डुमरा की पेड़ की छांव तले झपकी लग गई थी। उस वक्त वो थका हुआ महसूस कर रहा था। वो नहीं जानता था कि कितनी देर झपकी में रहा। तब तोखा की सतर्क आवाज डुमरा के कानों में पड़ी।

“डुमरा।” लेकिन डुमरा पर उसके पुकारने का कोई असर नहीं हुआ।

“डुमरा। डुमरा, उठ जा। आंखें खोल।” तोखा की मध्यम-सी आवाज पुनः डुमरा के कानों से टकराई।

डुमरा थोड़ा-सा हिला और पुनः झपकी में डूब गया।

“उठ जा डुमरा। मुझे खतरा लग रहा है।” तोखा के इन शब्दों पर डुमरा की झपकी टूटी।

“क्या है?” मिचमिचाकर डुमरा ने थोड़ी-सी आंखें खोलीं।

“मैं खतरा महसूस कर रहा हूं। ताकतों की बू पास ही से आ रही है।” तोखा ने कहा।

डुमरा ने पूरी आंखें खोलीं। आसपास देखा।

सोमाथ को टहलते देखा। सब ठीक तो था।

“कुछ देर आराम कर लेने दे तोखा।” डुमरा पुनः आंखें बंद करता कह उठा-“थकान-सी हो गई...”

“उठकर बैठ जा। ताकतों की बू मैं पास ही में महसूस कर रहा हूँ। सम्भव है ओहारा कोई नया वार करने आ गया हो।”

डुमरा उठ बैठा। पुनः आस-पास हर तरफ देखा।

ऐसा कुछ नहीं दिखा कि तोखा की बात को सही कहता।

“मुझे तो कोई नजर नहीं आ रहा।” डुमरा बोला।

“तो क्या तुझे मेरी शक्ति पर शक है कि मैंने तुझसे गलत कहा।” तोखा के शब्दों से नाराजगी झलक रही थी।

“पर कुछ दिखे तो?”

“मुझे करीब ही किसी ताकत के होने का एहसास मिल रहा है। ताकतों की बू महसूस कर लेने का मुझे पुराना अनुभव है। तेरे को अच्छी तरह पता है कि पूरा यकीन होने पर ही मैं ऐसी बात तुझसे कहता हूं।”

डुमरा ने कुछ कदमों दूर सोमाथ से कहा।

“तुम्हें यहां कोई दिखा?”

“नहीं। यहां तो हम दोनों ही हैं।” सोमाथ ने ठिठककर जवाब दिया-“तुमने ये क्यों पूछा?”

“मुझे एहसास हो रहा है कि जैसे ताकतें यहां पास ही में कहीं हों।” सोमाथ ने अपनी खोजी निगाह हर तरफ घुमाईं।

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डुमरा और सोमाथ के शब्द, खुंबरी और धरा के कानों में पड़ रहे थे।

दोनों की सतर्क निगाहें मिलीं।

“डुमरा को कैसे पता चल गया कि हम पास में हैं?” धरा फुसफुसाई।

“शक्तियां ताकतों की गंध पा लेती हैं। तभी तो डुमरा को हमारे पासहोने का एहसास हो रहा है।” खुंबरी बोली।

“इस वक्त हमें सतर्क रहना होगा।”

“हम मोटे तने की ओट में हैं। वो हमें नहीं देख सकते।” खुंबरी ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

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“मुझे तो सब ठीक नजर आ रहा है। यहां सिर्फ हम ही हैं।” सोमाथ बोला।

“फिर मुझे क्यों लग रहा है कि ताकतें पास ही में हैं।” कहते

हुए डुमरा उठ खड़ा हुआ।

“तुम इस कृत्रिम इंसान से क्या पूछ रहे हो।” तोखा की धीमी आवाज में झल्लाहट भर आई थी-“कहां मैं और कहां महापंडित का बनाया ये कृत्रिम इंसान। मेरी शक्ति पर तुम अविश्वास कर रहे हो।”

“मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता।”

“तो फिर मेरा भरोसा क्यों नहीं कर रहे कि ताकतें पास ही में हैं। मैंने उनकी गंध को हवा में पाया है। महसूस किया है।”

“कुछ दिखे भी।” डुमरा की गम्भीर नजर जंगल में दूर-दूर तक जाने लगीं।

कई पल बीत गए। तोखा की पुनः आवाज नहीं आई। एकाएक डुमरा को महसूस हुआ जैसे कंधे पर अंजाना-सा बोझ कम हो गया हो। तोखा वहां से कहीं चला गया हो। डुमरा को इस प्रकार तोखा के जाने पर हैरानी हुई। तोखा कभी भी बिना बताए नहीं जाता था। लेकिन इस बार वो खामोशी से चला गया था। तोखा की इस हरकत से एकाएक डुमरा को खतरे का

एहसास होने लगा। मन-ही-मन वो सतर्क हो उठा।

तभी सोमाथ वहां पहुंचकर बोला।

“तुम्हें ताकतों के पास होने का एहसास हो रहा है?”

“हां।” डुमरा गम्भीर था।

“लेकिन यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा।” सोमाथ की निगाह घने पेड़ों पर भी गई।

“ये ही तो हैरानी है कि कुछ नजर क्यों नहीं आ रहा। ओहारा फिर वार करने आया होगा। इस बार उसकी तैयारी जबर्दस्त होगी। हैरानी है कि इतनी जल्दी तैयारी करके वो कैसे मेरे पास लौट सकता...”

“मुझे अफसोस है कि ताकतों और शक्तियों के झगड़े में मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता।”

“मैं तुम्हारी मजबूरी समझता...” कहते-कहते डुमरा चुप हो गया।

उसी पल तोखा के पुनः कंधे पर आ बैठने का एहसास हुआ।

सोमाथ ने डुमरा को देखा कि वो अचानक चुप क्यों हो गया?

“डुमरा।” तोखा की धीमी किंतु तेज भाव की आवाज आई-“खुंबरी और उसका रूप धरा यहां आ पहुंची है।”

“क्या?” डुमरा चिहुंक उठा।

सोमाथ समझ गया कि डुमरा किसी शक्ति से बात कर रहा है।

“खुंबरी और धरा बाईं तरफ, बीस कदमों की दूरी पर पेड़ के तने के पीछे छिपी खड़ी हैं।”

डुमरा की निगाह उस तरफ घूमी।

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खुंबरी ने फौरन अपना सिर तने की ओट में खींच लिया।

“क्या हुआ?” धरा ने कहा।

“डुमरा को हमारी मौजूदगी का पता चल गया है। वो इसी तरफ वाले पेड़ों के तनों को देखे जा रहा है।”

“भला उसे कैसे पता चला?”

“उसकी सहायक शक्ति उसके पास होगी। उसने ही हमें देख लिया होगा।”

“ओह। ये तो बुरा हुआ।” धरा चिंतित स्वर में कह उठी।

“तू डर गई?” खुंबरी क्रूर स्वर में कह उठी।

“तेरे को पता है कि मैं डरने वाली नहीं। पर मेरी चिंता सोमाथ के लिए है।”

“सोमाथ को ज्यादा हवा मत दे। हम डुमरा पर वार करके भाग जाएंगी। सोमाथ हमारे बराबर नहीं दौड़ सकता।”

“क्या पता। मैंने सोमाथ को दौड़ते हुए कभी नहीं देखा।”

“वो कृत्रिम इंसान है। उसकी भी अपनी सीमाएं होंगी।” खुंबरी ने कठोर स्वर में कहा और हाथ आगे करके होंठों-ही-होंठों में कुछ बड़बड़ाई कि उसी पल चमकती तलवार उसके हाथ में थमी नजर आने लगी। साढ़े चार फुट पतली और लम्बी तलवार। जिसकी धार बहुत पैनी महसूस हो रही थी। ‘मूठ’ की जगह, कीमती धातु से बनाई गई थी कि उस पर जब हाथ टिके तो आसानी से हट न सके।

“ओह।” धरा तलवार को देखते ही कह उठी-“ये तो ताकतों वाली खास तलवार है।”

“हां।” खुंबरी जहरीले अंदाज में मुस्करा पड़ी-“ये हाथ में हो तो

दुश्मन से हार जाने का मतलब ही नहीं, क्योंकि ताकतें भी डुमरा पर वार करने में मेरी सहायता...”

खुंबरी के शब्द अधूरे रह गए।

तने के दूसरी तरफ से कुछ आहटें उभरी थीं।

“कोई हमारे पास आ गया है।” धरा कहर भरे ढंग से मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा-सा दिखने लगा-“सोचती क्या है। चल वार कर और अपने दुश्मन का खेल खत्म कर दे।”

अगले ही पल खुंबरी और धरा फुर्ती से पेड़ के तने की ओट से बाहर निकल आईं। सामने देखते ही दोनों की आंखों में शोले उछालें मारने लगे।

आठ कदमों के फासले पर डुमरा खड़ा था। उसके हाथ में हल्के गुलाबी रंग की दो फुट लम्बी तलवार थी। तलवार का फल, मूठ, सबकुछ गुलाबीपन लिए हुए था। उससे चार कदम पीछे सोमाथ खड़ा था।

डुमरा और खुंबरी की नजरें मिलीं।

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डुमरा कई पलों तक पेड़ों के तनों को देखता रहा था।

उसे कुछ भी नहीं दिखा।

डुमरा की नजरों का पीछा करते सोमाथ ने भी उस तरफ देखा।

“मुझे तो सिर्फ पेड़ों के तने दिख रहे हैं।” डुमरा ने कहा-“तुम किस तने की बात कर रहे हो।”

“सबसे मोटे तने को देखो।” तोखा के शब्द कानों में पड़े।

“मुझे मोटे तने दो ही नजर आ रहे...”

“पहले वाला मोटा तना छोड़ दो। आगे वाला मोटे तने को देखो, जो कि करीब तीस कदमों की दूरी पर है। उसी तने के पीछे खुंबरी और धरा छिपी, तुम पर वार करने के लिए मौके की तलाश में हैं। मैंने उनकी बातें सुनी हैं। वो तुमसे नहीं सोमाथ से हिचक रही हैं कि सोमाथ पर ताकतों वाले वार का असर नहीं होगा और अपनी ताकत से वो सोमाथ का मुकाबला कर नहीं सकती। सोमाथ तुम्हारे साथ न होता तो तुम पर वार हो चुका होता। उस वक्त तुम झपकी ले रहे थे और खुंबरी के पास बेहतरीन मौका था तुम पर वार करने का।”

“तो सोमाथ ने अनजाने में मेरी सहायता करके मेरी जान बचा ली।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तुम्हारे पास शक्तियों के कण वाला वार है न? जो तुमने मुझसे कहा था।”

“हां।”

“तो खुंबरी को जान से मारने का बेहतरीन मौका है तुम्हारे पास। आगे बढ़ो और खुंबरी को खत्म कर दो।” तोखा के धीमे शब्द डुमरा के कानों से टकराए-“दोनों घूमते-घूमते इस तरफ आ निकलीं और तुम्हें देखकर रुक गईं।”

“इसका मतलब खुंबरी का ठिकाना पास ही कहीं है।”

“ये मैं नहीं जानता।”

डुमरा ने उसी पल अपनी दाईं हथेली खोलकर आगे फैलाई और कुछ बुदबुदा उठा।

अगले ही पल उसके हाथ में दो फुट लम्बी गुलाबी तलवार दिखने लगी।

ये होता पाकर सोमाथ के होंठ सिकुड़े।

“ये ही शक्तियों के कण हथियार हैं?” तोखा ने पूछा।

“हां। अगर दुश्मन सामने हो तो उसका नाम लेकर छोड़ देने पर,

तलवार खुद ही आगे जाकर उसकी जान ले लेगी।”

“खूब। अब खुंबरी की खैर नहीं।”

डुमरा ने सोमाथ को देखा।

सोमाथ की नजरें जैसे डुमरा से पूछ रही हों कि क्या बात है?

