रानी ताशा और नगीना घने जंगल में सतर्कता से आगे बढ़ती जा रही थी। पेड़ इतने घने थे कि सूर्य की रोशनी को जमीन पर नहीं पड़ने दे रहे थे। कहीं-कहीं तो अंधेरा-सा महसूस होने लगता था। दोनों की पीठों पर पानी और खाने-पीने से लदे सामान के बैग जैसे थैले थे। उनकी नजरें हर तरफ जा रही थीं।
“पेड़ों के नीचे तो खुंबरी का ठिकाना नहीं होगा।” नगीना ने कहा।
“ये मुझे सम्भव नहीं लगता।” रानी ताशा बोली।
“तुम पहले इस जंगल में आई हो?”
“नहीं। यहां आने का मेरा कभी कोई काम नहीं रहा। परंतु बबूसा एक बार आ चुका है। वो कहता है बहुत घना जंगल है।”
“यहां जानवर वगैरह हो सकते हैं।”
“ऐसा कुछ होता तो बबूसा जरूर बताता।” रानी ताशा ने कुछ अजीब ढंग से कहा।
तभी रानी ताशा के कंधे पर बैठी ओरी की आवाज उभरी।
“यहां खतरनाक जानवर बहुत थे। परंतु खुंबरी की ताकतों ने उन्हें दूर भगा दिया।”
नगीना ने भी सुनी ये आवाज।
“खुंबरी की ताकतों को जानवरों का क्या डर?” नगीना बोली।
“जानवर, ताकतों का ध्यान भंग कर देते थे। वो आपस में ही लड़ते और बहुत शोर उठता था।” ओरी ने कहा।
“तुम शक्तियों ने यहां आकर खुंबरी की जगह क्यों नहीं ढूंढी?” रानी ताशा बोली।
“हमें खुंबरी की जगह नजर नहीं आएगी। क्योंकि वहां ताकतों ने अपने साये फैला रखे हैं।” ओरी ने बताया।
“इंसानों को वो जगह दिख जाएगी?”
“हां। तभी तो डुमरा ने तुम लोगों के साथ काम करने में एतराज नहीं दिखाया।”
“डुमरा ने ही क्यों न जगह ढूंढ़ ली?”
“ये घना जंगल है और बहुत बड़ा है। एक अकेला इंसान तो सालों लगा देता इस काम में। डुमरा को और भी तो काम करने पड़ते हैं। वो इधर आ जाता तो हमारे काम रुक जाते।” ओरी बोली।
“डुमरा ने कहा था कि वो हमारे पास ही रहेगा।” नगीना बोली।
“हाँ। डुमरा इधर आने को चल पड़ा है। अबकी बात और है, क्योंकि तुम लोग खुंबरी का ठिकाना खोजने की चेष्टा में हो। डुमरा को इस काम में नहीं लगना होगा और कुछ दिन में शायद सफलता मिल जाए।” ओरी ने कहा-“इस बार एक और बात नई होने वाली है। खुंबरी को यहां आए मर्दों में से किसी से प्यार होने वाला है। डुमरा को आशा है कि इस बार कुछ हो के रहेगा। खुंबरी को तभी प्यार होगा, जब हम लोग उसके ठिकाने पर पहुंच जाएंगे।”
“ये बात तो मैंने सोची नहीं थी।” रानी ताशा के होंठों से निकला-“इसका मतलब हम खुंबरी को ढूंढ़ लेंगे। मैं उसे किसी भी कीमत पर जिंदा नहीं छोडूंगी।” रानी ताशा के दांत भिंच गए-“मेरे देव से, उसने ही मुझे अलग किया था।”
“इस काम में मैं पूरी तरह तुम्हारे साथ हूं ताशा।” नगीना कह उठी।
चलते-चलते रानी ताशा ने नगीना के चेहरे पर नजर मारी।
“तू गलत बात सोच रही है।” एकाएक ओरी रानी ताशा से कह उठी। इस बार स्वर धीमा था।
“क्या मेरे विचार गलत हैं?” रानी ताशा ने कहा।
“वो नहीं मानेगी। वो भी राजा देव को तेरे जितना प्यार करती है।” ओरी ने बताया।
“कोशिश तो कर सकती हैं।”
“कर ले। मेरी बात पर नहीं भरोसा तो तसल्ली कर ले।”
कुछ पलों बाद रानी ताशा ने नगीना से कहा।
“किसी ग्रह की रानी बनना मामूली बात नहीं होती।”
“हां।” नगीना ने कहा-“ये बड़ी बात है। गर्व की बात है।”
“तुम चाहो तो मैं तुम्हें सदूर की रानी बना सकती हूं।” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“क्या मतलब?”
“इस सदूर की रानी बन जाओ और मुझे मेरा देव लौटा दो।”
नगीना ने अजीब-सी निगाहों से रानी ताशा को देखा।
दोनों तेजी से आगे बढ़ती जा रही थीं।
“ये तुम क्या कह रही हो?” नगीना के होंठों से निकला।
“सदूर की रानी बनना बहुत बड़ी बात है नगीना। मेरी मानो तो ये मौका हाथ से न निकलने दो।”
नगीना मुस्करा पड़ी। बोली।
“मुझे किसी भी ग्रह की रानी बनने की इच्छा नहीं है।”
“सबकी इच्छा होती है ग्रह की रानी बनने की। शायद तुम देव को मुझे वापस नहीं लौटाना चाहती।”
“देवराज चौहान कोई सामान तो है नहीं जो लौटा दूं।” नगीना गम्भीर हो गई-“ये प्यार है। वो मेरे को चाहते हैं। अगर मैं उसे तुम्हारे पास जाने को भी कहूं तो वो कभी नहीं मानेंगे। ये प्यार का खिंचाव होता है जो इंसान को बांधे रखता है।”
“तुम बीच में से हट जाओ तो राजा देव मेरे हो जाएंगे।”
“ये भूल है तुम्हारी। देवराज चौहान को तुम अभी समझी नहीं।”
“मैं देव को तुमसे भी अच्छी तरह जानती हूं। वो मेरे बिना नहीं रह सकते। परंतु तुम्हारी वजह से मेरी तरफ कदम नहीं उठा पा रहे। अगर तुम न होती तो उन्होंने कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ना था।”
“तुम मृगतृष्णा में भटक रही हो। जन्मों पुरानी बात को ताजा जिंदगी में डालने की चेष्टा कर रही हो, जो कि हो ही नहीं सकता। उस जन्म के बाद देवराज चौहान कई जन्म जी चुका है।”
“पर राजा देव को वो जन्म याद आ चुका है।”
“उससे कुछ होता तो देवराज चौहान ने अवश्य तुम्हारा हाथ थाम लिया होता। तुम्हारी सोचें गलत दिशा की तरफ जा रही हैं। ठीक तरह सोचो तो समझ जाओगी कि देवराज चौहान पर से तुम्हारा हक खत्म हो चुका है।”
“तुम्हें सुनहरी अवसर मिल रहा है सदूर की रानी बनने का।”
“इतना बड़ा ओहदा पाने की इच्छा मुझे कभी नहीं रही।”
“या तुम राजा देव को मेरे हवाले नहीं करना चाहतीं।” रानी ताशा का स्वर तीखा हो गया।
“देवराज चौहान मेरा पति है फिर भी उस पर बंदिश नहीं कि, वो मेरे साथ रहे। उसके लिए रास्ते खुले हैं कि वो जिस ओर भी जाना चाहे जा सकता है। तुम देवराज चौहान को ले सकती हो तो ले लो।”
“मैं चाहती हूं तुम राजा देव को मेरे हवाले करो।”
“मैं अपना पति किसी और को क्यों दूंगी। तुम्हारी मांग ही गलत है ताशा।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
रानी ताशा खामोश हो गई।
तभी ओरी धीमे स्वर में बोली।
“अब हो गया भरोसा तुझे मेरी बात का।”
“मैं राजा देव को अपना बना के रहूंगी।” रानी ताशा दृढ़ स्वर में कह उठी।
“ये तू जान।”
घने जंगलों में नजरें घुमाती रानी ताशा और नगीना बढ़ती रहीं। पेड़ों के पत्तों की आवाजों को छोड़कर, जंगल में गहरी खामोशी थी। सूर्य की तपिश जमीन तक नहीं आ पा रही थी, परंतु कहीं-कहीं से सूर्य की धूप तीखी लकीर के रूप में दिखाई दे जाती थी। यदा-कदा उनके अपने ही कदमों की आवाजें सुनाई दे जाती थीं। दोनों के बीच कोई खास बात नहीं हो रही थी। रानी ताशा गम्भीर दिखाई दे रही थी। नगीना शांत थी।
“ओरी।” रानी ताशा बोली।
“हां।”
“खुंबरी इस घने जंगल में अपनी जरूरतें कैसी पूरी करती होगी?” रानी ताशा ने पूछा।
“उसकी ताकतें उसे हर चीज मुहैया करा देती हैं।”
“उन्हें पता चल गया होगा कि हम किस इरादे से यहां हैं, या वे अभी नहीं जानतीं हमारे बारे में?”
“ताकतों को पता चल गया होगा कब का। खुंबरी भी तुम सबके आने के बारे में जान चुकी होगी।”
“ओह तो अब वो क्या करेगी?”
“तुम सब पर काबू पाने का प्रयत्न करेगी।”
“क्या पता वो इस जंगल में हो ही नहीं।”
“बरी इसी जंगल में रहती है ताशा। शक्तियों ने कब की ये बात जानी है कि उसका शरीर पांच सौ सालों से इसी जंगल में कहीं है लेकिन ताकतों की छाया ने उस जगह को शक्तियों से छिपा रखा है।”
“अगर खुंबरी मुझे मिल गई तो मैं उसकी जान ले लूंगी।” रानी ताशा गुर्रा पड़ी।
“आसान तो नहीं होगा। पर कोशिश करके देख लेना। मैं तब तेरे को बढ़िया-से-बढ़िया हथियार दूंगी।”
“उसने मुझे और देव को अलग किया था।” रानी ताशा का चेहरा दहक रहा था-“बहुत बुरी मौत दूंगी उसे। अपनी तड़प के एक-एक पल का हिसाब लूंगी। उसने मेरे कई जन्म तबाह कर दिए हैं।”
“ऐसा वक्त आए तो होश में मुकाबला करना।” नगीना ने कहा-“खुंबरी आसानी से काबू में नहीं आएगी।”
“नगीना ठीक कहती है ताशा। गलत ढंग से मुकाबला किया, तो वो तुम्हें मार देगी। उसकी ताकतें हमसे कम नहीं हैं। तब वो खुंबरी को बढ़िया-से-बढ़िया हथियार देंगी लड़ने के लिए। खुंबरी भी लड़ने में नहीं है।”
उनके कदम आगे बढ़ते रहे।
दिन का उजाला, शाम में बदलने लगा। जंगल में तो शाम का वक्त, और भी गहरा दिखने लगा।
“अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं दिखा कि वहां खुंबरी के टिके होने का शक हो सके।” नगीना ने कहा।
तभी रानी ताशा के कदम ठिठक गए।
“वो देखो।” रानी ताशा ने तेज स्वर में कहा।
नगीना भी रुकी और उस तरफ देखा।
बाईं तरफ कुछ पेड़ों के पार, एक पेड़ के नीचे औरत के दो पांव दिख रहे थे। पैरों में पायल जैसी कोई चीज पड़ी थी। पैर बहुत सुंदर थे। गोरे और गुलाबी।
रानी ताशा की आंखों में खतरनाक चमक आ गई। नगीना से नजरें मिलीं।
“वो खुंबरी है।” रानी ताशा खतरनाक स्वर में कह उठी।
“हो भी सकती है, नहीं भी हो सकती।” नगीना ने सोच भरे स्वर में कहा-“ये जो भी है। इस घने जंगल में क्या कर रही है।”
“ओरी।” रानी ताशा बोली-“मुझे हथियार दो।”
उसी पल जमीन में जाने कहां से आकर तलवार धंस गई।
रानी ताशा ने तलवार थामी और झटके के साथ जमीन से निकाली फिर दबे पांव उस तरफ बढ़ी।
नगीना उसके साथ थी, परंतु उसके पास इस वक्त कोई हथियार नहीं था।
रानी ताशा और नगीना दबे पांव उस पेड़ के तने के पास पहुंची और वहां मौजूद युवती के करीब जा पहुंची। वो तेईस-चौबीस साल की युवती थी। चोली-घाघरा जैसे कपड़े पहन रखे थे, जो कि मैले हो चुके थे। पीठ के बल लेटी वो गहरी नींद में थी और मध्यम-से खुर्राटे ले रही थी। उसका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। वो खूबसूरत थी।
“ये खुंबरी नहीं है।” ओरी कह उठी।
“तो कौन है?” रानी ताशा का चेहरा कठोर हुआ पड़ा था।
“इसे जगा और पूछ ले। पर पहले तलवार छोड़ दे। अब तेरे को हथियार की जरूरत नहीं।”
“ऐसे ही छोड़ दूं?”
“हां।”
रानी ताशा ने तलवार छोड़ी। वो नीचे जा गिरी। उसी पल वो जाने कहां गायब हो गई।
नगीना ने पास पहुंचकर युवती को आवाज लगाई।
परंतु उसकी नींद नहीं टूटी।
नगीना ने झुककर, युवती को कंधे से पकड़कर हिलाया तो वो हड़बड़ाकर उठते हुए बोली।
“आज्ञा महान खुंबरी।”
खुंबरी का नाम सुनते ही रानी ताशा और नगीना चौंकी।
युवती ने जब दोनों को देखा तो फौरन खड़ी होते कह उठी।
“कौन हो तुम दोनों?”
“तुम यहां क्या कर रही हो?” रानी ताशा ने पूछा।
“मैं-मैं तो यहीं रहती हूं।” वो बोली।
“यहां कहां?”
