फोन बंद करने के दो मिनट बाद ही, बंगले के पोर्च में कार रुकने की आवाज आई और फिर देखते ही देखते देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया।

"कृष्णलाल के यहां फोन किया था।" - जगमोहन बोला-

मालूम पड़ा कि तुम वहां से चल पड़े हो। " 


— "देवराज चौहान ने सिर हिलाया और आगे बढ़कर सोफे पर बैठा और सिगरेट सुलगा ली।  


जगमोहन की निगाह, देवराज चौहान पर थी। 


"कृष्णलाल से क्या बात हुई? " जगमोहन ने पूछा। 


"हां" देवराज चौहान ने कश लेकर सिर हिलाया- "लगता नहीं कि बात बनेगी।


"क्यों?"  


"वो गोलकुंडा की खान से कभी निकला बेशकीमती हीरा, बीते वक्त के 'निजाम' के यहां से उड़ाना चाहता है। उस हीरे का नाम दरिया-ए-नूर है। जो कि मशहूर हीरा है। " देवराज चौहान बोला- "उस हीरे को दरिया-ए-नूर इसलिए कहा जाता है कि वो बेशकीमती हीरा किसी शीशे की तरह साफ है और रात के वक्त में उसमें से इतनी ज्यादा रोशनी निकलती है कि लगतार उसे देखा नहीं जा सकता।"


जगमोहन, देवराज चौहान को देखता रहा।


"कृष्णलाल बोलता है कि उस हीरे को निजाम के यहां से लाने की एवज में, पांच करोड़ देगा। जो कि काफी कम हैं। जबकि उस हीरे को चार लोगों के बीच बिठाकर निलामी के माहौल में बेचा जाए तो पचास करोड़ से ज्यादा उसकी कीमत लगे। "


जगमोहन ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया। "तो तुमने क्या बोला ?"


"पच्चीस करोड। " 


"कृष्णलाल जैसा आदमी पच्चीस करोड़ नहीं देगा।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा।


"दरिया-ए-नूर जैसे हीरे को लाने के बदले, पच्चीस करोड़ बिल्कुल भी ज्यादा नहीं हैं। " देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी और उठ खड़ा हुआ- "इससे कम में बात नहीं बनेगी। मैं नहाने जा रहा हूं। तुम चाय बना लो।" 


कहने के साथ ही देवराज चौहान बंगले के भीतर की तरफ बढ़ता चला गया। जगमोहन वहां से हिलने लगा तो फोन की घंटी बजी। 


जगमोहन ने रिसीवर उठाया। "हेलो।"


"जगमोहन।" कृष्णलाल की आवाज कानों में पड़ी- "कृष्णलाल बोल-"


"पहचान लिया।" जगमोहन ने मुंह बनाया- "इतने महंगे हीरे का सस्ता सौदा करना हो तो, राह चलते किसी और से बात कर लिया कर। इधर का रुख मत किया कर निजाम के यहां से हीरा उठाना है। ऐसा करना तुम मजाक समझते हो। खामखाह वक्त खराब किया।"


"मैं पच्चीस करोड़ देने को तैयार हूं।


"क्या?"


"हां देवराज चौहान से बात करा।


''मेरे से कर ले। वो बाथरूम में है।


"उसे बोलना पच्चीस करोड़ दूंगा। लेकिन तभी दूंगा, जब दरिया-ए-नूर मेरे सामने होगा।


"सौदा पच्चीस करोड़ का करता है और ढाई हजार रुपए हैं नहीं। " जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा। "क्या मतलब?"


"सौदा पुच्चीस करोड़ का करता है और खाली-खाली मुंह मीठा करता है। देख कृष्णलाल यहां ऐसा नहीं होता। कम से कम एक करोड़ तो पहले पहुंच जाना चाहिए। ताकि रास्ते का खर्चा-पानी निकलता रहे। बाकी का चौबीस करोड़ तब, जब दरिया-ए-नूर तेरे हवाले करेंगे। बोल हां -"


"हां। " कृष्णलाल की गहरी सांस लेने की आवाज आई "देवराज चौहान से बात करा।" 


"कोई कसर बाकी है क्या ?"


