नगीना के निगाहों से ओझल होते ही सब हक्के-बक्के, बेचैन-परेशान हो उठे। किसी के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था। मोना चौधरी की आंखों में व्याकुलता भरी हुई थी।

“बिल्लो-।” खामोशी जब लम्बी होने लगी तो बांकेलाल राठौर कह उठा-“बहना किधर गयो?”

“चली गई-।” बिल्ली ने शांत स्वर में कहा।

“किधरो को गयो?”

“उधर-।” बिल्ली ने आगे वाले पंजे से एक तरफ इशारा किया।

सबकी निगाह उधर उठी।

देखते ही रह गये सब। कुछ दूर, महल का प्रवेश द्वार खुला नजर आ रहा था। हवा के झोंकों से हौले-हौले हिल रहा था।

“दीदी उधर से जाईला-।” रुस्तम राव के होंठों से निकला।

“हां।”

“तुम जानती हो कि नगीना के साथ आने वाले वक्त में क्या होगा।” सोहनलाल कह उठा।

“हां। लेकिन बता नहीं सकती। गुरुवर की तरफ से मुझे आज्ञा नहीं है।” बिल्ली का स्वर था।

जगमोहन के दांत पर दांत जमे हुए थे।

“नीलू-!” राधा कह उठी-“ये तो मेरे से भी ज्यादा नखरे दिखाती है।”

“सुनो छोरे। का बोले हो?”

“बाप वो बताईला कि उसके पास नखरे भी होइएला-।”

“म्हारे को काये को बतायो हो-।”

“वो अपने मर्द को बताईला। तुम क्यों सुनेला।”

बांकेलाल राठौर ने खा जाने वाली निगाहों से रुस्तम राव को देखा।

“आपुन तेरे को नेई बोला बाप।” रुस्तम राव ने जल्दी से कहा-“आपुन उसकी बात तेरे को क्लीयर करेला-।”

“ईब तम जवान हो गयो हो।” बांकेलाल राठौर ने तीखे स्वर में कहा-“म्हारी मूंछों को थामो हो।”

“आपुन तो बच्चा होईला बाप-।”

राधा पुनः महाजन से बोली।

“नीलू! नगीना क्या देवराज चौहान की आत्मा को लेने गई है?”

“हां।”

“वो आत्मा ले आयेगी तो देवराज चौहान जिन्दा हो जायेगा?”

“मालूम नहीं।”

मोना चौधरी आगे बढ़ी और खिड़की के पास पहुंचकर बाहर झांका।

दूसरे ही पल उसकी आंखें सिकुड़ती चली गईं।

अजीब-सा ही, अविश्वास से भरा नजारा सामने था।

“बाहर कुछ है देखो को?” पास पहुंचता सोहनलाल कह उठा।

मोना चौधरी ने सोहनलाल पर निगाह मारी फिर बाहर देखने लगी।

बाहर देखते ही सोहनलाल के चेहरे पर अजीब-से भाव आ ठहरे।

“ये क्या?” उसके होंठों से निकला-“ये...ये शैतान की दुनिया है क्या?”

शैतान की दुनिया की उन्होंने जैसी कल्पना की थी, वैसा कुछ भी देखने को न मिला। महल की खिड़की से दूर-दूर तक पक्के मकान और सड़कें बनी नजर आ रही थीं। कहीं ऊंची इमारतें भी थी। कारें और छोटे-बड़े वाहन सड़कों पर दौड़ते और खड़े नजर आ रहे थे। कहीं कोई पैदल जा रहा था तो कहीं खड़ा था।

नजर आने वालों में युवक-युवतियां, बड़े-बूढ़े सब थे।

उनका पहनावा भी आम दुनिया की तरह सामान्य था।

कमीज-पैंट। कोट-पैंट। साधारण कपड़े पहने नजर आ रहे थे। ऐसा कुछ भी हटकर न दिखा कि उन्हें लगता ये कोई दूसरी दुनिया है या शैतान की दुनिया है। सब कुछ अपना-सा लगा।

“ये-ये शैतान की दुनिया है।” सोहनलाल ने हैरानी भरे स्वर में कहा।

“तुमने क्या सोचा था-?” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहते हुए उसे देखा-“कि यहां दो सिर, तीन टांगों और चार बांहों वाले लोग होंगे?”

“ऐसा तो नहीं सोचा था, लेकिन इतना अवश्य था कि यहां कुछ नया मिलेगा देखने को-।”

एक-एक करके सब खिड़की के पास आने और बाहर देखने लगे थे।

मोना चौधरी खिड़की के पास से हटी और बिल्ली को देखा।

बिल्ली हवा में मौजूद, चमक भरी निगाहों से उन्हें ही देख रही थी।

“ये शैतान की दुनिया है?” मोना चौधरी ने पूछा।

“शक हो रहा है तुम्हें?” बिल्ली का मुंह मुस्कराहट भरे अंदाज में फैल गया।

“मेरे ख्याल में ये शैतान की दुनिया नहीं है।” मोना चौधरी गहरी निगाहों से काली बिल्ली को देखते कह उठी-“महल किसी गलत जगह आ पहुंचा है। तुम्हें तो मालूम ही होगा कि ये कौन-सी जगह है?”

“ये शैतान की दुनिया है।” बिल्ली शांत स्वर में बोली-“तुम लोगों की दुनिया के ऊपर जो चौथा आसमान है, उस पर ये दुनिया बसी हुई है।”

“मैं नहीं मानती-।”

“क्यों?”

“हमारी दुनिया के कई देश दूसरे ग्रहों के लिये रॉकेट भेजते हैं। अपनी खोज में वो दूर-दूर तक देख रहे हैं। ऐसे में अगर ये दुनिया इस तरह आसमान पर बसी होती तो क्या मालूम न होता।” मोना चौधरी ने कहा।

काली बिल्ली का मुंह खुला। वो हंसी।

मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ गईं।

“तुम हंस क्यों रही हो?”

“तुम्हारी बेवकूफी वाली बात सुनकर-।”

बिल्ली के हंसने की आवाज सुनकर दूसरों की नजरें भी इस तरफ उठीं।

“तुम जानती हो, भगवान कहां रहता है?” बिल्ली ने पूछा।

“भगवान?” मोना चौधरी ने बिल्ली की आंखों में झांका-“तुम्हारे सवाल को मैं समझी नहीं।”

“भगवान भी तो आसमान पर ऊपर ही कहीं रहता है।” बिल्ली ने कहा।

मोना चौधरी की गर्दन सहमति भरे भाव में हिली।

“तो क्या, तुम्हारी दुनिया का कोई रॉकेट भगवान के आसमान पर पहुंचा है?”

मोना चौधरी कुछ नहीं कह सकी।

“भगवान की तरह शैतान का भी आसमान है। यहां भी कोई सामान्य इन्सान नहीं पहुंच सकता। तुम लोग अपने पहले जन्म के कर्मों की वजह से यहां तक आ पहुंचे हो। वरना ये तो वो जगह है, जो किसी को नजर नहीं आती।”

मोना चौधरी बिल्ली को देखती रही।

“भगवान और शैतान में ज्यादा अंतर नहीं है। भगवान वो है,

जो अच्छे लोगों की तरह राह दिखाता है। शैतान वो है जो बुरे लोगों को राह दिखाता है। दोनों ही एक-दूसरे से बढ़कर हैं। शैतान से घृणा करते हो तुम लोग। जो कि गलत बात है। शैतान से नहीं, शैतानी कर्मों से घृणा करो। ये ही उचित रास्ता है।”

“यो तो म्हारे को पाठ पढ़ायो मोना चौधरी-।”

“मेरी बात को बात समझो या पाठ समझो। सच यही है, जो तुम लोगों ने सुना।”

“ईब तो तंम विद्वान बनो हो।”

तभी पास आता जगमोहन कह उठा।

“इन बातों को छोड़ो। ये बताओ कि हम क्या करें?”

“मुझसे क्या पूछते हो।” बिल्ली ने शांत स्वर में कहा-“जग्गू, मैं किसी को भी सलाह नहीं दे सकती। ये मेरा काम नहीं है। जो भी तुम लोग करना चाहते हो, करो। मैं रोकूंगी भी नहीं।”

“हमारा भला किसमें है?” जगमोहन ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।

“मैं सलाह नहीं दे सकती। भले की बात नहीं बता सकती। बुरा रास्ता नहीं बता सकती। गुरुवर ने मेरी सीमाएं बांध रखी है। सीमा से बाहर भी आना चाहूं तो नहीं आ सकती। मेरी विद्या कम है अभी। जब विद्या पूर्ण होने के बाद, दीवारें मुझ पर से उठा ली जायेंगी, तब अवश्य अपने मन से तुम लोगों के काम आ सकूँगी। लेकिन उसमें भी गुरुवर की आज्ञा का भाव होगा। बड़े काम में अपनी पूर्ण इच्छा का इस्तेमाल तब भी नहीं कर सकूँगी।”

चंद कदमों के फासले पर खड़ा रुस्तम राव कड़वे स्वर में कह उठा।

“ये आपुन लोगों का दिमाग खराब करेला बाप। ये आपुन को कोई फायदा नेई पोंचाईला।”

“रुस्तम राव ठीक कहता है।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये हमारी बातों को टाल रही है। मुझे नहीं लगता कि किसी मामले में ये हमारी सहायता करेगी।”

“हम शैतान को ढूंढने जाना चाहते हैं।” पारसनाथ बोला-“तुम इसमें हमारी क्या सहायता करोगी?”

