गुमशुदा की तलाश

विराट राणा एसीबी हैडक्वार्टर के अपने कमरे में जाकर बैठा ही था कि सुलभ जोशी वहां पहुंच गया। उसने विराट का अभिवादन किया और उसके इशारे पर सामने रखी कुर्सी पर बैठ गया।
“हमारी सर्विलांस टीम ने एक बड़ी हैरान कर देने वाली खबर दी है सर।”
“राहुल हांडा के केस से रिलेटेड?”
“लगता तो यही है।”
“बयान करो।”
“सातों सस्पेक्ट्स एक साथ गायब हैं।”
“मतलब?”
“उनमें से किसी के भी मोबाईल की लोकेशन नहीं मिल रही है।”
“हद है यार, मोबाईल की लोकेशन नहीं मिलने का मतलब ये होता है कि सब गायब हो गये? ये क्यों नहीं हुआ हो सकता कि सातों ने किसी खास वजह से, या पुलिस की तरफ से बार-बार की जाने वाली कॉल्स से तंग आकर अपने मोबाईल बंद कर दिये हों, या नया नंबर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया हो?”
“नहीं ऐसा नहीं है। मिश्रा जी ने सुबह आठ बजे जब मुझे फोन कर के इस बात की जानकारी दी, तो आपकी तरह मैंने भी यही सोचा था कि जरूर उन सब ने अपने अपने नंबर बंद कर दिये थे, ताकि पुलिस उन्हें कॉल कर के परेशान न कर सके। फिर मन में ख्याल आया कि क्या वाकई में ऐसा ही हुआ था? तब मैंने उनमें से एक के घर पहुंचने का फैसला किया। सबसे नजदीक में रोहताश सरदाना का घर है इसलिए वहीं चला गया। गेट पर मौजूद दरबान ने बताया कि रोहताश बीती रात साढ़े आठ बजे घर से निकल गया था और तब तक वापिस नहीं लौटा था। उसके बाद मैं ये जानने को व्याकुल हो उठा कि कहीं उसी की तरह बाकी के लोग भी अपने अपने घरों से नदारद तो नहीं थे? तब मैंने तीन और लोगों के घर का फेरा लगाया, जहां से मुझे यही सुनने को मिला कि फलां लड़की या लड़का बीती रात घर से निकलने के बाद वापिस नहीं लौटा था।”
“तो भी क्या बड़ी बात है, भूल गये राहुल के बाप मनीष हांडा ने क्या कहा था?”
“क्या कहा था सर?”
“ये कि राहुल और उसके दोस्त हर शनिवार को पार्टी करते थे, जहां से अगले रोज वापिस लौटते थे। और अभी क्योंकि ग्यारह ही बजे हैं इसलिए उनके लौटने की पूरी पूरी उम्मीद की जा सकती है।”
“पहले मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए सर।”
“ठीक है बोलो।”
“जिन चारों के घरों का मैंने फेरा लगाया उसमें से एक अतुल कोठारी का घर था, जिसकी बेटी मधु राहुल के सात दोस्तों में से एक है। वहां मेरी मुलाकात कोठारी दंपत्ति से तो नहीं हुई, मगर गार्ड के जरिये पता लगा कि दोनों मियां बीवी अपनी बेटी की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने गये थे।”
विराट हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगा।
“अब जरा खुद सोचकर देखिये सर कि अगर उन्हें उम्मीद होती कि उनकी बेटी कुछ घंटों में वापिस लौट आयेगी, तो क्या वे लोग मिसिंग कंप्लेन फाईल कराने जाते?”
“मधु के घर वालों की तरह क्या कोई और भी पुलिस के पास पहुंचा था?”
“मैं नहीं जानता सर, हो सकता है पहुंचा हो, आखिर लोकेशन तो उन सबकी एक साथ गायब है। और मोबाईल नंबर अगर बदल नहीं दिया गया है तो जाहिर है बाकियों के घरवाले भी उनसे कोई संपर्क नहीं कर पा रहे होंगे, ऐसे में अभी तक अगर रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश नहीं भी की गयी होगी, तो आगे चलकर पक्का दर्ज कराई जायेगी।”
“सात बच्चे एक साथ कैसे गायब हो सकते हैं जोशी साहब?”
“क्या पता लगता है सर, वैसे अपहरण के चांसेज तो निल दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि वैसा कुछ होता तो उनमें से एक दो को उठाया गया होता, जबकि यहां तो पूरी पलटन ही गायब है।”
“ठीक है मिश्रा जी को बोलो कि उनकी लोकेशन पर निगाह बनाये रखें, और जैसे ही कोई हलचल दिखाई दे हमें उस बात की खबर कर दें।”
“यस सर।”
तभी एक सिपाही ने वहां पहुंचकर विराट को बताया कि एसीपी साहब बुला रहे थे।
“मैं मिलकर आता हूं।” कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ।
कमरे से निकलकर पहली मंजिल पर स्थित एसीपी ऑफिस में पहुंचा और इजाजत लेकर भीतर दाखिल हो गया।
“बैठो।” राजावत का लहजा गंभीर था।
“थैंक यू सर।”
“तबियत कैसी है अब?”
“ठीक हूं सर, सॉरी।”
“किस बात के लिए?”
“बीमार पड़ने के लिए।”
“जानबूझकर पड़े थे?”
“यस सर, मुझे ध्यान रखना चाहिए था कि डेंगू के मच्छर को अपने करीब नहीं आने देना है। मगर वह ना सिर्फ आया बल्कि काट खाने में भी कामयाब हो गया, इसलिए लापरवाही तो हुई ही है, वह लापरवाही जिसके कारण मैं बीमार पड़ गया।”
“कोई बात नहीं समझ लो माफ कर दिया। अब ध्यान से वो सुनो जो मैं कहने जा रहा हूं।”
“सॉरी सर, प्लीज बताइये।”
“एक बड़ी प्रॉब्लम हो गयी है।”
“क्या सर?”
“राहुल के दोस्तों में से एक लड़की लापता हो गयी है?”
“मधु कोठारी?”
“हां वही, पता है तुम्हें?”
“गायब होने के बारे में पता है।”
“मधु कोठारी एक नामी गिरामी बिजनेसमैन अतुल कोठारी की बेटी है, जिसका मैट्रेस बनाने का कारोबार है, जो कि हिंदुस्तान भर में ‘स्वीट ड्रीम्स’ के नाम से जाना जाता है। लड़की कल रात से गायब है। उसके मोबाईल की आखिरी लोकेशन फरीदाबाद बाईपास पर बल्ल्भगढ़ से करीब दस किलोमीटर उत्तर की तरफ पाई गयी। वह पूरा इलाका मेरा देखा भाला है इसलिए ये भी जानता हूं कि उधर या तो छोटे छोटे गांव हैं, या फिर दूर दूर तक फैले खेत खलिहान, साथ ही बहुत सारा इलाका ऐसा भी है जो ग्रीन लैंड में आता है।”
“तिमार पुर के आस-पास की बात तो नहीं है?”
“एग्जैक्टली, उसकी गुमशुदगी साकेत थाने में दर्ज कराई गयी है, मगर उसका बाप अतुल कोठारी क्योंकि रईस आदमी है, इसलिए पुलिस पर दबाव पड़ना बेहद आम बात मानी जायेगी। मगर हैरानी की बात ये है कि उसने वह दबाव रिपोर्ट लिखवाने के साथ ही बनाना शुरू कर दिया। जबकि अमूमन एक दो दिन बाद जाकर कोई ऐसी कोशिशों में लगता है। कोठारी कितना बड़ा आदमी है इसका अंदाजा इसी से लगा लो कि उसकी कंपनी जो मैट्रेस बनाती है उसे बेचने के लिए देश भर के तमाम शहरों में बड़े बड़े शोरूम्स हैं, जिनका सोल ऑनर खुद कोठारी ही है। मतलब ये कि ‘स्वीट ‘ड्रीम्स’ की डिस्ट्रीब्यूटरशिप किसी और को नहीं दी जाती।”
“छह साढ़े छह फीट से ज्यादा तो क्या होगा?”
“शटअप।”
“हो गया सर।”
“और बात सिर्फ उसके बड़ा बिजनेसमैन होने तक भी सीमित नहीं है। समस्या ये है कि उसका सीधा संबंध लॉ एंड ऑर्डर मिनिस्टर के.एस. गोपालन के साथ है, जिसने कमिश्नर साहब से कहा है, बल्कि चेतावनी दी है कि पुलिस अगर चौबीस घंटों के भीतर लड़की का अता पता नहीं लगा पाई तो केस सीबीआई के हवाले कर दिया जायेगा। और वैसा करते वक्त इस बात पर खास ध्यान दिया जायेगा कि कैसे दिल्ली पुलिस एक मामूली सा मिसिंग केस भी सॉल्व नहीं कर सकी थी।”
“इसका क्या मतलब हुआ?”
“साफ साफ धमकी दी है भई, और क्या मतलब हुआ?”
“और इतनी बड़ी बात, अपनी बेइज्जती कराने जैसे बात कमिश्नर साहब ने बेहिचक आपको बता दी, है न सर?”
“ज्यादा दिमाग लड़ाने की कोशिश मत करो। उन्होंने जो कहा वह डीसीपी साहब से कहा था, जिनके जरिये मेरे कानों तक बात पहुंचकर रही। वैसे भी तुम अच्छी तरह से जानते हो कि महकमे में सबकुछ सीढी दर सीढ़ी चलता है। कमिश्नर साहब ने डीसीपी साहब को बताया, उन्होंने मुझे बताया और अब मैं तुम्हें बता रहा हूं।”
“आगे मैं किसी एसआई को बताऊंगा, वह एएसआई को बतायेगा, बात किसी हवलदार तक पहुंचेगी फिर सिपाही तक, यूं आखिरी पायदान तक खबर पहुंच कर रहेगी, बढ़िया रास्ता ढूंढा है आपने कमिश्नर साहब की बेइज्जती करने का।”
“खबरदार जो आगे किसी से इस बारे में एक लफ्ज भी कहा, जुबान बंद रखकर काम करना है तुम्हें, समझ गये?”
“अगर ऐसा है तो पूछताछ के लिए कहीं जाना तो बेकार ही होगा सर, है न?”
“क्यों?” राजावत के माथे पर बल पड़ गये।
“जब जुबान बंद रखूंगा तो सवाल क्या खाक कर पाऊंगा?”
“ज्यादा होशियार बनने की भी जरूरत नहीं है इंस्पेक्टर। तुम खूब समझ रहे हो कि चेतावनी किस बाबत दे रहा हूं मैं।”
“अगर चेतावनी ही देनी थी सर तो बताना ही नहीं चाहिए था। क्योंकि मेरे हाजमे का हाल भी कुछ कुछ आप जैसा ही है।”
“कोई गोली वोली ले लेना, मगर बात को डाइजेस्ट करना बहुत जरूरी है। फिर भी ना कर सको तो जिसके आगे भी जिक्र करना ये कहकर करना कि ‘गोपालन ने कमिश्नर साहब से रिक्वेस्ट की थी’, बड़ी हद ये कि ‘गोपालन ने कमिश्नर साहब से कहा था’ समझ गये?”
“यस सर, लेकिन ये अभी भी नहीं समझ पाया कि केस जब आज ही रजिस्टर हुआ है तो वह थाने से उठकर हमारे पास कैसे पहुंच गया?”
“दो वजहों से, पहला ये कि कमिश्नर साहब ऐसा चाहते हैं, और दूसरा ये कि गायब होने वाली लड़की दो महीने पहले से मिसिंग राहुल हांडा की दोस्त थी, ऐसे में डीसीपी साहब को लगता है कि दो अलग अलग दिखाई देने वाले मामले असल में एक दूसरे के साथ कनेक्टेड भी हो सकते हैं।”
“यानि किसी शख्स ने पहले राहुल को गायब किया फिर दो महीने इंतजार करने के बाद उसके दोस्तों में से एक मधु कोठारी को उठा ले गया?”
