“बेबी !” कुछ आगे जाते ही महाजन गंभीर स्वर में बोला, “मैं समझ रहा हूँ कि तुम बिना जरूरत के जानलेवा खतरे को आवाज देकर अपने पास बुला रही हो ।”

“गलत मत कहो ।” मोना चौधरी ने चलते हुए उस पर निगाह मारी ।

“तुम जाल में रहस्यमय जीव को कैद करके पकड़ना चाहती हो ।”

“हाँ !”

“क्या ख्याल है तुम्हारा, वो पकड़ा जायेगा ?”

“कोशिश करके देखने में क्या हर्ज है ।”

“कोशिश में वो कइयों की जानें भी ले सकता है ।” महाजन का स्वर व्याकुल हो उठा, “तुम उसे जाल में कैसे कैद करना चाहती हो, जबकि वो बहुत शक्तिशाली है । तुम महसूस कर ही चुकी हो कि किसी की टाँग पकड़कर एक ही झटके में किसी पेड़ की सूखी टहनी की तरह तोड़ सकता है । ऐसे में जाल में कैसे बन्द किया जा सकता है ? वो सेकेंडों में जाल को... ।”

“तुम ठीक हो सकते हो ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा, “लेकिन मैं अपनी कोशिश करके देख लेना चाहती हूँ । वो जाल ऐसा नहीं होगा कि उसे आसानी से... ।”

“वो बहुत ताकत वाला है । मामूली-सा जाल उसके लिए क्या अहमियत रखता होगा ।”

“मैं फिर कहती हूँ, तुम ठीक कहते हो सकते हो ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा, “लेकिन मुझे गलत मत कहो । मेरी तरह ठंडे दिमाग से सोचो । हम लोग बड़े-सा बड़ा काम कर पाते हैं, लेकिन नाइलॉन या रेशम की पतली-सी डोरी को हाथों से नहीं तोड़ सकते । दो-चार आदमी एक साथ मिलकर हार जाते हैं, लेकिन नाइलॉन या रेशम की पतली डोरी को हाथों से नहीं तोड़ पाते । दो-चार आदमी मिलकर भी एक साथ कोशिश करें तो भी रेशम की डोरी को शायद नहीं तोड़ा जा सकता ।”

महाजन ठिठका और आँखें सिकोड़े मोना चौधरी को देखने लगा ।

मोना चौधरी भी रुक गई ।

“बेबी !” महाजन के होंठों से निकला, “बात तो तुम्हारी ठीक है ।”

“फिर शक कैसा ?”

“उसकी ताकत को देखकर ।” महाजन बेचैन हुआ, “वो रेशम की डोरी के जाल को कच्चे धागों की तरह तोड़... ।”

“इतना तो रिस्क लेना ही पड़ेगा ।” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी, “शायद वो न तोड़ सके । कुछ भी हो सकता है ।”

“और इस कुछ भी हो सकने में बहुत सारी लाशें भी बिछ सकती हैं ।”

मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा ।

दोनों पुनः आगे बढ़ने लगे ।

“पहली बात तो मैं ये लेता हूँ कि उस रहस्यमय जीव को जाल में नहीं फँसाया जा सकता ।” महाजन ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा, “वो बहुत होशियार है । जाल में फँसने वाला नहीं । दूसरी बात मैं ये लेता हूँ कि अगर वो जाल में फँस जाता है तो तुम क्या करोगी ?”

मोना चौधरी के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान उभरी ।

महाजन स्पष्ट तौर पर उस मुस्कान को नहीं देख पाया ।

“कहीं तुम्हारा इरादा उसे कैद करने का तो नहीं है ?”

“नहीं !”

“तो फिर इतना खतरा उठाकर, उसे कैद करके क्या करना चाहती हो ? क्या उसे तसल्ली से खत्म करोगी ?”

“ऐसा कुछ नहीं है ।”

“कुछ तो होगा ही ।”

“मैं उससे दोस्ती करने की कोशिश करूँगी ।” कहते हुए मोना चौधरी खुलकर मुस्कुराई ।

“दोस्ती !” महाजन को हैरानी भरा झटका लगा । उसने मोना चौधरी पर निगाह मारी, “बेबी, तुम तो फिरे दिमाग की तरह बातें कर रही हो ! वहशी-दरिंदे कभी दोस्ती नहीं करते । तुम कैसे दोस्ती कर लोगी ? तुम्हारा ख्याल कहीं ये तो नहीं कि वो बोलता है ? बातचीत भी करता है ?”

“अगर वो बातचीत भी करता हो तो तुम्हें हैरानी नहीं होनी चाहिए । अभी तक हमने उसके बारे में जाना ही क्या है ?”

“अगर बातचीत न करता हो तो फिर तुम उससे कैसे दोस्ती करोगी ? महाजन की आवाज में भारी तौर पर उलझन थी । दोस्ती करके क्या तुम उसे समझाना चाहती हो कि वो मासूम लोगों की जान न ले ?”

“महाजन !” मोना चौधरी का स्वर शांत था, “इसके बारे में बाद में बात करेंगे ।”

“बाद में ?”

“कल । अभी इस काम के बारे में बहुत कुछ सोचना है मुझे ।” मोना चौधरी का स्वर गंभीर था, “मैं जो करने जा रही हूँ । जो सोचा है मैंने, वो मेरा बहुत बड़ा पागलपन भी साबित हो सकता है । क्या होगा, ये अभी कोई नहीं जानता ।”

☐☐☐

अगले दिन की सुबह पुलिस वालों के लिए बहुत बुरी थी । वे गुस्से में और जड़-सी हालत में थे ।

सुबह चार बजे के करीब उस रहस्यमय जीव ने पुलिस की गश्ती कार पर तब हमला बोला, जब उसका टायर पंचर हो गया और जैक लगाकर स्टेपनी बदली जा रही थी । आठ पुलिस वाले थे कार में । स्टेपनी लगाते वक्त एक को छोड़कर सारे कार के पास ही खड़े थे कि अचानक उन पर हमला इस तरह किया गया कि किसी को संभलने का मौका नहीं मिला । पुलिस वाले दहशत में डूबे वहाँ से भागे । हथियार गिर गए थे । तीन ने तो हथियार पहले ही कन्धे पर लटका रखे थे । दो के हाथों में ही हथियार थे । लेकिन हथियार इस्तेमाल करने की अपेक्षा वे भाग खड़े हुए । जो बचे, उन्होंने हालातों के बारे में थोड़ा-थोड़ा बताया । जो इस तरह थी :

पहले उस रहस्यमय जीव ने एक पुलिस वाले पर हमला किया । वहाँ सिर्फ हेडलाइट की ही रौशनी थी । पुलिस वाले का सिर कार से टकराया और वह बेहोश होकर नीचे लुढ़क गया । तब तक पुलिस वाले नहीं समझ पाये कि क्या हो गया । मामला समझते ही वे भागे कि उसने दूसरे को पकड़कर, उठाकर दूर फेंका । उसका सिर जमीन से टकराया और वह वहीं बेहोश पड़ा रह गया । भागते पुलिस वाले पर वह पुनः झपटा । तीसरे को उसने पकड़ा और उठाकर नीचे पटका । फिर उस पर सवार हो गया । उसे उधेड़ने लगा ।

एक पुलिस वाला जो कि कुछ कदमों की दूरी पर ही झाड़ियों की ओट में छिप गया था । थर-थर काँपते वह वहीं छिपा बैठा रहा । सब कुछ देखता रहा । गन उसके पास थी, परन्तु वह इस हद तक डर चुका था कि गन इस्तेमाल करने का उसे होश ही नहीं रहा और अपने साथी पुलिस वालों को उधड़ते देखता रहा ।

दो की टाँगों को खींचकर तोड़-उखाड़ फेंका । एक की बाँह अलग कर दी थी । एक का सिर पाँव से कुचल-कुचल कर ऐसा कर दिया था कि देखने वालों का दिल दहल उठे । पुलिस वालों ने लाशों की ऐसी हालत पहली बार देखी थी ।

दिन का उजाला फैलते ही वहाँ पुलिस की वर्दियाँ-ही-वर्दियाँ नजर आ रही थीं । हरीश दुलानी तो गुस्से से जल रहा था, परन्तु रहस्यमय जीव के खिलाफ कुछ कर पाने की हालत में नहीं था । क्योंकि उसका पता-ठिकाना उसके पास नहीं था । वह जाने कहाँ से आता और कहाँ चला जाता । परन्तु दुलानी ने अपनी हालत को बेकाबू नहीं होने दिया था । वह इस केस का इंचार्ज था । उसके हौसले पर ही सब पुलिस वालों का हौसला टिका था ।

खुद को संभाले हरीश दुलानी जरूरी कार्यवाई में नौ बजे तक वहाँ व्यस्त रहा । उसके बाद लाशों का पंचनामा करके, पाँच पुलिस वालों के साथ उन लाशों को पुलिस हेडक्वार्टर रवाना कर दिया ।

दुलानी मन-ही-मन बेहद गुस्से में था । पुलिस वालों की लाशें देखकर जैसे उसे अपनी हार का एहसास हो रहा था । लेकिन वह जानता था कि उसके पास करने को कुछ नहीं है । कलाई टूटी होने की वजह से वह और भी बेबस-सा पड़ा था ।

पुलिस वालों की हत्या-मौत की खबर गाँव में पहुँची तो गाँव वाले भी दहशत से भर उठे थे । रहस्यमय जीव को लेकर तरह-तरह की बातें होने लगीं । हर तरफ आतंक, डर और भय का माहौल बना नजर आ रहा था ।

☐☐☐

मोना चौधरी और महाजन जब पुलिस के ठिकाने पर पहुँचे तो वहाँ गंभीरता, डर, चुप्पी और क्रोध का माहौल व्याप्त था । पुलिस वाले अपने कामों में व्यस्त हो चुके थे । लेकिन हर कोई ऐसी सवालिया निगाहों से एक-दूसरे को देख रहा था कि अब क्या होगा ? ये सब कब तक चलेगा ?

जवाब किसी के पास नहीं था ।

हरीश दुलानी प्लास्टर चढ़ी बाँह को गले में कॉटन-बैल्ट के सहारे लटकाये, पुलिस वालों के बीच मौजूद था । अपनी बातों से उनका हौसला बढ़ाने की चेष्टा कर रहा था । जबकि वह खुद हालातों से परेशान होकर इस मामले के बारे में सोच रहा था कि कैसे उस रहस्यमय शख्सियत को खत्म करे ?

मोना चौधरी और महाजन को पुलिस वालों के मरने की खबर पहुँच चुकी थी ।

उन्हें देखते ही दुलानी उनके पास पहुँचा । चेहरा सख्त हो गया था ।

“पुलिस वालों की मौत का मुझे दुःख… ।” मोना चौधरी ने कहना चाहा ।

“मुझे हर उस इंसान की मौत का दुःख है जो रहस्यमय जीव की दरिंदगी का शिकार हुआ है । पुलिस वालों की जान, दूसरों की जान से खास नहीं होती ।” हरीश दुलानी एक-एक शब्द चबाकर कह उठा, “मैं अब सोच रहा हूँ कि जैसे भी हो इस मामले को खत्म कर दिया जाये ।”

“ये मामला तुम मेरे हवाले कर चुके हो दुलानी !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।

“मैं इस तरह नहीं देख सकता मौतें । मैं... ।”

पुलिस वाले मरे तो दर्द ज्यादा होने लगा ।” मोना चौधरी ने उसी स्वर में कहा ।

“ये बात नहीं... ।”

“तो फिर कल की जुबान के मुताबिक, इस मामले में मुझे काम कर लेने दो । जल्दी मत... ।”

“मैं उस रहस्यमय शख्सियत को जिन्दा नहीं छोड़ना चाहता । मैं उसे तलाश... ।”

“दुलानी !” महाजन ने उसे सख्त निगाहों से घूरते हुए कहा, “संभाल अपने को । पहले तू सारा मामला संभाल रहा था, तब तूने कितनी तोपें चला लीं । वो हमने देख लिया । अब हमें भी दो-चार दिन तोपें चला लेने दे । शायद निशाना ठीक बैठ जाये । न भी ठीक बैठे, तो भी फर्क नहीं पड़ता । रहस्यमय जीव के हमले बराबर जारी हैं । तब तुम... ।”

“तब तक वो जाने कितनी जानें ले लेगा ।” दुलानी दाँत भींचकर बोला ।

“तो क्या तू उसे दो घण्टो में खत्म कर देगा । ढूँढ़ लेगा उसे, ऐसा है तो छः घण्टे का वक्त ले ले ।”

दुलानी ने खा जाने वाली निगाहों से महाजन को देखा ।

“गुस्सा आ रहा है ।” महाजन ने उसी तरह शब्दों को चबाकर कहा ।

“तुम लोगों के ऊपर सवाल-जवाब करने वाला कोई नहीं है । मुझे ऊपर जवाब देना पड़ता है ।”

“ये बात तू हमें क्यों सुना रहा है ?” महाजन उसी लहजे में बोला, “हमारी गलती से कुछ हुआ क्या ? तू तो ऐसे बात कर रहा है, जैसे जो हुआ, उसके कसूरवार हम हैं । तू एक इशारा कर हम यहाँ से दफा हो जाते हैं । तेरे को जो करना हो कर ले । हमने तेरे हाथ नहीं बाँध रखे । बोल, खिसके हम यहाँ से । तू अपने फोके फायर करता रहे ।”

