अगले दिन मोहन भौंसले एक गैराज पर ट्रक के नीचे घुसा, ट्रक को ठीक कर रहा था कि तभी जेब में रखे मोबाइल की बेल बजने लगी । उसने पाना नट में फँसाया और फोन निकालकर बात की ।
"हेलो !"
"मोहन भौंसले ।" उधर से जगमोहन की आवाज आई ।
"हाँ !"
"मैं जगमोहन, पहचाना ?"
"पहचाना भाई, पहचाना ।" मोहन भौंसले तुरंत कह उठा, "सोच रहा था कि तेरा फोन आएगा कि नहीं ?"
"तू अपने भाई, प्रताप भौंसले के लिए भी काम चाहता... ।"
"हाँ हाँ, उसे पैसे की जरूरत है ।" मोहन भौंसले ने जल्दी से कहा ।
"मैं उससे और तेरी पत्नी सोनिया से मिलना चाहता हूँ ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।
"मिल ले । कब ?"
"शाम को तेरे घर पर आऊँगा ।"
"मैं घर पर ही मिलूँगा । इंतजार करूँगा तेरा ।" मोहन भौंसले ने कहा ।
उधर से जगमोहन ने फोन बंद कर दिया ।
मोहन भौंसले ने फोन बंद करके जेब में रखा और ट्रक के नीचे से सरककर बाहर निकल आया । अभी तक उसने सोनिया से या प्रताप से इस बारे में जिक्र नहीं किया था । वो चाहता था कि प्रताप के बारे में जगमोहन से बात हो जाए तो तभी उनसे बात करें । अब शाम को जगमोहन दोनों से मिलने आ रहा था । जगमोहन के आने से पहले, उन दोनों से ये बात कर लेना ठीक है । तभी वो जगमोहन की बात को समझ पाएँगे शाम को ।
उसे ट्रक से बाहर निकलते पाकर दूर खड़े गैराज के मालिक ने कहा ।
"हो गया मोहन ?"
"किसी और से करा ले । मेरे को जरूरी काम याद आ गया है । जाना होगा ।"
"काम बीच में छोड़कर । ये क्या कर... ।"
"जरूरी है जाना । किसी और से ये काम करा ले ।" कहकर मोहन भौंसले कपड़े बदलने गैराज में चला गया ।
■■■
मोहन भौंसले बस में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा बाहर देख रहा था, परंतु उसका ध्यान कहीं और था । वो जगमोहन के बारे में सोच रहा था, दौलत के बारे में सोच रहा था और अपने और सोनिया के बारे में सोच रहा था ।
"जल्दी ही 20 करोड़ की दौलत मेरे पास होगी ।" वो मन ही मन कह उठा ।
रास्ते में बस कई बार रुकी, कई बार चली, परंतु वो अपने ही ख्यालों में गुम रहा । जेब में पैसे थे । टैक्सी से भी आ सकता था लेकिन आदत थी उसे बस में सफर करने की । उसका बस स्टॉप आ गया । वो उठा और जल्दी से नीचे उतर गया । तेज-तेज क़दमों से अपने पुराने, पहचाने रास्ते पर आगे बढ़ने लगा ।
'पैसा हाथ आते ही मैं सोनिया के साथ इस घटिया शहर को अलविदा कह दूँगा ।' मोहन भौंसले ने अपने से कहा और आगे जाकर सड़क पार करने लगा । कई कारों की चपेट में आने से बचते-बचते तेजी से सड़क पार की और एक गली में प्रवेश करके बाहर निकला और कुछ आगे जाकर पीली सफेद से पुती एक इमारत के सामने पहुँचकर ठिठका । इस इमारत में छोटे-छोटे कई फ्लैट बने हुए थे । उसमें से एक फ्लैट उसका था, मतलब कि उसमें रहता था । बेशक वो फ्लैट उसके भाई प्रताप भौंसले के पैसे से लिया गया था । पहली मंजिल पर खिड़कियों की चौखट नजर आ रही थी । मोहन भौंसले ने एक खिड़की को देखकर गहरी साँस ली और मेन गेट से भीतर आकर सीढ़ियाँ चढ़ने लगा ।
पहली मंजिल पर पहुँचा । अन्य लोग भी आ जा रहे थे । ज्यादातर इसी इमारत में रहने वाले थे । रास्ता तय करके मोहन भौंसले एक फ्लैट के बन्द दरवाजे के सामने रुका कि भीतर से सोनिया के हँसने की मध्यम-सी आवाज आई ।
मोहन भौंसले के माथे पर बल पड़े । उसने फौरन दरवाजा थपथपाया । भीतर एकदम सन्नाटा उभर आया ।
मोहन भौंसले का पूरा ध्यान दरवाजे के पार, कमरे के भीतर था । तभी बन्द दरवाजे के उस पार से सोनिया की आवाज आई ।
"कौन है ?"
"दरवाजा खोल ।" मोहन भौंसले से बेचैन स्वर में कहा ।
भीतर से आवाज नहीं आयी । कई पलों के लिए खामोशी छा गई । फिर दरवाजा खुला । थोड़ा-सा खुला जिससे सोनिया का चेहरा दिखा । दोनों की आँखें मिलीं । मोहन भौंसले तेजी से दरवाजा धकेलते भीतर प्रवेश कर गया । सोनिया ने उसी पल दरवाजा बन्द कर दिया ।
मोहन भौंसले ने ठिठककर कमरे में नजरें दौड़ाई ।
कमरे का माहौल कुछ धुँधला-धुँधला-सा था । सिगरेट की भरपूर स्मेल वहाँ फैली हुई थी । सामने बेड पर प्रताप भौंसले अंडरवियर पहने बैठा था और उसे देखता कड़वे अंदाज में मुस्कुरा रहा था ।
मोहन भौंसले का खून खौल उठा ।
"क्या कर रहे थे तुम दोनों ?" उसने दाँत भींचे पूछा ।
"तुम समझ चुके हो मोहन कि हम क्या कर रहे थे ।" प्रताप भौंसले के चेहरे पर मुस्कान थी, "मैंने सोचा था कि तुम्हें पता नहीं चलेगा और सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा । क्या करूँ, जेल में रहना बहुत कठिन है । सरकार हमारी सारी जरूरतें पूरी नहीं करती ।"
मोहन भौंसले का चेहरा सफेद पड़ गया । गुस्से के भाव हल्के पड़ने लगे और बेबसी दिखने लगी । उसके शरीर में जोरों का कम्पन हुआ । उसे भरोसा नहीं हो रहा था उसका भाई और उसकी बीवी उससे दगा कर सकते हैं । पर दगा हो चुका था । सब कुछ उसके सामने था । तभी उसकी निगाह झुमकों पर पड़ी, जो बेड के पास तिपाई पर रखे हुए थे । ये झुमके उसने चार महीने पहले अपनी प्यारी बीवी सोनिया को उसके जन्मदिन पर दिए थे । पूरे पच्चीस हजार खर्च किए थे । पर सोनिया ने उसके प्यार की कद्र नहीं की ।
मोहन भौंसले की निगाह सोनिया की तरफ उठी ।
सोनिया खामोशी से एक तरफ खड़ी कभी उसे देख रही थी तो कभी प्रताप को । इस वक्त वो ऐसी बिल्ली की तरह लग रही थी जो अभी-अभी ढेरों मलाई चाटकर संतुष्टि से सुस्ता रही हो । इस वक़्त सोनिया बहुत आकर्षक लग रही थी । टाइट स्लैक्स में उसकी टाँगों का आकर्षण देखते ही बन रहा था । ऊपरी हिस्से में हरे रंग का ब्लाउज पहन रखा था जिसकी ऊपर की हुक अभी तक खुली हुई थी और उसके उरोज ऊपर को उभर रहे थे ।
मोहन भौंसले ने घृणा भरी निगाहों से सोनिया को देखा फिर प्रताप को देखा ।
"शांत हो जा ।" प्रताप भौंसले ने कहा, "भाई का भी कुछ हक बनता है कि नहीं ?"
मोहन भौंसले गुस्से में पागल हो रहा था । भाई और बीवी की दगाबाजी ने उसका दिमाग खराब कर दिया था । परन्तु उसकी शारीरिक कमजोरी आड़े आ रही थी । अपने भाई से उलझता तो वो उसका बुरा हाल कर देता ।
"धोखेबाज, कमीनी । तू ऐसी होगी, मैंने तो सोचा भी नहीं था ।" मोहन भौंसले गुर्रा उठा ।
सोनिया के भाव में कोई बदलाव नहीं आया, वो आगे बढ़ी और बेड के किनारे पर जा बैठी ।
मोहन भौंसले गुस्से से टहलने लगा । ये सब कुछ उसका खुला अपमान था । मेज पर दो गिलास रखे थे जिसमें अभी भी व्हिस्की बाकी थी । प्रताप भौंसले के चेहरे पर कई जगह लाल रंग के निशान थे । मोहन भौंसले जानता था कि वो लिपस्टिक के निशान थे । उसकी पीठ पीछे जो हो रहा था, वो उसके निशान थे जो कि आप बीती कह रहे थे ।
"नाराज मत हो ।" प्रताप भौंसले ने सामान्य स्वर में कहा, "मैं कोई बाहर का तो हूँ नहीं, जो तू इतना गुस्सा दिखाए । एक ही माँ के हैं । तभी तो तू मेरे फ्लैट में मालिक बनकर रह रहा है, ऐसे में तेरी बीवी का कुछ देर के लिए मैं मालिक बन गया तो क्या हुआ ?"