“क्यों यकीन करना मुश्किल हो रहा है?”
“हां हो रहा है सर, अगर उसने राहुल के साथ-साथ मधु को भी गायब करना ही था, तो उस काम को दो महीने पहले ही क्यों नहीं अंजाम दे दिया? आखिर लड़की उस वक्त भी तो अवेलेबल ही थी।”
“क्यों नहीं किया ये जुदा मसला है लेकिन दोनों कारनामे किसी एक ही शख्स का किया धरा बराबर हो सकते हैं। क्यों हो सकते हैं इसका पता तुम्हें लगाना है।”
“यस सर।”
“हाई प्रोफाईल केस है इसलिए फूंक फूंक कर कदम रखना विराट।”
“चेतावनी बड़े अच्छे शब्दों में दे लेते हैं सर।”
“मैं नहीं समझता कि तुम्हें ऐसी किसी चेतावनी की जरूरत है, क्योंकि जानता हूं हाई प्रोफाईल केस हैंडल करने का तुम्हें खासा तजुर्बा है, फिर खुद भी तो वही हो, हाई प्रोफाईल।”
“अगर ये तारीफ है सर तो थैंक यू।”
“करना तो बेइज्जती चाहता था, मगर मेरी वोकैब थोड़ी वीक है।”
“आप चाहें तो डिक्शनरी का इस्तेमाल कर लीजिए सर, तब तक अपनी बेइज्जती कराने के लिए मैं यहां बैठा रह सकता हूं।”
“फिर कभी देखेंगे।”
“ठीक है आपकी मर्जी।”
“गुड अब फौरन काम पर लग जाओ।”
“बस एक आखिरी सवाल और?”
“पूछो।”
“गोपालन साहब साउथ इंडियन हैं जबकि कोठारी नहीं हो सकता। इसलिए दोनों के बीच किसी रिश्तेदारी की भी उम्मीद नहीं दिखाई देती, तो क्या महज दोस्ती भर है उनके बीच?”
“अभी तो सिर्फ दोस्त ही हैं, मगर जल्दी ही उनकी दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाने वाली थी।”
“मतलब?”
“मधु कोठारी गोपालन साहब के बड़े बेटे मनीराज गोपालन की बीवी बनने जा रही थी। रिश्ता हालांकि अभी तक जुबानी ही था। मगर कुछ दिनों पहले मीडिया में आई एक न्यूज के मुताबिक कोठारी ने बड़े दावे के साथ ये बात कही थी कि वह और गोपालन आगे बस दोस्त ही नहीं रहने वाले थे। बाकी का अंदाजा मीडिया ने खुद लगा लिया कि कोठारी और गोपालन के बीच रिश्तेदारी होने जा रही थी, जो कि मनीराज और मधु की शादी के अलावा और कुछ नहीं हो सकता था।”
“जो कि अब होती नहीं दिखाई दे रही क्योंकि लड़की गायब है?”
“मैं फ्रैंच बोल रहा हूं?”
“वो तो खैर आपको क्या आती होगी सर।”
“इंस्पेक्टर विराट सिंह राणा।” एसीपी शब्दों को चबाता हुआ बोला।
“यस सर।”
“दफा हो जाओ।”
“थैंक यू सर।”
“दफा हो जाओ का मतलब होता है मेरे कमरे से निकल जाओ।”
“आपका मतलब है गेट से आउट?”
“हां और इस बार मैं हिंदी ही बोल रहा हूं।”
“जो कि बेहद कमजोर जान पड़ती है - वह उठता हुआ बोला - वरना आपको मालूम होता कि ‘दफा हो जाओ’ हिंदी के शब्द नहीं हैं।”
“तुम चाहते हो कि ये केस मैं किसी और को दे दूं?”
“अरे नहीं सर, बड़ी मुश्किल से चुपड़ी वो भी दो दो मिली हैं, उसे भी छीन लेंगे तो ये गरीब भूखा नहीं मर जायेगा। भला ऐसे मौके क्या बार-बार आते हैं।”
“तो फिर जाते क्यों नहीं?”
“अभी जाता हूं सर।” कहकर उसने मेज पर रखी फाईल उठाई, मशीनी अंदाज में एसीपी को सेल्यूट किया फिर दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
शाम चार बजे के करीब विराट ने अपनी फॉर्च्यूनर साकेत थाने के बाहर पार्क किया, फिर एसआई सुलभ जोशी के साथ नीचे उतरकर भीतर दाखिल हो गया।
दोनों ड्यूटी रूम में पहुंचे तो वहां मौजूद स्टॉफ फौरन उठ खड़ा हुआ, माथे तक हाथ ले जाकर दोनों का अभिवादन भी किया, अलबत्ता सेल्यूट करने जैसी फॉर्मेलिटी किसी ने नहीं निभाई।
“महावीर साहब बैठे हैं?” उसने पूछा।
“यस सर।”
“कमरा कौन सा है उनका?”
“सामने से दाईं तरफ को पहला।”
सुनकर दोनों एसएचओ के कमरे तक पहुंचे फिर विराट ने दरवाजे पर हौले से दस्तक दे दी।
“कम इन।” भीतर से कहा गया।
दोनों अंदर दाखिल हुए, जहां एसएचओ महावीर सिंह अकेला बैठा दिखाई दिया।
विराट पर निगाह पड़ते ही वह उठ खड़ा हुआ।
“बहुत दिनों बाद मुलाकात हो रही है - वह मुस्कराया - मेरे ख्याल से तो साल बीत चुका होगा।”
“पंद्रह महीने बाद।” कहकर उसने महावीर सिंह से हाथ मिलाया और उसके इशारे पर सामने एक विजिटर चेयर पर बैठ गया।
“तुम भी बैठो भई - वह सुलभ की तरफ देखकर बोला - या अलग से कहे जाने का इंतजार कर रहे हो?”
“ऐसा नहीं है जनाब, थैंक यू।”
“कैसे आना हुआ? - एसएचओ ने पूछा - मुझसे मिलने तो क्या आये होगे?”
“हमारी नौकरी ही ऐसी है यार, रिश्तेदारियां निभाने का वक्त ही कहां मिलता है।”
“खासतौर से तुम्हारे एसीबी में ट्रांसफर हो जाने के बाद, है न?”
“ठीक कहा।”
“चाय मंगाऊं, या कुछ और?”
“बोतल मंगा लो चियर्स बोलते हैं।”
महावीर सिंह सकपकाया।
“सॉरी मजाक कर रहा था।”
“ओह मजाक कर रहे थे।”
“कुछ मंगाने की जरूरत नहीं है - विराट बोला - यहां हम मधु कोठारी की वजह से आये हैं।”
“कमाल है इतनी नाउम्मीदी, जबकि केस आज सुबह ही रजिस्टर हुआ है?”
“सब रूतबे का खेल है भाई, इसलिए माइंड करने की जरूरत नहीं है। लड़की का बाप दौलतमंद शख्स है इसलिए अपने रसूख का जलवा तो उसने दिखाना ही था। बस पहुंच गया गोपालन साहब के पास, जहां से कमिश्नर साहब को फोन पहुंचा और हमें हुक्म हो गया कि केस थाने से लेकर खुद उसकी जांच करें, अब साहब लोगों का हुक्म तो नहीं टाल सकते न?”
“ठीक कहा, वैसे पता कुछ नहीं लग पाया है अभी तक, जबकि थाने की आधी फोर्स को मैंने उस लड़की की तलाश में दौड़ा रखी है। ऐसे में मामला तुम लोगों को हैंडओवर कर के एक तरह से मैं अपने ऑफिसर पर एहसान ही करूंगा।” कहकर वह हौले से हंस पड़ा।
“ठीक है करो।”
“सब इंस्पेक्टर माधव तिवारी को बुलाता हूं, केस वही हैंडल कर रहा है, इसलिए हो सकता है कोई नई बात पता लगाने में कामयाब हो गया हो।”
विराट ने समझने वाले अंदाज में सिर हिला दिया।
महावीर सिंह ने मोबाईल उठाकर कोई नंबर डॉयल किया फिर संपर्क होते ही बोल पड़ा, “कहां हो तिवारी जी?”
“अभी अभी थाने पहुंचा हूं सर।”
“मुझे रिपोर्ट करो।”
“यस सर।”
एसएचओ ने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
थोड़ी देर बाद एसआई माधव तिवारी इजाजत लेकर भीतर दाखिल हुआ और उनका अभिवादन कर के जोशी के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया।
“ये विराट राणा साहब हैं, एंटी क्राईम ब्यूरो से।”
“मैं जानता हूं सर।”
“मधु कोठारी का केस अब ये हैंडल करेंगे।”
“वो भी जानता हूं सर, अभी थोड़ी देर पहले डीसीपी साहब का हुक्म होकर हटा है।”
“कुछ प्रोग्रेस की या नहीं अभी तक?”
“जानकारियां बहुतेरी जुटा ली हैं सर, लेकिन काम की उनमें से एक भी नहीं है।”
“कोई बात नहीं - विराट बोला - जो पता लगा है वही बता दो।”
कहकर विराट ने जोशी की तरफ देखा तो उसने फौरन पॉकेट डायरी बाहर निकाली और पैन हाथ में लेकर बैठ गया।
“आज सुबह आठ बजे अतुल कोठारी और उसकी बीवी कनिका ने थाने पहुंचकर बेटी के गायब होने की रिपोर्ट लिखवाई थी सर - माधव तिवारी ने बताना शुरू किया - वह क्योंकि बहुत बड़े लोग हैं, इसलिए मामला दर्ज करने से पहले ही उस बात की खबर डीसीपी साहब को दे दी गयी। आगे जो कुछ भी हुआ वह साहब के यहां पहुंच जाने के बाद ही किया गया। फिर केस का इंचार्ज मुझे बनाया गया और मैं फौरन तफ्तीश में जुट गया। सबसे पहले दिल्ली एनसीआर के तमाम थानों को हमने लड़की की फोटो भेजते हुए उसकी गुमशुदगी की इत्तिला दे दी। मधु कोठारी के नंबर पर हम पहले ही कॉल कर के देख चुके थे, इसलिए जानते थे कि वह स्विच ऑफ था, या नैटवर्क से बाहर था। इसलिए आनन-फानन में उस नंबर को सर्विलांस पर भी लगा दिया गया, जो कि डीसीपी साहब के प्रयत्नों से ही मुमकिन हो पाया, वरना तो आप जानते ही हैं वैसा होते होते एक दो दिन तो गुजर ही जाते हैं।”
“मगर नतीजा जीरो ही रहा है न?”
“अभी तक तो ऐसा ही है सर।”
“खैर आगे क्या किया तुमने?”
“लड़की के मां बाप ने बताया था कि घर से वह किसी पार्टी में जाने को कहकर निकली थी, साथ ही उसके यार दोस्तों के नंबर भी हमें मुहैया करा दिये गये। हमने उन नंबरों पर भी कॉल कर के देख लिया मगर संपर्क किसी से नहीं हो सका, यानि जो हाल लड़की के मोबाईल का था वही उसके दोस्तों के मोबाईल का भी था। आगे जब हमने उनसे मिलकर पूछताछ करने की दिशा में कदम उठाया तो पता लगा कि सब के सब अपने घरों से गायब थे, और किसी पार्टी में जाने की बात कहकर ही निकले थे। तब हम ये तक सोचने लगे कि सातों के सातों ही किसी दुष्चक्र में फंस गये थे।”
“यानि लड़की और उसके दोस्तों को मिलाकर कुल जमा सात लोगों को जांच में शामिल किया गया?”
“यस सर।”
“फिर क्या हुआ?”
