“बापू-।” मोना चौधरी के होंठों से कांपता स्वर निकला।

मुद्रानाथ के चेहरे पर शांत मुस्कान फैल गई।

“मेरा नमस्कार है आपको-।” देवराज चौहान तलवार नीचे रखकर हाथ जोड़ते हुए कह उठा फिर तलवार को पुनः उठाकर हाथ में पकड़ लिया।

मोना चौधरी कुछ कहने लगी तो मुद्रानाथ ने टोका।

“कुछ देर बाद बात करना मिन्नो-। अभी मैं व्यस्त हूं-।”

मोना चौधरी फिर नहीं बोली।

मोगा, मुद्रानाथ को असली अवस्था में आया पाकर हक्का-बक्का खड़ा था। उसे विश्वास नहीं आ रहा था कि शैतान के अवतार की जादुई शक्ति को साधारण मनुष्यों ने बेकार कर दिया है। मुद्रानाथ को मुक्त करा लिया है। वो आंखें फाड़े वैसे ही खड़ा मुद्रानाथ को देख रहा था।

मुद्रानाथ ने मोगा को देखा।

मोगा के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा। खुद को खतरे से घिरा

पाकर, उसने होंठों ही होंठों में शैतानी मंत्र बुदबुदाया कि वहां से गायब हो सके, परन्तु उसका मंत्र कामयाब नहीं हो सका। वो समझ गया कि मुद्रानाथ ने अपनी शक्ति इस्तेमाल करके मंत्र को बेकार कर दिया है।

“तू यहां से नहीं जा सकता मोगा।” मुद्रानाथ ने शांत स्वर में कहा-“तेरा कोई मंत्र, कोई शक्ति मेरे सामने काम नहीं करेगी। शैतान का अवतार भी मुझे बुत न बना पाता, अगर तूने चालाकी से मुझे बातों में उलझा न लिया होता। धोखेबाजी तो तुम लोगों की दुनिया का पहला उसूल है।”

मोगा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। चेहरा फक्क था।

“मैं अपनी गलती के लिये क्षमा चाहता हूं मुद्रानाथ-।”

“शैतानों को माफ करने का मतलब है, सांप को बगल में सुलाना। तुम्हें छोड़ना गलत होगा।” मुद्रानाथ ने स्थिर लहजे में

कहा-“मैं तुम लोगों के पास लड़ने नहीं आया था। मैं तो गुरुवर का दूत बनकर, गुरुवर की तरफ बात करने शैतान के अवतार के पास आया था। लेकिन तब मुझे ध्यान नहीं रहा कि शैतान की धरती पर शराफत वाली कोई बात हो ही नहीं सकती।”

“मैं माफी चाहता हूं मुद्रानाथ।” मोगा घबरा कर बोला-“मैं हमेशा के लिये तुम्हारी सेवा में आने को तैयार हूं-।”

“तुम्हारे जैसे सेवक की मुझे इच्छा नहीं है।” कहने के साथ ही गुरुवर ने दायां हाथ उठाया और तर्जनी उंगली मोगा की तरफ कर दी। उंगली से तीव्र चमक से भरी किरण निकली और मोगा के शरीर से जा टकराई।

इसके साथ ही मोगा का शरीर जल उठा।

न कोई चीख। न कोई तड़प।

फिर देखते ही देखते मोगा का शरीर गायब हो गया। जहां वो था। अब वहां कुछ भी नहीं था।

सब, हक्के-बक्के से ये सब देख रहे थे।

देवराज चौहान, मुद्रानाथ की तिलस्मी-मायावी और जादुई शक्तियों से बहुत हद तक वाकिफ था। जब वो दालू बाबा और हाकिम से टक्कर लेने गया था तो मुद्रानाथ ने उस दुनिया के हथियार देकर उसकी बहुत सहायता की थी। ये बातें जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘ताज के दावेदार’।

मोगा को इस तरह गायब होते पाकर सबकी नजरें मुद्रानाथ पर गईं तो वहां धुंध का दायरा नजर आया। जहां कुछ पल पूर्व मुद्रानाथ खड़ा था।

“मोना चौधरी! तुम्हारा बाप मिलेएला तेरे को।” रुस्तम राव बोला-“तुम खुशकिस्मत होएला।”

मोना चौधरी ने रुस्तम राव को देखा। चेहरा गम्भीर था। बोली कुछ नहीं।

“आंखें तभी तो पहचानी लग रही थीं।” देवराज चौहान कह उठा-“तुम्हारे पिता ने मेरी बहुत सहायता की थी जब पेशीराम तीन जन्म पूर्व के वक्त में हमें ले गया था।”

“मुझे हैरानी है कि मैं तीन जन्म पहले के पिता की आंखें देखकर भी उन्हें न पहचान पाई-।”

करीब आधा मिनट वो धुंध रही फिर छंट गई।

मुद्रानाथ पुनः सामने नजर आया। अब वो फ्रेश नजर आ रहा था। जैसे नहा-धोकर हटा हो। पीछे को जाते बाल ढंग से संवरे हुए थे। थकान का कहीं भी नामो-निशान नहीं था। गले में मोतियों की माला। माथे पर चन्दन का तिलक। चेहरे पर ऐसा तेज था कि ज्यादा देर उस पर नजर नहीं टिकाई जा पा रही थी। कमर में धोती बांध रखी थी, जिस का पल्लू कंधे के पार होकर लटक रहा था। पांवों में कुछ नहीं पहना था।

“आप पत्थर के बुत कैसे बन गये?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“मां कैसी है बापू?” मोना चौधरी के होंठों से निकला-“बे-बेला-तो ठीक है?”

मुद्रानाथ के होंठों पर मुस्कान उभर आई। उसने मोना चौधरी

को देखा।

“तेरी मां रौनक देवी बिल्कुल ठीक है। बेला भी ठीक है।” मुद्रानाथ ने कहा-“तेरे को दोनों अक्सर याद करती हैं। वायदा करके आई थी कि जल्दी ही उनसे मिलने आयेगी। लेकिन तू आई नहीं मिन्नो।”

“आ नहीं सकी बापू-।” मोना चौधरी के स्वर में उदासी की झलक उभरी-“दालू बाबा और शैतान हाकिम को खत्म करने में ऐसी उलझी कि सब कुछ जैसे भूल गई-।”

“तो अब कब आयेगी। क्या कहूं मिन्नो बेटी तेरी मां से?”

“जल्दी आऊंगी बापू-।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

“चाहे तो, बेशक मेरे साथ चल। मैं-।”

“अभी नहीं जा सकूँगी बापू-।”

“मर्जी तेरी। जब मन करे, आ जाना। पेशीराम को याद करना। वो तुम्हें ले आयेगा।”

“अच्छी बात है बापू-।”

मुद्रानाथ ने देवराज चौहान को देखा।

“कैसा है देवा?”

“अच्छा हूं। बहुत अच्छा हूं-।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“तेरे पिता चौधरी विक्रम सिंह से एक बार मुलाकात हुई थी। वो तेरे बारे में बात कर-।”

“बापू कैसे हैं ?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“अच्छे हैं चौधरी साहब।” मुद्रानाथ मुस्करा रहा था-“तेरी ताई

सोमवती तेरे को गालियां देती रहती है कि रात को चुपचाप उठकर देवा चला या और फिर वापस आया ही नहीं। बहन संध्या रोती है कि-।”

“मैं भी क्या करता-।” देवराज चौहान के स्वर में हल्का-सा कम्पन उभरा-“उस वक्त मैं मजबूर था। मेरे पास वक्त कम था। तिलस्म तोड़ना था मुझे। उस रात मोना चौधरी की बिल्ली ने ही मुझे नींद से उठाया और वहां से चलने का इशारा किया। तब रुक नहीं सकता था। अगर घर में ये कहता कि मैं जा रहा हूं तो क्या वो लोग मुझे जाने देते। तीन जन्म पहले के रिश्तेदार हैं। मेरे परिवार के लोग हैं। मैं उनका खून हूं।”

“तो चल मेरे साथ। मैं तुझे उनके पास ले चलता हूं-।”

“अभी तो शायद हम में से कोई भी नहीं जा पायेगा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

मुद्रानाथ ने सब पर निगाह मारी।

जगमोहन से नजरें टकराई तो जगमोहन ने तुरन्त दोनों हाथ जोड़ दिए।

“आज भी, मेरे सामने तेरा वो ही ढंग है।” मुद्रानाथ कह उठा-“खामोशी से हाथ जोड़ देना।”

“मैं आपकी इज्जत करता हूं। आप पहले भी बड़े थे और आज भी बड़े हैं।” जगमोहन कह उठा।

मुद्रानाथ के होंठों पर छाई मुस्कान गहरी हो गई।

तभी मोना चौधरी कह उठी-

“लेकिन बापू, आप यहां शैतान के अवतार की धरती पर कैसे? शैतान के अवतार ने आपको बुत बना दिया। ये सब कैसे हुआ? मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा।”

“सब बताता हूं। तुम सब के बारे में जानूंगा कि यहां क्या कर रहे हो। कैसे आये? लेकिन तुम सब ही थके हुए लग रहे हो। नहा-धोकर कुछ आराम कर लो तो ज्यादा बेहतर ढंग से बात हो सकेगी।”

“यहां पानी तो है नहीं।” राधा कह उठी-“मुझे तो भूख भी बहुत लग रही है।”

मुद्रानाथ ने राधा को देखा फिर कह उठा।

“सब कुछ मिलेगा।” फिर देवराज चौहान से बोला-“तलवार।” कहने के साथ ही हाथ आगे बढ़ा।

देवराज चौहान ने तलवार मुद्रानाथ के हाथ में थमा दी। तलवार

थाम कर मुद्रानाथ ने क्षणिक आंखें बंद कीं। दो-तीन बार होंठ हिल उसके बाद तलवार की नोक को जमीन पर लगाया तो उस जगह से पानी की तेज-मोटी धारा फूट पड़ी।

“तलवार लो देवा।” मुद्रानाथ ने कहा-“जमीन के जिस हिस्से पर तलवार लगाओगे, वहीं से पानी निकलने लगेगा। अपनी जरूरत के मुताबिक पानी का इन्तजाम कर लो।”

दूर, खुद को दो फीट का बनाये, जिन्न बाधात दिलचस्पी भरी निगाहों से ये सब देख रहा था।

सब नहा-धोकर खुद को हल्का महसूस कर रहे थे। मुद्रानाथ ने अपनी शक्तियों के दम पर उनके सामने खाना भी हाजिर कर दिया था। जब वे खाने से फारिग हुए तो देखते ही देखते सारे बर्तन एकाएक गायब हो गये। थकान उन सब पर हावी थी, परन्तु बहुत हद तक वे फ्रेश भी महसूस कर रहे थे।

“नीलू-!” राधा अजीब-से स्वर में बोली-“मुझे तो ये देखकर बहुत अच्छा लग रहा है कि यहां खाना बनाना ही नहीं पड़ता। न तो बाजार से सब्जी लाने की और उसे काट कर बनाने की मुसीबत और फिर, न बर्तन साफ करना। सब कुछ खुद-ब-खुद ही आ जाता है।”

“हां।” महाजन की गम्भीर निगाह मुद्रानाथ पर थी।

“तू उससे पूछ ले कि ये सब कैसे किया जाता है। मालूम होते

ही मैं सारी उम्र के लिये खाना बनाने से मुक्ति पा जाऊंगी।”

“ये ऐसी विद्या होती है, जिसे हासिल कर पाना, हम जैसे लोगों

के लिये असम्भव है राधा।” महाजन ने बोतल से घूंट भरते हुए कहा-“कठिन तपस्याओं के दौर से गुजरना पड़ता है। वो सब काम हम लोगों के बस का नहीं।”

“तेरे जैसा बहादुर भी नहीं कर सकता ये काम-?”

