रीटा जा चुकी थी। जाते-जाते भी वो हैरान-परेशान थी। इस बात को उसका दिल-दिमाग मानने को तैयार नहीं था कि इस तरह के दो इन्सान भी हो सकते हैं जो हू-ब-हू एक जैसे ही हों। परन्तु सच सामने था। वो बस बुत की तरह बार-बार देवराज चौहान को देखे जा रही थी। नोरा ने उसे इस बात के लिए पक्का कह दिया था कि ये बात वो किसी से ना कहे। अपने पति से भी नहीं। उसने उस पर भरोसा करके ये बात उसे बताई है। रीटा ने प्रॉमिस किया कि ये बात अपने तक ही रखेगी।
इस वक्त सवा आठ बज रहे थे। बाहर अंधेरा छा चुका था। देवराज चौहान व्हिस्की का गिलास थामे, कुर्सी पर बैठा छोटे-छोटे घूंट ले रहा था। शरीर पर कॉटन का गाऊन था। कुछ देर पहले ही वो नहाकर हटा था। इस वक्त नोरा बाथरूम में नहाने गई हुई थी। उसने बताया था कि रीटा दोपहर को आ गई थी, नहाने का उसे वक्त ही नहीं मिला था।
देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव ठहरे हुए थे। उसने व्हिस्की का गिलास टेबल पर रखा और प्लेट में से नमकीन काजू उठाकर मुँह में रखा और फोन उठाकर जगमोहन का नम्बर मिलाया। बात हो गई।
“कहाँ हो तुम?" देवराज चौहान ने पूछा।
“मदन के बंगले के बाहर।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।
“मेकअप में हो?”
“हाँ।"
“कार बदल ली?".
"हाँ"
“और सोहनलाल ?"
“वो मदन के शोरूम डायमंड हाऊस पर नजर रखे हुए है।" दूसरी तरफ से जगमोहन ने कहा।
"मदन दिखा?"
"नहीं। कुछ देर पहले ही सोहनलाल से बात हुई। उसने बताया कि वो शोरूम पर नहीं आया।"
"इस बार मदन दिखे तो वो नजरों से ओझल नहीं होना चाहिये। पीछा होने का उसे शक भी नहीं होना चाहिये। हमने हर हाल में श्रेया को हासिल करना है। मदन कोई ऐसा तीसमार खां नहीं। कि, हम श्रेया को हासिल ना कर सकें।" कहने के बाद देवराज चौहान ने फोन बंद करके टेबल पर रखा और व्हिस्की का गिलास उठाकर घूंट भरा।
कुछ मिनटों के बाद नोरा नहाकर बाथरूम से बाहर आ गई। उसने सफेद पायजामा और उसके साथ की कमीज पहन रखी थी। खुले गीले बाल कंधों पर फैले हुए थे। इस वक्त वो बला की खूबसूरत लग रही थी।
लेकिन देवराज चौहान का ध्यान नोरा पर नहीं था।
नोरा उसके सामने कुर्सी पर आ बैठी। वो सामान्य लग रही थी।
देवराज चौहान ने उसे देखा।
"मैं, सूरज और श्रेया तुम पर ही निर्भर हैं कि तुम सब संभाल लोगे।" नोरा बोली।
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया।
"नीरज को श्रेया के बारे में बता दूँ?” नोरा ने पूछा।
“नहीं। उसे परेशान मत करो। वो अपनी पढ़ाई में व्यस्त है.... और उसे बताने से कोई फायदा भी नहीं होने वाला।" देवराज चौहान ने कहा।
“एक बात पूछूं?”
देवराज चौहान ने सवालियाँ नजरों से नोरा को देखा।
"तुम कह रहे थे कि सूरज के पापा (शिवचंद) का, मदन वाले वॉल्ट के केबिन में रखा पचास करोड़ भी ला दोगे?"
“हाँ।"
"वो सब कुछ तो वॉल्ट में रखा है। केबिन मदन के नाम है, फिर तुम कैसे.....?"
"उतना ही सोचो, जितनी तुम्हें जरूरत हो। जो बात तुम्हारे काम की ना हो, उस पर मत सोचो।" देवराज चौहान बोला।
"मन में सवाल तो उठता ही है कि तुम ये सब कैसे करोगे?" नोरा ने कहा।
"इस परिवार का पैसा, इस परिवार को मिल जायेगा। मैं लाकर दूँगा।"
नोरा ने गहरी साँस ली। छातियाँ ऊपर से नीचे को गईं। बोली---
"अगर ऐसा हो जाये तो मेरे परिवार का सारा जीवन चैन-आराम से बीत जायेगा। मैं और सूरज तो ये ही सोच बैठे हैं कि वो पैसा तो अब वापस मिलने वाला नहीं। तुम....तुम तो भगवान का रूप बनकर आये हो इस परिवार के लिए।"
"मैं इन्सान ही बना रहूँ तो ये ही बहुत ज्यादा होगा। वैसे भी अभी तक मैंने तुम्हारे परिवार के लिए कुछ कर नहीं दिखाया है। मैं तुम लोगों का जीवन बेहतर करने की चेष्टा कर रहा हूँ। ये वक्त आना होगा, तभी ऊपर वाले ने सूरज और मेरे को एक जैसा बनाया।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मैं कुछ नहीं कर रहा। जो हालात मेरे सामने आ रहे हैं, उसी के मुताबिक मैं काम कर रहा हूँ। जब मुझे महसूस हुआ कि मदन जरूरत से ज्यादा घटिया और कमीना इन्सान है तो तब मैंने फैसला किया कि वॉल्ट में मौजूद उसकी दौलत को वहाँ से निकाल लूंगा ।"
“तुम आखिर हो कौन? ये काम करना आसान नहीं। किसी वॉल्ट से तुम कैसे दौलत बाहर निकाल सकते हो?” नोरा बोली।
“कोशिश करूँगा कि ऐसा कर सकूँ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
“ऐसा मत करो। कोई गलत कदम मत उठाना कि पुलिस तुम्हें पकड़ ले।” नोरा घबरा कर कह उठी।
देवराज चौहान ने घूँट मारा। कहा कुछ नहीं। आँखों में सोचों के भाव तैर रहे थे।
■■■
रात के ग्यारह बज रहे थे।
जगमोहन मदन के बंगले के बाहर निगरानी पर था। उसके चेहरे पर दाढ़ी-मूँछें थीं और आँखों पर प्लेन ग्लास का चश्मा था। इस वक्त वो ऐसी कार के भीतर बैठा था, जो उसने अपनी पहचान वाले से ली थी। अंधेरा होने पर वो निगरानी के लिए आ पहुँचा था । नौ बजे उसने मदन के बेटे, विजय की कार बंगले में जाते देखी। विजय कल की तरह, आज भी खुद कार ड्राईव कर रहा था। डायमंड हाऊस नाम का अपना शोरूम बंद करके घर आ गया होगा। जगमोहन ने सोचा। परन्तु मदन कहीं नहीं दिखा था।
विजय के बंगले में जाने के बाद सोहनलाल पाँच-सात मिनट बाद जगमोहन के पास आ पहुंचा था। कार का दरवाजा खोल कर भीतर जा बैठा। सोहनलाल डायमंड हाऊस पर नजर रख रहा था।
"तो मदनलाल डायमंड हाऊस नहीं पहुँचा....।" जगमोहन कह उठा।
"नहीं। वो इस वक्त श्रेया के पास होगा। हमें श्रेया को रखने का नया ठिकाना जानना है।" सोहनलाल बोला।
"मदन नजर तो आये.... ।”
“तुम यहाँ कितने बजे पहुँचे?" सोहनलाल ने पूछा।
"करीब सात-साढ़े सात ।"
“क्या पता मदन उससे पहले ही बंगले पर आ गया हो...। इस वक्त बंगले पर मौजूद हो....।"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
"तुमने कुछ खाया?” सोहनलाल ने पूछा।
“नहीं। यहाँ से हिल नहीं सकता। नजर रखनी है।" जगमोहन बोला।
“मैंने भी नहीं खाया। अभी रैस्टोरेंट खुले होंगे। मैं खाने को कुछ लेकर आता हूँ।”
सोहनलाल चला गया।
जगमोहन कार में बैठा मदन के बंगले पर नजर रखता रहा।
आधे घंटे में सोहनलाल डिनर पैक करा लाया। दोनों ने खाना खाया।
"मैं गेट से बंगले के भीतर पोर्च तक नजर मारता हूँ कि मदन की कार भीतर है कि नहीं।" सोहनलाल ने कहा।
“बंगले के गेट के पास मत जाना।” जगमोहन बोला।
“क्यों?”
“वहाँ C.C.T.V. कैमरे लगे हैं। कल जब मैं इस बंगले में गया था तो दो कैमरों पर मेरी नजर पड़ी थी। वहाँ से दूर रहकर ही बंगले पर नजर रखनी होगी। इस वक्त यहाँ हम दोनों की जरूरत नहीं है। तुम घर जाओ, सुबह आ जाना।"
“घर जाकर क्या करूँगा।" सोहनलाल सीट पर पसरता कह उठा।
“ननिया भाभी इन्तजार कर रही होगी।"
“वो तो अपनी सहेली की बेटी की शादी में व्यस्त है। चार दिन से सहेली के यहाँ है, अभी तीन दिन और वहाँ रहेगी।"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
सोहनलाल पीछे की सीट पर लेटा नींद लेने की चेष्टा में था।
रात का एक बज रहा था।
जगमोहन चौकस था। नजरें मदन के बंगले पर थीं। मदन अभी तक वापस नहीं लौटा था।
इसी प्रकार रात बीत गई। रात भर जागने से जगमोहन की आँखें भारी होने लगी थीं।
दिन का उजाला फैलने लगा।
सोहनलाल पीछे की सीट पर नींद में था।
दिन का उजाला फैले अभी बीस मिनट ही हुए थे कि जगमोहन ने बंगले का फाटक खुलते देखा।
जगमोहन सतर्क हो गया।
फिर मध्यम गति से चलती कार गेट से बाहर निकली। जगमोहन चौंका। ये मदन की कार थी और पीछे की सीट पर बैठे मदन की झलक भी जगमोहन को मिल गई थी। कार ड्राईवर चला रहा था।
मदन की कार सड़क पर आगे बढ़ती चली गई।
जगमोहन ने फौरन अपनी कार स्टार्ट की और काफी ज्यादा फासला रखते हुए, मदन का पीछा करने लगा। सुबह के वक्त सड़कों पर ज्यादा ट्रेफिक नहीं था। ऐसे में पीछा करने में बहुत सावधानी की जरूरत थी।
कार के चलते ही सोहनलाल उठ बैठा।
"क्या हुआ?” सोहनलाल ने पूछा।
"मदन बंगले पर ही था। अभी-अभी बंगले से कार पर निकला है।" जगमोहन बोला।
“इतनी सुबह ?" सोहनलाल ने सोचा--- “क्या ख्याल है, श्रेया के पास जा रहा होगा ?"
"कह नहीं सकता। मदन शाम से पहले ही बंगले पर आ गया। था।" जगमोहन की नजरें दूर, मदन की कार पर थीं।
“मेरा तो दिल करता है मदन को गर्दन से पकड़ लें---।"
“ये देवराज चौहान का मामला है। वो बेहतर समझता है कि इस मामले को कैसे संभालना है।"
“आज तीसरा दिन है, हमारे पास कल का दिन बचा है। अगर हम श्रेया को ना ढूँढ पाये तो मदन के मुताबिक वो श्रेया की हत्या कर देगा। पर ऐसा होने से पहले ही देवराज चौहान इसकी गर्दन पकड़ लेगा।" सोहनलाल ने कहा।
"देवराज चौहान के पास और भी रास्ते हैं श्रेया को हासिल करने के....वो....।"
"जानता हूँ--- मदन के बेटे विजय पर हाथ डाला जा सकता है।"
जगमोहन सावधानी से मदन की कार का पीछा करता रहा।
एक घंटे बाद कार गोरेगाँव जा पहुँची।
साढ़े छः बज रहे थे। देखते-ही-देखते मदन की कार एक रेस्टोरेंट के सामने जा रुकी।
जगमोहन ने कार को कुछ आगे ले जाकर रोका।
सोहनलाल की नजरें मदन की कार पर थीं। मदन अपनी कार से निकला और रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ गया।
"वो रैस्टोरेंट में क्या करने जा रहा है?" सोहनलाल कह उठा।
"तुम भी जाओ। मुझे पहचान सकता है वो। पर उसने तुम्हें पहले नहीं देखा।" जगमोहन बोला।
सोहनलाल कार से बाहर निकल कर रैस्टोरेंट की तरफ बढ़ गया।
कार में बैठा जगमोहन मदन की कार पर नजर रखने लगा।
पाँच मिनट बाद जगमोहन का फोन बजा। दूसरी तरफ सोहनलाल था।
"मदन नाश्ता कर रहा है रैस्टोरेंट में। मैंने भी अपने लिए नाश्ते का आर्डर दे दिया है।" उधर से सोहनलाल ने कहा।
"ठीक है।"
"तुम्हारे लिए नाश्ता पैक करा लाऊँ?”
“नहीं। मदन पर नजर रखो।”
करीब आधा घंटा जगमोहन कार में बैठा रहा। तब मदन को बाहर निकलते देखा। मदन के पीछे-पीछे सोहनलाल भी बाहर निकला था। जगमोहन ने देखा मदन अपनी कार की पीछे वाली सीट पर आ बैठा है।
सोहनलाल उसकी तरफ आ रहा था।
मदन की कार आगे बढ़ गई।
सोहनलाल आगे वाली सीट पर आ बैठा। जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी। पीछा पुनः शुरू हो गया। अब सड़कों पर पर्याप्त ट्रेफिक दिखने लगा था। ऐसे में पीछा करने में आसानी होने लगी। परन्तु इस बार पीछा ज्यादा लम्बा नहीं चला। दस मिनट बाद ही गोरेगाँव की एक कालोनी में मदन की कार रुकते देखी।
जगमोहन ने सौ कदम पहले ही कार को किनारे पर रोक दिया।
सामने पुराने से फ्लैट बने नजर आ रहे थे। फ्लैटों के बाहर की दीवारें, बरसात का पानी पड़ने से काली हो चुकी थीं। फ्लैट ज्यादा बड़े ना होकर, दो कमरों वाले थे।
मदन को कार से निकल कर उन फ्लैटों की तरफ बढ़ते देखा।
सोहनलाल कार का दरवाजा खोलता बोला---
"मैं उसके पीछे जा रहा हूँ।" बाहर निकलकर सोहनलाल, मदन की तरफ बढ़ गया।
जगमोहन कार में ही रहा।
सौ कदम आगे मदन की कार खड़ी थी। उसका ड्राईवर बीच में ही था ।
वक्त बीता। एक घंटा बीत गया। ना तो मदन लौटा, ना ही सोहनलाल । जगमोहन जानता था कि इन हालातों में सोहनलाल को फोन करना ठीक नहीं था। कहीं फोन की बेल उसे नुकसान ना पहुँचा दे।
पन्द्रह मिनट और बीते कि मदन आता दिखा।
सोहनलाल अभी तक नहीं आया था।
मदन को देखते, जगमोहन को बेचैनी होने लगी कि सोहनलाल क्यों नहीं आया? कहीं मदन को उस पर शक हो गया हो और उसने सोहनलाल को पकड़ लिया हो। मदन के आदमी भी वहाँ हो सकते हैं, जहाँ मदन गया था। जगमोहन ने फोन निकाला, सोहनलाल को फोन करने के लिए कि फोन बज उठा। सोहनलाल की कॉल थी ।
“तुम कहाँ...।”
“मदन वापस आ रहा है। तुम उसके पीछे जाओ। यहाँ मदन एक फ्लैट में गया था। सारा वक्त वो भीतर ही रहा। फ्लैट का दरवाजा बंद रहा। जब मदन बाहर निकला तो दरवाजे तक छोड़ने एक बदमाश जैसा आदमी आया। संभावना है कि श्रेया इस फ्लैट में हो। मैं चैक करूँगा फ्लैट को। तुम मदन के पीछे जाओ, श्रेया कहीं और भी हो सकती है।" उधर से सोहनलाल ने कहा ।
"ठीक है।" कहने के साथ ही जगमोहन ने फोन बंद कर दिया। मदन को अपनी कार में बैठते देख रहा था वो।
■■■
सुबह देवराज चौहान ने नोरा के साथ नौ बजे ही नाश्ता कर लिया था। देवराज चौहान बाहर जाने को तैयार हो चुका था। नाश्ते के बाद देवराज चौहान और नोरा भी उसके पीछे-पीछे आ गई थी।
"इस ब्रीफकेस में क्या है?" नोरा ने पूछा। वो गम्भीर थी।
"जरूरी कागजात।"
"कहाँ जा रहे हो?"
"काम है। तुम्हें.... ।" देवराज चौहान ने कहना चाहा।
"मुझे डर सा लग रहा है।"
"किस बात का डर?"
"यही कि तुम मदन वाले वॉल्ट के केबिन से मदन की दौलत निकालोगे तो फंस ना जाओ।" नोरा ने चिन्ता जाहिर की।
"तुम्हें इन बातों की सोचने की जरूरत नहीं। ये सोचो कि तुम्हारे परिवार की जिन्दगी बेहतर बनने जा रही है।"
"तुम कर लोगे वॉल्ट वाला काम ? मुझे पता नहीं क्यों डर लग रहा है...।"
देवराज चौहान खामोशी से पलटा और ब्रीफकेस थामे बाहर निकलता चला गया। पोर्च में पहुँच कर कल वाली कार की डिग्गी में ब्रीफकेस रख कर डिग्गी बंद की, तभी प्यारेलाल पास आ पहुँचा।
"मैं अभी गाड़ी निकालता हूँ मालिक।" प्यारेलाल ने कहा।
"मैं खुद ही ड्राईव करूंगा।" देवराज चौहान ने स्टेयरिंग डोर खोलते हुए कहा।
"मेरे होते हुए आप क्यों कष्ट करते---।"
"आज मुझे ड्राईवर की जरूरत नहीं।" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला।
देवराज चौहान ने कार स्टार्ट की। तब तक दरबान गेट खोल चुका था। देवराज चौहान ने कार बैक करते हुए गेट से बाहर निकाली, फिर कार को आगे ले गया। कुछ ही पलों में वो सड़क पर था। तब देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन किया। लम्बी बैल जाने के बाद उधर से जगमोहन ने कॉल रिसीव की।
"मैं मदन के पीछे हूँ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी--- "इस वक्त वो बंगले पर है। अभी-अभी बंगले पर पहुँचा है, इससे पहले वो गोरेगाँव के एक फ्लैट में गया।" जगमोहन ने सब कुछ बताया।
"सोहनलाल से बात हुई?” सब कुछ सुनने के बाद देवराज चौहान ने पूछा।
“अभी नहीं।" उधर से जगमोहन ने कहा।
"मदन सुबह साढ़े पाँच बजे निकलकर गोरेगाँव गया और वहाँ एक फ्लैट में एक घंटा रहकर वापस लौट आया बंगले पर। इस बात के चांसिस हैं कि श्रेया को उसी फ्लैट में रखा गया हो। तुम मदन पर नजर रखो, मैं सोहनलाल से बात करता हूँ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन काटा और सोहनलाल का नम्बर मिलाया ।
फौरन ही सोहनलाल से बात हो गई।
“क्या हो रहा है उस फ्लैट पर?" देवराज चौहान ने पूछा।
“मुझे यहाँ गड़बड़ लग रही है....।” सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी।
"क्या ?”
"जब मदन फ्लैट से बाहर निकला था तो एक बदमाश जैसा आदमी उसे दरवाजे पर छोड़ने आया था। आधा घंटा पहले दूसरा बदमाश-सा दिखने वाला व्यक्ति बाहर निकला और एक तरफ चला गया। अभी-अभी वो वापस लौटा है, उसके हाथ में थमे लिफाफों में नाश्ते का सामान था। वो पास ही कहीं से नाश्ता लेकर आया है। उसके आने पर जिसने दरवाजा खोला, वो तीसरा अन्य व्यक्ति था। यानि कि फ्लैट में तीन बदमाश जैसे लोग हैं। भीतर चार या पाँच भी हो सकते हैं। ऐसे में सोचा जा सकता है कि श्रेया भीतर हो और उसे बंधक बनाकर, वे उसकी निगरानी कर रहे हों। मदन का यहाँ आना और फ्लैट में तीन बदमाशों का दिखना, ये ही जाहिर करता है।”
"कितने परसेंट चांस हैं कि श्रेया वहाँ होगी?" देवराज चौहान ने पूछा।
“सत्तर परसैंट चांस हैं इस बात के।"
“तुम वहीं रुके रहो। मैं आता हूँ। ये बताओ मुझे कहाँ पहुँचना है?"