“कुछ भी नहीं परसू।” बिल्ली ने कहा-“मैं चाहकर भी तुम्हारी सहायता नहीं कर सकती।”

“गुरुवर की शक्तियां हैं तुम्हारे पास। तुम-।”

“पराई अमानत की रखवाली कर रही हूं।” बिल्ली का स्वर गम्भीर हो गया-“इस बाल में गुरुवर की सारी शक्तियां मौजूद हैं, जो उन्होंने सैकड़ों सालों की मेहनत और तपस्या के बाद प्राप्त की है। गुरुवर की ऐसी-ऐसी शक्तियां हैं, जिनका मैं अर्थ भी नहीं जानती। जिनका काम भी नहीं जानती। मैं सिर्फ अपनी शक्तियों को ही इस्तेमाल कर सकती हूं। जो कि अभी कम हैं। परन्तु मेरी शक्तियां तुम्हारे काम आयें, इस बात की इजाजत लेने का ध्यान नहीं रहा मुझे। मुझे तो ये भी नहीं मालूम था कि तुम लोगों से मुलाकात होगी। परन्तु गुरुवर ने मुझे इतना इशारा अवश्य दे दिया था कि जब मैं शक्तियों से भरी बाल की रखवाली कर रही होऊंगी तब कुछ लोगों से अवश्य मुलाकात होगी। इससे ज्यादा उन्होंने कुछ नहीं बताया था। खैर, ये सब बातें कहने के पीछे मेरा ये मतलब था कि बेशक प्रलय आ जाये। गुरुवर की शक्तियां गुरुवर की इजाजत के बिना में इस्तेमाल नहीं करूंगी।”

“देखा नीलू-।” राधा ने मुंह बनाकर कहा-“कैसे नखरे दिखा रही है। एक बार जब गधे की पूंछ के बाल की जरूरत पड़ी थी। वैसे तो वो गधा हमेशा चौराहे पर बैठा, लोगों की लातें खाता रहता था। लेकिन जब गधे को ये बात पता चली तो वो भागकर सबसे ऊंचे पहाड़ पर जा चढ़ा कि देखता हूं पूंछ का बाल लोग कैसे लेते हैं। लेकिन बेचारे के साथ बहुत बुरा हुआ। जोश-जोश में पहाड़ पर चढ़ तो गया, लेकिन उतरना नहीं आया उसे। वो ऊपर से चिल्लाता ही रहा कि बाल क्या पूंछ काट कर दे दूंगा। मुझे नीचे उतार दो। लेकिन तब तक दूसरों के लिये उसकी पूंछ के बाल की जरूरत नहीं रही थी और वो पहाड़ की चोटी पर बैठा ही बैठा ऊपर खिसक गया। यही हाल इस बिल्ली का होगा एक दिन।”

बिल्ली का मुंह मुस्कराहट के रूप में फैला।

“ये बातें तुम्हारी दुनिया में चलती हैं। हमारी दुनिया में इन बातों की कोई जगह नहीं।” बिल्ली बोली।

“तुम्हारी दुनिया में सोने-चांदी के गहने लगे हैं क्या?”

“नहीं। सब कुछ साधारण ही है। रहन-सहन, विद्या ही अलग है और इन्हीं चीजों के दम पर हम सबसे अलग हैं। हमारी और तुम्हारी दुनिया में खास फर्क न होकर भी बहुत फर्क है।” बिल्ली की निगाहें सब पर जा रही थीं-“तुम लोग काम या कर्म करते हो अपने लिए। अपने कर्मों में फायदा-नुकसान देखते हो। लेकिन हम कर्म करते हैं दूसरों के लिये। जिस विद्या को हम ग्रहण करते हैं, उसमें यही फायदा होता है कि दूसरों का ज्यादा से ज्यादा भला कर सकें। बुराई को खत्म करके, अच्छाई बढ़ायें।”

“ऐसी बात है तो इस वक्त तुम हमारी सहायता क्यों नहीं कर रहीं-?” जगमोहन ने कहा।

“मेरी डोर गुरुवर के हाथ में है और गुरुवर से मुझे इस बात की इजाजत नहीं है।” बिल्ली ने कहा।

“ये टाल रही है। हमारा वक्त खराब कर रही है।” सोहनलाल ने कहा।

“नहीं गुलचन्द। गलत मत बोलो। मैं टाल नहीं रही। सच कह रही हूं। रही बात वक्त खराब करने की तो तुम लोग ही मुझसे बात कर रहे हो। अच्छा तो यही होगा कि अपने वक्त का इस्तेमाल करो। अगर आगे कुछ करना है तो वो सोचो।” बिल्ली ने शांत स्वर में कहा-“मेरे से सहायता की उम्मीद मत

करना।”

बिल्ली के इन शब्दों पर सब एक-दूसरे को देखने लगे।

“मेरे ख्याल में हमें इस फेर में नहीं पड़ना चाहिये कि बिल्ली हमारी सहायता कर सकती है या नहीं। करेगी या नहीं। ये ठीक कहती है।” मोना चौधरी बोली-“हमें अपना प्रोग्राम तय करना

चाहिये।”

जगमोहन दांत भींचे बिल्ली को देखता रहा।

“तुम देखना।” राधा कह उठी-“तुम्हारा हाल भी उस गधे जैसा ही होगा एक दिन, जो जरूरत पड़ने पर पहाड़ पर चढ़ गया था। फिर उसे नीचे उतारने वाला कोई नहीं मिला था।”

बिल्ली राधा को देखकर मुस्कराई।

“वो गधा भी ऐसा ही मुस्कराया था पहले-पहले-।”

बिल्ली ने मुंह ऊंचा किया।

“म्याऊं-।” वो बोली।

“वो गधा भी इसी तरह बोला था, जब उसे समझाया था।” राधा खींझकर बोली।

मुंह खोले बिल्ली हंस पड़ी।

“ये सुधरने वाली नहीं-।” राधा झल्लाकर कह उठी-“नीलू तू कितना बहादुर है। पकड़ ले इसे। मैं इसकी गर्दन ऐसे अलग कर दूंगी, जैसे तांत्रिक गौणा, बलि देते समय मुर्गे की गर्दन खींचकर अलग कर देता था।”

बिल्ली के चेहरे पर मुस्कराहट फैली रही।

भामा परी अलग खड़ी थी। चेहरे पर सोच के भाव सिमटे हुए थे।

“महल में शैतान की धरती का कोई व्यक्ति नहीं आयेगा?” सोहनलाल बोला।

“नहीं-।” बिल्ली ने सामान्य स्वर में कहा-“महल में गुरुवर की शक्तियों का प्रभाव है। ये महल शैतान के काबू से बाहर हो चुका है। शैतान भीतर तो क्या, महल के बाहरी हिस्से को भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता।”

“इस बात से शैतान वाकिफ है?” पारसनाथ ने पूछा।

“हां। शैतान हर बात से वाकिफ है। उससे भला क्या छिपा है।” बिल्ली ने पारसनाथ को देखा।

“फिर तो शैतान ने इस बात का इन्तजाम भी कर रखा होगा कि हम महल से बाहर निकलें और वो कुछ करे। हम पर काबू पाये। महल के हर हिस्से पर उसकी नज़रें होंगी।” पारसनाथ ने पुनः कहा।

“तुम ठीक कह रहे हो परसू-। लेकिन वो तुम लोगों की खास परवाह नहीं कर रहा है।” काली बिल्ली ने सिर हिलाकर कहा-“क्योंकि वो अच्छी तरह जानता है कि उसकी जमीन पर कोई मनमानी नहीं कर सकता। कोई बाहरी शह उसकी इजाजत के बिना यहां आ नहीं सकती। उसकी इजाजत से कोई आयेगा तो, उसकी इजाजत लिए वापिस नहीं जा सकता। तुम लोग उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। ऐसा करने की कोशिश की तो शैतान वक्त से पहले तुम लोगों को मार कर, तुम्हारी आत्माओं पर अधिकार कर लेगा। मतलब कि यहां तुम लोगों का बस नहीं चल सकता।”

पारसनाथ की आंखें सिकुड़ीं।

“इसका मतलब हम बाहर जायेंगे तो शैतान हमें तुरंत कैद नहीं करेगा।” उनके होंठों से निकला।

“ये तो मैंने नहीं कहा। मैंने तो शैतान की आदतों के बारे में बताया है।” बिल्ली कह रही थी-“हो सकता है शैतान इस इन्तजार में हो कि तुम लोग बाहर निकलो और वो सबको खत्म करके आत्माओं को कैद कर ले-।”

बिल्ली की बात सुनकर वो एक-दूसरे को देखने लगे।

“शैतान के डर से हम यहां बैठे नहीं रह सकते।” मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठी।

“ठीक कहती हो।” जगमोहन शब्दों को चबाकर कह उठा-“हम बाहर चलेंगे।”

“पीछे से बहना देवराज चौहान की आत्मा ले आये तो?” बांकेलाल राठौर गम्भीर स्वर में कह उठा।

“मूंछों वाले ने ठीक कहा है। हमारे जाने के बाद नगीना आ गई तो?” राधा बोली।

“किसी को यहां भी रहना होगा।” महाजन बोला।

“कौन रहेगा यहां?”