“नहीं।”

“फिर तो मानना ही पड़ेगा कि ये कार्य वास्तव में कठिन होगा- ।” राधा सहमति भरे ढंग से कह उठी।

सब नीचे बिछे कपड़े पर बैठे थे।

मुद्रानाथ उनके सामने मौजूद था।

“नीलू!” राधा धीमे से कह उठी-“ये लोग अभी यहां व्यस्त हैं।”

“क्या मतलब?”

“हम वहां चलते हैं। उस बड़े से पत्थर के पीछे। बहुत देर हो गई प्यार किए। वहां प्यार करेंगे।”

“अभी प्यार वाली बात को अपने दिमाग से निकाल दो।”

“क्यों?” राधा ने मुंह बनाया-“मेरा तो बहुत मन-।”

“राधा-।” महाजन ने राधा को घूरा।

“नाराज क्यों होता है नीलू! चल, ठीक है। बाद में सही-।”

तभी मोना चौधरी की आवाज सबको सुनाई दी।

“बापू, आपने बताया नहीं कि आप यहां कैसे पहुंचे और बुत कैसे बन गये?”

मुद्रानाथ के चेहरे पर गम्भीरता थी। कुछ पल खामोश रहकर कह उठा।

“डेढ़ बरस पहले की बात है। गुरुवर ने अपनी बेहद ज्यादा चेष्टाओं के बाद जाना कि शैतान के अवतार की नगरी कहां है। साथ ही शैतान के अवतार के बारे में जानकारी प्राप्त की तो उन्होंने पाया वो द्रोणा है। वो ही द्रोणा जो कभी उनका शिष्य हुआ करता था और उनसे लड़ाई-कौशल की शिक्षा ग्रहण करता था, परन्तु कालूराम की सोहबत में पड़कर वो बुरी आदतों का शिकार हो गया था। यही वजह रही कि तीन जन्म पहले जब उसने गलत हरकत की तो तुम लोगों ने उसकी जान ले ली-।” कालूराम के बारे में जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित दो उपन्यास “हमला” एवं “जालिम”।

सबकी निगाह मुद्रानाथ पर थी।

“गुरुवर बहुत ही महत्वपूर्ण यज्ञ शुरू करने जा रहे थे। लेकिन उनकी शक्तियों ने गुरुवर को इस बात का एहसास दिला दिया था कि यज्ञ के दौरान शैतान का अवतार यानि कि द्रोणा उन्हें परेशान करने की चेष्टा करेगा और यज्ञ को खराब करने का भरपूर प्रयत्न करेगा। गुरुवर की निगाहों में शैतान के अवतार को ऐसा करने से रोकना जरूरी था। द्रोणा की तरफ गुरुवर की गुरु दक्षिणा अभी बाकी है। गुरुवर यज्ञ पर बैठते हुए मुझे समझा कर यहां भेजा कि मैं शैतान के अवतार को गुरुवर के खिलाफ कुछ करने से रोकूं-।”

“ये कब की बात है?” पारसनाथ ने टोका।

“डेढ़ बरस पहले की बात बता रहा हूं।”

पारसनाथ सिर हिलाकर रह गया।

“उधर गुरुवर अपने यज्ञ में व्यस्त हुए और मैं यहां आ पहुंचा। शैतान के अवतार को तलाश करने में मुझे जरा-सी भी मेहनत नहीं करनी पड़ी। मैं यहां पर पहुंचा ही था कि वो अचानक मेरे सामने प्रकट हो गया। द्रोणा ने बताया कि शैतान ने मेरे आने की खबर दी है। द्रोणा ने मुझे पूर्व जन्म के हिसाब से स्पष्ट रूप से पहचाना कि मैं मिन्नो का पिता मुद्रानाथ हूं-। अपने पूर्व जन्मों के बारे में जानने की शक्ति उसके पास है।”

“फिर क्या हुआ?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

“मैंने द्रोणा से कहा कि गुरुवर ने मुझे नुमाईंदा बनाकर, गुरु दक्षिणा लेने भेजा है, जो तुम अपने पूर्व जन्म में नहीं दे पाये।” मुद्रानाथ शांत स्वर में कह रहा था-“तो द्रोणा हंस पड़ा। बोला कि गुरुवर के पास कोई कमी नहीं है कि गुरु दक्षिणा लेने के लिये, खास तौर से मुझे यहां भेजना पड़ा है। फिर भी मैं पूर्व जन्म की गुरु दक्षिणा देने को तैयार हूं, लेकिन गुरु दक्षिणा मेरे आज के देवता शैतान के खिलाफ हुई तो नहीं दे पाऊंगा। मैं समझ गया कि उसे आभास हो गया है कि मैं क्या कहने वाला हूं।”

“सच में उसे मालूम था कि आप क्या कहने वाले हैं उसे?” जगमोहन बोला।

“हां-।” मुद्रानाथ ने हौले से सिर हिलाया-“मैंने उसे कहा कि गुरुवर ने गुरु दक्षिणा की बाबत कहा है कि वो कभी भी अपनी

शैतानी हरकतें जारी रखने के लिये उनकी नगरी का रुख नहीं करेगा। उनके खिलाफ काम नहीं करेगा। अगर ये बात मानते हो तो समझो तुमने गुरुवर को गुरु दक्षिणा दे दी-। लेकिन द्रोणा न स्पष्ट कहा कि गुरुवर की इस बात को वो किसी भी हालत में नहीं मान सकता। क्योंकि इस जन्म के वो शैतान का सेवक है। शैतान का हुक्म ही उसके लिये सब कुछ है। और उसे शैतान का हुक्म मिल चुका है कि गुरुवर की नगरी में जाकर, उस बाल को तलाश करना है, जिसमें, यज्ञ शुरू करने से पहले गुरुवर ने अपनी सारी शक्तियां समेटकर, बाल को कहीं छिपा दिया है।”

सब खामोशी से मुद्रानाथ को देख रहे थे।

“मैंने द्रोणा को बहुत समझाने की चेष्टा की लेकिन वो तो शैतान का अवतार है। भली बात को कैसे समझ पाता।” मुद्रानाथ पुनः कह उठा-“तो मैंने उसे कहा कि गुरुवर ने ये भी कहा है कि अगर द्रोणा ये बात न माने तो उसे कह देना, ग्रहों के योग के हिसाब से धरती से मनुष्यों के पांव जब उसकी शैतानी धरती पड़ेंगे तो उसे बहुत नुकसान होगा। अगर वो गुरुवर को दक्षिणा दे देता है तो मनुष्य उसकी धरती पर नहीं पहुंच पायेंगे। वो शैतान के अवतार का सेवक है। इन बातों का उस पर क्या असर होना था। अलबत्ता उसने मुझे कहा कि न तो वो गुरुवर की बात मानेगा और न ही इस बात पर यकीन करता है कि साधारण मनुष्य उसकी धरती पर कोई अनर्थ कर सकते हैं। वो बोला, धरती से कुछ मनुष्य उसकी जमीन पर आने वाले हैं। मैं तुम्हें पत्थर बना रहा हूं। ताकि गुरुवर की बात को झूठी साबित करके, ये बता सकूं मनुष्य मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सके। उन मनुष्यों के खत्म होने के बाद ही तुम्हें असली रूप में लाऊंगा। अपने तक पहुंचने के लिये मैं मनुष्यों के लिए तीन दरवाजों का निर्माण करता हूं। पहला दरवाजा तुम होंगे। मुझ तक पहुंचने से पहले वो तुम्हें असली रूप में लायेंगे। उसके बाद बाकी के दो दरवाजों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन मायावी-जादुई ताकतों के सामने मनुष्यों की क्या बिसात-।”

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई।

“फिर का हौवो मुद्रानाथो-।”

“शैतान के अवतार यानि कि द्रोणा ने मुझे बचने का मौका देने से पहले ही पत्थर बना दिया। मैं उसे कामयाब न होने देता, परन्तु तभी मोगा मुझसे बातचीत करने लगा और शैतान के अवतार को अपनी शक्ति का मुझ पर इस्तेमाल करने का वक्त मिल गया। मैं पत्थर बन गया।”

“आपुन शैतान के अवतार की मुंडी मरोड़ेला-।”

महाजन ने बोतल से घूंट भरा।

तभी देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला।

“एक बात समझ में नहीं आती कि यज्ञ से पहले, गुरुवर को अपनी सारी शक्तियां बाल में समेटने की क्या जरूरत थी?”

