आसिफ अली रोड।
इस्लामाबाद का पुराना इलाका था।
वे लोग वहां पहुंचे तो रात के दो बज रहे थे। सलमान पीछे अपनी कार में आया था।
उन्होंने एक जगह कारें रोकी और गुलफाम के दारूखाने का पता किया।
वो कुछ आगे एक गली के भीतर था। चोरी-छिपे दारूखाना चलाया जा रहा था। यूं ये इलाका फैक्ट्रियों वाला था। रिहायश कम थी अगर थी तो वो फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों की ही थी और अधिकतर वो ही रात को दारूखाने पर आ जमते थे।
“इस दारूखाने का मालिक, गुलफाम है। उसी ने उन दोनों को एयरपोर्ट से हमारा पीछा करने का काम सौंपा था।” देवराज चौहान ने कहा-“मुझे पूरा यकीन है कि ये काम उसे कामनी उर्फ नसरीन शेख ने करने को कहा होगा।”
“तो तुम गुलफाम से क्या चाहते हो?” सलमान बोला।
“कामनी का पता-ठिकाना मालूम करना है।”
“जरूरी तो नहीं कि इस गुलफाम को उसका ठिकाना पता हो।”
“जो भी हो, हमने तो अपनी कोशिश जारी रखनी है।” देवराज चौहान ने कहा और गली में प्रवेश कर गया।
तीनों उसके पीछे थे।
“कैसी लगी हामीदा जगह?” महबूब ने मुस्कराकर जगमोहन से पूछा।
“बेहद खतरनाक।”
“अभी तो वहां से बच आए हैं। दो-चार घंटे और वहां रहते तो वापस न आ पाते। दोबारा जाना चाहोगे?”
“कोशिश तो यही होगी कि न जाऊं।”
“इसी कारण मैंने हामीदा जाने को मना कर दिया था।” महबूब ने गम्भीर स्वर में कहा- “एक बार मैं अनजाने में किसी की तलाश में हामीदा चला आया था। तब कठिनता से जान बचाकर भागा था। वहां पर खतरनाक-से-खतरनाक मुजरिम छिपे बैठे हैं। परंतु पाकिस्तान सरकार ये जानने के बाद भी कुछ नहीं कर पाती। क्योंकि सिवाय खून-खराबे के कुछ हासिल नहीं होगा । हामीदा वाले बराबर का मुकाबला करेंगे अगर पुलिस ने वो जगह घेर ली तो। दो बार पुलिस का ऐसा प्रोग्राम बनकर ठंडा हो चुका है। नेता भी कम नहीं, वो हामीदा को सुरक्षित रखना चाहते हैं, ताकि उनका काम चलता रहे। महीना-भर पहले ही एक नेता के बेटे का अपहरण हो गया। पक्की खबर थी कि अपहरण करने वाले और बच्चा हामीदा में हैं, परंतु पुलिस चुप रही और करोड़ों की फिरौती देकर बच्चे का आजाद कराया गया।”
“एक दिन ऐसा आएगा कि सरकार हामीदा के इशारे पर चलने लगेगी। सलमान कह उठा।
तभी देवराज चौहान गली में एक मकान के दरवाजे के आगे जा रुका। दरवाजा खुला हुआ था और स्टूल पर डंडा थामे एक आदमी अंधेरे में बैठा था।
“अंदर दारू मिलेगी?” देवराज चौहान ने पूछा।
“कहां से आए हो?”
“दारू को ढूंढते यहां आ पहुंचे। इस वक्त और तो कहीं से मिल नहीं रही।”
“भीतर जाओ, सब कुछ मिलेगा।” उसने कहा।
“सब कुछ क्या?”
“दारू, गिलास, पानी, मूंगफली, चने, मटर और क्या चाहिए?”
“इतना ही काफी है।” देवराज चौहान भीतर की तरफ बढ़ गया।तीनों उसके पीछे थे।
“ये तुम्हारे साथ हैं?” उसने ऊंची आवाज में देवराज चौहान से पूछा।
“हां, आने दो।”
सामने रोशनी हो रही थी। काफी बड़ी जगह थी। पहले बरामदा था, वहां चारपाइयों पर लोग बैठे दारू पीने में मस्त थे। दो फर्श पर लुढ़के पड़े थे। आगे दो दरवाजे खुले हुए थे। एक दरवाजे के भीतर आठ-दस लोग बैठे पी रहे थे वे उस कमरे को पार करके आगे के कमरे में पहुंचे जहां बार जैसा माहौल बनाने की चेष्टा की गई थी। दीवारों के साथ लगे रैकों में बोतलें सजी थीं। एक ही व्यक्ति उधर मौजूद था जो कि खुद भी पिए हुए लग रहा था। वो इन्हें देखकर मुस्कराया और कह उठा।
“आइए जनाब। कौन-सी शराब लेंगे। सस्ती या महंगी। देशी या विदेशी।
“हर तरह की...।”
“गुलफाम कहां है?”
उससे मिलना है।”
“हां।”
“कुछ देर पहले ही गुलफाम मियां आए हैं और नोट गिन रहे हैं भीतर
कि कितनी कमाई हुई। जनाब को हमेशा ये शक रहता है कि मैं उनकी कमाई का कुछ हिस्सा दबा जाता हूं। उनका शक जाता नहीं है।” वो दांत दिखाते कह उठा- “तो पिएंगे नहीं?”
“बढ़िया शराब का एक पैग बना दो।” देवराज चौहान बोला।
“पैग महंगा पड़ेगा। बोतल ही खरीद लो तो वो सस्ती...।”
“बड़ा पैग, बढ़िया शराब का।”
“डेढ़ सौ रुपया दीजिए तो बोतल खोलूंगा। पीने वालों से पहले पैसा लिया जाता है।”
देवराज चौहान ने जेब से दस दीनार का एक नोट निकालकर उसे दिया।
“दीनार । दुबई से आए लगते हैं जो पाकिस्तान में दीनार बांट रहे हैं दस दीनार का नोट तो तीन पैग के बराबर है। मैं आपको बढ़िया पैग देता हूं।” दीनार को अपनी जेब में रखता कह उठा- “क्या आपके दोस्त भी लेंगे?”
“नहीं।” देवराज चौहान ने कहा।
उसने पैग तैयार करके देवराज चौहान को दिया।
देवराज चौहान ने घूंट भरा और बोला।
“गुलफाम कहां है?”
“आगे बढ़ जाइए। बाईं तरफ कमरा है। इस वक्त दरवाजा बंद होगा।
उसी में चले जाइए।”
“तुम लोग यहीं रहो।” देवराज चौहान ने कहा और आगे बढ़ गया।
“आप भी दीनार देकर कुछ पी लेते तो बढ़िया रहता।” उसने दांत दिखाकर तीनों को देखा।
“ये बेकार का नशा है।” जगमोहन मुस्कराया।
“बेकार का नशा? क्या बात करते हैं जनाब, एक बार मेरे हाथों से
पीकर...।”
“दो घंटे में उतर जाता है। लेकिन तुम्हारी जेब में जो दस दीनार का नोट है, उसका नशा देर तक रहेगा।”
“उसका नशा तो तब तक रहेगा, जब तक वो खत्म नहीं हो जाता।”
“ये ही मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं कि नोटों का नशा सबसे बढ़िया नशा है। इस नशे में कुछ नहीं रखा।”
“आप लोग तो बढ़िया बातें करते हैं। कहो तो एक पैग चुपके से, मुफ्त में दे दूं?”
“नहीं।” जगमोहन ने कहा और वहां से आगे बढ़ गया।
महबूब और सलमान वहीं खड़े रहे।
देवराज चौहान ने दरवाजे के बंद पल्लों को धक्का दिया तो वो खुल गए।
सामने ही टेबल-कुर्सी रखे एक व्यक्ति नोटों की गड्डियों को गिन रहा था।
उसने फौरन दरवाजे की तरफ देखा।
देवराज चौहान दरवाजे के बीचोबीच खड़ा था। हाथ में थमे गिलास से घूंट भरा।
“तुम्हें यहां किसने आने दिया?” वो व्यक्ति तीखे स्वर में बोला। पचास वर्ष के करीब का था वो। शरीर का मर्दाना कमीज-सलवार सफेद रंग की पहन रखी थी। चेहरे से वो सख्त किस्म का लगा।
“गुलफाम हो?” देवराज चौहान बोला।
“हां-तो?”
देवराज चौहान एक कदम भीतर आ गया। बोला।
“मैं वो ही हूं जिसका पीछा एयरपोर्ट से तुम्हारे कहने पर दो आदमियों ने किया था।”
गुलफाम की आंखें सिकुड़ीं । वो सतर्क हो गया।
“क्या मतलब?” वो खड़ा हो गया।
“उन दोनों को मैं अभी गोली मारकर आ रहा हूं।” देवराज चौहान ने कहा।
“बकवास मत करो। वो हामीदा में रहते हैं और...।”
“मैं सीधा हामीदा से ही आ रहा हूं। पूछताछ में उन्होंने तुम्हारे बारे में बताया । ये सब करने के लिए मुझे हामीदा में काफी लाशें बिछानी पड़ीं।” देवराज चौहान का स्वर कठोर हो गया—“नसरीन शेख को कबसे जानते हो?”
जवाब में उसने होंठ भींच लिए।
अब ये तो पक्का हो गया कि ये नसरीन शेख को जानता है।
“मैं जानता था कि ये काम नसरीन शेख ही कराएगी।” देवराज चौहान ने पुनः घूंट भरा- “तुम्हारे आदमी ने बढ़िया पैग बनाकर दिया है। स्वाद आ रहा है। अच्छी कमाई कर रहे हो यहां।”
वो सतर्क-सा खड़ा कठोर निगाहों से देवराज चौहान को देखे जा रहा तभी दरवाजे पर जगमोहन आ खड़ा हुआ।
गुलफाम ने उसे देखा। कुछ बेचैन हुआ।
“मेरा साथी है।” देवराज चौहान बोला-“हम दोनों ही थे, जब हमारा पीछा तुम्हारे इशारे पर किया गया।”
“क्या चाहते हो?” उसने शब्दों को चबाकर पूछा।
“नसरीन शेख का ठिकाना जानना है।”
“मैं नहीं जानता।”
“इकबाल खान सूरी का ही ठिकाना बता दो।”
“नहीं मालूम।”
देवराज चौहान ने एक ही सांस में गिलास खाली किया और आगे बढ़कर टेबल पर रख दिया।
“सोच लो।” देवराज चौहान बोला।
“मैं कुछ नहीं जानता।”
उसी पल देवराज चौहान का हाथ घूमा और गुलफाम के गाल पर जा लगा। गुलफाम के होंठों से कराह निकली । वो कुर्सी से टकराया फिर संभल गया और अगले ही पल देवराज चौहान पर झपटने को हुआ कि ठिठक गया।
दरवाजे पर खड़े जगमोहन के हाथ में उसने रिवॉल्वर देख ली थी।
“कुछ याद आया?” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में पूछा।
“मैं नसरीन शेख या इकबाल का ठिकाना नहीं जानता। इकबाल को तो मैं जरा भी नहीं जानता।” गुलफाम गुस्से से भरे स्वर में कह उठा-“मेरा थोड़ा-बहुत सम्बंध नसरीन शेख से है। वो जब भी इस्लामाबाद आती है तो जो भी काम होता है मुझे कह देती है। मैं उसका काम पूरा करके उसे खबर कर देता हूं। हमारी बातें सिर्फ फोन पर होती है। उसका आदमी काम के पैसे मुझे दे जाता है।”
“ये कब से चल रहा है?”
“कई सालों से।”
“नसरीन शेख से मुलाकात कैसे हुई?”
“एक बार वो ही मुझ तक आई थी। मुझे इस तरह काम करने को कह कर चली गई। उसके बाद से ये सिलसिला चल रहा है।”
“वो तुम्हारे पास ही क्यों आई?”
“मैं क्या कह सकता हूं। इस्लामाबाद में मेरे दारू के दस ठिकाने चलते हैं। मुझे ऐसे काम करने की जरूरत नहीं है, परंतु नसरीन शेख से बनाए रखना मैंने ठीक समझा। वो नेताओं के सम्पर्क में रहती है। एक बार मेरा कोई काम फंस गया था तो उससे कहकर नेता द्वारा काम करवा लिया। ये ही रिश्ता है हमारा।”
“तुम्हें कुछ तो हवा होगी कि इस्लामाबाद में वो कहां...।”
“इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता।”
“ये मुंह नहीं खोलेगा।” जगमोहन कहकर आगे बढ़ा-“खत्म कर दो इसे।”
देवराज चौहान चुप रहा । जगमोहन ने आगे बढ़कर उसके पेट से रिवॉल्वर लगा दी। गुलफाम के चेहरे पर डर नाच उठा।
“ये क्या कर रहे हो। मुझे मत मारना, मैं सच में नहीं जानता।”
“नहीं जानते तो तभी तुम मरने जा रहे हो।” जगमोहन गुर्राया –“जानते होते तो न मरते।”
“मेरी जान मत लो। मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा...।”
“अभी भी वक्त है नसरीन शेख का पता बता दो।” देवराज चौहान ने कहा।
“सच में नहीं जानता...।”
“नम्बर मिला उसका। बात करा।” देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला।
“ह-हां, बात करा देता हूं।” उसने जल्दी से टेबल पर रखा मोबाइल उठाया और नम्बर मिलाने लगा।
जगमोहन ने उसके पेट से रिवॉल्वर हटा ली। पास ही खड़ा रहा।
“लगा गया नम्बर।” अगले ही पल गुलफाम कह उठा।
देवराज चौहान आगे बढ़कर उससे मोबाइल लिया जगमोहन से कहा।
“इसे बाहर ले जाओ।”
“चल।” जगमोहन ने रिवॉल्वर वाला हाथ हिलाकर गुलफाम से कहा।
वे दोनों कमरे से बाहर निकल गए। देवराज चौहान ने मोबाइल कान से लगाया। दूसरी तरफ बेल जा रही थी।
“हैलो।” तभी कामनी का नींद से भरा स्वर कानों में पड़ा।
“तुम मुझसे खेल क्यों खेल रही हो?” देवराज चौहान ने बेहद शांत स्वर में पूछा।
पलों के लिए लाइन पर खामोशी आ ठहरी।
“हैलो।” फिर कामनी की आवाज आई –“ये तुम हो देवराज चौहान।”
“हां।”
“पर ये फोन नम्बर तो गुलफाम का है।”
“इस वक्त वो मेरी रिवॉल्वर पर है।”
“ओह। हैरानी है कि तुम गुलफाम तक पहुंच गए। जबकि दिन में तुमने उसके आदमियों से पीछा छुड़ा लिया...।”
“दिन में जिन दो ने पीछा किया वो मारे जा चुके हैं।”
“बहुत तेजी से काम कर रहे हो। मुझे तुम में ये ही बात बहुत अच्छी लगती है कि...।”
“तुम मेरे साथ चूहे-बिल्ली का खेल क्यों खेल रही हो?” देवराज चौहान की आवाज शांत थी।
“चूहे-बिल्ली का खेल? मैं बच्चों के खेल नहीं...।”
“ये बच्चों का खेल नहीं मौत का खेल है, तुम भी इस बात को जानती हो। देवराज चौहान ने कहा –“दुबई में तुमने अपने आदमी को कमल चावला बनाकर मेरे पास भेज दिया। उसी ने मुझे बताया कि मैं इकबाल खान सूरी के ठिकाने पर कैसे प्रवेश कर सकता हूं और ठीक वैसे ही मैं प्रवेश कर गया। यानी कि तुम मुझे वहां बुलाना चाहती थी कि...।”
“मैं देखना चाहती थी कि वास्तव में तुममें कितना हौसला है।” उधर से कामनी की आवाज आई –“परंतु इस्लामाबाद पहुंचकर तुमने साबित कर दिया कि तुममें हौसले की कमी नहीं है देवराज चौहान।”
“इस्लामाबाद पहुंचने को भी तुमने कहा था।”
“मैंने?”
“भोली मत बनो। तुमने ही मुझे बताया कि इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में है और तुम भी कल वहां जा रही हो।”
“ये भी कहा कि मां का दूध पिया है तो इस्लामाबाद पहुंचकर इकबाल खान सूरी पर हाथ डालकर दिखाओ।”
“ये तुम्हारे बुलाने का अंदाज था।”
“धमकी थी ये।”
“नहीं, तुमने ही मुझे इस्लामाबाद बुलाया। आखिर तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?”
“मैं तुम्हें क्यों बुलाऊंगी कि...।”
“ये तुम जानती हो। वरना तुम खामोशी से इस्लामाबाद आ जाती तो शायद मुझे पता भी नहीं चलता कि इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में है। ये खबर तुमने मुझे दी। तुम कोई खेल, खेल रही हो मेरे साथ।”
उधर से कामनी के हंसने की आवाज आई।
“मुझे इस्लामाबाद बुलाया फिर एयरपोर्ट से अपने आदमी मेरे पीछे लगा दिए।”
“मैंने बोला न, तुममें गजब का हौसला है, तभी तो तुम इस्लामाबाद पहुंच गए। मैं तो सोचती थी कि तुममें थोड़ी-बहुत हिम्मत ही है। लेकिन अब मैं जान गई कि तुम कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत रखते हो। परंतु मौत तुम्हारे सिर पर नाच रही है, वो तुम्हें नजर नहीं आता। इकबाल खान सूरी के नाखून के बराबर भी नहीं हो तुम और उसे मारने इस्लामाबाद आ गए। मेरे जीते जी तुम इकबाल की हवा भी नहीं पा सकते। इस्लामाबाद तुम्हारी जिंदगी की आखिरी मंजिल बन जाएगी देवराज चौहान।”
“कह चुकी।”
“तुम्हारी मौत का वक्त करीब आ चुका...।”
“समझदारी इसी में है कि मेरे से आराम से बात कर लो।” देवराज चौहान ने कहा।
“फिर क्या होगा?” उधर से कड़वा स्वर था कामनी का।
“तुमने अपना खेल तब शुरू किया था, जब तुम दुबई की कॉफी शॉप में मुझे मिली। मुझे सामने पाकर तुमने, अपने आदमियों के हाथों में पहुंच चुके जगमोहन को आराम से मेरे हवाले कर दिया। उस शाम तुमने मुझ पर या जगमोहन पर कोई हमला नहीं किया जबकि हमने तुम्हारे कहने पर दुबई नहीं छोड़ी, परंतु मार्शल के एजेंटों को तुमने खत्म करा दिया। फिर तुमने किसी को कमल चावला बनाकर, मेरे पास...।”
“इन बातों का फायदा?”
“मैं साबित करना चाहता हूं कि तुम कोई खेल, खेल रही हो।”
“कैसा खेल?”
“मेरे हाथों इकबाल खान सूरी को मरवाने का।”
“ये तुमने कैसे सोच लिया?”
“क्योंकि तुमने जानबूझकर मुझे बताया कि इकबाल खान सूरी दुबई में नहीं, इस्लामाबाद में है। अपनी धमकियों की आड़ में तुमने मुझे इस्लामाबाद पहुंचने का इशारा दिया।” देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा।
“तुम्हारा मतलब कि मैं ड्रामा कर रही थी। वो मेरी धमकियां नहीं थीं।” उधर से कामनी का स्वर तेज हो गया।
“ये ही मैं कहना चाहता...।”
“बकवास मत करो। ये ठीक है कि अभी तक मैंने तुम्हारे प्रति नरमी का इस्तेमाल किया। शायद ये सूरत में हुई हमारी मुलाकात का असर था कि वहां तुमने तब मेरी जान बचाई थी जब बाजार में, वो आदमी मुझे गोली मारने जा रहा था। परंतु वो बातें अब नहीं चलने वाली। मैं देख रही हूं कि तुम इकबाल का पीछा नहीं छोड़ रहे और इस्लामाबाद आ पहुंचे...।”
“तुम आगे बढ़कर बार-बार पीछे क्यों हट रही हो?”
