसी हुई जा रही है ।”
“कहां से बोल रहे हैं आप ?”
“फरीदाबाद से ।”
“क्या हो गया है ?”
“चारु घर पर नहीं है । नौकर-चाकर कहते हैं कि वह सुबह ही अपनी भांजी के साथ कहीं चली गयी थी ।”
“आपको यह बात अब पता लगी है ?”
“मैं दिन भर घर पर नहीं था । अभी एक घंटा पहले ही लौटा हूं ।”
“ओह !”
“यह एक अनोखी और डरा देने वाली बात हुई है । चारु की कहीं आने-जाने लायक हालत कहां थी ! ऊपर से वह किसी को बता तक नहीं गयी, मेरे लिये कोई चिट तक नहीं छोड़ गयी, कि वह कहां जा रही है, क्यों जा रही है ।”
“भांजी से मालूम किया होता ।”
“गीता के घर मे मैं कई बार फोन कर चुका हूं लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिलता ।”
“वो कहीं और होंगी ।”
“मैं हर मुमकिन जगह ट्राई कर चुका हूं ।”
“मेरा गरीबखाना ऐसी मुमकिन जगहों मे शामिल कब से हो गया ?”
“क्योंकि मैंने उसके बैडरूम में एक तकिये के नीचे तुम्हारा विजिटिंग कार्ड पड़ा देखा था । तुम मेरी गैर हाजिरी में भी यहां आये थे ?”  
“हां ।”
“क्यों ?”
“तुम्हारी बीवी ने बुलाया था ।”
“क्यों ?”
“कहानी लम्बी है । उसका खुलासा यह है कि वह आप से तलाक हासिल करना चाहती हैं ।”
“क्या ?”
“आप जानते ही हैं कि मर्द की बेवफाई को नजरअंदाज या माफ कर देने वाली किस्म की औरत आपकी चारुबाला नहीं है ।”
“मुझे मालूम है लेकिन मेरा इस बात से क्या वास्ता ?”
“आप का ही वास्ता है । उसे आपकी बेवफाई का सबूत मिला है ।”
“सबूत ?”
“जब आप आगरा गये हुए थे तो आपकी गैरहाजिरी में आपके नाम एक खुशबुओं में बसा हुआ खत आया था जिसे आपकी बीवी ने खोल लिया था ।”
“ओह माई गॉड ! खत किसका था ?”
“रोहिनी नाम की एक लड़की का । जानते हैं न आप रोहिनी को । रोहिनी माथुर को ।”
“रोहिनी ? ओह माई गुड गॉड । सुधीर, मेरा उस लड़की से कोई वास्ता नहीं । मेरा मतलब है कोई ऐसा वैसा वास्ता नहीं ।”
“वशिष्ठ साहब, अगर कोई किसी लड़की के साथ आधी रात तक होटल के कमरे में बन्द रहे तो वास्ता ऐसा-वैसा ही माना जायेगा ।”
“क-क्या ?”
“आपकी बीवी रईस है इसलिये उसके काम करने का अंदाज भी रईसों वाला है ।”
“मतलब ?”
“आपकी टोह लेने के लिये उसने मेरे अलावा एक और डिटेक्टिव भी एंगेज किया था । दूसरे डिटेक्टिव से आप वाकिफ हैं । वह वही शख्स था जिसे दो साल पहले आपने अपनी पहली बीवी की निगरानी के लिये एंगेज किया था । कैसा इत्तफाक है कि दो साल पहले जिस शख्स ने आपकी पहली बीवी को बेवफा साबित करके दिखाया था, अब उसी ने खुद आपको बेवफा साबित करके दिखाया है ।”
“बलबीर साहनी ।”
“वही । कल उसने आपका करोलबाग के महारानी होटल तक आपका पीछा किया था जहां कि आधी रात तक आप रोहिनी नाम की उस लड़की के साथ बन्द रहे थे । बलबीर साहनी की रिपोर्ट हासिल होते ही आपकी मौजूदा बीवी ने अपनी भांजी को बुलाया था जो कि आकर उसे अपने साथ ले गयी थी ।”
“लेकिन मैं बेगुनाह हूं । कसम ले लो, कोहली, मैं बेगुनाह हूं ।”
“मुझे मालूम है ।”
“तुम्हें मालूम है ?” 
“जी हां । मुझे मालूम है आप बेगुनाह हैं । आपको फंसाया गया है और यह करतूत आपकी बीवी की भांजी गीता और उसके पति आलोकनाथ की है ।”
“उन्होंने ऐसा क्यों किया ?”
“क्योंकि वे चारूबाला से आपका तलाक कराना चाहते हैं । चारूबाला की दौलत हथियाने का उनके पास यही तरीका है कि आपका चारूबाला से तलाक हो जाये और फिर वह अपनी सारी जायदाद अपनी इकलौती जीवित रिश्तेदार गीता के नाम छोड़ जाये ।”
“मेरे खिलाफ इतना बड़ा षड्यन्त्र हो रहा है” - वह आतंकित भाव में बोला ।
“अब तो हो भी चुका । आपकी बीवी आपको छोड़ गयी ।”
“मैं चारु को समझा लूंगा । वह मुझसे मुहब्बत करती है । वो जानती है मैं उससे कितनी मुहब्बत करता हूं । वो मेरे साथ ऐसा जुल्म नहीं कर सकती । मैं उससे मिलूंगा, असलियत समझाऊंगा तो वह समझ जायेगी । मैं उस हरामखोर आलोकनाथ और उस कमीनी गीता के बारे में चारु को सब कुछ बताऊंगा ।”
“पहले खुद तो सब कुछ जान लीजिये ।”
“वो तो तुम मुझे बता ही दोगे ।”
“यूं ही । फोकट में !”
वह खामोश हो गया ।
“तुम” - फिर वह मरे स्वर में बोला - “इस जानकारी की भी कोई फीस चाहते हो ?”
“इसका जवाब वही है जो मैंने आपको पहले भी दिया था । मैं क्या कोई वालंटियर हूं ।”
“पहले जो दस हजार रुपये मैंने तुम्हें दिए थे, उनसे मुझे क्या हासिल हुआ ?”
“यह उस रकम का ही तो जहूरा है जो मैं आपको ऐसी फड़कती हुई बात फोन पर बता रहा हूं वरना मेरा-आपका क्या लेना देना ?”
“लेकिन अब और रकम...”
“आगे भी तो आपको मैं ही बताऊंगा कि चारूबाला कहां है और जो षड्यन्त्र आपके खिलाफ रचा जा रहा है, उसका तोड़ क्या है ।”
“ऐसा ?”
“जी हां । ऐसा ।”
“तो फिर मैं कल सुबह...”
“कल सुबह । कल सुबह तक तो कुछ-का-कुछ हो जाएगा । अभी पधारिये जनाब ।”
“यह ऐसा काम है जिसमें एक क्षण भी नष्ट करना हिमाकत होगी ।”
“ठीक है । मैं आ रहा हूं ।”
“चंदे के साथ ?”