दूसरी तरफ से सोहनलाल ने बताया कि गोरेगाँव में वो कहाँ पर मौजूद है।
देवराज चौहान ने वापस जगमोहन को फोन किया।
“मैं गोरेगाँव जा रहा हूँ। सोहनलाल का ख्याल है कि श्रेया उस फ्लैट में हो सकती है।"
“तब तो तुम फ्लैट में जाओगे।”
“हाँ.... मैं.... ।"
फ्लैट के भीतर खतरा हो सकता है। मैं भी गोरेगांव पहुँचता हूँ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।
"लेकिन मदन पर नजर रखना भी जरूरी है। क्या पता श्रेया वहाँ ना हो।"
"पर तुम अकेले हो। फ्लैट के भीतर....।"
"तुम मदन पर नजर रखो। सोहनलाल है वहाँ। हम हालातों को संभाल लेंगे।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद किया।
बहुत ही शांत अन्दाज में वो कार ड्राइव कर रहा था। चेहरे पर सोचों के भाव थे।
गोरेगाँव जाने का रास्ता पकड़ चुका था देवराज चौहान।
कार ड्राईव करते बीस मिनट ही हुए थे। इस वक्त भीड़ भरी सड़क पर से निकल रहा था कि पीछे से पुरानी सी सेंट्रो कार ने उसकी कार को ओवरटेक किया और उसके आगे आकर रुकती चली गई।
देवराज चौहान ने फौरन कार को ब्रेक मारे। सैंट्रो से टकराते-टकराते बची कार और रुक गई।
उसी पल सेंट्रो कार के पीछे के दरवाजे खुले और दो बदमाश हाथों में दो-दो ईंटें पकड़े बाहर निकले। इससे पहले देवराज चौहान कुछ समझ पाता, एक बदमाश ने पूरी ताकत से एक ईंट विंडशील्ड पर फेंकी।
'भक'
विण्डशील्ड ब्रेक होती चली गई और मकड़ी के जाले जैसी दिखने लगी।
देवराज चौहान को सामने का दृश्य दिखना बंद हो गया था।
ये सब होता पाकर आसपास का ट्रेफिक रुकने लगा।
देवराज चौहान ने रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली। तभी वो दोनों बदमाश कार के दाँये-बाँये दिखे। देवराज चौहान की एक बदमाश से नजरें भी मिलीं। तभी बदमाशों ने ईंटों से कार के पीछे के शीशे तोड़े और भागकर वापस सेंट्रो कार में बैठे तो सैंट्रो आगे को दौड़ती चली गई। सब कुछ मात्र पचास सैकिण्ड में घट गया।
देवराज चौहान ने अपनी तरफ का दरवाजा खोलकर बाहर झांका।
सैंट्रो नजर नहीं आई।
देवराज चौहान ने रिवाल्वर जेब में वापस रखी, फिर टांग को स्टेयरिंग से निकालकर, ब्रेक हो चुकी विण्डशील्ड पर मारकर उसे तोड़ा तो सामने का नजारा दिखने लगा। आगे सड़क खाली थी। देवराज चौहान ने कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा कर सड़क के किनारे खड़ी करके बाहर निकला। ट्रेफिक अब चलने लगा था। लोग उसे देख तो रहे थे परन्तु किसी ने पास आकर नहीं पूछा था कि ये सब क्यों हुआ?
देवराज चौहान कार से निकला और डिग्गी से ब्रीफकेस निकालकर पैदल ही आगे बढ़ गया। इस तरह कार के शीशों को तोड़ने का काम उसे धमकाने के लिए, डराने के लिए किया गया था और ये काम यकीनन मदन के इशारे पर किया गया था। कुछ आगे जाने पर खाली टैक्सी मिल गई। देवराज चौहान भीतर बैठा और ड्राईवर से गोरेगाँव चलने को कहा।
पाँच मिनट भी नहीं बीते थे टैक्सी को दौड़े कि मदन का फोन आ गया।
“तेरी कार को ये समझाने के लिए तोड़ा गया है कि कल का दिन बीतने पर इसी तरह श्रेया को मार दिया जायेगा।" मदन की जहर बुझी आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी--- "समझा भतीजे.... ।”
"तू मुझे डराना चाहता है, पर मैं जरा भी नहीं डरा ।” देवराज चौहान गम्भीर था।
“नहीं डरा ?”
“नहीं।”
“जल्दी डरेगा तू, जब श्रेया की लाश तेरे सामने पड़ी होगी तो तब काँप रहा होगा तू। पर ये सिलसिला रुकने वाला नहीं। उसके बाद नीरज की बारी, फिर नोरा की और तू भी जायेगा। मेरे से झगड़ा तेरे को बड़ा महंगा पड़ेगा। बंगला मेरे नाम कर दे तो सब ठीक हो जायेगा। नहीं तो भुगतेगा।"
“मैं चाहता तो तेरे भेजे दोनों बदमाशों को शूट कर सकता था....।”
“रहने दे भतीजे । माना कि तूने बढ़िया रिवाल्वर खरीद ली है। लेकिन गोली चलाना बहुत हिम्मत का काम है। उससे भी हिम्मत का काम है किसी की जान लेना। तेरे बस का कुछ नहीं है।" मदन हँस पड़ा--- “मेरे से पंगा लेता है। आज तीसरा दिन है, तेरी आँखें खोलने के लिए तेरी कार के शीशे तोड़े गये हैं। कल फिर तेरे को किसी तरह याद दिला दूंगा कि आज चौथा और आखिरी दिन है। रिवाल्वर पकड़ कर चूहा, शेर नहीं हो जाता। दिमाग में रख ले ये बात।"
"मैं सूरज नहीं सुरेन्द्रपाल हूँ।"
"भाड़ में जा । तू कोई भी हो । बंगला मेरे नाम कर वरना अन्जाम भुगतने को.....।"
"तेरे जैसा गंदा, घटिया, कमीना और बुरा इन्सान मैंने नहीं देखा जो अपनी भतीजी का अपहरण कर ले।"
“ये तो शुरूआत है, आगे देख, तुझे तो कुत्ते की मौत मारूँगा।" इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
देवराज चौहान ने फोन जेब में रखकर सिग्रेट सुलगा ली। मन में एक ही विचार उठा कि वॉल्ट में रखी मदन की दौलत पर हाथ डालकर वो कोई बुरा काम नहीं कर रहा। मदन के होश ठिकाने लगाने के लिए अब ऐसा करना जरूरी हो गया। था, परन्तु उससे पहले श्रेया को ढूँढ लेना जरूरी था।
■■■
देवराज चौहान गोरेगाँव पहुँचकर सोहनलाल से मिला। सोहनलाल को ढूँढने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई। फ्लैटों के सामने खड़ी वड़ा-पॉव की रेहड़ी से, वो बड़ा-पॉव खा रहा था।
“नाश्ता कर रहा हूँ।” देवराज चौहान को देखकर सोहनलाल मुस्कराकर बोला--- “आज ऐसा नाश्ता ही सही। वैसे सुबह भी नाश्ता किया था, परन्तु वो अधूरा छोड़ना पड़ा। क्योंकि तब मदन रैस्टोरेंट से उठकर बाहर की तरफ चल दिया था।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और सामने के फ्लैटों पर नजरें दौड़ाने लगा।
सोहनलाल ने वड़ा-पॉव के पैसे दिए और देवराज चौहान से बोला ।
"आओ।”
दोनों कुछ आगे फ्लैटों के पास पहुँचे।
देवराज चौहान ने बताया कि रास्ते में कैसे मदन ने गुण्डों से कार पर हमला करवाया।
“तुम मदन को ज्यादा छूट दे रहे हो।" सोहनलाल गुस्से से बोला--- “साले की गर्दन---।"
"मैं उसे एक ही चोट में मार देना चाहता हूँ।"
"कैसे?"
"उसका पैसा वॉल्ट से निकालकर।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्या पता, वहाँ कुछ है भी या नहीं? कहीं मदन ने पहले ही न निकाल रखा हो?"
"अगर वहाँ कुछ नहीं मिला तो तब मदन की गर्दन पकड़ी जायेगी। पहले मैं चाहता हूँ कि तोते की जान जिस अंडे में है, उस अंडे को अपने कब्जे में कर लिया जाये। परन्तु इन सब बातों से पहले श्रेया का मिलना जरूरी...।"
“वो फ्लैट देखो।" सोहनलाल कह उठा--- "नीले दरवाजे वाला। दरवाजा बंद है। दिख रहा है?”
देवराज चौहान की नजरें घूमीं और नीले दरवाजे वाले फ्लैट पर जा रुकीं। आसपास के फ्लैटों को भी देखा। पुराने हो चुके, जर्जर अवस्था में फ्लैट थे। तभी सोहनलाल ने कहा---
"मदन इसी फ्लैट में सुबह-सुबह आया था। करीब सवा घंटा भीतर रहा और दरवाजा भी बंद रहा। तब भीतर से कोई बाहर नहीं निकला था। सवा घंटे बाद मदन यहाँ से चला गया।"
“यहाँ पर मदन का इतनी देर रहना जाहिर करता है कि श्रेया यहीं पर है। फ्लैट में है।" देवराज चौहान बोला।
“मुझे भी कुछ ऐसा लग रहा है।" सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।
"फ्लैट के भीतर की क्या पोजिशन है?"
“तीन लोगों को भीतर देखा है। मैंने फ्लैट के पास जाने की चेष्टा इसलिये नहीं कि कहीं उन लोगों को शक ना हो जाये कि उन पर नजर रखी जा रही है। कहो तो मैं फ्लैट के पास....।"
“तुम्हारे पास रिवाल्वर है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"नहीं।"
"तुम्हारी कार कहाँ है, ये ब्रीफकेस रखना है।"
“मेरी कार तो मदन के बंगले से कुछ हटकर खड़ी है। मैं जगमोहन की कार में यहाँ तक आया था।"
"आओ, फ्लैट में चलते हैं।" कहकर देवराज चौहान आगे बढ़ गया--- "मेरा ब्रीफकेस पकड़ लो।"
सोहनलाल ने ब्रीफकेस पकड़ लिया।
“मैं तुम्हें रिवाल्वर दूंगा। परन्तु किसी की जान नहीं लेनी है। यहाँ जो लोग भी हैं, मामूली बदमाश हैं और पैसे लेकर काम करते हैं। ऐसे लोगों की जान लेने का कोई फायदा नहीं है।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम्हारे पास दो रिवाल्वर हैं?" सोहनलाल ने पूछा।
"एक ही है....उससे हम दोनों का काम चल जायेगा।"
"उन बदमाशों के पास रिवाल्वर हो सकती है, वो फायर कर सकते हैं।" सोहनलाल बोला।
"आते रहो। मैं उन्हें फायर करने का मौका नहीं देने वाला।"
दोनों दरवाजे पर पहुँचे।
देवराज चौहान ने जोरों से फ्लैट का दरवाजा थपथपाया। भीतर से कोई आवाज नहीं उभरी। चुप्पी ही ठहरी रही।
देवराज चौहान ने पुनः दरवाजा थपथपाया।
"कौन है?" भीतर से आवाज उभरी।
“पुलिस।" देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला--- "दरवाजा खोलो।"
जवाब में भीतर से कोई स्वर नहीं उभरा।
देवराज चौहान और सोहनलाल की नजरें मिलीं।
“श्रेया भीतर ही है। ना होती तो फौरन दरवाजा खोला जाता।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने पुनः दरवाजा थपथपाया।
उसी पल भीतर से दरवाजा खोले जाने का स्वर उभरा।
देवराज चौहान का हाथ अपनी जेब पर पहुँच गया।
दरवाजा खुला। बदमाश टाईप व्यक्ति का चेहरा दिखा।
देवराज चौहान ने तुरन्त रिवाल्वर निकाली और नाल उसके पेट से सटाकर, उसे धकेलता भीतर लेता चला गया। सोहनलाल ने फौरन भीतर आकर दरवाजा बंद किया।
कमरे में एक और बदमाश खड़ा था ।
“कौन हो तुम लोग? पुलिस तो नहीं लगते।”
तभी देवराज चौहान ने अपने पास मौजूद बदमाश की कनपटी पर जोरों का घूंसा मारा। वो कराह उठा कि देवराज चौहान ने तेजी से एक के बाद एक दो घूंसे और उसकी कनपटी पर जड़ दिए। वो कराह भी नहीं सका। उसकी चेतना लुप्त हो गई और वो नीचे गिरता चला गया।
ये होते देखकर उसका साथी देवराज चौहान की तरफ लपका।
देवराज चौहान ने हाथ में थमी रिवाल्वर सोहनलाल की तरफ उछाल दी।
सोहनलाल ने हवा में ही रिवाल्वर थाम ली ।
पास पहुँच चुके उस बदमाश के पेट में देवराज चौहान ने जोरों का घूंसा मारा। वो हल्की-सी चीख के साथ पेट थामे दोहरा हुआ तो देवराज चौहान ने अपने दोनों हाथ बांधकर उसकी गर्दन पर मारे। वो धड़ाम से पेट के बल नीचे जा गिरा।
देवराज चौहान ने उसके सिर के बाल मुट्ठी में थामे और झुकता हुआ गुर्रा उठा---
"लड़की कहाँ है?"
“क- कौन लड़की?” वो फंसे स्वर में बोला।
“श्रेया। आज सुबह मदन भी यहाँ आया था श्रेया को देखने। बोलो वरना..... ।”
“उधर....दूसरे कमरे में....।" बदमाश गहरी साँस लेता कह उठा।
देवराज चौहान की निगाह पास ही दरवाजे की तरफ उठी ।
“श्रेया के साथ कितने लोग हैं?” देवराज चौहान गुर्राया ।
“ए-क....।"
तभी देवराज चौहान ने उसकी कनपटी पर घूंसा मारा। वो तड़प कर बेहोश होता चला गया।
देवराज चौहान सीधा खड़ा हुआ।
सोहनलाल तब तक ब्रीफकेस फर्श पर रखकर, रिवाल्वर थामें दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गया था।
भीतर जो तीसरा बदमाश था, वो अब तक जान गया होगा कि इस कमरे में क्या हो रहा है। उसने अवश्य इस बात की तैयारी कर ली होगी कि उसने क्या करना है। सोहनलाल हालातों को बाखूबी समझ रहा था।
सोहनलाल दरवाजे की चौखट पर पहुँचा।
भीतर सन्नाटा-सा महसूस हुआ।
वो जरा सा आगे सरका और कमरे में कदम रख दिया। तब श्रेया भी दिखी, वो बदमाश भी दिखा। सोहनलाल ठिठक गया। बदमाश ने श्रेया को एक बाँह की गिरफ्त में बांध रखा था और दूसरे हाथ में दबी रिवाल्वर की नाल श्रेया के सिर से लगा रखी थी। श्रेया का चेहरा फक्क पड़ा हुआ था। दोनों दीवार के साथ लगे खड़े थे। बदमाश भी कुछ घबराहट में लग रहा था।
“आगे मत बढ़ना।" बदमाश गुर्रा उठा--- “रिवाल्वर फेंक दो, वरना मैं इस लड़की को मार दूंगा।"
सोहनलाल रिवाल्वर उसकी तरफ ताने खड़ा रहा। माथे पर बल आ गये थे।
"रिवाल्वर नीचे गिरा दो ।" बदमाश पुनः उसी लहजे में बोला।
तभी देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया।
“भैया.... ।" उसे देखते ही श्रेया डरे स्वर में कह उठी--- "मुझे बचा लो....।”
"फिक्र मत कर। तेरे को कुछ नहीं होगा चिंकी।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा--- फिर बदमाश से बोला--- "क्या चाहता है तू?”
“आगे बढ़े तो मैं इसे गोली मार दूंगा।" बदमाश जल्दी से बोला।
“उसके बाद तेरा क्या होगा?” देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा--- “तू लड़की को गोली मारेगा, हम गोलियों से तेरा शरीर छलनी कर देंगे। तू तो मर गया ना। क्या मिला तेरे को?"
बदमाश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
“लड़की को छोड़ दे।” देवराज चौहान बोला ।
"नहीं।”
“हम तेरे को कुछ नहीं कहेंगे ।"
“तुम..... तुम दोनों ने मेरे साथियों के साथ क्या किया है?" वो घबराये स्वर में बोला।
“बेहोश हैं दोनों। आधे घंटे में होश में होंगे। छोड़ लड़की को।”
कुछ सोचकर बदमाश बोला---
“मुझे जाने दो।”
“जाओ। लड़की को छोड़ो और जाओ।”
“लड़की मेरे साथ दूसरे कमरे तक जायेगी, ताकि मैं यहाँ से बाहर निकल सकूँ।" बदमाश बोला।
"ठीक है।"
“दरवाजे से हट जाओ ताकि मैं लड़की के साथ बाहर निकल सकूं।"
"देवराज चौहान और सोहनलाल एक तरफ हो गये।
बदमाश, श्रेया को उसी प्रकार थामें, रिवाल्वर पर रखे दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा।
"इस काम के लिए मदन ने कितने नोट दिए?" देवराज चौहान ने पूछा।
बदमाश ने कोई जवाब नहीं दिया। धीमे-धीमे आगे बढ़ता वो श्रेया को लपेटे में लिए दरवाजे से बाहर आ गया। वहाँ अपने साथियों को बेहोश पड़े देखा तो और भी घबरा गया।
देवराज चौहान और सोहनलाल भी दूसरे कमरे में आ गये।
बदमाश श्रेया को दरवाजे तक ले गया। दरवाजा खोला, फिर श्रेया को वहीं छोड़कर बाहर भागता चला गया।
"भैया....।" श्रेया की आँखों में आँसू आ गये। वो दौड़ी और देवराज चौहान की छाती से आ लगी।
"सब ठीक हो गया चिंकी।" देवराज चौहान ने उसके सिर पर हाथ फेरा--- "अब डरने की कोई जरूरत नहीं।"
सोहनलाल ने ब्रीफकेस उठाया और रिवाल्वर देवराज चौहान को वापस दी।
तीनों बाहर आ गये। देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन करके बताया कि श्रेया मिल गई है। जगमोहन को अंधेरी में मिलने को कहा। उसके बाद वे टैक्सी लेकर अंधेरी ईस्ट पहुँचे तो जगमोहन को वहाँ इन्तजार करते पाया।
श्रेया अब बेहतर थी। उसका डर कम हो गया था।
श्रेया को देखकर जगमोहन खुश हुआ कि वो मिल गई है। देवराज चौहान ने जगमोहन को आज सुबह हुए गाड़ी पर हमले और मदन का फोन आने के बारे में बताया। सुनकर जगमोहन गुस्से से भर उठा।
"खुद को सामान्य रखो।" देवराज चौहान बोला--- "मैं मदन को उसकी हर हरकत का जवाब देने वाला हूँ।"
"वॉल्ट पर हाथ डालकर ?" जगमोहन ने गहरी साँस ली।
"हाँ। तुम श्रेया को बंगले पर छोड़ दो। बंगले के बाहर उतार देना और देखना कि ये बंगले में चली जाये।"
"आप साथ में क्यों नहीं आ रहे भैया?" श्रेया कह उठी।
"मुझे कहीं जरूरी काम से जाना है चिंकी। शाम को मैं बंगले पर आऊँगा।" फिर देवराज चौहान जगमोहन से बोला--- "सोहनलाल मेरे साथ रहेगा। तुम ये काम करके अपने बंगले पर चले जाना।"
जगमोहन श्रेया के साथ कार में चला गया।
"मुझे अपनी कार उठानी है, जो कि मदन के बंगले से कुछ दूर खड़ी है।" सोहनलाल ने कहा।
"चलो।" देवराज चौहान ने टैक्सी की तलाश में नजरें दौड़ाईं--- "उसके बाद मैं तुम्हारे फ्लैट पर चलूंगा। तुम्हें तैयार होकर बढ़िया कपड़े पहनकर, जरूरी कागजात लेकर मेरे साथ लक्ष्मीचंद वॉल्ट पर चलना है। हम वहाँ केबिन किराये पर लेने जा रहे हैं। तुम मेरे पार्टनर के तौर पर साथ रहोगे। उनसे कहा जायेगा कि केबिन हम दोनों के ज्वाईंट नाम पर लेना है।"
सोहनलाल ने सिर हिला दिया।
टैक्सी मिली तो आधे घंटे में वे मदन के बंगले के पास जा पहुँचे।
वहाँ से सोहनलाल ने अपनी कार उठाई, जो सड़क किनारे फुटपाथ पर चढ़ी खड़ी थी । देवराज चौहान ब्रीफकेस संभाले बगल में बैठा। कार दौड़ा दी सोहनलाल ने ।
देवराज चौहान ने फोन निकाला और मदन को फोन किया।
मदन की आवाज फौरन कानों में पड़ी---
“श्रेया को ले जाकर तू क्या सोचता है कि तू बच जायेगा? मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं कमीने।”
“तूने जो करना था, अब तक कर लिया। अब ये देख मैं क्या करता हूँ।”
“तू मेरा क्या बिगाड़ सकता है? श्रेया को ढूँढ लिया तो अपने को बहुत बड़ा उस्ताद समझने लगा। कान खोलकर सुन ले--- मैं तेरा और तेरे परिवार का जीना हराम कर दूंगा। मुझे हैरानी है कि तुमने श्रेया को कैसे ढूँढ---।"
“अभी तो तेरे को और भी बहुत हैरानियों का सामना करना है। मैंने तेरे से कई बार कहा है कि मैं सूरज नहीं....!”
“भाड़ में जा तू जो भी हो। वो बंगला मेरा है, मेरे हवाले कर दे, वरना---।"
“तूने अब तक जो किया है, तेरे को जल्दी ही उसका जवाब मिलने वाला है।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा--- "तुझे आज तक इस बात का जरा भी एहसास नहीं हो पाया कि तू किससे झगड़ रहा है।"
“बहुत लम्बी हो गई है तेरी जुबान। मैं अब तेरे को बताऊँगा कि मैं क्या कर सकता हूँ।" इतना कहने के साथ ही उधर से मदन ने फोन बंद कर दिया था।
“क्या बोला वो?” सोहनलाल ने पूछा!