दुलानी दाँत पीस उठा ।

“मिस्टर दुलानी !” मोना चौधरी ने संयत गंभीर स्वर में कहा, “ये जो भी हो रहा है, ऐसा होना किसी को भी पसन्द नहीं ! तुम्हें दो बातों का गुस्सा आ रहा है । एक तो रहस्यमय जीव पर काबू नहीं पा सके, दूसरी बात ये कि कलाई की हड्डी टूटने की वजह से तुम इस मामले में अब खुलकर काम नहीं कर पा रहे । लेकिन इस तरह बेकाबू नहीं होना चाहिए । कभी-कभी हालात बस से बाहर हो जाते हैं । ऐसे में गुस्सा और भी नुकसान देता है ।”

हरीश दुलानी के चेहरे से ऐसा लग रहा था, जैसे वह अभी अपने बाल नोंच लेगा ।

“अगर तुम्हें हमारा काम या हमारी मौजूदगी पसंद नहीं तो हम अभी चले जाते हैं । हम तो तुम्हें परेशानी से निकालने के लिए और मासूमों की जान न जाये, इसलिए इस मामले में दखल दे रहे हैं । एक कोशिश करने जा रहे ।”

दुलानी पुनः दाँत किटकिटा उठा ।

“बेबी !” महाजन ने तीखे स्वर में कहा, “चलते हैं हम । हमें क्या लेना-देना ।”

“ठीक कह रहे हो महाजन !” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा, “दुलानी साहब को हमारी मौजूदगी... ।”

“सॉरी !” दुलानी ने लम्बी गहरी साँस ली । चेहरे पर अभी भी गुस्सा था, “सच में मैं बहुत गुस्से में आ गया । वो... वो हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे और वो हर रोज किसी-न-किसी की जान ले लेता है । एक साथ कई जानें लेता है । ये सब मेरे बर्दाश्त से बाहर नहीं हुआ तो मैं गुस्से से फूट पड़ा । मैं... मैं तुम लोगों पर गुस्सा नहीं हूँ ।”

“मैं समझ रही हूँ कि हालातों पर तुम्हें क्रोध आ रहा है । लेकिन ऐसा करके कुछ भी हासिल नहीं कर सकते । वक्त ऐसा है कि संयम से काम लेना चाहिए । तुमने मुझे मौका दिया है इस मामले में कुछ करने का तो देखो क्या होता है । शायद कुछ हो जाये, या तुम्हें और भी लाशें गिननी पड़ें । उनमें हमारी लाशें भी हो सकती हैं ।”

“बेबी !” महाजन ने जल्दी से कहा, “ऐसी भयानक बातें मत करो ।” फिर दुलानी से बोला, “अब छोड़ो इन बातों को । मेरी बोतल सुबह ही खत्म हो गई थी । ताजी सीलबंद बोतल मँगवा... ।”

हरीश दुलानी ने बोतल मँगवा दी ।

महाजन ने बोतल खोली और दो तगड़े घूँट भरे ।

“जाल तैयार हो रहे हैं ?” मोना चौधरी ने पूछा ।

“हाँ !” दुलानी ने एक हाथ उठाया, “उधर अलग कुछ पुलिस वाले जाल बनाने में लगे हैं । सुबह पुलिस वालों की हत्याओं की वजह से काम रुक गया था । लेकिन अब काम हो रहा है । आधी रात को ही काम शुरू हो गया था ।”

मोना चौधरी उधर बढ़ गई, जिधर हरीश दुलानी ने इशारा किया था ।

दुलानी उधर जाने लगा तो महाजन ने टोका ।

“तू किधर जा रहा है ?”

“मोना चौधरी के... ।” दुलानी ने कहना चाहा ।

“वो जालों को देख लेगी ।” महाजन बोतल थामे एक कदम उठाकर कुछ पास आया, “तेरे को मालूम है, बेबी बहुत बड़ा खतरा उठाने जा रही है ।” महाजन गंभीर हो गया था ।

“पूरा तो नहीं, कुछ-कुछ अंदेशा है ।” दुलानी एकाएक बेचैन हो उठा, “मोना चौधरी उस रहस्यमय जीव को जाल में फँसा लेना चाहती है । ये सब वो कैसे करेगी ? क्यों कर रही है ? उसके बाद क्या होगा, कुछ समझ में नहीं आता ।”

“पूछा नहीं ?”

“पूछा था कल । तुम्हारे सामने ही । मोना चौधरी ने तब कहा कल बताएगी ।” दुलानी ने महाजन को देखा ।

“मतलब कि आज बताएगी ?”

हरीश दुलानी ने सहमति से सिर हिलाया ।

“एक सलाह दूँ ।” महाजन ने धीमे स्वर में कहा ।

“क्या ?”

“बेबी से कुछ मत कहना ।”

“क्यों ?” दुलानी के चेहरे पर उलझन उभरी ।

“मुझे डर है कि कहीं बेबी को गुस्सा न आ जाये । वो इस काम से पीछे न हट जाये ।” महाजन ने समझाने वाले ढंग से कहा, “बेबी पीछे हट गई तो तेरे को नुकसान है कि रहस्यमय जीव का मामला नहीं निपट पायेगा और जाने कितने लोगों की वो जानें ले लेगा, वो अलग बात है ।”

“तू ।” दुलानी की आँखें सिकुड़ चुकी थीं, “क्या समझता है, मोना चौधरी इस तरह मामला निपटा लेगी ?”

महाजन कुछ पलों की सोच में रहा । घूँट भरा फिर बोला ।

“मैं क्या समझता हूँ, सुन ले । बेबी को मैं पुराना जानता हूँ । वो कोई भी काम यूँ नहीं करती । बहुत सोच-समझकर करती है । कभी बता देती है तो कभी नहीं ! कभी कम बताती है काम के बारे में तो कभी ज्यादा बता देती है । जबरदस्ती को वो पसंद नहीं करती । रोक-टोक भी उसे पसंद नहीं है । लेकिन अपने काम में मात नहीं खाती ।”

“ये सब मुझे क्यों बता रहा है ?”

“बता नहीं रहा । समझा रहा हूँ कि बेबी जो कर रही है, उसे करने दो । उसके काम में दिल लगाकर सहायता कर । शक की निगाहों से उसे मत देख । वो रहस्यमय जीव को छोड़ने वाली नहीं !” महाजन का स्वर धीमा था, “बेबी को मत बताना कि मैंने इस बारे में तुमसे कोई बात की है । वरना वो मेरा बुरा हाल कर देगी ।”

दुलानी उसे देखने लगा ।

“क्या देख रहा है ?”

“मालूम नहीं !” दुलानी ने गहरी साँस लेकर इधर-उधर देखा, “मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा ।”

“वही तो समझा रहा हूँ कि बेबी को सुनता रह । उस पर चलता रह । फिर देख ।”

तभी मोना चौधरी उनकी तरफ बढ़ती नजर आई ।

“बेबी आ रही है । उसे मत बता देना कि मैंने तेरी बेकार खोपड़ी में अच्छी बात डालने की कोशिश की है ।” महाजन ने जल्दी से कहा ।

उसने ये सब इसलिए दुलानी से कहा था कि वह उखड़ना छोड़कर मोना चौधरी की सहायता करता रहे । जबकि खुद उसे नहीं मालूम था कि मोना चौधरी आगे क्या करने जा रही है । वह तो चाहता था, जो भी हो, शांति से हो । दुलानी बात-बात पर उखड़ता न रहे ।

मोना चौधरी के करीब आते ही दुलानी कह उठा ।

“जाल ठीक लगा ?”

“हाँ ! जो कमी थी, वो तिवारी को समझा आई हूँ । एक जाल लगभग पूरा हो गया है और तिवारी का कहना है कि शाम तक दूसरा जाल भी तैयार हो जायेगा ।” मोना चौधरी ने कहा, “कुछ सामान मँगवाना है ।”

“कैसा सामान ?”

महाजन की निगाह भी मोना चौधरी की तरफ उठी ।

“बेहोशी की ऐसी दवा, जिससे दो शेरों को भी बेहोश करना पड़े तो कामयाबी मिले । साथ ही ऐसी सीरिंज जिससे घोड़े को इंजेक्शन लगाया जाता है । ये सामान पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए ।”

दुलानी ने महाजन को देखा तो उसने तुरन्त उसे इशारा किया कि 'हाँ' कह दे ।

“मैं किसी को भेजता हूँ सामान लाने के लिए ।” दुलानी बोला ।

मोना चौधरी ने दुलानी की आँखों में झाँका ।

“तुमने पूछा नहीं कि ये सामान क्यों मँगवा रही हूँ ?”

पल भर के लिए दुलानी सकपकाया फिर संभलकर कह उठा ।

“मैंने फैसला कर लिया है कि तुम्हारी हर बात को बिना पूछे मान लूँगा । तुम जो करना चाहती हो, करो । कुछ भी नतीजा हो, अच्छा या बुरा, मैं जल्द-से-जल्द देखना चाहता हूँ ।”

“तुम्हारी आदत से तुम्हारे शब्द मेल नहीं खा रहे ।” मोना चौधरी लापरवाही से बोली, “कागज-पेन दो । बाकी जो सामान चाहिए, वो कागज पर लिख देती हूँ ।”

दुलानी ने जेब से डायरी-पेन निकालकर मोना चौधरी की तरफ बढ़ाया ।

मोना चौधरी ने डायरी पर जरूरत की चीजें लिखीं फिर डायरी दुलानी की तरफ बढ़ा दी । दुलानी ने डायरी में लिखे सामान को देखा फिर कहते हुए पलटा ।

“मैं पुलिस वालों को भेजकर सारा सामान मँगवाता हूँ ।”

दुलानी जब दूर हो गया तो मोना चौधरी ने महाजन को देखा ।

“तुमने इसे क्या कहा कि ये बिना कुछ पूछे ही मेरी हर बात मानता जा रहा है ?”

महाजन ने बताया ।

मोना चौधरी गहरी साँस लेकर रह गई ।

दस मिनट बाद हरीश दुलानी वापस लौटा ।

“लंच तक तुम्हारी लिस्ट का सारा सामान आ जायेगा ।” उसने कहा ।

“ठीक है ! तुम कोई पुलिस कार लो । हम तीनों उस तरफ चलेंगे, जिधर गीली मिट्टी पर पाँवों के निशान हैं । जहाँ तक कार जा सकेगी, ठीक उसके बाद वहाँ से आगे हम पैदल चलेंगे ।”

“तीन तो कम रहेंगे । कुछ पुलिस वाले ले लेते ।”

“मेरे ख्याल में रहस्यमय जीव की तरफ से कोई खतरा अभी सामने नहीं आएगा ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “सुबह वो तीन पुलिस वालों को मारकर हटा है । अब वो कहीं शांत बैठा आराम कर रहा होगा ।”

दुलानी के चेहरे पर दुःख के भाव उभरे ।

“फिर भी सावधानी के नाते हथियारबंद पुलिस वाले साथ ले लेते तो... ।”

“क्या जरूरत है दुलानी !” महाजन ने टोका, “बेबी कुछ कह रही हैं तो कुछ सोच-समझकर ही कह रही होगी ।”

दुलानी की निगाह महाजन पर गई । साथ ही सहमति से सिर हिलाकर कह उठा ।

“जैसी तुम लोगों की मर्जी ।”

उस रास्ते पर जहाँ तक पुलिस जा सकती थी, वहाँ तक वे कार पर गए । उसके बाद पैदल ही आगे बढ़ने लगे । वे सतर्क थे ।

दिन के बारह बज रहे थे । सूर्य सिर पर था ।

“मोना चौधरी !” हरीश दुलानी कह उठा, “मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि तुम इस तरफ क्या करने जा रही हो ?”