“हालांकि ये जानकारी हमें अतुल कोठारी ने ही दे दी थी कि आखिरी बार उसका नंबर यहां से करीब पच्चीस-तीस किलोमीटर दूर फरीदाबाद जिले के एक उजाड़ इलाके में एक्टिव था, बावजूद इसके मैंने टेलिकॉम कंपनी से उसकी लोकेशन हासिल की जो कि लड़की के बाप के कहे को सच साबित करती थी। आगे मैं एक टीम के साथ उधर पहुंचा तो पता लगा कि वह पूरा का पूरा इलाका खेत खलिहानों से भरा पड़ा था, या फिर दूर दराज में कुछ गांव थे, जिनमें से सबसे नजदीक में तिमारपुर गांव बसा हुआ है, मगर वह भी मोबाईल की आखिरी लोकेशन से दो किलोमीटर दूर है। उम्मीद के खिलाफ उम्मीद करते हुए हमने उस पूरे इलाके को छान मारा, मगर कहीं कोई सुराग नहीं मिला। जिसका एक कारण ये भी रहा हो सकता है कि कल रात तेज बारिश होकर हटी थी।”
“गांव में पूछताछ की?”
“सरसरी तौर पर बराबर की थी सर, क्योंकि गायब हुई लड़की और गांव के लोगों का स्टेटस एकदम जुदा था। यानि वहां रहते किसी शख्स के साथ उसकी दुश्मनी निकल आना तो दूर की बात थी, कोई उसे जानता भी शायद ही रहा होगा।”
“और कुछ?”
“मोबाईल की आखिरी लोकेशन जिस जगह की थी, उससे करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर एक पुराने जमाने की बनी हवेली है, जहां कोई आता जाता नहीं क्योंकि गांव के लोग उसे शापित मानते हैं। पूछताछ करने पर पता लगा कि उस जगह का मालिक विदेश में बसा हुआ था इसलिए सालों से वह हवेली एकदम खाली और उजाड़ पड़ी थी।”
“हवेली में कोई खास बात?”
“कोई बड़ी बात तो सामने नहीं आई सर, लेकिन एक ऐसी बात फिर भी है जो मुझे खटक रही है।”
“क्या?”
“वहां फाटक पर लगा ताला एकदम नया था।”
“जबकि सालों से वह खाली पड़ी है?”
“यस सर।”
“भीतर जाकर देखा?”
“अभी नहीं सर।”
“क्यों?”
“कैसे जाते सर, ताला जो बंद था वहां। हां सर्च वारेंट हासिल करने के लिए एप्लीकेशन लगाकर आ रहा हूं, उम्मीद है कल परमिशन हासिल हो जायेगी। फिर अतुल कोठारी भी बड़े विश्वास के साथ कहकर गया था कि कोर्ट से सर्च वारेंट हासिल करने में हमारे सामने कोई अड़चन नहीं आने देगा।”
“हवेली के मालिक से कोई संपर्क नहीं कर पाये?”
“नहीं सर, क्योंकि उसका कांटेक्ट नंबर बताने वाला कोई एक शख्स सामने नहीं आया, बल्कि उसका नाम तक नहीं जानता कोई, हां ये कहने वाले कई लोग निकल आये कि आखिरी बार वह चार-पांच साल पहले उस हवेली में दिखाई दिया था, जिसके बाद से उसका कोई अता पता नहीं था।”
“क्या पता हवेली के खाली होने का फायदा उठाते हुए किडनैपर्स ने लड़की को वहीं ले जाकर बंद कर दिया हो, और ताला क्योंकि उसने तोड़कर खोला था इसलिए वहां नया ताला लगाना उसकी मजबूरी बन गयी होगी।”
“उस बात की उम्मीद कम ही है सर, अगवा करने वालों को अगर ये पता था कि मोबाईल लोकेशन के जरिये हम उस तक पहुंच सकते हैं, तो ये भी जरूर मालूम रहा होगा कि लड़की की आखिरी लोकेशन की तरफ हम खास तवज्जों देंगे। ऐसे में वह महज पांच सौ मीटर के दायरे में उसे रखने की हिमाकत नहीं कर सकता था। फिर लड़की को कहीं जिंदा बंद रखने की वजह भी तो हो, फिरौती के लिए अपहरण किया नहीं गया, क्योंकि अभी तक ऐसी कोई कॉल घरवालों तक नहीं पहुंची है। ऐसे में ले देकर उसका जो उद्देश्य दिखाई देता है वह लड़की को नुकसान पहुंचाना ही रहा होगा, इसलिए मेरा दिल कह रहा है कि अंत पंत उसकी लाश ही बरामद होगी।”
“उसी की क्यों, जब साथ में छह और दोस्त भी लापता हैं?”
“हो सकता है सर, बल्कि ऐसा ही होगा।”
“बाकी छहों के परिजनों ने कहीं रिपोर्ट दर्ज कराई या नहीं?”
“नहीं कराई सर, जो कि कम हैरानी की बात नहीं है। उनमें से दो के पेरेंट्स से मैं मिल चुका हूं, दोनों ही पूरी तरह निश्चिंत दिखाई देते हैं। बल्कि उनमें से एक रोहताश सरदाना के बाप ने तो यहां तक कह दिया कि अतुल कोठारी खामखाह पुलिस के पास पहुंच गया, क्योंकि रोहताश और उसके दोस्तों की ये बहुत पुरानी आदत है।”
“पुरानी आदत! यानि घर से बिना बताये गायब हो जाने की?”
“जी कहा तो यही था उसने।”
“सबके नाम पतों की लिस्ट तो तुम तैयार कर ही चुके होगे?”
“यस सर।”
“गुड, उसकी एक कॉपी हमें दे दो। साथ में सातों के मोबाईल की जो डिटेल्स तुम बयान कर के हटे हो, उसकी भी जैरॉक्स करा लो।”
“पांच मिनट दीजिए सर।” कहकर वह उठ खड़ा हुआ।
“कुछ समझ में आया विराट?” माधव के जाने के बाद महावीर सिंह ने पूछा।
“सिर्फ इतना कि तिवारी जी का ये अंदेशा सही हो सकता है कि लड़की मर चुकी है, बल्कि उसके बाकी के दोस्त भी मारे जा चुके हैं।”
“जबकि वे लोग सच में कहीं तफरीह पर चले गये हो सकते हैं?”
“जा बराबर सकते थे, लेकिन ये नहीं हो सकता कि उनमें से किसी को अपना मोबाईल ऑन करने का ख्याल न आया हो। क्योंकि आज का यूथ तो टॉयलेट में भी नेट सर्फिंग कर रहा होता है।”
“नहीं चाहते होंगे कि किसी को उनकी लोकेशन की खबर लगे।”
“देखते हैं महावीर साहब, हाथ पांव मारेंगे तो कुछ ना कुछ तो हासिल होकर ही रहेगा - फिर क्षण भर रुककर बोला - अच्छा एक बात बताइये?”
“क्या?”
“अतुल कोठारी को कैसे पता चला कि उसकी बेटी के मोबाईल की आखिरी लोकेशन क्या थी? सपना तो नहीं आया होगा?
“नहीं सपना नहीं आया था। हुआ ये कि कल रात आठ बजे की घर से निकली बेटी जब आज सुबह तक वापिस नहीं लौटी तो उसने उसे कॉल किया, और मोबाईल ऑफ पाकर स्पाई आईज पर उसकी लोकेशन चेक की, जिसका सबस्क्रिप्शन वह सालों से लिए बैठा था।”
“तुम्हारा मतलब है पेरेंटल कंट्रोल जैसा कुछ?”
“एग्जैक्टली, आजकल लोग बाग अपने बच्चों की एक्टिविटीज पर निगाह रखने के लिए आम ऐसा करते पाये जाते हैं। आगे उसने जब देखा कि मधु का फोन बीती रात दस बजे से ही नेटवर्क में नहीं था तो उसे चिंता हुई। फिर आखिरी लोकेशन एक सुनसान इलाके की देखकर थोड़ा घबरा भी उठा। उसने एक एक कर के उसके तमाम दोस्तों को फोन किया, और जब उनकी तरफ से भी कोई रिस्पांस नहीं मिला तो सीधा यहां चला आया।”
“मगर केस को टिकने फिर भी नहीं दिया थाने में?”
“तसल्ली नहीं हुई होगी, फिर रसूख वाला आदमी है तो उस बात का फायदा उठाने से कैसे चूक जाता। ऐसे लोगों को वश चले तो पूरे देश की पुलिस को सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर लगा दें।”
“चाहता तो आम आदमी भी यही है, बस उसके पास साधन संपन्नता नहीं होती इसलिए मन मसोक कर रह जाता है। अभी मौजूदा केस की ही बात ले लो, मधु अगर बड़े बाप की बेटी नहीं होती तो केस हमारे डिपार्टमेंट तक पहुंचने की बात तो छोड़ो, उसकी जांच भी महज एक हवलदार कर रहा होता।”
“मजबूरी है विराट क्या कर सकते हैं।”
“एसीपी राजावत साहब बता रहे थे कि कोठारी और के.एस. गोपालन के बीच रिश्तेदारी होने जा रही थी, उस बारे में जानते हो कुछ?”
“रिश्तेदारी वाली बात कितनी सही है ये तो मैं नहीं जानता क्योंकि वह बस सुनी सुनाई खबर ही है, मगर तिवारी के जरिये इतना जरूर पता लगा है कि दोनों के बीच बहुत गहरे दोस्ताना संबंध हैं, एक दूसरे की पार्टियां अटैंड करते हैं, तीज त्योहार पर आना जाना भी बराबर होता है।”
उसी वक्त बाहर गया तिवारी वापिस लौट आया।
“हो गया?” विराट ने पूछा।
“जी हां।” कहकर उसने कुछ जैरॉक्स पेपर्स विराट को थमाये फिर बोला, “केस से रिलेटेड एक बात और सुन लीजिए सर, हालांकि दोनों में कोई कनैक्शन है या नहीं, कहा नहीं जा सकता।”
“क्या?”
“कल रात से तिमारपुर गांव का मुखिया प्रवीन सिंह भी अपने तीन दोस्तों के साथ गांव से गायब है। हमने ये जानने की बहुत कोशिश की कि कहां गया था, मगर पक्के तौर पर कुछ भी मालूम नहीं पड़ा।”
“कच्चा क्या जाना?”
“उसकी बीवी कहती है कि हरिद्वार गया है। पोती कहती है कि दादा जी घूमने गये हैं। गांव के कुछ लोग कहते हैं कि बहुत दिनों से मुखिया चारों धाम की यात्रा पर जाने की बात कर रहा था, इसलिए उधर ही निकल गया होगा। जबकि एक दुकानदार का कहना है कि कल रात पौने ग्यारह के करीब वह अपनी बोलेरो में सवार होकर उसकी दुकान पर सिगरेट लेने के लिए पहुंचा था। तब तीन अन्य लोग उसके साथ थे। सब के सब किसी बात पर तर्क वितर्क कर रहे थे, और बीच बीच में हवेली का जिक्र भी कर बैठते थे। इससे ज्यादा वह कुछ नहीं बता पाया।”
“दुकान कहां है उसकी?”
“गांव के एकदम बाहर ही बनी हुई है। है तो बहुत मामूली दुकान लेकिन उसमें राशन पानी से लेकर सिगरेट गुटखा तक सबकुछ बिकता है।”
“मुखिया से मोबाईल पर बात नहीं हुई तुम्हारी?”
“नहीं सर वह भी नॉट रीचेबल है। और हैरानी की बात ये है कि मधु और उसके दोस्तों की लोकेशन गायब होने के पंद्रह मिनट बाद मुखिया के मोबाईल का भी वही हाल हुआ था। और उस वक्त वह हवेली से पांच सौ मीटर के दायरे में था।”
“कहीं ऐसा तो नहीं है तिवारी जी कि उस इलाके में कोई नेटवर्क इशू हो इसलिए जो भी वहां से गुजरता हो उसका मोबाईल नॉट रीचेबल हो जाता हो?”
“नहीं सर, इस बात की जांच मैं पहले ही कर चुका हूं।”
“और दोबारा अभी तक मुखिया का मोबाईल नैटवर्क में नहीं आया, है न?”