“मैं क्यों बताऊं?” कहते हुए उसकी निगाह रानी ताशा के गले में पड़े हार पर टिक गई-“तुम्हारा हार तो बहुत सुंदर है।”
“तुमने अभी खुंबरी का नाम लिया।”
“नौकर-मालिक का नाम नहीं लेगा तो किसका लेगा।” उसने सामान्य स्वर में कहा, तब तक वो नगीना के हाथ में पड़ी अंगूठी को भी देख चुकी और कहा-“तुम्हारी अंगूठी बहुत अच्छी है। कितने बढ़िया गहने पहन रखे हैं तुम दोनों ने।”
“तुम जानती हो खुंबरी कहां रहती है?” रानी ताशा के होंठों से निकला।
“नौकर-मालिक का घर नहीं जानेगा तो कौन जानेगा। पर तुम लोग कौन हो?”
“हम खुंबरी की पहचान वाले हैं।” नगीना बोली-“उसी से मिलने आए हैं, पर रास्ता भटक गए।”
“तुम हमें खुंबरी के पास ले चलो।” रानी ताशा ने एकाएक मुस्कराकर कहा।
“नहीं-नहीं। मैं ऐसा नहीं कर सकती।” युवती फौरन कह उठी-“मैं नहीं ले जाऊंगी तुम्हें खुंबरी के पास।”
“क्यों?”
“खुंबरी ने अजनबी लोगों से बात करने को मना कर रखा है और तुम कहती हो कि मैं तुम्हें खुंबरी के पास ले जाऊं। खुंबरी मुझे चींटी बना देगी। आज सुबह ही उसने एक आलसी दासी को चींटी बना दिया था।”
वो घबरा उठी।
“तुम्हारा नाम क्या है?”
“दोती।”
“दोती।” रानी ताशा बड़े प्यार से बोली-“तुम्हें मेरे गले में पड़ा हार पसंद है?”
“हां। ये तो बहुत अच्छा हार है।” दोती ने मुस्कराकर हार को देखा।
“अगर तुम हमें खुंबरी के रहने की जगह बता दो तो मैं ये हार तुम्हें दे दूंगी।”
“ऐसा मत करो।” ओरी कह उठी-“मैं हार की वजह से तुम्हारे साथ जुड़ी हूं। ये हार शक्तियों की निशानी है। इसे अपने से अलग भी मत करना, वरना तुम शक्तियों की सुरक्षा खो दोगी। ये लड़की ताकतों की कोई चाल भी हो सकती है।”
परंतु रानी ताशा ने ओरी की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।
“तुम मुझे खुंबरी का पता बताओ, मैं तुम्हें ये हार दे दूंगी।” रानी ताशा ने पुनः कहा।
“खुंबरी को तो न बताओगी कि मैंने तुम्हें रास्ता बताया है।” दोती लालच भरे स्वर में कह उठी।
“नहीं बताऊंगी। मेरा भरोसा करो।”
“मुझे ताकतों की ‘बू’ आ रही है इस लड़की से। ये ताकतों की भेजी हुई है ताशा।” ओरी बेचैनी भरे स्वर में कह उठी-“गले से हार मत उतारना। ताकतों ने अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया है।”
“तुम चुप रहो ओरी।” रानी ताशा ने धीमे स्वर में कहा।
“ये क्या कह रही हो। मैं स्पष्ट तौर पर लड़की के शरीर से ताकतों की ‘बू’ सूंघ रही हूं। इसकी बातों में मत आओ। ये तुम्हें मुसीबत में डाल देगी। खुंबरी की चाल है ये।” ओरी ने परेशान स्वर में कहा-“हार मत उतारना।”
“वो अंगूठी भी लूंगी।” दोती ने नगीना के हाथ में पड़ी अंगूठी की तरफ इशारा करके कहा।
“क्यों नहीं।” रानी ताशा ने कहा-“वो अंगूठी भी तुम्हें दे देंगे, तुम रास्ता...”
“पहले दो। फिर रास्ता बताऊंगी।” दोती मचलकर कह उठी।
“होश में आ ताशा। ये ताकतें खेल, खेल रही हैं।” ओरी गुस्से से कह उठी।
“मैं अंगूठी नहीं दूंगी।” नगीना दृढ़ स्वर में कह उठी।
“दे दो।” रानी ताशा ने कहा-“ये हमें खुंबरी तक पहुंचने का रास्ता बता रही है।”
“नहीं दूंगी। तुम जानती ही हो कि ये अंगूठी सुरक्षा कवच है। इसे मैं अपने से अलग नहीं करूंगी।” नगीना ने पक्के स्वर में कहा।
उसी पल रानी ताशा उछली और जबर्दस्त घूंसा नगीना के सिर पर मारा।
नगीना को रानी ताशा से ऐसी आशा नहीं थी। घूंसा पड़ते ही नगीना की आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाचे और घुटने मुड़ते चले गए। वो जमीन पर गिरते ही बेहोश हो गई।
रानी ताशा ने होंठ भींचे, झुककर नगीना की उंगली से अंगूठी निकाल ली।
“तू पागल हो गई है क्या जो लड़की की बातें मान रही है।” ओरी बदहवास-सी कह उठी।
“चुप कर।” रानी ताशा ने कठोर स्वर में कहा-“मैं खुंबरी को मार दूँगी।”
“ये खुंबरी की भेजी ताकत है लड़की। ये क्यों नहीं सोचा कि ये घने जंगल में क्यों सो रही थी।”
“खुंबरी की दासी है ये।” रानी ताशा गुर्रा उठी-“अब खुंबरी मुझे मिलने वाली है, मैं उसे...”
“डुमरा ने मुझे किस बेवकूफ के कंधे पर बैठा दिया।” ओरी गुस्से से कह उठी-“होश में आ जा। नहीं तो तू बहुत पछताएगी। ये खुंबरी की भेजी ताकत है। मुझे इससे ताकतों की ‘बू’ आ रही है। अंगूठी वापस नगीना की उंगली में...”
उसी पल रानी ताशा ने अपने गले का हार उतार दिया और दोती की तरफ बढ़ाया।
“ये ले।”
“तूने तो मुझे खुश कर दिया।” दोती लालची स्वर में कह उठी-“मेरे हाथ गंदे हैं। धोकर ही इन गहनों को हाथ लगाऊंगी। इन्हें जमीन पर रख दे और खुंबरी तक जाने का रास्ता सुन ले।”
तभी ओरी का चिल्लाता मध्यम-सा स्वर उसके कानों में पड़ा।
“क्रोध में तू अपने होश गुम कर बैठी है। अभी भी वक्त है सम्भल जा, नहीं तो...”
रानी ताशा ने ओरी के शब्दों की परवाह किए बगैर हार और अंगूठी नीचे रख दी।
दोती की आंखों में खतरनाक चमक लहरा उठी। उसने उसी पल अपने दोनों हाथ आपस में मिलाए और सिर के ऊपर ले जाकर हाथों को खोल दिया। ऐसा करते ही रानी ताशा को लगा जैसे उसके शरीर को लकवा मार गया हो। उसने हाथ हिलाना चाहा तो हाथ न हिला। पांव उठाना चाहा तो पांव नहीं हिल सका। रानी ताशा के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा। जैसे उसके होश वापस आते चले गए। क्रोध एकाएक गायब हो गया। चेहरे पर परेशानी नाची।
“ये मुझे क्या हो गया है।” रानी ताशा के होंठों से निकला-“त-तुम कौन हो?”
“दोती नाम है मेरा।” दोती ठहाका लगा उठी-“खुंबरी की ताकतों का मामूली-सा हिस्सा हूं। आजकल ओहारा की सेवा में हूँ तुम तो क्रोध में अपने होश गंवा बैठी रानी ताशा। जरा भी न समझ सकी कि शक्तियों की निशानी हार और अंगूठी ही मैं क्यों मांग रही हूं। डुमरा ने बच्चों जैसा खेल खेला है तुम लोगों को खुंबरी के मुकाबले पर भेजकर।”
“ओह।” रानी ताशा का चेहरा फक्क पड़ गया-“मुझे ओरी की बात माननी चाहिए थी, मैं बहुत बड़ी भूल कर बैठी।”
तभी दोती मुस्कराते हुए आगे बढ़ी और हार, अंगूठी को उठाकर अपनी चोली में रखा और रानी ताशा का हाथ पकड़ा फिर झुककर बेहोश पड़ी नगीना का हाथ थामा।
“ये तुम क्या कर रही हो?” रानी ताशा बेचैन-सी कह उठी।
“चल तो।” दोती हंसी और होंठों-ही-होंठों में कुछ बुदबुदाई।
अगले ही पल दोती और रानी ताशा, नगीना इस तरह गायब हो गए, जैसे हवा में धुल गए हो। अब वहां कोई भी नहीं था। रात का अंधेरा घिरना आरम्भ हो गया था।
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रात के अंधेरे में जंगल पूरी तरह काला स्याह हो चुका था। हाल ये था कि अपने हाथ-पांव भी न दिख रहे थे। देवराज चौहान और मोना चौधरी ने अंधेरा होने तक जंगल के भीतर का काफी लम्बा रास्ता तय कर लिया था, परंतु उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं दिखा कि वे सोचते कि खुंबरी का ठिकाना हो। पूरी तरह अंधेरा हो जाने पर उन्होंने अपने सामान से मशाल निकाली और जलाकर पेड़ों के झुंड के पास मुनासिब जगह तलाश की और वहीं रात बिताने के इरादे से रुक गए।
“तुम्हें भूख लगी है?” अपने थैले जैसे बैग से उन्होंने, नीचे बैठकर टेक लगा ली थी।
“नहीं।” देवराज चौहान बोला-“तुम खा लो।”
“अभी मुझे भी भूख नहीं लगी?” अपने थैले जैसे बैग से उन्होंने, नीचे बैठकर टेक लगा ली थी।
मशाल की रोशनी का प्रकाश खुले में ज्यादा दूर तक नहीं जा रहा था। पास बैठे उन दोनों के चेहरे मशाल के प्रकाश में चमक रहे थे। मशाल को उन्होंने जमीन में धंसाकर खड़ा कर दिया था।
“हमें खुंबरी का ठिकाना जल्दी ढूंढ़ना होगा।” देवराज चौहान ने कहा-“ऐसे जंगल में ज्यादा रातें नहीं बिताई जा सकती। मशाल भी ज्यादा रातों का साथ नहीं देगी। अपने काम में हमें तेजी दिखानी होगी।”
“मेरे पास भी मशाल है।” मोना चौधरी ने थैले को थपथपाया।
“फिर भी, काम जल्दी पूरा कर लें तो ज्यादा ठीक होगा।” देवराज चौहान ने कहा।
“खुंबरी जानती है कि हम यहां हैं। वो भी जरूर कुछ करेगी।” मोना चौधरी बोली।
“हमने सुरक्षा कवच के रूप में डुमरा की दी अंगूठियां पहन रखी हैं। खुंबरी की ताकतें हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं।”
“डुमरा ने कहा था कि शायद हमें नुकसान भी पहुंचाने में सफल रहें ताकतें।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
“क्या तुम्हें इस बात का दुख है कि खुंबरी की ताकतों ने तुम्हें और रानी ताशा को कभी अलग किया था?” मोना चौधरी ने पूछा।
“कह नहीं सकता।”
“क्यों नहीं कह सकते?”
“उस जन्म के बाद मैं कई जन्म जी चुका हूं। और सब जन्मों का मुझे पता भी है।” देवराज चौहान का स्वर सोच से भरा था-“मैं उस जन्म में रानी ताशा के साथ बहुत खुश था। हम अच्छे से अपना जीवन बिता रहे थे। न तो ताशा के प्यार में कमी थी, न ही मेरे प्यार में। हमें एक-दूसरे से शिकायत नहीं थी। वो एक अच्छा वक्त था।”
“वो वक्त हाथ से निकल जाने से तुम्हें तकलीफ महसूस हो रही है आज?”
“ऐसी बातों का अब क्या फायदा?”
“मैं ये जानना चाहती हूं कि क्या तुम रानी ताशा का साथ इसलिए देने को तैयार हो गए कि खुंबरी ने तुम दोनों को अलग किया था। क्या आज भी तुम्हारे मन में रानी ताशा के लिए दिल में जगह है?”
देवराज चौहान ने मशाल की रोशनी में चमकते मोना चौधरी के चेहरे को देखा।
“ताशा से मेरा रिश्ता तो है ही। इस बात से तुम इंकार नहीं कर सकती।” देवराज चौहान बोला-“वो तब से आज तक मेरा इंतजार करती रही और आज जब मैं उसे मिला तो उसे स्वीकार करने की स्थिति में नहीं हूं।”
“इस बात का अफसोस है तुम्हें?”
“अफसोस तो नहीं, परंतु दुख है कि मैं ताशा को चैन नहीं दे सका। क्योंकि मेरे जीवन की राहें पहले से ही नगीना के साथ तय हैं। ताशा के लिए इस जीवन में मेरे पास कोई जगह नहीं है। वो मात्र एक पुरानी घटना की तरह है।”
“अगर नगीना नहीं होती तो तुम रानी ताशा को स्वीकार कर लेते?” मोना चौधरी का स्वर शांत था।
“कह नहीं सकता, उस स्थिति में क्या होता। मैं सिर्फ इतना जानता कि नगीना मेरे लिए पहले है। ताशा के साथ कभी मैंने प्यार किया था तो, आज मैं नगीना के साथ करता हूं। जीवन बदल गए हैं तो सोच भी तो बदलेगी। प्यार को छोड़कर ताशा के लिए आज भी मैं हर काम कर सकता हूं। उसने कहा खुंबरी से बदला लेना है तो मैंने तुरंत हामी भर दी, क्योंकि ताशा की ये सोच सही है कि खुंबरी हमारी गुनहगार है, उसने हमें अलग कर दिया था उस जन्म में।”
एकाएक मोना चौधरी सतर्क-सी हो गई। निगाहें आसपास के फैले अंधेरे में घूमी।
“यहां कोई है।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
देवराज चौहान भी सतर्क दिखने लगा।
कई पल बीत गए।
“शायद कोई नहीं है।” देवराज चौहान बोला-“जंगल में भ्रम में डालने वाली आवाज उठती रहती है।”
मोना चौधरी की निगाह जंगल के अंधेरे की तरफ घूमती रही।
अगले ही पल नगीना की आवाज सुनकर दोनों चौंके।
“क्या तुम लोग मेरी आवाज पहचान रहे हो?”
