14 मई : शुक्रवार

सुबह के दस बजने को थे जब विमल का मोबाइल बजा।
उसने कॉल रिसीव की।
“विक्टर बोलता है, बाप।” – उसे विक्टर का घबराया स्वर सुनाई दिया – “इधर कूपर कम्पाउन्ड पर है मैं...”
“इतना सुबह सवेरे उधर क्या करता है?”
“बाप, पहले मोस्ट इम्पॉर्टेट कर के बात सुनने का, फिर जो पूछेगा, बोलेगा।”
“कोई गलाटा?” – विमल सशंक भाव से बोला।
“वैरी लार्ज साइज़। तुम इमेज़िन नहीं कर सकेगा, इतना लार्ज साइज़।”
“क्या हुआ?”
“कूपर कम्पाउन्ड अक्खा खाली है। न शोहाब, न इरफ़ान। उन के डोर पर तेरे वास्ते नोटिस चिपक रयेला है।”
“मेरे वास्ते नोटिस!”
“हाँ। फोटो भी लेता है और फॉरवर्ड करता है। अभी सुन, क्या लिखा है! लिखा है:”
सोहल के वास्ते पैगाम
अपने साथियों से मिलना हो तो फौरन
शिवाजी चौक पहुँचे
“क्या मतलब हुआ इसका?” – विमल बोला।
“बाप, मतलब मैं समझाएगा तेरे को?”
“नहीं। सॉरी। अभी वो नोटिस दरवाज़े पर ही है न! हटाया तो नहीं?”
“नहीं। खाली फोटू निकाला। तू बोले तो उतार कर तेरे पास लाए?”
“नहीं, हरगिज़ नहीं। नोटिस नहीं हटाना। वैसे ही लगा रहने देना है जैसे तूने नहीं देखा था। किसी ने भी नहीं देखा था।”
“ऐसा?”
“हाँ। तू इतनी सुबह उधर कैसे पहुँच गया?”
“इरफ़ान फोन पर मेरे को केयरटेकर की ज़रूरत का बोला था। मैं बोला था उधर आकर बात करता था। वहीच बात करने पहुँचा तो कम्पाउन्ड उजाड़ था और ये नोटिस था। बाप, अभी तू क्या करेगा? शिवाजी चौक पहुँचेगा?”
“आख़िर तो पहुँचूँगा पर अभी मेरे को वक्त माँगता है।”
“क्या करने का वास्ते?”
“बोलूँगा।”
“तेरा हैल्प का वास्ते मैं डिरेवर भीड़ तैयार कर के रखे? बोले तो वन हण्ड्रेड! टू हण्ड्रेड ...”
“नहीं! नहीं! ये ऐसे मुकाबले का काम नहीं। ऐसा कुछ किया तो पहले इरफ़ान, शोहाब शहीद होंगे और फिर कुछ होगा।”
“पण तू अकेला?”
“नहीं अकेला। जो शख़्स इंसाफ के लिए लड़ता है, वो कभी अकेला नहीं होता, उसका वाहेगुरु उसके साथ होता है, उसकी वजह से जुल्म का शिकार होने से बचे सैकड़ों, हज़ारों लोगों की दुआएं उसके साथ होती हैं। फिर गुरु महाराज ने कहा है – सवा लाख से एक लड़ाऊँ, तो गोबिन्द सिंह नाम कहाऊँ!”
“जीसस इज़ सेवियर। मेरे वास्ते हुक्म बोल, बाप!”
“मैं ‘मराठा’ में हूँ। यहाँ से वरली जाऊँगा। वहाँ मेरे को टाइम लगेगा इसलिए मेरे आगे-पीछे ही रहना। वहाँ से आख़िर मैं नोटिस पर दर्ज पैगाम के मुताबिक शिवाजी चौक पहुँचूँगा। तब भी मेरे आगे पीछे ही रहना।”
“साथ नहीं?”
“नहीं।”
“एक से दो भले!”
“नहीं। ये काम मेरे अकेले के करने का है। ये मेरे अकेले के किए ही होगा, वर्ना नहीं होगा।”
“बाप, तू मिरेकल्स परफॉर्म कर सकता है। देखता है ये टेम क्या करना सकता। कट करता है।”
दो घन्टे बाद विमल शिवाजी चौक पहुँचा।
उसने पिछवाड़े के ऑफिस में कदम रखा। पिछवाड़े की सड़क भी पूरी-पूरी चौड़ी थी, बड़ी गाड़ियाँ आराम से अगल बगल से गुज़र सकती थीं, भले ही दोनों साइडों में पार्किंग भी ऑकूपाइड हो।
रिसैप्शनिस्ट ने आदतन असहिष्णुतापूर्ण भाव से उसकी तरफ निगाह उठाई। “मैं सोहल।” – विमल सहज भाव से बोला। “पूरा नाम बोलने का।” – वो बोली।
“सुरेन्द्र सिंह सोहल।”
“क्या माँगता है?”
“कुबेर भाई से मिलना माँगता है।”
“साहब बुलाया मुलाकात के लिए?”
“नहीं।”
“फिर मुलाकात नहीं हो सकती।”
“इडियट!”
“क्या बोला?”
“नाम ग़ौर से नहीं सुनती। ऐसीच मुंडी हिलाती है। किसी दूसरे को बोल कौन आया!”
विमल की आवाज़ में ऐसा रौब था, ऐसा जलाल था कि उसने फिर हज्जत न की। उसने एक नम्बर डायल किया और माउथपीस में बोली – “लोखण्डे साहब, इधर कोई सुरेन्द्र सिंह सोहल आया ... आए। पुजारी जी से मिलना ....”
भड़ाक से पिछवाड़े का दरवाज़ा खुला और राघव लोखण्डे ने बाहर कदम रखा। लम्बे डग भरता वो रिसैप्शन पर पहुँचा और भौंचक्का-सा विमल को देखने लगा।
बाजू का एक बन्द दरवाज़ा खुला और मंगेश नटके और जेकब परेरा बाहर निकले। दोनों मजबूती से हाथों में सामने तनी गन थामे थे।
परेरा की विमल से निगााह मिली तो उसका गनवाला हाथ सामने तना न रह सका। उसका सिर भी अपने आप नीचे झुक गया।
“बोले तो” – विमल बोला – “परेरा! दोनों सिरों पर एक्टिव! मिडल पर फोकस! नो!”
