कल्याण खरबन्दा मर चुका था ।
लाश के मुआयने से पता चला कि वह अभी भी गर्म थी और उसमें से खून अभी भी रिस रहा था । दोनों बातें साबित करती थीं कि उस पर वह घातक आक्रमण हमारे वहां पहुंचने से थोड़ी ही देर पहले हुआ था ।
मेरी तवज्जो फौरन अपने क्लायन्ट की तरफ गयी ।
यादव के अगले एक्शन ने साबित कर दिया कि वह भी पंचानन मेहता के बारे में ही सोच रहा था ।
उसने कन्ट्रोल रूम फोन किया, किसी को वस्तुस्थिति समझाई और पंचानन मेहता को फौरन गिरफ्तार करके उसके पास लाने का आदेश इलाके में तैनात फ्लाइंग स्क्वायड की सभी गाड़ियों के लिये जारी करवा दिया ।
“इसके कत्ल के साथ मेरी थ्योरी की तो कमर टूट गई” - फिर वह बोला - “मैं तो इसे ही पचेरिया और श्रीलेखा का कातिल समझे बैठा था । खुद यही कत्ल हो गया तो यह तो कातिल नहीं हो सकता !”
मैंने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।
“अभी” - वह बड़बड़ाया - “पहले दो कत्लों का हल मेरे सामने आया नहीं कि एक और कत्ल मेरे गले पड़ गया ।”
मैं खामोश रहा ।
“अगर यह करतूत पंचानन मेहता की निकली तो ?”
मैं क्या जवाब देता !
“जरूर यह उसी की करतूत है । कत्ल करके यहां से भागते हुए हमने उसे अपनी आंखों से देखा था ।”
“भागते देखा था” - मैं धीरे से बोला - “कत्ल करते नहीं देखा था ।”
“कत्ल नहीं किया था तो भाग क्यों रहा था ?”
“वही कोई वजह बताएगा । उसका बयान लेने से पहले ही उसके खिलाफ कोई राय कायम कर लेना तो बेइंसाफी होगी ।”
“तुम तो ऐसा कहोगे ही । तुम्हारा क्लायन्ट जो ठहरा वो ।”
“क्लायन्टों के गुनाहों में शरीक होने का शौक नहीं है मुझे ।”
“पंचानन मेहता के पास इस कत्ल का उद्देश्य है । मरने वाले ने मेहता का हक मारा हुआ था जिसे वह लौटाने को तैयार नहीं था...”
“उद्देश्य तो मानव शर्मा के पास भी है जिसकी बीवी से मकतूल की आशनाई की ताजी ताजी खबर उसे लगी थी और...”
“और क्या ?”
“और” - मैं तनिक हिचकिचाता हुआ बोला - “जिसने भड़क कर उसने खुद मुझे कहा था कि या तो मैं उसका कत्ल करवा दूं या फिर वो मार डालेगा “उस हरामजादे को” !”
“कब की बात है यह ?”
“आज ही सुबह की ।”
“हूं ।”
“खरबन्दा पैसे वाला आदमी था ।” - मैंने नई राय पेश की - “कातिल उन लोगों में से भी कोई हो सकता है जिसे इसकी मौत से आर्थिक लाभ हो सकता है ।”
“जैसे ?”
“जैसे मकतूल की बीवी मधुमिता ।” - मेरी तवज्जो फिर खंजर की तरफ गई - “जैसे रुद्रनारायण गुप्ता ।”
“वो कैसे ?”
“मरने वाले की बीवी उसकी रिश्तेदार है । अगर अब बीवी भी मर जाए तो माल रुद्रनारायण तक पहुंच जाएगा ।”
“यह बहुत दूर की कौड़ी है ।”
“लेकिन है” - मैंने जिद की । उस घड़ी मेरा उद्देश्य था किसी भी तरीके से पंचानन मेहता की तरफ से उसकी तवज्जो हटाना - हटाना नहीं तो घटाना ।
तभी पुलिस का एक विशाल दल बल वहां पहुंच गया ।
फिर लाश की तस्वीरें खींची जाने लगीं और सूत्रों के लिए फ्लैट को खंगाला जाने लगा ।
खंजर की मूठ नक्काशीदार होने की वजह से उस पर से किसी प्रकार के उंगलियों के निशान बरामद न हुए ।
खंजर को लाश से बाहर खींचने की कोशिश की गई तो केवल मूठ हाथ में आ गयी, फल लाश में ही धंसा रह गया ।
यादव ने मूठ का मुआयना किया ।
“फेवीकोल” - फिर वह एकाएक बोला - “फल को मूठ में धंसा कर जोड़ पर फेवीकोल लगाया गया है लेकिन लगता है फेवीकोल के सूख कर ठीक से जम पाने से पहले ही खंजर कत्ल में इस्तेमाल कर लिया गया था । तभी फल से मूठ अलग हो गई है । कोहली तुम इस खंजर में खास दिलचस्पी लेते लग रहे हो । क्या जानते हो तुम इस खंजर के बारे में ?”
“कुछ नहीं ।” - मैं सावधान स्वर में बोला ।
“पहचानते हो ?”
मेरे उत्तर दे पाने से पहले ही दो पुलिसियों की गिरफ्त में सैंडविच हुए पंचानन मेहता ने भीतर कदम रखा ।
उसकी निगाह खरबन्दा की लाश पर पड़ी तो वह तत्काल आतंकित भाव से बोला - “हे भगवान ! इसे क्या हुआ ?”
“वही जो तुमने किया ।” - यादव कठोर स्वर में बोला ।
“मैंने किया ! मैंने क्या किया ?”
“जैसे तुम्हें मालूम नहीं !”
“और मुझे यहां यूं पकड़ कर क्यों मंगवाया गया है ?”
“अब एक्टिंग छोड़ो । अपनी करतूत से तुम यूं पिंड नहीं छुड़ा सकते । समझे ।”
“मेरी करतूत ।”
“हां ! तुम्हारी करतूत । जो इस वक्त तुम्हारे एक्स पार्टनर की लाश की सूरत में तुम्हारे सामने पड़ी है ।”
“आप लोग समझते हैं कि मैंने इसका खून किया है ?”
“हम समझते नहीं हैं, जानते हैं ।”
“लेकिन...”
“अभी थोड़ी देर पहले तुम यहां से भागे नहीं थे ?”
“कौन कहता है ?”
“यानी कि हकीकत तब कबूल करोगे” - यादव कहर भरे स्वर में बोला - “जब तुम्हें मालूम हो जाएगा कि तुम्हें यहां से भागते किसने देखा ।”
“मेरा इसके कत्ल से कोई वास्ता नहीं । मैं जब यहां पहुंचा था तो यह पहले ही मरा पड़ा था ।”
“भागे क्यों ?”
“मैं डर गया था ।”
“किस बात से ?”
“कि कहीं मुझे ही कातिल न समझ लिया जाए, जो कि मैं देख रहा हूं कि समझा जा रहा है ।”
“तुम साबित कर सकते हो कि तुम कातिल नहीं हो ?”
“आप साबित कर सकते हैं कि मैं कातिल हूं ।”
“हम तो करेंगे ही । तुम्हारा फरार होने की कोशिश करना ही तुम्हारे गुनाह का सबूत है । तुम बेगुनाह होते तो तुमने भाग खड़ा होने की जगह वारदात की खबर पुलिस को की होती ।”
“मैंने कहा न मैं डर गया था ।”
“बकवास ।”
“मैं सच कह रहा हूं ।”
“यहां आये क्या करने थे ?”
उसने उत्तर न दिया ।
“जवाब दो” - यादव डपट कर बोला ।
“बात करने ।” - पंचानन मेहता कठिन स्वर में बोला ।
“किस बाबत ?”
“खंजर की बाबत !”
“किस खंजर की बाबत ! और जो कहना है, साफ-साफ कहो एक ही बार में कहो । समझे ।”
“उस खंजर की बाबत जो मैंने खरबन्दा की पीठ में धंसा देखा था । वो खंजर मेरी एक फ्रेंड का है । किसी ने खंजर उसके पास से चुरा लिया था और इस चोरी का उसे खरबन्दा पर शक था । मेरी फ्रेंड खंजर वापिस चाहती थी । मैं उसी बाबत खरबन्दा से बात करने आया था ।”
“कौन है तुम्हारी वो फ्रेंड ?”
“मैं उसका नाम कत्ल के केस में नहीं घसीटना चाहता । उसका इस कत्ल से कोई वास्ता नहीं ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है ?”
“मुझे मालूम है ।”
“कैसे मालूम है ?”
