दो हवलदार रिसेप्शन पर खड़े थे । उन्होंने बताया कि साहब भीतर गये हैं।  सुमित जोशी, देवराज चौहान के साथ केबिन में पहुंचा तो एक सब इंस्पेक्टर और एक हैड कॉन्स्टेबल को केबिन में पाया । देवराज चौहान एक तरफ खड़ा हो गया सुमित जोशी अपनी कुर्सी पर बैठता कह उठा---

"कहिये, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ?"

"आज आप कोर्ट नहीं गये जोशी साहब ?" सब-इंस्पेक्टर ने मुस्कुराकर पूछा ।

"क्या यही पूछने के लिए आप आये हैं ?" जोशी भी मुस्कुराया।

"नहीं । ये बात तो यूं ही पूछ ली...।"

"फिर भी आपको बता देता हूं कि रात ज्यादा पी ली थी और सुबह आंख देर से खुली।  मुझे कोर्ट जाने की कभी भी चिंता नहीं रहती, क्योंकि मेरा भाई कोर्ट के काम बढ़िया ढंग से संभाल लेता है ।"

जोशी को इस बात का पूरा ध्यान था कि उसकी बात C.B.I. सुन रहे हैं ।

"खबर तो मिल गई होगी आपको ?"

"क्या ?"

"प्रभाकर जेल से फरार हो गया है ।"

"नहीं...।" सुमित जोशी ने जोरों से चौंकने का अभिनय किया---"क्या कह रहे हैं आप ?"

"वो सुबह नौ और दस के बीच निकल गया जेल से।"

"कैसे ?"

"ये अभी पता लगाया जा रहा है ।" सब इंस्पेक्टर की निगाह जोशी पर थी ।

"ये गलत किया उसने । मैं उसे जेल से बाईज्जत बरी करा लेता । बेवकूफ है वो जेल से भाग गया । मैं उसके केस पर बहुत मेहनत कर रहा था । मेरी सारी मेहनत उसने मिट्टी में मिला दी ।" सुमित जोशी ने अफसोस भरे स्वर में कहा ।

"आज सुबह से कहां थे ?"

"मैं अपने घर पर था । वहां से निकला तो यहां आ गया । कोर्ट जाने का मन नहीं था । सिर भारी था आज कुछ । अच्छा हुआ जो आपने ये खबर दी । वैसे शाम तक तो पता चल ही जाता ।"

"मैं आपके ऑफिस को एक नजर देख लूं...।"

सुमित जोशी ने सब-इंस्पेक्टर को देखा, फिर मुस्कुरा कर कहा---

"तुम क्या सोचते हो कि प्रभाकर मेरे ऑफिस में आराम कर रहा है ?"

"क्या पता ।"

"पागल हो । जाओ...देख लो।"

सब-इंस्पेक्टर और हैड कांस्टेबल बाहर निकल गये ।

"देखा सुरेंद्र पाल । शराफत का जमाना ही नहीं रहा । उधर सी.बी.आई. वाले मुझपर खामखाह का शक कर रहे हैं । इधर पुलिस वाले सोचते हैं कि प्रभाकर जेल से भागकर मेरे यहां छिपने आ गया है । प्रभाकर का वकील अवश्य हूं, लेकिन मैंने आज तक कोई गैर-कानूनी काम नहीं किया । शराफत से जिंदगी बताता हूं ।" सुमित जोशी ने तीखे के स्वर में कहा।

"वो अपना काम कर रहे हैं और आप अपना काम कर रहे हैं ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

"ऐसे लोग मुझे पास आकर अपना वक्त बर्बाद कर रहे हैं । तुमने दोबारा C.B.I. वालों को देखा ?"

"C.B.I....?" देवराज चौहान ने जोशी को देखा।

"वो ही तो लोग, जो उस दिन मेरे पास आये...।"

"नहीं, मैंने नहीं देखा ।"

"अक्ल आ गई होगी कि मेरे बारे में सोचकर अपना वक्त खराब कर रहे हैं ।"

सब इंस्पेक्टर आता भीतर कह उठा ।

"सॉरी जोशी साहब, आपको तकलीफ दी ।"

"काहे की तकलीफ । बल्कि मुझे पता चला कि प्रभाकर फरार हो गया है । अब मैं उसके केस पर काम नहीं करूंगा । मैंने जितनी मेहनत की थी, उस पर उसने पानी फेर दिया है । कमीना कहीं का ।"

सब-इंस्पेक्टर बाहर निकल गया ।

"मूड खराब हो गया है । बढ़िया-सी कॉफी बनाकर के ला ।"  सुमित जोशी बोला ।

"म...मैं मुझे कॉफी बनाने नहीं आती ।"

"तो जूही को बोल दे ।"

"जूही ?"

"वो जो रिसेप्शन पर, बेकार में बैठी रहती है । करती कुछ नहीं और तनख्वाह लेने की तारीख याद रखती है ।"

देवराज चौहान बाहर निकल गया ।

रिसेप्शन पर, जूही अखबार पढ़ रही थी।

"वकील साहब के लिए कॉफी बनाओ ।"

"क्यों नहीं ।" वो अखबार एक तरफ रखती बोली--- "तुम्हारे लिए भी कॉफी बनाऊं ?"

"नहीं...।"

"पी ले सुरेंद्र पाल । बढ़िया बनाती हूं ।" जूही ने प्यार से कहा ।

"मुझे नहीं चाहिए...।"

"कुछ तो मेरे से ले लिया कर...। तू तो हर चीज को मना कर देता है ।"

"कॉफी बनाओ ।" देवराज चौहान पीछे हटता कह उठा ।

"हाय...।" जूही ने लंबी सांस ली--- "क्या अदा है तेरी । सुन--- तू सहेली के फ्लैट पर चल...बोतल का खर्चा भी मेरा।"

"तेरी शिकायत मुझे वकील साहब से करनी पड़ेगी ।"

"तूने बताया कि जोशी साहब भी रंगीले हैं ?"

"तो...?"

"शिकायत करने के बाद वो मुझे दाना डाल दें । बड़ी उम्र के आदमियों पर तो मैं हर वक्त फिदा रहती हूं । वो समझदार होते हैं । आराम से आगे बढ़ते हैं । वरना आजकल के लड़के तो किसी काम के नहीं । यूं ही सब कुछ बेकार कर देते हैं ।"

"तूने कहा था तेरी शादी होने वाली है ?"

"तीन महीने पड़े हैं अभी...।"

"तुम्हें अपने होने वाले पति से वफादारी निभानी चाहिये ।"

"वो पता नहीं कहां-कहां मुंह मार रहा होगा ।" जूही ने मुंह बनाकर कहा और किचन की तरफ बढ़ गई ।

■■■

आज प्रदीप जोशी तीन बजे ही कोर्ट से लौट आया । सब वकील ही साथ थे । जो कि अपने केबिनों में चले गए थे । ऑफिस में खामोशी का माहौल टूट गया था । हलचल-सी उठ गई थी अब ।

सुमित जोशी, प्रदीप वाले केबिन में ही था । देवराज चौहान भी पास में था।

प्रदीप जोशी गंभीर नजर आ रहा था ।

"मेरा तो अभी तक दिल घबरा रहा है...।" प्रदीप जोशी बैठते हुए बोला--- "जब तूने प्रभाकर को जेल से निकाला, किसी को शक...।"

"नहीं हुआ ।" सुमित जोशी ने कहा--- "वो वकील के कपड़ों में था । चेहरे पर दाढ़ी-मूछें आंखों पर काला चश्मा । देखने वाले ने उसे भी वकील समझा होगा । इसमें कोई शक नहीं कि जिम्मी ने पक्का इंतजाम किया था।"

प्रदीप जोशी ने गहरी सांस ली ।

"पुलिस आई थी । खाना-पूरी के लिए अब ऑफिस की तलाशी ले गई कि प्रभाकर यहां तो नहीं ।"

"मेरी जान तो हर वक्त सूखी रहती है ये सब सोचकर ।" प्रदीप जोशी ने कहा--- "मैंने अच्छा किया कि जो यहां से चुपचाप जाने की सोच ली । रात की फ्लाइट है मेरी सुमित...।"

"याद है ।"

"घर पर तैयारी हो चुकी होगी । सूटकेस पैक हो गये होंगे ।"

सुमित जोशी ने प्रदीप को देखकर शांत स्वर में कहा---

"मेरे को इस तरह मझधार में छोड़कर तेरे को नहीं जाना चाहिये प्रदीप।"

"मैं तो चाहता हूं कि तू भी चल ।"

"मैं तेरी तरह चुपचाप भागने की नहीं सोच सकता । ये मुझे अच्छा नहीं लगता ।"

"तू मारा जाएगा ।"

"तभी तू मुझे छोड़कर जा रहा है ?"

"मैं...मैं डर गया हूं ऐसी जिंदगी से । मैं...।"

"जब करोड़ों आते थे तो तब तूने न सोचा कि एक दिन मुसीबत भी जरूर आयेगी ?"

"नहीं सोचा, परन्तु अब मौत का डर हर समय सताता रहता है । प्रभाकर और जिम्मी कहां हैं ?"

सुमित जोशी ने छत की तरफ उंगली की ।

"क्या मतलब ?"

सुमित जोशी ने पुनः छत की तरफ उंगली की ।

प्रदीप जोशी की आंखें फैल गईं ।

"म...मार दिया ?"

"हां...।"

प्रदीप जोशी की निगाह फौरन देवराज चौहान की तरफ उठी ।

"मैंने नहीं मारा ।" देवराज चौहान उसका मतलब समझकर बोला ।

"मैंने मारा है ।" सुमित जोशी ने गहरी सांस लेकर कहा ।

प्रदीप जोशी अविश्वास भरी नजरों से सुमित जोशी को देखने लगा ।

"त...तूने मारा सुमित...?" उसके होंठों से अविश्वास भरा स्वर निकला ।

"हां । दोनों को गोलियों से उड़ा दिया ।" सुमित जोशी गंभीर था ।

प्रदीप जोशी के चेहरे पर अविश्वास के भाव नाच रहे थे ।

"तूने-तूने प्रभाकर और जिम्मी को मार दिया ? ये कैसे हो सकता है ? विश्वास नहीं आता।"

"इसी तरह बोलता रह । विश्वास आ जायेगा ।"

प्रदीप जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"उन्हें न मारता तो वो हमें मार देते । पच्चीस करोड़ जो दबा लिया हमने उनका । वो इस बात को धोखा देना मानते थे । वापस करने को कह रहे थे और पैसा ऐसी चीज होती है जो लेने के बाद वापस नहीं किया जा सकता।" सुमित जोशी ने शांत स्वर में कहा--- "तू देता वापस...?"

"मैंने तो अपना सारा पैसा इंग्लैंड के बैंक में भेज दिया है ।"

"इसी तरह मैंने भी अपना पैसा कहीं फंसा रखा है ।"

प्रदीप जोशी रह-रहकर सूखे होंठों पर जीभ फेर रहा था।

"अब तो तेरे को इंग्लैंड नहीं जाना चाहिये । प्रभाकर और जिम्मी का खतरा अब टल गया है ।"

"मैं जाऊंगा । मैं...मैं यहां नहीं रह सकता ।"

सुमित जोशी मुस्कुराया ।

"खतरा अभी टला नहीं है सुमित । बल्कि और बढ़ गया है ।"

"अच्छा । वो कैसे ?"

"तुम बांटू और गोवर्धन को भूल रहे हो ।"

"प्रभाकर के चचेरे भाई ?"

"वो जिम्मी और प्रभाकर की मौत का बदला जरूर लेंगे ।" प्रदीप जोशी ने हड़बड़ाये स्वर में कहा।

"पागल है तू। वो क्यों बदला लेंगे ? वो दोनों तो खुश होंगे कि जिम्मी और प्रभाकर नहीं रहे । सब धंधों के मालिक बन गये हैं । अपने-आपको उनकी जगह पर रखकर सोच ।"

प्रदीप ने उसे देखा । कहा कुछ नहीं ।

"वैसे भी उन्हें सपना तो आयेगा नहीं कि मैंने प्रभाकर और जिम्मी को मैंने मारा है । वो सोच भी नहीं सकते कि मैं मारूंगा ।"

"वो दोनों बहुत खतरनाक हैं ।"

"मुझे इससे क्या फर्क पड़ता है । प्रभाकर या जिम्मी कम खतरनाक थे ? आखिर मर ही गये वो।"

प्रदीप जोशी ने गहरी सांस ली । फिर बोला---

"उनकी लाशें कहां हैं ?"

"मुम्बई सीमा पर, जंगल में...।"

"कब...? कब मिलेंगी उनकी लाशें ?"

"मिलने को अभी मिल जाएं । न मिलें तो दस दिन न मिलें। किसी के उस तरफ जाने की देर है ।"

"सुमित--- मेरी बात मान । बांटू और गोवर्धन जान लेंगे कि तूने मारा है उन्हें ।"

"ये बात राज है। देवराज चौहान तो उन्हें बतायेगा नहीं ।"

"वो...वो ड्राइवर-मंगल ?"