उसने जवाब न दिया, न सिर उठाया।
“शन नहीं तानने का।” – लोखण्डे कर्कश स्वर में बोला – “नीचे करो।”
परेरा का हाथ तो पहले ही कदरन नीचे था, नटके ने पूरा झुकाया।
“वापिस जाओ। ख़ुद नहीं आने का। बुलाने पर आना।”
दोनों उस दरवाज़े के पीछे गायब हो गए जिससे बाहर निकले थे। पीछे लोखण्डे विमल की तरफ आकर्षित हुआ।
“सोहल?” – वो मन्त्रमुग्ध भाव से बोला।
“और कौन?” – विमल पूर्ववत् सहज स्वर में बोला।
“इधर आ भी गया!”
“देर करने में क्या फायदा था!”
“कुबेर भाई को पूछता था!”
“हाँ। है न इधर?”
“तुम कौन?”
“मैं कुबेर भाई का ख़ास। राघव लोखण्डे।”
“कुबेर भाई ने ख़ास मेरे को इधर बुलाया, मेरे को उसके पास ले के चल।”
“अभी। अभी। हथियारबन्द है?”
“नहीं।”
“नहीं?”
“नहीं। तलाशी लेना जी चाहे तो।”
“दायां हाथ जेब में क्यों है?”
“बाहर निकाल लेता हूँ।”
विमल ने हाथ बाहर निकाला लेकिन मुट्ठी न खोली।
“हाथ में कुछ है।”
“है न! पर तेरे वास्ते नहीं है, तेरे कुबेर भाई के वास्ते है।”
“क्या?”
“बोला न, कुबेर भाई के वास्ते है।”
“मेरे को देखने का।”
“नहीं देख पाएगा। ज़बरदस्ती करेगा तो कयामत आ जाएगी।”
“क्या बोला?”
विमल ख़ामोश रहा। कुछ क्षण ख़ामोशी रही।
“कुबेर भाई के ख़ास” – फिर विमल शुष्क स्वर में बोला – “मेरा शाम तक इधर रुकने का इरादा नहीं है।”
“सोहल की जिस शक्ल से हम वाकिफ़ हैं, वो तेरे से नहीं मिलती।”
“बोले तो जिस से तू वाकिफ़ है। कुबेर भाई के रूबरू होने दे, मेरे को यकीन है वो तेरे जैसा नासमझ, नावाकिफ़ नहीं निकलेगा।”
“अभी या मेरे को उसके पास ले के चल या उसको इधर बुला के ला।”
“इधरीच ठहरने का। मैं जा के आता है।”
“ठीक!”
लोखण्डे वापिस घूमा और उसी दरवाज़े में वापिस दाखिल हो गया जिसमें से निकला था।
“सोहल!” – पीछे रिसैप्शनिस्ट मन्त्रमुग्ध स्वर से बोली – “मैं नाम सुना।”
“जब आते ही नाम बताया था” – विमल बोला – “तब न सुना?”
“ध्यान न दिया।”
“क्योंकि आदत पड़ी हुई है ध्यान न देने की।”
“लोखण्डे इधर तुम्हें अकेला छोड़ गया! तुम खिसक जाए तो?”
“वाकई अक्ल से कोई रिश्ता नहीं। बोले तो मेरे को इधर कोई पकड़ के लाया!”
“ओह!”
“मैं खुद आया तो क्यों खिसक जाएगा?”
“स-सॉरी!”
विमल प्रतीक्षा करने लगा। लगभग उलटे पाँव लोखण्डे अपने बॉस के साथ वापिस लौटा।
“कुबेर भाई!” – वो बोला। विमल के भावहीन ढंग से सहमति में सिर हिलाया। कुबेर पुजारी आगे बढ़ कर, तन कर उसके सामने खड़ा हुआ।
“सोहल!”
फिर शुष्क स्वर में बोला।
“यस।” – विमल पूर्ववत् सहज भाव से बोला – “इन पर्सन।”
“खुद चले आए!”
“मजबूरी थी।”
“क्या बोला?”
“ऊँट पर सवार आना था। वक्त रहते ऊँट न मिला।”
पुजारी ने अपलक उसे देखा। विमल ने लापरवाही से कन्धे उचकाए।
“ये मसखरी महँगी पड़ेगी।” – पुजारी सख्ती से बोला।
“कितनी महँगी! जान हथेली पर रख कर तो मैं यहाँ आया ही हूँ! और कितनी महँगी!”
“क्यों आया?”
“वॉट नॉनसेंस! सोहल के वास्ते पैगाम पीछे कूपर कम्पाउन्ड छोड़ा कि नहीं कि शिवाजी चौक पहुँचने का?”
“हूँ। हाथ में क्या है?”
“बाई के सामने बोलूँ?”
उसने कुछ क्षण उस बात पर विचार किया।
“फ्रंट ऑफिस में जा।” — फिर बोला – “बुलाने पर आना।”
चेहरे पर अनिच्छा के भाव लिए वो वहाँ से उठ कर चली गई।
“अब बोल।” — पुजारी बोला।
“वो बाजू का दरवाज़ा” – विमल बोला – “जहाँ से तेरे दो हथियारबन्द मातहत आनन-फानन बाहर निकले थे, बन्द हो तो भीतर आवाज़ पहुँचती है?”
