मोना चौधरी प्रेम कुमार के घर पहुंची। अपना परिचय उसने दीपा की सहेली के रूम में ही दिया। घर में प्रेम कुमार की पत्नी, बच्चे और मां-बाप थे। प्रेम कुमार के अपहरण की वजह से घर में उदासी से भरी हवा का स्पष्ट अहसास हो रहा था। सबके चेहरे बता रहे थे कि वो रो-रोकर थक चुके हैं।
मोना चौधरी ने उन्हें बताया कि उसके चार अन्य दोस्तों का भी कल ही अपहरण हुआ है। और वे सब कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे। ये सुनकर वो चौंके।
“ये तुम क्या कह रही हो बेटी...?” प्रेम कुमार के पिता के होंठों से निकला।
“मैं ठीक कह रही हूं। अभी अजय सिंह की पत्नी से मिलकर आ रही हूं।” मोना चौधरी ने कहा।
“अजीब बात है!” मां के होंठों से निकला।
प्रेम कुमार की पत्नी की आंखें गीली हुई पड़ी थीं।
“मुझे मालूम हुआ है कि प्रेम कुमार ने अन्य चारों के साथ मिलकर, कॉलेज के वक्त में कोई गलत काम किया था, जब वो पिकनिक टूर पर गये थे। उसी के कारण उनके अपहरण किये गये हैं।”
“कॉलेज के वक्त में?” उसके पिता के होंठों से निकला- “कॉलेज की पढ़ाई समाप्त किए तो उन्हें पन्द्रह साल हो गये हैं। ये तो बहुत पुरानी बात हो गई।”
“तब प्रेम कुमार कहीं पिकनिक पर गया था?”
“कई बार गया था।”
“एक बार उसके साथ अजय सिंह, दीपा, सीमा और रंजना थे। जब इनके साथ पिकनिक पर गया था।”
“हां याद आया।” उसके पिता ने फौरन सिर हिलाया- “इन चारों के नाम याद आ गये। बहुत पुरानी बातें जो हो गई। ये चारों घर भी कभी-कभार आया करते थे। अजय तो अब भी आता रहता था।”
“इन चारों के साथ प्रेम कुमार कब पिकनिक पर गया था?”
“कई बार गया था। मालूम नहीं तुम कौन से पिकनिक की बात का जिक्र कर रही हो।”
“प्रेम कुमार ने कभी ऐसी कोई बात कही कि जिससे मालूम हो, तब उन्होंने क्या गलत काम किया था?”
“मेरे से तो प्रेम ने ऐसी बात कभी नहीं की।” कहकर उन्होंने प्रेम कुमार की पत्नी की तरफ देखा।
मोना चौधरी की नजरें भी प्रेम कुमार की पत्नी पर गई।
वो समझ रही थी कि अब सवाल उससे किये जा रहा है, परन्तु वो खामोश रही।
“प्रेम कुमार ने आपसे कभी इस सिलसिले में कोई बात की?” मोना चौधरी ने पूछा।
“यूँ ही एक बार उन्होंने मामूली-सा जिक्र किया था।” अब वो व्याकुल-सी नजर आने लगी थी।
“कैसा जिक्र...?”
“एक दिन बातों-बातों में कहा था कि कॉलेज के वक्त वे चारों दोस्तों के साथ, जिनके नाम आपने लिए हैं, पिकनिक पर गये थे। वहां शरारत-शरारत में कुछ गलत हो गया। तो किसी ने उनसे कहा कि अगले चौदह साल तक चैन से बिता लो परन्तु उसके बाद तुम्हारी जिन्दगी, तुम लोगों की नहीं रहेगी। कहकर मेरे पति मजाक में हंसते थे और ये भी कहते थे कि चौदह साल पूरे हो चुके हैं और अब पन्द्रहवां साल चल रहा है। सब बकवास है। मेरे कई बार जोर देने पर भी वो मुझे कुछ नहीं बताते थे और ये भी कहते थे कि अजय सिंह घबराहट में सूखा जा रहा है।”
मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गये।
“इसके अलावा भी आपके पति ने कुछ बताया होगा। आप याद कीजिये कि...।”
“नहीं। इसके अलावा उन्होंने कभी नहीं बताया, जबकि मैंने पूछा बहुत बार । मैं अकसर पूछा करती थी कि क्या गलत काम उन सबने किया, परन्तु इस बारे में उन्होंने कभी भी, एक शब्द नहीं कहा।”
मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव छाये हुए थे।
“कुछ अंदाजा भी नहीं लगा कि पांचों ने क्या गलत काम किया होगा?”
“नहीं। इस बारे में, सोचकर भी मैं नहीं सोच सकी।” उसने कहते हुए इंकार में सिर हिलाया।
“आपके पति कोई डायरी लिखते थे?”