“उसे खुद नहीं समझ आ रहा है कि वो क्या कहे। श्रेया के हाथ से निकल जाने से उसे बहुत तकलीफ हो रही है।"
"उसने तो सोच रखा होगा कि कल चौथा दिन है, तुम मजबूर होकर बंगला उसके नाम कर दोगे।"
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा कर कहा---
"मदन को तगड़ी चोट मिली है। गुस्से में वो कुछ भी कर सकता है। हमें सावधान रहना होगा।" सोहनलाल बाला।
■■■
देवराज चौहान और सोहनलाल दोपहर सवा तीन बजे दादर में, लक्ष्मीचंद प्राईवेट वाल्ट में पहुँचे। सोहनलाल कीमती कपड़ों में था। शेव कर रखी थी। हाथ में ब्रीफकेस था। वो किसी बड़े बिजनेसमैन की तरह लग रहा था। बाहर खड़े गनमैन ने देवराज चौहान को देखकर भीतर जाने दिया था, क्योंकि वो परसों भी आया था। भीतर वाले गनमैनों में से एक ने उन दोनों को ऑफिस में छोड़ दिया।
ऑफिस में सावंत मौजूद था।
देवराज चौहान ने सावंत से हाथ मिलाया और सोहनलाल का परिचय अपने पार्टनर के तौर पर दिया।
सावंत ने सोहनलाल से भी हाथ मिलाया और कुर्सियों की तरफ बैठने का इशारा किया।
दोनों बैठे। देवराज चौहान ने आसपास देखते हुए कहा---
“दीपक साहब आज नहीं हैं क्या?"
"हैं। कस्टमर के साथ वॉल्ट के भीतर गये हैं। अभी आ जायेंगे।” सावंत बोला--- “आपका कैसे आना हुआ?"
"केबिन किराये पर लेना है, आपसे कहा तो था एक-दो दिन में आऊँगा। चाईना जाने से पहले कम्पनी का कुछ कीमती सामान यहाँ केबिन में रख कर जाना चाहता हूँ।" देवराज चौहान ने मुस्कराकर सामान्य स्वर में कहा।
“क्यों नहीं, हमारी फॉरमेल्टीज पूरी करके आप केबिन ले सकते हैं।"
“मैं सब पेपर्स लाया हूँ, आप देखना चाहेंगे?"
“दिखाईये।”
देवराज चौहान ने सोहनलाल से ब्रीफकेस लिया और उसे खोलकर भीतर से फाईल निकाली। साथ ही जानबूझ कर ब्रीफकेस में ढूंस रखे नोटों की गड्डियों की झलक सावंत को दिखाई कि उसे लगे पार्टी मोटी है।
फाईल सावंत के हाथ में पहुँची कि सोहनलाल बोला---
“आपके वॉल्ट में रखा सामान सुरक्षित रहेगा ना ?"
"सौ प्रतिशत जनाब। हमारा काम ही यही है कि कस्टमर के सामान को सुरक्षित रखना।" सावंत ने फाईल खोलते हुए मुस्करा कर कहा--- "हम जानते हैं कि प्राईवेट वॉल्ट में ही बड़े-बड़े लोग अपना कीमती सामान रखते हैं।"
सोहनलाल सिर हिलाकर रह गया।
सावंत फाईल में लगे पेपरों को चैक करने लगा।
दस मिनट बाद वॉल्ट का मैनेजर दीपक महावत आ गया। उसके साथ एक और व्यक्ति था। जो कि विदा लेकर चला गया। दीपक महावत ने दोनों से हाथ मिलाया।
देवराज चौहान ने उसे बताया कि मिस्टर सोहनलाल इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट हाऊस में उसके पार्टनर हैं।
सावंत ने फाईल को दीपक महावत की तरफ बढ़ाते कहा---
“चैक कर लीजिये महावत साहब।"
दीपक महावत पेपर्स को चैक करने लगा। उसके बाद बोला---
“ये आप दोनों के पेपर्स हैं, ठीक हैं, परन्तु इसमें पिछले पाँच साल की आप दोनों की इन्कमटैक्स रिटर्न नहीं है?"
“हमारा चार्टर्ड एकाऊंटैंट अपने परिवार के साथ सिंगापुर घूमने गया हुआ है। सप्ताह तक वो आ जायेगा। आपको रिटर्न की कापी सप्ताह-दस दिन बाद दे देंगे। इस पर तो एतराज नहीं होना चाहिये आपको?” देवराज चौहान ने कहा ।
“कोई बात नहीं। आप पन्द्रह दिन तक रिटर्न के पेपर्स हमें दे दीजियेगा।” दीपक महावत बोला--- “आपको मैंने बताया था। कि सिक्योरिटी के तौर पर पाँच लाख रुपया आपको एडवांस में जमा कराना होगा। जब आप केबिन खाली करेंगे तो आपको मिल जायेगा.... और साल भर का एडवांस लेने का नियम है हमारा।"
“पैसा मैं अपने साथ लाया हूँ।" देवराज चौहान ने पुनः ब्रीफकेस खोला। हजार-हजार के नोटों की पाँच गड्डियाँ निकालकर टेबल पर रखीं और साल का एडवांस किराया भी दिया।
"सुरेन्द्रपाल जी।" दीपक महावत टेबल की ड्राज से एक फार्म निकाल कर बोला--- “ये आपको और सोहनलाल जी को भरना है। दोनों के हस्ताक्षर चाहिये....।"
अगले एक घंटे में केबिन किराये पर लेने की सारी फारमेल्टीज पूरी हो गई।
"अब हम वो केबिन देख सकते हैं जो हमें दिया जा रहा है?" देवराज चौहान बोला।
"क्यों नहीं। मैं अभी आप दोनों को वॉल्ट में लिए चलता हूँ।" दीपक महावत ने कहा।
पन्द्रह मिनट में वे दोनों महावत के साथ वॉल्ट के भीतर थे। उन्हें 15 नम्बर केबिन दिया गया था। उस केबिन को महावत ने खोलकर दिखाया, वो छः फीट लम्बा और चार फीट चौड़ा था। देवराज चौहान ने महावत को बातों में लगा लिया और सोहनलाल ने वॉल्ट के लॉक को चैक किया। इस तरह कि महावत ये बात नहीं भांप सका। इसके बाद केबिन की चाबी उन्हें दे दी गई। देवराज चौहान ने कहा कि वे कल आकर वॉल्ट में सामान रख जाएंगे। जब देवराज चौहान-महावत बातों में व्यस्त थे तो सोहनलाल ने वहाँ के केबिन नम्बरों पर नजर मारी थी और उसने मदन वाला 112 नम्बर केबिन भी देख लिया था, जो कि सामने से पीछे वाली लाईन में मौजूद था। जब वे वॉल्ट से बाहर निकले तो शाम के पाँच बज रहे थे।
"केबिन के लॉक को अच्छी तरह चैक किया?" देवराज चौहान ने कार में बैठते हुए पूछा।
“हाँ! उसे खोलना हर किसी के बस का नहीं, पर मैं दस मिनट में खोल लूंगा।" सोहनलाल ने कहा।
“हम कल फिर वॉल्ट में सामान रखने के बहाने आएंगे, तुम्हें उस लॉक को खोलने के लिए जिस सामान की जरूरत हो, उसे कल ही ले आना। उसे हम अपने केबिन में रख देंगे।" देवराज चौहान बोला ।
“काम कब करना है?” सोहनलाल ने पूछा।
"अगर कल मौका लगा तो कल ही कर देंगे।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।
“कल कैसे?”
"दस मिनट तुम लॉक खोलने में लोगे।" देवराज चौहान बोला--- “पन्द्रह से बीस मिनट चाहिए हमें, मदन का केबिन खाली करके, उसका सामान अपने केबिन में रखने में....।"
“तो क्या सामान निकालकर, अपने केबिन में रखोगे?"
“हाँ! एकदम वहाँ से सामान को वापस ले जाना, वॉल्ट वालों के दिमाग में संदेह खड़ा कर सकता है। मदन के केबिन में रखी दौलत हमारे केबिन में पहुँच गई तो, उसके मालिक हम बन गए। ये डकैती इसी तरह से सुरक्षित रहेगी। उसके बाद हम कभी भी आकर दौलत को अपने केबिन से निकालकर ले जा सकते हैं।"
"ये आईडिया अच्छा है।" सोहनलाल ने कार स्टार्ट करते हुए कहा।
"पर ये सब कुछ वॉल्ट वालों पर निर्भर है कि हमें आधा घण्टा वॉल्ट के भीतर, केबिन के पास रहने दें।"
“वो रहने नहीं देंगे क्या?"
"मेरे ख्याल में इस बात की भी समय-सीमा होती होगी कि कस्टमर कितनी देर वॉल्ट के भीतर रह सकता है। इस बारे में जब कल यहाँ आएंगे, तो तब बात की जाएगी। जैसे भी हो, आधे घण्टे का वक्त तो हमें भीतर रहने के लिए लेना ही होगा।"
■■■
देवराज चौहान को सोहनलाल बंगले के बाहर छोड़ गया था। देवराज चौहान गेट के पास पहुँचा तो उसे देखते ही दरबान ने विकेट गेट खोल दिया। देवराज चौहान भीतर प्रवेश करके पोर्च में जा पहुँचा। वहाँ रतन सिंह दिखा।
“मालिक, नमस्कार।” रतन सिंह ने फौरन कहा।
“रतन सिंह....।” देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा--- "जो गाड़ी मैं सुबह ले गया था, उसके शीशे कुछ शरारती लोगों ने तोड़ दिए हैं।" इसके साथ ही देवराज चौहान ने बताया कि कार कहाँ पर खड़ी है--- “गाड़ी को वहाँ से उठाकर, वर्कशाप में ठीक करने को दे दो।"
“मैं अभी जाता हूँ मालिक....।"
देवराज चौहान बंगले के भीतर प्रवेश कर गया। कुछ आगे गया तो बाबू निकला।
“मालिक....मालिक।” बाबू प्रसन्नता भरे स्वर में कहता करीब आ पहुँचा--- "चिंकी बेबी आ गई हैं।"
देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“आपने उसे ढूंढ निकाला। इस घर को तो जैसे किसी की नजर लग गई है।"
“सब ठीक है, मेरे लिए एक कॉफी ले आओ ऊपर....।"
“जी मालिक। आपके ससुर साहब कुछ देर पहले ही आए हैं।" बाबू ने बताया।
"कहाँ ?”
"ऊपर आपके बैडरूम में ही हैं।"
देवराज चौहान सिर हिलाकर आगे बढ़ गया।
बाबू वहीं खड़ा देवराज चौहान की पीठ को देखता रहा। जब देवराज चौहान नजरों से ओझल हो गया, तो उसके होंठों के बीच छोटी-सी मुस्कान उभरी, अर्थपूर्ण, बहुत कुछ कह रही थी वो मुस्कान ।
"सब ठीक ही तो चल रहा है।" बाबू बड़बड़ा उठा।
बाबू किचन में पहुँचा।
भानू किचन में मौजूद था।
“पांडे ।" बाबू ने कहा--- "देवराज चौहान के लिए कॉफी बना दे।"
भानू उर्फ पांडे ने बाबू को देखा, फिर खामोशी से कॉफी बनाने लगा।
देवराज चौहान ने दरवाजा धकेलकर बैडरूम में प्रवेश किया। कमरे में नोरा, श्रेया और सुन्दरलाल जी मौजूद थे। वे सब खुश नज़र आ रहे थे। नोरा का चेहरा चमक रहा था। चिंकी, जो कि सुबह डरी हुई और रंग उड़ा लग रहा था, अब सामान्य थी, खुश थी।
"भैया!” देवराज चौहान को देखते ही श्रेया कुर्सी से उठकर देवराज चौहान की तरफ दौड़ी और उसके सीने से लग गई।
देवराज चौहान ने मुस्कुराकर उसके सिर पर हाथ फेरा और बोला---
“अब मेरी बहन कैसी है?"
श्रेया सुबक उठी।
“ये क्या.... ।” देवराज चौहान ने उसे अलग किया--- "अब रोने की जरूरत कहाँ है।"
“अगर आप ना होते भैया तो जाने मेरा क्या हाल होता।" श्रेया ने भीगे स्वर में कहा।
“ऐसी बातें नहीं करते। मैं क्यों नहीं होता?" देवराज चौहान ने उसका गाल थपथपाया।
श्रेया वापस कुर्सी पर जा बैठी। गीली आँखों को साफ किया।
“बेटा सूरज....।" सुन्दरलाल जी कह उठे--- “यहाँ इतना कुछ हो गया और मुझे किसी ने कुछ बताया भी नहीं। मुझे बताते तो सही....। मैं कुछ कर नहीं सकता था, कम-से-कम पास आकर तो खड़ा हो सकता था। श्रेया के आ जाने के बाद नोरा ने मुझे. फोन करके सब कुछ बताया। मुझे कुछ ना बताकर, तुम दोनों ने गलत किया।"
"मैं बहुत व्यस्त रहा।" देवराज चौहान ने आगे बढ़कर कुर्सी संभाल ली--- "मैं सिर्फ श्रेया को बचाने की सोच रहा था, इसके अलावा किसी भी तरफ मेरा ध्यान नहीं था।"
“जितना सोचा था, मदन उससे भी कमीना निकला।" सुन्दरलाल जी ने गुस्से से कहा।
“वो अब चैन से नहीं बैठेगा।” नोरा बोली--- "कोई बड़ी हरकत करने की कोशिश करेगा।"
“अब वो कुछ नहीं कर सकेगा।" देवराज चौहान बोला।
“क्यों?”
“क्योंकि अब मैं उसके खिलाफ जो कुछ करूंगा, वो उसी में व्यस्त हो जाएगा। मदन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा....तो ऐसे में कुछ करके उसे व्यस्त करना जरूरी हो गया है।" देवराज चौहान ने कहा।
“तुम क्या करने वाले हो?" नोरा कह उठी।
देवराज चौहान ने नोरा को देखा। कहा कुछ नहीं।
“तुम कुछ गलत मत कर बैठना। कहीं हमारा जीना दूभर ना हो जाए। मैं इस तरह डर कर नहीं रहना चाहती कि हर वक्त ये ही सोचती रहूँ कि अब मदन कुछ कर देगा। मैं तो कहती हूँ कि मदन को बंगला देकर, इस मुसीबत को ....।"
“नहीं।” सुन्दरलाल जी तेज स्वर में कह उठे--- “सूरज, मदन को बंगला कभी मत देना। उसे सबक सिखाने की जरूरत है। नोरा कितना भी कहे, इसकी बात कभी मत मानना।"
“पर पापा....।”
“नहीं नोरा। मुझे तुम्हारी बात मंजूर नहीं। मदन के आगे झुकना मुझे पसन्द नहीं। अब ज्यादा कुछ नहीं कर सका तो उसने श्रेया का अपहरण कर लिया। ये नीचता दिखाई उसने। मैं....।"
“मैं मदन को कुछ नहीं देने वाला।" देवराज चौहान कह उठा ।
“शाबाश बेटा ।” सुन्दरलाल जी का स्वर सख्त था--- “मेरी मानो तो मदन के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखा दो।”
“मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा....।"
उसके बाद सुन्दरलाल जी विदा लेकर चले गए।
देवराज चौहान ने श्रेया से पूछा---
"मदन ने कैद के दौरान तुम्हे कोई परेशानी तो नहीं दी?"
"नहीं भैया। उसके बदमाशों ने हर तरह से मेरा ध्यान रखा।"
"चिंकी तुम जरा अपने कमरे में जाओ। तुम्हारे भैया से मैंने कुछ बात करती है।" नोरा गंभीर स्वर में बोली।
"जाऊँ भैया?” श्रेया ने भोलेपन से पूछा।
"हाँ! रात का खाना हम इकट्ठे ही खाएंगे।" देवराज चौहान ने मुस्कुरा कर कहा।
श्रेया बाहर निकल गई।
"पापा ठीक कहते हैं, तुम पुलिस में मदन के खिलाफ रिपोर्ट क्यों नहीं लिखा देते?" नोरा ने कहा।
“तुमसे पहले भी कह चुका हूँ कि मैं पुलिस के पास नहीं जा सकता, जो करना है, मुझे खुद ही करना है।"
“बताओगे नहीं, क्यों?"
"नहीं बता सकता।"
"श्रेया को वापस ले आने के लिए शुक्रिया। मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि श्रेया घर वापस आ गई है।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
तभी दरवाजे पर थपथपाहट पड़ी। इजाजत लेकर बाबू भीतर आया और देवराज चौहान के सामने कॉफी का प्याला रखकर चला गया। देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरकर नोरा को देखा।
“तुम कह रहे थे, मदन के खिलाफ क्या करने वाले हो?" नोरा देवराज चौहान के सामने आ बैठी।
देवराज चौहान ने कॉफी का दूसरा घूंट भरा।
“जवाब दो। मैं नहीं चाहती कि तुम ऐसा कुछ करो कि मेरा परिवार मुसीबत में पड़ जाए ।"
“इस परिवार का पचास करोड़, जो कि मदन के वॉल्ट के केबिन में है, वो तुम लोगों को दिलवाने वाला हूँ।"
“क्या?” नोरा चौंकी, कुछ बेचैन दिखी--- "क-कैसे?"
“इस काम को पूरा करना, मेरा काम है।"
“तुम....तुम उस वॉल्ट में चोरी करने वाले हो?"
देवराज चौहान ने हाँ में सिर हिला दिया।
“फ-फंस जाओगे। ये मत करो। तुम फंस गए तो....तो....।"
“मुझे मेरा काम करने दो। सब चिन्ता मुझ पर छोड़ दो। जब मैं ऐसा कर दूंगा तो मदन के होश उड़ जाएंगे वो समझ भी नहीं सकेगा कि ये काम मेरा है। बंगला भूलकर अपनी दौलत की तलाश में लग जाएगा। इधर से उसका ध्यान बंट जाएगा। तुम लोगों को पचास करोड़ भी मिल जाएगा और उधर मदन का ध्यान दूसरी तरफ चला जाएगा।"
"ज-जाने क्यों मुझे डर लग रहा है।" नोरा सूख रहे होठों पर जीभ फेरकर बोली।
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा।
“त-तुम कब ये काम करने वाले हो?" नोरा परेशान-सी कह उठी।
"शायद कल ही हो जाए।"
"कल?" नोरा ने उसी पल अपने दिल पर हाथ रखा। चेहरे पर घबराहट आ गई।
"इस काम की मैं तैयारी कर चुका हूँ और....।"
“तुम आखिर हो कौन? अपने बारे में बताते क्यों नहीं?" नोरा कह उठी।
“बताने की जरूरत नहीं, क्योंकि अब मेरा जाने का वक्त आ गया है।" देवराज चौहान बोला।
"जाने का वक्त ?”
"इस परिवार को बचाने की खातिर मैं कई दिन से यहाँ रह रहा हूँ। जल्दी ही तुम लोगों के हवाले वो पचास करोड़ भी कर दूंगा जो मदन ने दबा रखा है। उसके बाद मेरे यहाँ रहने की जरूरत नहीं....।”
“पर मदन हमें फिर तंग....।"
“सूरज को अब यहाँ आ जाना चाहिए। उसे पुलिस के पास जाना चाहिए। मदन के खिलाफ रिपोर्ट लिखाए। उस पर केस करे। ऐसे में मदन कुछ नहीं कर सकेगा, आगे जो करना है, सूरज ने ही करना है।"
“लेकिन सूरज है कहाँ, वो तो...।"
“ये अब सुरज पर निर्भर है कि वो यहाँ आता है कि नहीं--- वो... उसने मुझे कहा था कि श्रेया के मिल जाने के बाद वो मुझसे मिलेगा। सूरज मिला तो मैं उसे घर वापस आने के लिए कहूंगा।" देवराज चौहान ने कहा। कॉफी समाप्त की और सिगरेट सुलगा ली। चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था।
“तुमने श्रेया को कैसे ढूंढा ?"
“मैंने नहीं, मेरे दोस्तों ने ढूंढा ।"
“इतनी बड़ी मुम्बई में श्रेया को ढूंढ लेना हैरानी की बात नहीं तो और क्या है।"
“मदन कच्चा खिलाड़ी है। ये काम जरा भी कठिन नहीं रहा ।"
“श्रेया बता रही थी कि तुमने और तुम्हारे साथी ने कैसे बदमाशों का मुकाबला.... ।”
तभी देवराज चौहान का फोन बज उठा ।
देवराज चौहान ने बात की। दूसरी तरफ सूरज था।
“आज मैं बहुत खुश हूँ।" उसकी आवाज सुनते ही उधर से सूरज ने कहा--- “तुमने चिंकी को बचा लिया। मेरी जान में जान आ गई, वरना मैं तो चिंता में मरा जा रहा था कि चिंकी वापस घर आ भी पाएगी या नहीं। मैं तो.... ।”
“चिंकी घर आ चुकी है।"
“मालूम है। मुझे समझ में नहीं आता कि तुम्हारा एहसान कैसे चुका पाऊँगा मैं?”