“सख्त आवश्यकता थी ऐसा करने की।” मुद्रानाथ ने कहा-“लम्बी तपस्या के पश्चात गुरुवर इस वक्त जिस यज्ञ में व्यस्त है, उस यज्ञ की समाप्ति पर, गुरुवर एक नई शक्ति को पा लें। ऐसे में यज्ञ के समय गुरुवर के पास किसी भी तरह की शक्ति मौजूद नहीं होनी चाहिये। नई शक्ति को पाने के लिये इस नियम का पालन करना अनिवार्य है। यही कारण था कि गुरुवर को अपनी सारी शक्तियां बाल में समेट कर कहीं छिपा देनी पड़ी-।”

“कहां छिपाई गुरुवर ने बाल?” देवराज चौहान ने पूछा।

“मालूम नहीं देवा। इस बारे में गुरुवर ने किसी से कोई जिक्र नहीं किया। किसी को ज्ञान नहीं कि बाल कहां पर रखी है गुरुवर ने। यकीनन इस बारे में किसी को बताना, गुरुवर ने उचित नहीं समझा होगा।”

होंठ भींचे देवराज चौहान, मुद्रानाथ को देखता रहा।

“मैं नहीं जानता था कि धरती से आने वाले मनुष्य तुम लोग

ही होंगे। मेरे अपने होंगे।” कहते हुए मुद्रानाथ के होंठों पर मुस्कान फैल गई-“सच बात तो ये है कि तुम लोगों को यहां देखकर मैं बहुत हैरान हुआ हूं। क्योंकि इस धरती पर किसी मनुष्य का आ पाना सम्भव नहीं है।”

“क्यों?” मोना चौधरी ने पूछा।

“क्योंकि धरती से यहां आने का कोई रास्ता ही नहीं निकलता।”

“आप ठीक कह रहे हैं बापू-।” मोना चौधरी के चेहरे पर सख्ती-सी आ गई-“धरती से शैतान के अवतार की इस जमीन तक आने का कोई रास्ता नहीं। लेकिन शैतान का अवतार तो हमारे लिए रास्ता बना सकता है।”

“अवश्य-।” मुद्रानाथ के माथे पर बल उभरे-“शैतान का अवतार चाहे तो मनुष्यों के लिये पचासों रास्ते बना सकता है। लेकिन वो ऐसा क्यों करेगा, अपनी धरती पर शोर-शराबा क्यों पैदा करना चाहेगा?”

“हम यहां पहुंच सके।” सोहनलाल गम्भीर स्वर में बोला-“इसके लिये शैतान के अवतार ने ही हमें रास्ता दिया है।”

“मैं समझा नहीं-।” मुद्रानाथ के स्वर से उलझन झलक उठी।

“मैं बताती हूं बापू-।” मोना चौधरी कह उठी।

मोना चौधरी ने सब कुछ बताया कि हालातों से गुजर कर यहां तक पहुंच पाये।

सुनने के बाद मुद्रानाथ ने गम्भीरता से सिर हिलाया।

“मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि पेशीराम ने तुम लोगों के यहां

का रास्ता दिखाकर गलत किया अथवा सही।”

“ठीक-गलत सोचने का वक्त पीछे रह चुका है।” देवराज चौहान ने कहा-“पेशीराम ने हमें मजबूर नहीं किया कि हम शैतान के अवतार की धरती पर अवश्य जायें। उसने हमें सिर्फ रास्ता दिखाया है। अगला कदम हमने अपनी इच्छा से उठाया है।”

मुद्रानाथ व्याकुलता से भरी निगाहों से बारी-बारी सबको देखने लगा।

“का देखों हो अमको-।”

“तुम सब को देख नहीं रहा भंवर सिंह। सोच रहा हूं कि इधर तुम लोग शैतान के अवतार की धरती पर फंस चुके हो उधर शैतान का अवतार, यज्ञ में व्यस्त गुरुवर को परेशान कर रहा है। उस बाल को तलाश कर रहा है, जिसमें गुरुवर की असीमित ताकत और शक्तियां मौजूद हैं। मुझे वहां भी जाना है और तुम लोगों को भी यहां नहीं छोड़-।”

“तुम म्हारी फिक्र मत करो हो। अंम तो यां पे सबो को ‘वड’ दयो-।”

मुद्रानाथ एकाएक बेहद गम्भीर नजर आने लगा।

“इन हालातों में अच्छा यही होगा कि, तुम सब मेरे साथ शैतान के अवतार की धरती से बाहर निकल चलो।”

“नहीं बापू-।” मोना चौधरी के स्वर में दृढ़ता भरी पड़ी थी-“शैतान के अवतार को खत्म किए बिना या अपनी जान गंवाये

बिना हम यहां से नहीं जायेंगे।”

“मिन्नो तुम-।” मुद्रानाथ ने कहना चाहा।

“इस बारे में कोई बात मत करो बापू-।”

“वही जिद्द।” मुद्रानाथ ने गहरी सांस ली-“तीन जन्म पहले जैसी जिद्द अभी भी करती है। किसी ने मेरे साथ चलना हो तो वो चल सकता है।” कहकर मुद्रानाथ ने सब को देखा।

“मैं तो चलने को तैयार हूं।” राधा कह उठी-“नीलू से पूछ लो-।”

मुद्रानाथ ने महाजन को देखा।

महाजन ने इन्कार में सिर हिला दिया।

“शैतान की धरती पर तुम लोगों को इस तरह छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा। तुम सब भारी खतरे में हो। तुम लोगों के साथ यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है।” मुद्रानाथ गम्भीर-व्याकुल स्वर में बोला-“लेकिन तुम लोगों को बचाने से कहीं ज्यादा जरूरी है वापस नगरी में जाकर, शैतान के अवतार से, गुरुवर के यज्ञ को बचाना और इस बात का ध्यान रखना की शैतान के अवतार कहीं गुरुवर की छिपाई उस बाल को तलाश न कर लें। ऐसा हो गया तो अनर्थ हो जायेगा।”

“गुरुवर की आज्ञा के बिना आप इस काम में हाथ डाल रहे हैं।” मोना चौधरी कह उठी-“आपके ऐसा करने से गुरुवर आपसे नाराज हो सकते हैं बापू-।”

“नहीं मिन्नो। भला गुरुवर इस बात की खातिर मेरे से नाराज क्यों होंगे?”

“पेशीराम की बात सुनकर ये कह रही हूं।” मोना चौधरी पुनः

बोली-“क्योंकि पेशीराम ने ही बताया है कि गुरुवर ने उससे गुरु-दक्षिणा में ये बात मांगी थी कि वो, गुरुवर के कहे बिना, गुरुवर की सहायता नहीं करेगा।”

“अवश्य। इस बात से मैं वाकिफ हूं। मुद्रानाथ ने गम्भीर स्वर में कहा-“गुरुवर की इस बात के पीछे असली वजह है वो श्राप, जो तुम लोगों के पहले जन्म में गुरुवर ने पेशीराम को दिया में था। जब तक पेशीराम तुम में और देवा में दोस्ती करा कर, श्राप से मुक्ति हासिल नहीं करेगा, तब तक गुरुवर उससे व्यक्तिगत काम नहीं लेंगे। शायद गुरुवर भी दिए श्राप की क्रिया में बंधे हैं उन्होंने ऐसा श्राप दिया है। यही वजह है कि पेशीराम को अपने व्यक्तिगत कामों में गुरुवर इस्तेमाल नहीं करते-।”

“ओह-।”

“जब तक पत्थर बना हुआ था, बुत था। तब तक की बात तो जुदा है।” मुद्रानाथ के स्वर में बेचैनी आ गई-“लेकिन ज्यादा देर नहीं रुक सकता यहाँ। गुरुवर को किसी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिये। वो दुनिया का भला कर रहे हैं। बुराई के खिलाफ सैकड़ों बरसों से उनकी लड़ाई जारी है। अगर गुरुवर को कुछ हो गया या शक्तियां उनके हाथों से निकल गईं तो शैतान का साम्राज्य और भी फैल जायेगा। वो और भी ताकतवर हो जायेगा।”

“नहीं।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा-“ऐसा नहीं होना चाहिये।”

“मेरी पूरी कोशिश होगी कि ऐसा कुछ नहीं हो। तभी तो तुरन्त नगरी में पहुंच जाना चाहता हूं। शैतान के अवतार को सफल नहीं होने दूंगा।” मुद्रानाथ ने गम्भीर स्वर में कहा-“तुम सब शैतान के अवतार को खत्म करना चाहते हो और शैतान का अवतार गुरुवर की शक्तियों वाली बाल की तलाश में, नगरी में कहीं भी हो सकता है। चाहो तो मेरे साथ वहीं चलो। वहां शैतान के अवतार को खत्म-।”

“नहीं बापू-।” मोना चौधरी सख्त स्वर में बात कहते हुए कह

उठी-“हमारा यहीं पर रहना ठीक है। शैतान का अवतार गुरुवर के खिलाफ हारे या जीते, वो वापस यहीं आयेगा, अपनी धरती है। ऐसे में यहां हम उसका मुकाबला कर सकते हैं। बाद में अगर वो नगरी से भाग कर यहां आया तो तब हमारा यहां आना बेहद कठिन होगा।”

मुद्रानाथ ने सहमति में सिर हिलाया।

“तुम ठीक ही कहती हो बेटी। किसी को यहां भी होना चाहिये। परन्तु शैतान का अवतार बेपनाह ताकतों का मालिक है। तुम लोग शायद उसका मुकाबला न कर सको।”

“मालूम नहीं क्या होगा।” देवराज चौहान दृढ़ता भरे स्वर में बोला-“लेकिन जो भी होगा, हम उन हालातों का सामना पूरी हिम्मत के साथ करेंगे।”

“सबको ‘वड’ के रख दोगे-।”

“अच्छी बात है। मैं नगरी के लिये यहां से रवाना होता हूं। गुरुवर तुम लोगों को हिम्मत दे कि-।”

तभी देवराज चौहान आगे बढ़ा और तलवार को मुद्रानाथ की तरफ बढ़ाया।

“आपकी तलवार-।”

मुद्रानाथ ने तलवार पर निगाह मारी फिर गम्भीर निगाहों से देवराज चौहान को देखा।

“देवा! तलवार तुम रख लो।” मुद्रानाथ के चेहरे पर गम्भीर मुस्कान उभरी-“शक्तियों से भरी ये तलवार तुम लोगों की कठिन राहें आसान करेगी। ये अगर बुरे इन्सान के हाथों में जायेगी तो साधारण तलवार बन जायेगी। जिसका मकसद सच्चाई और भले के लिये होगा, ये तलवार सिर्फ उसी का साथ देगी।”

“लेकिन इसकी तो आपको भी जरूरत-।” देवराज चौहान ने

कहना चाहा।

“नगरी में पहुंचने के बाद, मेरे पास शक्तियों की कमी नहीं। शैतान का अवतार मेरे से टक्कर लेगा तो मुझे पार पाने में उसे बेहद ज्यादा परेशानी आयेगी। वहां पर मेरे जैसे और भी गुरुवर के शिष्य हैं। बल्कि मुझे तो इस बात का दुःख है कि इस वक्त में तुम लोगों की कोई खास सहायता नहीं कर पा रहा हूं।”