“वो तो सत्रह मिनट बाद ही आ गया था सर।”
“चलो कम से कम कोई सस्पेक्ट तो दिखाई दिया केस में।”
“बुजुर्ग आदमी है सर, इसलिए मुझे नहीं लगता कि लड़की के गायब होने में उसका कोई हाथ रहा होगा।”
“फिर गायब क्यों है?”
“अभी उसे गायब हुआ कैसे माना जा सकता है सर, क्योंकि बाद में रात दो बजे तक तो उसका मोबाईल काम कर ही रहा था, हो सकता आगे उसके मोबाईल की बैटरी डिस्चार्ज हो गयी हो, या मोबाईल ही कहीं गिरा बैठा हो।”
“उसके दोस्तों का नंबर नहीं मिला?”
“वे लोग मोबाईल रखते ही नहीं हैं।”
“मुखिया की दो बजे वाली लोकेशन कहां की थी?”
“मेरठ के पास।”
“फिर तो हरिद्वार जाता भी हो सकता है।”
“ऑफ कोर्स हो सकता था सर, वैसे भी काफी भला मानुष बताया जाता है। हर किसी के दुःख दर्द में काम आने वाला, फिर सोचने वाली बात ये भी है कि कैसे चार बुर्जुग मिलकर सात नौजवानों को काबू में कर सकते हैं।”
“हाथ में हथियार हो तिवारी जी तो सब मुमकिन हो जाता है।” कहते हुए विराट ने कुर्सी छोड़ दी।
उसकी देखा देखी सुलभ जोशी भी उठ खड़ा हुआ।
“अब कहां चलना है सर?” थाने से निकल कर फॉर्च्यूनर की ड्राईविंग सीट पर बैठते हुए जोशी ने पूछा।
“फरीदाबाद चलो।”
“आपका मतलब है तिमारपुर?”
“हां भई।”
“मैप में लोकेशन डाल दीजिए।”
विराट ने किया। पता लगा तिमारपुर गांव वहां से सत्ताईस किलोमीटर की दूरी पर था, अलबत्ता रास्ता पैंतालिस मिनट का ही शो हो रहा था, जिससे पता लग जाता था कि सड़कों की हालत अच्छी होगी।
जोशी ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
कुछ क्षण दोनों चुपचाप बैठे रहे फिर विराट ने ग्लब बॉक्स से पैकेट निकालकर दो सिगरेट सुलगाये और एक जोशी को थमाता हुआ बोला, “तुम्हें कुछ अजीब नहीं लगता?”
“केस के बारे में कह रहे हैं सर?”
“हां भई।”
“वह तो पूरा का पूरा अजीब है। सात लोगों का एक साथ अपहरण या कत्ल कुछ समझ में नहीं आ रहा। बल्कि अपहरण की उम्मीद तो कम ही दिखाई देती है क्योंकि फिरौती की मांग अभी तक नहीं की गयी है।”
“हमें क्या पता?”
“मतलब?”
“लड़की का बाप पैसे वाला है, ऐसी कोई कॉल उसके पास पहुंच गयी तो वह फिरौती अदा कर के बेटी को छुड़ाने की कोशिश करेगा या पुलिस को खबर करने पहुंच जायेगा?”
“बात तो ठीक है आपकी, मगर उस फ्रंट पर हमारा कोई जोर नहीं है, फिलहाल तो बिल्कुल भी नहीं है, इसलिए मैं ये मानकर चल रहा हूं कि मामला अपहरण का नहीं हो सकता। फिर सात लोगों को एक साथ अगवा करना और उन्हें कहीं छिपाकर रखना, अपने आप में बड़ी मुसीबत मोल लेने वाली बात है। बशर्ते कि सब किया धरा किसी बड़े आर्गेनाइजेशन का न हो।”
“होश की दवा करो जोशी साहब, ये मुंबई नहीं हमारी दिल्ली है। यहां इस तरह की घटनायें अमूमन नहीं होतीं, और हम आगे भी नहीं होने देंगे।”
“इक्का दुक्का मामले तो फिर भी सामने आ ही जाते हैं सर। हालिया बात करूं तो तमिलनाडु के टेक्सटाईल बिजनेसमैन ए.विल्लापथ्थी को एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही उठा लिया गया, फिर उन्हें ले जाकर जनकपुरी के इलाके में बंधक बनाकर रखा गया। उस मामले में विल्लापथ्थी के परिवार वालों से पचास लाख मांगे गये थे। मामले की रिपोर्ट तब तमिलनाडु में दर्ज हुई जिसके बाद गुरूग्राम एसटीएफ को सूचना मिली, तब तत्परता दिखाते हुए पांच आरोपियों को धर दबोचा और बंधक को आजाद करा लिया।”
“बड़ी खबर सुना रहे हो, हैरानी है कि मेरी नॉलेज में नहीं आई।”
“मामले ने ज्यादा तूल नहीं पकड़ा था सर क्योंकि सबकुछ जल्दी ही निबट गया था, इसलिए आपको खबर नहीं लग पाई होगी - कहकर उसने पूछा - वैसे हम तिमारपुर क्या मुखिया की तलाश में जा रहे हैं?”
“उसको भी तलाश करेंगे, लेकिन पहले उस हवेली का एक चक्कर लगाने का इरादा है, जिसे तिवारी ने भूतिया करार दिया था। क्या पता इसी बहाने हम दो चार भूतों को अपने काबू में करने में कामयाब हो जायें।”
“हो भी गये - जोशी थोड़ा हंसकर बोला - तो फायदा क्या होगा सर?”
“बहुत फायदा होगा, आगे अपने तमाम केस हम उन्हीं से इंवेस्टिगेट करायेंगे, लाईक अलादीन के चिराग से निकलने वाले जिन्न की तरह। हम उन्हें हुक्म देंगे कि फलां मामले के अपराधी का पता लगायें और वह चुटकी बजाते ही लगा लेंगे। बल्कि उनके शरीर पर सवार होकर हैडक्वार्टर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी निभा देंगे। देखना हर तरफ हमारे नाम का डंका बज उठेगा। हम ऐसे तेज तर्रार ऑफिसर समझे जाने लगेंगे जो किसी केस को सॉल्व करने के लिए उंगली तक नहीं हिलाते, मगर अनसुलझा कोई नहीं रह जाता।”
इस बार जोशी खुलकर हंसा।
“तुम्हें मजाक लग रहा है?”
“हां, क्योंकि आप मजाक ही कर रहे हैं।”
“अरे नहीं भई, बहुतेरे किस्से सुन रखे हैं मैंने, जिनमें किसी ओझा या तांत्रिक ने आत्माओं को अपने वश में कर रखा था, और उनसे अपनी चाकरी कराते था, आज हम भी एक कोशिश कर के देख लेंगे।”
“फिर तो गलत वक्त पर निकले हैं।”
“क्यों?”
“ऐसे काम रात के अंधेरे में ही पॉसिबल हो सकते हैं, दिन में तो शायद ही कोई आत्मा नजर आयेगी।”
“कोई बात नहीं, पहले जरा वहां का माहौल भांप लें चलकर, फिर कुछ हासिल होने की उम्मीद दिखाई दी तो रात को धावा बोल देंगे। जरूरत पड़ी तो बाबा महाकाल है न, उसे अपने साथ ले चलेंगे, लेकिन दो चार आत्माओं को तो आज मैं अपने काबू में कर के ही रहूंगा।”
“बशर्ते कि ऐसा कुछ सच में हो वहां।”
“देखेंगे।”
“और जिस हवेली के बारे में हमें पहले ही बताया जा चुका है कि वहां के गेट पर ताला झूल रहा है, उसमें अंदर कैसे जायेंगे हम, या वह काम भी किसी आत्मा के जरिये ही कराने का इरादा है आपका?”
“नहीं वैसा तो खैर मुमकिन नहीं हो पायेगा, क्योंकि पहले से ऐसी कोई शक्ति हमारे पास नहीं है, इसलिए कोई और रास्ता निकालना होगा।”
“ताला लगा होने की खबर कोर्ट तक पहुंच चुकी है सर, ऐसे में हम उसे तोड़कर जबरन दाखिल नहीं हो सकते।”
“पहले पहुंचो तो सही, बाद की बाद में देखी जायेगी।”
इसी तरह फिजूल की गप्पे हांकते दोनों आगे बढ़ते रहे।
ठीक चालीस मिनट बाद।
“स्टॉप।” विराट अचानक ही बोल पड़ा, उस वक्त उनकी गाड़ी हवेली से बामुश्किल डेढ़ दो किलोमीटर की दूरी पर एक बेहद पतली सड़क से गुजर रही थी।
जोशी ने तत्काल ब्रेक लगा दिये।
“क्या हुआ सर?”
“थोड़ा बैक करो।”
जोशी करने लगा।
“स्टॉप।”
गाड़ी रुक गयी। तब जाकर विराट की समझ में आया कि जो अजीब सी चीज उसने देखी थी वह क्या था।
सड़के के बाईं तरफ एक ठूंठ पेड़ पर लाल पीली पट्टियां बनी हुई थीं। जिसके ऊपर मटके जैसा कुछ रखकर वैसी ही पट्टियों से दो आंखें बना दी गयी थीं।
असल में वह पट्टियां नाईट ब्राईट पेंट के जरिये बनाई गयी थीं, जो रात के वक्त रिफलेक्टर का काम करता है। उद्देश्य यकीनन यही रहा होगा कि आते जाते वाहनों को रास्ते का सही आभास मिलता रहे। हैरानी की बात बस ये थी कि वैसा बस एक ही जगह किया गया था।
“अब चलो।”
वह बोला तो जोशी ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
करीब डेढ़ किलोमीटर ड्राईव करने के बाद जब हवेली दिखनी शुरू हुई तो जोशी ने रास्ते की तलाश में स्पीड एकदम कम कर दी, फिर थोड़ा आगे जाने के बाद गाड़ी को कच्चे रास्ते पर उतारता हुआ बोला, “लीजिए सर हम पहुंच गये।”
हवेली के सामने गाड़ी रोककर दोनों नीचे उतर आये।
विराट फाटक के नजदीक पहुंचा और ताले को छुए बिना उसका मुआयना किया। इस बात में कोई शक नहीं था कि ताला एकदम नया ही था।
दायें बायें निगाह दौड़ाई तो हवेली की ऊंची बाउंड्री ने उसका मन निराशा से भर दिया। तिवारी अगर सर्च वारेंट के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा चुका होता तो वह ताला तोड़ने में पल भर का वक्त भी जाया नहीं करने वाला था। मगर अब वैसा करना मुमकिन नहीं था, किसी को पता लग जाता तो लेने के देने पड़ जाते।
“आओ एक राउंड लगाकर आते हैं।” कहकर वह दाईं तरफ को बढ़ा तो जोशी उसके साथ हो लिया।
हवेली का चक्कर काटते दोनों उसके पिछले हिस्से में पहुंचे तो एक जगह कच्ची जमीन पर कई फुट प्रिंट बने दिखाई दिये, जो कि गीली मिट्टी में पांव पड़ने के कारण बने हो सकते थे।
वैसा बीती रात भी हुआ हो सकता था, क्योंकि उसके बाद बारिश नहीं हुई थी। और पहले बना होता तो कल की बारिश ने उसे कुछ हद तक तो बिगाड़ कर रख ही देना था।
फुट प्रिंट का पीछा करते दोनों आगे बढ़े तो एक जगह बाउंड्री ऊपर से दो तीन फीट टूट गयी दिखाई दी। टूटे हुए हिस्से का मलबा भी वहीं पड़ा था, जो कि हालिया बना नहीं लगा क्योंकि उसपर घास उग आई थी। वहां अलग से जो खास बात दिखाई दी वह थे दो छोटे छोटे चौकोर गड्ढे, मुश्किल से चार इंच लंबे चौड़े।
झुककर उनका मुआयना किया तो पाया कि गहराई एक डेढ़ इंच से ज्यादा नहीं थी और पूरी की पूरी आयताकार थी, इसलिए किसी जानवर के पैरों से बने नहीं हो सकते थे।
“क्या कहते हो जोशी साहब?”