“क्या मतलब?”
“जो भी बात है स्पष्ट कह दो। समझौता कर लो मेरे से। तुमने मुझे इस्लामाबाद आने का इशारा देकर ये साबित कर दिया कि तुम भी चाहती हो कि मैं इकबाल खान सूरी को खत्म कर दूं। बेहतर है कि...।”
“बहुत ज्यादा बकवास कर रहे हो तुम।” उधर से कामनी की गुर्राहट कानों में पड़ी –“मैं तुम्हें बहुत बुरी मौत मारूंगी। तुम इकबाल खान सूरी की हवा भी नहीं पा सकते, जब तक मैं तुम्हारे सामने हूं। गलती मेरे से ये हो गई कि जब तुम इस्लामाबाद एयरपोर्ट से निकले, तभी तुम्हें खत्म करा देना चाहिए था ताकि...।”
“इकबाल खान सूरी इस वक्त कहां पर है।” देवराज चौहान गम्भीर था –“जरा-सा इशारा दे दो।”
“तुम कुत्ते की मौत मरोगे।”
“मैं इस्लामाबाद पहुंच गया हूं तो समझो ‘दुबई के आका’ की मौत आ गई है। तुम मेरे साथ समझौता क्यों नहीं कर रही, इस बात पर मुझे भारी उलझन है। अगर एक इशारा दे दो उसके ठिकाने का तो...।”
“अपनी मौत का इंतजार करो देवराज चौहान। इस्लामाबाद तुम्हारी जिंदगी का आखिरी शहर है।” उधर से खतरनाक स्वर में कहने के साथ ही कामनी ने फोन बंद कर दिया था।
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए। उसने फोन टेबल पर रखा और बाहर आ गया। उसी बार वाले कमरे में जगमोहन, गुलफाम को रिवॉल्वर से दबाए खड़ा था। महबूब, सलमान भी वहीं थे। गुलफाम के चेहरे पर घबराहट थी और जो बारमैन के रूप में व्यक्ति था, वो चूहा बना एक तरफ सूखा-सा खड़ा था। देवराज चौहान वहां जाकर ठिठका और गुलफाम से बोला।
“नजरीन शेख ने क्या जानने के लिए मेरा पीछा कराया था?”
“वो-वो जानना चाहती थी कि तुम कहां पर टिकने वाले हो।” गुलफाम ने जल्दी से कहा।
“महबूब।” देवराज चौहान बोला –“इसे उस फ्लैट का पता बता दे, जहां हमारे बैग पड़े हैं।”
“लेकिन...।” जगमोहन ने कहना चाहा।
“चुप रहो।” देवराज चौहान ने कहा और भिंचे होंठों में फंसाकर सिगरेट सुलगाई।
महबूब ने गुलफाम को पता बताया।
“ऐसे नहीं, लिखकर दे।” देवराज चौहान ने कहा –“ये भूल भी सकता है।”
चूहे से पैन-कागज लेकर महबूब ने पता लिखकर दिया।
“जहां मैं ठहरा हूं, इस कागज पर वहां का पता लिखा है।” देवराज चौहान ने कश लेकर गुलफाम से कहा –“ये पता तुम नसरीन शेख को बता दोगे। कहना कि मैंने दिया है।”
गुलफाम ने फौरन सिर हिला दिया।
“जनाब के लिए एक पैग और बनाऊं क्या?” चूहा जल्दी से बोला।
“चलो। देवराज चौहान ने कहा और बाहर जाने के लिए आगे बढ़ गया।
जगमोहन, महबूब, सलमान ने भी कदम आगे बढ़ा दिए।
“कामनी से बात करके कुछ फायदा हुआ?” पीछे से जगमोहन ने पूछा।
“नहीं।”
“तो उसे अपने ठिकाने का पता क्यों...।”
“अभी कोई बात मत करो।” देवराज चौहान ने कहा।
वे मकान से निकलकर गली में आए और बाहर की सड़क की तरफ बढ़ गए।
☐☐☐
सलमान अपनी कार लेकर चला गया था।
महबूब ने वहीं पर फ्लैटों के पास कार रोकी जहां वे शाम को रुके थे।
“आप लोगों की जगह आ गई। सुबह के पांच बजने वाले हैं। मुझे इजाजत दो। नींद मारूंगा। बीवी की दस-बीस बातें सुनूंगा और उठने पर बशीर से पूछूंगा कि मेरे लिए कोई काम तो नहीं है।” महबूब बोला –“आज की रात बुरी रही। खासतौर से हामीदा जाना। दोबारा जाने से पहले हजार बार सोचूंगा।”
महबूब का शुक्रिया करके दोनों फ्लैट की सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए।
“अब बोलो।” जगमोहन ने कहा –“कामनी से फोन पर क्या बातें हुईं?”
“अजीब-सी बातें। वो हमारे साथ खेल, खेल रही है।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
“कैसा खेल?”
“अपने मुंह से तो नहीं कह रही, परंतु उसकी हरकतों से स्पष्ट है कि वो चाहती है मैं इकबाल खान सूरी की हत्या कर दूं। वो अपने ही अंदाज में इशारे दे रही है कि उस इशारों को सिर्फ मैं ही समझ सकूँ।”
“ओह।”
“साथ में धमकी-भरे शब्द जोड़ना नहीं भूलती कि वो मुझे मार देगी।”
“इकबाल खान सूरी की मौत से कामनी को क्या फायदा?” जगमोहन बोला।
“फायदा ही फायदा है। इकबाल खान सूरी की खास बनी हुई है वो। उसकी दौलत के बारे में जानकारी रखती है, उसके धंधों के बारे में पूरा पता है उसे। अगर इकबाल खान मर जाता है तो वो उसकी जगह ले लेगी। सब पर अपना अधिकार घोषित कर देगी। कामनी सामान्य स्त्री नहीं है। चालाक बिल्ली की तरह है। सीधे-सीधे वो मुझे नहीं कह रही कि इकबाल खान वहां है, उसे मार दूं, सिर्फ इशारों में बात कर रही है। वो सतर्कता इस्तेमाल कर रही है। इतना बड़ा खेल कोई हिम्मत वाला ही खेल सकता है, जो कि इकबाल खान सूरी की बगल में बैठकर उसकी रक्षा का भी दावा करे और उसे मरवाने का भी इंतजाम करे।” देवराज चौहान सीढ़ियां चढ़ते हुए कह रहा था –“कामनी बहुत होशियार है। उसे इस बात की भी चिंता है कि उसके इरादों की भनक इकबाल खान को न लग जाए। वो कई बार मुझे आजमा चुकी है कि कहीं मैं अपने इरादे से पीछे तो नहीं हट जाऊंगा। अब वो जानती है कि मैं पीठे हटने वाला नहीं और...।”
देवराज चौहान के शब्द अधूरे रह गए।
वे सीढ़ियां तय करके ऊपरी मंजिल पर आ गए थे और सामने हो उनके फ्लैट का दरवाजा था जो कि खुला हुआ था। भीतर की रोशनी बाहर तक आ रही थी। देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली। हाथ जेबों में पड़े रिवॉल्वरों पर जा टिके। दोनों आगे बढ़े और रिवॉल्वरें निकालते हुए तेजी से भीतर प्रवेश करते चले गए।
रोशनी ड्राइंग रूम में थी। वो वहां पहुंचे तो ठिठक गए।
सामने सोफे पर बशीर बैठा था जो उन्हें देखते ही कह उठा।
“देवराज चौहान, जगमोहन?”
देवराज चौहान ने बशीर की आवाज पहचान ली और रिवॉल्वर जेब में रखता बोला।
“ये बशीर है।”
जगमोहन ने सिर हिलाकर रिवॉल्वर जेब में रख ली।
“मुझे तुम दोनों की बहुत चिंता थी।” बशीर बोला –“हामीदा जाने पर मैं चिंतित था। वहां कुछ भी बुरा हो सकता है, परंतु मुझे तब राहत मिली, जब तुम लोग सही-सलामत हामीदा से बाहर आ गए।”
“तुम्हें कैसे पता कि हम सही से, वहां से निकल आए?” बैठते हुए जगमोहन ने कहा।
“सलमान ने फोन करके बताया था।”
देवराज चौहान भी बैठ गया।
“तुम लोग ने जो भागदौड़ की, उसका कोई फायदा हुआ?” बशीर दोनों को देखा।
“नहीं।” देवराज चौहान बोला –“कोई फायदा नहीं हुआ। तुम लापरवाही कर गए। जब नसरीन शेख इस्लामाबाद पहुंची थी तब ठीक से उसका पीछा किया गया होता तो हम उसका ठिकाना जान सकते थे।”
“उसका अफसोस है मुझे। महबूब और सलमान को ही मैंने नसरीन शेख का पीछा करने का काम सौंपा था, परंतु वो धोखा खा गए। वो वक्त हाथ से निकल चुका है, लेकिन हम जो जानना चाहते हैं जान के ही रहेंगे। तुम लोग जब से इस्लामाबाद पहुंचे हो तब से ही दौड़े फिर रहे हो। रात भर भी भागते रहे। अब नींद ले लो। मैं भी रात को सो नहीं पाया। उठने पर दिन में हम नसरीन शेख की खबर पाने के लिए एक साथ चलेंगे। तुम और मैं...।”
“मैं क्यों नहीं?” जगमोहन बोला।
“हमें किसी से मिलना पड़ेगा। जो ऐसी खबरें रखता है। कम ही लोग हों साथ में तो अच्छा है।”
“ऐसा कोई है तो तुम्हें उससे पहले ही बात लेनी चाहिए थी।” देवराज चौहान ने कहा।
“अभी ध्यान आया उसका कि शायद वो इंसान कुछ बता सके। हम चलेंगे उसके पास।”
“नसरीन शेख ने दुबई में क्या किया, तुम्हें मालूम है?” देवराज चौहान ने उसे देखा।
“मुझे नहीं पता। क्या किया?”
“उसने मार्शल के सारे एजेंटों को मार दिया। उसके आदमी सब पर नजर रखे हुए थे।”
“ओह। ये तो बहुत बुरा हुआ।”
“मैं तुम्हें सतर्क कर रहा हूं कि वो इस्लामाबाद में भी ऐसा कुछ कर सकती है।”
“मैं इन बातों से डरने वाला नहीं। मेरे एजेंटों तक पहुंच पाना आसान नहीं। वे अधिकतर एक-दूसरे को नहीं जानते। कभी काम के लिए इकट्ठे भी होते हैं तो काम पूरा करके अलग हो जाते हैं। कोई किसी का फोन नम्बर या पता नहीं जानता। मेरे एजेंट मेरा चेहरा नहीं पहचानते। सिर्फ फोन पर ही बात होती है। अगर किसी ने मुझे देखा भी है तो वो नहीं जानता मैं कहां रहता हूं। मेरे ख्याल में दुबई में कोई लापरवाही हुई है जो नसरीन शेख सब एजेंटों को मार सकी।”
“हां, दो एजेंट उसके हाथ लग गए थे। उन्होंने मुंह खोला था।”
“तभी नसरीन शेख के लिए सबको मारना सम्भव हो सका। परंतु इस्लामाबाद में ऐसा कुछ नहीं होगा। मैंने सब कुछ ठीक से संभाला हुआ है।” बशीर ने गम्भीर स्वर में कहा –“ऐसे कामों में खतरा तो होता ही है, लेकिन डर की कोई बात नहीं है।”
“तुम कब से इस्लामाबाद में हो, तुम्हें पहले से ही इकबाल खान सूरी का वो खास ठिकाना तलाश करके रखना चाहिए था, जहां वो टिकता है। ये काम तुमने कर रखा होता तो, हमारा काम अब आसान हो जाता।”
“मैं ऐसी कोशिश करता रहता हूं तभी इकबाल खान सूरी के तीन ठिकानों को जानता हूं। वो उसमें से किसी में रहता है या नहीं, ये मैं नहीं जानता। वो किसी को नजर नहीं आता या अचानक ही पाकिस्तान के नेताओं में घिरा देखाई देने लगता है। वो बहुत ही सतर्क रहने वाला इंसान है। उस पर हाथ डालना आसान नहीं।”
“ऊपर से कामनी, उस इंसान को भटकाने में लग जाती है, जो उसे तलाश करता है।” जगमोहन ने कहा –“जैसे कि अब हमें कामनी ने बिना वजह उलझा रखा है।”
“मैं जान सकता हूं कि कैसे?”
“छोड़ो इन बातों को।” देवराज चौहान कह उठा –“हमें नींद ले लेनी चाहिए।”
“उसके बाद हम उस आदमी से मिलेंगे, जो शायद इस बारे में कोई खबर दे।” बशीर उठ खड़ा हुआ।
“तुम दोबारा यहां मत आना।” देवराज चौहान ने कहा –“फोन करना।”
“क्यों?”
“इस जगह के बारे में कामनी जानती है।”
“कैसे?” बशीर के होंठों से निकला।
“मैंने उसे यहां का पता दिया है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तुमने?” बशीर ने अजीब-सी निगाहों से उसे देखा –“तुम्हें कामनी कहां मिली?”
“फोन पर बात हो गई थी उसके आदमी द्वारा।”
“पर तुमने यहां का पता क्यों दिया?” बशीर ने एतराज भरे स्वर में कहा।
“मेरा काम करने का अपना ढंग है। कुछ वजह रही, जो मैंने ऐसा किया।” देवराज चौहान बोला।
“ये तुमने गलत कर दिया। अब वो आसानी से तुम दोनों को खत्म...।”
“ये बात हम पर छोड़ दो।”
बशीर कुछ पल देवराज चौहान को देखता रहा फिर बोला।
“क्या बीच में कुछ बात है जो अभी तुम मेरे को बताना नहीं चाहते?”
“ऐसा ही समझो।”
“ठीक है। परंतु ऐसी स्थिति में अब मैं यहां नहीं आऊंगा। मैं कामनी निगाहों में नहीं आना चाहता।”
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया।
“जब सो के उठो तो मुझे फोन करना।” कहने के बाद बशीर वहां से चला गया।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई। जगमोहन बोला।
“ये बात मैं भी तुमसे पूछना चाहता हूं कि तुमने कामनी को यहां का पता क्यों दिया?”
“गलत क्या किया?” देवराज चौहान मुस्कराया।
“वो हम पर हमला करा सकती है।”
“ऐसा कुछ नहीं होगा। हमारी जान लेने के लिए दुबई में उसके पास कई मौके थे, परंतु उसने ऐसा नहीं किया। वो हमारी जान नहीं लेगी, खेल-खेल रही है वो हमारे साथ । खुद बहुत पीछे रहकर, वो हमारे हाथों इकबाल खान सूरी की हत्या करवा देना चाहती है। वो हमें मोहरा समझ रही है, जो उसकी इच्छा को पूरी करेगा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“मैंने इस जगह का पता उसे इसलिए दिया कि अगर वो हमें किसी प्रकार का इशारा देना चाहती है इकबाल खान सूरी के बारे में तो वो इशारा दे दे। मत भूलो कि उसके आदमियों ने एयरपोर्ट से हमारा पीछा किया तो वो सिर्फ ये जानना चाहते थे कि हम कहां टिकने वाले थे। वो सिर्फ हमारा ठिकाना जानना चाहती है। मैंने उसका काम कर दिया अब देखना है कि वो क्या करती है।”
“तुम्हें पूरा यकीन है कि वो इकबाल खान सूरी की मौत चाहती है?” जगमोहन गम्भीर था।
“पूरा यकीन है। इस बारे में कोई दो राय नहीं है। अगर वो इकबाल खान की मौत न चाहती तो, हमें कबका मार चुकी होती। परंतु वो चाहती है हम उसे मार दें। वो इस्लामाबाद में है, ये बताकर कामनी ने अपना इरादा स्पष्ट कर दिया।”
“ऐसा है तो उसे अब तक ये भी बता देना चाहिए कि वो कहां पर मौजूद है।”
“इसी बात का तो इंतजार है। तभी तो मैंने गुलफाम के माध्यम से अपना पता दिया। परंतु कामनी जरूरत से ज्यादा सतर्कता इस्तेमाल कर रही है। शायद उसे इकबाल खान सूरी का डर है कि उसे कुछ पता न चल जाए।”
☐☐☐
दोपहर बाद देवराज चौहान और बशीर इस्लामाबाद के एक मध्यमवर्गीय इलाके में पहुंचे। कार को उन्होंने बाहर ही सड़क किनारे छोड़ दिया था। बशीर ने हाथ में ब्रीफकेस थाम रखा था, जिसमें नोट भरे थे। बशीर बोला।
“हम जिसके पास जा रहे हैं उसका नाम याकूब मोहम्मद है। कभी वो ड्रग्स का काम करता था। परंतु फिर एकाएक ड्रग्स के कामों से किनारा कर लिया और हर तरह की खबरें रखने लगा। खबरें बेचकर नोट लेना ही अब धंधा है इसका। यहां तक कि पुलिस भी इसके पास आकर खबरें ले जाती है। इसके बारे में हर कोई जानता है और लोग डरते हैं इससे।”
“याकूब मोहम्मद को भी खतरा लगा रहता होगा अंडरवर्ल्ड के लोगों में से।” देवराज चौहान ने कहा।
“हाँ। दो-तीन बार तगड़ा हमला हो चुका है परंतु बच गया। पुलिस की सहायता से उन लोगों को खत्म करवा दिया जो हमला करने वाले थे। पुलिस इसके काम आती है, क्योंकि वो मुफ्त में इससे खबरें लेती हैं।”
“ये इकबाल खान सूरी के बारे में जानकारी रखता होगा?”
“नोट सामने रखेंगे। जानता होगा तो जरूर बोलेगा।”
“अकेला रहता है?”
“दो बीबियां हैं। पांच-सात बच्चे हैं। भरा-पूरा परिवार है। एक बीवी को तो काबुल से भगा लाया था।”
वे एक मकान के गेट के सामने जाकर रुके।
भीतर दो-तीन बच्चे खेलते दिखे।
“ऐ बच्चों।” बशीर बोला –“याकूब मियां घर पर हैं?”
“हां, अब्बा हैं।” एक बच्चे ने ऊंचे स्वर में जवाब दिया।
“बुलाना तो।” कहकर बशीर ने गेट खोला और वे दो कदम भीतर चले गए।
दूसरा बच्चा दौड़ता हुआ खुले दरवाजे से भीतर चला गया।
फौरन ही बच्चा बाहर आ गया। उसके पीछे-पीछे चालीस साल का व्यक्ति भी आया। उसके चेहरे पर दाढ़ी थी। पठानी कमीज-सलवार पहन रखी थी। गोरा रंग। सामान्य कद।
“याकूब मियां, कैसे हो?” बशीर मुस्कराकर कह उठा।
“तुम लोग कौन हो?” पास आ पहुंचा याकूब।
“धंधे की बात करने आए हैं।” बशीर धीमे से बोला।
“क्या?”
“इस ब्रीफकेस में नोट भरे हैं। भीतर चलकर बात करें तो ठीक रहेगा।” याकूब ने दो पल सोचा फिर सिर हिलाकर, पलटता कह उठा।
“आओ।”
वो तीनों मकान के भीतर पहले कमरे में पहुंच गए, जो कि छोटा-सा ड्राइंग रूम था। बशीर ने सेंटर टेबल पर ब्रीफकेस रखकर उसे खोल दिया।
भीतर नोट भरे पड़े थे। गड्डियां लगी हुई थी।
याकूब की आंखें सिकुड़ी। तभी तीस वर्ष की पेट निकली औरत वहां पहुंची और नोटों को देखकर ठिठक गई।
“बेगम।” याकूब बोला –“चाय-पानी का इंतजाम करो।”
वो वहीं खड़े-खड़े गर्दन घुमाकर बोली।
“रुखसाना। पानी ले आ और तीन चाय का पानी चढ़ा दे। मेहमान आए हैं।”
“ठीक है।” भीतर से दूसरी स्त्री की आवाज आई।
याकूब ने देवराज चौहान और बशीर को देखकर कहा।
“क्या चाहते हो?”