“नहीं...।”
“उनका कोई बहुत खास दोस्त...जिससे वे अपनी खास बातों का जिक्र करते हो?”
“उनका खास दोस्त अजय सिंह ही था।”
“इस बारे में आप लोगों के पास कोई और बात हो बताने के लिये?” मोना चौधरी ने सबको देखा।
तीनों ने इंकार में सिर हिलाया।
“ठीक है। मैं चलती हूं।” मोना चौधरी ने कहा और बाहर खड़ी अपनी कार में आ बैठी।
कोई फायदा नहीं हुआ। सारा मामला वहीं का वहीं था। इन पांचों ने कॉलेज के वक्त में क्या गलत काम किया था, किसके साथ गलत काम किया था? कुछ भी पता नहीं चल रहा था। चौदह साल के वक्त की छूट इन्हें क्यों दी गई? उसी वक्त ही सजा क्यों न दे दी गई?
किसी भी सवाल का जवाब उसके पास नहीं था।
मोना चौधरी कार में बैठी। कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी।
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आज का दिन बीत गया।
अगला दिन भी बीत गया।
मोना चौधरी के पास इस मामले में आगे बढ़ने के लिये कोई रास्ता नहीं था। उसकी सोचें अवश्य इस मामले पर रहीं, परन्तु हाथ पर हाथ रखे बैठी रही। घूमना-खाना और नींद लेना। यही काम किया।
उससे भी अगले दिन, सुबह जब वो स्लाईज का ब्रेकफास्ट कर रही थी, तब फोनबेल बजी।
“हैलो...।” मोना चौधरी ने रिसीवर उठाया।
दूसरी तरफ पारसनाथ था।
“मोना चौधरी! तुमने जिन दो बदमाशों का हुलिया बताया था, उनमें से एक मिल गया है।”
“कहां है वो?” मोना चौधरी के चेहरे पर राहत के भाव उभरे।
“मेरा आदमी उस पर नजर रख रहा है। कहो तो उसे उठा लिया जाये?”
“उठाने की क्या जरूरत है। अपने आदमी से कहो कि, वो उससे बात करे कि किसी को चाकू मारना है। सौदा तय करके किसी वीरान जगह ले आये। वहां उससे बात कर ली जायेगी।”
“ये ठीक रहेगा।”
“कहां बुलाओगे उसे? ताकि मैं पहले ही वहां मौजूद रहूं...।”
पारसनाथ ने जगह बताई।
“कितनी देर लगेगी...?”
“तुम दो घंटे बाद वहां पहुंच जाना...।”
“ठीक है। अपने आदमी को अच्छी तरह समझा देना कि उस बदमाश से कैसे बात करनी है।”
“हाँ।”
मोना चौधरी ने रिसीवर रखा और वार्डरोब खोलकर, उसमें से रिवॉल्वर निकालकर मैंग्जीन चैक की। चेहरे पर दृढ़ता और आंखों में सख्ती स्पष्ट नजर आ रही थी।
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पारसनाथ का आदमी कार ड्राइव कर रहा था। बगल में वही सूखा-सा बदमाश बैठा था जिसने अपने साथी के साथ मिलकर, सीमा पुरी का अपहरण किया था और मोना चौधरी को चोट देकर भाग निकले थे। धीरे-धीरे कार आबादी से हटकर, उस तरफ बढ़ रही थी, जहां लोगों का आना-जाना न के बराबर था।
बदमाश ने कार ड्राइव करने वाले को देखा।
“और कितनी दूर जाना है?” बदमाश ने पूछा।
“कुछ दूर और...।”
“लेकिन इधर तो कोई आबादी नहीं है।” बदमाश बोला।
“मालूम है...।”
“वो बंदा इधर-किधर होगा, जिसे चाकू मारना है।”
“इधर ही है।” वो लापरवाही से बोला- “उसे इधर का टाईम दिया हुआ है। पहुंच गया होगा वो।”
“चाकू मारना है या खत्म करना है?”
“मालूम हो जायेगा।”
“क्या मतलब...?”
“उससे बात करनी है। अगर वो मेरी बात नहीं माना तो गर्दन पर चाकू फेर देना साले की।”
“और अगर वो तुम्हारी बात मान गया तो?”