“मैंने क्या कहना है सर, फैसला तो आपने करना है।”
“कर लिया, हम इस जगह से भीतर दाखिल होंगे।”
“ऊंचाई तो अभी भी ज्यादा है सर।”
“मगर इतनी नहीं जिसे पार न किया जा सके।” कहकर उसने दायें बायें और पीछे दूर दूर तक निगाह दौड़ाकर ये सुनिश्चित किया कि किसी की नजर उनपर नहीं थी, फिर वहां इकट्ठे हुए मलबे पर चढ़कर बाउंड्री थामी और पूरी ताकत से ऊपर की तरफ उचका। तभी जोशी ने उसके हवा में उठे दोनों पैरों के नीचे हाथ लगाकर धकेलना शुरू कर दिया।
बाउंड्री पर पहुंचकर विराट ने जोशी का हाथ थामा और ऊपर खींच लिया। दीवार की चौड़ाई कम से कम ढाई फीट थी इसलिए वैसा करने में उसे किसी किस्म की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
दोनों ने भीतर छलांग लगा दी।
वहां की जमीन का भी कुछ कुछ बाहर वाला ही हाल था। कई जोड़ी कदमों के निशान दिखाई दे रहे थे, साथ में बाहर जैसे दो छोटे गड्ढे भी।
सामने मुख्य इमारत थी, जिसमें ढेरों खिड़कियां और रोशनदान बने नजर आ रहे थे। वैसी हर खिड़की के ऊपर एक बड़ा सा छज्जा बना हुआ था, जो कि शायद बारिश की बौछारों को अंदर जाने से रोकने के लिए बनाया गया था।
पहले की तरह वॉक करते दोनों हवेली के फ्रंट में पहुंचे तो दरवाजे के सामने बनी पांच स्टेप वाली सीढ़ियां दिखाई दीं, जिसपर कदम रखते रखते उन्हें एकदम से ठिठक जाना पड़ा।
ध्यान से मुआयना किया तो लगा जैसे हाल ही में किसी ने वहां पोंछा लगाया हो। क्योंकि किनारों पर जमी हुई धूल मिट्टी इकट्ठी थी, जबकि बीच में सीढ़ियां एकदम साफ थीं।
विराट ने झुककर इकट्टी हुई मिट्टी का थोड़ा सा हिस्सा कुरेद कर उठाया और ध्यान से देखा तो उसकी आंखें एकदम से चमक उठीं। फिर स्टेप बाई स्टेप उसकी निगाहें ऊपर को उठती चली गयीं।
जल्दी ही उसे यकीन आ गया कि किसी ने वहां फैले खून को पोंछा लगाकर साफ करने की असफल कोशिश की थी।
तत्काल दोनों ने अपनी-अपनी जेब से निकालकर ग्लब्स और शूज कवर पहन लिए।
“किनारों से बचकर चलना जोशी साहब।” कहता हुआ विराट ऊपर पहुंच गया।
आगे लकड़ी के दरवाजे को भीतर की तरफ धकेला तो वह थोड़ा चरमराया जरूर मगर खुल फौरन गया।
विराट के पीछे हॉल में दाखिल होकर जोशी ने दरवाजे के दोनों पल्लों को आपस में सटाकर बंद कर दिया।
हॉल में पर्याप्त रोशनी थी जो कि छत की तरफ से वहां पहुंच रही थी, इसलिए दरवाजे को खोलकर रखना कतई जरूरी नहीं था।
आगे उनका सामना ढेर सारी थर्माकोल की प्लेटों, कटोरियों, और खाना पैक करने के काम आने वाले अल्युमिनियम कोटिंग वाले डिब्बों से हुआ। कुछ पिन्नियां, पैकिंग फॉयल के टुकड़े और शराब की दो खाली बोतलें भी मौजूद थीं।
“यहां तो हाल ही में पार्टी हुई दिखती है सर।” जोशी बोला।
“कितना हाल ही में - कहता कहता वह एकदम से चुप हो गया, फिर नीचे जगह-जगह पड़े लाल रंग के धब्बों को नाखूनों से खरोंचकर देखता हुआ बोला - ये भी खून ही जान पड़ता है जोशी साहब।”
“फिर तो हमें मान लेना चाहिए सर कि सातों दोस्त अब इस दुनिया में नहीं हैं।”
“सात नहीं, शायद आठ।”
“ये आप कैसे कह सकते हैं?” जोशी चौंका।
“उतनी ही जूठी प्लेटें यहां पड़ी हैं। और मुझे यकीन है कि यहां जो पार्टी चली थी वह कल रात ही चली होगी, क्योंकि जूठन से किसी प्रकार की बद्बू उठती महसूस नहीं हो रही। तिवारी ने भले ही मधु कोठारी के छह दोस्तों के नामों की लिस्ट हमें दी है, मगर यहां उसके साथ कोई सातवां शख्स भी मौजूद था।”
“जो कि कातिल हो सकता है।”
“अगर निकल आया तो मुझे बहुत हैरानी होगी।”
“वो क्यों सर?”
“भई खून बस एक छोटे से दायरे में ही गिरा हुआ है। बाकी जो धब्बे दिखाई दे रहे हैं, वह कुछ ऐसे हैं जो पैरों में अगर खून लगा हो तो चलने फिरने से बन जाया करते हैं। और मैं नहीं समझता कि सात लोगों को एक ही जगह पर कोई इकलौता इंसान मार गिराने में कामयाब हो सकता है, भले ही उसके हाथों में तलवार ही क्यों न थमी हो। हां गोली चलाई गयी होती तो बात और होती मगर उसका कोई अंदेशा अभी तक तो नहीं ही दिखाई दे रहा है।”
“सात लोगों पर अगर गोली भी चलाई जाये सर तो उनमें से कोई ना कोई तो बचने के लिए इधर-उधर होने में कामयाब हो ही जायेगा, बच भले ही न सके।”
“कह तो ठीक रहे हो भई, लेकिन फिलहाल मेरा ज्यादा यकीन इस बात पर है कि किसी तेजधार हथियार से मारा गया होगा उन्हें - कहकर उसने फर्श पर पड़े एक सिगरेट का अधजला हिस्सा उठाकर सूंघा और वापिस नीचे फेंकता हुआ बोला - स्मैक, कहीं ऐसा तो नहीं है जोशी साहब कि हमले के वक्त सब के सब नशे में रहे हों, इसलिए खुद को बचाने की कोशिश नहीं कर पाये।”
“हो सकता है सर, आखिर शराब की बोतलों को खाली भी तो उन लोगों ने ही किया होगा। मगर आपकी एक बात से मैं सहमत नहीं हूं।”
“वो क्या?”
“हमला अगर किसी धारदार हथियार से किया गया होता सर तो सात लोगों को मारने के लिहाज से जितना खून यहां पड़ा होना चाहिए उतना दिखाई कहां दे रहा है।”
“यू हैव अ प्वाइंट मिस्टर जोशी।”
“थैंक यू सर।”
“अब सबसे बड़ा सवाल ये है जोशी साहब कि आठ अच्छे घरों के बच्चे, सात तो यकीनन जिनकी जानकारी हमारे पास मौजूद है, इस सुनसान जगह पर रात के वक्त पहुंचे ही क्यों? अगर उन्हें कोई पार्टी करनी ही थी तो किसी होटल में क्यों नहीं चले गये। पैसे वाले थे चाहते तो कोई बड़ा हॉल बुक करा सकते थे। मगर नहीं वे सब तो जैसे जान देने के लिए इस उजाड़ जगह पर चले आये।”
“ये भी तो हो सकता है सर कि हत्यारा जबरन उन्हें यहां लेकर आया हो?”
“जबरन लाया फिर भी उन सबको खाने पीने का मौका दे दिया? कोई बड़े दिल वाला कातिल जान पड़ता है, जिसने पहले अपने शिकारों को ऐश कराया, बकरीद के बकरे की तरह खिला पिलाकर मोटा ताजा किया फिर एक एक कर के सबको हलाल कर दिया, नहीं?”
“सॉरी, ऐसा नहीं हुआ हो सकता।”
“इतना तो तय समझो कि सब अपनी मर्जी से यहां पहुंचे थे, जिसकी खबर या तो बाद में किसी तरह से हत्यारे को लग गयी, या वह पहले से उनके साथ मौजूद था। उनके पहचान वाला था, इसीलिए सब धोखा खा गये। बल्कि कातिल के अकेला होने की बात भी मुझे हजम नहीं हो रही, जरूर उसका कोई सहयोगी भी था, जिसके लिए इस हवेली में उसने बाद में एक्सेस बनाई हो सकती है।”
“दम तो है आपकी बात में।”
तत्पश्चात दोनों वहां के कमरों को खोल खोल कर देखने लगे। सब धूल से अटे पड़े थे, और इस बात की गारंटी थी कि बहुत लंबे वक्त से किसी के कदम वहां नहीं पड़े थे।
आगे दोनों सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंचे तो वहां दरवाजे के पास गिरा टूटा हुआ ताला अपनी कहानी आप बयां कर रहा था।
विराट ने झुककर उसे उठा लिया, फिर मुआयना किया तो फौरन ये बात समझ में आ गयी कि उसे गोली चलाकर तोड़ा गया था।
“लीजिए सर - जोशी बोला - पिस्तौल का दखल आखिरकार तो निकल ही आया।”
“हैरानी की बात है।”
“क्यों सर?”
“नीचे पार्टी करते लोगों को इस तरह से ताला तोड़ने की जरूरत क्यों पड़ गयी?”
“हत्यारे ने तोड़ा होगा सर।”
“वजह?”
जवाब में जोशी अपना सिर खुजाने लगा।
“चलो यही बता दो कि ताला पहले तोड़ा गया या कत्ल पहले किये गये थे?”
“कत्ल पहले किये गये होंगे सर, वरना गोली चलने की आवाज सुनकर नीचे पार्टी कर रहे बच्चों को सावधान हो जाना था, फिर इतनी आसानी से तो वे लोग हत्यारे का शिकार नहीं बन पाये होते, क्योंकि छिपने की बहुतेरी जगह दिखाई देती है यहां।”
“बाद में भी ताला क्यों तोड़ा गया? हत्यारा तो मेन गेट से सहज ही बाहर जा सकता था, इसलिए ये भी नहीं सोचा जा सकता कि निकासी के लिए वह पहले छत पर पहुंचा था, फिर किसी रस्सी के सहारे नीचे उतर गया।”
“लाख रुपये का सवाल है सर मगर जवाब मेरे पास नहीं है।”
“अपना अंदाजा बताऊं?”
“बता दीजिए?” छत पर कदम रखता जोशी बोला।
“जब कत्ल होने शुरू हुए तो उनमें से एक या एक से ज्यादा लोग जान बचाने के लिए सीढ़ियां चढ़ते चले गये, आगे यहां ताला बंद मिला तो उनमें से किसी ने अपने पास मौजूद पिस्टल से गोली चलाकर इसे तोड़ दिया।”
“फिर भी खुद को नहीं बचा पाये? - जोशी ने पूछा - और नहीं तो छत पर पहुंचते के साथ ही वे लोग दरवाजे को बंद कर सकते थे, जिसका कुंडा बहुत मजबूत दिखाई दे रहा है।”
“कह तो ठीक रहे हो भई।”
“फिर ये भी तो सोचिये सर कि अगर उनके पास रिवाल्वर थी तो गोलियां ताले पर जाया करने की बजाये हत्यारे पर क्यों नहीं चला दीं?”
“क्या पता चलाई हां, मगर परिणाम उनकी उम्मीद के मुताबिक सामने न आया हो। जरा ये भी तो सोचो कि रात के वक्त यहां कितना अंधेरा रहा होगा, क्योंकि कोई लाईट वाईट तो दिखाई नहीं दे रही।”
“पार्टी अंधेरे में चल रही थी?”