जबरदस्त गुस्से, नफरत, शर्मिंदगी और ग्लानि से मोहन भौंसले काँप रहा था । उसके छोटे-से व्यक्तित्व के अंदर ही अंदर कई तूफान उठ रहे थे । उसका दिल कर रहा था कि हथौड़े से चोटें मारकर प्रताप का चेहरा चूर-चूर कर दे । पागल इंसान है । इसे कुछ कहा गया तो ये उसकी गर्दन तोड़ देगा । प्रताप की आदतों की वजह से ही उसने जगमोहन से कहा था कि उसके भाई को कुछ काम दे दे, ताकि प्रताप को पैसे मिले तो वो यहाँ से चला जाये । मोहन भौंसले को डर था कि प्रताप उसे परेशानी दे सकता है । अगर पुलिस ने उसे यहाँ से बरामद कर लिया तो वो भी जेल जाएगा । परंतु प्रताप ने अपना रंग दिखा ही दिया था । उसने साबित कर दिया था कि वो सच में कमीना है, बुरा है । उस पर भरोसा करना घातक है । वो सिर्फ अपने मतलब की बात समझता है ।
"निकल जाओ यहाँ से । दफा हो जा ।" मोहन भौंसले ने हाँफते स्वर में कहा ।
"निकल जाऊँ ?" प्रताप भौंसले मुस्कुराया, "मैं क्यों निकलूँ ? ये मेरा फ्लैट है ।"
"फ्लैट मेरे नाम पर है ।" मोहन भौंसले ने दाँत भींचे ।
"पैसा मेरा लगा है ।" प्रताप ने कहा, "तू जरूरत से ज्यादा नाराज हो गया है । तेरी बीवी सही-सलामत तो तेरे सामने खड़ी है । मैंने जरा-सा हाथ लगा दिया तो तू बिगड़ क्यों गया ? ये सब हमेशा के लिए तो चलेगा नहीं । जब तक तेरे पास कहीं से पैसा नहीं आता, तब तक ही ये सब चलेगा । उसके बाद मैं यहाँ से चला जाऊँगा । वैसे तुम्हें बता दूँ कि सोनिया तुम्हें खास पसंद नहीं करती । ये मेरे साथ खुश है । इसे पता चल गया है कि तुमसे शादी करके इसने मूर्खता की है । मेरे सामने इसने अपना पूरा दिल खोलकर रख दिया है । इतना तो तुम भी नहीं जानते अपनी बीवी को ।"
"साले !" मोहन भौंसले चीखा और झपटकर एक तरफ रखा पीतल के फूलदान उठाया और पागलों की तरह प्रताप भौंसले पर दे मारा । निशाना चूका । वो प्रताप के कंधे पर लगा और बेड पर ही गिर गया ।
प्रताप भौंसले बिजली की-सी तेजी से उछलकर बेड से उतरा और जोरदार धक्के से मोहन को दूर उछाल दिया । मोहन भौंसले लड़खड़ाकर कुर्सी से टकराकर नीचे गिरा कि तुरंत ही क्रोध से भरा खड़ा हो गया कि तभी प्रताप भौंसले उसके पास पहुँचा कि मोहन ने जोरदार दो घूँसे प्रताप के पेट में मारे, जिसका कि प्रताप पर कोई खास असर नहीं हुआ लेकिन प्रताप का घूँसा मोहन पर पड़ा तो वो कराह उठा ।
फौरन ही प्रताप भौंसले ने मोहन को कमर से पकड़कर इस तरह झिंझोड़ा जैसे पेड़ की पतली डाली को हिलाया जाता है । इसके साथ ही उसके पेट में घूँसा मारा तो मोहन भौंसले मरी छिपकली की तरह नीचे जा गिरा ।
कुछ देर फर्श पर पड़ा गहरी साँसें लेता रहा । आँखों से पानी बह रहा था । कुछ क्षण बाद उसने आँखें पोंछी और उठने की कोशिश की । प्रताप भौंसले उसके सिर पर ही खड़ा था । । उसने जोरों का घूँसा उसके जबड़े पर ठोक दिया । मोहन भौंसले की गर्दन तेजी से इस तरह हिली जैसे वो रबड़ की हो । आँखें फट-सी गईं । वो पुनः फर्श पर लुढ़क गया । गहरी-गहरी साँसें लेने लगा । उसकी मरी की-सी हालत हो गई थी ।
प्रताप भौंसले ने उसे वहाँ से उठाया और बेड पर पटक दिया । मोहन भौंसले मुँह के बल नर्म बिस्तर पर गिरा तो उसके नाक में सोनिया की महक बस गई । वो मन ही मन तिलमिला उठा कि ऐसी बीवी को मर जाना चाहिए । परंतु वो कुछ नहीं कर सकता था । प्रताप भौंसले, सोनिया को आड़ दिए खड़ा था । तभी उसकी निगाह सोनिया पर पड़ी जो बेड के कोने पर बैठी चमकदार आँखों से उसे देख रही थी । उसके गुलाबी होंठ ओस से भीगे लग रहे थे । इस वक्त वो बहुत भोली और मासूम लग रही थी ।
कमीनी कहीं की । मोहन भौंसले ने मन ही मन कहा ।
अपना गुस्सा दबाने के लिए मोहन भौंसले जोर-जोर से कराहने लगा । प्रताप ने उसकी गर्दन पकड़कर बिस्तर पर सीधा किया तो भौंसले ने आँखें बंद कर ली ताकि अपने भाई का मनहूस चेहरा न देख सके । तभी प्रताप भौंसले ने उसके चेहरे पर तीन-चार थप्पड़ मार तो उसकी आँखें खुल गईं ।
मोहन भौंसले ने कराहकर धुंधलाई हुई आँखों से उसकी तरफ देखा ।
"दोबारा मुझसे टकराने की कोशिश न करना, वरना कुत्ते की मौत मारूँगा । सोनिया मेरे साथ खुशी से रहेगी ।"
मोहन भौंसले खून का घूँट पीकर रह गया । उसने काँपते हाथ से अपना चेहरा साफ किया ।
"तू बहुत बड़ा कमीना है ।"
"मुझे पता है ।" प्रताप भौंसले ने कड़वे स्वर में कहा ।
"तुझे सोनिया पर हाथ नहीं डालना चाहिए था ।"
"तो क्या घिस गया सोनिया का ? वैसी की वैसी ही तो है तेरे सामने ।" प्रताप मुस्कुराया ।
"ये बात तू अपनी पत्नी के बारे में, इन हालातों में कहता तो तुझे मर्द मानता ।"
"इसका मतलब तू मर्द नहीं है, क्योंकि हमारे रिश्ते पर तेरे को एतराज है ।" प्रताप हँस पड़ा ।
"तू कुत्ते की तरह भौंकता है ।"
"जो भी कह । कहने का मैं बुरा नहीं मानता ।" प्रताप भौंसले ने शांत स्वर में कहा और छोटे-से घेरे में टहलने लगा, "पर एक बात अपने दिमाग में बिठा ले कि मेरे को गुस्सा मत दिलाना ।"
मोहन भौंसले बेड से नीचे उतरा और कहर भरी निगाहों से सोनिया को देखते हुए बाथरूम में चला गया । वहाँ उसने हाथ-मुँह धोया । हालत ठीक की और वापस आया । कमरे में सब कुछ वैसा ही था जैसा वो छोड़कर गया था । सोनिया बेड के किनारे पर बैठी थी और प्रताप टहल रहा था ।
"अकल ठिकाने आई ?" प्रताप भौंसले ने व्यंग्य भरे स्वर में पूछा ।
"तू भाई कहने के लायक नहीं है ।" मोहन भौंसले ने शांत स्वर में कहा फिर सोनिया को देखा, "तेरे से क्या शिकायत करूँ । तेरे से तो कहने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है ।"
"मैं क्या करती, तेरे भाई ने मुझे पकड़ लिया ।" सोनिया ने भोलेपन से कहा ।
"पकड़ लिया ?" मोहन भौंसले के दाँत भिंच गए, "तू क्या बच्ची है जो तेरे को कोई भी पकड़ लेगा । तेरे बिना कहे ही मैं सब कुछ समझ चुका हूँ । कब से चल रहा है ये सब ?"
"मेरे से बात कर । सोनिया को कुछ मत कह । तूने जब देखा, समझ तब से ही चल रहा है ।
मोहन भौंसले, प्रताप को घूरने लगा ।
"सब ठीक है, गुस्सा मत कर ।" प्रताप भौंसले ने शांत स्वर में कहा ।
"सब कुछ कितना ठीक है, वो तो मैंने देख ही लिया है ।" मोहन भौंसले ने तीखे स्वर में कहा, "तुम दोनों ने सच में मुझे बहुत तकलीफ दी । एक तरफ भाई, दूसरी तरफ बीवी । जलकर कोयला हो गया मैं ।"
"कोसता रह अपने को ।"
मोहन भौंसले ने सिगरेट सुलगाई । अब वो संभला दिख रहा था ।
सोनिया की निगाह प्रताप भौंसले पर ही थी ।
"तेरे को पैसा मिल जाएगा तो तू यहाँ से चला जायेगा ?" मोहन भौंसले ने प्रताप से पूछा ।
"हाँ, कम से कम एक करोड़ तो मुझे चाहिए । सोच रहा हूँ कि ये फ्लैट बेच दूँ । कितने का होगा ये ?"
"एक से ऊपर का ही है । पर तेरे को फ्लैट बेचने की जरूरत नहीं । मैंने तेरे लिए बात की है ।"
"बात की है ।" प्रताप की आँखें सिकुड़ीं ।
"हाँ, बात की है । किसी के पास काम है । वो मेरे को और सोनिया को अपने काम में लेना चाहता है । इस काम का वो बीस करोड़ हम दोनों को देगा और... ।"
"बीस करोड़ ?" प्रताप के होंठों से निकला ।
"उससे तेरी भी बात की है ।"
"बीस करोड़ ।" प्रताप की आँखें सिकुड़ीं पड़ी थीं, "ऐसा क्या काम है ?"
"पता नहीं ।"
"बिना जाने तू हाँ कैसे कर सकता है... ।" प्रताप भौंसले ने कहना चाहा ।
मोहन ने प्रताप को देखा फिर गंभीर स्वर में बोला ।
"वो डकैती करेगा मेरे ख्याल में ।"
"डकैती ?" प्रताप भौंसले के माथे पर बल पड़े ।
"तेरी बात की है मैंने । वो शाम को यहाँ आएगा । सोनिया से और तुझसे मिलने । उससे ठीक से पेश आना नहीं तो वो तेरी गर्दन तोड़ देगा । समझा, वो तेरी गर्दन तोड़ देगा । मैं तो चाहता हूँ कि टूट ही जाए ।"
"डकैती ? बीस करोड़ तुम दोनों को दे रहा है ।" प्रताप भौंसले ने कहा, "पैसे पहले देगा ?"