“उस पेड़ के तने के पीछे खुंबरी और धरा छिपी हुई हैं। आओ और खुंबरी की जान जाते देखो। तुम्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं, क्योंकि मेरे पास शक्तियों के कण वाला हथियार है। इस हथियार के सामने खुंबरी की ताकतें बेजान पड़ जाएंगी। इस वक्त का मुझे कब से इंतजार था।” कहने के साथ डुमरा उस गुलाबी तलवार को थामे, पेड़ों के तनों के पास से निकलते, उस आगे वाले मोटे तने की तरफ बढ़ने लगा। वो इस तरह चल रहा था कि कदमों की आवाज न उठे। नजरें उसी मोटे तने पर थीं।

सोमाथ उसके पीछे चल पड़ा।

वे आगे बढ़ते हुए उस तने के पास पहुंचने वाले थे कि एकाएक डुमरा थम गया। मात्र पांच कदमों का फासला रह गया था कि एकाएक उसी तने की ओट से खुंबरी और धरा को बाहर निकलते देखा।

सब कुछ बहुत तेजी से हुआ था।

डुमरा और खुंबरी की नजरें मिलीं।

डुमरा खुंबरी के हाथ में दबी तलवार का एहसास पा चुका था। वो ये भी जानता था कि ऐसे मौके पर खुंबरी के हाथ में सामान्य तलवार नहीं, खास ताकतों वाली तलवार रही होगी। डुमरा अब खुंबरी को और मौका देने को तैयार नहीं था। उसने पांच कदमों के फासले से ही गुलाबी तलवार वाला हाथ सीधा किया और खुंबरी का नाम होंठों से लेते हुए हथेली को उसी पल खोल दिया।

हाथ से छूटते ही गुलाबी तलवार नीचे गिरने की अपेक्षा तेजी से खुंबरी की तरफ लपकी। पांच कदमों का फासला था। मात्र दो पल ही लगने थे तलवार के खुंबरी तक पहुंचने में।

इन्हीं दो पलों में ये सब हुआ।

तलवार डुमरा के हाथ से छूटकर ज्योंही हवा में आगे खुंबरी की तरफ बढ़ी तो पल के हजारहवें हिस्से में खुंबरी तुरंत भांप गई कि तलवार में कुछ खास है। इससे पहले कि तलवार खुंबरी तक पहुंच पाती, खुंबरी ने डेढ़ कदम दूर खड़ी धरा की बांह पकड़ी और तीव्र झटका देकर उसे अपने सामने खींच लिया।

धरा लड़खड़ाती हुई खुंबरी के आगे आ पहुंची।

धरा की समझ में न आया कि खुंबरी क्या कर रही है। वो ठीक से समझ भी नहीं सकी कि क्या होने वाला है कि तभी वो गुलाबी तलवार धरा की छाती के आर-पार होती चली गई।

धरा के होंठों से चीख निकल गई।

अगर खुंबरी धरा को खींचकर अपने सामने न करती तो गुलाबी तलवार स्वयं उसके सीने के आर-पार हो जानी थी कि उसने अपनी मौत धरा के हवाले कर दी थी।

ये सब मात्र दो पलों में ही घट गया था।

इसके साथ ही खुंबरी का चेहरा क्रोध से धधक उठा था।

धरा की टांगें मुड़ती चली गईं और छाती में धंसी तलवार थामे वो नीचे जा गिरी।

“अब तू जिंदा नहीं बचेगा डुमरा।” खुंबरी चीखी और तलवार थामे डुमरा पर झपटी।

तभी सोमाथ पीछे से आगे आया और डुमरा को धक्का देते हुए खुंबरी की तलवार थामने की चेष्टा में खुंबरी से जा टकराया। क्रोध में पागल हुई खुंबरी से जब सोमाथ टकराया तो खुंबरी को तीव्र झटका लगा और वो दो कदम पीछे को जा गिरी। इससे पहले कि वो संभल पाती, सोमाथ ने उसके हाथ में दबी तलवार पर पांव रख दिया।

ऐसा होते ही खुंबरी तलवार न उठा पाई।

खुंबरी ने दांत किटकिटाकर सोमाथ को देखा।

सोमाथ मुस्करा रहा था। उसे ही देख रहा था।

“इसे खत्म कर दे सोमाथ।” पीछे से डुमरा ने कहा।

सोमाथ हाथ आगे बढ़ाकर खुंबरी को पकड़ने को हुआ।

खुंबरी की तलवार सोमाथ के पांवों के नीचे दबी थी। अगर सोमाथ कृत्रिम इंसान न होता तो तलवार पर पांव रखते ही उसने उछलकर दूर जा गिरना था। परंतु तलवार में मौजूद ताकतों ने उस पर कोई असर नहीं किया था। ये बात खुंबरी अच्छी तरह समझ चुकी थी। अब एकाएक डुमरा उसके दिमाग से निकल गया था और खतरे के रूप में सोमाथ सामने था। सोमाथ से बचना था उसने। डुमरा ने तो उससे कह दिया था कि उसे खत्म कर दे।

इससे पहले कि सोमाथ खुंबरी को पकड़ पाता-

खुंबरी ने तलवार की मूठ छोड़ी और लुढ़कती हुई तीन कदम दूर हुई फिर बेहद फुर्ती के साथ खड़ी हुई और एक दिशा में भाग निकली।

“उसे पकड़ो सोमाथ और खत्म कर दो।” डुमरा ने गुस्से से कहा।

उसी पल सोमाथ खुंबरी के पीछे भागता चला गया।

डुमरा ने नीचे पड़ी धरा को देखा और उसके पास आ बैठा। उसका सिर उठाकर अपने घुटने पर रख लिया। धरा पीड़ा से कराह रही थी उसका चेहरा लाल हो चुका था। कठिनता से आंखें खोलकर उसने डुमरा को देखा।

डुमरा की गम्भीर निगाह धरा पर ही थी।

“धोखा...” धरा के होंठों से कांपता स्वर निकला।

“खुंबरी ने अपनी मौत, तेरे को दे दी।” डुमरा ने कहा।

“उ...उसने गलत किया। मेरी जान...”

“वो खुंबरी है। सिर्फ अपने लिए जीती है। ताकतों के गरूर में वो बहुत बुरी बन चुकी है। तुम तो उसका ही रूप हो। परंतु तुमने कभी भी खुंबरी का मन पढ़ने की कोशिश नहीं की। अपने को बचाने के लिए उसने तुम्हारी जान ले ली।”

“मुझे बचा लो डुमरा। मैं हमेशा तुम्हारी सेवा करूंगी।” धरा कराहते बोली-“ओह, मेरा दम घुट रहा है। सांसें अटक रही हैं। मुझे क्या हो रहा है। तुम-तुम...”

“तुम्हारी जान जा रही है।” डुमरा गम्भीर स्वर में बोला।

“मुझे बचा...”

“नहीं बचा सकता। शक्तियों के कण वाली ये तलवार है। इसका वार जिस पर हो जाए, वो नहीं बच सकता। मैंने तो खुंबरी की जान लेने के लिए ये वार किया था, परंतु उसने तुम्हें सामने खींच लिया।”

“खुंबरी बुरी, है उसने मुझे धोखा...” तभी धरा की गर्दन एक तरफ को हो गई। उसकी जान निकल गई थी। आंखें खुली पड़ी थीं। वो खुंबरी के विश्वासघात का शिकार हो गई थी।

डुमरा कुछ पल धरा के मृत चेहरे को देखता रहा फिर उसका सिर घुटने से नीचे रख दिया। उठ खड़ा हुआ। जंगल में हर तरफ गम्भीर नजरों से देखा। खुंबरी और सोमाथ कहीं भी नहीं दिखे।

“खुंबरी ने चालाकी से धरा को अपने सामने खींच लिया था कि वो बच जाए।” तोखा के शब्द कानों में पड़े-“वो भांप गई थी कि तुम्हारी गुलाबी तलवार में जरूर कोई खास बात है। खुंबरी बहुत शातिर है।”

“बेशक वो शातिर है।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा-“लेकिन खुंबरी की ताकतें सोमाथ पर असर नहीं कर सकेंगी। देखना तो ये है कि क्या खुंबरी सोमाथ से बच पाती है।”

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खुंबरी तूफानी गति से दौड़े जा रही थी। उसकी सांस तेजी से चल रही थी। हर तरफ पेड़ ही पेड़ नजर आ रहे थे। पेड़ों से छन कर धूप की पतली-मोटी लकीरें जमीन पर पड़ रही थीं। चेहरे पर पसीना बहने लगा था। वो पीछे आते सोमाथ को देख चुकी थी और उससे पीछा छुड़ा लेना चाहती थी।

वो जानती थी कि सोमाथ जैसे कृत्रिम इंसान से मुकाबला नहीं कर सकती। वो ताकतवर है और उसकी ताकतें उस पर नहीं चल सकतीं।

पूरी शक्ति से दौड़ रही थी खुंबरी।

पीछे भी कम ही देख रही थी कि पीछे देखने के फेर में उसके दौड़ने की रफ्तार कम न हो जाए। इस वक्त डुमरा या धरा उसे याद नहीं आ रही थीं। याद था तो सिर्फ सोमाथ।

दौड़ते-दौड़ते उसने गले में पड़ा बटाका थामा और हांफते स्वर में पुकारा।

“ओहारा।”

“हुक्म महान खुंबरी।”

“मैं खतरे में हूं... मैं...”

“जानता हूं।” ओहारा की आवाज दौड़ती खुंबरी के कानों में पड़ी, जैसे ओहारा उसके कान के पास मौजूद हो।

खुंबरी के दौड़ने की रफ्तार में कमी नहीं आई थी बातों के दौरान।

“मुझे बचाने के लिए कुछ करो।” खुंबरी चीखी।

“सोमाथ से मैं नहीं बचा सकता। उस पर ताकतों का कोई वार नहीं चलेगा।”

“उसे मेरे पीछे आने से रोको।”

“ये भी सम्भव नहीं।” ओहारा के शब्द कानों में पड़े।

“तो क्या तुम मुझे बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकते?” खुंबरी गुस्से में भरी पड़ी थी।

“तुमने ठोरा की बात नहीं मानी। ठोरा ने तुमसे कहा था कि डुमरा से मत उलझो। ठोरा को आगे का वक्त नजर नहीं आ रहा था। तुम्हें ठोरा की बात मान लेनी चाहिए थी। परंतु तुमने अपने मन की।”

“मैं डुमरा को मार देना चाहती थी।”

“लेकिन अब तुम मुसीबत में पड़ गईं।”

“मुझे बचाओ ओहारा। सोमाथ पर कोई असफल वार ही कर दो कि मेरे पीछे आने से भटक जाए।”

“ऐसी कोशिश मैं करके देखता हूं।”

“जल्दी करो, वो मेरे पीछे आ रहा है।” खुंबरी ने चीखकर कहा और बटाका छोड़कर तेजी से भागती रही।

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सोमाथ, खुंबरी के पीछे भाग रहा था। खुंबरी कभी उसे दिखाई दे जाती तो कभी पेड़ के तनों की ओट में होकर नजर आना बंद हो जाती थी। ज्यादा तेज भागने में सोमाथ को समस्या थी। वो कृत्रिम इंसान था। धातु से बनी उसकी कृत्रिम टांगें भी एक हद तक ही तेजी से दौड़ सकती थीं। महापंडित ने उसका निर्माण दौड़ने के लिए नहीं किया था। अब दौड़ना पड़ रहा था तो एक हद से ज्यादा तेज नहीं दौड़ पा रहा था। परंतु खुंबरी का

पीछा वो नहीं छोड़ना चाहता था। उसे पता था कि अगर एक बार खुंबरी हाथ लग गई तो वो बचने वाली नहीं।

सोमाथ को खुंबरी के पीछे दौड़ते-दौड़ते कुछ देर हो चुकी थी। अभी तक खुंबरी उसकी निगाहों में थी। वो जानता था कि एक बार खुंबरी जंगल में नजरों से ओझल हो गई तो फिर नहीं मिलने वाली। सोमाथ ने और तेज दौड़ने की चेष्टा की। इस वक्त वो लगभग खुंबरी की रफ्तार के बराबर ही दौड़ रहा था।

तभी सोमाथ ने अपने साथ दोती को दौड़ते पाया।

लेकिन सोमाथ ने अपनी दौड़ कम नहीं होने दी।

“कृत्रिम इंसान।” दोती साथ में दौड़ते कह उठी-“तुम तो बढ़िया

दौड़ लेते हो।”

सोमाथ ने जवाब नहीं दिया।

“जानते हो मैं तुम्हारे साथ क्यों दौड़ रही हूं।”

“मुझे सोमाथ कहो। मेरा नाम कृत्रिम इंसान नहीं है।” दौड़ते हुए

सोमाथ शांत स्वर में बोला।

“ठीक है। अब मैं तुम्हें सोमाथ ही कहूंगी।” दोती बोली-“मैं तुम्हारे साथ इसलिए दौड़ रही हूं कि हम मिलकर खुंबरी को पकड़ सकें। ये मौका अच्छा है। तुम पर खुंबरी की ताकतें असर नहीं कर सकतीं। मैं वैसे ही खुंबरी से बहुत परेशान हूं। उससे आजाद होना चाहती हूं। तुम खुंबरी को मार दो तो बहुत अच्छा हो जाए।”

दौड़ते-दौड़ते सोमाथ मुस्कराया।

“तुम थोड़ा और तेज दौड़ो तो खुंबरी को पकड़ लोगे।”

“मैं इससे तेज नहीं दौड़ सकता।”

“ऐसा क्यों? मैं तो दौड़ सकती हूं।”

“तुम चली जाओ यहां से। मैं जानता हूं कि तुम मेरा ध्यान बंटाने आई हो।”

“मैं ऐसा क्यों करूंगी?”

“खुंबरी को बचाने के लिए। लेकिन मैं उसे छोड़ने वाला नहीं।” दौड़ते हुए सोमाथ ने शांत स्वर में कहा। कृत्रिम मानव होने की वजह से भागने से उसकी सांस नहीं फूल रही थी। वो शांत लग रहा था।

“तुम्हें मेरे पर भरोसा नहीं।”

“मैं जानता हूं तुम असल में क्या हो। मुझे बेवकूफ नहीं बना सकतीं।”

“मेरी बात पर तुम्हें विश्वास कर लेना चाहिए। मैं खुंबरी की

दुश्मन...”

उसी पल सोमाथ के साथ टोमाथ दौड़ता दिखने लगा। (टोमाथ के बारे में जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा और सोमाथ’)

“तुम क्यों आए हो टोमाथ?” दोती मुंह टेढ़ा करके कह उठी।

“मैं सोमाथ को बताने आया हूं कि तुम खुंबरी की दुश्मन नहीं हो। दुश्मन तो मैं हूं खुंबरी का।”

“झूठे।”

“सोमाथ।” साथ में दौड़ता टोमाथ बोला-“दोती की बातों का जरा भी भरोसा मत करना। ये झूठी है और खुंबरी के लिए काम कर रही है। ओहारा की हर बात मानती है। खुंबरी का असली दुश्मन तो मैं हूं। मैं तुम्हारे साथ खुंबरी को पकडूंगा।”

“तुम खुंबरी की सेवा में रहते हो।” दोती ने कहा।

“वो तो मजबूरी है। मैं दिल से खुंबरी की सेवा नहीं करता। परंतु तुम दिल से करती हो। डुमरा पर वारों की कड़ी चलाने में तुमने पूरी तरह ओहारा का साथ दिया। मैंने कितनी बार कहा है कि डुमरा की जान मत लो। वो अच्छा इंसान है।”

“कब कहा तूने-तू तो...”