पंचानन मेहता ने होंठ भींच लिए ।
“मैं बताता हूं कैसे मालूम है” - यादव सख्ती से बोला - “तुम्हें ऐसे मालूम है क्योंकि कत्ल तुमने किया है ।”
“तुम पागल हो -”
“शट अप !” - यादव गर्जा - “मैं क्या तुम्हारे जैसे लोगों को पहचानता नहीं ! तुम एक बेहद चालाक और मौकापरस्त आदमी हो और हर वक्त अपने नफे की ताक में रहते हो । अब यह साबित हो चुका है कि हरीश नाम के लेखक ने अपने उपन्यास की स्क्रिप्ट तुम्हें सौंपी थी । तुमने उसे पढ़ा था और महसूस किया था कि उसमें कामयाबी की करिश्मासाज संभावनाएं थीं । तुमने स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद लेखक से सम्पर्क करने की कोशिश की तो तुम्हें मालूम हुआ कि लेखक मर चुका था । तुम्हें यह भी मालूम हुआ कि लेखक एक तनहा आदमी था । तब तुम्हें अपनी ही पब्लिकेशन फर्म से पैसा मारने की तरकीब सूझी । तुमने उपन्यास का नाम बदला, उसके लेखक का नाम बदला और अपनी ही फर्म को वह स्क्रिप्ट पेश कर दी । इस प्रकार लेखक को मिलने वाली रायल्टी हर्षवर्धन के नाम से तुम खुद खा सकते थे । लेकिन तुम्हारी यह चाल कामयाब न हुई । इसलिये कामयाब न हुई क्योंकि खरबन्दा ने स्क्रिप्ट पढ़ी, यह जानकर पढ़ी कि उस स्क्रिप्ट की तुम्हें खबर तक नहीं थी, उसे उसमें अन्तहीन सम्भावनाएं दिखाई दी । उसने स्क्रिप्ट छुपा ली और पार्टनरशिप भंग कर दी, तुम पहले खामोश रहे लेकिन जब कोख का कलंक ने वाकई कामयाबी के अगले पिछले रिकार्ड तोड़ दिए और खरबन्दा ने उससे लाखों कमा लिए तो उसमें अपना हक जताने के लिए तुम कोहली के पास पहुंच गए । उस दौरान अपने भाई की स्क्रिप्ट की तलाश में उसकी बहन श्रीलेखा यहां पहुंच चुकी थी । उसको मालूम था कि उसके भाई ने स्क्रिप्ट तुम्हें सौंपी थी । वह तुम्हारी उस बेईमानी की पोल खोल सकती थी जो तुमने पार्टनरशिप भंग होने से पहले अपनी ही फर्म से करने की सोची हुई थी । वह तुमसे मिली । उसकी बातों से तुम्हें लगा कि खरबन्दा से जो रकम तुम हथियाना चाहते थे उसे तो वह क्लेम कर सकती थी । नतीजतन तुमने उसका कत्ल कर दिया । फिर अब तुमने पाया कि खरबन्दा को झुकाना आसान नहीं था तो तुमने यह सोचकर उसका कत्ल कर दिया कि बाद मेन खरबन्दा के वारिस से बेहतर समझौता किया जा
सकता था । इससे पहले भी तुम खरबन्दा के कत्ल की एक कोशिश कर चुके हो लेकिन तब सुभाश पचेरिया बीच में आ गया था और तब खरबन्दा की जगह तुम्हें उसका कत्ल कर देना पड़ा था । अब, पंचानन मेहता, जो मैंने कहा है उसे फौरन अपनी जुबानी कबूल करो ।”
“यह झूठ है । बकवास है ।” - वह गला फाड़कर चिल्लाया - “कोहली तुम भी तो कुछ बोलो ।”
“मैं क्या बोलूं ?” - मैं बोला ।
“यानी कि” - वह मुंह बाये मेरी तरफ देखने लगा - “तुम्हें भी इस सिरफिरे इन्स्पेक्टर की गप्प पर विश्वास है ।”
“खबरदार !” – यादव चेतावनी भरे स्वर में बोला - “बदजुबानी नहीं । बदजुबानी नहीं, मेहता ।”
“तो मैं और क्या..”
तभी एक सब-इन्स्पेक्टर वहां पहुंचा । उसके हाथ मेन एक लकड़ी का डिब्बा था ।
“यह डिब्बा” - उसने बताया - “कपड़ों की अलमारी में से मिला है ।”
“क्या है इसमें ?” - यादव बोला ।
“आप ही देखिये ।”
यादव के आदेश पर सब-इन्स्पेक्टर ने डिब्बे का सारा सामान एक मेज पर उलट दिया ।
यादव के साथ साथ उस सामान का मैंने भी मुआयना किया ।
सामान में अधिकतर पुरानी चिट्ठियां और तस्वीरें थीं । तस्वीरें अधिकतर मधुमिता की थीं जिनमें उसके बचपन से लेकर जवानी तक की छवि अंकित थी । उन्हीं तस्वीरों में एक पेंसिल जितने व्यास में गोल लिपटी हुई तस्वीर थी । उसे खोला गया तो उसकी पीठ पर कोई तीस साल पहले की एक तारीख अंकित पायी गई । तारीख के नीचे लिखा था रुद्रनारायण गुप्ता और रुकमणी गुप्ता की शादी का एक चित्र । तस्वीर काली सफेद थी और रंगत में पीली पड़ चुकी थी । उसमें चित्रित दुल्हन को देखकर लगता था कि अपनी जवानी में रुकमणी गुप्ता बहुत ही हसीन और जवान रही थी । उसके विपरीत रुद्रनारायण बड़ा पिचका और दुर्बल सा लग रहा था । फ्रैंच कट दाढ़ी वह तब भी रखे था और उसकी नाक पर चश्मा भी मौजूद था । दृश्य वरमाला का था । उसमेन रुद्रनारायण अपने हाथ कन्धों से ऊंचे उठाकर एड़ियों पर उचक कर वधु को वरमाला पहनाने की कोशिश कर रहा था ।
यादव ने तस्वीर का एक कोना छोड़ा तो वह फिर महीन पेंसिल की तरह गोल लिपट गई ।
उसने खंजर की खोखली मूठ में झांका । फिर उसने गोल लिपटी तस्वीर को मूठ में धकेला । तस्वीर बड़ी सहूलियत से मूठ में समा गई । उसने मूठ को अपने एक हाथ की हथेली पर पटका तो तस्वीर का एक सिरा मूठ से बाहर सरक आया । उसने तस्वीर मूठ में से वापिस खींच ली ।
“लगता है” - मैं बोला - “इस तस्वीर का मूल ठीया-ठिकाना इस खंजर की मूठ ही था ।”
“वो तो लगता है” – यादव तनिक झुंझलाये स्वर में बोला - “लेकिन इस तस्वीर में ऐसी क्या खूबी है जिसकी वजह से उसे इतने यत्न से यूं छुपा कर रखना जरूरी समझा गया था ?”
खूबी मुझे मालूम थी । तभी मालूम हुई थी । यादव ने तस्वीर को गौर से देखा होता तो उसे भी वह खूबी सूझ जाती ।
तभी एक बूढ़ा आदमी एक हवलदार के साथ वहां पहुंचा ।
यादव ने प्रश्नसूचक नेत्रों से पहले बूढ़े को और फिर हवलदार को देखा ।
“इसका सड़क से पार फुटपाथ पर कपड़े प्रेस करने का अड्डा है” - हवलदार बोला – “यह कहता है कि यह खरबन्दा का एक सूट उसे देने आया था तो इसने कटे बालों वाली एक खूबसूरत युवती को फ्लैट में दाखिल होते पाया था । सूट उस युवती ने ही दरवाजे पर इससे ले लिया था ।”
“युवती देखने में कैसी थी ?” - यादव ने पूछा ।
जवाब में बूढ़े ने जो हुलिया बयान किया, वह निश्चय ही वीणा शर्मा का था ।
यादव ने मेरी तरफ देखा ।
मैंने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।
“खरबन्दा साहब” - यादव ने वृद्ध से पूछा - “उस वक्त यहां थे ?”
“जी, साब” - वृद्ध बोला ।
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“मैंने उन्हें इमारत में दाखिल होते देखा था । उन्हें आया देख कर ही तो मैं उनका सूट लेकर यहां पहुंचा था ।”
“युवती खरबन्दा साहब के साथ आई थी ?”
“जी नहीं । लेकिन वे आगे पीछे ही आए थे ।”
“युवती यहां से गई कब थी ?”