“सरजू-दया को यहां छोड़ देते हैं।”

“इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।” जगमोहन ने कहा-“इनके आधे से ज्यादा होश गुम हुए पड़े हैं।”

मोना चौधरी की नजरें भामा परी पर गईं।

“भामा परी। तुम तो महल से नहीं निकलोगी। बाहर तुम्हें खतरा है।”

“इस बारे में अभी यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकती।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“बाहर निकलोगी तो शैतान की दुनिया वाले तुम्हें नहीं छोड़ेंगे।” मोना चौधरी बोली-“तुम्हारा यहीं रहना-।”

“मैंने अभी फैसला नहीं किया है। इस बारे में मुझसे कुछ मत

पूछो।”

जगमोहन ने मिट्टी के बुत वाली युवती से पूछा।

“तो तुम यहीं रहोगी?”

“मुझे जो काम करने को कहोगे, मैं वही करूंगी।” वो बोली।

“हम सब शैतान की धरती पर पांव रखने जा रहे हैं।” जगमोहन बोला-“हो सकता है नगीना भाभी, पीछे से देवराज चौहान की आत्मा ले आये। सब भाभी को जो सहायता की जरूरत हो वो करना।”

“अवश्य। ऐसा ही करूंगी। लेकिन मैं उनकी कोई भी सहायता नहीं कर पाऊंगी।” मिट्टी के बुत वाली युवती ने कहा।

“क्या मतलब?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।

“जब वो आत्मा लेकर आयेंगी। तब उन्हें जैसी सहायता की जरूरत होगी, वो मैं नहीं कर पाऊंगी। मिट्टी के बुत वाली युवती की निगाह बिल्ली की तरफ उठी-“जो करेगी, ये ही करेगी।”

जगमोहन ने बिल्ली को देखा।

बिल्ली चमकती आंखों से सब देख-सुन रही थी।

“भाभी, देवराज चौहान की आत्मा ले आतो, तुम आगे की बात संभाल लोगी?” जगमोहन ने बिल्ली से कहा।

“मैं सब संभाल लूंगी जग्गू-।” बिल्ली ने शांत स्वर में कहा।

“फिर तो आपुन सब बाहर जा सकेला बाप-।”

“तब बतायो कि शैतान या उसो को कोई चेलो-चपाटो इस महलो के भीतर न आ सको-।”

“हां-।” बिल्ली का मुंह खुला।

“शैतान इसो बातो को लेकरो, परेशान न होवो कि भीतर कोणो न जा सकयो-।”

“शैतान इस वक्त बहुत ज्यादा उलझन में है कि उसकी कोई

शक्ति काला महल के भीतर प्रवेश क्यों नहीं कर रही। जबकि

काले रंग में तो शैतानियत ज्यादा असर दिखाती है।” बिल्ली का स्वर गम्भीर था-“वो ये जानने की कोशिश में लगा हुआ है कि महल के भीतर कौन-सी शक्ति मौजूद है, जिसकी वजह से ऐसा हो रहा है।”

“वो इसो बातो को मालूम कर लयो।”

“अभी तक नहीं और महल के भीतर की बातों को उसकी शक्तियां जान भी नहीं पायेंगी।”

“ये बात तो वो बिना शक्ति के भी जान सकता है।” सोहनलाल ने कहा।

“वो कैसे?” बिल्ली ने सोहनलाल को देखा।

“हम बाहर निकलेंगे तो शैतान या उसके आदमी हमें पकड़कर, यातना देकर हमसे ये बातें मालूम कर लेंगे।”

“ऐसा भी हो सकता है गुलचन्द।” बिल्ली के होंठों पर मुस्कान उभरी-“शैतान के लिये तो ये मामूली बात है। परन्तु वो चाहकर भी तुम लोगों के साथ में ऐसी कोई हरकत नहीं करेगा।”

“क्यों?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

“ऐसा कुछ करने से पहले वो अपनी शक्ति से तुम लोगों के भीतर झांक लेगा कि पहल के भीतरी हालातों के बारे में तुम लोगों को पूरी जानकारी है या नहीं। और तुम लोगों को तो मालूम ही नहीं होगा कि महल के भीतर मैं हूं या क्या हो रहा है।”

“हमें तो मालूम है।” महाजन के होंठों से निकला। ।

“अब मालूम है। लेकिन महल के बाहर निकलते ही मुझे भूल जाओगे। गुरुवर की शक्तियों से भरी इस बाल को भूल जाओगे। नगीना के बारे में कुछ भी याद नहीं रहेगा कि वो देवा की आत्मा लेने गई है।” बिल्ली ने गम्भीर स्वर में कहा।

“ऐसा कैसे हो सकता है!” पारसनाथ की आंखें सिकुड़ीं।

“मैं करूंगी। अपनी शक्ति के प्रभाव से हर वो बात तुम लोगों

की सोचों से निकाल दूंगी जो शैतान के काम में सहायक हो सकती है। तुम लोगों से मैं शैतान से कोई फायदा नहीं होने दूंगी। नहीं तो सबका नुकसान होगा।”

वो एक-दूसरे को देखने लगे।

“यो तो सारे इन्तजाम रेडीमेड तैयार रखो हो।”

“वो किसी बड़ी शक्ति का इस्तेमाल करके यहां की बातें मालूम-।” मोना चौधरी ने कहना चाहा।

“शैतान कितनी ही बड़ी शक्ति इस्तेमाल कर ले। लेकिन भीतर की बातें नहीं जान पायेगा।” बिल्ली ने गम्भीर स्वर में कहा-“गुरुवर की सारी शक्तियां यहां पर, बाल में मौजूद हैं। ऐसे में शैतान की यहां नहीं चलेगी।”

“बाप! शैतान आपुन लोगों को नेई छोड़ेला।” रुस्तम राव ने गम्भीर स्वर में कहा।

“जो भी महल से बाहर जाना चाहता है वो अपने दोनों हाथ सिर पर रख ले।” बिल्ली ने कहा।

“क्यों?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“अभी मालूम हो जायेगा।” बिल्ली का मुंह खुला-“हाथ सिरों पर रखो।”

भामा परी, सरजू-दया के अलावा सबने अपने हाथ सिरों पर रखे।

“तुम तीनों महल से बाहर नहीं जाओगे।” बिल्ली ने उन्हें देखा। सरजू-दया ने फौरन इन्कार में सिर हिलाये।

“मैं अभी कुछ नहीं सोच सकी कि मुझे क्या करना चाहिये।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा।

बिल्ली ने कुछ नहीं कहा और आंखें बंद कर ली तभी गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल सुर्ख होने लगी। मात्र दस सेकेंड ही बीते होंगे कि बाल पर से सुर्खी हट गई और वो वापस दूधिया रोशनी जैसी दिखने लगी।

बिल्ली ने आंखें खोलीं।

“अपने सिरों से हाथ हटा सकते हो।” बिल्ली ने गम्भीर स्वर में कहा।

सबने बांहें नीचे कीं।

“सिरों पर हाथ रखवाकर तुमने किया क्या?”

“यही कि महल से बाहर जाओगे तो तुम लोगों को ऐसी कोई बात याद नहीं रहेगी, जिससे कि शैतान को फायदा हो सके। वो महल के भीतर की किसी तरह की कोई जानकारी नहीं पा सकेगा।” बिल्ली की नज़रें सब पर फिर रही थीं।

“फिर तो हम ये भी भूल जायेंगे कि हमें क्या करना है और-।” “नहीं परसू। तुम लोगों को अपने काम याद रहेंगे। मेरे को भूल जाओगे। गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल की याद नहीं से रहेगी। शैतान के फायदे की बात याद नहीं आयेगी।” पारसनाथ सिर हिलाकर रह गया।

“मेरे ख्याल में अब हमें चलना चाहिये-।” महाजन ने गम्भीर निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

मोना चौधरी की निगाह सब पर फिर फिरने लगी। फिर साथ आने का इशारा करके मोना चौधरी महल के खुले दरवाजे की तरफ बढ़ी। सब उसके साथ हो गये। भामा परी, सरजू और दया गम्भीर निगाहों से उन्हें जाते देख रहे थे।

“बाहर जाकर हम करेंगे क्या?” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये बात हमें तय कर लेनी चाहिये।”

“कुछ सोचने का क्या फायदा।” सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगा ली-“कोई फायदा नहीं। क्योंकि हम नहीं जानते

कि बाहर क्या हालात हैं। हमारे साथ क्या होगा। अपनी धरती पर शैतान कैसे हमारा स्वागत करता है। यहां से बाहर निकलते ही शैतान हमारी गर्दनें थाम लेगा-।”

“नीलू-।” राधा कह उठी-“मुझे भूख लग रही है। शैतान की दुनिया में हलवाई तो होंगे। समोसे तो वो बनाते ही होंगे।”

“मालूम नहीं।” सोचों में डूबा महाजन गम्भीर था।

“ठीक है। समोसे नहीं तो कुछ और ही खिला देना। भूखे मरने से तो कुछ भी खा लेना अच्छा है।”

“शैतान की धरती पर किसी का मुकाबला करने के लिये हमारे पास हथियार भी नहीं है।” महाजन ने कहा।

“हथियार होएला बाप-।” रुस्तम राव ने कहा।

“कैसा हथियार?” चलते-चलते महाजन ने रुस्तम राव को देखा-“तलवार तो तुमने-।”

“आपनु तलवार की बात नहीं करेला। प्रेतनी चंदा के खंजर की बात करेला है, जो मोना चौधरी के पास होईला।”

“ओह-!” महाजन ने होंठ सिकोड़े। प्रेतनी चंदा के बारे में जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “दूसरी चोट”।

“प्रेतनी चंदा के खंजर में बोत खतरनाक शक्ति होएला बाप-। वो खुद अपने खंजर से ही मरेला बाप-। वरना वो इतना पावरफुल होएला कि नेई मरेला। प्रेतनी चंदा का सारा पावर खंजर में होएला।”