“ओहारा से कहा था। तब तू पास में नहीं थी। ओहारा से पूछ लेना।” टोमाथ बोला।

“इसकी बातों में मत फंसना सोमाथ।” दोती ने कहा-“ये बहुत

झूठा है।”

“मैं तुम दोनों के बारे में खूब अच्छी तरह जानता हूं।” दौड़ते हुए सोमाथ ने कहा।

“देखा।” टोमाथ बोला-“ये जानता है कि मैं सच कह रहा हूं।”

“इसने ये नहीं कहा। इसने कहा है कि ये हमारी बेईमानी को जानता है।” दोती ने बात स्पष्ट की।

“मेरी नहीं तुम्हारी बेईमानी को। इसे पता है कि टोमाथ बेईमान नहीं है।”

तभी उनके साथ मूसी दौड़ती दिखने लगी। मूसी से भी आप ‘बबूसा और सोमाथ’ उपन्यास में मिल चुके हैं। उसे देखते ही दोती बोल पड़ी।

“लो, अब मूसी भी आ गई।”

“क्यों न आऊंगी। तुम दोनों सोमाथ का दिमाग खराब करने पर लगे हो। ये कृत्रिम इंसान हुआ तो क्या हुआ, सब बातों को समझता है। मैं सोमाथ की तरफ से कहती हूं कि तुम दोनों यहां से चली जाओ। सोमाथ मेरे साथ रहकर खुंबरी को पकड़ लेगा। अब तो मुझे मौका मिला है खुंबरी से बदला लेने का।”

दौड़ते-दौड़ते सोमाथ मूसी की बात पर मुस्करा पड़ा।

“अपनी औकात तो देख। तू क्या बदला लेगी। खुंबरी तो तेरे को फूंक मारकर उड़ा देगी।”

“सोमाथ खुंबरी की जान ले लेगा। बहुत जुल्म किए हैं खुंबरी ने मुझ पर।”

“जुल्म?” दोती ने व्यंग्य से कहा-“तू तो हमेशा अपने को संवार-संवार के रखती है। किसको दिखाती है अपना रूप?”

“ओहारा की नजरों में चढ़ने की कोशिश कर रही हूं।”

“ओहारा मेरा है।” दोती ने चिढ़कर कहा।

“ओहारा के माथे पर दोती का नाम नहीं लिखा। ओहारा अब मुझे पसंद करने लगा है। उसने कई बार एकांत में मुझे बुलाया। मुझसे बातें कीं। तुम देखना एक दिन मेरा नाम अपने माथे पर लिख लेगा।”

“जा-जा, तेरी औकात ही क्या है।” दोती ने तीखे स्वर में कहा-“ओहारा सिर्फ मुझे...”

“तुम दोनों ओहारा के पीछे क्यों लड़ रही हो।” उसी पल मोरगा की आवाज उभरी। सबने मोरगा को साथ दौड़ते पाया-“ओहारा तुम दोनों में से किसी का नहीं है। मैं अभी ओहारा के पास से ही आ रही हूं।”

“तुम ओहारा से मिलकर आई हो?” दोती बोली।

“हां। उसने मुझे स्पष्ट तौर पर कहा है कि वो दोती से पीछा छुड़ा लेगा और जब भी जश्न होगा वो मेरे हाथ से कारू पिएगा। रात भी मेरे साथ रहेगा। वो मुझे बहुत चाहने लगा है।” मोरगा बोली।

“मैं जानती हूं तू ऐसी बातें फेंकने में माहिर है।” मूसी ने तीखे स्वर में कहा-“ओहारा तेरे को जरा भी नहीं चाहता। एकांत में वो मेरे को मिलता है। मेरे को अपने दिल का हाल बताता है। मैं ही उसकी खास हूँ।”

“इसका मतलब वो तेरे और मेरे से, दोनों से ही प्यार करता है।” मोरगा बोली।

“तुम दोनों बकवास कर रही हो।” दोती ने नाराजगी से कहा-“ओहारा सिर्फ मुझे चाहता है। तुम दोनों के बारे में मैंने उसे कभी कुछ कहते नहीं सुना। मैं ओहारा की चहेती सेविका हूं।”

“तू इसी भ्रम में पड़ी रह।” मूसी ने हंसकर कहा-“सच्चाई तो हम ही जानती हैं। क्यों मोरगा।”

मोरगा जवाब में हंस पड़ी।

सोमाथ बराबर उसी रफ्तार से दौड़े जा रहा था। थकान नाम की

उसमें कोई बात नहीं थी। क्योंकि वो महापंडित का बनाया हुआ कृत्रिम इंसान था। उसकी हिम्मत उसकी बैटरी थी। जो उसे चलाती थी। इन सबकी बातों का मतलब वो बखूबी समझ रहा था। ये उसे उलझा कर उसे खुंबरी के पीछे जाने से भटकाना चाहती थीं। जबकि सोमाथ को आगे, दूर खुंबरी रह-रहकर तनों के बीच में दौड़ती दिखाई दे जाती थी।

“तुम सब चले जाओ मेरे पास से।” सोमाथ बोला-“मैं तुम्हारी

चालों में आकर फंसने वाला नहीं। तुम सब खुंबरी को बचाना चाहते हो और मैं उसे नहीं छोड़ने वाला।” बेशक खुंबरी सोमाथ से कुछ तेज भाग रही थी परंतु सोमाथ के कृत्रिम शरीर में इस वक्त जो सबसे खास बात सामने आ रही थी, वो ये थी कि सोमाथ को थकान का एहसास नहीं था, जबकि खुंबरी...”

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खुंबरी की सांसें दौड़ते-दौड़ते उखड़ने लगी थीं। एकसार दौड़े जा रही थी वो। सीना उठ बैठ रहा था। चेहरा और कपड़े पसीने से भीग चुके थे। टांगों में थकान का कम्पन होने लगा था। इस वक्त भागते समय मुंह खोले सांसें ले रही थी। अब उसकी दौड़ने की रफ्तार में कुछ कमी आ गई थी। बालों की लटें चेहरे पर आकर बिखरने लगी थीं। गालों से चिपक रही थी। वो रुकना चाहती थी, ठहरना चाहती थी। उखड़ी सांसों को ठीक करना चाहती थी परंतु पीछे एक ही रफ्तार से दौड़ता आता सोमाथ उसे भागते रहने पर मजबूर कर रहा था।

खुंबरी ने दौड़ते-हांफते बटाका थामकर ओहारा को पुकारा।

“सुन ओहारा।” वो थकी-सी पड़ी थी।

“हुक्म महान खुंबरी।” ओहारा की आवाज उसके कानों में पड़ी।

“मैं क्या करूं। थक गई हूं। और दौड़ा नहीं जा रहा।” मुंह खोले

हांफते खुंबरी कह उठी।

“इस वक्त कई ताकतें उस कृत्रिम इंसान के पास, उसे भटकाने के प्रयत्न में लगी हैं।”

“सोमाथ पर कोई ऐसा वार कर कि कुछ देर के लिए वो उलझ जाए। मेरे लिए इतना वक्त ही बहुत होगा।”

“मैं एक छोटा-सा वार सोमाथ पर करने वाला हूं कि उसका भागना कुछ देर के लिए थम जाएगा।”

“जल्दी कर। अब मुझसे और नहीं दौड़ा जाता।”

ओहारा की आवाज नहीं आई।

खुंबरी ने दौड़ते-दौड़ते पीछे गर्दन घुमाकर देखा।

सोमाथ को कुछ दूर, पीछे दौड़ते आते देखा। उसके साथ दोती, मोरगा, मूसी और टोमाथ को भी देखा। खुंबरी ने हिम्मत इकट्ठी की और एक बार फिर तेजी से दौड़ने लगी। परंतु वो महसूस कर रही थी कि अब ज्यादा देर नहीं दौड़ पाएगी। उसे कुछ आराम की जरूर है, परंतु पीछे आता सोमाथ उसे दौड़ते रहने पर मजबूर कर रहा था।

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“और तेज भाग सोमाथ।” दोती बोली-“खुंबरी मुझे यहां से नजर आ रही है। आज छोड़ना नहीं है उसे।”

सोमाथ उसी रफ्तार से भागता रहा।

मूसी, मोरगा और टोमाथ भी साथ-साथ भाग रहे थे। ये जुदा बात थी कि वो स्वयं शरीर के साथ मौजूद नहीं थे। उनके अक्स ही थे जो कि पूर्ण मनुष्य जैसे लग रहे थे।

“तुम तीनों ओहारा के पीछे क्यों पड़ी रहती हो।” टोमाथ बोला-“तीनों ही सुंदर हो। मेरा हाथ थाम लो।”

“मैं तो ओहारा की सेवा में हूं।” दोती बोली।

“मैं भी।” मोरगा ने कहा।

“मैं तो सच में हूं।” मूसी कह उठी।

“तो क्या मैं झूठी हूं।” मोरगा ने तुनककर कहा।

“मैंने तो अपने बारे में कहा है।” मूसी मुस्कराकर बोली।

“मेरा हाथ कौन थामेगा?”

“जब तू बड़ी ताकत बन जाएगा तो मैं तेरे पास आ जाऊंगी।” मूसी ने कहा।

“तुम्हें तो अभी आ...”

इसी पल रास्ते में आने वाला एक घना पेड़, तने से ऐसे कट गया जैसे किसी ने मशीन से काटा हो और वो भरभराकर सोमाथ के ऊपर गिरने लगा। पेड़ों के पत्तों की छन-छन सुनकर सोमाथ ने बाईं तरफ तुरंत गर्दन घुमाई तो पेड़ को अपने ऊपर आते देखकर, उसी पल जोरों से दौड़ पड़ा।

चंद पलों पहले ही सोमाथ वहां से निकल चुका था, जहां पेड़ गिरा।

सोमाथ ने आगे देखा।

काफी आगे पेड़ों के तनों के बीच में से खुंबरी भागती दिखी।

सोमाथ खुंबरी की तरफ भागता रहा।

तभी मोरगा, दोती, टोमाथ और मूसी पहले की तरह उसके साथ दौड़ते दिखने लगे।

“तुम तो बच गए सोमाथ।” टोमाथ बोला-“पेड़ तुम्हारे ऊपर गिर जाता तो तुम्हारी मशीन टूट-फूट जाती।”

सोमाथ उसी तरह भागता रहा।

“ये पेड़ भी जरूर खुंबरी ने ही गिराया होगा।” मूसी ने कहा-“वो नहीं चाहती कि तुम उसके पीछे आओ।”

“मैं तो थक गई हूं।” दोती ने सोमाथ को देखा-“कुछ रुककर आराम कर लें। बेचारी खुंबरी भी कब से दौड़ रही है। उसे भी तो दम भरने का वक्त चाहिए। थोड़ा-सा रुक जाते हैं।”

सोमाथ दौड़ता रहा।

“दोती की बातों में मत आना।” मोरगा कह उठी-“ये तुम्हें भटकाना चाहती है।”

“मैं जानता हूं कि तुम सबको ही मेरी चिंता है।” भागते-भागते सोमाथ ने कहा।

“क्यों न होगी।” मूसी ने मुस्कराकर कहा-“आखिर तुम हमारे लिए खुंबरी को मारने जा रहे हो।”

“सोमाथ सिर्फ मेरी बात मानता है। मैंने ही पहले कहा था कि खुंबरी को मारे।” दोती बोली।

“मैंने भी तो कहा था।” मूसी ने कहा-“सोमाथ से पूछ लो। क

सोमाथ तुम ही...”

तभी एक फैला हुआ पेड़ जमीन के पास से इस तरह कट गया जैसे उसे मशीन से पलक झपकते ही काट दिया हो। तने से कटते ही पेड़ उसी दिशा में गिरा, जिधर से सोमाथ भागा जा रहा था।

इस बार सोमाथ बच न सका।

पेड़ सोमाथ के ऊपर आ गिरा। लेकिन कुछ इस तरह गिरा कि वो सिर्फ पेड़ों की छोटी-छोटी टहनियों में उलझ गया। कोई मोटा तना उस पर नहीं गिरा। सोमाथ संभला। किसी तरह अपने ऊपर से छोटी-छोटी टहनियों और पत्तों को हटाकर खड़ा हुआ और आगे भागती खुंबरी की तरफ देखा।

परंतु खुंबरी दिखाई नहीं दी।

सोमाथ ने जल्दी से गिरे-फैले पेड़ को पार किया और पुनः उस तरफ दौड़ने लगा जिस तरफ खुंबरी को दौड़ते देखा था। उसके माथे पर बल आ गए थे। वो जानता था कि पेड़ गिराने की हरकत जानबूझकर ताकतों ने ही की है कि वो रुकावट में फंसे और खुंबरी उसके हाथों से बच निकले।

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खुंबरी की सांसें भागते हुए टूट चुकी थीं। टांगें जवाब देती जा रही थीं। भागने की हिम्मत जैसे खत्म हो चुकी थी। टांगों को घसीटते हुए वो भाग रही थी कि ओहारा की आवाज उसके कानों में पड़ी।

“महान खुंबरी।”

“ओ-हा-रा-।” खुंबरी टूटती सांसों, से हांफते कह उठी।

“सोमाथ के भागने में रुकावट डाल दी है। जैसा तुम चाहती थीं।” ओहारा के शब्द कानों में पड़े।

“ओह।” खुंबरी दौड़ते-दौड़ते रुकी और मुँह खोले लम्बी साँसें लेने लगी। कई पल वो इसी स्थिति में रही फिर हांफते हुए ही बोली-“मुझे आराम की जरूरत है। अब और नहीं भाग सकती। व-वो फिर पीछे आ जाएगा।”

कुछ क्षण ओहारा की तरफ से आवाज नहीं आई। फिर आवाज आई।

“तुम पेड़ पर चढ़ जाओ महान खुंबरी। तुम्हारे पास ही घना पेड़ है। इस तरह वो कृत्रिम इंसान तुम्हें ढूंढ नहीं पाएगा और तुम्हारी थकान भी दूर हो जाएगी। जब खतरा टल जाए तो तुम ठिकाने की तरफ चल देना।”

खुंबरी ने सिर उठाकर पेड़ की तरफ देखा।

“मुझसे इतनी भी हिम्मत नहीं कि पेड़ पर चढ़ सकूं। बहुत थक गई।

उसी पल पेड़ की ऊँची डाल नीचे, खुंबरी के पास झुक गई।

“इस हाल को पकड़ो और पेड़ के तने पर पांव रखकर ऊपर चढ़ी। डाल पेड़ पर चढ़ने में तुम्हारी सहायता करेगी।”

खुंबरी ने ऐसा ही किया और वो घने पेड़ के बीच, ऊपर जा छिपी। जा बैठी।

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सोमाथ भागते-भागते यही पेड़ों के पास आकर ठिठक गया। नजरें आस-पास घूमने लगी। यहीं तक-आस-पास से ही खुंबरी का नया आना बंद हुआ था। वो सोच रहा था कि यहीं से खुंबरी ने रास्ता बदल लिया होगा।

उसकी ताकतों ने उसके सामने पेड़ गिरा दिया। भागने में रुकावटें पैदा की और इसी बात का फायदा उठाकर खुंबरी निगाहों से ओझल हो गई। दिमाग में इस बात का अफसोस होने लगा कि खुंबरी बच निकली। इस पर भी सोमाथ की शिकारी जैसी नजरें जंगल में घूम रही थी कि शायद खुंबरी नजर आ जाए।

तभी पास में दोती, मोरगा, मूसी और टोमाथ प्रकट होते चले गए।

सोमाथ ने नापसंदगी निगाहों से उन्हें देखा।

“ये तो बहुत बुरा हुआ सोमाथ कि खुंबरी बच कर निकल गई।” दोती ने अफसोस दिखाते व्यंग्य भरे स्वर में कहा।

“मैंने तो सोचा था कि आज खुंबरी का काम खत्म हो जाएगा।” मूसी बोली।

“रास्ते में वो पेड़ न गिरता तो खुंबरी कभी न बच पाती।” टोमाथ कह उठा।

“बुरा हो पेड़ का।” मोरगा ने मुँह बनाकर, मुस्कराकर कहा-“वो पेड़ कैसे गिर गया?”