“मुझे नहीं मालूम ?”
“क्यों ?”
“साब, मेरा ध्यान तो कपड़े प्रैस करने की तरफ होता है । कभी कभार ही सड़क की तरफ नजर उठती है । कभी कोई आता जाता दिखाई दे जाता है, कभी नहीं दिखाई देता ।”
“इन साहब की तरफ देखो ।” - यादव ने पंचानन मेहता की तरफ संकेत किया - “क्या तुमने इन्हें इमारत में दाखिल होते देखा था ?”
“जी, साहब । ये आप से आगे आगे ही यहां आए थे लेकिन ये उलटे पांव ही वापिस लौट आए थे ।”
“सुन लिया ।” - पंचानन मेहता विजेता के से स्वर में बोला ।
“शटअप !”
“अभी भी शट अप ! यह आदमी साफ-साफ वीणा शर्मा का हुलिया बता रहा है । मैं क्या जानता नहीं वीणा शर्मा को ! इन्स्पेक्टर साहब, मेरा पीछा छोड़ो और उसके पीछे पड़ो । वही कातिल है ।”
यादव कुछ क्षण बड़े अप्रसन्न भाव से पंचानन मेहता को घूरता रहा और फिर अपने एक मातहत से बोला - “वीणा शर्मा को यहां तलब करो ।”
पंचानन मेहता ने चैन की लम्बी सांस ली ।
“यह मत समझो” - यादव क्रुद्ध भाव से बोला - “कि तुम अब हर तरह के शक से बरी हो गए हो ।”
“अब क्या बाकी रह गया ?” - पंचानन मेहता भुनभुनाया ।
“खंजर की मालकिन का नाम बताओ । उस औरत का नाम बताओ जिसे तुम अपनी फ्रेंड बता रहे हो ।”
“लेकिन...”
“लेकिन वेकिन कुछ नहीं चलेगा । फौरन जवाब दो वरना मुझ से बुरा कोई न होगा ।”
“यह तो धांधली है ।”
“अभी नहीं है लेकिन होगी । तुम्हारे इन्कार की सूरत में होगी । अभी होगी । यहीं होगी । अभी तुमने धांधली देखी कहां है । अभी तो तुमने उसके चर्चे ही सुने हैं । अब बोलो क्या इरादा है, जवाब देते हो या मैं तुम्हें धांधली का नजारा कराऊं ?”
पंचानन मेहता ने फरियाद भरी निगाहों से मेरी तरफ देखा ।
मैंने अनभिज्ञता जताते हुए कन्धे उचकाए ।”
“अभी मुझे” - यादव बेसब्रेपन से बोला - “सुनाई नहीं दिया तुम्हारा जवाब ।”
“खंजर मधुमिता का है ।” - पंचानन मेहता मरे स्वर में बोला ।
“खरबन्दा की बीवी का ?”
“हां ।”
“कब चोरी हुआ ?”
“कल रात ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ।”
“उसी ने बताया था ।”
“कब ?”
“आज सुबह । जब मैं उससे मिलने गया था ।”
“खंजर का जिक्र कैसे आया ?”
“बस आ गया । दरअसल, कल रात किसी ने फ्लैट का ताला खोल लिया था और वहां बहुत बेतरतीबी मचाई थी । कल उस की तवज्जो फ्लैट से खंजर की गैरहाजिरी की तरफ नहीं गई थी । आज ही उसे यह बात सूझी थी । तभी मैं वहां पहुंचा था । उसने मेरे से पिछली रात की घटना और खंजर की चोरी की बाबत कह दिया था ।”
“उसी ने यह सम्भावना व्यक्त की थी कि खंजर खरबन्दा ने चुराया था ?”
“हां ।”
“उसने तुमसे खंजर वापिस लाने को कहा था ?”
“नहीं । यह मेरा अपना आइडिया था । मैं कई दिनों से खरबन्दा से सीधे बात करने की सोच रहा था । खंजर की बात आई तो मैंने सोचा चलता हूं, एक पंथ दो काज हो जाएंगे ।”
“क्या बात हुई ?”
“कहां हुई बात ! वो तो पहले ही मरा पड़ा था । वही खंजर उसकी पीठ में धंसा हुआ था ।”
“निकाल लेना था । आखिर खंजर की बरामदी के लिए ही तो तुम यहां आए थे ।”
“इन्स्पेक्टर साहब, यकीन जानिये, लाश देखते ही मुझे एक ही बात सूझी थी कि मैं फौरन से पेश्तर यहां से कूच कर जाऊं ।”
“मधुमिता से मिलने तुम अक्सर जाते रहते हो ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“कोई खास वजह नहीं ।”
“जरूर होगी ।”
“नहीं है ।”
“है ।” - मैं बोला - “मेहता उस पर दिल रखता है । शुरू से दिल रखता है । तब से दिल रखता है जबकि अभी मधुमिता ने खरबन्दा से शादी नहीं की थी । अब जबकि इसे खबर लगी है कि मधुमिता खरबन्दा से तलाक लेना चाहती है, इसे अपने प्रास्पैक्ट्स फिर दिखाई देने लगे हैं ।”
पंचानन मेहता ने आग्नेय नेत्रों से मेरी तरफ देखा ।
मैंने उसकी निगाह की परवाह न की ।
“मधुमिता का पता बोलो ।” - यादव बोला ।”
पंचानन मेहता ने पता बताया तो यादव एक पुलिसिये से बोला - “अनन्तराम ।”
“यस सर ।” - अनन्तराम बोला ।
“इस पते पर पहुंचो और उन मेम साहब को यहां लेकर आओ ।”
पुलसिया सहमति में सिर हिलाता हुआ फौरन वहां से विदा हो गया ।”
तभी रजनी वहां पहुंची ।
मैं तुरन्त उसके करीब पहुंचा ।
उसने एक कागज मुझे सौंपा ।
मैंने देखा वह फोटोकापी सैल्फ के चैक की थी जिस पर रुद्रनारायण ग्रुप्ता के पूरे हस्ताक्षर थे ।
मैंने अपनी जेब से यादव से प्राप्त हुई फोटोकापी निकाली और उसका भी मुआयना किया ।
“मैं चलता हूं ।” - एकाएक मैं बोला ।
“कहां चलते हो ?” - यादव सख्ती से बोला - “यहीं ठहरो अभी । मैंने तुम्हारा वीणा शर्मा से आमना सामना कराना है ।”
तब तक मैं लौट आऊंगा । मैं सिर्फ अपनी सैक्रेट्री को छोड़ने जा रहा हूं ।”
“यह खुद चली जाएगी । आई भी तो है खुद ।”
“मैं सिर्फ आधे घन्टे की मोहलत चाहता हूं । इतने से पहले तो वीणा शर्मा भी यहां नहीं पहुंचने वाली ।”
“ठीक है । लेकिन ऐन तीसवें मिनट में तुम यहां न हुए तो तुम्हारी खैर नहीं ।”
“मैं उनतीसवें मिनट में यहां होऊंगा ।”
“जाओ ।”
मैंने रजनी की बांह थामी और फौरन वहां से कूचकर गया ।
***
रुद्रनारायण के मधुमिता के फ्लैट में मिलने की पूरी उम्मीद थी । उसका दिल्ली में आगमन तो वह चैक ही सिद्ध करता था जो कि उसने बैंक से खुद कैश कराया था ।
रजनी को खरबन्दा के फ्लैट से बाहर से ही रुखसत करके मैं एक टैक्सी पर सवार होकर नाक की सीध में गोल मार्केट मधुमिता के फ्लैट पर पहुंचा ।
गोल मार्केट के इलाके में अनन्त राम नाम के पुलसिये ने मधुमिता का फ्लैट अभी ढूंढना था जबकि मुझे ऐसी किसी दुश्वारी से नहीं गुजरना था इसलिए मुझे विश्वास था कि मैं उससे पहले वहां पहुंच जाने वाला था ।
ऐसा ही हुआ ।
मैंने उसके फ्लैट की कालबैल बजाई तो दरवाजा खुद मधुमिता ने खोला ।
उसके मौसा मौसी दोनों वहां मौजूद थे ।
मैंने रुकमणी देवी का अभिवादन किया और रुद्रनारायण से हाथ मिलाया ।
वे लोग काफी पी रहे थे ।
“मैं तुम्हारे लिए काफी लाती हूं ।” - मधुमिता बोली ।
“नहीं, नहीं” - मैं जल्दी से बोला - “प्लीज ।” - फिर मैं रुद्रनारायण से सम्बोधित हुआ - “मैंने डिस्टर्ब तो नहीं किया ?”