“हां । कहां आऊं ?”
“वहीं जहां मैं हूं । मेरे फ्लैट पर ।”
“मैं आ रहा हूं ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
मैंने गीता का कालकाजी का नंबर डायल किया ।
कितनी ही देर बाद फोन उठाया गया ।
“कौन ?” - किसी ने सावधानी से पूछा ।
“साहब को बोलो फौरन लाइन पर आयें ।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“मैं काला चोर हूं । साहब को बोलो कि उनके लिए रोहिनी का मैसेज है ।”
“होल्ड कीजिये ।”
थोड़ी देर लाइन पर सांय-सांय होती रही, फिर पहले वाली आवाज मेरे कान में पड़ी - “साहब पूछते हैं, रोहिनी का क्या मैसेज है ?”
“यह साहब को ही बताया जायेगा ।”
“रोहिनी को कहिये कि वह सुबह फोन करे ।”
“यह नहीं हो सकता ।”
“फोन रोहिनी को दो ।”
“यह भी नहीं हो सकता ।”
“तो फिर...”
“फोन बंद मत करना ।”
“तो बोलो रोहिनी का क्या मैसेज है ?”
“उसका मैसेज है कि अगर आधे घंटे में आलोकनाथ साहब एन-128, ग्रेटर कैलाश में सुधीर कोहली के फ्लैट में उससे मिलने न आये तो वह पुलिस के पास पहुंच जायेगी ।”
“पुलिस के पास ? पुलिस के पास किसलिए ?”
“वजह खुद सामने आ जायेगी ।”
“लेकिन...”
“नमस्ते ।”
“ठहरो, मैं साहब से तुम्हारी बात कराती हूं ।”
“अब जरूरत नहीं ।”
मैंने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
अब सारा दारोमदार इंस्पेक्टर यादव के मिलने पर था ।
मैंने फोन किया ।
वह लाइन पर मिल गया । मैंने उसे संक्षेप में समझा दिया कि मैं क्या चाहता था । उसने बिना कोई हुज्जत किये हामी भर दी ।
मैंने रिसीवर का पीछा छोड़ा और मंजू से सम्बोधित हुआ ।
“अब तुम यहां से जाओ” - मैं बोला ।
वह हड़बड़ाई ।
“यहां एक बहुत हाई टेंशन ड्रामा स्टेज होने वाला है । उसके दौरान तुम्हारी यहां मौजूदगी ठीक नहीं होगी ।”
“लेकिन...”
“बहस मत करो । मेरा भरोसा करो और मेरा कहना मानो ।”
“वे जेवर...”
“अभी जो पुलिस इंस्पेक्टर यहां आ रहा है, इन्हें में उसे सौंप दूंगा । बाकी स्टोरी तुम्हें कल वैसे ही मालूम हो जायेगी । नहीं मालूम होगी तो मैं सुना जाऊंगा । नाओ यू आर गोइंग ।”
बड़े अनिच्छापूर्ण ढंग से वह वहां से विदा हो गयी ।
***
सबसे पहले आलोकनाथ पहुंचा ।
आखिर उसी ने सबसे करीब से आना था और उसी को मैंने सबसे ज्यादा सस्पेंस में डाला था ।
“क्या चक्कर है ?” - वह भुनभुनाया - “रोहिनी कहां है ?”
“बैठो । अभी सब मालूम हो जाता है ।”
“फोन तुमने किया था ?”
“हां ।”
“रोहिनी का तुम्हारे से क्या वास्ता ?”
“कहा न अभी सब मालूम हो जाता है ।”
“मैं यहां रुकना जरूरी नहीं समझता । रोहिनी को बुलाओ वरना मैं जाता हूं ।”
तभी काल बैल बजी ।
मैंने फिर दरवाजा खोला ।
पहले अनिल पाहवा ने, फिर इंस्पेक्टर यादव ने और फिर एक सब-इंस्पेक्टर ने भीतर कदम रखा ।
आलोकनाथ पुलिस को वहां आया देखकर सकपकाया ।
“मैं जाता हूं ।” - वह बोला ।
मैंने बड़े अर्थपूर्ण ढंग से यादव की तरफ देखा ।
“फिलहाल” - यादव बड़े अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “आप कहीं नहीं जा रहे हैं ।”
“लेकिन...”
सुना नहीं ?”
आलोकनाथ गैस निकले गुब्बारे की तरह पिचक गया ।
जेवर अभी भी सेंटर टेबल पर पड़े थे, मैंने सिर्फ उन पर एक अखबार डाल दिया था । मैंने धीरे से अखबार उठाकर मेज के नीचे डाल दिया ।
सबकी निगाह जेवरों पर पड़ी ।
“ये जेवर...” - सबसे पहले अनिल पाहवा बोला ।
“आप पहचानते हैं” - मैं बोला ।
“हां” - वह कठिन स्वर में बोला - “ये मीरा के हैं । एक्सीडेंट की रात को वह यही जेवर पहने हुए थी ।”
“ये” - यादव बोला - “यहां कैसे पहुंच गये ?”
मैंने बता दिया ।
“लडकी कहां है ?” - यादव बोला ।
“मैंने उसे घर भेज दिया है ।” - मैं बोला ।
“क्यों ?” - यादव आंख निकालकर बोला - “उसका बयान..”
“कहीं भागा नहीं जा रहा । यहां जो महारथी इकट्ठे हो रहे हैं, उनके सामने मंजु मैनी की मौजूदगी अहमकाना लगती ।”
“फिर भी...”
तभी काल बैल फिर बजी ।
मैंने दरवाजा खोला ।
गोपाल वशिष्ठ चौखट पर खड़ा था ।
अब कोरम काल हो गयी थी ।
“कोहली” - वह बोला - “मैं दौड़ा चला आ रहा हूं ।”
“शुक्रिया” - मैं बोला - “मेरी चीज लाये ?”
उसने एक बंद लिफाफा मुझे सौंपा ।
“दस हैं ।” - वह बोला ।
“बस !” - मैंने असंतोष जाहिर किया ।
“फिलहाल इससे ज्यादा मुमकिन नहीं था ।”
“बाद में ?”
“बाद की बाद में देख जायेगी ।”
“ठीक है । कबूल ।” - मैंने लिफाफा अपनी जेब के हवाले किया ।
तब कहीं जाकर मैंने उसे भीतर कदम रखने दिया ।
भीतर मौजूद दृश्य को देखकर वह ठिठका । उसने प्रश्नसूचक नजरों से मेरी तरफ देखा । मैंने सैन्टर टेबल की तरफ इशारा कर दिया ।
“ये - “वह हैरानी से बोला - “ये तो मीरा के जेवर हैं । ये कहां से बरामद हुए ?”