दोती हँसकर बोली।

“भागते समय सोमाय की बांह पेड़ से टकरा गई थी। इसी कारण पेड़ नीचे गिर पड़ा।”

“इसे तो बहुत अफसोस हो रहा होगा कि खुंबरी हाथ आते-आते निकल गई।” मूसी बोली-“अफसोस तो मुझे भी है। बेचारा कृत्रिम इंसान भी कितनी तेज दौड़ रहा था, पर सब कुछ व्यर्थ गया।”

“चुप हो जाओ तुम सब।” सोमाथ ने नाराजगी से कहा-“वो पेड़ ताकतों ने ही गिराया है और तुम सब मुझे भटकाने की चेष्टा में, मेरा दिमाग खराब करने को चेष्टा में लगे हो। अगर तुम लोग अपने शरीर के पर मौजूद होते तो मैंने कबका तुम सबको मार देना था। मैं तुम लोगों ही बातों में आने वाला नहीं।”

“वो तो हमसे ही नाराज हो गया।”

“हम तो इसका भला कर रहे थे।”

“हम तो कह रहे थे कि खुंबरी को मार दे। हम तो हिम्मत बंधाकर इसे खुंबरी के पीछे दौड़ा रहे थे कि उसे पकड़कर मारा जा सके। ये हम पर अविश्वास करेगा तो इसी तरह असफल रहेगा।”

सोमाथ हर दिशा में निगाह दौड़ाता सोच रहा था कि खुंबरी किस तरफ गई होगी। वैसे उसे ये ही लग रहा था कि अब खुंबरी दूर निकल में होगी। हाथ नहीं आने वाली।

“मैं जानती हूँ कि तुम सोच रहे हो कि खुंबरी किस तरफ गई होगी।” दोती ने कहा-“ये तो साधारण-सी बात है, मैं तुम्हें बता देती हूँ। वो इस तरफ सीधा गई है, अब जल्दी से इसी तरफ दौड़ लगा दो सोमाथ।”

“क्यों परेशान करती है गलत बात कहकर।” मूसी बोली-“सीधी तरह बता दे कि खुंबरी बाईं तरफ गई है।”

“मैं झूठ क्यों बताऊँ?” दोती ने हाथ नचाकर कहा।

“तुम दोनों झूठी हो। खुंबरी तो दाईं तरफ गई है। मैंने स्वयं उसे उस तरफ जाते देखा था।” मोरगा कह उठी।

बरबस ही सोमाथ के होंठों पर मुस्कान उभरी।

“औरतों पर तो कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए।” टोमाथ गहरी सांस लेकर बोला-“ये अपने औरतपने का फायदा उठाकर, मर्द को बेवकूफ बना देती हैं। तुम इनकी बातों में मत आना।” टोमाथ ने सोमाथ को देखा।

“कह तो ऐसे रहे हो जैसे तुम जानते हो कि खुंबरी कहां पर है।”

दोती ने मुंह बनाया।

“मालूम है मुझे कि खुंबरी कहां पर है।”

“तो बता क्यों नहीं देता।”

“मैं नहीं बताऊंगा।” टोमाथ ने हाथ हिलाया।

“ये क्या बात हुई कि तुझे पता है पर बताएगा नहीं।”

“औरतें झूठ बोलती हैं, पर मैं झूठ नहीं बोलता। मुझे पता है, पर बताऊंगा नहीं।”

“जा-जा।” दोती ने मुंह बनाया-“पता हो तो बताए न।”

सोमाथ की निगाह हर तरफ घूम रही थी।

“मर्द तो यूं ही फेंकते हैं।” मोरगा हंसकर कह उठी।

“तेरा मतलब कि मैं झूठा हूं।” टोमाथ ने नाराजगी से कहा।

“पूरी तरह।” मूसी बोली-“खुंबरी कहां है, पता होता तो सोमाथ को बता न देता।”

“मुझे कुछ नहीं जानना।” सोमाथ ने शांत निगाहों से सबके अक्सों को देखा-“तुम लोग जाओ।”

“जाओ। हम तो तुम्हारी सहायता करने की कोशिश कर रहे...”

“तुम सब क्या हो। मैं अच्छी तरह जानता हूं। खुंबरी की ताकतें

ही...”

कहते-कहते सोमाथ उसी पल चुप हो गया।

उसके हाथ की उल्टी तरफ पानी की बूंद आ गिरी थी।

उसने फौरन हाथ ऊपर करके उल्टी हथेली पर पड़ी पानी की बूंद को देखा जो कि तब तक बिखर चुकी थी। सोमाथ की आंखें सिकुड़ गईं। वो लम्बे पलों तक गीली हुई हथेली को देखता रहा।

“आज मुझे सुबह से ही जुकाम हो रहा है। पानी बह रहा है।” टोमाथ सोमाथ की हरकत को समझता कह उठा-“अगर मैं शरीर के साथ यहां मौजूद होता तो तुम्हारा हाथ साफ कर देता।”

“छी।” दोती कह उठी-“टोमाथ कितना गंदा है। इसका नाक बहकर सोमाथ के हाथ पर जा गिरा।

“मैं तो नहाकर आई हूं।” मूसी ने फौरन कहा।

एकाएक सोमाथ मुस्कराया और चेहरा उठाकर ऊपर के घने पेड़ तरफ देखा।

कुछ भी नजर नहीं आया।

घने पेड़ की पत्तियां ही दिखीं।

“लगता है इसका फल खाने का मन हो रहा है।” मूसी कह उठी।

“कृत्रिम इंसान फल नहीं खाते। कुछ भी नहीं खाते।” मोरगा

बोली-“ये तो सांसें भी नहीं लेता।”

“अच्छा। फिर ये चलता-फिरता कैसे है।”

“क्या पता महापंडित ने इसे कैसे बनाया है।”

“सोमाथ।” दोती बोली-“फल वाला पेड़ देखना है तो मेरे साथ

आओ। वो पेड़ उस तरफ है।”

सोमाथ को घने पेड़ के ऊपर कुछ नहीं दिखा।

उसने चेहरा नीचे किया तो दोती ने पुनः कहा।

“फल वाले पेड़ के पास ले चलूं तुम्हें?”

उसी पल सोमाथ की नाक पर पानी की एक और बूंद गिरी।

सोमाथ ने नाक साफ करते पुनः तुरंत ही ऊपर पेड़ की तरफ देखा।

देखता रहा।

“लगता है मुझे जुकाम ज्यादा हो गया है।”

सोमाथ ने ऊपर देखना छोड़ा और चारों के अक्सों पर निगाह मारी।

“खुंबरी इस पेड़ पर है।” सोमाथ ने शांत स्वर में कहा।

“लो सुनो।” दोती हंसकर कह उठी-“कहता है खुंबरी इस पेड़ पर चढ़ी बैठी है। ये तो पागल कृत्रिम इंसान है।”

सोमाथ ने मुस्कराकर पुनः ऊपर, पेड़ की तरफ देखा फिर पेड़ के मोटे तने पर उसकी नजर टिक गई। वो विचार कर रहा था कि किस तरह वो पेड़ पर चढ़ेगा। एक मोटी-सी डाल कुछ ऊपर थी। सोमाथ ने उसी पल उछाल भरी और उस मोटी डाल को थाम लिया।

“ये तो सच में पागल हो गया है।” मूसी जल्दी से बोली।

“ऐसा मत कर। खुंबरी भला पेड़ पर क्या करेगी।” मोरगा ने कहा-“मैं तेरे को खुंबरी के ठिकाने पर ले चलती हूं।”

“उसे तसल्ली कर लेने दो।” टोमाथ ने कहा-“पेड़ पर चढ़कर

खुद-ब-खुद ही नीचे आ जाएगा।”

“ये कृत्रिम इंसान है। इसकी मशीनरी टूट-फूट गई तो तब क्या होगा।”

“हमें क्या।” मूसी ने जवाब दिया-“हमारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा।”

सोमाथ ने अन्य डाल को थामा और इसी प्रकार तने के ऊपर पहुंच गया। यहां मोटी, मोटी शाखाएं हर दिशा में गईं, फैली हुई थीं। जिन पर छोटी टहनियां और बड़े-बड़े पत्ते लगे थे। पत्तों को झुण्डों की वजह से ही, वो घना हुआ था। नीचे से ऊपर देखने पर पत्ते छाए नजर आते थे।

सोमाथ और ऊपर चढ़ने लगा।

“बेवकूफ नीचे आ जा।” दोती बोली।

“मैं इसकी टांग पकड़कर नीचे खींच लेता हूं।” टोमाथ ने कहा।

“तेरा शरीर तो तेरे साथ है नहीं।” अब मोरगा के स्वर में चिंता दिखने लगी थी-“टांगें कैसे खींचेगा?”

दोती और मूसी भी बेचैन दिखीं।

“हमारे पास कितनी ताकतें हैं, पर इस पर हम काबू नहीं पा सकते।” टोमाथ व्याकुल-सा कह उठा।

“क्या करें, इस कृत्रिम इंसान पर ताकतों का बस नहीं चलता। वास्तव वाला इंसान होता तो अब तक इसकी गर्दन तोड़ दी होती।” दोती ने कहा-“मैंने एक बार इस पर वार करके देखा है, पर कोई फायदा नहीं हुआ।”

सोमाथ पेड़ के नीचे के पायदान से कुछ और ऊपर पहुंचा तो एकाएक उसकी आंखों में चमक आ गई। एक मोटी डाल पर उसे औरत का एक पांव और कपड़ा दिखा। सोमाथ जानता था कि इतना दौड़ का खुंबरी थक चुकी है और उस पर जो बूंदें गिरी थीं, वो खुंबरी के पसीने की बूंदें थीं।

उसी पल खुंबरी की तरफ से जोरदार हलचल हुई।

खुंबरी के पहले ही पता था कि सोमाथ पेड़ पर आ चुका है। परंतु वो इस ख्याल में थी कि हो सकता है, वो न देख पाए और पेड़ से उतर जाए। लेकिन पत्तों के बीच में से उसने सोमाथ को अपनी तरफ देखते और मुस्कराते देखा तो तुरंत समझ गई कि सोमाथ की नजर उसके पांव पर है। अब खुंबरी ने रुकना ठीक नहीं समझा। जिस खतरे से बचने के लिए वो भाग रही थी, वो पास आ चुका था। खुंबरी ने पहले ही सोच रखा था कि

जरूरत पड़ी तो किस तरफ उसने भागना है। उसने फौरन नीचे की एक मोटी डाल पर छलांग लगाई और उसी पल सामने की झूलती मोटी डाल को पकड़कर नीचे झूली और डाल छोड़ दी।

खुंबरी के पांव जमीन पर पड़े वह जोरों से लड़खड़ाई और संभली।

उसके पीछे-पीछे ही सोमाथ भी जमीन पर आ पहुंचा।

खुंबरी होंठ भींचे दौड़ पड़ी।

सोमाथ उसके पीछे दौड़ा।

दोती, मूसी, मोरगा, टोमाथ और सोमाथ के संग दौड़ने लगे। दोती कह उठी।

“ये तुम क्या कर रहे हो। वो महान खुंबरी है। ताकतों की मालकिन है। उसका ओहदा सबसे बड़ा है। तुम उसकी जान लेने की सोच रहे हो। हम महान खुंबरी पर आंच नहीं आने देंगी। टोमाथ...”

