शाम के साढ़े पांच हो रहे थे ।

रतनचंद के बंगले से एक कार बाहर निकली। जिसमें रतनचंद बना धर्मा बैठा था। पास में थे एक्स्ट्रा और राघव । पीछे दूसरी कार में चार गनमैन थे और तीसरी कार में तीन गनमैन थे ।

एक के पीछे एक तीनों कारें सड़क पर उतर आई।

चार गनमैन वाली कार में आज एक नया गनमैन  नजर आ रहा था । जिसके चेहरे पर हल्की दाढ़ी-मूंछ सिर पर ले रखी कैप की वजह से उसका आधा चेहरा ढका सा लग रहा था। दरअसल वो ही असली रतनचंद  था । गनमैन ये बात जानते थे।

R.D.X. वाली कार एक गनमैन ड्राइव कर रहा था ।

पीछे वाली सीट पर रतनचंद बना, धर्मा और एक एक्स्ट्रा बैठे थे। आगे राघव बैठा था ।

"मेरे ख्याल में हम सही चल रहे हैं ।" राघव बोला- "कोई सोच भी नहीं सकता कि रतनचंद गनमैन के रूप में साथ है ।"

"हां, किसी के लिए ये बात जान पाना असंभव ही है ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"अगर गोली चलाने वाले ने मेरे सिर का निशाना ले लिया तो ?"

"झंझट खत्म हो जायेगा ।" एक्स्ट्रा मुस्कुराया ।

"यार, ऐसा मजाक मत करो ।" धर्मा भी मुस्कुराया ।

"हमें ।" राघव कह उठा- "उसकी पहचान करनी है जो रतनचंद को मारना चाहता है, उसकी पहचान किए बिना मामला खत्म नहीं होगा ।"

"जरूरत पड़ी तो उसे गोली भी मारी जा सकती है ।" धर्मा ने कहा ।

"जरूरत पड़ी तो-।" राघव ने सिर हिलाया ।

"हमें हर वक्त, हर तरह के हालात के लिये तैयार रहना होगा ।"

"क्या पता ।" एक्स्ट्रा ने कहा- "कुछ हो ही नहीं ।"

"ये भी हो सकता है ।" राघव ने आस-पास से निकलते वाहनों पर निगाह दौड़ाई- "ये पता लगाना कठिन है कि कोई हमारे पीछे आ रहा है या नहीं ।" एक्स्ट्रा और धर्मा की नजरें घूमी। बाहर हर तरफ देखा। सच में वाहनों की भीड़ में पता लगाना कठिन था कि कौन उन पर नजर रख रहा है ।

"अगर आज कुछ ना हुआ तो कल से रतनचंद को बंगले से बाहर ले जायेंगे । बंगले में ही रखना वक्त बर्बाद करना होगा ।"

"मेरी मानो तो केकड़ा किसी तरह पटाओ। उसने मुंह खोल दिया तो सारा मामला निपट जायेगा ।"

"मुझे तो लगता है कि केकड़ा भी कोई चालबाजी कर रहा है रतनचंद को खबरें देकर । बिना किसी मकसद के केकड़ा क्यों रतनचंद को खबरें देगा। और वो भी आधी-अधूरी खबरें ? मुझे पूरा विश्वास है कि केकड़ा कोई खेल खेल रहा है ।"

■■■

आती तीनों कारों के बीच वाली कार में रतनचंद मौजूद था ।

रतनचंद पीछे वाली सीट पर अन्य गनमैन के साथ बैठा हुआ था। गन पास ही रखी थी । सिर पर कुछ झुकी कैप और चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ । जिस्म पर वर्दी । इस वक्त उसे पहचान पाना आसान नहीं था कि वो ही रतनचंद है ।

तभी उसका फोन बजा ।

"हैलो ।" रतनचंद ने फोन निकाल कर बात की ।

"आज तो साले की शादी में भरपेट खाओगे रतनचंद ।" केकड़ा का मुस्कुराता स्वर कानों में पड़ा ।

"केकड़ा ?"

"हां, अब तो मैं तुम्हारा खास बनता जा रहा हूं । दिन-रात तुम मेरा नाम जपते होगे ।"

"तुम सच में बेवकूफ हो ।"

"वो कैसे ?"

"तुम्हें मुझसे सौदा कर लेना चाहिये। मैं तुम्हें सारी जानकारी के बदले अच्छी रकम दे सकता हूं । सोचो, अगर मुझे मारने वाला ही मर गया तो फिर तुम्हें रकम नहीं मिलेगी ।" रतनचंद ने शांत स्वर में कहा ।

"तुम तब भी सौदा करोगे रतनचंद ।" केकड़ा के हंसने की आवाज आई ।

"तब क्यों ?"

"क्योंकि तब तुम ये जानना चाहोगे कि तुम्हारी हत्या की सुपारी देने वाला कौन है? वो फिर से किसी को तुम्हारे पीछे लगा देगा। कब तक बचोगे ?"

रतनचंद के होंठ भिंच गये।

"ये खेल तो लम्बा चलेगा रतनचंद ।" केकड़ा की आवाज कानों में पड़ी ।

"जो भी हो, तुम मुझे बेवकूफ लगते हो ।"

"मैं तुम्हें खबरें दे रहा हूं, तो क्या मैं बेवकूफ हुआ ?"

"तुम्हें सारी खबरें एक साथ बेंचकर, मोटी रकम कमा लेनी चाहिये ।

"मैं तुम्हारी बातों में फँसने वाला नहीं ।"

"आखिर तुम चाहते क्या हो ?"

"जब वक्त आयेगा, जरूर बताऊंगा ।"

"तुमने पहले कहा था कि वक्त आने पर सौदा करोगे। पैसा लोगे।" रतनचंद बोला

"कहा था ।"

"वो वक्त कब आयेगा, जब-।"

"आ जायेगा ।"

"तुम एक बार जानकारी की कीमत कह कर तो देखो ।"

"मैं जानता हूं कि तुम मुझे मुंह मांगी रकम दोगे ।"

"तो फिर देर किस बात की ?"

"पैसे मेरे लिए कोई समस्या नहीं हैं। मैं ये सब पैसा कमाने के लिये नहीं कर रहा ।"

"तो ?"

"वक्त बिताने के लिये कर रहा हूं ।"

"वक्त बिताने के लिये। यहां मेरी जान पर बनी है और तुम्हें खेल सूझ रहा है ?"

"तुम्हारी जान से मुझे क्या लेना-देना! मेरे पास खबरें हैं तो वो तुम्हें बताकर अपना वक्त बिता रहा हूं। अगर तुम्हें इस खेल में बोरियत हो रही है तो दोबारा फोन नहीं करूंगा ।"

"तुम करो। मैं तुम्हें फोन के लिए मना नहीं कर रहा ।" रतनचंद ने जल्दी से कहा ।

"तुम्हारा सवाल होना चाहिये कि मैंने तुम्हें फोन क्यों किया ?"

"क्यों किया ?"

"ये बताने के लिये कि शादी में तुम पर तगड़ा हमला हो सकता है । R.D.X. के भरोसे मत रहना ।"

रतनचंद ने गहरी सांस ली।

"क्या वो मेरे पीछे हैं ?"

"वो कहीं भी हो सकता है ।" इतना कहने के साथ ही उधर से केकड़ा ने फोन बंद कर दिया।

रतनचंद कुछ पलों तक फोन हाथ में लिए बैठा रहा। उसके चेहरे पर बेचैनी दौड़ रही थी। फिर उसने फोन संभाला और आगे जा रही कार में बैठे राघव को फोन किया।

"कहो रतनचंद।"  राघव की आवाज कानों में पड़ी ।

"केकड़ा का फोन आया था। वो कहता है कि शादी में मुझ पर हमला होगा ।" रतनचंद ने कहा ।

राघव की तरफ से आवाज नहीं आई ।

"तुमने जवाब नहीं दिया मेरी बात का?" रतनचंद पुनः बेचैनी से बोला ।

"तुम किसी बात की फिक्र ना करो। तुम सुरक्षित हो ।"

"क्या कहते हो। मैं...।"

"जो हमला होगा, धर्मा पर होगा। तुम पर नहीं। धर्मा, इस वक्त तुम्हारे चेहरे में है और कोई नहीं जानता कि तुम कहां हो। मजे करो, मस्त रहो, जो होगा हम निपट लेंगे।" कहने के साथ ही उधर से राघव ने फोन बंद कर दिया ।

रतनचंद ने गहरी सांस ली। वो जानता था कि राघव ठीक कह रहा है, फिर भी वो परेशान था ।

■■■

शाम गहरा गई थी ।

6:40 का वक्त था। जब तीनों कारें शादी वाले घर पर पहुंची। बहुत खूबसूरत बंगला था, जो की रोशनियों की लड़ियों से पूरी तरह सजा हुआ था। आसपास कारें-ही-कारें खड़ी थीं। लोगों की चहल-पहल थी वहां। बैंड वाले रह-रहकर बैंड बजाने लगते थे। तो कभी ढोल बज उठता था। लड़के का सेहरा बांधा जा रहा था, कुछ ही देर में बारात रवाना हो जानी थी।

हर तरफ रौनक और चहल-पहल थी।

कार रुकने पर राघव बोला-

"चलो, बाहर निकलो ।"

राघव और एक्स्ट्रा बाहर निकले ।

रतनचंद के चेहरे में धर्मा बाहर निकला ।

तब तक पीछे की कारों से गनमैन बाहर निकल आये थे। उनमें दाढ़ी-मूंछ लगाये रतनचंद भी था। सिर पर कैप। गन उठाये वो खामोशी से एक तरफ खड़ा हो गया ।

तीन गनमैन आगे R.D.X. के पास पहुंचे ।

धर्मा ने रतनचंद के ढंग में बाहर निकलकर हर तरफ गर्दन घुमाई ।

"लगता तो सब ठीक है ।" धर्मा बोला ।

"तुम रतनचंद हो, उसी के रौब में रहो।" एक्स्ट्रा बोला- "और बंगले के गेट की तरफ बढ़ो। वहां तुम्हें रतनचंद की पत्नी मिलेगी, उसे बहुत ही स्वभाविक तौर पर मिलना है, क्योंकि वो तुम्हें अपना पति समझ कर मिलेगी ।"

राघव ने गर्दन घुमा कर पीछे देखा। वो रतनचंद को तलाश रहा था ।

रतनचंद सबसे हटकर, गन थामे,एक कार के पास खड़ा दिखा।

फिर राघव ने अपना ध्यान धर्मा पर लगा दिया ।

धर्मा ने कदम बंगले के गेट की तरफ उठाये ।

सादे से ढंग से, गनमैन के वेष में खड़ा रतनचंद इधर-उधर देख रहा था कि जगमोहन पास आ पहुंचा।

"बड़े लोगों के भी क्या ठाठ हैं।" जगमोहन बोला- "शादी में इतना खर्चा करते हैं कि पूछो मत ।"

जवाब में रतनचंद ने उसे देखकर सिर हिलाया ।

"ये कौन साहब हैं, जिनके साथ तुम लोग आये हो ?" जगमोहन बोला ।

"ये।" रतनचंद संभला- "सेठ रतनचंद है।"

"काफी अमीर लगता है।"

"इसके साले की शादी है ।" रतनचंद बोला।

"तभी तो आज जानबूझकर, दिखाने के लिए ज्यादा सिक्योरिटी वालों को लाया होगा कि बिरादरी पर रौब झाड़ सके।

रतनचंद ने गहरी सांस लेकर मुंह फेर लिया ।

उधर धर्मा में चार-पांच कदम आगे बढ़ाये थे कि एकाएक हवा में गोलियां चलने लगी ।

चीखने की आवाज आई ।

फिर काशीनाथ दिखा। जिसने चेहरे पर रुमाल बांध रखा था ।

उसके साथ छः-सात लोग थे ।

सबके हाथों में रिवाल्वरें थीं।

वो हवा में गोलियां चलाने के बाद रतनचंद बने धर्मा की तरफ लपके और उसके बाद तो जैसे भगदड़ मच गई। काशीनाथ अपने आदमियों के साथ रतनचंद को घेरे में लेकर उसे ले जाने का ड्रामा करने लगा ।

रतनचंद बने धर्मा को तीन आदमी जबरन एक तरफ खींचने लगे ।

बाकी के रिवाल्वरें लहराते चिल्ला रहे थे खबरदार कोई आगे आया तो...।"

सच बात तो ये थी कि R.D.X. ये सब होने पर हक्के-बक्के रह गए थे। उन्हें तो जरा भी आशा न थी कि इस तरह खुल्लम-खुल्ला हमला किया जा सकता है। उन्होंने रिवाल्वरें निकाल ली और पोजीशन ले ली।

राघव ने एक ही टांग पर फायर किया ।

उस आदमी को गोली लगी और चीखते हुए नीचे जा गिरा ।

ये देखकर काशीनाथ को गुस्सा आ गया और उसने जोरदार चांटा रतनचंद बने धर्मा के गाल पर मारा ।

"क्यों बे। तू तो कहता था, कि अपहरण का ड्रामा करना है और तेरे आदमी गोलियां चला रहे हैं ।"

"क्या बकवास करता है?" धर्मा चीखा और उसने रिवाल्वर निकालनी चाही।

"खूब, तो अब मेरी बात को बकवास कहता है ।"

शादी ब्याह वाला घर था ।

भीड़ बढ़ गई, ये सब देखकर ।

राघव और एक्स्ट्रा इस भीड़ में गोली नहीं चलाना चाहते थे क्योंकि फायरिंग होने पर कई लोगों को गोली लगनी थी ।

बरहाल अच्छा-खासा शोर-शराबा पड़ गया था ।

■■■

और ये सब होने की शुरुआत होते ही-

जगमोहन ने रिवाल्वर निकाली और गनमैन बने खड़े रतनचंद की कमर में चुपके से इस तरह लगा दी कि पास में कोई व्यक्ति रिवाल्वर को देख ना सके ।

रतनचंद चिंहुक उठा।

"चुपचाप खड़ा रह रतनचंद।"

अपना नाम सुनते ही रतनचंद ठगा-सा रह गया।

"क-कौन हो तुम?" रतनचंद के होंठों से निकला।

"उधर चल ओमनी वैन में, वो सामने सफेद वाली...।" जगमोहन गुर्राया।

"लेकिन तुम-।"

"साले, गोली यही मारूं क्या?" जगमोहन दबे स्वर में गुर्रा उठा।

रतनचंद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। जगमोहन को देखा ।

"दबाऊं ट्रेगर ?"

