काला कुत्ता

म लोग प्रायः काली बिल्लियों, काले चीतों और काले कुत्तों को अशुभ जानवर समझते हैं जिनका संबंध जादू-टोने या रात में घात लगाने वाले शिकारी कुत्तों अथवा रात में हमला करने वाले तेंदुओं से माना जाता है। परंतु मिस रिप्ली-बीन ने मुझे यह विश्वास दिलाया कि काले कुत्ते, यहाँ तक कि जो भयावह होते हैं, वास्तव में बहुत दयालु होते हैं और वे अकेले घूम रहे यात्रियों की रक्षा करते हैं बशर्ते, यात्रियों की नीयत साफ़ हो और उनका मन शुद्ध हो।

मेरी भेंट मिस रिप्ली-बीन से 1970 के दशक के आरंभ में हुई थी, जब मैं मसूरी रहने आया था। पुस्तकालय बाज़ार के ऊपर होटल रॉयल के पुराने हिस्से में उनके पास रहने के लिए दो कमरे हैं। मैं झरने के ठीक ऊपर बसे कैंप्टी गाँव के एक छोटे-से घर में रहता था। गाँव, शहर से तीन या चार मील की दूरी पर था और उन दिनों मोटर से जाने योग्य रास्ता नहीं था। केवल एक सीधी पगडंडी थी, जो खेतों के रास्ते बलूत के जंगल से गुज़रती थी।

मैं अक्सर होटल रॉयल जाता था। मुझे मिस रिप्ली-बीन से बातें करना अच्छा लगता था क्योंकि वह बहुत ईमानदार और काम में तेज़ सत्तर वर्षीय महिला थीं। वह इंग्लैंड तथा मसूरी और दून घाटी में अपने आरंभिक वर्षों की कहानियों से मेरा मनोरंजन भी करती थीं। उनके पास इंग्लैंड के समुद्री-तट पर दिखने वाली जलपरियों से लेकर हिमालय के पेड़ों पर रहने वाली आत्माओं और घाटी की परियों के अनेक किस्से थे।

रॉयल में लोबो भी एक मित्र था, जो होटल में रोज़ शाम को पियानो बजाता था। वह हमेशा मुझे मेरी पसंद के पुराने यादगार गानों की धुनें सुनाने को तैयार रहता था: ‘सितंबर गीत’ या ‘आई किस यॉर लिटिल हैंड, मैडम।’ बार में थोड़ी व्हिस्की पीने के बाद, मैं हाथ में टॉर्च लेकर घर जाता था क्योंकि कैंप्टी तक का रास्ता अंधकारपूर्ण और परछाइयों से भरा था। मैं सामान्य तौर पर आठ बजे तक घर पहुँच जाता था। सड़क पार एक ढाबा था। ढाबे का लड़का मेरे लिए खाने को कुछ ले आता था - गाँव से आलू के साथ पकाई सेम या कैंप्टी के नीचे बहती छोटी नदी की एक मछली। वह स्थान उस समय उजाड़ था और आज जैसा पर्यटन गंतव्य नहीं बना था।

एक दिन एक प्रसिद्ध समाचार-पत्र के संपादक ने मुझे पार्टी में आमंत्रित किया। वह होटल रॉयल में ही ठहरा हुआ था: डिप्लोमैट अख़बार का संपादक शशि सिन्हा। वह रविवारीय में मेरी लिखी छोटी-छोटी कहानियाँ प्रकाशित करता था। मुझे पता था कि पार्टी आठ बजे के आस-पास ही आरंभ होगी इसलिए मैं घर से थोड़ी देर से निकला। उस समय सूर्य चकराता पर्वतमाला के पीछे अस्त हो रहा था और घाटी में धीरे-धीरे शाम ढलने को थी।

मैं एक खेत से होता हुआ जंगल के रास्ते पर आगे पहुँचा और फिर अंत में मसूरी के टीले के नीचे बलूत और चीड़ के वृक्षों को पार कर गया।

मुझे शुरू से ही पता था कि एक बड़ा-सा, काला कुत्ता मेरे पीछे चल रहा था। मुझे उससे कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि मुझे गाँव के कुत्तों को देखने की आदत थी, जिनमें से अधिकतर कमज़ोर और डरपोक होते हैं। वे भौंकते बहुत हैं लेकिन नज़दीक नहीं आते।

यह कुत्ता अधिकतर कुत्तों से ज़्यादा ऊँचा और बड़ा था और बिलकुल नहीं भौंक रहा था। वह दाएँ-बाएँ देखते हुए चलता रहा किंतु उसके पैरों की कोई आवाज़ नहीं हो रही थी। दूसरों कुत्तों से अलग, उसने मुझे जानने का भी प्रयास नहीं किया। मैंने भी उससे दूरी बनाए रखी। मुझे उससे डर नहीं लगा लेकिन वह दूसरे कुत्तों से बिलकुल अलग था। मैंने उससे मित्रता करने की कोशिश नहीं की।

मैं जब होटल के प्रवेश-द्वार पर पहुँचा, मेरी भेंट मिस रिप्ली-बीन और उनके शिकारी कुत्ते फ़्लफ़ से हुई, जो मेरे वहाँ पहुँचने पर ज़ोर-ज़ोर-से भौंकने लगा।