“मोना चौधरी!” राधा कह उठी-“तुम्हारे पास प्रेतनी चंदा का शैतानी खंजर है। वो शैतानों पर इस्तेमाल हो सकेगा।”

“हां।” कहते हुए मोना चौधरी के दांत भिंच गये-उसने पैंट में फंसा खंजर निकालकर देखा फिर वापस फंसा लिया-“खंजर

में प्रेतनी चंदा की असीम ताकतें हैं जो शैतानों पर सफल वार कर सकेंगी। शैतान की धरती पर इसी खंजर का सहारा है। इसके अलावा दूसरा हथियार शैतानों पर अस्त नहीं करेगा।”

खुला दरवाजा सामने था।

एक-एक करके वो सब बाहर निकलते चले गये।

शैतान की धरती पर उन्होंने पांव रखा।

☐☐☐

नगीना किसी को नजर नहीं आ रही थी। उसके हाथ में दबी तलवार किसी को नहीं दिखाई दे रही थी। गुरुवर की शक्ति के दम पर वो अदृश्य हुई पड़ी थी। काला महल से बाहर निकलने के पश्चात सामने नजर आने वाले रास्ते पर सीधे ही बढ़ी जा रही थी।

दस मिनट बाद ही वो रास्ता पक्की सड़क पर खत्म हुआ।

नगीना ठिठकी। पलटकर पीछे देखा।

“क्या बात है नगीना बेटी?” पेशीराम की फुसफुसाहट नगीना के मस्तिष्क से टकराई।

“बाबा!” नगीना के होंठों से बुदबुदाहट निकली-“ये महल ऐसी जगह पर आ ठहरा है, जिसके आसपास शहर बसा हुआ है। क्या ये जगह महल के आने से पहले खाली थी-।”

“ठीक सोचा बेटी। ये जगह महल के लिये ही खाली रहती है। यूं समझ लो कि ये जगह महल के रुकने का प्लेटफार्म है।” फकीर बाबा के शब्द मस्तिष्क से टकराये-“काले समन्दर से उभरे जंजीरे के महल पर सवार होकर तुम जब शैतान के अवतार (द्रोणा) की दुनिया में पहुंचे थे, तब याद है, वो महल भी भरी-पूरी जगह पर ही रुका था।”

“हां-।” नगीना के होंठ हिले।

“ऐसे ही इस काला महल के रुकने के लिये ये जगह है।”

सिर हिलाकर नगीना सड़क पर नज़रें दौड़ाने लगी।

आते-जाते वाहन जो कि छोटे-बड़े थे। पास से गुजरते लोग। एक जगह पर कुछ लोग लड़ाई कर रहे थे। वहां शोर-शराबा उठ रहा था।

“देखकर लगता नहीं कि ये शैतान की दुनिया है।” नगीना बोली-“शैतान की दुनिया ऐसी होती है क्या?”

“जो लोग तुम्हें नजर आ रहे हैं यहां। ये वो हैं, जिन्हें शैतान ने नया-नया अपनी दुनिया में शामिल किया है। इन्हें शरीर देकर शैतान, अब सबको शैतानी विद्या सिखा रहा है। जब इनकी विद्या पूर्ण हो जायेगी तो इन्हें शैतान अपनी दुनिया के उस हिस्से में भेज देंगे, जहां वो अपनी बड़ी-बड़ी कार्यवाहियों को अंजाम देता है।”

“ओह! तो ये शैतान की असली दुनिया का चेहरा नहीं है।” नगीना के होंठों से बुदबुदाहट निकली।

“नहीं। ये तो शैतान की दुनियां का आवरण मात्र है। भीतर दुनिया का रूप देखते ही, आम इन्सान थर्रा उठेगा । इस वक्त तुम्हें जो नजर आ रहा है, वो मत देखो, उस पर विश्वास मत करो। ये तो मामूली और शरीफ आत्माए हैं जिन्हें शैतानी शिक्षा देकर क्रूर और विनाशक बनाया जा रहा है। शैतानी जमीन से भविष्य में यही सीधी-शरीफ आत्मायें अपने-अपने रूपों में सृष्टि के अनेक हिस्सों में पहुंचकर शैतानी खेल खेलेंगी। तबाही मचाएंगी। शैतान के इशारे पर वहशी खेल दिखाकर, शैतान का रुतबा सृष्टि में और भी पक्का करेंगी। शैतान के लिये ये सब करना बहुत जरूरी है। अगर वो अपना रुतबा नहीं बढ़ा सका तो उसे उसकी जगह से हटा दिया जायेगा।”

“क्या?” नगीना के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे-“शैतान

को भला कौन हटा सकता है उसकी जगह से?”

“जो शैतान के ऊपर है।”

“शैतान के ऊपर भी है कोई?”

“हां। सबकी डोर किसी न किसी के हाथ में है। कोई भी अपना मालिक आप नहीं।” पेशीराम के शांत शब्द नगीना के मस्तिष्क में आते जा रहे थे-“शैतान हो या भगवान। इन्हें भी अपने कर्मों का हिसाब ऊपर देना पड़ता है। ऊपर वाले को अपना हिसाब और भी ऊपर देना पड़ता है। ये एक अनन्तहीन सिलसिला है। जिसका एक सिरा, दूसरे सिरे से जुड़ा हुआ है। सब कुछ घूम-फिर कर वापस इन्सान के जन्म पर आकर ठहर जाता है। नहीं समझ सकोगी इन बातों को। तुम सिर्फ वही बात करो जो तुम्हारे फायदे की हो। तुम्हारे पास सीमित वक्त है बेटी, देवा की आत्मा को वापस लाने के लिये। मालूम नहीं ये काम पूरा भी हो पाता है या शैतान की ही जीत होगी।”

“बाबा!” नगीना के दांत भिंच गये-“तुमने क्यों खुद को खतरे में डाला?”

“मेरा अपना ही लालच है इसमें। देवा की मौत से मेरा बहुत

नुकसान है।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क से टकराये।

“कैसा नुकसान?”

“ये वक्त इन सवाल-जवाबों का नहीं है।”

“मुझे बताओ बाबा! देवराज चौहान की आत्मा को शैतान ने कहां कैद कर रखा है?” नगीना के होंठों से खतरनाक गुर्राहट

निकली-“मैं जल्दी वहां पहुंचना चाहती हूं और उनकी आत्मा को वापस लाकर-।”

“बहुत लम्बा रास्ता है। वक्त लगेगा वहां पहुंचने में। उसके

बाद-उसके बाद तो...।”

“उसके बाद क्या बाबा?” नगीना के होंठों से निकला।

“मैं तुम्हारा हौसला नहीं तोड़ना चाहता। जो नजर आयेगा। वही देखना। वही बताऊंगा।”

नगीना ने कुछ नहीं कहा।

“यहां से दायें बायें नहीं जाना है।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क से टकराये-“सड़क को सीधा पार कर जाओ। बहुत देर बाद कच्ची पगडंडी आयेगी, फिर उस पर आगे बढ़ना होगा। कठिन और लम्बा रास्ता है बेटी। रास्ते में रुकावटें भी आ सकती हैं। देवा की आत्मा तक पहुंचना आसान नहीं है।”

“मैं पूरी कोशिश करूंगी कि-।” नगीना ने कहना चाहा।

“वक्त खराब मत करो। आगे बढ़ो।” पेशीराम के शब्द मस्तिक से टकराये।

नगीना दृढ़ता भरे अंदाज में आगे बढ़ी और सड़क पार करने लगी। आते-जाते वाहनों के प्रति सतर्क थी कि कहीं वो उनसे टकरा न जाये। चेहरे पर दृढ़ता नजर आ रही थी। सड़क पार करने के बाद तेज-तेज कदमों से आगे बढ़ने लगी। लोग आ-जा रहे थे। पूरा ध्यान रख रही थी कि उनसे टक्कर न हो।

“बाबा, वो कच्ची पगडंडी कब आयेगी?” नगीना ने भिंचे स्वर में पूछा।

“तुम्हारी दुनिया के समय के, दो घण्टे लगेंगे। बिना रुके आगे बढ़ते रहना नगीना बेटी-।”

नगीना के कदम और भी तेजी से उठने लगे।

☐☐☐

मोना चौधरी, जगमोहन, पारसनाथ, राधा, बांकेलाल राठौर, महाजन, रुस्तम राव और सोहनलाल इकट्ठे ही सड़क के किनारे बाजार से निकल रहे थे। साधारण-सी, परन्तु खूबसूरत दुकानें नजर आ रही थीं। वहां जरूरत का हर सामान पड़ा था। लोग खरीददारी कर रहे थे।

शैतान की धरती का सिस्टम समझने की चेष्टा कर रहे थे वे सब।

तभी रास्ते में खाने की दुकानें आईं।

“नीलू-।” खाने का सामान देखते ही राधा कह उठी।

“मुझे भूख लगी है।”

“भूख तो आपुन को भी लगेला बाप-।” रुस्तम राव बोला।

“छोरे यां पे, मक्खन का गोलो मारो के, लस्सी मिलो का?”