रतनचंद जोरों का कांपा और जगमोहन के साथ चल पड़ा ।

सबका ध्यान आगे शोर-शराबे पर था ।

जगमोहन, रतनचंद को चार कदमों की दूरी पर खड़ी ओमनी वैन के पास ले गया। उसके पास पहुंचते ही वैन का साइड का दरवाजा खुला तो जगमोहन ने रतनचंद को भीतर धकेला और खुद भी भीतर आकर दरवाजा बंद कर दिया ।

वैन के शीशे काले थे। बाहर से भीतर देखा जाना संभव नहीं था।

रतनचंद परेशान , हक्का-बक्का और घबराया हुआ था ।

तभी रतनचंद बुरी तरह चिंहुक उठा ।

उसके सामने उसका हमशक्ल बैठा था। उसके शरीर पर अंडरवियर के अलावा कुछ नहीं था ।

रतनचंद की आंखें फैलती चली गईं ।

"क-कौन हो तुम लोग। म-मेरी शक्ल !"

जगमोहन ने रिवाल्वर रतनचंद के सिर पर लगा दी ।

"गोली चलाऊं ।"

"नही...।" रतनचंद कांपा ।

"कपड़े उतार।"

"क्या ?"

"कपड़े उतार। वरना गोली चली। जल्दी कर ।"

रतनचंद जल्दी और कांपते हाथों से कपड़ा उतारने लगा ।

जगमोहन ने उसके सिर पर रखी कैप उतार कर अपने सिर पर रख ली।

रतनचंद कपड़े उतरता चला गया और देवराज चौहान पहनने लगा।

फिर जगमोहन ने उसकी दाढ़ी-मूंछ निकालीं और देवराज चौहान की तरफ बढ़ा दी ।

देवराज चौहान ने चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ लगाई ।

"ये-क्या-कर ।" रतनचंद ने कहना चाहा ।

"चुप ।" जगमोहन गुर्राया ।

रतनचंद होंठ भिंच कर रह गया ।

देवराज चौहान ने वो गन थामी जो, रतनचंद ने गनमैन के रूप में थाम रखी थी। जगमोहन ने कैप देवराज चौहान के सिर पर रख दी।

"इसे बंगले पर ले जाना ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"हां, तुम अपना ख्याल रखना।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा।

देवराज चौहान ने कपड़ों में रखा रतनचंद का मोबाइल फोन निकाला ।

"ये तुम्हारा है ?"  देवराज चौहान ने पूछा

रतनचंद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए सिर हिला दिया ।

देवराज चौहान अब रतनचंद बना, गन थामे, दरवाजा खोल वैन से बाहर निकल गया। फौरन ही दरवाजा बंद कर दिया गया । रतनचंद अब अंडरवियर में बैठा था ।

जगमोहन ने रिवाल्वर थामें कठोर निगाहों से उसे देखा ।

"तुम लोग कौन हो और ये क्या कर-"

"तेरे को नही पता ?"

"न...ही ।"

अगले ही पल जगमोहन ने रिवाल्वर की नाल से तीव्र प्रहार उसकी कनपटी पर किया ।

रतनचंद चीखा तो जगमोहन ने दूसरी चोट की।

रतनचंद गुड़मुड़ सा बेहोश होकर सीट पर ही धड़कता चला गया ।

रतनचंद बना देवराज चौहान उसी जगह पर जाकर खड़ा हो गया, जहां रतनचंद पहले खड़ा था। देवराज चौहान को देख कर कोई भी ये नहीं कह सकता था कि वो ही शख्स नहीं है, जो यहां चार मिनट पहले खड़ा था। सिर पर कैद चेहरे पर दाढ़ी, शरीर पर वर्दी और हाथ में गन। चेहरे पर मॉस्क था रतनचंद का।

देवराज चौहान उधर देखने लगा, जहां शोर-शराबा पड़ा हुआ था ।

R.D.X. का दिमाग खराब हुआ पड़ा था ।

वो समझ न पा रहे थे कि आखिर क्या हो रहा है ?"

अभी तक उन्हें महसूस हो चुका था कि दुश्मन बहुत समझदार और चालाक है। वो सिर्फ चुनकर ही वार करने में विश्वास रखता है। परन्तु अब जो हो रहा था, वो बेवकूफी वाली, अनाड़ी वाली हरकत थी ।

क्या ये वो दुश्मन है, या कोई नया ही पंगा है?

इसी में R.D.X उलझ कर रह गये थे ।

एकाएक काशीनाथ रिवाल्वर वाला हाथ हिलाकर कह उठा-

"चलता हूं ।" उसने रतनचंद से कहा- "देख लूंगा तुझे ।"

रतनचंद बना धर्मा उसे देखता रहा। समझ नहीं पाया कि क्या कहें !

"चलो।" काशीनाथ ऊंचे स्वर में अपने आदमियों से बोला ।

सब के चेहरे ढके हुए थे।

उन्होंने अपने घायल साथी को उठाया, जिसकी टांग पर गोली लगी थी। उसके बाद वे कारों पर सवार होकर वहां से निकल गये। उनके जाते ही वहां अजीब सा सन्नाटा घिर आया।

"ये सब क्या हुआ ?" धर्मा ने दोनों को देखकर कहा ।

"मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा।" राघव बोला ।

"मेरे ख्याल में कोई और ही चक्कर है। हमारा दुश्मन समझदार है। वो ऐसी हरकत नहीं कर सकता।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"रतनचंद को पता होगा कि क्या चक्कर है।" धर्मा बोला ।

"यहां से चलो।" राघव ने आसपास देखते हुए कहा।

तभी रतनचंद की पत्नी सोनिया भीड़ में से निकली और धर्मा की तरफ लपकी ।

"ये क्या हो रहा है। क्या आप पर गोलियां चल रही थीं?"

इससे पहले धर्मा कुछ समझता, सोनिया उससे आ लिपटी।

"सब ठीक है ।" धर्मा जल्दी से बोला- "तुम भीतर चलो ।"

"सब ठीक है? ये आपकी आवाज को क्या हो-?"

"गला खराब है-तुम-।"

"देखा, तभी तो मैं मायके नहीं आती। जब भी जाती हूं, पीछे से आपको कुछ ना कुछ हो जाता है।"

"तुम भीतर चलो, मैं आता हूं।"

धर्मा ने सोनिया को अपने से अलग किया और भीतर भेजा।

"निकलो ।" राघव बोला ।

सब आपस अपनी कारों की तरफ लपके।

एक्स्ट्रा, रतनचंद के भेष में खड़े देवराज चौहान के पास पहुंचा ।

"तुम ठीक हो रतनचंद ?" एक्स्ट्रा ने पूछा ।

देवराज चौहान ने सिर हिलाया फिर बोला-

"ये क्या हो रहा है?" आवाज धीमी थी। इस झंझट के वक्त एक्स्ट्रा उसकी आवाज पर ध्यान ना दे पाया ।

"तुम्हें पता होगा ।"

"मुझे क्या पता ?"

"वो लोग तुम्हारे लिए आये थे ।"

"मेरे लिए इस तरह कोई क्यों आयेगा?" बेहद धीमा स्वर था देवराज चौहान का ।

"कुछ भी समझ नहीं आ रहा...।" एक्स्ट्रा आस-पास नजर दौड़ा उठा- "हम यहां से चल रहे हैं ।"

"ठीक है ।"

"दाढ़ी तो ठीक तरह लगाओ ।" एक्स्ट्रा ने कहा और एक तरफ से लटकती दाढ़ी को हाथ से दबाकर ठीक किया ।

उसके बाद सब कारों में जा बैठे ।

देवराज चौहान उसी कार में बैठ गया, जिसमें रतनचंद बैठ आया था ।

भीड़ में से रास्ता बनाते कारें वहां से चल पड़ी ।

■■■

वे बंगले पर पहुंचे ।

सुन्दर बंगले पर ही था। वो रतनचंद के पास आया ।

"सब ठीक है ?" सुन्दर ने पूछा ।

"इन लोगों से पूछो।" देवराज चौहान बोला ।

"आपकी आवाज को क्या हुआ ?"

"गले में खराश सी उभर आई है। चलो, मेरे कमरे में ।"

सुन्दर उसके साथ चल पड़ा ।

देवराज चौहान नहीं जानता था कि उसे किस कमरे में जाना है। इसलिए उसने सुन्दर को साथ लिया था। चलते समय जानबूझकर देवराज चौहान उससे एक कदम पीछे रहा ।

सुन्दर, देवराज चौहान को लेकर रतनचंद के कमरे में पहुंचा ।

देवराज चौहान सामने पड़ी कुर्सी पर बैठता कह उठा-

"वहां हमला हो गया ।"

"हमला !" सुन्दर के होंठों से निकला- "धर्मा पर हमला हुआ होगा? आप पर तो नहीं ?"

"धर्मा पर ही हुआ।" बात को समझते हुए देवराज चौहान ने कहा ।

"कौन थे वे लोग ?"

"R.D.X को पता होगा। मैं तो एक तरफ खड़ा था ।"

सुन्दर कुछ कहने लगा कि दरवाजे पर एक गनमैन आया ।

"वहां गये गनमैनों में से एक गनमैन  नहीं आया साथ में।" वो बोला ।

"क्या कहते हो?" सुन्दर के माथे पर बल पड़ा ।

"वो तब मेरी ही कार में था। परन्तु वापसी पर उसे साथ न पाकर सोचा कि वो दूसरी कार में बैठ गया होगा, परन्तु यहां आकर पता चला कि वो वापस आया ही नहीं।" उस गनमैन ने कहा ।

"ये कैसे हो सकता है?" सुन्दर परेशान सा बोला ।

गनमैन खड़ा रहा ।

"ठीक है। तुम चलो। मैं आता हूं ।"

गनमैन चला गया ।

सुन्दर ने सोच में डूबे देवराज चौहान को देखा ।

"कितनी अजीब बात है सर कि एक गनमैन कम वापस लौटा है।" सुन्दर कह उठा ।

"हम जल्दबाजी में निकले थे। वो वहीं रह गया होगा।" देवराज चौहान ने कहा ।

"असंभव सर। हमारे सारे गनमैन चुस्त हैं। वे इस तरह की गलती नहीं कर सकते ।" सुन्दर कह उठा ।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

"आपको कुछ चाहिए सर ?"

"गला ठीक करना है। गर्म पानी ले आओ ।" देवराज चौहान बोला ।

सुन्दर बाहर निकल गया ।

देवराज चौहान फुर्ती से उठा और कमरे को अच्छी तरह देखा । अटैच (बाथरूम) भी देखा। यहां की चीजों से वो इस तरह अभ्यस्त (वाकिफ) हो जाना चाहता था, जैसे कि रतनचंद था।

कमरे की अच्छी तरह छानबीन करने के बाद उसने शरीर पर से वर्दी उतारी और वार्डरोब से कपड़े निकाल कर पहने, फिर उतारी वर्दी में से दो मोबाइल फोन निकाले। एक रतनचंद का फोन था, दूसरा उसका अपना ।

देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन किया ।

जगमोहन से बात हो गई ।

"तुम ठीक तो हो। उन लोगों के साथ हो?" उधर से जगमोहन ने पूछा ।

"हां। मैं बंगले पर पहुंच गया हूं ।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा ।

"उन्हें किसी तरह का शक तो नहीं हुआ ?"

"नहीं। सब ठीक है। रतनचंद कैसा है ?"

"अभी बेहोश है ।"

"उसके होश में आने पर तुमने जो काम करना है, वो सुन लो बंगले में मौजूद आदमियों के बारे में और यहां की बातों के बारे में रतनचंद से मालूम करके, मुझे बताना है, ताकि मैं किसी मौके पर फंस न जाऊं ।"

"समझ गया ।"

"रतनचंद का बंगले में खास आदमी कौन सा है और इन दिनों बनने पर क्या चल रहा है ।"

"ठीक है, उसके होश में आने पर मैं बात करूंगा, फिर तुम्हें फोन करूंगा ।"

■■■

देवराज चौहान को गर्म पानी देने के बाद सुन्दर R.D.X के पास पहुंचा ।

"एक गनमैन कम वापस लौटा है ।" सुन्दर ने कहा ।

R.D.X कि नजरें मिलीं ।

"ये कैसे हो सकता है ।" धर्मा कह उठा, जो कि अब अपने चेहरे में था ।

"समझ में नहीं आता कि ये कैसे हुआ है ।" सुन्दर बोला ।

"हमारे किसी आदमी को कोई गोली नहीं लगी?" एक्स्ट्रा बोला।

"नहीं, सब ठीक रहा ।"

"तो फिर गनमैन कहां चला गया?" राघव बोला- "वो कब हमारे से अलग हुआ ?"

"जब हम वहां से चले और यहां पहुंचने पर उसे नहीं पाया ।"

"नाम क्या है उस गनमैन का ?"

"प्रदीप ।"

"उसके पास मोबाइल फोन तो होगा ।"

"है, परन्तु यहां से चलते समय वो मोबाइल साथ नहीं ले गया था। मैंने उसे फोन किया तो पता चला कि फोन पीछे बने उसके क्वार्टर में बज रहा है। कमरे में ही पड़ा था फोन।" सुन्दर ने कहा ।

"उसकी वापसी का इंतजार करो। अगर रात भर में नहीं लौटा तो सुबह उसे तलाश करना।" धर्मा ने कहा ।

"दूसरे गनमैन से पता किया ?"

"हां, किसी को उसके बारे में कोई खबर नहीं ।"

"अभी कुछ इंतजार करो उसका ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

सुन्दर वहां से बाहर निकल गया ।

R.D.X की नजरें मिलीं ।

धर्मा सोच में डूबा कह उठा-

"वहां जो भी हुआ, हमारी सोच के बिल्कुल विपरीत हुआ ।

रतनचंद को मारने वाला समझदार है, फिर उसने कैसी हरकत कर दी ?"