मोना चौधरी ने दूर-दूर तक धूप में चमकती सपाट बंजर जमीन पर नजर मारते हुए कहा ।

“इतना तो तय है कि वो रहस्यमय जीव इधर से ही आता है । इधर ही कहीं उसका ठिकाना है । तुम्हारा ख्याल ठीक था दुलानी, कि वो इधर ही रहता है ।”

“ये तुम कैसे कह सकती हो बेबी ?” महाजन के होंठों से निकला ।

“क्योंकि इसी तरफ मीलों तक खाली बंजर जमीन है, जहाँ कोई नहीं रहता । ऐसी किसी जगह पर ही वो रहने का ठिकाना बना सकता है । इधर के अलावा ऐसी कोई जगह नहीं कि वो रह सके । रहेगा तो फौरन नजर में आ जायेगा ।”

“ठीक कहा तुमने ।” हरीश दुलानी गंभीरता से कह उठा ।

“लेकिन मीलों फैली बंजर जमीन पर वो कहाँ है, ये तलाश कर पाना बेहद कठिन है । खतरे से भी खाली नहीं ! जाने कहाँ पर हमें घेर ले । हमला बोल दे । हम उसकी ताकत का मुकाबला नहीं कर सकते । हर कदम बहुत संभलकर उठाना है । हमें उस पर जीत हासिल करनी है । वो हमसे जीत न जाये, इसका खास ख्याल रखना है ।”

“मुझे एक बात समझ नहीं आ रही कि जब उसे शूट किया जा सकता... ।”

“बेकार की बातें मत करो दुलानी ।” मोना चौधरी ने आगे बढ़ते हुए उसे देखा, “उसे शूट करना भी आसान नहीं । गोलियाँ उसके जिस्म में धँस जाएँगी । उसे पीड़ा के अलावा ऐसा कुछ नहीं होगा । बल्कि वो और भी बड़ा दरिंदा बन जायेगा । अभी तो वो छिपकर वार करता है फिर भाग जाता है । बाद में ऐसा न हो कि वो पूरा ही पागल हो जाये । अपने अच्छे-बुरे को भूल जाये । समझदारी छोड़ दे और भीड़ में पहुँचकर हत्याएँ करना शुरू कर दे । तब उस पर काबू पाना कठिन होगा । जब तक काबू पाया जायेगा, वो जाने कितनी लाशें बिछा देगा ।

दुलानी कुछ न कह सका ।

“लेकिन हम इस वक्त इधर क्या करने आये हैं ?” महाजन बोला ।

“कुछ देर रुको । मालूम हो जायेगा ।”

दो घण्टे वे उन्हीं जगहों को छानते रहे । फिर मोना चौधरी ने दो जगहें पसन्द की । एक जगह तो उस गीली मिट्टी के काफी आगे जाकर थी । दूसरी गीली मिट्टी के इस तरफ दूसरी दिशा में । दोनों जगहों पर चार कोनों में उसने पत्थरों का रखकर निशाना लगाये । वह जाल के लम्बाई-चौड़ाई जितनी जगह थी, वह जाल बनाया जा रहा था ।

महाजन और दुलानी उलझन में थे ।

“ये क्या कर रही हो ?” आखिरकार दुलानी ने पूछा ।

“जहाँ-जहाँ मैंने पत्थर रखे हैं, उस जगह को सेंटर समझकर तुम्हारे पुलिसमैन दो-ढाई फीट गहरे और चौड़े ऐसे गड्ढे खोदेंगे कि एक आदमी उनमें लेट सके ।”

“क्या ?” दुलानी की आँखें सिकुड़ी, “ऐसा क्यों, तुम क्या करना... ।”

“दुलानी !” महाजन कह उठा, “प्लीज, बेबी को अपना काम करने दो ।”

दुलानी ने बिना कुछ कहे मुँह घुमा लिया ।

“इधर और उधर ।” मोना चौधरी बोली, “दोनों जगहों पर यानी कि कुल आठ गड्ढे खोदने हैं । ये काम सूर्य छिपने से पहले तक हो जाना चाहिए ।”

“हो जाएगा ।” दुलानी बोला, “दोपहर होने वाली है । मैं पुलिसमैनों को बुलाकर... ।”

“हम भी वापस चल रहे हैं ।” मोना चौधरी ने कहा, “तुम हमारे साथ ही काम में हो तो तुम्हें मालूम होना चाहिए कि हम क्या करने जा रहे हैं । महाजन भी ऐसा कुछ नहीं जानता । अब मैं कुछ बताऊँगी ।”

हरीश दुलानी, मोना चौधरी के गंभीर चेहरे को देखने लगा ।

तीनों वापस चल पड़े ।

“पुलिस वाले ऐसी वीरान जगह पर आने में कुछ परेशानी महसूस करेंगे ।” दुलानी कह उठा ।

“रहस्यमय जीव के डर की वजह से ?”

“हाँ !”

“मुझे पूरा विश्वास है कि अभी वो जहाँ भी होगा, आराम कर रहा होगा । फिर भी तसल्ली के लिए, ज्यादा पुलिस वाले यहाँ भेज देना । बेशक हथियार उनके हवाले कर देना । लेकिन शाम तक आठों गड्ढे तैयार हो जाने चाहिए ।”

“ये काम तो पक्का हो जायेगा ।” दुलानी ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।

☐☐☐

दोपहर के ढाई बज रहे थे ।

हरीश दुलानी पुलिस वालों को वहाँ छोड़ आया था, जहाँ-जहाँ गड्ढे खोदने थे । दोनों जगह पर पंद्रह-पंद्रह हथियारबंद भी थे कि रहस्यमय जीव का खतरा आये तो वे अपनी रक्षा कर सकें ।

मोना चौधरी, महाजन और हरीश दुलानी लंच ले चुके थे और अब टेबल की बगल में कुर्सियाँ रखे पुलिस वालों से हटकर पेड़ की छाया में बैठे थे । एक पुलिस वाला चाय के गिलास टेबल पर रख गया था । महाजन ने चाय का प्याला एक तरफ सरकाकर, बोतल से घूँट भरा ।

मोना चौधरी ने जो सामान मँगवाया था, वह आ चुका था । वह सामान को देखकर तसल्ली कर चुकी थी ।

“तुमने बताने को कहा था कि हम क्या करने जा रहे हैं ।” हरीश दुलानी कह उठा ।

चेहरों पर सोचों के भाव समेटे मोना चौधरी ने चाय का घूँट भरा ।

“हरीश दुलानी साहब ! “ मोना चौधरी एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठी, “आपको खास तौर पर मेरी बात गंभीरता से सुननी है । मामले की नाजुकता को समझना है । जैसा कि मैं पहले भी कह चुकी हूँ कि ये सारा मामला तब ही बिगड़ा जब रहस्यमय जीव की छाती में गोली लगी । तभी वो हिंसक बना । जल्लाद बना । जब तक मन में हम इस विचार को पक्का न कर लें, तब तक आगे नहीं बढ़ सकते । वो कौन है, कहाँ से आया है । उसे पहले क्यों नहीं किसी ने देखा । इस बात से, इस वक्त हमारा कोई वास्ता नहीं !”

मोना चौधरी ठिठकी । दोनों को देखा ।

दुलानी ने चाय का घूँट भरा ।

महाजन की नजरें मोना चौधरी पर थीं ।

“उस रहस्यमय जीव पर काबू पाना असंभव लग रहा है । उसकी जान लेने की कोशिश में कई तरह की परेशानियाँ खड़ी हो सकती हैं । जानें जा सकती हैं । ऐसे में मैं तय कर चुकी हूँ कि उसे जाल में फँसाकर, दवा से बेहोश करके उसकी छाती में धँसी गोली निकालूँगी । और... ।”

“क्या ?” हरीश दुलानी चिहुँक पड़ा ।

“बेबी !” महाजन हड़बड़ा उठा, “ये क्या कह रही हो ?”

“जब उसे गोली लगी तो वो सबका दुश्मन बन गया । पहले वो ऐसा नहीं था । मेरा ख्याल है कि उसकी छाती में धँसी गोली से अभी भी उसे दर्द हो रहा है । यही वजह है कि वो अभी तक क्रोध में है और लोगों को मारता फिर रहा है । वरना सामान्य स्थिति में वो दो-चार को मारकर चुप हो जाता, परन्तु धँसी गोली से उठने वाले दर्द के कारण उसके मन में नफरत और गुस्सा भरा रहता है और इसी वजह से वो लोगों की जानें लिए जा रहा है ।”

“बकवास ।” दुलानी उखड़े स्वर में कह उठा, “मैं नहीं मानता कि... ।”

“दुलानी !” महाजन ने टोका, “पूरी बात तो सुने ले ।”

महाजन को देखकर दुलानी दाँत भींचकर रह गया ।

“सुनने में ये अजीब और न समझ में आने वाली बात लगती है, लेकिन मैंने हर पहलू पर विचार करके ही ये सब तय किया है । बुराई का जवाब बुराई से नहीं देना है हमें । गलती हमारी है । उसने किसी को कुछ नहीं कहा । तकलीफ उसे गनमैन ने दी । उसके बाद ही उसका मिजाज बिगड़ा ।”

“मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ कि तुम इतना रहम दिल क्यों बन रही हो ।” दुलानी तेज स्वर में कह उठा, “उसे जाल में फँसाकर हम आसानी से उसे खत्म... ।”

“मैं उसे खत्म नहीं करना चाहती ।” मोना चौधरी कह उठी ।

“क्यों ?”

“उसका कसूर क्या है दुलानी साहब ?”

“अरे, अब मैं बताऊँ कि कसूर क्या है ?” दुलानी ने गुस्से और उलझन में पहलू बदला, “उसने हमारी नींद उड़ाकर रख दी है । उसका आतंक बढ़ता ही जा रहा है । उसकी हरकतें तेज होती जा रही हैं । लाशें गिरा रहा है वो । मासूम लोगों की जानें ले रहा है और तुम उसका कसूर पूछती हो ।”

“मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि वो किसी को कुछ नहीं कहता था । पहले उसे गोली मारी गई तभी... ।”

“जाल में फँसाकर तुम उसे मार क्यों नहीं देती !”

“मैं उसकी जान नहीं लूँगी ।” मोना चौधरी ने उसकी आँखों में झाँका, “मुझे अपना काम करने दो ।”

दुलानी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला कि महाजन कह उठा ।

“पूरी बात तो सुन लो दुलानी !” क्यों हत्थे से उखड़े जा रहे हो । समझाया था तुम्हें कि... ।”

“लेकिन... ।”

“चुप ! बाद में बात करेंगे । पहले सुन ले ।”

हरीश दुलानी दाँत पीसकर रह गया ।

“बेबी !” महाजन गंभीर स्वर में बोला, “बात तो यहीं अटक जाती है कि अभी तक हम उसे देख नहीं पाये तो ऐसे में उसे जाल में कैसे फँसा लेंगे । हमें ये नहीं मालूम कि वो जाता किधर है और आता किधर से है ।”

“मेरे ख्याल में उसे जाल में फँसाना कोई समस्या नहीं है । मैं सोच चुकी हूँ । शाम को हम वहाँ चलेंगे, जहाँ गड्ढे तैयार किये जा रहे हैं । तब बताऊँगी कि वो कैसे जाल में फँसेगा ।”

“माना कि वो जाल में फँस गया । तुमने उसकी छाती से गोली निकाल दीं । फिर ।”

मोना चौधरी बेहद शांत ढंग से मुस्कुराई ।

“वो नशे की दवा के असर में बेहोश होगा । उसे हम जाल से आजाद करके वापस आ जायेंगे ।”

महाजन और हरीश दुलानी की नजरें मिलीं ।

“ये तो पागलों वाली बात है महाजन साहब !” दुलानी बोला, “अब तो मेरा साथ दे दो ।”

“शायद तुम ठीक कह रहे हो ।” महाजन ने घूँट भरा और व्याकुलता से पहलू बदला फिर मोना चौधरी को देखा, “मेरे ख्याल में तुम गलत सोच रही हो । तुम्हारी बात किसी और को भी ठीक नहीं लगेगी ।”

“क्यों ?”

“तुम उसकी छाती में धँसी गोली निकालोगी । जब वो बेहोशी से बाहर निकलेगा तो उसे और भी दर्द होगा । क्योंकि गोली निकालने के लिए उसकी छाती के जख्म को छेड़ा गया होगा । ऐसे में लोगों के लिए और भी घातक हो सकता है । वो पागलों की तरह गाँव में घुसकर या बीच पर जाकर जाने कितने लोगों को मार देगा ।”

मोना चौधरी, महाजन को देखती रही फिर सिर हिलाकर धीमे स्वर में कह उठी ।

“ये खतरा अवश्य है । इतना खतरा तो हमें उठाना ही पड़ेगा ।”

“इतना खतरा ?” दुलानी ने मोना चौधरी को घूरा, “मैं कहता हूँ सारा ही खतरा है । तुम्हारा हर कदम खतरे से भरा है । उसे जाल में भी नहीं फाँसा जा सकता ।”

मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा ।

“मुझे अभी बताओ कि उसे जाल में कैसे फँसाओगी ?”

“इसके लिए मुझे सख्त जान, हिम्मती आठ-दस पुलिस वालों की जरूरत पड़ेगी ।”

“इस वक्त यहाँ बहुत पुलिस है । ऐसे जवान मिल जायेंगे । लेकिन तुम कैसे उसे जाल में... ?”

मोना चौधरी ने बताया कि वह काम कैसे होगा ।

“असम्भव ! ये नहीं हो सकता । तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है ।” दुलानी के होंठों से निकला, “मैं अपने साथियों की जान तुम्हारी बेवकूफी वाली हरकतों की वजह से गँवा नहीं सकता ।”

“बेबी !” महाजन आगे झुककर मोना चौधरी की आँखों में झाँककर बोला, “तुम्हारी इस बात से मैं जरा भी सहमत नहीं हूँ । जरा-सी चूक होते ही वो सबकी लाशें बिछा देगा । वैसे भी तुम्हारी ये बात भी मुझे खास जँची नहीं है कि उसे जाल में फँसाकर, उसकी छाती से गोली निकालकर उसे छोड़ दिया जाये । ये सब करना तो शेर के पिंजरे में जाकर नींद लेने जैसा है । इतना बड़ा खतरा उठाना तो... ।”

“यही तो मैं कह रहा हूँ ।” दुलानी बोला, “इसकी बातें समझ से बाहर है ।”

“तुम मत कहो ।” महाजन ने टोका, “मुझे कह लेने दो । तुम्हारी और मोना चौधरी की बातों में सिर्फ इतना ही फर्क है कि बेबी की बात मानेंगे तो एक ही बार में कई लोग मारे जायेंगे । तुम्हारी बात मानेंगे तो हर रोज बारी-बारी लोग मरते रहेंगे । अब सोचने की बात तो ये है कि तुम दोनों में से किसकी बात माननी चाहिए ।”

हरीश दुलानी ने खा जाने वाली निगाहों से महाजन को देखा ।

“तुम बात कर रहे हो या मोना चौधरी की साइड ले रहे हो ।” उसने तीखे स्वर में कहा ।

“मैंने तो तुम्हारी भी साइड ली है । कुछ गलत कहा हो तो बता दो । जब तक उस रहस्यमय जीव की हरकतें जारी हैं, तब तक तुम दोनों की ही बातें एक जैसी हैं । वो मासूमों को मारता रहेगा । तुम दोनों हाँ-न करते रहोगे । बैठे-बैठे !”