“मालूम नेई होईला बाप। सिर ओखली में देकर, अभी चेक करेला।”

महाजन ने घूंट भरा और मोना चौधरी से बोला।

“बेबी! कुछ खा लिया जाये-।”

खाने की दुकानों के सामने वो सब रुक गये थे।

“यहां पर पेमेंट कैसे देनी है, हमें नहीं मालूम। हमारे पास देने को कुछ नहीं है।” मोना चौधरी ने होंठ भींचकर कहा।

“शैतान के अवतार की धरती पर जब हम पहुंचे थे, तब भी हमने दुकान से खाना खाया था।” पारसनाथ बोला।

“वो शैतान के अवतार की धरती की बात थी और ये शैतान की जगह है।” जगमोहन कह उठा-“कहीं ऐसा न हो कि खाना खाने के चक्कर में, हम यहां किसी नई मुसीबत में फंस जायें।”

“शैतान के अवतारों की धरती पर भी अंम दुकानदार से निपटो हो। यों ये भी अंम-।”

तभी पास से जाते एक युवक को सोहनलाल ने टोका।

“सुनना भाई!”

वो युवक ठिठका।

“क्या है, जल्दी बोलो? मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है।” उस युवक ने कहा।

“यो तो जाज पे सवार हौवो हो।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।

“हम तुम्हारा ज्यादा वक्त नहीं लेंगे।” सोहनलाल ने कहा-“इतना बता दो कि यहां खाना खाने के लिये दुकानदार को क्या देना पड़ता है? खाने के सामान के बदले वो क्या लेगा?”

युवक ने सबको बारी-बारी देखा।

“तो यहां नये आये हो।” युवक ने कहा।

“हां। अभी पहुंचे हैं।”

“तभी यहां के मामलों को समझने में परेशानी आ रही है। फिक्र मत करो अभी सब समझ जाओगे।” युवक के होंठों पर मुस्कान उभर आई-“मेरा नाम जार्ज है। मैं कभी धरती पर नेपाल में रहा करता था। तुम लोग कहां के हो?”

“हिन्दुस्तान के।”

“ओह! फिर तो हम करीबी ही हुए। जार्ज जल्दी से बोला-“खैर, बातें बाद में करेंगे। शैतान का लेक्चर शुरू होने में ज्यादा वक्त नहीं है। कुछ खाकर, मुझे वहां पहुंचना है। मुझे पूरी तरह

शैतानी विद्या ग्रहण करनी है। अभी मैं दूसरी सीढ़ी भी नहीं चढ़ा। मुझे भी ज्यादा देर नहीं हुई शैतान की दुनिया में आये। आओ कुछ खा लें। मैं देर से वहां पहुंचा तो कोई फायदा नहीं होगा।” कहने के साथ ही वो दुकान की तरफ बढ़ा।

“लेकिन खाने के बदले देना क्या पड़ेगा?” साथ चलते सोहनलाल ने पूछा।

बाकी भी पीछे चल पड़े थे।

“अभी देख लेना। जो होगा तुम सबके सामने ही होगा।”

बहुत ही सजी हुई जगह थी भीतर।

दीवारों पर खूबसूरत पेंट और डिजाइन बने हुए थे। छत पर और भी खूबसूरत रंग लगा रखे थे। दीवारों पर कई रंगों के चमकते शीशे थे। उस जगह पर छोटी और बड़ी टेबलें रखी थीं। किसी टेबल पर दो के बैठने की जगह थी कहीं बीस की।

फर्श पर कालीन बिछा हुआ था।

एक तरफ दीवार पर बड़ी-सी आकृति बनी हुई थी। उसका रंग काला था। आकृति ज्यादा स्पष्ट नहीं थी, परन्तु उसकी लाल सुर्ख आंखें चमक रही थीं।

वो सब एक बड़ी टेबल के गिर्द पड़ी कुर्सियों पर बैठ गये।

“दीवार पर किसकी तस्वीर बनी है?” महाजन ने पूछा।

“शैतान की-।” कहने के साथ ही जार्ज ने दोनों हाथ जोड़कर सिर झुकाया।

तभी एक व्यक्ति वहां पहुंचा और बोला।

“खाने के लिये क्या लाऊं?”

“जो आज बनाया है, वो ही ले आ।” जार्ज ने आदेश भरे स्वर में कहा।

वो सिर हिलाकर जाने लगा तो राधा कह उठी।

“कोने वाले हलवाई के समोसे हैं क्या?”

“समोसे?” उसने राधा को देखा।

“ये भरवां आटा के बारे में पूछ रही है।” जार्ज बोला-“भरवां आटा भी ले आना।”

“ठीक है।” वो चला गया।

बांकेलाल राठौर ने मूंछ पर हाथ फेरा और चेहरा आगे करके बोला।

“भायो जार्ज-!”

“हां-।” जार्ज ने उसे देखा।

“यां पे, खाने वास्ते का-आईटमों हौवे?”

“अभी आयेगा सामान। देख लेना।”

“वो तो देखो ही। यां पे, आदमी की टांगों की फ्राई हौवे का?”

“टांग? नहीं-नहीं। जब तक हम विद्या की चार सीढ़ियां पार नहीं करेंगे, तब तक हमें खाने को सादा खाना ही मिलेगा। ये भी शैतान की मेहरबानी है कि हमें पेट भरने को कुछ दे रहा है।” जार्ज ने पुनः दीवार पर बनी आकृति को हाथ जोड़े।

“तो शैतान का भूखो भी मारो हो?”

“शैतान क्या नहीं कर सकता।” जार्ज ने गम्भीर स्वर में कहा-“सच पूछो तो शैतान बहुत अच्छा है। वो अपनी दुनिया में किसी को कष्ट नहीं होने देता। सबका ध्यान रखता है। जिसके

कर्म शैतानी विद्या को हासिल नहीं कर पाते, उसके साथ शैतान बहुत सख्ती से पेश आता है।”

“यो सीढ़ी का हौवे हो?”

“शैतानी विद्या की शुरूआत के लिये पहली सीढ़ी होती है इन्सानी खून का कटोरा। वो खून का कटोरा पूरा पीकर शैतानी अर्थ के अनुसार हमें पवित्र बनना पड़ता है। तब हम शैतानी विद्या को ग्रहण करने की शुरूआत कर सकते हैं। कई तो पहली सीढ़ी ही नहीं चढ़ पाते। कटोरा खाली नहीं कर पाते। उल्टी कर देते हैं।” कहते हुए जार्ज के चेहरे पर मुस्कान उभरी-“मैं तो एक ही बार में पूरा कटोरा खाली कर गया था।”

“म्हारे को तो पहलो सीढ़ी ही हिमालयो की चोटी से बड़ो लगो हो।”

तभी ऑर्डर लेने वाला व्यक्ति दो फेरे में सबके लिये खाने का सामान और पानी रख गया।

खाने के थाल में तीन तरह की सब्जियों के अलावा, चपाती, रायता, सलाद था। बड़ी सी ट्रे टेबल के बीचो-बीच रखी थी, जो कि पुलाव से भरी हुई थी।

एक ट्रे समोसों (भरवां आटा) से भरी हुई थी।

शुद्ध-शाकाहारी, साफ-सुथरा अच्छा खाना था।

“यो तो इन्सानो वालो, शरीफो वालो खानो हौवे।” बांकेलाल

राठौर ने होंठ सिकोड़ कर कहा।

“अब जल्दी से खा लो। मुझे शैतान का पाठ सुनना है।” जार्ज ने कहा और खाने में व्यस्त हो गया।

सब खाने में व्यस्त हो गये।

राधा ने समोसों वाली ट्रे अपनी तरफ खींच ली और खाने लगी। खाने के उस हालात में मध्यम-सा बातें करने का शोर सुनाई दे रहा था। सब अपनी बातों, अपने कामों में व्यस्त थे।

“तुम शैतान से पाठ पढ़ने जा रहे हो?” खाते-खाते मोना चौधरी ने पूछा।

“हां।” जार्ज ने सिर हिलाया।

“तुम लोगों को शैतान पाठ पढ़ाता है या उसके आदमी?”

“उसके आदमी पढ़ाते हैं, जो बड़ी विद्या के मालिक हैं। शैतान तो बारह दिनों में एक बार अपना पाठ बताने आता है। आज शैतान के आने का दिन है। तभी तो मेरा वहां पहुंचना जरूरी है। क्योंकि शैतान जो भी कहता-बताता है, वो सब बातें शैतानी विद्या ग्रहण करने के बाद, बहुत काम आयेंगी।”

मोना चौधरी की नजरें अपने साथियों से मिलीं।

तभी जगमोहन कह उठा।

“हम तुम्हारे साथ नहीं चल सकते क्या?”

“क्यों नहीं चल सकते।” जार्ज खाते-खाते कह उठा-“शैतानी

विद्या को हासिल करने के लिये जितना ज्यादा से ज्यादा वहां जाया जाये, उतना ही अच्छा है। यूं समझो कि पहली चार सीढ़ियां चढ़ने के लिये पचास बार जाना पड़ता है। बेशक रोज जाओ या दस दिन में एक बार जाओ। मेरे ख्याल में तो अच्छा यही है कि जो भी काम करना है, फौरन कर देना चाहिये। एक काम पूरा हो तो दूसरे में हाथ डाला जायेगा। शैतान की निगाहों में अच्छा बनना है तो उसकी विद्या को जल्दी-जल्दी ग्रहण करना चाहिये। ऐसे शिष्यों को शैतान अपने करीब रखता है। उन्हें बहुत आराम देता है।”

“तो तुम शैतान के अच्छे शिष्य बनना चाहते हो?”