“कतई नहीं ।” - रुद्रनारायण अपनी फ्रैंचकट दाढ़ी में ऊंगलियां फिराता हुआ बोला - “बल्कि तुम भी इसे समझाओ । हमारे से तो समझ नहीं रही, शायद तुम्हारे से समझ जाए ।”
“किस बारे में ?” - मैं बोला ।
“तलाक के बारे में और किस बारे में ! इसे समझाओ कि यह तलाक का इरादा छोड़ दे ।”
“कितनी बदनामी होती है ऐसे मामलों में !” - रुकमणी देवी बोली ।
“नुक्स किसमें नहीं होता” - रुद्रनारायण बोला - “लेकिन एडजस्टमैंट तो करनी पड़ती है ।”
“अब तक एडजस्टमैंट्स ही तो करती आई हूं ।” - मधुमिता बोली - “तभी तो इतनी भी निभ गई वर्ना कब की जूतियों में दाल बंट रही होती ।”
“लेकिन, बेटी...”
“अंकल, मैं उससे तलाक जरूर लूंगी । एण्ड दैट इज फाइनल ।”
“अब” - मैंने हौले से खंखारकर गला साफ किया - “इसकी जरुरत नहीं पड़ेगी ।”
“क्यों ?” - मधुमिता के माथे पर बल पड़ गये ।
“कल्याण खरबन्दा अब इस दुनिया में नहीं है ।”
“क्या ?” - मधुमिता मुंह बाए बोली ।
“उसका कत्ल हो गया है ।”
“कब ?” - रुद्रनारायण भौंचक्का सा बोला ।
“आज । अभी थोड़ी ही देर पहले ।”
“कहां ?” - रुकमणी देवी ने पूछा ।
“उसके फ्लैट पर ।”
“कैसे ?” - मधुमिता बोली ।
“किसी ने उसकी पीठ में खंजर घोंप दिया ।”
“खंजर ।”
“वही जापानी खंजर जो कल रात यहां से चोरी चला गया था लेकिन जाहिर है कि कल रात जिसकी चोरी की तरफ तुम्हारी तवज्जो नहीं गई थी । कत्ल तुम्हारे खंजर से हुआ है इसलिये पुलिस तुम्हारे से भी करारी पूछताछ करने का इरादा रखती है । कोई पुलसिया तुम्हें लाने यहां आता ही होगा ।”
तुरन्त वह व्याकुल दिखाई देने लगी ।
“लेकिन कत्ल तो उसने किया होगा” - वह बोली - “जिसने कि खंजर चोरी किया था ।”
“तुमने चोरी की रिपोर्ट पुलिस में लिखवाई ?”
“नहीं ।”
“तो फिर कौन मानेगा कि खंजर चोरी हुआ था ! अब यही कौन मानेगा कि कल रात यहां का ताला टूटा था और यहां कोई चोर घुसा था !”
“तुम्हारा कहना है कि मैंने जाकर उस खंजर से अपने पति का खून कर दिया ?”
“यह मेरा नहीं पुलिस का कहना...हो सकता है ।”
“ओह !”
“तुमने खंजर की चोरी की बाबत पंचानन मेहता को बताया था ?”
“हां । मुझे खंजर का ख्याल ही आया था कि वह यहां आ गया था । फिर मैंने...”
तभी कालबैल बज उठी ।
मधुमिता ने दरवाजा खोला ।
अनन्तराम मेरी अपेक्षा से जल्दी वहां पहुंच गया था ।
उसने अपना परिचय दिया और अपने वहां आगमन का मन्तव्य बताया । मधुमिता तुरन्त उसके साथ जाने को तैयार हो गई । रुद्रनारायण ने विरोध करना चाहा लेकिन मधुमिता ने ही उसे खामोश करा दिया ।
“मैंने कुछ नहीं किया” - वह बोली - “मेरे खिलाफ पुलिस के पास कुछ नहीं है ।”
“लेकिन” - रुद्रनारायण ने कहना चाहा ।
“मैं गई और आई । आप यहीं रहिएगा । कोहली, तुम भी ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
मधुमिता अनन्तराम के साथ वहां से विदा हो गई ।
पीछे कई क्षण सन्नाटा छाया रहा ।
फिर मैंने ही खामोशी भंग की ।
“काफी ठण्डी हो रही है आपकी ।” - मैं बोला ।
“ओह, हां । हां ।” - वह तनिक हड़बड़ाये स्वर में बोला, उसने कप उठाकर काफी का एक घूंट लिया -”तो जिस खंजर से खरबन्दा का कत्ल हुआ है, वह मधुमिता का था ?”
“जी हां ।”
“खंजर चोरी किसने किया होगा ?”
“खरबन्दा ने ।”
“खरबन्दा ने !”
“जी हां ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि खंजर की मूठ खोखली थी और उस खोखली मूठ में एक ऐसी चीज छुपी हुई थी जिसकी उसको जरूरत थी । वह खंजर पहले खरबन्दा के फ्लैट पर ही था लेकिन मधुमिता जब अपना जरूरी सामान और कपड़े वगैरह लेने वहां गई थी तो वह खंजर भी उठा लाई थी । कल रात यहां चोरों की तरह घुस कर खरबन्दा वह खंजर यहां से वापिस ले गया ।”
“उस चीज की वजह से जो तुम कहते हो कि उसकी खोखली मूठ में छुपी हुई थी ?”
“जी हां ।”
“ऐसी क्या चीज थी वो ?”
“वो चीज एक तीस साल पुरानी तस्वीर थी जो बहुत महीन तरीके से गोल लपेटकर उस खंजर की खोखली मूठ में छुपा दी गयी थी ।”
रुद्रनारायण के चेहरे के भावों में मुझे इतना परिवर्तन आता दिखाई दिया कि उसके नेत्र सिकुड़ गये ।
“ऐसी क्या खास बात थी उस तस्वीर में ?” - रुकमणी देवी बोली ।
“तुमने देखी है वो तस्वीर ?” - रुद्रनारायण ने पूछा ।
“जी हां ।” - मैं बोला - “देखी है ।”
“क्या तस्वीर थी वो ?”
“वो आपकी और रुकमणी देवी की शादी की तस्वीर थी । वरमाला के मौके की । जो कि मधुमिता के व्यक्तिगत सामान में मौजूद थी और जिस पर शादी के बाद कभी खरबन्दा की निगाह पड़ गयी थी । उसको वह तस्वीर बहुत मार्के की लगी इसलिए उसने वह खंजर की मूठ में छुपा दी ।”
“मेरी समझ में नहीं आता कि हमारी शादी की मामूली तस्वीर में मार्के की लगने वाली कौन सी बात रही होगी जो खरबंदा ने उसे यूं छुपाकर रखने की जरूरत महसूस की !”
“आना तो चाहिए आपकी समझ में ।”
“नहीं आ रहा ।” - वह जिदभरे स्वर में बोला ।
“तो मैं समझाता हूं । रुद्रनारायण जी, उस तस्वीर में आप बड़े पिचके हुए और कमजोर लग रहे थे और एड़ियों के बल उचक कर, कन्धों से ऊपर हाथ उठाकर वधु को, रुकमणी देवी जी को, वरमाला पहना रहे थे ।”
“तो क्या हुआ?”
“तो यह हुआ जनाब कि आप तो कद में अपनी बीवी से खासे लम्बे हैं, फिर आपको इनके गले में वरमाला डालने के लिए एड़ियों के बल उचकना क्यों पड़ा और हाथ कन्धों से ऊंचे क्यों उठाने पड़े ? आपका कद तो बताता है कि आप बिना उचके स्वाभाविक ढंग से हाथ उठाकर ही वरमाला वधु के गले में डाल सकते थे ।”
वह एकाएक बेहद खामोश हो गया ।
“यही बात थी जो तस्वीर में खरबंदा ने भी नोट की थी और उसने उसे एक बहुत ही खुफिया जगह पर - खंजर की खोखली मूठ में - छुपाकर रखने की जरुरत महसूस की थी ।”
“मतलब क्या हुआ इसका ?”.
“इसका मतलब यह हुआ कि आप तस्वीर वाले रुद्रनारायण गुप्ता नहीं हैं ।”
“तो और कौन हूं मैं ?”
“आप उस वक्त नौजवान और हसीन रही रुकमणी देवी की रहमतों से नवाजे गये कोई और शख्स हैं जो इनके पति की मौत के बाद रुद्रनारायण गुप्ता की जगह ले बैठे ।”
“किस लिए ?”