"क्या पता, उन लोगों का रतनचंद की हत्या करने की चेष्टा में लगे व्यक्ति से कोई संबंध न हो ?" राघव बोला।

"जो भी हुआ, न समझ में आने वाली बात...।"

"जब उन लोगों में से एक आदमी की टांग पर गोली लगी तो जानते हो उस आदमी ने मेरे से क्या कहा?" धर्मा ने दोनों को देखा ।

"क्या ?"

"वो मेरे से बोला, तू तो कहता था कि अपहरण का ड्रामा करना है और यहां तेरे आदमी गोलियां चला रहे हैं ।"

"वो ऐसा बोला ?"

"हां ।"

"इस बात से लगता है कि रतनचंद के इशारे पर, वो सब आदमी आये हों ।" एक्स्ट्रा कह उठा ।

"हां, ऐसा ही लगता है ।"

तीनों एक-दूसरे को देखने लगे ।

"क्या रतनचंद ने उन लोगों को बुलाया होगा?" राघव के माथे पर बल दिखने लगे ।

"रतनचंद ऐसा नहीं कर सकता।" धर्मा ने इंकार में सिर हिलाया।

"तो फिर तेरे से ऐसा क्यों बोला ?" राघव ने धर्मा को देखा ।

"यही तो समझ में नहीं आ रहा कि चक्कर क्या है ?"

"कुछ चुप्पी के बाद धर्मा बोला-

"वो सात-आठ लोग थे। सबने चेहरों पर रुमाल बांधे हुए थे । उन्होंने दिखावा किया कि वो रतनचंद के लिए आये हैं हवा में गोलियां चलाकर शोर-शराबा किया, परन्तु उन्होंने ऐसी कोशिश एक बार भी ना की कि लगे रतनचंद को ले जाने आये हैं ।"

"तुम्हें ऐसा लगता है कि ये ड्रामा जानबूझकर किया गया है ?" एक्स्ट्रा बोला ।

"शायद ऐसा ही हो ।"

"फिर तो ये सोचा जा सकता है कि कहीं से हमें हटाने के लिए सब किया गया ।" एक्स्ट्रा ने धर्मा को देखा ।

"लगता तो ऐसा ही है कि वो सब खामखाह का शोर-शराबा था।"

"सवाल ये उठता है कि वो किस चीज की तरफ से हमारा ध्यान हटाना चाहते थे ?" बोला राघव ।

"और वो कौन थे ?" एक्स्ट्रा ने पहलु बदला- "हमसे एक गलती हो गई। उन लोगों के बारे में जानने के लिये किसी को उनके पीछे जाना चाहिये था, कम-से-कम उन लोगों के बारे में पता तो चलता कि वो कौन लोग हैं जो-।"

"तब जो हुआ, हमारी आशा के विपरीत हुआ। सब कुछ भूल कर हम, उसी शोर-शराबे में उलझ गये थे।

"और जिसने वो सब करवाया, यही वो चाहता था कि हम सब कुछ भूलकर, उस शोर-शराबे में उलझ जायें ।"

"हमें ये जानना जरूरी है कि वो सब किसने करवाया और उसका मकसद क्या था ?"

धर्मा उठ खड़ा हुआ।

"किधर?" राघव में उसे देखा ।

"रतनचंद से बात करते हैं ।"

"क्या ?"

"उस वक्त मैं रतनचंद के रूप में था और उनमें से एक आदमी गोली चलते ही मेरे से बोला था कि तूने कहा था कि अपहरण का ड्रामा करना है और यहां तेरे आदमी गोली चला रही हैं ।" धर्मा का स्वर गंभीर था- "कहीं ये सब रतनचंद ने तो कहीं करवाया ?"

"पागल हो गया है क्या। रतनचंद ऐसा क्यों करवायेगा? फिर वो हर वक्त मेरे सामने रहा है। किसी से मिला भी नहीं कि-।"

"फोन पर रतनचंद इस काम का इंतजाम करवा सकता है ।"

राघव-एक्स्ट्रा की नजरें धर्मा पर थीं।

"रतनचंद से ये बात करने से कोई हर्ज नहीं ।" धर्मा ने कहा ।

"कोई हर्ज नहीं, बात करने में क्या है ।"

"आओ ।"

R.D.X रतनचंद के कमरे में पहुंचे ।

■■■

देवराज चौहान को पहले ही कदमों की आहट मिल गई थी कि कोई आ रहा है उसने फौरन गर्म पानी का गिलास उठाया और बाथरूम के दरवाजे पर खड़ा हुआ और घूंट भर कर 'गरारे' करने लगा। ताकि उसे देखे तो ये बता सके कि उसका गला खराब है और वो उसकी बदली आवाज पर शक ना कर सके ।

देवराज चौहान को 'गरारे' करते पाकर राघव बोला-

"क्या हुआ ?"

"गला खराब हो गया है।" देवराज चौहान ने बाथरूम में जाकर कुल्ला करने के बाद कहा।

"ये सब बाद में करना।" एक्स्ट्रा बोला- "पहले हम से बात करो।"

देवराज चौहान ने गिलास एक तरफ रखा और कुर्सी पर जा बैठा ।

"कहो ।" अब वे उसकी बदली आवाज पर शक नहीं कर सकते थे ।

"तुमने उन लोगों को वहां बुलाया था और वहां शोर-शराबा करने को कहा था?"

रतनचंद का मॉस्क लगाये देवराज चौहान मुस्कुरा कर बोला-

"मैं ऐसा क्यों करूंगा ?"

"ये तुम जानो ।"

"मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। फिर मैं तो हर वक्त बंगले पर हूं, ये सब कैसे...।"

"फोन पर भी तुम आदमियों का इंतजाम कर सकते हो ।" राघव बोला ।

"नहीं । मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।"

R.D.X के चेहरों पर तनाव दिख रहा था। इसमें कोई शक नहीं कि वे तीनों नम्बरी चालू थे। परन्तु इस वक्त वे मात खा चुके थे। रतनचंद के रूप में देवराज चौहान उनके सामने था, लेकिन इस बात की तीनों को हवा तक भी नहीं थी। वो सोच भी नहीं सकते थे कि अपने जिस दुश्मन के बारे में जानना चाहते हैं, वो उनके सामने ही मौजूद है ।

"तुम ये सब बातें मुझसे क्यों पूछ रहे हो?" देवराज चौहान कह उठा।

"क्योंकि उन लोगों ने मुझे कहा, यानि रतनचंद को कहा कि, तुम तो अपहरण करने का ड्रामा करने को कहते थे, और यहां पर हम पर गोलियां चलाई जा रही हैं।"  धर्मा शब्दों पर जोर देकर कह उठा ।

"हैरानी है उन्होंने ऐसा कहा।" देवराज चौहान ने शांत निगाहों से धर्मा को देखा ।

"हैरानी तो हमें भी है ।"

"लेकिन ये सब किया क्यों गया ?"

"हमारा ध्यान बांटने के लिये ।"

"किस पर से ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"इसी बात पर तो पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं रतनचंद कि आखिर कोई, किस बात से हमारा ध्यान हटाना चाहता था।" एक्स्ट्रा ने होंठ सिकोड़ कर कहा- "कुछ तो बीच में है ही, जो अभी हमारी समझ से बाहर है ।"

"मैं तो इतना जानता हूं कि जो मेरी जान लेना चाहता है, वो हमारी हरकतों पर नजर रखे हुए हैं ।" देवराज चौहान बोला ।

"हां, ये बात तो है ही ।"

"हमारा दुश्मन खेला-खाया आदमी है।" राघव कह उठा ।

"तुम लोग क्या कम हो।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"कितनी अजीब बात है कि अभी तक हम ये नहीं जान पाये कि कौन तुम्हें गोली मारना चाहता है और किसके कहने पर वो तुम्हें मार रहा है। जब तक हम इस बात को नहीं जानेंगे, ये मामला खत्म नहीं होगा।" धर्मा बोला ।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

"रतनचंद ।" एक्स्ट्रा बोला- "अब हम तुम्हें बंगले पर ज्यादा देर तक बंद नहीं कर के नहीं रख सकते। उसका कोई फायदा नहीं होगा। तुम्हें थोड़ा-सा खतरा उठाना होगा, यानि कि कल से बाहर अपने काम पर जाना होगा और हम तुम्हारे साथ रहेंगे । इस दौरान तुम पर कोई हमला होता है तो उन लोगों से हम निपटेंगे और तब शायद उनके बारे में कुछ पता चले ।"

"जैसा तुम लोग ठीक समझो ।"

R.D.X देवराज चौहान को वहीं छोड़कर कमरे से बाहर निकल गये ।

देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन किया ।

"कहो ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।

रतनचंद से मेरी बात कराना। मैं उसकी आवाज सुनना चाहता हूं। ताकि उसके जैसी आवाज में बोल सकूं यहां पर। आवाज खराब होने का बहाना देर तक नहीं चलेगा। R.D.X को मुझ पर शक भी हो सकता है ।

"ठीक है, करा दूंगा बात ।"

"होश नहीं आया उसे ?"

"आ गया है। इस वक्त मैं उसका हाल-चाल पूछ रहा हूं। कुछ देर बाद रतनचंद से तुम्हारी बात कराऊँगा, पहले उसे सीधा कर लूं।"

देवराज चौहान ने फोन बंद किया और कुर्सी पर ही बैठा रहा । चेहरे पर सोच के भाव थे ।

तभी फोन बजा ।

"हैलो ।" देवराज चौहान ने बात की ।

"आप कहां हैं?" सोनिया की आवाज कानों में पड़ी- "यहां से आप कहां चले गये थे ?"

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी ।

"क्या बात है, आप ठीक तो हैं ?"

अब देवराज चौहान को महसूस हुआ दूसरी तरफ रतनचंद की पत्नी है ।

"मैं ठीक हूं ।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा- "सिर्फ गला खराब है ।"

"तभी आपकी आवाज बदली हुई है। वहां गोलियां कैसे चलीं और-"

"तुम किसी बात की फिक्र मत करो ।"

"मैं आज भाई की शादी से निपट कर, कल ही वापस आ जाती हूं ।"

"मैं कुछ कामों में व्यस्त हूं, तुम आराम से आओ, कोई जल्दी नहीं है ।"

"मुझे लगता है आप मुझसे कुछ छिपा रहे हैं ।"

"नहीं, सब ठीक है, वहम में मत पड़ो। तुम आराम से रहो, मैं यहीं ठीक हूं।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

"सच कह रहे हैं ?"

"हां ।"

"ठीक है। अब मैं हर रोज फोन करके आपका हाल पूछूंगी और दो-तीन दिन बाद में आ जाऊंगी ।"

"ठीक है ।"

देवराज चौहान ने फोन बंद करके वापस रखा ।

उसी पल कदमों की आहट गूंजी और सुंदर ने भीतर प्रवेश किया ।

"अब आपका गला कैसा है ?"

"पहले से ठीक है, सुबह तक फर्क पड़ जायेगा ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा- "लापता गनमैन का कुछ पता चला ?"

"अभी तो नहीं ।"

"कल मैं कामों के लिए निकलूंगा। घर में बंद नहीं रहूंगा ।"

"ये आप क्या कह रहे हैं सर ? बाहर आपको खतरा है ।"

"खतरा उठाये बिना मामला खत्म भी नहीं होगा ।"

"R.D.X से बात की इस बारे में ?"

"मेरा बाहर निकलना, उनका ही प्रोग्राम है ।"

"ओह ।"

परन्तु देवराज चौहान के लिए समस्या थी कि कल जायेगा कहां? क्योंकि रतनचंद के कामों के बारे में उसे ठीक से जानकारी नहीं थी कि वो कहां-कहां जाता है और क्या-क्या करता है?

"मैं परेशान चल रहा हूं। कुछ काम करने को भी मन नहीं कर रहा ।" देवराज चौहान ने लंबी सांस लेकर कहा ।

"मैं समझता हूं सर ।" सुन्दर ने सिर हिलाया ।

"कल मैंने कहां जाना है, मेरा प्रोग्राम तुम ही बनाओ। तुम जानते हो मेरे कौन से जरूरी काम रुके पड़े हैं ।"

"जानता हूं सर। मैं तो हमेशा आपके साथ ही रहता हूं ।"

"तो जब तक मेरी ये परेशानी खत्म नहीं होती, मेरे बाहर जाने के प्रोग्राम तुम ही तय करोगे ।"

"ठीक है सर। गले के लिए अगर डॉक्टर की जरूरत हो तो उसे बुला...।"

"सुबह तरफ फर्क ना पड़े तो डॉक्टर को बुलाऊंगा ।"

"ठीक है ।"

"जो कोई भी नई बात हो, मुझे बताते रहना। R.D.X जो कर रहे हैं, उन्हें करने दो ।"

"जी ।"

"कल मेरा कहां का प्रोग्राम बनाओगे कि मुझे किधर-किधर जाकर क्या काम करने हैं ।"

"मैं आपका सारा प्रोग्राम तय करके, आपको एक घंटे तक बता दूंगा ।" सुन्दर ने कहा ।

देवराज चौहान ने सिर हिलाया तो सुन्दर बाहर निकल गया ।

■■■

R.D.X अपने कमरे में मौजूद थे। अभी वे रतनचंद यानि कि देवराज चौहान से बात करके लौटे थे ।

"मेरे ख्याल से।" राघव बोला- "हमारे साथ, खेल खेला गया है ।"

"किसने ?"

"कैसे खेला ?"

"उसी ने जो रतनचंद की जान लेना चाहता है। उसने वहां पर कुछ आदमियों को भेजकर, हमारा ध्यान बंटाया और अपना जो काम करना चाहता था, कर दिया। हमें पता भी न चला कि उसने क्या किया।" राघव का स्वर कठोर हो गया।

"आखिर वो करना क्या चाहता था, तब उसके लायक करने को था ही क्या ?"