"पहले क्यों देगा ? डकैती करेगा तब देगा ।"
"बात मेरी समझ में नहीं आ रही है कि... ।"
"क्या समझ में नहीं आ रहा ?" मोहन भौंसले ने कश लिया ।
तभी सोनिया कह उठी ।
"तुमने कैसे सोच लिया कि मैं डकैती जैसा काम करूँगी ?"
मोहन भौंसले ने सोनिया को देखा । दिल तो किया कि उस औरत का गला दबा दे ।
"जो मुझसे मिला, वो कहता है कि वह तुमसे जो काम लेना चाहता है, वो तुम कर लोगी ।"
"उसे कैसे पता कि मैं कर लूँगी ?"
"वो कोई बेवकूफ तो है नहीं ।" मोहन भौंसले ने शांत स्वर में कहा, "वो हम पर नजर रखे हुए था । उसके पास हमारी पूरी जानकारी है । मुझे विश्वास है कि वो जो कह रहा है, ठीक कह रहा है । वैसे भी तुम इतनी भोली तो हो नहीं कि बच्चों की तरह सवाल पूछो । चिंता तो उसे होनी चाहिए कि वो तुम्हें इस काम के दस करोड़ देगा ।"
"दस करोड़ बहुत बड़ी रकम होती है ।" सोनिया ने प्रताप पर नजर मारी ।
साली को अब अपने आशिक पर पूरा भरोसा है, मेरे पर नहीं ।
"वो शाम को आएगा । इसी बारे में बात करने । जो पूछना हो उससे पूछना ।" मोहन भौंसले ने शुष्क स्वर में कहा ।
"मतलब कि वो दस करोड़ तुम्हें देगा और दस करोड़ मुझे ।" सोनिया ने कहा ।
"वो बीस करोड़ हमें देगा ।" मोहन भौंसले ने चुभते स्वर में कहा ।
"मुझे विश्वास नहीं होता कि कोई इतनी बड़ी रकम देगा ।" सोनिया ने पुनः प्रताप को देखा ।
"वो है कौन ?" प्रताप ने मोहन भौंसले से कहा ।
मोहन भौंसले ने फौरन जवाब नहीं दिया । वो तेजी से हर बात सोच रहा था ।
"ये तो तुमने पूछा ही होगा कि वो कौन है । क्या पता वो डकैती जैसा काम न कर सकता हो और हमें मुसीबत में... ।"
"ऐसा नहीं होगा ।" मोहन भौंसले बोला ।
"क्या मतलब ?"
"वो देवराज चौहान है । डकैती मास्टर देवराज चौहान ।"
"डकैती मास्टर देवराज चौहान । वो हरामी । इसका नाम तो मैंने सुन रखा है ।" प्रताप भौंसले चौंककर बोला, "ये तो बहुत बड़ा डकैती मास्टर है । तेरे को कहाँ मिल गया ?"
"मेरे को मिला नहीं । देवराज चौहान का खास साथी जगमोहन मेरे पास आया था ।"
"कब ?"
"पाँच-छः दिन हो गए ।"
"ये बात तू अब बता रहा है ।"
"पहले बताने की जरूरत भी क्या थी ।" मोहन भौंसले ने उखड़े स्वर में कहा, "उसी दिन मैंने तुम्हारे लिए भी उससे काम के लिए बात की थी तो उसने यही कहा था कि वो तुमसे मिलेगा । तभी सोनिया से भी बात करेगा और आज उसका फोन आ गया कि शाम को जगमोहन यहाँ आएगा तो पहले मैं आ गया कि तुम दोनों को सारी बात बता सकूँ । अच्छा ही हुआ जो मैं आ गया । कम से कम तुम दोनों का असली चेहरा तो मुझे देखने को मिला है ।"
"ये तो तूने बहुत काम की बात बताई । दिल खुश हो गया ।" प्रताप भौंसले मुस्कुराया, "वो मेरे को कितना देगा ?"
"अगर तू जँचा तो वो तेरे को काम में लेगा ।"
"अब क्या जँचना ?" प्रताप भौंसले मुस्कुराया, "सब कुछ तो मुझे मालूम हो गया ।"
"उल्टी बात की तो वो तेरी गर्दन... ।"
"मुझे पता है, ऐसे लोगों से कैसे बात करनी है । मैं उसे प्यार से संभाल लूँगा ।"
"जगमोहन को मैंने यही कहा है कि तू पानीपत से काम के सिलसिले में मुम्बई आया है । तुझे पैसा चाहिए ।"
"ठीक कहा ।"
"बात बिगड़ी तो उसका जिम्मेदार तू होगा ।"
"मैं सब देख लूँगा ।" प्रताप भौंसले ने सोच भरे स्वर में कहा ।
"अगर पैसा तेरे को मिल गया तो तू यहाँ से चला जायेगा न ?" मोहन भौंसले ने पूछा ।
"मैंने यहाँ रहकर करना भी क्या है ।" प्रताप ने हँसकर सोनिया पर निगाह मारी ।
सोनिया, प्रताप को देखते हुए मुस्कुरा पड़ी ।
"अब तू मेरी पत्नी की तरफ नजर नहीं उठाएगा ।" मोहन भौंसले ने कहा ।
"इतना जुल्म मत कर । नजर तो पड़ ही जाती है । पर तू कहता है तो हाथ नहीं लगाऊँगा ।" प्रताप भौंसले ने कहा, "मुझे तो नोटों की जरूरत है कि मुम्बई से दूर जा सकूँ, वरना यहाँ की पुलिस का खतरा बना रहेगा । एक बात तो बता कि देवराज चौहान कहाँ पर डकैती कर रहा है ?"
"मुझे नहीं मालूम ।"
"नहीं मालूम ?"
"नहीं !" मोहन भौंसले ने इनकार में सिर हिलाया ।
"तूने पूछा नहीं ।"
"नहीं, देवराज चौहान का नाम सुनकर ही मुझे हर बात की तसल्ली हो गई ।"
"कितने की डकैती की जाएगी ?"
"ये भी नहीं पता । जो पूछना हो शाम को जगमोहन से पूछना ।" कहने के साथ ही मोहन भौंसले ने सोनिया को देखते हुए तीखे स्वर में कहा, "अब से मैं घर पर ही रहूँगा ताकि तुम दोनों कुछ ग़लत न कर सको ।"
"तू घर पर क्यों रहेगा ?" प्रताप के माथे पर बल पड़े, "हमारी रखवाली करेगा ?"
"हाँ !"
"मैं तेरे हाथ-पाँव बाँधकर तुझे एक तरफ बैठा दूँगा और सब कुछ तू अपनी आँखों से... ।"
"डकैती में हिस्सा लेना है ? अगर नोट कमाने हैं तो तू सीधा होकर रहेगा ।" मोहन भौंसले बोला ।
"साला, ठिगना ।" प्रताप भौंसले उसे घूरता हुआ कह उठा ।
मोहन भौंसले ने तसल्ली से सिर हिलाया कि अब प्रताप सीधा रहेगा ।
"ये तेरी डकैती वाली बात सच भी है कि नहीं ?" प्रताप भौंसले ने मोहन को देखा ।
"शाम को जगमोहन आ रहा है, ये बात उसी से पूछना ।"
"मैं तो कुछ और ही सोच रहा हूँ । दस तेरे को, दस सोनिया को दे रहे हैं तो ये बड़ी डकैती होगी । देवराज चौहान कहीं पर बहुत ही मोटा हाथ मार रहा है । काफी मोटा हाथ ।"
"तेरे पेट में क्यों बल पड़ रहे हैं ? वो तेरे को करोड़ों रुपया दे रहे हैं न । तू तो एक करोड़ की तलाश में था । हो सकता है कि वो तेरे को भी दस देने को कहे तो तब तेरा पेट भर गया न ?"