“ओह, ओह, ठीक है हम मान लेते हैं कि जिस वक्त यहां कत्लेआम शुरू हुआ अंधेरा नहीं था। मगर क्यों नहीं था? कोई बल्ब वगैरह तो यहां लगा दिखाई नहीं दे रहा।”
“इस बात की गारंटी भी हम कैसे कर सकते हैं सर कि पार्टी कल रात ही चली थी। ये भी तो हो सकता है कि उससे एक दिन पहले यानि शुक्रवार की रात कुछ लोगों ने यहां पहुंचकर दावत उड़ाई हो? और मौसम क्योंकि सर्दी का है इसलिए लो टैंपरेचर के कारण प्लेटों में मौजूद खाने के अवशेष खराब होने से बच गये हों।”
“और वह पार्टी भी उतने ही लोगों के बीच हुई थी, जितने कि कल रात से गायब हैं?”
“यकीन करना मुश्किल जरूर है सर, मगर इत्तेफाक का क्या, वह तो अक्सर हो जाया करता है।”
“जरा फॉरेंसिक वालों को यहां पहुंचने दो फिर तुम्हारे सवाल का जवाब हासिल होते भी देर नहीं लगेगी।”
इस बार जोशी ने जवाब में कुछ कहने की कोशिश नहीं की।
अगले दस मिनटों में दोनों ने पूरी छत का मुआयना कर डाला, मगर ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया जो उनके नॉलेज में इजाफा कर पाता। हां इस बात की गारंटी हो गयी कि छत पर कोई खून खराबा नहीं हुआ था।
थक हारकर दोनों नीचे पहुंचे और उसी रास्ते से बाहर निकल गये, जिधर से हवेली में दाखिल हुए थे।
गाड़ी तिमारपुर गांव के करीब पहुंची तो वह दुकान दूर से ही दिखाई दे गयी जिसका जिक्र माधव तिवारी ने किया था। असल में वह ईंटों का बना घर था जिसके ऊपर सीमेंट की चादरें पड़ी हुई थीं। उसी के एक हिस्से में, लकड़ी के दो पल्लों वाले दरवाजे के पीछे काउंटर रखा था, जिसके ऊपर दायें से बायें बंधी एक रस्सी पर तरह तरह की चीजें लटक रही थीं।
गाड़ी से नीचे उतरकर दोनों वहां पहुंचे तो काउंटर के पीछे खड़ा दुकानदार उन्हें दिखाई दे गया। वह मुश्किल से तीसेक साल का पतला-दुबला युवक था जो बदन पर शॉल ओढ़े खड़ा था।
“क्या चाहिए साहब?”
“सिगरेट का एक पैकेट दे दो।”
“कौन सा ब्रांड?”
“गोल्ड फ्लैक।”
दुकानदार ने थमा दिया।
विराट ने दो सौ का एक नोट पर्स से निकालकर उसके सामने काउंटर पर रखा फिर पूछा, “मुखिया जी का घर कहां है?”
“बाईं तरफ को सीधे चलते जाइये, आगे एक टी प्वाइंट आयेगा वहां से दायें मुड़ियेगा, फिर बायें हाथ को जो टाईल्स लगा घर दिखाई दे वही मुखिया जी का घर है - फिर क्षण भर को रुककर बोला - वैसे गांव में तो नहीं हैं वह।”
“अच्छा कहां गये?”
“नहीं मालूम साहब।”
“हम पुलिस महकमे से हैं भई।”
“अरे तो पहले क्यों नहीं बताया साहब जी?”
“अब बता रहा हूं।”
“देखिये मुखिया जी कहां गये हैं ये तो मैं नहीं जानता, लेकिन गांव में नहीं हैं इस बात की गारंटी कर सकता हूं। सुबह आपके डिपार्टमेंट से और लोग भी आये थे पूछताछ करने, मालूम होता तो तभी बता देता - कहकर उसने पूछा - बात क्या है सर?”
“बहुत भयानक बात है भई - जोशी गहरी सांस खींचकर बोला - कुछ ऐसी बातें पता लगी हैं, जिनसे लगता है कि उनका अपहरण हो गया है, इसीलिए जांच पड़ताल में जुटे हुए हैं, कुछ जानते हो तो बता दो।”
“नहीं साहब, मैंने तो आखिरी बार उन्हें कल रात को देखा था। तब अपनी बोलेरो में बैठकर वह मेरी दुकान पर आये थे, साथ में उदय सिंह, राजाराम और विजेंदर सिंह भी थे। तीनों मुखिया जी के खास दोस्तों में से हैं।”
“तुमने पुलिस को ये भी तो बताया था कि कल रात मुखिया के तीनों दोस्त आपस में हवेली के बारे में कुछ बातें कर रहे थे, क्या कर रहे थे?”
“पूरी बात मैंने नहीं सुनी थी सर, लेकिन जिक्र बराबर उठा था। साथ में कुछ नौजवान लड़कों के बारे में भी राजाराम ने उदय सिंह से कुछ कहा था मगर मैं सुन नहीं पाया, क्योंकि वे लोग गाड़ी के भीतर बैठकर बातें कर रहे थे।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चारों उस वक्त हवेली से ही होकर आये आ रहे हों?”
“ऐसा कैसे हो सकता है सर? - वह चिहुंक कर बोला - किसकी शामत आई है जो उस मनहूस हवेली के आस-पास भी फटक जाये, वह भी रात के वक्त। हां कोई मरने की ही ठाने बैठा हो तो और बात है।”
“ऐसा क्या है उस हवेली में?”
“जाने दीजिए सर जी, सुनकर आप लोगों को यकीन नहीं आयेगा।”
“कर लेंगे, तुम बताओ तो सही।”
“एक बहुत भयानक पिशाच और उसके चेले चपाटे रहते हैं वहां। रात को कोई हवेली के करीब भी चला जाये तो जिंदा वापिस नहीं लौटता। गांव के लोग तो दिन में भी जाने से कतराते हैं। रात को वहां चंद्रशेखर महाराज के जोर जोर से ठहाके लगाने की आवाजें भी बहुत से लोगों ने सुनी हैं।”
“चंद्रशेखर महाराज! वह कौन है?”
“बड़े जमींदार थे जी, सुना है पचास-साठ साल पहले किसी दुश्मन ने परिवार समेत उन्हें खत्म कर दिया था। तभी से वह हवेली सुनसान पड़ी है। उनका एक भतीजा है जो किसी दूसरे देश में रहता है, वही चार-पांच सालों में एक बार आकर वहां साफ सफाई करवा जाता है, मगर हवेली में रुकने की हिम्मत तो वह भी नहीं जुटा पाता, क्योंकि रात के वक्त वहां प्रेतात्माओं का जो उपद्रव शुरू होता है, उसे झेल पाने की कुव्वत तो किसी ओझा गुनी में भी नहीं है, विदेश से आया भतीजा तो क्या झेल पाता।”
“तुमने देखा है कभी?”
“क्या सर?”
“चंद्रशेखर महाराज के भूत को?”
“अरे भगवान बचायें सर, मैं तो जिंदगी में कभी उस हवेली के आस-पास भी नहीं फटकूं, हां मेरा एक दोस्त जरूर उस पिशाच का शिकार बन गया था।”
“मर गया?”
“जी साहब जी, उसकी तो लाश ही बरामद हुई थी। उस रात वह अपने दो दोस्तों के साथ था, उन लोगों ने रोकने की बहुत कोशिश की अजब सिंह को, मगर वह नहीं माना और हवेली के फाटक तक चला गया। पिशाच ने तुरंत उसे चीर-फाड़कर रख दिया। दोस्त मारे डर के भाग खड़े हुए, फिर उन्होंने ही गांव पहुंचकर लोगों को बताया कि वहां क्या घटित हो गया था। और जो कुछ बताया था उसे सुनने भर से मेरे पिता जी इतने बीमार पड़ गये कि बिस्तर पकड़ लिया, फिर दो महीने बाद ही उनकी मौत हो गयी। उन दिनों मैंने कई ओझा तांत्रिक बुलाये थे मगर कोई उन्हें नहीं बचा पाया। सब ये कहकर वापिस लौट गये कि चंद्रशेखर महाराज की आत्मा से दुश्मनी मोल लेने की हिम्मत उनके भीतर नहीं है। इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि वह पिशाच कितना खतरनाक है।”
विराट हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगा, जबकि जोशी सोच रहा था कि वह शख्स कितना बड़ा स्टोरी टेलर था, जो एक कहानी के भीतर से दूसरी कहानी निकाले जा रहा था।
“बचकर भाग निकले बाकी के दोनों दोस्तों ने बताया क्या था गांव वालों को?”
“मालूम नहीं सर, मैंने कभी उस बारे में जानने की कोशिश नहीं की। वैसे भी भूत प्रेतों से मुझे बहुत डर लगता है। महाराज मुझपर रहम करें, मेरे बच्चों पर रहम करें।” कहकर उसने हवा में अपने दोनों हाथ जोड़ दिये, जैसे किसी अंजान शक्ति के आगे गिड़गिड़ा रहा हो।
“जो लोग बच गये थे वो अब कहां हैं?”
“चितरंजन सिंह तो गांव में ही रहता है, लेकिन बबलू उस घटना के बाद इतना डर गया कि गांव छोड़कर पानीपत में जा बसा। शादी कर ली, बच्चे भी हो गये, मगर लौटकर वापिस यहां कभी नहीं आया।”
“और चितरंजन का घर कौन सा है?”
“घर तो मुखिया जी से बस थोड़ा ही आगे है, लेकिन अभी मवेशियों को चराने गया है, मिलना चाहते हैं तो जिधर से यहां पहुंचे हैं उधर को वपिस लौटिये, रास्ते में दायें हाथ को एक पंपिंग सेट दिखाई देगा, उसी के आस-पास कहीं बैठा मिल जायेगा।”
“ठीक है भई, थैंक यू।” कहकर दोनों वापिस गाड़ी में जा बैठे।
“मुखिया के घर चलो।”
सुनकर जोशी ने फौरन गाड़ी आगे बढ़ा दी।
देहाती इलाका होने के लिहाज से मुखिया का घर बेहद आलीशान कहा जा सकता था। इमारत तीन मंजिलों तक उठी थी, जिसपर लगी टाईल्स महंगी और ब्रांडेड जान पड़ती थी। भीतर अहाते में पॉर्किंग टाईल्स लगी हुई थी, जो ग्रामीण क्षेत्रों में अमूमन कम ही देखने को मिलती हैं। कंपाउंड से आगे बारामदे में मॉर्बल्स की फ्लोरिंग की गयी थी जहां एट सीटर सोफा सेट मौजूद था। घर के बाहर दो ट्रैक्टर और अंदर एक चमचमाती हुई आई टै्वेंटी खड़ी थी।
लिहाजा गांव का मुखिया होने के साथ-साथ वह दौलतमंद भी बराबर था।
घर पर उनकी मुलाकात एक उम्रदराज औरत से हुई जिसने मुखिया के बारे में सवाल करने पर बताया कि, “प्रवीन तो हरिद्वार गया है बेटा, कल लौट आवेगा, कोई बात हो तो मन्ने बता दो, मैं उसकी बुआ लागू सूं।”
“गये कब थे?”
“कल रात ही निकला था।”
“कोई फोन आया?”