"एक बात और नई हुई है।" धर्मा ने कहा- "वो जो भी है, रतनचंद की जान लेना चाहता है, तब मैं रतनचंद बना खुले में मौजूद था, वो चाहता तो आसानी से मेरा निशाना भी ले सकता था, परन्तु उसने ऐसा नहीं किया ।"

एक्स्ट्रा और राघव की नजरें मिलीं ।

"धर्मा ठीक कहता है।" एक्स्ट्रा बोला ।

"तो क्या अब वो रतनचंद की जान नहीं लेना चाहता ?" राघव ने एक्स्ट्रा को देखा ।

"मैं नहीं मानता कि वो अपने इरादे से पीछे हट गया है ।" एक्स्ट्रा ने इंकार में सिर हिलाया ।

"केकड़ा के मुताबिक उसने रतनचंद को मारने के, तीन करोड़ की सुपारी ली है, वो पीछे नहीं हट सकता ।"

"तो उसने तब मेरा निशाना क्यों नहीं लिया, जबकि उसके पास अच्छा मौका था।" धर्मा बोला ।

"ये मामला अब ज्यादा उलझ गया है ।" राघव बोला ।

"क्योंकि हम ये नहीं समझ पा रहे कि वहां पर आदमी भेज कर, क्या करना चाहता था, या क्या किया ?"

"साला, हरामी, एक बार हाथ आ जाये। तो-"

तभी सुन्दर भीतर आया ।

तीनों की निगाह सुन्दर की तरफ उठी ।

सुन्दर के साथ एक गनमैन था ।

"ये वो ही गनमैन है, जो हमारे साथ वापस नहीं लौटा था ।" सुन्दर ने बताया ।

"प्रदीप ?"

"हां।" सुन्दर बोला- "ये उन लोगों के पीछे गया था, जिन्होंने वहां हंगामा किया था ।"

R.D.X की नजरें मिलीं ।

"खूब।" एक्स्ट्रा कह उठा- "जो हमसे गलती हुई थी, वो इसने सुधार ली ।"

"तुमने।" राघव ने प्रदीप से पूछा- "ये देखा कि वो लोग कहां रहते हैं ?"

"मैंने उनके ठिकाने को देखा है। उनके बारे में थोड़ा सा पता भी किया। उनका बड़ा काशीनाथ नाम का बदमाश है। कई केस उस पर चल रहे हैं और इस वक्त वो जमानत पर है ।"

"बन गया काम।" धर्मा कह उठा- "ये काशीनाथ बतायेगा कि असल मामला क्या है ।"

"अभी चलेंगे।" एक्स्ट्रा बोला ।

"यहां कौन रहेगा?" राघव कह उठा ।

"यहां?" एक्स्ट्रा कह उठा- "सुन्दर है। दस-गयारह गनमैन हैं। हम तीनों बाहर जा सकते हैं। रतनचंद को कोई खतरा नहीं आयेगा, आया तो सुन्दर और गनमैन, सब संभाल लेंगे ।"

"हां, इधर की परवाह मत करो ।"

"चलो ।" राघव प्रदीप से बोला- "हमें काशीनाथ के ठिकाने पर ले चलो ।"

"चलिये ।"

"किधर है ?"

"उल्हास नगर में ।"

"मैं वहां पर रतनचंद के चेहरे में ही जाऊंगा। अभी आया उसका चेहरा लगाकर ।"

"मेरे ख्याल में तो ऐसे ही ठीक है ।" राघव बोला ।

"नहीं ।" धर्मा बोला- "वो मुझे रतनचंद के चेहरे में देखेगा, तभी वो कहेगा जैसे कि उसने वहां पर कहा था कि तुमने अपहरण का ड्रामा करने को कहा था और यहां तुम ही गोलियां चला रहे हो ।" धर्मा बाहर निकल गया।

दस मिनट बाद धर्मा वापस आया तो वो रतनचंद के रूप में था।

R.D.X प्रदीप को लेकर बाहर निकल गये।

सुन्दर, रतनचंद यानी कि देवराज चौहान के पास पहुंचा ।

"सर । लापता गनमैन वापस लौट आया है।" सुन्दर ने कहा- "वो उन लोगों के पीछे गया था।"

"जिन्होंने वहां हंगामा किया?" देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में पूछा ।

"जी। अब R.D.X प्रदीप को लेकर वहां गये हैं। उसका नाम काशीनाथ है, छटा हुआ बदमाश है । R.D.X उससे जानेंगे कि असल मामला क्या है, वहां पर उन्होंने हंगामा क्यों किया । किसने कहा उन्हें ऐसा करने के लिये ।"

"ये तो अच्छी बात है । शायद हमें पता चल जाये कि कौन पीछे पड़ा है ।"

"जी मेरे ख्याल में कल एक्स्ट्रा ने, डिरिस्ट्रेक्ट सेन्टर की इमारत में जाकर, उस आदमी की जान लेने की जल्दी कर दी। वरना उस आदमी से जाना जा सकता था कि कौन-कौन आपके पीछे है ।" सुन्दर सोच भरे स्वर में बोला ।

देवराज चौहान ने कुछ ना कहा और सिर हिला दिया ।

"मैं जरा गनमैनों पर नजर मार लूं । R.D.X तो प्रदीप को लेकर बाहर गए हैं ।" कहकर सुन्दर चला गया ।

देवराज चौहान के चेहरे पर विषैली मुस्कान उभर आई ।

"कुछ नहीं पता चल पायेगा R.D.X को।" देवराज चौहान बड़ाबड़ा उठा ।

तभी देवराज चौहान का फोन बजा। उधर जगमोहन था ।

"लो,  रतनचंद से बात करो, उसकी आवाज पहचानो ताकि तुम उसकी आवाज में वहां बात कर सको ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

"रतनचंद से अभी तक तुम्हारी क्या बात हुई ?"

"बातचीत चल रही है अभी। बंगले पर सुन्दर नाम का आदमी, रतनचंद के सबसे करीब है।" जगमोहन ने सुन्दर का हुलिया बताया- "R.D.X का हुलिया भी सुन लो कि कौन राघव है, कौन धर्मा है और कौन एक्स्ट्रा ।" जगमोहन ने तीनों के हुलिये बताये।

"कोई नई बात ?"

"रतनचंद का कहना है कि कोई केकड़ा नाम से उसे फोन करता था और वो ही इन्हें हमारी हरकतों के बारे में बताता था कि कब हम क्या करने जा रहे हैं। परन्तु अजीब बात तो ये है कि उसने कभी नहीं बताया कि कौन रतनचंद की हत्या करवाना चाहता है, ना ही उसने इन लोगों को हमारे बारे में बताया ।"

"अजीब बात है ! केकड़ा कौन हो सकता है ?"

"रतनचंद कहता है कि उसे मोटी रकमों के लालच दिए गये कि वो, हम लोगों के बारे में बता दे, परन्तु उसने लालच स्वीकार नहीं किया। ठीक वक्त पर वो फोन पर ये बता देता है कि हम क्या करने वाले हैं। हम डिरिस्ट्रेक्ट सेन्टर की इमारत के ऑफिस में डेरा जमाये हुए हैं, ये बात भी केकड़ा ने ही बताई ।"

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव नाच उठे ।

"इसे केकड़ा ने ये भी बताया कि शादी वाले घर में उस पर हमला होगा ।"

"मतलब कि केकड़ा जानता था कि वहां हम कुछ करने वाले हैं।" देवराज चौहान बोला ।

"उसे हमारी हर तरह की खबर है ।"

"अब हमारे साथ नागेश शोरी के आदमी नहीं हैं, फिर खबर कैसे बाहर गई ?" देवराज चौहान बोला ।

"नागेश शोरी से तो तुमने शादी वाले घर का पता पूछा था और।"

"नागेश शोरी ये काम नहीं कर सकता।" देवराज चौहान ने टोका।

"वो नहीं कर सकता, लेकिन उसके आदमी। दिनेश चुरु, हरीश मोगा और अवतार सिंह तो खबर बाहर कर सकते हैं ।"

"उनमें जो भी गद्दार है, उसने ये जान लिया होगा शोरी से कि हम क्या करने जा रहे हैं ।"

"केकड़ा कौन हो सकता है ?" देवराज चौहान सोच भरे स्वर में बोला ।

"कोई कमीना ही होगा ।" उधर से जगमोहन ने जले-भुने स्वर में कहा ।

"रतनचंद को भी एहसास नहीं हो पाया कि केकड़ा कौन है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"नहीं पता लगा उसे। केकड़ा ने एक दो बार R.D.X से बात भी की ।"

"इसका मतलब केकड़ा के हाथ लगते ही, गद्दार सामने होगा । केकड़ा ही वो गद्दार है, जो कि केकड़ा के नाम से खबरें रतनचंद को दे रहा है था। ये केकड़ा नागेश शोरी के करीब रहने वाला ही कोई बंदा है।" देवराज चौहान ने कहा- "और क्या बोला रतनचंद ?"

"बातचीत जारी है। रतनचंद का भीतरी सारा हाल जल्दी ही बाहर होगा । तुम्हें केकड़ा का फोन आया ?"

"नहीं ।"

"रतनचंद का फोन है तुम्हारे पास ?"

"हां-है ।"

"उसी फोन पर केकड़ा फोन करता है ।"

"हूं। रतनचंद से मेरी बात कराओ। मैं उसकी आवाज सुनना चाहता हूं कि वो कैसे बोलता है किन शब्दों का प्रयोग करता है। कैसी आवाज है उसकी।" देवराज चौहान के चेहरे पर सोच दौड़ रही थी, चंद क्षणों के बाद रतनचंद की आवाज कानों में पड़ी ।

"ह...हैलो।" वो घबराया हुआ था ।

"रतनचंद ?" देवराज चौहान बोला ।

"हां...लेकिन तुम लोग कौन हो? मुझे इस तरह कैद करके पूछताछ की जा रही है? क्या किया है मैंने ?"

"तुम्हें बताया नहीं ?"

"नहीं ।"

"तो जो तुम्हारे पास खड़ा है, वो ही तुम्हें, तुम्हारे सवालों का जवाब देगा ।" देवराज चौहान बोला।

"ये तो बता दो कि तुम लोग हो कौन ?"

"तुम्हारी इन बातों का जवाब, तुम्हारे पास वाला-।"

"ये अपना नाम जगमोहन बताता है ।"

"जगमोहन नाम ही है उसका ।"

"तुम वो ही हो ना, जो मेरी शक्ल में मुझे वैन में मिले थे ?"

"हां, वो ही हूं मैं ।"

तुम इस वक्त रतनचंद बनकर मेरे बंगले पर हो ?"

"हां ।"

"आखिर ये सब हो क्या रहा है...तुम लोग...।"

"इन बातों का जवाब तुम्हें जगमोहन देगा।" देवराज चौहान ने कहा ।

"मैंने पूछा है, लेकिन ये कुछ भी बताता नहीं। मेरे से पूछे जा रहा है । तुम ही बता दो कि-।"

"मेरी बात ध्यान से सुनो ।"

"क्या ?"

"मैं रतनचंद बनकर, तुम्हारे बंगले पर मौजूद हूं। ऐसी हालत में तुम मुझे कुछ कहना चाहते हो तो कह सकते हो ।"

"क्या कहूं ?"

"तुम्हारा कोई जरूरी काम हो, ऐसी कोई भी बात। तुम्हारी इस तरह की परेशानी मैं दूर कर सकता हूं ।"

कुछ चुप्पी के बाद रतनचंद की आवाज कानों में पड़ी ।

"बंगले पर R.D.X भी हैं ?"

"हां ।"

"वे तुम्हें पहचान लेंगे। तुम उनकी नजरों से बच नहीं सकोगे ।" रतनचंद के स्वर में गुस्सा आ गया ।

"उनके लिए ये जानना आसान नहीं है कि मैं, रतनचंद नही हूं ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"तुम उन्हें नहीं जानते ।"

"और तुम मुझे नहीं जानते ।"

"आखिर मेरी जगह पर बैठकर तुम करना क्या चाहते हो। कहीं तो मेरी पत्नी के साथ कुछ बुरा...।"

"चिन्ता मत करो। तुम्हारी बीवी मेरे लिए पूजनीय है। औरतों को मैं इज्जत की नजरों से देखता हूं ।"

आखिर तुम चाहते क्या हो...मैं ।"

"जानना चाहते हो मेरे बारे में ?"

"ह...हां...बताओ...बोलो ।"

"मेरा नाम देवराज चौहान है। शायद तुमने कभी डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम सुना हो ?"

"ह...हां...सुना है। सुना है...तुम वो ही हो ?"

"वो ही हूं मैं ।"

उधर से रतनचंद की आवाज नहीं आई ।

"मैंने तुम्हारी हत्या की सुपारी ली है ।"

"सुपारी...तुम...तुम वो हो।" रतनचंद का फटा-फटा का स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा- "तुमने...तीन करोड़ में मेरी हत्या की सुपारी ली है ।"

"हाँ, रकम की बात तुम्हें किसने बताई ?"

"केकड़ा ने।" रतनचंद के गहरी सांस लेने की आवाज देवराज चौहान के कानों में स्पष्ट पड़ी- "अगर तुम मेरी हत्या करना चाहते हो तो मुझे इस तरह कैद क्यों कर लिया?" मेरी जगह पर मेरा चेहरा लेकर तुम क्यों जा बैठे? मेरी हत्या क्यों नहीं की ?"

"क्योंकि तुम्हारी हत्या करने से पहले मैं ये जानना चाहता हूं कि कौन मेरी खबरें, तुम तक पहुंचा रहा है ।"

"केकड़ा...।"

"केकड़ा कोई नाम नहीं है। और अब मुझे जानना है कि केकड़ा है कौन ?"

"फिर...उसके बाद, मुझे मार दोगे ?"

"ख्याल तो यही है ।"

"तुम पागल तो नहीं हो क्या ?"

"क्यों ?"