“हीरे के बारे में ही बात करनी है।"


"फोन पर बैठा रह। देवराज चौहान नहा-धोकर तेरे से बात करता है।" कहने के साथ ही जगमोहन ने रिसीवर रखा और चाय बनाने के लिए किचन की तरफ बढ़ गया।

नहाने के बाद देवराज चौहान कपड़े बदल चुका था। उसने चाय का घूंट भरा।


"कृष्णलाल का फोन आया था।" सामने बैठा जगमोहन बोला- "वो पच्चीस करोड़ देने को तैयार है। "


"और?" देवराज चौहान ने उसे देखा। 


"बोलता था। पेमेंट तब होगी, जब दरिया-ए नूर उसके सामने होगा। मैंने उसकी ये बात मान ली। लेकिन खर्चे पानी के लिए एक करोड़ एडवांस के लिए बोल दिया।"

जगमोहन ने कहा- "एक करोड़ वो दे देगा। तुमसे कुछ बात करने को कह रहा था। इस वक्त वो फ़ोन पर बैठा है।" 


देवराज चौहान ने सिर हिलाया।


"फोन लाऊं?"


"लाओ-।"


जगमोहन ने ड्राइंगरूम हॉल से फोन लाकर दिया।


देवराज चौहान ने कृष्णलाल से बात की। 


"मुझे पच्चीस करोड़ देना मंजूर है। दरिया-ए-नूर के बदले। लेकिन ये काम कब तक हो जाएगा ?"


"जल्दी।" 


"मेरे से मिलना। तुम्हें बता दूंगा की हीरा, निजाम ने कहा, किधर कैसे रखा हुआ है। और एक करोड़ एडवांस जो जगमोहन ने कहा है, वो भी दे दूंगा। कब मिलते हो?" कृष्णलाल की आवाज कानों में पड़ रही थी।


"एक दो दिन में। "


"अच्छी बात है। मैं इंतजार करूंगा। फोन मार देना।" 


देवराज चौहान ने फोन बंद करके पास ही रख लिया।


जगमोहन ने चाय का घूंट भरा। 


"रुस्तम राव का फोन आया था। " जगमोहन बोला- "बांकेलाल राठौर ने बात की। " 


देवराज चौहान की निगाह जगमोहन पर जा टिकी।


"खास बात?"


"कह नहीं सकता। बांके, रुस्तम राव के साथ, अपने किसी भाई जैसे दोस्त को भेज रहा है। कर्मपाल सिंह नाम है उसका! उसे तुमसे कोई काम है। वो तुमसे ही बात करना चाहता है। रुस्तम राव, कर्मपाल सिंह को यहां ला रहा है और इस वक्त वो पहुंचता ही होगा। " जगमोहन ने

कहा।


देवराज चौहान ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया।


"कोई खास काम ही होना चाहिए। क्योंकि वो सीधा तुमसे बात करना चाहता है। " जगमोहन बोला। 


देवराज चौहान ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि, दो पल के लिए हैरान सा बैठा रह गया। निगाहें दरवाजे पर ही स्थिर होकर रह गई। चेहरे पर अजीब से भाव आ गए। जगमोहन ने फ़ौरन निगाह घुमाकर देखा। यहां फकीर बाबा खड़ा था।


***

फकीर बाबा दरवाजे पर कब पहुंचा। कैसे पहुंचा। कुछ मालूम नहीं हो सका था। कोई आहट नहीं कोई आवाज नहीं। वो खड़ा शांत निगाहों से दोनों को देख रहा था। 

देवराज चौहान ने जल्दी से खुद को संभाला और उठ खड़ा हुआ। "बाबा आप-। " देवराज चौहान के होंठों से निकला। 

"कैसा है तू देवा ?" 

"अच्छा हूं बाबा " देवराज चौहान का स्वर शांत था। 

फकीर बाबा ने दो कदम उठाए और भीतर आ गया। 

जगमोहन भी हैरानी में डूबा उठ खड़ा हुआ था। "आप कब आए?" जगमोहन कह उठा । 

"जब तुमने देखा जग्गू-।"

"जग्गू?"