“घंटा भण पहले आया था, तभी तो मैं जानूं सूं कि कल लौटेगा।”
“उनका मोबाईल नंबर बता दीजिए, एक जरूरी बात करनी है।”
सुनकर महिला ने एक छोटी बच्ची को आवाज देकर घर के अंदर से बुलाया और उससे कहा कि बाबा का नंबर बता दे।
आगे जो मोबाईल नंबर हासिल हुआ वह वही था जो तिवारी के जरिये उन्हें पहले ही हासिल हो चुका था।
विराट ने वह नंबर अपने मोबाईल पर डॉयल किया और बेल जाते ही कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
तत्पश्चात दोनों उस पंपिंग सेट की तरफ चल पडे़ जहां दुकानदार के बताये मुताबिक चितरंजन सिंह मवेशियों को चराने गया हुआ था।
सड़क किनारे गाड़ी रोककर दोनों खेतों में उतरे तो थोड़ी दूरी पर बरगद के एक पेड़ के नीचे, आधा दर्जन उम्रदराज लोग ताश खेलते दिखाई दिये। चितरंजन सिंह उनमें से एक था। फिर जैसे ही उसे पता लगा कि आने वाले लोग पुलिस के आदमी थे, पत्ते छोड़कर उठ खड़ा हुआ।
“नमस्कार साहब।” उसका हाथ मशीनी अंदाज में माथे तक पहुंचा।
“नमस्कार, तुमसे कुछ बात करनी है, चलो।”
“मैंने क्या किया है?” वह हड़बड़ाता हुआ बोला।
“घबरा क्यों रहा है यार - जोशी बड़े ही प्यार से बोला - बस कुछ सवाल जवाब करने हैं। फिर हम ज्यादा दूर थोड़े ही ले जा रहे हैं तुझे।”
बुरी तरह डरा सहमा चितरंजन उनके साथ हो लिया।
तीनों सड़क पर खड़ी फॉर्च्यूनर के पास पहुंचकर रुक गये।
“सुट्टे लगाना पसंद करोगे?” सिगरेट का पैकेट निकालते हुए विराट ने पूछा।
“नहीं साहब, आप तो बस ये बता दीजिए कि मुझसे क्या पूछण लाग रहे हैं? जान अटकी पड़ी है गरीब की।”
“एक घटना के बारे में जानना चाहते हैं, और कुछ नहीं।”
“कौण सी घटना?”
“हवेली वाली घटना जिसमें तुम्हारा दोस्त अजब सिंह अपनी जान से हाथ धो बैठा था, याद आया या नहीं?”
“आ गया साहब जी, उस मनहूस रात को भला मैं कैसे भूल सकता हूं। लेकिन अजब सिंह को मरे तो बीस साल बीत चुके हैं, अभी क्यों पूछ रहे हैं उस बारे में?”
“नहीं, उसकी मौत से हमारा कोई लेना देना नहीं है, हम तो बस ये जानना चाहते हैं कि उस रात तुमने हवेली के बाहर क्या देखा था, या अजब सिंह ने क्या देखा था, जिसके कारण उसकी मौत हो गयी? पूरी घटना विस्तार से सुनाओ।”
“जाने दो न साहब - वह दोनों हाथ जोड़ता हुआ एकदम से गिड़गिड़ा उठा - कहीं उसे खबर लग गयी तो मेरा भी वही हाल होगा जो अजब सिंह का हुआ था।”
“किसको खबर लग तो, किससे डर रहे हो तुम?”
“चंद्रशेखर महाराज से, वही तो पिशाच बना विचरण लाग रहा है उस हवेली में। चार-पांच साल पहले जब उसका भतीजा यहां पहुंचा था तो गांव वालों ने खूब मिन्नत की थी उससे कि अपने ताऊ और उसके परिवार का विधि विधान से दाह संस्कार कर दे, मगर उस कमीने ने एक नहीं सुनी, सुनता भी क्यों, उसने कौन सा हवेली में आकर रहना था। तब गांव वालों ने आपस में चंदा इकट्ठा कर के खुद ही हवेली में मारे गये लोगों को क्रिया कर्म करवा दिया था, मगर फायदा तो कोई ना हुआ जी। पंडित जी कहना था कि जब तक उसका कोई अपना उस काम में शामिल नहीं होगा उस दुष्ट की आत्मा यूं ही भटकती रहेगी।”
“तुम अपनी आपबीती तो सुनाओ, महाराज को क्या पता लगेगा कि तुमने उसके बारे में किसी को बता दिया है। फिर भी डर लग रहा है तो हम वादा करते हैं कि किसी को तुम्हारे कहे की भनक भी नहीं लगने देंगे।”
“अगर लग गया साहब जी तो मेरा और मेरे परिवार का खून आपके सिर पर होगा।”
“डोंट वरी इतना बड़ा पाप नहीं करने वाला मैं।”
“ठीक है सुनिये - कहकर उसने बताना शुरू किया - वह अमावस की रात थी। एकमद अंधियारी और सन्नाटे से भरी हुई रात। उन दिनों यह सड़क भी अभी नहीं बनी थी इसलिए रास्ता पूरा का पूरा कच्चा था। ओझा जी ने बताया था कि असल में जो मुसीबत अजब सिंह पर टूटी, वह इसलिए टूटी क्योंकि हम तीनों ने उस रात खीर खा रखी थी। नहीं खाई होती तो शायद उसके प्राण बच गये होते, क्योंकि उससे पहले महाराज के पिशाच ने हवेली के बाहर किसी की जान नहीं ली थी। उसके शिकार तब तक बस वही लोग बनते आये थे, जो हेकड़ी दिखाने के चक्कर में बाउंड्री लांघकर हवेली के भीतर पहुंच जाते थे।”
“खीर खाने से क्या होता है?”
“ओझा जी ने बताया था कि दूध से बनी चीजें भूत प्रेतों को आकर्षित करती हैं, खासतौर से अगर रात अमावस्या की हो तो ठौर मार डालते हैं।”
“फिर तो उस रात खीर खाकर तुम लोगों ने वाकई गलत किया था - जोशी मुस्कराता हुआ बोला - खा भी लिया था तो कम से कम हवेली का रुख तो हरगिज भी नहीं करना चाहिए था। खैर आगे बढ़ो, बताओ क्या हुआ था उस रात?”
“खाना खा चुकने के बाद हम तीनों दोस्त अक्सर गांव के बाहर पुलिया पर देर रात तक बैठकर गप्पे हांकते रहते थे। उस रोज भी वही कर रहे थे। तब तक रात के नौ बज चुके थे, फिर अचानकर ही जाने कैसे हमारे बीच हवेली का जिक्र चल निकला, हम उसके बारे में सुनी सुनाई घटनाओं के बारे में बातें करने लगे। तभी अजब सिंह उठकर वहां खड़ी अपनी मोटरसाइकिल पर जा बैठा। हमने पूछा भी कि कहां जा रहा था, मगर जवाब कोई ना दिया जी उसने।”
“रात को तुम लोगों के साथ गप्पे हांकने वह मोटरसाइकिल लेकर आता था?”
“मोटरसाइकिल दो साल पहले उसे दहेज में मिली थी जी, जिसके बाद से हगने भी जाता तो उसपर बैठकर ही जाता था। बल्कि हम भी पैदल कहां पहुंचते थे पुलिया पर। अजब सिंह रात आठ नौ बजे के करीब हमारे घर के सामने पहुंचकर हॉर्न देता और हम बाहर निकलकर उसकी बाईक पर सवार हो जाते। वह सिलसिला भी उसकी शादी के बाद से ही चला आ रहा था।”
“उसके बाईक पर बैठ जाने के बाद क्या हुआ?”
“पहले तो हमें लगा ऐसे ही कहीं जा रहा था इसलिए फौरन उसके पीछे सवार हो गये। मगर ज्यों ज्यों हवेली नजदीक आती गयी मेरी और बबलू की हालत पतली होती चली गयी। हम दोनों बार-बार उससे पूछते रहे कि कहां जा रहा था मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया। आगे जब उसने मोटरसाइकिल को हवेली की तरफ मोड़ा तो हमारे प्राण सूख गये। हमने जबरन उसे रोकने की कोशिश की, मगर उसपर तो जाने कैसा जुनून सवार था, हमारी एक नहीं सुनी और हवेली के करीब पहुंचकर बाईक से नीचे उतर गया। मुझे तो आज भी यही लगता है कि वह पुलिया पर बैठे बैठे ही चंद्रशेखर महाराज के चंगुल में फंस गया था, वरना रात के वक्त हवेली जाने की कोई तुक नहीं थी।”
“मतलब ये कि महाराज ने अपनी पिशाच लीला के बूते पर उसे हवेली पहुंचने को मजबूर कर दिया था ना कि वह अपने होशो हवास में वहां गया था?”
“मुझे और बबलू को तो ऐसा ही लगा था साहब।”
“ठीक है उसने हवेली के सामने पहुंचकर अपनी बाइक रोक दी फिर क्या हुआ?”
“हम दोनों उसके साथ-साथ ही नीचे उतरे थे, मगर साथ बने नहीं रह सके, क्योंकि तभी हवेली के अंदर से किसी के जोर से हंसने की आवाज सुनाई दे गयी, जैसे शैतान कहकहे लगा रहा हो। सुनते के साथ ही मेरा और बबलू का दम खुश्क हो गया। उसी वक्त अजब सिंह फाटक की तरफ बढ़ा जबकि हम दोनों डर के मारे दस कदम पीछे चले गये और रुककर अजब सिंह को चेतावनी दी कि वह और आगे न जाये। हम तो वहां से फौरन भाग निकलना चाहते थे साहब जी, मगर अजब के कारण वैसा करते नहीं बन रहा था।”
“क्योंकि वह तुम्हारा दोस्त था?”
“हां जी इसलिए उसे अकेले छोड़कर निकल नहीं पाये वहां से। फिर हंसने की आवाज बंद हो गयी और एक भयानक स्वर हमारे कानों में पड़ा, ‘आ गया अजब सिंह?’ जवाब में वह बोला ‘हां आ गया महाराज’। जबकि मैं और बबलू एक साथ चिल्लाकर बोले, ‘भाग अजब वरना जान चली जायेगी’ मगर उसने एक नहीं सुनी। फिर हमने वो देखा जिसे देखकर मर नहीं गये यही गनीमत था साहब।”
“क्या देखा?”
“एक बहुत ही भयानक पिशाच, इतना बड़ा कि आधी हवेली उसके पीछे ढकी जा रही थी। हमारे देखते ही देखते उसने अजब सिंह को गर्दन से पकड़कर उठा लिया, और यूं चबर-चबर चबाने लगा कि क्या कोई तंदूरी मुर्गा खाता होगा। तब पहली और आखिरी बार हमने अजब की चीख सुनी थी। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी - चितरंजन का गला भर आया - उस कमीने ने हमारे दोस्त को जगह जगह से चबा डाला। उसके बाद क्या हुआ मैं नहीं जानता क्योंकि मैं और बबलू फौरन वहां से भाग खड़े हुए थे, और सीधा गांव पहुंचकर ही रुके। हमने शोर मचाया तो गांव में जाग हो गयी, फिर हमारी बात सुनकर तीस-चालीस हिम्मती लोग लाठी और टॉर्च लेकर हवेली की तरफ दौड़ पड़े। और जब वहां पहुंचे तो पाया कि अजब की लाश फाटक के बाहर जमीन पर पड़ी थी और शैतान जा चुका था।”
“लाश की हालत कैसी थी?”
“वैसी ही थी साहब जी, जैसी किसी राक्षस के चबाने के बाद हो सकती थी। जगह जगह से उसका मांस नोंच खाया था कमीने ने, आंखें निकाल ली थीं, अतड़ियां बाहर पड़ी थीं, जिसका कुछ हिस्सा वह खा चुका था और कुछ बाकी था।”
“पुलिस को इंफॉर्म नहीं किया गया?”
“नहीं, क्योंकि मुखिया जी के साथ-साथ गांव के ओझा पंडितों का भी यही मानना था कि प्रेत का शिकार बने इंसान को जितनी जल्दी जला दिया जाता अच्छा होता, वरना वह खुद प्रेत बनकर गांव में विचरने लगता और पता नहीं कितने लोग उसका शिकार बन जाते।”
“मतलब कि पुलिस तक बात पहुंची ही नहीं?”