“हां।”

“इस कृत्रिम इंसान के सिर पर बड़ा-सा पत्थर मार दो।”

“अभी मारता हूं।”

सोमाथ, खुंबरी के पीछे दौड़ता रहा। इस बार वो बहुत तेज दौड़ रहा था। फासला लगातार कम होता जा रहा था। उधर खुंबरी की सांसें जरूर संयत हुई थीं परंतु वो थकी पड़ी थी और तेज न दौड़ पा रही थी।

टोमाथ की तरफ से कोई वार नहीं हुआ। सोमाथ के सिर पर पत्थर नहीं लगा। क्योंकि टोमाथ अक्स के रूप में यहां मौजूद था और पत्थर नहीं फेंक सकता था।

सोमाथ तेजी से दौड़ता खुंबरी के पास जा पहुंचा था। दौड़ने में वो थक नहीं रहा था। मशीनी शरीर होने की वजह से खुंबरी को पकड़ने में उसे बहुत आसानी हो रही थी। एकाएक सोमाथ ने हाथ आगे बढ़ाया, जो कि खुंबरी के कंधे पर पड़ा तो उसने हाथ को तीव्रता से झटका दिया।

थकी-सी खुंबरी जोरों से लड़खड़ाई और जमीन पर लुढ़कती चली गई। पास ही के तने से टकराई और रुक गई। उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थीं। दौड़ने की वजह से चेहरा लाल हुआ पड़ा था। बालों की लटें चेहरे पर आ रही थीं। पेड़ के तने के पास पड़े उसने तिरछी निगाहों से सोमाथ को देखा।

सोमाथ उसके सामने, चार कदमों के फासले पर खड़ा था। उसे दोती, टोमाथ, मोरगा और मूसी घेरे खड़े थे। चारों की बेचैन परेशान दिख रहे थे।

“इसने तो महान खुंबरी को पकड़ लिया।” मूसी कह उठी।

“समझ में नहीं आता कि इसे कैसे संभाला जाए।”

“कोई तो रास्ता होगा।”

“ये समझदार है।” टोमाथ बोला-“ये महान खुंबरी को कुछ नहीं

कहेगा।”

“हम शरीर के साथ यहां होते तो महान खुंबरी को जरूर बचा लेते।”

खुंबरी सीधी हुई और पेड़ के तने से टेक लगाकर बैठ गई। उसकी छातियां तेज सांसें लेने की वजह से उठ-बैठ रही थीं। इस हाल में भी वो इंतेहाई खूबसूरत लग रही थी।

“तुम सच में कमाल के हो सोमाथ।” खुंबरी बोली-“इतना दौड़ने पर भी थके नहीं।”

सोमाथ शांत निगाहों से खुंबरी को देखता बोला।

“मैं तुम्हारी जान निकालने वाला हूं अब।”

“तुम सच में बहुत अच्छे हो। मैं तुम्हें जगमोहन की जगह स्वीकार करना चाहती हूं। तुमने मेरा दिल जीत लिया। वरना मुझे पकड़ लेना आसान काम नहीं है। मेरे राजा बनोगे?” खुंबरी मुस्करा पड़ी थी।

“मैं कृत्रिम इंसान हूं खुंबरी। मुझमें प्यार जैसा कुछ नहीं है। भावनाएं जरूर हैं। तुम्हारे लिए मुझे कोई दुख नहीं है कि मैं तुम्हारी जान निकालने जा रहा हूं। क्योंकि तुम इसी लायक हो।”

“क्या मैं बुरी हूं?”

“बहुत बुरी।” सोमाथ का स्वर शांत था-“सुना था पर देख भी लिया।

“क्या देखा?”

“धरा के साथ तुमने जो किया, वो देखकर तो मैं सन्न रह गया। तुमने अपने ही रूप को मौत के मुंह में भेज दिया। एक पल भी नहीं सोचा और...”

“तब मेरे पास बेकार की बातें सोचने के लिए पल नहीं थे। सोचती तो मैं मारी जाती।” खुंबरी ने मुस्कराकर कहा-“गुलाबी तलवार को देखते ही मैं समझ गई थी कि वो तलवार कुछ खास होगी। खास थी न वो?”

“मैं नहीं जानता।”

“हर कोई पहले अपने को बचाता है। मैंने भी ऐसा ही किया। धरा की मौत का मुझे दुख है। वो मेरा ही रूप था। परंतु उसे मैंने नहीं डुमरा ने मारा है। वो मुझ पर वार करने की पूरी तैयारी करके आया था। पर वो मेरे हाथों से बच गया।”

“तुम्हारे बुरेपन को मैंने आज अपनी आंखों से देखा है। अब तुम मरोगी।”

कहकर सोमाथ आगे बढ़ने को हुआ कि खुंबरी ने तुरंत कहा।

“रुको। रुको। जल्दी मत करो। मैं तुम्हारे कब्जे में हूं। तुम अब मुझे भागने नहीं दोगे। जब भी चाहो मेरी जान ले सकते हो। मेरी ताकतें तुम जैसे कृत्रिम इंसान पर असर नहीं करेंगी। ऐसे में इस वक्त मैं साधारण युवती हूं। मेरे सामने कोई सामान्य इंसान होता तो उसे समझा लेती, परंतु सोच रही हूं कि तुमसे कैसे बात करूं?”

दोती, मूसी, टोमाथ, मोरगा-के अक्स खामोश खड़े थे। सुन रहे थे।

“तुम मुझसे क्या बात कर सकती हो? कुछ भी नहीं।”

“मुझसे तुम्हें कोई फायदा मिल सकता है तो कहो, मैं सब कुछ तुम्हें दूंगी। मेरी जान लेकर तुम्हें क्या मिलेगा?”

“ऐसी बातें करके तुम अपनी मौत को टाल नहीं सकतीं। मैं कृत्रिम इंसान हूं और तुम्हारी बातों में नहीं फंसूंगा।” कहने के साथ ही सोमाथ तुरंत आगे बढ़ा। खुंबरी के पास पहुंचा...

इससे पहले कि सोमाथ आगे कुछ कर पाता...

खुंबरी ने फुर्ती से पास आ पहुंचे सोमाथ की दोनों पिंडलियां थामीं और पूरी ताकत से झटका दिया। सोमाथ के पांव उखड़ गए। वो ‘धड़ाम’ से कूल्हों के बल जमीन पर जा गिरा। कुछ चटखने की भी आवाज उभरी। इसी के साथ ही खुंबरी उछलकर खड़ी हुई और भाग खड़ी हुई।

इस बार खुंबरी ने तेज दौड़ने में अपनी पूरी जान लगा दी थी।

अभी पंद्रह कदम ही उठाए होंगे कि पीछे से दोती की तेज आवाज सुनाई दी।

“रुक जाओ। महान खुंबरी।”

दोती के इस तरह पुकारने पर खुंबरी चौंकी। उसने गर्दन घुमाकर

पीछे देखा।

सोमाथ पीछे आता नहीं दिखा।

पीछे उन चारों को खड़े देखा।

खुंबरी ठिठक गई।

उसी पल नीचे पड़े सोमाथ पर उसकी निगाह पड़ी। वो शांत पड़ा था नीचे।

खुंबरी की आंखें सिकुड़ीं।

उसने सावधानी से वापस आना शुरू किया।

“चिंता की कोई बात नहीं महान खुंबरी।” टोमाथ बोला-“इसे कुछ हो गया है।”

“बहुत जोरों से कूल्हों के बल गिरा था।” मूसी ने कहा-“मशीनरी टूट-फूट गई होगी।”

“मैंने तो कुछ चटखने की आवाज भी सुनी थी।” मोरगा ने कहा खुंबरी पास आ पहुंची।

सोमाथ को देखा।

जिस प्रकार वो गिरा था, उसी तरह वो पड़ा हुआ था। उसकी आंखें खुली हुई थीं। खुंबरी ने महसूस किया कि कूल्हों की तरफ से वो कुछ ज्यादा उठा हुआ है।

“इसकी मशीन खराब हो गई लगती है।” दोती ने कहा-“कुछ टूटने की आवाज भी आई थी।”

खुंबरी ने होंठ भींचे, सोमाथ को छुआ। फिर उसे करवट दिलाकर पेट के बल लिटा दिया तो देखा दाईं तरफ वाला कूल्हा कुछ ज्यादा ही ऊपर उठा हुआ है।

“इसे क्या हुआ?” खुंबरी कह उठी।

“हम शरीर नहीं लाए। आप ही देखें महान खुंबरी।” मोरगा बोली।

खुंबरी ने सोमाथ की पहनी पैंट उतारी तो कूल्हे देखे। दाईं तरफ वाला कूल्हा किसी ढक्कन की तरह था जो कि बाहर को आकर खुल-सा गया था, साथ ही चार इंच चौड़ी-लम्बी बैटरी जैसी कोई चीज बाहर को आकर झलक रही थी। ये सब सोमाथ के जबर्दस्त ढंग से गिरने की वजह से हुआ था। जिस पर ताकतें असर नहीं कर सकती थीं। जिसका मुकाबला करना कठिन था। वो अचानक ही शांत पड़ गया था क्योंकि जो बैटरी उसे चलाती थी वो निकल गई थी। बैटरी कूल्हे वाले हिस्से में फिट थी।

“मुसीबत टली।” दोती बोली-“इस पर तो ताकतें भी असर न

कर पा रही थीं।”

खुंबरी सीधी खड़ी होते कह उठी।

“मैं जा रही हूं।”

“आप कहें तो डुमरा के पास जाएं?” दोती ने पूछा।

“मेरे पास करने को बहुत काम बाकी है।” खुंबरी की आंखों के सामने दोलाम उभरा-“डुमरा बच गया। इसका मुझे दुख है। खुशी भी है कि इस कृत्रिम इंसान से मैं बच गई। तुम ओहारा से कह दो कि डुमरा की जान जल्दी निकाल दे।”

“जी महान खुंबरी?”

खुंबरी पलटी और जंगल में एक दिशा की तरफ चलने लगी। वो थकी हुई थी। इसलिए मध्यम गति से चल रही थी। धरा के साथ जो हुआ, उसका उसे अफसोस था, लेकिन उस वक्त खुद को बचने के लिए कोई और रास्ता भी नहीं था। उस एक-एक पल में जो सूझा, धरा को अपने आगे खींच लिया कि वार वो सह ले। धरा के साथ उसका मन लगा हुआ था। दोलाम की वजह से धरा के साथ की उसे जरूरत भी थी। लेकिन अब धरा वापस नहीं आ सकती थी। डुमरा ने एक और चोट दे दी थी उसे। खुंबरी को लगा जैसे हर तरफ से परेशानियों ने उसे घेर लिया।

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खुंबरी ने अपने ठिकाने में प्रवेश किया। पसीने से वो भीगी-सी लग रही थी। शाम होने वाली थी। सूर्य की रोशनी तीखी थी। लम्बा रास्ता पैदल चलकर आना पड़ा था उसे। ऊपर से साथ में धरा के न होने का एहसास भी सता रहा था। जब गई थी तो धरा साथ में थी, परंतु वापसी पर वो धरा को खो चुकी थी। वो उसका अपना ही रूप था जिसने पृथ्वी पर जन्म लिया था और सदूर पर पहुंचकर अपनी जान के सहारे, उसके बेजान शरीर में जान डाली थी। उस तक पहुंचने में धरा ने बहुत मेहनत की थी। धरा के साथ उसका दिल भी खूब लग रहा था, परंतु डुमरा के वार ने सब कुछ बिगाड़ दिया था। वार से बचने की खातिर उसने धरा को अपने सामने खींच लिया था।

लेकिन खुंबरी का मन कह रहा था कि उसने ठीक किया। धरा को जीने की इतनी जरूरत नहीं थी जितनी कि उसे थी। उसका जिंदा रहना, धरा के जीने से ज्यादा महत्व रखता था। ठिकाने का लम्बा रास्ता पार करके जब वो खाने के टेबल वाली जगह में पहुंची तो बबूसा को वहां टहलते पाया, जो कि खुंबरी को देखते ही ठिठक गया था।

“क्या हुआ?” बबूसा उसे देखते ही बोला-“तुम कुछ परेशान लग रही हो। थकी-सी भी...”

“दोलाम।” खुंबरी ने ऊंचे स्वर में पुकारा।

बबूसा ने गहरी निगाहों से खुंबरी को देखा।

बेचैन थी खुंबरी।

दोलाम भीतर के कमरे से बाहर निकला और खुंबरी को देखने लगा।

“जानते हो दोलाम, बाहर क्या हुआ।” खुंबरी उसे देखते ही बोली-“डुमरा से सामना हो गया।”

दोलाम के शरीर में तनाव पैदा होता दिखा।

“डुमरा ने मुझ पर घातक वार किया। जो कि बेहद खास था गुलाबी तलवार और...”

“धरा कहां है?” दोलाम ने एकाएक पूछा।

“वो डुमरा के वार का शिकार हो गई।” खुंबरी गुर्रा उठी।

“ओह।” दोलाम ने चेहरा हिलाया।

“डुमरा की ये हिम्मत कि वो हमारे ठिकाने के पास आकर, हम पर वार करे और धरा की जान ले ले। डुमरा को जिंदा नहीं बचना चाहिए। मैं ठोरा से कहने जा रही हूं कि वो डुमरा पर जानलेवा वार कर दे।”

दोलाम खामोश रहा।

“मैं डुमरा से बचकर भागी तो सोमाथ, वो कृत्रिम इंसान मेरे पीछे आने लगा। उस पर ताकतों के वार नहीं चलते। मैं बेहद कठिनाई से उससे जान बचा सकी और सोमाथ की मशीन खराब हो गई। वो अब बेकार हो गया है।”

“सोमाथ बेकार हो गया है।” बबूसा कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।

“उसकी मशीन में खराबी आ गई है। मैंने उसे धक्का दिया था।” खुंबरी ने दोलाम को देखा-“मुझे बहुत दुख है कि मैंने धरा को खो दिया है। मैं बहुत बेचैन हुई पड़ी हूं उसे खोकर।”

“धरा नहीं रही।” बबूसा ने गहरी सांस ली-“मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा।”

“तुम कुछ कहो दोलाम।” खुंबरी झल्लाकर बोली-“पहले तुम मेरा पूरा साथ देते थे।”

“पहले की बात और थी महान खुंबरी।” दोलाम शांत स्वर में कह उठा।

“क्या मतलब?”

“इस वक्त हममें समस्या खड़ी है। तुम बहुत व्याकुल हो। परेशान हो। तभी वो समस्या भूल गई और...”