पुजारी ने अपने ख़ास की तरफ देखा। लोखण्डे ने इंकार में सिर हिलाया।
“गुड!” — विमल बोला – “सुनो। मेरे हाथ में रिमोट है जिसके लाल बटन पर मेरा अँगूठा है। अँगूठे पर मामूली दबाव पड़ने पर भी रिमोट एक्टीवेट हो जाएगा और बाहर एक कार में बैठे तुम्हारे बीवी-बच्चे लोथड़ों की शक्ल में हवा में उड़ते दिखाई देंगे।”
दोनों खलीफ़ा सन्नाटे में आ गए।
“मुझे उनकी मौत का बहुत अफसोस होगा लेकिन अपने साथियों की मौत का भी बहुत अफसोस होगा इसलिए मजबूरी है। जो भीड़ छुपके वार करता है, उसको वैसे जवाबी बार के लिए तैयार रहना चाहिए।”
पुजारी के मुँह से बोल न फूटा।।
“तुम्हारे जोड़ीदार की जेब में गन है और ये तड़प रहा है उसको मेरे पर इस्तेमाल करने के लिए। अर्ज़ है कि मैं इसको बिल्कुल नहीं रोकूँगा, बिल्कुल नहीं बोलँगा कि ये गन फेंक दे या मेरे हवाले कर दे या मेरे पर चलाने की नादानी न करे। इसे खुली छूट है कुछ भी करने की। लेकिन ये कितना ही बड़ा निशानेबाज़ क्यों न हो, मेरी कितनी भी जल्दी जान क्यों न निकल जाए, मैं रिमोट का बटन दबा कर ही मरूँगा।”
“ये कुछ नहीं करेगा। लोखण्डे, गन निकाल कर परे सोफे पर डाल!”
लोखण्डे ने आदेश का पालन किया।
“तुम कहते हो” – पुजारी विमल की तरफ घूमा – “मेरे बीवी-बच्चे बाहर कार में हैं!”
“हाँ। फिल्म स्टार्स जैसी खूबसूरत बीवी। दो खूबसूरत बेटियाँ। एक सात साल की एक पाँच साल की। कार हाईएण्ड ‘वरना। लाड़ली बीवी के एक्सक्लूसिव इस्तेमाल के लिए।”
“ ‘वरना’ तुम्हारे कब्जे में?”
“कमाल के भीड़ हो! कार की फिक्र है, बीवी की फिक्र नहीं है?”
“शटअप!”
“गनीमत जानो कि ऐसी प्राइम प्रापर्टी सोहल के कब्जे में है। इसलिए सेफ़ है – बशर्ते कि तुम ही अक्कल के दरवाज़े बन्द कर के बेलगाम न हो जाओ।”
“साफ जवाब दे। ‘वरना’ तेरे कब्जे में?”
“तमीज़ थोड़ी देर ही टिकी!”
“जवाब दे!”
“सुन जवाब। कब्जे के लायक सभी कुछ मेरे कब्जे में। बाकी तेरे फैंसी फ्लैट का फर्नीचर तो नहीं ढोना था मैंने!”
“कार, फैमिली यहाँ कैसे पहुँच गई?”
“मैं लाया।”
“तुम लाए? तुम्हें क्या पता मैं कहाँ रहता हूँ!”
“फ्लैट नम्बर 402 बी, ओमप्रिया अपार्टमेंट्स, वरली सी फेस, वरली। बीवी का नाम वसुधा। बड़ी बेटी का नाम कीर्ति, छोटी का नाम अनन्या।”
तब पहली बार पुजारी साफ हिला हुआ दिखाई दिया। ।
“वो बाहर हैं? कार में?”
“हाँ। कार में ख़ास खूबियों के साथ।”
“क्या बोला?”
“भीतर डोम लाइट के साथ लटका एक ग्रोसरी बैग है जिसमें एक निहायत ताकतवर बम है जो मेरे हाथ में थमे रिमोट के साथ ट्यून्ड है। रिमोट के लाल बटन पर हल्का-सा दबाव बम फोड़ देगा और फिर जो अनर्थ होगा उसके लिए
जो वाहिद शख्स ज़िम्मेदार होगा, वो तुम होगे।”
“बीवी को बम की ख़बर है?”
“हाँ।”
“बच्चों को?”
“नहीं।”
“क्यों?”
“क्योंकि अभी बच्चे हैं, इन बातों को नहीं समझते।”
“माँ के समझाए?”
“माँ सयानी होगी तो क्यों समझाएगी इतने छोटे बच्चों को!”
“बीवी बम कार से बाहर फेंक दे तो...”
“बड़े मवाली की बीवी है, इन मामलों में छोटी-मोटी अक्ल रखती होगी! डोम से ग्रौसरी बैग उतार सकेगी, चैक कर सकेगी कि भीतर एक्टिवेटिड बम है जिसे वो बड़ी हद अगली सीट पर या उसके नीचे फेंक देगी जहाँ आखिर बम फटा तो कार में ही फटेगा और फट कर उतना ही कहरबरपा साबित होगा जितना तब होगा जब नौसरी बैग में पड़ा पाएगी, भले ही लाख कोशिशें कर ले।”
“क्यों?”
“शीशों की सैंट्रल लाकिंग मैंने बिगाड़ी हुई है। कोई बन्द शीशा कितनी भी कोशिशों से अपनी जगह से नहीं हिलेगा।”
“कोई दरवाज़ा?”
“भीतर से नहीं खोला जा सकता।”
“वजह?”
“देख के आओ। पाँच मिनट हैं तुम्हारे पास वजह समझने के लिए।”
वो हिचकिचाया।
“जा कर कार के भीतर झाँकोगे तो मालूम पड़ेगा कि कार के चारों दरवाज़ों पर भीतर की तरफ हैंडल नहीं हैं। यानी कार का कोई दरवाज़ा भीतर से नहीं खोला जा सकता।”
“बाहर की तरफ से?”
“बाहर की तरफ से खोला जा सकता है लेकिन बाहर की तरफ से कोई दरवाज़ा सिर्फ मैं खोल सकता है।”
“मैं जा कर कोई शीशा तोड़ दूँ...”
“भई, इसीलिए तो तुम्हारे लिए पाँच मिनट का वक्त मुकर्रर किया – एक मिनट जाने के लिए, एक मिनट लौटने के लिए और बाकी के तीन मिनट कार का जायजा लेने के लिए; ये जानने के लिए कि कार की बाबत जो मैंने कहा, सच कहा। शीशा ज़बरन तोड़ने की कोशिश करोगे तो धमक से ही बम फट जाएगा। समझ गए?”