“नगीना?” देवराज चौहान के होंठों से निकला फिर ऊंचे स्वर से बोला-“तुम कहां हो नगीना।”
चंद पल बीते कि सामने से कोई आता दिखा। फिर लगा, वो दो हैं।
देवराज चौहान और मोना चौधरी खड़े हो गए। नगीना के इस प्रकार मिल जाने से हैरान थे।
नगीना के साथ रानी ताशा थी। वे पास आ पहुंचे।
“बेला तुम, इस तरफ?” मोना चौधरी ने गहरी सांस लेकर कहा।
“जंगल नापते-नापते इस तरफ निकल आए।” नगीना ने मुस्कराकर कहा-“मशाल की रोशनी हमें दूर से नजर आई तो हम समझ गए कि ये अपने ही लोग होंगे और मेरा विचार सही निकला।”
वे चारों नीचे बैठ गए। नगीना और रानी ताशा ने पीठ पर लदे थैले रख दिए। मशाल की रोशनी में रानी ताशा के गले में पड़ा हार चमक रहा था। नगीना के हाथ की उंगली में भी अंगूठी पड़ी दिख रही थी।
“तो तुम लोगों की ऐसी कोई जगह नहीं दिखी, जो खुंबरी का ठिकाना होने का शक पैदा करे।” देवराज चौहान बोला।
“नहीं देव।” रानी ताशा ने कहा-“हमें ऐसा कुछ भी नहीं मिला। मैं खुंबरी को मार देने के लिए व्याकुल हूं। मैं इस बात को भूल नहीं पा रही कि उसने हमें अलग कर दिया था। मैं इस बात का बदला लेकर रहूंगी।”
“हां ताशा। हम सब इस काम को कर देना चाहते हैं।”
“आपको भी खुंबरी की कोई भनक नहीं मिली?” नगीना ने पूछा।
“नहीं अब दिन निकलने पर ही आगे बढ़ेंगे।” देवराज चौहान बोला।
“मैं तो चलते-चलते थक गई।” रानी ताशा बोली-“अब गहरी नींद लूंगी।”
“पर मुझे तो भूख लगने लगी है।” नगीना बोली-“क्यों न सोने से पहले कुछ खा लें।”
“मैं भी खाऊंगी।” मोना चौधरी कह उठी।
जब खाना खोला गया तो सब खाने लगे।
खाना रानी ताशा ने अपने थैले से निकाला था।
“कोई और तो नहीं मिला?” खाते-खाते नगीना ने पूछा-“जगमोहन, बबूसा या सोमाथ, सोमारा?”
“और कोई नहीं दिखा।”
“रात में किसी को ढूंढ़ना जंगल में आसान रहता है। मशाल की रोशनी दूर से ही दिख जाती है।” नगीना ने कहा।
“क्या पता उनमें से किसी को खुंबरी का ठिकाना दिख गया हो।” रानी ताशा कह उठी।
“ये भी सम्भव है।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया-“जाने इस वक्त वे किस हाल में होंगे।”
“सोमाथ को खुंबरी का ठिकाना मिल जाए तो बढ़िया होगा। सोमाथ पर तो ताकतें अपना प्रभाव नहीं दिखा सकतीं।”
“जगमोहन और बबूसा भी कम नहीं हैं।” नगीना बोली-“उन्होंने सुरक्षा कवच पहन रखा है, वो खुंबरी को मार देंगे।”
ऐसी ही बातों में खाना खाया गया।
बचा खाना बांधकर थैले में वापस डाल लिया रानी ताशा ने और कहा।
“अब मैं नींद लूंगी।”
“मैं भी।” मोना चौधरी बोली।
“पहरे पर भी तो किसी को रहना चाहिए।” नगीना बोली-“सोए-सोए खुंबरी ने आकर हमारे गले काट दिए तो?”
“तुम तीनों नींद लो।” देवराज चौहान बोला-“मैं पहरा दूंगा।”
“कुछ देर बाद मुझे उठा देना।” मोना चौधरी ने कहा-“तब तुम सो जाना।”
इसके बाद तीनों थैलों को तकिया बनाए लेट गईं।
देवराज चौहान बैठा रहा। जागता रहा।
थोड़ा ही वक्त बीता कि देवराज चौहान का सिर चकराने लगा। उसे समझ नहीं आया कि उसके साथ क्या हो रहा है। अपने को उसने सम्भालने की भरसक चेष्टा की परंतु अंत में बेहोश होकर नीचे लुढ़क गया।
ऐसा होते ही नगीना उठ बैठी और रानी ताशा से कहा।
“उठ जा मूसी। बेहोशी की दवा का असर इन पर हो गया है।” रानी ताशा तुरंत उठ बैठी।
उसी पल दोनों के रूप बदल गए और नगीना की जगह दोती दिखी और रानी ताशा की जगह एक अन्य युवती दिखने लगी। जिसे कि दोती ने मूसी कहा था।
“दोनों को कितनी आसानी से बेवकूफ बना दिया।” मूसी मुस्कराकर कह उठी।
“डुमरा ने बेवकूफों की फौज भेजी है खुंबरी के लिए।” दोती ठहाका लगा उठी और आगे होकर मोना चौधरी को जोरों से हिलाया, परंतु वो निढाल पड़ी रही-“दोनों बेहोश हो चुके हैं।” कहने के साथ दोती ने दोनों के हाथों की उंगलियों में पड़ी सुरक्षा कवच की अंगूठियां निकालकर अपनी चोली में रखी और बोली-“ले चल इन्हें।” कहते हुए दोती ने मोना चौधरी का हाथ पकड़ लिया और मूसी को देखा।
मूसी देवराज चौहान का हाथ पकड़ चुकी थी। बोली।
“जानती है, ये कभी राजा देव हुआ करता था।”
“चल-चल बातें मत बना।” दोती ने कहने के साथ ही होंठों-ही-होंठों में कुछ बुदबुदाई।
अगले ही पल दोती, मूसी, देवराज चौहान और मोना चौधरी जैसे हवा में घुल गए। अब उन चारों में से वहां कोई भी नहीं था।
जमीन में गड़ी मशाल जल रही थी।
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दिन का उजाला निकल आया था। जंगल का अंधेरा छंट चुका था। रात भर मशाल जलती रही थी। दिन होते ही बबूसा की आंख खुली तो उसने मशाल बुझा दी और जगमोहन को उठा दिया।
“रात बहुत जल्दी बीत गई।” उठते ही जगमोहन कह उठा।
“लम्बी रात थी पृथ्वी से।” बबूसा बोला-“नींद लेकर अच्छा लग रहा है।”
जगमोहन ने, बबूसा ने पानी के छींटे मारे चेहरे पर।
“पानी को इस तरह बर्बाद मत करो।” बबूसा बोला-“लगता नहीं कि जंगल में पानी मिलेगा।”
“सामान उठाओ, कंधे पर लादो और चलो यहां से।” जगमोहन जंगल में नजरें दौड़ाता कह उठा।
“कुछ खाओगे नहीं?”
“अभी नहीं। आगे बढ़ते हैं। जब भूख लगेगी तो खा लेंगे।”
बबूसा ने मशाल समान में रखी। थैले जैसी गठरी पीठ पर लादी और चल पड़े।
“तुम्हारा देखा हुआ है ये जंगल?”
“नहीं। इतने बड़े जंगल को किसी के लिए देख पाना सरल काम नहीं। यहां से मैं भी तुम्हारी तरह अंजान हूं।”
“हमें ऐसी जगह तलाशनी है, जहां खुंबरी के रहने का संभावना हो।”
दोनों के कदम तेजी से उठ रहे थे।
“खुंबरी मिल गई तो उसे कैसे मारेंगे?” बबूसा ने कहा।
“आसानी से उसे मार सकेंगे। सुरक्षा कवच हमारे पास है। उसकी ताकतों और वारों का हम पर कोई असर नहीं होगा। एक बार वो हमें दिख जाए, फिर वो बचने वाली नहीं।” जगमोहन की आवाज में सख्ती आ गई थी।
“इतने बड़े जंगल में से खुंबरी को ढूंढ़ पाना आसान भी तो नहीं।” बबूसा बोला।
चलते हुए दोनों की नजरें जंगल में हर तरफ जा रही थीं।
“बाकी लोग जाने किस हाल में होंगे।” बबूसा ने पुनः कहा।
“कम-से-कम तुम्हारी सोमारा तो सुरक्षित है क्योंकि वो सोमाथ के साथ है।” जगमोहन मुस्कुराया।
“मुझे रानी ताशा की चिंता है।”
“किसी की चिंता करने की जरूरत नहीं। वो सब अपना काम पूरा करना जानते हैं।”
“लेकिन हमारा मुकाबला खुंबरी की ताकतों से है।”
“सुरक्षा कवच है हमारे पास।”
“डुमरा ने कहा था कि वो हमारे पीछे आएगा। परंतु हमें क्या पता कि डुमरा कहां है।” बबूसा ने कहा।
“क्या वो भी खुंबरी की जगह ढूंढ़ेगा?”
“मुझे क्या पता।”
जगमोहन और बबूसा तेज कदम उठाते चलते रहे। घने जंगल में पर्याप्त रोशनी थी सूर्य की और कहीं-कहीं से धूप की लकीरें पेड़ों में से होकर, जमीन पर पड़ रही थीं। जब वे कुछ थकने लगे तो एक जगह रुककर उन्होंने खाना खाया। उसके बाद वो पुनः आगे बढ़ गए।
“अभी तक हमें कुछ भी नजर नहीं आया।” बबूसा ने कहा।
“तुम्हें जंगल से बाहर निकलने का रास्ता पता है?” जगमोहन ने पूछा।
“किसी एक दिशा में चल पड़ो, कभी तो जंगल से बाहर निकल ही जाएंगे।” बबूसा मुस्कराया।
“ये तो मुझे भी पता है। कितना दिन बीत गया होगा?”
“आधे से कुछ कम।” बबूसा ने कहा-“इस तरह तो हम जंगल में भटकते रहेंगे। खाना-पानी भी समाप्त हो जाएगा।”
“क्या कहना चाहते हो तुम?”
“अगर हमारे पास जम्बरा का बनाया वाहन होता तो हम कम वक्त में ज्यादा जंगल छान लेते।”
“मेहनत करो, फल जरूर मिलेगा।” जगमोहन बोला-“तुम्हें पृथ्वी अच्छी लगती है या सदूर ग्रह?”
“सदूर ग्रह अच्छा लगता है, परंतु डोबू जाति के लोग मुझे याद आते हैं।” बबूसा ने बताया।
“वापस पृथ्वी पर जाना चाहते हो?”
“नहीं।” बबूसा ने इंकार में सिर हिलाया-“मुझे सदूर से प्यार है। यहां रहना मुझे अच्छा लगता है।”
“लेकिन मुझे पृथ्वी से प्यार...” कहते-कहते जगमोहन ठिठका।
बबूसा ने रुकते हुए पूछा।
“क्या हुआ?”
जगमोहन उस युवती को देख रहा था, जो कि एक पेड़ के पास सोच भरी मुद्रा में खड़ी थी। उसने चोली-घाघरा पहन रखा था। वो कम-से-कम सौ कदम आगे दिख रही थी।
बबूसा की नजरों ने भी युवती को देख लिया था।
“ये कौन है?” बबूसा के होंठों से निकला।
“हमारे में से तो नहीं है।” जगमोहन ने कदम आगे बढ़ा दिए-“ये इस घने जंगल में क्या कर रही है।”
बबूसा भी साथ चलने लगा।
जगमोहन की नजरें जंगल में हर तरफ घूमी। परंतु और कोई भी नहीं दिखा। तब तक युवती की निगाह उन पर पड़ गई थी। वो इन्हें पास आते देखने लगी। वो और कोई नहीं दोती ही थी।
“तुम कौन हो?” पास पहुंचते ही बबूसा ने हैरानी से कहा-“इस घने जंगल में क्या कर रही हो?”
“मैं?” दोती के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई-“मैं दोती हूं।”
“दोती कौन?”
जगमोहन उलझन से दोती को देख रहा था।
“दोती कौन, क्या? दोती तो दोती ही होती है न।” दोती इठलाकर बोली।
“पर-पर तुम यहां घने जंगल में क्यों हो?”
“मैं तो यहीं रहती हूं।” दोती ने भोलेपन से कहा।
“घने जंगल में?”
“हां तो, खुंबरी यहां रहेगी तो मुझे भी उसके साथ ही रहना पड़ेगा।”
“खुंबरी?” बबूसा चौंका-“तुम जानती हो खुंबरी कहां पर है?”
“मैं क्यों न जानूंगी। मैं तो खुंबरी की दासी हूं। मेरे बिना तो खुंबरी का दिल ही नहीं लगता। पहले अकेली ही रहा करती थी, अब पांच सौ सालों के बाद खुंबरी लौटी तो उसकी सेवा में मेरा दिल लगने लगा।” दोती ने गहरी सांस ली-“अगर तुम मुझे पहले मिल जाते तो मैं तुमसे जरूर ब्याह कर लेती। तुम कितने लम्बे-चौड़े हो।”
उसी पल जगमोहन चिहुंक उठा। जगमोहन आंखें हैरानी से फैल गईं। वो दोती के गले में पड़े उस हार को देख रहा था जो डुमरा ने रानी ताशा को गले में पहनने को ये कहकर दिया था कि ये सुरक्षा कवच है और एक शक्ति भी तुम्हारे कंधों पर मौजूद रहेगी। वो ही हार अब वो सामने खड़ी दोती के गले में पड़ा देख रहा था। ये बात जगमोहन का सिर घुमाने के लिए काफी थी।
“बबूसा।” जगमोहन के होंठों से निकला-“इसके गले में पड़े हार के देख...”
बबूसा की निगाह हार पर पड़ी तो वो भी बुरी तरह चौंका।
“ये हार...” बबूसा ने कहना चाहा।
“अब तो ये मेरा है।” दोती ने उसी अंदाज में कहा।
“वो कहां है, जिसके गले में ये हार था।” जगमोहन ने पूछा।
“वो दोनों तो...”
“दोनों, नगीना भाभी रानी ताशा के साथ थी। वो दोनों कहां हैं?” जगमोहन के स्वर में बेचैनी आ गई।
“वो खुंबरी के पास जाने का रास्ता पूछ रही थीं। दूसरी दासी उन्हें रास्ता दिखाने गई है। आती ही होगी मूसी।”
“मूसी कौन?”