“मुकेश मैनी के होटल के कमरे से” - मैंने बताया ।
“ओह माई गॉड ! यानी कि उसी ने..उसी ने मीरा को कार के नीचे कुचला था ! ओह माई गॉड, उसने...विश्वास नहीं होता ।”
“विश्वास होना भी नहीं चाहिए ।”
वशिष्ठ ने सर उठाकर मेरी तरफ देखा ।
“मुकेश मैनी का आपकी बीवी की मौत से कोई वास्ता नहीं था । उसने मीरा को कार के नीचे नहीं कुचला था ।”
“तो फिर ये...ये जेवर ?”
“उसके पास नहीं थे । उसने इन जेवरों की कभी सूरत भी नहीं देखी थी ।”
“लेकिन अभी तो तुमने कहा था कि ये उसके होटल के कमरे में बरामद हुए थे ।”
“उसकी मौत के बाद ।”
“बाद ही सही लेकिन जब ये उसके कमरे से बरामद हुए हैं तो...”
“ये जेवर उसके होटल के कमरे में प्लांट किये गए थे, उसके कत्ल के कहीं बाद तब प्लांट किये गए थे जबकि यह बात खुल गयी थी कि मीरा दुर्घटनावश कार के नीचे नहीं कुचली गयी थी, उसका कत्ल हुआ था ।”
“क्यों ?”
“पुलिस को गुमराह करने के लिए । यह जाहिर करने के लिए कि मुकेश मैनी ही मीरा का हत्यारा था और उसी ने जेवर चुराये थे । अगर पुलिस इस बात पर विश्वास कर लेती तो वह मीरा की मौत की तफ्तीश भी ड्राप कर देती क्योंकि मुकेश मैनी मर चुका था । अगर वह मीरा का कातिल था तो अब उसकी मौत के बाद मीरा के कत्ल की तफ्तीश बेमानी थी ।”
“इस बात का क्या सबूत है” - इस बार यादव बोला - “कि ये जेवर मुकेश मैनी के कत्ल के बाद होते उसके कमरे में प्लांट किये गए थे ।”
“सबूत तुम खुद हो ।” - मैं बोला ।
“मैं” - वह हड़बड़ाया ।
“हां । दिल्ली पुलिस सबूत है इस बात का ।”
“कैसे ?”
“पुलिस ने कत्ल के बाद मुकेश मैनी के कमरे की तलाशी ली थी ?”
“हां ।”
“पूरी बारीकी से ? पूरी जिम्मेदारी से ?”
“जाहिर है ।”
“फिर ये जेवर पुलिस की निगाहों में आने से कैसे बच गए ? ये वार्डरोब में रखे एक जूते में पड़े थे । वार्डरोब या जूता, कोई ऐसी गोपनीय जगह तो नहीं थी जहां पुलिस की निगाह नहीं पड़ी होती ।”
“निगाह न पड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता । यह कत्ल का केस केस था, वह छोटा सा कमरा था, वहां की तो सुई तलाश करने जैसी बारीकी से तलाशी ली गई थी ।”
“एग्जैक्टली । मुझे ऐसी ही मुस्तैदी की उम्मीद थी तुम्हारे से । अब बोलो, फिर भी अगर जेवर वहां से बरामद हुए थे तो बाद में प्लांट किये गए हुए या नहीं?”
“हुए । सरासर हुए ।”
“अगर जेवर मुकेश मैनी के पास नहीं थे तो फिर वह मीरा का हत्यारा तो न हुआ । फिर जिस रकम से वह उसे जेवर बेचकर हासिल हुई तो न हुई जैसा की तुम पहले सोच रहे थे । फिर मीरा की शिफौन की साड़ी का टुकड़ा उसके अधिकार में इस वजह से तो न हुआ कि वह खुद मीरा का हत्यारा था । हकीकत यह है कि मुकेश मैनी जानता था कि मीरा का हत्यारा कौन था और वह साड़ी का टुकड़ा हत्यारे के खिलाफ सबूत था जिसकी बिना पर वह हत्यारे को ब्लैकमेल कर रहा था । यह था मुकेश मैनी नाम के मामूली ड्राईवर को एकाएक हासिल हुई सम्पन्नता का राज ।”
“वह किसे ब्लैकमेल कर रहा था ?”
“वही जिसके पास जेवर थे । वही जिसने मुकेश मैनी का भी कत्ल किया था और बाद में उसके कमरे में ये जेवर प्लांट किये थे ।”
“कौन था वो ?”
“जवाब देने से पहले मैंने बारी बारी आलोकनाथ, अनिल पाहवा और गोपाल वशिष्ठ की तरफ निगाह दौड़ाई । आलोकनाथ यूं मुह खोलकर सांसें ले रहा था जैसे उसका दम घुट रहा हो । अनिल पाहवा अपने एकाएक सूख आये होठों पर बार बार जुबान फेर रहा था । गोपाल वशिष्ठ का चेहरा फक्क पड़ा हुआ थे और वह एकाएक बहुत बूढ़ा और टूटा हुआ इंसान लगने लगा था ।”
“इस कहानी की शुरुआत आपके तलाक से होती है” - मैं वशिष्ठ से संबोधित हुआ - “उस तलाक की जो बात आज तक किसी पर जाहिर नहीं हो सकी, वह यह थी कि वह तलाक मीरा चाहती थी न कि आप । और अनिल पाहवा वो शख्स था जिसकी वजह से मीरा तलाक चाहती थी, जिसने सारी स्टोरी सैट की थी कि कैसे मीरा वशिष्ठ से तलाक भी हासिल कर सकती थी और प्रॉपर्टी सैटलमेंट के तौर पर उस से एक मोटी रकम हासिल कर सकती थी । यादव साहब, आपका खादिम नहीं, अनिल पाहवा उस बोगस रेड का चीफ आर्किटेक्ट था, दुनिया को दिखाने के लिये जो वशिष्ठ साहब और मीरा के तलाक की वजह बनी थी । अनिल पाहवा वो शख्स था ।”
“ठहर जा, साले” - एकाएक अनिल पाहवा किसी जानवर की तरह गुर्राया और मुझ पर झपटा ।
वह रास्ते में ही थाम लिया गया । युवा सब इंस्पेक्टर ने उसे गोल में घुसती बाल की तरह दबोच लिया, फिर यादव ने उसे एक सोफा चेयर पर धकेल दिया ।
“अगर हाथ पैर नहीं तुड़ाना चाहते हो” - यादव कहर भरे स्वर में बोला - “तो चुपचाप यहीं बैठे रहना ।”
पाहवा खामोश रहा । वह हांफता हुआ अपनी आंखों से मुझ पर भाले बर्छियां बरसाता रहा ।
“हां तो” - यादव मेरी तरफ घूमा - “तुम कह रहे थे..”