कोई कुछ न बोला।

मुद्रानाथ ने दोनों हाथ जोड़कर सब पर निगाह मारी फिर जुड़े हाथ आसमान की तरफ करके आंखें बंद की और होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाया।

अभी मुद्रानाथ उनकी आंखों के सामने मौजूद था और अब नहीं।

ऐसा लगा जैसे मुद्रानाथ को किसी ने जादू के डण्डे के जोर पर गायब कर दिया हो।

गहरी खामोशी में लिपटे वो सब एक-दूसरे को देखने लगे।

“मुद्रानाथो तो गयो-।” बांकेलाल के शब्दों के साथ वहां की खामोशी टूटी।

देवराज चौहान ने हाथ में पकड़ी तलवार को देखा। आंखों के

सामने नगीना का चेहरा उभरा।

“मुद्रानाथ की बात पर यकीन किया जाये तो अभी हमें दो और मायावी रास्ते तोड़ते हैं। उसके बाद ही शैतान के अवतार तक

पहुंच सकेंगे।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“लेकिन वो दो रास्ते हैं कहां?” सोहनलाल बोला-“जानकारी

न होने से हमारा वक्त भी खराब हो रहा है।”

और जो परेशानी हो रही है, वो अलग-।

“बुत को, वापस असली अवस्था में लाने के पीछे हमारी यहीं

मंशा थी कि हमें इस धरती का रास्ता बतायेगा और हमारी परेशानियां दूर होंगी।” महाजन ने कहा-“लेकिन वो बुत तो, मुद्रानाथ का था। वो भी नगरी चला गया।”

“फिक्र मत कर नीलू-।” राधा कह उठी-“किसी दूसरे बुत की तलाश करते हैं। शायद उससे काम बन जाये-।”

पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा।

“यां से आगे बढ़ेला बाप। किधर-कहीं कुछ तो होएला-।”

“मुद्रानाथ ने मोगा को खत्म कर दिया है।” पारसनाथ बोला-“लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि शैतान के अवतार की निगाह पर हम नहीं हैं। किसी न किसी जरिये से वो हम सबकी हरकतें देख रहा होगा।”

“वो बेशको आंखों फाड़ो म्हारी हरकतो को देखो हो। म्हारा का जायो। वो म्हारे को बोलो कि अंम ही उसो के किसी जालो में फंसो और मरो। वो म्हारो पे सीधो-सीधो वार न करो हो। ईव आगे को बढ़ो और देखो हो अंम कि, ईब शैतान का अवतारो म्हारो वास्तो का जाल फंसायो हो।”

“हमें हर तरफ से सावधान रहना होगा ताकि-।”

“सोहनलाल-।” बांकेलाल राठौर कह उठा-“कोई फायदा न सतर्को रहनो का। शैतान के अवतारो का भेजो कोई जिन्न-प्रेत म्हारे सामने आ गयो तो अंम उसो के कैसे ‘वडो’ हो। वो तो अंम सबो को मुंडी मरोड़ के फुटबालो खेलो। अंम तो बोलो सीधो-सीधो चलो हो। जो होगो, भगवान भलयो करो हो।”

देवराज चौहान और मोना चौधरी की नजरें मिलीं।

“हालात वास्तव में गम्भीर हैं मोना चौधरी-।” देवराज चौहान ने कहा।

“हां। हालातों से मुकाबला करने के लिये हमारे पास कुछ भी नहीं है।” मोना चौधरी गम्भीर थी।

“शायद ये तलवार हमारे काम आये-।”

“तलवार तो अवश्य काम आयेगी। कई शक्तियों से पूर्ण ये तलवार बापू ने दी है।” मोना चौधरी ने देवराज चौहान की आंखों में झांका-“लेकिन हम लोगों की संख्या ज्यादा है। एक तलवार से हम क्या-क्या काम ले सकेंगे, मुसीबत आने पर शक्तियों से भरी ऐसी तीन-चार तलवारें होतीं तो हमारा हौसला बहुत बढ़ जाता।”

“तुम ठीक कहती हो।” देवराज चौहान बोला-“लेकिन अब एक ही तलवार से काम चलाना पड़ेगा।”

तभी जगमोहन पास आता कह उठा।

“मेरे ख्याल में हमें यहां से चलना चाहिये-।”

“हां-।”

“लेकिन जायेंगे कहां-किस तरफ?”

“हमारे पास आगे बढ़ने की कोई दिशा नहीं। कोई निशाना हमारे सामने नहीं है।” मोना चौधरी कह उठी-“ऐसे में हम किसी भी दिशा की तरफ क्यों न बढ़ें, सब एक सामान हैं।”

“का प्रोग्राम बनो हो-?” बांकेलाल राठौर भी पास आ पहुंचा।

“देखा नीलू-।” राधा कह उठी-“वो मूंछों वाला अपने को ज्यादा ही कुछ समझता है।”

“तेरे को उसने कुछ कहा है क्या?” महाजन ने सोचों में डूबे कहा।

“मेरे को? नहीं तो। मेरे को कुछ कहेगा तो मैं उसकी मूंछें उखाड़ लूंगी। उसकी टांगें तोड़-।”

“ठीक है। ठीक है। जब तेरे को कुछ कहे तो ऐसा ही करना।”

“ऐसा ही करूंगी।” राधा हवा में हाथ लहराकर कह उठी।

“यहां से आगे बढ़ने जा रहे हैं बांके।” देवराज चौहान बोला-“इसके अलावा-।”

“देवराज चौहान-।”

देवराज चौहान के कानों में मध्यम सी सरसराती आवाज पड़ी। बिना शक के देवराज चौहान ने उस आवाज को फौरन पहचाना। वो भामा परी की आवाज थी।

“तुम-?” भामा परी-।

“हां। मैं ही हूं-।” आवाज पुनः कानों में पड़ी-“मक्खी के रूप में तुम्हारे कान पर बैठी हूं-।”

“ओह-!”

“मैं उस चील के पीछे गई थी। ये देखने के लिये कि वो नगीना को कहां ले जाती है। हकीकत में वो चील प्रेतनी तवाली थी। जो कि चील के रूप में, शैतान के अवतार के आदेश पर यहां मौजूद थी।”

“नगीना कहां है? “ देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“अभी तक तो ठीक है। नगीना का जरा भी अहित नहीं किया शैतान के अवतार ने।” भामा परी की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी-“वो किसी गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को ढूंढने में बेहद व्यस्त है। फुर्सत के वक्त के लिये उसने नगीना को किसी काले महल में कैद कर दिया है।”

देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।

“मेरे ख्याल में नगीना को शैतान के अवतार से तब तक नहीं बचा सकता कोई जब तक उसे बाल नहीं मिल जाती, जिसके लिये वो बे-सब्र हुआ जा रहा है।” भामा परी की आवाज पुनः कानों में पड़ी-“शैतान का अवतार मेरे बारे में भी जान गया है कि मैं तुम लोगों के साथ हूं। मेरे लिये भी अब खतरा बढ़ गया है।”

“तुम वापस अपने परी लोक चली जाओ।” देवराज चौहान ने कहा।

“मैं पहले ही कह चुकी हूं कि तुम लोगों को इस तरह खतरे में छोड़कर नहीं जा सकती।” भामा परी की आवाज में गम्भीरता आ गई-“जब तक तुम जिन्दा हो, मैं तुम लोगों के साथ हूं-।”

“उस काले महल तक हमें ले जा सकती हो, जहां नगीना को कैद-।”

“मैं नहीं जानती कि वो महल कहां है। जो मैंने सुना-देखा, वो

तुम्हें बता दिया।”

“तुमने बुत के बारे में नहीं पूछा कि वो कहां है। मोगा के बारे

में नहीं पूछा कि-।”

“तो कब से यहां हूं। यहां जो भी हुआ, सब देख-सुन रही हूं-। सब जानती हूं।” भामा परी की आवाज कानों में पड़ रही थी-“मैं तो तुम लोगों के बारे में चिन्तित हूं कि जो खतरे आयेंगे। उनका मुकाबला कैसे करोगे? माना कि ये शक्तियों से भरी तलवार है। लेकिन खतरे तलवार से भी बड़े हैं।”

“मैं नहीं जानता कि आगे क्या होगा।” देवराज चौहान ने गहरी

सांस ली।

“यो भामो परी हौवो का?”

देवराज चौहान ने सहमति में सिर हिलाया।

“का बोलो हो-?”

देवराज चौहान ने बता दिया।

ये जानकार कि फिलहाल नगीना सुरक्षित है। सबने चैन की सांस ली।

उसके बाद पुनः उनका सफर शुरू हो गया।

वो एक दिशा में आगे बढ़ने लगा।

☐☐☐

जिन्न बाधात।

जो कब से देख-सुन रहा था, इन सब की बातें। खुद को दो फीट का रूप दे रखा था कि एकाएक किसी की नजर आसानी से उस पर न पड़ सके।

और जब उन सबने पुनः एक साथ आगे बढ़ना शुरू कर किया तो जिन्न बाधात ने अपना हाथ हवा में लहराया और उस जगह से गायब होकर, उस रास्ते पर आ गया, जिस रास्ते पर वे सब आगे बढ़े आ रहे थे, परन्तु अब जिन्न बाधात नये ही रूप में था।

वो ग्यारह-बारह साल का मासूम बच्चा नजर आ रहा था। निक्कर और कमीज पहनी हुई थी, परन्तु उसके कपड़े जगह-जगह से तार-तार हो रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे अभी-अभी कोई उसे बुरी तरह पीट कर गया हो। सिर-माथे, शरीर के अन्य हिस्सों से लकीर के रूप में खून बह रहा था और वो धूप में जमीन पर गिरा-पड़ा सुबक रहा था। आंखों से निकलने वाले आंसू, जैसे खून में घुले जा रहे थे।

मिनट भर में ही वो सब उसके पास थे। बच्चे को इस तरह रास्ते पर, घायल हालत में देखकर ठिठके। वो नीचे पड़ा अभी सुबके जा रहा था।

“इसो मासूम को किसो ने ‘वड’ दयो-।”

रुस्तम राव जल्दी से उसके पास पहुंचा और नीचे झुकता हुआ बोला।

“बाप, तेरे को क्या होएला? कौन है तू?”