“क्या कहना चाहते हो ?” दुलानी ने अपना गुस्सा दबा रखा था ।

“वही जो पहले कहा था ।” महाजन गंभीर था, “तुमने अपनी कोशिश कर ली । बेबी को भी हाथ आजमा लेने दो ।”

“तुम्हारा मतलब कि मैं इसकी पागलों वाली हरकतों में साथ दूँगा ।” दुलानी फट पड़ा, “उसे इस तरह नहीं फाँसा जा सकता । वो नहीं फँसेगा और पुलिस वाले मारे जायेंगे । मैं ऊपर वालों को क्या जवाब दूँगा । ऊपर से तुम कहती हो कि इसे फाँसकर छाती में अगर गोली धँसी है तो वो निकालकर उसे आजाद छोड़ दिया जाये, ताकि बाद में जब वो होश में आये तो गुस्से में वो लोगों पर और भी तीव्रता से हमले करें ।”

“दुलानी !” महाजन कह उठा, “ये मत भूलो कि वो रहस्यमय जीव लोगों की जानें लेता जा रहा है । तुम उसकी हवा भी नहीं पा सके । वो तुम्हारे पुलिस वालों को भी मार गया । अभी जाने कितनी जानें लेगा । मैं बेबी की बात से खास सहमत नहीं हूँ, लेकिन एक बार इसकी कोशिश भी देख लेते हैं और... ।”

“और लाशें उठा लेते हैं।”

“वो तो तुमने वैसे भी उठानी हैं ।” महाजन गंभीर था, “सब कुछ तुम्हारे सामने ही है । मैं फिर कह रहा हूँ कि बेबी की बात खास नहीं जँची, लेकिन ये काम ऐसा है कि जुआ खेलना ही पड़ता है । अगर गलती से कामयाबी हाथ लग गई तो सोचो तुम्हारा कितना नाम होगा । इस तरह रहस्यमय जीव का केस शायद किसी ने पहले हल नहीं किया होगा । काम हमने किया और नाम तुम्हारा । यहाँ मौजूद पुलिस वालों को भी कुछ नहीं मालूम कि हम क्या कर रहे हैं । उनकी निगाहों में तुम ही सब कुछ कर रहे हो ।”

“अभी मैंने ऊपर रिपोर्ट नहीं भेजी ।” हरीश दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “ऐसे में तुम जो कर रहे हो, उसकी वजह से पुलिस वालों की जानें गयीं तो मुझे जवाब देना भारी हो जायेगा ।”

“रहस्यमय जीव ने कल की तरह पाँच-सात पुलिस वालों को और मार दिया तो जवाब तब भी तुम्हें देना पड़ेगा । एक बार कोशिश करके... ।”

“बस करो ! क्यों मेरा दिमाग खराब कर रहे हो !” कहने के साथ ही हरीश दुलानी ने कुर्सी की पुश्त से सिर टिकाकर आँखें बन्द कर लीं ।

मोना चौधरी ने महाजन को देखा । महाजन दूसरी तरफ देख रहा था ।

वहाँ छाई चुप्पी को मोना चौधरी ने तोड़ा ।

“मिस्टर दुलानी, हमारी मौजूदगी में तुम खुद को किसी तरह से मजबूर पा रहे हो तो हमें जाने को कह सकते हो ।”

“सच में मैं खुद को मजबूर पा रहा हूँ । तुम दोनों की मौजूदगी की वजह से नहीं, बल्कि अपनी कलाई की हड्डी टूटने की वजह से । मैं इस मामले में कुछ कर पाने के काबिल नहीं रहा ।”

“तुम हमारे साथ तो हो ।”

“साथ होना अलग होता है और साथ रहकर सब कुछ देखना अलग बात है ।” दुलानी ने अफ़सोस भरे स्वर में कहा ।

“महाजन !” मोना चौधरी उठी ।

“यस बेबी !” महाजन ने मोना चौधरी को देखा, “चलें क्या ?”

“हाँ ! मिस्टर दुलानी की सोच है कि वो खुद ही रहस्यमय जीव से... ।”

“ऐसी बात नहीं !” दुलानी दोनों को देखते बेबस स्वर में कह उठा, “तुम जो करना चाहती हो, कर लो ।”

“दिल से कह रहे हो ?” मोना चौधरी शांत गंभीर थी ।

“नहीं ! मजबूरी में कह रहा हूँ, यही बहुत है । अगर पुलिस वाले और मरे तो मेरी नौकरी जाने के साथ-साथ मुझे लापरवाही के जुर्म में जेल भी जाना पड़ सकता है ।” हरीश दुलानी की निगाह मोना चौधरी पर थी, “क्योंकि तब तो मैं अपने ऑफिसरों को या अदालत में ये नहीं समझा पाऊँगा कि मैं क्या करना चाहता था । तब जो भी मेरी बात सुनेगा, पागल ही समझेगा मुझे । लगता है, जैसे आने वाला वक्त दिखाई दे रहा है मुझे ।”

“काम तभी पूरा होता है जब मन में विश्वास हो ।” महाजन धीमे स्वर में बोला ।

“तुम्हारे मन में विश्वास है तो फिर मेरे विश्वास की क्या जरूरत है ।” दुलानी ने अनमने मन से कहा ।

“मैं तुम्हारी हालत समझ रही हूँ ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “लेकिन इस बात को भी हर पल याद रखो कि वहाँ मौजूद पुलिस वालों की जानें ही नहीं जाएँगी, गड़बड़ होने की हालत में मेरी और महाजन की जानें भी साथ ही जाएँगी ।”

हरीश दुलानी ने दोनों को देखा । कहा कुछ नहीं । वह बहुत बेचैन, परेशान दिखाई देने लगा था ।

☐☐☐

बारह पुलिस वाले साथ थे । दुलानी ने उन्हें खुद चुना था । वे बहादुर और दिलेर थे । कुछ कर गुजरने की हिम्मत और चाहत रखते थे । उनसे दुलानी ने स्पष्ट बात कर ली थी कि इस खतरनाक काम में उनकी जान भी जा सकती है । लेकिन उन चुने हुए पुलिस वालों की तो आदत थी खतरों से खेलने की । ऐसे कामों में उन्हें मजा आता था ।

वे शाम के सवा पाँच बजे वहाँ पहुँचे ।

मोना चौधरी ने उन दोनों जगहों को देखा जहाँ उसने गड्ढे खोदने को कहा था । सारा काम उनकी पसंद के मुताबिक ही पूरा हुआ था । सब ठीक रहा । मोना चौधरी से पूछकर दुलानी ने दिन में गड्डा खोदने आये पुलिस वालों को और उनके साथ मौजूद हथियारबंद पुलिस वालों को वापस भेज दिया था, क्योंकि वे थके हुए थे ।

अब वहाँ मोना चौधरी, महाजन, हरीश दुलानी और बारह पुलिस वाले थे । सब उस गीली मिट्टी के काफी आगे खुद गड्ढों के पास मौजूद थे । दुलानी मन-ही-मन बेहद बेचैन था । अपने पर काबू किये हुए था । वह सामान्य दिखने की चेष्टा कर रहा था । महाजन और मोना चौधरी गम्भीर नजर आ रहे थे । जबकि वहाँ मौजूद बारह पुलिस वाले जानने को उत्सुक थे कि उन्हें क्या करना है ? वैसे वे जानते थे कि जो भी होगा वह काम रहस्यमय जीव के सम्बन्ध में है ।

मोना चौधरी ने गंभीर निगाहों से सभी पुलिस वालों को देखकर कहा ।

“हम जो करने जा रहे हैं, वो बहुत खतरनाक है । उस काम को करने की कोशिश में यहाँ हम लोगों की लाशें भी बिछ सकती हैं । इस काम में हम सौ प्रतिशत असफल भी हो सकते हैं और सौ प्रतिशत सफल भी हो सकते हैं ।”

“आप हमें काम बताइये मैडम !” एक पुलिस वाले ने कहा ।

मोना चौधरी ने दुलानी पर निगाह मारकर, पुनः पुलिस वालों से कहा ।

“ये सारा प्लान, सारी योजना इंस्पेक्टर दुलानी साहब की है । लेकिन इनकी बाँह में तकलीफ है । ये ज्यादा भागदौड़ करना ठीक नहीं समझते तो समझाकर हमें आगे कर दिया । किसी को तो सामने करना ही था । वो तुम लोगों में से कोई भी हो सकता है । वैसे ये इंस्पेक्टर दुलानी की हिम्मत ही है कि रहस्यमय जीव से टक्कर लेने के बाद, कठिनता से बची जान के बाद भी घबराये नहीं और जान की परवाह न करके, अभी भी मौत से भरे काम को अंजाम देने को तैयार हैं ।”

महाजन और दुलानी की निगाहें मिलीं ।

दुलानी के चेहरे के भाव देखने लायक थे । मोना चौधरी के शब्दों पर उसने मुस्कुराने का भरसक प्रयत्न किया । मन में था कि मोना चौधरी उसके ताबूत पर कीलें ठोके जा रही है ।

“जो मैडम कहे, वो करना है तुम सबको ।” दुलानी मन मारकर ऊँचे स्वर में पुलिस वालों से कह उठा, “मैंने इन्हें सब समझा दिया है । वैसे मैं साथ ही हूँ । मुझे पूरा विश्वास है कि हम अपनी कोशिश में पूरी तरह सफल होंगे ।”

“यस सर !” बारी-बारी कई पुलिस वाले कह उठे ।

मोना चौधरी बोली ।

“अब सुनो कैसे काम करना है ? योजना क्या है ? ये जो दो जाल तैयार किये गए हैं, बहुत मजबूत हैं । जाल की रेशम की डोरियों को ताकत से ताकतवर इंसान भी खींच कर नहीं तोड़ सकता । बेशक वो रहस्यमय जीव ही क्यों न हो । ताकत का इस्तेमाल हर जगह पर नहीं होता, जैसे कि इस जाल को खींचकर नहीं तोड़ा जा सकता । सिर्फ काटकर ही आजाद हुआ जा सकता है । हमने इस जाल में आतंक बन चुके उस रहस्यमय जीव को फँसाना है ।”

“ओह !”

“ये कैसे होगा ?”

“बहुत खतरा है इसमें । ऐसा मुमकिन हो सकेगा ?”

“ऐसी कोशिश में कितना मजा आएगा ।”

उन पुलिस वालों की आवाजें गूँज उठी ।

मोना चौधरी ने गंभीर निगाहों से सबको देखते हुए कहा, “इस कोशिश में तभी सफल होने के चांसेस हैं, जब तुम लोगों का साथ मन से मिले । दुलानी साहब ने तो सिर्फ अपनी योजना बताई है, परन्तु उस योजना को अंजाम देने के लिए मेहनत आप लोगों की चाहिए ।”

“हम इस काम से पीछे नहीं हटेंगे ।”

“दुलानी साहब को यही आशा है । तभी तो इन्होंने तुम सब बहादुरों का चुनाव किया है ।”

“दुलानी ने मन-ही-मन खा जाने वाली निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।

“अब कीलें ठोकनी बन्द भी कर दे ।” दुलानी बड़बड़ा उठा, “कुछ तो तरस खा मुझे पर ।”

“मैंने जो सामान मँगवाया है । उनमें बारह-बारह फीट लम्बे आठ बाँस हैं । एक गड्ढे में एक पुलिस वाला इस तरह लेटेगा कि वो बाहर भी देखता रहे । ये लम्बी और सख्त ड्यूटी होगी । लेकिन ये करना है हमें । चारों गड्ढों में चारों बाँस खड़े किये जायेंगे और जाल के कोनों को बाँस के ऊपरी कोनों में फँसा दिया जायेगा । जैसे कि शादी-ब्याह में टेंट खड़े किये जाते हैं । गड्ढे में लेटे-लेटे बाँस तुम लोगों को ही संभालना है । किसी सहारे से बाँस को इस तरह सेट कर लेना है कि वो हिलता न रहे । इसके साथ ही गड्ढे पर चटाई जैसा छप्पर रखकर ऊपर कुछ मिट्टी बिखरा दी जायेगी कि रहस्यमय जीव फौरन ही शक न खा सके कि हम लोग कुछ कर रहे हैं । छप्पर में से झाँककर आसानी से भीतर से बाहर देखा जा सकता है ।”

“आगे क्या करना है ?” एक पुलिस ने उत्सुकता से पूछा ।

मोना चौधरी सिर हिलाकर कह उठी ।

“रहस्यमय जीव का ठिकाना तो हम नहीं जान सके । लेकिन इस बात का पक्का विश्वास है कि वो उधर से ही आता है । इन्हीं रास्तों के पास से गुजरकर, सड़क तक पहुँचता है । जरूरी नहीं कि आज रात वो इधर ही आये । वो किसी दूसरी दिशा की तरफ भी निकल सकता है । लेकिन हम ज्यादा जगह गड्ढे खुदवाकर इस तरह का इंतजाम नहीं कर सकते । मैंने पहले ही कहा है कि इतंजार करना पड़ सकता है । वो जल्दी या देरी से इधर से गुजरेगा अवश्य । क्योंकि मेरे ख्याल में वो इस बात को भाँप चुका है कि सड़क के किनारे मौजूद लोग (पुलिस वाले) उसी के पीछे हैं और शायद वो गुस्से में पुलिस वालों के पीछे पड़ गया है कि इन्हें पहले खत्म करूँ । तभी इस बात की दुलानी साहब को आशा है कि वो रहस्यमय जीव जल्दी ही पुलिस वालों की तरफ आयेगा ।”