"हां। भूल गया क्या" फकीर बाबा मुस्कराए-"तीन जन्म पहले तेरा नाम जग्गू ही था। जब हमारी पहली मुलाकात हुई थी तो तेरे को बताया था। "

"हां। " जगमोहन के चेहरे पर अजीब से भाव थे- "लेकिन मुझे तो इस जन्म के अलावा, कुछ याद नहीं। "

"नहीं याद होगा। मनुष्य की योनि में आकर इंसान बीते जन्म की बातें याद नहीं रख पाता। चोला जो बदल लिया होता है। मरने के बाद जब अगले जन्म में जाएगा तो इस जन्म की बातें याद नहीं रहेगी।"

जगमोहन कुछ न कह सका।

"लेकिन मुझे सब याद है जैसे कल ही की बात हो। कुछ भी तो नहीं भूला क्योंकि तुम लोग मरकर नया शरीर धारण करते रहे और में उसी श्रोप ग्रस्त शरीर को लेकर आज तक भटक रहा हूं। मुक्ति नहीं मिल सकी मुझे।" फकीर बाबा का स्वर गंभीर था- "तुम लोगों की वजह से अपने कर्मों की वजह से भटक रहा हूं।" 

"बाबा "- जगमोहन ने कहा-"क्या हुआ था तीन जन्म पहले।" तब-।

"अभी वक्त नहीं आया बताने का जग्गू-।"

"तो कब आएगा वक्त ?" 

"तब, जब देवा और मिन्नो में दुश्मनी खत्म हो जाएगी। दोनों में दोस्ती हो जाएगी। तब बताऊंगा सब कुछ। तब ही मुझे श्राप से और इस पुराने शरीर से मुक्ति मिलेगी।" कहने के बाद गंभीर निगाहों से, बाबा ने देवराज चौहान को देखा— "देवा, तेरे से काम था।" कुछ बात कहनी है।

"कहिए बाबा।" 

फकीर बाबा गहरी निगाहों से देवरज चौहान को देखता रहा। 

कई पलों तक वहां गहरी खामोशी छाई रही। 

"तूने हर जन्म में मेरी बात रखी। मिन्नो जल्दबाज है। गुस्से वाली है। बात समझती नहीं। लेकिन तू बात समझता है। बोल मानेगा, इस बार भी मेरी बात ?"

"बात बोलो बाबा —।" देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता थी।

"तुझे वायदा करना होगा।"

"क्या?"

"मेरी बात मानेगा।" 

"बात सुने बिना, मैं ये वायदा नहीं कर सकता बाबा " देवराज चौहान ने कहा ।

"मेरी कही बात में तेरे को नुकसान हो तो, वायदे की बात भूल जाना। मेरा कहा मत मानना" फकीर बाबा का स्वर, शांत-स्थिर था।

निगाहें देवराज चौहान पर थीं।

देवराज चौहान, फकीर बाबा के बूढ़े शरीर को देखता रहा।

"चुप क्यों कर गया देवा ?"

"सोच रहा हूं बाबा कि हां कहने के बाद, बाद में पीछे कैसे हटूंगा, मैं...।"

"तेरे को कहा है देवा, वायदे के बाद भी, बात पसंद न आए तो, पीछे हट सकता है तू " 

"वायदे के बाद मैं पीछे नहीं हटता।" देवराज चौहान का स्वर -सपाट था- "इसलिए बिना वायदे के ही अगर आप बात मेरे सामने रख दें तो, मुझे फैसला करने में आसानी रहेगी।" 

फकीर बाबा ने गंभीरता से सिर हिलाया।

"मैं चाहता हूं, मिन्नो से तेरा झगड़ा न हो। " फकीर बाबा ने कहा।

"मैं कब झगड़ रहा हूं। " देवराज चौहान ने फकीर बाबा को देखा।

"मैं आने वाले वक्त को देख रहा हूं देवा। अगले पंद्रह दिनों के भीतर तेरा और मिन्नो का आमना-सामना होगा और बहुत ही भयंकर झगड़ा खड़ा हो जाएगा।"

देवराज चौहान का चेहरा भावहीन ही रहा।

“बाबा।" देवराज चौहान का स्वर शांत था- "अगर आप ये सोचते हैं कि मोना चौधरी मेरा गिरेबान पकड़े और मैं झगड़ा न करने की खातिर, उसके सामने हाथ जोड़ दूं तो ऐसा नहीं होगा। "

"मैं इस झगड़े को टालना चाहता हूं। अगर पंद्रह दिन गुरुवर की कृपा से ठीक तरह निकल जाते हैं तो फिर तेरा और मिन्नो का झगड़ा नहीं होगा। इन पंद्रह दिनों को टालना है।"