‘क्या आप किसी कुत्ते को साथ लाए हैं?’ मिस रिप्ली-बीन ने पूछा। ‘मुझे लगा मैंने एक बड़े-से काले कुत्ते को आपके साथ आते देखा था।’

मिस रिप्ली-बीन पार्टी में शामिल नहीं हुईं क्योंकि वहाँ बहुत शोरगुल था। लोग बहुत शराब पी रहे थे, कुछ नाच-गाना भी हो रहा था और लोबो अपना पियानो बजाने में मस्त था।

‘आपका चेक डाक में है,’ शशि सिन्हा ने कहा। वह अख़बार में छपी मेरी एक कहानी के संदर्भ में कह रहा था।

‘मुझे विश्वास है कि वह चेक मुझे मिल ही जाएगा,’ मैंने विनम्रता से कहा। मैं इस बात का अभ्यस्त था कि चेक अक्सर देर से मिलें या फिर डाक में ही खो जाएँ।

मैं पार्टी के बाद अपने मेज़बान से विदा लेकर घर के लिए निकला तो रात के ग्यारह बज चुके थे। मेरे क़दम कुछ लड़खड़ा रहे थे, किंतु चंद्रमा पहाड़ों के ऊपर उदय हो चुका था और मैं टॉर्च के बिना भी अपना रास्ता साफ़ देख सकता था।

तभी वह काला कुत्ता मुझे फिर से दिख गया!

वह मेरे साथ-साथ चल रहा था, कभी आगे, कभी दाएँ, कभी बाएँ लेकिन वह न दूर और न ज़्यादा पास था। मैं तेज़ चलने लगता तो भी वह न मेरे हाथ आता था और न ही आँखों से ओझल होता था।

वह देखने में असली था - वह ऊँचा काला शिकारी कुत्ता, जंगल में बड़े सहज ढंग से चल रहा था। वह परिचित होते हुए भी अपरिचित था, वह मुझसे दूर रहते हुए भी मेरे पास था।

मुझे घर पहुँचने में एक घंटा लगा और वह कुत्ता पूरे समय मेरे साथ चलता रहा।

आख़िर मैं घर पहुँच गया।

मैंने सामने का गेट खोला, फिर दरवाज़े का ताला खोला और पीछे मुड़कर देखा। वह काला कुत्ता जा चुका था!

मैंने उसे फिर कभी नहीं देखा।

मैं सोचने लगा कि मेरे इस अनुभव में क्या विशेष बात थी। एक कुत्ता मेरे पीछे शहर तक गया और फिर मेरे साथ वापस लौट आया और फिर वह अचानक ग़ायब हो गया। यह सच है, वह विचित्र कुत्ता था, दूर रहने वाला और एकांतप्रिय। मैंने इतना शांत कुत्ता पहले कभी नहीं देखा था। लेकिन वह बिलकुल असली था और जंगल में मेरे साथ चल रहा था।

किसी कारणवश, मैं उस काले कुत्ते को भुला नहीं सका।

कई महीनों बाद, मैं होटल रॉयल के बार में बैठा कुछ दोस्तों के साथ शराब पी रहा था। उनमें से एक हरिद्वार जेल का मुख्य संचालक था। अपराध और अपराधियों की बातें चल पड़ीं तो उसने मुझसे कहा, ‘आप लेखक बॉण्ड हैं न? क्या आपको पता है कि कोई आपके ऊपर घात लगाकर बैठा था और आपको लूटने, यहाँ तक कि मार डालने वाला था और आप बच गए?’

‘मैं यह पहली बार सुन रहा हूँ,’ मैंने कहा।

‘हरिद्वार में दो लोगों पर मुक़दमा चल रहा है। उन्हें स्थानीय बैंक लूटने के अपराध में पकड़ा गया था और उन्हें यह कहते सुना गया कि वे दोनों पिछले साल आपको होटल से लौटते समय रास्ते में लूटने की योजना बना रहे थे।’

‘सचमुच? लेकिन क्यों?’ मैंने पूछा। ‘मेरे पास तो इतना पैसा भी नहीं है कि मुझे लूटने से किसी को लाभ हो सके।’

‘आप शहर में इतने मशहूर हैं कि उन्हें लगा होगा आप बहुत धनवान हैं,’ संचालक ने कहा। ‘ख़ैर, उन्होंने कैंप्टी से शहर तक और फिर वापस, पूरे रास्ते आपका पीछा किया लेकिन एक बड़ा-सा काला कुत्ता आपके साथ चल रहा था। वे चोर, आप और आपके कुत्ते पर एकसाथ हमला करने में हिचक रहे थे। आपने कुत्ता रखकर बहुत समझदारी की। वह लैब्राडोर है या भूतिया प्रजाति?’

‘मैंने कोई कुत्ता नहीं पाला है,’ मैंने कहा। ‘परंतु उस रात मेरे साथ एक कुत्ता था। एक बड़ा-सा काला कुत्ता। मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था, और उस दिन के बाद फिर कभी नहीं देखा।’

लोबो हमारी बातचीत सुन रहा था। ‘रक्षक आत्मा,’ वह बोला। ‘हम उन्हें पहचान नहीं पाते, लेकिन वे सदा हमारे साथ रहती हैं।’