वो ख़ामोश रहा, उसने बेचैनी से पहलू बदला।
“शीशा तोड़ भी लोगे तो भीतर हाथ डाल कर हैंडल घुमा कर दरवाज़ा नहीं खोल पाओगे क्योंकि, मैंने पहले ही कहा, कार को भीतर से नहीं खोला जा सकता क्योंकि भीतर की तरफ दरवाज़ों में हैंडल नहीं है। पूरा शीशा तोड़ कर, उसे पूरी तरह से फ्रेम से अलग करके ही तुम खिड़की के रास्ते बीवी-बच्चों को बाहर निकाल पाओगे लेकिन इतनी ड्रिल में ढेर वक्त दरकार होता है, ड्रिल पाँच मिनट में – बोले तो तीन मिनट में – मुकम्मल नहीं हो सकती।”
“मेरी बीवी के पास मोबाइल था!”
“किस काम आता? जो वो तुम्हें बताती, वो तुम मेरे से पहले ही जान चुके हो। वो पुलिस को फोन करती, ये तुम्हीं न चाहते। नहीं?”
“हाँ।”
“फिर भी एहतियात के तौर पर मैंने मैडम के फोन का सिम निकाल लिया था, लिहाज़ा मैडम के पास मोबाइल होना न होना एक बराबर है।”
“कार में वाकई बम है?”
“कार पर पहुँचोगे ही। बीवी को इशारे से समझा कर बोलना कि डोम से लटका ग्रौसरी बैग वहाँ से उतारे और बैग का मुँह खोल कर बन्द खिड़की में से तुम्हारे सामने करे। लेकिन वक्त का ख़याल रहे। ताकीद है आवाजाही समेत जो करना है, पाँच मिनट में करना है।”
“मैं कार को पहचानूँगा कैसे?”
विमल हँसा। “हँसते क्यों हो?” – पुजारी भुनभुनाया।
“तुम्हारी अक्ल पर हँसता हूँ| बीवी की कार और पूछते हो पहचानोगे कैसे?”
“सॉरी। कहाँ खड़ी है?”
“यहाँ से बाहर निकल कर बाएं जाना। दिखाई देगी। क्या?”
बड़ी मुश्किल से वो सहमति में सिर हिला पाया।
“बीवी के साथ” – फिर तमक कर बोला – “कोई बदसलूकी तो नहीं की?”
“कैसी बदसलूकी?”– विमल बोला – “जो तुम्हारी दुनिया में औरों की बहन बेटियों के साथ करने का रिवाज़ है?”
“जवाब दो।”
“बीवी से सवाल करना।”
“मैं तुमसे जवाब चाहता हूँ।”
“मैं कुछ भी कहूँ, तसदीक फिर भी बीवी से ही करोगे।”
“जवाब दो।”
“अगर बीवी ने बदसलूकी की तसदीक की तो डूब मरना।”
“क्या बोला?”
“जो मर्द अपनी औरत की हिफ़ाज़त नहीं कर सकता, उसका डूब मरना ही बनता है। अलबत्ता बेशर्मी पर ज़ोर हो तो सब माफ है।”
“इस वक्त तुम कुछ भी कह सकते हो, क्योंकि बाज़ी इत्तफ़ाक से तुम्हारे हाथ में है...”
“इत्तफ़ाक से?”
“मौजूदा दश्वारी से पार पा जाऊँ फिर देखना तेरे को पाताल में से भी ढूँढ़ निकालूँगा।”
“क्या कहने! चैम्बूर से तो ढूँढ़ निकाला न गया, पाताल से ढूँढ़ निकालेगा।”
“देखना!”
“फाइव मिनट्स!” — विमल अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डालता बोला “युअर टाइम स्टार्ट्स ... नाओ।”
पुजारी बाहर को लपका। पीछे बिमल उस सोफे पर पहुँचा जिस पर लोखण्डे की फेंकी गन पड़ी थी। गन उठा कर उसने अपनी जेब में रख ली।
लोखण्डे की सूरत से यूँ लगा जैसे ऐतराज़ करने लगा हो।
“वापिस मिल जाएगी।” – विमल बोला – “दोनों हाथ खाली होते तो दाना निकाल कर गन अभी वापिस कर देता।”
वो ख़ामोश हो गया। पुजारी पाँच मिनट से पहले लौटा। पहले से ज़्यादा परेशानहाल।
“कुछ गलत तो न बोला मैंने?” – विमल बोला।
“क्या चाहते हो?” – पुजारी बोला।
“ये भी कोई पूछने की बात है!”
उसने सहमति में सिर हिलाया फिर लोखण्डे की ओर घूमा – “जाने दो। रिहा कर दो।”
“कहाँ से रिहा कर दो?'विमल सशंक भाव से बोला।
“क्यों जानना चाहते हो?”
“देखना चाहता हूँ, कनफर्म करना चाहता हूँ कि उनके साथ कोई शैतानी व्यवहार नहीं हुआ।”
“नौबत ही कहाँ आई! तुम पहले ही यहाँ पहुँच गए। बाज़ी पलटने।”
“फिर भी!”
“ठीक है।”
पुजारी ने लोखण्डे का संकेत किया। सहमति में सिर हिलाता लोखण्डे इमारत में ही कहीं गायब हो गया।
“मैंने तुम्हारे जैसा आदमी नहीं देखा।” – पीछे पुजारी बोला।
“अपने जैसा आदमी हर कोई होता है। तुम तुम्हारे जैसे हो, मैं मेरे जैसा हूँ।”
“ठीक! लेकिन मैं तुम्हारे जैसा नहीं – हम में से कोई तुम्हारे जैसा नहीं।”
“क्या खूबी पाई?”
“वही जिसकी अभी नुमायश कर के हटे। मेरा दिल कहता है कार में बम, तुम्हारे हाथ में रिमोट का पुशबटन सब फ्रॉड है, होक्स है लेकिन मैं होक्स को चैलेंज करने की हिम्मत नहीं कर सकता।”
“क्योंकि, बीवी की, औलाद की जान दाँव पर है!”
“पता नहीं ऐसा है या नहीं। लेकिन आफ़रीन है तुम्हारी दिलेरी...”
“मेरी दिलेरी के सजदे पढ़ने वाले तुम अकेले नहीं हो।”
“... शेर के जबड़े में हाथ देने जैसा काम किया।”
“बहुत ज़्यादा कर के आँक रहे हो अपने आपको!”