"किसी के कहने पर मेरी जान क्यों लेना चाहते हो? मेरे से सौदा कर लो। मुझे ये बता दो कि किसने तुम्हें मेरी हत्या के लिए सुपारी दी है। तुम मुझे ना मारो, बदले में मैं तुम्हें पांच करोड़ दूंगा।" रतनचंद की आवाज कानों में पड़ी ।

"ये कभी नहीं होगा ।"

"तो मैं तुम्हें भगवान से यही कहूंगा कि R.D.X तुम्हें पहचान ले और तुम्हारे सिर में गोली मारे।" रतनचंद की आवाज में गुस्सा आ गया था ।

"तुम्हारे बंगले से बहुत जल्दी एक-एक करके R.D.X गायब हो जायेंगे।" रतनचंद।" देवराज चौहान कड़वी मुस्कान में बोला ।

"क्या मतलब ?"

"जब मरोगे, तब तक हर बात का मतलब समझ चुके होंगे।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया ।

इतनी बात करके देवराज चौहान, रतनचंद के स्वर को अच्छी तरह पहचान चुका था और अब उसे रतनचंद जैसे स्वर में बोलने में कोई परेशानी नहीं आने वाली थी ।

■■■

रात के साढ़े दस बज रहे थे, जब वे उल्हासनगर में पहुंचे और गनमैन प्रदीप के कहने पर एक मकान के पास कार रोकी। ये स्लम एरिया था। छोटे-छोटे, आसमान की तरफ बढ़ते घर बने हुए थे। हर तरफ चहल-पहल थी, लोग आ जा रहे थे। किसी स्ट्रीट लाइट का बल्ब रोशन था तो किसी का बंद ।

R.D.X बाहर निकले ।

धर्मा रतनचंद के वेष और चेहरे में था ।

"किधर चलना है ?" एक्स्ट्रा (E-TRA) ने प्रदीप से पूछा ।

"उधर, वहां कार नहीं जा सकती। हमें पैदल ही जाना होगा। दो-तीन गलियों के पास वो जगह है, जहां वे लोग हैं।"

चारों पैदल ही आगे बढ़ गये ।

कुछ देर बाद ही वे मकान के बंद दरवाजे पर खड़े थे। पचास गज का मकान चार-मंजिला बना हुआ था। कुछ दूर खंबे पर लगा बल्ब रोशन था। गली में लोगों का आना-जाना था ।

राघव ने दरवाजा थपथपाया। कॉलबेल तो वहां लगी नहीं थी ।

दूसरी बार थपथपाने पर पहली मंजिल की सुरंग जैसी बालकनी पर कोई दिखा ।

"क्या है ?"

चारों ने ऊपर देखा ।

"दरवाजा खोलो ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"किससे मिलना है, गलत जगह आ गये लगता हो ।" आवाज से वो कुछ नशे में महसूस हुआ।

"काशीनाथ भीतर ही है ना ?" राघव ने पूछा 

"काशीनाथ ? तुम लोगों को काशीनाथ से मिलना है ?"

"हां ।"

वहां इस कदर पर्याप्त रोशनी नहीं थी कि ऊपर वाला व्यक्ति उनके चेहरे स्पष्ट देख पाता ।

वो व्यक्ति वहां से हट गया ।

पांच-सात मिनट बाद नीचे वाला दरवाजा खुला ।

"कहो, मैं हूं काशीनाथ।" पर्याप्त रोशनी ना होने की वजह से उसका चेहरा स्पष्ट नजर ना आ रहा था ।

धर्मा ने आवाज से पहचाना कि यही व्यक्ति वहां रूमाल बांधे गोलियां चला रहा था ।

"भीतर चलो, तुमसे बात करनी है ।" धर्मा बोला ।

"मुझसे? मैं तुम लोगों को नहीं जानता और शरीफ लोगों का मेरे पास काम नहीं है।"

"मुझे देखो ।" धर्मा बोला- "क्या तुम मुझे जानते नहीं ?"

काशीनाथ ने उसे देखा। अंधेरा होने की वजह से स्पष्ट ना देख पाया तो जेब से माचिस निकालकर तीली जलाई। अगले ही पल उसके होंठों से निकला।

"तुम?"

"भीतर चलो, तुमसे बात करनी ।"

"आओ। मैं भी तेरे से बात करना चाहता हूं। तूने हेराफेरी की है मेरे साथ ।"

वो भीतर एक कमरे में जा पहुंचे ।

प्रदीप उनके साथ था ।

वहां रोशनी में एक-दूसरे को स्पष्ट देख पाये ।

काशीनाथ नाराजगी से धर्मा को देख रहा था ।

"मुझे पहचानते हो ?" धर्मा बोला ?

"तुझे तो-।"

"काशीनाथ, इस वक्त मैं जो पूछ रहा हूं, वो बोलो, तुम्हारी बातें भी हो जायेंगी । हम पहली बार कब और कहां मिले थे ?"

"ये तुम पूछ रहे हो-तुम तो-।"

"मैंने कहा है, हर बात होगी, लेकिन जो-।"

"तुम यहां तक कैसे पहुंचे। इस जगह के बारे में तो मैंने किसी को नहीं बता...।"

"तेरे को बार-बार कह रहे हैं कि पहले हमारी बात का जवाब दे, बाकी बातें भी हो जायेंगी।" एक्स्ट्रा तीखे  स्वर में बोला- "लेकिन तुम हर बात तो कह रहे हो, लेकिन जो हम चाहते हैं, वो नहीं।"

"मैं तेरे बाप का नौकर लगा हूं कि तेरी बात मानूं ।" काशीनाथ गुर्रा उठा ।

एक्स्ट्रा ने रिवाल्वर निकाली और काशीनाथ की तरफ कर दी ।

"अब बोल, नौकर लगता है या नहीं?" एक्स्ट्रा कड़वे स्वर में बोला ।

दांत भिंच गये काशीनाथ के ।

"मेरे से दादागिरी करता है, जानता है मेरे को?" काशीनाथ गुर्राया।

"जानता हूं ।"

"नहीं जानता, तभी मुझे धमकी दे रहा है। ऊपर के कमरे में मेरे दस आदमी हैं, अगर उन्हें पता चल गया तो-।"

"कुछ नहीं होगा क्योंकि तब तक मैं तुझे गोली मार चुका होऊंगा।" एक्स्ट्रा पूर्वतः में बोला ।

काशीनाथ ने एक्स्ट्रा को घूरा ।

"तू है कौन-तू तो...।"

"सुन ।" राघव बोला- "फालतू की बातें छोड़, काम की बात कर, नहीं तो खामखाह ही बात बढ़ जायेगी ।"

काशीनाथ ने रतनचंद बने, धर्मा को देखा ।

"बोल...क्या है ?" काशीनाथ की आवाज में तीखे भाव थे ।

"तूने मेरे को पहले कब देखा। कब मिला मुझसे ?" धर्मा बोला ।

"आज जब तू मेरे पास आया था ।"

"मैं आया था ?"

"हां, तो क्या तेरा भूत था वो ?"

"कहां आया मैं ?"

"मेरे दूसरे ठिकाने पर ।" काशीनाथ ने उस ठिकाने के बारे में बताया ।

"कितने बजे आया था मैं ?"

"दस-बारह का वक्त होगा...। ये बेकार की बातें क्यों पूछ रहा है ?"

धर्मा ने एक्स्ट्रा और राघव को देख कर कहा-

"सुना रतनचंद सुबह मिला इससे, जबकि तब वो हमारे पास मौजूद था ।"

"क्या पागलों वाली बातें कर रहे हो...।" काशीनाथ के उठा- "तुम आज मेरे पास आये नहीं थे क्या ?"

"तो मैंने तुम्हें क्या कहा ?"

"यही कि उस शादी वाले घर में जब तुम पहुंचोगे तो तुम्हारे अपहरण का ड्रामा करना है, खासा शोर-शराबा डालकर वहां से चले आना है। वो ही मैंने किया, लेकिन तुम्हारे आदमियों ने गोली क्यों चलाई? उसकी टांग पर गोली लगी है। बीस हजार तो उसके इलाज में और खाने-पीने में लग जायेगा। सिर्फ लाख रुपये दिया तुमने इस काम का-।"

"लाख रुपया ?"

"मुझे तो लगता है कि ये बकवास कर रहा है।" राघव बोला- "रतनचंद भला कैसे मिल सकता है इसे ?"

"इससे पूछ लो । ये कल मुझे मिला था या नहीं-और मेरे साथी इस बात के गवाह हैं ।"

"इसके साथ कौन था ?"

"एक आदमी था जो की ड्राइविंग सीट पर बैठा रहा । मेरी उससे कोई बात नहीं हुई । बहुत हो गया, अब बताओ कि ये सब क्या हो रहा है ? क्यों मुझसे ये बातें पूछी जा रही हैं? जो पूछना है, इस रतनचंद से पूछ लो ।"

R.D.X की नजरें मिली ।

उनके चेहरे पर अजीब सी परेशानी नजर आने लगी थी ।

"तुमसे मिलने वाला में नहीं था ।" धर्मा बोला ।

काशीनाथ ने उसे घूरा ।

"तू मुझे बेवकूफ समझता है जो ऐसी बात कर रहा है? मैं ही मिला था तेरे को जो।"

"ये ठीक कह रहा है ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"तुम लोगों ने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारी बातों पर यकीन कर लूंगा ?"

वे चुप रहे ।

"फिर सबसे बड़ी बात है कि मुझे ये सब क्यों कह रहे हो ?"

काशीनाथ अपनी जगह सही था ।

R.D.X. तो काशीनाथ का पता करने आये थे कि मामला क्या है।

"पच्चीस हजार और दो, जो मेरे साथी की टांग पर गोली मारी ताकि...।"

"तुमसे कल जो मिला, वो मैं नहीं मेरा, मेरा बहरूपिया था।" धर्मा बोला ।

"बकवास। तुम्हारी बात रखो लेकिन करेगा?" काशीनाथ उखड़े स्वर में कह उठा- "पच्चीस हजार नहीं देना चाहते तो कोई दूसरा बहाना बनाओ, ऐसे घटिया बहाने की दूर ही रखो ।"

"मैं सच कह रहा हूं, तुम्हें मेरी बात का विश्वास करना चाहिये ।"

"तेरा कोई जुड़वा भाई है ?"

"नहीं ।"

"आज मुझसे मिलने वाला, तू ही था। मुझे पागल समझा है क्या। जो ये बात मुझे सुना रहा है ।"

राघव, एक्स्ट्रा धर्मा से बोला-

"मेरे ख्याल में हम जो जानने आये थे, वो जान लिया है ।"

"हां, अब हमें चलना चाहिये ।"

"ये क्या बात हुई, मुझे पच्चीस हजार रुपया-।" काशीनाथ ने कहना चाहा ।

"मैंने तेरे को कोई फोन नम्बर दिया था ?"

"फोन नम्बर क्यों देगा तू- तेरे को नहीं पता जो ये बात मेरे से पूछ रहा है ?"

"उस कार का नम्बर पता है, जिस पर मैं आया था ?" धर्मा ने पूछा ।

"ये तू क्यों पूछ-।"

"बता तो सही ।"

"मैं भला तेरी कार का नम्बर क्यों देखूंगा ।"

"शायद देख लिया हो, कई लोगों की आदत होती है, कारों के नम्बर पढ़ने की मुझे ।"

"मुझे ये आदत नहीं है। तूने मेरे आदमी को गोली मारी है, पच्चीस हजार मुझे दे। मैं तो सोच भी रहा था कि गोली का हर्जाना लेने के लिए तुझे कहां ढूंढू।" काशीनाथ लड़ने वाले स्वर में कह उठा ।

"बच गया तू अभी, शुक्र कर कि तेरे को गोली नहीं मारी ।" राघव ने सख्त स्वर में कहा।

"क्यों-मेरे को गोली क्यों मारोगे। एक तो मेरे से काम करवाते हो और ऊपर से-।"

"हमने तेरे से काम नहीं करवाया ।"

"इससे पूछ। ये आज दिन में मेरे पास आया और लाख रुपया देकर काम-।"

धर्मा ने चेहरे पर लगा रखा मॉस्क उतार दिया ।

काशीनाथ हक्का-बक्का रह गया ।

"तुम-तुम ।"

"अब समझा कि दिन में तेरे से मिलने वाला मैं नहीं था ।" धर्मा ने शांत स्वर में कहा ।

काशीनाथ की शक्ल देखने वाली थी ।

"इसलिए तेरे से पूछ रहे हैं कि तेरे से मिलने वाला कौन था ?"

"इस चेहरे का असली मालिक...।" काशीनाथ के होंठों से निकला- "असली मालिक ही होगा ।"

"इस चेहरे का असली मालिक आज हर वक्त हमारे साथ रहा है।"

"ये कैसे हो सकता है ।"

"ये ही हुआ है। तभी तो ये बातें पूछने तेरे पास आये हैं ।"

"लेकिन तुम लोग हो कौन ?"

"चलो यहां से ।" धर्मा बोला ।

"ये सब आखिर हो क्या रहा है ?"

"तेरे जानने लायक कुछ भी नहीं है । मजे कर ।"

R.D.X और प्रदीप बाहर निकल आये ।

काशीनाथ से खतरनाक जानकारी मिली थी ।

कोई आज दिन में, रतनचंद बनकर, काशीनाथ से मिला और रतनचंद का नकली अपहरण करने का ड्रामा करने को कहा । इसके लिये उसे लाख रुपए दिए गये। वो कौन था जो रतनचंद का चेहरा ओढ़े, काशीनाथ से मिला था ?

■■■

"अगर हम काशीनाथ की बातों पर विश्वास करें तो ये बात सामने आती है कि कोई रतनचंद का चेहरा इस्तेमाल कर रहा है।"

राघव और एक्स्ट्रा, धर्मा को देखने लगे ।

वे बंगले पर आ चुके थे और कमरे में पहुंचते ही धर्मा बोला था।

"ये हैरानी वाली बात है कि कोई रतनचंद का चेहरा इस्तेमाल कर रहा है ।"

"वो कोई, वो ही हो सकता है, जो रतनचंद की हत्या करना चाहता है ।"

R.D.X एक-दूसरे को देखने लगे ।

"मुझे हालात कुछ बदलते से लग रहे हैं ।"

"ऐसा क्यों ?"