“छोटी-सी खबर पानी है। बताओगे तो ये पंद्रह लाख हैं, तुम्हारे हो जाएंगे।” बशीर बोला।
“सच में पंद्रह लाख हैं।” औरत कह उठी।
याकूब ने नाराजगी भरी निगाहों से औरत को देखा।
“आप बैठिए भाभी।” बशीर ने मीठे स्वर में बोला –“खड़ी क्यों हैं। हम आपके भाई के बराबर हैं।”
“हां-हां, क्यों नहीं।” औरत ने कहा और आगे बढ़कर सोफे पर आ बैठी।
तभी भीतर से दूसरी औरत आई और पानी के गिलास रख गई।
“चाय के साथ बिस्कुट, केक वगैरह भी ले आना।” सोफे पर बैठी औरत ने, दूसरी औरत से कहा।
“क्या जानना चाहते हो?” याकूब ने पूछा।
“इकबाल खान सूरी के बारे में।”
याकूब बुरी तरह चौंका।
“क्या बकवास कर रहे हो। मैं किसी इकबाल खान सूरी को नहीं जानता।” याकूब कह उठा।
“क्या बात करते हो।” पास बैठी औरत कह उठी –“परसो ही तो तुम इकबाल खान सूरी की बात मुझसे कर रहे थे कि वो हिन्दुस्तान का भगोड़ा है। दुबई का आका बन चुका है और पाकिस्तान में भी...।”
“चुप रहो।” याकूब झल्लाया।
“मैंने गलत क्या कह दिया। सच ही तो...।”
“चुप रहो। तुम यहां से उठकर क्यों नहीं चली जाती।” याकूब ने गुस्से से कहा।
“क्यों जाऊं। अपने भाईजान के पास बैठी हूं।”
“ठीक ही तो कह रही हैं।” बशीर पुनः मुस्कराया –“हम घर के ही लोग हैं।”
“मैं किसी इकबाल खान सूरी को नहीं...।”
“गलत मत कहो। अभी हमारी बहन ने कहा है कि परसों तुम उसकी बात कर रहे थे।” बशीर ने कहा।
याकूब के चेहरे पर बेचैनी दिखने लगी।
“चाहते क्या हो?”
“इकबाल खान सूरी का ठिकाना जानना है कि वो इस्लामाबाद में कहां पर...।”
“दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा। मेरे पास उसकी कोई खबर नहीं है।” याकूब ने कहा।
औरत ने नोटों को देखा फिर याकूब से कह उठी।
“तुम्हारे पास उसकी खबर न होती तो परसों तुम मेरे से उसकी बात न करते।”
“तुम चुप रहो।”
“पंद्रह लाख सामने रखा है और तुम कह रहे हो कि उसकी खबर नहीं है।”
“उसके बारे में मुंह खोलना मौत को दावत देना है बेगम। पंद्रह लाख का लालच मत...।”
“तुम कब से किसी से डरने लगे। कितने बहादुर हो तुम। फिर घबराते क्यों हो?”
याकूब ने आहत भाव से अपनी बेगम को देखा।
“बता दो इन्हें। उसका ठिकाना ही तो जानना चाहते हैं।”
“मैं नहीं जानता।”
“भाईजान ये झूठ बोल रहे हैं। इन्हें सब पता रहता...।”
“तुम यहां से जाओ बेगम। ये मर्दों की बात है।”
“मैं तो यहीं बैठूंगी। महीने भर से हाथ तंग चल रहा है अब पैसे घर में आए हैं तो...।”
“ये इकबाल खान सूरी के बारे में जानना चाहते...।”
“बता दो।”
याकूब होंठ भींचकर रह गया।
देवराज चौहान और बशीर की निगाह याकूब पर थी।
“तुम लोग कौन हो?” याकूब बोला।
“मैं हिन्दुस्तानी हूं। देवराज चौहान नाम है मेरा।”
“हिन्दुस्तानी हो?” याकूब संभल गया।
“हां। कल ही हिन्दुस्तान से...।”
“सुन लिया बेगम। ये हिन्दुस्तानी है।”
“तो क्या हो गया। हिन्दुस्तानी क्या इंसान नहीं होते फिर नोट तो पाकिस्तानी है।” बेगम कह उठी।
“इकबाल खान सूरी पिचासी पुलिस वालों को मारकर हिन्दुस्तान से भागा हुआ है।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा –“वो हिन्दुस्तान का अपराधी है जो दुबई और पाकिस्तान में रहता है। मैं पहले दुबई गया तो वहां से पता चला कि इकबाल खान महीने भर से इस्लामाबाद में है। अब यहां आया हूँ। मेरे ख्याल में तुम बता सकते हो कि वो कहां पर है।”
“हिन्दुस्तान की पुलिस के आदमी हो?”
“नहीं?”
“किसी सरकारी एजेंसी के हो?”
“नहीं। मैं किराए पर काम कर रहा हूं। पैसा लेकर ये काम कर रहा हूं।”
“ये काम से तुम्हारा मतलब?”
“इकबाल खान सूरी को खत्म करने का काम मुझे दिया गया है।”
याकूब ने गहरी सांस ली फिर बोला।
“वैसे तुम करते क्या हो?”
“लोग मुझे डकैती मास्टर देवराज चौहान कहते...।”
“वो, वो, तुम वो देवराज चौहान हो।” याकूब चौंका।
“हैरान क्यों हुए?”
“तुमने पाकिस्तान आकर अली को मारा था। तुम्हारे साथ मोना चौधरी भी थी।” (ये सब जानने विस्तार से जानने के लिए पढ़ें राजा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित अनिल मोहन का उपन्यास ‘WANTED अली’।)
“सब खबर रखते हो।” देवराज चौहान बोला।
“रखनी पड़ती है। ये ही धंधा है मेरा। सुना बेगम।”
“क्या?”
“तुम्हारे भाईजान हिन्दुस्तान के बहुत बड़े डकैती मास्टर निकले। ऐसे रिश्तेदार हैं तुम्हारे।”
“ये मेरे भाईजान हैं। ऐसे-वैसे नहीं हैं।” बेगम ने हाथ हिलाकर कहा –“कितने शरीफ हैं। देख नहीं रहे।”
याकूब ने बेगम को घूरा।
“मुझे मत देखो। उधर बात करो।”
“अब तुम्हें इकबाल खान सूरी का पता चाहिए।” याकूब गम्भीर स्वर में बोला।
“हां।”
“गुणी आदमी हो। वरना अली को न मार पाते। शायद इकबाल खान सूरी तक भी पहुंच जाओ। परंतु मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता। इस बारे में बात करना भी नहीं चाहता। इकबाल के हाथ बहुत लम्बे हैं, वो मेरी जान...।”
“ये बात हम तक ही रहेगी।” देवराज चौहान ने कहा।
“मैं जानता हूं कि बात बाहर निकल जाती है।” याकूब बेचैनी से बोला।
“एक हिन्दुस्तानी का वादा है कि ये बात कभी बाहर नहीं जाएगी।”
“हिन्दुस्तानियों के वादे का एतबार नहीं।”
“तो मेरे भाईजान के वादे का एतबार कर लो। ये तुम्हारा नाम कभी नहीं लेंगे कि तुमसे उसके बारे में पता लगा। क्यों भाईजान मैंने सही कहा न?” बेगम गर्दन हिलाकर कह उठी।
“बात बाहर नहीं जाएगी बहन।”
“अब तो सुन लिया।” बेगम हाथ हिलाकर बोली।
याकूब परेशान दिख रहा था।
“सोच क्या रहे हो?” बेगम ने नोटों को देखकर कहा।
याकूब ने गम्भीर निगाहों से दोनों को देखते हुए कहा।
“ये बड़ी खबर है। पंद्रह लाख वाली खबर नहीं है।”
“क्या चाहते हो?” बशीर बोला।
याकूब खामोश रहने के पश्चात कह उठा।
“मेरी बात पर भरोसा करो कि मैं सच में ठीक से नहीं जानता कि इकबाल खान सूरी का ठिकाना कहां है।”
“लेकिन कुछ जानते हो?”
“हां, कुछ जानता हूं।” याकूब गम्भीर और बेचैन था।
“वो कुछ ही बता दो।”
“कीमत बढ़ाओ। हिन्दुस्तान उस कुछ की बहुत बड़ी कीमत दे सकता है।”
“तुम हिन्दुस्तान से नहीं, हमसे बात कर रहे हो।” देवराज चौहान ने कहा –“इस जानकारी की हम तुम्हें ज्यादा कीमत नहीं दे सकते। ये पंद्रह लाख है थोड़े-बहुत और डाल सकते हैं बीच में...।”
“पचास लाख लूंगा।”
“ठीक है भाई साहब।” बेगम जल्दी से कह उठी –“अब मना मत करना, पचास लाख पूरा कर दो।”
“ज्यादा है।” बशीर गम्भीर स्वर में बोला –“मैं इतना नहीं दे सकता।”
“तो कितना दे सकते हैं भाईजान?”
“दस लाख और दे सकता हूं –बस।”
“पंद्रह-दस-पच्चीस हो गया। मैंने कहा जी ठीक है। हमारा काम चल जाएगा। खामख्वाह अड़ना मत।” फिर वो बशीर से कह उठी –“भाई जान आप दस लाख और दो और जो पूछना है पूछ लो।”
“मंजूर है याकूब?” बशीर ने पूछा।
“इनसे क्या पूछते हो भाईजान। मैंने हां कह दी तो हां हो गई। ये मेरी मुट्ठी में हैं।” बेगम ने जल्दी से कहा।
याकूब व्याकुल-सा खामोश रहा।
“मैं दो घंटे में दस लाख लेकर आता हूं।” बशीर ने उठते हुए कहा और बाहर निकल गया।
“रुखसाना।” बेगम ने आवाज लगाई –“चाय नहीं आई अभी तक। मुझे ही देखना पड़ेगा।” वो उठते हुए देवराज चौहान से कह उठी –“ये ब्रीफकेस में भीतर ले जाती हूं, भला यहां पर इसका क्या काम।” वो ब्रीफकेस उठाए भीतर चली गई।
देवराज चौहान और याकूब की नजरें मिली।
“कितने लोग हो तुम?” याकूब ने गम्भीर स्वर में पूछा।
“दो।” देवराज चौहान बोला।
“ये जो साथ आया था, जो पैसा लेने गया है –ये?”
“नहीं। मेरा साथी दूसरा है जो हिन्दुस्तान से मेरे साथ आया है।”
“सिर्फ दो हो?”
“हां।”
“जानते हो इस काम में कितना खतरा है।”
“जानता हूं।”
“इकबाल खान सूरी के करीब फटकना आसान काम नहीं। इस बार मारे जाओगे।”
“मैं इस बात की चिंता नहीं करता।”
“इरादे बुलंद है?”
“पूरी तरह।”
“इकबाल खान के आसपास खतरनाक लोग उसकी रक्षा करते हैं। नसरीन शेख उसकी सुरक्षा के काम संभालती है। मैंने उसे देखा तो नहीं, पर सुनने में आया है कि वो शेरनी से भी ज्यादा खतरनाक है।”
“सही सुना है। मैं उससे मिल चुका हूं दुबई में।”
“कैसे मिले?”
“हो गई मुलाकात।”
याकूब कुछ पल देवराज चौहान को देखने के बाद बोला।
“हिन्दुस्तान की किस एजेंसी ने तुम्हें इकबाल खान सूरी के पीछे लगाया है?”
“खुफिया विभाग वालों ने।”
“परंतु ये काम तो हिन्दुस्तान की आई-बी का है, देश के बाहरी मसलों को...।”
“जरूरी कुछ भी नहीं है। कुछ काम ऐसे होते हैं जो कोई भी करे काम पूरा होना चाहिए।”
“तगड़ा पैसा मिला होगा तुम्हें?”
“तुम इस बारे में मत सोचो। जान भी तो जा सकती है।” देवराज चौहान ने कहा।
“एक बात तो पक्का है कि अली की तरह तुम्हें इस बार शायद कामयाबी न मिले।”
“क्यों?”
“इकबाल खान सूरी पर हाथ डालना बहुत मुश्किल है। उस तक पहुंच पाना भी सम्भव नहीं।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
“इकबाल खान सूरी जानता है कि तुम उसके पीछे हो?” याकूब ने पूछा।
“हाँ।”
“देखो, मुझे मुसीबत में मत डाल देना अगर इकबाल खान के हाथ लग गए, तो मेरा नाम मत...।”
“आप भी कमाल करते हैं।” बेगम चाय की ट्रे पकड़े भीतर प्रवेश करते कह उठी –“मेरे भाईजान पर भरोसा नहीं क्या। मैंने इस बात की गारंटी ली है कि ये मरते मर जाएंगे पर आपका नाम नहीं लेंगे, क्यों भाईजान?”
जवाब में देवराज चौहान उसे देखकर मुस्कराया।
ट्रे टेबल पर रखते कह उठी।
“चाय पीजिए भाई साहब। साथ में बिस्कुट भी है। मैं सोच रही थी कि आपको गाजर-मूली के परांठे बनाकर, ऊपर मक्खन रखकर खिलाऊं, पर ये आपको अपनी बातों से परेशान कर रहे हैं तो मैं पास आकर बैठ जाती हूं। परांठे रुखसाना बना देगी। थोड़े-बहुत जले भी हों तो मना मत करना, खा लेना। मैं तो...।”
“बेगम।” याकूब सख्त स्वर में बोला –“तुम यहां से जाओ।”
“जाने की भी सोच रही थी। वैसे परांठे बनाने का वक्त शायद ही निकले। मैं और रुखसाना नोट गिन रहे हैं। वैसे तो पूरे ही होंगे। पर नोट गिनने का अपना ही मजा होता है। वो मजा तो ले ही लें। आप चाय पीजिए। वैसे ज्यादा देर की बात नहीं है। रुखसाना नोटों को गिनने में बहुत तेज है। मैं जल्दी यहां आ जाऊंगी।” कहकर बेगम बाहर निकल गई।
दोनों चाय पीने लगे।
“मेरी सलाह मानो तो ये काम छोड़ दो।” याकूब गम्भीर स्वर में बोला –“इसे पूरा नहीं कर सकोगे।”
देवराज चौहान ने चाय का प्याला उठाया और घूंट भरने लगा।
“तुम शायद मेरे शब्दों को मजाक समझ रहे हो देवराज चौहान, लेकिन मैं...।”
“मजाक नहीं समझ रहा तुम्हारी बात को।” देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा –“परंतु इस काम में मैं इतना आगे बढ़ चुका हूं कि वापस नहीं पलट सकता। या तो मैं इकबाल खान सूरी को खत्म करूंगा या वो मुझे मार देगा।”
“तुम ही मारे जाओगे।”
☐☐☐
डेढ़ घंटे में बशीर लौटा। हाथ में एक लिफाफा थाम रखा था।
वहां बैठी बेगम उसे देखते ही कह उठी।
“आइए भाईजान। मैं तो बेसब्री से आपका इंतजार कर रही हूं। बड़ी देर लगा दी आपने। वो पंद्रह लाख तो मैंने गिन लिए हैं। पूरे हैं। उस ब्रीफकेस को तो वापस करने की जरूरत नहीं। उसमें मैं अपनी चूड़ियां डालकर रख लूंगी टूटेगी नहीं। दस लाख नहीं लाएं?”
बशीर ने मुस्कराकर हाथ में पकड़े लिफाफे को आगे बढ़ा दिया।
“दस लाख हैं ये भाईजान?” उसने लिफाफा थामते हुए कहा।
“हां।”
“बहुत थोड़े से लग रहे हैं।” उसने लिफाफा खोलकर भीतर झांका।
“बड़े नोट हैं।”
“मैं जरा दूसरे कमरे में बैठकर गिन लूं। रुखसाना तो पांच मिनट में गिनती कर लेगी। तब तक आप बातें कीजिए। आपने चाय नहीं पी। पहले की बनी रखी है, मैं उसी को गर्म करके ला देती हूं, नई क्या बनानी। नोट भी तो गिनने हैं।” कहने के साथ ही बेगम लिफाफा थामे कमरे से चली गई।
बशीर बैठता हुआ देवराज चौहान से बोला।
“इसने कुछ बताया?”
“अभी नहीं।”
बशीर ने याकूब को देखा।
“तुम लोग आग से खेलने की कोशिश कर रहे हो।” याकूब ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तुम नोटों से खेलो, जो पच्चीस लाख तुम्हें दिए गए हैं। हमें आग से खेलने दो।” बशीर बोला –“अब फालतू की बात कहना बंद कर के हमारे काम की बात करो जिसके लिए हमने पच्चीस लाख खर्च किए हैं।”
याकूब ने पहलू बदला और होंठ भींचे धीमे स्वर में कह उठा।
“इकबाल खान सूरी शेखाबाद में कहीं पर रह रहा है।”
“शेखाबाद में?” बशीर ने दोहराया।
“हां।”
“शेखाबाद में कहां?”
“ये मैं नहीं जानता। पंद्रह दिन पहले कहीं से ये खबर मिली थी कि इकबाल खान सूरी गुप्त रूप से इस्लामाबाद के शेखाबाद में रह रहा है। उसके साथ मसूद नाम का एक आदमी है। नसरीन शेख को अपने साथ रहने से मना कर दिया है। इकबाल खान सूरी का सोचना है कि नसरीन शेख के साथ रहने की वजह से दुश्मन को उसकी पहचान जल्दी हो जाती है।”
देवराज चौहान और बशीर की नजरें मिली।
“शेखाबाद में कहां?” बशीर ने पूछा।
“बोला तो, मैं नहीं जानता।”
“शेखाबाद काफी बड़ा इलाका है याकूब।”
“पूरे इस्लामाबाद में ढूंढ़ने से तो अच्छा ही है कि शेखाबाद में उसे ढूंढो देर-सबेर में उसका पता लगा ही लोगे या उसे पता चल जाएगा कि उसके दुश्मन शेखाबाद तक भी आ पहुंचे हैं और वो तुम लोगों को खत्म कर देगा।”
“तुमने कहा कि उसके साथ सिर्फ मसूद नाम का आदमी है?” देवराज चौहान बोला।
“हां।”
“और भी उसकी सुरक्षा पर तैनात होंगे।”
“तुमने ठीक से सुना नहीं कि मैंने कहा है शेखाबाद में इकबाल खान सूरी गुप्त रूप से रहा है। गुप्त रूप में रहने के लिए जरूरी है कि उसके पास ज्यादा लोग न हो। उसने एक ही आदमी अपने पास रखा है।”
“पक्की खबर है?”