“वक्त बताएगा कौन किसको कैसे आँक रहा है! पर ये न समझना इस चोट को हम सहलाते ही रह जाएंगे।”
“‘हम’ में कौन शामिल है? सारा गैंग!”
वो ख़ामोश रहा।
“या ख़ुद ही बड़ा हमला करोगे?”
“देखना, क्या करेंगे!”
“जो करोगे, गलत करोगे, नाजायज़ करोगे। और फिर खता खाओगे।”
“किससे खता खाएंगे? सोहल से! अकेले सोहल से!”
“वो बेचारा तो न तीन में न तेरह में। उसे तो तुम पाताल से भी ढूँढ़ निकालोगे।”
“वक्त आने दो, फिर देखना क्या होता है! बहरहाल, तुम्हारे बेपनाह हौसले को सलाम है।”
“मेरे को सलाम कुबूल है लेकिन एक बात बताओ। मेरे खिलाफ अभी जो बड़ी-बड़ी घोषणाएँ कर रहे थे, वो तुम्हारा अपना फैसला था? जो कुछ कूपर कम्पाउन्ड में हुआ, वो तुम्हारा वन-मैन-शो था?”
“क्या करना चाहते हो?”
“लगता है किसी के हुक्म पर काम नहीं करते हो, मनमानी करते हो क्योंकि सुपरविज़न कमज़ोर है, ऊपर से अंकुश नहीं है। ये लड़खड़ाती हुई भाईगिरी के निशान होते हैं। क्योंकि मेरे को लगता है तुम्हारे जैसों का अपनों से ऊपर वालों के साथ कोई तालमेल नहीं, और तुम्हारे जैसे किसी का मनमानी पर उतर आना कोई बड़ा वाकया नहीं। किसी काम को ठीक से अंजाम दे लेते हो, तभी ऊपर ख़बर करते हो और शाबाशी मिलने का, पीठ ठोकी जाने का इन्तज़ार करते हो। नहीं?”
उसने जवाब न दिया।
“साफ ज़ाहिर होता है कि कूपर कम्पाउन्ड में जो किया, अपनी मर्जी से किया। मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे से किन्हीं बड़े खलीफ़ाओं की इसमें कोई हामी थी। तुम्हारा खेल तो बिगड़ गया! अब शाबाशी की जगह क्या मिलेगा? मेरे ख़याल से बिगड़े खेल की ऊपर किसी को ख़बर ही नहीं होने दोगे! मुझे ही इन्तज़ाम करना होगा कि तुम्हारी फेलयोर की, तुम्हारी किरकिरी की, ऊपर ख़बर हो और बंगल्ड जॉब के लिए तुम्हें ज़िम्मेदार ठहराया जाए, तुम्हारे लिए कोई सजा तजवीज़ की जाए।”
“बंडल! मेरे को कौन सजा देगा?'”
“देखेंगे। अभी जो पूछा जाए, उसका जवाब दो।”
“काहे को?”
“तुम भूल रहे हो कि तुम्हारे बीवी-बच्चों की ज़िन्दगी” – उसने रिमोट वाला हाथ ऊँचा किया – “अभी भी मेरी मुट्ठी में है।”
“क्या जानना चाहते हो?”
“कूपर कम्पाउन्ड पर धावा तुम्हारा अपना फैसला था, उसमें तुम्हारे किसी सीनियर का दखल नहीं था?”
“हाँ।”
“मंशा क्या थी? सोहल पकड़ में आ जाएगा?”
“हमारे ख़बरी कहते थे कि तुका के घर में जिसे केयरटेकर बताया जाता था, वही सोहल था।”
“फिर भी धावा बोलने में देर की!”
“कनफर्मेशन की ज़रूरत थी। कुछ और इम्पॉर्टेट कर के भीडुओं के पकड़ में आने की उम्मीद थी। पण पकड़ में आए खाली दो।”
“कामकाजी भीड़ थे, मुमकिन था वो भी पकड़ में न आते।”
“कभी तो आते!”
“हाँ, कभी तो आते।”
“उधर तुका के घर में केयरटेकर तुम नहीं थे तो कौन था?”
“था कोई तका का भक्त जिसकी हिम्मत टूट गई। पन्द्रह हज़ार में नौकरी करता न रह पाया।”
“तुम्हें क्या मालूम?”
“टीवी पर देखा न! ब्रेकिंग न्यूज़ में।”
“बोम नहीं मारने का। केयरटेकर तुम नहीं थे?”
“भई, तुम्हें खुश करने के लिए अब बन जाता हूँ। रहना, खाना भी तो फ्री था!”
“बोला न, बोम नहीं मारने का।”
“अपने सीनियर को कूपर कम्पाउन्ड वाली अपनी नाकामी की खबर करोगे?”
वो ख़ामोश रहा। “लगता है नहीं करोगे। नाम बोलो अपने सीनियर का।”
वो परे देखने लगा।
“तुम ख़ामोश रह पाने की पोज़ीशन में नहीं हो। मैं गन बाएं हाथ से भी चला सकता हूँ। शॉर्ट डिस्टेंस में तो दाएं-बाएं में बिना किसी फर्क के। निशाने में बिना किसी झोल के।”
“माइकल गोटी।” – परेशानहाल पुजारी बोला।
“गोटी!”
“हाँ।”
“शतरंज की! कैरम की! लूडो की! चौपड़ की!”
“मालूम नहीं।”
“वो तुम्हारा इमीजियेट बॉस है जिसको तुम रिपोर्ट करते हो, जिससे हिदायत हासिल करते हो?”
“हाँ।”
गैंग का नम्बर टू?”
“नहीं। नम्बर टू कोई और है पण माइकल गोटी बॉस उसके बराबर नहीं तो उससे कम भी नहीं।”
“नाम बोले तो?”
“नम्बर टू को मिस्टर राजू, मिस्टर राजा, मिस्टर राजा सा'ब किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है।”
“राजासा'ब से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं?”
“सीधे कोई वास्ता नहीं। पण वो वास्ता बनाए तो हुक्मबरदारी करनी पड़ती है।”
“राजा साब मिस्टर एल्फ्रेड क्वीन के नाम से भी जाना जाता है?”