“ट्रस्ट की उस माहवारी रकम को क्लेम करने के लिए रुद्रनारायण गुप्ता की मौत के बाद जो मिलनी बन्द हो जानी थी । वह विधवा की चालाकी थी उस रकम को हासिल करते रहने के लिए । इत्तफाक से इनका पति दिल्ली से बहुत दूर गोवा में मरा जहां कि उसकी मौत की खबर छुपाए रखना इन के लिए कोई मुश्किल काम साबित न हुआ । वहां परदेस में इन्होंने सबके साथ आपका परिचय अपने पति के तौर पर करवाया । आप लोग बड़े इतमीनान से रुद्रनारायण के नाम आने वाली माहवारी की रकम डकारते रहे ।”
“पेमेंट तो चैक से होती होगी ।”
“तो क्या हुआ ? ज्वायन्ट एकाउन्ट में चैक पति के नाम हो तो जमा हो जाने के बाद रकम पत्नी भी निकल सकती है । बाद में आपने कोई नया अकाउंट खोल लिया होगा, जैसा कि यहां दिल्ली में खोला हुआ है, और उसमें रुद्रनारायण के नाम से आपके साइन भी चलने लगे होंगे ।”
“यह बात साबित कैसे होगी ? तुम करोगे ?”
“मैं नहीं करूंगा । वो तस्वीर करेगी जो इस वक्त पुलिस के अधिकार में है ।”
“तीस साल पुरानी तस्वीर !” - वह हंसा - “तीस सालों में तो आदमी की सूरत में जमीन आसमान का फर्क आ जाता है ।”
“सूरत में ! कद में नहीं ! एक बार बालिग हो जाने के बाद आदमी का कद आधा फुट नहीं बढ़ जाता । ऊपर से एक बात और भी है ।”
“वो क्या ?”
“गोवा में असली रुद्रनारायण के असली बैक एकाउन्ट में आज भी उसके हस्ताक्षरों का नमूना होगा ।”
“हस्ताक्षरों का नमूना !” - वह हंसा - “अब तो वो बैंक भी नहीं बाकी । बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फौरन बाद बह बैंक बंद हो गया था ।”
“लेकिन वो ट्रस्ट आज भी बरकरार है जिसका माहवारी का चैक आप हज्म कर रहे है । ट्रस्ट के रिकार्ड में असली रुद्रनारायण की कोई चिट्ठी पत्री, कोई सर्टिफिकेट, कोई डॉक्यूमेंट जरूर होगा जिस पर कि उसके हस्ताक्षर होंगे । एक जालसाज आदमी की पोल खोलने के लिए वे बड़ी खुशी से अपना पुराने से पुराना रिकॉर्ड टटोलने को तैयार हो जाएंगे ।”
उसके मूंह से बोल न फूटा ।
“रुकमणी देवी जी, आपकी सबसे बड़ी गलती यही रही कि आपने गोवा से दिल्ली लौटने का लालच किया । आप वहीं रहतीं तो किसी को कभी भनक भी न पड़ती कि आपका पति मर चुका था और उसकी जगह आपका यह यार ले चुका था । अपने असली पति की मौत के इतने सालों बाद आपने यही सावधानी बहुत काफी समझी कि आप दिल्ली की जगह फरीदाबाद आकर रहीं । न आप यहां आतीं, न आपकी भांजी खरबंदा के इश्क में गिरफ्तार होकर उससे शादी करती और न आपकी शादी की कोई बरसों पुरानी तस्वीर खरबन्दा जैसे महाहरामी के हाथ लगती । उस तस्वीर के जरिए ब्लैकमेलिंग के लिए तैयारशुदा मुर्गा उसके हाथ लग गया । उसकी ब्लैकमेलिंग की वजह से ही आपका हाथ टाइट रहता है और आप उस ऐशोआराम से रहते नहीं दिखाई देते जिससे कि आप ट्रस्ट से हासिल होने वाली माहवारी रकम से रह सकते हैं । कोख का कलंक को लाखों को तादाद में छापने के लिए खरबन्दा ने पैसा आपसे झटका लेकिन जब किताब सुपर हिट हो गई और वह उसकी सेल से लाखों कमाने लगा तो मुनाफे में हिस्सा तो दूर, उसने आपका मूलधन तक लौटाने की कोशिश न की । आपको खरबन्दा से कभी कोई रकम वापिस हासिल नहीं हुई ।”
“कौन कहता है ?” - वह जबरन मुस्कराया ।
“मैं कहता हूं । आपके नैशनल बैक का एकाउन्ट कहता है जिसमें ट्रस्ट के चैक के अलावा कभी कोई रकम जमा नहीं हुई । उतनी ही रकम हर महीने निकाल लेना यह साबित करता है कि आपको रुपए पैसे की कहीं और से कोई प्राप्ति नहीं ।”
“होती तो मैं उसे बैंक में जमा कराता ?”
“नहीं कराते लेकिन दस हजार रुपए के डिपाजिट में से कभी तो कोई चार पैसे पीछे छोड़ते ! आपने ऐसा कभी नहीं किया । आपका खाता कहता है कि आप हर महीने चैक की पूरी की पूरी रकम निकालते रहे हैं ।”
“वह खामोश रहा ।”
“मजेदार बात यह है कि हर्षवर्धन का जो रायल्टी का चैक बनता था और जिसे बैंक से नारायणदास के नाम से आप भुनवा कर लाते थे...”
“मैं भुनवा कर लाता था ?”
“जी हां । मेरे पास आपके अपने हस्ताक्षरो के और नारायणदास के नाम से चैक के पीछे की गई एंडोर्समेंट दोनों के नमूने मौजूद हैं । रूद्रनारायण में और नारायणदास में “नारायण” हूबहू एक ही तरह लिखा गया है । वही स्टाइल, वही रवानगी, वही पैन का एंगल, वही स्ट्रोक । कहीं कोई फर्क नहीं ।”
“तो ?”
“तो यह कि देर सवेर आपको ताव आना ही था, आपको महसूस होना ही था की ब्लेकमेलिंग के उस जाल से पीछा छुड़ाना आपके लिए निहायत जरूरी था । खररुन्दा आपकी आइंदा जिन्दगी को - खास तौर से मधुमिता के उससे तलाक ले लेने के बाद - नर्क बना सकता था । पहले शायद वह मधुमिता की वजह से आपका कोई लिहाज करता हो लेकिन मधुमिता से रिश्ता टूट जाने के बाद तो उसका मुंह और फट सकता था, मधुमिता तलाक के अपने इरादे पर अडिग थी, नतीजनन आपने खरबंदा का कत्ल करने का फैसला कर लिया । उसकी मौत से आपको एक नहीं तीन-तीन फायदे थे - आप ब्लैकमेलिंग के फन्दे से निकल सकते थे जिसकी वजह से आपकी माली हालत सुधर सकती थी, आपका भविष्य सुरक्षित हो सकता था, क्योंकि तस्वीर की वजह से वही एक शख्स था जो आपकी असलियत से वाफिक था और कोख का कलंक में पैसा लगाया होने की वजह से आपको मुनाफे में शेयर मिल सकता था ।”
“मैं साबित कर सकता था कि मैंने कोख का कलंक में पैसा लगाया था ?”
“यह आप मुझे बता रहे है या पूछ रहे हैं ?”
“पूछ रहा हूं ।”
“तो जवाब यह है कि मधुमिता ने अभी इरादा ही किया था तलाक का, दोनों का तलाक हो नहीं गया था । मधुमिता खरबंदा की ब्याहता बीवी होने की वजह से उसकी कानूनी वारिस थी । वह पहले से जानती थी या आप उसे बाद मे समझा सकते थे कि कोख का कलंक में आपकी पूंजी लगी हुई थी इसलिए आप भी मुनाफे के हकदार थे ।”
रुद्रनारायण ने एक नकली जमहाई ली और उठ खड़ा हुआ ।
“औरकुछ ?” - वह लापरवाही से बोला ।
“हां । इस सन्दर्भ से दास्ताने सुभाष पचेरिया बाहर रह गई । सुभाष पचेरिया को आपने अपने निजी स्वार्थ के लिए बलि का बकरा बनाया । उसने कई लोगों के सामने, जिनमें कि आप भी थे, खरबन्दा को मार डालने की धमकी दी थी । आपने महसूस किया कि वह आपके लिए रेडीमेड अवसर था, उस धमकी की रूह में अगर खरबन्दा का कत्ल हो जाता था तो कत्ल का शक निशचय ही पचेरिया पर जाता था ।”
“पचेरिया असलियत बता सकता था, वह किसी तरीके से साबित कर सकता था कि उसने कत्ल नहीं किया था ।”
“इसीलिए तो आपकी कमीनगी की बलि वेदी पर उसका शहीद होना जरूरी था । आपने किसी तरह से खरबंदा के फ्लैट की चाबी की डुप्लीकेट हासिल की...”