“एक कील और ठोंक दी ।” दुलानी भारी साँस लेकर बड़बड़ा उठा ।

“लेकिन ये बात विश्वास के साथ कही जा सकती है कि वो जीव पुलिस वाले के पीछे पड़ गया है ?” एक पुलिस वाला बोला ।

“उस रात वो गाँव में आकर चुपचाप उन बाप-बेटों की हत्याएँ कर गया । न तो वो पुलिस वालों को दिखा और न ही गाँव वालों को । जबकि पुलिस वाले गश्त पर थे । स्पष्ट है कि वो समझ गया कि ये लोग उसे ही ढूँढ़ रहे हैं । गाँव के भीतर जाने में उसने सावधानी बरती । तभी तो अगले दिन उसने पुलिस वालों पर हमला किया और तीन को मार डाला । दोबारा गाँव में भी उसने जाना ठीक नहीं समझा, क्योंकि गाँव में पुलिस वालों का घेरा पड़ चुका था । उसने महसूस कर लिया कि सड़क के किनारे टिके लोग उसके काम में रुकावट बन रहे हैं, तो उसने पुलिस वालों को निशाना बनाना शुरू कर दिया । वैसे दुलानी साहब को पूरा विश्वास है कि रहस्यमय जीव, आज रात भी इधर ही आएगा ।”

“ठोक-ठोक, कीलों की क्या कमी है । ताबूत में कोई जगह खाली न बचे ।” बड़बड़ाया दुलानी ।

कुछ पुलिस वालों ने दुलानी को देखा । कहा कुछ नहीं ।

“तो जब गड्ढों से निकलते, ऊपर खड़े बांसों से जाल फँसा, जमीन से ऊपर होगा और रहस्यमय जीव को कोई नजर आएगा तो यहाँ करीब आकर अवश्य देखेगा कि ये सब क्या है ? क्योंकि वो यहाँ की सब जगहों को जानता है कि ऐसी कोई चीज़ पहले नहीं थी, तो ये सब कहाँ से आ गया ?”

सबकी निगाह मोना चौधरी पर थी ।

“जब ये देखते-देखते रहस्यमय जीव ऊपर फैला रखे इस जाल के ठीक नीचे आ जाये तो उसी वक्त यहाँ मौजूद चारों व्यक्तियों ने जाल को नीचे गिरा देना है । ऐसा होते ही जाल उस रहस्यमय जीव के ऊपर आ गिरेगा । इसके साथ ही गड्ढों से चारों ने फौरन बाहर निकलना है और चारों कोनों से होती हुई एक रस्सी अलग है, वो मैं बता दूँगी । गड्ढों से निकलते ही उस रस्सी को खींचना है । ऐसा करते ही जाल के चारों कोने आपस में सिमट जायेंगे । जाल थैले से जैसा बन जायेगा और वो जाल में फँस जायेगा । लेकिन तब वो जाल से निकलने की पूरी कोशिश करेगा । बहुत उछल-कूद मचायेगा । लेकिन उस वक्त तुम लोगों ने हिम्मत नहीं हारनी । जाल की उस रस्सी को मजबूती से पकड़े रहना है । थक-हारकर खुद ही उसकी हरकतें कम होनी शुरू हो जाएँगी । हमने दो जगह पर ऐसा जाल लगाना है । यहाँ और वहाँ । एक जगह पर दूर मैं दो पुलिस वालों के साथ रहूँगी । दूसरी जगह पर मेरा साथी महाजन दो पुलिस वालों के साथ, दूरी पर मौजूद होगा । जहाँ भी वो रहस्यमय जीव फँसेगा, वहाँ हम में से फौरन तीन लोग सहायता के लिए पहुँच जायेंगे ।”

“लेकिन इसमें तो उन तीनों को भी खतरा हो सकता है जो दूर छिपे होंगे ।” हरीश दुलानी कह उठा ।

“खतरे वाला काम तो है ही । सब के लिए खतरा है । हम जहाँ अँधेरे में छिपे होंगे । हो सकता है वो हमारे पीछे से आ जाये और हम पर हमला कर दे । ये भी हो सकता है कि जाल को ठीक तरह न कसा जा सके । ऐसा करने में चूक हो जाये तो वो जल्लाद कहर ढा देगा । अब क्या होता है ? ये तो बाद की बात है ।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा, “हमने कोशिश करने की सोची है, वो कर रहे हैं ।”

गंभीर थे सब ।

एक-दूसरे को देख रहे थे लेकिन कहने को कुछ नहीं था ।

“किसी को और कुछ पूछना हो तो पूछ लो । उसके बाद दुलानी साहब बता देंगे कि कौन से चार तुम में से यहाँ रहेंगे और दो मेरे साथ यहाँ से दूर अँधेरे में छिपेंगे । उसके बाद बाकी के छः को दुलानी साहब और महाजन, दूसरी जगह गड्ढों के पास जायेंगे । वहाँ भी ऐसा सब ही किया जायेगा । दुलानी साहब वहाँ नहीं रहेंगे क्योंकि इनकी कलाई... ।”

“मैं वहाँ रहूँगा । कलाई की बात मत करो ।” दुलानी तीखे लहजे में कह उठा, “उससे हमने हाथ से नहीं लड़ना । जिनकी कलाई नहीं टूटी, वो भी उसके सामने बेबस हैं । अगर वो सामने आ गया तो मेरे वहाँ रहने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।”

मोना चौधरी ने कोई एतराज नहीं उठाया ।

“दूर खड़ी कारों में से एक कार में मेरा मँगवाया सामान है । वो ले आओ, ताकि तैयारी शुरू की जा सके ।”

कुछ पुलिस वाले तेजी से उस तरफ बढ़ गए, जिधर दूर पुलिस कारें खड़ी थीं ।

☐☐☐

रात के दस बज रहे थे ।

आसमान में आज चंद्रमा स्पष्ट था । उसकी महीन रौशनी में दूर-दूर तक अस्पष्ट-सा नजर आ रहा था । तारे तो जैसे चुनरी में लगे सितारों की तरह जगमगा रहे थे । मध्यम-सी चलती हवा, बहुत अच्छी लग रही थी । लेकिन मौत से भरे खतरे का एहसास भी जैसे चंद्रमा की रौशनी के साथ ही फैला नजर आ रहा था ।

उस गहरे सन्नाटे में रोंगटे खड़े कर देने का अजीब-सा एहसास था ।

गीली मिट्टी के काफी आगे खुली जगह में दिन में जो चार गड्ढे खोदे गए थे, वहाँ हर गड्ढे में एक पुलिस वाला लेटा था । गड्ढे के ऊपर छप्पर पड़ा था और छप्पर पर मिट्टी फैला रखी थी कि देखने पर ये एहसास न हो कि वहाँ गड्डा है । चारों गड्ढों से निकलता बाँस ऊपर उठा हुआ था, वह करीब दस फुट ऊपर था जमीन से । बाँस के ऊपर किनारों पर जाल का कोना खास ढंग से अटका था कि जरूरत पड़ने पर बाँस को हल्का-सा झटका देने पर वह जाल बाँस का साथ छोड़कर नीचे जा गिरे । खास ढंग से बनाये जाल में एक डोरी, जाल के बॉर्डर के बीच में से होती हुई, अपने ही दूसरे किनारे के साथ मिलकर लटक रही थी । उन दोनों डोरियों के खींचते ही जाल के हर तरफ के कोनों आपस में मिल जाने थे और जाल के भीतर उस वक्त किसी के मौजूद होने पर उसे जैसे पिंजरे में फँस जाना था ।

बहुत आसान थी, रहस्यमय जीव को फँसा लेने की योजना । लेकिन बहुत ही खतरनाक भी थी ।

जरा-सी चूक और रहस्यमय जीव ने लाशें-ही-लाशें बिछा देनी थीं ।

इन गड्ढों से तीन सौ कदम दूर जमीन पर पेट के बल मोना चौधरी और दोनों पुलिस वाले लेटे थे । मोना चौधरी ने पास ही एक थैला रखा था । उन सबको इंतजार था रहस्यमय जीव के आने का । ठीक ऐसी ही जालबंदी वहाँ से डेढ़ किलोमीटर दूर, दूसरी दिशा में थी । सब कुछ, सारा इंतजाम ठीक था । समय के खतरनाक दौर के बीच में उन्हें अँधा इंतजार था रहस्यमय जीव का, जो जाने कब आये । अभी आये या तब आये, जब इंतजार करते-करते ये सब थक कर चूर हो चुके हों ।

उस जाल से तीन सौ कदम की ही दूरी पर महाजन, हरीश दुलानी और दो पुलिस वाले पेट के बल जमीन पर लेटे इसी तरह निगाहें टिकाये थे । कभी-कभार उनकी नजरें चंद्रमा की रौशनी में नजर आती जमीन पर दूर-दूर चली जाती थीं । देर से उनके बीच बात नहीं हुई थी ।

“महाजन !” दुलानी दबे स्वर में कह उठा, “गड्ढे में मौजूद पुलिसमैनो से हमें ज्यादा खतरा है ।”

“क्योंकि हम खुले में हैं ।” कहते हुए महाजन ने लेटे-ही-लेटे घूँट भरा ।

“हाँ और वो रहस्यमय शख्सियत खामोशी से पीछे से आकर हम पर हमला कर सकती है । ऐसा हो गया तो हमें उठने का भी मौका नहीं मिलेगा ।” दुलानी गंभीर और व्याकुल हो उठा था ।

“ये क्यों नहीं सोचता कि रहस्यमय जीव यहाँ आएगा ही नहीं । दिन की रौशनी फैलते ही हम यहाँ से चले जायेंगे ।”

“अब मुझे लग रहा है कि मोना चौधरी की बात मानकर मैंने गलती की । ये तो पूरा ही खतरे का सौदा है । हमने खुद को जैसे रहस्यमय शख्सियत के सामने पेश कर दिया कि हमारी तलाश में उसे कोई परेशानी न हो ।”

“धीमे बोल ।”

“क्यों ?”

“तेरे बगल में, तेरे साथ ही पुलिस वाले हैं । उन्होंने सुन लिया तो समझ जायेंगे कि तुम योजना से बहुत दूर हो ।”

“प्लीज महाजन, मजाक मत कर ! ये सोच अगर रहस्यमय शख्सियत से हमारा सामना हो गया तो क्या होगा ।” दुलानी फुसफुसाहट भरे स्वर में कह उठा, “हमारे पास तो उसका मुकाबला करने के लिए हथियार भी नहीं हैं ।”

“रिवॉल्वर तो है ।” महाजन ने लापरवाही से कहा ।

“उससे क्या होगा । सिर्फ रिवॉल्वर तो... ।”

“रिवॉल्वर की एक ही गोली से सारी परेशानियाँ दूर हो जाएँगी ।”

“कैसे ?”

“जब वो सामने आये तो अपने सिर पर नाल रखकर ट्रिगर दबा देना सारी मुसीबतें दूर ।”

दुलानी के दाँत किटकिटाये जाने का स्वर, महाजन के कानों में स्पष्ट पड़ा ।

“गुस्सा आ गया ।” महाजन ने धीमी-सी मुस्कान के साथ घूँट भरा ।

“चुप रहो ।” खा जाने वाले अंदाज में दुलानी धीमे से गुर्रा उठा ।

☐☐☐

जानलेवा खामोशी के साथ रात आगे सरकती जा रही थी ।

साढ़े बारह बज चुके थे । चंद्रमा अपने रास्ते पर आगे बढ़ता जा रहा था, मध्यम-सी रफ्तार के साथ । ऐसी चुप्पी भी वहाँ कि जैसे कोई मौजूद ही न हो । लेकिन बहुत लोग थे वहाँ ! हर किसी को इंतजार था कि मौत का वक्त आता है या नहीं, आता है तो क्या होगा तब ?

नजरें जाल की तरफ थीं और दूर-दूर तक नजर आ रही जगह पर थीं ।

एक पुलिस वाले की तरफ से माचिस खड़कने की आवाज आई तो मोना चौधरी फौरन बोली ।

“माचिस मत जलाना ।”

बगल में मौजूद पुलिस वाला सिगरेट सुलगाते-सुलगाते ठिठका ।

“तुम्हें इतनी समझ होनी चाहिए कि हम किस स्थिति में हैं और ऐसे में माचिस जलाने या सिगरेट सुलगाने के कितने खतरनाक अंजाम हो सकते हैं ।” मोना चौधरी के स्वर में तीखापन था ।

“माफ करना !” पुलिस वाला अफसोस भरे स्वर में कह उठा, “अगर वो जीव आता है और उसे जाल में न फँसाया जा सका तो खतरा... । और उसने पहले हमें देख लिया तो हम पर झपट पड़ेगा । हम उसका मुकाबला नहीं कर सकते । वो हमें लाशों में बदल देगा ।”

“खतरे से डरते हो तुम ?”