"वो भी मुंह खोलने वाला नहीं।"

"तूने अपने को और भी खतरे में डाल लिया है ।"

सुमित जोशी हंस पड़ा ।

"मैंने खतरा कम किया है । रही बात रतनपुरी की, तो किसी तरह वो बात भी ठीक कर लूंगा ।"

"तू पागल हो गया है ।"

"मैं पागल होता तो तेरी तरह मैं भी प्लेन की टिकट करा चुका होता ।"

"प्रदीप ने सुमित को देखा।

"मेरे को छोड़ के मत जा । यहीं रह । सब ठीक हो जायेगा ।" सुमित जोशी ने कहा ।

"मैं...जाऊंगा । मैंने सब तैयारी कर ली है ।" प्रदीप जोशी परेशान था ।

"अब मैं क्या कह सकता हूं । जाना ही चाहता है तो तेरी मर्जी ।" सुमित जोशी ने होंठ सिकोड़े ।

दोनों भाइयों की बातों के बीच देवराज चौहान शांत खड़ा था ।

वहां कुछ खामोशी रही ।

"तेरे को बांटू और गोवर्धन से सतर्क रहना होगा । वो...।"

"तू फिक्र मत कर । घर जा और बची-खुची तैयारी को पूरा कर ले...। मैं यहां सब देख लूंगा ।"

प्रदीप जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर सुमित को देखा।

"मैं जिन बातों को भुगत रहा हूं, उसमें तू मेरा बराबर का हिस्सेदार है । इस वक्त तेरे को कंधे से कंधा मिलाकर मेरा साथ देना चाहिये--- और तू मुझे अकेला छोड़कर इस तरह भाग रहा है ? गलत बात है ये ।"

"मैं शर्मिंदा हूं--- मैं...।"

"छोड़ । खत्म कर बात को । जा तू अब । रात को बंगले पर मिलेंगे।"

प्रदीप जोशी केबिन से बाहर निकल गया ।

सुमित जोशी देवराज चौहान को देखकर बोला---

"देखा तुमने । ये मेरा भाई है । जब मरने-मारने की बारी आई तो भाग जाना चाहता है ।"

"ये तुम भाइयों की बातें हैं । मुझे बीच में मत लो...।"

सुमित जोशी मुंह बनाकर रह गया ।

"कमिश्नर को फोन लगा ।" देवराज चौहान बोला ।

"कमिश्नर को ?" सुमित जोशी ने उसे देखा ।

"भूरेलाल ।" देवराज चौहान ने कहा--- "आज से तू हर रोज उसे फोन करेगा और जगमोहन की खैरियत पूछेगा ।"

"तो तुमने मेरी ड्यूटी लगा दी ।" सुमित जोशी नम्बर मिलाता कह उठा।

"तेरे भाई ने ये बात ही कही कि प्रभाकर के चचेरे भाई बांटू और गोवर्धन चुप नहीं बैठेंगे ।"

"तो क्या वो मुझे मार देंगे ?"

"अगर उन्हें पता चल गया कि ये काम तुमने किया है ।"

"वो खुश होंगे । परन्तु मैंने उनका रास्ता साफ कर दिया ।"

"जरूर खुश होंगे । परन्तु अंडरवर्ल्ड में अपनी धाक जमाने के लिए, वो तेरे को जरूर मारेंगे ।"

"बकवास है ।" सुमित जोशी ने बुरा-सा मुंह बनाया--- "उन्हें कुछ भी पता नहीं चलेगा कि मैंने मारा है दोनों को ।"

फोन लग गया।

फिर कमिश्नर की आवाज कानों में पड़ी---

"हैलो...।"

"क्या हाल है कमिश्नर ?" सुमित जोशी मुस्कुराया ।

"ओह वकील । सुना है प्रभाकर जेल से फरार हो गया ?" उधर से कमिश्नर ने कहा ।

"हां...पता लगा । कुछ देर पहले पुलिस वाले आये थे पूछताछ करने ।"

"हैरानी है कि इतने सख्त पहरे में से वो जेल से फरार हो गया ?"

"जुगाड़ बिठाया होगा । भीतर की मिलीभगत के बिना तो, वो भाग नहीं सकता था । कैसे जेल से निकला वो ?"

"अभी किसी को कुछ पता नहीं । पुलिस पता कर रही है । इतना ही पता चला है कि वो जेल में नहीं है । जो पुलिस वाले उसके पहरे पर थे, उनसे पूछताछ चल रही है । जल्दी पता चल जायेगा कि वो कैसे फरार हुआ ।"

सुमित जोशी ने मन-ही-मन गहरी सांस ली ।

"इस बारे में कोई खबर हो तो पहले मुझे बताना ।"

"तूने कुछ किया है इस मामले में ?"

"मैं क्यों करूंगा ?"

"फोन क्यों किया ?"

"जगमोहन का क्या हाल है ?"

"वो आराम से है । पूछताछ चल रही है, परन्तु यातना नहीं दी जा रही ।"

"उसे कब वहां से निकलवा रहा है ?"

"मौका मिले तब ना।"

"मौका तू देख । उसका बाहर निकलना बहुत जरूरी है ।"

"बार-बार मत कहा कर । मुझे याद है । जब भी वक्त ठीक लगा, काम कर दूंगा ।"

"ठीक है । फिर बात करता हूं...।"

फोन बंद करके सुमित जोशी ने देवराज चौहान से कहा---

"तुम जगमोहन की फिक्र मत करो । वो कभी भी बाहर आ जायेगा।" 

देवराज चौहान कुछ कहने लगा कि जोशी का मोबाइल बजने लगा ।

"हैलो...।" जोशी ने बात की ।

"प्रभाकर कहां है ?" कानों में शांत आवाज पड़ी ।

सुमित जोशी चौंका । फौरन सीधा हुआ और फोन पर हैलो-हैलो करने लगा।

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े...।

फिर जोशी ने फोन बंद कर दिया । उसके होंठ भिंच गये ।

सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा और सोच भरे स्वर में बोला---

"कोई उधर से पूछ रहा था कि प्रभाकर कहां है ?" आवाज में गंभीरता थी ।

"बांटू या गोवर्धन में कोई होगा ।"

"तुम्हें कैसे पता ?"

"जिम्मी ने अपने चाचाओं को जरूर बताया होगा कि तुम आज, प्रभाकर को जेल से बाहर निकालोगे ।"

सुमित जोशी के होंठ भिंच गये ।

फोन फिर बजने लगा ।

"हैलो...।" सुमित जोशी ने पुनः बात की ।

"प्रभाकर कहां है ?"

"सुना है वो जेल से फरार हो गया है ।" जोशी शांत स्वर में बोला--- "तुम कौन हो ?"

"बांटू...।"

सुमित जोशी ने लंबी सांस ली ।

"अब बता प्रभाकर कहां है ?"

"उसे मैंने जिम्मी के हवाले कर दिया था ।"

"कहां पर ?"

"नरीमन प्वाइंट के पास...।"

"कितने बजे ?"

"साढ़े दस का वक्त होगा शायद...। वो तेरे से अभी तक मिले नहीं क्या ?"

"नहीं मिले । तभी तो तेरे से सिर खपा रहा हूं साले हरामी वकील ।" कहकर उधर से बांटू ने फोन बंद कर दिया ।

सुमित जोशी ने फोन बंद किया और देवराज चौहान से बोला---

"बांटू, जिम्मी और प्रभाकर को ढूंढ रहा है ।"

"जब उन्हें नहीं मिलेंगे वे तो बांटू फिर तुझे फोन करेगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तेरे को कैसे पता।

"पता है, ऐसा ही होता है । क्योंकि आखिरी बार तू उन दोनों के साथ देखा गया है ।"

"तब तो लाशें मिलने पर वो यही सोचेंगे कि मैंने उन्हें मारा है ?" सुमित जोशी बोला ।

"क्रिमिनल वकील हो ।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "हालातों पर गौर करने के काबिल हो ।"

सुमित जोशी के होंठ भिंच गये ।

"बांटू आसानी से तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगा । लाशें मिलने पर वो तेरा गला पकड़ लेगा ।"

"कुत्ता साला...।"

"गाली देने से क्या होगा ?"

"प्रदीप को गाली दे रहा हूं । जो मुझे मुसीबत में छोड़कर भाग रहा है । काहे का भाई हुआ वो ?"

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"कमीना है साला ।"

देवराज चौहान मुस्कुराता रहा ।

"तू क्यों दांत फाड़ रहा है ?" जोशी भुनभुनाया ।

"मुझे लगता है कि तुमने अपने को ज्यादा मुसीबत में डाल लिया है ।"

सुमित जोशी दांत भींचकर रह गया ।

"कमिश्नर ने कुछ बताया कि जेल में उसके भागने की छानबीन चल रही है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"वो तो चलेगी ही ।"

"अगर जेल के वो पुलिस वाले पकड़े गये, जिन्हें जिम्मी ने पटा रखा था, तो वो सीधा तेरा नाम बता देंगे कि तू उसे जेल से ले गया है ।"

"सत्यानाश...।"

"तेरे को ये बात पहले ही सोच लेनी चाहिये थी । तू कैसा वकील है ?"

"मैंने सोचा था और इसी फैसले पर पहुंचा था कि वो पकड़े नहीं जायेंगे ।"

"जुर्म करने से पहले हर कोई ये ही सोचता है कि वो पकड़ा नहीं जायेगा । परन्तु वो पकड़ा जाता है । ये बात तुमने अपराधी की तरह सोची, क्योंकि तुम अपराध कर रहे थे । अगर वकील वाले दिमाग से सोचते तो ऐसा ना कहते।"

"देवराज चौहान, तू तो मेरी जान सुखा देगा ।"

"आईना दिखा रहा हूं कि कभी भी ऐसा हो सकता है ।"

"उल्लू का पट्ठा...।"

"प्रदीप को गाली दे रहे हो...।"

"नहीं । जिम्मी को दे रहा हूं । खुद तो मर गया और मुझे मुसीबत में फंसा गया।

"मेरे ख्याल में अब तुम पहले से ज्यादा मुसीबत में पड़ गये हो । एक तरफ पुलिस है तो दूसरी तरफ बांटू...।"

"मैं क्या करूं ?" सुमित जोशी ने अपना माथा पकड़ लिया ।

"पहले जमाने में लोग ऐसे हालातों में बंदूक लेकर चंबल में चले जाते थे और डाकू बन जाते थे ।

सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा ।

"मुझे कोई रास्ता बता इस मुसीबत से निकलने का देवराज चौहान ?"

"मैं तेरा बॉडीगार्ड हूं । सलाहकार नहीं । तू खुद वकील है । रास्ता सोच...।"

"मैं सच में अब ज्यादा मुसीबत में हूं ।"

तभी इंटरकॉम बजा । दूसरी तरफ जुही थी ।

"सर, कुछ क्लाइंट आपसे मिलने आये हैं ।"

"सबकी अपॉइंटमेंट कैंसिल कर दो । मेरे पास कोई ना आये ।"

"जी सर।"

जोशी ने रिसीवर रखा । घड़ी में वक्त देखा । शाम के छः बज रहे थे ।

"मैं घर जाऊंगा...।" सुमित जोशी एकाएक उठ खड़ा हुआ ।

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

"क्या हुआ ?"

"सोच रहा हूं कि तुम जैसा बकरा कब तक अपनी खैर मनायेगा...।"

"तुम देख लेना--- मुझे कुछ नहीं होगा ।"

"ये बात तुम जाने किस बिनाह पर कह रहे हो ? तुम्हारे कदम तुम्हें और भी मुसीबत में फंसाते जा रहे हैं । बल्कि फंस चुके हो।"

"भाड़ में जाओ ।" मैं किसी की परवाह नहीं करता ।" सुमित जोशी गुस्से से चीख पड़ा।

"अब तुम कमजोर होने से लगे हो । इस तरह चीखना--- ये ही निशानी है कमजोर होने की ।" देवराज चौहान बोला ।

"वहम है तुम्हारा । मैं कमजोर नहीं हूं । मैं इन हालातों से बच कर निकल जाऊंगा ।" जोशी होंठ भींचकर बोला ।

■■■

ड्राइवर मंगल ने कार आगे बढ़ा दी ।

सुमित जोशी और देवराज चौहान पीछे बैठे थे । जोशी ड्राइवर से बोला ।

"मंगल । याद रखना कि आज प्रभाकर को मैंने जिम्मी के हवाले कर दिया था ।"

"जी।"

"उसके बाद हम चले आये ऑफिस में । कोई पूछे तो इसी बात पर अड़े रहना ।"

"ठीक है ।"

देवराज चौहान की नजरें हर तरफ घूम रही थीं ।

कार सड़क पर पहुंचकर दौड़ने लगी थी ।

"हमारा पीछा हो रहा है ।" देवराज चौहान बोला ।

"पीछा ?" जोशी ने फौरन पीछे देखा ।

"नीली कार हमारे चलने के बाद से ही पीछे है ।" देवराज चौहान ने बताया ।

"C.B.I. वाले ?"