"शाम को जब काशीनाथ ने शादी वाले घर पर हंगामा किया तो, मारने वाले के पास तब पूरा मौका था कि रतनचंद बने धर्मा पर आसानी से हमला कर सके, परंतु उसने हमला नहीं किया ।"

"क्या पता वो वहां हो ही नहीं ।"

"वो वहीं था। पक्का वही था, रतनचंद बनकर वो ही काशीनाथ से मिला ।"

"रतनचंद बनना आसान नहीं, समझ में नहीं आता कि कोई रतनचंद के चेहरे का मॉस्क कहां से हासिल कर सकता है ?"

"कहीं से तो उसने हासिल किया ही है ।"

"उसने काशीनाथ को हंगामा करने को क्यों कहा? ये जवाब ढूंढना होगा कि इसके पीछे उसकी मंशा क्या थी ।"

एक्स्ट्रा उठा और कमरे में चहलकदमी करने लगा ।

"क्या हुआ ?" धर्मा ने उसे देखा ।

"सोचने की ये बात है यह रतनचंद के चेहरे का मॉस्क उसने कहां से बनवाया होगा ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"जगजीत ।" राघव के होंठों से निकला ।

R.D.X की नजरें मिलीं।

"हमने जगजीत से बनवाया था। सुंदर ये काम करने गया था।" धर्मा बोला ।

"तो क्या उसने भी जगजीत से बनवाया होगा ?"

"जगजीत कम से कम रतनचंद का मॉस्क किसी को नहीं बना कर देगा। क्योंकि उसने ये काम हमारे लिए किया है ।"

"सोचने की बात है कि ये खबर सुन्दर ने बाहर निकाली है, या उसने अपने तरीके से हासिल की है ?"

"वो जो भी है, सुन्दर को खरीद सकता है ।"

"सुन्दर नहीं बिकेगा ।"

"क्यों नहीं बिकेगा? नोटों की महक सबका ईमान खराब कर देती है। कोई दस रुपये पर बिकता है तो कोई दस लाख में। सबकी अपनी-अपनी कीमत होती है। हो सकता है सुन्दर यहां की खबरें बाहर दे रहा हो ।"

चंद पलों के लिए उनके बीच खामोशी छा गई ।

"हमें पता लगाना होगा कि क्या जगजीत ने रतनचंद के चेहरे का फेस मॉस्क बनाकर किसी को दिया है ।"

धर्मा ने फोन निकाला और जगजीत का नम्बर मिलाने लगा ।

धर्मा ने कई बार नम्बर मिलाया, फिर कह उठा-

"उसने अपना फोन बंद कर रखा है ।"

"मैं जगजीत के पास होकर आता हूं।" राघव उठते हुए बोला और बाहर की तरफ बढ़ा।

"ध्यान से, रास्ते में तुम्हें खतरा हो सकता है ।" पीछे से एक्स्ट्रा ने कहा ।

एक्स्ट्रा और धर्मा की नजरें मिलीं ।

"सुन्दर के बारे में हमें अपनी तसल्ली कर लेनी चाहिये कि वो गद्दार है या नहीं ?"

"अगर जगजीत ने ही किसी को रतनचंद का मॉस्क बनाकर दिया है तो...। मैं कुछ गलत सोच रहा हूं । कुछ भी हो सकता है। सुन्दर ने पता लगा लिया होगा कि हमने उसे जगजीत के पास किस काम के लिए भेजा है और उसने ये खबर बाहर निकाल दी। सुन्दर बिका हुआ हो सकता है। कुछ भी हो सकता है धर्मा-।"

"हां, कुछ भी हो सकता है, परन्तु किसी नतीजे पर पहुंचने की जल्दी मत करो। अब बात तो स्पष्ट हो गई कि हमारा दुश्मन उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है, जितना कि हम सोच रहे थे । वो हम से खेल, खेल रहा है ।"

"पता चलेगा कि कहां गड़बड़ है ।" एक्स्ट्रा बोला- "रतनचंद का हमशक्ल बनकर वो ना जाने क्या खेल, खेल रहा है ।"

"हम अभी तक ये नहीं जान पाये कि वो कौन है ?"

तभी रतनचंद के रूप में देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया ।

"आओ रतनचंद। बैठो ।"

देवराज चौहान आगे बढ़ कर बैठ गया और रतनचंद की आवाज में बोला-

"जहां तुम लोग गये थे, वहां कुछ पता चला ?"

"अजीब सी बात पता चली है ।"

"क्या ?"

"जो तुम्हारा निशाना लेने की फिराक में है, वो तुम्हारे चेहरे के रूप में भी नजर आता है ।"

"ये कैसे हो सकता है?" देवराज चौहान (रतनचंद ) ने हैरानी जाहिर की ।

"यही हो रहा है। जिन लोगों ने आज शाम, वहां हम लोगों पर हमला किया, उनका सरदार कहता है कि रतनचंद ने एक-एक रुपये देकर उसे ये काम करने को कहा था ।" एक्स्ट्रा एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठा ।

"ये कैसे हो सकता है? मैं तो हर वक्त इस बंगले पर, तुम लोगों के सामने मौजूद रहा हूं ।"

'हां, तभी तो हम कह रहे हैं कि, वो तुम्हारा चेहरा लगाये ही घूमता है ।"

"मेरा चेहरा उसने कहां से लिया ?"

"राघव, जगजीत के पास गया है, ये पता करने की उससे तो मॉस्क नहीं बनवाया गया ।"

"ये बात तो उसे फोन करके भी पूछ लेते कि-।"

"फोन नहीं लग रहा उसका ।"

"ओह ।"

"हमें सुन्दर के बारे में बताओ, उस पर किस हद तक विश्वास किया जा सकता है ?"

"पूरी हद तक लेकिन ये बात तुमने क्यों पूछी ?"

"उस मॉस्क को सुन्दर के द्वारा ही जगजीत से बनवाया था, ये जुदा बात है कि हमने सुन्दर को नहीं बताया कि वो तुम्हारे चेहरे का मॉस्क जगजीत से ला रहा है। परन्तु ये बात आसानी से जान सकता था कि जगजीत से हम मॉस्क बनवा रहे हैं तुम्हारे चेहरे, का और ये बात उसने बाहर किसी को बता दी हो ।"

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

धर्मा और एक्स्ट्रा की नजर उस पर जा टिकी ।

"क्यों मुस्कुरा रहे हो रतनचंद ?"

"बात कुछ भी हो, सुन्दर मेरा विश्वासी आदमी है । वो कोई गड़बड़ नहीं कर सकता ।"

"विश्वास ही हो तो धोखेबाजी करते हैं ।"

"सुन्दर ऐसा नहीं है, मेरा विश्वास करो ।"

देवराज चौहान बहुत अच्छी तरह से रतनचंद के रूप को निभा रहा था ।

"मुझे मारने वाला, मेरा चेहरा लिए घूम रहा है तो हालात खतरनाक हो गये हैं ।"

"सब ठीक हो जायेगा ।"

"कैसे ठीक होगा ? तुम लोग कुछ करते-।"

"इसी काम में लगे हुए हैं रतनचंद ।"

"मुझे तो अब शंका होने लगी है कि वो जल्द ही मुझे कोई नुकसान पहुंचा देगा ।" देवराज चौहान बोला ।

"हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हें कुछ नहीं होगा। वो तुम्हें छू भी नहीं पायेगा ।"

"क्या पता?" देवराज चौहान उठता हुआ बोला- "जल्दी करो । पहले उसे पहचान तो लो कि वो कौन है ?"

देवराज चौहान वहां से निकलकर रतनचंद के कमरे में पहुंचा और फोन उठाकर जगमोहन के नम्बर मिलाये ।

"हैलो ।"

"एक काम तुम्हें अभी करना है ।" देवराज चौहान धीमे स्वर में बोला ।

"क्या ?"

"राघव, जगजीत के घर की तरफ गया है। जगजीत का पता सुनो।" देवराज चौहान ने जगजीत का पता बताया- "राघव पर कब्जा करो और उसे बंगले पर ले जाकर कैद कर लो । सावधानी से ये काम करना। वो खतरनाक हैं।"

"समझ गया ।"

"रतनचंद का क्या करोगे ?"

"उसे बेहोश करके, हाथ-पांव बांधकर निकल जाता हूं ।"

देवराज चौहान ने फोन बंद कर लिया ।

■■■

फोन बजा। एक्स्ट्रा ने बात की। दूसरी तरफ राघव था।

"कहो।" एक्सट्रा बोला- "जगजीत क्या कहता है ?"

"जगजीत नहीं मिला। उसके फ्लैट का दरवाजा बंद है।" राघव की आवाज कानों में पड़ी- "गली का चौकीदार कहता है कि कल उसकी दिन में ड्यूटी थी, तब उसने जगजीत को ताला बंद करके दो लोगों के साथ जाते देखा, उसके बाद जगजीत नहीं लौटा ।"

"कल से ?"

"हां। वो खाली हाथ गया है, साथ में कपड़े वगैरह नहीं ले के गया ।"

"तेरे को क्या लगता है ?"

'मेरे को कुछ ठीक नहीं लगता। चौकीदार के मुताबिक, जगजीत कल दो के साथ निकला था। उनमें से एक तो सामने खड़ी कार में जा बैठा और दूसरे के साथ जगजीत पैदल ही गली में बाहर निकल गया ।"

"जगजीत कहीं पर गया हो सकता है ।" एक्स्ट्रा बोला- "उन दोनों का हुलिया कैसा है ?"

"चौकीदार से पूछा मैंने।" कहने के साथ ही राघव ने देवराज चौहान और सोहन लाल के हुलिये बताकर कहा- "मेरे ख्याल में तो ऐसे हुलिये वाले, दोनों लोगों से हमारा कभी वास्ता नहीं पड़ा।"

"हर बात में शक मत लाओ। जगजीत काम से कहीं गया हो सकता है। जगजीत के फ्लैट पर ताला है ?"

"हां ।"

"ताला तोड़ो और भीतर जाकर देखो कि क्या हमारे काम की कोई बात पता चलती है ?"

"ठीक है ।" इसके साथ ही उधर से राघव ने फोन बंद कर दिया था।

एक्स्ट्रा ने फोन टेबल पर रखते हुए धर्मा को देखा, जो कुर्सी पर आंखें बंद किए बैठा था ।

"तेरे को क्या हुआ ?" एक्स्ट्रा बोला ।

"मैं सोच रहा हूं...।" धर्मा ने आंखें खोलीं।

"क्या ?"

"रतनचंद को निशाना बनाने वाला व्यक्ति, शाम को खामखाह का शोर-शराबा डाल के, अपना फोन कौन-सा मतलब हल करना चाहता था? इतना तो जाहिर है कि काशीनाथ से उसने ये सब इसलिए करवाया कि, हम उस शोर-शराबे में उलझ कर रह जायें और वो जो करना चाहता है, हमारी निगाहों में आये बिना कर लें। आखिर वो करना क्या चाहता था?" धर्मा बंद आंखों से बोला- "तब वहां पर उसके मतलब का कौन सा काम करने वाला हो सकता है ।"

"पहली बार कोई खास हरामी हमारे सामने पड़ा है। साले ने हिला कर रख दिया है ।" एक्स्ट्रा मुस्कुराया ।

धर्मा ने आंखें खोलीं। एक्स्ट्रा को देखा ।

"मैं जान लूंगा कि शोर-शराबे की आड़ में वहां उसने क्या किया।"

"कैसे जानोगे। सोच-सोच कर ?" एक्स्ट्रा मुस्कुरा रहा था ।

"हां। वहां पर उसके काम के लोग हम तीनों थे जिनमें से एक, यानि कि धर्मा रतनचंद बना हुआ था। हम तीनों के अलावा वहां पर अपनी सूरत बिगाड़कर रतनचंद गनमैन के रूप में मौजूद था। कुल चार लोगों से उसका वास्ता हो सकता है लेकिन रतनचंद को मैं चार में से बाहर निकाल देता हूं कि तब हम चंद लोगों के अलावा कोई नहीं जानता था कि रतनचंद गनमैन के रूप में वहां मौजूद है ।" धर्मा अपने ही शब्दों के जाल में उलझ कल झल्ला कर बोला- "समझ में नहीं आता कि आखिर शोर-शराबे की आड़ में वो क्या करना चाहता था? जो चाहता था, वो कर भी पाया या नहीं। तुम्हारा क्या ख्याल है कि उसने वो कर लिया  होगा, जो वो चाहता होगा ?"