उसके चेहरे पर हैरानी के भाव आए।
“जबाब दो।” – विमल सख़्ती से बोला।
“तुम्हें कैसे मालूम?”
“मैंने कहा” – विमल सख्ती से बोला – “जवाब ... जवाब दो।”
“मिस्टर जाधव के नाम से भी?”
“मुझे नहीं मालूम। ऑनेस्ट।”
“अभी असली नाम कोई और होगा!”
“हो सकता है।”
“उसके इतने नाम क्यों हैं?”
“मुझे नहीं मालूम।”
“वसूली के कारोबार को कौन अंजाम देता है?”
“जिसको भी माइकल गोटी का हुक्म हो।”
“गोटी का! राजा सा'ब का नहीं?”
“राजा सा'ब की हामी से जिसको माइकल गोटी का हुक्म हो।”
“मैं फिर पूछता हूँ, तुम्हारे गैंग का निज़ाम इतना बिखरा-बिखरा क्यों है?”
“है तो नहीं! तुम्हें लगता है तो मैं क्या करे!”
“लगता है किसी का किसी से कोई तालमेल ही नहीं।”
“तुम्हें लगता है। ऐसा नहीं है।”
“बाकी भाई लोगों के निज़ाम जैसा है?”
“कोई बड़ा फर्क तो न होगा!”
“‘कम्पनी’ के निज़ाम जैसा था?”
“वैसा कैसे होगा! वैसा निज़ाम तो एक ही डॉन खड़ा कर सका, और वो बखिया था।”
“मेरी गोटी से बात कराओ....”
“क्या बात?”
“... पहले ख़ुद बात करो, फिर मेरे से कराओ।”
“अरे, क्या बात?”
“जो तुमने किया, वो बात। फिर जो मैंने किया, वो बात।”
“क्या फायदा?”
“क्या नुकसान?”
तभी लोखण्डे वापिस लौटा। उसके पीछे-पीछे इरफ़ान और शोहाब थे। दोनों ने हैरानी से विमल को देखा।
“निकल लो।” — विमल बोला। दोनों ने सशंक भाव से लोखण्डे और पुजारी को देखा।
“इनकी इजाज़त है।”
विमल बोला। वो फिर भी ठिठके खड़े रहे।
“अब क्या है?” — विमल अप्रसन्न भाव से बोला। “बाप” – इरफ़ान बोला – “तू अकेला ....”
“मैं सवा लाख।”
“पण ...”
“अरे, तुम्हारे यहाँ लाए जाने से पहले भी तो अकेला था?”
“वो तो बरोबर पण ...”
“मैं भी पीछे-पीछे ही आता हूँ।” – विमल पुजारी की ओर घूमा – “मैं ठीक बोला, जनाब?”
“हं-हाँ।” – पुजारी बोला।
“ये आज़ाद हैं? जहाँ चाहें जा सकते हैं?”
“हाँ।”
“सुना तुमने?”
दोनों के सिर सहमति में हिले, फिर वो वहाँ से कूच कर गए।
“फोन की बात बीच में रह गई थी।” — विमल पुजारी की ओर घूमा – “फोन लगाओ अपने बॉस को। वैसे, जैसे मैं पहले बोला।”
“मेरा मोबाइल भीतर ऑफिस में है।” — पुजारी बोला – “गोटी बॉस का नम्बर फेवरेट्स में है।”
“वहाँ चलो। दोनों।”
दोनों भीतरी कमरे को लाँघ कर पुजारी के भव्य ऑफिस में पहुँचे। विमल ने उनका अनुसरण किया। उसके आदेश पर पुजारी अपनी विशाल ऑफिस टेबल के पीछे अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर बैठा। मोबाइल पर उसने फेवरेट्स में से एक नम्बर पंच किया।
“कॉल को लाउडस्पीकर पर लगाने का।” – विमल बोला। उसने सहमति में सिर हिलाया। कुछ देर लाउडस्पीकर पर घंटी बजती सुनाई दी। विमल पुजारी के और करीब सरक आया। फिर एक खरखरी, रौबदार आवाज़ सारे कमरे में गूंजी – “हल्लो, पुजारी! क्या माँगता है?”
“माइकल बॉस” – पुजारी खेदपूर्ण स्वर में बोला – “बोलते अफसोस होता है पण कूपर कम्पाउन्ड वाली मूव उलटी पड़ गई है।”
“किसने उलटी?” – आवाज़ आई।
“सोहल ने।”
“किसने?”
“बॉस, सोहल ने।”
“वान्दा नहीं। वो किधर भी हो, अभी उसको तलाश कर के पहले ऑफ करने का, मालूम किधर है?”
“मालूम।”
“अच्छा, मालूम। ये तो गुड न्यूज़ है। किधर है?”
“मेरे सिर पर खड़ा है।”
ख़ामोशी छा गई।
“उसकी ये मजाल!”– फिर किसी भाई को ही सोहती आवाज़ आई।
“हाथ में गन लिए। दूसरे हाथ में रिमोट लिए जो बाहर कार में मौजूद मेरी फैमिली को उड़ा देगा।”
“ओह! तो ये टेम ये है उसकी मजाल!”
“हाँ।”
“मेरे से बात करा।”
“अभी।”
पुजारी ने मेज़ पर रखा मोबाइल विमल की तरफ सरका दिया। “हल्लो!” – विमल बोला – “सैमी बड़े खलीफ़ा को मेरा सलाम पहुँचे।”
“तो तू होता है सोहल!”
“होता नहीं हूँ। अभी भी हूँ।”
“नाहक पंगा लेता है। तू अकेला गैंग का मुकाबला नहीं कर सकता।”
“बखिया भी यही कहता था। इकबाल सिंह भी यही कहता था। गजरे भी यही कहता था।”
खामोशी छा गई।
“क्या बात है, साँप सँघ गया बड़े खलीफ़ा को!”
“पहले की बातें पहले के साथ गईं। अब के गैंगपहले से कहीं बेहतरआर्गेनाइज्ड है।”
“है तो नहीं ऐसा! है भी तो ये तुम लोगों की खूबी नहीं, ख़ामी है।”
“क्या बोला?”