"नहीं । ये कार उनकी नहीं है ।"

"तो कौन हो सकते हैं ?" सुमित जोशी तंग अंदाज में कह उठा ।

"बांटू के लोग भी हो सकते हैं या फिर कोई और पार्टी, जो तुम्हें मारना चाहती है । मुझे पता भी तो नहीं कि तुमने आज तक कहां-कहां कितने झंडे गाड़े हैं । कोई भी तुम्हारी पहचान का तुम्हारे पीछे आकर गोलियां बरसा सकता है।"

"ये रतनपुरी के आदमी भी हो सकते हैं...।"

"तुम घबराओ मत ।" देवराज चौहान बोला--- "तुम पर हमला हुआ तो मैं देख लूंगा । वो कार पास आने की कोशिश कर रही है ।"

"ओह...।" सुमित जोशी बेचैन हुआ ।

"शायद वो हमला करेंगे ।" देवराज चौहान पीछे देखता कह उठा ।

"हमला ।" सुमित जोशी होंठ भींचकर बोला--- "कार को दौड़ाओ । वे लोग हमारे पीछे हैं।"

मंगल ने कार की रफ्तार तेज कर दी । परन्तु शाम के वक्त सड़कों पर काफी ट्रैफिक था ।

"कार के शीशे बुलेट प्रूफ हैं क्या ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"नहीं ।"

"शीशे बुलेट प्रूफ होने चाहिये थे । ये गलती है तुम्हारी । तुम नीचे झुक जाओ । सिर उठाने की कोशिश मत करना ।"

सुमित जोशी फौरन नीचे दुबक गया ।

देवराज चौहान की नजरें पीछे रहीं । रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली।

"अब क्या हो रहा है ?"

"उस कार की रफ्तार भी बढ़ गई है । वो हमारे बराबर आना चाहते हैं । यकीनन वो हमला करेंगे ।"

"मंगल, गाड़ी तेज भगा ।"

"जी- सड़क पर ट्रैफिक बहुत है ।"

"हम खतरे में हैं बेवकूफ ।"

मंगल जितनी तेज गाड़ी दौड़ा सकता है, दौड़ा रहा था ।

तभी पीछे लगी नीली कार बराबर में पहुंच गई ।

देवराज चौहान चौंका । पीछे वाली खिड़की पर उसने गन की झलक देखी।

"मंगल, नीचे हो जाओ ।" देवराज चौहान ने चीखकर कहा और सीट पर, जोशी के साथ ही दुबक गया ।

उसी पल गोलियों की बौछार कार से आ टकराई ।

वातावरण में फायरिंग की आवाज गूंज उठी ।

कार की बॉडी पर गोलियां लगी । उठे शीशे टूट गये । कई गोलियां कार के भीतर आईं और दूसरी तरफ के शीशों को तोड़ती निकल गईं । कुछ सीटों की पुश्त में जा धंसीं ।

उसी पल कार फुटपाथ से जोरों से टकराकर रुक गई ।

सब कुछ एकाएक शांत पड़ गया ।

सन्नाटा-सा टूटा। बाहर कारों के टायरों के चीखने की आवाजें, हॉर्न की आवाजें आने लगीं । शोर-सा उठ खड़ा हुआ।

देवराज चौहान रिवाल्वर संभाले, थोड़ा सीधा हुआ । बाहर देखा ।

बाहर नीली कार न  दिखी । शायद गोलियां बरसाकर भाग गई थी ।

देवराज चौहान कार का दरवाजा खोलते हुए बोला---

"उठ जाओ । सब ठीक है ।"

सुमित जोशी घबराया-सा उठ बैठा ।

"मंगल तो गया...।" वो बोला ।

अपनी सीट पर झुका मंगल सीधा होता कह उठा---

"मैं ठीक हूं।"

"ओह । हम बच गये।" सुमित जोशी ने राहत की सांस ली ।

तभी पुलिस का सायरन गूंजा ।

"पुलिस पेट्रोल कार है ।" देवराज चौहान बोला--- "पास ही होगी । गोलियों की आवाज सुनकर आ गई है ।"

देवराज चौहान बाहर निकला ।

तभी पुलिस कार वहां आकर रुकी ।

देवराज चौहान ने कार की हालत देखी ।

जगह-जगह गोलियों के छेद हुए पड़े थे ।

"बाहर आकर पुलिस को संभालो...।" देवराज चौहान ने, कार के भीतर मौजूद सुमित जोशी से कहा।

सुमित जोशी बाहर आ गया । अभी तक सामान्य नहीं हुआ था । वो पुलिस वालों से बात करने लगा। 

देवराज चौहान ने आगे से कार की हालत देखी, जहां से कार फुटपाथ में टकराई थी । देवराज चौहान जानबूझकर पुलिस वालों से दूर रहने की चेष्टा कर रहा था। वो नहीं चाहता था कि पुलिस वाले उसे पहचानें । हालांकि चेहरे पर दाढ़ी-मूंछें थीं । परन्तु संभावना तो थी कि पुलिस को किसी मौके पर उसके देवराज होने का शक हो जाये ।

पौना घंटा पुलिस के साथ लग गया।

पुलिस वालों ने शायद सुमित जोशी क्रिमिनल लॉयर का नाम सुन रखा था । इसी वजह से पुलिस ठीक से पेश आई । वहीं पर ही सब खाना-पूर्ति हो गई । मंगल ने कार स्टार्ट की तो चालू हो गई ।

"शुक्र है, कार पर घर तो पहुंच जायेंगे ।" भीतर बैठकर जोशी कह उठा ।

"विदेशी कार है ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"परवाह नहीं । इंश्योरेंस है ।"

मंगल ने कार आगे बढ़ा दी ।

सुमित जोशी को भी डर था कि कोई फिर उन पर गोलियां न बरसा दे ।

"बाल-बाल बचे ।" वो गहरी सांस लेकर बोला ।

"इस हमले को तुम कह सकते हो कि, ये रतनपुरी ने कराया हो सकता है ।" देवराज चौहान ने कहा।

"कुत्ता-हरामी...।" सुमित जोशी दांत भींचकर बोला ।

"तुम्हारी गालियों से उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा । वो तुम्हें मार कर ही दम लेगा।"

"हर तरफ से मुसीबत पड़ी हुई है । प्रभाकर का टंटा निपटा नहीं कि ये कुत्ता आ मारा ।"

"ये तेरे कर्म हैं जोशी, जो इस रूप में सामने आ रहे हैं ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"क्या तुम पर जब मुसीबत आती है तो तुम अपने कर्मों को सोचते हो ?"

"मैं तुम्हारी तरह के घटिया काम नहीं करता ।"

"बढ़िया काम करते हो । डकैतियां डालते हो ।" सुमित जोशी व्यंग से बोल।

"हां । डकैतियां डालता हूं ।"

"तब जो लोग मरते हैं ?"

"कोई नहीं मरता । मेरे द्वारा डाली डकैती में, लोग नहीं मरते । मैं किसी की जान नहीं लेता।"

"तो तुमने किसी को मारा नहीं आज तक ?" जोशी का स्वर तीखा था ।

"मारा है । परन्तु सब तुम जैसे हरामी रहे । कोई निर्दोष मेरे हाथों से नहीं मरा ।"

"तुम मुझे हरामी कह रहे हो ?"

"कह दो मैंने गलत कहा, फिर नहीं कहूंगा ।"

सुमित जोशी दांत पीसकर रह गया ।

"अब तो बात अपने दिमाग में बिठा लो कि रतनपुरी तुम्हारे पीछे पड़ चुका है।"

"कमीना । उसके बेटे को फांसी हो गई तो कसूरवार वकील हो गया ।"

"क्योंकि तुमने उसे आजाद कराने का वादा करके, उससे करोड़ों वसूले थे ।"

"ये तो मेरा काम है ।"

"और वो जो अब कर रहा है, वो उसका काम है ।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा ।

"तुम उसके करने को सही ठहरा रहे हो ।" सुमित जोशी ने उसे घूरा ।

"उसकी जगह तुम होते तो क्या करते ? वकील को ही दोषी ठहराते, जिसने आश्वासन देकर करोड़ों वसूला...।"

"करोड़ों नहीं, सिर्फ साढ़े चार करोड़...।"

"करोड़ों ही कहा जायेगा इन्हें...।"

"तुम मुझे सही और गलत का तमगा मत दो । अपनी जुबा बंद रखो ।"

देवराज चौहान मुस्कुराकर रह गया ।

"मंगल, तू घबराया तो नहीं ?" जोशी ने पूछा ।

"नहीं ।" ड्राइवर ने कहा--- "मैं ठीक हूं...।"

"फिर कभी ऐसा मौका आये तो सबसे पहले अपने को बचाना । कुछ कुत्ते मेरे पीछे पड़ गये हैं ।" सुमित जोशी गुर्रा पड़ा ।

बाहर देखते देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई । वो इस बारे में सतर्क था कि दोबारा हमला न हो जाये । उसकी नजरें हर तरफ घूम रही थी । रिवाल्वर निकालकर गोद में रखी हुई थी ।

"देवराज...।" सुमित जोशी बोला ।

"क्या है ?" देवराज चौहान की निगाह दौड़ती कार के आसपास थी।

"तू रतनपुरी को संभाल सकता है । मेरे लिए उसे संभाल ले । उसे ढूंढ । खत्म कर ।"

"मैं दूसरे के मामले में नहीं आता । ये मेरा उसूल है । इस वक्त मैं मजबूरी में तेरा बॉडीगार्ड बना हूं ।"

"मैं तेरे को इस काम के दो करोड़ दे दूंगा...।"

"पांच करोड़ भी नहीं ।"

"तेरे लिए तो मामूली-सा काम है ।"

"मैं तेरे मामले में नहीं आऊंगा । क्योंकि मैं तेरे कारनामे देखकर हैरान हूं...।" बाहर दौड़ रही थी देवराज चौहान की नजरें ।

"ये मत भूल कि मैं जगमोहन को आजाद कराने की कोशिश कर रहा...।"

"तू इंकार कर, मैं अभी चला जाता हूं । जगमोहन को आजाद कराने के लिए मैं अपना ढंग इस्तेमाल करूंगा ।"

"नहीं, तू मेरे पास रह । तेरा बहुत हौसला है मुझे...।"

"मैंने तेरे को पहले भी कहा था और आज भी कहता हूं हर वक्त ये बात याद रख कि मैं कौन हूं ।"

"मुझे ध्यान रहता है ।"

"परन्तु मुझे लगता है कि कभी-कभी तू मुझे सिर्फ अपना बॉडीगार्ड ही समझता है ।"

"ऐसा नहीं है ।" सुमित जोशी ने कहा--- "मैं चिंतित हूं कि दोबारा फिर मुझ पर हमला होगा...।"

"ये हमले तब तक होते रहेंगे, जब तक तू जिंदा है । जब मर जायेगा तो हमले भी बंद हो जायेंगे ।"

सुमित जोशी ने बेचैनी से पहलू बदला ।

"हरामजादा...।"

"अब किसे गाली दे रहा है ?"

"प्रदीप को । मुझे इस मुसीबत भरे दौर में छोड़कर रात को इंग्लैंड भाग रहा है ।" जोशी ने होंठ भींचकर कहा।

"तूने कभी अपने बारे में सोचा है कि तू क्या है ?"

"मैं जैसा हूं ठीक हूं । कम से कम भाई से तो गद्दारी नहीं की ।"

"मौका नहीं मिला होगा ।"

"चुपकर । मैं इस वक्त परेशान हूं । तेरे लिए भी गाली निकल गई तो फिर तेरे को बुरा लगेगा ।"

जवाब में देवराज चौहान मुस्कुराकर रह गया।

■■■

कार बंगले पर पहुंची ।

कार की बुरी हालत की खबर बंगले के भीतर फैल गई ।

खूबी, दोनों बच्चे प्रदीप उसकी पत्नी और दोनों बच्चे तुरन्त वहां आ पहुंचे ।

"ये क्या हुआ सुमित--- तुम ठीक तो हो ?" प्रदीप ने बदहवास स्वर में पूछा ।

"मैं ठीक हूं । किसी ने गोलियां बरसाईं ।" सुमित जोशी ने व्याकुल स्वर में कहा ।

देवराज चौहान शांत खड़ा था ।

"तुम्हें गोली लगी तो नहीं ?"

"बोला तो, मैं ठीक हूं । हम तीनों ही बच गये । किस्मत बढ़िया थी हमारी । सच पूछो तो मुझे सुरेंद्र पाल ने ही बचाया । वरना उस मौके पर मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आया, कि क्या करना चाहिये था मुझे...।"

खूबी की निगाह देवराज चौहान की तरफ उठी ।

"आज तीसरा दिन है कि सुरेंद्र पाल मुझे बचा रहा है ।"

"लेकिन ये सब किया किसने ?"