“मैं यह कह रहा था” - मैं आगे बढ़ा - “कि मीरा और अनिल पाहवा में जो प्यार पनप रहा था, उसकी वशिष्ठ साहब को खबर नहीं थी और उधर वशिष्ठ साहब में और चारूबाला नामक उनके नॉवल पर बन रही फिल्म की हीरोइन में, जो कि तब हट्टी कट्टी और तन्दुरुस्त थी, कामदेव जो बाण चला रहा था, उसकी मीरा को खबर नहीं थी । पति पत्नी हकीकतन दोनों ही एक दूसरे से बेजार थे और तलाक हासिल करके अपने मन माफिक जीवन साथी के साथ रहना चाहते थे । नफा नुक्सान पति पत्नी दोनों का बराबर का था लेकिन कर्टसी एडवोकेट अनिल पाहवा, बेवकूफ सिर्फ वशिष्ठ साहब बने । इन्हें समझाया गया कि तलाक के लिए कोई वजह होनी जरूरी होती थी और भारी कुर्बानी करके वह वजह मीरा प्रस्तुत करने को तैयार थी । वह अपने चरित्र पर यह लांछन झेलने को तैयार थी कि उसका कोई ब्वाय फ्रेंड था जिससे वह छुप छुपकर मिलती थी । इस बिना पर तलाक होना आसान था, खासतौर से तब जबकि दूसरी पार्टी का, बीवी का, अपने पर हुए दावे को डिफेंड करने का भी कोई इरादा न हो । अपनी इस कुर्बानी की मीरा ने वह कीमत मांगी जिसकी बतौर प्रॉपर्टी सैटलमेंट मीरा वैसे भी अपने को हकदार मानती थी । वशिष्ठ साहब ने वह कीमत अदा की । इन्होने बतौर जाली ब्वॉय फ्रेंड अपने ड्राईवर मुकेश मैनी की खिदमत भी पेश की । इनको इस सारे सिलसिले में अपना फायदा दिखाई देता था । एक तो चारूबाला वैसे ही करोड़पति अभिनेत्री थी, ऊपर से वह वशिष्ठ साहब का फिल्म इंडस्ट्री में करियर बना सकती थी । वशिष्ठ साहब के नॉवल पर चारूबाला की मेहरबानी से बनी पहली फिल्म सुपरहिट हुई थी । अपने कैरियर की खातिर मीरा से तो ये किसी भी कीमत पर पीछा छुड़ाने को राजी हो सकते थे । हुए ।”
मैं एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “अब पहले मैं आपको यह बताता हूं कि किन बातों से मुझे शक हुआ की रेड मिलीभगत का नतीजा था । नंबर एक । बकौल बलबीर साहनी, मुकेश मैनी और मीरा पहले दिन रेस्टोरेन्ट में मिले और वहीं से मौजमेला करने की खातिर उनका होटल में आने का प्रोग्राम बन गया । यादव साहब, रेड की तस्वीर को जरा याद कीजिये ।”
“क्या याद करूं ?” - यादव बोला ।
“उस तस्वीर में मीरा क्या पहने हुए थी ?”
“नाइटी ।”
“जो कि औरतें रात को सोने से पहले औपचारिक कपड़े उतारकर पहनती हैं । मीरा के पास दिन दहाड़े वह नाइटी कहां से आयी, खास तौर से तब जबकि उसका मुकेश मैनी के साथ होटल के कमरे में जाने का पहले से कोई प्रोग्राम भी नहीं था । नाइटी जरूरी ही क्यों थी ? वह होटल में अपने यार को नाइटी पहनकर अदायें दिखाती या कपड़े उतारकर उसके साथ लेटती ! साहबान, वह नाइटी इस बात का अपने आप में सबूत है कि उसे मीरा अपने साथ खासतौर से तस्वीर खिंचवाने के लिए लेकर गयी थी । वह नाइटी भी साबित करती है कि तस्वीर सिन्थेटिक थी ।”
मैं एक क्षण अपनी बात का प्रभाव लोगों के चेहरों पर देखने के लिए रुका और फिर बोला - “नम्बर दो - बकौल बलबीर साहनी जब उसने वशिष्ठ साहब को फोन किया कि उसे एक और गवाह की जरूरत थी तो उन्होंने खुद जाने की जगह अपनी सैक्रेट्री अनीता सोनी को साहनी के पास भेजा । क्यों भेजा ? ये खुद क्यों नहीं गए ? इसलिए नहीं गए क्योंकि तब उन्हें अपने ड्राईवर मुकेश मैनी को पहचानना पड़ता जो कि ये नहीं चाहते थे । चाह भी कैसे सकते थे ? खुद ही तो वह शख्स इन्होने यार का रोल अदा करने के लिए मुहय्या कराया था । क्यों वशिष्ठ साहब ?”
वशिष्ठ ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“नम्बर तीन” - मैं अपनी तीन उंगलियां हवा में लहराता हुआ बोला - “वशिष्ठ साहब ने कभी यह सवाल न किया कि उनकी बीवी के साथ जो आदमी रंगरेलियां मनाता पकड़ा गया था, वह कौन था ? इसलिए नहीं पूछा क्योंकि वह आदमी तो इन्हीं का सप्लाई किया गया था और उसकी हकीकत से ये पहले से वाकिफ थे । ये इस बाबत कोई सवाल करते तो इन्हें मुकेश को बेइज्जत करके नौकरी से निकालना पड़ता जो कि ये चाहते नहीं थे क्योंकि हकीकतन तो इन्हें मुकेश मैनी से कोई शिकायत नहीं थी । क्यों वशिष्ठ साहब ?”
वशिष्ठ परे देखने लगा ।
मैं एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “नंबर चार । होटल के कमरे का दरवाजा भीतर से बंद नहीं था । साहबान, जरा सोचिये, एक औरत और एक मर्द कपड़े उतार कर बिस्तर में गुत्थम गुत्था होने की तैयारी कर रहे हैं, खास इसी काम के लिए वे होटल में आये हैं, ऐसे में आप उनसे ऐसी लापरवाही और हिमाकत की उम्मीद कर सकते हैं कि वे दरवाजे को भीतर से मजबूती से बंद न करें ! नहीं कर सकते । इसका साफ मतलब है कि दरवाजा गवाही की सुविधा के लिए जानबूझ कर खुला छोड़ा गया था ।”
मैं एक बार फिर ठिठका और फिर अपना पंजा सबकी तरफ लहराता हुआ बोला - “नम्बर पांच । जब मुकेश मैनी और मीरा रंगे हाथों होटल के कमरे में पकडे गये थे, जब उनकी तसवीरें खिंची, तब तस्वीर खींचने वाले के पीछे भागने की मुकेश मैनी ने कोई कोशिश नहीं की थी । जबकि उससे अपेक्षित यह था कि वह साहनी के पीछे भागकर उसे दबोच लेता और उसके कैमरे में से रील निकाल लेता । मुकेश मैनी हट्टा कट्टा तन्दुरुस्त नौजवान था, वह ऐसा बखूबी कर सकता था । लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, इसलिए नहीं किया क्योंकि उसे पहले ही समझा दिया गया था कि उसने या मीरा ने कथित गवाहों के काम में कोई अडंगा नहीं लगाना था ।”
“जब” - यादव बोला - “हर काम मिलीभगत से ही ही रहा था तो तस्वीर की क्या जरूरत थी ?”