“मैं ही क्या, हर कोई अच्छा शिष्य बनना चाहता है। शैतान की नजरों में ऊंचा उठना चाहता है। सुनने में तो आया है कि शैतान को अच्छे शिष्यों की कमी खलने लगी है।” जार्ज ने बारी-बारी उन्हें देखा-“ये भी सुनने में आया है कि शैतान के कई खास शिष्य, जिन पर शैतान को गर्व था, उन्हें किसी ने खत्म कर दिया है।”

“तुम उन खास शिष्यों को जानते हो?” महाजन ने पूछा।

“हां। उनका नाम तो विद्या सिखाते वक्त अक्सर बताया जाता है कि उन्होंने क्या-क्या कहां गलतियां कीं।” जार्ज ने खाते हुए उन पर निगाहें दौड़ते हुए कहा-“हाकिम है। दालूबाबा है। द्रोणा है। द्रोणा को तो अभी मारा है, कुछ लोगों ने। चंदा नाम की प्रेतनी है। और भी बहुत हैं, जिनके नाम हमें नहीं बताये गये। सब पढ़ाया जाता है कि इन्होंने कौन-सा काम बढ़िया ढंग से किया और क्या गलती की, जो कि उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा-।”

“या तो चौखी पढ़ाई हौवे। म्हारे को भी पढ़ना पढ़ो यां पे-।”

“एक बात और बताओ जार्ज।” पारसनाथ ने खाते हुए पूछा।

“क्या? खाना भी जल्दी-जल्दी खाओ। मैं वक्त पर वहां पहुंचना चाहता हूं।”

“तुम जानते हो कि शैतान जिन आत्माओं को कैद करता है, उन्हें कहां रखता है?”

जार्ज ने पारसनाथ को देखा फिर खाते हुए कहने लगा।

“मेरी आत्मा भी शैतान की कैद में थी। बहुत देर मुझे बंद रखा गया। जब मेरा नम्बर आया तो मुझे कैद से निकालकर ये रूप दिया और यहां लाकर मुझे शैतानी विद्या में माहिर बनाना शुरू कर दिया।”

सबकी नजरें जार्ज पर जा टिकीं।

“शैतान कहां पर आत्माओं को कैद करके रखता है?”

“बहुत कठिन जगह है वो। मैं नहीं जानता वो जगह कहां है। लेकिन वहां कोई नहीं पहुंच सकता। बहुत ही खतरनाक शैतानी पहरे हैं। कोई पहुंच जाये तो, उसे ख़त्म करके, उसकी आत्मा को कैद कर लिया जाता है। वहां की सोचकर तो आत्मा कांप उठती है।” जार्ज गम्भीर हो उठा था।

“कुछ तो अंदाजा होगा कि वो जगह कहां पर होगी?”

“नहीं। मैं नहीं जानता। वैसे भी शैतान इन बातों की जानकारी किसी को नहीं होने देता।” जार्ज बोला-“वो जगह तो शैतान का खजाना है। सब आत्माएं शैतान की दौलत हैं। आने वाले वक्त में, उन्हीं आत्माओं ने इन्सान का चोला पहनकर शैतान का नाम रोशन करना है। शैतान से ऊंचा कोई नहीं।”

“भगवान है।”

“शैतान से बड़ा भगवान हाएला बाप-।”

“मैंने तो शैतान को देखा है। शैतान की माया को जाना है। मेरी निगाहों में तो शैतान ही सब कुछ है। भगवान को मैं जानता नहीं तो उसके बारे में कुछ कह भी नहीं सकता।” जार्ज ने सामान्य स्वर में कहा-“भगवान हमारा दुश्मन है। वो हमारे कामों में परेशानियां खड़ी करता है।”

“भगवान से मेरी मुलाकात हुई थी।” जगमोहन ने तीखे स्वर

में कहा-“उसका कहना है कि शैतान बुरा है। वो उसके कामों

को खराब करता है। लोगों को गलत रास्ते पर डालता है।”

जार्ज ने जगमोहन को देखा।

“तुम लोग यहां नये हो। कायदे-कानून नहीं जानते। शैतान के आगे सिर झुकाओ। उसके खिलाफ मत बोलो। वरना वो तुम

लोगों को कीड़ा बनाकर किसी नाले में डाल देगा।”

जगमोहन कुछ कहने लगा कि पास बैठे सोहनलाल ने उसके पैर पर पैर मारकर उसे खामोश रहने को कहा। जगमोहन मन ही मन गुस्सा समेटे मुंह घुमाकर रह गया।

खाना समाप्त करके वे उठे।

तभी खाना सर्व करने वाला आया और हाथों को सामने की तरफ बांधकर खड़ा हो गया।

“आ गये ‘बिल’ लेने। भुगतो-।”

जार्ज मुस्कराया और आगे बढ़कर जोरदार चांटा उस व्यक्ति के चेहरे पर मारा।

चांटा खाने के बाद वो खामोशी में खड़ा रहा।

ये देखकर सबके चेहरों पर हैरानी के भाव उभरे।

“तुम सब इसे एक-एक चांटा मारो।” जार्ज ने उन्हें देखा।

“काये को?” बांकेलाल राठौर के होंठों से निकला-“यो चांटो

का ‘बिल’ हौवे?”

“कुछ भी कह लो।” जार्ज ने कहा-“ये सजा है इनकी। यहां जो खाना बनाते हैं और खिलाते हैं, उन्हें चांटा मारा जाता है। ये नाकाम लोग हैं। शैतानी विद्या को ग्रहण करने में बार-बार असफल हुए तो इन्हें खाना बनाने और खिलाने में काम पर लगा दिया शैतान ने। ये जिसे भी खाना खिलाएंगे, वो चांटा जरूर मारेगा इन्हें। यही इनका इनाम है। यही सजा है इनकी।

यहां खाना कोई नहीं बनाता। सब ऐसी जगहों पर असफल

लोगों का बनाया खाना खाते हैं। इन लोगों को सजा मिलती

रहे और अन्य लोगों का वक्त बरबाद न हो, खाना बनाने में। वो ज्यादा से ज्यादा शैतान विद्या को सीखने में अपना वक्त लगा सकें।”

जार्ज की बात सुनकर, वो एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।

“सिस्टम तो बढ़िया है।” जगमोहन होंठ भींचकर कह उठा।

“सजा की सजा और दूसरों के वक्त की बचत खाना बनाने में।” महाजन ने होंठ सिकोड़े।

“जल्दी करो। वरना मैं लेट हो जाऊंगा।”

सबने एक-एक चांटा खाना खिलाने वाले व्यक्ति को मारा और वहां से बाहर आ गये।

“नीलू-!” राधा बोली।

“हां।”

“हम यहीं रह जाते हैं।” राधा ने उसकी बांह पकड़कर कहा-“कितना बढ़िया खाना था, जो हमने खाया। पैसे भी नहीं

देने पड़ते। समोसों का तो जवाब नहीं। कोने वाला हलवाई भी इतने बढ़िया समोसे नहीं बनाता। यही जिन्दगी बितायेंगे। खाना खाते रहेंगे और प्यार करेंगे। कहीं घर बना लेते हैं। पूछ लेंगे कि खाने की फ्री होम डिलीवरी है कि नहीं? है तो मजा आ जायेगा। फोन नम्बर ले लेंगे इस रेस्टोरेंट का।”

महाजन ने राधा को देखा।

“क्या हुआ नीलू?”

“प्लीज राधा! कुछ देर चुप रहो। हम बहुत बड़ी मुश्किल में हैं।”

“मुझे मुसीबत का डर नहीं। मेरा नीलू बहुत बहादुर है। तू सब मुसीबतों को भगा देगा।”

महाजन गहरी सांस लेकर कह उठा।

“जल्दी चलो। जहां हमने जाना है, वो जगह ज्यादा दूर नहीं है।” जार्ज तेज-तेज कदमों से आगे बढ़ता हुआ कह उठा।

☐☐☐

जार्ज के साथ वे सब बहुत बड़े एकमंजिला मकान के भीतर प्रवेश कर गये। वो हॉल करीब दो हजार गज में था। उसके बीच

कुर्सियां ही कुर्सियां पड़ी दिखाई दे रही थीं। भीतर तीव्र प्रकाश फैला हुआ था। लोग आ रहे थे। कुर्सियों पर बैठते जा रहे थे। बेहद मध्यम-सी आवाजें उभर रही थीं वहां। अजीब-सा माहौल हो रहा था। वहां आधा घंटा पहले वीरान पड़ा वो हॉल अब खचाखच भरता जा रहा था। वहां आने वाले लोग उत्साह से भरे दिखाई दे रहे थे। उनकी बातों का केन्द्र यही बातें थीं कि वो पहले और ज्यादा विद्या सीख कर शैतान का खास चेला बनकर, शैतान का नाम ज्यादा रोशन करेगा।

भीतर प्रवेश करते ही बांकेलाल राठौर ठिठका। इधर-उधर देखा।

“आगे खिसकेला बाप-।” रुस्तम राव ने कहा।

“छोरे-!” बांकेलाल राठोर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया-“म्हारे को यां पे आके लागो के जैसो अम्भी मनमोहन देसाई की फिल्म शोले शुरू होवे-।”

“बाप! शोले मनमोहन देसाई की नेई होईला। सिप्पी शोले को बनाईला-।”

“म्हारे को का। कोई भी बनाये। अंम तो फिल्म देखन से मतलबो रखो हो।”

“चलो-चलो-।” जार्ज की आवाज सुनाई दी-“कुर्सियों पर बैठ जाओ।”

सब लाईन में लगी कुर्सियों पर बैठने लगे।

“नीलू-।” राधा कुर्सी पर बैठते ही बोली-“ये तो कोई फिल्म शुरू होने वाली है। टार्च वाले दिखाई नहीं दे रहे।”

तभी बांकेलाल राठोर कह उठा।

“यां पे फिल्मो का टिकट न लागो तो टार्च वाले किधर से आवो। उनो को तनख्वाह कां से मिलतो हो?”