“वो हमारी समस्या है। भीतर का मामला है। परंतु मैं तुमसे डुमरा की बात कर रही हूं कि उसके वार से धरा की जान चली गई।” खुंबरी ने तेज स्वर में कहा-“तुम्हें मेरी बात सुनकर डुमरा के बारे में कुछ फौरन करना चाहिए।”

“जरूर कुछ करता। अगर तुमने मेरी बात मान ली होती। अब हममें कुछ भी ठीक नहीं है।”

“तुम मेरा हुक्म मानने से मना कर रहे हो।”

“इस वक्त सिर्फ अपनी समस्या में उलझा हुआ हूं। जगमोहन का हाथ थामकर तुमने मेरा बहुत दिल दुखाया है। अभी तक मैं सामान्य नहीं हो पाया। डुमरा की समस्या तुम्हारी है। तुम ताकतों की मालिक हो। डुमरा को सबक सिखा सकती हो।”

“ऐसे मौके पर तुम अच्छी सलाह देते हो। इसलिए मैं तुम्हारे पास आई।”

“अब मैं तुम्हारा साथ नहीं दे सकता महान खुंबरी।” दोलाम ने गम्भीर स्वर में कहा।

“क्यों?”

“वजह तुम्हें मालूम ही है।”

“तुम्हारा सपना कभी भी पूरा नहीं हो सकेगा दोलाम।” खुंबरी कठोर स्वर में कह उठी-“खुंबरी अपने मन की मालिक खुद है। जो मुझे अच्छा लगेगा, उसी का हाथ थामूंगी। मैंने तुम्हारे बारे में कभी सोचा ही नहीं।”

“इसी बात का तो मुझे दुख है महान खुंबरी कि तुम्हारी नजरों में मेरी कोई अहमियत नहीं।”

खुंबरी ने सुलगती नजरों से दोलाम को देखा फिर पलटकर आगे बढ़ गई।

चंद कदमों के फासले पर खड़े बबूसा को भी नहीं देखा।

कदम आगे बढ़ाते खुंबरी बटाका थामकर ओहारा को पुकारने लगी।

ओहारा फौरन हाजिर हो गया।

“हुक्म महान खुंबरी।” ओहारा की आवाज उसके कानों में पड़ी-“मैंने सब कुछ देखा जो वहां हुआ था। तुमने बहुत अच्छा किया जो डुमरा के वार के सामने धरा को खींच लिया। वो डुमरा का खास वार था तुम्हारे लिए। उस गुलाबी तलवार में शक्तियों के पवित्र कण थे, जिसकी वजह से उस वार से बच पाना आसान नहीं था। खुंबरी का नाम लेकर डुमरा ने शक्तियों के कण वाली तलवार को छोड़ा था। उस तलवार ने तुम्हारी जान लेनी ही थी परंतु धरा तुम्हारा ही रूप थी। इसी वजह से शक्तियों के कण वाली तलवार ने उसकी जान ले ली। धरा को तलवार के सामने करके तुमने बहुत अच्छा किया, नहीं तो तुम्हारी जान चली जाती।”

“मैं डुमरा की मौत जल्दी चाहती हूं ओहारा।” कदम आगे बढ़ाते खुंबरी गुर्रा उठी।

“क्यों नहीं महान खुंबरी। इस बार मैं जबर्दस्त वारों की कड़ी तैयार कर रहा हूं। कोई बड़ी शक्ति डुमरा को बचाने आ गई तो तब भी डुमरा नहीं बच सकेगा। यकीन है कि कल तक डुमरा पर वार कर दूंगा।”

“कल तक? तो आज की रात का लम्बा इंतजार मुझे अभी और करना होगा।”

“वारों की कड़ी तैयार करने में कुछ तो वक्त लगता ही है।”

“जल्दी करो ओहारा।”

“कल डुमरा का जीवन खत्म हो जाएगा।”

“दोलाम भी मेरे लिए परेशानी खड़ी कर रहा है ओहारा।” खूब

दांत पीसकर बोली।

“इस बारे में मैं कुछ नहीं कर सकता। ठोरा ने दोलाम को कबका सदस्य के रूप में परिवार में शामिल कर लिया है। अब वो मात्र सेवक नहीं रहा। ठोरा का कहना है कि ये अब खुंबरी और दोलाम का व्यक्तिगत मामला है और मेरा मानना है कि परिवार के सदस्यों के बीच झगड़ा नहीं होना चाहिए। तुम जगमोहन को छोड़कर दोलाम का हाथ क्यों नहीं थाम लेती।

दोलाम ने दिल से हमेशा तुम्हारी सेवा की है। पांच सौ सालों तक तुम्हारे शरीर को संभाले रखा। नुकसान नहीं होने दिया। तुम्हारे शरीर को...”

“बस ओहारा । मुझे तुम्हारी सलाह नहीं चाहिए। मैं जगमोहन को नहीं छोड़ सकती।”

“क्योंकि तुम उससे प्यार करती हो।”

“ये सच है।”

“प्यार कुछ नहीं होता। होता है तो प्यार के कई पायदान होते हैं। पहला पायदान जिस्म की चाहत होती है और इस वक्त तुम पहले पायदान पर हो। ये सिर्फ शुरुआत है। प्यार का मतलब समझने के लिए तुम्हें कई पायदान पार करने होंगे। लम्बा वक्त लगेगा। तब तुम प्यार का असली मतलब समझ पाओगी। लेकिन दोलाम तुम्हारे लिए इस कारण बेहतर है कि वो हमेशा तुम्हारे हक में काम करेगा। जगमोहन से तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा।”

“मैं दोलाम को सिर्फ अपना सेवक मानती हूं।”

“महान खुंबरी। तुम्हारी जो दुनिया है उसमें जगमोहन नहीं समा सकता। तुम...”

“इन बातों को रहने दो ओहारा। तुम डुमरा को खत्म करो। दोलाम से कैसे निबटना है मैं देख लूंगी।”

“मैं तो सिर्फ इतना चाहता था कि तुममें और दोलाम में झगड़ा न हो। परिवार के सदस्यों में झगड़ा कैसा।”

“ठोरा कहता है कि ये मेरा व्यक्तिगत मामला है।” खुंबरी ने चुभते स्वर में कहा।

“हां।”

“तो इसे मेरा व्यक्तिगत मामला ही रहने दो। तुम सिर्फ अपना काम पूरा करो।” कहने के साथ ही खुंबरी ने बटाका छोड़ा और आगे बढ़ती गई। चेहरे पर गुस्से के कठोर भाव नजर आ रहे थे।

उसके बाद ओहारा की आवाज नहीं आई।

खुंबरी ने अपने कमरे में प्रवेश किया तो जगमोहन को टहलते पाया।

खुंबरी को देखते ही जगमोहन ठिठककर कह उठा।

“तुम आ गईं खुंबरी।” इसके साथ ही वो आगे बढ़ा और खुंबरी को बांहों में भर लिया-“तुम पास नहीं होतीं तो मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता।” उसने खुंबरी का माथा चूमा।

खुंबरी ने उसकी बांहें अपनी कमर से अलग की और कुर्सी पर जा बैठा।

“क्या हुआ?” उसका चेहरा देखते ही जगमोहन के होंठों से निकला।

“जंगल में डुमरा से टकराव हो गया।” खुंबरी होंठ भींचे कह

उठी-“डुमरा ने ऐसा वार किया कि धरा नहीं बच सकी।”

“ओह।” जगमोहन हक्का-बक्का रह गया।

“मैं कठिनता से जान बचाकर निकल सकी हूं। सोमाथ भी वहीं था, वो मुझे मार देना चाहता था। परंतु उसकी मशीनरी खराब हो गई और उसकी हरकतें रुक गईं। तब कहीं मैं बच सकी।”

जगमोहन व्याकुल-सा, गम्भीर-सा कुर्सी पर बैठ गया नजरें खुंबरी पर थीं।

“ओहारा ने डुमरा की जान लेने की चेष्टा की। उस पर जबर्दस्त वार किए थे, लेकिन बड़ी शक्ति ने आकर डुमरा को बचा लिया। वरना डुमरा न बच पाता। आज सब कुछ बुरा हुआ।” खुंबरी क्रोध में सुलग रही थी।

“तुम मेरी बात मान क्यों नहीं लेतीं खुंबरी।” जगमोहन कह उठा।

“क्या?” खुंबरी ने जगमोहन को देखा

“ये सब छोड़कर मेरे साथ पृथ्वी पर चलो। वहां हम बहुत खुश रहेंगे।”

“ये सम्भव नहीं।” खुंबरी ने अपना सख्त चेहरा इंकार में हिलाया-“मैं तुमसे पहले भी कह चुकी हूं कि ताकतों से मुझे प्यार है। मुझे आदत पड़ गई है कि ताकतों के साथ जीने की। उनके बिना मैं नहीं रह सकती।”

“तुम्हारे और मेरे बीच ताकतों की जरूरत नहीं रही। हम दोनों,

एक-दूसरे के लिए पूरक हैं।”

“तुम अपनी जगह हो जगमोहन और ताकतों का साथ अपनी जगह है।”

“मुझे डर है कि तुम्हें कुछ हो न जाए।”

“मुझे कुछ नहीं होगा।” खुंबरी कठोर अंदाज में मुस्कराई-“आज डुमरा से जो सामना हो गया, वो मेरी ही गलती थी कि मैं और धरा घूमते हुए दूर निकल गई थीं। शायद डुमरा मेरे हाथों मारा जाता। परंतु सोमाथ की वजह से मुझे भागना पड़ा डुमरा को छोड़कर। सोमाथ पर ताकतों का असर नहीं होता था और...”

“तुम मेरी बात को गम्भीरता से नहीं सोचती कि पृथ्वी पर चलते हैं।”

“पृथ्वी पर कुछ नहीं रखा। मैं तुम्हें यहीं रखूगी। अपने पास। धीरे-धीरे तुम भी ताकतों को पसंद करने लगोगे।”

“लेकिन मैं तुम्हें पृथ्वी पर ले जाना चाहता हूं।”

“ऐसा कभी नहीं होगा जगमोहन। मेरी दुनिया सदूर पर ही बसती है।”

“अगर मैं पृथ्वी पर जाना चाहूं तो?”

“मैं तुम्हें कभी भी नहीं जाने दूंगी। तुम यहीं पर मेरे पास रहोगे।”

“तो तुम मुझे पृथ्वी पर जाने से रोकोगी?”

“हर हाल में।” खुंबरी ने दृढ़ स्वर में कहा-“हम दोनों को एक

साथ ही रहना है।”

“एक साथ ही रहना है तो पृथ्वी ग्रह पर क्यों नहीं रह सकते।” जगमोहन की निगाह खुंबरी पर थी।

“क्योंकि खुंबरी सदूर पर रहना चाहती है। मुझे सदूर ग्रह से प्यार है।”

जगमोहन, एकटक खुंबरी को देखने लगा।

“मैं इस वक्त बहुत परेशान...”

“खुंबरी।” एकाएक जगमोहन बोला-“मैं सदूर पर नहीं रहना

चाहता। तुम चाहो तो मेरे साथ पृथ्वी पर चल सकती हो।”

खुंबरी की नजरें जगमोहन की तरफ उठीं।

जगमोहन गम्भीर निगाहों से उसे देख रहा था।

“मैं समझी नहीं। तुम क्या कहना चाहते हो?” खुंबरी बोली।

“यही कि मुझे सदूर अच्छा नहीं लगता। पृथ्वी अच्छी लगती है। वापस जाऊंगा।” जगमोहन गम्भीर दिखा।

“मुझे छोड़कर?”

“अगर तुम मेरे साथ नहीं चली तो मजबूरी होगी हमारा जुदा हो

जाना।”

खुंबरी की आंखें सिकुड़ीं।

“तुम मुझे छोड़कर जाने की बात कर रहे हो। क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते।” खुंबरी अजीब-से स्वर में बोली।

“मैं तुमसे प्यार करता हूं। तभी तो तुम्हें अपने साथ पृथ्वी ग्रह पर ले जाना चाहता...”

“तुमने सुना नहीं जगमोहन। मैंने अभी-अभी कहा था कि तुम सदूर पर ही रहोगे। मैं तुम्हें पृथ्वी ग्रह पर वापस नहीं जाने दूंगी। मैं तुमसे प्यार करती हूं। तुम्हें दूर क्यों जाने दूंगी।” खुंबरी ने तेज स्वर में कहा।

“प्यार मैं भी तुम्हें करता हूं परंतु मेरी दुनिया पृथ्वी पर बसती है।”

“खुंबरी की दुनिया सदूर ग्रह पर है। इसलिए तुम यहीं रहोगे। मेरे साथ।” इस बार खुंबरी के लहजे में आदेश जैसे भाव थे।

“तो तुम जबर्दस्ती मुझे सदूर पर रोक के रखोगी?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ गईं।

खुंबरी कुछ पल जगमोहन को देखती रही फिर कह उठी।

“तुम्हें अपने साथियों की चिंता है। कम-से-कम देवराज चौहान, नगीना और मोना चौधरी की तो चिंता होगी।”

“मुझे उन सबकी चिंता है।”

“तो दोबारा तुमने पृथ्वी पर जाने की बात की तो मैं उसी वक्त उन सबकी जान ले लूंगी।” खुंबरी मुस्कराई।

जगमोहन की आंखों में मौत के सर्द भाव आ ठहरे।

खुंबरी का असली रूप उसे दिखने लगा था।

खुंबरी उसे ही देखे जा रही थी।

एकाएक जगमोहन मुस्कराया और प्यार भरे स्वर में कह उठा।

“मैं तुमसे प्यार करता हूं खुंबरी। तुमसे अलग होने की तो सोच भी नहीं सकता। ये कहकर कि मैं पृथ्वी पर वापस जाऊंगा, तुम्हारा दिल टटोल रहा था कि तुम मुझसे कितना प्यार करती हो।”

खुंबरी हंसकर कह उठी।

“खुंबरी जगमोहन को बहुत प्यार करती है। इतना कि मैं तुम्हें हमेशा अपने पास रखूंगी।”

जगमोहन खुंबरी को देखता बेहद प्यार से मुस्कराया। फिर बोला।

“मेरे साथियों को कुछ मत कहना।”

“तुम भी पृथ्वी पर जाने के बारे में फिर मत कहना।” खुंबरी ने कहा। एकाएक वो परेशान-सी दिखने लगी-“धरा का न होना, मुझे बहुत व्याकुल कर रहा है। मुझे विश्वास नहीं होता कि उसकी जान चली गई है।”

“उसकी कमी मुझे भी तकलीफ दे रही है।” जगमोहन बोला।

“तुमने बबूसा से बात की कि वो दोलाम को मार दे?” खुंबरी ने उसे देखा।

“बात की, परंतु वो नहीं मानता दोलाम को मारने के लिए।” जगमोहन ने बेहद सामान्य स्वर में कहा।

“क्या कहता है?” खुंबरी गुर्रा उठी।

“कहता है उसकी दोलाम से कोई दुश्मनी नहीं है कि उसे मारे।”

“तुमने उसे कहा नहीं कि इस बात को मानकर, वो सबको कैद से आजाद करा लेगा।”

“कहा था। लेकिन उसने इंकार कर दिया।”

“अब या तो मैं बबूसा को वापस कैद में डालूंगी या उसकी जान लूंगी।” खुंबरी ने दांत पीसकर कहा।

“ऐसा मत करना। जल्दबाजी मत दिखाओ।” जगमोहन मुस्कराया।

“तो क्या तुम्हें अभी भी आशा है कि बबूसा मानेगा?”