“नहीं ! मैंने तो वो बात की, जिसे महसूस किया ।”

“तो फिर ये भी महसूस करो कि वो रहस्यमय जीव आएगा ही नहीं, हमारी योजना फेल हो जायेगी ।”

पुलिस वाले ने अँधेरे में मोना चौधरी की तरफ नजरें घुमाई ।

“या ये भी सोचो कि वो हमारे जाल में फँस जायेगा ।” मोना चौधरी का स्वर शांत था, “इन्हें सोचने के साथ ही तुम्हारी सोचें पूरी होंगी । आधा-आधा मत सोचा करो । पूरा सोचो ।”

“जो भी हो ।” दूसरा पुलिस वाला कह उठा, “खतरा तो भारी है और हमारे पास मुकाबला करने को कुछ भी नहीं है । बड़े हथियार लाने के लिए इंस्पेक्टर साहब ने मना कर दिया । ऐसे में दो-चार रिवालवरें हों तो शायद उनसे हम स्थिति न संभाल सकें । उसका हमला करने का ढंग इतना आक्रामक होता है कि कोई सोच ही नहीं पाता ।”

“तुमने उसे हमला करते देखा है ?” मोना चौधरी ने पूछा ।

“नहीं ! जो थोड़ा-बहुत रहस्यमय शख्सियत के बारे में सुना है, उसके आधार पर ही कह रहा हूँ ।”

दो पलों की चुप्पी के बाद मोना चौधरी कह उठी ।

“जब वो मौत बनकर तुम लोगों के सामने खड़ा दिखे तो बेशक उसके साथ कैसा भी सुलूक कर सकते हो । और जब तक ऐसा न हो, तब तक उसके लिए रिवॉल्वर निकालने की सोचना भी नहीं । हम उसे मारने नहीं आये ।”

“उसके साथ रहम किया जा रहा है और हमारे साथ नाइंसाफी कि उसका निशाना न लें ।”

“जो योजना इंस्पेक्टर साहब ने बनाई है, हम उसी पर चलेंगे । उसकी जान लेने का हमारा इरादा कम और जाल में फँसाने का ज्यादा है । इसके अलावा कुछ हम करते हैं तो वो बदले हालातों के अनुसार ही करेंगे ।”

तभी दूसरा पुलिस वाला कह उठा ।

“छोड़ो इन बातों को । मुझे नहीं लगता कि वो आएगा । हम यूँ ही बैठे रह जायेंगे ।”

“ऐसा हुआ तो हम कल रात फिर आएँगे । तब भी यही सब होगा ।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“मतलब कि जब तक वो पकड़ा नहीं जाता हममें से कई लोगों की जानें नहीं ले लेता, ये सिलसिला जारी रहेगा ।”

“हाँ !”

तीन बजे थे तब ।

मोना चौधरी आशा का दामन छोड़ने लगी थी कि आज रात वह रहस्यमय जानवर नजर नहीं आएगा । दिन का उजाला फैल जायेगा और वे अपनी तैयारियाँ समेटकर वापस चल देंगे । दिन भर बोरियत भरा इंतजार रहेगा कि कब रात हो और वे फिर अपनी तैयारियाँ शुरू करें ।

मोना चौधरी को इस बात का भी एहसास था कि जो पुलिस वाले गड्ढों में बैठे हैं, उन्हें कितनी परेशानी का सामना करना पड़ रहा होगा । लेकिन ये इंतजार भी जरूरी था ।

“मुझे नहीं लगता कि रहस्यमय जीव नजर आएगा ।” पुलिस वाला कह उठा ।

“मेरा भी ख्याल है ।” दूसरे पुलिस वाले ने कहा, “रात तो खत्म होने वाली है । कल रात देखेंगे ।”

“पीछे की तरफ भी ध्यान रखो । कहीं वो पीछे न खड़ा हो ।”

“हर तरफ ध्यान है मेरा ।”

“इस योजना में सबसे ज्यादा कमी इस बात की है कि क्या मालूम वो आज रात किस रास्ते से निकलेगा ।” मोना चौधरी कह उठी, “हो सकता है वो यहाँ से चार किलोमीटर दूर की दिशा से निकल गया हो ।”

“इंस्पेक्टर साहब ने शायद इस बारे में नहीं सोचा ।”

“सोचा भी होता तो कोई फायदा नहीं था ।” मोना चौधरी बोली, “ये मीलों में फैली बंजर जमीन है । इस तरह की तैयारियाँ हर तरफ नहीं की जा सकतीं । हमारे पास सीमित साधन हैं ।”

“लेकिन यहाँ ही क्यों इंस्पेक्टर साहब ने... ।”

“कहीं तो कुछ करना ही था ।” मोना चौधरी की निगाह हर तरफ घूम रही थी, “यहाँ इंस्पेक्टर दुलानी ने इसलिए तैयारी करवाई कि इधर ही तो वो गीली मिट्टी है, जहाँ उसके पाँवों के निशान मिले । ऐसे में हो सकता है कि वो इधर का रास्ता ज्यादा इस्तेमाल करता हो । अँधेरे में चलाया तीर है ये । शायद काम बन जाये ।”

“अगर हम तीनों एक साथ न रहकर, अलग-अलग होते तो रहस्यमय जीव का हमला होने से बच पाते ।”

“नहीं !” मोना चौधरी ने फौरन कहा, “ऐसा करते तो भारी गड़बड़ हो सकती थी । अलग-अलग फैलकर अँधेरे में छिपेंगे तो रहस्यमय जीव के आने पर जल्दी ही कोई-न-कोई उसकी नजरों में आ जायेगा । साथ ही हमसे संपर्क भी नहीं रहेगा, अगर कुछ करने की नौबत आती तो ।” मोना चौधरी के शब्द मुँह-के-मुँह में ही रह गए ।

साढ़े तीन से पाँच-सात मिनट ऊपर का वक्त था । जब वह अँधेरे का हिस्सा बना दिखा ।

“वो ।” मोना चौधरी के होंठों में से धीमा, सरसराता स्वर निकला, “वो देखो । हिलना मत । ऐसे ही पड़े रहो ।”

दोनों पुलिसमैनों की नजरें भी उधर ही गयीं, जिधर मोना चौधरी ने कहा था । चन्द्रमा की रौशनी में कोई मध्यम-सा साया, सड़क वाली दिशा की तरफ से इधर आता महसूस हुआ ।

“आने वाला तो सड़क की तरफ से आ रहा है ।” एक पुलिस वाले ने कहा ।

“ये हमारा कोई पुलिस वाला हो सकता है ।” दूसरे के होंठों से निकला ।

“कोई भी पुलिस वाला रात के इस वक्त इधर अकेले आने की हिम्मत नहीं करेगा ।” मोना चौधरी ने भिंचे स्वर में कहा । उसकी सतर्क नजरें दूर नजर आते साये पर टिकीं थीं जो इधर ही बढ़ा चला आ रहा था ।

“तो ये वही रहस्यमय शख्सियत है ?”

“ऐसा हो सकता है ।” मोना चौधरी की निगाह अपलक एकटक उस पर थी ।

“लेकिन इधर से तो ये गया नहीं !” पुलिस वाला बोला ।

“किसी और दिशा से निकलकर सड़क की तरफ गया होगा ।” दूसरे ने कहा, “वापसी इधर से... ।”

“कहीं आज रात फिर तो किसी की जान नहीं ले ली इसने ।”

“क्या मालूम । मुझे तो लग रहा है कि कहीं ये सीधा हमारे पास न आ पहुँचे । उसके आगे बढ़ने की दिशा देखो ।” पुलिस वाला सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा, “हम इसका मुकाबला नहीं... !”

“खामोश रहो और देखो । अपने पर काबू रखो ।” मोना चौधरी की निगाह इस तरफ बढ़ते उस रहस्यमय जीव पर ही थी, “बोलना बन्द कर दो । इसकी श्रवण शक्ति का हमें अंदाजा नहीं है । हमारी धीमी बातचीत की आवाज कहीं इसके कान न पकड़ लें । नजरें इस पर टिकाये रखो । अब कुछ भी हो सकता है ।”

“ये वही है ?”

“हाँ !” मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ चुकी थीं । दाँत भिंच गए थे, “यही वो रहस्यमय जीव है ।”

मोना चौधरी और दोनों पुलिस वालों की रोमांच भरी नजरें उस पर टिकीं थीं । दिलो-दिमाग में सनसनी भी थी । दिल की धड़कनों की तीव्रता बढ़ गई थी । उन्हें एहसास था कि वे किसी भी वक्त उनके शरीर की बोटी-बोटी कर सकता है । अगर उसे मालूम हो गया कि यहाँ वे सब मौजूद हैं या और लोग भी हैं ।

अँधेरे में वह मात्र साया-सा लग रहा था ।

पाँच फ़ीट का कद । गठ-सा बदन । इस वक्त उसके चलने का ढंग लापरवाही और मस्ती से भरा था । सामान्य रफ्तार से वह आगे बढ़ा इसी तरफ आ रहा था ।

मोना चौधरी और दोनों पुलिस वालों ने उसे अपनी तरफ बढ़ते पाया तो उन्हें खेल खत्म होने का एहसास होने लगा । वे जानते थे कि इस रहस्यमय जीव का मुकाबला नहीं किया जा सकता । उनकी हक्की-बक्की फटी निगाहे उस पर ही थीं जो उनकी तरफ... ।

एकाएक वह ठिठका । जैसे ब्रेक लग गए हों । इसके साथ ही उसकी दिशा बदल गई, वह सीधा आगे को बढ़ने लगा था । ठीक उसी दिशा की तरफ, जहाँ उसे फाँसने के लिए फंदा तैयार था ।

मोना चौधरी के दाँत भींच गए । आँखें सिकुड़ चुकी थीं । उस दिशा की तरफ जाते देखकर उसके दिल की धड़कन की रफ्तार और भी तीव्र हो गई थी । मस्तिष्क में सिर्फ एक ही बात उभरी अब क्या होगा ?

अब उसकी पीठ नजर आ रही थी । वह कुछ आगे चला गया था ।

बांसों के सहारे टँगा जाल अब ज्यादा दूर नहीं था ।

मोना चौधरी ने साफ़ तौर पर देखा कि उसके आगे बढ़ने की दिशा, उस जाल से बीस-पच्चीस कदम हटकर थी । शायद उसकी निगाह अँधेरे में उस जाल पर पड़ गई थी । तभी वह ठिठका । कुछ पल ठिठका रहा । फिर उसकी गर्दन हिलने का एहसास हुआ, जैसे वह आसपास देख रहा हो ।

बहुत नाजुक वक्त थे ये ।

उसे शक भी हो सकता था कि गड़बड़ है । नहीं भी शक हो सकता था ।

किसी भी पल वह किसी भी तरह के मूड में आ सकता था ।

उसे गड्ढों में छिपे लोगों के बारे में मालूम हो गया तो मिनट भर में ही उनकी लाशें पड़ी नजर आने लगनी थीं । वह करीब आधा मिनट यूँ ही खड़ा रहा । कभी जाल की तरफ देखता तो कभी इधर-उधर ।

जाने उसके मन में क्या आ रहा था ।

मोना चौधरी के होंठ भिंचे थे ।

“ये क्या कर रहा है ?” बगल के पुलिस वाले ने फुसफुसाकर कहा ।

“चुप रहो ।” मोना चौधरी की आवाज में इतना धीमापन था, जैसे हवा गुजरी हो ।

तभी वह रहस्यमय जीव जाल की तरफ बढ़ा ।

मोना चौधरी का दिल जोरों से उछला ।

अब किसी भी पल, कुछ भी हो सकता था । पुलिस वालों की नजरें भी वहीं टिकी थीं । वह फटी-फटी आँखों और धड़कते दिल के साथ रहस्यमय जीव को देख रहे थे । चंद्रमा की रौशनी में अस्पष्ट-सा, काले साये जैसा नजर आ रहा था । वीरानी में ये सब देखकर मस्तिष्क में भय उछाले मारने लगा था ।

फिर वह जाल के करीब जाकर रुका । उसका सिर ऊपर की तरफ उठता महसूस हुआ । जैसे वह जाल को देख रहा हो । कुछ पल यूँ ही बीत गए । फिर वह हिला । उसने सिर नीचे कर लिया । आगे बढ़ा । जमीन के गड्ढे से निकलते बाँस को देखने लगा था अब । बाँस को ध्यान से देखने के बाद, वह बारी-बारी बाकी के तीनों बांसों के पास गया, परन्तु किसी भी बाँस को छूने की उसने चेष्टा नहीं की । खतरा इस बात का था कि कहीं उसका पाँव गड्ढे के ऊपर बिछे छप्पर पर न पड़ जाये । जिसके ऊपर मिट्टी फैला रखी थी । ऐसा हो जाना सबसे बुरा था । वह समझ जाता कि भारी गड़बड़ है । गड्ढे में मौजूद छिपे पुलिस वाले का एहसास उसे फौरन हो सकता था । लेकिन वह जाने क्यों सावधानी बरत रहा था । बांसों के पास नहीं गया था । उसे शक हो गया था किसी बात पर, या फिर तय कर रहा हो कि ये सब क्या है ? पहले तो यहाँ ये सब नहीं देखा ।

“अब ये क्या करेगा ?” पुलिस वाले ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर फुसफुसाहट भरे स्वर में कहा ।

मोना चौधरी की निगाह एकटक रहस्यमय जीव पर थी । रहस्यमय जीव की मनोदशा का उसे एहसास नहीं हो पा रहा था । ये भी हो सकता था कि वह अपने रास्ते पर आगे बढ़ जाये । तभी रहस्यमय जीव पुनः गर्दन उठाकर ऊपर मौजूद जाल को देखने लगा था । फिर वह आगे बढ़ा और जाल के बीचोबीच पहुँचकर ठिठका । ऊपर देखते हुए उसने हाथ ऊपर उठाकर जाल को पकड़ना चाहा, परन्तु वह ऊँचा था । उसी पल वह कुछ उछला और जाल को हाथ से पकड़ लिया । उसके पाँव नीचे लगे । हाथ की उँगलियों में जकड़ा जाल कुछ नीचे आया ।