“मवाली हो, गैंगस्टर्स हो पर कार्पोरेट बासिज़ जैसे शौक रखते हो। फैंसी दफ़्तर सजा कर बैठते हो, अपने ओहदेदारों को बिठाते हो। इतने आर्गेनाइज्ड हो, इसी वजह से तुम लोगों तक पहुँचना आसान होता है। हम बिखरे हुए हैं इसलिए कोई कहीं ढूँढें नहीं मिलता।”
“मिले न तेरे जोड़ीदार कूपर कम्पाउन्ड में!”
“एक बार गलती हुई, दोबारा नहीं होगी। फिर वो भी आज़ाद हैं।”
“क्या बोला?”
“जहाँ पहुँचना था पहुँच भी चुके हैं।”
“फिर भी तू वहाँ है!”
“हाँ। आके पकड़ लो मुझे।”
“अभी तेरे को उधर माँगता क्या है?”
“तुम्हारे जिस भीड़ ने कूपर कम्पाउन्ड की तरफ टेढ़ी निगाह उठाने की जुर्रत की, उसको सजा देना माँगता है।”
“तू ... तू सजा देगा कुबेर पुजारी को?”
“हाँ। जो बीच में दखल देगा, उसको भी।”
“क्या सजा देगा! जान से मार डालेगा?'”
“नहीं। लेकिन आइन्दा तुम्हारी शार्गिदी के काबिल नहीं छोडूंगा।”
“कैसे?”
“ऐसे। सुनना।”
विमल ने पुजारी को खड़े होने का इशारा किया। पुजारी झिझकता हुआ खड़ा हुआ तो विमल ने दो फायर किए। उसके दोनों घुटनों के परखचे उड़ गए। वो वापिस अपनी कुर्सी पर जा गिरा और चेतना खो बैठा।
भौंचक्का लोखण्डे उबलती आँखों से वो नज़ारा देखता रहा। उसने हिलने की, कोई हरकत की कोशिश न की।
“गोली चलने की आवाज़ सुनी, बड़े खलीफ़ा?” – विमल बोला।
“हाँ। क्या हुआ?”
“तुम्हारे अन्डर में चलने वाले के दोनों घुटने फूट गए। अब ताज़िन्दगी कभी चल नहीं पाएगा। उम्र बैसाखियों पर ही कटेगी। या व्हील चेयर पर।”
“ये जुल्म है।”
“क्या कहने! ताज़िन्दगी ज़ुल्म करने वालों को जुल्म की दुहाई देना याद आ रहा है।”
“उसने कुछ नहीं किया था।”
“क्योंकि मौका न मिला। वर्ना इरादे तो बहुत बुलन्द थे!”
“अब तू नहीं बच सकता।”
“ये अच्छी खबर है मेरे लिए। आओ, अहसान करो मेरे पर। मार दो मुझे।”
कुछ क्षण ख़ामोशी रही। “तू” – फिर आवाज़ आई – “सोहल ही है न!”
“हाँ।”
“कोई खाली पीली बोम तो नहीं मार रयेला कि वो सोहल है?”
“नहीं।”
“तो मरना क्यों चाहता है?”
“क्योंकि जीना नहीं चाहता।”
“कम्माल है!”
“जुगत करो मारने की, बड़े खलीफ़ा, नहीं तो मैं मार दूंगा।”
“तू सोहल है।”
“और मैं क्या बोला।”
“ख़ालिस सोहल है। तेरी ख़्वाहिश पूरी करेंगे हम।”
लाइन कट गई। विमल मेज़ से थोड़ा परे हटा और लोखण्डे की ओर घूमा।
“अब तेरा क्या इरादा है?” — वो बोला।
“म-मेरा” – लोखण्डे बड़ी मुश्किल से बोला पाया- “मेरा क्या इरादा होना है?”
“तेरे सामने बड़ा काम है। तूने अपने बॉस को सम्भालना है। इसे गोली लगी है। कैसे सम्भालेगा।”
“इ-इधर एक प्राइवेट कर के नर्सिंग होम है जो गैंग के फाइनान्स से चलता है। वो सम्भालेगा?”
“बढ़िया। इन्तज़ाम करना। मैं चलता हूँ।”
“ब-बॉस की कार! फैमिली!”
“कार मैं साथ ले के जाऊँगा। जहाँ छोगा, उस जगह की ख़बर मैडम खुद इधर कर देंगी। अभी उनके मोबाइल का सिम मेरे पास है। जब कार पीछे छोडूंगा तो सिम भी छोड़ दूँगा। पुजारी के फोन पर कॉल आए तो सुनना। क्या!”
उसने सहमति में सिर हिलाया।
“तब कार में बम तो होगा लेकिन डिटोनेटिड होगा। बम इसलिए पीछे छोडूंगा क्योंकि तुम्हारा बॉस बम को होक्स बोलता था, ताकि उसकी तसल्ली हो जाती कि बम होक्स नहीं था। जमा, तब कार के तमाम खिड़कियाँ-दरवाज़े भी अन्दर बाहर से ठीक काम कर रहे होंगे। बरोबर?”
“हाँ।”
“कोई मेरे या कार के पीछे आने की कोशिश न करे। ऐसा कुछ हुआ तो अंजाम बुरा होगा। जो पुजारी के साथ हुआ, उससे भी बुरा।”
“कोई पीछे नहीं आएगा।”
“शुक्रिया। चलता हूँ।”
“वो.... वो ..... मेरी गन!”
“कार में पड़ी मिलेगी।”
विमल कूपर कम्पाउन्ड पहुँचा तो इरफ़ान और शोहाब की जान में जान आई।
विक्टर उसके साथ था। उसी की टैक्सी पर वो कूपर कम्पाउन्ड पहुँचा था।
“बहुत रिस्क लिया!” – शोहाब बोला।
“कैलकुलेटिड रिस्क!” — विमल बोला।
“फिर भी!”
“अरे, कुछ तो करने का था न मेरे को! वो तुम्हें पकड़ कर ले गए, पीछे मेरे वास्ते चैलेंज उछाल गए। क्या करता मैं?”
शोहाब ख़ामोश हो गया।
“जो हुआ अच्छा हुआ” – विमल बोला – “आख़िर हमारे हक में हुआ, अब हुज्जत किस वास्ते?”