"पता नहीं । शायद रतनपुरी ने...।"

"पुलिस को...।"

"दर्ज करवा दी है कंप्लेंट...।"

"बहुत बुरा हुआ । तुम्हें कुछ हो जाता तो-तो...।" प्रदीप जोशी बहुत परेशान था ।

सुमित जोशी उसे देखकर मुस्कुराया ।

"तुम्हारी तैयारी हो गई ?"

"हां...। मैं...।"

"घर से कितने बजे निकलना है ?"

"ग्यारह बजे...। लेकिन मुझे तुम्हारी चिंता है ।"

"तुम्हें मेरी चिंता होती तो इस प्रकार, मुझे छोड़कर जाने की नहीं सोचते ।"

"सब समझा करो । कोई मुझे भी मार देगा ।"

"सब समझ रहा हूं...।"

चारों बच्चे कार के पास पहुंचकर, वहां बने छेदों को छू-छूकर देखने लगे ।

प्रदीप और उसकी पत्नी भीतर चले गये ।

सुमित जोशी एक तरफ हटकर फोन निकालकर किसी से बात करने लगा था ।

मौका पाकर खूबी, देवराज चौहान के पास आ गई ।

"तुम बहुत कमीने हो ।" खूबी ने धीमे स्वर में कहा ।

देवराज चौहान ने उसे देखा ।

"मैं हर रोज तुम्हें मना करती हूं कि मेरे पति को न बचाना, परन्तु तुम बचाते हो ।"

"उसे बचाना मेरी ड्यूटी है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तो तुम्हें मेरी परवाह नहीं है ?"

"नहीं ।"

"मैं तुम्हें एक करोड़ दे रही हूं । तुम...।"

"मुझे कुछ नहीं चाहिये ।

"तुम सच में कमीने हो । खूबी ने गुस्से में कहा।

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"तुमने मेरे पति को, मेरे इरादों के बारे में तो नहीं बताया ?"

"नहीं...।"

"मत बताना । इतनी मेहरबानी जरूर करना मुझ पर ।" कहकर खूबी बंगले के भीतर चली गई ।

देवराज चौहान ने सुमित जोशी को देखा, जो कि फोन पर बात करने में व्यस्त था । उसकी हालत से ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी को कुछ समझाने की चेष्टा कर रहा हो ।

बच्चे भीतर चले गये थे ।

फिर सुमित जोशी फोन बंद करके देवराज चौहान के पास आ पहुंचा।

"आज पहली बार मुझे मौत का एहसास हुआ...।" वो बोला ।

"लगता है अभी तक तुम एकतरफा खेल ही खेल रहे थे ।"

"एक तरफा...?"

"यही कि तुम ही लोगों को मारते रहे, किसी ने तुम्हें मारने की कोशिश नहीं की थी ।"

सुमित जोशी ने गहरी सांस लेकर कहा---

"अब वो दिन भी आ गया । अब भी कभी-कभी मैं कांप उठता हूं उस वक्त की सोचकर।"

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"कितनी अजीब बात है प्रदीप मुझे इन हालातों में फंसाकर खिसक रहा है ।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई ।

सुमित जोशी कुछ देर खामोश रहकर बोला---

"उसे ऐसा नहीं करना चाहिये । क्यों देवराज चौहान ?"

"तुम अपने भाई की बात बार-बार मुझसे क्यों करते हो ?"

"यूं ही। वो बहुत गलत कर रहा है और समझाने पर भी समझ नहीं रहा है । खैर, उसकी किस्मत उसके साथ । मेरी किस्मत मेरे साथ । तुम भीतर आओ, मैं तुमसे कोई बात करना चाहता हूं...।"

दोनों बंगले के भीतर पहुंचे । ड्राइंगरूम में बैठे । वहां और कोई नहीं था । सुमित जोशी ने नौकर को बुलाकर दो कॉफी लाने को कहा और बेचैनी से भरा बैठ गया ।

देवराज चौहान ने उसे देखा और सिगरेट सुलगा ली ।

तभी खूबी वहां पहुंची और सुमित जोशी से बोली---

"मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूं...।"

"कहो...।" जोशी ने उसे देखा ।

"आप खतरे में हैं । कोई आपको मार देना चाहता है और प्रदीप भाई साहब अपने परिवार के साथ इंग्लैंड भाग रहे हैं । ये अच्छा नहीं कर रहे वो । इस वक्त में आपका साथ देना चाहिये ।" खूबी ने सहज स्वर में कहा ।

सुमित जोशी चंद पल चुप रहकर, एकाएक मुस्कुराया, फिर बोला---

"मैं जानता हूं खूबी कि तुम्हें मेरी बहुत चिंता है । तभी तुम्हें गलत बात का अहसास हुआ ।"

"आप प्रदीप भाई साहब से बात कीजिये । कहें तो मैं कहूं...।"

"कर चुका हूं प्रदीप से बात । वो नहीं मानता । रुकने को तैयार नहीं है ।"

"ये तो गलत बात है ।"

"है तो गलत ही । छोड़ो, जाने दो । तुम हमें अकेला छोड़ दो । मैं सुरेंद्र पाल से कुछ बात करना चाहता हूं ।"

खूबी चली गई तो सुमित जोशी कड़वे स्वर में कह उठा---

"देखा इस कमीनी को, कैसी मेरी सगी बन रही है । वैसे मेरी मौत चाहती है ।"

"इंसान जैसा होता है, उसे वैसे ही लोग मिलते हैं ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तुम्हारा मतलब है कि मैं बुरा हूं ?"

"ये बात तुम बेहतर जानते हो ।"

"मैं तुमसे बहस नहीं करना चाहता ।" सुमित जोशी ने अपनी गर्दन को झटका दिया ।

"तुम मुझसे क्या बात करने वाले हो ?" देवराज चौहान ने उससे पूछा ।

"मैं तुम्हें दस करोड़ की ऑफर दे रहा हूं । तुम रतनपुरी को मेरे लिए खत्म कर दो । उसे ढूंढो और मार दो । तुम्हारे लिए ये मामूली काम है । इंकार मत करना । वो मर जायेगा तो मैं जिंदा...।"

"मैंने पहले ही मना किया है कि मैं तुम्हारे ये काम नहीं कर सकता ।"

"पर क्यों ?"

"मेरी मर्जी । मैं कोई नया झंझट नहीं खड़ा करना चाहता ।"

"रतनपुरी मुझे मार देगा ।"

"जब हमला होगा तो मैं तुम्हें बचाऊंगा ।" देवराज चौहान ने कहा--- "अपना काम मैं ठीक से...।"

तभी सुमित जोशी का फोन बज उठा ।

"हैलो...।" उसने फोन निकालकर बात की।

"बांटू...।" उधर से आवाज आई--- "जिम्मी की कार मिली है । वो सड़क के किनारे खाली खड़ी थी ।"

"तो ?"

"जिम्मी और प्रभाकर कहीं नहीं मिल रहे ।"

"मैंने तुम्हें बताया था कि प्रभाकर को, जिम्मी के हवाले करके मैं चला आया था ।"

"तो दोनों कहां गये ?"

"मैं क्या कहूं...।" वैसे जिम्मी बात कर रहा था कि कुछ दिन छिपकर रहेगा ।"

"वो कितना भी कहीं छिपकर रहे, परन्तु मेरे को जरूर बताता ।"

"अब मैं इसमें क्या कर सकता हूं...।"

"आखिरी बार वो दोनों तेरे साथ थे, तो तेरे से ही पूछुंगा...।"

"मैंने प्रभाकर को जेल से बाहर निकाला तो मेरा काम खत्म हो गया । आगे की वो दोनों जानें।"

"तेरे को बाद में फोन किया जिम्मी ने ?"

"अभी तो नहीं किया ।"

"करे तो कहना बांटू तेरे लिए चिंता कर रहा है ।"

"ठीक है ।"

"तेरे को जिम्मी या प्रभाकर की खबर लगे तो मेरे को बताना। "

"जरूर बताऊंगा ।"

सुमित जोशी ने फोन बंद किया और कड़वे स्वर में कह उठा---

"साला मेरे पीछे ही पड़ गया है । जैसे मैंने प्रभाकर और जिम्मी को छिपा रखा हो ।"

"आखिरी बार तू ही उनके साथ था । वो तेरे से ही पूछेगा ।"

"बांटू भी ये ही बात कर रहा था ।"

"देर सवेर में बांटू तेरे पीछे होगा । प्रभाकर और जिम्मी की लाशें मिलने की देर है ।"

"मैंने नहीं मारा है उन्हें । पहले वो साबित तो करें।"

"बांटू जैसे लोगों को कुछ भी साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती । उनके अपने कानून हैं ।"

सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा ।

"अब तू पूरी तरह खतरे में घिर चुका है जोशी । इधर रतनपुरी है, उधर बांटू और गोवर्धन । पुलिस भी इस बात की जानकारी पा रही होगी कि प्रभाकर जेल से कैसे निकल गया । जिम्मी के पटाये पुलिस वालों ने मुंह खोल दिया तो तू गया ।"

सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर पहलू बदला ।

तभी नौकर कॉफी के दो प्याले रख गया ।

देवराज चौहान ने एक प्याला उठाया और घूंट भरा ।

"तू मुझे बचा सकता है ।"

"रतनपुरी को मारकर ?"

"हां...।"

"उसके बाद बांटू या पुलिस से कैसे बचेगा ?"

"उन्हें मैं संभाल लूंगा, लेकिन तू रतनपुरी को संभाल ले । जिस तरह आज उसने मेरे पे गोलियां चलाई, ये काम वो फिर कर सकता है । एक बार तो मैं बच गया, शायद दूसरी बार न बचूं...।"

देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा ।

"सौ बार सुन ले, मैं रतनपुरी से पंगा नहीं लूंगा ।"

"मेरे लिये भी नहीं ?"

"नहीं...।"

"मैं तेरे कहने पर जगमोहन को आजाद कराने पर लगा हूं...।"

"उसी कारण से मैं तेरा बॉडीगार्ड बना बैठा हूं । तेरी जान भी बचाई । इससे ज्यादा मैं तेरे लिए कुछ नहीं कर सकता । तू मना कर दे कि जगमोहन को पुलिस के हाथों से आजाद नहीं करायेगा । मैं चला जाता हूं यहां से।"

"तुझे जाने को कौन कह...।"

मोबाइल पुनः बजा सुमित जोशी का ।

जोशी ने बात की, दूसरी तरफ रतनपुरी था ।

"बच गया हरामी कहीं के ?" रतनपुरी की आवाज कानों में पड़ी--- "लेकिन दोबारा नहीं बचेगा ।

"ओह रतनपुरी, मैं तुमसे बात करना...।"

"साले-कुत्ते । तेरे कारण मक्खन को फांसी की सजा हो गई । तूने उसे नहीं बचाया । मैं तो...।"

"पुरी, ऐसा मत कह । मैंने तो ऊपर से नीचे तक जोर लगा दिया था कि मक्खन...।"

"तेरे जोर लगाने का ये नतीजा निकला कि उसे फांसी की सजा हो गई । उम्र कैद भी न हुई ।"

"वो जज पागल था तो...।"

"जज पागल हो गया । तू समझदार हो गया और मैं बेवकूफ बन गया । साढ़े चार करोड़ मैंने तेरे को दिया कि...।"

"वो मैं तेरे को वापस देने को तैयार हूं--- डबल ले ले ।"

"पैसा बहुत है मेरे पास । मेरे को मक्खन चाहिये । बेटा चाहिये...।"

"मैंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है, मैं तुम्हारे बेटे को बचा...।"

"उसे तो मैं बचा लूंगा । जरूरी ये है कि तू अपने को बचा ले । इस बार नहीं बचेगा ।"

"ऐसा मत कह पुरी, हम दोस्त बन गये थे और हमने...।"

"तेरे से तो कोई कुत्ता भी दोस्ती करने को तैयार नहीं होगा। बुरी मौत मारूंगा तुझे ।" इसके साथ ही उधर से रतनपुरी ने फोन बंद कर दिया था । सुमित जोशी का चेहरा पीला पड़ चुका था ।

देवराज चौहान उसे देख रहा था ।

"रतनपुरी मुझे मार देगा...।"

"पक्का मारेगा ।" देवराज चौहान ने कहा--- "तेरे कर्म ही ऐसे हैं । तेरे को कोई भी मार देगा।"

"तू मेरे को बचा...।"

कॉफी का प्याला टेबल पर रखता देवराज चौहान उठते हुए बोला---

"मैं जा रहा हूं, इससे ज्यादा मेरे से आशा मत रख । इतना ही बहुत है । मैं गार्डरूम में हूं । जरूरत पड़े तो बुला लेना ।"

■■■

देवराज चौहान गार्डरूम में था ।

आज उसका खाना नौकर यहीं दे गया था, क्योंकि भीतर प्रदीप जोशी के इंग्लैंड जाने की वजह से हलचल थी । उस वक्त रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, सब नौकरों द्वारा प्रदीप जोशी का सामान कार में रखा जाने लगा ।

देवराज चौहान भीतर से सब देख-सुन रहा था ।

प्रदीप बार-बार सुमित को सतर्क रहने की हिदायत दे रहा था । उसकी पत्नी और बच्चे इंग्लैंड जाने की वजह से खुश थे । प्रदीप भी खुश था, परन्तु भाई के सामने बिछड़ने का ढोंग कर रहा था । वो कह रहा था कि इंग्लैंड पहुंचकर फोन करेगा । बीस-पच्चीस मिनट यही सब होता रहा, फिर सब कार में बैठकर एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गये ।

देवराज चौहान ने देखा कि उनके जाने के बाद सुमित जोशी फोन पर बात करने लगा था ।

खूबी दोनों बच्चों को लेकर भीतर चली गई ।

दो-तीन मिनट फोन पर बात करने के बाद, जोशी गार्डरूम की तरफ आ गया ।

"तुम कैसे हो देवराज चौहान, सो गये ?"