“खबरें बेचना मेरा काम है और जिस खबर का मैंने पच्चीस लाख लिया हो, वो कच्ची कैसे हो सकती है लेकिन किसी भी सूरत में तुम लोग मुंह से ये मत निकालना कि मैंने कुछ बताया...।”
तभी बेगम ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।
“लगे आप फिर वो ही बात करने। भाईजान की गारंटी मैंने ले ली कि ये आपके बारे में किसी को कुछ नहीं बताएंगे। इन पर नहीं तो मुझ पर ही भरोसा कर लो और एक ही बात बार-बार कहकर इन्हें परेशान मत करो। मैं तो ये कहने आई थी कि रुखसाना तेजी से नोटों को गिन रही है। अभी आए दस लाख की गिनती पूरी होने वाली है। इन्हें बिठा के रखना।” कहकर बेगम चली गई। याकूब ने दोनों को देखा।
“हिन्दुस्तानी पर भरोसा रखो।” देवराज चौहान बोला –“तुम्हारा नाम कहीं नहीं आएगा।”
“शुक्रिया।”
“कोई और बात कहना चाहते हो तो कह दो।”
“इकबाल खान सूरी के बारे में इतनी ही जानकारी है मेरे पास।” याकूब ने धीमे स्वर में कहा।
देवराज चौहान और बशीर की नजरें मिली। वे उठ खड़े हुए।
याकूब बैठा रहा और बेचैनी भरी निगाहों से उन्हें देखता रहा।
“चलते हैं। बशीर ने कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया। देवराज चौहान उसके साथ था।
दोनों बाहर निकल गए।
याकूब ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
वहीं बैठा रहा।
आंखें बंद कर ली।
“चले गए। चलो अच्छा ही हुआ।” बेगम की आवाज सुनने पर उसने आंखें खोली –“नोट भी पूरे हैं। रुखसाना के पांव कितने अच्छे हैं इस घर के लिए। जबसे उसे दूसरी बीवी बनाकर लाए हो, तभी से नोटों की बरसात होने लगी है। मेरी मानो तो तीसरा निकाह भी कर लो। पूरा घर नोटों से भर जाएगा।”
☐☐☐
देवराज चौहान और बशीर गली में आगे बढ़ गए। याकूब से जो जानकारी मिली थी। वो उनके लिए काफी महत्त्वपूर्ण थी। पूरे इस्लामाबाद में इकबाल खान सूरी का पता लगाने से आसान था शेखाबाद को टटोलना। पच्चीस लाख में ये जानकारी महंगी नहीं थी। किसी और सूरत में इतनी जानकारी के करोड़ों दिए जा सकते थे।
“याकूब पर तुम्हें कितना भरोसा है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“वो गलत नहीं कहने वाला। इकबाल खान सूरी के बारे में जानकारी देगा नहीं। दी है तो वो सही है। गलत खबर देने का मतलब वो जानता है कि हम उसे खत्म कर सकते हैं।” बशीर ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मतलब कि तुम्हें पूरा भरोसा है। वो ठीक बोला।”
“लगभग पूरा भरोसा है।”
गली से बाहर आकर वे कार में बैठे।
बशीर ने स्टेयरिंग संभाला और मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगा।
“तुम्हारे सब एजेंट भरोसे के हैं?” देवराज चौहान ने कहा।
“हां, क्यों?”
“सोच-समझकर ये खबर आगे बढ़ाना। कोई गद्दार हुआ तो इकबाल खान शेखाबाद से खिसक जाएगा।”
“मैं प्रभाकर को खबर दे रहा हूं। जो कराची में इकबाल खान को तलाश कर रहा है।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
फोन लग गया। बशीर की प्रभाकर से बात हो गई।
“इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में है।” बशीर बोला।
“पक्की खबर है?” उधर से प्रभाकर की आवाज आई।
“हां। पक्की है। उसके एक इलाके में गुप्त रूप से रहने की खबर मिली है।” बशीर ने फोन पर कहा।
“ये अच्छी खबर है। मैं अभी किसी प्लेन में इस्लामाबाद के लिए टिकट बुक कराता हूं। तीन घंटे के भीतर मैं इस्लामाबाद पहुंच जाऊंगा। तुम मुझे कहां मिलोगे?” उधर से प्रभाकर ने पूछा।
“इस्लामाबाद पहुंचकर मुझे फोन कर लेना।”
“ठीक है। देवराज चौहान क्या कर रहा है?”
“इस वक्त वो मेरे साथ ही है। हम दोनों ने मिलकर ही ये खबर हासिल की है।”
“ठीक है। मैं इस्लामाबाद पहुंचकर मिलता हूं।”
बशीर ने फोन बंद करके जेब में रखा और कार आगे बढ़ा दी।
“शेखाबाद कैसी जगह है?”
“शेखाबाद रिहायशी इलाका है। उच्च मध्यमवर्गीय लोग वहां बसे हुए हैं। अच्छी कालोनियों में शेखाबाद का नाम आता है। पुरानी कॉलोनी है और बंटवारे के बाद सरकार ने वहां लोग बसाए थे।”
“वहां से इकबाल खान सूरी को कैसे ढूंढा जाएगा?”
“ये कठिन काम है।” बशीर गम्भीर स्वर में बोला –“हर घर पर नजर नहीं रखी जा सकती। वहां हम ज्यादा एजेंट भी नहीं फैला सकते कि इकबाल खान को सतर्क होने का मौका मिले।”
“तो काम कैसे होगा?” देवराज चौहान ने उसे देखा।
“सोचना पड़ेगा।”
“यहां से शेखाबाद कालोनी कितनी दूर है?”
“एक घंटे का रास्ता है।”
“वहीं चलो। मैं शेखाबाद को देखना चाहता हूं।” देवराज चौहान ने कहा।
बशीर ने सिर हिला दिया।
“याकूब की खबर अगर सही है तो इकबाल खान सूरी को खत्म करने का हमें सुनहरी मौका मिलने वाला है।” देवराज चौहान बोला।
“वो कैसे?”
“उसके पास सिर्फ एक ही आदमी मौजूद है। ऐसे में उसे खत्म करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।”
“ये भूल है तुम्हारी।” बशीर बोला –“उस पर हाथ डालना इतना आसान नहीं होगा, जितना कि तुम सोच रहे हो।”
“अगर उसके साथ एक ही आदमी रहता है तो सब कुछ बहुत आसान होगा।”
“पहले उसका ठिकाना पता तो चले। बाकी बातें बाद की हैं।”
☐☐☐
देवराज चौहान और बशीर शेखाबाद पहुंचे।
कार पर और पैदल भी, वे शेखाबाद की पूरी कॉलोनी में घूमे। इस काम में उन्हें तीन घंटे लग गए। देवराज चौहान ने कॉलोनी के रास्तों को अपने दिमाग में बसा लिया था। कॉलोनी का समाप्ति पर पीछे खेत थे। वहाँ भी खेत वालों ने खेतों में अपने लिए इक्का-दुक्का मकान बना रखे थे।
इसी काम में उन्हें शाम हो गई।
“क्या कहते हो?” बशीर ने पूछा।
“इस कालोनी में से इकबाल खान सूरी को ढूंढ़ निकालना कठिन काम है।” देवराज चौहान ने कहा।
“लेकिन उसे तलाश तो करना ही है।”
“हमें शायद महीनों का वक्त लग जाए। योजना बनाकर सोच-समझकर यहां इकबाल खान की तलाश शुरू करनी होगी।”
“जनगणना वाले कर्मचारी बनकर, घर-घर जाकर हम...।”
“बेकार प्लान है। ये बात खुलते देर नहीं लगेगी कि सरकार ऐसा कोई काम नहीं करा रही है।”
दोनों कार में आ बैठे। बशीर ने कार आगे बढ़ा दी।
“बिजली कर्मचारी बनकर घर-घर जाकर हम मीटर चेक करने जा सकते...।”
“कोई फायदा नहीं होगा। घरों के मीटर प्रवेशद्वार के आस-पास लगे होते हैं। घर के भीतर नहीं कि हम सारा घर चेक कर सकें। तुम बेकार के प्लान बता रहे हो। कितने एजेंट हैं तुम्हारे पास?”
“पच्चीस-तीस।”
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
“तुम क्या इकबाल खान की तलाश के लिए शेखाबाद में एजेंटों का इस्तेमाल करना चाहते हो?”
“मैं अभी कोई प्लान नहीं बना रहा। इस मामले पर गम्भीरता से सोचना होगा।”
“प्रभाकर कभी भी इस्लामाबाद पहुंच सकता है। उसे तुम्हारे पास लाऊं या कहीं और...।”
“प्रभाकर से पूछ लेना। जैसा वो चाहे, वैसा ही करना।”
“प्रभाकर को जानते हो। पहले मिले हो उससे?”
“हां।”
“फिर तो उसे तुम लोगों के पास ही तो...।”
तभी बशीर का मोबाइल बजने लगा। अब तक अंधेरा फैल चुका था।
कार चलाते उसने मोबाइल पर बात की। दूसरी तरफ प्रभाकर ही था।
“मुझे आने में देर हो गई। विमान लेट हो गया।” प्रभाकर की आवाज कानों में पड़ी –“कहां आऊं मैं?”
“एयरपोर्ट पर हो?”
“हाँ।”
“इंतजार करो तो घंटे तक मैं आ जाता हूं नहीं तो पता सुन लो, जहां पहुंचना है।”
“पता बता दो।”
“देवराज चौहान और जगमोहन के पास रहना चाहोगे या...!”
“इनके साथ ही रहना चाहूंगा।” उधर से प्रभाकर ने कहा।
बशीर ने पता बता दिया।
☐☐☐
शाम हो चुकी थी।
जगमोहन सुबह से ही घर पर था। दोपहर एक बजे नींद से उठा था, तब तक देवराज चौहान वहां जा चुका था। जगमोहन जानता था कि उसने, बशीर के साथ कहीं पर जाना था। बाकी का वक्त उसे नहा-धोकर, कुछ खाकर फ्लैट पर ही बिताया कि कुछ पल पहले ही कॉलबेल बजी थी। तब वो टी.वी. देख रहा था। देवराज चौहान आया होगा ये सोचकर उसने दरवाजा खोला कि ठिठक गया। सामने अंजान व्यक्ति खड़ा था। उसने हाथ में दबा मोबाइल जगमोहन की तरफ बढ़ाया।
जगमोहन की आंखें सिकुड़ गईं।
“क्या है?” जगमोहन ने पूछा।
“ये तुम्हारे लिए है।” उस आदमी ने आगे बढ़कर, जबर्दस्ती फोन जगमोहन को थमा दिया।
“ये क्या कर रहे हो?”
तब तक वो व्यक्ति पलटकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ चुका था।
“तुम कौन हो और ये फोन मुझे क्यों दे रहे हो?” पीछे से जगमोहन कह उठा।
तब तक वो व्यक्ति सीढ़ियों से उतरकर नजर आना बंद हो चुका था।
जगमोहन ने हाथ में दबे मोबाइल को देखा कि अगले ही पल उसकी आंखें सिकुड़ी। कामनी का चेहरा आंखों के सामने नाच उठा। दुबई में भी अलजीरा होटल में कामनी ने इसी तरह मोबाइल पहुंचाया था तो क्या अब भी ये फोन कामनी ने भेजा है? जगमोहन उलझन में पड़ चुका था।
जगमोहन ने दरवाजा बंद किया और मोबाइल सेंटर टेबल पर रखकर कॉफी बनाने किचन में चला आया। उलझन चेहरे पर छाई थी कि यकीनन ये फोन कामनी ने भेजा होगा। देवराज चौहान ने गुलफाम को यहां का पता बता दिया था।
अभी कॉफी पूरी न बना पाया था कि फोन बजने की आवाज कानों में पड़ने लगी। जगमोहन ने गैस बंद की और वापस ड्राईंगरूम में पहुंचा। सेंटर टेबल पर रखा मोबाइल बज रहा था।
आगे बढ़कर जगमोहन ने मोबाइल उठाया और बात की।
“हैलो।”
“इस्लामाबाद कैसा लगा?” कामनी की शांत आवाज उसके कानों में पड़ी।
“तुम? तो तुमने फोन भेजा। जैसे कि दुबई में भेजा था।” जगमोहन सोफे पर जा बैठा।
“बुरा लगा क्या?”
“नहीं। मेरी भी शादी नहीं हुई और तुम्हारी भी नहीं हुई। बात चलाई जा सकती है।”
“तुम क्या करोगे शादी करके?”
“जो लोग करते हैं शादी करके, वो ही मैं करूंगा।”
“इस्लामाबाद तुम लोगों की जिंदगी का आखिरी शहर बनने वाला है।” कामनी की आवाज कानों में पड़ी।
“ये ही कहने के लिए तुमने फोन किया है।”
“दुबई में मैंने तुम लोगों की जान बख्श दी, परंतु इस्लामाबाद में मौत तुम लोगों को खा जाएगी। इकबाल खान सूरी तक पहुंचने से पहले मुझे रास्ते से हटाना होगा, जो कि तुम लोगों के लिए सम्भव नहीं। मरोगे तुम दोनों।”
“देवराज चौहान कहता है कि तुम खामख्वाह का ड्रामा कर रही हो, जबकि तुम भी इकबाल खान सूरी की मौत...।”
“जल्दी मरोगे तुम दोनों। देवराज चौहान से मेरी बात करा।”
“वो यहां नहीं है। हमारी शादी के लिए घोड़ी-बाजा बुक कराने गया है।”
“मेरे से मजाक करना तुम्हें बहुत महंगा...।”
“कितना भी महंगा हो मैं कीमत चुका दूंगा। अब तुम्हें इकबाल खान सूरी के बारे में बता देना चाहिए।”
“मैंने तुम्हें एक मौका देने के लिए फोन किया है।”
“बोलो।”
“जिंदा रहना चाहते हो तो पाकिस्तान छोड़ दो।” कामनी की गुर्राहटकानोंमेंपड़ी।
“तुमने दुबई छोड़ने को कहा था, हम दुबई छोड़कर पाकिस्तान आ गए। अब पाकिस्तान छोड़ने को कह रही हो तो तुम्हारी बात टालेंगे नहीं। पाकिस्तान से भी चले जाएंगे। अब तक तुम्हें इकबाल खान का पता बता देना चाहिए बाकी हम संभाल लेंगे।”
“तो तुम अपनी जान गंवाकर ही रहोगे।”
“अगर तुमने हमारी जान लेनी होती तो यहां फोन न भेजती, अपने आदमी भेजती।”
“अभी तक मैं रियायत से काम ले रही थी। सूरत में देवराज चौहान ने मेरी जान बचाई थी। जब भी मैं सख्त कदम के बारे में सोचती हूं तो वो वक्त मेरे सामने आ जाता है। परंतु अब बहुत हो चुका है। अब रियायत की और गुंजाइश नहीं रही। शेखाबाद में मरो या इस्लामाबाद में, मरोगे तुम लोग जल्दी ही और...।”
“शेखाबाद जगह का नाम है?”
“हां।” कामनी की गुर्राहट कानों में पड़ी –“जहां भी मरना चाहते हो, अपनी पसंद की जगह चुन लो।”
“शेखाबाद में खास क्या है मरने को?” जगमोहन के स्वर में व्यंग्य था।
“वहां सब कुछ खास है। तुम दोनों की मौत भी खास होगी। शेखाबाद में मरने में तकलीफ कम होती...।”
“अगर हम दोनों शेखाबाद में शादी करें तो...।”
उधर से कामनी ने फोन बंद कर दिया था।
जगमोहन ने होंठ सिकोड़कर फोन कान से हटाया और टेबल पर रख दिया। वो समझने की कोशिश कर रहा था कि कामनी ने फोन क्यों किया? क्या कहना चाहती थी वो? ऐसा तो कुछ भी नहीं कहा कि देवराज चौहान की बात सच हो कि वो भी इकबाल खान सूरी की मौत चाहती है।
जगमोहन कुछ नहीं समझा।
परंतु कई बार उसकी सोचें शेखाबाद पर आकर रुकी। सोचों में डूबे उसने मोबाइल पुनः उठाया और महबूब का नम्बर मिलाने लगा। महबूब का नम्बर याद था उसे।
“हैलो।” अगले ही पल महबूब की आवाज कानों में पड़ी।
“मैं जगमोहन...।”
“पहचाना, कहो, कहां आना है?”
“कहीं भी नहीं। ये शेखाबाद क्या है?”
“इस्लामाबाद की एक जगह का नाम है। कॉलोनी है।” उधर से महबूब ने कहा।
“शेखाबाद में खास क्या है?”
“खास तो कुछ भी नहीं। कॉलोनी है। लोग रहते हैं।” महबूब ने सोच-भरे स्वर में कहा।
“फिर बात करूंगा।” कहकर जगमोहन ने फोन बंद कर दिया। परंतु मस्तिष्क में शेखाबाद घूम रहा था कि कामनी ने शेखाबाद का नाम क्यों लिया? कोई तो वजह होगी। बिना वजह तो शेखाबाद का जिक्र करने से रही।
☐☐☐
डेढ़ घंटे बाद देवराज चौहान आ गया।
“बशीर साथ नहीं आया?” जगमोहन ने पूछा।
“उसे कुछ काम था। कल आएगा।” देवराज चौहान ने कहा –“थोड़ी-सी सफलता मिलती लगी है आज।”
“क्या?”
“किसी याकूब नाम के आदमी से मिले थे जो कि खबरें रखता है ऐसी। उसने पच्चीस लाख लेकर हमें उस इलाके का पता बता दिया। जहां इकबाल खान सूरी गुप्त रूप से रह रहा है। कामनी सावधानी के नाते उसके साथ नहीं रहती।”
“अकेला रहता है इकबाल खान?”
“साथ में मसूद नाम का एक आदमी है।”
“कहां पर है इकबाल खान सूरी?”
“शेखाबाद में।”
जगमोहन बुरी तरह चौंका।
“शेखाबाद? ओह भगवान, मैं क्यों नहीं समझ पाया कामनी की बात?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“कामनी?” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा –“क्या वो आई थी?”
“उसने फोन भेजा था। कोई दे गया। फिर कामनी का फोन आया। उसने अपनी बातों में शेखाबाद का नाम लिया।”
देवराज चौहान की निगाह टेबल पर रखे मोबाइल पर पड़ी।
“क्या बात हुई कामनी से?”
जगमोहन ने सारी बात बता दी।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
“अब ये बात तो स्पष्ट हो गई कि इकबाल खान सूरी शेखाबाद में ही है।” देवराज चौहान बोला –“कामनी जानती है कि हम उसे नहीं ढूंढ सकेंगे, ऐसे में हमें आगे बढ़ने का रास्ता बता रही है।”
“तो तुम्हारा ख्याल ठीक निकला कि वो भी इकबाल खान सूरी की मौत चाहती है।” जगमोहन ने कहा।
“इसका एहसास मुझे दुबई में ही हो गया...।”
“तो वो स्पष्ट क्यों नहीं बता देती कि इकबाल खान सूरी का सही ठिकाना कहां पर है?”