देवराज चौहान ने समझने वाले भाव में सिर हिलाया।

"बाबा। मोना चौधरी से टक्कर लेने, झगड़ा करने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए इस मामले में मैं आपकी हर बात मानूंगा। एक हद तक। लेकिन मोना चौधरी के सामने से पीछे नहीं हटूंगा।"

"मैं तेरे को पीछे हटने के लिए नहीं कह रहा।"

"तो फिर कहो बाबा आप मुझसे क्या चाहते हैं?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

"रुस्तम राव किसी को तेरे पास ला रहा है। " फकीर बाबा ने कहा।

"हां।" जगमोहन कह उठा-"बांके से फोन पर यही बात हुई थी।"

फकीर बाबा की नजरें देवराज चौहान पर थीं।

"देवा। तू उस आने वाले से नहीं मिलेगा। बात नहीं करेगा। तेरे से जो काम वो कराना चाहता है। वो तू नहीं करेगा। देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें मिलीं। देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता थी।

"बाबा। वो जो कोई भी है, उसे बांके भेज रहा है। बांके ने मेरा साथ दिया था, जब पहली बार मोना चौधरी से मेरा टकराव हुआ था। ऐसे में उसे मना कैसे कर- ।"

"मेरी खातिर, ये बात मान लो। " फकीर बाबा का स्वर गंभीर था।

देवराज चौहान चुप्पी के बाद बोला। 

"कम से कम उससे बात तो कर लेने दो बाबा। बात नहीं की तो बांके क्या सोचेगा कि  

“तूने उसके सामने भी नहीं जाना है। "

देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से फकीर बाबा को देखा।

"ऐसी बात क्यों?" 

"क्योंकि वो तेरे को जो काम करने को बोलेगा, उसी काम की राह पर मिन्नो बढ़ रही है। तू उस काम को करेगा तो भयंकर तूफान उठ खड़ा होगा। जो मैं नहीं चाहता। वो हो जाएगा। तेरा और मिन्नो का -- टकराव हो जाएगा। दिलों की मैल बढ़ जाएगी। नफरत की दीवारें खड़ी होगीं। कई जाने जाएंगी और मेरा मुक्ति का वक्त और आगे बढ़ जाएगा। मैं चाहता हूं ये सब न हो। धीरे-धीरे किसी तरह तुम दोनों में दोस्ती कराकर, श्राप से मुक्त होकर मुक्ति पा लूं। देवा, मैंने तेरे से जो मांगा है, वो ऐसी बात नहीं कि तू मान न सके। " फकीर बाबा गंभीर था। 

"ठीक है बाबा।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा- "मैं उससे नहीं मिलूंगा।" 

"मैं जानता था। जानता था देवा कि तू मेरी बात टालेगा नहीं। हर जन्म में तूने मेरी बात रखी। लेकिन मिन्नो ने ही तेरे को मजबूर किया, आगे बढ़ने को। कसूर मिन्नो का नहीं, तब वक्त का फेर ही ऐसा हो जाता है कि मिन्नो भी अपने होश खो बैठती है।" फकीर बाबा के स्वर में शांत भाव थे-"मुझे पूरी आशा है कि इस जन्म में तेरी और मिन्नो की दोस्ती कराकर श्राप से मुक्ति पा जाऊंगा। क्योंकि इस दुश्मनी की वजह तीन जन्म पहले मेरी ही वजह से खड़ी —।"

उसी वक्त रुस्तम राव ने भीतर प्रवेश किया। फकीर बाबा को वहां मौजूद पाकर हड़बड़ा उठा। चेहरे पर अजीब से भाव आकर, ठहरते चले गए। 

"मैं जानता था तू आ रहा है। तेरे कदम इस कमरे की तरफ बढ़ रहे हैं।" फकीर बाबा के होंठों पर मुस्कराहट उभरी—“बाज नहीं आएगा, अपनी आदतों से।"

"आदत? आपुन क्या करेला है बाबा।" रुस्तम राव फौरन दोनों हाथ जोड़कर बोला। ।

फकीर बाबा के होंठों पर मुस्कान छाई रही

"तू पहले जन्म में भी छोटा था और सबसे तेज था। दूसरे में भी और अब तीसरे जन्म में भी तेरे को देख चुका हूं जैसे तूने कालूराम को मौत दी। दूसरे में भी कालूराम को तुमने ही मारा था और पहले में भी कालूराम को तू ही मार सका था। तब वो मेरा बेटा था। अगर तू उसे खत्म न करता तो हर जन्म में वो जाने कितना कहर ढाता।"