“तस्वीर की बाबत बलबीर साहनी तो कहता था कि वह उसने अपनी मर्जी से खींची थी लेकिन मेरा ख्याल है की इस बाबत उसे वशिष्ठ साहब ने खास तौर से कहा था । वशिष्ठ साहब, जो कि तलाक हो जाने से पहले ही मीरा को सैटलमेंट की रकम दे रहे थे, जरूर मीरा से किसी धोखाधड़ी की उम्मीद रखते थे । इन्हें जरूर यह आशंका थी कि कहीं ऐसा न हो कि मीरा उनका माल भी हड़प जाये, जिसकी अदायगी इन्हें कंगाल किये दे रही थी, और बाद में तलाक की नौबत आने पर अपने किसी करतूत से साफ मुकर भी जाये । उसके मुकर जाने से तलाक चाहे फिर भी हो जाता लेकिन तब वह अपने वकील के माध्यम से अपना बचाव प्रस्तुत करती और फिर केस सालों लम्बा घिसटता । यह बात वशिष्ठ साहब को शूट नहीं करती थी । ये तो लगभग फौरन तलाक चाहते थे इसीलिए इन्होने खुद कंगाल होकर मीरा की रुपये पैसे से ताल्लुक रखती मांग पूरी की थी ।”
“तुम यह कहना चाहते हो कि वशिष्ठ साहब उस तस्वीर को मीरा के खिलाफ बतौर हथियार इस्तेमाल करना चाहते थे ?”
“अगर जरूरत पड़ती तो । लेकिन जरूरत पड़ी नहीं ।”
“लेकिन ये तो कहते हैं कि इन्हें इस बात की खबर ही नहीं कि कोई तस्वीर खींची गयी थी ।”
“ये झूठ बोलते हैं । ये तस्वीर की बाबत हामी उसी वजह से नहीं भर सकते थे कि इन्हें फिर तस्वीर में से मुकेश मैनी को पहचानना पड़ता । झूठ के मामले में यह केस बड़ा अनोखा है । इसमें इन्होंने ही क्या हर किसी ने थोक में झूठ बोलने की कसम खाई मालूम होती है ।”
“इन्होने तस्वीर बमय नैगेटिव बलबीर साहनी से ली क्यों नहीं?”
“तस्वीर इन्होंने जरूर ली होगी और बिना किसी विघ्न के तलाक हो जाने पर नष्ट भी कर दी होगी ।”
“नैगेटिव ?”
“नैगेटिव की बाबत दोनों ही बातें हो सकती हैं कि वह बलबीर साहनी से इन्हें दे दिया हो या न दिया हो । अगर दे दिया होगा तो वह इन्होंने खुद नष्ट कर दिया होगा, नहीं दिया होगा तो उस बाबत वह उन्हें कोई चकमा देने में कामयाब हो गया होगा । उसने बहाना बना दिया होगा कि नैगेटिव किसी तरह नष्ट हो गया था ।”
“ओह !”
“वैसे वह खुद यही कहता था कि नैगेटिव और उसका प्रिंट उसके पास सुरक्षित थे लेकिन वे दोनों चीजें उसने किसी को दिखाई नहीं थीं । नैगेटिव के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन तस्वीर के प्रिंट उसके पास शर्तिया थे । नैगेटिव उसने वशिष्ठ साहब को सौंपा भी था तो उसने पहले अपने लिए कुछ प्रिंट बनाकर रख लिए थे जिनमें से एक इन साहब को” - मैंने आलोकनाथ की तरफ उंगली उठाई - “पांच हजार रुपये में बेचा था ।”
सबकी निगाहें आलोकनाथ की तरफ उठीं ।
आलोकनाथ हड़बड़ाया । उसने प्रतिवाद के लिए मुंह खोला लेकिन मैं पहले ही बोल पड़ा - “यूं भोले बलम बन कर दिखने की जरूरत नहीं भ्राताजी । मेरे पास आपकी इस करतूत का सबूत है ।”
“क्या सबूत है ?”
“रोहिनी माथुर नाम की वो छोकरी सबूत है जिसे आपने बीस हजार रुपये की फीस देकर वशिष्ठ साहब को फंसाने के लिए राजी किया था । वो लिफाफा सबूत है जिसमें बंद करके आपने वह तस्वीर गाजियाबाद अहिल्या शर्मा को भेजी थी । उस लिफाफे पर लिखा पता आपके हैंडराइटिंग में है ।”
“भीतर की चिट्ठी भी” - यादव बोला - “इन्हीं की हैंडराइटिंग में है । हम चैक कर चुके हैं ।”
“और रोहिनी माथुर के नाम से इन्हें लिखी गई चिट्ठी इनकी बीवी की हैंडराइटिंग में है ।”
“आप किसी बात से मुकर नहीं सकते” - यादव कठोर स्वर में बोला - “आपकी हर करतूत का हमारे पास सबूत है । आप मियां बीवी वशिष्ठ साहब के खिलाफ उनकी बीवी को भड़काकर और वशिष्ठ साहब से उनका तलाक करवा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे । क्योंकि तब चारूबाला की सारी जायदाद की वारिस आपकी बीवी होती ।”
“मुझे पूरा विश्वास है” - मैं बोला - “कि जब चारूबाला को हकीकत की वाकफियत होगी तो वह इन्हें भी नहीं बख्शेगी । मौजूदा हालात में चारूबाला अपनी ऐसी खुराफाती भांजी और उसके ऐसे धोखेबाज पति के लिए भी अपनी जायदाद नहीं छोड़ कर जाने वाली ।”
“वशिष्ठ, जो अब तक केवल आग्नेय नेत्रों से आलोकनाथ को घूर रहा था, एकाएक उठकर खडा हो गया और मुट्ठियां भींचे आलोकनाथ की तरफ बढ़ा ।”
“साले !” - वह फुंफकारा - “हरामजादे ।”
सब-इंस्पेक्टर ने उसे भी वापस घसीट कर कुर्सी पर ढेर कर दिया ।
“गुस्सा थूक दीजिये” - मैं वशिष्ठ से बोला - “अभी बाकी कहानी सुन लीजिये । उसके बाद आपका गुस्सा वैसे ही बेमानी हो जाएगा ।”
वशिष्ठ बेचैनी से पहलू बदलता खामोश बैठा रहा ।
“तुम आगे बढ़ो” - यादव बोला ।