बांसों का बैलेंस बिगड़ा ।

और यही पल जैसे जिंदगी और मौत का फैसला करने वाले थे ।

बांसों का बैलेंस बिगड़ते ही वह नीचे गिरने का हुए कि तभी बांसों को नीचे गिरा दिया गया । जाल रहस्यमय जीव के ऊपर जा गिरा । पल भर के लिए रहस्यमय जीव हड़बड़ाया । वह समझ न पाया कि हो क्या गया है । फिर समझा । तभी फुर्ती से, घबराये हुए, सूख रही जान को हथेली पर रखे, तेजी से धड़कते दिल के साथ एक के बाद एक एक चारों पुलिस वाले छप्पर हटाकर गड्ढे से बाहर निकले और उस तरफ झपट्टे, जिधर डोरी थी ।

रहस्यमय जीव ने उन्हें देखा तो उनके गले से अजीब-सी आवाज निकली । तेजी से अपने ऊपर से जाल हटाते हुए, उनकी तरफ झपटा, परन्तु पंद्रह फ़ीट लम्बा-चौड़ा जाल वह एकदम अपने ऊपर से न हटा सका । तब तक एक पुलिस वाले के हाथ में डोरी आ चुकी थी । वह डोरी को खींचते हुए अजीब-से स्वर में चीखा ।

“जल्दी करो । डोरी मेरे हाथ में है खींचो ।”

उसके शब्द पूरे भी नहीं हुए थे कि बाकी के तीनों पुलिस वाले उसके हाथ में दबी डोरी थाम चुके थे । पूरी शक्ति से वह डोरी खींचते हुए पीछे हटी ।

फैला जाल, गोलाई में सिकुड़ता चला गया ।

जाल से आजाद होने के लिए उसकी हरकतें और भी तेज हो गयीं । वह अपने हाथों से सिर के ऊपर गिरे जाल को हटाने की चेष्टा में था । कामयाब भी हो जाता, परन्तु डोरी खींचने से जाल बोरे की भाँति बंद होता चला गया था । वह पूरी तरह जाल में घिर गया । पाँव उसके जमीन पर थे । इस बीच उसके पाँव ऊपर होने की पूरी कोशिश करने लगा ।

“ये जाल में फँस गया है । जोर से खींचो इसे ।”

तभी चारों ने डोरी को तानकर तीव्रता से झटका दिया । जाल और कसा । रहस्यमय जीव को तीव्र झटका लगा । वह लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा ।

“डोरी मत छोड़ना ।” पुलिस वाले का घबराहट से भरा स्वर सुनाई दिया, “अगर ये आजाद हो गया तो हमें मार देगा । खुद को बचाना है तो डोरी नहीं छूटनी चाहिए ।”

तभी भागते कदमों की आवाज के साथ ही पॉवरफुल टार्च की तीव्र रौशनी वहाँ फैल गई ।

“डोरी खींचे रहो ।” मोना चौधरी ऊँचे स्वर में बोली, “जाल को ढीला मत होने देना ।”

इसके साथ ही टार्च की रौशनी रहस्यमय जीव पर जाकर स्थिर हो गई । वह पूरी तरह जाल में जकड़ा हुआ था । हाथ-पाँव मारना भी उसके लिये कठिन हो रहा था । रौशनी जब उस पर पड़ी तो एकाएक उसकी हरकतें थम गयीं । वह टार्च को देखने लगा । बाई तरफ से उसकी आँख, माथे के दायें-बाएँ जा रही पट्टी के बीच घूमती हुई, माथे के ठीक बीचोबीच आ टिकीं थीं । फिर उसकी आँख धीमे पुनः घूमी और रौशनी में स्पष्ट नजर आ रहे पुलिस वाले की तरफ जा टिकीं, जिन्होंने डोरी थाम रखी थी ।

“हे भगवान !” एक पुलिस वाले के होंठों से निकला, “ये इंसान नहीं है ।”

“ये... ये जानवर भी नहीं है । हमारी धरती पर ऐसा कोई जानवर नहीं है ।”

दूसरे ग्रह से आया मानव हो सकता है ।”

“इसे देखकर तो मुझे डर लगने लगा है । इसके हाथ-पाँव देखो । ओफ्फ... ! कौन है ये ?”

“काम की तरफ ध्यान दो । डोरी छूट गई तो ये हमें खड़े पाँव जाल से निकलकर खत्म कर देगा ।”

तभी रहस्यमय जीव के गले से अजीब-सी दिल दहला देने वाली आवाज निकली और वह जाल से बाहर निकलने के लिये छटपटाने लगा । अपने दोनों हाथों की उंगलियाँ जाल में डालकर, उन्हें खींचकर तोड़ने की चेष्टा करने लगा ।

“ये जाल तोड़कर बाहर आ जायेगा ।” एक पुलिस वाला दहशत से चीखा ।

“डोरी की तरफ ध्यान दो ।”

वह इतनी तीव्रता से छटपटा रहा था कि मालूम होने लगता, जैसे डोरी हाथ से निकल रही हो ।

छः पुलिस वाले इस वक्त डोरी को थामे हुए थे, परन्तु वे दहशत में डूबे थे । एक तो रहस्यमय जीव की बनावट आकार देखकर । दूसरा ये सोचकर कि अगर ये जाल से बाहर आ गया तो ? इसके आगे सोचने की उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी । वह तड़प-उछल रहा था । चीख रहा था । जाल के साथ कभी इधर गिरता तो कभी उधर । पुलिस वाले जाल की डोरी कसे जाल के साथ-साथ घूम रहे थे

उनमें और रहस्यमय जीव में करीब दस कदम का फासला था । वक्त और हालातों का दौर बहुत ही खतरनाक मोड़ से गुजर रहा था ।

मोना चौधरी ने टार्च को इस तरह बगल में दबाया कि उसकी रौशनी फैली रहे । इसके साथ ही उसने हाथ में पकड़े थैले में हाथ डालकर बड़ा-सा इंजेक्शन निकाला । वह इंजेक्शन साइज में काफी बड़ा था और उसमें 200 मिली. तक की मात्रा में दवा आ सकती थी और दवा पहले ही भर रखी थी । जिसकी रंगत कालापन लिए हुए थी । थैला छोड़कर मोना चौधरी सीधी खड़ी हुई । एक हाथ में टार्च दूसरे में इंजेक्शन था । टार्च की रौशनी रहस्यमय जीव पर पुनः पड़ने लगी । वह जाल में जकड़ा उछल-कूद मचा रहा था । चीख रहा था । अजीब-सा शोर था वहाँ । पुलिस वाले डोरी थामे फिरकनी की भाँति कभी इधर घूमते तो कभी उधर ।

“कोई परेशानी तो नहीं हो रही ?” मोना चौधरी ने ऊँचे स्वर में पूछा ।

“बहुत परेशानी हो रही है ।” एक पुलिस वाले ने हाँफते हुए कहा, “इसके झटकों से महसूस हो गया है कि ये बहुत भारी है । किसी चट्टान की तरह । हम कब तक इसे संभालेंगे ।”

“संभालना पड़ेगा ।” मोना चौधरी का स्वर ऊँचा था, “नहीं तो ये हमें मार देगा ।”

“हमारे हाथ में थमी डोर टूट सकती है ।” दूसरा पुलिस वाला चीखा, “तब ?”

“नहीं टूटेगी । ये वाली डोरी, कई डोरियों को मिलाकर, बहुत मजबूत बनाई गई है । क्योंकि पहले से ही पता था कि अगर ये जाल में फँसा तो अहम काम इसी डोरी ने करना है ।”

टार्च की रौशनी जाल में फँसे रहस्यमय जीव पर ही थी । वह भरपूर कोशिश कर रहा था कि किसी तरह खुद को आजाद करा ले, परन्तु अभी तक सफल नहीं हो सका था ।

“ये जाल की डोरियाँ हाथ से नहीं तोड़ पा रहा ।” एक पुलिस वाला बोला ।

“ऐसा हो जाने का हमें डर था ।” मोना चौधरी गम्भीर ही थी, “लेकिन हम सफल रहे इसे पकड़ने में ।”

“इसका रूप-आकार कितना भयानक है । इसकी आँख । हे भगवान ! दरिंदे से भी खतरनाक हैं ये ।”

ताकतवर होने के साथ-साथ बहुत हिम्मती भी था वह ।

जाल में फँसा एक-सवा घण्टे तक आजाद होने के लिए छटपटाता रहा । उसने भरपूर से भी भरपूर कोशिश कर ली, जाल की डोरियों की हाथ की उँगलियों से खींचकर तोड़ने की, परन्तु वे डोरियाँ नहीं टूटीं । रेशम की डोरी के चक्रव्यूह को उसकी उँगलियों की ताकत नहीं बिखेर सकी ।

जब वह थक जाता तो पस्त-सा जाल में फँसा जमीन पर ही पड़ा रह जाता । आराम करके जब थोड़ी-सी हिम्मत इकट्ठी होती तो वह पुनः जाल से निकलने की चेष्टा कर लेता ।

सवा घण्टे तक ये सब चला ।

पुलिस वाले थक के चूर हो गए थे, जाल में फँसे रहस्यमय जीव को संभालने में वह हाँफ रहे थे । पसीने से लथपथ थे । लेकिन इस बीच जाल की डोरी नहीं छोड़ी थी । रहस्यमय जीव को भी इस बात का एहसास हो गया था कि जाल की पकड़ से नहीं निकल पायेगा । उसकी इकलौती आँख एक कान से दूसरे कान तक आती-जाती, वहाँ मौजूद सबको देख रही थी । टार्च रोशन थी ।

परन्तु अब दिन का उजाला भी फैलने की चेष्टा में था । रात छँटने लगी थी ।

मोना चौधरी ने एक पुलिस वाले को भेज दिया कि वह दूसरी जगह खड़े सबको बुला लाये । उसके बाद मोना चौधरी ने जाल में फँसे रहस्यमय जीव को देखा फिर पुलिस वालों से कहा ।

“कुछ देर तुम लोगों को और मेहनत करनी पड़ेगी । इस आखिरी वक्त पर लापरवाह मत हो जाना ।”

बुरे हाल हुए पुलिस वाले फिर सिर हिलाकर रह गए ।

मोना चौधरी इंजेक्शन थामे रहस्यमय जीव की तरफ बढ़ी ।

रहस्यमय जीव की निगाह मोना चौधरी पर जाकर टिक गई थी । वह जाल में इस वक्त उकड़ू की स्थिति में था । जाल पूरी हद तक टाइट हो चुकी थी । पुलिस वाले अगर डोरी छोड़ देते तो भी जाल का खुल जाना आसान नहीं था । अभी तक मोना चौधरी को मौका नहीं मिला था कि वह इंजेक्शन लगा पाती । लेकिन अब मौका था । वह जाल में फँसा थक चुका था और अपनी हार को स्वीकार करने पर शायद उसे एतराज नहीं हो रहा था ।

मोना चौधरी उससे दो कदम पहले जा रुकी थी ।

वह कभी मोना चौधरी को देखता तो कभी उसके हाथ में थमे इंजेक्शन को ।

मोना चौधरी नीचे झुकी और घुटनों के बल बैठते हुए मुस्कुराई । जवाब में उसके मोटे-मोटे होंठों से अजीब-सी आवाज निकली ।

“हैलो !” मोना चौधरी खुलकर मुस्कुराई, “घबराओ मत । हम तुम्हारे दोस्त हैं ।”

एकाएक उसके होंठों से चीख जैसा स्वर निकला और जल में फँसा वह मोना चौधरी पर झपटा । मीना चौधरी सतर्क थी । वह तुरंत पीछे को लुढ़क गई । उधर पुलिस वालों ने जाल की डोरी को पीछे को खींचा ।

रहस्यमय जीव बेबस-सा होकर रह गया ।

मोना चौधरी संभलकर पुनः उठी और पहले की तरह दो कदम के फासले पर जा बैठी ।

“हम तुम्हारे दोस्त हैं ।” मोना चौधरी ने मुस्कुराकर कहा, “हम पर विश्वास करो ।”

उसने पुनः मोना चौधरी पर झपटने की चेष्टा की । लेकिन डोरी के खिंचाव की वजह से आगे न बढ़ सका । मोना चौधरी ने पुलिस वालों को सतर्क रहने का इशारा किया और इंजेक्शन थामे एक कदम और आगे बढ़ गई । वह जाल में फँसा अपनी आँख से मोना चौधरी को देख रहा था । उसकी आँख से गुस्सा झलक रहा था । कभी-कभार उसकी आँख हाथ में दबे इंजेक्शन की तरफ चली जाती ।

दोनों की नजरें मिलीं और मोना चौधरी मुस्कुराई फिर उसके करीब ही नीचे बैठ गई । वह मोना चौधरी पर झपटा, परन्तु मोना से जरा-सा टकराकर रह गया । पीछे से जाल की डोरी खींचे जाने की वजह से उसे ज्यादा हिलने का मौका नहीं मिल पाया । वैसे भी जाल में फँसे होने के कारण उसके हाथ-पाँव दबे-से अपने ही जिस्म के साथ चिपके हुए थे । मोना चौधरी ने हाथ बढ़ाया और उसके कंधे वाले हिस्से पर रखकर , उसे सहलाने लगी । चेहरे पर बहुत ही साफ़ सुथरी पवित्र-सी मुस्कान आ गई थी ।