“दूसरी दासी।” दोती ने हाथ हिलाकर कहा।
जगमोहन और बबूसा की नजरें मिलीं।
“तुम्हारा मतलब कि वो दोनों खुंबरी के ठिकाने की तरफ गई हैं।” जगमोहन बोला।
“हां। पर मुझे उसके गले में पड़ा ये हार बहुत अच्छा लगा तो मैंने कहा अगर खुंबरी तक जाने का रास्ता जानना है तो ये हार मुझे दे दो। उसने तुरंत हार मुझे दे दिया। अच्छा है न?” दोती मुस्कराई-“मूसी को दूसरी युवती के हाथ में पड़ी अंगूठी पसंद आई तो उसने अंगूठी की मांग रख दी। उसे अंगूठी मिल गई। वो अंगूठी भी कितनी सुंदर है। दिल तो चाहा कि वो अंगूठी भी मैं ले लूं, पर मूसी को भी तो कुछ लेना ही था, वो...ओह।”
दोती एकाएक चौंकी। उसकी निगाह बबूसा, के हाथ में पड़ी अंगूठी पर जा टिकी-“तुम्हारे पास भी वैसी ही अंगूठी है। कितनी सुंदर है।” दोती खुश हो उठी।
तभी कदमों की आहटें गूंजी और सामने से मूसी आती दिखी।
“वो आ गई उन दोनों को खुंबरी तक पहुंचने का रास्ता बताकर।” दोती, मूसी को देखते ही कह उठी।
मूसी पास आई तो दोती कह उठी।
“रास्ता दिखा आई?”
“हां दोती।” मूसी ने अपना हाथ आगे करती कहा-“देख तो अंगूठी कितनी अच्छी है।”
“अंगूठी पर तो मेरा दिल है।”
“मैं नहीं दूंगी।” मूसी ने अपना हाथ पीठ पीछे कर लिया।
“देख तो, वैसी अंगूठी इसके हाथ में भी है।” दोती ने बबूसा की तरफ इशारा किया।
मूसी ने देखा तो फौरन कह उठी।
“ओह, इन दोनों के हाथों की उंगली में अंगूठी है।”
“सच में, दोनों के हाथों में।”
“वो दोनों खुंबरी के पास गई हैं?” बबूसा ने पूछा।
“अब तक तो खुंबरी से मिल भी लिया होगा उन्होंने।” मूसी ने कहा।
“हमें भी खुंबरी तक पहुंचने का रास्ता बता दो।” बबूसा ने कहा।
“तुम लोग भी खुंबरी के पास गए तो खुंबरी समझ जाएगी कि हमने ही तुम सबको रास्ता दिखाया है। क्यों दोती?”
“हां। उन्हें तो हमने समझा दिया था कि खुंबरी से मत कहना कि हमने उन्हें रास्ता बताया है।”
“हम भी खुंबरी को नहीं बताएंगे कि...”
“कमाल है। हर कोई ख़ुबरी के पास जाना चाहता है।” मूसी ने कहा-“अब मैं रास्ता नहीं दिखाऊंगी। खुंबरी को पता चल गया तो वो मेरी जान ले लेगी। तुम दोनों जाओ यहां से।”
दोती बार-बार अपने गले में पड़े हार को खुशी से छू रही थी।
“चल दोती।” मूसी पलटते हुए कह उठी-“अभी हमने कितने काम करने हैं।”
दोनों जाने को हुई कि बबूसा कह उठा।
“हमें भी खुंबरी तक पहुंचने का रास्ता बता...”
“तुम क्या चाहते हो कि खुंबरी हमारी जान ले ले।” मूसी तुनककर बोली।
“हम खुंबरी से नहीं कहेंगे कि तुमने हमें रास्ता दिखाया है।” बबूसा जल्दी-से बोला।
“न-ना। मैं तो खतरा नहीं ले सकती। मुझे अंगूठी मिल गई। इतना ही बहुत है।” मूसी ने अंगूठी वाला हाथ दिखाकर कहा।
“पर मुझे तो अंगूठी नहीं मिली न।” दोती मुंह लटकाकर बोली।
“तेरे पास हार जो है।”
“अंगूठी पर भी तो मेरा दिल है। तेरे हाथ में अंगूठी कितनी अच्छी लग रही है।”
“मैं तो नहीं दूंगी। ये अब मेरी है।” मूसी ने हाथ नचाकर कहा।
दोती ने बबूसा के हाथ की उंगली में पड़ी अंगूठी को देखा फिर बोली।
“तुम खुंबरी के पास जाना चाहते हो तो रास्ता दिखाने के बदले ये अंगूठी लूंगी।”
“अंगूठी?” बबूसा कुछ ठिठक-सा गया।
“तुम दोनों को खुंबरी के पास जाना है तो दोनों को ही अंगूठी देनी होगी।” दोती ने कहा।
“दूसरी अंगूठी मैं लूंगी।” मूसी फौरन कह उठी-“तेरे को इतना खूबसूरत हार जो मिल गया।”
“दूसरी अंगूठी मेरी बहन पहनेगी।” दोती ने कहा।
“उसे अपना आधा हार दे देना। दूसरी अंगूठी तो मैं लूंगी।” मूसी ने जिद भरे स्वर में कहा।
“चुप रह। तूने कल खुंबरी का खाना बनाते वक्त बीच में उंगली डाली थी। ये बात खुंबरी को पता चल गई तो...”
“वो तो मैं नमक का स्वाद देख रही थी कि ज्यादा तो नहीं पड़ गया।”
“खुंबरी तेरी एक न सुनेगी। जब उसे पता चलेगा कि उंगली डली सब्जी उसने खाई है तो...”
“खुंबरी को पता ही नहीं चलेगा।”
“मैं बता दूंगी अगर तूने दूसरी अंगूठी भी मुझे न लेने दी तो।”
“तू चुगली करेगी।” मूसी ने गुस्से से कहा-“अब मैं तेरे से बात नहीं करूंगी।” मूसी पांव पटकते वहां से चली गई।
जगमोहन और बबूसा उन दोनों को देख-सुन रहे थे। परंतु जगमोहन का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था कि नगीना भाभी किसी भी हालत में अंगूठी नहीं उतार सकतीं। वो जानती हैं कि अंगूठी में सुरक्षा की शक्ति मौजूद है जो कि उसे खुंबरी की बुरी ताकतों से बचाएगी। फिर भाभी ने अंगूठी कैसे उतार दी।
दोती, मूसी को जाते देखती रही फिर दोनों को देखकर बोला।
“जब गुस्सा उतरेगा तो मूसी ठीक हो जाएगी। ये अक्सर ऐसे ही नाराज हो जाती है। बोलो, खुंबरी तक जाने का रास्ता बताऊं?”
“बताओ।”
“पहले अपनी अंगूठियां मुझे दे दो। एक मैं पहनूंगी, एक मेरी बहन पहन लेगी। मूसी के हाथ में पड़ी अंगूठी कितनी अच्छी लग रही थी। लाओ, जल्दी दो, इसे मैं पहनूंगी।” दोती ने हाथ आगे बढ़ाकर कहा।
बबूसा अंगूठी उतारने लगा कि जगमोहन तुरंत बोला।
“अंगूठी मत उतारना बबूसा।”
बबूसा ने ठिठककर जगमोहन को देखा।
जगमोहन ने दोती को देख, सोच भरे स्वर में कह उठा।
“खुंबरी किस तरफ रहती है?”
“उधर।” दोती ने एक तरफ इशारा करके कहा।
“कितनी दूर है वो जगह?” जगमोहन ने पूछा।
“पास ही।” दोती ने सिर हिलाया-“मूसी तो अब वहां पहुंचने ही वाली होगी।”
“हम खुद उस जगह को ढूंढ़ लेंगे।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
बबूसा ने जगमोहन को देखा।
“तुम लोग नहीं ढूंढ सकोगे।” दोती गर्दन हिलाकर बोली।
“क्यों?”
“वो तो बड़ी गुप्त जगह है, जहां खुंबरी रहती है।” दोती ने आंखें नचाईं-“उस जगह के पास से भी निकल जाओगे और पता भी नहीं चलेगा। बड़े चालाक बनते हो कि अंगूठी न देनी पड़े। पर अंगूठी तो मेरे दिल को भा गई है।”
“अंगूठी के बदले कुछ और ले लो।”
“तुम्हारे पास है ही क्या देने को। हार है तो हार दे दो।” दोती ने कहा।
“अंगूठी दे देते हैं।” बबूसा कह उठा-“हमें जल्दी करनी चाहिए। रानी ताशा और नगीना खुंबरी के पास हैं, वो...”
“चुप रहो बबूसा।” जगमोहन की निगाह दोती पर थी।
“क्यों?”
बबूसा उलझन भरे स्वर में बोला। नजरें जगमोहन पर थीं।
दोती मुस्कराते हुए जगमोहन को देख रही थीं।
“तुम गड़बड़ को अभी तक भी नहीं समझे।”
“कैसी गड़बड़?”
“तुमने सोचा है कि रानी ताशा डुमरा के दिए हार को अपने गले से क्यों अलग करेंगी, जो कि खुंबरी की ताकतों के सामने सुरक्षा की गारंटी है। रानी ताशा के बारे में तो मैं ज्यादा नहीं कह सकता, परंतु नगीना भाभी कभी भी उस अंगूठी को अपने से अलग नहीं करेंगी। जबकि ये कहती है कि नगीना भाभी ने अंगूठी उतारकर इसे दे दी।”
“मुझे नहीं, मूसी को अंगूठी मिली। मुझे तो हार ही मिला है।” दोती भोलेपन से कह उठी।
“तुम हो कौन?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।
“इतनी जल्दी भूल गए। मेरा नाम दोती है और खुंबरी की दासी हूं मैं...” दोती ने मुंह बिगाड़कर कहा।
“सच बोलो, नहीं तो तुम्हारे साथ सख्ती करनी पड़ेगी।” जगमोहन का स्वर कठोर हो गया।
“सच ही तो कह रही हूं खुंबरी से पूछ लो कि उसकी दासी हूं कि नहीं?”
“अंगूठी लिए बिना तुम हमें खुंबरी तक पहुंचने का रास्ता नहीं बताओगी।” जगमोहन के होंठ भिंच गए।
“दोनों अंगूठियां लूंगी। एक मेरे लिए, एक मेरी बहन के...”
उसी पल जगमोहन दोती पर झपट पड़ा।
जगमोहन आशा कर रहा था कि दोती से टकराएगा। वो दोती का हाथ पकड़ने की चेष्टा में था, परंतु तब उसके मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा, जब वो दोती को पार करता चला गया। इस तरह कि जैसे वो खड़ी ही न हो।
लेकिन दोती अपनी जगह खड़ी थी।
जगमोहन चौंककर पलटा।
ये देखकर बबूसा भी ठगा-सा रह गया।
दोती खिलखिलाकर हंस पड़ी।
जगमोहन फौरन पुनः दोती पर झपटा, परंतु हाथ कुछ नहीं आया। दोती की खिलखिलाहट और भी तेज हो गई। वो पास ही खड़ी थी। मानवीय आकार में थी। ठीक से दिख रही थी परंतु वो उस कोहरे की तरह थी, जिसे पार करके दूसरी तरफ आसानी से निकला जा सके। उसे छुआ या पकड़ा नहीं जा सकता था। उसके शरीर का भ्रम टूटते ही जगमोहन के चेहरे पर कड़वे भाव फैल गए। वो हंसती दोती को देखता रहा। जबकि बबूसा परेशान-सा कह उठा।
“ये क्या?”
“ये खुंबरी की भेजी ताकत है, जो हमसे अंगूठियां लेकर, हमें जकड़ लेना चाहती थी।” जगमोहन दांत भींचकर बोला।
“ओह।” बबूसा अब समझा सारी बात।
दोती ने हंसी रोकी और जगमोहन को देखते कह उठी।
“तू तो बहुत चालाक निकला। भांप गया मेरी चाल को।”
“हमें पकड़ने आई थी तू?”
“तुम दोनों की अंगूठियां उतरवाने आई थी।” दोती कड़वे स्वर में कह उठी-“अंगूठियां उतारते ही तुम हमारी कैद में पहुंच जाते। पर तेरी चालाकी तो मैं मान गई। कैसे शक हुआ तुझे मेरे पर।”
“क्यों पूछती है?” जगमोहन सतर्क था।
“उस बात से सबक लूंगी कि मैंने ऐसी क्या गलती कर दी जो तेरे को मेरे पर शक हुआ। दोबारा वो गलती नहीं करूंगी।”
जगमोहन, दोती को देखता रहा फिर बोला।
“जिसने वो अंगूठी पहनी थी वो अंगूठी को किसी भी हाल में उंगली से न उतारती और तुमने कहा कि खुंबरी तक का रास्ता जानने के लिए उसने अंगूठी दे दी। इसी बात ने तुम्हारी धोखेबाजी की कलाई खोल दी।”
“समझ गई। जाती हूं अब, पर तुझे न छोडूंगी। दोती इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं।”
“तो खुंबरी ने भेजा तुझे।”
“खुंबरी तक मेरी पहुंच कहां। मैं तो ओहारा के पास रहती हूं।” दोती ने जगमोहन को घूरा।
“कौन ओहारा?”
“खुंबरी की एक ताकत है ओहारा।” इसके साथ ही दोती का वो शरीर हवा में घुलता गायब होता चला गया।
“क्या मुसीबत है।” बबूसा कह उठा।
जबकि जगमोहन चिंतित दिखने लगा।
“खुंबरी के पास ऐसी ताकतें हैं तो हम इनका मुकाबला कैसे कर सकेंगे। ये तो हाथ में भी नहीं आतीं। देखने में उनका शरीर दिखता है जबकि छूने पर वो हवा के समान हैं।” बबूसा ने जगमोहन से कहा।
“हमें इनका मुकाबला करने की जरूरत भी नहीं है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
“क्यों?”