“बहरहाल” - मैं बोला - “मीरा अपने वादे पर खरी उतरी, उसने तलाक में कोई अडंगा नहीं लगाया और वशिष्ठ साहब को आनन फानन तलाक हासिल हो गया । इनके वकील मखीजा ने बम्बई में इन्हें यह खुशखबरी भिजवा दी कि अब ये आजाद थे, नतीजतन इन्होने आर्य समाज मंदिर में बाकायदा फेरे लेकर चारुबाला से विवाह कर लिया । इन्हीं की तरह दिल्ली में मीरा ने पाहवा साहब से फौरन विवाह क्यों नहीं कर लिया इसकी कोई वजह होगी जो वे ही बेहतर जानते हैं ।”
पाहवा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर अपने होंठ भींच लिये ।
“कहने को तो” - मैं बोला - “सब कुछ ठीक ठीक हो गया लेकिन यहां इत्तफाक से, महज इत्तफाक से, और वशिष्ठ साहब की बद्किस्मती से, इनकी खीर में मक्खी पड़ जाती है । पाहवा साहब को तलाक के ही एक केस के सिलसिले में बम्बई जाना पड़ता है, जहां बिजनेस को आनंद में मिक्स करने के लिए वे मीरा को साथ ले जाते हैं । वहां ये किसी और केस के सिलसिले में मैरिज रजिस्ट्रार का रिकॉर्ड देखने गए होते हैं, उसी रिकॉर्ड को टटोलते वक्त इत्तफाक से उनकी निगाह एक ऐसी ऐन्ट्री पर पड़ जाती है जो कि वशिष्ठ साहब और चारूबाला के विवाह से ताल्लुक रखती होती है ।”
“यानी कि” - यादव हैरानी से बोला - “इन्होंने चारूबाला से कोर्ट में शादी की थी ।”
“इन्होने चारूबाला से दो बार शादी की थी । पहले कोर्ट में चुपचाप और फिर आर्य समाज मंदिर में सरेआम । असल में ऐसा इसलिए हुआ होगा कि पहले इन्हें डर लगा होगा कि कहीं चारूबाला इनके मोहपाश से मुक्ति न पा जाए, फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले बहुत होते हैं इसलिए ऐसा हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी, इन्होने किसी प्रकार चारूबाला को मैरेज रजिस्ट्रार के यहां चुपचाप अपनी शादी रजिस्टर कराने के लिए तैयार कर लिया । बाद में जब इन्हें मखीजा की सूचना मिली कि इनका मीरा से तलाक हो गया था तो इन्होने चारूबाला को यह पट्टी पढ़ाई कि शादी तो दुनिया की निगाह में ही होनी चाहिये थी, नतीजतन बिना रजिस्ट्रार वाली शादी का किसी से कोई जिक्र किये इन्होने चारूबाला से आर्य समाज मंदिर में फेरे लेकर शादी कर ली जिसकी कि अखबारों में तसवीरें भी छपीं । अब यह इनकी बदकिस्मती थी कि अनिल पाहवा को जो किसी की शादी की तफ्तीश कर रहा था, रजिस्टर में हुई इनकी शादी की एन्ट्री दिखाई दे गयी । वह एन्ट्री इनकी मीरा से तलाक की तारीख से पहले की थी । यानी कि मीरा से तलाक हो पाने से पहले ही इन्होने चारूबाला से शादी कर ली थी जो कि कानूनन अपराध था । एक बीवी के होते दूसरी शादी करना बिगैमी कहलाता है, जिसके लिए आदमी जेल तक जा सकता है । मेरे पास इनकी शादी का सर्टिफिकेट है” - मैंने चारूबाला से हासिल हुआ मैरेज सर्टिफिकेट यादव को सौंप दिया - “इस पर शादी की तारीख 10 अगस्त 1984 दर्ज है । दिल्ली में इनका तलाक 21 सितम्बर 1984 को हुआ था और आर्य समाज मंदिर में इन्होने चारूबाला से दोबारा शादी 25 सितम्बर को को थी ।”
“यह सब बकवास है ।” - अनिल पाहवा भड़ककर बोला - “सन चौरासी में मैं कभी बम्बई नहीं गया ।”
मैं हंसा ।
“मैं दर्जनों तरीकों से साबित कर सकता हूं कि आप बम्बई गए थे, मीरा को साथ लेकर गए थे लेकिन अपनी बात साबित करने का सबसे आसान तरीका इस वक्त मेरे पास यह है ।”
मैंने अहिल्या शर्मा के वहां से हासिल हुई उसकी और मीरा की बम्बई की तसवीरें उसकी गोद में डाल दीं ।
“तस्वीर के नीचे बायें कोने पर जरा गौर फरमायेंगे” - मैं बोला - “तो आपको हर प्रिंट पर सन् और महीना भी छपा दिखाई देगा ।”
यादव ने कुछ ही क्षण वे तसवीरें उसके पास रहने दीं ।
“ये कोई झूठ बोलने लायक बात है वकील साहब ।” - यादव उससे तसवीरें झपटता हुआ बोला ।
“बात का” - मैं बोला - “जो आगे नतीजा निकलता है, वो झूठ बोलने लायक है ।”
“आगे क्या नतीजा निकलता है?” - यादव बेसब्रेपन से बोला, “और तुम जरा ड्रामा कम करो और बात ज्यादा करो । “
“जो हुक्म । वकील साहब और मीरा की अपनी बम्बई की सैर से यह मालूम हुआ कि वशिष्ठ साहब की चारूबाला नामक अभिनेत्री से शादी गैर कानूनी थी । इस जानकारी का मीरा ने यह इस्तेमाल किया कि उसने वशिष्ठ साहब को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया । उसका भूतपूर्व पति एक करोड़पति औरत का पति बना बैठा था । इसीलिये मीरा की निगाह में वह उसे और चन्दा देना अफोर्ड कर सकता था ।”
“इस ब्लैकमेल स्कीम में वकील साहब भी शामिल थे ?” - यादव ने पूछा ।
“नहीं” - पाहवा आवेशपूर्ण स्वर में बोला - “बाई गॉड, नहीं । मुझे तो..”
“ये सच कह रहे हैं ।” - मैं बोला - “ये मीरा की ब्लैकमेलिंग की स्कीम में शामिल नहीं थे । अगर होते तो जैसे एक ब्लैकमेलर का - मीरा का - कत्ल हुआ, वैसे ही दूसरे ब्लैकमेलर का - इनका - भी कत्ल हुआ होता ।”
“आई सी ।”
“अब आप सोचिये ब्लैकमेलर का कत्ल कौन करता है ?”