“तो उसे कुछ नहीं कहना...।”
बदमाश ने घूरकर उसे देखा।
“देख गुरु...!” बदमाश कह उठा- “मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं कि वो तेरी बात मानता है या नहीं। मेरे से तेरी बात पचास हजार में पक्की हुई है। वो मेरे को मिलने चाहिये। उसे चाकू मारने की जरूरत हो तो मेरे को इशारा कर देना। जो भी हो, मेरे को पचास हजार पक्का मिलना चाहिये।”
“फिक्र क्यों करता है। मैं जुबान का बहुत पक्का हूं। तेरे को देने वाला पचास हजार इस वक्त कार में ही है।”
ये सुनकर बदमाश ने तसल्ली से सिर हिलाया।
कुछ ही देर बाद कार बिल्कुल ही सुनसान जगह पर रुक गई।
“ये ही जगह है?” बदमाश ने पूछा।
“हाँ।”
“यहां तो कोई नजर नहीं आ रहा।”
“आ जायेगा। कुछ देर तसल्ली रख...।” कहने के पश्चात पारसनाथ का आदमी कार से बाहर निकला।
“मैं भी आ जाऊं...?” बदमाश ने पूछा।
“आ जा...।” उसने लापरवाही से कहा।
बदमाश भी कार से बाहर आ गया। सिगरेट सुलगाकर कश लेने लगा।
दोनों की निगाहें इधर-उधर फिर रही थीं।
तभी एक तरफ से निकलकर पारसनाथ उनकी तरफ बढ़ने लगा।
“ये है वो...?” बदमाश की निगाह पारसनाथ पर पड़ी तो वो बोला।
“अभी चुप रह। तेरा बोलने का वक्त नहीं आया।”
पारसनाथ पास पहुंचा। बदमाश को गहरी निगाहों से देखा।
“तेरे से ही बात करनी थी...।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।
“मेरे से...?” बदमाश कुछ उलझन में पड़ा।
“हां...।”
बदमाश ने अजीब-सी निगाहों से उसे देखा जो उसे यहां लाया था।
“ये क्या कह रहा है कि इसे मेरे से बात करनी है।”
“करनी होगी। बात कर ले।”
तभी बदमाश को अपने पीछे आहट मिली। वो फुर्ती से घूमा।
पीछे मोना चौधरी आ गई थी। उसने रिवॉल्वर बदमाश की कमर से लगा दी।
मोना चौधरी को देखते ही बदमाश के चेहरे पर से कई तरह के भाव आकर गुजर गये।
“तुम...?” उसके होंठों से निकला।
“हिलना मत। तुम्हारी कमर से रिवॉल्वर लगी हुई है और निशाना तुमसे बहुत अच्छा है।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द चबाकर कहा फिर पारसनाथ से बोली- “इसे रिवॉल्वर रखने की भी आदत है। वो निकालो।”
पारसनाथ ने उसकी तलाशी ली और रिवॉल्वर-चाकू निकाल कर पीछे हो गया।
“घूमो...।”
बदमाश घूमा और मोना चौधरी को देखने लगा। उसके चेहरे पर कोई घबराहट नहीं थी। अलबत्ता आंखों में उलझन अवश्य थी। वो कह उठा।
“तुम्हें फिर सामने देखकर मुझे हैरानी हो रही है।”
“मेरे ख्याल से तुम्हें डर लगना चाहिये।” मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा।
“क्यों...?”
“अभी मालूम हो जायेगा।” मोना चौधरी पहले वाले स्वर में बोली- “बता, सीमा पुरी कहां है?”
“मैं नहीं जानता।” बदमाश ने मोना चौधरी की आंखों में झांका।
“तुम अपने साथी के साथ उसे उठाकर ले गये थे। तुम्हें मालूम है वो कहां है? इस वक्त तुम बहाना बनाने की स्थिति में नहीं हो। मेरी बात का ठीक जवाब देने पर ही तुम सही-सलामत रह सकते हो।”
“मेरे को केशो भाई बोला था सीमा पुरी को उठाने वास्ते। उठाकर उसे, केशो भाई के हवाले कर दिया।”
“कौन केशो भाई...?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी।
“गोल मार्किट में उसे सब जानते हैं।” बदमाश ने बेहिचक कहा।
तभी पारसनाथ कह उठा।
“केशो भाई को मैं जानता हूं...।”
मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा फिर बदमाश से बोली।
“केशो भाई ने सीमा पुरी को क्यों उठाया?”
“मुझे नहीं मालूम। इस काम के वास्ते पच्चीस हजार दिया उसने। हम लोग पैसा देखते हैं, ज्यादा पूछा-पाछी नहीं करते।”
मोना चौधरी सोच भरी नजरों से बदमाश को देखती रही।
“मेरी समझ में नहीं आ रहा कि तुम ये सब क्यों कर रही हो। सीमा पुरी से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं है। ये बात मैं इसलिये दावे के साथ कह सकता हूं कि जब तुम लिफ्ट में थीं, तब उसने, तुम्हें जरा भी नहीं पहचाना।”
“बेकार की बातें मत करो...।”
“तुमने मुझे कैसे ढूंढ लिया...?” बदमाश बोला।
“मेरे बारे में छोड़कर, अपने बारे में सोचो। तुम्हें मेरे साथ केशो भाई के पास चलना होगा।”
“क्यों...?”