"तुमने कहा था जब चिंकी आ जाएगी तो मुझसे मिलोगे।”
“हाँ! जरूर मिलूंगा! मैं खुद भी तुमसे मिलना चाहता हूँ।" उधर से सूरज ने गहरी सांस लेकर कहा।
देवराज चौहान अपनी ही आवाज को उधर से आती सुन रहा था।
“तुम्हें आज ही मिलना चाहिए।"
“आज? नहीं, आज नहीं। अभी नहीं, मुझे तीन-चार दिन का वक्त दो....।”
“तुम्हारे पापा ने मदन के वॉल्ट में कितनी दौलत रखी थी?”
“करीब पचास करोड़। पापा ने इतना ही बताया था। पर वो तो मदन वापस देने को तैयार ही नहीं....।”
“कल-परसों में तुम्हें वो पैसा भी मिल जाएगा।” देवराज चौहान का स्वर शांत था।
“क-कैसे?” उधर से सूरज की हैरानी भरी आवाज सुनाई दी।
“इसका जवाब तुम्हें नोरा दे देगी। तुम्हें अब घर वापस आ जाना चाहिए।" देवराज चौहान ने कहा।
“हाँ! मैं भी यही सोच रहा हूँ कि मुझे घर आना है।" सूरज का गंभीर स्वर कानों में पड़ा--- “अगर तुम मुझे वो पचास करोड़ दिला देते हो तो....तो मेरी जिन्दगी संवर जाएगी। मेरा परिवार भी खुश रहेगा। उसमें से मैं तुम्हें भी कुछ दूंगा।"
“मुझे कुछ नहीं चाहिए।"
"नहीं चाहिए! लेकिन....।”
"नोरा से बात करो, वो चाहती है तुम जल्दी से उसके पास आ जाओ।”
देवराज चौहान ने नोरा की तरफ फोन बढ़ाया।
नोरा जैसे इसी इन्तजार में थी। फोन लेकर बेसब्री सूरज से बातें करने लगी।
बाबू किचन में टहल रहा था। कानों में ईयरपिन लगी थी, जिसके सहारे वो बैडरूम में होने वाली सारी बातचीत सुन रहा था। नोरा जब फोन पर सूरज से बातें करने लगी, उसने कान से ईयरपिन निकाल कर उसे जेब में रखा, उसकी तार भी जेब में डाल ली, फिर ठिठककर जेब से विदेशी सिगरेट का पैकिट निकाला और सिगरेट सुलगाई।
किचन में भानू उर्फ पांडे और प्रेमवती बैठे उसे देख रहे । बाबू दोनों को देखकर मुस्कुराया ।
“क्या हुआ नारंग साहब?" प्रेमवती ने पूछा। इस वक्त उसका लहजा पढ़े-लिखों की तरह था।
“जो मैं चाहता था, वो ही होने जा रहा है। नोरा को इस बात के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।" नारंग कह उठा।
“क्या होने जा रहा है?" प्रेमवती ने पुनः पूछा।
“मैरी!” नारंग उर्फ बाबू ने कहा--- “कल या परसों देवराज चौहान वॉल्ट में डकैती करने जा रहा है। मुझे इसी बात का इंतजार था। मेरी मेहनत सफल होने जा रही है। ये गेम शानदार रही। मैं अपने को शाबाशी देता हूँ कि.... ।”
“नारंग साहब, इतना खुश होने की जरूरत नहीं। अभी कुछ भी नहीं हुआ।” भानू उर्फ पांडे ने कहा।
“स्पष्ट कहो, क्या कहना चाहते हो?”
“देवराज चौहान अभी सफल नहीं हुआ। जब वो सफल हो जाए, तभी आपको खुश होना चाहिए।”
“देवराज चौहान को जानते हो?” बाबू उर्फ नारंग की आँखों में चमक थी--- “वो हिन्दुस्तान का माना हुआ नम्बर वन डकैती मास्टर है। लक्ष्मीचंद प्राईवेट वॉल्ट उसके लिए मामूली वॉल्ट है, जहाँ से वो मदन की सारी दौलत केबिन से निकाल सकता है। देवराज चौहान के लिए ये काम बहुत आसान है। बहुत ही आसान--- मैंने देवराज चौहान के बारे में बहुत कुछ जाना है, तभी मैंने अपनी प्लानिंग को अंजाम दिया। सोमनाथ नारंग कभी भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेलता।"
"मुझे तो उस पैसे से मतलब है, जो आपने मुझे देने का वादा किया था।" मैरी गंभीर स्वर में कह उठी।
"तुम्हारा पचास लाख, तुम्हें मिलेगा मैरी। देवराज चौहान हमारे लिए डकैती कर रहा है और कल या परसों पैसा आ जाएगा। फिर ये सारा खेल पूरा हो जाएगा। नारंग की गेम ओवर हो जाएगी। देवराज चौहान देखता ही रह जाएगा।"
"देवराज चौहान जैसा इन्सान खतरनाक होगा।" भानू उर्फ पांडे बोला।
“मुझे तो नहीं लगता।" मैरी बोली--- “शरीफ-सा साधारण इन्सान लगता है।”
“देवराज चौहान बहुत खतरनाक है।" नारंग ने सिर हिलाकर कहा--- “लेकिन हम लोगों का वो कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। उसे मौका ही नहीं मिलेगा कि वो हमारी गर्दन पकड़ सके। हमने दौलत लेनी है और हमेशा के लिए गायब हो जाना है। इस सारी प्लानिंग पर मेरी कितनी मेहनत और कितना पैसा लगा है, ये मैं ही जानता हूँ। अब उसका फल भी मुझे ही मिलेगा।"
“वॉल्ट में, मदन के केबिन में कितनी दौलत होगी?" भानू उर्फ पांडे ने पूछा।
नारंग ने कठोर निगाहों से उसे देखा।
“अपने काम से मतलब रखो। वहाँ एक लाख मिलता है या हजार करोड़, वो मेरा है। तुम लोगों को उतना ही मिलेगा, जितना कि पहले कहा है। अपनी सोच उससे आगे मत बढ़ाओ, वरना.... ।"
“मैंने तो यूँ ही पूछा था। आप गलत मत सोचें नारंग साहब।" भानू उर्फ पांडे ने कहा।
तभी प्यारेलाल ने भीतर प्रवेश किया। ठिठककर सब पर नजर मारी, फिर बोला---
"क्या चल रहा है?"
“एक-दो दिन में देवराज चौहान वॉल्ट में डकैती कर लेगा।" प्रेमवती उर्फ मैरी ने कहा।
“ये तो अच्छी खबर है।" प्यारेलाल मुस्कुराया--- “हमारी मेहनत....।"
"चुप हो जाओ। सब एक जगह मत रहो। तुम बाहर पोर्च में कारों के पास जाओ।" बाबू उर्फ नारंग ने प्यारेलाल से कहा।
प्यारेलाल फौरन बाहर निकल गया।
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अगले दिन ठीक ग्यारह बजे देवराज चौहान कार पर सोहनलाल के साथ लक्ष्मीचंद प्राइवेट वॉल्ट पहुँचा। सोहनलाल ने नया सूट पहन रखा था। देवराज चौहान भी हल्के पीले रंग के सूट में था। दोनों चमक रहे थे। उनके साथ कार की डिग्गी में एक बड़ा सूटकेस और दो सूटकेस पीछे की सीट पर ठूंस रखे थे।
कार के रुकते ही देवराज चौहान जल्दी से बाहर निकला और वॉल्ट की इमारत पर खड़े गनमैन के पास पहुँचा। गनमैन उसे ही देख रहा था। वे पहले भी आ चुके थे, इसलिए गनमैन ने उसे पहचान लिया।
"कार में सूटकेस है, कुछ भारी है। भीतर से दो लोगों को बुलाओ, उठाने के लिए।" देवराज चौहान ने कहा--- "जल्दी करो, सूटकेसों को ज्यादा देर खुले में रखना ठीक नहीं। भीतर कुछ जरूरी सामान है।"
गनमैन बाखूबी समझता था कि सूटकेसों में दौलत ही हो सकती है।
"आपने वॉल्ट में केबिन लिया है....।" गनमैन ने कहा--- "मुझे इस बात का कल ही पता चल गया था।" कहने के साथ ही गनमैन ने गेट के भीतर मौजूद गनमैनों से, कार से सूटकेस निकालकर भीतर पहुँचाने को कहा।
आनन-फानन में काम किया गया।
भीतर के गनमैन फौरन बाहर निकले और कार से तीनों सूटकेस निकालकर पहले तो गेट के भीतर रखे, फिर सूटकेसों को ऑफिस के भीतर पहुँचा दिया गया। तीनों सूटकेस भारी थे।
ऑफिस में दीपक महावत मौजूद था।
उसने दोनों का स्वागत किया। दोनों से हाथ मिलाया।
"बैठिये....बैठिये।" महावत मुस्कुराता हुआ कह उठा--- "मुझे खुशी है कि आप केबिन में सामान रखने जा रहे हैं।"
"सावंत साहब नजर नहीं आ रहे?" देवराज चौहान ने पूछा।
"वो छुट्टी पर है।" दीपक महावत ने बताया।
"वॉल्ट में हमारा सामान सुरक्षित रहेगा ना?" सोहनलाल एकाएक बेचैनी भरे स्वर में कह उठा।
"सोहनलाल जी ! आप हम पर भरोसा कीजिए। यहाँ आपका ही नहीं, जाने कितने लोगों का कीमती सामान सालों से रखा है। वो सब निश्चिंत हैं कि लक्ष्मीचंद वॉल्ट, सुरक्षित वॉल्ट है।" दीपक महावत ने मुस्कुराकर कहा।
"अगर मेरे सामान को कुछ हो गया, तो मैं लुट जाऊँगा।" सोहनलाल ने कहते हुए देवराज चौहान को देखा।
"शक- वहम मत करो सोहनलाल मैंने सोच-समझकर ही इस वॉल्ट में केबिन लिया है।" देवराज चौहान बोला।
पर सोहनलाल ऐसे जाहिर करता रहा जैसे इस बारे में अभी भी अनिश्चिंत सा हो।
"सामान को यहाँ तक लाने में हमारा बुरा हाल हो गया। हम यही सोचते रहे कि यहाँ तक सलामत पहुँच जाएं, कोई बुरी घटना हमारे साथ ना हो जाए।" देवराज चौहान, दीपक महावत से बोला ।
"जी हाँ! आजकल बुरे वक्त का कोई भरोसा नहीं। ये बताइये कि क्या लेंगे.... ठण्डा या गर्म ?"
“कुछ भी नहीं। पहले हमारा सामान वॉल्ट के भीतर.....।"
“ठीक है। ठण्डा-गर्म बाद में। आपका कहना ठीक है कि पहले काम निपटा लिया जाए।"
“हम वॉल्ट में कितनी देर रुक सकते हैं?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“नियम के मुताबिक आप पन्द्रह मिनट ही वॉल्ट के भीतर रह सकते हैं।” दीपक महावत ने बताया।
“सिर्फ पन्द्रह मिनट ? ये तो कुछ भी नहीं हुआ....।" सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा--- "इतने कम समय में हम अपना सामान कैसे केबिन में लगा सकते हैं? सूटकेसों में तो हमने जबर्दस्ती ठूंस के डाला है सामान। केबिन में सलीके से रखने में कम-से-कम एक घंटा तो लग ही जाएगा। तुम बात करो महावत साहब से कि हमें एक घंटा चाहिए।"
देवराज चौहान ने दीपक महावत को देखा।
“मिस्टर सोहनलाल....।" दीपक महावत ने प्यार से कहा--- "एक घंटा तो हम आपको वॉल्ट में रहने नहीं दे सकते। सुरक्षा के नाते हमारे कुछ नियम हैं। नियम तो सब के लिए बराबर होते हैं। मैं भी यहाँ नौकरी करता हूँ, गलत छूट तो नहीं दे सकता ना?”
"लेकिन महावत साहब....।" देवराज चौहान बोला--- "पन्द्रह मिनट में हम अपना सामान कैसे केबिन में सेट कर पाएंगे?"
“सूटकेसों को केबिन में रखिये, पाँच मिनट लगेंगे...।" दीपक महावत बोला--- “छोटा-सा तो काम है अब ।"
“हमने सूटकेसों में सामान को ऊटपटांग ढंग से ठूंसा है। इसे सब ठीक करना है। एक घंटा चाहिए हमें। वैसे एक घण्टा भी कम है, लेकिन फिर भी हम एक घंटा कह रहे हैं।" सोहनलाल ने कहा।
“ठीक है, मैं आपको आधा घंटे का वक्त दे दूंगा कि आप वॉल्ट में रह सकें...।"
“आधा घंटा...?” सोहनलाल ने कहना चाहा।
“इस समस्या का हल ये है कि आधा घंटा मैं आपको आज दे दूंगा। आधा घंटा आप लोगों को कल-परसों, जब भी आप आएंगे, तब दे दूंगा। इस तरह आप सामान को सैट कर लेंगे केबिन में; परन्तु उसके बाद कभी भी मैं आप लोगों को पन्द्रह मिनट से ज्यादा नहीं दे सकूंगा। सुरक्षा के नाते हम किसी को ज्यादा देर वॉल्ट के भीतर नहीं रहने देते।"
“ये ठीक रहेगा.....।” देवराज चौहान बोला--- "इस तरह हमारा काम चल जाएगा।"
सोहनलाल ने भी सोच भरे ढंग से सिर हिलाया।
“इन सूटकेसों को उठाने के लिए बाहर मौजूद गार्डों से...।" देवराज चौहान ने कहना चाहा।
"ये वॉल्ट के नियम के खिलाफ है....।" दीपक महावत मुस्कुराकर बीच में ही कह उठा--- “वॉल्ट के भीतर हर कोई नहीं जा सकता। वॉल्ट के रखवाले बाहर ही रहते हैं। उन्हें तो आज तक ये भी नहीं पता कि भीतर से वॉल्ट कैसा है। सावंत साहब आज आये होते तो वो आपकी सहायता कर देते। फिर भी, मुझसे जितना हो सकेगा, मैं आपकी सहायता करूंगा।"
“लेकिन हम यहाँ सूटकेसों को अकेला नहीं छोड़ सकते। एक सूटकेस दो आदमी लेकर जाएंगे तो....।"
"आपको चिन्ता करने की जरूरत नहीं। मैं और मिस्टर सुरेन्द्रपाल एक-एक सूटकेस उठाकर ले जाएंगे। आप यहीं पर बाकी सूटकेसों के पास रहिये। तीसरे के साथ आप भी आ जाइयेगा।"
"लेकिन सूटकेस छोड़े कहाँ जाएंगे?" सोहनलाल अड़ियल अन्दाज में बोला।
"वॉल्ट के दरवाजे के भीतर रखेंगे, वो दरवाजा सिर्फ मुझे ही खोलना आता है कि....।"
“ये सब नहीं चलेगा महावत साहब। मैं सूटकेसों को अकेला मैं नहीं छोड़ सकता। यहाँ भी नहीं, वहाँ भी नहीं। सूटकेसों में बहुत कीमती सामान है। आप नहीं समझ सकते।" सोहनलाल ने कहा--- “बेहतर रहेगा कि हम तीनों जैसे-तैसे एक-एक सूटकेस उठाकर यहाँ से एक साथ चलें।"
“ये ठीक कहा सोहनलाल ने।" देवराज चौहान बोला।
“ऐसे ही सही। मुझे कोई ऐतराज नहीं।" दीपक महावत ने कहा ।
तीनों उन भारी सूटकेसों को एक-एक उठाकर ऑफिस से बाहर निकले और दीवार के साथ-साथ ही आगे बढ़ने लगे। सूटकेस भारी थे। कुछ कदम चलने के बाद उन्हें नीचे रखना पड़ता था ।
गनमैन वहाँ दिख रहे थे।
“सुरेन्द्रपाल जी... ।” दीपक महावत गहरी-गहरी सांस लेता बोला--- “सूटकेसों में लोहा भर रखा है क्या?”
“कीमती सामान है। कितना आगे जाना है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“बस पहुँच ही गए...।"
दस कदम आगे वे तीनों एक बंद दरवाजे के सामने रुके। दरवाजा खुले में था। स्टील का था और मजबूत था । उस पर कम्बीनेशन नम्बर के अलावा चाबी डालने के लिए की-होल भी बना हुआ था।
“आप दोनों जरा उस तरफ देखिये। मैंने कम्बीनेशन नम्बर मिलाना है।” दीपक महावत बोला।
“क्या इस दरवाजे के पार वॉल्ट है? ये तो सुरक्षा व्यवस्था नहीं हुई।" सोहनलाल ने कहा--- “मैं.... ।”
"सोहनलाल जी गलतफहमी में मत रहिये। अभी रास्ता लम्बा है। मुँह उधर कीजिये।"
देवराज चौहान और सोहनलाल ने दूसरी तरफ देखा।
करीब मिनट भर बाद दीपक महावत ने कहा---
"अब इधर देख सकते हैं।"
दोनों ने दरवाजे को देखा।
कम्बीनेशन नम्बरों के पास दरवाजे में ही फिट नन्हीं सी ग्रीन लाईट जल रही थी।
दीपक महावत दरवाजे के की-होल में लम्बी-सी चाबी डालकर घुमा रहा था। चार या पाँच बार उसने चाबी घुमाई होगी। फिर दरवाजे का हैंडिल पकड़कर उसे धकेला तो दरवाजा खुल गया।
"आइये भीतर।" दीपक महावत बोला।
तीनों ने सूटकेसों को उठाकर भीतर रखा और खुद भी भीतर आ गए। दीपक महावत ने दरवाजा बंद कर दिया; परन्तु भीतर की रोशनी ने उन्हें अंधेरे का एहसास नहीं कराया।
"क्या हम वॉल्ट के भीतर हैं?" देवराज चौहान ने पूछा।
"अभी नहीं। वॉल्ट के भीतर जाना आसान नहीं है।" दीपक महावत सूटकेस को पहियों पर चलाकर गैलरी में आगे बढ़ता कह उठा।
"सोहनलाल जी आप वॉल्ट की सुरक्षा व्यवस्था पर शक कर रहे हैं। वैसे जरूरत तो नहीं, परन्तु आपकी तसल्ली के लिए बता देता हूँ कि वॉल्ट की सुरक्षा प्रणाली के तहत हमें तब से ही देखा और सुना जा रहा है, जब हम कम्बीनेशन वाले दरवाजे को खोल रहे थे।"
"हमें सुना भी जा रहा है?" सोहनलाल बोला।
"जी हां और सुरक्षा का ये सिस्टम चौबीस घंटे चालू रहता है। स्टॉफ बदल जाता है और सुरक्षा चलती रहती है।"
"ओह, तो वो लोग कहाँ हैं, जो हमें देख-सुन रहे हैं?" सोहनलाल ने पूछा।
"इसी फ्लोर पर उनका सम्बन्ध गनमैनों से, पुलिस स्टेशन से है। जरा-सी गड़बड़ होते ही, सब कुछ एलर्ट हो जाता है। एक कमरे में आठ गनमैन दिन-रात ड्यूटी पर रहते हैं। रात-दिन वालों की ड्यूटी बदलती रहती है। ये गनमैन खतरे का संकेत पाते ही हरकत में आ जाते हैं।"
"अच्छा, मुझे नहीं पता था।"
"और भी बहुत-सी बातें हैं जो कस्टमर को नहीं बताई जा सकतीं।"
"समझ गया।"
"सबसे बड़ी बात है कि वॉल्ट के भीतर कोई प्रवेश पा ही नहीं सकता। सूटकेस के साथ चार कदम आगे आइये।"
फिर वे तीनों कुछ कदम आगे पहुँचे।
अब वे ऐसी जगह पर खड़े थे जो छः फीट चौड़ा, आठ फीट लम्बा टुकड़ा था, जो कि फर्श से छः इंच ऊपर उठा हुआ था।
सूटकेस भी उनके पैरों के पास खड़े थे।
"इस जगह के बाहर मत जाइयेगा। इस वक्त आप लिफ्ट पर खड़े हैं।" दीपक महावत बोला।
देवराज चौहान की निगाह फौरन छत की तरफ गई। वहाँ कोई छत ना होकर उस टुकड़े के साईज की शाफ्ट नजर आ रही थी। मतलब कि लिफ्ट रूपी टुकड़ा, उस शाफ्ट में प्रवेश कर जाता होगा। देवराज चौहान ने सोचा।
“ये लिफ्ट है?” सोहनलाल बोला।
“जी हाँ! जिस फर्श के टुकड़े पर आप खड़े हैं, वो लिफ्ट है और लिफ्ट को कंट्रोल किया जाता है उसी कंट्रोल रूम से । वो ही लिफ्ट को चलाते हैं, रोकते हैं। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता।"
“अब हम कहाँ जा रहे हैं?" देवराज चौहान ने पूछा।
“वॉल्ट में।” दीपक महावत मुस्कुराया--- "वॉल्ट ऊपरी मंजिल पर है?"
“नहीं! नीचे, बेसमेंट में; परन्तु हम ऊपर जाएंगे, वॉल्ट में जाने का एकमात्र ये ही रास्ता है। कोई भीतर पहुँच भी जाए, तो भी वो वॉल्ट में प्रवेश नहीं कर सकता। ये ही लक्ष्मीचंद वॉल्ट की खूबी है। विकास....।"
“कहिये महावत साहब।” दीवार पर लगे स्पीकर से धीमी आवाज उभरी।
“हमें वॉल्ट में जाना है।"
“अभी चलते हैं।”
“लेकिन ये कैसी लिफ्ट है?" सोहनलाल बोला--- “हम नीचे गिर सकते हैं।"
“नहीं गिरेंगे।" महावत मुस्कुराया--- "दस फीट ऊपर शाफ्ट शुरू हो जाती है। उसी में से ये लिफ्ट निकलेगी, यानि कि इस वक्त आपको लग रहा है कि आपके आस-पास दीवारें नहीं हैं। दस फीट ऊपर ऐसा नहीं होगा।"
“इस शाफ्ट में रास्ता है, वॉल्ट तक पहुँचने का ?"
“तक पहुँचने का नहीं, वॉल्ट के भीतर ये लिफ्ट ले जाती है।"
“भीतर?” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।
"जी हाँ! आप लोगों को वॉल्ट के भीतर पहुँचाकर लिफ्ट वॉल्ट से बाहर आ जाएगी और आप लोगों के वापस जाने तक वहीं ऊपर रुकी रहेगी। एकमात्र ये ही रास्ता है वॉल्ट में प्रवेश करने का....और दूसरा रास्ता ही नहीं है। ये वॉल्ट दौलत रखने के लिए सबसे सुरक्षित जगह है। कोई इसके भीतर पहुँच ही नहीं सकता।"
"मेरे ख्याल में ये सुरक्षा नाकाफी है।" देवराज चौहान ने कहा।
“वो कैसे?” दीपक महावत ने उसे देखा।
"इस शॉफ्ट के रास्ते कोई जुगाड़ लगाकर, वॉल्ट तक पहुँचा जा सकता है।"
“नहीं!” दीपक महावत ने इंकार में सिर हिलाया--- "बड़े से बड़ा महारथी भी ऐसा नहीं कर सकता। शाफ्ट में छः जगह स्टील की मोटी ग्रिल लगी हैं, जिन्हें कि सिर्फ कंट्रोल रूम से ही हटाया जा सकता है और इस वक्त कंट्रोल रूम से उन्हीं ग्रिलों को हटाने का काम किया जा रहा है। शाफ्ट में लगी छः ग्रिलों को कैसे भी हटाने की बात असम्भव है, जबकि चौबीस घंटे शाफ्ट में कैमरे काम करते रहते हैं और कंट्रोल रूम से बराबर शाफ्ट में नजर रखी जाती है। ये सपने जैसा है कि कोई इस पर भी वॉल्ट तक पहुँच जाए।"
इस बारे में देवराज चौहान ने ज्यादा बात नहीं की, क्योंकि उसके पास वॉल्ट में जाने की वजह थी। उसने और सोहनलाल ने सारे नियमों को पूरा करते हुए वॉल्ट का केबिन किराये पर लिया था। अगर दीपक महावत के बताये सुरक्षा नियमों पर गौर किया जाए तो वास्तव में वॉल्ट के भीतर पहुँचना कठिन काम था।
तभी विकास नाम के व्यक्ति की वो ही आवाज उभरी।
"रेडी महावत साहब....।"
“हाँ विकास....।” दीपक महावत ने कहा।
दस सैकिण्ड बीते कि जहाँ वे खड़े थे, उसके पैरों में हल्का-सा कम्पन्न हुआ और फिर वे बेहद धीमे से ऊपर उठने लगे। देवराज चौहान ने ऊपर देखा। ऊपर की शाफ्ट सिर के करीब आती जा रही थी। बीस सैकिण्ड के बाद लिफ्ट शाफ्ट में प्रवेश कर गई और अब उन्हें अपने आस-पास दीवारें नजर आने लगीं।
वे आराम से खड़े रहे।
बीस फीट ऊपर जाने पर लिफ्ट रुकी-सी महसूस हुई और बाँयी तरफ सीधी जाती शाफ्ट नजर आ रही थी। रुकने के बाद लिफ्ट में चलने का कम्पन्न पुन: शुरू हुआ और अब लिपट ऊपर जाने की अपेक्षा बाँयीं तरफ मुड़ गई थी। बाँयीं तरफ वाली शाफ्ट में सरकने लगी थी। इस शाफ्ट की दीवारों में कई जगह चार-छ इंच का गैप नज़र आ रहा था। महावत ने बताया कि हर गैप की जगह पर ग्रिल लगी होती है, जो कि सामने के गैप में जाकर फिक्स हो जाती है। पूरे रास्ते में इस तरह की छः ग्रिल लगाई-हटाई जाती है, कंट्रोल रूम से ।
करीब बारह फीट आगे जाने पर लिफ्ट में कम्पन्न हुआ और वो रुकी। ये मोड़ था, लिफ्ट पुनः चली और बाँयी तरफ मुड़ कर आगे जाने लगी। देवराज चौहान ने देखा उस शाफ्ट की लम्बाई बीस फीट है। लिफ्ट बेहद मध्यम-सी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी।
बीस फीट का रास्ता बीस सैकिण्ड में तय किया लिफ्ट ने।
देवराज चौहान ने देखा कि अब लिफ्ट के सामने दीवार थी। दाँये-बाँये भी दीवार थी, एक तरफ से तो वो खुद आए थे। मतलब स्पष्ट था कि लिफ्ट ने अब नीचे जाना था, वॉल्ट की तरफ। तभी लिफ्ट में हल्का-सा कम्पन्न हुआ और वो नीचे की तरफ जाने लगी। खामोश खड़ा सोहनलाल कह उठा---
“मानना पड़ेगा कि वॉल्ट में कोई बिना इजाजत दाखिल नहीं हो सकता, हो गया तो वो बाहर नहीं निकल सकता।"
दीपक महावत ने मुस्कुराकर उसे देखा।
“आप मुस्कुराये क्यों महावत साहब?" सोहनलाल भी मुस्कुराया ।
“आपकी बात पर....कि कोई बाहर नहीं निकल सकता। बाहर तो कोई तब निकलेगा, जब वो भीतर पहुँच सकेगा। कोई भी भीतर ही नहीं पहुँच सकता। वॉल्ट के कंट्रोल रूम में बहुत सख्त इन्तजाम है। सख्ती से चौबीसों घंटे नजर रखी जाती है हर तरफ। अब हम वॉल्ट में प्रवेश करने जा रहे हैं।"
"कब?”
“अगले पाँच सैकिण्ड में....।" दीपक महावत बोला।
तभी ऐसा लगा जैसे लिफ्ट रोशनियों जैसे महल में पहुँच गई हो। आस-पास वॉल्ट का नजारा दिखा। लॉकर, बड़े-बड़े बक्सों की तरह केबिन। कई जगह बड़ी तिजोरियाँ रखी थीं। फर्श पर लाल रंग का कारपेट बिछा था। जंजीरें दिखीं, जिनके सहारे लिफ्ट वॉल्ट में आ उतरी थी। जंजीरें ऊपर छत में जाकर लुप्त हो रही थीं।
"ये-ये जंजीरें कहाँ से आ गई?" देवराज चौहान बोला--- "पहले तो कहीं नहीं दिखीं।"
"नीचे उतरने के लिए लिफ्ट को कोई सहारा तो चाहिए ही। इस सिस्टम को आप नहीं समझ पाएंगे। कस्टमर को इन चीजों के बारे में ज्यादा नहीं बताया जाता।" दीपक महावत ने सामान्य स्वर में कहा।
"पर जब लिफ्ट नहीं होती तो स्ट्रांग रूम की छत पर क्या होता है? क्या जगह इसी तरह खाली रहती.... ।”
“मजबूत स्टील की रॉडों का जाल होता है। ग्रिल होती है आपको पहले भी बता चुका हूँ।"
देवराज चौहान सिर हिलाकर रह गया।
लिफ्ट नीचे फर्श पर पहुँचकर रुक चुकी थी।
दीपक महावत नीचे उतरा। वे दोनों भी उतरे। सूटकेस नीचे उतारे जाने लगे। फिर महावत बोला---
“आइये, मैं आपको आपका 15 नम्बर केबिन दिखा दूँ।” दीपक महावत ने उन्हें केबिन दिखाया, जिसे वो पहले भी देख चुके थे ।
“महावत साहब!” देवराज चौहान बोला--- “एक रास्ता वो भी तो है, जिससे हम पहले यहाँ आए थे?”
“वो एमरजेंसी रास्ता है। कस्टमर उस रास्ते का इस्तेमाल नहीं कर सकते।" दीपक महावत बोला--- “कल आप दोनों के लिए इसलिए वो रास्ता इस्तेमाल किया गया कि लिफ्ट का स्टीन चैकअप करने के लिए कम्पनी के मैकेनिक आए हुए थे। इसलिए लिफ्ट को कल दिन भर रोक रखा था। कल हर कस्टमर के लिए वो ही रास्ता इस्तेमाल किया गया था, लेकिन उस रास्ते से किसी का भीतर आना, इस रास्ते से भी कठिन है।”
“वो कैसे?” देवराज चौहान ने दिलचस्पी से पूछा।
"सुरेन्द्रपाल साहब! आप सिक्योरिटी सिस्टम जानने में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी नहीं ले रहे क्या?” दीपक महावत कह उठा।
देवराज चौहान फौरन संभला ।
“उत्सुकता के नाते पूछ रहा....।" देवराज चौहान ने कहना ने चाहा।
“इतनी उत्सुकता मत दिखाइये कि सामने वाला आपके बारे में सोचने लगे।” दीपक महावत मुस्कुराया।
देवराज चौहान हौले-से हंस पड़ा।
"आपका वॉल्ट, आपकी सुरक्षा।" देवरान चौहान बोला--- "हमें तो अपने सामान की गारण्टी चाहिए, जो कि मिल रही है।"
दीपक महावत वापस लिफ्ट पर पहुँचा और नीचे झुककर कोने में लगा एक बटन दबाया, फिर बोला---
"मैंने आप लोगों को तीस मिनट का वक्त दिया है। उससे ऊपर एक मिनट भी नहीं मिलेगा। मैं इसी लिफ्ट पर आपका इंतजार कर रहा हूँ। ये लिफ्ट दस फीट ऊपर छत का हिस्सा बनी रुकी रहेगी। मैं उस पर मौजूद रहूंगा। अगर आप तीस मिनट से पहले फारिग हो जाएं तो यहीं नीचे आकर मुझे आवाज दीजिएगा। मैं आपकी आवाज सुन लूंगा।"
ये खतरे वाली बात थी।
वॉल्ट के भीतर होने वाली आहटों को दीपक महावत सुन सकता था।
“कंट्रोल रूम में बैठे लोगों को कैसे पता चलेगा कि लिफ्ट ऊपर जानी है अब?” देवराज चौहान ने पूछा।
“मैंने बटन दबाकर उन्हें बता दिया है, वो....।"
तभी लिफ्ट का टुकड़ा जंजीरों के सहारे ऊपर की तरफ उठने लगा।
देखते-ही-देखते वो लिफ्ट छत का हिस्सा बनकर ठहर गया। दीपक महावत दिखना बंद हो गया। लिफ्ट के नीचे वाले हिस्से पर एक फुट व्यास के तीन निशान बने दिख रहे थे । देवराज चौहान समझ गया कि ये लिफ्ट जहाँ से चली, जहाँ से ऊपर उठी थी शुरू में, वहीं लिफ्ट के नीचे लोहे के भारी पाये, लिफ्ट को ऊपर उठा रहे थे। ऐसे गोल निशान उन्हीं पायों के हो सकते हैं। फिर भी देवराज चौहान इस लिफ्ट, इस वॉल्ट का सिस्टम देखकर तारीफ कर रहा था कि बेशक ये छोटा वॉल्ट ही सही; परन्तु सुरक्षा की नजर से ये बेहद मजबूत था।
देवराज चौहान और सोहनलाल की नजरें मिलीं।
“सोहनलाल !” देवराज चौहान बोला--- “सूटकेसों को जल्दी से केबिन तक पहुँचाओ।”
फिर वे दोनों सूटकेसों को पहियों के दम पर सरकाकर बारह नम्बर केबिन तक ले जाने लगे। बारह नम्बर वहाँ से पन्द्रह कदमों की दूरी पर था। वहाँ की धीमी आवाजें दीपक महावत तक नहीं पहुँच सकती थीं।
तीनों सूटकेस बारह नम्बर केबिन के सामने पहुँचे तो देवराज चौहान धीमे स्वर में सोहनलाल से बोला---
"यहाँ हम पूरी आजादी के साथ काम नहीं कर सकते। कोई भी तेज आवाज महावत के कानों तक पहुँच सकती है।"
"हमें कोशिश करनी है कि आवाज ना हो।" धीमे स्वर में कहकर सोहनलाल एक सूटकेस पर झुका और जेब से चाबी निकाल कर उस सूटकेस को खोला। सूटकेस में ईंटें भरी पड़ी थीं। एक कॉलेज बैग था, जो कि सोहनलाल ने बाहर निकाल लिया। उस बैग में उसके औजार रखे हुए थे--- "कहीं वो तीस मिनट से पहले तो नीचे नहीं आ जाएगा?"
"पहले नहीं आएगा, वो तीस मिनट पूरे होने पर ही वॉल्ट में पहुँचेगा। तुम जल्दी करो।"
सोहनलाल ने 112 नम्बर केबिन पहले ही देख रखा था, वो जल्दी से वहाँ पहुँचा, औजारों वाला बैग खोला और केबिन का लॉक खोलने में व्यस्त हो गया। देवराज चौहान भी उसके साथ था।
देवराज चौहान कुछ पलों बाद वापस 15 नम्बर केबिन के पास पहुँचा और जेब से दो चाबियाँ निकालकर केबिन के लॉक को खोला। फिर उसके दोनों पल्ले खोल दिए। भीतर छः फीट लम्बी, चार फीट चौड़ी जगह थी, उसमें काफी सामान आ सकता था। उस खाने के बीचों-बीच एक शैल्फ भी थी जो कि इस वक्त 'फोल्ड करते हुए नीचे को गिरा रखी थी। यानि कि सामान रखने के लिए किसी को शैल्फ की जरूरत पड़े तो शैल्फ को उठाकर सीधा कर सकता था। शैल्फ तीन फीट चौड़ी थी।
देवराज चौहान ने देखा, ऐसी दो शैल्फें थीं केबिन में। उसके बाद देवराज चौहान ईंटों से भरे सूटकेसों को 112 नम्बर केबिन के पास पहुँचाने में लग गया।
“ये क्यों?” केबिन का लॉक खोलते सोहनलाल ने पूछा।
“सूटकेस मदन के इस केबिन में रखे जाएंगे और मदन के केबिन में जो कुछ भी है, उसे हम अपने केबिन में रख देंगे।"
“इसमें खतरा है।”
"क्या ?"
“मान लो दो घंटे बाद ही मदन इस केबिन से कुछ निकालने यहाँ आ जाता है और अपना सामान गलत पाकर, यहाँ रखे तीनों सूटकेसों को देखकर वॉल्ट के मैनेजर दीपक महावत को बुलाता है, तो महावत इन सूटकेसों को देखकर फौरन पहचान लेगा कि वे हमारे हैं और हमने ही गड़बड़ की है। ऐसे में हम अपने वॉल्ट में रखी मदन की दौलत को लेने दोबारा यहाँ आएंगे तो फंस जाएंगे। महावत पुलिस में खबर देकर हमें पकड़वा देगा।" सोहनलाल ने कहा।
"तुम ये क्यों सोचते हो कि मदन दो घंटे बाद यहाँ जा जाएगा, ये सोचो कि अभी वो दो महीने भी यहाँ नहीं आएगा।"
"मेरे या तुम्हारे सोचने से कुछ नहीं होगा। आने वाले वक्त में क्या होता है, किसी को पता नहीं।"
"सब ठीक रहेगा। हम कल या परसों यहाँ से सामान निकालकर ले जाएंगे।" देवराज चौहान ने कहा।
सोहनलाल कुछ नहीं बोला। अपने काम में लगा रहा।
देवराज चौहान ने तीनों सूटकेस यहाँ पहुँचा दिए, फिर वहीं टहलने लगा।
छः-सात मिनट में ही सोहनलाल ने केबिन का लॉक खोल दिया।
"हो गया काम।" सोहनलाल अपने औजारों को वापस बैग में रखता बोला--- “केबिन को खोल सकते हो अब ।"
देवराज चौहान दो कदम आगे बढ़ा और केबिन के पल्लों को खोला। भीतर नजर पड़ते ही वो दो पल के लिए ठगा-सा रह गया। छः बाई चार का केबिन ऊपर से नीचे तक ठसाठस भरा पड़ा था। नीचे आधे में तो हजार के नोटों की गड्डियाँ इस तरह ढूंसी हुई लगा रखी थीं कि वो तीस हजार गड्डियों से ज्यादा की दौलत होगी। बाकी के आधी ऊपर की जगह में प्लास्टिक के सफेद पारदर्शी बड़े-बड़े चौरस डिब्बों में हीरे-जवाहरात भरे पड़े थे।
इतनी दौलत मिलने की तो उन्हें आशा नहीं थी ।
“ये तो मोटा माल है।" सोहनलाल की नजर केबिन के भीतर पड़ी तो वो कह उठा ।
“जो भी है, इसे अपने केबिन तक पहुँचाओ। हमारे पास वक्त कम है।” देवराज चौहान बोला। इसके साथ ही उसने ऊपर के हिस्से में पड़े हीरे-जवाहरातों के दो बक्से उठाए और वहाँ से चला गया ।
सोहनलाल ने बिना वक्त गँवाये पास रखे सूटकेसों को खोला और तेजी से ईंट बाहर निकालने लगा। देवराज चौहान वापस लौटा तो सोहनलाल को देखकर बोला---
“ये क्या कर रहे हो?"
“कल या परसों जब हम वॉल्ट से सामान लेने आएंगे, तो महावत हमारे पास इन सूटकेसों को ना पाकर शक खा सकता है। इसलिए मैं नोट इन सूटकेसों में भर रहा हूँ।" सोहनलाल ने कहा।
"कल या परसों हम केबिन से सामान निकालेंगे। केबिन खाली नहीं करना है। तब महावत यही सोचेगा कि सूटकेसों में सामान भरकर हमने उन्हें केबिन में रखा हुआ है, जो भी करना है जल्दी करो।” देवराज चौहान ने ऊपर की शैल्फ से दो अन्य बक्से उठाए और 15 नम्बर केबिन में रखने चला गया।
तीनों सूटकेस फुर्ती से खाली करने बाद, सोहनलाल उनमें गड्डियाँ लगाने लगा। उसके हाथ तेजी से काम कर रहे थे। सूटकेस बड़े और गहरे थे। उनमें काफी ज्यादा गड्डियाँ आ सकती थीं।
देवराज चौहान अपना काम तेजी से कर रहा था।
वक्त आगे सरकता जा रहा था।
हीरे-जवाहरातों से भरे बक्से पन्द्रह नम्बर केबिन में रखने के बाद देवराज चौहान बाहर बिखरी ईंटों को उठाकर ऊपर की शैल्फ में रखने लगा। सारा काम खामोशी से हो रहा था, तेजी से हो रहा था। सोहनलाल दूसरा सूटकेस भरने के अन्तिम चरण पर था।
देवराज चौहान ने सारी ईंटें शैल्फों में रखीं। फिर सोहनलाल का हाथ बंटाने लगा। जहाँ ईंटें रखी थीं, वहाँ नीचे कालीन पर ईंटों का चूरा-सा बिखरा दिखाई दे रहा था। देवराज चौहान ने उसे बाद में साफ करने की सोची।
“कितना वक्त है हमारे पास?” सोहनलाल ने पूछा।
“आठ मिनट।” देवराज चौहान ने घड़ी देखकर कहा--- “जो सूटकेस भर गए हैं, मैं उन्हें रखकर आता हूँ।”
देवराज चौहान ने नोटों की गड्डियों से भरे सूटकेस को बंद किया और पहियों के दम पर धकेलता तेजी से, वहाँ से ले गया। दो मिनट बाद वापस लौटा और दूसरा सूटकेस भी ले गया। तब तक सोहनलाल तीसरा भर चुका था; परन्तु अभी भी नोटों की गड्डियाँ मदन के केबिन में काफी सारी रखी नजर आ रही थीं।
देवराज चौहान तीसरा सूटकेस ले जाते बोला---
“कारपेट पर बिखरा ईंटों का चूरा हाथ मार-मारकर साफ "करो।"
“अभी गड्डियाँ भीतर हैं।"
“उन्हें हम छोड़ भी सकते हैं; परन्तु ईंटों का चूरा महावत को शक डलवा सकता है।"
सोहनलाल हाथ मार-मारकर ईंटों का चूरा वहाँ से हटाने लगा। ईंटों का चूरा बिखरता जा रहा था। उसके निशान आँखो की पकड़ से दूर होते जा रहे थे। वैसे भी वो ज्यादा नहीं था।
देवराज चौहान तीसरा सूटकेस रखकर वापस लौटा और बोला---
"अब गड्डियाँ उठा-उठाकर अपने वाले केबिन में रखो। हमारे पास सिर्फ ढाई मिनट बचे हैं। दो-तीन चक्कर लगा लो। ज्यादा लालच में नहीं पड़ना। मदन वाला केबिन लॉक भी करना है। लॉक करने में कितना वक्त लगेगा?"
"दस-पन्द्रह सैकिण्ड।"
फिर वो वक्त भी आ गया, जब सोहनलाल ने मदन के केबिन को लॉक कर दिया और अपना औजारों वाला थैला उठाए 15 नम्बर केबिन पर पहुँचा। जहाँ देवराज चौहान पहले से ही मौजूद था। 15 नम्बर केबिन ठसाठस भरा पड़ा था। उसकी ऊपर की दोनों शैल्फें खुली पड़ी थीं। उन पर हीरे-जवाहरातों के भरे चकोर बक्से ठीक वैसे ही रखे थे; जैसे कि मदन के केबिन में रखे हुए थे। नीचे वाले आधे हिस्से में तीनों सूटकेस और नोटों की खुली गड्डियाँ ठूंस रखी थीं। लगभग पूरा केबिन फुल हो चुका था। आधा घंटा पूरा होने में मात्र आधा मिनट ही बचा था।
देवराज चौहान ने केबिन का दरवाजा बंद करके दोनों चाबियों से दरवाजा लॉक किया।
“चलो।” देवराज चौहान ने कहा।
दोनों उसी तरफ बढ़ गए, जिधर लिफ्ट ने आना था। बीते आधे घंटे में उन्हें एक पल की भी फुर्सत नहीं मिली थी, परन्तु इस बात की राहत थी कि वक्त रहते काम पूरा हो गया। तभी उन्होंने छत की खाली जगह में सैट लिफ्ट का फर्श हिलते देखा और वो धीरे-धीरे नीचे आने लगा।
फिर दीपक महावत खड़ा उन्हें दिखा।
“आप दोनों यहाँ मौजूद हैं?" महावन उन्हें देखते ही बोला।
“अभी यहाँ पहुँचे कि लिफ्ट नीचे आने लग गई।" देवराज चौहान ने कहा।
“आपको दिया आधा घंटा पूरा हो गया है।"
“हमने भी अपना काम पूरा कर लिया है।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“लेकिन बहुत जल्दी-जल्दी किया।" सोहनलाल बोला--- “पन्द्रह मिनट ज्यादा मिले होते हो, तो ठीक रहता।"
“आधा घंटा हम सिर्फ मजबूरी में किसी को देते हैं, जैसे कि आज वॉल्ट में आप लोगों ने अपना सामान रखना था तो आपको इतना वक्त दिया; परन्तु भविष्य में पन्द्रह मिनट ही दिए जाएंगे।"
लिफ्ट नीचे आकर ठहर गई।
देवराज चौहान और सोहनलाल लिफ्ट पर चले, तो महावत ने झुककर कोने में लगा बटन दबाया, तो चंद पलों बाद ही लिफ्ट ऊपर जाने लगी। देखते ही देखते वो शॉफ्ट में प्रवेश करती चली गई। जिन जंजीरों ने लिफ्ट के बोझ को संभाल रखा था, वो अचानक ही गायब हो गई थीं।
“जंजीरें कहाँ गई?” सोहनलाल कह उठा।
दीपक महावत मुस्कुराया। कहा कुछ नहीं।
“लिफ्ट के नीचे दीवार पर चैनल लगा है, जिस पर लिफ्ट आगे सरकती है।” सोहनलाल पुनः बोला ।
महावत ने कुछ नहीं कहा।
"मत बताइये महावत साहब.....।" सोहनलाल मुस्कुराया--- “मुझे कुछ मालूम भी नहीं करना है।"
“हमारा वॉल्ट आपको कैसा लगा?” दीपक महावत ने पूछा।
"बहुत बढ़िया ।"
“अब तो आपको तसल्ली है कि आपका यहाँ रखा सामान सुरक्षित है?”
सोहनलाल ने हाँ में सिर हिला दिया।
उसके बाद दीपक महावत के ऑफिस में बैठकर उन्होंने चाय पी। दीपक महावत सोच भी नहीं सकता था कि उसके वॉल्ट में इतना बड़ा कांड हो गया है। जब वे लक्ष्मीचंद प्राईवेट वॉल्ट से बाहर निकले तो सवा एक बज रहा था। देवराज चौहान और सोहनलाल को तसल्ली थी कि सारा काम ठीक वैसे ही निपट गया, जैसा कि उन्होंने सोचा था।
दोनों कार में बैठे। देवराज चौहान ने कार आगे बढ़ा दी।
मिनट भर ही बीता होगा कि देवराज चौहान का फोन बजने लगा।
“हैलो।” देवराज चौहान ने बात की।
“तुम कहाँ हो?" नोरा की व्याकुल-सी आवाज कानों में पड़ी।
“क्यों?”
“जाने क्यों मेरा मन घबरा रहा है....।"
“बिना वजह मन नहीं घबराता। कोई वजह जरूर होती....।"
“वो.... वो तुमने कहा था कि आज वॉल्ट में चोरी करोगे, तो डर लग रहा है कि कहीं तुम फंस ना जाओ। मेरी मानो तो ये काम रहने दो। मेरा परिवार उस पैसे के बिना भी ठीक है...।" नोरा की चिन्ताभरी आवाज कानों में पड़ी।
“वो काम हो गया.... ।”
“क्या.... कौन-सा काम....?" उधर से नोरा ने पूछा।
“वॉल्ट वाला काम। तुम लोगों को एक-दो दिन में पैसा मिल जाएगा....।”
“म-मतलब कि तुमने... तुमने मदन के वॉल्ट से पैसा निकाल लिया?" नोरा के स्वर में हैरानी आ गई।
“हाँ!”
“पैसा तुम्हारे पास है, तुम ये ही कहना चाहते.... ।”
“वॉल्ट में ही मेरा केबिन है, मदन के केबिन में रखा सारा सामान, अब मेरे केबिन में है। "
“ओह! हैरानी है, तुमने ये काम इतने कम समय में कैसे कर लिया। कल ही तो तुमने कहा था कि.... ।”
“मैं फिर बात करूंगा तुमसे। अभी मैं व्यस्त हूँ।” देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
“नोरा का फोन था ?” सोहनलाल ने पूछा ।
“हाँ! हैरानी है मुझे कि हमारे वॉल्ट से निकलते ही इस बारे में नोरा का फोन आ गया।" देवराज चौहान बोला।
“इत्तफाक है।” सोहनलाल ने कहा।
कार ड्राईव करते देवराज चौहान की निगाह आगे-पीछे, दायें-बायें घूमी ।
परन्तु ऐसा कोई नहीं दिखा जो उनकी कार पर नजर रख रहा हो।
देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन करके बताया---
"वॉल्ट वाला काम हो गया।"
“मतलब कि मदन के केबिन में रखी दौलत तुम्हारे केबिन में...?”
“हाँ! काम पूरा हो गया है।"
“ये अच्छा हुआ। अब तुम्हें उस बंगले पर जाने की जरूरत नहीं है। नोरा को कब पचास करोड़ दोगे?”
“कल-परसों में वॉल्ट से दौलत निकाल ली जाएगी, तब दूंगा।"
"पचास करोड़ से ज्यादा है माल?" उधर से जगमोहन ने पूछा।
"काफी ज्यादा। कैश ही बहुत है....और ऊपर से बेशकीमती हीरे-जवाहरात....।”
"अब क्या प्रोग्राम है तुम्हारा?"
"बंगले पर तुम्हारे पास ही आ रहा हूँ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
सोहनलाल सीट की पुश्त से सिर टिकाए, आँखें बंद किए बैठा था ।
मिनटभर भी नहीं बीता होगा कि देवराज चौहान को सड़क पर आगे जाती कार की रफ्तार एकाएक कम होती महसूस हुई। इस वजह से देवराज चौहान को भी कार की रफ्तार कम करनी पड़ी, जबकि देवराज चौहान इस वक्त सूरज के बारे में सोच रहा था कि सब ठीक पाकर वो अवश्य नोरा के पास लौट आएगा। उसके बाद वे लोग खुद ही फैसला करेंगे कि मदन से कैसे निपटना है। वैसे भी जब मदन को पता चलेगा कि वॉल्ट में मौजूद उसके केबिन में रखी दौलत गायब हो गई है, तो उसके होश गुम हो जाएंगे।
आगे वाली कार की रफ्तार और कम हो गई थी।
देवराज चौहान ने अपनी कार की रफ्तार और कम की और अब आगे वाली कार के भीतर झांकने की चेष्टा की। उस कार में दो लोग मौजूद थे। एक चला रहा था, दूसरा बगल में बैठा था। उस कार के आगे रास्ता साफ था, तो फिर ये कार की रफ्तार क्यों कम कर रहा है? देवराज चौहान ने सोचा--- साथ ही अपनी कार को साईड से निकालकर उस कार को ओवरटेक करते हुए निकल जाने की सोची; परन्तु ऐसा कर नहीं सका।
बाईं तरफ एक कार उसकी कार से दो फीट के फासले पर बराबर चल रही थी। देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर दांयी तरफ देखा तो वहाँ भी एक कार ऐसे ही थी। उन दोनों कारों में दो-दो व्यक्ति मौजूद थे; जैसे कि आगे वाली कार में दो व्यक्ति थे। देवराज चौहान मन-ही-मन चौंक पड़ा था। समझते देर नहीं लगी कि उसे घेरा जा रहा है।
परन्तु उसे घेरने वाले कौन लोग हैं?
क्या मदन के आदमी हैं?
क्या मदन को पता चल गया है कि उसने उसका केबिन खाली कर दिया है?
“सोहनलाल !” देवराज चौहान ने शीशे द्वारा पीछे देखा तो ठीक पीछे भी एक कार दिखी। उसमें भी दो आदमी थे।
सोहनलाल ने आँखें खोलीं और देवराज चौहान को देखकर बोला---
"मैं सोच रहा था कि.... ।”
“हमें घेरा जा रहा है।" देवराज चौहान ने कहा।
सोहनलाल चौंककर सीधा बैठा, तुरन्त आस-पास देखा। फौरन ही उसे खतरे का एहसास हो गया। उन कारों को उसने भांप लिया था, जो उन्हें घेर चुकी थीं।
“ये मदन के लोग हो सकते हैं।" देवराज चौहान बोला।
“तुम्हारे पास रिवॉल्वर....।" सोहनलाल ने कहना चाहा।
“कार में है; परन्तु ये आठ लोग हैं। हथियार भी इनके पास होंगे। खुली सड़क पर गोलियाँ चलीं तो लोगों को लग जाएंगी।"
“तो?”
“एक ही रास्ता है कार को किसी तरह भगा लें.... ।”
“पर कार भगाने की गुंजाईश नहीं है, किस तरह चारों कारें हमारे आस-पास....।”
तभी आगे वाली कार ने ब्रेक लगा दिए।
देवराज चौहान ने तुरन्त ब्रेक लगाकर अपनी कार रोक दी।
दायें, बायें और पीछे वाली कारें भी रुक गईं।
अब उनकी कार चार कारों के बीच फंसी हुई थी। कारें रुकते ही पीछे आता ट्रेफिक रुकने लगा। ट्रैफिक जाम होते ही हार्न बजने लगे। तब तक घेरने वाली चार कारों में से आदमी निकलकर उनकी कार के पास आ पहुँचे थे।
देवराज चौहान और सोहनलाल चौंके।
क्योंकि तीन आदमी तो उनमें वो ही थे, जिन्होंने श्रेया का अपहरण किया था। इस वक्त छः आदमियों ने उनकी कार घेर ली थी और चार के हाथ में रिवॉल्वरें नजर आ रही थीं।
“बाहर निकलो।” कहने के साथ ही एक ने दरवाजा खोलने की चेष्टा की
दूसरे ने रिवॉल्वर का दस्ता शीशे पर मारा ।
सोहनलाल की तरफ वाला दरवाजा खुला था, पिन ऊपर थी। वो दरवाजा खुल चुका था। उन्होंने सोहनलाल को बाँह पकड़कर बाहर खींचा और पास की कार के खुले दरवाजे से भीतर धकेलकर वो आदमी खुद भी सोहनलाल के साथ भीतर बैठ गया। सब कुछ बहुत तेजी से हुआ। सोहनलाल हड़बड़ाकर बोला---
"ये क्या कर....।"
"चुप कर साले।" वो आदमी सोहनलाल की गर्दन पकड़ता गुर्राकर कह उठा। साथ ही उसने हाथ में दबी रिवॉल्वर की नाल का वार जोरों से सोहनलाल की कनपटी पर किया।
सोहनलाल के होंठों से पीड़ा भरी कराह निकली और बेहोश होकर सीट पर लुढ़कता चला गया। तभी एक आदमी स्टेयरिंग सीट पर बैठा और दरवाजा बंद करके स्टार्ट कार का गियर डालता बोला---
"चलें ?"
"निकल लो।"
अगले ही पल कार तेजी से आगे बढ़ती चली गई।
देवराज चौहान की तरफ वाला दरवाजा भी खुल चुका था।
देवराज चौहान को कुछ भी करने-संभलने का मौका नहीं मिला, दो ने पकड़कर उसे तीव्रता से बाहर खींचा।
देवराज चौहान बाहर निकलकर लड़खड़ा उठा।
अगले ही पल उसकी कमर से रिवॉल्वर आ लगी।
तीन लोगों ने उसे घेर रखा था, वे सब तेजी से काम कर रहे थे।
“कार में बैठ.... ।” एक ने गुर्राकर कहा।
“लेकिन....।" देवराज चौहान ने कहना चाहा।
“बिठाओ इसे कार में।" दूसरा गुर्रा उठा ।
आनन-फानन देवराज चौहान को कार के खुले दरवाजे से भीतर धकेल दिया गया। दो आदमी उसके दाँये-बाँये बैठ गए थे। उसे दबा के रिवॉल्वर पुनः कमर से आ लगी थी। तीसरा ड्राईविंग सीट पर आ बैठा और कार आगे बढ़ा दी।
"हमें मालूम है तू डकैती मास्टर देवराज चौहान है, लेकिन हमारे सामने सिर उठाने की चेष्टा की तो अभी भून देंगे।" उसकी बगल में बैठे व्यक्ति ने कठोर स्वर में कहा--- "कोई शरारत मत करना, वरना....।”
देवराज चौहान ने कहने वाले की तरफ गर्दन घुमाकर उसे देखा।
उसी पल दूसरी तरफ बैठे व्यक्ति ने रिवॉल्वर के दस्ते की चोट देवराज चौहान के सिर पर की।
देवराज चौहान दर्द से कराह उठा।
तभी एक और जबर्दस्त चोट उसके सिर पर पड़ी, तो उसकी चेतना लुप्त होती चली गई।
■■■
देवराज चौहान के मस्तिष्क में आहट-सी उभरी। फिर मस्तिष्क में हलचल-सी उठने लगी। बेहोश पड़ा मस्तिष्क अब सक्रिय होने लगा था। सिर से आती पीड़ा की लहर उसके मस्तिष्क में उभरी। कुछ आवाजें उठ रही थीं, ना समझ में आने वाली आवाजें । ऐसा शोर जैसे एक साथ कई लोग बोल रहे हों, परन्तु अभी भी वो कुछ समझ पाने के लायक नहीं था। एकाएक उसके होंठों से कराह उभरी और शरीर में कम्पन्न-सा उठा। धीरे-धीरे उसकी चेतना वापस लौटने लगी।
चंद क्षण और बीते कि कंपकंपाती पलकें ऊपर उठीं और सामने को टिक गईं।
अगले ही पल उसे एहसास हुआ कि वो नीचे कारपेट पर पड़ा हुआ है। पास ही सैन्टर टेबल की टांगें दिखीं, जो कि जानी-पहचानी सी लगीं; परन्तु याद नहीं आया कि उन्हें कहाँ, कब देखा है। आँखों की पुतलियाँ कुछ और घूमीं कि सोफा दिखा, वो भी पहचाना-सा लगा। उसे दो जोड़ी टांगें दिखीं, यानि सोफे पर दो लोग बैठे थे।
"होश आ रहा है इसे।" एक आवाज उभरी।
“आँखें खोली हैं अभी।" दूसरी आवाज उभरी।
"होश तो आना ही था देवराज चौहान को, ढाई घंटों से बेहोश है।"
ये आवाज देवराज चौहान ने पहचानी। ये सुन्दरलाल जी की आवाज थी। नोरा के पापा सुन्दरलाल का स्वर।
बातों का शोर अभी भी उसके कानों में पड़ रहा था।
देवराज चौहान की आँखें पूरी खुल गई। करवट लेकर सीधा हुआ तो सिर में पीड़ा उठी, जहाँ रिवॉल्वर के दस्ते की चोटें पड़ी थीं। हाथ खुद ही सिर पर पहुँच गया था।
उसी पल किसी को अपने पास पाया।
देवराज चौहान ने ऊपर देखा।
सुन्दरलाल जी उसके पास खड़े उसे देख रहे थे, वो मुस्कुरा रहे थे।
देवराज चौहान को याद आया कि लक्ष्मीचंद वॉल्ट से निकलने के बाद उसे और सोहनलाल को चार कारों ने घेरा था। इसके बाद उसे बेहोश कर दिया गया। सोहनलाल कहाँ है?
देवराज चौहान की निगाह सुन्दरलाल जी से हटी, वो उठ बैठा और नजरे हर तरफ घूमने लगीं।
नज़रें क्या घूमीं दिमाग गोल-गोल घूमता चला गया। हैरानी और उलझन से देवराज चौहान की आँखें फैलने लगीं। ना समझ में आने वाले भाव उसके चेहरे पर आ ठहरे थे।
ये उसी बंगले का ड्राइंग हॉल था, जहाँ वो इन दिनों नोरा के साथ रह रहा था। ढेर सारे लोग वहाँ पर मौजूद थे और हंसते-मुस्कुराते अन्दाज में उसे देख रहे थे। जब से ये मामला शुरू हुआ, जब सुन्दरलाल जी उसे बेकरी शॉप में मिले थे, उसके बाद से अब तक मिलने वाले लगभग सारे लोगों को यहाँ मौजूद देख रहा था। सुन्दरलाल के अलावा, शिवचंद, जिनकी तस्वीर इस बंगले के कागजों में देखी थी, नोरा, मदन, श्रेया, नीरज, अमन, रीटा, मदन की पत्नी कही जाने वाली सुनीता, मदन का बेटा, विजय, सब-इंस्पेक्टर जीवन ताड़े, प्यारेलाल, रतन सिंह, भानू, प्रेमवती, बाबू, गेट पर खड़ा रहने वाला चौकीदार, सब-इंस्पेक्टर अशोक मावेलकर, मदन के बंगले के दरबान के अलावा वो बदमाश भी थे जो उसका अपहरण करके लाए थे। उन्हीं में से तीन ने श्रेया को उठाया था। इसके अलावा छः लोग और भी थे जिन्हें वो नहीं पहचानता था। सब अपने-अपने अन्दाज में व्यंग भरी नजरों से देवराज चौहान को देख रहे थे।
देवराज चौहान मन-ही-मन सतर्क हो उठा था।
उसे समझते देर नहीं लगी कि वो गहरे षड्यंत्र का शिकार हो चुका है। इन सब लोगों का यहाँ पर एक साथ मौजूद होना किसी गहरी साजिश की तरफ इशारा कर रहा था।
इस वक्त कोई भी नौकर या ड्राईवर या दरबान की वेषभूषा में नहीं था। हर कोई सामान्य कपड़ों में दिख रहा था। कम-से-कम कोई भी पहले जैसे कपड़ों में नहीं था; जैसे कि बाबू...बाबू ने कीमती सूट पहन रखा था और वो किसी भी तरफ से नौकर नहीं लग रहा था। सुन्दरलाल ने टी-शर्ट पहन रखी थी, जीन्स की पैंट के साथ। नोरा ने स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था। श्रेया जीन्स की पैंट और कमीज में थी। सब-इंस्पेक्टर जीवन ताड़े और सब-इंस्पेक्टर अशोक मावेलकर ने कमीज-पैंट पहन रखी थी।
यानि कि हर कोई बदला-बदला सा था।
देवराज चौहान समझने की कोशिश में था कि माजरा क्या है?
इतना तो उसे महसूस हो ही चुका था कि भारी गड़बड़ है।
अगले ही पल उसकी निगाह सैन्टर टेबल पर पड़ी, जहाँ वॉल्ट में लिए केबिन की दोनों चाबियाँ, उसका फोन और पर्स रखा था। देवराज चौहान ने पीछे की तरफ देखा तो होंठ सिकुड़े।
पीछे सोहनलाल बैठा उसे देख रहा था।
“तुम भी बेहोश थे?” देवराज चौहान ने पूछा।
"हाँ! तुमसे दस मिनट पहले ही होश आया। हम कहाँ हैं?" सोहनलाल ने पूछा।
“उसी बंगले पर, जहाँ मैं नोरा के साथ रह रहा था।"
“ओह....।”
“यहाँ क्या हो रहा है?" देवराज चौहान ने पूछा।
“मुझे क्या पता, तुम्हें पता होगा। इन लोगों को तुम जानते हो?” सोहनलाल ने पूछा।
“लगभग सबको जानता हूँ। जब से सूरज वाला मामला शुरू हुआ, तब से जिन-जिन लोगों से मेरा वास्ता पड़ा, वो सब ये ही लोग हैं। इससे ये तो स्पष्ट हो गया कि मैं इनकी गहरी चाल का शिकार हुआ हूँ।"
“कैसी चाल ?"
“अभी मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा कि....।"
तभी बाबू आगे बढ़ा और बेहद नम्र स्वर में बोला।
“मालिक, कॉफी लाऊँ?” बाबू के चेहरे पर मीठी मुस्कान थी।
देवराज चौहान ने बाबू को देखा।
बाबू हौले से हंस पड़ा, फिर बोला---
“चक्कर तो आ रहे होंगे देवराज चौहान साहब को कि क्या हो रहा है?"
"तुम्हें पता है मैं देवराज चौहान हूँ?” देवराज चौहान ने पूछा।
"हाँ!”
“शुरू से पता था?"
“पता था, तभी तो तुम्हें गिरफ्त में लिया, तभी तो सूरज का ड्रामा तुम्हारे सामने रखा। तुम्हें फंसाना जो था, जो कि बेहद कठिन काम लग रहा था और कठिन रहा भी। पर मेरी और शिवचंद की योजना काम कर गई।"
देवराज चौहान ने कुछ दूर खड़ी नोरा को देखकर कहा---
“तुम्हें भी पता था कि मैं देवराज चौहान हूँ?”
“यस माई डियर हसबैंड।" नोरा हंसकर बोली।
"तुम्हें भी?" देवराज चौहान ने श्रेया को देखा।
"हाँ मेरे प्यारे भैया...।" श्रेया ने पहले वाले लहजे में कहा।
“मतलब कि....।" देवराज चौहान ने सुन्दरलाल को देखा--- "सूरज कोई है ही नहीं?"
"है क्यों नहीं?"
तभी उन सात लोगों में से एक आगे बढ़कर कह उठा, जिन्हें देवराज चौहान ने कहीं नहीं देखा था, वो हू-ब-हू देवराज चौहान की आवाज में बोल रहा था--- "मैं हूँ ना फोन पर बात करने वाला सूरज। वैसे तुम कहो कि ठीक तुम्हारे जैसा सूरज कहाँ है, तो वो नहीं है। वो है ही नहीं। वो तो मात्र बातों से खड़ा किया गया सुरज नाम का इन्सानी हव्वा था। सूरज का कोई वजूद है ही नहीं ।"
"तो तुम सूरज बनकर मेरी आवाज में मुझसे बात करते रहे।” देवराज चौहान गंभीर उठा।
“सही समझे.... ।”
“तुम लोगों का आपस में कोई रिश्ता-नाता नहीं है। मैंने ठीक कहा ना?" देवराज चौहान बोला।
“सही समझे....।”
“रिश्ते-नाते होने का ड्रामा मेरे को उलझाने के लिए सामने रखा गया; जैसे कि सुन्दरलाल, नोरा का पापा है या श्रेया, नीरज भाई-बहन हैं या मदन, शिवचंद का भाई है, ये सब कुछ....।"
“सही अन्दाजा लगाया तुमने।" शिवचंद मुस्कुराकर बोला--- “ये सब कुछ तुम्हें उलझाने के लिए स्टेज किया गया और तुम उलझ कर रह गए। पर तुम्हें उलझाना आसान नहीं था। हमारे पसीने छूट रहे थे कि कहीं तुम हमारे झूठ के जाल को समझ ना जाओ। नोरा और श्रेया ने बहुत सफलता से एक्टिंग करके तुम्हें संभाले रखा। मदन ने भी अपना काम बखूबी किया। इनके नाम भी वो नहीं हैं, जो तुम सुन रहे हो। सब नकली नाम तुम्हारे सामने रखे गए हैं। हम सब ने काबिले तारीफ काम किया।"
देवराज चौहान की निगाह मदन पर जा ठहरी।
मदन मुस्कुराया।
“तो तुम मदन नहीं हो?” देवराज चौहान बोला।
“नहीं, मैं मदन नहीं हूँ।” मदन ने मुस्कुराकर इंकार में सिर हिलाया ।
“डायमंड हाऊस से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं है?"
“जरा भी नहीं ।" मदन ने पुनः इंकार में सिर हिलाया।
“और तुम.....।" देवराज चौहान ने विजय को देखा--- "डायमंड हाऊस का काम नहीं संभालते?"
“भगवान का नाम लो।” विजय भी मुस्कुराया--- "मेरी इतनी औकात कहाँ।”
देवराज चौहान ने सब-इंस्पेक्टर मावेलकर से कहा---
"तो मेरी शक्ल देवराज चौहान से मिलती है। इस बात को लेकर तुम इंस्पेक्टर वानखेड़े के पास हैडक्वार्टर गए.... ।”
“देवराज चौहान!" बाबू कह उठा--- “ये सब करना मेरी और शिवचंद की योजना का हिस्सा था, ताकि तुम ऐसे हालातों में घिर जाओ कि तुम्हें एहसास ना हो कि तुम्हारे गिर्द झूठ का जाल फैला हुआ है। हमने कुछ दिन के लिए तुम्हें ऐसी जिन्दगी का हिस्सा बना दिया जो नकली थी; परन्तु तुम्हें वो हकीकत लगे। इसी कारण अशोक मावेलकर तुमसे सब-इंस्पेक्टर बनकर मिला, तुम्हें कहा कि तुम देवराज चौहान जैसे हो। उधर मदन के बंगले के दरबान ने, मावेलकर के सामने तुम्हें सूरज के तौर पर पहचाना, ताकि तुम्हें इस बात का एहसास रहे कि सूरज वास्तव में है। साथ ही बीत रहे हालातों पर तुम्हें यकीन रहे कि सब ठीक चल रहा है।
“और ये अमन-- उस दिन घायल हुआ, मेरे को श्रेया के अपहरण की खबर देने आया....।”
“हाँ!” शिवचंद मुस्कुरा पड़ा--- “इसका घायल होना, चोट असली थी, मैंने मार-मार के अमन को घायल किया था कि उसे देखकर तुम्हें यही लगे कि सब कुछ सच चल रहा है। तुम्हें ऐसा लगा भी, क्यों देवराज चौहान?"
“सच में लगा। झूठ क्या....।” देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता दिख रही थी।
“हमने तुम्हारे सामने ऐसे हालात रखे कि तुम्हें कुछ भी सोचने का मौका नहीं मिल सके।”
“ये रीटा।” देवराज चौहान ने कहा--- "नोरा ने रीटा की पार्टी की तस्वीरें दिखाई थीं।”
“वो तस्वीरें तो हमने पहले ही लेकर तैयार रखी थीं। सफेद चमकती साड़ी में नोरा उस रात तुम्हें दिखाने के लिए श्रेया के साथ पार्टी में गई थी; परन्तु पार्टी तो कहीं भी नहीं थी। वो तस्वीरें तो हमने पहले से ले रखी थीं। सारी योजना पूरी तरह तैयार थी पहले से ही। किसने तुमसे क्या बात करनी है, कब करनी है, ये सब हमारे इशारे पर हो रहा था।"
“और नोरा मुझे सूरज के बारे में जो कुछ भी कहती रही, वो सफेद झूठ था।"
“पूरी तरह। नोरा ने वास्तव में तुम्हें खूब उलझाया। हमारे इशारे पर सारा खेल तो नोरा ने ही खेला ।"
जवाब में नोरा मुस्कुराई।
"मतलब कि सुन्दरलाल के मिलने के बाद मेरे सामने जो कुछ भी आया, वो सब नकली, बनावटी था?"
“सही कहा तुमने देवराज चौहान।"
“तुम भी नकली पुलिस वाले हो?” देवराज चौहान ने जीवन ताड़े से पूछा।
“पूरा नकली हूँ।" जीवन ताड़े मुस्कुराया--- "असली पुलिस को देखकर तो मेरी हवा निकलती है।"
“तो जबर्दस्त खेल, खेला गया है मेरे साथ?” देवराज चौहान की निगाह बारी-बारी सब पर जा रही थी।
“मुझे शक था कि कहीं तुम्हें शक हो गया तो...।" शिवचंद ने कहना चाहा।
“जो कि नहीं हो सका। हमारी योजना ही ऐसी रही कि तुमने वही सोचा, जो हमने चाहा ।
“तो तुम सब जानते थे कि मैं देवराज चौहान हूँ।”
"डकैती मास्टर देवराज चौहान। "
“मेरे से खेल खेलते तुम लोगों को डर नहीं लगा?” देवराज चौहान ने शिवचंद और बाबू को देखा।
कुछ चुप रहकर बाबू ने गंभीर स्वर में कहा---
"सही बात तो है कि डर जरूर लगा; परन्तु इतना भी नहीं लगा कि हम अपने इरादे से पीछे हट जाएं। हमें अपना काम करना था, मंजिल पानी थी। खतरा तो जिन्दगी में सड़क पार करते वक्त भी रहता है कि कोई गाड़ी....!"
"ये सड़क पार करने वाला खतरा नहीं था, ये मौत का खतरा था।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
“तुम कुछ भी कहो, इस वक्त तुम हार चुके हो। गेम मेरे हाथ में....।"
“वो तिजोरी और बंगले की फाईल का क्या चक्कर है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"बंगले की फाईल नकली थी। धोखा देने के लिए बनाई गई थी। ये बंगला हमारा नहीं है, हमने इसे किराये पर ले रखा है।
मदन वाला बंगला भी किराये पर ले रखा है। बंगले की फाईल इसलिए तैयार करवाई गई कि फाईल को देखने के बाद तुम्हे ये मामला गंभीर लगे। सूरज का वजूद लगे। दो सौ करोड़ के बंगले के तुम्हारे नाम होने पर तुम सोचो कि वास्तव में कोई सूरज है।"
"खूब!" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "बहुत समझदारी से अपनी योजना लेकर चले हो। तिजोरी में रखी दौलत के बारे....।"
"वो नकली गड्डियां थीं। आगे की कुछ गड्डियां ही असली थीं, पीछे की गड्डियों में सिर्फ ऊपर-नीचे असली नोट थे, लेकिन हालातों ने तुम्हें उस वक्त ऐसा जकड़ लिया था कि तुम्हें सब सच लगा। यहाँ रखा सोना, हीरे-जवाहरात सब नकली था। ये तुम सोच भी नहीं सकते थे और उन्हें परखने का वक्त तब तुम्हारे पास था ही कहाँ.....।"
देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर सोहनलाल को देखा, फिर कहा---
“सुना तुमने?”
"सुन रहा हूँ। मेरा तो सिर घूम गया है, इस झूठ के जाल को सुनकर हैरानी है कि किसी भी मौके पर तुम्हें शक नहीं हुआ कि.... ।”
"हुआ होता तो बात यहाँ तक पहुँचती ही नहीं, मामला पहले ही खत्म हो जाना था।" कहते हुए देवराज चौहान ने अपनी जेब टटोली। लाईटर-सिगरेट जेबों में था। उसने सिगरेट सुलगाई----फिर धीमे से बोला---- "तुम्हारे पास फोन है?"
"हाँ!" सोहनलाल ने देवराज को देखा।
“मौका पाते ही जगमोहन का नम्बर मिलाकर, फोन जेब में रख लो, ताकि यहाँ होने वाली बातों को वो सुनता रहे। बीच में जगमोहन को सुनाने के लिए बोल देना कि इस वक्त हम नोरा वाले बंगले पर हैं।" देवराज चौहान का स्वर बेहद धीमा था।
सोहनलाल ने सिर हिलाया, फिर कह उठा---
“लेकिन ये सब खेल, तुम्हारे साथ क्यों खेला गया?"
“इसका जवाब भी ये लोग ही देंगे।" देवराज चौहान ने शिवचंद और बाबू को देखा--- "इतना तो स्पष्ट है कि इतना बड़ा जाल कोई करामाती दिमाग ही फैला सकता है। तुम दोनों साधारण लोगों में से तो नहीं लगते?"
“सही कहा।" बाबू मुस्कुराया--- साधारण लोग तो इतनी गहराई तक सोच ही नहीं सकते......।"
सोहनलाल जरा-सा देवराज चौहान की पीठ की ओट में हो गया था और पलक झपकते ही जगमोहन का नम्बर मिलाया और फोन वापस अपनी कमीज की ऊपरी जेब में रखकर वापस सीधा होकर बैठ गया। चंद पल ही बीते होंगे कि सोहनलाल के कानों में फोन से निकलती जगमोहन की हैलो-हैलो सुनाई देने लगी।
“मुझे तो लगता है हम मुसीबत में हैं।" जगमोहन को सुनाने के लिए सोहनलाल ने देवराज चौहान से कहा--- "इन लोगों के इरादे ठीक नहीं लग रहे। वॉल्ट से निकलते ही ये लोग हमें बेहोश करके नोरा वाले बंगले पर ले आये....।"
देवराज चौहान समझ गया कि सोहनलाल ने जगमोहन को कॉल मिला ली है।
“मेरे ख्याल में....।” देवराज चौहान बोला--- "इनकी नजर उस दौलत पर है, जो हमने मदन के केबिन से निकालकर अपने केबिन में रखी है। "
तभी शिवचंद बोला---
“अब हमें खुलकर बात कर लेनी चाहिए देवराज चौहान।" इसके साथ ही शिवचंद ने एक कुर्सी उठाकर देवराज चौहान के पास रखी और बैठने के बाद दादाओं को इशारा करके कहा--- "पास आ जाओ। क्या भरोसा देवराज चौहान शेर की तरह मुझ पर झपट पड़े और मेरे जैसे कमजोर आदमी का दिल बैठ जाए।"
वो छः दादा लोग करीब आकर खड़े हो गए।
देवराज चौहान ने कश लेते हुए उन सबको देखा। फिर शिवचंद से कहा---
“मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही।"
“पूछो...क्या?” शिवचंद बोला।
“सबने मेरे से झूठ बोला, लेकिन मैं किसी को पकड़ क्यों नहीं सका कि मेरे से ड्रामा किया जा रहा है?"
“तुम्हें तुम्हारे हर सवाल का जवाब मिलेगा। अब मैं जो कह रहा हूँ, वो सुनते रहो। फिर भी कुछ रह जाए तो तुम पूछ सकते हो। तो मैं अपनी बातें कहने जा रहा हूँ, तुम्हें ध्यान से सुननी हैं, तभी हालातों को समझ सकोगे।”
देवराज चौहान की निगाह शिवचंद पर जा टिकी।
पास बैठा सोहनलाल, जगमोहन को सुनाने के लिए बोला---
“मैं भी सुन सकता हूँ।” शिवचंद ने सोहनलाल पर नजर मारी, फिर गंभीर स्वर में कह उठा---
“अब तक तुम्हारे साथ खेल हो रहा या देवराज चौहान; परन्तु आने वाला वक्त खेल का नहीं है। इस बात का एहसास तुम्हें जल्द ही हो चलेगा। जो खेल हुआ, वो होना जरूरी था, वो तुम्हारे लिए खेल रहा होगा; परन्तु हम लोगों के लिए वो कड़ी परीक्षा थी, कि तुम्हें उलझा के रखें और शक ना होने दें कि सब कुछ नकली है। तुम्हें हर तरफ असली का एहसास होना चाहिए। ऐसा ही हुआ भी....।”
देवराज चौहान की निगाह शिवचंद पर टिकी थी।
“देवराज चौहान!” शिवचंद पुनः कह उठा--- "इस गेम के बावन के बावन पत्ते हमारे हाथ में थे। उन पत्तों में शामिल तुम्हारी हैसियत उस जोकर की तरह थी कि जो हम चाहें, वो ही तुम सोचो। जो हम चाहें, वो ही तुम करो; जैसे कि गेम में जोकर को हर जगह फिट किया जा सकता है और गेम पूरी की जाती है, उसी तरह तुम्हें भी हम अपनी गेम में फिट करते रहे और तुम होते चले गए। जो हम चाहते थे, वो ही तुमने किया, वैसा ना करते तो नोरा ने तुम्हें वो रास्ता सुझाना था; परन्तु तुम खुद ही उस रास्ते पर चल पड़े।”
“कौन-सा रास्ता ?”
“मदन का केबिन लूटने का; परन्तु इस बारे में नोरा को मेहनत नहीं करनी पड़ी। तुम स्वयं ही मदन का केबिन खाली करने को कहने लगे और हमारी राह आसान होती चली गई। " शिवचंद मुस्कुराया--- “जबकि रास्ता कठिनाइयों से भरा था, क्योंकि हम तुम्हें भी कम नहीं आंक रहे थे, लेकिन तुम जैसे जोकर की वजह से हमारी गेम ओवर हो गई। हम जीत गए।”
“जीत गए?” देवराज चौहान मुस्कुराया।
“बेशक!”
“जीत का झंडा कहाँ है? मुझे तो ये भी नहीं पता कि तुम लोग चाहते क्या हो?"
“मदन की दौलत जो केबिन में पड़ी थी, जो कि अब तुम्हारे केबिन में पहुँच चुकी है।"
“वो तो मेरे केबिन में है। मेरी है।”
“तुम्हारा कुछ भी नहीं है...जोकर का कुछ भी नहीं होता, वो तो सिर्फ जोकर होता है, गेम जिताने के लिए होता है। तुम वो सारी दौलत हमें लाकर दोगे, वो सिर्फ हमारी है।" शिवचंद के स्वर में विश्वास भरा था।
कुछ खामोश रहकर देवराज चौहान बोला---
"ये मामला शुरू कैसे हुआ?"
शिवचंद ने गर्दन घुमाकर बाबू को देखा।
“एक रहस्य और खोल देते हैं तुम्हारे सामने।" बाबू बोला--- “इसे मेरे और शिवचंद के अलावा और कोई नहीं जानता।"
देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।
"दरअसल ये मामला, इसके मास्टरमाइंड हम नहीं, कोई और है।"
“कोई और?” देवराज चौहान के होंठों से निकला--- “तुम दोनों के अलावा...तीसरा ?”
“सही कहा। हम तो मामूली से ठग जालसाजी करने वाले लोग हैं। हमने सिर्फ इस मामले को संभाला है। प्लानिंग हमें दे दी गई। हर तरह की सहायता हमें हासिल थी, जो तैयारी हम कर सकते थे, हमने की; जैसे कि यहाँ खड़े लोगों को तुम देख ही रहे हो। तुमने कहा था कि झूठ के जाल का तुम्हें एहसास क्यों नहीं हुआ? तुम्हें ये क्यों नहीं लग पाया कि किसी भी मौके पर नोरा झूठ बोल रही है, श्रेया झूठ बोल रही है या मदन या सुन्दरलाल या कोई और झूठ बोल रहा है, तुम किसी को भी भांप नहीं पाए। दरअसल ये सब लोग फिल्मी कीड़े वाले लोग हैं, यानि कि एक्टिंग इन्हें आती है; परन्तु कभी चाँस नहीं मिल पाया एक्टिंग करने का। ऐसे में इन्हें मैंने और बाबू ने तलाशा और एक्टिंग का मौका दिया। तुम देख ही रहे हो कि इन्होंने कैसी दमदार एक्टिंग की। ये सब असली एक्टर हैं। अगर मुझे कभी फिल्म बनाने का मौका मिला, तो मैं इन्हें चाँस जरूर दूंगा, साथ ही ये लोग पैसों के मोहताज थे। फिल्मों में काम ना मिलने की वजह से गरीबी की जिन्दगी जी रहे थे। मैंने इन्हें बढ़िया एक्टिंग करने की एवज में मोटा पैसा देने का वादा किया। वादा ही नहीं किया, अब इन्हें पैसा मिलेगा भी । पचास-पचास लाख सबको। नोरा को, श्रेया को एक-एक करोड़। अब ये सब पैसा मिलने का ही इन्तजार कर रहे हैं कि पैसा मिले तो अपनी जिन्दगी नये सिरे से शुरू करें और वो पैसा तुम्हारे पास है। लक्ष्मीचंद प्राईवेट वॉल्ट में, तुम्हारे केबिन में।"
देवराज चौहान की निगाह सब पर गई।
“तुम शुरू से ही हमारी नजर में हो। सुन्दरलाल से मिलने से पहले और बाद में, तुम हर वक्त हमारी नजरों में रहे। तुम्हारी हरकतें हम जानते रहे कि तुम क्या कर रहे हो। एक-एक चीज की सैटिंग की हमने, उसके बाद ही हमने अपनी गेम शुरू की और सुन्दरलाल उस बेकरी में तुमसे मिला। उसके बाद तो हमने तुम्हें जाल में ऐसा जकड़ा कि तुम्हें सोचने का भी मौका नहीं मिला और पानी की धारा की तरह तुम हमारे इशारों पर बहते चले गए।"
“मेरी टांग और कंधे के तिलों के बारे में तुम्हें कैसे पता चला?” देवराज चौहान ने पूछा।
“तुम्हारे बाथरूम में, बैडरूम में, बंगले के हॉल में बीते तीन महीनों से C.C.T.V. कैमरे लगे हैं। अब तो तुम समझ गए होगे कि हमें तिलों के बारे में कैसे पता चला? इधर तुम नोरा या श्रेया के साथ बैडरूम में जो बातें करते थे, वो बाबू सुनता रहता था। कमरों में माईक्रोफोन लगे हैं जो कि सब की आवाजों को बाबू तक पहुँचाते थे। इससे बाबू को ये पता चल जाता कि तुम क्या सोच रहे हो। क्या करने वाले हो, उसी के हिसाब से हम आगे का प्रोग्राम बना लेते कि तुम्हें कैसे संभालना है या अब तुम्हारे साथ कैसे पेश आना है। नोरा को हर कदम पर हम समझा देते थे कि तुमसे अब क्या और कैसे बात करनी है। हमने एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखा....और आखिर हम जीत ही गए।"
“मेरे को ढूंढा कैसे?” देवराज चौहान ने पूछा।
“हमने नहीं ढूंढा, तुम्हें उसी ने ढूंढा जिसकी ये प्लानिंग है, जिसके इशारे पर ये हुआ।"
“मतलब कि इस काम का तुम लोगों को भी पैसा मिलने वाला है?”
“क्यों नहीं!” शिवचंद मुस्कुराया ।
“कितना?”
“पन्द्रह-पन्द्रह करोड़।" बाबू कह उठा ।
“मोहरों को काफी बड़ी रकम मिल रही है।" देवराज चौहान ने कहा ।
“हम मोहरे नहीं हैं। हमने पूरे मामले को संभाला है। प्लान हमें दिया गया था, मैदान में हम रहे। हमने सब कुछ सफलता से किया।” बाबू बोला--- “अगर तुम हालातों को भांप जाते तो खतरे में हम पड़ते, प्लानर तो पीछे आराम से बैठा रहता। हम..... ।”
“प्लानर कौन है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“उसके बारे में नहीं बता सकते।” शिवचंद ने इंकार में सिर हिलाया ।
"क्यों?"
"वो सामने नहीं आना चाहता। वो सिर्फ हमसे ही बात करता है, तुम्हें उसके बारे में सोचने की जरूरत नहीं है।"
"मुझे तो सब से ज्यादा सोचने की जरूरत है उसके बारे में, क्योंकि मेरा रास्ता उसने ही रोका है।"
“उसे भूल जाओ। तुम्हारा मतलब सिर्फ हमसे है। जब तुम वॉल्ट से निकले तो तुम पर नजर रखने वाले आदमियों ने हमें खबर दी कि तुम वॉल्ट से बाहर आ गए हो। तब नोरा ने तुम्हें फोन किया और तुमने बताया मदन का केबिन तुमने खाली कर दिया है और सामान अपने केबिन में रख दिया है, तो हमने तुम्हें उठवा लिया, क्योंकि बहुत बड़ी दौलत तुम्हारे कब्जे में पहुँच चुकी थी। ऐसे में तुम गायब भी हो सकते थे या फिर अपनी जुबान के मुताबिक पचास करोड़ तुम नोरा के हवाले भी कर देते थे, तब भी कोई फायदा नहीं था, क्योंकि तुम्हारे पास काफी ज्यादा रह.... ।”
"ये कैसे पता चला कि मदन नाम के इन्सान ने केबिन में इतनी बड़ी दौलत रखी है?" देवराज चौहान ने पूछा।
“ये बात प्लानर को पता थी।"
"कैसे?"
"उसने हमें नहीं बताया।”
“तुम्हारा मतलब कि प्लानर ने ही मुझे ढूंढा। प्लानर को ही पता था, वॉल्ट के केबिन में मदन की इतनी बड़ी दौलत मौजूद है। ऐसा तो नहीं हो सकता कि वो सारे काम तुम्हारे हवाले करके अपनी आँखें बंद कर ले।"
"हमने ऐसा कब कहा उसने आँखें बंद कर रखी हैं।" बाबू मुस्कुराया ।
“वो तुम लोगों से बीच-बीच में मिलता भी रहता होगा?"
“एक बार भी नहीं, परन्तु फोन पर उससे रोज ही बात होती थी, आज भी हुई। उसी ने कहा था कि तुम्हें उठा लिया जाए और दौलत तुमसे ले ली जाए।" शिवचंद बोला--- "अब जल्दी करो। सबने नोट लेकर अपने-अपने रास्ते पर लग जाना है। तुम में से एक हमारे पास बंधक रहेगा और एक लक्ष्मीचंद वॉल्ट में जाएगा दौलत लेने, फिर.... ।”
“तुम बहुत जल्दी कर रहे हो।" देवराज चौहान बोला।
“जल्दी ?”
"तुमने कैसे सोचा कि मैं दौलत तुम लोगों के हवाले कर दूंगा?"
"नहीं करोगे?" "नहीं! वो मेरी है, उसे मैंने हासिल किया है।"
"तुमने हासिल नहीं किया। दौलत तक पहुँचने की राह तो हमने ही तुम्हें दिखाई थी।"
"कितना माल होगा?" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर पूछा।
"नहीं मालूम। प्लानर ने हमें इतना ही बताया है कि दौलत बड़ी है।"
"तुम दोनों को सिर्फ पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ मिल रहा है। ये तो बहुत कम है।"
"हमारी औकात के हिसाब से ये भी ज्यादा है। तुम वॉल्ट में चलो ओर....।"
“वो दौलत दो सौ करोड़ से भी ज्यादा की है।" देवराज चौहान बोला।
“इतनी ज्यादा?” बाबू के होंठों से निकला।
शिवचंद ने बाबू से कहा
“कितनी भी हो, हमें पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ काफी हैं।"
“मतलब कि बाकी की सारी दौलत वो प्लानर ले लेगा। तुम लोग घाटे में रहे। सौदा आधे में होना चाहिए।"
“तुम्हें नहीं पता हमारे लिए पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ बहुत बड़ी रकम है।" शिवचंद मुस्कुराकर बोला--- “अब तुम्हें जल्दी से वॉल्ट की तरफ चल देना चाहिए। शाम होने को है। सात बजे वॉल्ट बंद हो जाता है, फिर सुबह नौ बजे खुलेगा।"
देवराज चौहान ने नई सिगरेट सुलगाई।
तभी सोहनलाल ने कहा---
“प्लानर कौन हो सकता है?"
"कोई भी हो सकता है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
“मेरे ख्याल में तुम्हारा इरादा इन्हें पैसे देने का तो नहीं है?" सोहनलाल ने पूछा।
“पैसा इनका नहीं है।” पास में कुर्सी पर बैठा शिवचंद कह उठा---
“वो पैसा हमारा है। उसे हमारे हवाले करो देवराज चौहान।" आवाज कुछ सख्त हुई।
“प्लानर ने तुम्हें क्या कहा कि देवराज चौहान पैसा तुम दोनों के हवाले कर देगा?"
शिवचंद की आँखें सिकुड़ी।
बाबू अपनी जगह से हिला और देवराज चौहान के पास पहुंचकर बोला---
"वो सारी दौलत तो तुम्हें हमारे हवाले करनी ही होगी।"
"ऐसा सोचना भी छोड़ दो।"
"हम तुम्हें जान से मार देंगे।" बाबू के दांत भिंच गए।
"नहीं मार सकते। इस आशा के तहत जिन्दा रखोगे मुझे कि शायद मैं तुम लोगों को पैसा दे दूँगा।"
"केबिन से तो सोहनलाल भी पैसा निकालकर ला सकता है...।"
"गलत सोच रहे हो। जब तक हम दोनों वॉल्ट के रजिस्टर पर साईन नहीं करेंगे, तब तक हमें वॉल्ट के केबिन तक नहीं पहुँचने दिया जाएगा, कोई एक अकेला केबिन नहीं खोल सकता।"
"तुम झूठ कह रहे हो।"
"वॉल्ट से इस बात की पूछताछ कर लो।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"तुम पैसा देते हो या नहीं ?"
"नहीं!" देवराज चौहान ने कश लेते हुए कहा।
बाबू का चेहरा गुस्से से भर उठा।
"शांत बाबू शांत।" शिवचंद ने बाबू की बाँह थपथपाई--- "ये मत सोचो कि सारे काम जल्दी से हो जाएंगे। कामों में वक्त लगता है, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।"
बाबू क्रोध भरे अंदाज में वहाँ से हट गया।
"बाबू को जब गुस्सा आता है तो ये अपने होश खो बैठता है। समझदारी से काम लो देवराज चौहान। हमसे ठीक तरह पेश आओ। सारे काम के दौरान हमने तुम्हें कोई तकलीफ नहीं दी, सब कुछ प्यार से.... ।”
“श्रेया को मदन की कैद से निकालना भी ड्रामा था?" देवराज चौहान ने पूछा।
"पूरी तरह ड्रामा था। मैंने तुमसे कहा है कि ताश के 'बावन पत्ते' हमारे हाथ में थे। तुम जोकर की तरह, वो ही कर रहे थे जो हम चाहते थे। तुम मदन पर नजर रखवा रहे थे, सोहनलाल और जगमोहन से, जबकि हमारे लोग उन दोनों पर नजर रखे थे। एक बार फ्लैट तक तुम पहुँच गए, जहाँ श्रेया थी; परन्तु हम नहीं चाहते थे कि तुम्हें महसूस हो कि तुमने आसानी से श्रेया को ढूंढ निकाला है। ऐसे में हमने जगमोहन को बेहोश किया और श्रेया को गोरेगाँव के एक फ्लैट में रख दिया। उसके बाद जब हमने चाहा, तब तुम श्रेया के पास पहुँचे। तुमने सोचा कि तुमने श्रेया को ढूंढ निकाला है।"
"बहुत गहरा खेल खेला है तुम लोगों ने।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"भैया!" कुछ दूर खड़ी श्रेया कह उठी--- "मैंने भी खूब एक्टिंग की, तुम्हें उल्लू बनाने की।"
देवराज चौहान श्रेया को देखकर मुस्कुराया ।
तभी मदन कह उठा---
"मैंने तो तुम्हें पूरी तरह बेवकूफ बना दिया। तुम नहीं समझ सके कि मैं नकली मदन हूँ।"
“मेरी जगह कोई और होता तो वो भी इसी तरह बेवकूफ बनता। तुम लोगों ने सब कुछ ऐसे किया कि कोई सोच भी नहीं सकता था कि जिन्दगी के ये दिन उसके लिए पूरी तरह नकली हैं। सब लोग नकली हैं।" देवराज चौहान ने कहा।
"ऐसा झटका तुमने पहले कभी नहीं खाया होगा।" अशोक मावेलकर बोला।
“तुम लोगों ने.... ।” देवराज चौहान ने अशोक मावेलकर को देखा--- “वानखेड़े के बारे में कैसे जाना?"
“तुम्हारे बारे में सारी जानकारी इकट्ठी की।" बाबू बोला--- “ये बातें जानने में हमें काफी वक्त लग गया।"
“तो मैं ये मानूं कि सारा कमाल प्लानर का है।"
“उसी का ही कमाल रहा। हम तो उसके कहे मुताबिक काम पूरा कर रहे थे। जहाँ-जहाँ हमें मेहनत करनी थी, वहाँ हमने की। ऐसे में मुफ्त का पन्द्रह करोड़ नहीं मिल रहा हमें।" शिवचंद बोला--- “अब मदन की दौलत हमारे हवाले कर दो।"
“सोचो भी मत कि मैं ऐसा करूंगा।" देवराज चौहान बोला--- “एक पैसा भी तुम लोगों को नहीं मिलेगा।”
“सोच लो ।” शिवचंद का स्वर धमकी भरा हो गया।
“सोचने की जरूरत नहीं है, वो दौलत तुम लोगों की नहीं.... ।”
“मैं बात करूँ?” तभी नोरा की आवाज आई।
शिवचंद ने नोरा की तरफ देखा ।
देवराज चौहान की नजर भी उसकी तरफ उठी ।
"तुम?"
"अगर तुम्हें ऐतराज ना हो तो।" नोरा ने पुनः कहा।
"तुम क्या बात करोगी? ये बातें.... ।”
"शिवचंद... तुम ये क्यों भूलते हो कि मैंने कुछ दिन देवराज चौहान के साथ इसकी पत्नी के रूप में बिताये हैं।" नोरा मुस्कुराकर कह उठी--- "मेरे बात करने से फायदा हो-ना-हो, लेकिन नुकसान नहीं होगा।" कहते हुए नोरा पास आ गई।
"ठीक है।" शिवचंद ने सिर हिलाया--- "करो....।"
"अकेले में।" नोरा बोली।
"हमारे सामने क्यों नहीं?"
"बेशक नकली ही सही, पर पति-पत्नी के बीच की बातों से तुम्हें क्या वास्ता। मैं पूरी कोशिश करूंगी के देवराज चौहान तुम्हें दौलत देने को तैयार हो जाए। नाराजगी वाली नौबत नहीं आए।" नोरा ने कहा।
"इसे बात कर लेने दो शिवचंद।" बाबू ने कहा।
बाबू कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। पास खड़े आदमियों को भी वहाँ से हटने का इशारा किया।
वे सब दूर चले गए। शिवचंद और बाबू भी।
नोरा कुर्सी पर बैठी और देवराज चौहान को देखकर धीमे, सामान्य स्वर में बोली---
“तुम बहुत अच्छे इन्सान हो।"
देवराज चौहान की निगाह नोरा के खूबसूरत चेहरे पर ही रही।
“इसकी बातों में मत फंसना ।" पास बैठा सोहनलाल कह उठा।
“तुम्हारे पास भरपूर मौका था देवराज चौहान कि तुम मेरे साथ अपनी रातें रंगीन कर सको, लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया। तुमने बहाना बनाया और मेरे से दूर रहे। मैंने ऐसा इन्सान पहले कभी नहीं देखा। लोग तुम्हें डकैती मास्टर देवराज चौहान कहते हैं, हो सकता है तुम्हें बुरा भी कहते हों, परन्तु मेरी नजरों में तुम देवता जैसे हो। तुमने हमारे झूठ के जाल में फंसने के बाद कोई भी काम ऐसा नहीं किया कि तुम्हें कोई बुरा कह सके। तुमने श्रेया को कैद से छुड़ाया। बेशक वो ड्रामा था; परन्तु तुम तो हकीकत में श्रेया को छुड़ा रहे थे। तुमने तिजोरी देखी, बेशक हीरे-जवाहरात नकली थे, बेशक वहाँ नोटों की कोरी गड्डियां रखी थीं, परन्तु तुम्हारा ईमान दौलत देखकर भी नहीं बिगड़ा। तुम शानदार इन्सान हो । मैं फिर कहती हूँ कि मैंने तुम जैसा अच्छा इन्सान पहले कभी नहीं देखा।" नोरा गंभीर दिख रही थी।
"ये तुम्हें अपनी बातों के जाल में फंसा रही है।" सोहनलाल बोला ।
"तुमने सुना ही होगा कि मुझे एक करोड़ मिलने वाला है।" नोरा ने पुनः धीमे स्वर में कहा--- "पैसे की मुझे सख्त जरूरत है, तभी मैं इस काम में शामिल हुई। तुम शायद ना समझ सको कि पैसे की क्या जरूरत होती है, जब पास में कुछ ना हो तो क्या हाल होता है। फिल्मों में मुझे काम नहीं मिल रहा, इस करोड़ से मैंने अपनी जिन्दगी को स्थाई बनाना था। शादी करने की सोच रही हूँ कि जिन्दगी किसी किनारे पर लगे। मैं....।"
"तो तुम चाहती हो कि मदन का पैसा मैं इन ठगों के हवाले कर दूँ।" देवराज चौहान बोला।
"मैं तुमसे ऐसा नहीं कहने जा रही।"
"तो?"
"मैंने सिर्फ इतना कहना था कि तुम्हारे मन में जो आए वो करो। बेशक पैसा मत दो, लेकिन साथ में ये भी समझ लो कि ये लोग शरीफ नहीं हैं। तुम पैसा नहीं दोगे, तो ये तुम्हें छोड़ने वाले नहीं।"
"जानता हूँ।"
“तुम्हें डर नहीं लग रहा?”
"इन बातों से मुझे डर नहीं लगता।"
“वो तो मैं देख ही चुकी हूँ कि तुमने मदन से कैसे बात की थी।" नोरा बोली--- "ये बताओ, मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?"
"मेरे लिए?”
"इस वक्त तुम मुसीबत में फंस चुके हो, मैं तुम्हारे काम आना चाहती हूँ, तुम्हें यहाँ से भगाने में मदद करूँ?"
“इतने लोगों की मौजूदगी में तुम मेरी मदद नहीं कर सकतीं। इस मामले का मास्टरमाइंड कौन है?" देवराज चौहान ने पूछा।
“मैं नहीं जानती। मुझे अभी पता चला है कि इन दोनों के पीछे कोई तीसरा भी है।" नोरा बोली।
"उसका नाम भी नहीं जानतीं?"
“बोला तो, मैंने उसके बारे में अभी से पहले नहीं सुना।" देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"मैं कोशिश करूंगी कि किसी तरह तुम्हारे काम आ सकूँ।" नोरा ने कहा और कुर्सी से उठकर शिवचंद, बाबू को देखकर बोली--- "ये पैसा देने को तैयार नहीं है। कहता है नहीं दूंगा।"
"इसे तैयार करने के लिए डण्डा घुमाना पड़ेगा।" बाबू गुर्रा उठा--- "वो दौलत तो इसे देनी ही होगी।"
"देगा....देगा।" शिवचंद मुस्कुराया--- "इतनी बड़ी दौलत देने के लिए कोई एकदम से तैयार कैसे होगा। देवराज चौहान को भी तो सोचने-समझने का वक्त चाहिए। मैं तो इसे....।"
तभी शिवचंद का फोन बजने लगा।
शिवचंद ने फोन पर बात की। मिनट भर बात के बाद फोन जेब में रखा और आगे बढ़ता बोला--- "देवराज चौहान का फोन तो टेबल पर रखा है, तुम्हारा फोन कहाँ है सोहनलाल ?”
सोहनलाल चौंका। देवराज चौहान की आँखें सिकुड़ीं।
शिवचंद ने झुकते हुए सोहनलाल की कमीज की जेब से फोन निकाल लिया।
“तुम दोनों क्या सोच रहे थे कि यहाँ होने वाली बातचीत जगमोहन को सुनाकर, उसे सहायता के लिए बुला लोगे? क्यों देवराज चौहान, यही सोचा था ना तुमने? तभी कॉल मिलाकर फोन खुला छोड़ दिया।”
देवराज चौहान की निगाह शिवचंद पर टिकी रही।
"तुम दोनों को पकड़ लिया तो हम जगमोहन को कैसे आजाद रहने दे सकते हैं। जब उसके पास हमारे आदमी पहुँचे तो वो अपने बंगले पर बैठा, मजे से फोन पर यहाँ होने वाली बातों को सुन रहा था। समझे क्या--- तुम्हारी ये चाल भी फेल हो गई कि जगमोहन इस स्थिति में तुम्हारे काम आ सकेगा।"
“जगमोहन कहाँ है?” देवराज चौहान के माथे पर बल उभरे।
"हमारे पास है और सुरक्षित है; जैसे कि तुम सुरक्षित हो। हम खून-खराबा करने वाले लोग तो हैं नहीं, तो तुम कह रहे थे कि हम तुम्हें नहीं मार सकते। सोहनलाल को नहीं मार सकते, क्योंकि तुम दोनों के साईन के बिना वॉल्ट का केबिन नहीं खुलेगा। माना; परन्तु हम जगमोहन को तो मार सकते हैं।"
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता दिखी।
“सोच लो देवराज चौहान। अभी भी बावन के 'बावन पत्ते हमारे हाथ में हैं और तुम्हारी स्थिति ताश के जोकर जैसी ही बनी हुई है। तुम्हें वो ही करना होगा, जो हम कहेंगे, नहीं तो जगमोहन नहीं बचेगा।"
"जिन्दगी का खेल बावन पत्तों से नहीं खेला जाता शिवचंद....।" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा--- "बावन पत्ते होना, जोकर होना, ये महज कोरी कल्पना है, जिन्दगी में पलों का कोई महत्व नहीं होता। तुम भूले जा रहे कि तुम किसके सामने खड़े, जगमोहन की जान लेने की धमकी दे रहे हो। मैं तुम्हें....।"
"तुम हमारी कैद में हो। तुम्हें हमारी बात माननी ही होगी बाबू कह उठा--- "नहीं मानी तो हम जो चाहे तुम्हारे साथ कर सकते हैं...और तुम अपने बचाव में कुछ भी नहीं करोगे।"
"तुम लोगों को जो करना है करो।" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा।
“तो दौलत हमारे हवाले नहीं करोगे?"
"नहीं!"
"जगमोहन को मार दें?" बाबू के दांत भिंच गए।
"तुम लोगों को समझ नहीं आ रहा कि किसके सामने खड़े, क्या कह रहे हो?" देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।
तभी वो बदमाश जैसे छः आदमी देवराज चौहान के पास आ पहुँचे।
देवराज चौहान ने उन छः पर नजर मारी। चेहरे पर कठोरता ठहरी हुई थी।
सोहनलाल नीचे ही बैठा रहा।
“पकड़ लो इसे।” शिवचंद बोला।
अगले ही पल उन छः बदमाशों ने देवराज चौहान को पकड़ में ले लिया।
देवराज चौहान ने खुद को छुड़ाने की चेष्टा नहीं की।
“बाबू!" शिवचंद गंभीर स्वर में बोला--- "देवराज चौहान को साधारण ढंग से कही गई बात समझ में नहीं आ रही। इसके हाथ-पाँव बांधो। ऊपर कमरे में ले जाओ। कल सुबह तक इसकी तगड़ी ठुकाई करो, तब भी ना समझे तो जगमोहन को मार दो। उसके बाद क्या करना है, वो फिर सोचूंगा। कल हमें हर हाल में दौलत मिलनी चाहिए। इतने लम्बे खेल के बाद अब और इन्तजार नहीं होता। हमें भी अपनी जिन्दगी जीने के लिए यहाँ से निकलना है।" फिर शिवचंद ने वहाँ मौजूद सब लोगों से कहा--- "तुम सब लोग रात इसी बंगले पर बिताओगे और कल अपने अपने हिस्से का पैसा लेकर जाओगे।"
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