“मैं उससे फिर बात करूंगा। वो जरूर मान जाएगा। मेरे ख्याल में उसे मेरी बात समझ में आ रही है कि दोलाम की जान लेकर वो सबको कैद से आजाद करा लेगा। मैंने बातों के दौरान उसे सोचते पाया था।”

“लेकिन अब मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है। अगर धरा जिंदा रहती तो आज रात दोलाम को उसने मार देना था। धरा के साथ मेरी ये बात तय हो गई थी। परंतु अब कोई और इंतजाम...”

“इतनी जल्दी क्यों है दोलाम की जान लेने की?”

“इससे भी ज्यादा जल्दी है जगमोहन।” खुंबरी ने शब्दों को चबाते हुए कहा-“दोलाम की हरकत ने मुझे परेशान कर रखा है। अब वो मेरे किसी काम का नहीं रहा। मैं उसकी सूरत भी नहीं देखना चाहती। ये तभी हो सकता है जब दोलाम की जान चली जाए। दूसरी तरफ डुमरा ने मुझे परेशान कर रखा है। मैं दोलाम को मारकर अपनी परेशानी कम करना चाहती हूं।” कहते हुए खुंबरी की नजर जगमोहन पर जा टिकी, फिर सिर

आगे करके बोली-“तुम सब कुछ ठीक कर सकते हो।”

“मैं?” जगमोहन ने खुंबरी की आंखों में झांका वो उसकी बात को भांप गया था।

“हां तुम जगमोहन। तुम आसानी से दोलाम को मार सकते हो।”

“ये बात मैंने तुमसे पहले कही थी, पर तुमने कहा था कि मैंने दोलाम को मारा तो ताकतें मेरी जान ले लेंगी कि मैंने उनके परिवार के सदस्य को क्यों मारा। ये काम करने से तुमने मुझे रोक दिया था।” जगमोहन इस नए हालातों को सब समझ रहा था।

“तुम तो जानते हो कि ताकतें मेरे अधीन हैं।” खुंबरी मुस्कराई।

“तो?”

“ताकतों को मैं संभाल लूंगी। तुम दोलाम को खत्म कर दो। जब तक वो जिंदा है खतरा मेरे सिर पर रहेगा। मुझे लगता है कि दोलाम को खुंबरी नहीं चाहिए। इस बहाने वो ताकतों का मालिक बनना चाहता है। ये तभी होगा, जब मैं मर जाऊंगी। तब दोलाम पलक झपकते ही ताकतों का मालिक बन जाएगा। ताकतें भी उसे स्वीकार कर लेंगी। उसे मार दो जगमोहन।”

जगमोहन कुर्सी पर बैठा, खुंबरी की आंखों में झांकता सोच रहा था कि इस औरत के प्यार के रंग कितने ज्यादा हैं, ये उसे अब पता चल रहा था। उससे प्यार करने का दम भरती है और उसे सदूर पर ही, अपने पास रखना चाहती है स्वयं उसके साथ पृथ्वी पर नहीं जाना चाहती, अलबत्ता उसके जबर्दस्ती पृथ्वी पर जाने की स्थिति में, ये उसे कैद भी कर सकती है। यानी कि उसे अब पृथ्वी पर नहीं जाने देगी, क्योंकि खुंबरी उससे प्यार का दम भरती है। अगर वो पृथ्वी ग्रह पर जाने की जिद करता है तो उसके साथियों की जान ले लेने की धमकी, पहले से ही दे दी है। यानी कि उसे अपना मजदूर बनाकर, उससे प्यार करना चाहती है। खुंबरी पहले ही कह चुकी है कि ताकतों ने दोलाम को परिवार के सदस्य के रूप में मान लिया है ऐसे में कोई दोलाम की जान लेता है तो ताकतें उसे नहीं छोड़ेंगी। परंतु अब दोलाम की मौत के लालच ने इसका दिमाग इतना हिला दिया है कि झूठ बोलकर, उसके हाथों दोलाम को मरवा देना चाहती है कि ताकतों से उसे बचा लेगी। स्पष्ट था कि खुंबरी मात्र स्वयं के लिए है। वो खुंबरी जब मुसीबत में पड़ती है तो मुसीबत से निकलने के लिए किसी को भी चारा बना सकती है, जैसे कि अब उसके हाथों दोलाम को खत्म करवा देना चाहती है। परंतु इससे खुंबरी को हासिल क्या होगा। दोलाम भी हाथ से जाएगा और उसे भी ताकतें खत्म कर देंगी। उस स्थिति में खुंबरी उसे ताकतों से नहीं बचा सकेगी। ये बात खुंबरी पहले ही स्वीकार कर चुकी है।

“क्या सोच रहे हो जगमोहन?” खुंबरी ने प्यार से पूछा।

जगमोहन को डुमरा के शब्द याद आने लगे कि खुंबरी बुरी है। ताकतों के संग रहकर वो बुरी हो चुकी है। उसकी ताकत बुराई ही है। खुंबरी कभी भी अच्छी नहीं हो सकती।

“जगमोहन।” खुंबरी ने पुनः पुकारा।

जगमोहन सोचों से बाहर निकला।

“तुम कहां गुम हो गए थे। मैं तुम्हें पुकार रही हूं।” खुंबरी ने हौले-से हंसकर कहा।

“मैं? मैं दोलाम के बारे में सोच रहा था कि उसे कैसे मारूं?” जगमोहन बोला।

“आज रात ही दोलाम को मार दो।” खुंबरी उत्साह भरे स्वर में कह उठी।

“पूरी कोशिश करूंगा।”

“दोलाम हमारे प्यार का दुश्मन बना...”

“मैंने दोलाम को मारा और ताकतों ने मुझे मार दिया तो...?”

“मैं तुम्हें ताकतों से बचा लूंगी। ताकतें मेरे इशारे पर ठहर जाएंगी।”

जगमोहन कहना चाहता था कि ताकतों के अपने नियम हैं। वो अपने परिवार के सदस्य के हत्यारे को कभी नहीं छोड़ेंगी। परंतु कहा नहीं, बल्कि मुस्कराकर खुंबरी को देखा।

“मुझे तुम पर भरोसा है कि तुम ताकतों से मुझे बचा लोगी।” जगमोहन बोला।

“मैं तुमसे प्यार करती हूं जगमोहन। खुंबरी ने पहली बार किसी से प्यार किया है।” खुंबरी ने जगमोहन का हाथ पकड़ लिया-“आज रात दोलाम को मार देना। उसकी वजह से मैं बहुत परेशान हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि दोलाम मुझे मारकर खुद ताकतों का मालिक बन जाना चाहता है। उसे सबक सिखा दो उसकी जान लेकर।”

“मैं ऐसा ही करूंगा।”

“ओह, मेरे प्यारे जगमोहन। तुम्हें पाकर मैं धन्य हो गई।” कहते हुए खुंबरी ने जगमोहन का हाथ चूमा।

जगमोहन मुस्कराकर खुंबरी को देखता रहा।

“मैं नहाना चाहती हूं। तुम भी मेरे साथ चलो हम दोनों...”

“मुझे अकेला छोड़ दो। मैं दोलाम के बारे में सोचना चाहता हूं।” जगमोहन एकाएक गम्भीर हो गया।

“ये ठीक है। मैं भी चाहती हूं कि तुम दोलाम को जल्दी-से-जल्दी खत्म कर दो।” कुर्सी से उठते खुंबरी ने कहा-“आज रात ही दोलाम को मार देना। उधर कल ओहारा डुमरा को मार देगा। मेरी परेशानियां दूर हो जाएंगी। उसके बाद मैं सदूर की रानी बनकर आराम की जिंदगी बिताऊंगी।” दो पल ठिठककर बोला-“और तुम सदूर के राजा बनोगे।”

जगमोहन ने शांत भाव में सिर हिलाया।

“मैं नहाकर आती हूं फिर एक साथ खोनम पीएंगे।” कहने के साथ ही खुंबरी ने उसका गाल चूमा और बाहर निकलती चली गई।

खुंबरी अब उस तरफ बढ़ रही थी जहां नहाने के लिए पानी का कुंड था।

तभी उसे कानों के पास किसी के मौजूद होने का एहसास हुआ

तो बटाका थामकर बोली।

“कौन है?”

“मैं हूं खुंबरी। अमाली। कई दिनों से तूने मेरे से बात नहीं की तो मैं खुद ही आ गई।” अमाली की आवाज कानों पड़ी।

खुंबरी रास्तों को तय करते आगे बढ़ी जा रही थी।

“क्या है?”

“तेरे को तो पता ही है कि मैं आने वाले वक्त का भविष्य बताती हूँ पर तूने पहले ही मुझे कह रखा है कि तुम्हारे प्यार के भविष्य में न झांकूं कि तुम्हारे और जगमोहन के प्यार का अंत कैसा होगा।”

खुंबरी के चेहरे पर व्यंग्य भरी मुस्कान उभर आई।

“तू मुझे क्या भविष्य बताएगी। मेरे से जान ले।” खुंबरी ने हंसकर कहा।

“बता तो?”

“जगमोहन दोलाम को मारेगा और ताकतें जगमोहन को खत्म कर देंगी।” खुंबरी का स्वर जहरीला हो गया

“तो अब तेरे को जगमोहन से प्यार नहीं रहा?”

“खुंबरी के लिए ताकतों का मालिक बने रहना बड़ी बात है। जबकि दोलाम, मुझे मारकर ताकतों का मालिक बन जाना चाहता है। इसलिए दोलाम से निबटना जरूरी हो गया है। जगमोहन जैसे पुरुष का क्या है। ऐसे पुरुष बहुत मिल जाएंगे। परंतु मैं अपने हाथों ताकतों को नहीं गंवाना चाहती। सब ठीक रहे तो ही प्यार अच्छा लगता है। खुंबरी को प्यार करने वाले पुरुषों की कमी नहीं है। प्यार करना अच्छा लगता है, लेकिन इतना भी अच्छा नहीं है कि ताकतों से दूर हो जाऊं। जगमोहन मुझे पृथ्वी पर ले जाना चाहता है। बहुत जल्द वो ये भी कहेगा कि मैं उसके साथियों को आजाद कर दूं। स्पष्ट है कि हममें तनाव खड़ा होने वाला है तो क्यों न जगमोहन को दोलाम के खिलाफ इस्तेमाल कर लूं। मुझे ताकतों की परवाह है, जगमोहन की नहीं।”

कुछ पलों बाद अमाली का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा।

“तू हां कहे तो मैं तेरे और जगमोहन के प्यार का अंत पहले ही देख लूं?”