मोहन भौंसले को देखते हुए प्रताप मुस्कुराया । कहा कुछ नहीं ।
मोहन भौंसले, सोनिया को देखकर तीखे स्वर में बोला ।
"चल, बहुत आराम कर लिया । कॉफ़ी बना मेरे लिए ।"
सोनिया खामोशी से उठी और किचन की तरफ बढ़ गई ।
"औरतों से प्यार से बात करते हैं मोहन ।"
"मैं तेरे से ज्यादा जानता हूँ कि औरतों से किस वक़्त, किस तरह की बात करनी है । जो भी हो तूने बहुत ग़लत किया है मेरे साथ । घटिया हरकत की है तूने ।"
"मैं तो सिर्फ डकैती के बारे में सोच रहा हूँ कि मामला कितने का हो सकता है ।" प्रताप भौंसले बोला ।
मोहन भौंसले ने कश लेकर सिगरेट व्हिस्की की गिलास में डाली और प्रताप को घूरते किचन में जा पहुँचा जहाँ सोनिया कॉफ़ी बनाने की तैयारी कर रही थी । उसे देखते ही सोनिया कह उठी ।
"मुझ पर मत बिगड़ो । सारा कसूर तुम्हारे भाई का है । उसी ने मेरे साथ जबरदस्ती... ।"
"तू इतनी बच्ची नहीं है कि कोई तेरे साथ जबरदस्ती कर ले ।" मोहन भौंसले ने गुस्से से कहा ।
"यही तो हकीकत है कि मैं बच्ची नहीं । तुम्हारे भाई ने मुझे पकड़ा और... ।"
"ये बातें तब बताना जब मैं जानना चाहूँ ।" मोहन भौंसले ने कहा और दूसरे कमरे में आकर बैठ गया । इस वक़्त वो सिर्फ प्रताप और सोनिया के बारे में सोच रहा था कि अब उसे क्या करना चाहिए । वो महसूस कर सकता था कि जो भी हुआ सोनिया की रजामंदी से हुआ । सोनिया न चाहती तो प्रताप उसे छू भी नहीं सकता था ।
सोनिया दगाबाज निकली । अपना कमीनापन दिखा दिया ।
उसे मन-ही-मन सोनिया से नफरत हो गई थी । सोनिया उसके दिल से एकाएक ही दूर हो गई थी । फिर वो डकैती के बारे में सोचने लगा । अभी आराम से चलना होगा । उन्हें बीस करोड़ मिलेगा डकैती का । इतनी बड़ी रकम वो गँवाना नहीं चाहता था । जब तक डकैती नहीं हो जाती, नोट हाथ में नहीं आ जाते, तब तक सोनिया को कुछ नहीं कहना था, क्योंकि जगमोहन, सोनिया को भी अपने काम में ले रहा था । जगमोहन को सब कुछ ठीक दिखना चाहिए । अगर उसने पति-पत्नी के बीच गड़बड़ का अहसास पा लिया तो वो उन्हें काम में लेने का इरादा छोड़ भी सकता है ।
जब तक डकैती नहीं हो जाती तब तक बहुत सोच-समझकर चलना था ।
■■■
जगमोहन शाम को सवा सात बजे पहुँचा ।
दरवाजा थपथपाने की आवाज सुनकर मोहन भौंसले ने ही दरवाजा खोला । मोहन भौंसले शांत दिख रहा था । उसने अपने आपको पूरी तरह संभाल लिया था कि जगमोहन को कोई गड़बड़ महसूस न हो । सोनिया ने जीन्स की पैंट और टॉप पहना हुआ था । प्रताप भौंसले नहाया-धोया कमीज-पैंट पहने शराफत से बैठा था ।
जगमोहन भीतर आया तो मोहन भौंसले दरवाजा बंद करते हुए बोला ।
"मैंने सोचा कहीं कि तुम आना भूल न जाओ । उस कमरे में बैठते हैं । वहाँ सोफा लगा है ।"
परंतु तब तक जगमोहन की निगाह सोनिया और प्रताप भौंसले पर टिक चुकी थी ।
"ये मेरी पत्नी है सोनिया ।" मोहन भौंसले कह उठा, "और ये मेरा भाई, प्रताप भौंसले, जिसके बारे में मैंने तुमसे बात की थी कि इसे भी काम देना है । इसे जो भी काम दोगे अच्छा करेगा ।"
जगमोहन ने प्रताप भौंसले को सिर से पाँव तक देखा ।
"कहाँ से आये हो ?" जगमोहन ने पूछा ।
"पानीपत से ।" मोहन भौंसले ने तुरंत कहा ।
जगमोहन, मोहन भौंसले को इस अंदाज में देखने लगा जैसे पूछ रहा हो कि तू क्यों बोला ?
उसकी नजरों का मतलब समझकर मोहन भौंसले ने होंठ बन्द कर लिए ।
जगमोहन ने पुनः प्रताप भौंसले को देखकर कहा ।
"तुम में ऐसा कुछ नहीं दिखता मुझे कि लगे पानीपत से आये हो ।" जगमोहन के होंठ सिकुड़ गए थे, "तुम तो मुम्बई में लोकल लग रहे हो । तुम्हारी आँखों में मुझे क्रूरता दिख रही है ।"
प्रताप भौंसले मुस्कुरा पड़ा ।
"तुम ग़लत भी तो हो सकते हो । मैं बहुत शरीफ इंसान हूँ ।" प्रताप भौंसले बोला ।
"कभी नहीं । तुम घिसे हुए लग रहे हो ।" जगमोहन ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
मोहन भौंसले के चेहरे पर व्याकुलता दिखने लगी । शांत खड़ी सोनिया कभी प्रताप को देखती तो कभी जगमोहन को ।
"तुमने इन्हें हमारे मुलाकात के बारे में कुछ बताया ?" जगमोहन ने मोहन भौंसले से पूछा ।
"हाँ ! दोपहर में, आज ही बताया क्योंकि तुम आने वाले थे । मैंने सोचा कि बता दूँ ।" मोहन भौंसले ने कहा ।
जगमोहन की निगाह पुनः प्रताप भौंसले पर टिकी ।
"तुम पानीपत से नहीं आये । अपनी असलियत बताओ ?" जगमोहन ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
प्रताप भौंसले की नजर जगमोहन पर ही थी । वो चुप रहा ।
जगमोहन, मोहन भौंसले की तरफ पलटा और कुछ सख्त स्वर में बोला ।
"मेरे साथ चालाकी नहीं चलेगी । मैं मजबूर नहीं हूँ कि तुम लोगों को अपने काम में लूँ । समझ रहे हो न मेरी बात । मैं उन लोगों को कभी काम में नहीं लेता जो अपने बारे में मुझसे कुछ छिपा कर रखे ।"
मोहन भौंसले ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर प्रताप भौंसले को देखा । प्रताप भौंसले के चेहरे पर मुस्कान उभरी । वो जगमोहन को देख रहा था ।
"सच बोलते हो या मैं जाऊँ ?" जगमोहन ने पूछा, "तुम्हारा भाई मुझे कहीं से भी शरीफ नहीं लगता ।"
"तुम्हारी नजरें बहुत तेज हैं ।" प्रताप भौंसले कह उठा, "सही में तुम काबिल आदमी हो ।"
जगमोहन की निगाह प्रताप भौंसले पर फिर टिकी ।
"मैं पंद्रह दिन पहले जेल से भाग निकला था । दो हत्याओं के मामले में उम्रकैद की सजा में था । तब से यहाँ पर छिपा हुआ हूँ । मोहन ने तुमसे ये बात इसलिए छिपाई कि कहीं मेरा रिकॉर्ड सुनकर तुम मुझे अपने साथ काम में न लो । जबकि मोहन जानता है कि इस वक़्त मुझे पैसों की बहुत जरूरत है ।" प्रताप भौंसले ने शांत स्वर में कहा ।
जगमोहन कुछ पल प्रताप को देखता रहा ।
मोहन भौंसले गहरी साँस लेकर रह गया कि क्या पता अब जगमोहन क्या फैसला करेगा ।
सोनिया चुप-सी खड़ी सब देख-सुन रही थी ।
"तुम्हें मुझसे ये बात छिपानी नहीं चाहिए थी ।" जगमोहन ने मोहन भौंसले से कहा, "बात कुछ भी हो, सच बोलो । सच में बहुत कुछ रखा है । फिर कभी, कोई भी मुझसे झूठ न बोले ।"
सब ठीक है । मोहन भौंसले ने मन-ही-मन चैन की साँस ली ।
"पंद्रह दिन पहले तुम जेल से फरार हुए, तो पुलिस तुम्हारे पीछे होगी ?"
"हाँ !" प्रताप भौंसले ने शराफत से सिर हिलाया ।
"तो तुम्हें बहुत ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है । इस वजह से काम में कोई अड़चन नहीं आनी चाहिए ।"
प्रताप भौंसले ने पुनः सिर हिलाया ।
"आओ, दूसरे कमरे में बैठते हैं ।" मोहन भौंसले ने कहा ।
जगमोहन, मोहन भौंसले के साथ दूसरे कमरे में पहुँचा । यहाँ पुराना-सा सोफा लगा हुआ था और दूसरी तरफ दीवान था । प्रताप और सोनिया भी उनके साथ वहीं आ गए । सब बैठे । सोनिया दीवान के किनारे पर बैठ गई थी ।
"देवराज चौहान नहीं आया ?" मोहन भौंसले ने बेचौनी से पूछा ।
"वो इसी काम के सिलसिले में व्यस्त है । कुछ दिन वो... ।"
तभी जगमोहन का फोन बजने लगा ।
"हेलो !" जगमोहन ने फोन निकालकर बात की ।
"जगमोहन है न ?" काका मेहर की आवाज कानों में पड़ी । वो खुश दिख रहा था ।
"हाँ !"
"मैं तैयार हूँ तुम्हारे साथ काम करने के लिए । तुमने कहा था कि जवाब देने के लिए मेरे पास एक सप्ताह हैं । मैंने पाँचवें दिन ही तुम्हें फोन करके हाँ कह दी है । ठीक है न ?"
"हाँ, ठीक है ! मैं जानता था कि तुम मुझे फोन जरूर करोगे ।"
"दरअसल मैं तुम्हारी बात सुनकर परेशान हो गया था कि... । खैर, मुझे शैला ने समझाया कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है । जिंदगी में दाँव तो लगाने ही पड़ते हैं । बस मुझे तुम पर और देवराज चौहान पर भरोसा है ।"
"मैं तुम्हें फिर फोन करूँगा ।"
"काम कब शुरू करना... ।"
"कुछ दिन लगेंगे । मेरे फोन का इंतजार करो ।" कहकर जगमोहन ने फोन बंद करके जेब में रखा और तीनों पर निगाह मारकर सोनिया से बोला, "मोहन से शादी करने से पहले तुम बार बाला हुआ करती थी । मैं जानता हूँ कि तुम से जो काम लेना चाहता हूँ, वो तुम कर लोगी । परंतु तुम्हारा काम ऐसा है कि तुम्हें अपने को पहले ही तैयार कर लेना होगा । सब कुछ याद कर लेना होगा । इसलिए तुम्हें बताना जरूरी है कि तुम्हें क्या करना है ।"
"मुझे क्या मिलेगा ?"
"मोहन भौंसले ने नहीं बताया ?"
"मैं तुमसे सुनना चाहती हूँ ।"
"तुम्हें और मोहन को बीस करोड़ मिलेगा ।"
"अगर हम में से किसी को कुछ हो गया तो तब भी बीस करोड़ मिलेगा ?" सोनिया ने पूछा ।
"किसी को कुछ नहीं होगा ।"
"अच्छी बात है कि न हो । अगर हो गया तो जो बचेगा उसे बीस करोड़ मिलेगा ?"
"हाँ !"
मोहन भौंसले ने सोनिया को देखते हुए बेचैनी से पहलू बदला ।
प्रताप बेहद शांत बैठा था ।
"मुझे क्या करना होगा ?" सोनिया की नजर जगमोहन के चेहरे पर थी ।
जगमोहन उसे बताने लगा कि उसे क्या करना है । वो बीस मिनट तक बताता-समझाता रहा ।
मोहन और प्रताप खामोश बैठे सुनते रहे । जब जगमोहन चुप हुआ तो सोनिया ने सोच भरे स्वर में कहा ।
"तुम लोग डकैती करने वाले हो न ?"