जवाब देने की अपेक्षा वो और ऊंचे स्वर में रोने लगा।

सब पास आ पहुंचे थे।

“क्या बात है बेटे-?” मोना चौधरी घुटनों के बल उसके पास

बैठती हुई कह उठी-“तुम्हारी ये हालत-।”

“मां-।” कहकर वो और भी जोर से रोने लगी।

“का हुआ थारी मां को-।” बांकेलाल राठौर इधर-उधर देखता

कह उठा-“थारी ठुकाई करो के, गुरदासपुर भाग गईयो का? वां

पे म्हारी बोत पौंच होवे। गुरदासपुर का मामला तो सबो ठीको करो दयो-।”

“हमें बताओ।” मोना चौधरी उसके जखगों को देखते हुए बोली-“किसने मारा तुम्हें? कहां है तुम्हारी मां?”

वो रोते-रोते कह उठा।

“मैं अपनी मां के साथ उधर झोपड़े में रहता हूं।” झोपड़ा कहीं

भी नजर नहीं आ रहा था-“मां के साथ आग जलाने के लिये सूखी लकड़ियां ढूंढ रहा था कि दो बदमाश आ गये। मेरी मां को उठा ले गये। मैंने रोकने की कोशिश की तो मेरे को बहुत मारा।” कहकर वो जोरों से रोने लगा।

उन लोगों की निगाहें मिलीं।

“कब की बात है ये-?” महाजन के होंठों से निकला।

“अभी तो गये हैं वो। उधर-।” अपने हाथ से इशारा किया-“उधर ले गये हैं मेरी मां को-।”

“नीलू! देखो तो, कैसे खून बह रहा है। वो बदमाश पास ही होंगे।” राधा कह उठी।

तभी उनके कानों में औरत की मध्यम-सी चीख पड़ी।

चीख सुनते ही उनके चेहरे सख्त होने लगे।

देवराज चौहान के दांत भिंच गये। तलवार पर उसकी उंगलियों की पकड़ सख्त हो गई।

“घायल बच्चे का ध्यान रखो। मैं अभी आया।” कहने के साथ ही देवराज चौहान पूरी ताकत के साथ उस तरफ दौड़ा जिधर से औरत के चीखने की आवाज आई थी।

“मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ-।” पीछे से महाजन ने कहा और देवराज चौहान के पीछे दौड़ा।

“अपना ध्यान रखना नीलू-।” राधा ऊंचे स्वर में कह उठी-“मैं जानती हूं कि तू बहादुर है। लेकिन बुरे लोगों के मुंह नहीं लगते। पीछे ही रहते हैं।”

बांकेलाल राठौर ने होंठ सिकोड़कर राधा को देखा।

“मेरे को क्या देखता है।” राधा मुंह बनाकर कह उठी।

बांकेलाल राठौर के कुछ कहने से पहले ही रुस्तम राव कह उठा।

“बाप, नेई बोलने का। बच्ची होएला-।”

“उसो को तम बच्ची-बच्ची कहो के, म्हारी मूंछों पे डंडो फेर

दयो हो छोरे-।”

“आपुन सच कहेला बाप-।”

देवराज चौहान और महाजन निगाहों से ओझल हो चुके थे।

“ये बहुत घायल है।” जगमोहन ने कहा-“हम इसका इलाज भी नहीं कर सकते।”

“इसे इसके झोपड़े में ले चलते हैं।” पारसनाथ बोला-“कहां है तुम्हारा झोपड़ा?”

“उधर-।” उसने लेटे ही लेटे एक दिशा की तरफ हाथ बढ़ाया।

जगमोहन आगे बढ़कर उसे उठाने लगा तो वो गला फाड़कर चीखा।

“हाथ मत लगाओ मुझे। दर्द होता है।”

जगमोहन ठिठक गया।

“इसे कुछ देर यहीं रहकर, आराम करने दो।” सोहनलाल ने कहा-“जख्मों से बहता खून रुक जाने दो।”

“हाय। हाय।” राधा कह उठी-“एक तो बच्चा घायल है ऊपर से उसे धूप में पड़ा रहने को कह रहे हो। एक घूंट पानी का भी

नहीं है कि इसके गले में डाल दें।”

“किसी के पास रुमाल है?” मोना चौधरी ने कहा।

सोहनलाल ने मोना चौधरी को रुमाल दिया।

मोना चौधरी रुमाल से उसके जख्मों से बहते खून को सावधानी से साफ करने लगी। चंद सेकेंड ही बीते होंगे कि मोना चौधरी स्तब्ध-सी रह गई। आंखें जहां थीं, वहीं की वहीं ठहर गईं। चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गये। आखिरी जो भाव चेहरे पर ठहरा, वो जैसे किसी ठग द्वारा ठगे जाने के पश्चात का भाव था।

खून साफ करते हुए अचानक ही उसकी निगाह उंगली में पड़ी भामा परी की दी अंगूठी के नग पर पड़ी थी। जिसे देखकर दुश्मन और दोस्त के बारे में जाना जा सकता था। नग का रंग बदला हुआ था। यानि कि जो उसके पास है, वो दुश्मन है। दोस्त नहीं है। रहम के काबिल नहीं है।

स्पष्ट था कि वो सब किसी मायावी-जादुई जाल में आ फंसे हैं।

“कौन हो तुम?” मोना चौधरी का ठहरा स्वर बेहद शांत था।

दोनों की आंखें मिलीं।

मोना चौधरी की आंखों में गुस्सा और खतरनाक भाव ही देखने को मिले। ये महसूस करके उसके खून से रंगे चेहरे पर व्यंग्य भरी मुस्कान फैल गई।

“तुम्हारी आंखों के भाव बता रहे हैं कि तुम महसूस कर चुकी

हो कि मेरी असलियत कुछ और है।”

“महसूस ही नहीं कर चुकी, बल्कि यकीन हो चुका है कि तुम्हारी असलियत कुछ और है और ये सब कर के, तुमने कोई चाल चली है हमें फंसाने के लिये-।” मोना चौधरी ने दांत पीसकर कहा और उसके गले को जोरों से अपने पंजों में जकड़ लिया-“बता, कौन है तू?”

हर कोई हक्का-बक्का, हैरान सा ये सब देख रहा था। वो अभी

ठीक से नहीं समझ पाये थे कि मामला क्या है? क्या हो रहा है?

उसी तरह बच्चा बना जिन्न बाधात जोरों से हंस पड़ा।

“मेरा गला दबायेगी तू। मेरी जान लेगी तू-।” हंसते हुए वो बोला।

“मेरा बस चले तो मैं तेरा खून पी जाऊँ-।” मोना चौधरी दरिन्दगी भरे भाव में कह उठी।

सोहनलाल, जगमोहन से चिन्तित स्वर में बोला।

“देवराज चौहान और महाजन खतरे में हैं।”

“हां। ये जाने कौन है, जिसने दोनों को किसी भारी खतरे में धकेल दिया है।” जगमोहन के स्वर में खतरनाक भाव थे-“शैतान के अवतार ने अपना खेल खेल ही दिया।”

सोहनलाल ने परेशानी से गोली वाली सिगरेट का कश लिया।

“मैं देवराज चौहान के पीछे जा रहा हूं-।” एकाएक जगमोहन ने कहा।

“क्या?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

तब तक जगमोहन पलट कर उस दिशा में दौड़ना शुरू कर चुका था जिधर देवराज चौहान और महाजन गये थे। ये देखकर सब चौंके। मोना चौधरी ने चीखकर उसे आवाज दी।

“रुक जाओ जगमोहन। वहां खतरा है। मुसीबत में पड़ जाओगे।”

परन्तु देखते ही देखते जगमोहन पेड़ और चट्टानों के बीच भागता, नजरों से ओझल होता चला गया।

“गलत किया जगमोहन ने-।” पारसनाथ का स्वर कठोर था।

तभी बांकेलाल राठौर आगे बढ़ा और बच्चा बने जिन्न बाधात की छाती पर जा बैठा।

“तम म्हारे से बात करो। अंम थारे को न छोड़ो हो ईब। बोल दे, देवराज चौहान और महाजन को किधर भेजो हो? म्हारे को फिरो वो कैसो मिल्लो हो। तंम न बोलो हो तो अंम थारे को ‘वड’ दयो।” बांकेलाल राठौर का चेहरा क्रोध से सुलगता रहा था-“अंम तो शैतान से के अवतारों को भी ‘वडो’ हो।”

वो नीचे पड़ा पुनः हंसा।

मोना चौधरी के हाथ की उंगलियां सख्ती से उसकी गर्दन के गिर्द लिपटी हुई थीं।

राधा कमर पर हाथ रखे पास आकर कड़वे स्वर में कह उठी।

“ज्यादा दांत मत दिखा। ये मत सोच कि हम तेरे को बच्चा समझकर छोड़ देंगे। सीधे-सीधे बता दे मेरा नीलू कहां है। उसे वापस बुला। नहीं तो मैं तेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दूंगी।”

वो पुन: हंसा।

“ये पागल तो नहीं है।” राधा कह उठी-“भला इसमें हंसने की क्या बात है?”

“तुम लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।” कहते हुए जिन्न बाधात हंसा-“मैं जिन्न हूं। जिन्न बाधात कहते हैं मुझे। दूसरों के

कामों में बाधा डालना ही मेरा काम है। मैंने जो किया अपने मालिक के हुक्म से किया।”

“कौन हौवे थारा मालिक। उसो को देख लायो अंम-।”

“शैतान का अवतार है मेरा मालिक-।”

“वो औरत तो न हौवे?” बांकेलाल राठौर का सख्त स्वर जहरीला था।

“क्या कहा? शैतान का अवतार और औरत-?”

“अंम कहो हो यो। औरत भी घूंघट काढ़ के सामने आ जायो। पण वो तो सामने आयो ही ना। अंम से छिपो हो। म्हारे को तो लगो कि वो औरतों से गयो-गुजरो हौवे-।”

“बता-बता, मेरा नीलू कहां है। नहीं बताया तो मैं तेरा सारा जिन्न-प्रेत बाहर निकाल-।”

तभी बच्चा बने जिन्न बाधात ने एक हाथ मोना चौधरी को मारा और दूसरा अपने ऊपर चढ़े बैठे बांकेलाल राठौर को। दोनों ही लुढ़क कर दूर जा गिरे।”

राधा हड़बड़ाकर पीछे हटी।

जिन्न बाधात खड़ा हुआ तो दूसरे ही क्षण उसके शरीर की लम्बाई-चौड़ाई फैलने लगी और सेकेंडों में ही वो दस फीट ऊंचा हो गया।

“इतना बड़ा-।” राधा के होंठों से निकला-“फिर तो ताकत भी बहुत होगी इसमें-।” इसकी बीवी का तो बुरा हाल हो जाता होगा इसे खिला-खिला के-।”

सब उसी पल पीछे हटते चले गये।

जिन्न बाधात जोरों से हंस पड़ा।

“मैं चाहूं तो तुम सब को अभी खत्म कर दूं लेकिन मालिक का हुक्म है कि तुम लोगों को मारा न जाये। वरना अब तक तो मैं तुम लोगों को मार कर, दूसरे काम में व्यस्त हो जाता।”

“क्या चाहते हो तुम?” पारसनाथ के होंठों से सपाट-कठोर स्वर निकला।

“मैं कुछ नहीं चाहता।” जिन्न बाधात बोला-“मालिक ने मुझे आदेश दिया कि तुम मनुष्यों के काम में बाधा डाल दूं। मैंने बाधा डाल दी। अब बाधा से ही तुम मनुष्यों ने मुकाबला करना है।”

“कैसी बाधा?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

“शीघ्र ही जान जाओगे।”

“तुम उन लोगों को किधर भेजेला?”