“मेरे प्यार का अंत दोलाम और जगमोहन की मौत के साथ होने वाला है अमाली।” खुंबरी ने व्यंग्य से कहा-“खुंबरी का जीवन अपने लिए है और ताकतों के लिए है। कुछ दिन अवश्य मेरा दिमाग खराब हो गया था जगमोहन के लिए परंतु अब समझ गई हूं कि जगमोहन मेरा जीवन साथी नहीं बन सकता। शायद कोई भी नहीं बन सकता क्योंकि मुझे ऐसा जीवन जीने की आदत पड़ गई है, जिसमें साथी की जरूरत नहीं होती। शरीर की आग ठंडी करने का जब मन हो तो किसी भी पुरुष को थाम लो। सब एक जैसे ही होते हैं।”

“मेरे ख्याल से दोलाम के साथ तुम्हारी जिंदगी चल सकती है।”

“वो मेरी नजरों में सिर्फ सेवक है। बेशक ताकतों ने उसे परिवार में शामिल कर लिया है, परंतु मेरे लिए वो सेवक से ज्यादा अहमियत नहीं रखता। दोलाम कभी भी मेरे शरीर को प्यार नहीं कर सकता मैं खुंबरी हूं। ताकतों की मालिक और दोलाम सिर्फ मेरा सेवक है लेकिन अब दोलाम मुझे पसंद नहीं। मेरा सेवक होते हुए उसने ये कैसे सोच लिया कि मैं उससे प्यार करने लगूंगी। उसके मन में कुछ और है। वो ताकतों का मालिक बनना चाहता है मुझे मार कर। पर खुंबरी से जीत पाना आसान भी तो नहीं। अब दोलाम अपनी जान गंवा देगा।”

“मैं फिर कहती हूं एक बार मुझे अपने और जगमोहन के प्यार के भविष्य में झांक लेने दे।”

“वो मैंने तेरे को पहले ही बता दिया है। मेरे और जगमोहन के प्यार का अंत शायद आज रात ही हो जाए। जगमोहन दोलाम की जान लेगा और ताकतें जगमोहन की जान ले लेगीं। तू जा अब।” इसके साथ ही खुंबरी ने बटाका छोड़ दिया।

आने वाले खतरे को जगमोहन पूरी तरह भांप चुका था। खुंबरी के मन में पूरी तरह क्या है ये तो वो नहीं जान सका था परंतु इतना तो समझ चुका था कि खुंबरी उसके द्वारा अपना मतलब निकालना चाहती है। उसके हाथो दोलाम को खत्म करवा कर, ताकतों द्वारा उसे भी खत्म करवा देना चाहती है। वो सिर्फ अपने मतलब के लिए जी रही है। उसे सिर्फ स्वयं से, स्वयं की बेहतरी से मतलब था। कम-से-कम वो खुंबरी के काबिल नहीं

है। ऐसा भी कह सकते हैं कि या खुंबरी उसके काबिल नहीं। ये जोड़ी कभी भी नहीं बन सकती थी। कितनी तेजी से दोनों प्यार की सीढ़ियां चढ़े थे लेकिन सीढ़ियों की समाप्ति पर छत कहीं भी नहीं थी। अब सिर्फ वापसी का रास्ता ही बचा था। खुंबरी अपना मतलब निकालना। चाहती थी। अपने बिगड़े काम संवारना चाहती थी। उसे लेकर खुंबरी में जो प्यार का तूफान

उठा था, वो खत्म हो गया था। स्वयं उसके मन में भी एकाएक तब प्यार झाग की तरह बैठ गया था जब उसे खुंबरी ने कहा कि वो उसे सदूर पर ही रखेगी। बेशक जबर्दस्ती ही सही या उसे धमकाकर कि अगर सदूर जाने का इरादा किया तो उसके साथियों की जान ले लेगी।

जगमोहन को लग रहा था जैसे सपने से बाहर निकला हो। खुंबरी का प्यार बिल्कुल सपने जैसा ही रहा था। आंख खुली और सब कुछ खत्म। लेकिन जगमोहन का दिल नहीं टूटा था। जाने क्यों उसे महसूस हो रहा था कि ये तो होना ही था। खुंबरी दिखने में जितनी उजली थी, भीतर से उतनी ही काली थी। उसे ताकतों से प्यार था। अपने से मतलब था। प्यार उसके लिए जरूरी चीज नहीं था।

जगमोहन कमरे से निकलकर, खाने वाले कमरे में पहुंचा।

बबूसा वहां नहीं था। ढूंढ़ने पर एक कमरे में बबूसा मिल गया। वो पलंग पर लेटा था और उसे देखते ही उठ बैठा। उलझन आ गई उसके चेहरे पर कि जगमोहन उसके पास क्यों आया है।

“मैंने खुंबरी को छोड़ दिया बबूसा।” जगमोहन शांत-गम्भीर स्वर बोला।

“छोड़ दिया?” बबूसा के होंठों से निकला-“या खुंबरी ने तुम्हें

छोड़ा?”

“दोनों तरफ से एक साथ ही ये हुआ शायद।”

“क्यों?” बबूसा की आंखें सिकुड़ीं।

“खुंबरी को मेरे से ज्यादा ताकतों से प्यार है और मुझे भी समझ आ गया कि खुंबरी मेरे लिए नहीं बनी।”

लम्बे पलों तक बबूसा, जगमोहन को देखता रहा फिर बोला।

“तुम मेरे साथ कोई चाल तो नहीं चल रहे?”

“नहीं बबूसा।” जगमोहन ने व्याकुल स्वर में कहा-“मैंने जो कहा है, वो ही सच है।”

“मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब तुमसे क्या कहूं? खुंबरी कहां है?”

“वो नहाने गई है।”

“उसे पता है कि तुमने उसे छोड़ दिया है।”

“अभी नहीं।”

“हुआ क्या?”

“तुम्हारे जानने लायक सिर्फ इतना ही है कि खुंबरी ने मुझे कहा कि मैं दोलाम को मार दूं। जबकि पहले उसने मुझे ये कहकर ऐसा करने को मना कर दिया था कि तुमने दोलाम को मारा तो ताकतें तुम्हें खत्म कर देंगी।”

“तो खुंबरी को अब तुम्हारी परवाह नहीं।”

“खुंबरी ने कहा कि वो मुझे ताकतों से बचा लेगी। पर ये बात मुझे सही नहीं लगती।”

तभी दरवाजे की तरफ से दोलाम की आवाज आई।

“तुम मुझे मारो तो खुंबरी तुम्हें ताकतों से नहीं बचा सकती।” दोनों की निगाह घूमी।

दरवाजे पर दोलाम खड़ा जगमोहन को देख रहा था।

जगमोहन जाने क्यों सतर्क हो उठा।

दोलाम और जगमोहन एक-दूसरे को देखते रहे।

“ताकतों के परिवार के सदस्य की कोई जान ले तो ताकतें उसे नहीं छोड़ेंगी।” दोलाम ने गम्भीर स्वर में कहा-“खुंबरी तुम्हें गलत राह पर डालना चाहती है। मैं उसकी आदतों से पुराना वाकिफ हूं। उसे सिर्फ ताकतों की परवाह है। अपने कामों की परवाह है। मैं तो पहले से ही हैरान था कि खुंबरी तुम पर कैसे मर मिटी।”

“तुम जानते थे कि ऐसा होगा?” जगमोहन ने पूछा।

“मैं इतना ही जानता था कि ये सब ज्यादा नहीं चलेगा।” दोलाम बरबस ही मुस्करा पड़ा-“इसी कारण मैंने जल्दी दिखाई और खुंबरी को प्यार करने का दावा करने लगा, जबकि मैं पहले से ही जानता था कि खुंबरी नहीं मानेगी। मुझे इस बात की परवाह भी नहीं थी। इस बहाने मैं खुंबरी को रास्ते से हटाकर, खुद ताकतों का मालिक बन जाना चाहता हूं। मेरा भरोसा करो। मैं खुंबरी की तरह बुरा नहीं बनूंगा। मैं सदूर का

राजा बनना चाहता हूं।”

“तुम ये बात मुझसे क्यों कह रहे हो?”

“इसलिए कि मेरी सहायता करो और खुंबरी को आने वाली रात में अपने में उलझाए रखो। सम्भव है आज रात खुंबरी के जीवन की आखिरी रात हो। मैंने सब कुछ सोच लिया है कि क्या करना है।”

“तुम खुंबरी की जान लेने जा रहे हो?”

“हां।”

“कैसे?”

“ये नहीं बताऊंगा। आज रात को तुम खुद ही जान जाओगे कि मैंने कौन-सा हथियार इस्तेमाल किया।”

बबूसा ने बेचैनी से पहलू बदला।

“खुंबरी चाहती है कि आज रात मैं तुम्हें मार दूं।” जगमोहन

बोला।

“ये तो अच्छी बात है। तुम खुंबरी को इसी बहाने उलझाए रखो। अपना वार कर जाऊंगा।” दोलाम ने कहा।

“तुम बताओगे नहीं कि किस तरह खुंबरी पर वार करोगे रात को।”

“इस बात को राज ही रहने दो।” दोलाम मुस्कराया।

“तुम्हारा वार सफल होगा?”

“सफल होने की पूरी आशा है।”

“खुंबरी के मरते ही तुम ताकतों के मालिक बन जाओगे।”

“ताकतें अपने मालिक के तौर पर मुझे स्वीकार कर लेंगी।”

“फिर तुम भी खुंबरी की तरह बुरे बन जाओगे।”

“कभी नहीं।” दोलाम ने दृढ़ स्वर में कहा-“मेरी मंजिल सिर्फ सदूर का राजा बनना है। मैं आराम से अपना जीवन व्यतीत करना चाहता हूं। राजा बन जाने पर मैं ताकतों को अपने से अलग कर दूंगा।”

“क्यों?”

“मैं अब साधारण जीवन जीना चाहता हूं और ताकतों के रहते ऐसा नहीं हो सकता। ताकतें मेरे पास रहेंगी और मैं खुंबरी की तरह हर वक्त परेशान और क्रोध में नहीं रहना चाहता। स्वस्थ जीवन जीना चाहता हूं।”

“तब तो मैं तुमसे कहूंगा कि ताकतों को डुमरा के हवाले कर देना।”

“सदूर का राजा बन जाने के बाद मैं ऐसा ही करूंगा।” दोलाम ने सामान्य स्वर में कहा।

जगमोहन ने बबूसा को देखा।

बबूसा व्याकुल था।

“क्या ये विश्वास के काबिल है?” जगमोहन ने बबूसा से पूछा।

बबूसा ने दोलाम को देखा फिर जगमोहन की तरफ सहमति से सिर हिलाकर कहा।

“तुम इस पर विश्वास कर सकते हो। मुझे इसमें कोई बुराई नहीं दिखी। अपने तौर पर सतर्क जरूर रहो।”

जगमोहन ने दोलाम को देखकर कहा।

“मैं खुंबरी को व्यस्त रखूंगा रात को। तुम अपना वार कर देना।”

“कहीं फिर से खुंबरी के लिए तुम्हारे मन में प्यार तो नहीं उछल पड़ेगा और तुम खुंबरी से मेरी बात कह दो।”

“ऐसा कभी नहीं होगा।” जगमोहन मुस्कराया-“तुम खुंबरी पर कब वार करोगे? जब वो कमरे के भीतर होगी तब या बाहर...”

“तुम क्यों पूछ रहे हो?” दोलाम ने पूछा।

“मैं तुम्हारा वार आसान करना चाहता हूं अगर तुम मुझे अपनी योजना बता दो तो तुम्हारे लिए बेहतर होगा।”

दोलाम के चेहरे पर सोच के भाव उभरे फिर कह उठा।

“खुंबरी पर वार कमरे से बाहर होगा। क्या तुम उसे रात को, कि बहाने से कमरे के बाहर भेज सकते हो?”

“कोशिश करूंगा।”

“ऐसा कर सको तो अच्छा होगा। जब खुंबरी को बाहर भेजोगे तो बाहर घात लगी होगी। काम आसान हो जाएगा।”

जगमोहन ने दोलाम को देखकर सिर हिलाया और बाहर निकल गया।

उसी पल बबूसा उठा और दोलाम से कह उठा।

“तुम रानी ताशा के हाथों, खुंबरी की जान लेना चाहते हो।”

“तभी रानी ताशा सदूर का राज्य मेरे हवाले करेगी।” दोलाम बोला।

“तुम रानी ताशा को खतरे में डाल रहे हो।”

“रानी ताशा बच्ची नहीं है। वो बेहतरीन योद्धा है। वो एक ही वार में खुंबरी को खत्म कर देगी। मैं रानी ताशा को बेहतरीन तलवार दूंगा। वो जरूर कामयाब रहेगी।” दोलाम ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

“इससे तो बेहतर है ये काम तुम राजा देव के हवाले कर दो। राजा देव ये काम बढ़िया ढंग से...”

“रानी ताशा की इच्छा है कि वो स्वयं खुंबरी की जान लें। ये बात मैं अच्छी तरह महसूस कर चुका हूं।”

तभी जगमोहन कमरे के दरवाजे पर दिखा।

“तो तुम रानी ताशा के हाथों खुंबरी को खत्म करवाना चाहते हो।”

बबूसा और दोलाम ने तुरंत जगमोहन को देखा।

“तो तुमने सब सुन लिया।”

“जवाब दो मेरी बात का।”

“रानी ताशा की ये ही इच्छा है। उनकी इच्छा पूरी करूंगा तो वो मुझे सदूर का राज्य दे देंगी।” दोलाम कह उठा।

जगमोहन ने गहरी सांस ली।

“तुम्हें धरा के बारे में बता दूं कि वो अपनी मौत नहीं मरी।”

दोलाम बोला-“ताकतों ने मुझे बताया कि डुमरा ने शक्तियों के कण से बनी तलवार का वार खुंबरी पर किया था और उसी वक्त वार से बचने के लिए खुंबरी ने धरा को अपने सामने खींच लिया और तलवार धरा के सीने में जा लगी। खुंबरी ने अपनी मौत, धरा के ऊपर डाल दी।

“ओह।” जगमोहन के होंठ सिकुड़े-“ये खबर मेरे लिए नई है।”

“मैं जानता हूं कि खुंबरी को सिर्फ अपनी परवाह है।” दोलाम ने कहा-“वो सिर्फ अपने लिए ही जीती है। अपना पेट पहले भरती है और बाद में दूसरे के बारे में सोचती है।”

“रात को।” जगमोहन बोला-“जैसे भी हो, मैं खुंबरी को कमरे से बाहर जरूर भेजूंगा।” जगमोहन की आंखों में दृढ़ता झलक रही थी। अब चेहरा शांत था, क्योंकि वो किसी निश्चय पर पहुंच चुका था-“लेकिन तुम रानी ताशा को कैसे कैद से निकालोगे? वहां तो ताकतें पहरा दे रही है।”

“मेरे लिए किसी को वहां से निकाल लाना कोई समस्या नहीं है।” दोलाम ने कहा।

“ऐसा है तो तुम सबको वहां से बाहर ले आओ। सब मिलकर खुंबरी पर हमला...”

“मैं सिर्फ रानी ताशा को ही वहां से बाहर निकालूंगा। मुझे यकीन है कि रानी ताशा जब घात लगाकर खुंबरी पर तलवार से हमला करेगी तो खुंबरी के बच जाने का सवाल ही नहीं उठता।” दोलाम ने गम्भीर स्वर में कहा।

जगमोहन ने दोलाम को देखा और सिर हिलाकर कह उठा।

“तुम्हारी मर्जी। पर सोचो कि अगर रानी ताशा के हमले से खुंबरी बच गई तो तब क्या स्थिति होगी। तब...”

“जब मुझे पता हो कि काम हो जाएगा तो मैं आगे की बात नहीं सोचता।” दोलाम ने शब्दों को चबाकर कहा-“रानी ताशा जबर्दस्त योद्धा है और रानी ताशा का घात लगाकर खुंबरी पर वार करने का मतलब है कि खुंबरी की जान गई।”

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