“ये ताकतें हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं। जब तक कि डुमरा की दी अंगूठी के रूप में सुरक्षा कवच हमारे पास है। इसी वजह से ये हम पर काबू नहीं पा सकी और चालाकी से हमारी अंगूठियां मांगने लगी।”
“ओह। मैं उसकी चालाकी नहीं समझ सका। मैं तो उसे अंगूठी देने को तैयार हो गया था।” बबूसा बोला।
“अंगूठी कभी भी अपने से जुदा मत करना बबूसा। इससे बुरी ताकतें दूर रहेंगी।”
“नहीं करूंगा।” बबूसा ने हाथ की उंगली में पड़ी अंगूठी को देखा।
“मुझे नगीना भाभी और रानी ताशा की चिंता होने लगी है।” जगमोहन होंठ भींच कर कहा।
बबूसा ने जगमोहन को देखा।
“वो हार और अंगूठी उनके पास थी। इससे स्पष्ट है कि बुरी ताकतों ने किसी तरह उन्हें पकड़ लिया है। शायद उन्हें नुकसान पहुंचा दिया हो। समझ में नहीं आता कि वो किस हाल में होगी।” जगमोहन के चेहरे पर परेशानी दिख रही थी।
“अगर हम दोती को पकड़ लेते तो उससे पता चल...”
“वो खुंबरी की ताकतों में से एक है। उसे हम नहीं पकड़ सकते। परंतु उससे सतर्क रहना जरूरी है।”
“तो हमें कैसे पता चले कि रानी ताशा और नगीना के साथ उन्होंने क्या किया है।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।
“जब तक खुंबरी को नहीं ढूंढ निकालते, तब तक हमें किसी बात का पता नहीं चल सकता।”
“तो हम जिस तरह खुंबरी का ठिकाना ढूंढ़ रहे हैं, वैसे ही हमें ढूंढ़ते रहना होगा। आगे चलते हैं।” बबूसा ने कहा।
दोनों तेजी से पुनः आगे बढ़ने लगे।
“देवराज चौहान और मोना चौधरी पर भी इस तरह का खतरा आ सकता है।” जगमोहन ने कहा।
“राजा देव बहुत चालाक हैं, वो खतरे को भांप लेंगे।” बबूसा विश्वास भरे स्वर में बोला।
“इन हालातों में कुछ नहीं पता चलता कि क्या हो जाए। पर सोमाथ सुरक्षित रहेगा। उस पर खुंबरी की ताकतें असर नहीं कर सकतीं। क्योंकि वो कृत्रिम इंसान है। वो सोमारा को भी सुरक्षित रखेगा।”
“सोमारा के पास भी सुरक्षा कवच के रूप में अंगूठी है।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“डुमरा ने कहा था कि वो हमारे पीछे आएगा।” जगमोहन बोला-“पीछे रहकर वो क्या करेगा। हमारे साथ ही आता।”
“क्या पता डुमरा के मन में क्या है।” बबूसा ने कहा।
“वो...” उसी पल जगमोहन कहते-कहते ठिठक गया।
“वो कौन है?” बबूसा की निगाह भी तक तक उस पर पड़ चुकी थी।
करीब दो-सौ कदम दूर पेड़ों के बीच उन्हें कोई दौड़ता जाता दिखाई दे रहा था। दौड़ते-दौड़ते कभी वो पेड़ों के पीछे नजरों से ओझल हो जाता तो कभी दिखाई देने लगता। वो तेजी से दूसरी दिशा की तरफ दौड़ता जा रहा था।
“वो हमारा तो साथी नहीं लगता।” बबूसा ने पहचानने की कोशिश करते कहा।
“आओ।” जगमोहन भी उस दिशा की तरफ दौड़ा-“हमें देखना है कि यहां क्या हो रहा है। उसे पकड़ो।”
बबूसा भी जगमोहन के साथ दौड़ पड़ा।
जगमोहन और बबूसा तेजी से उस दिशा की तरफ दौड़ते चले गए जिस तरफ वो व्यक्ति दौड़ा जा रहा था। रह-रहकर वो नजरों से ओझल हो जाता, तो फिर दिखाई देने लगता। ऐसे घने पेड़ों के बीच उसके पीछे जाते रहना आसान नहीं था। फासला अभी भी बहुत था परंतु पहले से कम हो गया था। तभी बबूसा ने ऊंचे स्वर में उसे रुकने को कहा।
“आवाज मत लगाओ।” जगमोहन दौड़ते हुए चीखा-“हमने चुपके से देखना है कि वो किधर जा रहा है।”
दौड़ते-दौड़ते बबूसा आगे निकल आया था।
दोनों के कंधों पर थैले जैसे बैग लटके थे।
जिसके पीछे वो दौड़ रहे थे वो एकाएक उन्हें दिखना बंद हो गया।
बबूसा और जगमोहन दौड़ते हुए रुके वहां, जहां वो नजरों से ओझल हुआ था।
“कहां गया?” जगमोहन गहरी सांसें लेता कह उठा।
“इतने गहरे जंगल में किसी को ढूंढ़ा नहीं जा सकता। वो बहुत तेज दौड़ रहा था जैसे फौरन कहीं पहुंच जाना चाहता हो।”
“समझ में नहीं आता वो कौन था और क्यों इस तरह भागे जा रहा था। वो मिल जाता तो कुछ नई बातें पता चलतीं।”
दोनों की निगाह घने जंगल में घूम रही थी।
“आओ बबूसा, उसे ढूंढ़ते हैं।”
“अब तो वो बहुत आगे निकल गया होगा। वो मिलेगा नहीं।”
जगमोहन बबूसा की बात से मन-ही-मन सहमत था। उसकी उखड़ी सांसें संयत हो चुकी थीं।
“इसी तरफ आगे चलते हैं।” जगमोहन बोला-“शायद वो...”
कहते-कहते जगमोहन ठिठका।
दूर से आती कोई आवाज उसके कानों में पड़ी जैसे कोई चिल्ला रहा हो। उसने बबूसा को देखा।
बबूसा भी सतर्क हो चुका था।
“उधर कोई है।” बबूसा के होंठों से निकला।
जगमोहन उसी पल तेजी से आगे बढ़ गया।
बबूसा उसके साथ आगे बढ़ता कह उठा।
“शायद वहां ज्यादा लोग हैं। तभी तो किसी की आवाजें कानों में पड़ रही है।”
“वो ही तो देखना है हमें कि ये सब क्या हो रहा है।” जगमोहन बोला।
दोनों तेजी से आगे बढ़े जा रहे थे कि उनके कानों में युवती की हंसी पड़ी।
“ये तो दोती की आवाज लगती है।” बबूसा ने कहा।
दोनों कुछ और आगे पहुंचे कि ठिठक गए। अब आवाजें स्पष्ट सुनाई दे रही थीं और कुछ आगे पेड़ों के पीछे किसी के खड़े होने की झलक मिल रही थी। मर्द की आवाजों के साथ उन्होंने दोती की आवाज को पहचान लिया। बेहद सावधानी से पेड़ों के तनों की ओट लेते वो आगे पहुंचे और छिपकर उन्हें देखने-सुनने लगे।
वो तीस बरस का युवक था। सेहमतमंद था। उन्होंने पहचाना कि ये ही दौड़ रहा था। उससे पंद्रह कदमों की दूरी पर खड़ी दोती हंस रही थी। उसी पल वो व्यक्ति कठोर स्वर में कह उठा।
“तुम मेरे हाथों से खत्म हो जाओगी।”
“मुझे खत्म करने की ताकत तेरे में नहीं है। डुमरा खुद कहां छिप गया?” दोती ने हंसकर कहा।
“वो भी इसी जंगल में है।” उस व्यक्ति ने गुस्से से कहा।
“नाम क्या है तेरा?”
“मेरे नाम से तेरे को क्या लेना। मैं तो...”
“नाम भी तो जानूं तेरा।”
“टोमाथ नाम है मेरा। सीधी तरह मुझे खुंबरी का ठिकाना बता, वरना तुझे अभी खत्म कर दूंगा।”
दोती के चेहरे पर जहरीली मुस्कान उभरी।
“मुझे खत्म करेगा। बहुत बहादुर है तू। ये जरा हाथ की उंगली में पड़ी अंगूठी तो उतार।”
“क्यों?”
“सुरक्षा कवच पहनकर बहादुरी दिखा रहा है। तू दोती का मुकाबला क्या करेगा। जाकर डुमरा को भेज। उसे मजा चखाऊंगी। डुमरा मेरा मुकाबला नहीं कर सकता तो खुंबरी का क्या बिगाड़ सकेगा।”
“अगर डुमरा यहां होता तो तू कबकी पकड़ी जा चुकी होती।”
“डुमरा की शक्तियों में वो दम नहीं, जो हम ताकतों में है।” दोती ने कड़वे स्वर में कहा-“डुमरा नियम से ‘बंधा’ हुआ है, उसे बार-बार पीछे हटना पड़ता है, जबकि हम ताकतों का नियम है, काम को हर हाल में पूरा करके लौटो। अगर तू बहादुर है तो सुरक्षा कवच को फेंककर मेरे से बात कर।”
“मैं तेरी बातों में फंसने वाला नहीं। बता खुंबरी का ठिकाना कहां है?” टोमाथ गुस्से से कह उठा।
“भाग जा बेवकूफ। नहीं तो जान गंवा देगा।”
तभी टोमाथ का हाथ ऊपर उठा और सफेद चमकती लकीर की तरह बिजली, हाथ से निकलकर दोती की तरफ बढ़ी और देखते-ही-देखते दोती के शरीर से पार होकर जमीन से जा टकराई।
दोती ठठाकर हंस पड़ी।
“बस, इतनी ही शक्ति है तेरे में।”
“तो तू शरीर अपने साथ नहीं लाई।” टोमाथ गुर्रा उठा।
“क्यों लाऊं, उसके बिना ही मेरा काम बन रहा है। अब तू मेरे वार से बच।” कहने के साथ ही दोती ने अपनी उंगली टोमाथ की तरफ तान दी तो उसी पल मुट्ठी भर का चमकता गोला, बिजली की-सी रफ्तार से आगे बढ़ा और टोमाथ के सीने से जा टकराया। टोमाथ के पांव उखड़े और वो नीचे जा गिरा।
“बच गया तू।” दोती गुस्से से कह उठी।
टोमाथ उठ चुका था नीचे से और बोला।
“बस इतनी ही ताकत है।”
“अब तो नहीं बचेगा।” दोती गुर्राई और दोनों हाथ टोमाथ की तरफ किए।
उसी पल चमकते तीर दिखे जो टोमाथ की तरफ लपके।
टोमाथ ने दोनों बांहें उठाकर तीरों को इधर-उधर छितरा दिया और कहा।
“तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।”
“तेरी उंगली में सुरक्षा कवच मौजूद है। पर तू नहीं बचेगा। मैं और ताकत लेकर लौटती हूं।” इतना कहने के साथ ही दोती गायब हो गई।
जगमोहन और बबूसा पेड़ों के तनों की ओट से सब कुछ देख रहे थे।
दोनों की नजरें मिलीं।
“ये डुमरा का साथी है।” जगमोहन बोला-“डुमरा भी जंगल में आ चुका है।”
“ये किस तरह लड़ रहे थे?” बबूसा कह उठा।
“दोती अपनी ताकतों का इस्तेमाल कर रही थी, परंतु सुरक्षा कवच पहने होने से टोमाथ का कुछ नहीं बिगड़ा।”
“दोती अभी अपनी और ताकतों के साथ लौट आएगी।”
“आओ, टोमाथ से बात करते हैं।”
दोनों तनों की ओट से निकले और टोमाथ की तरफ बढ़ गए।
टोमाथ सोच-भरी मुद्रा में अपनी जगह पर खड़ा था कि कदमों की आहटें सुनकर उसने फौरन सिर घुमाया।
जगमोहन और बबूसा कुछ ही कदमों पर सामने थे।
“ओह।” टोमाथ गुर्रा उठा-“तो उसने तुम दोनों को भेज दिया मेरा मुकाबला करने...”
“हम डुमरा के लोग हैं टोमाथ।” जगमोहन कह उठा।
“तो अब मेरे से चालें खेलने लगे, मैं सब समझाता हूं कि...”
“मैं बबूसा हूं।”
“बबूसा?”
तभी जगमोहन की नजर टोमाथ के हाथ की उंगली में पड़ी, सुरक्षा कवच वाली अंगूठी पर पड़ी।
“ये देखो।” जगमोहन ने अपना हाथ आगे किया-“हमारे पास डुमरा की दी अंगूठी है।
टोमाथ ने अंगूठी को देखा।
बबूसा ने भी हाथ बढ़ा दिया।
“समझा।” टोमाथ ने सिर हिलाया-“तो तुम लोगों को डुमरा ने इधर भेजा है। इस जंगल में खुंबरी की ताकतों के धोखे बहुत हैं, इसलिए सतर्क रहना जरूरी है। खुंबरी की ताकतें हमें मारने का मौका ढूंढ़ रही हैं।”
“तुम जिससे लड़ रहे थे उसका नाम दोती है।”
“तुम्हें कैसे पता?”
“वो हमें भी मिली थी। हमारी अंगूठियां उतरवाना चाहती थी, परंतु हमने उसकी धोखेबाजी को पकड़ लिया।”
“फिर तो तुम दोनों समझदार हो।”
“डुमरा कहां है?” बबूसा ने पूछा।
“वो भी इसी जंगल में है और अपने काम में लगा है। अब खुंबरी की खैर नहीं।” टोमाथ बोला।
“डुमरा ने हमें नहीं बताया था कि वो तुम्हें भी जंगल में भेजेगा।”
“मैं डुमरा के साथ ही आया हूं। वो अपने काम में लग गया और मैं खुंबरी के ठिकाने की तलाश में लग गया कि तभी मेरी शक्ति ने मुझे बताया कि इस तरफ खुंबरी की ताकत मौजूद है तो मैं इधर ही दौड़ा चला आया।”
“हमने तुम्हें दौड़ते देखा तो पीछे आ गए? खुंबरी के ठिकाने का कुछ पता चला?”