“उसे भी तो खतरा है। वो सतर्कता बरत रही है।” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा –“अगर इकबाल खान सूरी को उसके इरादे की जरा भी भनक पड़ गई तो वो उसे खड़े पांव खत्म कर देगा।”
“शेखाबाद के बारे में बता सकती है तो दो लाइनें और भी बता सकती...।”
“ये तुम कहते हो। परंतु उसे भी किसी बात का डर होगा, जो सीधे-सीधे मुंह नहीं खोल रही। मेरे ख्याल में इकबाल खान सूरी की मौत का फायदा उठाकर वो उसकी दौलत की मालकिन बनना चाहती है। इसके अलावा तो कोई और वजह मुझे नजर नहीं आती कि वो इकबाल खान की मौत चाहे। देवराज चौहान ने सोच-भरे स्वर में कहा –“जो भी हो, कामनी हमारे साथ है और मुझे पूरा यकीन है कि वो हमें जल्दी ही इकबाल खान सूरी का सही ठिकाना बता देगी।”
“पता नहीं वो क्या चाहती है। उससे पहले ही हम वहां से इकबाल खान को ढूंढ़ लेंगे।”
“ये आसान नहीं जगमोहन। बशीर के साथ जाकर मैंने शेखाबाद की कॉलोनी देखी है। वो काफी बड़ी है। लाखों की संख्या में वहां मकान हैं। ऐसे में इकबाल खान किस घर में छिपा रह रहा है। पता लगाना आसान नहीं। हमारे सामने काफी बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है कि शेखाबाद में इकबाल खान को कैसे तलाशा जाए।”
“वहां पर अपने ज्यादा आदमियों का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते। इससे इकबाल खान सूरी तक ये बात पहुंच जाने का खतरा है कि शेखाबाद में अचानक ही अंजान चेहरे घूमते दिखाई देने लगे हैं।” जगमोहन बोला।
“इस तरह की कई समस्याएं हमारे सामने आ रही हैं।” देवराज चौहान ने कश लिया।
“इसका कोई रास्ता तो निकालना पड़ेगा कि पता चल सके कि शेखाबाद में इकबाल खान सूरी कहां पर मौजूद है। ये भी जाहिर है कि वो अपनी जगह से, पहचाने जाने के डर से बाहर नहीं निकलता होगा। उसके साथ जो मसूद नाम का आदमी है, वो ही बाहर आता-जाता होगा और हम मसूद को पहचानते भी नहीं।”
देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर, जगमोहन को देखा।
“कोई खास बात?” जगमोहन ने पूछा।
“हमें इकबाल खान सूरी की जगह मसूद की तलाश करनी चाहिए। उसे ढूंढ़ना आसान होगा।” देवराज चौहान बोला।
“कहा तो मसूद को हम पहचानते नहीं।”
“किसी प्रकार मसूद की पहचान करनी होगी।”
“इकबाल खान शेखाबाद में करीब महीने-भर से रह रहा होगा। क्योंकि लगभग इतना समय पहले ही वो दुबई से इस्लामाबाद पहुंचा है। महीना नहीं तो पच्चीस दिन से रह रहा होगा। ऐसे में मसूद अक्सर अपने ठिकाने से बाहर आकर पास की दुकानों से, रोजमर्रा की चीजें लेता होगा, जैसे ब्रेड, मक्खन, दूध, छोटा-मोटा सामान और भी तो हम दुकानों से पूछताछ करके ऐसे आदमी की पहचान कर सकते हैं, जो पच्चीस-तीस दिनों से वहां आना शुरू हुआ हो।”
“ये बात जंची नहीं।” जगमोहन ने इंकार में सिर हिलाया।
“क्यों?”
“दुकानों पर से इस तरह की पूछताछ की खबर मसूद को मिल जाएगी। वो अकेला ही इकबाल खान सूरी की रखवाली कर रहा है तो यकीनन शातिर होगा। इकबाल खान ने उसे साथ रखने को यूं ही नहीं चुना होगा। उसकी नजर हर तरफ रहती होगी। वो कभी भी लापरवाह नहीं होता होगा। ये तरीका ठीक नहीं रहेगा।” जगमोहन बोला।
“तो हम ऐसा कर सकते हैं कि दुकानों पर नजर रखें और संदिग्ध व्यक्ति का पीछा करें।”
“समस्या तो ये है कि हम मसूद की उम्र भी नहीं जानते कि बीस वर्ष के युवक पर नजर रखें या पचास साल के आदमी पर।”
“तुम ठीक कहते हो। हमारे पास मसूद के बारे में जानकारी नहीं है। वो ही ऐसा सूत्रधार है कि जिसके दम पर हम इकबाल खान सूरी तक पहुंच सकते हैं।” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा।
“कामनी का फोन आए तो उससे मसूद के बारे में जानकारी ली जा सकती...।”
“भरोसा नहीं कि वो बताए।”
“वो भी तो चाहती है कि इकबाल खान सूरी मारा जाए।”
“ऐसा अवश्य चाहती है वो, परंतु वो पर्दे के पीछे रहना चाहती है। पर्दे के सामने नहीं आना चाहती। वो शायद इकबाल खान की मौत के साथ अपना नाम जोड़ना नहीं चाहती।” देवराज चौहान ने कहा –“वो अगर इकबाल खान की दौलत को अपना बनाने का इरादा बनाए हुए है तो ये तभी हो सकता है, जब वो इस सारे झंझट से दूर रहे।”
“इकबाल खान मर गया तो उसे किस बात का डर?”
“इकबाल खान सूरी के दसियों खास आदमी होंगे। जो इकबाल खान का बहुत कुछ संभालते होंगे। ऐसे में कामनी का नाम इकबाल खान की मौत के साथ जुड़ा तो वो कैसे पसंद करेंगे कि कामनी उसकी बड़ी बन जाए।”
जगमोहन ने सिर हिलाया फिर बोला।
“सवाल ये है हमारे सामने कि हम कैसे पता लगाएं कि इकबाल खान सूरी शेखाबाद में कहां पर छिपा है।”
देवराज चौहान कुछ कहने लगा कि तभी कॉलबेल बजी।
“कौन आया होगा?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“प्रभाकर होगा।” देवराज चौहान ने कहा।
“प्रभाकर?” जगमोहन चौंका –“वो तो कराची में...।”
“बशीर ने दोपहर में उसे खबर दे दी थी कि इकबाल खान इस्लामाबाद में है। उसे यहां का पता भी दे दिया था।”
जगमोहन तब तक दरवाजे के पास पहुंच चुका था। दरवाजा खोल सामने सूटकेस थामे प्रभाकर ही खड़ा था।
“आओ दोस्त।” जगमोहन पीछे हटता कह उठा।
प्रभाकर भीतर आया।
जगमोहन ने दरवाजा बंद किया।
सूटकेस एक तरफ रखकर प्रभाकर कह उठा।
“एक बात तो है। पाकिस्तान का कोई भी शहर ले लो, सब कुछ हिन्दुस्तान जैसा ही दिखता है। लगता ही नहीं कि हम हिन्दुस्तान से बाहर हैं। कभी-कभी तो मैं भूल भी जाता हूं कि ये पाकिस्तान है।”
“ये पाकिस्तान ही है। ये बात हमेशा याद रखना।” जगमोहन बोला।
“कोई खास बात हुई क्या?”
“यहां इकबाल खान सूरी जैसा हिन्दुस्तान का अपराधी मजे से पनाह लिए हुए है।”
प्रभाकर गहरी सांस लेकर रह गया फिर बोला।
“देवराज चौहान कहां है?”
“ड्राइंग रूम में-आओ।”
जगमोहन और प्रभाकर ड्राइंगरूम में पहुंचे।
देवराज चौहान और प्रभाकर एक-दूसरे को देखकर मुस्कराए।
“इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में है और मैं उसे कराची में ढूंढ़ता रहा। उसके वहीं होने की खबर मुझे मिली थी।” प्रभाकर बैठता हुआ कह उठा –“जहां भी हो, पता तो चल गया कि वो यहां है। किसी ने उसे देखा?”
“नहीं।”
“तो कैसे पता चला?”
“इसके लिए तुम्हें शुरू से ही सब कुछ जानने की जरूरत है। बार-बार तुम सवाल न पूछो, इसलिए मैं तुम्हें हर वो बात बता देता हूं। जिसे जानने-पूछने की तुम्हें जरूरत पड़ेगी।” देवराज चौहान ने कहा।
प्रभाकर ने सिर हिला दिया।
“तब तक मैं कॉफी तैयार कर लेता हूं।” जगमोहन ने कहा और बाहर निकल गया।
☐☐☐
देवराज चौहान, जगमोहन और प्रभाकर कॉफी के घूंट ले रहे थे। देवराज चौहान, प्रभाकर को सब कुछ बता चुका था। वो भी अब हालातों से उतना ही वाकिफ था जितना कि देवराज चौहान और जगमोहन।
“ऐसे में तो गम्भीर समस्या है शेखाबाद से इकबाल खान सूरी को ढूंढ निकालने की।” प्रभाकर ने कहा –“मेरे ख्याल में तुम्हें कामनी का फोन आने का इंतजार करना चाहिए। शायद वो कुछ इशारा दे दे।”
“उसका फोन दस दिन न आया तो हम क्या इसी तरह बैठे रहेंगे?” देवराज चौहान बोला।
“ये भी चिंता का विषय है।” प्रभाकर कह उठा।
“हमें इकबाल खान को ढूंढ़ने का काम अपनी तरफ से, कल से ही शुरू कर देना चाहिए।” जगमोहन बोला।
“कैसे?”
“हम दुकानों पर नजर रखेंगे। इलाके के भीतर हर गली-मोहल्ले में दुकानें बनी हुई हैं।” देवराज चौहान ने कहा –“एक तरफ तो कतार में बनी दुकानों की काफी बड़ी मार्किट है। इकबाल खान सूरी के पास टिका आदमी, कम उम्र का तो होगा नहीं। अनुभवी होगा। ऐसे में उसकी उम्र तीस से ऊपर होनी चाहिए। तीस से चालीस तक के उम्र के आदमी पर हम खास नजर रखेंगे। जो दुकान से सामान लेकर जा रहा हो और हमारे शक के दायरे में आ जाए।”
“हमारा शक का दायरा क्या होगा?”
“ऐसा आदमी खामोशी से दुकान पर आएगा और सामान लेकर चल देगा। वो किसी भी आलतू-फालतू आदमी से बात नहीं करेगा। क्योंकि वो इलाके में नया है और किसी को जानता नहीं होगा कोई उसे नहीं जानता होगा। मसूद नाम का वो आदमी, किसी भी कीमत पर लोगों से मिलना-बात करना पसंद नहीं करेगा। इसके लिए हमें उन दुकानों पर नजर रखनी होगी, जहां से दूध, अंडे-ब्रेड और दाल-चावल मिलते हो। रोजमर्रा की चीजों वाली दुकान हो।”
“ऐसी बहुत दुकानें होगी उस इलाके में।” प्रभाकर ने देवराज चौहान को देखा।
“मेरे ख्याल में ऐसी चालीस दुकानें तो होनी ही चाहिए। इलाका बड़ा है।” देवराज चौहान ने कहा –“इसी अंदाजे से हम इस मामले में आगे बढ़ेंगे कि मसूद की उम्र तीस से चालीस तक की होगी, वो पैंतालीस का भी हो सकता है। जो भी हमारे शक के दायरे में आएगा, उसके पीछे जाना होगा।”
“इस काम में वक्त भी लग सकता है।”
“कुछ भी वक्त लग सकता है। दो दिन में भी काम हो सकता और तीन महीने भी लग सकते हैं।”
“बशीर से बात की इस बारे में?” प्रभाकर ने पूछा।
“पूरी तरह नहीं। वो कहता है उसके पास 30-35 एजेंट हैं।”
“इतनों से हमारा काम चल जाएगा।” प्रभाकर ने सिर हिलाया।
“परंतु शंका ये है कि उनमें से कोई गद्दार न हो।” जगमोहन बोला –“कोई इकबाल खान तक ये खबर न पहुंचा दे कि हम क्या कर रहे हैं शेखाबाद में। ऐसा हुआ तो हमारी कोशिश फेल हो जाएगी।”
“हमारा कोई एजेंट गद्दार नहीं होना चाहिए। फिर भी सावधानी के नाते हम एजेंटों को सिर्फ काम के बारे में बताएंगे, उन्हें ये नहीं बताएंगे कि ये मामला इकबाल खान सूरी से वास्ता रखता है।” प्रभाकर ने कहा।
“ऐसा ही करना पड़ेगा।” देवराज चौहान ने कॉफी का आखिरी घूंट लेकर कहा –“सब एजेंटों को समझाना होगा कि ये सारा काम बहुत सावधानी से करना है। हम खतरनाक इंसान की तलाश कर रहे हैं जो कि चार आंखें रखता...।”
“बशीर ये सब संभालेगा।” प्रभाकर मोबाइल निकालता बोला –“कल से काम करना है तो बशीर को यहीं बुला लूं। उसे समझा देते हैं वो एजेंटों से रात भर में बात कर लेगा और कल से हमारा काम शुरू हो जाएगा।”
“हम सिर्फ एजेंटों पर भरोसा नहीं कर सकते। हमें भी हर पल उस इलाके में मौजूद रहना...।”
“हम भी वहां रहेंगे। प्रभाकर नम्बर मिलाते कह उठा –“एजेंटों को समझा देंगे कि उनका काम संदिग्ध का पीछा करना है। उसका ठिकाना देखना है और हमें खबर कर देनी है। बाकी आगे का काम हम देखेंगे।”
प्रभाकर ने फोन पर बशीर से बात की और उसे वहां पहुंचने को कहा।
“प्रभाकर।” जगमोहन बोला –“अब हमारा काम खत्म होने वाला है।”
“वो कैसे?”
“हमारा काम उस जगह की निशानदेही करके तुम्हें बताना है कि इकबाल खान सूरी वहां पर मौजूद है। उसके आगे का काम तुम्हें ही देखना है। ये ही बात मार्शल से तय हुई थी।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
“हां। पता है। बाकी का काम अपने एजेंटों की मदद से मैंने संभालना है। प्रभाकर सिर हिला उठा –“इकबाल खान सूरी को खत्म करना जरूरी है। वो पिचासी पुलिस वालों की हत्या करके, हिन्दुस्तान से फरार है। दुबई में उसने हमारे सत्रह एजेंटों को मारा। इधर वो पाकिस्तान के साथ मिलकर, हिन्दुस्तान के खिलाफ षड्यंत्र रचता रहता है। उसे खत्म करना जरूरी है। मार्शल का प्लान अच्छा है कि चुपचाप पाकिस्तान जाओ। इकबाल खान सूरी का पता लगाओ और हमला करके उसे खत्म करके वापस हिन्दुस्तान लौट आओ। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि ये सब किसने किया। पता चल भी गया तो परवाह किसे है। कोई भी सबूत पेश नहीं कर सकता कि ये काम हिन्दुस्तानी एजेंटों ने किया है।”
“मैं तो तुम्हें याद दिला रहा हूं कि हमारा काम ज्यादा बाकी नहीं रहा।” जगमोहन कह उठा।
जवाब में प्रभाकर मुस्कराकर उसे देखने लगा। देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली। उन्हें बशीर के आने का इंतजार था।
☐☐☐
अगले दिन काम शुरू हो गया।
शेखाबाद में मार्शल के चौंतीस एजेंट फैल चुके थे जिनमें देवराज चौहान और जगमोहन भी थे। उन्हें समझा दिया गया था, परंतु वे ये नहीं जानते थे कि मामला इकबाल खान सूरी से जुड़ा है। इस बात को छिपाकर रखा गया था कि किसी भी हालत में बात बाहर न जाए। देवराज चौहान, जगमोहन, बशीर, प्रभाकर काफी सतर्कता बरत रहे थे।
देवराज चौहान और प्रभाकर एक साथ थे और शेखाबाद के आते-जाते लोगों पर नजर रख रहे थे। इसी तरह जगमोहन और बशीर एक साथ और हर तरफ पैनी नजर रखे थे। सब एजेंटों के पास इन चारों के फोन नम्बर थे। सारे एजेंट इलाके की परचून और ब्रेकरी की दुकानों को तलाश करके उनके आस-पास जा चुके थे और दुकानों पर आने-जाने वालों पर नजर रखे थे। सब इस तरह काम में लगे थे कि देखने वालों को शक न हो। सुबह दस बजे तक काम शुरू हो गया था। धूप बढ़ रही थी। गर्मी थी।
बारह बजे देवराज चौहान को एक एजेंट का फोन आया।
“मैंने एक आदमी की पहचान की है। वो, वो ही हो सकता है जिसकी हमें तलाश है।” आवाज आई।
“शक की वजह?” देवराज चौहान ने पूछा।
“मुझे लगता है वो आदमी सतर्कता बरतते हुए सड़क पर चल रहा है। बार-बार आगे-पीछे देखता जा रहा था। किसी से उसने बात नहीं की। बेकरी से खाने का सामान लिए चल पड़ा।”
“उम्र क्या है उसकी?”
“पैंतीस के करीब।”
“अब क्या पोजिशन है?”
“वो एक मकान में गया है जिसका नम्बर चार सौ आठ है। मैं अभी उसी गली में हूं।”
“तुम वहीं रुको। हम पहुंचते हैं।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद करके प्रभाकर से कहा –“हमें चार सौ आठ नम्बर मकान की तलाश करनी है। वहां एक संदिग्ध है। गली में हमारा आदमी, हमारे इंतजार में मौजूद है।
☐☐☐
देवराज चौहान और प्रभाकर उस गली में पहुंचे जिसमें चार सौ आठ नम्बर मकान था। उन्हें देखते ही पैंतालीस वर्ष का एक व्यक्ति उनके पास आ पहुंचा।
“तुमने खबर दी?” प्रभाकर ने पूछा।
“हां।” कहते हुए उसने कुछ दूरी पर मौजूद 408 नम्बर मकान पर नजर मारी –“वो आदमी इसी मकान में गया है। मैं तब से इसी मकान पर नजर रखे हूं परंतु भीतर से मुझे कोई हलचल नहीं नजर आ रही। कोई भी नहीं दिखा।”
“ठीक है, हम चेक कर लेते हैं। तुम बाहर रहकर, गली में नजर रखोगे।”
उसने सिर हिलाया और पास से हट गया।
देवराज चौहान और प्रभाकर की नजरें मिली।
“भीतर वो ही लोग हुए तो तुम्हें मेरा साथ देना होगा।” देवराज चौहान प्रभाकर ने कहा।
“दूंगा।” देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता थी।
प्रभाकर ने नजर घुमाई। उस वक्त गली में दो औरतें जा रही थी। जब वो निकल गईं तो प्रभाकर बोला।
“चलें?”
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया। दोनों के चेहरों पर सख्ती थी। उन्होंने जेबों में पड़ी रिवॉल्वरों पर हाथ रखे और मकान नम्बर 408 की तरफ बढ़ गए। पास पहुंचकर उन्होंने मकान का गेट खोला। बरामदे के पार भीतर जाने का दरवाजा नजर आ रहा था। वे वहां पहुंचे। दरवाजा बंद था।
दोनों की नजरें मिली। देवराज चौहान हाथ से दरवाजा खटखटाया।
चेहरों पर खतरनाक भाव नाच रहे थे उनके।
“कौन है?” भीतर से मध्यम-सी आवाज आई।
“अहमद हूं भाई। दरवाजा खोलो।” प्रभाकर ने एकाएक आवाज को मुलायम करके कहा।
“कौन अहमद?” भीतर से पुनः आवाज आई और साथ में दरवाजा खुल गया।
जेब से देवराज चौहान का हाथ फुर्ती से बाहर निकला। उसमें रिवॉल्वर दबी थी। जिसकी नाल दरवाजा खोलने वाले के पेट में लगाई और उसे भीतर धकेलता ले गया। इसी पल प्रभाकर की रिवॉल्वर थामे भीतर प्रवेश करता गया। सब कुछ आनन-फानन हुआ था। पहला कमरा खाली था, प्रभाकर फुर्ती से दूसरे कमरे में प्रवेश करता चला गया।
वो आदमी हक्का-बक्का खड़ा था, जिससे देवराज चौहान ने रिवॉल्वर लगाई थी।
“क-क्या है?” उस आदमी के होंठों से घबराया-सा स्वर निकला।
“कौन हो तुम?” देवराज चौहान गुर्राया।
“शौकत अली।” उसने पहले जैसे स्वर में कहा।
“भीतर कौन है?”