"हाँ !"
"तो मुझे एयरपोर्ट भेजकर, मेरे से ऐसी बातें कहलवाने का मतलब क्या है ? इसमें तो मुझे डकैती कहीं नजर नहीं आ रही है । मेरे ऐसा करने से डकैती कहाँ होती है ?" सोनिया ने पूछा ।
"तुम्हें यही काम करना है जो मैंने कहा है ।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा, "जो मैंने तुम्हें बताया है उन बातों को तोते की तरह रट लो । कोई ग़लती नहीं होनी चाहिए ।"
"लेकिन इन बातों में डकैती कहाँ है ?"
"वो देखना मेरा और देवराज का काम है । जिसका जो काम है उसे वही बताया जा रहा है ।"
सोनिया ने प्रताप को देखा । जैसे पूछ रही हो कि इन बातों का मतलब क्या है ?
साली । मोहन भौंसले मन-ही-मन तड़पा कि किस कदर वो प्रताप पर फिदा है ।
"मैं कुछ कहूँ ?" प्रताप भौंसले ने पूछा ।
"हाँ !"
"सिर्फ ये काम करने के बदले सोनिया को करोड़ों रुपये मिलेगा ?"
"हाँ !"
"ये तो कोई काम नहीं हुआ ।"
"ये डकैती होगी और ये डकैती का ही काम है ।" जगमोहन ने कहा ।
"एयरपोर्ट पर इतनी दौलत कहाँ से आ गई कि तुम वहाँ डकैती... ।"
"मैंने कहा क्या कि डकैती एयरपोर्ट पर होगी ?"
"नहीं कहा ।" प्रताप भौंसले, जगमोहन को देखने लगा ।
"बेहतर होगा कि अपने अंदाजे लगाना छोड़ दो । जो काम हम कहें वही करो ।"
"तुम डकैती में हमें साथी बना रहे हो ।"
"हाँ ।"
"तो हमें भी मालूम होना चाहिए कि कहाँ डकैती होगी और कैसे ।"
"ये डकैती सीक्रेट रखी जा रही है ।" जगमोहन बोला, "हालात ऐसे नहीं है कि सबको खुलकर बताया जाए । एक बात भी बाहर निकलने का मतलब होगा कि डकैती असफल ।"
"लेकिन हम लोग तो डकैती के हिस्सेदार बन रहे हैं, फिर हम क्यों बात बाहर निकालेंगे ?"
"बात निकल जाती है । देवराज चौहान कोई रिस्क लेना नहीं चाहता ।"
"तुम लोग जो सोच रहे हो, वो ठीक ही होगा ।" मोहन भौंसले ने बीच में दखल दिया ।
"इस मामले में हम लोग ही हैं या और लोग भी हैं ?" प्रताप भौंसले ने सिर हिलाकर गंभीर स्वर में पूछा ।
"और लोग भी हैं ।" जगमोहन ने बताया ।
"मेरा पूछना तो नहीं बनता फिर भी पूछ रहा हूँ कि क्या सबको इसी तरह करोड़ों दिया जा रहा है ?"
"तुम सही सोच रहे हो ।" जगमोहन कुछ पल प्रताप को देखने के बाद बोला ।
"पाँच, सात, आठ लोग तो होंगे ही । मतलब कि सौ करोड़ तुम लोग दूसरों को दे रहे हो । जाहिर है कि इतना ही अपने लिए भी रखोगे । तो दो सौ करोड़ पाने के लिए तुम सोनिया को एयरपोर्ट पर भेज रहे हो कि वहाँ जाकर ये इन बातों को कहे । मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है कि ये डकैती कहाँ है । ये तो... ।"
"तुम्हें समझने की जरूरत भी क्या है ?" मोहन भौंसले उखड़े स्वर में कह उठा, "ये मत भूलो कि तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान के साथ काम कर रहे हो । तुमसे जो कहा जाए बस चुपचाप वही रहो... ।"
"क्यों चुप रहूँ ? जब हम सब मिलकर काम कर रहे हैं तो सब बातें खुलकर होनी चाहिए ।"
"इस डकैती में कोई बात खुलकर नहीं होगी ।" जगमोहन ने कहा, "जिसका जितना काम है, उसे उतना ही बताया जाएगा । ये सतर्कता हमें इस्तेमाल करनी ही होगी । तुम्हें ये सब पसंद नहीं तो जुबान बन्द रखकर पीछे हट सकते हो ।"
"मैंने ये तो नहीं कहा कि मैं काम नहीं करूँगा । इस वक़्त मुझे वैसे भी पैसे की सख्त जरूरत है ।"
"तो तुम्हें ये काम हमारे हिसाब से ही करना होगा ।"
"जैसा तुम कहो ।" प्रताप ने तुरंत सिर हिलाया ।
जगमोहन ने सोनिया की तरफ रुख किया ।
"तुम्हें जो बताया गया है, वो काम उसी ढंग से कर लोगी ?"
"हाँ !" सोनिया ने सामान्य स्वर में कहा, "कर लूँगी ।"
"तो मन-ही-मन इन बातों को दोहराती रहो, जिसकी जरूरत तुम्हें आने वाले वक्त में पड़ने वाली है । मैं तुम्हें अपना फोन नम्बर दे जाऊँगा ताकि बाद में भी कोई बात पूछने की जरूरत महसूस हो तो पूछ सको ।"
सोनिया ने सिर हिला दिया ।
जगमोहन ने मोहन भौंसले को देखकर कहा ।
"जिस दिन सोनिया एयरपोर्ट पर ये सब करेगी, तो तुम्हें ममुम्बई से कश्मीर जाने वाले प्लेन में सवार होना है । तुम्हारे लिए टिकट का, फ्लाइट का इंतजाम हम करेंगे और... ।"
"मुम्बई से कश्मीर की सीधी फ्लाइट कोई नहीं है ।" मोहन भौंसले ने कहा ।
"मुम्बई से कश्मीर की फ्लाइट है, परंतु वो दिल्ली में बीस मिनट के लिए रुकती है । जब तुम्हारी फ्लाइट दिल्ली से दोबारा टेक ऑफ करेगी तो तभी मुम्बई एयरपोर्ट पर, सोनिया का काम शुरू हो जाएगा । तुम्हारे पास काला ब्रीफकेस होगा । मैं तुम्हें बताता हूँ कि वहाँ तुम्हारे साथ क्या होगा और तुम्हें क्या करना है ।" इसके साथ ही जगमोहन, मोहन भौंसले को सब कुछ बताने-समझाने लगा ।
मोहन भौंसले सुनता रहा । प्रताप और सोनिया भी सुन रहे थे ।
जगमोहन ने बात पूरी की तो मोहन भौंसले गंभीर-सा, खामोश रहा ।
"समझ गए कि तुम्हें कैसे, क्या करना है ?"
"हाँ, समझा । मेरे लिए खास कुछ नहीं लग रहा करने के लिए ।"
"तुम्हारे पास सबसे ख़ास बात ये है कि जब वापस आकर तुम्हारा प्लेन मुम्बई एयरपोर्ट पर लैंड करेगा तो उस वक़्त तुम्हें सब सुरक्षा एजेंसियों की नजरों से बचकर निकल आना है । वहाँ से कैसे निकलना है, ये बात तुम्हें बाद में समझा दूँगा । फिर भी अगर तुम न निकल सके तो तुम्हारा पैसा, तुम्हारी पत्नी सोनिया को दे दिया जाएगा ।"
"पैसा सोनिया को दे दिया जाएगा !" मोहन भौंसले ने कहा, "तो क्या प्लेन लैंड करने तक तुम लोगों के पास पैसा आ जायेगा ? क्या प्लेन के मुम्बई एयरपोर्ट पर से टेक ऑफ करने और लैंड करने के बीच डकैती... ?"
"हो चुकी होगी ।" जगमोहन ने कहा ।
"ओह ! लेकिन डकैती करने के लिए एयरपोर्ट पर ये सब करने की जरूरत क्या है । वो तो... ।"
"सवाल मत पूछो । जैसा कहा है सिर्फ वही करना है तुम्हें ।"
"मैं वही करूँगा । परंतु ये अजीब-सी डकैती है मेरे लिए तो... ।"
"जो करोड़ों की दौलत तुम्हें मिलेगी वो अजीब नहीं होगी ।" जगमोहन मुस्कुराया ।
"तुम्हारा काम, तुम जाओ । जो कहोगे मैं वही करूँगा । परंतु वापसी के वक़्त मैं पुलिस के हाथों पड़ जाता हूँ तो तब मेरी क्या स्थिति होगी ? क्या बाद में वो मुझे आजाद कर देंगे ?"
"नहीं ! वो डकैती का जिम्मेदार तुम्हें मानेंगे कि तुमने साथी के तौर पर दूसरों की सहायता की ।"
"मतलब की डकैती एयरपोर्ट पर होगी ?" मोहन भौंसले कह उठा ।
"ये तो आने वाला वक़्त बतायेगा । लेकिन तुम निश्चिन्त रहो । हमारी पूरी कोशिश होगी कि तुम एयरपोर्ट से सही-सलामत बाहर आ जाओ ।" जगमोहन ने सोनिया पर निगाह मारी, "परंतु इस काम के बाद तुम दोनों को मुम्बई से निकल जाना होगा और एक साल तक मुम्बई में नहीं आना है ।"
"मैं तो इस शहर से दूर जाने को पहले ही सोच चुका हूँ ।" मोहन भौंसले कह उठा, "बीस करोड़ हाथ आ जायेगा तो कहीं भी जाकर बसने में आसानी होगी ।"
"मतलब कि हमें पुलिस का खतरा रहेगा ?" सोनिया कह उठी ।
"एक साल तक तो रहेगा कि पुलिस के हाथ नहीं लगना है । एक साल का वक़्त दौलत के साथ कहीं भी बिताया जा सकता है । उसके बाद भी अगर मुम्बई से दूर रहा जाए तो बेहतर होगा ।"
"पैसा अगर पास में होगा तो वापस मुम्बई में आने की जरूरत ही क्या है ।" सोनिया ने कहा ।
जगमोहन ने तीनों को देखा । सब चुप थे । नजरें जगमोहन पर थीं ।
"इस मुलाकात में इतना ही बहुत है । कुछ और पूछना हो तो मुझसे फोन पर... ।"
"तुमने मेरे लिए कुछ नहीं बताया ।" प्रताप भौंसले बोला, "मैं इस काम में हूँ न ?"