“ताकि मालूम हो सके कि तुम यूं ही कह रहे हो या सच में ये काम तुमने केशो भाई के लिये किया है।”
“मुझे कोई एतराज नहीं।” बदमाश बोला- “लेकिन सोच लो, केशो भाई बहुत खतरनाक आदमी है।”
“उसे मैं देख लूंगा।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा- “तू चल हमारे साथ...।”
बदमाश सिर्फ सिर हिलाकर रह गया। इतना समझ चुका था कि ये लोग भी कम नहीं हैं।
“तुम जाओ।” पारसनाथ अपने आदमी से बोला।
वो सिर हिलाकर कार की तरफ बढ़ गया। देखते-ही-देखते कार में बैठकर चला गया। तब तक पेड़ों के झुरमुट में खड़ी कर रखी कार पारसनाथ ले आया। मोना चौधरी, बदमाश के साथ पीछे वाली सीट पर बैठी, तो पारसनाथ ने कार आगे बढ़ा दी। मोना चौधरी के हाथ में दबी रिवॉल्वर अभी भी उसकी कमर से लगी थी।
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गोल मार्किट की एक पतली-सी गली के बाहर कार रोकते हुए पारसनाथ ने कहा।
“इस गली में केशो भाई का ठिकाना है।”
“वो अब होगा?” मोना चौधरी ने पूछा।
जवाब में बदमाश कह उठा।
“केशो भाई दिन के ग्यारह से रात तक यहीं रहता है। कहीं जाता नहीं।”
वो तीनों नीचे उतरे। मोना चौधरी ने रिवॉल्वर जेब में डाल ली थी।
“भागने की कोशिश मत करना। रिवॉल्वर निकालने में मुझे देर नहीं लगेगी।” मोना चौधरी का स्वर सख्त था।
“अपनी रोजी-रोटी तुम लोगों के पास छोड़कर कैसे जा सकता हूं।” बदमाश ने कहा।
“क्या मतलब...?”
“रिवॉल्वर और चाकू तुम लोगों के पास है। उसे खरीदने के लिये मुझे मोटे पैसे खर्च करने पड़ेंगे।” बदमाश ने सामान्य स्वर में कहा- “बाद में मेरा सामान मुझे दे देना।”
“तुम्हें केशो भाई से डर नहीं लग रहा।”
“वो क्यों...?”
“तुमने, हमारे सामने उसका नाम लिया है।”
“पुलिस के सामने केशो भाई का नाम लेना मना है। कोई और उसके बारे में छानबीन करे तो केशो भाई खुद कहता है कि उसके बारे में उसे बताया जाये, ताकि वो उसे सीधा कर दे। फिर मैं तो तुम लोगों को केशो भाई के पास ले आया हूं। केशो भाई तो खुश होगा कि, तुम लोगों की तलाश में उसका वक्त खराब नहीं हुआ।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।
पारसनाथ ने सिगरेट सुलगा ली थी।
“लगता है तुम्हारा साथी केशो माई को जानता है। तभी तो ठीक जगह पर लाकर कार खड़ी की।”
“चलो...।” मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा।
तीनों गली में प्रवेश कर गये।
ऊंची इमारतों वाली तंग गली थी। कुछ दरवाजे छोड़कर, वे एक दरवाजे के सामने रुके। पारसनाथ ने दरवाजा धकेला तो खुलता चला गया। सामने बरामदे जैसी जगह थी, जहां कुर्सी पर एक आदमी बैठा था। बरामदे में तीन दरवाजे नजर आ रहे थे और पास ही में ऊपर जाने के लिये सीढ़ियां थीं।
बहुत ही खामोश वातावरण था। कोई आवाज नहीं आ रही थी।
कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने उठने की कोशिश नहीं की। वहीं बैठा बारी-बारी उन्हें देख रहा था।
तीनों पास पहुंचे तो उस व्यक्ति ने बदमाश से कहा।
“तेरा काम तो निपट गया था। अब क्या है?”
बदमाश की अपेक्षा पारसनाथ कह उठा।
“केशो भाई को कह पारसनाथ आया है।”
“क्या...?” उसने गहरी निगाहों से पारसनाथ को देखा।
“पारसनाथ...।” पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा- “केशो भाई से बोल।”
वो तुरन्त कुर्सी से उठा और कुछ दूर टेबल पर मौजूद इन्टरकॉम से बात की। फिर रिसीवर रखकर तुरन्त वापस आया। अब उसके चेहरे के भाव बदले हुए थे।
“केशो भाई ऊपर हैं। जाओ।” फिर बदमाश से बोला- “केशो भाई के पास ले जा इन्हें...।”
बदमाश ने पारसनाथ पर निगाह मारी।
“तगड़ी ही पहचान लगती है।”
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