"जाग रहा हूं...।"

"कॉफी पियोगे । भिजवाऊं क्या ?"

देवराज चौहान उठकर दरवाजे पर पहुंचा ।

"भिजवा दो ।"

"प्रदीप चला गया ।" जोशी दु:खी स्वर में बोला--- "भगवान ऐसा मतलबी भाई किसी को ना दे...।"

देवराज चौहान उसे देखता रहा ।

"मैं कॉफी भिजवाता हूं ।" कहकर सुमित जोशी बंगले में चला गया।

■■■

उस वक्त क्या बजा था, देवराज चौहान को तो ये ना पता लगा । परन्तु शोर-शराबे की वजह से उसकी आंख खुल गई । उसने जरा-सा दरवाजा खोलकर बाहर देखा । बाहर अभी अंधेरा ही था । बंगले पर पूरी तरह रोशनी हो रही थी । उसे पुलिस वालों की वर्दियां दिखाई दीं । दो-तीन पुलिस वाले उसे दिखे । बंगले में और भी होंगे । पुलिस क्यों आई है ? देवराज चौहान सतर्क हुआ । शीशे में देखकर दाढ़ी-मूंछें ठीक कीं पर कमरे में ही रहा ।

कमरे से बाहर निकलने का उसका कोई इरादा नहीं था। वो पुलिस के सामने नहीं आना चाहता था । पुलिस ने उसे पहचान लिया तो नई दिक्कत खड़ी हो जायेगी, परन्तु पुलिस बंगले पर क्यों आई है ? यकीनन कोई खास वजह ही होगी।

वक्त बीता । दिन निकल आया ।

पुलिस के साथ जोशी और खूबी कहीं चले गये थे ।

तब देवराज चौहान बाहर निकला तो पता चला कि रात एयरपोर्ट जाते वक्त प्रदीप की कार का एक्सीडेंट हो गया था । प्रदीप, उसकी पत्नी, दोनों बच्चे और ड्राइवर सब ही मारे गये थे 

देवराज चौहान के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा ।

अगले ही पल उसने गहरी सांस ली ।

तो सुमित जोशी ने अपने भाई को भी नहीं बख्शा था । वो उसे छोड़कर इंग्लैंड भाग रहा था तो उसकी भी जान ले ली । उस दिन अपने ऑफिस में बैठा किसी से बात तो कर रहा था कि पचास लाख दूंगा । काम बढ़िया ढंग से हो जाना चाहिये । वो जिंदा न बचे । पता चला कि कार किसी बड़े ट्रक के नीचे दब गई थी । ऐसे में कोई बचा कैसे रह सकता था। ट्रक ड्राइवर, ट्रक छोड़कर भाग गया था ।

आज शाम भी जोशी ने घर जाने पर फोन पर बात की ।

प्रदीप जब चला गया तो तब भी उसने फोन पर बात की । यकीनन तब वो हत्यारे को खबर दे रहा होगा कि प्रदीप घर से चल पड़ा है, अब वो काम कर दे ।

देवराज चौहान ने लम्बी सांस ली ।

सुमित जोशी सच में खतरनाक इंसान था ।

अपने फायदे के लिए किसी की जान लेने से उसे परहेज नहीं था । बेशक सामने उसका भाई ही क्यों न हो । उसे भी हवा तक न लगने दी कि क्या इरादा रखता है । जब जिम्मी और प्रभाकर को मारा, तब भी उसे हवा नहीं लगने दी थी। यानी कि वो हर वक्त अपने दिलो-दिमाग में कोई-न-कोई ताना-बाना बुनता रहता है । उसका दिमाग चैन से बैठ ही नहीं सकता । गुपचुप ढंग से एक के बाद एक अपराध किए जा रहा था, चूंकि वो खुद माना हुआ क्रिमिनल वकील है, इसलिए डरता नहीं था । उसे भरोसा था कि कभी कानून रास्ते में आया तो वो अपने को अदालत में आसानी से बचा लेगा।

देवराज चौहान के सामने क्रिमिनल वकील का नया चेहरा था ।

सुमित जोशी, देवराज चौहान को अंडरवर्ल्ड के लोगों से भी ज्यादा खतरनाक लगा । अंडरवर्ल्ड के लोगों का पता होता है कि उन्होंने ये ही काम करने हैं । परन्तु जोशी तो शराफत का चोला ओढ़े बगुले की भांति ये सब करता जा रहा था ।

कोई वकील ऐसा भी हो सकता था ? देवराज चौहान ने नहीं सोचा था।

■■■

देवराज चौहान दिन भर गार्डरूम में ही आराम करता रहा । शाम छः बजे सुमित जोशी, खूबी के साथ लौटा । कार मंगल चला रहा था । पता चला कि पोस्टमार्टम के बाद लाशों का अंतिम संस्कार भी कर आया है । थका-सा लग रहा था जोशी । देवराज चौहान से उसकी नजरें मिलीं । बात नहीं हो पाई । जोशी भीतर चला गया था । देवराज चौहान गार्डरूम में ही रहा ।

रात दस बजे सुमित जोशी उसके पास आया ।

उसे सामने पाकर देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान बिखर गई।

"मुझे अब समझ आई कि उस दिन तुम ऑफिस में, फोन पर, पचास लाख में किसकी मौत खरीद रहे थे ।" देवराज चौहान बोला ।

"प्रदीप मुझे खतरे में छोड़कर, अपनी जान बचा कर भाग रहा था...।" सुमित जोशी गंभीर स्वर में बोला ।

"इसलिए तुमने उसकी हत्या करवा दी ?"

"मैंने उसे रोकने की भी तो बहुत कोशिश की । वो मेरी बात समझा ही नहीं । उसने कैसे सोच लिया कि मैं उसे जाने दूंगा ?"

"तुम्हें अपने भाई और उसके परिवार की जान नहीं लेनी चाहिए थी।"

"उसने कौन-सा ठीक किया मेरे साथ ?"

"वो गलत था और तुम अब उससे भी ज्यादा गलत हो गये ?" देवराज चौहान ने कहा ।

"मुझे उसकी मौत का, उसके परिवार की मौत का सच में दु:ख है ।"

"तुम कैसे इंसान हो ? अपने भाई का पूरा परिवार खत्म कर दिया और कहते हो तुम्हें अफ़सोस है ?"

"कल शाम मुझ पर गोलियां बरसाई गई । तब मैं तो मर सकता था ? कार की हालत देखकर भी वो नहीं समझा । उसे रुककर मेरा साथ देना चाहिए । वो तो बस, भाग जाना चाहता था ।" सुमित जोशी का स्वर शांत था--- "उसे मेरी जरूरत नहीं थी तो मुझे भी उसकी जरूरत नहीं थी । अब तो तसल्ली है कि दुनिया में है ही नहीं....।"

"तुम सच में कमाल के हो...।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "कमीनों की टॉप की जात में शुमार हो ।"

"अपने को बचाने के लिए सब कुछ करना पड़ता है...।"

"तुमने जिम्मी और प्रभाकर को मारा तो मैंने सोचा शायद मारकर तुम्हें अच्छा लगा हो । परन्तु जब तुमने अपने भाई को, उसके परिवार सहित खत्म कर दिया तो मुझे लगा, तुम ये सब करके खुश होते हो कि काम कर दिया और किसी को पता भी नहीं लगा । अब भी तुम्हें खुशी मिल रही होगी--- है ना ?"

"मैंने कुछ भी गलत नहीं किया ।"

"तुम खुद को कभी गलत कह नहीं सकते ।"

"सब काम हम दोनों भाइयों ने मिलकर किए । अब भुगतने का वक्त आया तो मैं अकेला क्यों भूंगतु ?"

"और तुमने उसे परिवार सहित मार दिया ।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"हां, मार दिया ।"

"और मन में ये बात जरा भी नहीं कि तुमने अपने भाई को मार दिया है ?"

"मैं  इस वक्त रतनपुरी के बारे में सोच रहा हूं ।"

देवराज चौहान ने उसे देखा ।

"सारा दिन मैं इस बात को लेकर डरता रहा कि रतनपुरी के आदमी मुझ पर गोलियां न बरसा दें । कल का, गोलियों वाला वक्त मैं नहीं भूल सकता। तब तो तुमने मुझे बचा लिया था । आज मैं तुम्हें अपने साथ ही ले जाना चाहता था, परन्तु ये भी जानता था कि पुलिस आपपास होगी । तुम पहचान लिए गये तो परेशानी होगी । मुझे तुम्हारी चिन्ता है देवराज चौहान, तभी तो तुम्हें साथ नही लेकर गया ।" सुमित जोशी ने व्याकुल स्वर में कहा--- "पूरा दिन एक पल भी मेरा चैन से नहीं बीता । हर वक्त मुझे मौत का डर सताता रहा । और तुम चाहते हो कि मैं अपने भाई की मौत का अफसोस करूं ? मुझे अपनी जान की चिंता है । मेरी हालत को समझो।"

"जो दूसरों की जानें लेता रहता हो वो खुद चैन से कैसे रह सकता है ?"

"रतनपुरी मुझे मार देगा । मैं उससे बचना चाहता हूं ।" सुमित जोशी ने कहा ।

"कहीं दूर भाग जाओ ।"

"नहीं भाग सकता । मैंने वकालत से बहुत बड़ी दौलत कमाई है । उसे इस तरह नहीं छोड़ सकता । जाने कहां-कहां मैंने पैसा लगा रखा है । प्रदीप भी नहीं रहा । अब कानूनी तौर पर उसकी दौलत भी मैंने हासिल करनी है । उसने अपना सारा पैसा इंग्लैंड के किसी बैंक में जमा करा दिया है । दौलत को छोड़कर भागा तो, सारी जिंदगी कमाने का क्या फायदा ?"

"मतलब की दौलत भी चाहिये और जान भी...।"

"हां...।" मैंने हर हाल में खुद को बचाना है ।"

"मेरे ख्याल में तुम खुद को ज्यादा देर नहीं बचा सकोगे । रतनपुरी तुम्हें...।"

"तुम मुझे रतनपुरी से छुटकारा दिला सकते हो ।"

"कोई फायदा नहीं। रतनपुरी नहीं रहेगा तो बांटू तुम्हें छोड़ने वाला नहीं । तुम सही इंसान नहीं हो । हर किसी से पंगा ले लेते हो । अब वो ही पंगे पलटकर तुम्हारी तरफ आ रहे हैं ।"

"मैं तुम्हें मुंह मांगी दौलत दूंगा देवराज चौहान ।"

"रतनपुरी को मारने के लिए ?"

"हां...।"

"सच बात तो ये है कि मैं तुम जैसे इंसान की, खुलकर कोई सहायता नहीं करना चाहता । मन नहीं मानता ।"

"मुंह मांगा पैसा दूंगा । अपने मन को समझा लो ।"

"तुम्हें इसी बात पर खुश होना चाहिए कि मैं तुम्हारा बॉडीगार्ड बना हुआ हूं।"

सुमित जोशी देवराज चौहान को देखने लगा । फिर बोला---

"मैं मर गया तो जगमोहन कैसे बाहर आयेगा ?"