"तुम हो । परंतु तुम्हें क्या करना है, ये बात देवराज चौहान ही बताएगा ।"
"देवराज चौहान से मुलाकात कब होगी ?"
"जल्दी ही ।"
"इस काम में मुझे क्या मिलेगा ?"
"दस करोड़ ।"
"मेरे लिए बहुत है ।" प्रताप भौंसले ने मुस्कुराकर सोनिया को देखा ।
"हरामजादा !" मोहन भौंसले मन-ही-मन बड़बड़ाया, 'मैं सब समझ रहा हूँ कि तुम किस चक्कर में हो । लेकिन मैं तुम लोगों की दाल नहीं गलने दूँगा । सोनिया ने पूछा कि अगर हम में से किसी एक को कुछ हो जाता है तो पैसा दूसरे को मिलेगा न ? कमीनी बहुत आगे का प्लान बनाने में लगी है ।"
■■■
जगमोहन चला गया था । परंतु तीनों चुप-चुप से थे । एक-दूसरे को देख रहे थे ।
प्रताप भौंसले गहरी सोच में डूबा दिख रहा था । जैसे किसी जोड़-तोड़ में लगा हो ।
"क्या सोच रहे हो ?" सोनिया ने प्रताप से पूछा ।
प्रताप ने नजरें उठाकर सोनिया को देखा फिर मोहन भौंसले को ।
"वो मुझे दस करोड़ देंगे ।" प्रताप ने मोहन भौंसले से कहा, "तुम दोनों को बीस करोड़ देने को कहा है । तीस करोड़ तो यही हो गया मतलब कि देवराज चौहान और जगमोहन हर किसी को दस-दस करोड़ दे रहे हैं ।"
"तुम्हें तो खुश होना चाहिए । कहाँ तुम एक करोड़ के जुगाड़ का सोच रहे थे और अब दस मिलने जा रहे हैं । तुम्हारे लिए ये सारा इंतजाम मैंने किया है । पैसा हाथ आते ही यहाँ से चले जाना और दोबारा मत वापस आना ।" मोहन भौंसले के स्वर में तीखे भाव आ गए, "दस करोड़ मिलने के बाद इस फ्लैट को अपना मत समझना । फिर समझना कीमत तुझे मिल गई ।"
"नाराज है अभी तक ?" प्रताप भौंसले हौले से हँसकर बोला ।
"मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे और सोनिया के बीच में आओ ।" मोहन भौंसले का स्वर अभी भी तीखा था ।
"सोनिया तेरी पत्नी है, मैं बीच में क्यों आऊँगा । वो तो यूँ ही... ।"
"मुझे सफाई मत दो ।"
"एक औरत के लिए हम भाइयों में बिगड़े, ये अच्छी बात नहीं । मैं अब ऐसा कुछ नहीं करूँगा ।"
मोहन भौंसले खामोश रहा ।
"मैं तो पैसों के बारे में सोच रहा था । जगमोहन ने ऐसा कहा था कि चार-पाँच लोग और शामिल है इस काम में ।"
मोहन भौंसले चुप रहा ।
"ऐसा ही कुछ कहा था ।" सोनिया बोली ।
"पाँच लोगों का मतलब, पचास करोड़ उनका हो गया । तीस हमारा, मतलब अस्सी करोड़ वो दूसरों को दे रहे हैं तो स्पष्ट है कि डकैती कम-से-कम दो सौ करोड़ की होगी । ओह, इतनी बड़ी दौलत । ये तो... ।"
"तुम क्या सोच रहे हो ?" मोहन भौंसले का स्वर सख्त हो गया ।
"मैं हिसाब लगा रहा हूँ कि ये मामला कुल कितनी दौलत का है ।"
"क्यों हिसाब लगा है हो ?"
"यूँ ही ।"
"यूँ ही कुछ नहीं होता । क्या चल रहा है तुम्हारे दिमाग में ?" मोहन भौंसले की आँखें सिकुड़ीं ।
"कुछ भी नहीं चल रहा है ।" प्रताप भौंसले ने मुस्कुराकर मोहन को देखा, "ये बहुत बड़ी दौलत का मामला... ।"
"तुम अपना दिमाग ठीक कर लो ।" मोहन भौंसले ने दाँत भींचकर कहा, "जो दस करोड़ तुम्हें मिलेगा सिर्फ उसके बारे में ही सोचो । खबरदार जो कोई भी गड़बड़ करने की सोची ।"
"मैं कुछ भी गड़बड़ नहीं सोच रहा मोहन ।"
"तुमने मेरी पत्नी पर हाथ डाला, परंतु मैं इसलिए चुप रहा कि हमें करोड़ों की दौलत मिलने जा रही है । ऐसे में काम में रुकावट नहीं आनी चाहिए । अगर तुमने कुछ ग़लत सोचा तो... ।"
"मैं सोच रहा हूँ कि डकैती की दौलत कहाँ पर पड़ी है ।" प्रताप भौंसले सोच भरे स्वर में कह उठा ।
"कहीं भी हो । ये काम देवराज चौहान और जगमोहन का है । इस बात का उन्हें पता होगा । इस बात को मत भूलना कि वो हिंदुस्तान का सबसे बड़ा और खतरनाक डकैती मास्टर है । तुम जरा भी बहके तो वो तुम्हें मार देगा ।" मोहन भौंसले ने शब्दों को चबाकर कहा, "जाने क्यों मुझे लग रहा है कि तुम्हें इस मामले में लेकर मैंने ठीक नहीं किया ।"
"ग़लत ही सोचता है तू ।"
"मैं तेरे को सतर्क कर रहा हूँ कि... ।"
"मोहन !" प्रताप भौंसले गंभीर स्वर में कह उठा, "मैं बहुत कुछ सोच रहा हूँ । ये बात हर किसी के दिमाग में आएगी कि सोनिया को जो काम करने के लिए एयरपोर्ट जाना होगा, आखिर उसका मतलब क्या है ? कुछ तो मतलब निकले । तुम्हें काला ब्रीफकेस लेकर कश्मीर जाने वाले प्लेन में सवार होना है और बाद में सोनिया को एयरपोर्ट पहुँचकर बताना है कि उसका पति बम लेकर प्लेन में सवार है और उसका इरादा प्लेन को उड़ा देने का है । माना कि इस बात से हड़कंप मच जाएगा, परंतु ये कैसी डकैती है ।"
"ये देवराज चौहान की प्लानिंग है कोई ।" मोहन भौंसले ने कहा ।
"माना, माना कि प्लानिंग है । पर करोड़ों की दौलत कहाँ है ?"
"एयरपोर्ट पर होगी ।" मोहन भौंसले ने कहा ।
"एयरपोर्ट पर इतनी दौलत कभी नहीं होती ।"
"तो कहीं होगी ।" मोहन भौंसले ने सिगरेट सुलगा ली, "ये बात जगमोहन हमें नहीं बता रहा है कि दौलत कहाँ है ।"
"वो हमें इतना ही बता रहे हैं जितना जानने की हमें जरूरत है ।" सोनिया ने कहा ।
"ये काफी बड़ी प्लानिंग है ।" प्रताप भौंसले ने अपने एक हाथ पर दूसरा हाथ मारा ।
"वो कैसे ?" सोनिया ने प्रताप को देखा ।
मोहन भौंसले ने सिगरेट का कश लिया ।
"ये डकैती कम-से-कम दो सौ करोड़ की होनी चाहिए । इतनी बड़ी दौलत को ले जाने के भी पर्याप्त इंतजाम करने होंगे । बेहद मजबूत इंतजाम करना होगा । अगर इतनी बड़ी दौलत एयरपोर्ट पर मौजूद होगी तो वहाँ सुरक्षा के भी तगड़े इंतजाम होंगे । इन इंतजाम को पार पाना आसान नहीं होगा । एयरपोर्ट हमेशा हाई सिक्योरिटी जोन के रूप में जाना जाता है, वहाँ कहीं पर तो प्रवेश कर पाना भी आसान नहीं होगा ।"
"तो तुम्हें क्यों चिंता हो रही है ?" मोहन भौंसले ने प्रताप को घूरा ।
"मैं सोच रहा हूँ कि क्या इन सब चीजों से पार पाना होगा ?" प्रताप ने मोहन को देखकर कहा ।
"मैंने पूछा है, तुम्हें चिंता ?"
"मुझे चिंता नहीं होगी तो किसको होगी ? तुम दोनों का काम तो जगमोहन बता गया है । मेरे काम के बारे में जगमोहन ने कहा है कि देवराज चौहान बतायेगा । स्पष्ट है कि मैं उन लोगों में शामिल होऊँगा, जो दौलत को लेकर निकलेंगे । ये काम खतरनाक होगा । वो हर एक को दस करोड़ यूँ ही नहीं दे रहे । इसमें जान का खतरा भी हो सकता है ।"
"करोड़ों की दौलत वो दे रहे हैं तो खतरा भी होगा ।" मोहन भौंसले बोला ।
"तेरे को लगता है कि दौलत एयरपोर्ट पर होगी ?"