“म-मेरी अम्मी। बी-बीमार है।”
तभी प्रभाकर वापस कमरे में आता कह उठा।
“सब ठीक है। भीतर एक बूढ़ी औरत बीमार पड़ी है।”
देवराज चौहान ने उससे रिवॉल्वर हटाई और जेब में डालता कह उठा।
“चलो।”
“दरवाजा बंद कर लेना।” उस हक्के-बक्के-से खड़े आदमी से प्रभाकर ने कहा।
देवराज चौहान और प्रभाकर मकान से बाहर निकल आए।
गली में मौजूद एजेंट फौरन उनके पास पहुंचा।
“सब ठीक है।” प्रभाकर ने कहा –“जाकर जगह संभाल लो।”
वो चला गया।
देवराज चौहान और प्रभाकर गली के बाहर की तरफ बढ़ गए।
“ये तरीका ठीक नहीं है।” प्रभाकर बोला –“इस तरह हम पांच-सात मकान ही चेक कर सकेंगे और तब तक हमारी हरकतों की बात फैल जाएगी। कोई पुलिस को भी हमारे बारे में खबर कर सकता है।”
“ये ही मैं सोच रहा था।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“इस तरह तो इकबाल खान सूरी भी जान जाएगा कि यहां कुछ हो रहा है। ऐसे में फौरन शेखाबाद से निकल जाएगा फिर शायद उसकी खबर न मिले।”
“हमें अपना काम करने का ढंग बदलना होगा।” प्रभाकर ने होंठ भींचे –“कुछ और सोचना पड़ेगा।”
“इकबाल खान सूरी को ढूंढ़ निकालने का हमारे पास सुरक्षित रास्ता नहीं है।” देवराज चौहान ने कहा।
“बेशक न हो। परंतु ये ढंग हमें फौरन छोड़ना होगा। वरना इकबाल खान जब से निकल जाएगा।”
“हमें मसूद नाम के उस आदमी की तस्वीर चाहिए।” देवराज चौहान बोला।
“पहली बात तो ये है कि ऐसे आदमियों की तस्वीरें नहीं होती। वो सावधानी के तौर पर अपनी तस्वीर नहीं खिंचवाते। दूसरी बात ये है कि अगर तस्वीर है भी तो वो हमें हासिल नहीं होने वाली।” प्रभाकर सोच-भरे स्वर में बोला।
“जब तक हम मसूद को नहीं पहचान पाते, तब तक इकबाल खान सूरी तक नहीं पहुंच सकते।” देवराज चौहान बोला –“हमें जल्दी नहीं करनी चाहिए। ये काम अभी यहीं रुकवा देना चाहिए।”
“तुम गम्भीर हो।”
“हाँ।”
“तुम्हें एक बार कामनी से बात करनी चाहिए। वो कुछ बता सकती है मसूद की तस्वीर...।”
“मेरे पास कामनी का फोन नम्बर नहीं है।”
“गुलफाम के पास तो है। उससे लिया जा सकता है। बशीर उससे नम्बर ले आएगा। आदमियों को अभी इसी पोजिशन पर रहने दो। शायद हमारा तुक्का तीर बन जाए।” प्रभाकर ने कहा –“मैं बशीर को फोन करता हूं।”
☐☐☐
बशीर और जगमोहन सतर्क थे।
अभी-अभी एक एजेंट ने उन्हें 162 नम्बर मकान में एक संदिग्ध के जाने की खबर दी थी। उसका कहना था कि संदिग्ध ने परचून की दुकान से कुछ दालें खरीदी और तेजी से एक तरफ बढ़ गया। इस दौरान वो सतर्क निगाहों से आस-पास भी देखता जा रहा था और पीछे लगे उसे भी देखा। वो पूरी तरह संदिग्ध लगा। किसी से उसकी बातचीत नहीं हुई और 162 नम्बर मकान में जा घुसा था। उसने मैला हो रहा सफेद कुर्ता-पायजामा पहन रखा था।
बशीर और जगमोहन फौरन 162 नम्बर मकान वाली गली में जा पहुंचे। वो एजेंट भी वहीं था। उसने मकान की निशानदेही कराई तो जगमोहन ने उसे बाहर रहने को कहा और खुद गेट खोलकर मकान में घुस गए।
मुख्य दरवाजा बंद था। बशीर ने पास लगी कॉल बेल दबा दी।
तुरंत ही दरवाजा खुला। दरवाजा खोलने वाला सफेद कुर्ता-पायजामा पहने हुए था।
“क्या है?” उसने दोनों को माथे पर बल डालकर देखा।
बशीर ने उसी पल रिवॉल्वर निकाली और उसके पेट से लगाकर गुर्राया।
“भीतर चलो।”
वो घबरा गया और उल्टे पांव पीछे हटता चला गया।
जगमोहन रिवॉल्वर थामे भीतर आ गया। परंतु ठिठक गया। पहला कमरा ड्राइंग रूम था और वहां दस-बारह आदमी-औरतें बैठे थे। सेंटर टेबल खाने-पीने की चीजों से सजा था।
“चेक करो।” बशीर उस पर रिवॉल्वर रखे गुर्राया।
जगमोहन रिवॉल्वर थामे मकान के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ गया।
रिवॉल्वर देखकर ड्राइंग रूम में बैठे लोगों में सांप सूंघ गया था। वे हिलने से भी डर रहे थे।
“क्या चाहते हो तुम लोग?” सफेद कुर्ते-पायजामे वाले ने हिम्मत करके पूछा।
“हम पुलिस वाले हैं।” बशीर कठोर स्वर में बोला –“एक अपराधी की तलाश कर रहे हैं।”
“लेकिन ये मेरा घर है। ये मेहमान हैं, मेरी बेटी का रिश्ता लेकर आए हैं। यहां कोई अपराधी नहीं है।” वो कह उठा।
“अभी पता चल जाएगा।”
“ऐसा करके आप मेरे मेहमानों को डरा रहे हैं।”
बशीर खामोश रहा।
जगमोहन वापस आता कह उठा।
“यहां कुछ नहीं है। चलो।”
उसे छोड़कर बशीर और जगमोहन बाहर निकल आए।
“हम गलत ढंग का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस तरह तो इकबाल खान हाथ नहीं आने वाला। बल्कि हाथ से निकल जाने के चांसेज ज्यादा हैं। कॉलोनी में हमारी हरकतों की खबर फैलते देर न लगेगी।”
“और ये बातें इकबाल खान सूरी के कानों तक भी पहुंच सकती हैं।” बशीर ने गहरी सांस ली।
“हां। हमें ऐसे काम नहीं करने चाहिए। काम का ढंग बदलना होगा। देवराज चौहान से बात...।”
इसी पल बशीर का फोन बज उठा।
बशीर ने बात की। उधर प्रभाकर था।
“प्रभाकर हमें बुला रहा है।” बशीर फोन बंद करता बोला –“हम उनके पास ही चल रहे हैं। वहीं बात करेंगे।”
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चारों इस बात से सहमत थे कि इस मामले में उनका काम करने का तरीका ठीक नहीं है। काम करने के ढंग को बदलना होगा और बातचीत फिर मसूद पर आकर अटक गई कि मसूद रोजमर्रा का सामान लेने उस जगह से बाहर जरूर आता होगा। मसूद की तस्वीर होनी चाहिए, ताकि उसे पहचाना जा सके। यही एक रास्ता था। इकबाल खान सूरी के ठिकाने का पता लगाने का। ऐसे में मसूद की तस्वीर कहां से हासिल की जाए, ये सवाल उनके सामने था।
“इकबाल खान सूरी के इस्लामाबाद में तीन ठिकाने हैं।” बशीर बोला –“वहां से हमें इकबाल खान के आदमी पकड़ने चाहिए। वो ही मसूद की तस्वीर का इंतजाम करा...।”
“इकबाल खान के आदमियों के पास मसूद की तस्वीर होगी, या वे इंतजाम करा देंगे तस्वीर का, ये ख्याल अपने दिल से निकाल दो।” देवराज चौहान बोला –“मसूद की तस्वीर कोई जेब में डालकर घूमने से रहा।”
“क्या पता मसूद की कोई तस्वीर है भी या नहीं?” प्रभाकर ने कहा।
“लेकिन हम इकबाल खान के किसी आदमी से मसूद का हुलिया तो जान सकते हैं। बशीर बोला –“अगर हमारे पास मसूद का हुलिया हो तो तब भी हम अपनी कोशिश में कामयाब हो सकते हैं। हमें तो उसकी उम्र तक नहीं पता।”
हुलिये वाली बात सबको जंची।
“बशीर।” प्रभाकर बोला –“तुम जाकर इकबाल खान के किसी आदमी को पकड़ो और मसूद का हुलिया...।”
“रहने दो। ऐसा करना खतरनाक होगा।” देवराज चौहान ने कहा –“फौरन ही ये बात इकबाल खान के कानों तक पहुंच जाएगी कि कोई मसूद का हुलिया पूछ रहा है। शायद इकबाल खान सूरी मामले को भांप भी जाए।”
“तुम्हारा मतलब कि हम कुछ न करें।” प्रभाकर खीझ-भरे स्वर में कह उठा।
“जो भी करना है, उस पर सौ बार गौर कर लेना चाहिए हमें।” देवराज चौहान बोला –“ये मामला इकबाल खान सूरी से जुड़ा है जो कि खतरनाक और शातिर बंदा है। हिन्दुस्तान की पुलिस उसके पीछे है। दुबई में अपना साम्राज्य फैलाकर, दुबई का आका बना हुआ है और पाकिस्तान सरकार और आतंकी गुटों से हाथ मिलाकर, उनकी आंख का तारा बना हुआ है मामूली इंसान नहीं है वो। उसका जबर्दस्त नेटवर्क है। यहां तक कि हम इकबाल खान सूरी को अभी तक देख भी नहीं पाए। मार्शल ने उसकी जो तस्वीर दिखाई थी, वो ही देखा है उसे। उसकी तो ठीक से खबर भी नहीं मिलती कि वो किस देश में है। किस शहर में है। तुम उसे कराची में ढूंढ रहे थे। मैं दुबई में ढूंढ़ रहा था, जबकि वो इस्लामाबाद में मौजूद है। ऐसे इंसान की मौजूदगी की सही खबर लगा पाना ही बहुत बड़ी बात है।”
“मेरे ख्याल में हम जल्दी से इकबाल खान सूरी को ढूंढ़ निकालना चाहते हैं। ये ही हमारी गलती है।” जगमोहन ने कहा –“हम चाहते हैं कि आनन-फानन हमें इकबाल खान सूरी मिल जाए, जबकि मेरा ख्याल है कि हमें सब से काम लेना चाहिए। वो शेखाबाद नाम के इस इलाके में है, ये तो हम जान ही चुके हैं, परंतु उस तक पहुंचने में हमें महीनों का भी वक्त लग सकता है। हमें एक-एक कदम सोच-समझकर, संभलकर आगे बढ़ाना होगा। कहीं भी जल्दबाजी नहीं करनी है जैसी जल्दबाजी हम इस वक्त कर रहे हैं। हमने गलत प्लान बनाया। जल्दबाजी कर रहे हैं हम।”
“मैं जगमोहन की बात से सहमत हूं।” प्रभाकर गम्भीर स्वर में बोला।
“तो फिर क्या किया जाए?” बशीर बोला।
“शेखाबाद में हमारे एजेंट फैले रहेंगे। वो हर तरफ नजर रखेंगे और संदिग्धों की लिस्ट तैयार करके हमें देंगे। हम सब्र के साथ उस लिस्ट को चेक करेंगे। अबकी तरह नहीं कि हथियार लेकर घरों में घुस जाएं। अंत में संदिग्ध होने के हमारे पैमाने पर जो खरा उतरेगा, उस पर ही हाथ डाला जाएगा।” जगमोहन ने कहा।
“ये ठीक है।” प्रभाकर ने सिर हिलाया।
“तो ये काम तुम लोग संभालो। मेरे एजेंट तुम लोगों के हवाले हैं।” बशीर बोला –“तब तक मैं किसी तरह मसूद का हुलिया जानने की कोशिश करता हूं। इस तरह कि किसी को शक न हो।”
“अगर तुमने जरा भी लापरवाही की तो हमारा सारा काम खराब जाएगा बशीर।” प्रभाकर बोला।
“जानता हूं। मैं कोई लापरवाही नहीं करूंगा।” बशीर ने सिर हिलाकर कहा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
“अभी एजेंटों को संदिग्ध लोगों की लिस्ट तैयार करने दो।” प्रभाकर ने देवराज चौहान से कहा –“आज तैयार हुई लिस्ट को हम कल चेक करेंगे और छांटकर उसमें से खास संदिग्ध निकालकर, उसे देखेंगे।”
“ऐसा करना ही ठीक होगा।” जगमोहन कह उठा।
“तुम लोग यहां का काम संभालो।” बशीर ने कहा –“मैं जाता...।”
तभी जगमोहन की जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा।
जगमोहन ने जेब से मोबाइल निकाला। अगले ही पल उसकी आंखें सिकुड़ गईं। वो ही फोन बज रहा था जो कामनी ने भिजवाया था। जगमोहन ने फौरन बात की।
“हैलो।”
“तुम हो। देवराज चौहान से मेरी बात कराओ।” कामनी की आवाज कानों में पड़ी।
“मेरे-तुम्हारे बीच देवराज चौहान का क्या काम।” जगमोहन ने शांत स्वर में कहा –“हम तो...।”
“मैं देवराज चौहान से बात करना चाहती हूं। नहीं तो मैं फोन बंद कर रही हूं।”
“ये लो। करो बात।” कहने के साथ ही जगमोहन ने देवराज चौहान की तरफ फोन बढ़ा दिया।
देवराज चौहान ने फोन थामकर कान से लगाया।
“कहो।” देवराज चौहान बोला।
“तो शेखाबाद में डेरा जमा लिया।” कामनी की आवाज कानों पड़ी –“जगमोहन बहुत जल्दी मेरा इशारा समझ गया।”
“उससे पहले मैंने जान लिया था कि इकबाल खान सूरी शेखाबाद में है।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
“सच में?” उधर से कामनी ने हैरानी जताई।
“हां। परंतु तुम्हारी बात से ये बात पक्की हो गई थी कि वो शेखाबाद में ही है।”
“लेकिन तुम लोग तो शेखाबाद में बेवकूफी वाली हरकतें कर रहे हो।”
“जैसे कि...?” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।
“हथियार लेकर लोगों के घरों में घुस रहे हो। इस तरह तो तुम लोगों के पहुंचने से पहले ही इकबाल खान तक तुम लोगों की खबर पहुंच जाएगी। वो बहुत सतर्क रहने वाला इंसान है।” कामनी का स्वर सामान्य और शांत था।
“तो तुम हम पर नजर रखे हो।” देवराज चौहान बोला।
“हां। मेरी मर्जी के बिना तुम लोग कभी भी इकबाल खान तक नहीं पहुंच सकते। मेरा एक इशारा तुम सबको खत्म कर देगा।”
“दुबई की तरह?”
“ऐसा ही समझ लो।”
“तुम्हारी मर्जी क्या है?”
कामनी की आवाज नहीं आई।
“मैं पूछता हूं कि तुम चाहती क्या हो?” देवराज चौहान ने पुनः पूछा।
“तुम जानते हो।”
“मुंह से बोलो।”
“इकबाल खान सूरी की मौत।” कामनी का सरसराता स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा।
“ऐसा है तो तुमने शुरू से मेरा साथ क्यों नहीं...।”
“साथ ही तो दे रही हूं, तभी तो तुम और जगमोहन जिंदा हो, तभी तुम दोनों इस्लामाबाद में हो, तभी तो शेखाबाद में भटकते फिर रहे हो। अगर मैं तुम्हारा साथ न देती तो तुम अभी भी दुबई में होते।”
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए।
“इकबाल खान सूरी के बारे में तुम पहले भी मुझे बता सकती...।”
“नहीं बता सकती थी। मेरे अपने हालात हैं, जो मुझे जुबान बंद रखने पर मजबूर कर देते हैं। इकबाल खान सूरी वो शैतान है, जो चेहरा देखकर भीतर का हाल जान जाता है। तुम अभी उसे नहीं जानते।”
“ऐसा है तो दुबई में मार्शल के एजेंटों की जान क्यों ली?” देवराज चौहान बोला।
“वो जरूरी था। इकबाल को दिखाना भी तो था कि मैं पूरी तरह सतर्क हूं और कामों को ठीक से कर रही हूं।”
“कहां है इकबाल खान सूरी?”
“बहुत जल्दी जान लेना चाहते हो।”
“बताओ।”
“ये सब इतना आसान नहीं है देवराज चौहान, जितना कि तुम सोच रहे हो। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि मेरी मर्जी के बिना इकबाल खान सूरी तक कोई नहीं पहुंच सकता। उसे कोई मार नहीं सकता। मेरे ख्याल में तो तुम लोग उसे शेखाबाद से ढूंढ़ भी नहीं सकोगे। तुम अगर कुछ करोगे तो मेरी मेहरबानी से सफल होंगे।”
“मानी ये बात। इकबाल खान सूरी को खत्म करने की इच्छा कब से बनी तुम्हारी?”
“दो सालों से है। परंतु मौका कभी नहीं मिला। तुम्हें जब दुबई में, उस कैफे में देखा और तुम्हारे इरादे का पता चला तो ये बात मैंने तभी प्लान कर ली कि तुम्हें ही मोहरा बनाकर, इकबाल खान सूरी को खत्म कराऊंगी।”
“फिर तो तुमने खुलकर सामने आने में बहुत देर कर दी। पहले ही स्पष्ट बात कर लेती तो...।”
“नहीं कर सकती थी। मुझे भी बहुत कुछ देखना था। इकबाल खान की मौत के बाद उसके खास दो लोग मेरे रास्ते में आकर मेरे इरादों पर पानी फेर सकते थे। इतने वक्त में मैंने उन दोनों को रास्ते से हटाया।”
“ओह।”
“अगर वो इकबाल खान की मौत के बाद मारे जाते तो शक मेरे पर आता। परंतु अब कोई भी मेरे पे शक नहीं कर सकता। मैंने उसकी हत्या ही कुछ इस तरह कराई है।” उधर से कामनी ने गम्भीर स्वर में कहा –“अब मैं कुछ फुर्सत में आई हूं और तुमसे बात कर रही हूं। पहले वो शायद मुझ पर नजर भी रखते थे। मुझे लगता था कि वो मेरा फोन भी टेप कराते हैं। वो मुझे पसंद नहीं करते थे, क्योंकि इकबाल खान का झुकाव मेरी तरफ है।”
“तुम इकबाल खान की मौत क्यों चाहती हो?”
“अब तुम मेरी व्यक्तिगत जिंदगी में हाथ डालने की चेष्टा कर रहे हो। जबकि तुम्हें अपने काम की बात जाननी चाहिए।”
“शेखाबाद में इकबाल खान कहां मौजूद है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“इससे पहले मैं तुम्हारा प्लान जानना चाहूंगी।” उधर से कामनी का शांत स्वर आया।
“उससे तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि मेरा प्लान...।”
“फर्क पड़ता है। जान जाओगे।”
“मार्शल के एजेंट इकबाल खान सूरी को संभालेंगे।” देवराज चौहान ने कहा।
“तुम नहीं?”
“नहीं। मेरा काम इकबाल खान सूरी को तलाश करने तक है।”
“फिर तो बात नहीं बनेगी।”
“क्यों?”
“उस वक्त का मेरा भी कुछ प्लान है। मामला तभी ठीक पड़ सकता है, जब तुम ये सब संभालो।”
“स्पष्ट कहो।”
“जब तुम लोगों का हमला होगा, मैं उस वक्त इकबाल खान सूरी के पास रहना चाहती हूं।”
“ऐसा क्यों?”
“ये मेरा मामला है।”
“मसूद भी होगा वहां।”
“वो मेरा आदमी है।”
“फिर?”