“कैसे ?”
“क्या मुश्किल है । उस फ्लैट की एक चाबी, अब जाहिर हो ही चुका है कि, मधुमिता के पास थी । मधुमिता की गैरहाजिरी में यहां आपकी मौजूदगी कोई बड़ी बात नहीं - मसलन आप आज ही यहां उसकी गैरहाजिरी में बैठे हैं । उस चाबी की डुप्लीकेट हासिल कर लेना आपके बाएं हाथ का खेल था, जनाब ।”
“मंजूर । फिर ?”
“फिर किसी बहाने खरबन्दा की गैरहाजिरी में आपने पचेरिया को खरबन्दा के फ्लैट पर बुलाया और खरबन्दा की रिवाल्वर से, जो कि आप जानते थे कि फ्लैट में कहां पायी जाती थी, आपने पचेरिया का कत्ल कर दिया । आपने पचेरिया के फिंगर प्रिंटस वाली रिवाल्वर उस से हाथिया ली और रुमाल या दस्ताने की ओट से उसे थाम कर खरबन्दा के इन्तजार में बैठ गए । आप यह जाहिर करना चाहते थे कि खरबन्दा के फ्लैट में पचेरिया से उसका आमना सामना हुआ, दोनो ने एक दूसरे पर गोली चलाई और दोनों मारे गए लेकिन आपकी बदकिस्मती से ऐसा न हो सका । वहां खरबन्दा की जगह वीणा शर्मा पहुंच गयी । वीणा शर्मा द्वारा बाहर से चाबी लगा कर दरवाजा खोल पाने से पहले आपने आनन - फानन खरबंदा की रिवाल्वर को ड्राइंगरूम की मेज के दराज मे डाला जहां से कि जरूरत पड़ने पर आप उसे फिर निकाल सकते थे, वीणा शर्मा द्वारा देख लिए जाने से पहले आप वापिस बैडरूम में पहुंचे, लाश को बाथरूम के बाथटब में डाला और बैडरूम का गलियारे वाला दरवाजा खोल कर बाहर निकल आए । तब तक वीणा शर्मा फ्लैट में दाखिल हो चुकी थी इसलिए गलियारा खाली था । आप चुपचाप वहां से खिसक गए, पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक वीणा शर्मा से मिलने आते खरबंदा से रास्ते में मिले और उसके साथ फिर यूं फ्लैट में दाखिल हुए जैसे आपने तब पहली बार वहां कदम रखा था । तब तक मैं वहां पहुंच चुका था इसलिए आपकी खरबन्दा को तब खत्म करने की चाल न चल सकी । रिवाल्वर आपके हाथ में दोबारा पड़ पाने से पहले खरबन्दा ने रिवाल्वर अपने अधिकार में कर ली और मेरी तरफ तान दी ।”
“कहानी अच्छी है ।” - उसने फिर जमहाई ली और अपने दोनों हाथ अपनी पतलून की जेबों में धंसा लिए ।
“दिलचस्प भी” - मैं बोला - “सच्ची भी ।”
“अभी एक कत्ल और भी तो बाकी रह गया?”
“श्रीलेखा का ?”
“हां ! अब कहीं यह न कह देना कि वह भी मैंने किया ।”
“मैं जरूर कहूंगा । पता नहीं आपको मालूम है या नहीं मालूम लेकिन हकीकत यह है कि कोख का कलंक का लेखक हर्षवर्धन श्रीलेखा का सगा भाई था जो बदकिस्मती से अपने नावल की स्क्रिप्ट उत्कल पब्लिकेशन को सौंपने के बाद और अपनी मेहनत का कोई नतीजा सामने आने से पहले कैंसर से मर गया था । श्रीलेखा अपने भाई की स्क्रिप्ट के चक्कर में ही राममगर से दिल्ली आई थी और उसने बाकायदा रिश्वत देकर खरबन्दा के आफिस में उसकी सैक्रेट्री की नौकरी हासिल की थी । आखिर फर्म के मालिक की सैक्रेट्री को सीधे या टेलीफोन पर ऐसी बहुत सी बातें सुनने समझने का मौका हासिल होता है जो कोई दूसरा मुलाजिम नहीं सुन सकता । वहां उसको पता लगा कि आप वो शख्स थे जो हर्षवर्धन के नाम का रायल्टी का चैक भुनाता था । वह पता नहीं कैसे नारायणदास के नाम से आप द्वारा भुनवाए गए हर्षवर्धन के एक चैक की फाटोकापी हासिल करने मे भी कामयाब हो गई थी । उसने आप पर इलजाम लगाया कि आप ही उसके भाई की स्क्रिप्ट उड़ाने वाले चोर थे, आप ही ने हर्षवर्धन का फर्जी नाम रख कर वो स्क्रिप्ट छपवा ली थी और अब उसकी रायल्टी खा रहे थे । आप लड़की को यह नहीं समझा सकते थे कि आप एक चैक को सिर्फ भुनवाते थे, असल में पैसा तो वापिस खरबन्दा की जेब में पहुंच जाता था । तब तक वह मुझ से मिल चुकी थी और किसी तरह उसे यकीन आ गया था कि मेरी मदद से उसका दिल्ली आने का मकसद हल हो सकता था । यह बड़ी नाजुक स्थिति थी आपके लिए । उस स्क्रिप्ट के चक्कर में आपकी अपनी ब्लैकमेलिंग वाली पोल भी खामखाह खुल सकती थी । तब खरबन्दा पर जो एक्शन होता सो होता, कोख का कलंक की रायल्टी का रैकेट खुलता न खुलता, यह बात जरुर जाहिर हो जाती कि आप खरबन्दा के दबाव में आकर, अनिच्छा से हर्षवर्धन का रायल्टी का चैक भुनवाने बैंक में जाते थे । उस दबाव की कहानी अगर पुलिस खरबन्दा से उगलवा लेती, तो आप जेल जाते या न जाते लेकिन ट्रस्ट से दस हजार रुपये की लगी बन्धी आमदनी होनी तो आपको फौरन बन्द हो जाती । अपनी आज की बुढ़ौती की हालत में इतना बड़ा नुकसान आप अफोर्ड नहीं कर सकते थे । नतीजतन आप श्रीलेखा के पीछे लगे, उसके मेरे फ्लैट पर पहुंचने से पहले आपने उसको काबू में कर लिया और उसका कत्ल करके लाश मेरी कार में, जो कि लावारिस मेरे फ्लैट के सामने फुटपाथ पर खड़ी रहती है, डाल दी । आपने मेरे को फंसाने के लिए तब और भी कई करतूतें कीं ।”
“जैसे ?”
“जैसे किसी और लड़की से श्रीलेखा के नाम से मुझे फोन करवाया ताकि मैं फौरन कर्जन रोड की तरफ उड़ चलूं । आपने अपना नाम सुधीर कोहली बताकर मेरी कार की चोरी की पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दी ताकि मैं पुलिस की किसी पैट्रोल कार द्वारा कर्जन रोड के रास्ते में ही धर लिया जाऊं । आपने मेरे फ्लैट से रवाना होने के बाद उसका पर्स मेरे फ्लैट छुपा दिया ताकि उसकी बरामदी पर ऐसा लगे कि श्रीलेखा मेरे फ्लैट तक पहुंची थी और फिर मैं ही उसका कत्ल करके उसकी लाश अपनी कार में डालकर उसे कहीं ठिकाने लगाने जा रहा था ।”
“लेकिन तुम्हारी कार की चोरी वाली वह फोन काल...”