"मैं सोचने की जरूरत नहीं समझता । मुझे देवराज चौहान और जगमोहन पर पूरा भरोसा है ।" मोहन भौंसले ने कहकर कश लिया ।
"आँखें बंद करके कुएँ में छलांग भी तो नहीं लगा सकते, हमें भी कुछ पता हो कि...।"
"मेरे ख्याल में बाकी की बातें देवराज चौहान बतायेगा ।" सोनिया ने कहा, "मेरे और मोहन के काम के बारे में वो इसलिए बता गया है कि हमारा काम दूसरी तरह का है । रही बात कि जिस दौलत पर डकैती की जानी है, वो पैसा कहाँ पर है ? तो वो पैसा कहीं पर भी हो सकता है । एयरपोर्ट पर भी, या एयरपोर्ट के आस-पास कहीं । या फिर मैं और मोहन एयरपोर्ट पर जो भी करेंगे, उसका वास्ता कहीं और पड़ी दौलत से होगा । मोहन ठीक कहता है कि वो करोड़ों की दौलत कहाँ है, हमें इस बात पर नहीं सोचना है । ये काम देवराज और जगमोहन का है । वो डकैती करेंगे । हम तो उनके सहायक हैं ।"
प्रताप ने सिर हिलाया फिर गहरी साँस लेकर बोला ।
"एक बात समझ में नहीं आती कि देवराज चौहान को इस तरह पड़ी दौलतों की खबरें कैसे मिल जाती है ?"
"ये देवराज चौहान का काम है और अपने काम को करना वो जानते हैं ।"
"बारह बज रहे हैं ।" सोनिया ने मोहन को देखा, "दोपहर का खाना बना पड़ा है, लगा दूँ ?"
मोहन भौंसले के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे ।
"तेरी धोखेबाजी को मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा ।" मोहन भौंसले के स्वर में नफरत के भाव थे ।
"उसमें मेरी कोई ग़लती नहीं थी । तुम्हारे भाई ने ही सब कुछ किया ।"
दोनों को देखता प्रताप भौंसले हँस पड़ा । मोहन भौंसले ने दाँत भींच लिए ।
"पति-पत्नी का ये झगड़ा बहुत सुखद लग रहा है मुझे कि मेरी वजह से झगड़ा हो रहा है ।"
"जुबान बन्द रख ।" मोहन भौंसले गुर्रा उठा ।
"तू मुझे ऐसा बोल रहा है ?" प्रताप ने आँखें सिकोड़कर मोहन भौंसले को देखा ।
"हाँ, तेरे को बोला ! क्या करेगा तू, बता ?"
"इतनी जल्दी भूल गया कि दोपहर को मैंने तेरे को... ।"
"दस करोड़ चाहिए कि नहीं ?" मोहन भौंसले ने कड़वे स्वर में कहा ।
"क्या मतलब ?" प्रताप भौंसले के माथे पर बल दिखे ।
"तूने जहाँ भी पंगा लिया, वहीं पर मैं डकैती को खराब कर दूँगा कि तेरे को एक रुपया भी न मिल सके । अब ये सोचना तेरा काम है कि तेरे को पैसा चाहिए कि नहीं ?"
■■■
इन तीनों से मिलकर जगमोहन बाहर निकला और कार में बैठकर आगे निकल गया । काका मेहर का फोन आ गया था कि वो उनके साथ काम करेगा । बाकी सब भी ठीक चल रहा था । रवीना, ललित कालिया, जैकी भी तैयार हो चुके थे । उसके हिस्से में आया एक काम पूरा हो चुका था । अब मारियो गोवानी से बात करनी रह गई थी । आठ दिन पहले मारियो गोवानी से मिलकर उससे कहा था कि उसके लिए काम है । करोड़ों रुपया मिल सकता है तो मारियो गोवानी ने दिलचस्पी दिखाई थी । उसने कहा था कि वो उनसे जल्दी मिलेगा ।
मारियो गोवानी के बारे में आपको बता दें कि वो खतरनाक इंसान माना जाता है । कभी वो गोवा का गैंगेस्टर हुआ करता था । वहाँ ड्रग्स का काम करता था । बीस साल की उम्र से लेकर पैंतीस साल तक गोवा में ड्रग्स का धंधा किया परंतु पुलिस की सख्ती से उसे गैंग खत्म करके, गोवा से मुम्बई आ जाना पड़ा । पंद्रह सालों से वो मुम्बई में था और पचास की उम्र का हो चुका था । मुम्बई में बीते पंद्रह सालों में उसने लोगों के लिये ट्रबल शूटर का काम किया था यानी कि पैसे लेना और लोगों की मुसीबतें दूर करना । उसके ग्राहकों में अंडरवर्ल्ड के लोग ज्यादा होते थे । जरूरत पड़ने पर दूसरों के लिए हत्यायें भी कर चुका था । अपहरण भी किए थे । यानी कि ऐसा कोई काम नहीं था जो उसने न किए हो । गोवा के वक़्त का ही उसका एक खास साथी हमेशा उसके साथ रहता था, जिसे वो मोहिते कहकर बुलाता था ।
मोहिते चालीस की उम्र का हो चुका था । वो गठे जिस्म का मालिक था और मारियो गोवानी के साथ हमेशा ही कंधे से कंधा मिलाकर चलता था । आज तक हर काम में उसके साथ रहा था । मारियो गोवानी का विश्वासपात्र था । दो बार तो उसी की वजह से मारियो गोवानी की जान बची थी । मोहिते गोवा में ही पैदा हुआ था । वहीं रहा और बड़ा हुआ । माँ-बाप का कुछ पता नहीं, वो कौन थे और बड़े होने पर मारियो गोवानी के साथ ही इन कामों में लग गया था । वो तेज दिमाग था, फुर्तीला और चालाक था । मारियो गोवानी ने उसे हर तरह की पढ़ाई पढ़ा दी थी । अब हालत ये थी कि छोटे-मोटे काम वो स्वयं ही संभाल लेता था । मारियो गोवानी को कष्ट नहीं करना पड़ता था ।
जगमोहन ने कार में लगी घड़ी में वक़्त देखा, रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे । एक हाथ से कार ड्राइव करते उसने मोबाइल निकाला और मारियो गोवानी का नम्बर मिलाकर फोन कान से लगाया ।
बेल जाने के बाद उधर से मारियो गोवानी की आवाज कानों में पड़ी ।
"हेलो !"
"मारियो !" जगमोहन बोला, "मैं जगमोहन हूँ । कुछ दिन पहले मैं तुमसे मिला... ।"
"याद है ।" उधर से मारियो गोवानी का स्वर कानों में पड़ा ।
"तुमसे बात करनी है । कब मुलाकात होगी ?"
"अभी भी आ सकते हो ।"
"कहाँ हो ?" जगमोहन ने पूछा ।
"अपने फ्लैट पर हूँ । पता बताऊँ ?"
"हाँ !"
"अकेले आओगे ?"
"हाँ !"
उधर से मारियो ने अपने फ्लैट का पता बताकर फोन बंद कर दिया ।
जगमोहन ने कार ड्राइव करके अगला फोन स्विट्जरलैंड में देवराज चौहान हो किया ।
दो बार की कोशिश के बाद फोन लग गया । बेल गई । फिर देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।
"हेलो !"
"मैं जगमोहन ! वहाँ पर तुम्हारा काम पूरा हुआ कि नहीं ? स्मिथ वॉल्टर से बात हुई क्या ?"
"फोन आया था उसका । उसने इतना ही कहा कि एक-दो दिन में फिर बात करूँगा । अभी कुछ वक्त लग सकता है ।"
"मैंने यहाँ पर अपना काम पूरा कर लिया है, अब मैं मारियो गोवानी से मिलने जा रहा हूँ ।"
"यहाँ का काम पूरा होते ही, तुम्हें फोन कर दूँगा ।" देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।
जगमोहन ने फोन बंद किया और कार की रफ्तार बढ़ा दी ।
■■■
जगमोहन ने कॉल बेल पर उंगली रखकर दबाई तो भीतर से बेल बजने का स्वर सुनाई दिया । जगमोहन ने रात के वक़्त सुनसान पड़े कारीडोर में नजरें दौड़ाई जो कि इस वक़्त शांत था । रात के साढ़े बारह बज रहे थे । ये महंगा अपार्टमेंट था, जहाँ मारियो गोवानी रहता था । तभी जगमोहन ने एक औरत को बच्चे के साथ लिफ्ट में से निकलते देखा और वो कॉरिडोर में आगे बढ़ गई । बच्चा और माँ बातें कर रहे थे ।
तभी दरवाजा खोले जाने का स्वर सुनने को मिला ।
जगमोहन सतर्क हो गया । दरवाजा खुला । थोड़ा-सा खुला और मोहिते को बाहर झाँकता पाया । दोनों की नजरें मिलीं । मोहिते ने दरवाजा कुछ और खोला और गर्दन आगे करके बाहर झाँका ।
"अकेला हूँ ।" जगमोहन बोला ।
मोहिते ने दरवाजा खोला तो जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया ।
"मुझे तुम्हारी तलाशी लेनी होगी ।"
"क्यों ?" जगमोहन ने उसे देखा ।
"मारियो घर पर किसी से नहीं मिलता । शुक्र करो कि उसने तुम्हें यहाँ का पता बता दिया अगर वो पी नहीं रहा होता तो तुम्हें कभी नहीं बुलाता ।" मोहिते ने जगमोहन को घूरा ।
"मैं तो पहले भी तुमसे और मारियो से मिल चुका हूँ तो फिर तलाशी... ।"
"क्या तुम मारियो को शूट करने आये हो ?"