“उन्हें ढूंढोगे तो उन तक पहुंच जाओगे। मेरा अभी का काम तो खत्म हुआ। बाधा डालने की जरूरत पड़ी तो मैं फिर हाजिर हो जाऊंगा।” कहने के साथ ही जिन्न बाधात हंसा और देखते ही देखते सेकेंडों में वो निगाहों से ओझल हो गया। जहां वो था, वहां सिर्फ धुएं की लकीर ही नजर आई, लेकिन वो भी निगाहों से ओझल हो गई।

गहरा सन्नाटा छा गया वहां।

सबकी निगाह बार-बार उस तरफ जा रही थी, जिधर देवराज चौहान, महाजन और जगमोहन गये थे। वहां सिर्फ धूप में चमकते पेड़ और चट्टानें ही नजर आ रही थीं।

मोना चौधरी ने अपने हाथों को देखा, जहां खून लगा था। अब खून कहीं नहीं था। हाथ इस तरह साफ थे, जैसे उन्हें अभी-अभी धोया गया हो।

“ये तो बहुत ही बुरा हुआ।” मोना चौधरी कहा उठी-“पहले नगीना हमसे जुदा हो गई और अब हमारे तीन खास साथी हमसे अलग हो गये। जबकि इन हालातों में हमें एक-दूसरे के साथ की जरूरत है।”

“म्हारे पासो तो अफसोस करनो का भी वक्त न होवे-।”

“शैतान का अवतार आपुन लोगों को नेई छोड़ेला बाप-।” रुस्तम राव ने दांत भींचकर कहा-“आपुन लोगों को अपने फेर में लेकर बुरी तरह फंसाएला-। वो बोत ताकतवर होएला।”

“ईब बारों उसो की मुंडी म्हारे कब्जो में आ जावे तो अंम थारे

को बताये कि कौनो ताकतवरो हौवे-।” बांकेलाल राठौर बोला-“छोरे! ईब प्रश्न तो यो हौवे कि अंम करो का? देवराज चौहान, जगमोहन और महाजन को कां पे ढूंढो-।”

पारसनाथ कह उठा।

“उधर ही, जिधर वो गये हैं।”

“नहीं।” मोना चौधरी ने गम्भीरता से सिर हिलाया-“यही तो चाल है शैतान के अवतार की। हम उनकी तलाश में उधर जायें और उनकी तरह हम भी फंस जायें-।”

“कोई जरूरी तो नहीं कि वो कहीं फंस गये हो।” सोहनलाल बोला।

“ये जरूरी है।” मोना चौधरी अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठी-“बल्कि ये अब तक हो भी चुका होगा। अगर वो ठीक-सही-सलामत होते अब तक वापस आ गये होते।”

ये सुनते ही राधा का चेहरा सुलग उठा।

“अगर मेरे नीलू को कुछ हो गया तो मैं हर जगह आग लगा दूंगी। मैं-।”

“तंम फिक्र मत करो।” बांकेलाल राठौर के स्वर में दरिन्दगी थी-“किसी को भी कुछ हुओ तो अंम भी थरो साथो सबो को ‘वड’ दयो। यो जिन्नो-विन्नो तो भागतो नजर आयो-।”

“हमें समझ से काम लेना है।” मोना चौधरी बोली-“गुस्से में ऐसा कोई गलत काम नहीं कर जाना कि शैतान के अवतार के काबू में आ जायें। शैतान के अतवार को या जिन्न बाधात को पूरा विश्वास में रहा होगा कि हम उनकी तलाश में उनके पीछे जायेंगे और कहीं पे फंस जायेंगे।”

“तो क्या हम उधर नहीं जायेंगे, जिधर मेरा नीलू गया है?” राधा के होंठों से निकला।

“नहीं।” मोना चौधरी ने कठोर निगाहों से राधा को देखा-“हम उधर नहीं जायेंगे और तुम इस बात का खास ध्यान रखो कि सिर्फ महाजन ही नहीं, देवराज चौहान और जगमोहन भी गये हैं। एक की बात मत करो।”

राधा कुछ कह नहीं सकी।

“उधर को नई जाने का तो आपुन लोग अब क्या करेला?”

“उन लोगों की वापसी का इन्तजार।” मोना चौधरी पहले वाले

स्वर में कह उठी-“अगर हमारा ख्याल गलत है, हम गलत सोच रहे हैं तो तीनों कभी भी वापस लौट सकते हैं। ये भी सोचकर चलना है हमें-।”

“इन्तजार कितनी देर का होगा?” पारसनाथ ने सपाट खुरदरे स्वर में कहा।

“एक-दो घंटे का। उसके बाद उसकी वापसी की उम्मीद नहीं।”

“म्हारे दिल हो वो फंसो हो।” बांकेलाल राठौर की आवाज में

बेबसी थी-“वापस न लौटो हो।”

“मुझे भी इस बात का पूरा विश्वास है।” पारसनाथ जैसे पक्के स्वर में कह उठा।

मोना चौधरी के होंठ भिंच गये। कहा कुछ नहीं।

☐☐☐

देवराज चौहान तलवार मुट्ठी में दबाये दौड़ता जा रहा था। चेहरा गुस्से से भरा था। उसके कानों में इस दौरान मध्यम सी औरत की चीख की आवाज पड़ी थी। जब कुछ आगे आ गया तो ठिठका। गहरी-गहरी सांसें लेता आस-पास निगाहें दौड़ाने लगा। उसकी तेज सांसों की आवाज ही उसे सुनाई दे रही थी।

देवराज चौहान ने औरत की चीख या आहट पाने की चेष्टा की। परन्तु ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हुआ। सांसें संयत होते ही वो आगे बढ़ा और बड़ी-बड़ी चट्टानों की ओटों को चेक करने

लगा। कुछ ही पल बीते कि सामने से आता, महाजन नजर आया।

हाथ में बोतल थी।

“तुम तो बहुत तेज दौड़ते हो।” करीब आकर महाजन ने घूंट भरा-“मैं तुम्हें पकड़ नहीं पाया।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। कठोर निगाह इधर-उधर फिर रही थी।

“नहीं मिली औरत?” महाजन ने भी नजरें दौड़ाई।

“नहीं-।” देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा-“लेकिन वो पास में कहीं भी हो सकती है।”

“हो सकता है उसका मुंह दबा रखा हो कि वो चीखे नहीं-।” महाजन बोला।

“तुम्हारा ख्याल ठीक हो सकता है।” देवराज चौहान ने कहा।

बातों के दौरान वो उस औरत को भी तलाश कर रहे थे।

दस मिनट की तेज तलाश के बाद भी उन्हें औरत नहीं मिली। दोनों पसीनों से तर-बतर हो रहे थे। कपड़े गीले होकर बदन से चिपक रहे थे। बालों से पसीने की लकीरें बहकर, गालों तक आ रही थीं।

देवराज चौहान ने तलवार को बगल में दबाया और सिगरेट सुलगाकर पुनः तलवार थाम ली। अचानक ही उसकी आंखों के भाव बदल गये थे। चेहरा सोचों के समन्दर में डूबता लगने लगा।

महाजन ने इस बदलाव को महसूस किया।

“क्या हुआ देवराज चौहान?”

“वो बच्चा। औरत की चीख। ये सब कुछ, शैतान के अवतार का फैलाया कोई भ्रम भी हो सकता है।”

महाजन कुछ पल देवराज चौहान को देखता रहा।

“वो हमें ऐसे भ्रम में क्यों फंसायेगा?” महाजन ने कहा।

“अपनी किसी चाल में हमें फंसाने के लिये।” देवराज चौहान के होंठों से निकला-“वरना उस सुनसान जगह पर वो बच्चा कैसे आ गया। कोई औरत कैसे। अगर कोई उसकी मां को उठाकर ले गया है तो वो बच्चे को घायल नहीं करता। जान से मार देता। ये तो शैतान की धरती है। यहां रहम नाम की कोई चीज नहीं है और बच्चे को जिन्दा छोड़ना रहम की निशानी है महाजन-।”

“ओह-!”

“मैंने जल्दबाजी कर दी इस तरफ आने की। कुछ गलत कर चुका हूं मैं-।”

“जो भी हो हम वापस भी तो जा सकते हैं।” महाजन ने घूंट भरा।

देवराज चौहान ने महाजन की आंखों में झांका।

“आओ। वापस चलने की कोशिश करके देखते हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

“कोशिश?”