यादव की निगाह अपने आप वशिष्ठ की ओर उठ गयी ।
वशिष्ठ ने फौरन पहलू बदलना बंद कर दिया । उसको जैसे सांप सूंघ गया ।
“वशिष्ठ साहब जब ब्लैकमेलिंग से तंग आ गये तो एक रोज आधी रात को नेहरु पार्क में इन्होने मीरा से एक मीटिंग फिक्स की । आधी रात और नेहरु पार्क जैसी सुनसान जगह की बाबत इन्होने मीरा को समझा लिया होगा कि क्योंकि ये अपनी बीवी से हद से ज्यादा डरते थे इसलिये मुलाकात के लिए सुरक्षित जगह और वक्त वही था । उस रात मीरा, जो कि मैरीडन में पाहवा साहब के साथ थी । आधी रात को इनसे अलग होकर घर जाने के स्थान पर विनय मार्ग अपने भूतपूर्व पति से अपनी पूर्व निर्धारित मुलाकात करने आयी थी । वहां नेहरु पार्क में वशिष्ठ साहब ने पहले मीरा पर किसी चीज का प्रहार करके उसे बेहोश किया, उसके जिस्म पर से कीमती जेवर उतारे - इसलिए उतारे क्योंकि असल में तो वे इन्हें अपना ही माल लग रहे थे - उसकी लाश पार्क से निकालकर बाहर विनय मार्ग पर मीरा की कार के करीब डाली और मीरा के ऊपर से अपनी कार गुजार दी । फिर इन्होने मीरा की कार के एक पहिये की हवा निकाल दी और ब्लैकमेलर से सदा के लिए पीछा छूट गया मानकर ये फरीदाबाद अपनी कोठी पर चले आये । उस रोज इनके ड्राईवर मुकेश मैनी की साप्ताहिक छुट्टी थी इसीलिए ये कार को जब गैरेज में ले गए जहां इन्होने कार को धो - धाकर और झाड़ - पोंछकर अपनी तरफ से उस पर से अपनी करतूत के तमाम निशानात मिटा दिए ।”
“अपनी तरफ से ?” - यादव ने दोहराया - “यानी कि कोई निशान रह गए थे ?”
“जी हां ।” - मैं बोला - “अगले रोज जब मुकेश मैनी ड्यूटी पर वापस लौटा तो उसने कार को धोई पोंछी हुई पाया जो कि उसके लिए भरी हैरानी की बात थी । वह एक रोज कार छोड़कर जाता है तो उसकी कोई ऐसी वैसी सेवा नहीं हुई होती । वह एक दिन की छुट्टी काटकर वापस लौटता है तो उसे कार धुली पुंछी मिलती है । उसका शक में पड़ना स्वाभाविक था । फिर वह अखबार में विनय मार्ग पर हुई हिट एंड रन के केस के बारे में पढता है तो वह संदिग्ध हो उठता है । वह कार का बहुत बारीकी से मुआयना करता है तो उसे कार के निचले भाग में कहीं मीरा की साड़ी का एक टुकड़ा फंसा दिखाई देता है । वह फौरन समझ जाता है कि वही वह कार थी जिसके नीचे मीरा कुचली गयी थी और वह उसके एम्प्लायर की ही करतूत थी । यादव साहब वह साड़ी का टुकड़ा मुकेश इसलिए नहीं संभाले हुए था क्योंकि वह हत्यारा था, बल्कि इसलिए संभाले हुए था क्योंकि वह हत्यारे की करतूत का सबूत था और हत्यारे को वह पहचान चुका था ।”
“तुम कहीं यह तो नहीं कहना चाहते कि फिर मुकेश मैनी वशिष्ठ को ब्लैक मेल करने लगा ?”
“मैं बिल्कुल यही कहना चाहता था । ब्लैकमेल के मामले में तो यूं समझिये कि वशिष्ठ साहब आसमान से गिरे और खजूर में अटके । और अब तो वे पहले से ज्यादा फंसे हुए थे क्योंकि अब इस बार तो इन के ऊपर कत्ल का गंभीर इल्जाम आयद होता था । ये एक कत्ल कर चुके थे इसलिए इनका दूसरे कत्ल की उधेड़बुन में पड़ना स्वाभाविक था । मुकेश मैनी अपने एम्प्लायर को अपने चंगुल में पाकर नौकरी में लापरवाही दिखाने लगा जिसकी वजह से चारूबाला ने उसे नौकरी से निकाल दिया । नौकरी की अब उसे कोई परवाह तो रही नहीं थी क्योंकि तनख्वाह से कई गुना ज्यादा बड़ी रकमें वह बतौर ब्लैकमेल वशिष्ठ से झटकने लगा था । वशिष्ठ साहब से हासिल पैसा ही मुकेश मैनी के तमाम ठाट बाट का जरिया था ।”
मैं एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “अब यहां आलोकनाथ की करतूत का रोल आता है । इसने मीरा की बहन को भड़काया जो कि पुलिस के पास पहुंच गयी । पुलिस ने गड़े मुर्दे उखाड़ने शुरू किये तो वशिष्ठ साहब घबरा गये । पुलिस ने मुकेश मैनी तक तो पहुंचना ही था, इन्हें सर लगने लगा कि पुलिस के दबाव में आकर मुकेश मैनी तलाक की ही नहीं, कत्ल की भी असलियत न बक दे । मुकेश मैनी की जुबान बंद करना इन्हें निहायत जरूरी लगने लगा । उसकी वजह से अगर तलाक की असलियत खुल जाती तो चारूबाला और उसकी दौलत इनके हाथ से निकल जाती, अगर कत्ल की असलियत खुल जाती तो इनके गले में फांसी का फंदा पड़ता । नतीजतन मुकेश के कत्ल के लिए तैयार ये उसके होटल के कमरे में पहुंचे । उस रोज दोपहर के बाद मुकेश जो अपने कमरे में नहीं घुसने दे रहा था और बाकायदा मुझे धकिया रहा था, उसकी वजह यही थी कि उस वक्त भीतर कमरे में वशिष्ठ साहब मौजूद थे । ये जब उठकर बाथरूम में जा छुपे थे, तभी उसने मुझे अपने कमरे में दाखिल होने दिया था । मेरे एकाएक वहां आगमन ने इनका काम और भी आसान कर दिया था, अब वे कत्ल का इल्जाम बाकायदा मुझ पर थोप सकते थे । मेरे वहां से विदा होने के बाद इन्होंने मुकेश को गोली मारी जिससे कि उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी । फिर इन्होने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और फोन पर तड़पने कराहने का शानदार ड्रामा करते हुए ऑपरेटर को बताया कि सुधीर कोहली ने “मुझे” यानी मुकेश मैनी को गोली मार दी थी । फिर मुझे और फंसाने के लिये ये मर्डर वैपन को मेरे ऑफिस में मेरी मेज के दराज में प्लांट कर आये ।”
“इन्होंने मुकेश के कमरे में वह साड़ी का टुकड़ा, जिसकी वजह से इन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था, तलाश करने की कोशिश नहीं की होगी ।”
“जरूर की होगी । लेकिन उसके वहां न मिलने से ये कोई खास फिक्रमंद नहीं हुए होंगे । क्योंकि उस साड़ी के टुकड़े की कहानी कहने वाला तो मर चुका था और फिर किसे याद पड़ा था कि सात महीने पहले अपने एक्सीडेंट के वक्त मीरा क्या पोशाक पहने थी ।”
“हूं । फिर ?”