“देखा नीलू। मूंछों वाला फिर मेरी बात में बोला।”

महाजन जार्ज के एक तरफ बैठा था। वो बोला।

“जार्ज, तुम तो जीसस को मानता होगा, जब धरती पर था।”

“हां। तब मैं हर सण्डे को चर्च जाता था।”

“तो यहां जीजस को क्यों नहीं मानता तू?”

“ऐसा नहीं हो सकता।” जार्ज ने कहा-“तब मेरी आत्मा का मालिक जीजस था। वो ही मेरा गॉड था। लेकिन एक डाकू ने मुझे इसलिये गोलियां मार दी कि मैंने उसे डाका डालते देख लिया था। शैतान आदमी के हाथों जो मरेगा, उसकी आत्मा पर शैतान का कब्जा हो जायेगा। शैतान ही उसका मालिक होगा। डाकू के हाथों मरने की वजह से मेरी आत्मा शैतान की सेवा में आ गई। अब मैं सिर्फ शैतान की ही पूजा करूंगा। उसके कहने पर चलूंगा। उसकी बात मानूंगा। मेरा वो जन्म-वो कर्म जुदा थे और मेरा ये जन्म, इस जन्म के कर्म जुदा हैं।”

“तुम्हें मालूम है कि शैतान कभी भी अच्छा काम नहीं करता।”

दूसरी तरफ बैठी मोना चौधरी कह उठी।

“ऐसी बातें मत करो। बहुत सख्त सजा मिल सकती है। इन्हें माफ करना शैतान।” जार्ज जल्दी से दोनों हाथ जोड़कर कह उठा-“शैतान जो भी करता है अच्छा काम करता है। जिस तरह

गॉड अच्छा काम करता है। शैतान के खिलाफ कुछ मत कहो।

ऐसी बातें तुम सबको बहुत नुकसान दे सकतीं...।”

तभी वह रोशन तीव्र लाईटें एकाएक बंद होने लगीं।

वहां बैठे लोगों में बातें करने की आवाज थमने लगी।

“खामोश रहना। शैतान आ रहा है।” जार्ज के होंठों से निकला।

“छोरे-!” बांकेलाल राठौर बोला-“फिल्मो स्टार्ट हौवे।”

“चुप होएला बाप। शैतान अभ्भी दिखेला।” रुस्तम राव ने गम्भीर स्वर में कहा।

वहां चुप्पी व्याप्त हो चुकी थी। इतने लोगों के होने के बावजूद भी मरघट जैसा सन्नाटा महसूस हो रहा था। सबकी निगाह सामने थी। वहां सफेद रंग की चमकती, बहुत बड़ी दीवार नजर आ रही थी। उस दीवार के पास एक ही लाईट जल रही थी कि अंत में वो भी बुझ गई।

उस लाईट के बुझने के साथ ही चमकती सफेद दीवार पर एक परछाई-सी झलक उठी। उस परछाई का आकार-प्रकार पूरी तरह स्पष्ट नजर आ रहा था। उस परछाई के सिर के बाल कमर तक फैले नजर आ रहे थे। गले, छाती और पेट तक घने बाल ही बाल महसूस हो रहे थे। बांहें बालों से भरी लग रही थीं। परछाई की लाल सी आंखों में चमक ऐसी थी कि ज्यादा देर वहां नहीं देखा जा रहा था। भौंहें नहीं थीं। कान बड़े फैले हुए, सिर की तरफ जाते महसूस हो रहे थे। एक कान में कुंडल लटकता-हिलता में महसूस हो रहा था। होंठ मोटे-मोटे, नीचे लटकते से लग रहे थे। परछाई के देखकर भयानकता का एहसास हो रहा था।

“दीवार पर तो परछाई है।” महाजन ने पास बैठी राधा से कहा-“फिर परछाई की आंखें लाल चमकती क्यों दिखाई दे रही थीं?”

“नीलू-!” राधा ने दबे स्वर में कहा-“ये सब जादू का खेल है। ऐसे तमाशे बहुत देखे हैं मैंने। बस्ती में तांत्रिक गौणा भी बस्ती वालों की आंखों में धूल झोंककर, ऐसी उल्टी-सीधी हरकतें करता था।”

“यो थारा कौणो तांत्रिक हौवे?” बांकेलाल राठौर धीमे स्वर में कह उठा-“यो पूरो सृष्टि का असलो शैतान हौवे। पूरो दुनियो

को बुरो हरकतो इसो के ही इशारो पर होवे।”

“मूंछों वाले!” राधा ने होंठ भींचकर कहा-“मेरी बात में क्यों

बोला?”

“थारो को समझाणो वास्तो बोलो हो।”

“नीलू! इसे समझा...।”

“वो देख-।”

उस परछाई ने अपना हाथ इस तरह ऊपर उठाया जैसे आशीर्वाद दे रहा हो।

“मेरा हाथ सदा तुम पर है। सदा रहेगा।” गूंजती सी आवाज

सबके कानों में पड़ी-“जैसे तुम सब मेरी इज्जत करते हो। उसी

तरह मैं भी तुम सबकी इज्जत करता हूं। क्योंकि शैतानी विद्या

सीखकर, तुम सबने ही मेरा नाम हर तरफ और भी ज्यादा फैलाना है। बदले में मैं तुम्हें हर तरह का सुख देता रहूंगा।”

“शैतान की जय हो।”

“शैतान महान है।”

“आप जैसा कोई नहीं।”

वहां मौजूद लोगों का ऊंचा स्वर गूंजने लगा।

“तुम लोगों के शब्द सुनकर मैं खुश हुआ।” शैतान की गूंज उस जगह पर पुनः गूंजी-“लेकिन सच्ची खुशी तो मुझे तब होगी

जब तुम लोग विद्या की सारी सीढ़ियां जल्दी-जल्दी तय करते हुए, शैतानी शक्ति को इस हद तक ग्रहण कर लोगे कि मेरे सहारे की खास जरूरत महसूस नहीं करोगे। विश्वास है कि इस सच्ची खुशी का एहसास तुम लोग जल्दी ही मुझे कराओगे।”

पैना सन्नाटा छाया हआ था वहां।

“आज मैंने तुम लोगों को शैतानी चालों के बारे में बताना है। परन्तु किसी कारणवश मेरे पास समय कम है। फिर भी मैं आया। मालूम है मुझे कि मेरे न आने पर तुम लोगों को बहुत दुःख होता। लेकिन आज थोड़ा-सा समय दूंगा।”

शैतान की गूंजती आवाज थमती तो कानों में सनसनाहट महसूस होने लगती।

करीब आधे मिनट की चुप्पी के पश्चात शैतान की आवाज पुनः गूंजी।

“एक खास जगह पर किसी गुरुवर की नगरी है। उस गुरुवर के पास पवित्र शक्तियां हैं जो कि ताकतवर हैं। जब वो कभी नगरी में आया तो मैंने उसे मामूली-साधारण और पाखण्डी समझकर नजरंदाज कर दिया। और वो धीरे-धीरे अपनी तपस्या, यज्ञ और देवताओं के आशीर्वाद की वजह से ताकतवर बन गया। इस हद तक ताकतवर बन गया कि मेरे सामने खड़े होने का भी दम उसमें आ गया। मैंने कई बार उस पर वार किए, लेकिन वो मेरे वारों को रास्ते में ही खत्म कर देता। बात यहीं तक रहती तो मैं उसकी तरफ से मुंह फेर लेता, परन्तु उस गुरुवर ने अपनी तरह की शक्ति की शिक्षा दूसरों को देनी शुरू कर दी। ये खतरनाक बात थी। शक्तियां प्राप्त करने की विद्या उसके चेले जान जाते तो, मेरे लिये समस्या खड़ी हो जाती। मैं किस-किस का मुकाबला करता। आखिरकार मैंने उस गुरुवर की शक्तियों को बिखेर देने का निश्चय किया कि वो ज्यादा शिष्य न बना सके। बहुत कठिन काम था ऐसा कर पाना, परन्तु मैंने जोड़-तोड़ करके कैसे ये काम किया? वो सुनो और समझो कि शैतानी चालें कहां-कहां काम आती हैं। कैसे उन्हें इस्तेमाल किया जाता है। दुश्मन को कैसे कमजोर किया जाता है।”

मोना चौधरी, जगमोहन, महाजन, राधा, पारसनाथ, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, मन ही मन सतर्क हो चुके थे। और समझ चुके थे कि शैतान उनके गुरुवर की ही बात कर रहा है।

शैतान की आवाज पुनः गूंजने लगी।

“जब मैं उस गुरुवर पर किसी तरह से ‘बस’ न पा सका तो मैंने उसके साहस को धीरे-धीरे तोड़ना शुरू किया। सबसे पहले मैंने अपनी शक्ति से गुरुवर के बेटे हाकिम का दिमाग घुमाया। वो देवा से लड़कर अपने पिता के खिलाफ हुआ और नगरी के बाहर निकल आया। तब मैंने हाकिम को अपना शिष्य बना लिया। परन्तु अपने बेटे की इस हरकत से गुरुवर को कोई परेशानी नहीं हुई। तब मैंने पेशीराम नाम के व्यक्ति का दिमाग घुमाया, जो घरों में जाकर लोगों की शेव और हजामत करता था। इसमें मैंने इधर की बात उधर करवाकर आग लगवानी शुरू कर दी। पेशीराम के दिमाग में मैंने ये बात डाल दी थी कि वो देवा और मिन्नो को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काए। देवा चौधरी विश्राम सिंह का बेटा था और मिन्नो मुद्रानाथ की बेटी थी।”