“हां। अगर ये सब शैतान के अवतार का कोई जाल है तो हमें वापस नहीं जाने-।”

तभी औरत की तेज चीख उसके कानों में पड़ी। इस बार चीख बेहद करीब से, सामने नजर आ रही चट्टान के पीछे से आई थी। देवराज चौहान और महाजन की आंखें मिलीं।

“एक बार चट्टान के पीछे नजर मार लेते हैं।” महाजन ने कहा।

“आओ।” देवराज चौहान ने तलवार सावधानी से पकड़ ली।

दोनों आगे बढ़ने लगे। फिर चट्टान के गिर्द घूमते हुए दूसरी तरफ आ गये। उसी पल वो ठिठके। चट्टान के पास ही नीले रंग का छोटा-सा कपड़ा नजर आया। एक निगाह देखने पर वो किसी औरत की चुनरी लगी, परन्तु इसके अलावा और कुछ भी देखने को न मिला।

“यहां तो कोई नजर नहीं आ रहा है।” कहते हुए देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।

महाजन बिना कुछ कहे आगे बढ़ा और उस कपड़े के पास जा पहुंचा। उसे उठाकर देखा वो वास्तव में किसी औरत की चुनरी ही थी। देवराज चौहान भी पास आ पहुंचा था।

“ये किसी औरत की ही चुनरी है।”

“तो औरत कहां है?” देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा। अभी शब्द पूरे ही हुए थे कि देवराज चौहान की निगाह चट्टान के नीचे वाले हिस्से पर पड़ी। चट्टान के भीतर जाने का चार फीट के करीब लम्बा-चौड़ा रास्ता दिखाई दिया। देवराज चौहान घुटने के बल नीचे बैठा और उसके भीतर देखने लगा। भीतर, दो-ढाई कदम के पश्चात अंधेरा ही नजर आया।

“हो सकता है वो बदमाश औरत को भीतर ले गये हों-।”

देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर देखा। पास ही महाजन भी नीचे झुका उस रास्ते को देख रहा था।

“चट्टान खोखली है।” महाजन ने कहा-“औरत को अवश्य वो बदमाश भीतर-।”

तभी औरत की चीख पुनः सुनाई आई।

चीखने की आवाज चट्टान के खोखले हिस्से में से ही आई थी। जिधर वो देख रहे थे।

“हम ठीक जगह पहुंचे हैं।” देवराज चौहान के चेहरे पर दरिन्दगी मचलने लगी।

“सालों को अभी देखते हैं।” कहने के साथ ही महाजन आगे बढ़ा।

तलवार संभाले देवराज चौहान भी बढ़ा।

दोनों चट्टान की खोखली जगह पर जाकर ठिठके। उनके चेहरे गुस्से से भरे थे।

“तुम लोग जो भी हो।” देवराज चौहान मौत भरे, ऊंचे स्वर में कह उठा-“औरत को लेकर बाहर आ जाओ। वरना-।”

देवराज चौहान के शब्द पूरे होते ही खोखली चट्टान से औरत के चीखने की आवाज आई।

“बचाओ मुझे। बचाओ। ये कमीने-।”

फिर ऐसे आवाज बन्द हो गई, जैसे किसी ने उसके होंठों पर हथेली रख दी हो।

“चले जाओ यहां से-।” खतरनाक सी आवाज भीतर से आकर, उन दोनों के कानों में पड़ी-“नहीं तो जान ले लूंगा।”

“बाहर नहीं आओगे-।” महाजन दांत पीसकर कह उठा।

“आऊंगा।” वो ही आवाज आई-“पहले इस औरत को तो देख लूं-।”

“ये सीधे-सीधे नहीं मानेगा।” देवराज चौहान ने वहशी स्वर में कहा और तलवार को मजबूती से थामे, नीचे झुका और सावधानी से चट्टान के खोखले हिस्से में प्रवेश करने लगा।

“मैं तुम्हारे साथ ही हूं-।” महाजन बोला।

“जरूरत नहीं। ये लोग जो भी हैं, मैं उन्हें संभाल लूंगा।”

“उनकी संख्या ज्यादा भी हो सकती है। मेरे साथ चलने में हर्ज ही क्या है?”

देवराज चौहान झुक कर, चट्टान के उस खोखले हिस्से में प्रवेश कर गया। महाजन बराबर उसके पीछे दो कदमों की दूरी पर था। भीतर घुप्प अन्धेरा पाकर दोनों ठिठक गये।

“कहां हो तुम।” देवराज चौहान ऊंचे स्वर में बोला-“सामने आओ।”

जवाब में कुछ भी सुनने को नहीं मिला।

“अंधेरा बहुत गहरा है।” महाजन ने कहा-“रोशनी का भी

तो, कोई इन्तजाम नहीं-।”

कई पलों तक वो आहट लेने की चेष्टा करते रहे।

परन्तु उन्हें किसी भी तरह की आहट नहीं मिली।

देवराज चौहान तलवार थामे सावधानी से आगे बढ़ने लगा।

आगे जाकर चट्टान का भीतरी खोखलापन बढ़ गया था। वो सीधे होकर चलने लगे।

“हैरानी है।” महाजन बोला-“अब न तो कहीं से औरत की आवाज आ रही है और न ही उस आदमी की-।”

देवराज चौहान के होंठ भिंचे हुए थे। आंखों में खतरनाक चमक

नाच रही थी।

“मुझे लग रहा है कि हम धोखे में फंस चुके हैं। शैतान के अवतार की चाल का शिकार हो चुके हैं।” देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा।

“ये कैसे कह सकते हो?”

“सब कुछ तुम्हारे सामने ही हो रहा है।” आगे चलते देवराज चौहान ने कहा-“तुम ही बताओ वो औरत कहां गई? वो इन्सान कहां गया, जिसकी आवाज हमने सुनी थी। यहां तो छिपने की भी जगह नहीं।”

“तुम ठीक कह रहे हो, देवराज चौहान। अब तक उन्हें हमारे

सामने पड़ जाना चाहिये था।” महाजन ने शब्दों को चबाकर क्रोध से कहा-“मेरे ख्याल में अब आगे बढ़ने के साथ-साथ और भी फंस रहे-।”

देवराज चौहान रुक गया।

महाजन भी रुका।

“क्या हुआ?”

“आगे जाने का रास्ता नहीं है। बंद है। अब रास्ता बाईं तरफ से है और वहां देखो क्या नजर आ रहा है।”

देवराज चौहान के शब्दों के साथ ही महाजन ने तुरन्त एक कदम आगे बढ़कर बाईं तरफ देखा।

सिर्फ दस कदमों की दूरी पर उसे खुला रास्ता नजर आया। जिसके पार ही हरी-भरी घास, फलों से लदे पेड़। एहसास हो रहा था कि जैसे वहां तेज हवा चल रही हो। पेड़ों के पत्ते और पतली टहनियां जोरों से हिल रही थीं।

“ये क्या?” महाजन के होंठों से निकला।

“नई मुसीबत है हमारे लिये।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“शैतान के अवतार ने हमें अपनी मर्जी से फंसा दिया है। जाने ये कौन-सी जगह है।”

“हम दोनों को ही यहां क्यों फंसाया?” महाजन बोला-“बाकी भी तो हैं?”

“वो जब हमारी तलाश में आयेंगे तो उन्हें भी किसी तरह के भ्रम में डालकर, यहां फंसा दिया जायेगा। सबको यहां लाने की यही चाल चली होगी शैतान के अवतार ने।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।

“ऐसा है तो हम वापस भी जा सकते हैं।” महाजन बोला।

अंधेरे में दोनों ने एक-दूसरे को देखा।

जो हमें फंसाकर यहां तक लाया है। वो हमें वापस नहीं जाने देगा।” देवराज चौहान ने पक्के स्वर में कहा।

“ऐसा हो सकता है। लेकिन हम वापस भी जा सकते हैं।” महाजन बोला।

“कोशिश करके देख लेते हैं।” कहने के साथ ही महाजन पलटा। वापस बढ़ा।

तीसरे कदम पर ही लड़खड़ाकर रुक गया।

“बचा-।” महाजन के होंठों से निकला-“अभी तो सब ठीक था।”

“क्या हुआ?” पीछे से देवराज चौहान ने कहा।

“यहीं से तो हम आये हैं। रास्ता ठीक था। अब देखो। गहरी-चौड़ी खाई बन चुकी है यहां-।”

“मतलब कि स्पष्ट है कि अब हम वापस नहीं जा सकते।” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।

“तो-?” महाजन पलटा।

“आगे बढ़ना हमारी मजबूरी है। हम फंस चुके हैं।”

महाजन ने घूंट भरा। पास आकर, मुस्कराकर कहा उठा।

“जब फंस ही गये हैं परवाह कैसी। चलते हैं आगे-।”

“वापस देखो। वो खाई गायब हो गई है।” देवराज चौहान ने कहा।

महाजन ने फौरन पलटकर देखा।

वास्तव में, अब वो जगह सपाट नजर आ रही थी। ये देखकर महाजन पुनः उस तरफ बढ़ा। तीन कदम उठाने के पश्चात उसे पुनः ठिठक जाना पड़ा। वैसी ही गहरी-चौड़ी खाई, देखते ही देखते नजर आने लगी।

“अगर हम वापस जाने की चेष्टा करेंगे तो यहां खाई बन जायेगी, कि हम वापस न जा सकें।” महाजन ने पलटते हुए कहा-“आगे बढ़ेंगे तो ये जगह समतल हो जायेगी।”

“आओ। आगे चलें-।”

दोनों पुनः आगे बढ़े।

महज दस कदम का फासला था उस जगह से बाहर निकलकर खूबसूरत बाग में पहुंचने के लिये। रास्ते के मुहाने पर पहुंचकर देवराज चौहान ठिठका।

“एक बात तुमने महसूस की महाजन!” देवराज चौहान बोला।

“क्या?”

“इस जगह से भीतर रोशनी नहीं आ रही। यहां अंधेरा ही है।”

“ओह!” महाजन के होंठों से निकला-“ये तो वास्तव में अजीब-सी बात है।”

उसी पल देवराज चौहान ने कदम आगे बढ़ाया और उस रास्ते से पहला कदम बाग में रखा। फिर दूसरा। ठण्डी हवा का झोंका उसके जिस्म से टकराया। ऐसा महसूस हुआ उसे जैसे नर्क से निकल कर स्वर्ग में आ गया हो। जिस्म का बहता पसीना, ठण्डक बनकर शरीर को सकून पहुंचाने लगा। हर तरफ निगाह मारी। प्रकृति का खूबसूरत नजारा ही देखने को मिला। दिल-दिमाग को शान्ति पहुंचाने वाला हसीन मंजर।

“मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि यहां ऐसी भी जगह हो सकती है।” देवराज चौहान ने कहा।

जवाब न मिलने पर देवराज चौहान ने पीछे देखा।

महाजन अभी भी वहीं, रास्ते की दहलीज पर बोतल थामे खड़ा था।

“क्या हुआ?” देवराज चौहान ने पूछा।

उनके बीच मात्र चार कदम का फासला था।

देवराज चौहान के पूछने के तुरन्त बाद ही उसे महाजन के होंठ हिलते दिखे, परन्तु उसके स्वर का कोई भी शब्द उसके कानों में नहीं पड़ा। देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।

“वहां क्यों खड़े हो? आ जाओ।” देवराज चौहान ने पुनः कहा।

उसने फिर महाजन के होंठ हिलते देखे। लेकिन आवाज सुनाई

नहीं दी। तभी महाजन अपनी जगह से हिला और कदम बढ़ाकर बाग में प्रवेश कर आया।

“तुम्हें मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी-?” महाजन ने पूछा।

“नहीं।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया-“यही बात मैं तुमसे पूछने वाला था।”

“मैं तुम्हारे होंठों को हिलते देख रहा था। तुम क्या कह रहे हो। नहीं सुना। आवाज नहीं आई-।” महाजन ने गम्भीर स्वर में कहते हुए उस रास्ते को देखा, जहां से वे आये थे-“इसका मतलब जिस रास्ते से हम आये हैं, वो जुदा हिस्सा है और बाग जुदा हिस्सा-।”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।

महाजन ने एक साथ हाथ में थामी बोतल से चार-पांच घूंट भरे।

“खैर जो भी हो।” महाजन मुस्कराया-“जगह बढ़िया है। जैसे स्वर्ग हो-।” तभी उसकी निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर पड़ी, जहां गम्भीरता और कुछ उलझन ठहरी नजर आई-“क्या सोच रहे हो?”