"नहीं !" जगमोहन के होंठों से निकला ।
"तब तो तुम्हें तलाशी दे देनी चाहिए ।"
"ले लो ।"
"क्या है तुम्हारे पास ?" मोहिते, जगमोहन के पास पहुँचा ।
"रिवॉल्वर ।"
मोहिते ने तलाशी ली । रिवॉल्वर ही मिला । जिसे उसने अपनी जेब में रख लिया ।
"जब मैं यहाँ से वापस जाऊँ तो ये मुझे वापस देना भूलना मत ।" जगमोहन ने कहा ।
मोहिते मुस्कुराया और पीछे आने का इशारा करते हुए आगे बढ़ गया ।
वो बेशकीमती चीजों से सजा-सजाया फ्लैट था, बाकी खुला फ्लैट था ।
ड्राइंग हॉल और लॉबी पार करके मोहिते ने एक बन्द दरवाजे को खोलते हुए पलटकर जगमोहन से कहा ।
"आओ ।"
जगमोहन, मोहिते के साथ भीतर प्रवेश कर गया ।
कमरे में ए०सी० की ठंडक थी । सामने डबल बेड पर टेक लगाए मारियो गोवानी बैठा था । बेड पर ही रखी ट्रे में बोतल गिलास रखे थे । एक प्लेट में नमकीन काजू थे । वो नाईट सूट में था । पी रहा था । एक गिलास आधा खाली दिख रहा था और उसके चेहरे पर भी नशे का असर दिख रहा था । वो जगमोहन को देखकर शांत भाव में मुस्कुराया ।
जगमोहन भी मुस्कुराया तभी मोहिते खाली पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा करके बोला ।
"यहाँ बैठ जाओ ।"
जगमोहन बैठा तो मारियो से मोहिते से कहा ।
"इसे गिलास तैयार करके दे ।"
"मैं नहीं पीता ।" जगमोहन ने कहा ।
"नहीं पीता ?" मारियो गोवानी के चेहरे पर हैरानी उभरी, "डकैती मास्टर का खास साथी और पीता नहीं । हैरानी है ।"
"देवराज चौहान का साथी बनने के लिए पीना जरूरी तो नहीं !" जगमोहन मुस्कुरा रहा था ।
"ठीक है, नहीं पीते तो न सही ।" मारियो गोवानी ने कंधे उचकाकर कहा, "इसे कोल्ड ड्रिंक दे दे ।"
मोहिते फौरन गिलास में कोल्ड ड्रिंक डालकर ले आया । जगमोहन ने गिलास लेकर घूँट भरा । मोहिते खामोशी से एक तरफ खड़ा हो गया ।
मारियो गोवानी ने गिलास उठाकर घूँट भरा । काजू मुँह में डाले ।
"पहले भी तुम अकेले आये थे और अब भी । देवराज चौहान कहाँ है ?" मारियो गोवानी ने पूछा ।
"वो किसी काम में व्यस्त है ।"
"हमें कब मिलेगा ?"
"मेरे ख्याल में तो मिलने की जरूरत नहीं पड़ेगी । काम ऐसे ही चल जाएगा ।" जगमोहन मुस्कुराया ।
"ऐसा कैसे हो सकता है कि हम देवराज चौहान का काम करें और वो हमें मिले भी नहीं ?"
"मैं हूँ, मुझसे मिलो । मुझसे बात करो । जरूरत पड़ी तो देवराज चौहान भी मुलाकात करेगा ।"
"जरूरत पड़ी तो ?"
"हाँ !"
"ठीक है ! कहो, मेरे लिए काम क्या है ? तुमने कहा था करोड़ों मिलेंगे ।" मारियो गोवानी ने पुनः घूँट भरा ।
जगमोहन, मोहिते पर नजर मारकर बोला ।
"इस काम में तुम दोनों रहोगे । दोनों मिलकर बढ़िया काम करते हो । मेरे पास पूरी खबर है । तुम दोनों को इस काम का पंद्रह करोड़ मिलेगा । ये बहुत अच्छी रकम है मारियो ।"
"सच में ।" मारियो सीधा होकर बैठ गया, "पंद्रह करोड़ आकर्षण पैदा करती है । काम क्या है ?"
"देवराज चौहान डकैती करने जा रहा है ।" जगमोहन ने कहा ।
"समझ गया, आगे ? क्या हमें डकैती में शामिल होना है ?"
"नहीं, डकैती में जो-जो लोग साथ होंगे, वो चुन लिए गए हैं ।"
"तो फिर हमारा काम कहाँ रह गया ?" मारियो गोवानी ने कहकर मोहिते पर निगाह मारी ।
मोहिते चुपचाप सुन-समझ रहा था ।
"तुम दोनों के हिस्से का काम मेरी निगाह में तो बेकार-सा है । मेरी सोच के हिसाब से तुम लोगों को बेकार में पंद्रह करोड़ दिया जा रहा है, परंतु देवराज चौहान कहता है कि ये काम बहुत जरूरी है ।"
मारियो गोवानी की निगाह जगमोहन पर टिकी रही ।
"हम डकैती करेंगे और तब तुम लोगों ने हम पर नजर रखनी है कि हमारे साथ कोई गड़बड़ हो तो तुम दोनों हमें सुरक्षित वहाँ से निकाल सको । इसके लिए तुम दोनों को पूरी तैयारी करनी होगी ।"
मारियो गोवानी गंभीर दिखा ।
"तो डकैती में गड़बड़ होने के चांसेस हैं ?" वो बोला
"मेरे ख्याल में नहीं, परंतु देवराज चौहान चाहता है कि इस तरह की तैयारी भी रखी जाए ।"
"मान लो ।" मारियो गोवानी सोच भरे स्वर में बोला, "डकैती नहीं हो पाती । असफल हो जाते हैं तो तब हमारे पंद्रह करोड़ का क्या होगा ? डकैती के माल में से ही हमें पैसा दोगे या अपनी जेब से ?"
"डकैती सफल रही तो पंद्रह करोड़ मिलेगा ।"
"तब तो ये भी हो सकता है कि डकैती असफल होते देखकर हम वहाँ से चलते बने । तुम लोगों की कोई सहायता न करें कि अब पैसा तो हमें मिलना नहीं है ।" मारियो गोवानी ने कहा ।
"ऐसा हो सकता है । तुम लोग मौके पर ऐसा कर सकते हो ।" जगमोहन ने सिर हिलाया, "परंतु उस स्थिति में देवराज चौहान बाद में तुमसे मिलेगा और तुम दोनों को शूट कर देगा ।"
मारियो गोवानी और मोहिते की नजरें मिलीं ।
"धमकी दे रहे हो ?" मोहिते ने पूछा ।
"हाँ !" जगमोहन गंभीर दिखा, "ये मत भूलो की सफल होने की स्थिति में तुम दोनों को बिना कुछ किए पंद्रह करोड़ मिलेंगे । असफल होने की हालत में तुम दोनों को पूरी तरह कोशिश करके हमें वहाँ से निकालना है । मौके पर वहाँ से हमारी सहायता के बिना आ गए तो देवराज चौहान तुम दोनों को नहीं छोड़ेगा ।"
"चिंता मत करो । हम ऐसे मौके पर भागने वाले नहीं ।" मारियो ने कहा ।
"ये बात मैं जानता हूँ तभी तो तुम्हारे पास आया हूँ ।" जगमोहन गंभीर था ।
"धंधे में मैं धोखा नहीं देता ।" मारियो गोवानी ने कहा और एक ही साँस में गिलास खाली कर दिया । उसके चेहरे पर नशा दिख रहा था परंतु आवाज सामान्य थी, "डकैती कहाँ कर रहे हो ?"
"ये बात ऐन मौके पर बताई जाएगी ।"
"पहले क्यों नहीं ?"
"देवराज चौहान चाहता है कि मौके पर ही दूसरों लोगों को डकैती की जगह का पता चले ।"
"दूसरे लोगों में और हम में फर्क है ।" मारियो गोवानी ने कहा, "दूसरे लोगों को देवराज चौहान के साथ मिलकर डकैती करनी है और हमें जो काम दिया जा रहा है, उसमें हमें अपनी तैयारी करनी होगी । ऐसे में ये पता लगना जरूरी है कि किस जगह पर डकैती की जा रही है ? वहाँ के हालात क्या होंगे और... ?"
"तैयारी में कर दूँगा ।"
"तुम ?" मारियो गोवानी की नजर जगमोहन के चेहरे पर जा टिकी
"ऐसे मौके पर वहाँ पर कैसे हालात पैदा होंगे, ये मैं जान सकता हूँ तो तुम्हारे लिए सारा इंतजाम कर दूँगा ।"
"फिर भी मैं इंतजाम करूँ तो ज्यादा ठीक रहेगा क्योंकि काम हमने करना है ।"
"मजबूरी है । देवराज चौहान ने मना कर रखा है डकैती की जगह बताने को... ।"
मारियो गोवानी ने गहरी साँस लेकर मोहिते से कहा ।
"तुम्हें जँची ये बात ?"
"नहीं ! जब तक हमें जगह और हालातों के बारे में नहीं पता होगा, हम ठीक से काम नहीं कर सकेंगे । उन हालातों में हमसे कोई कमी भी रह सकती है । हमें सब कुछ पता होना चाहिए ताकि हम हर तरफ नजर रख सकें । इसमें पहले तैयारी करनी होगी । सुना तुमने ?" मारियो गोवानी ने जगमोहन को देखा, "हमें सब कुछ पता होना चाहिए ।"
जगमोहन फौरन कुछ न कह सका ।
"अगर हमसे सही काम लेना है तो हम पर भरोसा करके, हमें पहले ही सब कुछ बताना होगा ।" मारियो गोवानी ने नया गिलास तैयार करते हुए कहा, "काम हमारा तो तैयारी भी हम ही करेंगे । हमारी नजरें तुम सब पर रहेंगी तभी तो हम तुम्हें सुरक्षा दे पायेंगे । नहीं तो क्या फायदा, अगर हम काम ही ठीक से न कर सके तो ?"
"इस बारे में मैं तुमसे फिर बात करूँगा मारियो ।" जगमोहन सोच भरे स्वर में बोला, "देवराज चौहान से बात करनी होगी । फाइनल फैसला तो उसे ही लेना है ।"
"मैं पंद्रह करोड़ खोना नहीं चाहता । ऐसे न हो कि तुम दोबारा हमसे संपर्क करो ही नहीं ।"
जगमोहन सिर हिलाकर रह गया फिर मोहिते से बोला ।
"मेरा रिवॉल्वर दो ।"
"बाहर चलो । दरवाजे पर दूँगा ।" मोहिते चलने को तैयार हो गया ।
"क्या देवराज चौहान हर डकैती में खुद को बचाने का ऐसा इंतजाम करता है ?" जगमोहन उठा तो मारियो गोवानी बोला ।
"ऐसा पहली बार किया जा रहा है कि पीछे एक पार्टी बचाने के लिए भी रहे ।" जगमोहन ने कहा ।
"इसका मतलब इस बार खतरा बहुत ज्यादा है ?"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा और मोहिते के साथ कमरे से बाहर निकल गया ।
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