“बाद में किसी तरह से पहुंच गयी थी, लेकिन अजब सिंह के घरवाले केस दर्ज कराने को तैयार नहीं हुए, और लाश क्योंकि पहले ही फूंकी जा चुकी थी, इसलिए पुलिस ने भी जांच पड़ताल में ज्यादा वक्त बर्बाद नहीं किया। फिर उस वक्त के दरोगा मुखिया जी के रिश्तेदार थे, इसलिए भी मामला दबा दिया गया - कहते कहते उसकी आंखें भर आईं - मुझे इस बात का बहुत अफसोस है साहब जी कि मैं और बबलू उस रात अजब सिंह को हवेली की तरफ बढ़ने से नहीं रोक पाये, वरना उसकी जिंदगी बच गयी होती।”
“शांत हो जाओ, खुद को दोष भी मत दो। तुम्हारा दोस्त अगर सच में किसी प्रेत के चंगुल में फंसकर वहां पहुंचा था, तो तुम चाहकर भी उसकी कोई मदद कैसे कर सकते थे।”
“वो तो ठीक है साहब जी, लेकिन अफसोस तो होता ही है न।”
“हां अफसोस तो हमेशा बना रहता है - कहकर विराट ने पूछा - और कुछ बताना चाहते हो?”
“नहीं, मैंने उस रात की पूरी घटना आपको बता दी है। हां इतना जरूर है कि हवेली को लेकर जो दहशत इधर आस-पास के गांवों में फैली हुई थी, उसे अजब सिंह की मौत ने कई गुना बढ़ा दिया था। वरना दिन में तो लोग बाग हवेली की तरफ निकल ही जाया करते थे। मगर अब तो हाल ये है कि दिन या रात कोई उस तरफ नहीं जाना चाहता। यहां तक कि जिन लोगों के खेत हवेली के करीब हैं, उन्होंने उस जमीन पर खेती करना तक छोड़ दिया।”
“ठीक ही किया, जान बची रही तो गुजारा कहीं और से भी कर सकते हैं - विराट बोला - अब तुम जाकर चैन से ताश खेलो, हमारा काम पूरा हो गया।”
सुनकर उसने दोनों का अभिवादन किया और दूर बैठी अपनी मंडली की तरफ बढ़ गया।
विराट और जोशी गाड़ी में सवार हो गये।
“अब किधर चलना है सर?”
“ऑफिस चलो। वहां कुछ जरूरी काम निबटाने हैं, इसलिए बाकी की पूछताछ कल तक के लिए मुल्तवी कर देते हैं। मुखिया लौट आया तो उससे भी मुलाकात कर लेंगे। हो सकता है तब तक सर्च वारेंट भी हासिल हो जाये।”
जोशी ने तुरंत गाड़ी आगे बढ़ा दी।
“एक बात कहूं सर?”
“बोलो।”
“चितरंजन को तो आप यूं तसल्ली बंधा रहे थे, जैसे उसकी बकवास पर यकीन ही आ गया हो आपको, या मैंने कुछ गलत समझ लिया?”
“तसल्ली मैं इसलिए दे रहा था जोशी साहब क्योंकि वह शख्स कहीं ना कहीं खुद को अपने दोस्त की मौत के लिए जिम्मेदार मान रहा था। दुःख भी बहुत हो रहा था उसे, जो कि नौटंकी कहीं से नहीं दिखाई दे रहा था।”
“अगर अजब की मौत के बारे में उसका दुःखी होना सच था सर तो फिर हवेली में किसी पिशाच के होने की बात झूठी कैसे हो सकती है?”
“तफ्तीश का मुद्दा है, हां इतना फिर भी कह सकता हूं कि दोनों बातों के बीच किसी तीसरी घटना का रोल बराबर रहा होगा, जिसे न तो चितरंजन और बबलू समझ पाये, ना ही अभी हमारी समझ में आ रहा है।”
“देखा जाये सर तो मुखिया का नाम दूसरी बार हमारे सामने आया है, और चितरंजन की बताई बातों पर गहराई से विचार करें तो साफ पता लग जाता है कि अजब सिंह की लाश मुखिया के इशारे पर ही जला दी गयी थी। इसलिए होने को ये भी हो सकता है कि हवेली में किसी शैतानी आत्मा के होने की अफवाह फैलाकर वह अपना कोई उल्लू सीधा करने में लगा हुआ हो।”
“बीस साल पहले की घटना है जोशी साहब, अगर उसने कोई उल्लू सीधा करना होता तो क्या अब तक कर न चुका होता?”
“हमें क्या पता सर कि उसने वैसा कुछ किया था या नहीं?”
“बात तो लाख टके की कही जोशी साहब, मगर उसपर हम बाद में दिमाग खपायेंगे, तब जबकि मामले का कोई कनेक्शन हमारे मौजूदा केस के साथ जुड़ता दिखाई देगा। वरना इस बात से दिल्ली पुलिस का कोई लेना देना नहीं है कि बीस साल पहले हवेली में क्या हुआ था और उसके होने की वजह क्या थी। हां करने के लिए फिर भी कुछ सूझ गया है मुझे, इसलिए सड़क पर ध्यान दो और गाड़ी की स्पीड बढ़ाओ।”
सुलभ जोशी ने तुरंत दोनों काम कर दिखाये।
एसीबी के हैडक्वार्टर पहुंचकर दोनों ने पाया कि वहां कंपाउंड में इंस्पेक्टर रैंक से नीचे के तमाम स्टॉफ की ब्रीफिंग चल रही थी, जिसे लेने वाला खुद एसीपी अभिषेक सिंह राजावत था।
विराट ने करीब पहुंचकर धीरे से उससे कुछ कहा, जिसके जवाब में उसने दो तीन सवाल किये फिर हौले से हां में गर्दन हिलाकर थोड़ी दूरी पर मौजूद एक कुर्सी पर जाकर बैठ गया, तत्पश्चात विराट वहां उपस्थित पुलिसवालों से मुखातिब हुआ।
“आप लोगों में से जो कोई भी ये मानता हो कि दुनिया में भूत प्रेत जैसी कोई चीज नहीं होती, जो उनके होने पर यकीन न करता हो, जिसे किसी प्रेतात्मा से डर न लगता हो, बराय मेहरबानी दो कदम आगे आ जाये।”
सुनकर पल भर के लिए सब ने एक दूसरे की तरफ देखा, कुछ एक के हंसने की आवाज भी विराट के कानों तक पहुंची, फिर सब के सब दो कदम आगे बढ़ आये।
“किसी को नहीं लगता?”
सबकी गर्दन एक साथ इंकार में हिलती दिखाई दी।
“गुड, अब होना ये है दोस्तों की आज रात आपमें से चार लोगों की ड्यूटी एक ऐसी हवेली पर लगाई जाने वाली है, जो शापित है, जहां अनगिनत लोग मारे जा चुके हैं। आस-पास के इलाकों में हम कई लोगों से पूछताछ भी कर चुके हैं। उन सबने एक सुर में हमें यही बताया कि रात के वक्त उस हवेली के आस-पास भी कोई फटक जाये तो वहां विचरता पिशाच उसकी जान ले लेता है। पिछली घटनाओं की हमें कोई ऑफिशियल इंफॉर्मेशन नहीं है, लेकिन इतना अंदेशा फिर भी है कि बीती रात सात नौजवान बच्चे उस हवेली में अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। किसी को आधी रात के बाद वहां से उठते शैतानी ठहाके सुनाई देते हैं, तो कोई अपनी आंखों से वहां की पिशाचलीला देख चुका है। तमाम बातें सुनी सुनाई नहीं हो सकती क्योंकि ऐसी एक घटना का गवाह हमने ढूंढ निकाला है, जिसका दोस्त बीस साल पहले वहां भकटती प्रेतात्मा की बर्बरता का शिकार हो गया था। तब वह शख्स क्योंकि खुद भी वहीं मौजूद था, इसलिए जो हुआ उसे अपनी आंखों से देखा था। रही बात चंद्रशेखर महाराज की तो सुनने में आया है कि पचास-साठ साल पहले उसे पूरे परिवार के साथ उसी हवेली में खत्म कर दिया गया था। अब आपमें से जो भी चार लोग रात के वक्त उस हवेली की निगरानी करने को तैयार हों, अपनी जगह पर बने रहें, बाकी पीछे हट जायें।”
जवाब में तीन लोगों को छोड़कर पूरी भीड़ पीछे लौट गयी।
वह नजारा देखकर एसीपी जोर से हंस पड़ा।
जो लोग अपनी जगह पर डटे रह गये थे, उनमें एक एएसआई महेश गुर्जर था, जबकि बाकी के दोनों सिपाही थे।
“नो प्रॉब्लम, मैं चार की बजाये तीन लोगों से काम चला लूंगा - कहकर विराट ने उनसे सवाल किया - एक बार फिर सोच लो तुम तीनों, पीछे लौटने पर कोई पाबंदी नहीं है, ना ही उससे तुम्हारी कार्य कुशलता पर कोई उंगली उठने वाली है।”
“डर कैसा जनाब - एएसआई महेश गुर्जर बोला - भूत ही तो हैं, फिर मर चुके लोग क्या जिंदा अपराधियों से ज्यादा खतरनाक होंगे? इसलिए मुझे वहां जाने से कोई ऐतराज नहीं है।”
विराट ने सिपाहियों की तरफ देखा।
“मुझे किसी बात से डर नहीं लगता जनाब - दोनों में से एक चंदन सिंह बोला - बजरंगबली का भक्त हूं, और महावीर जब नाम सुनावे भूत पिशाच निकट नहीं आवे।”
“तुम क्या कहते हो भई?” विराट ने दूसरे सिपाही से पूछा।
“भूतों से नहीं डरता जनाब, लेकिन चुड़ैलों का सामना नहीं कर सकता। सुना है वह किसी सुंदरी के वेश में आकर जाने क्या क्या कर जाती हैं हम मर्दों के साथ। ऐसे में कहीं मेरी बीवी को पता लग गया कि मैंने किसी चुड़ैल के साथ रात गुजारी थी, तो अगले ही दिन मायके चली जायेगी, जो कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा।”
“इतना प्यार करते हो बीवी से?” विराट ने हंसते हुए पूछा।
“खाना बनाना जो नहीं आता जनाब।”
सुनकर वहां खड़े तमाम पुलिसवाले हंस पड़े।
“खैर, जोशी साहब अभी तुम लोगों को वहां का पता ठिकाना समझा देंगे। हवेली के गेट पर ताला लगा है, इसलिए भीतर जाने का तो कोई मतलब ही नहीं बनता, निगरानी भी वहां से थोड़ा दूर रहकर करनी है। आते जाते पर निगाह रखना है और कोई संदिग्ध बात दिखाई दे तो फौरन मुझे खबर करनी है। इस बात पर खास ध्यान देना है कि रात के वक्त वहां से हंसी की आवाजें सुनाई देती हैं या नहीं, हवेली के ऊपर लगा घंटा बजता है या नहीं बजता, समझ गये?”
“यस सर।” तीनों एक सुर में बोले।
तत्पश्चात एसीपी ने सबको डिसमिस कर दिया।
विराट अपने कमरे में पहुंचा और फोन पर किसी को चाय भेजने की कहकर एक सिगरेट सुलगाने में व्यस्त हो गया।
तभी जोशी भी वहां पहुंच गया।
“समझा दिया तीनों को?”
“जी सर।”
“एक काम और करो।”
“क्या सर?”
“मुखिया का नंबर सर्विलांस पर लगवा दो।”
“आपको सच में लगता है कि पूरे मामले में प्रवीन सिंह का कोई रोल रहा हो सकता है?”
“नहीं जानता मगर कोशिश करने में क्या हर्ज है?”
“ठीक है मैं मिश्रा जी को बोलकर आता हूं।”
“चाय मंगवाई है पीकर जाना।”
सुनकर कुर्सी से उठता जोशी वापिस बैठ गया।
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