“मैं और मसूद वहां पर मौजूद होंगे। परंतु हमें कुछ नहीं होना चाहिए। तुम लोगों को रास्ता साफ मिलेगा। आराम से इकबाल खान सूरी तक पहुंच जाओगे। तुम्हारे लोग, मतलब कि मार्शल के एजेंट मुझे नहीं पहचानते। सच पूछो तो मुझे उन पर जरा भी भरोसा नहीं है। मैंने तुम्हारे भरोसे ये खेल खेलने की कोशिश की है देवराज चौहान।”
“मार्शल के एजेंट बहुत बेहतर काम करते हैं। तुम्हें उन पर भरोसा रखना चाहिए।”
“मुझे तुम पर भरोसा है। मैं चाहती हूं तुम ये काम करो। तुम मुझे पहचानते हो। इस वजह से मुझे जान का खतरा नहीं रहेगा। वरना मार्शल के किसी भी एजेंट की लापरवाही से मैं मारी जा सकती हूं। ये मामला तुम हैंडल करो।”
“अगर तुम ऐसा चाहती हो तो, मैं ही मामला संभालूंगा।” देवराज चौहान का स्वर गम्भीर था।
“मसूद को भी कुछ नहीं होना चाहिए।”
“मैं उसे नहीं पहचानता।”
“इकबाल खान सूरी को पहचानते हो?”
“उसकी तस्वीर देख रखी है।”
“मतलब कि पहचानते हो। वहां इकबाल खान सूरी के अलावा एक ही आदमी मसूद होगा। मैं होऊंगी, बस।”
“मसूद अगर मेरे रास्ते में आया तो?”
“नहीं आएगा।” इस बार कामनी का आने वाला स्वर दृढ़ता से भरा था –“वो मेरा साथी है। मेरे साथ है।”
“समझ गया।”
“तो ये मामला तुम्ही संभालोगे।”
“हां।”
“मैं ऐसा ही चाहती हूं। सुनकर अच्छा लगा। तुमने सूरत में मेरी जान बचाई थी और अब भी तुम मेरी बहुत बड़ी समस्या हल करने जा रहे हो। तुम्हारी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। मैं तुम्हें तगड़ी दौलत दूंगी।”
देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई।
“अब तुम पूछोगे कि इकबाल खान सूरी कहां पर है?”
“हां।”
“शेखाबाद में ऐसा मकान ढूंढ़ो जो अकेला खड़ा हो। जिसकी दीवार किसी अन्य मकान से न लगती हो।”
“क्या मतलब?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
“बता तो दिया। इकबाल खान सूरी ऐसे मकान में है जो अकेला खड़ा है और...।”
“तुम स्पष्ट क्यों नहीं बताती कि...।”
“ये काम कल होगा देवराज चौहान।”
“कल–क्यों?”
“क्योंकि कल सुबह मैंने इकबाल खान के पास आना है। उसे बताना है कि उसके उन खास दो आदमियों की मौत कैसे हुई। तब मैं दोपहर तक वहां रहूंगी और इसी वक्त में तुमने काम कर देना है।” कामनी की गम्भीर आवाज आई।
“ठीक है। काम कल ही हो जाएगा, परंतु तुम साफ तौर पर बताओ कौन-से मकान में...।”
“जैसा मैंने कहा है वैसा ही करो।” कामनी की आवाज कानों में पड़ी –“ऐसा मकान ढूंढो जो अकेला खड़ा हो। ऐसे ही किसी मकान में इकबाल खान सूरी मौजूद है। लेकिन सावधान रहना। मकान पर सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हैं। भीतर बैठा वो बाहर आने वालों को देखता रहता है। अगर वो तुम लोगों पर शक कर गया तो सारा खेल बिगड़ जाएगा।”
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली।
“मैं तुम्हें दो घंटों के बाद फोन करूंगी।” इसके साथ ही कामनी ने दूसरी तरफ से फोन बंद कर दिया था।
देवराज चौहान ने फोन कान से हटाया तो जगमोहन बोला।
“क्या बात हुई?”
जवाब में देवराज चौहान ने सब कुछ बता दिया।
सुनकर सबका दिल धड़क उठा।
“अब तो हम मंजिल के करीब पहुंच गए।” प्रभाकर के होंठों से निकला।
“बशीर। तुम अपने एजेंटों को इकट्ठा करो और कॉलोनी में ऐसे मकान की तलाश पर लगा दो जो कि अकेले खड़े हो उनसे किसी अन्य मकान की दीवार न जुड़ी हो। उन्हें कैमरों के बारे में भी समझा देना।”
बशीर ने सिर हिलाया और अपना मोबाइल निकालकर, चंद कदम दूर हटता चला गया।
“कामनी को स्पष्ट तौर पर मकान के बारे में बता देना चाहिए था।” प्रभाकर ने कहा। “अब तो कुछ ना भी बताए तो भी हम इकबाल खान सूरी को आसानी से ढूंढ लेंगे।” देवराज चौहान बोला –“कॉलोनी में ऐसे चंद ही मकान होंगे जो अकेले खड़े हो। उनके आस-पास कोई मकान न बना हो।”
“कामनी ने हमें मामले में काफी करीब पहुंचा दिया। वो दिल से हमारी सहायता कर रही है।” प्रभाकर बोला।
“वो हमारी कोई सहायता नहीं कर रही बल्कि हमारे द्वारा अपना काम निकाल रही है।” देवराज चौहान ने कहा –“मुझे पहले ही शक था कि कामनी के दिमाग में ऐसा कुछ चल रहा है।” कहने के साथ ही देवराज चौहान बशीर की तरफ बढ़ गया।
जगमोहन ने प्रभाकर से कहा।
“अब हमें भी बात कर लेनी चाहिए।”
“कैसी बात?”
“हमारा काम इकबाल खान सूरी को ढूंढ़ने तक था। उसे मारने का काम हमारा नहीं था। लेकिन कामनी उस शर्त पर इकबाल खान सूरी का ठिकाना बता रही है कि हम इस काम को निबटें।”
“तो?”
“लेकिन हम कोई भी काम मुफ्त में नहीं करते। जबकि ये काम मुफ्त में होने वाला है।”
“मुफ्त में कहां, इस काम में तुम मुंहमांगे पैसे ले चुके हो।”
“वो तो इकबाल खान सूरी को तलाश करने के थे, मारने के नहीं।”
“मैं हूं न उसे मारने के लिए।” प्रभाकर ने मीठे स्वर में कहा।
“लेकिन कामनी की शर्त है कि हम ही उसे मारें।”
“तुम मार दो।”
“मारने के नोट तय हो जाने चाहिए।”
“मैं कौन होता हूं नोट तय करने वाला?”
“तुम मार्शल के खास एजेंट हो। तुमसे बात की जा सकती है। इकबाल खान सूरी को मारने का सौ करोड़ कैसा रहेगा?”
“सौ करोड़?”
“अभी तो कम मांगा है, क्योंकि इस वक्त हम इस्लामाबाद में मौजूद और इकबाल खान भी ज्यादा दूर नहीं है हमसे। ये ही बात अगर इंडिया में हो रही होती तो डेढ़ सौ करोड़ से कम में बात नहीं बैठती।” जगमोहन ने समझाने वाले स्वर में कहा –“और मार्शल भी तुरंत ही मान जाता। वो समझता है कि इकबाल खान सूरी को मारना जरूरी है और ये काम मुश्किल है।”
“मुझे तो पता चला है कि इस काम की तुमने मार्शल से पहले ही तगड़ी रकम ली है।” प्रभाकर मुस्कराया।
“इकबाल खान सूरी को ढूंढ़ने की रकम के बारे में बात कर...।”
“हां।”
“वो तो मार्शल ने खुश होकर खुद ही तय कर दी थी। ऐसे में उसकी खुशी के वास्ते मैं चुप रहा।”
“इस बारे में तुम मार्शल से क्यों नहीं बात कर...।”
“तुम्हारा हां कहना ही बहुत है। तुमने हां कही, मार्शल ने कही, एक बात है। तो सौ करोड़...।”
“इस बारे में बात करना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।”
“चलो नब्बे पर मान जाओ।”
“सत्तर भी नहीं।” प्रभाकर ने मुंह बनाकर कहा।
“तो पचास करोड़ पर मैं बात को पक्का समझूं?”
“फूटी कौड़ी भी तुम्हें और नहीं मिलने वाली। पहले ही तुमने बहुत ज्यादा ले लिया है।” प्रभाकर ने तीखे स्वर में कहा और बशीर, देवराज चौहान की तरफ बढ़ गया। बशीर अभी भी फोन पर उलझा हुआ था।
☐☐☐
शाम के साढ़े छः बजे थे जब कामनी का फोन आया। देवराज चौहान ने बात की।
“कितने ऐसे मकानों की निशानदेही की जो कॉलोनी में अकेले खड़े हैं?” कामनी ने उधर से पूछा।
“ऐसे चार मकान दिखे हैं।” देवराज चौहान ने कहा।
“कौन-कौन से? बताओ मुझे।”
देवराज चौहान ने चारों मकानों के बारे में बताया।
“मुझे मालूम था कि तुम लोग उस मकान तक नहीं पहुंच पाओगे।” सुनने के बाद, कामनी की आवाज आई।
“क्या मतलब?”
“इन चार मकानों में से किसी में भी इकबाल खान सूरी नहीं है।”
“परंतु तुमने तो कहा था कि...।”
“मैंने सही कहा था, लेकिन तुम नहीं समझ सके। अब सुनो इकबाल खान सूरी कहाँ पर है। कॉलोनी के पीछे खेत है वहां काफी बड़ा हरे रंग का मकान बना हुआ है।”
“हाँ–है।”
“उसमें है इकबाल खान सूरी।”
देवराज चौहान फौरन कुछ न कह सका। होंठ सिकुड़ गए उसके।
“समझे देवराज चौहान?” कामनी की आवाज कानों में पड़ी।
“समझ गया।”
“मैंने तुम्हारी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी।”
“शुक्रिया।”
“लेकिन ये बात अभी किसी को नहीं बताना, कल जब काम शुरू करना हो, तभी बताना। वरना बात बाहर आकर दूर तक जाएगी और इकबाल खान सूरी के कानों तक भी पहुंच सकती है।”
“आगे का काम मेरा है। तुम किसी बारे में फिक्र मत करो।”
“फिक्र तो करनी पड़ती है। मैंने बहुत बड़ा खतरा मोल ले लिया है तुम्हें सब बताकर। अगर तुम असफल हुए तो इकबाल खान सूरी को समझते देर नहीं लगेगी कि मैंने ही गड़बड़ की है। क्योंकि इस जगह के बारे में मेरे अलावा कोई नहीं जानता। इसलिए तुम्हें हर हाल में सफल होना है। खेल का दारोमदार अब तुम्हारे कंधों पर है।”
“मैं सफल रहूंगा।” देवराज चौहान गम्भीर था।
“कल कौन-कौन भीतर जाएगा?”
“मैं जगमोहन और प्रभाकर।”
“प्रभाकर मार्शल का एजेंट है?”
“हां।”
“उसे सब समझा देना कि मुझ पर और मसूद पर गोली न चले।” उधर से कामनी की आवाज आई।
“इस बारे में निश्चिंत रहो।”
“मैं सुबह नौ बजे तक वहां पहुंच जाऊंगी। परंतु उससे पहले तुमसे बात करूंगी और भूल कर भी उस मकान के पास जाने की चेष्टा मत करना। ये मत सोचना कि रात है और कैमरे तुम्हें देख नहीं सकेंगे।”
“कैमरों की समस्या तो कल दिन में भी आएगी, जब काम किया जाएगा।” देवराज चौहान बोला।
“तुम्हें इतना मौका मिल जाएगा कि तुम सुरक्षित भीतर प्रवेश कर सको। ये बात तुम्हें सुबह बताऊंगी।”
बातचीत खत्म हो गई।
देवराज चौहान ने फोन जेब में रखा। चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी। वो वहां से बशीर, जगमोहन और प्रभाकर के पास पहुंचा। शाम हो चुकी थी। परंतु अंधेरा होने में अभी वक्त बाकी था।
“कामनी ने बता दिया है कि इकबाल खान सूरी कहां पर है।” देवराज चौहान बोला।
“उन चारों में किस मकान में है?” बशीर व्याकुलता से कह उठा।
“किसी में भी नहीं। तुम अपने एजेंटों को इस कॉलोनी से हटा लो। सिर्फ छः को रोक लेना। वो रात भर वहां नजर रखेंगे। कॉलोनी के पीछे खेतों में बड़ा-सा हरे रंग का मकान है। इकबाल खान सूरी उसमें मौजूद है। परंतु उस मकान के पास नहीं जाना है किसी को। वहां कैमरे लगे हैं और भीतर बैठकर वो बाहर के हालातों का जायजा लेता रहता है।”
“ये तो अच्छी बात रही कि हम खेतों की तरफ नहीं गए।” प्रभाकर ने कहा।
कुछ पलों के लिए उनके बीच गम्भीरता से भरी चुप्पी छाई रही।
“अब क्या करना है?” जगमोहन ने पूछा।
“कल के लिए रणनीति तैयार करेंगे। इकबाल खान सूरी को बचना नहीं चाहिए। ये हमें पहला और आखिरी मौका मिल रहा है उसे खत्म करने का एक बार वो हाथ से निकल गया तो फिर हाथ नहीं लगेगा। उसकी मौत हिन्दुस्तान के लिए फायदे वाली बात होगी। वो हिन्दुस्तान के बारे में सब कुछ जानता है और पाकिस्तान के साथ मिलकर, षड्यंत्र रचता है। हिन्दुस्तान में धमाके करता है। लोग बे-मौत मरते हैं। मुम्बई में अक्सर बम विस्फोट होते हैं जिनमें इकबाल खान सूरी का ही हाथ होता है। वो अब फिर मुम्बई में बम धमाके करने वाला है, कामनी इसी सिलसिले में मुम्बई गई थी। इकबाल खान सूरी का मारा जाना, हमारे देश के लिए बहुत बड़ी राहत की बात होगी।”
“इकबाल खान सूरी अब नहीं बचेगा।” दांत भींचे प्रभाकर धीमे से गुर्रा उठा।
“इतनी मेहनत के बाद भी बच गया तो क्या फायदा हमारा।” जगमोहन बोला।
“बशीर। तुम छः आदमियों के साथ रात भर खेतों में बने हरे मकान पर नजर रखोगे। कोई खास बात हुई तो मुझे फोन पर बताओगे। उन छः आदमियों को पता नहीं चलना चाहिए कि मामला इकबाल खान सूरी से वास्ता रखता है। तुमने इस काम में हर तरह की सावधानी बरतनी है।” देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
“सब कुछ मुझ पर छोड़ दो।”
“अपने आदमियों को शेखाबाद से भेज दो। अब यहां कोई हलचल नहीं दिखनी चाहिए। हम तीनों यहां से जा रहे हैं। कल के लिए योजना तैयार करनी है काम को कैसे अंजाम देना है परंतु सुबह नौ बजे तक यहां पहुंच जाएंगे।”
बशीर ने सिर हिला दिया।
☐☐☐
तीनों सुबह चार बजे सोये और सात बजे उठ गए थे। रात भर इस बात पर विचार-विमर्श करते रहे कि सुबह काम कैसे करना है। उठने पर तीनों गम्भीर से दिख रहे थे क्योंकि आज काफी बड़े काम को अंजाम देना था। तीनों में से कोई भी नहीं चाहता था कि इकबाल खान सूरी बच निकले। कामनी उनकी सबसे ज्यादा सहायता कर रही थी इस मामले में। कामनी की सहायता के बिना इतनी जल्दी ये सब कर पाना मुमकिन नहीं होता। इकबाल खान सूरी जैसे लोग तभी मर पाते हैं जब उनका अपना ही, उनसे कोई गद्दारी करे और ये काम कामनी बखूबी कर रही थी। नहा-धोकर जल्दी से वे तैयार हुए। रिवॉल्वरें चेक की। उसके बाद कार पर शेखाबाद के लिए चले तो 7.45 का वक्त हो रहा था। देवराज चौहान ने बशीर को फोन किया।
“सब ठीक है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“हां।” उधर से बशीर ने कहा।
“हम आ रहे हैं। रास्ते में हैं।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
“कामनी का फोन नहीं आया। उसने कैमरों के बारे में बताना था। तुमने कहा था कि...।”
“उसका फोन जरूर आएगा। वो नौ बजे इकबाल खान सूरी के पास पहुंचेगी। उससे पहले वो फोन जरूर करेगी।” देवराज चौहान बोला।
“तो उसने नहीं बताया कि वो इकबाल खान सूरी की मौत क्यों चाहती है।” जगमोहन ने कहा।
“नहीं बताया। परंतु मेरे ख्याल में उसका इरादा इकबाल खान सूरी की दौलत समेटने का होगा।”
“या फिर इकबाल खान से उसकी कोई खुंदक होगी।”
“ऐसा भी हो सकता है।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया।
कार चलाते प्रभाकर से जगमोहन ने कहा।
“तुमने कुछ सोचा मेरी बात के बारे में।”
“क्या-बात?”
“इकबाल खान सूरी को मारने का पचास करोड़ तो छोटी रकम है। तुम्हारी जेब से पैसा नहीं जाएगा। ये तो सरकार का पैसा होगा। तुमने तो सिर्फ इतना ही कहना है कि पचास करोड़ हिन्दुस्तान पहुंचते ही मिल जाएगा। बाकी मैं मार्शल से बात कर लूंगा।”
“मेरे कान बेकार की बातों को नहीं सुनते।”
“मैंने बेकार की बात कही है?” जगमोहन चिढ़कर बोला।
“मैंने नहीं सुना, तुम क्या कह रहे हो।”
“अच्छा हो कि तुम्हारे कान कभी ठीक ही न हो। हमेशा हां-हूं ही रहो।”
तभी देवराज चौहान का मोबाइल बज उठा।
“हैलो।” देवराज चौहान ने बात की।
“तैयार हो?” कामनी का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा।
“पूरी तरह।”
“कर लोगे ये काम?”