"फिर मैं अपना रास्ता अपना ढंग इस्तेमाल करूंगा । सोचता हूं अगर तुम उसे शांति से बाहर निकाल देते हो तो इससे अच्छी और क्या बात होगी । परन्तु तुम्हारा असली रूप देखकर मैं अवश्य हैरान हुआ हूं...।"

"मैंने तो सोचा था कि तुम मान जाओगे ।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

सुमित जोशी वापस बंगले में चला गया।

■■■

अगले दिन सुबह साढ़े आठ बजे ही, सुमित 'जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स' ऑफिस में जा पहुंचा । उसने अपने आठों असिस्टेंट वकीलों को वहां बुला रखा था । उन्हें मालूम था कि परसों रात प्रदीप सर की एक्सीडेंट में मौत हो गई है । जोशी ने उन्हें कहा कि कुछ दिन अदालतों के काम नहीं देख सकेगा । तुम लोग सारे काम को संभाले रखना।

देवराज चौहान, इस दौरान सुमित जोशी के पास ही था ।

नौ बजे सब वकील अदालत के लिए चले गये ।

ऑफिस में फिर शांति छा गई ।

तब तक जूही ने आकर रिसेप्शन संभाल लिया था ।

सुमित जोशी इन सब बातों के पश्चात प्रदीप वाले केबिन में जा बैठा था । ताकि माइक्रोफोन पर C.B.I. वाले उसकी बातें न सुन सकें। कई बार माइक्रोफोन को वो भूल जाता था । परन्तु ये तो अच्छा था कि भूलनी के दौरान उसने ऐसी कोई बात नहीं की थी कि C.B.I. वालों के कान खड़े होते । कई बार उसने सोचा कि भी कि माइक्रोफोन निकालकर फेंक देना चाहिये । कभी लापरवाही में बात मुंह से निकल ही जाती है ।

"प्रदीप के बिना ये ऑफिस मुझे अजीब-सा लग रहा है ।" सुमित जोशी बोला।

"उस वक्त की सोचो, जब तुम्हारे बिना ये ऑफिस कैसा लगेगा ?"

"तब तो खूबी की लॉटरी निकल आयेगी, मैं मर गया तो ।" जोशी ने मुस्कुरा कर कहा ।

देवराज चौहान शांत निगाहों से उसे देखता रहा।

"लेकिन मैं मरूंगा नहीं । बच जाऊंगा ।"

"मेरे हिसाब से तो ज्यादा देर तक बचे नहीं रह सकते ।"

"मुझे डराओ मत देवराज चौहान । मुझे हौसला दो । मैं पहले से ही डरा हुआ हूं ।"

"तुम डरने वालों में से नहीं हो ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"कसम से । मैं सच कह रहा...।"

उसी पल देवराज चौहान का मोबाइल बजने लगा ।

"हैलो...।"

"मैं...दयाल...C.B.I. ...।"

"ओह चाचाजी, अब कैसी हैं चाची ?" देवराज चौहान ने कहते हुए जोशी पर निगाह मारी।

"वक्त निकालकर हमसे मिलो...।"

"मैं आऊंगा कभी । जरूर आऊंगा...।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।

"C.B.I. वाले थे ?" सुमित जोशी ने पूछा ।

"हां, मुझसे मिलना चाहते हैं ।"

"वो तुमसे इतने घुल-मिल क्यों रहे हैं ?" जोशी ने पूछा ।

"इस आशा में कि मैं उन्हें, उनके काम की खबर दूंगा ।"

"तुम क्यों खुशी-खुशी उनके पास जाते हो ?"

"ताकि किसी तरह उन्हें मुझ पर शक न हो । उनका ध्यान तुम पर ही रहे ।"

"कुछ बता मत देना...।"

"निश्चिंत रहो । जब तक तुम मेरे से धोखेबाज ही नहीं करोगे, तब तक मेरी तरफ से सुरक्षित रहोगे ।"

"मैं तुमसे धोखेबाजी क्यों करूंगा ?" जोशी ने गहरी सांस ली ।

"नहीं करोगे तो मजे में रहोगे । मुझसे तुम्हें कोई नुकसान नहीं होगा ।"

"देवराज चौहान ।" सुमित जोशी आग्रह वाले स्वर में बोला---

"मेरी बात मान जा । रतनपुरी को मेरे लिए खत्म कर...।"

"मैं ये काम नहीं करूंगा ।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा--- "दोबारा मत कहना।"

सुमित जोशी की निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर जा टिकी ।

"बेहतर होगा कि ये काम किसी और से करा लो ।" देवराज चौहान बोला ।

"किससे ? मेरी नजरों में ऐसा कोई काबिल इंसान नहीं, जो रतनपुरी का मुकाबला कर सके । तुम ही बता दो किसी के बारे में ।"

"मुझसे मत पूछो । इस मामले में मैं तुम्हारा कोई फायदा नहीं कर सकता । क्योंकि मैं समझता हूं कि तुम रतनपुरी के गुनहगार हो । उसके बेटे को बचाने के नाम पर तुमने उससे साढ़े चार करोड़ लिया और उसे फांसी की सजा हो गई ।"

"वो तो साले को होनी ही थी ।"

"तो उससे साढ़े चार करोड़ न लेते । उसे, उसके बेटे के बस जाने की आस मत बंधाते ।"

"ये ही तो मेरा धंधा है । आस बंधाओ और नोट झाड़ो...।"

"तो इसका जवाब मैंने पहले ही दिया है कि रतनपुरी जैसे गैंगस्टर का भी ये ही धंधा है, लाशें बिछाना । वो लाश किसी वकील की भी हो सकती है और दूसरे की भी ।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा ।

"तुम रतनपुरी की साइड लेते हो ।"

"वो मेरा रिश्तेदार नहीं । मैं उसे जानता नहीं । मैं तो सरसरी बात कर रहा हूं । तुम अपना धंधा अपनी तरह से कर रहे हो और रतनपुरी अपना धंधा अपनी तरह से कर रहा है । रतनपुरी जैसे लोग तो मैंने बहुत देखे हैं । परन्तु तुम जैसा वकील मैं पहली बार ही देख रहा हूं । सच में शेर वकील हो तुम ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

"यहां जान फंसी पड़ी है और तुम मुझे शेर कह रहे हो ।" जोशी झल्लाकर कह उठा।

"तुममें जो खासियत है वो बताने में मुझे परहेज नहीं । शेर के साथ तुम महा कमीने भी हो । ये याद रखना ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान बाहर निकला और रिसेप्शन पर जा पहुंचा ।

रिसेप्शन पर बैठी जूही नेल-पॉलिश हाथ की उंगलियों पर लगा रही थी ।

"आ-आ--- सुरेंद्र पाल...।" आज जूही के स्वर में उत्साह नहीं था।

देवराज चौहान ने उसका चेहरे पर नजर मारी, जहां बीती रात की कहानी लिखी थी । उसका चेहरा बता रहा था कि रात उसने पेट भर कर दी है, जिसकी खुमारी अभी तक उस पर सवार थी ।

"आज ढीली हो...।"

"क्या कहूं रात तुम्हारी बहुत याद आई ।" उसने नजर उठाकर देवराज चौहान को देखा ।

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"सहेली के फ्लैट पर थी । उसका भाई आया हुआ था । वहां थोड़ी-सी पी ली ।"

"तो इसमें उदास होने की बात कहां से आ गई ?"

"उसका भाई तो पीकर उल्टियां करने लगा । मैंने उसे लेकर रात के क्या-क्या सपने ले रखे थे । रात खराब होते पाकर मैंने थोड़ी और पी ली । तब मुझे तुम्हारी बहुत याद आई । सोचा सुरेंद्र पाल इस वक्त मेरे पास होता तो कितना अच्छा होता...।"

"तब अपने बाप की याद नहीं आई ?" देवराज चौहान ने उसे पूछा ।

"पापा की ?" वो सकपकाई ।

"तब अपने बाप को फोन करके बुलाती तो वो आकर देखता कि औलाद क्या गुल खिला रही है।"

"तुम बिल्कुल बेकार के हो । वो झल्लाई--- "हमारी बातों में तुम पापा को ले आये ।"

"शर्म करो । तीन महीने बाद तुम्हारी शादी होने वाली है ।"

"तो क्या हो गया ? मैं कौन-सा गलत काम कर रही...।"

"शराब पीती हो । मर्द की चाह रखती हो । पराये मर्दों के साथ इस तरह बातें करते हो--- और कहती हो कि मैं कौन-सा गलत काम कर रही हूं ।"

"तुम सच में बेकार के हो ...तुम...।"

तभी पीछे से सुमित जोशी की आवाज आई---

"क्या है ?"

"तुम ही पूछ लो...। देवराज चौहान ने कहा और आगे बढ़कर शीशे का दरवाजा धकेलकर बाहर निकल गया । मन-ही-मन सोच रहा था कि कहां फंस गया । उसके लिए इन लोगों के साथ रहना, नई दुनिया में रहने के बराबर था ।

बाहर आते ही ठिठककर सिगरेट सुलगाई । C.B.I. वालों की कार खड़ी नजर आ गई । वो उसी तरफ बढ़ गया । कार के पास पहुंचा । पिछला दरवाजा खुल गया तो भीतर बैठ गया । दरवाजा बंद हो गया ।

पहले की तरह ही दयाल पीछे और रमेश सिंह आगे वाली सीट पर बैठा था ।

"सुना, प्रदीप जोशी अपने परिवार के साथ एक्सीडेंट में मारा गया ?" दयाल ने पूछा ।

"हां।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"बहुत दुखी होगा सुमित जोशी, अपने भाई के मरने पर ?"

"हां । बहुत दुखी है ।"

"जोशी । आजकल अपने केबिन में नहीं बैठ रहा क्या ?"

"क्यों ?"

"हमने उसकी टेबल के नीचे माइक्रोफोन लगा रखा है । परन्तु उसकी बातचीत हमें सुनाई देती...।"

"ओह । तुम लोग यहां रहकर उसकी बातें सुनते हो ?"

"नजर भी रखते हैं । बातें सुनते भी हैं । रिकॉर्ड भी होती हैं उसकी बातचीत ?"

"पक्की इंतजाम किए बैठे हो ।"

"तुम बताओ, वो अपने केबिन में क्यों नहीं बैठ रहा ?"

"कभी-कभी वो अपने भाई के केबिन में जा बैठता है ।"

"माइक्रोफोन के बारे में शक तो नहीं उसे ?"

"नहीं । शक होता तो अब तक तुम लोगों को पता चल गया होता ।"

"कैसे ?"

"उसने माइक्रोफोन तोड़-फोड़कर...।"

तभी रमेश सिंह के पास पड़े ट्रांजिस्टर जैसे यंत्र से वहां सुमित जोशी की आवाज उभरी ।

"आज से तुम्हारी तनख्वाह डबल...।"

"सच ?" जोशी की आवाज कानों में पड़ी ।

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"एक मिनट । यहां बैठ--- यहां, मेरी टांगों पर । हां, ऐसे । हैरत की बात है तुम पहले मुझसे दूर क्यों रही ?"

"आपने कभी लिफ्ट नहीं दी...।"

"मैंने सोचा तुम मेरे हाथों में आना पसंद नहीं करोगी---इसलिए...।"

"मेरी तनख्वाह डबल हो गई न सर ?"

"पक्का । बल्कि आज से आज मैं तुम्हें दस हजार रुपये दूंगा ताकि तुम बढ़िया कपड़े खरीद सको।"

"सच सर ।" जूही की सुनाई देने वाली आवाज में खुशी थी--- "आप व्हिस्की पीते हैं ?"

"क्यों नहीं ।"

"तो आज रात हम व्हिस्की...।"

"जल्दी मत करो । व्हिस्की के बाद का जो काम करना है, वो हम अभी कर लेते हैं ।  व्हिस्की फिर पिएंगे।"

उसके बाद जो आवाजें आने लगी, वो न सुनना ही ठीक था ।

"कमीने ने अपनी रिसेप्शनिस्ट को भी पटा लिया...।" रमेश सिंह जले-भुने स्वर में बोला ।

दयाल ने तीखी निगाहों से देवराज चौहान को देखकर पूछा---

"ये क्या हो रहा है ?"

"मुझे तुझसे क्या ?"

"तुम तो कहते हो कि उसे अपने भाई की मौत का बहुत दु:ख है । ये क्या वो दु:ख भुला रहा है ?"

"वो अपनी मर्जी का मालिक है । मुझे क्या ! मैं तो उसका बॉडीगार्ड हूं...।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

"उसके भाई और परिवार के मारे जाने की खबर पर हमें अटपटा लगा था कि...।"

"उस ट्रक वाले से पूछो जिसने टक्कर मारी...।"

"वो भाग गया । पुलिस ने ट्रक के बारे में पता किया तो ज्ञात हुआ कि ट्रक शाम को चोरी हो गया था । रिपोर्ट थाने में दर्ज है ।"

"मुझे क्यों बुलाया ? काम की बात करो ।" देवराज चौहान बोला ।

उस यंत्र से जोशी और जूही की आवाजें आ रही थी ।

"उधर ज्यादा ध्यान मत दो सिंह...।" दयाल ने तीखे स्वर में कहा ।

रमेश सिंह ने हड़बड़ाकर उस यंत्र पर से ध्यान हटा लिया । परन्तु जूही की मस्ती भरी आवाजें रमेश सिंह को बेचैन किए दे रही थीं । सब कुछ उसके चेहरे पर से पढ़ा जा रहा था ।

"हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि उस दिन के बारे में तुम हमसे कुछ-न-कुछ झूठ बोले ।"

"किस दिन के बारे में ?"

"जब तुमने कहा था कि सुमित जोशी ने सुबह नौ बजे कस्तूरबा गांधी मार्ग पर, जिम्मी से मिलना है।"

"मैंने कुछ भी झूठ नहीं बोला ।"

"कुछ तो तुमने मुझसे छुपाया है सुरेंद्र पाल ।"

"कैसे कह सकते हो कि...।"

"कैसे का जवाब हमारे पास नहीं है, परन्तु हमें लगता है कि तुमने हमसे कुछ छिपाया है ।"

"मैं क्यों छिपाऊंगा ?"