“महाजन!” देवराज चौहान कश लेकर धीमे स्वर में बोला-“जब हम दालू बाबा और हाकिम से टक्कर लेने गुरुवर की नगरी गये थे, तो तब मैं इसी तरह की कोई जगहों में गया था। और तब मैंने पाया कि ऐसी जगह अक्सर तिलस्म में ही पाई जाती है।” पढ़िये अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘ताज का दावेदार’।

“तुम्हारा मतलब कि इस वक्त हम किसी तिलस्म में हैं?” महाजन के होंठों से निकला।

“शायद। हो भी सकता है।”

“शायद नहीं। यकीनन मनुष्य शैतान के अवतार के तिलस्म में पहुंच चुके हो।”

आवाज सुनते ही दोनों फौरन पलटे।

पीछे जिन्न बाधात मौजूद था-अपने लम्बे-चौड़े रूप में।

कई पलों तक तो दोनों अविश्वास भरी निगाहों से उसे देखते रह गये।

“शैतान के अवतार की तिलिस्मी नगरी में तुम दोनों का स्वागत है।”

“कौन हो तुम?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं।

“जिन्न बाधात हूं मैं।” उसने मुस्कराकर कहा-“तुम दोनों मुझे पहले भी देख चुके हो।”

“हम?” महाजन के होंठों से निकला-“तुमसे पहले भी मिल चुके हैं।”

“हां। तब मैं घायल बच्चे के रूप में था।” जिन्न बाधात हंसा।

“घायल बच्चा?” देवराज चौहान के होंठों से निकला-“वो

घायल बच्चे तुम थे?”

“हां। मैं ही था वो। तुम लोगों को तिलस्म में फंसाने के लिये मुझे ये सब करना पड़ा-।” जिन्न बाधात हंसकर कह उठा-“अन्य मनुष्य भी आयेंगे, तुम लोगों की तलाश में और वो भी यहां फंस जायेंगे।”

देवराज चौहान और महाजन की नजरें मिलीं।

“क्यों कर रहे हो ये सब? हमसे तुम्हारी क्या दुश्मन है?” देवराज चौहान ने उसे देखा।

“कोई दुश्मनी नहीं। मैं अपने मालिक शैतान के अवतार का हुक्म बजा रहा हूं-। मुझे जिन्न बाधात इसलिये कहते हैं कि मेरा काम ही दूसरों के कामों में बाधा डालना है।” जिन्न बाधात हंस कर कह रहा था-“मालिक ने मुझे हुक्म दिया कि तुम सब मनुष्यों को उसके बनाये तिलस्म में फंसा दूं तो मैंने तुम लोगों के काम में बाधा डालकर, यहां पहुंचा दिया।”

“ऐसा क्यों किया गया?”

“शैतान का अवतार चाहता है कि तुम सब मनुष्य तिलस्म में

फंसकर, तड़प-तड़प कर मर जाओ। जिन्न बाधात जोरों से हंस

पड़ा-“तुम मनुष्यों को शायद ये नहीं मालूम कि शैतान के अवतार ने तिलस्म में प्रवेश करने का रास्ता तो बनाया है, लेकिन बाहर निकलने के रास्ते का निर्माण नहीं किया। अब तुम मनुष्य इसी तिलस्म में भटक-भटक कर मर जाओगे। किसी भी हाले-सूरत में बाहर नहीं निकल सकोगे।”

“मैंने तो सुना था कि जिन्न बहुत अच्छे होते हैं।” महाजन

बोला-“लेकिन तुम तो बुरे जिन्न हो।”

“मैं तो हुक्म का गुलाम हूं।” जिन्न बाधात मुस्कराया-“मालिक

का हुक्म ही मेरे लिये सब कुछ है। जैसा मेरा मालिक कहेगा, मैं

वैसा ही करूंगा। इसमें मेरे अच्छे-बुरे होने का कोई वास्ता नहीं है मनुष्यों-।”

महाजन ने देवराज चौहान को देखा।

“ये तो सच में नई मुसीबत हमारे सिर पर आ पड़ी है।” कहकर

महाजन ने घूंट भरा।

देवराज चौहान ने सोचे भरी निगाहों से महाजन को देखा फिर जिन्न बाधात से बोला।

“हमारे दूसरे साथी भी यहां आने वाले हैं।”

“तुम लोगों की तलाश में वो आयेंगे तो मैं उन्हें भटका कर तिलस्म में फंसा दूंगा। हो सकता है बाकी के मनुष्य तुम दोनों की तलाश में चल पड़े हो।” जिन्न बाधात ने कहा-“मैं अभी जाकर उन्हें देखता हूं। ये भी हो सकता है वो मनुष्य ही इसी रास्ते से भीतर आयें।” इन शब्दों के पूरे होते ही जिन्न बाधात पलक झपकते ही दोनों निगाहों के सामने से गायब हो गया। छोड़ गया तो पीछे धुएं की लकीर। धीरे-धीरे वो भी लुप्त हो गई।

जिन्न बाधात के जाते ही अजीब-सा सन्नाटा छा गया। ठण्डी हवा के झोंके अब उन्हें इतने अच्छे नहीं लग रहे थे, जितने कि पहले लगे थे। वहां का नजारा भी फीका-सा महसूस होने लगा।

महाजन ने बोतल से घूंट भरा। देवराज चौहान को देखा।

“न जाने ये कैसी जगह है।” महाजन ने गहरी सांस ली।

“ये जगह जितनी खूबसूरत लग रही है, उतनी ही भयानक है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“तिलस्म है ये और वो भी शैतान के अवतार का बनाया हुआ। यहां हर कदम पर हमारा सामना मौत से होगा।”

“शैतान के अवतार की तिलिस्मी, मायावी और जादुई हरकतों

का हम जवाब नहीं दे सकते।” महाजन व्याकुल स्वर में बोला-“आखिर कब तक ऐसी चीजों का मुकाबला करते रहेंगे।”

देवराज चौहान ने हाथ में थमी तलवार को देखा।

“मुद्रानाथ की ये तलवार जब तक हमारा साथ देगी, तब तक

हम बचे रहेंगे। मालूम नहीं कैसी-कैसी शक्तियों से पूर्ण है ये तलदार। मुद्रानाथ उस वक्त जल्दी में था। यही वजह रही है कि वो बताना भूल गया कि इस तलवार का इस्तेमाल कैसे करना है। मैं भी पूछना भूल गया।”

“हथियार तभी काम का होता है। जब उसे चलाने-इस्तेमाल करने की जानकारी भी पास हो।” महाजन ने कहा।

“तुम ठीक कहते हो। गुरुवर की नगरी में शक्तियों से भरे हथियारों की थोड़ी-बहुत जानकारी मुझे मिली थी कि ऐसे हथियारों को कैसे इस्तेमाल किया जाता है।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा-“वक्त आने पर इस तलवार को आजमाऊंगा। मुद्रानाथ ने ये तलवार मेरे हवाले की है तो कुछ सोच कर ही की होगी।”

महाजन ने घूंट भरा।

“अब हम क्या करें?”

“दूसरों के आने का इन्तजार-।” कहते हुए देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान फैल गई।

“वो आयेंगे?”

“हमें तलाश करते हुए वो अवश्य तिलस्म में फंस जायेंगे।”

“तिलस्म में प्रवेश करने का यही रास्ता तो होगा नहीं। क्या मालूम जिन्न बाधात उन्हें दूसरे रास्ते से तिलस्म में फंसा दे।”

“ये भी हो सकता है। हम थके हुए हैं। यहां आराम भी कर लेते हैं और इस तरह इन्तजार भी हो जायेगा कि शायद बाकी सब भी आ जायें। नहीं तो फिर सोचेंगे कि क्या करना है।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।

“जिन्न बाधात ने कहा था कि तिलस्म में प्रवेश करने के रास्ते तो शैतान के अवतार ने बनाये हैं। लेकिन यहां से बाहर जाने का रास्ता नहीं बनाया। ऐसे में हम कभी भी तिलस्म से बाहर नहीं निकल सकते।” महाजन ने अपने शब्दों पर जोर देते हुए कहा-“जिन्न बाधात ऐसी बात हमें झूठ नहीं कहेगा।”

“मैंने कब कहा कि उसने झूठ कहा है?”

“इसका मतलब कि हम तिलस्म से बाहर कभी भी नहीं निकल सकते। देर-सवेर में यहीं पर ही मर-।”

“महाजन-!” देवराज चौहान ने टोका-“जिन्न बाधात ने जो कहा है सच कहा है। लेकिन ये बात भी सच है कि इस तिलस्म से बाहर जाने का रास्ता है, वरना जिन्न बाधात बाहर कैसे जाता।”

महाजन ने होंठ सिकोड़कर देवराज चौहान को देखा।

“तिलस्म से बाहर जाने की विशेष छूट दे रखी होगी शैतान के अवतार ने अपने खास आदमियों को। कोई खास क्रिया या किसी खास मंत्र को होंठों पर लाकर ही बाहर जाया जा सकता है।” महाजन कह उठा।

“हां। तुम्हारी इस बात को मैं पूरी तरह जानता हूं। कम से कम इस तरह तो तिलस्म से बाहर जाया जा सकता है।” लेकिन हमें कैसे मालूम होगा कि वो खास क्रिया या मंत्र क्या है और-।

“अगर वक्त हमारे अनुकूल हुआ तो हालात के बहावों से हमें हर तरह की जानकारी मिलती चली जायेगी।”

“नहीं तो मौत मिलेगी-।” महाजन गहरी सांस लेकर कह उठा।

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