“तुम बेवकूफों वाले सवाल कर रही हो।” देवराज चौहान बोला।
“मुझे भरोसा है तुम पर देवराज चौहान। तभी तो तुम्हें रास्ता दिखाया इकबाल खान सूरी तक पहुंचने का।”
“आज तुमने मुझे कैमरों से बचने का रास्ता बताना है।”
“तुम 11.40 से 11.50 के बीच उस मकान में प्रवेश करोगे। मसूद तब वहां की लाइट बंद कर देगा कैमरे भी लाइट के बंद होते ही, बंद हो जाएंगे और मैं इन दस मिनटों में इकबाल खान को व्यस्त रखूंगी कि वो लाइट बंद होने के बारे में न जान सके। मसूद का कहना है कि तुम लोग इन दस मिनटों में बाईं तरफ वाली दीवार फलांग कर आओगे।”
“मसूद मकान के सामने का दरवाजा भी तो खोल सकता है।” देवराज चौहान ने कहा।
“वो ऐसा नहीं करेगा । उस मकान के भीतर तुम लोगों को खुद ही आना होना दरवाजा खोलने और बंद करने में वक्त लगता है। वो लोहे की चादर जला बड़ा दरवाजा है। भीतर से तीन कुंडियां लगानी पड़ती हैं। चाबी लगाकर ताला खोलना पड़ता है और चाबी इकबाल खान सूरी के कमरे में रहती है। फिर मसूद को अक्सर इकबाल खान के आस-पास ही रहना पड़ता है। ऐसे में मुख्य फाटक खोलना सम्भव नहीं हो पाएगा मसूद के लिए।”
“ठीक है। हम बाईं तरफ वाली दीवार से भीतर आएंगे।” देवराज चौहान ने कहा।
“11.40 और 11.50 के बीच में दस मिनटों में तुम लोगों ने भीतर आना है। एक मिनट भी इधर-उधर न हो।”
“ऐसा ही होगा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“याद है न कि मुझे और मसूद को गोली नहीं लगनी चाहिए।”
“नहीं लगेगी। तुम तीनों के अलावा वहां सिर्फ इकबाल खान सूरी ही होगा।”
“हाँ। मैं तुम्हारी सफलता के लिए प्रार्थना करूंगी।” कहकर कामनी ने उधर से फोन बंद कर दिया था।
देवराज चौहान ने फोन कान से हटाते हुए कहा।
“11.40 और 11.50 के दस मिनटों के बीच हमें, उस मकान के बाईं तरफ वाले हिस्से से भीतर प्रवेश करना है। तब इकबाल खान सूरी का आदमी मसूद लाइट बंद कर देगा कि कैमरे काम न करें। कामनी भी इन दस मिनटों में इकबाल खान को व्यस्त रखेगी। भीतर इकबाल खान के अलावा, ये दोनों ही होंगे।”
“कामनी की सहायता के बिना ये काम सम्भव नहीं था।” प्रभाकर बोला –“सम्भव था तो परेशानियों से भरा सम्भव था।”
“ऐसे लोग अपने साथियों की गद्दारी की वजह से ही मरते हैं।” देवराज चौहान ने कहा। “हमें अपने को इस तरह से तैयार कर लेना चाहिए कि इकबाल खान सूरी को खत्म किए बिना उस जगह से बाहर नहीं आना है।” जगमोहन बोला।
“आज वो मरकर ही रहेगा।” प्रभाकर दांत भींचे कह उठा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
☐☐☐
11.39 हो गए थे।
देवराज चौहान, जगमोहन और प्रभाकर खेतों से कुछ हटकर एक मकान की ओट में खड़े थे। बशीर या कोई एजेंट वहां नहीं था। देवराज चौहान ने बशीर को समझा दिया था कि वो अपने एजेंटों के साथ दूर रहकर उस मकान पर नजर रखे और अगर कोई मकान से निकलकर भागता दिखे तो उसे शूट कर दिया जाए। परंतु देवराज चौहान को पूरी आशा थी कि इकबाल खान सूरी को भागने का मौका नहीं देगा।
11.40 हो गए।
तीनों की निगाह बार-बार कलाई पर बंधी घड़ी पर जा रही थी।
नजरें मिली।
“एक मिनट और यहीं रुको।” देवराज चौहान ने होंठ भींचे कहा।
“दीवार बारह फुट ऊंची है।” जगमोहन बोला –“उसे पार करने में भी वक्त लगेगा।”
देवराज चौहान होंठ भींचे खड़ा रहा।
11.41 हो गए।
“चलो।” देवराज चौहान बोला।
अगले ही पल वो तीनों उस मकान की ओट से निकले और खेतों की तरफ दौड़े। बहुत तेज थी उनके दौड़ने की रफ्तार। सूर्य चमक रहा था। परंतु गर्मी का एहसास उन्हें नहीं हो रहा था। तीनों के दिमागों में इकबाल खान सूरी घूम रहा था। सफल हो जाने की इच्छा, दिलों में ठूंस-ठूंसकर भर चुकी थी।
डेढ़ मिनट लगा उन्हें खेतों में बने उस बड़े मकान की बाईं दीवार तक पहुंचने में।
देवराज चौहान ने दीवार के पास खड़े होकर अपनी दोनों हथेलियों को बांधा। प्रभाकर फौरन उसकी जुड़ी हथेलियों पर पांव रखकर उछला और दीवार की मुंडेर थाम ली। अगले ही पल वो दीवार पर था फिर भीतर कूद गया। जगमोहन ने भी फुर्ती से हथेलियों पर जूता रखा और ऊपर उछल गया। दीवार का किनारा थाम लिया फिर दूसरे हाथ से किनारा थामा और ऊपर उठता चला गया। दूसरे ही क्षण वो दीवार पर लेट चुका था और दायां हाथ नीचे को किया। देवराज चौहान ने छोटी-सी छलांग लगाई और जगमोहन के लटकते हाथ को थामकर लटक गया। जगमोहन ने हाथ ऊपर खींचा। इधर देवराज चौहान ने अपने शरीर को झटका दिया तो दीवार के किनारे पर उसका हाथ जा टिका।
ऐसा होते ही जगमोहन दीवार के उस पार कूद गया।
देवराज चौहान दीवार के ऊपर पहुंच गया था।
“जल्दी।” जगमोहन कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह मारकर बोला।
देवराज चौहान नीचे आ कूदा।
11.49 हो चुके थे।
प्रभाकर और जगमोहन के हाथ में रिवॉल्वर दबे थे।
देवराज चौहान ने भी रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली। तीनों के चेहरों पर खतरनाक भाव नाच रहे थे। जहां पर इस वक्त वे मौजूद थे, वो दस फुट चौड़ा रास्ता था और दीवार के साथ कबाड़ जैसा सामान रखा था। जैसे कि पुरानी साइकिल। गेहूं काटने की मशीन। मशीन के ब्लेड। कुछ बोरियां। ऐसा ही अन्य सामान। वहां हर तरफ सन्नाटा था। आगे से आता, वो रास्ता मकान के पीछे की तरफ जा रहा था। अब उन्हें कोई जल्दी नहीं थी। मकान के भीतर कैमरों से सुरक्षित थे वे कि इकबाल खान सूरी उन्हें नहीं देख सकता। आधा मिनट तो वो इसी प्रकार रिवॉल्वरें थामे खड़े रहे।
फिर तीनों की नजरें मिली।
“मैं पीछे की तरफ जा रहा हूं।” जगमोहन ने कहा और रिवॉल्वर थामे दबे पांव पीछे की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान ने प्रभाकर को साथ आने का इशारा किया और आगे की तरफ बढ़ गया। उनके कदमों की आवाजें नहीं उठ रही थी। अभी तक कहीं से भी कोई आहट नहीं मिली थी।
वे आगे की तरफ पहुंच गए।
सामने ही लोहे का बड़ा फाटक था।
भीतर दो कारें खड़ी थी।
वहां कोई नहीं दिखा।
देवराज चौहान आगे बढ़ा और कारों के बोनट पर हाथ रखकर देखा। एक कार का बोनट गर्म था और एक का ठंडा। देवराज चौहान समझ गया कि गर्म बोनट की कार पर कामनी आई होगी। वो वहां से हटा और हर तरफ नजर मारी। पंद्रह कदमों की दूरी पर मकान के दरवाजे नजर आ रहे थे।
गर्दन से प्रभाकर को साथ आने का इशारा करके देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ा कि अगले ही पल ठिठक गया। उसके देखते-ही-देखते दरवाजा खुला और मसूद बाहर निकला।
देवराज चौहान का दिल धड़का। हाथ में दबी रिवॉल्वर तैयार थी।
मसूद ने उन्हें सर्द निगाहों से देखा और उनकी तरफ आने लगा।
रिवॉल्वरें थामे देवराज चौहान और प्रभाकर बेहद सतर्क थे।
मसूद उनके पास से निकलकर, इस तरह आगे बढ़ गया जैसे वो वहां हो ही नहीं। देवराज चौहान और प्रभाकर ठिठके-से उसे देखते रहे।
मसूद कारों के पास पहुंचा और एक कार से टेक लगाकर खड़ा हो गया। दोनों हाथ छाती पर बांध लिए थे और दूसरी तरफ देखने लगा था।
“आओ।” देवराज चौहान ने फुसफुसाकर प्रभाकर से कहा –“ये मसूद है।”
दोनों आगे बढ़े।
जिस दरवाजे से मसूद बाहर निकला था, वो खुला हुआ था। दोनों भीतर प्रवेश कर गए। ये कमरा था। सीमेंट का फर्श था। वहां दो कुर्सियां और एक टेबल रखी थी। शायद दिन-भर मसूद यहां बैठा रहता होगा। वो आगे बढ़े और अन्य दरवाजा पार करके, दूसरे कमरे में पहुंचे।
वहां एक चारपाई बिछी थी। एक पानी का घड़ा रखा था।
वे आगे बढ़े। रेलगाड़ी के डिब्बे की तरह कमरे बने हुए थे। तीसरे कमरे में पहुंचे तो वो बिल्कुल खाली था। देवराज चौहान वहां से आगे बढ़ने ही वाला था कि ठिठक गया। प्रभाकर भी चौकन्ना हुआ।
एक औरत के हंसने की आवाज कानों में पड़ी थी।
देवराज चौहान ने पहचाना कि ये कामनी की आवाज है।
प्रभाकर ने देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान के होंठ भिंचे हुए थे। हंसने की आवाज सीधी खड़ी दीवार के उस पार से आई थी। देवराज चौहान ने सिर उठाकर ऊपर देखा तो, छत के साथ रोशनदान लगा दिखा। स्पष्ट था कि कामनी दीवार के उस पार थी और जाहिर था कि इकबाल खान सूरी उसके साथ था।
देवराज चौहान रेलगाड़ी के डिब्बे जैसे चार कमरों को पार कर गया। कमरे भी खत्म हो गए थे और दीवार भी खत्म हो गई थी। अब वहां किचन-बाथरूम वगैरह दिखे। परंतु देवराज चौहान तुरंत घूमकर दीवार के उस पार आ गया और आगे बढ़ने लगा। सब कुछ बे-आवाज हो रहा था।
सामने दरवाजा था।
देवराज चौहान समझ चुका था कि उसी के भीतर कामनी और इकबाल खान सूरी मौजूद हैं। चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी देवराज चौहान के। प्रभाकर को आंखों में भी खतरनाक भाव नाच रहे थे।
दबे पांव वे आगे बढ़ रहे थे कि तभी कामनी की आवाज कानों में पड़ी।
“बाद में। पहले कॉफी पिएंगे। मैं तुम्हें कॉफी बनाकर पिलाती हूं डियर।”
देवराज चौहान सामने के खुले दरवाजे के पास पहुंचा।
प्रभाकर उससे तीन कदम पीछे था और पीछे का भी ध्यान रख रहा था। अब अचानक ही उसके मन में आने लगा था कि कहीं कामनी ने उनके लिए यहाँ मौत का जाल तो नहीं बिछा रखा? इंसान जब इन हालातों में फंसता है तो हर तरह के अंदेशे मन में उछलने लगते हैं। ऐसी उथल-पुथल एकाएक प्रभाकर के मन में पैदा हो गई थी।
तभी दरवाजे पर कामनी दिखी।
देवराज चौहान और कामनी की नजरें मिली।
“देवराज चौहान।” चौखट पर ठिठक गई कामनी और तेज स्वर में बीती –“मेरे होते हुए तुम इकबाल खान को नहीं मार सकते।”
उसी पल देवराज चौहान को कामनी के पीछे किसी के आ खड़े होने एहसास हुआ।
“क्या बात है कामनी?” कामनी के पीछे से आवाज आई –“तुम...।”
“रिवॉल्वर फेंक दो। देवराज चौहान।” कामनी का स्वर तेज था –“तुम इकबाल खान सूरी की जान नहीं ले सकते।”
देवराज चौहान ने दांत भींचे रिवॉल्वर वाला हाथ उठा लिया। चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी थी।
अब देवराज चौहान के निशाने पर कामनी थी।
दोनों की नजरें मिली।
“क्या बात है।” कामनी के पीछे से आवाज आई –“कौन है, जरा मुझे देखने दो।
उसी पल कामनी तेजी से आगे बढ़ी और दरवाजे से हट गई।
उसके पीछे इकबाल खान सूरी खड़ा था। उसे पहचानने में देवराज चौहान ने कोई गलती नहीं की।
सामने देवराज चौहान को रिवॉल्वर ताने पाकर इकबाल खान सूरी की आंखें भय से फैल गईं।
‘धांय।’
देवराज चौहान ने ट्रिगर दबा दिया।
गोली इकबाल खान सूरी के माथे में जा धंसी। वो थोड़ा-सा हिला। आंखें फटी रही उसकी और अगले ही पल पीछे को जा गिरा। ‘धप्प’ उसके गिरने की आवाज आई फिर सब कुछ शांत पड़ गया।
देवराज चौहान रिवॉल्वर ताने खड़ा रहा।
परंतु चौखट के भीतर पड़े इकबाल खान सूरी के शरीर में अब कोई हरकत नहीं बची थी।
“चेक करो प्रभाकर।” देवराज चौहान के होंठ से मौत से भरा स्वर निकला।
रिवॉल्वर थामे प्रभाकर उसकी बगल से निकला और चौखट पार करके कमरे के भीतर प्रवेश कर गया। पीठ के बल इकबाल खान सूरी पड़ा था। हाथ-पांव फैले हुए थे। आंखें खुली-फटी पड़ी थी।
चेक करने के बाद प्रभाकर बोला।
“मर गया।”
दांत भींचे देवराज चौहान ने रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे कर दिया।
तभी कामनी ठहाका लगा उठी और खुशी से हंसने लगी।
उसी पल दौड़ते कदमों की आवाजें आईं। पीछे की तरफ से जगमोहन आ पहुंचा वहां और जिस तरफ से देवराज चौहान और प्रभाकर आए थे, वहां से मसूद आ पहुंचा। कामनी के ठहाके वहां गूंज रहे थे।
“गया इकबाल खान?” जगमोहन ने तेज स्वर में पूछा।
“हां।” इकबाल खान के पास खड़े प्रभाकर ने ऊंचे स्वर में कहा।
“मसूद।” कामनी ने मसूद को देखते ही बांहें फैला ली।
मसूद मुस्कराकर आगे बढ़ा और कामनी को बांहों में भींच लिया।
“हमने बाजी मार ली मसूद।” कामनी मसूद को चूमते हुए कह उठी।
देवराज चौहान ने मोबाइल निकालकर बशीर को फोन किया।
“काम हो गया है। तुम लोग यहां से ऐसे निकल जाओ जैसे शेखाबाद में कभी आए ही नहीं।” देवराज चौहान ने कहा।
“ठीक है।” उधर से बशीर की आवाज आई –“मैंने अभी-अभी गोली चलने की आवाज सुनी थी।”
देवराज चौहान ने मोबाइल जेब में रखा।
उधर कामनी, मसूद से अलग होती कह उठी।
“मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि इकबाल खान सूरी मारा गया है।”
“तुम्हारी सहायता के बिना ये काम शायद इतनी जल्दी सम्भव नहीं हो पाता।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“इकबाल खान सूरी तक पहुंचने में तुमने हमारी काफी मदद की।”
“देवराज चौहान।” कामनी हंस पड़ी –“मैं तो समझती हूं कि तुमने मेरा काम कर दिया। दो साल से मैं इकबाल खान सूरी की मौत की ख्वाहिश कर रही थी कि ये मरे तो इसके धंधों पर, पैसों पर मेरा कब्जा हो जाए। मैंने तुम्हारी सहायता नहीं की, बल्कि तुमने मेरी सहायता की। मैं मसूद को चाहती हूं परंतु इकबाल खान की वजह से हममें दूरी बनी रही। अब सब ठीक हो गया। इकबाल खान सूरी के धंधे मैं संभालूंगी। सब कुछ वैसे ही चलेगा, जैसे इकबाल खान के होते चलता था। दुबई और पाकिस्तान के साथ मेरे व्यक्तिगत तौर पर अच्छे सम्बंध हैं। इकबाल खान के लोगों में मेरी मजबूत पकड़ है। जो मेरे खिलाफ जा सकते थे, उन्हें मैंने रास्ते से हटा दिया। मसूद अब मेरे साथ होगा और हम मिलकर इकबाल खान के धंधों को आगे बढ़ाएंगे। पाकिस्तान सरकार को तो मेरी मुट्ठी में समझो।”
“तुम इकबाल खान सूरी के धंधे को संभालोगी?” देवराज चौहान ने कामनी के खुशी से चमकते चेहरे को देखा।
“हां। अब सब कुछ मेरा है।”
“तुम पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करोगी?”
“जरूर।”
“पाकिस्तान तो हिन्दुस्तान में आतंक फैलाता है।”
“तो क्या फर्क पड़ता है। नोट बहुत देता है पाकिस्तान। मैं सब कामों को नजदीक से जानती हूं क्योंकि इकबाल खान सूरी को मैंने काम करते देखा है। हमेशा उसके करीब रही हूं। सब कुछ संभालना बहुत आसान है मेरे लिए।”
“मैंने तो सोचा था कि इकबाल खान की मौत के बाद तुम उसकी दौलत लोगी, परंतु तुम तो हिन्दुस्तान में आतंक...।”
“ये बिजनेस है देवराज चौहान। आतंक का नाम मत दो। हिन्दुस्तान को चोट पहुंचाने के लिए पाकिस्तान से बहुत तगड़ी दौलत मिलती है। ये बिजनेस मैंने इकबाल खान सूरी से सीखा...।”
तभी देवराज चौहान का रिवॉल्वर वाला हाथ उठा और ट्रिगर दबा दिया।
‘धांय।’
गोली कामनी की छाती में जा लगी।
कामनी के शरीर को तीव्र झटका लगा और वो नीचे जा गिरी।
“कुछ वक्त के बाद किसी हिन्दुस्तानी को तेरी तलाश करनी पड़े, उससे तो ये ही अच्छा है कि तू अभी मरे।” देवराज चौहान ने कड़वे स्वर में कहा।
सन्नाटा-सा आ ठहरा वहां।
कामनी टूटी-फूटी सांसें लिए हिल रही थी।
“हरामजादे।” एकाएक मसूद गुर्राया और उसने फुर्ती से रिवॉल्वर निकाल ली।
प्रभाकर ने उस पर फायर कर दिया। गोली चलाने की कोशिश में मसूद के कंधे पर गोली जा लगी। रिवॉल्वर उसके हाथ से छिटक गई।
तभी जगमोहन ने एक-के-बाद-एक दो फायर मसूद पर कर दिए। वो दीवार से टकराया और नीचे गिरता चला गया और उकडूं होकर बैठा-सा रह गया था उसका शरीर। वो मर चुका था। कामनी का शरीर अभी भी हौले-हौले हिल रहा था। आंखें बंद थी उसकी। जगमोहन ने आगे बढ़कर कामनी के सिर से रिवॉल्वर की नाल लगाई और ट्रिगर दबा दिया। तेज धमाके के साथ कामनी का सिर खुल गया और वो शांत पड़ गई।
“गोलियों की आवाजें गूंज चुकी है।” प्रभाकर बोला –“यहां से हमें फौरन निकल चलना चाहिए।”
उन्होंने रिवॉल्वरें जेब में रखीं और जैसे भीतर आए थे, वैसे ही दीवार फांदकर बाहर आ गए। फाटक पर ताला लगा था। चाबी का उन्हें पता नहीं था और ताले पर गोली चलाकर वो और आवाज पैदा नहीं करना चाहते थे। खेतों को पार करते वे शेखाबाद के मकानों की गलियों तक आ पहुंचे और तेजी से उस तरफ बढ़ने लगे, जहां उन्होंने कार खड़ी की थी। जगमोहन, प्रभाकर के पास आकर बोला।
“वो पचास करोड़ वाली बात याद है न?”
“क्या?” प्रभाकर ने उसे देखा- “मुझे सुनाई नहीं दे रहा।”
“पचास करोड़। अब सुनाई दिया?”
“नहीं।”
“मैंने तेरे को पचास करोड़ देने हैं। अब तो सुन लिया होगा?” जगमोहन झल्लाया।
“नहीं समझ में आ रहा। मेरे कान काम नहीं कर रहे।”
“लगता है कमीने के कानों का काम, परमानेंट हो गया है।” जगमोहन मुंह बिगाड़कर कह उठा।
चलते-चलते देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली थी। वो कश ले रहा था। चेहरे पर गम्भीरता के भाव ठहरे हुए थे। जल्दी ही वो तीनों कार तक आ पहुंचे। भीतर बैठे, प्रभाकर ने तेजी से कार दौड़ा दी।
समाप्त
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