“ये इतना भी आसान काम नहीं।” टोमाथ खीझ भरे स्वर में बोला।
“दोती के पास रानी ताशा का हार और नगीना भाभी की अंगूठी है।” जगमोहन ने कहा।
“ये तो गलत हो गया। इसका मतलब वो दोनों खुंबरी की ताकतों के कब्जे में पहुंच गई हैं।” टोमाथ कह उठा।
“अब क्या होगा?” जगमोहन ने व्याकुल स्वर में कहा।
“हौसला रखो। मैं जल्दी ही खुंबरी की जगह ढूंढ़ लूंगा। सबको बचा लूंगा। तुम लोग मेरे साथ रहो। यहां रुकने का कोई फायदा नहीं। उस दिशा में चलते हैं। हमने पूरा जंगल छानना है।” टोमाथ ने कहा।
वो तीनों एक दिशा में चल पड़े।
“क्या उन्होंने रानी ताशा और नगीना को मार दिया होगा?” बबूसा ने परेशान स्वर में पूछा।
“पता नहीं क्या किया होगा। मैं कैसे कुछ कहूं।” टोमाथ ने कहा।
“डुमरा क्या काम कर रहा है?”
“वो अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके, खुंबरी की जगह जानने की चेष्टा कर रहा है।”
“वो कामयाब होगा?”
“क्या पता। मेरा खयाल है कि कामयाब नहीं होगा। खुंबरी के ठिकाने पर, ताकतों ने अपनी काली छाया फैला रखी है, ऐसे में शक्तियां उस जगह को नहीं देख पाएंगी। उन्हें सब कुछ सामान्य ही दिखेगा।”
तीनों तेजी से आगे बढ़े जा रहे थे।
“दोती दिखने में तो शरीर के साथ ही होती है, परंतु वो सिर्फ आकृति में कैसे दिखती है।”
“ये काम वो अपनी ताकतों द्वारा करती है। इस तरह वो सुरक्षित रहती है। कोई वार उस पर नहीं चल पाता।”
“तुम ताकतों के बारे में काफी जानकारी रखते हो।” जगमोहन बोला।
“क्यों न रखूंगा। सारी उम्र इन्हीं कामों में लगा रहा। अब खुंबरी का ठिकाना मैं ढूंढ़ के ही रहूंगा।”
वो तीनों देर तक चलते रहे। जंगल बहुत घना हो चुका था।
“तुम्हें कुछ खाना हो तो बता दो।” बबूसा बोला-“तुम्हारे पास तो सामान का थैला भी नहीं है।”
“हां, भूख तो मुझे लग रही है।” टोमाथ बोला-“पर कुछ आगे जाकर खाएंगे।”
“तुम्हें थकान नहीं हुई?”
“हो रही है, पर खुंबरी तक पहुंचना जरूरी है। अभी तक हमें खुंबरी की जगह नहीं मिल सकी।”
“वो देखो, वो क्या...” एकाएक जगमोहन चीखा।
वे ठिठक गए।
उन्होंने जगमोहन की बताई दिशा की तरफ देखा।
वहां पेड़ों के बीच एक खाली जगह पर बीस बरस की युवती बैठी हुई थी। वो बहुत खूबसूरत थी और बीस बरस की उम्र होगी। उसने साधारण कपड़े पहन रखे थे और उसके पास वैसा ही थैला रखा था जैसा जगमोहन और बबूसा के पास था। उसे देखते ही टोमाथ उस तरफ तेजी से बढ़ता कह उठा।
“वो तो मोरगा है। मोरगा इस तरह क्यों बैठी है।”
जगमोहन और बबूसा भी तेजी से उसके साथ बढ़े।
“मोरगा कौन? तुम इसे जानते हो?”
“ये भी मेरी तरह डुमरा के साथ काम करती है और खुंबरी के ठिकाने की तलाश पर निकली थी।”
तीनों वहां जा पहुंचे।
मोरगा दस कदम दूर थी कि आगे बढ़ते वे किसी अदृश्य दीवार से टकराकर रुक गए।
“ये क्या?” जगमोहन के होंठों से निकला।
“ओह, मोरगा, मुसीबत में है।” टोमाथ कह उठा।
तब तक मोरगा की निगाह भी उन पर पड़ चुकी थी।
“ओह टोमाथ।” मोरगा कहते हुए अपनी जगह से उठी, परंतु आगे न बढ़ी-“तुम आ गए। मैं तो सोच रही थी कि मुझे बचाने इस जंगल में कौन आएगा। खुंबरी की ताकतों ने मुझे यहां कैद कर लिया है।”
“तुम-तुम्हारी अंगूठी कहां है?” टोमाथ कह उठा।
“ये ही गलती तो मुझसे हो गई। दोती ने चालाकी से मेरी अंगूठी उतरवा ली। मैं उसकी धोखेबाजी को ना समझ सकी। उसने मुझसे अंगूठी लेकर, इस पत्थर के नीचे रख दी।” पास में चार फुट ऊंचा भारी पत्थर पड़ा था-“मुझे अदृश्य दीवारों के बीच कैद कर दिया और चली गई। मैं फंस गई टोमाथ। तुम मेरी सहायता करो।”
“तुम तो बहुत बड़ी बेवकूफ हो जो खुंबरी की ताकतों के जाल में फंस गई।”
“ये ही गलती मुझसे हो गई। अब पछता रही हूं।” मोरगा दुख भरे स्वर में कह उठी।
“तुम्हें अंगूठी नहीं उतारनी चाहिए थी।” टोमाथ ने नाराजगी से कहा।
“बाद में डांट लेना। पहले मुझे यहां से निकालो।”
“मैं तुम्हें कैसे निकाल सकता हूं?” टोमाथ बोला।
“दोती ने जाते-जाते कहा था कि तुम इस कैद से तभी निकल सकती हो, जब पत्थर के नीचे से डुमरा की दी सुरक्षा कवच वाली अंगूठी निकालकर पहन लूं। तब से इस पत्थर को हटाने की चेष्टा कर रही हूं लेकिन ये इतना भारी है कि मुझसे हिल भी नहीं रहा। तुम आकर इस पत्थर को हटा दो।”
“पर यहां तो अदृश्य दीवार है। मैं तुम्हारे पास कैसे आ सकता हूं।” टोमाथ ने कहा।
“आ सकते हो।” मोरगा बोली-“तुम्हारे हाथ की उंगली में सुरक्षा कवच वाली जो अंगूठी है, उसे उतारकर नीचे रख दो तो तब तुम अदृश्य दीवार को पार कर लोगे। जल्दी से इस पत्थर को हटाओ कि मैं अंगूठी पहनकर इस कैद से निकल सकूँ।”
“तुम भी तो इस दीवार को पार कर सकती हो।” जगमोहन बोला।
“नहीं कर सकती। दोती ने बताया था कि अंगूठी पहनकर कोई बाहर से भीतर नहीं आ सकेगा और भीतर वाला तभी बाहर जा सकेगा, जब उसने अंगूठी पहनी हो। पर तुम दोनों कौन हो। मैंने तुम लोगों को पहले कभी नहीं देखा। ओह तुम दोनों ने भी सुरक्षा कवच वाली अंगूठियां पहन रखी हैं। तुम उन्हीं लोगों में से तो नहीं जो पोपा से सदूर पर आए हो।”
“हम वो ही लोग हैं।”
“समझ गई। तुम लोग खुंबरी के ठिकाने को ढूंढ़ रहे हो।” मोरगा ने सिर हिलाया-“ये वो ही लोग हैं न टोमाथ?”
“हां। दोती मुझे भी मिली थी।” टोमाथ बोला-“पर मेरे पर उसकी चाल नहीं चल सकी।”
“अब मुझे इस कैद से निकालो टोमाथ।”
“अभी निकालता हूं।” कहने के साथ ही टोमाथ हाथ की उंगली में डली अंगूठी निकालने लगा।
“ये क्या कर रहे हो।” जगमोहन बोला-“इस अंगूठी को मत निकालो। ये यहां पर हमारी सुरक्षा है।”
“तुमने मोरगा की बात नहीं सुनी। अंगूठी को उतारकर ही मैं अदृश्य दीवार के भीतर जा सकता हूं।”
“लेकिन इसमें खतरा है।”
“खतरा कैसा?” टोमाथ आस-पास नजरें घुमाकर बोला-“यहां तो खुंबरी की कोई ताकत नहीं है।”
“क्या पता दोती कहीं पास में ही छिपी हो और तुम्हारे अंगूठी उतारते ही तुम्हें भी कैद कर ले।”
“इस वक्त मोरगा को बचाना जरूरी है।” कहने के साथ ही टोमाथ ने उंगली से अंगूठी निकालकर, नीचे जमीन पर रख दी और मोरगा से बोला-“मैं आ रहा हूं मोरगा।”
“जल्दी करो टोमाथ।” मोरगा परेशान हाल में बोली-“मुझे इस कैद से निकालो।”
टोमाथ आगे बढ़ता चला गया।
इस बार किसी अदृश्य दीवार ने उसका रास्ता नहीं रोका और वो मोरगा के पास पहुंच गया।
मोरगा उठते हुए बोली।
“जल्दी-से इस पत्थर के नीचे से अंगूठी निकालो टोमाथ।”
टोमाथ पत्थर के पास पहुंचा और उसे हटाने लगा।
मोरगा व्यग्र भाव से खड़ी उसे देखती रही।
टोमाथ ने पत्थर को हटाने के लिए कई तरह से जोर लगाया, परंतु हटा नहीं सका।
“ये पत्थर तो बहुत भारी है।” टोमाथ थके स्वर में कह उठा।
“फिर कोशिश करो।” मोरगा बेचैनी से बोली।
“तुम भी मेरे साथ कोशिश करो।” टोमाथ ने कहा।
अब टोमाथ और मोरगा पत्थर को धकेलने की चेष्टा करने लगे। चार फुट ऊंचा और पांच फुट घेरे में पड़ा पत्थर, इस बार थोड़ा-सा हिला, परंतु हटा फिर भी नहीं।”
“ओह ये तो हमसे हट ही नहीं रहा।” मोरगा व्याकुल-सी कह उठी।
“दोती ने इस पत्थर को कैसे उठाया था?”
“उसने तो बड़ी आसानी से उठा लिया था।”
“दोती की ताकतों ने उसका साथ दिया होगा। पर हम कैसे पत्थर को हटाएं?” टोमाथ विचारपूर्ण स्वर में बोला।
“ये हमसे हिला तो था।” मोरगा बोली-“एक और आदमी होता तो...” तभी मोरगा कहते-कहते ठिठकी और कुछ दूरी पर खड़े जगमोहन और बबूसा से कहा-“तुम लोग भी सहायता करो हमारी।”
जगमोहन और बबूसा की नजरें मिलीं।
“अजीब लोग हो तुम। मैं मुसीबत में हूं और तुम मेरी सहायता नहीं कर रहे।” मोरगा नाराजगी से बोली।
“टोमाथ।” एकाएक जगमोहन ने कहा-“तुम जरा हमारे पास आओ।”
“क्यों?”
“मैं देखना चाहता हूं कि क्या तुम वापस अपनी अंगूठी के पास आ पाते हो या नहीं?”
टोमाथ ने सिर हिलाया। आगे बढ़ा और उनके पास पहुंचकर, नीचे पड़ी अपनी अंगूठी उठाई और पहन ली। जगमोहन को देखा फिर अंगूठी उतारकर वापस मोरगा के पास जा पहुंचा।
“सब ठीक है।” जगमोहन बोला-“तुम जाओ और पत्थर हटा दो।” जगमोहन ने बबूसा से कहा।
बबूसा ने सिर हिलाया और आगे बढ़ा।
“अंगूठी उतारकर जाना होगा।” जगमोहन ने कहा।
तब तक बबूसा अदृश्य दीवार से टकराकर रुक गया था। बबूसा पलटा और कुछ कदम पीछे आकर अंगूठी को उंगली से निकाला और नीचे जमीन पर रखकर आगे बढ़ गया।
टोमाथ और मोरगा उसे ही देख रहे थे।
इस बार बबूसा को अदृश्य दीवार ने नहीं रोका और वो टोमाथ-मोरगा के पास जा पहुंचा।
“चलो, पत्थर हटाते हैं।” मोरगा परेशान हाल में कह उठी।
फिर तीनों पत्थर के पास पहुंचे और उसे हटाने लगे।
इस बार पत्थर पहले से ज्यादा हिला, परंतु हटा फिर भी नहीं।
कई बार उन्होंने कोशिश की।
लगता था जैसे सफलता मिलते-मिलते रह जाती हो।
“तुम भी आ जाओ।” मोरगा हांफते हुए जगमोहन से कह उठी-“अब पत्थर काफी हिल रहा है। तुम्हारे हाथ लगते ही ये हट जाएगा। थोड़ी-सी ताकत कम पड़ रही है। जल्दी करो, देर मत लगाओ। अगर तुम पहले आ जाते तो अब तक सब ठीक हो गया होता।”
जगमोहन के माथे पर बल दिखे।
उसने परखने वाली नजरों से पत्थर को देखा। एक ही बात दिमाग में आई कि इस पत्थर को अकेले इंसान का जोर भी हटा सकता है तो ये तीन लोगों के हटाने पर भी, हट क्यों नहीं रहा?
“सोच क्या रहे हो।” टोमाथ बोला-“अंगूठी उतारो और आ जाओ।”
जगमोहन के दिमाग में खतरे की घंटी बजी। उसने टोमाथ और मोरगा को देखा। दोनों आशा भरी निगाहों से उसे देख रहे थे। जाने क्यों जगमोहन के चेहरे पर छोटी-सी मुस्कान उभरी।
“मेरे आने से कोई फायदा नहीं होगा। तुम तीनों से पत्थर नहीं हट रहा तो...”