"ये तो तुम ही बता सकते हो कि तुमने क्यों छुपाया और कैसे छिपाया ?"

"तुम लोग खामखाह मेरी तरफ उंगली उठा रहे हो । मैं भला ऐसा क्यों करूंगा ?" देवराज चौहान बोला ।

"ये सच नहीं बोलेगा । रमेश सिंह ने कहा।

"ठीक है।"  देवराज चौहान ने भड़कने के अंदाज में कहा--- "अब मैं तुम लोगों को कुछ नही बताऊंगा । मैं अभी जाकर वकील को वहां लगे माइक्रोफोन के बारे में बता देता हूं कि तुम लोग बातें सुन रहे हो । आजकल किसी का कितना भी भला कर लो, कोई फायदा नही । मुझे झूठ ठहरा रहे...।"

"नाराज क्यों होते हो सुरेंद्र पाल...।"

"तुम लोग मुझे झूठा...।"

"हम तो ये कह रहे हैं कि हमें लगता है जैसे उस दिन तुमने हमसे कुछ छिपाया ।"

"नहीं छिपाया...।"

"ठीक है। ये बताओ कैसे हैं। आज नोटों की जरूरत है या नहीं ?"

देवराज चौहान ने नर्म पड़ने का दिखावा किया । मुस्कुराया ।

"दयाल । आज दो हजार दे दे इसे...।"

दयाल ने पांच सौ की चार नोट देवराज चौहान को दिए ।

देवराज चौहान ने नोट जेब में डाले ।

"परसों शाम सुमित जोशी पर हमला हुआ ?"

"जबरदस्त ।" देवराज चौहान आंखे फैलाकर बोला--- "मैं भी साथ था । ड्राइवर कार चला रहा था । तभी तड़...तड़...तड़ गोलियां इस तरह कार की तरफ आईं, जैसे गोलियों की बरसात हो गई हो ।"

"फिर ?"

"फिर क्या, किस्मत अच्छी थी जो बच गये । मैंने वकील को नीचे झुकाया और खुद भी नीचे हो गया । ड्राइवर ने भी खुद को झुका लिया था । भगवान ने बढ़िया ढंग से बचाया हमें।"

"और हमला करने वाले ?"

"भाग गये । तब तक हमारी कार कोटा से टकराकर रुक गई थी ।"

"उसके बाद वकील के क्या हालत रहे।"

"हालत क्या...चूहे की भांति डरा बैठा है ।"

"तभी अपनी रिसेप्शनिस्ट के साथ मजे लूट रहा है ।" रमेश सिंह ने चिढ़े स्वर में कहा ।

"इस तरह शायद वो अपनी घबराहट कम कर रहा होगा ।" देवराज चौहान बोला ।

"ऐसे घबराहट कम होती है ?"

"मुझे क्या पता ?" देवराज चौहान ने भोलेपन से कहा ।

रमेश सिंह ने दयाल से कहा---

"ये हमें कोई बढ़िया खबर नहीं दे रहा, जिससे कि वकील के खिलाफ सबूत मिले ।"

"दे देगा ।"

"इतने दिन हो गये । काम की बात नहीं बताई इसने...।"

"एक बात बताई तो थी । कस्तूरबा गांधी मार्ग वाली...।" देवराज चौहान ने कहा ।

"वो भी गलत निकली...।"

"अब इसमें मैं क्या कर सकता हूं अगर किसी का प्रोग्राम बदल जाये...।

"आज तेरे को दो हजार दिए हैं, हमारे पैसों की वसूली करा ।

"जरूर कराऊंगा ।"

"कस्तूरबा गांधी मार्ग वाली खबर में तूने हमसे जरूर कुछ छिपाया है ।" दयाल ने कहा ।

"फिर वो ही बात ।" देवराज चौहान उखड़ा।

"उस दिन वो उधर मिले नहीं और जेल से प्रभाकर फरार हो गया ।"

"मुझे इन बातों का कुछ पता नहीं ।"

"उस खंडाला वाली रात और अगले दिन तू वकील के साथ ही रहा हर वक्त ?"

"हां । मैं उसके साथ ही था ।"

"देख, हम सी०बी०आई० वाले हैं । हमसे कुछ छिपाना मत । हमें सब पता चल जाता है ।"

"मैं कुछ भी नहीं छिपाता । क्यों छिपाऊंगा तुमसे कोई बात ?"

"परसों प्रदीप जोशी अपने परिवार के साथ मारा गया और वकील ने आज अपना ऑफिस खोल लिया ।"

"इसमें मैं क्या कर सकता हूं...।"

दयाल और रमेश सिंह की नजरें मिलीं ।

"इसे वकील के पास भेज ।" रमेश सिंह बोला--- "उधर भी प्रोग्राम खत्म हो गया है ।"

"जल्दी कोई बढ़िया खबर देना सुरेंद्र पाल...।"

"पता चलते ही दूंगा ।"

देवराज चौहान कार से निकला और जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स के ऑफिस की तरफ बढ़ गया ।

शीशे का दरवाजा धकेलकर देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया ।

जूही रिसेप्शन पर दिखी । इस वक्त वो खिले फूल की तरह लग रही थी । खुश थी ।

देवराज चौहान उसके पास पहुंचा और होंठ सिकोड़कर उसे देखा ।

"कहां गया था सुरेंद्र पाल ?"

"बाहर यूं ही टहलने, सिगरेट पीने गया था ।" देवराज चौहान ने कहा--- "तेरे को क्या हुआ ?"

"मुझे क्या होना है ?"

"जब गया था तू कांटे की तरह सूखी पड़ी थी, अब फूल बनी पड़ी है । बीस मिनट में ही बदलाव कैसे हो गया ?"

"बस हो गया...।" जूही ने मुस्कुराकर कहा ।

"किसी का फोन आया था ?"

"फोन आया भी हो तो उससे क्या फर्क पड़ता है ?"

"मैंने सोचा शायद फोन पर किसी ने तेरे को टॉनिक दे दिया हो ।"

"प्रोग्राम बनाता है शाम का ?"

"कहा आ फंसा मैं...।" देवराज चौहान ने गहरी सांस लेकर कहा और भीतर की तरफ बढ़ गया ।

प्रदीप वाले केबिन में पहुंचा । सुमित जोशी वहीं था ।

"C.B.I. वालों से मिल आये ?" उसने पूछा।

"हां...। वो सोचते हैं कि मैंने उस दिन उनसे जरूर कुछ छिपाया है, उन्हें गलत खबर दी ।"

"कस्तूरबा गांधी मार्ग वाली खबर के बारे में कह रहे हो ?"

"हां...।"

"वो अंधेरे में तीर चला रहे हैं । जो कहते हैं, कहने दो।"

"वो पूछ रहे थे कि क्या तुम अपने भाई की मौत से दु:खी हो । मैंने हां कहा, परन्तु उस वक्त तुम जूही के साथ अपने केबिन में थे । वहां जो कुछ भी हुआ, वो सब ट्रांसमीटर के सहारे, उन्होंने अपने यंत्र पर सुना...।"

सुमित जोशी मुस्कुरा पड़ा ।

"मैं जानबूझकर जूही को उसी केबिन में ले गया था । ताकि वो समझें कि मैं मौज-मस्ती में लगा हूं । मैं उनका शक हटाना चाहता हूं । मैं चाहता हूं कि वो मेरे पे शक न करें और केस हटा लें ।"

"वो तुम जानो । अब कमिश्नर को फोन करो और जगमोहन का हाल पूछो...।"

"बार-बार उसे फोन करने का क्या फायदा ?"

"दो दिन से मुझे जगमोहन का हाल नहीं पता लगा । बात कर कमिश्नर से ।"

जोशी ने फोन निकाला और कमिश्नर भूरेलाल के नम्बर मिलाये । बात हो गई ।

"क्या हाल है कमिश्नर ?"

"मजे में हूं । बढ़िया चल रहा है सब कुछ । तेरा वो जगमोहन भी मजे में है ।"

"जगमोहन को वहां से भगायेगा नहीं ?"

"मौका तो मिलने दे ।"

"मेरी पार्टी चाहती है कि जगमोहन जल्दी से आजाद हो जाये।"

"ये पुलिस हैडक्वार्टर और डकैती मास्टर देवराज चौहान के साथी का मामला है । काम आसान नहीं है । फिर मैं ये काम जल्दी करने की चेष्टा करूंगा । मैं मौके की ही तलाश में हूं ।" भूरेलाल की आवाज इसके कानों में पड़ रही थी--- "तेरे भाई और उसके परिवार के बारे में खबर सुनकर दु:ख हुआ ।"

"दु:ख तो मुझे भी हुआ ।" सुमित जोशी ने लम्बी सांस ली--- "प्रदीप के बिना ऑफिस में मन नहीं लग रहा।  बैठने का दिल ही नहीं करता । सोचता हूं ऑफिस से बंद कर दूं...।"

"हौसला रख । सब ठीक हो जायेगा ।"

"तेरे को, तेरे काम की फड़कती खबर दूंगा जल्दी ही ।"

"दे...।"

"अभी नहीं, शायद अगली बार फोन पर बताऊं...।"

"मैं इंतजार करूंगा ।"

"ठीक है ।" कहकर सुमित जोशी ने फोन बंद कर दिया ।

देवराज चौहान ने सुमित जोशी से पूछा---

"तुम क्या फड़कती खबर उसे देने को कह रहे थे ?"

"कुछ भी नहीं ।" जोशी मुस्कुराया--- "ऐसी बातें कहकर इन पुलिस वालों को फंसाये रखना पड़ता है ।"

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

मोबाइल अभी जोशी के हाथ में ही था कि बजने लगा ।

"हैलो...।" सुमित जोशी ने बात की ।

"वकील ।" बांटू की तेज आवाज कानों में पड़ी--- "तूने कोई गड़बड़ की लगती है ।"

"गड़बड़ ?" सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी--- "कैसी गड़बड़ ?"

"जिम्मी और प्रभाकर कहीं नहीं मिल रहे ।"

"अब मैं इस बारे में क्या कहूं ?"

"देख, तूने कुछ किया है तो साफ-साफ कह दे कि...।"

"पागल तो नहीं हो गया तू ? मैं भला क्या करूंगा ? मैंने प्रभाकर को जेल से बाहर निकाला और जिम्मी के हवाले करके चला आया । बात खत्म ।" सुमित जोशी ने तेज स्वर में कहा--- "तू मुझ पर शक कर रहा है ?"

"तो वो मुझे कहीं पर भी मिल नहीं रहे । मुझे उन्होंने फोन भी नहीं किया ।"

"तो इसमें मेरा क्या कसूर ?"

"आखिरी बार तो उनके साथ था ।"

"तो ये मेरा कसूर हो गया ? बांटू मैं तो तुम लोगों के लिए अपनी जान भी दे सकता...।"

"वकील ।" बांटू का तीखा स्वर कानों में पड़ा--- "मैं जानता हूं कि तू कितना बड़ा है ।"

"ये क्या कह...।"

"जिम्मी ने मुझे तेरे बारे में बता रखा है कि तू हमसे भी बड़ा बदमाश है।"

"जिम्मी का दिमाग खराब हो गया है जो उसने ऐसा कहा ।"

"तो तेरे को पता नहीं पता कि जिम्मी और प्रभाकर कहां हैं ?"

"पता होता तो मैं तेरे को क्यों ना बताता ? तुमसे पंगा थोड़ी ना लूंगा मैं । प्रभाकर मेरे भाई जैसा था । जिम्मी मेरे बेटे की तरह । मैं तो खुद चिंतित हूं कि...।"

"बस कर वकील । ज्यादा झूठ बोला तो जमीन फट जायेगी और तो उसमें समा जायेगा।"

"ये ही अच्छा होगा । मैं बहुत परेशानी में हूं इन दिनों । वो रतनपुरी है न । पूना वाला । उसके बेटे को फांसी की सजा हो गई तो उसने अपने आदमी मेरे पीछे लगा दिए । मुझ पर हमला करा रहा है, मुझे मारने के लिए । जब कि मैंने उसका केस मुफ्त में लड़ा और...।"

उधर से बांटू ने फोन बंद कर दिया था ।

जोशी ने गहरी सांस लेकर फोन को कान से हटाया । सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"साले को जिम्मी-प्रभाकर का पता नहीं चल रहा तो मेरे को फोन कर देता है...।"

"वो तेरा पीछा नहीं छोड़ेगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"इस वक्त तो मुझे रतनपुरी की चिंता है । तू मेरी बात मान क्यों नहीं जाता देवराज चौहान ?"

"रतनपुरी को मारने वाली बात ?"

"हां । मुंह मांगे करोड़ों दूंगा । बहुत पैसा है मेरे पास...।"

"तुम बार-बार, मेरे इंकार करने पर भी, ये बात दोबारा क्यों करते हो ?"