"क्या पता ।" एक्स्ट्रा ने गहरी सांस ली- "क्योंकि हमें नहीं पता कि वो क्या करना चाहता था। और उस काम के लिए उसे कितना कितना वक्त मिला होगा। लेकिन इतना तो जाहिर है कि वो कुछ खास करना चाहता होगा, तभी उसने वहां पर शोर-शराबे का ड्रामा करवाया। साले ने दिमाग खराब कर के रख दिया है ।" धर्मा बड़बड़ा उठा।

■■■

राघव ने चौकीदार को दो सौ रुपये दिए कि वो ताला तोड़कर भीतर जाकर देखना चाहता है। उसका चोरी का कोई इरादा नहीं है। दस मिनट की मगजमारी करनी पड़ी चौकीदार से। अंत मे चौकीदार ने वॉर्निंग के तौर पर राघव को समझा दिया कि अगर भीतर का माल लेकर बाहर निकल तो, वो उसे छोड़ेगा नही।

राघव ने दरवाजे पर लगे ताले से मुक्ति पाई और भीतर प्रवेश कर गया। वो पहले भी कई बार यहां आ चुका था। बहरहाल वो ये बात चैक करने लगे कि जगजीत ने उन्हें रतनचंद का मॉस्क देने के बाद क्या एक और मॉस्क बना कर किसी को दिया है। तभी उसकी निगाह सामने ही छोटे से टेबल पर पड़ी, वहां रतनचंद की दोनों तस्वीरें रखी हुई थी, जो उन्होंने जगजीत को चेहरे की पहचान के लिये भेजी थी कि इस चेहरे का मॉस्क बना सके।

राघव ने दोनों कमरों की अच्छी तरह तलाशी ली।

परन्तु वो समझ न पाया कि जगजीत ने  रतनचंद का मॉस्क किसी को बनाकर दिया है या नही। उसी पल उसने जगजीत का मोबाइल फोन पड़ा देखा। राघव ने फोन को उठाकर चैक किया तो वो चार्ज नही था, राघव समझ नही पाया कि ये मोबाइल फोन जगजीत का है, या यूं ही यहां रखा हुआ है। उसने चार्जर तलाशा और उस मोबाइल फोन को चार्जिंग पर लगाया। अगले ही पल फोन चार्ज होने लगा। राघव ने अपना फोन निकाला और जगजीत ने नम्बर मिलाये।

दूसरे ही पल चार्ज होता फोन बजने लगा ।

राघव की आंखें सिकुड़ी। होंठों के बीच कसाव आ गया। फोन जगजीत का ही था। परन्तु वो फोन साथ नहीं लेकर गया था। भारी गड़बड़ है कहीं, ये बात महसूस करने के लिए जगजीत का फोन यहां पड़े होना बहुत था ।

राघव ने एक्स्ट्रा को फोन करके बात की।

"जगजीत का फोन फ्लैट में रखा है, मोबाइल फोन-।"

"ये कैसे हो सकता है कि वो अपना मोबाइल फोन भी अपने साथ न ले जाये।" एक्स्ट्रा की आवाज कानों में पड़ी- "राघव जगजीत के साथ कोई गड़बड़ हुई है, कोई बड़ी गड़बड़- जो हमसे ही वास्ता रखती हो ।"

"मेरा यहां कोई काम नहीं है । मैं वापस आता हूं ।"

"हां, आ जाओ ।"

राघव ने अपना फोन बंद करके जेब में रखा तो उसके कानों में चलने की आवाज पड़ी ।

अगले ही पल दरवाजे पर जगमोहन दिखा।

दोनों की नजरें मिलीं ।

"क्यों भाई ।" जगमोहन कह उठा- "तुम यहां क्या कर रहे हो ?"

"मैं-मैंने क्या करना है ?" राघव ने अपने को संभाला ।

"ये ही तो पूछ रहा हूं कि तूने ताला क्यों तोड़ा, इस तरह भीतर क्यों आया ?"

"तुम्हें किसने कहा कि मैंने ताला-।"

"बाहर बैठे चौकीदार ने। तूने उसको दो सौ दिए और मैंने पांच सौ। उसने सारी बातें बाहर कर दीं।

राघव के माथे पर बल उभरे।

"तुम कौन हो ?"

"जगमोहन...।"

"मेरा मतलब है कि पड़ोसी हो या जगजीत के दोस्त जो कि...।"

"पड़ोसी कभी भी पांच सौ खर्च नहीं करेगा ।"

"तो जगजीत के दोस्त हो-। मैं भी उसका दोस्त-।"

तभी जगमोहन आगे बढ़ा और राघव के करीब आ पहुंचा।

"जो ताला तुमने तोड़ा है, वो कल मैंने ही लगाया था ।"

"तुमने ?" राघव चौंका ।

"हां-मैंने ।" जगमोहन मुस्कुराया ।

"तो क्या जगजीत कल तुम्हारे साथ गया था ?"

"हां ।"

"कहां है वो, उसका मोबाइल फोन कहां पड़ा है ?"

"वो जहां है, वहां उसे मोबाइल फोन की जरूरत नहीं ।"

"कहां है ?" राघव के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे ।

जगमोहन ने फुर्ती से रिवाल्वर निकाली और राघव के पेट से नाल लगाते हुए कहा-

"मेरी कैद में ।"

राघव एकाएक सतर्क नजर आने लगा ।

दोनों की नजरें मिलीं ।

"तुमने रिवॉल्वर क्यों निकाली ?"

"तुम्हें लेने ही यहां आया हूं ।"

"मुझे लेने?" राघव कोई मौका ढूंढ रहा था, जगमोहन पर हमला करने का ।

"तेरे को जगजीत सिंह से मिलाता हूं। चलेगा? मेरे पास तेरी दिलचस्पी का और सामान भी है ।"

"और सामान ?"

"चलेगा तो दिखाऊंगा। लेकिन यहां नहीं बताऊंगा ।" जगमोहन मुस्कुराकर खतरनाक स्वर में बोला ।

"तुम हो कौन ?"

"वो ही जिसके बारे में शायद तुम लोग अभी तक जान नहीं सके । हमने ही रतन चंद की हत्या की सुपारी ली है ।"

यही वो पल थे कि राघव ने बिजली की सी तेजी से उसके रिवॉल्वर वाले हाथ को अपने पेट से हटाते हुए, जोरो से झटका दिया। सब कुछ इतनी फुर्ती से हुआ कि जगमोहन कुछ समझ ना सका और रिवाल्वर हाथ से निकल गई ।

राघव ने जोरों का घूंसा जगमोहन के पेट में मारा ।

जगमोहन पेट थामे दोहरा होता चला गया। परन्तु सब कुछ भूल कर उसी क्षण, झुके सिर से उसने सांड की तरह राघव के पेट में मारा तो राघव के पांव उखड़ गये और वो नीचे आ गिरा ।

जगमोहन फुर्ती से झपटा और नीचे पड़ी रिवॉल्वर उठा ली। पेट में भी दर्द हो रहा था। घूंसा बहुत ठिकाने पर पड़ा था। पीड़ा की लाली चेहरे पर आ ठहरी थी ।

राघव ने अपने को संभाला, सीधा हुआ वो।

"घिसा हुआ हरामी है तू-। सुना था R.D.X के बारे में, परन्तु मुलाकात अब हुई ।" जगमोहन कड़वे स्वर में बोला- "क्या नाम है तेरा ?"

"राघव ।" कहते हुए राघव के दांत भिंचने लगे ।

"पलट ।"

"क्या ?"

"पलट मेरी तरफ पीठ कर। तेरे को बेहोश करके साथ ले चलना है। अगर बेहोश नहीं होना चाहता और गोली खाना चाहता है तो मुझे कोई एतराज नहीं, तेरी लाश यहीं छोड़ जाता हूं।" जगमोहन की आवाज में दरिंदगी भर आई थी ।

"छोडूंगा नहीं तेरे को-।" राघव घूमता हुआ कहर भरे स्वर में बोला ।

तभी जगमोहन आगे बढ़ा और एक-के-बाद एक रिवाल्वर की नाल की चोट राघव के सिर पर की ।

राघव बेहोश होकर नीचे गिरता चला गया।

जगमोहन ने रिवाल्वर जेब में रखी और बेहोश राघव को उठा कर कंधे पर डाला, फिर बाहर निकल कर चला गया ।

■■■

काफी देर से राघव का फोन नहीं आया तो धर्मा ने राघव को फोन किया ।

दूसरी तरफ बेल बजती रही। परन्तु राघव ने बात नहीं की ।

"राघव बात क्यों नहीं कर रहा ?" धर्मा परेशान-सा कह उठा ।

"शायद वो कहीं पर व्यस्त हों और बात ना कर पा रहा हो।" उलझन में फंसे एक्स्ट्रा ने कहा ।

"ऐसी भी क्या व्यस्तता।" धर्मा के माथे पर बल पड़े- "वो मुसीबत में हो सकता है ।"

"मुसीबत ?"

"हां, जगजीत के फ्लैट में किसी तरह का कोई पंगा हो गया हो।"

"वहां भला क्या पंगा होगा ?" एक्स्ट्रा के होंठों से निकला ।

"कुछ हुआ हो सकता है, वरना राघव -।"

"जल्दी मत सोचो, इंतजार करो। मेरे ख्याल में राघव कुछ ही देर में फोन करेगा ।"

धर्मा ने कुछ न कहा। चेहरे पर परेशानी रही ।

■■■

जगमोहन ने बंगले के एक कमरे में राघव को लिटाया। वो बेहोश था। परन्तु अब कभी भी होश में आ सकता था । जगमोहन ने सबसे पहले नायलॉन की डोरी से मजबूती से राघव के हाथ-पांव बांधे, फिर देवराज चौहान को फोन किया ।

"कहो ।" देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।

"काम हो गया। राघव को बंगले पर ले आया हूं।" जगमोहन ने कहा ।

"गुड। राघव और रतनचंद पर सख्त निगाह रखनी है। वो बंगले से निकल न सकें ।"

"मैं सोच रहा हूं कि सोहनलाल को यही बुला लूं, वो जगजीत को लेकर यहां आ-।"

"उसे वहीं रहने दो। बंधक को लेकर इधर-उधर घूमना ठीक नहीं।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।

जगमोहन ने बेहोश राघव पर निगाह मारी, फिर दूसरे कमरे में पहुंचा ।

वहां रतनचंद बंधा पड़ा था। और उसे होश आ चुका था । जगमोहन को देखते ही वो भड़क कर बोला-

"तुमने ये क्या तमाशा लगा रखा है, बार-बार बेहोश करके बांध देते हो ?"

"मुझे बाहर जाना था ।" जगमोहन मुस्कुराया ।

"तो मुझे बांधा क्यों ?"

"अगर तुम्हें बांधा न होता तो तुम भाग लिए होते ।" जगमोहन ने कहा और आगे बढ़ कर उसके बंधन खोलने लगा ।

बंधन खुलते ही रतनचंद ने राहत की सांस ली और अपने हाथ-पांवों को मलने लगा ।

जगमोहन शांत खड़ा रहा ।

रतनचंद ने जगमोहन को अपनी तरफ देखते पाकर कहा-

"क्या है ?"

"सोच रहा हूं कि तुम्हारी वजह से खासा झंझट खड़ा हो चुका है।"

"मेरी वजह से ?"

"हां । जब से तुम्हें मारने का काम हाथ म लिया है, तब से चैन खो गया है ।"

"तीन करोड़ कमाने आसान नहीं होते ।" रतनचंद मुस्कुराया।

"तुम्हें इस बात का डर नहीं लग रहा कि हम तुम्हें बहुत जल्द गोली मार देंगे ?"

"खास डर नहीं है ।"

"क्यों ?"

"मुझे विश्वास है कि R.D.X मुझे बचा ले जायेंगे।" रतनचंद ने कहा ।

"इस हालत में भी उन पर विश्वास है ?"

"तुम R.D.X को ठीक से जानते हो ?"

"नहीं ।"

"तभी। जानते होते तो तुम्हें हर वक्त इस बात की शंका लगी रहती कि  R.D.X यहां पहुंच सकते हैं ।"

"इतना विश्वास तो इंसान को भगवान पर होता है ।"

"इस हालत में तो तेरे लिए भगवान ही हैं R.D.X रतनचंद ।" रतनचंद ने जगमोहन को घूरते हुए कहा।

"उठो, तुम्हें कुछ दिखाता हूं ।" एकाएक जगमोहन मुस्कुराया ।

"क्या ?"

"उठो तो। दूसरे कमरे में तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं ।"

रतनचंद माथे पर बल समेटे उठा ।

जगमोहन उसे लेकर उस कमरे में पहुंचा जहां राघव बंधा था ।

राघव पर निगाह पड़ते ही रतनचंद चिंहुक उठा।

राघव होश में आ चुका था ।

"तुम ?" रतनचंद के होंठों से निकला ।

"रतनचंद।" राघव अजीब से स्वर में कह उठा- "तुम यहां कैसे ?"

"मैं... मैं...मुझे तो ये कल शाम यहां ले आया था ।" रतनचंद ने कहा ।

"कल शाम को...।"

"हां, जब मैं गनमैन बना तुम लोगों के साथ गया था और धर्मा मेरे रूप में था । जब वहां पर कुछ लोगों ने आकर हंगामा किया, तो तभी इन लोगों ने मुझे वैन में बिठा लिया। वहां मेरी शक्ल लिए, एक आदमी मौजूद था। उसने मेरी गनमैन वाली वर्दी पहनी। मेरी दाढ़ी-मूंछ उतार कर अपने चेहरे पर लगा ली। और गन पकड़कर मेरी जगह वो पहुंच गया ।"

राघव के चेहरे पर जहान भर की हैरानी फैली हुई थी ।

"तो इसका मतलब वापसी पर हमारे साथ वो नहीं, कोई और था ?" राघव के होंठों से निकला ।

"हां-वो-।"

"और इस समय बंगले पर तुम नहीं, कोई दूसरा है? सत्यानाश।" राघव की हालत देखने लायक थी ।

"वो जानते हो, कौन है ?" कहते हुए रतनचंद ने जगमोहन पर निगाह मारी ।

जगमोहन बराबर मुस्कुरा रहा था ।

"कौन है ?"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान ।"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान ?" राघव के होंठों से अजीब सा स्वर निकला। उसने जगमोहन को देखा- "तुम कौन हो ?"

"जगमोहन ।"

"देवराज चौहान का साथी, जगमोहन नाम सुन रखा है। त-तो क्या तुम लोग रतनचंद को मारना चाहते थे ?"

जगमोहन ने सहमति से सिर हिलाया ।

"देवराज चौहान तो डकैती में हाथ डालता है, फिर ये कत्ल की सुपारी?"

"कसम तो नहीं ले रखी कि डकैतियां ही डालनी हैं, कत्ल भी किया जा सकता है ।" जगमोहन बोला ।

"हैरानी है कि हमारे सामने देवराज चौहान है ।" राघव ने गहरी सांस ली ।

"सोचा नहीं था ।"

"नहीं, कभी नहीं सोचा था कि देवराज चौहान जैसे डकैती मास्टर से पंगा हो जायेगा । काश हमें पहले मालूम होता तो हम और भी सतर्कता से काम करते, तब तुम लोगों की कोई चाल सफल नहीं होती। ओफ्फ-देवराज चौहान वहां रतनचंद के चेहरे में मौजूद है और हम नहीं जानते इतनी बड़ी बात। देवराज चौहान कितनी आसानी से हमारे करीब पहुंच गया ?"