“हुज्जत नहीं। पर अब आगे तो हम इधर नहीं रह सकते न!”
“इधरीच रहेंगे।” – इरफ़ान गुस्से से बोला – “अकेला कूपर कम्पाउन्ड ही क्यों, अक्खा शहर ही जुल्म का डेरा है तो किधर जाएँगे!”
“पर इधर!”
“बरोबर। पण औकात बना के, ऐसी औकात बना के कि जो आज की कामयाबी पर पसर रहे थे, कल मातम मना रहे होंगे।”
“क्या है तेरे मगज में? तफसील से बोला” इरफ़ान ने बोला।
आधी रात को दुश्मन के पन्द्रह-सोलह हथियारबन्द आदमी कूपर कम्पाउन्ड पहुँचे।
ये देख कर उनकी हैरानी का पारावार न रहा कि सारा कम्पाउन्ड काली-पीली टैक्सियों से भरा हुआ था। टैक्सियाँ यूँ खड़ी थीं कि उनके बीच से फँस कर ही पैदल आगे बढ़ा जा सकता था। टैक्सियाँ इतनी भी होती तो गनीमत थी, उन से ज़्यादा कम्पाउन्ड से बाहर सड़क पर इकहरी कतार में आगे पीछे खड़ी थीं।
मवालियों की उस टीम का सरगना उमर सुलतान था जिसको कूपर कम्पाउन्ड में सब उजाड़ देने का, जो भीड़ अपने पैरों पर दिखाई दे, उसको जान से मार देने
का, हुक्म हुआ था।
“ये क्या है?” – सुलतान हकबकाया-सा बोला। कोई क्या जवाब देता! सब को सामने टैक्सियों का जमघट दिखाई दे रहा था। तभी भीतर कहीं से गोली चली। फिर परछाइयों की तरह दर्जनों आदमी टैक्सियों के पीछे से प्रगट होने लगे और बड़ी तरतीब से मवालियों को घेरने की कोशिश करने लगे। बीच-बीच में वो हवाई फायर भी करते रहे ताकि आतताईयों को अहसास हो जाता कि सब हथियारबन्द थे और हमलावरों का कैसा भी मुकाबला करने में सक्षम थे।
किसी हमलावर ने कम्पाउन्ड के भीतर हथगोला उछाला।
एक टैक्सी ड्राइवर ने उसे हवा में ही लपक लिया और फट जाने से पहले उसे हमलावरों के बीच उछाल दिया।
सब पनाह माँगते दिखाई देने लगे। फिर जैसे आए थे, वैसे वहाँ से रुखसत पाने लगे।
“अगली बार पचास आना, अल्लामारो!” – इरफ़ान की आवाज़ रात के सन्नाटे में गूंजी – “सौ हथियारबन्द भीड़ तैयार मिलेंगे। सौ आना, नसीबामारो, दो सौ तैयार मिलेंगे। ये टेम तो ज़िन्दा बच के निकल जाने दिया, अगली बार इतने ख़ुशनसीब नहीं निकलोगे, नाहंजारो!”
तब तक तमाम हमलावर वहाँ से खिसक चुके थे। फिर कम्पाउन्ड में रोशनी हुई। इरफ़ान के करीब पहले शोहाब, फिर विमल, फिर विक्टर प्रकट हुए।
“भाग गए।” — विमल बोला।
“भाग नहीं गए, बाप।” – इरफ़ान बोला – “भाग जाने दिया। ये टेम भाग जाने दिया ताकि आइन्दा के लिए इबरत हासिल हो।”
“अब नहीं आएँगे?”
“ऐसे बाज़ आता है कोई! पण आएँगे तो खता खाएँगे।”
“इतने हथियार इतनी जल्दी कहाँ से आ गए?”
“सब यहीं थे। तुका के वक्त से ही यहाँ थे यहाँ के खुफ़िया तहखानों में पण कभी काम न आए। अब आए न काम! आगे भी काम आएंगे।”
“लेकिन गैरकानूनी असलाह ....”
“कानन बहुत छाँटता है। अरे, बाप, बरामद होगा तो गैरकानूनी न! इमारतें उखाड़ देंगे तो भी नहीं जान पाएँगे कि यहाँ के खुफ़िया तहखाने कहाँ थे, उन तक पहुँचने वाले खुफ़िया रास्ते किधर से थे।”
“बढ़िया। बाहरी इन्तज़ाम सब विक्टर का?”
“बरोबर।”
“कामकाजी ड्राइवर लोग हैं, उनकी टैक्सियाँ यहीं तो नहीं खड़ी रहा करेंगी?”
“शिफ्ट में खड़ी रहा करेंगी।” – शोहाब बोला – “एक लॉट जाएगा, दूसरा आ जाएगा।”
“कब तक?”
“जब तक ये बखेड़ा ख़त्म नहीं होता। जब तक दुश्मन के हौसले पस्त नहीं होते।”
“कोई ऐतराज़ नहीं करेगा?”
“कौन ऐतराज़ करेगा! फिर भी कोई करेगा तो डीसीपी पाटिल सम्भालेगा न, जिसने पहले दुश्मनों के पिट्ठ इंस्पेक्टर महाडिक को सम्भाला था!”
“ठीक!”
इतने बड़े भाई’ के दो-चार-छ: नहीं, पन्द्रह हथियारबन्द आदमी खदेड़ कर भगाए गए, इस खबर को ऊपर पहुँचाने की बदमज़ा ज़िम्मेदारी लोखण्डे के हिस्से आई। उस ख़बर के इन्तज़ार में ही माइकल गोटी रात एक बजे भी बोतल खोले बैठा था। उसने धीरज से सब सुना।
“जो हुआ, उसे भूल जाने का।” – धीरज से ही वो जवाब में बोला – “उमर सुलतान को ये बात समझाने का। वो आगे अपने प्यादों को समझाएगा। कल टॉप बॉस का एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट वजूद में आने वाला है। उस प्रोजेक्ट की कामयाबी की ख़बर मेरे को टॉप बॉस को पहुँचाने का। फिर परसों कूपर कम्पाउन्ड के बारे में हम फिर से सोचेंगे। बरोबर?'
“बरोबर, बाप।”
“कट करने का।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया।