“लेकिन क्यों ?"


"क्योंकि मैं नहीं चाहता कि बाद में बांकेबिहारी आकर कोई फसाद खड़ा करे।"


"वह कुछ भी नहीं कर सकता।" - सुनील ने कहा ।


"लेकिन अगर उसने किया तो ?"


"मैनेजर साहब" - सुनील तल्ख स्वर में बोला - "आप जानते तो हैं कि यह गाड़ी रमा की है।"


"मैं केवल इतना जानता हूं कि हमने ये गाड़ी रमा खोसला को बेची थी। हमारे पास यह जानने का कोई साधन नहीं है कि यह गाड़ी चुराई गयी है। हो सकता है रमा ने गाड़ी बांकेबिहारी को बेची हो। ऐसी सूरत में हम रमा को गाड़ी देकर मुसीबत मोल लेना नहीं चाहते। क्या पता बांकेबिहारी हमसे किस ढंग से पेश आए।"


'लेकिन" - सुनील तनिक उत्तेजित होकर बोला "अगर मैं ये कहूं कि आप अपने पास चुराया हुआ माल रखे हुए हैं तो ?"


"शौक से कहिए। मुझे इससे क्या फर्क पड़ता है ? मैं कहूंगा कि आप कानून की मदद लें और कानूनी तौर पर मेरे पास चुराया माल बरामद करें।"


"उस सूरत में आपसे डिलीवरी में देर करने का हरजाना भी वसूल किया जाएगा।"


“मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा, लेकिन मैं कोई ऐसा

काम नहीं करूंगा जिसमें मेरी गर्दन फंसती हो। मैं यहां मैनेजर हूं, मालिक नहीं। और अगर वाकई कार चुराई गई है तो आपको पुलिस में रिपोर्ट लिखाने में क्या एतराज है ?"


"रमा नहीं चाहती कि पुलिस को बीच में लाया जाए।"


"क्यों ?"


"कारण कुछ भी हो, बहरहाल उन्हें पुलिस का दखल सूट नहीं करता । "


"तो फिर मैं मजबूर हूं।"


सुनील क्षण भर के लिए चुप हो गया। फिर कुछ सोचकर बोला- "अच्छा आप यह समझिए कि यह बात आपकी जानकारी में ही नहीं है कि कार चुराई गयी है ।"


"उससे क्या होगा ?"


"मैं इसे खरीद लूंगा । इससे तो आपको कोई एतराज नहीं होगा ?"


"बिल्कुल भी नहीं । "


"क्या कीमत है इसकी ?"


"चौदह हजार रुपये । "


"मुझे यही कीमत मंजूर है। आप अपने बांकेबिहारी की कार का रजिस्ट्रेशन दिखाने और पेमेंट लेने के लिए बुलाइए। अगर वह यहां आ गया तो हम उसे पुलिस के

हवाले कर देंगे चोरी के आरोप में।"


"हां, यह ठीक है।" - मैनेजर ने कहा- "आप दफ्तर में चलिए। मैं उसे फोन करता हूं।"


रमा ने अपनी चाबी से गाड़ी को ताला लगाया और बाकी लोगों के साथ दफ्तर की ओर चल पड़ी।


अभी वे केवल बीस-पच्चीस कदम ही चले थे कि प्रमिला बोल पड़ी - "आपके हाथ में पर्स था, मिस रमा ?”


"ओह !" - रमा एकदम बोली- "वह तो कार के भीतर ही रह गया। मैं अभी लाती हूं।"


"क्या चीज है ?" सुनील रमा की पीठ को घूरते हुए प्रशंसापूर्ण स्वर में बोला- "क्या बैलेन्स है, चलती है तो शरीर की एक-एक बोटी हरकत में आ जाती है। ऐसी पैकिंग, ऐसी पालिश आज तक कभी देखी है, मैनेजर साहब ?"


प्रमिला जलकर रह गयी। सुनील उसी के सामने रमा की तारीफ कर रहा था। वह कपड़ों को पैकिंग और मेकअप को पालिश कहा करता था ।


"अपना तो काम ही ये है, जनाब" मैनेजर ने कहा"कार और औरत दोनों की खूबसूरती बॉडी के कारण ही होती है। कार की मशीनरी कितनी ही शानदार क्यों न हो, अगर बॉडी की फिनिश बढिया नहीं होती तो नब्बे प्रतिशत ग्राहक हाथ नहीं लगाते उसे । यही हाल औरत का भी है। कितनी भी काबिल औरत क्यों न हो, अगर ऊपर की पालिश बढ़िया नहीं है, सब नट-बोल्ट अपनी-अपनी जगह मजबूती से कसे हुए नहीं हैं तो कुछ भी नहीं। देखने वालों में कोई करंट पैदा नहीं होता।"


"बड़ी ज्ञानवर्धक बातें बताई हैं आपने, मैनेजर साहब ।" - प्रमिला ने जलकर कहा- "अच्छा हो हम बाकी बातें आफिस में बैठकर करें ।"


मैनेजर कुछ कदम ऑफिस की ओर बढ़ा । फिर एकदम रुक गया ।


मैनेजर बोला- "क्यों मिस्टर सुनील, क्या ख्याल है रमा को अपना पर्स खोजने में जरूरत से ज्यादा वक्त नहीं लग रहा है क्या ?"


और फिर उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही मैनेजर ने कार की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया। उसके कार के समीप पहुंचते ही रमा दरवाजा खोलकर बाहर आ गयी ।


"मैनेजर साहब" - रमा बोली- "कार में लगा शीशा देखकर मेरी अपना मेकअप ठीक करने की इच्छा हो आयी थी ।"


मैनेजर के चेहरे पर विश्वास की झलक दिखाई देने लगी ।


रमा ने कार को ताला लगा दिया और फिर वे लोग मैनेजर के केबिन में आ गए।


मैनेजर ने ऑफिस में पहुंचकर बांकेबिहारी का नम्बर डायल कर दिया ।


- "हैलो" मैनेजर ने माउथपीस पर झुकते हुए कहा -


"मिस्टर बांकेबिहारी हैं... मैं मैनेजर हूं- ओरियंट मोटर कम्पनी का... जी यहां कोई बांकेबिहारी नहीं... लेकिन हमें तो यही नम्बर बताया गया था...जी हां.. . बांकेबिहारी. .... आप नहीं जानते.. ओ.. के. सर, थैंक्यू...हमें गलती हुई होगी.. . थैंक्यू.. . थैंक्यू सो मच फार दी ट्रबल ।”


मैनेजर ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया ।


"नम्बर तो ठीक था न ?" - सुनील ने पूछा ।


"बिल्कुल ठीक" - मैनेजर ने कहा- "यह रहा कार्ड । बांके ने खुद इस पर अपना फोन नम्बर और पता लिखा था ।"


सुनील कुछ क्षण तक तो कार्ड पर लिखे पते को अपने दिमाग में दोहराता रहा ।


"172 राबर्ट स्ट्रीट" सुनील बोला "मैनेजर साहब, राबर्ट स्ट्रीट मेरी देखी-भाली है। उसमें एक सौ बहत्तर नम्बर का कोई मकान नहीं है। वहां तो शायद बीस-बाईस तक ही नम्बर हैं।" 


मैनेजर ने दराज में से शहर का नक्शा निकालकर मेज पर फैला दिया और कुछ क्षण उसे देखता रहा ।


"ओके" - मैनेजर ने नक्शा लपेटते हुए कहा - "मैं कार दे दूंगा। मुझे कार की रसीद और तुम्हारी स्टेटमेंट कि तुम रमा को कार दिलवा रहे हो और किसी भी गड़बड़ के लिये जिम्मेदार हो, मिलनी चाहिए। मैं तुम्हारे ब्लास्ट की रिप्यूट से प्रभावित होकर तुम्हारे विश्वास पर कार दे रहा हूं |"


'आपने जो लिखना है लिख लीजिये, मैं साइन कर दूंगा।" - सुनील ने कहा ।


"आप कार ले जाएंगे ?"


"अभी ।" - रमा ने कहा ।


" देखिए" - मैनेजर ने कहा- "मैं अपने को सुरक्षित रखने के लिये बड़ी कानूनी रसीद बनाना चाहता हूं।"


"अगर आप रसीद पर ये लिखें कि आप मेरी जिम्मेदारी पर रमा खोसला को गाड़ी दे रहे हैं और आप जानते हैं कि गाड़ी चुराई गई थी और रमा उसकी असली स्वामिनी है और इस कार का नम्बर वही है जो उस कार का था जो रमा को कुछ समय पहले बेची गयी थी, तो मैं साइन कर दूंगा ।"


"ठीक है।" - मैनेजर ने लिखना शुरू किया।


"रिपोर्टर के तौर पर बड़ा नाम है तुम्हारा" - मैनेजर ने उसके हाथ में कागज थमाते हुए कहा -" और मैंने सुना है कि तुम बाल की खाल निकालने में प्रवीण हो । देखूं तुम मेरे ढंग से लिखे कागज पर साइन करते हो या नहीं । "


"मैनेजर साहब" - सुनील ने कागज पर अपने हस्ताक्षर घसीटते हुए कहा- "मैं इसे बिना पढ़े ही साइन किए देता हूं।"


मैनेजर ने आश्चर्य चकित होकर सुनील की ओर देखा


"कम से कम पढ़ तो लेते इसे ।" - प्रमिला ने धीमी आवाज में कहा- "क्या पता मैनेजर ने तुमसे किस बात पर साइन कराए हैं ?"


"क्या अन्तर पड़ता है ?" - सुनील ने कहा- "मैनेजर

साहब अच्छे आदमी हैं, हमसे कोई गलत थोड़े ही लिखवाएंगे । लेकिन प्रमिला, अब तुम जरा इसकी नकल तो कर लो, शायद बाद में कभी रेफरेंस की जरूरर पड़े।"


सुनील ने कागज प्रमिला के सामने कर दिया और प्रमिला उसे नकल करने लगी। नकल हो जाने के बाद सुनील ने कागज मैनेजर को थमा दिया और खड़ा हो गया ।


"हैरानी है जनाब" - मैनेजर ने खड़े होते हुए कहा"कोई आम आदमी भी किसी डाकूमेंट पर बिना पढे साइन नहीं करता और आपने कर दिये।" --


"यह संसार विचित्रताओं का घर है, मैनेजर साहब" सुनील ने दर्शन झाड़ते हुए कहा- "यहां जो न हो जाए वही थोड़ा है।"


"लेकिन डाकूमेंट बिना पढ़े साइन करना... कमाल है!"


मैनेजर फिर बड़बड़ाया ।


"मैनेजर साहब" - सुनील बोला- "अगर इससे आपकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता हो तो मैं आपको एक कानूनी नुक्ता बता सकता हूं।"


"क्या ?"


"आपने जिस कागज पर मेरे से हस्ताक्षर करवाए हैं उसकी तब तक कोई कीमत नहीं जब तक कि साइन होकर सुरक्षित रूप से आपके पास दुबारा न पहुंच जाए।"


"फिर ?”


"मैंने साइन करने से पहले कागज को नहीं पढ़ा था, लेकिन साइन करने के बाद जब मैं प्रमिला को नकल करवाने के लिए उसे थामे हुए था उस समय मैंने इसे पढ़ लिया था। "


"तो.. . तो ... तुम्हारा मतलब है कि अगर उस समय तुम्हें उसमें कोई आपत्तिजनक बात दिखाई देती तो तुम कागज मुझे वापस नहीं करते ?"


"हरगिज नहीं करता। मैं उसे वहीं फाड़कर फेंक देता।"


"तब ठीक है।" - मैनेजर ने सन्तोष की एक लम्बी सांस लेते हुए कहा- "मैं तो हैरान हो गया था।”


मैनेजर ने मिलाने के लिए हाथ बढ़ा दिया ।


" इस बार बल प्रदर्शन तो नहीं करेंगे आप ?" - सुनील ने झिझककर हाथ थामते हुए कहा ।


"शुरुआत तो पहले भी आप ही ने की थी।" - मैनेजर ने हाथ मिलाते हुए कहा ।


बाहर आने के बाद रमा ने मिस्त्री को चाबी देकर गाड़ी गेट पर लाने के लिए कहा।


"क्या आप" - सुनील ने कहा- "अब भी चाहती हैं कि मैं बैंक की चोरी वाले मामले में दिलचस्पी लूं ?"


"क्यों नहीं? अभी तो केवल शुरूआत ही हुई है ।"


" अब आपसे दोबारा कब मुलाकात होगी ?"


"कल सुबह नौ बजे, जब मैं आपकी फीस देने आऊंगी।"


"मिस रमा, यह पुराना केस है, इस पर काम करने के लिए मुझे बहुत आदमी चाहियें । "


"तो रखिए ।"


"मेरा खोजबीन का काम रमाकांत की यूथ क्लब करती है, रमाकांत का बिल कौन देगा ?"


"मैं दूंगी।"


"खर्चे की कोई हद भी है ?"


"कोई हद नहीं । आप जितना चाहे खर्चा कीजिए । कल नौ बजे आपको पर्याप्त रकम मिल जाएगी।"


उसी समय मिस्त्री गाड़ी ले आया ।


"ओके मिस्टर सुनील ।" - रमा ने स्टीयरिंग सम्भालते हुए कहा ।


" मैं सन्तुष्ट नहीं हूं।" सुनील ने नाराज होकर कहा । -


"आप कल सुबह हो जाएंगे। बाई मिस्टर सुनील सी यू टूमारो ऐट नाइन । "


रमा की कार अभी मेन रोड पर ही पहुंची थी कि साइड में से एक और कार निकली और रमा की कार के पीछे लग गई ।


"आओ पम्मी चलें । रमाकांत के आदमियों ने रमा का पीछा करना आरम्भ कर दिया है। बाकी रिपोर्ट मुझे रमाकांत से मिल जाएगी।"