“तुम देखना, तुम्हारे आते ही हट जाएगा।” मोरगा कह उठी-“यहां आकर जरा हाथ तो लगाओ। हम तीनों के जोर से हिल रहा है। मामूली से काम के लिए तुम इतना क्यों सोच रहे हो।”
“बबूसा।” जगमोहन बोला-“तुम मेरे पास आ जाओ।”
“तुम नहीं आओगे?” बबूसा ने पूछा।
“नहीं।” जगमोहन ने इंकार में सिर हिलाया-“मुझे समझ में नहीं आ रहा कि तुम तीनों के जोर लगाने पर भी ये पत्थर हट क्यों नहीं रहा, जबकि दो लोग इसे आसानी से लुढ़का सकते हैं।”
“तुम कहना क्या चाहते हो?” बबूसा सतर्क हो गया।
“तुम इसी वक्त मेरे पास आ जाओ।” जगमोहन बोला।
“ये कैसा अजीब इंसान है। हमारी सहायता को, आने को मना ही नहीं कर रहा, इसे भी बुला रहा है।” मोरगा बोली।
“तुम आ जाओ बबूसा।” जगमोहन ने पुनः कहा।
बबूसा ने आगे बढ़ने को कदम उठाया तो टोमाथ कह उठा।
“रुको-रुको। वो बेवकूफ है तुम तो समझदार बनो।”
मोरगा ने बबूसा का हाथ थामा।
बबूसा ने मोरगा को देखा। मोरगा मुस्कराई। फिर टोमाथ से कहा।
‘एक ही सही। उसे फिर पकड़ लेंगे।’ इसके साथ ही मोरगा होंठों-ही-होंठों में बड़बड़ाई।
अगले ही पल मोरगा बबूसा और टोमाथ ऐसे गायब हो गए जैसे वे वहां थे ही नहीं।
ये देखते ही जगमोहन हक्का-बक्का रह गया। ठगा-सा खड़ा रह गया।
“बबूसा।” जगमोहन के होंठों से हैरान-सा स्वर निकला।
परंतु बबूसा तो वहां था ही नहीं।
जगमोहन समझ गया कि टोमाथ, डुमरा का साथी नहीं था। वो खुंबरी की ताकत का ही हिस्सा था जो उसे धोखा देने के लिए, उससे आ मिला था और बबूसा उनके चंगुल में जा फंसा था।
जगमोहन मन-ही-मन झल्ला उठा कि उसके कहने पर ही बबूसा पत्थर हटाने के लिए गया था। वह टोमाथ और मोरगा की चाल को जरा भी नहीं समझ सका था। टोमाथ पर भरोसा कर लेना उसे महंगा पड़ा था। जगमोहन के होंठ भिंच गए। एकाएक वो आगे बढ़ा। परंतु किसी प्रकार की अदृश्य दीवार ने उसका रास्ता नहीं रोका और वो पत्थर के पास पहुंच गया। चेहरे पर कठोरता उभरी हुई थी। वो झुका और पत्थर को दोनों हाथों से जोर लगाकर पलटाना चाहा।
अगले ही पल पत्थर आसानी से एक तरफ जा लुढ़का।
पत्थर के नीचे कुछ भी नहीं था।
जगमोहन पहले ही समझ चुका था कि खुंबरी की ताकतें उसके साथ खेल खेल गई हैं। टोमाथ और मोरगा खुंबरी की ताकतें ही थीं और वो बबूसा को अपने साथ ले गई। बहुत आसान-सी चाल चली उन्होंने और वे उस चाल में फंस गए। जगमोहन को अपने ऊपर गुस्सा आने लगा कि वो टोमाथ की चाल को समझ क्यों नहीं सका?
तभी दोती की हंसी वहां गूंज उठी।
जगमोहन फौरन पलटकर देखा। कुछ कदमों की दूरी पर खड़ी दोती हंस रही थी। जगमोहन के चेहरे पर गुस्सा चमक उठा। दोती ने हंसी रोकी और कुछ कदम आगे बढ़कर नीचे पड़ी दोनों अंगूठियां उठा लीं।
“मैंने मोरगा को पहले ही बता दिया था कि तुम चालाक हो। मुश्किल से फंसोगे। पर नहीं फंसे।” दोती कह उठी।
“तो इस खेल के पीछे तुम थीं।”
“सब ही हैं। हम सब एक ही हैं। हमें काम पूरा करना होता है।”
“कैसा काम?”
“डुमरा के भेजे लोगों को पकड़कर कैद में डालना।”
“तो तुम हम लोगों को पकड़कर कैद में रख रहे हो।” जगमोहन ने मन-ही-मन राहत की सांस ली।
“हां। खुंबरी का ये ही हुक्म है। जब वो मारने का हुक्म देगी तो मार देंगे।”
“किस-किसको पकड़ा अभी तक?”
“पांच को।”
“पांच कौन?” जगमोहन के होंठ सिकुड़े।
“रानी ताशा, नगीना, देवराज चौहान और मोना चौधरी। बबूसा को तुम्हारे सामने ही पकड़ा है।”
“देवराज चौहान और मोना चौधरी पकड़े गए?” जगमोहन बोला।
“हां। तब वो मेरी चालाकी के धोखे में आ गए थे।” दोती ने कहा।
“वो दोनों आसानी से फंसने वालों में नहीं थे।” जगमोहन का स्वर सख्त था।
“उन पर चाल ही ऐसी फेंकी कि वो बच नहीं सकते थे। तुम अभी दोती को जानते ही कहां हो।”
“सोमाथ और सोमारा को नहीं पकड़ा?”
“उनके लिए भी चाल सोच रही हूं पर सोमाथ हमारी पकड़ में नहीं आएगा।”
“क्योंकि वो नकली इंसान है।”
“हां। हमारी ताकतें उस पर काम नहीं करेंगी। सोमारा को पकड़ने की कोशिश जरूर करूंगी। वैसे वो दोनों जंगल में भी भटकते रहे तो खुंबरी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। उनकी मुझे खास परवाह नहीं है।”
“ऐसा क्यों नहीं कहती कि सोमाथ की वजह से सोमारा पर हाथ नहीं डाल रही।”
“कुछ भी समझ ले।” दोती मुस्कराई-“पर तू कब तक बचेगा।”
जगमोहन के होंठ भिंच गए।
“तू भी जल्दी हमारी कैद में होगा। मोरगा कहती थी तुझे फंसा लेगी। कोई बात नहीं, बबूसा तो हाथ आ ही गया।”
“इन अंगूठियों को क्या करेगी?” जगमोहन ने पूछा।
दोती ने हथेली पर पड़ी दोनों अंगूठियों को देखकर कहा।
“ये हमारे काम की नहीं।”
“तो फिर उठाई क्यों?”
“इसलिए कि इसे कोई और पहनकर हमें परेशान न करे। इन्हें मैं मिट्टी में दबा दूंगी।”
“उस हार के साथ भी ऐसा ही किया?”
“वो हार तो खुंबरी ने रख लिया। कहने लगी डुमरा की निशानी समझकर इसे रखूंगी।” दोती मुस्कराई।
“बबूसा को कहां ले गए वो?” जगमोहन ने पूछा।
“चिंता मत कर। बबूसा कैद में अपने लोगों से मिल रहा है। रानी ताशा, नगीना, देवराज चौहान, मोना चौधरी से। उन सबके बीच पहुंचकर बबूसा खुश है। तू कहे तो तुझे भी वहां पहुंचा सकती हूं।”
जगमोहन, दोती को सोच भरी निगाहों से देखने लगा।
“तेरी मर्जी। पर तू बचेगा नहीं। तेरे को भी कैद में डालना है।” दोती बोली।
“सबको कैद में डालकर क्या करोगी?”
“खुंबरी के हुक्म से मार दिया जाएगा। पांच सौ साल बीत गए। हमने खून नहीं देखा। किसी को मारा नहीं। अब तुम लोगों का खून बहेगा तो हम सबको खुशी होगी। बड़ा मजा आएगा।” दोती एकाएक खुश हो गई-“एक खबर तो तेरे को बता दूं कि डुमरा भी इसी जंगल में आ गया है।”
जगमोहन के होंठ भिंच गए।
“मजा आएगा डुमरा के साथ।” दोती का स्वर कठोर हो गया-“उसे नहीं पकड़ा जा सकता। वो पूरी तरह शक्तियों की सुरक्षा में है। लेकिन ओहारा अपनी पूरी ताकत लगा देगा। डुमरा की जान लेने के लिए।”
“ओहारा कौन है?”
“खुंबरी की बड़ी ताकत है। डुमरा का मुकाबला वो ही कर सकता है। पर डुमरा तब तक ‘वार’ नहीं कर सकता। जब तक कि ताकतें पहला वार उस पर न कर दें। वो तो ताकतों के वार के इंतजार में बैठा है।”
“खुंबरी भी यहीं है, इसी जंगल में?”
“हां। वो तो अपनी जगह पर है।” दोती आंखें नचाई-“वो तो इन सब बातों का मजा ले रही है। पर अब तेरे पकड़े जाने की बारी है। तूने बहुत तंग कर दिया है मुझे। बच के रहना। अब पूरी तैयारी के साथ तेरे को पकड़ने आऊंगी। तेरी सारी की सारी चालाकी धरी रह जाएगी। ताकतों के पास तो जैसों का भी खूब इलाज है।” इसके साथ ही दोती एकाएक गायब हो गई।
जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता दिखने लगी। बबूसा का पास में न होना उसे परेशान कर रहा था। अब अकेला ही रह गया था। जगमोहन ने वहां रुकना मुनासिब नहीं समझा और आगे बढ़ गया। बेहद सतर्क था वो। परंतु देर तक चलते रहने के बाद भी उसके साथ कुछ नहीं हुआ। फिर थकान और भूख महसूस होने लगी। एक पेड़ के नीचे रुककर थैले से खाना निकालकर खाया और सुस्ताने के लिए थैले पर सिर रखकर लेट गया। जल्दी ही जगमोहन गहरी नींद में डूब गया था।
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“मुझे समझ में नहीं आता कि जंगल में भटकने के लिए मेरी और बबूसा की जोड़ी क्यों नहीं बनी?” सोमारा ने उखड़ी निगाहों से सोमाथ को देखा-“वो होता तो उससे दो-चार बातें भी कर लेती।”
“तुम बातें मेरे से कर लो।” सोमाथ ने मुस्कराकर कहा।
“जो बात बबूसा से होती, वो तेरे से नहीं हो सकती। मुझे तो बबूसा की बहुत चिंता हो रही है।”
“उसकी चिंता क्यों-वो तो जगमोहन के साथ है।”
सोमारा ठिठककर सोमाथ को देखते बोली।
“डुमरा की बात भूल गए क्या। खुंबरी को किसी एक से प्यार होने वाला है। बबूसा से हो गया तो?”
“तो तुम्हें इस बात की चिंता हो रही है।” सोमाथ ने सिर हिलाया-“पर डुमरा ने तो कहा था पृथ्वी से आए किसी मर्द के साथ...”
“बबूसा भी तो पृथ्वी से ही आया था। जन्म के बाद उसे पृथ्वी पर छोड़ दिया गया था।”
“पर बबूसा है तो सदूर का।”
“अब खुंबरी का क्या भरोसा कि उसे ही पृथ्वी से आया मान ले।” सोमारा ने खराब मन से कहा-“बबूसा, राजा देव और जगमोहन से अच्छा दिखता है। खूब सेहत है, बबूसा का शरीर तो देखो, खुंबरी का दिल बबूसा पर आ गया तो?”
“मेरे ख्याल में वो इंसान बबूसा नहीं होगा।” सोमाथ ने गम्भीर स्वर में कहा-“राजा देव या जगमोहन में से कोई एक...”
“तू औरत होता, हम इंसानों जैसा होता तो मेरे दिल का हाल समझ पाता।” सोमारा ने हाथ हिलाकर कहा-“बबूसा मेरे साथ होता तो उसका पूरा ध्यान रखती मैं। खुंबरी उस पर नजर डालती तो उसे भी देख लेती।” कहते हुए सोमारा एक पेड़ के नीचे जा बैठी-“थक गई हूं। खाना भी नहीं खाया सुबह से।”
सोमाथ तुरंत कंधे पर लटका थैला उतारते कह उठा।
“खा लो। मैं तुम्हें निकाल देता हूं।”
“रहने दे। मैं निकाल लूंगी।” सोमारा ने थैला अपनी तरफ खींच लिया।
सोमाथ भी नीचे बैठ गया।
“मुझे पूरी तरह तेरा ध्यान रखना है। मैं बबूसा को नाराज नहीं करना चाहता। एक बार उसे नाराज किया था तो उसने मुझे आकाशगंगा में फेंक दिया था, दूसरी बार नाराज हो गया तो मुझे ग्रह से बाहर फेंक देगा।”
“बहुत मुश्किल से तू बबूसा के काबू में आया था। नगीना ने हिम्मत न दिखाई होती तो शायद बबूसा भी अपने इरादे में सफल न हो पाता। पर जानती हूं अब तू बबूसा को नहीं जीतने देगा। एक बार हो गया तो हो गया।”
“अब महापंडित ने मेरे में कई बदलाव किए हैं। जैसे कि मेरे दिमाग में दोस्ताना व्यवहार डाला। पहले मैं सिर्फ रानी ताशा का हुक्म सुनता था, अब मेरे में जो दिमाग है, सब फैसले उसी से लेता हूं।”
“तेरा दिमाग कहां है?”
“ये मैं नहीं बताऊंगा।”
“बैटरी तो बता दे कि तेरे शरीर के किस हिस्से में लगती है।”
“ये भी नहीं बताऊंगा।” बबूसा मुस्कराया।
“क्यों?”
“मेरे दुश्मन ये जान गए तो इस बात का फायदा उठा सकते हैं। मुझे हरा देंगे, मेरे दिमाग को या बैटरी को निकालकर।”
सोमारा ने कुछ नहीं कहा और थैले से खाना-पानी निकाला और खाना खाने लगी।
सोमाथ की निगाह जंगल में घूमने लगी।
“समझ में नहीं आता कि खुंबरी इस जंगल में कहां रहती है।” सोमाथ बोला।
“वो ऐसे गुप्त ठिकाने पर रहती होगी कि जिसे कोई ढूंढ़ नहीं सकता।” सोमारा खाना खाते बोली-“डुमरा कहता है कि अपने ठिकाने पर खुंबरी की ताकतों ने साए फैला रखे हैं, जिससे कि डुमरा की शक्तियां उसे ढूंढ़ नहीं पा रहीं। परंतु सामान्य इंसान अगर वहां पहुंच जाए तो उस जगह को देख लेगा। तभी तो डुमरा हम लोगों को यहां भेजने को तैयार हो गया।”
“ये जंगल बहुत बड़ा और घना है। सफलता मिलनी आसान नहीं।” सोमाथ ने कहा।
“तेरे को खुंबरी मिल गई तो तू उसे मार देगा?” सोमारा ने पूछा।
“हां।”
“तेरी क्या दुश्मनी खुंबरी से?”