“आप बहुत चालाक हैं । आप जानते हैं कि इतना बड़ा कत्ल का केस पकड़ने के बाद पुलिस इस बात को कतई नजरअन्दाज कर देती कि वह फोन काल किसने की थी - ऐसा कोई भी शख्स हो सकता था जिसे मेरे से खुन्दक थी और जिसने मुझे लाश को कार मे लादते देखा था ।”
“आई सी ।”
“कहना न होगा कि इससे पहले आप ही ने सिकन्दरा रोड पर श्रीलेखा को पीछे से धक्का देकर उसके मेरी कार के नीचे कुचले जाने का सामान किया था लेकिन आप की बदकिस्मती से तब आपकी वह कोशिश कामयाब न हो सकी ।”
“हूं ।”
“आपने मुझे नपवाने का इन्तजाम तो पूरा किया था, रूद्रनारायण जी लेकिन अफसोस है कि आपका मकसद हल न हो सका । पुलिस ने मुझे छोड़ दिया ।”
“क्यों छोड़ दिया ? रिश्वत खिला दी होगी ! या पुलिस का कोई बड़ा हाकिम तुम्हारा सगे वाला निकल आया होगा ।”
“कैसे भी छोड़ा लेकिन छोड़ दिया ।”
“खरबन्दा की कहानी अभी भी रह गई ।”
“वह कहानी आसान है । तब तक वह पचेरिया की मौत से बहुत फिक्रमन्द हो उठा था । और कोई उसकी बात पर यकीन करता या न करता लेकिन खुद वो तो जानता था कि उसने पचेरिया का कत्ल नहीं किया था । इस सन्दर्भ में उसने शायद आपसे सीधे सीधे सवाल किया और आप पर इलजाम लगाया कि सब किया धरा आप का था । तब वहीं पर उपलब्ध नक्काशीदार मूठ वाला जापानी चाकू आपने खरबन्दा की पीठ में उतार दिया । “
“बढ़िया !” - वह बोला - “बहुत बढिया ! खरबन्दा अगर जिन्दा होता तो वह फौरन बतौर राइटर इस कहानी को लिख डालने के लिए तुम्हारे से कॉन्ट्रैक्ट कर लेता ।”
“जनाब, मुर्गा बांग नहीं देता तो क्या सवेरा नहीं होता ?”
“मतलब ?”
“दिल्ली शहर में वही इकलौता पब्लिशर नहीं था । आप पंचानन मेहता को ही भूल रहे हैं जो, देख लीजियेगा, खरबन्दा की बीवी और बिजनेस दोनों को हथियाएगा । कॉन्ट्रैक्ट की ऐसी कोई ऑफर मुझे उससे भी तो हासिल हो सकती है ।”
“नहीं हो सकती ।” - वह मुस्कराया ।
“क्यों ?”
“क्योंकि इस घड़ी के बाद अब तुम्हारी उससे या किसी से मुलाकात नहीं होने वाली ।”
“कौन कहता है ?”
“मैं कहता हूं” - उसने पतलून की जेब से अपना दायां हाथ बाहर निकाला - “यह पिस्तौल कहती है ।”
“मैं हड़बड़ाया । बुजुर्ग के हथियारबन्द होने की मुझे उम्मीद नहीं थी । आखिर उसे सपना थोड़े ही आना था कि इस बार जब वे फरीदाबाद से दिल्ली आएंगें तो उनका पर्दाफाश हो जाएगा ।”
“अब” - रुद्रनारायण धीरे किन्तु क्रूर स्वर में बोला – “तुम्हारे पास जो कोई भी आएगा तुम्हारी अर्थी को कन्धा देने आएगा ।”
“मैंने अपने एकाएक सूख आए होंठो पर जबान फेरी । मैंने देखा रुकमणी देवी जरा भी आन्दोलित नहीं लग रही थी । उलटे वह आंखों ही आंखों में उसे शाबाशी दे रही थी कि जो कुछ वह कर था, बहुत अच्छा कर रहा था ।”
“जनाब” - मैं धीरे से बोला - “कम से कम इतना तो कबूल कर लीजिए कि मैंने जो कहा सच कहा ।”
“बातों में वक्त जाया मत करो” - रुक्मणी देवी बड़ी सख्ती से अपने नकली पति से बोली - “जो करना है जल्दी करो ।”
“यहां इसका कत्ल करना मुनासिब नहीं होगा” - रुद्रनारायण बोला - “इसकी लाश यहां से बरामद होना मधुमिता के लिए कोई मुश्किल खड़ी कर देगा । इसे यहां मारा तो इसकी लाश ढो कर कहीं ले जाना मुश्किल होगा ।”
“तो ?”
“यह खुद अपने कदमो से चलकर वहां तक जाएगा जहां से लाश बरामद होने पर हम में से किसी पर कोई आंच नहीं आएगी ।”
“इसने कहना न माना तो ?”
“तो मैं इसे यहीं शूट कर दूंगा । वैसे यह इतना इतना ढीठ और अहमक दिखाई नहीं देता । क्यों मिस्टर प्राइवेट डिटेक्टिव ?”
“यहां चली गोली की आवाज” - मैं बड़ी कठिनाई से कह पाया - “सारे पड़ोस में सुनाई देगी ।”
“शायद यहां गोली चलाने की नौबत न आए । अभी तुमने हमारे साथ यहां से कहीं चलने से इनकार कहा किया है ?”
“जनाब !” - मैंने फिर अपने होंठो पर जुबान फेरी - “मेरा सवाल तो बीच में ही रह गया ।”
“कैसा सवाल ?”
“जो मैंने कहा सच कहा ! तीनों कत्ल आपने किये ?”
“हां । बहुत होशियार हो तुम । बधाई ।” - वह एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “तीनों क्यों, बल्कि चारों ।”
“मेरा कत्ल आपने स्कोर में पहले ही जोड़ लिया ।”
“अभी नहीं जोड़ा । उसे मिला कर पांचो ।”
“जी !”
“गोवा में वो साला रुद्रनारायण कौन सा अपनी आई मौत मारा था । काला पैसा नहीं देता था अपनी बीवी को वो कंजूस मक्खी चूस हरामी का पिल्ला । तब मैंने रुकमणी के कहने पर उसका कत्ल कर के उसकी लाश गायब कर दी थी और उसकी जगह खुद ले ली थी ।”
“कमाल है । एक कत्ल का तजुर्बा होने के बावजूद आप खरबन्दा के हाथों ब्लैकमेल होते रहे ।”
“हर काम के लिए मुनासिब वक्त का इन्तजार करना पड़ता है, बरखुरदार । देख लो, मुनासिब वक्त आया तो मैंने उसका शिकार कर लिया । और अब तुम्हारा शिकार करने जा रहा हूं ।”
“किसी ने ठीक कहा है” - मैं धीरे सेबोला - “इन्सान ही इकलौता जानवर है जो अपनी ही नसल का शिकार करता है । कभी शेर शेर का या घोडा घोड़े का या...”
“शटअप” - वह सांप की तरह फूंफकारा – “एण्ड मूव ।”
“मेरा कत्ल करना इतना आसान न होगा ।”
“देखेंगे ।”
“आप बच नहीं सकेंगे ।”
“वो भी देखेगें ।”
“खरबन्दा के कत्ल के बाद आपने वह तस्वीर अपने काबू में क्यों नहीं की जो आपके खिलाफ इकलौता सब से बड़ा सबूत है ।”
“क्योंकि तभी कोई वहां पहुंच गया था और मुझे वहां से खिसक आना पड़ा था । बहरहाल मुझे विश्वास है कि तस्वीर में जो मार्के की बात है, वह तुम्हारी समझ में आ गई सो आ गई किसी और की समझ में नहीं आने वाली ।”
“आपने देखा था ऐन मौके पर वहां कौन पहुंचा ?”
“हां ! पंचानन मेहता ।”
“उसके वहां से भागते ही तो वहां पुलिस पहुंच गई थी, फिर आप कैसे कूच कर पाए वहां से ?”
“मैं नीचे भागने की जगह ऊपर की मंजिल की सीढियां चढ़ गया था । जब मैं नीचे उतरा था तो सड़क पर कोई भी नहीं था वो प्रैस वाला भी नहीं था ।”
“पुलिस की जीप का ड्राइवर तो होगा ।”
“था लेकिन वह मुझे पहचानता नहीं था । उसने मेरी तरफ तवज्जो नहीं दी थी । तवज्जो क्या, उसने मेरी तरफ देखा तक नहीं था ।”
“लेकिन...”
“यह खामखाह बातों में वक्त जाया कर रहा है ।” - रुक्मणी देवी बिफर कर बोली – “और तुम इसकी चाल में फंस रहे हो ।”
“चलो” - रूद्रनारायण सख्ती से बोला ।
“कहां ?” - मैं जानबूझ कर अनजान बनता हुआ बोला ।
“यहां से बाहर । नीचे सड़क पर जहां कि मेरी कार खड़ी है । तुम आगे चलोगे । मैं तुम्हारे पीछे चलूंगा । बाहर हम दोनों कार की पिछली सीट पर सवार होंगे । रुक्मणी ड्राइव करेगी । चलो ।”
“मैं न चलूं तो ?”