"तू नहीं मानेगा ?"

"नहीं ?"

"क्यों ?"

"तेरे जैसे बेईमान के काम में जितना आ रहा हूं, ये ही बहुत है । इससे ज्यादा तेरे लिए कुछ नहीं कर सकता ।"

"लकीर खींच दी तूने ?"

"पक्की लकीर । अब ये बात मुझसे दोबारा नहीं करना ।"

"नहीं करूंगा ।" सुमित जोशी ने कहकर मुंह घुमा लिया ।

दोपहर के दो बजने जा रहे थे । कुछ पलों बाद जोशी बोला---

"देवराज चौहान, मैं कहीं लंच करने की सोच रहा हूं । तुम भी कर लेना।"

"खामखाह बाहर मत निकलो । तभी निकलो जब बहुत जरूरत हो । तुम पर कभी भी फिर हमला हो सकता है ।"

"तुम मुझे डरपोक बनाकर, बिठा देना चाहते हो ?"

"जब हमलों का डर हो तो ज्यादा बहादुरी नहीं दिखानी चाहिए ।"

"मैं परवाह नहीं करता इन बातों की । हम लंच के लिए कहीं चल रहे हैं ।"

देवराज चौहान ने सुमित जोशी को देखा, फिर मुस्कुराकर कह उठा---

"मरना तो तुम्हें है ही । लेकिन तुम जल्दी मरोगे, ऐसी हरकतें करके...।"

सुमित जोशी उठ खड़ा हुआ ।

"मैं नहीं मरने वाला आसानी से । तुम जो मेरे साथ हो । चलो ।" कहकर वो बाहर की तरफ बढ़ा ।

देवराज चौहान उसके पीछे चल पड़ा ।

रास्ते में रिसेप्शन आया । जूही फूल की भांति खुशबू बिखेरती वहां मौजूद थी ।

"कहां चले सर ?" जूही ने चंचल स्वर में कहा ।

देवराज चौहान ने दूसरी तरफ मुंह फेर लिया ।

"लंच लेने...।"

"अकेले-अकेले सर ? मुझे भूल गये क्या ?"

"तुम यहीं रहो, तुम्हारे लिए मैं पैक करा लाऊंगा ।" जोशी मुस्कुराकर बोला ।

"ठीक है सर । ये भी चलेगा ।" जूही मस्ती से बोली।

सुमित जोशी और देवराज चौहान बाहर निकले ।

ड्राइवर मंगल बाहर ही था । उन्हें देखते ही फौरन कार की तरफ बढ़ गया ।

वो कार में बैठे और कार आगे बढ़ गई ।

देवराज चौहान की निगाह कार के बाहर हर तरफ घूमने लगी ।

"तुम अपनी पसंद की कोई जगह बताओ लंच के लिए ।" जोशी बोला ।

"जहां तुम्हारा मन है, वहीं चलो ।" बाहर देखता देवराज चौहान बोला ।

"मंगल ।" जोशी ने ड्राइवर से कहा--- "गोलार्ड ले चलो।"

"जी...।" मंगल ने कहा ।

तभी देवराज चौहान बोला ।

"हमारा पीछा हो रहा है ।"

"C.B.I. वाले होंगे ।" जोशी कह उठा ।

"नहीं, ये दूसरी कार है ।"

सुमित जोशी परेशान होकर, गर्दन घुमाकर पीछे देखने लगा ।

"कौन-सी कार है ?"

"सफेद वाली सेंट्रो । पीछे वाली कार के पीछे है ।"

"तुम्हें ये बात पक्की है कि वो हमारे पीछे है ?"

"हां । उसमें चार लोग हैं । एक कार चला रहा है । तीन कार में बैठे हैं ।" देवराज चौहान की निगाह अभी भी पीछे थी--- "मैंने तुम्हें कहा था कि खामखाह बाहर मत निकलो । रतनपुरी का एक हमला असफल हो चुका है, इसलिए सफल होने के लिए वो हमलों में तेजी लायेगा । इस वक्त वो गुस्से से भरा होगा ।" देवराज चौहान ने रिवाल्वर हाथ में ले ली।

"साला-कुत्ता रतनपुरी । मरता भी नहीं ।" सुमित जोशी ने दांत भींचकर कहा ।

"मंगल...।" देवराज चौहान बोला--- "तुम सावधान रहना, आज फिर गोलियां चल सकती हैं ।"

"मैं ध्यान रखूंगा ।" मंगल ने कहा ।

कार तेजी से आगे बढ़ रही थी ।

"कार को कहीं और लेना है तो बता दीजिये ।" मंगल ने कहा ।

"नहीं, गोलार्ड ही चल ।" सुमित जोशी के चेहरे पर गुस्सा था--- "देवराज चौहान, आज भी तो मुझे बचाना ।"

"इन कामों की गारंटी नहीं होती ।" पीछे देखता देवराज चौहान बोला--- "मैं तो तेरे को दिल से बचाऊंगा । क्योंकि तू जगमोहन को पुलिस के हाथों से आजाद कराने की चेष्टा कर रहा है । परन्तु कोई भी गोली तेरे सिर में लग सकती है ।"

"मेरे को बचा यार । तेरे पे भरोसा है कि तू मुझे बचायेगा ।"

पीछे वाले सफेद कार बराबर पीछे ही रही । वो कार पीछा कर रही थी । परन्तु उस कार ने बराबर आने की चेष्टा नहीं की थी । ये देखकर सुमित जोशी बोला---

"क्या पता, वो सिर्फ पीछा ही करना चाहते हो ?"

"नहीं, वो गोलियां जरुर चलाऐंगे ।" देवराज चौहान ने कहा।

"क्यों ?"

"क्योंकि अभी कार में चार लोग हैं । पीछा करने के लिए एक या दो होते हैं । चार का मतलब है कि वो तैयार होकर आये हैं । मेरे ख्याल में इस बार हमला करने में, वो शांति का इस्तेमाल कर रहे हैं । जल्दबाजी नहीं दिखा रहे।"

"उल्लू के पट्ठे ।" सुमित जोशी गुर्रा उठा ।

देवराज चौहान ने जोशी को देखा ।

"घबराहट हो रही है जोशी ?"

"होगी नहीं क्या, मुझे मारने के लिए वो लोग पीछे हैं । गोलियां चलाएंगे ।"

"मैं भी तो तुम्हारे साथ हूं । जितनी गोलियां तुम्हारे लिए होंगी, उतनी मेरे लिए होंगी ।"

"तू मुझे बचा देवराज चौहान...।"

"मैं अपने को बचाऊंगा । इसी में तेरी बचत हो जायेगी ।" देवराज चौहान ने कहा ।

कुछ देर में ही कार गोलार्ड रेस्टोरेंट के पार्किंग में रुकी ।

पीछे आते सेंट्रो भी पार्किंग से चार कार दूर जा रुकी थी ।

"अब वो तेरे को मारेंगे जोशी...।"

सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

देवराज चौहान ने कार का दरवाजा खोला तो जोशी ने घबराकर उसकी बांह पकड़ी ।

"तू कहां जा रहा है ?"

"मुझे कार से बाहर निकलना है । ताकि उन्हें लगे कि सबकुछ सामान्य है।"

"मैं बाहर नहीं निकलूंगा ।" जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी--- "वो मुझे मार देंगे ।"

"वो तेरे को तब भी मारेंगे, जब तू भीतर भी बैठा रहेगा ।"

"तो मैं क्या करूं ?"

देवराज चौहान कार से बाहर निकला और मंगल से बोला---

"मंगल । तू कार से निकलकर इस तरह यहां से दूर चला जा कि हमने तेरे को काम से ही भेजा है ।"

"इसे कहां भेज रहा है ?"

"ये खामखाह मरेगा। किसी भी वक्त गोली चल सकती है ।" देवराज चौहान गोलार्ड के प्रवेश द्वार की तरफ देखता कह उठा--- "और जब गोलियां चली तो तूने, किसी तरह भागकर रैंस्टोरेंट में प्रवेश कर जाना है । ऐसा करेगा तो तेरी जान बचेगी । नहीं तो तेरे बचने की गारंटी नहीं । वो चार हैं । उन्हें एक साथ नहीं संभाल सकता मैं ।"

सुमित जोशी ने फौरन सिर हिलाया ।

"उधर का दरवाजा खोलकर, भागने को तैयार रह...।"

उसने पुनः सिर हिलाया ।

"मैं भाग जाऊंगा ।"

रिवाल्वर थामें देवराज चौहान घुमा और सफेद सैट्रो को देखने लगा । बीच में कार थी। इसलिए सैट्रो वाले लोग, उसके हाथ में दबी रिवाल्वर को ना देख सके । परन्तु देवराज चौहान के ऐसा करने पर सैट्रो वालों को पता चल गया कि उनकी मौजूदगी खुल गई है । वो धड़ाधड़ कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकले । चारों के हाथों में रिवाल्वरें थी । देवराज चौहान ने रिवाल्वरों की झलक पाते ही एक का निशाना लिया ।

गोली की तेज आवाज उभरी और एक के सिर में गोली लगी ।

बाकी तीनों ने एक के बाद एक कई फायर किए और कारों की ओट ले ली।

देवराज चौहान पहले ही कार की ओट में हो चुका था ।

गोलियां चलते ही पार्किंग में मौजूद दो-तीन लोग चीखकर इधर-उधर जा छिपे ।

पार्किंग अटेंडेंट तो फौरन ही खिसक गया था ।

देवराज चौहान ने जोशी को देखा जो सीट पर दुबका-सा पड़ा था ।

"भाग जा ।" देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा--- "यहां क्या गोली आने का इंतजार कर रहा है ?"

"भाग जाऊं ?" वो मरे स्वर में बोला ।

"हां, सीधा रैस्टोरेंट में घुस जा ।" इसके साथ ही देवराज चौहान ने उस तरफ गोली चलाई ।

सुमित जोशी कार से निकला और भाग खड़ा हुआ।

देवराज चौहान ने सिर ऊपर किया तो पाया कि एक, जोशी की तरफ रिवाल्वर तान रहा है ।

देवराज चौहान ने उस आदमी पर एक के बाद एक दो गोलियां चला दीं । वो ढेर हो गया ।

बाकी जो बचे थे।

सुमित जोशी सही-सलामत रैस्टोरेंट के भीतर प्रवेश कर गया था ।

देवराज चौहान रिवाल्वर थामें होंठ भींचे, कार की ओट में छिपा आहट लेने का प्रयत्न कर रहा था । वो उसकी तरफ कारों की ओट में दबे पांव आ सकते हैं । वो भी डरे होंगे कि उनके दो साथी मारे गये हैं ।

तभी देवराज चौहान के कानों में कार के स्टार्ट होने की आवाज पड़ी ।

वो क्या भाग रहे हैं ? देवराज चौहान ने सोचा ।

देवराज चौहान वहीं पर, अपनी जगह जमा रहा । अगर वो भाग रहे हैं तो देवराज चौहान उन पर गोली नहीं चलाना चाहता था । अब मामला खत्म जो हो रहा था ।

कार के दूर जाने का स्वर सुना।

देवराज चौहान ने सावधानी से सिर ऊपर किया । सफेद सैंट्रो पार्किंग से निकलती दिखाई दी ।

देवराज चौहान सीधा खड़ा हो गया । रिवाल्वर जेब में डाल ली ।

वो हमलावर भाग गये थे ।

देवराज चौहान आगे बढ़ा और वहां पहुंचा, जहां सफेद सैंट्रो खड़ी थी ।

वहां लाशें नजर नहीं आईं। अपने साथियों की लाशें कार में डालकर साथ ले गये थे । एक जगह कुछ खून बिखरा दिखाई दिया । सब ठीक था । तभी मंगल वहां आ पहुंचा ।

"वो भाग गये ?" वो बोला ।

"हां। देवराज चौहान ने कहा--- "अपने साथियों की लाशें भी साथ ले गये हैं । पुलिस आती ही होगी । किसी को ये कहने की जरूरत नहीं कि दो मरे हैं । तुम जोशी को बाहर बुला लाओ ।"

मंगल रैस्टोरेंट के भीतर चला गया ।

फौरन ही लौटा । साथ में घबराया-सा था, सुमित जोशी था ।

"वो भाग गये ?" पास पहुंचते ही उसने पूछा ।

"हां । दो मरे हैं । वो लाशें भी साथ ले गये हैं ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"ये तो अच्छा हुआ।"

"पुलिस आयेगी । उससे निपट...।"

तभी वहां पार्किंग में पुलिस कार ने प्रवेश किया ।

"पुलिस को फोन करने का काम लोग बहुत तेजी से करते हैं ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

"इन्हें मैं आसानी से संभाल लूंगा ।"

"वकील जो ठहरे । सब दांव-पेंचों से वाकिफ हो ।" कहकर देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

पुलिस कार वहां रुकी । तीन पुलिस वाले बाहर निकले ।

सुमित जोशी उनकी तरफ बढ़ गया।

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