"आसानी से नहीं, मेहनत की है ।"

"तुम्हें देवराज चौहान ने बताया होगा कि मैं जगजीत के फ्लैट पर जा रहा हूं ।"

"हां ।"

"वो वहां बैठा हर भेद ले रहा है ।"

"तुम लोगों ने हमारे एक साथी की हत्या की है ।" जगमोहन बोला- "डिरिस्ट्रेक्ट सैंटर की इमारत में ।"

"हां, एक्स्ट्रा (X-TRA) ने मारा है उसे ।"

"उसे नहीं मारना चाहिए था ।"

राघव जगमोहन को देखता रहा। सोचता रहा ।

कुछ पल चुप्पी में गुजरे ।

"रतनचंद।" जगमोहन बोला- "एक तो यहां आ गया, बाकी के दो भी आ जायेंगे ।"

"तुम उन पर हाथ डालने में सफल नहीं हो सकते।" रतनचंद दांत भींचकर बोला ।

"तुम तो ये भी कह रहे थे कि इस तरह नहीं डाला जा सकता ।" जगमोहन ने कड़वे स्वर में राघव की तरफ इशारा किया ।

रतनचंद ने होंठ भींच लिये।

"बाजी देवराज चौहान के हाथ में है रतनचंद। हम समझ चुके हैं। देवराज चौहान इस वक्त छुरा लेकर हमारी बगल में बैठा है।" राघव ने परेशानी भरे स्वर में कहा- "देवराज चौहान जबरदस्त चाल चल चुका है ।"

जगमोहन मुस्कुराया ।

"जगजीत भी तुम लोगों के पास है ?" राघव ने पूछा ।

"हां ।"

"कहां ?"

"किसी और जगह पर ।"

'देवराज चौहान के चेहरे पर रतनचंद का मॉस्क है वो जगजीत ने ही बनाया ?"

"उसी ने बनाया ।"

"यकीन नहीं होता कि जगजीत तुम लोगों के लिये रतनचंद के चेहरे वाला मॉस्क बनाने को तैयार हो गया ।

"सिर पर रिवॉल्वर लगी हो और किसी भी समय गोली चल सकती हो तो सामने वाले को बात माननी पड़ती है ।"

राघव ने खा जाने वाली नजरों से जगमोहन को देखा ।

"मुझे खायेगा क्या ?" जगमोहन बोला ।

"तुम ये सब करके समझते हो कि तुम लोग ज्यादा चालाक और समझदार हो ।"

"तो हमें अपने को क्या समझना चाहिये ?"

"किस्मत के धनी ।"

"वो कैसे ?" जगमोहन के चेहरे पर व्यंग भरी मुस्कान आ ठहरी।

"इस वक्त बाजी तुम लोगों के हाथ में है, जानते हो ऐसा क्यों हुआ ?"

"क्यों हुआ ?"

"क्योंकि हम खुले में रहकर खेल, खेल रहे थे और तुम लोग छिपकर खेल, खेल रहे थे हम क्या कर रहे हैं, तुम लोगों को सब कुछ पता था, लेकिन तुम लोग कौन हो, हम नहीं जान सके। इसी वजह से तुम लोगों ने छिपकर हम पर वार किया और देवराज चौहान रतनचंद की जगह लेकर, हमारी बगल में बैठ गया। किस्मत के धनी हो तुम लोग ।"

"एक बात मैं भी कहूं ।"

"कह-।"

"खेल, खेल ही होता है, बेशक मौत का खेल ही क्यों ना हो । दोनों पार्टियों में एक किस्मत का धनी होता है, जो जीतता है ।"

"लेकिन तुम दोनों ज्यादा किस्मत के धनी निकले। आज तक हम लोगों से कोई जीत नहीं सका। हम हारे नहीं ।"

"आज से पहले कभी तुम लोग देवराज चौहान के रास्ते में आये ?"

राघव ने होंठ भिंच लिये ।

"पहली बार देवराज चौहान से टकराये हो। और हार कर तिलमिला रहे हो ।"

"हार, कैसी हार ? अभी तो खेल चल रहा है ।"

"हम लोगों की मेहरबानी से ही खेल चल रहा है ।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा- "हम लोग जब चाहे, खेल खत्म कर दें। इधर तुम दोनों मेरे पास हो, उधर तुम्हारे दोनों साथियों के पास देवराज चौहान। हम चाहें, तुम सब को खत्म कर सकते हैं ।"

राघव ने भस्म कर देने वाली निगाहों से जगमोहन को देखा।

अभी तुम हमें ठीक से जानते नहीं कि-।"

"हम तुम लोगों को जानने नहीं निकले।" जगमोहन ने पूर्वतः स्वर में कहा- "अपने काम पर निकले हैं ।"

"और तुम लोगों का काम रतनचंद की हत्या करना है ।"

"ठीक समझे ।"

"तो अपना काम निपटा क्यों नहीं रहे, रतनचंद को कैद करके क्यों रखा है ?"

"इसलिए कि देवराज चौहान पहले ये जानना चाहता है कि तुम लोगों को कौन हमारी खबरें दे रहा है। देवराज चौहान को गड़बड़ लग रही है, लेकिन समझ नहीं पा रहा कि गड़बड़ कहां है ।"

"मैं बता चुका हूं कि खबरें केकड़ा दे रहा है ।" रतनचंद बोला ।

"और केकड़ा कौन है ?"

"ये तो हम भी नहीं जानते ।"

"ये ही जानने के लिए देवराज चौहान, उस बंगले में रतनचंद बन कर बैठ गया है ।" जगमोहन ने कहा- "इस बात का पता लगते ही रतनचंद, तेरे को टपका दिया जायेगा ।"

रतनचंद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

राघव के होंठ भिंच गये।

"तुमने तीन करोड़ में रतनचंद की हत्या की सुपारी ली है ।" राघव कह उठा- "जान बचाने के लिए, रतनचंद पांच करोड़  तुम्हें दे सकता है ।"

जगमोहन मुस्कुराया ।

"मंजूर-?"

"मुंह बंद रख। थोड़ी-बहुत मेहरबानी तो मैं धंधे में कर लेता हूं, लेकिन धोखाधड़ी नहीं करता ।" जगमोहन कह उठा ।

"जिसने मेरी हत्या की सुपारी दी है, तुम उससे मिले हो?"  रतनचंद ने जगमोहन से पूछा ।

"हां ।"

"कौन है वो? उसका नाम तो बता सकते हो। अब तो मैं तुम्हारी कैद में हूं और कभी भी मेरी जान ले सकते हो ।"

"चिन्ता मत कर रतनचंद-।" जगमोहन कड़वे स्वर में बोला- "तेरे को मारने से पहले, तेरे को उसके बारे में जरूर बताऊंगा । अब बहुत बातें हो गई। चल दूसरे कमरे में, तेरे हाथ-पांव बांधकर...।"

"कुछ खाने को नहीं दोगे ?" रतनचंद ने गहरी सांस लेकर कहा।

"कल दूंगा । आज तो मेरे पास खाने को कुछ नहीं है ।"

"जो एक्स्ट्रा के हाथों मरा था, वो कौन था। तुम्हारा ही साथी था ?" राघव ने पूछा ।

"वो उसका बंदा था जिसने रतनचंद की हत्या की सुपारी दी है।"

तभी जगमोहन की जेब में पड़ा फोन बजा ।

जगमोहन ने फोन निकाला। वो राघव का फोन था ।

"तेरे यार-भाई, तेरे से बात करने को परेशान हो रहे हैं। जब तेरे को यहां ला रहा था, तो रास्ते में ये बहुत बार बजा था।"

राघव के दांत भिंच गये ।

"बात कर लेने दे इसे ।" रतनचंद कह उठा ।

"इसके बात करते ही हमारा खेल खत्म हो जायेगा। ये अपने साथियों को पहली बात ये बतायेगा कि बंगले में मौजूद रतनचंद, रतनचंद नहीं डकैती मास्टर देवराज चौहान है। ऐसा होते ही बाजी पलट जायेगी ।"

जगमोहन, रतनचंद को लेकर कमरे से बाहर निकला ।

पीछे से राघव की आवाज आई ।

"मेरे को क्या रात भर इसी तरह बांधोगे ?"

जगमोहन ने उसकी बात का जवाब ना दिया और दूसरे कमरे में ले जाकर, रतनचंद को बांधा ।

"तुम मुझे राघव के पास ही बांध देते।" रतनचंद बोला ।

"ताकि तुम एक-दूसरे को खोल दो-।"

"हमारे हाथ तो बंधे हैं? कैसे हम-।"

"दांतों से एक-दूसरे के बंधक खोल सकते हो। उसके बाद मेरा बिस्तरा गोल करोगे। चुपचाप यहीं पड़ा रह ।"

जगमोहन रतनचंद को बांधकर निकला। उसका इरादा अब कॉफी  बनाकर पीने का था ।

तभी पुनः फोन बजा ।

राघव वाला फोन ही था। जगमोहन ने फोन निकाल देखा । सोचा, फिर कॉलिंग स्विच दबाकर बात की ।

"यारों का दिल नहीं लग रहा, यार के बिना-।" जगमोहन व्यंग भरे स्वर में कह उठा।

एकाएक फोन पर चुप्पी छा गई ।

"यार की आवाज कानों में नहीं पड़ी, तो कहने को कुछ नहीं रहा ?" जगमोहन पुनः बोला और किचन की तरफ बढ़ गया ।

"कौन हो तुम ?"

"पहले अपने बारे में बताओ, धर्मा हो या एक्स्ट्रा ?"

"धर्मा । इस बार धर्मा की आवाज में कठोरता आ गई थी ।

"तुम्हारा यार मेरे रहमों-करम पर है। हाथ-पांव बांधकर, एक तरफ डाल रखा है उसे ।"

"कौन हो तुम ?"

"जगजीत भी मेरी कैद में है ।"

"उल्लू के पट्ठे तू है कौन? अपने बारे में बता?" उधर से धर्मा गुस्से से कह उठा।

"जगमोहन हूं उल्लू के पट्ठे ।" जगमोहन हंसा ।

"कौन जगमोहन ?"

"इस वक्त तुम हमसे ही पंगा लिए बैठे हो ।"

"ओह ।"

"दूसरा नाम भी बताऊं क्या। परेशान हो चुके हो तुम लोग अपने दुश्मन का नाम नहीं जानते। और हवा में तीर-तोप यूं हीं चलाये जा रहे हो। बोल बताऊं क्या?" जगमोहन किचन में पहुंचा कॉफी, बातों के दौरान बनाने लगा। एक हाथ से फोन कान से लगा रखा था। चेहरे पर गुस्सा भी और मुस्कान भी ।

"बता ।" धर्मा की आवाज कानों में पड़ी ।

"डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम सुना है ?"

"सुना है ।"

"तुम लोग उसी से पंगा ले बैठे हो ।"

"चंद क्षणों के लिए लाइन पर खामोशी छा गई ।

कोई आवाज नहीं उभरी ।

"मर गया हरामी ।" जगमोहन बड़बड़ा उठा ।

"तुम उस देवराज चौहान के साथी जगमोहन हो-?"

"हां ।"

"रतनचंद को मारने की सुपारी देवराज चौहान ने ली है ?"

"नोट मैंने गिने थे ।" जगमोहन हंसा ।

"तो छाती ठोक कर क्यों अपने बारे में बता रहे हो ?" धर्मा का भिंचा स्वर कानों में पड़ा।

"ताकि तूने हमारा जो बिगाड़ना हो, बिगाड़ ले। पहले तुम इसलिये हमारे बारे में नहीं जान सके कि सीधा-सीधा हमारा वास्ता नहीं पड़ा। बात नहीं हुई, अब बात हुई तो बता दिया कि दिल में जो अरमान हो, वो पूरा कर लेना ।"

"इतना ही बहादुर है तो अपना पता ठिकाना बता, अभी आ जाते हैं ।"

"इतना बहादुर नहीं हूं मैं कि मसूल पड़ती ओखली में सिर रख दूं ।" जगमोहन पुनः हंसा ।

"तेरा टाइम आ गया लगता है...।" धर्मा का क्रूर स्वर कानों में पड़ा।

"तू चिन्ता क्यों करता है। अपनी सोच, मुझे तो लगता है कि तू भी मेरे पास होगा जल्दी ही ।"

दो पलों की खामोशी के बाद धर्मा की आवाज पुनः कानों में पड़ी ।

"एक बात बता ।"

"बोल-बोल-।"

"तेरे को किसने बताया कि राघव, जगजीत के पास जा रहा है, या तू बंगले पर नजर रख रहा था ?"

"मुझे बंगले में मौजूद किसी शख्स ने ही बताया कि राघव जगजीत के पास जा रहा है ।"

"किसने ?"

"तू क्या सोचता है कि मैं तेरे को बता दूंगा कि वो खबरी कौन है ?"

"चाहता क्या है। राघव क्या करेगा ?"

"मेहमान बनाकर रखा है। काम खत्म होते ही, उसे छोड़ दूंगा।"

"तू हमसे दोस्ती कर ले ।"

"मतलब कि रतनचंद को ना मारूं और तेरी गोद में आ बैठूं ?"

"इसकी तेरे को कीमत मिलेगी। ये बता, रतनचंद की जान की सुपारी किसने दी है ?"

"ऐसा सवाल मत पूछ, जिसके बारे में तेरे को पहले ही पता हो कि जवाब नहीं मिलेगा ।"

"मुंह-मांगी कीमत मिलेगी, एक बार हां तो कर-।"

"फिर बात करेंगे, अब तेरा दिमाग खराब होने लगा है ।"

"राघव को कोई तकलीफ नहीं दोगे ?"

"दूंगा तो तू क्या कर लेगा। आकर बचा लेगा क्या ?" जगमोहन ने व्यंग से कहा और फोन बंद करके जेब में रख लिया। फिर तैयार हो चुकी कॉफी प्याले में डाली और किचन से बाहर आ गया ।

तभी रतनचंद की आवाज कानों में पड़ी। वो चिल्ला रहा था ।

"भूख लग रही है, कुछ खाने को दे दे-।"

"सुबह तगड़ा नाश्ता दूंगा-।" जगमोहन ने ऊंचे स्वर में कहा और सोफे पर बैठकर, कॉफी के घूंट भरने लगा ।

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