“महापंडित ने मुझे तुम लोगों की सहायता करने को कहा है। इसलिए मैं ये काम करूंगा।”
“अब तो तू बहुत शराफत से बात करता है। पोपा में तो तूने तूफान खड़ा कर रखा था।”
“बोला तो, अब महापंडित ने मेरे में कई बदलाव किए हैं।” सोमाथ ने मुस्कराकर कहा।
सोमारा खाना खाने के बाद बोली।
“मैं थोड़ी-सी नींद लूंगी। तेरे को थकान तो होती नहीं है।”
“मैं बैटरी से चलता हूं। मैं कभी नहीं थकता।”
सोमारा थैले पर सिर रखकर लेट गई। आंखें बंद कर ली। सोमाथ उठकर टहलने लगा। उसकी नजरें जंगल में दूर-दूर तक जा रही थीं। घने पेड़ों को पार करती कहीं-कहीं सूर्य की किरणें जमीन पर पड़ रही थीं। मध्यम-सी हवा चल रही थी। कुछ ही पल बीते कि सोमाथ एकाएक ठिठक गया। उसकी निगाह पचास कदम दूर एक पेड़ के नीचे बैठी युवती पर पड़ी। सोमाथ मन-ही-मन हैरान हुआ कि युवती पर उसकी निगाह पहले क्यों न पड़ी जबकि वो हर तरफ नजर रखे हुए था।
“सोमारा।” सोमाथ युवती पर निगाहें टिकाए कह उठा-“उठो, वो देखो कौन है।”
सोमारा ने फौरन आंखें खोली और उठ बैठी।
“उधर देखो।”
सोमारा उधर देखते ही हैरान हो उठी।
“वो कौन है, इस घने जंगल में क्या कर रही है?” सोमारा के होंठों से निकला।
“वो हममें से तो कोई नहीं लगती।”
“हमें उससे बात करनी चाहिए।” सोमारा खड़ी हो गई।
दोनों पेड़ के नीचे बैठी युवती की तरफ बढ़ गए।
“हम कब से यहां हैं, तुमने उसे पहले क्यों नहीं देखा?” सोमारा बोली।
“शायद वो अभी वहां आई है। पहले तो मुझे नहीं दिखी।”
दोनों युवती के पास पहुंचे तो उसे सुबकते पाया। आंसू बगलों तक आए हुए थे। वो दोती थी। उसने दोनों को देखा तो जोर-जोर से रोने लगी।
“तुम कौन हो।” सोमारा उसके पास बैठती कह उठी-“रो क्यों रही हो और इस जंगल में कैसे आईं?”
“खुंबरी बहुत बुरी है।” दोती ने रोते हुए कहा-“उसने मेरा दिल दुखाया है।”
“खुंबरी?” सोमारा चौंकी।
सोमाथ के होंठ सिकुड़ गए।
दोती रोती रही।
“तुम खुंबरी को जानती हो?”
“मैं उसकी दासी हूं। पर अब मैं उसकी सेवा नहीं करूंगी। वो बुरी है।”
“तुम उसकी दासी हो।” सोमारा की आंखें चमक उठीं-“फिर तो वो पास में ही कहीं रहती होगी।”
“हां।” रोते हुए दोती ने सोमारा को देखा-“अब मैं उसके काम नहीं किया करूंगी।”
सोमारा ने सोमाथ को देखा फिर दोती से कह उठी।
“ऐसी क्या नाराजगी हो गई खुंबरी से। वो तो बहुत अच्छी है।”
“उसे प्यार हो गया है।”
“प्यार हो गया है? तो इसमें कौन-सी बुरी बात है। सब ही प्यार करते हैं।”
“तो मुझसे क्यों कहा करती थी कि वो प्यार नहीं करेगी। अब तो वो मेरी भी परवाह नहीं कर रही।”
“दिल छोटा न कर-सब ठीक...”
“जाने कहां से आ गया बबूसा और...”
“बबूसा?” सोमारा चौंकी-“क्या हुआ बबूसा को?”
“उसी से तो खुंबरी को प्यार हुआ है।” दोती अब सुबक रही थी।
“क्या?” सोमारा हक्की-बक्की रह गई-“बबूसा ने खुंबरी से प्यार कर लिया।”
“वो ही तो कह रही हूं मैं। जाने कैसा प्यार हुआ है कि खुंबरी मेरी भी परवाह नहीं कर रही। पहले तो दोती-दोती कहकर मेरे आगे-पीछे घूमा करती थी अब कहती है मेरे कमरे में भी मत आना। बबूसा के साथ कमरे में बंद रहती है।”
“बबूसा के साथ?”
“और क्या...दोनों हर वक्त ही प्यार करते रहते हैं। मेरा दिल तोड़ दिया खुंबरी ने।”
सोमारा से कुछ कहते न बना।
सोमाथ पास खड़ा दोनों की बातें सुन रहा था।
“बबूसा भी बहुत बुरा है। मैंने उन दोनों की बातें छिपकर सुनी।” दोती कह उठी।
“बबूसा, खुंबरी से प्यार नहीं कर सकता।” सोमारा परेशान-सी बोला-“वो मेरे से प्यार करता है।”
“तुम्हारे से? तुम सोमारा हो क्या?”
“हां।”
दोती आंसओं को साफ करते कह उठी।
“मैंने अभी बताया न कि मैंने छिपकर उनकी बातें सुनीं।”
“तुझे मेरा नाम कैसे पता चला?”
“उनकी बातें तेरे को बताऊंगी तो तू समझ जाएगी। अच्छा हुआ जो तू मिल गई।”
“क्या कहना चाहती है तू?”
“तू सतर्क रहना। बबूसा और खुंबरी तेरे को मारने की सोच रहे हैं।” दोती ने कहा।
“नहीं।” सोमारा के होंठों से निकला।
“तेरे को मेरे पे भरोसा तो है न?”
“हां, हां, भरोसा है। तू कह...”
“बबूसा तो खुंबरी से प्यार करने को तैयार ही नहीं था। कहता था वो तो सोमारा से प्यार करता है।”
“ठीक ही तो कहा उसने।” सोमारा ने व्यग्र स्वर में कहा।
“पर खुंबरी ने अपनी सुन्दरता का जादू उस पर चला दिया। बबूसा, खुंबरी की बांहों में चला गया।”
“ये तू क्या कह रही है।”
“मैंने खुद सब देखा-सुना। वो ही तेरे को बता रही हूं।”
“बता-बता...” सोमारा बहुत ही ज्यादा व्याकुल दिख रही थी।”
“बबूसा ने खुंबरी से कहा कि अगर सोमारा को पता चल गया कि मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं तो वो मुझे मार देगी।”
“ठीक ही तो कहा बबूसा ने-फिर?”
“बबूसा ने कहा कि सोमारा के होते वो किसी और से प्यार नहीं कर सकता।”
“वो तो मुझे पता ही है, बबूसा सिर्फ मेरे से प्यार करता है-फिर?”
“खुंबरी ने कहा कि उसे सोमारा से डरने की जरूरत नहीं, वो सोमारा को मार देगी।”
“ऐसा कहा खुंबरी ने, तब तो बबूसा ने खुंबरी का गला दबा दिया होगा।” सोमारा बोली।
दोती ने सोमारा को देखा फिर कह उठी।
“तू बहुत भोली है।”
“क्या मतलब?”
“बबूसा को खुंबरी जैसी औरत मिलेगी तो वो तेरी क्यों परवाह करेगा।”
“क्या कहना चाहती है तू?”
“बबूसा मान गया। उसने खुंबरी से कहा कि सोमारा की जान ले लेना। उसे जिंदा मत छोड़ना।”
“बबूसा ऐसा नहीं कह सकता।”
“उसने ऐसा कहा है। मैंने अपने कानों से सुना।” दोती बोली-“अब तो दोनों हर वक्त कमरे में बंद रहते हैं। खाना भी वक्त पर नहीं खाते। खुंबरी अब मेरी जरा भी परवाह नहीं करती। वो तो कहा करती थी कि मर्द से उसे प्यार नहीं होता। और अब बबूसा को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ती। मेरा काम ही क्या है वहां पर। मैं खुंबरी की सेवा नहीं करूंगी।”
सोमारा का चेहरा मुरझा गया।
“तो बबूसा खुंबरी से प्यार करने लगा है।” सोमारा ने थके स्वर में कहा।
“उसने तो तेरे को मार देने पर भी हामी भर दी है। तेरा बबूसा तो बेईमान निकला।”
सोमारा की आंखें भर आईं।
“खुंबरी और बबूसा, दोनों ही बुरे हैं। खुंबरी ने मेरा दिल तोड़ा, बबूसा ने तेरा दिल तोड़ दिया। कहां पहले मैं खुंबरी की मालिश किया करती थी। उसके हाथ-पैर दबाया करती थी। कितनी सेवा करती थी। मेरे बिना तो खुंबरी का दिल ही नहीं लगता था। अब तो वो मुझे भूल ही गई है। बबूसा-बबूसा करती रहती है बबूसा भी तो कितना तगड़ा है, खुंबरी फिर क्यों न उसके पीछे पागल होगी।”
सोमारा की आंखों से आंसू निकलकर गालों पर आ गए।
“कब मिला बबूसा खुंबरी को?” सोमाथ ने पूछा।
“कल रात को।” दोती ने कहा।
“मुझे नहीं लगता तुमने जो कहा है वो सच है।” सोमाथ ने कहा।
“लो जी।” दोती अपने माथे पर हाथ मारकर कह उठी-“भला मैं झूठ क्यों बोलूंगी?”
“बबूसा ऐसा इंसान नहीं है जो कि खुंबरी से प्यार करने लगे और सोमारा को मारने के लिए तैयार हो जाए।”
“बबूसा के बस में कुछ नहीं है। जादू जानती है खुंबरी। जिसे चाहे अपना दीवाना बना सकती है। उसने बबूसा पर जादू कर रखा है। बबूसा को होश ही कहां है कि खुंबरी के जादू को समझ सके। मेरी तो किस्मत ही फूट गई है। जब से बबूसा खुंबरी को मिला है, मेरे पास कोई काम ही नहीं रहा करने को।”
“खुंबरी कहां रहती है, हमें बता।” सोमाथ ने सख्त स्वर में कहा।
“हाय री।” दोती उसी पल सोमारा से कह उठी-“तेरी अंगूठी कितनी अच्छी है। ऐसी ही अंगूठी बबूसा ने खुंबरी को दी है। उसे पहनकर खुंबरी बड़ा इतरा रही है, जरा मुझे तो दिखाना, मैं भी पहनकर देखूं।”
“तू मुझे बबूसा के पास ले चल।” सोमारा परेशान-सी कह उठी।
“अभी ले चलती हूं। एक बार अंगूठी तो दिखा दे। पहनकर देख लूं।”
“ये अंगूठी नहीं उतारूंगी।”
“तू तो बड़ी खराब है। मेरी जरा-सी बात नहीं मान रही।” दोती ने मुंह बनाकर कहा-“मैं अंगूठी लूंगी तो नहीं। उंगली में पहनकर एक बार देखनी है। खुंबरी ने भी ऐसी अंगूठी पहन रखी है, दिखा तो...”
“तू मुझे बबूसा के पास ले जाएगी न?” सोमारा ने पूछा।
“अभी ले चलती हूं, उसमें क्या है।” दोती बोली-“एक बार अंगूठी तो पहनने दे मुझे।”
सोमारा सिर उठाकर पास खड़े सोमाथ से बोली।
“दे दूं इसे अंगूठी। पहनकर मुझे वापस दे देगी।”
सोमाथ ने जंगल में हर तरफ नजरें घुमाईं फिर कहा।
“कोई हर्ज नहीं, एक बार पहन लेने दे इसे। ये हमें खुंबरी तक ले जाएगी।”
सोमारा ने अंगूठी निकाली उंगली से और दोती को दे दी।
दोती ने फौरन अंगूठी ली और अपने हाथ की उंगली में पहन ली।
“आह। ये तो मेरे हाथ में बहुत अच्छी लग रही है। ये तू मुझे ही दे दे।” दोती मुस्करा पड़ी।
“नहीं।” सोमारा बोली-“ये अंगूठी मेरे बड़े काम की है।”
“मैं सब समझती हूं कि तेरे किस काम की है।” दोती ने आंखें नचाईं।
“अंगूठी मुझे दे और हमें बबूसा और खुंबरी के पास ले चल।”
“बहुत चिंता हो रही है बबूसा की?” दोती हंस पड़ी।
“वो मेरा है। खुंबरी उससे प्यार नहीं कर सकती।”
“मैंने तो सब कुछ तेरे से झूठ कहा था। खुंबरी क्या बबूसा से प्यार करेगी।”
“क्या मतलब?”
“मतलब अभी समझाती हूं जरा अपना हाथ तो मेरे हाथ में दे।”
उलझन में फंसी सोमारा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। दोती ने उसका हाथ थामा तो सोमारा को वो हाथ, हाथ न लगकर, बेहद कोमल-सा स्पर्श महसूस हुआ। इस बारे में सोमारा कुछ कहती तभी उसने दोती को होंठों-ही-होंठों में कुछ बड़बड़ाते देखा कि उसी पल दोती और सोमारा ऐसे गायब हो गए, जैसे हवा में घुल गए हों।
पास खड़ा सोमाथ दोनों को इस तरह गायब पता होता पाकर भौंचक्का रह गया। उसने हैरानी की स्थिति में पड़कर जंगल में हर तरफ देखा परंतु कोई भी नजर नहीं आया।
“सोमारा।” सोमाथ ने ऊंचे स्वर में पुकारा।
परंतु जवाब में खामोशी छाई रही।
“तुम कहां हो सोमारा?” सोमाथ ने पुनः आवाज लगाई।
लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
“ये तो बुरा हो गया।” सोमाथ होंठ भींचे कह उठा-“वो दोती, खुंबरी की भेजी ताकत थी। पहले तो उसने बहाने से सोमारा की सुरक्षा कवच वाली अंगूठी ली फिर अपना जादू सोमारा पर चला दिया। मैं धोखा खा गया।”
qqq
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