“आपने इन्हीं दोनों को खास भड़काने का काम क्यों किया?” एक आवाज उभरी।

“क्योंकि मैं नगरी का भविष्य झांक चुका था। आने वाले वक्त में मिन्नो ने नगरी में बहुत बड़ा ओहदा पा लेना था। देवा और मिन्नो के ग्रहों के हिसाब से दोनों को भड़का दिया जाये तो नगरी में तबाही हो सकती थी। इस काम के लिये मैंने और भी कई लोगों का दिमाग घुमाया। इसके बाद तो नगरी के बुरे दिन शुरू हो गये। गुरुवर समझ रहे थे कि ये सब मैं कर रहा हूं, परन्तु सीधे-सीधे वो मुझसे नहीं टकरा सकते थे। मेरे सामने खड़े होते तो उनकी और मेरी तबाही थी। उन्होंने अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके पेशीराम को रोकना चाहा, परन्तु पेशीराम के मस्तिष्क में पहले से ही मेरी शक्ति बैठी थी। यही वजह रही कि गुरुवर की शक्ति ने पेशीराम पर खास असर नहीं किया। फिर...।”

कहते-कहते शैतान रुका।

सबने देखा उस सफेद चमकती दीवार पर छोटी-सी अन्य आकृति जैसी परछाई नजर आई। उसने शैतान के कान कान में कुछ कहा। इसके साथ ही वो छोटी परछाई चली गई।

“मेरे होनहार शिष्यों!” शैतान का स्वर फिर गूंजा-“किसी खास

काम के लिये मुझे फौरन जाना पड़ रहा है। मुझे अफसोस है कि मैं अपना पाठ पूरा न सुना सका। एक मजेदार बात मैं बता देना चाहता हूं कि पृथ्वी के कुछ इन्सान जीवित अवस्था में मेरे आसमान पर आ पहुंचे हैं। वैसे ये सब मेरे होनहार शिष्य द्रोणा की गलती की वजह से हुआ है। मरने के कुछ वक्त पहले उसने मेरे यहां की रवानगी शुरू कर दी। तब उसके साथ पृथ्वी के मनुष्य भी वहां मौजूद थे। ये वो ही मनुष्य हैं जो पहले जन्म में गुरुवर के शिष्य थे और आपस में लड़ाई करते थे। इस जन्म में भी ये मनुष्य आपस में लड़ रहे हैं। चूंकि इस वक्त मुसीबत में हैं तो सहारे के लिये एक-दसरे की बांह थाम रखी है। अगर इन्हें मौका मिले तो अभी एक-दूसरे को खत्म कर दें। इन्हीं में पूर्व जन्म की मिन्नो भी है।”

“मिन्नो!” अन्य आवाज उभरी-“जिसे पेशीराम ने भड़काया था?”

“हां। वो ही मिन्नो। देवा को तो द्रोणा ने शैतानी चक्र का इस्तेमाल करके खत्म कर दिया था। देवा की आत्मा मेरी कैद में आ चुकी है और उसकी लाश नीचे से आने वाले काला महल में मौजूद है। किसी कारणवश मेरे कर्मी महल के भीतर प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं।”

“इन मनुष्यों को तो आप खत्म करके, इनकी आत्मा को कैद कर सकते हैं।” नई आवाज उभरी।

“इनके साथ ऐसा ही होगा। परन्तु मुझे कोई जल्दी नहीं है। पहले अन्य जरूरी काम निपटा लूं।” शैतान का स्वर गूंज रहा था-“ये एहसास मुझे अजीब-सा लग रहा है कि पहली बार पृथ्वी से जीवित अवस्था में मनुष्य मेरे आसमान पर आये हैं। मैं जा रहा हूं। दोबारा कब मेरा पाठ होगा? शीघ्र ही इस बात की सूचना सबको मिल जायेगी।”

इन शब्दों के साथ ही दीवार पर नजर आती शैतान की परछाई

गायब हो गई और उसी पल वो सारी जगह तीव्र रोशनियों से

जगमगा उठी। वहां मौजूद लोगों की बातचीत के स्वर गूंजने लगे।

सबकी बातों का मुद्दा पृथ्वी से जिन्दा आने वाले इन्सान ही थे।

“ओह-!” जार्ज ने उठते हुए कहा-“कितना अच्छा लग रहा था शैतान का पाठ। लेकिन पाठ अधूरा रह गया।”

“तकलीफ में क्यों आता है।” महाजन बोला-“अगली बार सुन लेना।”

“हां।” जार्ज ने सिर हिलाया-“ऐसा तो करना ही है। मैं अब सुने बिना नहीं रह सकता कि आखिरकार उस गुरुवर का अंत कैसे हुआ? उनका घमण्ड शैतान ने कैसे तोड़ा?”

“बाहर चल, बताता हूं-।” जगमोहन बोला इस बार।

“तुम लोगों को पता है?”

“बाहर तो चल-।”

वो सब उस जगह से बाहर खुले आसमान के नीचे आ गये।

शैतान की दुनिया के लोग बाहर निकलकर अपने-अपने रास्तों पर बढ़ने लगे थे।

“बताओ।” बाहर आते ही जार्ज बोला-“गुरुवर का अंत कैसे हुआ? उनका घमण्ड कैसे टूटा-?”

“अंम बतायेगो थारे को जा।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया-“थारा शैतान गुरुवर का कछो न बिगाड़ सको हो। गुरुवर ईब भी आराम से बैठो के खायो-पीयो।”

“क्या?” जार्ज ने उलझन भरी निगाहों से उन्हें देखा।

“गुरुवर बोत पावर वाला होईला बाप। शैतान उस तक न पोंचेला।”

जार्ज के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे। आंखें सिकुड़ गईं।

“तुम-तुम लोग पृथ्वी वाले तो नहीं। वही हो सकते हो। क्योंकि ऐसी जानकारी यहां पर आम नहीं है।”

“वही है हम-।” पारसनाथ शब्दों को चबाकर कह उठा-“कोई सबूत पेश करें।”

जार्ज ने मोना चौधरी और राधा को हैरानी भरी आंखों से देखा।

“तुम-तुम में से मिन्नो कौन है?”

“मैं-।” मोना चौधरी ने भिंचे स्वर में कहा।

“तुम?” जार्ज के चेहरे का रंग बदलने लगा। और अगले ही पल वो पलट कर इस तरह भागा जैसे भूत देख लिया हो।

“इसे क्या हो गया नीलू-?” राधा ने हैरानी से कहा-“अभी तक तो ठीक से बात कर रहा था। भागा क्यों?”

“क्या मालूम-?” कहने के साथ ही महाजन ने घूंट भरा और बोतल पैंट में फंसा ली।

सबके चेहरों पर गम्भीरता नजर आ रही थी।

“शैतान को ये तो मालूम है कि हम उसके आसमान पर आ पहुंचे हैं।” सोहनलाल बोला-“क्या वो ये नहीं जानता कि यहां पर मौजूद हैं? उसकी आवाज सुन रहे हैं?”

“शायद मालूम हो।” जगमोहन दांत भींचकर बोला।

“मालूम हौवे तो कम से कम, वो जिक्र तो करो हो हमारा।”

“शैतान असीम शक्तियों का मालिक है। उसे ये मालूम होना मामूली बात है कि हम यहां पर हैं।” मोना चौधरी सोचों में डूबी

कह उठी-“शायद उसने जिक्र इसलिये न किया कि हमारी मौजूदगी के बारे में सुनकर उसके शिष्यों में घबराहट से भरी भगदड़ न पैदा हो जाये। जैसे हमारे बारे में सुनकर जार्ज भाग खड़ा हुआ।”

“मोना चौधरी ठीक कहेला है।”

“शैतान सब कुछ जानता है तो उसने हमारे खिलाफ कुछ क्यों नहीं किया? हमें मारा नहीं? हमारा बुरा नहीं किया? ये बात शैतान की फितरत के खिलाफ है।” महाजन कह उठा।

“शैतान तो शैतान है।” जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा-“उसकी हर बात में चाल है। उसने हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया तो इसमें भी उसकी कोई चाल है। मुझे पूरा विश्वास है कि वो जल्दी ही कुछ करेगा। ज्यादा देर चुप नहीं बैठेगा।”

“मोना चौधरी-।” बांकेलाल राठौर कह उठा-“तुम अपणो खंजरो तैयार रखियो, प्रेतनी चंदा का शैतानी खंजरो। जो भी दिक्कतो आवे, खंजरो से सबो को ‘वड’ दयो।”

“मैं तो गला दबा दूंगी, जो भी हमारे रास्ते में आया-।” राधा

दांत भींचकर बोली।

बांकेलाल राठौर ने अपनी मूंछ का कोना पकड़े राधा को घूरा।

“तुम गर्दन दबाओ तो अंम उसो को कैसे ‘वडो’। पैले फैसला करो लो तमने का करना होवो और अंम का करो?”

तभी मोना चौधरी कह उठी।

“हमें यहां से चलना चाहिये। यहां पर शैतान कहां रहता है। या फिर उसकी कोई कमजोर नस तलाश करके उस पर वार करना चाहिये। ऐसा होने पर शायद शैतान हमारे सामने आये और उसे खत्म करने का हमें मौका मिल सके।”

“चलो। ऐसी कोशिश करते हैं।” राधा बोली।

वो सब आगे बढ़ गये।

हॉल से बाहर निकलने वाले लोग जा चुके थे।

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