"बाबा। आपुन ने तो जो करेला हालात के मुताबिक ही करेला है। आपुन—।"

"तेरे को मैंने गलत नहीं कहा। मैंने तो तुझे तेरा भूतकाल बताया है। " फकीर बाबा मुस्कराया।

"बाबा अगर आपुन कालूराम को नहीं मारेला तो वो आपुन और इंस्पेक्टर वानखेड़े को मारेला। वो बहुत खतरनाक होएला। " रुस्तम राव ने गंभीर स्वर में कहा— "वो...।"

"तू सबसे ज्यादा खतरनाक रहा है हर जन्म में। तेरे और कालूराम में इतना ही फर्क रहा हमेशा कि वो अपनी ताकत का बुरे और गलत कामों में इस्तेमाल करता रहा और तू अपनी ताकत को अच्छे कामों में लगाता रहा। "

रुस्तम राव की निगाह फकीर बाबा के चेहरे पर थी।

"बाबा। जब तुम आपुन को पैले मिला तो आपुन ने इस अक्खा जन्म तेरे को नेई देखा गारंटी है। पण आपुन को हर बार येई लगेला कि तेरे को कभी देखेला है। तेरी आवाज सुनेला है। अब भी ये ही लगेला है। "

फकीर बाबा मुस्कराया।

"हां। ये बात तू पहले भी कह चुका है। " फकीर बाबा मुस्कराया "लोग बीते जन्मों की बातें भूल जाते हैं परंतु लाखों-करोड़ों में कोई एक होता है, जिसे कुछ याद रह जाता है। जैसे कि तेरे को मेरा चेहरा और आवाज। हो सकता है कभी तेरे को बीते जन्मों की वो बातें भी याद आ जाएं, जो कभी हुई थीं। "

"बाबा। तू कौन होएला। बता मेरे को?" रुस्तम राव गंभीर स्वर में बोला।

फकीर बाबा ने अपना मुस्कान भरा चेहरा देवराज चौहान की तरफ किया।

"देवा। मेरी बात मानकर याद रखना कि ये पन्द्रह दिन तेरे को बिना किसी झगड़े के निकालने हैं। मेरे पर तेरा ये एहसान होगा। कहने के साथ ही फकीर बाबा पलटा और दरवाजे से बाहर निकल गया। बाबा के कदमों की आवाज नहीं गूंज रही थी।

देवराज चौहान और जगमोहन की गंभीर निगाहें मिलीं।

फकीर बाबा को दरवाजे से निकलता पाकर रुस्तम राव फौरन दरवाजे की तरफ बढ़ा। 

"बाबा-।" दरवाजे से बाहर निकलते ही रुस्तम राव ठिठका। चेहरे पर ठगे से भाव आ गए।

फकीर बाबा कहीं भी नहीं था।



जगमोहन ने फकीर बाबा की कही सारी बातें रुस्तम राव को बताई।

रुस्तम राव के चेहरे पर गंभीरता आ गई।

देवराज चौहान सिगरेट सुलगाए, कश लेता कमरे में टहल रहा था। 

"बाप। ये बाबा बहुत शक्ति वाला होएला। इसका कमाल तो आपुन ने पैले भी देखेला है। बाबा ऐसा बोला तो सच बोला। देवराज चौहान कर्मे की बात सुनेला तो मोना चौधरी से टक्कर होएला। आपुन भी नेई चाहेला कि झगड़ा खड़ा हो। कर्मे को आपुन वापस ले जाएला बाप। " रुस्तम राव खड़ा हो गया। " 

"बांके को समझा देना।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा।

“चिन्ता मत करेला बाप। बांके को सिर से पांव तक समझायेला।" कहने के साथ ही वो बाहर निकल गया। 

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

"अब क्या करना है?" जगमोहन ने पूछा।

देवराज चौहान ठिठका और गंभीर स्वर में कह उठा। "मैं फालतू बातों की तरफ ध्यान न देकर, निजाम के दरिया-ए-नूर हीरे को हासिल करने के लिए काम पर लग जाना चाहता हूं।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

"मैं भी यही सोच रहा था। कृष्णलाल से कब की मुलाकात तय कर लूं?"

"कल सुबह की ?"

***