“फिर इन्होंने ज्यादा होशियारी दिखाने की कोशिश में ऐसी स्टेज सैट की जिससे यह लगे कि अगर मीरा की हत्या हुई थी तो उसका हत्यारा मुकेश मैनी था । इनकी निगाह में इस तरीके से मीरा के कत्ल के मामले में किसी की इनकी तरफ तवज्जो जा ही नहीं सकती थी । इन्होने एक्सीडेंट की रात को मीरा के जिस्म से उतारे हुए जेवर ले जाकर मुकेश मैनी के होटल के कमरे में छुपा दिए । इनकी बदकिस्मती कि इन्हें यह नहीं मालूम था कि इनकी बीवी चारूबाला द्वारा एंगेज किया हुआ जासूस बलबीर साहनी साए की तरह इनके पीछे लगा हुआ था जिसने कि इन्हें आकाश होटल में मुकेश मैनी के कमरे में घुसते देख लिया । उसने इनसे बात न की होगी । इनका अब किसी तीसरे ब्लैकमेलर के चंगुल में फंसने का कोई इरादा नहीं था इसलिये इस बार इन्होने इन्तजार करने की बजाय हाथ के हाथ बलबीर साहनी का काम तमाम कर दिया । इन्होने बलबीर साहनी को उसकी कार में शूट कर दिया । इनकी इस करतूत को क्योंकि अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा इसलिए हो सकता है कि इस बार मर्डर वैपन अभी भी इनकी जेब में ही हो ।”
मेरे उस आखिरी फिकरे ने जैसे उसे बिजली का कर्रेंट छुआ दिया । उसके हाथ तत्काल अपने कोट की एक भीतरी जेब में गया लेकिन रिवाल्वर के साथ वह हाथ अभी कोट से आधा ही बाहर निकला था कि यादव ने उसे दबोच लिया ।
उपसंहार
गोपाल वशिष्ठ ने अपने लेखक होने का और बतौर लेखक अपने संवेदनशील होने का परिचय बड़ी शराफत से अपना हर अपराध स्वीकार करके दिया ।
चारूबाला के चरित्र से हालांकि यह बात मेल नहीं खाती थी लेकिन फिर भी उसने अपने धोखेबाज पति के अंजाम पर भारी अफसोस जाहिर किया और कहा कि अगर शुरू में ही उससे सच बोल दिया होता तो उसे पहला कत्ल ही न करना पड़ता ।
अपनी भांजी और उसके पति की काली नीयत और बदकारी की सजा चारूबाला ने उनके सामने अपनी नयी वसीयत लिखवाकर दी जिसके माध्यम से उनसे अपनी विपुल धन सम्पत्ति एक चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम कर दी ।
अनिल पाहवा पर कोई एक्शन न हो सका क्योंकि तलाक की सारी जिम्मेदारी भी वशिष्ठ ने अपने सर ओढ़ ली ।
मोहर सिंह उर्फ बंसीधर को लम्बी सजा हुई ।
उससे प्रोनोट की रकम तो वसूल न की जा सकी लेकिन जो चालीस हजार रूपया मुकेश मैनी के होटल से बरामद किया था, वह मेरे प्रयत्नों से मंजू मैनी को मिल गया । वादे के मुताबिक उसका दस प्रतिशत यानी चार हजार रूपया, उसने मुझे देना चाहा जो कि मैंने न लिया । अलबत्ता उस रकम को छोड़कर मैं कोई घाटे में न रहा, दिल्ली शहर में एक और मेहरबान सहेली जो हासिल हो गयी मुझे ।
अपने से खफा हुई अनीता को मैं बहुत मुश्किल से राजी कर सका ।
उसके पास गोपाल वशिष्ठ के नावेल की जो स्क्रिप्ट पड़ी थी, उसमें आगरे वाले प्रोड्यूसर ने तो रूचि न ली लेकिन उसका प्रकाशक उसे तुरंत प्रकाशित करने के लिए ले गया । लेखक की पर्सनल ट्रेजेडी के साये में उपन्यास सुपर हिट साबित हुआ । एक पिटा हुआ लेखक अपने आखिरी उपन्यास में जय जयकार करा गया ।
तलाक के बाद मीरा ने अनिल पाहवा से शादी क्यों न की इसका कोई संतोषजनक उत्तर पाहवा न दे सका । अलबत्ता इतना उसने जरूर कहा कि तलाक के बाद जैसी उच्छ्रिंख्ल जिंदगी मीरा ने जीनी आरम्भ कर दी थी, उसकी रूह में वह खुद भी उससे शादी का कोई खास ख्वाहिशमंद नहीं रहा था ।
उसने यह बात फिर से कही कि उसे वाकई में नहीं मालूम था की बीवी का जो यार गोपाल वशिष्ठ ने सप्लाई किया था वह उसका ड्राईवर था । मीरा ने इस बात का जिक्र पाहवा से इसलिए नहीं किया था क्योंकि पाहवा को यह बात नागवार गुजरती के नाटक के तौर पर ही सही, उसकी “होने वाली बीवी” एक ड्राईवर जैसे निम्नकोटि के व्यक्ति के सामने अधनंगी हुई थी । तस्वीर खींची जाने की खबर भी, उसने कसम खाकर कहा कि, उसे नहीं थी । उसे यह बात या मीरा से मालूम हो सकती थी, या बलबीर साहनी से । मीरा ने अपनी खातिर तस्वीर की बात छुपाई होगी तो, साहनी ने वशिष्ठ की खातिर ।
एक बड़ा ही संयोग इस केस में यह हुआ की जिस रोज सुबह गोपाल वशिष्ठ को तिहाड़ जेल में फांसी की सजा हुई, उसी दोपहर को चारुबाला ने भी अपने फरीदाबाद वाले आवास में प्राण त्याग दिये ।
मीरा के जेवरात इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम कर लिए क्योंकि वे लोग उनके बीमे की रकम अदा कर चुके थे ।
मेरी रिवाल्वर, असल में जिसे लेने के लिए मैं अपने फ्लैट पर आया था, लेकिन जिसे मेरे फ्लैट की तलाशी में पहले ही पुलिस कब्जा चुकी थी, मुझे वापिस सौंप दी गयी ।
इस तरह आपके खादिम की उस बेहूदे, बवालेजान केस से जान छूटी जिसमें मेरा क्लायंट कोई भी नहीं था लेकिन फिर भी खाकसार (लक्की बास्टर्ड) ने पच्चीस हजार रुपये पीट लिए थे ।
समाप्त