उसके होंठों से छोटी-सी गुर्राहट उभरी ।

“गुस्सा नहीं ।” मोना चौधरी ने प्यार भरे स्वर में कहा, “हम दोस्त हैं । तुमसे बात करने आये हैं ।”

उसकी आँख मोना चौधरी पर ही थी ।

मोना चौधरी बराबर उसके कंधों को सहला रही थी ।

कुछ पल इसी तरह गुजर गये । हर पुलिस वाला जाल की डोरी थामें, सकते की-सी हालत में खड़ा कभी मोना चौधरी को देखता तो कभी रहस्यमय जीव को ।

“हमसे डरो मत । हम तुम्हें नुकसान पहुँचाने नहीं आये ।” मोना चौधरी उसी तरह प्यार भरे स्वर में कह उठी ।

वह मोना चौधरी को देखता रहा । वह अपनी बेबसी को समझ रहा था । जाल से निकट पाने की सोच को उसने अपने मस्तिष्क से निकाल दिया था । सवा घंटे की मेहनत के पश्चात वह थक गया था और समझ चुका था कि अब आजाद नहीं हों पायेगा । उसे कैद कर लिया गया है ।

मोना चौधरी एकाएक उठी ।

इंजेक्शन वाला हाथ उसकी बाँह की तरफ बढ़ाया ।

ये देखकर वह छटपटा उठा । मुँह से माध्यम-सी आवाज निकाली । जैसे कह रहा हो कि ऐसा मत करो । जाल की पकड़ से आजाद होने का कमजोर-सा प्रयत्न किया ।

मोना चौधरी मुस्कुराकर पुनः उसका कंधा थपथपाकर बोली ।

“तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी । मैं तुम्हारा बुरा नहीं कर रही ।”

वह एकटक देखता रहा मोना चौधरी को ।

मोना चौधरी ने पुनः इंजेक्शन वाला हाथ आगे बढ़ाया । ये देखकर उसका जिस्म थोड़ा हिला । आँख बेचैनी से थोड़ी-बहुत इधर-उधर हिली । लेकिन पहले की तरह कोई एतराज नहीं उठाया ।

पुलिस वाले मजबूती से डोरी थामें, साँस रोके यह सब देख रहे थे ।

मोना चौधरी ने उसकी बाँह पर इंजेक्शन की सुई रखी थी । वह उसे देख रही थी और वह इकलौती आँख से मोना चौधरी को टकटकी बाँधे देख रहा था । उसके शरीर की खाल मोटी थी । मोना चौधर ने इंजेक्शन का दबाव बढ़ाया तो सुई उसकी बाँह में प्रवेश कर गई । ऐसा होने पर उसके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं आये की बाँह में सुई धँसने से उसे पीड़ा का एहसास हुआ हो । मोना चौधरी सिरिंज दबाते चली गई । इंजेक्शन से भरी दवा, उसकी बाँह के रास्ते उसके शरीर में प्रवेश कर गई ।

इंजेक्शन खाली हो गया ।

मोना चौधरी ने उसे बाहर निकाला ।

वह मोना चौधरी को देख रहा था । जैसे सोच रहा हो कि ये क्या हो रहा है ।

मोना चौधरी उसका कंधा थपथपाकर प्यार भरे मीठे स्वर में कह उठी ।

“मैं अभी आई ।” इसके साथ ही वह उठी और चंद कदम दूर थैले के पास पहुँची । नीचे झुककर थैले में हाथ डालकर छोटी-सी शीशी निकाली । पानी जैसी दवा थी उसमें । मोना चौधरी ने उसे देखा । वह एकाएक उसे देख रहा था । उसकी नजर का मुस्कुरा कर स्वागत किया मोना चौधरी ने फिर सिरिंज में शीशी की बाकी दवा भरी और उसके पास जा पहुँची । वह पहले की ही तरह मोना चौधरी को देख रहा था ।

मोना चौधरी ने दूसरा इंजेक्शन भी लगा दिया था । सिरिंज बाहर निकाली और एक तरफ रखकर उसके पास ही जमीन पर बैठ गई । इसके साथ ही अपना हाथ उसकी बाँह, कंधे और पीठ पर धीमे-धीमे फेरने लगी । चेहरे पर मुस्कान बराबर छाई हुई थी ।

“अच्छा लग रहा है । कैसा लग रहा है ?” मोना चौधरी ने पूछा, “आराम मिल रहा है ।”

पुलिस वाले हैरान, उलझे, डरे से ये सब देख रहे थे । क्या हो रहा है ? वे नहीं समझ पा रहे थे ।

दिन का उजाला पूरी तरह फैल गया था ।

जाल में फँसा वह तनाव में था । उसका जिस्म अकड़ा-सा पड़ा था । अब एकाएक ही जैसे वह तनाव से मुक्त नजर आने लगा था । जाल से निकलने की कोशिश में अब उसने जो मुद्रा बना रखी थी, वह छोड़ दी थी । आराम की मुद्रा में वह जमीन पर पड़ गया था । जाल के टाइट होने की वजह से उसे अवश्य कुछ परेशानी थी ।

मोना चौधरी बराबर उसके शरीर पर हाथ फेर रही थी । अपनेपन का अहसास था इस हरकत में ।

“डोरी को छोड़ना शुरू कर दो । लापरवाह मत होना । दो डोरी रहे । बाकी छोड़कर पास ही रहे ।”

पुलिस वालों ने हीचकिचाकर मोना चौधरी की बात मानी ।

दो पुलिसवालों ने डोरी को शक्ति से थामे रखा बाकी पाँच ने डोरी को छोड़ दिया । लेकिन वह सावधान थे । सतर्क थे इस बात के प्रति की जाल में फँसा वह अगर कोई गड़बड़ करता है तो डोरी को फौरन थामकर, खींची जा सके ।

“ये इंजेक्शन की वजह से नशे की नींद में आ रहा है क्या ?” एक पुलिस वाले ने पूछा ।

“नहीं !” मोना चौधरी ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, “अभी बेहोशी की दवा का असर नहीं हुआ । खामोश रहो और अपने काम की तरफ ध्यान दो ।”

वह लेटने की कोशिश में जाल में फँसा कुछ लुढ़का-सा पड़ा था ।

“कैसा लग रहा है ?” मोना चौधरी मुस्कराकर उससे बोली, “आराम मिल रहा है ।”

वह मोना चौधरी को देखे जा रहा था । पहले सतर्क-सा था, परन्तु अब उसके हाव-भाव में कुछ लापरवाही-सी आ रही थी ।

थोड़ा बहुत इधर-उधर हिल भी लेता था । मोना चौधरी के इशारे पर पुलिस वालों ने जाल की डोरी ढीली कर दी, परंतु इस पर भी अपने जाल से निकलने के लिए पहले जैसी कोई हरकत नहीं की ।

इंजेक्शन लगाये एक घंटा होने को जब आने लगा तो एक कान से होकर दूसरी कान तक जाती आँख की पट्टी के ऊपरी हिस्से में उसकी खाल की परत जैसी चीज़ बार-बार नीचे आती और वापस लुप्त हो जाती । ऐसा अब अक्सर होने लगा ।

मोना चौधरी चौंकी । उसकी आँखें सिकुड़ी, परंतु होंठों पर बराबर मुस्कान छाई रही । कुछ पलों बाद ही वह समझ गई की आँख की पट्टी से निकलकर जो चीज़ बार-बार नीचे-ऊपर हो रही है, वह आँख की पलक ही है । जो कि नींद आने के वक्त एक कान से दूसरे कान तक जाती पट्टी को जहाँ से जहाँ तक आँख घूमती है वह सारा हिस्सा पूरा ढक लेती है ।

यानी कि इंजेक्शन द्वारा इसके शरीर में पहुँचाई गई नशे की दवा ने असर दिखाना शुरू कर दिया था । उसकी वजह से छिपी पलक बार-बार आँख को ढाँपने के लिए नीचे आ रही थी । इसे अब बेहोशी से भरी नींद आने लगी थी । मोना चौधरी बहुत ध्यान से रहस्यमय विचित्र जीव के शरीर की हरकतों और बदलाव को देख रही थी ।

दस मिनट बाद ।

माथे से होकर गुजरती हुई पट्टी पर ऊपर से जो हिस्सा बार-बार नीचे आ रहा था । वह अब नीचे ही आकर रुक गया था । पलक ने आँख को ढाँप लिया था । स्पष्ट था कि वह नींद में डूब चुका था । इस पर भी मोना चौधरी कई मिनट तक उसके शरीर पर हाथ फेरती रही । जब उसे पूरा विश्वास हो गया कि विचित्र जीव वास्तव में दवा की असर में नींद में डूब चुका है तो हाथ फेरना छोड़कर उठ खड़ी हुई ।

अजीब-सी खामोशी वहाँ फैली थी ।

सब के दिल जोरों से बज रहे थे ।

पुलिस वाले कभी मोना चौधरी को देखते तो कभी जाल में फँसे बेहोश रहस्यमय विचित्र जीव को । रात भर के जगे-थके होने के बावजूद भी उनके चेहरों पर अनोखी-सी चमक उभरी हुई थी । ये उनकी खुशी थी, जान हथेली पर रखकर जो कोशिश की थी उसने कामयाबी हासिल हो गई है ।

परंतु भय की छाप उनके दिलो-दिमाग पर ऐसी थी कि किसी ने भी अभी तक पास आने की कोशिश नहीं की थी ।

दो-ढाई मिनट की हक्की-बक्की खामोशी के बाद पुलिस वालों को जैसे होश आया । थकान और टूटे-फूटे जिस्म को संभालते सब मोना चौधरी के पास पहुँचने लगे ।

“हैरानी है कि आपने इस विचित्र जीव पर इतनी आसानी से काबू पा लिया ।” एक पुलिस वाला बोला ।

“मुझ अकेली के बस का कुछ नहीं था ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “तुम सब के साथ मिलकर ही यह सब हो सका है । वास्तव में यह सख्त जान के साथ-साथ सख्त इरादों वाला भी है ।”

“आप इससे बातें कर रही थीं ।”

“हाँ !”

“लेकिन इसे बातें कहाँ समझ आ रही थीं ।”

“मैं जानती हूँ कि इसे मेरी बातें समझ नहीं आ रही… ।”

“तो फिर आपने ऐसा क्यों किया मैडम ?”

क्षणिक चुप्पी के बाद मोना चौधरी गंभीर स्वर में बोली ।

“ऐसा करना बहुत जरूरी था । ये मेरे शब्दों को बेशक न समझ रहा हो । लेकिन मेरी मुस्कान को अवश्य समझ रहा होगा । इसके जिस्म पर फिरता मेरा हाथ इसे इस बात का एहसास दिला रहा होगा कि हम इसके दुश्मन नहीं है और जो भी कर रहे हैं बुरी भावना से नहीं कर रहे । ये बात खास तौर से इस के मस्तिष्क में बिठानी थी कि हम इस के दुश्मन नहीं हैं । शायद ये इसने महसूस भी कर लिया है ।”

“ऐसा क्यों ? ऐसा करने का क्या फायदा ?”

“ये बात तो आप लोग इंस्पेक्टर दुलानी से पूछियेगा ।” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा, “क्योंकि ये सब इस्पेक्टर साहब की प्लानिंग है । उन्होंने जो करने को कहा है, मैं वही कर रही हूँ ।”

पुलिस वाले अब करीब आकर जाल में फँसे बेहोश रहस्यमय जीव को देख रहे थे ।

मोना चौधरी ने जूतों में फँसा, छुपा रखा छोटा-सा चाकू निकाला । उसका फल खोला, जो कि सिर्फ तीन इंच लंबा था । आगे बढ़कर वह चाकू से जाल को काटने लगी ।

ये देखते ही पुलिस वाले घबरा उठे ।

“मैडम, क्या कर रही हैं ?” एक पुलिस वाले के होंठों से निकला ।

“ये आजाद हो गया तो हम लोगों को मार डालेगा ।”

मोना चौधरी ने चाकू से जाल की डोरिया काटते हुए कहा ।

“ये कुछ नहीं करेगा । बेहोश है ।”

“होश आ गया तो ।”

“इसे बेहोशी की दवा का तेज इंजेक्शन लगाया है । तीन घंटे से पहले तो यह किसी भी कीमत पर होश में नहीं आ पायेगा । हो सकता है दस घंटे भी बेहोश रहे ।” मोना चौधरी जाल काटती जा रही थी ।

पुलिस वालों ने असहमति भरी निगाहों से एक-दूसरे को देखा ।

“लेकिन जाल काटने की जरूरत ही क्या है ।” एक पुलिस वाला उखड़े स्वर में कह उठा ।

“मैंने पहले ही कहा है कि मैं वही कर रही हूँ जो इस्पेक्टर साहब ने मुझे कहा है ।” मोना चौधरी बोली, “इस बारे में इस्पेक्टर साहब से... ।”

“लेकिन इस्पेक्टर साहब तो यहाँ है नहीं, मैडम !”

“वो जब आ जाये तब यह सब कीजिएगा । इंस्पेक्टर साहब ने हमें नहीं कहा कि इसे बेहोश करके जाल को... ।”

“आप लोगों का साथी इस्पेक्टर साहब को और दूसरों को बुलाने गया है । वो लोग आने ही वाले होंगे ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“तो उनके आने तक आप जाल काटना छोड़... ।”

“मुझे काम करने दो ।”

***