“छोकरे, ढिठाई दिखाने से तेरी मौत टलने वाली नहीं । अब हिलता है या मैं गोली चलाऊं ।”
“हिलता हूं ।” - मैं बोला और मन मन के कदम उठाता हुआ दरवाजे के सामने पहुंचा । मेरा दिल धाड़ धाड़ मेरी पसलियों से बज रहा था और मुझे लग रहा था कि पीछे से गोली चली की चली ।
“दरवाजा खोल ।” – आदेश मिला।
मैंने दरवाजा पूरा खोला ।
“बाहर ।”
मैंने चौखट से बाहर कदम डाला ।
तभी एक पहलू से किसी ने मुझे जोर से धक्का दिया । मैं भरभरा कर औंधे मुह फर्श पर गिरा ।
“खबरदार ।” - कोई गला फाड़ कर चिल्लाया ।
साथ ही एक फायर हुआ ।
आतंकित मैं कांखता कराहता हुआ सीधा हुआ और उसी मुद्रा में मैंने सामने निगाह डाली ।
इन्स्पेक्टर यादव सीढियों के दहाने के करीब खड़ा था । अपने दोनों हाथों में उसने अपनी सर्विस रिवाल्वर जकड़ी हुई थी जिस की नाल से धुंआ निकल रहा था ।
रुद्रनारायण चौखट से जरा भीतर कमरे में मरा पड़ा था । पिस्तौल उसके हाथ से निकल कर रुक्मणी देवी के पैरौं के करीब जाकर गिरी थी लेकिन पता नहीं अपनी सकते की सी हालत की वजह से या यादव के हाथ में थमी पहले ही आग उगल चुकी रिवाल्वर के खौफ से वह पिस्तौल उठाने के लिए नीचे नहीं झुक रही थी ।
फिर एक पुलसिये ने आगे बढ़ कर पिस्तौल अपने काबू में ले ली ।
“मैं उठ कर अपने पैरो पर खड़ा हुआ और अपने कांपते हाथों से एक सिगरेट सुलगाने लगा ।
तब यादव का रिवाल्वर वाला हाथ नीचे झुका ।
“मैंने इसे वार्निग दी थी” - वह बोला - “लेकिन यह मेरे पर गोली चलाने को पूरी तरह से आमादा था ।”
“तुम यहां कैसे पहुंच गए ?” - मैं फंसे स्वर में बोला ।
“अपने आपको खुशकिस्मत जानो कि मैं यहां पहुंच गया ।”
“लेकिन कैसे ?”
“तुम्हारे व्यवहार की वजह से । पहले तो तुम्हारा वहां से खिसकना ही खटकने वाली बात थी । ऐसे मौकों पर हम तुम्हें भगाते हैं तो तुम नहीं खिसकते लेकिन आज तुम अपने ही क्लायंट को वहां फसा छोड़ कर वहां से खिसक आए तो मुझे शक हुआ । मैंने तुम्हारे पीछे एक आदमी लगा दिया । फिर जब अनन्त राम मधुमिता के साथ पहुंचा और उसने मुझे बताया कि जब वह मधुमिता को लिवाने उसके फ्लैट पर पहुंचा था तो तुम भी वहां थे और फिर भी तुमने मधुमिता के साथ आने की कोशिश नहीं की थी । यह बात भी मुझे खटकी । तुम्हारी किसी सहेली को पुलिस तलब करे और उसकी हिमायत के लिए तुम लसूड़े की तरह चिपके चिपके उसके साथ न पहुंचो, यह बात मुझे तुम्हारे चरित्र से मेल खाती नहीं लगी । लिहाजा मैं सब काम छोड़ कर सीधा यहां पहुंच गया जो कि मैंने बहुत अच्छा किया ।”
“तुमने कुछ सुना ?”
“हां, सुना । लेकिन यह नहीं मालूम कि जो सुना वही मुकम्मल बयान था या मेरे पहुंचने से पहले खूब बातें हो चुकी थीं । बहरहाल मैं तब तक बाहर की होल से कान सटाए रहा था जब तक की तुम्हें बाहर को मार्च करने का हुक्म नहीं मिला ।”
“ओह ! यादव साहब, मेरी जान बचाने का बहुत बहुत शुक्रिया ?”
वह मुस्कराया । वह संतुष्ट था कि “उसके प्रयत्नों से” इतना बड़ा केस हल हो गया था ।
“पंचानन मेहता कहां है ?” - मैंने पूछा ।
“पुलिस हैडक्वार्टर । तुम वहां जा रहे हो तो उसे कह देना कि उसके खिलाफ कोई केस नहीं है । मधुमिता भी वहीं है । उसे भी कह देना की अब पुलिस हैडक्वार्टर पर उसकी मौजूदगी जरुरी नहीं ।”
“वैरी गुड ।”
“रूद्रनारायण के चैक की फोटोकापी निकालो ।”
मैंने तत्काल फोटोकापी उसे सौंप दी ।
“अब भाग जाओ ।”
मैंने तत्काल आदेश का पालन किया ।
***
रुक्मणी देवी पर धोखाधड़ी में शरीक होने का मुकदमा चला । नाजायज और गैरकानूनी तरीके से अपने पति की मौत के बाद किसी और शख्स को अपना पति बता कर और ट्रस्ट के साथ मुतवातर फ्रॉड करते रहने की एवज में उसे तीन साल की सजा हुई ।
पंचानन मेहता को कोख का कलंक पर अपना पार्टनरशिप वाला हिस्सा जताने की जरूरत न पड़ी । खरबन्दा की मौत का केस ठंडा हो जाने के बाद उसने मधुमिता से शादी कर ली और खरबन्दा का बिजनेस बमय कोख का कलंक वैसे ही उसका हो गया । मेरी जिद पर उसने कोख का कलंक की उस तमाम रायल्टी का, जो कि खरबन्दा हर्षवर्धन के नाम चैक काट काट कर खुद डकारता रहा था, हर्षवर्घन उर्फ हरीश की बुआ विद्यावती को हकदार माना । बेचारी ने दिल्ली में ही श्रीलेखा का अन्तिम संस्कार किया और फिर अपने दो बच्चों की असामयिक मौत का मातम मनाती, रायल्टी की रकम में तसल्ली तलाशती वह रामनगर वापिस लौट गई ।
पंचानन मेहता से शादी करने से पहले मधुमिता ने वही ऑफर आफर युअर्स ट्रूली को दी थी लेकिन ज्यों ही उसे शादी के बारे में बन्दे के ख्यालात पता लगे तो वह भुनभुनाती हुई मेरे पहलू से उड़ी और अपने भूतपूर्व एडमायरर पंचानन मेहता की गोद में जाकर गिरी । आपके खादिम को महज इतना अफसोस हुआ कि वह उससे अपनी पसन्दीदा फीस न वसूल कर सका ।
वीणा शर्मा से मालूम हुआ कि हरीश कोई पांडुलिपि छोड़ कर नहीं मरा था । लेकिन कल्याण खरबन्दा ने भूत लेखन में विशेषज्ञ किसी और लेखक से कोख का कलंक के स्टाइल में कई और स्क्रिप्ट लिखवा ली हुई थीं, जो वह बारी बारी हर्षवर्धन के नाम से छापने जा रहा था । गनीमत थी कि पंचानन मेहता ने उस भ्रष्ट धंधे मे रस ना लिया ।
फरीदाबाद के नौकर गोपीनाथ ने तसदीक की कि श्रीलेखा की हत्या वाली रात को रूद्रनारायण और रुकमणी देवी दोनों ही घर पर नहीं थे, इस लिहाज से बहुत मुमकिन था कि अपने आपको श्रीलेखा बता कर मुझे वह भ्रामक टेलीफोन काल, जिसे सुन कर मैं आनन फानन कर्जन रोड की तरफ दौड़ चला था, रुकमणी देवी ने की थी ।
बतौर फीस पंचानन मेहता ने मुझे दस हजार रुपए दिए । आपका खादिम अपने आप को इससे ज्यादा बड़ी रकम का हकदार मानता था, आखिर पंचानन मेहता मुझे वसूली में पार्टनर बना कर आगे चला था, लेकिन मैंने हुज्जत न की । एक हजार रूपये मैंने पहले उससे झटके थे, इस तरह शगुनों वाले ग्यारह हजार रुपए आपके खादिम ने कमा लिए ।
ऊपर से यह भी तो मेरी फीस थी कि आपका खादिम मरता मरता बचा था ।
सुधीर कोहली, दी लक्की बास्टर्ड, एज यूजुयल ।
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